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जिद्दी वजन जाएगा

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आजकल सभी लोग फिटनेस की बात करने लगे हैं। खासकर कोरोना ने यह अहसास दिला दिया है कि जान है तो जहान है। हमें खुद को सेहतमंद भी रखना होगा। बहुत-से लोग जो कोरोना के दौर से पहले जिम जाते थे, वे यह कहते दिखे कि जिम खुलेंगे तो फिर एक्सरसाइज शुरू करेंगे। लेकिन बहुत मेहनत से कम किया गया उनका वजन पहले से ज्यादा बढ़ चुका है। वहीं कुछ हैं जो डाइटिंग और एक्सरसाइज के बाद भी वजन घटाने में मामले में 99 के फेर में फंसे हैं। आखिर यह वजन कहां अटक जाता है? वजन घटाना और फिर उसे मेंटेन करना इतना मुश्किल क्यों है? क्या इसे आसान बनाया जा सकता है? एक्सपर्ट्स से बात करके इसी बारे में जानकारी दे रही हैं रजनी शर्मा...

3 सबसे जरूरी बातें
  1. सेहतमंद खाना- खाने के बाद भी मन और शरीर में हल्कापन रहे। अगर खाते ही नींद आती है तो खाना बदलें।
  2. एक्सरसाइज- इसे लाइफस्टाइल का हिस्सा बना लेना चाहिए। लंबे वक्त तक एक ही पैटर्न फॉलो नही करना है।
  3. शरीर को पूरा आराम- अगर रोजाना 7-8 घंटे की नींद नहीं मिल रही तो शरीर बदलाव नहीं दिखा पाएगा।
सबसे पहले तो यही सवाल उठता है कि कैसे पता चले कि हमारा वजन ज्यादा है। दरअसल इसके लिए कुछ पैमाने हैं जिनसे हम पता लगा सकते हैं कि हमारा वजन बढ़ गया है।

1. BMI (Body Mass Index): यह हमें इशारा देता है कि हम वजन और हाइट के मुताबिक नॉर्मल रेंज में हैं या नहीं। BMI चेक करके टारगेट सेट कर सकते हैं कि हमें कितना वजन घटाना है। BMI जानने के लिए वजन और लंबाई का अनुपात निकालते हैं। BMI = kg/m2 यह 18.5 से कम न हो और 25 से ज्यादा न हो। (अपना BMI cdc.gov/healthyweight/assessing और smartbmicalculator.com जैसी कई वेबसाइट्स से चेक कर सकते हैं)

2. पेट या हिप्स पर फैट: कुछ लोगों का वजन BMI के मुताबिक सही हो सकता है लेकिन उनके पेट या कमर पर चर्बी हो सकती है। महिलाओं के हिप्स हैवी हो सकते हैं। इसके लिए कमर और हिप्स का अनुपात देखा जाता है। अपने दोनों पैरों को मिलाकर सीधे खड़े हों और सांस छोड़ दें। अब मेजरिंग टेप को कमर के पीछे से लेते हुए पेट पर नाभि के ऊपर तक लाएं। इस नाप को नोट करें। अब अपने हिप्स को भी इसी तरह नाप लें। दोनों संख्याओं को आपस में भाग दे दें। कमर और हिप्स का अनुपात महिलाओं में 0.80 और पुरुषों में 0.85 या उससे कम होना चाहिए। महिलाओं की कमर 32 इंच (81.3 सेमी) से कम और पुरुषों की कमर 38 इंच (96.5 सेमी) से कम होनी चाहिए। महिलाओं में कमर से नीचे का हिस्सा थोड़ा भारी हो सकता है। आमतौर पर महिलाओं की शेप नाशपाती के आकार की पाई जाती है। लेकिन हिप्स और जांघों में फैट अगर इतना हो कि चलने-फिरने में दिक्कत महसूस हो तो वजन ज्यादा है। वहीं पुरुषों में सेब जैसी शेप हो जाती है जो शरीर से बाहर निकल रहे पेट के रूप में दिखती है। अगर ऐसा है तो एक्सरसाइज और खानपान बदलना होगा। मसल्स को मजबूत करने पर ध्यान दें। शरीर में मजबूत मसल्स का मतलब है कि मेटाबॉलिजम अच्छा है।

3 शरीर में फैट कहां और कितना जमा है, यह पता करें। बॉडी कंपोजिशन एनालिलिस (BCA) करवाएं। सभी अच्छे जिम में इसकी मशीन होती है। इस पर नंगे पांव खड़े होकर स्कैन हो जाता है। यह पता चल जाता है कि शरीर के वजन में फैट, मसल्स और हड्डियों आदि का अनुपात कितना है। ट्रेनर इसके मुताबिक ही एक्सरसाइज करवाते हैं। हम अपने फैट और मसल्स को बदल सकते हैं लेकिन हड्डियों के वजन को नहीं। जिम और फिटनेस क्लब यह टेस्ट करते हैं।

4. ऐसा भी हो सकता है कि किसी का वजन BMI के मार्क से ऊपर हो यानी 25 से ज्यादा, लेकिन वह मोटा न हो। रेसलर या कई खिलाड़ी इसी कैटिगरी में आते हैं। उनकी तरह किसी के शरीर में वजन का अनुपात हर बॉडी पार्ट में बिलकुल ठीक हो तो उन्हें मोटा नहीं कहा जाएगा। यह उनकी मसल्स का वजन हो सकता है। शरीर में मसल्स का ज्यादा वजन होना अच्छा है, फैट उसकी तुलना में कम होना चाहिए।

वजन घटाना यानी एक्सरसाइज करना?
हममें से ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि वजन घटाने के लिए एक्सरसाइज करनी है। आपने बहुत-से लोगों को यही सलाह देते सुना होगा कि वजन घटाना है तो पैदल चलें और एक्सरसाइज करें। क्या सिर्फ इतना करने से वजन घट जाता है? बिलकुल नहीं, वजन घटाने में एक्सरसाइज का सहयोग सिर्फ 30 फीसदी तक है। हम क्या खा रहे हैं, कैसे, कब और कितना खा रहे हैं, इसका 70 फीसदी तक फर्क पड़ता है। इसके अलावा खाने को अक्सर मोटे लोगों के साथ जोड़कर देखा जाता है जबकि हो सकता है कि वे खाना कम खा रहे हों, लेकिन उनका या किसी का भी खानपान का तरीका, लाइफस्टाइल गलत हो सकती है या उन्हें हार्मोन से जुड़ी बीमारी हो सकती है। इसलिए ज्यादा वजन वालों को LFT, KFT, विटामिन-D की जांच हर 6 महीने पर करा लेनी चाहिए और थाइरॉइड की जांच हर 3 महीने पर।

कितनी कैलरी चाहिए
  • वयस्क पुरुष को रोज करीब 1800 से 2200 कैलरी की जरूरत होती है
  • वयस्क महिला को रोज 1400 से 1800 कैलरी चाहिए
  • उम्र बढ़ने के साथ जरूरी कैलरी की मात्रा घटने लगती है।
इसलिए लौट आता है वजन
  • एक्सरसाइज का गलत तरीका
  • खानपान से जुड़ी गलतियां
  • गलत लाइफ स्टाइल
एक्सरसाइज का गलत तरीका
  • शरीर एक मशीन है, ऑयलिंग नहीं करेंगे तो काम करना बंद करेगी। यह ऑयलिंग एक्सरसाइज और सही डाइट से होती है। लेकिन लोग कुछ वक्त तक जिम जाकर या रनिंग करके छोड़ देते हैं। इससे शरीर में फैट की वापसी हो जाती है। अगर हम घटाया हुआ वजन कम से कम 18 महीने तक के लिए बरकरार रख पाते हैं तो वजन वापसी के आसार बेहद कम हो जाते हैं।
  • एरोबिक्स, कार्डियो के अलावा वेट ट्रेनिंग यानी डंबल आदि उठाकर भी एक्सरसाइज जरूर करें। इसके अलावा चेहरे की मसल्स की एक्सरसाइज के लिए हंसना और मुस्कुराना न भूलें। दिनभर में कुछ चबाने की आदत भी डालें। भुने हुए चने खाएं या बादाम खाएं।
  • जिम में जाकर हमेशा एक जैसी एक्सरसाइज नहीं करनी चाहिए। शरीर की 7 मुख्य मांसपेशियां हैं। हर दिन किसी एक को टारगेट करें। चाहे एक्सरसाइज जिम में करें या घर पर। लोअर बैक, पैर, कंधे, अपर बैक, बाइसेप्स, ट्राइसेप्स पर ध्यान दें। पैरों की मजबूती के लिए स्कॉट्स कर सकते हैं, लोअर बैक के लिए डेड लिफ्ट, चेस्ट के लिए पुश अप या जिम में चेस्ट प्रेस, घर में लटकने की जगह है तो पुलअप करें। कंधों के लिए हैंड रेज़ करें। घर में पानी से भरी एक लीटर की बॉटल के साथ कर सकते हैं या जिम में डंबल से।
  • अगर जिम में बहुत ज्यादा एक्सरसाइज करके, दौड़कर कोई एक साथ 5-6 किलो या उससे ज्यादा वजन कम करता है तो गलत है। इससे कमजोरी आ सकती है।
  • सभी लोगों के लिए एक जैसी एक्सरसाइज नहीं हो सकती। सही ट्रेनर की मदद के बिना खुद ही जिम में एक्सरसाइज नहीं करनी चाहिए। शुरुआत में सभी एक्सरसाइज कम देर के लिए और हल्की करनी चाहिए। प्लैंक कर रहे हैं तो 1 मिनट नहीं 30 सेकेंड के लिए हो। जिम के बाद जंक फूड खा लिया तो मेहनत बेकार हो सकती है। आराम से महीने में 2 से 3 किलो तक ही वजन कम करें। इससे ज्यादा रफ्तार से नहीं।
  • सिर्फ कार्डियो एक्सरसाइज पर ध्यान देना और वेट ट्रेनिंग न करना भी गलत है। इससे मसल्स कमजोर ही रहती हैं। मसल्स बनाने के लिए 16 साल के बाद शुरुआत कर सकते हैं। उससे पहले भी वेट ट्रेनिंग एक्सरसाइज कर सकते हैं। पुश अप, स्कॉट्स जैसी बिना जिम मशीनों वाली एक्सरसाइज कर सकते हैं। 16 साल के बाद मसल्स बिल्डिंग कर सकते हैं।
  • जिनको हार्ट की दिक्कत है, डायबीटीज या थायरॉइड है, वे पहले डॉक्टर की सलाह लें। जहां भी एक्सरसाइज कर रहे हैं वहां ट्रेनर को रिपोर्ट दिखाएं और ट्रेनर व डॉक्टर की देखरेख में ही कोई एक्सरसाइज करें। घर पर एक्सरसाइज करने से पहले भी अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
  • मसल्स बनाने के लिए प्रोटीन की जरूरत घर से ही पूरी हो जाए तो सप्लिमेंट की ओर न जाएं। उनमें प्रिजरवेटिव होते हैं। एक सामान्य शख्स को अपने वजन के मुताबिक .75 से लेकर 1 ग्राम प्रोटीन प्रति किलो की जरूरत होती है। यह आसानी से घर पर दालें, पनीर और अंडे आदि से लिया जा सकता है।
सबकी अलग-अलग एक्सरसाइज
महिलाओं और पुरुषों के वजन घटाने का तरीका भी अलग होता है और उनका वर्कआउट भी। वर्कआउट में उनकी पसंद नापसंद भी अलग-अलग होती हैं। महिलाएं मल्टिटास्कर होती हैं, उन्हें रिलेक्सिंग कसरत की जरूरत होती है। ज्यादातर महिलाएं एरोबिक्स और पिलाटे (Pilates, इसमें मांसपेशियों से जुड़ी एक्सरसाइज होती है) पसंद करती हैं। पुरुष ज्यादातर वेट ट्रेनिंग करते हैं। वैसे महिलाओं को भी वेट ट्रेनिंग करनी चाहिए। महिलाओं की एक्सरसाइज की इंटेसिटी पुरुषों से कम होती है जैसे वेट लिफ्टिंग कम वजन साथ या कम देर के लिए। इसके अलावा बच्चों को 8 साल की उम्र से ही एरोबिक्स और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करवा सकते हैं। लेकिन यह ट्रेनर की गाइडेंस में हो। उम्र बढ़ने के साथ-साथ सबकी कैलरी की जरूरत भी कम होती जाती है और एक्सरसाइज की इंटेसिटी भी।

एरोबिक्स में स्विमिंग, साइकलिंग, ब्रिक्स वॉक, जॉगिंग और ट्रेडमिल पर चलना शामिल है। इसे लगातार 30 मिनट तक करना चाहिए। स्ट्रैंथनिंग एक्सरसाइज के लिए घर में 10-20 ग्राम के थेरा बैंड ले सकते हैं। ये कई कलर में मिलते हैं। इनका कलर स्ट्रैंथ के हिसाब से तय किया जाता है। 4-5 किलो के डंबल की जगह ये बैंड ले सकते हैं। इसके अलावा लंजिज़ करें (खड़े होकर एक पैर आगे बढ़ाकर घुटना मोड़ लें और दूसरा पैर पीछे की ओर ले जाएं। अब वजन आगे वाले घुटने पर होगा। फिर दूसरे पैर से यही क्रिया दोहराएं।)

खानपान से जुड़ी गलतियां
हमें पता है कि हेल्दी खाना खाना चाहिए। सेहतमंद खाने से मतलब सलाद और फ्रूट्स ही नहीं है। इसका मतलब है कि हमारा खाना ऐसा हो जिसे खाते ही हमें नींद न आए। हमारी एनर्जी बनी रहे और भारीपन महसूस न हो। हमारी डाइट जैसी होगी शरीर भी वैसी ही होता जाता है। अगर खाना खाते ही हमें भारीपन लगता है तो खाने में बदलाव करना होगा। खाने की मात्रा कम करनी होगी। अक्सर हम अपनी प्यास को भूख समझ लेते हैं। इसलिए दिनभर में 7-8 गिलास पानी पीना जरूरी है। खाने से 30 मिनट पहले भी एक गिलास पानी ले लेंगे तो ओवर ईटिंग कभी नहीं होगी। खानपान से जुड़ी कुछ सामान्य गलतियां इस तरह हैं:
  1. नाश्ता न करना। डाइटिंग का मतलब खाना छोड़ना नहीं है।
  2. खाना बहुत जल्दी-जल्दी खाना। ठीक से चबाए बिना निगलना।
  3. रात को खाना बहुत देर से यानी सोने से तुरंत पहले खाना।
  4. खाने के तुरंत बाद किसी काम के लिए या टीवी, मोबाइल को देखने के लिए बैठ जाना।
  5. वजन बढ़ने के डर से खाना कम खाना पर भूख लगते ही स्नैक्स खाना। स्नैक्स में भी बिस्किट, मिठाइयां, तली हुई चीजें, नमकीन आदि लेना।
  6. अगर कोई सिनेमाहॉल में जाकर फिल्म देखता रहा है तो याद करें कि पहले पॉपकॉर्न का कितना छोटा पैकेट मिलता था। अब वह बड़ा टब हो गया है। इसी तरह खाते-खाते कैलरी बढ़ाते रहना।
  7. कई बार हम अपने फेवरिट फूड को देखकर खुद को रोक नहीं पाते। ओवर ईटिंग भी करते हैं।
  8. घर में अक्सर महिलाएं बच्चों का या पति का बचा हुआ खाना भी खा लेती हैं। वे खाना फेंकना नहीं चाहतीं लेकिन वह थोड़ा-थोड़ा खाना उनका वजन बढ़ाता रहता है।
  9. अगर कोई दिनभर में 7-8 गिलास पानी भी नहीं पीता तो उसका बेसल मेटाबॉलिक रेट (BMR) कम होता है। इससे भी वजन तेजी से बढ़ता है। कितना खाना खाकर कितनी कैलरी बर्न हुई, BMR उसकी जानकारी देता है।
  10. कई कप मीठी चाय पीना या बार-बार मीठा खाना। योग कहता है कि जो कुछ भी लें अल्प लें यानी कम खाएं।
  11. लाड़-प्यार में ज्यादा खाना खिलाना। जापान में अगर मेहमान का स्वागत ग्रीन टी से करते हैं तो हम मेहमान को मिठाई, नमकीन और थाली भरकर खाना देते हैं।
खाने का सही तरीका
  1. ब्रेकफस्ट मतलब हमें रात से भूखे शरीर को एनर्जी देनी है ताकि वह काम पर चल सके।
  2. रोटी के एक टुकड़े को 32 बार चबाना चाहिए। एक रोटी खाने में 15 से 20 मिनट का वक्त लगना चाहिए, तब शरीर इस बात को समझ पाता है कि भूख मिट गई।
  3. डिनर 7 से 8 बजे के बीच कर लेना चाहिए। खाने और सोने के बीच 2 से 3 घंटे का गैप होना चाहिए। रात को देर से खाना पड़े तो चपाती की जगह फ्रूट्स या सब्जियां खाएं। अगर एक कटोरा दाल पी लें तो काफी है। योग कहता है कि शाम 5 के बाद मेटाबॉलिजम धीमा हो जाता है। सूर्य उदय और सूर्य अस्त से इसका संबंध होता है। सुबह का नाश्ता राजा की तरह करना चाहिए, दिन का खाना रानी की तरह और रात का खाना भिखारी की तरह लें।
  4. किसी भी वक्त खाना खाएं उसे सही ढंग से पचाने के लिए खाने के बाद 5-10 मिनट वज्रासन में बैठना चाहिए। 8 से 100 साल तक का व्यक्ति इस आसन को कर सकता है। सिर्फ वे लोग न करें जिन्हें घुटनों में दर्द की परेशानी है। वे सूर्य क्रिया कर सकते हैं। अपनी नाक के लेफ्ट साइड को उंगली से बंद कर लें और राइट से ही सांस लें और राइट से ही छोड़ें। इससे शरीर में जठराग्नि प्रज्वलित हो जाती है जो खाना पचाने में मदद करती है। इससे डायजेस्टिव जूसेज जल्दी बनते हैं। इसे पूरे दिन में 10 मिनट करना है।
  5. हम खाना कम खाते हैं लेकिन स्नैक्स खाना चाहते हैं तो वह हेल्दी होना चाहिए। मुट्ठीभर भुने हुए चने, ड्राइ फ्रूट्स या मौसमी फल खा सकते हैं। कोल्ड ड्रिंक की जगह पानी या दूध में सत्तू घोलकर ले सकते हैं।
  6. जब कई लोग एक साथ खाते हैं तो पता नहीं चलता कि कितना खा लिया। इसलिए हमेशा अपनी प्लेट और अलग कटोरी लें। उससे अंदाजा रहेगा कि कितनी मात्रा ली है। अगर कहीं बाहर हैं तो भी उसी आकार के बर्तन में खाएं। अगर हो सके तो किचन में मेजरिंग कप से नापकर खाना बना सकते हैं।
  7. खाने को देखकर लालच नहीं करना चाहिए। मीठी चीजें, कोल्ड ड्रिंक्स आदि से दूरी बनानी चाहिए। दूध भी ले रहे हैं तो लो फैट लें, टोंड मिल्क पी सकते हैं। हफ्ते में एक बार कहीं बाहर जाकर खा सकते हैं लेकिन कम-तला भुना लें। किसी पार्टी में हैं तो पनीर टिक्का के साथ सलाद और आधा कटोरी चावल ले सकते हैं। सप्ताह में एक बार जंक फूड खा सकते हैं, क्रैश डाइट न करें। जो आपके कल्चर में है, यानी आप वेजिटेरियन हों या नॉन वेजिटेरियन हों। ऐसे नियम रखें जिन्हें पूरी ज़िंदगी निभा सकें।
  8. खुद को डस्टबिन न समझें। महिलाएं अक्सर बचा हुआ खाना खाती हैं, ये आदत तुरंत बदल डालें।
  9. खाना ऐसे खाएं जैसे पानी पी रहे हैं यानी इतना चबा लें कि मुंह में घुल जाए। पानी ऐसे पीएं जैसे खाना खा रहे हैं। इसका मतलब है कि पानी को बैठकर आराम से घूंट-घूंट लेकर पीना चाहिए।
  10. अगर चाय की आदत है तो बिना शुगर के लें। ब्लैक टी या ब्लैक कॉफी एक्सरसाइज से पहले या बाद में ले सकते हैं। ग्रीन टी दिनभर में दो कप से ज्यादा न लें।
  11. कहीं भी खाना खाएं अपनी कैलरी पर नजर रख सकते हैं। वेट-लॉस वाली मोबाइल ऐप्स पर कैलरी काउंट कर सकते हैं। फिटनेस से जुड़ी रिस्ट वॉच में भी यह ऑप्शन होता है।
(कुछ एक्सपर्ट कैलरी काउंटिंग से भी बचने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि कैलरी पर ध्यान न देकर सेहत बनानेवाले खाने पर फोकस करें तो वजन नहीं बढ़ेगा। अगर हम बार-बार कैलरी काउंट करते हैं तो बॉडी में स्ट्रेस पैदा होता है और हम खाकर खुशी महसूस नहीं करते।)

नोट: योग के मुताबिक खाना खाने के बाद वॉक करने की जरूरत नहीं। खाने के बाद हमारा ब्लड सर्कुलेशन पेट की ओर होता है, शरीर की ऊर्जा खाने को पचाने में लगती है, लेकिन वॉक करते हैं तो ब्लड फ्लो पैरों की ओर हो जाता है। इससे खाना ठीक से हजम नहीं होता।

खाने के बाद भी कुछ खाना....

इमोशनल ईटिंग करना
लोग खुशी में ही ओवर ईटिंग नहीं करते। कई बार स्ट्रेस में भी ज्यादा खाना खाते हैं। बहुत-से लोगों का डिप्रेशन की वजह से वजन बढ़ जाता है क्योंकि डिप्रेशन के दौरान शरीर ऐसे हार्मोन बढ़ा देता है जो हमें खाने के लिए मजबूर करते हैं। ऐसे वक्त में लोग चॉकलेट्स और जंक फूड खाते हैं या कोल्ड ड्रिंक्स पीते हैं। इससे भी वजन बढ़ता है। साथ ही स्ट्रेस होने की वजह से खाना ठीक से पचा नहीं पाता। ऐसे में नींद में भी कमी आ जाती है तो वजन बढ़ने लगता है।

जब बिंज ईटिंग हो
अगर खाना खाने के कुछ घंटों बाद हमें भूख लगने लगती है तो दरअसल वह प्यास हो सकती है। तब एक गिलास पानी पी लेना चाहिए। शरीर को कार्बोहाइड्रेट यानी मीठे की आदत होती है इसलिए हम कुछ मीठा खोजने लगते हैं। इससे बचने के लिए हेल्दी स्नैक्स पास में रखें। चाय के साथ नमकीन या बिस्किट न खाकर ड्राइ फ्रूट्स लें। कोई फल खाएं या भुने हुए चने।

डाइट बदलने के तरीके

कीटो डाइट में क्या है
कीटो डाइट वजन घटाने के लिए काफी कारगर मानी जाती है। इसमें फैट ज्यादा खाते हैं। कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बिलकुल कम और प्रोटीन नॉर्मल खाते हैं। इसमें शरीर कार्बोहाइड्रेट की जगह फैट से एनर्जी लेता है और शरीर में फैट की मात्रा कम होने लगती है। इससे मेटाबॉलिक रेट भी तेज होता है। पूरे दिन में शरीर को लगभग 40 ग्राम से भी कम कार्बोहाइड्रेट फूड देते हैं।

गलती कहां होती है: अगर कीटो डाइट लेने और एक्सरसाइज के बाद भी वजन कम न हो तो जरूरी नहीं की आपने डाइट या एक्सरसाइज में गलती की हो। हो सकता है कि शरीर थक रहा हो और उसे पूरा आराम नहीं मिल पा रहा। ऐसे में 6 हफ्ते के लिए कीटो डाइट छोड़कर सिर्फ कम कार्बोहाइड्रेट वाली डाइट लें यानी सामान्य खाना खाएं लेकिन खाने में आलू, चावल और चीनी जैसी ज्यादा कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें न लें। साथ-साथ 7 से 8 घंटे की नींद लें। शरीर और मन को खुश करने के लिए सांस से जुड़ी एक्सरसाइज करें, प्राणायाम और सूक्ष्म योग करें, खुलकर हंसें। 40 मिनट रोजाना वॉक करें। 6 हफ्ते के बाद फिर से कीटो डाइट के साथ अपनी शारीरिक कसरत शुरू कर सकते हैं। इससे फायदा होगा। कुछ मामलों में लंबे वक्त तक शरीर को थकाने वाली एक्सरसाइज करने पर पूरा आराम न मिलने की वजह से शरीर बदलाव नहीं कर पाता। ऐसे में वजन नहीं घटता।

इंटरमिटेंट फास्टिंग करना
योग में भी कहा गया है कि कम खाएं और दिन में दो बार सूर्य उदय के बाद और सूर्य अस्त से पहले खाना खाएं। ऐसा ही इन दिनों इंटरमिटेंट फास्टिंग में किया जाता है। 16-18 घंटे के गैप पर खाना खाया जाता है। इसके अलावा बीच में एक गिलास छाछ, नीबू पानी या पानी में एक चम्मच सत्तेू मिलाकर ले सकते हैं। ज्यादा भूख लगे तो सूख मेवे भी खा सकते हैं। इससे भी वजन तेजी से काबू में रहता है। जिनका बीपी कम रहता है या डायबीटिज है वे अपने डॉक्टर की सलाह से कर सकते हैं।

गलती कहां होती है: जब हम हेल्दी खाना नहीं खाते। स्वाद के लिए खाते हैं और भूख न होने के बावजूद खाते हैं। 12 घंटे का गैप रखकर फास्ट कर रहे हैं और इस बीच सिर्फ पानी या छाछ लेते हैं पर अगला भोजन जंक फूड हो तो कोई फायदा नहीं।

हेल्दी फूड प्लेट में क्या हो
  • हमारी प्लेट में आधा हिस्सा फ्रूट्स-सलाद और सब्जियां होनी चाहिए। एक चौथाई हिस्सा कार्बोहाइड्रेट का होना चाहिए यानी अनाज और एक चौथाई प्रोटीन। प्रोटीन के लिए पनीर, दालें, दही आदि लें।
  • अधिकतर लोगों का फोकस रोटी पर होता है। अगर रोटी और चावल भी ले रहे हैं तो भी प्लेट का चौथाई हिस्सा ही होगा। कच्ची सब्जियां या फल खाने से मेटाबॉलिजम और इम्यूनिटी तेज होती है।
  • खाने की प्लेट सबके लिए एक जैसी नहीं हो सकती। कोई बहुत देर तक बैठकर काम करता है और कोई बहुत भागदौड़ वाला काम। इसलिए डाइटिशन से सलाह ले सकते हैं कि उम्र और प्रफेशन के हिसाब से हमें कितनी कैलरी की जरूरत है।
  • आमतौर पर हम कच्चे से ज्यादा पके खाने पर ध्यान देते हैं और उससे प्लेट भर लेते हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि ज्यादातर हम बीज खाते हैं जैसे चावल, दाल, अनाज आदि। इन्हें पकाकर खाने की जगह भिगोकर खाएं तो बीजों की पूरी एनर्जी हमें मिल सकती है। जैसे स्प्राउट्स के तौर पर चने और दालों को भिगोना। इससे हम ज्यादा न्यूट्रिशन वैल्यू पा सकते हैं।
  • अगर पेट हमेशा फूला रहता है या खाते ही फूल जाता है। तब ग्लूटन, डेयरी प्रॉडक्ट और मूंगफली न लें। कब्ज, एसिडिटी, जलन, बार-बार भूख लगना खाना हजम न होना इसके लक्षण हो सकते हैं। इससे जुड़ी ज्यादा जानकारी के लिए SundayNbt के फेसबुक पेज पर ग्लूटन टाइप करें।
खराब लाइफस्टाइल
सोने का पैटर्न ठीक नहीं होना-
इसका मतलब 7 से 8 घंटे की नींद लेना नहीं, सही वक्त पर सोना और सही वक्त पर उठना होता है क्योंकि इससे हमारे शरीर के अंगों का फंक्शन सही रहता है। रात के 10 बजे से लेकर सुबह के 5-6 बजे तक का वक्त सोने का अच्छा वक्त माना जाता है। रात को 2 बजे सोकर सुबह 10 बजे उठना अच्छा टाइम नहीं माना जाता। स्टडी बताती हैं कि जो लोग 5 घंटे से कम की और 8 घंटे से ज्यादा की नींद लेते हैं, उनका वजन बढ़ता है।

एक्सरसाइज को जरूरी नहीं समझना- हम भारतीय इसे आमतौर पर जरूरी नहीं समझते हैं। हर हफ्ते कम से कम 6 दिन हमें 30-45 मिनट तक रोजाना एक्सरसाइज की जरूरत होती है। इसके अलावा फिजिकल फिटनेस के लिए हम किसी भी एक खेल को अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बना सकते हैं। ऐसा खेल जिसे दो या उससे ज्यादा लोग खेलें और छत पर या पार्क में खेल सकें।

टीवी, मोबाइल और कंप्यूटर से चिपके रहना- आमतौर पर भारतीय लोगों का लाइफस्टाइल काफी आरामदायक हो गया है। दिन के 16-18 घंटे सिर्फ बैठे-बैठे गुजर जाते हैं। टीवी देखते हुए मोबाइल या कंप्यूटर के स्क्रीन से दूरी बनाकर बाहर निकलने की आदत बदलनी होगी। जब तक ऐक्टिव नहीं होंगे, खाना ठीक से हजम नहीं होगा और फैट पेट पर ही स्टोर होता रहेगा। यह वजह है कि 35-40 की उम्र तक भारतीयों की टमी बाहर निकलने लगता है।

वजहें ये भी
जब हार्मोन असंतुलन हो

थायरॉइड की परेशानी
  • थायरॉइड ग्लैंड ठीक से काम न कर रहा हो तो भी वजन आसानी से कम नहीं होता। महिलाओं में इसकी शिकायत ज्यादा होती है। थायरॉइड के मरीजों को हर 3 महीने पर टेस्ट करवाना चाहिए और दवा जरूर लेनी चाहिए। जब तक थायरॉइड कंट्रोल में नहीं आता, तब तक वजन बढ़ता रहता है। जैसे ही यह कंट्रोल में आ जाता है, वजन भी घटने लगता है। ऐसे में ब्रोकली, गोभी, पत्ता गोभी नहीं खाएं। अगर खानी है तो अच्छी तरह पकाकर खाएं। अगर हाइपोथाइरॉइडिजम है तो वजन घटाने के लिए कीटो डाइट न करें। ड्राइ फ्रूट्स, सीड्स और मिलेट्स यानी मिलेजुले अनाज का इस्तेमाल करें। लेकिन हेल्दी डाइट और सही एक्सरसाइज के बैलंस से ही वजन कम हो सकता है।
  • योग में थायरॉइड पर कंट्रोल के लिए कई आसन हैं जैसे - भुजंगासन, उष्ट्रासन, शलभासन, सर्वांगासन, हलासन, योगमुद्रा, पादहस्त आसन, ऐसे आसन जिसमें गले पर जोर पड़ता है। कपालभाति क्रिया, उज्जायी, भ्रामरी प्राणायाम। इससे भी थायरॉइड ग्लैंड एक्टिवेट हो जाता है।
महिलाओं में मेनोपॉज का दौर
मेनोपॉज के दौरान भी वजन तेजी से बढ़ सकता है। उस समय महिलाओं के हार्मोन में तेजी से बदलाव आता है, लेकिन वे इसे समझ नहीं पातीं और डिप्रेशन व टेंशन में रहती हैं। इस वजह से शरीर का वजन बढ़ने लगता है। मेटाबॉलिजम धीमा हो जाता है। उन्हें एक्सरसाइज और सही डाइट लेते रहना चाहिए। इससे वजन काबू में रहेगा।

कम उम्र में PCOD
वजन बढ़ने पर बहुत-सी लड़कियां को पॉलिसिस्टिक ओवरियन डिजीज हो जाती है। उनका हार्मोन असंतुलित होने की वजह से शरीर स्ट्रेस में रहता है। जिम जाने पर भी वजन कम नहीं होता। इसलिए उन्हें ब्रीथिंग, लाफ्टर और वॉकिंग विद म्यूजिक जैसी एक्सरसाइज करनी चाहिए। वे योग भी कर सकती हैं, लेकिन लाइट योग करें। पावर योग नहीं।

विटामिन की कमी
अगर शरीर में विटामिन डी की कमी है तो धूप में बैठकर इसे पूरा कर सकते हैं। 5-7 मिनट में प्री विटामिन-डी बनने लगता है। यही लीवर तक पहुंचते हुए विटामिन-डी में बदल जाता है। इसे शरीर 15 दिन तक ही स्टोर कर सकता है। इसलिए हर हफ्ते में 2 घंटे की धूप जरूर लेनी चाहिए। सबसे अच्छा वक्त 11 बजे से 1 बजे तक का है। धूप सहने लायक लगे। गर्मी में कम से कम 15 मिनट धूप में जरूर बैठें, सर्दी में 30 मिनट या ज्यादा देर धूप में बैठ सकते हैं। हमें रोजाना 2000IU की जरूरत होती है। सप्लिमेंट के तौर पर सैशे ले सकते हैं। ऐसे सैशे भी आते हैं जो महीनेभर का कोटा पूरा कर सकते हैं। इसे दूध के साथ लेना चाहिए, यह फैट में घुलकर आसानी से शरीर में जज्ब हो जाता है। अगर दूध न हो तो मुंह में ही रखें और विटामिन-Dअपनी लार में घुलने दें और गटक लें। लार में भी फैट होता है। पानी में घोलकर न लें। यह पानी में नहीं घुलता इसलिए शरीर इसे सोख ही नहीं पाएगा।

जब इंसुलिन रेजिस्टेंस हो - आजकल 10 साल तक के बच्चों को भी इंसुलिन रेजिस्टेंस हो रहा है। खाने में फैट खत्म होने और टॉक्सिंस के शरीर में जमा होने से ऐसा होता है। फैट की वजह से इंसुलिन रिलीज नहीं हो पाता। वजन बढ़ने लगता है। प्री-डायबिटीज लोगों को भी पेट के आसपास चर्बी जमा होने लगती है। जब फैट बढ़ता है तो वह टॉक्सिंस को खुद में समेट लेता है। पेट में एंडोक्राइन ही गंदा फैट रिलीज करता है, इससे पेट का फैट बढ़ता है। कोलेस्ट्रॉल भी इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ता है। अगर ब्लड टेस्ट में कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ आता है तो इंसुलिन भी चेक कराएं, तब वजन कम करें। अगर इंसुलिन बढ़ा हुआ है तो कीटो डाइट से भी वजन कम कर सकते हैं लेकिन सही एक्सपर्ट की सलाह लें। डायबीटिक पेशंट हैं तो खाने से पहले 5 मिनट की एक्सरसाइज और खाने के 30 मिनट बाद 10 मिनट एक्सरसाइज करें। तभी वजन कंट्रोल में आ सकता है।

40 पार की बात
  • जिन लोगों के शरीर में फैट जमा होने की आदत हो जाती है उनका वजन 40 के बाद तेजी से बढ़ता है। 40 के बाद मसल्स ज्यादा देर में मजबूत होती है। शरीर में टिशू लॉस होने लगता है। इसलिए वेट ट्रेनिंग जरूर करें।
  • 25 साल की उम्र में किसी को वजन घटाने में जितनी मेहनत करनी पड़ी हो, 40 की उम्र में उससे कहीं ज्यादा करनी होती है। साथ ही उन्हें कैलरी कम कर देनी चाहिए।
  • वैसे तो मेटाबॉलिक रेट 35 साल के आसपास ही कम होने लगता है। अगर एक्सरसाइज नहीं करते तो 35 से पहले भी हो सकता है। लेकिन डाइट पर काबू पा रखा है तो वजन पर भी कंट्रोल हो सकता है।
  • 40 साल के बाद महिलाओं का वजन पुरुषों से भी ज्यादा तेजी से बढ़ता है। उन्हें भी वेट ट्रेनिंग करनी चाहिए। मसल्स बनी रहेंगी तो शरीर में मजबूती रहती है। वजन कम करने से भी मसल्स लटक जाती हैं। इसलिए चेहरे से लेकर शरीर की सभी मसल्स के लिए एक्सरसाइज करनी चाहिए।
  • महिलाओं में 40 से 50 साल के बीच की उम्र मेनोपॉज की होती है। इसके अलावा वे प्रेग्नेंसी से लेकर बच्चों को फीड कराने के दौरान भी दूध नहीं पीतीं। इसका असर बाद में पड़ता है। उनकी हड्डियां जल्दी कमजोर होने लगती हैं। फिजिकल ऐक्टिविटी घटते ही कमर और पेट पर फैट जमा हो जाता है। इसलिए उन्हें डेयरी प्रॉडक्ट लेने चाहिए। मूंगफली, चना, दालें जरूर लें। नॉन वेजिटेरियन हैं तो फिश ले सकते हैं, रेड मीट यानी मटन न लें। उसमें भी तेज मसाले नहीं लें।
कुछ जरूरी सवाल

ग्रीन टी से वजन कम होता है? या गर्म पानी पीने से?
ग्रीन टी सिर्फ हमारे खाने को पचाने में मदद करती है। दो कप से ज्यादा ग्रीन टी एक दिन में नहीं पीनी चाहिए। यह टॉक्सिंस को शरीर से बाहर करती है तो एंटी-एजिंग जैसे फायदे भी हैं। सुबह उठकर गुनगुना पानी पी सकते हैं जो शरीर के लिए अच्छा है लेकिन इससे मोटापा जल्दी घटेगा ऐसा नहीं कह सकते।

क्या तरह-तरह की गोलियां, क्रैश डाइट या बेल्ट मोटापा घटाती हैं?
कभी भी ज़िंदगी में इतना उतावलापन नहीं दिखाना चाहिए कि वजन घटाने के लिए गोलियां लेने लगें। इनसे हार्ट और किडनी के काम करने की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है। इसलिए तरह-तरह की गोलियों के झांसे में नहीं आना चाहिए। वजन घटने का प्रोसेस धीरे-धीरे होता है। जैसे पहली क्लास के बाद सीधे ग्रैजुएशन नहीं होता, वैसे ही वजन घटाने के लिए क्रैश कोर्स नहीं किया जा सकता।

जब चर्बी सिर्फ पेट-कमर पर ही हो तब क्या करें?
अगर किसी के हाथ-पैर बहुत पतले हैं और पेट पर ज्यादा चर्बी है तो उन्हें ट्विस्टिंग, पिलाटे और डंबल के साथ साइड्स ज्यादा करनी चाहिए। डिनर सोने जाने से कम से कम 3 घंटे पहले कर लें। लगातार एक्सरसाइज करते रहने से शरीर उसका आदी हो जाता है। इसलिए उन्हें पूरे हफ्ते में बदल-बदलकर एक्सरसाइज करनी चाहिए।

क्या मोटापे का रिश्ता हमारे जींस से होता है?
जीन सिर्फ हमारे शरीर का स्ट्रक्चर तय करते हैं। हमारे माता-पिता मोटे हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम भी हमेशा मोटे रहेंगे। हां, मोटे होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसकी एक वजह यह भी है कि पूरे परिवार का ईटिंग पैटर्न एक जैसा होता है। सभी एक ही तरह का खाना खाते हैं। अगर वे चाहें तो वजन घटा सकते हैं। लेकिन इसके लिए उन्हें लगातार मेहनत करनी पड़ती है। कुछ मामलों में जेनेटिक दिक्कतें पैरंट्स से बच्चों में आ सकती हैं। इसके लिए मेडिकल हेल्प भी लेनी पड़ती है। हमारे पेट में बैड बैक्टिरिया भी होता है जो वेट कम नहीं करने देता। इसके लिए गट माइक्रोबायोम्स ठीक करने होते हैं। फंक्शनल मेडिसन के डॉक्टर ऐसे में खाना बदलते हैं, प्रो-बायोटिक्स देते हैं, अगर कोई इंफेक्शन है तो उसे खत्म किया जाता है। इसमें 3 से 6 महीने लग सकते हैं।

क्या घर में काम करने से वजन घटता है?
तथ्य यह है कि फिजिकली ऐक्टिव रहने से मोटापा घटता है। घर में पोछा लगाने, बार-बार बैठने-उठने के काम करने या सीढ़िया चढ़ने-उतरने से भी कैलरी बर्न होती है और वजन कम होता है।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. अवधेश पांडे, न्यूक्लियर मेडिसन एक्सपर्ट
  • डॉ. प्रीति नंदा सिब्बल, कीटो डाइट एक्सपर्ट
  • डॉ. श्रुति एस. अग्रवाल, सीनियर गाइनकॉलजिस्ट
  • परमीत कौर, सीनियर डायटिशन, एम्स
  • सोनिया बख्शी, फिटनेस एक्सपर्ट
  • अरुण सिंह, हेल्थ एंड वेलनेस एक्सपर्ट
  • सुनील सिंह, योग गुरु

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गले दियां गल्लां

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जब हमें कफ से जुड़ी परेशानी होती है और गले में खराश होती है तो कई बार गले में दर्द भी होने लगता है। इतना ही नहीं, कुछ लोगों को कई बार सांस भी फंसती हुई महसूस होती है। इन सभी के निदान के लिए हम गरारे करते हैं। गुनगुना पानी पीना शुरू करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि गले की परेशानी में कब तक हम घरेलू उपायों से काम चला सकते हैं? साथ ही जानने वाली बात यह भी है कि गले के इलाज में एलोपैथी की तरह आयुर्वेद कितना कारगर है? सीधे कहें तो जब गले की परेशानी गले पड़ जाए तो हमें क्या करना चाहिए? एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

आंख, कान, नाक और मुंह जिस जगह पर आपस में जुड़ते हैं, वह गला है। इतना ही नहीं, पेट तक पहुंचने वाला फूड पाइप भी गले से ही शुरू होता है। सीधे कहें तो गला एक जंक्शन है। ऐसे में गले में होने वाली समस्या से इन अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है या इन अंगों में होने वाली परेशानी का असर सीधे गले पर होता है। इन दिनों बरसात के मौसम की वजह से परेशानी ज्यादा बढ़ी हुई है। मौसम कभी धूप तो कभी छांव वाला है। बारिश होने पर तापमान कम रहता है तो धूप निकलते ही मौसम गर्म हो जाता है। शरीर के लिए इस फर्क को सहना थोड़ा मुश्किल रहता है। अमूमन गले की परेशानी भी यहीं से शुरू होती है।

गले की 3 तरह की परेशानियां
चूंकि गले से होकर हवा, पानी, खाना आदि गुजरते हैं। गला सिर्फ जंक्शन ही नहीं बल्कि एक ऐसी जगह भी है जो शरीर के अंदर जाने वाले इंफेक्शन को वहीं रोकने की कोशिश करता है। ऐसे में अगर हमने जरा भी कोताही की, गलती की तो गले में खराश, जलन, दर्द आदि होने लगता है। फिर हम इसे दुरुस्त करने की कोशिश में लग जाते हैं।
गले में परेशानी के लक्षण
  1. खराश और सूखी खांसी होना
  2. बलगम आना
  3. गले में दर्द और जलन महसूस होना
1. खराश और सूखी खांसी होना
जुकाम, बुखार की शिकायत होने पर सूखी खांसी मुमकिन है। यह ज्यादा पलूशन की वजह से भी हो सकती है। चूंकि आजकल बरसात का मौसम है इसलिए धूल कम है लेकिन परागकण (पॉलन ग्रेंस: फूलों से निकलने वाले छोटे कण), फंगस आदि मौजूद रहते हैं। ये सांस लेने पर नाक से होते हुए गले तक पहुंचते हैं और एलर्जी पैदा करते हैं। इनकी वजह से भी कई बार गले में खराश और सूखी खांसी होती है। कभी-कभी इसमें नाक से पानी आता या छींक आती है। यह समस्या ज्यादातर नाक और गले से ही जुड़ी होती है। इसे ठीक करने के लिए खांसी को दबाने वाली और एलर्जी कम करने वाली दवा या सिरप देते हैं।

2. बलगम आना
गले में इंफेक्शन होने का मतलब है कि गले में, गले से फेफड़ों तक जाने वाली विंड पाइप में या फिर फेफड़ों में बलगम जमा हुआ है। यह मौसम में बदलाव की वजह से, ठंडी चीजें खाने से, बारिश में भीगने से, इस मौसम में एसी में सोने से, एक दिन का बासी खाना खाने से, फ्रिज का पानी पीने से, वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन आदि की वजह से हो सकता है। डॉक्टर इसके लिए ऐसी दवा या सिरप देते हैं जो कफ निकाले। गीली खांसी होने पर सूखी खांसी वाली दवा दे दी तो बलगम अंदर ही दब जाता है जो बाद में नुकसान पहुंचाता है। बलगम वाली खांसी में एक्सपेक्टोरंट युक्त सिरप कारगर है। यह सांस की नली को फैलाती है और म्यूकस को ढीला करती है।
नोट: अगर परेशानी बड़ी नहीं है तो ऊपर की दोनों समस्याओं में गरारे से फायदा हो जाता है लेकिन अगर परेशानी इससे बड़ी है तो गले में दर्द फीवर में तब्दील हो जाती है।

3. दर्द और जलन महसूस होना व साथ में बुखार आना
इसे खराश और खांसी का अगला पड़ाव कह सकते हैं। इसमें गले में दर्द, जलन और बुखार तीनों हो सकते हैं या फिर पहले दो हो सकते हैं। यह अमूमन खराश और खांसी के दूसरे या तीसरे दिन हो सकता है। अगर समस्या सामान्य है यानी खराश और हल्की खांसी है तो गुनगुने पानी से गरारे करने पर काफी हद तक कम हो जाती है,। लेकिन जब दर्द और जलन महसूस हो तो समझना चाहिए कि डॉक्टर की जरूरत है।

तब जाएं डॉक्टर के पास
  • खराश या हल्की खांसी 2 से 3 दिनों में गरारे, काढ़ा पीने और स्टीम लेने से भी ठीक न हो या कम न हो
  • गले में दर्द और जलन महसूस हो, ऐसा लगे कि गला अंदर से छिल गया है।
  • बुखार आना शुरू हो जाए
अगर ये सभी लक्षण हों या सिर्फ बुखार भी हो तो समझना चाहिए कि यह वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन है, जिसके लिए डॉक्टर की सलाह की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में घरेलू उपचार से काम नहीं चलता। अगर इसके बाद भी सिर्फ घरेलू उपाय ही करेंगे तो स्थिति बिगड़ने की गुंजाइश बनी रहती है।

इन-इन वजहों से भी होता है गला खराब
साइनस: सिर दर्द और सूखी या कफ वाली खांसी। इसे साइनोसाइटिस भी कहते हैं। इसमें साइनस में इंफेक्शन और सूजन आ जाती है।
गला (फेरिंग्स) खराब: इसमें सूखी खांसी होती है, चूंकि इसकी शुरुआत गले यानी यहां मौजूद फेरिंग्स से होती है, इसलिए इसे फेरिंजाइटिस भी कहते हैं। इसमें गले में सूजन हो जाती है।
गले से नीचे लेरिंग्स में सूजन: इसे लेरिंजाइटिस भी कहते हैं। बलगम वाली खांसी की शुरुआत यहीं से होती है। आवाज सही तरीके से नहीं निकलती। गले में कुछ फंसा हुआ महसूस होता है।
ट्रेकिया में इंफेक्शन: इसमें खांसी होने पर 'कुत्ते के भौंकने' जैसी आवाज आती है। कई बार बलगम भी आता है। उंगली से छाती का ऊपरी हिस्सा और गर्दन के नीचे का हिस्सा दबाने पर दर्द होता है। अगर इंफेक्शन गंभीर है तो कई बार ट्रेकिया के करीब मौजूद लिंफनोड में सूजन आ जाती है, जिससे गांठ बनने लगती है। जब डॉक्टर मरीज के सीने को जांचने के लिए दबाते हैं तो वहां दर्द महसूस होता है और खांसी आने लगती है। इसकी जांच को पुख्ता करने के लिए एक्सरे और सीटी स्कैन की जरूरत पड़ती है।
फेफड़ों में इंफेक्शन: फेफड़ों में होने वाला ज्यादातर इंफेक्शन निमोनिया होता है। यह बैक्टीरिया और वायरल दोनों तरह का होता है। इसमें बलगम वाली खांसी होती है। यह कई दिनों या हफ्तों तक हो सकती है। इसमें इंफेक्शन पैदा करने वाले वायरस या बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए ऐंटिबायोटिक दवा लेनी पड़ती है। कोरोना वायरस की वजह से भी फेफड़ों में इंफेक्शन होता है। यह भी एक तरह का निमोनिया ही है। चूंकि कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए कोई दवा नहीं है, इसलिए यह खतरनाक है। यहां एक बात और भी समझनी जरूरी है कि कभी-कभी फेफड़ों में होने वाला वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन पेट में भी पहुंच जाता है। इससे डायरिया की परेशानी हो सकती है। इसमें मरीज को सांस फूलना, खांसी के साथ लूज मोशन भी हो सकते हैं। सीधे पेट में इंफेक्शन हो जाए तो सिर्फ लूज मोशंस होते हैं।
कोरोना: आमतौर पर हल्के बुखार के साथ, वैसे बिना बुखार के भी संभव है। अगर कोरोना के लक्षण गंभीर नहीं हैं और सांस की समस्या नहीं हुई है तो सूखी खांसी और खराश की वजह से आवाज में बदलाव हो सकता है। लेकिन इंफेक्शन गंभीर हो गया है, निमोनिया वाले लक्षण आ गए हैं तो बलगम भी आ सकता है। पोस्ट कोविड यानी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी खांसी की शिकायत देखने को मिलती है। यह कई हफ्तों तक रह सकती है। ज्यादातर बलगम वाली खांसी होती है, कुछ लोगों को सूखी खांसी भी होती है।
दमा: यह बिना मौसम के भी होता है, लेकिन पलूशन बढ़ने या मौसम बदलने पर ज्यादा होने लगता है। खांसी एक बार शुरू होती है तो लगातार होती रहती है। आमतौर पर बलगम वाली खांसी होती है। यह ट्रेकिया और उसके छोटे ट्यूब में सिकुड़न की वजह से होती है। इसमें छाती से सांय-सांय की आवाज आती है। सांस लेने में परेशानी होती है।
टीबी: इस बीमारी में सबसे ज्यादा फेफड़े प्रभावित होते हैं। इसका शुरुआती लक्षण खांसी ही है। इसमें पहले सूखी खांसी होती है। बाद में गंभीर होने पर खांसी के साथ बलगम और खून भी आने लगता है। अगर 14 दिनों या उससे ज्यादा समय तक खांसी लगातार रहे तो टीबी की जांच करा लेनी चाहिए। टीबी की वजह से फेफड़ों में पानी भी भर जाता है।

पेट से भी जुड़ा है गले का इंफेक्शन
सुनने में यह भले ही अजीब लगे, लेकिन कई बार हमारे ज्यादा तेल-मसाले, देर से खाने, खाने का एक समय तय नहीं करने आदि की वजह से भी गले में खराश, खांसी की परेशानी हो जाती है। दरअसल, इस वजह से हमारी पाचन क्रिया प्रभावित होती है और शरीर खाना पचाने के लिए ज्यादा मात्रा में एसिड निकालता है। यह एसिड कई बार पेट में वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से पेट से ऊपर गले तक पहुंच जाता है। इससे खांसी होने लगती है। सांस लेने में भी परेशानी आती है। आजकल इस तरह के मामले काफी आ रहे हैं, खासकर पेट में वायरल इंफेक्शन के। कुछ लोगों को सोते हुए सांस लेने में परेशानी हो सकती है। इससे गले में जलन, गले का छिलना या घाव और गैस की परेशानी हो जाती है। ऐसा किसी वायरस की मौजूदगी वाला खाना या पानी (एडिनो या रोटा वायरस) आदि लेने से हो जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कमजोर इम्यूनिटी की निशानी भी हो सकती है। डॉक्टर ऐसे में ऐंटिबायोटिक के साथ उन्हें एंटासिड (एसिड के खिलाफ काम करने वाली दवाई) भी देते हैं। इनके अलावा हार्ट की समस्या, हाई बीपी या सिगरेट ज्यादा पीने से भी खांसी हो सकती है।

आजकल पेट में इंफेक्शन के मामले बहुत आ रहे हैं। इसमें 3 तरह के मामले बनते हैं:
  1. फेफड़ों में मौजूद वायरस या बैक्टीरिया: जब यह वायरस पेट में इंफेक्शन फैला देता है तो भी दस्त हो सकते है। इसमें सांस फूलता है, बुखार के साथ लूज मोशन हो सकते हैं। कोरोना के दौरान होने वाला लूज मोशन इसी का उदाहरण है।
  2. खाने और पीने से वायरस पहुंचे: मॉनसून का मौसम इंफेक्शन फैलने के लिए सबसे मुफीद माना जाता है। कई बार जब हम बाहर की चीजें खाते हैं और उसे सही तरीके से साफ नहीं किया गया हो तो एडीनो या रोटा वायरस भी पहुंच जाता है। इससे बुखार, उल्टी, लूज मोशन आदि की परेशानी हो सकती है। आजकल बुखार के साथ लूज मोशन और उल्टी के मामले इसी वजह से ही ज्यादातर आ रहे हैं।
  3. हेपटाइटस वायरस के पहुंचने पर: आजकल कुछ मामले हेपटाइटस के भी मामले आ रहे हैं। अमूमन इसमें हेपटाइटस ए और ई वायरस शरीर में पहुंचता है। हेपटाइटस ए के ज्यादातर मामले बच्चों में और ई के मामले बड़ों में देखे जाते हैं। इसमें मरीज को पहले 2 दिन बुखार आता है, लेकिन उसके बाद बुखार चला जाता है। पर उल्टी, लूज मोशन आदि की परेशानी कायम रहती है। ये मामले उन लोगों में ज्यादा देखे जाते हैं जिन्हें शुगर की परेशानी है और शुगर काबू में नहीं रहती। यह ऐसे लोगों को भी हो रहा है जो कई बीमारियों के लिए कई तरह की दवाएं हर दिन लेते हैं।
क्या करना है: अगर इनमें से कोई भी परेशानी हो तो शरीर में पानी की कमी नहीं होने देना है। डिहाइड्रेशन नहीं होना चाहिए। हर दिन 2 लीटर फिल्टर्ड वॉटर या नारियल पानी या शिकंजी या ओआरएस का घोल जरूर देना है। इन तीनों मामलों में ज्यादा फर्क नहीं होता। इसलिए बेहतर इलाज डॉक्टर ही कर सकते हैं। साथ ही कोई भी दवा खुद से न लें।

बच्चों की देखभाल
यह मौसम बच्चों के लिए परेशानी लेकर आता है। गला खराब होना, खराश होना, खांसी होना बहुत ही आम है। अगर ये सभी परेशानियां सामान्य हैं तो घरेलू उपायों, जैसे गुनगुना पानी लेने, काढ़ा पीने या शहद के साथ अदरक या तुलसी पत्तों का रस मिलाकर देने से फायदा होता है।लेकिन बच्चों की इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है:
  • बच्चों की सामान्य दिनचर्या बदल गई हो
  • हर दिन वह 10 घंटे सोता था, अब 13-14 घंटे सो रहा हो
  • खेलने में दिलचस्पी कम हो गई हो
  • शांत रहने लगा हो
  • बुखार तेज या हल्का आ रहा हो
  • बच्चे की सांस फूल रही हो
ऐसे में डॉक्टर की सलाह जरूर लें। खुद इलाज करने की कोशिश न करें।

जब हो खराश, खांसी, सूजन और जलन तो करें ये उपाय

एलोपैथी में इलाज
  • इस मौसम में ठंडी चीजों से दूर रहें। जैसे आइसक्रीम, फ्रिज की ठंडी चीजें।
  • सब्जी, फल आदि लाने पर उसे पहले साफ पानी से धोएं। फिर फिटकरी या नमक वाले पानी से भी धो सकते हैं। इससे उसकी सतह पर मौजूद बैक्टीरिया या वायरस काफी हद तक दूर हो सकते हैं।
  • सलाद भले ही कई तरह के विटामिन और मिनरल्स का स्रोत है, लेकिन अगर सही तरीके साफ नहीं है तो कई बार पेट तक इंफेक्शन फैलाने में इसकी अहम भूमिका होती है। फूंड पॉइजनिंग में सलाद का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए इस मौसम में सलाद तैयार करने से पहले उसे बहुत अच्छे से धो लें। सब्जियों आदि का छिलका जरूर हटाएं। फिर सलाद खाएं।
  • बाहर का खाना कम खाएं या न खाएं। आजकल फूड पॉइजनिंग के मामले काफी देखे जा रहे हैं। ऐसी जगह का पानी तो बिलकुल न पिएं जिसके साफ न होने की आशंका हो। पेट में इंफेक्शन फैलाने में दूषित पानी की भूमिका काफी अहम है।
  • एसी चला सकते हैं, लेकिन तापमान 24 से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रखें।
  • मुंह अच्छी तरह साफ करें। 2 मिनट तक ब्रश करें। पेस्ट किस तरह का उपयोग करते हैं, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। फर्क इससे पड़ता है कि हमने दांतों और मसूढ़ों पर ब्रश कितनी देर, किस तरह घुमाया है। दरअसल, जब हम खाते हैं तो अन्न या सब्जी का कोई हिस्सा दांतों में फंस जाता है। रातभर में ही उसमें बैक्टीरिया पैदा हो जाता है। यह बैक्टीरिया भी हमारे गले को खराब करता है। वहां इंफेक्शन फैलाता है।
  • गले में जरा भी खराश महसूस हो, खांसी हो तो घरेलू उपाय शुरू कर देना चाहिए। लेकिन बुखार, गले में दर्द और दूसरी परेशानियां भी साथ में हैं तो डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए। इसमें देर नहीं करनी चाहिए।
  • गरारे करना भी एक अच्छा विकल्प है। इसके लिए पानी और बीटाडीन को बराबर मात्रा में मिलाकर यानी 20 एमएल गुनगुना पानी तो 20 एमएल बीटाडीन (दो-दो चम्मच) मिलाएं। फिर गरारे करें। इसे दिनभर में 2 से 3 बार कर सकते हैं।
  • अगर किसी को एलर्जी की परेशानी रहती है, वह जब भी बाहर निकले उसे मास्क जरूर लगाना चाहिए। यह कोरोना के साथ दूसरी चीजों से भी बचाएगा। वैसे मास्क अभी सभी को लगाना है।
  • इम्यूनिटी को मजबूत करने के लिए हेल्दी फूड का सेवन सिर्फ मॉनसून या कोरोना के डर से नहीं करना चाहिए। इसे हमेशा लागू रखना चाहिए। हमारे खाने में सभी तरह के विटामिन, मिनरल्स होने चाहिए। सीधे कहें तो हर दिन एक से दो कटोरी हरी सब्जी, एक से दो मौसमी फल, दाल जरूर लें।
स्टीम और नेबुलाइजर से भी फायदा: स्टीम गले में जमे हुए बलगम को बाहर निकालने में मदद करती है।
स्टीम की प्रक्रिया : सादे पानी को उबालकर उसकी भाप को नाक और मुंह से अंदर खींचा जाता है। स्टीम ज्यादा असरदार तरीके से काम करे इसके लिए जरूरी है कि हम खुद को स्टीमर समेत कंबल या तौलिये से ढक लें। लोग इसमें कोई दवा मिला देते हैं। इसकी जरूरत नहीं होती। सादे पानी को अच्छी तरह से उबालने (5 मिनट तक उबालें) के बाद स्टीम अंदर खींचने से फायदा होता है। नाक से लें, मुंह से छोड़े और मुंह से लें नाक से छोड़ें। किसी सामान्य बर्तन से भी भाप ले सकते हैं। लेकिन पानी बेहद गर्म होता है इसलिए स्टीमर लेने से बचाव भी हो जाता है। मार्केट में कई तरह के स्टीमर मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल कर सकते हैं। कुछ यहां दिए गए हैं:
OPTIYORK
कीमत: 360 रुपये
LIVEASY
कीमत: 299 रुपये
Risentshop
कीमत: 422 रुपये
नोट: ये सभी ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं। कीमतों में फर्क मुमकिन है। बाजार में और भी अच्छे स्टीमर हैं।

अच्छे-बुरे स्टीमर की पहचान
  1. भाप लेते वक्त मुंह या नाक पर गर्म पानी के छीटें न पड़ें।
  2. 10-15 मिनट बाद खुद-ब-खुद बंद हो जाए।
  3. महीन बूंदों वाली भाप दे।
  4. स्टीम को कंट्रोल करने का बटन हो यानी तेज या हल्की कर सकें।
  5. ऑन-ऑफ होने का इंडिकेटर हो।
कितनी देर तक करें स्टीम: एक बार में 5 से 7 मिनट तक स्टीम करना काफी है। इसमें कुछ भी न मिलाएं। किसी भी तरह की दवा या कैप्सूल या नमक कुछ भी नहीं। एक दिन में 2 से 3 बार स्टीम करना सही रहता है।
नेबुलाइजर की बात: इसका इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह से न करें। इस्तेमाल करने से पहले इसकी एक छोटी-सी ट्रेनिंग भी होती है, वह लें। नेबुलाइजर इस्तेमाल करने के लिए पहले मशीन में दवा डालनी पड़ती है जो मरीज की स्थिति और जरूरत को देखते हुए डॉक्टर लिखते हैं। नेबुलाइजेशन की प्रक्रिया अमूमन 10 मिनट की होती है। यह उनके लिए फायदेमंद है, जिन्हें सांस लेने में परेशानी हो, ट्रेकिया या ब्रॉन्की में सूजन, अस्थमा की परेशानी हो।

आयुर्वेद के नुस्खे
आयुर्वेद में भी कई तरह के उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाने से या तो ऐसी समस्याएं कम आएंगी और आती हैं तो जल्दी दूर भी हो जाती हैं।
आयुर्वेद में ये हैं उपाय
आयुर्वेद में मौसमी परेशानी का सही और सटीक इलाज है। खासकर वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से होने वाली खराश और खांसी के लिए तो कई उपाय बताए गए हैं। उनमें से कुछ तो रोजाना की ज़िंदगी में शामिल हैं। जैसे अदरक वाली चाय, तुलसी वाली चाय आदि।
  • शरीर की इम्यूनिटी मजबूत होगी तो इस तरह की परेशानी कम से कम घेरेगी। इसलिए उपाय सिर्फ परेशानी आने पर नहीं करना चाहिए। इसके लिए हर दिन की कोशिश जरूरी है।
  • गला खराब होने पर गरारे करें। गरारे करने के लिए एक गिलास पानी में आधा चम्मच सेंधा नमक मिला लें। एसिडिटी के मामले में सेंधा नमक से गरारे करने पर फायदा होता है।
  • गुनगुने पानी में फिटकरी मिलाकर भी गरारे कर सकते हैं। एक गिलास गुनगुने पानी में 2 चुटकी फिटकरी पाउडर मिला सकते हैं। अगर फिटकरी पाउडर नहीं है तो साबुत फिटकरी को ही गुनगुने पानी में 2 से 3 मिनट के लिए छोड़ दें, फिर छानकर उससे गरारे करें। फिटकरी से मुंह के छालों आदि में फायदा होता है।
  • आयुर्वेद में कई तरह की गोलियां हैं जिन्हें मुंह में रखकर चूसने से खराश और खांसी में फायदा होता है। इनमें मुलेठी, तुलसी आदि की मौजूदगी होती है। ये बाजार में आसानी से मिलते हैं।
  • जब किसी डॉक्टर या वैद्य को दिखाने जाएं तो अपने गले की स्थिति देखने के लिए जरूर कहें। नजला यानी सामान्य जुकाम होने पर गरारे करना अच्छा रहता है। लेकिन बुखार होने पर इससे काम नहीं चलेगा।
  • एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच हल्दी पाउडर या एक गिलास पानी में कच्ची हल्दी के एक टुकड़े को 5 मिनट उबालकर गरारे करने से भी काफी फायदा होता है।
  • किसी भी तरह की खराश या खांसी चाहे कोरोना वाली हो या सामान्य, दिन में किसी भी समय 20 से 25 ml तिल या नारियल का तेल मुंह में भर लें और 5 से 7 मिनट तक रखे रहें। फिर कुल्ला करके फेंक दें। आयुर्वेद में इस क्रिया को गण्डूष कहते हैं।
  • 50 ml सरसों के तेल में 2 चुटकी नमक मिलाकर 2 मिनट तक गर्म कर लें। फिर इस तेल से सीने की मालिश करें। इससे खांसी में राहत मिलती है।
  • हर दिन सुबह फ्रेश होने के बाद नाक के दोनों सुराखों में उंगली से तिल, सरसों या बादाम का तेल लगाएं।
  • अगर पेट की परेशानी है तो खाना आधा कर दें। तीखी चीजों से परहेज करें।
सितोपलादि चूर्ण (जिन्हें शुगर नहीं है) या तालिसादि चूर्ण (जिन्हें शुगर है) का सेवन एक चम्मच शहद या पानी के साथ करना चाहिए। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इनमें वंश लोशन की मौजूदगी होनी चाहिए। सितोपलादि चूर्ण या तालिसादि चूर्ण में शहद मिलाकर पूरे मॉनसून के लिए इसे तैयार कर सकते हैं। शुगर वाले शहद की मात्रा का और कम कर सकते हैं।
ऐसे करें तैयार: 200 ml शहद में 70 से 100 ग्राम सितोपलादि चूर्ण (जिन्हें शुगर नहीं है, क्योंकि इसमें चीनी होती है) या तालिसादि चूर्ण को मिला दें। इसे 10 से 12 घंटों के लिए छोड़ दें। फिर हर दिन एक चम्मच सुबह और शाम में इसका सेवन करें। अगर परेशानी ज्यादा है तो इसे 3 वक्त भी कर सकते हैं।
  • इसे बच्चों को भी दे सकते हैं। 7 बरस तक के बच्चों को आधा चम्मच 2 बार दें। 8 से 12 साल तक के बच्चों को आधा चम्मच करके 3 बार दें और 12 साल से बड़ों को 2 से 3 बार एक-एक चम्मच करके दें।
  • हां एक बात और समझें कि सूखी खांसी में सितोपलादि चूर्ण और बलगम यानी गीली खांसी हो तो तालिसादि चूर्ण ज्यादा फायदा करता है।
  • गले में खराश होने पर एक चम्मच शहद में 5 से 7 बूंदें तुलसी या अदरक का रस मिलाकर दिन में तीन बार पीने से फायदा होता है।
  • शहद का फायदा तभी है जब शहद असली हो। यहां असली शहद की कुछ पहचान बताई जा रही है:
असली शहद की पहचान
रंग और गाढ़ापन: ज्यादातर शहद सरसों के फूलों से तैयार होता है इसलिए हल्का पीलापन लिए होता है। जब जामुन के फूलों से तैयार होता है तो यह हल्का भूरा होता है।
...तो उड़ जाएगी मक्खी: अगर किसी मधुमक्खी या मक्खी को शहद में गिरा दिया जाए तो शहद उनके पंखों में नहीं चिपकेगा। शहद से भीगने के बाद भी इनके पंख आपस में चिपकते नहीं हैं, ये आसानी से उड़ जाती हैं।
कपड़ों पर दाग नहीं लगता: यदि शहद असली होगा तो वह कपड़ों पर दाग नहीं लगाता। यदि मिलावटी है तो कपड़े पर दाग के रूप में जरूर दिखेगा।
डॉगी नहीं खाता शहद: जब शहद असली होता है तो डॉगी उसे नहीं खाते, लेकिन चीनी की मिलावट है तो उसे चाट लेते हैं।
कागज पर निशान आना: अगर कागज के नीचे निशान आ जाता है तो समझ लें कि शहद शुद्ध नहीं है क्योंकि शुद्ध शहद कागज पर डालने से उसके नीचे निशान नहीं आता है।
पानी बताएगा सच: एक गिलास सामान्य पानी लें और उसमें एक बूंद या आधा चम्मच शहद डालें। शहद असली होगा तो यह पानी में घुलेगा नहीं, बल्कि सीधे गिलास के तले में बैठ जाएगा।
अग्निपरीक्षा करें: अगर असली शहद को किसी रुई की बाती में लपेट दिया जाए और उसे जलाया जाए तो यह जल जाता है। अगर उस रुई की बाती को किसी दीये में रख दें तो वह तेल के दीये की तरह ही रोशनी देगा।

काढ़े की बात
एक व्यक्ति के लिए काढ़ा
पानी: 60 से 70 ml (1 कप)
दूध: 60 से 70 ml (1 कप)
तुलसी के पत्ते: 3, लौंग: 1, काली मिर्च: 1
दालचीनी: एक चुटकी पाउडर
चीनी या शक्कर: स्वाद के अनुसार, अगर डायबीटीज है तो न लें या वैद्य की सलाह से लें।
  • अगर लौंग, दालचीनी और काली मिर्च ले रहे हैं तो मुलेठी न लें या बहुत कम कर दें। इन तीनों की जगह मुलेठी लेना चाहते हैं तो एक बार किसी वैद्य से जरूर बात कर लें।
  • काढ़ा हर शख्स की परेशानी और उसकी जरूरतों के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए।
  • सभी चीजों को मिलाकर उबालने पर जब यह एक चौथाई बचे यानी 20 से 30 ml हो तो एक बार में इतना पी सकते हैं। इस तरह से दिन में 2 बार पी सकते हैं।
नोट: जिन्हें यह काढ़ा पचाने में परेशानी है, वे दूध और पानी में सिर्फ तुलसी का उपयोग कर सकते हैं।

इससे फायदा
  • गले में खराश कम होना, खांसी में कमी आना
  • सही तरीके से बने काढ़े से इम्यूनिटी बढ़ना
  • शरीर के अंदर गर्माहट महसूस होना
  • किसी का वजन ज्यादा है तो काढ़ा पीने से चर्बी कम हो जाती है। दरअसल, गर्म काढ़ा पीने से शरीर में मौजूद फैट पिघलने लगता है।
कौन न ले
  • पेट में अल्सर हो (काढ़ा पचाने के लिए शरीर ज्यादा पाचक रस निकालता है, इससे अल्सर की परेशानी बढ़ जाती है।)
  • किडनी की समस्या हो
  • ब्लड पाइल्स हो (ऐसे पेशंट को ज्यादा मसाले की वजह से ब्लड ज्यादा निकल सकता है)
  • 5 बरस से कम उम्र के बच्चों को (अमूमन ये ऐसे मसाले काढ़े में नहीं पचा पाते हैं।)
6 सबसे खास बातें
  1. जब गला खराब हो, खराश हो या हल्की खांसी हो तो इलाज घरेलू तरीकों से हो सकता है। अगर साथ में बुखार और गले में दर्द भी है तो डॉक्टर के पास जरूर जाना चाहिए। डॉक्टर की सलाह से कोरोना टेस्ट भी कराना चाहिए।
  2. खराश होने की कई वजहें हो सकती हैं। चूंकि गला हमारे कान, आंख, नाक, मुंह और फूड पाइप का जंक्शन है। इसलिए इनमें कोई परेशानी हो तो गले पर असर पड़ता है।
  3. मुंह की सफाई न रखने पर भी गला खराब होता है। इसलिए रोज सुबह और रात को सोते वक्त हर दिन 2 मिनट ब्रश जरूर करें।
  4. मॉनसून में इंफेक्शन की आशंका इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि इस दौरान बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि के पनपने के लिए मौसम मुफीद होता है और हमारे शरीर की इम्यूनिटी कुछ कम होती है। इसलिए सब्जी और फलों आदि को अच्छी तरह धोकर ही खाएं।
  5. गले में घाव, जलन या रैशेज आदि की एक बड़ी वजह एसिड रिफ्लक्स है। इसलिए ज्यादा तेल-मसाले वाली चीजें खाने से बचें।
  6. अगर मॉनसून में हर बार इस तरह की परेशानियां होती है तो मॉनसून शुरू होने से 15 दिन पहले से ही आधा चम्मच सितोपलादि चूर्ण (जिन्हें शुगर नहीं है क्योंकि इसमें चीनी होती है) या तालिसादि चूर्ण (जिन्हें शुगर है) का सेवन एक चम्मच शहद या पानी के साथ करना चाहिए।
एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. एस. के. सरीन, डायरेक्टर, ILBS
  • डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
  • डॉ. कैलाशनाथ सिंगला, सीनियर कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेरॉलजिस्ट
  • डॉ. अनिल ठकराल, डायरेक्टर, ENT, QRG हॉस्पिटल
  • डॉ. मीना अग्रवाल, सीनियर कंसल्टेंट, ENT, PSRI
  • डॉ. अरुण गर्ग, सीनियर कंसल्टेंट, ENT
  • डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, सीनियर पीडिअट्रिशन
  • डॉ. एस. एन. डोरनाला, वरिष्ठ वैद्य और साइंटिस्ट
  • वरिष्ठ वैद्य, बालेंदु प्रकाश
  • डॉ. जयकरण गोयल, आयुर्वेदाचार्य
  • डॉ. विकास चावला, वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक

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World Heart Day 2021: दिल की स्टेंटबाजी

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दिल की आवाज को जिसने भी नजरअंदाज किया, वह ज्यादातर मामलों में बाद में पछताता ही है। यही बात दिल की सेहत पर भी लागू होती है। दिल जब परेशान होता है, उसके कामकाज पर असर पड़ता है तो वह कुछ संकेत देता है। एक बार जब संकेत मिल जाए तो सही जांच और इलाज की जरूरत होती है। हार्ट एक्सपर्ट्स से बात कर जांच, इलाज और दिल को सेहतमंद रखने के टिप्स दे रहे हैं लोकेश के. भारती

जब दिल की नलियों में ब्लॉकेज होता है तो कुछ लक्षण आने शुरू हो जाते हैं। ये लक्षण हैं:

सीने में दर्द
यह तीन स्थितियों में होता है, जिसे मरीज बता सकता है

1. एसिडिटी: यह परेशानी आमतौर पर खाना हजम होने से ही जुड़ी होती है। इसका दिल की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं होता। एसिडिटी और गैस की वजह से भी सीने में दर्द या जलन हो सकती है। अगर 30 से 35 साल की उम्र के बाद अचानक गैस या एसिडिटी की परेशानी होने लगे तो यह दिल के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
  • जब भी सीने में दर्द, भारीपन और जलन हो तो 20 से 30 मीटर (60 से 80 कदम) तक सामान्य चाल से चलकर देखें। अगर एसिडिटी की वजह से परेशानी है तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। दर्द भी कम या ज्यादा नहीं होगा।
  • छाती के नीचे और पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होगा। दर्द एक ही जगह होता है। दर्द एक चुभन के रूप में होगा।
  • यह परेशानी खाने-पीने के बाद ही होती है। गैस और डकार आएगी।
  • दिल की धड़कन में कोई बदलाव नहीं होगा।
2. एंजाइना: खून नली का रास्ता तंग होना
सबसे ज्यादा परेशानी एंजाइना और हार्ट अटैक के लक्षणों में फर्क करने में होती है। ऐसा नहीं है कि खतरा एंजाइना में नहीं है, लेकिन यह खतरा हार्ट अटैक की तुलना में छोटा होता है। एक बात तो पूरी तरह साफ है कि एंजाइना का मतलब है कि खून दिल तक पूरी मात्रा में नहीं पहुंच रहा है।

कैसे पहचानें कि एंजाइना की वजह से ही परेशानी है:
  • सीने में दर्द, जलन, भारीपन, पसीना आना सबकुछ हो सकता है। ऐसा भी महसूस हो सकता है कि कोई गला घोंट रहा है। यह दर्द आमतौर पर 30 सेकंड से ज्यादा समय तक रहता है। फिर आराम करने पर बंद हो जाता है।
  • -जब भी सीने में दर्द के ऐसे लक्षण हों तो फौरन ही घर में 20 से 30 मीटर चलें और फिर 5 से 10 मिनट के लिए बैठ जाएं।
  • -अगर चलते समय यह परेशानी कायम रहे और बैठने या आराम करने पर खत्म हो जाए या कुछ आराम मिले तो आमतौर पर यह एंजाइना की परेशानी होती है।
  • -इसमें एक उंगली से पॉइंट करके बताना मुश्किल होता है कि दर्द कहां पर हो रहा है। यह आमतौर पर बड़े एरिया में होता है।
तुरंत राहत के लिए...
जब एंजाइना का दर्द हो तो ग्लिसरिल ट्राइनाइट्रेट (Glyceryl Trinitrate) वाली 5mg की गोली जीभ के नीचे रख लें। यह मार्केट में सॉर्बिट्रेट (Sorbitrate) और आइसोर्डिल (Isordil) आदि ब्रैंड नाम से मिलती है। इससे आर्टरी की चौड़ाई बढ़ जाती है। इसके बाद डॉक्टर से जरूर मिलें। आगे का इलाज वही बताएंगे।

3. हार्ट अटैक: खून की नली का रास्ता बंद होना और बार-बार व लगातार एंजाइना की समस्या होने पर जब हम ध्यान नहीं देते तो यह हार्ट अटैक में बदल जाती है। इलाज 2 से 3 घंटों में शुरू हो जाना चाहिए। इसे ही गोल्डन आवर्स कहा जाता है।

कैसे पहचानें कि परेशानी हार्ट अटैक की वजह से है:
  • दर्द, जलन, भारीपन, पसीना आना सबकुछ हो सकता है।
  • सीने में उठने वाला दर्द कई बार लेफ्ट कंधे की तरफ बढ़ने लगता है। मरीज को बेचैनी होने लगती है।
  • इसमें होने वाला दर्द बहुत तेज होता है, एंजाइना में इतना दर्द नहीं होता। शुगर पेशंट की हालत ज्यादा खराब हो सकती है। हाई शुगर की वजह से दिल की नसें कई बार सुन्न हो जाती हैं, इसलिए हार्ट अटैक होने पर दर्द का अहसास ही नहीं होता।
  • मरीज अमूमन होश में होता है। दर्द से जरूर परेशान रहता है।
तुरंत राहत के लिए...
  • हार्ट अटैक हुआ हो तो मरीज को फौरन 300 gm की एस्प्रिन (Asprin) पानी के साथ दें। यह मार्केट में डिस्प्रिन (Disprin), एस्प्रिन (Easprin), इकोस्प्रिन (Ecospirin) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। ऐसा तभी करें जब पहले यह दवाई ले चुके हों। फिर भी डॉक्टर से पूछकर ही दवा लें
  • सॉर्बिट्रेट या आइसोर्डिल भी ले सकते हैं। अगर यह दवा पहली बार ले रहे हैं तो बीपी अचानक काफी कम हो सकता है। इसलिए एस्प्रिन लेना ही बेहतर है। अगर एस्प्रिन न हो तो ही सॉर्बिट्रेट लें।
नोट: इसके बाद डॉक्टर से जरूर सलाह लें। आगे की जांच और इलाज वही बताएंगे।

4. कार्डिऐक अरेस्ट
दिल किसी भी वजह से जब काम करना ही बंद कर दे या धड़कनें बहुत कम हो जाएं, सांस अचानक बंद हो जाए या टूटने लगे तो ये कार्डिऐक अरेस्ट के लक्षण हो सकते हैं। वैसे तो इसमें डॉक्टरी सहायता सबसे जरूरी है, लेकिन फौरन मदद के लिए CPR दिया जाना चाहिए जो इमरजेंसी लाइफ सेविंग का तरीका है।


अब टेस्ट की बात

कब होती है टेस्ट की जरूरत
  • हल्का काम करने या फिर बैठे-बैठे भी सांस फूले।
  • सीने में दर्द की शिकायत हो यानी एंजाइना के लक्षण हों।
  • हार्ट अटैक के लक्षण हों।
  • अगर दिल की बीमारी की ज्यादा रिस्की हिस्ट्री (माता या पिता को 40 साल या कम उम्र में दिल की बीमारी हुई हो) है।
  • अगर सीढ़ियों से 2 मंजिल तक चढ़ने पर सांस नहीं फूलता तो मान सकते हैं कि दिल फिट है।

पहले होती हैं छोटी जांच
ब्लड प्रेशर जांच: ब्लड प्रेशर हाई होना दिल के लिए अच्छा नहीं है। नॉर्मल ब्लड प्रेशर 120/80 होता है।
खर्च: 50-60 रुपये

ECG: इसके ग्राफ को देखकर डॉक्टर 35 फीसदी मामलों में यह बता पाते हैं कि यह मामला दिल से जुड़ा है। अगर आगे जांच की जरूरत होती है तो आगे के लिए टेस्ट लिखते हैं।
खर्च: 200 से 400 रुपये

ट्रोपोनिन टेस्ट: आमतौर पर यह प्रोटीन दिल की मांसपेशी के खराब होने पर निकलता है। अगर ब्लड में इसकी मौजूदगी होती है तो इसका मतलब है कि इलाज की जरूरत है।
खर्च: 1200 से 2000 रुपये तक

कैल्शियम स्कोरिंग: अगर कैल्शियम स्कोरिंग 400 से ज्यादा है तो दिल के लिए खतरा है। खर्च: 2500 से 3000 रुपये

एको-कार्डियोग्रफी: यह एक तरह से हार्ट का अल्ट्रासाउंड है। जब बाकी टेस्ट करने का वक्त नहीं होता तो दिल की असल स्थिति देखने में यह मदद करता है। खर्च: 1500 से 2500 रुपये

अगर ऊपर के रिजल्ट लगभग सामान्य हों, लेकिन पेशंट को हार्ट की परेशानी के लक्षण आ रहे हों तो डॉक्टर ये टेस्ट करा सकते हैं:

TMT (ट्रेड मिल टेस्ट): पेशंट को ट्रेड मिल पर चलाया जाता है और हार्ट की रीडिंग ली जाती है। ब्लॉकेज का पता लगाने के लिए TMT खासतौर पर फायदेमंद है। खर्च: 500 से 1000 रुपये

स्ट्रेस इको
अमूमन यह उन मरीजों को करने के लिए कहा जाता है जिनके घुटनों में समस्या होती है और वे ट्रेड मिल पर चल नहीं सकते। ऐसे में उनसे स्ट्रेस इको कराया जाता है यानी कुछ एक्सरसाइज कराकर पल्स रेट आदि देखी जाती हैं।
खर्च: 1000 से 2000 रुपये

जब ऊपर बताए टेस्ट से इस बात का यकीन हो जाता है कि ब्लॉकेज की स्थिति बनी हुई है तो फाइनल जांच के लिए 2 विकल्प होते हैं:

1. CT-एंजियोग्रफी
  • यह टेस्ट उस समय किया जाता है जब पेशंट या उसका अटेंडेंट यह कह देता है कि ब्लॉकेज पता लगने के बाद भी वह स्टंट नहीं डलवाएगा। डॉक्टर मरीज की ब्लॉकेज को दवा से ही क्लियर कराने की कोशिश करें।
  • इस टेस्ट को किडनी के मरीजों पर नहीं करते क्योंकि इसमें इस्तेमाल होने वाला रंग (डाई)-किडनी पर बुरा असर डालता है।
  • इसमें कुछ हद तक रेडिएशन का खतरा होता है, इसमें इस्तेमाल होने वाला रंग रेडियोऐक्टिव होता है।
  • यह टेस्ट उस वक्त भी काम नहीं करता जब आर्टरीज में 20 से 30 फीसदी ज्यादा कैल्शियम जमा हो। इससे ब्लॉकेज का सही पता नहीं चलता। एंजाइना या फिर हार्ट अटैक का शक होने पर यह टेस्ट कराना बेहतर है।
खर्च: 14 से 15 हजार रुपये

2. एंजियोग्रफी
  • हार्ट अटैक के मामले में यह टेस्ट सबसे अच्छा है।
  • स्टेंट डालने यानी एंजियोप्लैस्टी करने का फैसला एंजियोग्रफी के बाद ही लिया जाता है। यहां इस बात को समझना जरूरी है कि CT-एंजियोग्रफी जांच से सिर्फ यह पता चलता है कि ब्लॉकेज है, वहीं स्टेंट डालने के लिए एंजियोग्रफी करना ही पड़ता है। इसलिए डॉक्टर अमूमन एंजियोग्रफी से पहले मरीज या अटेंडेंट से यह पूछ लेते हैं कि अगर ब्लॉकेज निकला तो स्टेंट डालना है या नहीं।
  • पहले इस जांच को करने में ज्यादा खून बहता था क्योंकि पैर में ट्यूब डाली जाती थी। अब बाहों में इसी ट्यूब को डाला जाता है इसलिए खून की बर्बादी कम होती है।
  • आज भी यही टेस्ट ब्लॉकेज पता करने का सबसे सही जरिया है। इस जांच को अमूमन हर तरह के हार्ट पेशंट पर कर सकते हैं।
खर्च: 14 से 15 हजार रुपये

ब्लॉकेज का इलाज है एंजियोप्लैस्टी
  • एंजियोप्लैस्टी करने का अधिकार उन्हीं कार्डियॉलजिस्ट को है जिन्होंने MD के बाद DM (डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन) की डिग्री भी ली हो। इसमें हार्ट सर्जन का काम नहीं होता। अगर ब्लॉकेज 2 आर्टरीजतक है तो इसे क्लियर करने के लिए बलूनिंग और स्टेंट का सहारा लिया जाता है। आर्टरीज में स्टेंट डालने से आने वाले समय में ब्लॉकेज का खतरा कम हो जाता है। स्टेंट डालने की प्रकिया को ही एंजियोप्लैस्टी कहा जाता हैं।
  • आजकल 4-5 ब्लॉकेज में भी स्टेंट की मदद से इलाज किया जाता है, लेकिन यह पेशंट की हिस्ट्री और स्थिति पर काफी हद तक निर्भर करता है।
  • यह ध्यान रहे कि स्टेंट डालना कोई स्थायी इलाज नहीं है। इसके साथ दवाई भी लेनी पड़ती है। इसलिए ऐसी स्थिति में पहुंचने से पहले यह जरूरी है कि हम सचेत हो जाएं।
एक स्टेंट के साथ खर्च: 2 लाख रुपये।

बाइपास यानी हार्ट सर्जरी
सर्जरी का फैसला हार्ट सर्जन, कार्डियॉलजिस्ट के साथ विचार करने के बाद लेते हैं। उन्हें जब टेस्ट आदि से यह समझ में आ जाता है कि ब्लॉकेज कई आर्टरीज में कई जगह है और दवा व स्टेंट डालने से फायदा नहीं होगा, तब वे बाइपास सर्जरी का निर्णय लेते हैं।

खर्च: 4 लाख रुपये लगभग
नोट: खर्च कम-ज्यादा मुमकिन है।
दवा अपने डॉक्टर की सलाह से लें।

बचाव के 10 टॉप टिप्स
  1. दिल को सेहतमंद रखने का तरीका है कि इसे बीमार ही न होने दें। इसके लिए इन बातों का ध्यान रखें:
  2. स्मोकिंग न करें। स्मोकिंग करने से दिल की बीमारी की आशंका 50 फीसदी तक बढ़ जाती है।
  3. अपना लोअर बीपी 80 से कम रखें। ब्लड प्रेशर ज्यादा हो तो दिल के लिए काफी खतरा है।
  4. फास्टिंग शुगर भी 80 से कम रखें। डायबीटीज और दिल की बीमारी आपस में जुड़ी हुई हैं।
  5. रोजाना कम-से-कम 45 मिनट सैर और एक्सरसाइज जरूर करें।
  6. तनाव न लें।
  7. रेग्युलर चेकअप कराएं, खासकर रिस्क फैक्टर हैं तो और भी जरूरी। साथ ही कार्बोहाइड्रेट, नमक और तेल कम खाएं।
  8. डायबीटीज है तो शुगर के अलावा बीपी और कॉलेस्ट्रॉल को भी कंट्रोल में रखें।
  9. फल और सब्जियां खूब खाएं। दिनभर अलग-अलग रंग के 5 तरह के फल और सब्जियां खाएं। मौसमी फल-सब्जियां फायदेमंद हैं।
  10. रेड मीट (चार पैरोंवाले के जानवरों का मीट) कम खाएं। यह वजन बढ़ाने के अलावा दिल के लिए भी खतरनाक है।
  11. कॉलेस्ट्रॉल लेवल 200 से कम रखें।

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चक्की पीसिंग एंड पीसिंग

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हम सबकी किचन में आटे के नाम पर गेहूं सबसे आगे होता है। इसके बाद ही किसी दूसरी चीज के आटे का नंबर आता है। पिछले कुछ बरसों में किचन में तरह-तरह के आटे की एंट्री हुई है। लेकिन शायद ही हमने कभी गौर किया होगा कि जो आटा हम खा रहे हैं क्या वह हमारे लिए मौसम के हिसाब से भी सही है? आटे में क्या-क्या मिलवाकर पिसवाएं तो ज्यादा पौष्टिक होगा? या फिर बाजार से आटे का पैकेट लेना ही सही है? नवरात्र में कौन-सा आटा ज्यादा अच्छा रहेगा? एक्सपर्ट्स से बात करके ऐसे ही सवालों के जवाब और जानकारी दे रही हैं रजनी शर्मा...

सुबह गेहूं की ब्रेड, दोपहर को गेहूं की रोटी, फिर शाम को गेहूं की रोटी व थोड़े चावल। बहुत-से भारतीय घरों में कुछ दशकों से खानपान का यही रुटीन चलता आ रहा है। हालांकि पहले ऐसा नहीं था, उत्तर भारत का पारंपरिक खाना कई तरह के अनाज से भरपूर था। लेकिन 60 के दशक के बाद आई हरित क्रांति ने दुनिया में हलचल मचा दी। उस दौर में गेहूं की नई किस्में आईं और इसका असर हमारी थाली पर भी पड़ा। धीरे-धीरे हमारे पारंपरिक अनाज हमारी किचन से बाहर होते चले गए।

आटा वही, जो रीजन (इलाके) और सीजन (मौसम) में सही
हमें शरीर और मन का तृप्त करनेवाला भोजन करना चाहिए, न कि सिर्फ जीभ को खुश करनेवाला। पहले हमें मौसमी फल और सब्जियां पूरे साल नहीं मिलती थीं लेकिन अब मिलती हैं तो महंगी होने पर भी हम उन्हें खरीद लेते हैं। यह सोचे बिना कि उनमें पौष्टिकता भी कम होगी। उन चीजों को कोल्ड स्टोरेज से निकालकर बेचा जा रहा होगा। इसी तरह अनाज की जो किस्में जिस इलाके में उगती हैं, वहीं सस्ती भी मिलती हैं और लोगों को सेहतमंद भी रखती हैं। दरअसल हमारे वातावरण और जगह का असर हमारे खानपान पर पड़ता है। अगर गेहूं को देखें तो पहले यह उत्तर भारत का प्रमुख अनाज नहीं था। चावल, बाजरा, मक्का, ज्वार, जौ जैसे पारंपरिक अनाज की अहमियत भी खूब थी जो सिर्फ गेहूं लंबे समय तक खाने की वजह से ग्लूटन एलर्जी जैसी समस्या पैदा होने लगी क्योंकि ये नई गेहूं की फसलें जेनेटिकली मॉडिफाइड थीं और इनकी गुणवत्ता सुधराने के लिए इनको ऐसे बदला गया कि इन्हें खाने से शरीर में एंटिजन बनने लगे। फिलहाल देश में 1 से 2 फीसदी लोगों को ग्लूटन एलर्जी है। इन लोगों के अलावा सबको तुरंत गेहूं को अपनी ज़िंदगी से बाहर करने की जरूरत नहीं है। लेकिन हमें गेहूं के साथ ही दूसरे अनाज को शामिल करना होगा। इससे नुकसान कम होगा और फायदे बढ़ जाएगा। (ग्लूटन पर विस्तार से जानकारी पाने के लिए Sundaynbt के फेसबुक पेज पर Gluten टाइप करें, जानकारी मिल जाएगी।) आयुर्वेद में बताया गया है कि गेहूं, चावल और चने आदि को जिस मौसम में उनकी फसल काटी गई है, उससे अगले मौसम में खाना चाहिए। इसीलिए पुराना चावल और पुराना गेहूं अच्छा माना जाता है। गेहूं के नए दानों की गर्मी सालभर पूरा होते-होते कम होने लगती है। इसलिए ऐसा आटा हजम करने में आसानी होती है। गेहूं को धोकर सुखाने से भी गेहूं की गर्मी कम हो जाती है।

ऐसा गेहूं चुनें
साल 1965 के बाद से हमारे देश में ही गेहूं की करीब 450 किस्में तैयार हो चुकी हैं। इनमें से सबसे बढ़िया किस्म की पहचान करना आसान नहीं है। फिर भी बाजार में गेहूं खरीदने जाएं तो ध्यान रखें:
  • सिर्फ यही न देखें कि गेहूं बहुत महंगा है।
  • आमतौर पर हमारे आसपास की दुकान में 3 से 4 तरह के गेहूं की किस्में मिल सकती हैं। उनमें से ऐसा गेहूं लें जो साफ-सुथरा हो, उसके दाने पिचके हुए न हों।
  • गेहूं की बाहरी परत में चमक हो और धूप में देखने पर गेहूं की सुनहरी स्किन दमक उठे।
  • वैसे तो गेहूं कई प्रदेशों में उगता है पर मध्य प्रदेश में उगने वाला शरबती गेहूं अच्छा माना जाता है।
गेहूं का आटा ऐसा हो
  • आटा बिलकुल मैदा की तरह सफेद न दिखता हो।
  • आटे में चोकर भरपूर होना चाहिए यानी उसमें गेहूं की सुनहरी स्किन हो।
  • आटा गूंथने के बाद रबड़ की तरह न खिंचे।
  • आटे की रोटी बहुत ज्यादा चिकनी यानी बेहद मुलायम न बने।
  • अगर शरबती गेहूं का आटा होगा तो गूंथने में पानी भी ज्यादा लगेगा। रोटी में मिठास आती है।
चोकर भी जरूरी है
गेहूं में स्टार्च और फाइबर दोनों लगभग बराबर मात्रा में होते हैं लेकिन आमतौर पर पैकेटवाले आटे में गेहूं का स्टार्च ही मिलता है। इसलिए ऐसा आटा लें जिसमें चोकर भी हो। आटा छानने की छलनी से अगर इस आटे को छानें तो कुछ चोकर निकलना चाहिए। अगर छलनी में कुछ नहीं बचता और सारा आटा छनकर नीचे बर्तन में जमा हो जाता है तो ऐसे आटे का इस्तेमाल करना बंद कर दें। बाजार में सामान्य से थोड़े बड़े छेद वाली आटा छलनी भी आती है, सामान्य छलनी की जगह उसका भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे ज्यादा चोकर आटे में मिल जाएगा और आटे में कोई कीड़ा आदि हुआ तो वह भी छानते वक्त दिख जाएगा। आटे की सबसे रिफाइन फॉर्म होती है मैदा। जैसे गन्न से चीनी बनती है। मैदा रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट है। उसमें कोई फाइबर यानी चोकर नहीं है। अब ज्यादातर लोगों को फाइबर का महत्व पता चल चुका है। फाइबर की वजह से डायबीटीज का स्तर घटता है, शरीर का इम्यून सिस्टम ठीक होता है, मेटाबॉलिजम ठीक होता है जबकि मैदा लेने से परेशानी होती है क्योंकि कोलेस्ट्रोल बढ़ जाता है।

आटा दुकान की चक्की से पिसवाएं या घर पर पीस लें?
धीमे-धीमे हल्की आंच पर खाना पकाने और धीरे-धीरे ही आटा पिसवाने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि दुकान में चक्की तेजी से चलती है तो ताजा पिसा हुआ आटा गर्म हो जाता है। इस वजह से उसकी पौष्टिकता में कमी आ जाती है। कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि यह बिलकुल सही है। वहीं, कुछ यह तर्क देते हैं कि जब रोटी बनती है तो तेज आंच पर पकती है, ऐसे में आटे के गर्म होने से पौष्टिकता घटने की बात पूरी तरह सही कैसे हो सकती है। अगर ऐसा होता है तो इसका असर बेहद मामूली होगा। दरअसल हम कच्चा अनाज नहीं खा सकते और पकाने के बाद ही अनाज हमारे खाने योग्य होता है। हां, कोई चाहे तो घर में छोटी चक्की रख सकता है। गेहूं या अनाज को धोकर-सुखाकर इसमें पीस सकते हैं। हर बार ताजा आटा खाने को मिल सकता है। यह हाइजीन के स्तर पर बाजार में पिसवाए आटे से बेहतर होगा। जैसे सिल-बट्टे की जगह मिक्सी ने ले ली है, उसी तरह पत्थर की गोल चक्की की जगह अब आटा पीसने की मशीनें मिल जाती हैं। इलेक्ट्रिक आटा चक्की करीब 8 हजार रुपये से शुरू होकर 21 हजार रुपये तक की कीमत में ऑनलाइन मौजूद हैं। कुछ यहां देख सकते हैं:

  • Natraj Viva ऑटोमेटिक आटा चक्की - कीमत 16,999 रुपये
  • Milcent Flour Mill - कीमत 17,999
  • MICROACTIVE ऑटोमेटिक आटा चक्की - कीमत 14,999
नोट - कीमतों में बदलाव हो सकता है। दूसरी कंपनियों की आटा चक्की भी बाजार में मौजूद हैं।

पैकेटवाला आटा महीनों चलता है तो चक्कीवाला आटा जल्दी खराब क्यों होता है?
आमतौर पर आटा नमी के संपर्क में आते ही खराब होता है। बारिश के मौसम में उसमें 15 दिन रखते ही कीड़े पड़ सकते हैं। फैक्ट्री से पैक होकर आने वाले आटे के पैकेट से हवा निकाल दी जाती है तो नमी की गुंजाइश कम होती है। इसके अलावा गेहूं में नमी होगी तो भी आटे में नमी पहुंच सकती है। हां, इस बात से भी इनकार नहीं कर सकते कि कुछ कंपनियां उसमें कोई प्रिजर्वेटिव मिलाती हों। वैसे आटे के पैकेट पर लिखा होता है कि उसे ठंडी और सूखी जगह पर ही रखें। अगर खुद आटा पिसवाएं तो पूरे महीने का एकसाथ लेने की जगह सिर्फ 15 दिन के लिए आटा लें। इससे ताजा आटा इस्तेमाल कर सकेंगे और खराब होने की आशंका भी नहीं रहेगी।

मिलेट्स का आटा या मल्टिग्रेन आटा कैसा हो?
गेहूं में प्रोटीन कम होता है लेकिन चना और सोयाबीन अच्छा होता है। इन्हें मिलाकर खाया जाए तो आटा पौष्टिक हो जाता है। इसे मिस्सी रोटी का आटा भी कह सकते हैं। वैसे पारंपरिक तौर पर भी दाल के साथ चावल, रोटी के साथ दाल आदि की जोड़ियां बनी हुई हैं। ऐसे कॉम्बिनेशन कई तरह की कमियों को पूरा कर देते हैं। किसी एक चीज में एक तरह के एमिनोएसिड होते हैं तो दूसरी चीज में दूसरे। गेहूं की एलर्जी या ग्लूटन एलर्जी से बचने के लिए अनाज को बदल-बदलकर खाना चाहिए। कुछ लोगों को वेट लॉस के लिए भी यह कारगर हो सकता है। लेकिन अचानक शुरुआत न करें। इसके दो तरीके हैं:

पहला तरीका -पहले महीने 10 किलो गेहूं के आटे में 10 फीसदी ही दूसरा अनाज मिलवाएं। तीन महीने बाद इनकी मात्रा बढ़ा लें। फिर आधा गेहूं और आधा दूसरा आटा कर दें। वैसे बाजार में मिलनेवाले पैकेट के आटे में सिर्फ 10 फीसदी ही मल्टिग्रेन होता है।

दूसरा तरीका आधा-आधा किलो जौ, सोयाबीन, ज्वार, बाजरा और चना (यह दाल कैटिगरी का है लेकिन आसानी से मिलता है और प्रोटीन का अच्छा स्रोत है, इसे भी गेहूं में मिलवाया जाता है।) लेकर अलग से पिसवा लें। इस तरह मल्टिग्रेन आटा तैयार हो जाएगा। 4 लोगों की रोटी के लिए जितना गेहूं का आटा लेते थे, उसका एक चौथाई हिस्सा गेहूं का आटा मिलाएं और बाकी हिस्सा दूसरे मिक्स आटे से लें, यानी 4 मुट्ठी में से सिर्फ 1 मुट्ठी आटा ही गेहूं का लेंगे। आयुर्वेद भी कहता है कि सभी अनाज को एकसाथ पहले से मिलाकर नहीं रखना चाहिए। खासकर चने को अलग से उबालकर मैश करके आटा गूंथते समय मिला सकते हैं।

कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर किसी को एसिडिटी, डायबीटीज, मोटापा, स्किन की परेशानी है तो ग्लूटन की वजह से हो सकती है। ऐसे में गेहूं को बिलकुल छोड़ देना चाहिए। विकल्प के तौर पर ब्राउन राइस, किनोवा के बीज, ज्वार, बाजरा आदि ले सकते हैं। इसे बदल-बदलकर भी खा सकते हैं और मिलाकर भी। कुछ लोगों को ग्लूटन से परेशानी है तो मक्का खाने पर भी दिक्कत हो सकती है। शरीर में इंफ्लेमेशन हो सकता है।

कौन न खाए मिलेट्स यानी मोटे अनाज का आटा
किसी भी नए अनाज को 15 दिन तक इस्तेमाल करके देखें। शरीर पर उसका असर पता चल जाता है। दरअसल कुछ लोगों का पेट ज्यादा संवेदनशील होता है यानी उनका शरीर ज्यादा फाइबर को झेल नहीं पाता। अगर डायरिया हो, पेट ठीक न लगे यानी गैस ज्यादा बनती है, डकार ज्यादा आती है, गैस ज्यादा निकलती है यानी शरीर में ब्लोटिंग होती है। पेट फूलने लगता है। ऐसे में मिलेट्स के साथ गेहूं का आटा मिलाकर लें तो परेशानी कम होगी। धीरे-धीरे आदत पड़ जाएगी। अगर किसी ने बचपन से फाइबर वाला आटा खाया है तो बड़े होने पर उन्हें दिक्कत नहीं होती।

नोट: अगर किडनी से जुड़ी परेशानी है तो पहले डायटिशन या अपने डॉक्टर से सलाह लें।

किस मौसम में आटे में क्या मिलाएं?
मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, जौ आदि आते हैं। इनमें प्रोटीन तो गेहूं जैसा ही होता है लेकिन ये फाइबर, विटामिन और मिनिरल्स से भरपूर होते हैं। इनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स बहुत कम होता है तो डायबीटिज जैसी लाइफस्टाइल की बीमारी या थायरॉइड के मामलों में भी फायदा पहुंचाते हैं। ये धीरे-धीरे हजम होते हैं तो शरीर इनकी पौष्टिकता को सोख सकता है। जिनको कब्ज रहती है और हार्ट की बीमारी है उनके लिए भी अच्छे हैं।
  • जौ हमारा पारंपरिक खाना है, यह शरीर की सफाई करता है यानी इसमें ऐंटी ऑक्सिडेंट्स होते हैं। यह हाजमे के लिए अच्छा है। इसके आटे को भूनकर सत्तू के तौर पर भी ले सकते हैं। जौ को गर्मी के मौसम में आटे में मिलाएं।
  • मक्का यह गेहूं और चावल की तरह सीजनल अनाज है। इसे सर्दियों में ही खाना चाहिए। इसमें विटामिन-ए और आयरन होता है।
  • सोयाबीन अच्छे प्रोटीन का स्रोत है। लेकिन गर्मी के मौसम में गेहूं में न मिलाएं। यह आसानी से नहीं पचता।
  • चने में भी प्रोटीन अच्छी मात्रा में होता है। लेकिन गर्मी का मौसम छोड़कर बाकी किसी भी मौसम में इसे गेहूं के साथ मिलाकर पिसवा सकते हैं। सर्दियों में इसका सत्तू भी ले सकते हैं। यह आयरन से भी भरपूर होता है।
  • बाजरा, रागी, ज्वार सभी गर्म तासीर के हैं इसलिए गेहूं के साथ सर्दियों में आटे में मिलाएं। इससे प्यास बहुत लगती है। ऐसे में पानी खूब पीते हैं तो सर्दियों में होने वाली कब्ज दूर हो जाती है। बाजरा बिलकुल ग्लूटन फ्री है और इसमें अच्छा फाइबर होता है। रागी में कैल्शियम, विटामिन और फाइबर है तो ज्वार में मैग्निशियम, फाइबर और प्रोटीन होता है। ये आटे बरसात के मौसम में नहीं खाने चाहिए।
इनके अलावा आजकल मेथी के दाने और अजवायन भी आटे में पिसवाने का ट्रेंड है। लेकिन पिसने से पूरा न्यूट्रिशन नहीं मिल पाएगा। अजवायन की खुशबू और तेल उड़ जाएगा। इसलिए जब आटा गूंथ रहे हों तब एक टेबल स्पून यानी छोटी चम्मच अजवायन मिला सकते हैं। अगर कोई डायबीटिज के लिए मेथी खाना चाहता है तो आटे में मिलाने के बजाय मेथी दाने को भिगोकर खाने से फायदा ज्यादा होता है।

कैसे बनाएं मिलेट्स की नर्म रोटी?
मिलेट्स के आटे की रोटी जल्दी सूखने लगती है। इसके लिए जब सुबह आटा गूंथें तो उसमें रात की बची दाल या सब्जी मिला सकते हैं। चाहें तो आटे को दूध या दही से भी गूंथ सकते हैं। इससे रोटी नर्म रहती है। थोड़ा-सा गेहूं का आटा तो मिला ही सकते हैं। गेहूं में ग्लूटन होता है इसलिए रोटी नर्म और फ्लेक्सिबल होती है। सच यह है कि ग्लूटन की हमारे शरीर को कोई जरूरत नहीं होती।

नवरात्र व्रत में कैसा आटा खाना चाहिए?
नवरात्र का संबंध हमारे शरीर की शुद्धि से है। 9 दिन के भीतर ही मन की शुद्धि, तन की शुद्धि और आध्यामिक स्तर पर शुद्धि की कोशिश होनी चाहिए। नवरात्र इस बात का संकेत होते हैं कि अब मौसम में भारी बदलाव आने वाला है। गर्मी से पहले चैत्र नवरात्र और सर्दी से पहले शारदीय नवरात्र आते हैं। मौसम बदलते वक्त हमारे शरीर की इम्यूनिटी कम हो जाती है। इस दौरान वात और पित्त का प्रकोप बढ़ जाता है। इसीलिए इन दिनों में लोग जल्दी बीमार होते हैं। कुदरत के इस बदलाव के मुताबिक अपने शरीर को ढालने के लिए हम अपने सामान्य खानपान को कुछ वक्त के लिए ब्रेक देते हैं। अपना सामान्य खाना न खाकर हल्का-फुल्का खाते हैं। उपवास में इसलिए फलाहार पर जोर दिया जाता है। इस दौरान खूब पानी पीना चाहिए और मौसमी फल जरूर लेने चाहिए। जब 9 दिन बीत जाएं तो मन और तन को हल्का महसूस करना चाहिए। अगर ज्यादा तला हुआ भोजन हर दिन लेंगे तो 10 वें दिन तक वजन बढ़ जाएगा और हाजमा खराब हो चुका होगा। आमतौर पर लोग यहीं गलती कर देते हैं। वे फास्टिंग की जगह फीस्टिंग कर लेते हैं। इसलिए व्रत में खाए जानेवाले आटे से जो कुछ भी बनाएं, वह सादा होना चाहिए। कम चिकनाई और मिर्च-मसाले में बना। लेकिन घी, तेल का इस्तेमाल कम करना है, बंद नहीं करना। इन दिनों जो आटा खाया जाता है वह रूखी प्रकृति का होता है। आमतौर पर नवरात्र के व्रत में 3 तरह का आटा खाया जाता है। कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, समा या सामक के चावल या उसका आटा:

कुट्टू का आटा
यह एक जंगली बीज है जो प्रोटीन और फाइबर से भरपूर है। यह हल्का है जल्दी हजम हो जाता है लेकिन इससे बना खाना खाकर पेट लंबे वक्त तक भरा हुआ महसूस होता है। पहले यह सीमित वक्त के लिए ही मिलता था लेकिन अब इसकी डिमांड और सप्लाई दोनों बढ़े हैं। लेकिन इस्तेमाल सिर्फ नवरात्र में होता है। इसलिए फूड पॉयजनिंग के कुछ केस आ जाते हैं। यह काफी गर्म तासीर का होता है। इसलिए ओवरईटिंग होने पर दस्त भी लग सकते हैं।

इन बातों का ध्यान रखें
कुट्टू का आटा खाकर फूड पॉयजनिंग के केस कई तरह के होते हैं। जो लोग कभी-कभी यह आटा खाते हैं वे लगातार कई दिन तक इसे खाकर हजम नहीं कर पाते क्योंकि फाइबर बहुत है। दूसरे कूट्टेू के स्टोरेज के वक्त फंगस लग सकता है जो पकाने के बाद भी खत्म नहीं होता। आटे में किसी दूसरे जंगली बीज की मिलावट हो, आटा एक्सपायटी डेट के बाद का हो तो भी खाने के बाद उल्टी-दस्त हो सकते हैं। जिन्होंने किसी एक ही दुकान से आटा लिया हो, उन सभी लोगों में एक जैसे लक्षण दिख जाते हैं। कुट्टू का बीज तिकोने आकार का और थोड़ा चमकदार दिखता है। इसमें बारिश के दिनों में दीवार पर लगनेवाली फंफूद जैसी ही फफूंद लग सकती है। आमतौर पर अच्छी दुकानों में स्टोरेज सही होती है तो ऐसी आशंका नहीं रहती।
  • अगर कुट्टू के बीजों को अपने सामने चक्की पर पिसवा रहे हैं तो देख लें कि बीज पर किसी तरह का फंगस न हो। यह फंगस कालापन लिए हुए होती है।
  • छूने पर भी बीज में किसी तरह की नमी महसूस न हो।
  • अगर पहले से पिसा हुआ आटा ले रहे हैं तो पैकेट की एक्सपाइरी डेट जरूर देख लें। खुला आटा जहां गैर-स्वच्छ तरीके से रखा गया हो, वहां से तो बिलकुल न लें।
समा या सामक के चावल का आटा
यह अनाज नहीं, एक तरह का बीज है। इसमें स्टार्च कम होता है, फाइबर ज्यादा होता है। इसलिए यह चावल मोटापे को कंट्रोल कर सकता है। डायबीटिज मरीज भी इसका इस्तेमाल करते हैं। इसे खाकर शरीर को डीटॉक्सिफाई भी सकते हैं। इस चावल की ऊपरी परत में ऐंटि ऑक्सिडेंट्स होते हैं। यह ऐंटि एजिंग और ऐंटि कैंसर होता है।

सिंघाड़े का आटा
यह तालाब में पैदा होने वाला फल है। इसके भीतर की गिरी को सुखा लिया जाता है। इसमें पोटैशियम, स्टार्च और मिनरल्स खूब होते हैं। लेकिन लंबे समय तक कुट्टू या सिंघाडे का आटा खाना भी पेट के लिए ठीक नहीं। इसका मतलब है कि इन्हें कुछ दिन ही खाना ठीक है, महीनेभर तक या उससे ज्यादा न लें क्योंकि इनमें कैलरी भी ज्यादा होती है।

घी-तेल जरूरी पर इतना न हो....
व्रत के दौरान इस तरह के कुट्टू या सिंघाड़े के आटे से पूड़ी और पकौड़ी बनाने की जगह रोटी व पराठें बना सकते हैं। सामक के चावल का आटा लिया है तो भी इसमें थोड़ा-सा आलू मैश कर लें। इस तरह कम घी लगाकर खाना, डीप फ्राइ खाने से कहीं बेहतर होगा। तीनों वक्त एक जैसा खाना न खाकर फलाहार पर ज्यादा फोकस करें। अगर आटे से कोई चीज बनाकर लेनी है तो बदल-बदलकर लें यानी सुबह सामक के चावल तो शाम को कुट्टू। अगले दिन सिंघाड़े का आटा ले सकते हैं। पूरे 9 दिन के व्रत में भी ऐसा ही कर सकते हैं। चाहें तो एक दिन कुट्टू, दूसरे दिन सिंघाड़े का आटा और तीसरे दिन सामक के चावल ले सकते हैं। जब आटा बदल-बदल कर खाएंगे तो शरीर ज्यादा सेहतमंद रहेगा।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. अंशुमान कुमार, सीनियर कैंसर सर्जन, डायरेक्टर धर्मशिला अस्पताल
  • डॉ (प्रो). अनिल अरोड़ा, सीनियर गेस्टोएंट्रोलजिस्ट, गंगा राम अस्पताल
  • डॉ. रेखा शर्मा, एक्स डायटिशन, एम्स
  • इशी खोसला, सीनियर डायटीशन
  • नीलांजना सिंह, सीनियर डायटिशन
  • आर.पी. पाराशर MS, पंचकर्म अस्पताल
  • डॉ. सत्या एन. डोरनाला, वैद्य-साइंटिस्ट फेलो

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मन के मर्ज

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जिन लोगों ने यह समझ लिया कि 'शो मस्ट गो ऑन', उनके लिए तनाव या स्ट्रेस, चिंता जैसी परेशानियां पल भर की होती हैं। ऐसे लोगों के सामने जब दुख और चुनौतियां अचानक आती हैं तो इसे महसूस करने और हल खोजने के बाद वे इन्हें झटका देकर आगे निकल जाते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे जरूर होते हैं जो ऐसे में आगे नहीं बढ़ पाते। ऐसे लोगों के लिए ज़िंदगी ठहर-सी जाती है। ये डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। इनकी ज़िंदगी को आगे बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए, लक्षणों को पहचानना कितना जरूरी है, डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए? एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

6 सबसे खास बातें
  1. जो चीज स्ट्रेस से शुरू होती है, उसका हल न होने पर वह आगे बढ़कर चिंता में बदल जाती है। लगातार चिंता की वजह से ही कोई शख्स डिप्रेशन में चला जाता है।
  2. मेंटल हेल्थ की परेशानी भी शरीर की दूसरी परेशानियों की तरह है, इसलिए इसका इलाज भी जरूरी है। हर दिन 10 से 15 मिनट का योगासन, ध्यान और हर दिन सुबह या शाम को 30 मिनट की एक्सरसाइज से फायदा होता है।
  3. हर इंसान स्ट्रेस और चिंता से गुजरता है। इस बात को समझना चाहिए कि जब तक होश है और सांसें चल रही हैं, इनसे भाग नहीं सकते। हां, इन्हें मैनेज कर सकते हैं।
  4. जब तक स्ट्रेस और चिंता आम जिंदगी में परेशानी न पैदा करने लगे तो इसका निदान योग, एक्सरसाइज और मधुर संगीत या टूर आदि से खोज सकते हैं। जब यह रुटीन को खराब करने लगे तो इलाज के लिए डॉक्टर के पास जरूर जाना चाहिए।
  5. मेंटल हेल्थ की समस्या आ जाए तो सबसे पहले अपने फैमिली फिजिशन के पास जाना चाहिए। वही बताएंगे कि मरीज को साइकॉलजिस्ट की जरूरत है या साइकाइट्रिस्ट की। अगर सिर्फ लंबी थेरपी चाहिए तो साइकॉलजिस्ट की जरूरत पड़ेगी और अगर थेरपी के साथ दवा की जरूरत होगी तो साइकाइट्रिस्ट के पास जाना होगा।
  6. अगर कोई शख्स किसी दुख या चिंता की वजह से लगातार 2 हफ्ते यानी 14 दिनों तक अपने सामान्य रुटीन पर न लौटे, उसका खाना-पीना सामान्य न हो तो उसे डिप्रेशन का लक्षण समझना चाहिए। डिप्रेशन कितना गंभीर है, यह मरीज की स्थिति, उसके स्वभाव पर निर्भर करता है। अगर वह हिंसक नहीं है और वह खुदकुशी की कोशिश नहीं करता तो उसे कम गंभीर समझा जा सकता है, लेकिन इसका फैसला मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट ही करेंगे।
आदित्य ने दोस्त को ऐसे निकाला डिप्रेशन से
सौरभ और आदित्य दिल्ली की एक आईटी कंपनी में जॉब करते थे। कोरोना के दौरान हजारों लोगों की जॉब गई इनमें ये दोनों भी शामिल थे। जॉब गई तो जो आधी हो चुकी सैलरी मिलती थी, वह भी बंद हो गई। एक महीने में स्थिति खराब हो गई। घर का किराया देने की स्थिति नहीं रही। इन दोनों ने इस स्थिति को दो अलग-अलग तरीके से लिया। आदित्य ने इसे चुनौती के रूप में लिया और अपने गांव वापस चला गया। वहीं रहकर अपना रेज्यूमे दूसरी कंपनियों को भेजने लगा और ऑनलाइन क्लास लेना शुरू किया। वह ऑनलाइन ही कंप्यूटर, मैथ्स आदि की क्लास चलाने लगा। कुछ महीनों में ही उसकी ऑनलाइन कमाई होने लगी। इसका फायदा यह हुआ कि आदित्य के दिमाग में जब भी नकारात्मक ख्याल आते थे तो ऑनलाइन कमाई की एक पॉजिटिव डाइट मिल जाती थी। हालांकि जॉब की तलाश जारी थी।

दूसरी तरफ सौरभ ने दिल्ली में किराए के घर में ही रहकर, कई जगह जॉब के लिए अप्लाई किया लेकिन निराशा ही हाथ लगी। इसी दौरान उस पर कर्ज भी बढ़ता चला गया। वह बहुत तनाव में रहने लगा। उसे लगा कि ज़िंदगी में अब क्या होगा। मार्केट का हाल बहुत खराब है, कर्ज बढ़ता जा रहा है। मैं शायद इससे नहीं निकल पाऊंगा। वह अकेला रहता था, घंटों रोता रहता, रात को नींद गायब रहती। मन में खुदकुशी के भी ख्याल आने लगे थे।

उधर जब आदित्य की कुछ कमाई होने लगी तो उसने सौरभ को कॉल किया। उससे बात करने पर आदित्य को यह बात समझ में आ गई कि सौरभ बहुत परेशान है। अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो समस्या बढ़ सकती है। आदित्य ने सौरव की ये बातें उसके पैरंट्स को बताईं। उसके पापा ने कहा कि जॉब छूट गई है इसलिए परेशान है। जब जॉब मिल जाएगी तो ठीक हो जाएगा। गांव में तो कुछ है नहीं, उसे दिल्ली में रहकर ही कुछ मिल सकता है। बात कुछ आई-गई हो गई। एक हफ्ते बाद आदित्य ने फिर से सौरभ को फोन किया तो बातों से उसकी स्थिति और ज्यादा खराब लग रही थी। सिर्फ निराशावादी बातें कर रहा था। वह नशा भी करने लगा था। अंत में आदित्य ने यह तय किया कि अपने ऑनलाइन काम में उसे भी शामिल करेगा। उसने सौरव को बुलाया, लेकिन वह नहीं आया। आखिरकार सौरभ को लेने वह खुद पहुंचा। पिछले 5 महीने से आदित्य और सौरभ ऑनलाइन क्लास से कमाई कर रहे हैं। उनका चैनल देखनेवालों की संख्या भी बढ़ रही है। अब सौरभ पहले से काफी पॉजिटिव है। बात यहां जो ध्यान देने वाली है कि हर सौरभ की जिंदगी में आदित्य (सूरज) हो यह जरूरी नहीं, लेकिन स्ट्रेस और डिप्रेशन के केस में परिवार में या किसी करीबी को आदित्य बनना जरूरी हो जाता है।

मेंटल हेल्थ पर गंभीरता क्यों नहीं?
यह सच है कि हम मेंटल हेल्थ को गंभीर नहीं मानते। हम इससे ज्यादा साधारण बुखार को गंभीर मान लेते हैं और फौरन ही पैरासिटामॉल ले लेते हैं, जबकि मेंटल हेल्थ की परेशानी भी कम गंभीर नहीं है। अगर कोई शख्स लगातार स्ट्रेस में है, वह डिप्रेशन में न भी पहुंचे तो कम से कम 56 तरह की शारीरिक परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। मसलन: शुगर, बीपी, हॉर्मोनल समस्या, पाचन से संबंधी परेशानी, स्ट्रोक आदि।

समस्या की शुरुआती स्टेज
1. डर

यह एक ऐसा इमोशन है जो हर शख्स को महसूस होता है। यह तब पैदा होता है जब खतरा महसूस हो। चाहे वह खतरा मानसिक हो या फिर शारीरिक। डर असल में खतरे का पता चलने पर भी हो सकता है और कल्पना करके भी डर महसूस कर सकते हैं। पहले हम यह मानकर चलते थे कि डर सिर्फ नेगेटिव इमोशन है, लेकिन यह कई खतरों से बचाने में अहम भूमिका निभाता है। डर की वजह से हम ज्यादा सावधान होते हैं। जैसे डेंगू से डरकर हम मच्छरों को आसपास पनपने नहीं देते। कोरोना के डर से मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हैं। ज्यादातर लोगों को अमूमन अंधेरे से, बंद जगह, अनजान लोगों से बात करने में, अगर कुछ गलत बोल दिया तो लोग हंसेंगे आदि बातों से डर लगता है।
जब हम डरते हैं या डरकर घबराते हैं तो शरीर में अड्रेनलिन हॉर्मोन निकलता है। इसे 'इमरजेंसी हॉर्मोन' भी कहते हैं। यह हॉर्मोन हमारी हार्ट बीट, सांस लेने की दर को बढ़ा देता है। इससे हमारे शरीर में अतिरिक्त ऊर्जा पैदा होती है और पसीना निकलने लगता है। इसलिए कई बार सांप आदि को देखने के बाद हम बहुत तेजी से भागते हैं।
उपाय: कहते हैं कि डरकर जितना भागेंगे, डर उतना ही बढ़ता जाएगा। एक बार सामना कर लिया तो डर गायब हो जाता है। वैसे हर डर को भगाना जरूरी नहीं है। कई बार डर चीजों को सही वक्त पर करने के लिए मजबूर करता है। ज्यादा शराब पीने से लिवर और किडनी खराब हो जाएगी- यह डर भी जरूरी है, लेकिन डरकर स्ट्रेस में रहें, यह सही नहीं।

2. स्ट्रेस या तनाव
जहां तक बात तनाव और स्ट्रेस की है तो ये दोनों एक ही तरह की समस्या के लिए दो अलग-अलग शब्द हैं। हर शख्स कभी न कभी तनाव में रहता है। अब सवाल यह है कि यह पैदा कब होता है और इसके लक्षण क्या हैं?
कैसे पैदा होता है स्ट्रेस: यह डर का ही एक पड़ाव है। ज़िंदगी में ऐसी कई बातें हो सकती हैं जिन्हें हम करना चाहते हैं, पर कर नहीं पाते या हमारे काबू में नहीं होतीं। जैसे किसी को बुखार हुआ तो यह जरूरी नहीं कि वह कोरोना ही हो, अगर कोरोना भी हुआ तो भी घबराने की जरूरत नहीं है। लेकिन कुछ लोग बुखार होने के बाद यह सोचकर डर जाते हैं कि कोराना के बाद ऑक्सीजन लगेगी और फिर मौत हो जाएगी, जबकि होना यह चाहिए कि बुखार हुआ है तो पहले बाकी लक्षण देखें, RTPCR टेस्ट कराएं। अगर रिजल्ट पॉजिटिव आता है तो फिर इलाज होगा।

क्या हैं स्ट्रेस के लक्षण
सिर भारी रहना
यह स्थिति अमूमन सुबह उठने पर बनती है। ऐसा लगता है कि पूरी तरह जगे नहीं हैं। 8 घंटे तक सोने के बाद भी नींद पूरी नहीं होती। इस वजह से उठने के बाद काफी समय तक सिर भारी रहता है। साथ ही स्ट्रेस की वजह से अकसर बीपी भी बढ़ जाता है।

दिल की धड़कन का बढ़ जाना
स्ट्रेस की वजह से दिल की धड़कन का बढ़ जाना एक आम परेशानी है। कई बार इससे घबराहट जैसा महसूस होने लगता है। एक आम इंसान के दिल की धड़कन एक मिनट में 70 से 85 के बीच होती है। अगर कोई लगातार स्ट्रेस में रहता है तो यह 81 से 115 तक रह सकती हैं। हालांकि कुछ लोगों को बढ़ी हुई धड़कन से परेशानी नहीं होती। पर कई बार धड़कन अचानक बढ़ जाती है या फिर कुछ कम हो जाती है। अगर ऐसा हो तो डॉक्टर से जरूर बात करनी चाहिए। डॉक्टर इसके लिए धड़कन को सामान्य करने वाली दवा देते हैं और एक्सरसाइज के लिए भी कहते हैं।

चक्कर आना
तनाव की स्थिति में चक्कर आने की परेशानी तब ज्यादा होती है जब मरीज का बीपी बढ़ा हो। सामान्य स्थिति में बीपी 120/80 रहना चाहिए। इससे 10 ऊपर या नीचे चल सकता है। लेकिन यही जब बढ़कर 150/100 के करीब पहुंच जाता है तो चक्कर की परेशानी हो सकती है। एक दूसरी वजह से भी चक्कर आ सकता है, वह है स्ट्रेस के साथ अगर हीमोग्लोबिन कम हो। इससे कमजोरी आती है और चक्कर आने लगता है।

नींद न आना
स्ट्रेस की वजह से नींद नहीं आती और कई बार नींद की कमी की वजह से भी स्ट्रेस होता है। सीधे कहें तो दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। अगर कोई शख्स स्ट्रेस में है तो यह मुमकिन है कि वह कुछ ज्यादा सोचता है और चिंतित रहता है। उसे किसी चीज के न होने का डर रहता है। ऐसे में नींद उड़ जाती है। फिर कम नींद की वजह से स्ट्रेस ज्यादा बढ़ने लगता है। कुछ लोगों को नींद दुरुस्त करने के लिए दवा भी लेनी पड़ती है। नींद की परेशानी को दूर करना है तो...
  • फिजिकल वर्क और एक्सरसाइज को हर दिन करें। 1 घंटे की सुबह की एक्सरसाइज और रात में खाना खाने के 20 मिनट बाद 15 से 20 मिनट का वॉक
  • ऐसी चीजें न खाएं (ज्यादा तेल मसाले की चीजें आदि) जिससे रात में भी प्यास लगे। इससे नींद में खलल पड़ता है।
  • नशा और अल्कोहल से दूर रहें।
  • मोबाइल को सोने से 1 घंटा पहले खुद से दूर कर दें। बेड पर तो बिलकुल भी लेकर न जाएं।
  • सोने से पहले गुनगुने पानी में दोनों पैरों को 5 से 10 मिनट तक डुबोकर रखें। इससे पैरों की जकड़न कम होती है और मांसपेशियां रिलेक्स करती हैं।
नींद न आने का केमिकल लोचा
हमारी नींद के लिए जरूरी है मेलाटोनिन। यह एक केमिकल है जिसे स्लीपिंग हॉर्मोन भी कहते हैं। यह वही हॉर्मोन है जो नींद की दवा में होता है। इसकी भूमिका हमारी बायोलॉजिकल क्लॉक (हमारी आदतों और रुटीन से हमारे सोने, जागने, खाने, पीने आदि की टाइमिंग फिक्स हो जाती है) को सही तरीके से चलाने में मदद करती है। रात के वक्त नियमित नींद के लिए यह हार्मोन आमतौर पर शरीर खुद ही निकालता है। यह दिमाग में मौजूद पिनियल ग्रंथि से निकलता है। कब सोना है और कब उठना, यह इंसान खुद से चाह कर पूरी तरह तय नहीं कर सकता। कई बार इसका फैसला व्यक्ति की बायोलॉजिकल क्लॉक और घड़ी के अलार्म दोनों तय करते हैं। जिस तरह जल्दी सोना सबके लिए संभव नहीं, उसी तरह जल्दी उठना भी सभी के लिए मुमकिन नहीं होता। अमूमन दिन में हमारे शरीर के भीतर मेलाटोनिन का स्तर घट जाता है और रात में इसमें बढ़ोतरी हो जाती है। इसलिए दिन को हमें कम नींद आती है और रात में ज्यादा। लेकिन जब हमारी दिनचर्या अनियमित होती। दिमाग पर तनाव और दुख ज्यादा हावी हो जाता है, तब इस हॉर्मोन का निकलना कम हो जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि नींद हमसे दूर जाने लगती है।

काम में मन नहीं लगना
जब नींद पूरी न हो, काम अधूरा हो तो स्वाभाविक है कि नए काम में मन नहीं लगेगा। इससे निकलने के लिए जरूरी है कि अपनी भावनाओं पर काबू पाएं। नींद पूरी करें। तनाव को कम करने वाले उपाय करें।

चिड़चिड़ापन और गुस्सा
अमूमन यह स्थिति इसलिए बनती है कि काम पूरा नहीं होता। कमजोरी रहती है। बीपी बढ़ा रहता है। ऐसे में चिड़चिड़ापन और गुस्सा आम है। जब भी कोई स्ट्रेस में हो तो परिवार के दूसरे सदस्यों को ऐसी बातें कहने से बचना चाहिए जिनसे उस शख्स को ज्यादा गुस्सा आए।

नशा करने की इच्छा करना: 'मुझे पीने का शौक नहीं, पीता हूं गम भुलाने को' गाने की यह लाइन कुछ पुरानी जरूर है, लेकिन कुछ लोगों को अपना गम भुलाने में यह रास्ता सबसे आसान लगता है। इसलिए जिन लोगों को पहले से ही नशे की लत होती है, वे स्ट्रेस में नशे की मात्रा बढ़ा देते हैं और जिन्हें इसकी लत नहीं होती है, वे इस लत की ओर कदम बढ़ा देते हैं। गम मिटाने के लिए नशा करना कहीं से भी अच्छी आदत नहीं। यह उपाय नहीं, यह दूसरी समस्या के लिए रास्ता खोलता है। नशे की वजह से किडनी, लिवर समेत पूरे शरीर पर इसका बुरा असर होता है। सच तो यह है कि स्ट्रेस से निकलने में हमें खुद की मदद करनी होती है। साथ ही परिवार की मदद लेनी होती है। अगर बात फिर भी न बने तो साइकॉलजिस्ट या साइकाइट्रिस्ट की मदद लेनी चाहिए।

हिंसक व्यवहार करना: लगातार तनाव में रहने की वजह से कुछ लोग हिंसक भी हो सकते हैं। घर में मारपीट, छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई करना। घर के बाहर भी किसी से भिड़ जाना। ऐसे लक्षण मुमकिन हैं। ऐसी स्थिति डिप्रेशन के कुछ मामलों में भी हो सकती है। जब भी कोई ऐसा व्यवहार करे...
  • तो कभी भी उसे गुस्सा दिलाने वाला जवाब नहीं देना चाहिए।
  • उससे बहस नहीं करनी चाहिए।
  • अगर डॉक्टर से दवा चल रही है तो यह जरूर सुनिश्चित होना चाहिए कि वह दवा वक्त पर ले।
  • अगर दवा शुरू नहीं हुई है तो किसी साइकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट के पास जाना चाहिए।
इलाज की जरूरत कब
स्ट्रेस हो या फिर कोई डर, अगर इससे आम जिंदगी में कोई परेशानी न हो, हम अपना काम सामान्य तरीके से करते रहें, हमारी नींद पूरी हो रही हो, चिड़चिड़ापन भी ज्यादा न हो तो हमें अलग से यानी किसी डॉक्टर, साइकॉलजिस्ट या साइकाइट्रिस्ट के पास जाकर इलाज कराने की जरूरत नहीं है। हमें कुछ चीजें कर दिन करनी होती हैं। इससे स्ट्रेस की परेशानी अमूमन दूर हो जाती है, जैसे हर दिन 10 से 15 मिनट का योग और ध्यान, हर दिन 30 से 35 मिनट की एक्सरसाइज या वॉक, अपनी पसंद के काम करना या संगीत सुनना आदि। अगर आम जिंदगी में स्ट्रेस की वजह से परेशानी हो, रुटीन काम भी ठीक से नहीं कर पा रहे हों तो जरूर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

जब मामला हो जाए कुछ गंभीर
3. डिप्रेशन
स्ट्रेस की तुलना में यह गंभीर परेशानी है। हम अपने मन पर जितना बोझ रखेंगे, चीजें उतनी ही खराब हो जाती हैं। हकीकत यह है कि शरीर के साथ अगर मन का बोझ लेकर जिएंगे तो कम जी पाएंगे। इसलिए मेंटल ब्रेकडाउन को समझिए। बुरा लगता है तो रिऐक्ट करें। सबके सामने नहीं तो अपने कमरे में अपने सामने खुद के सच को स्वीकार करिए। बेवजह योद्धा मत बनिए, हमेशा लड़ने या सहकर भी मजबूत बने रहने की जरूरत नहीं होती।

कई बार लोग स्ट्रेस या टेंशन की तरह इसे भी अहमियत नहीं देते। जो लोग डिप्रेशन में होते हैं, इनके लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं। सीधे कहें तो मेंटल हेल्थ में डिप्रेशन ही सबसे बड़ी समस्या है। इसे बीमारी समझना सबसे ज्यादा जरूरी है। जब तक इसे बीमारी नहीं समझेंगे तब तक इसका इलाज नहीं कराएंगे। अगर इलाज नहीं होगा तो डिप्रेशन की स्थिति को बिगड़ने में भी वक्त नहीं लगता।

क्यों होता है यह
शरीर में डोपामाइन जैसे कुछ केमिकल होते हैं जो न्यूरोट्रांसमीटर की तरह काम करते हैं। बहुत ज्यादा तनाव या डिप्रेशन की स्थिति में इनमें अंसतुलन आ जाता है। इसलिए साइकाइट्रिस्ट एंटिसाइकोटिक समूह की दवाएं जो डोपामाइन को संतुलित करती हैं, देने के लिए कहते हैं। ऐसी दवाएं डॉक्टर की सलाह पर और उनकी देखरेख में ही लेनी चाहिए। इसके साइड इफेक्ट्स होते हैं।

ऐसे पहुंचती है डिप्रेशन तक बात
  • जब स्ट्रेस या टेंशन लगातार रहे। शुरुआत में भले ही इसकी वजह से काम डिस्टर्ब न हो, लेकिन जब हर दिन का काम डिस्टर्ब होने लगे, सिर भारी लगे, नींद कम आए तो यह कई बार यह डिप्रेशन में बदल जाता है। दरअसल, स्ट्रेस का निदान न हो तो चिंताएं बढ़ जाती हैं और जब चिंताओं का निराकरण नहीं होता तो डिप्रेशन हो जाता है। यह गंभीर भी हो सकता है और हल्का भी। गंभीर स्थिति उसे कहेंगे जब शख्स खुदकुशी करने की कोशिश करता है।
  • किसी ऐसे शख्स के गुजर जाने के बाद जब कोई खुद को यह समझाने में सफल नहीं हो पाता है कि 'शो मस्ट गो ऑन' यानी उनके जाने के बाद भी ज़िंदगी जीना है तो डिप्रेशन की स्थिति बन सकती है।
  • लगातार कोशिशों के बाद भी जॉब न मिले। वहीं अगर किसी की जॉब चली जाए और दूसरे विकल्प भी न दिखे।
  • जब इस तरह का झटके लगे और परिवार का कोई सदस्य या दोस्त दुख बांटने या समझाने के लिए करीब न हो तो डिप्रेशन की स्थिति बन सकती है।
  • सच तो यह है कि चुनौतियों को हर शख्स अलग-अलग तरीके से लेता है, कोई इसमें निखर जाता है तो कोई बिखर जाता है।
क्या हैं लक्षण
इस बात की अहमियत को समझना सबसे जरूरी है कि डिप्रेशन लाइलाज नहीं है, लेकिन अगर इसके लक्षणों को ठीक तरीके से नहीं समझे और इलाज नहीं कराया तो यह लाइलाज भी हो सकता है।
जब कोई शख्स बड़ी परेशानी से गुजरा हो या फिर लंबे वक्त से स्ट्रेस में रहा हो तो खास ध्यान देने की जरूरत है।
अकेलापन: यह डिप्रेशन का एक लक्षण हो सकता है। यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि कुछ लोग ऐसे होते हैं जो दूसरों से आराम से घुल-मिल जाते हैं। वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो पहले झिझकते हैं, लेकिन फिर धीरे-धीरे बातचीत शुरू करते हैं। कुछ लोगों को कमरा बंद करके किताबें पढ़ना अच्छा लगता है। ऐसे सभी शख्स नॉर्मल हैं, लेकिन ध्यान उनका रखना है जो पहले खूब बातें किया करते थे, हंसी-मजाक करना जिनकी फितरत थी या जो सामान्य मेल-मिलाप भी रखते थे लेकिन वह अचानक अपने कमरे में बंद रहने लगे, लोगों से ज्यादा बाचतीच अब उन्हें पसंद नहीं आती। उन्हें अकेलापन अच्छा लगने लगा है। यह सब डिप्रेशन की निशानी हो सकती है। हम इस स्थिति को सिर्फ यह कहकर नहीं टाल सकते कि वह बदल गया है। उसे अकेलापन अच्छा लगने लगा है। सच तो यह है कि अकेलापन किसी को अच्छा नहीं लगता। इंसान तो क्या, किसी जानवर को भी नहीं। अगर किसी के स्वभाव में ऐसा बदलाव दिखे तो जरूर बात करें। अगर खुद समझ में न आए डॉक्टर से मिलें।
  • अपने रुटीन के काम ठीक से न करना।
  • किसी भी काम में मन न लगना।
  • नींद की बड़ी परेशानी।
  • हमेशा सोचते रहना। बात-बात में रोने लगना।
  • किसी से भी बात करने में दिलचस्पी नहीं होना।
  • भूख में भारी कमी या बहुत ज्यादा भूख लगना। अमूमन भूख में कमी के मामले ही ज्यादा होते हैं, लेकिन कुछ लोगों में भूख काफी लगने लगती है। देर रात में उठकर खाना। इससे उस शख्स का वजन अचानक से बढ़ने लगता है।
  • स्थिति अगर ज्यादा गंभीर है तो डिप्रेशन में रहने वाला शख्स अपनी जान देने की कोशिश भी कर सकता है।
घर पर क्या हो उपाय
  • अगर कोई घर में बंद रहता है, बातचीत कम करता है, गीत-संगीत में रुचि कम लेता है तो उसके परिवार के सदस्यों और दोस्तों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि उससे बात करें।
  • अगर वह रोना चाहता है तो उसे रोने दें। उसे चीखने-चिल्लाने दें ताकि उसके अंदर की भड़ास निकले। बस ध्यान रखना होगा कि वह खुद को नुकसान न पहुंचाए।
  • कभी भी ऐसी बातों की तसल्ली न दे जो मुमकिन नहीं। जैसे अगर कोई फुटबॉल खेलता था, किसी एक्सिडेंट की वजह से उसकी टांग कट गई। अब ऐसे में अगर कोई उससे यह कहे कि कोई बात नहीं, सब पहले जैसा हो जाएगा तो इस पर उसे खीझ ही होगी। उसे पता है कि वह अब कभी भी सामान्य तरीके से फुटबॉल नहीं खेल पाएगा।
  • उसे क्या परेशानी है, इसे समझने की कोशिश करें।
  • उसे इस बात के लिए तैयार करें कि वह डॉक्टर के पास चले। यह एक सामान्य बीमारी है जिसका इलाज मुमकिन है।
कब जाएं डॉक्टर के पास
कई बार स्ट्रेस और डिप्रेशन में फर्क करना बड़ा मुश्किल हो जाता है। फिर भी ध्यान देने से चीजें समझ में आ जाती हैं।
  • स्ट्रेस से हर शख्स गुजरता है, लेकिन डिप्रेशन का मरीज हर कोई हो यह जरूरी नहीं।
  • जब कोई शख्स दुखी होता है, परेशान होता है तो वह 2 से 3 दिनों में अपने रुटीन पर, सामान्य खानपान पर और नींद पर लौट आता है।
  • अगर वह शख्स 14 दिनों तक अपने सामान्य रुटीन पर न लौटे या उसकी परेशानी बढ़ने की बजाए घट जाए तो डॉक्टर के पास जरूर जाना चाहिए।
किसके पास जाएं: साइकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट के पास
साइकॉलजिस्ट: साइकॉलजी से एमफिल या पीएचडी किया हुआ शख्स ही साइको थेरपी के लिए मेंटल हेल्थ क्लिनिक चला सकता है। साइकॉलजी की मदर ब्रांच है फिलॉसफी। साइकॉलजिस्ट बातचीत के द्वारा, मरीज के सोचने के तरीके को समझकर, उसकी परेशानी के बारे में बात करके इलाज करते हैं। दरअसल, डिप्रेशन के कुछ केस में सिर्फ साइको थेरपी के सेशन से ही मरीज को फायदा हो जाता है। उसे दवा की जरूरत नहीं होती। साइकॉलजिस्ट को दवा लिखने का अधिकार नहीं होता।
सायकायट्रिस्ट: ये एमबीबीएस होते हैं और साथ में सायकायट्री का स्पेशलाइजेशन (एम.डी. डिग्री) रखते हैं। इन्हें साइकॉलजी भी पढ़ाई जाती है। ये छोटी थेरपी भी देते हैं और साथ में दवा भी लिखते हैं। इसलिए मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट के पास आने से पहले यह जरूरी है कि किसी फिजिशन से मिलें ताकि वह बता सके कि मरीज को सिर्फ थेरपी की जरूरत है या फिर थेरपी के साथ दवा की भी।

स्ट्रेस और डिप्रेशन भगाने वाले फूड
मेंटल हेल्थ से जुड़ी हुई किसी भी समस्या से बचे रहने के लिए ब्रेन बूस्टर फूड्स का सेवन करना चाहिए।
इनमें...
  • हर दिन 2 अखरोट या 8 बादाम रात में भिगोकर, बच्चों में इसकी मात्रा आधी कर सकते हैं।
  • एक मुट्ठी पंपकिन सीड्स (कद्दू के बीज)
  • सब्जियों में हल्दी की सही मात्रा, अगर दूध पचने में परेशानी न हो तो एक गिलास दूध में आधा या एक चम्मच हल्दी मिलाकर पीना
  • हर दिन एक या दो मौसमी ताजा फल, जैसे अमरूद, एक प्लेट पपीता, एक सेब आदि
  • 20 से 30 ग्राम डार्क चॉकलेट, दरअसल इसमें ऑक्सीडेटिव पाए जाते हैं जो तनाव पैदा करने वाले हार्मोन्स को नियंत्रित करते हैं। इससे तनाव कुछ कम होता है।
4.सिजोफ्रेनिया
यह भी एक गंभीर समस्या है। इसमें शख्स को लगने लगता है कि उसे कोई मारना चाहता है, कोई उसका लगातार पीछा कर रहा है। उसे कई बार ऐसी आवाजें सुनाई देने लगती हैं जो उसके बगल में बैठे शख्स को नहीं सुनाई देतीं यानी ऐसा कुछ होता ही नहीं। वह सिर्फ उसकी सोच होती है। जब भी इस स्थिति में कोई शख्स हो, उसे फौरन ही सायकायट्रिस्ट के पास ले जाएं। इसका सही इलाज कराना जरूरी है। दरअसल, शुरुआत में इसका पता चलने पर इलाज आसान है, लेकिन देर होने पर परेशानी बढ़ जाती है।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. सुरेश बीएम, प्रफेसर, NIMHANS
  • डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट
  • डॉ. निमेष जी. देसाई, डायरेक्टर, IHBAS
  • डॉ. समीर पारिख, सीनियर सायकायट्रिस्ट
  • डॉ. पी. शरत चंद्रा, न्यूरो सर्जन, AIIMS
  • डॉ. संजय चुघ, सायकायट्रिस्ट
  • डॉ. मोनिका जौहरी, सायकॉलजिस्ट

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मेरा घर, रेरा घर

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'एक महल हो सपनों का', महल हो न हो, एक घर का सपना लोग जरूर देखते हैं। आजकल वैसे भी फेस्टिव सीजन चल रहा है, घर की बिक्री तेजी से चल रही है। कोई अपने लिए घर चाहे किसी डिवेलपर से खरीदे या फिर अपनी जमीन पर खुद का आशियाना बनाए। पर सवाल यह है कि वाकई सबकुछ इतनी आसानी से हो जाता है? कई मामले ऐसे निकल आते हैं जब खरीदार खुद को ठगा हुआ महसूस करता है। क्या RERA के आने से फर्क आया है? घर या जमीन पसंद करने से रजिस्ट्री कराने तक किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, एक्सपर्ट्स से बात कर जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

6 सबसे जरूरी बातें
1. किसी फ्लैट में निवेश करने से पहले यह देख लें कि जिस जमीन पर सोसायटी बन रही है, वह जमीन लीज होल्ड (सिर्फ पावर ऑफ अटॉर्नी) वाली है या फिर सेल डीड (रजिस्ट्री) वाली। अगर लीज होल्ड वाली है तो लीज कितने बरसों के लिए दी गई है। अगर 10 बरसों के लिए है तो यह भी मुमकिन है कि बिल्डर घर बनाकर चला जाए और बाद में लीज बढ़वाने का खर्च खरीदार पर आ जाए। साथ ही, इसके बदले में जो चार्ज संबंधित अथॉरिटी ने लगाया था, बिल्डर ने वह चुकाया है या नहीं। अगर बिल्डर ने वह नहीं चुकाया है तो बिल्डिंग को सील भी किया जा सकती है।
2. बिल्डर को संबंधित अथॉरिटी ने OC (ऑक्यूपेशनल सर्टिफिकेट) या POC (पार्शल ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट) दिया गया है या नहीं। अगर बिल्डर को यह सर्टिफिकेट नहीं मिला है और सोसायटी में गलत तरीके से बिजली आदि का कनेक्शन जोड़ा गया है तो भविष्य में उस कनेक्शन को बंद भी किया जा सकता है।
3. अगर किसी ने ऐसे डिवेलपर्स के पास निवेश किया है जो रेरा के तहत रजिस्टर्ड नहीं है तो यह खरीदार के ही रिस्क पर है। ऐसे बिल्डर ने अगर फ्लैट समय पर नहीं दिया या ले-आउट बदल दिया तो उसके खिलाफ कानूनी लड़ाई करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
4. लाल डोरा इलाके में अमूमन एक फ्लोर के लिए एक फ्लैट और कुछ तय मंजिल तक ही बनाने का अधिकार होता है। लेकिन बिल्डर इसमें फेरबदल कर देता है। एक ही फ्लोर पर कई फ्लैट बनाकर बेच देता है। कभी-कभी एक ही फ्लैट दो लोगों को बेच दिया जाता है। चूंकि इसकी रजिस्ट्री नहीं होती सिर्फ पावर ऑफ अटॉर्नी ट्रांसफर होती है इसलिए सरकार के पास भी इसका कोई सबूत नहीं होता। इन क्षेत्रों में एक परेशानी यह भी होती है कि अगर कॉलोनी अथॉराइज्ड नहीं है तो अमूमन नगर निगम के अंदर नहीं आता, इसलिए पानी, सीवर आदि की सुविधाएं भी जल्दी नहीं मिलती।
5. अगर कोई प्लॉट सरकार बेच रही है या कोई प्राइवेट बिल्डर बेच रहा है और उस प्लॉट पर रेरा का नंबर मिला हुआ है तो उसमें फंसने की गुंजाइश न के बराबर है। सरकार जब भी प्लॉट काटकर बेचती है तो उसमें सभी शर्तें पहले ही लिखी होती हैं। इसके लिए रेवेन्यू सरकार को जाता है। सरकार इसका रेकॉर्ड रखती है। अमूमन हर राज्य में पटवारी या उसका समकक्ष कर्मी हर 6 साल पर जमीन का निरीक्षण करता है और उसके मालिक का निर्धारण करता है।
6. पावर ऑफ अटॉर्नी कभी भी कोर्ट में एक सशक्त सबूत नहीं होता। अगर किसी के घर में बिजली कनेक्शन हो या कोई दूसरे सबूत ही क्यों न हो जमीन पर मालिकाना हक के लिए काफी नहीं हैं।

बेसिक टर्म
1. रेरा: रियल एस्टेट का एक कानून है जो भारतीय संसद से पारित है। इसका मकसद रियल एस्टेट सेक्टर में आम जनता के हितों की रक्षा करना और उन्हें धोखाधड़ी से बचाना है।
2. लाल डोरा: गांव की ऐसी जमीनें जिनका उपयोग आमतौर पर बिना किसी राजस्व रिकॉर्ड के रिहाइश के लिए किया जाता है।
3. GPA/PA: जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी या पावर ऑफ अटॉर्नी एक ही शब्द हैं। कई इलाकों में जहां जमीन की रजिस्ट्री की नहीं होती, वहां पर जीपीए या पीए ही ट्रांसफर किया जाता है। हालांकि, कोर्ट में मालिकाना हक बताने के लिए यह एक मजबूत सबूत नहीं माना जाता।
4. SPA: स्पेशल पावर ऑफ अटॉर्नी का मतलब है कि किसी खास प्रॉपर्टी को बेचने, खरीदने आदि का अधिकार किसी व्यक्ति विशेष को दे देना।
5. पटवारी: इसे लेखापाल भी कहते हैं। यह गांव का स्तर का अधिकारी होता है जिसके पास उस गांव की जमीनों के मालिकों का लेखाजोखा होता है। यह हर 5 य 6 साल पर जमीन का सर्वे करके उसकी रिपोर्ट उसके मालिक के नाम के साथ सरकार को भेजता है।
6.जमाबंदी: इसे दस्तावेज और रिकॉर्ड भी कहा जा सकता है। इसमें जमीन से संबंधित हर तरह की जानकारी होती है। इसमें जमीन की लोकेशन, मालिक का नाम, प्रॉपर्टी की लंबाई-चौड़ाई, लैंड यूज आदि का जिक्र रहता है।
7. रजिस्ट्री: सेल डीडी या गिफ्ट डीड को सरकार के रिकॉर्ड में लाना ही रजिस्ट्री है। रजिस्टर डीड से ही प्रॉपर्टी लीगली ट्रांसफर होती है। जब तक कोई सेल डीड या गिफ्ट डीड को रजिस्टर नहीं कराता और स्टैंप ड्यूटी नहीं भरता, तब तक वह प्रॉपर्टी लीगली रजिस्टर्ड नहीं मानी जाएगी। इसके लिए सरकार को वहां के सर्कल रेट (खास एरिया के लिए सरकार प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री के लिए एक मिनिमम रेट तय करती है) के हिसाब से स्टैंप ड्यूटी के माध्यम रकम जमा करनी होती है।
8. सेल डीड: यह एक पक्का कानूनी दस्तावेज है, जिसके जरिए सेलर अपने प्रॉपर्टी के अधिकार खरीदार को ट्रांसफर कर देता है।
9. लीज: इसे पट्टा भी कहते हैं। यह एक कॉन्ट्रेक्ट है जो उन सभी शर्तों को बताता है जिन पर एक पार्टी, दूसरी पार्टी की प्रॉपर्टी को किराए पर देने के लिए सहमत होती है।
10. रजिस्ट्री ऑफिस: यह एक सरकारी कार्यालय है जहां पर जमीन की रजिस्ट्री होती है और स्टैंप शुल्क के माध्यम से फीस जमा की जाती है। जमीन के रिकॉर्ड्स यहां पर रखे जाते हैं।
11. म्यूटेशन: प्रॉपर्टी का लेनदेन पूरा होने के बाद सरकारी रिकॉर्ड्स में प्रॉपर्टी का म्यूटेशन कराना जरूरी है। म्यूटेशन का मतलब होता है कॉरपोरेशन के रिकॉर्ड्स में किसी संपत्ति का ट्रांसफर या नाम में बदलाव।
12. कन्वेयंस डीड: एक कन्वेयंस डीड वह कॉन्ट्रैक्ट है, जिसके तहत जमीन बेचने वाला अपने सारे अधिकार नए कानूनी मालिक को ट्रांसफर कर देता है।

रेरा है तो ठीक है
RERA (Real Estate Regulatory Authority) से ये हुए बदलाव
1. प्रोजेक्ट रजिस्ट्रेशन जरूरी: बिल्डर के लिए रेरा में रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है। खरीदार उसी प्रोजेक्ट में फ्लैट, प्लॉट या दुकान खरीदें, जो रेग्युलेटरी अथॉरिटी में रजिस्टर्ड हो। बिल्डर को अपना प्रोजेक्ट स्टेट रेग्युलेटरी अथॉरिटी में रजिस्टर करना होगा। साथ में प्रोजेक्ट से जुड़ी सभी जानकारी देनी होगी।
2. जेल की सजा: अगर बिल्डर किसी खरीदार से धोखाधड़ी या वादाखिलाफी करता है तो खरीददार इसकी शिकायत रेग्युलेटरी अथॉरिटी से कर सकेगा।
3. सरकारी प्रोजेक्ट भी दायरे में: प्राइवेट बिल्डर या डिवेलपर ही नहीं, हाउसिंग और कमर्शल प्रोजेक्ट बनाने वाले डीडीए, जीडीए जैसे संगठन भी इस कानून के दायरे में आएंगे यानी अगर डीडीए भी वक्त पर फ्लैट बनाकर नहीं देता तो उसे भी खरीदार को जमा राशि पर ब्याज देना होगा। यही नहीं, कमर्शल प्रोजेक्ट्स पर भी रियल एस्टेट रेग्युलेटरी कानून लागू होगा।
4. पांच साल तक जिम्मेदारी बिल्डर की: अगर बिल्डर कोई प्रोजेक्ट तैयार करता है तो उसके स्ट्रक्चर (ढांचे) की पांच साल की गारंटी होगी। अगर पांच साल में स्ट्रक्चर में खराबी पाई जाती है तो उसे दुरुस्त कराने का जिम्मा बिल्डर का होगा।
5. प्रोजेक्ट में देरी पर लगाम: खरीदार को सबसे ज्यादा दिक्कत प्रॉजेक्ट्स में देरी से होती है। अक्सर खरीदारों के पैसे को बिल्डर दूसरे प्रोजेक्ट में लगा देते हैं, जिससे पुराने प्रोजेक्ट लेट हो जाते हैं। रेरा के मुताबिक, बिल्डर्स को हर प्रोजेक्ट के लिए अलग अकाउंट बनाना होता है। इसमें खरीदारों से मिले पैसे का 70 फीसदी हिस्सा जमा करना होगा, जिसका इस्तेमाल सिर्फ उसी प्रोजेक्ट के लिए किया जा सकेगा।
6. ऑनलाइन मिलेगी जानकारी: बिल्डर को अथॉरिटी की वेबसाइट पर पेज बनाने के लिए लॉग-इन आईडी और पासवर्ड दिया जाएगा। इसके जरिए उन्हें प्रोजेक्ट से जुड़ी सभी जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी। हर तीन महीने पर प्रोजेक्ट की स्थिति का अपडेट देना होगा। रेरा से रजिस्ट्रेशन के बिना किसी प्रोजेक्ट का विज्ञापन नहीं दिया जा सकेगा।
7. देनी होती है पूरी जानकारी: रेरा के तहत सिर्फ नए लॉन्च होने वाले प्रोजेक्ट्स ही नहीं आएंगे, बल्कि पहले से जारी प्रोजेक्ट्स भी इसमें आएंगे। बिना कंप्लीशन सर्टिफिकेट वाले डिवेलपर्स को सारी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। मसलन वास्तविक सेंक्शन प्लान, बाद में किए गए बदलाव, कुल जमा धन, पैसे का कितना इस्तेमाल हुआ, प्रोजेक्ट पूरा होने की वास्तविक तारीख क्या थी और कब तक पूरा कर लिया जाएगा। सभी राज्यों में रेग्युलेटरी अथॉरिटी को रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स और रजिस्टर्ड रियल स्टेट एजेंट्स को नियंत्रित करना होगा। अथॉरिटी को एक वेबसाइट भी मेंटेन करनी होगी, जिसमें सभी प्रॉजेक्ट्स की जानकारी अपडेट होगी।
8. बुकिंग राशि: बिल्डर अडवांस या आवेदन शुल्क के रूप में 10 पर्सेंट से ज्यादा रकम नहीं ले सकेंगे, जब तक कि बिक्री के लिए रजिस्टर्ड अग्रीमेंट न हो जाए।

ऐसे होती है रजिस्ट्री
  • स्टांप पेपर सारा विवरण टाइप होने के बाद ऐडवाकेट सेलर और बायर को रजिस्ट्री के लिए बुलाता है। सब-रजिस्टार के ऑफिस में सेलर, बायर और 2 गवाहों को जाना होता है।
  • सभी के पास उसका आधार कार्ड होने चाहिए। अगर वोटर कार्ड है तो वह भी रख सकते हैं।
  • सेलर और बायर को साथ में पैन कार्ड भी रखना पड़ता है।
  • इनके अलावा जो सेलर है, उसे जमीन से जुड़े तमाम कागजात भी साथ में रखने होते हैं:
  • अगर प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री होनी है तो पुरानी सभी सेलडीड यानी रजिस्ट्री के कागज, पुराने प्रॉपर्टी टैक्स की रसीद आदि।
  • जब सभी पेपर आ जाते हैं और सेलर को उसकी कीमत मिल जाती है, तब सब-रजिस्टार के सामने ही दोनों पक्ष साइन करते हैं और सभी पक्षों के फिंगर प्रिंट्स लिए जाते हैं। इनके फोटो भी होते हैं ताकि फ्रॉड की गुंजाइश न रहे। रजिस्ट्री के बाद कॉरपोरेशन के दफ्तर में म्यूटेशन जरूर कराएं।
...ताकि घर खरीदने में आपके साथ न हो धोखा

घर और जमीन के कागजात को ऐसे जांचें
अगर मैंने अंडर कंस्ट्रक्शन फ्लैट खरीदा है तो क्या मैं कंस्ट्रक्शन क्वॉलिटी चेक कर सकता हूं?

जरूर चेक कर सकते हैं। अगर आपने फ्लैट की बुकिंग उस प्रोजेक्ट में कराई है तो आपको क्वॉलिटी देखने का अधिकार है। आप यह भी देख सकते हैं कि जो मैप (ले आउट प्लान, बिल्डिंग प्लान यानी किस फ्लोर पर कितने फ्लैट आदि) आपको दिखाया गया था या रेरा में रजिस्टर्ड है तो कंस्ट्रक्शन उसके हिसाब से हो रहा है या नहीं। अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो आप रेरा की साइट पर जाकर शिकायत कर सकते हैं।

आजकल प्लॉट में बहुत धोखा हो रहा है। इससे कैसे बचें?
जब से रेरा लागू हुआ है, उसके बाद से कोई भी कानूनी तरीके से बेची गई हर प्रॉपर्टी पर रेरा एक नंबर देता है। अगर किसी एरिया में कोई प्लॉट काटकर बेच रहा है तो यह जरूर देखना चाहिए कि वह जमीन रेरा में रजिस्टर्ड है या नहीं। अगर रेरा में रजिस्टर्ड है तो इसका मतलब है कि जमीन में कोई परेशानी नहीं है क्योंकि रेरा क्लियरेंस तभी देती है जब बाकी चीजें सही हों।

किस तरह का प्लॉट खरीदना सबसे अच्छा है?
आमतौर पर 3 तरह की जमीन की खरीद-बिक्री होती है:

1. सेल डीड से बेची या खरीदी गई जमीन
2. लाल डोरा की जमीन
3. कृषि योग्य भूमि
1. सेल डीड से बेची या खरीदी गई जमीन: कोर्ट में इस तरह से खरीदी गई जमीनों को सबसे वैध माना जाता है। इसकी वजह यह है कि इसमें प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री स्टाम्प पेपर पर होती है। सरकार को रेवेन्यू दिया जाता है और सरकार इस पर जमीन के नए मालिक का नाम लिख लेती है। जमीन की रजिस्ट्री हो रही है तो इसका सीधा-सा मतलब है कि जमीन की पुरानी हिस्ट्री यानी जमीन के लगभग सभी पुराने मालिकों के बारे में सरकार को पता है और उसका सबूत है।
2. लाल डोरा की जमीन: ये ऐसे इलाके होते हैं जिनका इतिहास सरकार को पता नहीं होता। अमूमन ऐसे मामलों में स्थानीय लोग ही जानकारी के स्रोत होते हैं कि वह जमीन पहले किसकी थी और फिर उसे कब बेचा गया। दिल्ली में भी यमुना किनारे वाले ऐसे कई इलाके हैं जो लाल डोरा के तहत आते हैं। इन क्षेत्रों में जमीन की रजिस्ट्री नहीं होती। यहां पर GPA (जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी) या PA (पावर ऑफ अटॉर्नी) ट्रांसफर होता है। हालांकि ऐसा कम होता है, लेकिन यह मुमकिन है कि एक शख्स एक ही जमीन को 2 या 3 या इससे भी ज्यादा लोगों को पावर अटॉर्नी ट्रांसफर कर दे यानी बेच दे। ऐसे स्थिति में कोर्ट जाने पर भी बहुत फायदा नहीं होता। लाल डोरा इलाके वाली जमीन खरीदने से पहले पूरी जानकारी बहुत जरूरी है।
3. कृषि योग्य जमीन : घर तो कहीं भी बनाया जा सकता है, लेकिन घर बनाने के बाद कानूनी मामलों में नहीं उलझना है तो यह देखना चाहिए कि घर कृषि योग्य भूमि पर तो नहीं बना है। अगर ऐसा है तो उसे रिहाइशी बनाने के लिए सरकार से गुजारिश जरूर करनी चाहिए। अगर इस तरह की जमीन में निवेश करने जा रहे हैं तो संबंधित अथॉरिटी में जमीन का खाता और खसरा नंबर लेकर पता कर सकते हैं कि वह किस तरह की जमीन है। मान लें अगर कृषि योग्य नहीं है, लेकिन एससी या एसटी वालों के लिए आवंटित जमीन हो सकती है। इसलिए ऐसी जमीनें जो रेरा के तहत रजिस्टर्ड न हों, उनके बारे में ज्यादा छानबीन करने की जरूरत है।

मैं जमीन खरीदना चाहता हूं, लेकिन दिए गए कागजात से संतुष्ट नहीं हूं?
अगर जमीन लाल डोरा इलाके की नहीं है और बिक्री के लिए आती है तो उस पर मालिकाना हक 2 तरह से हो सकता है:
1. पुश्तैनी या पैतृक जमीन: यह जमीन किसी को उसके पिता या दादा से मिली हुई होती है। ऐसी जमीनों में कई बार सेल डीड यानी रजिस्ट्री के पेपर नहीं होते। लेकिन इनके पास जमाबंदी (सरकार हर 5 से 6 साल पर इलाके के पटवारी से सर्वेक्षण करवाती है और जमीन को असल मालिक के नाम से दर्ज करती है) होती है। इसलिए जब भी किसी की पुश्तैनी जमीन खरीदनी हो तो पिछले 5 या 6 जमाबंदी (30 साल) के कागजात जरूर देखने चाहिए। अगर जमाबंदी हुई है तो यह तय है कि वहां के रजिस्ट्री ऑफिस में भी जरूर दर्ज होगी। इसलिए जमीन जिससे खरीद रहे हैं उससे जमाबंदी के पेपर लेकर रजिस्ट्री ऑफिस से वह कागजात निकलवाकर देख सकते हैं कि उस जमीन पर किसका हक था और अब किसका है।
इसके लिए क्या-क्या चाहिए
  • जमाबंदी की रसीद
  • एक फॉर्म भरना होता है।
  • कुल चार्ज 100 से 200 रुपये लगते हैं।
2. खुद खरीदी गई जमीन: ऐसी जमीनों की सेल डीड होती है यानी इनकी रजिस्ट्री होती है। इसलिए जिससे भी जमीन खरीद रहे हैं उससे कागजात की कॉपी लेकर वहां के रजिस्टार ऑफिस में भी जा सकते हैं। वहां से जमीन के पेपर निकलवाते हैं। फिर उसे उसका मूल कागजात से मिलान करते हैं। उस पर जिसका नाम दर्ज है, वह सही है या नहीं। रजिस्ट्री की सर्टिफाइड कॉपी भी निकलवा सकते हैं। इसके लिए भी वही प्रोसेस है जो ऊपर बताया गया है।
नो एन्कम्ब्रन्स सर्टिफिकेट: रजिस्ट्री ऑफिस से यह भी पता चल जाता है कि जमीन को कहीं गिरवी तो नहीं रखा गया है। इसके लिए लिए नो एन्कम्ब्रन्स सर्टिफिकेट रजिस्ट्री ऑफिस से ले सकते हैं। इस पर साफ-साफ लिखा होता है कि प्रॉपर्टी पर कोई कानूनी या वित्तीय समस्या नहीं है।
वकील की मदद: प्रॉपर्टी महंगी है तो किसी वकील की मदद भी ले सकते हैं। वह जमीन से जुड़ी सभी तरह की जानकारी और कागजात इकट्ठा करके खरीदार को दे देते हैं।

किसी भी फ्लैट के खरीदार को प्रॉपर्टी खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
रेरा के माध्यम से अपने बिल्डर की पूरी जानकारी हासिल करें। अमूमन हर हर राज्य में रेरा की अपनी वेबसाइट है। वेबसाइट पर हर बिल्डर को रजिस्ट्रेशन करना होता है। बिल्डिंग प्लान, सेंक्शन प्लान, कॉमन एरिया, मिलने वाली सुविधाएं, पजेशन कब मिलेगा जैसी तमाम डिटेल्स डालनी होती हैं। यहां रजिस्टर करने के बाद उसे एक नंबर मिलता है। जिसे भी घर चाहिए, वह रेरा की वेबसाइट पर जाए और उस नंबर को भरे। इसके बाद डिवेलपर्स के बारे में सारी जानकारी पेज पर आ जाएंगी।

फैसले को मानने के लिए बिल्डर कितने मजबूर हैं?
बिल्डर को रेरा का फैसला मानना होगा। हां, खरीदार की तरह ही उसके पास भी अपीलीय अथॉरिटी के पास अपील करने का अधिकार होगा।

अगर किसी ने विज्ञापन में रेरा से मिला रजिस्ट्रेशन नंबर दिया है तो उसे कैसे चेक करेंगे?
बिल्डर ने अगर विज्ञापन में रेरा रजिस्ट्रेशन का नंबर दिया है तो स्टेट रेरा की वेबसाइट पर जाकर उस नंबर को डालने पर बिल्डर और उसके प्रोजेक्ट के बारे में पूरी जानकारी आ जाएगी। अगर किसी ने गलत जानकारी दी है तो उसे प्रोजेक्ट की कीमत के 10 फीसदी के बराबर पेनल्टी भी देनी होगी।

रेरा में दर्ज कराई गई डिटेल्स का वेरिफिकेशन होता है?
बिल्डर को रजिस्ट्रेशन के वक्त प्रोजेक्ट से जुड़े दस्तावेज देने होते हैं। इनमें स्थानीय निकायों की ओर से मिले 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' भी शामिल हैं।

इन्हें भी समझें
क्या रेरा में रजिस्ट्रेशन करा लेने से बिल्डर पूरी तरह भरोसेमंद हो जाता है?
प्रोजेक्ट रजिस्टर कराने का अर्थ यह माना जाना चाहिए कि बिल्डर ने जो घोषणाएं की हैं, वे खरीदार के लिए ही नहीं, सरकार के लिए भी मानी जाएंगी। ऐसे में अगर बिल्डर अपनी घोषणा से पीछे हटता है या फिर उसमें हेराफेरी करता है तो यही उसके खिलाफ सबूत माना जाएगा। इसके अलावा अगर बिल्डर की ओर से दी गई जानकारी पर किसी को संदेह है तो वह रेग्युलेटर के सामने शिकायत कर सकता है। इस शिकायत पर भी जांच होगी और अगर संदेह सही पाया जाता है तो बिल्डर के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

अगर किसी ने बहुत पहले फ्लैट बुक कराया हो, लेकिन उसे पजेशन अभी तक नहीं मिला है। वह क्या करे?
इसके लिए बहुत ही आसान उपाय हैं। वह दो काम कर सकता है। पहला, बिल्डर का कंप्लीशन सर्टिफिकेट चेक कर लें। यह एक काफी भरोसेमंद डॉक्यूमेंट है जो यह बताएगा कि आपकी बिल्डिंग ठीकठाक बनी है या नहीं। बिल्डर ने जो वादे किए थे, उन्हें पूरा किया गया है या नहीं है। अगर कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिला है तो इसका मतलब है कि एरिया की लोकल अथॉरिटी ने यह तसदीक कर दी है कि कंस्ट्रक्शन का काम ले-आउट प्लान के अनुसार ही हुआ है। दूसरा, यह चेक करें कि आपका फ्लैट रेरा के तहत आता है या नहीं। निर्माणाधीन प्रोजेक्ट को लेकर हर राज्य के अपने नियम हैं । ज्यादातर जोर इस बात पर दिया जाता है कि अगर कंप्लीनशन सर्टिफिकेट न हों तो क्या करें। जैसे यूपी का ही मसला लें। अगर किसी प्रोजेक्ट के 60 फीसदी यूनिट बिक चुके हैं या प्रोजेक्ट का पजेशन पूरा हो चुका है और आरडल्ब्यूए का गठन किया जा चुका है तो आप निर्माणाधीन प्रोजेक्ट की परिभाषा से बाहर हैं। अगर आपका प्रोजेक्ट तीन-चार साल भी पुराना है लेकिन दोनों में से कोई भी बात आपके प्रोजेक्ट पर लागू नहीं होतीं तो प्रोजेक्ट पर रेरा के नियम लागू होंगे।

रेरा में संतुष्ट नहीं होने पर कोर्ट जा सकते हैं?
अगर शिकायतकर्ता रेरा के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो इसके खिलाफ अपीलीय अथॉरिटी में जा सकता है। अगर अपीलीय अथॉरिटी से भी शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होता तो वह राज्य के हाई कोर्ट में जा सकता है।

बिल्डर के दिवालिया होने पर क्या रेरा की भूमिका है?
अगर कोई बिल्डर या उसकी कंपनी दिवालिया होती है तो भी रेरा के नियम लागू होंगे। भी अपने प्रॉजेक्ट रेरा में रजिस्टर कराने होंगे। अगर वहां भी बिल्डर गलत जानकारी देता है तो उस पर भी कार्रवाई हो सकेगी।

कैसे पता लगाएं कि फलां प्रोजेक्ट रेरा में रजिस्टर्ड है और सही है?
रेरा अपने यहां रजिस्टर्ड सभी प्रोजेक्ट को एक नंबर देता है। डिवेलपर उस नंबर को अपने विज्ञापन में जरूर दिखाते हैं। संबंधित राज्य की रेरा की वेबसाइट पर जाकर उस नंबर को डालने से प्रोजेक्ट के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है। उसके ले-आउट प्लान से लेकर प्रोजेक्ट को कौन-कौन से क्लियरेंस मिले हैं। इतना ही नहीं रेरा ने बिल्डर-बायर एग्रीमेंट के लिए एक फॉर्मट भी बिल्डर्स को दिया है। पहले कुछ बिल्डर इस एग्रीमेंट में सिर्फ अपने फायदे की चीजें ही लिखवा लेते थे।

यहां करें शिकायत

दिल्ली
डीडीए का रोल
वेबसाइट: dda.org.in/rera
ऑफिस का पता
14वां फ्लोर, विकास मीनार,
आईटीओ, नई दिल्ली - 110002
ईमेल:
secretary_dda.org.in

हरियाणा
हरियाणा रेरा
वेबसाइट: haryanarera.gov.in
ऑफिस का पता
डायरेक्टर
मिनी सचिवालय, न्यू ऑफिस ब्लॉक
दूसरी और तीसरी मंजिल, सेक्टर: 1
पंचकुला, हरियाणा: 134114

उत्तर प्रदेश
यूपी रेरा
वेबसाइट: up-rera.in
यूपी रेरा का पता
फर्स्ट फ्लोर, जनपथ मार्केट
हजरतगंज, लखनऊ - 226001
ईमेल:
contactuprera@gmail.com

एक्सपर्ट पैनल
  • बलविंदर कुमार सीनियर मेंबर, यूपी, RERA
  • मुरारी तिवारी, सीनियर ऐडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
  • राजेश शर्मा, ऐडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
  • अखिलेश मिश्रा, ऐडवोकेट, दिल्ली हाईकोर्ट
  • मनोज गौड़, CMD, गौर्स ग्रुप, हेड, क्रेडाई नैशनल, नॉर्थ
  • वरुण मखीजा, डायरेक्टर, रॉयल ग्रीन रियल्टी
  • पंकज बजाज, हेड, क्रेडाई एनसीआर
  • धीरज जैन, डायरेक्टर, महागुण ग्रुप
नोट: हमने यहां एक्सपर्ट्स से बात करके अलग-अलग जमीन और प्रॉपर्टीज की खरीद-बिक्री की प्रक्रिया को समझाने की कोशिश की है। चूंकि राज्यों में जमीन को कई कैटिगरी में बांटा गया है, इसलिए मालिकाना हक बदलने के नियम भी अलग-अलग हैं। इसलिए कोई भी फैसला पर पहुंचने से पहले किसी एक्सपर्ट की राय जरूर लें।

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डेंगू से डरने का नहीं

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बारिश के बाद ठंड ने दस्तक दे दी है, लेकिन इस बारिश ने डेंगू की परेशानी भी बढ़ा दी है। अस्पतालों में बेड भरते जा रहे हैं। अनुमान तो यह भी है कि दिवाली (4 नवंबर) के आसपास डेंगू अपने पीक पर होगा। डेंगू के लक्षणों को कैसे पहचानें, घर पर क्या उपाय कर सकते हैं, डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए, किन लक्षणों के आने के बाद अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है, क्या बिलकुल नहीं करना चाहिए? ऐसे तमाम सवालों के जवाब डॉक्टरों से बात करके दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

ऐक्टर नाना पाटेकर का मशहूर डायलॉग है- 'एक मच्छर आदमी को....'। लेकिन मच्छर कुछ और बनाए न बनाए, अपना डंक चुभोकर डेंगू, मलेरिया, फलेरिया (पैरों में सूजन बहुत ज्यादा) आदि का मरीज जरूर बना देता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि हर बुखार डेंगू नहीं होता। डेंगू हो भी जाए तो पैनिक न करें। डेंगू में सिर्फ 3 से 4 फीसदी मामले ही कुछ गंभीर होते हैं। डॉक्टर की सलाह से बुखार का मैनेजमेंट घर पर करें। जब तक डॉक्टर न कहे, अस्पताल में भर्ती न हों।

7 सबसे जरूरी बातें
1. डेंगू होने की वजह वायरस है, इसकी कोई खास दवा भी नहीं है जिसे लेने से डेंगू वायरस फौरन ही खत्म हो जाता हो। ज्यादातर लोगों में सामान्य बुखार होकर और मांसपेशियों में कुछ दिनों तक दर्द रहने के बाद यह खत्म हो जाता है। हां, बुखार जब 100 से ऊपर हो तो पैरासिटामॉल (500 या 650 एमजी, जरूरत के हिसाब से) की गोली हर 6 से 8 घंटे पर ले सकते हैं। पेन किलर या ब्रुफेन न लें। हर 3-4 घंटे में पेशाब आना खतरे से बाहर रहने की निशानी है।

2. टेस्ट में डेंगू आने के बाद किसी को सिर्फ बुखार है और बुखार एक दिन से ज्यादा रह रहा है तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं। वही अस्पताल में भर्ती होने की सलाह देंगे। वैसे अगर पैरासिटामॉल लेने पर बुखार अगर कम हो जाता है, इसके अलावा दूसरे लक्षण नहीं हैं, जैसे शरीर पर लाल दाने न हों, मुंह, नाक, पेशाब या स्टूल के रास्ते से खून न आता हो और प्लेटलेट्स भी 50 हजार से ऊपर हो तो मामला ज्यादा गंभीर नहीं माना जाता। बिना मतलब कोई भी दवा न लें।

3. हर शख्स को ज़िंदगी में 4 बार ही डेंगू हो सकता है। इसकी वजह है डेंगू के 4 तरह के वायरस की मौजूदगी। जिस तरह का डेंगू एक बार हो जाता है उसी तरह का डेंगू उस शरीर में दुबारा नहीं होता क्योंकि उसके ऐंटिबॉडी बन जाते हैं।

4. इस मच्छर का स्लीपिंग पैटर्न भी लगभग इंसानों की तरह ही है। यह दिन में जागता है और रात में सोता है। यह सुबह 6 से 9 और शाम 4 से 6 के बीच ज्यादा ऐक्टिव रहता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह रात में बिलकुल नहीं काटता।

5. डेंगू एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर हवा में ज्यादा से ज्यादा 2 से 3 मीटर तक ही उड़ सकता है। इसका मतलब यह नहीं कि अगर कोई 10वीं फ्लोर पर रहता है तो उसे यह नहीं काट सकता। यह 10वें पर ही नहीं, 20वें फ्लोर पर भी लोगों को शिकार बना लेता है। यह लिफ्ट, डस्टबिन आदि के माध्यम से ऊपर पहुंच जाता है। इसलिए बचाव सभी को करना है।

6.एडीज एजिप्टी अमूमन 50 मीटर के क्षेत्रफल में उड़ता है। घर के 50 मीटर के आसपास पानी जमा न होने दें। वहीं मलेरिया का मच्छर 5 किमी दूर तक जा सकता है। गड्ढों से पानी हटाना मुश्किल है तो 50 से 100 एमएल मिट्टी का तेल डाल दें।

7. सिर्फ पूरी बाजू की शर्ट या कमीज पहनने से काम नहीं चलेगा। चूंकि यह ज्यादा उड़ नहीं सकता, इसलिए यह टखनों, पैरों और कोहनियों पर ही ज्यादा काटता है। अगर पार्क में जा रहे हैं तो पैरों में मोजे और जूते जरूर हों। घर पर भी मोजे पहनकर रह सकते हैं। जहां तक खानपान की बात है तो मरीज के शरीर में लिक्विड की कमी नहीं होनी चाहिए। इसके लिए सूप, पानी, दाल का पानी कुछ भी देते रहें।

डेंगू वायरस के कितने प्रकार
  • डेंगू का वायरस मूल रूप से 4 तरह का होता है। डेन1, डेन2, डेन3 और डेन4 सेरोटाइप।
  • डेन1 और डेन3 सेरोटाइप का डेंगू डेन2 सेरोटाइप और डेन4 सेरोटाइप के मुकाबले कम खतरनाक होता है।
  • इस साल डेन1 और डेन3 ही ज्यादा देखने को मिल रहा है।
डेंगू के लिए कौन-सा टेस्ट
1. NS1: यह ऐंटिजन (शरीर में बाहर से आने वाले दुश्मन वायरस, बैक्टीरिया या कोई और) टेस्ट है। इससे यह पता चलता है कि शरीर में डेंगू वायरस की मौजूदगी है या नहीं। नीचे बताए गए सभी टेस्ट में सैंपल ब्लड लिया जाता है। इसे खाली पेट या कैसे भी कराएं। यह 2 तरीके से होता है:
कार्ड या रैपिड टेस्ट: इसमें एक तरह के कार्ड पर सैंपल देने पर नेगेटिव या पॉजिटिव रिजल्ट आता है, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि रिपोर्ट नेगेटिव आने पर भी अगर मरीज में डेंगू के लक्षण हैं तो एलाइजा (ELISA) टेस्ट कराना पड़ता है। यह टेस्ट ज्यादातर अस्पताल वाले करते हैं।
खर्च: 900 से 1800 रुपये
रिपेार्ट: 1 से 2 घंटे
एलाइजा टेस्ट: यह डेंगू के लिए सबसे सही टेस्ट है। ज्यादातर लैब वाले यही टेस्ट करते हैं। कई बार जब रैपिड टेस्ट से कुछ शंका रह जाती है तो इस टेस्ट को कराने की सलाह दी जाती है।
बुखार आने के कितने दिनों बाद कराएं: 3 से 5वें दिन,
खर्च: 600 रुपये, रिपोर्ट: 1 से 2 दिन
2. IgM: यह भी ऐंटिबॉडी टेस्ट है। इसका भी एलाइजा टेस्ट ही कॉमन। सबसे पहले यही एेंटिबॉडी बनता है, यह अस्थायी है।
कितने दिनों बाद कराएं: 3 से 4 दिन में
खर्च: 600 रुपये, कैसे: ब्लड से, रिपोर्ट: 1 से 2 दिन
3. IgG: यह ऐंटिबॉडी आधारित टेस्ट है। इसमें ब्लड में IgG ऐंटिबॉडी की मौजूदगी देखी जाती है। अगर यह मौजूद है यानी शख्स को डेंगू का इंफेक्शन हुआ है। यह स्थायी ऐंटबाडी है। उइसका एलाइजा टेस्ट ही कॉमन है।
बुखार आने के कितने दिनों बाद कराएं: 5 से 6 दिन में
खर्च: 600 रुपये, कैसे: ब्लड से, रिपोर्ट: 1 से 2 दिन
4. CBC (कंप्लीट ब्लड काउंट): इससे यह तो पता चल जाता है कि प्लेटलेट्स की संख्या कम होने लगी है या नहीं, लेकिन यह डेंगू की विशेष जांच नहीं है। कुछ डॉक्टर इस जांच के साथ मरीज के बाकी लक्षणों को देखने के बाद दूसरे टेस्ट कराने के लिए कहते हैं। कितने दिनों के अंदर कराएं: बुखार आने के 4 से 5 दिनों में, खासकर जब बॉडी पर दाने आदि निकल आते हैं। डॉक्टर प्लेटलेट्स की स्थिति देखने के लिए कई बार हर दिन यह टेस्ट कराने के लिए कहते हैं। खर्च: 250 से 300 रुपये, रिपोर्ट: 4 से 5 घंटे में
नोट: टेस्ट की कीमतों में फर्क मुमकिन है।

ऐसे बचे रह सकते हैं डेंगू से आप
  • यह सिर्फ एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने से ही होता है।
  • डेंगू कभी भी एक शख्स से दूसरे शख्स के संपर्क में आने से नहीं फैलता जैसा कि कोरोना आदि के मामले में होता है।
  • अगर घर में एक शख्स को डेंगू हो गया और उसे काटने के बाद मच्छर ने दूसरे शख्स को भी काट लिया तो दूसरे शख्स को डेंगू होने का खतरा जरूर होगा। इसलिए घर में जब भी किसी को डेंगू हो तो उसे मच्छरदानी में ही सुलाएं और मच्छर भगाने के लिए मस्कीटो रिपेलेंट जैसे- स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि का इस्तेमाल करें ताकि मच्छर फिर से उसे काटकर बाकी सदस्यों को बीमार न कर सकें। वहीं बाकी शख्स भी मच्छरदानी में सोएं और मस्कीटो रिपेलेंट का इस्तेमाल करें।
  • घर में या घर के आसपास गड्ढ़ों, कंटेनरों, कूलरों आदि में पानी भरा हो और उसमें अल्गी (कवक), घास-फूस, गंदगी जमा हो तो इससे मच्छर पनपने की पूरी गुंजाइश होती है। इसलिए ऐसी कोई भी जगह खाली न छोड़ें। कहीं पानी न भरा होने दें।
  • गमले चाहे घर के भीतर हों या बाहर, इनमें पानी जमा न होने दें। गमलों के नीचे रखी ट्रे भी रोज खाली करना न भूलें।
  • छत पर टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें या उन्हें उलटा करके रखें। पानी की टंकी अच्छी तरह बंद करके रखें। पक्षियों को दाना-पानी देने वाले बर्तन में रोज पूरी तरह से खाली करके साफ करने के बाद ही पानी भरें।
  • किचन, बाथरूम के सिंक/वॉश बेसिन में भी पानी जमा न होने दें। हफ्ते में एक बार अच्छी तरह से सफाई करें। पानी स्टोर करने के बाद बर्तन पूरी तरह ढककर रखें। बेहतर यह है कि उन्हें गीले कपड़े से ढकें ताकि मच्छर को जगह न मिले। नहाने के बाद बाथरूम को वाइपर और पंखे की मदद से सुखा दें।
बचाव के ये भी हैं उपाय
  • मच्छर हमेशा गहरे रंग की तरफ आकर्षित होते हैं इसलिए बेहतर होगा कि हल्के रंग के कपड़े पहनें।
  • तेज महक वाला परफ्यूम लगाने से बचें क्योंकि मच्छर किसी भी तरह की तेज महक की तरफ आकर्षित होते हैं।
  • मुमकिन हो तो मच्छरदानी लगाकर सोएं और शरीर पर मच्छर भगानेवाली क्रीम लगाएं।
  • कमरे में मच्छर भगाने वाले मस्कीटो रिपेलेंट का इस्तेमाल करें। मस्कीटो रिपेलेंट कॉइल या पेपर को जलाते समय सावधानी बरतें। इन्हें जलाकर कमरे को 1-2 घंटे के लिए बंद कर दें। सोने से पहले खिड़की-दरवाजे खोल दें और कॉइल को जली रहने दें। खिड़की, दरवाजे बंद रखेंगे तो सांस की बीमारी हो सकती है।
  • घर की मेन एंट्रेंस के बाहर लगी ट्यूब लाइट के पास मस्कीटो रिपेलेंट (गुडनाइट, ऑलआउट आदि) जलाकर रखें। इससे दरवाजा खुलने पर अंदर आनेवाले मच्छरों को रोका जा सकेगा। आजकल इसे 24 घंटे जलाकर रखें ताकि मच्छर को जगह ही न मिले।
  • सोने से पहले हाथ-पैर और शरीर के खुले हिस्सों पर विक्स भी लगा सकते हैं। इससे मच्छर पास नहीं आएंगे।
  • लैवेंडर ऑयल की 15-20 बूंदें, 3-4 चम्मच वनीला एसेंस और चौथाई कप नीबू रस को मिलाकर एक बोतल में रखें। शरीर के खुले हिस्सों पर लगाने से पहले अच्छी तरह मिलाएं। इसे लगाने से भी मच्छर दूर रहते हैं।
  • तुलसी का तेलद या पुदीने की पत्तियों का रस या लहसुन का रस या गेंदे के फूलों का रस शरीर पर लगाने से भी मच्छर भागते हैं।
  • मच्छरों को भगाने और मारने के लिए गुग्गुल जलाएं।
कितनी तरह का डेंगू, लक्षण और इलाज
सामान्य डेंगू
आजकल इसी तरह का डेंगू ज्यादा देखा जा रहा है। इसमें बुखार आने के पहले 4 दिनों तक प्लेटलेट्स सामान्य ही होते हैं। बुखार रहता है, लेकिन बाकी लक्षण नहीं उभरते। फिर 5वें से 7वें दिन तक प्लेटलेट्स की संख्या कम होने लगती है। अमूमन 8वें या 9वें दिन से प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ने लगती है और 4 से 5 दिनों में यह काफी सामान्य या उसके करीब पहुंच जाती है।
क्यों होता है बुखार: जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टिरिया या वायरस हमला करता है तो हमारा शरीर अपने आप ही उसे मारने की कोशिश करता है। उस दौरान शरीर का तापमान बढ़ता है तो उसे बुखार कहा जाता है।
  • डेंगू में बहुत तेज बुखार, 103-104 डिग्री फारेनहाइट तक, लेकिन सामान्य डेंगू में क्रॉिसन आदि लेने से बुखार कम भी हो जाता है। ज्यादा परेशानी नहीं होती।
  • बुखार के साथ ठंड भी लगेगी। यहां इस बात को भी समझें कि बुखार के साथ ठंड लगना मलेरिया की भी निशानी है, लेकिन मलेरिया के मामले में ठंड बहुत तेज लगती है, कंपकंपी वाली, लेकिन डेंगू में उतनी ठंड नहीं लगती। 100 डिग्री तक बुखार तो दवा की जरूरत नहीं ।
  • बुखार और शरीर के दर्द को मैनेज करने के लिए पैरासिटामॉल दें। जरूरत के हिसाब से 500 या 650 एमजी दें। बुखार होने पर मरीज को हर 6 घंटे में पैरासिटामोल की एक गोली दें। यह मार्केट में क्रोसिन (Crocin), कालपोल (Calpol) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। अगर मरीज हेमरैजिक स्टेज में नहीं है तो फायदा जरूर होता है।
  • अगर बुखार 102 से ऊपर है तो मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। मरीज का खाना बंद न करें। वह जो खाना चाहता है, उन्हें दें। लेकिन सामान्य डाइट से कुछ कम खाना दें।
  • अगर बुखार 1 दिन से ज्यादा रहे तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें। खासकर तब जब बुखार 100 या इससे ऊपर रहे।
डेंगू हेमरैजिक
इस बार इस तरह के मरीज बहुत कम संख्या में हैं। डेंगू को हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं यानी जॉइंट पेन भी बहुत।
  • इस स्टेज में बुखार की स्थिति बिगड़ने लगती है। पैरासिटामॉल देने के बाद भी बुखार बार-बार आ जाता है।
  • मरीज की स्थिति 5वें दिन पहुंचते-पहुंचते खराब होने लगती है। बहुत ज्यादा कमजोरी आने लगती है।
  • प्लेटलेट्स अचानक कम होने की वजह से मुंह, नाक, यूरिन या स्टूल आदि से खून निकलने लगता है।
  • मरीज का बीपी कम होने लगता है। बीपी 120/80 से गिरकर 100/60 तक भी जा सकता है।
  • शरीर पर लाल दाने, लाल चकत्ते, लगातार खुजली होती रहती है। मरीज इससे परेशान हो जाता है।
  • मरीज को लगातार उल्टी होगी। यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि दिन में 1 से 2 बार उल्टी से घबराना नहीं है।
  • मरीज को डिहाइड्रेशन की परेशानी लगातार होती रहती है। शरीर में बहुत ज्यादा पानी की कमी होने लगती है। इसलिए मरीज को लिक्विड देने में कमी न करें। जूस, सूप, नारियल पानी आदि भी भरपूर दें। रोज तकरीबन 3-4 लीटर लिक्विड दें। हर 2 घंटे या उससे पहले भी कुछ-न-कुछ लिक्विड जरूर दे।
  • मरीज को बुखार के वक्त सांस फूलने की स्थिति बन सकती है, इस पर ध्यान दें। खासतौर पर तब जब पेशंट को बुखार न हो। अगर बु्खार न होने पर भी पेशंट की सांस फूल रही है तो यह तगड़े इंफेक्शन का लक्षण है और इसे बिलकुल भी इग्नोर न करें।
  • मांसपेशियों में बहुत तेज दर्द होगा, कमर और सिर में तेज दर्द होगा। आंखों के पास और आंखों में असहनीय दर्द होगा। आम बुखार में अमूमन ऐसा नहीं होता।
डेंगू शॉक सिंड्रोम
हेमरैजिक स्टेज के बाद स्थिति खराब होने पर मरीज शॉक में पहुंच जाता है। यह बहुत ज्यादा खतरनाक स्टेज है।
  • बीपी कम होकर 70/40 तक या इससे भी कम हो सकता है।
  • इससे किडनी, लिवर, हार्ट आदि के फेल होने की आशंका बढ़ जाती है। इसे मल्टिपल ऑर्गन फेल्योर स्टेज भी कहते हैं।
सभी को प्लेटलेट्स नहीं चाहिए
  • सामान्य शख्स में प्लेटलेट्स काउंट: 1.50 लाख से ऊपर
  • कुछ कमी: 1 से डेढ़ लाख तक
  • ज्यादा कमी: 50 हजार से 1 लाख तक
  • बहुत ज्यादा कमी: 10 हजार से 50 हजार तक
  • प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत: 10 हजार से कम होने पर
  • अगर किसी शख्स को डेंगू हुआ है और उसका प्लेटलेट्स काउंट 1 लाख है या सामान्य है, लेकिन मुंह, नाक या कहीं और से खून आना शुरू हो गया है तो भी उसे प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।
यह भी मुमकिन है कि अगर किसी शख्स का प्लेटलेट्स काउंट कम होकर 15 या 20 हजार तक आ गया है, लेकिन उसे ब्लीडिंग नहीं हो रही है, उसका बीपी ठीक है, तो उसे प्लेटलेट्स न चढ़ाए जाएं।

...तो अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं
खा-पी रहा हो, हर 3-4 घंटे में पेशाब कर रहा हो, खुद उठ और चल पा रहा हो। डॉक्टर के संपर्क में रहकर इलाज हो सकता है।

कब एडमिट होना बहुत जरूरी
  • बुखार 102 डिग्री से ज्यादा लगातार रहना, आंखों के चारों तरफ तेज दर्द
  • बेहद कमजोरी
  • शरीर पर बहुत ज्यादा लाल चकत्ते या दाने
  • बीपी और पल्स का गिरना
  • शरीर एकदम से गर्म या ठंडा होना
  • पेट में तेज दर्द
  • चक्कर आना, लगातार उल्टी आना
  • नाक, मसूढ़ों, कान या शौच में खून आना।
करें डाइट और दवा में बदलाव
  • अगर किसी को डेंगू हुआ है तो उसके शरीर में लिक्विड की कमी नहीं होनी चाहिए।
  • पानी, जूस, सूप, पपीता जरूर दें। अगर वह किडनी का मरीज नहीं है तो उसे हर दिन कम से कम 3 से 4 लीटर कुल लिक्विड जरूर लेना चाहिए। अगर किडनी पेशंट है तो डॉक्टर से पूछकर ही लिक्विड की मात्रा तय करें।
  • अगर हार्ट या बीपी पेशंट है और साथ में वह स्प्रिन (ऐंटिप्लेटलेट्स वाली दवा यानी खून पतला करने की दवा) लेता है और डेंगू हो गया है तो उसे फौरन ही अपने डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टर पेशंट की स्थिति देखने के बाद दवा बंद करने, उसकी डोज कम करने या जारी रखने की सलाह दे सकते हैं। किसी केमिस्ट से पूछकर दवा में बदलाव न करें।
  • इम्यूनिटी यानी बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता अच्छी हो तो कोई भी बीमारी आपको आसानी से दबोच नहीं पाती। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए बैलेंस्ड डाइट लें। मौसमी फल, हरी सब्जियां, दाल, दूध-दही आदि खूब लें।
  • खाने में हल्दी का इस्तेमाल करें। सुबह-शाम आधा-आधा छोटा चम्मच हल्दी पानी या दूध के साथ लें। तुलसी के 10 पत्तों को आधा गिलास पानी में उबालें। पानी आधा रह जाए तो उसे पी लें। विटामिन-सी से भरपूर चीजों जैसे आंवला, संतरा, मौसमी आदि रोजाना लें।
आजमा सकते हैं इन चिकित्सा पद्धतियों को भी
आयुर्वेद
आयुर्वेद में 3 बातों पर ध्यान देकर ही इलाज किया जाता है:
1. आहार: अगर कोई शख्स बीमार है तो सबसे पहले उसके आहार में बदलाव करना चाहिए। सुपाच्य भोजन जैसे मूंग दाल की खिचड़ी और मूंग दाल का पानी जरूर दें।
n 1 चम्मच पपीते के पत्ते का रस+1 चम्मच गिलोय का रस और आधा चम्मच तुलसी के पत्ते का रस मिलाएं और दिन में 3 बार लें। इससे प्लेटलेट्स बढ़ते हैं।
2. विहार: अगर एक साल पुराना घी हो तो पैर के तलवों की मालिश दिन में 2 बार करें। इसके अलावा चंदनबला लाक्षादि तेल से भी दिन में 2 बार मालिश कर सकते हैं। इससे तपन कम होगा।
3. दवा: महासुदर्शन काढ़ा, सुदर्शन घनवटी, महालक्ष्मी विलास रस, वृहद कस्तूरी भैरव रस, मृत्युंजय रस।
नोट: दवाओं को डिग्रीधारी चिकित्सक की सलाह से ही लें।

यूनानी

  • खमीरा गाओज़बान अम्बरी हर दिन एक चम्मच यानी 5 से 6 ग्राम दे सकते हैं, जिससे मरीज की इम्यूनिटी को बेहतर किया जा सके।
  • डेंगू के लक्षणों को ठीक करने के लिए मसीहा शरबत, शरबत खाकसी आदि अचूक दवाएं हैं।
  • अगर मरीज शुगर पेशंट है तो कुछ दवाओं का क्वाथ (जोशांदा) बनाकर पिलाना लाभकारी है। प्लेटलेट्स अगर बहुत कम हो गए हैं तो कुछ दिनों के लिए पपीते की पत्तियों का अर्क दिन में 3 बार पिलाया जाता है।
  • मरीज को देर से पचने वाले खाना न दें बल्कि सेमी सॉलिड खाने की चीज़ें अधिक दें जिसमें पौष्टिकता अधिक हो और भारी पदार्थ कम, जैसे हरीरा, जौ का पानी, मा उल लहम (सूप-मछली, चिकन आदि) आदि।
होम्योपैथी
डेंगू की 3 स्टेज के लिए अलग-अलग दवाएं दी जाती हैं:
1. डेंगू सामान्य बुखार: अमूमन इस स्टेज में गंभीर लक्षण नहीं आते। बुखार भी काबू में रहता है।
दवाएं: Eupatorium Perfoliatum, Belladonna, Ferrum Phosphoricum, Bryonia Rhus tox और Gelsemium
2. डेंगू हेमरैजिक फीवर: यह स्टेज डेंगू की गंभीर स्थिति की ओर इशारा करती है। दवाएं: Phosphorus, Crotalus Horridus, Arsenic Album और Vanadium।
3. डेंगू शॉक सिंड्रोम: यह सबसे खतरनाक स्थिति बनती है। दवाएं: Veratrum Album, Carbo veg, Arsenic album, Opium. मात्रा: 30 पोटेंसी में हर दिन 4 गोली 4 बार, एक सप्ताह तक या फिर जरूरी होने पर आगे भी।

ध्यान दें: हमने यहां पर डेंगू के बारे में कई एक्सपर्ट से अलग-अलग पद्धतियों के बारे में बात करके समझाने की कोशिश की है। किसी भी तरह की जांच, इलाज या दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर, वैद्य या हकीम की सलाह जरूर लें। सिर्फ यहां पढ़कर खुद दवा न लें। दरअसल, दवा की मात्रा मरीज की स्थिति, उम्र और वजन के हिसाब से तय की जाती है। जब भी डॉक्टर या वैद्य से इलाज कराने जाएं, उन्हें यह भी बताएं कि आप दूसरी पद्धति से भी इलाज करा रहे हैं। कभी भी छिपाएं नहीं। इससे उन्हें इलाज करने में आसानी होती है।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. संजय राय, कम्यूनिटी मेडिसिन, AIIMS
  • डॉ. अरविंद लाल, एग्जिक्युटिव चेयरमैन, डॉ. लाल पैथ लैब्स
  • डॉ. अशोक कुमार चौधरी, असिस्टेंट प्रफेसर, ILBS
  • डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
  • डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, सीनियर पीडिअट्रिशन
  • डॉ. पूनम साहनी, डायरेक्टर-लैब, सरल डायग्नोस्टिक्स
  • वैद्य आनन्द पाण्डेय, वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य
  • डॉ खुर्शीद अहमद अंसारी, विभागाध्यक्ष, शरीर रचना विज्ञान , जामिया हमदर्द
  • डॉ. सुशील वत्स, सीनियर होम्योपैथ

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सवाल सांस का, जानें कैसे निकलेगा पलूशन का कारगर सलूशन

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नई दिल्ली
सर्दी की दस्तक के साथ ही पलूशन की आहट भी सुनाई पड़ने लगी है। वैसे तो पलूशन इस मौसम में हर साल बढ़ जाता है, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के बाद उन लोगों को ज्यादा सचेत होने की जरूरत है जिन्हें ऑक्सिजन की कमी की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था और उन्हें भी जिनके फेफड़े कुछ कमजोर हैं। उन लोगों को भी कुछ ख्याल रखना चाहिए जो अपनी सांसों में दम भरना चाहते हैं। सवाल है कि कैसे? एक्सपर्ट्स से बात करके उपाय बता रहे हैं लोकेश के. भारती

तकनीकी शब्द और उनका मतलब
1. पीएम 2.5 (PM: पार्टिकुलेट मैटर) : जब हवा में 2.5 माइक्रो मीटर तक के पार्टिकल मौजूद हों तो सेहत को काफी हानि पहुंचाते हैं। ये इतने छोटे होते हैं कि सांसों के द्वारा ये सीधे फेफड़े, लिवर और किडनी तक पहुंचकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। एक आदमी का एक बाल 100 माइक्रोमीटर मोटा होता है। इसमें पीएम 2.5 के लगभग 40 कण रखे जा सकते हैं। ये कण डीजल आदि गाड़ियों के धुएं से निकलते हैं। WHO की नई गाइडलाइंस के अनुसार PM 2.5 को 10 माइक्रोग्राम्स प्रति क्यूबिक मीटर से घटाकर 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर लाना होगा।
2. पीएम 10 : 10 माइक्रोमीटर वाले ऐसे कण जिनमें धूल होती है, धुआं भी और थोड़ी-सी नमी भी, लेकिन ये हमें ज्यादा परेशान नहीं करते।
3. AQI: हवा की क्वॉलिटी कैसी है, उसमें धूल-धुआं कितना है। यह एक्यूआई से ही पता चलता है।
4. कार्बन मोनो ऑक्साइड: अमूमन पॉलिथीन, टायर आदि को जलाने और ईंधन के जलने से पैदा होती है। अगर वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड मौजूद है तो यह सांस के जरिए से ऑक्सिजन से पहले शरीर में पहुंचकर जहरीला कार्बाक्सिहिमोग्लोबिन बना लेती है। कहा जाता है कि बंद कमरे में कभी भी दीया, कैंडल या लैंप आदि जलाकर नहीं सोना चाहिए।
5. नाइट्रोजन ऑक्साइड: यह गैस ज्यादातर डीजल और पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों से निकले धुएं में मिलती है।
6. सल्फर डाइऑक्साइड: यह फैक्ट्रियों और गाड़ियों से निकलती है। इसके बढ़ने से भी सांस लेने में काफी परेशानी होती है।


इन मोबाइल ऐप्स से जान सकते हैं हवा की क्वॉलिटी
SAFAR-Air
Platform: एंड्रॉयड, iOS

The Weather Channel
Platform: एंड्रॉयड, iOS
IQAir AirVisual
Platform: एंड्रॉयड, iOS

Air Matters
Platform: एंड्रॉयड, iOS

यहां है पलूशन का कारगर सलूशन
घर में लगाएं इन पौधों को
1. पीस लिली: यह हानिकारक कणों को दूर भगाता है।
कीमत: 150-200 रुपये
2. रबड़ प्लांट: फर्नीचर से निकलने वाले हानिकारक ऑर्गेनिक कंपाउंड से वातावरण को मुक्त करने की क्षमता है। कीमत: 150-200 रुपये
3. मनी प्लांट: यह हवा को शुद्ध करने में काफी मदद करता है। कीमत: 100 से 300 रुपये
4. स्पाइडर: यह कॉर्बन मोनोऑक्साइड और कॉर्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में सहायक है।
कीमत: 150 से 200 रुपये
नोट: पौधों की कीमतों में फर्क मुमकिन है।

जब प्रदूषण हो जाए ज्यादा

- कमरे की खिड़कियां बंद रखें। घर के अंदर कोई भी चीज जलाने से बचें, मसलन मोमबत्ती या धूप-अगरबत्ती। समय-समय पर गीला पोछा लगाते रहें। प्रदूषण ज्यादा होने पर दिन में 3 से 4 बार गीला पोछा जरूर लगाएं।
n अगर सुबह-शाम घर के अंदर दरवाजे के पास 2 लीटर पानी खुले में उबाला जाए तो धूल व प्रदूषण के ज्यादातर कण वाष्प के साथ नीचे बैठ जाएंगे।

एयर प्यूरिफायर की बात
  • सांस संबंधी समस्याओं से निजात दिलाने के लिए जरूरी है कि प्यूरिफायर पीएम 2.5 पार्टिकल को फिल्टर करे।
  • अगर एयर प्यूरिफायर खरीदना पड़े तो ऊंचे HEPA मतलब ज्यादा-से-ज्यादा महीन कणों को रोकने लायक फिल्टर और हाई क्लीन एयर डिलिवरी रेट हो।
  • इसे इस्तेमाल करनेवालों का कहना है कि इससे हालात बदतर होने से तो बच जाते हैं, लेकिन प्रदूषण के घातक हालात में यह कारगर नहीं रहता।

इनहेलर को न भूलें
सांस से जुड़ी बीमारी होने के कारण अस्थमा के मरीजों को साफ हवा की दरकार ज्यादा होती है। इसलिए यह जरूरी है कि वे इनहेलर हमेशा अपने साथ रखें। यहां तक कि परेशानी ज्यादा हो तो बाथरूम में भी इसे ले जाना न भूलें।

मास्क से बचाव
  1. जब घर से बाहर जा रहे हैं तो मास्क जरूर लगाएं। अगर घर में भी बार-बार छींक, खांसी हो रही है तो मास्क लगाकर रखें।
  2. नीला सर्जिकल मास्क: इसे हर दिन बदलना पड़ता है। हेवी पलूशन में कारगर नहीं है। कीमत: 10 से 20 रुपये
  3. सूती कपड़े का मास्क: धूल से बच सकते हैं, लेकिन स्मॉग के कणों से बचना मुश्किल। कीमत: 10 से 20 रुपये
  4. N95 मास्क: ये ऊपर के दोनों मास्क से बेहतर है। 2 से 3 दिन ही कारगर, जिन्हें सांस की समस्या है उनके लिए मुफीद नहीं। कीमत: 70 से 80 रुपये
  5. टोटोबोबो (Totobobo): अच्छा है। पलूशन और उसके बुरे असर से बचाता है। कीमत: 2000 से 2500 रुपये।

हर दिन शरीर को डिटॉक्सिफाई करना बहुत जरूरी
नीचे बताए हुए सभी विकल्प शरीर में फ्री-रेडिकल्स को कम करते हैं और एंटिऑक्सिडेंट को बढ़ाते हैं। इस प्रक्रिया को डिटॉक्सिफिशन कहते हैं। इससे शरीर में बेकार और हानिकारक पदार्थों की मात्रा कम होती है। साथ ही बीमारियों से लड़ने की ताकत या इम्यूनिटी बढ़ती है।

क्या हैं फ्री-रेडिकल्स और एंटिऑक्सिडेंट
फ्री-रेडिकल्स ऐसे ऑक्सिजन युक्त मोलिक्यूल्स होते हैं जो स्वतंत्र रहते हैं। ये भोजन के पाचन के दौरान गैरजरूरी चीजों के रूप में पैदा हो जाते हैं। फ्री-रेडिकल्स पर शरीर का काबू नहीं होता। इनमें फ्री-इलेक्ट्रॉन होते हैं। फ्री-इलेक्ट्रॉन की वजह से ये शरीर में मौजूद किसी भी जरूरी और उपयोगी पदार्थ को भी केमिकल रिऐक्शन से हानिकारक पदार्थ में बदलने की क्षमता रखते हैं। शरीर में एक स्तर तक फ्री-रेडिकल्स होने से कोई खास परेशानी नहीं होती क्योंकि शरीर में पहले से मौजूद एंटिऑक्सिडेंट्स इससे निपट लेते हैं, लेकिन पलूशन आदि की वजह से फ्री-रेडिकल्स बढ़ जाते हैं। ज्यादा फ्री-रेडिकल्स होने से ही खांसी, जुकाम जैसी गड़बड़ियां सामने आती हैं। शरीर के भीतर सूजन बढ़ने लगती है। सीधे कहें तो शरीर में केमिकल लोचे का असल कारण फ्री-रेडिकल्स ही है। ऐसे में हम खानपान न बदलें तो फ्री-रेडिकल्स से एंटिऑक्सिडेंट हारने लगते हैं और शरीर बीमार हो जाता है।

दिन से रात तक करें डिटॉक्सिफाई
सुबह-सुबह
1 कप ग्रीन टी लें। फिर तुलसी के 4 पत्तियों का सेवन करें।
हल्दी, गुड़, काली मिर्च और देसी घी की चटनी बनाकर सात दिनों के लिए रख लें। इसके लिए 3 चम्मच हल्दी लें, 30 ग्राम गुड़, एक बड़ा चम्मच देसी घी और चौथाई चम्मच काली मिर्च पाउडर लेकर मिला लें। इसका आधा चम्मच सुबह-शाम गरम पानी के साथ लें। इससे अस्थमा, जुकाम, खांसी, खराश सभी दिक्कतें काबू में रहेंगी।
रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच च्यवनप्राश लें। अगर डायबिटीज है तो शुगर-फ्री च्यवनप्राश लें।
1 गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद और दालचीनी का पाउडर (एक चुटकी) आधे नीबू के रस के साथ लें।
एक कप ताजे आंवले का जूस, साथ ही, एक कप गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर लेना चाहिए।
काढ़ा बना लें। सुबह से शाम तक थोड़ीी मात्रा में सेवन करें।
नीम की पत्तियों से बीमारियों से लड़ने की क्षमता मिलती है। ऐसे में इन दिनों में रोजाना सुबह के समय 4-5 नीम की पत्ती चबाकर खा सकते हैं। इसके अलावा लहसुन की एक कली रोज सुबह खाली पेट पानी के साथ निगल लें।
दोपहर
  • सूखे अदरक का एक टुकड़ा गुड़ की दोगुनी मात्रा के साथ चबाएं। इसे दोपहर में भोजन से पहले या बाद में लें। गुड़ खाने से पलूशन का असर कुछ कम जरूर होता है और फेफड़ों को फायदा पहुंचता है। यही कारण है कि कॉटन इंडस्ट्री में हर एंप्लायी को कैंटीन में गुड़ खाने के लिए दिया जाता है।
  • सौंठ तीन चुटकी, तीन तुलसी पत्ते, तीन काली मिर्च, दालचीनी का पाउडर दो चुटकी लें और इन सभी को मिलाकर काढ़ा या चाय के रूप में दोपहर बाद एक बार एक कप जरूर पिएं।
  • 2 चम्मच एलोवेरा जूस को 2 चम्मच गर्म पानी के साथ लें। आंवले का दो चम्मच रस, एक चौथाई चम्मच शहद और चौथाई चम्मच हल्दी पाउडर मिलाकर पिएं तो फायदा होगा।
  • 1 गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद और दालचीनी का पाउडर (एक चुटकी) आधे नीबू के रस के साथ लें।
रात
एक कप गर्म पानी के साथ हरितकी (हरड़) का चूर्ण 45 दिनों के लिए लें। इसका सेवन शरीर को प्रदूषण से लड़ने के काबिल बनाएगा और फेफड़े मजबूत होंंगे। खाने के आधे घंटे बाद लें।

इन उपायों को अपनाने से भी पलूशन से लड़ने में बहुत फायदा
  • सुबह उठने के बाद एक गिलास गुनगुने पानी से गरारे करें।
  • गरारे करने के बाद मुंह में सरसों का तेल भर लें। इसे पीना नहीं है। 3 से 4 मिनट तक सरसों के तेल को मुंह में चलाएं। इसके बाद फेंक दें। इससे दांतों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। विंड पाइप यानी सांस की नली लचीली होती है। यह तेल कुछ हद तक बाहर से आने वाले इन्फेक्शन को रोकने में भी कारगर है।
  • बाहर निकलते समय नाक के दोनों छिद्रों में सरसों या तिल का तेल लगा लें। इसे अपनी तर्जनी उंगली की मदद से लगा सकते हैं। इन दिनों चाहें तो अपने नाक के बाल न काटें। इससे हवा में मौजूद कई डस्ट पार्टिकल सांस की नली और फेफड़ों तक नहीं पहुंच सकेंगे।
  • खाना जब भी हो, गर्मागर्म खाएं। एक दिन पहले वाला न खाएं।
  • तिल के तेल से मसाज और गुनगुने पानी से स्नान करें।
  • अगर सीने में कफ जमा हो तो 1 गिलास दूध में 5 से 7 किशमिश, 2 से 3 खजूर डालकर 10 मिनट उबाल लेना है। फिर जिनकी उम्र 5 साल से ज्यादा है वे बिना छाने ही इन्हें पी लें और किशमिश आदि को खा लें।
  • कई लोग सोते समय खिड़की खोल देते हैं। इससे बाहर की ठंडी हवा अंदर आ जाती है और खराश पैदा कर देती है।

जलनेति से भी फायदा

सुबह खाली पेट आधा लीटर पानी उबालकर ठंडा कर लें। जब पानी गुनगुना रह जाए तब आधा चम्मच सफेद या सेंधा नमक मिला लें। अब टोंटीदार लोटा लेकर पानी को लोटे में भर लें और कागासन में बैठ जाएं। जो नासिका चल रही हो, उसी हथेली पर लोटा रख लें और टोंटी को चलती नासिका पर लगाएं और गर्दन को दूसरी तरफ झुका लें। मुंह खोलकर मुंह से सांस लेते रहें। लोटे को थोड़ा ऊपर उठाते ही दूसरी नाक से पानी आना शुरू हो जाएगा। इसी तरह दूसरी नासिका से भी कर लें। हाथों को कमर के पीछे बांधकर खड़े हो जाएं और थोड़ा आगे झुककर कपालभाति क्रिया गर्दन को सामने, नीचे, दाएं व बाएं घुमाकर बार-बार कर लें। हर दिन खाली पेट 5 मिनट तक कर सकते हैं। सावधानी: अभ्यास योग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करें।

स्नेहन और स्वेदन
स्नेहन: स्नेह का मतलब शरीर को चिकना करने से है। इसे शरीर पर तेल आदि स्निग्ध पदार्थों की मालिश करके किया जाता है।
स्वेदन: वाष्प स्वेदन में स्टीम बॉक्स में मरीज को लिटाकर या बिठाकर स्वेदन किया जाता है। स्वेदन को घर में खुद भी कर सकते हैं। गर्म चाय या गर्म पानी पीने के बाद मोटा कंबल ओढ़ लेते हैं।

नेचरोपैथी
  • सुबह योगासन और प्राणायाम के बाद सूर्य स्नान करें। इसके लिए कपड़े उतने ही पहनें जितना ठंड से बचाव के लिए जरूरी हों। 30 से 45 मिनट काफी हैं।
  • फिर 8 बजे से पहले 250 एमएल सफेद पेठे का जूस लें।
  • फिर 10 बजे से पहले कोई एक प्लेट मौसमी फल (सेब, संतरा, पपीता, मौसमी, शरीफा) लगभग 500 ग्राम खा लें।
  • दोपहर 12 बजे 400 से 500 ग्राम मौसमी सलाद (मूली, गाजर, खीरा आदि) खाएं। इसके बाद अपना सामान्य खाना खा सकते हैं। इसमें रोटी और मौसमी सब्जी लें।
  • शाम में 250 एमएल बथुआ और टमाटर जूस लें।
नोट: किसी भी जूस में नमक या नीबू, कुछ भी न मिलाएं।

होम्योपैथी
  • होम्योपैथिक दवाएं: Arsenic, Blatta, Ipecac, Lycopodium, Sulphur & Thuja
  • बच्चों में फेफड़ों का इन्फेक्शन: आजकल ऐसी परेशानी बच्चों में काफी होती है। बच्चों के लिए होम्योपैथी दवाइयां: Antim Tart, Kali Sulph, Pulsatilla, Bacillinum आदि।
  • कितनी मात्रा में: 30 potency में 4 गोली लें, 6 महीने तक।

ऐसे रहेंगे आपके फेफड़े मजबूत
जब फेफड़े मजबूत होंगे तो शरीर के बाकी अंग भी मजबूत होंगे। दरअसल, शरीर के सभी अंगों में ऑक्सिजन जिसे प्राण वायु कहते हैं, पहुंचाने की जिम्मेदारी शरीर में मौजूद दो फेफड़ों की ही होती है। इसलिए फेफड़ों को मजबूत करना बहुत जरूरी है।

4 बातें जिनसे फेफड़े होंगे दमदार...

1. नींद पूरी और खानपान सही हो
हर शख्स के लिए हर दिन 7 से 8 घंटे की नींद लेना जरूरी है। इससे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम करते हैं। जहां तक डाइट की बात है तो कार्बोहाइड्रेट- चावल या रोटी, प्रोटीन- दाल, फैट्स- सरसों का तेल या देसी घी, मिनरल और विटामिन- हरी सब्जियां, फल सभी शामिल हों। हमारी हर डाइट में प्रोटीन जरूर शामिल होना चाहिए।
मौसमी फल, सब्जियां: इन्हें खाने में जरूर शामिल करें। कम से कम हर दिन 1 से 2 कटोरी हरी सब्जियां, जैसे- पालक, सरसों का साग, फूल गोभी आदि और हर दिन 1 से 2 फल जैसे- सेब, संतरा, अनन्नास आदि सुबह नाश्ते के बाद लें।

2. योग और एक्सरसाइज
-हर दिन सुबह के वक्त 20 से 25 मिनट तक योग और एक्सरसाइज करें या फिर दोनों करें।
-योगासन और प्राणायाम से पहले सूक्ष्म क्रिया जरूर करें। जैसे शरीर के जोड़ों: कलाई, उंगलियों, गर्दन आदि को 5 बार घड़ी की सुई की दिशा में और 5 बार इसके विपरीत घुमाएं। ऐसा 5-5 बार करें।
-शुरुआत कपालभाति से करें। फिर नीचे बताए हुए योगासन और प्राणायाम को क्रमानुसार 15 से 20 मिनट तक करें। हर एक आसन 2 से 3 बार करें।
-सही तरीके से सांस लें। जब भी सांस अंदर खींचे पेट बाहर की ओर निकले और जब छोड़ें तो पेट अंदर जाए।
-1. ताड़ासन, 2. कटिचक्रासन, 3. उत्तानपादासन, 4. सेतुबंध आसन, 5. भुजंगासन, 6. उष्ट्रासन, 7. अनुलोम-विलोम, 8. उज्जायी प्राणायाम, 9. भस्त्रिका प्राणायाम।
-एक बात का ध्यान रखें कि कोई भी योगासन या प्राणायाम जबर्दस्ती न करें। आराम से करें।

3. धूप जरूर लें
शरीर में इसकी कमी बिलकुल भी न हो। शरीर में जहां भी कोई परेशानी देखी जाती है, उसके पीछे एक वजह विटामिन-डी की कमी होती है। इसलिए जरूरी है कि जाड़ों में हम हर दिन सुबह 9 से 12 बजे तक 35 से 40 मिनट के लिए और गर्मियों में सुबह 8 से 11 बजे के बीच 30 से 35 मिनट के लिए धूप में जरूर बैठें।

4. सिगरेट बिलकुल नहीं
बाहर का खाना, पैक्ड फूड बिलकुल बंद कर दें। रिफाइंड ऑयल और मैदे से बनी चीजें न खाएं। सिगरेट और नशे से दूर रहें। पैसिव स्मोकिंग से भी बचें।


जांचें दम और करें एक्सरसाइज
1. Balloon
गुब्बारे को अपने मुंह से हवा भरकर फुलाएं। पहले ज्यादा से ज्यादा हवा अपने फेफड़ों में भरें। इसके बाद उसे बलून के अंदर डालें। अगर फूले हुए बलून हों तो उनसे हवा निकालकर उन्हें दोबारा फुला सकते हैं। इस बात का भी ध्यान रखें कि बलून को फुलाना तब बंद कर दें जब मुंह या जबड़े में दर्द होने लगे। ऐसा देखा जाता है कि अगर पहले दिन किसी ने एक बलून फुलाया और वह दूसरे दिन 2 फुला लेता है तो यह फेफड़ों की बढ़ती क्षमता को ही बताता है। कोरोना से उबरे हुए 3 से 4 महीने हो गए हैं तो 3 से 4 बलून फुला सकते हैं।
कीमत: 20 से 50 रुपये, (10 से 20 गुब्बारों का पैकिट)

2. Three Balls Spirometer
सांस की क्षमता को जांचने और बढ़ाने में 'थ्री बॉल्स स्पाइरोमीटर' का इस्तेमाल भी कारगर है। इसमें एक पाइप होता है और 3 प्लास्टिक की हल्के बॉल। पाइप में फूंक मारनी होती है। अगर किसी के फूंकने से तीनों बॉल ऊपर उठ जाती हैं तो समझें उनके फेफड़ों की क्षमता अच्छी है। अगर 2 बॉल उठ रही हैं तो क्षमता कुछ कम है। अगर 1 ही उठ रही है तो उन्हें अपनी क्षमता को बढ़ाने की जरूरत है। इस मशीन का इस्तेमाल दिन में 2 से 3 बार कर सकते हैं जब तक क्षमता सही न हो जाए।
कीमत: 250 से 400 रुपये

3. Peak Expiratory Flow Meter
फेफड़ों की क्षमता को मापने के लिए पीईएफआर टेस्ट भी एक अच्छा तरीका है। इसमें भी फूंक मारनी होती है। फूंक मारने के बाद अगर संकेत हरे रंग तक पहुंचता है तो फेफड़ों की स्थिति अच्छी है। अगर पीले रंग तक पहुंचता है तो सुधार की जरूरत है और लाल रंग पर मामला अटकता है तो डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं या फिर धीरे-धीरे यहां बताए हुए तरीकों से फेफड़ों की क्षमता बढ़ा सकते हैं।
कीमत: करीब 800 रुपये

4. सांस रोकना
इनके अलावा सांस रोकने की क्षमता से भी पता चलता है कि फेफड़े कैसा काम कर रहे हैं। अगर कोई शख्स लंबी सांस खींचकर 1 से डेढ़ मिनट तक सांस रोककर रख ले तो यह मान लिया जाता है कि उसके फेफड़ों की क्षमता अच्छी है क्योंकि उसके फेफड़ों ने काफी अच्छी मात्रा में बाहर की हवा को शरीर के भीतर पहुंचाया। यहां इस बात का ध्यान रखें कि अगर कोई 30 सेकंड तक ही अपनी सांस रोक पाता है तो धीरे-धीरे कोशिशों से उसकी क्षमता भी बढ़ जाती है।
ध्यान दें: ऊपर बताए हुए सभी तरीकों को 7 साल से बड़ा बच्चा भी कर सकता है, खासकर बलून वाला।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. एन. के. अरोड़ा, मेंबर, कोविड टास्क फोर्स, ICMR
  • डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
  • डॉ. जी. सी. खिलनानी चेयरमैन, डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनरी, PSRI
  • डॉ. गुरमीत सिंह छाबड़ा, डायरेक्टर, पल्मोनॉलजी, QRG अस्पताल
  • डॉ. आर. पी. पाराशर, मेडिकल सुपरिटेंडेंट, पंचकर्म अस्पताल
  • डॉ. सुशील वत्स, सीनियर होम्योपैथ
  • मोहन गुप्ता, जाने-माने नेचरोपैथ
  • ईशी खोसला, सीनियर डाइटिशन
  • नीलांजना सिंह, सीनियर डाइटिशन
  • सुरक्षित गोस्वामी, वरिष्ठ योग गुरु
  • आचार्य कौशल कुमार जाने-माने योगाचार्य
  • विकास चावला, वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक

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अब फिटनेस का त्योहार, Fat to Fit

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नई दिल्ली

ये 4 गलतियां अक्सर होती हैं
1. एक डाइट प्लान को फॉलो न करना: किसी एक डाइट प्लान फॉलो करें। कभी यह डाइट, कभी वह-यह ठीक नहीं।
2. चीट डे नहीं, चीट मील: अगर हफ्ते में 6 दिन डाइट प्लान फॉलो किया तो एक दिन एक बार के खाने में अपनी पसंद की चीजें खाएं न कि पूरे दिन 3-4 बार के खाने में चीटिंग करें।
3. देर तक जागना: इससे नींद पूरी नहीं हो पाती और जागते रहने पर भूख लगती है तो कुछ न कुछ खा ही लेते हैं।
4. योग और एक्सरसाइज टालना: इसे भी हर दिन खाने जितना ही अहम समझें। यह शरीर को फिट रखने की खुराक है।

धनतेरस और दिवाली के दौरान वजन कम करने की कोशिशों का दिवाला निकल जाता है। मिठाई और पकवान खाते-खाते शरीर पर चर्बी चढ़ जाती है। ऐसे में जो रुटीन पटरी से उतर गई है उसे संभालने के लिए यहां कुछ बेहतरीन तरीके बताए जा रहे हैं...

ऐसे समझें आप फैटी हैं या फिट
1. बॉडी मास इंडेक्स (BMI)
टमी अगर बाहर की तरफ झांक रही है तो यह मोटापे की निशानी है। वैसे कोई शख्स अंडरवेट है, नॉर्मल है या फिर मोटापे का शिकार, यह जानने के लिए BMI (बॉडी मास इंडेक्स) पता करना होता है। बीएमआई जानने के लिए वजन और लंबाई का अनुपात निकालते हैं।
अगर BMI है
18.5 से कम तो अंडरवेट
18.5-24.5 नॉर्मल
25-29.9 ओवरवेट
30-34.9 ओबेसिटी
आसानी से जानें BMI
www.smartbmicalculator.com

2. वेस्ट-टु-हिप-रेश्यो
आप अपने कूल्हे के साइज के अनुपात से भी यह जान सकते हैं कि स्वस्थ हैं या नहीं। इसे हम वेस्ट-टु-हिप रेश्यो (WHR) भी कहते हैं। इसके लिए एक मापने का फीता (टेप) लें और दिए गए निर्देशों का पालन करें।
स्टेप 1 इसके लिए आप सीधे खड़े हो जाएं और दोनों पैरों को करीब लाकर मिला लें।
स्टेप 2 मापने का फीता (टेप) बहुत तंग न खींचें या बहुत ढीला भी न रखें।
स्टेप 3 नाभि के ऊपर के हिस्से का माप लें।
स्टेप 4 इसी प्रकार नितंबों (कूल्हे) के सबसे बड़े हिस्से के घेरे को माप लें।
स्टेप 5 कमर से कूल्हे का अनुपात महिलाओं में 0.80 या इससे कम और पुरुषों में 0.85 या उससे कम होना चाहिए।
यहां से पता करें: tinyurl.com/y8csz8mx


कमर से कूल्हे तक के माप के अनुपात का मतलब
-कमर और कूल्हे के माप का अनुपात हमें मोटापे और दिल की बीमारी की चेतावनी देता है।
-जिन महिलाओं में नाशपाती का आकार पाया जाता है, उनमें शुगर जैसी बीमारी का खतरा कम होता है। इसमें कूल्हों पर चर्बी होती है, पेट पर बहुत कम चर्बी।
-दूसरी ओर सेब का आकार होता है। इसमें शरीर के पेट वाले हिस्से में ज्यादा फैट जमा होने से कई तरह की बीमारियां घेर सकत हैं। यह पुरुषों के बीच आम समस्या है जो तोंद के रूप में दिखता है।

अब बात खाने की
10 जरूरी बातें जो वजन कम करने में हैं अहम
1: खाएं नहीं, सूंघें जब भी खाने के वक्त के अलावा भूख लगे तो केला, सेब या अनानास जैसे फल सूंघें। भले ही यह बेवकूफी भरा आइडिया लगे, लेकिन यह कारगर है। इससे बिना कुछ खाए ही पेट भरे होने का अहसास होता है। खाने पर कंट्रोल न कर पाने वालों पर यह नुस्खा काफी कारगर साबित होता है।
2: तेल: सरसों, कनोला और ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल करें। रिफाइंड और पाम ऑयल से बचें।
3: कैलरी कमः जो खाएं, देखें कि उसमें कितनी कैलरी है। वजन कम करने के लिए रोजाना 1000 से 1200 कैलरी तक ही सीमित रहें।
4: स्नैकिंग को नो-नोः दो बड़े खानों के बीच या डिनर के बाद छुटपुट हाई कैलरी फूड (चॉकलेट, बिस्किट, केक आदि) से दूर रहें।
5: कलर कोडः नीले रंग से पेट भरे होने की फीलिंग आती है। मुमकिन हो तो नीले रंग के बर्तनों और नीले टेबल कवर यूज करें।
7: करीब 2-3 लीटर पानी रोजाना जरूर पिएं।
8: फाइबर वाला खाना खाएं: रोज चोकर वाले आटे की रोटी, 3 फल (जूस के बजाय) और पर्याप्त मात्रा में मौसमी सब्जियां लें।
9: सफेद नहीं अच्छा: चावल, मैदा, चीनी, नमक, आलू जैसी सफेद चीजों से तौबा करें।
10: चीनी से दूरी: चीनी एक दम नहीं छोड़ी जा सकती इसलिए गुड़ से काम चलाएं। हो सके तो धीरे-धीरे काफी कम कर दें।

कीटो डायट प्लान
जल्दी वजन कम करने के लिए बेहतरीन है कीटो डायट प्लान। यह खास तरह का डायट प्लान है। इसमें कार्बोहाइड्रेट (ऐसे फूड प्रोडक्ट्स जिनसे शरीर को फौरन ही ऊर्जा मिलती है, जैसे चावल, रोटी, ब्रेड, चीनी आदि) की मात्रा बहुत कम होती है। बेस्ट कीटो डायट प्लान में हाई फैट का सेवन किया जाता है, लेकिन कार्बोहाइड्रेट से दूर रहते हैं। मोटापा कम करने के लिए कीटो डायट प्लान सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला वेटलॉस डायट प्लान है।
-वजन घटाने में यह इसलिए ज्यादा कामयाब होता है क्योंकि यह शरीर को कीटोशिश स्थिति में लाता है। इस स्थिति में शरीर कार्बोहाइड्रेट की जगह फैट से ऊर्जा लेना शुरू कर देता है और शरीर में फैट की मात्रा कम होने लगती है।
-कीटो डायट प्लान में पूरे दिन में शरीर के लिए लगभग 40 ग्राम से भी कम कार्बोहाइड्रेट फूड रहता है।

कीटो डायट प्लान चलता है इनके सहारे...
नट्स और सीड्स: नट्स और सीड्स में ज्यादा फैट होता है और कार्बोहाइड्रेट कम। इनमें फाइबर ज्यादा होता है। ये पेट भरने में मदद करते हैं। ऐसे फूड में बादाम, पिस्ता, चीया सीड्स, बीन्स आदि शामिल हैं।
दही या योगर्ट : प्लेन योगर्ट या दही में काफी प्रोटीन होता है। हालांकि इसमें कुछ कार्बोहाइड्रेट शामिल है, फिर भी यह एक कीटो डाइट प्लान का हिस्सा होता है। 150 ग्राम दही में 5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 7 ग्राम फैट और 11 ग्राम प्रोटीन होता है।
मक्खन: डायट में फैट शामिल करना है तो मक्खन-घी खाएं। बटर में काफी कम मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं। इसे थोड़ी कम मात्रा (3 से 4 टेबल स्पून पर्याप्त है) में ही खाएं।
अंडे: कीटोजेनिक डाइट के लिए अंडे काफी अच्छे होते हैं। एक बड़े अंडे में 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट और 6 ग्राम प्रोटीन होता है जोकि कीटोजेनिक डाइट के लिए आदर्श है।
सी-फूड: सी-फूड में मछलियां, केकड़े आदि शामिल हैं। वजन कम करने के लिए यह मुफीद खाना है।

इंटरमिटेंट फास्टिंग प्लान
-इसके तहत कैलरी में कटौती न करके खाने का समय तय करने पर जोर दिया जाता है।
-इसमें सुबह, दोपहर और रात के खाने को 4 से 10 घंटों के भीतर खत्म करने की कोशिश की जाती है। इस दौरान किसी भी तरह के खाने पर कोई रोक नहीं होती। लेकिन यह ध्यान रहे कि बाकी बचे 14 से 20 घंटे में कुछ भी खाना नहीं है।
-फास्टिंग पीरियड के दौरान जीरो कैलरी वाले आइटम्स जैसे पानी, ग्रीन टी और ब्लैक कॉफी आदि ले सकते हैं।
-अगर किसी को इस डाइट प्लान को फॉलो करना है तो एक से दो हफ्ते पहले से अपनी डाइट को कम कर देना चाहिए। इससे फास्टिंग पीरियड के दौरान भूख कम लगेगी।

योग और एक्सरसाइज भी जरूरी
यौगिक क्रियाएं
कपालभाति 3 बार
अग्निसार क्रिया 3 बार
कटिचक्रासन 5 बार
त्रिकोणासन 3 बार
सूर्य नमस्कार 12 बार
नौकासन 3 बार
भुजंगासन 3 बार
चक्कीचालन 3 बार
शवासन 3 मिनट
25 मिनट योग काफी है। इसके बाद भी अगर कोई शख्स एक्सरसाइज करना चाहे तो यह उसकी क्षमता पर निर्भर करता है। अगर युवा हैं तो योग और एक्सरसाइज दोनों ही कर सकते हैं।

कौन-कौन सी एक्सरसाइज
जब घर में एक्सरसाइज करने की बात आती है तो योग के बाद इस पर 35 से 45 मिनट का वक्त देना बेहतर रहता है। अगर योग नहीं कर पा रहे हैं तो 1 घंटा एक्सरसाइज में लगा सकते हैं। बेशक जब टमी को अंदर करने की बात हो तो इतना वक्त तो लगेगा ही।

सबसे अहम एक्सरसाइज
ऐसी कई तरह की एक्सरसाइज हैं, जिनकी मदद से बाहर निकले पेट को अंदर किया जा सकता है और शरीर पर मौजूद फालतू चर्बी को बाहर:
1. Plank With Knee Tap
इसमें घुटनों को पैरों के बल पर उठाएं। शरीर के अगले हिस्से को बाजू की मदद से ऊपर उठाएं। कोहनी जमीन पर लगी रहेगी और हाथ कंधों के बराबर रखें। सिर, गर्दन व रीढ़ की हड्डी को एक ही दिशा में सीधा रखें। अब धीरे-धीरे पहले बाएं घुटने को और फिर दाएं घुटने को नीचे फर्श पर लगाएं।
नोट: एक बार में 60 सेंकड के लिए करें और फिर 10 सेकंड का ब्रेक लें। 2 सेट करें।

2. Side Elbow Plank
अपनी दाईं बाजू को कमर के साथ सटाकर रख लें। फिर जमीन पर करवट लेकर एक साइड में लेट जाएं। अब दूसरी बाजू के सहारे शरीर को हवा में उठाएं और फिर नीचे करें। इसी तरह की क्रिया अपने दूसरे हाथ से भी करें।
नोट: एक बार में 30 सेंकड के लिए करें और फिर 10 सेकंड का ब्रेक लें। 2 सेट करें।

3. Dead Bug
पीठ के बल लेट जाएं। इसके बाद घुटनों का समकोण (90 डिग्री) बनाएं और दोनों हाथ घुटनों को छुएंगे। इसके बाद दाएं हाथ और पैर को सीधा रखें। ये तब तक सीधे रहेंगे, जब तक कि दूसरा पैर नीचे जमीन पर नहीं लग जाता। फिर पुरानी स्थिति में आकर दूसरे हाथ और पैर से यही दोहराएं।
नोट: एक बार में 30 सेंकड करें और फिर 10 सेकंड का ब्रेक लें। 2 सेट करें।

4. Mountain Climber
इस वर्कआउट के लिए घुटने टेककर बैठ जाएं। फिर अपने दोनों हाथों को सामने की ओर फर्श पर रख लें। अब अपने दोनों पैरों को पीछे की ओर पूरी तरह से सीधा कर लें। इसके बाद दाएं पैर के घुटने को मोड़ें और छाती की ओर लाएं। फिर अपने दाएं घुटने को नीचे करके पैर को सीधा कर लें। जब आप दाएं पैर को सीधा करें तो साथ में बाएं पैर के घुटने को छाती की ओर लाएं। जब तक कर सकते हैं, अपने हिप्स को सीधा रखते हुए अपने घुटनों को अंदर और बाहर चलाएं।

नोट: एक बार में 120 सेकंड के लिए करें और फिर 10 सेकंड का ब्रेक लें। 2 सेट करें।
इनके अलावा: डांस, टो टचेज, पुशअप्स, एयर साइक्लिंग, उठक-बैठकर और शादियों वाला नागिन डांस 15 से 25 मिनट हर दिन करेंगे तो वजन कम हो सकता है।

जरूरी ऐप
MyFitnessPal
उपलब्ध: एंड्रॉयड और iOS
खासियत: किस खाने में कितनी कैलरी होती है उसकी जानकारी, पैक्ड फूड का बारकोड स्कैन करने की क्षमता और कदमों को गिनने की क्षमता भी है।

Lose it!
उपलब्ध: एंड्रॉयड और iOS
खासियत: अगर किसी के दिमाग में वजन कम करने का लक्ष्य है तो यह उसमें बहुत मदद करता है। ऐप हमारी हर दिन की कैलरी खपत को बताता है।

WW (Weight Watchers)
उपलब्ध: एंड्रॉयड और iOS
खासियत: इस ऐप की खासियत है कि इसमें सैकड़ों हेल्दी व्यंजन तैयार करने के बारे में बताया गया है। यह ऐप ऐसी कम्यूनिटी से भी लोगों को जोड़ता है जो बढ़ा हुआ वजन कम करना चाहते हैं।

नोट: कोई भी डाइट प्लान, योग, एक्सरसाइज शुरू करना हो तो किसी एक्सपर्ट की निगरानी में ही करें।

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World Diabetes Day: भारत में सबसे ज्यादा डायबीटीक मरीज, यहां जानिए कैसे 'मीठे जहर' से बचने के उपाय

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नई दिल्ली
मीठी बीमारी की वजह से शरीर को बहुत परेशानी होती है। इस मीठेपन के असर को कम करने के लिए डाइट से लेकर पूरे लाइफस्टाइल में क्या बदलाव करना है? शुगर न हो इसके लिए क्या जतन करने हैं और अगर हो जाए तो क्या करना है? वहीं कंपनियों ने दवाओं के रूप में क्या नया खोजा है? एक्सपर्ट्स से बात कर जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

हमें हर दिन 3 से 5 फल और 2 से 3 कटोरी मौसमी सब्जियां जरूर खानी चाहिए
अपने देश में डायबीटीक मरीजों की संख्या दुनियाभर में सबसे ज्यादा है। इतना ही नहीं प्री-डायबीटीक स्टेज वाले मरीजों की संख्या भी लगभग उतनी ही है जितनी संख्या में डायबीटीक मरीज हैं यानी डायबीटीज के मरीजों की संख्या अगले 10 बरसों में दोगुनी हो जाएगी। इसमें 30 से 50 साल तक के मरीजों की संख्या भी अच्छी तादाद में है। पर अगर अभी से कोशिश की जाए तो स्थिति को बदली जा सकती है। प्री-डायबीटीक मरीजों को डायबीटीक बनने से रोका जा सकता है और डायबीटीक मरीजों को भी ज्यादा परेशानी से बचाने के उपाय किए जा सकते हैं।

कितनी तरह की डायबीटीज?
1. टाइप-1 डायबीटीज: डायबीटीज: जब शरीर में इंसुलिन हॉर्मोन बनाना पूरी तरह बंद हो जाता है तब यह बीमारी होती है। भारत में इसके मरीज बहुत कम हैं। अमूमन 4000 में 1 बच्चा। चूंकि इसमें मरीज का शरीर जरा भी इंसुलनि नहीं बनाता इसलिए ग्लूकोज को कंट्रोल करने के लिए बाहर से लगातार इंसुलिन लेना पड़ता है।

2. टाइप-2 डायबीटीज: इसे डायबीटीज मेलिटस (Diabetes Mellitus) भी कहते हैं। भारत दुनिया में दूसरा सबसे ज्यादा डायबीटीज मरीजों वाला देश है। यह मोटापा, गलत लाइफस्टाइल और कई बार बढ़ती उम्र की वजह से होती है। इसमें शरीर में कम मात्रा में इंसुलिन बनता है। जब किसी को पहली बार शुगर आता है तो यह मान लेना चाहिए कि उसके शरीर में 50 फीसदी ही इंसुलिन बन रहा है। अगर इसे सुधारा न जाए तो यह हर साल 5 फीसदी के हिसाब से कम होता जाता है।

क्यों होती है यह बीमारी?

वैसे तो इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। पर सबसे अहम 7 'S' हैं:
Sedentary lifestyle: इसका मतलब है कि हमारी फिजिकल ऐक्टिविटी बहुत कम है। हम शारीरिक श्रम से पसीना बिलकुल नहीं बहाते। नतीजा यह होता है कि हम जो भी खाते हैं, वह शरीर में चर्बी के रूप में जमा होता चला जाता है। इसी का नतीजा होता है मोटापा। जब मोटापा आ जाता है तो हमारे शरीर में हॉर्मोन्स की कार्यक्षमता काफी हद तक प्रभावित होती है।
Stress: तनाव चाहे किसी भी वजह से हो हमारे शरीर के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक है। सच तो यह है कि स्ट्रेस की वजह से ही पहले बीपी की शुरुआत होती है। जब बीपी लगातार बना रहता है तो शुगर अपनी सीमाएं लांघने के लिए बार-बार दस्तक देने लगता है।
Sleep: कहते हैं कि अगर आप अच्छी नींद लेते हैं तो स्ट्रेस से आप दूर क्योंकि तनाव और नींद अमूमन साथ में नहीं होते। हर रात हमारी नींद 7 से 8 घंटे की जरूर हो।
Salt: खाने में ज्यादा नमक बीपी बढ़ाने का काम करता है। वहीं नमक शरीर में अतिरिक्त पानी को भी रोकता है।
Sugar: चीनी या फिर मीठा ज्यादा खाना भी शुगर को जल्दी बुलाने का काम करता है, खासकर तब जब हमारी फिजिकल ऐक्टिविटी काफी कम हो।
Smoking: वैसे तो स्मोकिंग फेफड़ों और दिल दोनों के लिए हानिकारक है। लेकिन स्मोकिंग करने से यह इंसुलिन की कामकाज को भी प्रभावित करता है।
Spirits: अल्कोहल से होने वाली हानि के बारे में हम सभी जानते हैं। इसे पीने के लिए बहाने खोजते रहते हैं। अल्कोहल भी बीपी और शुगर को बढ़ाने की कोशिश में लगा रहता है।

इन अंगों पर होता है सीधा असर
हार्ट: जिन्हें शुगर हैं। वे अगर इसे काबू में नहीं रखते तो नतीजा दिल की बीमारी के रूप में सामने आता है। शुगर के साथ बीपी और कलेस्ट्रॉल को भी काबू में रखना बहुत जरूरी है। शुगर नसों पर भी असर डालता है।
लिवर: शुगर से पूरा शरीर चलता है। हम जो भी खाते हैं, उसे आखिरकार ग्लूकोज (शुगर) में बदलकर ही शरीर उपयोग कर पाता है। जब हम बाहर से अतिरिक्त शुगर खाते हैं या जो शरीर में पहले से मौजूद है, उसका उपयोग सिर्फ मांसपेशियां और लिवर ही करती हैं। जब हम फिजिकल ऐक्टिविटी नहीं करते तो मांसपेशियों में मौजूद शुगर भी लिवर में चली जाती है। लिवर में यह अतिरिक्त शुगर फैट में बदल जाती है। लिवर में ज्यादा फैट जमा होने से लिवर उसे खून में भेज देता है। नतीजतन शरीर में कॉलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है। इसलिए ज्यादा मीठा या ऐसी चीजें जिनसे ज्यादा शुगर या ग्लूकोज बने, न खाएं।
किडनी: शुगर की वजह से ब्लड सप्लाई कम होने लगती है। इससे किडनी की क्षमता घटने लगती है। कई बार किडनी का साइज दोगुना हो जाता है।

ऐसे बचे रहेंगे शुगर से
हर दिन बहाएं पसीना
हर दिन 50-60 मिनट की फिजिकल ऐक्टिविटी जरूर करें। इसमें ब्रिस्क वॉक, साइकलिंग, स्वीमिंग, बैडमिंटन जैसे खेल आदि को शामिल करें। ब्रिस्क वॉक बहुत अच्छी एक्सरसाइज है। इसमें याद रखें कि एक मिनट में करीब 80 कदम चलने होते हैं। इसलिए हर दिन कम-से-कम 10,000 कदम चलने की कोशिश करें। अगर सुबह लगातार वॉक करने का मौका न मिले तो इसे 15-15 मिनट के 3 सेट में पूरा कर लें। वैसे योग करना भी अच्छा है लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि यह एरोबिक्स की जगह नहीं ले सकता। मेडिटेशन से तनाव कम होता है, ब्लड प्रेशर को काबू रखने में मदद करता है।

पसीना निकलेगा तो नींद भी आएगी: जब शरीर थकता है तो नींद भी अच्छी आती है। रात की अच्छी नींद से ही सुबह की बेहतर शुरुआत होती है। फिर पूरा दिन अच्छा गुजरता है। इसलिए हर दिन 7 से 8 घंटे की नींद बहुत जरूरी है।

स्वाद के पीछे ज्यादा न भागें
इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि खाना पौष्टिक होना जरूरी है, न कि बहुत ज्यादा टेस्टी। यह भी जरूरी है कि हम हर दिन 3 से 5 फल और 2 से 3 कटोरी सब्जियां जरूर खाएं। सब्जियों में तेल व मसालों की मात्रा कम से कम हो।
नमक और मीठा कम करें: खाने में अतिरिक्त नमक न लें। एक शख्स को एक दिन में 5 से 7 ग्राम (एक छोटा चम्मच) नमक से ज्यादा नहीं खाना चाहिए। इसी तरह उसे मीठा भी ज्यादा नहीं खाना चाहिए। खासकर रात में मिठाई खाना ज्यादा खतरनाक है। अगर रात में मीठा खाने की इच्छा हो तो एक इंच का गुड़ खा सकता है।

सिगरेट और शराब हैं बड़े दुश्मन: ये पहले बीपी बढ़ाते हैं फिर शुगर को। अगर मोटापा है और इनकी लत है तो समझ लें, शुगर होने का खतरा बहुत ज्यादा है। अगर बीपी और शुगर से बचना है तो इन्हें हाथों और होठों पर नहीं, पैरों के नीचे ही रहने दें।
रिफाइंड बंद: चाहे चावल हो, आटे से रिफाइड बना मैदा हो, रिफाइंड ऑयल - सभी को बंद कर दें। प्रोसेस्ड फूड न खाएं। कुदरती चीजें खाएं। किसी जानवर को शुगर नहीं होता क्योंकि वे रिफाइंड चीजें नहीं खाते।

वजन घटाएं, राहत पाएं
जो शख्स प्री-डायबीटीक स्टेज में है, वह अपने शरीर का 10 फीसदी वजन कम करके खुद को डायबीटीज स्टेज में जाने से रोक सकता है। इसी तरह जिन्हें डायबीटीज हो चुका है, वह भी 10 फीसदी वजन कम करके डायबीटीज पर काबू पा सकता है। बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 18 से 23 के बीच रखें। कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चीजें खाएं।

परिवार में अगर किसी को शुगर है तो...
n अगर दादा-दादी और मां-बाप दोनों को शुगर है तो होने की आशंका 70 फीसदी
n अगर दोनों पैरंट्स को शुगर है तो बच्चे को होने की आशंका 49 फीसदी
n किसी एक पैरंट्स को शुगर है तो बच्चे को होने की आशंका 25 से 27 फीसदी
अगर पैरंट्स में से किसी एक को डायबीटीज है या खून के रिश्ते में किसी और करीबी को डायबीटीज है तो 30 साल की उम्र के बाद हर साल शुगर टेस्ट जरूर कराएं।
तनाव कम करें: जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश जरूर करें लेकिन इसे लेकर तनाव न पालें। अगर किसी चीज का तनाव है तो उससे निपटने के लिए एरोबिक्स करें, मेडिटेशन करें, अच्छा म्यूजिक सुनें और अपनी पसंदीदा हॉबी के लिए वक्त निकालें।

शुगर के लिए जरूरी टेस्ट
1. ब्लड ग्लूकोज टेस्ट: यह दो बार किया जाता है: खाली पेट (फास्टिंग) और नाश्ता या ग्लूकोज लेने के बाद (पीपी)।
फास्टिंग ब्लड शुगर: 70-100 mg/dl: नॉर्मल
(रात में खाना खाने के बाद 8-10 घंटे की फास्टिंग जरूर हो। अगर रात में 12 बजे कुछ खाया है तो दिन में 9-10 बजे से पहले टेस्ट न कराएं।)
पोस्ट प्रैंडियल (पीपी) शुगर: 70-140 तक mg/dl: नॉर्मल
(खाने का पहला कौर खाने के 2 घंटे बाद)
2. HbA1c टेस्ट: इसे हीमोग्लोबिन A1c या ऐवरेज ब्लड शुगर टेस्ट भी कहते हैं। इस टेस्ट से पिछले तीन महीने के ऐवरेज ब्लड शुगर लेवल का पता लग जाता है। इसमें खाली पेट और खाने के दो घंटे बाद का ब्लड सैंपल देना नहीं पड़ता। टेस्ट के लिए सैंपल दे सकते हैं।
5.7 से कम: नॉर्मल, 5.7 से 6.4: प्री-डायबीटिक, 6.5 या ज्यादा: डायबीटिक, ध्यान रखें: टेस्ट से 24 घंटे पहले कॉलेस्ट्रॉल कम करनेवाली टैब्लेट, विटामिन-सी, ऐस्प्रिन, गर्भ-निरोधक दवाएं आदि इस्तेमाल न करें।

शुगर होने के बाद अपनाएं इन जरूरी उपायों को, काबू करने में मिलेगी मदद
टाइप -1 डायबीटीज
डायबीटीज टाइप 1 के मरीजों को ज़िंदगी भर इंसुलिन लेने की जरूरत पड़ती है। इन मरीजों खासकर बच्चों को भरपूर डाइट की जरूरत पड़ती है ताकि उनके विकास पर बुरा असर न पड़े। बार-बार डॉक्टर के पास जाने, लगातार इंसुलिन के इंजेक्शन लगवाने और खाने में पाबंदियों की वजह से ऐसे बच्चों को दूसरों से अलग होने का अहसास चिड़चिड़ा, गुस्सैल या निराश कर सकता है। पैरंट्स को इन बच्चों की जरूरतों को ज्यादा बारीकी से समझना चाहिए।

टाइप -2 डायबीटीज होने के बाद...
लाइफस्टाइल में बदलाव
टाइप 2 डायबीटीज में अगर मरीज का शुगर लेवल बॉर्डर पर है और दूसरी दिक्कतें नहीं हैं तो डॉक्टर की सलाह से एक्सरसाइज और लाइफस्टाइल व डाइट में बदलाव के साथ इसे कंट्रोल किया जा सकता है। अगर शुगर लेवल ज्यादा है तो डॉक्टर दवा शुरू करते हैं, जिसे नियमित रूप से लेना होता है। इसके इलाज के लिए अब बेहतर दवाएं आ गई हैं। ये दवाएं हार्ट अटैक के खतरे को 30 फीसदी तक कम करती हैं।

ग्लूकोमीटर है कारगर
ब्लड शुगर मॉनिटर करने के लिए ग्लूकोमीटर की मदद ले सकते हैं। अब मेमरी वाले ग्लूकोमीटर भी मिलते हैं। इनमें पिछले 3 महीने की पूरी रीडिंग सेव रहती है।
1. Accu-Check Active
कीमत: 1200 से 1600 रुपये
2. Dr. Morepen BG-03
कीमत: 1200 से 1500 रुपये
3. Dr. Trust
कीमत: 1500 से 2500 रुपये
नोट: इनके अलावा भी कई दूसरे अच्छे ग्लूकोमीटर उपलब्ध हैं। कीमतों में फर्क मुमकिन है।

ये हैं कुछ नई चीजें
पैच: CGMS यानी Continuous Glucose Monitoring System पैच से लगातार शुगर लेवल पर निगाह रखी जा सकती है। यह पैच बांह में लगाया जाता है और इसमें एक सेंसर लगा होता है। इससे बेहतर मॉनिटरिंग की जा सकती है। इस पैच को 7 या 15 दिन में बदलना पड़ता है।
पंप: इंसुलिन पंप से शुगर पर रियल टाइम निगाह रखी जा सकती है। यह पैंक्रियाज की तरह लगातार इंसुलिन शरीर में देता रहता है। अलार्म वाले पंपों में मौजूद अलार्म शुगर बहुत ज्यादा या बहुत कम होने पर बज उठता है। प्रेग्नेंट लेडीज और बच्चों के लिए ये पंप काफी अच्छे होते हैं। एक की कीमत 2 से 5 लाख रुपये पड़ती है।
पेन: सुइयों से राहत के लिए इंसुलिन पेन का इस्तेमाल कर सकते हैं। इन्हें लगाने के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, न ही रोज सूई बदलनी पड़ती है। इंसुलिन का एक इंजेक्शन जिसे कई बार उपयोग कर सकते हैं, उसकी कीमत करीब 250-300 रुपये और पेन करीब 400-500 रुपये का पड़ता है।

दवाएं भी कुछ नई आई हैं
Sulfonylurea: पहले की ज्यादातर दवाओं में शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती थी। अगर शरीर में पेनक्रिआस (शरीर के इसी अंग के बीटा सेल्स में इंसुलिन का उत्पादन होता है।) की कार्यक्षमता बढ़ा कर इंसुलिन के उत्पादन में इजाफा करने वाली दवा आती भी थी तो वह महंगी थी। अब इस ग्रुप की दवा लेने से यह शरीर में पहुंचकर यह बीटा सेल्स को ऐक्टिव करता है और इंसुलिन का उत्पादन बढ़ाता है। यह टाइप-2 डायबीटीज मरीजों के लिए कारगर मानी जा रही है।
Metformin: यह दवा उन लोगों के लिए कारगर है जिनका शुगर लेवल डाइट और एक्सरसाइज के बाद भी काबू में नहीं आता। इस दवा की मदद से अब शरीर में शुगर के स्तर को कम करने में काफी आसानी होती है। महिलाओं में यह एग के उत्पादन को भी बढ़ाता है।
DPP-4 Inhibitors: यह दवा हाई शुगर लेवल को काबू में रखने में काफी मददगार है, खासकर टाइप-2 डायबीटीज को। यह शरीर में इनक्रेटिन (Incretin) हॉर्मोन पर काम करता है। इनक्रेटिन हॉर्मोन तब निकलता है, जब हम कुछ खाते हैं।
SGLT2 Inhibitors: इसे इंसुलिन का विकल्प कह सकते हैं। यह उनके लिए कारगर है जो इंसुलिन शुरू नहीं करना चाहते। टाइप-2 डायबीटीज वाले जिन्हें हार्ट की परेशानी की आशंका है, उनके लिए इस ग्रुप की दवा कारगर है।

अगर इंसुलिन लेते हैं तो रखें ध्यान
n इंसुलिन का इंजेक्शन लगाते हुए ध्यान रखें कि मरीज ने खाना जरूर खाया हो क्योंकि इंसुलिन ब्लड शुगर लेवल को कम करता है। अगर कोई शख्स बिना खाना खाए, यह इंजेक्शन लगा ले तो ब्लड शुगर लेवल लो यानी हापोग्लाइसीमिया हो सकता है।
n किसी वजह से मरीज सुबह या शाम को इंजेक्शन लगाना भूल जाए तो मरीज को दो इंजेक्शन एक साथ कभी नहीं लगाने चाहिए। कभी मरीज को लगता है कि आज खाने पर कंट्रोल नहीं हो पाएगा तो वह इंसुलिन की मात्रा बढ़ा सकता है।
n इंसुलिन हमेशा नाश्ता करने और डिनर करने से 15-20 मिनट पहले लें। दो इंजेक्शनों के बीच 10-12 घंटों का फासला होना जरूरी है। खाने के एकदम साथ न लगाएं क्योंकि ऐसा करने से ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है। इंसुलिन को 8 से 10 डिग्री तापमान पर यानी फ्रिज में रखना चाहिए।

जरूरी सवाल-जवाब
शुगर की रेंज को क्यों कम किया गया?
यह सवाल कई बार उठाया जाता है कि पहले शुगर की रेंज ज्यादा थी। अब मार्केट को बढ़ाने के लिए इसकी रेंज को कम कर दिया गय है। सच तो यह है कि ऐसा बाजार की जरूरत के हिसाब से नहीं, शरीर की जरूरत के हिसाब से किया गया है।
पहले की लिमिट
फास्टिंग: 126
पीपी (खाने के 2 घंटे बाद): 180
अब
फास्टिंग: 100
पीपी: 140

आखिर इसे क्यों बदला गया?
इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि जब किसी का शुगर लेवल फास्टिंग में 120 से 125 तक और पीपी 175 तक पहुंच जाता था तो उस शख्स को शुगर हो ही जाता था। यह प्री-डायबीटीक न होकर इसकी शुरुआत हो जाती थी। इसलिए यह निर्णय लिया गया कि शुगर के लेवल को कम करके रखने से ही शुगर से बचा जा सकेगा।

ग्लाइसेमिक इंडेक्स क्या है?
ग्लाइसेमिक इंडेक्स कार्बोहाइड्रेट युक्त खाद्य पदार्थों की रैंकिंग है, जिससे यह पता लगाया जाता है कि भोजन में पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट को ग्लूकोज बनने में कितना समय लगता है।

ये भी हैं उपाय
आयुर्वेद
DI-E-T ठीक करने से काबू पा सकते हैं:
1. DI (डायट्री इंटरवेंशन):
क्या नहीं खाना:
-दूध के सभी आइटम बंद: दही, छांछ
n ड्राई फ्रूट्स नहीं
- मीठा नहीं खाना, गुड़ भी नहीं खाना
-स्प्राउट्स, केला, चीकू, बेसन, मेदा, नारियल पानी, सोयाबीन
नोट: ऊपर बताए हुए सभी आइटम्स को हफ्ते में एक से दो बार खा सकते हैं।
2. E-एक्सरसाइज
-ऐसा कुछ करें कि पूरे शरीर से पसीना निकले। रात में ही नींद पूरी हो इसका ध्यान रखें। हर रात 7 से 8 घंटे की नींद लें। दिन में नहीं सोना।
3. T-ट्रीटमेंट
-हल्दी आंवले की चूर्ण हर दिन लें। 1 चम्मच गुनगुना पानी के साथ ले सकते हैं। खाने के आधे घंटा बाद लें।

नेचरोपैथी
नाश्ते से पहले
- सुबह खाली पेट 1 गिलास पेठे के रस में 10 फीसदी बेलपत्र का रस मिलाकर पिएं।
-अगर पेठे का रस उपलब्ध न हो तो किसी भी मौसमी कच्ची सब्जी के रस में 10 फीसदी बेलपत्र का रस मिलाकर पिएं।

नाश्ते में
-एक तरह का फल एक प्लेट खाएं।

लंच और डिनर
-जब भी लंच तैयार करना हो तो कोशिश यह होनी चाहिए कि रोटी के लिए आटा गूंथते समय उसमें एक-चौथाई मात्रा में मौसमी साग या सब्जी मिला दें। जैसे: पालक या मेथी या धनिया या पुदीना आदि। इससे कार्बोहाइड्रेट की मात्रा भी कम पहुंचेगी। दिन और रात के खाने से पहले एक प्लेट कच्ची सलाद बिना नमक या नीबू के जरूर खाएं।


अगर किसी को आ जाए मिर्गी का दौरा...
बात सबसे पहले लक्षण की
- कोई एक भाग सुन्न पड़ जाता है।
-शरीर में थरथराहट हो सकती है, कोई भाग अकड़ जाता है। जुबान लड़खड़ाती है।
- मरीज को बेहोशी आ जाती है।
-दांत भिंच जाते हैं।
किसी को मिर्गी का दौरा पड़े तो
क्या करें:
- उसे दाएं या बाएं करवट लिटा दें। पेट के बल या पीठ के बल न लिटाएं, नहीं तो गले में थूक अटकने की गुंजाइश बनी रहती है।
- आसपास भीड़ जमा न होने दें।
- अगर मरीज ने टाइट कपड़ा पहना है तो उसे ढीला कर दें।
- मरीज जब तक होश में न आए तो कुछ भी खिलाने या पिलाने की कोशिश न करें।
- मरीज को 5 से 7 मिनट तक होश न आए तो डॉक्टर से जरूर दिखाएं।
- हाथ या पैर को रगड़ें नहीं।

एक्सपर्ट पैनल

डॉ. एस. सी. मनचंदा, एक्स हेड, कार्डियॉलजी डिपार्टमेंट, AIIMS
-डॉ. एस. के. सरीन, डायरेक्टर, ILBS
- डॉ. अशोक झिंगन, चेयरमैन, डायबीटीज रिसर्च फाउंडेशन
-डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन, मेडिकल, IP यूनिवर्सिटी
-डॉ. मंजरी त्रिपाठी, हेड, यूनिट-2, न्यूरॉलजी, AIIMS
-डॉ. महेश व्यास, डीन, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद
-मोहन गुप्ता, वरिष्ठ नेचरोपैथ
-डॉ. कैलाशनाथ सिंगला, सीनियर कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेरॉलजिस्ट
-डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
-डॉ. प्रशांत जैन, सीनियर यूरॉलजिस्ट
-डॉ. सत्या एन. डोरनाला, वैद्य-साइंटिस्ट फेलो

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दिव्य तकनीक....

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ज़िंदगी में चुनौतियां कम नहीं होतीं। ऐसे में किसी को देखने में परेशानी होती हो या उंगलियां किसी एक जगह पर रुकती न हों या ऐसी ही कोई दूसरी परेशानी हो तो मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती हैं। इन परेशानियों को हिम्मत से हराया जा सकता है। अब ऐसी टेक्नॉलजी और गैजेट्स भी आ गए हैं जो इस लड़ाई में कारगर हथियार साबित हो रहे हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं बालेन्दु शर्मा दाधीच

असिस्टिव और एक्सेसिबल टेक्नॉलजी एक खास तरह की तकनीक है। इसमें असिस्टिव का मतलब है ऐसे गैजेट्स या फीचर या ऐप्लिकेशन जो शारीरिक और मानसिक परेशानियों से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए ही खास तौर पर तैयार किए गए हैं। वहीं एक्सेसिबिलिटी का मतलब है, ऐसी चीजें जो सभी के द्वारा इस्तेमाल की जाती हैं, लेकिन उनमें अलग से कुछ खास फीचर या क्षमताएं जोड़ी गई हैं जो उन्हें इस्तेमाल के काबिल बनाती हैं। इस तकनीक की मदद से कंप्यूटर, मोबाइल फोन, इंटरनेट आदि को सही ढंग से उपयोग करने की आजादी मिलती है। इसका मकसद यह कि डिसेबल्ड लोग भी डिजिटल उपकरणों के साथ पढ़ाई-लिखाई कर सकें, दफ्तरों में काम कर सकें, चैट कर सकें और चाहें तो मनोरंजन भी कर सकें। वे इनकी मदद से सोशल मीडिया पर भी ऐक्टिव रहते हैं और अपनी राय व्यक्त करते हैं।

जिनके लिए एक चुनौती है, इस दुनिया को देखना
अगर किसी को देखने में परेशानी है। पूरी तरह न देख सकते हों या कम दिखता हो तो ऐसी तकनीक हैं जिनसे लोगों को काफी मदद मिलती है।

Laptop या Computer में सेटिंग्स

Ease of Access Center
विंडोज में असिस्टिव सुविधाओं का एक समूह मौजूद है जो सेटिंग्स में ‘ईज ऑफ एक्सेस सेंटर’ नाम की जगह पर दिखाई देगा। यहां पहुंचने के लिए Windows + U दबाएं। चाहें तो सेटिंग्स के जरिए या फिर सर्च बॉक्स में Ease of Access लिखकर दिखने वाले लिंक के जरिए भी यहां पहुंच सकते हैं। यहां पर विंडोज की ऐसी ज्यादातर सुविधाओं के लिंक मौजूद हैं जिनकी जरूरत पड़ सकती है।

Narrator
डिस्प्ले और माउस के बिना काम करने वाले लोगों के लिए नैरेटर बेहद उपयोगी है। ईज ऑफ एक्सेस सेंटर में मौजूद नैरेटर न सिर्फ स्क्रीन पर दिखने वाले टेक्स्ट बल्कि कंप्यूटर में उभरने वाले नोटिफिकेशन को भी पढ़कर सुनाता है। दृष्टिहीन और बहुत कमजोर नजर वाले लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। इसे ऐक्टिव करने के कई तरीके हैं:
1. Ease of Access Center में दिखने वाले Narrator को दबाएं।
2. टास्कबार के सर्च बॉक्स में Narrator लिखने पर दिखाए जाने वाले लिंक को क्लिक करें।

क्या करता है नैरेटर
नैरेटर टूल एक बॉक्स के रूप में खुलता है जिसे Minimize किया जा सकता है। अब आप जिस दस्तावेज, वेब पेज या विंडो पर काम कर रहे हैं, वहां नैरेटर उपलब्ध होगा। यह पुरुष और स्त्री, दोनों की आवाजों में बोल सकता है और इन आवाजों से किसी एक का चुनाव आप खुद कर सकते हैं।
  • नैरेटर ज्यादातर सॉफ्टवेयरों में मौजूद टेक्स्ट को पढ़कर सुना सकता है, जैसे वर्ड, एक्सेल और पावरपॉइंट। इतना ही नहीं, वह वेबसाइटों की सामग्री को भी पढ़ सकता है।
  • नैरेटर की बहुत-सी कीबोर्ड कमांड हैं जिनका इस्तेमाल करके बहुत तेजी से अपनी इच्छा के लिंक या जगह तक पहुंच सकते हैं।
  • नैरेटर की कमांड के जरिए एमएस वर्ड की फाइल का भी मनचाहे ढंग से इस्तेमाल कर सकते हैं। मसलन, सिर्फ शीर्षकों को सुनना या सिर्फ पैराग्राफ को सुनना, किसी शब्द की स्पेलिंग सुनना या फिर पूरी की पूरी फाइल के टेक्स्ट को सुनना।
नैरेटर के प्रमुख कमांड्स
नैरेटर को शुरू या बंद करें: Windows + Enter
नैरेटर की सारी कमांड्स जानने के लिए: Caps Lock + F1

Scan Mode
नैरेटर में स्कैन मोड भी आता है, इसके कमांड्स ज्यादा आसान हैं। इसे ऐक्टिव करने के लिए Caps Lock + Space बटन दबाएं। स्कैन मोड ऐक्टिव होने पर की-बोर्ड के अप-डाउन और लेफ्ट-राइट बटनों के जरिए ही अपने दस्तावेजों में आगे-पीछे बढ़ सकते हैं। अगर कोई बटन, लिंक आदि दबाना चाहे या कोई ऐप्लिकेशन खोलना चाहे तो स्पेस बटन या एंटर बटन का इस्तेमाल कर सकता है।

Magnifier
यह टूल स्क्रीन पर दिखने वाली हर चीज को बड़े आकार में दिखाता है, भले ही वह टेक्स्ट हो, चित्र हो, विडियो हो या कुछ और। यह ऐसा लगेगा कि जैसे अपने हाथ में एक पावरफुल लेंस लेकर कंप्यूटर की स्क्रीन को देख रहे हैं। अगर किसी की आंखें बहुत ज्यादा कमजोर हैं तो इससे मुश्किलें काफी आसान हो सकती हैं। मैग्निफायर भी नैरेटर की ही तरह विंडोज के Ease of Access Center का हिस्सा है। इसे शुरू करने के तरीके:

1.Windows + Plus की के जरिए या
2. Control Panel में Ease of Access Center में मौजूद Magnifier लिंक के जरिए या
3. टास्कबार के सर्च बॉक्स में Magnifier लिखें। अब दिखने वाले लिंक को क्लिक करें।

मैग्नीफायर के तीन अलग-अलग रूप हैं
Full Screen Mode: इस मोड में कंप्यूटर की पूरी स्क्रीन का आकार बड़ा करके दिखाया जाता है।
Lens Mode: इस मोड में स्क्रीन पर चौकोर आकार का एक लेंस दिखता है और आपका माउस स्क्रीन पर जहां-जहां जाता है, उस हिस्से को लेंस के भीतर बड़े आकार में दिखाया जाता है। आप चाहें तो लेंस का आकार घटा-बढ़ा सकते हैं।
Docked Mode: इसका मतलब एक ऐसे लेंस से है जो स्क्रीन के एक तरफ चिपका (डॉक्ड) रहता है- ऊपर, नीचे, दाएं या बाएं। माउस करसर के आसपास मौजूद टेक्स्ट या चित्रों को बड़े आकार में दिखाया जाता है।
टिप: अगर आप सामने दी गई चीजों को और बड़ा या छोटा करना चाहते हैं तो Windows + Plus या Windows + Minus बटन का प्रयोग करें।

High Contrast
कलर ब्लाइंडनेस का शिकार लोगों या बहुत कमजोर नजर वाले लोगों को ज्यादा रंगीन या विविधतापूर्ण तस्वीरों को देखने में तकलीफ होती है। विंडोज में हाई कंट्रास्ट का प्रयोग कर अपनी स्क्रीन को गिने-चुने सामान्य रंगों या ब्लैक एंड वाइट तक सीमित कर सकते हैं और उनके काम करने के लिए अनुकूल माहौल बना सकते हैं। हाई कंट्रास्ट को ऐक्टिव करने के लिए इस तरह आगे बढ़ें:

1. Windows + U की दबाकर Ease of access पर जाएं।
2. वहां लेफ्ट साइड में मौजूद High Contrast लिंक पर क्लिक करें।
3. अब खुलने वाली विंडो में Choose a theme शीर्षक के नीचे दिए बॉक्स को क्लिक करें। इसमें कई विकल्प दिखाए जाएंगे, जिनमें से अपनी सुविधा के लिहाज से कोई एक थीम चुनें।
ये थीमें हैं: हाई कंट्रास्ट नंबर 1, हाई कंट्रास्ट नंबर 2, हाई कंट्रास्ट ब्लैक और हाई कंट्रास्ट व्हाइट। थीम चुनने के बाद Apply बटन दबाएं।
4. कंप्यूटर स्क्रीन के रंग तुरंत उस थीम के हिसाब से बदल जाएंगे।

Mouse: जिनकी नजरें कमजोर हैं, उन्हें माउस का कर्सर देखने या उसकी रफ्तार को समझने में दिक्कत आ सकती है, ऐसे लोग पहले Windows + U दबाएं, फिर लेफ्ट साइड में मौजूद Mouse में जाकर अपनी जरूरत के हिसाब से माउस कर्सर का आकार बढ़ा-घटा सकते हैं या उसकी मोटाई को भी बदल सकते हैं। वे चाहें तो जहां रंगीन माउस का चित्र दिया गया है वहां से किसी रंग का चुनाव कर सकते हैं। तब माउस पॉइंटर का आकार बड़ा होने के साथ-साथ रंगीन भी दिखाई देगा। इससे माउस पाइंटर को पहचानना आसान हो जाएगा।
Cursor: जैसे आपने माउस पाइंटर का आकार बढ़ाया उसी तरह से टेक्स्ट करसर को भी मोटा या पतला किया जा सकता है और उसका रंग बदला जा सकता है। इसके लिए Ease of Access Center में लेफ्ट साइड में Cusor' बटन पर क्लिक करें। अब वहां नीचे दिए स्लाइडर को राइट साइड में जितना बढ़ाएंगे, टेक्स्ट करसर की मोटाई उतनी ही बढ़ जाएगी।
Office Theme: कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित लोगों को स्क्रीन का सफेद रंग परेशान कर सकता है। वे वर्ड, एक्सेल या पावरपॉइंट जैसे सॉफ्टवेयरों के इंटरफेस और वर्क एरिया का रंग बदलने के लिए थीम का इस्तेमाल कर सकते हैं। उन्हें स्लेटी रंग की थीम काफी अनुकूल महसूस होगी। पूरी थीम न बदलना चाहें तो आप सिर्फ बैकग्राउंड कलर भी बदल सकते हैं। ऑफिस के नए संस्करणों (ऑफिस 365, ऑफिस 2016, ऑफिस 2019 और ऑफिस 2021) में इन सुविधाओं को ऐक्टिव करने के लिए File > Account > Office Theme या Office Background में जाएं और मनचाहे रंग को चुन लें।
Keyboard शॉर्टकट: कोई भी ऑफिस ऐप्लिकेशन (वर्ड, एक्सेल, पावरपॉइंट आदि) खोलकर अपने कंप्यूटर की Alt की को कुछ पल के लिए दबाएं। ऑफिस के रिबन मेनू में कुछ अक्षर हाइलाइट होकर दिखाई देंगे। ये की-बोर्ड शॉर्टकट हैं जिनका इस्तेमाल Alt की के साथ करते हुए माउस के बिना भी काम कर सकते हैं। जैसे M की को दबाएंगे मार्जिन ऑप्शन खुल जाएगा।

मोबाइल में Settings

iPhone या iPad में
  • इसके Accessibility सेक्शन में कुछ दूसरे फीचर भी मिलेंगे, जैसे ज़ूम करने की सुविधा, डिस्प्ले और टेक्स्ट साइज को कस्टमाइज करने की सुविधा, मोशन को कंट्रोल करने की सुविधा ताकि स्क्रीन पर आने वाले तेज रफ्तार एनिमेशन आपको परेशान न करें।
  • यहां पर वॉयस ओवर नाम का स्क्रीन रीडर उपलब्ध है। इसे ऐक्टिव करने के लिए:
  • पहले Settings में और फिर थोड़ा नीचे स्क्रॉल करके Accessibility में जाएं। अब VoiceOver पर क्लिक करें।
  • नई विंडो में दिखने वाले ऑन-ऑफ बटन को टैप करके वॉयस ओवर को ऐक्टिव कर लें।
  • अगर उसे बंद करना हो तब भी यही प्रक्रिया अपनाएं। जल्दी-जल्दी डबल टैप करके ऑन-ऑफ बटन को ऑफ कर दें।

Seeing AI:
यह माइक्रोसॉफ्ट का ऐप्लिकेशन है, हालांकि जिसे सिर्फ आईफोन और आईपैड के लिए जारी किया गया है, एंड्रॉयड मोबाइल के अभी नहीं। यह दृष्टिहीनों के लिए एक तरह से कैमरे का काम करता है जो कुछ भी मोबाइल के कैमरे के सामने हो, उसके बारे में बोल कर बताता है। यह आपके दस्तावेजों को पढ़ सकता है। आसपास मौजूद लोगों के बारे में बता सकता है, करंसी नोट पहचान सकता है, हैंडराइटिंग भी पढ़ सकता है, रंगों को पहचान सकता है, बार कोड पढ़कर डिस्क्रिप्शन सुना सकता है और आपके आसपास के माहौल के बारे में भी जानकारी दे सकता है। कम नजर वालों के लिए यह बेहद उपयोगी है। इसे इस्तेमाल करने के लिए: ऐप स्टोर पर जाकर सर्च में Seeing AI ऐप सर्च करें। ऐप मिल जाने पर इंस्टॉल करें। अब ऐप को खोलें और उसमें दिए गए बटनों का इस्तेमाल करें। अगर कोई दस्तावेज पढ़ना है तो शॉर्ट टेक्स्ट बटन दबाएं। ऐप उस दस्तावेज को पढ़कर सुनाने लगेगा। इससे काफी मदद मिल जाती है।

Android मोबाइल में
जिस तरह विंडोज में नैरेटर से स्क्रीन रीडर आता है उसी तरह से एंड्रॉयड में 'टॉक बैक' नामक सुविधा उपलब्ध है। यह आपकी स्क्रीन पर मौजूद टेक्स्ट और तस्वीरों के बारे में बोलता है।
1. Talk Back चालू या बंद करने के लिए:
अपने स्मार्टफोन में Settings खोलें (किसी-किसी मोबाइल में इसके बाद Additional Settings में जाना होगा)।
यहां पर नीचे स्क्रॉल करके Accessibility चुनें और फिर Talk Back।
Talkback बटन को off से on
अब फोन की स्क्रीन को पढ़कर सुनाया जाने लगेगा।
2. एंड्रॉयड पर फॉन्ट का आकार बढाएंः
अपने फोन में Settings खोलें।
पहले Accessibility और फिर Text and display पर टैप करें
फिर Font size पर टैप करें।
3. एंड्रॉयड पर मैग्निफायरः
स्क्रीन पर सभी चीजों को बड़े आकार में देखने के लिए मैग्निफायर का इस्तेमाल करें। इसके लिए Settings में जाएं: पहले Accessibility और फिर Magnification पर टैप करें।
अब इन तीन में से एक को चुनें जिसका बाद में आप एक कमांड के रूप में इस्तेमाल कर सकेंगे: n Accessibility Button n Hold Volume Keys n Triple-Tap Screen। इनमें से जिस विकल्प को आप चुनेंगे, आगे उसका इस्तेमाल करके मैग्निफायर को चालू या बंद कर सकेंगे। बेहतर है कि दूसरा विकल्प चुनें जो आसान है। इसके तहत सिर्फ दोनों वॉल्यूम-की को कुछ सेकंड दबाकर रखना है।

जिन्हें सुनने में है दिक्कत
ऐसे लोग जिन्हें सुनने की परेशानी है, वे कंप्यूटर के संदेशों को ध्वनि संकेतों की जगह टेक्स्ट संदेशों के रूप में देख सकते हैं। मिसाल के तौर पर, जब विंडोज शुरू होती है तो एक खास आवाज आती है। इसी तरह जब किसी डॉक्यूमेंट के प्रिंट होते समय भी ध्वनि संकेत आते हैं। अपने कंप्यूटर पर ध्वनि संकेतों को टेक्स्ट संदेशों में बदलने के लिए इस तरह आगे बढ़ें:
अब जब भी आपके सिस्टम में कोई आंतरिक ध्वनि आएगी तब आपकी स्क्रीन एक बार फ्लैश होगी। आप समझ जाएंगे कि कंप्यूटर में कोई आंतरिक संकेत आया है।
1. Settings> Ease of Access Center>Audio पर जाएं
2. अब Show Audio Alert Visually पर क्लिक करें
3. वहां दिए ऑप्शंस में से किसी एक को चुनें, जैसे Flash the active window

माइक्रोसॉफ्ट Teams में लाइव कैप्शन
अगर आप माइक्रोसॉफ्ट टीम्स पर किसी विडियो कॉल को अटेंड कर रहे हैं तो लाइव कैप्शंस की सुविधा का इस्तेमाल कर सकते हैं। अब लोगों द्वारा कही जाने वाली बातें आपको स्क्रीन पर लिखी हुई दिखेंगी जिन्हें आप पढ़ सकते हैं। इसके लिए ऐसा करें:
  • विडियो कॉल के दौरान राइट साइड ऊपर तीन बिंदुओं वाले सेटिंग्स में जाएं
  • अब खुलने वाले मेनू में लाइव कैप्शंस पर क्लिक करें।
  • लोगों द्वारा कही गई बातें कैप्शन के रूप में स्क्रीन पर दिखाई देने लगेंगी। हर कैप्शन के साथ उसे बोलने वाले व्यक्ति का नाम भी दिखाई देगा।
एंड्रॉयड में लाइव कैप्शन
  • अपने वॉल्यूम बटन को दबाएं।
  • अब वॉल्यूम कंट्रोल दिखाई देंगे। इनमें Live Caption Subtitles पर टैप करें।
  • अब आपके स्मार्टफोन में चलने वाले वीडियो के नीचे कैप्शन लिखे हुए दिखाई देने लगेंगे।

हाथों से जुड़ी दिक्कतें होने पर

Dictate
माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस के नए संस्करण या ऑफिस 365 में Home टैब में डिक्टेट बटन दिया गया है। इस पर माइक्रोफोन का निशान बना है। इसे क्लिक करें और बोलना शुरू कर दें। आपकी बातें सामने मौजूद डॉक्यूमेंट में टाइप होने लगेंगी। आप चाहें तो बटन को क्लिक करने के बाद दिखने वाले सेटिंग्स आइकन (गियर) पर क्लिक करके अपनी बोली हुई भाषा को (हिंदी समेत) बदल भी सकते हैं।

On-Screen Keyboard
जिन लोगों की उंगलियां कंपकंपाती हैं या जिन्हें सामान्य की-बोर्ड से टाइप करने में दिक्कत होती है, वे विंडोज में मौजूद ऑन स्क्रीन की-बोर्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह आपकी स्क्रीन पर उभरने वाला की-बोर्ड है, जिसका इस्तेमाल माउस के जरिए टाइप करने के लिए किया जा सकता है। जिन्हें माउस के बटन दबाने में भी दिक्कत होती है, वे इसमें ऐसी सेटिंग्स कर सकते हैं कि किसी की पर माउस को कुछ देर तक स्थिर रखने भर से वह अक्षर टाइप हो जाए। ऑन स्क्रीन की-बोर्ड में एकाध अक्षर टाइप करने पर पूरे शब्द भी सुझाए जाते हैं जो क्लिक करने पर टाइप हो जाते हैं। जाहिर है कि ऑनस्क्रीन की-बोर्ड उनका अच्छा सहयोगी है।

ऑन स्क्रीन कीबोर्ड को इस तरह ऐक्टिव करें
1. Control Panel/Settings में जाकर Ease of Access > Keyboard पर जाएं।
2. अब Turn on On Screen Keyboard पर क्लिक करें।

Sticky Keys: आप जानते हैं कि विंडोज में कंट्रोल, शिफ्ट या ऑल्ट कुंजियों के साथ कुछ सामान्य की-बोर्ड को दबाकर शॉर्टकट कमांड्स दी जा सकती हैं, जैसे कंट्रोल + C से सामने सलेक्ट किए गए टेक्स्ट को कॉपी करना। इसी तरह अंग्रेजी के कैपिटल लेटर्स को टाइप करने लिए पहले शिफ्ट की दबानी पड़ती है और उसके बाद संबंधित अक्षर। कमांड शॉर्टकट के रूप में इस्तेमाल करने के लिए जरूरी है कि इन दोनों कुंजियों को तेज रफ्तार से एक साथ दबाया जाए। लेकिन बहुत से बुजुर्गों और डिसेबल्ड लोगों के लिए यही मुश्किल हो जाता है क्योंकि उनकी उंगलियां बहुत धीमी चलती हैं। स्टिकी कीज नामक फीचर का इस्तेमाल कर आप इस अनिवार्यता से मुक्त हो सकते हैं। तब कंट्रोल, शिफ्ट और ऑल्ट कुंजियों को दबाने के बाद दूसरी कुंजी काफी देर बाद दबाए जाने पर भी कमांड सामान्य तरीके से काम करती है। इसे ऐक्टिव करने के लिए Windows + U > Keyboard में जाकर Sticky Keys को सलेक्ट कर लें।
-Toggle Keys: इस फीचर को सक्रिय करने पर कंट्रोल, शिफ्ट या ऑल्ट कुंजियों के दबाने पर एक टोन सुनाई देती है। इसे ऐक्टिव करने के लिए Windows + U > Keyboard में जाकर Toggle Keys को सलेक्ट कर लें।
- Filter Keys: जिनकी उंगलियां कंपकंपाती हैं, टाइप करते समय उनसे एक ही कुंजी के कई बार दब जाने की संभावना रहती है। फिल्टर कुंजी को ऐक्टिव करने पर कंप्यूटर किसी भी अक्षर को सिर्फ एक ही बार टाइप करेगा, बार-बार नहीं।

ऑटिजम / डिस्लेक्सिया
ऑटिज्म में बच्चों के लिए समझना, पढ़ना-लिखना, बोलना मुश्किल होता है। डिस्लेक्सिया में लिखी हुई या टाइप की हुई चीजें सही दिखाई नहीं देतीं। ऐसी ही कुछ और विकलांगताएं भी हैं जो मस्तिष्क के विकास, स्वभाव या सामाजिकता से जुड़ी हुई हैं। ऐसे लोगों के लिए भी तकनीक में अनेक सुविधाएं मौजूद हैं।

Immersive Reader:
नए ऑफिस ऐप्लिकेशनों, माइक्रोसॉफ्ट टीम्स, वन नोट और एज ब्राउजर आदि में कलर ब्लाइंडनेस और कमजोर नजर वाले लोगों की सुविधा के लिए इमर्सिव रीडर सुविधा दी गई है। इसे ऐक्टिव करने पर आपकी स्क्रीन पर सिर्फ टेक्स्ट रह जाता है और मेन्यू आदि स्क्रीन से हटा लिए जाते हैं ताकि कोई भी चीज आपका ध्यान न बंटा सके। इसे ऐक्टिव करने के लिए View > Immersive Reader पर क्लिक करें। अब स्क्रीन पर बहुत छोटी-सी मेन्यू बार रह जाएगी जिसमें सिर्फ File, Tools और View विकल्प दिखेंगे। अगर टेक्स्ट के अक्षर छोटे हैं तो नीचे दाईं तरफ दिए स्लाइडर को आगे खिसकाकर उनका आकार बढ़ाया जा सकता है। याद रहे, इससे मूल टेक्स्ट की फॉर्मेटिंग में कोई फर्क नहीं पड़ता, सिर्फ स्क्रीन पर दिखाने के लिए टेक्स्ट का आकार जूम किया जाता है।
जैसे आप चाहें तो ऐसी कमांड चुन सकते हैं जिससे सिर्फ एक लाइन का टेक्स्ट दिखाई देगा, बाकी सारा छिप जाएगा। । ऐसा इसलिए ताकि आप और भी ज्यादा अच्छी तरह स्क्रीन पर फोकस कर सकें। आप चाहें तो एक की बजाए तीन या पांच लाइनें भी चुन सकते हैं।
एक और फीचर है अक्षरों के बीच या शब्दों के बीच स्पेस को बढाना। जो लोग फिर भी इस टेक्स्ट को न पढ़ पाएं तो यहां पर उपलब्ध टेक्स्ट को पढ़कर सुनाने की सुविधा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

हिल-डुल या बोल भी नहीं सकते
माइक्रोसॉफ्ट ने पर्सनल कंप्यूटरों के लिए आई-कंट्रोल नामक सुविधा का विकास किया है जो अपनी आंखों से ही टाइप करने की सुविधा देती है। लेकिन यह सुविधा महज टाइपिंग तक सीमित नहीं है। असल में आप अपनी आंखों से ऐसा ज्यादातर काम कर सकते हैं जो फिलहाल अपनी उंगलियों और माउस के जरिए करते हैं। अगर कोई महज आंखों से देखकर टाइप करना चाहते हैं तो अपने विंडोज-10 कंप्यूटर में इसे एक्टिवेट कर लीजिए। इस सुविधा के लिए एक छोटे-से हार्डवेयर की जरूरत पड़ेगी, जिसे टोबी (Tobii) या आई ट्रैकिंग कहते हैं। यह भारत में भी उपलब्ध है। इसकी कीमत 15 हजार रुपये के लगभग है।
इस हार्डवेयर को डेस्कटॉप या लैपटॉप कंप्यूटर में इंस्टॉल करने के बाद विंडोज के कंट्रोल पैनल में जाना है। यह सिलसिला कुछ यूं चलेगा- Start > Settings > Ease of Access > Eye control पर जाकर Turn on eye control पर क्लिक करें। ऐसा करने पर आपकी स्क्रीन पर लॉन्च पैड ऐक्टिव हो जाएगा। यह स्टार्ट पैनल जैसा ही एप्लिकेशन है जिसमें बहुत सारे आइकन दिखाई देते हैं और किसी आइकन पर कुछ क्षणों के लिए नजरें टिकाकर वही काम कर सकते हैं जो माउस या की-बोर्ड से करते हैं। जैसे विंडोज के स्टार्ट बटन वाले आइकन पर कुछ पल नजर टिकाइए तो स्टार्ट पैनल खुल जाएगा।

कुछ जरूरी गैजेट्स

Smart Cane
आईआईटी दिल्ली ने पूरी तरह या कम दिखने की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए एक स्मार्ट केन (छड़ी) विकसित किया है जो अल्ट्रासोनिक तकनीक का इस्तेमाल करता है और यह तीन मीटर दूर तक मौजूद चीजों के बारे में एक खास वाइब्रेशन के जरिए सचेत कर देता है। सामान्य केन का इस्तेमाल करने वाले दृष्टिबाधित अपने घुटनों तक की ऊंचाई की चीजों को ही छू पाते और समझ पाते हैं लेकिन यह केन उससे ज्यादा ऊंचाई पर आने वाली चीजों, रुकावटों और लोगों के बारे में भी सतर्क कर देता है। इंसान रुकावट के जितना करीब पहुंचता है, वाइब्रेशन उतना ही तेज होता चला जाता है।

Adaptive Controller
माइक्रोसॉफ्ट ने Xbox पर गेम खेलने के शौकीन डिसेबल्ड लोगों के लिए एक एडेप्टर बनाया है यानी कि गेम खेलने के लिए हाथों में इस्तेमाल की जाने वाली डिवाइस। यह बड़े आकार की है जिसमें दो बड़े-बड़े बटन मौजूद हैं। साथ ही इसके कई अटैचमेंट भी आते हैं जिनका इस्तेमाल हाथों, पांवों, कोहनी आदि से भी किया जा सकता है। इनको गेम में कमांड देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसे आगे बढ़ना, पीछे हटना या घूंसा मारना। मतलब यह कि अब आप गेम खेलने के लिए उंगलियों पर निर्भर नहीं हैं बल्कि बहुत-से तरीकों से गेम को कंट्रोल कर सकते हैं।

Braille Reader
तिरुवनंतपुरम मेंं इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नॉलॉजी के छात्रों ने एक उपकरण बनाया है जो छपे हुए अक्षरों को ब्रेल लिपि में बदल देता है। इस उपकरण को छपे हुए टेक्स्ट के ऊपर रखा जाता है और उसके बाद इसकी ऊपरी सतह पर ब्रेल के संकेत उभर जाते हैं। जिन्हें देखने में परेशानी है, वे इन संकेतों को अपनी उंगलियों से पढ़ सकते हैं। इसके जरिए किताब या अखबार को भी पढ़ा जा सकता है।

TurnPlus
बेंगलुरु के बिजनेसमैन आनंद कुतरे ने कारों और दूसरे वाहनों को डिसेबल्ड लोगों के अनुकूल बनाने के लिए एक सिस्टम बनाया है जिसका नाम है- टर्न प्लस। इसके तहत कार की सीट में ऐसा मैकेनिजम फिट किया जाता है कि अब वह फिक्स नहीं रहती बल्कि उसे 90 डिग्री के कोण पर घुमाया जा सकता है। सीट को लेफ्ट या राइट साइड घुमाने पर शारीरिक डिसेबिलिटी से प्रभावित इंसान भी उस पर आसानी से बैठ सकता है और फिर सीट को वापस अपनी जगह पर एडजस्ट कर दिया जाता है।

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Omicron In India: हरी सब्जियों और मौसमी फलों का सेवन, 30-35 मिनट धूप...ओमीक्रोन से खुद को बचाने के तरीके

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नई दिल्ली
कोरोना के खौफ का जो सिलसिला 2020 के मार्च-अप्रैल से शुरू हुआ था, वह बीच के कुछ महीनों में धीमा जरूर पड़ा लेकिन ओमीक्रोन वेरियंट आने के बाद दोबारा दस्तक देने लगा है। ऐसे में सवाल कई हैं: क्या ओमीक्रोन इतना खतरनाक है कि इससे डरा जाए, खतरनाक कहेंगे किसे, यह बार-बार नया वेरियंट कहां से आ जाता है, भारत में यह कितना असर डाल पाएगा? और ऐसे ही कितने सवाल जेहन में उठते रहते हैं। एक्सपर्ट्स से बात करके इन सवालों के जवाब दे रहे हैं लोकेश के. भारती

5 सबसे खास बातें
1. ओमीक्रोन वेरियंट कितना खतरनाक हो सकता है, यह ठीक-ठीक बताने के लिए हमारे पास पर्याप्त डेटा नहीं है। 1 से 2 हफ्ते में इस बात का पता लग जाएगा। लेकिन हमारी तैयारी सिर्फ ओमीक्रोन के लिए ही नहीं होनी चाहिए क्योंकि आने वाले समय में ओमिक्रॉन जैसे दूसरे कई वेरियंट आ सकते हैं। इसलिए अपनी इम्यूनिटी को मजबूत करना सबसे जरूरी है। एक एनालिसिस यह भी है कि साउथ अफ्रीका में उन लोगों को ओमिक्रॉन ज्यादा परेशान नहीं कर पाया जिन्हें पहले कोरोना हो चुका था और नेचरल इम्यूनिटी मिल चुकी है। इसी आधार पर भारत के लिए भी अनुमान लगाया जा रहा है कि अपने देश में भी डेल्टा और डेल्टा प्लस वेरियंट की वजह से यहां भी लोगों को नेचरल इम्यूनिटी काफी मिल चुकी है।

2.यह भी मुमकिन है कि ओमीक्रोन ऐक्टिव ज्यादा हो और इसके गंभीर होने की आशंका कम हो। वैसे सिर्फ ओमीक्रोन के स्पाइक प्रोटीन में ही 30 से ज्यादा म्यूटेशंस हुए हैं। पिछले वेरियंट की तुलना में इसके ऐसे रिसेप्टर से चिपकने की क्षमता बढ़ गई है।

3. इम्यूनिटी को मजबूत करने के लिए हर दिन 45 से 60 मिनट की फिजिकल ऐक्टिविटी जरूर करें। शरीर में विटामिन्स की कमी न हो इसके लिए रोजाना 2 कटोरी हरी सब्जियां और 2 मौसमी ताजे फल जरूर खाएं। साथ ही रोजाना 35 से 40 मिनट धूप का सेवन करें।

4. मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को भूले नहीं। यह वायरस के साथ पलूशन से भी बचाव करता है। साथ ही दमा और टीबी जैसी बीमारी में भी मास्क काम आता है।

5. वैक्सीन लेने से शरीर के अंदर ऐंटिबॉडी का निर्माण होता है। यह नाक या मुंह के पास कोई छलनी या फिल्टर तैयार नहीं करता कि कोई वायरस या बैक्टीरिया अंदर जा ही न सके। इसलिए यह सोच लेना कि वैक्सीनेशन इंफेक्शन को रोक सकता है, गलत है। हां, वैक्सीनेशन इंफेक्शन से होने वाले लक्षण को गंभीर होने से जरूर रोक सकता है।

पहले समझते हैं बेसिक बातें

क्या है कोरोना वायरस में बार-बार होने वाला बदलाव?
बदलाव यानी म्यूटेशन। ऐसा नहीं है कि यह बदलाव सिर्फ वायरस में ही होता है। कैंसर होना भी अपने आप में एक तरह का म्यूटेशन है। फर्क सिर्फ इतना है कि कैंसर की वजह से हम बीमार होते हैं और वायरस म्यूटेशन अपने बचाव के लिए करता है। कोरोना वायरस में भी यही हुआ है। इंसान के शरीर में जब इम्यूनिटी डिवेलप होने लगती है, चाहे वह नेचरल से हो या वैक्सीन से बनने वाली तो इससे पार पाना वायरस के लिए मुश्किल हो जाता है। ऐसे में खुद को बचाए रखने के लिए कोरोना अपना रंगरूप बदलने लगता है। अब तक कोरोना में कई हजार म्यूटेशन हो चुके हैं, लेकिन ज्यादातर ऐसे म्यूटेशन थे जो जल्द ही अपने आप खत्म हो गए। हां, डेल्टा, डेल्टा प्लस और ओमिक्रॉन जैसे कुछ मजबूत वेरियंट्स लंबे समय के लिए रह जाते हैं और हमारे लिए समस्या पैदा कर देते हैं। अब तक कोरोना के डेल्टा प्लस वेरियंट में सबसे ज्यादा 25 म्यूटेशन हुए थे, लेकिन ओमिक्रॉन में 50 से ज्यादा म्यूटेशन हुए हैं, जिनमें से 30 से ज्यादा म्यूटेशन तो सिर्फ इसके स्पाइक प्रोटीन के स्ट्रक्चर में ही हुए हैं। कहा जा रहा है कि इसी वजह से यह ज्यादा जल्दी इंफेक्शन फैलाता है।

कोरोना वायरस में म्यूटेशन का मतलब क्या है?
कोरोना वायरस सार्स फैमिली का वायरस है। इसी फैमिली का फ्लू भी है। इस फैमिली की हिस्ट्री रही है ज्यादा म्यूटेशन की। यही कारण है कि डॉक्टर और अस्पताल के दूसरे स्टाफ को हर साल फ्लू का इंजेक्शन लगाने के लिए कहा जाता है। कोरोना में भी कई वेरियंट्स बने हैं। डेल्टा, डेल्टा प्लस और अब ओमिक्रॉन। ऐसा नहीं है कि इससे कोरोना का मूल शरीर बदल गया। दरअसल, वायरस का पूरा शरीर न्यूक्लिक एसिड (डीएनए या आरएनए) यानी जीनोम और प्रोटीन का बना होता है। डीएनए या आरएनए पर जीन्स होते हैं जो सभी जेनेटिक जानकारियां एक वायरस से दूसरे वायरस में पहुंचाती हैं। यही काम डीएनए और आरएनए का हमारे शरीर में भी होता है। जब डीएनए या आरएनए में बदलाव होता है तो वायरस के प्रोटीन वाले हिस्से में भी बदलाव होता है।

क्या है जीनोम सीक्वेंसिंग?
जब कोई वैज्ञानिक डीएनए या आरएनए को समझकर वायरस या उस जीव में हुए परिवर्तन को समझना चाहता है तो उसे ही जीनोम सीक्वेंसिंग कहते हैं। सीधे कहें तो यह एक तरह से वायरस का बायोडेटा होता है। ओमिक्रॉन के मामले में म्यूटेशंस के बारे में जो जानकारी आई है, वह उसके जेनेटिक मटीरियल आरएनए की जीनोम सीक्वेंसिंग के बाद ही आई है। इसी से पता चला है कि इसमें कितने म्यूटेशंस हुए और कहां-कहां हुए। कोरोना समेत जितने भी वायरस के नए स्ट्रेन या वेरियंट्स आते हैं, उन सभी की जानकारी जीनोम सीक्वेंसिंग से ही आती है।
कहां-कहां होती है जीनोम सीक्वेंसिंग:
हमारे देश में जनसंख्या के हिसाब से जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए सेंटरों की संख्या कम है।

कुछ खास केंद्रों के नाम हैं:
IGIB: इंस्टिट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायॉलजी, दिल्ली
NIBMG: नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स, कल्याणी, पश्चिम बंगाल
CSMB: सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्युलर बायॉलजी, हैदराबाद
ILS: इंस्टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज, भुवनेश्वर
NIV: नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरॉलजी, पुणे

कोरोना पहले डेल्टा और अब ओमीक्रोन कैसे बन गया?
जहां तक ओमीक्रोन के नाम रखने की बात है तो इसमें कुछ पेंच है। ओमिक्रॉन को वैज्ञानिक पहचान के लिए B.1.1.529 कहा गया है। इसमें पहला अक्षर है B इसके पैदा होने की जगह बताता है। यहां B का मतलब बोत्स्वाना (दक्षिणी अफ्रीकी देश) से है। वहीं 1.1.529 इसके जीनोम सिक्वेंसिंग को बताता है कि कोरोना वायरस के आरएनए और उसके स्पाइक प्रोटीन में कहां-कहां पर म्यूटेशन हुआ है। यह वैज्ञानिकों के समझने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग का संकेत है। आम लोगों के समझने के लिए वायरस के नाम ग्रीक भाषा के अल्फाबेट के अनुसार रखे जाते हैं। अभी तक डेल्टा या डेल्टा प्लस वेरियंट तक नाम रखे गए हैं। इसके बाद ग्रीक अल्फाबेट NU की बारी थी। लेकिन यह नाम इसलिए नहीं रखा गया क्योंकि लोगों में यह भ्रम हो सकता था कि यह कोरोना का वेरियंट न होकर कोई न्यू (NU) यानी नया वायरस है। इसके बाद का अल्फाबेट XI है। इसे भी इसलिए नहीं चुना गया क्योंकि यह चीन के राष्ट्रपति (शी Xi जिनपिंग) से मिलता हुआ नाम है। ओमीक्रोन का नंबर इसके बाद ही आता है। इसलिए इसी नाम को चुना गया। अगर इसके बाद भी कोई वैरियंट आया तो मुमकिन है कि उसका नाम PI (पाई) रखा जाए क्योंकि ओमिक्रॉन के बाद का ग्रीक अल्फाबेट PI है।

यह नया वेरियंट क्या है? क्या यह आगे भी आएगा?
वेरियंट का मतलब वैरायटी से है। वायरस में जितनी बार म्यूटेशन होगा, वह नया वेरियंट कहलाएगा। नया वेरियंट पहले आ चुके वेरियंट से ज्यादा खतरनाक होगा या कम, यह उसके इंफेक्शन रेट और शरीर को गंभीर अवस्था तक पहुंचाने की क्षमता पर निर्धारित होगा।

ओमिक्रॉन को पकड़ने का टेस्ट क्या है? क्या RT-PCR जांच काम करेगी?
अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि RT-PCR टेस्ट ओमिक्रॉन का पता नहीं लगा सकता। इस टेस्ट में कोरोना को पहचानने का तरीका अमूमन उसके ऊपर मौजूद स्पाइक प्रोटीन ही होता है, लेकिन प्रोटीन में 30 से ज्यादा म्यूटेशंस के बाद ओमिक्रॉन ने अपने स्पाइक प्रोटीन की संरचना में काफी बदलाव कर लिया है। हां, इस बात की आशंका ज्यादा है कि क्विक एंटिजन टेस्ट से शायद इसके बारे में पता न लग पाए।

ओमिक्रॉन से हमें कितना खतरा

क्या यह तेजी से फैलता है और क्या यह जानलेवा भी है?
ये दोनों ही सवाल अक्सर एक साथ पूछे जाते हैं जबकि दोनों में बहुत बड़ा फर्क है।
खतरनाक व जानलेवा: जब इंफेक्शन के बाद शख्स में गंभीर लक्षण उभरें और उसका इलाज घर पर न हो पाए। संक्रमित शख्स के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाए। उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़े और दूसरे गंभीर लक्षण भी उभरें, जैसे बहुत तेज बुखार जो सामान्य पैरासिटामॉल से न उतरे, बार-बार उल्टी हो तो उसे खतरनाक की श्रेणी में रख सकते हैं। अभी तक ओमिक्रॉन के मामले में खतरनाक जैसी बात सामने नहीं आई है और किसी की जान नहीं गई है।। इसके लक्षण भी डेल्टा वेरियंट जैसे ही हैं। हां, यह बहुत तेजी से इंफेक्शन जरूर फैलाता है। डेल्टा वेरियंट के मुकाबले यह 5 गुना ज्यादा संक्रामक है। डेल्टा से संक्रमित एक शख्स अगर 6-7 लोगों में इंफेक्शन फैलाता था तो ओमिक्रॉन से ग्रस्त शख्स करीब 30 लोगों तक इंफेक्शन फैला देता है। इसलिए WHO ने इसे Variants of Concern कैटिगरी में रखा है। वहीं यह भी मुमकिन है कि ओमिक्रॉन की वजह से उभरने वाले लक्षण माइल्ड यानी बहुत हल्के हों। चूंकि यह काफी तेजी से संक्रमण फैलाता है, इसलिए डेल्टा और डेल्टा प्लस के असर को यह कम या पूरी तरह खत्म कर दे, जो अब तक पूरी दुनिया में 99 फीसदी परेशानी के लिए जिम्मेदार हैं। मुमकिन है यह परेशानी के बजाय वरदान ही साबित हो जाए। ये सभी बातें अभी चल रहे रिसर्च का हिस्सा हैं। अंतिम रूप से कहने के लिए अभी और डेटा की जरूरत है।

तेजी से इंफेक्शन फैलाना: कोई वायरस तेजी से इंफेक्शन फैलाता है, इसका मतलब यह नहीं कि वह खतरनाक भी होगा। जब डेल्टा वेरियंट्स की वजह से अपने देश में इंफेक्शन फैला तो यह कुछ लाख लोगों के लिए खतरनाक था जबकि करोड़ों लोगों के लिए यह खतरनाक नहीं था। भले ही वे इंफेक्टेड हुए। उनकी RT-PCR रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई, लेकिन लक्षण कम गंभीर, बहुत कम या फिर बिलकुल भी नहीं आए।

जिन्हें वैक्सीन लग चुकी है, क्या उन्हें भी ओमिक्रॉन का खतरा है?
इंफेक्शन किसी को भी हो सकता है। चाहे उस शख्स की इम्यूनिटी कितनी भी अच्छी हो। हम किसी भी वायरस या बैक्टीरिया या फंगस (ऐसे बहुत छोटे बाहरी एजेंट जो शरीर में पहुंचते हैं, ऐंटिजेन कहलाते हैं। इन्हें खुली आंखो से देख नहीं पाते) को सांस के द्वारा शरीर के भीतर जाने से नहीं रोक सकते। वे गले तक की यात्रा और फिर फेफड़ों तक भी पहुंच सकते हैं। जब ऐसे शख्स की जांच की जाती है तो वह स्वाभाविक रूप से पॉजिटिव आता है, लेकिन पॉजिटिव आने से घबराना नहीं चाहिए। इसमें देखने वाली बात यह होती है कि फेफड़े तक पहुंचने में जब उस ऐंटिजेन की लड़ाई हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम से होती है तो हमारा शरीर उसे कितनी आसानी से हरा पाता है या उसे हराने में मुश्किल होती है। इस लड़ाई के दौरान शरीर में तमाम तरह के लक्षण उभरते हैं या नहीं? अगर लक्षण नहीं उभरते तो पॉजिटिव होने से भी कुछ नहीं होता। उसे सिर्फ आइसोलेशन में रहना चाहिए। इसलिए इस बात को जरूर समझना होगा कि वैक्सीन लेने वाला शख्स भी संक्रमित हो सकता है। अहम है उसे बीमार नहीं होना चाहिए।

बचे रहेंगे वायरस के वार से
किसी भी वायरस से बचने के लिए जो उपाय पहले से चले आ रहे है, वे ही अब भी लागू हैं और उम्मीद है आगे भी लागू रहेंगे। इन उपायों को हम 3 कैटिगरी में बांट सकते हैं:
1. वैक्सीनेशन पूरा करना
2. मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और साफ-सफाई का ध्यान सही ढंग से रखना
3. रुटीन और डाइट में सुधार करके अपनी इम्यूनिटी को मजबूत बनाए रखना

1. वैक्सीन की दोनों डोज लेना
हम उन चुनिंदा देशों में से एक हैं जिनके यहां वैक्सीन बनाई जा रही हैै, लेकिन अब भी हमारे यहां 33 फीसदी लोगों से भी कम को ही वैक्सीन की दोनों डोज लगी हैं। हां, पहली डोज लगवाने वालों की संख्या जरूर 127 करोड़ को पार कर चुकी है।

ऐंटिबॉडी मौजूद रहने से फायदा जरूर है
कई लोग यह सोचते हैं कि वैक्सीन लेने के बाद भी कोरोना हो सकता है या ओमिक्रॉन का इंफेक्शन हो सकता है तो वैक्सीन लगवाने का क्या फायदा। यह सोचना पूरी तरह गलत है। बोत्सवाना, साउथ अफ्रीका और घाना जैसे देशों में सबसे पहले ओमिक्रॉन के केस आए हैं। अब यह 29 देशों में फैल चुका है। अपने देश में भी इसकी गिनती शुरू हो चुकी है। इन देशों में देखा गया है कि जिन लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है या जिन्हें नेचरल इम्यूनिटी मिल चुकी है, उनके लिए ओमिक्रॉन का इंफेक्शन जानलेवा नहीं हुआ। अगर हम वैक्सीन ले लेते हैं तो यह पूरा न सही लेकिन कुछ हद तक भी हर तरह के कोरोना वेरियंट से सुरक्षा दे ही देती है।

अभी देश में 3 तरह की वैक्सीन उपलब्ध हैं:
1. कोवैक्सीन: पहली डोज और दूसरी डोज के बीच में 4 से 6 हफ्तों का फर्क रहना चाहिए।
2. कोविशील्ड: पहली डोज और दूसरी डोज के बीच में 12 से 16 हफ्तों का फर्क रहना चाहिए।
3. स्पूतनिक-V: पहली डोज से दूसरी डोज के बीच में 21 दिन का फर्क होना चाहिए।
नोट: इनके अलावा जायडस-कैडला, फाइजर आदि कंपनियों की वैक्सीन भी जल्द ही लोगों को सुलभ हो सकती है है।

2. मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग
इस साल जब कोरोना को लेकर स्थिति खराब हुई तो लोगों ने मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और साफ-सफाई का ध्यान रखना शुरू किया था। यह कई महीनों तक चला भी। लेकिन जैसे-जैसे लॉकडाउन में छूट देना शुरू किया गया, हमारे मास्क नाक से खिसककर ठुड्ढी और 6 फुट की दूरी 1 से 2 फुट में बदल गई। पहले जहां हर पॉकेट में सेनिटाइजर होता था और बार-बार उससे हाथ साफ करते थे। चप्पल और जूतों को गेट के बाहर ही उतारकर घर में प्रवेश करते थे। सबसे पहले बाथरूम में जाकर साबुन से कम से कम 20 सेकंड तक अच्छी तरह हाथ और पैर धोते थे। वे सब बातें हम भूल गए हैं, लेकिन एक बार फिर उन सब चीजों पर अमल करना जरूरी है। अगर कोरोना की गाइडलाइंस को हमने नहीं माना तो ओमिक्रॉन के अलावा भी दूसरे वेरियंट्स सामने आते रहेंगे और हमारे लिए चुनौती बनते रहेंगे। वैसे भी साफ-सफाई का ध्यान रखने से किसी का नुकसान तो होता नहीं, हां फायदा जरूर होता है।

3. इम्यूनिटी मजबूती के उपाय
- सुबह 40 मिनट से 60 मिनट तक फिजिकल ऐक्टिविटी जरूर करें। चाहें टहल लें। टहलते समय चाल 1 मिनट में 80 से 100 कदम जरूर होने चाहिए।
- 15 से 20 मिनट योग करें। इसमें आसन, अनुलोम-विलोम, कपालभाति और ध्यान जरूर शामिल हों।
- 10 से 15 मिनट योगासन करें। इसमें अनुलोम-विलोम, कपालभाति और ध्यान जरूर शामिल हों।
- ठंड का मौसम है तो काढ़ा पीना फिर से शुरू कर सकते हैं।

कितना लें काढ़ा
काढ़ा पीते रहें, हर दिन 30 से 40 ml से ज्यादा नहीं
पानी: 60 से 70 एमएल (1 कप), दूध: 60 से 70 एमएल (1 कप), तुलसी के पत्ते: 3, लौंग: 1, काली मिर्च: 1 दालचीनी: एक चुटकी पाउडर
चीनी या शक्कर: स्वाद के अनुसार, अगर डायबीटीज है तो न लें या वैद्य की सलाह से लें।
-अगर लौंग, दालचीनी और काली मिर्च ले रहे हैं तो मुलेठी कम कर दें। इन तीनों की जगह मुलेठी लेना चाहते हैं तो एक बार किसी वैद्य से जरूर बात कर लें। काढ़ा हर शख्स की परेशानी और उसकी जरूरतों के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए।
नोट: जिन्हें काढ़ा पचाने में परेशानी है, वे दूध और पानी में सिर्फ तुलसी का इस्तेमाल कर सकते हैं। वैद्य से भी बात कर लें। जिन्हें कडनी या लिवर की परेशान है, वह अपने डॉक्टर से पूछकर ही काढ़े का सेवन करें।
-काढ़े के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर kada लिखकर सर्च करें।

डाइट में विटामिन-C, B और जिंक वाली चीजें
कौन-सा फल लें: 1 बड़ा अमरूद (200 ग्राम) या 2-3 संतरे या मौसमी (300 ग्राम) या 4 टमाटर (250 ग्राम)। इन्हें हर दिन खा सकते हैं। इनसे विटामिन-सी मिल जाएगा। इनके अलावा हमारे भोजन में साग-सब्जी या फल 4 अलग-अलग रंगों के हों तो शरीर की जरूरी मिनरल या विटामिन की जरूरत पूरी हो जाती है। जैसे- लाल: टमाटर, हरा: अमरूद, मौसमी, पालक, लौकी आदि, पीला: पपीता, संतरा आदि। जिंक के लिए: नट्स (3 से 4 बादाम या 1 मुट्ठी रोस्टेड मूंगफली या 1 अखरोट)।

बात बूस्टर डोज की

क्या बूस्टर डोज लेने से फायदा होगा?
रिसर्च में यह बात सामने आई है कि कोरोना के खिलाफ हमने जो भी वैक्सीन ली है या फिर कोरोना इंफेक्शन की वजह से शरीर में नेचरल ऐंटिबॉडी बनी है उस ऐंटिबॉडी की लाइफ 8 से 10 महीने तक की होती है। पर बात यहीं खत्म नहीं होती। सच तो यह है कि हमारे शरीर में ऐंटिजेन (वायरस या बैक्टीरिया) आने पर 2 तरह की इम्यूनिटी बनती है।

1. ह्यूमोरल: जब शरीर में कोई वायरस या बैक्टीरिया पहुंचता है तो हमारे शरीर का इम्यून रिस्पॉन्स सक्रिय हो जाता है। इसी दौरान ऐंटिबॉडी का निर्माण होता है। जब हम ब्लड टेस्ट कराते हैं तो जो ऐंटिबॉडी की रीडिंग सामने आती है, वह अमूमन ह्यूमोरल होता है। ये ऐंटिबॉडी शरीर में आसानी से इधर-उधर घूमते हैं। टेस्ट में इसकी रीडिंग आती है।

2. सेलुलर: हमारे शरीर की इम्यून कोशिकाओं की प्रवृत्ति होती है कि वह बाहर से आए हुए ऐंटिजेन के चरित्र और चेहरे को याद करके रख लेता है। जब भविष्य में वही ऐंटिजेन फिर से शरीर में पहुंचता है तो फौरन ही ऐंटिबॉडी का निर्माण कर उसे खत्म कर दिया जाता है। इसलिए अगर किसी को इम्यूनिटी मिल चुकी है तो यह उम्मीद की जानी चाहिए कि 8 से 10 महीने बाद भी उसका सेलुलर इम्यूनिटी सिस्टम जरूर काम करता होगा। टेस्ट में इसकी रीडिंग नहीं आती।
जहां तक बूस्टर डोज की बात है तो अमेरिका और इस्राइल में अस्पताल स्टाफ और फ्रंटलाइन वर्कर को लगाई जा चुकी है। अब वहां यह आम लोगों को भी लगाई जा रही है। हमारे देश में चूंकि अभी एक तिहाई लोगों को ही दोनों डोज वैक्सीन का लगी हैं। ऐसे में सभी को बूस्टर डोज लगे यह अभी संभव नहीं है और शायद जरूरत भी नहीं। हालांकि इस पर अभी फैसला लिया जाना बाकी है। अगर बूस्टर डोज लगनी भी चाहिए तो सबसे पहले हॉस्पिटल स्टाफ, फ्रंट लाइन वकर्स (पुलिस, बैंक, प्रेस आदि में काम करने वाले लोग), कोमॉर्बिडिटीज (जिन्हें किडनी, लिवर आदि की गंभीर बीमारी है), बुजुर्गों आदि को लगे। ये लोग ही सबसे ज्यादा रिस्क पर होते हैं। अगर बीमार हैं या उम्र ज्यादा है तो अमूमन इम्यूनिटी भी कमजोर होती है।
हाल में प्रमुख भारतीय वैज्ञानिकों की संस्था ने 40 साल और इससे ऊपर के लोगों के लिए बूस्टर डोज की सिफारिश की है। भारत सरकार इस पर विचार कर रही है और बाद में फैसला लेगी। बच्चों की वैक्सीन पर भी फैसला अभी होना है।

इम्यूनिटी के लिए धूप बहुत जरूरी
रिसर्च में यह बात सामने आई है कि अगर शरीर में विटामिन-डी कम हो तो कई बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है। सीधे शब्दों में कहें तो विटामिन-डी की उपयोगिता हमारे सिर के बाल से लेकर पैर के नाखून तक में है। इसकी बड़ी वजह यह है कि विटामिन-डी हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं में पाया जाता है।
सभी जानते हैं कि विटामिन-डी हमें धूप से भरपूर मात्रा में मिलता है। यह अकेला विटामिन है जो हमें बिना खाए कुदरती तरीके से मिल जाता है। कुदरत ने हमारे लिए इसे ठीक वैसे ही मुहैया करवाया है, जैसे- हवा, पानी आदि। कोरोना के साथ विटामिन-डी के संबंधों पर कई तरह की रिसर्च हो रही हैं और कुछ का नतीजा यह है कि इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार होने की वजह से विटामिन-डी कोरोना से लड़ता है।

ऐसे लें धूप
सर्दियों में सुबह 11 से 2 बजे के बीच और गर्मियों में 8 से 10 के बीच धूप में बैठें।
- सामान्य आदमी को हर दिन 30 से 35 मिनट धूप में जरूर बैठना चाहिए।
- अगर रोज संभव न हो तो सप्ताह में 3 दिन या एक-एक दिन छोड़कर भी धूप में बैठकर विटामिन-डी ले सकते हैं। इससे भी शरीर का काम पूरा हो जाएगा और विटामिन-डी की कमी नहीं होगी।
- चेहरे, गर्दन, पीठ, हाथ आदि पर धूप लगने दें। शरीर का ज्यादातर हिस्सा यथासंभव खुला रखें। अगर किसी को धूप से एलर्जी है तो वह लगातार धूप में न बैठे। बीच-बीच में 15 मिनट बाद 5 या 10 मिनट का ब्रेक ले लें।
- सांवली त्वचा वालों को 10 से 15 मिनट धूप में ज्यादा बैठना चाहिए।
- अगर बुजुर्ग हैं तो 35 से 40 मिनट रोजाना धूप में जरूर बैठें।

एक्सपर्ट पैनल
प्रफेसर सौमित्र दास, डायरेक्टर, NIBMG जीनोमिक्स इंस्टिट्यूट
डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, धर्मशिला हॉस्पिटल
डॉ. संजय राय, कम्यूनिटी मेडिसिन, AIIMS
डॉ. जतिन आहूजा, वरिष्ठ संक्रामक रोग विशेषज्ञ
डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
प्रफेसर मनिंद्र अग्रवाल, IIT कानपुर

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चुटकियों में ऐसे भरें ITR

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इस बार ITR फाइल करने की आखिरी तारीख बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दी गई है। दरअसल, कोरोना महामारी को देखते हुए इस साल फाइनैंशल इयर 2020-21 (एसेसमेंट इयर 2021-22) के लिए ITR फाइल करने की डेडलाइन 2 बार आगे बढ़ी है। इससे पहले आखिरी तारीख 30 सितंबर थी। ITR फाइल करने से जुड़ी पूरी जानकारी एक्सपर्ट्स से लेकर बता रहे हैं राजेश भारती

इन तारीखों का रखें ध्यान, चूके तो होगा नुकसान
31 December: सामान्य टैक्सपेयर के लिए आखिरी तारीख
15 February: आमदनी की ऑडिट रिपोर्ट कराने वालों के लिए आखिरी तारीख
31 March: देरी से या संशोधित ITR फाइल करने की आखिरी तारीख

2 व्यवस्थाएं हैं ITR फाइल करने के लिए
ITR फाइल करने के लिए अभी 2 तरह की व्यवस्थाएं हैं। पहली पुरानी और दूसरी नई। बजट 2020 में धारा 115BAC के तहत एक नई आयकर व्यवस्था पेश की गई थी, जिसे वित्तीय वर्ष 2020-21 से व्यक्तियों (Individuals) और हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) द्वारा चुना जा सकता है। दोनों व्यवस्थाओं के लिए टैक्स स्लैब इस प्रकार हैं:

1. पहली (पुरानी) व्यवस्था
(60 साल से कम उम्र के पुरुष-महिलाएं)
टैक्सेबल इनकम (रुपये में) टैक्स दर
2,50,000 तक कुछ नहीं
2,50,001 से 5,00,000 5%
5,00,001 से 10,00,000 20%
10 लाख से ज्यादा 30%
नोट: 60 साल से 80 साल तक के लोगों के लिए 3 लाख रुपये तक और 80 साल से ज्यादा के लोगों के लिए 5 लाख तक की इनकम पर टैक्स दर शून्य है।

2. दूसरी (नई) व्यवस्था
(हर उम्र के पुरुष-महिलाओं के लिए)
टैक्सेबल इनकम (रुपये में) टैक्स दर
2,50,000 तक कुछ नहीं
2,50,001 से 5,00,000 5%
5,00,001 से 7,50,000 10%
7,50,001 से 10,00,000 15%
10,00,001 से 12,50,000 20%
12,50,001 से 15,00,000 25%
15 लाख से ज्यादा 30%
नोट: नेट सैलरी और बाकी दूसरे स्रोत से हुई आमदनी में से सेविंग्स, इंश्योरेंस प्रीमियम और स्टैंडर्ड डिडक्शन को घटाने के बाद जो रकम बचती है, वह टैक्सेबल इनकम कहलाती है। इन इनकम पर ही टैक्स चुकाना होता है।

किसके लिए फिट है पुरानी व्यवस्था
  • जो अपनी बचत को लाइफ इंश्योरेंस, हेल्थ इंश्योरेंस या दूसरी टैक्स सेविंग्स स्कीम्स में इन्वेस्ट करते हैं।
  • बेटी के माता या पिता हैं और सुकन्या समृद्धि योजना, LIC की कन्यादान जैसी स्कीम में रकम निवेश की है। मकान के लिए लोन लिया है और उसकी EMI चल रही है। 80G के तहत दान देते हैं।
किसके लिए बेहतर है नई व्यवस्था
  • नई नौकरी है। सैलरी कम है और पैसा इन्वेस्ट नहीं किया है।
  • पुराने एम्प्लॉई, जिन्होंने किसी भी तरह का निवेश नहीं किया है और न ही उनके ऊपर कोई लोन है।
नए टैक्स सिस्टम की शर्तें
  • 50 हजार रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन का फायदा नहीं मिलेगा। एलटीए की भी छूट नहीं मिलेगी।
  • 80C, 80CCC, 80D, 80DDB, 80E, 80EEA, 80EEB, 80G, 80GG के तहत छूट का फायदा नहीं मिलेगा। 80C के तहत एलआईसी, एनएससी, होम लोन, यूलिप, बच्चों की ट्यूशन फीस, पेंशन फंड, पीपीएफ, म्यूचुअल फंड ईएलएसएस, बैंकों में टर्म डिपॉजिट, सुकन्या समृद्धि योजना में जमा रकम आदि में निवेश करके लोग टैक्स डिडक्शन का फायदे उठाते हैं। वहीं 80D के तहत हेल्थ इंश्योरेंस पर भी टैक्स डिडक्शन मिलता है। नए टैक्स सिस्टम में इनमें से कोई डिडक्शन नहीं मिलेगा।
बदल सकते हैं टैक्स स्लैब
नौकरीपेशा लोग टैक्स की इन व्यवस्थाओं में से किसी काे भी हर साल बदल सकते हैं। यानी पुरानी व्यवस्था से नए में और नए से पुराने में वापस आ सकते हैं। बिजनेस वालों के लिए यह सुविधा नहीं है।

कौन-सा फॉर्म भरें?
ITR-1: इसे सहज के नाम से भी जाना जाता है। यह सैलरी, एक हाउस प्रॉपर्टी से किराया और अन्य स्रोतों के जरिए कुल 50 लाख रुपये सालाना आमदनी या पेंशन वालों के लिए होता है।
ITR-2: यह फॉर्म उन व्यक्तियों व हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) के लिए होता है, जिनकी इनकम बिजनेस या प्रफेशन से नहीं होती। सालाना इनकम 50 लाख रुपये से ज्यादा होती है या आय एक से ज्यादा हाउस प्रॉपर्टी या पूंजी (कैपिटल गेंस) के जरिए अर्जित होती है।
ITR-3: यह फॉर्म उन्हें भरना जरूरी होता है जो खुद बिजनेस कर रहे हों या किसी प्रफेशन से आमदनी हासिल कर रहे हों।
नोट: इनके अलावा और भी फॉर्म हैं, जिनकी जरूरत बिजनेस या दूसरी तरह की आमदनी से जुड़े लोगों के लिए होती है। इसके लिए एक्सपर्ट से जानकारी लें।

ये डॉक्यूमेंट्स रखें अपने पास
  • PAN
  • आधार
  • Form16 (यह कंपनी की ओर से दिया जाता है। इसमें दो पार्ट होते हैं- A और B. इसमें कंपनी की ओर से काटे गए TDS की जानकारी होती है।)
  • आपके जितने भी बैंक अकाउंट हैं, सभी की 31 मार्च 2021 तक अपडेट हुई स्टेटमेंट या पासबुक तैयार रखें। हर बैंक अकाउंट में देखें कि सालभर में कितना बैंक इंट्रेस्ट दिया गया है। यह साल में चार बार दिया जाता है। सभी का टोटल करें।
  • अगर आपकी कोई FD है, तो बैंक या पोस्ट ऑफिस जाकर उसका Accrued Interest मालूम कर लें।
  • रिटर्न में 80C आदि की जानकारी देनी होती है, जिसके आधार पर आपको इनकम टैक्स में कटौती मिलती है। इन्हें भरने के लिए आप Form16 की मदद लें। कोई निवेश या खर्च ऑफिस में दर्ज कराने से छूट गया है तो उसे अब आप रिटर्न में बताकर अपनी टैक्स देनदारी घटा सकते हैं और रिफंड क्लेम कर सकते हैं।
  • होम लोन/ब्याज के सर्टिफिकेट और निवेश के पेपर।
अगर क्रिप्टो करंसी में हुआ है मुनाफा...
अगर क्रिप्टो करंसी में निवेश किया हुआ है तो उससे हुआ मुनाफा कैपिटल गेंस में आएगा। इसके लिए फॉर्म 2 या इससे ज्यादा का भरा जाएगा। इनकम टैक्स का फॉर्म 1 नहीं भर सकते।

ITR पहली बार फाइल कर रहे हैं तो...
अगर आपका ITR पहले कभी CA या किसी दूसरे माध्यम से फाइल हुआ है तो इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन जरूर होगा और आपका PAN आपके आधार से लिंक होगा। रजिस्ट्रेशन की User ID आपका PAN नंबर होता है। अगर आपको पासवर्ड नहीं पता और आपका CA आपका ITR फाइल करता है तो उससे पासवर्ड मांग लें। नहीं तो User ID डालने के बाद Continue पर क्लिक करें। अब जहां पासवर्ड डालना है, उसके नीचे Forgot Password? पर क्लिक करें। जो पेज खुलेगा उसमें फिर से User ID डालकर Continue पर क्लिक करना होगा। इसके बाद पहले ऑप्शन OTP on mobile number registered with Aadhaar पर क्लिक करें। आपके फोन पर OTP आएगा। OTP डालकर नया पासवर्ड बनाएं और फिर वेबसाइट को लॉगइन कर लें। अगर पहले कभी ITR फाइल नहीं किया है और पहली बार फाइल करने जा रहे हैं तो सबसे पहले ये काम करें:

1. वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करने का तरीका
  • वेबसाइट www.incometax.gov.in पर जाएं। यहां आपको सबसे ऊपर राइट साइड में छोटे-से नीले रंग के बॉक्स में Register लिखा दिखाई देगा। इस पर क्लिक करें।
  • अब आपको Let's get started के ठीक नीचे Register as लिखा दिखाई देगा। इसके ठीक नीचे Taxpayer और Others लिखा दिखाई देगा। अगर आप खुद अपने लिए ITR भर रहे हैं तो Taxpayer पर क्लिक करें। अब नीचे बने बॉक्स में अपना PAN नंबर टाइप करें और Validate पर क्लिक करें।
  • अगर PAN नंबर सही है तो उसके नीचे हरे रंग से 'Success : PAN validated successfully' लिखा आएगा और इसके ठीक आगे हरे रंग के बॉक्स में राइट का निशान बना होगा। अगर आपका PAN पहले से रजिस्टर्ड होगा तो इसके बारे में संदेश लिखा आ जाएगा।
  • अब आपसे पूछा जाएगा कि क्या आप Individual taxpayer हैं। चूंकि आप Individual taxpayer हैं तो Yes पर क्लिक करके Continue पर क्लिक करें।
  • इसके बाद आपको बेसिक डिटेल्स जैसे नाम, जन्मतिथि आदि देनी होगी। यहां Surname भरना जरूरी है। अगर आपका Surname नहीं है तो वहां फर्स्ट नेम ही टाइप कर दें। इसके बाद Continue पर क्लिक करें। अब आपको अपनी कॉन्टेक्ट डिटेल्स जैसे मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी, घर का पता आदि भरना होगा। इसके बाद Continue पर क्लिक करें।
  • अब मोबाइल और ईमेल पर OTP आएगा। OTP भरने के बाद Continue पर क्लिक करें। इसके बाद आपके द्वारा भरी गई डिटेल्स आएंगी। इन्हें वेरिफाई करें। अगर सब कुछ सही है तो Confirm पर क्लिक करें। अगर बेसिक या कॉन्टेक्ट डिटेल्स में कुछ गलत लिख गया है तो राइट साइड में लिखे Edit पर क्लिक करें और गलती को सुधार लें।
  • अब आपको अपने पासवर्ड डालना हैं। पासवर्ड के नीचे एक बॉक्स बना होगा, जिसमें आपको कोई पर्सनल मेसेज टाइप करना हाेगा। यहां आप 'Delhi is my birth place', 'I love Taj Mahal' आदि लिख सकते हैं। इसके बाद Register पर क्लिक करें। अब नया पेज खुलेगा। इसमें ऊपर Registered successfully! लिखा होगा यानी आपका इनकम टैक्स की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन हो गया है। इसके बारे में आपको मोबाइल और ईमेल पर भी एक मेसेज मिल जाएगा।
2. PAN को आधार से लिंक करें
  • आपका PAN कार्ड आपके आधार कार्ड से लिंक होना चाहिए। PAN आधार से लिंक है या नहीं, इसके बारे में इनकम टैक्स विभाग की ऑफिशल वेबसाइट incometax.gov.in पर जाकर इस प्रकार चेक करें:
  • incometax.gov.in पर जाएं।
  • लेफ्ट साइड में बड़े अक्षरों में Quick Links लिखा दिखाई देगा। इसके नीचे तीसरे ऑप्शन Link Aadhaar Status पर क्लिक करें।
  • नया पेज खुलेगा। यहां अपना PAN नंबर और आधार नंबर टाइप करके राइट साइड में नीले रंग के बॉक्स में लिखे View Link Aadhaar Status पर क्लिक करें।
  • अगर आपको PAN और आधार लिंक है तो Your PAN is linked to Aadhaar number लिखा आ जाएगा (1234 की जगह आपके आधार के आखिरी 4 अंक होंगे)। इस लाइन के आगे हरे रंग के सर्कल में राइट का निशान बना होगा।
  • अगर PAN और आधार लिंक नहीं हैं तो Quick Links के दूसरे ऑप्शन Link Aadhaar पर क्लिक करें।
  • यहां आपको PAN नंबर, आधार नंबर, नाम और रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर टाइप करना होगा। इसके नीचे दो लाइन लिखी होंगी। पहली लाइन I have only year of birth in Aadhaar card और दूसरी I agree to validate my Aadhaar details लाइन। अगर आपके आधार कार्ड पर जन्मतिथि में सिर्फ साल लिखा है तो पहली लाइन पर क्लिक करें। अगर तारीख, महीना और साल तीनों हैं तो क्लिक न करें। दूसरी लाइन पर सभी को क्लिक करना है। जिस लाइन पर क्लिक करेंगे, उसके आगे बना छोटा-सा बॉक्स नीले रंग का हो जाएगा।
  • अब राइट साइड में नीचे की ओर नीले रंग के बॉक्स में लिखे Link Aadhaar पर क्लिक कर दें। आपका PAN और आधार अब लिंक हो गया है।
इन फॉर्म को चेक करना न भूलें
1. Form 26AS चेक करें
रजिस्ट्रेशन करते ही सबसे पहले आप अपना फॉर्म 26AS चेक करें। यह वह फॉर्म होता है, जिसमें कंपनी द्वारा काटे गए TDS और कंपनी के TAN का जिक्र होता है। ITR फाइल करने से पहले फॉर्म 26AS को फॉर्म 16 और फॉर्म 16A से जरूर मिला लें। अगर डिटेल्स मैच नहीं हुए तो आप TDS क्रेडिट क्लेम नहीं कर पाएंगे। अगर इसमें कोई भी गलती दिखे तो उसकी सूचना एंप्लॉयर (सैलरी इनकम के मामले में) या दूसरे पेयर्स (अन्य आय के मामले में) या बैंकों (एडवांस टैक्स/सेल्फ एसेसमेंट टैक्स पेमेंट्स के मामले में) को देनी चाहिए और इसे सही करा लेना चाहिए।

26AS देखने का तरीका
इनकम टैक्स की ऊपर बताई गई वेबसाइट पर लॉगइन करें। वहां ऊपर नीली पट्टी में नंबर पर e-File लिखा है। इसे क्लिक करें। पहले ऑप्शन Income Tax Returns पर क्लिक करें। फिर View Form 26AS पर जाकर Form 26AS चेक कर लें।

2. AIS से मिलाएं दूसरे इनकम स्रोत
सरकार ने आपके फाइनैंशल लेन-देन से जुड़ी हर चीज पैन कार्ड से जोड़ दी है। आप जो भी ऐसा लेन-देन करते हैं जो पैन कार्ड से जुड़ा है, उसकी पूरी जानकारी सरकार के पास होती है। इस जानकारी को भी ITR फॉर्म में देना होता है। कई बार ऐसा होता है कि उस लेन-देन के बारे में हम जानकारी देना ITR फॉर्म में देना भूल जाते हैं। इसके लिए इनकम टैक्स विभाग की ओर से टैक्सपेयर्स के लिए AIS (Annual Information Statement) नाम से खास सुविधा लॉन्च की गई है।
AIS में आपके हर लेन-देन की जानकारी होती है। ITR फाइल करने से पहले अपने AIS को चेक कर लें और लेन-देन की जो जानकारी 26AS में नहीं है और AIS में है, उसे भी ITR फाइल करते समय भर दें ताकि भविष्य में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के नोटिस का सामना करने से बच सकें। ध्यान रखें कि 26AS में जहां सैलरी से होने वाली आय, टैक्स पेमेंट और TDS आदि की जानकारी पहले से भरी होती है तो AIS में डिविडेंड इनकम और बैंकों व पोस्ट ऑफिस से मिलने वाला ब्याज, लिस्टेड शेयरों से होने वाले कैपिटल गेंस, शेयर ट्रांजैक्शन, म्यूचुअल फंड ट्रांजैक्शन, फॉरेन रेमिटेंस इंफॉर्मेशन जैसी अतिरिक्त जानकारियां हैं।

ऐसे करें AIS डाउनलोड
  • इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट incometax.gov.in पर जाएं। यहां आपको सबसे ऊपर राइट साइड में छोटे-से वाइट रंग के बॉक्स में Login लिखा दिखाई देगा। इस पर क्लिक करें।
  • एक नया पेज खुलेगा। यहां Enter your User ID के नीचे एक बॉक्स होगा। इसमें अपना PAN नंबर टाइप करें। फिर नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Continue पर क्लिक करें।
  • अब जो पेज खुलेगा, उसमें आपको वह पर्सनल मेसेज लिखा दिखाई देगा जो आपने रजिस्ट्रेशन के समय टाइप किया था। इसके ठीक नीचे लेफ्ट साइड में छोटा-सा बॉक्स बना होगा। इस बॉक्स पर क्लिक करें। क्लिक करते ही यह बॉक्स नीले रंग का हो जाएगा।
  • अब इसके नीचे बने बॉक्स में पासवर्ड टाइप करें और फिर नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Continue पर क्लिक करें। अब आप इनकम टैक्स विभाग की ऑफिशल वेबसाइट में लॉगइन कर चुके हैं।
  • यहां आपको ऊपर नीले रंग की पट्टी दिखाई देगी। इसमें लिखे Services पर क्लिक करें। फिर इसमें सबसे आखिर में लिखे Annual Information Statement (AIS) पर क्लिक करें।
  • अब एक पॉप-अप विंडो खुलेगी, जिसमें आपको Proceed पर क्लिक करना होगा। अब AIS का होमपेज खुल जाएगा।
  • यहां नीले रंग की पट्टी के नीचे एक लाइन छोड़कर आपको Instructions, AIS और Activity History के तीन टैब दिखाई देंगे। इसमें AIS वाले टैब पर क्लिक करें।
  • अब जो पेज खुलेगा उसमें आपके सामने डाउनलोड के लिए दो विकल्प आएंगे। पहला, Taxpayer Information Summary (TIS) का और दूसरा Annual Information Statement (AIS) का। दूसरे विकल्प यानी AIS पर क्लिक करें और लेनदेन से जुड़ी दूसरी सारी जानकारियां देख सकते हैं।
  • अगर आप इसे डाउनलोड करना चाहते हैं तो Annual Information Statement (AIS) वाले बॉक्स में थोड़ा नीचे राइट साइड में डाउनलोड का निशान दिखाई देगा। इस पर क्लिक करते ही AIS की PDF डाउनलोड हो जाएगी।
  • PDF ओपन करने पर आपसे पासवर्ड पूछेगा। यह पासवर्ड आपका पैन कार्ड नंबर और जन्मतिथि होगा। उदाहरण के लिए अगर आपका पैन कार्ड नंबर AAAAA1234A है और आपकी जन्म तिथि 1 जनवरी 1990 है, तो आपका पासवर्ड AAAAA1234A01011990 होगा। यह पासवर्ड डालते ही PDF फाइल खुल जाएगी।

ऐसे करें ऑनलाइन ITR फाइल
राजेश भारती ने खुद अपनी ITR ऑनलाइन फाइल की और पूरी प्रक्रिया को जाना व समझा। जिन-जिन प्रक्रियाओं से ITR-1 फाइल किया, उसकी स्टेप-टू-स्टेप गाइड के बारे में जानें:
  • इनकम टैक्स विभाग की वेबसाइट incometax.gov.in पर जाएं और Login करें।
  • नया पेज खुलेगा। यहां ऊपर ही आपको File your return for the year ended on 31-Mar-2021 लिखा दिखाई देगा। इसके नीचे File Now लिखा होगा। इस पर क्लिक करें।
  • अगले पेज पर आपको Select Assessment year का ऑप्शन दिखाई देगा। इसमें आपको 2021-22 चुनना होगा। इसके बाद इसके नीचे लिखे Online (Recommended) पर क्लिक करके नीचे लिखे Continue पर क्लिक करें।
  • इसके बाद आपके सामने जो पेज खुलेगा, उसमें पूछा जाएगा कि आपका स्टेटस क्या है। इसमें आपको Individual, HUF (हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली) और Others का विकल्प मिलेगा। आपको Individual का विकल्प चुन कर Continue पर क्लिक करना है।
  • अब आपसे पूछा जाएगा कि आप कौन-सा ITR फॉर्म भरना चाहते हैं। आप एक नौकरीपेशा हैं तो आपको ITR-1 सिलेक्ट करना होगा। अगर आप कोई दूसरा फॉर्म भरते हैं तो उसे भी चुन सकते हैं, लेकिन यहां पर हम नौकरीपेशा के हिसाब से ITR-1 फॉर्म भरना बता रहे हैं तो ITR-1 पर सिलेक्ट करके नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Proceed with ITR1 पर क्लिक करें।हां आपको बताया जाएगा कि ITR फाइल करने की प्रक्रिया 3 स्टेप में पूरी होगी। इसके ठीक नीचे लिखे Let's Get Started पर क्लिक करें और आगे बढ़ें।
  • इसके बाद जो पेज खुलेगा उसमें आपसे पूछा जाएगा कि आप किस वजह से आयकर रिटर्न फाइल कर रहे हैं। यहां आपको कुछ विकल्प मिलेंगे, जिनमें अन्य का विकल्प भी होगा। आपको जो सही लगता है, उस पर क्लिक करके Continue बटन पर क्लिक करना है। जैसे मान लीजिए कि आप नौकरीपेशा हैं और सालाना इनकम 5 लाख रुपये है। इंश्योरेंस आदि स्कीम में आप रकम जमा करते हैं तो Taxable income is more than basic exemption limit पर क्लिक करें। इसके तुरंत बाद आपके सामने एक मेसेज आ जाएगा कि इनकम टैक्स विभाग की तरफ से कुछ जानकारियां पहले से ही भर दी गई हैं, कृपया उन्हें कंफर्म करें।
  • अब Validate your Returns breakup (Pre-filled) में आपको 5 ऑप्शन दिखाई देंगे। आपको बारी-बारी सभी सेक्शन खोलने हैं और उनकी जानकारी चेक करनी है। नौकरीपेशा लोगों को यहां कुछ खास दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि यहां पर उसके फॉर्म-16 के आधार पर अधिकतर जानकारियां पहले से ही भरी हुई मिलेंगी। इसमें आपकी सैलरी से लेकर उस पर मिले डिडक्शन और टैक्स समेत सारी जानकारियां दिखेंगी, जिन्हें आपको कंफर्म करना होगा। इन जानकारियों को फॉर्म 26AS और AIS में दी गई जानकारियों से मिला लें। अलग कोई लेन-देन ITR-1 में दर्ज नहीं है तो उसे भर दें। सारी जानकारी पूरी भरने कबाद आपको Proceed बटन पर क्लिक करना होगा।
  • इसके बाद आपको सामने जो पेज खुलेगा, उसमें आपकी तरफ से भरी गई जानकारियों की पूरी समरी आ जाएगी। आपका उसके अच्छे से देखकर Preview Return पर क्लिक कर दें।
  • अब जो पेज खुलेगा उसमें आपको अपने रिटर्न को प्रीव्यू और सबमिट करने का विकल्प मिलेगा। यहां आपको आपका नाम, पिता का नाम और पैन नंबर लिखा मिलेगा। साथ ही यह भी बताया हुआ मिलेगा कि आप खुद (Self) के लिए यह रिटर्न फाइल कर रहे हैं। यह सब चेक करने के बाद Proceed To Preview पर क्लिक करें।
  • अब आपके सामने ITR का पूरा फॉर्म आ जाएगा, जिसमें आप अपनी सारी जानकारियां देख सकेंगे। आप चाहे तो ये फॉर्म डाउनलोड कर सकते हैं या फिर प्रिंट ले सकते हैं। इसके बाद फॉर्म में नीचे जाएं और Proceed to Validation पर क्लिक करें।
  • अगर ITR फॉर्म भरने में कोई गलती हो गई है तो आपको उन गलतियों की लिस्ट दिखने लगेगी। आप जिस भी गलती पर क्लिक करेंगे, सीधे गलती वाली जगह पहुंच जाएंगे और गलती को सुधार सकेंगे। जब आप अपनी सारी गलतियों को सुधार लेंगे तो नीचे राइट साइड में Proceed to Validation पर क्लिक करें। नया पेज खुलेगा और आपके सामने मेसेज आएगा कि आपका वैलिडेशन सफल हो गया है।
  • अब Proceed to verification पर क्लिक करें। यहां ITR वेरिफाई करने के 3 विकल्प मिलेंगे। पहला e-verify Now, इससे आप आधार ओटीपी, प्रीवैलिडेटेड बैंक अकाउंट या प्री-वैलिडेटेड डीमैट अकाउंट से अपना आईटीआर वेरिफाई कर सकते हैं। दूसरा e-Verify Later. इसमें ई-वेरिफाई करने के लिए 120 दिन का वक्त मिलेगा। तीसरा विकल्प Verify via ITR-V का होगा। इसमें आपको आईटीआर-वी फॉर्म साइन कर के स्पीड पोस्ट के जरिए इनकम टैक्स विभाग की तरफ से दिए गए पते पर बेंगलुरु भेजना होगा। आप पहले विकल्प यानी e-verify Now को चुनें। इसके लिए ध्यान रखें कि आपका आधार कार्ड में आपका फोन नंबर रजिस्टर होना चाहिए।
  • e-verify Now पर क्लिक करने के बाद नया पेज खुलेगा। पहला ऑप्शन होगा कि आप ई-वेरिफाई उस मोबाइल पर OTP के जरिए करना चाहते हैं जो आधार से लिंक है। इस ऑप्शन पर क्लिक करें। अब आपको आधार से लिंक मोबाइल पर 6 डिजिट का एक OTP आएगा। OTP को भरने के बाद Validate पर क्लिक करें। आपकी आईटीआर फाइल करने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। इसके बारे में आपको मोबाइल और ईमेल आईडी पर जानकारी तुरंत आ जाती है।
इसके बाद पूरा होगा काम
ITR फाइल करने की प्रक्रिया आपकी तरफ से पूरी हुई है। इस रिटर्न को चेक किया जाता है। सब कुछ सही है तो प्रोसेस 24 घंटे में पूरा हो जाता है। वहीं अगर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आपके द्वारा दी गई जानकारी से असंतुष्ट लगता है तो आपको फिर से पूरी और सही जानकारी के साथ रिटर्न फाइल करना पड़ता है। 31 मार्च 2022 तक आप कितनी भी बार फाइनैंशनल इयर 2020-21 की रिवाइज्ड रिटर्न फाइल कर सकते हैं। रिवाइज्ड रिटर्न फाइल करने पर कोई लेट फीस नहीं देनी होती। ITR फाइल करने में कोई परेशानी आए तो बेहतर होगा कि किसी CA या एक्सपर्ट की सलाह लें।

एक्सपर्ट पैनल
- सुशील अग्रवाल, CA, पार्टनर, ASAP & Associates
- अर्चित गुप्ता, फाउंडर और CEO, Clear
- एस. रवि, पूर्व चेयरमैन, BSE
- अभिषेक सोनी, CEO और को-फाउंडर, Tax2win
( नोट: इस लेख में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के कुछ अधिकारियों की ओर से भी दी गई जानकारी शामिल है।)

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स स सर्दी है...

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सर्द मौसम का अपना ही मजा है, लेकिन लापरवाही कर दें तो सजा भी है। कभी जोड़ों में दर्द होने लगता है तो कभी सर्दी-जुकाम और लूज मोशन से हम परेशान होते रहते हैं। बीपी, शुगर और दिल के मरीजों के लिए भी यह समय कुछ भारी-सा महसूस होता है। कैसे बिना परेशानियों के तेज सर्दी का लुत्फ उठा सकते हैं, इसी बारे में विशेषज्ञों से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती।

8 सबसे जरूरी बातें

1. सर्दियों में दर्द बढ़ने का सबसे बड़ा कारण है ठंडी हवाओं के संपर्क में आना। इसलिए जरूरी है कि पूरे शरीर को ढककर रखें। खासकर, कान, सिर और पैर जरूर ढकें।

2. कोशिश करें कि सुबह टहलने न जाएं। जब धूप निकल जाए, तभी टहलें। टहलते समय मास्क लगाकर जरूर रखें। इससे कोरोना के साथ कुछ हद तक ठंडी हवा भी शरीर के अंदर कम जाएगी।

3. अगर सर्दियों में लूज मोशंस की परेशानी हो जाए तो शरीर में पानी की कमी न होने दें। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि यूरिन कितना और किस तरह का आ रहा है। अगर यूरिन की मात्रा कम हो गई हो या यूरिन ज्यादा गाढ़ा और पीला हो गया हो तो डॉक्टर से मिलना जरूरी हो जाता है।

4. इस मौसम में शरीर का हाजमा कम हो जाता है। इसलिए ज्यादा तेल-मसाले वाली चीजें न खाएं। शादी या पार्टियों में जाने पर सलाद न खाएं क्योंकि बाकी चीजें आग पर पकी होती हैं और गर्म होती हैं। सलाद हम सीधे खा लेते हैं। अमूमन सलाद की साफ-सफाई का ध्यान भी कम रखा जाता है। वहीं पीने का पानी बोतलबंद हो तो बेहतर है। पानी और सलाद से ही सबसे ज्यादा बैक्टीरिया या वायरल इंफेक्शन का खतरा होता है।

5. हार्ट, बीपी और शुगर के मरीजों की ज्यादा परेशानी तब बढ़ जाती है जब फिजिक ऐक्टिविटी कम करते हैं, दवा सही मात्रा में नहीं खाते और सर्दी से बचाव का इंतजाम नहीं करते। इससे एंजाइना के लक्षण आ सकते हैं। इसलिए ऐसे लोगों के लिए अपना रुटीन सही रखना जरूरी है।

6. एक्सरसाइज करने का यह मतलब नहीं कि शरीर के साथ जबर्दस्ती करें। जितना हो सके, उतना ही करें। सर्दियों में आसन और कपालभाति जैसे प्राणायाम घर पर ही करना बेहतर है।

7. तापमान का ज्यादा फर्क न हो इसका भी ध्यान रखें। घर में भी अगर कंबल में हों या हीटर के पास हों तो बाथरूम या खुले हॉल में जाने से पहले 2 से 4 मिनट शरीर को बाहर रखें। इसी तरह अगर हीटर चलाकर गाड़ी चला रहे हैं तो भी गाड़ी से निकलने से 5 से 10 मिनट पहले हीटर बंद करके सामान्य तापमान होने का इंतजार करें। कई लोगों के घर में गैस गीजर का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे लोग नहाने से पहले गीज को सही तरीके से चेक कर लें।

8. सर्दियों की यह बड़ी समस्या होती है कि प्यास कम लगती है। कई लोग बार-बार यूरिन जाने की परेशानी से बचने के लिए भी पानी कम पीते हैं कि कौन इस सर्दी में रजाई से बार-बार बाहर निकलेगा। लेकिन दिनभर में 2 लीटर या 8 गिलास पानी जरूर पिएं। अगर पानी गुनगुना हो तो बेहतर है।

जब बढ़े कड़ाके की ठंड, सेहत का रखें ऐसे ध्यान

दर्द से मिल जाएगी राहत
शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द होने का मतलब है कि वहां कुछ गलत हुआ है। चाहे चोट लगी हो या कोई ऐसा बेकार चीज जमा हो गई है जिसने शरीर को परेशानी में डाल दिया है। जहां तक सर्दियों में दर्द की बात है तो यह कभी भी अपने आप नहीं होता। इसके पीछे हमारी कोई न कोई लापरवाही जरूर होती है। हम ठंडी हवा को शरीर से संपर्क में आने से नहीं रोक पाते।

इसलिए होता है दर्द
सॉफ्ट टिशू में सख्ती आना: सर्दियों में तापमान कम होने और हवा का दबाव कम होने का असर सीधा हमारे शरीर पर पड़ता है। शरीर में मौजूद कई तरह सॉफ्ट टिशू (लिगामेंट और टंडन जो क्रमश: हड्डियों को हड्डियों से और हड्डियों को मांसपेशियों से जोड़ता है) थोड़े सख्त हो जाते हैं। वहीं जोड़ों में मौजूद फ्लूड जो मूवमेंट के लिए उत्तरदायी है, वह भी कुछ गाढ़ा हो जाता है।

ब्लड सर्कुलेशन में थोड़ी कमी: सर्दियों में दिल और दिमाग का तापमान सही रहे, इसके लिए इन दोनों जगहों पर ज्यादा खून की जरूरत होती है। ऐसा न होने और इन अंगों का तापमान गिरने से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए शरीर ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है कि सर्दियों में शरीर के बाकी अंगों की तुलना में इन दोनों अंगों को ज्यादा से ज्यादा खून मिले। इससे जॉइंट और मांसपेशियों में कुछ मात्रा में खून की कमी हो जाती है। नतीजा हो सकता है दर्द और सूजन।

दौड़-भाग कम करते हैं हम: यह सच है कि दूसरे मौसमों की तुलना में सर्दियों में फिजिकल ऐक्टिविटी कम हो जाती है। जो लोग गर्मियों में खूब एक्सरसाइज और योग करते हैं, वे भी सर्दियों में कई बार इसे टाल देते हैं या फिर काफी कम कर देते हैं।

ये हैं उपाय
वैसे तो पूरे शरीर का ध्यान रखना जरूरी है, लेकिन जिन लोगों को जॉइंट पेन की परेशानी है। वे इस तरह ध्यान रखें...

- जिस अंग में दर्द हो, उसे ज्यादा ढक कर रखें: मान लें कि किसी को घुटने में परेशानी है तो वह घुटने को सही तरीके से ढक कर रखे। इसके लिए नी-कैप लगा सकते हैं। नी-कैप को सोते समय उतार सकते हैं। वहीं अगर पैरों में भी इनर पहना हुआ है तो नी कैप को छोड़ सकते हैं। इसी तरह अगर किसी को कुहनी में दर्द रहता है तो वह पूरी बाजू वाले इनर और स्वेटर पहनकर रखें ताकि बाजू कम से कम ठंडी हवा तापमान के संपर्क में आए। इसी तरह अगर किसी को एड़ी में दर्द रहता है तो उसे घर में भी पूरी सर्दियों में ऊनी जुराबें पहनकर रखनी चाहिए।

- सर्दियों के मौसम में शरीर के जॉइंट में मौजूद फ्लूड जो जॉइंट को मुलायम और रगड़न से बचाए रखता है, वह गाढ़ा हो जाता है। इससे हड्डियों में अकड़न बढ़ जाती है। इसके लिए जरूरी है कि हम वॉक करें। अगर बाहर निकलकर वॉक नहीं कर सकते तो घर में ही वॉक करें या फिर बैठे-बैठे स्ट्रेच करें।

- अगर खड़े होकर एक्सरसाइज नहीं कर सकते तो कुर्सी पर बैठकर करें। इसके लिए कुर्सी पर सीधे होकर बैठ जाएं यानी स्पाइनल कॉर्ड सीधी हो। इसी स्थिति में आपके दोनों पैर सीधे जमीन पर हों। फिर बारी-बारी से दोनों पैरों को 90 डिग्री यानी ऊपर की तरह उठाएं। इसे 10 बार दोहराएं। यह ध्यान रहे कि दोनों पैरों को एक साथ नहीं उठाना है। दोनों पैरों को एक साथ उठाने पर कूल्हे की एक्सरसाइज होती है और उसी पर दबाव पड़ता है।

- शरीर में दर्द बढ़ाने में हमारी डाइट का भी योगदान है। दरअसल, किसी खास अंग में यूरिक एसिड के ज्यादा बनने से भी दर्द होने लगता है। हमें ऐसी चीजें कम खानी चाहिए जिनसे ज्यादा यूरिक एसिड बनता है। जैसे: साग, फूलगोभी और पत्तेदार सब्जियां। ये चीजें खासकर किडनी मरीजों को कम खानी चाहिए। इनकी जगह घीया आदि खाएं। इसलिए किडनी मरीजों को हर 2 या 3 महीने पर KFT टेस्ट कराना चाहिए।

तेल मालिश कितनी फायदेमंद
- मालिश के लिए तिल का तेल सबसे अच्छा है। अगर वह न हो तो सरसों के तेल से मालिश करें।

- सर्दियों में खून का बहाव ठीक रहे, इसके लिए तेल मालिश करना या करवाना चाहते हैं तो पंजों की ओर से मालिश शुरू करें और ऊपर की ओर बढ़ते हुए यानी घुटनों तक पहुंचते हुए दबाव कम करते जाएं। फिर जांघों पर बहुत हल्की मालिश। इसी तरह पीठ में भी जब दर्द न हो तो मालिश कर सकते हैं।

- चूंकि सर्दियों में स्किन और दूसरे अंगों तक खून का बहाव दिमाग और दिल की तुलना में कुछ कम होता है, इसलिए मालिश फायदेमंद हो सकती है।
-जब जोड़ों की मालिश करें तो दबाव न डालें बल्कि वहां हल्के हाथों से तेल लगाकर गोल-गोल घुमाएं।

सर्दी-जुकाम छू-मंतर
जब सर्द हवा शरीर के भीतर जाती है तो नतीजा सर्दी-जुकाम के रूप में बाहर आता है। नाक से पानी आना, बार-बार छींकें आना। कभी-कभी शरीर भी हल्का गर्म हो जाता है। इससे बचने का तरीका है कि किसी भी तरह से हवा शरीर के भीतर न घुस पाए। सुबह टहलने से बचें। धूप निकलने पर ही टहलें। दरअसल, सुबह-सुबह बाहर का तापमान भी दिन की अपेक्षा बहुत कम होता है और पलूशन का स्तर भी बहुत बढ़ा होता है। बुजुर्ग सुबह-सुबह नहाने से बचें, चाहे वे गर्म पानी से ही क्यों न नहाते हों। अगर किसी दिन धूप न निकले तो उस दिन न नहाएं। सर्दी लगने से एक तरफ जहां सर्दी-जुकाम का खतरा भी बना रहता है, वहीं तापमान के ज्यादा कम होने से एंजाइना या हार्ट अटैक का खतरा भी रहता है। जब भी नहाएं, कपड़े उतारकर सीधे शरीर पर पानी न डालें। कपड़े उतारने और पानी डालने के बीच में कम से कम 2 से 3 मिनट का फासला जरूर रखें।

ये हैं उपाय
- पूरा शरीर ढककर रखें। कान, नाक, पैर सभी अंग। इसके लिए मफलर रखें। मंकी कैप से कान और सिर ढके रहते हैं। वहीं मास्क से कोरोना और ठंडी हवा से भी सुरक्षा मिल जाएगी।

-कोशिश करें कि ठंडी हवा में न जाएं। अगर जाना भी पड़े तो ठंडी हवा शरीर के भीतर न पहुंचे, ऐसा इंतजाम रखें। जहां तक मुमकिन हो गुनगुना पानी पिएं।
-अगर खांसने पर बलगम भी आए तो दिन में तीन बार 5 से 7 मिनट के लिए स्टीम जरूर लें।

-कई बार सर्दी-जुकाम की वजह से सिर दर्द भी रहता है। इसके लिए कई लोग पेनकिलर ले लेते हैं। यह सही नहीं है। इससे किडनी पर बुरा असर पड़ता है। अगर दर्द बर्दाश्त से बाहर हो तो ही पेनकिलर लें, वह भी डॉक्टर से पूछ कर।

-अगर ठंड लग जाए और गले में खराश हो तो दिन में 2 बार गर्म सूप या गर्म काढ़ा पी सकते हैं। इससे फौरी रहत मिल जाती है।

सोते समय भी न लगे ठंड...

-मंकी कैप एक बेहतरीन विकल्प है। इसे पहनने पर सिर ढका रहता है, मुंह और नाक खुले रहते हैं। कड़ाके की सर्दी में मंकी कैप पहनने से बच्चों और बुजुर्गों का ठंड से बचाव होता है।

-जुराब पहनकर सोने की वजह से कंबल या रजाई हटने पर भी पैरों से ठंड नहीं लगती। हालांकि कई लोगों को जुराबें पहनकर सोने की आदत नहीं होती। सच तो यह है किसी को जुराबें पहनकर नींद आती है और किसी को पहनने के बाद नींद नहीं आती। हां, इतना जरूर ध्यान रख सकते हैं कि जुराबें ढीली हों। अगर पुरानी ढीली जुराबें हैं तो अच्छा है। इससे वे इस्तेमाल भी हो जाएंगी और पैरों के निचले हिस्से पर दबाव भी नहीं पड़ेगा। साथ ही पैरों में खून का दौरा भी बरकरार रहेगा। कुछ जुराबों का इलास्टिक टाइट रहता है, ऐसी जुराबें पहनने से बचें।

बीपी और हार्ट को रखें दुरुस्त
ठंड के मौसम में अमूमन पूरी दुनिया में हार्ट अटैक, स्ट्रोक आदि की परेशानी सबसे ज्यादा होती है। इसका मतलब यह नहीं कि जो भी दिल के मरीज हैं या जिन्हें बीपी की परेशानी है, उन सभी को डरने की जरूरत है। असल में जो लोग चीजों को गंभीरता से लेते हैं, वे अपना बचाव करके रखते हैं। सर्दियों में खून थोड़ा गाढ़ा हो जाता है। इससे शरीर के हर अंग तक खून पहुंचाने और उसे वापस लाने में हार्ट को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। साथ ही नसों के सिकुड़ने से स्थिति ज्यादा गंभीर हो जाती है। इसकी वजह है फिजिकल ऐक्टिविटी कम करना या सही समय और तरीके से नहीं करना, ठंड से बचाव कम करना और जब दवाओं को बदलने की जरूरत होती है तो उन्हें न बदलना।

ये हैं उपाय
- ठंड ज्यादा हो तो घर के अंदर ही टहलें। टहलना बंद न करें। एक्सरसाइज जरूर करें, लेकिन शरीर के साथ जबर्दस्ती नहीं।
-शरीर को गर्म रखें।

-अगर 20 कदम टहलने पर या बैठने पर छाती में भारीपन हो या सांस फूलने लगे या पसीना आए तो यह एंजाइना का लक्षण है। ऐसे में इसे नजरअंदाज न करें। फौरन ही दिल के डॉक्टर (बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड नहीं ) से मिलें।

- समय पर सचेत हो गए तो हार्ट अटैक को आने से पहले रोका जा सकता है।

-अमूमन हार्ट अटैक की परेशानी एंजाइना को नजरअंदाज करने से ही होती है।

-जहां तक बीपी की बात है तो यह सभी बीमारियों की जननी है। इसे काबू में रखना बहुत जरूरी है। अगर दवा ले रहे हैं तो इसे न खुद बदलें और न बंद करें।

-कोशिश यह हो कि सर्दियों के आने से पहले या शुरू होने के बाद भी डॉक्टर से मिलें। कई बार सर्दियों में डॉक्टर दवा बदल देते हैं या पावर बढ़ा देते हैं ताकि बीपी के बढ़ने से ज्यादा दिक्कत न हो।

-नमक कम खाएं। ऊपर से तो बिलकुल न लें। चटनी, अचार, नमकीन, चिप्स आदि में ज्यादा नमक होता है। अगर बीपी है तो इन्हें बहुत कम कर दें या न लें।

-सिगरेट और अल्कोहल का सेवन न करें। इससे बीपी की परेशानी बढ़ जाती है। वहीं हार्ट की समस्या में भी यह खतरनाक है।

...तो बार-बार यूरिन नहीं
सर्दियों में बार-बार यूरिन आने की परेशानी कई लोगों को होती है। कई लोग तो पानी पीना ही कम कर देते हैं।

ये हैं उपाय

-अगर किसी को बार-बार यूरिन की परेशानी आ रही है तो इसकी कई वजहें हो सकती हैं।

- गलत तरीके से और गलत मात्रा में पानी पीना। गलत समय पर पानी पीना।

-बार-बार यूरिन आने का मतलब है दिनभर में 5-7 बार से ज्यादा बार यूरिन आना और रात में सोने के बाद 1 बार से ज्यादा यूरिन आना।

-पूरे दिन में एक से डेढ़ लीटर तक यूरिन आना सामान्य है।

- इसके लिए एक बार में आधा गिलास पानी पीना चाहिए, वह भी हर 1 घंटे पर यानी नियमित अंतराल पर पानी पीना।

- शाम को पानी लेना कम कर दें। सोने के पहले तक 1 से 2 गिलास पानी काफी है।

- नमक की मात्रा जरूर कम करें। दिनभर में 1 चम्मच यानी 5 ग्राम से भी कम नमक लें। नमक ज्यादा लेने से शरीर पानी को ज्यादा समय तक रोककर रखता है।

- अगर इन उपायों से भी परेशानी कम नहीं हो रही है तो इसका मतलब है कि कोई दूसरी परेशानी हो सकती है।

-किडनी, शुगर, प्रोस्टेट की परेशानी, किसी बीमारी की वजह से यूरिनरी ब्लैडर छोटा हो गया हो या फिर न्यूरॉलजी की समस्या हो सकती है। ऐसे में पहले जनरल फिजिशन दिखाना चाहिए। इसके बाद उनके सुझाव पर विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

चोट और गठिया में फायदा

आर्थराइटिस वालों को सलाह
यह कई तरह का होता है, सबसे आम है ऑस्टियो-आर्थराइटिस और रूमैटॉयड आर्थराइटिस जिसे गठिया कहते हैं।

-लगातार बैठे रहने का काम है तो आधा घंटे के गैप पर 5 मिनट का ब्रेक लें, स्ट्रेचिंग करें।

- हर दिन सुबह में 11 से 2 बजे के बीच 35 मिनट धूप में बैठें। डॉक्टर की सलाह से विटामिन-डी और कैल्शियम सप्लिमेंट्स जरूर लें।

-जॉइंट्स पर ज्यादा दबाव न डालें, जैसे कि भारी सामान उठाना, पोछा लगाते समय भारी बाल्टी उठाना आदि।

-टॉयलेट में भी वेस्टर्न टॉयलेट का चुनाव करें। इंडियन बनावट वाले से बचें क्योंकि इससे घुटनों पर दबाव ज्यादा पड़ता है।

-जब भी नहाएं, गुनगुने पानी से ही नहाएं। अगर बहुत ज्यादा ठंड हो तो नहाने को टाल भी सकते हैं।

अगर चोट लग जाए
चोट लगने का कोई मौसम नहीं होता, यह कभी भी लग सकती है। लेकिन इसके दर्द को कम करने का तरीका है। इसे हम घर पर भी चोट लगने के फौरन बाद अपना सकते हैं:

-चोट लगने से दर्द हो, सूजन हो और खून न निकल रहा हो तो ठंडे पैक या आइस से सिकाई करें।

-अमूमन सूजन 24 से 48 घंटे में चली जाती है यानी जब तक सूजन हो ठंडी सिकाई करें। फिर हॉट पैक से सिकाई करें।

- यहां ध्यान रहे कि घाव खुला न हो यानी खून न निकल रहा हो।

सीढ़ी या ऊंचाई चढ़ने पर बढ़ जाए दर्द
अगर पैरों या जोड़ों में दर्द पहले से हो और सीढ़ी पर बिना आदत के चढ़ जाएं तो अक्सर हमारी मांसपेशियों या हड्डियों में दर्द होने लगता है। ऐसे में भी हमें पहले दो दिनों तक ठंडी सिकाई करनी चाहिए। इसके बाद भी ठीक न हो तो गर्म सिकाई करें।

महिलाएं ऐसे करें कमर दर्द पर काबू
- कमर को ठंड के संपर्क में आने ही न दें। कमर के इर्द-गिर्द कोई गर्म कपड़ा लपेट कर रखें। हॉट वॉटर पैक से दिन में 2 से 3 बार 10 मिनट के लिए सिकाई करें। विटामिन-डी सप्लिमेंट्स लें।

बदहजमी का हल
जब शरीर की क्षमता कम होने लगती है तो पचाने की शक्ति भी घट जाती है। सर्दियों में भी ऐसा ही होता है। वहीं जब शरीर के किसी भाग में ठंड लगती है तो वहां दर्द होने लगता है। इससे पेट के पाचक रसों की कार्यक्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा कई बार रोटा वायरस के इंफेक्शन से भी पाचन की परेशानी हो सकती है। इसे आंतों का जुकाम भी कह सकते हैं। बच्चों के लिए तो रोटा वायरस के इंजेक्शन भी आए हुए हैं। उन्हें लगवा सकते हैं।

ये हैं उपाय
ठंड की वजह से जब शरीर की पाचन क्षमता कम हो गई हो और हम पार्टियों में जाकर या घर में हेवी डाइट लेते हैं तो इस तरह की परेशानी हो जाती है। ऐसे में ज्यादा हेवी डाइट न लें।

-जितना खाते हैं, उसका एक चौथाई कम कर दें। खासकर रात का खाना तो जरूर कम करें। इससे वजन भी काबू में रहता है।

-आसानी से पचने वाला खाना खाएं।

-लूज मोशंस हो जाए तो पानी की कमी न हो।

-हर 2 घंटे पर एक गिलास ओआरएस का घोल या नमक, चीनी और पानी का घोल पिएं।

क्या खाएं
- हर दिन 1 या 2 संतरे

- हर दिन तुलसी पत्ता, लौंग, दालचीनी, अदरक को मिलाकर काढ़ा बनाएं और आधा कप पिएं।

- मिले-जुले अनाज (दाल, मक्का, गेहूं, चावल, बाजरा आदि को बराबर भाग में मिलाकर) आटे से रोटी बनाकर खाएं।

नोट: किस मौसम में कौन-सा आटा खाना बेहतर है, विस्तार से पढ़ने के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNbt पर जाएं और #Aaata सर्च करें।

इन्हें ज्यादा न खाएं
गुड़: दिनभर में 2 से 3 चम्मच यानी 10 से 15 ग्राम। अगर गुड़ से बनी चीजें खाना पसंद करते हैं तो चाय में, मिठाई में, हलवा आदि में डालकर खा सकते हैं। अगर डायबीटीज नहीं है तो यह मात्रा 50 से 100 ग्राम तक कर सकते हैं।

ड्राइ फ्रुट्स: हर दिन 1 अखरोट, 3 बादाम, 2 पिस्ता और एक मुट्ठी मूंगफली खा सकते हैं।
प्याज और लहसुन: सब्जियों में एक प्याज और लहसुन की 4 से 5 कली ठीक है, लेकिन जब कच्चा खाने की बात आती है तो एक टुकड़ा प्याज और 1 से 2 लहसुन की कली काफी है।

कब जाएं डॉक्टर के पास
- यूरिन का रंग गाढ़ा हो जाए और मात्रा आधी या उससे भी कम हो जाए। कई बार ज्यादा गंभीर होने पर यूरिन बंद भी हो सकता है। बहुत ज्यादा कमजोरी लगने लगे।

हीटर और ब्लोअर के इस्तेमाल का सही तरीका
-ऐसे लोग जिन्हें सर्दियों में दर्द की शिकायत रहती है उन्हें ड्राइ हीट से बचना चाहिए। हम ड्राई हीट देकर त्वचा और मांसपेशियों को ज्यादा ड्राइ बना देते हैं।

-अगर हीटर के सामने बैठना मजबूरी हो तो उस अंग में तेल (तिल या सरसों का तेल) जरूर लगा लें जिसे हीटर से सेक रहे हों। साथ ही उसे ढककर भी रखें।

आपके काम का हीटर

सामान्य हीटर और ब्लोअर
-सामान्य हीटर या ब्लोअर दोनों ही हवा में मौजूद ऑक्सीजन और नमी की मात्रा को कम करते हैं।
-कीमत: 500 रुपये से शुरू
-कंपनियां: Orpat, Usha, Lifelong आदि।

हैलोजन हीटर
- इस हीटर के इस्तेमाल में हवा में मौजूद ऑक्सीजन और नमी लगभग बने रहते हैं।
-कीमत: 900 रुपये से शुरू
-कंपनियां: Bajaj, Cruiser, Maharaja आदि।

इंफ्रारेड हीटर
-यह हीटर भी हवा में मौजूद ऑक्सीजन और नमी की मात्रा को प्रभावित नहीं करता।
- कीमत: 800 से शुरू
-कंपनियां: Sunflame, Usha आदि।

ऑयल फील्ड रेडिएटर हीटर
तेल की मौजूदगी की वजह से कमरे की नमी और ऑक्सीजन को कम नहीं करती। n आग की गुंजाइश न के बराबर है।
-कीमत: 8000 से शुरू
-कंपनियां: Usha, Bajaj, Havells आदि।
नोट: ऊपर बताई गई कंपनियों के अलावा भी दूसरी कई कंपनियों के अच्छे हीटर बाजार में मौजूद हैं।

सावधान!
1. सर्दी से बचने के लिए कुछ लोग बंद कमरे में अंगीठी या कोयले जलाकर सो जाते हैं। यह खतरनाक है। इससे कमरे में ऑक्सीजन की कमी से दम घुट सकता है।

2. बाजार में मिलने वाले आम हीटर बंद कमरे में नमी सोख लेते हें। इससे तरह-तरह की परेशानियां हो सकती हैं। ऐसे में कमरे में एक बड़े बर्तन में पानी भरकर रखें।

एक्सपर्ट पैनल
-डॉ. एस. सी. मनचंदा, एक्स हेड, कार्डियॉलजी डिपार्टमेंट, AIIMS
-डॉ. राजेश खडगावत, प्रफेसर, एंडोक्राइन डिपार्टमेंट, AIIMS
-डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन, मेडिकल, IP यूनिवर्सिटी
-डॉ. भावुक गर्ग, अडिशनल प्रफेसर, ऑर्थोपिडिक्स, AIIMS
-डॉ. साइमन थॉमस, सीनियर ऑर्थोपिडिक सर्जन
-डॉ. राजीव अग्रवाल, इंचार्ज, न्यूरो-फिजियोथेरपी, AIIMS
-डॉ. प्रशांत जैन, सीनियर यूरॉलजिस्ट
-डॉ. सत्या एन. डोरनाला, वैद्य-साइंटिस्ट फेलो
-सुरक्षित गोस्वामी, जाने-माने योग गुरु

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2022 में हेल्दी हो जा रे...

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सच तो यह है कि कोरोना ने घर बिठाया और फिर वजन बढ़ाया। वजन बढ़ा तो तमाम अंगों दिल, जिगर, किडनी पर दबाव आना शुरू हुआ। साथ ही हमारी कुछ गलत आदतों ने भी समस्याएं बढ़ाने का काम किया। लोकेश के. भारती यहां बता रहे हैं कि ऐसी ही चंद आदतों को बदलने से कैसे नया साल हमें बेहतरीन सेहत दिला सकता है:

सामान्य से ज्यादा वजन का मतलब है बीमारियों को बुलावा। अगर कोई ओवरवेट है या फिर मोटा, इसका मतलब है उसके शरीर में अतिरिक्त वसा जमा हो गया है। शरीर में मौजूद इस अतिरिक्त वसा की वजह से हर सेकंड तमाम अंगों को अतिरिक्त काम करना पड़ता है। नतीजा बीपी और शुगर की परेशानी। नए साल की शुरुआत हम इस संकल्प के साथ करें कि शरीर से अतिरिक्त वसा को निकालना है। शारीरिक और मानसिक तनाव से शरीर को मुक्त करना है।

मोटापे को बाय-बाय
करोड़ों लोग मोटापा कम करने के लिए हर दिन शपथ और संकल्प लेते हैं। लेकिन वह हर बार टूट जाता है। आखिर यह टूटता क्यों है, इस पर नहीं सोचते। कुछ बातों का ध्यान रखेंगे तो बात बन जाएगी।

मुश्किल नहीं है रुटीन को 70 से 80 फीसदी निभाना
जब हम कोई संकल्प लेते हैं और फिट रहने के लिए रुटीन बनाते हैं तो यह मानकर चलते हैं कि इसे 100 फीसदी निभाना है। समस्या यहीं से शुरू होती है। इसकी गठरी बांधकर न रखें कि अगर 100 फीसदी नहीं हुआ तो दूसरे दिन हमारा मोटिवेशन कम हो जाए या फिर पिछले दिन की एक्सरसाइज हम दूसरे दिन जोड़कर करें। इससे अतिरिक्त भार आ जाता है और हम आगे के लिए टूट जाते हैं। अगर हफ्ते में 70 से 80 फीसदी यानी 5 से 6 दिन भी रुटीन फॉलो हो जाए तो यह गलत नहीं है। हमारा काम इतने से हो जाएगा।

1 गिलास पानी से शरीर साफ
शरीर को डिटॉक्सिफाई करने के लिए उठने के फौरन बाद या फिर फ्रेश होने के बाद एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू निचोड़कर लें या फिर पानी में एक छोटा टुकड़ा दालचीनी या एक चम्मच अजवाइन या एक चम्मच हल्दी या फिर इन सभी को मिलाकर उबाल लें और गुनगुना होने पर पी लें।

योग करेंगे और पैर चलेंगे तो सब चलेगा
योग और एक्सरसाइज करना जरूरी हैं। वैसे 10 से 20 मिनट योग करना काफी है। इसके बाद भी अगर कोई शख्स एक्सरसाइज करना चाहे तो यह उसकी क्षमता पर निर्भर करता है। अगर युवा हैं तो योग और एक्सरसाइज दोनों ही कर सकते हैं। बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं है। अगर हर दिन वॉर्मअप भी किया और 40 मिनट की वॉक कर ली तो धीरे-धीरे मोटापा चला जाएगा।

सलाद है मोटापे के लिए रामबाण
सलाद का उपयोग पेट भरने और मिनरल व विटामिन के लिए होना चाहिए। लंच और डिनर शुरू करने से पहले अपने बॉडी वेट का 0.5 % सलाद (खीरा, टमाटर, गाजर) बिना नमक के खाएं। नीबू ले सकते हैं। सीधे कहें तो 70 किलोग्राम वजन वाले इंसान को 350 ग्राम सलाद जरूर खानी चाहिए।

डायटिंग का चर्चित प्लान
  • ये इंटरमिटेंट फास्टिंग प्लान है। इसमें कैलरी में कटौती न करके खाने का समय तय करने पर जोर दिया जाता है।
  • सुबह, दोपहर और रात के खाने को 4 से 10 घंटों के भीतर खत्म करने की कोशिश की जाती है। इस दौरान किसी भी तरह के खाने पर कोई रोक नहीं होती। ध्यान रहे कि बाकी बचे 14 से 20 घंटे में कुछ भी खाना नहीं है।
  • फास्टिंग के दौरान जीरो कैलरी वाले आइटम्स जैसे पानी, ग्रीन टी और ब्लैक कॉफी आदि ले सकते हैं। कुछ एक्सपर्ट्स छांछ, लस्सी आदि की छूट देेते हैं।
  • अगर इस डाइट प्लान को फॉलो करना है तो एक से दो हफ्ते पहले से अपनी डाइट को कम कर देना चाहिए। इससे फास्टिंग पीरियड की आदत पहले ही लग जाएगी और फास्टिंग के दौरान भूख कम लगेगी।

22 में न करें ये 11 गलतियां
  1. असलियत स्वीकार न करना: मैं मोटा नहीं हूं। अगर हूं भी तो काम करने में कोई परेशानी नहीं है। इस तरह की गलत सोच वे लोग रखते हैं जो ओवरवेट हैं। हमारा सामान्य वजन लंबाई और उम्र के अनुसार क्या होना चाहिए, इसे गूगल पर अपनी लंबाई, उम्र आदि भरकर जानकारी निकाल सकते हैं। अपना BMI भी निकाल सकते हैं।
  2. रुटीन फॉलो न कर पाएं तो निराश: रुटीन 100 फीसदी फॉलो न होने पर निराश नहीं हो जाना चाहिए। इस बात को समझना चाहिए कि 100 फीसदी रुटीन फॉलो करना मुमकिन नहीं है। हां, जितना ज्यादा कर पाएं, उतना बेहतर। 70 से 80 फीसदी कर लें तो काफी है।
  3. नींद पूरी न करना: अगर हम रात को 10 से 11 के बीच न सोएं और 7 से 8 घंटे की नींद पूरी करने के बाद न उठें तो पूरा दिन खराब रहता है। न हमें एक्सरसाइज करना अच्छा लगता है और न बाकी काम। सीधे कहें तो नींद पूरी न होने की वजह से उस दिन का हमारा सारा रुटीन ही फेल हो जाता है।
  4. देर रात तक जागना: रात में देर तक मोबाइल या कंप्यूटर पर नेट सर्फिंग करने, मूवी देखने और लेट नाइट पार्टियों के शौक पर कुछ लोग लगाम नहीं लगाते। जब तक शरीर सही वक्त पर भरपूर नींद नहीं लेगा, वजन घटाना काफी मुश्किल है।
  5. कैलरी का ध्यान न रखना: हम हर दिन क्या खाते हैं और उनमें कितनी कैलरी होती है, इसका पता पूरा न सही लेकिन कुछ हद तक होना ही चाहिए। अगर वजन कम करना है तो 24 घंटे में 1200 से 1400 कैलरी से ज्यादा नहीं लेनी चाहिए।
  6. इमोशनल ईटिंग करना: लोग खुशी में ही ओवर ईटिंग नहीं करते। कई बार स्ट्रेस में भी ज्यादा खाना खाते हैं। वहीं डिप्रेशन के दौरान शरीर ऐसे हार्मोन बढ़ा देता है जो हमें खाने के लिए मजबूर करते हैं। ऐसे में लोग चॉकलेट्स और जंक फूड खाते हैं या कोल्ड ड्रिंक्स पीते हैं।
  7. हेल्दी स्नैक्स न खाना: अगर खाना खाने के कुछ घंटों बाद हमें भूख लगने लगती है तो दरअसल वह प्यास हो सकती है। तब एक गिलास पानी पी लेना चाहिए। शरीर को कार्बोहाइड्रेट यानी मीठे की आदत होती है इसलिए हम कुछ मीठा खोजने लगते हैं। इससे बचने के लिए हेल्दी स्नैक्स पास में रखें। मसलन: ड्राई फ्रूट्स, सलाद, फल आदि।
  8. सलाद कम या न खाना: लोगों की थाली में सलाद का हिस्सा अक्सर 8 से 10वां होता है। जिन्हें वजन कम करना है, उनकी थाली में इसकी हिस्सेदारी 50 से 70 फीसदी तक होनी चाहिए। सलाद लेने पर हमें ज्यादातर विटामिन मिल जाते हैं। वैसे सलाद खाने के लिए सबसे अच्छा वक्त लंच और डिनर से पहले का है। हर दिन दोनों समय मिलाकर 400 से 500 ग्राम सलाद जरूर खाएं। इससे इम्यूनिटी भी मजबूत होती है जो कोरोना जैसे वायरस से लड़ने में मदद करती है।
  9. बाहर का भोजन ज्यादा खाना: तकरीबन सभी रेस्तरां बड़े सर्विंग साइज में ही खाना परोसते हैं और वह हाई कैलरी वाला होता है। इससे जितनी बार बाहर का खाना खाते हैं, हम बहुत ज्यादा मात्रा में कैलरी शरीर में पहुंचाते हैं। यह कैलरी आखिरकार फैट में बदल जाता है।
  10. कम पैदल चलना: तीन फ्लोर तक जाने के लिए सीढ़ियों का ही सहारा लें। ऑफिस में बैठकर काम करते हैं तो हर 2 घंटे तक चेयर पर बैठे रहने के बाद उठकर 5 मिनट के लिए वॉक करें।
  11. खाने और सोने के बीच गैप न रखना: रात को 8 या 9 बजे तक खाना न खाना और खाने व सोने के बीच में 2 से 3 घंटे का गैप न रखना। इससे भी हमारा वजन बढ़ जाता है।

HLKLM पंचांग यानी ये 5 अंग चुस्त तो सेहत दुरुस्त
ज़िंदगी में कैसी भी हो आपाधापी, शरीर के इन हिस्सों का ध्यान रखना बहुत जरूरी

H बोले तो Heart
दिल की परेशानी की शुरुआत ज्यादातर मामलों में बीपी के बढ़ने से होती है। इसलिए बीपी को काबू में रखना बहुत जरूरी है। एक बार जब बीपी की परेशानी शुरू हो जाए और वह काबू में न रहे, साथ में मोटापे की मौजूदगी भी हो तो दिल की परेशानी भी पैदा होने लगती है।

बीपी और हार्ट के लिए 7 'S' पर काम जरूरी
Sedentary lifestyle: इसका मतलब है कि हमारी फिजिकल ऐक्टिविटी बहुत कम है। हम पसीना बिलकुल नहीं बहाते। नतीजा यह होता है कि हम जो भी खाते हैं, वह शरीर में चर्बी के रूप में जमा होता चला जाता है। नतीजा होता है मोटापा। जब मोटापा आ जाता है तो शरीर में हॉर्मोन्स की कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
Stress: तनाव चाहे किसी भी वजह से हो, हमारे शरीर के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक है। स्ट्रेस की वजह से ही पहले बीपी की शुरुआत होती है। जब बीपी लगातार बना रहता है तो डायबीटीज अपनी सीमाएं लांघने के लिए बार-बार दस्तक देने लगती है।
Sleep: कहते हैं कि अगर आप अच्छी नींद लेते हैं तो स्ट्रेस से आप दूर रहते हैं। तनाव और नींद अमूमन साथ में नहीं होते। हर रात हमारी नींद 7 से 8 घंटे की जरूर हो।
Salt: खाने में ज्यादा नमक बीपी बढ़ाने का काम करता है। वहीं नमक शरीर में अतिरिक्त पानी को भी रोकता है।
Sugar: चीनी या फिर मीठा ज्यादा खाना भी शुगर को जल्दी बुलाने का काम करता है, खासकर तब जब हमारी फिजिकल ऐक्टिविटी काफी कम हो।
Smoking: वैसे तो स्मोकिंग फेफड़ों और दिल, दोनों के लिए हानिकारक है। यह इंसुलिन के कामकाज को भी प्रभावित करती है। इससे शुगर बढ़ती है।
Spirits: अल्कोहल से होने वाले नुकसान के बारे में सभी जानते हैं। वहीं, अल्कोहल भी बीपी और शुगर को बढ़ाने की कोशिश में लगा रहता है।

जब सीने में हो दर्द
एसिडिटी
  • छाती के नीचे और पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होगा। दर्द एक ही जगह होता है।
  • दर्द एक चुभन के रूप में होगा।
  • यह परेशानी खाने-पीने के बाद ही होती है। गैस और डकार आएगी।
  • धड़कन में कोई बदलाव नहीं होगा।
एंजाइना: खून की नली का रास्ता तंग होना
  • सीने में दर्द, जलन, भारीपन, पसीना आना सबकुछ हो सकता है। ऐसा भी महसूस हो सकता है कि कोई गला घोंट रहा है। यह दर्द आमतौर पर 30 सेकंड से ज्यादा समय तक रहता है। फिर आराम करने पर बंद हो जाता है।
  • जब भी सीने में दर्द के ऐसे लक्षण हों तो फौरन ही घर में 20 से 30 मीटर चलें और फिर 5 से 10 मिनट के लिए बैठ जाएं।
  • चलते समय यह परेशानी कायम रहे और बैठने या आराम करने पर खत्म हो जाए या कुछ आराम मिले तो आमतौर पर यह एंजाइना की परेशानी होती है।
  • इसमें एक उंगली से पॉइंट करके बताना मुश्किल होता है कि दर्द कहां पर हो रहा है। यह आमतौर पर बड़े एरिया में होता है।
हार्ट अटैक
  • दर्द, जलन, भारीपन, पसीना आना सबकुछ हो सकता है।
  • सीने में उठने वाला दर्द कई बार लेफ्ट कंधे की तरफ बढ़ने लगता है। मरीज को बेचैनी होने लगती है।
  • इसमें होने वाला दर्द बहुत तेज होता है, एंजाइना में इतना दर्द नहीं होता। शुगर पेशंट की हालत ज्यादा खराब हो सकती है। हाई शुगर की वजह से दिल की नसें कई बार सुन्न हो जाती हैं, इसलिए हार्ट अटैक होने पर दर्द का अहसास ही नहीं होता। मरीज अमूमन होश में होता है। दर्द से जरूर परेशान रहता है।

L बोले तो Lungs
सेहतमंद फेफड़ों के लिए जान लें ये बातें
घर से बाहर निकलने पर ऐसा मास्क लगाकर रखना जो कोरोना और पलशून दोनों से बचाव करे।
सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू जैसी चीजों से पूरी तरह तौबा करना और पैसिव स्मोकर (बगल में बैठा हुआ कोई शख्स सिगरेट या धुआं निकालने वाली चीज ले रहा हो) भी न बनना।
घर में धूप या अगरबत्ती न जलाना। इसके धुएं से सांस लेने में परेशानी हो सकती है। यह परेशानी एक दिन में पैदा नहीं होती। चूंकि धूप या अगरबत्ती का धुआं हर दिन निकलता है, इसलिए धीरे-धीरे इससे शरीर को परेशानी आती है। कई बार हमें इसका पता भी नहीं चलता।
खानपान सही हो: हमारी डाइट में ये सब शामिल हों:
कार्बोहाइड्रेट- चावल या रोटी, प्रोटीन- दालें, फैट्स- सरसों का तेल या
देसी घी, मिनरल और विटामिन- हरी सब्जियां, फल। इन सभी को हफ्ते में एक बार नहीं, हर दिन खाना है। हमारी हर डाइट में प्रोटीन जरूर शामिल होना चाहिए।
मौसमी फल, सब्जियां: इन्हें खाने में जरूर शामिल करें। कम से कम हर दिन 1 से 2 कटोरी हरी सब्जियां, जैसे- पालक, सरसों का साग, फूल गोभी आदि और हर दिन 1 से 2 फल जैसे- सेब, संतरा, अनन्नास आदि सुबह नाश्ते के बाद लें। दरअसल, इन सब्जियों और फलों में ओमेगा 3 फैटी एसिड मिलते हैं। नॉनवेज खाने वालों के लिए मछली बेहतरीन चीज है। ये सब चीजें फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाती हैं। शरीर में सूजन घटाती हैं। तुलसी, हल्दी और आंवला भी फायदेमंद है। सर्दियों में काढ़ा पीना ज्यादा फायदेमंद है।
हर दिन धूप जरूर लें। शरीर में जहां भी कोई परेशानी देखी जाती है, उसके पीछे एक वजह विटामिन-डी की कमी होती है। इसलिए जरूरी है कि हम जाड़ों में हर दिन सुबह 9 से 12 बजे तक 35 से 40 मिनट के लिए और गर्मियों में सुबह 10 से 1 बजे के बीच 30 से 35 मिनट के लिए धूप में जरूर बैठें।
धूप लेने के दौरान शरीर जितना खुला रख सकते हैं, उतना रखें। इस बात का भी ध्यान रखें कि धूप और शरीर के बीच में कोई पारदर्शी चीज भी न हो, जैसे शीशा या प्लास्टिक। अगर ऐसी चीजों से धूप छनकर आएगी तो शरीर के लिए विटामिन- डी का निर्माण नहीं हो पाएगा। इससे धूप में बैठने के बाद भी हमें जरूरी विटामिन-डी नहीं मिलेगाे।

K बोले तो Kidney ये हैं किडनी से जुड़ी खास बातें
  • शुगर और बीपी है तो किडनी पर खास ध्यान देना जरूरी है। हर 6 महीने पर KFT जरूर कराएं।
  • हमें हर दिन 3 से साढ़े तीन लीटर तक लिक्विड लेना चाहिए। इसमें पानी, दूध, चाय, कॉफी और सब्जियों आदि से मिलने वाला लिक्विड शामिल है। जब हम हर दिन 3 लीटर लिक्विड लेते हैं तो 24 घंटे में किडनी इसे 60 बार फिल्टर करती है। इसका मतलब है कि किडनी को 180 लीटर लिक्विड फिल्टर करने का काम करना पड़ता है। अगर हम 1 लीटर लिक्विड बढ़ाकर 4 लीटर कर दें तो किडनी को हर दिन 60 लीटर ज्यादा लिक्विड फिल्टर करना होगा यानी 240 लीटर लिक्विड फिल्टर करेगी। इससे किडनी पर लोड बढ़ता है और किडनी की लाइफ कम होती जाती है। अगर डायलिसिस पर हैं तो इतना ज्यादा न लें। डॉक्टर की सलाह पर ही लें।
  • हमें हर दिन औसतन 8 से 10 गिलास (2 से ढाई लीटर के करीब) पानी लें, इससे कम नहीं। गर्मियों में 10 गिलास और सर्दियों में 7 से 8 गिलास।
  • किडनी फिल्टर करती है।
  • कोई सेहतमंद शख्स एक दिन में 3से 5 बार यूरिन जाता है। रात में सोने के बाद नहीं जाता या ज्यादा से ज्यादा 1 बार जाता है।
  • इस बात को समझें कि हमारा शरीर औसतन डेढ़ से दो लीटर यूरिन हर दिन शरीर से बाहर निकलता है।
  • किडनी में खराबी होगी तो पूरा फिल्टरेशन नहीं होगा और सबसे पहले आंखों के आसपास और पैरों में सूजन आएगी।
  • यह सोचना भी गलत है कि पानी ज्यादा पीने से किडनी दुरुस्त रहती है। पानी उतना ही पीना चाहिए, जितनी प्यास हो। उससे ज्यादा नहीं।
किडनी में परेशानी के ये हैं लक्षण
अगर बीपी और शुगर की परेशानी है तो ऐसे लोगों को इन लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए:
  • भूख कम लगना
  • वजन तेजी से घटना। अगर महीने में 3 से 4 किलो वजन कम होने लगे तो अलर्ट हो जाएं। n आंखों के नीचे, हाथों और पैरों में सूजन आना
  • खून की कमी यानी एनीमिया होना
  • यूरिन में ब्लड आना
  • नींद आने में परेशानी
  • स्किन ड्राई और खुजली
  • बार-बार पेशाब आना
  • यूरिन में झाग आना
नोट: ये लक्षण दूसरी बीमारियों के भी हो सकते हैं। डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

L बोले तो Liver
लिवर हमारे शरीर में 300 से ज्यादा काम को अंजाम देता है। इसके कमजोर होने से शरीर की इम्यूनिटी भी कमजोर हो जाती है। मोटापा आने से फैटी लिवर की शिकायत भी आ जाती है। इससे लिवर अपना काम सही तरीके से नहीं कर पाता। इसलिए इसका ख्याल रखना भी बहुत जरूरी है।

जिगर के लिए ये हैं सबसे 4 खास बातें
1. लिवर की पसंद को न भूलें
फाइबरयुक्त चीजों को जितना ज्यादा खाएंगे उतना ही फायदा लिवर को होगा। मौसमी फल और सब्जियों जैसे: संतरा, अमरूद, मूली, गाजर, पालक, साग आदि को ज्यादा खाएं।
2. विटामिन C ज्यादा लें
यह डोज दवा के रूप में नहीं, कुदरती होनी चाहिए। एक नीबू का रस एक गिलास पानी में मिलाकर लें या एक संतरे का रस या एक आंवला या एक प्लेट अनन्नास रोज लेना चाहिए। इससे विटामिन-सी की कमी नहीं होती।
3. डिटॉक्सिफिकेशन को ज्यादा अहमियत दें
हमारे खाने में अगर कोई हानिकारक चीज है तो वह लिवर में भी जमा हो जाती हैं। हानिकारक चीजों को बाहर निकालने का एक बड़ा ही आसान तरीका है डिटॉक्सिफिकेशन। हम इसे भूल जाते हैं। इसके लिए सुबह खाली पेट एक गिलास सामान्य पानी या एक गिलास गुनगुने पानी में एक नीबू निचोड़कर पी लें। अगर ज्यादा फायदा चाहिए तो रात में किसी शीशे के जार में 2 लीटर पानी में 2 नीबू को छिलके समेत काटकर डाल दें। साथ में खीरा भी डाल सकते हैं। सुबह छान लें। फिर इसे दिनभर पीते रहें। इससे शरीर दिनभर डिटॉक्स होता रहेगा।
4. गलत चीजों की आदत न लगाएं और एक्सरसाइज करें
शराब, पैक्ड फूड, स्टोर करके रखे जाने वाले नॉनवेज आइटम्स आदि से दूरी रखनी चाहिए। वैसे तो शराब हानिकारक है, लेकिन हफ्ते में 60 एमएल से ज्यादा अल्कोहल नहीं लेना चाहिए। इन्हें स्टोर करने या इनकी लाइफ बढ़ाने के लिए जिन रसायनों (फॉर्मलिन: मरने के बाद इंसानी शरीर को लंबे समय तक सही रखने के लिए इसका इस्तेमाल होता है।) का इस्तेमाल होता है, वे लिवर के लिए बहुत ज्यादा हानिकारक होते हैं। लिवर को मजबूत बनाने में एक्सरसाइज और फिजिकल ऐक्टिविटीज का अहम रोल होता है। हर दिन 45 मिनट की फिजिकल ऐक्टविटीज से फैटी लिवर नहीं होता।

M बोले तो Mind
  • ऊपर बताई हुई चीजों का ध्यान रखते हुए अपने मन के बारे में सोचना भी जरूरी है। कई बार नेगेटिव विचार मन पर हावी होने लगते हैं। कोई घटना बहुत परेशान करने लगती है। निकलने के लिए ये उपाय हैं जरूरी:
  • अपनी हॉबी को न भूलें। कुकिंग, म्यूजिक, डांस, पेंटिंग्स जिसका भी मौका जब मिले, शुरू हो जाएं। माइंड को रिलैक्स और सही रखने में शौक अहम भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ही मेडिटेशन भी बहुत फायदा देता है। यह भी जरूर समझें कि सेहत सही रहेगी तो तनाव भी कम ही होगा।
  • अपनों से बात करने में न झिझकें और न ईगो बीच में लाएं। जब जी करे फोन घुमा दें।
  • छोटी-छोटी खुशियों को 10 करीबियों से शेयर करें। ऐसे में 10 बार ज्यादा खुश होने का मौका मिलेगा। जितनी खुशी, उतना ही स्ट्रेस कम।
  • कोरोना का असर दिमाग पर बहुत पड़ा है। हमें कोरोना को भी एक हादसा ही मानना चाहिए। जैसे अचानक कोई हादसा होता है, उसी तरह कोरोना भी एक दुर्घटना की तरह है। कोई भी इसके लिए तैयार नहीं था।
  • किसी के चले जाने पर भी जिंदगी रुकती नहीं। इसलिए किसी के चले जाने पर खुद को दोष न दें। हर शख्स अपने करीबी को बचाने की पूरी कोशिश करता है। कोई सफल होता है, कोई नहीं होता। इसलिए कोशिशों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
  • भावनाओं को रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उन्हें बाहर आने दें, जाहिर करें।
  • मोटिवेशन के ओवरडोज से बचें। यह चीजों को बनाने के बजाय कई बार बिगाड़ भी देता है।
  • स्थिति को जिसने स्वीकार कर लिया, वह आगे बढ़ जाएगा। जो नहीं कर पाता है, उसके लिए परेशानी ज्यादा होती है। इस धरती पर जो आया है, उसकी मौत तय है। हां, कोई पहले और कोई बाद में।
  • जिंदगी में दो चीजों को याद रखें: शुक्राना और मुस्कुराना। जो है, उसके लिए शु्क्रिया अदा करें और हर हालात में खुश रहें।

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जानकारी की 'नई डोज'

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एक तरफ जहां वैक्सीन लेने वालों की लिस्ट में अब 15 साल तक के टीन एजर्स शामिल हो चुके हैं, तो वहीं 60 साल से ज्यादा उम्र के बीमार लोगों को अब कल से तीसरी डोज भी लगाई जाएगी। मन में अब भी कुछ अहम सवाल कायम होंगे कि आखिर 15 साल से कम उम्र के बच्चों को वैक्सीन क्यों नहीं दी जा रही है, तीसरी डोज से क्या फायदा होगा? देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से बात करके ऐसे ही अहम सवालों के जवाब जानने की कोशिश की एनबीटी ने:

पहली डोज
15 से 17 साल

कौन लें, कैसे लें वैक्सीन

सवाल: कई जगह 15 से 17 साल और कई जगह 15 से 18 साल तक के लिए वैक्सीन देने की बात की गई है। इन दोनों में सही क्या है?
इन दोनों में सही 15 से 17 साल की उम्र ही है। जिनकी उम्र 18 साल हो चुकी है, वे पहले से ही वैक्सीन लेने के योग्य थे। इसे बेहतर तरीके से इस तरह समझ सकते हैं। पहले 1
जनवरी 2005 से पहले पैदा हुए लोगों को ही कोविड वैक्सीन लेने की बात थी जबकि नए आदेश के बाद 31 दिसंबर 2007 तक पैदा हुए टीन एजर्स को भी वैक्सीन लगाए जाने की बात कही गई है।

सवाल: 15 साल से ज्यादा उम्र के टीन एजर्स को ही वैक्सीन लेने की छूट क्यों दी गई है? क्या इससे कम उम्र 10, 12 साल के बच्चों को वैक्सीन की जरूरत नहीं है?
भारत के औषधि महानियंत्रक ने कुछ शर्तों के साथ 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों के लिए कोवैक्सिन के आपातक उपयोग की अनुमति दी थी। लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसकी अनुमति 15-17 साल के बच्चों के लिए ही दी है। मुमकिन है बच्चों को वैक्सीन लगाने से पहले इसके असर को वह अच्छी तरह देखना चाहता है।

वैसे वैक्सीन की जरूरत तो सभी को होती है। देखा यह जाता है कि ज्यादा रिस्क और जरूरत किस कैटिगरी के लोगों को है। सरकार ने शुरुआत में फ्रंटलाइन वर्कर्स (मेडिकल आदि) और बुजुर्गों को वैक्सीन लगवाई। इसके बाद 45 साल से ज्यादा उम्र, फिर 35 से ज्यादा उम्र, फिर 18 साल से ज्यादा उम्र के युवाओं को और अब 15 साल से बड़े टीन एजर्स को लगवा रही है। दरअसल, बढ़ती उम्र के साथ बीमारियों का खतरा भी ज्यादा होता है। कोरोना के मामले में भी यही देखा गया कि यह बच्चों को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाया है।

इसका एक वैज्ञानिक कारण यह भी है कि हमारे शरीर में मौजूद थाइमस ग्लैंड (यह छाती में मौजूद होता है और शरीर की इम्यूनिटी के लिए जरूरी सेल्स को बनाता है) जन्म से 15-16 साल तक काम करने के बाद निष्क्रिय हो जाता है। इससे पहले यह ऐक्टिव रहता है। इसलिए बच्चों में इंफेक्शन होने के बाद फौरन ही ऐंटिबॉडी बननी शुरू हो जाती हैं। एक दूसरी वजह यह भी है कि हमारे देश की जनसंख्या 140 करोड़ से भी ज्यादा है। इनमें बुजुर्ग और गंभीर रूप से बीमारों की संख्या भी करोड़ों में है। ऐसे बीमार लोग जिन्हें वैक्सीन की दूसरी डोज लिए हुए 9 महीने हो चुके हैं, उनकी इम्यूनिटी कोरोना के प्रति कुछ कम हो चुकी है। इससे उनके गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा ज्यादा है। इसलिए सरकार ने 10 या 12 साल के बच्चों से पहले 15 से 17 साल तक के टीन एजर्स को पहली डोज और ऐसे जरूरतमंद लोगों को प्रिकॉशनरी डोज लगवाने का आदेश दिया है।

सवाल: 15 से 17 साल की कैटिगरी के टीन एजर्स के लिए वैक्सीन लेने की प्रक्रिया क्या है?
इसमें कुछ भी अलग नहीं किया गया है। Co-WIN पोर्टल (www.cowin.gov.in) पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इसके साथ ही ऐंड्राइड मोबाइल फोन से भी Co-WIN Vaccinator App से रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है। आईफोन में यह ऐप नहीं है। अगर कोई बिना रजिस्ट्रेशन के भी ऐसे वैक्सीन सेंटर पर जाता है, जहां कोवैक्सीन उपलब्ध है तो मुमकिन है उसका रजिस्ट्रेशन केंद्र पर ही हो जाए। यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि अमूमन ज्यादातर फैमिली में किसी न किसी का रजिस्ट्रेशन पहले ही कोविन पोर्टल पर हो चुका है क्योंकि कोविड वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज अब तक 88 करोड़ लोगों को लग चुकी है। इसलिए अगर फैमिली में 1 रजिस्ट्रेशन पर 3 लोगों को वैक्सीन लगी है तो एक टीन एजर्स को अलग से रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं होगी। उसे कोविन पोर्टल पर पुराने रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर के माध्यम से एक नए सदस्य को जोड़ना होगा। जोड़ने के क्रम में जैसे ही वह अपना आधार नंबर भरेगा, वह 15 से 17 साल की कैटिगरी में पहुंच जाएगा। इसके बाद जो भी नजदीकी वैक्सीन सेंटर होगा, जहां कोवैक्सीन उपलब्ध होगी, उसे चुनकर उपलब्ध स्लॉट बुक करना होगा। फिर बताई गई तारीख पर जाकर वैक्सीन लगवानी होगी।

अगर नया ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना हो तो...
  • ऐसा मोबाइल नंबर चुनना होगा जो पहले रजिस्टर्ड नहीं हुआ है।
  • फिर www.cowin.gov.in पर जाकर डिटेल भरना होगा।
  • उस टीन एजर्स का भी आधार कार्ड या स्कूल का आईडी कार्ड का होना जरूरी है।

ये आईडी प्रूफ भी मान्य:
1. आधार कार्ड/ स्कूल की फोटो आईडी/ पासपोर्ट/10वीं का सर्टिफिकेट या फिर नगर निगम द्वारा जारी जन्म प्रमाणपत्र।

सवाल: टीन एजर्स को जो वैक्सीन दी जा रही है उसकी कीमत क्या है?
सभी टीन एजर्स को कोवैक्सीन ही दी जा रही है। यह वही वैक्सीन है जो बड़ों को भी लगाई जा रही है। सरकारी अस्पतालों या केंद्रों पर यह मुफ्त में उपलब्ध है जबकि प्राइवेट अस्पतालों में यह वैक्सीन उतनी ही कीमत पर उपलब्ध है जितनी बड़ों के लिए है यानी अधिकतम 1410 रुपये में।

खुद की तैयारी हो पूरी

सवाल: क्या टीन एजर्स की वैक्सीन के लिए वैक्सीन सेंटर्स पर अलग से व्यवस्था है?
केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह सलाह दी है कि टीन एजर्स के लिए अलग से वैक्सीन सेंटर्स बनाए जाएं। जब तक अलग से वैक्सीन सेंटर्स नहीं बनते तब तक अडल्ट और बुजुर्गों वाले वैक्सीन सेंटर्स पर ही अलग से लाइन लगाकर वैक्सीन लगाई जा रही है। वैसे वैक्सीन सेंटर्स की कोशिश है कि इसके लिए अलग से स्टाफ उपलब्ध हो ताकि मिक्सिंग और ज्यादा भीड़ होने की आशंका न रहे।

सवाल: अभी कोरोना का खतरा बढ़ा हुआ है। तेजी से केस बढ़ रहे हैं। ऐसे में वैक्सीन सेंटर्स जाने पर कोरोना होने का खतरा तो बढ़ सकता है?
यह सच है कि अस्पताल में जाने और भीड़ का हिस्सा होने पर खतरा बढ़ जाता है, लेकिन वैक्सीन लेना भी बहुत जरूरी है। इसलिए बिना ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के सीधे केंद्र पर जाने पर अपनी बारी आने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। इसलिए पहले नया रजिस्ट्रेशन कराएं, फिर स्लॉट बुक कराकर उसी टाइम पर वैक्सीनेशन सेंटर पहुंचें। दो मास्क पहनें, जिसमें अंदर वाला मास्क मुलायम सूती कपड़े का बना हो और बाहर की तरफ N-95 मास्क बिना वॉल्व वाला पहन लें। फेसशील्ड भी लगा सकते हैं। इसके अलावा सैनिटाइजर भी साथ रखें। भीड़ से बचने की कोशिश करें और 2 गज दूरी का भी ध्यान रखें। वहीं प्रशासन को भी चाहिए कि वह टीन एजर्स के लिए स्कूल में ही वैक्सीनेशन सेंटर खोल दे। जितने ज्यादा सेंटर होंगे, उतनी ही भीड़ कम इकट्ठा होगी। अगर यह भी मुमकिन न हो तो वैक्सीन सेंटर्स की संख्या बढ़ाएं ताकि भीड़ बंट सके।

वैक्सीन लेने के बाद...

सवाल: कोवैक्सीन की पहली डोज लेने के बाद अगर किसी को बुखार और शरीर की मांसपेशियों में दर्द हो तो क्या करे?
अभी 15 से 17 साल के टीन एजर्स को सिर्फ कोवैक्सीन दी जा रही है। इस वैक्सीन को लगाने पर साइड इफेक्ट ज्यादा नहीं दिखते। जिस बाजू में वैक्सीन लगी है, उसमें हल्का दर्द या थोड़ी हरारत होती है। यह इतना ज्यादा नहीं होता कि बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाए। वहीं अगर बुखार आता है तो ज्यादातर मामलों में यह 1 से 2 दिन में ठीक हो जाता है। इसलिए अलग से कोई पेनकिलर या पैरासिटामॉल (क्रॉसिन, डोला आदि) लेने की जरूरत नहीं होती। हां, अगर बुखार 3 दिन से ज्यादा रहे और 100 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाए तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

सवाल: वैक्सीन लेने के बाद बुखार आने लगे तो हम यह कैसे समझेंगे कि यह बुखार वैक्सीन की वजह से है या फिर वैक्सीन सेंटर से इंफेक्शन होने के बाद कोरोना का है?
अगर बुखार आ रहा है, साथ में सर्दी, खांसी, पूरे शरीर की मांसपेशियों में तेज दर्द हो और बुखार 3 दिन से ज्यादा (सामान्य फ्लू या वायरल फीवर अमूमन 3 दिन में ठीक हो जाता है) रहे तो डॉक्टर की सलाह से RT-PCR टेस्ट करवा सकते हैं। सीधे कहें तो कोवैक्सीन लेने के बाद अमूमन ऐसा बहुत ही कम देखा जाता है कि इसमें तेज बुखार और शरीर की मांसपेशियों बहुत ज्यादा तेज दर्द हो। आजकल ओमिक्रॉन का खतरा ज्यादा है। इसके लक्षण में डायरिया आदि के लक्षण काफी देखे जा रहे हैं।


तीसरी डोज, 60+ साल
तीसरी डोज के हकदार

सवाल: प्रिकॉशनरी या तीसरी डोज वैक्सीन किन्हें लगेगी?
10 जनवरी यानी कल से यह डोज लगने की शुरुआत फ्रंटलाइन वकर्स (मेडिकल स्टाफ, पुलिस आदि) और उन 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों के लिए है जिन्हें कोई गंभीर बीमारी है या जिन्हें डॉक्टर ने सलाह दी है कि वे तीसरी डोज लगवा सकते हैं। दरअसल, सरकार ने अभी तीसरी डोज को वैकल्पिक रखा है। जिन्हें जरूरत है, उन्हें लगवानी है। सारे बुजुर्गों को अनिवार्य रूप से लगवाने को नहीं कहा है।

सवाल: दूसरी डोज के कितने दिनों के बाद तीसरी या प्रिकॉशनरी डोज लगेगी?
दूसरी डोज लगने के 9 महीनों (39 हफ्तों) के बाद ही प्रिकॉशनरी डोज लगेगी।

ऐसे लगेगी यह वैक्सीन

सवाल: इसके लिए रजिस्ट्रेशन कैसे होगा?
लगेगी जिन्होंने दूसरी डोज ली है और उसे लिए हुए 9 महीने का वक्त बीत चुका है यानी उनका रजिस्ट्रेशन पहले ही हो चुका है। ऐसे में करना सिर्फ यह है कि कोविन की तरफ से मेसेज आने के बाद Co-WIN पोर्टल (www.cowin.gov.in) पर जाकर वैक्सीन सेंटर का चुनाव कर स्लॉट बुक करना है। इसी पोर्टल से अपना दूसरी डोज वाला सर्टिफिकेट भी निकाल सकते हैं।
  • सबसे पहले इस वेबसाइट पर जाना है।
  • फिर अपना रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर भरना है।
  • एक ओटीपी आएगा। उसे वहां भरने पर यह दिख जाएगा कि अभी आपको 9 महीने हुए हैं या नहीं और वहीं पर सर्टिफिकेट डाउनलोड का भी ऑप्शन दिख जाता है। उसे डाउनलोड कर अपने मोबाइल में रख लें। न रख पाएं तो मोबाइल से फोटो ले लें। इसी से काम हो जाएगा।

सवाल: प्रिकॉशनरी डोज के रूप में कौन-सी वैक्सीन दी जाएगी? क्या पहले वाली वैक्सीन दी जाएगी या फिर कोई नई वैक्सीन दी जाएगी?
वही वैक्सीन दी जाएगी जो पहले दी गई थी यानी अगर पहले कोविशील्ड लगी है तो तीसरी डोज भी कोविशील्ड की ही लगेगी, इसी तरह अगर कोवैक्सीन लगी है तो कोवैक्सीन ही दी जाएगी। अगर स्पूतनिक V पहले लगी है तो स्पूतनिक V ही लगेगी। हालांकि यूके और अमेरिका में मिक्स्ड वैक्सीन (पहली वैक्सीन एक कंपनी की और दूसरी या तीसरी वैक्सीन दूसरी कपंनी की) लगाई गई। चूंकि अभी इस पर अपने देश में ज्यादा स्टडी नहीं हुई है, इसलिए यहांं पर मिक्स्ड वैक्सीन के लिए कोई रिस्क नहीं लिया गया है।


सवाल: अगर दूसरी डोज लगवाए हुए 9 महीने पूरे नहीं हुए हैं, फिर भी लगवाना चाहूं तो?
अभी तो यह मुश्किल लग रहा है क्योंकि वैक्सीन और उसकी सभी डोज गिनती की होती हैं। दूसरा यह कि ऐसा करने से सरकार के आदेश का उल्लंघन भी होगा। वहीं, 9 महीने का फासला रखने के पीछे भी साइंटिफिक रिसर्च है। यह देखा गया कि दूसरी डोज लगाने के बाद शख्स में 9 महीने तक ऐंटिबॉडी काफी हद तक कोरोना और उसके वैरियंट से सुरक्षा दे देती है। अगर दूसरी और तीसरी डोज में 9 महीने से कम का फर्क रखा गया तो मुमकिन है कि यह हाइपर इम्यून रिस्पॉन्स (इसमें शरीर की ऐंटिबॉडी उसी शरीर के खिलाफ काम करने लगे और शरीर की कोशिकाओं को मारने लगे।) का मामला भी बन जाए। इसलिए 9 महीने का फर्क जरूर रखें। यह हमारे अपने फायदे की बात है।

सवाल: क्या इसके लिए सरकार की तरफ से कोई मेसेज या सूचना आएगी कि अब आप तीसरी डोज लगवा सकते हैं?
जिन लोगों को दूसरी डोज लिए हुए 9 महीने या इससे ज्यादा का वक्त हो चुका है, उन लोगों को उनके मोबाइल नंबर पर कोविन ऐप की तरफ से मेसेज आएगा कि अब आप प्रिकॉशनरी डोज लगवा सकते हैं, लेकिन अगर किसी वजह से मेसेज न भी आए तो भी वे ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराकर या फिर सीधे वैक्सीन सेंटर पर जाकर वहीं पर रजिस्ट्रेशन कराकर वैक्सीन ले सकते हैं। साथ में आधार कार्ड और दूसरी डोज का सर्टिफिकेट या मेसेज भी होगा तो काम चल जाएगा।
अगर किसी के मोबाइल से यह मेसेज डिलीट हो गया हो तो वह फिर से कोविन पोर्टल पर जाकर सर्टिफिकेट ले सकता है। आधार कार्ड और सर्टिफिकेट अगर डिजिलॉकर में हों या सभी चीजें मोबाइल में फोटो के रूप में हो तो भी तीसरी डोज मिलने में परेशानी नहीं होगी। वैक्सीन सेंटर पर इससे भी काम चल जाएगा।


सवाल: क्या वैक्सीन लेने के लिए डॉक्टर की कोई पर्ची भी चाहिए?
इसके लिए डॉक्टर की पर्ची की जरूरत नहीं होगी। वैसे 60 से ऊपर वाले जो बुजुर्ग गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं, वे वैक्सीन लेने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें कि वह वैक्सीन लगवा सकते हैं या नहीं। अगर डॉक्टर हां कहते हैं तो वह कोविन पोर्टल पर स्लॉट बुक कर वैक्सीन लगवा लें।

सवाल: वैक्सीन सेंटर पर जाने से पहले स्लॉट बुक करना क्यों जरूरी है?
अब भी देश में 62 करोड़ लोगों को ही दूसरी डोज लगी है। यह संख्या कुल जनसंख्या का 45 फीसदी है। ऐसे में तीसरी डोज लगवाने के लिए अगर कोई जाता है तो उसे भीड़ का सामना करना पड़ेगा और अपनी बारी का इंतजार भी करना पड़ सकता है। अगर स्लॉट बुक करके जाएं तो इंतजार कम करना पड़ेगा।

जा रहे हैं वैक्सीनेशन सेंटर..

सवाल: वैक्सीन सेंटर पर जाते समय साथ में क्या-क्या रखें ताकि वैक्सीन भी लग जाए और कोरोना का इंफेक्शन भी न हो?
चूंकि आजकल कोरोना ने फिर से रफ्तार पकड़ ली है। इसलिए खुद के बचाव के लिए जितना हो सके, कोशिश जरूर करें:
  • दूसरी डोज के 9 महीने पूरे होने के बाद ही जाएं, नहीं तो वैक्सीन लगवाए बिना ही वापस आना पड़ सकता है।
  • साथ में दूसरी डोज के सर्टिफिकेट की प्रिंटिड कॉपी या मोबाइल में उसकी मेसेज या फोटो ।
  • आधार कार्ड
  • अगर स्लॉट बुक हुआ है तो वह मेसेज भी हो।

वैक्सीन सेंटर पर कोरोना से बचने के लिए
चूंकि तीसरी डोज 60 साल से ज्यादा उम्र वाले बीमार बुजुर्गों के लिए ही है, इसलिए ऐसे लोगों के लिए प्रिकॉशनरी डोज के साथ-साथ कोरोना से बचाव में लापरवाही बिलकुल नहीं करनी चाहिए।
  • पूरा शरीर ढका हुआ होना चाहिए। सिर भी।
  • दो मास्क जिनमें, अंदर का मास्क मुलायम सूती कपड़े का हो और बाहर का मास्क N-95 हो, सही तरीके से पहने लें। यह जरूर ध्यान रखें कि ये मास्क ढीले न हों ताकि बार-बार
  • उन्हें अडजस्ट न करना पड़े। अंदर मुलायम सूती कपड़े का मास्क होने से नाक या मुंह के आसपास खुजली कम होती है और दो मास्क पहनने से सुरक्षा भी ज्यादा है।
  • अगर मुमकिन हो तो फेसशील्ड भी लगा सकते हैं।
  • पॉकेट में सैनिटाइजर जरूर हो। जब तक वैक्सीन सेंटर पर रहें, इधर-उधर छूने पर अपने हाथों को सैनिटाइज करते रहें।
  • अगर वैक्सीन सेंटर पर भीड़ ज्यादा है और लंबी लाइन लगी हो तो लाइन में उस युवा को लगना चाहिए जो बुजुर्ग के साथ गया है। साथ जाने वाला भी डबल मास्क लगाकर जाए। जब बुजुर्ग का नंबर आए, तब उन्हें बुला लें। इससे बुजुर्ग भीड़ से कुछ समय के लिए दूर रहेंगे।
  • वैक्सीन सेंटर पर 2 गज की दूरी का पालन जरूर करें।
  • जब वैक्सीन लग जाए और घर के लिए निकलें तो हाथों को जरूर सैनिटाइज करें।

घर पहुंचने पर
जो जूते या चप्पल पहनकर गए हों, उन्हें बाहर ही उतार लें। घर में प्रवेश करने के बाद सोफे पर बैठने से पहले बाथरूम में चले जाएं। वहां गुनगुने पानी और साबुन की मदद से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह धो लें। फिर अपने चेहरे, मुंह, नाक आदि को अच्छी तरह धोएं। फिर कपड़े बदल लें। इसके बाद बर्दाश्त करने के लायक एक गिलास गर्म पानी से गरारे करें। नाक को भी साफ कर लें।

सोसायटी में रहते हैं तो...
अगर किसी सोसायटी में रहते हैं तो सीएमओ (चीफ मेडिकल ऑफिसर), मेडिकल सुपरिंटेंडेंट, एएनएम आदि को लिखित में दें कि हमारी सोसायटी के 15-20 लोगों को तीसरी डोज लगवानी है। हालांकि इसके लिए 15-20 लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए तैयार करना होगा।

सवाल: वैक्सीन सेंटर्स से लोग कोरोना लेकर न आएं, इसके लिए सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए?
  • इसके लिए जरूरी है कि वैक्सीन सेंटर्स पर भीड़ कम हो।
  • वैक्सीन सेंटर्स बढ़ाए जाने चाहिए।
  • शहरों में भी डोर-टु-डोर कैंपेन चलाना चाहिए।
  • मंदिर, मस्जिद और स्कूलों में भी वैक्सीन सेंटर खोलने चाहिए।

कोरोना से निजात कब तक

सवाल: यह कोरोना कब खत्म होगा?
  • तकनीकी तौर पर देखेंगे तो यह शायद कभी भी पूरा खत्म न हो, लेकिन जिस हिसाब से वैक्सीनेशन हो रहा है और इंफेक्शन की वजह से लोगों में नेचरल इम्यूनिटी बनी है, इन दोनों के मिलने से हाइब्रिड इम्यूनिटी विकसित हुई है। ऐसे में यह मुमकिन है कि कुछ समय बाद यह धीरे-धीरे बेअसर हो जाए। बशर्ते कि हम सभी को वैक्सीन दे दें। दोनों या तीनों डोज लगवा दें।
  • इसके पूरी तरह न खत्म होने की वजह यह भी है कि कोरोना वायरस जानवर से इंसानी शरीर में आया है। पिछले बरस की स्टडी में हमने यह भी देखा कि यह इंसानों से जानवरों में भी चला गया। सीधे कहें तो जानवर इनके लिए संग्रह केंद्र के रूप में विकसित हो सकते हैं। ऐसे में इसके पूरी तरह खत्म होने की गुंजाइश लगभग न के बराबर है। इसके बाद वायरस सामान्य सर्दी जैसा वायरस बनकर रह जाएगा।
  • अमूमन अभी तक सार्स फैमिली के वायरस का इंफेक्शन होने पर यह देखा जाता था कि हर संक्रमित शख्स में कुछ लक्षण जरूर उभरते थे। लेकिन इसी फैमिली का होने के बावजूद भी कोरोना इंफेक्शन के बाद भी आधे से ज्यादा लोग बिना लक्षण वाले होते हैं। ऐसे में कौन शख्स अपने अंदर कोरोना वायरस लेकर घूम रहा है, यह पता करना मुश्किल है।

सवाल: अगर कुछ लोगों को कोई डोज न मिले और कुछ लोगों को एक ही डोज लगी हो तो क्या होगा?
अगर सभी लोगों को दो डोज न लगी हों तो फिर से दक्षिण अफ्रीका जैसे किसी देश में एक नया ओमिक्रॉन पैदा हो जाएगा क्योंकि वायरस जब ऐसे शख्स के शरीर में पहुंचता है जिसके शरीर में ऐंटिबॉडी मौजूद नहीं हो तो वह खुद को मजबूत बनाने के लिए म्यूटेशन करता है। कोरोना वायरस ने भी अफ्रीकी देशों में 50 से ज्यादा म्यूटेशन किए। सिर्फ अपने स्पाइक प्रोटीन में ही 30 से ज्यादा म्यूटेशन कर लिए थे क्योंकि उन देशों में वैक्सीनेशन की दर 5 फीसदी से भी कम थी। इसलिए यह अमीर देशों की जिम्मेदारी है कि वे गरीब देशों में भी वैक्सीन की दोनों डोज लगवाना पक्का करे। इसी में उनकी भी सुरक्षा है।

सवाल: वैक्सीन के बाद भी कोरोना हो रहा है तो मैं वैक्सीन क्यों लगवाउं?
वैक्सीन कोरोना इंफेक्शन को नहीं रोकती। हां, इस इंफेक्शन को गंभीर होने से रोकती है।
यूके (ब्रिटेन) की स्टडी के अनुसार जिन लोगों को वैक्सीन लग जाती है, उनका रिस्क कम होता जाता है और फायदा बढ़ता जाता है। यह वैक्सीन इंफेक्शन रोकने में बहुत कम कारगर है, लेकिन...
  • गंभीर लक्षण वाले मरीजों के मामले में ज्यादा कारगर है।
  • इसे लेने के बाद अस्पताल में भर्ती होने और ऑक्सिजन की जरूरत कम पड़ती है।
  • लेने के बाद आईसीयू तक 80 फीसदी मरीज अमूमन नहीं पहुंचते।
  • इसे लेने के बाद कोविड की वजह से 2 फीसदी से भी कम लोगों की जान जाती है।

सवाल: ZyCov-D वैक्सीन को सरकार ने अब तक क्यों नहीं शुरू किया है?
यह सच है कि जायडस कैडिला की वैक्सीन ZyCov-D को भारत के औषधि महानियंत्रक ने पिछले साल अगस्त में ही मंजूरी दी थी। यह भी स्वदेशी वैक्सीन है। इस वैक्सीन को 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों, टीन एजर्स, युवाओं और बुजुर्गों सभी को लगाने के लिए मान्यता मिली हुई है। बच्चों के लिए वैक्सीन लगवाने की प्रक्रिया तब शुरू की जाती है जब इसका असर युवाओं पर देख लिया जाता है।

ऐसे बचें वैक्सीन के फ्रॉड से

सवाल: क्या बूस्टर डोज या प्रिकॉशनरी डोज को लेकर कोई फ्रॉड भी शुरू हुआ है क्योंकि पिछले साल ऐसी घटनाएं हुई थीं?
अभी 10 जनवरी आया नहीं है, लेकिन इसके नाम पर फ्रॉड शुरू हो चुका है। इस फ्रॉड में वैक्सीन के माध्यम से अकाउंट खाली किया जाता है। फ्रॉड करने वाले फोन करके यह कह सकते हैं कि हम आपको फ्री में बूस्टर या तीसरी या प्रिकॉशनरी लगवा देंगे ताकि आप डेल्टा और ओमिक्रॉन वायरस से बचे रहें। इसके लिए वे एक ओटीपी भेजते हैं और उसे बताने के लिए कहते हैं। जैसे ही आपने वह ओटीपी उनसे शेयर किया, आपका अकाउंट खाली हो जाएगा। वैसे भी ओटीपी किसी भी ट्रांजेक्शन में किसी से शेयर नहीं करना चाहिए। ओटीपी सिर्फ आपके इस्तेमाल के लिए होता है। सच तो यह है कि सरकार बूस्टर डोज के लिए इस तरह का कोई भी ऑफर नहीं दे रही है। कभी भी ऐसे चक्करों में न पड़ें। किसी से ओटीपी शेयर न करें। दूसरी डोज के 9 महीने पूरे होने के बाद कोविन की तरफ से यह मेसेज जरूर आएगा कि अब आप प्रिकॉशनरी डोज लगवा सकते हैं। इसमें कहीं भी ओटीपी शेयर करने की बात नहीं होगी।

सर्टिफिकेट की बात

सवाल: क्या तीसरी डोज लेने के बाद क्या कोई सर्टिफिकेट भी मिलेगा?
जरूर मिलेगा। यह भी ठीक उसी तरह होगा, जैसा दूसरी डोज लगने के बाद मिला था।

सवाल: क्या तीसरी डोज की सर्टिफिकेट की जरूरत विदेश यात्रा में भी होगी?
ऐसा नहीं है। अभी विदेश यात्रा या दूसरी जगहों पर सिर्फ दूसरी डोज की सर्टिफिकेट की जरूरत ही पड़ेगी। लेकिन तीसरे डोज की सर्टिफिकेट को भी कहीं सेव जरूर कर लें। आगे कहीं इसकी जरूरत पड़ेगी तो निकालना आसान रहेगा।

सवाल: क्या तीसरी के बाद चौथी डोज नहीं लगेगी?
इस्राइल में तो चौथी डोज पूरी हो गई है। भारत में यह अभी मुश्किल लग रहा है। इसकी वजह यह है कि अपने यहां अभी दूसरी डोज भी पूरी नहीं हुई है। वहीं, पिछले साल की दूसरी लहर के बाद लोगों में नेचरल इम्यूनिटी भी काफी विकसित हुई है। कोरोना को झेल चुके लोगों और दोनों डोज या फिर अब तीसरी डोज लगाए हुए लोगों के शरीर में हाइब्रिड इम्यूनिटी जैसी स्थिति बनती है यानी जिसमें नेचरल इम्यूनिटी भी हो और वैक्सीन से पैदा की हुई इम्यूनिटी भी। ऐसी इम्यूनिटी काफी मजबूत मानी जाती है।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. गगनदीप कंग, माइक्रोबायॉलजिस्ट CMC, वेल्लोर
  • डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, धर्मशिला हॉस्पिटल
  • डॉ. एन. के. अरोड़ा, मेंबर, कोविड टास्क फोर्स, ICMR
  • डॉ. अरविंद लाल, एग्जिक्युटिव चेयरमैन, डॉ. लाल पैथ लैब्स
  • डॉ. चंद्रकांत लहारिया, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट
  • डॉ. संजय तेवतिया, चीफ मेडिकल सुपरिटेंडेंट
  • डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन

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तन-मन मजबूत तो कोरोना दूर

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नई दिल्ली
खराश है, सिर दर्द है और बुखार भी... तो फिर कुछ लेते क्यों नहीं? कभी टीवी पर एक विज्ञापन की ये पंक्तियां खूब चर्चा में थीं। दरअसल, उस समय इसका इलाज भी आसान था क्योंकि ओमिक्रॉन जैसे वायरस की मौजूदगी भी नहीं थी, पर आजकल सिर्फ ओमिक्रॉन की चर्चा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ओमिक्रॉन का इलाज भी उतना ही आसान है? क्या पिछले साल की तरह इस बार फेफड़ों से जुड़ी परेशानी नहीं है? क्या आजकल होने वाले सभी बुखार ओमिक्रॉन के ही हैं? क्या डेल्टा वेरियंट की मौजूदगी नहीं है? इन तमाम सवालों के जवाब देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से बात करके दे रहे हैं लोकेश के. भारती

ऐसे बचे रहेंगे वायरस से आप

मास्क : वैसे तो बाजार में किस्म-किस्म के मास्क उपलब्ध हैं। कई बहुत सस्ते हैं और कुछ थोड़े महंगे। कभी भी मास्क कीमत देखकर ही न खरीदें। उसकी उपयोगिता जरूर देखें। आजकल डबल मास्क पहनने पर जोर दिया जा रहा है और यह भी कहा जा रहा है कि इससे बेहतर सुरक्षा होती है।

कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है...
-अगर सर्जिकल मास्क (हल्के हरे रंग वाला, सस्ता) खरीद रहे हैं तो यह कोशिश करें कि इसके साथ N-95 मास्क भी जरूर खरीदें। इसमें सर्जिकल को बाहर की तरफ से पहनें और N-95 को अंदर की तरफ से। इससे फायदा यह होगा कि सर्जिकल मास्क अमूमन एक बार पहनकर फेंकने के लिए होता है तो वह बाहर की ओर रहेगा तो फेंकना भी आसान होगा और N-95 के बाहर की तरफ वायरस आदि के चिपकने का खतरा भी नहीं रहेगा।
-सिर्फ कॉटन के मास्क से काम नहीं चलेगा। बेहतर विकल्प यह है कि अगर कॉटन का मुलायम मास्क भीतर की तरफ हो और बाहर की तरफ N-95 मास्क हो। कॉटन की वजह से नाक और मुंह को बार-बार खुजलाने की इच्छा नहीं होगी, वहीं N-95 की मौजूदगी से यह वायरस आदि को भीतर आने से रोकेगा। डबल मास्क का यह कॉम्बिनेशन काफी पसंद किया जा रहा है।

सही तरीके से पहनना जरूरी है मास्क
- जितना जरूरी है मास्क पहनना, उतना ही जरूरी है उसे ठीक से पहनना।
- मास्क से नाक, मुंह और ठुड्डी सही ढंग से ढकी होनी चाहिए।
- मास्क ढीला नहीं होना चाहिए यानी मास्क और चेहरे के बीच में जगह न हो। सांस लेते समय हवा मास्क से गुजरनी चाहिए, साइड से नहीं।
- ऐसा मास्क नहीं पहनना चाहिए जिससे सांस लेने में दिक्कत हो।
- मास्क पहनने के बाद उसे बिना हाथ धोए या सैनिटाइज किए बगैर छूना नहीं चाहिए। छूने के बाद फिर हाथ सैनिटाइज करें।
- अगर नाक या मुंह पर पसीने की वजह से खुजली हो तो बाजू से ही खुजाएं।
- मास्क उतारते समय भी बाहरी ओर से सीधे नहीं छूना चाहिए। पहले कान या सिर के पीछे की डोरी उतारें।
- मास्क उतारने के बाद 20 सेकंड तक साबुन से हाथ साफ करें।

दो गज की दूरी
जब कोरोना की पहली लहर आई थी तो लोगों ने इसे काफी गंभीरता से लिया था। फिर यह शब्द आम बोलचाल का हिस्सा हो गया और लोगों ने इसकी गंभीरता कम कर दी। सच तो यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग आज भी कोरोना के किसी भी वेरियंट से बचाने में काफी कारगर है। 2 गज यानी 6 फुट की दूरी आज भी उतनी ही जरूरी है। भीड़ का हिस्सा न बनें। चाहे वह भीड़ पार्टी की हो, बाजार में हो या फिर कहीं और। बहुत जरूरी न हो तो बाजार आदि जगह न जाएं और अगर जाना भी पड़े तो 2 गज की दूरी का ध्यान जरूर रखें।

साफ-सफाई
वैसे तो इसकी जरूरत हमेशा ही होती है, लेकिन हाथों को साफ रखना कोरोना की दस्तक के साथ ही ज्यादा जरूरी हो गया था। हम इसे अब भूल चुके हैं। दोनों हाथों को 20 सेकंड तक साबुन से अच्छी तरह से साफ करना बहुत जरूरी है। वहीं जहां साबुन और पानी उपलब्ध न हो यानी बाजार आदि जगहों पर सैनिटाइजर से काम चलाना चाहिए। साबुन उपलब्ध होने पर सैनिटाइजर का इस्तेमाल न करें। अगर बाजार या बाहर निकलने पर बार-बार सैनिटाइजर से हाथ साफ किए गए हैं तो घर लौटने पर जूते या चप्पल आदि को बाहर उतारकर, मास्क खोलने के बाद साबुन से 20 सेकंड के लिए हाथों को फिर से जरूर साफ करें। इससे वायरस भी धुल जाएगा और सैनिटाइजर के केमिकल का असर भी हाथों पर कम हो जाएगा।

वैक्सीनेशन
देश में अब भी करीब 65 फीसदी आबादी को सिंगल डोज वैक्सीन लगी है और दोनों डोज लगाए हुए लोगों की संख्या 47 फीसदी है। जिन लोगों ने वैक्सीन के दोनों डोज या 15 दिन पहले (स्थायी ऐंटिबॉडी 'IgG' बनने में कम से कम 15 से 20 दिन का वक्त लगता है।) सिंगल डोज भी लगवा ली थी, उन्हें अमूमन अस्पताल का मुंह नहीं देखना पड़ रहा है। अगर किसी को जरूरत हो भी रही है तो मामला ज्यादा गंभीर नहीं बन रहा है। ऐसा देखा जा रहा है कि अस्पताल में जो लोग पहुंच रहे हैं और जिनके मामले ज्यादा गंभीर हो रहे हैं, उनमें से ज्यादातर वैक्सीन न लेने वाले हैं या उन्हें साथ में कोई दूसरी गंभीर बीमारी है। इसलिए कोवैक्सीन, कोविशील्ड या स्पूतनिक V जो भी वैक्सीन मिले, लगवा लें। गंभीर बीमारी वाले बुजुर्ग तीसरी डोज लगवा लें और 15 साल से ज्यादा के टीन एजर्स अपनी पहली डोज।

आज से ही शुरू कर दें इम्यूनिटी को मजबूत करने की तैयारी
-अगर अपनी रुटीन लाइफ और खानपान को लेकर सचेत नहीं हुए हैं तो जरूर हो जाएं क्योंकि ओमिक्रॉन कोई आखिरी वेरियंट नहीं है। वैक्सीन या सप्लिमेंट्स हमारे शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत करने में मदद करती है, न कि वह खुद अंदर आकर वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने लगती है। इसलिए जब हमारी इम्यूनिटी मजबूत होगी तो मुमकिन है कि दवाओं की जरूरत ही न पड़े और हमारा शरीर उससे खुद ही निपट ले।

इम्यूनिटी मजबूती के उपाय
- सुबह 40 मिनट से 60 मिनट तक फिजिकल ऐक्टिविटी जरूर करें। चाहें टहल लें। टहलते समय चाल 1 मिनट में 80 से 100 कदम जरूर होने चाहिए।
- 15 से 20 मिनट योग करें। इसमें आसन, अनुलोम-विलोम, कपालभाति और ध्यान जरूर शामिल हों।
- 10 से 15 मिनट योग करें। इसमें आसन, अनुलोम-विलोम, कपालभाति और ध्यान जरूर शामिल हों।

डाइट में विटामिन-C, B और जिंक वाली चीजें
कौन-सा फल लें: 1 बड़ा अमरूद (200 ग्राम) या 2-3 संतरे या मौसमी (300 ग्राम) या 4 टमाटर (250 ग्राम)। इन्हें हर दिन खा सकते हैं। इनसे विटामिन-सी मिल जाएगा। इनके अलावा हमारे भोजन में साग-सब्जी या फल 4 अलग-अलग रंगों के हों तो शरीर की जरूरी मिनरल या विटामिन की जरूरत पूरी हो जाती है। जैसे- लाल: टमाटर, हरा: अमरूद, मौसमी, पालक, लौकी आदि, पीला: पपीता, संतरा आदि। जिंक के लिए: नट्स (3 से 4 बादाम या 1 मुट्ठी रोस्टेड मूंगफली या 1 अखरोट)।

Dr. विटामिन को न भूलें
विटामिन-डी, जिसे कई एक्सपर्ट डॉक्टर विटामिन भी कहते हैं, यह हमें धूप से भरपूर मात्रा में मिलता है। यह अकेला विटामिन है जो हमें बिना खाए कुदरती तरीके से मिल जाता है। कोरोना के साथ विटामिन-डी के संबंधों पर कई तरह की रिसर्च हो रही हैं और कुछ का नतीजा यह है कि इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार होने की वजह से विटामिन-डी कोरोना से लड़ता है।
-सर्दियों में सुबह 11 से 2 बजे के बीच और गर्मियों में 8 से 10 के बीच धूप में बैठें।
-सामान्य आदमी को हर दिन 30 से 35 मिनट धूप में जरूर बैठना चाहिए।


अगर शक हो इंफेक्शन का
चूंकि कोरोना के नए मरीजों की संख्या अब हर दिन करीब 2 लाख 68 होने लगी है, इसलिए अब इस बारे में बात करना भी जरूरी है कि अगर किसी को कोई लक्षण आ जाएं, जैसे: खराश, खांसी, बुखार आदि तो ऐसे में क्या यह मान लिया जाए कि ओमिक्रॉन का इंफेक्शन हो गया है? इसे बाकी तरह के आम इंफेक्शन से तुलना करके बेहतर तरीके से समझते हैं:


नोट: वैसे आजकल 80 फीसदी से ज्यादा मामले ओमिक्रॉन के ही आ रहे हैं, लेकिन डेल्टा वेरियंट के मामले अभी तक पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। यहां जो भी लक्षण बताए गए हैं, जरूरी नहीं कि सभी लोगों में ऐसे ही लक्षण हों। कम या ज्यादा होना मुमकिन है। इसकी सही जानकारी डॉक्टर ही जांच करके दे सकते हैं।


लक्षण हों तो ही कराएं जांच

कौन कराए RT-PCR
अगर किसी को कोरोना जैसे लक्षण हैं, चाहे वह किसी भी उम्र का हो तो उसे जांच करानी चाहिए। वह चाहे तो पहले घर पर टेस्ट किट से जांच कर ले (अगर वह जॉब में नहीं है तो क्योंकि ऑफिस में RT-PCR की रिपोर्ट ही मान्य होती है) या फिर RT-PCR करा ले। आजकल 24 से 48 घंटे में रिपोर्ट मिल जाती है। कुछ लोग जानना चाहते हैं कि उन्हें ओमिक्रॉन का इंफेक्शन है या डेल्टा वेरियंट का? सच तो यह है कि यह जानना हमारे लिए किसी काम का नहीं है। सरकार भी बमुश्किल 5 फीसदी लोगों के सैंपल ही जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए भेजती है।

कौन न कराए
नई गाइडलाइंस के अनुसार, अगर लक्षण नहीं है तो भले ही वह शख्स किसी कोरोना मरीज के संपर्क में आया हो उसे RT-PCR जांच की जरूरत नहीं है। यह इसलिए किया गया क्योंकि जिन लोगों में कोरोना के गंभीर लक्षण हैं, उनकी जांच आसानी से हो सके और भीड़ कम हो। हां, उसे खुद को आइसोलेशन में जरूर रखना चाहिए।

RT-PCR के अलावा ये टेस्ट भी
आरटीपीसीआर के अलावा ये टेस्ट भी उपलब्ध हैं: TrueNat, CBNAAT, CRISPR, RT-LAMP। वैसे ये टेस्ट 45 मिनट से कुछ घंटों तक में रिजल्ट दे देते हैं। पर इनकी कीमत ज्यादा है।
कीमत: 1500 से 4000 रुपये

जीनोम सिक्वेंसिंग का पता
RT-PCR जांच के लिए सैंपल देने के बाद यही पता चलता है कि कोरोना का इंफेक्शन है या नहीं। इस जांच से यह पता नहीं चलता कि यह इंफेक्शन डेल्टा का हुआ या फिर ओमिक्रॉन का। दरअसल, ओमिक्रॉन जांच के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग की जरूरत होती है यानी वायरस के जींस, उस पर मौजूद प्रोटींस की गहन जांच। इसमें ज्यादा पैसा और ज्यादा वक्त लगता है जबकि इलाज लक्षणों का ही होता है, अगर लक्षण आते हैं तो। इसलिए सरकार भी सभी सैंपल जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए नहीं भेजती। 100 में ज्यादा से ज्यादा 5 सैंपल ही भेजती है। इसकी रिपोर्ट हमें नहीं मिलती। यह सरकार के डेटा के लिए होती है। इसका पता चलने में 3 से 5 दिन या इससे भी ज्यादा वक्त लग जाता है, तब तक मरीज ठीक भी हो जाता है। हकीकत यह है कि सरकार अब कई लैब्स से जीनोम सिक्वैंसिंग के लिए सैंपल भी नहीं मंगवा रही। इसकी वजह यह है कि जब ओमिक्रॉन जैसा कोई बहुत तेज वायरस सोसायटी में फैलता है तो यह बाकी तमाम वायरस को रिप्लेस कर देता है। फिलहाल स्थिति कुछ ऐसी ही हो गई है। हालांकि अब भी बहुत सारे केस डेल्टा के हैं, खासकर गंभीर मामले तो डेल्टा के ही माने जा रहे हैं।


घर पर भी जांच कर सकते हैं...
कोविड-19 रैपिड एंटिजन सेल्फ टेस्ट किट (Rapid Antigen Test: RAT)
1. Mylab CoviSelf
कीमत: 250 रुपये
2. Covifind
कीमत: 500 रुपये
3. Abbott
कीमत: 325 रुपये

नोट: कीमतों बदलाव मुमकिन है। इनके अलावा भी कई अच्छी कंपनियां हैं जो कोविड-19 रैपिड एंटिजन सेल्फ टेस्ट किट बनाती हैं। बाकी कंपनियों की सूची के लिए icmr.gov.in पर जाएं। यहां ऊपर लेफ्ट साइड में COVID-19 पर क्लिक करें। इसमें तीसरे नंबर पर Kit Validation आएगा। इसे क्लिक करेंगे तो पूरी सूची पीडीएफ के रूप में मिल जाएगी।

-घर पर जांच के लिए उपयोग में लाए जाने वाली टेस्ट किट ऐंटिजेन आधारित है। पिछले कोविड इंफेक्शन के दौरान जो क्विक टेस्ट किया जाता था, अब उसे इन किट्स की मदद से खुद ही घर पर किया जाने लगा है।
-अगर किसी को कोरोना के लक्षण हैं, लेकिन परिणाम नेगेटिव आता है तो उसे RT-PCR कराना चाहिए।
-किट से जांच के लिए हाथ साफ रखना बहुत जरूरी है।
-इसमें भी सैंपल नाक और मुंह से ही लिया जाता है।
-इसका नतीजा अमूमन 15 से 20 मिनट में मिल जाता है। जिस किट में टेस्ट के बाद रिजल्ट आने में जितना समय लगता है, उससे 3 से 5 मिनट ज्यादा समय बाद आने वाले रिजल्ट को सही नहीं माना जाता। इसलिए जब भी टेस्ट करें समय जरूर नोट कर लें।
-चूंकि अलग-अलग कंपनियों की किट में जांचने का तरीका और रिजल्ट आने का समय अलग-अलग हो सकता है, इसलिए पहले उसके दिशा-निर्देशों को अच्छी तरह जरूर पढ़ लें।
-जांच की प्रकिया शुरू करने से पहले जिस कंपनी की किट खरीदी है, उस कंपनी का ऐप अपने मोबाइल में डाउनलोड करना पड़ता है। इस क्रम में अपनी पूरी डिटेल्स भी भरनी होती है जैसे: नाम, उम्र आदि ताकि ऐप के माध्यम से सरकार के पास यह डेटा पहुंच जाए कि कितने लोग पॉजिटिव हो रहे हैं और कितने नेगेटिव। सरकार के पास डेटा जाने से सरकार को महामारी के बारे में जरूरी फैसले करने में आसानी रहती है।


आइसोलेशन के नए नियम
-आजकल अगर किसी शख्स को सर्दी, खांसी और बुखार है तो उसे यह मानकर चलना चाहिए कि वह ओमिक्रॉन से संक्रमित है। इसलिए लक्षण आते ही पहले 3 दिनों तक खुद को आइसोलेट कर लेना चाहिए। अगर ये लक्षण 2 से 3 दिनों में चले गए तो ठीक, नहीं तो उसे 7 दिनों तक खुद को आइसोलेट कर लेना चाहिए। जहां तक जांच की बात है तो अगर लक्षण हैं तो उसे 2 से 3 दिनों में लक्षण नहीं जाने पर जांच करा लेनी चाहिए।
-अगर किसी का सैंपल जांच में गया है तो रिजल्ट आने तक उसे क्वारंटीन रहना चाहिए। पॉजिटिव आने पर 7 दिन आइसोलेशन में रहना जरूरी है।
-अगर कोई शख्स कोरोना संक्रमित है। उसे ओमिक्रॉन के हल्के या थोड़े गंभीर लक्षण (सर्दी, खांसी और बुखार 101 तक) उभरे हैं तो उसे 7 से 10 दिनों के लिए खुद को आइसोलेशन में रखना चाहिए। अमूमन यह 7 दिनों के लिए कहा जा रहा है, लेकिन कुछ मामले ऐसे भी आ रहे हैं जब सभी लक्षण खत्म होने में 7 से 9 दिन भी लग रहे हैं।
-अगर किसी को डेल्टा वेरियंट वाले लक्षण उभरे हैं जैसे गंध और स्वाद का पता न लगना, सांस की तकलीफ है तो उसे जरूर RT-PCR जांच करानी चाहिए और डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए।
-आइसोलेशन तभी खत्म मानना चाहिए जब आखिरी 3 दिनों तक मरीज को कोई भी लक्षण न हो।
-अगर किसी की रिपोर्ट पॉजिटिव आए और उसे शुरुआत से ही कोई लक्षण न हो तो 7 दिनों तक खुद को आइसोलेशन में रखने के बाद वह अपने काम पर लौट सकता है। उसे दोबारा टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है।
-कोई भी इमरजेंसी इलाज को, जिसमें सर्जरी भी शामिल है, कोरोना टेस्ट न होने की वजह से या टेस्ट रिपोर्ट आने तक टाला नहीं जाना चाहिए।
-इस बार बहुत गंभीर मरीजों को ही, जिन्हें सांस लेने में या दूसरी परेशानी है, डॉक्टर सीमित मात्रा में स्टेरॉइड या ऐंटिबायोटिक देंगे। खुद या केमिस्ट को ही डॉक्टर मानकर उनकी सलाह से किसी को भी स्टेरॉइड या ऐंटिबॉयोटिक न लें।
-कोई भी बिना लक्षण का मरीज, चाहे वह प्रेग्नेंट महिला ही क्यों न हो, अस्पताल में भर्ती है तो उसका कोविड टेस्ट भी तभी होना चाहिए जब उसमें लक्षण दिखने लगें।

CT-Value की कितनी वैल्यू
CT-SCAN और CT-SCORE की जरूरत नहीं: डॉक्टर की सलाह के बिना सिटी स्कैन कराने की जरूरत नहीं है। इस बार CT-SCAN की जरूरत नहीं पड़ रही है क्योंकि फेफड़ों पर ओमिक्रॉन हमला अमूमन नहीं है। वैसे भी बिना जरूरत अगर हम सिटी स्कैन सेंटर पर भीड़ बढ़ाएंगे तो कोरोना से इंफेक्शन की आशंका में ही इजाफा करेंगे। चूंकि फेफड़ों को ज्यादा नुकसान नहीं हो रहा है, इसलिए स्कैन से मिलने वाली जानकारी CT-SCORE की चर्चा भी कम है। अमूमन 5 से ज्यादा सीटी स्कोर होने पर कोरोना इंफेक्शन को ध्यान में रखकर ही इलाज किया जाता है।
CT-Value: RT-PCR टेस्ट के बाद हमें इसके बारे में जानकारी मिलती है। इससे हमें वायरल लोड का पता चलता है। जितनी ज्यादा वैल्यू आएगी, समझें वायरल लोड उतना ही कम होगा। 35 है तो कोरोना लगभग नहीं है, 30 है तो, 25 है तो, 20 या उससे नीचे हो तो वायरल लोड ज्यादा माना जाता है। यही नहीं कि मामला सीरियस है बल्कि यह कि कोरोना फैलाने की क्षमता ज्यादा है। इस बार इसकी चर्चा भी कम है। वैसे भी सिटी वैल्यू कुछ विवादों में भी रही है। अगर सैंपल लेने के दौरान स्वैब पर वायरस कम आया तो सही वायरल लोड का पता नहीं चलेगा। वैसे भी कोरोना का इलाज सिटी वैल्यू देखकर नहीं, लक्षणों के आधार पर किया जाता है।

अब बात खानपान और घरेलू उपायों की
चूंकि आजकल 80 फीसदी से ज्यादा लोग ओमिक्रॉन इंफेक्शन की जद में हैं और वे अमूमन हल्के या मध्यम लक्षणों के साथ घर पर रहते हुए ही अपना इलाज करा रहे हैं। वे डॉक्टर की सलाह ले रहे हैं।
ऐसे लक्षणों की चर्चा हमने ऊपर भी की है। उनमें कुछ के लिए उपाय यहां बता रहे हैं:

1. खांसी, सर्दी और गले में दर्द के लिए
खांसी अमूमन 2 तरह की होती है- सूखी और बलगम वाली खांसी। सूखी खांसी ज्यादातर मामलों में एलर्जी आदि की वजह से होती है, वहीं बलगम वाली खांसी वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से। बलगम वाली खांसी के लिए डॉक्टर ऐसी दवा या सिरप देते हैं जो कफ निकाले। बलगम वाली खांसी होने पर सूखी खांसी वाली दवा दे दी तो बलगम अंदर ही रह जाता है जो बाद में नुकसान पहुंचाता है। बलगम वाली खांसी में एक्सपेक्टोरंट (Expectorant) युक्त सिरप कारगर है।

काढ़ा:
अभी सर्दी है, इसलिए सही मात्रा में काढ़ा पीते रहें। हर दिन 30 से 40 ml से ज्यादा नहीं लें। इससे ज्यादा पीने पर गैस और पेट में दर्द की परेशानी भी कुछ लोगों को हो सकती है।

ऐसे बनाएं:
पानी: 60 से 70 एमएल (1 कप), दूध: 60 से 70 एमएल (1 कप), तुलसी के पत्ते: 3, लौंग: 1, काली मिर्च: 1, दालचीनी: एक चुटकी पाउडर
चीनी या शक्कर: स्वाद के अनुसार, अगर डायबीटीज है तो न लें या वैद्य की सलाह से लें।
-अगर लौंग, दालचीनी और काली मिर्च ले रहे हैं तो मुलेठी कम कर दें। इन तीनों की जगह मुलेठी लेना चाहते हैं तो एक बार किसी वैद्य से जरूर बात कर लें। काढ़ा हर शख्स की परेशानी और उसकी जरूरतों के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए।
-काढ़े के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर kada लिखकर सर्च करें।
- 50 एमएल सरसों के तेल में 2 चुटकी नमक मिलाकर 2 मिनट गर्म कर लें। फिर इस तेल से सीने की मालिश करें।
- हर दिन सुबह फ्रेश होने के बाद नाक के दोनों सुराखों में उंगली से तिल, सरसों या बादाम का तेल 1-2 बूंद लगाएं।

गरारे और गुनगुना पानी
गरारे: जब गले में खराश, दर्द या बलगम जमा हो तो दिन में 2 बार गरारे कर सकते हैं। इसके लिए गुनगुने या बर्दाश्त करने लायक एक गिलास पानी में एक से दो चम्मच बिटाडिन या एक चम्मच नमक मिलाकर करें। इससे ज्यादा करने की जरूरत नहीं है। पानी बहुत ज्यादा गर्म न हो। इससे गले में घाव बनने की आशंका रहती है।
गुनगुना पानी: इसे पीने से एक फायदा फौरन होता है, वह है सांस नली में आई सूजन कम हो जाती है।

स्टीम कितनी कारगर
-कुछ डॉक्टर कोरोना इंफेक्शन में स्टीम लेने से मना करते हैं जबकि ज्यादा डॉक्टर इसके पक्ष में हैं। हां, ध्यान इस बात का जरूर रखना है कि यह ज्यादा न हो जाए।
-कितनी देर तक करें स्टीम: एक बार में 5 से 7 मिनट तक स्टीम करना काफी है। इसमें कुछ भी न मिलाएं। किसी भी तरह की दवा या कैप्सूल या नमक कुछ भी नहीं। एक दिन में 1 से 2 बार (सुबह और शाम) स्टीम करना सही रहता है।
-यह गले में जमे हुए बलगम को बाहर निकालने में मदद करती है।
ऐसे करें: सादे पानी को उबालकर उसकी भाप को नाक और मुंह से अंदर खींचा जाता है। स्टीम ज्यादा असरदार तरीके से काम करे, इसके लिए जरूरी है कि हम खुद को स्टीमर समेत कंबल या तौलिये से ढक लें। सादे पानी को 5 मिनट अच्छी तरह से उबालने के बाद स्टीम अंदर खींचने से फायदा होता है। नाक से लें, मुंह से छोड़ें और मुंह से लें, नाक से छोड़ें। किसी सामान्य बर्तन से भी भाप ले सकते हैं।

अच्छे-बुरे स्टीमर की पहचान
1. भाप लेते वक्त मुंह या नाक पर गर्म पानी के छीटें न पड़ें।
2. 10-15 मिनट बाद खुद-ब-खुद बंद हो जाए।
3. महीन बूंदों वाली भाप दे।
4. स्टीम को कंट्रोल करने का बटन हो यानी तेज या हल्की कर सके।
5. ऑन-ऑफ होने का इंडिकेटर हो।

नेबुलाइजर कब
इसका इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह से न करें। इस्तेमाल करने से पहले इसकी एक छोटी-सी ट्रेनिंग भी होती है, वह लें। नेबुलाइजर इस्तेमाल करने के लिए पहले मशीन में दवा डालनी पड़ती है जो मरीज की स्थिति और जरूरत को देखते हुए डॉक्टर लिखते हैं। नेबुलाइजेशन की प्रक्रिया अमूमन 10 मिनट की होती है। यह उनके लिए फायदेमंद है, जिन्हें सांस लेने में परेशानी हो, सांस की नली में सूजन, अस्थमा की परेशानी हो।

2. बुखार होने पर
-अगर बुखार 100 से नीचे है तो कोई भी दवा लेने की जरूरत नहीं। यहां तक कि पैरासिटामॉल भी नहीं।
-अगर बुखार 100 से ऊपर चला गया है तो पैरासिटामॉल (ब्रैंड नैम: डोलो, क्रॉसिन आदि) ले सकते हैं। वैसे 500 या 650 एमजी की गोली बड़ों को दी जाती है। वहीं 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए 200 या 250 एमजी की सिरप। इसकी मात्रा कितनी होगी यह डॉक्टर से पूछ सकते हैं। बड़ों को अमूमन 6 से 8 घंटों पर दे सकते हैं।
-अगर बुखार 103 से ऊपर जा रहा हो तो हर 2 मिनट पर, 2-2 मिनट के लिए 5 से 7 बार माथे पर गीली पट्टी जरूर रखें।

एक्सपर्ट पैनल
-डॉ. एस. के. सरीन, डायरेक्टर, ILBS
-मेजर जनरल विभा दत्ता, डायरेक्टर, AIIMS, नागपुर
-डॉ. एन. के. अरोड़ा, मेंबर, कोविड टास्क फोर्स, ICMR
-डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
-डॉ. अशोक झिंगन, चेयरमैन, डायबीटीज रिसर्च फाउंडेशन
-डॉ. संजय राय, हेड, कम्यूनिटी मेडिसिन, AIIMS
-डॉ. पूनम साहनी, डायरेक्टर-लैब, सरल डायग्नोस्टिक्स
-डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
-डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, सीनियर पीडीअट्रिशन
-डॉ. एस. एन. डोरनाला, वरिष्ठ वैद्य और साइंटिस्ट

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नई दिल्ली
एक पुराना गाना है: 'तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है, ये उठें सुबह चले, ये झुकें शाम ढले...' लेकिन ऐसी खूबसूरत आंखों के लिए आंखों को दुरुस्त रखना जरूरी है। वैसे इन्हें दुरुस्त रखना इतना मुश्किल भी नहीं। हमें सिर्फ लापरवाही नहीं करनी। अगर परेशानी शुरू हो तो लक्षणों को जल्द से जल्द समझ लें। किस उम्र में कितनी देर के लिए स्क्रीन देखें, आंखों की परेशानियों को कैसे समझें, आंखों की रोशनी बरकरार रखने के लिए क्या उपाय करें? एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

6 सबसे खास बातें

1. स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताना हमारी मजबूरी हो सकती है, शौक नहीं होना चाहिए।
2. 6 से 13 साल तक के बच्चों में दूर तक साफ न देखने की परेशानी सबसे ज्यादा देखी जा रही है, इसलिए लक्षणों पर ध्यान देना जरूरी है।
3. 20:20:20 फॉर्म्यूले पर अमल करना जरूरी है यानी हर 20 मिनट में 20 बार पलकें झपकना, फिर लगातार 20 सेकंड तक 20 फुट दूर देखना।
आंखों को ताजा पानी से दिनभर में 2-3 बार जरूर धोएं। पलकों को झपकते रहें।
आम रुटीन में हम एक मिनट में 20 से 25 बार पलकों को झपकाते हैं, लेकिन स्क्रीन देखते समय यह महज 5 से 7 रह जाता है।
वयस्क लगातार एक बार में 20-30 मिनट से ज्यादा और बच्चे 15-20 मिनट से ज्यादा देर तक स्क्रीन न देखें। 20:20:20 फॉर्म्यूले को अपनाएं।

कोरोना ने आंखों को सीधे तौर पर भले ही बहुत ज्यादा परेशान न किया हो, लेकिन कोरोना की वजह से स्क्रीन से नजदीकी ने बड़ों से लेकर बच्चों तक की आंखों के लिए समस्याएं जरूर पैदा की हैं। कोरोना की दूसरी लहर खत्म होने पर ऐसा लगने लगा था कि स्कूल फिर से खुल जाएंगे और कामकाज भी सामान्य हो जाएगा। लेकिन ऑमिक्रॉन ने सारी योजनाओं पर पानी फेर दिया। बच्चे और बड़े फिर से मोबाइल, लैपटॉप या कंप्यूटर से चिपककर बैठने को मजबूर हो गए। इसका बुरा असर आंखों पर दिखने लगा है।

स्क्रीन पर ज्यादा देर तो परेशानी
जब शरीर में कोई परेशानी होने वाली होती है तो वह इशारा जरूर करता है। यह बात आंखों पर भी लागू होती है। आंखों के इन इशारों को समझना बहुत जरूरी है।
स्क्रीन को ज्यादा पास से देखना: अगर कोई बच्चा या बड़ा टीवी, लैपटॉप, मोबाइल या डेस्कटॉप को नजदीक से ही देखता है तो उसे यह भी पता नहीं चल पाता कि उसकी आखों में कोई परेशानी शुरू हो चुकी है। इसलिए जब भी बच्चा टीवी देखते समय नजदीक बैठने की ही कोशिश करे तो समझें कि परेशानी है।
इनके अलावा कुछ दूसरे लक्षण हो सकते हैं:
आंखों से पानी आना: कुछ भी पढ़ते समय या बिना कारण आंखों से पानी आए तो समझ लें, खतरा शुरू हो चुका है।
आंखों में खुजली होना: अगर किसी को बार-बार खुजली हो और पलकें मलना अच्छा लगे।
लगातार आंखें लाल रहना: बिना किसी चोट के आंखें लगातार लाल रहती हैं तो समझ लें कि आंखों की मांसपेशियों में ज्यादा तनाव आ गया है।
सिर में दर्द या भारीपन रहना: आंखें भी हमारे दिमाग का ही हिस्सा हैं। इसलिए सिर दर्द या भारीपन महसूस होने लगे तो आंखों की नसों और मांसपेशियों में तनाव इसकी अहम वजह होती है।

दूर की निगाह हो जब कमजोर

अगर किसी शख्स को 6 फुट की दूरी पर मौजूद कोई भी ऑब्जेक्ट साफ दिखाई न दे तो वह मायोपिया का शिकार हो सकता है। ज्यादातर बच्चे मायोपिया वाले ही होते हैं। मायोपिया होने पर रेटिना पर बनने वाली इमेज उससे कुछ आगे बनने लगती है।

नजदीक देखने में जब हो दिक्कत
इसे हाइपरमेट्रोपिया भी कहते हैं। इसमें नजदीक की चीजों को देखने में परेशानी होती है। इमेज रेटिना के पीछे बनता है। यह परेशानी अमूमन 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में देखी जाती है।

सेहतमंद आंखों के लिए चंद बेहतरीन टिप्स

पलकें भी झपकाएं और दूर, बहुत दूर भी जरूर देखें

सेहतमंद आंखें चाहिए तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। इसमें जहां 20:20:20 का फॉर्मूला कारगर है, वहीं पलकें झपकाना भी बहुत जरूरी है। इनके अलावा धूप और खानपान पर भी ध्यान देना जरूरी है।

6/6 के लिए 6 जरूरी बातें
1. जब हम ज्यादा दूरी की चीजें देखते हैं तो हमारे आंखों की मांसपेशियां आराम करती हैं। 6/6 का मतलब है कि दोनों आंखें 6 मीटर की दूरी तक की चीजों को सही तरीके से पढ़ पा रही हों। आउटडोर गेम्स बंद हैं, इसलिए अगर सुबह धूप निकली है तो 9 से 12 बजे के बीच कम से कम 25-35 मिनट धूप जरूर सेकें। धूप से मिलने वाला विटामिन डी आंखों के लिए भी बहुत फायदेमंद हैं।
2. जब हम स्क्रीन पर लगातार देखते हैं तो पलकें झपकाना कम कर देते हैं। इससे आंखें ड्राई होने लगती हैं। हमें हर मिनट 20 से 25 बार पलकों को जरूर झपकाना चाहिए। स्क्रीन की पोजिशन आंखों की बराबरी पर हो तो बेहतर है। नीचे या ऊपर न हो।
3. अगर चश्मा नहीं लगा है तो हर 6 महीने पर और अगर चश्मा लगा है तो हर 3 महीने पर आंखों की जांच जरूर कराएं।
4. स्क्रीन पर पढ़ाई या काम करते समय हर 20 मिनट पर 20 सेकंड के लिए 20 फुट की दूरी तक जरूर देखना चाहिए। इससे आंखों का तनाव कम होता है। कंप्यूटर या लैपटॉप स्क्रीन की दूरी 1 आर्म डिस्टेंस यानी डेढ़ से दो फुट के करीब होनी चाहिए।
5. अगर पैरंट्स में से किसी को मायोपिया (दूरी की चीजें देखने में परेशानी) की शिकायत रही है तो यह उनके बच्चों में भी होने का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए ऐसे पैरंट्स को सचेत होने की ज्यादा जरूरत है।
6. बच्चा पास में बैठा हो तो टीवी देखते हुए न्यूज चैनल पर उन छोटे अक्षरों को 6 फुट की दूरी से पढ़ने के लिए कहें, जिन्हें आप अच्छी तरह से पढ़ सकते हैं। इससे बच्चे की आंखों की स्थिति के बारे में पता चल जाएगा।

हर दिन आंखों से खेलें 20:20:20

- स्क्रीन का इस्तेमाल सीमित करें। अगर यह मुश्किल है तो इस फॉर्म्यूले का इस्तेमाल करें। आंखों को नुकसान कम पहुंचेगा।
-20:20:20 नियम को याद रखना
- हर 20 मिनट में 20 बार पलकें झपकाना, फिर लगातार 20 सेकंड के लिए 20 फुट दूर देखना।
- इसके लिए मोबाइल में टाइमर सेट कर लें और आप बच्चे को इसे याद दिलाएं कि जितना जरूरी है क्लास करना, उतना ही जरूरी है इसे भी करना।
-यह नियम सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं होना चाहिए बल्कि विडियो गेम खेलते समय भी होना चाहिए। हालांकि, हर दिन ऑनलाइन क्लास के बाद 30 मिनट से 1 घंटा काफी है विडियो गेम के लिए। बेस्ट आधा घंटा है।
- अगर किताबें हैं तो ई-बुक से पढ़ाई न की जाए। इसी तरह आंखों को 10 बार ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं घुमाने के लिए भी कहें। यह आंखों की एक्सरसाइज है, दिन में 3 से 4 बार करना काफी होगा।

जब हम दूर देखते हैं तो आंखें कहती हैं 'थैंक्स'
कुदरत ने आंखों की बनावट ऐसी की है कि जब हम दूर देखते हैं तो यह आंखों के लिए सामान्य स्थिति होती है जबकि नजदीक की चीजों को देखने पर आंखों में मौजूद मांसपेशियों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है। हम जितना नजदीक देखते हैं, आंखों की मांसपेशियों को मेहनत करके लेंस को सही सेटिंग्स पर लाना पड़ता है ताकि जो चीज हम देख रहे हैं उसकी इमेज रेटिना पर ही बने, उससे पहले नहीं। जब हम मोबाइल या लैपटॉप आदि स्क्रीन को लगातार करीब से देखते हैं तो इससे आंखों में मौजूद मांसपेशियां धीरे-धीरे थकने लगती हैं और बाद में कमजोर हो जाती हैं। एक तो मांसपेशियों को बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, दूसरा आंखों पर पड़ने वाली अतिरिक्त लाइट और तीसरा पलकों का झपकना कम हो जाता है। दूर की निगाह भी यहीं से कमजोर होती हैं। आंखें खराब होने की शुरुआत होने में 2 से 3 महीने या फिर 1 साल का वक्त लग सकता है। अगर स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताया तो यह धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और हमारी आंखों के लिए पावर वाले चश्मे की जरूरत भी होती है। इसलिए स्क्रीन देखते हुए 20:20:20 का नियम फॉलो करें और स्क्रीन लगातार न देखें ताकि आंखों की मांसपेशियों को कुछ आराम मिल सके।

पलकें झपकाना भी जरूरी

चाहे बच्चा हो या बड़ा, जब कोई मोबाइल या दूसरी स्क्रीन पर नजरों को टिकाए रखता है तो उसके पलकें झपकने की गति एक चौथाई रह जाती है।
-जब हम स्क्रीन पर नहीं होते हैं तब अमूमन एक मिनट में हम 20 से 25 बार पलकें झपकाते हैं।
- जब हम स्क्रीन पर होते हैं तब हम अमूमन एक मिनट में 5 से 6 बार ही पलकें झपकाते हैं।
- कुदरत ने अगर आंखें दी हैं तो पलकें भी दी हैं। पलकें सिर्फ धूल और कीड़ों आदि को आंखों तक पहुंचने से बचाने के लिए ही नहीं हैं। पलकों का काम इससे कहीं ज्यादा है।
- जब हम पलकें झपकाते हैं तो आंखों में मौजूद पानी जो बाहर निकलने पर आंसू बन जाता है, वह आंखों में एक परत बनाकर आंखों की ड्राइनेस खत्म कर देता है। वहीं लगातार स्क्रीन देखने से हम काफी कम पलकें झपकाते हैं। इससे आंखें ड्राई रहने लगती हैं।
- जब आंखें ड्राई होती हैं तो आंखों में खुजली होती हैं और आंखें लाल होती हैं। कई बच्चों और लोगों को आंखों में चुभन होती है। नतीजा यह होता है कि हम अपनी आंखों को बार-बार मलते हैं। इससे खुजली में तो आराम मिलता है, लेकिन आंखें ज्यादा लाल होने लगती हैं। लगातार ड्राइनेस रहने से आंखों में घाव होने की आशंका भी रहती है। इसलिए सामान्य तरीके से पलकें जरूर झपकाएं।

स्क्रीन टाइम की स्क्रीनिंग

हम यहां समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि किस उम्र से बच्चों को स्क्रीन देना चाहिए और कितनी देर के लिए।

2 साल तक
- क्या करते हैं: बच्चों को विडियो दिखाकर खाना खिलाते हैं।
वह कार्टून देखकर आसानी से खा लेता है।
-क्या करना चाहिए: उसे खिलौनें आदि दें। मोबाइल, लैपटॉप या दूसरे स्क्रीन वाले गैजेट्स की आदत न डालें।
- 24 घंटे में कितनी देर के लिए स्क्रीन दें: 0 (शून्य) मिनट

3 से 5 साल
- क्या करते हैं: बहलाने के लिए मोबाइल दे देते हैं।
ऑनलाइन क्लासेज भी शुरू हो जाती हैं।
- क्या करना चाहिए: ये बच्चे खिलौनों से खेलने लगते हैं। उन्हें ब्लॉक्स जैसे खिलौने दें ताकि दिमाग उलझा रहे।
- 24 घंटे में कितनी देर के लिए स्क्रीन दें: ज्यादा से ज्यादा 15-15 मिनट करके 2 बार यानी क्लास के बाद आधा घंटा से ज्यादा नहीं। याद रखें कि वह ऑनलाइन क्लास में करीब 1 घंटा अलग से स्क्रीन पर बिताता है।
- बचाव के लिए ये जरूर करें: 20:20:20 फॉर्म्यूला अपने सामने जरूर करवाएं। अगर मुमकिन हो तो दिन भर में आंखों को 3 से 4 बार पानी से धो दें।

6 से 10 साल

- क्या करते हैं: अमूमन इस उम्र में बच्चा दूसरी से 5वीं तक चला जाता है। वह विडियो गेम के ऐप्स खुद ही डाउनलोड कर लेता है और हम उसे ऐसा करने देते हैं। समझते हैं कि बच्चा हाइटेक हो गया है, लेकिन परेशानी यहीं से शुरू होती है। पसंद का विडियो गेम मोबाइल या लैपटॉप में आने पर वह खेलने के मौके खोजता रहता है।
- क्या करना चाहिए: ऐसे बच्चों में ज्यादा देर तक स्क्रीन पर समय बिताने से मायोपिया के मामले आने लगते हैं। इसलिए जितना हो सके, स्क्रीन पर वक्त बिताने से उतना रोकें।
- 24 घंटे में कितनी देर के लिए स्क्रीन दें: चूंकि इस उम्र तक अमूमन ऑनलाइन क्लास 4 से 6 घंटे की हो जाती है। वैसे केंद्र सरकार की गाइडलाइंस के मुताबिक पहली से आठवीं क्लास तक के बच्चों के लिए एक दिन में कुल डेढ़ घंटे से ज्यादा ऑनलाइन क्लास नहीं होनी चाहिए। खेलने के लिए उसे मोबाइल एक बार में 15 मिनट से ज्यादा नहीं दें। यानी 4 से 6 बार। कुल 1 घंटा से ज्यादा नहीं।
- बचाव के लिए ये जरूर करें: 20:20:20 फॉर्म्यूले के साथ दिन में 2-3 बार बच्चों को खुद आंखों को धोने के लिए कहें।

11 से 13 साल
- क्या करते हैं: बच्चा टीन एज की तरफ कदम बढ़ा देता है। हम कम ध्यान देते हैं। यही कारण है कि कोरोना के इस माहौल में दूर की नजर कमजोर होने के सबसे ज्यादा मामले इसी उम्र में मिलते हैं। बच्चा अमूमन 4 से 6 घंटे ऑनलाइन क्लास करता है।
- क्या करना चाहिए: इस उम्र तक बच्चे इतने समझदार हो जाते हैं कि पैरंट्स अगर उन्हें स्क्रीन टाइम और सामान्य ज़िंदगी में तालमेल बिठाने के लिए कहें तो वे मान भी जाते हैं। उन्हें यह समझाएं कि आंखों के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा।
- 24 घंटे में कितनी देर के लिए स्क्रीन दें: दिनभर में 4 बार में 15-15 मिनट के लिए कुल 1 घंटा से ज्यादा नहीं।
n बचाव के लिए ये जरूर करें: 20:20:20 के नियम के साथ फिजिकल ऐक्टिविटी को भी बढ़ाने के लिए कहें।

13-14 साल से ऊपर वाले
- क्या करते हैं: बच्चे बड़े हो जाते हैं और जो बड़े हैं उन्हें कोई टोकने वाला नहीं होता। कभी सोशल मीडिया पर तो कभी मूवी या गेम पर। आंखों में खुजली, लाल होना आम रहता हैं।
- क्या करना चाहिए: स्क्रीन का टाइम तय करना चाहिए। हफ्ते में एक बार 12 घंटे तक स्क्रीन से दूर रहें। सुबह 8 से रात के 8 बजे तक।
-24 घंटे में कितनी देर के लिए स्क्रीन दें: ज्यादा से ज्यादा 1 से 2 घंटे तक ही समय स्क्रीन पर बिताना चाहिए।
-बचाव के लिए ये जरूर करें: सभी 20:20:20 नियम को जरूर मानें। हर दिन 10 मिनट योग और 20 मिनट की एक्सरसाइज करनी चाहिए। धूप में बैठना भी जरूरी है।

रोशनी की हो सही डोज
आंखों को जितनी रोशनी सुकून दे, वही ठीक है। कमरे में रोशनी की जरूरत इन बातों पर निर्भर करती है...
1. कमरे का साइज क्या है: अगर कमरा 100 वर्ग फुट का स्क्वायर शेप में है तो एक 16 से 18 वॉट के LED बल्ब की रोशनी काफी होती है। पर यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि अगर वह कमरा किचन या बाथरूम या स्टडी रूम है तो इससे ज्यादा रोशनी भी हो सकती है। ऐसी जगहों पर लोग अक्सर ज्यादा रोशनी पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें साफ-सफाई ज्यादा रखनी होती है। बारीक काम ज्यादा करना होता है। वहीं बेडरूम के लिए ज्यादा रोशनी की जरूरत नहीं होती।
2. उस कमरे में किस उम्र का शख्स रहता है: रोशनी की जरूरत उम्र के हिसाब से होती है। 55 साल तक के शख्स के लिए अमूमन सामान्य रोशनी में ही काम चल जाता है। वहीं इससे ज्यादा उम्र वालों को ज्यादा रोशनी की जरूरत होती है।
3. घर की दीवारों का रंग कैसा है: अगर दीवारें सफेद रंग की हैं तो वह रोशनी को ज्यादा रिफ्लेक्ट करेंगी। वहीं किसी दूसरे गहरे रंग की हैं तो दीवारें रोशनी को सोख लेती हैं। गहरे की दीवारों के लिए ज्यादा वाट के बल्ब या ट्यूब की जरूरत होती है।

LED बल्ब (वाट में) कितनी चमक (लुमन्स में)
4- 5 450
6- 8 890
9- 13 1,210
16- 20 1,750
25- 28 2,780

नोट: एक 10X10 वर्ग फुट के कमरे में 2400 लूमंस लाइट की जरूरत होती है जो एक 20 से 25 वाट की एक एलईडी ट्यूब या 9 से 13 वॉट के दो बल्ब से आसानी से पूरी हो जाती है। लैपटॉप या मोबाइल आदि में काम करते समय रोशनी का स्रोत या तो आपके सिर के ऊपर हों या फिर पीछे ताकि इनकी रोशनी स्क्रीन पर सीधे पड़े।

रोशनी कौन-सी बेहतर
आजकल एलईडी ही सबसे ज्यादा चलन में है। सीएफएल लगभग बंद हो गया है और फिलामेंट वाले बल्ब की डिमांड कम है। दरअसल, एलईडी बल्ब या ट्यूब में कम वॉट में ज्यादा रोशनी मिलती है। इनकी लाइफ ज्यादा होती है और बिजली बिल भी कम आता है।
कौन-सा रंग लें
एलईडी सफेद, लाल, पीला आदि रंगों में मिलना है, लेकिन स्क्रीन पर काम करने के लिए सफेद लाइट को ही बेहतर माना गया है। सफेद रोशनी आंखों पर फालतू तनाव पैदा नहीं करती।

नोट:
1. आजकल लाइट को lux मानक में भी निकालते हैं। लूमंस को जब एरिया के हिसाब निकालते हैं तो उसे लक्स कहा जाता है।
2. कमरे में रोशनी को पर्याप्त तब माना जाता है जब रोशनी हर तरफ पहुंचे। हर कोने में पहुंचे।
3. एक एलईडी बल्ब की लाइफ औसतन 40 से 50 हजार घंटे तक मानी जाती है। कुछ कंपनियां 1 लाख घंटे तक का दावा करती हैं।


कम नींद और कम रोशनी से आंखों को बड़ा नुकसान


क्या अंधेरे में मोबाइल या लैपटॉप चलाने से परेशानी हो सकती है?
मोबाइल या लैपटॉप चलाने पर इनकी स्क्रीन लाइट से हम सब कुछ देख और पढ़ लेते हैं। इसलिए हमें दूसरी लाइट की कमी महसूस ही नहीं होती। नतीजा यह होता है कि हम अंधेरे कमरे में या कम रोशनी में भी मोबाइल या लैपटॉप आदि चलाने लगते हैं। आजकल सर्दियों का मौसम है, इसलिए कुछ बच्चे और बड़े कंबल के अंदर लेटकर मोबाइल देखते हैं। कम रोशनी में इस तरह के किसी भी गैजेट को चलाना आंखों की सेहत के लिए खतरनाक है। ऐसे गैजेट्स को कम या बहुत ज्यादा रोशनी में चलाने से आंखों पर बहुत बुरा असर पड़ता है। इसलिए रोशनी ऐसी होनी चाहिए जो आंखों को आराम दे, चुभे नहीं।

ल्यूब्रिकेंट आईड्रॉप की भूमिका क्या होती है?

वैसे तो आंखों पर पानी के छींटें से बेहतर चीज कोई नहीं, लेकिन कुछ लोगों को इससे भी ज्यादा फायदा नहीं होता। ऐसे में कुछ लुब्रिकेंट्स बाजार में उपलब्ध हैं जो OCT प्रोडक्ट हैं यानी इन दवाओं को लेने के लिए डॉक्टर के पर्चे की जरूरत नहीं होती। मेडिकल दुकानों पर आई लूब्रिकेंट्स मांगने पर मिल जाते हैं। यह ध्यान रखें कि डॉक्टर के पूछे बिना कभी भी आंखों में ऐंटिबॉयोटिक के ड्रॉप न डालें।

आंखों की सेहत के लिए नींद कितनी जरूरी?
नींद सिर्फ आंखों के लिए ही नहीं, शरीर के सभी अंगों के लिए जरूरी है। पहले कहा जाता था कि जो सोएगा, वो खोएगा, पर अब तो स्थिति ऐसी है कि जो न सोया, उसने सब कुछ खोया। इसलिए 7 से 8 घंटे की नींद जरूरी है। इससे दिमाग और आंखों को जोड़ने वाली नसें आराम करती हैं। हमारी पलकें आराम करती हैं। कोशिकाओं की मरम्मत होता है। ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है। वैसे भी इस बात का अनुभव लोग कभी न कभी कर ही लेते हैं कि रतजगा होने पर दूसरा दिन कैसा गुजरता है, आंखें थकी-थकी सी रहती हैं और जलन भी महसूस होती हैं।

रोज देर रात काम करने से आंखों को नुकसान होता है?
देर रात काम करने का नुकसान तब है जब रोशनी पर्याप्त न हो और उसकी पोजिशन सही न हो। अगर पर्याप्त रोशनी है तो देर रात काम कर सकते हैं, लेकिन काम करने के बाद नींद जरूर पूरी करें। हालांकि रोज देर रात जगने के दूसरे शारीरिक नुकसान बहुत ज्यादा है। इसलिए कोशिश हो कि देर रात जगने की नौबत न आए।

क्या मोबाइल या लैपटॉप पर काम करने के लिए कुदरती रोशनी बेहतर है?
जरूरी यह नहीं है कि हम किस तरह की लाइट में काम करते हैं। कुदरती रोशनी का मतलब दिन के उजाले से है। पर कुछ ऐसे भी घर होते हैं जहां कुदरती रोशनी ठीक से नहीं पहुंचती। ऐसे घरों में रोशनी की सही व्यवस्था का होना जरूरी है। वैसे आंखों के लिए कुदरती रोशनी ही बेहतर है।

आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए अंगूठे पर ध्यान एकाग्र करने के लिए कहा जाता है। क्या यह तरीका सही है?
यह खास तौर पर उन लोगों के लिए है जिन्हें कंप्यूटर, मोबाइल पर काम करते हुए या फिर पढ़ते समय आंखों में दर्द रहता है। आंखें भारी रहती हैं। ऐसे में अंगूठे की जगह पेंसिल से इस एक्सरसाइज को किया जाना चाहिए। इसे कन्वर्जेंस एक्सरसाइज भी कहा जाता है।
कैसे करते हैं: इसके लिए किसी पेंसिल की टिप को नाक के सीध में डेढ़ से 2 फुट दूर रखा जाता है और फिर उसे धीरे-धीरे नाक की तरफ लाना होता है। इसमें यह देखा जाता है कि शख्स को धुंधला कहां से दिखना शुरू होता है। अगर नाक तक पहुंचने के बाद धुंधला दिखता है तो आंखें अमूमन ठीक मानी जाती हैं। इस एक्सरसाइज को डॉक्टर की सलाह से करें तो बेहतर है।

नेचरोपैथी वाले कहते हैं कि उगते सूरज को देखने पर चश्मा हट जाता है। आंखों की स्थिति ठीक हो जाती है?
सुबह उठने और उठकर योगाभ्यास व एक्सरसाइज करने से फायदा जरूर होता है। हम तंदुरुस्त रहते हैं। लेकिन सुबह उठकर सनराइज देखने से आंखों के चश्मे हट जाते हैं, ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। हां, सुबह 9 से 12 के बीच धूप में बैठने से विटामिन जरूर मिलता है। इससे हड्डियां भी मजबूत होती हैं। वहीं कुछ लोग सुबह उठकर घास पर चलने से भी चश्मा हटाने की बात कहते हैं, इसका भी कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

एक्सपर्ट पैनल

डॉ. अतुल कुमार
MD, ए के इंस्टिट्यूट ऑफ ऑपथेल्मॉलजी

डॉ. (प्रो.) ए. के. ग्रोवर
चेयरमैन,विजन आई सेंटर

डॉ. (प्रो.) महिपाल
एस. सचदेव, चेयरमैन,
सेंटर फॉर साइट

डॉ. अभिनंदन कुमार जैन
सीनियर
आई सर्जन

डॉ. संजय तेवतिया
सीनियर आई सर्जन

डॉ. अश्विनी कुमार बेहेरा
सीनियर आई कंसल्टेंट

प्रेम प्रकाश गुप्ता
इलेक्ट्रिकल इंजीनियर

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जिंदगी दे दोगे दोबारा

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ज़िंदगी आराम से गुजरती रहे तो कोई टेंशन नहीं, लेकिन परेशानी तब होती है जब कोई इमरजेंसी आ जाए। आपातकालीन स्थिति अगर सेहत से जुड़ी हो तो जीने-मरने का सवाल बन जाता है। जरूरी मेडिकल इमरजेंसी से निपटने, उस दौरान होने वाली आम गलतियों से बचने और इसके सही तरीकों के बारे में एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं NBT रिपोर्टर।

4 सबसे खास बातें
  • चाहे हार्ट अटैक की स्थिति बने या फिर ब्रेन स्ट्रोक की। पहले 3 घंटे बहुत अहम होते हैं। इसलिए इसे गोल्डन आवर कहा जाता है।
  • ऐसे गंभीर मामलों में समय बचाने का मतलब है जीवन बचाना।
  • CPR करने का तरीका सभी को आना चाहिए। परिवार में कोई दिल का मरीज है तो ज्यादा अहम हैै। कार्डियक अरेस्ट में 3 मिनट के अंदर मरीज को यह मिल जाए तो यह जीवनदायी हो सकता है।
  • जब भी दिमाग पर चोट लगे, स्ट्रोक जैसी इमरजेंसी हो तो मरीज के शरीर में खून की सबसे ज्यादा जरूरत दिल और दिमाग को होती है। इसलिए मरीज को लिटाते समय सिर की तुलना में पैर थोड़े ऊंचे हों।
हेल्थ इमरजेंसी की कई वजह होती हैं। कई बार रिश्तेदारों या परिवार में, दोस्तों, पड़ोसियों या फिर अनजान शख्स के साथ भी ऐसा हो सकता है। इसलिए कुछ खास बातों की जानकारी सबको होनी चाहिए। पहले यह जानते हैं कि अमूमन किन हालात में मेडिकल इमरजेंसी होती है:
  1. बीपी कम या ज्यादा हो जाने पर
  2. अस्थमा अटैक आने पर
  3. हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट होने पर
  4. शुगर बहुत कम या बहुत ज्यादा होने पर
  5. ब्रेन स्ट्रोक या मिर्गी होने पर
  6. सिर पर चोट या बाकी शरीर पर गंभीर चोट लगने पर
  7. उंगली, हाथ, पैर आदि कटकर अलग हो जाने पर
BP गिर जाए या बढ़े
सामान्य बीपी: 120/80
बीपी लो: 100/70, खतरे की घंटी: 80/70 या इससे नीचे
हाई बीपी: 140/90 से ऊपर खतरे की घंटी: 170/110
सामान्य पल्स: 70 से 80
कम होने पर: 50 से 60, कई बार इससे भी कम।
ज्यादा पल्स: 80 से 90
खतरे की घंटी: 105 से ऊपर लगातार 2 से 3 महीनों तक रहे

लो बीपी
  • जब बीपी लो होता है तो पल्स भी अमूमन लो हो जाती है। अगर इससे परेशानी हो तो इलाज जरूरी है।
  • पल्स रेट कम होना कोई बीमारी नहीं है। दुनियाभर में ऐसे कई एथलीट हैं जिनकी पल्स रेट 40 से 45 के करीब रही है।
  • अगर पल्स रेट कम होने पर किसी भी तरह की शारीरिक परेशानी नहीं हो रही है तो यह किासी के लिए अमूमन अच्छी चीज हो सकती है।
अगर ऐसे लक्षण हों तो...
  • कोई खड़े-खड़े बेहोश हो जाए
  • बच्चे जब लगातार परेड आदि में शामिल होते हैं तो वे कई बार लो बीपी की वजह से बेहोश हो जाते हैं।
  • कई बार वेसोवेगल (Vasovagal) यानी की स्थिति बनती है। यह तब होता है जब किसी बात का दुख होने की वजह से बीपी बहुत कम 80/70 के आसपास हो जाए
  • चक्कर आने की शिकायत हो
  • बहुत ज्यादा पसीना आए, बहुत ज्यादा कमजोरी लगे।
क्यों होता है यह
ज्यादा एक्सरसाइज या फिजिकल ऐक्टिविटी करने से
गलती से दवा की ज्यादा मात्रा लेने से
बहुत ज्यादा लूज मोशन आदि की वजह से भी।

ऐसे में क्या करें
  • बीपी मशीन से हर आधे घंटे पर रीडिंग जरूर लें, जब तक कि डॉक्टर के पास नहीं पहुंचते।
  • उस शख्स के सिर के नीचे कभी तकिया न लगाएं।
  • उसके दोनों पैरों के नीचे 2 से 3 तकिये लगा दें ताकि सिर तक खून आसानी से पहुंच सके। दरअसल, हमारे पैरों में 3 से 4 यूनिट खून रहता है।
  • अगर शख्स बेहोश है तो उसे कुछ भी खिलाना-पिलाना नहीं है। आशंका है कि वे सब चीजें फेफड़ों में चली जाएं।
  • अगर शख्स होश में है तो उसे एक गिलास पानी में 1 से 2 चम्मच नमक घोलकर या ORS का घोल दें।
कहां ले जाएं: नजदीकी डॉक्टर के पास

हाई बीपी
इससे फौरन ही किसी बड़े नुकसान की गुंजाइश कम रहती है जैसा कि लो बीपी के मामले में होता है। किसी का बीपी 170/110 से ज्यादा 3 से 4 महीनों तक रहे तो हार्ट या ब्रेन में क्लॉट का भी अंदेशा ज्यादा रहता है।
क्या करें
शवासन यानी पीठ के बल आराम की स्थिति में लेट जाएं और तनावमुक्त रहने की कोशिश करें। बीपी को काबू में रखें।

अस्थमा अटैक के लक्षण:
  • सांस बहुत फूलने लगे, सांस लेते हुए सीटी की आवाज निकले। बार-बार खांसी हो।
  • बिना सांस रोके छोटा-सा वाक्य भी न बोल पाए
  • लेटने की स्थिति भी न हो, लेटते ही सांस फूलने लगे या लगातार खांसी हो। सांस की दर प्रति मिनट 30 से ज्यादा हो
  • पल्स रेट 120 से ज्यादा हो। शरीर नीला पड़ने लगे।
क्या होती हैं गलतियां
इनहेलर साथ में न रखना या उसमें दवा कम हो गई है, यह चेक न करना। हार्ट रेट और सांसों की गति पर ध्यान न देना
गंभीर होने पर भी नेबुलाइजर की सहायता न लेना।
कई लोग तेज खांसी और सांस फूलने के बीच खिलाने-पिलाने की कोशिश करते हैं। इससे गला चोक हो सकता है।

जब दिल दे जाए दगा
कार्डियक अरेस्ट
इसमें शख्स अचानक बेहोश हो जाता है। वह चलते-फिरते, नाचते-गाते गिर जाता है।
उसकी सांसें रुक जाती हैं और दिल भी काम करना बंद कर देता है।

क्या करते हैं गलतियां
ऐसी स्थिति में लोग अक्सर घबरा जाते हैं और शुरुआती 3 मिनट ऐसे ही गंवा देते हैं। इससे ब्रेन डेड जैसी स्थिति बनने लगती है।
सही तरीके से CPR (Cardiopulmonary Resuscitation) न देना।
बीमार शख्स को सिर्फ झकझोरना।

क्या करना चाहिए
इसमें पहले 3 मिनट में अगर इलाज मिल जाए, खासकर CPR तो बात बन जाती है। इस प्रक्रिया में सीने को 1 मिनट में 80 से 100 बार तक दबाना होता है। CPR उसी शख्स को करना चाहिए, जिसे यह करना आता हो। इसलिए CPR देना सभी को आना चाहिए। यू-ट्यूब पर CPR टाइप करने से कई अच्छे विडियो दिख जाएंगे। इन्हें देखकर CPR करना सीख सकते हैं। 5 साल से कम उम्र के बच्चों के अगर CPR देने की जरूरत हो तो सीने को बहुत जोर से दबाने से बेहतर है कि सीने को चार उंगलियों से दबाएं। दरअसल, बच्चों की हड्डियां बड़ों की तुलना में कुछ कमजोर होती हैं, पर ज्यादा लचीली होती है।

कहां ले जाएं
अगर किसी को CPR दिया जा रहा है तो दूसरा शख्स इस बीच में एंबुलेंस को बुला ले। क्लिनिक या अस्पताल, जो भी नजदीक हो, वहां CPR देने के बाद लेकर जाएं।

हार्ट अटैक
अचानक आने वाली परेशानियों में दिल के मामले ही सबसे ज्यादा देखे जाते हैं। लेकिन ये परेशानियां अमूमन अचानक नहीं आतीं। जब दिल से संबंधित कोई मामला आए तो इसकी गंभीरता को समझना जरूरी है। इसमें गंभीरता की स्थिति हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में बनती है। इसलिए इनके लक्षणों पर ध्यान देना भी बहुत जरूरी है।

दिल में दर्द हो
  • बैठे-बैठे पसीना निकलने लगे
  • सांस फूलने लगे, दमा या अस्थमा में सांस फूलने से यह अलग है। तब सांस फूलते समय सीटी जैसी आवाज निकलती है।
  • अगर किसी को अस्थमा है और उसकी सांस भी फूल रही हो तो उसे इनहेलर लेने के बाद भी फायदा नहीं होता।
  • हार्ट अटैक में सांस फूलने की परेशानी कई बार फेफड़ों में पानी भरने की वजह से भी हो जाती है।
  • ज्यादा मामले सर्दी वाली रातों में देखे जाते हैं।
  • दर्द अमूमन सीने के बीच में होगा और यह धीरे-धीरे लेफ्ट की तरफ गर्दन और बांह की तरफ बढ़ेगा।
  • इसमें बेहोशी की स्थिति काफी कम बनती है। शख्स होश में रहता है और धीमी आवाज में भी बात करता रहता है।
  • अमूमन बीपी और पल्स रेट बढ़ जाता है।
क्या करें, क्या न करें
  • अगर किसी शख्स को रात में अटैक आ जाए तो उसे सोते हुए ही पसीने आने लगते हैं। सीने में दर्द भी रहता है। सांस भी फूलने लगती है तो भी ऐसे में वह इसे गैस की समस्या कहकर सुबह तक टाल देते हैं। यह टालने की प्रवृत्ति कई बार बड़ी समस्या में फंसा देती है।
  • जब भी अटैक की स्थिति बने तो 1 घंटे के अंदर इलाज शुरू हो जाना चाहिए। वैसे इसके लिए पहले 3 घंटे को गोल्डन आवर कहा जाता है, लेकिन जितनी जल्दी इलाज होगा, नुकसान भी उतना ही कम होगा।
  • हार्ट अटैक के लक्षण जब भी हों, उन्हें नजरअंदाज हरगिज न करें। चाहे ये लक्षण पहली बार आए हों या फिर उसकी हार्ट की बीमारियों की खुद की हिस्ट्री रही हो या फैमिली हिस्ट्री।
  • आराम से लेट जाएं। पैनिक न हों जब तक एंबुलेंस न आ जाए या किसी अस्पताल में न चले जाएं।
कहां ले जाएं
नजदीकी अस्पताल और एंबुलेंस सेवा के नंबर मोबाइल में जरूर होने चाहिए जिसमें कार्डियक केयर का इंतजाम हो। अगर जाना मुश्किल हो तो एंबुलेंस बुला लें। जब एंबुलेंस के लिए फोन करें तो अपनी परेशानी जरूर बता दें कि हार्ट अटैक के लक्षण हैं ताकि एंबुलेंस में ही ECG हो जाए और दवा शुरू की जा सके। जिन्हें हार्ट की परेशानी होती है, उन्हें डॉक्टर Sorbitrate वाली दवा साथ में रखने के लिए कहते हैं। इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि ऐसी दवाओं को किसी भी हालत में डॉक्टर से पूछे बिना नहीं लेना है, खासकर जिन्हें पहली बार हार्ट अटैक की परेशानी हुई हो।

शुगर लो हो या हाई
अगर घर पर शुगर मशीन है तो जांच लें। अगर नहीं है तो लक्षणों को देखें और जहां भी जांच वाली मशीन हो, वहां जाकर फौरन जांच करा लें।

नॉर्मल शुगर
फास्टिंग : 70 से 100
खाने के 2 घंटे के बाद : 90 से 140
प्री-डायबीटीक : 140 से 150 तक
डायबीटीक : 150 से ऊपर
लो शुगर : 70 से नीचे
हाई शुगर : 200 से ऊपर
खतरे की घंटी : 400 से ऊपर

लो शुगर
  • अगर शुगर 70 से नीचे है तो यह माइल्ड है।
  • अगर 50 से 31 तक है तो यह गंभीर
  • 30 या इससे नीचे पहुंच जाए तो यह अति गंभीर स्थिति है।
  • यह हाई शुगर की तुलना में ज्यादा खतरनाक है।
लक्षण
  • धड़कन बढ़ जाना
  • लड़खड़ाकर चलना
  • सिर दर्द होना और आंखों के सामने अंधेरा छाना
  • पसीना आना
  • हाथ-पैर ठंडा हो जाना
  • मिर्गी जैसे लक्षण।
क्या होती हैं गलतियां
  • लो शुगर के मरीजों को अपनी पॉकेट में एक पर्ची या कोई आई कार्ड रखना चाहिए जिस पर लिखा हो कि मैं लो शुगर का मरीज हूं। अगर मैं बेहोश हो जाऊं तो मेरी पॉकेट में चॉकलेट या शहद या जो कुछ भी मीठा हो, उसे मुझे मेरे सिर को 45 डिग्री पर रखकर यानी गोद में उठाकर तालू पर लगा दें। अमूमन लोग ऐसा नहीं करते।
  • इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते।
  • ऐसी परेशानी ज्यादा एक्सरसाइज या दो बार दवा लेने से या समय पर खाना नहीं खाने से होती है।
  • खाली पेट शराब ले लेते हैं। इससे सुबह के वक्त कई बार लो शुगर की स्थिति बन जाती है।
क्या करें
  • जिन्हें शुगर की परेशानी है, खासकर लो शुगर की तो वे अपने साथ ग्लूकोज, मीठा बिस्कुट, चीनी, शहद में से एक चीज जरूर रखें।
  • अगर शख्स होश में है तो उसे चीनी दे सकते हैं।
  • अगर बेहोश है तो उसका मुंह खोलकर: उसके मसूड़े पर शहद या चाशनी लगा दें। इससे भी उसका शुगर लेवल बढ़ जाएगा।
  • अगर इसके बाद भी वह होश में न आए तो नजदीकी डॉक्टर के पास ले जाएं। वहां पर आई वी (खून की नलियों में ग्लूकोज चढ़ाने से मरीज ठीक हो जाता है।) ग्लूकोज चढ़ाया जाता है।
हाई शुगर
  • शुगर कम है या ज्यादा इसको पहचानने के लिए मरीज की स्किन देखें। अगर ड्राई है तो यह हाई शुगर केस माना जाता है और अगर पसीना आ रहा है तो लो शुगर का ।
  • लगातार हाई शुगर की स्थिति बने तो यह किडनी समेत तमाम अंगों को नुकसान पहुंचाती है।
  • अगर शुगर का लेवल 400 से ऊपर रहता है तो यूरिन में कीटोन आने लगता है। इसके बढ़ने से भी कई बार मिर्गी जैसे दौरे पड़ते हैं। इसलिए मिर्गी के मरीजों को कीटो डाइट प्लान पर रहने के लिए कहा जाता है।
  • मुंह से पके हुए फल जैसी स्मेल आती है।
  • कुछ लोगों को पेट में दर्द भी रह सकता है।
  • सांस सामान्य प्रति मिनट 20 से ज्यादा हो जाती है।
क्या होती हैं गलतियां
  • कई बार लोग मरीज की स्थिति को देखकर पहचान नहीं पाते कि यह लो शुगर का केस है या फिर हाई शुगर का।
  • गलती से हाई शुगर के केस में भी ग्लूकोज या मीठा चीज खिला देते हैं। इससे मरीज की स्थिति ज्यादा खराब हो जाती है। दवा और इंसुलिन नियमित रूप से नहीं लेते।
  • कई बार बहुत ज्यादा मीठा खा लेते हैं।
क्या करें
मरीज के ऊपर बताए हुए लक्षणों पर जरूर ध्यान दें। उसी के अनुसार उपाय करें। मरीज के ऊपर बताए हुए लक्षणों पर जरूर ध्यान दें। उसी के अनुसार उपाय करें।
अगर इंसुलिन लेते हैं तो शुगर हाई होने पर डॉक्टर की सलाह से हर खाने के बाद ज्यादा मात्रा में इंसुलिन लें।

ब्रेन पर हो हमला

ब्रेन स्ट्रोक
  • किसी भी वजह से अगर दिमाग में खून की सप्लाई में रुकावट आ जाए तो ब्रेन स्ट्रोक की स्थिति बनती है, चाहे खून की नलियां में ब्लॉकेज हो जाए या फिर नलियां फट गई हों।
  • 80 फीसदी से ज्यादा मामले दिमाग की नलियों में ब्लॉकेज और 20 फीसदी खून की नलियों के फटने की वजह से होते हैं। अगर सही वक्त पर इलाज हो जाए और खून की नलियों को खोलने वाली दवा मरीज को दे दी जाए तो वह ठीक हो जाता है। इसके लिए जरूरी है कि उसका CT-SCAN सही वक्त पर हो जाए।
  • लकवा भी इसी ब्रेन स्ट्रोक का ही एक लक्षण है।
  • इसमें भी इलाज जितना जल्दी शुरू हो जाए उतना बेहतर है।
  • पहले 3 घंटे को गोल्डन आवर कहा जाता है। इसके बाद स्थिति संभालने में ज्यादा मुश्किल आ जाती है।
क्यों होता है यह
इपरटेंशन, स्मोकिंग, एक्सरसाइज में कमी, ज्यादा तंबाकू और अल्कोहल का सेवन, शुगर और ब्रेन स्ट्रोक्स की फैमिली हिस्ट्री।

लक्षण
  • शख्स रिस्पॉन्स करना छोड़ देता है।
  • उसे बीच-बीच में किसी अंग में उतनी ताकत का अहसास नहीं होता, जितनी पहले होती थी। यह कई बार हफ्तों में एक-दो बार होता है।
  • कई बार धुंधला दिखाई देता है।
  • शरीर में झनझनाहट या सुन्नता का अहसास होता है।
  • बहुत कमजोरी महसूस हो सकती है।
  • बोलने में भी परेशानी हो जाती है।
  • बहुत तेज सिरदर्द की स्थिति बनती है।
  • कुछ लोगों की आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है।
क्या होती हैं गलतियां
  • उस शख्स का बीपी चेक नहीं करते। बीपी का लगातार ज्यादा रहना भी ब्रेन स्ट्रोक का बड़ा कारण है।
  • लोग मरीज को घेरकर खड़े हो जाते हैं।
  • पेट या पीठ के बल लिटाकर रखते हैं।
  • सिर के नीचे तकिया लगा देते हैं।
  • सही अस्पताल में लेकर नहीं जाते और गोल्डन आवर बेकार चला जाता है।
क्या करना चाहिए
  • बड़ा ब्रेन स्ट्रोक एक बार में ही नहीं आता। कई बार छोटे-छोटे संकेत देता है। इसलिए उन्हें पहचानना जरूरी है जो हमने पहले लक्षणों में बताया है।
  • स्ट्रोक के किसी भी लक्षण को हल्के में नहीं लेना चाहिए। गोल्डन आवर को बचाते हुए 3 घंटे के अंदर इलाज शुरू करवा देना चाहिए। आजकल अमूमन सभी जिला अस्पतालों में ब्रेन स्ट्रोक्स के इलाज की सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। इन अस्पतालों में खून की नली खोलने वाली दवा भी आसानी से मिल जाती है।
  • अस्पताल में खून की नलियों में इंजेक्शन के द्वारा ब्लॉकेज खोलने के लिए दवा दी जाती है।
  • अस्पताल में यह देखा जाता है कि ब्लॉकेज कितना है। कई बार बड़े ऑपरेशन की जरूरत पड़ती है तो कभी-कभी तार की मदद से भी क्लॉट को निकाल लिया जाता है।
कहां ले जाएं: अस्पताल जिसमें CT-SCAN की सुविधा हो और न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट भी हो।

मिर्गी
यह भी एक दिमागी परेशानी है।
मिर्गी का दौरा पड़ने के बाद 90 फीसदी मामले खुद ही 2 से 3 मिनट या ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट के अंदर ठीक हो जाते हैं।

लक्षण
कंपन होता है। n बेहोशी। n दांत पर दांत चढ़ जाते हैं।

क्या होती हैं गलतियां
  • चप्पल, प्याज आदि को सुंघाने या मुंह में घुसाने की कोशिश करते हैं। मरीज के पूरी तरह ठीक होने से पहले ही उसे कुछ खिलाने या पिलाने की कोशिश करते हैं।
क्या करना चाहिए
  • सबसे पहले पीड़ित को एक करवट लिटा दें।
  • शर्ट के बटन ढीले कर दें।
  • ऐसी व्यवस्था करें जिससे कि कमरे में ताजा हवा आए और भीड़ न लगाएं।
  • चूंकि शरीर में कंपन होता है तो आसपास ऐसी कोई भी चीज न रखें जिससे उसे चोट लगने का खतरा हो। मरीज 5 मिनट के भीतर होश में न आए तो समझ लें मामला गंभीर है। फौरन ही अस्पताल ले जाएं।
सिर पर गहरी चोट
अगर कोई शख्स बाथरूम में या किसी सीढ़ी से फिसलकर गिर जाए तो उसके दिमाग में गंभीर चोट लग सकती है। कभी-कभी सड़क एक्सिडेंट की वजह से भी दिमाग में चोट लग जाती है। दिमाग की चोट गंभीर है या नहीं, यह लक्षणों से ही पता चलता है।

लक्षण
  • सिर से लगातार खून निकल रहा हो।
  • अगर सिर के पिछले भाग में चोट लगी हो और वहां का जख्म गहरा हो तो यह ज्यादा गंभीर मामला है क्योंकि दिमाग के पीछे की हड्डी कमजोर होती है। पिछले भाग से ही स्पाइनल कॉर्ड भी गुजरती है जो सभी नसों को पूरे शरीर तक ले जाती है।
  • उल्टी हो या उल्टी जैसा महसूस हो।
  • शख्स बेहोश हो।
  • कई बार चोट ज्यादा गंभीर होने पर सांसें भी रुकी हुई महसूस होती हैं। धड़कन भी टूट जाती है यानी कार्डियक अरेस्ट की स्थिति बन जाती है।
क्या होती हैं गलतियां
  • उसे बिठाने या फिर खड़ा करने की कोशिश करते हैं।
  • गर्दन और रीढ़ की हड्डी पर ज्यादा ध्यान नहीं देते जबकि एक्सिडेंट में इनके ही टूटने का खतरा ज्यादा रहता है।
  • उसका सिर ऊंचा रखने की कोशिश करते हैं और सिर को गोद में रख लेते हैं।
क्या करें
  • अगर उसकी सांसें बंद हैं तो CPR जरूर दें।
  • कोई चाहे तो मुंह से भी सांस दे सकता है।
  • अगर चोट ज्यादा है तो उस शख्स को लेटे ही रहने दें। उसे बिठाने या खड़ा करने की कोशिश न करें। इससे स्पाइन और गर्दन की इंजरी बढ़ सकती है।
  • कोशिश करें कि किसी सख्त चीज से गर्दन को फिक्स कर दें ताकि वह ज्यादा हिले-डुले नहीं।
  • अगर शख्स को एंबुलेंस या फिर गाड़ी में बिठाना है तो उसकी गर्दन को लटकने न दें। उसे सपोर्ट जरूर हो।
  • सिर से लगातार खून निकल रहा हो तो जख्म पर किसी साफ कपड़े आदि से दबाव बनाएं ताकि खून बंद हो जाए।
  • अगर वह शख्स होश में है और अपनी स्थिति बता सकता है तो जिस तरफ जख्म न हो उस तरफ करवट करके लिटा सकते हैं। इससे आराम मिलता है।
अंग कट जाए
कभी-कभी किसी दुर्घटना की वजह से शरीर का कोई अंग कटकर अलग हो जाए तो वक्त पर उस अंग को सही तरीके से किसी प्लास्टिक सर्जन या वैस्क्यलर सर्जन के पास ले जाएं तो उस अंग के फिर से जुड़ने की संभावना बहुत ज्यादा रहती है।

क्या होती हैं गलतियां
  • अक्सर लोग यही समझते हैं कि जो अंग कट गया, वह जुड़ नहीं सकता। इलाज कराने में ज्यादा देर कर देते हैं।
  • कटे हुए अंग को बर्फ के सीधे संपर्क में रखते हैं।
  • हर अस्पताल में इसके लिए इलाज की व्यवस्था नहीं होती।
क्या करें
  • जो अंग कटकर अलग हुआ है, उस अंग और कटे हुए भाग को सलाइन वॉटर (जिस पानी को हमारे शरीर में जरूरत होने पर चढ़ाया जाता है) या फिर साफ सामान्य पानी से धो दें।
  • इसके बाद उसे सलाइन वॉटर या सामान्य साफ पानी से भिगोए हुए किसी साफ सूती कपड़े को लपेट दें।
  • कटे हुए अंग को एयर टाइट बैग (जिप लॉक) में पैक कर दें।
  • उस बैग को किसी आइस पैक बैग में रख दें। यह ध्यान रहे कि उस अंग को बर्फ के सीधे संपर्क में नहीं लाना है।
  • शरीर से खून का बहाव रोकने के लिए वहां पर भी साफ कपड़ा लपेट दें। 100 फीसदी पहले वाली स्थिति तो नहीं बनती, लेकिन ज्यादातर मामलों में उस अंग का जुड़ना सफल हो जाता है। ठीक होने में 3 महीने तक का वक्त लग जाता है।
कहां जाएं: जहां पर प्लास्टिक सर्जरी और वैस्क्यलर सर्जरी विभाग हो। इसके अलावा हड्डी विभाग, न्यूरोविभाग भी हो क्योंकि कटे हुए अंग को जोड़ना किसी एक विभाग का काम नहीं होता।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. एस. सी. मनचंदा, एक्स हेड, कार्डियॉलजी डिपार्टमेंट, AIIMS
  • डॉ. एम. वी. पद्मा श्रीवास्तव, चीफ, न्यूरो साइंस सेंटर, AIIMS
  • डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
  • डॉ. जी. सी. खिलनानी, चेयरमैन, डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनरी, PSRI
  • डॉ. अतुल माथुर, E.D. कार्डियॉलजी, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स
  • डॉ. पी. शरत चंद्रा, सीनियर प्रफेसर, न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट, AIIMS
  • डॉ. अशोक झिंगन, चेयरमैन, डायबीटीज रिसर्च फाउंडेशन
  • डॉ. विक्रम दुआ, डायरेक्टर, न्यूरो एंड स्पाइन सर्जरी डिपार्टमेंट, QRG हॉस्पिटल
  • डॉ. रश्मि शर्मा, हेड, इमरजेंसी मेडिसिन, शारदा हॉस्पिटल
  • डॉ. नवीन चोबदार, सीनियर वैस्क्यलर सर्जन

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नाम तो सुना है पर क्‍या काम देखा है? लाजवाब है गूगल लेंस

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गूगल लेंस। नाम तो सुना होगा। लेकिन क्या इसका काम देखा है? दुनिया की कई भाषाओं को अनुवाद करने के साथ-साथ फोटो या PDF या स्क्रीन पर छपी किसी भी सामग्री (आर्टिकल, कविता, कहानी आदि) को काॅपी कर सकता है। अगर आपको किसी चीज का नाम नहीं पता तो उसका फोटो खींचकर उसका नाम भी जान सकते हैं। गूगल लेंस के इसके अलावा और भी कई दमदार फीचर्स हैं तो है न लाजवाब। इन सभी फीचर्स के बारे में बता रहे हैं राजेश भारती

गल लेंस गूगल की एक सर्विस है। इसे स्मार्टफोन पर इस्तेमाल किया जाता है। स्मार्टफोन में लगे कैमरे की मदद से ही इस सुविधा का इस्तेमाल कर सकते हैं। गूगल लेंस के जरिए आप कहीं लिखे या छपे शब्दों को स्कैन करके या मोबाइल फोन की गैलरी में रखे फोटो को निकालकर दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद कर सकते हैं या उन छपे शब्दों को कॉपी-पेस्ट सकते हैं। लिखी हुई किसी भी सामग्री को ऑडियो में बदलकर सुना भी जा सकता है। कहा जाए तो आपकी कई सारी समस्याओं का हल है गूगल लेंस।

कहां होता है यह: अगर अगर आपके पास ऐंड्रॉइड फोन है तो जहां गूगल सर्च बार है, उसके राइट राइड में कैमरा जैसा इस आइकन दिखाई देगा। यह आइकन ही गूगल लेंस का होता है। इस आइकन पर टैप करके आप गूगल लेंस का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा गूगल लेंस की मोबाइल ऐप Google Lens भी है। इस ऐप को प्ले स्टोर से इंस्टॉल करके गूगल लेंस को इस्तेमाल किया जा सकता है। आईफोन के ऐप स्टोर में अलग से गूगल लेंस ऐप नहीं मिलता। Google ऐप डाउनलोड कर सकते हैं। यह ऐप खोलने पर उसके राइट साइड में कैमरे का आइकन है जो लेंस का काम करता है। यहां से गूगल लेंस के सभी फीचर्स का फायदा उठा सकते हैं। इसे कम्प्यूटर या लैपटॉप पर इस्तेमाल नहीं कर सकते। सिर्फ स्मार्टफोन पर इसके कैमरे की मदद से ही इस्तेमाल कर सकते हैं।

ये हैं 7 फीचर
गूगल लेंस के फीचर इस प्रकार हैं:
1. Translate, 2. Text, 3. Search, 4. Homework, 5. Shopping, 6. Places, 7. Dining.

ये सारे फीचर्स गूगल लेंस पर टैप करने के बाद सबसे नीचे एक के बाद एक लाइन में दिखाई देंगे। इन फीचर्स को लेफ्ट-राइट करके इस्तेमाल कर सकते हैं। जिस फीचर का इस्तेमाल करना हो, उस पर टैप करें, उसकी बैकग्राउंड सफेद हो जाएगी और उसमें लिखा फीचर का नाम काले रंग में हो जाएगा। जैसे- अगर आप Translate फीचर का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो Translate पर टैप करें। अब Translate की बैकग्राउंड सफेद हो जाएगी और Translate काले रंग से लिख जाएगा। इन सभी फीचर्स का इस्तेमाल 2 तरह से कर सकते हैं। पहला- किसी भी चीज पर कैमरा ले जाकर उसे स्कैन करें और फीचर्स का इस्तेमाल करें। दूसरा- फोन में रखी इमेज को ब्राउज करें और इन फीचर्स का इस्तेमाल करें। 7 में से मुख्य 6 फीचर्स का इस्तेमाल ऐसे करें:

Translate
किसी फोटो में छपे शब्दों को अपनी पसंद की भाषा में बदलना
इस फीचर की मदद से आप किसी भी भाषा में छपे शब्द या वाक्य या पैराग्राफ को दुनिया की 100 से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद कर सकते हैं। इंग्लिश से हिंदी और हिंदी से इंग्लिश की सुविधा तो है ही। इस फीचर का इस्तेमाल ऐसे करें:
  • गूगल लेंस ओपन करें। सबसे ऊपर लिखे Google Lens के ठीक नीचे बने कैमरे जैसे आइकन पर टैप करें।
  • अब कैमरा ऐक्टिव हो जाएगा। सबसे नीचे लिखे फीचर्स में सबसे पहला फीचर Translate का होगा। इस पर टैप करें।
  • अब स्क्रीन पर सबसे ऊपर Google Lens के नीचे Detect language (यहां तीर का निशान आएगा) English लिखा दिखाई देगा।
  • अगर आप किसी किताब या अखबार या कहीं और छपे कंटेंट को किसी दूसरी भाषा में पढ़ना चाहते हैं तो कैमरा वहां फोकस करें। जहां Detect language लिखा है, उसका मतलब है कि जिस लैंग्वेज के कंटेंट को ट्रांसलेट करना है, उस लैंग्वेज को कैमरा अपने आप पहचान लेगा। जहां English लिखा है, वहां आपको वह लैंग्वेज सेलेक्ट करनी है जिस लैंग्वेज में आप उस कंटेंट को ट्रांसलेट करना चाहते हैं। मान लीजिए कि आप किसी अंग्रेजी के पैराग्राफ को हिंदी में पढ़ना चाहते हैं तो जहां English लिखा है, वहां टैप करें। बहुत सारी लैंग्वेज की लिस्ट आ जाएगी। वहां से हिंदी सेलेक्ट कर लें।
  • भाषा चुनने के बाद कैमरे को उस कंटेंट पर फोकस करके रखें जिसे ट्रांसलेट करना है। यहां ध्यान रखें कि फोन बिल्कुल भी हिले न। फोन हिलने से कैमरा भी हिलने लगेगा और कंटेंट पर फोकस नहीं होगा। इससे अनुवाद में गड़बड़ी हो सकती है।
  • कैमरा फोकस होते ही वह कंटेंट हिंदी में दिखने लगेगा। यहां से अभी कैमरा न हटाएं। कैमरा हटाते ही अनुवाद गायब हो जाएगा। अगर इस अनुवाद का आगे इस्तेमाल करना है तो इसकी फोटो खींचनी होगी। जिस कंटेंट को ट्रांसलेट करना चाहते हैं, उस पर जब कैमरा फोकस हो जाए तो स्क्रीन के सबसे नीचे जहां Translate लिखा है उसके ठीक ऊपर सफेद रंग का एक सर्कल दिखाई देगा। इसके अंदर A भी लिखा होगा। इस सर्कल को टच करें यानी टैप करें। टैप करते ही उस कंटेट का फोटो खींच जाएगा और अंग्रेजी का कंटेंट हिंदी में लिखा दिखाई देगा। फोटो खिंचने के बाद आप फोन को हिला-डुला सकते हैं।
अब आपको नीचे एक विंडो खुली दिखाई देगी। इसमें Select All (आईफोन में Select Text), Listen, Share और Open in Translate के टैब दिखाई देंगे। इनमें से कुछ के मतलब इस प्रकार है:
Select all: इस ऑप्शन पर टैप करते ही जो कंटेंट ट्रांसलेट हुआ है, वह सेलेक्ट हो जाएगा और उसकी बैकग्राउंड नीले रंग की हो जाएगी। अब स्क्रीन के सबसे नीचे एक और विंडो खुलेगी। इस विंडो में Copy text, Copy to computer, Listen और Search के ऑप्शन दिखाई देंगे। अगर आपको पूरा कंटेंट कॉपी करना है तो Copy text पर टैप करें। अब इस कंटेंट को ईमेल, नोटपैड आदि पर पेस्ट कर सकते हैं। वहीं अगर आपको पूरा कंटेंट कॉपी नहीं करना तो सेलेक्ट हुए कंटेंट के सबसे शुरू में और सबसे आखिर में नीले रंग के छोटे सर्कल जैसे आइकन दिखाई देंगे। इन दोनों सर्कल को ऊपर-नीचे करके कॉपी हुए कंटेंट का उतना पार्ट सेलेक्ट कर सकते हैं जितने की आपको जरूरत है। Listen पर टैप करने से जो कंटेंट सेलेक्ट हुआ है, वह सुनाई देने लगता है। Search टैब की मदद से आप सेलेक्ट किए कंटेंट को गूगल पर ढूंढ सकते हैं।
Share: इस ऑप्शन पर टैप करने से जो कंटेंट ट्रांसलेट हुआ है उसे फेसबुक, वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि पर शेयर कर सकते हैं। यही नहीं, इसे किसी को ईमेल भी कर सकते हैं। आईफोन में यह ऑप्शन नहीं है।
सीमाएं: गूगल लेंस से हुआ ट्रांसलेशन पूरी तरह सही भी हो सकता है और नहीं भी।

Text
छपे हुए शब्दों को कॉपी-पेस्ट करना
इस फीचर की मदद से आप कहीं भी छपे हुए या लिखे हुए कंटेंट को टेक्स्ट में बदल सकते हैं। अगर किसी फोटो में कोई कंटेंट छपा है तो उसे लिखने की जरूरत नहीं है। Text फीचर की मदद से उसे कॉपी करें और किसी को भी भेज दें। इस फीचर का इस्तेमाल ऐसे करें:
  • गूगल लेंस खोलें। सबसे ऊपर लिखे Google Lens के ठीक नीचे बने कैमरे जैसे आइकन पर टैप करें।
  • अब कैमरा ऐक्टिव हो जाएगा। इसके बाद सबसे नीचे लिखे फीचर्स में से Text पर टैप करें।
  • अब आप कैमरा कागज या किसी दूसरी चीज पर छपे या लिखे उस कंटेट पर ले जाइए जिसे आपको टेक्स्ट में बदलना है। मान लीजिए, अपने इस प्यारे अखबार में छपी किसी सामग्री को टेक्स्ट में बदलना चाहते हैं तो कैमरा उस टेक्स्ट पर ले जाइए। पूरे लेख या आर्टिकल के बजाय किसी ऐ पैरा पर फोकस करें। ध्यान रहे, इस दौरान कैमरा हिलना नहीं चाहिए। जैसे ही पूरा कंटेंट टेक्स्ट में बदलने के लायक होगा, उस कंटेंट का बैकग्राउंड हल्का-सा सफेद हो जाएगा। ऐसे में हम कह सकते हैं कि कैमरे का फोकस सही हो गया है। स्क्रीन के सबसे नीचे जहां Text लिखा है उसके ठीक ऊपर वाइट कलर का एक सर्कल दिखाई देगा। इसके अंदर एक नोटपैड जैसा आइकन बना होगा। इस सर्कल को टैप कर उस कंटेंट की फोटो खींच लें। फोटो खींचने पर उस कंटेंट की बैकग्राउंड पूरी तरह वाइट हो जाएगी।
  • अब स्क्रीन के नीचे एक विंडो खुलेगी। इसमें 2 ऑप्शन Select all और Listen के दिखाई देंगे। Select all का मतलब इस प्रकार है:
Select all: इस ऑप्शन पर टैप करते ही जो कंटेंट कॉपी हुआ है उसकी बैकग्राउंड नीले रंग की हो जाएगी। अब स्क्रीन के सबसे नीचे एक और विंडो खुलेगी। इस विंडो में Copy text, Copy to computer, Listen, Translate और Search के ऑप्शन दिखाई देंगे। अगर आपको पूरा कंटेंट कॉपी करना है तो Copy text पर टैप करें। अब इस कंटेंट को ईमेल, नोटपैड आदि पर पेस्ट कर सकते हैं। वहीं अगर आपको पूरा कंटेंट कॉपी नहीं करना तो सेलेक्ट हुए कंटेंट के सबसे शुरू में और सबसे आखिरी में नीले रंग के छोटे सर्कल जैसे आइकन दिखाई देंगे। इन दोनों सर्कल को ऊपर-नीचे करके कॉपी हुए कंटेंट का उतना पार्ट सेलेक्ट कर सकते हैं जितने की आपको जरूरत है। Listen पर टैप करने से जो कंटेंट सेलेक्ट हुआ है, वह सुनाई देने लगता है। Search टैब की मदद से आप सेलेक्ट किए कंटेंट को गूगल पर ढूंढ सकते हैं।
सीमाएं: ऐसे ही हाथ से लिखे हुए किसी भी कंटेंट को अगर कॉपी कर सकते हैं। हां, यह हो सकता है कि कंटेंट पूरी तरह से सही कॉपी न हो। इसका कारण लेंस द्वारा हैंडराइटिंग का न समझना हो सकता है। साफ हैंडराइटिंग के नतीजे ठीक आते हैं।

Search
आसपास की किसी भी चीज के बारे में जानना
इस फीचर की मदद से आप किसी भी चीज की फोटो लेकर उसके बारे में जान सकते हैं। मान लीजिए, आप किसी के घर गए। वहां आपको एक पौधा बहुत अच्छा लगा, लेकिन आपको उसका नाम नहीं पता। गूगल लेंस के इस फीचर की मदद से आप न केवल उसका नाम जान सकते हैं, बल्कि उसकी पूरी हिस्ट्री पता चल जाएगी। साथ ही उससे मिलती-जुलती चीजों के रिजल्ट भी सामने आ जाते हैं। इस फीचर का इस्तेमाल ऐसे करें:
  • गूगल लेंस खोलें। सबसे ऊपर लिखे Google Lens के ठीक नीचे बने कैमरे जैसे आइकन पर टैप करें।
  • अब कैमरा ऐक्टिव हो जाएगा। नीचे लिखे फीचर्स में से Search पर टैप करें। इस दौरान आपको स्क्रीन पर स्क्वेयर भी दिखाई देगा जिसके चारों कोने कर्व्ड नुमा होंगे।
  • आपको जिस चीज का नाम और उसके बारे में जानना है तो उस चीज कैमरा से चारों कर्व्ड के अंदर लाएं।
  • अब स्क्रीन में सबसे नीचे Search के ऊपर एक सर्कल दिखाई देगा, जिसमें एक लेंस जैसा आइकन बना होगा। इस सर्कल पर टैप करके उस चीज की फोटो खींच लें।
  • जैसे ही फोटो खिंचेगी, चारों कर्व एक चीज पर फोकस हो जाएंगी। इन कर्व को लेफ्ट-राइट या ऊपर-नीचे करके किसी खास चीज पर भी फोकस करके उसके बारे में जान सकते हैं। जैसे- किसी गमले में 5 तरह के फूल लगे हैं। 4 फूलों के नाम पता हैं लेकिन एक फूल का नाम नहीं पता। जब आप उस गमले का फोटो लेंगे तो हो सकता है कि पांचों तरह के फूल चारों कर्व के अंदर आएं। ऐसे में आपको उन कर्व को लेफ्ट-राइट या ऊपर-नीचे करके उसी फूल पर फोकस कर सकते हैं जिसके बारे में आपको जानना है।
  • फोटो खींचने के बाद स्क्रीन के नीचे एक विंडो खुलेगी। इस विंडो को ऊपर की ओर स्क्रॉल कर दें। यहां आपको उस चीज का नाम और उसके बारे में पूरी जानकारी मिल जाएगी।
  • मान लें, आप किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर जाते हैं। वहां आपको पानी की एक बोतल बहुत अच्छी लगी। इस फीचर के जरिए आप उस बोतल की फोटो खींच लें। इससे बाद आपके सामने वह जानकारी आ जाएगी कि ऐसी बोतल किन-किन ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर मौजूद है और इसकी कितनी कीमत है। साथ ही उस बोतल से मिलती-जुलती बोतलों के रिजल्ट भी आ जाएंगे।
सीमाएं: जरूरी नहीं कि हर चीज का सही ही रिजल्ट पता चले। कई बार उस चीज से मिलते-जुलते रिजल्ट भी आ जाते हैं।

Homework
किसी भी सवाल का जवाब मालूम करना
इस फीचर की मदद से आप किसी भी छपे या लिखे हुए सवाल का जवाब जान सकते हैं। साथ उस सवाल से जुड़ी और भी जानकारी मिल जाती है। इस फीचर का इस्तेमाल ऐसे करें:
  • गूगल लेंस ओपन करें। सबसे ऊपर लिखे Google Lens के ठीक नीचे बने कैमरे जैसे आइकन पर टैप करें।
  • अब कैमरा ऐक्टिव हो जाएगा। इसके बाद सबसे नीचे लिखे फीचर्स में से Homework पर टैप करें। इस दौरान आपको स्क्रीन पर स्क्वेयर भी दिखाई देगा जिसके चारों कोने कर्व्ड नुमा होंगे।
  • अब कैमरा उस छपे या लिखे सवाल पर ले जाइए जिसका जवाब चाहिए।
  • अब स्क्रीन में सबसे नीचे Homework के ऊपर एक सर्कल दिखाई देगा, जिसमें डिग्री मिलने के बाद पहने जाने वाली टोपी जैसा आइकन बना होगा। इस सर्कल पर टैप करके उस सवाल का फोटो खींच लें। इस टोपी को एकेडमिक कैप या ग्रैजुएट कैप भी कह सकते हैं।
  • जैसे ही फोटो खिचेगी, चारों कर्व किसी एक चीज पर फोकस हो जाएंगी। इन कर्व को लेफ्ट-राइट या ऊपर-नीचे करके उस सवाल के चारों ओर ले आएं जिसका जवाब जानना है। ऐसा करते ही सवाल की लाइनों का बैकग्राउंड नीले रंग का हो जाएगा और एक विंडो स्क्रीन के नीचे बन जाएगी।
  • इस विंडो को ऊपर की ओर स्क्रॉल कर दें। यहां आपको उस सवाल का जवाब और सवाल से जुड़ी कई जानकारी मिल जाएंगी।
सीमाएं: अगर सवाल हाथ से लिखा हुआ है तो हो सकता है कि गूगल लेंस उसे सही तरह से न पढ़ पाए। ऐसे में जवाब भी गलत आएगा।

Shopping
आसपास की चीज को ऑनलाइन खरीदना
इस फीचर की मदद से आप किसी भी चीज जैसे कपड़े, जूते-चप्पल, खिलौने, कोई गैजेट आदि को ऑनलाइन तलाश सकते हैं, बेशक आपको उस कंपनी या उस प्रॉडक्ट का नाम न पता हो। मान लीजिए आपको अपने किसी फ्रेंड की कोई जैकेट पसंद आई। आपको भी वैसी ही जैकेट चाहिए तो इस फीचर की मदद से वह जैकेट तलाश सकते हैं। इस फीचर का इस्तेमाल ऐसे करें:
  • गूगल लेंस ओपन करें। सबसे ऊपर लिखे Google Lens के ठीक नीचे बने कैमरे जैसे आइकन पर टैप करें।
  • अब कैमरा ऐक्टिव हो जाएगा। इसके बाद सबसे नीचे लिखे फीचर्स में से Shopping पर टैप करें। इस दौरान आपको स्क्रीन पर स्क्वेयर भी दिखाई देगा जिसके चारों कोने कर्व्ड नुमा होंगे।
  • अब कैमरा उस चीज पर ले जाइए जैसी आप ऑनलाइन खरीदना चाहते हैं।
  • अब स्क्रीन में सबसे नीचे Shopping के ऊपर एक सर्कल दिखाई देगा, जिसमें शॉपिंग कार्ट का आइकन बना होगा। इस सर्कल पर टैप करके उस चीज का फोटो खींच लें।
  • जैसे ही फोटो खिंचेगी, एक विंडो स्क्रीन के नीचे बन जाएगी। इस विंडो को ऊपर की ओर स्क्रॉल कर दें।
  • इस विंडो में वे सभी वेबसाइट (फ्लिपकार्ट, ऐमजॉन आदि) चीज के फोटो समेत आ जाएंगी जहां-जहां वह चीज मौजूद है। साथ में उस प्रॉडक्ट की कंपनी का नाम और चीज की कीमत भी आ जाएगी। अपनी सुविधा के अनुसार वेबसाइट के लिंक पर टैप करके वह चीज ऑर्डर कर सकते हैं।
सीमाएं: कई बार हो सकता है कि आपको वह चीज न मिले जैसा आप चाहते हैं, लेकिन उससे मिलती-जुलती चीज जरूर मिल सकती है।

Places
आसपास की किसी भी जगह को जानना

अगर आपको घूमने का शौक है तो गूगल लेंस का यह फीचर आपके बहुत काम आ सकता है। इस फीचर की मदद से आप न केवल किसी जगह का बल्कि किसी इमारत का नाम भी पता लगा सकते हैं। इस फीचर का इस्तेमाल ऐसे करें:
  • गूगल लेंस ओपन करें। सबसे ऊपर लिखे Google Lens के ठीक नीचे बने कैमरे जैसे आइकन पर टैप करें।
  • अब कैमरा ऐक्टिव हो जाएगा। इसके बाद सबसे नीचे लिखे फीचर्स में से Places पर टैप करें। इस दौरान आपको स्क्रीन पर स्क्वेयर भी दिखाई देगा जिसके चारों कोने कर्व्ड नुमा होंगे। पहले turn on location आएगा। लोकेशन ऑन करनी होगी। तभी यह फीचर काम करेगा।
  • अब कैमरा उस जगह पर या इमारत पर फोकस करें जिसका आप नाम जानना चाहते हैं।
  • अब स्क्रीन में सबसे नीचे Places के ऊपर एक सर्कल दिखाई देगा, जिसमें लोकेशन का आइकन बना होगा। इस सर्कल पर टैप करके उस जगह की फोटो खींच लें।
  • जैसे ही फोटो खिंचेगी, एक विंडो स्क्रीन के नीचे बन जाएगी। इस विंडो में उस जगह या इमारत का नाम आ जाएगा। साथ ही उससे संबंधित जानकारी भी आ जाएगी।
सीमाएं: हो सकता है कि जगह के नाम के रिजल्ट बिल्कुल सही न मिलें, लेकिन नजदीकी जगह का नाम जरूर आ जाता है। हालांकि अगर कोई प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत है तो उसका नाम सही आता है जैसे ताजमहल, लालकिला, कुतुबमीनार, नवभारत टाइम्स का ऑफिस आदि।

गैलरी से फोटो निकालकर भी कर सकते हैं इस्तेमाल
जरूरी नहीं कि गूगल लेंस का इस्तेमाल किसी चीज को स्कैन करके या उसका फोटो खींचकर ही किया जाए। फोन की गैलरी में सेव फोटो को निकालकर करके भी इन फीचर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। गूगल लेंस ओपन करने के बाद सबसे ऊपर लिखे Google Lens के ठीक नीचे Screenshots और Images लिखा दिखाई देता है। आपको जिस फोटो की जानकारी चाहिए, उसे निकाल लें। बाकी की प्रक्रिया ठीक वैसी ही होती है जैसी बाकी के फीचर में बताई गई हैं यानी उस चीज को स्कैन करके या फोटो खींचकर। अगर आपकी फोटो गैलरी में किसी जानी-मानी हस्ती का फोटो है लेकिन उसका नाम नहीं पता तो इसी तरीके से उसका नाम भी जान सकते हैं।

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