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Channel: जस्ट जिंदगी : संडे एनबीटी, Sunday NBT | NavBharat Times विचार मंच
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शादी से पहले सवाल फिट तो जोड़ी रहेगी हिट

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इश्क शादी से पहले हो या शादी के बाद, पर हो जरूर। अपने पार्टनर को पूरी तरह जाने बिना इश्क करने से कई बार ज़िदगी समझौतों में ही गुजर जाती है। अगर समझौते में परेशानी हुई तो बात तलाक तक पहुंच जाती है। जब नौबत ऐसी बन जाए तो लोग सोचते हैं कि आखिर शादी क्यों की या फिर मैंने प्यार क्यों किया? वहीं जिन्हें कोई पार्टनर नहीं मिलता, वे इस बात से परेशान रहते हैं कि काश! मुझे भी कोई मिल गया होता, पल भर के लिए कोई मुझे भी प्यार कर ले, झूठा ही सही। देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से बात करके ऐसे इश्क-विश्क और रिस्क के बारे में जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

चंद सवालों से परखें
नीचे कुछ सवाल दिए गए हैं जो शादी से पहले जरूर पूछे जाने चाहिए। ये सवाल किसी शख्स के बारे में 100 फीसदी जानकारी नहीं दिला सकते, लेकिन व्यक्तित्व और उनके स्वभाव के बारे में बता जरूर सकते हैं। वैसे भी शादी को एक सामाजिक समझौता ही माना जाता है। पर समझौता हमें किस हद तक करना चाहिए, यह देखने वाली बात है। अगर कोई चाहे तो इस पूरी प्रक्रिया में मैरिज काउंसलर की मदद भी ले सकता है।

प्यार से लेकर लाइफस्टाइल तक की लें जानकारी
क्या आप अभी या पहले किसी के साथ रिलेशन में थे या थीं? अगर हां तो अभी क्या स्थिति है? क्या अब भी उसके संपर्क में हैं? उसे छोड़े हुए कितना वक्त हुआ है? संबंध कितना गहरा था?
इस सवाल का जवाब अमूमन लोग न में ही देते हैं या फिर यह कह देते हैं कि अब कोई बात नहीं होती। पर इतने से नहीं मानना चाहिए। सामनेवाले को आप यह जरूर बताएं कि अगर आपने सही जानकारी नहीं दी तो हमारी शादीशुदा ज़िंदगी खराब हो सकती है। बातों के दौरान चाहें तो यह पूछ सकते हैं कि पहले के रिलेशन की कुछ अच्छी यादें बताएं। अगर वह अपनी पुरानी पहचान में ही गलतियां बताता/बताती है और खुद को पाक साफ तो इससे यह भी पता चलेगा कि शादी के बाद भी वह अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करेगा या करेगी।

अपने पिछले बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड से चैटिंग अब भी होती है? अगर हां तो अपना रुख जरूर बताएं इससे आपको कोई परेशानी है की नहीं?
कई बार दूसरे को लगता है कि इसका अब भी पुराना अफेयर चल रहा है। आजकल संबंधों में बिखराव की यह एक बड़ी वजह के रूप में देखा गया है।
क्या आपको कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी है? क्या आपकी फैमिली में गंभीर बीमारी का इतिहास रहा है?
इन बीमारियों में कैंसर, हार्ट, लिवर और किडनी से जुड़ी परेशानी हो सकती है। अगर उस शख्स के पैरंट्स आदि को ऐसी बीमारी रही है तो बहुत ज्यादा आशंका है कि उस शख्स में भी ऐसी परेशानी आ जाए।

क्या किसी चीज की लत है?
यह लत शराब, ड्रग्स पॉर्न आदि की हो सकती है। ऐसे में इसे पहले जान और समझ लेना बेहतर है कि शादी के बाद इस लत से आपकी लाइफ कितनी प्रभावित होगी।

क्या देर तक सोने की आदत है?
इस बात को लेकर भी पति-पत्नी में अक्सर लड़ाई होती है। किसी को देर रात तक टीवी या मोबाइल देखने की आदत है तो वह स्वाभाविक तौर पर सुबह देर से उठेगा या उठेगी। उसके उठने तक ऑफिस जाने का टाइम हो जाएगा। सुबह के सभी काम वक्त पर पूरे करने की जिम्मेदारी दूसरे साथी पर ही आ जाती है।

काम-धंधे से हो जाएं वाकिफ
आपने कितनी पढ़ाई की है और जो जॉब या बिजनेस आप करते हैं या करती हैं, उसमें किस तरह का काम होता है?
एजुकेशनल डिग्री से यह पता चलता है कि पढ़ाई के प्रति वह कितना गंभीर रहा है या रही है। साथ ही उस जॉब में उसके आगे बढ़ने की कितनी गुंजाइश है। जब हम जॉब प्रोफाइल को खंगालते हैं तो यह पता चल जाता है कि वह शख्स हर दिन घर पर कितने बजे तक लौटेगा। अगर उसकी जॉब दूसरे शहर में भी जाने की है और कई दिनों तक घर से दूर रहने की है तो उसके साथ तालमेल बिठाने में कोई परेशानी तो नहीं होगी।

आपकी कमाई कितनी है?
वर्तमान कमाई कितनी है, यह जान लेना जरूरी है। इससे यह भी पता चलेगा कि कमाई पूरे महीने के खर्च के लिए पर्याप्त है। अगर पति-पत्नी दोनों वर्किंग हैं तो अमूमन पैसे की दिक्कत नहीं होती, लेकिन कोई एक वर्किंग है तो कभी-कभी परेशानी हो भी जाती है। कोरोना ने कई लोगों की नौकरी छीन ली तो तलाक तक पहुंच गया था।

...ताकि परिवार को लेकर न हो वॉर
आपको न्यूक्लियर फैमिली में रहना पसंद है या फिर जॉइंट फैमिली में?
चूंकि अब पुराने सिस्टम में बदलाव साफतौर पर देखा जा रहा है। लोग अब अपना परिवार छोटा (पति-पत्नी और बच्चे) रखना चाहते हैं। कई बार पैरंट्स की मौजूदगी ऐसे लोगों को खटकने लगती है। अगर इस बारे में शादी से पहले बात हो जाए तो बाद में विवाद से बचा जा सकता है। कई लड़के शादी के बाद अपने पैरंट्स को साथ में रखना चाहते हैं। यही आदर्श स्थिति भी है क्योंकि वे बुजुर्ग भी होते हैं। लेकिन यह कई लड़कियों को पसंद नहीं आता। उन्हें यह अपनी जिंदगी में बाधा लगता है। घर के बुजुर्ग भी घर को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। वे बदलाव और अपनी स्थिति को स्वीकार नहीं करना चाहते। इससे परेशानी खड़ी हो जाती है। कुछ हालात में लड़कियां भी अपने पैरंट्स को साथ रखना चाहती हैं। यही आदर्श स्थिति होनी चाहिए लेकिन ज्यादातर आदमी स्वीकार नहीं कर पाते और घर में झगड़े होने लगते हैं।

बच्चा कब पैदा करना है?
यह सवाल भी काफी अहम हो जाता है। दरअसल, पुरानी सोच यह है कि शादी हुई तो एक साल के भीतर बच्चा हो जाना चाहिए, नहीं तो लोग कई तरह की बातें करना शुरू कर देते हैं कि दोनों में से किसी को सेक्स संबंधी परेशानी तो नहीं है आदि। इसलिए इस विषय पर भी पति और पत्नी दोनों को एक-दूसरे की राय जानना जरूरी है। साथ ही कितने बच्चे पैदा करना है, संतान में बेटा या बेटी में फर्क तो नहीं करेंगे। बेटा न हुआ तो 3 बच्चे पैदा करने का दबाव तो नहीं होगा?

जब बच्चा होगा तो जॉब तो नहीं छोड़नी होगी?
अमूमन यह स्थिति महिलाओं के लिए खासतौर पर तब बनती है जब पति और पत्नी दोनों ही जॉब कर रहे हों। जब बच्चा होता है तो उसकी परवरिश पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है। ऐसे में बच्चे को ज्यादा वक्त देने के लिए किसी एक को जॉब छोड़नी पड़ती है या फिर 'लीव विदाउट पे' पर जाना पड़ता है। यह त्याग अक्सर महिलाएं ही करती हैं। लेकिन कई बार महिलाओं को यह लगता है कि वे ही त्याग क्यों करें, जो सही भी है। वहीं एक स्थिति यह भी बनती है कि पति की कमाई इतनी नहीं होती कि उसकी कमाई से अकेले घर चल सके। इसलिए वह खुद ही अपनी पत्नी को जॉब छोड़ने से मना करते हैं। वहीं ऐसी वर्किंग महिलाओं को बच्चा पैदा होने के बाद घर के कामों में पति की मदद की दरकार होती है। उन्हें दो मोर्चों पर काम करना होता है। शादी से पहले ही पूछना जरूरी है कि आगे बच्चा होने पर घर के कामों में मदद करेंगे या नहीं। कोरोना के दौर में तलाक की वजह का यह भी एक कारण रहा है।

एक हिंदी गाने का बोल है, 'शादी करके फंस गया यार, अच्छा खासा था कुंवारा।' वैसे तो ये बातें हल्की-फुल्की अंदाज में कहे गए हैं, लेकिन शादी के बाद होने वाली परेशानी को बखूबी बयां कर रहे हैं। शादी करके फंसने से बचने के लिए यह जरूरी है कि कुंडली मिलान के साथ चंद मेडिकल टेस्ट के मिलान भी कराए जाएं। वैसे किसी इंसान की सोच को 1-2 मुलाकातों में समझ लेना पूरी तरह मुमकिन नहीं होता, लेकिन चंद बातों और सवालों से व्यक्तित्व को कुछ समझने का मौका जरूर मिलता है।

सेहत की कुंडली मिलाएं
मन की हालत का लें जाएजा
हमारे देश में मन की सेहत पर अमूमन ज्यादा चर्चा नहीं होती। इसे अब भी हेल्थ इशू नहीं माना जाता। लेकिन किसी को अपना जीवनसाथी बनाने से पहले अगर यह समझ में आ जाए कि जिसके साथ वह ज़िंदगी गुजारने जा रहा/रही है, उसे मानसिक समस्या है तो पहले इलाज जरूरी है न कि शादी। कई बार परिवार वाले यह सोचकर शादी करा देते हैं कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा। यह बहुत बड़ी गलती है। इतना तो तय है कि उसे पहले इलाज की जरूरत है। मेंटल हेल्थ के मरीजों में अमूमन स्ट्रेस एक बड़ा कारण होता है। वैसे स्ट्रेस तो सभी को होता है, लेकिन जब यह किसी की रातों की नींद खराब करने लगे, ऑफिस के काम को डिस्टर्ब करने लगे, बात-बात में गुस्सा आए, गुस्से की वजह से व्यवहार हिंसक हो जाए तो शादी से पहले इलाज जरूरी हो जाता है। ऐसा देखा गया है कि ऐसी परिस्थितियां मन की सेहत डवांडोल होने की स्थिति की ही वजह ज्यादा बनती है। जिनकी मानिसक सेहत कमजोर होती है, मुलाकात के दौरान अमूमन ऐसे लोगों का स्वभाव कुछ जुदा होता है। वे खोए-खोए रहते हैं। सामने बैठे रहने पर भी ध्यान कहीं दूसरी जगह होता है। सामने जो दिए गए सवाल हैं, उनके जवाब कैसे देता है या देती है। तर्कपूर्ण जवाब मिलते हैं या नहीं, देखना भी जरूरी है।

ब्लड टेस्ट खोल देगा शरीर की जन्मपत्री

बीपी पर काबू है या नहीं
बीपी की जांच भी जरूरी है। वैसे तो बीपी की परेशानी आजकल ज्यादातर लोगों को होती है, लेकिन यह किस हद तक बढ़ी हुई है। इसके लिए कौन-सी और कितने पावर की दवा ली जा रही है, इसे जानना भी जरूरी है। सबसे अहम कि इसे काबू में करने के लिए सामने वाला शख्स खुद से कोई कोशिश कर रहा है या नहीं। सीधे कहें तो उसका रुटीन कैसा है। सुबह उठने और एक्सरसाइज आदि करने की आदत है या नहीं। शादी से पहले ये बातें भले ही हल्की लगे, लेकिन शादी के बाद ये आदतें बहस और विवाद का कारण बनती हैं। दूसरी बात यह कि जब रुटीन को लेकर पैरंट्स में जागरुकता कम होती है तो बच्चे भी इसे ज्यादा अहमियत नहीं देते और बीमारी जमा करने लगते हैं।

खून की जांच से यह पता चल जाता है कि उस शख्स को कोई बड़ी गंभीर बीमारी तो नहीं है या ऐसी बीमारी जो अभी छोटी है लेकिन आने वाले समय में यह बड़ी हो सकती है।

शुगर और KFT
शुगर की फास्टिंग और पीपी, किडनी की केएफटी जांच करा लेनी चाहिए। इन दोनों जांच से यह पता चल जाता है कि शरीर की सामान्य स्थिति बेहतर है। ये समस्याएं शादी से पहले भले ही सामान्य और छोटी लगती हैं, लेकिन समय के साथ बड़ी होती जाती हैं।

STD (सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डीजीज)
बेहतर लाइफ के लिए जरूरी है कि हेल्दी सेक्स लाइफ भी हो। अगर किसी को एसटीडी की समस्या है तो उसका पहले इलाज जरूरी है। यह परेशानी अमूमन कई लोगों से असुरक्षित यौन संबंध बनाने या फिर अपने प्राइवेट पार्ट की सही तरीके से साफ-सफाई न करने से होती है। इससे ग्रसित लोगों के प्राइवेट पार्ट से पीले और हरे रंग का द्रव निकलना, सेक्स के दौरान प्राइवेट पार्ट में दर्द की समस्या होती है। यह पुरुषों से महिलाओं में और महिलाओं से पुरुषों में फैल सकती है।
HIV की जांच
शादी से पहले इसका टेस्ट होना सबसे ज्यादा जरूरी है। अगर कोई एचआईवी पॉजिटिव है और लक्षण भी उभरने लगे हैं तो समझ लें कि उसे एड्स हो चुका है। अगर लक्षण नहीं भी उभरे हैं तो कुछ महीनों के बाद ही एचआईवी पॉजिटिव मरीज एड्स मरीज में बदल जाता है। इसके लिए एलाइसा टेस्ट कराया जाता है।

हीमोफीलिया और थैलेसीमिया की जांच
ये बीमारियां बहुत ज्यादा परेशान करती हैं। शादी टूटने की वजह के रूप में भी इसे देखा जाता है। जब किसी वजह से शरीर में चोट या कट लग जाए तो खून बहना या तो बंद नहीं होता या फिर बहुत ज्यादा परेशानी से बंद होता है। इसे हीमोफीलिया का लक्षण माना जा सकता है। इससे ग्रसित शख्स की नाक से अक्सर खून बहने लगता है। त्वचा का रंग नीला पड़ने लगता है। दिमाग में सूजन आ जाती है।
वहीं थैलेसीमिया का मरीज बहुत कमजोर होता है। उसका वजन नहीं बढ़ता। पीलिया जैसे लक्षण दिखते हैं।
क्या है टेस्ट: इसके लिए थैलेसीमिया माइनर HPLC ( High-Prformance Liquid Chromatography) टेस्ट करना जरूरी होता है। यह उतना गंभीर नहीं है। लेकिन अगर लड़का और लड़की दोनों थैलेसीमिया के मरीज रहे हैं तो बच्चे में थैलेसीमिया मेजर की समस्या होने का खतरा बढ़ जाता है। थैलेसीमिया मेजर एक गंभीर बीमारी है।

सीमन एनैलिसिस
हेल्दी स्पर्म से ही हेल्दी बच्चा पैदा होता है। अगर शादी से पहले किसी पुरुष का स्पर्म काउंट कम है तो बच्चा पैदा होने में परेशानी हो सकती है, लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं कि उसकी सेक्स लाइफ अच्छी नहीं होगी। अगर इरेक्शन संबंधी परेशानी है तो वह दवाओं से दूर हो जाती है। वहीं लड़की मामले में यह जानना जरूरी है कि उसके पीरियडस सामान्य रहते हैं या नहीं। इसके अलावा PCOD और PCOS के बारे में भी जानकारी ले सकते हैं।
वैसे आजकल आईवीएफ के माध्यम से या फिर स्पर्म डोनर की मदद से बच्चे पैदा हो जाते हैं। इसलिए इसे ज्यादा तरजीह नहीं दी जाती।
सभी जांचों पर कुल खर्च: 5 से 7 हजार रुपये। परेशानी से बचने के लिए यह खर्च बहुत ही कम है। कीमत में बदलाव मुमकिन है।
नोट: कोई भी टेस्ट वर्तमान के बारे में बता सकता है, भविष्य के बारे में नहीं । यह भी मुमकिन है कि जो शख्स अभी स्वस्थ है, वह बीमार भी हो सकता है।

अकेले हैं तो क्या गम है...
'तन्हाई-तन्हाई, तन्हाई, हम दोनों को साथ ले आई'। लेकिन यह हर बार और हर किसी के साथ हो, जरूरी नहीं। कई बार तन्हाई मिटती ही नहीं। ऐसे लोगों को अकेलापन बाकी दिनों को तो चुभता ही है, लेकिन 14 फरवरी यानी वैलंटाइन डे पर खास तौर पर तकलीफ देता है। सच तो यह है कि सिंगल होना बुरी बात नहीं है, लेकिन अकेला होने से परेशानी होती है।
14 फरवरी आने से पहले ही सोशल मीडिया और मार्केट सब जगह इसे भुनाने की कोशिश होने लगती है। 14 फरवरी को तो मानो सोशल मीडिया ऐसे ही कपल्स की तस्वीरों से पटा रहता है। ऐसे में जिनका कोई पार्टनर नहीं हैं, वे खुद में अधूरापन महसूस करते हैं।

मैं खुद को प्यार करूं...
अगर आप खुद से प्यार करेंगे तो परेशानी नहीं होगी। दूसरों के हिसाब से नहीं चलेंगे। कभी दूसरों से खुद की तुलना करके परेशान नहीं होंगे। सीधे कहें तो हर शख्स को पहले खुद का यानी सेल्फ वैलंटाइन बनना चाहिए। ऐसा होने से पार्टनर न होने पर भी फर्क नहीं पड़ेगा।

जब दोस्तों की शादी हो जाए तो कुछ जुदा हो जाएं...
अगर आप अपनी इच्छा से सिंगल रहना चाहते हैं और आपको इससे फर्क नहीं पड़ता कि आपके दोस्तों के पार्टनर हैं और आपके नहीं, तब तो ठीक है। लेकिन फर्क पड़ता है तो ऐसे ग्रुप से दूरी बना लें। आजकल सिंगल्स के ग्रुप भी खूब बनते हैं।

तस्वीर है रील, यह रीयल भी हो जरूरी नहीं
फिल्मों की ज्यादातर कहानियों में प्यार से बात शुरू होती है और उतार-चढ़ाव के साथ वह शादी पर जाकर खत्म हो जाती है। इसे हैपी एंडिंग कहते हैं। वहीं जिन कहानियों में बात शादी से शुरू होती है, उनमें कई बार बात अलग-अलग होने पर खत्म होती है। इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि पर खुशहाल जोड़ों की तस्वीरें कई बार अकेले रह रहे जोड़ों का जीवन मुहाल कर देती हैं। पर, हम सिर्फ इसका एक पक्ष देखते हैं। दूसरा पक्ष यह भी हो सकता है कि उनकी आपस में ज्यादा बनती नहीं हो। वे आपस में खूब लड़ते हों। चूंकि आजकल सोशल मीडिया पर लाइक और व्यू स्टेटस सिंबल हो चुका है।

एक बार शादीशुदा से पूछकर तो देखो
कई कपल्स ऐसे होते हैं जिनकी शादी नहीं हुई होती, फिर भी वे उस रिश्ते को ढो रहे होते हैं और अलग होने के रास्ते तलाशते रहते हैं। वहीं शादीशुदा कपल्स की स्थिति को समझना हो तो उनसे एक बार यह पूछकर देखना चाहिए कि क्या वे एक दिन के लिए बैचलर जिंदगी जीना चाहेंगे? ज्यादातर मामलों में जवाब हां में ही आएगा। सच तो यह है कि सिंगल होने के अपने फायदे हैं। अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीने का बेहतरीन जरिया है।

सिंगलहुड को एंजॉय करना
जब जिम्मेदारी नहीं होती तो आप रिस्क लेने से भी नहीं चूकते। आपका करियर तेजी से ऊपर जाता है। कई तरह की टेंशन कम हो जाती हैं। कई तरह की जिम्मेदारियों से बच जाते हैं। पर अगर इसे एंजॉय नहीं कर रहे, खुद को कोसते रहते हैं तो यह सजा हो जाती है। इसलिए जो है उसका मजा लें।

काबू करने की कोशिश होती है कपल्स में
ज्यादातर कपल्स में देखा जाता है कि वे अपने पार्टनर की पसंद और नापसंद को काबू करने की कोशिश में रहते हैं। अपनी पसंद को थोपते रहते हैं। इसलिए हर दिन टेंशन में ही गुजरता है।

अकेला चला था मैं...
आजकल ऐसे तमाम ग्रुप और क्लब हैं जहां सिंगल्स की भरमार है। हर सिंगल आपस में मिलकर या फिर अकेले भी कहीं घूमने निकल जाते हैं। खूब एंजॉय करते हैं। सच तो यह है कि आप खुद को किस रूप में देखना चाहते हैं, वही अहम है। कई तलाकशुदा पुरुष और महिलाएं अलग होकर अपनी ज़िंदगी को बेहतर तरीके से जी रहे/रही हैं। जब तक वे अपने पार्टनर से अलग नहीं हुए थे, तब उनकी जिंदगी में सिर्फ तनाव और लड़ाइयां ही थीं। इसका बुरा नतीजा उनके बच्चों पर भी पड़ता था।

ऐसे लोगों से रहें दूर
बिना मांगे दे डेटिंग की सलाह: आप सिंगल ही रहना चाहते हैं लेकिन जब आपका कोई दोस्त या संबंधी डेटिंग को लेकर सलाह देने लगे कि ऐसे डेटिंग पर जाओ, उस दौरान यह करो यह न करो तो उनसे दूरी बनाने में ही फायदा है।

जबर्दस्ती बनाए जोड़ी
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो आपकी जोड़ी किसी भी शख्स के साथ जोड़कर मजाक बनाने की कोशिश करते हैं। यह आपके लिए असहज स्थिति होती है। ऐसे लोगों से भी दूरी बना लें इतना ही नहीं कुछ लोग तो सिंगल्स को दया का पात्र समझने लगते हैं। सिंगल होना बदकिस्मती समझ लेते हैं।

टीन एजर्स को ज्यादा परेशान करता है सिंगल होना
कॉलेज में जोड़ियां बन जाती हैं। लड़के-लड़कियां साथ में घूमते हैं। जरूरी नहीं कि वे प्यार में ही हों। वे दोस्त भी हो सकते हैं। पर परेशानी ऐसे टीनएजर्स को होती है जिन्हें कोई पार्टनर नहीं मिलता। ऐसे में चाहिए कि वह सिंगल होने को ही एंजॉय करे। सिंगल्स का ग्रुप बना ले। उसी में पार्टी करें।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. प्रकाश कोठारी, जाने-माने सेक्सॉलजिस्ट
  • डॉ. राजेश खडगावत, प्रफेसर, एंडोक्राइन डिपार्टमेंट, AIIMS
  • डॉ. समीर पारिख, सीनियर साइकायट्रिस्ट
  • डॉ. सुरेश बीएम, प्रफेसर, NIMHANS
  • डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट
  • प्रेरणा कोहली, सीनियर क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट
  • पूजा प्रियंवदा, मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड प्रोवाइडर
  • राजीव कुमार मलिक, एडवोकेट हाई कोर्ट, मैरिज काउंसलर
  • डॉ. आर. पी. पाराशर, सीनियर, साइकॉलजिस्ट

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खर्चा कम, सेहत ज्यादा : घर के बजट में ऐसे दें सेहत बढ़ाने वाली चीजों को जगह

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इसी महीने की पहली तारीख को देश का बजट पेश हुआ। बजट में सेहत का हिस्सा बढ़ना चाहिए, इसकी चर्चा हम जरूर करते हैं। लेकिन हम अक्सर घरेलू बजट में सेहत को नजरअंदाज कर देते हैं। सबसे ज्यादा कटौती सेहत को दुरुस्त रखने वाले खाने की चीजों पर ही करते हैं। इसका बुरा नतीजा भी आगे चलकर दिखने लगता है। बीमारियां दस्तक देने लगती हैं। हमारे घर का बजट कैसा होना चाहिए? इस बजट में सेहत वाले आइटम्स पर कितना खर्च करना चाहिए और इसका फायदा हमें लंबे समय में शरीर के साथ आर्थिक रूप से कितना होता है? जवाब जाने-माने एक्सपर्ट्स से बात करके दे रहे हैं लोकेश के. भारती

5 सबसे जरूरी बातें
1. खाना यह देखकर खाएं कि क्या हेल्दी है और क्या अनहेल्दी।
2. थाली में आधा हिस्सा सलाद का हो। 2 फल हर दिन जरूर खाएं। इन चीजों को अपनाने से बजट थोड़ा बढ़ जाएगा, लेकिन यह शरीर पर इन्वेस्टमेंट है। आगे सिर्फ प्रॉफिट ही प्रॉफिट मिलेगा।
3. खाने में अनाज की मात्रा 20 फीसदी से ज्यादा न हो।
4. रोजाना 6 से 8 घंटे की गहरी नींद लेंगे तो स्ट्रेस कम होगा और ऊर्जावान भी रहेंगे।
5. सुबह 5 से 6 बजे के बीच उठने की आदत डाल लें और आधा घंटा कसरत या योग करें।


मशीन की तरह है हमारा शरीर
कुदरत ने हमें जो शरीर दिया है, वह पूरी तरह विकसित मशीनरी का एक बेहतरीन उदाहरण है। शरीर के सैकड़ों कामों के लिए अलग-अलग सिस्टम, ऑर्गन, टिश्यू और सेल्स दिए गए हैं। हम इनका ध्यान न रखकर इनकी स्थिति धीरे-धीरे खराब कर देते हैं। जिस तरह मशीनों का सही देखरेख न होने से पहले वे आवाज करने लगती हैं फिर उनमें स्टार्टिंग की परेशानी आती हैं और बाद में वह काम करना बंद कर देती हैं। यही हाल हमारे शरीर का भी रहता है।

खानपान पर होने वाले खर्च को सही दिशा दें
हकीकत यह है कि जब सफर लंबा हो तो सही रास्ते की जानकारी बहुत जरूरी हो जाती है। नहीं तो रास्ते से जरा भी भटके और मंजिल दूर होती चली जाती है। अगर रास्ता सही हो तो परेशानी नहीं आती। सेहत के मामले में भी ऐसा ही होता है। अपनी ज़िंदगी में अगर हम शुरुआत से ही कुछ अच्छी चीजों की आदत डाल लें, खानपान पर होने वाले खर्च को सही दिशा दे दें, अपने रुटीन और सोच में थोड़ा-सा परिवर्तन कर लें तो ज़िंदगी में बीमारी शायद दस्तक भी न दे। इसमें सबसे अहम है अपने खानपान के बजट में सेहत बढ़ाने वाली चीजों को शामिल करना।

ये सब जरूर हो हर दिन के खानपान में
  • सलाद : गाजर, मूली, चुकंदर, टमाटर, खीरा (जिस मौसम में जो मिले)। थाली में इनका हिस्सा 40 से 50 फीसदी तक हो।
  • दो मौसमी फल : सेब, पपीता, केला, संतरा, कीनू आदि। इन्हें खाना है न कि इनका जूस निकालना। किसी के दांत न हो तो वे जूस पिएं।
  • मौसमी साग-सब्जी, नट्स : मौसमी साग-सब्जी: जैसे- बथुआ, पालक, घीया, सरसों आदि और नट्स (एक मुट्ठी बादाम, किशमिश या भुना चना या मूंगफली)

शरीर को ऐक्टिव रखना
30 मिनट योग या एक्सरसाइज या फिर दोनों करें। अगर कोई शख्स सूर्य नमस्कार करता है और 30 मिनट वॉक तो समझ लें, उस शख्स से लाइफस्टाइल (मोटापा, शुगर आदि) बीमारी दूर ही रहेगी।

पानी और नींद
शरीर को डिटॉक्स करने के लिए इन दोनों से बढ़िया चीज कुछ भी नहीं। हर दिन 2 से ढाई लीटर पानी जरूर पीएं (कुछ मरीजों को छोड़कर)। 6 से 8 घंटे की नींद भी शरीर को डिटॉक्स करती है।

इन चीजों से जरूर बना लें दूरी
  • नशा : किसी भी तरह का नशा सेहत के लिए खतरनाक है। चाहे स्मोकिंग करें या फिर वाइन लें, दोनों ही बुरी सेहत से दोस्ती रखते हैं।
  • स्क्रीन का कम इस्तेमाल : स्क्रीन के ज्यादे इस्तेमाल से आंखों और दिमाग दोनों पर असर पड़ता है। सोने से 1 घंटा पहले इनसे दूरी बना लें।
  • स्ट्रेस : जो होना है, वही होगा। हम ईमानदारी से सिर्फ कोशिश ही कर सकते हैं। यही सोच रखनी चाहिए। इससे तनाव कम होगा और हर दिन की छोटी-छोटी परेशानियों से काफी हद तक निजात मिल सकता है।
  • बाहर का खाना : बाहर का खाना जीभ को बहुत भाता है, लेकिन शरीर के लिए खतरनाक है। वहीं तय वक्त न खाना और देर रात खाना खतरनाक है।

सफेद चीजें
नमक और चीनी की मात्रा कम होनी चाहिए। स्वाद में नमक और चीनी की मौजूदगी जरूर हो, लेकिन खानपान में कम रखें। नेचरोपैथ में दूध और उससे बने उत्पादों से भी दूरी बनाने के लिए कहा गया है।

जल्द दिखने लगता है सही और गलत रुटीन का असर
ऊपर जो चीजें बताई गई हैं, इनका असर शरीर पर 1 से 2 महीने में ही दिखना शुरू हो जाता है। हां, सही रुटीन और खानपान का क्या असर हुआ है, इसे तुलनात्मक रूप से जरूर देख सकते हैं। जो लोग गलत रुटीन फॉलो करते हैं, उनका शरीर भारी, पहले बीपी, फिर शुगर और कलेस्ट्रॉल के मरीज बन जाते हैं।फिर भी ध्यान नहीं दिया तो हार्ट, लिवर, किडनी की परेशानी होने लगती है। वहीं जो लोग शुरुआत से ही बेहतर रुटीन फॉलो करते हैं और खानपान का ध्यान रखते हें। उन्हें तुलनात्मक रूप से बहुत ही कम शारीरिक और मानसिक परेशानी होती है। अगर किसी को बीपी, शुगर या दूसरी बीमारियों की शुरुआत हो चुकी है तो भी सही रुटीन फॉलो करने से इन पर बहुत ही आसानी से काबू पाया जा सकता है। सही रुटीन से मोटापा काबू में रहता है। बीपी की परेशानी भी दूर रहती है।

सही रुटीन फॉलो करने के लिए बजट में क्या करें बदलाव
2 युवा और 2 बच्चों वाली न्यूक्लियर फैमिली में खानपान पर महीने का अमूमन 10 से 15 हजार रुपये खर्च बैठता है। इसमें महीने में 2 से 3 बार बाहर का खाना, बाहर के नूडल्स, बर्गर, पित्जा, नमकीन, चिप्स आदि भी शामिल होते हैं। बाहर की चीजों पर कुल खर्च 2 से 3 हजार बैठता है। इतनी मात्रा में अगर हम अनहेल्दी फूड आइटम्स लेते हैं तो अगले 10 से 15 साल में शरीर पर लगाना होगा 1000 गुणा ज्यादा फंड।

बजट को बिगड़ने से पहले संभालें
शरीर जितना झेल सकता है, वह खुद झेलने और दुरुस्त करने की कोशिश करता है। खराब रुटीन की वजह से बीपी आदि बिगड़ जाता है। धीरे-धीरे खर्च इस तरह बढ़ता जाता है:

पहले 3 से 4 साल तक
बाहर की अनहेल्दी चीजें खाते हैं। शरीर मोटा होने लगता है। हम अमूमन 10 से 15 किलो ओवरवेट हो जाते हैं।
खर्च: बाहर की चीजों पर महीने का 2 से 3 हजार रुपये।

4 साल बाद
बीमारियों की दस्तक, शुरुआत बीपी की रीडिंग बढ़ने से होगी। फिर कलेस्ट्रॉल और शुगर दस्तक दे सकते हैं।
दवा पर खर्च: महीने का 1 से डेढ़ हजार रुपये + अनहेल्दी चीजों पर खर्च 2 से 3 हजार रुपये।

5 साल बाद
बीपी को काबू नहीं करने से शुगर और कलेस्ट्रॉल की शुरुआत हो जाती है। इन्हें मैनेज करने के लिए हम फिर दवा लेना शुरू करते हैं।
दवा पर खर्च: 2 से 3 हजार रुपये महीना + अनहेल्दी चीजों पर खर्च कुछ समय के लिए कम करते हैं। यह 1 से 2 हजार रुपये तक आ जाता है, लेकिन जब हम यह देखते हैं कि दवा लेने से इन पर काबू हो चुका है तो फिर से हम अनहेल्दी फूड आइटम्स बढ़ा देते हैं। अपना रुटीन दुरुस्त फिर भी नहीं करते। अगर यहां से भी अपना रुटीन दुरुस्त कर लें तो चीजें बेहतर हो सकती हैं।

6 से 8 साल
इस समय तक हमारे लिए दवा की डोज पहले की तुलना में 3 गुना से 4 गुना तक हो जाती है।
दवा पर खर्च: 6 से 7 हजार रुपये + अनहेल्दी फूड आइटम्स पर खर्च 2 से 3 हजार रुपये

9 से 12 साल
इस समय तक हम यह मानने लगते हैं कि शरीर में इतनी तरह की बीमारियां शुरू हो चुकी हैं।अब तो हम चंद बरसों के ही मेहमान हैं। जितना हो सके, जो मन करे खा लो।

दवा पर खर्च: 12 से 15 हजार रुपये महीना और साल का डेढ़ से 2 लाख रुपये। चूंकि डायबीटीज अब दवाओं से काबू में नहीं रहती। दवाओं के साथ इंसुलिन भी लेना पड़ता है। अब अगर बेहतर रुटीन की शुरुआत करते हैं तो भी नहीं हो पाता। शरीर में कई तरह के विटामिन कम होने लगते हैं। खून की कमी होने लगती है। बीपी आदि का असर चेहरे, किडनी, लिवर आदि पर साफ तौर पर देखा जा सकता है। कुछ लोगों को किडनी की समस्या भी होने लगती है। क्रिएटिनिन बढ़ जाता है। फैटी लिवर परेशान करने लगता है। पेट में गैस बनने की स्थिति भयावह होने लगती है। बीपी भी हमेशा बढ़ा ही रहता है। सच कहें तो चीजें बेकाबू होने लगती हैं। महीने में 2 बार अस्पताल का चक्कर। खून जांच पर अलग से खर्च यानी आर्थिक परेशानी के साथ शरीर भी खस्ता हाल।

फिर खराब होने लगते हैं सबसे जरूरी अंग
जिस परेशानी को पैदा ही नहीं होना चाहिए था, उसे पाल-पोसकर हम बड़ा कर देते हैं। इस स्थिति में पहुंचा देते हैं कि वह हमारे जरूरी अंग जैसे किडनी, लिवर, हार्ट, फेफड़े कमजोर कर देती है। फिर होती है बड़े ऑपरेशन की तैयारी यानी ट्रांसप्लांट की। इसके सफल होने की पूरी गारंटी भी नहीं होती। इन पर अभी खर्च 10 से 12 लाख रुपये तक हो जाता है। जरा सोचें, अगले 10 से 12 साल बाद कितना होगा? वैसे आजकल हेल्थ इंश्योरेंस के रूप में एक मदद रहती है, इसलिए यह भी जरूर लेना चाहिए।

हेल्थइंश्योरेंस के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNbt पर जाएं और health insurance सर्च करें। इंश्योरेंस की मदद से अगर खर्च की बात को भूल भी जाएं तो शरीर को कितना कष्ट होगा, इसका भी अनुमान लगाना होगा। इंश्योरेंस क्लेम के अलावा भी कई तरह के खर्च करने पड़ते हैं, यह भी ध्यान में रखना होगा। इन बड़े ऑपरेशन कराने और इतना ज्यादा खर्च करने के बाद भी हम सामान्य जिंदगी नहीं जी पाते। खुद को बहुत ज्यादा बचाकर चलना पड़ता है।

इस बात से भी कोई इनकार नहीं कर सकता कि जब किसी घर में कोई शख्स किसी गंभीर बीमारी से परेशान हो तो पूरे घर में ही तनाव की स्थिति बनी रहती है। बच्चों पर भी इसका तनाव देखा जा सकता है। पूरे घर की सामान्य स्थिति बिगड़ जाती है। हमारी कोशिश यह होनी चाहिए हम ऐसी स्थिति न ही बनने दें।

डायनिंग टेबल पर इनकी हो मौजूदगी
1. कम से कम दो तरह के मौसमी फल जरूर रखें। उसकी मात्रा इतनी जरूर हो कि परिवार के सभी सदस्य 1-1 फल दो दिनों तक खा सकें। जिससे हर दिन फल लाने की टेंशन न हो।
खर्च: हर दिन 50 रुपये, महीने का 1500 से 2000 रुपये
2. नट्स भी मौजूद हों: जब भी भूख लगे तो नट्स (भुना चना या मूंगफली) जैसी हेल्दी चीजें सामने रखी हों। एक मुट्ठी काफी है। मखाना भी एक अच्छा ऑप्शन है। एक कटोरा रोस्टेड मखाना भी हर दिन खा सकते हैं।
खर्च: हर दिन 30 से 50 रुपये, महीने का 1000 से 1500 रुपये
न हो या बहुत कम हो मौजूदगी
- किसी भी तरह के बिस्किट, नमकीन, चिप्स, नूडल्स आदि को या तो घर या बाहर कहीं भी न खाएं। अगर मजबूरी में खाना भी पड़े तो महीने में एक बार यानी 100-200 रुपये से ज्यादा न हो। वहीं अगर रेस्टोरेंट से कुछ मंगाकर खाते हैं तो इसे भी महीने में एक बार से ज्यादा न मंगाएं। महीने में 3 बार की जगह 1 बार बाहर की चीज खाने से 2 बार के पैसे की बचत हो जाती है। इससे भी हम 1000 से 1200 रुपये महीने के आराम से बचा लेते हैं। जब हम इन आइटम्स पर कटौती करते हैं तो पता चलता है कि मौसमी फल और नट्स आदि पर हमें अलग से खर्च नहीं करना पड़ता। वहीं नतीजा बहुत ही बेहतरीन होता है। इसलिए नुकसान कहीं नहीं है।
नोट: यहां खर्च का अनुमान लगाया गया है। इसमें कमी-बेशी मुमकिन है।

किचन और फ्रिज में ये रहें जरूर
  • मौसमी हरी/लाल/पीली सब्जी की मौजूदगी हो। सिर्फ मौजूदगी न हो। इन्हें हर दिन कम तेल में बनाएं भी।
  • सरसों तेल में ही बने: तेल के रूप में सरसों के तेल का इस्तेमाल करें। वैसे तिल का तेल भी फायदेमंद है, लेकिन असली तिल का तेल मिलना मुश्किल है। अगर मिल भी जाए तो काफी महंगा पड़ता है।
  • हर दिन खाने में कार्बोहाइड्रेट्स (चावल, रोटी) आदि को कम ही मात्रा में बनाएं। पेट भरने के लिए हरी सब्जियों पर खर्च बढ़ा दें। जब हम कम मात्रा में चावल, रोटी बनाएंगे तो खाएंगे भी कम। इससे मोटापे की समस्या जल्दी नहीं आती। कई बार हम इसलिए ज्यादा खा लेते हैं कि अनाज को फेंकना सही नहीं है। यह बात ठीक नहीं। इसलिए कम बनाना ही बेहतर है। वैसे एक बात जो ध्यान रखने वाली है कि घर में दो तरह के डस्टबिन होते हैं। एक किचन में जिसमें हम बेकार चीजें डालते हैं। दूसरा, हम अपने पेट को भी डस्टबिन ही बना देते हैं।
  • हल्दी, लौंग, जीरा, अजवाइन जैसे मसाले किचन में जरूर मौजूद हों। इनका इस्तेमाल भी करें।
  • न हों या कम हों ये चीजें
  • रिफाइंड चीजें जैसे: रिफाइंड तेल, मेदा, चीनी आदि। अगर खाना भी हो तो महीने में एक या दो बार से ज्यादा इनकी बनी चीजें न ही खाएं तो बेहतर है।
  • नमक की मात्रा: इसकी मात्रा कम खाने की आदत लगाएं। डाइनिंग टेबल पर भी इसे जगह न दें।
  • चाय: वैसे तो चाय भी अनहेल्दी है। इससे गैस आदि की समस्या होती है। फिर भी अगर इसे न छोड़ पाएं तो सुबह की चाय खाली पेट न ही पिएं तो बेहतर है।

सेहतमंद रहने के लिए अपना सकते हैं कुदरती तरीका
बात जब नेचरोपैथी की आती है तो इसमें सबसे खास यह है कि सही तरीके से करने पर इसके फायदे ही फायदे हैं। इसमें पंच तत्वों यानी पृथ्वी (मिट्टी), जल, वायु, अग्नि (धूप) और आकाश (उपवास) की मदद से इलाज करते हैं। यहां उपवास को ही आकाश माना गया है क्योंकि जिस तरह आकाश खाली होता है, उसी तरह शरीर को भी ठीक करने के लिए खाली रखना पड़ता है। नेचरोपैथी मानती है कि जब शरीर में इन पांच तत्वों का संतुलन बिगड़ता है तो समस्याएं पैदा होती हैं। कुदरत ने हमें ये सभी चीजें मुफ्त में मुहैया कराई हैं। नेचरोपैथी में इलाज से ज्यादा इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि बीमारी पैदा ही न हो। फिर भी इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। कोरोना जैसी खतरनाक बीमारियों से निपटने में हमें मॉडर्न साइंस की मदद लेनी पड़ती है।

क्या है मूल सिद्धांत
हम जो भी खाते हैं, उससे कचरा भी बनता है। अगर यह कचरा सही तरीके से शरीर से बाहर नहीं निकल पाए तो टॉक्सिंस के रूप में जमा होने लगता है। यह जहां-जहां जमा होगा, वहीं उनसे जुड़ी समस्याएं पैदा होंगी। मसलन अगर पाचन तंत्र में जमा है तो कब्ज, अल्सर, बदहजमी जैसी परेशानी होंगी। अगर घुटनों में जमा होगा तो घुटनों में दर्द, ऑर्थराइटिस जैसी बीमारियां पैदा होती हैं। गर्दन में हो तो स्पॉन्डिलाइटिस हो सकता है। नेचरोपैथी के जरिए टॉक्सिंस को बाहर निकालकर शरीर को रोग मुक्त किया जाता है। इसके लिए किसी दवा की जरूरत नहीं होती। इसमें उन तत्वों को इस्तेमाल होता है, जिनसे शरीर बना है।

क्यों होती है बीमारी
नेचरोपैथी कहती है कि जब आप ज्यादा तेल और मसालों में पका खाना खाते हैं या फिर बहुत ज्यादा उबला हुआ तो उसका फायदा शरीर को नहीं होता। हां, नुकसान जरूर होता है। इससे शरीर में कचरा ज्यादा पैदा होता है। ज्यादा होने की वजह से कई बार पूरा कचरा शरीर से बाहर नहीं निकल पाता और इनका जमाव शरीर में कहीं-न-कहीं होने लगता है। यही धीरे-धीरे टॉक्सिंस के रूप में जमा हो जाता है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि किसी अनाज या दाल को आप धूप में कितना भी गर्म कर लें, उसे जब जमीन में लगाएंगे तो वह अंकुरित हो जाता है और पेड़ भी बन सकता है, लेकिन जब उसी अन्न या दाल को हम पका लेते हैं तो उसमें अंकुरण मुमकिन नहीं। इसलिए हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि कुदरत की दी हुई चीजों को उसी के रूप में लें, जिन्हें हम आसानी से पचा सकते हैं। उबालना फिर भी ठीक है, लेकिन तेल में तलने से उनकी न्यूट्रिशन वैल्यू कम हो जाती है।

गांवों में नेचरोपैथी मौजूद
गांव में किसानों और मजदूरों को नेचरोपैथी के तत्व काम करते हुए ही मिल जाते हैं। मसलन, खेतों में काम करते हुए धूप (सन बाथ) और धूल-मिट्टी (मड थेरेपी) का फायदा मिल जाता है। उन्हें ज्यादा धूप लगती है तो अमूमन वे अपनी शर्ट उतारकर काम करते हैं। इससे उनके शरीर का 70 से 80 फीसदी हिस्सा धूप के संपर्क में रहता है। इससे विटामिन-डी की कोई कमी नहीं होती। उन्हें कोई सप्लिमेंट लेने की भी जरूरत नहीं होती।

ये जरूर करें
  • जिस तरह डीएनए पैरंट्स से बच्चों में जाता है, उसी तरह अच्छे गुणों को पहले खुद अपनाएं फिर बच्चों में ट्रांसफर करें।
  • सुबह एक गिलास यानी 250 एमएल सफेद पेठे का रस या बथुए और टमाटर का रस 8 से 9 के बीच पी लें। बच्चों के लिए 100 एमएल भी काफी है। इसमें नमक, चीनी व शहद न डालें।
  • सुबह गर्मियों में 8 से 11 के बीच और सर्दियों में 11 से 2 के बीच 30 से 40 मिनट धूप में बैठें।
  • एक ही तरह का मौसमी फल पेठे के रस के 2 घंटे के बाद 300 से 400 ग्राम खाएं।
  • इसके 2 घंटे बाद एक प्लेट (400 से 500 ग्राम) सलाद जिसमें मूली, गाजर, चुकंदर, खीरा, टमाटर बिना नमक और बिना नीबू के खाएं।
  • इसके 2 घंटे के बाद लंच में कम तेल मसाले वाली चीजें खाएं। स्नैकिंग में भुना चना, मखाने आदि और रात में दाल, रोटी, सब्जी के साथ ले सकते हैं।
  • दूध और दूध से बने उत्पाद को न कहें।

सही आदतें
1. भूख न लगे तो न खाएं।
2. जितनी भूख हो, उतना ही खाएं।
3. पहले चित्त को स्थिर करें, फिर खाएं। इसके लिए प्राणायाम, योगासन, धूप स्नान, मेडिटेशन आदि कर सकते हैं।
4. डिब्बा बंद, पैकिटबंद, बोतलबंद, कोल्ड ड्रिंक्स रेस्टोरेंट, ढाबों का भोजन न करना। पैक्ड फूड आइटम्स लेने से शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है और इसका असर शरीर पर बहुत बुरा पड़ता है।
5. ज्यादा तेल-मसाले वाली चीजें न खाएं।

गलत आदतें
शरीर के अंदर यदि गैस, बलगम या कब्ज में से कोई एक परेशानी महसूस हो रही है तो इसका कारण है कि खाना ठीक से पचा नहीं।
खाना न पचने की वजह
1. बिना भूख खाना
2. जरूरत से ज्यादा खाना
3. मन अशांत हो फिर भी खा लेना
4. गलत भोजन करना
5. दोपहर के खाने के बाद फौरन ही फिजिकल ऐक्टिविटी में लग जाना।

तीन तरह की रसोई को समझना जरूरी है...
1. भगवान की रसोई: इस रसोई में सूरज धीरे-धीरे फलों, सब्जियों को पकाते हैं। वायुदेव लोरी गाकर बड़ा करते हैं। चांद इसे औषधि और रस देता है जबकि धरती खनिज पदार्थ उपलब्ध कराती है।
2. इंसान की रसोई: अगर भगवान की रसोई से मिले हुए फल, सब्जी आदि को घर में पकाकर खा लें तो इनसे भी काफी हद तक स्वस्थ रह सकते हैं।
3. शैतान की रसोई: इसमें डिब्बाबंद, पैकिटबंद, बोतल बंद, जंक फूड, फास्ट फूड, रेस्तरां का खाना, ढाबों का खाना आता है। ऐसा खाना खाकर बीमार पड़ना स्वाभाविक है। प्राकृतिक चिकित्सा में 'रोग' शब्द नहीं है। स्वास्थ्य बढ़ता है या फिर स्वास्थ्य की कमी होती है।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. एस. के. सरीन वाइस चांसलर, ILBS
  • अनंत बिरादर, नैशनल प्रेसिडेंट, इंटरनैशनल नेचरोपैथी ऑर्गेनाइजेशन
  • मोहन गुप्ता, सीनियर नेचरोपैथी, एक्सपर्ट
  • डॉ. शिखा शर्मा, न्यूट्री-डाइट, एक्सपर्ट
  • ईशी खोसला, सीनियर डाइटिशन
  • नीलांजना सिंह, सीनियर डाइटिशन
  • डॉ. अनुराग अग्रवाल, कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसिन, QRG हॉस्पिटल
  • सुरक्षित गोस्वामी, वरिष्ठ योग गुरु

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तू किडनी अच्छी है... शरीर की छलनी के साथ ना करें छल, जानें बीमारी के लक्षण, परहेज से लेकर इलाज तक सब कुछ

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शरीर में फेफड़ों की तरह गुर्दे भी दो होते हैं क्योंकि इनका काम भी बड़ा होता है। आकार में दिल, फेफड़े और जिगर की तुलना में ये बहुत छोटे हैं, लेकिन 24X7 काम करते हैं। ये खून को छानकर शरीर की गंदगी दूर करते हैं। यह लाइन किडनी पर सही बैठती है कि 'देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर।' किडनी जो शरीर की छलनी है उसके साथ हमें छल नहीं करना चाहिए। देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

शरीर की छलनी का सेहतमंद रहना बहुत जरूरी
चाय को केतली में उबालने के बाद अगर छलनी से न छानें या फिर छलनी टूटी हो तो अच्छी चाय भी बेकार लगती है। हर चुस्की के साथ चाय पत्ती भी मुंह में आए तो मजा खराब हो जाता है। इसलिए जैसे अच्छी चाय का आनंद लेने के लिए छलनी का सही होना जरूरी है, वैसे ही हमारे शरीर में खून साफ करने और गंदगी को बाहर करने के लिए किडनी यानी शरीर की छलनी का सेहतमंद रहना बहुत जरूरी है। अगर किसी को किडनी से जुड़ी परेशानी शुरू हो चुकी है तो ऐसे लोगों के लिए क्या खाना सही है, क्या नहीं खाना? और कितना पानी जरूरी है। यह जानते हैं।


किडनी में खराबी की अहम वजहें : ज्यादा दवाएं लेना
हमारे देश में ज्यादातर लोग खुद ही डॉक्टर बनने की कोशिश करते हैं। वे अपनी मर्जी से दवा खरीद कर खाते रहते हैं। आपको अगर दवाओं से 'प्रेम' है तो किडनी की समस्या आपको मुफ्त में मिल सकती है। गलत या ज्यादा दवा खाने से किडनी की हालत खराब होती है। पेनकिलर तो इस मामले में बेहद खतरनाक होते हैं। कभी पेनकिलर लें तो किडनी को जरूर याद कर लें। अगर आपको दर्द की समस्या लगातार है तो इसका सही इलाज कराएं नाकि पेनकिलर खरीद कर खाएं।
  • आसानी से मिलने वाली पेनकिलर NSAIDs (Non-steroidal anti-inflammatory drugs) डॉक्टर से बिना पूछे लगातार खाना। इससे किडनी खराब होती हैं।
  • बहुत ज्यादा मात्रा में प्रोटीन: बॉडी बिल्डिंग करने वाले लोग मसल्स बनाने के लिए लेते हैं। स्टेरॉइड्स लेना। ये किडनी के साथ-साथ दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। जिम में जाकर बॉडी बिल्डिंग करने वाले कई लोग मांसपेशियों को आकार देने के लिए हाई प्रोटीन का सेवन करते हैं। इससे किडनी खराब होने के कई मामले सामने आए हैं।

शराब पीना
अल्कोहल का सबसे बुास असर किडनी और लिवर पर पड़ता है। शराब, बीयर या ड्रग्स आदि में हानिकारक चीजें तो होते ही हैं, ये पेशाब की फ्रीक्वेंसी और मात्रा को भी बढ़ा देते हैं। ऐसे में किडनी को सामान्य क्षमता से कई गुना ज्यादा काम करना पड़ता है और इससे किडनी जल्दी खराब होने लगती है। जाहिर है, शराब से जितनी दूरी होगी, किडनी उतनी ही स्वस्थ रहेगी। डॉक्टरों का मानना है कि शराब की कम या ज्यादा मात्रा लेने से फर्क नहीं पड़ता, अगर हेल्दी किडनी चाहिए तो शराब से पूरी तरह दूर रहें। अगर शुगर और बीपी की परेशानी है तो न ही पिएं। फिर भी मन न माने तो महीने में 20 एमएल करके 3 बार में पी सकते हैं।

बेकाबू बीपी
गलत लाइफस्टाइल की वजह से आजकल हाई बीपी और शुगर की समस्या आम है। ये किडनी जैसे अंगों को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। अमूमन देखा गया है कि जिन्हें शुगर की समस्या होती है, उन्हें हाई बीपी की परेशानी भी हो ही जाती है। इसलिए बीपी और शुगर के मरीज को किडनी की ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। शुगर और बीपी से परेशान हैं तो डॉक्टर ने जो दवा आपको दी है, उसे हर दिन लें। अगर ये कंट्रोल में हैं तब भी डॉक्टरों की सलाह पर ही चलें। एक्सरसाइज रोज करें। हाई बीपी के लक्षण: लगातार सिर दर्द, चक्कर आना, गुस्सा जल्दी आना, बार-बार गुस्सा आना, थकान या कमजोरी और नींद न आना आदि।
  • अगर शुगर, बीपी आदि की समस्या नहीं है तो 120/80 तक और अगर ऐसी परेशानी है तो 130/90 तक बीपी सामान्य माना जाता है।
इलाज: बीपी को काबू में रखने के लिए लंबे समय तक डॉक्टर की सलाह से दवा लेनी पड़ती है। कई लोग बीच में दवा लेना छोड़ देते हें। इससे किडनी खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। दवा के साथ वॉकिंग भी बहुत जरूरी है। हर दिन 3 से 4 किमी की ब्रिस्क वॉक। बीपी कंट्रोल करने के लिए बहुत फायदेमंद है। साथ में योग भी कारगर है।

बीपी मशीन घर पर जरूर रखें: मेडिकल की दुकानों पर ऐसी मशीनें मिल जाती हैं। हालांकि इनकी रीडिंग कुछ ऊपर-नीचे हो सकती है। फिर भी यह मशीन हाई बीपी का संकेत जरूर दे देती है।
बीपी जांचने की कुछ मशीनें
  • Dr Trust, कीमत: 2231 रुपये
  • Omron HEM 7120, कीमत: 1950 रुपये
नोट: इनके अलावा कई ब्रैंड और भी हैं। कीमतों में फर्क हो सकता है।

शुगर का बढ़ जाना
किडनी खराब होने के ज्यादातर मामले ऐसे मरीजों में होते हैं जिनका शुगर लेवल बढ़ा हुआ होता है। अगर शुगर का लेवल लगातार 6 महीनों से ज्यादा समय तक 250 से ज्यादा हो तो समझें कि किडनी के लिए सांस लेना मुश्किल होने लगता है। इसलिए इसे काबू में रखें। शुगर फास्टिंग: 70-100 मिलीग्राम और खाने के बाद: 135 से 140 मिलीग्राम हो सकती है।

ये भी हैं कारण
  • यूरिन इन्फेक्शन पर ध्यान न देना।
  • पथरी के इलाज में देरी करना। पथरी का साइज 3 से 4 mm तक हो तो अमूमन यूरिन के दबाव से निकल जाती है।
  • यूरिन को अक्सर रोककर रखना।
  • नमक ज्यादा खाना। (एक दिन में 2 से 5 ग्राम या एक चम्मच ही खाएं। खाने में एक्स्ट्रा नमक न लें। ऊपर से नमक डालकर न खाएं।)
  • सोडा (कोल्ड ड्रिंक) का सेवन ज्यादा करना।
  • पथरी आकार में बढ़ जाए तो किडनी खराब करती है। इसकी जांच के लिए अल्ट्रासाउंड करवाया जाता है। किसी को पथरी बनती रहती है तो उसे साल में पेट के निचले हिस्से का 1 बार अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए। इसमें 1500 से 2000 रुपये तक का खर्च आता है।
गुर्दे की होती हैं 2 तरह की परेशानियां

1. एक्यूट किडनी इंजरी (AKI)
इस तरह की परेशानी अमूमन अचानक होती है। किसी इंफेक्शन या दुर्घटना की वजह से जब किडनी अचानक काम करना बंद कर देती हैं। पहले से न शुगर की परेशानी थी और न बीपी की, फिर भी ब्लड और यूरिन टेस्ट में अचानक ही क्रिएटिनिन की मात्रा सामान्य से बढ़ी दिखे।
बहुत हेवी एक्सरसाइज और पानी की कमी में भी: अगर कोई शख्स हेवी एक्सरसाइज करता है। इस वजह से वह महीने का 3 से 4 किलो वजन कम कर लेता है। ऐसा 2-3 महीने तक करने के दौरान अगर वह ढाई से 3 लीटर पानी हर दिन नहीं पीता तो यह मुमकिन है कि उसका क्रिएटिनिन लेवल बढ़ जाए। इसलिए अगर कोई इस तरह का काम कर रहा है तो उसे भी केएफटी टेस्ट जरूर कराना चाहिए और सामान्य रिपोर्ट नहीं आने पर किसी नेफ्रॉलजिस्ट को जरूर दिखाए।
कैसे पहचानें: अगर किसी शख्स का यूरिन आना बंद हो जाए या फिर यूरिन में अचानक ही खून निकलने लगे। इनके अलावा दूसरे लक्षण भी हो सकते हैं। क्या करें: फौरन ही किसी नेफ्रॉलजिस्ट से संपर्क करें।

. क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD)
जब बीपी, शुगर या किसी दूसरी बीमारी की वजह से धीरे-धीरे किडनी की क्षमता कम होने लगती है या काम करना बंद कर देती हैं। यह कई स्टेज में होता है। किडनी अभी किस स्टेज में है इसका पता करने के लिए GFR (Glomerular Filtration Rate) करना चाहिए। किडनी में जो सबसे ऊपर का स्तर होता है उसे ही ग्लोमेरुलर कहते हैं। यह किस गति से यूरिन को फिल्टर करता है, उसी से पता लगाया जाता है कि किडनी सही तरीके से काम कर रही है या नहीं। इसके लिए किसी शख्स को 24 घंटे का यूरिन जमा करने के लिए कहा जाता है। इसमें यह देखा जाता है कि पसीने के माध्यम से कितना लिक्विड निकलता है। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाता है कि उसने दिनभर में पानी समेत कितना लिक्विड लिया है। चूंकि इस प्रक्रिया को पूरा करने में ज्यादा परेशानी होती है, इसलिए डॉक्टर इसकी जगह eGFR (Estimated Glomerular Filtration Rate) यानी उस शख्स ने 24 घंटे में कितना लिक्विड लिया और कितना यूरिन निकाला। इसका औसत देखने के लिए ब्लड टेस्ट का सहारा लिया जाता है। जिसमें क्रिएटिनिन लेवल देखा जाता है। अल्ट्रासाउंड भी कराया जाता है ताकि किडनी की असल स्थिति का पता चल सके।

किडनी की पुरानी बीमारी को 5 स्टेज में बांट सकते हैं:

CKD-1 Stage
  • eGFR 90 एमएल/ मिनट से ज्यादा।
  • पेशाब में कुछ गड़बड़ी पता चलती है, लेकिन क्रिएटिनिन और ईजीएफआर सामान्य होता है। ईजीएफआर से पता चलता है कि किडनी फिल्टर सही से कर पा रही है या नहीं।

CKD-2 Stage
  • eGFR 90-60 एमएल/ मिनट के बीच में होता है, लेकिन क्रिएटिनिन सामान्य ही रहता है। पेशाब की जांच में उसमें प्रोटीन ज्यादा होने के संकेत मिलने लगते हैं। शुगर या हाई बीपी रहने लगता है।
  • कितना पानी: ऊपर के दोनों स्टेज में अगर चेहरे या पैरों में सूजन नहीं है तो सामान्य रूप से यानी डेढ़ से 2 लीटर तक पानी पीने के लिए कहा जाता है।
  • नारियल पानी: जब तक किडनी सही तरीके से काम कर रही है तो नारियल पानी अमृत है। लेकिन किडनी में अगर परेशानी है तो इसकी मात्रा कम या फिर बंद करना पड़ता है। अगर ब्लड टेस्ट में क्रिएटिनिन, यूरिया, सोडियम और पोटैशियम सामान्य है तो डॉक्टर की सलाह से हफ्ते में 1 से 2 नारियल पानी पिया जा सकता है।
  • खाने में परहेज: सामान्य खाना, तेल-मसाले कम, रिफाइंड नहीं। नमक: सामान्य, ऊपर से नहीं खाना। पैक्ड नमकीन, चिप्स आदि नहीं खाना।

CKD-3 Stage
  • eGFR 60-30 एमएल/ मिनट के बीच में होने लगता है। क्रिएटिनिन भी बढ़ने लगता है। यह 2 के करीब होता है। इस स्टेज में किडनी की बीमारी के लक्षण पूरी तरह सामने आने लगते हैं। ब्लड टेस्ट में यूरिया ज्यादा आ सकता है। शरीर में खुजली की शिकायत रह सकती है। इसके अलावा कमजोरी आना, भूख में कमी, पेशाब की मात्रा भी कम हो सकती है।
  • यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि CKD 3 स्टेज में पहुंचने पर चीजें ज्यादा खराब होने लगती हैं। अगर यहां से भी सही तरीके से इलाज होने लगे, खानपान में संयम बरता जाए तो डायलिसिस की स्थिति को कई बरसों तक टाला जा सकता है।
  • कितना पानी: अमूमन चेहरे और पैरों में काफी सूजन दिखने लगती है। इसलिए डॉक्टर पानी की मात्रा को सीमित कर देते हैं। यह एक से डेढ लीटर प्रति दिन तक कर दी जाती है।
  • नारियल पानी: अमूमन इसकी भी मनाही कर दी जाती है। अगर किसी को लेना भी हो तो हफ्ते में 50 एमएल से ज्यादा नहीं।
  • खाने में परहेज: बाकी परहेज CKD 1 और 2 के जैसा ही होगा। एक नाशपाती या सेब (80 ग्राम तक का) ले सकते हैं। खट्टे फलों आदि की मनाही है या फिर एक हफ्ते में 2 से 3 दिनों पर एक टुकड़ा लें। केले हफ्ते में 2 से 3 काफी हैं।
  • कितने दिनों पर टेस्ट: 2 से 3 महीने पर

CKD-4 Stage
  • eGFR 30-15 एमएल/ मिनट के बीच होता है और क्रिएटिनिन भी 2-4 के बीच होने लगता है। शरीर में सूजन की समस्या हो सकती है। कितना पानी: इस समय कुल लिक्विड डेढ़ लीटर होगा, जिसमें पानी के अलावा, दल, फल आदि सभी कुछ लेने के लिए कहा जाता है।
  • खाने में परहेज: बाकी परहेज CKD 1 और 2 के जैसा ही होगा। खट्टे फलों, केले आदि की सख्त मनाही हो जाती है। एक नाशपाती या सेब (80 ग्राम तक का) ले सकते हैं।
  • कितने दिनों पर टेस्ट: 1 से 2 महीनों पर

D-5 Stage
eGFR 15 एमएल/ से कम हो जाता है और क्रिएटिनिन 4-5 या उससे ज्यादा हो जाता है। मरीज को सांस लेने में भी कुछ परेशानी होने लगती है। ऐसी स्थिति में मरीज के लिए डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट जरूरी हो जाता है। यह गंभीर स्थिति है।
इनसे करें परहेज
जूस आदि पीने से: फलों का रस, कोल्ड ड्रिंक्स, चाय-कॉफी, नीबू पानी, नारियल पानी, शरबत, सोडा
फलों से: संतरा, आम, नीबू, केला, मौसमी, आडू, खुमानी आदि।
ड्राई फ्रूट्स से : मूंगफली, बादाम, खजूर, किशमिश, काजू आदि।
सब्जियों से : कमलककड़ी, मशरूम, अंकुरित मूंग आदि।

लक्षणों पर दें ध्यान
  • भूख कम लगना
  • वजन तेजी से घटना। अगर महीने में 3 से 4 किलो वजन कम होने लगे तो अलर्ट हो जाएं।
  • आंखों के नीचे, हाथों और पैरों में सूजन आना
  • खून की कमी यानी एनीमिया होना
  • यूरिन में ब्लड आना
  • नींद आने में परेशानी
  • स्किन ड्राई और खुजली
  • बार-बार पेशाब आना
  • यूरिन में झाग आना
नोट: ये लक्षण दूसरी बीमारियों के भी हो सकते हैं। इसलिए डॉक्टर से सलाह लें।

बच्चों में परेशानी ऐसे पहचानें
बच्चों में किडनी की परेशानी बहुत कम होती है। लड़कियों की तुलना में लड़कों को परेशानी ज्यादा होती है। आमतौर पर मां के गर्भ में ही परेशानी शुरू हो जाती है। गर्भ के अंदर की परेशानी अल्ट्रासाउंड में पता चल जाती है। बच्चा पैदा होने के बाद इसका इलाज फौरन करवाना चाहिए। जन्म लेने के बाद बच्चों (मेल बेबी) के पेशाब की धार पर जरूर गौर करना चाहिए।
  • अगर पेशाब बूंद-बूंद के रूप में आ रहा है या पेशाब की धार नहीं बन पा रही है तो फौरन ही किसी बाल रोग विशेषज्ञ से मिलें। उनके सुझाव पर किसी नेफ्रॉलजिस्ट को दिखाएं।
  • मां का दूध और बाद में घर का बना सामान्य खाना दें।
नेफ्रॉलजिस्ट या यूरॉलजिस्ट: किडनी की रिपोर्ट सही न हो, किडनी की वजह से बीपी बढ़ जाए, यूरिन में प्रोटीन आए, क्रिएटिनिन बढ़ जाए तो सबसे पहले नेफ्रॉलजिस्ट से मिलें। डायलिसिस भी अमूमन नेफ्रॉलजिस्ट ही देखते हैं। वहीं यूरॉलजिस्ट का काम सर्जरी से जुड़ा होता है। किडनी, यूरिथ्रा आदि में ऑपरेशन की जरूरत होती है तो यूरॉलजिस्ट करते हैं।


गुर्दे का दम देखने के लिए जरूरी जांच
किडनी की खराबी लोग तब मानते हैं जब क्रिएटिनिन का स्तर बढ़ जाता है, जबकि क्रिएटिनिन बढ़ने के बाद किडनी खराबी की ओर कदम बढ़ा चुकी होती है।

नॉर्मल यूरिन टेस्ट
यह किडनी की शुरुआती जांच है। इसमें यह पता चल जाता है कि पेशाब में ऐल्ब्यूमन प्रोटीन की मात्रा कितनी है। अगर ज्यादा है (300 से) तो डॉक्टर से जरूर संपर्क करना चाहिए। पेशाब में ज्यादा प्रोटीन आने का मतलब है कि किडनी सही ढंग से प्रोटीन को फिल्टर नहीं कर पा रही है।
  • खर्च: 100 से 120 रुपये,
  • कैसे: यूरिन से
  • कितने दिनों पर कराएं: अगर कोई समस्या नहीं है तो साल में 1 बार काफी है। परेशानी होने पर डॉक्टर की सलाह से कराएं। ऐसे लोगों को 6 महीने में 1 बार जांच करानी चाहिए।
माइक्रो ऐल्ब्यूमन टेस्ट
इससे यह पता चल जाता है कि यूरिन में ऐल्ब्यूमन प्रोटीन की थोड़ी मात्रा में भी आ रहा है या नहीं। अगर थोड़ी मात्रा में आ रहा है तो इलाज की जरूरत है। यहां से किडनी में आगे आने वाली खराबी रोकी जा सकती है। दरअसल, ऐसी स्थिति तब आती है जब किडनी ऐल्ब्यूमन प्रोटीन के बड़े पार्टिकल को तो रोक लेती है लेकिन छोटे को नहीं।
  • नॉर्मल: 30 से कम, माइक्रो ऐल्ब्यूमन: 30 से 300
  • ऐल्ब्यूमन: 300 से ज्यादा (इसके बाद क्रिएटिनिन लेवल बढ़ना शुरू हो सकता है।)
  • खर्च: 550 रुपये, कैसे: यूरिन से
किडनी फंक्शन टेस्ट
KFT यानी किडनी फंक्शन टेस्ट। किडनी की असल स्थिति पता करने के लिए यह जांच सबसे कारगर है। इसमें किडनी से छनने वाली ज्यादातर चीजों के बारे में पता चल जाता है। प्रोटीन का पता इसमें भी चलता है। इसमें क्रिएटिनिन, यूरिक एसिड और यूरिया का स्तर देखा जाता है।
  • खर्च: 700 से 900 रुपये, कैसे: ब्लड से
क्या है नॉर्मल रेंज
  • सीरम क्रिएटिनिन: 0.8 से 1.2 mg/dl
  • अगर क्रिएटिनिन 5 से ऊपर चला जाए तो डॉक्टर डायलिसिस की तैयारी शुरू कर देते हैं। डॉक्टर डायलिसिस की शुरुआत करने से पहले इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि मरीज उसे झेलने के काबिल है या नहीं। अगर मरीज कमजोर दिखता है तो 5 पर और मजबूत शरीर वाला है तो 7 या 8 क्रिएटिनिन पर।

यह है किडनी का काम
  • शरीर में 2 किडनी होती हैं। लेफ्ट साइड की किडनी थोड़ी बड़ी होती है। किडनी 10 से 11cm की होती हैं।
  • हमें हर दिन ढाई से तीन लीटर तक लिक्विड लेना चाहिए। इसमें पानी, दूध, चाय, कॉफी और सब्जियों आदि से मिलने वाला लिक्विड शामिल है।
  • किडनी शरीर से यूरिन फिल्टर करती है।
  • कोई सेहतमंद शख्स एक दिन में 4 से 5 बार यूरिन जाता है। रात में सोने के बाद नहीं जाता या ज्यादा से ज्यादा 1 बार जाता है।
  • हमारा शरीर औसतन एक से डेढ लीटर यूरिन हर दिन शरीर से बाहर निकलता है।
  • किडनी में खराबी होगी तो पूरी तरह से छानने का काम नहीं कर पाएगी। इससे सबसे पहले आंखों के आसपास और पैरों में सूजन आएगी।
  • यह सोचना भी गलत है कि पानी बहुत ज्यादा पीने से किडनी दुरुस्त रहती है। पानी उतना ही पीना चाहिए, जितनी प्यास हो।

ऐसे दुरुस्त रखें किडनी को
  • डिटॉक्सिफिकेशन से आप किडनी को हमेशा हेल्दी रख सकते हैं। इसकी शुरुआत रोज सुबह करें।
  • डिटॉक्स वॉटर से दिन की शुरुआत करना फायदेमंद रहता है। यह शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर निकालता है। इसके लिए रात में शीशे के जग में पानी भरकर उसमें नीबू के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर डाल दें। सुबह छानने के बाद एक लीटर बोतल में उसे भर लें और दिन भर पिएं। पीतल या तांबे के बर्तन में कभी भी नीबू वाला पानी न डालें।
  • सुबह उठने के बाद एक-दो गिलास नॉर्मल पानी लें।
  • नीबू पानी (1 गिलास नॉर्मल या गुनगुने पानी में आधा नीबू निचोड़ें) भी ले सकते हैं।
  • शरीर को डिटॉक्स करने के लिए पानी और हल्दी का कॉम्बिनेशन शानदार है। हल्दी में करक्यूमिन (Curcumin) होता है, जो शरीर को डिटॉक्स करने में काफी मददगार है। एक गिलास पानी उबालें और उसमें एक चम्मच हल्दी पाउडर या कच्ची हल्दी बारीक कटी हुई 5 से 10 ग्राम डालें। इसे 1 से 2 मिनट के लिए उबाल लें और छानकर पी लें।

हर दिन हो बैलंस्ड डाइट
किडनी की सेहत दुरुस्त रहे इसके लिए यह जरूरी है कि शरीर का वजन भी काबू में रहे। पोटैशियम और सोडियम जैसे न्यूट्रिएंट्स की मात्रा भी शरीर में ज्यादा न बढ़े।
ये भी हों जरूर शामिल
  • मौसमी फल और हरी सब्जियों का सेवन कच्चे रूप में करें। अगर सब्जियों को कच्चा खाना मुमकिन न हो तो उबालकर या कम तेल में पकाकर खाएं।
  • मैग्निशियम किडनी के लिए अच्छा है। यह हरी सब्जियों में मिलता है। भिंडी, लौकी, टमाटर, खीरा आदि खाएं।
  • ऐसी कोई भी खाने की चीज न खाएं, जिसमें केमिकल मिलाया गया हो, न खाएं। मसलन: पैक्ड फूड आइटम्स।
  • अंगूर खाएं। यह शरीर में मौजूद फालतू यूरिक एसिड को बाहर निकालता है।
  • खाने में नमक की मात्रा कम करें। हर दिन एक चम्मच से ज्यादा नहीं।
  • अगर किडनी की शुरुआती समस्या है तो दाल, बींस आदि खाएं, लेकिन इनके अलावा प्रोटीन वाली दूसरी चीजें कम खाएं।
  • किडनी को हेल्दी रखने के लिए नारियल पानी बेहतरीन है, लेकिन जब किडनी खराब होने लगती है तो इसे पहले कम और बाद में बंद करना पड़ता है। नारियल पानी में सोडियम और पोटैशियम की मात्रा ज्यादा होती है, जिसे छानना किडनी के लिए मुश्किल हो जाता है।

यह है बैलंस्ड थाली
  • आपकी थाली में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, फैट्स और फाइबर की सही मात्रा का होना जरूरी है। यह अच्छे सोर्स से भी आना चाहिए इसका भी ध्यान रखना चाहिए।
  • प्रोटीन के लिए अच्छे सोर्स: दूध, अंकुरित चना, मूंग, पनीर, दालें, सोयाबीन, मछली, चिकन और अंडे।
  • कितनी मात्रा: एक औसत युवा के लिए 50 से 60 ग्राम हर दिन। 2 कटोरी दाल, 50 ग्राम पनीर, एक बाउल अंकुरित चना और मूंग लेने से पूर्ति हो जाती है।
  • कार्बोहाइड्रेट के अच्छे सोर्स: सब्जियों, फलों, समूचे अनाज को इसका बेहतरीन सोर्स माना जाता है। वहीं चीनी, मैदा आदि का सेवन शरीर को नुकसान पहुंचाता है।
  • कितनी मात्रा: हर दिन 225 से 250 ग्राम। एक बाउल चावल, 2 से 3 चपाती और दूसरे सोर्स से पूर्ति हो जाती है। फैट के अच्छे सोर्स: शरीर के लिए यह भी बहुत जरूरी है। विटामिन A,D,E और K के पाचन के लिए हर दिन कुछ मात्रा में फैट खाना भी जरूरी है। अगर फैट का सोर्स हेल्दी है तो इससे अच्छा कुछ भी नहीं। जैसे, वनस्पति तेल (ओलिव, सनफ्लावर, सरसों, सोया आदि), बादाम और मछलियों में मौजूद तेल। कितनी मात्रा: 45 से 75 ग्राम।
नोट: यहां खाने-पीने और जांच आदि के बारे में जो भी जानकारी दी गई, वह सिर्फ समझाने के लिए है। किडनी की बीमारी होने पर अपने डॉक्टर की सलाह को ही मानें।

किडनी को हेल्दी रखने के लिए ज्यादा जानकारी चाहिए तो यू-ट्यूब विडियो देखें और किताब भी पढ़ सकते हैं:
यू-ट्यूब विडियो
tinyurl.com/mwe42e22
tinyurl.com/3dwunr8d

किताबें
- किडनी आहार
लेखक: Dr. Asha Harish Khubnani
कीमत: 229 रुपये

- Stopping Kidney Disease
लेखक: Lee Hull,
कीमत: 449 रुपये
- INDIAN DIETS IN KIDNEY DISEASES
लेखक: Dr. Suneeti Ashwinikumar Khandekar, Dr. Rachana Jasani,
कीमत: 499 रुपये
नोट: ये किताबें ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं। कीमतों में फर्क मुमकिन है।


  • डॉ. रविन्द्र सिंह अहलावत, हेड नेफ्रॉलजी, MAMCडॉ. अरविंद लाल, एग्जिक्युटिव चेयरमैन, डॉ. लाल पैथ लैब्स
  • आचार्य मोहन गुप्ता, सीनियर नेचरोपैथ
  • डॉ. शिखा शर्मा, न्यूट्री-डाइट एक्सपर्ट
  • डॉ. पूनम साहनी, डायरेक्टर-लैब, सरल डायग्नोस्टिक्स
  • डॉ. संजीव सक्सेना, हेड नेफ्रॉलजी, PSRI हॉस्पिटल
  • डॉ. प्रसन्ना भट्ट, सीनियर कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक्स
  • डॉ. प्रशांत जैन, सीनियर यूरॉलजिस्ट
  • डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन

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अगर सेहत को रखना है चुस्त औैर दुरुस्त तो जीवन में अपनाएं पांच सूत्र, बड़ी बीमारियों से डट कर करेंगे मुकाबला

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शरीर को चुस्त-दुरुस्त और तंदुरुस्त रखने के लिए सिर्फ व्यायाम ही नहीं, खाने-पीने पर ध्यान देना भी जरूरी है। इसके लिए 5 चीजों को जीवन में जरूर अपनाएं। इनकी मदद से एक पंजा तैयार होगा जो कोरोना ही नहीं, इसके बाद आने वाले वायरस और बैक्टीरिया से भी लड़ने में सक्षम होगा। इन 5 चीजों के बारे में देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

रुटीन में लेकर आएं 5 बदलाव

1. पर्याप्त नींद लें, स्क्रीन कम देखें
सेहतमंद रहने के लिए नींद सबसे अहम चीज है। अगर नींद पूरी न हो तो उस दिन हम सुस्त हो जाते हैं। यही जब लगातार हो तो हम सेहतमंद नहीं रह पाते। इसलिए 7 से 8 घंटे की नींद बहुत जरूरी है। रात को 10 से 11 के बीच जरूर सो जाना चाहिए ताकि सुबह आराम से 5 से 6 के बीच नींद खुल जाए। इसके अलावा अच्छी नींद के लिए शरीर का थकना बहुत जरूरी है। आजकल देर रात तक जगना और काम करना फैशन बन गया है। सच तो यह है कि देर रात तक जागना हमारी मजबूरी होनी चाहिए न कि फैशन। हमारा शरीर रात में सोने और दिन में जगने के लिए बना है। जिनकी ड्यूटी रात की होती है, उनकी तो मजबूरी हो सकती है। लेकिन जो दिन में काम कर सकते हैं, पढ़ सकते हैं उन्हें रात में नहीं जागना चाहिए। एक तो रात में जागने से शरीर का रुटीन खराब होता है, बिना वजह तनाव होने लगता है क्योंकि दिन में लोग काम करते हैं तो शोर की वजह से गहरी नींद आ नहीं पाती। इसके अलावा हम जब रात में जागते हैं तो कुछ न कुछ खाते रहते हैं। वहीं देर रात तक मोबाइल, लैपटॉप आदि देखने से भी नींद खराब होती है। स्क्रीन की ब्लू लाइट हमारी नींद उड़ा देती है। इसलिए सोने से कम से कम 1 घंटा पहले ही मोबाइल से दूर हो जाएं।

2. योग और एक्सरसाइज करें
3 साल से बड़ा कोई भी बच्चा योगसन कर सकता है। 12 साल की उम्र तक हल्के योगासन और प्राणायाम जैसे वृक्षासन व शीतकारी ही करना चाहिए।
n रोजाना 5 मिनट डीप ब्रीदिंग, 10 मिनट अनुलोम-विलोम और 5 मिनट शीतली प्राणायाम करें। शीतली प्राणायाम खासतौर पर मन को शांत रखता है और ब्लड प्रेशर को मेंटेन करता है। टाइम पर निगाह रखने के लिए Click Time, Toggl, Time Doctor जैसे मोबाइल ऐप की मदद ले सकते हैं।
n रोजाना 15 मिनट के लिए मेडिटेशन करें। शवासन भी मन को शांत करके दिल की सेहत सुधारता है।

सूर्य नमस्कार: सूर्य नमस्कार को भी योगासन के समय में ही करना है। इसे मैराथन आसन कह सकते हैं। इसलिए सूर्य नमस्कार शुरुआत में 1 से 2 बार करना चाहिए। सूर्य नमस्कार में कुल 8 आसन होते हैं जिन्हें 12 स्टेप में किया जाता है। सूर्य नमस्कार को शुरुआती 3 से 4 महीनों में 2 बार ही करना सही है। फिर इसकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ाएं। अगर कोई शख्स 3 साल से ज्यादा समय से सूर्य नमस्कार कर रहा है तो 9 बार तक कर सकता है, लेकिन अपनी क्षमता देखने के बाद। योग में सबकुछ आसानी से होना चाहिए, जबर्दस्ती कुछ भी नहीं।

एक्सरसाइज: हर दिन 20 से 30 मिनट की ब्रिस्क वॉक जरूरी है। ब्रिस्क वॉक का मतलब है- 1 मिनट में लगभग 80 से 100 कदम चलना।

3. सही तरीके से सांस लें
जब हम सांस अंदर खींचते हैं तो हमारा पेट और छाती बाहर की ओर निकलना चाहिए। इसी तरह जब हम सांस छोड़ते हैं तो पेट और छाती अंदर की ओर आनी चाहिए। आमतौर पर हम ऐसा नहीं करते, ठीक इसका उलटा होता है। इससे भी सांसों से जुड़ी परेशानी होती है।
हर सांस में ये 4 चीजें यानी SSLD का होना जरूरी है:
1. Smooth: सांस हमेशा आराम से लें।
2. Slow: धीमे लें।
3. Long: लंबी सांस लें।
4. Deep: सांस गहरी हो।

4.दिनभर की योजना बनाएं
समय का सही प्रबंधन जरूरी है। रात को सोने से पहले अगले दिन की योजना बना लें और उस पर अमल करें। इसके कई फायदे हैं। हम दिनभर के सभी जरूरी काम के लिए समय का वितरण सही तरीके से कर पाते हैं। इससे काम भी बेहतर तरीके से होता है। हमें यह पता होता है कि किस काम पर ज्यादा वक्त लगाना है और किस पर कम। नतीजा, बिना वजह तनाव भी नहीं होता।

5. घर में दफ्तर न घुसाएं
ऑफिस का काम ऑफिस में ही करना हमेशा से ही एक सही फैसला रहा है। बात चाहे कोरोना से पहले की हो या फिर कोरोना के दौरान लॉकडाउन की। जब भी किसी ने ऑफिस के काम को घर तक लाया है, ज्यादातर मामलों में तनाव का माहौल ही बना है। लॉकडाउन के दौरान घर से काम करना लोगों की मजबूरी थी। इसलिए घरों में तनाव के मामले भी काफी आने लगे थे। अब ज्यादातर ऑफिसों ने सामान्य काम करना शुरू कर दिया है। फिर भी कुछ ऑफिसों में 'वर्क फ्रॉम होम' ही चल रहा है। यह कोशिश होनी चाहिए कि ऑफिस के काम को ऑफिस के समय में ही खत्म कर दें। घर लाकर हम अपने पारिवारिक माहौल को खराब न करें। कई बार ऑफिस की टेंशन को हम अपने घर के सदस्यों पर निकालने लगते हैं।

2. पीते हैं तो पिएं 5 शानदार ड्रिंक्स
गर्मी ने भी दस्तक दे दी है। इस मौसम की अपनी चुनौतियां हैं। बहुत ज्यादा पसीना निकलने से डिहाइड्रेशन की समस्या होना आम बात है। इसके अलावा लू लगने के मामले भी बहुत ज्यादा होते हैं। ऐसे में कुछ खास ड्रिंक्स को शामिल करके इन परेशानियों से काफी हद तक निजात मिल जाती है। इतना ही नहीं, ये ड्रिंक्स शरीर में नमक, पानी समेत कई मिनरल और विटामिन को भी सही मात्रा में बनाकर रखते हैं। इससे शरीर की इम्यूनिटी भी सही रहती है।


1. पानी
सादा पानी शरीर के लिए बेहद जरूरी है। रोज 8-10 गिलास सादा पानी जरूर पिएं। सुबह उठते ही 1-2 गिलास सादा पानी पीना बेहद फायदेमंद है। मन करे तो गुनगुने पानी में आधा नीबू निचोड़कर पी सकते हैं। चाय-कॉफी घटाएं। खाना खाने के फौरन बाद पानी न पिएं। 1 घंटे बाद ही पिएं।

2. ठंडाई
ठंडाई में बादाम, सौंफ, गुलाब की पत्तियां, मगज और खस के बीज आदि होते हैं। यह ताजगी और एनर्जी देती है। अगर शुगर लेवल ठीक है तो यह एक अच्छा पेय है। बच्चों के लिए यह खासतौर पर अच्छी होती है। यह लू और नकसीर (नाक से खून आने) जैसी तकलीफों से भी बचाव करती है।

3. आम पना और बेल का शर्बत
आम पना गर्मियों का खास ड्रिंक है। कच्चे आम की तासीर ठंडी होती है। स्वाद से भरपूर आम पना विटामिन-सी का अच्छा सोर्स है। यह स्किन और पाचन, दोनों के लिए अच्छा है। इसे लंबे समय तक रखा जा सकता है।

बेल का शर्बत: बेल का शर्बत एसिडिटी और कब्ज, दोनों में असरदार है। कच्चे बेल का शरबत लूज मोशन को रोकता है तो पके बेल का शर्बत कब्ज को ठीक करता है। यह शरीर को ठंडा भी रखता है।

4. नीबू-पुदीना शर्बत और जलजीरा
नीबू-पुदीना का शर्बत आपके दिल और दिमाग, दोनों को ठंडक पहुंचाएगा। इसे वैसे तो आप ताजा बनाकर भी पी सकते हैं लेकिन अगर कंसंट्रेट बनाकर रख लेंगे तो जब मर्जी हो तब इस्तेमाल कर सकते हैं।

जलजीरा: गर्मी के मौसम में ताजा और ठंडा जल जीरा बनाकर पिएं। जलजीरा बहुत ही स्वादिष्ट होता है, ठंडक और ताजगी देने के साथ पाचन में भी मदद करता है।

5. छाछ/ नमकीन सत्तू
छाछ में प्रोटीन खूब होते हें। प्रोटीन शरीर के टिश्यूज को हुए नुकसान की भरपाई करता है। गर्मियों में खूब छाछ पिएं।

कितनी बनेगी: 2 गिलास
कितना वक्त लगेगा: 2 मिनट
सामग्री: एक कटोरी दही, काला नमक, भुना जीरा

बनाने का तरीका: किसी गहरे बर्तन में दही डालकर उसे रई से मथ लें। मिक्सर में डालकर भी चला सकते हैं। ज्यादा न चलाएं, वरना मक्खन बनने लगेगा। फिर इसमें भूना जीरा, काला नमक डाल दें। चाहें तो धनिया या पुदीना भी डाल सकते हैं। अगर अलग स्वाद चाहते हैं तो इसमें सरसों का तड़का भी लगा सकते हैं। इसके अलावा, एक दिए तो गैस पर गर्म करके उसमें थोड़ा सरसों का तेल या देसी घी डाल लें। फिर इस दिए तो छाछ में डुबो दें। छाछ में सोंधी खुशबू आएगी। छाछ को अलग स्वाद देने के लिए उसमें तुलसी या लेमनग्रास भी डाल सकते हैं।

नोट: आजकल मार्केट में पैक्ड छाछ/लस्सी भी मिलती है। इसे खरीदते वक्त एक्सपायरी डेट जरूर चेक करें और देखें कि पैकेट अच्छी तरह बंद हो।

नमकीन सत्तू
कितना बनेगा: 2 छोटे गिलास
कितना वक्त लगेगा: 8 मिनट
सामग्री: चने का सत्तू: आधा कप, पुदीने के पत्ते: 10, नीबू का रस: 2 छोटे चम्मच, हरी मिर्च: आधी, भुना जीरा: आधा छोटा चम्मच, काला नमक: आधा छोटा चम्मच, सादा नमक: एक-चौथाई छोटा चम्मच। इन सभी सामग्री को एक गिलास से कुछ कम पानी में अच्छी तरह मिला दें और पी लें।
नोट: ऊपर बताए हुए ड्रिंक्स में से 2 ड्रिंक्स हर दिन पी सकते हैं। अगर चाहें तो एक हफ्ते में इन्हें बदल-बदल कर पिएं। जहां तक इनकी मात्रा की बात है तो हर दिन एक-एक गिलास 2 ड्रिंक्स पिएं। ये आपको गर्मी से राहत देगा और लू से भी बचाएगा।

3. इम्यूनिटी के लिए लें 5 खास चीजें
1. आंवला-नीबू
बीमारियों से बचाव और बीमारी होने पर भी इस विटामिन-सी की जरूरत होती है। यह शरीर के लिए सुरक्षा कवच तैयार करता है। यह हड्डियों, त्वचा और रक्त नलिकाओं के लिए जरूरी है। लेकिन हमारा शरीर इसे जमा करके नहीं रख सकता। इसलिए हर शख्स को हर दिन 65 से 90 एमजी विटामिन-सी जरूर लेना चाहिए।

फायदे
- यह एंटी-ऑक्सीडेंट के रूप में काम करते हुए हानिकारक चीजों को खत्म करता है।
- आरबीसी (लाल रक्त कोशिकाओं) की संख्या में इजाफा करता है।
- हमारी स्किन के लिए फायदेमंद है।
- हमें दिनभर ऐक्टिव रखता है।
- विटामिन-C का सबसे अच्छा भंडार आंवला है। अगर सप्लिमेंट्स के तौर पर विटामिन-सी गोली लेंगे तो यह शरीर में थोड़ा कम जज्ब होता है। रोजाना एक आंवला बड़े, बुजुर्ग या प्रेग्नेंट महिलाएं ले सकती हैं। बच्चों को भी एक आंवला रोजाना दिया जा सकता है। 5 साल से छोटे बच्चों को आंवले का मुरब्बा दे सकते हैं। कैंडी, मुरब्बा या आंवले का पाउडर खाने से हमें कच्चे आंवले की तुलना में 60 से 70 फीसदी विटामिन-सी मिलता है। पपीता, अमरूद, पका हुआ आम, पालक और हरी सब्जियां भी विटामिन-सी का बेहतर विकल्प हैं।

2. दालें
साबुत दालें
इसमें छिलके समेत पूरे दाने होते हैं।
फायदे: इन्हें अंकुरित करके बिना पकाए भी खा सकते हैं। अगर दाल पकाकर खाई जाए, तब भी इनसे भरपूर फाइबर मिलता है। साथ ही प्रोटीन की अच्छी मात्रा, विटामिन-ए, बी, सी, ई, कई मिनरल, पोटैशियम, आयरन, कैल्शियम आदि भी मिलते हैं।

नुकसान:
जिनका हाजमा कमजोर हो या फिर जिन्हें दूसरी वजह से छिलके वाली दाल न पचती हो, उन्हें गैस, अपच की परेशानी हो सकती है। साबुत दालें गलाने में ज्यादा वक्त लगता है। कई लोगों को इसका स्वाद अच्छा नहीं लगता।

छिलके वाली दालें
2 से 4 भागों में टूटी हुई, लेकिन छिलके भी साथ में मौजूद होते हैं।

फायदे: बीज से दाल बनाते समय इनके छिलके 10 से 20 फीसदी तक कम हो जाते हैं। जिन लोगों को साबुत दालें खाने से परेशानी होती हो, वे छिलके वाली दालें खाकर देख सकते हैं। साबुत दालों की तुलना में इन्हें पचाना आसान होता है। इनमें भी पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, विटामिन और मिनरल मिलते हैं। कई लोगों को इनका स्वाद भी साबुत दालों की तुलना में अच्छा लगता है।

नुकसान: इसमें साबुत दालों की तुलना में विटामिन और मिनरल कम मिलते हैं।

कब, कौन-सी, कितनी खाएं दाल
- दालें हमेशा दिन के खाने में लेनी चाहिए। उस समय पेट की अग्नि तेज होती है और दालें पचाना भी आसान होता है। रात में दाल खानी है तो आधी मात्रा में लें। क्योंकि उस समय पेट की अग्नि मंद होती है।
- आयुर्वेद में मूंग की दाल को हर दिन खाई जा सकने वाली दाल बताया गया है। जो शाकाहारी हैं उनके लिए दालें और दूध ही प्रोटीन के बेहतरीन स्रोत हैं। इस बात पर भी ध्यान दें कि पनीर पचाने के लिए शरीर की पाचन क्षमता ज्यादा मजबूत होनी चाहिए जबकि दालों के लिए ऐसा होना जरूरी नहीं है। कुलथी दाल को भी हफ्ते में एक बार जरूर लेना चाहिए।

3. ड्राई फ्रूट्स
ड्राई फ्रूट्स में जिंक की मात्रा काफी ज्यादा होती है। जिंक हमारी इम्यूनिटी बढ़ाता है। इसलिए हमारे लिए भरपूर जिंक लेना बहुत जरूरी है। शरीर में कोई टूट-फूट हुई हो तो शरीर में जिंक की मौजूदगी से यह जल्दी ठीक होती है। जल्दी-जल्दी बीमार होने वाले लोगों को भी जिंक की मात्रा दिया जाए तो उनकी सेहत सुधरने लगती है। इसे रोजाना के खाने में शामिल करना चाहिए। रोज कुल मिलाकर एक मुट्ठी ड्राई फ्रूट्स खाएं जैसे रातभर भीगे हुए बादाम, रोस्टेड मूंगफली, अखरोट आदि।

ये 5 ड्राई फ्रूट्स खा सकते हैं:
1. मूंगफली
कितनी मात्रा: 1 मुट्ठी रोस्टेड
2. बादाम
रात में पानी में भिगो दें। सुबह छिलका उतारकर खाएं।
कितनी मात्रा: 5 से 7
3.भुने चने
कितनी मात्रा: दो मुट्ठी
4. भुना मखाना
कितनी मात्रा: एक बाउल
5. अखरोट
कितनी मात्रा: 2 से 3
इनके अलावा कुछ बीज जैसे- कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज, चिया सीड्स हर दिन एक मुट्ठी खा सकते हैं।




4. फल-सब्जियां
खानें में 7 रंग हों। डाइट और स्वाद दोनों का ख्याल रखें। यह जरूरी नहीं है कि हेल्दी खाना बेस्वाद हो।
हरा रंग: पत्ते वाली सब्जियां और दूसरी हरी सब्जियां लौकी, तौरी, कद्दू, ब्रोकली, साग पालक, पत्ता गोभी, अमरूद आदि। ये सूजन घटाने में मदद करती हैं। इसलिए हरी सब्जियां जरूर खानी चाहिए।

पीला और संतरी रंग:
केला, संतरा, नीबू, पपीता, बेल, गाजर आदि।

नीला और बैंगनी रंग: बैंगन, चुकंदर, पत्ता गोभी बैंगनी, बैंगनी रंग के अंगूर, जामुन, फालसे, अनार।
गहरा लाल: शकरकंदी, टमाटर।

सफेद और भूरा: प्याज, मूली, लहसुन, गोभी, शलगम। इन सभी रंगों की चीजें पोषक तत्वों से युक्त हैं। फल-सब्जियां मौसमी ही खाएं और आसपास के इलाके में उगी हों।

नोट : यहां बताई गई सब्जियों और फलों के अलावा इन रंगों की और भी चीजें हैं जो खाई जा सकती हैं। अगर दिन के 3 खानों में 1 खाना सिर्फ फल-सब्जी का हो तो बेहतर।

5. धूप से विटामिन-D लें
वैक्सीनेशन के अलावा एक इम्यूनिटी हमें पैरेंट्स से जींस के रूप में मिलती है और दूसरी लाइफस्टाइल से। खानपान और एक्सरसाइज से हम इम्यूनिटी बढ़ा सकते हैं। हमें रोजाना 2000 IU विटामिन-डी की जरूरत होती है। यह बैक्टीरिया और वायरस को मारने में मदद करता है। इसलिए कोई शख्स अगर सख्त बीमार हो तो उसे या ऐसी खिड़की वाला कमरा मिले जहां भरपूर धूप आती हो। विटामिन-डी का 80 फीसदी हिस्सा धूप से मिलता है, जबकि डाइट से 20 फीसदी।

ऐसे लें हर दिन धूप
शरीर में जहां भी कोई परेशानी देखी जाती है, उसके पीछे एक वजह विटामिन-डी की कमी होती है। इसलिए जरूरी है कि हम जाड़ों में हर दिन सुबह 11 से 2 बजे तक 35 से 40 मिनट के लिए और गर्मियों में सुबह 8 से 11 बजे के बीच 30 से 35 मिनट के लिए धूप में जरूर बैठें।
धूप लेने के दौरान शरीर जितना खुला रख सकते हैं, उतना रखें। इस बात का भी ध्यान रखें कि धूप और शरीर के बीच में कोई पारदर्शी चीज भी न हो, जैसे शीशा या प्लास्टिक। अगर ऐसी चीजों से धूप छनकर आएगी तो शरीर के लिए विटामिन- डी का निर्माण नहीं हो पाएगा।

4. मन की सेहत: जरूरी 5 टिप्स
1. स्ट्रेस पर काबू करें: समस्या स्ट्रेस से शुरू होती है, उसका हल न होने पर वह आगे बढ़कर चिंता में बदल जाती है। लगातार चिंता की वजह से ही कोई शख्स डिप्रेशन में चला जाता है। हर इंसान स्ट्रेस और चिंता से गुजरता है। इस बात को समझना चाहिए कि जब तक होश है और सांसें चल रही हैं, इनसे भाग नहीं सकते। हां, इन्हें मैनेज कर सकते हैं।
2. संगीत आदि का सहारा लें: जब तक स्ट्रेस और चिंता हल्के लेवल की हो तो इसका हल योग, एक्सरसाइज और मधुर संगीत या टूर आदि से खोज सकते हैं। अपने करीबियों से दिल की बातें शेयर करना। जब बातें होती हैं तो मन हल्का रहता है। अगर कोई अच्छी बात हुई है, चाहे वह छोटी-सी ही बात क्यों न हो, उसे करीबी 4-5 लोगों से शेयर करें यानी हंसना-मुस्कुराना बढ़ाएं।
3. भावनाओं को बहने दें: अगर कोई शख्स किसी दुख या सदमा की वजह से रोना चाहता है तो उसे रोने दें। उसे चीखने-चिल्लाने दें ताकि उसके अंदर की भड़ास निकले। ध्यान रखना होगा कि वह खुद को नुकसान न पहुंचाए और न दूसरों को।
4. डिप्रेशन को गंभीरता से लें: किसी दुख या चिंता की वजह से लगातार 2 हफ्ते यानी 14 दिनों तक अपने सामान्य रुटीन पर न लौटें, खाना-पीना सामान्य न हो, किसी भी काम में मन न लगे तो समझ लें, डॉक्टर की जरूरत है।
5. डॉक्टर के पास जाएं: सबसे पहले अपने फैमिली फिजिशन के पास जाना चाहिए। वही बताएंगे कि मरीज को सायकॉलजिस्ट की जरूरत है या सायकाइट्रिस्ट की।


5. ये 5 चीजें बंद करें या करें कम
1 . स्मोकिंग, तंबाकू और शराब: सिगरेट, बीड़ी, गुटखा और शराब जैसी चीजों का सेवन करने से भले ही तात्कालिक सुकून मिलता हो, लेकिन इनका लंबे समय में बहुत ज्यादा नुकसान है। ये सेहत को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
2. जंक फूड: बच्चों के साथ बड़ों को भी भाता है पित्जा, बर्गर, नूडल्स, समोसा आदि। लेकिन ये हानिकारक हैं। एक तरफ जहां ये हमारे पाचनतंत्र को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, वहीं ये शरीर की इम्यूनिटी भी कमजोर करती हैं। इन्हें बार-बार खाने से मोटापा भी बढ़ता है, खासकर पेट पर चर्बी जमा हो जाती है। आगे चलकर यह भी बीपी और शुगर की परेशानी को बढ़ाने का ही काम करती है।
3. खराब तेल और रिफाइंड का इस्तेमाल: हर दिन के खाने में तेल की क्वॉलिटी अच्छी (जैसे: तिल का तेल, सरसों आदि) होनी चाहिए, साथ ही रिफाइंड से दूरी रहे तो बेहतर है। खराब तेल (पाम ऑयल आदि) और रिफाइंड, दोनों ही चीजें लिवर के लिए अच्छे नहीं होते। इसलिए अगर अच्छे तेल महंगी भी हो तो उसी का उपयोग करना सही है, लेकिन कम मात्रा में।
4. दवाओं का रुटीन तोड़ना: जब दवाओं की वजह से लाइफस्टाइल बीमारियां जैसे शुगर, बीपी आदि काबू में आ जाती हैं तो कई लोग दवा लेना बंद कर देते हैं। यह सही नहीं है। इससे परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है।
5. डॉक्टर को दिखाए बिना दवा लेना: कई बार खुद को या केमिस्ट को डॉक्टर मानकर दवा ले लेते हैं। कई लोग तो पेनकिलर तक खुद से बार-बार ले लेते हैं।




एक्सपर्ट पैनल
1. डॉ. यतीश अग्रवाल
डीन, मेडिकल,
IP यूनिवर्सिटी

2. डॉ. समीर पारिख
सीनियर सायकायट्रिस्ट

3. डॉ. कैलाशनाथ सिंगला
सीनियर कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेरॉलजिस्ट

4. डॉ. महेश व्यास
डीन, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद

5. ईशी खोसला
सीनियर डाइटिशन

6. नीलांजना सिंह
सीनियर डाइटिशन

7. डॉ. सत्या एन. डोरनाला
वैद्य-साइंटिस्ट फेलो

8. सुरक्षित गोस्वामी
जाने-माने योग गुरु


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World Water Day: शरीर के लिए कितना जरूरी है जल, जानिए कब, कितना और किस प्रकार पिया जाए पानी

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धरती पर पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। शायद ही कोई ऐसा जीवित प्राणी और उसकी कोशिकाएं हों, जिसमें पानी की मौजूदगी न हो। सीधे कहें तो हम 50 फीसदी से ज्यादा पानी ही हैं। इसलिए पानी का शरीर में सही अनुपात में होना जरूरी है। न कम हो और न ज्यादा। कब, कितना और किस प्रकार पानी पिया जाए कि वह शरीर में लिए लाभदायक रहे। इस बारे एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं राजेश भारती

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पौष्टिक खाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है साफ पानी पीना है। अगर पानी तय मात्रा से कम या ज्यादा और गलत समय पर पिया जाए तो यह फायदे की जगह नुकसान ही देता है। वहीं मौसम के हिसाब से भी पानी पीना जरूरी है। पानी की मात्रा कम या ज्यादा की जा सकती है। पानी पीने से हमारे शरीर का मेटाबॉलिजम सही रहता है। अगर मेटाबॉलिजम सही रहेगा तो इससे पाचन सही रहेगा। पाचन सही रहने से बहुत सारी बीमारियां दूर रहती हैं। साथ ही पानी पीते रहने से आप ज्यादा खाने की आदत से खुद को दूर रख सकते हैं।

वहीं पानी हमारे शरीर में न्यूट्रीएंट्स को ले जाने काम करता है और हानिकारक टॉक्सिंस को भी बाहर निकालता है। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि लोगों को सुबह की शुरुआत चाय की जगह एक गिलास पानी पीकर करनी चाहिए।

रोजाना कितना पानी है जरूरी
रोजाना 2 से 3 लीटर सादा पानी जरूर पीना चाहिए। हालांकि यह मौसम और शरीर के आकार पर भी निर्भर करता है। गर्मी में ज्यादा पसीना निकलता है। इसलिए गर्मियों में पानी पीने की मात्रा बढ़ जाती है। वहीं सर्दियों में कम पानी पिया जाता है। वहीं पानी पीने की मात्रा शारीरिक श्रम पर भी निर्भर करती है। अगर कोई शख्स ऐसा काम करता है जिससे शरीर से ज्यादा मात्रा में पसीना निकलता है तो उन्हें कुछ ज्यादा पानी पीना चाहिए। ऐसे लोगों को गर्मियों में 3 से 4 लीटर पानी पीना चाहिए।

कब पिएं
पानी पीने का कोई तय वक्त नहीं है। जब भी प्यास लगे, पानी पी लेना चाहिए। प्यास को कभी रोककर न रखें। अगर कुछ समय के लिए प्यास रोकेंगे तो प्यास बढ़ती जाएगी। ज्यादा प्यास में पानी ज्यादा पिया जाता है। इससे प्यास बुझने के साथ-साथ शरीर में लिमिट से ज्यादा पानी चला जाता है। ऐसे में किडनी को भी जरूरत से ज्यादा काम करना पड़ जाता है। इससे किडनी कमजोर हो सकती है। इसलिए जब भी प्यास लगे, पानी पी लेना चाहिए। हां, अगर कहीं ऐसी जगह फंस गए हैं जहां पानी नहीं मिल रहा है तब अलग बात है। लेकिन ऐसा बार-बार नहीं होना चाहिए।

कैसे पिएं
पानी कभी भी जल्दबाजी में नहीं पीना चाहिए। पानी हमेशा घूंट-घूंट करके आराम से पानी चाहिए। दरअसल, जब हम घूंट-घूंट करके आराम से पानी पीते हैं तो मुंह में मौजूद कुछ एंजाइम जैसे- एमाइलेज ज्यादा मात्रा में मिलकर पेट में जाते हैं। इससे पाचन शक्ति में सुधार होता है। वहीं कहा जाता है कि पानी हमेशा बैठकर पीना चाहिए। ऐसा कोई स्थाई नियम नहीं है। अपनी सुविधा के अनुसार बैठकर या खड़े होकर पानी पी सकते हैं। होना यह चाहिए कि जब भी पानी पिएं, तसल्ली से पिएं। हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स के अनुसार खड़े होकर पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे पेट के निचले हिस्से की दीवारों पर दबाव बनता है, जिससे पेट के आसपास के अंगों को बहुत नुकसान पहुंचता है।

कैसा पिएं
हमेशा सादा पानी पिएं। नगर निगम की पाइप के जरिए घरों में आना वाला पानी या वॉटर प्यूरीफायर का पानी पी सकते हैं। अगर निगम की लाइन का पानी गंदा या बदबूदार है तो बेहतर होगा कि वॉटर प्यूरीफायर का पानी पिएं। वहीं अगर घर में बोरिंग का पानी आ रहा है तो बेहतर होगा कि प्यूरीफायर लगवाएं, क्योंकि बोरिंग का पानी हार्ड और खारा होता है। सर्दियों में दिन में एक-दो बार गुनगुना पानी पी सकते हैं लेकिन गर्मियों में जब तक बहुत जरूरी जैसे- कोई दवाई लेनी हो, जुकाम आदि न हो तो गुनगुना पानी न पिएं। अब चूंकि गर्मियां आ चुकी हैं तो ऐसे में सादा पानी या मटके का पानी ही बेहतर है।

गर्मियों में फ्रिज का पानी पीने से बचें। अगर मजबूरी में पीना भी पड़े तो बहुत ज्यादा ठंडा पानी न पिएं। कई बार देखने में आता है कि बाहर से आने के बाद घर में घुसते ही लोग फ्रिज का ठंडा पानी पी लेते हैं। ऐसा हरगिज न करें। दरअसल, गर्मियों में बाहर हमारे शरीर का तापमान ज्यादा हो जाता है, ऐसे में अगर फ्रिज का ठंडा पानी पीते हैं तो शरीर का तापमान बिगड़ जाता है जिससे बुखार और जुकाम होने के साथ दूसरी बीमारी भी हो सकती हैं।

मटका है बेस्ट: एक्सपर्ट बताते हैं कि गर्मियों में मटके या सुराही का पानी पीना सबसे अच्छा होता है। दरअसल, मटके में रखा पानी प्राकृतिक तरीके से ठंडा होता है। साथ ही मिट्टी में रखे होने के कारण इसमें कुछ मिनरल्स भी मिल जाते हैं। यही नहीं, मटके का पानी नियमित रूप से पीने से शरीर का इम्यून सिस्टम बेहतर होता है। मटके के पानी में ऐल्कलाइन (क्षारीय) गुण होते हैं जो पेट की कई बीमारियों को खत्म करने में मदद करता है।

बच्चा 6 महीने का हो जाए तो दे सकते हैं पानी
अगर बच्चे की उम्र 6 महीने से कम है तो उसे पानी नहीं पिलाना चाहिए। सिर्फ मां का दूध ही उसके लिए पौष्टिक आहार होता है। मां के दूध में 80% पानी और 20% पोषक तत्व होते हैं जो बच्चे के विकास के लिए जरूरी होते हैं। 6 महीने के बाद बच्चे को दिन में 2 से 3 बार 1-1 चम्मच सादा और शुद्ध पानी पिलाना शुरू करें। जब बच्चा 3 साल से ज्यादा का हो जाता है तो उसकी ऐक्टिविटी बढ़ जाती हैं और उसके शरीर से पानी की मात्रा ज्यादा निकलने लगती है। ऐसे में उन्हें पीने के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है। कई बार बच्चे पानी पीने पर ध्यान नहीं दे पाते। इसलिए पैरंट्स की जिम्मेदारी है कि बच्चे को पानी पिलाएं। बच्चे को कितना पानी पिलाना चाहिए, इसके लिए बेहतर होगा कि किसी डॉक्टर की सलाह लें।

किसमें करें पानी को स्टोर
इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी है कि आप जिस पानी को पी रहे हैं, वह कहां और किस चीज में स्टोर किया गया है। पानी को हमेशा इन 3 तरह के बर्तनों में स्टोर करके रखें:

मटका: पानी स्टोर करने के लिए मटका या मिट्टी का कोई दूसरा बर्तन अच्छा माना जाता है। इसमें पानी सामान्य तापमान पर भी ठंडा रहता है और शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाता। मिट्टी के जिस बर्तन में पानी स्टोर कर रहे हैं, उस पर सीधी धूप न आए, वरना पानी ठंडा नहीं होगा।

तांबे का बर्तन: तांबे के बर्तन में रखे पानी को श्रेष्ठ माना गया है। पानी में अगर कोई हानिकारक बैक्टीरिया है तो वह तांबे के बर्तन में रखे होने पर मर जाता है। साथ ही पानी में ऐसे मिनरल्स भी मिल जाते हैं जो सेहत के लिए अच्छे होते हैं।

स्टील का बर्तन: स्टील के बर्तन में पानी सुरक्षित माना जाता है। अगर घर में स्टील की बाल्टी या कोई बड़ा बर्तन है तो उसमें पानी स्टोर करके रख सकते हैं।
प्लास्टिक: मजबूरी में पानी को प्लास्टिक के सामान में स्टोर कर सकते हैं लेकिन 2 या 3 घंटे से ज्यादा नहीं। इस दौरान ध्यान रखें कि पानी पर धूप सीधी न पड़ रही हो, नहीं तो धूप की गर्मी से प्लास्टिक से हानिकारक पदार्थ निकलते हैं जो पानी में मिल जाते हैं। इस पानी को लंबे समय तक पीने से कैंसर तक हो सकता है। अगर घर में वॉटर प्यूरीफायर है और उसका टैंक प्लास्टिक का है तो बेहतर होगा कि उसमें पानी स्टोर करके न रखें। जब टैंक भर जाए तो उसमें से पानी निकालकर मटके में या कांच की बोतलों में भरकर रख लें।

नोट: बर्तन कैसा भी हो, उसे 24 घंटे में एक बार अच्छे से साफ करना जरूरी है। पानी को 24 घंटे से ज्यादा स्टोर करके न रखें।

इन हालात में कितना पिएं पानी

सुबह उठने के बाद
सुबह उठने के के बाद खाली पेट पानी पीना बहुत जरूरी है। आयुर्वेद में इसे उषापान कहा गया है। दरअसल, हम रात को 6 से 8 घंटे की नींद लेते हैं। ऐसे में सुबह शरीर में पानी की कमी हो जाती है और शरीर डिहाइड्रेट हो जाता है। इसलिए सुबह उठकर पानी जरूर पिएं। वहीं सुबह खाली पेट पानी पीने से कब्ज की समस्या कम हो जाती है। साथ ही शरीर से ज्यादातर हानिकारक टॉक्सिन्स बाहर निकल जाते हैं जिससे कई बीमारियों से बचने में मदद मिलती है।

कितना पिएं: सुबह उठकर अपनी क्षमता अनुसान 1 या 2 गिलास पिएं।

कैसा पिएं: अक्सर कहा जाता है कि सुबह गुनगुना या रात को नीबू के टुकड़े डालकर रखा गया पानी पिएं, लेकिन यह जरूरी नहीं है। सबसे अच्छा सादा और ताजा पानी होता है। इसलिए बेहतर होगा कि सुबह सिर्फ सादा पानी ही पिएं। हां, पानी का टेस्ट बदलने के लिए रात को नीबू के टुकड़े डालकर रखा गया पानी पी सकते हैं।

खाना खाने के दौरान
कुछ एक्सपर्ट्स जहां खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीने से मना करते हैं तो कुछ की राय इससे अलग है। वैसे ज्यादातर एक्सपर्ट की राय है कि खाना खाने से 45 मिनट पहले एक गिलास सादा पानी पीना चाहिए और खाना खाने के 45 मिनट बाद पानी पी सकते हैं। जरूरी हो तो खाना खाने के दौरान 1 या 2 घूंट पानी ही पिएं।

कारण- हमारे मुंह में मौजूद एंजाइम खाने के साथ मिलकर पेट में जाते हैं, जहां खाने का पाचन सही तरीके से होता है। अगर खाने के दौरान ज्यादा पानी पिएंगे तो ये एंजाइम पानी के साथ पेट में चले जाते हैं और खाना पचाना मुश्किल होता है। वहीं दूसरी ओर एक्सपर्ट कहते हैं कि खाना खाने के तुरंत बाद 1 या 2 गिलास पानी उन्हीं लोगों को पीना चाहिए जो अपना वजन बढ़ाना चाहते हैं। अगर वजन नहीं बढ़ाना तो खाने के तुरंत बाद ज्यादा पानी न पिएं। आधे घंटे बाद पानी पी सकते हैं।

एक्सरसाइज के बाद
एक्सरसाइज के दौरान शरीर से काफी मात्रा में पसीना और सोडियम निकलता है, जिससे शरीर डिहाइड्रेट भी होता है। वहीं एक्सरसाइज के दौरान कोशिकाएं टूटती हैं। इनके बनने में भी पानी की अहम भूमिका होती है।

शरीर में पानी की मात्रा बनाए रखने के लिए एक्सरसाइज के दौरान 10-10 मिनट बाद 1 या 2 घूंट ही पानी पिएं। एक्सरसाइज खत्म करने के तुरंत बाद कभी भी 1 या 2 गिलास पानी न पिएं। जब हम एक्सरसाइज करते हैं तो दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं और शरीर में खून का प्रवाह तेज हो जाता है। इसलिए एक्सरसाइज करने के करीब 15 मिनट बाद ही ज्यादा पानी पिएं क्योंकि तब तक खून का प्रवाह और धड़कनें सामान्य हो जाती हैं।

कैसा पिएं: एक्सरसाइज के बीच में या एक्सरसाइज के बाद, हमेशा सादा पानी ही पिएं। अगर चाहे तो पानी में नीबू का रस मिला सकते हैं। 1 लीटर पानी में 1 नीबू का रस काफी रहता है। वहीं अगर डायबीटिज नहीं है तो पानी में शहद डालकर भी पी सकते हैं।

इन बीमारियों में
पथरी होने पर: अगर किसी शख्स को 5mm तक की पथरी है तो उसे तय मात्रा से कुछ ज्यादा पानी पीने की सलाह दी जाती है ताकि पथरी यूरिन के रास्ते बाहर निकल जाए।

किडनी की समस्या होने पर: अगर किसी शख्स को किडनी की समस्या है तो उसे पानी पीने पर काबू रखना चाहिए। ज्यादा पानी पिएंगे तो किडनी को ज्यादा काम करना पड़ता है।

लिवर फेल होने पर: अगर लिवर को फिट रखना है तो किडनी को फिट रखना होगा। वहीं अगर लिवर फेल होने का केस है तो पानी कम मात्रा में पीना चाहिए।

पेट खराब होने पर: लूज मोशन या कब्ज के मामले में ज्यादा पानी पीने को कहा जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि पानी बहुत ज्यादा मात्रा में ही पी लिया जाए। लूज मोशन में एक गिलास सादा पानी में एक चुटकी सफेद नमक और एक चम्मच चीनी मिलाकर पिएं। वहीं कब्ज में सादा पानी पीना फायदेमंद है

नोट: किसी भी बीमारी में अपने हिसाब से पानी की मात्रा कम या ज्यादा न करें। इस बारे में डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

कैसे जानें कि आपका पानी पीने लायक है
पानी का सिर्फ साफ दिखना ही इस बात की गारंटी नहीं है कि वह पीने लायक है। पानी को कई स्तरों पर जांचा जाता है। यह जांच आप घर पर भी कर सकते हैं:
1. TDS लेवल
TDS का उपयोग पानी की शुद्धता को जांचने के लिए किया जाता है। इसके पता लगाया जाता है कि पानी पीने लायक है या नहीं। WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार अगर पानी का TDS 100 से 250 ppm (पार्ट्स प्रति मिलियन) है तो यह पानी पीने के लिए शुद्ध है। इससे कम या ज्यादा TDS वाले पानी को नहीं पीना चाहिए।
जानें, कितने TDS पर पानी की शुद्धता कैसी होती है।

TDS लेवल क्वॉलिटी पीने में कैसा
0-150 ppm अच्छा पानी मीठा लेकिन मिनरल्स में कुछ कमी। पी सकते हैं
151-250 ppm बहुत अच्छा पीने के लिए अच्छा
251-300 ppm ठीक पी सकते हैं
301-500 ppm कुछ ठीक मजबूरी में थोड़ा पानी पी सकते हैं
501-900 ppm खराब बिल्कुल न पिएं
901 ppm से ज्यादा बहुत खराब पीने के बारे में सोचें भी नहीं

घर पर ऐसे जांचें TDS
घर पर आ रहे पानी का TDS खुद भी जांच सकते हैं। TDS जांचने के लिए डिजिटल थर्मामीटर जैसी डिवाइस आती है। एक गिलास पानी लेकर इस डिवाइस के आगे से सिरे को उसमें 1 मिनट के लिए डाल दें। डिवाइस में लगी स्क्रीन पर पानी का TDS आ जाता है।
कीमत: 150 रुपये से शुरू
कहां से खरीदें: ऑनलाइन या ऑफलाइन

2. pH लेवल
pH लेवल बताता है कि पानी कितना हार्ड है और कितना सॉफ्ट। किसी भी चीज की pH वैल्यू 0 से 14 के बीच होती है। इसे एक स्कैल पर नापते हैं। इसका आदर्श पॉइंट या न्यूट्रल 7 माना जाता है। pH 7 लेवल शुद्ध पानी का होता है। अगर पानी का pH लेवल 7 से कम है तो इसे हार्ड वॉटर माना जाता है। इसे एसिडिक यानी अम्लीय पानी भी कहते हैं। अगर पानी का pH लेवल 7 से ज्यादा है तो इसे ऐल्कलाइन यानी क्षारीय पानी कहा जाता है। पीने योग्य पानी का pH लेवल 7 से 8 के बीच में होना चाहिए। हल्का ऐल्कलाइन पानी सेहत के लिए अच्छा होता है। इसमें एंटी एजिंग गुण पाए जाते हैं। साथ ही यह इम्यूनिटी भी बढाता है। यह लंबे समय तक शरीर को हाइड्रेट (शरीर में पानी का स्तर बनाकर) रखता है। इस पानी में कैंसर से लड़ने वाले गुण भी पाए जाते हैं।

घर पर ऐसे जांचें pH
पानी का pH लेवल चेक करने के लिए TDS चेक करने जैसी ही डिवाइस आती है। डिवाइस में डिस्प्ले लगी होती है जिस पर pH वैल्यू आ जाती है।
कीमत: 400 रुपये से शुरू
कहां से खरीदें: ऑनलाइन या ऑफलाइन

3. ORP लेवल
ORP का मतलब Oxidation Reduction Potential है। ORP को मिलिवोल्ट (mV) से नापते हैं। किसी भी पानी में ORP की मात्रा नेगेटिव 1500 (-1500) mV से प्लस 1500 (+1500) mV हो सकती है। ORP की वैल्यू जितनी ज्यादा निगेटिव होगी, पानी उतना साफ माना जाता है। एक स्टैंडर्ड के अनुसार किसी जगह के पानी का ORP -400 mV है तो ORP के अनुसार वह पानी साफ है। अगर ORP +400 है तो वह पानी पीने लायक नहीं है। पीने योग्य पानी का ORP -400 mV से -200 mV के बीच होना चाहिए।

घर पर ऐसे जांचें ORP
पानी की ORP वैल्यू चेक करने के लिए TDS चेक करने जैसी ही डिवाइस आती है। डिवाइस में डिस्प्ले लगी होती है जिस पर ORP वैल्यू आ जाती है।
कीमत: 3000 रुपये से शुरू
कहां से खरीदें: ऑनलाइन या ऑफलाइन

कम या ज्यादा मात्रा में पानी पीने से असर
कम पानी पीने से
- डिहाइड्रेशन हो जाता है जिससे चक्कर आने लगते हैं।
- ढलती उम्र के निशान जल्दी नजर आने लगते हैं।
- शरीर पर झुर्रियां जल्दी पड़ जाती हैं और त्वचा अपनी चमक खोकर ढीली पड़ने लगती है।
- मेटाबॉलिजम की प्रक्रिया सही नहीं होती जिससे शरीर में फैट जमा होने लगता है।
- हड्डियों और जोड़ों में दर्द हो सकता है।

ज्यादा पानी पीने से
- शरीर से सोडियम का लेवल कम होने लगता है जिससे मस्तिष्क में सूजन आ सकती है।
- पानी को फिल्टर करने के लिए किडनी पर बोझ बढ़ जाता है। इससे किडनियां फेल हो सकती हैं।
- महिलाओं के हार्मोन गड़बड़ हो सकते हैं। बीपी हाई हो सकता है।
- मांसपेशियों में कमजोरी या ऐंठन की समस्या हो सकती है।

इन चीजों के खाने के तुरंत बाद पीना पीना सख्त मना है
भुने चने खाने के बाद: भुने चने खाने के तुरंत बाद पानी बिलकुल न पिएं। अगर पानी पीते हैं तो इससे पेट में दर्द हो सकता है, क्योंकि पानी पीने से चना फूल जाता है।

अमरूद खाने के बाद: अमरूद खाने के बाद पानी पीने से पेट में गैस की समस्या हो सकती है या कुछ ही देर बाद तेज दर्द हो सकता है।
तरबूज खाने के बाद: तरबूज और खरबूज में काफी मात्रा में पानी होता है। इन्हें खाने के बाद पानी पीने से पेट संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।

चाय पीने के बाद: चाय या कॉफी पीने के बाद पानी पीने से पेट खराब हो सकता है। पाचन तंत्र धीमा होने से पेट में भारीपन की समस्या हो सकती है।
मूंगफली खाने के बाद: मूंगफली खाने के तुरंत बाद पानी पीने से खांसी हो सकती है।

इस समय पानी पीना है फायदेमंद
- नहाने से आधा घंटा पहले पानी पीने से ब्लड प्रेशर की समस्या नहीं होती।
- सोने से पहले पानी पीने से हार्ट अटैक का खतरा कम होता है।
- घर से बाहर निकलते वक्त पानी पीकर निकलें। इससे एनर्जी मिलती है और कुछ समय तक डिहाइड्रेशन की दिक्कत भी नहीं होती।

प्यूरीफायर का पानी कितना सही
स्ट्रक्चर्ड वाॅटर होना चाहिए
वॉटर प्यूरीफायर हमेशा ऐसा खरीदें जिससे स्ट्रक्चर्ड वॉटर निकले। वह पानी जो पूरी तरह से न केवल शुद्ध बल्कि सेहत के लिए भी अच्छा होता है, स्ट्रक्चर्ड वाटर कहलाता है। इसे जिंदा पानी भी कह सकते हैं। स्ट्रक्चर्ड वाटर के लिए शर्त है कि उसका TDS लेवल 100 से 250 ppm, pH लेवल 7 से 8 और ORP -400 mV से -200 mV के बीच होना चाहिए। अगर आपके घर में सप्लाई का आने वाला पानी हार्ड है तो बेहतर होगा कि सप्लाई की लाइन के शुरू में ही वॉटर सॉफ्टनर लगवाएं। इससे पूरे घर में सॉफ्ट पानी आएगा। इस पानी से न केवल वॉटर प्यूरीफायर की उम्र बढेगी बल्कि धुलने वाले कपड़े और नहाने के बाद बालों की भी उम्र बढ़ाएगा। हार्ड पानी से कपड़े धोएं जाएं तो वे जल्दी खराब हो जाते हैं। वहीं हार्ड वॉटर से सिर धोते समय बालों को नुकसान पहुंचता है। वॉटर सॉफ्टनर को ऑनलाइन या ऑफलाइन खरीद सकते हैं। इसकी शुरुआती कीमत करीब 4 हजार रुपये है।

ऐसा प्यूरीफायर खरीदें
ऐसा प्यूरीफायर लें जिसमें आरओ, यूवी और यूएफ तीनों तकनीक हो। इसके साथ ही चूंकि जरूरी मिनरल्स की शरीर को जरूरत होती है, ऐसे में TDS कंट्रोलर तकनीक से लैस प्यूरीफायर ही लें, जिससे शरीर में बैलेंस बना रहे। जहां तक छोटे शहरों या कम प्रदूषित इलाकों की बात है तो अगर वहां का ग्राउंड वाटर पहले से साफ और मीठा है और उसे बस फिल्टर करने की जरूरत है तो यूवी प्यूरीफायर इस्तेमाल करना चाहिए।

प्यूरीफायर से निकले पानी का यह करें
फिल्ट्रेशन के दौरान वॉटर प्यूरीफायर से निकले पानी को बेकार न बहने दें। उसे इकट्ठा कर लें। इस पानी को प्लांट में लगा सकते हैं या घर-आंगन धो सकते हैं। बाथरूम में फ्लश के दौरान भी इस्तेमाल कर सकते हैं। पार्क में छिड़काव कर सकते हैं।

एक्सपर्ट पैनल
- डॉ. अंकुर गर्ग, डायरेक्टर, लिवर ट्रांस्प्लांट, मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल
- डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, सीनियर पीडीअट्रिशन
- परमीत कौर, चीफ डायटिशन, एम्स
- डॉ. भगवान सहाय शर्माख् HoD बाल रोग, तिब्बिया कॉलेज
- डॉ. मीना तांदले, असिस्टेंट प्रफेसर, दून आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज
- आशुतोष वर्मा, फाउंडर, Exalta
- अरुण सिंह, फिटनेस एक्सपर्ट और वेलनेस कोच

पूछें सवाल
पानी के बारे में यह जानकारी आपको कैसी लगी? इस बारे में अपनी राय हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर इसी लेख के नीचे कमेंट करके बताएं। अगर आपके पास पानी से जुड़ी कोई नई या अलग जानकारी है तो उसे भी वहां शेयर कर सकते हैं और दूसरे पाठकों के साथ चर्चा में भाग ले सकते हैं। अगर पानी से संबंधित आपका कोई सवाल हो तो वह भी वहां पूछ सकते हैं। चुनिंदा सवालों के जवाब हम एक्सपर्ट से पूछकर देंगे।

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डाइट के जरिए बीमारी से फाइट

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डाइट की बेसिक बातें
हम यहां एक औसत डाइट के बारे में बता रहे हैं। किस मरीज को कौन-सी डाइट लेनी है, यह मरीज का डॉक्टर या डाइटिशन ही बता सकता है:
फल
फलों से हमें जरूरी विटामिन और मिनरल मिलते हैं। मौसमी फल ज्यादा से ज्यादा खाएं। ये सस्ते और ताजे होते हैं।
1 . पपीता: इस फल में विटामिन-C, A, B समेत लगभग सभी विटामिन मिलते हैं।
2. अमरूद: विटामिन-C का बेहतरीन सोर्स
3. सेब या नाशपाती: विटामिन A से भरपूर
4. संतरा या मौसमी: विटामिन C से भरपूर है। 5. अंगूर: एलर्जी दूर करता है। विटामिन भी खूब मिलते हैं।

साग-सब्जियां
खानपान में साग-सब्जियों की भूमिका फलों से भी ज्यादा अहम होती है, लेकिन हम इन्हें सबसे पीछे रखते हैं। इसी वजह से हमारे शरीर में विटामिन और मिनरल की कमी हो जाती है:
1. घीया/लौकी: विटामिन-A, B समेत कई तरह के विटामिन और फाइबर मिलते हैं। इसे सभी लोग खा सकते हैं। 1 किलो घीया को 1 से 2 चम्मच तेल में पकाएं तो ज्यादा बेहतर होगा।
2. भिंडी, पत्तागोभी, पालक, मेथी आदि: विटामिन-A, B, C, E
3. करेला और परवल: आयरन, जिंक समेत कई मिनरल और विटामिन
4. मौसमी सब्जियां: मौसमी सब्जियां सस्ती और ताजी होती हैं। छिलका समेत उबालें तो बेहतर है, लेकिन तेल में फ्राई किया हुआ नहीं चलेगा।

दालें, नॉनवेज
दालें प्रोटीन का अच्छा जरिया मानी जाती हैं, पर अलग-अलग दालों में प्रोटीन की मात्रा भी अलग-अलग होती है:
1. मूंग: प्रोटीन की मात्रा कम, इसलिए पचाने में आसान। अक्सर मरीजों को यही दी जाती है।
2. मसूर, अरहर, चना, राजमा: प्रोटीन की मात्रा ज्यादा। सर्दियों में कुलथी की दाल भी खाएं।
नॉनवेज
अंडा, मछली, चिकन और मटन: नॉनवेज के रूप में ज्यादातर उपयोग में आने वाले फूड आइटम्स। जो लोग नॉनवेज खाते हैं, उनके लिए ये प्रोटीन के बेहतरीन सोर्स हैं, पर इन्हें पकाने का तरीका बहुत अहम है।


अनाज
हमारी थाली में अमूमन अनाज यानी कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा सबसे ज्यादा (50 फीसदी) होती है। ये सही चुनाव नहीं है। इसे 50 फीसदी से घटाकर 20 फीसदी कर दें:
1. चावल: कार्बोहाइड्रेट का सबसे बेहतरीन जरिया। इसे पचाना भी आसान है। चावल बिना पॉलिश्ड वाले खाएं।
2. गेहूं, मक्का, जुआर, बाजरा: अगर ये सभी मिलाकर मिक्स्ड यानी मल्टिग्रेन तैयार किया जाए तो शानदार होगा। हालांकि मल्टिग्रेन आटे में दाल की मात्रा भी 20 से 40 फीसदी रखनी चाहिए। इससे प्रोटीन की कमी नहीं होती। अगर किसी को गेहूं पचाने में परेशानी है तो इसे छोड़ भी सकते हैं। ग्लूटेन प्रोटीन से कुछ लोगों को परेशानी होती है।
3. दलिया: वजन कम करने में मददगार और मिनरल्स का भी बेहतरीन जरिया

तेल-घी
तेल/घी भी शरीर के लिए जरूरी है, बीमार करने में जितनी अहम भूमिका खराब तेल की होती है, शायद ही किसी दूसरे की। महीने में एक व्यक्ति 500 एमएल से ज्यादा तेल न ले।
1. सरसों का तेल: हर दिन 2 से 3 चम्मच से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। भारतीयों के लिए बेहतर है विकल्प है।
2. घी: गाय का देसी घी बेहतरीन माना जाता है, लेकिन वनस्पति घी से बचें।
3. ऑलिव ऑयल और वनस्पति तेल: ऑलिव यानी जैतून के तेल को काफी हेल्दी माना जाता है। हर दिन 2 से 3 चम्मच से ज्यादा नहीं लेना चाहिए। नारियल तेल उत्तर भारतीयों के लिए भी ठीक है।

कम या बंद करना
जितना अहम है इस बात को समझना कि क्या खाना चाहिए, उससे ज्यादा अहम है क्या कम या बंद करना:
1. रिफाइंड प्रोडक्ट: किसी भी तरह के रिफाइंड प्रोडक्ट का इस्तेमाल रोक देना या फिर महीने में एक से दो बार कर देना चाहिए। इसमें रिफाइंड तेल, चीनी, सफेद नमक, मैदा आदि शामिल हैं।
2. डीप फ्राई: हाजमा खराब करने में डीप फ्राई वाली चीजों का अहम योगदान होता है। खासकर इसमें जंकफूड (नूडल्स, समोसा, बर्गर) शामिल हैं।
3. बीड़ी-सिगरेट, अल्कोहल: ये चीजें दिल, फेफड़े, गुर्दे, लिवर, शुगर, बीपी सभी तरह की समस्याओं की जन्मदाता हैं। अगर किसी को बीपी या शुगर है तो ये चीजें उनके लिए बहुत ही खतरनाक हैं।

शुगर की बीमारी
डायबीटिज के मरीज कम रस, कम कैलरी और ज्यादा फाइबर वाले
100 से 200 ग्राम फल रोज सात दिनों में बदल-बदलकर खा सकते हैं:

फल
1. पपीता: यह ऐसा फल है जिसे अमूमन सभी मरीज खा सकते हैं। इसे जरूर खाएं।
2. अमरूद, संतरा या मौसमी: हर दिन एक
3. सेब या नाशपाती: एंटिऑक्सिडेंट बढ़ाने के लिए बेहतरीन। आधा से एक
4. तरबूज: इम्यूनिटी बेहतर करने के लिए जरूरी है। गर्मियों में बहुत जरूरी।ज्यादा रस या कैलरी वाले फल 50 ग्राम, हफ्ते में 2 से 3 दिन
5. आम, केला, चीकू, अंगूर: अगर किसी की शुगर काबू में है तो वह आम की एक फांक हफ्ते में 2 या 3 दिन खा सकता है। पर दूसरे दिन 20 मिनट अतिरिक्त ब्रिस्क वॉक जरूर करे। इसी तरह अंगूर, केला (एक छोटा केला), चीकू आदि भी खा सकते हैं।

सब्जियां
सात दिनों में सात रंग की सब्जियां शामिल हों। कम तेल यानी 1 किलो सब्जी 1 से 2 चम्मच तेल में पकाएं। हर दिन 2 कटोरी तक खाएं। हर दिन 1 प्लेट सलाद जरूर खाएं:
1. घीया: इंसुलिन बढ़ाने में मददगार, 92 फीसदी पानी
2. भिंडी: वजन कम करने में मददगार
3. करेला: मैग्निशियम, जिंक, खून साफ करने में मददगार
4. पत्तागोभी, पालक, मेथी आदि: रेशे से भरपूर।
5. सलाद: हर दिन जरूर खाएं: मौसम के मुताबिक गाजर, मूली, टमाटर, चुकंदर, खीरा, ककड़ी आदि।
कम मात्रा में: आलू (उबला हुआ 20 से 30 ग्राम), सीताफल (हफ्ते में 1 से 2 दिन)।

दालें और नॉनवेज
शुगर के मरीजों के लिए प्रोटीन के सोर्स के रूप में दाल बेहतरीन हैं। इसके माध्यम से कैलरी की कम मात्रा जाती है। अंडा और मछली भी विकल्प हैं:
1. मूंग: साबुत ज्यादा बेहतर। हर दिन 2 कटोरी खाएं।
2. मिक्स्ड दालें: साबुत मूंग, मसूर, चना, अरहर को बराबर मात्रा में मिलाकर तैयार करें। रात में या बनाने से 2 घंटे पहले पानी में भिगो दें। यह पानी फेंककर बनाएं।
अंडा: जो नॉनवेज खाते हैं उनके लिए बेहतरीन है। 1 से 2 अंडे का सफेद भाग खा सकते हैं। यह अच्छा प्रोटीन है।
मछली और चिकन: प्रोटीन का बेहतरीन जरिया, 2 पीस फ्राई नहीं, रोस्टेड या स्टीम्ड खाना चाहिए।
मटन बहुत कम खाएं या न खाएं। चर्बी ज्यादा होती है। शुगर लेवल बहुत बढ़ाता है।

अनाज
शुगर के मरीज चावल भी खा सकते हैं। हां, कम मात्रा में खाएं। बिना मांड वाला चावल खाएं। दिनभर में खाना 3 के बजाए 5 बार खाएं:
1. सेला चावल या ब्राउन या रेड राइस: चावल में मौजूद कार्बोहाइड्रेट्स अच्छा होता है। अगर बनाते समय इससे मांड निकाल दिया जाए तो स्टार्च की मात्रा कम हो जाती है। छोटी कटोरी से 1-2 बार खा सकते हैं।
2. मल्टिग्रेन आटा: अगर चावल के अलावा आटे से बनी चीजें खानी हैं तो उनमें जरूर चोकर हो। अगर गेहूं की रोटी खानी है तो चोकर 20 फीसदी तक जरूर मौजूद हों। इस आटे में थोड़ी मात्रा में पालक को कद्दूकस करके आदि को मिलाकर रोटी बनाएं।
दलिया: शुगर काबू करने के लिए नमकीन दलिया लें। डिनर में एक कटोरी ले सकते हैं।

तेल-घी
शुगर के मरीजों को खाने में तेल का चुनाव सही तरीके से करना चाहिए। हर दिन के खाने में सबसे ज्यादा कैलरी अगर किसी माध्यम से शरीर के भीतर जाती है तो वह तेल या घी ही है। हर दिन 1 से 2 चम्मच से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
1. सरसों का तेल: भारतीयों के लिए बेहतर है विकल्प है। अगर तेल कच्ची घानी का है तो इससे बढ़िया कुछ भी नहीं हो सकता। एक ही तेल को बार-बार गर्म करके उपयोग में न लाएं, यह नुकसानदायक हो सकता है।
2. घी: गाय का देसी घी बेहतरीन माना जाता है। घी और तेल दोनों में कैलरी की मात्रा लगभग बराबर ही होती है। कम खाएं। लेकिन वनस्पति घी से बचें।
3. ऑलिव ऑयल और नारियल तेल: ऑलिव यानी जैतून के तेल को काफी हेल्दी माना जाता है। हर दिन 2 से 3 चम्मच से ज्यादा नहीं लेना चाहिए। जहां तक नारियल तेल में पकाने की बात है तो यह उत्तर भारतीयों को ज्यादा पसंद नहीं आता।

कम या बंद करना
70 से 80 फीसदी डायबीटिज मरीजों को बीपी की परेशानी भी होती है। इसलिए ऐसे लोगों को रिफाइंड समेत नमक की मात्रा (हर दिन 1 चम्मच यानी 5 ग्राम से ज्यादा न हो) को भी कम करना चाहिए:
1. रिफाइंड प्रोडक्ट: शुगर को अगर काबू में करना है तो ऐसे उत्पादों से दूरी बनाना जरूरी है। रिफाइंड आइटम: रिफाइंड ऑयल, चीनी, नमक, मैदा आदि। महीने में 1 बार ही काफी है।
2. डीप फ्राई: बाहर के पके हुए प्रोडक्ट डीप फ्राइड ही होते हैं।
3. नशा और नमक: शुगर के मरीजों को लंबी उम्र के लिए ऐसे किसी भी उत्पाद का सेवन कम कर देना चाहिए। इसमें अल्कोहल और तंबाकू को बंद और नमक को कम।

दिल की दिक्कत
अगर किसी को सिर्फ दिल की बीमारी है, शुगर या किडनी की परेशानी नहीं है तो 200 ग्राम फल खा सकता है:
फल
1. एवोकाडो: यह अच्छे कॉलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है।
2. पपीता: कई तरह के विटामिन मौजूद
3. बेरीज और अंगूर: बैड कलेस्ट्रॉल कम और गूड कलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है।
4. सेब या नाशपाती: हर दिन एक
4. संतरा या मौसमी: जूस के बजाय, पूरा एक साबुत फल खाएं। इससे शरीर में फाइबर की मात्रा भी पहुंचेगी।
5. केला: एक छोटा केला पोटैशियम के लिए। 6. आम: एक फांक खाएं।

सब्जियां
दिल के मरीजों को अमूमन किसी खास सब्जी को न खाने की हिदायत कम ही दी जाती है। उसे पकाने में तेल और कैलरी की मात्रा का जरूर ध्यान रखना चाहिए, इससे कलेस्ट्रॉल की परेशानी नहीं आएगी।
1. पालक, मेथी, बथुआ आदि: हर दिन या हर दूसरे दिन एक कटोरी साग खाएं।
2. गाजर, चुकंदर, टमाटर: इन्हें भी करें हर दिन की डाइट में शामिल। सलाद के रूप में भी खाएं। इससे खून की कमी भी दूर होगी।
3. बैंगन और घीया: कॉलेस्ट्रल कम करने में सहायक है, बिना तेल या कम तेल में।
4. परवल, लहसुन: खून साफ करने में मददगार। कब्ज को दूर करने में मददगार।
5. ब्रोकली और फूलगोभी: ये खून की नलियों को आराम देती हैं।

दालें, नॉनवेज
दिल की परेशानी में ऐसी कोई भी चीज कम या नहीं खानी चाहिए जिससे शरीर में कलेस्ट्रॉल या चर्बी बढ़े:
1. साबुत दालें: सभी तरह की साबुत दालें खा सकते हैं। दाल को बनाते समय 2 घंटे पहले पानी में छोड़कर, पानी फेंककर बनाएं।
2. पनीर और सोयाबीन: हर दिन 30 से 40 ग्राम तक खाएं।
मछली: स्टीम की हुई मछली 2 पीस खा सकते हैं।
चिकन: इसी तरह चिकन भी रोस्टेड या स्टीम्ड, कम तेल या मसाले में पका हुआ। 2 पीस हर दूसरे दिन खा सकते हैं। मटन कम खाएं या न खाएं। अगर खाना हो तो ज्यादा तेल में पका हुआ न खाएं।

अनाज
दिल के मरीज को अनाज में ज्यादा कुछ खाने की मनाही नहीं है। लेकिन इनमें तेल या घी आदि की मात्रा कम होनी चाहिए, जैसे, पुलाव या बिरयानी से बचें:
1. दलिया: इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर की मौजूदगी होती है। इनके अलावा भरपूर मात्रा में कैल्शियम, मैग्निशियम, फास्फोरस आदि भी मिलता है। इसलिए यह दिल के लिए बहुत फायदेमंद है।
2. सेला चावल या ब्राउन या रेड राइस: इस तरह के चावल दिल के मरीज भी खा सकते हैं। हर दिन 1 से 2 कटोरी
3. मल्टिग्रेन आटा: ज्यादातर मामलों में यह देखा जाता है कि दिल के ज्यादातर मरीज शुगर और बीपी के पेशंट होते हैं। इस आटे को खाने से धीरे-धीरे शुगर बनती हैं। मल्टिग्रेन आटे में अगर हरी सब्जियां मिलाकर रोटी बनाई जाए तो दिल के मरीज को काफी फायदा होता है।

तेल-घी
दिल को हेल्दी रखने का सबसे अच्छा तरीका है कि खून की नलियों में फैट जमा न हो। गुड कलेस्ट्रॉल बढ़े और बैड कलेस्ट्रॉल की मात्रा कम हो:
1. सरसों तेल: तेल की मात्रा को जरूर नियंत्रण में रखना है, 24 घंटे में 1 से 2 चम्मच तेल काफी है।
2. घी: दिल की परेशानी शुरू हो चुकी है तो इसका सेवन बहुत कम कर दें।
3. ऑलिव ऑयल और नारियल तेल: अगर सही तेल का मेल हो तो दिल भी मजबूत रहता है। वहीं अगर दिल की परेशानी शुरू हो चुकी है तो अॅलिव ऑयल भी एक विकल्प है। नारियल तेल शरीर के भीतरी सूजन को भी दूर करने में मददगार होता है। लेकिन दिल के मरीजों को यह तेल भी 1 चम्मच ही लेना चाहिए।

कम या बंद करना
हार्ट अटैक को बढ़ाने में कलेस्ट्रॉल की भूमिका अहम होती है और कलेस्ट्रॉल तब बढ़ता है जब हम डीप फ्राई और रिफाइंड की चीजों का उपयोग महीने में एक बार से ज्यादा करते हैं। बीपी को काबू में रखने के लिए नमक 1 चम्मच काफी है। वहीं चीनी को हटाकर गुड़ (एक टुकड़ा 10 ग्राम) को जगह दें:
1. रिफाइंड प्रोडक्ट: रिफाइंड तेल के अलावा मैदा जैसे चीजों को भी रोक देना चाहिए। यहां तक कि बिस्किट भी बंद कर देना चाहिए। अगर शुगर न भी हो तो भी।
2. डीप फ्राई: दिल के मरीजों के लिए डीप फ्राई वाले उत्पाद धीमे जहर की तरह हैं।
3. अल्कोहल, तंबाकू, सिगरेट: अगर दिल को जल्दी ज्यादा कमजोर करना है तो ही इन चीजों को इस्तेमाल करना चाहिए। ये उत्पाद जहां कैंसर के कारक हो सकते हैं, वहीं दूसरे अंगों को भी भारी नुकसान पहुंचाते हैं।

लिवर की परेशानी
लिवर सिरोसिस और फैटी लिवर, ये दो परेशानियां आमतौर पर होती हैं। फैटी लिवर है तो 200 ग्राम, लिवर सिरोसिस में 50 ग्राम फल खाएं:

फल
1. अनार: एक तरफ यह फल जहां खून बढ़ाता है, वहीं दूसरी तरफ यह विटामिन से भी भरपूर है। यह हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट्स बढ़ाने में काफी मददगार है।
2. पपीता: यह फल लिवर को काफी फायदा देता है।
3. सेब: इन्हें पचाना आसान है। एंटिऑक्सिडेंट से भरपूर।
4. नाशपाती: विटामिन A से भरपूर है। लिवर के एंजाइम को ऐक्टिव करता है।
सिरोसिस के मरीज डॉक्टर से पूछकर हर दिन 50 ग्राम लें
इन फलों को भी हफ्ते में 2 से 3 दिन 50 ग्राम खा सकते हैं: आम, अमरूद, तरबूज आदि। ध्यान रहे कि ये ताजा हों तो बेहतर हैं।

सब्जियां
रंगीन सब्जियां खाएं। खाना सुपाच्य और कम तेल-मसाले में पका हो। सिरोसिस हो तो 50 से 100 ग्राम, फैटी लिवर में 200 ग्राम तक हर दिन:
1. गाजर, चुकंदर: ऐंटिऑक्सिडेंट से भरपूर। लिवर फ्रेंडली है। सलाद के रूप में भी खाएं।
2. घीया: पाचक रसों को ऐक्टिव करता है। पचने में आसान है।
3. आंवला, टमाटर, पालक, मेथी आदि: लिवर के लिए फायदेमंद, एक से 2 आंवला हर दिन। फाइबर और विटामिन से भरपूर। पचाना आसान। सलाद: हर दिन जरूर खाएं। ब्रोकली: विटामिन-A, C, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन आदि।

दाल, नॉनवेज
लिवर की परेशानी में ऐसी चीजों को कम खाना चाहिए जिन्हें पचाने में मुश्किल हों। दाल हो या फिर नॉनवेज, ध्यान रखना जरूरी:
1. साबुत मूंग: हर दिन एक कटोरी पतली मूंग दाल। बिना छिलके वाली दाल भी खा सकते हैं।
2. मिक्सड दालें: अगर चाहें तो मूंग दाल की मात्रा 40 फीसदी यानी 5 किलो में 2 किलो तक करें। साथ में काला चना भी। हर दिन एक कटोरी। साबुत काला चना लिवर के लिवर के लिए फायदेमंद है।
3. पनीर या सोयाबीन: हर दूसरे दिन 30 से 40 ग्राम तक खा सकते हैं।
मछली: फ्राई की हुई मछली से बढ़िया है स्टीम की हुई मछली। 2 पीस खा सकते हैं। एक अंडे का सफेद भाग हर दूसरे दिन।

अनाज
दिल के मरीज को अनाज में ज्यादा कुछ खाने की मनाही नहीं है। लेकिन इनमें तेल या घी आदि की मात्रा कम होनी चाहिए, जैसे, पुलाव या बिरयानी से बचें:
1 दलिया: इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर की मौजूदगी होती है। इनके अलावा भरपूर मात्रा में कैल्शियम, मैग्निशियम, फास्फोरस आदि भी मिलता है। इसलिए यह दिल के लिए बहुत फायदेमंद है।
2. सेला चावल या ब्राउन या रेड राइस: इस तरह के चावल दिल के मरीज भी खा सकते हैं। हर दिन 1 से 2 कटोरी
2. मल्टिग्रेन आटा: ज्यादातर मामलों में यह देखा जाता है कि दिल के ज्यादातर मरीज शुगर और बीपी के पेशंट होते हैं। इस आटे को खाने से धीरे-धीरे शुगर बनती हैं। मल्टिग्रेन आटे में अगर हरी सब्जियां मिलाकर रोटी बनाई जाए तो दिल के मरीज को काफी फायदा होता है।

तेल-घी
दिल को हेल्दी रखने का सबसे अच्छा तरीका है कि खून की नलियों में फैट जमा न हो। गुड कलेस्ट्रॉल बढ़े और बैड कलेस्ट्रॉल की मात्रा कम हो:
1. सरसों तेल: तेल की मात्रा को जरूर नियंत्रण में रखना है, 24 घंटे में 1 से 2 चम्मच तेल काफी है।
2. घी: दिल की परेशानी शुरू हो चुकी है तो इसका सेवन बहुत कम कर दें।
3. ऑलिव ऑयल और नारियल तेल: अगर सही तेल का मेल हो तो दिल भी मजबूत रहता है। वहीं अगर दिल की परेशानी शुरू हो चुकी है तो अॅलिव ऑयल भी एक विकल्प है। नारियल तेल शरीर के भीतरी सूजन को भी दूर करने में मददगार होता है। लेकिन दिल के मरीजों को यह तेल भी 1 चम्मच ही लेना चाहिए।

कम या बंद करना
हार्ट अटैक को बढ़ाने में कलेस्ट्रॉल की भूमिका अहम होती है और कलेस्ट्रॉल तब बढ़ता है जब हम डीप फ्राई और रिफाइंड की चीजों का उपयोग महीने में एक बार से ज्यादा करते हैं। बीपी को काबू में रखने के लिए नमक 1 चम्मच काफी है। वहीं चीनी को हटाकर गुड़ (एक टुकड़ा 10 ग्राम) को जगह दें:
1. रिफाइंड प्रोडक्ट: रिफाइंड तेल के अलावा मैदा जैसे चीजों को भी रोक देना चाहिए। यहां तक कि बिस्किट भी बंद कर देना चाहिए। अगर शुगर न भी हो तो भी।
2. डीप फ्राई: दिल के मरीजों के लिए डीप फ्राई वाले उत्पाद धीमे जहर की तरह हैं।
3. अल्कोहल, तंबाकू, सिगरेट: अगर दिल को जल्दी ज्यादा कमजोर करना है तो ही इन चीजों को इस्तेमाल करना चाहिए। ये उत्पाद जहां कैंसर के कारक हो सकते हैं, वहीं दूसरे अंगों को भी भारी नुकसान पहुंचाते हैं।

किडनी का कष्ट
किडनी के मरीज को अमूमन ऐसी डाइट लेने के लिए कहा जाता है जिसमें पोटैशियम और सोडियम की मात्रा कम हो। 200 ग्राम तक फल लें:

फल
1. जामुन: ऐंटिऑक्सिडेंट से भरपूर। इम्यूनिटी बेहतर। किडनी को फायदा। किडनी की सबसे ऊपरी परत को मजबूती।
2. पपीता: फाइबर के साथ पाचन दुरुस्त करने, आंतरिक सूजन कम करने में काफी मददगार।
3. नाशपाती या सेब: ये शरीर को डिटॉक्स करने में सहायक होते हैं। खासकर नाशपाती जरूर लें।
इन्हें ले सकते हैं 50 ग्राम हफ्ते में 2 से 3 दिन
अनन्नास: इनमें विटामिन C भरपूर है। दूसरे विटामिन भी खूब होते हैं।
इनके अलावा आम, तरबूज, लाल अंगूर, जैसे फल भी कम मात्रा में खा सकते हैं।

सब्जियां
किडनी रोगी को कम पोटैशियम और सोडियम वाली सब्जियां खाने को कहा जाता है। सब्जियों को 10-15 मिनट गर्म पानी में डालकर रखें और पानी फेंक दें:
1. शिमला मिर्च: ऐंटिऑक्सिडेंट से भरपूर। पोटैिशयम कम। विटामिन C ज्यादा। किडनी के पेशंट को खानी चाहिए।
2. घीया: पचने में आसान है। साथ ही कई तरह के विटामिन्स की मौजदूगी।
3. प्याज और लहसुन: पोटैशियम कम है। लेकिन बिना तेल या कम तेल में।
4. फूलगोभी: हािनकारक पदार्थ बाहर करने में मददगार। बेहतरीन फाइबर का सोर्स।
5. पत्तागोभी, पालक, मेथी आदि: रफेज से भरपूर। विटामिन A, B समेत कई मिनरल्स। सलाद: हर दिन जरूर खाएं, लेकिन 10 मिनट गर्म पानी से निकालने के बाद।

दालें, नॉनवेज
किडनी मरीजों को ज्यादा प्रोटीन लेने से क्रिएटिनिन, यूरिया आदि बढ़ जाता है। ज्यादा पानी में बनी मूंग या दूसरी दाल खाएं:
1. साबुत मूंग: प्रोटीन कम और रफेज से भरपूरर। हर दिन एक कटोरी पतली मूंग दाल।
2. मिक्सड दालें: ये भी साबुत और पतली हों। हर दिन एक कटोरी।
ध्यान रखें: दाल को रात में या बनाने से 2 घंटा पहले गर्म पानी में डुबा दें। पानी फेंककर ही बनाएं।
अंडा, चिकन, मछली: किडनी के मरीजों का अगर क्रिएटिनिन 2 या इससे कम है तो हफ्ते में 2 से 3 अंडों का सफेद भाग। 2 से 3 पीस स्टीम्ड मछली और चिकन।

अनाज
किडनी मरीजों को चावल या रोटी जिसे खाने में अच्छा लगे, उसे कम मात्रा में खाना चाहिए। डाइट अमूमन लोगों की स्थिति पर निर्भर करती है।
1. सेला चावल या ब्राउन या रेड राइस: चावल में मौजूद कार्बोहाइड्रेट अच्छा होता है। इस तरह के चावल का ज्यादा अच्छा। अगर बनाते समय इससे मांड निकाल दिया जाए तो स्टार्च की मात्रा काफी कम हो जाती है। इसे चाहें तो दिनभर में छोटी कटोरी से 2 बार खा सकते हैं। दरअसल, ऐसा देखा जाता है कि 60 से 70 फीसदी किडनी पेशंट बीपी और शुगर के मरीज भी होते हैं। इसलिए अगर चावल खाने से शुगर लेवल में फर्क दिखे और फिजिकल ऐक्टिविटी बढ़ाने की स्थिति में न हों तो इसे कम कर सकते हैं।
2. मल्टिग्रेन आटा: जब कोई किडनी पेशंट मल्टिग्रेन आटा खाता है तो उससे सही मात्रा में प्रोटीन भी मिल जाता है क्योंकि इसमें दाल की मौजूदगी भी होती है।
3. दलिया: अगर शुगर भी है तो नमकीन दलिया नहीं तो मीठा दलिया लें, बिना दूध के।

कम या बंद करना
किडनी के मरीजों को जहां रिफाइंड और डीप फ्राई चीजों से दूर रहना चाहिए, वहीं नमक की मात्रा भी जरूर कम करनी चाहिए। सेंधा नमक हो, काला या सफेद, सभी में सोडियम लगभग बराबर होता है। इससे परेशानी बढ़ जाती है:
1. रिफाइंड प्रोडक्ट और डीप फ्राई: किडनी की खराबी का पता हमें अमूमन तब चलता है जब यह 50 फीसदी तक काम करना बंद कर चुकी होती है। इसलिए हमारी लाइफस्टाइल में भी ऐसी चीजों से दूरी बना लेनी चाहिए। ये किडनी को सीधे नुकसान पहुंचाते हैं।
2. अल्कोहल, तंबाकू, सिगरेट: जहां तक अल्कोहल और दूसरे नशे के उत्पादों की बात है तो यह आम लोगों को भी पता है कि इनका उपयोग हमेशा ही नुकसान पहुंचाता है। इन्हें पूरी तरह बंद कर देना चाहिए, खासकर तब जब कोई किडनी का मरीज हो चुका है।
3. पैक्ड फूड आइटम्स से दूरी: सूप, जूस, नमकीन, चिप्स, मिक्सचर खतरनाक हैं।

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World Parkinson's Day 2022: वर्ल्ड पार्किंसंस डे स्पेशल, इन हाथों को साथ की जरूरत

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नई दिल्ली: यह जरूरी नहीं कि 60 साल से ज्यादा उम्र के हरेक शख्स को यह परेशानी हो और यह भी जरूरी नहीं इसके लिए 60 साल से ज्यादा होना ही चाहिए। हां, यह जरूर है कि पार्किंसंस बीमारी जवानी में बहुत ही कम देखी जाती है। अगर होती भी है तो ज्यादातर मामलों में पार्किंसंस जैसी। अगर किसी के परिवार में इस तरह की बीमारी हुई है, चाहे वह उसके चाचा ही क्यों न हों, सचेत रहने की जरूरत है।

पार्किंसंस
यह एक न्यूरो-डिजेनरेटिव डिजीज यानी दिमाग के एक खास हिस्से में खराबी से जुड़ी बीमारी है। इसे नसों के सूखने की बीमारी भी कहते हैं। दिमाग में सब्सटेंशिया निग्रा नाम की एक जगह होती है, जहां की नसें (न्यूरॉन) सूखने लगती हैं। नतीजा अंगाें पर पकड़ ढीली होने लगती है। इसमें लेफ्ट और राइट साइड के अंगों में परेशानी एकसाथ शुरू नहीं होती। यह एक भाग से शुरू होकर तकरीबन एक साल बाद ही दूसरे भाग में पहुंचती है।

ये हैं लक्षण
इसके लक्षण धीरे-धीरे उभरते हैं। इन्हें समझना जरूरी है ताकि दिमागी कोशिकाओं के खराब होने की रफ्तार को धीमा किया जा सके। हाथ-पैरों में कंपन: इसे रेस्टिंग ट्रेमर बोलते हैं यानी जब हम उस अंग विशेष से कोई काम नहीं कर रहे होते, वह आराम की स्थिति में हो और तब भी हिलता रहे। इसकी शुरुआत किसी हाथ की उंगलियों से या फिर किसी एक अंग से हो सकती है। सीधे कहें तो पहले अगर लेफ्ट हैंड में परेशानी (कंपन, मांसपेशियों में सख्ती आदि) शुरू हुई है तो कुछ महीनों के बाद यह आगे बढ़ते हुए लेफ्ट साइड के पैरों में जाती है फिर 1 साल या इससे भी ज्यादा समय के बाद यह दूसरी साइड में जाती है। इसकी वजह से शरीर के किसी एक भाग या अंग पर दिमागी पकड़ ढीली पड़ने लगती है।

मांसपेशियों में अकड़न: यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। इससे शरीर के उस भाग में दर्द भी होता है। इस वजह से काम करने की रफ्तार धीमी हो जाती है। एक सीधी लाइन में चलने में परेशानी: जब मांसपेशियां अकड़ जाती हैं तो पैरों में भी कंपन होने लगता है। इससे सीधी लाइन में चलना मुश्किल हो जाता है। साथ ही बैलंस बनाना आसान नहीं रहता। काम करने की गति धीमी होना: जब शरीर में कंपन शुरू होता है तो समय गुजरने के साथ-साथ उस शख्स के काम करने की गति भी धीमी हो जाती है। सामान्य काम करने में भी काफी वक्त लगने लगता है। मसलन, अगर किसी सामान्य इंसान को किचन में लगे आरओ से एक गिलास पानी भरकर लाने में एक मिनट का वक्त लगता है तो पार्किंसंस होने के बाद उसे 2 से 3 मिनट का समय लग सकता है या फिर इससे भी ज्यादा।

भूलने की समस्या: पार्किंसंस की बीमारी में यह लक्षण भी आ जाता है, लकेिन मुमकिन है कि पार्किंसंस शुरू होने के कुछ महीनों या फिर वर्षों के बाद आए। कोई सामान कहीं रखकर भूल जाना। कोई जरूरी काम भी भूल जाना। दवा खाने का समय भूल जाना। ऐसे लोगों के लिए कहा जाता है कि वे साथ में पॉकेट साइज डायरी रखें। अगर मोबाइल के नोटपैड का इस्तेमाल कर सकते हैं तो उस पर भी लिखें। हर दिन सबसे जरूरी कामों के लिए अलार्म लगाकर रखें।

गर्दन में अकड़न: इसमें गर्दन आगे की तरफ अकड़ जाती हैं। चलते समय संतुलन बनाने में परेशानी आ जाती है। मरीज चलते समय बार-बार गिरता है।
संतुलन में परेशानी: चूंकि पार्किंसंस की वजह से मांसपेशियों में अकड़न, गर्दन में अकड़न जैसी परेशानियां हो जाती है। इस कारण खड़े होने या चलते वक्त संतुलन बनाए रखने में दिक्कत होती है।

रिफ्लेक्स ऐक्शन में परेशानी: पार्किंसंस की वजह से कुछ काम जो अपने आप होते हैं, उनमें भी परेशानी होती है। मसलन, पलकों का झपकाना, चलते समय हाथों का हिलना, मुस्कुराना आदि। चेहरे पर एक ही तरह का भाव: जब शरीर पर पकड़ ढीली होने लगती है तो चेहरे पर अलग-अलग भावों का आना भी कम हो जाता है यानी सुख, दुख, हंसी सभी स्थितियों में भाव शून्यता की स्थिति बनने लगती है।

बोलने में बदलाव: जब परेशानी बढ़ती जाती है तो मरीज को बोलने में भी परेशानी होने लगती है। शब्दों के चयन में उलझन, कुछ शब्दों का नहीं बोल पाना आम हो जाता है।

हैंडराइटिंग में भी बदलाव: चूंकि हाथों में कंपन या अंगों पर पकड़ ढीली होने लगती है। इसलिए लिखावट में भी बदलाव आने लगता है। शब्दों का साइज छोटा या बड़ा हो जाता है। कई मरीज तो अपने दस्तखत तक नहीं कर पाते। इसलिए बैंकों से पैसे निकालने में उन्हें या उनके अटेंडेंट को परेशानी आती है।

निगलने में परेशानी: खाना निगलने में परेशानी हो सकती है। कई बार मरीज को हर निवाले को निगलने के लिए पानी का सहारा लेना पड़ता है।
बार-बार यूरिन जाना: वैसे तो यह किडनी या फिर यूरिन इंफेक्शन का लक्षण माना जाता है लेकिन पार्किंसंस का लक्षण भी है। फर्क यह हो सकता है कि यूरिन का अहसास हो लेकिन बाथरूम जाने पर यूरिन न हो।

नींद न आना: पार्किंसंस की वजह से मरीजों की नींद में खलल पड़ने लगता है। नींद कम आती है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। ऐसे मरीजों में असुरक्षा की भावना रहती है। वे तनाव में रहते हैं। कुछ लोग तो डिप्रेशन के मरीज भी हो जाते हैं। शरीर में थकान बहुत महसूस होती है। अगर किसी बुजुर्ग को नींद न आए और चलने आदि में परेशानी हो तो इसे सिर्फ बीपी और शुगर के रूप में ही नहीं, बल्कि पार्किंसंस की समस्या के रूप में भी देखना चाहिए।

क्या करें, जब हो जाए यह बीमारी
पर्किंसंस होने की सबसे अहम वजह है न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन (यह एक केमिकल है जो अंगों तक संदेश पहुंचाने का काम करता है।)की कमी हो जाना। दरअसल, इसी की मदद से शरीर के अंगों पर दिमाग की पकड़ रहती है। डोपामाइन की कमी को दूर करने के लिए डोपामाइन की गोली दी जाती है। हालांकि, इस गोली के भी कुछ साइड इफेक्ट्स हैं, जैसे: दिल की धड़कनों में बदलाव, उल्टी के लक्षण आदि।

DBS भी एक उपाय
पार्किंसंस के इलाज के लिए DBS (डीप ब्रेन स्टिमुलेशन) को भी अब एक उपाय है। इसमें सर्जरी होती है। दिमाग के उस भाग में इलेक्ट्रॉड लगाया जाता है जहां न्यूरॉन सूखा हुआ हो। बेहद हल्के करंट देकर दिमाग के उस हिस्से को फिर से ऐक्टिव किया जाता है। इस प्रक्रिया को FDA (यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) ने हरी झंडी दी हुई है। भारत में यह सर्जरी कई अस्पतालों में की जाती है।

क्या है चुनौती
यह महंगी सर्जरी है। इस पर अमूमन 5 से लेकर 20 लाख रुपये तक का खर्च आ सकता है। इसलिए गरीब आदमी की पहुंच से बाहर ही मानी जाती है। इलेक्ट्रॉड को चलाने के लिए सीने पर पेसमेकर की तरह एक बैट्री स्किन के नीचे फिट की जाती है जिसे हर 2 या 3 साल पर बदलवाना पड़ता है। साथ ही दिमाग की सर्जरी को एक गंभीर सर्जरी के रूप में भी देखा जाता है। इसलिए यह कुछ रिस्की भी है।

ऐसे करें पार्किसंस का खतरा कम
पार्किंसंस न हो या इसे किसी तरीके से रोक सकते हैं, ऐसा कहना और करना अभी शायद मुश्किल है, लेकिन पार्किंसंस होने की रफ्तार को धीमा करने की कोशिश जरूर की जा सकती है। काम से रिटायर होने पर भी ऐक्टिव लाइफ का रुटीन नहीं बदलना चाहिए। अगर अब तक कुछ जरूरी बातों को नहीं अपनाया है तो नीचे दी गई बातों को जरूर अपना लें:

फिजिकली ऐक्टिव रहें: शरीर को ऐक्टिव रखने से ही दिमाग भी ऐक्टिव रहता है। हर दिन 30 से 35 मिनट का ब्रिस्क वॉक करें। इस दौरान 2 से 3 मिनट की वॉक एक सीधी लाइन में करें। 2 से 3 मिनट की वॉक पीछे की तरफ भी करें और यह देखें कि आप सीधी लाइन में और पीछे की तरफ सही तरीके से वॉक कर पा रहे हैं या नहीं। अगर परेशानी हो तो डॉक्टर से जरूर कहें। इससे नींद भी अच्छी आती है।

नींद: हर दिन 6 से 8 घंटे की नींद लें। नींद पूरी न होने से पार्किंसंस की परेशानी जल्दी आ सकती है। इसके लिए चाय, कॉफी को सोने से कम से कम 4 घंटे पहले ही रोक दें।

योग: स्वस्थ रहने के लिए योग क्रियाएं करें। 5 मिनट कपालभाति और 5 मिनट अनुलोम-विलोम भी करें। अगर 2 से 3 मिनट सूर्य नमस्कार भी कर पाएं तो बेहतर है।

ध्यान: यह भी योग का एक अहम हिस्सा है। इससे दिमाग को केंद्रित करने में मदद मिलती है। अगर हर दिन 10 मिनट भी ध्यान कर पाएं तो बेहतर है।
प्रदूषित चीजों और प्रदूषण से बचें: आजकल इनसे बचना मुश्किल है, लेकिन शरीर में होने वाले इसके बुरे असर को कम करने की कोशिश कर सकते हैं। मसलन सब्जियों और फलों में मौजूद केमिकल की मात्रा को कम करने की कोशिश की जा सकती है। जब भी फल या सब्जी लाएं तो उसे 10 से 15 मिनट के लिए 3 से 4 लीटर पानी में एक से दो चम्मच नमक या 20 से 25 ग्राम इमली डालकर छोड़ दें। पानी को फेंकने के बाद ही इस्तेमाल करें।

जब बाहर का प्रदूषण स्तर ज्यादा हो तो बिना वजह बाहर न निकलें। उन जगहों पर कम से कम जाएं जहां का AQI 150 से ज्यादा हो। घर में मनी प्लांट या ऐसे प्लांट्स लगाएं जो पलूशन को कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं। जब भी बाहर निकलें, नाक के दोनों सुराखों में कुछ मात्रा में तिल या नारियल का तेल लगाकर निकलें।

खानपान: ताजा मौसमी सब्जियां और ताजे फल ही खाएं। हर दिन 4 से 5 बादाम खाएं। बादाम को रात में पानी में भिगों दें, सुबह छिलका हटाकर खाएं।
शौक पालें: ज़िंदगी में कोई शौक हो जिसे काम की अधिकता की वजह से पूरे न कर पाएं हों तो उन्हें जरूर पूरा करें। यह कोई गेम, म्यूजिक, डांस कुछ भी हो सकता है।

अपनों से दूर न हों: अपने दिल की बातों को शेयर करने के लिए किसी का होना जरूरी है। कोई दोस्त या कोई हम साया हो तो उनसे जरूर बातें करें। इससे जहां डोपामाइन भी ज्यादा ऐक्टिव होगा, वहीं याद्दाश्त भी बेहतर होगी।

लक्षण एक जैसे, बीमारी अलग
इसके लक्षण पार्किंसंस जैसे ही होते हैं, लेकिन कुछ फर्क भी होता है। इसमें दोनों हाथों और दोनों पैरों में एक साथ परेशानी शुरू होती है। शरीर में जकड़न, खाना या पानी निगलने में, बोलने में परेशानी आ जाती है। कई मरीजों को नीचे देखने में परेशानी हो सकती है। बार-बार पीछे गिरने की समस्या होती है। दरअसल, इसमें गर्दन पीछे की तरफ अकड़ने लगती है। ऐसी परेशानियां धीरे-धीरे नहीं, अचानक आती हैं। हमारे देश में पार्किंसंस जैसी बीमारी या पार्किंसंस प्लस या सिंड्रोम के होने के लिए कुछ दवाएं कसूरवार हैं। इनमें खासकर गैस कम करने वाली दवाएं सबसे अहम भूमिका निभाती हैं। पेट की एक दवा होती है जिसमें लेवोसल्प्राइड (Levosulpiride) सॉल्ट की मौजूदगी होती है। यह ऐंटैसिड श्रेणी की दवाओं में मौजूद होता है। जब हम ऐंटैसिड यानी गैस की दवाओं या उल्टी की दवाओं के साथ लेवोसल्प्राइड सॉल्ट किसी भी रूप में कई महीनों से कई वर्षों तक लेते हैं तो इसे हम ड्रग्स इंड्यूस्ड यानी दवाओं की वजह से होने वाली पार्किंसंस जैसी या पार्किंसंस प्लस बीमारी कहते हैं। इसके अलावा दिमाग से जुड़ी हुई ऐंटी-ड्रिप्रेशन की दवाओं से भी इसी तरह की परेशानी हो सकती है। मिर्गी की दवाओं का असर भी हो सकता है।

क्या है उपाय
अगर किसी दवा की वजह से पार्किंसंस जैसी बीमारी के लक्षण उभरते हैं, खासकर 60 साल से ज्यादा उम्र के हैं तो डॉक्टर से मिलकर उन्हें सारी बातें बताकर इन दवाओं को कम करा दें या बदलवा दें या फिर बंद करवा दें। इससे अमूमन 7 से 10 दिन के अंदर ही फर्क दिखने लगता है।

इनसे भी आ सकते हैं पार्किंसंस जैसे लक्षण
दिमागी चोट या ब्लड क्लॉट: किसी दुर्घटना के कारण भी पार्किंसंस के लक्षण उभर सकते हैं। ऐसा अमूमन तब होता है जब दिमाग में खून का थक्का जम जाए और इस वजह से दिमाग के अंदरूनी भाग पर दबाव बन जाए।
ट्यूमर: अगर ब्रेन ट्यूमर हो जाए तो शरीर में कंपन, भूलने की बीमारी जैसे लक्षण आ जाते हैं। ट्यूमर की वजह से भी दिमाग पर दबाव बढ़ जाता है। इस तरह की परेशानियों में अक्सर देखा जाता है कि जब ये ठीक होते हैं तो पार्किंसंस जैसे लक्षण भी चले जाते हैं।

नोट: ऊपर जितने भी लक्षण बताए गए हैं, वे दूसरी बीमारियों के भी हो सकते हैं। कोई भी दवा, जांच या इलाज अपने डॉक्टर की सलाह से ही लें।

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World Homeopathy Day 2022: बीमारी को जड़ से मिटाना हो तो होम्योपैथी को आजमाओ !

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होम्योपैथी, नाम तो सुना ही होगा। कुछ बात तो है कि ऐलोपैथी, आयुर्वेद, नेचरोपैथी और दूसरी विधाओं के बीच अब भी ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जो होम्योपैथी पर भरपूर भरोसा करते हैं। इसके बारे में एक बात अक्सर कही जाती है कि अगर बीमारी को जड़ से खत्म करना है तो होम्योपैथी का दामन थाम लो। आज होम्योपैथी डे है। होम्योपैथी के सीनियर डॉक्टरों से हमने जानने की कोशिश की कि किन-किन बीमारियों में यह ज्यादा कारगर है।


एक्सपर्ट पैनल

  • डॉ. सुशील वत्स सीनियर होम्योपैथ
  • डॉ. सुरेश सचदेवा सीनियर होम्योपैथ
  • डॉ. शुचींद्र सचदेवा सीनियर होम्योपैथ

वर्ल्ड होम्योपैथी डे 10 अप्रैल (आज) पर स्पेशल

मेडिकल हिस्ट्री जरूरी: इसमें इलाज कराते समय मरीज को बीमारी से जुड़ी अपनी पुरानी जानकारी बतानी होती है ताकि बीमारी जिन-जिन स्टेज से गुजरते हुए वर्तमान स्थिति में पहुंची है, ठीक भी इसी तरीके से हो।
परहेज की बात: तेज गंध वाली चीजें न खाएं। लहसुन और प्याज जैसी चीजें दवा लेने से 1-2 घंटे पहले न खाएं। साथ ही भोजन और दवा में कम से कम 15-20 मिनट का गैप रखें।

इन बीमारियों में होम्योपैथी है खास कारगर

स्किन की बीमारियां
जो बीमारी त्वचा से संबंधित हो, उनमें होम्योपैथी बहुत कारगर है। जैसे दाद-खुजली, सोरायसिस, फंगल इंफेक्शन, रिंगवॉर्म आदि। इनके अलावा यह कील-मुहांसों आदि में भी काम करती है।
-दाद-खुजली, स्किन से पानी आना, परतें जमना आदि के लिए Graphites Dilution, Arsenic Album
- कील-मुहांसों के लिए Black Bromatum dilution
- सोरायसिस ठीक करने के लिए Black Sulphur
- बाल झड़ने की परेशानी हो तो Silicea, Kalium Carbonicum, Natrum Muriaticum


सांस-फेफड़े की दिक्कत
बाहर के पलूशन का सलूशन हम अकेले नहीं निकाल सकते, हां उसे कम करने में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। वायु प्रदूषण का सबसे बुरा असर हमारे फेफड़ों और हमारी सांस लेने की क्षमताओं पर पड़ता है। अस्थमा के मरीजों की स्थिति तो और भी बुरी हो जाती है। ऐसी समस्याओं में होम्योपैथी की दवा ले सकते हैं।
-अस्थमा के युवा और वरिष्ठ मरीजों के लिए Lycopodium, Ipecac
- जिन बच्चों को अस्थमा है, उनके लिए Antim Tart
-बारिश और सर्दियों में होने वाले अस्थमा की परेशानी के लिए Natrium sulphur
-अलर्जी (छींक, नाक से पानी जाना) की वजह से होने वाली परेशानियों के लिए Nux Vomica, Tuberculinum, Natrum Mur

पेट से जुड़ी परेशानियां
पेट में वैसे तो कई तरह की परेशानियां होती हैं, उनमें से ऐसिडिटी और कब्ज की परेशानी बहुत लंबी चलती है। इलाज न हो तो यह धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। बाद में इस परेशानी निजात पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।
- किसी किसी भी तरह की कब्ज में Hydrastis Canadensis
- बदहजमी की परेशानी में जब पेट में दर्द भी हो तो Colocynthis
- लिवर की परेशानी हो, खासकर पीलिया होने पर Chelidonium
- अल्कोहल आदि लेने से होने वाली पेट की परेशानियों में Nux Vomica
- गॉल ब्लैडर में पथरी को हटाने के लिए Calcarea Carbonica, Phosphorus यहां इस बात को समझना जरूरी है कि गॉल ब्लैडर में पथरी का बनना उसमें मौजूद बाइल जूस की वजह से होता है। दावा किया जाता है कि ये दवाएं बाइल से बनी पथरी को फिर से तोड़कर बाइल में बदल देती हैं। इस तरह गॉल ब्लैडर की पथरी को खत्म करती हैं। ध्यान रहे कि यह प्रक्रिया किडनी या यूरेटर में मौजूद पथरी को पेशाब के रास्ते निकालने की प्रक्रिया से बिलकुल ही अलग है। दोनों में कोई समानता नहीं है।
- GERD (गेस्ट्रो इसोफेगल रिफ्लक्स डिसऑर्डर): जब पेट में मौजूद पाचक रस, एसिड आदि वापस इसोफेगस यानी फूड पाइप में वापस जाने की परेशानी हो तो Pulsatilla


किडनी की समस्या
आजकल किडनी की परेशानी बहुत बढ़ गई है। ऐसे मरीजों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है जो शुगर और बीपी के मरीज भी हैं। किडनी में होने वाले इंफेक्शन को रोकने में, पॉलिसिस्टिक किडनी (एक साथ किडनी में कई सिस्ट बन जाते हैं), यूरिन के इंफेंक्शन के मामले में भी होम्योपैथी में दवा है।
-अगर किडनी में, यूरिन ट्रैक्ट आदि में कहीं पर पथरी हो तो Berberis Vulgaris
- यूरिन इंफेक्शन, पथरी की समस्या बार-बार हो, किडनी की पुरानी बीमारियों में भी Lycopodium
-पेशाब में जलन, पेशाब में बदबू आदि को दूर करने में Benzoic Acid
-डायलिसिस में Aalserum का ऑप्शन रहता है।
- नेफ्रॉटिक सिंड्रोम: 2 से 6 साल के बच्चे को आंखों और पेट में किडनी की परेशानी की वजह से सूजन आ जाती है। ऐसे में ले सकते हैं Solidago V

जोड़ों में दर्द
सभी तरह के जोड़ों के दर्द के लिए होम्योपैथी में दवा उपलब्ध है। चाहे रुमेटाइड जैसी परेशानी ही क्यों न हो।
-जब पूरे शरीर में दर्द हो Camilia
- अकड़न, सभी प्रकार के जोड़ों में दर्द होने पर, सूजन होने पर Pulsatilla
- बारिश और सर्दी में जब जोड़ों में सूजन और दर्द बढ़ जाए Rhus Tox
- रुमेटाइड आर्थराइटिस की वजह से जब उंगलियां मुड़ जाती हैं, वे सीधी नहीं होती तो Causticam

मात्रा: 30 पोटेंसी में हर दिन 4 गोली 4 बार, एक महीने तक या फिर जरूरी होने पर आगे भी। दवा और उसकी मात्रा मरीज की स्थिति, बीमारी कितनी पुरानी है, उम्र आदि को देखने के बाद दी जाती है।
कहां की बनी दवा लें: पहले जर्मनी में बनी दवाएं बेहतर मानी जाती थीं। अब देसी भी अच्छी होती हैं।

नोट: कोई भी दवा अपने डॉक्टर की सलाह के बाद ही लें।

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कोरोना वैक्‍सीन का बूस्‍टर सबके लिए नहीं, एक्‍सपर्ट्स बता रहे कौन-कौन लगवाएं सावधानी की नई डोज

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कोरोना के नए-नए वेरियंट आने का सिलसिला जारी है। साथ ही, 10 अप्रैल से सरकार ने 18 से 59 साल तक के लोगों को प्रिकॉशनरी यानी ऐहतियातन डोज लगवाने का रास्ता भी साफ कर दिया है। पर सवाल अब भी कायम है कि क्या प्रिकॉशनरी डोज सभी के लिए जरूरी है? क्या यह सभी को लगवानी चाहिए? ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानिए देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स के पैनल से।

डोज की बेसिक बातें

प्रिकॉशनरी डोज क्या है और इसकी जरूरत क्यों है? इसे कौन लगवा सकता है?
कोरोना के मामले में यह देखा गया है कि वैक्सीन लगवाने के बाद जो ऐंटिबॉडी बनती है, वह ज्यादातर मामलों में 6 से 8 महीनों तक रहती है। प्रिकॉशनरी डोज उन लोगों के लिए है जिनकी इम्यूनिटी कमजोर स्थिति में पहुंच चुकी हो। ज्यादातर मामलों में यह किसी बीमारी की वजह से होती है। ऐसे लोगों को प्रिकॉशनरी डोज लगवानी चाहिए। यह पहली और दूसरी डोज लगने के बाद ही लगवाई जा सकती है। जिस किसी को दूसरी डोज लिए हुए 9 महीने का वक्त बीत चुका है और उसकी उम्र 18 साल से ज्यादा है। ऐसे सभी लोग प्रिकॉशनरी डोज लगवा सकते हैं।

इनके लिए है जरूरी
फ्रंटलाइन वर्कर्स, जैसे: मेडिकल स्टाफ, बैंक स्टाफ, पुलिस, मीडिया के लोग आदि। 18 साल से ज्यादा उम्र के ऐसे लोग जिन्हें कैंसर, लिवर, किडनी, हार्ट, लंग्स खासकर टीबी की बीमारी है। अगर इन अंगों का ट्रांसप्लांट हुआ है तो भी इम्यूनिटी की स्थिति कमजोर ही मानी जाती है। इनके अलावा शुगर के पुराने मरीज, जो पहले गंभीर रूप से बीमार रहे हैं और कम से कम 7 दिनों तक स्टेरॉइड की हेवी डोज चली है। सच तो यह है कि बीते दिनों में कोरोना इंफेक्शन की वजह से जो मौतें हुईं उनमें 75 से 80 फीसदी लोगों की उम्र 60 साल से ज्यादा थी। इसलिए हाई रिस्क को देखते हुए 10 जनवरी 2022 को 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए प्रिकॉशनरी डोज की शुरुआत की गई थी। सरकार ने इसे सभी के लिए जरूरी नहीं बनाया है। जिसे इसकी जरूरत है, वह लगवाए। यही कारण है कि इसे प्रिकॉशनरी (ऐहतियातन) डोज कहा गया है, न कि बूस्टर डोज।

फिर बढ़े केस, कब तक मिलेगा कोरोना से छुटकारा? एक्‍सपर्ट्स से जानें कितनी चिंता की बात

ये लोग भी लगवाने पर विचार करें
जिन लोगों की उम्र 50 साल से ज्यादा है। पांच-सात साल से शुगर और बीपी के मरीज हैं, वे भी इसे लगवाने पर विचार कर सकते हैं। अमूमन ऐसा माना जाता है कि शुगर पेशंट की इम्यूनिटी कमजोर होती है।

कम जरूरी है इनके लिए
50 साल से कम उम्र के हैं और 2020 या 2021 में कोरोना से पीड़ित हो चुके हैं, चाहे हल्के लक्षण उभरे थे या नहीं। कोरोना की दोनों डोज लग चुकी हैं। ऐसे लोगों की इम्यूनिटी काफी अच्छी मानी जाती है। इसलिए इन्हें खतरा कम है।

प्रिकॉशनरी डोज से कितना फायदा?
अगर किसी को पहले कोरोना हो चुका है। उसने वैक्सीन की दोनों डोज लगवा ली हैं तो उसे हाईब्रिड इम्यूनिटी (जब वैक्सीन की इम्यूनिटी और नेचलर इमयूनिटी साथ में मिलकर विकसित हो) मिल चुकी है। ऐसे लोगों के लिए प्रिकॉशनरी डोज बहुत फायदेमंद होगी, ऐसा कहना मुश्किल है। लेकिन अगर ऐसे लोगों को कोई गंभीर बीमारी है तो उन्हें प्रिकॉशनरी डोज लगवाने से फायदा होगा। कोरोना के खिलाफ शरीर में मौजूद ऐंटिबॉडी की संख्या अगर वक्त बीतने के साथ कम हो जाए या कमजोर पड़ जाए तो प्रिकॉशनरी डोज ऐंटिबॉडी की संख्या को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा सकती है।


यह भी कहा गया था कि अगर किसी को कोरोना के डेल्टा या ओमिक्रॉन वैरिएंट का इंफेक्शन हुआ हो और उसने डबल डोज भी ले ली हो तो आगे के लिए निश्चिंत हो जाना चाहिए, फिर प्रिकॉशनरी डोज क्यों?
दरअसल, प्रिकॉशनरी डोज खतरे से बचने के लिए है यानी ऐहतियातन है। यह सभी के लिए नहीं है। वहीं यह भी सच है कि नेचरल इम्यूनिटी से बनी ऐंटिबॉडी 20 महीने से ज्यादा समय तक मौजूद पाई गईं। कुछ रिसर्च तो यह भी कह रही है कि ऐसी इम्यूनिटी कई लोगों के शरीर में पूरी ज़िंदगी बनी रह सकती है। एक रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि नेचरल इम्यूनिटी यानी कोरोना के इंफेक्शन से बनी इम्यूनिटी, वैक्सीन से बनी इम्यूनिटी की तुलना में 1300 फीसदी ज्यादा ताकतवर है। फिर भी ऐसे लोग जिनकी इम्यूनिटी किसी वजह से कमजोर है, उनके लिए प्रिकॉशनरी डोज काफी फायदेमंद है।

प्रिकॉशनरी डोज न लगवाने से क्या कोरोना का खतरा बढ़ जाएगा?
अगर कोई शख्स बीमार है या जिसकी इम्यूनिटी कमजोर है, अगर वह वैक्सीन नहीं लगवाएगा तो उसके लिए परेशानी हो सकती है। वह कोरोना के नए इंफेक्शन का शिकार हो सकता है। लेकिन किसी को हाईब्रिड इम्यूनिटी मिल चुकी है तो उसके लिए खतरा कम ही है।

विदेश में क्रॉस वैक्सीनेशन कराया गया है, अपने देश में क्यों नहीं?
हां, यह सच है कि विदेश में तीसरी डोज के लिए क्रॉस वैक्सीनेशन का चलन है यानी पहली डोज के तौर पर जिस कंपनी की वैक्सीन लगी है, वैक्सीन की दूसरी डोज उस कंपनी की न लगाकर दूसरी कंपनी की लगाई गई। इससे ज्यादा फायदा देखा गया है। अपने देश में अभी इस तरह की रिसर्च कम हुई है। दूसरी वजह यह भी संभव है कि अभी कोविशील्ड का उत्पादन ज्यादा हो रहा है जबकि दूसरी वैक्सीन का कम। इसलिए यहां ज्यादातर लोगों को कोविशील्ड ही लगी है। ऐसे में सभी को कोवैक्सीन या स्पूतनिक-वी उपलब्ध कराना मुश्किल है। हालांकि, पिछले कुछ महीनों से वैक्सीन की उपलब्धता अच्छी बनी हुई है।

क्या प्रिकॉशनरी डोज XE वेरियंट के लिए दी जा रही है? अगर हां तो यह कितना काम करेगी?
जहां तक प्रिकॉशनरी डोज की बात है तो यह XE वेरियंट को देखने के बाद फैसला नहीं लिया गया है क्योंकि XE वैरियंट आखिरी स्ट्रेन नहीं है। इसके बाद भी नए वेरियंट आएंगे। हां, जो बीमार लोग हैं, उनको ऐसे इंफेक्शंस के खिलाफ खुद को तैयार कर लें- इसके लिए तीसरी डोज का फैसला लिया गया है।

मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग कब तक?
इनका साथ न छोड़ें तो बेहतर होगा। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग ने कोरोना के साथ फेफड़ों से जुड़ी परेशानियां जैसे- अस्थमा, टीबी आदि को फैलने से भी काफी हद तक रोका है। यह बात कोरोना के बाद स्टडी में भी सामने आई थी।

2 डोज वैक्सीन+कोरोना = शानदार इम्यूनिटी

मुझे कोरोना हो चुका है। एक बार कोरोना इंफेक्शन होने के बाद शरीर में ऐंटिबॉडी बन जाती है। क्या मुझे फिर भी वैक्सीन लेनी है?
कोरोना वायरस के खिलाफ शरीर में 2 तरह की ऐंटिबॉडी तैयार होती हैं। पहली, अगर कोई कोरोना पॉजिटिव हो जाए तो कोरोना संक्रमित मरीज में वायरस के लिए कुदरती तौर पर ऐंटिबॉडी बनती है। दूसरी, कोरोना वैक्सीन लेने के बाद। जिन्हें पहले कभी कोरोना हो चुका है और अब उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है, उन्हें भी कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज जरूर लेनी चाहिए। वहीं अगर इम्यूनिटी की स्थिति कमजोर है तो प्रिकॉशनरी डोज भी लगवानी चाहिए। सच तो यह है कि जब नेचरल और वैक्सीन दोनों तरह की ऐंटिबॉडी शरीर में एक साथ बनती है तो वह हाईब्रिड ऐंटिबॉडी कहलाती है।

कोरोना इंफेक्शन होने के बाद भी ऐंटिबॉडी शरीर में कई महीनों तक मौजूद रहती है?
कोरोना इंफेक्शन के बाद विकसित हुई ऐंटिबॉडी आगे कई महीनों तक रह सकती है। वैक्सीन के बाद विकसित हुई ऐंटिबॉडी 6 से 8 महीने तक तो रहती ही है। वहीं एक्सपर्ट्स यह भी कहते हैं कि नेचरल इम्यूनिटी जिंदगीभर रह सकती है, भले ही ब्लड टेस्ट में ऐंटिबॉडी की मौजूदगी न हो। शरीर उस वायरस को याद रख लेता है। इसे शरीर की सेल्यूलर मेमरी कहते हैं। भविष्य में जब भी फिर से वही वायरस शरीर पर हमला करता है तो शरीर पुराने अनुभव के आधार पर फौरन ही ऐंटिबॉडी बनाकर उसे मार देता है या उसके उत्पादन को काफी हद तक धीमा कर देता है और किसी भी तरह के गंभीर लक्षण अमूमन नहीं उभरते।

पेश है तीसरी डोज की पूरी जानकारी

कैसे लें यह डोज?
इसके लिए Co-WIN पोर्टल (www.cowin.gov.in) पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। इसके साथ ही ऐंड्राइड मोबाइल फोन से भी Co-WIN Vaccinator App से रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है। कोई बिना रजिस्ट्रेशन के भी ऐसे वैक्सीन सेंटर पर जाता है जहां कोवैक्सीन मौजूद है तो मुमकिन है तो उसका रजिस्ट्रेशन वहीं पर हो जाए। प्रिकॉशनरी डोज के लिए अलग से रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं होगी। जो भी नजदीकी प्राइवेट वैक्सीन सेंटर होगा, जहां कोवैक्सीन उपलब्ध होगी, उसे चुनकर उपलब्ध स्लॉट बुक करना होगा। फिर बताई गई तारीख पर जाकर वैक्सीन लगवानी होगी। हालांकि आजकल यह आसानी से उसी दिन के लिए भी बुक हो रही है। सेंटर पर पहुंचकर भी प्रिकॉशनरी वैक्सीन लग जाएगी।


डोज लेने से पहले क्या ध्यान रखना है?
तीसरी डोज लगवाने में कोई विशेष ध्यान रखने की जरूरत नहीं है। हां, अगर किसी को गंभीर बीमारी है तो वह अपने डॉक्टर से इस विषय में सलाह ले सकता है।

प्रिकॉशनरी डोज लेने का तरीका वही है या बदला है?
वही तरीका है। बदलाव सिर्फ यह आया है कि इसे अभी प्राइवेट अस्पतालों में 387 रुपये में लगवा सकते हैं। इसमें 225 रुपये वैक्सीन की कीमत, 150 रुपये सर्विस चार्ज और बाकी जीएसटी का चार्ज है।

प्रिकॉशनरी डोज के रूप में कौन-सी वैक्सीन दी जाएगी? क्या पहले वाली वैक्सीन दी जाएगी या फिर कोई नई वैक्सीन है? क्या मिक्स्ड वैक्सीन शुरू नहीं किया गया हैै?
वही वैक्सीन दी जाएगी जो पहले दी गई थी यानी अगर पहले कोविशील्ड लगी है तो तीसरी डोज भी कोविशील्ड की ही लगेगी। इसी तरह अगर कोवैक्सीन लगी है तो तीसरी डोज कोवैक्सीन होगी। अगर स्पूतनिक V पहले लगी है तो स्पूतनिक V ही लगेगी। हालांकि ब्रिटेन और अमेरिका में मिक्स्ड वैक्सीन (पहली वैक्सीन एक कंपनी की और दूसरी या तीसरी वैक्सीन दूसरी कपंनी की) लगाई गई। इनके अलावा भी कई दूसरे देशों में भी मिक्स्ड वैक्सीन लगाई जा चुकी है। चूंकि अभी इस पर अपने देश में ज्यादा स्टडी नहीं हुई है, इसलिए यहां पर मिक्स्ड वैक्सीन के लिए कोई रिस्क नहीं लिया गया है।

क्या प्रिकॉशनरी डोज लगवाने के बाद मोबाइल पर कोई मैसेज आएगा?
अगर किसी ने प्रिकॉशनरी डोज कोविन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराकर या प्राइवेट अस्पताल में पहुंचने के बाद वहां पर रजिस्ट्रेशन कराकर लगवाई तो रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर इसका मेसेज भी जरूर आएगा कि उस शख्स ने प्रिकॉशनरी डोज लगवा ली है।

इस मैसेज का उपयोग कहां-कहां पर होगा?
अपने देश में प्रिकॉशनरी डोज के सर्टिफिकेट या मैसेज की मांग कहीं पर नहीं है। हां, कुछ दूसरे देशों ने इस तरह की मांग रखी है कि उनके देश में यात्रा करने वाले लोग प्रिकॉशनरी डोज या तीसरी डोज भी लगवाकर यात्रा करें। ऐसे लोगों के लिए यह खासतौर पर उपयोगी है।

जब देश में सभी को वैक्सीन उपलब्ध नहीं हुई है तो ऐसे में प्रिकॉशनरी डोज शुरू करना कितना सही है?
यह सच है कि देश में अभी 61 फीसदी के करीब लोगों को ही वैक्सीन की दोनों डोज लगी हैं। दरअसल, प्रिकॉशनरी या तीसरी डोज को लगाने का फैसला इसलिए लिया गया ताकि जिन लोगों को खतरा ज्यादा है, उनकी इम्यूनिटी बेहतर हो सके। इसलिए प्रिकॉशनरी डोज लगवाने की शुरुआत 10 अप्रैल से 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए कर कर दी गई। सच तो यह है कि प्रिकॉशनरी डोज लगवाने की शुरुआत रिस्क फैक्टर को ध्यान में रखकर ही की गई है। पहले उन्हें दी गई जो ज्यादा रिस्क पर थे। अब उनसे कम रिस्क वाले को लगाई जा रही है। साथ ही, अब वैक्सीन की उपलब्धता भी बेहतर है।

मैंने एक डोज लगवाई है। दूसरी डोज अभी तक नहीं लगवाई। क्या मुझे कोरोना होगा?
अगर पूरी दुनिया में ज्यादातर लोगों को दो डोज न लगी हों या फिर नेचरल इम्यूनिटी ही 80 फीसदी से ज्यादा लोगों को न मिली हो तो फिर से दक्षिण अफ्रीका जैसे किसी देश में एक नया ओमिक्रॉन पैदा हो जाएगा। दरअसल, वायरस जब ऐसे शख्स के शरीर में पहुंचता है जिसके शरीर में ऐंटिबॉडी मौजूद नहीं हैं तो वह खुद को मजबूत बनाने के लिए म्यूटेशन करता है। कोरोना वायरस ने भी अफ्रीकी देशों में 50 से ज्यादा म्यूटेशन किए। सिर्फ अपने स्पाइक प्रोटीन में ही 30 से ज्यादा म्यूटेशन कर लिए थे क्योंकि उन देशों में वैक्सीनेशन की दर 5 फीसदी से भी कम थी। इसलिए वैक्सीन की दोनों डोज जरूर लगवाएं।

वैक्सीन के बाद भी कोरोना हो रहा है तो मैं वैक्सीन क्यों लगवाऊं?
वैक्सीन कोरोना इंफेक्शन को नहीं रोकती। हां, इस इंफेक्शन को गंभीर होने से रोकती है, खासकर उन लोगों में जिन्हें पहले से ही कोई गंभीर बीमारी है या जो 60 साल से ज्यादा उम्र के हैं। सीधे कहें तो अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति को काफी हद तक टाल देती है।
ब्रिटेन की स्टडी के अनुसार जिन लोगों को वैक्सीन लग जाती है, उनके गंभीर बीमार होने का रिस्क कम हो जाता है और फायदा बढ़ता जाता है। यह वैक्सीन इंफेक्शन रोकने में बहुत कम कारगर है, लेकिन...
  • गंभीर लक्षण वाले मरीजों के मामले में ज्यादा कारगर है।
  • इसे लेने के बाद अस्पताल में भर्ती होने और ऑक्सिजन की जरूरत कम पड़ती है।
  • लेने के बाद आईसीयू तक 80 फीसदी मरीज अमूमन नहीं पहुंचते।
  • इसे लेने के बाद कोविड की वजह से 2 फीसदी से भी कम लोगों की जान जाती है।
सर्टिफिकेट तीसरी डोज का

क्या तीसरी के बाद चौथी डोज नहीं लगेगी?
कई देशों में, खासतौर से भारत में यह अभी मुश्किल लग रहा है। इसकी वजह यह है कि अपने यहां अभी दूसरी डोज भी पूरी नहीं हुई है। वहीं, पिछले साल की दूसरी लहर के बाद लोगों में नेचरल इम्यूनिटी भी काफी विकसित हुई है। कोरोना को झेल चुके लोगों और दोनों डोज या फिर अब तीसरी डोज लगाए हुए लोगों के शरीर में हाइब्रिड इम्यूनिटी जैसी स्थिति बनती है यानी जिसमें नेचरल इम्यूनिटी भी हो और वैक्सीन से पैदा की हुई इम्यूनिटी भी। ऐसी इम्यूनिटी काफी मजबूत मानी जाती है।

क्या 12 साल से ज्यादा उम्र के सभी बच्चों को कोरोना वैक्सीन लगवाना जरूरी है?
वैक्सीन सुरक्षित है। सरकार का फैसला है कि लगवानी चाहिए तो लगवा लें। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि ज्यादातर बच्चों की इम्यूनिटी बड़ों की तुलना में बेहतर होती है। यही कारण था कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान भी बच्चे सबसे कम बीमार हुए। गंभीर रूप से बीमार लोगों में ज्यादातर 60 सल से ज्यादा उम्र के ही थे। अस्पतालों में भर्ती होने के मामले और आईसीयू तक पहुंचने के केस भी बुजुर्गों में सबसे ज्यादा देखे गए। साथ ही देश में ज्यादातर बच्चों में नेचरल इम्यूनिटी भी काफी हद तक विकसित हुई है। इसलिए फैसला व्यक्तिगत हो सकता है।

क्या इनके लिए भी सर्टिफिकेट जरूरी है?
अभी अपने देश में 18 साल से कम उम्र के सभी बच्चों के लिए वैक्सीन के सर्टिफिकेट की मांग नहीं की गई।

अगर मुझे तीसरी डोज के बारे में ज्यादा जानकारी चाहिए तो क्या कोई हेल्पलाइन नंबर या वेबसाइट्स उपलब्ध हैं?
सरकार ने बहुत पहले ही इसके लिए हेल्पलाइन और वेबसाइट्स बना दी हैं। इन फोन नंबर्स पर कॉल करके और वेबसाइट्स पर जाकर जानकारी मिल सकती है:
हेल्पलाइन

कोरोना के बारे में प्रामाणिक जानकारी
24X7 टोल-फ्री नंबर: 1075
हेल्पलाइन ईमेल आईडी: ncov.2019@gmail.com
ऑफिशल वेबसाइट: mohfw.gov.in
वॉट्सऐप हेल्पडेस्क: 9013151515

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फिर बढ़े केस, कब तक मिलेगा कोरोना से छुटकारा? एक्‍सपर्ट्स से जानें कितनी चिंता की बात

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नई दिल्‍ली: दिल्‍ली-एनसीआर में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। शनिवार को दिल्ली में 461 नए कोरोना केस मिले। संक्रमण दर 5 फीसदी से ज्यादा दर्ज की गई। नोएडा में शनिवार को 70 और गाजियाबाद में 17 केस मिले। राहत की बात यह है कि एनसीआर के शहरों में भी संक्रमितों को हॉस्पिटल जाने की जरूरत नहीं पड़ रही। शनिवार शाम तक दिल्‍ली के सबसे बड़े कोविड हॉस्पिटल- एलएनजेपी में सिर्फ 6 मरीज एडमिट थे।फरीदाबाद में इस समय 115 एक्टिव केस हैं, इनमें से अस्पताल में कोई नहीं है। नोएडा में सभी 218 संक्रमित घर पर रहकर इलाज करा रहे हैं। गुड़गांव में 671 पॉजिटिव लोगों में से सिर्फ 3 एडमिट हैं। गाजियाबाद में सभी 90 मरीज होम आइसोलेशन में हैं। यूपी के सीएम योगी ने गाजियाबाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा को अलर्ट मोड पर रखने के निर्देश दिए हैं। नए मरीजों के सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जाएंगे। केसेज बढ़ना कितनी चिंता की बात है और क्‍या कोरोना कभी नहीं जाएगा? ऐसे ही सवालों के जवाब जानिए हमारे एक्‍सपर्ट पैनल से।

यह नया वेरियंट क्या है?
वेरियंट का मतलब वैरायटी यानी बदलाव से है। वायरस में जितनी बार म्यूटेशन होगा, वह नया वेरियंट कहलाएगा। नया वेरियंट पहले आ चुके वैरियंट से ज्यादा खतरनाक होगा या कम, यह उसके इंफेक्शन रेट और शरीर को गंभीर अवस्था तक पहुंचाने की क्षमता पर निर्भर करता है।

क्यों होता है कोरोना वायरस में बार-बार म्यूटेशन?
ऐसा नहीं है कि यह म्यूटेशन यानी बदलाव सिर्फ वायरस में ही होता है। कैंसर होना भी अपने आप में एक तरह का म्यूटेशन है। फर्क सिर्फ इतना है कि कैंसर की वजह से हम बीमार होते हैं और वायरस म्यूटेशन अपने बचाव के लिए करता है। कोरोना वायरस में भी यही हुआ है। इंसान के शरीर में जब इम्यूनिटी डिवेलप होने लगती है, चाहे वह नेचरल से हो या वैक्सीन से बनने वाली तो इससे पार पाना वायरस के लिए मुश्किल हो जाता है। ऐसे में खुद को बचाए रखने के लिए वायरस अपना रंग-रूप बदलने लगता है। अब तक कोरोना में कई हजार म्यूटेशन हो चुके हैं, लेकिन ज्यादातर ऐसे म्यूटेशन थे जो जल्द ही अपने आप खत्म हो गए। हां, डेल्टा, डेल्टा प्लस और ओमिक्रॉन जैसे कुछ मजबूत वेरियंट्स लंबे समय के लिए रह जाते हैं और हमारे लिए समस्या पैदा कर देते हैं। अभी ओमिक्रॉन के BA.1, BA.2, BA.3 सब-वेरियंट्स मौजूद हैं। आने वाले समय में यह भी मुमकिन है कि BA.4, BA.5 भी आ जाएं।

यह XE वेरियंट क्या है? क्या यह खतरनाक है?
ओमिक्रॉन का तीन तरह का सब-वेरियंट्स बना था: BA.1, BA.2 और BA.3। भारत में BA.1 और BA.2 सब-वेरियंटस का इंफेक्शन ज्यादा फैला था। इसमें भी BA.2 ही सबसे ज्यादा फैला था। BA.2 को स्टील्थ ओमिक्रॉन भी कहा गया यानी यह इम्यून सिस्टम से बचकर निकल जाता था। इस सब-वेरियंट को बहरुपिया ओमिक्रॉन भी कहा गया। XE वेरियंट BA.1 और BA.2 के मिलने से बना है। यह ओमिक्रॉन से इंफेक्शन के मामले में ज्यादा तेज है, लेकिन इंफेक्शन होने के बाद गंभीर लक्षण उभरने के मामले में यह ओमिक्रॉन के जैसा ही है यानी गंभीरता के मामले बहुत ही कम बनते हैं। लक्षणों में ज्यादातर पेट से संबंधित मामले बनते हैं जैसे- लूज मोशन, पेट दर्द आदि। साथ में नाक से पानी आना, छींक आदि भी मुमकिन है। कम गंभीरता की वजह से ही इसे WHO (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) ने Variants of Concern (VOCs) की लिस्ट से बाहर रखा है यानी इस पर गंभीर होने की ज्यादा जरूरत नहीं है।

जिन्हें जरूरी, वही लगवाएं सावधानी की नई डोज

कब मिलेगा इस कोरोना से छुटकारा?
  • तकनीकी तौर पर देखेंगे तो यह शायद कभी भी पूरी तरह से खत्म न हो, लेकिन जिस हिसाब से वैक्सीनेशन हो रहा है और इंफेक्शन की वजह से लोगों में नेचरल इम्यूनिटी बनी है, इन दोनों के मिलने से हाइब्रिड इम्यूनिटी विकसित हुई है। ऐसे में यह मुमकिन है कि कुछ समय बाद यह धीरे-धीरे काफी हल्का पड़ जाए। बशर्ते कि हम सभी को वैक्सीन दे दें। दोनों या तीनों डोज 80 फीसदी लोगों को लगवा दें।
  • इसके पूरी तरह न खत्म होने की वजह यह भी है कि कोरोना वायरस जानवर से इंसानी शरीर में आया है। पिछले बरस की स्टडी में हमने यह भी देखा कि यह इंसानों से जानवरों में भी चला गया। सीधे कहें तो जानवर इनके लिए संग्रह केंद्र के रूप में विकसित हो सकते हैं। ऐसे में इसके पूरी तरह खत्म होने की गुंजाइश लगभग न के बराबर है। इसके बाद वायरस सामान्य सर्दी जैसा वायरस बनकर रह जाएगा।
  • अमूमन अभी तक सार्स फैमिली के वायरस का इंफेक्शन होने पर यह देखा जाता था कि हर संक्रमित शख्स में कुछ लक्षण जरूर उभरते थे। लेकिन इसी फैमिली का होने के बावजूद कोरोना इंफेक्शन के बाद भी आधे से ज्यादा लोग बिना लक्षण वाले होते हैं। ऐसे में कौन शख्स अपने अंदर कोरोना वायरस लेकर घूम रहा है, यह पता करना मुश्किल है।
अभी नए मामलों में बच्चों को कोरोना ज्यादा हो रहा है। क्या यह चिंता की बात है?
सीरो सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई है कि 80 फीसदी से ज्यादा बच्चों को नेचरल इम्यूनिटी मिल चुकी है। इनमें से अधिकतर बच्चों में बिना लक्षण वाला इंफेक्शन हुआ था। इसकी वजह है कि बच्चों में ऐस रिसेप्टर (सांस लेने के दौरान वायरस अमूमन यहीं चिपकता है) विकसित नहीं होता। दूसरी बात यह कि ऐंटिबॉडी तैयारी करने वाला थाइमस ग्लैंड (यह सीने में मौजूद होता है) अमूमन 15 बरस की उम्र तक बेहतर काम करता है और आराम से इंफेक्शन से लड़ लेता है। इसलिए बच्चों के लिए कोरोना से खतरा पहले की तुलना में अभी कम है, जैसा कि दूसरे देशों में भी देखा गया है। फिर भी स्कूल जाते समय मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखने से फायदा जरूर होगा।

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घबराएं नहीं... आम वायरल जैसा ही है इस बार का कोरोना

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किसी को बुखार तो किसी को खराश, किसी को गले में दर्द तो किसी को तीनों परेशानियां हो रही हैं। कई को पेट में दर्द, जलन, पेट में मरोड़, डायरिया, उल्टी भी हो रही है। जानकार कहते हैं कि ये कोरोना के लक्षण हो सकते हैं। फिर भी हम RT-PCR जांच नहीं करवाना चाहते क्योंकि इस बार ऐसे इंफेक्शन में अस्पताल में भर्ती कराने की स्थिति बहुत कम ही देखी जा रही है। ऐसे में क्या जरूरी है? ऊपर बताए हुए लक्षणों का इलाज कैसे कराना है और क्या ध्यान रखना है। देश के जाने-माने एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

किसी को इंफेक्शन से बचना हो या गले या पेट से जुड़ी परेशानी न हो, इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। वैसे हैं तो ये पुरानी बातें लेकिन इन्हें फिर से संजीदगी के साथ याद करना जरूरी हो जाता है। कोरोना जब से आया है, तब से यह गया नहीं है। पहली लहर, दूसरी, तीसरी अब चौथी लहर की बात हो रही है। आगे शायद पांचवीं या छठी या इसके बाद भी लहर देखने को मिले। इसलिए कुछ बातों को नहीं भूलना चाहिए। इनमें से कुछ बातों को जिंदगी में '+' (प्लस) और कुछ को '-' (माइनस) करना है:

कोरोना और प्लस, माइनस की बातें
  • '+' मास्क लगाएं और 5 फुट की दूरी बनाकर रखें।
  • '+' मौसमी फल जैसे तरबूज, खरबूज आदि जरूर खाएं।
  • '+' सलाद में खीरा खाएं। नीबू का सेवन भी करें।
  • '+' विटामिन-डी के लिए सुबह 7 से 10 बजे के बीच में 30 से 35 मिनट धूप में कम से कम कपड़ों में जरूर बैठें।
  • '+' घर का बना खाना खाएं। तेल-मसाला सामान्य रखें।
  • '+' हर दिन 6 से 8 घंटे की नींद पूरी करें। यह नींद अगर रात 10 या 11 से सुबह 5 से 6 बजे की बीच हो तो बेहतर है।
'-' (माइनस) वाली बातें
  • '-' सर्द और गर्म का ख्याल रखें। एसी से फौरन ही निकलकर गर्मी में न जाएं और गर्मी से आकर सीधे एसी में न बैठें। यानी ध्यान रखना है अंदर-बाहर के तापमान का अंतर 3 से 4 डिग्री से ज्यादा न हो। अमूमन एसी का तापमान 20 से 22 डिग्री सेल्सियस और बाहर का तापमान 30 से 40 डिग्री तक होता है। ज्यादा गर्मी बढ़ने पर बाहर का तापमान 40 डिग्री से भी ज्यादा हो जाता है।
  • '-' फ्रिज का ठंडा पानी न पिएं या अगर पीना है तो घड़े के पानी जितना ठंडा करके यानी ठंडे पानी में आधा सामान्य पानी को मिला दें।
  • '-' फिलहाल ठंडी चीजों जैसे आइस्क्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स आदि से बचें।
  • '-' बाहर का जूस, खासकर गन्ने का रस पीते समय बर्फ को हटवा दें। मुमकिन है कि बाहर जो बर्फ इस्तेमाल की जा रही है वह पुरानी हो। उसमें पहले से ही बीमार करने वाले बैक्टीरिया मौजूद हों।
  • '-' बाहर की चीजें खाने से बचें। पित्जा, बर्गर, नूडल्स से अभी दूरी बनाना बेहतर है।
  • '-' अगर गले में जरा-सी भी खराश होने लगे, शरीर में थकावट और हल्का बुखार महसूस हो तो ठंडी चीजें बिलकुल भी न खाएं।
इन्हें ज्यादा परेशान कर रहा है कोरोना
  • जिन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज नहीं ली है।
  • जिन्हें पहले से कोई गंभीर बीमारी है। साथ ही, अगर उन्होंने वैक्सीन की दोनों डोज नहीं ली है। अब तो प्रिकॉशनरी डोज की जरूरत भी ऐसे लोगों को पड़ने लगी है।
  • अगर शुगर और बीपी है, लेकिन ये काबू में नहीं हैं। सही तरीके से और सही समय पर दवा या इंसुलिन नहीं ले रहे।
  • जो खानपान और सेहत का ध्यान नहीं रखते। शराब-तंबाकू लेते हैं।
  • हेल्दी रुटीन फॉलो नहीं कर रहे यानी हर दिन 30 से 40 मिनट की वॉकिंग, एक्सरसाइज और 10 से 15 मिनट का योग नहीं कर रहे।
  • अगर गंभीर बीमारी नहीं है, लेकिन किसी इंफेक्शन या कोई दूसरी शारीरिक परेशानी की वजह से आजकल जिनकी इम्यूनिटी कुछ कमजोर हुई है।
वायरस जिस अंग में, इंफेक्शन वैसा
चाहे किसी को बुखार हो या खराश। किसी को पेट से जुड़ी परेशानी हुई हो। ऐसी समस्याएं किसी सामान्य से वायरस की वजह से हुई हों या फिर ओमिक्रॉन या नए XE वेरियंट की वजह से। वैसे भी XE वेरियंट ओमिक्रॉन से ही बना है। हमें इस बात में नहीं पड़ना है कि इंफेक्शन किस वायरस से हुआ है। यह सरकार का काम है कि वह जीनोम सीक्वेंसिंग के द्वारा देखे कि किस तरह के वायरस की वजह से इंफेक्शन हुआ है। कोरोना के सभी तरह के वायरसों के लिए फिलहाल इलाज का तरीका अमूमन एक जैसा ही है। कोरोना वायरस जब सांस की नली में पहुंचता है तो गले में खराश, खांसी, गले में दर्द होता है। इसे Respiratory Tract Covid (RT कोविड) कहते हैं। वहीं जब यह फूड पाइप के जरिए पेट और आंतों तक पहुंचता है और पेट में परेशानी पैदा होती है, मसलन: पेट में दर्द, पेट में मरोड़, लूज मोशन, उल्टी आदि तो इसे Gastrointestinal Covid (GI कोविड) कहते हैं। वहीं बुखार गले या पेट या फिर दोनों जगह इंफेक्शन की वजह से हो सकता है। इसलिए इलाज हमेशा लक्षणों के आधार पर होता है।

RT-PCR टेस्ट और आइसोलेशन

कौन कराए RT-PCR टेस्ट
1. बुखार, गले में खराश, गले में दर्द, शरीर में दर्द हो।
2. ऊपर बताए हुए लक्षणों के अलावा अगर पेट से जुड़ी समस्याएं भी हो, खासकर लूज मोशंस, उल्टी, पेट में मरोड़ आदि।
ध्यान दें कि ऊपर बताए हुए दोनों तरह के लक्षणों में अगर बुखार के साथ खराश और पेट से जुड़ी समस्याएं हों या न भी हों तो भी RT-PCR जरूर करवाएं। यह जांच डॉक्टर को दिखाकर या फिर खुद से निर्णय लेकर भी करा सकते हैं।
सर्दी-जुकाम के साथ सामान्य बुखार है तो यह 3 दिन में उतर जाता है। अगर कोई चाहे तो दूसरे या तीसरे दिन भी डॉक्टर से मिल सकता है। डॉक्टर फौरन ही जांच के लिए लिखता है तो RT-PCR करा लें। दरअसल, बुखार के साथ अगर दूसरे लक्षण भी मौजूद हैं तो टेस्ट कराना सही रहता है। अगर RT-PCR का नतीजा पॉजिटिव आए तो बुखार आने से 5 से 7 दिनों तक आइसोलेशन में जरूर रहें, खासकर ऐसे लोग जिनके घर में बुजुर्ग हों।

RT-PCR के रेट प्राइवेट अस्पतालों में

दिल्ली में
लैब में जाकर: 300 रुपये, होम कलेक्शन: 500 रुपये
यूपी में
लैब में जाकर: 700 रुपये, होम कलेक्शन: 900 रुपये
हरियाणा में
लैब में जाकर 299 रुपये, होम कलेक्शन 499 रुपये
महाराष्ट्र में
लैब या कोविड सेंटर में जाकर 350 से 500 रुपये, होम कलेक्शन: 700 रुपये

ये टेस्ट भी, पर RT-PCR ही बेस्ट
RT-PCR के अलावा क्विक ऐंटिजन टेस्ट और होम किट टेस्ट के ऑप्शन भी हैं, लेकिन रिपोर्ट नेगेटिव आने पर इसे सही नहीं माना जाता। फिर से RT-PCR करवाना ही पड़ता है। दरअसल, ये टेस्ट 60 से 70 फीसदी तक गलत हो सकते हैं यानी फॉल्स नेगेटिव हो सकते हैं। हां, पॉजिटिव आ गए तो ठीक।

क्विक ऐंटिजन टेस्ट रेट
दिल्ली: 100 रुपये
यूपी: 250 रुपये
हरियाणा: 50 रुपये
होम किट रेट: अमूमन 250 रुपये से शुरू

आइसोलेशन के दौरान यह रखें ध्यान...
  • खुद को एक कमरे तक सीमित कर दें।
  • किसी के करीब बैठने से बचें।
  • बैठना मजबूरी हो तो मास्क लगाकर रखें।
  • अगर बार-बार छींक या खांसी आए तो मुंह पर रुमाल रखें।
  • अगर मुमकिन हो तो बाथरूम भी अलग रखें। अगर संभव न हो तो जितनी बार बाथरूम जाएं, फिनाइल डाल दें।
  • डॉक्टर की मदद से इलाज करवाते रहें। चूंकि अभी भी कोरोना का कोई सटीक इलाज नहीं है, सिर्फ लक्षणों का ही इलाज किया जाता है। ये लक्षण किसी भी वजह से पनपे हों, इलाज का तरीका अमूमन एक जैसा ही होता है। यह लक्षणों की गंभीरता पर निर्भर करता है।
बुखार और बदन दर्द कर दे बेहाल तो...
बुखार 1. जब हमारे शरीर के ऐंटिबॉडी कमजोर पड़ने लगते हैं तो शरीर को अपना तापमान बढ़ाना पड़ता है। इससे बुखार 100 से ऊपर होते हुए 101, 102, 103 या कभी-कभी 104 डिग्री फारेनहाइट तक चला जाता है। कोरोना की वजह से बुखार अमूमन 3 से 5 दिनों तक रहता है।

शरीर का सामान्य तापमान
97.7 - 99 डिग्री फारेनहाइट

बुखार में तापमान
99 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर
कब लें बुखार में दवाएं
-थर्मामीटर में बुखार की रीडिंग जब 100 या इससे ऊपर जाए तो पैरासिटामॉल (डोलो, क्रॉसिन आदि) लें। चाहे वह बच्चा हो या कोई बड़ा।

बच्चों को कितनी मात्रा
-बच्चों को पैरासिटामॉल की दवाएं अमूमन उनके वजन के आधार पर दी जाती हैं। एक किलो के वजन पर
10 से 15 एमजी की दवा देते हैं। बच्चे का वजन 10 किलो है तो उसे 100 से 150 एमजी तक दी जाती है।

बड़ों को कितनी मात्रा
-अगर किसी बड़े को बुखार हुआ है और यह 100 या 101 तक पहुंच गया है तो उसे पैरासिटामॉल की 650 एमजी की गोली दे सकते हैं।

...तब जरूर करें पट्टी
जब बुखार 103 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर पहुंच जाए तो सिर पर सादा पानी से गीली पट्टी रखनी चाहिए। अगर बुखार कम करने के लिए मरीज को दवा दी है तो दवा का असर होने में 1 घंटा तक लग सकता है। साथ ही इस तापमान या इससे ऊपर तापमान जाने के बाद सिर काफी गर्म हो जाता है। शरीर में मौजूद हॉर्मोंस भी अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते। ऐसे में बुखार दिमाग को नुकसान न पहुंचाए इसके लिए ही डॉक्टर सिर पर पट्टी करने की सलाह देते हैं।

ऐसे करें पट्टी
बुखार 103 के करीब है और मरीज को ज्यादा परेशानी नहीं है तो सिर पर सादा पानी में भिगोकर पट्टी रखें। एक बार में 2 से 3 मिनट तक रखें। इसे फिर गीला करें और माथे पर फैलाकर रख दें। ऐसा 10 से 15 मिनट तक करें। अगर बुखार 103 से ज्यादा यानी 104 तक पहुंच चुका हो और मरीज को ठंड न लग रही हो तो बड़े तौलिये को सामान्य या ठंडे पानी में भिगोकर पीठ, छाती आदि जगहों पर रख सकते हैं।

यह है हरारत
कुछ लोगों को 99 डिग्री फारेनहाइट पर भी फीवर जैसा महसूस हो सकता है, जिसे हम हरारत (सुस्ती) यानी फीवर नहीं, लेकिन फीवर जैसा कह सकते हैं। यह हरारत थकावट आदि पर होती है। कई बार यह एसी में सोने की वजह से भी हो सकती है। इसके लिए अमूमन इलाज की जरूरत नहीं होती। आराम करने से ठीक हो जाती है। ध्यान रहे कि इसके साथ बाकी लक्षण जैसे गले में दर्द, लूज मोशन, पेट में मरोड़ आदि नहीं आते।

बदन दर्द
बुखार 100 से नीचे हो या ऊपर, बदन दर्द अमूमन साथ ही आता है। शरीर को बहुत ज्यादा थकावट महसूस होती है। ऐसे में ऊपर बताई हुई पैरासिटामॉल ही इसके लिए भी काम करती है। अलग से कोई दवा लेने की जरूरत नहीं।
नोट: पैरासिटामॉल की दवा बच्चे को दें या बड़े को, 6 से 8 घंटे के फासले पर ही दें। कभी भी दवा तब ही लें जब ज्यादा जरूरी हो। सच तो यह है कि अगर दवा लेने से फायदा होता है तो इसका नुकसान भी है।

गले में इंफेक्शन की जब हो परेशानी...
आजकल खराश, गले में दर्द, लगातार छींक जैसी परेशानी काफी देखी जा रही है। ये परेशानियां बच्चों और बड़ों दोनों में देखी जा रही हैं। जब भी ऐसी परेशानियां हों, कुछ उपाय तो फौरन ही करने चाहिए:
  • एसी से दूरी रखने की कोशिश करें। अगर एसी में रहना मजबूरी हो तो भी एसी का तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ही रखें।
  • ठंडी चीजों को बिलकुल न कह दें।
  • एक गिलास गुनगुने पानी में 1 से 2 चम्मच बिटाडिन या नमक मिलाकर दिन में दो बार सुबह-शाम गरारे करें। इससे ज्यादा की जरूरत नहीं होती।
  • अगर बलगम भी आ रहा है, गले में दर्द है तो दिन में दो बार स्टीम भी करें।
  • बासी खाना न खाएं। खाना गर्म ही खाएं।
...तब करें स्टीम
जब गरारे आदि से खराश खत्म न हो तो स्टीम की मदद ले सकते हैं। इसमें सादे पानी को उबालकर उसकी भाप को नाक और मुंह से अंदर खींचा जाता है। स्टीम ज्यादा असरदार तरीके से काम करे इसके लिए जरूरी है कि हम खुद को स्टीमर समेत कंबल या तौलिये से ढक लें। लोग इसमें कोई दवा मिला देते हैं। इसकी जरूरत नहीं होती। सादे पानी को अच्छी तरह से उबालने (5 मिनट तक उबालें) के बाद स्टीम अंदर खींचने से फायदा होता है। नाक से लें, मुंह से छोड़े और मुंह से लें नाक से छोड़ें। किसी सामान्य बर्तन से भी भाप ले सकते हैं। बर्तन से भाप लेने के दौरान ध्यान रखें कि पानी गिर न जाए, नहीं तो इससे जल सकते हैं। भाप लेने के दौरान पानी बेहद गर्म होता है, इसलिए स्टीम से भाप लेने से बचाव हो जाता है।

...तब करें नेबुलाइजेशन
इसका इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह से करें। नेबुलाइजेशन की प्रक्रिया अमूमन 10 मिनट की होती है। यह उनके लिए फायदेमंद है, जिन्हें सांस लेने में परेशानी हो, सांस की नली में सूजन, अस्थमा की परेशानी हो।

ऐंटिबायोटिक्स कब
अगर किसी के गले में दर्द या खराश ज्यादा हो। उसके लिए खाना और थूक निगलना भी मुश्किल हो जाता है। इसमें राहत के लिए ऐंटिबायोटिक्स लेना जरूरी है। ध्यान रखें कि ऐंटिबायोटिक्स डॉक्टर की सलाह से ही लें। अगर ऐंटिबायोटिक्स लेना जरूरी नहीं है तो न लें। हकीकत यह है कि आजकल बिना दवा के ठीक होने वालों की संख्या 90 फीसदी तक है। गले से संबंधित समस्या में डॉक्टर की सलाह से Azithromycin 500 एमजी सॉल्ट वाली दवा 3 या 5 दिनों तक सुबह नाश्ते के बाद एक गोली ले सकते हैं। इसी तरह खांसी के लिए कफ सिरप भी ले सकते हैं।

प्रोबायोटिक्स की बात
जब हम ऐंटिबायोटिक्स लेते हैं तो गुड बैक्टीरिया, जो पाचन में मददगार होते हैं, कई बार पूरी तरह खत्म हो जाते हैं या संख्या कम हो जाती है। इससे हमारे लिए खाना पचाना मुश्किल हो जाता है। कई डॉक्टर साथ में प्रोबायोटिक्स भी लिखते हैं। यह तभी ज्यादा कारगर है जब मरीज को उल्टी न हो। नेचरल प्रोबायोटिक जैसे: ताजे दही, छाछ आदि ले सकते हैं जो खट्टे न हों।

बुखार, बदन दर्द और गले का इलाज आयुर्वेद में
सितोपलादि चूर्ण या मुलेठी चूर्ण : मात्रा: दोनों में से किसी एक चूर्ण को आधा चम्मच, आधा गिलास पानी में मिलाकर पी लें।
कब लें: अगर गले में ज्यादा परेशानी नहीं है, बुखार भी 100 से नीचे रह रहा है तो दिन में 2 से 3 बार ले सकते हैं। अगर परेशानी ज्यादा है: खांसी बार-बार हो, गले में दर्द हो तो हर 2 घंटे में इसे ले सकते हैं। शहद में मिलाकर गर्म पानी के साथ लेने को कहते हैं।
गर्मी के लिए कूल काढ़ा : इन दिनों गर्मी है, इसलिए सर्दी वाला काढ़ा फायदा से ज्यादा नुकसान कर सकता है क्योंकि इससे पेट ज्यादा गर्म हो जाएगा। अगर पेट की परेशानी है तो बढ़ सकती है। इसलिए हमें गर्मी के हिसाब से काढ़ा तैयार करना चाहिए। तुलसी, काली मिर्च, सोंठ, दालचीनी सभी को 1-1 चम्मच मिलाकर 1 लीटर पानी में रात में छोड़ दें। सुबह बिना गर्म किए परिवार का हर शख्स 40 एमएल तक पी सकता है।

होम्योपैथी में दवा
कोविड-19 के नए मरीजों में ज्यादातर गले और पेट से जुड़े लक्षण दिख रहे हैं। ऐसे मरीजों के लिए होम्योपैथिक दवाओं के विकल्प हैं। अगर किसी को गले में दर्द, हल्का बुखार हो, शरीर में दर्द हो तो इन दवाओं में से कोई एक ले सकते हैं:
-Belladonna
-Ferrum Phos
- Bryonia -Pulsatilla
- Rhus Tox
- Arsenic
- Album

कोरोना से पेट में दिक्कत
कोरोना से होने वाले इंफेक्शन के लक्षणों में पेट से जुड़ी परेशानी आजकल काफी देखी जा रही है। 5 से 7 दिनों तक पेट में लहर, दर्द, लूज मोशंस भी काफी हो रहे हैं। कुछ लोगों को उल्टी भी हो रही है।

एसिडिटी से भी गले में गड़बड़
ज्यादा तेल-मसाले, देर से खाने, खाने का एक समय तय न करने आदि की वजह से भी गले में खराश, खांसी की परेशानी हो जाती है। दरअसल, इस वजह से हमारी पाचन क्रिया प्रभावित होती है और शरीर खाना पचाने के लिए ज्यादा मात्रा में एसिड निकालता है। यह एसिड कई बार पेट में वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से पेट से ऊपर गले तक पहुंच जाता है।

जब पेट में हो गुड़गुड़...
पेट की खराबी होने पर यह जरूरी है कि हमारे शरीर में पानी और नमक की मात्रा सही रहे। ऐसा न होने पर डिहाइड्रेशन की आशंका बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए नीचे लिखे उपाय जरूर होने चाहिए:

पानी की मात्रा बराबर रहे
  • कोरोना से इंफेक्शन के बाद बुखार के साथ पेट की समस्याएं आ रही है। हर दिन 3 से 4 लीटर लिक्विड लें, जिसमें ढाई से तीन लीटर पानी हो।
  • उल्टी नहीं हो रही है तो एक बार में 200 से 300 एमएल तक पानी पिएं। फिर 1 से 2 घंटे पर पानी पीते रहें।
  • अगर उल्टी हो रही है तो एक बार में 100 एमएल से ज्यादा पानी न पिएं।
  • गले से जुड़ी परेशानी न भी हो तो फ्रिज का ठंडा पानी न पिएं। फिल्टर का सामान्य पानी बेहतर है।
  • अगर घड़े का पानी पीते हैं तो इस बात की तसल्ली कर लें इंफेक्शन की कोई गुंजाइश न हो।
  • नारियल पानी काफी फायदेमंद है, लेकिन शुगर और किडनी पेशंट को नहीं पीना।
इस रूप में भी ले सकते हैं पानी
  • जलजीरा या शिकंजी भी पी सकते हैं।
  • आम पना, बेल का शर्बत आदि। ये सभी चीजें पेट में मौजूद गुड बैक्टीरिया को भी फील गुड कराती हैं।
नोट: अगर किसी को किडनी आदि की परेशानी है, जिसमें पानी और नमक आदि की मात्रा को सीमित करने के लिए कहा गया है तो पानी की मात्रा बढ़ाने का फैसला डॉक्टर की सलाह से ही करें।

डॉक्टर की सलाह से ही लें दवा
  • अगर पेट में दर्द हो या मरोड़ हो तो जब तक सह सकते हैं तो सहें। जब बर्दाश्त न हो तो ही पेनकिलर लें। दरअसल, कई बार पेनकिलर लेने की वजह से गैसट्राइटिस (आंतों में सूजन) की स्थिति बन सकती है। ऐसे में एंडोस्कोपी भी करानी पड़ सकती है। इसलिए बिना वजह दवा न लें।
  • अगर परेशानी ज्यादा है तो Oflox Oz सॉल्ट वाली दवा की एक गोली हर दिन एक ले सकते हैं। यहां इस बात का भी ध्यान रखें कि ऐसी दवाओं के लेने से आंतों की ऊपरी सतह जो खाने में मौजूद पोषक तत्वों का जज्ब करने की क्षमता रखता है, बिगड़ जाती है। ये पाचन के लिए निकलने वाले एंजाइम यानी पाचक रसों की मात्राओं को भी बुरी तरह प्रभावित करती है। इसलिए नेचरल प्रोबायोटिक, जैसे: दही आदि का भी सेवन करते रहें। ध्यान रहे कि बच्चा हो या बड़ा दूध हरगिज न लें।
  • अगर डायरिया है तो Ornidazole सॉल्ट वाली दवाएं हर दिन एक गोली ले सकते हैं।
  • उल्टी होने के 45 मिनट तक खाने के लिए न दें।
नोट: ऊपर बताई हुई ऐलोपैथ की दवाओं के साल्ट नाम बताए गए हैं। ये बाजार में कई ब्रैंड नाम से उपलब्ध हैं। ध्यान रहे ऊपर बताई हुई ऐलोपैथिक दवाओं के साथ कभी भी अल्कोहल यानी वाइन आदि का सेवन न करें। यह बहुत ज्यादा खतरनाक हो सकता है।

आयुर्वेद
  • गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक, लहसुन, गुड़ आदि की खाने में मात्रा कम करें।
  • नॉन वेज आदि कम करें।
  • अगर 2 बार लूज मोशंस हो रहा है तो कुटजघन वटी की 2 गोलियां 2 बार लें। अगर 3 बार लूज मोशंस हो रहा है तो 2 गोलियां 3 बार लें। इसी तरह बढ़ा सकते हैं।
  • अगर गले में कंजेशन है तो गुड़ का एक छोटा टुकड़ा (5 से 7 ग्राम) खा लें और साथ में गुनगुना पानी पी लें। फायदा होता है।
बच्चों में पेट से जुड़ी समस्या
सीतोपलादि चूर्ण एक चौथाई चम्मच को एक चौथाई चम्मच शहद के साथ मिलाकर दिन में 3 बाद दें। अगर कोई चाहे तो बिना परेशानी के बचाव के लिए भी इसे दे सकता है। यह चूर्ण गले की समस्याओं के साथ पेट से जुड़ी समस्याओं में भी बच्चों के लिए काम करता है।

बच्चों में बुखार होने पर...
बच्चे को गले में खराश हो या न हो, पेट की समस्या हो या न हो, बुखार हो तो गिलोय सत्व दे सकते हैं।
अगर बुखार 100 तक हो: 2 ग्राम, दिन में चार बार दें।
अगर बुखार 100 से ऊपर: 3 ग्राम, 4 बार दें।

होम्योपैथी
जब पेट में दर्द, दस्त ,ऐंठन और गैस बने तो इनमें से कोई एक दवा लें:
-Nux Vomica
-Lycopodium
-Magnesium Phos
-Arsenic
-Album
-Pulsatill

उल्टी होने पर
दो बार से ज्यादा उल्टी होने पर लें:
-Ipecac
-सभी तरह की होम्योपैथी की दवाओं को 30 C पावर में 3 से 5 दिन लेने से आराम हो जाता है।

ध्यान दें: कोई भी दवा अपने डॉक्टर की सलाह से ही लें। दरअसल, दवा मरीज की स्थिति, उसका वजन और दूसरी परेशानियों को देखकर दी जाती है।

एक्सपर्ट पैनल
-डॉ. अरविंद लाल, एग्जिक्युटिव चेयरमैन, डॉ. लाल पैथ लैब्स
-डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन, मेडिकल, IP यूनिवर्सिटी
-डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
-डॉ. कैलाशनाथ सिंगला, सीनियर कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेरॉलजिस्ट
-नीलांजना सिंह, सीनियर डाइटिशन
-डॉ. पूनम साहनी, डायरेक्टर-लैब, सरल डायग्नोस्टिक्स
-डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
-डॉ. अरुण गर्ग, सीनियर कंसल्टेंट ENT फोर्टिस
-डॉ. सुशील वत्स, सीनियर होम्योपैथ
-डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, सीनियर पीडीअट्रिशन
-डॉ. सत्या एन. डोरनाला, वैद्य-साइंटिस्ट फेलो

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स्ट्रेस रहेगा दूर, हेल्दी रहेंगे और 10 मिनट की हंसी आपका दिन बना देगी, जानें क्या-क्या हैं हंसने के फायदे

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हंसने से हस्ती बनती है। हंसने से हेल्दी होते हैं। हंसने से क्या-क्या नहीं होता। दरअसल हंसना एक ऐसी संक्रामक क्रिया है जो अक्सर दूसरे शख्स तक भी आसानी से पहुंच जाती है। इसके बाद आसपास मौजूद लोग सामूहिक हंसी में शामिल हो जाते हैं। कहते हैं कि सुबह की 10 मिनट की हंसी आपका पूरा दिन बना देती है। पर सवाल है कि क्या ऐसा सचमुच कर पाते हैं? क्या हंसने से बीमारियां दूर हो सकती हैं? अगर कोई हम पर हंसे तो हम क्या करें, हंसने से क्या कोई केमिकल बदलाव भी होता है? ऐसी ही बातों को देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से जानने की कोशिश की लोकेश के. भारती ने:

किस उम्र में हो कितनी हंसी एक दिन में
5 साल से कम
  • औसतन हंसते हैं: 350 से 400 बार
  • हंसना चाहिए: 400 बार से ज्यादा, एक बार में कम से कम 2 से 5 सेकंड के लिए
5 साल से ज्यादा
  • औसतन हंसते हैं: 30 से 40 बार 3 से 7 सेकंड के लिए
  • हंसना चाहिए: 50 बार से ज्यादा, एक बार में कम से कम 5 से 7 सेकंड के लिए

हंसते-हंसते कट जाए रस्ते, ज़िंदगी यूं ही चलती रहे...
  1. वर्ल्ड लाफ्टर रिपोर्ट 2022 के अनुसार 146 देशों की सूची में भारत का स्थान 136वां है। हमें ज्यादा हंसने की जरूरत है।
  2. हंसने से सांसें तेज, दिल की धड़कनें तेज, खून का बहाव तेज और हम सेक्शुअली भी ज्यादा ऐक्टिव होते हैं। एक बार हंसने के दौरान अमूमन 10 से 12 मांसपेशियां शामिल होती हैं।
  3. हंसी की छोटी डोज़ हो या बड़ी, सेहत के लिए फायदेमंद है। लोग आपस की बातचीत में अमूमन हंसी का सहारा लेते हैं। हंसना-मुस्कुराना सभी के लिए जरूरी है।
  4. हम जन्म के 3 महीने के बाद से ही हंसना शुरू कर देते हैं। हंसने की क्रिया में हमारा चेहरा, छाती, फेफड़े, दिल जैसे अंग शामिल होते हैं।
  5. हंसी लोगों से जुड़ने का एक बेहतरीन जरिया है। रोमन साम्राज्य में 'हिलेरिया' फेस्टिवल मनाने की शुरुआत हुई थी। हंसना-हंसाना ही इस दिन का मकसद था।
  6. हंसने से शरीर में एंडॉर्फिन केमिकल बनता है जो दूसरे जरूरी हॉर्मोन को ज्यादा ऐक्टिव रखने का काम करता है। इससे शरर के बाकाी काम सही तरीके से पूरे होते हैं।
  7. कोई शख्स 10 मिनट की सामान्य बातों के दौरान अमूमन 7 से 10 बार हंसता है। अहम बात यह कि उसे इस बात का पता भी नहीं चलता।
  8. एक स्टडी के मुताबिक महिलाएं पुरुषों की तुलना में 25 से 30 फीसदी ज्यादा हंसती हैं। इससे उन्हें तनाव भी कम होता है। वह अपने काम ज्यादा बेहतर तरीके से कर पाती हैं।

कभी हंस भी लिया करो
एक हिंदी फिल्म में यह संवाद कई बार बोला गया। यह काफी हिट भी रहा। मैं तो कहता हूं कभी क्यों, दिनभर में इतनी बार हंसें कि हाफ सेंचुरी लग जाए। हंसने से सिर्फ माहौल अच्छा नहीं होता बल्कि यह शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है। हंसने से पॉजिटिव हॉर्मोन भी लगातार निकलते हैं। इससे बीपी भी कम होता है। इतना ही नहीं, जिन लोगों की जिंदगी में हंसी ज्यादा होती है, उनकी सेक्स लाइफ बेहतर होती है। हंसने से शरीर के सभी रिलैक्सेशन पॉइंट ऐक्टिवेट होते हैं।

सिग्नल है हंसी
हंसी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसके जरिये से हम अपने ग्रुप, समाज और आसपास के लोगों को संदेश देते हैं कि हम आपकी बातों से सहमत हैं। सीधे कहें तो यह उनसे जुड़ने का सिग्नल भी हो सकता है। खासकर जब हम किसी अजनबी शख्स की बातों पर हंसते हैं तो एक तरह से यह इशारा भी हो सकता है कि आपस में आगे भी बात हो सकती है।

पॉजिटिव इंफेक्शन है हंसी
हंसी के साथ अच्छी बात है कि यह संक्रामक होती है। एक ने हंसना शुरू किया तो उसे देखकर वजह जाने या बिना जाने दूसरा शख्स भी हंसने लगता है। फिर दूसरे से तीसरा और चौथा, इस तरह यह फैलती जाती है। अगर हम इस संक्रमण की शुरुआत घर से करें। परिवार के सदस्यों में इसे फैलाएं तो घर-परिवार में सकारात्मक माहौल बनता है। हंसी के अलावा उबासी भी संक्रामक मानी जाती है। किसी को देखने के बाद हमारी उबासी भी अक्सर शुरू हो जाती है।


नहीं होती असली या नकली हंसी
यह नकली होती ही नहीं। हंसी एक व्यायाम है जो हमारी मानसिक और शारीरिक सेहत को दुरुस्त करने में काफी मददगार है। इसे व्यायाम की तरह ही लेना चाहिए। यह ठीक उसी तरह है जैसे कोई शख्स चाहे मन मारकर वॉक करे या गाना सुनते हुए वॉक करे। उसकी कैलरी बर्न तो होगी ही। हंसी के साथ भी ऐसा ही है। शुरुआत भले ही मन मारकर की हो, असर उतना ही पड़ता है। जिस तरह योग असली या नकली नहीं होता, टहलना या व्यायाम करना असली या नकली नहीं होता, उसी तरह हंसी भी असली या नकली नहीं होती। हां, कई बार इसकी शुरुआत की वजह बनावटी हो सकती है, लेकिन हंसने के दौरान जो क्रियाएं होती हैं: चाहे वह सांस तेज होना, दिल की धड़कनों का तेज होना, मूड फ्रेशनर के रूप में काम करना, ये सब नकली हंसी में भी होती है।

बोली न हो, पर होती है हंसी
पैदा होने के 3 महीने के बाद से ही बच्चा हंसना शुरू कर देता है। जब कोई शख्स मूक और बधिर होता है तो वह भले ही बात न कर सके, लेकिन हंसना वह भी जानता है। यहां तक कि अगर दुर्घटना की वजह से किसी शख्स की बोलने या सुनने की शक्ति चली जाए तो भी उसका हंसना जारी रहता है।

हंसने के तरीके अलग-अलग
हर शख्स का हंसने का तरीका अलग-अलग हो सकता है। कोई जोर-जोर से हंसता है तो कोई धीमे से। हंसने के दौरान किसी का पूरा शरीर हिलता है तो किसी की आंखें बंद हो जाती हैं। पर हंसने के दौरान एक बात सभी तरह की हंसी पर लागू होती है, वह है सांस छोड़ने की क्रिया। जब हम हंसते हैं तो हम तेजी से सांस बाहर की ओर फेंकते हैं जैसा कि हम प्राणायाम के दौरान भी करते हैं। इसलिए कई एक्सपर्ट हंसने की क्रिया को हास्य योग भी कहते हैं। सुबह-सुबह कई पार्कों से ठहाकों की आवाजें अक्सर सुनाई देती हैं। ये हास्य योग कर रहे होते हैं। इनकी शुरुआत बिना वजह की हंसी से होती है, लेकिन चंद सेकंडों के बाद यह कुदरती रूप ले लेती है।

हंसते समय कुछ भी न रखें ध्यान
हंसने में कंजूसी कभी न करें। जितनी जोर से हंसी आए, उतने ही जोर से हंस लें। यह न सोचें कि सामने वाला क्या सोचेगा। ठहाका लगाना कई बार जिंदादिली की निशानी होती है। हां, आपकी हंसी से अगर कोई डिस्टर्ब हो रहा हो तो उसे भी शामिल कर लें। अगर किसी जरूरी मीटिंग में हों और इससे आपका नुकसान हो सकता है तो फिर कुछ समय के लिए टाल दें, पर खत्म न करें। मीटिंग से बाहर आने के बाद उन बातों को याद कर जरूर हंसें। हंसने का कोई मौका जाने नहीं देना चाहिए।

हंसी और हॉर्मोन का संबंध
हंसने से हमारे शरीर में एंडॉर्फिंस केमिकल और ऑक्सिटोसिन हॉर्मोन ज्यादा मात्रा में बनता है। इन्हें फील-गुड हॉर्मोंस भी कहा जाता है। ये मूड को बेहतर बनाने का काम करते हैं। एंडॉर्फिंस केमिकल निकलने की वजह से, घबराहट वाले हॉर्मोन एड्रिनलिन आदि की मात्रा कम हो जाती है। इससे कई बार परेशानी में होने के बाद भी दिल की धड़कनें असामान्य नहीं होतीं। हम समस्याओं को सही तरीके से सुलझा पाते हैं। हमारे फील-गुड हॉर्मोंस इन्हें बैलेंस कर देते हैं।

लाफ्टर के फायदे ही फायदे
हंसने की आदत कह लें या फिर खासियत, यह इंसानों के अलावा चिंपांजी, लंगूर और चूहों को ही मिली है। हमारे लिए हंसी के फायदे कई तरह के और कई रूपों में सामने आते हैं।

मानसिक सेहत में फायदा
दिमाग पर तनाव कम हो, इसमें हंसी अहम भूमिका निभा सकती है। जो हंसते हैं, उनपर समस्याओं का दबाव ज्यादा नहीं पड़ता।

हंसी से बढ़ता है खुद पर यकीं
जब कोई शख्स हंसता है तो वह पॉजिटिविटी की तरफ बढ़ता है। पॉजिटिव होने से हम हर तरह के काम में ज्यादा लॉजिकल होते हैं, चाहे वह घर का काम हो या फिर ऑफिस का। हम किसी भी काम को बेहतर तरीके से कर पाते हैं। दिमाग शांत और तनाव-रहित होता है तो हमारा खुद पर यकीन भी ज्यादा होता है। ऑफिस में भी इसका पॉजिटिव असर जरूर दिखता है।

डिप्रेशन के मामले कम
एक गजल है- 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छिपा रहे हो'। मुस्कुराकर भले ही अपने गम को कुछ समय के लिए छुपाया जा सकता हो या टाला जा सकता हो, पर मुस्कुराने या हंसने की आदत है तो डिप्रेशन अमूमन दूर ही रहता है। गम भी ज्यादा कुछ बिगाड़ नहीं पाता। जिस शख्स को हंसने या मुस्कुराने की आदत है, उसे भले ही टेंशन या फिर डिप्रेशन कुछ समय के लिए जकड़ ले, लेकिन अपनी पॉजिटिव आदतों की वजह से वह आसानी से इससे बाहर भी निकल जाता है।

रिश्ते भी मजबूत
कहते हैं कि ज़िंदगी में हंसी को शामिल करें, देखिए दोस्तों की कोई कमी नहीं होगी। हकीकत यह है कि आज तनाव की चीजें ज्यादा हैं और तनाव कम करने वाली कम। ऐसे में जब कोई शख्स हंसते और मुस्कुराते हुए कोई बात कहता है तो ज्यादातर लोग ऐसे शख्स को पसंद करते हैं। उनसे बातें करना चाहते हैं। अमूमन ऐसा शख्स जो पॉजिटिव बातें करता है, हंसने और हंसाने वाली बातें करता है तो उसके ग्रुप के लोग या रिश्तेदार उससे खुश रहते हैं। इसलिए वे चाहते हैं कि ऐसे शख्स से बार-बार मिला जाए। बिना किसी कोशिश के ऐसे शख्स के रिश्ते बेहतर हो जाते हैं।

ऐसे बुजुर्ग ज्यादा ऐक्टिव
अमूमन ऐसा देखा जाता है कि जब किसी शख्स की आदत में हंसना शामिल होता है तो वह बुढ़ापे में भी काफी ऐक्टिव रहता है। इसकी वजह भी उसके शरीर में तुलनात्मक रूप से ज्यादा एंडॉर्फिन बनना होता है। यह हॉर्मोन उम्र के उस पड़ाव पर भी शरीर में बनने वाले दूसरे हॉर्मोन को भी ऐक्टिव रखता है।


शारीरिक सेहत मजबूत, खून के बहाव में इजाफा
जब हम एक्सरसाइज, वॉक या योग करते हैं तो हमारे शरीर में खून का बहाव तेज होता है। इससे शरीर की कोशिकाओं तक ऑक्सिजन की ज्यादा मात्रा पहुंचती है। इससे कोशिकाएं ज्यादा ऐक्टिव होती हैं। उनमें ऊर्जा का उत्पादन ज्यादा होता है। इसका फायदा हमारे सभी टिशू और अंगों को होता है। वे बेहतर तरीके से और पूरी क्षमता से काम कर पाती हैं क्योंकि सभी टिशू और अंग अरबों कोशिकाओं के मिलने से ही बने हैं। हम ऊर्जावान महसूस करते हैं। हंसी यानी लाफ्टर भी एक तरह का योग या एक्सरसाइज है। हंसी के दौरान खून का बहाव 20 फीसदी तक तेज होता है, हमारी सांसें तेज होती हैं, धड़कनें बढ़ती हैं, ऊर्जा की खपत होती है।

बीपी नॉर्मल और दिल मजबूत
हंसने से हमारा बीपी नॉर्मल होता है। खासकर सिस्टॉलिक (सामान्य बीपी 120/80) बीपी। ध्यान रहे कि सामान्य बीपी की रीडिंग में 120 की रीडिंग सिस्टॉलिक और 80 को डायस्टॉलिक कहते हैं। चूंकि हंसने से खून का बहाव तेज होता है तो हार्ट को पंप करने में भी यह मदद करता है। जब बीपी सामान्य रहेगा तो यह स्वाभाविक है कि दिल के लिए हंसी ही दोस्ती निभाएगी।

इम्यूनिटी बेहतर और गहरी नींद
जब हम हंसते हैं तो पॉजिटिव हॉर्मोन बढ़ते हैं। ऑक्सिजन ज्यादा मात्रा में और ज्यादा देर के लिए शरीर में ठहरती है। इससे शरीर में बनने वाले और मौजूद ऐंटिबॉडी (वाइट ब्लड सेल्स जो शरीर में इम्यूनिटी के लिए काम करते हैं) को ज्यादा मात्रा में ऑक्सिजन उपलब्ध रहती है। इससे इनकी संख्या में कमी नहीं आती। अगर किसी को देर रात स्क्रीन देखने की लत नहीं है तो सिर्फ 10 मिनट की हंसी से 2 घंटे की गहरी नींद मिलती है।

मोटापा कुछ कम
कोई हर दिन 30 से 40 मिनट हंसता है तो वह अमूमन 50 से 100 कैलरी बर्न करता है। यह कैलरी 15 से 20 मिनट वॉक के बराबर है। इसलिए हंसते रहने से भी मोटापा कम होता है।

स्किन ग्लो
चूंकि हंसी की वजह से शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा में इजाफा होता है तो इसका सकारात्मक असर हमारी स्किन पर भी पड़ता है। यह असर एक दिन या एक महीने में नहीं होता। ऐसा देखा जाता है कि जो लोग हंसमुख होते हैं, उनकी स्किन ऐसे लोगों की तुलना में कुछ ज्यादा दमकती है जो हंसने में कंजूसी करते हैं।

सेक्स हॉर्मोन ऐक्टिव
हंसने से शरीर में कई हॉर्मोंस ज्यादा ऐक्टिव होते हैं। उनमें सेक्स हॉर्मोंस भी शमिल हैं। मसलन: टेस्टास्टरोन, एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन आदि। इसका पॉजिटिव असर यह होता है कि लोगों की परफॉर्मेंस बेहतर हो जाती है। हंसी है यानी तनाव कम है। जब तनाव कम होता है तो सहवास के समय ध्यान नहीं भटकता।


घर में ऐसे बनाएं हंसी का माहौल
1. डाइनिंग टेबल पर पहुंचें जल्दी
परिवार के सदस्यों के बीच हंसी की डोज कम न हो इसके लिए यह जरूरी है कि बातचीत में भी कमी न हो। हालांकि आजकल लोगों के पास वक्त कम होता है फिर भी डाइनिंग टेबल पर 10 से 15 मिनट पहले पहुंचें। हर दिन किसी एक सदस्य की जोक सुनाने की ड्यूटी लगा दें। किसी दिन अंत्याक्षरी खेल लें। इससे परिवार में करीबी भी बढ़ेगी और लोग हंसेंगे भी। हालांकि सिर्फ जोक्स पर चंद सेकंड के लिए हंसने से उतना फायदा नहीं होता, जितना लंबी हंसी से होता है। लेकिन शुरुआत तो कर ही सकते हैं।

2. ऑफिस की बातें ऑफिस में
घर पर ऑफिस की बातों की चर्चा कम ही करें तो बेहतर है। इतना ही नहीं, नेगेटिव विषयों से दूर रहने की कोशिश करें। हालांकि, यह कुछ मुश्किल होता है, फिर भी कोशिश करें। परिवार के हर शख्स का कोई न कोई पसंदीदा विषय होता है।

3. बच्चों को अभी से लगाएं आदत
वैसे तो बच्चों में हंसने की स्वाभाविक आदत होती है, लेकिन आजकल कोरोना के नेगेटिव माहौल ने उनकी हंसी कम कर दी है। इसलिए यह बड़ों की जिम्मेदारी है कि उन्हें यह आदत डालें कि वे हंसी खोज सकें। बच्चों को अपने बचपन की कोई हंसी वाली बातें बताएं। अपनी मूर्खता वाली कोई घटना सुनाकर खुद भी हंसें और उन्हें भी हंसाएं। उनसे भी कोई ऐसी घटना शेयर करने के लिए कहें। इससे उनमें खुद पर हंसने की आदत भी विकसित होगी। वह गलती करने पर तनाव में नहीं आएगा बल्कि हंसेगा।

4. बसपन के यार को भूल ना जाना
जितने खुले हुए हम अपने दोस्तों, खासकर बचपन के दोस्तों के साथ होते हैं, उतने तो शायद हम अपने जीवनसाथी के साथ भी नहीं होते। इसलिए ऐसे दोस्तों के संपर्क में रहें। जब आप ऐसे दोस्तों के साथ बातें करेंगे तो मन हल्का होगा। जब मन हल्का होगा तो परिवार का माहौल भी हल्का ही रहेगा।

5. नेगेटिव बातों और खबरों से दूरी
जो खबरें तनाव देती हैं, ऐसी खबरों से दूरी बना लें। घर-परिवार में गॉसिप बहुत होती है। हम सभी इसमें शामिल होते हैं, लेकिन जब ये तनाव देने लगे तो खुद को अलग कर लें। वहीं जिन खबरों से आप दुखी होते हैं, ऐसी खबरों से भी दूरी बना लें।

6. पसंद का करें काम
जो भी काम अच्छा लगता हो, जो भी शौक हो, उनके लिए हर दिन थोड़ा-सा वक्त जरूर निकालें। इससे आंतरिक खुशी मिलती है। भले ही उस समय आप ठहाका न लगा रहे हों, लेकिन अंदर की खुशी जरूर मिलती है। ये म्यूजिक सुनना, डांस करना, पसंदीदा टीवी शो देखना आदि हो सकते हैं। इन सभी के अलावा अगर आप किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं तो उसके चेहरे पर आने वाली खुशी आपको कई दिनों तक फील-गुड कराती है।

7. छोटी खुशियां बड़े काम की
बड़ी खुशियों के इंतजार में छोटी-छोटी खुशियों को बेकार न करें। जब भी मौका मिले हंस दें, हंसा दें। छोटी-छोटी खुशियों को भी अगर 5 लोगों से शेयर करेंगे तो 5 बार हंसने का मौका मिलेगा।

8. अकेले हैं तो क्या गम है...
अगर अकेले रहते हैं तो भी परेशान होने की जरूरत नहीं या आपके साथ हंसी में कोई शामिल नहीं हो रहा तो भी क्या गम है। आईने के सामने खड़े हो जाएं और खुद को देखकर हंसना शुरू कर दें। सीधे-सीधे हंसी न आए तो मुंह-नाक को टेढ़ा-मेढ़ा बनाना शुरू कर दें और देखकर खूब हंसें।

9. कॉमेडी शो कॉमेडी
शो को अगर देखकर हंसी छूटे तो उसे भी देख सकते हैं। अलग-अलग चैनलों पर ऐसे तमाम शो चलते रहते हैं। उन्हें देखकर ठहाके लगा सकते हैं। सीधे कहें तो हंसने की आदत लगा लें, बहुत काम की है।

सिर्फ हंसी से नहीं स्लिम
यह ध्यान रहे कि सिर्फ हंसने से कोई स्लिम नहीं हो जाता। रेग्युलर एक्सरसाइज, ब्रिस्क वॉक और डाइट कंट्रोल करना ही पड़ता है। हां, हंसी इसमें कुछ मददगार हो सकती है। सीधे कहें तो एक गुलाब जामुन मिठाई की कैलरी को बर्न करने के लिए कम से कम 3 से साढ़े तीन घंटे तक ठहाके लगाने पड़ेंगे। अमूमन यह मुमकिन नहीं होता।

इससे ज्यादा हंसना होगा
जोक्स या कॉमेडी सीन देखकर मुस्कुराने से मूड बेहतर हो सकता है, लेकिन इससे खून के बहाव आदि में बहुत ही हल्का इजाफा होगा। इसके लिए एक बार में चाहिए 7 सेकंड से ज्यादा और दिनभर में 1 घंटे से ज्यादा की असली या नकली हंसी चाहिए।

हंसी से न हो परेशानी
अगर किसी की हंसी से कोई चिढ़ रहा है तो उस समय अपनी हंसी को रोक दें। जब कोई दुखी हो, परेशान हो तो उस समय किसी का हंसना उल्टा भी पड़ सकता है। इस बात को समझना चाहिए कि किसी दूसरे पर हंसना तभी स्वीकार्य है जब तक उसे बुरा नहीं लग रहा। खुद को भी इस बात के लिए तैयार करना चाहिए कि अगर आप किसी पर हंसते हैं तो कोई आप पर भी हंस सकता है।

हंसी और अट्टहास में होता है फर्क
हंसी भी कई तरह की होती है। एक अट्टहास होता है। इसे नकारात्मक माना गया है। इससे किसी के अहंकारी होने अंदेशा होता है। इस तरह की हंसी तब नकारात्मक हंसी हो जाती है जब यह किसी की बेबसी या दुख पर आती है। फिल्मों में विलन की हंसी पर हंसी नहीं आती, गुस्सा आता है क्योंकि वह हंसता नहीं, अट्टहास कर रहा होता है। दूसरे का मजाक बना रहा होता।

बिना वजह कोई आप पर हंसे तो...
अगर कोई शख्स या आपके दोस्तों का ग्रुप आपका मजाक उड़ाने के लिए आप पर हंस रहा है तो सामान्य व्यवहार यह है कि आप भी उसके साथ शामिल हो जाएं। अमूमन इस तरह की बातें दोस्तों के बीच ही होती हैं। फिर जब किसी दूसरे की बारी आए तो आप भी ठहाके लगा लें। पर जब यह बार-बार हो और आप इससे असहज होते हों तो तनाव न रखें। ऐसे शख्स को साफ-साफ बता दें कि मुझे आपकी यह हंसी जंच नहीं रही। आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं। अगर वह बदल जाए तो ठीक, नहीं तो दूरी बना लें।


एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. राजेश खडगावत, प्रफेसर, एंडोक्राइन डिपार्टमेंट, AIIMS
  • डॉ. समीर पारिख, सीनियर सायकायट्रिस्ट
  • डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट
  • पूजा प्रियंवदा, मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड प्रोवाइडर
  • डॉ. मदन कटारिया, हास्य गुरु
  • जितेन कोही, संस्थापक अध्यक्ष, हास्य योग केंद्र
  • जतिंदर पाल सिंह 'जॉली अंकल', लाफ्टर स्पेशलिस्ट

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मां बनने के सफर पर...

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एक महिला से मां बनने तक का सफर कुछ अलग-सा होता है। नए तरह का अनुभव तो मिलता ही है, पर सेहत से जुड़ी तमाम तरह की चुनौतियां भी उभर जाती हैं। शरीर में जरा-सा बदलाव भी लोगों को परेशान करने लगता है। यहां तो चुनौती प्रेग्नेंट होने से जो शुरू होती है, डिलिवरी होने और फिर उसके बाद तक बनी रहती है। इसलिए जब भी प्रेग्नेंसी कंसीव करने की तैयारी हो, पूरी हो। आधी-अधूरी तैयारी हमेशा समस्या खड़ी करती है। यह तैयारी मानसिक और शारीरिक दोनों स्तरों पर होनी चाहिए। बच्चा कब चाहिए, यह सवाल हमेशा ही प्लैनिंग करते समय खुद से पूछना अहम होता है। वहीं गर्भ में पलने वाले बच्चे को बेहतर पोषण मिल सके, इसके लिए यह जरूरी है कि सही उम्र में प्रेग्नेंसी कंसीव की जाए। इनके अलावा मां और गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए आइरन समेत कुछ दूसरे विटामिन्स की कमी न हो इसके लिए सप्लीमेंट्स भी दिए जाते हैं।

पिछले साल दिसंबर में ब्रिटेन में एक मामला सामने आया, जिसमें एक 20 साल की लड़की इवी टूमब्स ने अपने डॉक्टर पर कोर्ट में केस किया था कि उसकी मां को लगभग 21 साल पहले उसकी डॉक्टर फिलिप मिशेल ने सही तरीके से गाइड नहीं किया। इस वजह से उसकी मां ने फोलिक एसिड का सेवन नहीं किया और उसे स्पाइनल कोर्ड की परेशानी हो गई। उस गलती की वजह से आज वह चल-फिर नहीं सकती। लंदन हाई कोर्ट के जज रोसलैंड कू ने इवी के पक्ष में फैसला सुनाया। यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि अगर कोई महिला अचानक भी प्रेग्नेंट हो जाए तो भी जब से उसे पता चले कि वह प्रेग्नेंट है, फोलिक एसिड के सप्लिमेंट्स जरूर दिए जाते हैं।


जब कोई हो जाए अचानक प्रेग्नेंट
मां बनने के लिए मानसिक तैयारी बहुत जरूरी है। हालांकि कई बार प्रेग्नेंसी अचानक कंसीव हो जाती है, बिना प्लैनिंग। जब भी ऐसी स्थिति बने तो...
1. प्रेग्नेंसी को रखना है या नहीं, यह पूरी तरह उस महिला का फैसला होगा। उस पर किसी तरह का दबाव नहीं होना चाहिए। हां, अपने फैसले में सहयोग के लिए किसी गाइनी एक्सपर्ट्स से सहयोग जरूर ले सकती है। इस दौरान चाहे तो वह अपने पति या पार्टनर को साथ में रख सकती हैं। उसे अपने बारे में सब कुछ बताना चाहिए और जानना चाहिए...
  • वह क्या चाहती है और क्यों? आर्थिक स्थिति कैसी हँै?
  • वह पहली बार कंसीव कर रही है या इससे पहले कर चुकी है?
  • क्या पहले कोई अबॉर्शन कराया है? सेहत से जुड़ी परेशानी है?
  • वह तैयार है, लेकिन उसके पति इसके लिए तैयार नहीं हैं?
  • जॉब में है तो ऐडजस्टमेंट में परेशानी तो नहीं होगी?
नोट: इन सवालों के जवाब लेकर वह निश्चिंत होकर मां बनने की ओर कदम बढ़ा सकती है। अगर प्रेग्नेंसी को आगे बढ़ाना है तो डॉक्टर फोलिक एसिड टैब्लेट्स के साथ कुछ जरूरी टेस्ट्स लिखते हैं। आगे ऐसे सप्लिमेंट के बारे में जानकारी दी जा रही है।

...तब अबॉर्शन
  • 12 सप्ताह यानी 3 महीने तक के भ्रूण का अबॉर्शन करना सामान्य है। वहीं अगर बच्चे के विकास में कोई लाइलाज परेशानी है, अगर पहले महिला का सिजेरियन ऑपरेशन हो चुका है और यूटरस में इसकी वजह से एक गड्ढा नुमा संरचना बनी है। कभी-कभी उस गड्ढे में भी भ्रूण अटक जाता है। इससे उस भ्रूण के विकसित होने की गुंजाइश न के बराबर होती है तो भ्रूण हटाना पड़ सकता है।
  • प्रेग्नेंसी की वजह से मां की जान को खतरा है, हार्ट या किडनी के फेल होने की आशंका है या फिर कोई रेप का मामला है तो 13 से 24 हफ्ते तक अबॉर्शन कराया जा सकता है। अबॉर्शन जितनी देरी से होगी, सेहत पर उतना ही ज्यादा बुरा असर होगा। वहीं एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के केस में भी अबॉर्शन होता है। जब भ्रूण यूटरस के अलावा फेलोपिन ट्यूब में विकसित होने लगे।
पूरी प्लैनिंग के साथ बनें माता-पिता
प्रेग्नेंसी कंसीव करने की तैयारी कम से कम 3 महीने पहले से करें। यह तैयारी सिर्फ महिला की नहीं होनी चाहिए, इसमें पुरुष पार्टनर को भी शामिल होना पड़ता है। दोनों का ब्लड टेस्ट जरूरी है। एक बच्चे के बाद दूसरे बच्चे में 3 साल का गैप रहना चाहिए। आजकल ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं जब किसी महिला ने 40 साल के बाद भी प्रेग्नेंसी कंसीव की है। यह मुमकिन है, लेकिन इसमें परेशानी बढ़ने की गुंजाइश बनी रहती है।

मां किस उम्र में
पहला बच्चा: 24 से 25 साल
दूसरा बच्चा: 27 से 28 साल

IVF में
पहला बच्चा: 29 साल
दूसरा बच्चा: 32 साल

जरूरी टेस्ट
बिना प्लैनिंग की प्रेग्नेंसी हो या फिर प्लान करके, फर्क सिर्फ यह होता है कि प्लैनिंग के बाद प्रेग्नेंसी से 3 महीने पहले कुछ टेस्ट पति और पत्नी दोनों को कराने होते हैं। वहीं ये टेस्ट बिना प्लैनिंग की प्रेग्नेंसी में फर्स्ट ट्राइमेस्टर (प्रेग्नेंसी से 3 महीने तक) तक कराए जाते हैं।

इन प्‍यारे कामों से, बढ़ाएं मां और अपने बीच का प्‍यार

पुरुष और महिला, दोनों के लिए टेस्ट
सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज (STD) : HIV, सिफेलिस, थैलेसीमिया, हेप. B, C और ब्लड ग्रुप।
  • यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि अगर पति व पत्नी दोनों थैलेसीमिया माइनर हैं तो 25 फीसदी गुंजाइश होती है कि बच्चा थैलेसीमिया मेजर हो जाए। ऐसे में डॉक्टर कई बार पैरंट्स को प्रेग्नेंसी से हटने की सलाह भी देते हैं।
  • अगर थैलेसीमिया के टेस्ट में पुरुष का हीमोग्लोबिन काउंट कम दिखता है तो उसे भी आइरन और फोलिक एसिड सप्लिमेंट लेने की सलाह दी जाती है।
विटामिन-D: इस विटामिन को डॉक्टर विटामिन भी कहा गया है। इसकी कमी से कई तरह की परेशानी हो सकती हैं। इम्यूनिटी पर असर पड़ सकता है। स्पर्म की संख्या या उसकी गति कम हो सकती है।

सिर्फ महिला के लिए टेस्ट
  1. CBC: हीमोग्लोबिन, प्लेटलेट्स आदि देखने के लिए। खून की कमी में बच्चे का विकास सही तरीके से नहीं होता।
  2. थायरॉइड प्रोफाइल: कहीं थायरॉइड की परेशानी तो नहीं। अगर समस्या है तो प्रेग्नेंसी कंसीव करने में दिक्कत हो सकती है।
  3. HbA1c: पिछले 3 महीने में शुगर की स्थिति क्या रही है। कहीं शुगर बढ़ी हुई तो नहीं।
  4. PP & PS: उस दिन का शुगर फास्टिंग और खाने के 2 घंटे के बाद की क्या स्थिति है।
  5. Vit. B-12: अगर शरीर में इनकी कमी होगी तो इसका असर खासतौर पर मां और बच्चे, दोनों पर हो सकता है।
  6. यूरिन रुटीन: यूरिन में कोई इंफेक्शन तो नहीं है।
  7. रुबेला और वेरिसला (MMRV) IgG: क्या इस ऐंटिबॉडी की मौजूदगी है शरीर में।
नोट: डॉक्टर इनके अलावा दूसरे टेस्ट भी लिख सकते हैं।

कंसीव करने से पहले

पुरुषों के लिए जरूरी कदम

इन्हें बदलें
  • अगर पति मर्चेंट नेवी में है यानी मशीनरी काम की वजह से ज्यादा तापमान में उसका वक्त गुजरता है तो डॉक्टर की सलाह होती है कि वह कम से कम 3 महीने पहले इस काम से अलग हो जाए या फिर काफी कम कर दे। कोई शेफ या कुक है और उसे लगातार आग के पास यानी गर्मी में रहना पड़ता है तो उसे भी प्रेग्नेंसी कंसीव करने से 3 महीने पहले इस काम से दूरी बना लेनी चाहिए। दरअसल, ज्यादा गर्मी में रहने से स्पर्म काउंट कम हो जाता है। इससे प्रेग्नेंसी में परेशानी हो सकती है।
  • अगर पुरुष सिंथेटिक अंडरगार्मेंट्स पहनता है तो इसे पहनने से मना किया जाता है। दरअसल, इससे भी पुरुष के प्राइवेट पार्ट के आसपास का तापमान बढ़ जाता है और इससे स्पर्म काउंट कम होने की आशंका रहती है।
  • अल्कोहल, सिगरेट, तंबाकू जैसी खतरनाक चीजों को अलविदा कह दें। ये स्पर्म को बीमार और कमजोर बनाते हैं।


इन्हें जोड़ें
  • अगर पुरुष में हीमोग्लोबिन की कमी देखी जाती है तो उसे फोलिक एसिड की 4 एमजी की एक गोली हर दिन लेनी होती है, महिला के मां बनने तक।
  • अगर विटामिन B-12 की कमी है तो उसके सप्लिमेंट्स जरूर लेने चाहिए। इसकी भी एक गोली हर दिन लेनी पड़ती है।
  • हेल्दी स्पर्म के लिए सुबह जल्दी उठना, 30 से 40 मिनट का ब्रिस्क वॉक और 15 से 20 मिनट का योग जरूरी है।
  • डाइट में हर दिन मौसमी सब्जियां (दो कटोरी), सलाद और फल (एक से 2 फल) जरूर शामिल हों। प्रोटीन के लिए सोयाबीन, दालें, पनीर (एक कटोरी) भी जरूर लें।
महिलाओं के लिए जरूरी कदम

इन्हें जोड़ें

शरीर में पोषक तत्वों की कमी न हो क्योंकि इससे महिला और उसके होने वाले बच्चे की सेहत पर यह बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
  • सामान्य महिला के लिए 4 एमजी और शुगर के मरीज 5 एमजी फोलिक एसिड की एक गोली हर दिन, प्रेग्नेंसी कंसीव करने से 3 महीने पहले से लेना जरूरी है। इसे 9 महीने पूरे होने तक या इसके बाद भी ले सकती हैं। अगर किसी को ज्यादा कमी है तो डॉक्टर एक दिन में दो गोली खाने के लिए लिख सकता है। फोलिक एसिड की कमी से न केवल एनीमिया हो सकता है, बल्कि रीढ़ की हड्डी का भी विकास सही तरीके से नहीं होता। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो इसकी कमी से अजन्मे बच्चे में 'स्पाइना बिफिडा' जैसा न्यूरल ट्यूब डिसऑर्डर (NTD) हो सकता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हर दिन की जरूरत 4 एमजी की होती है, लेकिन बाजार में अमूमन 5 एमजी की गोली ही उपलब्ध होती है। इसलिए डॉक्टर 5 एमजी ही लिखते हैं। इसे लेने में परेशानी नहीं है।
  • फूड आइटम्स में फोलिक एसिड फोलेट के रूप में उपलब्ध होता है। पालक, मेवा, मूली, गाजर आदि में ज्यादा मात्रा में मिलता है।
  • आइरन की एक गोली भी सप्लिमेंट के रूप में हर दिन लेनी होती है।
  • इसी तरह विटामिन B-6 और B-12 की एक गोली भी लेनी होती है।
  • टिटेनस टॉक्साइड का इंजेक्शन
  • कोरोना वैक्सीन की दोनों या तीनों डोज जरूर लगवा लें। इससे बच्चे को कोई खतरा नहीं है।
इन्हें हटाएं
  • कच्चे पपीते का सेवन न करें। इससे अबॉर्शन का खतरा रहता है।
  • कॉफी न पिएं। इसमें कैफीन होता है, इससे भी परेशानी हो सकती है।
  • अल्कोहल, सिगरेट और तंबाकू आदि का सेवन न करें।
प्रेग्नेंट होने के बाद

वजन की बात
  • अगर BMI (Basal Metabolic Index) 25 तक है तो 9 महीने में महिला का वजन 10 से 12 किलोग्राम तक बढ़ना चाहिए।
  • प्रेग्नेंसी कंसीव करने के बाद प्रति सप्ताह 500 ग्राम यानी आधा किलो तक बढ़ना चाहिए।
  • अगर मोटोपा पहले से है यानी BMI 25 से ऊपर 27, 28 है तो 5 से 7 किलोग्राम से ज्यादा वजन नहीं होना चाहिए।
  • एक औसत नवजात बच्चे का वजन जन्म के समय 2.5 से 3 किलो तक होता है।
एक्सरसाइज की बात
  • हेवी एक्सरसाइज से बचें।
  • पहले 3 महीने 15 से 20 मिनट की वॉक काफी है। ज्यादा एक्सरसाइज या वजन उठाने से अबॉर्शन का खतरा रहता है।
  • शुरुआत के 3 महीने के बाद वॉक का टाइम बढ़ाकर 30 से 35 मिनट।
  • ब्रिस्क वॉक भी न करें। जब प्रेग्नेंसी की वजह से पेट बाहर की ओर निकलता है तो सेंटर ऑफ ग्रेविटी शिफ्ट हो जाता है। तेज चलने से गिरने का खतरा रहता है।
नींद और आराम बहुत जरूरी
  • रात में 8 घंटे की नींद और दिन में 1 से 2 घंटा सो सकती हैं।
  • राइट साइड करवट लेकर सोने से गर्भ में पल रहे बच्चे में ब्लड सर्कुलेशन तेज हो जाता है। यह बच्चे के लिए अच्छा है।
  • 2 से 3 किलो से ज्यादा वजन न उठाएं। खाना खाकर तुरंत न लेटें। गैस बन सकती है। 10 से 15 मिनट जरूर टहलें।
कितना और क्या खाएं
  • एक प्रेग्नेंट महिला को हर दिन अपने लिए 2000 कैलरी और बच्चे के लिए 300 कैलरी लेनी चाहिए। कुल 2300 कैलरी।
  • वहीं दूध पिलाने वाली मां को 2000 खुद के लिए और 600 कैलरी बच्चे के लिए। कुल 2600 कैलरी चाहिए।
  • चूंकि हॉर्मोनल बदलाव (Beta-HCG हॉर्मोन की मात्रा बढ़ जाती है) होता है और शरीर को लगता है कि कोई बाहरी चीज जगह बना रही है, इसलिए शुरुआत में शरीर इसे स्वीकार नहीं कर पाता। जब तक शरीर इन्हें स्वीकार नहीं करता तब तक 70 से 80 फीसदी महिलाओं में उल्टी जैसी परेशानी होती रहती है। जो चीज खाने का मन न हो, उसे बिलकुल न खाएं। मौसमी साग-सब्जियां खाएं,आइरन के लिए। पचाने में परेशानी न हो तो हर दिन दूध भी ले सकती हैं। दिन में 2 कटोरी छिलके वाली दाल जरूर खाएं। सोयाबीन जरूर लें। अगर नॉनवेज खाते हैं तो गर्मी में एक दिन छोड़कर एक अंडा हफ्ते में एक से दो बार चिकन लें। प्रेग्नेंट महिला का वजन ज्यादा है तो ज्यादा कैलरी न लें। हर दिन 3 से 4 लीटर पानी जरूरी है। बाहर के पके हुए खाने दूरी रखें।


कौन-कौन से टेस्ट

पहला और दूसरा अल्ट्रासाउंड
यह प्रेग्नेंसी कंसीव करने के 7वें सप्ताह में करा लेना चाहिए। इसमें यह देखा जाता है कि भ्रूण की पोजिशन क्या है। वह यूटरस में सही तरीके से चिपक चुका है या नहीं। इसके अलावा यह भी पता चलता है कि कितने भ्रूण बने हैं यानी कहीं जुड़वां या फिर 3 बच्चे तो विकसित नहीं हो रहे, जैसा कि बॉलिवुड कोरियोग्राफर और डायरेक्टर फराह खान के साथ हुआ था। उन्होंने एक साथ तीन बच्चों को जन्म दिया था।
12वें से 13वें सप्ताह में होता है। इसे न्यूकल ट्रांसलुसेंसी यानी NT भी कहते हैं। नेजल बोन और ब्रेन डिवेलपमेंट देखा जाता है।

क्या बार-बार अल्ट्रासाउंड से खतरा?
अमूमन अल्ट्रासाउंड के बारे में बात करते समय हम एक्स-रे से तुलना करने लगते हैं। अल्ट्रासाउंड में जहां ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल होता है, वहीं एक्स-रे और सिटी स्कैन में प्रकाश की किरणों का। ज्यादातर डॉक्टर प्रेग्नेंसी के दौरान 2 से 3 अल्ट्रासाउंड करवाने के लिए ही कहते हैं। ज्यादा तब ही कहा जाता है जब कोई परेशानी हो। अमूमन अल्ट्रासाउंड से मां या बच्चे को खतरा न के बराबर होता है।

जेनेटिक टेस्ट भी
एक जेनेटिक टेस्ट भी कराया जाता है, जिसे डबल मार्कर टेस्ट कहते हैं। इसमें क्रोमोजोम (आम इंसान की एक कोशिका में 23 क्रोमोसोम होते हैं। एक क्रोमोसोम डीएनए, आरएनए और जीन्स के मिलने से बनते हैं।) के बारे में पता चलता है।

डॉप्लर टेस्ट
इसे अमूमन प्रेग्नेंसी के पहले या दूसरे ट्राइमेस्टर के पूरा होने के बाद कराते हैं। इससे बच्चे शरीर में ब्लड फ्लो अदि के बारे में पता चलता है। यह भी एक तरह का अल्ट्रासाउंड ही है।

प्रेग्नेंसी के बाद ये लक्षण हों तो...
  • अचानक पेट में हो दर्द
  • बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस हो
  • बहुत जल्दी थक जाएं
  • महिला के प्राइवेट पार्ट से खून आए
  • पैरों में बहुत ज्यादा सूजन
  • मिर्गी के दौरे
  • बुखार होना।
नोट: जब भी ऐसे लक्षण आए, इन्हें गंभीरता से लें। अपने डॉक्टर की सलाह जरूर लें और सलाह पर फौरन ही अमल करें।


बात डिलिवरी की
यह दो तरीके से होती है: सामान्य और सिजेरियन। इन दोनों की अपनी खासियतें हैं और चुनौतियां भी। हकीकत यह है कि 10 में से 9 महिला चाहे तो वह सामान्य प्रक्रिया से डिलिवरी कर सकती हैं, लेकिन आजकल लगभग 10 में से 6 से 7 महिलाओं को सिजेरियन यानी ऑपरेशन के द्वारा ही बच्चा होता है। चाहे वह खुद से चुनाव करके हो या फिर किसी मजबूरी की वजह से। हालांकि आजकल कुछ मामले ऐसे भी बनते हैं जब डॉक्टरों पर यह आरोप लगता है कि वह ज्यादा बिल बनाने के लिए सिजेरियन के चुनाव पर ही जोर देते हैं।

क्यों चुनना पड़ता है सिजेरियन
  • अगर महिला के प्राइवेट पार्ट से रिसाव शुरू हो जाए, लेकिन लेबर पेन न हो। यूटरस की ओपनिंग नहीं हुई हो।
  • प्रेग्नेंट का बीपी बढ़कर 160/110 से ऊपर पहुंच गया हो।
  • बच्चे की पोजिशन गर्भ में उलटी (जांच में यह दिखे कि पहले बच्चे की सिर की जगह पैर आने की आशंका हो) या टेढ़ी हो।
  • महिला बहुत मोटी हो।
  • आजकल कई पैरंट्स अपने बच्चे के जन्म के लिए मुहूर्त दिखाकर दिन और समय निश्चित करवाते हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक है किसी के चाहने से किसी महिला को लेबर पेन शुरू नहीं होगा। यह तो नेचरल है। ऐसे में सिजेरियन का चुनाव करना पड़ता है। कई बार तो डॉक्टर को मुहूर्त की वजह से ऑपरेशन करके 5 से 10 मिनट के भीतर ही बच्चे को यूटरस यानी गर्भ से बाहर निकालना पड़ता है। डॉक्टर को रात के 2 बजे भी मुहूर्त के हिसाब से ऑपरेशन करना पड़ता है। यह चलन सही नहीं है।
  • IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) यानी प्रेग्नेंसी कुदरती तौर पर नहीं बल्कि उसे किसी लैब की मदद से कराई गई हो।
  • अगर गर्भ में 2 से ज्यादा बच्चे हों।
  • अगर मां की तबियत खराब हो रही हो। वह बेहोश होने लगे।
  • पहले सिजेरियन डिलिवरी हो चुकी हो।
  • बच्चे ने यूटरस में ही पॉटी कर दी हो।
  • प्लेसेंटा बच्चेदानी के मुंह के पास हो।
  • अमूमन लेबर पेन शुरू होने के 6 से 8 घंटे में बच्चा पैदा हो जाता है। कुछ मामलों में यह 24 से 36 घंटा तक चला जाता है। जब इससे भी ज्यादा देर लगने लगे।

नॉर्मल डिलिवरी में दर्द ऐसे कम

बच्चों को जन्म देने का यह कुदरती तरीका है। इसे वजाइनल डिलिवरी भी कहते हैं। चूंकि इसमें दर्द ज्यादा होता है। सामान्य तरीके की डिलिवरी में बच्चे को बाहर आने के लिए 10 सेंटीमीटर की ओपनिंग बनती है। दरअसल, बच्चे का सिर 9.5 सेंटीमीटर का होता है। इसलिए इस दर्द को कम करने और डिलिवरी आसानी से हो जाए, कुछ उपाय किए जाते हैं:
  1. वॉटर बर्थ डिलिवरी: अगर कोई महिला दर्द की वजह से बच्चे को बाहर की ओर न धकेल पा रही है तो उसे शरीर के तापमान के बराबर पानी का तापमान रखकर किसी बाथटब में डिलिवरी कराई जाती है।
  2. गैस की मदद से: इसे इंटोनॉक्स भी कहते हैं। इसमें महिला को नाइट्रस ऑक्साइड के साथ ऑक्सिजन मिलाकर सुंघाया जाता है। इससे उसके लेबर पेन में कमी आती है। इस गैस से न तो महिला और न ही जन्म लेने वाले बच्चे को खतरा होता है।
  3. इपिड्यूरल की मदद से: आजकल सामान्य डिलिवरी कराने में इसका चलन सबसे ज्यादा है। इसमें महिला की पीठ में स्पाइनल नर्व्स में लोकल एनेस्थीसिया (इसमें लेबर पेन का अहसास न के बराबर होता है) दिया जाता है। इसे 24 से 36 घंटे तक भी लगाकर छोड़ा जा सकता है। अमूमन इसे 3 सीएम यूटरस की ओपनिंग होने के बाद ही लगाया जाता है यानी कुछ देर लेबर पेन होने के बाद। हालांकि कुछ लोग इसे शुरुआत में भी लगवा लेते हैं।
इंस्ट्रूमेंट्स की मदद से
यह भी वजाइनल डिलिवरी का ही प्रकार है। इसे फोर्सेप्स डिलिवरी भी कहते हैं। कई बार प्रेग्नेंट महिला खुद पुश नहीं कर पाती है तो कुछ इंस्ट्रूमेंट्स की मदद से डिलिवरी कराई जाती है। इसमें एक इंस्ट्रूमेट होता है जो दो बड़े चम्मच के आकार का होता है। इससे बच्चे के सिर को पकड़कर बाहर निकाला जाता है।

वैक्यूम डिलिवरी
जैसा कि फिल्म 'थ्री इडियट्स' में आमिर खान ने करवाई। इसे वैक्यूम एक्सट्रैक्सन भी कहते हैं। इसमें भी जब प्रेग्नेंट खुद बच्चे को बाहर नहीं धकेल पाती और सिजेरियन का विकल्प न होने पर इससे डिलिवरी कराई जाती है।

कौन-सा तरीका बेहतर

नॉर्मल डिलिवरी

फायदे: बच्चे की सेहत के लिए बेहतर होता है।
  • जब कोई बच्चा सामान्य तरीके से पैदा होता है तो वह यूटरस से खिसककर महिला की वजाइना से होते हुए बाहर निकलता है। बच्चे की छाती पर दबाव पड़ता है। उसकी छाती में मौजूद बेकार लिक्विड बाहर निकल जाते हैं। उसके फेफड़े सही तरीके से काम करते हैं। उसके दिमाग का विकास भी बेहतर तरीके से होता है। महिला की डिलिवरी के बाद उसे अस्पताल से उसी दिन या अगले दिन डिस्चार्ज कर दिया जाता है। इसमें खर्च कम आता है। उसी दिन से चलने लगती है।--
  • यूटरस के कंट्रेक्शन से ज्यादा मात्रा में ऑक्सिटोसिन निकलता है। इसलिए बच्चे को मां 15 मिनट में दूध भी पिलाने लगती है। दोनों की बॉन्डिंग भी अच्छी हो जाती है। मां का दर्द भी कम हो जाता है।
नुकसान: यह मां के लिए दर्दभरा होता है, लेकिन आजकल इस दर्द को कम करने के उपाय मौजूद हैं। इसमें 3 लेयर में टांके लगते हैं: टांकों की वजह से 2 से 3 हफ्तों तक बैठने में काफी परेशानी होती है, खासकर यूरिन और स्टूल के दौरान। प्राइवेट पार्ट में ढीलापन आता है, लेकिन किगल्स (Kegels यूट्यूब पर सर्च करें) एक्सरसाइज करने से फायदा होता है।


सिजेरियन

फायदे: अगर मां या उसके बच्चे को खतरा है तो सिजेरियन से बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता।
  • इसी तरह अगर समय से पहले यानी प्रीमैच्योर डिलिवरी का मामला हो तो सिजेरियन वरदान की तरह है।
  • सामान्य की तुलना में अब सिजेरियन को ही ज्यादा अपनाया जाता है। इसमें प्रेग्नेंट को लेबर पेन कम झेलना पड़ता है।
  • प्राइवेट पार्ट में ढीलापन भी कम आता है। इस वजह से सामान्य डिलिवरी के 15-20 साल बाद छींक आदि के दौरान यूरिन निकलने की शिकायत कम ही होती है।
  • ऑपरेशन के बाद 5 से 7 दिनों तक अस्पताल में ठहरना पड़ता है ताकि मरीज बेहतर होकर घर जाए। अस्पताल में नर्स सही तरीके से देखभाल करती है।
नुकसान: चूंकि इसमें पेट पर 12 से 17 सेंटीमीटर का कट लगता है, इसलिए रिकवरी में वक्त लगता है। पूरी तरह ठीक होने में 2 से 3 महीना तक भी लग सकता है।
  • चूंकि इसमें बच्चा अचानक ही बाहर आ जाता है, इसलिए उसकी छाती सामान्य डिलिवरी की तरह नहीं दबती। इससे उसकी छाती में बेकार फ्लूड निकल नहीं पाता और उसे सांस लेने में परेशानी हो सकती है। इस तरह की परेशानी को TTN भी कहते हैं।
  • ऑपरेशन होने पर इंफेक्शन का खतरा भी रहता है।
  • ऑपरेशन में काफी खून निकल जाता है। इससे महिलाओं में खून की कमी हो सकती है। खर्च 40 से 50 फीसदी ज्यादा आत है।
  • सामान्य डिलिवरी में जहां 15 मिनट बाद ही ब्रेस्ट फीडिंग शुरू हो जाती है, सिजेरियन में 4 से 5 दिन तक का वक्त लग जाता है जो नवजात के लिए बेहतर नहीं कहा जा सकता।

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वर्ल्ड हाइपरटेंशन डे विशेष : ब्लड प्रेशर की बीप को ऐसे समझें... इन उपायों से रहेंगे फिट एंड फाइन

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अंकों का खेल बड़ा गजब का है। किसी स्टूडेंट को कम आए तो वह तनाव में, किसी के अकाउंट में कम हो तो वह तनाव में, पर जब बात बीपी की आए तो सामान्य से ज्यादा होने पर वह तनाव में होता है। वैसे तो एक सामान्य शख्स में बीपी कितना हो इसको लेकर कई तरह के मानदंड हैं, फिर भी 130-139/80-89 mmHg से ऊपर की रीडिंग को हाइपरटेंशन की कैटिगरी में रखा जाता है यानी एक तरह से इसे बाउंड्री लाइन भी कह सकते हैं। यह रीडिंग क्या है, इस रीडिंग से क्या पता चलता है, जब इस रीडिंग में फर्क आए तो क्या करना चाहिए, हाइपरटेंशन से क्या नुकसान हैं? ऐसे ही तमाम सवालों की जानकारी देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से लेकर दे रहे हैं लोकेश के. भारती

हाइपरटेंशन को साइलंट किलर भी कहते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इसके लक्षण अमूमन उभरते नहीं हैं। इसका पता अमूमन तब चलता है जब यह हो चुका होता है और इसकी वजह से कई दूसरी समस्याएं पैदा हो जाती हैं, मसलन- किडनी की परेशानी, सिर में काफी तेज दर्द, हार्ट की समस्याएं आदि। ऐसे लोग जिनकी फैमिली में हाइपरटेंशन का इतिहास रहा हो, उन्हें ज्यादा सावधान होने की जरूरत है।


हाइपरटेंशन क्या है? क्या हाई बीपी और हाइपरटेंशन में कोई समानता है?
एक सेहतमंद शख्स के शरीर में दिल का काम होता है पूरे शरीर में खून को पंप करके पहुंचाना (यह है सिस्टोलिक प्रेशर: रीडिंग में ऊपर यानी ज्यादा वाला अंक) और फिर सिर से लेकर पैर की उंगलियों तक पहुंचे हुए रक्त को वापस लाना (डायस्टोलिक प्रेशर: नीचे यानी कम वाला अंक)। रक्त के इस आवागमन को सुचारू रूप से चलाने के लिए हार्ट को एक दबाव पर काम करना पड़ता है। इसे ही ब्लड प्रेशर (बीपी) यानी रक्त दबाव कहते हैं। एक सामान्य शख्स में यह 120/80 से लेकर 139/89 तक हो सकता है। जब रीडिंग इससे ऊपर आए तो यह हाइपरटेंशन यानी हाई बीपी का केस माना जाता है। हाइपरटेंशन और हाई बीपी एक ही स्थिति को बताने के लिए दो अलग-अलग शब्द हैं। पूरी दुनिया में अमूमन नीचे बताए हुए मानक फॉलो किए जाते हैं:


एक शख्स में नॉर्मल बीपी
  • यूरोपियन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार: 140/90 mmHg
  • अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार: 120/80 mmHg

2013 की इंडियन हाइपरटेंशन गाइडलाइन के अनुसार:
  • हाई नॉर्मल: 130-139/80-89 mmHg
  • नॉर्मल: 120-129/80 mmHg
  • बेहतरीन: 120/80 mmHg से कम
(अगर ये सामान्य तरीके से बिना किसी बीमारी या परेशानी के हो।)

क्या हाइपरटेंशन होने से पहले कोई संकेत नहीं मिलता? क्या कोई प्री-हाइपरटेंशन स्टेज नहीं आता?
कोई संकेत नहीं मिलता। वहीं अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो यह शरीर को अंदर ही अंदर नुकसान पहुंचाता रहता है। अगर किसी को बीपी जांच के दौरान यह पता चल जाए कि रीडिंग सामान्य यानी 120-129/80 mmHg से ऊपर खिसकने लगी है तो जरूर सचेत होना चाहिए। इसे हम हाइपरटेंशन से पहले का स्टेज कहते हैं। लाइफस्टाइल बदलकर इसे हाई नॉर्मल तक पहुंचने से भी पहले रोका जा सकता है।
प्री-हाइपरटेंशन में:
  • 120-139/80-89 mmHg
हाइपरटेंशन में:
  • स्टेज 1: 140/ 90 mmHg
  • स्टेज 2: 160/100 mmHg
नोट: इन दोनों स्टेज में फर्क यह है कि पहली स्टेज में बिना दवा के लाइफस्टाइल में कुछ बदलावकर इसे सामान्य किया जा सकता है।


लो बीपी क्या है। यह कितना खतरनाक है?
अगर किसी के बीपी की रीडिंग 120-129/80 mmHg से कम आती है तो यह कुदरती है। किसी बीमारी के बिना तो एक तरह से यह उसके लिए कुदरत की इनायत है। सच तो यह है कि लो बीपी कोई बीमारी नहीं होती, अगर यह कुदरती तौर पर हो। कहा तो यह भी जाता है कि अगर किसी की बीपी और पल्स रेट कुदरती तौर पर कम है तो समझें उसकी जिंदगी लंबी है। हां, अगर यह कमी किसी बीमारी की वजह से हो, जैसे: डायरिया, हार्ट की परेशानी, किसी दवा या फिर दूसरी बीमारियों की वजह से है तो यह खतरे की घंटी हो सकती है।

मेंटल हेल्थ खराब होने से भी हाइपरटेंशन की परेशानी होती है। कैसे सुधार सकते हैं?
मेंटल हेल्थ गड़बड़ होने का मतलब ही यही है कि वह शख्स तनाव में है। वैसे तनाव में तो सब होते हैं, लेकिन जब तनाव का स्तर किसी के हर दिन के आम जीवन को प्रभावित करने लगता है तो उसे दूर करने की जरूरत होती है। नहीं तो यही तनाव हाई बीपी की ओर भी ले जाता है। इससे नींद खराब होती है। सो नहीं पाते, सुबह जल्दी उठ नहीं पाते। 6 से 7 घंटे की नींद हर दिन ले नहीं पाते। योग और एक्सरसाइज तो दूर की बात हो जाती है। तनाव, नींद में कमी आदि की वजह से अक्सर शरीर में अतिरिक्त मात्रा में एड्रिनेलिन हॉर्मोन निकलता रहता है। इससे हार्ट बीट बढ़ना, बीपी का बढ़ना, सांसों का तेज होना आम हो जाता है।


ऐसे करें मेंटल हेल्थ में सुधार
  • हर दिन 10 से 15 मिनट ध्यान करें।
  • जिस तरह ऑफिस के काम, घर के बाकी काम जरूरी हैं, उसी तरह योग, एक्सरसाइज के साथ 6 से 8 घंटे की नींद भी जरूरी है। इसका ध्यान जरूर रखें।
  • कल क्या होगा- इस बात को सोचकर आज दिमाग खराब न करें। वैसे भी जो हमारे हाथों में है, हम वही कर सकते हैं। दूसरों को कंट्रोल करने की कोशिश की वजह से कई बार खुद का तनाव बढ़ जाता है।

हाइपरटेंशन कितने तरह की होती है‌?
  1. प्राइमरी हाइपरटेंशन: दुनियाभर में करीब 90 फीसदी लोगों को हाइपरटेंशन की यही परेशानी है। यह जेनेटिक है यानी फैमिली में यह पैरंट्स से बच्चों में ट्रांसफर होता है और गलत लाइफस्टाइल की वजह से यह होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जिसके पैरंट्स को हाइपरटेंशन की परेशानी है, उसके बच्चों को भी जरूर होगा। अगर उसके बच्चों ने अपनी लाइफस्टाइल सही रखी, वजन को काबू में रखा, खानपान सही रखा तो इसकी आशंका बहुत कम हो जाती है।
  2. सेकंडरी हाइपरटेंशन: यह किसी बीमारी की वजह से होती है। इसमें भी सबसे ज्यादा मामले किडनी की परेशानी की वजह से होती है। लगभग 5 से 7 फीसदी ऐसे मामलों में किडनी की खराबी सामने आई है। वहीं 3 से 5 फीसदी कारण हॉर्मोनल गड़बड़ियां भी हो सकती हैं।

कहा जाता है कि बीपी की दवाई एक बार शुरू हो जाए तो कभी छूटती नहीं? क्या सच में ऐसा है?
अगर हम लाइफस्टाइल को दुरुस्त कर पाएं, वजन और खानपान को सही रख पाएं तो दवा कम जरूर हो जाती है। कुछ मामलों में तो यह छूट भी जाती है। पर ज़िंदगी में ताउम्र अनुशासन के साथ जीना जरूरी है, जो यहां पहले बताया जा चुका है।

BP मशीन
Omron HEM, Dr. Morepen, BPL जैसी कई कंपनियों की बीपी मशीनें ऑनलाइन और ऑफलाइन उपलब्ध हैं। कीमत 1000 से शुरू हो जाती हैं।

कब और कितनी बार लें बीपी की रीडिंग
जब तक न हो हाइपरटेंशन, पर आशंका (फैमिली हस्ट्री, लाइफस्टाइल खराब) हो। यहां ध्यान रखना है कि 30 साल के बाद हर शख्स बिना आशंका के भी 6 महीने पर बीपी चेक कराए।

जब हाइपरटेंशन शुरू हो जाए...
  • 30 साल तक: हफ्ते में 2 बार
  • 31 से 40 साल तक: हफ्ते में 3 बार
  • 41 से 59 साल तक: हफ्ते में 4 से 5 बार
  • 60 साल से ऊपर: दिन में एक या दो बार
(नोट: हाइपरटेंशन की स्थिति में बीपी कितना बढ़ता है, उसके हिसाब से भी डॉक्टर रीडिंग लेने के लिए कहते हैं।)

ऊपर और नीचे की रीडिंग में कितना फर्क होना चाहिए?
ऐसा कभी-कभी हो सकता है कि ऊपर वाली रीडिंग कम या ज्यादा हो या फिर नीचे वाली रीडिंग कम या ज्यादा हो। ऐसे में ध्यान देने वाली बात यह है कि ऊपर और नीचे की रीडिंग के बीच में फर्क 40 से ज्यादा न हो। 60 तक का फर्क भी चल सकता है, लेकिन सचेत होने की जरूरत है। पर इससे ज्यादा का फर्क होने पर खतरे का संकेत समझना चाहिए। फौरन ही डॉक्टर और दवा की मदद लेनी चाहिए।


ऐसे आएगी BP की सटीक रीडिंग
  • वह शख्स कम से कम 15 से 20 मिनट तक आराम कर चुका हो यानी कहीं से चलकर या सीढ़ी चढ़कर न आया हो।
  • इसके लिए किसी कुर्सी पर बैठ जाएं। अगर कुर्सी के चौड़े वाले हत्थे हों तो बेहतर है, जिस पर आप अपनी लेफ्ट आर्म टिका सकें।
  • बीपी रीडिंग के लिए कोशिश करें कि लेफ्ट हैंड का उपयोग करें।
  • कफ (जिसे बांह पर लपेटा जाता है) लगाने से पहले लेफ्ट आर्म के कपड़े को ऊपर समेट लें, अगर मुमकिन न हो तो पतले कपड़े ही पहनें।
  • मशीन के कफ ( को कोहनी से 3 उंगली ऊपर लपेटना है। इसे इतना टाइट भी नहीं लपेटना है कि स्किन खिंची हुई महसूस हो और इतना ढीला भी नहीं कि रीडिंग सही न आए।
  • कोशिश यह हो कि यह कफ ( वाले हाथ की ऊंचाई, शख्स की छाती के ऊंचाई के बराबर या आसपास ही हो।
  • यह भी ध्यान रखना है कि कफ्फ से निकली हुई वायर हाथों के ऊपर से होते हुए लेफ्ट आर्म की हथेली के बीच से गुजरते हुए मशीन तक जाए।
  • पैर को सामान्य रखें यानी क्रॉस लेग न हो और पैरों को हिलाएं भी नहीं।

अगर बीपी रीडिंग लेते समय यह अचानक ज्यादा आ जाए तो क्या हाइपरटेंशन मान लेना चाहिए?
अगर पहली बार में रीडिंग बढ़ी हुई आए तो 5 मिनट के बाद फिर से रीडिंग लें। अगर दोबारा भी बढ़ी हुई आ रही है और यह बढ़ोत्तरी 160/95 से ऊपर आ रही है तो डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए, साथ में लाइफस्टाइल में बदलाव भी। अगर बीपी सामान्य से थोड़ा बढ़ा हुआ यानी 145/90 से ऊपर आ रहा है तो इसे हफ्तेभर हर दिन या 3 से 4 दिन रीडिंग लेनी चाहिए। दिन में दो बार (सुबह और शाम) रीडिंग ले सकते हैं। इससे पता चल जाएगा कि स्थिति क्या है।


पल्स रेट क्या है और क्या इसका कोई संबंध बीपी से है?
  • बीपी की रीडिंग, जहां रक्त के दबाव को बताता है, वहीं पल्स रेट, प्रति मिनट हार्ट का धड़कना है।
  • 1 पल्स यानी धड़कन = 1 सिस्टॉल+1 डायस्टोल
  • सामान्य पल्स रेट प्रति मिनट: 60 से 90, कुछ लोगों में 100 तक।
जब भी बीपी ज्यादा होता है, अमूमन उस शख्स का पल्स रेट भी ज्यादा ही होता है। दरअसल, जब हार्ट को ज्यादा दबाव से पंप करना पड़ता है तो इसका सीधा-सा मतलब है कि दूर के अंगों तक खून सामान्य तरीके से नहीं पहुंच रहा है और खून को वापस लाने में भी अतिरिक्त दबाव पैदा करना पड़ रहा है। यह स्वाभाविक है कि दूसरे अंगों तक सही मात्रा खून पहुंचे उसके लिए दिल को सामान्य से ज्यादा बार धड़कना पड़ेगा यानी पहले अगर 1 मिनट में 80 बार में काम चल जाता था तो बीपी ज्यादा होने पर यह 100 या इससे ऊपर भी हो सकता है।


शरीर में क्या खराबी आती है कि ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है? इससे किन अंगों को नुकसान होता है?
जब मोटापा, गलत लाइफस्टाइल की वजह से हार्ट के वॉल्व, खून की नलियों की लचक कम हो जाती है। यह जल्दी तब होता है जब उस शख्स की फैमिली हिस्ट्री भी रही हो। इन वजहों से खून की नलियों के रास्ते में फैट आदि जमा होने से वह संकरे हो जाते हैं। तब हार्ट को ज्यादा दबाव से खून को पूरे शरीर में पहुंचाना पड़ता है। दरअसल, नलियों के तंग होने से जरूरी अंगों तक खून कम मात्रा में पहुंचता है। इससे उन अंगों में ऑक्सिजन की कमी होने लगती है। इसलिए हार्ट ज्यादा दबाव से ब्लड भेजता है और फिर उतनी ही ताकत से उसे वापस भी खींचता है। इसी से ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है। सच तो यह है कि शरीर का शायद ही ऐसा कोई अंग हो, जिस पर हाई बीपी का असर न पड़ता हो। यह असर महीनों नहीं 2, 3, 5, 7 या 10 बरस या फिर इससे भी कुछ ज्यादा बरस गुजरने के बाद दिखना शुरू होता है।

इन अंगों पर भी सीधा असर होता है
किडनी: खून की मात्रा सही तरीके से यहां तक नहीं पहुंचती। इसलिए धीरे-धीरे यह भी फेल हो सकती हैं। पूरे शरीर के खून को सिर्फ दो किडनियों को ही हर दिन सैकड़ों बार छानना पड़ता है।
दिमाग में स्ट्रोक: जब प्रेशर बढ़ता है तो दिमाग की नसें इससे बच नहीं पातीं। कई बार नसें फट जाती हैं या उनमें लीकेज आ जाता है। इससे ब्रेन स्ट्रोक या लकवा की आशंका बन जाती है।
आंखों में परेशानी: आंखों में खून की नसें काफी नाजुक होती हैं। प्रेशर झेलना इनके लिए मुश्किल होता है। ये फट जाती हैं। इससे आंखों में मौजूद रेटिना पर खून के धब्बे आ जाते हैं। कई बार तो इससे ज्यादा परेशानी भी हो सकती है।
इम्यूनिटी कमजोर: जब ऐंटिबॉडी बनाने की बारी आती है तो हाई बीपी की वजह से लिवर, किडनी जैसे अंगों तक पर्याप्त मात्रा में ऑक्सिजन व पोषक तत्व नहीं पहुंचते। दूसरी तरफ किडनी सही तरीके से सभी हानिकारक पदार्थ बाहर भी नहीं निकाल पाती। इससे शरीर में ऐंटिबॉडी का निर्माण भी प्रभावित होता है।

ऐसे काबू में रहेगा बीपी...
क्या यह मुमकिन है कि हाइपरटेंशन हो ही नहीं और हो जाए तो क्या उपाय कर सकते हैं?
यह जरूर मुमकिन है। एक अनुमान के मुताबिक आज भी 60 फीसदी से ज्यादा लोग ऐसे हैं जिन्हें न तो बीपी है और न ही होने की ज्यादा आशंका है। हाइपरटेंशन न हो इसके लिए हमें ऐसी स्थिति पैदा नहीं होने देना है जो इसके लिए मुफीद हों। चूंकि करीब 90 फीसदी लोगों को प्राइमरी हाइपरटेंशन होती है यानी जिनकी फैमिली हिस्ट्री रही है और जिनकी लाइफस्टाइल भी ठीक न हो। ऐसे लोगों को ज्यादा सचेत होने की जरूरत है। हकीकत यह है कि हम किसी की फैमिली हिस्ट्री तो बदल नहीं सकते, लेकिन अपनी लाइफस्टाइल को दुरुस्त करके इसके होने की आशंका को कम या खत्म जरूर कर सकते हैं।

बचने के लिए बचपन से बदलाव
अगर फैमिली हिस्ट्री है तो बच्चे को शुरू से ही समझाना होगा कि वह हाइपरटेंशन के रिस्क पर है। इसलिए सचेत रहें। बचपन से ही योग, फिजिकल ऐक्टिविटी की आदत लगवा दें।
अगर ओवरवेट है तो उसे काबू करने के लिए आउटडोर गेम्स खेलने को प्रोत्साहन दें।
खानपान में भी फैटी और हाई कैलरी वाली चीजों से दूरी बनाकर रखने के लिए कहें, जैसे: कोल्ड ड्रिंक्स, नमक सामान्य, जंक फूड (पित्जा, बर्गर), चिप्स आदि। हर दिन एक फल और आधा से एक कटोरी हरी सब्जी खाने के लिए प्रोत्साहित करें।

नमक में कमी के साथ खानपान में ये बदलाव भी जरूरी
कुछ ऐसे मामले आए हैं जब 20 से 25 साल के युवा की किडनी इसलिए फेल हो गई क्योंकि उसे हाई बीपी की परेशानी थी। इसका या तो उसे पता नहीं था या फिर ध्यान नहीं दिया गया। इसलिए लाइफस्टाइल में बदलाव जरूरी है:

खानपान की बात
अगर कोई शख्स हर दिन 1 फल और 300 से 400 ग्राम सब्जी व सलाद खाता है तो यह मात्रा एक तरह से बीपी की एक गोली के बराबर असर डालती है।

फल
  • 1 केला अगर ओवरवेट हैं, नहीं तो 2 केले, हफ्ते में 4 से 5 दिन। केले में भरपूर मात्रा में पोटैशियम होता है जो दिल की परेशानी को कम करने में मददगार है।
  • 1 मौसमी या संतरा
  • 1 सेब या एक प्लेट पपीता हफ्ते में 3 से 4 दिन

ड्राई फ्रूट्स
  • 1 मुट्ठी कद्दू के बीज हफ्ते में 4 से 5 दिन
  • 2 से 3 बादाम हर दिन

साग-सब्जियां
  • 2 कटोरी मौसमी सब्जी (पालक, गाजर, टमाटर शामिल हों) जरूर खाएं।
  • लौकी, परवल, भिंडी आदि भी सप्ताह में बदल-बदल कर लें।

नमक क्यों है दुश्मन
एक सामान्य शख्स को हर दिन एक चम्मच (5 ग्राम) नमक ही लेना चाहिए। चाहे वह सेंधा या काला नमक ही क्यों न हो। वहीं अगर बीपी की परेशानी हो चुकी है तो मात्रा इससे भी कम कर दें। नमक जितना कम करेंगे, बीपी उतना ही ज्यादा काबू में रहेगा। दरअसल, नमक में सोडियम होता है जो शरीर में पानी को होल्ड करके रखता है। इससे किडनी को हर दिन सैकड़ों बार अतिरिक्त काम करना पड़ता है। बीपी को काबू करने के लिए हमें शरीर में सोडियम कम करना है और पोटैशियम बढ़ाना है। आजकल लो सोडियम वाले नमक भी आए हुए हैं। इन्हें उपयोग में लाया जा सकता है। इस नमक को भी एक चम्मच से ज्यादा न खाएं, जिन्हें हाई बीपी की परेशानी शुरू हो चुकी है।
अचार आदि में नमक की मात्रा ज्यादा होती है, इसलिए एक छोटा टुकड़ा लें, वह भी हफ्ते में एक से दो दिन।


नशा, नमकीन से दूरी
वाइन (अल्कोहल), सिगरेट या बीड़ी, तंबाकू जैसी चीजें बीपी को बढ़ाने का काम करती हैं। दरअसल, इनकी वजह से खून की नसों की कोमलता कम हो जाती है। उनमें कलेस्ट्रॉल आदि जमा हो जाता है। इसकी शुरुआत लिवर से होती है, जहां यह फैटी लिवर के रूप में मौजूद होता है। फिर बढ़ते हुए खून की नसों तक पहुंचता है। इसी तरह बाजार में मिलने वाले ज्यादातर पैक्ड नमकीनों की वजह से शरीर में बहुत ज्यादा मात्रा में नमक के साथ कैलरी पहुंचती है। इस वजह से ये हाइपरटेंशन के मरीजों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। इन आइटम्स में: चिप्स, कुरकुरे, नमकीन भुजिया, मिक्सचर आदि शामिल हैं।

प्रोसेस्ड चीजों से दूरी
  • रिफाइंड और मैदे से दूरी बना लें। ये शरीर में बैड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाने में सहायक होते हैं। पाचन तंत्र को भी नुकसान पहुंचाती हैं। चाहे वह किसी बिस्किट के रूप में हो या फिर किसी दूसरे रूप में।
  • चीनी बंद और गुड़ चालू करें। अगर शुगर है तो गुड़ भी एक दिन में 5-7 ग्राम से ज्यादा न खाएं।

चाय और कॉफी में कमी
चाय में टैनिन और कैफिन दोनों मौजूद होते हैं जबकि कॉफी में सिर्फ कैफीन। ये दोनों हार्ट रेट को बढ़ा देते हैं। इसलिए अगर बीपी काबू में नहीं रहता हो तो इनसे दूरी रखें।


वजन पर काबू जरूर हो बाबू...
बीपी काबू करना हो तो वजन काबू में रखें। जो लोग ओवरवेट होते हैं, अमूमन उनका बीपी स्वभाविक रूप से बढ़ा हुआ होता है। उनके हार्ट को ज्यादा काम करना पड़ता है। खून की नसों में फैट और बैड कलेस्ट्रॉल की मौजूदगी अमूमन होती ही है। इसलिए इन्हें काबू में रखना जरूरी है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कोई ओवरवेट शख्स अपना वजन 1 किलो कम करता है तो वह 1 mmHg बीपी भी कम कर लेता है। सीधे कहें तो अगर किसी शख्स का वजन सामान्य से 15 किलो ज्यादा है और उसकी बीपी की रीडिंग 150/100 mmHg के आसपास आती हो। अगर वह अपना वजन 12 किलो भी कम कर लेता है तो उसके बीपी की रीडिंग 139/90 से कम हो सकती है यानी वह हाइपरटेंशन के मरीज से हाई नॉर्मल या नॉर्मल तक आ सकता है।


ऐसे हो जाएं फिट
खाने-पीने की बातें ऊपर बताई गई हैं, उन्हें फॉलो करें।
हर दिन तेल की मात्रा 2-3 चम्मच से ज्यादा न रखें।
हर दिन कैलरी की कुल मात्रा 1200 से कम रहे।
रात का खाना 7 से 8 बजे तक खा लें।
देर रात की मंचिंग न करें।

योग और एक्सरसाइज है जरूरी
-हर दिन 15 से 20 मिनट योग करें: जिसमें सूर्य नमस्कार समेत प्राणायाम भी शामिल हो।
-हर दिन 35 से 40 मिनट का ब्रिस्क वॉक करें।


सरकार भी करे कुछ जरूरी उपाय
  • हाइपरटेंशन विश्वव्यापी समस्या है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। यह शहर से लेकर गांव तक फैला हुआ है।
  • चूंकि इसका कोई लक्षण नहीं होता। इसलिए जल्दी इसका पता भी नहीं चलता।
  • बिना बीपी जांच के इसके बारे में जानना मुश्किल है। इसलिए जरूरी है कि सार्वजनिक जगहों पर बीपी नापने वाली मशीनें लगाई जाएं।
  • सरकार इसके लिए लिए चाहे तो रेलवे स्टेशनों, मेट्रो स्टेशन, एयरपोर्ट, कॉलेज आदि में मशीन लगवाए।
  • ये मशीन पुराने समय की वेइंग मशीन की तरह होगी, जिसमें वजन के साथ बीपी की रीडिंग भी आएगी।
  • साथ ही यह भी कि हाइपरटेंशन से बचने या होने पर लाइफस्टाइल में क्या बदलाव होने चाहिए और ध्यान न देने से क्या नुकसान होगा-यह सब बीपी रीडिंग के साथ पर्ची पर छपा हो।
  • चूंकि आजकल ऑफिस में उपस्थिति दर्ज करने के लिए बायोमेट्रिक मशीन का उपयोग बहुत किया जा रहा है, इसलिए ऑफिस में भी बीपी रीडिंग की मशीन लगाई जा सकती है।



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नई-नई जगहें, घूम घूमंतू, गर्मियों की छुट्टियों में घूमने के लिए बेस्ट हैं ये डेस्टिनेशन, जानें सब डिटेल

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'ज़िंदगी एक सफर है सुहाना...' लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर किसी की ज़िंदगी के सफर में भरपूर एक्साइटमेंट भी हो। पर जब हम इसकी तलाश में अपने घर से दूर जाते हैं किसी नए सफर, नई मंजिल और नई आबोहवा में तो मजा ही कुछ और होता है। लेकिन आजकल गर्मी उफान पर है। ऐसे में क्यों न हम कुछ ऐसी ठंडी जगहों का रुख करें, जिन पर अभी हर किसी की नजर नहीं है। दरअसल पहाड़ों के मशहूर टूरिस्ट स्पॉट इन दिनों भीड़ से बेहाल हो रहे हैं। इसलिए देश के जाने-माने ट्रैवलर्स से बात करके घूमने-फिरने के ऑफबीट डेस्टिनेशन के बारे में बता रहे हैं लोकेश के. भारती

गर्मी में फौरन राहत के लिए एसी है, लेकिन यह तब तक है जब तक बिजली। अगर कुदरती एसी के साथ साफ हवा चाहिए तो पहाड़ों से बेहतर ऑप्शन कोई नहीं। अपने देश में पहाड़ी राज्यों की कमी नहीं है। उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर समेत नॉर्थ-ईस्ट के राज्य ऐसे कम भीड़ वाले तमाम हिल स्टेशन के विकल्प सामने रखते हैं। कुछ इलाके साउथ इंडिया में भी हैं।

उत्तराखंड

1. क्यारकी
ऐसा खूबसूरत गांव जिस पर सैलानियों का ध्यान अब तक कम ही गया है। इसलिए भीड़ भी कम है। पार्किंग आदि में भी ज्यादा परेशानी नहीं आती। यहां जाएं तो कम से कम 2 से 3 दिनों का कार्यक्रम बनाकर जाएं।
  • कहां ठहरें: होमस्टे के साथ होटल की सुविधा भी।
  • 1 से 2 कमरों का किराया: औसतन 2 से 3 हजार रुपये हर दिन
  • औसत तापमान: 20 से 35 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: ऋषिकेश, दूरी: 11 किमी
  • एयरपोर्ट: देहरादून, दूरी 28 किमी

2. मायावती आश्रम
वैसे तो पूरा चंपावत ही घूमने लायक है, लेकिन जब बात ऑफबीट डेस्टिनेशन की आती है तो चंपावत के लोहाघाट के नजदीक मायावती आश्रम को भूला नहीं जा सकता। चंपावत से यह 20 किमी की दूरी पर है। यहां मौजूद अद्वैत आश्रम की वजह से भी यह मशहूर है। इस जगह का जो शांत और सकून भरा वातावरण है, उससे अलहदा कुछ भी नहीं। यह जगह आध्यात्मिक रुचि रखने वाले देश और विदेश दोनों ही तरह के सैलानियों को आकर्षित करती है। स्वामी विवेकानंद ने यहां अपना आखिरी प्रवचन दिया था। यहां एक पुस्तकालय और छोटा-सा संग्रहालय भी है। इस जगह पर रहते हुए माउंट एबॉट और लोहाघाट घूमना बिलकुल भी नहीं भूलें।

कहां ठहरें: होमस्टे के साथ होटल की सुविधा भी।
  • 1 से 2 कमरों का किराया: औसतन 2 से 6 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 20 से 32 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: टनकपुर, दूरी लगभग 90 किमी
  • एयरपोर्ट: पंतनगर, 185 किमी दूरी पर

3. लंढौर
मसूरी में भीड़ बहुत है तो इससे महज 6 किमी की दूरी पर स्थित लंढौर अच्छा डेस्टिनेशन है। लोग इसे माउंटेन पैराडाइज भी कहते हैं। अगर आप नई जगहों को देखने और पर्यटन से जुड़ी गतिविधियों में दिलचस्पी रखते हैं तो सच मानिए, यह जगह आपके लिए ही है। इस जगह की हवा में जो बात है, वह दूसरी जगह कम ही मिलती है। इस जगह पर आकर आप अपने परिवार के साथ या फिर एकांत में समय बिता सकते हैं।

  • कहां ठहरें: होमस्टे के विकल्प ज्यादा
  • 1 से 2 कमरों का किराया: औसतन 2 से 8 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 14 से 28 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: देहरादून, दूरी लगभग 30 किमी
  • एयरपोर्ट: जोली ग्रांट, देहरादून, 64 किमी दूर

4. चौकोरी गांव
यहां भी भीड़ कम है। सुकून खोजने वालों के लिए चौकोरी हिल स्टेशन एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है। यहां कुदरत को करीब से महसूस कर सकते हैं।

  • कहां ठहरें: होमस्टे के साथ होटल की सुविधा भी।
  • 1 से 2 कमरों का किराया: औसतन 2 से 6 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 12 से 24 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: काठगोदाम, दूरी लगभग 180 किमी और टनकपुर से 174 किमी
  • एयरपोर्ट: बहुत करीब कोई नहीं है, हां पंतनगर 260 किमी दूर है।
5. काकडीघाट
यह अपने नीम करोली बाबा आश्रम के लिए मशहूर है जो कोसी नदी के तट पर स्थित है। स्वामी विवेकानंद भी इस जगह पर कभी ध्यान के लिए आए थे। हिमालय की तलहटी में बसा यह आश्रम है। अपने शांत और एकांत विश्राम के लिए जाना जाता है। इस जगह पर देश-विदेश से सैलानी आकर समय बिताना पसंद करते हैं। रानीखेत की ओर जाते समय रुकने के लिए यह एक अच्छी जगह है। यहां भीड़ कम है।

  • कहां ठहरें: होमस्टे के बेहतर ऑप्शन हैं।
  • 1 से 2 कमरों का किराया: औसतन 2 से 5 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 20 से 30 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: काठगोदाम, दूरी लगभग 37 किमी
  • एयरपोर्ट: पंतनगर 71 किमी दूर है।

6. पंगोट
कम भीड़ वाली जगहों में यह बेहतरीन है। नैनीताल से महज 20 किमी दूर स्थित है। अगर नैनीताल में जगह न मिले तो पंगोट एक बेहतर विकल्प है। नैनीताल भी यहां से आराम से कवर हो जाएगा। बर्ड वॉचिंग डेस्टिनेशन के रूप में भी यह काफी मशहूर है।

  • कहां ठहरें: होमस्टे के बेहतर ऑप्शन हैं।
  • 1 से 2 कमरों का किराया: औसतन 2 से 7 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 20 से 30 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: काठगोदाम, दूरी लगभग 40 किमी
  • एयरपोर्ट: पंतनगर, लगभग 60 किमी दूर

यहां भी ठहर सकते हैं:
चोपता: ऋषिकेश से बदरीनाथ के रास्ते पर आता है। उखीमठ होते हुए चोपता जाएं। यह भी छुपा हुआ डेस्टिनेशन है। यहां बहुत बड़े होटल नहीं है। लेकिन यहां कैम्पिंग का मजा ले सकते है। यह ट्रैकिंग करने वालों की पसंदीदा जगह है। पहाड़ी जड़ी-बूटियों, अलग-अलग प्रजातियों के पक्षियों की मौजूदगी इसे खूबसूरत बनाती है।
अनासक्ति आश्रम, कौसानी: कौसानी में कुदरत के विलय और हरियाली का अनूठा संगम है। खूबसूरत हिमालय का आनंद लेने और सूर्यास्त और सूर्योदय देखने के लिए कौसानी एक आदर्श स्थान है। इस जगह से नंदा देवी की चोटियां, त्रिशूल पर्वत और अन्य पर्वत चोटियां दिखाई देती हैं। इस जगह को यहां के चाय के पुराने बगानों की वजह से जाना जाता है। इसके अलावा, कौसानी में मशहूर लेखक सुमित्रा नंदन पंत का घर भी है। यहां अनासक्ति आश्रम और प्राचीन बैजनाथ मंदिर की यात्रा करना न भूलें।
तुंगनाथ महादेव: केदारनाथ-बदरीनाथ तो मशहूर है ही, लेकिन चोपता के पास तुंगनाथ महादेव है। इसके बारे में कहा जाता है कि दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। समुद्र तल से 12000 फुट ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर देखने लायक है।
कालाखंड: जिम कॉर्बेट से 25 किमी दूर। इसे क्लिफ ऑफ कालाखंड भी कहते हैं। टाइगर देखने के लिए यह एक बेहतर विकल्प है। हालांकि यहां का औसत तापमान 25 से 35 डिग्री सेल्सियस के करीब है।

मानिला:
दुनिया भर में मशहूर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क और कॉर्बेट सिटी रामनगर से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर हिमालय की गोद में बसा मानिला आपके लिए एक परफेक्ट ऑफबीट डेस्टिनेशन हो सकता है। न भीड़-भाड़, न शोर-शराबा, न पार्किंग की टेंशन। बस रूह में उतर जाने वाली शांति और सुकून आपको यहां मिलेगा। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में आने वाला मानिला वैसे तो मानिला देवी शक्तिपीठ मंदिर की वजह से मशहूर हुआ करता था, लेकिन यहां से दिखने वाले हिमालय के नजारों, रंग-बिरंगे पक्षियों की कई किस्मों और शांत माहौल की वजह से मशहूर हो रही है। चारों ओर बिखरे चीड़ और बुरांश के जंगलों से आते शीतल झोंके आपको तरोजाता कर देंगे। कुमाऊं की पारंपरिक संस्कृति की झलक भी यहां आपको यहां देखने को मिलेगी। मानिला से आधे घंटे की ड्राइव पर बाजखेत नाम का गांव है। यहां भी हिमालय दर्शन, ग्रामीण-सांस्कृतिक परिवेश और बर्ड वॉचिंग का आनंद लिया जा सकता है। अगर आपको कुमाऊंनी संस्कृति को और करीब से देखना है तो सराईंखेत तक जा सकते हैं।


हिमाचल प्रदेश

1. धर्मकोट गांव
पर्यटन स्थल मैक्लोडगंज से करीब 3 किलोमीटर दूर धर्मकोट गांव है। यहां इस्राइल के लोग भी रहते हैं। भारतीय सैलानियों के बीच नैचरल थेरपी और अपने शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। यह जगह अपनी सुंदरता की वजह से लोगों को पसंद आती है।

  • कहां ठहरें: ज्यादातर होमस्टे और होटल
  • 1 से 2 कमरों का किराया: औसतन 3 से 7 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 20 से 28 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: चक्की बैंक, 63.33 किमी
  • एयरपोर्ट: धर्मशाला, 11 किमी दूर


2. फागू
शिमला से लगभग 20 किमी दूर है। यह 2500 मीटर पर स्थित है। अक्सर बर्फ से घिरा रहता है। इसे जादुई पहाड़ी नगरी भी कहते हैं। टहलते हुए बादलों से मुलाकातें हो जाती हैं। कुदरत की खूबसूरती भरपूर है।

कहां ठहरें: ज्यादातर होमस्टे की सुविधा
किराया: औसतन 1 से 4 हजार रुपये रोज
तापमान: 8 से 25 डिग्री सेल्सियस
कैसे पहुंचें:
नजदीकी रेलवे स्टेशन: शिमला (टॉय ट्रेन), दूरी 18 किमी
एयरपोर्ट: जब्बारहट्टी, 20 किमी दूर


3. कंगोजोड़ी
हिमाचल प्रदेश के नाहन में स्थित कंगोजोड़ी जीवन की हलचल से बचने के लिए मनमोहक जगह है। यह एक ऐसी जगह है जो शांतिपसंद लोगों के लिए खास कही जा सकती है। प्राकृतिक सुंदरता, देवदार के पेड़, खूबसूरत पहाड़ किसी को भी अपने सम्मोहन में बांध लेने की क्षमता रखते हैं। इस जगह पर नदी के किनारे पर बैठकर जिस खुशी का अनुभव होता है उसे शब्दों में बयान कर पाना मुश्किल है।

  • कहां ठहरें: ज्यादातर होमस्टे की सुविधा
  • किराया: औसतन 1 से 4 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 8 से 25 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: शिमला (टॉय ट्रेन), दूरी 18 किमी
  • एयरपोर्ट: जब्बारहट्टी, 20 किमी दूर


4. मलाणा
कुल्लू जिले में स्थित मलाणा प्राचीन गांव है। इस गांव को अपनी मजबूत संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है। यह जगह उन लोगों के लिए बहुत खास है जो आध्यात्मिक मार्गदर्शन चाहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि बीटल्स भारत आने के बाद विदेशी सैलानी ऋषिकेश से पार्वती वैली और फिर इस गांव तक पहुंचे और इस जगह का प्रभाव बढ़ा। यह घाटी कई विदेशी सैलानियों के लिए गर्मियों का स्थायी घर रही है। इतना ही नहीं, यह आज भी हिप्पियों की पहली पसंद है। इसलिए कई लोग इसे एथेंस मलाणा भी कहते हैं।

  • कहां ठहरें: ज्यादातर होमस्टे की सुविधा
  • किराया: औसतन 1 से 5 हजार रुपये प्रति दिन
  • तापमान: 11 से 21 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: चंडीगढ़
  • एयरपोर्ट: चंडीगढ़ (दूरी 297 किमी) और जब्बारहट्टी (दूरी 237 किमी)


5. सैंज घाटी
भारत में पर्यटन के नक़्शे पर हाल-फिलहाल जो जगह उभरकर आई है, वह है हिमालय की सैंज घाटी। हर-भरे घास के मैदान यहां की खासियत है। यह घाटी हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में शहर से महज 50 किमी की दूरी पर है, फिर भी लोगों की नजरों से दूर। अपने शांत, सुंदर और मनोरम वातावरण के लिए जानी जाती है। शानदार नजारे यहां की खासियत है।

  • कहां ठहरें: होमस्टे और होटल की सुविधा
  • किराया: औसतन 2 से 7 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 11 से 21 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: चंडीगढ़
  • एयरपोर्ट: चंडीगढ़ (दूरी 297 किमी) और जब्बारहट्टी (दूरी 237 किमी)
जम्मू-कश्मीर
1. दूधपथरी, कश्मीर
कश्मीर का नाम आते ही गुलमर्ग, सोनमर्ग और पहलगाम याद आता है। लेकिन कश्मीर में ऐसी अनोखी घाटियां भी मौजूद हैं जो आपको दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर देंगी। श्रीनगर से मात्र 43 किलोमीटर की दूरी पर बडगाम जिले में स्थित है दूधपथरी वैली। अपने दूर तक फैले घास के मैदानों और खुशनुमा नजारों के लिए जानी जाती है। सर्दियों में ये घास के मैदान बर्फ से ढक जाते हैं। इसी वजह से ये दूध से ढके होने का आभास भी देते हैं। इसीलिए इस स्थान का नाम दूधपथरी पड़ा।

  • कहां ठहरें: होमस्टे और होटल की सुविधा
  • किराया: औसतन 2 से 7 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 3 से 17 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: श्रीनगर
  • एयरपोर्ट: शेख-उल-अलम (श्रीनगर), दूरी 35 किमी

2. चटपाल
यह दक्षिण कश्मीर का खूबसूरत हिल स्टेशन है। यहां सेब और अखरोट के बाग भी देखने को मिल जाएंगे। श्रीनगर से यह 86 किमी दूर है।

  • कहां ठहरें: होमस्टे की सुविधा और छोटे होटल की सुविधा
  • किराया: औसतन 2 से 7 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 11 से 25 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: श्रीनगर
  • एयरपोर्ट: शेख-उल-अलम (श्रीनगर), दूरी 84 किमी

यहां भी ठहर सकते हैं:
गुरेज वैली: यह एलओसी के करीब है। कश्मीर से 125 किमी दूर बांदीपुरा जिले की यह खूबसूरत जगह है। यहां पहुंचने के लिए राजदान दर्रे को पार करते हैं। सर्दियों में इतनी बर्फ होती है कि यहां तक पहुंचने के रास्ते बंद हो जाते हैं। यहां लकड़ी के घरों में ठहरने का मौका मिलेगा जो एकदम गांव वाला अहसास देगा। यहां पर एक पवित्र पहाड़ है जिसे हब्बा खातून कहते हैं। रुकने के लिए सरकारी डाक बंगले भी हैं। लेकिन स्थानीय लोगों के साथ रहने का मजा ही कुछ और है।
सारथल: श्रीनगर से 275 किमी की दूरी पर है। कठुआ जिले का सारथल कैंपिंग के शौकीनों के लिए बेहतरीन जगह है। यह अपने ग्रास लैंड के लिए मशहूर है।


नॉर्थ-ईस्ट (सिक्किम)

पेलिंग : सिक्किम राज्य का यह खूबसूरत हिल स्टेशन है। इस जगह का समृद्ध इतिहास और संस्कृति पेलिंग को गंगटोक के बाद सिक्किम का सबसे खास टूरिस्ट प्लेस बनाते हैं। दो बौद्ध मठों पेमयांग्स्ते और संगाचोलिंग के बीच में स्थित होने की वजह से यह क्षेत्र एक अच्छे खासे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सका है। यह जगह वॉटर राफ्टिंग, ट्रैकिंग, बाइकिंग आदि के लिए मशहूर है।

  • कहां ठहरें: होटल की सुविधा और कुछ होम स्टे भी
  • किराया: औसतन 3 से 9 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 16 से 22 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: न्यू जलपाईगुड़ी, 150 किमी दूर
  • एयरपोर्ट: बागडोगरा, दूरी 160 किमी

इनके अलावा यहां भी जा सकते हैं
रवांगला (साउथ सिक्किम ज़िला): सिलिगुड़ी से क़रीब 120 किलोमीटर दूर है। इसके लिए भी नजदीकी एयरपोर्ट बागडोगरा है जो 125 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां पर चाय के सुंदर बागान और कंचनजंगा पर्वत श्रृंखला की सफेद चोटियां शानदार हैं। यहां के बुद्ध पार्क देखने देशभर से लोग आते हैं।
बारसे (वेस्ट सिक्किम ज़िला): यह बहुत ही शांत जगह है। यहां का गांव बुरांश, जिसे सिक्किम में गुरांश भी कहा जाता है, अपने फूलों के लिए काफी मशहूर है। यहां पर कई बहुत ही सुंदर ट्रैकिंग रूट भी हैं।

उनाकोटि, त्रिपुरा
इस जगह को शिव की जादुई दुनिया और एक करोड़ श्रापित देवताओं की भूमि कहा जाता है। जंगल के बीच जहां आसपास कोई बसावट नहीं एक साथ इतनी मूर्तियों का निर्माण कैसे संभव हो पाया यह आज भी शोध का विषय है। कोई ठोस प्रमाण तो नहीं मिलता लेकिन इस जगह से तमाम तरह की लोककथाएं जुड़ी हुई हैं जो इस जगह को अद्भुत और रहस्यमयी बनाती हैं। यह जगह दुनिया की भीड़भाड़ से दूर समय बिताने के लिहाज से काफी सुंदर है।

  • कहां ठहरें: होटल की सुविधा और कुछ होम स्टे भी हैं।
  • किराया: औसतन 2 से 10 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 15 से 25 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: कुमारघाट, 4 किमी दूर
  • एयरपोर्ट: कमलपुर, दूरी 38 किमी

अरुणाचल प्रदेश
वालोंग (अंजाव जिला): यह नजदीकी शहर तेजू से करीब 200 किलोमीटर दूर है। यहां की नदियां, गरम पानी के सोते और कुदरत की खूबसूरती अनूठी है। इसके करीब ही डॉन्ग वैली है, जहां भारत में सबसे पहले सूर्योदय होता है और यह नजारा आपको जीवनभर याद रहेगा। यहां से 50 किमी की दूरी पर चीन का बॉर्डर भी है।

  • कहां ठहरें: होटल की सुविधा और कुछ होम स्टे भी हैं।
  • किराया: औसतन 2 से 7 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 15 से 21 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: न्यू तिनसुकिया जंक्शन, दूरी 335 किमी
  • एयरपोर्ट: तेजू, दूरी 200 किमी

इनके अलावा यहां भी जा सकते हैं:
अनीनी (दिबांग वैली जिला): असम के शहर डिब्रूगढ़ से क़रीब 400 किलोमीटर की दूरी पर है। दिबांग वैली जिले की खूबसूरती आपको चकित कर देगी। मिश्मी ट्राइब के लोगों से मिलकर उनकी संस्कृति और जीवन को पास से देख सकते हैं। दिबांग वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी घूम सकते हैं या फिर सेवन लेक का ट्रैक कर सकते हैं। पास ही अचेसो गांव है जो काफी खूबसूरत है।

बोलेंग (सियांग जिला): यह असम के शहर डिब्रूगढ़ से करीब 250 किलोमीटर दूर है। अरुणाचल प्रदेश नीली नदियों और उन पर बने झूलते हुए पुलों की धरती है, इस बात का अहसास आपको बोलेंग पहुंचकर ही होगा। यहां पर हाथों से बने कुछ ऐसे पुल हैं जो शायद आने वाले बरसों में न बचें।

माजुली नदी द्वीप, असम
माजुली को असम की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। इस जगह पर घूमने की बजाय यहां के लोगों, यहां के जीवन और यहां की सांस्कृतिक बहुलता को समझना ज्यादा अच्छा लगता है। इस जगह पर आकर आपको अहसास होगा कि माजुली जैसी खूबसूरत जगह धरती पर शायद ही कहीं और मिले। यह दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप भी है।
  • कहां ठहरें: होटल की सुविधा और कुछ होम स्टे भी हैं।
  • किराया: औसतन 1 से 7 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 22 से 27 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: मरियानी, 40 किमी
  • एयरपोर्ट: जोरहाट, दूरी 48 किमी

ग्लोरी पीक फुटसेरो, नगालैंड

यह नगालैंड के सबसे उंचाई पर स्थित पहाड़ों में से एक है। यह हिमालय का बहुत ही आश्चर्यजनक और मंत्रमुग्ध कर देने वाला सीन पेश करता है। इस जगह से दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट को साफतौर पर देखा जा सकता है। एक पर्यटन स्थल के रूप में पिछले कुछ बरसो में इसकी पहचान में अद्भुत इजाफा हुआ है।
  • कहां ठहरें: होम स्टे के साथ होटल की सुविधा भी
  • किराया: औसतन 2 से 10 हजार रुपये रोज
  • तापमान: 8 से 15 डिग्री सेल्सियस
  • कैसे पहुंचें:
  • नजदीकी रेलवे स्टेशन: दीमापुर
  • एयरपोर्ट: दीमापुर, 130 किमी

नगालैंड में यहां भी जा सकते हैं:
किग्वेमा और जाखमा (कोहिमा जिला): नगालैंड की राजधानी कोहिमा से 16 किलोमीटर की दूरी और नजदीकी एयरपोर्ट दीमापुर से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर है। पहाड़ों पर बसे सुंदर गांव और खूबसूरत सीढ़ीनुमा खेत शानदार नजारा देते हैं। नगालैंड की सबसे खूबसूरत मानी जाने वाली जगह जुको वैली में ट्रैकिंग कर सकते हैं।

मोन (मोन जिला): दीमापुर एयरपोर्ट से करीब 180 किलोमीटर की दूरी और असम के शहर जोरहाट से 140 किलोमीटर दूर है। मोन जिले को 'लैंड ऑफ ऑन्ग' और 'लैंड ऑफ लास्ट हेडहंटर्स ऑफ नगालैंड' कहा जाता है। करीब ही लॉन्गवा गांव जा सकते हैं। जहां के राजा का घर काफी मशहूर है। इस घर की खासियत है कि यह घर आधा भारत और आधा म्यांमार में पड़ता है।

पुंगरो (किफ्री जिला): कोहिमा से करीब 250 किलोमीटर दूर और दीमापुर से इसकी दूरी 320 किलोमीटर के आस-पास है। पुंगरो और आस-पास के ख़ूबसूरत गांव देख सकते हैं। साथ ही, संगताम और यिमचुंगर ट्राइब और उनकी संस्कृति के बारे में जानने का भी मौका मिलेगा। नगालैंड के सबसे ऊंचे पहाड़ माउंट सारामती की ट्रैकिंग की जा सकती है।
(नोट: इन जगहों पर ठहरने का औसतन खर्च बताया गया है। यह मांग और मौसम के हिसाब से कम या ज्यादा हो सकता है।)


तैयारी पूरी हो:
मौसम की जानकारी ले लें और उसी के मुताबिक पैकिंग व टूर प्लान करें। सामान जितना कम रखेंगे, यात्रा उतनी सुखद रहेगी। बच्चों, बुजुर्गों और अपने लिए जरूरी कपड़े रख लें। अपनी गाड़ी से जा रहे हैं तो रास्ते में खाने-पीने का कुछ सामान और पानी भी रख लें। कभी-कभी रास्ते में जाम में फंसने से परेशानी हो सकती है। उस वक्त यह बहुत काम आएगा। चाहें तो खाने के लिए ड्राई-फ्रूट्स, चॉकलेट्स, बिस्कुट, थेपला, भाकरवाड़ी आदि रख सकते हैं। कैमरा और चार्जर, मोबाइल फोन और चार्जर जरूर रखें। जहां भी जाएं अपनी लोकेशन किसी रिश्तेदार या दोस्त से जरूर शेयर करें। उन इलाकों के इमरजेंसी नंबर, अपने करीबियों के मोबाइल नंबर, किसी कागज पर लिखकर साथ में रख लें, जिससे कभी मोबाइल गुम हो जाए या बैटरी डाउन हो जाए तो परेशानी न पैदा हों। बाहर का खाना खाएं तो बेहतर होगा कि पानी के मामले में समझौता न करें। बोतल बंद पानी बेहतर होगा।


कुछ दवा भी हो साथ रखें
अमूमन ऐसी जगहों पर दवाएं भी मिल जाती है, लेकिन अपनी तैयारी भी जरूर पूरी हो। वैसे भी जब फैमिली साथ हो तो चूक नहीं होनी चाहिए।
  • बुखार के लिए: पैरासिटामॉल (क्रॉसिन और डोलो)
  • लूज मोशन के लिए: लोप्रामाइड ग्रुप की दवाएं।
इनके अलावा थर्मामीटर भी रख लें। पहाड़ी इलाकों में सफर पर कुछ लोगों को उलटी भी आती है तो उससे बचने के लिए भी कुछ इंतजाम कर सकते हैं। चटपटी गोलियां और उलटी रोकने की दवा साथ रख सकते हैं।


जानकारी यहां से लें
फेसबुक ग्रुप्स: इंटरनेट पर फेसबुक, quora जैसे कई डिस्कशन फोरम हैं, जहां दुनियाभर के घुमक्कड़ अपने अनुभव के आधार पर लोगों की मदद करते रहते हैं। इन फेसबुक ग्रुप्स जैसे कि Backpacking, Travelettes, Travel Blogger Tales, Girls LOVE travel आदि पर लोग सवाल पूछते हैं और अनुभवी लोग उनका जवाब देते हैं। टूरिस्ट स्कैम्स और दूसरी परेशानियों के बारे में अक्सर इन ग्रुपों में जानकारी भरी रहती है।

यू-ट्यूब चैनल्स
1. YATRI DOCTOR
https://youtube.com/c/yatridoctor
2. HOPING BUG
https://youtube.com/c/HoppingBug
3. TANYA KHANIJOW https://youtube.com/c/TanyaKhanijow
4. MOUNTAIN TREKKER https://youtube.com/c/mountaintrekker

जरूरी वेबसाइट्स
  • www.airbnb.co.in
  • www.booking.com
  • www.makemytrip.com
  • www.goibibo.com
  • www.yatra.com
  • www.cleartrip.com
काम के ऐप्स
  1. Incredible india
  2. TripIt
  3. FabHotels
  4. TravelSpend
नोट: ऊपर बताई हुई वेबसाइट्स या ब्लॉग आदि से भी बुकिंग में मदद न मिले तो गूगल पर उस इलाके का नाम देखकर सर्च करें। फिर ठहरने का ऑप्शन भी देख लें।

(संकलन: दृश्या मधुर)

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तन-मन से लेकर घर तक की गर्मी निकालना है जरूरी , मई-जून में एक्सपर्ट की ये सलाह बहुत काम की है

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गर्मी के महीने में बैक्टीरिया और वायरस बिना शोर किए ही पेट में इंफेक्शन फैला देते हैं। कब ये चुपके से अंदर पहुंचकर हाजमे का खेल बिगाड़ देते हैं और पेट को गर्म कर देते हैं, पता ही नहीं चलता। वहीं, अगर कूलिंग की अच्छी व्यवस्था न हो या घर में पावर कट हो जाए तो घर के साथ-साथ दिमाग भी गर्म होने लगता है। देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से बात करके तन, मन और घर की गर्मी को काबू में रखने के तरीके बता रहे हैं लोकेश के. भारती और राजेश भारती

तन की गर्मी
गर्मी व बरसात के मौसम में बैक्टीरियल और वायरल इंफेक्शन की आशंका काफी रहती है। वहीं पेट और आंतों में सूजन की वजह से परेशानी हो जाती है। आजकल पेट में अममून दो तरह की परेशानी ही ज्यादा देखी जाती है:

1. पेट और आंतों में सूजन: इसे गैस्ट्रोइनटेरिटिस भी कहते हैं। यह सूजन खराब भोजन खाने और गंदे पानी की वजह से हो सकती है। दरअसल, इनमें बैक्टीरिया और वायरस की मौजूदगी हो सकती है। अमूमन यह समस्या 3 से 4 दिनों में दूर हो जाती है। किसी-किसी में परेशानी लंबा भी चला जाता है। बैक्टीरियल इंफेक्शन से ज्यादा कॉमन है वायरल इंफेक्शन।

यह आमतौर पर इन 4 कारणों से होता है। बैक्टीरियल इंफेक्शन: ई-कोलाई, साल्मोनेला, कैंपीलोबैक्टर, शिजेला

गैस्ट्रोइनटेरिटिस में बैक्टीरियल इंफेक्शन के लक्षण
पेट और आंतों में सूजन
पेट में दर्द
पानी की कमी
उल्टी और डायरिया, कई बार स्टूल के साथ खून भी आता है।
तेज बुखार (102 या 103 फारेनहाइट तक), कभी-कभी हल्का बुखार (100 फारेनहाइट तक)
कमजोरी
शरीर में पानी की कमी
किस बैक्टीरिया या पैरासाइट ने लक्षण पैदा किए हैं, उस पर भी निर्भर करता है।

दवा की बात: इसमें डॉक्टर खून और स्टूल जांच के बाद ऐंटिबायोटिक भी लिखते हैं।


गैस्ट्रोइनटेरिटिस में वायरल इंफेक्शन के लक्षण
  • सभी लक्षण बैक्टीरियल इंफेक्शन वाले ही होते हैं।
  • बुखार इसमें कम आता है। अमूमन 100 से नीचे ही रहता है।
  • इसमें कभी-कभी मांसपेशियों में दर्द भी होता है।
  • 99 फीसदी मामले 3 से 4 दिनों में खुद ही दूर हो जाते हैं।
  • 1 फीसदी मामले ही गंभीर होते हैं।

दवा की बात: चूंकि यह वायरल इंफेक्शन होता है, इसलिए ऐंटिबायोटिक लेने से कोई फायदा नहीं होता। अमूमन ऐंटिबायोटिक नहीं दी जाती।

2. एक्यूट हेपेटाइटिस: यह लिवर की परेशानी है। इसमें लिवर में सूजन आ जाती है। खाना अच्छा नहीं लगता। बुखार भी 100 या इससे ऊपर भी हो सकता है। अगर मामला बहुत ज्यादा गंभीर न हो तो इसमें ऐंटिबायोटिक नहीं दी जाती। दरअसल, ऐंटिबायोटिक का बुरा असर लीवर पर पड़ता है।

क्या हैं लक्षण
  • पेट में काफी तेज दर्द
  • भूख में कमी
  • थकावट
  • उल्टी
  • यूरिन का रंग गाढ़ा पीला
  • जोड़ों में दर्द
  • हल्का बुखार (100 तक)
  • सीने के दाहिने हिस्से में रिब्स (छाती की हड्डी) के नीचे दर्द

क्या करें कि इस तरह की परेशानी हो ही नहीं
1. आदत बदलें
  • खाने को कम से कम 12 बार चबाकर खाएं। हम जो भी खाते हैं उसका पाचन मुंह से शुरू हो जाता है। उसमें लार मिलती है। अगर भोजन के कणों को कम तोड़ेंगे तो इसका सीधा असर पेट पर होगा। वहां पर इसे पचाने में ज्यादा मेहनत करनी होगी और एक तरह से पेट की गर्मी बढ़ जाएगी क्योंकि ज्यादा मात्रा में एचसीएल निकालना होगा।
  • खाने को मुंह में इतना चबाना चाहिए कि यह पेस्ट जैसा बन जाए।
  • सुपाच्य और सामान्य खाना ही खाएं, जैसे: दाल, भात या रोटी और मौसमी सब्जी। ज्यादा तेल-मसाले से बचें।
  • जब खाना मुंह से फूड पाइप के जरिये पेट में पहुंचता है तो वहां पर HCL (हाइड्रोक्लोरिक एसिड) निकलता है। इस वजह से खाना वहां एसिडिक बन जाता है। इसके अलावा भी यहां कई तरह के दूसरे पाचक रस निकलते हैं।
  • हर दिन एक शख्स के पेट में करीब 2.5 लीटर पाचक रस निकलता है।
  • पेट में एचसीएल और खाना इस तरह मिलता है, जैसे कोई आटा गूंथता है।
  • पेट में एचसीएल खाने को इस तरह तोड़ता है कि छोटी आंत में पहुंचने पर शरीर उसे आसानी से जज्ब कर सके।
  • छोटी आंत में पहुंचते समय भोजन के 1 कण का आकार 1 मिलीमीटर या इससे छोटा होना चाहिए।

2. खानपान का चुनाव हो सही
  • बासी खाना न खाएं।
  • गर्म तासीर वाली चीजें, जैसे: कच्चा प्याज, मिर्च, लहसुन, अदरक बहुत कम कर दें। सर्दियों में जितना लेते थे, उसकी तुलना में 10 फीसदी से ज्यादा न हो।
  • बाहर का खाना खाने से बचें।
  • बाहर की कच्ची चीजें, जैसे: सलाद या फ्रूट सलाद भी न खाएं। यह मुमकिन है कि उसे साफ पानी से न धोया गया हो।
  • मौसमी फल और सब्जियां को घर में अच्छी तरह से धोकर खाएं। खासकर फल और सलाद को।
  • बाहर के गन्ने का बर्फ वाला जूस या कोई दूसरा जूस भी न लें क्योंकि बर्फ के लिए किस पानी का इस्तेमाल किया गया है और कैसा रखरखाव है, यह पता नहीं चलता।
  • चाय, कॉफी, शराब आदि में कमी या इनसे दूरी जरूरी है।
  • गर्मी से बचने के लिए हम बहुत ज्यादा ठंडा पानी पीते हैं। यह गलत है। पानी उतना ही ठंडा हो जितना एक मिट्टी के मटके में रखने पर होता है। सच तो यह कि ठंडा पानी जीभ के टेस्ट के लिए ठीक हो सकता है, लेकिन शरीर के भीतर पहुंचने पर शरीर को इसे फिर गर्म करना पड़ता है।

जब हो जाए इंफेक्शन... डिहाइड्रेशन से है लड़ना
जब ज्यादा उलटी, डायरिया की स्थिति बनती है तो शरीर में पानी की कमी होने लगती है। ज्यादा परेशानी होने पर किडनी फेल होने की आशंका रहती है।
इसलिए शरीर में पानी की मात्रा कम न होने दें। हर एक या दो घंटे पर एक गिलास ओआरएस का घोल दें। अगर ओआरएस नहीं है तो एक गिलास सादा पानी में एक चुटकी नमक और एक से दो चम्मच चीनी मिलाकर दें। यह भी न हो तो सामान्य पानी दें। पर यह ध्यान रहे कि पानी में फिर से इंफेक्शन की आशंका न हो। अगर ज्यादा जरूरी हुआ तो पानी को 5 मिनट खौला लें। फिर सामान्य तापमान होने पर पीने के लिए दें।

खानपान का ध्यान
  • तेल-मसाला बिलकुल बंद कर दें।
  • हाई कैलरी (मीठा, फैटी चीजें, जंक फूड: पित्जा, बर्गर, नूडल्स आदि) न लें।
  • रोटी न खाएं, पचाने में परेशानी होगी।
  • दूध और उससे बने उत्पाद से बचें। चीनी मिलाकर एक कटोरी दही खा सकते हैं। दही खट्टा न हो।
  • खाने में खिचड़ी (मूंग दाल वाली) या चावल और मूंग या मसूर दाल का पानी लें।
  • अगर बुजुर्ग हैं तो उनके बीपी पर भी नजर रखनी है। कई बार बीपी नीचे चला जाता है। अगर यह 100/60 से नीचे जाए तो डॉक्टर से संपर्क जरूर करें। इसलिए इन्हें डिहाइड्रेशन न होने दें।

ऐसे में ये ड्रिंक भी देंगे साथ
  • बेल का शर्बत: एक दिन में 2 गिलास। अगर कब्ज की समस्या है तो न लें या आधा गिलास काफी है। यह कब्ज को बढ़ाता है।
  • आम पना:1 दिन में 2 गिलास तक
  • शिकंजी: एक दिन में 3 से 4 गिलास
  • लस्सी: 2 गिलास तक
  • जलजीरा: 3 से 4 गिलास
  • चना सत्तू ड्रिंक: नमकीन या मीठा पिएं (एक गिलास पानी में दो या तीन चम्मच चना सत्तू और स्वादानुसार नमक या चीनी)।

मन की गर्मी यानी गुस्सा

गुस्से को हम मन की गर्मी कह सकते हैं। गुस्सा सभी को आता है। किसी को कम तो किसी को ज्यादा। कोई गुस्से में अपना नुकसान करता है: कभी सिर पटकता है तो कभी घर का सामान फेंक देता है। वहीं कुछ लोग गुस्से में दूसरों का नुकसान करते हैं। हिंसा पर उतर आते हैं। हाथ में जो सामान आया उसे उठाकर सामने वाले पर फेंकते हैं। इसे इमोशंस का मुखौटा भी कहते हैं। दरअसल, गुस्से को डीप इमोशन नहीं माना जाता। ज्यादातर समय गुस्सा आने के वक्त मन में किसी दूसरी वजह से उथल-पुथल मची होती है और यह बाहर किसी दूसरी वजह से निकलता है। सीधे कहें तो यह अंदर के इमोशंस को दर्शाने की कोशिश होती है। गुस्सा आने पर एक परेशानी यह होती है कि हमें पता ही नहीं चलता कि हम गुस्से में हैं। हां, दूसरों का गुस्सा हम जरूर समझ लेते हैं।

क्या है इसमें केमिकल लोचा
जब गुस्सा आता है तो एड्रिनलिन हॉर्मोन तेजी से निकलता है। यह हॉर्मोन हमारी धड़कनों को तो बढ़ाता ही है, साथ ही हमें अतिरिक्त ऊर्जा का आभास भी कराता है। इससे हम हिंसक होने लगते हैं। गुस्सा आने का मतलब है कि उस समय हमारे शरीर में मौजूद सेरेटोनिन हॉर्मोन के स्तर में बदलाव हुआ है। दरअसल, यह हॉर्मोन हमारे दिमाग को शांत रखने में अहम भूमिका निभाता है। एड्रिनलिन हॉर्मोन तेजी से रिलीज होता है और बॉडी को इस बात के लिए तैयार कर देता है कि वह फिजिकली रिऐक्ट करे। दूसरी तरफ नर्वस सिस्टम में कॉर्टिसोल समेत कुछ और केमिकल निकलते हैं। ये दिमाग को उत्तेजित अवस्था में रखते हैं, जिससे दिमाग में विचारों का प्रवाह बेचैनी के साथ और बेहद तेज रफ्तार से होने लगता है।

आखिर गुस्सा क्यों बेकाबू होता है?
  • अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति से असंतुष्ट होना
  • दिल की बातें किसी से शेयर न कर पाना
  • सब्र की भारी कमी, दूसरों को देखकर जलन
  • माहौल का भी असर

गुस्से में हैं यह कैसे पहचानें
  • सांस तेज: गुस्से का यह शुरुआती लक्षण है। हमारी सांसें सामान्य 15 से 20 प्रति मिनट से बढ़कर 30 से 35 प्रति मिनट तक हो सकती हैं।
  • धड़कनें तेज: जब सांसें तेज होती है तो धड़कनें भी तेज हो ही जाती हैं। यह 60 से 80 से बढ़कर 80 से 100 या इससे भी ऊपर पहुंच जाती हैं।
  • पैर थरथराना: कई बार गुस्सा आने पर पैरों में थरथराहट आम बात है। कई लोगों को इसलिए फौरन ही बैठ जाना पड़ता है, नहीं तो गिरने का डर रहता है।
  • हाथ-पैर पटकना: यह ज्यादातर बच्चों, टीनएजर्स में देखा जाते हैं, लेकिन कुछ युवाओं में भी यह लक्षण हो सकता है।
  • चेहरा और आंखें लाल: चूंकि एड्रिनलिन हार्मोन ज्यादा मात्रा में निकलता है। इससे शरीर में खून का बहाव तेज हो जाता है। कुछ लोगों की आंखों और चेहरे पर इसका सीधा असर दिखता है। ये लाल हो जाते हैं।
  • सिरदर्द: यह भी गुस्सा आने के बाद मुमकिन है। अमूमन यह ज्यादातर उन लोगों में होता है जिन्हें हाई बीपी की शिकायत होती है।
  • चिल्लाना और शब्दों के चुनाव में गलती: गुस्सा जताने के लिए हम चिल्लाना शुरू करते हैं। खासकर तब जब हम यह मान लेते हैं कि हम ही एक सही हैं, बाकी सभी गलत।
  • विचारों का प्रवाह बहुत तेज होना: जब हम गुस्से में होते हैं तो हमारे दिमाग में एक साथ कई तरह के विचार पैदा होने लगते हैं।

क्या है नुकसान
  • अगर किसी को हाई बीपी की परेशानी है तो यह स्वाभाविक है कि उसकी धड़कनें बढ़ी होंगी। ऐसे में अगर उसे गुस्सा आएगा, बार-बार आएगा तो यह मुमकिन है कि उसकी हार्ट बीट बहुत ज्यादा हो जाए। नतीजा एंजाइना या हार्ट अटैक भी हो सकता है।
  • खुद को शारीरिक नुकसान पहुंचाकर खुद का नुकसान करते हैं। समस्या तब बढ़ जाती है जब कोई गुस्से पर काबू न रखते हुए दूसरों से गाली-गलौज या मारपीट करने लगता है। पुलिस केस जैसी समस्या भी आ जाती है।
  • अगर किसी करीबी से चिल्ला कर बोल दें तो संबंध कई बार हमेशा के लिए खराब हो जाते हैं।

बिना वजह और बार-बार गुस्सा आने की वजह
अगर कोई शख्स तनाव या डिप्रेशन में लगातार हो तो यह काफी आशंका होती है कि उसे बार-बार गुस्सा आए। खासकर उन बातों के बारे में सोचकर या चर्चा होने पर जिसकी वजह से वह तनाव की स्थिति में होता है। जब तक उस समस्या का कोई हल नहीं निकलता, तब तक उस विषय पर ज्यादा मंथन न करें। वहीं, उनके करीबी लोगों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे शख्स के सामने उन बातों की जिक्र या चर्चा करने से बचे। अगर चर्चा हो भी तो उसकी वजह के लिए उस शख्स को दोषी न बताएं। अगर जरूरत हो तो किसी साइकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट की मदद भी ले सकते हैं।

क्या यह मुमकिन है कि गुस्सा आए ही नहीं?
यह संभव नहीं है। गुस्सा सभी को आता है, लेकिन जरूरी यह है कि उस पर काबू कैसे किया जाए। हमें यह समझना होगा कि जब गुस्सा आने की स्थिति बने या गुस्सा आ जाए तो क्या करना चाहिए?

रिएक्शन टाइम बढ़ाने से गुस्सा होगा कूल
उदाहरण 1: जब हम गाड़ी चलाते हैं और कोई आगे वाली गाड़ी बिना इंडिकेटर दिए मुड़ जाए। हमें अचानक ही ब्रेक लगाना पड़े। हमारा रिऐक्शन ज्यादातर मामलों में चिल्लाना, गाली देना या अगर मुमकिन हुआ तो उतरकर उससे लड़ाई करना यानी अगर हमारे मन के कुछ भी विपरीत हो तो हमें बर्दाश्त नहीं होता जबकि यह संभव नहीं है कि सभी लोग हमारी मर्जी से ही काम करें। हर कोई नियमों का पालन करे।

  • कार वाले उदाहरण को ही देखें तो हमारा रिऐक्शन होना चाहिए: हम कार को साइड में लगा दें। कुछ 10 से 15 बार गहरी सांस लें। जब गुस्से का आवेग निकल जाए तब गाड़ी में लौटें।

उदाहरण 2: घर में या ऑफिस में हैं। वहां पर किसी बात पर गुस्सा आ गया। ऊपर जो लक्षण बताए गए हैं, वे सब दिख रहे हैं तो हमें उठकर उस कमरे से दूसरे कमरे में चले जाना चाहिए। इससे रिऐक्शन टाइम बढ़ जाएगा। साथ ही माहौल बदल जाएगा तो हम उन घटनाओं पर विवेक के साथ जवाब पाएंगे ना कि आवेग यानी गुस्से में।

गुस्से की उत्पत्ति को पहचानना: अगर किसी खास वजह से गुस्सा आ रहा है तो उसे पहचानना जरूरी है। किसी खास विषय पर बात करने से गुस्सा आता है तो उससे बचने की जरूरत है।

लचीलापन: हमें दूसरों को सुनने के लिए लचीलापन रखना चाहिए। स्थिति के हिसाब से बदलाव के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
तनाव कम करना: तनाव में सभी होते हैं, लेकिन जब यह हर दिन के काम में खलल पैदा करने लगे तो इस पर काबू करना जरूरी है। ऐसे तनाव से ही अक्सर गुस्सा पैदा होता है।
छोटी-छोटी खुशियों को जाया न करना: जब ज़िंदगी में खुशियां कम होंगी तो तनाव ही बढ़ेगा। एक छोटी-सी खुशी को भी अगर 5 लोगों से शेयर करेंगे तो 5 बार खुश हो जाएंगे।
वॉकिंग और एक्सरसाइज: हर दिन 30 से 35 मिनट का वॉक और 15 से 20 मिनट की एक्सरसाइज से फायदा होता है। पॉजिटिव हॉर्मोन ज्यादा निकलता है।
योग और ध्यान करना: हर दिन 10 मिनट का ध्यान और 10 से 15 मिनट योग करने से एड्रिनलिन हॉर्मोन कम मात्रा में या जल्दी नहीं निकलता।
अच्छा श्रोता बनना: जब हम अच्छे सुनने वाले होते हैं तो फौरन ही जवाब नहीं देते यानी रिऐक्शन टाइम बढ़ जाता है।
क्या सही है गुस्सा को दबाना: खून का घूंट पीकर रहना, सही नहीं है। यह बीपी भी बढ़ाता है और नींद भी उड़ा देता है। इसलिए गुस्से को निकलने दें, पर रिऐक्शन टाइम बढ़ाकर और धैर्य के साथ।

गर्मी में घर को ऐसे रखें ठंडा

गर्मियों में घर भी काफी गर्म हो जाता है। अगर घर की छत या दीवारों पर सीधी धूप आती है तो हो सकता है कि घर अंदर से एक तरह से आग का गोला बना हुआ हो। ऐसे में अगर घर में एसी न हो तो पंखे और कूलर भी गर्म हवा फेंकते हैं। लेकिन ऐसे बहुत सारे उपाए हैं जिन्हें आजमाकर आप घर को ठंडा रख सकते हैं। जानें, ऐसे ही कुछ उपायों के बारे में:

1. छत पर पानी डालें
अगर आप टॉप फ्लोर पर या ऐसे घर में रहते हैं जिसमें सिर्फ एक ही छत है तो गर्मी में छत की तपिश से घर के अंदर ही हवा भी गर्म हो जाती है। ऐसे में बेहतर होगा कि शाम को धूप जाने के बाद छत पर पानी डालें। पानी डालने से छत की तपिश खत्म हो जाती है और घर के अंदर चल रहा पंखा ठंडी हवा देता है। ध्यान रखें कि छत पर पानी तब तक डालें जब तक कि छत ठंडी न लगने लगे। इसके लिए छत पर नंगे पैर चलें। अगर पैर ठंडे लगने लगें तो समझ लें कि छत ठंडी हो गई है। छत को इन तरीकों से भी ठंडी रख सकते हैं:
  • छत पर गमले रखकर उनमें पौधे लगा दें। इससे धूप सीधी छत पर नहीं लगेगी और छत ठंडी रहेगी। गमलों में आप सब्जी, फूल वाले पौधे आदि लगा सकते हैं।
  • सफेद रंग रिफ्लेक्टर का काम करता है। इसलिए छत पर सफेद पेंट या चूनायुक्त सफेद सीमेंट का लेप लगाएं। ऐसा करने से छत 70 से 80 फीसदी तक ठंडी रहती है।
  • छत के ऊपर खाली बोरे या खस की टाट फैलाकर उन पर पानी छिड़कते रहने से भी घर के भीतर आने वाली गर्मी को कम किया जा सकता है।

2. खिड़कियों को करें कवर
गर्मियों में खिड़कियों को जितना हो सके, बंद रखें। अगर खिड़कियां कांच की हैं तो उन पर हीट कंट्रोल वाली फिल्म चिपका दें। ये फिल्म काली, डार्क सिल्वर, ब्लू आदि रंगों में आती हैं। इन्हें कांच पर लगाने से न केवल सूरज की गर्मी से बचा जा सकता है बल्कि ये सूरज से आने वाली अल्ट्रावॉयलेट (UV) किरणों को भी रोकती हैं। इन्हें ऑनलाइन या ऑफलाइन मार्केट से आसानी से खरीदा जा सकता है। अगर फिल्म नहीं लगा सकते तो खिड़कियों पर कॉटन के हल्के पर्दों का इस्तेमाल करें। इससे गर्म हवा और धूप कमरे में नहीं आएगी और घर गर्म नहीं होगा।
  • कीमत: 400 रुपये (20x100 इंच का साइज)
यह देसी उपाय भी है कारगर
  • अगर आपकी खिड़कियों पर जाली लगी हुई है तो खिड़कियां खोलकर उस पर कोई गीला सूती कपड़ा या खसखस के पर्दे टांग दें। हवा गीले कपड़े से टकराकर जब अंदर आएगी तो वह ठंडी होगी। जब कपड़ा सूख जाए तो उसे फिर से गीला करके खिड़की पर टांग दें।

3. कूलर में डालें बर्फ
मार्केट में इन दिनों ऐसे कूलर आ रहे हैं जिनमें आइस चैंबर होता है। इसमें बर्फ रखी जाती है। कूलर का पानी इस बर्फ से टकराकर कूलर के टैंक में जाता है जो धीरे-धीरे ठंडा होता जाता है। इससे कूलर से आने वाली हवा और भी ठंडी हो जाती है। अगर आपके पास कूलर में आइस चैंबर नहीं है तो सीधे कूलर के टैंक में बर्फ डाल दें। इससे कूलर में भरा पानी ठंडा हो जाएगा और आपको एसी जैसी ठंडी हवा मिलेगी।

4. दीवारों और छत पर कराएं पेंट
आजकल मार्केट में ऐसे पेंट मौजूद हैं जो न केवल घर की खूबसूरती बढ़ाते हैं बल्कि हीट को भी कंट्रोल करते हैं। इन्हें हीट रिफ्लेक्टिव पेंट भी कहा जाता है। इन्हें दीवारों के बाहरी हिस्से और छत पर किया जाता है। सूरज की किरणें जब दीवारों और छत पर पड़ती हैं तो ये पेंट हीट को रिफ्लेक्ट कर देते हैं। इससे सूरज की गर्मी का असर घर पर कम पड़ता है और घर ठंडा रहता है। कई बार यह अंतर 10 डिग्री सेल्सियस तक रहता है यानी अगर घर के बाहर का तापमान 40 डिग्री है तो अंदर का तापमान 30 डिग्री होगा। ये पेंट 10 साल तक चलते हैं।
  • कंपनी: Dulux, LuminX, EXCEL आदि।
  • कीमत: 6 हजार रुपये (20 लीटर)

5. घर में लगाएं हरे-भरे पौधे
घर में ठंडक के लिए हरे-भरे पौधे भी काम आते हैं। घर के दरवाजे और बालकनी में पौधे लगाने से बाहर की हवा कुछ ठंडी होकर अंदर आती है। वहीं घर के अंदर भी पौधे (इंडोर प्लांट्स) लगा सकते हैं। इसमें मनी प्लांट, स्नेक प्लांट, बेबी रबर प्लांट, एलोवेरा आदि शामिल हैं। इनसे न केवल शुद्ध हवा मिलती है बल्कि घर के अंदर भी ठंडक रहती है। पौधों के कारण घर के अंदर का तापमान बाहर की अपेक्षा 10 डिग्री तक कम रहता है। पौधे लगाते समय इन बातों का ध्यान रखें:
  • बालकनी में ऐसे पौधे लगाएं जो घने हों जैसे- पाम, गुड़हल आदि।
  • इंडोर प्लांट में छोटे-छोटे पौधे घर में जगह-जगह लगाएं। अगर आपका घर 1000 स्क्वेयर फुट का है तो इसके 10वें भाग में पौधे ही लगाएं।
  • Hide quoted text
  • पौधों को शाम को पानी जरूर दें और उन्हें अच्छे से धोएं।
  • लंबे पौधों को खिड़कियों के पास रखें ताकि वे कमरे में सीधी धूप को आने से रोक सकें।

6. लगवाएं फॉल्स सीलिंग
छत पर फॉल्स सीलिंग लगवाने से भी गर्मियों में कमरे को ठंडा रखा जा सकता है। फॉल्स सीलिंग में छत के नीचे एक और परत बनती है और धूप के कारण छत के गर्म होने का असर कमरे के अंदर कुछ खास नहीं पड़ता। इससे कमरे में ठंडक बनी रहती है। इसे ड्रोप सीलिंग भी कहा जाता है। फॉल्स सीलिंग को एल्यूमीनियम फ्रेमिंग द्वारा स्क्वेयर पैटर्न में तैयार किया जाता है। इनमें जिप्सम बोर्ड फिट किया जाता है और फिर पेंट या वॉलपेपर लगाकर फिनिश किया जाता है। फॉल्स सीलिंग से घर की खूबसूरती भी बढ़ती है।

7. बिजली के उपकरणों का रखें ख्याल
बिजली के कई उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज आदि भी घर में गर्मी बढ़ाते हैं। अगर इन उपकरणों का इस्तेमाल नहीं कर रहे तो बंद कर दें। अगर बंद करना संभव नहीं है तो बेहतर होगा कि इन्हें ऐसी जगह रखें जहां से क्रॉस वेंटिलेशन हर समय रहता हो। घर में LED बल्ब लगवाएं। इनसे कम गर्मी का उत्सर्जन होता है जिससे घर को ठंडा रखने में मदद मिलती है।

ये तरीके भी रखेंगे घर को कूल-कूल
  • घर में कॉटन के हल्के रंग के पर्दे, बेडशीट आदि इस्तेमाल करें। इससे कूल-कूल फीलिंग आती है। साथ ही हल्का रंग आंखों को भी ठंडक देता है।
  • घर के दरवाजे और खिड़कियां हर समय बंद करके न रखें। सुबह सूरज निकलने से पहले और शाम को सूरज डूबने के बाद कुछ देर के लिए खिड़कियां खोल दें।
  • अगर घर में एसी नहीं है तो रात को कोई खिड़की या कमरे का कोई हिस्सा खुला छोड़ दें ताकि ठंडी हवा कमरे में आ सके। अगर हो सके तो एग्जॉस्ट फैन चलाएं।
  • घर में क्रॉस वेंटिलेशन सही रखें ताकि हवा का सर्कुलेशन सही बना रहे। अगर पानी के साथ कूलर चला रहे हैं तो कोई खिड़की खोलकर रखें या एग्जॉस्ट फैन लगाकर रखें। नहीं तो कूलर ठंडी हवा की जगह नमी से शरीर को चिपचिपा कर देगा।
  • किचन में एग्जॉस्ट फैन या चिमनी लगवाएं ताकि किचन में पैदा हुई हीट को बाहर किया जा सके।
  • अगर कमरे में कालीन बिछा हो और उस कमरे में एसी नहीं है तो कालीन को हटा दें। दरअसल, कालीन गर्मी बढ़ाता है। खाली फर्श ठंडा रहता है और गर्मी के दिनों में खाली फर्श पर नंगे पैर चलने से न केवल अच्छा लगता है बल्कि ठंडी-ठंडी फीलिंग भी आती है।



-डॉ. सत्या एन. डोरनाला, वैद्य-साइंटिस्ट फेलो

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वे 4-5 दिन, कुदरत ने क्यों बनाया ये चक्र, जानें पीरियड की एबीसीडी

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हाल ही में चीन की एक टेनिस खिलाड़ी 19 साल की झेंग किंवेन पहली बार फ्रेंच ओपन खेलने पहुंचीं। वह चौथे राउंड में हार गईं। हारने के बाद उन्होंने कहा कि अगर वह लड़का होतीं तो शायद नहीं हारती। उनकी इस बात ने काफी सुर्खियां बटोरीं। दरअसल, उनका इशारा महिलाओं में होने वाले पीरियड्स के दर्द की ओर था। एक तरफ उनका गेम चल रहा था तो दूसरी तरफ उनका पीरियड भी। ऐसे में कई सवाल उठते हैं। क्या पीरियड इस कदर कमजोर कर देता है कि कोई अपना काम सही तरीके से न कर पाए? क्या पीरियड को आगे बढ़ाया जा सकता है? पीरियड के दौरान खानपान और रहन-सहन कैसा रखना चाहिए कि ब्लीडिंग परेशान न करे? ऐसे तमाम सवालों के जवाब देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से जानने की कोशिश की लोकेश के. भारती ने:

महिलाओं को सहयोग और मेंटल सपोर्ट की जरूरत
अपने देश में एक ट्रेंड रहा है कि महिलाएं हर चीज में परिवार को आगे और खुद को सबसे आखिर में रखती हैं। चाहे वह खानपान की बात हो या अपनी जरूरतों की। इसी का नतीजा है कि महिलाओं की सेहत से सबसे ज्यादा समझौता किया जाता है। पीरियड्स में जिस तरह की सुविधाओं की जरूरत होती है, वे मिलती नहीं हैं। कई तरह की परेशानियां उन्हें मुफ्त में मिल जाती हैं। वैसे तो मेंस्ट्रूल साइकल एक सामान्य कुदरती प्रक्रिया है, लेकिन यह भी सच है कि इस वजह से ही कई महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी देखी जाती है। हर महीने जैसे ही ये 4 से 5 दिनों का फेज शुरू होने वाला होता है, यह उस लड़की या महिला के साथ-साथ घर की बाकी महिलाओं के लिए टेंशन का वक्त होता है। इसलिए यह जरूरी है कि परिवार के पुरुष सदस्य भी अपनी भूमिका समझें। यह भी समझें कि ये दिन लड़कियों या महिलाओं के लिए काफी दर्द से भरे हो सकते हैं। ऐसे में उन्हें आपके सहयोग और मेंटल सपोर्ट की जरूरत होती है।


कुदरत ने क्यों बनाया यह चक्र?
कुदरत ने यह सिस्टम बनाया है कि जब-जब ओवरी (महिलाओं के शरीर में जहां एग बनता है) से एग निकलेगा, उससे पहले शरीर को भ्रूण के पोषण के लिए तैयार करना होगा। शरीर यह मानकर चलता है कि एग तैयार हुआ है तो स्पर्म भी उपलब्ध होगा और निषेचन (फर्टिलाइजेशन) भी जरूर होगा। इसके लिए गर्भाशय में एक लाइनिंग बन जाती है जिसे एंडोमेट्रियम कहते हैं। इसमें खून के साथ-साथ पोषक तत्वों की बहुतायत होती है। जब स्पर्म नहीं मिलता तो गर्भाशय के ऊपर बनी यह लाइनिंग गिर जाती है, जिससे ब्लीडिंग होती है। चूंकि यह एक चक्र की तरह हर 28 दिनों पर ( 20 से 40 दिनों पर भी हो सकता है) होता है, इसलिए इसे मेंस्ट्रूल साइकल कहा जाता है। हिंदी में माहवारी या मासिक चक्र भी कहते हैं। यह अमूमन 9 से 12 या 13 साल में शुरू होता है और 45 से 50-52 साल तक चलता है। अगर लड़की या महिला के शरीर में यह कुदरती चक्र न हो तो धरती पर इंसानों की मौजूदगी ही खत्म हो सकती है।

पहली बार कब बताएं बेटी को इस बारे में?
किशोरावस्था में लड़कियों में मेंस्ट्रूअल साइकल की शुरुआत होती है। तब इसे मिनार्की कहा जाता है। अमूमन यह 9 से लेकर 13 साल की उम्र में होता है। इसलिए बच्ची की 8 साल की उम्र पूरी होने के बाद मां, महिला गार्जियन या फिर पिता की जिम्मेदारी है कि वह लड़की को बताए कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। यह भी बताए कि ऐसा सभी लड़कियों के साथ होता है। इससे वे खुद को पहले से मानसिक रूप से तैयार कर सकती हैं, ज्यादा अलर्ट हो सकती हैं और उन्हें अचानक झटका नहीं लगता।


क्या पीरियड के दिनों को शिफ्ट कर सकते हैं?
जैसा कि चीन की टेनिस प्लेयर ने कहा कि वह लड़का होती तो शायद यह मैच नहीं हारतीं। ऐसा इसलिए क्योंकि लड़कों को पीरियड नहीं होते और उन्हें उस दर्द से नहीं गुजरना पड़ता जो महिला खिलाड़ी को झेलना पड़ा। हालांकि उस दौरान चीनी खिलाड़ी के पास यह विकल्प था कि वह पीरियड के दिनों को कुछ दिन आगे के लिए शिफ्ट कर सकती थी। ऐसी दवाएं आती हैं जिन्हें डॉक्टर की सलाह से लेने पर पीरियड की तारीख को 10 दिनों तक आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन ऐसा तभी करना चाहिए जब बेहद जरूरी हो क्योंकि इसके अपने नुकसान हैं।
  • इस दवा को पीरियड शुरू होने की संभावित तारीख से 3 से 4 दिन पहले से लेना पड़ता है और जब तक टालना है, तब तक हर दिन लेना होता है।
  • कभी भी पीरियड को 10 दिनों से ज्यादा आगे नहीं बढ़ाना चाहिए, वह भी बहुत जरूरी होने पर ही।
  • इस तरह की दवा बहुत जरूरी होने पर ज्यादा से ज्यादा साल में एक बार ही लेनी चाहिए।
  • इसमें हॉर्मोन की हेवी डोज होती है जिससे हॉर्मोनल डिस्टर्बेंस की आशंका रहती है।
  • अगला पीरियड भी शिफ्ट हो सकता है। फिर पीरियड के सामान्य होने में 2-3 महीने लग सकते हैं।
  • कभी भी इस तरह की दवा गाइनी डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं लेनी चाहिए। दरअसल, अगर किसी महिला को बीपी, शुगर, थाइरॉइड या ऐसी कोई दूसरी परेशानी हो तो उसे देखते हुए दवा की दी जाती है।

पीरियड के ये हैं साथी
1. पैड्स या सैनिटरी नैपकिन

  • पीरियड के दौरान ब्लीडिंग को फैलने से रोकने के लिए सबसे ज्यादा इसका इस्तेमाल होता है।
  • एक अनुमान के मुताबिक देश में 2019 तक 60 फीसदी शहरी महिलाएं और 34 फीसदी ग्रामीण महिलाएं पैड्स इस्तेमाल करती थीं, लेकिन कोरोना ने यह आंकड़ा नीचे कर दिया।
  • अब 54 फीसदी शहरी महिलाएं और 20 फीसदी ग्रामीण महिलाएं ही पीरियड के दौरान पैड का इस्तेमाल कर रही हैं।
  • इनका इस्तेमाल कम होने की वजह कई रही हैं, जैसे- जॉब या आमदनी में गिरावट। सच तो यह है कि जब घर में सबसे पहले किसी चीज में कटौती की जाती है तो वह अमूमन पैड ही होता है। वैसे भी महिलाएं ही ज्यादा समझौता करती हैं। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में सैनिटरी पैड्स की उपलब्धता कम होना भी अहम रहा है। फिर भी मेंस्ट्रूल हाइजीन को दुरुस्त करने में सैनिटरी पैड अब भी नंबर 1 है।
  • एक दिन में 2 से 3 पैड का इस्तेमाल सामान्य है।

फायदे:
हर जगह मिल जाता है। कीमत भी कम है। साफ-सफाई का कम ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि यह शरीर के बाहर रहता है।

समस्याएं:
  • एक दिन में 2 से 3 या फिर इससे भी ज्यादा बार बदलना पड़ता है।
  • किसी को स्विमिंग करनी हो या फिर पैड के गीला होने का खतरा हो तो चैलेंज बढ़ जाता है।

खास हैं ग्रीन पैड
  • आजकल सरकार और कई प्राइवेट एजेंसियां ग्रीन मेंस्ट्रुएशन को बढ़ावा देने में लगी हैं।
  • ग्रीन पैड 9 से 10 महीनों में ही अपने-आप ही गल जाते हैं।
  • दरअसल, सामान्य पैड जिसे ज्यादातर महिलाएं उपयोग करती हैं, उसे पूरी तरह खत्म होने 400 से 800 साल तक लग जाता है क्योंकि इनमें प्लास्टिक की लेयर का इस्तेमाल होता है।
  • चूंकि इन्हें रीसाइकल करने या सही तरीके से निपटाने की कोई सही व्यवस्था नहीं है, इसलिए कई बार इससे इंफेक्शन फैलने का भी खतरा रहता है।
  • फिलहाल ग्रीन पैड केमिस्ट की दुकानों में कम ही मिलते हैं, लेकिन इन्हें ऑनलाइन खरीदा जा सकता है।
  • कीमत: 12 रुपये प्रति पैड से शुरू

2. मेंस्ट्रूल कप: यह सिलिकॉन (जिस मटीरियल से बच्चों को दूध की बोतल का निपल बना होता है) से बना होता है। यह काफी लचीला होता है और पीरियड्स के दिनों मे प्राइवेट पार्ट के अंदर फिट किया जाता है। इसे बार-बार इस्तेमाल कर सकते हैं। जितनी बार यह पीरियड के खून से भर जाता है, उतनी बार इसे निकालकर सामान्य या हल्के गुनगुना पानी से अच्छी तरह धोकर लगाया जाता है। साबुन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। हां, ज्यादा गंदा होने पर लिक्विड सोप लगा सकते हैं। यह उन महिलाओं के लिए बेहतर विकल्प है जो स्विमिंग करती हैं। साथ ही, यह उनके लिए भी फायदेमंद है जिनको ज्यादा ब्लीडिंग होती है और बार-बार पैड बदलना पड़ता है।
फायदे:
  • ज्यादातर ऐसे कप में मार्किंग की हुई होती है। इससे पता चल जाता है कि पीरियड के दौरान कितना ब्लड लॉस हो रहा है। अगर किसी को ज्यादा ब्लीडिंग हो रही हो तो इसका भी आसानी से पता चल जाता है।
  • यह रीयूजेबल है, इसलिए खर्च भी कम आता है। उन जगहों के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है, जहां पैड मिलना मुश्किल होता है।

समस्याएं:
  • चूंकि इसे वजाइना के भीतर लगाया जाता है, इसलिए साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखना होता है। साफ हाथों से मेंस्ट्रल कप को भी सही तरीके से साफ करके लगाना होता है।
  • चूंकि इसे वजाइना के अंदर लगाना पड़ता है, इसलिए इसे वे लड़कियां इस्तेमाल नहींं कर पातीं जिनकी हाइमन (कौमार्य) झिल्ली बरकरार रहती है। यही कारण है कि यह अविवाहित महिलाओं ज्यादा उपयोग नहीं कर पातीं।
  • साफ न होने से इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
  • इसे साफ करने के लिए पानी भी तुरंत मिलना चाहिए।
  • कभी-कभी कुछ लीकेज मुमकिन है। इसके लिए पैंटी लाइनर का इस्तेमाल करना पड़ता है जो पैड की तरह होते हैं, लेकिन काफी पतले। ये पैड की तरह ज्यादा ब्लड नहीं सोख सकते।

3. टैम्पॉन : इसे भी खिलाड़ी या फिजिकल ऐक्टिविटी करने वाली महिलाएं इस्तेमाल करती हैं। प्राइवेट पार्ट में लगता है। यह सिंगल यूज का या फिर रीयूजेबल हो सकता है।
फायदे:
  • यह पैड की तरह बाहर से नहीं लगा होता, इसलिए इसे लगाने से चलने-फिरने या उठने-बैठने में दिक्कत नहीं होती।
  • स्पोर्ट्स प्लेयर के लिए यह काफी बेहतर ऑप्शन होता है।

समस्याएं:
  • चूंकि इसे भी प्राइवेट पार्ट के अंदर लगाना होता है, इसलिए साफ-सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है।
  • इसमें भी कभी-कभी लीकेज मुमकिन है। पैंटी लाइनर का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
  • क्या इसके शरीर में भीतर की ओर खिसकने का भी खतरा होता है।
  • इसे भी वजाइना के अंदर लगाना होता है, इसलिए ज्यादातर अविवाहित लड़कियां इस्तेमाल नहीं कर पातीं।

कैसे पता चले कि पीरियड नॉर्मल है?
यह है सामान्य पीरियड
  • हर महीने में अमूमन 3 से 7 दिनों का यह दौर होता है जब हर महिला को इससे गुजरना पड़ता है।
  • शुरुआत के पहले दो दिनों तक ज्यादा ब्लड लॉस होता है।
  • एक पैड में 30 से 50 एमएल खून सोखने की क्षमता होती है। यह पैड के साइज पर भी निर्भर करता है।
  • एक पीरियड में एक महिला का 80 एमएल तक खून शरीर से बाहर जाता है।
  • 80 से 170 एमएल हेवी मेंस्ट्रल ब्लीडिंग (HMB) में गिना जाता है, लेकिन यह काफी हद तक उम्र और शरीर पर निर्भर करता है। 30 साल के बाद एक पीरियड में 7 दिनों तक 170 एमएल ब्लड लॉस को भी सामान्य ही माना जाता है। इससे ज्यादा होने पर गाइनी डॉक्टर से मिलना चाहिए।
  • अगर मेंस्ट्रूल कप का इस्तेमाल करते हैं तो एक दिन में उसे 1 से 2 बार धोकर यूज कर रहे हैं तो सामान्य है।
  • वहीं 1 दिन में 2 टैम्पॉन का इस्तेमाल सामान्य है।
  • एक दिन में 2 से 3 पैड का इस्तेमाल सामान्य है।
  • अगर शुरुआत में ही ब्लड में थक्के नजर आएं तो भी इसे सामान्य ही समझना चाहिए। दरअसल, यह हेवी फ्लो को बताता है। यह कभी-कभी होता है। फिर भी ऐसे में डॉक्टर से चेकअप करा लेना चाहिए।
क्या करें
  • खूब पानी पिएं। गर्मियों में हर दिन 3 से 4 लीटर पानी और सर्दियों में ढाई से 3 लीटर पानी।
  • हेल्दी फूड खाएं। हर दिन एक या दो मौसमी फल खाएं। इसे आम दिनों के साथ पीरियड्स के दौरान भी जारी रखें।
  • हरी मौसमी सब्जियां भी 1-2 कटोरी जरूर खाएं।
  • सोया प्रोडक्ट भी जरूर लें। दरअसल, सोया में एस्ट्रोजन ज्यादा मात्रा में मौजूद होता है जो खून के बहाव में थोड़ी कमी ला सकता है। इसमें प्रोटीन भी काफी मात्रा में मौजूद होता है।
  • पनीर, चीज आदि भी हर दिन 50 ग्राम तक ले सकते हैं। इससे प्रोटीन की कमी भी दूर होगी।
  • अगर किसी का हीमोग्लोबिन कम है तो आयरन सप्लिमेंट जरूर लेना चाहिए। साथ ही, पालक, चुकंदर आदि का भी सेवन करना चाहिए।
  • अगर किसी को हेवी ब्लड लॉस की समस्या है तो कैल्शियम सप्लिमेंट भी लेना चाहिए।
  • अगर पीरियड में कुछ भी असामान्य दिखे तो डॉक्टर से जरूर मिलें। पहले अपनी मम्मी या जिनसे आपको मदद मिल सकती है, उन्हें बताएं।
  • अगर दर्द और थकान कुछ ज्यादा परेशान करे तो पैरासिटामॉल या आइब्रुफेन की एक गोली ले सकती हैं।
  • इसके अलावा हल्के दर्द में गर्म पानी की सिकाई भी काम आती है।
  • मूड अच्छा करने के लिए चॉकलेट खा सकती हैं। अच्छा म्यूजिक सुन सकती हैं।
क्या न करें
  • भारी चीजें न उठाएं यानी 5 किलो से कम वजन की चीजों को उठा सकते हैं।
  • शरीर में पानी की कमी न होने दें।
  • शरीर में प्रोटीन, मिनरल्स और दूसरी चीजों की कमी न हो, इसके लिए डाइट को नजरअंदाज न करें।
  • ज्यादा तेल-मसाले वाली चीजें न खाएं।

इसे कहेंगे असामान्य पीरियड
  • जब पीरियड 3 दिनों से कम और 7 दिनों से ज्यादा चले।
  • एक पीरियड से दूसरे पीरियड का गैप 20 दिनों से कम और 45 दिनों से ज्यादा हो।
  • अगर किसी को दो पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग हो जाए।
  • अगर लगातार 3 से ज्यादा पीरियड मिस हो जाए।
  • हर दिन 3 से ज्यादा बार पैड बदलना पड़े।
  • एक पैड 2 घंटे में ही भर जाए और ब्लीडिंग ओवरफ्लो होने लगे।
  • पेट में असहनीय दर्द हो।
  • हर पीरियड में डायरिया की शिकायत भी हो। दरअसल, कुछ महिलाओं में प्रोस्टाग्लेंडिंस (यह एक तरह का लिपिड है) नाम का केमिकल भी निकलता है, जिसकी वजह से डायरिया होता है। इस डायरिया को काबू में करना जरूरी होता है।
  • लगातार उलटी की शिकायत हो।
  • लगातार खून बाहर निकलने पर अगर थक्के जमे हुए दिखाई दें। कभी-कभी थक्का जमा दिखना सामान्य है, लेकिन लगातार होने पर सचेत होने की जरूरत है। क्लॉट कई वजहों से हो सकता है, जैसे रसौली या फाइब्रॉयड्स, एंडोमेट्रिओसिस, हॉर्मोंस का असंतुलन, मिसकैरेज आदि।
असामान्य पीरियड्स की कई वजहें हैं
फाइब्रोसिस: यह अमूमन हॉर्मोन में गड़बड़ी की वजह से होता है। यह ओवरी के काम करने के तरीके को डिस्टर्ब कर देता है। इससे पीरियड पर भी बुरा असर पड़ता है। अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो कंसीव करने में भी परेशानी हो सकती है। आजकल शहरों में रहनेवाली महिलाओं में यह काफी देखा जाता है।
क्या करें: हेल्दी फूड लेना, नशे आदि से दूरी, हर दिन 20 से 25 मिनट वॉकिंग और एक्सरसाइज। 10 से 15 मिनट योग से फायदा होगा।

PCOD: इसे पॉलिसिस्टिक ओवरी डिजीज भी कहते हैं। इस परेशानी से 12 से 45 साल यानी मिनार्की से मेनोपॉज की उम्र तक हो सकती है। इसके पीछे हॉर्मोंस में बदलाव, लाइफस्टाइल और कई बार जेनेटिक वजहें होती हैं। इसमें ओवरी के आसपास छोटे-छोटे सिस्ट (ट्यूमर) बन जाते हैं।
लक्षण: इससे पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं और ब्लीडिंग बहुत कम हो जाती है या फिर बहुत बढ़ जाती है। शरीर पर बालों की ग्रोथ बढ़ जाती है, सिर के बाल झड़ने लगते हैं, वजन बढ़ जाता है।

हॉर्मोनल गड़बड़ियां
  • कई महिलाओं को थाइरॉइड जैसी परेशानी भी होती है। इस वजह से भी पीरियड नॉर्मल नहीं रहते।
  • कुछ महिलाओं में प्रोजेस्टिरॉन की कमी होने से भी यह हो सकता है।
  • कुछ महिलाएं ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करती हैं जिनसे प्रेग्नेंसी टाली जाती है। इनके इस्तेमाल से भी हॉर्मोन की समस्या हो सकती है और पीरियड डिस्टर्ब हो सकते हैं।
  • ऐसे में डॉक्टर सही जांच के बाद दवा देते हैं, जिन्हें लेने से अमूमन चीजें दुरुस्त हो जाती हैं।

जांच कौन-सी
1. मैमोग्रफी : अगर फैमिली में किसी को ब्रेस्ट कैंसर हुआ है तो 30 साल के बाद हर 2 साल पर जरूर मैमोग्रफी कराएं।
  • सिंगल ब्रेस्ट करीब 1400 रुपये, दोनों 2500 रुपये (लगभग)

2. पेप स्मियर टेस्ट

  • हर 5 साल पर सर्विकल कैंसर की जांच के लिए पेप स्मियर टेस्ट करवाएं। मेनोपॉज के बाद यह जरूर करवाएं। टेस्ट सस्ता है।
  • पेप स्मियर टेस्ट की कीमत: लगभग 500 से 700 रुपये
  • सर्वाकल कैंसर से बचाव के लिए टीका मौजूद है। तीन वैक्सीन के इस कोर्स पर 9-10 हजार रुपये का खर्च आता है। टीके लगने के बाद कम-से-कम 4-5 महीने तक प्रेग्नेंसी प्लान न करें। अगर बीच में प्रेग्नेंट हो जाएं तो डिलिवरी के बाद कोर्स पूरा किया जाता है, लेकिन तीनों टीके लगवाना जरूरी है।
  • टीके लगाने के बावजूद सर्विकल कैंसर की आशंका 100 फीसदी खत्म नहीं होती क्योंकि यह कुछ ही वजहों से बचाव करता है। दूसरे, अगर टीके लगने से पहले कैंसर शुरू हो चुका हो तो भी टीकों का कोई फायदा नहीं है। इसलिए भी पेप स्मियर टेस्ट जरूर कराएं।
3. अल्ट्रासाउंड
  • यूटरस और ओवरी की स्थिति को देखने के लिए अल्ट्रासाउंड भी करवाना चाहिए। हालांकि यह डॉक्टर की सलाह से हो तो बेहतर है।
  • खर्च: 1000 से 2000 रुपये

4.कुछ और टेस्ट : -बीपी, शुगर, CBC और थाइरॉइड का टेस्ट भी जरूर करवाएं। इनमें से कोई भी परेशानी होने पर पीरियड भी डिस्टर्ब हो सकता है और कंसीव करने में परेशानी हो सकती है। सीबीसी टेस्ट से शरीर में हीमोग्लोबिन का पता चल जाता है। अगर किसी के शरीर में यह कम होगा तो वह एनीमिया की मरीज भी हो सकती हैं। इसलिए प्रेग्नेंसी से पहले हर महिला को आइरन सप्लिमेंट लेने की सलाह जरूर दी जाती है।
इन पर कुल खर्च: लगभग 500 रुपये

जब आए आखिरी पीरियड : मेनोपॉज 40 साल की उम्र से महिलाओं में कई बदलाव होने लगते हैं। ऐसा अचानक नहीं होता, बल्कि इस बदलाव में कुछ साल लगते हैं।

मेनोपॉज से पहले प्री मेनोपॉज

  • इस दौरान एग बनने कम हो जाते हैं। पीरियड्स बहुत कम या ज्यादा हो जाते हैं।
  • पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं और मन चिड़चिड़ा हो जाता है।
  • प्राइवेट पार्ट में सूखापन, बालों का झड़ना, ब्रेस्ट का ढीला होना, सेक्स की इच्छा कम होना, मोटापा बढ़ना जैसे बदलाव भी नजर आते हैं।

मेनोपॉज
  • धीरे-धीरे पीरियड्स पूरी तरह बंद हो जाते हैं।
  • अगर लगातार 6 महीने से एक साल तक पीरियड्स न आएं तो मेनोपॉज हो जाता है।

तब जरूर हों सचेत
  • मेनोपॉज के बाद खून के धब्बे नजर आएं तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
  • सर्विकल कैंसर स्क्रीनिंग या पेप स्मीयर टेस्ट जरूर करवा लें।

खानपान में हों बदलाव
  • इस वक्त महिला के खाने में हरी सब्जियां, दूध और सोयाबीन ज्यादा होने चाहिए।
  • हर दिन 2 मौसमी फल और 1 कटोरी हरी सब्जी जरूर हों।
  • इनके अलावा प्रोटीनयुक्त भोजन भी जरूर लें।
  • जैसे: आधा से एक गिलास दूध और 20 से 30 ग्राम सोयाबीन।
  • इनके अलावा एक कटोरी दाल भी जरूर शामिल करें।

परिवार हो साथ : मेनोपॉज के समय हॉर्मोनल तब्दीली आती है। ऐसे में महिलाएं जल्दी गुस्सा हो जाती हैं। उनमें कुछ खालीपन का अहसास होने लगता है। ऐसे में परिवार के दूसरे सदस्यों की यह जिम्मेदारी है कि उनका ख्याल रखें। महिलाएं अपने शौक पूरे करने में लग जाएं।

हॉट फ्लैशेज : यह अमूमन मेनोपॉज के बाद होती है। इसमें अचानक गर्मी लगना और पसीना निकलने लगता है। यह एड्रिनेलिन के असंतुलित होने और एस्ट्रोजन के बढ़ने से होती है।
लक्षण
  • अचानक से तेज गर्मी महसूस होना
  • शरीर के ऊपरी भाग में ज्यादा पसीना आना
  • खासकर, चेहरे, गर्दन, कान, छाती और दूसरी भागों में ज्यादा गर्मी लगना
  • हाथ और पैर की उंगलियों में झनझनाहट महसूस होना
  • पल्पटेशन (हार्ट बीट सामान्य 60-80 प्रति मिनट से बढ़कर 100 प्रति मिनट तक हो जाना) होना
क्या करें?
  • अगर दिनभर में 2 से 3 बार हो तो सामान्य है।
  • इससे ज्यादा होने पर डॉक्टर से मिलें। डॉक्टर लाइफस्टाइल बदलने के लिए कह सकते हैं या जरूरत पड़ने पर दवा दे सकते हैं।
  • योग, एक्सरसाइज आदि करने से इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
  • सही और हेल्दी डाइट जिसमें फल और सब्जी जरूर शामिल हों, लेने से भी नतीजा बेहतर होता है।

एक्सपर्ट पैनल
डॉ. मधु गुप्ता, सीनियर Ob-Gyne कंसल्टेंट
डॉ. स्मिता जैन, कंसल्टेंट गाइनेकॉलजिस्ट एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ
डॉ. प्रो. निशा सिंह, Ob-Gyne डिपार्टमेंट, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी
अरुणाचलम मुरुगनाथम, पैडमैन ऑफ इंडिया
डॉ. नीलांचली सिंह, असिस्टेंट प्रफेसर, Ob-Gyne डिपार्टमेंट, AIIMS
डॉ. बिंदिया गुप्ता, Ob-Gyne, जीटीबी हॉस्पिटल
डॉ. श्रुति एस. अग्रवाल, गाइनेकॉलजिस्ट एंड एस्थेटिक सर्जन

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खानासूत्र : सेहत को दुरुस्त रखने का पूरा फंडा, जानें क्या खाएं, कब खाएं और कैसे खाएं

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खानपान को लेकर कुछ पुरानी कहावतें आज भी दादी-नानी से सुनी जा सकती है: दूध-माछ बैरी है, बात करते हुए मत खाओ आदि। अमूमन हम इन बातों पर ध्यान ही नहीं देते। आयुर्वेद में ये बातें काफी मायने रखती हैं कि किस भोजन के साथ क्या नहीं खाना और किस महीने में क्या नहीं खाना है। सेहत को दुरुस्त रखने का सूत्र भी यहीं से शुरू होता है। ऐसी ही खास बातों को विस्तार से बता रही हैं जानी-मानी आयुर्वेद एक्सपर्ट डॉ. मीणा टांडले

अच्छे भोजन का मतलब, संतुलित तत्वों की मौजूदगी
खाना शब्द सुनते ही हममें से ज्यादातर लोगों का ध्यान स्वाद और उसकी शक्ल-सूरत लुक की तरफ जाता है। वहीं जो लोग सेहत को अहमियत देते हैं, वे जरूर खाने की क्वॉलिटी के बारे में भी सोचते होंगे। हकीकत यह है कि हम अच्छे भोजन का मतलब उसमें संतुलित तत्वों की मौजूदगी होना समझते हैं, जैसे- कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, फैट, मिनरल्स आदि। इन सभी तत्वों का हमारे भोजन में हर रोज की जरूरत के अनुसार होना, सेहत को ठीक रखने में अहम भूमिका निभाता है। पर क्या इसी बात को ध्यान में रखने से हम सेहतमंद रह सकते हैं? शायद नहीं, इसीलिए हमें विरुद्ध आहार के बारे में भी जानना चाहिए।

क्या है यह विरुद्ध आहार
जब खाने की दो चीजें अलग-अलग खाई जाएं तो हमारे शरीर के लिए लाभदायक हों, लेकिन जब इन्हीं दो चीजों को मिला दिया जाए या किसी खास स्थिति में भोजन किया जाए तो हमारे शरीर में एक नई चीज पैदा होती है जो हमारी सेहत के लिए हानिकारक साबित होता है। ऐसे खाने को विरुद्ध आहार कहते हैं। बहरहाल, इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि विरुद्ध आहार हमारे शरीर के महत्वपूर्ण तत्व वात, पित्त और कफ को असंतुलित कर हमारे शरीर को बीमार बनाता है। अब सवाल उठता है कि क्या हम इस विरुद्ध आहार को खा रहे हैं या नहीं, यह तो हम तभी जान पाएंगे जब हम इसे ठीक प्रकार से समझेंगे।
'विरुद्ध आहार' को आयुर्वेद में कुछ गंभीर बीमारियों का कारण बताया गया है। आयुर्वेद के प्रमुख ग्रंथ 'चरक संहिता' में इन बीमारियों का मूल कारण विरुद्ध आहार बताया गया है:
  • मोटापा
  • बहुत पतला होना
  • बहुत लंबा होना यानी गिगेनटिज्म
  • बहुत नाटा होना यानी ड्वॉर्फिजम
  • बालों का झड़ना या गंजापन होना
  • बालों का ज्यादा उगना
  • त्वचा का ज्यादा काला हो जाना
  • त्वचा का ज्यादा गोरा हो जाना
  • नपुंसकता
  • 60 साल की उम्र से पहले नजर का कमजोर होना
  • पेट में पानी भर जाना
  • त्वचा पर फफोले
  • भगंदर ( फिस्टुला)
  • पेट फूलना
  • गले में खराश रहना
  • खून की कमी (अनीमिया)
  • जोड़ों में दर्द व सूजन (रूमैटॉइड ऑर्थराइटिस)
  • त्वचा पर सफेद दाग होना
  • कभी कब्ज़ और कभी दस्त लगना
  • बिना कोई चोट लगे सूजन होना
  • पेट में दर्द, जलन होना, खट्टी डकार आना
  • नाक से पानी बहते रहना, नज़ला
(ध्यान दें: ऊपर बताई हुई बीमारियों में दवाएं लेने के साथ-साथ अगर हम विरुद्ध आहार को त्याग दें तो इन बीमारियों से जल्दी ठीक हो सकते हैं।)

विरुद्ध आहार की स्थिति हमारी ज़िंदगी में हर दिन 18 तरह से पैदा हो सकती है:
1. देश विरुद्ध: हम जहां भी रहते हैं, वहां के 100 किलोमीटर के दायरे में उगने वाली खाने की चीजें उस जगह के लोगों के लिए लाभदायक होती हैं। इन्हें खाने से सेहत ठीक रहता है। और पाचन क्रिया व स्वास्थ्य प्रणाली को संतुलित रखने में सक्षम होता है। अपनी जगह की चीजों को न खाकर जब हम दूसरी जगह की चीजों को मंगाकर खाते हैं तो हम विरुद्ध आहार के एक प्रकार यानी देश विरुद्ध का सेवन कर रहे होते हैं। आजकल हमें विदेश से स्नैक्स या विदेशी फल मंगाना अपनी शान का बढ़ना लगता है जबकि असल में यह हमारी सेहत खराब करता है। इसलिए किसी भी चीज को खाने से पहले यह सोचना जरूरी है कि यह देश विरुद्ध आहार है या नहीं। नहीं तो बाहर के खाने को इंपोर्ट करने के साथ हानिकारक चीजों को भी साथ में इंपोर्ट कर लेंगे। इसलिए फल-सब्जी आदि अपनी जगह या उसके आसपास उगनेवाले ही लें।

उदाहरण: ड्रैगन फ्रूट, एवाकाडो, ये अपने देश में अमूमन न के बराबर ही उगते हैं। इन्हें हम दूसरे देशों से आयात करके खाते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक यह सेहत के लिए ठीक नहीं है।
इसके अलावा देश विरुद्ध में कुछ और भी परिस्थितियां आती हैं जैसे किसी भी गरम और सूखे स्थान (रेगिस्तानी जगहों) पर गरम और सूखा भोजन ही ग्रहण करना यह भी देश विरुद्ध का एक प्रकार है। कश्मीर जैसे ठंडे या केरल जैसे पानी वाले प्रदेशों में ठंडे पदार्थों का सेवन करना भी हमारे शरीर को बीमार बना देगा।

2. काल विरुद्ध: जो चीजें, सब्जियां, फल जिस मौसम में आते हैं, कुदरत के अनुसार वह हमारी सेहत को संतुलित करते हैं। लेकिन केमिकल द्वारा कच्चे फलों व सब्जियों को उनके पकने के मौसम से पहले ही पका देना या किसी मौसमी फल या सब्जी को डीप फ्रीज करके या प्रिजरवेटिव डालकर दूसरे मौसम में इस्तेमाल करना काल विरुद्ध आहार है।

उदाहरण: फ्रोजन मटर, फ्रोजन कॉर्न, फ्रोजन वेजिटेबल्स, प्रिजरवेटिव वाले सूप, कप नूडल्स, डिब्बे में बंद फलों के जूस आदि। इनके अतिरिक्त ठंड के मौसम में आइसक्रीम खाना या ठंडे पदार्थों का सेवन करना तथा गरमी के मौसम में गरम, मिर्चवाला या चटपटा भोजन करना भी काल विरुद्ध होता है |


3. अग्नि विरुद्ध: हम सभी में पाचन क्रिया चार प्रकार से हो सकती है। जैसे संयमित भूख लगना ( 24 घंटे में दो बार भूख लगना), कम भूख लगना (24 घंटे में एक बार भूख लगना या भूख नहीं लगना), ज्यादा भूख लगना ( 24 घंटे में दो बार से ज्यादा भूख लगना) और कभी अनियमित रूप से ज्यादा-कम भूख लगना। हमारी पाचन क्रिया हर दिन किस प्रकार की है, यह संकेत हमें हमारी भूख द्वारा मिलता है। अपने शरीर को समझें और इसके संकेतों पर ध्यान दें। आजकल हम भोजन के स्वाद या उसकी सुगंध को ही संकेत मानते हैं, लेकिन यह गलत है। ज्यादा भूख लगने पर हल्का भोजन करना अग्नि विरुद्ध आहार होता है। यदि हमें कम भूख लग रही है और हम ज्यादा भोजन या भारी भोजन करते हैं तो वह भी अग्नि विरुद्ध होता है|

उदाहरण: हल्के पदार्थ: मूंग दाल, चिड़वा, पोहा, उपमा, खिचड़ी, जौ आदि ज्यादा भूख लगने पर सेवन करना अग्नि विरुद्ध है। भारी पदार्थ: उड़द, राजमा, दही बड़ा, दाल मखनी, आलू (समोसा, फ्रेंच फ्राइज, टिक्की), गेहूं, मैदा और मैदे से बने पदार्थ (चाउमीन, भठूरे) आदि का कम भूख लगने पर सेवन करना अग्नि विरुद्ध है। हमें अपनी भूख और पाचन क्रिया के अनुसार खाना चाहिए।

4. मात्रा विरुद्ध: शहद, घी या शहद मिलाकर खाने से शरीर के वात, पित्त और कफ असंतुलित हो जाते हैं। वह हमारे शरीर को बीमार बना देते हैं, इसलिए इनको बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से बचें।
उदाहरण: शहद और घी का इस्तेमाल हमारी हवन क्रियाओं में होता है। इसके अलावा औषधियों के साथ मिलाकर देने वाले औषधियों में भी शहद और घी का साथ में इस्तेमाल होता है। बच्चों को घी का पराठा या घी में सिकी हुई ब्रेड के साथ शहद देते हुए भी ध्यान देना चाहिए कि शहद और घी बराबर मात्रा में प्रयोग न किया जाए क्योंकि ये दोनों चीजें एक साथ बराबर मात्रा में विरुद्ध हैं।

5. सात्म्य विरुद्ध: अपनी आदतों से हटकर अचानक किसी नई चीज का सेवन कर लेना सात्म्य विरुद्ध होता है, जैसे किसी को चावल और दाल खाने की आदत (सात्म्य) है और वह भरपेट गेहूं की रोटी और आलू खा लेता है तो यह उसके लिए सात्म्य विरुद्ध आहार होगा। यह उसकी सेहत को बिगाड़ेगा। सात्म्य विरुद्ध होने पर पेट फूलना, खट्टी डकार आना, अम्लपित्त होना यह लक्षण सामान्य रूप से देखे जाते हैं। अगर किसी समय पर सात्म्य खाना नहीं मिलता और मजबूरी में सात्म्य विरुद्ध आहार का सेवन करना ही पड़ रहा है तो ऐसी स्थिति में अपनी भूख व रुटीन आहार मात्रा का 1/4 भाग ही ग्रहण करें| इस तरह 7 दिन में नया पदार्थ सात्म्य हो जाता है। इसके बाद उसको पूर्ण मात्रा में खाया जा सकता है।
उदाहरण: यात्रा करते समय विभिन्न स्थानों का भोजन, विदेश में या देश के दूसरे राज्यों में ज्यादा समय तक रहते हुए वहां का भोजन खाना।

6. दोष विरुद्ध: हमारे शरीर का संचालन वात (हवा), पित्त (गरमाहट), कफ (ठंडक) इन तीनों तत्वों (दोषों) से होता है। यदि वात अधिक हो जैसे किसी को गैस बनती हो या डकार ज्यादा आती हो तो ऐसी स्थिति में वात को बढ़ाने वाले पदार्थ ही खाएं जाएं तो उनके शरीर के लिए यह दोष विरुद्ध हो जाता है। पित्त के बढ़ने के लक्षणों के समय (आंखों, हाथ और पैरों के तलवों में या शरीर में जलन होना, पेट में जलन होना, खट्टी डकारें आना) पित्त को बढ़ाने वाले पदार्थो का सेवन करना दोष विरुद्ध है। कफ के बढ़ने पर (भोजन में रुचि न होना, जी मचलाना, ज्यादा नींद आना, गले में बलगम बने रहना) कफ को बढ़ाने वाले पदार्थों का सेवन करना दोष विरुद्ध है। इसलिए भोजन करने से पहले अपने शरीर की प्रकृति और स्वास्थ्य को समझें। यह भी ध्यान रहे कि भोजन के तत्वों में दोषों के लिए क्या अच्छा है या क्या बुरा है, यह समझकर अपना भोजन ग्रहण करें।

उदाहरण:
दोष विरुद्ध आहार
  • वात: ठंडा भोजन, दाल, हरी पत्तेदार सब्जियां, जैसे सरसों का साग, बासी खाना आदि।
  • पित्त: इमली, दही, खमीर वाली चीजें जैसे इडली, डोसा, अचार, शराब आदि।
  • कफ: चावल, बर्फ, ठंडे पदार्थ, मीठा भोजन, तेल या घी में तली चीजें आदि।

7. संस्कार विरुद्ध: भोजन बनाते समय यदि हम गलत तरीका अपना लेते हैं तो भोज्य पदार्थ संस्कार विरुद्ध आहार हो जाता है, जैसे: शहद हमारे शरीर के लिए बहुत लाभदायक पदार्थ है। लेकिन उसको गरम कर दिया जाए या खाने की किसी चीज को बनाते समय गरम खाने में शहद का इस्तेमाल किया जाए तो वह शहद हमारे शरीर के लिए लाभदायक न होकर बहुत हानिकारक हो जाता है। इसी तरह तांबे के बर्तन में दही जमाना भी संस्कार विरुद्ध होता है।
उदाहरण: हनी चिली पोटैटो, हनी केक, हनी लोटस स्टेम, हनी रोस्टेड वेजिटेबल्स, गरम-पानी में शहद मिलाकर पीना, गरम ग्रीन-टी में शहद डालकर पीना।


8. आंतरिक गुण विरुद्ध: ठंडा और गरम पदार्थों को मिलाकर खाना वीर्य विरुद्ध होता है।
उदाहरण: गरम-गरम गुलाब जामुन पर आइसक्रीम डालकर खाना, गरम जलेबी पर ठंडी रबड़ी डालकर खाना, हॉट चॉकलेट को आइसक्रीम डालकर खाना, गरम खाने के साथ बर्फ डालकर कोल्ड ड्रिंक्स या हार्ड ड्रिंक्स पीना।



9. कोष्ठ विरुद्ध: जिनकी आंतों की पेरिस्टॉल्टिक मूवमेंट (पेट में भोजन पचाने के लिए होने वाली मूवमेंट) कम होती हैं या जिनको कब्ज ज्यादा रहती है। ऐसे लोगों के एलिमेंट्री कनाल को हार्ड एलिमेंट्री कनाल कहा जाता है। ये लोग यदि भोजन कम मात्रा में करें, रूखा भोजन करें या ठंडा भोजन करें तो वह उनके आंतों के लिए कोष्ठ विरुद्ध होता है। यह उन्हें बीमार बना सकता है। ऐसे लोगों को रेशेदार सब्जियां और फल, फाइबर (ईसबगोल आदि) ज्यादा मात्रा में लेनी चाहिए। उन्हें खाने की गरम चीजें खानी चाहिए। इसके विपरीत मृदु कोष्ठ यानी जिनके आंतों का पेरीस्टॉल्टिक मूवमेंट ज्यादा होता है या जिन लोगों को भोजन करने के बाद हर बार शौच जाना पड़ता है। ऐसे लोगअगर भोजन ज्यादा मात्रा में करे, बहुत चिकनाहट वाला भोजन करें या बहुत गरम पदार्थ खाएं तो यह उनकी आंतों के लिए विरुद्ध आहार होता है।

उदाहरण: कब्ज़ में अन्न ज्यादा और सब्जी कम खाना, सूखा भोजन करना, बिस्किट आदि खाना | दस्त में भरपेट भोजन करना, फल, हरी सब्जियां खाना।

10. अवस्था विरुद्ध: शारीरिक कार्य के अनुसार भोजन खाना चाहिए। जो लोग शारीरिक श्रम ज्यादा करते हैं, जैसे: खिलाड़ी, वेट लिफ्टर, सफाई कर्मचारी, ज्यादा पैदल चलने वाले लोग। ऐसे लोग यदि सूखा भोजन करें और कम भोजन खाएं तो वह उनके लिए अवस्था विरुद्ध आहार हो जाता है। इसी तरह जिन लोगों का शारीरिक काम बहुत कम है, जो लोग अमूमन चेयर पर बैठकर ही अपना काम करते हैं और चलना-फिरना कम होता है, जैसे: बिजनेसमैन, ऑफिस में बैठकर काम करने वाले कर्मचारी, घर पर ऑनलाइन काम करने वाले लोग, लंबे समय तक कंप्यूटर पर काम करने वाले लोग आदि। ऐसे लोग ज्याद भोजन करें या चिकनाहट वाला भोजन खाएं तो यह उनके लिए अवस्था विरुद्ध आहार बन जाता है। ऐसे लोग शरीरिक काम के अनुसार हर दिन आहार के तत्वों व गुणों को देखकर खाना लें।

11. क्रम विरुद्ध: मल-मूत्र का त्याग किए बिना ही भोजन करना क्रम विरुद्ध है या बिना भूख लगे भी भोजन करना क्रम विरुद्ध है। आजकल देखा जाता है कि भोजन हम भूख के अनुसार न करके समय और औपचारिकताओं के अनुसार करने लगे हैं। ऐसी स्थिति में यह हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी में क्रम विरुद्ध आहार बन जाता है। भागदौड़ वाली ज़िंदगी में जाने-अनजाने कई बार हम क्रम विरुद्ध आहार का सेवन कर लेते हैं।


उदाहरण: सुबह उठकर बेड-टी लेना, मीटिंग या जरूरी काम के दौरान समय की पाबंदी होने के कारण भूख न होते हुए भी ब्रेकफस्ट, लंच या डिनर टाइम पर भोजन करना, प्लेट में ज्यादा परोसा हुआ खाना खा लेना कि भोजन या मेजबान का अपमान न हो जाए। यहां यह इस बात को समझना भी जरूरी है कि एक डस्टबिन किचन में होता है और दूसरा, अगर हम बिना जरूरत के बेकार भोजन खा लेते हैं तो हमारा पेट भी डस्टबिन हो जाता है। इसलिए पेट को डस्टबिन न बनाएं।

12. परिहार विरुद्ध: किसी चीज को खा लेने के फौरन बाद दूसरी चीजों को खाना हानिकारक होने पर भी खाना, परिहार विरुद्ध है। शहद खाने के बाद गरम पानी पीना। यह हमारे शरीर को नुकसान देता है।
उदाहरण: पैनकेक ऊपर शहद डालकर खाना और बाद में गरम चाय या कॉफी पीना।

13. उपचार विरुद्ध: इस विरुद्ध का ध्यान ज्यादातर चिकित्सकों को रखना चाहिए। आयुर्वेद में पंचकर्म के दौरान रोगी को गाय का घी पिलाकर शरीर को स्नेहित करने का विधान है, जिससे शरीर के शुद्धिकरण में आसानी होती है। इस उपचार के दौरान या रोजमर्रा की ज़िंदगी में भी अगर घी खाने के बाद ठंडा पानी पी लिया जाए तो वह उपचार विरुद्ध आहार हो जाता है और शरीर में जॉइंट पेन जैसी परेशानियां पैदा करता है।
उदाहरण: घी से बनी मिठाइयां खाने के बाद ठंडा पानी पीना, चावल-घी और चीनी को मिलाकर खाने के बाद ठंडा पानी पीना, घी में बने पराठे खाने के बाद ठंडा पानी पीना।

14. पाक विरुद्ध: खाना खाते समय अगर हम गंदी कड़छी या चम्मच आदि का इस्तेमाल करते हैं तो वह पाक विरुद्ध होता है। इसी प्रकार कच्चा भोजन खाना या जला हुआ भोजन खाना भी पाक विरुद्ध आहार है और यह हमारे शरीर के लिए हानिकारक होता है।
उदाहरण: जला हुआ पापड़, जली हुई रोटी, तंदूर में बना हुआ भोजन, ज्यादा सिकी हुई ब्रेड, भोजन को दोबारा गरम करके खाना, एक ही तेल को बार-बार गरम कर पदार्थों के तलने के लिए इस्तेमाल करना, कम पके हुए चावल, दाल और सब्जियों का सेवन, गंदे पानी से धुले हुए या बिना धुले कच्चे फलों का सेवन, बिना हाथ धोए भोजन करना, स्ट्रीट फूड खाना (जहां सफाई का ध्यान न रखा गया हो)।

15. संयोग विरुद्ध: कुछ द्रव्य आपस में मिलाने के बाद शरीर के लिए हानिकारक हो जाते है। यह संयोग विरुद्ध है, जैसे: दूध के साथ फल मिलाकर सेवन करना, दूध के साथ खट्टे पदार्थों का मिलाना, दूध के साथ नमक मिलाना या मछली के व्यंजन में दूध मिलाना, दूध और मूली का एक साथ सेवन।
उदाहरण: दूध + चाय पत्ती (मिल्क टी), दूध + दही, स्ट्रॉबेरी मिल्क शेक, ब्लूबेरी मिल्क शेक, केनबरी मिल्क शेक, मूली के पराठे के साथ दूध की चाय पीना, नमकीन बिस्कुट या स्नैक के साथ चाय या दूध पीना। वैसे तो शराब पीना ही हानिकारक है, लेकिन आलू से बनी चीजों के साथ शराब पीना संयोग विरुद्ध है। दही में खीरा/ककड़ी मिलाकर रायता खाना, वाइट सॉस पास्ता, पनीर की सब्जी में नमक और खट्टे पदार्थो का प्रयोग करना। आयुर्वेद में दूध के संयोग विरुद्ध आहार को आयुर्वेद में त्वचा के रोगों का एक मूल कारण बताया गया है।

16. हृदय विरुद्ध: मन के अनुकूल भोजन न होते हुए भी भोजन का सेवन करना, हृदय विरुद्ध होता है। जो हमें पसंद न हो, अगर ऐसा खाना खाया जाए तो उसका पाचन ठीक से नहीं हो पाता और वह हमारे शरीर को बीमार कर देता है। इसलिए खाना पसंद न आए या खाने के प्रति श्रद्धा न हो तो खाने को नमस्कार करके उसको ग्रहण न करें।
उदाहरण: शाकाहारी व्यक्ति का किसी मांसाहारी होटल में खाना खाना, दुर्गंध वाली जगह भोजन करना आदि।

17. संपत विरुद्ध: यदि भोजन के तत्व अपने वीर्य आदि में पूर्ण नहीं है तो ऐसा आहार संपत विरुद्ध होता है, जैसे सड़े हुए फल, सब्जियों या पदार्थों को खाना आदि। ये संपत विरुद्ध हैं।
उदाहरण: डिब्बे में बंद पदार्थ (नॉन-फ्रेश फूड), भोज्य पदार्थ जिनकी एक्सपायरी हो चुकी है, उनका सेवन कर लेना, बासी भोजन खाना, रात का भोजन सुबह खाना आदि।

18. विधि विरुद्ध: भोजन करते समय बातें करना, हंसना या दूसरा कोई काम करना। ये सभी विधि विरुद्ध आहार होते हैं। इस स्थिति में खाए गए भोजन का पाचन ठीक से न होकर हमें बीमार कर देता है।

उदाहरण: फोन पर बात करते हुए भोजन करना, चलते-चलते स्नैक्स या रोटी को रोल करके खाना, टीवी देखते हुए भोजन करना, चलती गाड़ी या हवाईजहाज में भोजन करना, पढ़ाई करते हुए भोजन करना, समारोह में खड़े होकर भोजन करना आदि।
ध्यान दें: चूंकि अपनी ज़िंदगी में हम कई बरस ऊपर बताए हुए 18 तरह के विरुद्ध आहारों में से किसी न किसी विरुद्ध आहार का प्रयोग करते आ रहे हैं। इसलिए हमें एक नई भोजन प्रणाली को बनाने और अपनाने में मुश्किल हो सकती है। यदि हम अपनी सेहत और आने वाली पीढ़ियों की सेहत को दुरुस्त रखना चाहते हैं तो विरुद्ध आहार को अपने जीवन से हटाना कोई बड़ी बात नहीं है। हमें इन 18 तरह के विरुद्ध आहार को ध्यान में रखते हुए अपने दिन की शुरुआत करनी चाहिए।

रोजमर्रा की ज़िंदगी में भोजन करते समय खास तौर पर ध्यान देने योग्य विरुद्ध आहार...

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योग से मोटापे, डायबीटिज, अस्थमा, बीपी में भी होगा लाभ, जानिए क्या कह रहे हैं एक्सपर्ट्स ?

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नई दिल्ली: पैदल चलने की जगह गाड़ी, सीढ़ियों की जगह लिफ्ट, ज्यादा बैठना और 3 वक्त भरपूर खाने बाद भी कुछ न कुछ खाते रहना। इतना ही नहीं, अच्छी नींद न सोना और चिंता ज्यादा करना। चिंता और खुशी में ज्यादा व गलत चीजें खाना। हमारी ज़िंदगी अगर ऐसे ही बीत रही है तो इसे बदलने का वक्त आ चुका है। एक्सपर्ट कहते हैं कि ज्यादातर आम बीमारियों की वजह हमारा गलत लाइफस्टाइल है। इसे सुधारने में योग सबसे ज्यादा मददगार होता है। योग से मोटापे, डायबीटिज, अस्थमा, बीपी और मन की परेशानियों से कैसे राहत मिलती है, एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रही हैं रजनी शर्मा

अगर हम यह समझते हैं कि योग का मतलब अपने शरीर को तोड़ मरोड़कर या खींचतान कर तरह-तरह के आकार बनाना है तो ऐसा बिलकुल नहीं है। योग में आहार-विहार यानी हमारे खानपान और रहन-सहन दोनों को सही करने पर जोर होता है जो कि हमारी गलतियों से बिगड़ते हैं। अष्टांग योग के मुताबिक योग के 8 अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। आमतौर पर आसन, प्राणायाम और ध्यान का ही प्रयोग ज्यादा होता है और इसी क्रम में किया जाता है। लेकिन कुछ नियमों का पालन करना और अपने आहार-विहार पर ध्यान देना भी जरूरी है। यहां जानते हैं कि शरीर की इन स्थितियों में योग से किस तरह फायदा उठाया जा सकता है।

योग में सबसे पहले षट्क्रियाएं होती हैं जिसमें शरीर को डिटॉक्स किया जाता है। ये तरह-तरह की नेति, द्यौति आदि (ये क्रियाएं किसी अच्छे योग गुरु के साथ या उनकी सलाह से ही करें) हैं। इनसे मेटाबॉलिजम ठीक होता है। थायरॉइड ग्लैंड और पिट्यूटरी ग्लैंड (पीयूष ग्रंथि) ठीक से काम करती है। इनके सही से काम नहीं करने पर ही परेशानियां होती हैं। योग को थेरपी की तरह अपनाते हैं तो योग संस्थान पांच क्रियाएं करने पर जोर देते हैं। पहला, शुद्धिकरण यानी डिटॉक्सिफिकेशन जो नौलि, द्यौति, शंख प्रक्षालन आदि से होता है। जिसे पहले महीने में एक बार, फिर 3 महीने बाद और फिर 6 महीने बाद कराया जाता है। इसके साथ ही आहार में बदलाव, योगासन, प्राणायाम और ध्यान होता है।

इन 8 बातों पर ध्यान दें

1. जब भी योग करें तो पेट खाली हो यानी सुबह के वक्त या शाम को तब जब खाना खाए हुए कम से कम 2 घंटे बीत चुके हों।

2. जमीन पर आरामदायक मैट बिछाकर, आसानी से जितना कर सकें करें, जोर नहीं लगाना।

3. आसन करते हुए जब हाथ खोल रहे हैं, पांव फैला रहे हैं यानी शरीर का विस्तार कर रहे हैं तो सांस भरनी है और शरीर को मोड़ रहे हैं या छोटा कर रहे हैं तो सांस छोड़ देनी है। आसन में आने के बाद गहरी सांस लेते रहना है।

4. नए अभ्यासी 15 सेकंड हर आसन में रुकें यानी क्रिया पूरी होने पर होल्ड करें। कुछ महीनों बाद 30 सेकंड भी रुक सकते हैं।

5. किसी भी आसन को पूरा करने के बाद शरीर को रिलैक्स करना है। 30 सेकंड से 1 मिनट का ब्रेक लें।

6. लेटकर आसन कर रहे हैं तो शवासन करें और अगर खड़े हैं तो खड़े-खड़े ही शरीर को ढीला छोड़ दें।

7. आसन की क्रिया में आंखें बंद कर सकते हैं। मोटापे के लिए आसन कर रहे हैं तो पेट या हाथ-पैरों पर ध्यान फोकस करें।

8. सभी आसन पूरे करने के बाद कम से कम 5 मिनट के लिए शवासन जरूर करें।


मोटापा : जब वजन पर काबू पाना हो
योग के मुताबिक, सबसे पहले खुद को जैसे हैं वैसा ही स्वीकार करें। खुद से प्यार करें। वजन घटाने की कोशिश में शरीर को सजा नहीं देनी। बिलकुल खाना छोड़ देना, बहुत ज्यादा दौड़ लगाना, बहुत ज्यादा कसरत करेंगे तो फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा। शरीर को चोट पहुंच सकती है। इससे शरीर में स्ट्रेस रहेगा तो और भी ज्यादा खाने की इच्छा होगी। ज्यादा वजन होने पर सहज रूप से जो योगासन कर सकें, सिर्फ वही करने चाहिए।

क्यों होता है मोटापा

-मोटापा ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में जरूरत से ज्यादा फैट जमा हो जाता है और शरीर फूला हुआ लगता है।

-मोटापा या वजन बढ़ना हमारे शरीर में किसी न किसी असंतुलन की वजह से होता है। कुछ हार्मोन जैसे थायरॉइड आदि के असंतुलित होने पर भी वजन बढ़ जाता है -कई बार यह परिवार में होता है और माता-पिता से बच्चों को मिल जाता है

-अगर वजन बढ़ने के बावजूद कोई फिट-फुर्तीला है तो परेशान न हों। लेकिन भविष्य में डायबिटीज, जोड़ों के दर्द, हाई बीपी की परेशानी होने की आशंका दूसरों से ज्यादा हो सकती है।

आहार-विहार सुधारें:

-शरीर में संतुलन बनाए रखना है तो इतना ही खाएं कि हर 4 घंटे में जोरदार भूख लगे।

-सुबह नाश्ता जागने के 2 घंटे के अंदर कर लें और रात को डिनर सूर्यास्त के आसपास कर लें।

-पूरा पेट भरकर न खाएं। एक चौथाई पेट हमेशा खाली रखें। हठयोग में कम खाना ही कहा गया है।

-नाश्ते में डोसा, दलिया, पोहा खा लें।

-दिन में रोटी-सब्जी और दाल-चावल या इसमें से कोई एक। दिन में खाना खाएं तो साथ में बिलकुल पतली छाछ लें।

-रात का खाना जितना हो हल्का हो। टमाटर या सब्जियां का सूप भी ले सकते हैं।

-ऋतु के मुताबिक और अपने रहने की जगह का खाना खाएं, वहां की सब्जियां और फल लें। विदेश में जाकर वहां का खाना खाएं, अपने देश या राज्य में वहां जो उगता है वह खाएं।

सूक्ष्म व्यायाम (4 से 5 मिनट):

योगासन से पहले सूक्ष्म क्रिया या सूक्ष्म व्यायाम करना बहुत जरूरी होता है। जैसे हम जॉगिंग करते हैं। इससे शरीर योगासन के लिए तैयार हो जाता है।

-आराम से बैठकर हाथों को गोलाकर घुमाना, हथेलियां मोड़कर कंधों की ओर लाना और हाथों को घुमाना ताकि कंधे भी रोल हों। (20-20 सेकंड के 2 से 3 राउंड)

-बैठे-बैठे ही पैरों के पंजों को आगे की ओर खींचना और पीछे लाना फिर गोलाई में घुमाना। (15-15 सेकंड के 2 राउंड)

-हाथों की मुट्ठी बनाकर क्लॉक वाइज और उलटी दिशा में घुमाना। ( 15-15 सेकंड के कम से कम 2 राउंड )

-खड़े होकर कमर को पूरा लेफ्ट ले जाना और फिर सामने लाकर राइट की ओर ले जाना ( 15-15 सेकंड के 2 राउंड )

(इसके अलावा और भी सूक्ष्म व्यायाम हैं।)

20 से 30 मिनट योगासन करें:

नए अभ्यासियों के लिए

त्रिकोणासन - दोनों पैरों के बीच 2-3 फुट का फासला रखें। सीधा हाथ कमर की ओर झुकाते हुए सीधे पैर की ओर ले जाएं। उलटा हाथ आसमान की ओर। जितना आसानी से मुड़ा जाए उतना मुड़ें। इसे साइड बेंडिंग भी कह सकते हैं। (2 से 3 बार)

शलभासन - जमीन पर पेट के बल लेटकर हाथों को शरीर से चिपकाएं। पैरों को आसमान की ओर उठाने की कोशिश करें। (2 से 3 बार)

वज्रासन - जमीन पर बैठकर पैरों को मोड़कर हिप्स के नीचे रख लें। वजन घुटनों पर रहेगा। हाथों को मोड़कर जांघों पर रख लें। कमर सीधी रखें। (घुटनों या जोड़ों में दर्द है तो न करें।) (3-5 मिनट या उससे ज्यादा भी कर सकते हैं।)

बालासन - जमीन पर वज्रासन में बैठ जाएं। दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाकर सिर आगे की ओर नीचे झुकाएं। हाथ आगे बढ़ाकर जमीन से छूने की कोशिश करें। (घुटनों या जोड़ों में दर्द है तो न करें।) (2 से 3 बार)

विपरीत करणी मुद्रा - दीवार की ओर मुंह करके जमीन पर लेट जाएं। दोनों पैरों को ऊपर उठाकर दीवार के सहारे टिका दें। फिर पैरों को धीरे-धीरे थोड़ा-सा अपनी ओर झुकाएं। (3 से 4 बार)

शवासन - पीठे के बल सीधे लेट जाएं और गहरी सांस भरकर शरीर को ढीला छोड़ दें। हथेलियां आकाश की ओर, आंखें बंद। (कम से कम 5 मिनट तक।)

अभ्यास के बाद जब शरीर लचीला होने लगे तब ये करें

सूर्य नमस्कार - (आराम से पूरी 12 क्रियाएं करें। एक बार लेफ्ट से फिर राइट से। इस तरह 24 क्रियाएं होंगी। लेकिन बीपी ज्यादा है तो न करें या कुर्सी पर बैठकर बिना आगे झुके आराम से करें। शुरुआत में 2 बार और 3 महीने के बाद ज्यादा से ज्यादा 11 बार ही करें। जिन लोगों को सर्वाइकल की समस्या है या बैक पेन की वे भी न करें। )

पश्चिमोत्तानासन - जमीन पर बैठकर दोनों पैरों को जोड़कर आगे की फैला दें। सिर को आगे झुकाते हुए घुटनों को ओर ले जाएं और दोनों हाथों से पंजों को छूने या पकड़ने की कोशिश करें। (कमर दर्द रहता है तो न करें।) (2 से 3 बार)

धनुरासन - पेट के बल लेटकर हाथों और पैरों को पीछे की ओर मोड़कर एक-दूसरे के करीब लाएं और पकड़ लें। (2 से 3 बार)

भुजंगासन - पेट के बल लेटकर हाथों को कंधों के पास लाएं और धीरे-धीरे कमर से आगे के शरीर को ऊपर की ओर नाग के फन की तरह उठाएं। जितना सिर पीछे की ओर जा सकता है, ले जाएं। (2 से 3 बार)

मंडूकासन - वज्रासन में बैठकर हथेलियों की मुट्ठी बना लें और पेट से चिपका लें। अब सिर को आगे की ओर झुकाएं। (2 से 3 बार)

तितलीआसन - जमीन पर बैठकर दोनों पैरों को मोड़कर तलवों को जोड़ें और घुटनों को ऊपर-नीचे तितली के पंखों की तरह चलाएं। (30-30 सेकंड तक 4 बार)

प्राणायाम ( 5 से 7 मिनट, दिन में 2 से 3 बार करें।)

-नाड़ीशोधन यानी अनुलोम विलोम - नाक के लेफ्ट साइड से सांस लें और राइट से छोड़ें। फिर राइट से सांस लें और लेफ्ट से छोड़ें। सांस गहरी लें और जितनी देर सांस लेने में लगे उससे दोगुनी देर सांस छोड़ने में लगाएं। इसके लिए 4-8 की गिनती का फॉर्मूला अपना सकते हैं। (शुरुआत में 10 राउंड, बाद में 30 सेकंड तक)

-सूर्यभेदी - राइट नासिका से सांस लेकर लेफ्ट से सांस छोड़ें। कुछ देर सांस को रोकें। (सिर्फ उतना जितना आसानी से रोक सकें) सूर्यभेदी प्राणायाम शरीर में गर्मी पैदा करता है। लेफ्ट से सांस लेंगे तो यह चंद्रभेदी होगा। ( शुरुआत में 10 राउंड, बाद में 30 राउंड तक)

(अगर बीपी की परेशानी है तो सूर्य भेदी न करें।)

-कपालभाति - आराम से गहरी सांस खींचनी है और धीरे ही छोड़नी है। अभ्यास होने पर तेजी (वेग) से छोड़ सकते हैं। लेकिन शरीर को झटका न लगे। दिनभर में पानी 10-15 गिलास जरूर लें। (बीपी की परेशानी है तो न करें, प्रेग्नेंट महिलाएं न करें) (1 मिनट में 20 बार कपालभाति कर सकते हैं। कुल 3 राउंड तक)

ध्यान रखें - प्राणायाम के बाद रात को नाक में थोड़ा-सा देसी घी डालकर सोएं।

-बहुत तेज आवाज के साथ सांसें शरीर से बाहर फेंकना सही नहीं है। एक मिनट में 20 बार कपालभाति कर सकते हैं। इसे 3 राउंड से ज्यादा नहीं करना चाहिए।

ध्यान (एक बार में कम से कम 5 मिनट, दिन में 2 बार करें।)

ओमकार जप, मंत्र उच्चारण (कोई भी मंत्र, किसी भी धर्म का) अगर कुछ न समझ आए तो आंखें बंद करके आसपास की आवाजें सुनें, अपनी सांस की आवाजों को मानसिक तौर पर महसूस करें। आंखें खोलकर करना है तो शांत मन से पेड़-पौधों के बीच बैठें और कुदरत को देखें, हरियाली को निहारें। यह उसी तरह होगा जैसे नदी की बहती धारा को देर तक देखते रहते हैं। वह भी ध्यान है। कुछ सेकंड भी ध्यान में रुक सकेंगे तो मन के लिए अच्छा है।

ये बातें याद रखें...

नोट : सूर्य नमस्कार के शुरुआत में 2 से 4 राउंड ही करने चाहिए। इसमें प्राणायाम, आसन और मंत्र उच्चारण एकसाथ होता है। इसे सूर्योदय के आसपास और सूर्यास्त से पहले किया जाना चाहिए यानी शाम 4 से 6 बजे के बीच कर सकते हैं।

नोट: प्रेग्नेंट हैं तो सूक्ष्म क्रियाएं और ध्यान कर सकती हैं। लेकिन योगासन न करें या किसी योग गुरु की सलाह लेकर ही करें। आगे झुकने वाले आसन या पीछे की ओर झुकने वाले आसन वे न करें जिन्हें स्लिप डिस्क और बैकपेन की परेशानी है।

जब डायबीटिज पर काबू पाना हो

क्यों बढ़ती है शुगर
अगर किसी की ब्लड शुगर बढ़ गई तो निश्चित तौर पर लाइफस्टाइल गलत है। अगर माता-पिता को भी यह बीमारी है तो बच्चों को भी मिल सकती है। कुछ मामलों में यह जन्मजात हो सकती है। तीनों ही स्थितियों में योग हमारी मदद करता है। अगर पैंक्रियाज से इंसुलिन बनना बंद हो गया या कम बन रहा है तो धीरे-धीरे शरीर के सभी अंग के कामकाज पर असर पड़ सकता है। ऐसे में सभी अंगों की सेहत बनाए रखने के लिए खानपान और शारीरिक व्यायाम पर ध्यान देना होगा।

ऐसे करें शुरुआत
अगर शुगर पर काबू पाना है तो सबसे पहले वॉक शुरू करें। अच्छा तो यह है कि सुबह 45 मिनट की ब्रिस्क वॉक (1 मिनट में लगभग 80 से 100 कदम चलना।), शाम को कम से कम 30 मिनट की ब्रिस्क वॉक और रात को खाना खाने के बाद 15-20 मिनट तक टहलना भी जरूरी है।

-दिन में जब भी याद आ जाए 1-2 बार गहरी सांस लें।

- स्वभाव से परफेक्शनिस्ट होने की कोशिश छोड़ दें।

-जो काम खुद कर सकते हैं करें और दूसरों से अपेक्षा कम करें। इससे स्ट्रेस बढ़ता है।

आहार विहार:

-कड़ी पत्ते का इस्तेमाल बढ़ा दें। चटनी बना सकते या सब्जी में इसे डालें। चबाकर खाएं।

-पत्तेदार सब्जियां, भिंडी, ब्रोकली, गोभी, भीगे हुए नट्स जैसे- 4-5 बादाम या एक अखरोट, जामुन, संतरा, नीबू पानी लें।

-खाने में छोले, साबुत दालें शामिल करें।

-बेवक्त न खाएं। बहुत ज्यादा देर तक भूखे न रहें।

-खाने के वक्त के बीच में भूख लगे तो रोस्ट किए हुए मुट्ठी भर मखाने या भुने चने खाएं।

-पानी ज्यादा लें लेकिन नमक कर दें।

-मैदा और तला हुआ कम लें।

सूक्ष्म क्रियाएं: योग शुरू करने के लिए ये वॉर्मअप का काम भी करती हैं। (जो मोटापे के लिए बताई गई हैं, वे सभी क्रियाएं कर सकते हैं।)

योगासन:

जो योगासन मोटापे को दूर करने के लिए बताए गए हैं वे डायबीटिज के लिए भी किए जा सकते हैं।

इनके अलावा ये आसन करें:

नौकासन - पेट के बल लेटकर हाथों को आगे की ओर और पैरों को पीछे की ओर खींचें। धीरे-धीरे हाथ-पैर ऊपर की ओर उठाएं। (2 से 3 बार)

पवनमुक्तासन - पीठ के बल लेटकर पैरों को घुटनों से मोड़कर पेट तक लाएं और हाथों से थाम लें। सिर को भी ऊपर की ओर उठाने की कोशिश करें। (2 से 3 बार)

पर्वतासन - सुखासन या पद्मासन में बैठकर दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में आसमान की ओर सीधे कर लें। (2 से 3 बार)

जानुशीर्षासन - दोनों पैर फैलाकर बैठ जाएं। लेफ्ट पैर का पंजा पकड़कर पैर घुटने से मोड़ें और राइट पैर के घुटने या जांघ के पास चिपका लें। अब दोनों हाथों से राइट पैर का पंजा पकड़ें और सिर को घुटनों से लगाएं। इसी क्रिया को लेफ्ट पैर से करें। (प्रेग्नेंट हैं या अस्थमा है तो न करें।) (शुरुआत में 2 बार)

अर्धमत्स्येंद्रासन - इसे वक्रासन भी कहते हैं। पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाएं। लेफ्ट पैर को मोड़ें और राइट पैर की जांघ के पास रखें हिप्स के पास भी कर सकते हैं। अब राइट पैर को उठाकर लेफ्ट पैर के घुटने के ऊपर से ले जाकर साइड में रख दें। (यह पैर सीधा भी रख सकते हैं) लेफ्ट हैंड को कुहनी से मोड़कर राइट पैर के घुटने के ऊपर टिका लें। राइट हैंड को पीछे जमीन पर टिका लें और पीछे की ओर देखें। कमर पीछे की तरफ पूरी घूम जाती है। इसे पैर बदलकर भी करें। (2 से 3 बार)

प्राणायाम ( कुल 5 से 7 मिनट, दिन में 2 से 3 बार करें।)

भ्रामरी - दोनों हाथों के अंगूठे को कानों पर रखें और पहली उंगली माथे पर बाकी तीन आंखों पर रख लें। जीभ को तालु से लगाकर गले से भौरें के गुंजन जैसे आवाज निकालें। कानों से अंगूठा हटाकर भी कर सकते हैं। कानों में इन्फेक्शन है तो न करें। (5-5 राउंड 2 बार)

अनुलोम विलोम, कपालभाति आदि मोटापे के सेक्शन में देखें।

कुंभक के साथ प्राणायाम करें यानी सांस को थोड़ी देर रोककर रखें। इसे 3-4 बार रीपीट कर सकते हैं।

ध्यान : अच्छी नींद के लिए योग निद्रा का अभ्यास करें। शवासन में लेटकर आखें बंद करके खुद पर देखें। एक-एक बॉडी पार्ट को महसूस करें और ढीला छोड़ते जाएं। विचारों को आने-जाने दें। इसके लिए गाइडिड योग निद्रा सेशन की मदद भी ले सकते हैं। कुछ मिनटों की योग निद्रा भी एनर्जी से भर देती है। अगर योग निद्रा में ही नींद आ जाए तो कोई बात नहीं। ध्यान के लिए ऊपर मोटापे का सेक्शन भी जरूर देखें। दिन में 2 बार 5-5 मिनट के लिए कर सकते हैं।


अस्थमा : जब सांस की हो परेशानी

क्यों होती है दिक्कत

अस्थमा सांस की बीमारी है और यह प्रदूषण बढ़ने से बढ़ रही है। हवा में पोलन और प्रदूषण ज्यादा होने से भी परेशानी बढ़ जाती है। खांसते समय घरघराहट और सांस के साथ सीटी जैसी आवाज आने लगती है। कई बार खांसी बहुत बढ़ जाती है।

ऐसे करें शुरुआत

-सिर को ढककर रखें। गीले बालों से सीधे बाहर न निकलें और एकदम तेज धूप में भी न जाएं।

-धूप में जाते हुए सिर पर कैप या स्कार्फ लगाएं।

-रात को सोते वक्त भी सिर ढककर रखें तो सिर गर्म रहेगा। सांस की दिक्कत नहीं होगी।

-सोते वक्त दोनों नासिका खुली होनी चाहिए। अगर बंद है तो लेफ्ट साइड सोने पर राइट साइड की नासिका खुल जाएगी और राइट पर करवट लेने से लेफ्ट वाली।

-अस्थमा वालों को अगर लोगों की बातें बुरी लगती हैं तो यूं ही सहन न करें।

-अपनी बातें शेयर करें चाहे लिखकर बता दें। मन में बातें रखने से भी परेशानी बढ़ती है।

-मन शांत रखना चाहिए। गुस्से में न बोलें लेकिन प्यार से एक्शन जरूर लें।

आहार-विहार :

-रूम टेंपरेचर या अपने बॉडी टेंपरेचर वाला पानी ही पीना चाहिए।

-कोल्ड ड्रिंक्स न पिएं।

-सुबह विटामिन सी ज्यादा लेना है। नीबू पानी ले सकते हैं।

-आधा चम्मच दालचीनी पाउडर को एक मग पानी में उबालकर उसकी चाय ले सकते हैं।

-नाश्ते में उपमा, पोहा, डोसा या इडली लें।

-भीगे हुए 4-5 बादाम, 2-3 खजूर, 2-3 अंजीर खाएं।

-दूध से कफ बढ़ता है तो सीधे दूध न लेकर आधा दूध और आधा पानी (अदरक डालकर उबाला हुआ) जिसमें मीठे के लिए मिश्री या गुड़ डाला हो, पी सकते हैं।

योगासन कम से कम 20 मिनट करें:

ताड़ासन - पंजों के बल सीधे खड़े होकर सांस भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठा लें। कुछ देर रुकें और सांस छोड़ते सामान्य पोजिशन में आएं। (10 बार)

अर्धचक्रासन- दोनों हाथों को ऊपर उठाकर पीछे की ओर मोड़ें सिर को भी पीछे ले जाएं। (बीपी की परेशानी है तो परहेज करें।) (2 से 3 बार )

मकरासन- पेट के बल लेटकर दोनों हाथों को कुहनियों के बल उठाएं और उस पर अपना चेहरा टिका लें। (2 बार)

उष्ट्रासन- घुटनों के बल बैठकर हाथों को ऊपर की ओर उठाएं। धीरे-धीरे पीछे की ओर झुकते हुए हाथों से दोनों पैरों के पंजे पकड़ लें। सिर भी पीछे की झुका लें। (2 से 3 बार)

सेतुबंधासन - लेटकर घुटने मोड़कर पैरों को हिप्स के पास लाएं और छाती और कमर का हिस्सा ऊपर की ओर उठा लें। सिर जमीन पर ही रहेगा। (2 से 5 बार तक)

प्राणायाम ( कुल 5 से 7 मिनट, दिन में 2 से 3 बार करें।)

वशिष्ठ प्राणायाम : पीठ के बल लेटकर पैरों को हिप्स के पास ले आएं। अब पेट के अंदर डायाफ्राम को मजबूत करने के लिए पेट से सांस लें। सांस लेते हुए पेट ऊपर होगा और सांस छोड़ते हुए अंदर की ओर जाएगा। अक्सर सांस लेने में सिर्फ हमारी छाती फूलती है लेकिन हमें पेट से सांस लेना आना चाहिए। सांस का आना और जाना महसूस करें। फेफड़ों को सांस लेते हुए साइडों से फुलाना चाहिए। कंधे ऊपर तक उठ सकते हैं तो फेफड़े मजबूत होते हैं। ऑक्सिजन भीतर तक जाती है। इसे रात को सोते हुए भी कर सकते हैं। (2 से 3 मिनट तक कर सकते हैं।)

कपाल भाति और नाड़ी शोधन के लिए मोटापे का सेक्शन देखें।

ध्यान : हर सुबह और शाम को करना है। ज्यादा जानकारी के लिए मोटापे का सेक्शन जरूर देखें।

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जब बीपी पर करना हो काबू

क्यों होती है परेशानी:

-ज्यादा चिंता-विचार, भरपूर नींद न लेने और सही तरह का खानपान न होने से बीपी की परेशानी पैदा होती है।

-कुर्सी पर लगातार कई घंटों तक पैर लटकाकर रखना या कंप्यूटर के आगे आंखे गड़ाए रखना भी हमें बीमार कर सकता है।

-पैर के अंगूठे से ऊपर तक खून लाने में दिल को काफी काम करना पड़ता है।

-डायबीटिज होने पर भी बीपी की परेशानी हो सकती है।

-्वजन बढ़ना, व्यायाम नहीं करना। दिन में एक घंटा दौड़ने के लिए निकालना काफी नहीं है। इससे दिल पर ज्यादा जोर पड़ता है।

-कमजोर शरीर और मन हो तो ब्लड प्रेशर कम हो जाता है।

-अगर बीपी लो या हाई प्रेग्नेंसी की वजह से हो रहा है तो योगासन से पहले डॉक्टर और योग गुरु दोनों की सलाह लें।

ऐसे करें शुरुआत

-कुर्सी पर देर तक बैठते हैं तो पालती मारकर या एक पांव ऊपर रखकर बैठ सकते हैं।

-बीपी बढ़ा हुआ महसूस हो तो 10-15 मिनट की धीमी वॉक करें और फिर 10-15 मिनट तक शवासन में लेटे रहें। ऐसा 2-3 बार करें।

-सोचें कि जब सबकुछ हमारे हाथ में नहीं है तो क्यों परेशान होना।

- योगासन आराम से करें।

- शरीर और मन को रिलेक्स रखें।

मुस्कुराने की वजह न खोजें

वैसे तो सभी को खुश रहना चाहिए लेकिन दिल के रोगी हैं तो एक्सपर्ट उन्हें दिन में कम से कम 500 बार स्माइल करने की सलाह देते हैं।

जब हम मुस्कुराते हैं तो हमारे आसपास वाले भी मुस्कुराते हैं और पॉजिटिव माहौल बनता है।

आहार-विहार : अगर ब्लड प्रेशर की परेशानी है तो तीखा खाना खाने से बचें।

-खानपान सात्विक होना चाहिए। यह आहार हमें शांत रखता है।

-अचार-पापड़ आदि नुकसान करते हैं।

-नमक कम ही खाना चाहिए।

-पालक, अंजीर आदि खाएं।

-वक्त पर खाएं और खाते समय गुस्सा नहीं करें।

सूक्ष्म क्रियाएं

दिन में कई बार सूक्ष्म क्रियाएं करते रहें। यहां तक कि कुर्सी पर बैठे-बैठे या बिस्तर पर लेटे हुए भी कर सकते हैं।

(सूक्ष्म क्रियाओं के लिए मोटापे का सेक्शन देखें)

योगासन:

बीपी है ज्यादा रहता है तो आगे की ओर झुकने वाले आसन न करें।

सूर्य नमस्कार - कुर्सी पर बैठकर बिना आगे झुके आराम से करें। आगे झुकने से दिल पर दबाव बढ़ता है और बीपी बढ़ जाता है। (शुरुआत में 1 ही राउंड)

लेटकर भद्रासन - दोनों पैरों को घुटनों से मोड़कर एक दिशा में रखना और हाथों को दूसरी दिशा में मोड़ लेना। फिर पैरों की दिशा बदलकर दोहराना। (3 राउंड तक)

-सुखासन कर सकते हैं लेकिन बैक पेन हो तो नहीं करना। (2 मिनट तक)

-ताड़ासन, सेतु बंंध, पवनमुक्तासन के लिए मोटापे का सेक्शन देंखें।

बीपी कम रहता है तो पीछे की ओर झुकने वाले आसन नहीं करने।

-सूर्य नमस्कार की क्रियाएं बहुत आराम से करें। पीछे न झुकें। सांस छोड़ते हुए सामान्य स्थिति में आएं। (1 राउंड से शुरुआत)

-सर्पासन - पेट के बल लेटकर पीठ की ओर हाथों ले जाएं और आपस में हाथों को बांध लें और सिर ऊपर की ओर उठाने की कोशिश करें। (1 से 2 राउंड)

-बालासन के लिए मोटापे का सेक्शन देखें। (3 राउंड)

नोट: कमर दर्द है तो कोई भी आसन करने से पहले योग गुरु से सलाह लें। प्रेग्नेंट हैं तो आगे झुकने वाले कोई भी आसन न करें।

मुद्राएं भी मददगार

कुछ हस्त मुद्राएं भी कर सकते हैं। जैसे ज्ञानमुद्रा और आकाश मुद्रा। (30 सेकंड से 1 मिनट तक बैठें)

प्राणायाम

सांस से जुड़ी क्रियाएं ब्लड प्रेशर को कम या ज्यादा कर सकती हैं। वैसे तो सांस से जुड़ी कोई भी धीमी क्रिया फायदा देगी क्योंकि ज्यादा ऑक्सिजन शरीर में पहुंचाती है।

-बीपी लो रहता है तो कुंभकयुक्त प्राणायाम करें। इसके अलावा नाड़ी शोधन कर सकते हैं। (मोटापे वाला सेक्शन देखें)

-बीपी ज्यादा रहता है तो शीतली, शीतकारी प्राणायाम करें। (1 मिनट तक)

ध्यान : ऊं का जप या मंत्र उच्चारण। अच्छी नींद के लिए योग निद्रा करें। योग निद्रा में ही नींद आ जाए तो कोई बात नहीं। ध्यान के लिए ऊपर मोटापे का सेक्शन भी जरूर देखें। दिन में 2 बार 5-5 मिनट के लिए कर सकते हैं।


मेंटल हेल्थ : जब मन को करना हो मजबूत

क्यों होता है मन बीमार

-हमें खुद को ज्यादा चलाना चाहिए और मन को कम। लेकिन आजकल हम खुद कम चलते हैं और हमारा मन ज्यादा चलता है।

-छोटी-छोटी बातों पर मन विचलित हो जाता है। छोटे दुख पर भी ज्यादा दुखी हो जाते हैं। मन में अंधकार छाने लगता है।

- हम खुद को कहीं न कहीं बिजी रखते हैं लेकिन मन को शांत रखने के लिए भी कुछ काम करने होते हैं यही भूल जाते हैं। इसलिए गुस्सा, डिप्रेशन, एंग्जाइटी आदि बढ़ रहे हैं।

-बच्चों का पढ़ाई में फोकस नहीं रहता या बड़ों का मन भी चंचल रहता है तो योग में इसका रास्ता खोज सकते हैं।

ऐसे करें शुरुआत

-अकेले नहीं बैठे शरीर को थकाएं और उसके लिए अपनी पसंद के भी कुछ काम करें जैसे बैडमिंटन खेलना, कोई नाटक देखना या करना, गाना गाना या सुनना, घर की साफ-सफाई, कोई नई भाषा सीखना।

-मन की बातें जाहिर करें और अपने सुंदर शरीर और मन के लिए ईश्वर का आभार जताएं।

-हर रात सोने से पहले अपने भगवान से या जिसमें भी आपकी आस्था हो उसके प्रति आभारी हों।

-लोगों को माफ करना सीखें। रात को सोएं तो मन पर बोझ लेकर न सोएं और सुबह जागें तो मुस्कुराते हुए दिन का स्वागत करें।

आहार-विहार सुधारें: टीवी देखते हुए या कोई दूसरा काम करते हुए जल्दबाजी में खाना न खाएं।

-जंक फूड से दूर रहें। सात्विक खाना अपनाएं।

-ईश्वर के प्रति उस दिन, उस भोजन और उस वक्त के लिए आभार जताना चाहिए।

-खाना हल्का यानी सुपाच्य हो। खाने के बाद पेट पर बोझ न महसूस हो।

-अगर पेट के लिए खाना अच्छा नहीं है तो उससे मन भी अच्छा नहीं होगा।

-ज्यादा तेल-मसाले वाले खाने से दूरी बनाएं।

योगासन

-होकर आगे झुकने वाले आसन मन को जल्दी तनाव रहित करते हैं।

-योग के मुताबिक, पंच महाभूत शुद्धि होनी चाहिए। अगर तनाव रहता है तो हमारे अंदर आकाश तत्व की कमी है।

-खुली जगह पर घूमें। कुदरत को निहारें, आकाश को देखें।

-जब योग करते हुए सिर की तरफ ब्लड सर्कुलेशन होगा तो दिमाग में ऑक्सिजन बढ़ेगी। टेंशन कम होगी।

-कुछ एक्सपर्ट चंद्र नमस्कार की सलाह भी देते हैं। यह मन शांत करता है। यहां देख सकते हैं। rb.gy/xjgst5

इसके अलावा सूर्यनमस्कार, सर्वांगासन, पश्चिमोत्तानासन भी करें। (अगर प्रेग्नेंट हैं या कमर दर्द है, जोड़ों का दर्द है तो ये आसन न करें।)

प्राणायाम

सांसों पर ध्यान दें: सांस से जुड़ी हर क्रिया मन को शांत करती है। शरीर में ऑक्सिजन भरती है। इसलिए गहरी सांसें लें। रात को बिस्तर पर लेटकर भी शांत भाव से गहरी सांस ले सकते हैं।

कुंभक के साथ डीप ब्रीदिंग: सांस को थोड़ा-सा रोककर छोड़ना।

अनुलोम विलोम, योग निद्रा और शवासन करें।

(मोटापे का सेक्शन जरूर देखें।)

ध्यान

निस्पंद भाव रखना- सीधे लेटकर आंखें बंद कर लें और आसपास उसकी आवाज को सुनें। पैर लंबे सीधे रखें। मन आवाजों पर रहेगा तो विचार भी परेशान नहीं करेंगे। विचारों को आने और जाने दें। किसी एक विचार में अटकें नहीं। मन को धीरे-धीरे शांत होने दें।

त्राटक: एकटक शांत भाव से एक ही दिशा में देखना। इसे बिना मोमबत्ती के करें। हाथ सीधा रखकर अंगूठे को देख सकते हैं। (20-20 सेकंड के 3 राउंड।)


गलतियां न करें

योगासन, प्राणायाम करते हुए कौन-सी गलतियां न करें, इसके लिए देखें हमारा जस्ट ज़िंदगी पेज। इसके लिए FB/Sundaynbt पर जाकर सर्च बार में लिखें #justzindagi #yoga #योग अगर आपके मोबाइल फोन में गूगल लेंस है तो लेंस ओपन करके इस यूआरएल rb.gy/p9kplx पर फोकस करें। अब नीचे काली पट्टी पर लिखे टैक्स्ट को सिलेक्ट करें और वेबसाइट पर टैप करें। पेज खुल जाएगा।

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Dampness During Monsoon: मॉनसून से पहले घर को कैसे बनाएं सीलन फ्री, एक्सपर्ट्स ने बताए कई तरीके

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नई दिल्ली: आपका घर चाहे पुराना हो या नया, अगर घर में एक बार सीलन आ गई तो यह बड़ी मुश्किल से जाती है। सीलन के कारण न केवल दीवारों को नुकसान होता है बल्कि उन पर किया गया पेंट भी छुटने लगा है जिससे दीवारें भद्दी दिखाई देती हैं। मकान की मजबूती के लिए बने बीम में लगे सरियों पर भी सीलन के कारण जंग लगना शुरू हो जाता है जिससे बीम कमजोर हो जाते हैं। इससे घर भी कमजोर होता है। साथ ही सीलन के कारण दीवारों पर कई तरह के बैक्टीरिया भी पनपने लगते हैं। इनसे न केवल घर में बदबू हो जाती है बल्कि ये घर में रहने वाले लोगों को बीमार भी बना देते हैं। अगर घर में सीलन आ गई है तो उसे दूर जरूर करें। घर की वॉटरप्रूफिंग करने के बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं राजेश भारती...

बारिश के मौसम में घर को नमी से बचाने की चेकलिस्ट

देश के कुछ हिस्सों में माॅनसून आ चुका है। वहीं कुछ में आना बाकी है। अगर घर में अभी सीलन नहीं है तो हो सकता है कि बारिश के कारण सीलन आ जाए। अगर आप इस सीलन से घर को बचाना चाहते हैं तो आज ही घर की इन चीजों को चेक कर लें और जो खराबी दिखे उसे तुरंत ठीक करा लें:

1. ड्रेनेज पाइप करें चेक
बारिश का पानी छत और बालकनी में जिन-जिन पाइप से होकर बाहर निकलता है, उन्हें चेक कर लें कि वहां कूड़ा तो नहीं जम रहा। अगर कूड़ा है तो उसे हटा दें। अगर वे पाइप कभी-कभी ही इस्तेमाल होते हैं तो एक बाल्टी पानी डालकर चेक कर लें कि उनसे पानी ठीक तरह से निकल रहा है या नहीं। साथ ही जहां पानी की टंकी होती है, वहां ड्रेनेज पाइप को जरूर चेक करें।
2. छत पर क्रैक करें ठीक
दीवार से लेकर छत के कोने-कोने तक में चेक करें कि कहीं कोई क्रैक तो नहीं है। छत या दीवार पर डिश एंटीना या कोई दूसरी चीज लगवाते समय कील लगानी पड़ती है। इस दौरान भी दरार आ जाती है। दीवार से जहां छज्जे होते हैं, वहां भी क्रैक चेक करें। दरार को सीलेंट या वॉटरप्रूफ कंपाउंड से भर दें। अगर कहीं से कोई दीवार टूटी है या ईंट निकली है तो उसे ठीक करा लें।
3. खिड़कियां करें सील
घर में खिड़की और दरवाजों के जॉइंट चेक करें। अगर घर में स्प्लिट एसी लगा है और उसका आउटर छत या दीवार पर लगा है तो दीवार में से जहां से पाइप आ रही है, उस जगह को चेक करें। अगर वह खुली है तो उसे सील कर दें और वॉटरप्रूफिंग कर दें। अगर मुख्य दीवार पर ब्राॅडबैंड वायर या किसी और कारण से कोई छेद है तो उसे भी सील कर दें।
4. हटाएं दीवार में उगे पौधे
कई बार छत या दीवार में पीपल, बरगद या दूसरे पौधे उग आते हैं। कुद समय बाद ये बड़े भी हो जाते हैं। इन पौधों को तुरंत ही वहां से उखाड़ दें। इसके बाद जहां पौधा उगा था, उसके आसपास कि कुछ हिस्से की दीवार तोड़कर पौधे की छोटी से छोटी जड़ को निकाल दें। फिर दीवार को बनवा दें और उसकी वॉटरप्रूफिंग कर दें।
5. बिजली के तार करें चेक
अगर छत या दीवार पर बिजली के तार हैं तो चेक करें लें कि वहीं से कटे हुए तो नहीं हैं। वहीं अगर तार में किसी भी तरह का जॉइंट है तो क्या वह पूरी तरह सील है। बेहतर होगा कि ऐसा वायर लगाएं जिसमें कोई जॉइंट न हो। बारिश के पानी के कारण इनसे करंट आ सकता है। इन तारों को छत से हटा दें या साइड में कर दें जिससे ये छत या दीवार से सटे न रहें।

बने हुए घर में जब आ जाए सीलन...
अगर घर में वॉटरप्रूफ नहीं कराई है तो घर में सीलन आने के ये प्रमुख कारण हो सकते हैं:
1. पाइप लीक होने से
काफी घरों में पानी के लिए पाइप लाइन दीवार के अंदर फिट होती है। इन्हीं के जरिए बाथरूम, किचन और दूसरी जगह पानी जाता है। अगर पाइप में किसी तरह का कोई क्रैक आ जाए या पाइप टूट जाए या जॉइंट ढीले हो जाएं तो उससे पानी लगातार लीक होता रहता है। कई बार कील ठोकने से भी पाइप में छेद हो जाता है। इससे पूरी दीवार पर सीलन आ जाती है।
2. नमी होने से
कई बार उस जगह भी सीलन आ जाती है जहां पानी की पाइप लाइन नहीं होती। इसका कारण होता है मॉइश्चर यानी नमी। यह नमी इन प्रमुख कारणों से आ सकती है:
- फर्श और दीवार जहां जुड़े हुए होते हैं वहां अलग से कोई क्रैक हो या कोई गैप हो। ऐसे में फर्श धोते समय या वहां पानी गिरने से पानी उस क्रैक या गैप में चला जाता है। इसके बाद वह पानी न केवल दीवार के सहारे नीचे जाता है बल्कि कैपलेरी तकनीक (पानी का धीरे-धीरे ऊपर चढ़ना) के जरिए दीवारों में ऊपर की ओर भी चढ़ जाता है। इससे दीवारों पर सीलन आ जाती है। सीलन सबसे ज्यादा बाथरूम से आती है क्योंकि वहां पानी सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है।
- कई बार हम दीवार से सटाकर पुराने अखबार या दूसरी चीजें रख देते हैं। ऐसे में हवा में मौजूद नमी की वजह से दीवार के उस हिस्से में सीलन आ जाती है।
- अगर दीवारें लाल रंग की ईंट की बनी हैं तो भी उनमें सीलन आ सकती है। दरअसल, इन ईंटों को जल्दी पकाने के लिए नमक का इस्तेमाल किया जाता है। जब इन ईंटों से दीवार बनाई जाती है तो दीवार हवा में मौजूद नमी को सोख लेती हैं। इससे ईंटों में मौजूद नमक और हवा में मौजूद पानी की नमी से दीवारों पर सीलन आ जाती है। कई बार सीलन वाली दीवारों से सफेद रंग का नमक-सा निकलते देखा होगा, जिसे कई जगह श्योरा भी कहा जाता है। यह ईंटों में मौजूद नमक की वजह से होता है।
- अगर घर के आसपास नदी, तालाब या पानी का कोई दूसरा सोर्स है तब भी उसकी नमी से घर में सीलन आ सकती है। यही नहीं, अगर जमीन के नीचे पानी का लेवल कम है तो भी ऐसी सीलन घर में आ जाती है। यह सीलन कैपलेरी तकनीक के जरिए दीवारों के सहारे धीरे-धीरे पूरे घर में फैल जाती है। हालांकि इसका असर सबसे ज्यादा दीवारों के निचले हिस्से और फर्श पर दिखाई देता है।
3. बारिश होने से
सीलन का सबसे बड़ा कारण बारिश होती है। हालांकि यह सीलन सीजनल होती है लेकिन नुकसान भी सबसे ज्यादा करती है। बारिश की सीलन का असर सबसे ज्यादा घर की दीवारों पर पड़ता है। बारिश की सीलन का सबसे बड़ा कारण छत या दीवारों के बीच में गैप होता है, जहां से पानी दीवारों में घुस जाता है। इससे दीवारों या छत या दोनों जगह सीलन आ जाती है। यही नहीं, अगर ड्रेनेज पाइप में कोई लीकेज है तो उससे भी घर में सीलन आ जाती है।

कहां से आई है सीलन, ऐसे लगाएं पता
अगर घर में सीलन आ गई है तो कई बार यह पता लगाना मुश्किल होता है कि सीलन किस रास्ते के जरिए आई है यानी सीलन का सोर्स क्या है। सीलन का सोर्स पता लगाने के कई तरीके हैं। कुछ तरीके इस प्रकार हैं:
1. नील के जरिए
नील (कपड़ों में इस्तेमाल होने वाला) के जरिए दीवार में लगे पाइप की लीकेज से आई सीलन के सोर्स का पता आसानी से लगाया जा सकता है। इसके लिए घर में रखी पानी की टंकी में इतना नील मिलाएं कि पानी नीला हो जाए। इसके बाद घर के सारे नल खोल दें ताकि पानी निकलता रहे। अगर पाइप में लीकेज होगी तो वहां से निकला नील का पानी दीवार को नीला कर देगा। इससे आसानी से पता चल जाएगा कि सीलन का सही सोर्स क्या है।
2. मॉइश्चर मीटर के जरिए
मॉइश्चर मीटर का इस्तेमाल तब किया जाता है जब सीलन के सोर्स का सही तरह से पता न चले। इस मीटर को दीवार पर जगह-जगह लगाया जाता है। जहां सीलन का सोर्स होता है, इस मीटर के जरिए पता चल जाता है। मॉइश्चर मीटर का इस्तेमाल सिर्फ एक्सपर्ट करते हैं यानी वे लोग या कंपनी जो सीलन से जुड़ी समस्या का समाधान बताती हैं। इसका कारण है कि एक्सपर्ट इसकी रीडिंग के आधार पर सीलन को खत्म करने का समाधान भी बता देते हैं।
3. थर्मल इमेजिंग के जरिए
इस तकनीक का इस्तेमाल ज्यादातर कमर्शल जगहों या बड़े बंगलों के लिए किया जाता है। दरअसल, इसके पीछे कारण होता है कि ये जगह इतनी बड़ी होती हैं कि साधारण तरीके से सीलन के सोर्स का सही-सही पता लगाना लगभग असंभव होता है। इसके लिए थर्मल इमेजिंग का इस्तेमाल किया जाता है। सीलन के आसपास की जगह की थर्मल इमेज ली जाती है। इमेज के जरिए पता चल जाता है कि सीलन का सोर्स कहां है।

अलग-अलग तरह की सीलन का है अलग-अलग इलाज
अलग-अलग तरह की सीलन को एक जैसे तरीके से नहीं रोका जा सकता। इसके लिए भी अलग-अलग तकनीक इस्तेमाल की जाती हैं। अलग-अलग तरह की सीलन को इस तरह रोक सकते हैं:

1. पाइप से आई सीलन
अगर यह पता चल जाए कि सीलन पाइप की लीकेज की वजह से हो रही है तो इस सीलन को रोकने का सिर्फ और सिर्फ एक ही तरीका है और वह है पाइप को ठीक करके या पाइप बदल कर। इसके लिए ये काम करें:
- पाइप दीवार के अंदर है तो इसे ठीक करने या बदलने के लिए प्लास्टर हटाना होगा या दीवार के उस हिस्से को तोड़ना होगा।
- अगर पाइप में छेद हो गया है तो पाइप के उस हिस्से को बदल ही दें। वहीं अगर पाइप का जॉइंट ढीला हो गया है तो उसे अच्छे-से जॉइंट करवाएं ताकि भविष्य में वह जॉइंट ढीला न पड़े।
इन बातों का ध्यान रखें
पाइप का नक्शा लें: जब भी दीवार के अंदर पानी की पाइप की फिटिंग कराएं तो फिटिंग करने वाले से पाइप का नक्शा जरूर लें ताकि पाइप लाइन और पाइप के जॉइंट की सही जगह पता चल सके। ऐसा करने से दीवार में बहुत ज्यादा तोड़फोड़ नहीं करनी पड़ती और पाइप की सही जगह पर पहुंचा जा सकता है।
सही पाइप इस्तेमाल करें: अगर घर में गीजर है तो इसके लिए CPVC पाइप लगवाएं। ये पाइप 100 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान झेल सकते हैं। बाकी जगह PVC पाइप का इस्तेमाल करें।

2. दरारों से आई सीलन
अलग-अलग प्रकार की दरारों से आई सीलन को दूर करने के तरीके भी अलग-अलग हैं। ये तरीके इस प्रकार हैं:
- फर्श और दीवार जहां से जुड़े होते हैं वहां कोई क्रैक है तो उस जगह को थोड़ा-सा तोड़ना पड़ता है। फिर क्रैक में वाॅटरप्रूफ मटिरीयल जैसे सीलेंट की मदद से उसे भर दिया जाता है। फिर सीमेंट और रेत के मिश्रण में दूसरे प्रकार का वॉटरप्रूफिंग कंपाउंड मिलाया जाता है और इससे वहां प्लास्टर कर दिया जाता है।
- अगर किसी कमरे में दीवार से सटे हुए पुराने अखबार या कोई दूसरा पुराना सामान रखा है उन्हें वहां से हटा दें। छत या खुले एरिया में कोई पुराना सामान रखा है तो उसे भी हटा दें।
- अगर दीवार से श्योरा आ रहा है तो इसे दूर करने के लिए मार्केट में कई तरह के केमिकल आते हैं। अगर दीवार पर प्लास्टर है तो सबसे पहले प्लास्टर निकाल दें। फिर केमिकल को पानी में मिलाकर दीवार पर स्प्रे किया जाता है। वहीं श्योरा खत्म करने के लिए इमली और पानी का घोल भी काम करता है।
- अगर घर के आसपास नदी, तालाब या पानी का कोई दूसरा सोर्स है तो इससे आई नमी को दूर करना बहुत ही मुश्किल होता है। इसके लिए किसी एक्सपर्ट की मदद लें।

3. बारिश से आई सीलन
बारिश की वजह से सीलन आ रही है तो सबसे पहले उसकी जगह का पता लगाएं। बारिश से आई सीलन को इस प्रकार करें दूर:
- अगर ड्रेनेज पाइप के लीक होने की वजह से सीलन आ रही है तो ड्रेनेज पाइप को ठीक करें। अगर पाइप बदलना जरूरी है तो पाइप बदल दें। वहीं अगर पाइप दीवार के अंदर है तो पाइप के हिस्से वाली दीवार तोड़कर ही पाइप को ठीक करें या बदलें।
- सीलन अगर बाहरी दीवार पर पानी गिरने की वजह से आ रही है तो उस दीवार की वॉटरप्रूफिंग करानी होगी। इसके लिए सबसे पहले उस दीवार के प्लास्टर को हटा दें। फिर Dr. Fixit या Berger पेंट्स के वॉटरप्रूफिंग सॉल्यूशन या मटिरीयल का इस्तेमाल करें। जब दीवार तैयार हो जाए और प्लास्टर हो जाए तो उसके बाहर Asian Paints या Dulux Paints या किसी दूसरी कंपनी का वॉटरप्रूफ पेंट करा लें।
- अगर छत में क्रैक या छत और दीवार के बीच में गैप होने से सीलन आ रही है तो उस क्रैक या गैप को थोड़ा-सा बड़ा करना होगा। इसके बाद उसमें सीलेंट डालकर वॉटरप्रूफिंग कर दें। मार्केट में और भी कई तकनीकें हैं जिनकी मदद से छत को वॉटरप्रूफ बनाया जा सकता है। इसके बाद छत से घर में सीलन नहीं आती।

नया घर बनवा रहे हैं? कृपया ध्यान दें...
अगर आप नया घर बनवा रहे हैं तो कुछ उपाय करके आप घर की किसी भी प्रकार की सीलन से बचे रह सकते हैं। नया घर बनवाते समय इन बातों का ध्यान रखें:
1. नींव का रखें खास ध्यान
घर की नींव तैयार करवाते समय उसकी वाॅटरप्रूफिंग कराएं। इससे ईंटों के जरिए सीलन दीवार पर ऊपर नहीं चढ़ेगी।
2. घर का कराएं DPC
नींव के बाद जब फ्लोर और मकान का बाकी हिस्सा तैयार होता है तब घर की वॉटरप्रूफिंग के लिए DPC (Damp Proof Course) लगाई जाती है। जब फर्श बनाया जाता है तो उस समय करीब 2 इंच मोटी सीमेंट और कंक्रीट की लेयर तैयार की जाती है जिसमें वॉटरप्रूफिंग कंपाउंड मिले होते हैं। यह लेयर ही DPC कहलाती है। वॉटर लेवल के हिसाब से यह 3 से 5 इंच मोटी लेयर भी हो सकती है। कई बार इसमें RCC की स्लैब भी डाली जाती हैं। इससे कैपलरी तकनीक के जरिए नमी दीवारों पर ऊपर की तरफ नहीं आती जिससे घर में सीलन आनी रुक जाती है। फर्श और दीवार जहां मिलते हैं, वहां प्लास्टर या टाइल्स लगाने से पहले बिटुमेन (Bitumen) पेपर लगाया जाता है। इसे वॉटरप्रूफ मेम्ब्रेन भी कहते हैं।

3. लगवाएं फ्लाई ऐश ब्रिक्स की लेयर
जब फर्श तैयार हो जाता है और दीवार बननी शुरू होती है तो फर्श से लगी पहली लेयर, फिर उसके बाद लगी दूसरी लेयर और फिर तीसरी लेयर फ्लाई ऐश ब्रिक्स की लगवाएं। ये ग्रे रंग की ईंटें होती है। इनकी पानी सोखने की क्षमता 6% से 12% होती है जबकि लाल रंग की ईंटों की पानी सोखने की क्षमता 20% से 25% होती है। तीन लेयर फ्लाई ऐश ब्रिक्स की लगवाने के बाद लाल रंग की ईंटों की इस्तेमाल कर सकते हैं। फ्लाई ऐश ब्रिक्स का फायदा यह होता है कि अगर किसी वजह से पानी फर्श पर आ गया है तो यह पानी कैपलरी तकनीक का इस्तेमाल करके दीवारों के ऊपर की तरफ नहीं चढ़ता।
फ्लाई ऐश ब्रिक (9 इंच x 4 इंच x 3 इंच) की कीमत: 8 रुपये
लाल रंग की ब्रिक (9 इंच x 4 इंच x 3 इंच) की कीमत: 6 रुपये
(नोट: कीमतों में बदलाव मुमकिन)
4. खास ध्यान रखें बाथरूम का
- बाथरूम और बालकनी के फर्श और दीवार के बीच में हमेशा सही तरीके से वॉटरप्रूफिंग कराएं। साथ ही वहां बिटुमेन पेपर की लेयर बिछवा लें। इसके बाद कंक्रीट और टाइल्स लगवाएं। इससे वॉटरप्रूफिंग और मजबूत हो जाती है।
- बाथरूम की दीवारों पर टाइल्स लगवाने से पहले दीवारों की वॉटरप्रूफ जरूर कराएं। इसके बाद टाइल्स लगवाएं। टाइल्स लगवाने के लिए जिस मटिरीयल का इस्तेमाल करना है, उसमें सीमेंट और रेत का अनुपात 1:4 होना चाहिए यानी एक हिस्सा सीमेंट का तो 4 हिस्से रेत के। साथ ही सीमेंट में वॉटरप्रूफिंग केमिकल या कंपाउंड भी मिलाएं।
ऐसे करें अच्छी क्वॉलिटी के रेत की पहचान
- एक खाली बोतल में आधी बोतल रेत और बाकी पानी से भर दें और 4 से 5 मिनट के लिए छोड़ दें।
- अगर बोतल में भरी रेत सेटल होकर बोतल में बैठ जाए तो समझिए कि रेत में सिल्ट पाउडर बहुत ज्यादा है। घर बनाने में इस प्रकार की रेत का इस्तेमाल न करें।
- वहीं अगर रेत सेटल न हो तो समझ लें कि रेत अच्छी क्वॉलिटी का है। इस रेत को अगर आप हाथ से छूएंगे तो रेत थोड़ी मोटी लगेगी।
5. जरूरी है छत का ध्यान
छत तैयार कराते समय बहुत सावधानी रखें। अगर जरा-सा भी गैप रह गया तो बारिश या किसी दूसरी तरह से छत पर आया पानी दीवारों के सहारे घर में चला जाएगा जिससे सीलन आ जाएगी। लेंटर पड़ने के दौरान पूरी छत पर बिटुमेन पेपर जरूर बिछवाएं। वहीं छत में पानी का ढलाव (Slope) सही बनवाएं। अगर ढलाव गलत बन गया तो छत पर पानी भरा रहेगा जिससे घर में सीलन आ सकती है। छत की फुल वॉटरप्रूफिंग के लिए ये तरीका आजमा सकते हैं:
- सबसे पहले लेंटर
- इसके बाद बिटुमेन पेपर या वॉटरप्रूफ मेम्ब्रेन
- फिर कोबा स्टोन की लेयर
- सीमेंट का घोल या प्लास्टर
- इसके बाद वॉटरप्रूफिंग कंपाउंड के कम से कम 3 कोट
- आखिर में टाइल्स या कुछ और लगवा सकते हैं।
नोट: जहां भी टाइल्स लगवाएं, टाइल्स के गैप में भी ग्राउटिंग करवाएं ताकि पानी अंदर न जाए।

वॉटरप्रूफिंग कहां और कितनी जरूरी
घर पुराना हो या नया घर बनवा रहे हो, घर की वॉटरप्रूफिंग जरूर कराएं। वॉटरप्रूफिंग हमेशा तल (जमीन) के नीचे, छत, बाथरूम, टॉयलेट, किचन, बालकनी और बाहरी दीवारों पर करानी चाहिए। वहीं घर में दीवार के अंदर जहां-जहां पानी का पाइप जा रहा है, वहां भी वॉटरप्रूफिंग जरूर कराएं। घर में वॉटरप्रूफिंग किसी एक्सपर्ट की ही मदद से कराएं। साथ ही वॉटरप्रूफिंग में इस्तेमाल किए जाना वाला किसी भी प्रकार का कंपाउंड ब्रांडेड कंपनी का ही खरीदें। सस्ते के लालच में न पड़ें। वॉटरप्रूफिंग को निवेश के रूप में ध्यान में रखें न कि लागत के रूप में।
2 तरह से होती है वॉटरप्रूफिंग
1. Integral Waterproofing: इस प्रकार की वॉटरप्रूफिंग में वॉटरप्रूफिंग कंपाउंड को सीमेंट में मिलाया जाता है। फिर इस सीमेंट का इस्तेमाल प्लास्टर करने में या दरारों को भरने में या दो दीवारों के बीच में बने गैप को भरने में किया जाता है।
2. Barrier Waterproofing: इस प्रकार की वॉटरप्रूफिंग में वॉटरप्रूफिंग कंपाउंड का इस्तेमाल दीवारों पर सीधे पेंट की तरह किया जाता है। जरूरत के हिसाब से इनकी 1 से लेकर 3 या 4 तक कोटिंग हो सकती है।

इंजेक्शन ग्राउटिंग का इस्तेमाल ज्यादा
छत या दीवार में आए क्रैक को भरने के लिए इंजेक्शन ग्राउटिंग का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इसमें हाई प्रेशर में वॉटरप्रूफ केमिकल को दरारों में भरा जाता है। इससे केमिकल अंदर तक चला जाता है और क्रैक पूरी तरह भर जाते हैं जिनसे पानी नहीं आता। और जब पानी नहीं आता तो सीलन भी नहीं आती।

इतना आता है खर्च
वॉटरप्रूफिंग कराने का खर्च एरिया के अनुसार अलग-अलग हो सकता है। हालांकि औसतन 35 से 40 रुपये प्रति स्क्वायर फुट का खर्च हो सकता है।

सीमेंट नहीं करती वॉटरप्रूफिंग
काफी लोग ऐसे होते हैं जो दरारों को भरने के लिए सीमेंट का इस्तेमाल करते हैं। ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार का सीमेंट सीलन को नहीं रोक सकता क्योंकि वह वॉटरप्रूफिंग कंपाउंड नहीं है। दरारों को भरने के लिए हमेशा सीलेंट या किसी दूसरे वॉटरप्रूफिंग कंपाउंड या केमिकल का इस्तेमाल करें।

वॉटरप्रूफ पेंट भी कारगर
सीलन से बचने के लिए बाहरी दीवारों पर वॉटरप्रूफ पेंट भी किया जाता है। ये पेंट प्लास्टिक जैसे होते हैं यानी ये रबर की तरह खिंच जाते हैं। इन्हें लगाने से दीवारों पर आई बहुत छोटी-सी दरार भी छिप जाती है और उससे सीलन का खतरा कम होता है। वॉटरप्रूफ पेंट खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखें:
- पेंट का फैलाव (expansion) 200% से 600% के बीच होना चाहिए यानी यह सूखने के बाद जितने में लगा से उसके दोगुने से छह गुने तक बिना टूटे खिंचना चाहिए।
- पेंट की दीवार के क्रैक भरने की क्षमता (crack bridging capacity) कम से कम 2mm की होनी चाहिए यानी पेंट लगने के बाद अगर दीवार में 2mm का क्रैक आ जाए तो पेंट से वह कवर हो जाए ताकि दीवार में अंदर सीलन न जाए।
- पेंट की ड्राई फीलिंग थिकनेस (पेंट सूखने के बाद दीवार पर पेंट की मोटाई) 180 माइक्रोन से 240 माइक्रोन के बीच होनी चाहिए।

सीलन को रोकने के लिए ये चीजें कितनी सही
तारकोल: अब मार्केट अच्छे वाॅटरप्रूफिंग कंपाउंड हैं। इसलिए तारकोल लगाना जरूरी नहीं है।
टाइल्स: टाइल्स लगवाने से दीवार की सीलन खत्म नहीं होती। बाद में टाइल्स भी निकल जाती हैं।

हेल्पलाइंस
सीलन से जुड़ी किसी भी समस्या के समाधान के लिए इन नंबरों पर कॉल कर सकते हैं:
Dr. Fixit: 1800-209-5502 या 1800-209-5504
(हफ्ते के सातों दिन सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक)
Asian paints: 1800-209-5678
(हफ्ते के सातों दिन सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक)
Berger paints: 1800-103-6030
(हफ्ते के सातों दिन सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक)
नोट: वाॅटरप्रूफिंग में इनके अलावा और भी कंपनियां हैं।

एक्सपर्ट पैनल
- नीलेश मजूमदार, CBO, Construction Chemicals, PIDILITE
- प्रशांत सोनी, स्ट्रक्चरल इंजीनियर, makemyhouse.com
- रमन अय्यर, COO, Gera Developments
- पौशिका गुप्ता, आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाइनर
- राजीव राजगोपाल MD, AkzoNobel India

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