Quantcast
Channel: जस्ट जिंदगी : संडे एनबीटी, Sunday NBT | NavBharat Times विचार मंच
Viewing all 485 articles
Browse latest View live

होली के रंग, घरवालों के संग

$
0
0

कोरोना वायरस एक बार फिर डरा रहा है। इसके ज्यादा फैलने का कारण हम ही हैं। अगर मास्क सही तरीके से लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहते तो कोरोना मरीजों की संख्या इतनी नहीं बढ़ती। अब रोजाना 50 हजार से भी ज्यादा कोरोना मरीज देशभर में आ रहे हैं। अगर जल्दी संभलना है तो कुछ चीजों का कड़ाई से पालन करना ही होगा। एक्सपर्ट्स से बात करके इस बारे में जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

रंग में भंग न डालने दें कोरोना को
कल होली है। इस रंगारंग त्योहार की बधाई। वैसे तो मौसम अच्छा है और सभी ने होली खेलने की तैयारी की हुई है। लेकिन वक्त की नजाकत भी समझें। कोरोना ने फिर से रफ्तार पकड़ ली है। अगर घर से बाहर जाकर बहुत सारे लोगों के साथ होली खेली तो कहीं कोरोना अपना खेला न कर दे। इसलिए बेहतर होगा कि अपने घर में रहते हुए ही यानी सिर्फ अपने परिवार के साथ ही होली खेलें।


कोरोना न हो, इसके लिए क्या करें?
1. मास्क लगाएं
2. 6 फुट की दूरी रखना
3. 20 सेकंड तक हाथ धोना

मास्क को न भूलें
कोरोना से बचाने में मास्क से ज्यादा कारगर कुछ नहीं है। इसे अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बना लेना ही बेहतर है। मास्क पलूशन से भी बचाता है। मास्क पहनने के बाद भी बाहर रहते हुए आपस में 6 फुट की दूरी बनाए रखें।
  • कोई भी मास्क खरीदें तो इस बात का ध्यान जरूर रखें कि वह कम से कम 3 लेयर वाला हो।
  • मास्क मुंह और नाक को अच्छी तरह से कवर करे। उसे बार-बार एडजस्ट करने की जरूरत न हो।
  • मास्क न पहनने के बहाने ढूंढने से कुछ नहीं होगा, मास्क पहनना ही होगा।
  • 2 साल से बड़े सभी बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों को घर से बाहर जाते हुए मास्क पहनना चाहिए।
  • घर में कोरोना मरीज है तो उसकी देखभाल करनेवाले जरूर अच्छी क्वॉलिटी का मास्क लगाएं।
  • अगर कोरोना के लक्षण हैं लेकिन रिपोर्ट नहीं आई है, तब घर में भी मास्क पहने रहें।
  • घर में कोरोना मरीज अपने कमरे के अंदर बंद है तो बाकी सदस्य मास्क हटाकर रह सकते हैं।
कौन-सा मास्क कारगर
सर्जिकल मास्क
कोई भी 3 लेयर वाला मास्क काम करेगा। 'यूज एंड थ्रो' वाला सर्जिकल मास्क भी बढ़िया है। यह 6 फुट की दूरी से कोरोना वायरस से बचाता है। हवा में मौजूद बड़े पलूशन के कणों को भी रोकता है, लेकिन छोटे डस्ट पार्टिकल को रोक नहीं पाता।


कपड़े का मास्क
यह भी बहुत ही कारगर मास्क है। इसमें दम घुटने की शिकायत भी नहीं होती और यह लगभग सभी तरह के डस्ट पार्टिकल्स से भी बचाता है। इसे धोकर बार-बार इस्तेमाल करना भी आसान है। हां, इस बात का जरूर ध्यान रखें कि कपड़े का मास्क कम से कम 3 लेयर का हो। अगर 4-5 की संख्या में कपड़े के मास्क रखेंगे तो पहले मास्क को पहनने और साफ करने के बाद उसकी अगली बारी 5 दिनों बाद ही आएगी।

बिना वॉल्व वाला N-95 मास्क
N-95 मास्क सबसे अच्छा है, लेकिन बिना वॉल्व वाला। दरअसल, कोई भी वॉल्व वाला मास्क रिस्की हो सकता है। खासकर जो एन-95 मास्क लगाता है, उसके आसपास मौजूद शख्स के लिए। अगर कोई शख्स कोरोना पॉजिटिव है तो वह साफ हवा खींचता है, लेकिन वह जो हवा छोड़ता है वह दूसरों तक पहुंच सकती है। वैसे N-95 मास्क को ज्यादातर डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ इस्तेमाल करते हैं। वहीं कोरोना पॉजिटिव मरीजों को भी अस्पताल में इस मास्क को लगाने के लिए कहा जाता है।
ऐसे पहनें मास्क
  • जितना जरूरी मास्क पहनना है, उतना ही जरूरी है उसे ठीक से पहनना।
  • मास्क ऐसा होना चाहिए कि नाक, मुंह और ठुड्डी सही ढंग से ढक जाएं।
  • मास्क ढीला नहीं होना चाहिए यानी मास्क और चेहरे के बीच में ज्यादा जगह न हो। सांस लेते समय हवा मास्क से गुजरनी चाहिए, साइड से नहीं।
  • ऐसा मास्क नहीं पहनना चाहिए जिससे सांस लेने में दिक्कत हो।
  • मास्क पहनने के बाद उसे बिना हाथ धोए या सैनिटाइज किए बगैर छूना नहीं चाहिए। छूने के बाद फिर हाथ सैनिटाइज करें।
  • अगर नाक या मुंह पर पसीने की वजह से खुजली हो तो बाजू से ही खुजाएं।
  • मास्क उतारने के बाद 20 सेकंड तक साबुन से हाथ साफ करें। घर के सभी लोग अपना मास्क अलग-अलग रखें।

सोशल डिस्टेंसिंग

घर में अगर कोरोना मरीज नहीं है तो सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत घर के अंदर नहीं है।
शॉपिंग या भीड़-भाड़ वाली जगह जाने पर 6 फुट की दूरी का पालन करना बहुत जरूरी है।
भीड़-भाड़ से बचें। किसी भी बंद जगह पर 10 मिनट से ज्यादा न रुकें, वह भी तब जब आप मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हों।

सैनिटाइजिंग
  • मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के बाद कोरोना से बचाने में यह एक कारगर हथियार है।
  • पॉकेट में सैनिटाइजर भी जरूर रखें और समय-समय पर इसका इस्तेमाल करें।
  • अगर साबुन हो तो पहले उसका उपयोग करें। 20 सेकंड तक हाथ अच्छी तरह मलें और फिर धो लें।
जब हो जाए कोई कोरोना पॉजिटिव
कोरोना मरीज के संपर्क में आने पर क्या करें?
  • इसमें उन दोनों की जिम्मेदारी बनती है, जो पॉजिटिव हो चुका है और दूसरा जो संपर्क में आया है।
  • कोरोना पॉजिटिव होने पर मरीज को फौरन ही यह सूचना दे देनी चाहिए कि जो भी उनके संपर्क में आए हैं वे कोरोना टेस्ट करवा लें और आइसोलेशन में चले जाएं।
  • वहीं जो शख्स कोरोना पॉजिटिव शख्स के संपर्क में आया है और अगर संपर्क का समय 2 से 5 मिनट का है और दोनों के बीच की दूरी 6 फुट से ज्यादा है, दोनों ने मास्क लगाया हुआ है तो कोरोना इंफेक्शन की गुंजाइश 2 फीसदी से कम है। फिर भी शुरुआती 3 से 5 दिनों तक खुद को आइसोलेशन में रखना चाहिए।
कब कराएं टेस्ट: यह पता लगते ही कि कोरोना पॉजिटिव मरीज के संपर्क में आए हैं हमें खुद को आइसोलेशन में रखते हुए उसी दिन या फिर उसके अगले दिन RT-PCR टेस्ट करवा लेना चाहिए। अगर किसी वजह से टेस्ट नहीं करवा पाए हैं तो आइसोलेशन में रहना चाहिए। यह टेस्ट इसलिए भी जरूरी है क्योंकि संपर्क में आने वाला शख्स बिना लक्षण वाला या फिर कम लक्षण वाला मरीज हो सकता है। ऐसे में वह इंफेक्शन फैलाने में सक्षम होगा।

RT-PCR टेस्ट
  • कोरोना के लिए यही सबसे सटीक टेस्ट है।
  • यह टेस्ट कई लैब्स और अस्पतालों में होता है।
  • कुछ लैब कोरोना टेस्ट करवाने के लिए ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा देती हैं।
  • RT-PCR टेस्ट की कीमत: 700 से 1000 रुपये तक है। इसके अलावा होम कलेक्शन चार्ज 100 से 300 रुपये हो सकता है। यह रिपोर्ट अमूमन 6 घंटे से 12 घंटे तक में आ जाती है। कभी-कभी इसमें 24 घंटे लगते हैं।
रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर क्या देखें?
इस रिपोर्ट में सीटी वैल्यू जरूर देखें। अगर किसी की सीटी वैल्यू 24 या इससे ज्यादा है तो इसका मतलब है कि उसके शरीर में वायरस की मात्रा काफी कम है यानी वह दूसरों को इंफेक्शन कम फैला पाएगा। फिर भी उसे आइसोलेशन में रहना चाहिए और मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना चाहिए। हालिया स्टडी में यह बात सामने आई है कि सीटी वैल्यू 34 या इससे ज्यादा है तो अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं है। इलाज घर में ही हो सकता है। अगर किसी की टेस्ट रिपोर्ट में सीटी वैल्यू 20 से कम है तो इसका मतलब है उसके शरीर में वायरस लोड ज्यादा है। इसलिए उसे ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है।


नोट: कई डॉक्टर सीटी वैल्यू की ज्यादा उपयोगिता से इनकार करते हैं। उनका कहना है कि हमने ऐसे कई केस देखे हैं जब मरीज की सीटी वैल्यू 30 से ऊपर थी, लेकिन उसमें कोरोना के कई लक्षण दिख रहे थे। उनकी सांस भी फूल रही थी।

होम आइसोलेशन या अस्पताल में भर्ती होना
  • अगर कोरोना पॉजिटिव मरीज बुजुर्ग हो, शुगर, बीपी, किडनी जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हो, तब उस पर खास ध्यान देने की जरूरत है। डॉक्टर के संपर्क में रहें।
  • चूंकि कोरोना का इलाज अब भी नहीं है। वैक्सीन भी बचाव ही है। इसलिए इसके लक्षणों का ही इलाज किया जाता है। अगर मरीज को छाती में भारीपन, सांस फूल रही हो, बीपी की परेशानी लग रही हो, चक्कर आ रहे हों तो फौरन ही अस्पताल का रुख करें।
  • अगर ऐसी परेशानी नहीं है तो होम आइसोलेशन की तैयारी करें।
आइसोलेशन के लिए कमरा कैसा हो?
आइसोलेशन के लिए कमरे का चुनाव करते समय यह देखें कि कमरा हवादार है या नहीं? कमरे में एक बालकनी भी जरूर हो। अगर कमरा हवादार होगा तो जिस कमरे में मरीज रह रहा हो, उस कमरे का दरवाजा बंद करके रखने में आसानी होगी। इससे घर के बाकी सदस्यों तक इंफेक्शन फैलने का खतरा काफी कम हो जाता है।
  • साथ ही अटैच्ड बाथरूम भी हो ताकि अगर कमरे में खिड़की या वेंटिलेशन की व्यवस्था न भी हो तो बाथरूम का दरवाजा और खिड़की खोलकर रखने से ताजा हवा और रोशनी मिलती रहेगी।
  • वह बाथरूम सिर्फ कोरोना मरीज ही इस्तेमाल करता हो।
  • अगर घर में एक ही बाथरूम है और सदस्य कई हों, तब मरीज को अस्पताल में भर्ती करवाना ही ठीक है। इससे दूसरों को इंफेक्शन फैलने का खतरा भी कम हो जाएगा।
  • अगर अस्पताल में भर्ती कराने का विकल्प न हो तो मरीज जब भी बाथरूम इस्तेमाल करे, तब उसे केमिकल से साफ करें।
(इस केमिकल के बारे में आगे जानकारी दी गई है)

कोरोना हेल्पलाइन नंबर (24 घंटे, सातों दिन)
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय
11-23978046, 1075
दिल्ली हेल्पलाइन
011-22307145, 011-61193786
उत्तर प्रदेश हेल्पलाइन
18001805145

नोट: ऊपर बताए हुए नंबरों पर फोन करने के बाद कई तरह की जानकारियां देनी होती हैं, जैसे: मरीज और उसके परिवार के बारे में, सही पता, मोबाइल नंबर और घर में कितने कमरे हैं आदि के बारे में पूरी जानकारी देनी होती है। ऊपर बताए गए सभी नंबर काम कर रहे हैं। यह जानने के लिए हमने खुद इन नंबरों पर फोन करके चेक किया।

ईमेल आईडी
ncov2019@gov.in कोरोना की जानकारी के लिए यहां ईमेल करके मदद मांग सकते हैं। आमतौर पर अमूमन आधे घंटे में जवाब आ जाता है।
इनके अलावा mohfw.gov.in या ncdc.gov.in भी विजिट कर सकते हैं।

आइसोलेशन में इन बातों का रखें ध्यान
हर 6 घंटे पर तापमान और ऑक्सीजन का स्तर जांचें। इसके लिए थर्मामीटर और ऑक्सीमीटर घर पर जरूर हो।
कब नापें तापमान और ऑक्सीजन स्तर
सुबह: 8 बजे दोपहर: 2 बजे रात: 8 बजे
  • अगर कभी इस बीच में बुखार ज्यादा लगे या सांस फूले तो फिर से नाप लें।
  • इन्हें नोट भी करते चलें ताकि डॉक्टर को इलाज करने में मदद मिले।
  • ऑक्सीमीटर अगर एक ही है तो ऑक्सीजन स्तर जांचने से पहले यह जरूरी है कि हाथों को सैनिटाइज किया जाए। कभी भी ऑक्सीमीटर को सैनिटाइज न करें। इससे ऑक्सीमीटर की रीडिंग गलत हो सकती है या फिर ऑक्सीमीटर ही खराब हो सकता है।
  • घर में 2 मरीज होने पर शरीर का तापमान देखने के लिए अलग-अलग थर्मामीटर का इस्तेमाल करना अच्छा है।
  • मरीज डॉक्टर को रोजाना अपनी मौजूदा हालत की जानकारी दे।
  • आराम से बैठने के बाद ऑक्सीमीटर को उंगली पर लगाकर ऑक्सीजन चेक करें। उस समय नाखून पर नेलपॉलिश या सैनिटाइजर न लगा हो और न ही हाथ गीले हों।
  • जब घर में कोई कोरोना पेशंट हो तो बाकी सदस्यों को भी फौरन ही RT-PCR टेस्ट करवा लेना चाहिए।
  • अगर रिपोर्ट नेगेटिव आए तो 4 दिनों बाद फिर से करवा लें।
तब लें डॉक्टर से सलाह
  • अगर हार्ट रेट 100 से ऊपर हो।
  • अगर शख्स बीपी का मरीज नहीं है, लेकिन कोरोना की वजह से बीपी हाई या लो हो। अगर हाई बीपी 140/90 या इससे ऊपर हो और लो बीपी 100/65 या इससे नीचे हो तो डॉक्टर को जरूर बताएं।
  • अगर ऑक्सीजन का स्तर 92% से कम हो तब भी।
  • अगर बुखार 101 से ऊपर चला जाए।
तब कराएं अस्पताल में भर्ती
जब सांस फूले, बहुत खांसी आए, छाती में दर्द हो, ऑक्सीमीटर पर ऑक्सीजन 90% से कम हो तो मरीज को अस्पताल में भर्ती करवाएं। इसके लिए पहले डॉक्टर से भी पूछ सकते हैं।

घर को सैनिटाइज कैसे करें?
सैनिटाइजेशन के लिए सोडियम हाइपोक्लोराइट केमिकल का इस्तेमाल करें। इस केमिकल को पानी के साथ मिलाकर स्प्रे किया जाता है। इसके लिए 5% सोडियम हाइपोक्लोराइट केमिकल इस्तेमाल करते हैं। जितना केमिकल लेते हैं, उसका 6 गुना पानी उसमें मिलाते हैं। इसके बाद इस घोल का छिड़काव किया जाता है।

घर के दो या तीन सदस्य एक ही कमरे में रह सकते हैं?
ऐसे मरीज एकसाथ जरूर रह सकते हैं। अगर दोनों मरीजों को अलग-अलग कमरे रखने की व्यवस्था हो तो बेहतर है। जब दो मरीज एक ही कमरे रह रहे हों तो दोनों के बेड जरूर अलग-अलग लगवा दें। जहां तक दोनों की रिपोर्ट में सीटी वैल्यू में फर्क की बात है तो यह उनके इम्यून सिस्टम की क्षमता पर निर्भर करता है। साथ ही टेस्ट में सैंपल लेते समय कितना वायरस आ सका है, इसका असर भी सीटी वैल्यू पर पड़ता है। इसलिए दो-तीन कोरोना मरीजों को एक ही कमरे में रखने में कोई समस्या नहीं है। इस दौरान वे मास्क जरूर पहनकर रखें।

10 गलतियां जिनसे कोरोना फिर फैला
1. लॉकडाउन खत्म होने और वैक्सीन आने के बाद सब निश्चिंत हो गए कि कोरोना अब हार चुका है।
2. यह सोचना कि पिछले साल से अब तक तो कोरोना मुझे छूकर निकल चुका होगा और शरीर में ऐंटिबॉडी भी तैयार होंगी।
3. मास्क का उपयोग कम करना या फिर मास्क सही तरीके से न लगाना।
4. मास्क से नाक-मुंह ढकने की जगह सिर्फ ठुड्डी कवर करना। इस स्थिति में कोरोना का इंफेक्शन आसानी से हो सकता है।
5. ढीला मास्क पहनना। ऐसे में कोरोना वायरस को नाक तक पहुंचने का रास्ता मिल ही जाता है।
6. पार्टी में, बाजार, ट्रेन, बस, मेट्रो, धार्मिक स्थलों और टूरिस्ट प्लेस पर जाने के दौरान मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान न रखना।
7. दो गज यानी 6 फुट की दूरी को कम करते हुए आधा या 1 फुट में बदल देना।
8. पहले दुकानों के बाहर गोले बने थे या निशान लगे थे कि ग्राहक आपस में कितनी दूरी पर खड़े होंगे। सोशल डिस्टेंसिंग का यह तरीका गायब होना।
9. बाहर से सब्जी, फल आदि लाने पर उसे गुनगुने पानी या नमक वाले पानी या इमली वाले पानी से साफ करने का चलन कम कम कर देना।
10. घर में काम करने के लिए बाहर से आनेवालों के चेहरे से मास्क हट जाना। अब 20 सेकंड तक हाथ धोने का चलन कम होना।

ये करेंगे इम्यूनिटी मजबूत
विटामिन और मिनरल लें? खानपान कैसा हो?
  • अगर मरीज सामान्य खाना ले रहा है तो उसे वही खाने के लिए दें।
  • ज्यादा तेल-मसाले न दें। ऐसा खाना पचाने में समस्या हो सकती है।
  • हर दिन एक फल जरूर दें। आजकल संतरा और कीवी बाजार में उपलब्ध है। ये विटामिन-सी के अच्छे सोर्स हैं।
  • इसके अलावा नीबू-पानी पीने की इच्छा हो तो दे सकते हैं। अगर बीपी लो है तो कुछ मात्रा में नमक मिला लें और हाई है तो नमक न मिलाएं।
  • विटामिन-बी, सी, डी, जिंक आदि सप्लिमेंट्स बिना डॉक्टर से पूछे न दें। अगर वे कहें तभी खाएं।
धूप जरूर लें
  • गर्मी का मौसम आ ही चुका है। ऐसे में धूप से विटामिन-डी लेने का बेहतरीन समय है।
  • हर दिन सुबह 8 से 11 बजे के बीच 30 से 35 मिनट के लिए धूप में बैठें।
  • अगर लगातार धूप में न बैठ सकें तो बीच में 10 मिनट रुकें और फिर धूप में बैठ जाएं।
  • कई बीमारियों की जड़ में विटामिन-डी की कमी भी एक वजह होती है।
  • इम्यूनिटी मजबूत करने में भी विटामिन-डी की अहम भूमिका है।
नाक में लगाएं तेल
अणु तेल: यह तेल नाक के अंदर लगाकर ही घर से बाहर जाएं। बाजार में यह इसी नाम से मिलता है। इससे वायरस नाक के सुराखों के अंदर पहुंचने पर भी गले तक या उसके आगे काफी कम मात्रा में जाता है। किसी घर में कोरोना मरीज है तो घर में सभी सदस्यों को यह तेल नाक में लगाना चाहिए।

सुबह तेल से भी कुल्ला करें
इरिमेदादि तेल: इसे दांत साफ करने वाला तेल भी कहते हैं। यह कई नामों से बाजार में मिलता है। घर से बाहर निकलने से पहले इस तेल से कुल्ला कर लें। मुंह में तेल भरकर घुमाते रहें, 2 मिनट बाद फेंक दें। इससे मुंह में तेल का एक स्तर बन जाता है। वायरस के गले के अंदर तक पहुंचने की गुंजाइश कम हो जाती है।

जरूरी बातें
  • पिछले हफ्ते इसी पेज पर कोरोना वैक्सीन के लिए कोविन वेबसाइट के बारे में बताते हुए भूलवश covin लिख दिया गया था, जबकि यह CoWIN वेबसाइट है। यहां रजिस्ट्रेशन कराना होता है। इसके लिए आरोग्य सेतु मोबाइल ऐप का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • कोई भी शख्स जो 45 साल से ज्यादा उम्र का हो (जन्म 1 जनवरी 1977 से पहले का), 1 अप्रैल के बाद वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकता है।
  • अगर शुगर, बीपी, हार्ट की समस्या हो, वैक्सीन से एलर्जी की शिकायत हो तो उसे पहले CRP (सी-रिऐक्टिव प्रोटीन) और D-Dimer टेस्ट जरूर करा लेना चाहिए। यह शरीर के भीतर मौजूद सूजन के बारे में जानकारी देता है। अगर सूजन है तो पहले डॉक्टर से मिलकर दवा लें। फिर वैक्सीनेशन कराना चाहिए।
CRP टेस्ट पर खर्च: लगभग 500 रुपये,
रिपोर्ट: उसी दिन, कैसे: खून से
D-Dimer: खून में थक्का जमने की स्थिति के बारे में बताता है।
खर्च: करीब 1000 रुपये, रिपोर्ट: उसी दिन
कैसे: खून से

वैक्सीन लगवाने का तरीका
वैक्सीन के लिए COWIN वेबसाइट या आरोग्य सेतु मोबाइल ऐप पर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। वेबसाइट ऐप पर रजिस्ट्रेशन कराने के लिए अपना मोबाइल नंबर दर्ज करें और Send OTP पर क्लिक करें। ओटीपी दर्ज करें और वेरिफाई बटन पर क्लिक करें।
Aarogya Setu ऐप से रजिस्ट्रेशन कराने के लिए आईफोन यूजर्स को ऐप ओपन करते ही चार चीजें ऊपर ही दिखेंगी: Your Status, Covid Updates, Vaccination और CoWin. अब पूरी जानकारी लेने के लिए CoWin पर टैप करें या उससे पहले दिख रहे Vaccination पर टैप करके सीधे रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। रजिस्ट्रेशन हो जाने के बाद कंफर्म मेसेज मिलेगा।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. के. के. अग्रवाल, प्रेसिडेंट, हार्ट केयर फाउंडेशन
  • डॉ. अरविंद लाल, एग्जिक्युटिव चेयरमैन, डॉ. लाल पैथ लैब्स
  • डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन मेडिकल, IP यूनिवर्सिटी
  • डॉ. (प्रो.) संजय राय, कम्यूनिटी मेडिसिन, एम्स
  • डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
  • डॉ चंद्रकांत लहारिया, पब्लिक पॉलिसी एंड हेल्थ सिस्टम एक्सपर्ट
  • डॉ. सत्या एन. डोरनाला, वैद्य-साइंटिस्ट फेलो

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


Corona Vaccine FAQ: बीमारी छोटी हो या बड़ी, कोरोना वैक्सीन जरूरी

$
0
0

45 की उम्र पार कर चुके सभी लोगों को अब कोरोना वैक्सीन लगनी शुरू हो चुकी है। वैक्सीनेशन को लेकर कुछ लोगों में भ्रम की स्थिति अब भी बनी हुई है। उन्हें डर है कि वैक्सीन लेने से कोई नई परेशानी न पैदा हो जाए। इस तरह की सोच ऐसे लोगों में ज्यादा है जिन्हें किडनी, लिवर, हार्ट, लंग्स या फिर हॉर्मोन से जुड़ी बीमारियां हैं। इन्हें वैक्सीन लेनी चाहिए या फिलहाल टाल देनी चाहिए? क्या सावधानी रखनी चाहिए? एक्सपर्ट्स से बात कर जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

कोरोना वैक्सीन पर शक की स्थिति उस समय से पैदा हुई थी जब यूरोप के कुछ देशों में वैक्सीन लगने के बाद ब्लड क्लॉटिंग की शिकायत के मामले सामने आए। इसका सीधा असर भारत पर भी पड़ा। खासकर ऐसे लोग जिन्हें पहले से ही कोई बीमारी है, वे वैक्सीन को शक की निगाह से देखने लगे। वैसे ब्लड क्लॉटिंग की जो भी शिकायतें आईं यूरोप में उन पर रिसर्च की गई। रिसर्च में यह साफ हुआ कि ब्लड क्लॉटिंग की जो परेशानी वहां के मरीजों में देखी गई, वह वैक्सीन की वजह से नहीं बल्कि उस मरीज को वह परेशानी पहले से ही थी। वैक्सीन सही ढंग से काम कर रही है। इसकी पुष्टि WHO और दूसरी संस्थाओं ने भी की है।


हालांकि यह सच है कि यूरोप के बुजुर्गों में ब्लड क्लॉटिंग के मामले भारत की तुलना में कुछ ज्यादा ही देखे जाते हैं। इसके लिए उनका रहन-सहन, खानपान और वहां पर होने वाली बीमारियां भी जिम्मेदार हैं। बावजूद इसके वैक्सीन देने के बाद ब्लड क्लॉटिंग के मामले आए तो पहली नजर में वैक्सीन को ही जिम्मेदार ठहराया गया। भारत में भी आईसीएमआर और दूसरी संस्थाओं ने साफ कहा है कि वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है। इसके बाद भी लोगों के मन में अलग-अलग बीमारियों की वजह से वैक्सीनेशन को लेकर जो शंकाएं हैं, वे हम दूर कर रहे हैं।

अगर किडनी कमजोर हो...
किडनी शरीर में मौजूद अच्छी चीजों को रोकती है और हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालती है। चूंकि किडनी पर काम का लोड ज्यादा है और साइज में भी महज 10 से 12 सेंटीमीटर है, इसलिए कुदरत ने शरीर को 2 किडनियां दी हैं।

किडनी में खराबी होगी तो पूरा फिल्टरेशन नहीं होगा और सबसे पहले आंखों के आसपास और पैरों में सूजन आएगी। कोई सेहतमंद शख्स एक दिन में 4 से 5 बार यूरिन जाता है। रात में सोने के बाद नहीं जाता या ज्यादा से ज्यादा 1 बार जाता है।


अगर किसी में क्रिएटिनिन और यूरिया का लेवल बढ़ जाए और वह इसके लिए दवा भी ले रहा हो तो क्या उसे कोरोना वैक्सीन लगवानी चाहिए?
ऐसे लोगों को कोरोना वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए। दरअसल, ऐसे लोग ही कोरोना इंफेक्शन के ज्यादा रिस्क पर होते हैं। उनकी इम्यूनिटी बाकी लोगों की तुलना में कमजोर होती है। ऐसे में अगर कोरोना इंफेक्शन हो जाए तो यह ज्यादा खतरनाक हो सकता है। इसलिए सरकार का निर्देश है कि जिन्हें किडनी, लिवर, लंग्स आदि से जुड़ी कोई भी समस्या है, वे जरूर कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लें और मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।

अगर किडनी पूरी तरह खराब हो गई है और मैं डायलिसिस पर हूं तो क्या मैं वैक्सीन लगवाऊं?
ऐसे लोग भी कोरोना वैक्सीन जरूर लें। ऐसे लोगों की इम्यूनिटी उन लोगों से भी ज्यादा कमजोर होती है जिनका क्रिएटिनिन लेवल और यूरिया सामान्य से ज्यादा हो। ऐसे लोगों में खून की कमी भी हो जाती है। इससे WBC (शरीर के सैनिकों) की संख्या भी कम हो जाती है। उसका दिल भी कुछ कमजोर हो जाता है। इसलिए ऐसे लोगों को भी वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए।

डायलिसिस करवाने और वैक्सीनेशन के बीच कितने घंटे का फर्क रखना चाहिए?
अगर कोई शख्स डायलिसिस के बाद वैक्सीनेशन के लिए जाता है तो उसके शरीर में हानिकारक पदार्थों की मौजूदगी कुछ कम होगी क्योंकि डायलिसिस में हानिकारक पदार्थों को बाहर निकाला जाता है। इसलिए डायलिसिस को आर्टिफिशल किडनी भी कहते हैं क्योंकि जो काम हमारी किडनी करती है, वही डायलिसिस मशीन हमारे लिए करती है। इसलिए वह शख्स डायलिसिस के 1 से 2 घंटे बाद या फिर दूसरे दिन वैक्सीनेशन के लिए जा सकता है। अपने डॉक्टर की सलाह भी ले लें।


80 साल का हूं। KFT टेस्ट में मेरा क्रिएटिनिन और यूरिया बढ़ा हुआ आया है। क्या मैं वैक्सीन ले सकता/सकती हूं?
सुपर सीनियर्स भी जरूर लगवाएं। किडनी से जुड़ी कोई भी समस्या क्यों न हो, उम्र चाहे कितनी भी ज्यादा क्यों न हो। वैक्सीन ले सकते हैं। कोरोना के इंफेक्शन से बचने के लिए यह जरूरी है।

मेरा किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है। क्या मैं वैक्सीन ले सकता/सकती हूं?
किडनी ट्रांसप्लांट के बाद जो दवाएं मरीजों को खासतौर पर दी जाती हैं, उनमें इम्यूनो सप्रेसेंट (किसी का शरीर बाहर से आई किडनी को दुश्मन समझकर उसके खिलाफ ही ऐंटिबॉडी न बनाने लगे, इसके लिए दवा दी जाती है) खास होती हैं। अगर ऐसी दवा चल रही है तो अपने डॉक्टर से पूछकर ही वैक्सीनेशन के लिए जाएं क्योंकि एक तरफ तो नए ऐंटिबॉडी बनाने के लिए वैक्सीन लगवाएंगे, दूसरी तरफ ऐंटिबॉडी न बने इसके लिए भी दवा ले रहे होंगे। ऐसी स्थिति ज्यादातर ट्रांसप्लांट के मामलों में बनती है, चाहे हार्ट, लिवर या फिर लंग्स का ट्रांसप्लांट ही क्यों न हुआ हो।


क्या किडनी के हर इंफेक्शन में बुखार होता है और बुखार होने पर भी वैक्सीन ले सकते हैं?
जब किडनी में इंफेक्शन पेशाब की थैली तक फैला होता है तो अमूमन बुखार नहीं होता। हां, अगर यह इंफेक्शन प्रोस्टेट में भी फैल चुका हो तो ऐसे में बुखार हो सकता है। जहां तक इस दौरान वैक्सीन लेने की बात है तो डॉक्टर की सलाह से ही वैक्सीन के लिए जाएं।

जब हो दिल की समस्या...
दिल के मरीजों में इस बात को लेकर ज्यादा गलतफहमी है कि कोरोना वैक्सीन लेने पर उन्हें दिल से जुड़ी नई परेशानी भी हो सकती है जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। भले ही किसी की बायपास सर्जरी ही हुई हो, हाइपर टेंशन की शिकायत हो, वैक्सीन जरूर ले सकता है।

गलत आदतों की वजह से खून की नलियों का रास्ता तंग हो जाता। उनमें सूजन आ जाती है। ऐसे में दिल को ज्यादा दम लगाना पड़ता है या ज्यादा बार धड़कना पड़ता है। समस्या भी यहीं से पैदा होती है।

1 महीने पहले हार्ट की बाइपास सर्जरी हुई है। क्या मैं वैक्सीन ले सकता/सकती हूं?
बाइपास सर्जरी करवाकर अगर कोई शख्स घर लौट चुका है या फिर अभी अस्पताल में ही क्यों न हो, बाइपास कराए हुए महीनों या फिर कई बरस बीत चुके हों, वह भी वैक्सीन लगवा सकता है। इसमें कोई परेशानी नहीं। अगर फिर भी दिल न माने तो अपने डॉक्टर से एक बार पूछ सकते हैं।

खून पतला (थिनर) करने वाली दवा इकोस्प्रिन (आदि) ले रहा/रही हूं। वैक्सीन लगवानी चाहिए?
ऐसा कोई कारण नहीं है कि ऐस्प्रिन के साथ वैक्सीन नहीं ले सकते। ऐसे लाखों लोग जो इस तरह की दवाएं ले रहे हैं, वे वैक्सीन लगवा चुके हैं। वे ठीक हैं और उनमें कोरोना के खिलाफ ऐंटिबॉडी विकसित हो चुकी हैं।

मुझे हाइपर टेंशन है। बीपी सामान्य से ज्यादा रहता है और मैं इसके लिए दवा भी ले रहा/रही हूं। क्या मैं वैक्सीन लगवा सकता/सकती हूं?
टेंशन कम करने की दवा ले रहे हों या फिर न ले रहे हों, वैक्सीन लगवाने में कोई परेशानी नहीं है। ऐसा देखा जाता है कि जिन लोगों को बीपी की शिकायत होती है, उन्हें शुगर की परेशानी भी होती है। शुगर को काबू में रखने के लिए दवा लेने वाले या इंसुलिन लेने वाले लोगों को भी वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए।

शुगर या थाइरॉइड होने पर...
शरीर में इंसुलिन कम बनता है या फिर नहीं बनता है। इसी वजह से लोगों को शुगर की परेशानी हो जाती है। शुगर के मरीज यही सोचते हैं कि उन्हें कोई भी बीमारी होने पर जल्दी ठीक नहीं होती। कई तरह की समस्याएं आ जाती हैं। इसलिए वैक्सीनेशन के बाद ज्यादा साइड इफेक्ट्स झेलने पड़ेंगे जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है।

डायबीटीज एक मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है। हम जो भी खाना खाते हैं, वह ग्लूकोज में बदलकर खून में जाता है और एनर्जी देता है। गलत लाइफस्टाइल, मोटापा और बढ़ती उम्र की वजह से टाइप 2 डायबीटीज होती है। इसमें शरीर में कम मात्रा में इंसुलिन बनता है।

मुझे 15 बरस से डायबीटीज है। मेरा शुगर लेवल बढ़ा हुआ रहता है। HbA1c (शुगर लेवल के 3 महीनों का औसत) भी 8 से ऊपर है जबकि यह 6 से कम रहना चाहिए। क्या मैं वैक्सीन ले सकता/सकती हूं?
वैसे तो शुगर को काबू में रखने से बाकी सभी अंग भी स्वस्थ रहते हैं। जहां तक वैक्सीन लगवाने की बात है तो कोशिश यह होनी चाहिए कि शुगर जब काबू में हो, तभी वैक्सीन लगवाएं। इससे शरीर में ऐंटिबॉडी का निर्माण सही तरीके से हो पाता है। अगर शुगर बढ़ी हुई है तो हमारी इम्यूनिटी वैसे भी कमजोर रहेगी। अगर शुगर पूरी तरह काबू न हो पाए तो भी वैक्सीन जरूर लगवाएं। यही स्थिति थाइरॉइड हॉर्मोन को लेकर भी है। जिन लोगों को थाइरॉइड से जुड़ी परेशानी है उन्हें भी वैक्सीन लेने में परेशानी नहीं है, लेकिन बेहतर परिणाम के लिए इनका काबू में होना जरूरी है।

लिवर ठीक काम न करता हो...
दिल के बाद सबसे ज्यादा काम का अंग है लिवर। इम्यूनिटी से लेकर, पाचन, विटामिन जमा करके रखने जैसे तमाम काम करता है। लोग इसका ध्यान कम रख रहे हैं। इसलिए करोड़ों लागों में फैटी लिवर और हजारों में सिरोसिस की परेशानी होने लगी है।

  • लिवर से अच्छा हमारा कोई दोस्त नहीं हो सकता। वह शरीर में कई तरह के काम करता है। परेशान होने पर भी कुछ नहीं बोलता।
  • लिवर शरीर का इकलौता ऐसा हिस्सा है जो 300 से भी ज्यादा तरह के काम करता है। ये सारे काम वह दिन में एक बार नहीं कई-कई बार करता है।
  • यह शरीर के उत्सर्जी अंग (हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने वाला) के रूप में भी काम करता है।
अगर मुझे फैटी लिवर की परेशानी है तो क्या मैं वैक्सीन लगवा सकता/सकती हूं?
जरूर लगवानी चाहिए। फैटी लिवर आज सबसे आम परेशानी है। ऐसा होने पर कोरोना वैक्सीन नहीं लेने वाली कोई बात नहीं है।

लिवर सिरोसिस के केस में वैक्सीनेशन के लिए क्या करना चाहिए?
लिवर सिरोसिस का मतलब है लिवर की स्थिति बहुत खराब होना। पेट में पानी भरने, खून की उल्टी होने की दिक्कत होती है। ऐसी स्थिति में भी वैक्सीन लगवानी चाहिए। हालांकि, सिरोसिस की स्थिति में इम्यूनिटी काफी कमजोर हो जाती है। अगर कोई शख्स वैक्सीन न ले तो उसे कोरोना का खतरा कुछ ज्यादा होगा।

फेफड़ों में हो परेशानी...

कोरोना इंफेक्शन के बाद फेफड़ों की छोटी-छोटी खून की नलियों में थक्के जमने से ही वेंटिलेशन की जरूरत पड़ती है। लोगों को लगता है कि कोरोना वैक्सीन लेने पर भी यह स्थिति बन सकती है जबकि ऐसा नहीं है।

कोरोना इंफेक्शन के दौरान फेफड़ों में खून का थक्का जमता है और वैक्सीनेशन में भी हम कोरोना वायरस को ही लेते हैं तो यह मुमकिन है कि परेशानी बढ़ जाए। ऐसे में क्या स्थिति ज्यादा खराब नहीं हो सकती है?
मरीज की स्थिति वैक्सीन की वजह से कभी खराब नहीं होती। वैक्सीनेशन के दौरान जो वायरस शरीर में पहुंचाया जाता है उसकी मारक क्षमता खत्म कर दी जाती है। वह नुकसान पहुंचाने की स्थिति में बिलकुल भी नहीं होता। ऐसे में वैक्सीन की वजह से फेफड़ों में खून के थक्के जमने की बात मुमकिन ही नहीं।

मुझे पिछले 5 साल से अस्थमा है। क्या मुझे वैक्सीन लगवानी चाहिए?
अस्थमा एक एलर्जी से संबंधित बीमारी है। इसलिए कई लोगों को ऐसा लगता है कि वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए। यहां इस बात को समझना जरूरी है कि अगर एलर्जी की परेशानी इसी तरह की किसी वैक्सीन से पहले हुई है, जैसे: फ्लू, पोलियो आदि की वैक्सीन लेने पर तो कोरोना वैक्सीन लेने से पहले डॉक्टर से बात जरूर करनी चाहिए। वैसे अस्थमा के मामले में भी वैक्सीन लेने में कोई परेशानी नहीं, चाहे वह कितनी भी पुरानी क्यों न हो।

मुझे एलर्जी की शिकायत है। मेरी स्किन वैक्सीन के लिए प्रति बहुत संवेदनशील है। क्या मुझे वैक्सीन लगवानी चाहिए? जब वैक्सीन के माध्यम से कोरोना वायरस मेरे शरीर में पहुंचेगा तो क्या मुझे ज्यादा एलर्जी नहीं होगी?
अगर किसी शख्स को वैक्सीन से एलर्जी है तो उसे सीधे जाकर वैक्सीन नहीं लगवानी चाहिए। पहले डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए। अगर कोई ऐंटि-एलर्जी दवा बंद करनी हो या देनी हो तो वह बता देंगे।

नोट: वैक्सीनेशन के बाद 30 से 45 मिनट तक इसका असर देखने के लिए वहीं रुकने को कहा जाता है। इसमें एलर्जी की स्थिति, बीपी की स्थिति आदि पर नजर रखी जाती है। अगर कोई परेशानी आनी है तो उसी वक्त आ जाती है। इसके बाद एलर्जी या बीपी कम होने की शिकायतें नहीं होती। हां, बुखार, मांसपेशियों में दर्द जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। यह कुछ मिनटों, कुछ घंटों या 1 से 2 दिनों के लिए हो सकता है।

मास्क से फेफड़ों की सुरक्षा और कोरोना से बचाव
कोरोना के असर ने सभी को परेशान किया है लेकिन यह भी सच है कि इसने मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग की आदत भी डाली है। मास्क जहां एक तरफ कोरोना से हमें बचाता है, वहीं यह हवा में मौजूद पलूशन, खास तौर से डस्ट पार्टिकल्स को रोकने में भी कामयाब है।

वैक्सीनेशन के बाद भी कोरोना हो सकता है, लेकिन घातक नहीं होगा
यह मुमकिन है कि कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी कोरोना हो जाए, लेकिन यह कोरोना इंफेक्शन काफी कमजोर होता है। इसे हमारे शरीर में मौजूद ऐंटिबॉडीज आसानी से हरा देती हैं। यहां इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का साथ न छूटे।

अगर इंफेक्शन पहली डोज के फौरन बाद हो जाए तो...
अगर वैक्सीनेशन की पहली डोज लेने के बाद 4 दिनों में कोरोना हो जाए तो लक्षण वही हो सकते हैं जो किसी सामान्य इंसान को इंफेक्शन होने के बाद होते हैं, मसलन: खांसी, सांस की परेशानी, मांसपेशियों में दर्द, स्वाद न आना आदि। इस समय तक किसी भी तरह की ऐंटिबॉडी विकसित नहीं होती। न तो अस्थायी जिसे IgM ऐंटिबॉडी कहते हैं और न ही स्थायी जिसे IgG ऐंटिबॉडी नाम दिया गया है।

कोरोना पहली डोज के 4 से 5 दिनों के बाद हो तो...
अगर किसी शख्स ने कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लगवा ली है। वैक्सीन लगवाए हुए भी 4 से 5 दिन बीत चुके हैं तो उसके शरीर में अस्थायी IgM ऐंटिबॉडी बननी शुरू हो चुकी होती है। यह ऐंटिबॉडी अमूमन 10 से 15 दिनों तक रहती है। इसे हम शरीर की क्विक रिस्पाॅन्स टीम कहते हैं। इसकी कोशिश यह होती है कि वायरस शरीर में ज्यादा न फैले। इसके बनने के बाद अगर वायरस का इंफेक्शन शरीर में होता है तो यह मुमकिन है कि वायरस कुछ कम परेशान करे।

अगर कोरोना 15 दिनों के बाद और दूसरी डोज से पहले हो जाए तो...
इस समय तक स्थायी ऐंटिबॉडी IgG की बनने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी होती है जो चंद दिनों में ही पूरी भी हो जाती है। यह स्थाई होती है, लेकिन इसे ज्यादा मजबूती के लिए वैक्सीन की दूसरी डोज की जरूरत होती है। इस समय शरीर के लिए वायरस से लड़ना ज्यादा आसान हो जाता है। इसलिए वायरस उतना परेशान नहीं कर पाता। लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर वैक्सीन की पहली डोज के बाद कोरोना का इंफेक्शन हो जाए तो दूसरी डोज 45 दिनों के बाद ही लगवानी होगी। इसलिए पहली डोज या फिर दूसरी डोज के बाद भी मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए कहा गया है।

दूसरी डोज लेने के बाद अगर कोरोना हो जाए तो...
कई लोग यह तर्क देते हैं कि जब दूसरी डोज लेने के बाद भी इंफेक्शन हो सकता है तो वैक्सीन लगवाने का क्या फायदा। साथ ही वैक्सीनेशन के बाद भी कोरोना से बचने के लिए मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग रखनी पड़े तो वैक्सीनेशन क्यों करवाएं? दूसरी डोज लेने के 10 से 15 दिनों के बाद अमूमन कोरोना वायरस से लड़ने के लिए पर्याप्त स्थायी IgG ऐंटिबॉडीज तैयार हो जाती हैं। यहां इस बात को समझना जरूरी है कि वैक्सीनेशन की प्रक्रिया पूरी करने के बाद शरीर के अंदर वायरस से लड़ाई होती है। दुनिया की कोई भी वैक्सीन किसी भी वायरस को शरीर में पहुंचने से नहीं रोक सकती। जो भी लड़ाई होगी वह शरीर के भीतर ही होगी। सीधे कहें तो कोई ऐसा दुश्मन जो अदृश्य है, वैक्सीनेशन से पहले शरीर के लिए उसे पकड़ना और खत्म करना बहुत मुश्किल था लेकिन वैक्सीनेशन के बाद यह मुमकिन हो जाता है। किसी भी सूरत में जंग का मैदान हमारा शरीर ही होगा। इसलिए वायरस से लड़ाई के कुछ लक्षण तो जरूर दिखेंगे। यह लड़ाई कभी कुछ मिनट या कुछ घंटे में खत्म हो जाती है तो कई बार कुछ दिन तक भी चल सकती है। वैक्सीनेशन वाला शरीर इंफेक्शन को आसानी से हरा देता है।

इस दौरान शरीर में...
  • हल्का फीवर जो 101 डिग्री फारेनहाइट से कम रह सकता है। मांसपेशियों में हल्का दर्द हो सकता है।
यह स्थिति उस इंसान की स्थिति से बहुत बेहतर है जिसने कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाई हो और उसे कोरोना का इंफेक्शन हो गया हो। वैक्सीनेशन के बाद कोरोना से जान जाने का खतरा काफी हद तक टल जाता है। साथ ही कोरोना के नए स्ट्रेन से लड़ने में भी यह मददगार हो सकती है।
वैक्सीन न लगवाने वालों में कोरोना के सामान्य लक्षण
  • गले में दर्द
  • सांस फूलना, सांस लेने में परेशानी
  • फीवर 103 या 104 डिग्री फारेनहाइट तक, लगातार खांसी आदि।
वैक्सीन लगवाने के बाद कोरोना का डर कुछ कम होता है....
  • कहीं बाहर से घर लौटने के बाद अगर एक बार भी छींक या हल्की खांसी आ जाए तो लोग सोचने लगते हैं कि उन्हें कोरोना इंफेक्शन तो नहीं हो गया जबकि वैक्सीन लगवाने के बाद इस तरह का डर काफी कम हो जाता है।
  • वैक्सीनेशन के बाद सफर करने में संकोच कुछ कम हो जाता है और कुछ लोगों से मिलने में भी परेशानी नहीं होती। लेकिन इस दौरान भी मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना होगा।
  • मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग इसलिए भी जरूरी है क्योंकि वैक्सीनेशन के बाद भी ऐसे लोग कोरोना वायरस के करियर हो सकते हैं। कोरोना भले ही उन्हें नुकसान न पहुंचा पाए लेकिन जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई है, ये लोग उन तक कोरोना पहुंचा सकते हैं।
बच्चों में वैक्सीनेशन
2019 के दिसंबर में कोरोना का पहला केस आया था। उसके बाद से यह पूरी दुनिया में फैल गया। इस दौरान कई देश वैक्सीन बनाने की कोशिश में जुट गए। 1 साल के भीतर ही कोरोना वैक्सीन के ट्रायल समेत तमाम प्रक्रियाओं को पूरा किया गया। फिलहाल भारत समेत पूरी दुनिया में इमरजेंसी की स्थिति में दी जाने वाली मंजूरी मिलने पर वैक्सीन लगाने की काम किया जा रहा है। अगर पूरी प्रक्रिया का पालन किया जाता तो इसके लिए कम से कम 2 से 5 साल का वक्त लगता। इसलिए बच्चों को वैक्सीन से पहले सरकारें और कंपनियां पूरी प्रक्रिया का पालन कर लेना चाहती हैं।

ध्यान देने वाली बात यह है कि बच्चों में कोरोना के मामले कम मिले हैं। इसलिए यह मुमकिन है कि बच्चों के लिए वैक्सीनेशन की प्रक्रिया तब शुरू होगी जब वैक्सीन बनाने की हर कसौटी पर इसे खरा पाया जाएगा। वैसे कोरोना वैक्सीन भविष्य में सभी उम्र के बच्चों को लगवानी होगी।
अमेरिका की कोरोना वैक्सीन बनाने वाली कंपनी Pfizer का कहना है कि उनकी वैक्सीन बच्चों पर भी असरदार है। 12 से 15 साल के बच्चों को यह वैक्सीन लगाई जा सकती है। इसके लिए 2260 बच्चों पर ट्रायल किया गया और सभी नतीजे अच्छे रहे। भारत में अभी इस कंपनी को वैक्सीन बेचने की अनुमति नहीं दी गई है।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. एस. सी. मनचंदा, एक्स हेड, कार्डियॉलजी डिपार्टमेंट, AIIMS
  • डॉ. एस. के. सरीन, डायरेक्टर, लिवर एंड बिलिएरी साइंसेस
  • डॉ. राजकुमार,डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
  • डॉ. कैलाशनाथ सिंगला, सीनियर कंसल्टेंट गैस्ट्रोएंटेरॉलजिस्ट
  • डॉ. रविन्द्र सिंह अहलावत, हेड नेफ्रॉलजी, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज
  • डॉ. प्रशांत जैन, जाने-माने सीनियर यूरॉलजिस्ट
  • डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, जाने-माने सीनियर पीडिअट्रिशन

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

How to boost immunity : खा-पीकार करें कोरोना से लड़ाई ताकि हाथ न लगानी पड़े दवाई

$
0
0

मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन से कोरोना को दूर रखा जा सकता है। अच्छी बात यह है कि कोरोना की वैक्सीन भी लगाई जा रही है जो इम्यूनिटी दे रही है। अगले महीने 1 तारीख से 18 साल से ऊपर की उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन लगनी शुरू हो जाएगी तो ज्यादा आबादी में इम्यूनिटी होगी। फिलहाल सबसे जरूरी है अपने खानपान को संभालना। अगर हम हमेशा हेल्दी डाइट लेते हैं तो किसी भी बीमारी से मुकाबला कर सकते हैं। एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर इसी बारे में बता रहे हैं।

हमारे खानपान से तैयार होने वाली इम्यूनिटी ऐसा हथियार है जिसकी वजह से शरीर के लिए वायरस से मुकाबला करना आसान हो जाता है। यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि आज बीमारी है या कोरोना है तो हेल्दी खाना खाते ही इम्यूनिटी आ जाएगी। यह एक हमेशा चलने वाला सिलसिला है। वैसे तो किसी के जन्म से पहले ही उसकी इम्यूनिटी बनने लगती है। इसे जेनेटिक या मेटरनल इम्यूनिटी कहते हैं। बच्चे को मां के दूध से इम्यूनिटी मिलती है। इसके बाद सही खानपान से भी हमें इम्यूनिटी मिलती है। वैसे तो हमें उम्र के मुताबिक सभी विटामिन और मिनरल्स भरपूर लेने चाहिए, पर एक्सपर्ट मानते हैं कि कोरोना से बचाव, इलाज या बाद में रिकवरी के मामले में 3 चीजों की अहम भूमिका है। ये हैं विटामिन-सी, विटामिन-डी और जिंक।


काढ़ा: सही तरीका, सही मात्रा
इन दिनों लोग बाजार में मिल रहे काढ़े का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। टी-बैग की तरह मिलने वाले काढ़े के पाउच के अलावा तैयार काढ़ा पाउडर भी मिल रहा है। खांसी-जुकाम होने पर ज्यादातर लोग काढ़ा पीकर राहत महसूस करते हैं। काढ़े का मतलब सिर्फ हल्दी, अदरक, दालचीनी, काली मिर्च, मुलेठी आदि सबको पानी में मिलाकर उबालना नहीं होता। काढ़ा किसी भी चीज का हो सकती है। यह दवा नहीं है बल्कि यह प्रोसेस है। लेकिन गर्मियों में ज्यादा काढ़ा नहीं लेना चाहिए। जिन्हें पित्त (पाचन से जुड़ी) की परेशानी हो, वे इस बात पर जरूर ध्यान दें।

काढ़ा पीने से फायदा
- गले में खराश कम होना, खांसी में कमी आना
- सही तरीके से बने काढ़े से इम्यूनिटी बढ़ना
- शरीर के अंदर गर्माहट महसूस होना
- मोटापा घटता है क्योंकि शरीर की चर्बी पिघलती है।

किसे नहीं पीना

- पेट में अल्सर हो
- किडनी की समस्या हो
- पाइल्स हो
- 5 बरस से कम उम्र के बच्चों को

अगर काढ़ा तैयार कर रहे हैं...
अदरक, सौंठ, लौंग, काली मिर्च कम से कम डालें। काढ़ा दूध में बनाया जाए तो इसकी तासीर ज्यादा गर्म नहीं रहती। अगर काढ़ा पीने से कोई परेशानी हो तो किसी वैद्य की सलाह लें।

मीठा काढ़ा ऐसे बनाएं
पानी: 60 से 70 एमएल (1 कप)
दूध: 60 से 70 एमएल (1 कप)
तुलसी के पत्ते: 3
लौंग: 1
काली मिर्च: 1
दालचीनी: एक चुटकी पाउडर या आधा इंच दालचीनी का टुकड़ा
चीनी या शक्कर: स्वाद के अनुसार, अगर डायबीटीज है तो मीठा न लें या वैद्य की सलाह से लें।
- अगर लौंग, दालचीनी और काली मिर्च ले रहे हैं तो मुलेठी न लें या बहुत कम कर दें।

नोट: वैद्य की सलाह से ही काढ़ा पिएं। जिन्हें पचाने में मुश्किल होती हो वे दूध और पानी में सिर्फ तुलसी के पत्ते डाल लें।


ऐसे तैयार करें

1 सामान्य तरीका: इसमें ऊपर बताई गई सामग्री किसी स्टील के बर्तन में डालकर 5 से 7 मिनट तक उबालें। गुनगुना होते ही पी लें।
2 गर्म अर्क (हॉट इन्फ्यूजन): गर्मी और बरसात के मौसम के लिए बढ़िया तरीका है। जिस चीज का काढ़ा बनाना हो उसे तय मात्रा में लेकर कूटें या पीसकर एक कप में डाल दें। इसके बाद उबलता हुआ पानी उस कप में भर लें और 5 से 7 मिनट के लिए ढक दें। फिर जब पीने लायक हो जाए तो धीरे-धीरे पी लें।

गर्मी है तो यह भी ध्यान रखें
मौसम गर्म है इसलिए जरूरी नहीं कि लौंग, काली मिर्च, दालचीनी, मुलेठी आदि को एक साथ ही लें।
- एक गिलास पानी में 2 से 3 तुलसी के पत्ते या 2 लौंग या 2 काली मिर्च को एक या आधी छोटी इलायची के साथ 5 मिनट उबालकर उसे पी सकते हैं, इससे भी फायदा होता है।

उम्र के अनुसार मात्रा
- वयस्क पहली बार 5 से 10 एमएल यानी 2 से 3 घूंट। बाद में हर दिन 50 से 70 एमएल यानी लगभग एक कप लें।
- 5 साल से कम उम्र के बच्चों को काढ़ा नहीं देना चाहिए।
- 5 से 10 साल के बच्चे के लिए 5 से 10 एमएल काफी है।
- 10 से 15 साल के बच्चे के लिए 10 से 15 एमएल काफी है।
- बच्चों को तुलसी (1 पत्ता) और खजूर (2 से 3) उबालकर दे सकते हैं।

नोट: अगर कम काढ़ा पीने से भी शरीर में ज्यादा गर्माहट महसूस हो तो एक बार विटामिन-बी कॉम्प्लेक्स टेस्ट कराना चाहिए। फल (पपीता, अमरूद, अनार आदि) और साग-सब्जी (गाजर, खीरा, लौकी, पालक आदि) को शामिल करें।

अगर काढ़ा पीने से परेशानी हो तो क्या करें?
अगर गैस की समस्या या पेट में जलन होने लगे तो काढ़ा फौरन बंद कर दें। इसकी जगह दिन में 2 बार एक-एक कप दूध लें। च्यवनप्राश भी एक चम्मच ले सकते हैं। अगर परेशानी फिर भी बनी रहे तो मौसमी, अनार या अनानास का एक गिलास जूस लेना चाहिए। सलाद में खीरा लें। किसी को किडनी की परेशानी है तो डॉक्टर से सलाह लें क्योंकि किडनी मरीज को हर दिन की लिक्विड मात्रा तय रहती है।

विटामिन D: सेहत की धूप
कोरोना का नया स्ट्रेन हो या पुराना, हम यह नोटिस करें कि कुछ लोग वेंटिलेटर पर जाने के बाद भी ठीक होकर आ रहे हैं। इसमें उनकी इम्यूनिटी की अहम भूमिका है। वैक्सीनेशन के अलावा एक इम्यूनिटी हमें पैरेंट्स से मिलती है और दूसरी लाइफस्टाइल से। खानपान और एक्सरसाइज से हम इम्यूनिटी बढ़ा सकते हैं। हमें रोजाना 2000 IU विटामिन-डी की जरूरत होती है। यह बैक्टीरिया और वायरस को मारने में मदद करता है। इसलिए कोरोना के मरीज को बालकनी या ऐसी खिड़की वाला कमरा मिले जहां भरपूर धूप आती हो। जब धूप आए तो खिड़की के शीशे खोल देने चाहिए। शीशे बंद हों तो शरीर पर पड़ने वाली धूप से किसी के शरीर में विटामिन-डी नहीं बनता।

इसकी कमी से परेशानी
वैसे जिन लोगों में विटामिन-डी की कमी हो, उनमें कोरोना इंफेक्शन होने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है। कुछ रिसर्च भी बताती हैं जब दो टारगेट ग्रुप में कोरोना हुआ तो जिनमें विटामिन-डी की कमी थी, उस ग्रुप में कोरोना के लक्षण ज्यादा आए। जिनका विटामिन-डी का लेवल कम हो उनके लिए यह घातक भी हो सकता है। विटामिन-डी का 80 फीसदी हिस्सा धूप से मिलता है, जबकि डाइट से 20 फीसदी।

दो तरह का विटामिन डी
विटामिन-डी2 सब्जियों, फलों में ब्रोकली, बादाम, दूध, अंडा, मशरूम में होता है।
विटामिन-डी3 दवा के रूप में - लिक्विड, जैल, मीठे सिरप, गोली, ऑयल, मिल्क, इंजेक्शन से।
सप्लिमेंट के तौर पर एक वयस्क को 60000 IU विटामिन-डी की मात्रा हर हफ्ते लेनी होती है। इसे लगातार 8 हफ्तों तक यानी 2 महीनों तक लेते हैं। इसके बाद हर महीने पर 60000 IU दिया जाता है। विटामिन-डी सप्लिमेंट के साथ कुछ सैशे या गोलियों में कैल्शियम सिट्रेट भी होता है। लेकिन आमतौर पर हमारा कैल्शियम कम नहीं होता, विटामिन-डी ही कम होता है। हर 6 महीने में विटामिन-डी का टेस्ट करवाना चाहिए। खून में इसकी प्रचुरता 30 नैनोग्राम से ऊपर और 100 से कम होनी चाहिए। 18 साल तक के बच्चों को रोजाना 800 से 1000 IU विटामिन-डी की जरूरत होती है।


विटामिन C: खट्टा है अच्छा
कोरोना से बचाव और कोरोना होने पर भी इस विटामिन की जरूरत इसलिए है क्योंकि यह शरीर के लिए सुरक्षा कवच तैयार करता है। यह हड्डियों, त्वचा और रक्त नलिकाओं के लिए खास है। लेकिन हमारा शरीर इसे जमा करके नहीं रख सकता। इसलिए हर शख्स को हर दिन 65 से 90 एमजी विटामिन-सी जरूर लेना चाहिए।

फायदे

- यह एंटी-ऑक्सीडेंट के रूप में काम करते हुए हानिकारक चीजों और बैक्टीरिया को खत्म करता है।
- आरबीसी (लाल रक्त कोशिकाओं) की संख्या में इजाफा करता है।
- हमारी स्किन के लिए फायदेमंद है।
- हमें दिनभर ऐक्टिव रखता है।

विटामिन-सी की कमी होने पर
- अक्सर जुकाम या बुखार होना
- थकावट
- अचानक वजन कम होना
- बालों का रफ होना या बाल झड़ना
- घाव धीरे-धीरे भरना
- मसूड़े कमजोर होना
- स्किन का ग्लो कम होना
- हाई बीपी रहना
(नोट: इन समस्याओं के पीछे दूसरी वजहें भी हो सकती हैं।)

कहां से मिलता है विटामिन सी

इसका सबसे अच्छा सोर्स आंवला है। अगर सप्लिमेंट्स के तौर पर विटामिन-सी लेंगे तो यह नेचरल की तुलना में शरीर में थोड़ा कम जज्ब होगा। रोजाना एक आंवला बड़े, बुजुर्ग या प्रेग्नेंट महिलाएं ले सकती हैं। बच्चों को भी एक आंवला रोजाना दिया जा सकता है। 5 साल से छोटे बच्चों को आंवले का मुरब्बा दे सकते हैं। कैंडी, मुरब्बा या आंवले का पाउडर खाने से हमें कच्चे आंवले की तुलना में 60 से 70 फीसदी विटामिन-सी मिल सकता है। पपीता, अमरूद, पका हुआ आम, पालक और हरी सब्जियां भी विटामिन-सी का बेहतर विकल्प हैं।
गोलियों के रूप में विटामिन-सी लेना हो तो इसकी 500 mg की गोली दिन में तीन बार ली जा सकती है।

जिंक: ड्राई फ्रूट्स खाएं
जिंक हमारी इम्यूनिटी बढ़ाता है इसलिए इस वक्त हमारे लिए भरपूर जिंक लेना बहुत जरूरी है। शरीर में कोई टूट-फूट हुई हो तो इसकी मदद से जल्दी ठीक होती है। यह जल्दी-जल्दी बीमार होने वाले लोगों को भी दिया जाए तो उनकी सेहत सुधरने लगती है। इसे रोजाना के खाने में शामिल करना चाहिए। रोज कुल मिलाकर एक मुट्ठी ड्राई फ्रूट्स खाएं जैसे रातभर भीगे हुए बादाम, रोस्टेड मूंगफली, अखरोट आदि।
इन चीजों से मिलता है जिंक
n मोटा अनाज जैसे ओट्स, दलिया (इनके छिलके में जिंक होता है)
n मूंगफली के दाने, काजू और बादाम
n कुछ बीज जैसे - कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज, चिया सीड्स

जिंक सप्लिमेंट
अगर नहीं पता कि किसी के शरीर में जिंक की कमी है या नहीं, तब भी जिंक सप्लिमेंट लिए जा सकते हैं। यह टॉक्सिक नहीं होता। इसलिए इसे लेना सुरक्षित होता है। रिसर्च में देखा गया है कि इम्यूनिटी बढ़ाने की अपनी क्षमता की वजह से जिंक कोरोना के वक्त में बहुत फायदा पहुंचा रहा है। यह जल्दी ठीक होने में मदद करता है। आमतौर पर मल्टिविटामिन की गोलियां भी दी जाती हैं। इसमें जिंक भरपूर होता है। रोजाना 10 mg की जिंक की गोली ली जा सकती है। इसे एक महीने से लेकर तीन महीने तक ले सकते हैं। इतना जिंक लेना पर्याप्त हैं।
कोरोना के अलावा जब ऐसे लक्षण हो तो समझें जिंक की कमी हो सकती है। तब भी खाने में जिंक वाली चीजें बढ़ा लें।

वजन घटना

- गंध और स्वाद का गायब होना या कम होना
- जख्म धीरे भरना
- बार-बार दस्त होना
- भूख कम लगना
-एक्जिमा या मुंहासे
- बाल झड़ना

(नोट: इन समस्याओं के कारण दूसरे भी हो सकता है।)


सात रंग का खाना खाएं
इस वक्त डाइट और स्वाद दोनों का ख्याल रखें। यह जरूरी नहीं है कि हेल्दी खाना बेस्वाद हो। लेकिन जिन चीजों को काढ़े में इस्तेमाल कर रहे हैं, उनको दूसरी चीजों में बार-बार न लें। अगर हल्दी सब्जियों में डाल रहे हैं और साथ में दो बार हल्दी वाला दूध भी ले रहे हैं तो हल्दी को बार-बार काढ़े में न डालें।

रंगारंग खाना
हरा रंग: पत्ते वाली और बाकी हरी सब्जियां लौकी, तौरी, कद्दू, ब्रोकली, साग पालक, पत्ता गोभी, अमरूद आदि। ये सूजन घटाने में मदद करती हैं। इसलिए हरी सब्जियां जरूर खानी चाहिए।
पीला और संतरी रंग: केला, संतरा, नींबू, पपीता, बेल, गाजर आदि।
नीला और बैंगनी रंग: बैंगन, चुकंदर, पत्ता गोभी बैंगनी, बैंगनी रंग के अंगूर, जामुन, फालसे, अनार।
गहरा लाल: शकरकंदी, टमाटर।
सफेद और भूरा: प्याज, मूली, लहसुन, गोभी, शलगम।
ये सभी रंगों की चीजें पोषक तत्वों से युक्त हैं।

नोट : यहां बताई गई सब्जियों और फलों के अलावा इन रंगों की और भी चीजें हैं जो खाई जा सकती हैं।

6 स्वाद चखें
खाने में ये सभी स्वाद शामिल करें:
1. मीठा - केला, शहद, खजूर, गाजर, नारियल, घी, दूध, मुलेठी, फालसा
2. खट्टे - इमली, नीबू, अनार, दही, कांजी
3. नमकीन - अचार, सेंधा नमक, समुद्री नमक, काला नमक
4. चरपरा - लहसुन, प्याज, मूली, अदरक, सोंठ, हींग, पिप्पली
5.कड़वा- करेला, नीम, गिलोय, हल्दी,पालक
6. कसैला - कमल ककड़ी, दालें

कोरोना मरीज की रुटीन
कोरोना को झेल रहे और इससे उबर रहे लोग वाकई सलाम के हकदार हैं। जिन लोगों में कोरोना ने अपना इंफेक्शन फैलाया है, उनमें न सिर्फ कमजोरी पैदा होती है बल्कि उन्हें मानसिक रूप से भी बुरी तरह थका देता है। इसलिए जब तक कोरोना की वजह से बुखार हो या फिर बुखार ठीक हो जाए लेकिन कमजोरी ज्यादा हो तो अपना खानपान दुरुस्त रखना बहुत ज्यादा जरूरी है।
- सुबह 7 से 8 घंटे की नींद के बाद 6 बजे तक उठना

सुबह 6 से 7 के बीच
- एक गिलास गुनगुने पानी में आधे नीबू का रस निकालकर पिएं, अगर किसी शुगर या बीपी की परेशानी है तो चीनी या नमक से दूरी बनाकर रही रखें, इससे शरीर डिटॉक्स होगा। यहां इस बात का ध्यान रखें कि शरीर में पानी की मात्रा किसी भी हाल में कम न हो। इसलिए हर दिन 7 से 8 गिलास पानी जरूर पिएं। यह पानी सामान्य या गुनगुना हो सकता है। अगर कोई चाहे तो 2 लीटर पानी में 1 नीबू काटकर डाल सकता है फिर उसी पानी को दिनभर पीते रहो। इससे पानी की कमी नहीं होगी और विटामिन-सी भी मिलता रहेगा।
या
- हर्बल टी (एक टुकड़ा कुचला हुआ अदरक, 2 से 3 तुलसी के पत्ते बारीक तोड़े हुए और 1 चम्मच शहद के साथ)। इसके साथ ही हर दिन 1 अखरोट। जिंक के लिए अखरोट बहुत ही अच्छा जरिया है।
- आधे घंटे तक हल्की-फुल्की कसरत जैसे कमरे या बालकनी या छत पर तेज रफ्तार से टहलना, हाथ-पैरों को मोड़ना आदि।

सुबह 8 से 9 के बीच (ब्रेकफस्ट)
इसमें कई तरह के ऑप्शन हैं।
1. 1 गिलास इलायची मिल्क या 1 गिलास लस्सी और 1 कटोरी दलिया
2. बेसन का चीला के साथ धनिया पत्ते की हरी चटनी
3. 1 या 2 अंडे का एग रॉल और टमाटर की चटनी (टमाटर विटामिन-सी का भी अच्छा सोर्स है।)
4. आटे वाली ब्रेड और दूध। इसके बाद 2 घंटे तक आराम करना।

सुबह 11 से 12 के बीच

- ग्रीन टी या मॉर्निंग टी या 1 गिलास नीबू पानी या काढ़ा पीना
- 1 मौसमी फल जैसे: अन्ननास, कीवी, संतरा जैसे फल खाना
और हर दिन 1 आंवला, 4 से 5 खजूर, 1 चम्मच च्यवनप्राश आदि इम्यूनिटी बढ़ाने वाली चीजें जरूर खाएं।

दोपहर 1 से 2 बजे के बीच (लंच)
- लंच से पहले एक बार स्टीम जरूर कर लें।
- वेज पुलाव या बिरयानी
या
- खिचड़ी (इसमें चावल, दाल के अलावा पालक, लौकी, टमाटर भी हो, मिर्च का इस्तेमाल न करें तो बेहतर)
या
- 1 से 2 रोटी, 1 कटोरी चना दाल या मूंग दाल और 1 कटोरी मौसमी हरी सब्जी जिसमें तेल और मसाले का इस्तेमाल कम किया गया हो।
- और 1 प्लेट सलाद (गाजर, खीरा, टमाटर, नीबू) अगर नमक की जरूरत महसूस हो तभी लें। नहीं तो बिना नमक के भी सलाद खा सकते हैं।

शाम 4 से 5 बजे के बीच (स्नैक्स)

n लस्सी या छाछ या चना सत्तू ड्रिंक (नमकीन या मीठा)
n 1 कटोरी रोस्टेड मखाने n पोहा n कोई मौसमी फल या केला

रात 7 से 8 बजे के बीच (डिनर)
- पालक या वेज या टमाटर का सूप
- 1 कटोरी चावल या 1 से 2 रोटी या 1 उपमा या 2 इडली
- 1 कटोरी दाल n 8:30 बजे भाप लेना

रात 9 से 10 बजे के बीच
- 1 गिलास गुनगुने दूध में 1 छोटा चम्मच हल्दी डालकर पिएं।
- जिन लोगों को दूध हजम करने में परेशानी हो, वे अजवायन के आधा चम्मच दाने पानी में उबालें और उस पानी को गुनगुना ही पी लें।
- रात 10 बजे नमक मिले हुए गुनगुने पानी से गरारे करने के बाद सो जाएं।

शुगर और बीपी पेशंट के लिए हिदायतें
ऐसे लोग जिन्हें शुगर और बीपी की परेशानी है] उनके लिए कोरोना के बाद स्थिति कुछ ज्यादा ही चुनौतीपूर्ण हो जाती है। लेकिन थोड़ी सावधानी और सब्र के साथ इसका मुकाबला करना आसान हो सकता है। कोरोना में भूख कम लगने की परेशानी होती है। खाने में रुचि कम होने की शिकायत आम है। ऐेसे में यह जरूरी है कि खाने में मरीज की पहले दिलचस्पी पैदा हो। इसलिए जरूरी है...
- कम मात्रा में ही सही उसकी पसंदीदा चीज बने
- आसानी से पचने वाली चीजें ही खाने के लिए दें
- रोटी या चपाती वाली चीजों से दूरी बना सकते हैं। इसकी जगह चावल या खिचड़ी आदि दे सकते हैं।
- ध्यान रखें कि पेट खाली नहीं रखना है। इससे शुगर कम या बहुत ज्यादा हो सकती है।

किडनी मरीजों के लिए सावधानी

कोरोना होने के बाद शरीर के बेहतर काम करने के लिए यह जरूरी है कि लिक्विड की कमी न हो। इसका मतलब कई लोग यह लगा लेते हैं कि तय से ज्यादा पानी पीना। मसलन, एक आम इंसान को एक दिन में 7 से 8 गिलास पानी चाहिए तो वह 12 से 14 गिलास पानी पीने लगता है। यह पूरी तरह गलत है। पानी ज्यादा नहीं पीना है, लेकिन पानी या लिक्विड की मात्रा को कम भी नहीं करना। यही स्थिति कमोबेश किडनी मरीजों के लिए होती है। ऐसे मरीज जो डायलिसिस पर हैं या फिर बिना डायलिसिस वाले, जिन्हें उनके डॉक्टर ने हर दिन की लिक्विड की मात्रा तय कर दी है। इससे न कम लिक्विड लेना है और न ज्यादा।

एक्सपर्ट पैनल

-डॉ. कैलाशनाथ सिंगला, सीनियर कंसल्टेंट गैस्ट्रोएंटेरॉलजिस्ट
-डॉ. आर.पी. पाराशर, राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंटिग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन
-डॉ. शिखा शर्मा, सीनियर न्यूट्री-डायट एक्सपर्ट
-नीलांजना सिंह, जानी-मानी डाइटिशन
-ईशी खोसला, जानी-मानी डाइटिशन
-डॉ. प्रीति नंदा सिब्बल, कीटो डाइट एक्सपर्ट
-आलोक कुमार, जाने-माने आयुर्वेदाचार्य
-डॉ. विवेक दीक्षित, सीनियर साइंटिस्ट, ऑर्थोपीडिक डिपार्टमेंट, AIIMS
-डॉ. प्रशांत जैन, जाने-माने यूरॉलजिस्ट

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

कोरोना के बाद की परेशानियां

$
0
0

कोरोना होने और लक्षण उभरने के लगभग 10 दिनों तक शरीर जंग का मैदान बना होता है। बुखार आना इसी का सबूत है। इस लड़ाई में जब हम विजेता बनकर उभरते हैं तो कुछ जख्म कुछ दिनों से लेकर कई हफ्तों तक हमें थोड़ा-बहुत परेशान करते रहते हैं। ऐसी ही एक परेशानी है कमजोरी और थकावट। अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो कमजोरी की सीनाजोरी को भी हम कुछ दिनों में ही कम कर सकते हैं। एक्सपर्ट्स से बात करके इस बारे में जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

4 सबसे जरूरी बातें...
  • कमजोरी जब लंबे वक्त तक रहती है तो लोग परेशान हो जाते हैं। फौरन ही इसे दूर करना चाहते हैं। ऐसे में एक साथ और जल्दी से ढेर सारा खाना खाने लगते हैं। ड्राई फ्रूटस की मात्रा भी बढ़ा देते हैं। यह सही नहीं है। खाने की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाएं। आसानी से पचनेवाला खाना ही खाएं। ज्यादा ड्राई फ्रूट्स इस मौसम में गर्मी पैदा कर सकते हैं।
  • अगर किडनी से जुड़ी कोई परेशानी है तो पानी की मात्रा उतनी ही रखें, जितनी डॉक्टर ने पहले तय की थी। इसे ज्यादा न बढ़ाएं।
  • अगर किडनी से जुड़ी कोई परेशानी है तो पानी की मात्रा उतनी ही रखें, जितनी डॉक्टर ने पहले तय की थी। इसे ज्यादा न बढ़ाएं।
  • स्टेरॉइड लेने की वजह से ऐसे लोगों की भी शुगर लेवल बढ़ सकती है, जिन्हें शुगर की परेशानी नहीं थी। जब स्टेरॉइड और पोस्ट कोविड लक्षण कम होते हैं तो शुगर भी नॉर्मल हो जाती है। हां, शुगर पर लगातार नजर रखी जाए। आइसोलेशन से बाहर आने के बाद 7 से 10 दिनों तक ग्लूकोमीटर से सुबह फास्टिंग और पीपी लेवल जरूर देखें। खानपान भी ऐसा रखें जिससे शुगर का स्तर नहीं बढ़े। मिठाई न लें, ज्यादा कार्बोहाइड्रेट्स (चावल, रोटी आदि) से दूरी, तेल और घी कम लेना, चाय में चीनी नहीं लेना आदि।
शरीर में कमजोरी की वैसे तो कई वजहें हो सकती हैं। अगर कोई शख्स उपवास करता है तो उसे कमजोरी हो सकती है‌। अगर गर्मियों में पानी कम लें तब भी डिहाइड्रेशन की वजह से कमजोरी हो जाती है। कई दूसरी बीमारियों की वजह से जब खून की कमी होती है तो कमजोरी महसूस होती है। सामान्य बुखार होने पर भी कमजोरी हो जाती है। यहां तक कि ज्यादा मेहनत करने के बाद अगर हरारत की वजह से 99 फारेनहाइट तक बुखार हो जाए तो कमजोरी लगती है। अभी हम जिस कमजोरी की बात कर रहे हैं, वह कोरोना को मात देने के बाद की है। न इससे डरने की जरूरत है और न घबराने की। जहां तक इन लक्षणों की बात है तो इन्हें सही तरीके से मैनेज करना है। वैसे तो कोरोना से उबरे ज्यादातर लोगों के लक्षण 5 से 10 दिनों में ही चले जाते हैं। लेकिन चंद लोगों में ऐसे लक्षण रह सकते हैं:

1. भूख में कमी 2. सिर और मांसपेशियों में दर्द
3. नींद न आना और बेचैनी या घबराहट 4. हल्का बुखार रहना 5. कमजोरी


1.भूख में कमी
कोरोना के दौरान बुखार होने पर ज्यादातर लोगों को पैरासिटामॉल और कुछ ऐंटिबायोटिक दवाई लेनी ही पड़ती है जो अमूमन 5 दिन तक चलती है। बुखार कम न हो रहा हो तो कुछ लोगों को बाद में स्टेरॉइड्स भी देने पड़ते हैं। यह समझें कि अगर ऐलोपैथिक दवाओं के इफेक्ट्स की वजह से हम ठीक होते हैं तो इनके साइड इफेक्ट्स भी होते ही हैं। कई दिनों का बुखार, लगातार दवाई आदि का सेवन और कोरोना वायरस से शरीर की लड़ाई। ये सभी मिलकर हमारे बायलॉजिकल क्लॉक के साथ-साथ भूख पर भी असर डालते हैं। इनका असर लिवर और हमारी आंतों पर भी होता है। सीधे कहें तो पूरी पाचन क्रिया पर कुछ दिनों के लिए बुरा असर पड़ता है। नतीजा यह होता है कि हमें भूख नहीं लगती। अच्छी बात यह है कि भूख न लगने का यह दौर अमूमन 5 से 7 दिनों का ही होता है।

ऐसे में क्या करें
कोविड के बाद के लक्षणों में कमजोरी बहुत ज्यादा है और भूख नहीं लग रही है तो डॉक्टर से पूछकर भूख लगने वाली एंजाइमयुक्त दवाओं का सेवन कर सकते हैं। एक बार भूख लगने वाली प्रक्रिया शुरू हो जाएगी तो लगातार खाना खाएंगे, जिससे कमजोरी दूर हो जाएगी। दरअसल, हमारी भूख को नियंत्रित करने का जिम्मा दिमाग में मौजूद हाइपोथेलेमस पर है और इसे कुछ चीजें अच्छी लगती हैं। बस इसका ध्यान रखना है।

क्या खाएं
  • मन को जो भाए, वह खाएं। ध्यान सिर्फ यह रखना है कि वह सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला न हो। बाजार से खरीदी गई तैयार खाने की चीजों से परहेज करें। जैसे- पैक्ड नमकीन, मिठाई आदि।
  • ज्यादा तेल-मसाले वाली चीजें न खाएं।
  • फ्रिज के पानी से दूरी बनाकर रखें।
  • गर्मी का समय है। ऐसे में 1 गिलास बेल का शरबत ले सकते हैं। यह पेट के लिए अच्छा है और भूख भी जगाता है।
  • शिकंजी पीना अच्छा लगता हो तो सामान्य पानी या मटके के पानी में बनाकर पिएं।
  • अजवाइन का सेवन करें। चाहे तो एक चम्मच अजवाइन को एक चुटकी काला नमक के साथ मुंह में रखें और मुंह में बनने वाले रस को धीरे-धीरे चूसते रहें। इसे दिनभर में 2 से 3 बार करें या फिर एक चम्मच अजवाइन और एक चुटकी नमक फांक लें और एक गिलास गुनगुने पानी से निगल जाएं। इसे दिनभर में 1 बार करें। यह हमारे शरीर में पाचन वाले एंजाइम को निकालने में भी मददगार है।
  • पपीते और धनिये का सेवन जरूर करें। हर दिन एक प्लेट पपीता लें और धनिया सलाद या चटनी के रूप में खाएं। इससे भी भूख जगती है।
  • अगर खांसी न हो तो उस दही का सेवन कर सकते हैं जो खट्टा न हो। खट्टा होने से खांसी बढ़ने का खतरा रहता है।
2.सिर और मांसपेशियों में दर्द
इससे घबराने की जरूरत नहीं। ज्यादा से ज्यादा 1 महीने में यह खत्म हो जाता है। यह परेशानी शरीर में विटामिन और मिनरल की कमी से होती है। खासकर विटामिन-डी और कैल्शियम कम हो जाता है। हर दिन एक्सरसाइज, योग करें और हेल्दी फूड की आदत डालें। कैल्शियम और विटामिन-डी के लिए धूप (सुबह 8 से 12 के बीच 30 से 35 मिनट के लिए बैठें) और डॉक्टर की सलाह से सप्लिमेंट्स जरूर लें।

3.नींद न आना और बेचैनी
ऐसी परेशानी ठीक होने के बाद 2 से 3 महीने तक रह सकती है। कोरोना के असर से कुछ लोगों की पूरी बायलॉजिकल क्लॉक प्रभावित हो सकती है। इसका मतलब है कि उनके सोने, जागने, खाने-पीने का रुटीन डिस्टर्ब हो जाता है। वे रात में जागने और दिन में सोने लगते हैं। देर रात भूख लगने लगती है। इसके लिए रात में सोने से पहले गुनगुने पानी में पैरों को 10 मिनट के लिए रखें। इससे फायदा होगा।

4. बाद में भी बुखार आना
पिछले साल जब कोरोना आया था तो ठीक होने के बाद भी बुखार के मामले कम ही आते थे। लेकिन इस बार ऐसे मामले आ रहे हैं। चूंकि इस बार गंभीर लक्षण वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ी है और नए स्ट्रेन से लड़ना चुनौतीपूर्ण भी साबित हो रहा है। ऐसे में डॉक्टर की सलाह जरूर लें। अगर वह टेस्ट कराने के लिए कहते हैं तो कराएं ताकि बुखार आने की वजह पता लगाया जा सके। वैसे कोरोना से उबरने के बाद अगर 15 दिन से 35 दिन तक बुखार आ रहा है तो परेशान होने की जरूरत नहीं है, इलाज जरूर कराएं। कई बार CRP और डी-डाइमर टेस्ट में रिपोर्ट सामान्य होने के बाद भी सूजन मौजूद हो सकती है। इस वजह से भी बुखार आ सकता है।

5. कमजोरी
कोविड से उबरने के बाद जो लक्षण सबसे ज्यादा और लंबे समय तक देखेा जाता है, वह है कमजोरी। इसकी बड़ी वजह खून और प्लेटलेट्स की कमी हो सकती है। इस कमजोरी की शुरुआत बुखार आने के साथ ही शुरू हो जाती है। फिर जैसे-जैसे दिन गुजरते हैं, कमजोरी भी बढ़ती जाती है। कमजोरी तब बहुत बढ़ जाती है जब ऑक्सिजन सैचुरेशन कम हो गया हो और साथ में दवा की हेवी डोज भी चली हो। कोरोना ठीक होने के बाद कमजोरी कितनी होगी और कब तक चलेगी, यह कई बातों पर निर्भर करता है:

60 से 80 फीसदी कमजोरी दूर होने में 5 दिन से लेकर 3 महीने का समय लग सकता है आइसोलेशन खत्म होने के बाद

5 से 10 दिनों में कमजोरी कंट्रोल, अगर...
  • कोरोना इंफेक्शन आने से पहले अगर शुगर और बीपी कंट्रोल में था या ये परेशानियां थीं ही नहीं।
  • अगर परेशानी थी भी तो शुगर और बीपी में कोई खास बदलाव न आया हो।
  • कोरोना के लक्षण या तो बहुत ही कम थे या हल्के थे।
  • अगर बुखार आया भी तो 99 फारेनहाइट तक गया और 3 से 5 दिनों में सिर्फ पैरासिटामॉल की मदद से ठीक हो गया। ऐंटिबायोटिक, स्टेराइड लेने की जरूरत ही नहीं पड़ी।
  • भूख लगती रही हो और खाना-पीना भी सामान्य ही रहा।
  • मरीज ने हर दिन 2 से ढाई लीटर पानी जरूर पिया हो।
  • मरीज पहले से योग, डीप ब्रीदिंग और एक्सरसाइज करता रहा हो और वह आइसोलेशन के दौरान भी ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ हो।
  • आइसोलेशन के दौरान और उसके बाद 7 से 8 घंटे की नींद पूरी करता हो।
  • ऑक्सिजन का स्तर हमेशा 95 से 99 के बीच रहा हो।
  • मरीज को उल्टी और दस्त की परेशानी नहीं हुई हो।
  • मरीज कोरोना के भय से तनाव में न रहा हो। वह इसे सामान्य इंफेक्शन ही समझता हो।
ऐसे लोग क्या खाएं
  • मरीज हर दिन 1 मौसमी फल का सेवन करे। जूस पीने से ज्यादा अच्छा है फल खाना क्योंकि इससे शरीर में रेशे (फाइबर) भी पहुंचते हैं जो पेट और पाचन के लिए अच्छा है। जैसे- 1 प्लेट पपीता और 1 सेब आदि।
  • अगर शुगर की परेशानी नहीं है तो 1 नारियल पानी और अगर शुगर की परेशानी है लेकिन काबू में है तो आधा नारियल पानी एक दिन के अंतराल पर पी सकते हैं।
  • खाना-पीना घर का ही लें। हर दिन 1 कटोरी हरी व पत्तेदार सब्जियां जैसे - भिंडी, तौरी, घीया, टमाटर, ड्रमस्टिक्स आदि और 50 ग्राम प्रोटीन की सब्जी। साथ में 1 कटोरी दाल जरूर खाएं।
  • अगर नॉनवेज खाते हैं तो दिन में 1 से 2 उबले अंडे का सफेद भाग। हफ्ते में 2 दिन मछली या चिकन, कम तेल में पकाकर खा सकते हैं। शरीर में पानी की मात्रा को सही बनाकर रखें। हर दिन 2 से ढाई लीटर पानी पिएं। अगर सिर्फ पानी पीने की इच्छा नहीं है तो शिकंजी या सत्तू ड्रिंक पिएं।
  • हर दिन 2 खजूर और 1 अखरोट भी जरूर खाएं। खजूर खून की कमी को दूर करता है और अखरोट जिंक का अच्छा सोर्स है।
  • रात में एक गिलास गुनगुने दूध में 2 चुटकी हल्दी मिलाकर पिएं।
  • डॉक्टर द्वारा बताए हुए सप्लिमेंट्स का सेवन भी करते रहें।
11 से 20 दिनों में कमजोरी कंट्रोल, अगर...
  • आइसोलेशन के दौरान मरीज की शुगर और बीपी की परेशानी थोड़ी-सी बढ़ी हो यानी 14 से 15 दिनों के दौरान शुगर का स्तर 4 से 5 दिनों तक 200 के करीब और बीपी का स्तर 150/90 के करीब रहा हो।
  • शुगर और बीपी की परेशानी नहीं है तो शुरुआती 11 से 15 दिनों में भी फायदा हो सकता है।
  • ऑक्सिजन का स्तर हमेशा 94 से ऊपर ही रहा हो।
  • बुखार 5 से 7 दिनों में खत्म हो गया हो। इसमें शुरुआती 3 दिनों में बुखार 101 तक गया हो, लेकिन अगले 3 से 4 दिनों में यह 99 से ऊपर नहीं रहा हो।
  • दवा के रूप में पैरासिटामॉल और कुछ ऐंटिबायोटिक चली हो। स्टेरॉइड देने की जरूरत न पड़ी हो।
  • खाने-पीने का रुटीन ज्यादा से ज्यादा 2 से 3 दिनों तक डिस्टर्ब हुआ हो जब तक हाई फीवर आता हो।
  • मरीज को उल्टी और दस्त की परेशानी नहीं हुई हो।
  • आइसोलेशन के दौरान या तो टेस्ट और स्मेल न गया हो या फिर आइसोलेशन खत्म होते-होते सही हो गया हो और भूख लगने की प्रक्रिया भी सामान्य हो गई हो।
  • 6 मिनट का वॉक टेस्ट करने पर कोई खास परेशान न हुई हो। वॉक टेस्ट में 6 मिनट तक सामान्य तरीके से टहलना होता हो।
ऐसे लोग क्या खाएं
  • घर का बना हुआ आसानी से पचने वाला खाना खाएं। दिन में 2 से 3 रोटी या 1 से 2 कटोरी चावल+2 कटोरी दाल+1 कटोरी मौसमी सब्जी+दिन और रात के खाने में आधी कटोरी पनीर या सोयाबीन की सब्जी आदि।
  • शरीर में पानी की कमी न होने दें। हर दिन 2 से ढाई लीटर पानी जरूर पिएं।
  • अगर नॉनवेज खाते हैं तो दिन में 1 उबले अंडे का सफेद भाग। हफ्ते में 1 दिन मछली या चिकन, कम तेल और मसाले में पकाकर खा सकते हैं। फिर कमजोरी दूर होने के बाद इसे बढ़ाकर 2 अंडे तक कर सकते हैं।
  • अगर शुगर की परेशानी है तो नारियल पानी न पिएं। चूंकि नारियल पानी एक तरह का ग्लूकोज वाॅटर है जिससे शुगर ज्यादा बढ़ सकता है।
  • पहले वाली मात्रा की सभी चीजें खाएं।
ध्यान दें:
  • ऊपर की दोनों स्थिति वाले लोग स्प्राउट्स लें और चने के सत्तू का ड्रिंक जरूर पिएं।
  • ब्रेकफस्ट के बाद और लंच से पहले एक कटोरी स्प्राउट्स जरूर खाएं।
21 दिन से 40 दिनों में कमजोरी कंट्रोल, अगर...
  • शुगर और बीपी कंट्रोल करने में परेशानी हुई हो और ये 7 से 10 दिनों तक डिस्टर्ब रहा हो।
  • ऑक्सिजन का स्तर गिरते हुए 85 से 90 के बीच तक आ गया हो।
  • सांस फूलने की परेशानी लगातार बनी हो।
  • प्रोनिंग में लेटने के बाद भी ऑक्सिजन का स्तर किसी तरह 91 से 94 तक पहुंचता हो। फिर सामान्य होने पर घट जाता हो।
  • 6 मिनट वॉक टेस्ट करने में परेशानी हो रही हो।
  • बाथरूम जाने पर भी ऑक्सिजन के स्तर में 3 से 4 पॉइंट की गिरावट दर्ज हो।
  • घर पर 24 घंटे ऑक्सिजन की उपलब्धता न हुई हो।
  • भूख में भारी कमी हो गई हो।
  • लूज मोशन की परेशानी 3 से 4 दिन तक रही हो।
  • बुखार 8 से 12 या 13 दिन तक रहा हो।
  • दवाओं में पैरासिटामॉल, ऐंटिबायोटिक और स्टेरॉइड की हेवी डोज चली हो।
ऐसे लोग क्या खाएं
  • कोरोना की वजह से परेशानी बढ़ जाती है तो कमजोरी भी बढ़ जाती है। ऐसे लोगों को आइसोलेशन खत्म होने के बाद बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होती है। कुछ लक्षण जैसे खांसी की वजह से सांस फूलना, भले ही ऑक्सिजन स्तर सामान्य हो गया हो। खाने में स्वाद नहीं आना जैसी समस्या अगले 1 से डेढ़ महीने तक चल सकती है।
  • जिन्हें गंभीर इंफेक्शन रहा हो, अमूमन उनका पाचन तंत्र भी कमजोर हो जाता है। ऐसे लोग अपने डॉक्टर की सलाह से डाइट निर्धारित करें। गर्म तासीर वाली चीजें कम खाएं। फ्रिज में ठंडी की हुई चीजों से भी परहेज करें।
  • सुपाच्य खाना है। जैसे- खिचड़ी, पोहा आदि। इन्हें पकाने के दौरान ही इनमें हरी सब्जियां आदि डाल दें।
  • पहले वाले मात्रा की सभी चीजें खाएं।
41 दिन से 90 दिनों में कमजोरी कम होगी...
  • मरीज 10 दिनों तक वेंटिलेटर पर रहा हो। इन्हें अति गंभीर कहते हैं।
  • उसका ऑक्सिजन का स्तर गिरते हुए 50 से 60 तक पहुंच गया हो।
  • उसे अस्पताल में 20 दिनों से ज्यादा समय तक रहना पड़ा हो।
  • अस्पताल में रहने के दौरान उसे 15 दिनों से ज्यादा समय तक ऑक्सिजन की सप्लाई की गई हो।
  • जहां तक दवा की बात है तो ऐसे मरीज को हाई डोज ही दी जाती है। स्टेरॉइड समेत ऐंटिबायोटिक भी लंबा चलाया जाता है।
  • कुछ मरीजों को प्लेट्लेट्स भी चढ़ानी पड़ती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जिन्हें प्लेटलेट्स चढ़ाई गई हो वे अति गंभीर की श्रेणी वाले ही हों। हां, गंभीर कहा जा सकता है।
  • लूज मोशन 5 दिन या इससे ज्यादा समय तक।
क्या खाएं:
  • जब ऐसे मरीज अस्पताल से बाहर आते हैं तो उन्हें खानपान और तमाम चीजें डॉक्टर से पूछकर ही देनी चाहिए।
  • 1 मौसमी फल का सेवन जरूर करना चाहिए।
  • सुपाच्य भोजन ही करना चाहिए। खिचड़ी में ही हरी सब्जियां मिलाकर खानी चाहिए।
नोट: यहां कमजोरी दूर होने की अनुमानित अवधि बताई गई है। इससे कम या ज्यादा समय भी लग सकता है। यहां दी गई जानकारी के आधार पर बीमारी या टेस्ट कराने के बारे में कोई फैसला न करें। डॉक्टर से सलाह जरूर करें। टेस्ट की कीमतों में कमी-बेसी मुमकिन है।

ब्लैक फंगस से डरने की नहीं, ध्यान रखने की जरूरत
अभी कोरोना से पूरी तरह उबरे नहीं हैं कि मरीजों को ब्लैक फंगस जिसका वैज्ञानिक नाम म्यूकोरमाइकोसिस है, ने डराना शुरू कर दिया है। क्या इससे डरने की जरूरत है? सच तो यह है कि इससे डरने की जरूरत तो बिलुकल भी नहीं है। अभी इसके मरीजों की संख्या काफी कम है। फिर भी सचेत रहने की जरूरत है।

किन लोगों को ज्यादा खतरा
  • शुगर के पुराने मरीज जिनका शुगर लेवल काबू में नहीं है।
  • कैंसर के मरीज।
  • कोरोना में इलाज के दौरान जिन्हें लगातार 5 दिनों से ज्यादा ऑक्सिजन की हेवी सप्लाई रही हो और वह वेंटिलेशन पर भी रहे हों।
  • ऐसे मरीज जिन्हें हैवी डोज वाले स्टेरॉइड दिए गए हों।
  • साइनस की गंभीर समस्या हो।
  • दरअसल, इन सभी परिस्थितियों में मरीज का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर हो जाता है और साइनस में जमा कफ में ब्लैक फंगस को पनपने का मौका भी मिल जाता है। इसलिए इसके लक्षणों पर जरूर ध्यान दें।
क्या हैं लक्षण
  • आंखों और आंखों के नीचे की हड्डियों में दर्द
  • धुंधला दिखना
  • जबड़ों में दर्द
  • बलगम के साथ खून आए
  • कुछ मरीजों में बुखार भी
  • दांतों में दर्द
नोट: ये लक्षण किसी दूसरी बीमारी के भी हो सकते हैं। डॉक्टर से बात करने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचें।

कैसे बचें
  • अपनेआप मेडिकल शॉप वाले से पूछकर स्टेरॉइड या दूसरी दवाएं न खाएं। इसके लिए डॉक्टरी सलाह लें। डॉक्टर जितने दिन दवाई खाने के लिए कहे, उतने दिन ही खाएं।
  • अस्पताल से आने के बाद हर दिन 2 से 3 बार स्टीम लें। इस सिलसिला को अगले 15 से 20 दिन तक जरूर जारी रखें।
  • अगर अचानक आंखों में दर्द और धुंधलापन दिखे तो फौरन ही डॉक्टर से बात करें।
  • अगर ब्लैक फंगस के इंफेक्शन का इलाज फौरन शुरू हो जाए तो इसे दूर किया जा सकता है। हां, इलाज में देरी होने पर परेशानी बढ़ सकती है।
  • अगर घर पर ही मरीज को ऑक्सिजन की सप्लाई हो रही है तो खासकर ऑक्सिजन कंसंट्रेटर में फिल्टर्ड वॉटर ही डालें। अगर मुमकिन हो तो फिल्टर्ड वॉटर को भी पहले उबाल लें और फिर ठंडा करके कंसंट्रेटर में डालें।
  • एक ऑक्सिजन मास्क का उपयोग एक ही मरीज करे।
  • घर पर रहकर इलाज करा रहे लोगों में ब्लैक फंगस के मामले न के बराबर हैं।
आइसोलेशन के बाद कौन कराए कौन-सा टेस्ट
आइसोलेशन खत्म होने के बाद सभी लोगों को हर टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है:
CBC: शरीर में हीमोग्लोबिन, प्लेटलेट्स, WBC की स्थिति को पता करने के लिए होता है। अगर आइसोलेशन के बाद भी बुखार या खांसी आदि जारी रहे।
खर्च: 300 से 400 रुपये, कैसे: खून से
रिपोर्ट: उसी दिन

CRP: यह शरीर में मौजूद इंफेक्शन को समझने के लिए बेहतरीन टेस्ट है। यह उन लोगों को जरूर कराना चाहिए जिन्हें लगातार खांसी, सिरदर्द आदि की शिकायत रहती है।
खर्च: लगभग 500 रुपये, कैसे: खून से
रिपोर्ट: उसी दिन

D-Dimer: खून में थक्का जमने की स्थिति
खर्च: करीब 1000 रुपये, कैसे: खून से,
रिपोर्ट: उसी दिन

LDH: इस टेस्ट से शरीर में टिशू लॉस के बारे में पता चलता है।
खर्च: 350 रुपये, कैसे: खून से, रिपोर्ट: उसी दिन

नोट: ऊपर के ये 4 टेस्ट हल्के से लेकर गंभीर लक्षण वालों को इंफेक्शन आने के 4 से 7 दिनों के अंदर कराना चाहिए। अगर बुखार 7 दिन के बाद भी रहे तो 12 से 14वें दिन के बीच में भी इन टेस्ट को कराना चाहिए।

Serotonin Test : यह शरीर में बनने वाले ट्यूमर्स के बारे में बताता है।
खर्च: 700 से 1200 रुपये, कैसे: खून से
रिपोर्ट: उसी दिन
KFT: किडनी की स्थिति को समझने के लिए इस टेस्ट को करा सकते हैं। इससे क्रिएटिनिन और यूरिया का स्तर पता चलता है।
खर्च: 300 से 500 रुपये, कैसे: खून से
रिपोर्ट: उसी दिन, कौन कराए: जिन्हें शुगर और बीपी की परेशानी हो। अगर किडनी से जुड़ी परेशानी है तो ये टेस्ट जरूर कराएं।

LFT: लिवर फंक्शन टेस्ट से लिवर को हुए नुकसान के बारे में पता चलता है। चूंकि लिवर ही एक ऐसा अंग है जो बीमार होने पर सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। ऐसे में यह मुमकिन है कि लिवर के काम करने की क्षमता कम हुई हो।
खर्च: 750 रुपये, कैसे: खून से, रिपोर्ट: उसी दिन, कौन कराए: ऐसे लोग जिन्हें बुखार जाने के बाद भी उलटी जैसा मन हो, खाना पचने में परेशानी हो, भूख भी बहुत कम लगती हो।

URINE ROUTINE और CULTURE: यह टेस्ट उन लोगों के लिए जरूरी है जिन्हें पहले से ही यूरिन का इंफेक्शन हो या फिर कोरोना से उबरने के बाद यूरिन आने में दिक्कत हो या यूरिन में स्मेल आती हो। साथ ही अगर आइसोलेशन के बाद भी बुखार हो।
खर्च: 800 से 1200 रुपये, कैसे: यूरिन से, रिपोर्ट: यूरिन रुटीन उसी दिन, कल्चर में 24 से 48 घंटे

IgM for Enteric Fever
यह टेस्ट उन लोगों के लिए जरूरी है जिन्हें खाना पचाने में परेशानी हो। हल्का बुखार आइसोलेशन खत्म होने के बाद भी आता हो। कैसे: खून से, रिपोर्ट: 1 से 2 दिन

  • डॉ. अरविंद लाल एग्जिक्युटिव चेयरमैन, डॉ. लाल पैथ लैब्स
  • डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन मेडिकल, IP यूनिवर्सिटी
  • डॉ. पूनम साहनी, डायरेक्टर-लैब, सरल डायग्नोस्टिक्स
  • डॉ. अंशुल वार्ष्णेय सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
  • नीलांजना सिंह,सीनियर डाइटिशन
  • डॉ. प्रीति नंदा सिब्बल, कीटो डाइट एक्सपर्ट

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

कोरोना के बाद भी जब रहे बुखार

$
0
0

बुखार 1 से 2 दिनों में खुद ही ठीक हो जाए तो इससे बढ़िया कुछ भी नहीं। यह बताता है कि शरीर की इम्यूनिटी सही तरीके से काम कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी अगर कुछ लोगों को बुखार की परेशानी हो तो क्या इसे भी सही मान ले? क्या इसके लिए इलाज कराने की जरूरत नहीं है? कोरोना के बाद होने वाले बुखार का इलाज कब जरूरी हो जाता है। एक्सपर्ट्स से बात कर जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

5 सबसे खास बातें
  1. स्टेरॉइड की हेवी डोज लेने पर बुखार तो कम हो जाता है, साथ ही शरीर की इम्यूनिटी भी कम हो जाती है। इससे कोरोना के साथ-साथ दूसरे इंफेक्शन की वजह से होने वाला बुखार भी दब जाता है।
  2. जब मरीज को स्टेरॉइड देना बंद किया जाता है तो शरीर की इम्यूनिटी फिर से बढ़ जाती है। ऐसे में कोरोना खत्म होने के बाद शरीर में अगर कोई पुराना दूसरा इंफेक्शन हो तो उसके खिलाफ शरीर ऐक्शन लेना शुरू करता है और बुखार हो जाता है।
  3. यह भी मुमकिन है कि कोरोना से ठीक होने के बाद दोबारा बुखार होने की वजह कोई नया बैक्टीरियल, फंगल या किसी दूसरी तरह का इंफेक्शन हो।
  4. जब भी किसी को बुखार दूसरे लक्षणों के साथ आए और 24 घंटे से ज्यादा रह जाए तो चार्ट बनाना शुरू कर दें। दिन में 4 बार शरीर का तापमान नोट करें।
  5. बुखार जब 102 के पार चला जाए और मरीज ने भले ही पैरासिटामॉल की गोली खाली हो तो भी सामान्य तापमान वाले पानी से गीली पट्टी करनी चाहिए। इस पट्टी को सिर, पेट, हाथों और पैरों पर 5 मिनट तक रखना है। इससे शरीर का तापमान 10 मिनट में ही कम होने लगता है।
कोरोना में बुखार आना सबसे सामान्य बात है। यह बुखार कुछ घंटों से लेकर 2 हफ्तों तक भी रह सकता है। कई लोगों में आइसोलेशन के बाद भी हल्के बुखार की शिकायत रही है। वहीं कुछ लोगों में बुखार और दूसरे लक्षणों से उबरने के बाद फिर ये लक्षण आने के मामले भी हैं। जब इस तरह की स्थिति बने तो क्या करें?

कोई बीमारी नहीं, बीमारी का लक्षण है बुखार
बुखार कोई बीमारी नहीं है, लेकिन यह बीमारी का लक्षण जरूर है। बुखार होने की कोई न कोई वजह होती है। बिना वजह बुखार नहीं हो सकता। वजह जितनी बड़ी होगी यानी बीमारी जितनी बड़ी होगी, बुखार की जिद भी वैसी ही होगी। मान लें कि किसी को सामान्य-सा फ्लू है। फ्लू या इन्फ्लूएंजा वायरस का असर आमतौर पर 3 दिनों तक होता है, इसके बाद वह खत्म होने लगता है। इसलिए फ्लू की वजह से आने वाला बुखार भी 3 दिनों तक रहता है, फिर यह खत्म हो जाता है। वहीं बुखार कोरोना की वजह से हुआ है तो यह 9 दिन या इससे भी ज्यादा समय तक रह सकता है। कुछ लोगों में कोरोना का बुखार 9 दिनों से ज्यादा भी रहता है। ऐसे भी कई लोग हैं जिनमें बुखार की परेशानी आइसोलेशन के 17 दिनों के बाद भी रहती है या फिर बुखार ठीक होने के बाद फिर हो जाता है। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल जरूर उठता है कि आखिर यह बुखार क्यों है? मन में यह भी होता है कि कहीं दोबारा कोरोना तो नहीं हो गया? सच तो यह है कि आइसोलेशन के फौरन बाद बारा कोरोना के इंफेक्शन के मामले बहुत ही कम या न के बराबर ही होते हैं।

शरीर का सामान्य तापमान
  • बड़ों मेंः 97-99 फारेनहाइट डिग्री तक
  • बच्चों मेंः 97 से 98.6 फारेनहाइट तक
नोट: जब भी किसी को बुखार हो तो उसके शरीर के तापमान पर लगातार निगाह रखना जरूरी है। इसके लिए चार्ट तैयार कर लें। दिनभर में 4 बार इसे नोट करें। साथ ही यह भी नोट करें कि कब-कब कौन-सी दवा दी गई थी? बुखार किस तरह आ रहा है?

बुखार के बारे में ये बातें भी जान लें...
  • हर शख्स के शरीर का तापमान अलग-अलग हो सकता है।
  • सुबह शरीर का तापमान 99 फारेनहाइट से नीचे रहना चाहिए। अगर इससे ज्यादा है तो फीवर मान सकते हैं। इसी तरह बच्चों का तापमान 98.6 से ऊपर हो तो बुखार मान लें।
  • शाम को शरीर का तापमान 99.5 से नीचे रहना चाहिए। अगर इससे ज्यादा है तो फीवर समझना चाहिए।
  • शरीर का सही तापमान मुंह में थर्मामीटर लगाने पर ही आता है। लेकिन घर में कोरोना मरीज हो तो मुंह से तापमान न लें। इससे मरीजों में नए इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है।
  • 2 साल से कम उम्र के बच्चों के बगल से या फिर स्टूल के रास्ते से तापमान मापा जाता है। स्टूल के रास्ते से तापमान लेने का काम डॉक्टर को
  • ही करने देना चाहिए। इसे घर पर खुद से नहीं करना चाहिए।
  • बच्चों के मुंह में थर्मामीटर लगाकर तापमान इसलिए नहीं लिया जाता क्योंकि थर्मामीटर का अगला हिस्सा जहां पारा होता है, अगर गलती से भी दांतों के नीचे आ जाए तो वह टूट सकता और नुकसान पहुंचा सकता है।
  • बगल में थर्मामीटर लगाकर तापमान लेने पर
  • उसमें 0.5 से 1 फारेनहाइट तक जोड़कर ही देखना चाहिए।
  • अगर बगल में पसीना हो तो पहले उसे पोछ लें। इसके बाद ही थर्मामीटर लगाएं। पसीने की वजह से तापमान की रीडिंग कम हो सकती है।
  • डिजिटल थर्मामीटर को बेहतर माना जाता है। इसमें रीडिंग को समझना आसान होता है, लेकिन सटीक नतीजा पारे वाला ही देता है।
  • डिजिटल थर्मामीटर को लगाने के बाद जब वह रीडिंग ले लेता है तो एक खास तरह का आवाज निकालता है। वैसे किसी भी तरह का थर्मामीटर हो 2 मिनट तक लगाने से रीडिंग आ जाती है।
कोरोना से ठीक होने के बाद क्यों होता है दोबारा बुखार
  1. इंफेक्शन से बचने लिए दी गई स्टेरॉइड की हेवी डोज
  2. बैक्टीरियल (टाइफाइड) इंफेक्शन, प्रोटोज़ोअल (मलेरिया) इंफेक्शन, फंगल या फिर दूसरे वायरल इंफेक्शन
  3. किडनी या लिवर में इंफेक्शन
1. फिर से इंफेक्शन का उभरना
कोरोना इंफेक्शन की शुरुआत में खराश, मांसपेशियों में दर्द और फिर बुखार या फिर पहले दिन से ही बुखार हो जाए। ज्यादातर लोगों में यह बुखार चंद घंटों से लेकर 5 से 7 दिनों तक चलता है, लेकिन 15 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनमें यह बुखार 8 से 14 दिनों तक भी चला जाता है। ऐसे लोगों को पैरासिटामॉल, ऐंटिबायोटिक और स्टेरॉइड की हेवी डोज देनी पड़ती है। इससे शरीर की इम्यूनिटी दब जाती है। स्टेरॉइड की वजह से बुखार कुछ समय के लिए भले ही कम हो जाए, लेकिन वायरस के अलावा दूसरे इंफेक्शन शरीर में बने ही रहते हैं। हां, शरीर उसके खिलाफ बुखार नहीं ला पाता। आइसोलेशन के दौरान ऐंटिबायोटिक देने का मकसद भी यही होता है कि दूसरे इंफेक्शन न उभरें। इसका यह कतई मतलब नहीं कि ऐंटिबायोटिक देने से सभी इंफेक्शन खत्म हो जाते है। ऐसे मरीजों में जब स्टेरॉइड बंद किया जाता है तो पुराने या फिर नए इंफेक्शन उभरने से फिर से बुखार हो जाता है। तापमान अगर 99 तक है तो ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं। जब शरीर कोरोना जैसे इंफेक्शन को हराता है तो अंदर कई तरह की छोटी-बड़ी सूजन हो जाती है। जब CRP टेस्ट कराते हैं तो इसके बारे में पता चलता है, लेकिन हर छोटी सूजन की जानकारी नहीं मिल पाती। सीआरपी टेस्ट सामान्य होने पर भी बुखार रह सकता है।

आइसोलेशन के बाद कितने दिनों तक बुखार हो तो परेशान नहीं होना...
  • बुखार अगर 99 या इससे नीचे रहे तो 15 से 30 दिनों तक परेशान नहीं होना। अगर बुखार 3 से 4 दिनों में 101 तक जाए और फिर सामान्य हो जाए तो भी ज्यादा परेशान नहीं होना। लेकिन डॉक्टर को इस बात की जानकारी दे देनी चाहिए।
  • अगर बुखार 3 दिनों तक 100 से ऊपर रहे तो इसे गंभीरता से लें।-बुखार के साथ आने वाले दूसरे लक्षणों पर भी ध्यान देना जरूरी है। जैसे अगर ठंड लगकर बुखार आ रहा है तो यह मलेरिया की निशानी हो सकती है।
  • कुछ लोगों को 99 डिग्री फारेनहाइट पर भी फीवर जैसा महसूस हो सकता है, जिसे हम हरारत (सुस्ती) यानी फीवर नहीं, लेकिन फीवर जैसा कह सकते हैं। यह बारिश आदि में भीगने पर होती है। इसके लिए इलाज की नहीं, आराम की जरूरत होती है।
2. बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से
यह नया इंफेक्शन होता है। टाइफाइड के जीवाणु हों या न्यूमोनिया के। ये हमारे शरीर में अमूमन मौजूद ही होते हैं। जैसे ही हमारा शरीर कमजोर होता है, ये फौरन ही ऐक्टिव हो जाते हैं और शरीर को बीमार करने लगते हैं। शरीर उनकी पहचान कर उन्हें मारना चाहता है। इसका नतीजा होता है शरीर के तापमान का बढ़ जाना यानी बुखार का हो जाना।

बुखार के अलावा ये लक्षण भी देखें
  • खांसी और सांस फूलना
  • बलगम आना
टाइफाइड में
  • लूज मोशन
  • उलटी आने की हालत
  • भूख कम या न लगना
  • भूख कम लगना
फंगल इंफेक्शन
कोरोना की इस दूसरी लहर में यह काफी देखा जा रहा है। कई लोगों में ब्लैक फंगस (म्यूकरमाइकोसिस) की परेशानी देखी गई है। इसकी वजह से भी आइसोलेशन के बाद दोबारा बुखार हो सकता है। लेकिन बुखार के साथ कई और लक्षण भी दिख सकते हैं:
  • सिर, आंख, दांत या जबड़ों में तेज दर्द
  • नाक से काला बलगम निकलना
  • आंखें लाल होना
नोट: ये अमूमन उन लोगों में ज्यादा देखा जा रहा है जो आईसीयू में 5 दिनों से ज्यादा समय तक रहे हों। उन्हें 7 दिनों से ज्यादा समय तक ऑक्सिजन की सप्लाई की गई हो और सबसे अहम उन्हें स्टेरॉइड की हेवी डोज मिली हो।

किडनी में इंफेक्शन
जब किडनी में इंफेक्शन पेशाब की थैली तक फैला होता है तो आमतौर पर बुखार नहीं होता। हां, अगर यह इंफेक्शन प्रोस्टेट में भी फैल चुका हो तो ऐसे में बुखार हो सकता है। जब पेशाब की थैली के नीचे यानी पेशाब की थैली से यूरीथ्रा (जिस रास्ते से पेशाब निकलता है) के बीच में इंफेक्शन होता है तो उसे लोअर ट्रैक्ट इन्फेक्शन (LTI) कहते हैं। यही इंफेक्शन जब पेशाब की थैली के ऊपर किडनी तक चला जाए तो बुखार होने की आशंका बन जाती है। इसे अपर ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) कहते हैं। इसलिए जब कोई मरीज पेशाब के इंफेक्शन के इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंचता है तो डॉक्टर उससे ये बातें पूछते हैं
  1. क्या पेशाब बार-बार आता है? रात में सोने के बाद भी क्या कई बार पेशाब की वजह से नींद खुलती है और जाना पड़ता है? आमतौर पर 4 बार से ज्यादा?
  2. पेशाब करने के बाद भी क्या ऐसा महसूस होता है कि पेशाब और होगा, लेकिन होता नहीं है?
  3. पेशाब में खून भी आता है् और जलन भी होती है‌?
  4. बुखार के समय ठंड भी लगती है तो अपर ट्रैक्ट इंफेक्शन हो सकता है।
लिवर में परेशानी
शरीर की इम्यूनिटी मजबूत करने में लिवर की भूमिका सबसे बड़ी होती है। भोजन के पचने में भी यही सबसे बड़ा किरदार निभाता है। इसलिए इंफेक्शन का सबसे ज्यादा खतरा भी इसी को होता है। आजकल लिवर में फैट की वजह से फैटी लिवर की परेशानी लगभग 30 फीसदी लोगों में पाई जाती है। ऐसे में लिवर में इंफेक्शन का खतरा बढ़ गया है। इसके अलावा शराब के सेवन की वजह से लिवर सिरोसिस और लिवर कैंसर का खतरा बना रहता है। इससे लिवर का साइज बढ़ जाने की परेशानी भी हो जाती हैं। ये तमाम वजहें हैं जिनसे लिवर खराब होता है और इंफेक्शन फैलता है। नतीजतन बुखार होता है। लिवर इंफेक्शन की वजह से अगर बुखार होता है तो पेट में राइट साइड ऊपर की ओर दर्द और पेट में गैस की परेशानी लगातार रह सकती है।

नोट: ऊपर बताए हुए लक्षण किसी दूसरी बीमारी के भी हो सकते हैं। किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले डॉक्टर की सलाह और टेस्ट जरूरी है।

ये लक्षण तो ये टेस्ट
अगर कोरोना ठीक होने के बाद भी बुखार आ रहा हो तो ये टेस्ट जरूर करवाएं
  • CBC : यह टेस्ट शरीर में हीमोग्लोबिन, प्लेटलेट्स के साथ WBC की संख्या को भी बतलाता है। WBC में जिस कोशिका की संख्या ज्यादा बढ़ी हो उससे पता चलता है कि इंफेक्शन बैक्टीरियल है या फिर वायरल:
  • Neutrophils: इसकी संख्या दूसरी WBC कोशिका से ज्यादा होती है। जब कोई बैक्टीरिया शरीर में आता है तो सबसे पहले यही उसे मारने पहुंचता है। इसलिए अगर शरीर में इनकी संख्या कम या ज्यादा है तो मान लेना चाहिए कि बैक्टीरियल इंफेक्शन है।
  • Lymphocytes: ये वायरस के खिलाफ काम करते हैं। वायरस से प्रभावित कोशिका को मार देते हैं। जब वायरस का इंफेक्शन हो जाता है तो CBC कराने पर इनकी संख्या या तो बहुत बढ़ी हुई आएगी या एकदम कम आएगी। यहां इस बात को समझना जरूरी है वायरस के इंफेक्शन में Neutrophils की संख्या पर कोई खास असर नहीं होगा। शरीर में वैक्सिनेशन के बाद या कोरोना होने के बाद ऐंटिबॉडी बनाने में इसकी सबसे खास भूमिका होती है।
  • Eosinophils: अगर किसी को एलर्जी की परेशानी है, पेट में कीड़े हैं तो कुछ समय के लिए इसकी संख्या में बढ़ोतरी या कमी हो सकती है।
नोट: अगर CBC में WBC के ऊपर बताए हुए सेल्स की संख्या कम या ज्यादा है तो डॉक्टर आगे के टेस्ट के लिए कहते हैं ताकि सही इंफेक्शन तक पहुंचा जा सके।
IgM for Enteric Fever : यह टेस्ट टाइफॉइड को जानने के लिए कराया जाता है। यह विडॉल से बेहतर टेस्ट है। विडॉल कई बार फॉल्स पॉजिटिव आता है। अगर खाना पचाने में परेशानी हो। हल्का बुखार आइसोलेशन खत्म होने के बाद भी आता हो।
कैसे: खून से, रिपोर्ट: 1 से 2 दिन,
कीमत: 300 से 600 रुपये
Chest X-Ray : अगर मरीज को बुखार के साथ खांसी भी लगातार हो रही है। शरीर में तेज दर्द है तो डॉक्टर न्यूमोनिया की स्थिति को समझने के लिए एक्स-रे के लिए कहते हैं। अगर इससे पता नहीं चलता है तो HRCT के लिए कहा जाता है।
कैसे: एक्स-रे चेस्ट का, रिपोर्ट: 30 मिनट में,
खर्च: 300 से 500 रुपये
URINE ROUTINE और CULTURE
यह टेस्ट उन लोगों के लिए जरूरी है जिन्हें पहले से ही यूरिन का इंफेक्शन हो या फिर कोरोना से उबरने के बाद यूरिन आने में दिक्कत हो या यूरिन में स्मेल आती हो। साथ ही अगर आइसोलेशन के बाद भी बुखार हो।
कैसे: यूरिन से, रिपोर्ट: यूरिन रुटीन उसी दिन, कल्चर में 24 से 48 घंटे खर्च: 800 से 1200 रुपये
Calcofluor White Stain : फंगल इंफेक्शन को समझने के लिए ये टेस्ट अमूमन अस्पतालों की लैब में ही किए जाते हैं। यह फंगल इंफेक्शन का फास्ट टेस्ट है।
इसकी रिपोर्ट: उसी दिन, सैंपल उसी जगह से लिया जाता है जहां पर दर्द या फंगल इंफेक्शन की आशंका रहती है।
इसके अलावा फंगल इंफेक्शन के लिए माइक्रोस्कोप से भी जांच की जाती है। अगर परेशानी ज्यादा है तो फंगल कल्चर भी कराया जाता है। इसमें 2 से 4 दिन लग सकते हैं।

कब लें पैरासिटामॉल
  • अगर बच्चों में बुखार 99.5 फारेनहाइट से कम और बड़ों में 100 फारेनहाइट से नीचे हो तो पैरासिटामॉल देने से बचना चाहिए। इससे इम्यूनिटी को काम करने का मौका नहीं मिलता।
  • पैरासिटामॉल की मात्रा शरीर के वजन पर भी निर्भर करती है। अगर मरीज का वजन 50 से 55 किलो तक हो तो उसे 500mg और वजन इससे ज्यादा हो तो 650mg तक एक गोली दे सकते हैं। अगर बुखार फिर से चढ़े तो हर 6 से 7 घंटे पर इसे दोहरा सकते हैं।
  • जब बुखार 102 से ऊपर चला जाए तो पैरासिटामॉल देने के साथ ही पट्टी भी शुरू कर देनी चहिए क्योंकि गोली का असर शुरू होने में करीब 1 घंटा लग सकता है। यह भी मुमकिन है कि इस दौरान बुखार ज्यादा चढ़ जाए। इससे नुकसान हो सकता है।
बुखार में गीली पट्टी रखने की जरूरत कब होती है?
जब बुखार 102 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर पहुंच जाए तो सिर पर गीली पट्टी रखनी चाहिए। दरअसल, अगर बुखार कम करने के लिए मरीज को दवा दी है तो दवा का असर होने में 1 घंटा तक लग सकता है। साथ ही इस तापमान या इससे ऊपर तापमान जाने के बाद सिर काफी गर्म हो जाता है। शरीर में मौजूद हॉर्मोंस भी अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते। ऐसे में बुखार दिमाग को नुकसान न पहुंचाए, इसके लिए डॉक्टर पट्टी करने की सलाह देते हैं।

कैसे करें पट्टी?
बुखार 102 फारेनहाइट से ऊपर है और मरीज को ज्यादा परेशानी नहीं है तो सिर पर सादा पानी में भिगोकर कपड़े की पट्टी रखें। एक बार में 2 से 3 मिनट तक रखें। इसे फिर गीला करें और माथे पर फैलाकर रख दें। इसे 10 से 15 मिनट करें। अगर बुखार 103 से ज्यादा यानी 104 तक पहुंच चुका हो और मरीज को ठंड न लग रही हो तो बड़े तौलिये को सामान्य या ठंडे पानी में भिगोकर पीठ, छाती आदि जगहों पर रख सकते हैं।

कोरोना से ठीक होने के बाद बच्चे को बुखार हो तो क्या करें?
  • बच्चों में दुबारा बुखार के मामले बहुत कम देखे गए हैं।
  • बच्चों में कोरोना के दौरान आया हुआ बुखार 4 से 5 दिनों में चला जाता है।
  • अगर फिर भी बुखार रह रहा है तो उसके स्टूल, पेट में गैस या दर्द, खांसी तो नहीं है आदि का ध्यान रखें और चार्ट बनाएं। डॉक्टर को इस बारे में जरूर बताएं।
बुखार के इलाज में ये भी कारगर
नेचरोपैथी
  • पानी पीना जारी रखें। पानी घूंट-घूंट करके पिएं। दिन में जितनी बार भी प्यास लगे, पानी पिएं।
  • नारियल पानी फायदेमंद है। दिनभर में पानी से भरे हुए 2 नारियल पानी पी सकते हैं। ध्यान रहे कि नारियल खाना नहीं है।
  • दिन में 4 बार एक-एक गिलास सफेद पेठे का रस या कच्ची सब्जी (टमाटर, खीरा, पालक आदि) या फिर उबली सब्जी का रस पी सकते हैं। अगर चाहें तो इन चारों को बदल-बदल कर ले सकते हैं। इनसे पर्याप्त मात्रा में पोषण मिल जाएगा।
  • बुखार कम करने के लिए दिन में 3 से 4 बार ताजा पानी से भिगोकर सिर, पेट, हाथ और पैर पर 5 से 10 मिनट के लिए पट्टी भी रख सकते हैं।
आयुर्वेद
  • आइसोलेशन के बाद का बुखार भी इंफेक्शन के साथ शुरू हुए बुखार का ही एक्सटेंशन मान सकते हैं। भले ही दवाओं की वजह से बुखार आना बंद हो गया होगा, लेकिन इंफेक्शन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ।
  • इस बात का ध्यान रखें कि जब कोरोना इंफेक्शन हुआ था, उस वक्त दूध हरगिज नहीं देना चाहिए यानी उस वक्त वह तरुण ज्वर रहता है। लेकिन जब बुखार पुराना हो गया है तो दूध भी खाने का हिस्सा जरूर हो। आसानी से पचने वाला भोजन जैसे मूंग की दाल, ज्यादा गले हुए चावल, खिचड़ी, अच्छी तरह से कम तेल में पकी हुई सब्जियां आदि खाएं।
  • कोई चाहे तो इसके लिए त्रिभुवनकीर्ति रस की 2 गोली सुबह-शाम ले सकता है।
होम्योपैथी
कोरोना के बाद भी अगर शरीर का तापमान 99 है तो इसे सामान्य ही समझा जाए। 99 से ऊपर तापमान और दूसरे लक्षण भी हों तो ये दवा ले सकते हैं:
  1. Gelsemium: जब दिनभर सुस्ती महसूस हो। बीपी घटने लगे यानी 120/80 कम होने लगे।
  2. Ferrum phos: सिर दर्द, देह दर्द आदि हो।
  3. Bryonia: जब बुखार के साथ कफ भी हो। 4. Kali Phos: तनाव, डिप्रेशन, अनिद्रा की परेशानी।
  4. Carbo Veg: सांस फूले।
  5. Nux Vomica: पोस्ट कोविड मरीजों के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी। बुखार, अपच आदि में।
कितनी मात्रा: 30 पोटेंसी यानी हर दिन 3 से 4 बूंद 7 से 12 दिनों के लिए।

नोट: यहां दी गई जानकारी के आधार पर बीमारी या टेस्ट कराने के बारे में कोई फैसला न करें। डॉक्टर से सलाह जरूर लें। टेस्ट की कीमतें कम या ज्यादा हो सकती हैं।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. एस. के. सरीन, डायरेक्टर, इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलिएरी साइंसेस
  • डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, धर्मशिला अस्पताल
  • डॉ. जतिन आहूजा, सीनियर वायरॉलजिस्ट, संत परमानंद अस्पताल
  • डॉ. अनिल ठकराल, डायरेक्टर ENT, क्यूआरजी हेल्थ सिटी
  • डॉ. प्रसन्ना भट्ट, सीनियर कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक्स
  • डॉ. प्रशांत जैन, सीनियर यूरोलजिस्ट, अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल्स
  • डॉ. सुशील वत्स, जाने-माने होम्योपैथ
  • डॉ. सत्या एन. डोरनाला, सीनियर वैद्य-साइंटिस्ट फेलो
  • मोहन गुप्ता, जाने-माने नेचरोपैथ
  • समीर भाटी, डायरेक्टर,स्टार इमेजिंग और पैथ लैब्स

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

पढ़ें और फंगस के डर से बाहर निकलें

$
0
0

हर तरफ ब्लैक, वाइट और येलो फंगस की चर्चा होने लगी है। कोरोना से कम और फंगस से ज्यादा डर लगने लगा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि ये फंगस क्या सच में इतने खतरनाक हैं? क्या हम सभी को इससे डरने की जरूरत है? किन लोगों को खास ध्यान रखना चाहिए, बचने के तरीके और सावधानियां क्या-क्या हो सकती हैं? ऐसे तमाम सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स से बात कर दे रहे हैं लोकेश के. भारती

5 सबसे खास बातें
  1. फंगल इंफेक्शन का खतरा कोरोना से पहले भी था और आगे भी रहेगा। कुछ कैंसर और ट्रांसप्लांट वाले मरीजों को पहले भी फंगल इंफेक्शन होता रहा है। कोरोना की तरह यह नया नहीं है। कोरोना से ठीक हुए मरीजों में से 1 से 2 फीसदी को ही फंगल इंफेक्शन का खतरा है।
  2. अगर किसी की शुगर काबू में है, उसे ऑक्सिजन की जरूरत नहीं पड़ी, बुखार भी 5 दिनों में ठीक हो गया और स्टेरॉइड की हेवी डोज नहीं दी गई तो उसे इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि उसे फंगल इंफेक्शन होगा।
  3. कोरोना के गंभीर मरीजों में ही कमजोर इम्यूनिटी की वजह से ही फंगल इंफेक्शन का खतरा देखा जा रहा है। सभी को इससे डरने की जरूरत नहीं है। फिर भी साफ- सफाई पर ध्यान देना जरूरी है।
  4. अस्पताल से घर वापस आने या घर में ही ऑक्सिजन और हेवी स्टेरॉइड की मदद से ठीक हुए मरीजों को 4 हफ्तों तक ज्यादा से ज्यादा समय मास्क या रुमाल लगाकर रखना चाहिए। फंगस के स्पोर्स कोरोना वायरस की तुलना में इतने बड़े होते हैं कि सामान्य रुमाल से भी रुक जाते हैं।
  5. कोरोना के इलाज में डॉक्टर से बिना पूछे कभी दवा न लें। खासकर स्टेरॉइड का इस्तेमाल तो बिलकुल भी बिना पूछे न करें। स्टेरॉइड के हेवी डोज से इम्यूनिटी कमजोर भी हो जाती है।

अभी कोरोना की वजह से लाखों लोग प्रभावित हुए हैं, उनमें से कुछ हजार लोगों की इम्यूनिटी पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है। ये ऐसे लोग हैं जिन्हें कई दिनों तक ऑक्सिजन की सप्लाई हुई। गंभीर स्थिति को देखते हुए इन्हें कई दिनों तक वेंटिलेटर और आईसीयू में भी रखना पड़ा। ऐसे में इनमें से कुछ लोगों के शरीर में फंगस के स्पोर्स पहुंचकर गंभीर बीमारी पैदा कर रहे हैं।

इन कीटाणुओं की वजह से शरीर होता है अक्सर बीमार
1. वायरस
2. बैक्टीरिया
3. प्रोटोजोआ
4. फंगस

वायरस
इसके नाम से तो अब सभी परिचित हो चुके हैं। लैटिन में Virus को Virion कहते हैं जिसका मतलब है Poison यानी जहर। ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें आंखों से तो दूर, साधारण माइक्रोस्कोप से भी नहीं देख सकते। इन्हें देखने के लिए शक्तिशाली इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की जरूरत पड़ती है। जब तक वायरस शरीर से बाहर है तो इसे पूरी तरह मरा हुआ समझना चाहिए, लेकिन जैसे ही यह किसी शरीर की जीवित कोशिका (सेल) में पहुंचता है, यह ऐक्टिव हो जाता है। इसलिए वायरस को जीवित और मृत के बीच की कड़ी कहते हैं। सेल में प्रवेश के बाद इसमें जान आ जाती है। फिर यह उस सेल पर काबू पा लेता है और इसके बाद वह इसके बगल वाले सेल को अपने काबू में करता है। फिर धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ा लेता है। यह 2 से 4 दिनों में अपनी संख्या कई अरब या खरब तक पहुंचा लेता है। जब शरीर का इम्यून सिस्टम इसे शुरुआत में ही हरा पाने में सक्षम होता है तो मामला आगे नहीं बढ़ता। हल्का-फुल्का बुखार या बदन दर्द होकर मामला शांत हो जाता है। जब हमारा इम्यून सिस्टम इसे रोक नहीं पाता तो बुखार और बदन दर्द कई दिनों तक चलता है। फिर तमाम तरह की दवाएं लेनी पड़ती हैं ताकि शरीर में मौजूद ऐंटिबॉडी वायरस को हरा सके और यह शरीर को ज्यादा नुकसान न पहुंचा सके। कभी-कभी शरीर में पहले से मौजूद ऐंटिबॉडी के बाद भी वायरस को हरा नहीं पाता, जैसा कि कोरोना के मामले में हो रहा है। वायरस 7 से 10 दिनों की अपनी लाइफ पूरी करके ही खत्म होता है, लेकिन इस दौरान वह शरीर को बहुत नुकसान पहुंचा देता है। इस लड़ाई में वैक्सीनेशन सबसे ज्यादा कारगर होती है। इन वायरस पर ऐंटिबायोटिक का कोई खास असर नहीं होता। कुछ ऐसी बीमारियों में प्रमुख हैं: फ्लू, कैंसर की कुछ किस्में आदि।

बैक्टीरिया
अलग-अलग तरह के बैक्टीरिया और वायरस हवा में हमेशा ही मौजूद होते हैं। बैक्टीरिया का आकार वायरस से काफी बड़ा होता है, लेकिन इतना भी बड़ा नहीं होता कि इन्हें खुली आंखों से देख सकें। इंसान में बीमारी पैदा करने में ये माहिर हैं। फेफड़ों में पहुंच गए तो निमोनिया जैसी समस्या पैदा कर देते हैं। इन्हें भी रोकने के काम हमारे शरीर में मौजूद ऐंटिबॉडी ही करते हैं। अगर बैक्टीरिया कुछ ताकतवर होते हैं तो अमूमन 2 से 3 दिन की दवा लेने से हम ठीक भी हो जाते हैं। अगर शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होगी तो बैक्टीरिया को पनपने का मौका मिल जाता है, जैसा कि कोरोना की वजह से कमजोर इम्यूनिटी में निमोनिया और टाइफाइड के बैक्टीरिया को अपनी संख्या बढ़ाने का मौका मिलता है। कोरोना के मरीज में ये दोनों बीमारियां सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं।

प्रोटोजोआ
पेट में जो कृमि मौजूद होते हैं, ये प्रोटोजोआ ग्रुप में शामिल हैं। प्लाज्मोडियम की वजह से मलेरिया होता है। जब फीमेल एनोफिलीस मच्छर काटती है तो यह इंसान के शरीर के खून में प्लाजमोडियम छोड़ देती है। फिर मलेरिया हो जाता है। अगर गंदा पानी जिसमें इनके आंखों से नहीं दिखने वाले अंडे मौजूद हों, पी लिए और गंदा खाना खा लिए तो पेट में पहुंचकर खुराफात मचाते हैं। अमीबा की वजह से डिसेंट्री होती है। वहीं पेट में कृमि की वजह से भी ऐसी ही परेशानियां होती हैं। सच तो यह है कि जब इस धरती पर जीव का विकास हो रहा था, तब से ये मौजूद हैं। इसलिए इन्हें प्रारंभिक जीव भी कहते हैं। ये ज्यादातर पैरासाइट (दूसरों के शरीर में रहते हैं, उनसे न्यूट्रिशन लेते हैं और उन्हें नुकसान भी पहुंचाते) होते हैं। इनके खिलाफ भी ऐंटिबॉयोटिक और दूसरी दवाएं सही तरीके से काम करता है।

फंगस
सभी फंगस एक ही ग्रुप में आते हैं जिसे फंजाई कहते हैं। इसमें ब्लैक फंगस, वाइट फंगस, येलो फंगस, ग्रीन फंगस, मशरूम (जिसे हम सब्जी के रूप में खाते हैं), यीस्ट (ब्रेड बनाने में इसका उपयोग होता है, ब्रेड जब खराब होता है तो ये ऊपर दिख भी जाते हैं) आदि आते हैं। हकीकत यह है कि कोरोना ने जितना नहीं डराया, उससे ज्यादा अब यह फंगस डरा रहा है। स्किन के ऊपर फंगल डिजीज ज्यादातर लोगों को हो जाती है। इन्हें दाद, खाज, खुजली के नाम से जानते हैं। चूंकि यह स्किन के ऊपर होती हैं, इसलिए कभी भी जानलेवा नहीं होती। दवाओं से ये चंद दिनों या हफ्तों में ठीक हो जाती हैं। हालांकि जब इन्हें पहले जैसा वातावरण मिल जाता है तो स्किन की फंगल बीमारी कई बार फिर से वापस भी आ जाती हैं। जब फंगस शरीर के भीतर पहुंच जाए और वहां पर भी इसे पनपने के लिए मनचाहा वातावरण मिले तो फिर ये बड़ी परेशानी खड़ी करते हैं। ब्लैक फंगस, वाइट या येलो फंगस या फिर आगे किसी और रंग का फंगस इसी के उदाहरण हैं।

फंगस कब से है
इस धरती पर इंसानों से भी पहले से इसकी मौजूदगी है। साइंटिफिक रिसर्च के अनुसार यह कम से कम डेढ़ अरब साल पहले से यहां है। फंगस में पौधों और जीवों दोनों के गुण होते हैं। पौधों के सेल में एक सख्त बाहरी कवच होता है, जिसे सेल वॉल कहते हैं। यही सेल वॉल फंगस में भी होता है। फंगस में क्लोरोफिल की कमी होती है। इसलिए ये पौधों की तरह खुद अपना भोजन तैयार नहीं कर पाते। इन्हें भोजन के लिए सड़े-गले पदार्थों पर निर्भर रहना पड़ता है। यही कारण है कि कुछ साइंटिस्ट इसे पौधों और जीवों को जोड़ने वाली कड़ी भी कहते हैं।

स्पोर्स पकने पर हवा में
जहां भी सड़ी-गली चीजों, जैसे खाना सड़ रहा हो, पत्ते सड़ रहे हों, नमी हो, वहां फंगस पनपता है। घर में अगर सब्जियां, ब्रेड, दूध आदि सड़ रहे हों, उनमें बदबू भी आ जाए तो समझें कि उसमें फंगस पनप चुका है। अमूमन ऐसी जगहों पर जो फंगस पनपता है उसे यीस्ट कहते हैं।

जिस तरह पौधों में परागण के लिए फूलों से परागकण हवा में चले जाते हैं और उड़ते हुए ही दूसरे फूलों तक पहुंच जाते हैं। इसी तरह फंगस भी जब पक जाते हैं तो इसके स्पोर्स फट जाते हैं और हवा में उड़ते रहते हैं। ये स्पोर्स आकार में बहुत छोटे होते हैं। खुली आंखों से इन्हें नहीं देख सकते, लेकिन साधारण माइक्रोस्कोप से दिख जाते हैं।

इंसानी शरीर में कैसे पहुंचता है फंगस
इंसान के शरीर के अंदर भी यह अमूमन सांस या खानपान के जरिए से पहुंचता है। सबसे पहले इसे रोकने के काम हमारे नाक के सुराख और नाक में मौजूद बाल करते हैं। अगर यहां रुक गया तो हमारे नाक के सुराखों में थोड़ी खुजली होती है और हम उसे निकाल देते हैं। अगर यह आगे बढ़ते हुए नाक के अंदरूनी हिस्से में पहुंचे तो नाक के अंदर की पाइप में मौजूद नेजल सिलिया (छोटी बालों के आकार का जो अच्छी चीजों को अंदर और बेकार चीजों को बाहर करने में मदद करती है) के जरिए बाहर निकालने की कोशिश करती है। अगर सफल हो गए तो बढ़िया है। इसके साथ छींक भी आ सकती है। छींक आना भी हमारे इम्यून सिस्टम का ही हिस्सा है। अगर फिर भी कुछ स्पोर्स रह जाएं तो फिर नाक से पानी आने लगता है जिसकी मदद से ये बाहर निकल जाते हैं। शरीर इस तरह के काम तब करता है जब शरीर का इम्यून सिस्टम सही तरीके से काम कर रहा हो। अगर इम्यून सिस्टम सही तरीके से काम नहीं करेगा और तो फंगस के स्पोर्स को बाहर निकालने की ये सभी काम शरीर नहीं कर पाता। ऐसे में स्पोर्स शरीर के भीतर पहुंचकर पनपने भी लगते हैं। वहां उन्हें पसंदीदा भोजन भी मिलने लगता है।

फंगस के रंग हैं कई

ब्लैक फंगस
कोरोना होने के बाद अगर किसी चीज ने कुछ लोगों को सबसे ज्यादा परेशान किया है तो वह ब्लैक फंगस ही है। ब्लैक फंगस की वजह से म्यूकर माइकोसिस नाम की बीमारी होती है। इसके स्पोर्स नाक के रास्ते ही अमूमन शरीर में प्रवेश करते हैं। कमजोर इम्यूनिटी की वजह से ये नाक के भीतर, सांस की नली में या फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं, जहां ये बढ़ने लगते हैं और हाईफी बनाते हैं। इसे बेहतर तरीके से इस तरह समझ सकते हैं जैसे पौधे के बीज तब तक सोने की हालत में रहते हैं जब तक उन्हें पानी न मिले। जैसे ही इन्हें पानी मिलता है, ये ऐक्टिव हो जाते हैं और फिर अंकुरित होने लगते हैं। कमोबेश यही स्थिति ब्लैक फंगस समेत सभी फंगस की होती है। जैसे ही इन्हें शरीर के अंदर ज्यादा मात्रा में शुगर और कमजोर इम्यूनिटी मिलती है, ये बढ़ने लगते हैं और पत्ती की तरह की ही हाइफी बनाने लगते हैं। जहां पर ये चिपकते हैं, वहां के टिशू को सड़ाने लगते हैं। अगर इसे फौरन ही इंजेक्शन या फिर ऑपरेशन के द्वारा नहीं निकाला गया तो मरीज की मौत तक हो जाती है।

क्या हैं लक्षण:
  • नाक के पपड़ी बनने लगती है।
  • चेहरे पर एक तरफ सूजन आ जाए।
  • नाक से काले रंग का तरल निकलने लगता है।
  • नाक बंद होना
  • छाती में दर्द
  • साइनस का बुरा हाल
  • नाक के ऊपरी हिस्से पर काले घाव होना
  • बलगम में भी काले रंग की मौजूदगी हो सकती है।
  • लगातार बुखार भी रह सकता है।
  • आंख, आंखों के नीचे की हड्डी, सिर आदि में तेज दर्द रह सकता है।
  • एक के बजाय दो दिख सकते हैं।

वाइट फंगस
यह एक आम फंगस ही है। इसे कैंडिडा भी कहते हैं, लेकिन अगर शख्स की इम्यूनिटी कमजोर हो जाए और खून में पहुंच जाए तो यह दिमाग, आंख आदि जगहों पर चिपककर बढ़ने लगते हैं। फैलने की दर से देखें तो यह ज्यादा जल्दी से फैलता है, इसलिए इसे ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक माना जाता है। लेकिन अगर मरने की दर से देखें तो ब्लैक फंगस ज्यादा खतरनाक है। वाइट फंगस की एक प्रजाति है इनवेसिव कैंडिडा को वाइट फंगस में सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है। दरअसल, इसके बारे में शुरुआत में पता नहीं चल पाता। कई बार आम लोगों को जीभ और तालू पर भी सफेद धब्बे दिखते हैं। कुछ महिलाओं में वजाइनल इंफेक्शन इसी वाइट फंगस की वजह से होता है। इन जगहों पर ये ज्यादा परेशानी पैदा नहीं करते, लेकिन खून में पहुंचने के बाद परेशानी बढ़ती है।

क्या हैं लक्षण:
  • सिर दर्द हो सकता है।
  • काफी तेज सिहरन होती है।
  • तेज बुखार और इंफेक्शन की जगह पर दर्द हो सकता है।

येलो फंगस
यह फंगस के मरीज बहुत ही कम मिलते हैं। हाल ही में यूपी के गाजियाबाद में येलो फंगस के मरीज मिले हैं। अमूमन यह फंगस रेपटाइल्स (छिपकली जैसे जीवों में) ही मिलते हैं। जिस भी रेपटाइल्स को यह फंगल इंफेक्शन हो जाता है, वह नहीं ही बचता। यह शरीर में जख्म बनाता है।

क्या हैं लक्षण:
  • नाक बंद होना
  • शरीर में बहुत ज्यादा दर्द होना
  • पल्स रेट बढ़ जाना
  • बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होना।

ध्यान दें: किसी भी फंगस का स्पोर्स शरीर में पहुंच जाए तो उसे बढ़ने में लगभग 2 हफ्ते का वक्त लग जाता है। शरीर में पहुंचने के फौरन बाद कुछ लक्षण उभरने लगते हैं।

नोट: पर बताए हुए सभी फंगल इंफेक्शन के लक्षण किसी दूसरी छोटी-मोटी बीमारी के भी हो सकते हैं। डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचें।

क्या फंगस से सभी को डरना चाहिए?
फंगस, वायरस, बैक्टीरिया या कुछ और। किसी से भी डरना नहीं चाहिए। पहले तो इससे बचने के जतन करने चाहिए। अगर फिर भी हो जाए तो इससे निकलने के लिए मुकाबला करना चाहिए। फंगस में कोई म्यूटेशन नहीं हुआ है और न ही इसका कोई नया स्ट्रेन आया है। वैसे इसमें कोई स्ट्रेन आ भी नहीं सकता। यह खासियत वायरस का ही है। इसमें बदलाव लाखों सालों में इवोल्यूशन के द्वारा होता है। इसलिए फंगस पहले की तरह ही है। अहम बात यह कि ब्लैक फंगस हो या वाइट या येलो। यह हवा से फैल सकता है, नाकि एक शख्स से दूसरे में। सीधे कहें तो यह कम्यूनिकेबल बीमारी नहीं है।

किन्हें बिलकुल नहीं है घबराना
  • ऐसे लोग जिन्हें कोरोना नहीं हुआ
  • अगर कोरोना हुआ भी तो बिना लक्षण और कम लक्षण वाला, भले ही साथ में शुगर क्यों न हो।
  • घर पर रहते हुए ही 5 से 7 दिनों तक बुखार हुआ। हल्की खांसी भी हुई। उसे 3 से 5 दिन ऐंटिबायोटिक दिया गया, लेकिन स्टेरॉइड देने की जरूरत नहीं पड़ी। पहले शुगर हो या न हो, शुगर का स्तर 1 से 2 दिनों तक बढ़ा, लेकिन 200 से नीचे रहा।

क्या करें
ऐसे लोगों को न ही ज्यादा कमजोरी होती है और न दूसरी समस्याएं। फिर भी आइसोलेशन खत्म होने तक उन्हें भी अकेले ही रहना चाहिए। फंगस से ऐसे लोगों को कोई खतरा नहीं है। अगर शख्स को एलर्जी से परेशानी नहीं है तो उसे फंगस से बचने के लिए उसे घर में मास्क लगाने की जरूरत नहीं है, लेकिन आइसोलेशन के बाद घर से बाहर निकलने के लिए डबल मास्क या एन95 मास्क जरूर लगाकर निकलना चाहिए।

किन लोगों को रहना है अलर्ट
  • शुगर के पुराने मरीज जिन्हें 5 से 10 दिनों तक बुखार रहा। बुखार 102 फारेनहाइट या इससे ऊपर गया हो और शुगर का स्तर 2 से 5 दिनों तक 250 से ऊपर रहा हो।
  • जिन लोगों को 3 से 4 दिनों तक स्टेरॉइड की हेवी डोज और बाकी दिनों में लो डोज दी गई हो।
  • ऑक्सिजन का स्तर कम होने की वजह से घर पर या फिर अस्पताल में 2 से 3 दिनों तक सामान्य ऑक्सिजन की सप्लाई की गई हो। आईसीयू जाने की स्थिति नहीं बनी हो। अगर गया भी हो तो 1 से 2 दिन में वापस आ गया हो। ऐसे मरीज को शुगर नहीं है तो वह कुछ बेहतर स्थिति में हो सकते हैं, लेकिन सचेत इन्हें भी रहना है।

क्या करें
चूंकि उन्हें कोरोना के लक्षण आए थे, ऑक्सिजन की सप्लाई भी करनी पड़ी, इसलिए इंफेक्शन से लेकर आइसोलेशन खत्म होने के 2 हफ्ते बाद तक ऐसे मरीजों को फंगसे बचने के उपाय जरूर करने चाहिए। ऐसे लोगों को घर में मास्क लगाने की जरूरत नहीं है, लेकिन बालकनी में पौधों के पास जाने पर जरूर मास्क या रुमाल बांध लेना चाहिए। हाथों में ग्लव्स पहनकर ही मिट्टी आदि का काम करें। साथ ही फंगस के लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए।

किन्हें है फंगस से खतरा
  • शुगर के पुराने मरीज, जिनका शुगर का स्तर 3 से 5 दिनों तक 350 से ऊपर रहा हो।
  • इंफेक्शन को काबू करने में 7 से ज्यादा दिनों तक स्टेरॉइड की हेवी डोज दी गई हो।
  • जिन्हें 3 से ज्यादा दिनों तक जिन्हें वेंटिलेटर पर और 5 से ज्यादा दिनों तक आईसीयू में गुजारनी पड़ी हो।
  • कैंसर के पुराने मरीज और जो कीमोथेरपी पर हैं और उन्हें सामान्य या गंभीर कोरोना हुआ हो।
  • किडनी के मरीज जो डायलिसिस पर हैं या जिनके क्रिएटिनिन का स्तर लगातार ज्यादा हो, कोरोना हुआ हो।
  • अगर किसी ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो, जैसे किडनी, लिवर, हार्ट आदि।

क्या करें
शुगर का स्तर भी बहुत ज्यादा, ऑक्सिजन की लगातार सप्लाई और स्टेरॉइड की हेवी डोज, इम्यूनिटी बहुत कमजोर। ये सभी परिस्थितियां फंगस के पनपने के लिए सबसे मुफीद हैं। ऐसे लोगों 1 महीने तक बच कर रहें।

फंगस से बचने के लिए सभी रखें इन बातों का ध्यान
  • घर में गंदगी को बिलकुल जमा न होने दें।
  • सब्जियों को अच्छी तरह ढक कर रखें।
  • अगर मटके का पानी पीते हैं तो उसे भी अच्छी तरह ढक कर रखें और हर दूसरे या तीसरे दिन उसे अंदर और बाहर अच्छी तरह साफ करें।
  • बासी खाना न खाएं। अगर खाना हो तो भी उसे अच्छे से गर्म कर लें।
  • पौधों के पास ज्यादा न जाएं। फंगस के स्पोर्स पौधों पर ज्यादा मिलते हैं। पौधों की जड़ें जिस गमले की मिट्टी में लगी होती हैं, हम वहां अक्सर पानी देते हैं। फंगस को नमी वाली जगहें बहुत पसंद हैं।
  • मिट्टी को न छुएं। 1 महीने तक पार्क जाने से बचें।
  • घरों में सीलन हो तो उसे फौरन ही बंद कराएं क्योंकि फंगस के बढ़ने का खतरा इन जगहों पर ज्यादा होता है।
  • गीला मास्क या रुमाल से मुंह और नाक को न ढकें। इन पर फंगस के स्पोर्स के चिपकने का खतरा ज्यादा होता है।
  • धूप और ताजी हवा के लिए घर की खिड़कियों और दरवाजों को पूरा खोल दें। पूरा खोलने से स्पोर्स के कमरे में आने की आशंका भले ही बढ़ जाएगी, लेकिन उसके कमरे और उसकी दीवारों पर टिकने का खतरा बहुत कम हो जाएगा। वह जिस तरह से आया, उसी तरह से हवा के बहाव में बाहर निकल जाएगा। हां, इस दौरान उन मरीजों को जिन्हें ज्यादा खतरा है, मास्क जरूर लगाकर रहें।

ऑक्सिजन सिलिंडर और ऑक्सिजन पाइप से तब खतरा
  • अगर किसी मरीज को घर पर ही ऑक्सिजन सिलिंडर की व्यवस्था की गई है और उस सिलिंडर का इस्तेमाल इंडस्ट्री आदि में ही होता रहा है तो ऐसे में यह स्वाभाविक है कि सिलिंडर को सैनिटाइज नहीं किया जाता होगा। वैसे भी इस तरह के सिलिंडर में 94 से 95 फीसदी तक शुद्ध ऑक्सिजन मिलती है जबकि अस्पतालों में उपलब्ध सिलिंडरों और सप्लाई होने वाली ऑक्सिजन 98 से 99 फीसदी तक शुद्ध रहती है। कोशिश यह होनी चाहिए कि अस्पतालों में उपलब्ध ऑक्सिजन सिलिंडरों का इस्तेमाल ही घर पर किया जाए। घर पर सिलिंडर में डिस्टिटल्ड या फिल्टर्ड वॉटर का इस्तेमाल हो।
  • चाहे घर पर ऑक्सिजन सप्लाई हो रही हो या फिर अस्पतालों में ऑक्सिजन मास्क और पाइप की सफाई का ध्यान रखना जरूरी है। किसी भी हालत में एक ही मास्क या पाइप से दूसरे मरीजों को भी ऑक्सिजन सप्लाई नहीं होनी चाहिए।
  • अगर घर में भी एक से ज्यादा कोरोना मरीज हैं और उन्हें ऑक्सिजन की जरूरत है तो सिलिंडर भले ही एक हो, मास्क जरूर अलग-अलग हो।

डॉक्टर से पूछे बिना स्टेरॉइड नहीं
  • बिना डॉक्टर से पूछे स्टेरॉइड समेत कोई भी दवा न लें और न ही बंद करें। स्टेरॉइड की डोज तय होती है और फिर उसे धीरे-धीरे बंद किया जाता है।
  • शुगर की मॉनिटरिंग है जरूरी
  • फंगल इंफेक्शन में बढ़े हुए शुगर को एक बड़ा खतरा माना जा रहा है।
  • शुगर की मॉनिटरिंग जरूर करनी चाहिए।
  • दरअसल, कोरोना वायरस पैंक्रियाज के बीटा सेल्स (शरीर में इंसुलिन का उत्पादन यहीं होता है, इंसुलिन शरीर में शुगर को नियंत्रित करती है) पर भी खतरा पहुंचाता है।
  • अगर किसी शख्स को कोरोना होने से पहले शुगर की परेशानी नहीं थी, लेकिन स्टेरॉइड के हेवी डोज की वजह से उसका शुगर लेवल बढ़ जाता है तो उसे भी डॉक्टर की सलाह से दवा द्वारा या इंसुलिन से इसे नियंत्रित कर लेना चाहिए।

नोट: यहां दी गई जानकारी के आधार पर बीमारी या टेस्ट कराने के बारे में कोई फैसला न करें। डॉक्टर से सलाह जरूर लें। टेस्ट की कीमतें कम या ज्यादा हो सकती हैं।

फंगल इंफेक्शन के लिए जरूरी टेस्ट
डायरेक्ट KOH माइक्रोस्कोपी: माइक्रोस्कोप से देखा जाता है। इसमें एक खास तरह के डाय (रंग) की मदद भी ली जाती है। इससे पता चल जाता है कि इंफेक्शन कितना फैला है।
खर्च: 150 से 500 रुपये रुपये, रिपोर्ट: उसी दिन

अगर इंफेक्शन फूड पाइप या आंत में है तो...
इसोफेगल एंडोस्कोपी
खर्च: 3 से 4 हजार रुपये, रिपोर्ट उसी दिन

अगर इंफेक्शन नाक या उसके अंदरूनी भाग में है तो...
नेजल एंडोस्कोपी
खर्च: 2 से 3 हजार रुपये, रिपोर्ट: उसी दिन
अगर ब्रेन में इंफेक्शन है तो MRI
खर्च: 8 से 10 हजार, रिपोर्ट: उसी दिन

लंग्स और ट्रेकिया में है तो CT स्कैन
खर्च: 4 से 6 हजार रुपये, रिपोर्ट: उसी दिन

फंगल कल्चर
अमूमन इसे कैंसर के मरीजों में फंगल इंफेक्शन को जांचने के लिए किया जाता है।
खर्च: यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस जगह का सैंपल लेना है। अगर टिशू से होना है तो खर्च 1200 रुपये के करीब है।

एक्सपर्ट पैनल
अंशुमान कुमार
डायरेक्टर, धर्मशिला हॉस्पिटल

डॉ. अरविंद लाल
एग्जिक्युटिव चेयरमैन, डॉ. लाल पैथ लैब्स

डॉ. अंशुल वार्ष्णेय
सीनियर कंसल्टेंट, डायबेटॉलजिस्ट

डॉ. अरुण गर्ग
सीनियर कंसल्टेंट ENT

डॉ. चारु बंसल
सीनियर डर्मेटॉलजिस्ट

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

ऐसे करें दिल की हिफाजत

$
0
0

कोरोना इंफेक्शन होने के बाद यह वायरस कुछ के भीतरी अंगों पर भी बुरा असर डालता है। किसी पर असर कम होता है तो किसी पर ज्यादा। कोरोना के बुरे असर से हमारा सबसे व्यस्त अंग दिल भी अछूता नहीं रहता। कोरोना ने सिर्फ बड़ों को ही अपना शिकार नहीं बनाया, बल्कि कुछ बच्चों को भी चपेट में लिया है। इनमें से कुछ बच्चों को अब नई परेशानियों ने घेर लिया है। उनके दिल और दूसरे अंगों में सूजन के मामले सामने आ रहे हैं जिसे MIS-C का नाम दिया गया है। अगर इनके लक्षणों पर कड़ी निगाह रखें तो गंभीर समस्या से बच सकते हैं। एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

5 सबसे जरूरी बातें...
  1. दिल के मामले में किसी भी लक्षण को नजरअंदाज न करें। खासकर, हार्ट और शुगर के मरीज।
  2. सीने में होने वाला हर दर्द दिल की समस्या हो, ऐसा जरूर नहीं। लेकिन दूसरे लक्षणों पर भी जरूर गौर करें। ये आगे बताए गए हैं।
  3. कोरोना से उबरने के बाद 30 दिनों तक हेवी एक्सरसाइज या मेहनत करने से बचें। सुबह 10 मिनट योग और 5 से 10 मिनट हल्की एक्सरसाइज काफी है। अगर इतना करने से भी सांस काफी फूलने लगे या छाती में भारीपन महसूस हो तो समय कम कर दें और डॉक्टर की सलाह जरूर लें।
  4. अगर कोरोना होने से पहले हर दिन सुबह 10 किमी टहलते थे तो कोरोना से उबरने के बाद 500 मीटर से शुरुआत करें। अभी घर में ही टहलना ठीक है। अगर ऐसा करने में कोई परेशानी नहीं हो तो 10 किमी टहलने वाली स्थिति तक पहुंचने में सिर्फ 40 से 45 दिन लगा सकते हैं।
  5. हर दिन एक प्लेट मौसमी फल (तरबूज, आम आदि) और 2 कटोरी हरी सब्जी, कम तेल व मसाले वाली खाएं। 50 ग्राम प्रोटीन लें। इसके लिए दिन में 2 कटोरी दाल और 1 अंडा या 50 ग्राम पनीर की सब्जी खाएं। 1 अखरोट या 5 बादाम भी खा सकते हैं।
कोरोना के मामले में यह सोच लेना ठीक नहीं है कि मुझे पहले दिल की बीमारी थी ही नहीं, इसलिए कोरोना ठीक होने पर भी नहीं होगी। जिनको भी गंभीर किस्म का कोरोना हुआ हो, वे कुछ लक्षणों पर जरूर गौर करें। अगर ऐसे लक्षण हों तो डॉक्टर से मिल लें:
  • सीने में दर्द या भारीपन होना
  • बैठे हुए या फिर 40 से 50 कदम चलने पर भी सांस फूल जाना।
  • धड़कन बहुत तेज (सामान्य 70-90 से बढ़कर 115 से ऊपर होना) या बेतरतीब (कभी बढ़ जाए और कभी घट जाए) हों।
  • पल्स बीच-बीच में छूटने का अहसास हो
  • चक्कर या बेहोशी आए
  • पैर सुन्न हो जाए
  • बार-बार आंखों के सामने अंधेरा आ जाए
नोट: इनमें से एक, दो, तीन या सभी परेशानियां भी हार्ट से जुड़ी हो सकती हैं या फिर कोई दूसरी बीमारी हो सकती है। ऐसे लक्षण आने पर डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

क्यों उभरती हैं परेशानियां
कोरोना होने यानी लक्षण आने के चौथे या पांचवें दिन के बाद अगर बुखार रहे तो यह मुमकिन है शरीर के भीतरी अंगों में सूजन होने लगे और यह अगले 40 से 45 दिनों तक बरकरार रहे। सीधे कहें तो गंभीर कोरोना से ठीक होने के 30 दिन के बाद भी दिल की परेशानियों के लक्षणों पर नजर रखना जरूरी है।
कोरोना दिल पर 3 तरह से असर डालता है:
1. दिल पर सीधा असर
2. दिल से निकलने वाली खून की नलियों पर असर
3. डर की वजह से दिल की गति का बढ़ना

1. दिल पर सीधा असर: कोरोना के मामलों में ऐसा देखा जा रहा है कि यह दिल पर सीधा असर करता है। खासकर उन लोगों में ऐसा ज्यादा देखा जा रहा है जिन्हें पहले से दिल की परेशानी रही है। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि जिन लोगों को दिल की परेशानी पहले से नहीं है उनमें नहीं हो सकती। कुछ मामले ऐसे भी हैं जब लोगों को दिल से जुड़ी परेशानी और ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है, लेकिन उन्हें पता नहीं होता या वे इसे स्वीकार करने से बचते रहते हैं और दवा नहीं खाते। ऐसे लोगों को जब कोरोना होता है तो दिल की छोटी परेशानी बड़ी बन जाती है।
- कोरोना होने के बाद कुछ लोगों की दिल की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। इससे दिल सही तरीके से ब्लड पंप नहीं कर पाता। मरीज को कमजोरी आती है। धड़कन की गति तेज हो जाती है। पैर और आंखों के नीचे सूजन भी आ जाती है। पल्स रेट बिना बुखार के 120 से ऊपर जा सकती है।
नोट: कोरोना के बाद कमजोरी का मतलब यह नहीं है कि दिल से जुड़ी परेशानी ही हो। अगर बाकी दूसरे लक्षण भी मौजूद हैं तो जरूर डॉक्टर से मिलना चाहिए।

2. खून की नलियों पर असर: आमतौर पर कोरोना के बाद कुछ लोगों की खून की नलियों में सूजन आ जाती है, वहीं कुछ लोगों में खून का थक्का जमने की परेशानी हो सकती है। मरीज को ऐसे में सीने में तेज दर्द, घबराहट और उल्टी जैसा भी महसूस हो सकता है। कुछ लोगों को दोनों या फिर किसी एक पैर में तेज दर्द महसूस हो सकता है। अगर खून का थक्का दिमाग की तरफ जाने वाली नसों में हो तो ब्रेन स्ट्रोक का खतरा हो सकता है। वहीं पेट की तरफ जाने वाली नसों में क्लॉटिंग होने पर पेट में तेज दर्द और डायरिया हो सकता है।
(ब्रेन स्ट्रोक के बारे में विस्तार से जानने के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर जाएं और brainstroke टाइप करें। जानकारी ऊपर मिल जाएगी। )

3. डर की वजह से दिल की गति बढ़ना: इसे हम साइकोलॉजिकल परेशानी भी कह सकते हैं, लेकिन इसका सीधा असर हमारे दिल पर होता है। खासकर ऐसे लोग जिन्हें हार्ट या शुगर की परेशानी पहले से है। उनके लिए कोरोना का डर या तनाव ज्यादा घातक साबित हो सकता है।

जब असर हो दिल पर, पैदा होती हैं ये परेशानियां
ऊपर बताई गई वजहों से एंजाइना, हार्ट अटैक, कार्डिएक अरेस्ट जैसी परेशानी हो सकती है। लेकिन कुछ लोगों को एसिडिटी होने पर भी वे उसे दिल की परेशानी मान लेते हैं। कैसे पहचानें कि परेशानी कौन-सी है?

एसिडिटी?
  • एसिडिटी की परेशानी आमतौर पर खाना पचने से जुड़ी होती है। इसका दिल की परेशानी से कोई लेना-देना नहीं होता। चूंकि इसमें भी दर्द सीने में या उसके आसपास हो जाता है, इसलिए लोग इसे दिल की परेशानी समझ लेते हैं।
  • जब भी सीने में दर्द, भारीपन और जलन हो तो 20 से 30 मीटर (60 से 80 कदम) सामान्य चाल से चलकर देखें। अगर एसिडिटी की वजह से परेशानी है तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। दर्द कम या ज्यादा नहीं होगा।
  • एसिडिटी में छाती के नीचे और पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होगा। दर्द एक ही जगह होता है।
  • दर्द एक चुभन के रूप में होगा, यह परेशानी खाने-पीने के बाद ही होती है।
  • गैस और डकार आएगी, दिल की धड़कन में कोई बदलाव नहीं होगा।
एंजाइना
  • सबसे ज्यादा परेशानी एंजाइना और हार्ट अटैक के लक्षणों को पहचानने में होती है। ऐसा नहीं है कि खतरा एंजाइना में नहीं है, लेकिन यह खतरा हार्ट अटैक की तुलना में कम होता है। एक बात तो पूरी तरह साफ है कि एंजाइना का मतलब है कि खून दिल तक पूरी मात्रा में नहीं पहुंच रहा है।
  • सीने में दर्द, जलन, भारीपन, पसीना आना सबकुछ हो सकता है।
  • ऐसा भी महसूस हो सकता है कि कोई गला घोंट रहा है।
  • यह दर्द आमतौर पर 30 सेकंड से ज्यादा समय तक रहता है। फिर आराम करने पर बंद हो जाता है।
  • जब भी सीने में दर्द के ऐसे लक्षण हों तो फौरन ही घर में 20 से 30 मीटर चलें और फिर 5 से 10 मिनट के लिए बैठ जाएं।
  • अगर चलते समय यह परेशानी कायम रहे और बैठने या आराम करने पर खत्म हो जाए या कुछ आराम मिले तो आमतौर पर यह एंजाइना की परेशानी होती है।
  • गुस्सा होने पर भी सीने में दर्द, भारीपन हो और गुस्सा शांत होने पर ठीक हो जाए तो यह एंजाइना की समस्या हो सकती है।
  • अगर सीने में इस तरह की परेशानी बार-बार हो, एक दिन में एक या दो बार तक हो जाए, चलने पर बढ़े और बैठने पर ठीक हो जाए तो यह अनस्टेबल एंजाइना है।
  • इसमें एक उंगली से पॉइंट करके बताना मुश्किल होता है कि दर्द कहां पर हो रहा है। यह आमतौर पर बड़े एरिया में होता है।
  • इसमें दिल की धड़कनें तेज या अनियमित हो सकती हैं।
तुरंत राहत के लिए...
जब एंजाइना का दर्द हो तो ग्लिसरिल ट्राइनाइट्रेट (Glyceryl Trinitrate) वाली 5mg की गोली जीभ के नीचे रख लें। यह मार्केट में सॉर्बिट्रेट (Sorbitrate) और आइसोर्डिल (Isordil) आदि ब्रैंड के नाम से मिलती है। इससे आर्टरी की चौड़ाई बढ़ जाती है। इसके बाद डॉक्टर से जरूर मिलें।

हार्ट अटैक
बार-बार और लगातार एंजाइना की समस्या पर जब हम ध्यान नहीं देते तो यह हार्ट अटैक में बदल जाती है। दरअसल, जब खून की नलियों में रुकावट की वजह से दिल की मांसपेशियों तक एंजाइना में कम खून पहुंचता है, हार्ट अटैक में बिलकुल नहीं पहुंचता यानी ब्लॉकेज आ जाए, तब हार्ट अटैक की स्थिति बनती है। इलाज 2 से 3 घंटों में शुरू हो जाना चाहिए। इसे ही गोल्डन आवर्स कहा जाता है।
  • सीने में दर्द, जलन, भारीपन, पसीना आना सब कुछ हो सकता है।
  • भारीपन ऐसा कि लगे सीने के ऊपर किसी हाथी का पैर रखा हो या भारी पत्थर।
  • सीने में उठने वाला दर्द कई बार लेफ्ट कंधे की तरफ बढ़ने लगता है।
  • मरीज को बेचैनी होने लगती है।
  • वक्त बीतने के साथ यह दर्द भी बढ़ता जाता है।
  • ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें होने वाला दर्द बहुत तेज होता है, एंजाइना में इतना दर्द नहीं होता।
  • कोई शख्स अगर कोरोना मरीज है और उसे पहले से ही शुगर की परेशानी हो तो हालत ज्यादा खराब हो सकती है। एक तो हाई शुगर की वजह से दिल की नसें कई बार सुन्न हो जाती हैं और दूसरा हार्ट में सूजन व कमजोरी की वजह से दिल का सामान्य तरीके से काम करना ज्यादा मुश्किल हो जाता है। नसें सुन्न होने की वजह से शुगर मरीज को कई बार हार्ट अटैक का पता भी नहीं चलता।
तुरंत राहत के लिए...
  • हार्ट अटैक हुआ हो तो मरीज को फौरन 300 mg की एस्प्रिन (Asprin) पानी के साथ दें। यह मार्केट में डिस्प्रिन (Disprin), एस्प्रिन (Easprin) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। तभी करें जब पहले कभी यह दवाई ले चुके हों। फिर भी डॉक्टर से पूछकर ही दवा लें।
  • सॉर्बिट्रेट या आइसोर्डिल भी ले सकते हैं। अगर यह दवा पहली बार ले रहे हैं तो बीपी अचानक काफी कम हो सकता है। इसलिए एस्प्रिन लेना ही बेहतर है। अगर एस्प्रिन न हो तो ही सॉर्बिट्रेट लें।
नोट: इसके बाद डॉक्टर से जरूर सलाह लें। आगे का इलाज वही बताएंगे।

कार्डिएक अरेस्ट
दिल किसी भी वजह से जब काम करना ही बंद कर दे या धड़कनें बहुत कम हो जाएं तो यह कार्डिएक अरेस्ट के लक्षण हो सकते हैं। वैसे तो इसमें डॉक्टरी सहायता सबसे जरूरी है, लेकिन फौरन मदद के लिए CPR (कार्डियो पल्मनरी रिससिटैशन ) देना चाहिए जो इमरजेंसी लाइफ सेविंग का तरीका है।
  • कार्डिएक अरेस्ट अचानक होता है।
  • इसमें कोई चलता-फिरता शख्स लड़खड़ाकर गिर जाता है।
  • वह बेहोश हो जाता है।
  • सांसें बंद हो जाती है या टूटने लगती हैं।
  • अमूमन दिल की धड़कन बंद हो जाती है। पल्स भी महसूस नहीं होती।
  • शरीर फौरन ही पीला पड़ने लगता है।
  • मरीज को बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट का वक्त होता है। वैसे पहले 3 मिनट सबसे कारगर हैं। इससे ज्यादा देर होने पर दिमाग पर बुरा असर होने की आशंका होती है। इसमें तुरंत CPR देने से फायदा होता है। बाद में इलेक्ट्रिक शॉक देना पड़ता है।
  • CPR (कार्डियो पल्मनरी रिससिटैशन) देने का तरीका
  • मरीज के पास घुटनों के बल बैठ जाएं और अपना राइट हैंड मरीज के सीने पर रखें। इसके ऊपर दूसरा हाथ रखें और उंगलियों को आपस में फंसा लें।
  • अपनी हथेलियों की मदद से अगले 10 मिनट के लिए सीने के बीच वाले हिस्से को जोर से दबाएं।
  • एक मिनट में 90 से 100 की रफ्तार से दबाएं।
  • ध्यान रखें कि हर बार दबाते वक्त सीना करीब एक इंच नीचे की ओर दबना चाहिए।
  • नब्ज देखने के लिए बीच में न रुकें। मरीज कोरोना से ग्रसित नहीं है तो मुंह से हवा दे सकते हैं।
नोट: अगर मरीज के बारे में यह पता हो कि उसका कोरोना ठीक हो चुका है, खासकर बच्चों के मामले में तो CPR के साथ-साथ मुंह-से-मुंह मिलाकर सांस भी देनी चाहिए। वैसे अभी कोरोना का दौर चल रहा है इसलिए मुंह से सांसें देने से बचना चाहिए। बड़ों में मुंह-से-मुंह मिलाकर सांसें देने की सलाह नहीं दी जाती। CPR देना सीख लेना काफी काम का हो सकता है।
नोट: इसे सीखने के लिए यू-ट्यूब पर जाएं और CPR Video लिखें। कई ऑप्शन मिल जाएंगे।

टेस्ट की शुरुआत घर से
ब्लड प्रेशर जांच: आजकल बीपी मशीन ज्यादातर घरों में मिल जाती है। ब्लड प्रेशर हाई होना दिल के लिए अच्छा नहीं है। नॉर्मल ब्लड प्रेशर 120/80 होता है और 130/85 को हाई मान लिया जाता है। अगर ऊपर बताए हुए लक्षणों के साथ बीपी की रीडिंग 160/100 हो जाए और पल्स रेट भी 120 से ऊपर हो तो डॉक्टर से जरूर बात करें।
D-Dimer और CRP टेस्ट: इससे यह पता चल जाएगा कि खून में थक्का जमने की प्रवृत्ति है या नहीं। वहीं इससे शरीर के भीतर की सूजन के बारे में पता चलता है।

अस्पताल में होने वाले टेस्ट
जब किसी की परेशानी बढ़ जाती है तो वह डॉक्टर के क्लिनिक पर या अस्पताल जाता है। वहां सबसे पहले ECG कराई जाती है। जरूर पड़ने पर अस्पताल में ECHO और MRI भी होते हैं। टेस्ट के बाद डॉक्टर की सलाह से दवा नियमित तौर पर जरूर लें।

कोरोना के बाद टाल सकते हैं कौन-सी सर्जरी
कोरोना से ठीक हुए हैं या अब तक कोरोना से बचे हुए हैं या फिर आपने एक या दोनों डोज वैक्सीन का ले लिया है। आपने पहले प्लैनिंग की थी कि सर्जरी को टाल देना चाहिए, कोरोना फिर से आ गया। फिर से कंफ्यूजन में हैं कि क्या करें। तो इसे टाल दें। क्योंकि जब हम किसी सर्जरी को प्लान करके कराते हैं तो आपात स्थिति नहीं है। इसका मतलब है कि उसे टाला जा सकता है। अगर पहले से ही टालते आ रहे हैं, लेकिन डॉक्टर का कहना है कि अब नहीं टाल सकते तो सर्जरी करा लेनी चाहिए। साधारण स्थिति मेें सर्जरी टालना बेहतर विकल्प है। अगर कोई शख्स कोरोना से उठा है तो उसकी इम्यूनिटी थोड़ी कमजोर जरूर होती है। कोरोना अब भी चल रहा है। अस्पताल में ज्यादातर सुविधाओं का इस्तेमाल कोविड के मरीजों के लिए हो रहा है।

इन सर्जरी को टाल सकते हैं
ट्यूबेक्टमी या वसेक्टमी: महिला नसबंदी या पुरुष नसबंदी एक ऐसी सर्जरी है जिसे टाला जा सकता है। अगर कोई महिला सर्जरी के द्वारा प्रेग्नेंसी करवाने के लिए भर्ती हुई है और पहले से ही उसकी प्लैनिंग ट्यूबेक्टमी की थी तो उसे करवा सकती है।
IVF और ब्यूटीफिकेशन: अगर किसी कपल ने इन विट्रोफर्टिलाइजेशन (कृत्रिम तरीके से गर्भाधान) की प्लैनिंग की है तो टाल सकते हैं। इसी तरह प्लास्टिक सर्जरी को भी टाल दें।
गॉल्ड ब्लेडर और किडनी में स्टोन: अगर इन दोनों जगहों पर मौजूद स्टोन से कोई परेशानी नहीं है।
कैटरैक्ट: अगर किसी को कैटरैक्ट यानी मोतियाबिंद की परेशानी है और अब तक सर्जरी नहीं कराई है।

और न टालें ये सर्जरी
किसी भी तरह की गंभीर परेशानी हो या जान का खतरा है या फिर देर करने से स्थिति हाथों से निकल जाएगी तो सर्जरी करा लेनी चाहिए। जैसे: दिल से जुड़ी समस्या, ब्लैक, वाइट या येलो फंगस के गंभीर इंफेक्शन, एडवांस स्टेज में कैंसर, अगर दुर्घटना की वजह से हड्डी टूट गई हो या फिर जगह से बुरी तरह खिसक गई हो या फिर इंजरी हो तो सर्जरी की जरूरत है। नोट: सर्जरी टालने या न टालने का फैसला डॉक्टर की सलाह से ही लें।

बच्चों की सेफ्टी
अच्छी बात यह है कि अभी तक कोरोना का असर बच्चों पर ज्यादा नहीं हुआ है। हां, कुछ मामले आए हैं जब यह बच्चों के लिए जानलेवा साबित हुआ है, लेकिन यह लगभग 1 फीसदी से भी कम हैं। जब कोरोना ने भारत में दस्तक दी थी तो अमेरिका में एक और बीमारी ने बच्चों के लिए परेशानी खड़ी करनी शुरू कर दी थी। यह पिछले साल अप्रैल की बात है। इस बीमारी का नाम दिया गया है MIS-C (मल्टिसिस्टम इंफ्लेमेट्री सिंड्रोम इन चिल्ड्रन)। शुरुआत में इसे कावासाकी सिंड्रोम (जापान में सबसे पहले बच्चों में यह बीमारी मिली थी) समझा गया था, लेकिन रिसर्च के बाद पता चला कि यह कोरोना से जुड़ा मामला है।
इन 5 बातों का रखें ध्यान
1. MIS-C की गंभीर परेशानी ज्यादातर बच्चों में नहीं होती।
2. जिन बच्चों को यह परेशानी होती है, उनमें लक्षणों पर ध्यान देना सबसे जरूरी है।
3. अगर लक्षणों को नजरअंदाज किया गया तो परेशानी बड़ी हो सकती है।
4. कोरोना होने के 8वें दिन से अगले 70 दिनों तक बच्चों पर निगाह रखें।
5. समय पर इलाज शुरू होने से ज्यादातर बच्चों की जान बच जाती है।

किसको ज्यादा खतरा: वैसे तो MIS-C का ज्यादा खतरा 2 से 16 साल तक के बच्चों में देखा गया है, लेकिन कुछ मामलों में यह 18 साल से ज्यादा उम्र वालों यानी बड़ों को भी हो सकता है।
कितने दिनों तक ज्यादा संभलकर रहें: कोविड होने के 10वें दिन से अगले 70 दिनों तक बच्चों पर निगाह रखनी चाहिए। कभी-कभी बिना लक्षण या कम लक्षण वाले को भी यह परेशानी हो सकती है। हालांकि, ऐसे मामले कम ही हुए हैं।
क्या MIS-C के सभी मरीज गंभीर होते हैं: वैसे तो इस तरह की परेशानी अभी 2 फीसदी से भी कम है और इसमें भी गंभीर मामले 1 फीसदी से भी कम हैं। दरअसल, बच्चों में कोरोना के लक्षण आए हों या न हों MIS-C की गुंजाइश बन सकती है। MIS-C का हर मामला गंभीर हो यह जरूरी नहीं, साथ ही लक्षणों को नजरअंदाज करने से परेशानी बढ़ सकती है।
क्यों होता है MIS-C: इसे ऑटोइम्यून डिजीज भी कह सकते हैं यानी जब शरीर का अपना इम्यून सिस्टम ही अपने अंगों के खिलाफ काम करने लगता है या उन पर हमला कर देता है तो MIS-C का मामला बनता है।

क्या हैं लक्षण
इसमें 1 या एक से ज्यादा अंग (हार्ट, लंग्स, किडनी, लिवर, दिमाग, आंतें आदि) भी प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए इसके लक्षणों में भी फर्क हो सकता है। यह मुमकिन है कि नीचे बताए हुए लक्षणों में से कुछ लक्षण ही दिखें। फिर भी इनमें सबसे ज्यादा मामले दिल से जुड़े ही मिले हैं। इसके लक्षणों की शुरुआत आमतौर पर बुखार से होती है। बुखार 3 दिन से ज्यादा रहे और टेंपरेचर ज्यादातर 101 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा हो। कभी-कभी 99 भी हो सकता है।
  • सांस लेने में परेशानी हो या बच्चे का दम फूले
  • आंखें लाल हो जाएं
  • होंठ फटने लगें
  • मुंह में छाले हो जाएं
  • डायरिया की तेज शिकायत हो
  • पेट में तेज दर्द हो
  • बच्चा बहुत चिड़चिड़ा हो जाए
  • बच्चा सुस्त रहने लगे
  • बच्चा शॉक में भी चला जाए
  • बीपी लो हो जाए
-जब ऐसे लक्षण हों तो डॉक्टर से जरूर मिलें। बच्चों का CRP और D-Dimer टेस्ट कराने पर ये अमूमन बढ़े हुए आते हैं। अगर टेस्ट में ये सामान्य से थोड़ा ही बढ़ा हुआ आए, लेकिन परेशानी ज्यादा हो तो इसे गंभीरता से ही लेना है।
- अगर ऐसे बच्चों का कोरोना IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट कराएं और वह भी पॉजिटिव आता तो इसका मतलब है कि शरीर में दोबारा उसी स्ट्रेन का कोरोना वायरस आने से शरीर उससे लड़ लेगा, लेकिन ऑटोइम्यून के मामलों में WBC अपने अंगों के खिलाफ ही काम करने लगते हैँ।
नोट: 1. MIS-C के मरीज में ऊपर बताए हुए लक्षण होने के बाद भी वह खाना ठीक से खा सकता है, पेशाब भी ठीक से होगा। ज्यादातर मामलों में ऑक्सिजन लेवल भी नॉर्मल ही आता है। लेकिन इन चीजों को देखकर निश्चिंत नहीं होना चाहिए।
2. कोरोना की तरह यह बीमारी एक से दूसरे में नहीं फैलती।
3. ऊपर बताए हुए लक्षण किसी दूसरी छोटी-मोटी बीमारी के भी हो सकते हैं। डॉक्टर से सलाह के बाद ही किसी फैसले पर पहुंचें।

इलाज कैसे हो
ऊपर बताए हुए लक्षणों में से अगर बच्चे में कुछ लक्षण दिखें तो डॉक्टर से सलाह लें। सलाह ऑनलाइन भी ले सकते हैं और अस्पताल जाकर भी।
अगर मामला गंभीर है तो...
  • डॉक्टर बच्चे को सीधे ICU में भी भर्ती करते हैं। कई बार बच्चे को फौरन वेंटिलेटर सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ सकती है। इसलिए आईसीयू में भर्ती किया जाता है। पैरंट्स को भी MIS-C का मामला दिखे तो ऐसे अस्पतालों में ही जाना चाहिए जहां आईसीयू की सुविधा हो।
  • अहम बात यह कि आईसीयू में भर्ती होने वाले MIS-C से पीड़ित ज्यादातर बच्चे 5 से 7 दिनों में ठीक भी हो जाते हैं।
  • ज्यादातर बच्चों को इम्यूनोग्लोब्युलिन (यह ऑटोइम्यून सिस्टम को दुरुस्त करने वाली दवा है) दिया जाता है।
नोट: जब बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो या दम फूले, बुखार काफी तेज हो और बीपी लो होने की परेशानी हो तो मामला गंभीर माना जाता है।

अगर गंभीर नहीं है तो...
  • डॉक्टर की सलाह पूरी तरह मानें।
  • दवाएं समय पर लें।
  • बच्चों में होने वाला हर बदलाव डॉक्टर को बताएं। ऐसे पीडिअट्रिशन से मिलें जो सही तरीके से आपकी बातों को सुनें। यह जरूरी नहीं कि डॉक्टर से हर दिन बात करें लेकिन 2 या 3 दिनों पर जरूर बात करें। डॉक्टर बात करने के लिए उपलब्ध हों। अगर बीच में जरूरत पड़े तो भी बात करें।
नोट: यहां दी गई जानकारी के आधार पर बीमारी या टेस्ट कराने के बारे में कोई फैसला न करें। डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. एस. सी. मनचंदा, एक्स हेड, कार्डियॉलजी डिपार्टमेंट, AIIMS
  • डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन, मेडिकल, IP यूनिवर्सिटी
  • डॉ. के. के. तलवार, सीनियर कार्डियॉलजिस्ट, PSRI
  • डॉ. प्रसन्ना भट्ट, सीनियर पीडिअट्रिशन
  • डॉ. नीरव बंसल, डायरेक्टर, कार्डियॉथोरैसिक सर्जरी, QRG हेल्थ
  • डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, सीनियर पीडिअट्रिशन

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

कोरोना के बाद डायबीटीज से डरें नहीं

$
0
0

इसे कोरोना का असर कहें या फिर स्टेरॉइड की ओवरडोज कि अब कुछ लोगों में ब्लड शुगर की परेशानी दिखने लगी है। जिन्हें पहले से डायबीटीज थी, उनके ग्लूकोमीटर में यह लेवल 300ं-400 तक पहुंच गया है। वहीं, जिन्हें कभी डायबीटीज नहीं थी, उनके लिए यह नई परेशानी बन गई है। पहली बार ब्लड शुगर बढ़ने की दिक्कत झेल रहे लोगों को लगने लगा है कि कहीं ज़िंदगीभर दवा और इंसुलिन न लेना पड़े? इन परेशानियों को दूर करने का तरीका क्या है? इस दौरान क्या खाएं और क्या न खाएं? क्या करें और क्या न करें? ऐसे तमाम सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स से बात कर दे रहे हैं नरेश तनेजा

5 सबसे खास बातें
  1. कोरोना के बाद शुगर के मामलों में यह भी देखा गया है कि लोगों को पहले से शुगर था, लेकिन उन्हें पता नहीं था। HbA1c टेस्ट कराकर देखना चाहिए। शुगर पर नियंत्रण के लिए लंबे समय तक या हमेशा के लिए दवा लेनी पड़ सकती है।
  2. अगर कोरोना के पोस्ट कोविड इफेक्ट्स की वजह से शुगर हुआ है तो यह HbA1c टेस्ट से पता चल जाएगा। यह सामान्य या हल्का बढ़ा हुआ आएगा। ऐसे में कुछ हफ्तों तक दवा या इंसुलिन लेने से यह नियंत्रण में आ जाता है।
  3. रात के खाने में अगर कार्बोहाइड्रेट्स (चावल/रोटी या मिठाई आदि) की मात्रा को न के बराबर कर दें तो शुगर नियंत्रण में इससे काफी मदद मिलती है।
  4. कोरोना के बाद शुगर होने की परेशानी उन लोगों में ज्यादा देखी गई है जिनका वजन ज्यादा रहता है या जिनकी टमी बाहर निकली होती है। इसलिए ऐसे लोगों को अपने वजन पर काबू करना बहुत जरूरी है। वैसे भी मोटापा कई बीमारियों की जड़ है। इससे बीपी की परेशानी भी बढ़ जाती है।
  5. हर दिन 5 मिनट योग और 10 मिनट एक्सरसाइज करने से भी फायदा होगा। अगर इससे ज्यादा वक्त तक करने की क्षमता है तो इसे धीरे-धीरे बढ़ाए शुरुआत में हेवी न करें।
जितना चुनौतीपूर्ण कोरोना को हराना है, उतना ही चुनौतीपूर्ण है कोरोना के बाद सामने आने वाले लक्षणों को दूर करना। कोरोना का असर हमारे शरीर के भीतर और बाहर, हर तरफ होता है। कुछ लोगों में इससे शरीर के भीतर के कई खास अंगों का कामकाज सीधे तौर प्रभावित होता है। इनमें दिल, किडनी, फेफड़े, आंतें और पैंक्रियास (अग्नाशय) खास हैं। शुगर की समस्या अमूमन पैंक्रियास में गड़बड़ी की वजह से ही पैदा होती है। कोरोना की वजह से जिन लोगों में भी शुगर की परेशानी हुई है उनमें से ज्यादातर में यह टाइप-2 डायबीटीज है। ऐसे लोगों में इंसुलिन बनना बिलकुल बंद नहीं होता, हां कुछ कम हो जाता है। कुछ दिनों तक दवा या इंसुलिन और खानपान का ध्यान रखकर इस पर काबू किया जा सकता है। वहीं टाइप-1 शुगर का मतलब है कि ऐसे लोगों में इंसुलिन का बनना न के बराबर होता है। ऐसे लोगों को शुगर पर काबू पाने के लिए ज़िंदगीभर इंसुलिन और दवा ही लेनी पड़ती है।

क्यों बढ़ता है ब्लड शुगर लेवल
हम जब भी कुछ खाते हैं तो शरीर में ग्लूकोज का स्तर बढ़ता है। इसे काबू में करने का काम पैंक्रियास का है। पैंक्रियास में मौजूद बीटा सेल्स से ही इंसुलिन बनता है। जब कोरोना होता है तो बाकी अंगों की तरह पैंक्रियास में भी सूजन हो जाती है। ऐसे में बीटा सेल्स के इंसुलिन बनाने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। स्वाभाविक तौर पर शरीर में शुगर लेवल बढ़ जाता है। सूजन कम होने पर शुगर भी काबू में आ जाती है। इसलिए सूजन कम करना और शुगर को काबू में करना जरूरी है। नहीं तो इसका असर शरीर के कई अंगों जैसे, आंखों, नसों और इम्यूनिटी आदि पर भी होता है। वैसे बहुत-से लोगों को पहले से अपने शुगर लेवल के बारे में पता नहीं होता। जब कोरोना होता है तो टेस्ट कराने पर वे मान लेते हैं कि कोरोना की वजह से ही शुगर लेवल बढ़ा है। शुगर की परेशानी का सीधा संबंध ब्लड प्रेशर से भी है। जब शरीर में शुगर का लेवल बढ़ता है तो बीपी बढ़ता है या जब बीपी बढ़ता है तो शुगर होने या इसके बढ़ने की आशंका सबसे ज्यादा होती है। इन दोनों का असर दिल, किडनी और लिवर पर पड़ता है।

किडनी पर शुगर का असर
किडनी पर तो शुगर का असर सबसे पहले होना शुरू होता है। इसलिए शुगर मरीज को अपनी किडनी का जरूर ध्यान रखना चाहिए। हर 6 महीने पर KFT (किडनी फंक्शन टेस्ट) करवाना चाहिए। इससे शरीर में क्रिएटिनिन और यूरिया का स्तर पता चलता है। बढ़ने का मतलब है किडनी खराब होनी शुरू हो चुकी है।

दिल को कैसा खतरा
शुगर बढ़ने से खून की नसें सख्त हो जाती है। इससे बीपी बढ़ता है हार्ट अटैक का खतरा भी बढ़ जाता है। इतना ही नहीं शुगर बढ़ने से नसें भी सुन्न पड़ने लगती हैं। इससे पैरों में चोट आदि का अहसास नहीं होता और गैंगरीन (घाव होने पर मुश्किल से ठीक हो पाता है। कई बार अंग को भी काटना पड़ता है।) हो जाता है।

जिगर के काम पर असर
हमारे शरीर में 300 तरह के काम करने वाला इकलौता अंग है लिवर। शुगर बढ़ने से इसके कामकाज पर असर होता है। यहां से पैदा होने वाले एंजाइम का उत्पादन कम हो जाता है। शुगर के मरीज में फैटी लिवर की शिकायत सबसे ज्यादा होती हे। इसलिए शुगर को काबू में रखना बहुत जरूरी है।

ऐसे लोग क्या करें?
कोरोना होने पर जब बुखार नहीं उतरता तो स्टेरॉइड दी जाती हैं। इसका असर शुगर लेवल पर भी पड़ता है। यह लेवल 300 से ऊपर जा सकता है, लेकिन परेशान होने की जरूरत नहीं। सिर्फ कुछ बातों का ध्यान रखना है:
  • कोरोना से पहले शुगर बढ़ने की परेशानी थी या नहीं, यह देखने के लिए कोरोना से ठीक होने के फौरन बाद HbA1c शुगर टेस्ट भी कराएं। इस जांच से पिछले 3 महीने की शुगर की स्थिति का पता चलता है। अगर रिपोर्ट में यह 6.5 से कम आता है तो मतलब है कि पहले शुगर नहीं थी। अगर इससे ज्यादा आ रहा है तो शुगर पहले से बढ़ी हुई थी।
  • जब तक स्टेरॉइड लिए हैं, उसके 40 से 50 दिनों के बाद तक भी शुगर में कुछ वक्त के लिए बढ़ोतरी देखी जा सकती है। इसलिए कोरोना से उबरने के बाद भी शुगर पर सख्ती से काबू पाना जरूरी है।
  • ब्लड शुगर पर काबू के लिए जल्द से जल्द एंडोक्राइनॉलजिस्ट (डायबीटीज के एक्सपर्ट) से बात करनी चाहिए।
  • ग्लूकोमीटर की मदद से घर पर दिन में कम से कम 3 बार अपने ब्लड शुगर के लेवल की जांच करनी चाहिए: सुबह खाली पेट, दोपहर के खाने से पहले और रात के खाने से पहले। दवा या इंसुलिन की मात्रा उसी के हिसाब से दी जाती है।
जरूरी है दवा और इंसुलिन
  • यह मुमकिन है कि शुगर पर काबू के लिए दवाओं के साथ इंसुलिन भी कुछ दिनों के लिए लेनी पड़े। जब शुगर काबू में आ जाएगी तो फिर इंसुलिन के साथ दवा भी बंद हो जाएगी। इंसुलिन से डरना नहीं चाहिए, यह सेफ है। इतना ही नहीं, दवा की तुलना में इंसुलिन के साइड इफेक्ट्स भी काफी कम हैं। इंसुलिन लेने से पहले शुगर की जांच करें और डॉक्टर की सलाह से इंसुलिन की खुराक को एडजस्ट करें।
  • ऐसा भी हो सकता है कि शुगर लेवल कम हो जाए। शुगर लो होने पर बहुत कमजोरी होती है। इसलिए घर पर लो ब्लड शुगर को मैनेज करना आना चाहिए। ब्लड शुगर का लेवल 70 से कम होने पर तुरंत 3 चम्मच शुगर या ग्लूकॉन-डी पाउडर लें।
  • एंडोक्राइनॉलजिस्ट से फोन और विडियो से सलाह ले सकते हैं।
  • रोजाना भरपूर पानी (हर दिन 7 से 8 गिलास) और तरल पदार्थ (1 गिलास छाछ या नमकीन लस्सी और शिकंजी) लें।
  • अभी पार्क में जाना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए जितना हो, घर पर ही टहलने (40 से 45 मिनट तक) की कोशिश करें। अगर टहलना मुमकिन न हो तो 30 मिनट की एक्सरसाइज और 15 मिनट योग व प्राणायाम करें।
  • जब शरीर इंसुलिन बनाना पूरी तरह बंद कर देता है तो शुगर लेवल बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। यह 500-600 से भी ऊपर जा सकता है। इसमें मरीज को लगातार उल्टी और पेट दर्द होने लगता है। यह डायबीटिक कीटोएसिडोसिस (Diabetic Ketoacidosis) का संकेत हो सकता है।
आमतौर पर यह टाइप-1 डायबीटीज वालों को ज्यादा होता है। यह एक गंभीर परेशानी है। इसमें फौरन ही इलाज की जरूरत होती है। इसलिए ऐसे लोग जिनहें शुगर होने की आशंका है या जिनके घर में डायबीटीज का इतिहास रहा है, वे ज्यादा सचेत रहें।

ऐसा बिलकुल न करें
  • हाई ब्लड शुगर को नजरअंदाज करना
  • अपनी चल रही दवाओं को बंद करना
  • कोई भी नई दवा अपने आप शुरू करना
खानपान में बदलाव है जरूरी

कब-कब, क्या-क्या खाएं
जब शरीर को स्टेरॉइड मिलता है तो यह भूख को भी तेज करता है। इसकी वजह से हम ज्यादा खाना खाते हैं। फिर शुगर को काबू में करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए हमें ऐसा खाना खाना चाहिए जिसमें कैलरी कम, लेकिन पोषण ज्यादा हो। आइए देखते हैं सुबह से रात तक की हमारी डाइट कैसी हो:

सुबह उठना: 6 से 7 बजे
  • 6 से 8 घंटे की नींद पूरी होनी चाहिए।
  • फ्रेश होने के बाद सबसे पहले शरीर को डिटॉक्सिफाई करने के लिए एक गिलास सादा पानी में आधा नीबू निचोड़ कर पी लें।
योग और एक्सरसाइज
अगर अभी कमजोरी महसूस होती है तो 5 मिनट के लिए प्राणायाम और 10 मिनट के लिए वॉर्मिंग एक्सरसाइज करें। कमजोरी नहीं है तो प्राणायाम के साथ सूर्य नमस्कार और 20 से 25 की एक्सरसाइज करें। अगर एक्सरसाइज नहीं करना चाहते तो प्राणायाम के साथ 10 से 15 मिनट के लिए अपने पसंदीदा गाना लगाएं और फिर अपनी ही शैली में डांस करें।

ब्रेकफस्ट: सुबह 8 से 9 बजे
  • भूख और ब्लड शुगर को काबू में करने के लिए हर दिन के भोजन में फाइबर वाले खाने की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए।
  • यह पूरे दिन के सभी खानपान में सबसे ज्यादा भरापूरा होना चाहिए।
  • इसमें मिक्स्ड आटे की चपाती/मूंग दाल का चीला/ दलिये के साथ कम तेल और मसाले वाली 1 कटोरी मौसमी हरी सब्जी, 1 कटोरी पनीर की सब्जी या 2 अंडे (सिर्फ सफेद भाग) और 1 प्लेट सलाद।
ऐसे करें मिक्स्ड आटा तैयार
मान लें कि 10 किलो मिक्स्ड आटा तैयार करना है तो इसमें 6 किलो गेहूं+ 2 किलो चना दाल+1 किलो ज्वार+1 किलो बाजरा मिलाकर पीस लें। यह पौष्टिक आटे का अच्छा विकल्प है। इनका अनुपात 6:2:1:1 रहता है। इसमें चाहें तो इनकी मात्रा कम ज्यादा कर सकते हैं। साथ ही इसमें गेहूं या दाल की मात्रा 1 किलो कम करके 1 किलो मक्का मिला सकते हैं।
सलाद में: खीरा, गाजर, चुकंदर, टमाटर और धनिया पत्ता शामिल हों। नमक और नीबू अपनी इच्छा से लें। वैसे नेचरोपैथी के मुताबिक सलाद में नमक और नीबू मिलाने की मनाही है।

लंच: दोपहर 1 से 2 बजे
अगर सुबह चपाती नहीं खाए हैं तो लंच में 1 से 2 चपाती और 1 कटोरी दाल। अगर सुबह पनीर की सब्जी ले चुके हैं तो सिर्फ मौसमी सब्जी लें। आधा प्लेट सलाद खा सकते हैं। नॉनवेज खाते हैं तो हफ्ते में 2 से 3 दिन चिकन या फिश भी एक टाइम खा सकते हैं। यह भी ध्यान रहे कि यह कम तेल और मसाले में पका हो। खाने में दही भी लें।

लंच के बाद: शाम 4 से 6 बजे
  • 1 कटोरी भुने हुए चने या 1 कटोरी मखाने या 1 प्लेट पोहा लें। अगर पहले स्प्राउट नहीं लिए हैं तो इस वक्त ले सकते हैं। फिर बाकी चीजों को छोड़ सकते हैं।
  • 1 गिलास चना सत्तू ड्रिंक नमक, जीरा पाउडर और नीबू के साथ भी पी सकते हैं। 1 गिलास पानी में 2 से 3 चमच सत्तू और 2 से 3 चुटकी नमक और 2 चुटकी जीरा के साथ पी सकते हैं।
  • कटोरी जामुन बिना नमक के खाएं।
  • 1 से 2 अखरोट या 4 से 5 बादाम का सेवन भी हर दिन कर सकते हैं। बादाम रात को पानी में भिगो दें। छिलका हटाकर खा सकते हैं।
डिनर: रात 8 से 9 बजे
वैसे तो हर शख्स का डिनर ड्राई (कैलरी की मात्रा कम) हो तो बहुत बढ़िया है। डायबीटीज के मरीज के लिए यह और भी जरूरी हो जाता है। शुगर कंट्रोल के लिए रात के खाने में कार्बोहाइड्रेट्स (चावल, रोटी, ब्रेड) न के बराबर हो। रात में अगर पेट भरना हो तो 2 कटोरी दाल, 1 कटोरी हरी सब्जी और 1 प्लेट सलाद या फ्रूट सलाद लें।

ये भी उपाय आयुर्वेद में भी इलाज
  • शुगर का सीधा संबंध तनाव से है। इसलिए मन को शांतचित्त और खुश रखने से तनाव कम होगा। इससे शुगर लेवल नहीं बढ़ेगा।
  • आयुर्वेद में डायबीटीज के इलाज के लिए कई दवाएं हैं, जैसे सप्तपर्ण, गुड़मार, मामज्जक घनवटी, शिलाजीत, निशा आमलकी, सहजन आदि। इनमें से किसी एक का सेवन करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा बेल के पत्ते का जूस, मेथी, आंवला, हल्दी, लहसुन का सेवन भी डायबीटीज में फायदेमंद बताया जाता है।
  • आयुष मंत्रालय ने 'आयुष 82' नाम की दवा भी ईजाद की है, जिसे अलग-अलग कंपनियां अलग-अलग नाम से बेच रही हैं। इस दवा को शुगर कंट्रोल करने के अलावा डायबीटीज में होनेवाली आंखों, किडनी और न्यूरो की दिक्कतों को कम करने में भी असरदार माना जा रहा है।
  • जामुन की गुठली, तेज पत्ता, बेल के पत्ते, नीम के पत्ते और आम के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीसकर पाउडर बना लें। दोपहर और रात के खाने के बाद एक छोटा चम्मच पानी के साथ लें।
  • रात को 1 चम्मच मेथी दाना, 1 गिलास पानी में भिगो लें। सुबह छान कर उस पानी को पी लें।
  • सकारात्मक चीजें देखें। सकारात्मक ही सोचें। टीवी, रेडियो के प्रोग्राम भी सोच-समझकर ही चुनें। कॉमिडी और पसंदीदा गीत-संगीत देखें।
  • योगासन, सूर्य नमस्कार करें।
  • रोजाना 5 से 10 मिनट के लिए मेडिटेशन करें।
होम्योपैथी
स्टेरॉइड्स से बढ़े ब्लड शुगर लेवल के लिए: Nux Vomica
कितनी: 4-5 गोलियां, दिन में एक बार। हो सके तो शाम को 5 से 7 बजे के बीच लेना ज्यादा फायदेमंद।
कितने दिन: 15 दिन तक लें। फिर टेस्ट कराएं, अगर जरूरत हो तो डॉक्टर की सलाह से लें।
किस बात का ध्यान रखें: दवा लेने के 30 मिनट पहले और 30 बाद में कुछ न खाएं और न पिएं।
शुगर की वजह से आई कमजोरी को दूर करने के लिए: Five Phos 6x
कितनी: 2 गोलियां दिन में कभी भी एक बार लें।
कितने दिन: 15 दिनों तक
नोट: कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह से ही लें।

नेचरोपैथी
कुदरती चिकित्सा में भी शुगर लेवल को काबू में करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इसमें दवा नहीं दी जाती।

गीली पट्टी
सुबह पेट साफ होने के बाद 15 से 20 मिनट के लिए छाती से नीचे और पेट के बीच में एक पट्टी को लपेट लें। इससे शरीर की गंदगी निकलती है।

कटिस्नान
गीली पट्टी के बाद 15-20 मिनट कटिस्नान लें। एक टब में बैठ जाएं। पैर बाहर निकाल लें। सिर्फ कमर और नाभि तक का हिस्सा पानी में डूबा रहे। बैठने से पहले एक-दो गिलास पानी पी लें। इससे कोरोना के इलाज के दौरान ली दवाइयों की गर्मी शांत हो जाएगी। लिवर और पैंक्रियास का कामकाज ठीक हो जाएगा।

गर्म पट्टी
रात को सोते वक्त गर्म पट्टी बांधें। 6 फुट लंबे और 6 इंच चौड़े एक कपड़े को गर्म पानी में भिगो-निचोड़कर पेट और कमर के इर्दगिर्द लपेट लें। इसके नहाने के बाद नाभि में सरसों, नारियल या बादाम का तेल लगा सकते हैं।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. अंबरीश मित्तल, हेड, एंडोक्राइनॉलजी, मैक्स हॉस्पिटल
  • डॉ. अशोक झिंगन, सीनियर डायबीटीज एक्सपर्ट
  • डॉ. आर. एन. कालरा, डायरेक्टर, कालरा हॉस्पिटल
  • डॉ. परजीत कौर, सीनियर डायबीटीज एक्सपर्ट, मेदांता
  • डॉ. प्रताप चौहान, डायरेक्टर, जीवा आयुर्वेद
  • डॉ. मुकेश बत्रा, चेयरमैन, बत्रा होम्योपैथिक क्लिनिक
  • शुभदा भनोट, डायबीटीज एजुकेटर और डाइटिशन
  • आचार्य विक्रमादित्य, डायरेक्टर, विवेकानंद नेचर क्योर हॉस्पिटल
नोट: यहां दी गई जानकारी के आधार पर बीमारी या टेस्ट कराने के बारे में कोई फैसला न करें। डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


योग से बनें योग्य

$
0
0

योग करने से शरीर निरोग होता है। ऐसा तब होता है जब योग सही तरीके से किया जाए। तन और मन को सेहतमंद बनाए रखने के लिए योगासन, प्राणायाम और ध्यान करने के दौरान गलतियां खत्म करने से ही बात बनेगी। जाने-माने योग गुरुओं और मॉडर्न मेडिकल सिस्टम के डॉक्टरों से बात करके योग क्रियाओं के दौरान होने वाली गलतियों और सावधानियों के बारे में बता रहे हैं लोकेश के. भारती

पुराने दौर में योग आमतौर पर सबके लिए सुलभ नहीं था। इसे ऋषि-मुनि अपने तन-मन को सेहतमंद रखने और खुद को परमात्मा से जोड़ने के लिए करते थे। उन्होंने योगासन, प्राणायाम और ध्यान करने के सही तरीके, समय आदि के नियम बनाए। जब योग आम लोगों के बीच पहुंचा तो इसके तरीकों में कुछ बदलाव हुआ। लेकिन इस दौरान योग की बारीकियों पर ध्यान नहीं दिया गया। यही वजह है कि योग से जितना फायदा मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है। दरअसल योग करना जितना अहम है, उससे कहीं ज्यादा जरूरी है सही तरीके से करना। बहुत-से लोगों को यह भी पता नहीं है कि सीधे प्राणायाम या ध्यान नहीं करना चाहिए। सही क्रम है आसन, प्राणायाम आखिर में ध्यान। इस क्रम को तोड़ना है तो सूक्ष्म क्रिया जरूर करनी चाहिए। आसनों से पहले सूक्ष्म क्रिया की जानी चाहिए।


कौन, कब, कैसे करे योग
3 साल से बड़ा कोई भी बच्चा योग कर सकता है। 12 साल की उम्र तक हल्के योगासन और प्राणायाम जैसे वृक्षासन व शीतकारी ही करना चाहिए।

योग में लगाएं कितना वक्त
अगर आसन, प्राणायाम और ध्यान की बात करें तो सामान्य हालात में पूरा सेशन 70 मिनट का होना चाहिए। वैसे इसे 40 मिनट का भी बना सकते हैं। इसमें हर क्रिया को आधे समय में करना है। सिर्फ आराम की क्रिया को 5 मिनट रखना है। इसके लिए किसी योग एक्सपर्ट से जरूर सलाह लेनी चाहिए।
योगासन : 30 मिनट
आराम या शवासन : 5 मिनट
प्राणायाम : 15 मिनट
आराम या शवासन : 5 मिनट
ध्यान : 15 मिनट

सूर्य नमस्कार: सूर्य नमस्कार को भी योगासन के समय में ही करना है। इसे मैराथन आसन कह सकते हैं। इसलिए सूर्य नमस्कार शुरुआत में 1 से 2 बार करना चाहिए। सूर्य नमस्कार में कुल 8 आसन होते हैं जिन्हें 12 स्टेप में किया जाता है। सूर्य नमस्कार को शुरुआती 3 से 4 महीनों में 2 बार ही करना सही है। फिर इसकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ाएं। अगर कोई शख्स 3 साल से ज्यादा समय से सूर्य नमस्कार कर रहा है तो 9 बार तक कर सकता है, लेकिन अपनी क्षमता देखने के बाद। योग में सबकुछ आसानी से होना चाहिए, जबर्दस्ती कुछ भी नहीं।
पूरी योग क्रिया को 3 भागों में बांट सकते हैं और इसी क्रम में योग क्रियाएं की जानी चाहिए:
1. आसन
2. प्राणायाम
3. ध्यान

आसन
सुबह का समय आसन के लिए सबसे अच्छा माना गया है। अगर सुबह वक्त न मिले तो शाम को भी कर सकते हैं। यह ध्यान रखना है कि योग करने से पहले पेट कम से कम 2 घंटे से खाली हो। अगर पानी पीना है तो 1 घंटा पहले तक पी सकते हैं। सुबह लोग आमतौर पर खाली पेट होते हैं, शाम के समय इस बात का खास ध्यान रखना जरूरी है।
क्या करते हैं गलतियां

खानपान और पहनावे का ध्यान न रखना
  • लोग खानपान का ध्यान नहीं रखते। सुबह चाय पीकर योग शुरू करते हैं। इससे अच्छा है कि योग करने से एक घंटा पहले 1 गिलास सामान्य या आधा नीबू निचोड़ कर पानी पी लें। इससे शरीर डिटॉक्सिफाई भी हो जाता है। शरीर से हानिकारकर पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। चेहरे पर ताजगी का भाव आ जाता है। खाली पेट चाय पीने से गैस बनती है।
  • योग करते समय पहनावा हमेशा ही ढीला होना चाहिए ताकि हवा भी अंदर पहुंचे और शरीर को मोड़ने या झुकाने में परेशानी भी न हो।
सूक्ष्म क्रियाओं को भूल जाना
जिस तरह एक्सरसाइज करने से पहले वॉर्मअप जरूरी होता है, उसी तरह योग क्रिया से पहले सूक्ष्म क्रियाएं करना भी जरूरी है। सूक्ष्म क्रियाएं न करने से शरीर को आसनों का पूरा फायदा नहीं मिलता। इसलिए 5 से 10 मिनट की सूक्ष्म क्रियाएं कर सकते हैं। इसे बैठकर या खड़े होकर कर सकते हैं जैसे गर्दन को आगे-पीछे, दाएं-बाएं करना। इसी तरह की क्रिया हाथों के साथ भी करना है। इसे किसी योग गुरु से सीख सकते हैं।
  • कुछ लोग बिस्तर पर लेट कर ही सूक्ष्म क्रियाएं करने लगते हैं। इससे फायदा कम और नुकसान -ज्यादा होता है। इसे समतल जमीन पर मैट या दरी बिछाकर खड़े होकर या बैठकर करना है।
आसनों का क्रम गलत रखना
योगासन इस क्रम से करने चाहिए:
1. पहले खड़े होकर: वायुयानासन, हस्त पादांगुष्ठासन, त्रिकोणासन, गरुड़ासन आदि।
2. इसके बाद बैठकर: पवनमुक्तासन, पश्चिमोत्तानासन, भद्रासन, पक्षी क्रिया आदि।
3. फिर पीठ के बल लेटकर: शवासन, बालासन, उत्तानपादासन, नौकासन आदि।
4. आखिर में पेट के बल लेटकर: शिथिलासन, भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन आदि।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन लोगों को योगाभ्यास करते हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है, वे हर तरह के आसनों में से 3-3 आसन चुन सकते हैं। इस तरह कुल 12 आसन हो जाएंगे। इस कोशिश में न रहें कि ज्यादा तरह के आसन करने हैं।


सांसों के साथ तालमेल न रखना
योग करते समय सांसों का तालमेल सही रखना जरूरी है। ज्यादातर लोग सांसों की तारतम्यता पर ध्यान नहीं देते। योग का मकसद है शरीर में प्राण का संचार हर अंग, हर कोशिका तक हो। ऐसे में प्राण वायु का वहां तक पहुंचना जरूरी है। इसलिए जब योग गुरु यह बताए कि कोई आसन करते समय कब सांसों को अंदर खींचना है ताकि फेफड़े अपनी पूरी क्षमता से फैल सकें और कब सांस को बाहर छोड़ना है ताकि शरीर में उस श्वसन क्रिया के बाद और अगली श्वसन क्रिया से पहले हानिकारक गैस बाहर निकल जाए तो इस पर जरूर गौर करें। किसी आसन को करते वक्त जब झुकते हैं तो सांस बाहर निकालते हैं और जब पीछे की तरफ जाते हैं तो सांस भरते हैं।

शरीर का बैलेंस ठीक न रखना
योग करते समय जब हम खड़े होते हैं तो दोनों पैरों पर बराबर भार रखना जरूरी है। ऐसा न करने से जिस पैर पर ज्यादा भार होगा, उसमें दर्द और सूजन हो सकती है। हमारे दोनों तलवों पर शरीर का भार बराबर रहना जरूरी है। अगर सही तरीके से योग न करें तो फायदे से ज्यादा नुकसान होता है।
  • त्रिकोणासन आदि जिन्हें लोग खड़े होकर करते हैं। इन्हें करते समय ऐसी गलती ज्यादातर लोग करते हैं।
दर्द को दबा देना
जब हम कई महीनों से लगातार आसन कर रहे हों तो योगासन करने की आदत हो जाती है। अगर किसी वजह से चोट लग जाए या किसी अंग में दर्द हो जाए तो उसे नजरअंदाज करके या दबाकर आसन करने लगते हैं। यह पूरी तरह गलत है। इस बात का ध्यान रखें कि जिस भी अंग में चोट लगी हो उस अंग पर दबाव बनाने वाले आसन न करें और दूसरे आसनों को करने से पहले भी योग एक्सपर्ट से बात कर लें। ताकि आगे की परेशानी से बच सकें।

पूरक आसन न करना
अगर हमने गर्दन या कमर को आगे झुकाया है तो उसे पीछे भी झुकाना पड़ेगा। इसे पूरक आसन कहते हैं। अगर किसी ने अपने शरीर के अंगों को किसी एक ही दिशा में झुकाया और पूरक नहीं किया तो वह आसन पूर्ण नहीं माना जाएगा। इसलिए हर आसन को पूरा करने के लिए पहले पूरक आसन करें, इसके बाद ही दूसरा आसन शुरू करें। ऐसा नहीं करने से फायदा भी नहीं होगा और नुकसान होने का खतरा भी बना रहेगा। किसी खास अंग में खिंचाव भी मुमकिन है।


अपनी क्षमता से नहीं, दूसरों की नकल करना
अगर हम ग्रुप में योग क्रिया (आसन, प्राणायाम या ध्यान) करते हैं तो इस तरह की भावना पैदा होती है। मान लें कि हमारा पेट निकला हुआ है तो जब हम आगे झुकेंगे तो अपने घुटने को सीध में रखते हुए पैरों के अंगूठे को छूने की कोशिश में पेट बीच में आएगा। लेकिन किसी दूसरे को पैरों के अंगूठे को छूते हुए देखकर हम भी जोर लगाने लगें तो यह गलत है। हर कोई अपने पैर के अंगूठे को छू सकता है, लेकिन यह धीरे-धीरे अभ्यास से तब होगा, जब पेट अंदर जाएगा। इसलिए कभी भी दूसरों को देखकर अपने शरीर को मोड़ने या झुकाने की कोशिश न करें।

नियमित और नियत समय पर न करना
योग एक्सरसाइज की तरह नहीं है। अगर कोई हफ्ते में 4 दिन भी एक्सरसाइज करेगा तो काम चल जाता है। लेकिन योग नियमित और नियत क्रिया है जिसे हर दिन और एक निश्चित समय पर करना चाहिए। इसे अगर सुबह 6 बजे मैट या दरी बिछाकर, बालकनी में करना है तो हरेक दिन करना है। बार-बार समय बदलने से गंभीरता भी कम होती है और निरंतरता भी। इससे जितना फायदा मिलना चाहिए, उतना नहीं मिलेगा। वैसे न करने से अच्छा है योग करना।

क्या कहते हैं हड्डियों के डॉक्टर
योगासनों की अहमियत को आमतौर पर सभी डॉक्टर मानते हैं। उनका भी कहना है कि योगसन सही तरीके से करें तो बहुत फायदेमंद है। फिर भी वे कुछ समय के लिए योगासनों से बचने की सलाह देते हैं।
रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्या: अगर किसी को रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्या (सर्वाइकल) है तो ऐसा कोई भी आसन नहीं करना जिसे करने के दौरान आगे झुकना पड़े। इससे यह परेशानी बढ़ सकती है। इसी तरह कपालभाति और दूसरे प्राणायाम भी नहीं करने चाहिए जिसमें कमर सीधी करके बैठने में परेशानी होती हो।
बवासीर और घुटने व एड़ियों की चोट से पीड़ित: ऐसे लोगों को वज्रासन में नहीं बैठना चाहिए।
हार्ट के मरीज, हाइपरटेंशन, अस्थमा आदि की परेशानी: अगर किसी को हाई बीपी या दिल की परेशानी है तो मयूरासन, शीर्षासन और हलासन नहीं करना। इन्हें करने से शरीर में अतिरिक्त ऊर्जा पैदा होती है जो बीपी बढ़ाती है। भस्त्रिका प्राणायाम भी नहीं करना चाहिए।
हर्निया: पीछे झुकने वाले आसन नहीं करने चाहिए।
सर्जरी के बाद: अगर किसी भी तरह की सर्जरी हुई है तो 3 से 4 महीने तक कोई भी आसन नहीं करना चाहिए। अगर फिर से आसन शुरू करने हैं तो डॉक्टर और किसी योग एक्सपर्ट की सलाह से ही करना चाहिए।


प्राणायाम
सांस ही प्राण है। प्राण शरीर की हर कोशिका और अंग में मौजूद है। जब तक प्राण शक्ति है तब ही कोई शख्स जिंदा रहता है। इसी प्राण को सेहतमंद बनाए रखने का काम प्राणायाम करता है।
आसनों के बाद प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। यहां ऐसे 5 प्राणायाम दिए जा रहे हैं, जिनका रोजाना अभ्यास करना चाहिए। हालांकि कपालभाति प्राणायाम नहीं है लेकिन इसे प्राणायाम की श्रेणी में रखकर ही अभ्यास किया जाता है।
ये हैं 5 प्राणायाम
कपालभाति, अनुलोम-विलोम, उज्जायी, भ्रामरी, भस्त्रिका, शीतली

क्या करते हैं गलतियां
इन बातों को भूल जाना
  • योगासन करने के बाद 5 मिनट आराम या शवासन में रहना चाहिए। इसके बाद ही प्राणायाम शुरू करना चाहिए।
  • अगर योगासन नहीं किए हैं तो सूक्ष्म क्रियाएं करना बेहद जरूरी है। शरीर को अचानक ही प्राणायाम में होने वाली क्रिया में नहीं डालना चाहिए।
  • अगर योगासन के बाद इसे कर रहे हैं तो स्वाभाविक है कि पेट भी 2 घंटे से ज्यादा खाली होगा। अगर इसे सीधे कर रहे हैं तो भी 2 घंटे से पेट खाली होना चाहिए। शाम को इस बात का खासतौर पर ध्यान रखना है, नहीं तो एसिडिटी, अपच आदि की परेशानी हो सकती है।
  • प्राणायाम के दौरान बार-बार उठें नहीं। इसे चलते-चलते भी न करें। पूरी क्रिया एक बार में पूर्ण करें।
  • सांस धीमी और गहरी होनी चाहिए। सांस जितनी गहरी होगी, हमारा शरीर हर सांस से उतनी ही ज्यादा ऑक्सिजन का इस्तेमाल कर पाएगा।
  • प्राणायाम करते समय शुरुआत में सांसों की गति बिलकुल धीमी हो।
  • एक सामान्य शख्स 1 मिनट में 15 से 20 बार सांस लेता है।
सांस लेने का सही तरीका
  • जब हम सांस अंदर खींचते हैं तो हमारा पेट और छाती बाहर की ओर निकलना चाहिए। इसी तरह जब हम सांस छोड़ते हैं तो पेट और छाती अंदर की ओर आनी चाहिए। आमतौर पर हम ऐसा नहीं करते, ठीक इसका उलटा होता है। इससे भी सांसों से जुड़ी परेशानी होती है।
  • हमें सांस लेने में जितना वक्त लगता है, उससे ज्यादा वक्त उसे छोड़ने में लगाना चाहिए।
हर सांस में ये 4 चीजें यानी SSLD का होनी जरूरी हैं:
1. Smooth: सांस हमेशा आराम से लें।
2. Slow: धीमे से लें।
3. Long: लंबी सांस लें।
4. Deep: सांस गहरी हो।

कपालभाति में गलतियां
  • जब कोई कपालभाति करना शुरू करता है तो शुरुआत से ही सांस खींचने में भी जोर लगाता है और उसे बाहर फेंकने में भी। यह पूरी प्रक्रिया ही गलत है। सांस आराम से अंदर खींचनी है। हर दिन कपालभाति के समय यह ध्यान रखना है कि शुरुआत में सांस धीमे से बाहर छोड़नी है और शरीर को झटका भी नहीं देना है। बाद में इसे धीरे-धीरे बढ़ाएं।
  • बहुत तेज आवाज के साथ सांसें शरीर से बाहर फेंकना सही नहीं है। एक मिनट में 20 बार तक कपालभाति कर सकते हैं। इसे 3 राउंड से ज्यादा नहीं करना चाहिए।
  • हाई बीपी, अल्सर, मिर्गी, हर्निया और दिल के मरीज इसे न करें।
अनुलोम-विलोम में गलतियां
  • इसे नाड़ीशोधन प्राणायाम भी कहते हैं। इसमें हमेशा ही रफ्तार एक समान रखनी चाहिए।
  • एक मिनट में 12 से 15 बार। इसे 5 से 7 मिनट यानी 5 राउंड तक कर सकते हैं।
  • इसे अपनी क्षमता से बढ़कर करने की कोशिश न करें। जो सोचते हैं कि जितना ज्यादा करेंगे, उतना फायदा-वे शरीर को ही नुकसान पहुंचाते हैं। वैसे इसे सभी लोग कर सकते हैं।
  • रीढ़ की हड्डी सीधी रखें, लेकिन कई बार हम इसका ध्यान नहीं रखते।
  • जबरदस्ती सांस रोकने की कोशिश न करें।
भ्रामरी में गलतियां
  • जिन लोगों को कान या नाक का इंफेक्शन है, वे भ्रामरी न करें।
  • इसे 5 बार से ज्यादा न करें।
  • आंख बंद करके नहीं, आंख खोलकर करें।
उज्जायी में गलतियां
  • अगर घुटने की परेशानी है तो पद्मासन में न बैठें।
  • नाक से ही गहरी सांस लेनी है।
  • मुंह से सांस छोड़नी है न कि नाक से।
  • शुरुआत में 5 से 7 बार ही करें।
  • स्लिप डिस्क या कमरदर्द है तो वे उज्जयी समेत ऐसे प्राणायाम न करें जिससे कमर पर जोर पड़े।
  • जिन लोगों को दिल की बीमारी है, वे भी इस प्राणायाम को न करें।
भस्त्रिका में गलतियां
  • हार्ट पेशंट, चक्कर आते हों, अल्सर, हाई बीपी आदि की परेशानी है तो भस्त्रिका नहीं करना चाहिए। हां, हाई बीपी वाले डॉक्टर की सलाह से कर सकते हैं।
  • इसे करने से 1 घंटे पहले और आधा घंटा बाद तक पानी न पिएं।
  • इसे सुबह करने की कोशिश करें। दरअसल, इसके लिए 4 से 5 घंटे से पेट का खाली होना बेहतर है।
  • इस प्राणायाम को 3 तरीके से करना है। सबसे पहले धीमी गति से जिसमें 2 सेकंड में 1 सांस, फिर गति बढ़ाएं और इसमें 1 सेकंड में 1 सांस लेनी है और तीसरे में 1 सेकंड में 2 बार सांस लेंगे। इसे कुल 20 से 25 बार कर सकते हैं। पूरी क्रिया को 5 बार से ज्यादा न दोहराएं।
  • गर्मियों में भस्त्रिका के बाद शीतली प्राणायाम करना चाहिए। अगर शरीर थोड़ा गर्म हो गया है तो शीतली से ठंडा हो जाएगा।
शीतली में गलतियां
  • इसके लिए आरामदायक आसन में बैठना है। इसे आर्थराइटिस वाले मरीज भी कर सकते हैं।
  • सांस मुंह से लेनी है और नाक से निकालनी है। इसका उलटा नहीं करना।
  • जिन्हें सर्दी या खांसी है, वे इसे न करें।
नोट: अगर कोई शख्स कोरोना से ठीक हुआ है तो डॉक्टर की सलाह और योग्य योगगुरु की देखरेख में ही योगासन और प्राणायाम करें। दरअसल, कोरोना शरीर के हर अंग पर बुरा असर डाल सकता है। ऐसे में रिपोर्ट और मरीज की स्थिति देखने के बाद ही फैसला लिया जाता है। हां, गहरी सांस लेने की कोशिश करें। सांस को जबरदस्ती अंदर रोकने की कोशिश न करें।

क्या कहते हैं फेफड़ों के डॉक्टर
प्राणायाम की अहमियत को डॉक्टर भी मानते हैं लेकिन कुछ हिदायत भी देते हैं। उनके मुताबिक डीप ब्रीदिंग का मतलब यह बिलकुल नहीं कि सांस को तब तक होल्ड करके रखें, जब तक घुटन न महसूस होने लगे। गहरी सांस लें। 5 से 10 सेकंड तक ही सांस को होल्ड करने की कोशिश करें। सबको 1 मिनट में 15 से 20 बार तक सांस लेनी चाहिए। अगर कोई बिना भारी मेहनत किए या दौड़ लगाए 1 मिनट में 30 बार से ज्यादा सांस ले रहा है तो उसे जरूर डॉक्टर से मिलना चाहिए।

ध्यान
मेडिटेशन यानी ध्यान को कोई सिखा नहीं सकता। ध्यान खुद होता है। यह ठीक उसी तरह है जैसे कि सोने के लिए कोई अच्छा बिस्तर दे दे, एसी ऑन कर दे लेकिन नींद तो अपनेआप ही आएगी। जब भी ध्यान शुरू करें तो यह न समझें कि आप सुखासन में बैठ गए और आंखें बंद कीं और ध्यान में पहुंच ही जाएंगे। यह लगातार कोशिश के बाद होता है।

क्या करते हैं गलतियां
बीमार हैं तब भी ध्यान लगाना
अगर कोई बीमार है यानी शरीर सामान्य काम भी नहीं कर पा रहा तो ध्यान लगाना लगभग असंभव है। ऐसे में जब बार-बार कोशिश करने से भी ध्यान नहीं लगता तो हम परेशान हो जाते हैं। हर दिन की नींद पूरी करने के बाद ही योग, प्राणायाम और ध्यान करना चाहिए।

डिप्रेशन में भी करना
कई बार डिप्रेशन के हर मामले में यह कह दिया जाता है कि ध्यान लगाने से फायदा होगा। यह डिप्रेशन के छोटे मामलों में तो काम कर जाता है, लेकिन डिप्रेशन ज्यादा है तो सिर्फ ध्यान से काम नहीं चलता। इसके साथ दवा की जरूरत भी पड़ेगी। दोनों को साथ लेकर चल सकते हैं। इसलिए जब भी कोई डिप्रेशन में हो, चाहे वह छोटा डिप्रेशन हो या बड़ा, वह खुद या उसका संबंधी या दोस्त तो उसे किसी योग्य योग गुरु के साथ अच्छे सायकायट्रिस्ट से भी जरूर मिलवाए। इससे डॉक्टर मरीज से बात करके यह जान सकता है कि उसे दवा की जरूरत है या सिर्फ मेडिटेशन से ही काम चल जाएगा। अगर दोनों चीजों की जरूरत है तो दोनों ही दें। इसलिए आजकल यह बात भी खूब कही जाती है कि 'ईस्ट (योग, प्राणायाम और ध्यान करना) और वेस्ट (अंग्रेजी मेडिसिन से इलाज का सिस्टम) साथ-साथ चलें तो 'बेस्ट' बन सकते हैं। इसका मतलब है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। कई रोग ऐसे हैं जो एलोपैथी वाले ही ठीक कर सकते हैं, वहीं कई ऐसे भी हैं जिन्हें योग से दुरुस्त किया जाता है।

शुरुआत में ही लंबे समय के लिए ध्यान
  • अगर कोई शख्स शुरुआत में यानी पहले दो महीने में ही 30 सेकंड के लिए ध्यान में चला जाए तो यह बड़ी बात है।
  • शुरुआत में हर दिन एक बार में 2 से 5 मिनट तक ही ध्यान करना चाहिए। इसे सुबह और शाम दोनों समय कर सकते हैं। अगर ध्यान के चक्कर में घंटो बैठे रहेंगे तो मन में हजारों तरह के ख्याल आते हैं। इससे हमारे मन में भटकाव काफी होने लगता है। इससे हम डिप्रेशन की ओर बढ़ सकते हैं।
  • दूसरे महीने के बाद इसे बढ़ाते हुए अगले 6 महीनों में 20 मिनट तक ले जा सकते हैं।
  • ध्यान को आंखें बंद करके या आंखें खोलकर, दोनों ही स्थितियों में लगा सकते हैं। शुरुआत में हम अगर आंखें बंद करके ध्यान करने की कोशिश करते हैं तो मन ज्यादा भटकता है। इसलिए पहले महीने कोई चाहे तो आंखें खोलकर भी ध्यान लगा सकता है।
  • ध्यान लगाने के बाद यह मुमकिन है कि विचारों का वेग मन को एक जगह न रहने दे। इसलिए विचारों को भगाने या फिर उससे भागने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। विचारों को आने दें। विचार आएंगे और फिर चले जाएंगे। धीरे-धीरे कोशिश करने से विचारों का वेग कम होता जाएगा। एक सामान्य शख्स 2 महीने के अभ्यास के बाद अगर 30 से 40 सेकंड के लिए ध्यान लगाता है तो यह भी काफी है।
क्या कहते हैं मन के डॉक्टर
आमतौर पर सभी सायकायट्रिस्ट मानते हैं कि डिप्रेशन के मामलों में ध्यान बहुत फायदेमंद है। कई सायकायट्रिस्ट तो ध्यान (मेडिटेशन) को अपने इलाज में भी शामिल करते हैं। वह कहते हैं कि इससे हमारा मन कम भटकता है। नकारात्मक ख्याल कम आते हैं। कई बार डिप्रेशन की स्थिति ज्यादा बुरी होने पर दवा की जरूरत पड़ती है। न्यूरॉलजी एक्सपर्ट का भी कहना है कि डिप्रेशन में ध्यान से फायदा होता है, लेकिन हर स्टेज में नहीं। अगर डिप्रेशन शुरुआती स्टेज यानी माइल्ड है तो मेडिटेशन से फायदा होता है, गंभीर होने पर ज्यादा नहीं। डॉक्टर की सलाह माइल्ड स्थिति से ही लेनी चाहिए।

एक्सपर्ट पैनल-योग
  • डॉ. हंसा योगेंद्र, डायरेक्टर, द योगा इंस्टिट्यूट, मुंबई
  • अरुण कुमार, जाने-माने, योग गुरु
  • ऋषिराम शर्मा, वरिष्ठ, योग प्रशिक्षक
  • अक्षर अमित, फाउंडर, अक्षर योग
  • सुरक्षित गोस्वामी, वरिष्ठ योग गुरु
  • धीरज वशिष्ठ, योग गुरु, वशिष्ठ योग आश्रम, अहमदाबाद
  • जितेन कोही, संस्थापक अध्यक्ष, हास्य योग केंद्र
  • योगी डॉ. अमृत राज, योग गुरु और आयुर्वेदिक चिकित्सक
  • स्वामी आत्मस्वरूपानंद, अध्यक्ष, स्वामी निरंजनानंद योग केंद्र, जमुई
  • डंकन राइस, योग गुरु, साउथ अफ्रीका
  • अन्नु गुप्ता, जानी-मानी, योग एक्सपर्ट
एक्सपर्ट पैनल - मेडिकल
  • डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
  • डॉ. (प्रो.) मंजरी त्रिपाठी, न्यूरॉलजी डिपार्टमेंट, AIIMS
  • डॉ. समीर पारिख, सीनियर सायकायट्रिस्ट
  • डॉ. भावुक गर्ग, अडिशनल प्रफेसर, ऑर्थोपिडिक्स, AIIMS

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

गम से ऐसे निकलें बाहर

$
0
0

किसी के जाने के गम को कोई दूर नहीं कर सकता, लेकिन ज़िंदगी चलने का ही नाम है। इस कोरोना की वजह से कितने ही घरों का सुकून खत्म हो गया। बहुत-से लोगों को तो लाख जतन के बावजूद बचाया न जा सका। कुछ अपनों को आखिरी विदाई भी नहीं दे पाए। कोरोना ने किसी को कोई नई बीमारी दे दी तो किसी की पुरानी बीमारी को बहुत बढ़ा दिया। किसी का बिजनेस बर्बाद कर दिया तो किसी की नौकरी छीन ली। जिन लोगों के साथ ऐसा हुआ, उनका मन परेशान है। कुछ लोग डिप्रेशन में भी पहुंच गए हैं। ऐसे में सदमे से उबरने के लिए क्या उपाय हो सकते हैं, क्या इन्हें जल्दी इस स्थिति से बाहर निकाला जा सकता है? इस बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं लोकेश के. भारती

5 बातें जो सदमे से बाहर निकाल सकती हैं
  1. मोटिवेशन के ओवरडोज से बचें। यह चीजों को बनाने के बजाय कई बार बिगाड़ भी देता है। यह दवा के ओवरडोज की तरह है।
  2. जैसे अचानक कोई हादसा होता है, उसी तरह कोरोना भी एक दुर्घटना की तरह है। कोई भी इसके लिए पहले से तैयार नहीं था।
  3. हर शख्स अपने करीबी को बचाने की पूरी कोशिश करता है। कोई सफल होता है, कोई नहीं होता। इसलिए कोशिशों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता।
  4. भावनाओं को रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अगर कोई रोना चाहता है या गुस्सा करना चाहता है तो उस पर रोक नहीं होनी चाहिए। हां, अगर यह बहुत ज्यादा हो जाए या शख्स बेहोश होने की स्थिति में पहुंचने लगे, तब उसे गम से बाहर लाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर कोई नहीं रोता है तो उसे जबरदस्ती रुलाना भी नहीं चाहिए। भावनाओं को जतलाने का तरीका अलग-अलग हो सकता है।
  5. स्थिति को जिसने स्वीकार कर लिया, वह आगे बढ़ जाएगा। जो नहीं कर पाता है, उसके लिए परेशानी ज्यादा होती है। इस धरती पर जो भी शख्स आया है, उसकी मौत तय है। हां, कोई पहले या अचानक चला जाता है और कोई बाद में।
गम किसी अपने के जाने का...
कोरोना की वजह से न जाने कितने लोगों ने अपनों को खो दिया। इनकी कमी दिल में खलती रहेगी। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वे लोग हमारे कितने करीब थे। दूर के रिश्तेदार का गम शायद कम हो सकता है पर अगर वह कोई करीबी हो तो दिल बहुत दुखता है।

जान बचा न पाने का गिल्ट
जब कोई गुजर जाता है तो बहुत दुख होता है। लेकिन जब हम चाहकर भी उसकी कोई मदद नहीं कर पाते तो हमारा अपराध बोध हमें परेशान करता रहता है।
  • विवेक के पैरंट्स यूपी के एक गांव में रहते हैं और वह खुद अमेरिका में। कोरोना की वजह से फ्लाइट्स बंद थीं। इस बीच मां को कोरोना हो गया। उसने गांव में ही कुछ इलाज का बंदोबस्त किया पर वह पूरा नहीं था। मां गुजर गईं। विवेक मां को मुखाग्नि तक नहीं दे सके। अब विवेक इस गिल्ट से परेशान हैं।
  • जब दिल दुखता है तो हम खुद को कोसते हैं। खुद में कमी निकालते हैं। जैसे विवेक ने मां के इलाज की कोशिश की। लेकिन मां को आखिरी बार नहीं देख पाए।
  • इससे पहले कई बार विवेक की मां ने उनको घर आने के लिए कहा था। तब विवेक ने दिवाली के आसपास आने की बात कही थी। यह भी कहा था कि मां तुम्हारा भी पासपोर्ट तैयार हो जाएगा तो हम साथ चलेंगे। इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर ने ज़िंदगी में उथल-पुथल मचा दी। ऐसे में वाकई किसी को पता नहीं होता कि आगे क्या होने वाला है। विवेक के साथ भी यही हुआ। अब सोचकर देखें कि अगर सबको पता हो आगे हादसा होने वाला है तो सभी उससे बच जाएंगे, कोई नहीं मरेगा। विवेक ने उस वक्त जो सोचा वह भी ठीक था। वह मां के साथ रहने के लिए ही उन्हें अपने साथ लेकर जाना चाहते थे।
  • दुख और पछतावा उस वक्त जरूर होना चाहिए जब कोई अपना बार-बार फोन करे या बात करने की कोशिश करे और अंहकार या पुरानी नाराजगी की वजह से उनका फोन न उठाएं या गलत तरीके से बात करें।
  • जब तूफान आता है तो हमारे हाथों में कुछ नहीं होता। नुकसान भी तूफान की रफ्तार पर ही निर्भर करता है। कोरोना का तूफान भी ऐसा ही है।
किसी के न रहने का दुख
कुसुम के पति सर्वेश बिजनेसमैन थे। पिछले साल सर्वेश को बिजनेस में बहुत नुकसान हुआ। उन्हें शराब और सिगरेट की लत पहले से थी जो बिजनेस में घाटा होने के बाद ज्यादा बढ़ गई। वह दिन में 12 से 14 सिगरेट पीने लगे। शराब भी ज्यादा लेने लगे। कुसुम ने नशा छोड़ने के लिए बार-बार गुहार लगाई। पति को यह भी समझाया कि फ्लैट और गाड़ी बेचकर गांव चलते हैं। लेकिन सर्वेश ने उनकी बात नहीं मानी। नशा बढ़ता रहा और वजन भी काफी बढ़ गया। इम्यूनिटी कम होने लगी। जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो कुसुम का पूरा परिवार चपेट में आ गया। यहां तक कि 8 और 11 साल की बेटियों को भी कोरोना हुआ। एक हफ्ते के अंदर सभी का बुखार उतर गया लेकिन सर्वेश का बुखार जस का तस रहा। सिगरेट की लत की वजह से फेफड़े पहले ही कमजोर हो चुके थे तो ऑक्सिजन लेवल 8वें दिन 80 से नीचे चला गया। कुसुम ने काफी मशक्कत के बाद एक कोविड केयर सेंटर में एडमिट कराया। इलाज के बावजूद कोरोना इंफेक्शन बढ़ता गया और 17वें दिन सर्वेश की मौत हो गई। अब कुसुम खुद को कोसती हैं कि शायद उनके ज्यादा ध्यान देने से सर्वेश की सिगरेट की लत छूट जाती तो वह बच जाते। वह किसी बड़े अस्पताल में भर्ती करा पाती तो शायद वह बच जाते। कुसुम को यह भी लगता है कि उनकी वजह से ही पति की मौत हो गई। सच तो यह है कि कुसुम ने सर्वेश को बचाने की बहुत कोशिश की। घर और गाड़ी बेचने तक की सलाह दी। यह इंसानी फितरत है कि जब कोई गुजर जाता है तो उसकी कमियों के बारे में बात नहीं करते, अफसोस करते हैं।

अफसोस के 5 स्तर होते हैं
1. सचाई को स्वीकार न करना...जब किसी बहुत करीबी की मौत होती है तो हम उसे स्वीकार नहीं कर पाते। हम यह नहीं समझ पाते कि जिससे हमने पिछले हफ्ते या 1 दिन पहले या फिर उसी दिन बात की थी, वह ऐसे कैसे दुनिया से जा सकते हैं। हम उस दुख से निकलना ही नहीं चाहते। हमने जो वक्त उनके साथ गुजारा था, उसे छोड़कर आगे बढ़ने की सोच से भी भागते हैं। हमारा मन यह मानने को तैयार ही नहीं होता यानी हम वर्तमान में आना ही नहीं चाहते। हम अपनी असल स्थिति से भागने की कोशिश करते हैं।
क्या करें: यह जरूरी नहीं कि किसी की मौत के फौरन बाद ही इस बात को स्वीकार कर लिया जाए कि वह चला गया। खुद को कुछ वक्त दें। अगर वक्त ज्यादा लग रहा है तो घर के सदस्य और दोस्त ज्यादा दबाव न बनाएं कि जो दुख में है वह फौरन हकीकत समझे। जख्म बड़ा है तो भरने में वक्त भी लग सकता है।

2.गुस्सा खूब आना... जब कोई अपना जाता है तो गुस्सा भी खूब आता है। खुद पर, गैरों पर, दुनिया पर, सब पर। कभी-कभी गुजरे हुए शख्स पर भी गुस्सा आता है कि उन्होंने बात नहीं मानी, लेकिन ऐसा कम ही होता है। ऐसे में हमारी कोशिश यह होती है कि गुस्से को दबा लें। लोग क्या कहेंगे, यही सोचकर अपना दुख जता नहीं पाते।
क्या करें: गुस्सा आए तो उसे निकलने दें। यह न सोचें कि कोई क्या कहेगा। गुस्से की भावना को बाहर निकालने में ही फायदा है। जो भी इच्छा करे, वही करें। खूब चिल्लाने या जोर से रोने का मन हो तो चिल्लाएं और रोएं। गुस्सा निकलने पर मन शांत होता है। भावना के वेग कम करने का एक बेहतरीन तरीका है गुस्से को निकलने देना। गुस्सा को जमा करके नहीं रखना चाहिए।

3. हम बार्गेनिंग करते हैं... जब कोई शख्स बीमार होता है या ऐसी स्थिति में पहुंच जाए जहां मरीज का ठीक होना लगभग नामुमकिन होता है, तब हम ऊपरवाले की शरण में जाते हैं। उनसे कहते हैं कि इसे ठीक कर दो, मैं उससे कभी झगड़ा या गुस्सा नहीं करूंगा या मैं अपनी बुरी आदत छोड़ दूंगा। हम यह भी सोचने लगते हैं कि काश! मैं बीते समय में जाकर कुछ चीजों को ठीक कर पाता, लेकिन मुमकिन नहीं हो सकता। हम किसी चमत्कार की उम्मीद भी पाल लेते हैं। जब यह बार्गेनिंग काम नहीं करती तो हम डिप्रेशन की तरफ बढ़ने लगते हैं।
क्या करें: अगर कोई शख्स बहुत ज्यादा बीमार था और उसे बचा पाना लगभग असंभव था तो ऊपर वाले से बार्गेनिंग करके यह सोच लेना कि अब वह ठीक हो जाएगा, सही नहीं है। यह ख्वाब है जिसके टूटने पर बहुत दुख होता है। ऐसे में हकीकत को स्वीकार करना चाहिए कि ऐसी गंभीर बीमारी के बाद किसी का बच पाना संभव नहीं था। हमने कोशिश तो बहुत की थी।

4. डिप्रेशन में चले जाना...जब हमारी बार्गेनिंग से काम नहीं बनता, अपने प्रिय शख्स के लिए हमने जो मन में सोचा था, वह पूरा नहीं होता तो हम डिप्रेशन की ओर बढ़ने लगते हैं। सच को स्वीकार करते हैं और सिर्फ चुनौतियों के बारे में सोचते हैं, आगे की परेशानियों को देखते हैं। एक तरह से यह निराशा की स्थिति होती है। हमें लगता है कि इन समस्याओं का अब कोई हल नहीं है। कई बार लोग खुदकुशी के बारे में सोचने लगते हैं।
क्या करें: किसी के घर में ऐसी स्थिति हो तो परिवार के सदस्यों या फिर किसी नजदीकी दोस्त को जरूर मदद करनी चाहिए। मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स की सहायता लेनी चाहिए।
  • चूंकि डिप्रेशन की तरफ कोई शख्स तब जाता है जब उसे हकीकत का अहसास हो जाता है, लेकिन परेशानियों का हल नहीं दिखता। ऐसे में वह खुद को रोजाना के काम में व्यस्त रखे। क्रिएटिव काम जैसे पेंटिंग्स आदि करना या संगीत की मदद लें।
  • ऐसे लोगों से जरूर दूरी बनानी चाहिए जो सिर्फ नेगेटिव बातें करते हों। उनके संपर्क में रहें जिनसे बात करके अच्छा महसूस हो।
  • अगर कोई प्रॉपर्टी या फाइनैंस का मसला हो तो उसे हल करने की कोशिश तेज करें।
  • रिश्तेदार और दोस्त सिर्फ बातों से सांत्वना न दें। सच में कुछ मदद करें। यह आर्थिक रूप से हो सकती है या कोई डॉक्यूमेंट निकलवाने या तैयार करवाने में, जैसे इंश्योरेंस क्लेम आदि के लिए।

5. हकीकत स्वीकार कर लेना... जब हम इस बात को मान लेते हैं कि जाने वाला शख्स अब वापस नहीं आएगा तो चीजें बेहतर होनी शुरू हो जाती हैं। मान लेते हैं कि जो हो गया सो हो गया। हम खुद को काम में बिजी रखने लगते हैं। नया रुटीन बनाते हैं या फिर पुराने रुटीन में कुछ बदलाव कर फिर से वापस काम पर लगते हैं। हालांकि, इस दौरान भी अफसोस की स्थिति बीच-बीच में आ ही जाती है। चीजें बेहतर होने लगती हैं। हकीकत स्वीकार करने और डिप्रेशन, दोनों में सच को स्वीकार कर लिया जाता है, लेकिन फर्क यह है कि डिप्रेशन में हम निराशावादी होते हैं जबकि हकीकत को उसी रूप में स्वीकार करने से हम सकारात्मक रूप से आगे बढ़ते हैं।

फ्री हेल्पलाइन मेंटल हेल्थ
011-2211-4021 IHBAS (इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज), 80-461-10007 NIMHANS (नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस)

(ऊपर के बताए दोनों फोन नंबर 24 घंटे और सातों दिन काम करते हैं। )

आंसुओं को बहने दें, नेगेटिविटी निकलने दें
हम किसी अपने को खोते हैं, जॉब चली जाती है तो नेगेटिव इमोशंस का हमारी जिंदगी पर हावी होना स्वाभाविक है। इससे कोई बच नहीं सकता। कोई शख्स परफेक्ट नहीं होता। सभी गलती करते हैं। जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर हर कोई इम्परफेक्ट साबित होता ही है। सच तो यह है कि पॉजिटिव इमोशंस की तरह नेगेटिव इमोशंस भी खास होते हैं। इन इमोशंस को बाहर निकलने से कभी रोकना नहीं चाहिए। अगर आंखों से आंसू निकल रहे हैं तो उन्हें जरूर निकलने दें। इस बात को भी बोलने से नहीं हिचकना चाहिए कि हां मैं डिप्रेस हूं। यह भी स्वीकार्यता का ही एक रूप है। स्वीकार्यता के बाद ही जख्म भरने की प्रक्रिया शुरू होती है। दिल के किसी करीबी को अपनी पूरी बात बिना किसी एडिटिंग के बताना भी मददगार होता है।
  • जब इंसान दुखी होता है तो उस समय वह पॉजिटिव सोच ही नहीं सकता।
  • यह ज़िंदगी का एक अहम फेज है। इस फेज को पार करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
  • नेगेटिविटी को लेकर मन में किसी भी तरह का दबाव नहीं पालना चाहिए। पुरुषों में ऐसा देखा जाता है कि वे खुद को मजबूत दिखाने के चक्कर में नेगेटिविटी को पूरी तरह निकाले बगैर ही पॉजिटिविटी की तरफ बढ़ने की कोशिश करते हैं।
गम खराब सेहत का...
जितनी चर्चा कोरोना की हुई है, उससे कहीं ज्यादा बात कोरोना के बाद होने वाली बीमारियों की हुई है। कई ऐसे शख्स हैं जिन्हें पहले कोई बड़ी बीमारी नहीं थी, लेकिन कोरोना ने उनके शरीर में भी कोई न कोई रोग दे दिया। कोरोना के बाद डायबीटीज होना सबसे आम बात है, लेकिन ऐसे 80 से 90 फीसदी केस में यह बीमारी कुछ वक्त के लिए होती है अगर इसका सही तरीके से इलाज हो। सिर्फ 10 से 20 फीसदी लोगों में यह ज्यादा दिन तक रह सकती है या फिर ज़िंदगीभर।
हम क्या करते हैं: इलाज पर कम ध्यान देते हैं, इस बात को लेकर ज्यादा परेशान होते हैं कि आखिर हमें ही डायबीटीज क्यों हुई। नतीजा यह होता है कि जिस बीमारी का इलाज आसानी से हो सकता था, वह भी शरीर में घर बना लेती है। ऐसे ही किसी के फेफड़े कमजोर हो जाते हैं तो किसी की ताकत।
हमें क्या करना चाहिए: सबसे पहले हमें अपनी स्थिति को स्वीकार करना चाहिए। यह ठीक उसी तरह है जैसे कोई शख्स हादसे में अपाहिज हो जाए। जब तक वह इस बात को स्वीकार नहीं करता, परेशानी और चुनौतियां बनी रहती हैं। जिस दिन उसने इसके साथ जीना सीख लिया, निदान उसी दिन हो जाता है।
  • खुद को यह भी समझना चाहिए कि डायबीटीज पहले से करोड़ों लोगों को है। यह भी मुमकिन है कि अगर कोरोना की वजह से यह बीमारी नहीं होती तो शायद गलत लाइफस्टाइल की वजह से हो सकती थी।
  • जो भी बीमारी हुई है, उसे इलाज से काबू में रखने या फिर ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए।
नोट: कोरोना के बाद शुगर कंट्रोल करने के तरीकों को विस्तार से जानने के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर जाएं और वहां sugar टाइप करें। इसी तरह लंग्स, हार्ट और लिवर से जुड़ी परेशानियों के इलाज को विस्तार से समझने के लिए इसी पेज जाएं और #lungs या #heart या #liver टाइप करें।

बीमारी है तो भी मोटिवेशन की ओवरडोज नहीं
मोटिवेशन अच्छी चीज है, लेकिन कई बार यह ज्यादा हो जाता है। खासकर तब जब मोटिवेशन परिस्थिति के अनुसार नहीं, कोरी कल्पना पर आधारित हो। जब कोई दुख में होता है तो लोग भी दुख जताने आते हैं और झूठी दिलासा देते हैं। मान लें कि कोई शख्स पहले वेट लिफ्टर था। उसे गंभीर रूप से कोरोना हो गया। यह बात उसे पता है कि उसे अपनी स्थिति में वापस पहुंचने में एक साल या उससे भी ज्यादा का वक्त लग सकता है या शायद पुरानी स्थिति में पहुंचे ही नहीं। ऐसे में अगर कोई झूठा मोटिवेशन दे और कहे कि तुम 15 दिन के अंदर ट्रेनिंग सेशन में पहुंच जाओगे। यह बीमार शख्स को बुरा ही लगेगा। इसलिए जब भी कोई ऐसी बात करे तो उसकी बातों को टाल दें। रिश्तेदार या दोस्त भी झूठे मोटिवेशन न दें। वे बीमार को बताएं कि पहले सेहत पर ध्यान दो।

हर कोई कहता है योग और एक्सरसाइज करो
अगर शरीर कमजोर है तो स्वाभाविक है कि योग और एक्सरसाइज करने में परेशानी होगी। इसलिए करो वही जो आसानी से किया जा सकता है। अगर योग करना अच्छा लगता है और करने की क्षमता है तो जरूर करें। नहीं तो टाल दें। जबरन न करें। इससे शरीर को बहुत नुकसान होता है। यहां तक कि जबरन मेडिटेशन भी न करें। कई बार लोग सलाह देते हैं कि दुख है, डिप्रेशन में हो तो ध्यान करो। इससे सब ठीक हो जाएगा, जबकि डिप्रेशन की स्थिति में ध्यान के साथ मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह की भी जरूरत होती है।
नोट: योगासन, प्राणायाम और ध्यान करने में हम क्या गलतियां करते हैं? किन लोगों को नहीं करना चाहिए? विस्तार से जानने के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर जाएं और #yoga टाइप करें। लेख सामने होगा।

तीसरी लहर और बच्चों को लेकर दहशत
अब कोरोना की तीसरी लहर आने की बात हो रही है। यह भी कहा जा रहा है कि इससे बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। पैंरट्स इस वजह से सदमे की हालत में हैं। इसलिए इन बातों को समझें...-कोरोना से बचने के उपाय अपनाकर अब भी करोड़ों लोग बचे हुए हैं। जैसे 6 फुट की दूरी और मास्क है जरूरी। बिना वजह बाहर नहीं निकलना और भीड़ में नहीं जाना। बच्चों को सेहत के प्रति जागरूक करने का सबसे अच्छा समय है। अच्छा खानपान और सही रुटीन बनाकर उसकी इम्यूनिटी को बेहतर किया जा सकता है। मौजूदा चुनौतियों के बारे में बच्चों को बताना और समझाना है कि इससे कैसे बचना है, डराना नहीं है। घर में ही योग और एक्सरसाइज आदि की आदत डालनी है। जंक फूड और बाहर के खाने से बचना है। परेशानी ज्यादा बढ़े तो किसी मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट से सलाह लेने से गुरेज नहीं करना चाहिए।

बिजनेस में नुकसान का गम या जॉब जाने की तकलीफ
कोरोना ने दुनियाभर में लोगों की कमाई पर बहुत बुरा असर डाला है। यह कहावत भी मशहूर होने लगी है कि 'इस बार जिस शख्स ने अपनी जान और कमाई को बचा लिया तो समझो उसने ज़िंदगी की बहुत बड़ी बाजी मार ली।' सीधे कहें तो चुनौतियां किसी के लिए कम नहीं हैं। लाखों लोगों को उनके बिजनेस में भारी नुकसान हुआ है। लाखों लोगों की सैलरी कम हुई, जॉब चली गई। ऐसे में से ज्यादातर लोग 'इकनॉमिकल शॉक' की स्थिति में हैं। उन्हें इससे निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा।

बिजनेस में घाटा होने पर
हम क्या करते हैं...
हम इस बात पर यकीन कर लेते हैं कि अब कुछ नहीं हो सकता। अब मैं कभी इस स्थिति से ऊपर उठ नहीं सकता। इस बात का मंथन ज्यादा करते हैं कि अपनी फैमिली को इस बारे में पता नहीं चलने देना चाहिए, नहीं तो हमारे बच्चे हमें बेकार समझेंगे। अपने लाइफ पार्टनर की नजरों में भी गिर जाएंगे। इससे कर्ज के साथ तनाव भी बढ़ता है। इस तरह की सोच ज्यादातर पुरुषों में होती है। किसी नए आइडिया पर नहीं सोचते।आत्मविश्वास तो पहले से ही कम होता है। ऐसी बातें सोचकर और कम कर लेते हैं।

हमें क्या करना चाहिए...
  • इस बात को समझना चाहिए कि जब पहली बार बिजनेस शुरू किया था तो जीरो से ही किया था। एक बार फिर से वहीं से शुरू करना होगा। अपनी हिम्मत बनाकर रखनी चाहिए।
  • मान लें कि भूकंप की वजह से किसी का घर गिर जाता है तो क्या वह अपना घर दोबारा नहीं बनाता। वह जरूर बनाता है और कई बार पहले से भी ज्यादा खूबसूरत घर बनाता है। जिस तरह पुराने टूटे घर की जगह पर नया घर बनाने में जमीन नहीं खरीदनी पड़ती, उसी तरह नया बिजनेस खड़ा करने में अनुभव रूपी जमीन तो हमारे पास होती है। कई सफल बिजनेसमैन हैं जिन्होंने नाकामी के बाद सफलता का स्वाद चखा।
मशहूर शायर वसीम बरेलवी ने शायद ऐसे ही मौके के लिए यह कहा है, 'हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें/ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें'। इसलिए नाकामी से डरे नहीं। हो सकता है कि जिस फील्ड से जुड़ा बिजनेस कर रहे थे, उसमें नुकसान हुआ हो यानी वहां रिस्क फैक्टर ज्यादा था। ऐसे में नई फील्ड चुनते हुए सावधान रहें। यह भी सच है कि कोरोना काल में भी लोगों ने नई फील्ड में बिजनेस शुरू करके कामयाबी पा ली है।
  • जब भी किसी नई फील्ड में बिजनेस करने का मन बनाएं, उस फील्ड के किसी जानकार शख्स से भी मिलें। सिर्फ सफल व्यक्ति से ही राय नहीं लें। ऐसे लोगों से भी मिलें जो उस फील्ड में नाकाम हुए हैं। अब तक के बिजनेस का अनुभव हमारी जमा पूंजी है। अनुभव का इस्तेमाल करते हुए बिजनेस को आगे ले जा सकते हैं।
नौकरी छूटने पर
हम क्या करते हैं...
  • खुद को कोसते हैं और उन लोगों से तुलना करते हैं जिनकी जॉब बच गई। खुद से सवाल करते हैं कि मैं ही क्यों, दूसरा क्यों नहीं?
  • नई कोशिशों पर काम करने के बजाय, उदास होकर घर पर बैठ जाते हैं। जब घर में उदासी का माहौल होता है और कमाई बंद हो जाती है तो परिवार के सदस्यों के बीच तनाव भी बढ़ जाता है।
  • हम अपने लाइफ पार्टनर, बच्चों और पैरंट्स पर चिल्लाने लगते हैं। इससे स्थिति ज्यादा खराब होती है।
हमें क्या करना चाहिए...
  • सबसे पहले यह समझना चाहिए कि कोरोना ने सिर्फ एक शख्स की जॉब नहीं ली। इस दौर में लाखों लोगों की जॉब गई है।
  • कंपनी से जब किसी को निकाला जाता है तो यह कंपनी की अंदरुनी पॉलिसी होती है। यह दौर भी चला ही जाएगा। रिक्रूटमेंट फिर से होगा। जॉब साइट्स पर अपना अपडेटेड रेज्यूमे पोस्ट करना चाहिए। जैसे: linkedin.com, timesjobs.com, naukri.com आदि। यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि माहौल ठीक नहीं है तो जॉब नहीं मिलेगी। जॉब करते हुए हमें जो अनुभव मिला था उसे कोई छीन नहीं सकता। जॉब नहीं तो अपना काम है ही।
एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. निमेष जी. देसाई, डायरेक्टर, IHBAS
  • याधव मेहरा, मोटिवेशनल स्पीकर
  • डॉ. समीर पारिख, सीनियर सायकाइट्रिस्ट
  • डॉ. आर. पी. पाराशर, आयुर्वेदाचार्य/साइकॉलजिस्ट
  • प्रेरणा कोहली, जानी-मानी साइकॉलजिस्ट
  • पूजा प्रियंवदा, मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

क्या है वैक्सीन का नया सीन

$
0
0

देश में कोरोना की वैक्सीन तेजी से लगाई जा रही है। अब कई कंपनियों की वैक्सीन मौजूद है। वैक्सीन को लेकर हममें से बहुत लोगों के मन में अभी तक कई तरह के भ्रम बने हुए हैं। कुछ गलतफमियां, कुछ सवाल और जरूरी बातें हैं जिनके जवाब मिलना जरूरी है। जैसे, कौन-सी वैक्सीन बेहतर है, क्या 100 फीसदी इम्यूनिटी मिल सकती है, कोरोना से ठीक हो चुके हैं तो फिलहाल वैक्सीन लें या न लें, वैक्सीन के फ्रॉड से कैसे बचना है? एक्सपर्ट्स से बात करके ऐसे ही सवालों के जवाब दे रहे हैं लोकेश के. भारती

यहां कराएं रजिस्ट्रेशन
  • www.cowin.gov.in
  • Aarogya Setu App
  • Co-WIN Vaccinator App
  • नजदीकी अस्पताल में सीधे जा सकते हैं, जहां वैक्सीनेशन की प्रक्रिया चल रही हो। यह सुविधा उन लोगों के लिए अहम है जो तकनीक के मामले में थोड़ा पीछे हैं।

यहां से लें मदद
वैक्सीनेशन के बाद 30 से 40 मिनट इंतजार करने के लिए कहा जाता है। इंतजार जरूर करें। अगर परेशानी होती है तो वहां के मेडिकल स्टाफ से मदद मांग सकते हैं।
  • हेल्पलाइन नंबर: 011-23978046
  • वॉट्सऐप पर मदद: 9013151515
  • टोल फ्री: 1075
  • ईमेल: ncov2019@gov.in
सबसे खास बातें
  • कोविशील्ड वैक्सीन की दूसरी डोज में 12 से 16 हफ्ते का गैप होना चाहिए।
  • कोवैक्सीन की दूसरी डोज लेने में 4 से 6 हफ्ते का गैप होना चाहिए।
  • स्पूतनिक-वी की दूसरी डोज लेने में भी 4 से 6 हफ्ते का गैप होना चाहिए।
  • स्पूतनिक-वी लाइट को मंजूरी मिलने के बाद एक ही डोज लगाने की बात कही गई है।
  • जायडस-कैडिला की वैक्सीन ZyCoV-D कोरोना की पहली वैक्सीन होगी जिसे लगाते समय सुई का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
  • प्रेग्नेंट हों या दूध पिलाने वाली मां, कोरोना वैक्सीन लगवा सकती हैं।
जानें वैक्सीन से जुड़ी बेसिक जानकारी

वैक्सीन लें या न लें?
वैक्सीन जरूर लेनी है। सभी को लेनी है। बिना वैक्सीन के इम्यूनिटी नहीं बनेगी। फिलहाल जो वैक्सीन पूरी दुनिया में मिल रही हैं, वे सभी आपातकालीन इस्तेमाल (इमरजेंसी यूज) के लिए हैं। इनमें से अभी तक किसी को भी कमर्शल प्रोडक्शन का अधिकार नहीं मिला है। देश में इस वक्त तीन वैक्सीन: कोवैक्सीन, कोविशील्ड, स्पूतनिक-वी मिल रही हैं और जल्द ही फाइजर की वैक्सीन भी मिल सकती है। इन सभी को इमरजेंसी यूज (यह सिर्फ जान बचाने के लिए है, डेटा का विश्लेषण नहीं हुआ हैै) के लिए ही अधिकार दिया गया है। जिससे हर शख्स के शरीर में कोरोना के खिलाफ ऐंटिबॉडी विकसित हो सके।

कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी और फाइजर में से कौन-सी वैक्सीन बेहतर है?
हर वैक्सीन की क्षमता अलग-अलग होती है। सभी के साइड इफेक्ट्स भी अलग-अलग होते हैं। जिस वैक्सीन की क्षमता 50 फीसदी से ज्यादा है, वह वैक्सीन अच्छी है। देश में मिल रही हर वैक्सीन की क्षमता 50 फीसदी से ज्यादा है। सिर्फ क्षमता ज्यादा होने से वैक्सीन की क्वॉलिटी निर्धारित नहीं की जा सकती है। वैक्सीन लगने के बाद उसके साइड इफेक्ट्स कितने कम उभर रहे हैं, इससे भी वैक्सीन की क्वॉलिटी समझी जाती है। इसलिए कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी और फाइजर में से किसी को भी लगाया जा सकता है।

देश में कौन-सी नई वैक्सीन आ रही है और कब तक?
देश में मिल रही वैक्सीन: कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पूतनिक-वी।

जल्द मिलेगी
1. अमेरिकी वैक्सीन फाइजर
  • यह आरएनए तकनीक पर काम करती है।
  • इसकी क्षमता करीब 95 फीसदी कही गई है।
2. भारतीय वैक्सीन जायडस-कैडिला
  1. यह पहली वैक्सीन होगी जिसे बिना इंजेक्शन शरीर में पहुंचाया जाएगा।
  2. इसे फार्माजेट तकनीक से लगाया जाएगा, जिसमें तेज गति से वैक्सीन को स्किन के अंदर पहुंचाया जाता है। इससे इंफेक्शन का खतरा भी कुछ कम होगा।
  3. इस वैक्सीन का नाम ZyCoV-D है।
  4. इसने भारत के औषधि महानियंत्रक (DGCI) से आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मांगी है।
  5. यह पहली प्लाज्मिड DNA वैक्सीन है।
  6. इस वैक्सीन के बारे में कहा जा रहा है कि यह 12 से 18 साल के किशोरों के लिए भी कारगर है।
  7. इस वैक्सीन की 3 डोज लगेंगी।
3. स्पूतनिक-वी लाइट
  • भारत की कंपनी डॉ. रेडीज ने इस वैक्सीन के लिए DGCI के पास आवेदन दिया था। DGCI ने वैक्सीन से संबंधित डेटा उपलब्ध कराने के लिए कहा है। तब तक के लिए मंजूरी नहीं दी गई है।
  • इसे स्टोर करना आसान है।
  • इसकी एक खुराक ही दी जाएगी। जबकि भारत में पहले से मिल रही स्पुतनिक-वी वैक्सीन की दो खुराकें दी जाती हैं।

देसी और विदेशी वैक्सीन में क्या खास अंतर है?
देसी और विदेशी वैक्सीन में कोई फर्क नहीं है। दोनों का काम शरीर में कोरोना के खिलाफ ऐंटिबॉडी तैयार करना है। इस काम में देसी और विदेशी दोनों वैक्सीन कामयाब हैं।

क्या वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के बाद भी बूस्टर डोज लगवानी होगी?
कोरोना वायरस की शुरुआत हुए 2 साल भी नहीं बीते हैं। फिलहाल लोगों की जान बचाने के लिए इमरजेंसी में वैक्सीन दी जा रही है। अभी इस पर स्टडी करनी बाकी है। इस बात का अनुमान लगाना मुश्किल है कि बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी या नहीं। स्टडी को पूरा होने में 3 से 5 साल या इससे ज्यादा का वक्त भी लग सकता है। जब तक वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां डेटा का सही तरीके से विश्लेषण नहीं कर लेतीं, कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

रजिस्ट्रेशन कहां करवाना होगा?
रजिस्ट्रेशन के बाद वैक्सीन लगवाने का नंबर आता है। www.cowin.gov.in पर वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते है। इसके अलावा Aarogya Setu app या Co-WIN Vaccinator App पर भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है। यह भी मुमकिन न हो तो नजदीकी अस्पताल में सीधे जा सकते हैं, जहां वैक्सीनेशन की प्रक्रिया चल रही हो, वहां भी रजिस्ट्रेशन हो सकता है। यह सुविधा उन लोगों के लिए बेहतर है जो टेक सेवी नहीं हैं।

वैक्सीन कितनी असरदार

क्या वैक्सीन लगवाने के बाद ज़िंदगीभर कोरोना नहीं होगा?
इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती। कोरोना से पहले जितनी भी वैक्सीन अलग-अलग बीमारियों के खिलाफ लगाई जाती रही हैं बाद में उनके मामले भी देखे गए हैं। जैसे, MMR (मीजल्स, मम्स, रुबेला से बचाव के लिए), BCG (टीबी से बचाव के लिए)। इन्हें लगाने के बाद भी लोगों को ये बीमारियां हुई हैं। हां, यह जरूर है कि वैक्सीन लगने के बाद ऐसे मामले बहुत कम देखे गए। अगर किसी को बाद में ये बीमारियां हुई भी तो जानलेवा नहीं रहीं। कोरोना की वैक्सीन के साथ भी ऐसा ही है। जिन लोगों ने कोरोना के खिलाफ इम्यूनिटी हासिल कर ली है, भविष्य में दोबारा इंफेक्शन होने पर इसकी गंभीरता से काफी हद तक बच सकते हैं।

कोविशील्ड और कोवैक्सीन कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन जैसे, डेल्टा और डेल्टा प्लस के खिलाफ कितनी असरदार हैं?
सिर्फ कोवैक्सीन और कोविशील्ड ही नहीं, स्पूतनिक-वी लगवा चुके लोगों में अभी तक डेल्टा या डेल्टा प्लस के गंभीर मामले न के बराबर ही हैं। तीनों वैक्सीन इनके खिलाफ भी कारगर हैं। हालांकि इनकी विस्तार से स्टडी करना बाकी है।

वैक्सीन लगवाने के कितने दिनों बाद तक शरीर में इम्यूनिटी रहती है?
कोरोना वायरस को आए अभी डेढ़ साल ही हुआ है और वैक्सीन को तैयार हुए लगभग 6 महीने। अभी तक जिन्हें वैक्सीन लगी है, उनमें ऐंटिबॉडी की मौजूदगी देखी गई है। बीतते वक्त के साथ यह साबित होता जाएगा कि वैक्सीनेशन के बाद शरीर की इम्यूनिटी कितने दिनों तक रहती है।
वैक्सीन लगवाने के बाद इम्यूनिटी कितने दिनों में विकसित होती है?
वैक्सीन लगवाने के चौथे से पांचवें दिन अस्थायी ऐंटिबॉडी (IgM) बननी शुरू हो जाती है। यह अमूमन 15 से 20 दिन तक बनी रहती है। वहीं 15 से 20 दिन के बाद स्थायी ऐंटिबॉडी (IgG) बनने लगती है।

वैक्सीन की पहली डोज ही काफी नहीं?
इस बारे में अब तक विस्तार में स्टडी नहीं हुई है। हालांकि यह देखा गया है कि कुछ लोगों में पहली डोज के बाद ही ऐंटिबॉडी विकसित हो जाती है, वहीं कुछ लोगों में दूसरी डोज के बाद विकसित होती है। इसलिए दोनों डोज लेना जरूरी है।

वैक्सीन 100 फीसदी असरदार क्यों नहीं है?
पूरी दुनिया में आज तक ऐसी वैक्सीन नहीं बनी है जो 100 फीसदी असरदार हो। वैक्सीनेशन के बाद इम्यूनिटी की स्थिति क्या होगी, यह काफी हद तक उस शख्स के शरीर पर भी निर्भर करता है। अगर किसी को गंभीर बीमारी जैसे कि कैंसर हो, किडनी की बीमारी, ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो, डायबिटीज के पुराने मरीज हों और शुगर काबू में न हो, एलर्जी के गंभीर मरीज हों तो ऐसे लोगों में वैक्सीनेशन के बाद भी इम्यूनिटी कमजोर होती है। ऐंटिबॉडीज भी कम बनती हैं। स्वस्थ शरीर में वैक्सीन कारगर रहती है।

वैक्सीनेशन के बाद IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट कराकर देखना चाहिए कि ऐंटिबॉडीज बनी हैं या नहीं?

वैक्सीन लेने के बाद शरीर में इम्यूनिटी दो तरीके से बनती है:
1. न दिखने वाली: यह सेल्युलर लेवल पर होता है। इस तरह की इम्यूनिटी होने पर वैक्सीनेशन के बाद भी IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट नेगेटिव आ सकता है। लेकिन इम्यूनिटी बनाने वाली कोशिकाएं वायरस के आकार-प्रकार को याद कर लेती हैं। इसमें शरीर को इम्यूनिटी देने वाली T-हेल्पर सेल और T-किलर सेल अहम भूमिका निभाती हैं। ये सेल्स वायरस को अपनी मेमरी में स्टोर करती हैं। भविष्य में जब भी वायरस शरीर में पहुंचता है तो ऐंटिबॉडी बनने लगती है और वायरस को खत्म कर देती हैं। इसलिए वैक्सीन लेने के बाद या कोरोना से ठीक होने के बाद भी अगर किसी का ऐंटिबॉडी टेस्ट नेगेटिव हो तो परेशान नहीं होना चाहिए।
2. दिखने वाली: वैक्सीनेशन के बाद IgG ऐंटिबॉडी टेस्ट कराने पर रिजल्ट पॉजिटिव आता है। वैक्सीन लेने के 20 से 25 दिन में टेस्ट करा सकते हैं।

एक डोज ही लग पाए तो...
अगर किसी को वैक्सीन की पहली डोज लग गई है, लेकिन दूसरी डोज नहीं मिल पा रही है तो क्या वह दूसरी डोज को छोड़ सकता है?
कुछ दिन पहले तक यह सवाल वाजिब हो सकता था कि वैक्सीन नहीं मिल पा रही है, लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। फिलहाल वैक्सीन की उपलब्धता में कोई कमी नहीं है। जहां तक दूसरी डोज छोड़ने की बात है तो ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए। कोरोना के खिलाफ पर्याप्त इम्यूनिटी के लिए दूसरी डोज लगवाना भी जरूरी है।

अगर कोई शख्स सरकार की ओर से तय वक्त में वैक्सीन की दूसरी डोज नहीं ले पाता है तो क्या उसे फिर से पहली डोज
लेनी पड़ेगी?

वैक्सीनेशन को हमें प्राथमिकता पर रखना चाहिए। वैक्सीन आने वाले समय में शरीर की सेहत, सामान्य कामकाज और यात्राओं के लिए पासपोर्ट का काम भी करेगी। सरकार ने जिस वैक्सीन के लिए जो समय सीमा निर्धारित किया है, उसी में वैक्सीन लगवानी चाहिए ताकि शरीर को सही इम्यूनिटी मिल सके।

अगर किसी को वैक्सीन की दूसरी डोज के लिए स्लॉट और डेट मिल गई थी। लेकिन वह कोविड-19 से संक्रमित हो गया तो अब दूसरी डोज कब लेनी चाहिए?
इस सवाल में एक बात साफ है कि उस शख्स ने पहली डोज ले ली थी। दूसरी डोज लगवाने से पहले ही उसे कोरोना हो गया। ऐसे में कोरोना से उबरने यानी लक्षण खत्म के बाद (यह अमूमन 15 दिनों का होता है) 3 महीने का अंतराल रखना चाहिए यानी जिस दिन पहला लक्षण आया उसे जोड़कर 105 (90+15) दिनों के बाद।

कोवैक्सीन कम मात्रा में बन रही है। दूसरी डोज के लिए कोवैक्सीन नहीं मिल रही है कोई दूसरी वैक्सीन की डोज लगवा लें?
ऐसा नहीं है। कोवैक्सीन पहले जितनी मात्रा में बन रही थी, उतनी ही मात्रा में अब भी बन रही है। पहले जिस जगह कोवैक्सीन लगवाई थी, वहां पर फिर से कोवैक्सीन मिलने की गुंजाइश है। अभी तक सरकार ने दोनों वैक्सीन दो अलग-अलग कंपनियों की लगवाने के बारे में नहीं कहा है।

कौन न ले वैक्सीन
अगर कोई शख्स कैंसर, डायबिटीज या हाइपरटेंशन से पीड़ित है और दवाई ले रहा है तो क्या उसे वैक्सीन लगवानी चाहिए?
सभी को वैक्सीन लेनी है चाहे वह कैंसर का मरीज हो, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हार्ट, किडनी का या फिर किसी दूसरी बीमारी का। अगर मन में कोई डर हो तो अपने डॉक्टर से जरूर बात कर लें। किसी को एलर्जी की गंभीर समस्या है तो उसे वैक्सीन नहीं लेनी है। एलर्जी की गंभीर परेशानी का मतलब यह है:
एलर्जी की परेशानी शुरू होने पर 1. शरीर पर चकत्ते हो गए हों, 2. बीपी लो हो गया हो और 3. सांस लेने में परेशानी हो। एलर्जी की वजह से
ये तीनों लक्षण मरीज में उभरते हों तो वैक्सीन नहीं लेनी चाहिए और अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।
किसी शख्स में कोरोना के लक्षण हैं तो वैक्सीन लेनी चाहिए?
अगर किसी शख्स में कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं तो पहले उसे कोरोना का इलाज करवाना चाहिए। 15 दिनों तक आइसोलेशन में रहना चाहिए। फिर लक्षण जाने के 3 महीने से अंदर वैक्सीन नहीं लगवानी है। दरअसल, कोरोना होने के बाद शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होती है। ऐसे में वैक्सीनेशन का फायदा भी ज्यादा नहीं होगा।

बच्चों के लिए वैक्सीन कब तक आएगी और यह कब तक उपलब्ध होगी?
अभी तक कोरोना का असर बच्चों पर कम पड़ा है। बहुत ही कम मामलों में बच्चों की स्थिति गंभीर हुई है। फिर भी बच्चों को कोरोना से बचाना है। इसके लिए कई कंपनियां काम कर रही हैं। हमारे देश में जायडस-कैडिला 12 से 18 साल तक के किशोरों के लिए वैक्सीन ला रही है। उम्मीद है कि यह अगस्त तक मुहैया हो जाएगी। वहीं भारत बायोटेक भी बच्चों की वैक्सीन बना रही है। यह 2 से 18 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए है। यह सितंबर तक मिल सकती है।

नेजल वैक्सीन कब तक आ सकती है?
नाक से दी जाने वाली वैक्सीन को नेजल वैक्सीन या नेजल स्प्रे वैक्सीन भी कहते हैं। WHO के मुताबिक पूरी दुनिया में 7 कंपनियां नेजल वैक्सीन पर काम कर रही है। भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन अक्टूबर तक आ सकती है। इसके अलावा कोविशील्ड भी नेजल स्प्रे ला सकती है।

असली-नकली वैक्सीन की पहचान क्या है जो वैक्सीन लगाई जा रही है वह असली है या नकली, यह कैसे पता लगाएं?
रजिस्टर्ड प्राइवेट अस्पतालों, सरकारी अस्पतालों और सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान जो वैक्सीनेशन कर रहे हैं, उसमें संदेह की गुंजाइश न के बराबर है। लेकिन इन जगहों पर भी वैक्सीनेशन के तरीकों पर ध्यान दिया जा सकता है। मन में शंका हो तो उसे दूर कर लेना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि वैक्सीनेशन में फ्रॉड के मामले सिर्फ भारत में ही सामने आए हैं। इस तरह की घटनाएं अमेरिका, चीन, पोलैंड और मैक्सिको में भी हुई हैं। ये घटनाएं कैंप लगाकर दी जाने वाली वैक्सीन के मामले में ज्यादा हुई हैं।
  • अगर किसी कैंप में यह कहा जाता है कि आप अभी अपना मोबाइल नंबर और आधार नंबर दे दें, बाद में वैक्सीनेशन का मेसेज आएगा तो अलर्ट हो जाएं। अगर बाद में किसी का नाम या उनसे जुड़ी ऑनलाइन अपलोड करने में गलती हुई तो सर्टिफिकेट भी गलत आएगा। दरअसल कोरोना के खिलाफ जंग में वैक्सीनेशन काफी अहम है। इसके लिए वक्त जरूर निकालना चाहिए। बेहतर होगा कि रजिस्ट्रेशन करवाकर स्लॉट लें और किसी अच्छे सरकारी या प्राइवेट अस्पताल या सरकारी वैक्सीनेशन सेंटर पर जाकर ही वैक्सीनेशन करवाएं।
वायल देखकर भी असली-नकली वैक्सीन की पहचान की जा सकती है।
  • वैक्सीन की वायल (शीशी) पुरानी दिखे या ऐसा लगे कि इसे दोबारा पैक की गई है तो सचेत हो जाएं।
  • उस पर मैन्युफैक्चरिंग डेट, एक्सपायरी डेट आदि सही तरीके से नहीं दिख रही हो।
वैक्सीनेशन के दौरान इन बातों का भी रखें ध्यान
  • जहां वैक्सीन लेने गए हैं, वहां पर अगर हेल्थ वर्कर ने वायल से वैक्सीन निकालकर पहले ही सिरिंज में भर दी हो और आपके मन में कोई संदेह हो तो आप उन्हें सामने में भरने के लिए कह सकते हैं।
  • जो मेडिकल स्टाफ वैक्सीन लगा रहा है, उसकी यह जिम्मेदारी है कि वह अपना नाम और जिस कंपनी की वैक्सीन लगाई जा रही है उसकी जानकारी दे।
  • मोबाइल पर जब मेसेज से वैक्सीनेशन की जानकारी आती है तो मेडिकल स्टाफ ने जो जानकारी दी है, उससे मिलान कर लें। अगर अंतर दिख रहा है तो वहां के स्टाफ से जरूर बात करें।
  • कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी और कोविशील्ड वैक्सीन को रखने के लिए 2 से 8 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। वहीं फाइजर की वैक्सीन को माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखना होता है। ऐसे में अगर किसी हेल्थ वर्कर ने 2 से 3 मिनट या इससे ज्यादा समय से पहले ही शीशी को बाहर निकाल लिया और सिरिंज में डालकर रख दिया है तो वैक्सीन की कोल्ड चेन टूट जाएगी और असर कम हो सकता है।
  • वैक्सीनेशन वैक्सीनेशन के 5 मिनट के अंदर ही मेसेज से यह कंफर्म कर दिया जाता है कि उस शख्स को किस कंपनी की वैक्सीन लगी है। उस पर उसका नाम भी दर्ज होता है।
  • कुछ मामलों में मेसेज देर से मिल सकता है, लेकिन यह भी पता करें कि जिस स्लॉट में हमें वैक्सीन लगी है, उस स्लॉट के बाकी लोगों के मेसेज कब आए। अगर उस स्लॉट में किसी का मेसेज नहीं आया है तो वहां के स्टाफ से जरूर बात करनी चाहिए। यह काम तब करें जब वैक्सीन लगाने के बाद आपको आनिवार्य रूप से आधा घंटा इंतजार करना होता है।
  • वैक्सीन लगने के बाद 30 से 40 मिनट तक इंतजार करने के लिए कहा जाता है कि वैक्सीन का कोई गलत असर हो तो उनका इलाज किया जा सके। आमतौर पर बीपी लो होने की परेशानी हो सकती है।
फ्रॉड से बचने के लिए ऐसे कदम उठाएं
  • कैंप लगाकर वैक्सीनेशन अच्छा उपाय है लेकिन ऐसा करने के दौरान कुछ राज्यों में फ्रॉड के मामले सामने आए हैं।
  • किसी खास जिले में कैंप लगाकर वैक्सीनेशन किया जा रहा हो तो पूरी जानकारी प्रशासन के पास भी जरूर होनी चाहिए। इनमें CMO/DM शामिल हों ताकि किसी को कैंप पर शक हो तो तत्काल ही इन अधिकारियों से पूछकर इसकी तसल्ली कर ले।
  • CMO/DM ऐसे कैंप को मंजूरी देने के बाद अपनी सरकारी वेबसाइट पर पूरी जानकारी मुहैया कराएं।
  • कैंप लगाने के लिए रजिस्टर्ड अस्पताल या सरकार से मान्यता प्राप्त संस्था को ही मंजूरी मिले।
  • उसके पास अस्पताल का एक ऑफिशल लेटर भी जरूर होना चाहिए।कैंप पर एक डॉक्टर जरूर हो। हर डॉक्टर का एक रजिस्ट्रेशन नंबर होता है। उस नंबर को वहां लिखा जाना चाहिए। इसके अलावा वहां पर डॉक्टर और बाकी स्टाफ के नाम और फोटो के साथ लगे हों।
  • अगर कोई कैंप किसी रजिस्टर्ड अस्पताल के नाम से लगा हो तो वहां का फोन नंबर जरूर हो। उस नंबर को इंटरनेट पर और उसकी वेबसाइट पर सर्च करके भी चेक करना चाहिए कि नंबर फर्जी है या असली।
  • अगर वैक्सीन का उत्पादन करने वाली हर कंपनी अपने हर वायल पर बार कोड लगा दे तो उसे मोबाइल से स्कैन करके उस वायल के बारे में हर तरह जानकारी हासिल की जा सकती है कि कब उत्पादन हुआ, एक्सपायरी डेट क्या है आदि। इससे किसी भी तरह के फ्रॉड से बचा जा सकता है।
वैक्सीन सर्टिफिकेट कहां मिलता है और उसका फायदा
रजिस्ट्रेशन के सेंटर पर जाकर वैक्सीन लगवा रहे हैं तो सर्टिफिकेट कैसे मिलेगा?
अगर सीधे सेंटर पर जाकर वैक्सीन लगवा रहे हैं तो वहां भी आधार कार्ड और मोबाइल नंबर देना होता है। वैक्सीन लगने के बाद मोबाइल नंबर पर मेसेज आता है और सर्टिफिकेट डाउनलोड करने के लिए लिंक भी। उस लिंक पर क्लिक करने के बाद सर्टिफिकेट मिल जाता है। इसे मोबाइल ऐप Digilocker में भी रख सकते हैं और प्रिंट भी निकालकर रख सकते हैं।

जो सर्टिफिकेट मिला है वह असली है, इस बात का कैसे पता लगाएं?
सर्टिफिकेट सरकारी पोर्टल से हासिल किया गया है तो वह असली ही है।

वैक्सीन लगने के बाद अगर कोई शख्स बीमार हो जाता है या मर जाता है तो क्या कंपनी या सरकार कोई मुआवजा देगी?
हमारे देश में ऐसे मामले बहुत ही कम आए हैं। चूंकि अभी वैक्सीन को इमरजेंसी यूज का ही अधिकार मिला है, इसलिए मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है। DGCI ने इसके लिए किसी भी तरह का जुर्माना नहीं रखा है। जब वैक्सीन का कमर्शल यूज शुरू होगा तब ऐसे मामलों के लिए मुआवजे की बात भी होगी।

क्या वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवाने के बाद मास्क हटा सकते हैं?
अभी ऐसा नहीं करना चाहिए। जब तक पूरे देश में सबका वैक्सीनेशन न हो जाए और सरकार इसके लिए घोषणा न कर दे, न मास्क हटेगा और न ही सोशल डिस्टेंसिंग खत्म होगी। इसलिए अभी कई महीनों तक मास्क को लगाना पड़ेगा।
अगर किसी को अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन की एक-एक डोज लग जाए तो क्या होगा? कुछ देश एक्सपेरिमेंट के तौर पर अलग-अलग वैक्सीन लगा रहे हैं। इसका क्या नतीजा रहा?
इस तरह के प्रयोग भी हो रहे हैं। अपने देश में भी गलती से ही ऐसे मामले सामने आए, लेकिन ऐसे लोगों पर अभी तक कोई खास बुरा असर देखने को नहीं मिला है। सीधे कहें तो आंकड़े आने में वक्त लगेगा। इनका नतीजा बाद में क्या होगा, इस बारे में अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता। इसलिए जिस कंपनी की पहली डोज की वैक्सीन लगी है, उसी डोज की दूसरी डोज भी लगवानी चाहिए।

नोट: अगर इन सवालों के अलावा भी कोई सवाल हो तो अंग्रेजी या हिंदी में हमारे फेसबुक पेज SundayNBT पर लिख दें। इसके अलावा हमें ईमेल भी कर सकते हैं। अपने सवाल Sundaynbt@gmail.com पर बुधवार तक भेज दें। सब्जेक्ट में vaccine लिखें। हम चुने हुए सवालों के जवाब एक्सपर्ट से लेकर अपने फेसबुक पेज पर और अखबार में भी देंगे।

एक्सपर्ट पैनल
  • प्रो.(डॉ.) एन. के. अरोड़ा चेयरपर्सन, ORG, नैशनल टास्क फोर्स कोविड-19, ICMR
  • प्रो.(डॉ.) जी. सी. खिलनानी, चेयरमैन, इंस्टिट्यूट ऑफ पल्मोनरी, PSRI
  • प्रो.(डॉ.) संजय राय कम्यूनिटी मेडिसिन और इंचार्ज कोवैक्सीन ट्रायल, AIIMS
  • प्रो.(डॉ.) राजेश मल्होत्रा एचओडी ऑर्थोपीडिक्स, इंचार्ज कोविड ट्रॉमा सेंटर, AIIMS
  • डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, धर्मशिला हॉस्पिटल

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

दुकान Online

$
0
0

कोरोना की वजह से काफी लोगों की जॉब चली गई है। वहीं जिनकी कोई शॉप आदि है, लॉकडाउन में वह भी बंद रही जिसका असर आमदनी पर पड़ा। हालांकि इस मुश्किल में काफी बिजनेस ऐसे भी रहे जिन पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ा। ये बिजनेस ऑनलाइन चले और अब काफी ग्राहकों को पसंद आ रहे हैं। अब काफी लोग ऐसे हैं जो अपना बिजनेस ऑनलाइन करना चाहते हैं। छोटे स्तर पर ऑनलाइन बिजनेस कैसे करें या अपने ऑफलाइन बिजनेस को ऑनलाइन कैसे लाएं, इस बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं राजेश भारती

क्या है ऑनलाइन बिजनेस
ऑनलाइन बिजनेस का मतलब है कि इंटरनेट के जरिए लोगों को घर बैठे चीजें और सेवाएं खरीदने की सुविधा देना। मान लीजिए, अगर किसी को कोई शर्ट या जींस चाहिए, तो वह ई-कॉमर्स वेबसाइट जैसे Flipkart, Amazon आदि से ऑर्डर करता है और कुछ ही दिनों में वह शर्ट या जींस उसके घर डिलिवर हो जाती है। ठीक इसी प्रकार खाना या दूसरी चीजें भी लोगों को घर बैठे मिल जाती हैं। बिजनेस का यही मॉडल ऑनलाइन बिजनेस है। Myntra, MakeMyTrip, IndiaMART, Swiggy, Zomato, Magicbricks आदि ऑनलाइन प्लैटफॉर्म के उदाहरण हैं। इन प्लैटफॉर्म से जुड़कर भी आप अपना ऑनलाइन बिजनेस शुरू कर सकते हैं। ऑनलाइन बिजनेस के लिए किसी शॉप की भी जरूरत नहीं। घर बैठे ही ऑनलाइन बिजनेस किया जा सकता है। इसके लिए बहुत ज्यादा रकम की भी जरूरत नहीं पड़ती। इसके लिए जरूरी है तो एक कंप्यूटर, इंटरनेट और कंप्यूटर व इंटरनेट की जानकारी। ऑनलाइन बिजनेस के जरिए पूरी दुनिया में चीजों की बिक्री या सर्विस दी जा सकती है। इसका सीधा-सा मतलब होता है कि सामान ज्यादा बिकता है जिससे आमदनी भी ज्यादा होती है। अगर आपके पास अपना कोई भी प्रॉडक्ट नहीं है तो भी ऑनलाइन बिजनेस करने के बहुत से तरीके हैं। आप अपने टेलंट (टीचिंग, काउंसलिंग आदि) के जरिए भी घर बैठे ऑनलाइन बिजनेस शुरू कर सकते हैं।

कंपनी जरूरी नहीं, लेकिन...
ऑनलाइन काम शुरू करने का सोचते ही ज्यादातर लोगों के दिमाग में आता है कि उन्हें कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराना होगा जिसके लिए बहुत सारी रकम की जरूरत पड़ेगी, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। कोई भी शख्स कंपनी बनाए बिना या कंपनी रजिस्टर कराए बिना छोटे स्तर पर काम शुरू कर सकता है। हालांकि अगर कोई शख्स कंपनी बनाकर ही काम करना चाहता है तो वह कर सकता है। कंपनी कई तरह की बनाई जा सकती है। ज्यादा जानकारी के लिए किसी सीए से संपर्क करें। कंपनी बनाने के कुछ फायदे इस प्रकार हैं:
  • कंपनी रजिस्टर कराते समय फर्म या कंपनी का जो भी नाम होगा, उस नाम का इस्तेमाल कोई दूसरा नहीं कर सकता।
  • कंपनी बनाने वाला शख्स आगे चलकर अगर अपनी कंपनी का विस्तार करना चाहे, तो उसे कोई परेशानी नहीं होगी।
  • कंपनी की जरूरत के लिए लोन लेना बहुत आसान हो जाता है।
...तो GST रजिस्ट्रेशन काफी
अगर कोई शख्स ऐसा बिजनेस शुरू कर रहा है जिसका सालाना टर्नओवर (कुल बिक्री) 40 लाख रुपये से ज्यादा है तो GST रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है। हालांकि सर्विस सेक्टर के लिए यह रकम सिर्फ 20 लाख रुपये है। मान लीजिए कि अगर आप टीचिंग या कोई काउंसलिंग शुरू कर रहे हैं और टर्नओवर 20 लाख रुपये से ज्यादा है तो GST रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा। ये सेवाएं सर्विस सेक्टर में आती हैं। वहीं अगर कोई शख्स कोई सामान बेच रहा है तो यह चीजें गुड्स सेक्टर में आती हैं। अगर गुड्स सेक्टर में सालाना टर्नओवर 40 लाख रुपये से ज्यादा है, तभी GST रजिस्ट्रेशन जरूर होता है।

यहां पड़ेगी GST की जरूरत
  • अगर आप थर्ड पार्टी पोर्टल जैसे Flipkart, Amazon, Swiggy, Zomato आदि के जरिए अपना सामान बेचना चाहते हैं।
  • एक राज्य से दूसरे राज्य में सामान बेचने या खरीदने के लिए GST की जरूरत पड़ सकती है।
यहां नहीं पड़ेगी GST की जरूरत
  • अपनी वेबसाइट बनाकर प्रॉडक्ट बेच रहे हैं या सर्विस दे रहे हैं।
  • आप थर्ड पार्टी प्लैटफॉर्म पर किताबें या स्टेशनरी का सामान बेच रहे हैं।
ऐसे कराएं रजिस्ट्रेशन
GST रजिस्ट्रेशन खुद भी करा सकते हैं। इसके लिए PAN, आधार कार्ड (पते के लिए), बिजली का बिल और एक फोटो होना जरूरी है। आधार कार्ड पर छपा पता उस समय मान्य होगा जब बिजनेस घर से होगा। वहीं अगर किसी दुकान या गोदाम से बिजनेस करना चाहते हैं और दुकान या गोदाम आपके ही नाम है तो पते के रूप में दुकान या गोदाम के कागजों की फोटोकॉपी लगती है। अगर मकान या दुकान या गोदाम परिवार के किसी और सदस्य के नाम है तो उसे एक ऐफिडेविट देना होगा और उसमें लिखना होगा कि वह आपको बिजनेस करने के लिए अपने मकान या दुकान या गोदाम को इस्तेमाल करने की इजाजत दे रहा है या दे रही है। वहीं अगर किराए के मकान में रहते हैं तो रेंट एग्रीमेंट के साथ मकान मालिक के नाम का बिजली का बिल चाहिए।

अगर आपको GST से जुड़ी थोड़ी-सी भी जानकारी है तो ऑफिशल वेबसाइट gst.gov.in पर जाकर GST रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। वहीं अगर कोई परेशानी आए या GST से जुड़ी कोई जानकारी नहीं है तो बेहतर होगा कि GST रजिस्ट्रेशन के लिए किसी सीए की मदद लें।
GST रजिस्ट्रेशन का सबसे बड़ा फायदा: GST रजिस्ट्रेशन होने पर भी सरकार की तरफ से बिजनेस के लिए लोन, बिजनेस ट्रेनिंग आदि जैसी सुविधाएं मिल जाती हैं।

ऐसे करें ऑनलाइन बिजनेस
सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब बारी आती है बिजनेस को ऑनलाइन मार्केट में उतारने की। ऑनलाइन मार्केट में उतरने के मुख्य तरीके 2 हैं। पहला- खुद की वेबसाइट बनाकर और दूसरा बिना वेबसाइट के।

पहला तरीका: वेबसाइट बनाना
वेबसाइट बनाकर बिजनेस करना सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। इसमें आप अपने प्रॉडक्ट की लिस्टिंग और उनकी फोटो या विडियो भी पोस्ट करनी होती है। साथ ही वेबसाइट का पूरा कंट्रोल आपके ही हाथ में होता है। खुद की वेबसाइट बनाकर बिजनेस करने से कस्टमर और प्रॉडक्ट के बीच कोई भी थर्ड पार्टी नहीं होती। पेमंट का लेन-देन भी आपके और कस्टमर के बीच में ही रहता है। साथ ही किसी थर्ड पार्टी को कोई कमीशन भी नहीं देनी होती।

...लेकिन ये हैं नुकसान
  • वेबसाइट बनाकर प्रॉडक्ट या सर्विस की पहुंच टार्गेट कस्टमर तक पहुंचाने में कुछ ज्यादा समय (6 महीने तक) तक लग सकता है।
  • नई वेबसाइट पर कस्टमर आने में कुछ हिचकिचाता है। दरअसल, कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां से नई वेबसाइट से प्रॉडक्ट खरीदने के बाद कस्टमर ने खुद को ठगा-सा महसूस किया। कस्टमर को या तो खराब क्वॉलिटी वाला प्रॉडक्ट मिला या पेमंट करने के बाद भी उसे प्रॉडक्ट नहीं मिला या प्रॉडक्ट वापस करने के बाद उसे रकम नहीं मिली।
  • वेबसाइट का प्रचार करना काफी महंगा होता है और यह खर्चा खुद उठाना पड़ता है।
ऐसे बनाएं वेबसाइट
वेबसाइट बनाना बहुत ही आसान है। वेबसाइट बनाने के लिए ये मुख्य स्टेप पूरे करने होंगे:
1. डोमेन नेम लेना
किसी भी वेबसाइट को बनाने से पहले उसके लिए एक डोमेन नेम (वेबसाइट का नाम जैसे flipkart.com आदि) खरीदना पड़ता है। डोमेन नेम हमेशा बिजनेस की नेचर के अनुसार ही खरीदें। हम अपनी पसंद का वही डोमेन नेम खरीद सकते हैं जो किसी ने खरीदा न हो। डोमेन नेम GoDaddy ( godaddy.com), google (domains.google), BigRock ( bigrock.com) आदि के जरिए डोमेन नेम खरीदा जा सकता है। साथ ही जो नाम आपको पसंद है, वह मौजूद है या नहीं, यह भी इन्हीं वेबसाइट से पता लगा सकते हैं।
कीमत: डोमेन नेम के पहले साल की फीस करीब 400 रुपये से शुरू होती है। हालांकि कुछ वेबसाइट्स 150 रुपये और कुछ फ्री में भी बेच रही हैं हालांकि इसमें कई तरह की शर्तें शामिल हैं। इन शर्तों में डोमेन नेम को कम से कम दो साल के लिए लेना भी है, डोमेन के साथ होस्टिंग लेना आदि। इसके बाद फीस में बदलाव मुमकिन।

2. होस्टिंग
होस्टिंग से मतलब क्लाउड स्पेस है यानी आपको वेबसाइट पर कितनी जगह चाहिए। इसमें वेबसाइट का डेटा होता है। यह 1 GB से लेकर 50 GB तक या इससे ज्यादा भी होता है। आप कितने पेज की वेबसाइट बनवाना चाहते हो, यह डेटा पर ही निर्भर करता है। अगर आपकी वेबसाइट में फोटो और विडियो ज्यादा होंगे तो ज्यादा डेटा स्टोर होगा। साथ ही अगर पेमंट गेटवे भी रखेंगे तो ज्यादा सिक्योरिटी चाहिए। इसके लिए SSL सर्टिफिकेट चाहिए, जिसे डोमेन बेचने वाली कंपनियों से ही ऑनलाइन खरीदा जा सकता है। पेमंट गेटवे से मतलब है कि कोई शख्स वेबसाइट से ही डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड आदि के जरिए ऑनलाइन भुगतान कर सकता है।

होस्टिंग 2 तरह की होती है-
शेयर्ड होस्टिंग: इस होस्टिंग से मतलब होता है कि सर्वर एक ही होगा और उससे बहुत सारी वेबसाइट कनेक्ट होंगी। इसमें सीमित स्पेस होता है। कोई भी शख्स 50 GB तक के स्पेस की होस्टिंग ले सकता है। इसे ऐसे समझें। मान लीजिए कि कोई एक घर है। उसमें बहुत सारे कमरे हैं। आप उन्हीं कमरों में से किसी एक कमरे में रहते हैं यानी पूरे घर में आपका कुछ हिस्सा है।
डेडिकेटेड होस्टिंग: इसे वर्चुअल प्राइवेट सर्वर (VPS) भी कहते हैं। इसमें किसी यूजर को पूरा सर्वर दे दिया जाता है। इसमें स्पेस की कोई लिमिट नहीं होती। flipkart और amazon जैसी वेबसाइट इसी होस्टिंग का इस्तेमाल करती हैं। इसे ऐसे समझें। कोई जमीन है, जिस पर मकान बना है। वह पूरा मकान आपको दे दिया गया यानी पूरा स्पेस आपको मिल गया।
कीमत: चूंकि आप छोटे स्तर पर बिजनेस शुरू करने जा रहे हैं। इसलिए आपके लिए शेयर्ड होस्टिंग ही ठीक रहेगी। इसकी कीमत 10 GB के लिए 2500 रुपये सालाना से शुरू होती है। हालांकि कीमत इस बात पर भी निर्भर करती है कि वेबसाइट का नेचर क्या है। अगर ई-कॉमर्स टाइप की वेबसाइट है तो उसके लिए ज्यादा स्पेस की जरूरत पड़ेगी। और फिर उसका सालाना खर्चा भी ज्यादा होगा। वैसे, जितने ज्यादा साल के लिए होस्टिंग लेंगे, यह उतनी ही सस्ती पड़ती है। अगर आप 5 साल के लिए होस्टिंग लेते हैं तो इसकी कीमत आधी भी हो सकती है। वहीं SSL सर्टिफिकेट की कीमत 1 हजार रुपये से शुरू होती है, जो 50 हजार रुपये तक हो सकती है।

3. कंटेंट
होस्टिंग के बाद जरूरत होती है वेबसाइट पर कंटेंट और फोटो-विडियो अपलोड करने की। आप अपने ग्राहक को क्या दिखाना चाहते हैं और क्या पढ़ाना चाहते हैं, यह इसी स्टेप में आता है। मान लीजिए, अगर आप खाने की थाली बेचना चाहते हैं, तो खाना क्या है, थाली में क्या-क्या आइटम हैं आदि के बारे में वेबसाइट के पेज पर लिखना होगा। इस काम को अगर आप खुद करें तो बेहतर है। हालांकि यह काम किसी को सौंपा भी जा सकता है।
कीमत: कंटेंट की कीमत के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। कीमत प्रति शब्द 1 रुपये या इससे ज्यादा भी हो सकती है।

4. डिजाइन
सारी चीजें तैयार होने के बाद अब बारी आती है वेबसाइट को डिजाइन कराने की। अगर आपको तकनीक की थोड़ी-सी भी जानकारी है तो आप खुद भी वेबसाइट का डिजाइन कर सकते हैं। इसके लिए तैयार टेम्पलेट आते हैं। वहीं आप चाहते हैं कि डिजाइन बढ़िया बने, तो इसके लिए फ्रीलांसर या एजेंसी से संपर्क कर सकते हैं। सोशल मीडिया पर बहुत सारे वेब डेवेलपर हैं। इसकी भी मदद ली जा सकती है। वेबसाइट का डिजाइन यूजर फ्रेंडली होना चाहिए ताकि यूजर हर चीज को आसानी से समझ सके।
कीमत: वेबसाइट डिजाइन कराने की कीमत 5 हजार से 5 लाख रुपये तक हो सकती है। यह एक बार ही खर्च होता है, लेकिन वेबसाइट का डिजाइन जितनी बार बदलवाएंगे, उसकी बार रकम खर्च करनी पड़ सकती है। इन स्टेप्स के बाद वेबसाइट तैयार हो जाती है।

5. मेंटिनेंस
वेबसाइट तैयार होने के बाद भी वेबसाइट के मेंटिनेंस की जरूरत पड़ती है। दरअसल, समय के साथ-साथ टेक्नॉलजी में भी बदलाव होते हैं। टेक्नॉलजी अपग्रेड भी होती रहती है। साथ ही वेबसाइट पर आए दिन साइबर हमले भी होते हैं। इन सबको संभालने के लिए मेंटिनेंस की जरूरत होती है।
कीमत: 5 हजार रुपये से 50 हजार रुपये सालाना
नोट: बहुत सारी वे कंपनियां जो डोमेन नेम बेचती हैं जैसे GoDaddy आदि, वे भी वेबसाइट तैयार करने की पूरी सुविधाएं देती हैं। इन कंपनियों से भी संपर्क कर सकते हैं। छोटे बिजनेस के लिए ये कंपनियां समय-समय पर खास पैकेज ऑफर करती रहती हैं।

ऐप है तो ऐश है
किसी भी वेबसाइट की ऐप होना भी आज बहुत जरूरी हो गया है। अगर आप अपनी ई-कॉमर्स या इस तरह की दूसरी वेबसाइट बनवा रहे हैं तो बेहतर होगा कि उसकी ऐप भी बनवाएं। इन ऐप को स्मार्टफोन में डाउनलोड करना होता है। आज का यूथ ऐप के जरिए खरीदारी करना आसान समझता है और वह मोबाइल में इंस्टॉल ऐप के जरिए कहीं से भी ऑर्डर बुक कर सकता है या किसी भी सर्विस का लाभ ले सकता है।
कीमत: ऐंड्रॉइड या iOS प्लेटफॉर्म के लिए ऐप बनाने के खर्चे की शुरुआत 1 लाख रुपये से होती है। यह कीमत कितनी भी हो सकती है। 2 लाख, 3 लाख या 5 लाख। इसकी कीमत वेबसाइट के मुकाबले इसलिए ज्यादा है कि ऐप के लिए डेडिकेटेड सपोर्ट की आवश्यकता होती है। साथ ही ऐप के लिए मेंटिनेंस टीम हर समय चाहिए। यही नहीं, अगर एेंड्रॉइड या iOS का कोई वर्जन अपग्रेड होता है तो टीम को ऐप को भी तुरंत अपग्रेड करना होता है।
कीमत: ऐप बनाने का खर्च करीब 1 लाख रुपये से शुरू होता है और इस खर्च के खत्म होने की कोई सीमा नहीं है।

दूसरा तरीका: बिना वेबसाइट बनाए
ऑनलाइन बिजनेस में बिना वेबसाइट बनाकर भी उतर सकते हैं। बिना वेबसाइट के मार्केट में उतरने के ये निम्न रास्ते हैं:
थर्ड पार्टी पोर्टल का इस्तेमाल करके
थर्ड पार्टी पोर्टल जैसे Flipkart, Amazon, Myntra, Swiggy, Zomato आदि का इस्तेमाल करके भी ऑनलाइन बिजनेस किया जा सकता है। इन प्लेटफॉर्म में सैकड़ों सेलर हैं जो कोई न कोई प्रॉडक्ट बेचते हैं। जरूरी नहीं कि इन प्लेटफॉर्म पर अपने ही प्रॉडक्ट बनाकर बेचे जाएं। आप किसी कंपनी से थोक में सामान खरीदकर उसे इन प्लेटफॉर्म के जरिए बेच सकते हैं। वहीं सर्विस सेक्टर की बात करें तो मेडिकल से जुड़े थर्ड पार्टी पोर्टल जैसे Practo, DocsApp, 1mg आदि से जुड़कर भी ऑनलाइन बिजनेस कर सकते हैं। अगर आप Flipkart और Amazon जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट से जुड़कर बिजनेस करना चाहते हैं तो सबसे पहले इन वेबसाइट पर अकाउंट बनाकर रजिस्ट्रेशन कराना होता है। थर्ड पार्टी पोर्टल पर बिजनेस के लिए इन चीजों की जरूरत पड़ती है:
  • फोन नंबर, ई-मेल आईडी n GST रजिस्ट्रेशन नंबर
  • बैंक अकाउंट नंबर और IFSC कोड (यह बैंक की पासबुक पर लिखा होता है)
ऐसे करें शुरुआत
मान लीजिए, आप Amazon के जरिए कोई प्रॉडक्ट बेचना चाहते हैं तो Amazon पर प्रॉडक्ट बेचने की प्रक्रिया इस प्रकार है:
अकाउंट बनाना
  • Amzon की ऑफिशल वेबसाइट amazon.in पर जाएं।
  • लगभग राइट साइड में ऊपर की तरफ लिखे Hello, sign in Account & Lists पर क्लिक करें।
  • अब एक नया पेज खुलेगा। इसमें नीचे की ओर लिखे Create your Amazon account पर क्लिक करें।
  • अब फिर से नया पेज खुलेगा। यहां आपको अपना नाम, फोन नंबर, ई-मेल टाइप करना होगा। ई-मेल के ठीक नीचे पासवर्ड बनाना होगा। यह पासवर्ड ई-मेल वाला नहीं होना चाहिए। इस पासवर्ड के जरिए आप ऐमजॉन के अकाउंट को खोल या बंद कर पाएंगे।
  • सारी चीजें भरने के बाद इसी पेज के नीचे पीले रंग की पट्टी में लिखे Continue पर क्लिक कर दें। अब फोन नंबर पर OTP आएगा।
  • अब नया पेज खुलेगा। इसमें फोन नंबर पर आए OTP को टाइप करना होगा।
  • OTP टाइप करने के बाद इसके ठीक नीचे पीले रंग की पट्टी में लिखे Create your Amazon account पर क्लिक करें।
  • अब आप Amazon के होम पेज पर पहुंच जाएंगे। शुरू में जहां Hello, sign in Account & Lists लिखा हुआ था, वहां अब sign in की जगह आपका नाम लिखा हुआ दिखाई देगा। इसका मतलब है कि आपका Amazon पर अकाउंट बन गया है।
  • सेलर अकाउंट बनाना
  • अकाउंट बनने के बाद अगर आपने उसे Sign Out नहीं किया है तो जहां Hello, sign in Account & Lists लिखा हुआ था, वहां क्लिक करें।
  • अब नया पेज खुलेगा। यहां आपको कुछ बॉक्स बने हुए दिखाई देंगे, जिनमें अलग-अलग पॉइंट्स लिखे होंगे। एक बॉक्स में आपको Other accounts लिखा दिखाई देगा। इसके ठीक नीचे दूसरा पॉइंट Seller account का होगा। इस पॉइंट पर क्लिक करें।
  • फिर से नया पेज खुलेगा। यह पेज सेलर के लिए है। यहां ऊपर की तरफ राइट साइड में और दो जगह और पीले रंग के बॉक्स में Start selling लिखा दिखाई देगा। इस पर क्लिक करें।
  • अब जो भी जानकारी मांगी जाए, उसे भरते जाएं। पूरी प्रक्रिया होने में करीब 30 मिनट लगती हैं। प्रक्रिया पूरी होने के 24 घंटे के भीतर ऐमजॉन की ओर से कॉल आता है। कॉल करके ऐमजॉन की ओर से प्रॉडक्ट वेबसाइट पर लिस्ट करना और वेयरहाउस आदि की पूरी जानकारी दी जाती है। सारी प्रक्रिया पूरी होने में 2 से 3 दिन का समय लग सकता है। इसके बाद आपके प्रॉडक्ट ऐमजॉन की वेबसाइट पर दिखने और बिकने शुरू हो जाएंगे।
थर्ड पार्टी पोर्टल के फायदे
  • वेबसाइट या प्रॉडक्ट के प्रचार के लिए खुद एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ता। सारा खर्च वेबसाइट कंपनी की ओर से होता है।
  • समय-समय पर ऑफर आते रहते हैं जिससे बिक्री बढ़ती रहती है।
  • किसी दुकान या गोदाम की जरूरत नहीं। घर से भी काम कर सकते हैं।
  • थर्ड पार्टी पोर्टल के नुकसान
  • प्रॉडक्ट बिकने से आई रकम को ये कंपनियां तुरंत सेलर को नहीं देतीं। 15 या 1 महीने तक की बिक्री का पैसा थर्ड पार्टी पोर्टल के पास ही होता है। इसके बाद अपनी कमीशन काटकर रकम को सेलर के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर देती हैं।
  • कमीशन के रूप में कमाई का एक हिस्सा (30% तक) थर्ड पार्टी पोर्टल के पास चला जाता है।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि के जरिए भी बिना वेबसाइट बनाए बिजनेस किया जा सकता है। बिजनेस के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल इस प्रकार करें:
फेसबुक: फेसबुक पेज बनाकर आप अपने बिजनेस को नई ऊंचाई पर पहुंचा सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि फेसबुक के कवर फोटो से लेकर प्रॉडक्ट के फोटो तक, सारी चीजें अप-टू-डेट और आकर्षित होनी चाहिए। मान लीजिए, आप घर पर बर्थडे केक बनाते हैं और अपने इस बिजनेस को फेसबुक के जरिए लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले केक की अच्छी फोटो फेसबुक पेज पर लगानी जरूरी होंगी। बेहतर होगा कि केक के घर पर छोटे-छोटे (2 से 3 मिनट के) विडियो बनाएं और उन्हें भी पोस्ट करें। साथ ही फोटो या विडियो के साथ कम शब्दों में जोरदार टेक्स्ट भी जरूर लिखें। आप चाहें तो फेसबुक पेज की पोस्ट को बूस्ट भी करवा सकते हैं। बूस्ट का मतलब है कि फेसबुक आपकी उस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाता है। हालांकि इसके लिए फेसबुक कुछ पैसे लेता है। 7 दिन के लिए फेसबुक करीब 1 हजार रुपये लेता है। इस दौरान फेसबुक आपकी उस पोस्ट को रोजाना 100 से 300 लोगों तक पहुंचाएगा।

इंस्टाग्राम: अपने बिजनेस से जुड़े फोटो और विडियो को इंस्टाग्राम पर शेयर करके भी ज्यादा से ज्यादा लोगों पर प्रॉडक्ट पहुंचाया जा सकता है। आप चाहें तो इन्फ्लूएंसर की भी मदद ले सकते हैं। इंस्टाग्राम पर ऐसे काफी मॉडल (मेल/फीमेल) हैं जो इन्फ्लूएंसर हैं। इनके लाखों में फॉलोवर्स होते हैं। इनने संपर्क करके प्रॉडक्ट का एड करवाया जा सकता है। ये उस एड को अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर करते हैं, जिससे प्रॉडक्ट के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को पता चलता है। इस एड के बदले में ये इन्फ्लूएंसर कुछ रकम भी लेते हैं। ये रकम प्रति फोटो 10 हजार रुपये तक हो सकती है।

वॉट्सऐप: आज लगभग हर स्मार्टफोन यूजर वॉट्सऐप का इस्तेमाल करता है। किसी एक शहर या सीमित दायरे में बिजनेस फैलाने के लिए वॉट्सऐप सबसे अच्छा माध्यम है। मान लीजिए, अगर आप कोई डिश बनाकर बेचना चाहते हैं तो इसमें वॉट्सऐप काफी मददगार साबित होता है। आप अपने वॉट्सऐप प्रोफाइल पर डिश की फोटो लगाकर रखें। साथ ही कोई भी ऑर्डर देते समय एक पर्चा जरूर साथ में रखें जिसमें आपकी डिश और दूसरी सर्विस (अगर है तो) के बारे में लिखा हो। इस पर्चे पर बड़े-बड़े अक्षरों में वॉट्सऐप नंबर लिखवाएं और साथ में यह भी लिखें 'ऑर्डर के लिए इस नंबर XXXXXXXXXX पर वॉट्सऐप करें'। कस्टमर का नंबर सेव करके उसे नई-नई डिश और ऑफर्स के बारे में भी अपडेट करते रहें। ध्यान रखें कि वॉट्सऐप पर कभी भी कस्टमर्स का ग्रुप न बनाएं। नहीं तो लोग परेशान हो जाएंगे और ऑर्डर देना भी बंद कर सकते हैं।

यू-ट्यूब: अगर आपका ऑनलाइन बिजनेस विडियो से जुड़ा है तो बिजनेस को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का सबसे अच्छा माध्यम यू-ट्यूब है। यहां विडियो अपलोड करके बिजनेस की ग्रोथ को काफी बढ़ा सकते है।

एक्सपर्ट पैनल
  • निखिल अरोड़ा, मैनेजिंग डायरेक्टर और वाइस प्रेजिडेंट, GoDaddy India
  • सुशील अग्रवाल, CA, पार्टनर, ASAP & Associates
  • अंबेश तिवारी, फाउंडर & डायरेक्टर, BDA Technologies Pvt Ltd
  • नीरज धवन, बिजनेस हेड, Vrozart Health
  • परिमल शाह, फाउंडर और CEO, Cherise India Pvt Ltd
अगले संडे पढ़ें: ऑफलाइन बिजनेस को ऑनलाइन कैसे लेकर आएं और बिजनेस बढ़ाने के लिए गूगल और सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे करें।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

ऑनलाइन बिजनेस पार्ट-2: ऐसे पाएं नए ग्राहक

$
0
0

हमने पिछले संडे जस्ट ज़िंदगी में बताया था कि ऑनलाइन बिजनेस कैसे शुरू करें। इस बार बातें ऑनलाइन बिजनेस को प्रमोट करने की। बिजनेस ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, उसका प्रमोशन करने की बहुत जरूरत पड़ती है। ऑनलाइन बिजनेस को रफ्तार कैसे दें, इसके बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं राजेश भारती

अपने ऑफलाइन बिजनेस को ऑनलाइन प्रमोट करना
मान लीजिए, आपकी कोई दुकान है। वह ऑनलाइन भी है यानी वेबसाइट से मिले ऑर्डर भी आप डिलिवर करते हैं। अगर वेबसाइट नहीं है तब भी कोई बात नहीं। गूगल पर आप Google My Business के जरिए अपने बिजनेस को प्रमोट कर सकते हैं। गूगल की यह सुविधा पूरी तरह फ्री है। पहले जानिए Google My Business के फायदे क्या हैं:
  • इस इस प्लैटफॉर्म पर आकर आप अपने बिजनेस को गूगल पर लिस्ट कर सकते हैं यानी कोई ग्राहक जब उस बिजनेस से जुड़ी चीजें सर्च करेगा तो आपकी चीजें भी उसे दिखाई देंगी।
  • अपना बिजनेस प्रोफाइल बनाकर गूगल सर्च और गूगल मैप के जरिए भी ग्राहकों से जुड़ सकते हैं। साथ ही ग्राहक को आप तक पहुंचने में बहुत आसानी हो जाएगी।
गूगल पर अपना बिजनेस ऐसे लाएं और प्रमोट करें
ऑफिशल वेबसाइट business.google.com पर जाएं। यहां प्रोसेस पूरा करने के बाद आपकी दुकान गूगल लिस्ट में शामिल हो जाएगी। इसका तरीका यह है:
  • ऊपर राइट साइड में Sign in लिखा दिखाई देगा। यहां आपके लिए जरूरी है कि आपके पास जीमेल अकाउंट हो। Sign in पर क्लिक करके जीमेल अकाउंट लॉगइन कर लें।
  • अब जो पेज खुलेगा, वहां Type your business name लिखा हुआ दिखाई देगा। यहां अपने बिजनेस का नाम लिखें। मान लीजिए, आपकी मिठाई की दुकान है और उसका नाम Sweety Sweets है। इसे आप गूगल पर लाना चाहते हैं तो Type your business name वाली जगह Sweety Sweets लिखें और enter बटन दबाएं।
  • अब फिर से नया पेज खुलेगा। यहां Business name में आपके बिजनेस का वही नाम लिखा आएगा जो आपने पिछले पेज पर लिखा था, जैसे- Sweety Sweets और इसके नीचे Business category का ऑप्शन होगा जिसमें लिखना होगा कि आपके बिजनेस का नेचर क्या है। मसलन, Sweety Sweets क्या है, तो आपको यहां Sweet shop सिलेक्ट करना होगा। इसके बाद नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • अब शॉप की लोकेशन पूछी जाएगी। बेहतर होगा कि Yes पर क्लिक करें। यह इसलिए ताकि अगर कोई ग्राहक गूगल मैप का इस्तेमाल करके आपकी शॉप पर आना चाहे तो उसे आने में आसानी रहे। Yes पर क्लिक करने के बाद नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें। अब जो पेज खुलेगा, उसमें आपको अपनी शॉप का एड्रेस देना होगा फिर नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करना होगा।
  • अगले पेज में एक मैप खुलेगा। यहां आपको आपकी शॉप के एड्रेस वाली लोकेशन दिखाई देगी। लोकेशन एक बार चेक कर लें। सब कुछ सही होने पर नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • अगला पेज खुलेगा। यहां पूछा जाएगा कि क्या आप प्रॉडक्ट को अपनी लोकेशन से दूर जाकर भी (होम डिलिवरी भी) डिलिवर करते हैं? अगर हां, तो Yes, I also serve them outside my location पर क्लिक कर दें। अगर होम डिलिवरी नहीं करते तो No, I don't पर क्लिक कर दें। इसके बाद नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • इसके बाद Add the areas you serve (optional) का पेज आएगा। अगर आप अपनी शॉप से अलग किसी एक खास जगह पर ही अपनी चीज डिलिवर करना चाहते हैं तो उस जगह का नाम टाइप कर दें। नहीं तो इसे खाली छोड़ नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक कर दें।
  • अब आपको अपना फोन नंबर और वेबसाइट का पूरा नाम टाइप करना होगा। अगर वेबसाइट नहीं है तो वेबसाइट वाले ऑप्शन को छोड़ सकते हैं। ऐसे में सिर्फ मोबाइल नंबर लिखें और नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • नया पेज खुलेगा। इसमें आपसे पूछा जाएगा कि आपके बिजनेस से जुड़ा अगर कोई अपडेट गूगल पर आता है तो क्या आपको उसका नोटिफिकेशन चाहिए? अगर चाहिए तो Yes पर क्लिक करें और नहीं चाहिए तो No पर क्लिक कर दें। इसके बाद नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • अब नया पेज खुलेगा। यह वेरिफिकेशन पेज है। यहां आपके फोन नंबर को वेरिफाई किया जाएगा। वेरिफिकेशन के लिए दो ऑप्शन मिलेंगे। पहला Call का और दूसरा Text का। Call में गूगल की तरफ से दिए गए नंबर पर कॉल की जाएगी। उसे सिर्फ रिसीव करना होगा। रिसीव होते ही कॉल तुरंत कट जाएगी और वेरिफिकेशन पूरा हो जाएगा। Text वाले ऑप्शन में दिए गए मोबाइल नंबर पर एक कोड भेजा जाएगा। कोड भरने के बाद वेरिफिकेशन पूरा हो जाएगा। वेरिफिकेशन पूरा होने के बाद नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • इसके बाद आपको अपनी शॉप का टाइम सेट करना होगा। मसलन, शॉप कौन-कौन-से दिन और कितने बजे से कितने बजे तक खुलती है, यह बताना होगा। यहां आपको Sunday से Saturday तक के दिन दिखेंगे। इनके बराबर में Closed लिखा होगा। दिन और Closed के बीच में ग्रे रंग का एक बटन होगा। इस बटन पर क्लिक करें। क्लिक करते ही यह नीले रंग का हो जाएगा। इसके ठीक नीचे समय आएगा। अगर आप दुकान सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक खोलते हैं तो टाइम में 9:00 AM से 9:00 PM सेट कर दीजिए। अगर संडे को शॉप बंद रखते हैं तो Sunday और Closed के बीच के बटन को ग्रे ही रहने दें। इस तरह से आप अपनी दुकान के टाइमिंग सेट कर सकते हैं। टाइमिंग सेट होने के बाद नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • अब Add messaging नाम का पेज खुलेगा। अगर आप चाहते हैं कि ग्राहक आपको प्रॉडक्ट या किसी दूसरी चीज के बारे में फीडबैक देने के लिए मेसेज करे तो इसके नीचे Accept Messages के बराबर में बने ग्रे बटन पर क्लिक कर दें। यह बटन नीले रंग का हो जाएगा। अब नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • अब नया पेज खुलेगा। इसमें सबसे ऊपर Add business description लिखा होगा। यह पेज काफी महत्वपूर्ण है। यहां एक बॉक्स बना होगा। इसमें आपको अधिकतम 750 शब्दों में अपनी शॉप और प्रॉडक्ट के बारे में लिखना होगा।
प्रॉडक्ट के बारे में लिखने के दौरान सही कीवर्ड्स का इस्तेमाल करें। कीवर्ड्स जितने सही होंगे, ग्राहक को आपकी दुकान तक पहुंचने में उतनी ही आसानी होगी। इसका इस्तेमाल इस प्रकार करें:
मान लीजिए दिल्ली के चांदनी चौक में आपकी रबड़ी-जलेबी की दुकान है। आपने अपनी दुकान की वेबसाइट भी बनाई है। अब आपको अपनी दुकान के बारे में Add business description के बॉक्स में लिखना है। यहां आप rabdi jalebi in Delhi. rabdi jalebi in old Delhi. rabdi jalebi in chandni chowk. इस तरह के कीवर्ड्स लिख सकते हैं। जब भी कोई ग्राहक गूगल पर रबड़ी-जलेबी की दिल्ली में दुकान (rabdi jalebi shop in delhi) सर्च करेगा तो आपकी वेबसाइट भी सर्च रिजल्ट में शामिल होगी। हालांकि हो सकता है कि आपकी वेबसाइट पहले पेज पर न होकर दूसरे या तीसरे पर हो। वहीं अगर कोई ग्राहक 'rabdi jalebi shop in chandni chowk' सर्च करेगा तो आपकी वेबसाइट टॉप रिजल्ट में शामिल होगी। अब नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • नया पेज खुलेगा। इसमें आपको अपनी दुकान और प्रॉडक्ट के फोटो अपलोड करने होंगे। आप एक से ज्यादा भी फोटो अपलोड कर सकते हैं। फोटो होने से भी नए ग्राहक को दुकान के बारे में ज्यादा समझने का मौका मिलता है। फोटो अपलोड करने के बाद नीचे नीले रंग के बॉक्स में लिखे Next पर क्लिक करें।
  • दो-तीन और औपचारिक प्रक्रियाओं के बाद आपका बिजनेस अकाउंट गूगल पर ऐक्टिव हो जाता है यानी आपका बिजनेस गूगल पर आ चुका है और कोई भी ग्राहक आप तक पहुंच सकता है।
ऐसे करें डिजिटल पब्लिसिटी
ऑनलाइन बिजनेस को प्रमोट करने के लिए डिजिटल मार्केटिंग सबसे बेस्ट है। डिजिटल मार्केटिंग कई तरह से कर सकते हैं:
1. सर्च इंजन मार्केटिंग
इसके नाम से पता चलता है कि यह मार्केटिंग सर्चिंग से जुड़ी है यानी अगर कोई शख्स आपके बिजनेस से जुड़ी चीजों को गूगल पर सर्च करे तो आपकी चीजें पहले ही पेज पर दिखाई दे जाएं। इसके लिए आपके बिजनेस की वेबसाइट का होना जरूरी है। SEM दो तरह की होती है। पहली Search Engine Optimization (SEO) और दूसरी Ads (विज्ञापन)। इसमें SEO पूरी तरह फ्री है जबकि Ads के लिए गूगल को कुछ रकम देनी पड़ती है। पहले जानते हैं SEO के बारे में-
SEO: वेबसाइट पर कंटेंट डालते समय बिजनेस या प्रॉडक्ट से जुड़े कुछ कीवर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल, यह एक ऐसा प्रोसेस है जिसकी मदद से गूगल में बताया जाता है कि किस प्रकार का कंटेंट है और क्या प्रॉडक्ट बेचने की बात हो रही है। सही कीवर्ड्स होने से जब भी कोई शख्स गूगल पर आपके प्रॉडक्ट से संबंधित चीजें सर्च करेगा तो आपकी वेबसाइट गूगल सर्च में पहले पेज पर ही आ जाएगी।
Ads : Ads यानी विज्ञापन। अगर आपने अपने बिजनेस के लिए कोई वेबसाइट बनाई है और उसे गूगल के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं तो Google Ads का इस्तेमाल करें। Google Ads के माध्यम से आपकी वेबसाइट गूगल सर्च के टॉप रिजल्ट्स में आ जाती है। ऐसी वेबसाइट के नाम के आगे Ad लिखा आता है। दरअसल, Google Ads का सीधा-सा मतलब है कि आप गूगल को कुछ रकम (औसतन 5 हजार रुपये महीने) देंगे और वह आपकी वेबसाइट को प्रमोट करेगा।
ऐसे लें मदद: Google Ads कैसे काम करता है और इससे जुड़ी पूरी जानकारी गूगल के टोल-फ्री नंबर 18005728309 पर सोमवार से शुक्रवार सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे के बीच कॉल करके ली जा सकती है।

2. ईमेल मार्केटिंग
ईमेल मार्केटिंग के जरिए भी आप अपने बिजनेस को बढ़ा सकते हैं। मान लीजिए कि अगर कभी फेसबुक या इंस्टाग्राम आपके बिजनेस के पेज को सस्पेंड कर दे तो ऐसे में आप नए या पुराने ग्राहकों तक नहीं पहुंच पाएंगे। ऐसे में आप ईमेल के जरिए ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों तक पहुंच सकते हैं। ऐसी बहुत सारी एजेंसी हैं जो आपकी पसंद के ग्राहकों तक आपके बिजनेस को ईमेल के जरिए पहुंचाते हैं। इसमें MailChimp ( mailchimp.com), sendinblue ( sendinblue.com) आदि हैं। ये वेबसाइट 1 हजार से 2 हजार तक फ्री ईमेल की सुविधा देती हैं। इसके बाद यह कुछ फीस लेती हैं। 10 हजार ईमेल का चार्ज 3 हजार से 6 हजार रुपये के बीच हो सकता है।

3. डिस्प्ले ऐडवरटाइजिंग
एक फोटो के जरिए अपने प्रॉडक्ट को समझाना ही डिस्प्ले एेडवरटाइजिंग में आता है। इसे बैनर एड भी कह सकते हैं। इसमें प्रॉडक्ट की फोटो, प्रॉडक्ट के बारे में बातें, कहां से और कैसे खरीदें, वेबसाइट का लिंक (अगर है तो), फोन नंबर, वॉट्सऐप नंबर, अगर शॉप है तो उसका एड्रेस आदि लिखा होता है। इसे किसी प्रफेशनल की मदद से तैयार करवाएं। इसकी इमेज या PDF फाइल को सोशल मीडिया पर शेयर करें। साथ ही अगर आप अपने बिजनेस को किसी एक शहर तक ही सीमित रखना चाहते हैं तो डिस्प्ले एेडवरटाइजिंग के बड़े-बड़े बैनर बनवाएं और उन्हें शहर के मुख्य चौराहों और ऐसी जगह पर लगवाएं जहां ज्यादा से ज्यादा लोगों की नजर उसपर पड़े। इससे ग्राहकों की संख्या बढ़ेगी।

4. कंटेंट ऐसे करें तैयार
सोशल मीडिया पर बिजनेस को प्रमोट करने के लिए कंटेंट मार्केटिंग बहुत जरूरी है। कंटेंट मार्केटिंग मुख्यत: 4 तरह से होती है:
(1). इमेज: किसी भी बिजनेस को आगे बढ़ाने में इमेज बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। मान लीजिए, अगर आपने घर से मिठाई बेचने का काम शुरू किया है तो अपनी मिठाई की फोटो खींचे और उस पर मिठाई के बारे में कोई आकर्षक टैग लाइन लिखें। साथ ही वहां अपनी वेबसाइट (अगर है तो) और फोन नंबर या वॉट्सऐप नंबर लिखना न भूलें। इस इमेज को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और गूगल पर शेयर कर सकते हैं।
ऐसे करें फोटो डिजाइन: अगर आपको फोटोशॉप सॉफ्टवेयर पर काम करना आता है तो फोटो को डिजाइन करने का काम खुद ही कर सकते हैं। अगर 'फोटोशॉप' भी नहीं आती तो कुछ वेबसाइट्स ऐसी हैं जो इमेज को डिजाइन करने की सुविधा देती हैं। इनमें canva.com और crello.com प्रमुख हैं। इन वेबसाइट पर जाकर अपने बिजनेस से संबंधित इमेज फ्री में तैयार कर सकते हैं।
(2). टेक्स्ट: बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए टेक्स्ट सबसे जरूरी है। एक दमदार टेक्स्ट आपके बिजनेस को बहुत आगे तक ले जा सकता है। टेक्स्ट को सोशल मीडिया पर शेयर कर सकते हैं। टेक्स्ट लिखते समय सिर्फ बिजनेस से संबंधित जरूरी बातें ही लिखें। बहुत बड़ा टेक्स्ट पढ़ने से ज्यादातर लोग कतराते हैं। मान लीजिए, आपने घर से आम का मीठा अचार बनाने का बिजनेस शुरू किया है। इसके लिए टेक्स्ट कुछ इस तरह हो सकता है-
अब दांत खट्टे नहीं, मीठे होंगे
...ताकि रिश्तों के साथ खाने में मिठास भी घुली रहे
XYZ Pickles
अभी ऑर्डर करें
वेबसाइट: xyzpickles.com
कॉल करें: 00000000000
(यह टेक्स्ट एक काल्पनिक नमूना है।)

(3). विडियो
अब छोटे-छोटे विडियो काफी देखे जाते हैं। इसलिए अपने प्रॉडक्ट का विडियो बनाएं और उसे सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। आप चाहें तो अपने ब्रैंड के नाम से एक यू-ट्यूब चैनल भी बना लें और विडियो को वहां अपलोड करें। ध्यान रखें कि विडियो 1 मिनट से ज्यादा का न हो। कई ऐसी वेबसाइट्स हैं जहां से फ्री में विडियो बना सकते हैं। ये वेबसाइट्स animoto.com, vimeo.com, biteable.com आदि हैं। अगर आप कुछ अलग विडियो चाहते हैं तो इसके लिए किसी विडियो प्रफेशनल की मदद ले सकते हैं।

(4). ऑडियो
ऑडियो भी बिजनेस को बढ़ाने में काफी मददगार होता है। आजकल पॉडकास्ट काफी पसंद किया जा रहा है। साथ ही काफी म्यूजिक ऐप जैसे gaana, Wynk, Amazon Music, JioSaavn आदि पर भी अपने प्रॉडक्ट के ऑडियो से विज्ञापन करा सकते हैं। हालांकि इसके लिए कुछ चार्ज देना होगा। 30 सेकंड के ऑडियो विज्ञापन का खर्चा 20 हजार रुपये तक हो सकता है। बेहतर होगा कि ऑडियो रिकॉर्डिंग के लिए किसी प्रफेशनल की मदद लें।

5. सोशल मीडिया मार्केटिंग
इंटरनेट के माध्यम से हम अपने बिजनेस को ऑनलाइन तो ले आते हैं, लेकिन इसे प्रमोट करने में सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका होती है। सोशल मीडिया से आप अपने बिजनेस को इस प्रकार प्रमोट कर सकते हैं:

(1). फेसबुक
पोस्ट करके: आप अपने प्रॉडक्ट के बारे में अपने फेसबुक अकाउंट पर कोई पोस्ट रोजाना जरूर करें। पोस्ट में कोई इमेज और विडियो जरूर लगाएं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को आपके प्रॉडक्ट के बारे में जानकारी मिले। इससे ग्राहक बढ़ने में मदद मिलेगी।
पेज बनाएं: अगर आप अपने फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट नहीं करना चाहते तो अपने ब्रैंड का फेसबुक पेज बनाएं। फेसबुक पेज पर डाली गई पोस्ट को हजारों-लाखों लोगों पर पहुंचाया जा सकता है। शुरू में पेज बनाने के बाद उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर करें। अगर 1 महीने में सही रिजल्ट न मिले तो फेसबुक पेज को प्रमोट कराएं। फेसबुक पेज को प्रमोट कराने का ऑप्शन फेसबुक पेज पर ही आता है। पेज को प्रमोट कराने के लिए फेसबुक कुछ फीस लेता है।
यह है फीस: मान लीजिए, अगर आप अपने पेज को 7 दिन के लिए प्रमोट कराना चाहते हैं तो फेसबुक इसके लिए आपसे करीब 600 रुपये लेगा। इन 7 दिनों के दौरान फेसबुक आपके पेज को 200 से 600 लोगों तक पहुंचाएगा।
(नोट: फेसबुक की फीस और पूरे पैकेज में परिवर्तन संभव।)
मार्केटप्लेस पर जाकर: फेसबुक पर Marketplace नाम से एक ऑप्शन होता है। यहां आप अपने प्रॉडक्ट को लिस्ट कर सकते हो। Marketplace पर काफी संख्या में व्यापारी जुड़े हैं। यहां आप अपनी चीजें थोक में भी बेच सकते हैं।
ग्रुप से जुड़कर: फेसबुक पर बहुत सारे व्यापारियों के ग्रुप बने हैं। फेसबुक सर्च में जाकर आप अपने प्रॉडक्ट से जुड़ा ग्रुप सर्च कर सकते हैं। इन ग्रुप से जुड़कर भी आप अपने बिजनेस को बढ़ा सकते हैं। यह सुविधा फ्री है।

(2). इंस्टाग्राम
इंस्टाग्राम पर भी फेसबुक की तरह अपने प्रॉडक्ट की मार्केटिंग कर सकते हैं। फर्क बस इतना है कि इंस्टाग्राम पर फोटो और विडियो पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। इंस्टाग्राम पर भी फेसबुक की तरह पेज बनाकर प्रॉडक्ट को प्रमोट कर सकते हैं।
(3). यू-ट्यूब
विडियो के जरिए प्रॉडक्ट को प्रमोट करने के लिए यू-ट्यूब सबसे अच्छा प्लैटफॉर्म है। अपने प्रॉडक्ट का एक अच्छा विडियो बनाएं और उसे यू-ट्यूब पर अपलोड कर दें। ध्यान रखें कि विडियो 1 या 2 मिनट से ज्यादा लंबा नहीं होना चाहिए।
(4). वॉट्सऐप
अगर आपका बिजनेस किसी एक शहर तक सीमित है तो वॉट्सऐप के जरिए अपने बिजनेस को प्रमोट करें। इसके लिए WhatsApp Business ऐप का इस्तेमाल करें न कि साधारण वॉट्सऐप का। WhatsApp Business के जरिए आप प्रॉडक्ट का न केवल ऑर्डर ले सकते हैं बल्कि अपने प्रॉडक्ट को लिस्ट भी कर सकते हैं।
(नोट: फेसबुक और इंस्टाग्राम के पेज को बनाने और उसे मैनेज करने के लिए आप सोशल मीडिया एक्सपर्ट भी रख सकते हैं। इसके लिए सोशल मीडिया एक्सपर्ट 5 हजार से 10 हजार रुपये महीने तक लेते हैं।)

ई-कॉमर्स वेबसाइट पर इन बातों का रखें ध्यान
अगर आप अपना प्रॉडक्ट ई-कॉमर्स वेबसाइट के जरिए बेच रहे हैं तो इन बातों का ध्यान रखें:
  • ई-कॉमर्स वेबसाइट समय-समय पर सेलर्स के लिए वेबिनार का आयोजन करती हैं। इनमें हिस्सा जरूर लें।
  • प्रॉडक्ट की फोटो और उसकी पूरी डिटेल सही-सही दें।
  • प्रॉडक्ट की क्वॉलिटी हमेशा अच्छी रखें ताकि 5 स्टार रेटिंग मिल सके।
ऐमजॉन इंडिया के प्रवक्ता के मुताबिक ऐमजॉन के सेलर ऐमजॉन पर अपने प्रॉडक्ट की एडवरटाइजिंग भी कर सकते हैं। इससे सेलर का प्रॉडक्ट ऐमजॉन के सर्च में टॉप पर रहता है। हालांकि इसके लिए सेलर को रकम खर्च करनी होती है। वहीं काफी ऐसी कंपनियां भी हैं जो सेलर्स के प्रॉडक्ट की पूरी मार्केटिंग देखती हैं। ज्यादा ऑनलाइन मार्केटिंग के जरिए ज्यादा बिक्री करना उनकी जिम्मेदारी होती है। इसके लिए ये कंपनियां 50 हजार रुपये महीने तक लेती हैं।

ध्यान दें, नहीं तो हो सकती है जेल
किसी भी माध्यम से अपनी कंपनी का प्रचार करने से पहले एक बात पर ध्यान देना बहुत जरूरी है और वह है आपके ब्रैंड का नाम। अपने ब्रैंड का नाम ऐसा न रखें जो पहले से किसी ने रजिस्टर करवा रखा हो। अगर आप अपने ब्रैंड के नाम का रजिस्ट्रेशन कराए बिना उसे दुनिया के सामने ला रहे हैं और उस नाम से किसी और शख्स ने पहले से ही ब्रैंड रजिस्टर करा रखा है तो वह शख्स या कंपनी आपके ऊपर केस दर्ज करवा सकती है। ऐसे में आपको 6 महीने से लेकर 3 साल तक की जेल और 50 हजार रुपये से 3 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। बिजनेस का सामान भी जब्त हो सकता है।
ऐसे बच सकते हैं: चूंकि आप छोटे स्तर पर बिजनेस करना चाहते हैं इसलिए आप अपने ब्रैंड का जो नाम रखने जा रहे हैं, उसे चेक कर लें कि वह नाम किसी ने रजिस्टर तो नहीं करा रखा। नाम इस प्रकार चेक कर सकते हैं:
  • Ministry of Corporate Affairs की ऑफिशल वेबसाइट mca.gov.in पर जाएं। यहां आपको ऊपर की ओर नीले रंग की पट्टी में MCA Services लिखा दिखाई देगा। इस पर क्लिक करें। अब एक नया पेज खुलेगा। इसके लेफ्ट साइट में थोड़ा नीचे की ओर Company Services लिखा दिखाई देगा। इसके ठीक नीचे लिखे Check Company Name पर क्लिक करें।
  • फिर से नया पेज खुलेगा। यहां Company / LLP Name के सामने बने बॉक्स में अपने ब्रैंड का नाम लिखें। मान लीजिए आप Gopal Sweets के नाम से अपना बिजनेस शुरू करना चाहते हैं तो बॉक्स में Gopal Sweets लिखें। इसके बॉक्स के नीचे ग्रे बॉक्स में लिखे Search पर क्लिक करें। Gopal Sweets के नाम से कंपनी रजिस्टर है या नहीं, यह जानकारी उसी पेज के नीचे आ जाएगी। अगर कंपनी है तो बेहतर होगा कि अपने ब्रैंड का वह नाम न रखें। अगर कंपनी रजिस्टर नहीं है Entered Company/LLP name does not exists लिखा आ जाएगा और आप अपने ब्रैंड का वह नाम रख सकते हैं।
एक्सपर्ट पैनल
  • जगजीत हरोड़े, हेड, मार्केटप्लेस, फ्लिपकार्ट
  • अंबेश तिवारी, फाउंडर & डायरेक्टर, BDA Technologies Pvt Ltd
  • अंकित गुप्ता, ऐडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
  • नेहा खोसला, को-फाउंडर और बिजनेस हेड, Paxcom
  • सोनल कपूर, बिजनेस वुमन, ऑनलाइन सेलर
  • शाहबाज़ शेख, डिजिटल मार्केटिंग और फेसबुक ऐड्स एक्सपर्ट
अगले संडे पढ़ें अपने बिजनेस में डिजिटल लेनदेन कैसे करें और इसे सुरक्षित किस तरह बनाएं।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

ऑनलाइन बिजनेस में मनी मैनेजमेंट

$
0
0

नई द‍िल्‍ली
'जस्ट ज़िंदगी' में पिछले दो अंकों में हमने इस पेज पर ऑनलाइन बिजनेस से जुड़ी बहुत सारी बातें बताई हैं। इनमें बिजनेस शुरू करने से लेकर ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों तक पहुंच बढ़ाने के बारे में बताया गया। इस बार ऑनलाइन पेमंट और उससे जुड़े मुद्दों पर फोकस किया गया है। दरअसल, ऑनलाइन बिजनेस में पेमंट ऑनलाइन लेना भी बहुत जरूरी होता है। एक्सपर्ट्स से बात करके ऑनलाइन पेमंट और बिजनेस से जुड़ी पूरी जानकारी दे रहे हैं राजेश भारती

बिजनेस ऑनलाइन तो पेमंट भी ऑनलाइन जरूरी
जब आप ऑनलाइन बिजनेस करने की सोच रहे हैं तो पेमंट भी ऑनलाइन लें। हां, अगर कोई कैश देना चाहे तो वह बात अलग है। अब पेटीएम, फोन पे, गूगल पे आदि समेत कई कंपनियां UPI के जरिए पेमंट स्वीकार करती हैं। एक QR कोड के जरिए आप ग्राहक से तुरंत पेमंट ले सकते हैं। वहीं अगर आप अपना बिजनेस वेबसाइट की मदद से भी चला रहे हैं तो वेबसाइट में पेमंट गेटवे की सुविधा जरूर रखें। यहां पेमंट गेटवे से मतलब है कि अगर कोई कस्टमर आपकी वेबसाइट से कोई भी प्रॉडक्ट खरीदता है तो वेबसाइट पर ही डेबिट या क्रेडिट कार्ड से या इंटरनेट बैंकिंग या यूपीआई (पेटीएम, भीम ऐप, फोन पे आदि) के जरिए ऑनलाइन पेमंट कर सकता है।

पेमंट गेटवे ऐसे बनवाएं
वेबसाइट के लिए पेमंट गेटवे की सुविधा रखना बहुत आसान है। कई ऐसी कंपनियां हैं जो पेमंट गेटवे की सुविधा देती हैं। कुछ कंपनियां इस प्रकार हैं:
Paytm (paytm.com)
Razorpay (razorpay.com)
BillDesk (billdesk.com)
PayPal (paypal.com)
CCAvenue (ccavenue.com) आदि।


इतना आता है खर्च
ज्यादातर कंपनियां पेमंट गेटवे सेटअप की सुविधा फ्री में देती हैं। इसके बाद जो भी लेन-देन उस पेमंट गेटवे के माध्यम से होता है, उसका 2% तक ये कंपनियां मर्चेंट (दुकानदार) से चार्ज करती हैं। इसके अलावा न तो कोई सालाना चार्ज और न ही कोई मेंटिनेंस चार्ज।

ये डॉक्यूमेंट्स जरूरी
पेमंट गेटवे की सुविधा लेने का तरीका पूरी तरह ऑनलाइन है। यह सुविधा लेने के दौरान कैंसल चेक की स्कैन कॉपी, PAN और एड्रेस प्रूफ (आधार कार्ड या वोटर आईडी कार्ड आदि) की कॉपी कंपनी को देनी पड़ती है।

लगते हैं इतने दिन
सारे डॉक्यूमेंट्स देने के बाद कंपनी मर्चेंट की डिटेल्स वेरिफाई करती है। साथ ही वह मर्चेंट की वेबसाइट और उसके बिजनेस से जुड़ी कुछ दूसरी डिटेल्स भी मांग सकती है। यह इसलिए कि कहीं पेमंट गेटवे का इस्तेमाल किसी गलत काम के लिए तो नहीं किया जा रहा। इसके लिए वह केवाईसी करा सकती है। सारी डिटेल्स वेरिफाई होने के बाद कंपनी 1 घंटे से लेकर 7 दिन तक में पेमंट गेटवे की सुविधा दे देती है।

मिलता है कोड
पेमंट गेटवे की सुविधा देने वाली कंपनी मर्चेंट को एक कोड देती है। यह कोड उस शख्स को देना पड़ता है जिसने वेबसाइट बनाई है। इस काम को वेब डिवेलपर भी बहुत अच्छे से कर देते हैं। इसके लिए वेब डिवेलपर 5 हजार रुपये से 10 हजार रुपये तक लेते हैं। इस कोड के जरिए पेमंट गेटवे की सुविधा वेबसाइट पर शुरू की जा सकती है। इसके बाद वेबसाइट पर पेमंट के ऑप्शन आने शुरू हो जाते हैं। फिर कस्टमर आपकी वेबसाइट पर ही प्रॉडक्ट सिलेक्ट करके उसकी पेमंट भी ऑनलाइन ही कर सकता है।

पेमंट को रखें सिक्योर
डिजिटल पेमंट के दौरान सावधानी रखना भी बहुत जरूरी है। अगर अपनी वेबसाइट पर पेमंट गेटवे की सुविधा ली है तो यह पक्का कर लें कि पेमंट गेटवे हैक न हो। वैसे तो पेमंट गेटवे को हैक करना लगभग नामुमकिन होता है, फिर भी वेब डिवेलपर से बात करें कि पेमंट गेटवे की सुरक्षा के लिए कौन-कौन-सी चीजें जरूरी हैं। वहीं अगर आप अपनी शॉप पर QR स्कैन कोड के जरिए पेमंट ले रहे हैं तो ध्यान रखें कि QR कोड शॉप के अंदर ही हो।

दरअसल, हाल ही में QR कोड के जरिए धोखाधड़ी के कुछ मामले सामने आए थे। काफी दुकानदार ऐसे थे जिन्होंने पेटीएम, फोन पे या गूगल पे के QR स्कैनिंग कोड दुकान के बाहर चिपका रखे थे। इन QR कोड के ऊपर ही जालसाजों ने अपने अकाउंट से जुड़े QR कोड बड़ी चालाकी से चिपका दिए। जब कस्टमर दुकानदार को पेमंट करता तो वह रकम दुकानदार के अकाउंट में न जाकर जालसाज के अकाउंट में जा रही थी। मामला सामने आने पर ठगी का शिकार हुए दुकानदारों ने वे QR कोड हटा दिए और उन्हें दुकान के अंदर ही लगा लिया। दुकान के अंदर QR कोड लगे होने से उनके बदलने की गुंजाइश ही नहीं रहती। इससे बचने के लिए पेटीएम अब मर्चेंट को फ्री में साउंडबॉक्स भी देता है। जैसे ही कोई कस्टमर पेटीएम के जरिए दुकानदार को पेमंट करता है तो साउंडबॉक्स के जरिए आवाज आ जाती है कि कितने रुपये का पेमंट हो चुका है।

ऑनलाइन फ्रॉड का शिकार हो जाएं तो यहां शिकायत करें
कॉल करें: 155260
(यह हेल्पलाइन हफ्ते के सातों दिन 24 घंटे काम करती है। हालांकि कुछ राज्यों में यह सुबह 10 से शाम 6 बजे तक चालू रहती है।)
वेबसाइट: cybercrime.gov.in
ट्विटर हैंडल: @Cyberdost

सारी सावधानी बरतने के बाद भी अगर कोई हमारे अकाउंट में कोई सेंध लगा दे यानी ऑनलाइन फ्रॉड का शिकार बना दे तो तुरंत ही 155260 नंबर पर कॉल करना चाहिए। साथ ही बैंक को भी इसकी जानकारी देनी होती है। केंद्र सरकार ने डिजिटल लेनदेन को सुरक्षित बनाने के लिए यह साइबर फ्रॉड हेल्पलाइन शुरू की है। इस नंबर से दिल्ली और यूपी समेत देशभर के 14 राज्य जुड़े हैं। बाकी राज्यों में भी यह सुविधा जल्द शुरू की जाएगी। इस हेल्पलाइन से ऐसे मिली है मदद:
  • अगर किसी के अकाउंट से कोई अनजान शख्स रकम निकाल ले या किसी दूसरे तरीके से ऑनलाइन फ्रॉड हो जाए तो तुरंत 155260 नंबर पर कॉल करके इसकी जानकारी दें।
  • इसके बाद हेल्पलाइन डेस्क पर बैठे कर्मचारी अपराध से जुड़ी सभी डिटेल्स को एक फॉर्म में भरवाएंगे और फिर उस फॉर्म को संबंधित जिले के साइबर क्राइम सेल को भेज दिया जाएगा।
  • चंद मिनटों में संबंधित जिले के अधिकारी ट्रांजेक्शन का आधार बनने वाले बैंक में तैनात नोडल अधिकारी से संपर्क करके अपराधी के बैंक अकाउंट के ट्रांजेक्शन की डिटेल निकालकर सीज करा देंगे।
  • इससे पीड़ित के बैंक खाते से होने वाला ट्रांजेक्शन वहीं रुक जाएगा और पीड़ित भारी नुकसान होने से खुद को बचा पाएगा।
  • इसके अलावा अपने बैंक को भी इस फ्रॉड की जानकारी दें।

डिलिवरी का ऐसे बनाएं सिस्टम
अगर आप अपनी खुद की वेबसाइट बनाकर प्रॉडक्ट बेचना चाहते हैं तो प्रॉडक्ट की डिलिवरी पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है। अगर कस्टमर को समय पर प्रॉडक्ट न मिले या प्रॉडक्ट खराब क्वॉलिटी का मिले तो वह शायद ही दोबारा उस वेबसाइट पर जाएगा। इसके लिए जरूरी है कि हमेशा ऐसी लॉजिस्टिक कंपनी चुनें जो बताए गए समय में ही प्रॉडक्ट को सही सलामत कस्टमर तक पहुंचा दे। कुछ लॉजिस्टिक कंपनियों के नाम यहां बताए गए हैं:
  • BlueDart (bluedart.com)
  • Delhivery (delhivery.com)
  • WareIQ (wareiq.com)
  • XpressBees (xpressbees.com)
  • Ekart (ekartlogistics.com)
  • India Post (indiapost.gov.in)

लॉजिस्टिक कंपनी चुनते समय इन बातों का रखें ध्यान
अपने प्रॉडक्ट की डिलिवरी के लिए किसी भी लॉजिस्टिक कंपनी का चुनाव आंख बंद करके न करें। इसके लिए इन बातों पर ध्यान रखें:

शिपिंग कॉस्ट: कोई भी लॉजिस्टिक कंपनी प्रॉडक्ट के साइज और वजन के अनुसार उसे पहुंचाने की कीमत लेती हैं। ऐसे में लॉजिस्टिक कंपनी से पहले डिलिवरी चार्ज जरूर पूछ लें। साथ ही उस कंपनी से यह भी मालूम कर लें कि कहीं वह 'कैश ऑन डिलिवरी' का एक्स्ट्रा चार्ज तो नहीं करती? यही नहीं, कंपनी से यह भी पूछें कि अगर कोई फास्ट डिलिवरी देनी है तो उसका कितना एक्स्ट्रा चार्ज देना पड़ेगा। उसकी कीमत में कोई छिपा हुआ चार्ज तो नहीं है यानी कोई टैक्स, बारिश आदि के मौसम में एक्स्ट्रा चार्ज लेना आदि। अगर कंपनी का वेयरहाउस है तो वेयरहाउस से जुड़ी सुविधाएं और उसका कितना अलग से चार्ज देना पड़ता है, यह भी मालूम कर लें।

कितने शहरों में पहुंच: लॉजिस्टक कंपनी से यह भी पूछें कि उसकी देश के कितने शहरों में पहुंच है यानी वह किन-किन शहरों में प्रॉडक्ट की डिलिवरी कर सकती है। कंपनी से यह भी पूछें कि जिस जगह वह सर्विस नहीं देती, अगर वहां कोई डिलिवरी करनी हो तो कैसे करते हैं। अगर लॉजिस्टिक कंपनी की पहुंच गिने-चुने शहरों में है तो उसकी सर्विस लेने से बचें। साथ ही यह भी जांच लें कि क्या वह लॉजिस्टिक कंपनी छोटे शहरों और गांवों में भी डिलिवरी करती है। दरअसल, अब काफी संख्या में छोटे शहरों और गांवों से भी ऑर्डर आने लगे हैं।

ट्रैकिंग की सुविधा देना: किसी भी प्रॉडक्ट की डिलिवरी के साथ-साथ उसकी ट्रैकिंग भी जरूरी है ताकि कस्टमर को अपने प्रॉडक्ट की रीयल टाइम लोकेशन की जानकारी मिलती रहे। लॉजिस्टिक सर्विस की सुविधा लेते समय कंपनी से यह जरूर पूछ लें कि क्या वह प्रॉडक्ट ट्रैकिंग की सुविधा देती है या नहीं। अगर ट्रैकिंग की सुविधा न दे तो उसकी सर्विस न लें। अगर प्रॉडक्ट डिलिवर हो जाता है तो भी उसकी जानकारी मिल जानी चाहिए।

रिटर्न डिलिवरी के बारे में भी जानें: लॉजिस्टिक कंपनी से रिटर्न डिलिवरी के लिए भी पूरी बात करें। दरअसल, कई बार कस्टमर को प्रॉडक्ट पसंद नहीं आता है या उस तक प्रॉडक्ट आते-आते हो सकता है कि प्रॉडक्ट में कुछ खराबी हो जाती है। ऐसे में कस्टमर उस प्रॉडक्ट को वापस कर देता है। इसलिए रिटर्न प्रोसस काफी आसान होना चाहिए ताकि कस्टमर को परेशानी न हो। इसलिए हमेशा ऐसी लॉजिस्टिक कंपनी का चुनाव करें जो प्रॉडक्ट को डिलिवर करने के साथ-साथ कस्टमर से रिटर्न लेकर आप तक पहुंचा सके। प्रॉडक्ट को रिटर्न लाने के लिए लॉजिस्टिक कंपनी एक्स्ट्रा रकम लेती है। यह रकम मर्चेंट को ही देनी पड़ती है। इसलिए लॉजिस्टिक कंपनी से रिटर्न चार्ज भी मालूम कर लें।

थर्ड पार्टी पोर्टल से भी करें डिलिवरी की बात
अगर आप अपना प्रॉडक्ट ई-कॉमर्स कंपनियां जैसे Flipkart, Amazon आदि के जरिए बेचना चाहते हैं तो इन कंपनियों से भी डिलिवरी को लेकर पूरी बात कर लें। दरअसल, कई जगह ऐसी होती हैं जहां से ये कंपनियां प्रॉडक्ट पिक नहीं करवाती हैं। ऐसे में आपके पास ऑप्शन होता है कि या तो आप अपनी तरफ से कोई डिलिवरी कंपनी चुनें या आप अपने प्रॉडक्ट इन कंपनियों के वेयरहाउस में रखें। वेयरहाउस में प्रॉडक्ट रखने पर ये कंपनियां एक्स्ट्रा चार्ज लेती हैं। यह चार्ज 20 रुपये से 30 रुपये प्रति क्यूबिक फुट हर महीने का हो सकता है। हालांकि शुरुआती 2 से 3 महीने में ये कंपनियां वेयरहाउस की सुविधा फ्री भी दे देती हैं। चार्ज इस प्रकार होता है:

मान लीजिए, आप ऐमजॉन के वेयरहाउस में अपना प्रॉडक्ट रखवाते हैं तो ऐमजॉन आपसे 20 रुपये प्रति क्यूबिक फुट हर महीने का चार्ज करेगा। अगर आप कन्फ्यूज्ड हैं कि आपके प्रॉडक्ट का साइज क्या है तो इसका यह फॉर्मूला है-

  • अपने प्रॉडक्ट की लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई को सेंटीमीटर में नापिए और फिर तीनों की आपस में गुणा कर दीजिए।
  • इसके बाद जो जवाब मिले, उसे 28,316.84 से डिवाइड कर दीजिए। अब जो भी जवाब आएगा, वह क्यूबिक फुट में आएगा।

इसे उदाहरण से समझें
मान लें, आप ऐमजॉन पर जूते बेच रहे हैं। जूते के बॉक्स की लंबाई 34 सेमी, चौड़ाई 21 सेमी और ऊंचाई 12 सेमी है। अब इसका आकार आएगा-
(34X21X12)/28316.84= 0.30 (लगभग) क्यूबिक फुट
20 रुपये प्रति क्यूबिक फुट के हिसाब से 0.30 क्यूबिक फुट के करीब 6 रुपये लगेंगे।
यानी अगर आप अपने जूते के एक बॉक्स को ऐमजॉन के वेयरहाउस में रखते हैं तो आपको करीब 6 रुपये महीने देने होंगे।
नोट: बॉक्स एक के ऊपर एक रखे जाते हैं। कुल बॉक्स जितनी जगह घेरेंगे, उसके क्षेत्रफल के हिसाब से चार्ज लिया जाएगा।

पैकिंग का झंझट खत्म
वेयरहाउस में प्रॉडक्ट रखने के बाद प्रॉडक्ट की डिलिवरी से लेकर पेमंट तक की जिम्मेदारी उसी ई-कॉमर्स वेबसाइट की होती है। इससे मर्चेंट को कुछ रकम ज्यादा तो खर्च करनी पड़ती है लेकिन उसे सुविधाएं लगभग सारी मिल जाती हैं। पैंकिंग के लिए किसी भी प्रकार का अलग से खर्चा मर्चेंट से नहीं लिया जाता। यह वेयरहाउस की फीस में शामिल होता है।

बिजनेस के लिए रकम का ऐसे करें बंदोबस्त
अगर आप अपना कोई बिजनेस करना चाहते हैं या छोटे-से बिजनेस को बड़ा करना चाहते हैं लेकिन बड़ी रकम की जरूरत है तो बैंक और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां (NBFC) मदद कर सकते हैं। बैंक और NBFC छोटे कारोबारियों (SMEs) को कई तरह से लोन देती हैं। कुछ लोन इन प्रकार हैं:
1. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY)
- केंद्र सरकार की इस योजना के तहत अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए कोई भी कारोबारी मुद्रा योजना के तहत लोन ले सकता है।
- इस योजना के तहत तीन तरह के लोन दिए जाते हैं:
- पहला है शिशु लोन। इसके तहत कोई भी शख्स अपना बिजनेस शुरू करने के लिए 50,000 रुपये तक का लोन ले सकता है।
- दूसरा है किशोर लोन। इसके तहत 5 लाख रुपये तक का लोन लिया जा सकता है। यह लोन उनको मिलता है जो अपने मौजूदा बिजनेस का विस्तार करना चाहते हैं।
- तीसरा है तरुण लोन। इसके तहत 10 लाख रुपये तक का लोन लिया जा सकता है। यह लोन उन्हें मिलता है जिनका बिजनेस पूरी तरह से जम चुका है।
- लोन पर सालाना ब्याज दर करीब 8 फीसदी से शुरू होती है। यह लोन 7 साल तक के लिए मिल सकता है।
- इस लोन को लेने के लिए शर्त है कि बिजनेस से जुड़े कागज जरूर होने चाहिए। किसी भी बैंक की ब्रांच में जाकर इस लोन से जुड़ी पूरी जानकारी ली जा सकती है।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए ऑफिशल वेबसाइट mudra.org.in पर जाएं।

2. स्टैंड अप इंडिया लोन स्कीम
- केंद्र सरकार की स्टैंड अप इंडिया स्कीम के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और सभी वर्ग की महिलाओं को बिजनेस के लिए 10 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक का बिजनेस लोन दिया जाता है। यह लोन नया बिजनेस शुरू करने या पुराने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए दिया जाता है।
- इस लोन पर बेस रेट के साथ 3 फीसदी की सालाना ब्याज दर लगती है। यह लोन 7 साल तक के लिए मिलता है।
- इस लोन स्कीम के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए ऑफिशल वेबसाइट standupmitra.in पर जाएं।

3. बैंक ऑफ बड़ौदा की 'प्रथम' योजना
- बैंक ऑफ बड़ौदा ने यूजीआरओ कैपिटल के साथ मिलकर हाल ही में SMEs को सस्ती दर पर कर्ज देने के लिए 'प्रथम' नाम से योजना शुरू की है।
- इस योजना के तहत SMEs को 50 लाख रुपये से लेकर 2.5 करोड़ रुपये तक का लोन ले सकते हैं।
- इस लोन के लिए शुरुआती ब्याज दर 8 फीसदी है। लोन चुकाने की अधिकतम अवधि 10 साल है।

नोट:
- इनके अलावा और भी कई बैंक व NBFC जैसे Bajaj Finserv, ZipLoan, Mahindra Finance, Tata Capital आदि भी छोटे कारोबारियों को अलग-अलग ब्याज दर पर बिजनेस लोन मुहैया कराते हैं।
- किसी भी बैंक या NBFC से लोन लेते समय लोन लेने और चुकाने की पूरी जानकारी ले लें।

बिजनेस लोन के लिए ये डॉक्यूमेंट्स हैं जरूरी
अगर अपना बिजनेस शुरू करने के लिए लोन लेने का प्लान बना रहे हैं या बिजनेस बढ़ाने के लिए लोन लेने का। ऐसे में कुछ डॉक्यूेंट्स जरूरी हैं। समय बचाने के लिए इन डॉक्यूमेंट्स को पहले ही तैयार कर लें।
पैन कार्ड: यह बिजनेस लोन के लिए सबसे जरूरी डॉक्यूमेंट्स में से एक है।
आयकर रिटर्न: यह इनकम प्रूफ के तौर पर काम करता है। इसलिए कम से कम 2 साल का इनकम टैक्स रिटर्न होना जरूरी है।
घर का ऐड्रेस प्रूफ: जहां रहते हैं, उसका प्रूफ होना जरूरी है। इसके लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी आदि में से कोई एक भी होना जरूरी है।
बिजनेस ऐड्रेस प्रूफ: जिस जगह बिजनेस करना चाहते हैं या कर रहे हैं, वहां का ऐड्रेस प्रूफ देना जरूरी है। अगर घर से ही बिजनेस कर रहे हैं तो घर का पता दे सकते हैं।
बैंक स्टेटमेंट: आपकी कमाई कितनी है, कितना खर्च करते हैं और अगर कोई किस्त है तो वह कितनी और कब जाती है। इन बातों की जानकारी बैंक स्टेटमेंट से मिलती है। अच्छा क्रेडिट बैलेंस होने से लोन देने वाला बैंक या NBFC यह जान लेता है कि आप लोन को चुका पाने में सक्षम हैं या नहीं।
नोट: बैंक या NBFC लोन देने के लिए इन डॉक्यमेंट्स के अतिरिक्त और डॉक्यूमेंट्स की मांग भी कर सकता है।

यहां से मिलेगी तकनीकी मदद
हमारी स्टोरी पढ़ने के बाद अगर आप भी ऑनलाइन बिजनेस शुरू करना चाहते हैं लेकिन तकनीकी रूप से कमजोर हैं तो चिंता न करें। ऐसे कई प्लैटफॉर्म (Decentro, Quickwork, Rupifi आदि) हैं जो ऑनलाइन बिजनेस शुरू करने जा रहे लोगों को या जो पहले से बिजनेस कर रहे हैं उन्हें भी तकनीकी सहायता मुहैया कराते हैं। ये इस प्रकार से मदद करते हैं:
ऑनलाइन बिजनेस के लिए पेमंट गेटवे से जुड़ी पूरी सहायता करना।
किसी भी बैंक से लोन दिलवाने के लिए कौन-कौन से डॉक्यूमेंट्स तैयार करने होंगे और वे कैसे तैयार होंगे, इन सभी में मदद करना।
लेते हैं कुछ रकम: ये प्लैटफॉर्म इस प्रकार की मदद के लिए कुछ चार्ज करते हैं। यह चार्ज इस पर निर्भर करता है कि ऑनलाइन बिजनेस के लिए तकनीकी सहायता किस प्रकार की है। यह चार्ज 5 हजार रुपये से शुरू होकर 50 हजार रुपये तक हो सकता है।

एक्सपर्ट पैनल
- रिपुंजय गौड़, चीफ बिजनेस ऑफिसर, Paytm
- अजय श्रीवास्तव, साइबर एक्सपर्ट और फाउंडर, GetLgalAdvisor
- विनोद कुमार, प्रेजिडेंट, India SME Forum
- हर्ष वैद्य, फाउंडर और CEO, WareIQ
- रोहित तनेजा, फाउंडर और CEO, Decentro

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

आखों की गुस्ताखियां…

$
0
0

नई दिल्‍ली
कोरोना ने जहां बच्चों का स्कूल छुड़वाया, वहीं इसका असर उनकी सेहत पर भी पड़ा है। आउटडोर गेम्स के बंद होने से उनका वजन भी बढ़ा है। वहीं लगातार स्क्रीन (मोबाइल, लैपटॉप, डेस्कटॉप, टीवी) देखने से आंखों पर होने वाले असर की चर्चा हम करते ही रहते हैं, लेकिन समस्या यह तब बढ़ जाती है जब आंखों पर पावर वाला चश्मा लगाने की जरूरत अचानक ही हो जाती है। अपनी आंखों की परेशानी के बारे में कई बार बच्चे बता नहीं पाते और हम समझ नहीं पाते। इससे स्थिति ज्यादा खराब हो जाती है। बच्चों की आंखों की परेशानी को आसानी से कैसे समझें, खुद और उन्हें इससे कैसे बचाएं, साथ ही हमारे लिए क्या है ध्यान रखने वाली बातें?

बच्चे अपनी परेशानी को समझने और बताने में कई बार सक्षम नहीं होते। उन्हें जब तक बहुत ज्यादा दिक्कत न हो वे अपने पैरंट्स से कह ही नहीं पाते। कुछ दिन पहले ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। परिवार के साथ टीवी देख रहा था। सभी लोग सोफे पर बैठे हुए थे। एक हिंदी न्यूज चैनल में अफगानिस्तान की खबर चल रही थी। चैनल के नीचे छोटे फॉन्ट (टिकर) में दूसरी खबर चल रही थी। मेरे बराबर में मेरा 11 साल का बेटा, जो छठी क्लास में पढ़ता है, बैठा हुआ था। मैंने यूं ही उससे नीचे वाले टिकर को पढ़ने के लिए कह दिया। सोफे पर बैठे हुए वह पढ़ नहीं पाया जबकि मैं उसे पढ़ पा रहा था। पत्नी ने भी उसे पढ़ लिया। फिर मैंने उसे सोफे से उठकर टीवी के कुछ करीब जाकर पढ़ने के लिए कहा तो उसने छोटे फॉन्ट वाली खबर को अच्छी तरह पढ़ लिया। मैं समझ गया था कि शायद इसे चश्मा लगने वाला है। अगले दिन आई स्पेशलिस्ट के पास गया। जांच के बाद यह पता चल गया कि वाकई में उसे मायोपिया हो चुका है। अब उसे चश्मा लग चुका है।

आजकल इस तरह की गलतियां बहुत हो रही हैं...
जब तक स्कूल खुला हुआ था, तब तक पढ़ाई वाइट या ब्लैक बोर्ड पर हो रही थी। सबसे आगे बैठने वाले बच्चे से भी बोर्ड की दूरी 5 फुट से ज्यादा होती थी जबकि बीच में और पीछे बैठने वाले बच्चे से तो 10 से 15 फुट की दूरी हो जाती थी। ऐसे में बच्चे को अगर बोर्ड पर साफ-साफ नहीं दिखता था तो वह कई बार इसकी शिकायत क्लास टीचर या पैरंट्स से कर देता था। नतीजा यह होता था कि समय रहते हुए उनका इलाज शुरू हो जाता था। वहीं स्कूल में भी साल में एक या दो बार बच्चों की आई टेस्टिंग भी हो जाती थी। इससे भी कई बच्चों को आगे होने वाली परेशानी के बारे में पता चल जाता था। कोरोना ने इस सिस्टम को ही पूरी तरह बंद कर दिया है।

पैरंट्स की तरफ से होने वाली गलतियां
  • पहले पैरंट्स की निर्भरता स्कूलों पर बहुत ज्यादा थी, लेकिन बदलते माहौल में ये अभी तक खुद को पूरी तरह बदल नहीं पाए हैं, खासकर आई टेस्टिंग आदि को लेकर।
  • पहले अगर स्कूलों में साल में एक या दो बार आंख, दांत आदि की जांच हो जाती थी तो अब यह जांच नहीं हो पा रही है। भले ही वे रुटीन जांच थीं, लेकिन काम की थीं। हां, हम उन्हें बहुत गंभीरता से कभी नहीं लेते थे। ऐसे में अब जब किसी बच्चे को घर पर रहते हुए देखने में परेशानी होने लगे तो उसके बारे में पता ही नहीं चल पाता। इसलिए आंखों का जांच कराना बहुत जरूरी है।
  • अगर पहले से चश्मा नहीं लगा है तो बच्चे की जांच हर छह महीने पर करानी चाहिए।
  • अगर चश्मा लगा है तो यह जांच 3 महीने पर करानी चाहिए।
इन लक्षणों को नजरअंदाज कभी न करें
चाहे बच्चा हो या फिर बड़ा, आंखों में पावर लगने से पहले वह इशारा जरूर करता है। अहम यह है कि हम उन इशारों यानी लक्षणों को कितना समझ पाते हैं।
  • सच तो यह है कि लैपटॉप, मोबाइल या डेस्कटॉप को नजदीक से ही देखा जाता है, इसलिए आंखों की परेशानी हो चुकी है, यह पता नहीं चलता। लेकिन जब बच्चा टीवी देखते समय भी नजदीक बैठने की ही कोशिश करे, पीछे सीट मिलने पर भी वह आगे बैठने की जुगत में हो तो समझें परेशानी है। इनके अलावा कुछ दूसरे लक्षण हो सकते हैं:
  • आंखों से पानी आना
  • आंखों में खुजली होना
  • लगातार आंखें लाल रहना
  • सिर में दर्द या भारीपन रहना
  • भेंगापन (Squint: अमूमन यह स्थिति तब बनती है जब बच्चे की एक आंख को ज्यादा पावर की जरूरत हो और दूसरी को कम, उसका इलाज न हो रहा हो या फिर चश्मा का पावर बदल गया हो, लेकिन उसका चश्मा नहीं बदला हो)


कितनी देर बिताएं स्क्रीन पर

2 साल तक के बच्चे
  • इस उम्र तक के बच्चों को स्क्रीन से दूर रखना चाहिए।
क्यों: हम बच्चों को पैदा होने के कुछ महीनों बाद ही मोबाइल की आदत लगाना शुरू कर देते हैं। अगर बच्चा खाना नहीं खा रहा है तो उसे मोबाइल में विडियो दिखाकर खाना खिलाते हैं। यह उनकी आंखों के लिए खतरनाक है।
क्या करें: गाकर खिलाएं, नाच कर खिलाएं, कैसे भी करें, लेकिन स्क्रीन की आदत न लगाएं।

3 से 5 साल तक के बच्चे
  • दिन भर में 1 घंटे से ज्यादा नहीं बिताना चाहिए।
क्यों:
ऑनलाइन क्लास चल रही हैं। इस उम्र के बच्चों को 2 घंटे तो स्कूल के लिए ऑनलाइन बिताने पड़ते हैं। इसके बाद जब वे विडियो गेम खेलते हैं तो यह वक्त और बढ़ जाता है। यह गलत है।
क्या करें: क्लास जरूरी है तो उसे मजबूरी में करानी पड़ेगी। लेकिन यह लगातार नहीं होना चाहिए। बीच-बीच में 20:20:20 के नियम (इस नियम के बारे में आगे बताया गया है) को भी फॉलो कराने की कोशिश होनी चाहिए। घर पर खेलने के लिए खिलौने होने चाहिए। पैरंट्स को भी उसके खेल में शामिल होना चाहिए।

6 से 10 साल तक के बच्चे
  • दिनभर में डेढ़, 2 घंटे से ज्यादा नहीं
क्यों: इस उम्र के बच्चे दूसरी क्लास से 5वीं क्लास तक के होते हैं। ये ऑनलाइन क्लास के लिए खुद ही स्क्रीन पर बैठने लगते हैं। इनकी क्लास 3 से 4 घंटे तक चलती है। यह ज्यादा है। इसके बाद भी ये विडियो गेम में अपना काफी समय देते हैं।
क्या करें: 20:20:20 के नियम को जरूर फॉलो करें। क्लास के बीच में कम से 1 बार उठकर सामान्य पीने वाले हल्के ठंडे पानी से आंखों पर पानी डालने के लिए कहें।

11 से 13 साल तक के बच्चे
  • दिनभर में 2 से 3 घंटे से ज्यादा नहीं
क्यों: बच्चे 4 से 6 घंटे तक स्क्रीन पर नजर जमा कर रखते हैं। क्लास के लंबे पीरियड्स होते हैं।
क्या करें: इस उम्र तक बच्चे इतने समझदार हो जाते हैं कि पैरंट्स अगर उन्हें स्क्रीन टाइम और सामान्य जिंदगी में तालमेल बिठाने के लिए कहे तो वे मान भी जाते हैं। उन्हें यह समझाएं कि आंखों के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। 20:20:20 के नियम के साथ फिजिकल ऐक्टिविटी को भी बढ़ाने के लिए कहें। अगर मुमकिन हो तो घर पर ही एक्सरसाइज आदि करने को कहें।

13 साल से ऊपरवाले
ऐसे सभी लोगों को ज्यादा से ज्यादा 3 से 4 घंटे तक ही स्क्रीन पर बिताना चाहिए, लेकिन यह मुमकिन नहीं होता। इसलिए सभी को 20:20:20 नियम को जरूर मानना चाहिए। हर दिन 10 मिनट का योग और 20 मिनट की एक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए। इनके अलावा धूप में बैठना भी बहुत जरूरी है। ध्यान रहे कि विटामिन-डी की कमी की वजह से भी मायोपिया की परेशानी हो सकती है।

6/6 के लिए 6 जरूरी बातें...
  1. जब हम ज्यादा दूर देखते हैं तो हमारे आंखों की मांसपेशियां आराम करती हैं। 6/6 का मतलब है कि दोनों आंखें 6 मीटर की दूरी तक की चीजों सही तरीके से पढ़ पा रही हों। आउटडोर गेम्स बंद हैं, इसलिए हर सुबह 8 से 12 बजे 25-35 मिनट धूप जरूर सेकें।
  2. जब हम स्क्रीन पर लगातार देखते हैं तो हम पलकों का झपकना कम कर देते हैं, इससे आंखें ड्राई होने लगती हैं। हमें हर मिनट 20 से 25 बार पलकों को जरूर झपकाना चाहिए।
  3. अगर चश्मा नहीं लगा है तो हर छह महीने पर और अगर चश्मा लगा है तो हर 3 महीने पर आंखों की जांच जरूर कराएं। इससे आंखों की परेशानी से बच सकते हैं।
  4. स्क्रीन पर पढ़ाई या काम करते समय, हर 20 मिनट पर 20 सेकंड के लिए 20 फुट की दूरी तक जरूर देखना चाहिए। इससे आंखों का तनाव कम होता है। साथ ही स्क्रीन की दूरी 1 आर्म डिस्टेंस यानी डेढ़ से दो फुट के करीब होनी चाहिए।
  5. अगर पैरंट्स में से किसी को मायोपिया (दूरी की चीजें देखने में परेशानी) की शिकायत रही है तो यह उनके बच्चों में भी होने का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए ऐसे पैरंट्स को ज्यादा सचेत होने की जरूरत ज्यादा रहती है।
  6. बच्चा पास में बैठा हो तो टीवी दिखाते हुए छोटे फॉन्ट की लाइन्स को 6 फुट की दूरी से पढ़ने के लिए कहें, जिन्हें आप अच्छी तरह से पढ़ सकते हैं। इससे बच्चे की आंखों की स्थिति के बारे में पता चल जाएगा।
क्या है मायोपिया
अगर किसी शख्स को 6 फुट की दूरी पर मौजूद कोई भी ऑब्जेक्ट साफ दिखाई न दे तो वह मायोपिया का शिकार हो सकता है। जिन बच्चों को पावर का चश्मा लगाने की बात कही जाती है, उनमें से ज्यादातर मायोपिया वाले ही होते हैं। मायोपिया होने पर रेटिना (हम किसी भी चीज को तब ही देखकर समझते और पहचानते हैं जब उसकी इमेज आंख के अंदरूनी भाग रेटिना पर बनती है) पर बनने वाली इमेज उससे कुछ आगे बनने लगती है। इसकी वजह होती है हमारे आईबॉल में आई हुई परेशानी।

दूर देखने के लिए बनी हैं हमारी आंखें...
कुदरत ने आंखों की बनावट ऐसी की है कि जब हम दूर देखते हैं तो यह आंखों के लिए सामान्य स्थिति होती है जबकि नजदीक की चीजों को देखने पर आंखों में मौजूद मांसपेशियों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है। हम जितना नजदीक देखते हैं, आंखों की मांसपेशियों को मेहनत करके लेंस को सही सेटिंग्स पर लाना पड़ता है ताकि जो चीज हम देख रहे हैं उसकी इमेज रेटिना पर ही बने, उससे पहले नहीं। जब हम मोबाइल या लैपटॉप आदि स्क्रीन को लगातार करीब से देखते हैं तो इससे आंखों में मौजूद मांसपेशियां धीरे-धीरे थकने लगती हैं और बाद में कमजोर हो जाती हैं। एक तो मांसपेशियों को बहुत ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, दूसरा आंखों पर पड़ने वाली अतिरिक्त लाइट और तीसरा पलकों का झपकना कम हो जाता है। मायोपिया की स्थिति भी यहीं से बनती हैं। आंख खराब होने की शुरुआत होने में 2 से 3 महीने या फिर 1 साल का वक्त लग सकता है। अगर स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताया तो यह धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और हमारी आंखों के लिए पावर वाले चश्मे की जरूरत भी। यही कारण है कि स्क्रीन देखते हुए 20:20:20 का नियम फॉलो करने और लगातार देखने मना किया जाता है ताकि आंखों की मांसपेशियों को कुछ आराम मिल सके।

पलकें झपकाना भी जरूरी
चाहे बच्चा हो या बड़ा जब कोई मोबाइल या दूसरी स्क्रीन पर नजरों को टिकाए रखता है तो उसके पलक के गिरने की गति एक चौथाई रह जाती है।
  • जब हम स्क्रीन पर नहीं होते हैं तब अमूमन एक मिनट में हम 20 से 25 बार पलक झपकते हैं।
  • जब हम स्क्रीन पर होते हैं तब हम अमूमन एक मिनट में 5 से 6 बार ही पलक झपकते हें।

जब पलकें कम झपकती हैं तो परेशानी हो जाती है शुरू
कुदरत ने अगर आंखें दी हैं तो पलकें भी दी हैं। पलकें सिर्फ धूल और कीड़े आदि को आंखों तक पहुंचने से बचाने के लिए ही नहीं हैं। पलकों का काम इससे कहीं ज्यादा है। जब हम पलक झपकते हैं तो आंखों में मौजूद पानी जो बाहर निकलने पर आंसू बन जाते हैं, वह आंखों में एक परत बनाकर आंखों की ड्राइनेस को खत्म कर देती है। वहीं लगातार स्क्रीन देखने से हम काफी कम पलक झपकाते हैं, इससे आंखों ड्राई रहने लगती हैं।
जब आंखें ड्राई होती हैं तो आंखों में खुजली होती हैं और आंखें लाल होती हैं। कई बच्चों और लोगों को आंखों में चुभन होती है। नतीजा यह होता है कि हम अपनी आंखों को बार-बार मलते हैं। इससे खुजली में तो आराम मिलती है, लेकिन आंखें ज्यादा लाल होने लगती हैं। इसलिए पलकें जरूर झपकाएं।


इन ऐप्स की मदद से घर पर ही कर सकते हैं टेस्ट
1. Eye exam, 2. Eye test
  • ये दोनों फ्री एप है जो एड्रॉयड और iOS दोनों प्लैटफाॅर्म के लिए उपलब्ध हैं।
  • इन्हें डाउनलोड करते समय, इसके उपयोग करने का तरीका भी देख लें।
  • घर पर आंखों की जांच करते समय मोबाइल या लैपटॉप को आंखों से 40 सेमी/16 इंच की दूरी पर रखें। दूरी को स्केल से नाप लें।
  • वैसे घर पर टेस्टिंग से इस बात का अंदाजा चल जाता है कि आंखों में परेशानी हो गई है। निर्णय पर पहुंचने के लिए डॉक्टर से जरूर करानी चाहिए।

20:20:20 नियम को याद रखना
  • हर 20 मिनट में 20 बार पलक झपकना फिर 20 सेकंड के लिए 20 फुट दूर देखना।
  • इसके लिए मोबाइल में टाइमर सेट कर लें और आप बच्चे को इसे याद दिलाएं कि जितना जरूरी है क्लास करना, उतना ही जरूरी है इसे भी करना।
  • यह नियम सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं होना चाहिए बल्कि विडियो गेम खेलते समय भी होना चाहिए। हालांकि, हर दिन ऑनलाइन क्लास के बाद 30 मिनट से 1 घंटा काफी है विडियो गेम के लिए।
  • अगर बुक हाथ में हो तो ई-बुक में पढ़ाई को टालने के लिए कहें। इसी तरह आंखों को 10 बार ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं घुमाने के लिए भी कहें। यह आंखों की एक्सरसाइज है, दिन में 3 से 4 बार करना काफी होगा।

कैसे दूर हो मांसपेशी की कमजोरी
मायोपिया की परेशानी आंखों में मौजूद मांसपेशी के कमजोर होने से होती है। जब किसी 17 साल से कम उम्र के टीनएजर या बच्चे को मायोपिया हो जाए तो डॉक्टर 0.01%Atropine की दवा भी लिखते हैं। इससे आंखों की मांसपेशियां आराम की स्थिति में पहुंच जाती हैं। लेकिन यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि इसको बिना डॉक्टर से पूछे नहीं लेना चाहिए। यह उनके लिए होती है जिनमें चश्मा लगने के बाद भी मायोपिया के बढ़ने की आशंका बनी रहती है। अगर पहली जांच के 3 महीने बाद डॉक्टर ने दोबारा जांच की और पावर बढ़ गया तो Atropine की एक-एक बूंद देने के लिए कह सकता है।

...तो एक नजर इधर भी

लाइट कैसी हो?
  • कमरे की लाइट ज्यादा ब्राइट भी नहीं होनी चाहिए और न ही ज्यादा कंट्रास्ट। इसे ऐसे समझ सकते हैं जब कमरे की लाइट से पढ़ने में न ज्यादा मेहनत करनी पड़े और न वह आंखों को सामान्य लगे।
  • लाइट वाइट या यलो कलर दोनों ठीक हैं।
  • स्क्रीन के लिए डार्क मोड की जरूरत रात 9 बजे के बाद ही खासतौर पर होती है। दरअसल, ब्लू लाइट में काम करने से हमारी नींद भाग जाती है। अगर हम रात में डार्क मोड में काम करेंगे तो नींद कुछ कम खराब होगी।
  • लाइट का फोकस किताब पर ज्यादा हो, न कि आंखों पर।
  • पहले टेबल लैंप में पढ़ने का तरीका अपनाया जाता
  • था, इससे आंखों पर रोशनी कम पड़ती थी और किताबों पर ज्यादा।
  • अगर रिवाइज करना हो तो किताब ही विकल्प होना चाहिए, पीसी या टीबी नहीं।
  • क्रिएटिविटी के लिए कॉपी या ड्राइंग बुक एक सही विकल्प है जब तक ऑनलाइन क्लास चल रही है। ताकि स्क्रीन टाइम कम हो सके।
  • कोशिश यह होनी चाहिए कि स्क्रीन की लाइट, कमरे की लाइट जितना ही हो।
  • अंधेरे में कम रोशनी स्क्रीन पर निगाह डालने से आंखों पर ज्यादा तनाव आता है। इसलिए डिम लाइट में स्क्रीन पर काम नहीं करना चाहिए।

स्क्रीन की दूरी और बैठने का तरीका?
  • लैपटॉप, मोबाइल आदि स्क्रीन की आंखों से दूरी 1 आर्म डिस्टेंस यानी कंधे से हथेली की दूरी जो बच्चों के लिए डेढ़ फुट और बड़ों के लिए 2 फुट है, रहना चाहिए।
  • स्क्रीन की पोजिशन आंखों से थोड़ा नीचे 5 से 10 डिग्री कम रखना चाहिए।
  • स्क्रीन को आंखों की तुलना में ऊपर कभी नहीं रखना चाहिए, इससे आंखों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
  • जब हम लैपटॉप या डेस्कटॉप पर काम करते हैं या फिर बच्चे क्लास करते हैं तो उनकी बैकबोन या रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए। इससे पीठ दर्द होने की आशंका कम रहती है।

क्या टीवी भी है खतरनाक?
चूंकि टीवी हम एक दूरी से देखते हैं। यह दूरी अमूमन 5 फुट से ज्यादा होती है। ऐसे में आंखों की मांसपेशियों को उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती, जितना कि मोबाइल या लैपटॉप आदि को देखने के दौरान करना पड़ता है। फिर भी लगातार नहीं देखना चाहिए। टीवी देखते हुए भी हर आधे या एक घंटे पर आंखों को जरूर आराम देना चाहिए।
एसी से क्या है नुकसान?
अगर सोते या जागते हुए एसी की हवा सीधी आंखों पर लग रही हो तो आंखें जल्दी ड्राई होने लगती हैं। इससे सुबह उठने पर आंखों में खुजली होने लगती है। आंखें लाल होने लगती है। इसलिए कोशिश यह होनी चाहिए कि एसी की हवा सीधी आंखों पर न पड़े, खासकर बच्चों की आंखों पर तो सीधी न ही पड़े।

आंखों में कीचड़ क्यों आती है?
अगर आंखों में इंफेक्शन नहीं है तो यह भी ड्राइनेस की निशानी हो सकती है। दरअसल, जब हम सोते हैं तो कई बार डस्ट आदि की वजह से आंसू निकलने वाली ग्रंथि बंद हो जाती है। इससे आंखें चिपक जाती हैं या कीचड़ आ जाती है। कीचड़ हल्का या कभी-कभी आने से परेशान नहीं होना चाहिए। लेकिन जब यही कीचड़ लगातार 3 से ज्यादा दिनों से आए और ज्यादा मात्रा में आए तो डॉक्टर से दिखाना चाहिए। अगर पीला कीचड़ आ रहा है तो यह बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से हो सकती है।

क्या पानी के छींटों से फायदा होता है?
  • दिनभर में 3 से 4 बार आखों को सामान्य या हल्का ठंडा पीने वाले पानी से धोना चाहिए। इससे आंखों में मौजूद गंदगी साफ हो जाती है और कीचड़ बनने की आशंका भी कम हो जाती है।
  • सीधे टैब के पानी को आंखों में डालने से बचें। उनमें बैक्टीरिया हो सकता है।

खानपान और विटामिनों से कितना फायदा?
मायोपिया की परेशानी को बढ़ाने में खानपान की भूमिका भी होती है। अगर हमारी डाइट में विटामिन ए और डी की कमी होगी तो मायोपिया होने का खतरा बना रहता है। जहां तक विटामिन ए की बात है तो इसके स्रोत गाजर, हरी साग-सब्जियां, ताजे फल आदि हैं। हर दिन एक मौसमी फल और एक कटोरी सब्जी खानी चाहिए। 7 साल तक के बच्चों को आधा फल और आधी कटोरी सब्जी दे सकते हैं। अगर सब्जी अलग से नहीं खाते तो दाल में ही हरी सब्जियों को मिलाकर पका कर दें। वहीं इससे ज्यादा बड़े बच्चे को एक फल और एक कटोरी सब्जी देना चाहिए।

विटामिन-डी की भी अहम भूमिका: यह सुनकर थोड़ा आश्चर्य होता है कि विटामिन-डी तो हड्डियों के लिए जरूरी चीज है, यह आंखों के लिए अहम क्यों हो जाता है। सचाई तो यह है कि जिन बच्चों को अमूमन मायोपिया हुआ है, उनमें विटामिन-डी की कमी भी देखी गई है। विटामिन-डी कमी की वजह से आंखों के अंदर मौजूद मांसपेशियां भी जल्दी कमजोर होने लगती हैं। दरअसल, कोरोना की वजह से बच्चे बाहर खेलने नहीं जा रहे और बड़े वॉकिंग को भी टालते हैं। ऐसे में उनका धूप में निकलना कम हो गया है। साथ ही फिजिकल ऐक्टिविटी कम होने से ब्लड सर्कुलेशन भी तेज नहीं हो पाता। अतिरिक्त ऊर्जा का भी शरीर में जमा होने लगता है। इससे भी परेशानी बढ़ जाती है। विटामिन डी की कमी की वजह से शरीर कैल्शियम को भी सही तरीके से जज्ब नहीं कर पाता। इसलिए जब तक बाहर धूप में खेलने नहीं जा रहे हैं, हर एक को धूप में...
  • हर दिन सुबह 8 से 12 बजे 25 से 35 मिनट बिताना चाहिए।
  • पैरंट्स खुद भी बैठें और बच्चे को भी बिठाएं। उनसे बातें करें। कुछ सुनाने के लिए बोलें।
  • पैरंट्स हर दिन बच्चों को 10 मिनट योग और एक्सरसाइज करवाएं। अगर बच्चे योग न करना चाहें तो 10 मिनट का डांस भी काफी है।
एक्सपर्ट पैनल
डॉ. (प्रो.) ए. के. ग्रोवर, चेयरमैन, विजन आई सेंटर
डॉ. (प्रो.) महिपाल एस. सचदेव, चेयरमैन, सेंटर फॉर साइट
डॉ. राजीव जैन, डायरेक्टर, सेव साइट सेंटर
डॉ. संजय तेवतिया, सीनियर आई सर्जन
डॉ. के. मारवाह, कंसल्टेंट, शिवम आई केयर
डॉ. समीर सूद, डायरेक्टर, शार्प साइट आई हॉस्पिटल्स
डॉ. मनन कौशिक, सीनियर आई स्पेशलिस्ट

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


जस्ट जिंदगी : जरा कान दें...कानों की सेहत के लिए इन 7 बातों को जरूर सुनें

$
0
0

नई दिल्ली
हमारे कान चेहरे के दोनों साइड पर होते हैं इसलिए हम आईने में जब चेहरा देखते हैं तो इन पर ध्यान भी कम जाता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कानों को नजरअंदाज कर दें। हालांकि अक्सर होता यही है कि हम कानों की परेशानियों को हल्के में ले लेते हैं। कई बार परेशानी बढ़ने पर जब असहनीय हो जाती है तब हम डॉक्टर के पास भागते हैं। सच तो यह है कि कान न सिर्फ सुनने में मदद करते हैं बल्कि ये चलते-फिरते समय बैलेंस बनाने का काम भी करता है। कान से जुड़ी हर छोटी-बड़ी परेशानी और उनके समाधान के बारे में एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

कानों की सेहत के लिए इन 7 बातों को जरूर सुनें
  1. कान सुनने के लिए जरूरी हैं तो सही तरीके से चलने में भी इनकी अहम भूमिका होती है।
  2. कान में होने वाली छोटी-छोटी परेशानी पर भी ध्यान देना जरूरी है, जैसे लगातार खुजली होना, कान बहना आदि। इसलिए सभी को हर 6 महीने पर कान का टेस्ट जरूर कराना चाहिए।
  3. अगर कान में खुजली हो रही है तो पिन्ना को सहलाना सही विकल्प होगा, न कि उंगली घुसाकर खुजली करना। इससे खुजली बढ़ जाती है क्योंकि वैक्स की लाइनिंग कान की दीवारों से हटने लगती है।
  4. कान के अंदर ईयर बड्स या कॉटन कुछ भी डालना सही नहीं है। इससे इंफेक्शन का खतरा बना रहता है। अगर साफ करना ही है तो कान का बाहरी हिस्सा जो दिख रहा है, उसे ही साफ करें।
  5. कान के अंदर वैक्स बनने की प्रक्रिया कुदरती है। यह कान की सेहत के लिए बहुत जरूरी है। वैक्स ऐंटिअलर्जिक, ऐंटिबैक्टीरियल, ऐंटिफंगल और कीड़ों को भगाने वाला होता है।
  6. वैक्स के कान से बाहर निकलने की प्रक्रिया भी कुदरती है। हां, कुछ लोगों में वैक्स जब खुद बाहर नहीं निकलता तो कान के भीतर ही सख्त हो जाता है। ऐसे में डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए।
  7. कान में किसी भी तरह का तेल नहीं डालना चाहिए। जिनके कान में वैक्स कम बनता है, उन्हें ही ईयर बड की सहायता से कानों में ओलिव या कोकोनट ऑयल कान के बाहरी हिस्से यानी कान के पिन्रा से अंदर वाले हिस्से पर लगाना चाहिए। ऐसा 7 दिन में एक बार कर सकते हैं।
  8. हर दिन कुल मिलाकर 1 घंटे से ज्यादा कान से सटाकर मोबाइल पर बात करने, टोटल वॉल्यूम के 60 फीसदी वॉल्यूम से ज्यादा आवाज में संगीत सुनने से भी हियरिंग लॉस की परेशानी होती है। हां, मोबाइल को स्पीकर मोड पर चलाते हैं तो 2 घंटे बात कर सकते हैं।
कान के अंदर ना डाले ये चीजें
काफी दिनों से रोहन के कानों में खुजली हो रही थी। कोई भी काम करते हुए वह हाथ में ईयर बड्स लिए रहते और उससे कान खुजाते रहते थे। अगर बड्स नहीं मिलते तो उंगली से, माचिस की तीली से और यहां तक कि बाइक की चाभी से भी कान खुजाते रहते थे। ऐसा करके उन्हें राहत का अहसास होता, लेकिन कान में तीली, बड्स या चाभी डालने से इंफेक्शन हो गया। जब कान से लगातार चिपचिपा पानी बहने लगा और दर्द भी होने लगा तो रोहन ने ENT एक्सपर्ट से मुलाकात की। डॉक्टर ने जांच करके दवा दी और साथ ही सख्त हिदायत भी। डॉक्टर ने बताया कि भविष्य में इस तरह की चीजों को कान के अंदर नहीं डालना है।


कान की बनावट को समझना होगा
1. बाहरी कान: यह कान का बाहरवाला हिस्सा है। कान का पर्दा भी इसी में आता है। यह बाहरी कान के सबसे आखिर में होता है। इसलिए कान पर चोट लगने से, तेज म्यूजिक सुनने से और लगातार मोबाइल पर बात करने से पर्दे पर बुरा असर पड़ता है। कई बार हम कान साफ करने के चक्कर में वैक्स को अंदर की ओर ढकेल कर पर्दे तक पहुंचा देते हैं।
2. मध्य कान: यह कान का सबसे खास भाग होता है। कान के पर्दे के बाद यह शुरू होता है। इसमें तीन छोटी-छोटी हड्डियां होती हैं जिन्हें ईयर ऑशिकिल्स कहा जाता है। इनके नाम हैं: मैलीअस, इन्कस और स्टेपीज़। स्टेपीज़ मानव शरीर की सबसे छोटी हड्डी होती है। इनका काम है बाहरी से आने वाली ध्वनी तरंगे को भीतरी कान तक पहुंचाना ताकि संदेश दिमाग तक पहुंच सके।
3. भीतरी कान: यह सीधे दिमाग से जुड़ा होता है। इसका सबसे भीतरी हिस्सा कॉक्लिया होता है। यह दिखने में घोंघे के आकार का होता है। कई बार कॉक्लिया में खराबी होने पर उसे बदल दिया जाता है।

कान का ध्यान रखना क्यों है जरूरी
कान का काम सिर्फ सुनना नहीं है। यह बैलेंसिंग का काम भी करता है। हमारे कान बाहर की ओर कम निकले हुए दिखते हैं जबकि इसकी पूरी मशीनरी अंदर मौजूद होती है। कान के जिस सिस्टम को हम देख नहीं सकते, उस पर पिन या बड्स घुमाते रहते हैं। हमें यह भी पता होता है कि कान की भीतरी दीवारों की स्किन काफी मुलायम होती है। बड्स से रगड़ने पर भी वहां जख्म बन सकते हैं। हकीकत यह है कि हम सीधी लाइन में चल सकें और चक्कर खाकर न गिरें, इसके लिए भी कान का ठीक रहना जरूरी है।

कैसे समझें कि शुरू हो चुकी है परेशानी?
  • जब कान की परेशानी शुरू होती है तो कुछ लक्षण जरूर उभरते हैं:
  • कान में लगातार या रुक-रुककर दर्द। यह दर्द 24 घंटे से ज्यादा समय तक बना रहना।
  • कान में लगातार या रुक-रुककर खुजली होना। खुजली का 24 घंटे से ज्यादा समय तक रहना।
  • करवट लेने पर या सिर घुमाने पर चक्कर आना। यह परेशानी ज्यादातर 55 साल के बाद देखने को मिलती है।
  • फोन पर आवाज सुनने में दिक्कत
  • तेज आवाज बहुत तेज सुनाई देना

जब परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है तब...
  • कान में सनसनाहट या रेल की सीटी जैसी आवाज आना
  • कान सुन्न हो जाना
  • एक सीधी लाइन में चलने में परेशानी होना
  • कान से तरल पदार्थ और खून निकलना

क्यों आते हैं चक्कर या चलने में परेशानी
कान के सबसे अंदरूनी भाग जिसे हम इंटरनल ईयर कहते हैं, वहां कैल्शियम कार्बोनेट (चूना-पत्थर भी इसी से बना होता है) से बनी हुई संरचनाएं होती हैं। इन्हें कान में मौजूद छोटे पत्थर कह सकते हैं। ये एक क्रम में लगी होती हैं। कई बार जब झटका या चोट लगती है तो ये अपनी जगह से हिल जाती हैं। इनके हिलने की वजह से ही चक्कर आता है। यह चक्कर अमूमन तात्कालिक होता है। जब ये छोटे पत्थर फिर से अपनी जगह पर आ जाते हैं तो चक्कर आना बंद हो जाता है। अगर चक्कर हल्का झटका लगने, करवट लेने पर अक्सर आते हैं तो डॉक्टर से जरूर मिलना चाहिए। अगर महीने में एक या दो बार आ रहा है तो ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं।

क्यों होती है बरसात में ज्यादा परेशानी
बारिश में हवा और जमीन में नमी बढ़ जाती है। इससे फंगस, बैक्टीरिया और पॉलेन ग्रेंस (यह फूलों के कण हैं जो हवा में मौजूद होते हैं। ये दूसरे फूल से मिलने पर फल बनाते हैं। कई लोगों के नाक, कान या आंख आदि में जाने पर इनसे एजर्ली या खुजली हो जाती है) बढ़ जाते हैं। जब कान में बाहरी हानिकरक तत्व पहुंचते हैं तो खुजली पैदा करते हैं। जब हम बड्स आदि से उस खुजली को मिटाने की कोशिश करते हैं तो कई बार वहां जख्म बन जाता है। इससे बैक्टीरिया या फंगस आदि को बढ़ने में आसानी होती है। इसके बाद जख्म से तरल पदार्थ निकलने लगता है और दर्द शुरू हो जाता है। नतीजा यह होता है कि हमें कम सुनाई देने लगता है। कई बार परेशानी बढ़ जाती है तो कान में मौजूद छोटी हड्डियां गलने लगती हैं। जब चीजें असहनीय हो जाती हैं तो हम डॉक्टर की मदद लेते हैं।

कान के साथ ये कभी न करें
  • लोहे की चीज जैसे चाभी आदि, ईयर बड्स, माचिस की तीली, पेन, पेंसिल या उंगली डालना।
  • अगर वैक्स जमा होकर सख्त हो चुका है तो इसे ENT स्पेशलिस्ट को न दिखाना। खुद या परिवार के किसी दूसरे सदस्य या किसी बाहरी व्यक्ति की मदद से उसे निकालना।
  • बाजार में कान साफ करने वाले घूमते रहते हैं, उनसे कान साफ करवाना जिसमें वे लोहे के पतले पिन और केमिकल का उपयोग करते हैं।
  • डॉक्टर से बिना पूछे कोई भी दवा कान में डाल लेना।
  • कान में ऐसे तेल या पानी डालना जिससे खुजली होने का अंदेशा रहता है जैसे: सरसों का तेल।
  • अगर किसी को साइनस की परेशानी है तो भी ठंडी चीजों (आइसक्रीम, फ्रीज के ठंडे पानी आदि) से दूरी नहीं रखना। अगर लगातार सर्दी-जुकाम रहेगा तो कान दर्द की परेशानी भी हो सकती है।

कान के साथ ये कर सकते हैं
  • अगर कान में खुजली हो रही है तो पिन्ना को हिला सकते हैं। कान के अंदर ऊंगली या कोई भी दूसरी चीज नहीं घुसाना है।
  • सप्ताह में एक बार ऑलिव ऑयल या नारियल तेल या सरसों तेल को बड्स पर लगाकर कान के बाहरी हिस्से पर लगा सकते हैं। यहां यह ध्यान रखना है कि बड्स अंदर की तरफ न जाएं। इन दोनों तेल से खुजली होने की आशंका काफी कम रहती है। यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि तेल की जरूरत सभी को नहीं होती। जिनका कान ड्राइ हो जाए यानी अंदर वैक्स कम बन रहा हो, उन्हें ही तेल डालना चाहिए। हर किसी को कान में तेल डालने की जरूरत नहीं।
  • अगर किसी को बरसात के मौसम में कान के इंफेक्शन की समस्या होती हो तो उसे घर से बाहर जाते समय या जब कान में नमी वाली हवा, बैक्टीरिया, फंगस या पॉलेन ग्रेन्स के अंदर जाने की आशंका हो तो ईयर प्लग लगाकर रखना चाहिए। इससे बरसाती इंफेक्शन का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है। ईयर प्लग 70 रुपये से मिलना शुरू हो जाता है। यह ऑनलाइन भी उपलब्ध है। इसे हर रोज सैनिटाइजर से साफ करके इस्तेमाल करें।

सुनने की समस्या हो जाए तो
कई बार इसका पता चलने में वक्त लग जाता है या फिर लोग सुनने की समस्या को नजरअंदाज करते रहते हैं। इससे परेशानी बढ़ जाती है और टेस्ट कराने के बाद मशीन लगाना जरूरी हो जाता है। इसलिए टेस्ट कराना एक सही विकल्प है।

एक्सपर्ट पैनल

टेस्ट
1. प्योर टोन टेस्टिंग: इसमें 2 तरह की टेस्टिंग होती है:
एयर-कंडक्शन टेस्टिंग : इस टेस्ट को प्योर टोन ऑडियोमेट्री भी कहते हैं। इसमें पेशंट को एक हेडफोन लगाया जाता है। हेडफोन में टोन भेजी जाती है। मरीज को उस आवाज को सुनकर या तो हाथ उठाना होता है या फिर दिया हुआ एक बटन दबाना होता है। इससे पता चलता है कि मरीज की सुनने की क्षमता कैसी है।
बोन कंडक्शन टेस्टिंग: इसके द्वारा पेशंट के इनर ईयर की क्षमता को परखा जाता है। इसमें छोटी-छोटी वाइब्रेशन कानों के अंदर भेजकर सुनने की क्षमता को जांचा जाता है।
इन दोनों टेस्ट को मिलाकर खर्च: 800-1200 रुपये

2. स्पीच टेस्टिंग: इसमें यह जांचा जाता है कि पेशंट दूसरों की बातों को किस हद तक सुन और समझ सकता है।
टेस्ट पर खर्च: 700-1200 रुपये

3. टाइमपेनोमेट्री टेस्ट: इस टेस्ट से कान के पर्दे पर हवा के दबाव को जांचा जाता है। इससे यह भी पता चलता है कि कान में कहीं फ्लूड या वैक्स तो जमा नहीं हो गया है।
टेस्ट पर खर्च: 1000 से 1200 रुपये

4. अकूस्टिक रिफ्लेक्स टेस्टिंग: इसमें मिडल ईयर के मसल्स मूवमेंट को जांचा जाता है।
टेस्ट पर खर्च: 700-1400 रुपये

5. ऑडिटोरी ब्रेनस्टेम रिस्पांस (ABR): यह टेस्ट नवजात बच्चों के लिए है। खासकर कॉक्लियर इंप्लांट के लिए।
टेस्ट पर खर्च: 3000-5000 रुपये

6. ऑटो-अकूस्टिक इमिशन (OAEs) टेस्ट: इनर ईयर में मौजूद हेयर सेल्स के लिए है यह टेस्ट। नवजात बच्चों को सुनने में परेशानी तो नहीं, यह जानने के लिए। कान में खास तरह के हेयर (बाल के आकार वाली कोशिका) सेल्स होते हैं, जो सुनने में सहायता करते हैं।
टेस्ट पर खर्च: 3000-4000 रुपये

कानों में सांय-सांय की आवाज
अगर किसी के कानों में बिना कारण आवाज गूंजती है तो सावधान होने की जरूरत है। यह मुमकिन है कि यह टिनिटस नामक बीमारी हो। यह हाइपरटेंशन या फिर उम्र बढ़ने की वजह से हो सकता है। यह एक कान या दोनों कानों में भी हो सकता है। इसकी दूसरी कोई वजह भी हो सकती है, मसलन कान में वैक्स जमा होना, कान में हड्डी का बढ़ना, यह कई बार तेज आवाज से भी शुरू हो सकती है


इलाज क्या है:

  • सबसे पहले डॉक्टर की मदद लें। अगर वह कान में जमा वैक्स निकलवाने के लिए कहें तो जरूर निकलवाएं। ज्यादा शोर से बचने के उपाय जरूर करें।
  • यह परेशानी कई बार तेज पटाखों की आवाज से भी हो जाती है। इससे उबरने के लिए डॉक्टर मरीज को रात में सोते समय घड़ी की सुई की टिकटिक पर ध्यान लगाने के लिए कहते हैं। अगर यह सफल होता है तो दिमाग सांय-सांय की आवाज भूल जाता है।
  • अगर इससे भी समस्या दूर नहीं होती है तो एक डिवाइस आती है जिसे टिनिटस मास्कर्स या टिनिटस नॉयजर्स कहते हैं। इसमें अलग-अलग तरह की फ्रीक्वेंसी की साउंड होती है। इसे कान में 2 या 3 महीने तक लगाकर रखने के लिए कहा जाता है। इससे भी फायदा होता है। अब इसके और बेहतर इलाज के लिए टिनिटस फ्रीक्वेंसी मैंपिंग मशीन भी आ गई है। इसकी मदद से यह पता लगाया जाता है कि मरीज को किस फ्रीक्वेंसी पर सांय-सांय की आवाज सुनाई देती है। उसी फ्रीक्वेंसी के आसपास इस डिवाइस को सेट कर दिया जाता है ताकि सांय-सांय की आवाज से दिमाग हट जाए।

ऐसे करें हियरिंग ऐड का रखरखाव
  • सोने से पहले इसे उतारकर रख लें।
  • सफाई के लिए सही टूल का इस्तेमाल करें। जहां मशीन मिलती है वहां से हियरिंग एेड क्लिनिंग टूल खरीद सकते हैं या फिर ऑनलाइन भी मिल जाता है। कीमत 50 से 200 रुपये के बीच है।
  • मशीन को कमरे के तापमान (25 से 35 डिग्री से.) पर रखना ही ठीक है। इसे नमी और पानी से दूर रखें।
  • मशीन को बच्चों और पालतू जानवरों की पहुंच से दूर रखें।

नहाते समय कान में पानी चला जाए तो क्या करें?
अक्सर नहाते वक्त कान में पानी चला जाता है। लोग इसके लिए कानों में रुई या बड्स डालकर उसे निकालने की कोशिश करते हैं। यह गलत है। पानी खुद ही बाहर निकल जाता है। इसके लिए अलग से कोशिश करने की जरूरत नहीं है। अगर चाहें तो जिस कान में पानी गया हो, उस तरफ के एक पैर पर खड़े हो जाएं और सिर को भी उसी तरफ झुका लें। पानी निकल जाएगा। शरीर की गर्मी से भी कान के अंदर गया पानी भाप बनकर उड़ जाता हे। कभी भी जान-बूझकर कान साफ करने के लिए उसमें पानी न डालें। इससे इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। वहीं शुगर पेशंट का कान अगर वैक्स जमा होने की वजह से पहले से ही बंद हो और नहाते समय पानी चला जाए तो जरूर ध्यान देना चाहिए। पानी अंदर घुसने के बाद वैक्स पानी को सोखकर ज्यादा फैल जाता है। इससे सुनने में ज्यादा परेशानी होने लगती है। ऐसी स्थिति में ENT स्पेशलिस्ट के पास जाकर ही इलाज कराना चाहिए।

अगर जुकाम की वजह से कम सुनाई दे रहा है तो क्या करें?
ऐसे में सबसे अच्छा तरीका है गुनगुना या जितना गर्म झेल सकें, पानी से गरारे करें। दिन में 2 से 3 बार करने से फायदा होता है। इससे सर्दी भी कम होती है और सर्दी की वजह से सुनने में होने वाली परेशानी भी कम हो जाती है। इसके अलावा डॉक्टर की सलाह से कफ सिरप या दूसरी दवा ले सकते हैं। एसी, आइस्क्रीम, फ्रिज के पानी से दूर रहें।

क्या कानों में बाली पहनने से सुनने की क्षमता बढ़ती है?
ऐसा बिलकुल नहीं है। बाली पहनने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

तेज आवाज से भी कानों पर असर पड़ता है?
संगीत सुनें या कुछ और, अगर आवाज तेज है तो परेशानी हो सकती है। इसलिए इस बात का ध्यान रखें:
शोर की सीमा
  • 20 से 20,000 Hz तक की आवाज को इंसान सुन और समझ सकता है।
  • 60 डेसिबल तक की आवाज से कान को कोई नुकसान नहीं होता है।
  • 60 से ज्यादा डेसिबल की आवाज से कान को परेशानी होने लगती है।
  • 115 से ज्यादा डेसिबल की आवाज से कान का पर्दा फट सकता है।

म्यूजिक न बने चिक-चिक
60 मिनट के लिए गाने इयरप्लग्स या हेडफोन पर उसके मैक्सिमम वॉल्यूम के 60 फीसदी से कम पर सुनें और फिर कम से कम 60 मिनट यानी एक घंटे का ब्रेक। वैसे हेछ
60 फीसदी से ऊपर वॉल्यूम पर कभी भी गाने न सुनें, इस बात का ध्यान रखें

बच्चों में कान से जुड़ी समस्या होने पर...
कई बार बच्चा बीच रात में रोने लगता है। अगर वह बोल सकता है तो कान के दर्द के बारे में बता देता है। अगर बोलने में सक्षम नहीं है तो वह नहीं बता पाता सिर्फ रोता रहता है। ऐसे में कान में दर्द होने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है।
  • दांतों में बैक्टीरियल इंफेक्शन या कैविटी आदि होने से भी कानों में दर्द होने लगता है।
  • कान में फंसी आदि होने पर भी दर्द हो सकता है।
  • बाहर से कीड़ा कान में घुसने से भी दर्द होता है।
  • अगर बच्चे को ज्यादा सर्दी-जुकाम है तो भी कान दर्द की परेशानी हो सकती है।
बच्चों को सिर उठाकर पिलाएं
अगर दूध कान की नली में पहुंच जाए तो कान में दर्द हो सकता है। इससे बचने के लिए बच्चों को दूध हमेशा सिर उठाकर पिलाएं। अगर बच्चा गोद में है तो खुद ध्यान रखना है। अगर बेड पर लेटा हुआ है तो दूध पिलाते समय बच्चे का सिर किसी तकिये पर रख दें। दरअसल, अगर सिर नीचा रहेगा तो दूध यूस्टेकीअन ट्यूब से मध्य कान तक पहुंच जाता है। यह ट्यूब कान में मौजूद होती है। इससे इंफेक्शन और दर्द की परेशानी होती है।

यूस्टेकीअन ट्यूब: आकार में यह छोटी और चौड़ी होती है और मध्य कान में एयर प्रेशर को मेंटेन करती है। बड़े होने पर इस ट्यूब की लंबाई बढ़ जाती है और चौड़ाई तुलनात्मक रूप से कम हो जाती है।

जब बच्चे को कान में दर्द हो
गर्म सिकाई: बच्चों के कान में दर्द होने पर डॉक्टर के पास ही जाना चाहिए, लेकिन फौरन राहत के लिए सिकाई एक अच्छा विकल्प है।
कैसे करें सिकाई: किसी सूती कपड़े को हॉट वॉटर बैग के ऊपर रखें और हल्का गर्म करके कान और उसके आसपास सिकाई करें। यह ध्यान जरूर रखें कि जितनी गर्माहट आप बर्दाश्त कर सकते हैं, उतना बच्चा बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसलिए पहले खुद पर टेस्ट करें। इसके लिए कपड़ा गर्म करके पहले अपने गालों पर रखें। अगर ज्यादा गर्म नहीं लग रहा है तो बच्चे की सिकाई करें। 2 से 3 मिनट सिकाई करें।
पैरासिटामॉल सिरप (क्रॉसिन, कैलपोल): दर्द कम करने में यह सिरप काफी काम आता है। 2 साल तक के बच्चे को 2 एमएल, 3 से 5 साल तक के बच्चे को 5 एमएल और 5 से 10 तक के बच्चे को 7 एमएल दे सकते हैं। इससे बड़े बच्चे को 10 एमएल दे सकते हैं। 8 घंटे में एक बार देना है। कोई भी दवा डॉक्टर से पूछकर ही दें।

हर बच्चे की जांच जरूरी
सुनने की क्षमता में कमी पैदायशी भी हो सकती है। इसीलिए हर बच्चे की सुनने की क्षमता की जांच होनी चाहिए। इसके लिए किसी ENT स्पेशलिस्ट से जांच करवानी चाहिए। जांच में बच्चे को कुछ करने की जरूरत नहीं होती। मशीन की मदद से उसकी सुनने की क्षमता का पता चल जाता है। अगर बच्चा किसी आवाज की ओर ध्यान न दे या 2 साल की उम्र तक एक भी शब्द नहीं बोल पाए तो डॉक्टर से मिलना चाहिए। अगर जल्द ही यह पता चल जाए कि बच्चे की सुनने की क्षमता में कमी है तो उसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए 2 से 3 साल तक की उम्र ही सही है। इसके बाद इलाज कराने का कोई खास फायदा नहीं होता है क्योंकि 5 साल की उम्र तक बच्चे के सुनने, समझने और बोलने की क्षमता का पूरा विकास हो चुका होता है।


मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

आजादी... कोरोना के डर से

$
0
0

कोरोना से जुड़ी हर बात पर हमारा ध्यान अब भी रहता है। तीसरी लहर आने की चर्चा भी चल ही रही है। साथ ही बच्चों के लिए इसे खतरनाक बताया गया है। अब यह समझना जरूरी है कि क्या सच में ऐसा हो सकता है? हम ऐसा क्या करें कि कोरोना के इस खौफ से ही आजादी मिल जाए? ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स से बात करके लाए हैं लोकेश के. भारती...

1. हम हर दिन मीडिया में जो कोरोना मीटर देखते हैं, वह कोरोना के RT-PCR टेस्ट में आए पॉजिटिव लोग की संख्या को बताता है न कि कोरोना से बीमार लोगों के बारे में।
2. वैक्सीनेशन के बाद भी कोरोना से शख्स संक्रमित हो सकता है, लेकिन 1000 में एक या दो की स्थिति ही अस्पताल में भर्ती कराने वाली बनती है।
3. कोरोना के डर से निकलने में 7 से 8 घंटे की नींद की भी अहम भूमिका होती है। पूरी नींद ही स्वस्थ शरीर का आधार है।
4. विटामिन-D समेत तमाम विटामिन्स की मात्रा भी शरीर में सही रहे इसका ध्यान रखना भी जरूरी। मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग भी उतना ही जरूरी है।

कई ऐसे मामले सामने आए हैं जब वैक्सीन लगवाने के बाद भी लोगों को कोरोना हुआ। उनकी RT-PCR रिपोर्ट पॉजिटिव आई। लेकिन यह भी सच है कि लगभग सभी मामलों में रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद भी उनकी स्थिति गंभीर नहीं हुई। पूर्वी भारत जिसमें दिल्ली, यूपी, हरियाणा, बिहार जैसे राज्य हैं, वहां मरीजों की तादाद काफी कम हुई है। सिर्फ RT-PCR रिपोर्ट पॉजिटिव आने से परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है। कोरोना का इंफेक्शन होना अलग है और इस इंफेक्शन से सख्त बीमार होना अलग है।

कोरोना का इंफेक्शन होना
इसका मतलब है कोरोना की मौजूदगी म्यूकोसल सेल ( मुंह, गाल, गले आदि के अंदर के सेल, जो देखने पर लाल दिखते हैं) में है। अभी जो वैक्सीन हम ले रहे हैं, उससे खून में ऐंटिबॉडी की मौजूदगी बढ़ जाती है। वैक्सीनेशन के 15 से 20 दिनों तक अस्थायी ऐंटिबॉडी IgM बन जाती है। फिर स्थायी ऐंटिबॉडी IgG बनती है, लेकिन वैक्सीन म्यूकोस में रहने वाली ऐंटिबॉडी IgA को नहीं बना पाता। यह ऐंटिबॉडी कोरोना वायरस को गले में ही खत्म कर देगा। इससे शरीर में हल्के लक्षण भी नहीं आएंगे। भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन आने ही वाली है। उम्मीद की जा रही है कि यह वैक्सीन IgA ऐंटिबॉडी तैयार कर देगी। वहीं दूसरी कंपनियां भी ज्यादा रिसर्च कर इस तरह की वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रही हैं। यह वैक्सीन बच्चों को भी दी जा सकेगी।
  • शरीर में वैक्सीनेशन की वजह से या पहले कोरोना होने की वजह से या फिर शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होने की वजह से कोरोना वायरस के खून में पहुंचते ही मौजूद ऐंटिबॉडी उसे मार देता है।
  • ऐसे में जब RT-PCR टेस्ट कराया जाता है तो टेस्ट पॉजिटिव आएगा, लेकिन वायरस की मौजूदगी होने की वजह से सिर्फ हल्का बुखार, गले में खराश आदि लक्षण दिख सकते हैं। गंभीर समस्या आने की आशंका न के बराबर है।
  • किसी शख्स को अगर कोई गंभीर बीमारी (कैंसर, किडनी फेल, बेकाबू डायबीटीज (फास्टिंग 200 से ऊपर और खाने के बाद 350 से ऊपर) लगातार रहे तो उसे गंभीर परेशानी होने की आशंका हो सकती है।
  • सीधे कहें तो ऐसे लोग जिन्हें सिर्फ गले में खराश हुई, हल्का बुखार हुआ उन्हें इंफेक्शन तो हुआ, लेकिन वे बीमार नहीं पड़े, ये लक्षण सामान्य फ्लू के होते हैं। इसलिए इलाज भी उसी तरह होना चाहिए। ऐसे लोगों को बिलकुल भी नहीं डरना चाहिए।
  • मामला इतना गंभीर नहीं होगा कि भर्ती होने की जरूरत पड़े।
  • हां, ऐसे लोगों को आइसोलेशन के नियम फॉलो करने चाहिए।
  • ऐसे लोग संक्रमित हैं, बीमार नहीं।
कोरोना से बीमार होना
  • जब इंफेक्शन के बाद लक्षण गंभीर दिखें तो उसे बीमारी की कैटिगरी में डालना चाहिए।
  • ऐसे लोग जिन्हें कोरोना का इंफेक्शन हुआ हो। RT-PCR टेस्ट भी पॉजिटिव आया हो।
  • इसके बाद ऑक्सिजन का लेवल भी गिरने लगा हो। सांस लेने में परेशानी हो रही हो।
  • बुखार 3-4 दिनों से ज्यादा खिंच रहा हो और शरीर का तापमान 102 से ऊपर जा रहा हो। पैरासिटामॉल देने पर भी बुखार में ज्यादा फर्क नहीं आता हो। डायरिया, दस्त आदि के लक्षण भी मौजूद हों तो ऐसे लोगों को हम बीमार कह सकते हैं।
  • स्वाद और गंध भी बुरी तरह प्रभावित हो जाए।
  • मामला इतना गंभीर हो जाए कि मरीज को घर पर रखना मुश्किल लगने लगे। मरीज को अस्पताल ले जाने की नौबत आ जाए।
  • ऐसे लोग संक्रमित भी हैं और बीमार भी।
इसलिए डरना नहीं चाहिए
इन दिनों कोरोना की बात तो की जा रही है लेकिन कोरोना के आंकड़ों से सिर्फ यही पता चलता है कि इतने लोगों का कोरोना टेस्ट हुआ और वे पॉजिटिव निकले। लेकिन इससे यह पता नहीं चलता कि उनमें से कितने लोग बीमार की कैटिगरी में आते हैं।
  • सिर्फ RT-PCR पॉजिटिव होने से कुछ नहीं होता। अगर किसी में गंभीर लक्षण उभर भी जाएं तो परेशान नहीं होना चाहिए। पहले की तुलना में इस बार सरकार और अस्पताल, दोनों तैयार हैं।
  • अब ऑक्सिजन की किल्लत वाली स्थिति नहीं होगी।
  • जिन लोगों ने वैक्सीन लगवा ली है या फिर कुदरती इम्यूनिटी है तो उनमें गंभीर लक्षण होने की संभावना न के बराबर है।
  • वैक्सीनेशन, मास्क लगाना और सोशल डिस्टेंसिंग रखना जरूरी है। कोरोना कभी गंभीर नहीं होगा।
  • कई सीरो सर्वे में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि बहुत-से लोगों को बिना लक्षण वाला कोरोना हुआ।
  • अगर हम हेल्दी फूड खाते हैं, हर दिन एक्सरसाइज और योग करते हैं तो कोरोना वैसे भी परेशान नहीं करेगा।
अमेरिका और यूरोप से तुलना क्यों?
  • अमेरिका और यूरोप में वैक्सीन लगने के बावजूद तीसरी लहर के मामले जरूर ज्यादा आए हैं, लेकिन मौत के आंकड़े काफी कम हैं यानी वहां भी इंफेक्शन हुआ है, गंभीर स्थिति काफी कम लोगों की रही।
  • अमेरिका और यूरोप में डेल्टा और डेल्टा प्लस (सबसे खतरनाक माना जाने वाला कोरोना स्ट्रेन) काफी बाद में पहुंचा जबकि अपने देश में यह शुरुआत से ही है। इसलिए इस स्ट्रेन के प्रति इम्यूनिटी विकसित करने में भी हमारा शरीर सक्षम रहा है।
  • यह भी कहा जा रहा है कि अमेरिका और यूरोप में बच्चों को कोरोना की तीसरी लहर ने काफी परेशान किया है। लेकिन यह भी समझें कि वहां पर बच्चों को पैदाइशी डायबीटीज की समस्या, मोटापा (सेंट्रल फैट: पेट और कमर पर) काफी रहता है। ऐसे बच्चों को कोरोना जरूर परेशान कर सकता है। यहां जिन बच्चों को ऐसी परेशानी है, उन्हें जरूर सावधान रहना चाहिए।
कोरोना का डर भगाएंगे ये शानदार हथियार...
टीका बना कवच
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि हमारे देश में मौजूद तीनों वैक्सीन- कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पूतनिक-वी लगभग सभी तरह के कोरोना स्ट्रेन पर 80 फीसदी से ज्यादा कारगर हैं। ऐसे में कोरोना से बचने के लिए ये वैक्सीन एक कवच की तरह हैं। जितनी जल्दी वैक्सीन लगवाएंगे, सुरक्षा भी उतनी जल्दी मिलेगी। अब तक भारत में 53.6 करोड़ से ज्यादा डोज लगाई जा चुकी हैं। सरकारी अस्पतालों में ये वैक्सीन फ्री हैं और प्राइवेट सेंटर्स पर इनके लिए कीमत चुकानी पड़ती है।

किस वैक्सीन की दूसरी डोज कब
  • कोविशील्ड-12 से 16 हफ्ते के बाद
  • कोवैक्सीन-4 से 6 हफ्ते के बाद
  • स्पूतनिक-वी-3 से 4 हफ्ते के बाद
रजिस्ट्रेशन कहां होगा?
www.cowin.gov.in पर वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते है। इसके अलावा Aarogya Setu app या Co-WIN Vaccinator App सिर्फ एंड्रॉइड पर भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है। यह भी मुमकिन न हो तो नजदीकी अस्पताल में सीधे जा सकते हैं, जहां वैक्सीनेशन की प्रक्रिया चल रही हो। वहां भी रजिस्ट्रेशन हो सकता है। यह सुविधा उन लोगों के लिए बेहतर है जो अपने मोबाइल नंबर से स्लॉट नहीं बुक कर पाते।

कोरोना से ऐसे बचे रहेंगे
कोरोना वायरस से बचने के लिए ये चार चीजें कभी नहीं भूलनी हैं:
1. मास्क, 2. हाथों की सफाई, 3. सोशल सिस्टेंसिंग, 4. वेंटिलेशन
मास्क मुंह और नाक का सुरक्षा कवच है। पिछले साल से लेकर अब तक यह साबित हो चुका है कि कोरोना से बचाने में मास्क से ज्यादा कारगर कुछ नहीं है। मास्क पहनने के बाद भी घर से बाहर रहते हुए किसी दूसरे से 6 फुट की दूरी बनाकर रखें।
कैसा मास्क लें
सर्जिकल: कोई भी 3 लेयर वाला मास्क काम करेगा। यूज एंड थ्रो वाला सर्जिकल मास्क बढ़िया है। यह कोरोना वायरस के साथ-साथ हवा में मौजूद बड़े पलूशन के कणों को भी रोकता है, लेकिन छोटे डस्ट पार्टिकल को रोक नहीं पाता।
कपड़े का मास्क: कॉटन का मास्क बेहद कारगर है। इसमें दम घुटने की शिकायत नहीं होती।
N-95 मास्क : यह सबसे अच्छा है लेकिन बिना वॉल्व लें। कोई भी वॉल्व वाला मास्क रिस्की हो सकता है।
सही तरीके से पहनें मास्क
  • 2 साल से बड़े सभी लोगों को घर से बाहर जाते हुए मास्क पहनना चाहिए।
  • बीमार होने पर दो कोरोना मरीज एक ही कमरे में रह सकते हैं, पर दोनों मास्क लगाएं तो अच्छा।
  • मास्क ऐसा एेसा पहनेंं कि नाक, मुंह और ठुड्डी सही ढंग से ढक जाएं।
  • मास्क ऐसा हो जिसे बार-बार एडजस्ट न करना पड़े।
  • हम चेहरे पर तो मास्क लगा लेते हैं लेकिन अपने हाथों को धोना भूल जाते हैं। घर में या बाहर, जहां साबुन और हाथ धोने के लिए पानी हो तो उसका इस्तेमाल करें।
आराम का भी है भरपूर महत्व
पूरी नींद सोना
रात में सोने से न सिर्फ शरीर रिचार्ज होता है बल्कि तनाव रहित होने की कोशिश भी करता है। शरीर दिनभर में हुई टूट-फूट को ठीक भी करता है। इसलिए नींद की अहमियत बहुत ज्यादा है। हम जितने वक्त तक खाना खाए बिना रह सकते हैं, लगभग उतने ही वक्त तक हम नींद के बिना भी रह सकते हैं। एक दिन की फास्टिंग से हमें कुछ कमजोरी आती है, वहीं एक दिन न सोने से हममें थोड़ा चिड़चिड़ापन आता है। दूसरे दिन भी जब हमें खाना नहीं मिलता तो हमारी कमजोरी बढ़ जाती है। इसी तरह दूसरे दिन भी भरपूर नहीं सोने पर हमारी स्थिति बहुत बुरी होने लगती है। इसके बाद हम चाहते हैं कि हमें खाना मिल जाए तो दूसरी तरफ हम बैठे-बैठे भी सोने लगते हैं। सीधे कहें तो जितना जरूरी हमारे लिए खाना है, उतनी ही अहम नींद भी है।
नींद में खलल क्यों
वजहें कई हो सकती हैं। इनमें मोबाइल, लैपटॉप, टीवी के साथ देर रात तक जागने की आदत, डिप्रेशन, तनाव, शरीर कमजोर होना, विटामिन-डी की कमी, सही और तय समय पर खाना न खाना, अल्कोहल और स्मोकिंग की आदत, जंक फूड, खर्राटे, बेड की क्वॉलिटी, मोटे तकिए पर सोना और स्लीप एप्नीया (सोते वक्त सांस लेने में रुकावट होना) जैसी समस्या को नजरअंदाज करना।

इसलिए जरूरी है पूरी नींद
कम नींद की वजह से क्या होता है, इसे फौरन ही महसूस किया जा सकता है। यह शरीर पर चोट लगने जैसा ही है। इसका असर फौरन ही दिखने लगता है।
  • चिड़चिड़ापन, ध्यान में कमी, हॉर्मोनल गड़बड़ियां, याद्दाश्त में कमी, पीरियड्स की परेशानी, डायबीटीज, बीपी आदि।
सेहत के लिए बुलंद रुटीन

खानपान का ध्यान जरूरी
एक गिलास गुनगुने पानी या जितना बर्दाश्त कर सकते हैं, गरारे कर लें, इसके बाद एक गिलास गुनगुने पानी में आधे नीबू का रस निकालकर पिएं, अगर किसी को डायबीटीज या बीपी की परेशानी है तो चीनी या नमक से दूरी बनाकर रखें। इससे शरीर डिटॉक्स होगा। हर दिन 7 से 8 गिलास पानी जरूर पिएं। यह पानी सामान्य या गुनगुना हो सकता है। अगर कोई चाहें तो 2 लीटर पानी में 1 नीबू काटकर डाल सकता है फिर उसी पानी को दिनभर पीते रहें। इससे पानी की कमी नहीं होगी और विटामिन-सी भी मिलता रहेगा।
या
  • हर्बल टी (एक टुकड़ा कुचला हुआ अदरक, 2 से 3 तुलसी के पत्ते बारीक तोड़े हुए और 1 चम्मच शहद के साथ)। इसके साथ ही हर दिन 1 अखरोट। जिंक के लिए अखरोट बहुत ही अच्छा जरिया है।
  • आधे घंटे तक कसरत और 15 से 20 मिनट का योग करने के बाद ब्रेकफस्ट की बारी आती है।
  • ब्रेकफस्ट, लंच और डिनर में प्रोटीन की मात्रा सही रखने के लिए हर दिन 2 कटोरी दाल जरूर खाएं। इनके अलावा चना सत्तू का ड्रिंक भी प्रोटीन का नेचरल सोर्स है। हर दिन एक प्लेट सलाद खाने से विटामिन और मिनरल्स की कमी नहीं होती।
  • हर दिन एक मौसमी फल जैसे सेब, अमरूद आदि जरूर खाएं।
  • दिन और रात का खाना एक नियत समय पर ही खाएं। यह भी ध्यान रखंे कि रात का खाना हल्का हो। डिनर रात 8 से 9 बजे के बीच कर लेना चाहिए।
शरीर में न होने दें इनकी कमी
विटामिन-D: सेहत की धूप
कोरोना का नया स्ट्रेन हो या पुराना, हम यह नोटिस करें कि कुछ लोग वेंटिलेटर पर जाने के बाद भी ठीक होकर आ गए। इसमें उनकी इम्यूनिटी की अहम भूमिका है। वैक्सीनेशन के अलावा एक इम्यूनिटी हमें पैरेंट्स से मिलती है और दूसरी लाइफस्टाइल से। खानपान और एक्सरसाइज से हम इम्यूनिटी बढ़ा सकते हैं। हमें रोजाना 2000 IU विटामिन-डी की जरूरत होती है। यह बैक्टीरिया और वायरस को मारने में मदद करता है। इसलिए कोरोना के मरीज को बालकनी या ऐसी खिड़की वाला कमरा मिले जहां भरपूर धूप आती हो। जब धूप आए तो खिड़की के शीशे खोल देने चाहिए। शीशे बंद हों तो शरीर पर पड़ने वाली धूप से किसी के शरीर में विटामिन-डी नहीं बनता। सुबह 8 बजे से 12 बजे के बीच में 30 से 35 मिनट धूप में बैठने से विटामिन-D की कमी नहीं होती।

विटामिन-D सप्लिमेंट
सप्लिमेंट के तौर पर एक वयस्क को 60000 IU विटामिन-डी की मात्रा हर हफ्ते लेनी होती है। इसे लगातार 8 हफ्तों तक यानी 2 महीनों तक लेते हैं। इसके बाद हर महीने पर 60000 IU दिया जाता है।

विटामिन-C: खट्टा है अच्छा
कोरोना से बचाव और कोरोना होने पर भी इस विटामिन की जरूरत इसलिए है क्योंकि यह शरीर के लिए सुरक्षा कवच तैयार करता है। यह हड्डियों, त्वचा और रक्त नलिकाओं के लिए खास है। लेकिन हमारा शरीर इसे जमा करके नहीं रख सकता। इसलिए हर शख्स को हर दिन 65 से 90 एमजी विटामिन-सी जरूर लेना चाहिए। इसका सबसे अच्छा सोर्स आंवला है। अगर सप्लिमेंट्स के तौर पर विटामिन-सी लेंगे तो यह नेचरल की तुलना में शरीर में थोड़ा कम जज्ब होगा। रोजाना एक आंवला बड़े, बुजुर्ग या प्रेग्नेंट महिलाएं ले सकती हैं।

खाने में हो रंगीनियत भी
हम रोजाना 7 रंग का खाना खाएं तो अच्छा है। डाइट और स्वाद दोनों का ख्याल रखें। यह जरूरी नहीं है कि हेल्दी खाना बेस्वाद हो। लेकिन जिन चीजों को काढ़े में इस्तेमाल कर रहे हैं, उनको दूसरी चीजों में बार-बार न लें। अगर हल्दी को सब्जियों में डाल रहे हैं और साथ में दो बार हल्दी वाला दूध भी ले रहे हैं तो हल्दी को काढ़े में न डालें।
रंगारंग खाना
हरा रंग: पत्ते वाली और बाकी हरी सब्जियां लौकी, तौरी, कद्दू, ब्रोकली, साग पालक, पत्ता गोभी, अमरूद आदि। ये सूजन घटाने में मदद करती हैं। इसलिए हरी सब्जियां जरूर खानी चाहिए।
पीला और संतरी रंग: केला, संतरा, नींबू, पपीता, बेल, गाजर आदि।
नीला और बैंगनी रंग: बैंगन, चुंकंदर, बैंगनी रंग के अंगूर, जामुन, फालसे, आदि।
गहरा लाल: शकरकंदी, टमाटर आदि।
सफेद और भूरा: प्याज, मूली, लहसुन, गोभी, शलगम आदि।
ये सभी रंगों की चीजें पोषक तत्वों से युक्त हैं।
नोट : यहां बताई गई सब्जियों और फलों के अलावा इन रंगों की और भी चीजें हैं, जो खाई जा सकती हैं।

जिंक: ड्राई फ्रूट्स खाएं
जिंक हमारी इम्यूनिटी बढ़ाता है इसलिए इस वक्त हमारे लिए भरपूर जिंक लेना बहुत जरूरी है। शरीर में कोई टूट-फूट हुई हो तो इसकी मदद से जल्दी ठीक होती है। यह जल्दी-जल्दी बीमार होने वाले लोगों को भी दिया जाए तो उनकी सेहत सुधरने लगती है। इसे रोजाना के खाने में शामिल करना चाहिए। रोज कुल मिलाकर एक मुट्ठी ड्राई फ्रूट्स खाएं जैसे रातभर भीगे हुए बादाम, रोस्टेड मूंगफली, अखरोट आदि।

इन हेल्पलाइंस पर करें भरोसा

कोरोना नैशनल हेल्पलाइन्स- फोन: 011-23978046, टोल-फ्री नंबर: 1075
ई-मेल: ncov2019@gov.in
वेबसाइट: mohfw.gov.in और ncdc.gov.in
WhatsApp पर भी हेल्पलाइन- 9013151515 (कोरोना से जुड़ी जानकारी के लिए मेसेज भेजें)
8046110007 मानसिक परेशानी में मदद के लिए

दिल्ली- 011-22307145, 011-61193786
उत्तर प्रदेश- 18001805145
हरियाणा- 8558893911
मुंबई हेल्पलाइन (बीएमसी)- 022-22694727
(यह बीएमसी का नंबर है। हर वॉर्ड के लिए अलग-अलग नंबर है। यहां फोन से पूछकर जिस वॉर्ड में मदद चाहिए, वहां का नंबर ले सकते हैं।)

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, धर्मशिला हॉस्पिटल
  • डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
  • डॉ. संजय राय, कम्यूनिटी मेडिसिन, AIIMS
  • डॉ. अरविंद लाल, एग्जिक्यूटिव चेयरमैन, डॉ. लाल पैथ लैब्स
  • डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट फिजिशन
  • डॉ. विवेक दीक्षित, सीनियर साइंटिस्ट, ऑर्थो. डिपार्टमेंट, AIIMS
  • डॉ. अनुराग महाजन, वाइस चेयरमैन, क्रिटिकल केयर, PSRI हॉस्पिटल

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

हर बुखार कोरोना नहीं

$
0
0

बरसात के मौसम में जहां पेड़ हरे-भरे हो जाते हैं, वहीं इस मौसम में मौसमी बुखार भी खूब होता है। यह मौसमी बुखार पहले भी होता था, लेकिन अब बुखार के मायने बदल गए हैं। शरीर गर्म होते ही कोरोना का डर सताने लगता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या हर बुखार कोरोना होता है? अगर बुखार हो जाए तो क्या करना चाहिए? ऐसे ही सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स से पूछकर बता रहे हैं लोकेश के. भारती

बुखार कोई बीमारी नहीं, लेकिन यह कई बीमारियों का शुरुआती लक्षण जरूर है। बुखार यह बताता है कि शरीर को कोई परेशानी है जिसका हल खोजना जरूरी है। कई बार परेशानी जब बड़ी होती है तो बुखार भी बढ़ने लगता है। ज्यादा तेज बुखार होने पर हमारे शरीर में मौजूद हॉर्मोन्स और एंजाइम सही तरीके से काम नहीं कर पाते। दिमाग भी ठीक से काम नहीं करता। इसलिए डॉक्टर पहले बुखार कम करने की दवा देते हैं। इसके बाद इंफेक्शन का पता लगाने के लिए जांच लिखते हैं।

बुखार होने की कोई न कोई वजह होती है। बिना वजह बुखार नहीं हो सकता। वजह जितनी बड़ी होगी यानी बीमारी जितनी बड़ी होगी, बुखार की जिद भी वैसी ही होगी। मान लें किसी को सामान्य-सा फ्लू है। फ्लू या इन्फ्लूएंजा वायरस का असर आमतौर पर 3 दिनों तक होता है। इसके बाद वह खत्म होने लगता है। इसलिए फ्लू की वजह से आने वाला बुखार भी 3 दिनों तक रहता है, फिर यह खत्म हो जाता है। वहीं बुखार कोरोना की वजह से हुआ है तो यह 9 दिन या इससे भी ज्यादा समय तक रह सकता है।

शरीर का सामान्य तापमान- 97.7 - 99.5 डिग्री फारेनहाइट में

बुखार में तापमान
जब शरीर का तापमान 99.5 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा होगा तो इसे बुखार कहेंगे। वैसे यह हर शख्स के लिए अलग-अलग हो सकता है। किसी-किसी को 99 पर भी बुखार महसूस हो सकता है।

नोट: कुछ लोगों को 99 डिग्री फारेनहाइट पर भी फीवर जैसा महसूस हो सकता है, जिसे हरारत (थकान) यानी फीवर नहीं, लेकिन फीवर जैसा कह सकते हैं। यह हरारत थकावट होने पर भी होती है और बारिश में भीगने पर भी। आराम करने से थकावट दूर हो जाती है।

बुखार की कई वजह हो सकती हैं
वायरल इंफेक्शन, बैक्टीरियल (टाइफाइड) इंफेक्शन, प्रोटोजोअल (मलेरिया) इंफेक्शन, फंगल आदि।

लक्षणों से पहचानें, कौन-सा है बुखार
कोरोना का बुखार
  • 3 से 4 महीने पहले जब लोग बुखार की परेशानी लेकर डॉक्टर से सलाह के लिए जाते थे तो वह RT-PCR रिपोर्ट देखते थे। उनमें से ज्यादातर की रिपोर्ट पॉजिटिव आती थी। अब ऐसा नहीं है। अब ज्यादातर की रिपोर्ट नेगेटिव आती है।
  • इसमें कुछ चीजों का स्वाद आना बंद हो जाता है। गंध भी प्रभावित हो जाती है।
  • इंफेक्शन होने के बाद लक्षण दिखने में 1 से 2 दिन लग सकते हैं।
  • इसमें छींक आने की आशंका कम रहती है।
  • गले में खराश होती है, गरारे करने पर फायदा होता है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं।
  • कई बार बहुत तेज सूखी या कफ वाली खांसी होती है।
  • कई बार खांसते हुए सांस लेने में परेशानी हो जाती है।
  • मांसपेशियों में दर्द हो सकता है। यह दर्द बेचैन कर सकता है।
  • सिरदर्द की परेशानी भी हो सकती है।
  • टाइफाइड वाले लक्षण। इसलिए कोरोना को कई बार 'वायरल टाइफाइड' भी कह दिया जाता है जबकि असल टाइफाइड एक बैक्टीरियल बीमारी है।
  • नाक बंद होने की आशंका कम है।
  • थकान महसूस होती है।
बचाव
  • अगर ऐसे लक्षण हों तो शुरू में कम से कम 4 दिनों के लिए खुद को आइसोलेट कर लें। अगर लक्षण कम न हों या बढ़ने लगे तो RT-PCR जांच के लिए जाना चाहिए। अगर बुखार है तो हर 8 घंटे पर पहले 4 दिनों तक पैरासिटामोल ले सकते हैं।
  • हर दिन दो से ढाई लीटर पानी पीना है। शरीर में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।
अगर किसी को बुखार आता है तो डॉक्टर उसे सबसे पहले RT-PCR के लिए कहते हैं। साथ में वह यह भी देखते हैं कि पेशंट को पहले कोरोना हो चुका है और उसने वैक्सीनेशन भी करवाया है। उसे कोई दूसरी गंभीर बीमारी भी नहीं है तो मरीज को 3 से 5 दिनों तक आइसोलेशन में रहते हुए इंतजार करने के लिए भी कह सकते हैं क्योंकि ऐसे में कोरोना से होने वाले लक्षण दिखने की आशंका बहुत कम है।
टेस्ट- RT-PCR
कीमत: प्राइवेट लैब में 700 से 1000 रुपये तक, सरकारी अस्पताल में फ्री
कब कराएं: बुखार आने के 3 से 5 दिन में

कोरोना वैक्सीनेशन की बात: देशभर में करोड़ों की संख्या में लोग वैक्सीन की डोज लगवा चुके हैं। वैक्सीन लगवाने के बाद भी कोरोना हो सकता है, लेकिन वह जानलेवा नहीं होता। अभी जितनी भी वैक्सीन उपलब्ध हैं, उनकी 2 डोज लगवानी होती हैं। अगले महीने से रूस की वैक्सीन स्पूतनिक-वी लाइट आने वाली है जिसकी एक डोज ही लगेगी। इसके अलावा 3 से 4 महीनों में नेजल वैक्सीन आने की संभावना भी है। 12 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों के लिए जायडस-कैडिला वैक्सिन को लगाने की अनुमति दे दी गई है। इसकी 3 डोज लगेगी।

फ्लू और स्वाइन फ्लू में है फर्क
फ्लू की फैमिली का ही सदस्य है स्वाइन फ्लू। इसलिए इनके लक्षणों में भी कोई खास फर्क नहीं होता। आजकल स्वाइन फ्लू टेस्ट कराने के बाद भी H1N1 पॉजिटिव रिजल्ट बहुत ही कम निकल रहा है। इनमें से ज्यादातर मरीज इंफ्लूएंजा-ए के मिल रहे हैं, यह कॉमन कोल्ड है। अगर फ्लू और स्वाइन फ्लू की तुलना करें तो स्वाइन फ्लू के लक्षण ज्यादा गंभीर होते हैं। जब एक खास इलाके में फ्लू की शिकायत बहुत ज्यादा आने लगती है तो डॉक्टर स्वाइन फ्लू का असर मानकर जांच कराते हैं। स्वाइन फ्लू अमूमन 3 से 4 दिनों में खत्म नहीं होता। इसमें फ्लू की तुलना में बेचैनी, बदन दर्द, सिर दर्द काफी तेज होता है। फ्लू के लिए डॉक्टर अमूमन टेस्ट नहीं लिखते। सिर्फ लक्षणों के आधार पर ही इलाज कर देते हैं। हां, जब स्वाइन फ्लू की आशंका होती है तब H1N1 टेस्ट कराया जाता है।
  • इसमें अमूमन स्वाद और गंध पर असर नहीं पड़ता। नाक बहने की परेशानी जरूर होती है।
  • छींकें आती हैं। सिरदर्द हो सकती है।
  • खांसी भी होती है, लेकिन कोरोना जितनी नहीं।
  • सांस लेने में अमूमन परेशानी नहीं होती।
  • बुखार के साथ ठंड भी महसूस हो सकती है।
  • नाक बंद होने की आशंका काफी रहती है।
  • तेज बुखार होने पर थकान महसूस होना।
ऐसे लक्षण हों तो खुद को 3 दिनों के लिए आइसोलेट कर लें। फ्लू अमूमन 3 से 4 दिनों में कम या खत्म हो जाता है।
अगर किसी को पहले कोरोना हो चुका है और उसके फेफड़े अब भी ठीक से काम नहीं कर रहे हैं यानी सांस लेने में परेशानी है तो उसके लिए स्वाइन फ्लू या सामान्य फ्लू भी खतरनाक हो सकता है।
बचाव
  • अगर घर में किसी एक को फ्लू हो चुका है तो उससे दूरी बनाकर रखनी चाहिए। साथ ही दिन में दो बार गरारे करें। अगर फीवर 100 से ऊपर है तो पैरासिटामोल (क्रोसिन या कैलपोल अडल्ट के लिए 650 एमजी ) की एक गोली डॉक्टर से पूछकर हर 6 से 8 घंटे पर ले सकते हैं।
  • हर दिन 2 से ढाई लीटर पानी लें। शरीर में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।
टेस्ट
1. CBC: इस टेस्ट से इंफेक्शन की स्थिति के बारे में शुरुआत में पता चल जाता है। पुख्ता करने के लिए H1N1 टेस्ट कराया जाता है।
कीमत: 300 से 400 रुपये
कब कराएं: 2 से 3 दिन बाद
2. H1N1: इंफ्लूएंजा टाइप
कीमत: 4000 से 5000 रुपये
कब कराएं: 3 से 4 दिन बाद

फ्लू के वैक्सीनेशन की बात
फ्लू शब्द इंफ्लूएंजा से लिया गया है। कोरोना हो या फ्लू हो या फिर स्वाइन फ्लू, सभी इंफ्लूएंजा फैमिली के ही वायरस हैं। इस फैमिली के वायरस में म्यूटेशन (अपने प्रोटीन और जेनेटिक चेन में अचानक बदलाव कर लेने) की काफी क्षमता होती है। यही वजह है कि कोरोना में अब तक 26,000 से ज्यादा म्यूटेशन हो चुके हैं। इसी तरह फ्लू वायरस भी म्यूटेशन करके हर साल अपना रूप बदल लेता है। इसलिए डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि फ्लू वैक्सीन भी हर साल लगवानी चाहिए। खासकर ऐसे लोग जिन्हें पहले से शुगर, किडनी, कैंसर आदि की परेशानी रही है। वहीं जिन लोगों को फेफड़ों से जुड़ी परेशानी रही है, वे जरूर फ्लू वैक्सीन लें। यह वैक्सीन कुछ खास तरह के इंफेक्शन से बचाता है, सभी से नहीं।
ध्यान दें: फ्लू का इंफेक्शन हर शख्स को जीवन में कभी न कभी होता है। इसलिए इसके खिलाफ उसका शरीर ऐंटिबॉडी भी बना लेता है। फ्लू में म्यूटेशन भी बहुत होता है। जब किसी शख्स की इम्यूनिटी दूसरी बीमारियों की वजह से कमजोर होती है तो फ्लू उसके लिए भी खतरनाक हो जाता है। फ्लू वैक्सीन की कीमत: 400 से 800 रुपये

डेंगू का बुखार
  • उल्टी होना
  • तेज बुखार होना
  • सिर दर्द रहना
  • मांसपेशियों और हड्डियों में दर्द रहना
  • शरीर पर दाने या चकत्ते होना।
नोट: यहां एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि चिकनगुनिया और डेंगू दोनों में हड्डियों में दर्द होता है, लेकिन चिकनगुनिया में तेज दर्द होता है।
बचाव

  • हर दिन दो से ढाई लीटर पानी पीना है। शरीर में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।
  • चूंकि यह मच्छरों से फैलता है, इसलिए मच्छरों से बचने के उपाय करें। अगर ऐसे लक्षण दिखें तो डॉक्टर से जरूर मिलें।
टेस्ट-एलाइजा (ELISA): वैसे तो डेंगू के और भी टेस्ट हैं, लेकिन एलाइजा टेस्ट सबसे ज्यादा प्रचलित और भरोसेमंद है।
कीमत: 500 से 700 रुपये
कब कराएं: लक्षण आने के 5 दिनों के बाद
रिपोर्ट: 1 से 2 दिन

मलेरिया का बुखार
  • ठंड के साथ बुखार आना
  • बुखार 103 से 104 डिग्री फारेनहाइट तक जाना, गले में खराश होना
  • जब बुखार उतर रहा हो तो पसीना आना
  • थकान के साथ बेचैनी होना
  • उल्टी आना
टेस्ट-ब्लड स्मीयर टेस्ट
कीमत: 100 से 200 रुपये
कब कराएं: लक्षण दिखने के 2 से 3 दिन में यह टेस्ट करा सकते हैं।
रिपोर्ट: उसी दिन

चिकनगुनिया का बुखार
  • अचानक तेज बुखार आना
  • हड्डियों और जोड़ों में तेज दर्द होना। यह कुछ दिनों के लिए भी चल सकता है या फिर लंबे समय तक
  • सिर और मांसपेशियों में दर्द महसूस होना
  • पीठ में तेज दर्द होना। थकान महसूस होना
  • शरीर पर दाने होना
  • आंखें लाल होना (कंजक्टिवाइटिस)
बचाव
  • चूंकि यह मच्छरों से फैलता है, इसलिए मच्छरों से बचने के उपाय करें। मच्छरों को आसपास पनपने न दें। अगर ऊपर बताए हुए लक्षण मौजूद हों तो डॉक्टर से जरूर मिलें और दवा लें। इसे नजरअंदाज करना सही नहीं है। यह खतरनाक हो सकता है।
  • हर दिन दो से ढाई लीटर पानी पीना है। शरीर में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।
टेस्ट- RT-PCR
कीमत: 1500 से 2000 रुपये
कब कराएं: 4 से 6 दिनों बाद
रिपोर्ट: 2 से 5 दिन

किडनी इंफेक्शन से भी हो सकता है बुखार
जब किडनी में इंफेक्शन पेशाब की थैली तक फैला होता है तो आमतौर पर बुखार नहीं होता। हां, अगर यह इंफेक्शन किडनी तक फैल चुका हो तो ऐसे में बुखार हो सकता है। जब पेशाब की थैली के नीचे यानी पेशाब की थैली से यूरेथ्रा (जिस रास्ते से पेशाब निकलता है) के बीच में इंफेक्शन होता है तो उसे लोअर ट्रैक्ट इन्फेक्शन (LTI) कहते हैं। यही इंफेक्शन जब पेशाब की थैली के ऊपर किडनी तक चला जाए तो बुखार होने की आशंका बन जाती है। इसे अपर ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) कहते हैं। बुखार की आशंका यूटीआई में होती है क्योंकि किडनी से इंफेक्शन ब्लड में पहुंचने की गुंजाइश ज्यादा होती है। इसलिए जब कोई मरीज पेशाब के इंफेक्शन के इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंचता है तो डॉक्टर उससे ये बातें पूछते हैं:
1. क्या पेशाब बार-बार आता है? रात में सोने के बाद भी कई बार पेशाब की वजह से नींद खुलती है और जाना पड़ता है? अमूमन 4 बार से ज्यादा?
2. पेशाब करने के बाद भी क्या ऐसा महसूस होता है कि पेशाब और होगा, लेकिन होता नहीं है?
3. पेशाब में खून भी आता है?
4. क्या पेशाब में जलन होती है?
अगर इन 4 या ज्यादातर सवालों के जवाब हां में है तो यह लोअर ट्रैक्ट यूरिन इंफेक्शन है। इसके अलावा बुखार के समय ठंड भी लगती है तो अपर ट्रैक्ट इंफेक्शन हो सकता है। डॉक्टर यूरिन टेस्ट और ब्लड कल्चर की रिपोर्ट के आधार पर आगे का इलाज करते हैं।

क्या है फीवर प्रोफाइल टेस्ट
इसमें पता चलता है कि बुखार से जुड़ी किन बीमारियों के लिए टेस्ट होना है। इसे लैब वाले तैयार करते हैं। इसलिए डॉक्टर की सलाह से जिन बीमारियों का शक है, उसके आधार पर इसे कराना ज्यादा बेहतर होता है। आजकल इसमें अलग-अलग बुखार के लिए टेस्ट होता है:
CBC, टाइफाइड, मलेरिया, यूरिन टेस्ट, डेंगू, RT-PCR (आजकल ज्यादातर टेस्ट नेगेटिव आ रहे हैं।) कीमत: 1500 से 2000 रुपये

जब हो जाए बच्चे को बुखार
बच्चों के बुखार और बड़ों के बुखार में ज्यादा फर्क नहीं होता। इतना फर्क जरूर होता है कि बच्चों की इम्यूनिटी बड़ों जितनी विकसित नहीं होती। इसलिए उन्हें इंफेक्शन भी ज्यादा होता है और नतीजतन बुखार भी ज्यादा। चूंकि बच्चे अपनी परेशानी को सही तरह से और पूरी तरह से बता पाने में सक्षम नहीं होते, इसलिए बुखार होने पर पैरंट्स की भूमिका अहम हो जाती है। बुखार होने पर पैरंट्स को कुछ बातों पर खास ध्यान रखना चाहिए क्योंकि ये सवाल डॉक्टर बच्चों से पहले उनके पैरंट्स से ही पूछते हैं...
1. बच्चों की डाइट पर कितना असर हुआ है? क्या बच्चे ने खाना-पीना काफी कम कर दिया है? उसे खाने में क्या अच्छा लगता है?
2. क्या खाने के बाद पेट में दर्द, गैस की परेशानी के साथ उल्टी भी होती है?
3. बच्चे को कितनी बार स्टूल हो रहा है, उसका रंग कैसा है, उसकी थिकनेस कैसी है?
4. बच्चा कितनी देर सोता है, लगातार कितनी देर सोता है?
5. बच्चों के शरीर पर चकत्ते या दाने भी आए थे?
6. क्या दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने में भी परेशानी है?
7. सर्दी, खांसी का क्या हाल है? क्या खांसी में बलगम भी आता है और वह किस रंग का है?
8. क्या बच्चे की सांस भी फूलती है?
9. क्या किसी चीज से एलर्जी भी है?
इन सवालों पर जरूर ध्यान दें। अगर इनमें से कोई भी परेशानी हो तो डॉक्टर को जरूर बताएं। साथ ही अगर कोई वैक्सीनेशन करवाया है तब भी डॉक्टर को जरूर बताएं। अगर डॉक्टर ये सभी सवाल नहीं पूछते लेकिन बच्चे को परेशानी है तो भी उन्हें बताएं। बच्चों में शुरुआती बुखार के दौरान पैरासिटामोल सिरप दे सकते हैं, लेकिन इसके लिए भी डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।

इन गलतफहमियों को करें दूर
बुखार में पट्टी की जरूरत कब होती है और किस तरह करनी चाहिए?
अगर बुखार 102 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर जा रहा है तो सिर पर गीली पट्टी और अगर फीवर 104 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर जा रहा है तो पूरे शरीर पर गीली पट्टी बदल-बदलकर सकते हैं। दरअसल, अगर बुखार कम करने के लिए मरीज को दवा दी है तो दवा का असर होने में 1 घंटा तक लग सकता है। साथ ही इस तापमान या इससे ऊपर तापमान जाने के बाद सिर काफी गर्म हो जाता है। शरीर में मौजूद हॉर्मोंस भी अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते। ऐसे में बुखार दिमाग को नुकसान न पहुंचाए, इसके लिए ही डॉक्टर पट्टी करने की सलाह देते हैं।

कैसे रखें गीली पट्टी और कैसा हो पानी?
बुखार 103 डिग्री फारेनहाइट के करीब है और मरीज को ज्यादा परेशानी नहीं है तो सिर पर सादा पानी (गर्मी में थोड़ा ठंडा पानी मिलाकर, पानी का तापमान 12 से 15 डिग्री सेल्सियस (53 से 59 डिग्री फारेनहाइट) तक रख सकते हैं। यह लगभग उतना ही ठंडा हुआ जितना घड़े का पानी होता है।) में भिगोकर पट्टी रखें। एक बार में 2 से 3 मिनट तक रखें। इसे फिर गीला करें और माथे पर फैलाकर रख दें। इसे 10 से 15 मिनट करें। अगर बुखार 103 से ज्यादा यानी 104 तक पहुंच चुका हो और मरीज को ठंड न लग रही हो तो बड़े तौलिये को सामान्य या ठंडे पानी में भिगोकर पीठ, छाती पर रख सकते हैं। ठंग लग रही हो तो गीली पट्टी न करें।

बुखार होने पर ब्लड टेस्ट की जरूरत कब होती है?
अगर सामान्य बुखार यानी सर्दी-जुकाम यानी फ्लू है तो यह 3 से 4 दिनों में उतर जाता है। अगर कोई चाहे तो दूसरे या तीसरे दिन भी डॉक्टर से मिल सकता है। अगर डॉक्टर फौरन ही ब्लड जांच के लिए लिखता है तो जांच करा लें। दरअसल, बुखार के साथ अगर दूसरे लक्षण भी मौजूद हैं तो ब्लड टेस्ट कराना सही रहता है। वैसे कॉमन वायरल फीवर 3 से 4 दिनों में उतर जाता है।

ऐसे लगाएं थर्मामीटर?
हर घर में एक थर्मामीटर जरूर होना चाहिए। आजकल डिजिटल थर्मामीटर मिलता है। यह अच्छा है। इसमें बुखार की स्थिति साफ तौर पर पता चल जाती है। इसकी दूसरी खासियत है कि यह गिरने पर जल्दी से टूटता नहीं। इसे लगाने के बाद इसमें बीप की आवाज आती है, इससे पता चल जाता है कि थर्मामीटर ने तापमान ले लिया है। अगर किसी बड़े या 15 बरस से ज्यादा उम्र के बच्चे को थर्मामीटर लगाना है तो जीभ के नीचे 1 से 2 मिनट के लिए लगा सकते हैं। वहीं इससे कम उम्र के बच्चे को बगल में लगाना चाहिए। घर में कोरोना मरीज है तो तापमान मापने के लिए थर्मामीटर को बगल में लगाएं क्योंकि कई बार बच्चे थर्मामीटर को दांत से दबा देते हैं। उसमें मौजूद पारा सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। साथ ही उस शख्स के थर्मामीटर से किसी दूसरे का तापमान चेक न करें। तापमान चेक करने के बाद उसके आगे के हिस्से को स्प्रिट या सैनिटाइजर से हर बार साफ कर दें। हालांकि जब बात सही रीडिंग की आती है तो पारे (मर्करी) वाला थर्मामीटर ज्यादा बेहतर माना जाता है।

बुखार में खानपान कैसा हो?
एलोपैथी के मुताबिक, बुखार में आम दिनों जितना ही खाएं। इन दिनों शरीर को ऊर्जा की ज्यादा जरूरत होती है। इसलिए इसकी कमी न हो, नहीं तो कमजोरी बढ़ जाएगी। पानी की कमी न हो। सामान्य या गुनगुना पानी पीना अच्छा है। दिनभर में 7 से 8 गिलास पानी जरूर पिएं। जहां तक खाने की बात है तो जो भी पसंद हो, वह खाएं। बस ध्यान यह रखना है कि खाना आसानी से पचने वाला हो, कम तेल और मसाले वाला हो। जैसे खिचड़ी, चावल और मूंग या मसूर की दाल का पानी। खिचड़ी या दाल बनाते समय अगर चाहें तो उसमें मौसमी सब्जियां या साग अच्छी तरह धोकर डाल सकते हैं। आजकल घीया, तोरई, गोभी, पालक आदि मार्केट में काफी मात्रा में उपलब्ध है। बुखार के साथ सर्दी और खांसी हो तो ठंडी चीजों जैसे आइसक्रीम, फ्रिज का पानी न लें। इसके साथ ही 2-3 मौसमी फल का सेवन भी जरूर करना चाहिए, जैसे संतरा, अमरूद, पपीता आदि। जब भी बुखार हो और किसी डॉक्टर को दिखाने जाएं तो उनसे खाने-पीने के बारे में अच्छी तरह समझ लें। आमतौर पर डॉक्टर कोई परहेज नहीं बताते।

बुखार होने पर नहाएं या नहीं?
बुखार में नहाने से मना नहीं किया गया है लेकिन अगर किसी को कंपकपी और ठंड के साथ बुखार आ रहा है तो नहाना बहुत मुश्किल होता है। हां, जब बुखार उतर रहा हो तो शरीर से बहुत सारा पसीना निकलता है। ऐसे में बुखार कम होने या पूरी तरह उतरने के बाद किसी तौलिये को गुनगुने या सामान्य पानी से भिगोकर उससे शरीर को अच्छी तरह पोंछ लें। इसके बाद किसी सूखे तौलिये से भी पोंछना न भूलें। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो शरीर में खुजली शुरू हो जाएगी।

आयुर्वेद में बुखार ठीक करने के उपाय
बुखार के पहले 3 दिन
  • आयुर्वेद में बुखार के शुरुआती 3 दिनों यानी 72 घंटे को 'तरुण ज्वर' कहा जाता है।
  • अगर पहले दिन भी फास्ट मुमकिन नहीं तो जितना हो सके, खाना कम कर दें।
बुखार 3 दिन से ज्यादा हो तो अगले 7 दिनों के लिए...
  • आसानी से पचने वाला भोजन जैसे मूंग की दाल, ज्यादा गले हुए चावल, खिचड़ी, अच्छी तरह से कम तेल में पकी हुई सब्जियां आदि खाएं।
  • खाना वक्त पर खाएं।
  • अगर चाहें तो ऐसे में गिलोय का काढ़ा दिन में 2 बार 15 से 25 एमएल तक ले सकते हैं।
जब बुखार 10 दिन से भी ज्यादा रहे...
  • यह जाते हुए बुखार के असर को कम करने का दौर होता है।
  • कोरोना के हिसाब से इंफेक्शन से ठीक हो जाने का दौर है।
  • कोई चाहे तो इसके लिए त्रिभुवन कीर्ति रस की 2 गोली सुबह-शाम ले सकता है।
नोट: बुखार होने पर पहले 2 दिनों तक दवा नहीं लेनी चाहिए। शरीर में ऐंटिबॉडी को भी लड़ने का मौका देना चाहिए। यह शरीर के सुरक्षा तंत्र के लिए अहम है। अगर हम बुखार होते ही दवा ले लेंगे तो ऐंटिबॉडी की क्षमता पर असर पड़ सकता है।

जब खांसी भी करे परेशान
  • अगर बुखार और खांसी है तो सुदर्शन घनवटी की 2 गोली 3 लेनी है।
  • अगर बुखार के साथ खांसी भी है तो एक चम्मच शहद में एक चुटकी सितोपलादि चूर्ण को मिलाकर दिन में 3 बार लें। अगर शुगर मरीज हैं तो हरिद्रा खंड लें।
  • काला मुनक्का भी सूखी खांसी में फायदेमंद है। काले मुनक्का के 3 से 4 दानें को रात में पानी में भिगोकर छोड़ दें। सुबह खा लें।
एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन, मेडिकल, IP यूनिवर्सिटी
  • डॉ. जतिन आहूजा, वरिष्ठ संक्रामक रोग विशेषज्ञ
  • डॉ. तनुजा नेसरी, डायरेक्टर, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद
  • डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, सीनियर पीडिअट्रिशन
  • डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट फिजिशन
  • डॉ. प्रशांत जैन, सीनियर यूरॉलजिस्ट
  • डॉ. सत्या एन. डोरनाला, वैद्य-साइंटिस्ट फेलो

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

चावल पर चर्चा : चावल से जुड़े हर सवाल का जवाब पाएं यहां

$
0
0

जब भी हमारे शरीर को तुरंत एनर्जी की जरूरत होती है तो वह कार्बोहाइड्रेट (ग्लूकोज) से लेता है। चावल में कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में स्टार्च के रूप में मौजूद होता है। इसलिए हमारे खाने में चावल की अहम भूमिका होती है। वहीं, ज्यादा चावल खाना मोटापे से जोड़कर देखा जाता है। कुछ हद तक यह सही हो सकता है लेकिन चावल की सभी किस्मों पर लागू नहीं होता। एक्सपर्ट्स से बात करके चावल से जुड़ी जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

जब बात अनाज की हो तो सबसे पहले जेहन में गेहूं और चावल ही आते हैं। हमारी डाइट में इन दोनों या फिर किसी एक की मौजूदगी सबसे ज्यादा होती है। थाली में रोटी के रूप में गेहूं और प्लेन राइस से लेकर पुलाव तक चावल 50 से 70 फीसदी तक होता है। इन दोनों की मौजूदगी का आधार उस इलाके और वहां के खानपान पर निर्भर करता है। मसलन दक्षिण भारत में चावल और उससे बनी चीजें ही ज्यादा खाई जाती हैं, वहीं उत्तर भारत में दोनों की भूमिका लगभग बराबर होती है। बंगाल और बिहार में तो चावल खाने के बाद ही भोजन पूर्ण माना जाता है।

डाइट में चावल की ज्यादा मौजूदगी को कई बार वजन बढ़ने और शुगर बढ़ने आदि से भी जोड़कर देखा जाता है। इसलिए अक्सर डॉक्टर और डाइटिशन खाने में इनकी मात्रा कम करने की सलाह देते हैं। वहीं कई एक्सपर्ट ऐसे हैं जो चावल को गेहूं की तुलना में काफी सुपाच्य मानते हैं। गेहूं के आटे में 'ग्लूटन' (एक खास तरह का प्रोटीन) की वजह से इसे पचाना काफी मुश्किल हो जाता है। इसकी वजह से पेट में अक्सर गैस, अपच की परेशान रहती है। ग्लूटन के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए हमारे फेसबुक पेज SundayNbt पर जाएं और वहां ग्लूटन या gluten टाइप करें। इससे जुड़ी जानकारी मिल जाएगी। ध्यान देने वाली बात है कि यहां दिए गए आंकड़े सामान्य चावल के हैं न कि पॉलिश्ड चावल के।

रंगीले चावल
एक कप उबले हुए सफेद चावल (100 ग्राम भात)
(या बिना पकाए 25 ग्राम या एक चौथाई कप चावल)

कैलरी : 130
कार्बोहाइड्रेटस : 28 ग्राम
प्रोटीन : 2.66 ग्राम
सोडियम : 365 मिली ग्राम
पोटैशियम : 35 मिली ग्राम
कैल्शियम : 10 मिली ग्राम
फाइबर : 0.40 ग्राम
कहां उगाया जाता है दुनिया में लगभग हर जगह। भारत के ज्यादातर राज्यों में।

रेड राइस
एक कप उबले हुए रेड राइस (100 ग्राम भात)
(या बिना पकाए 25 ग्राम या एक चौथाई कप चावल)
कैलरी : 110
कार्बोहाइड्रेटस : 29 ग्राम
प्रोटीन : 2.3 ग्राम
सोडियम : 4 मिली ग्राम
पोटैशियम : 102 मिली ग्राम
कैल्शियम : 13 मिली ग्राम
फाइबर : 0.7 ग्राम

इनके अलावा क्या?
इसमें ऐंटीऑक्सिडेंट (खाना पचने के बाद कुछ मात्रा में बनने वाले हानिकारक पदार्थों को खत्म करने वाले तत्व) एंथोसाइनिन होता है जो लाल रंग लाता है। यह वजन घटाने के लिए भी अच्छा है।

कहां उगाया जाता है : केरल, तमिलनाडु, बिहार आदि।

ब्लैक राइस
एक कप उबले हुए ब्लैक राइस (100 ग्राम भात)
(या बिना पकाए हुए 25 ग्राम या एक चौथाई कप चावल)
कैलरी : 160
कार्बोहाइड्रेटस : 34 ग्राम
प्रोटीन : 7.50 ग्राम
सोडियम : 4 मिली ग्राम
पोटैशियम : 268 मिली ग्राम
कैल्शियम : 15 मिली ग्राम
फाइबर : 2 ग्राम

इनके अलावा क्या?
इसमें ऐंटीऑक्सिडेंट, विटामिन बी 6, जिंक, फॉस्फोरस, नियासिन (विटामिन बी 3) और फोलेट जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।
कहां उगाया जाता है : उत्तर-पूर्वी भारत (असम, मणिपुर) में ज्यादा मात्रा में।

ब्राउन/उसना/सेला चावल
एक कप उबले हुए ब्राउन/उसना/सेला चावल (100 ग्राम भात)
(या बिना पकाए हुए 25 ग्राम या एक चौथाई कप चावल)
कैलरी : 111
कार्बोहाइड्रेटस : 44 ग्राम
प्रोटीन : 5 ग्राम
सोडियम : 5 एमजी
पोटैशियम : 79 मिली ग्राम
कैल्शियम : 12 मिली ग्राम
फाइबर : 3.5 ग्राम

कहां उगाया जाता है : यह पूरी दुनिया में आसानी से मिलता है, लेकिन खास तौर पर लाल चावल हिमालय की तलहटी में, बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, दक्षिणी तिब्बत, दक्षिण भारत और भूटान में पाया जाता है।

छोटे मियां तो छोटे मियां, बड़े मियां...


छोटे चावल : नाम से ही पता चल जाता है। ये साइज में छोटे होते हैं। अगर ये खुशबू वाले नहीं हैं तो लंबे चावलों की तुलना में इनकी कीमत भी कम होती है। इनकी लंबाई इनकी चौड़ाई से दोगुनी होती है। पकने के बाद ये मुलायम हो जाते हैं और आपस में चिपक जाते हैं।

मीडियम चावल : ये चावल भी छोटे चावल की तरह होते हैं। आकार में थोड़-से बड़े। अगर छोटे और मीडियम चावल को मिला दिया जाए तो अलग-अलग करना मुश्किल होता है। ये भी काफी मुलायम होते हैं और पकाने पर चिपक जाते हैं।

लंबे चावल
चमेली : इसे थाई चावल भी कहते हैं क्योंकि ये थाईलैंड में काफी उगाए जाते हैं। ये साइज में लंबे होते हैं।

बासमती : हमारे देश में बासमती हरियाणा और छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं।

टूटे चावल
जब धान से भूसी को अलग करने के लिए मशीन चलाई जाती है तो उसमें से 3 से 4 तरह के चावल निकल सकते हैं। साबुत, कम टूटा, बीच से टूटा और एक चावल के कई टुकड़े। अगर बासमती का टुकड़ा है तो टूटे चावल से भी खुशबू आएगी। इसकी कीमत जरूर कम होती है, लेकिन स्वाद साबुत चावल जैसा ही होता है।

नए चावल अच्छे या पुराने?
चावल की एक खासियत यह भी है कि ये जितने पुराने होते हैं, उतने ही अच्छे माने जाते हैं। इसकी वजह यह है कि 100 ग्राम नए चावल का वजन उबालने के बाद 200 से 250 ग्राम हो जाता है तो पुराने 100 ग्राम चावल उबलने पर 400 से 450 ग्राम तक हो जाते हैं। नए चावल वैसे तो जल्दी पकते हैं, पर पकने के कुछ समय बाद आपस में चिपककर लुगदी में बदल जाते हैं। पुराने चावल के साथ ऐसा अमूमन नहीं होता। जहां तक पुराने चावल के स्वाद की बात है तो इसमें नए चावल की तुलना में मीठापन कम होता है।

दीवाना बना देती है खुशबू


बासमती चावल : सबसे अच्छी किस्म बासमती होती है। पूरी दुनिया को करीब 90 फीसदी बासमती चावल का निर्यात भारत ही करता है। पकाने के दौरान इनकी खुशबू दूर तक फैल जाती है।

अंबेमोहर चावल : महाराष्ट्र में उगाया जाने वाला यह चावल आकार में छोटा होता है। इसी वजह से जल्दी पक भी जाता है। इसके पकने पर इससे आम की मंजरी (फूलों) जैसी खुशबू आती है, इसलिए इसका नाम अंबेमोहर पड़ा।

गोबिन्दोभोग चावल : यह पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है। आकार में भी छोटा होता है। यह भी सुगंधित चावल है। इसका इस्तेमाल खीर आदि बनाने में किया जाता है।

मुश्क बुदजी : यह कश्मीर घाटी में उगाया जाता है। तेज सुगंध वाला यह छोटा चावल है। कश्मीर में खीर बनाने में इस्तेमाल होता है।

कालीमूंछ चावल: यह चावल ग्वालियर में उगता है। यह पतला, लंबा, खाने में मुलायम और सुगंधित होता है। कालीमूंछ चावल के धान की बाली का ऊपरी हिस्सा काला होता है इसलिए इसे कालीमूंछ कहते हैं।

रांधुनी पागोल : यह भी बंगाल में पैदा होने वाला चावल है। वैसे इसका शाब्दिक अर्थ है 'पकाने वाले को पागल कर देने वाला'। इसमें भी अच्छी खुशबू होती है।

चक हाओ अमूबी : यह ब्लैक राइस है। यह मणिपुर में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। खीर बनाने के लिए जब इसे दूध में पकाया जाता है तो यह जामुनी रंग का होने लगता है और पूरा घर खुशबू से भर जाता है।

चावल अच्छा है या गेहूं?
कार्बोहाइड्रेट के सोर्स के रूप में दोनों ही बेहतरीन ऑप्शन हैं। उत्तर भारत में गेहूं की रोटी और चावल दोनों ही खाने का चलन है। गेहूं में फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है, खासकर चोकर वाले आटे में। दक्षिण भारत में चावल और उससे बनी चीजें खाई जाती हैं। लेकिन गेहूं की तुलना में चावल को पचाना आसान होता है। वहीं गेहूं में ग्लूटन (एक खास तरह का प्रोटीन, जिसे कई लोग नहीं पचा पाते और उन्हें ग्लूटन इनटॉलरेंस हो जाती है।) की मौजूदगी से कई तरह की परेशानी हो जाती है। एक अनुमान के मुताबिक, ग्लूटन सेंसिटिव लोगों की संख्या देश में 10 से 12 फीसदी ही है, लेकिन यह संख्या बढ़ रही है। वहीं चावल के साथ 100 ग्राम आटा (4 से 5 चपाती) में यह समस्या नहीं है। चावल पूरी तरह ग्लूटन फ्री होता है इसे पचाना भी आसान होता है।

कैलरी : 339
कार्बोहाइड्रेट : 73 ग्राम
प्रोटीन : 14 ग्राम (ग्लूटन)
सोडियम : 2 मिली ग्राम
पोटैशियम : 100 एमजी
कैल्शियम : 34 मिली ग्राम
फाइबर : 12 ग्राम

कहां उगाया जाता है : पंजाब, यूपी, बिहार आदि।

क्या ग्लूटन की वजह से सभी लोगों को गेहूं खाना छोड़ देना चाहिए?

ऐसा बिलकुल नहीं है। जो लोग ग्लूटन इंटॉलरेंस की बीमारी से पीड़ित नहीं हैं, उन्हें गेहूं खाते रहना चाहिए। हां, वे साथ-साथ दूसरे अनाज भी अपनी डाइट में शामिल जरूर करें। इससे खाने में वैरायटी भी आएगी और ग्लूटन की समस्या की आशंका भी कम रहेगी।

कैसे करें नए या पुराने चावल की पहचान
-चावल जैसे-जैसे पुराने होते हैं उनमें पीलापन आने लगता है। वहीं नए चावल सफेद होते हैं।
-नए चावल में कच्चापन होता है इसलिए उंगलियों के हल्के दबाव से भी टूट जाता है जबकि पुराने चावल को तोड़ने के लिए ज्यादा दबाव डालना पड़ता है।

सवाल-जवाब

क्या है पॉलिश्ड चावल?
आज भी ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है जो पॉलिश्ड चावल का मतलब चावल पर कोई तेल या ऑयल की परत लगाने से समझते हैं। ऐसा बिलकुल नहीं होता, पॉलिश से मतलब है चावल की बाहरी परत हटा देना ताकि चावल चमकीला दिखने लगे। दरअसल, जब चावल को पॉलिश मशीन में डालते हैं तो मशीन चावल की बाहरी परत को छील देती है। चूंकि चावल के अंदर की परत सफेद और ज्यादा चमकदार होती है तो छिलने के बाद चमकने लगती है और यह पतली हो जाती है। ऐसे पतले चावल की मांग बाजार में बहुत ज्यादा है। इसलिए कंपनियां ऐसे चावल ज्यादा बेचती हैं। कई कंपनियां अलग से इनमें पोषक तत्व जोड़ती हैं और इसका विज्ञापन भी करती हैं कि इस चावल में अलग से विटामिन और मिनरल डाले गए हैं। जिन चावलों को पॉलिश नहीं किया जाता, उनकी पैकिंग पर विटामिन और मिनरल अलग से डालने वाली बातें नहीं लिखी होतीं। रेड और ब्लैक राइस पर भी पॉलिश होती है लेकिन ऐसा कम होता है। इन खास चावलों की बिक्री ही इनके रंग की वजह से होती है। जब ये चावल पॉलिश किए जाते हैं तो बाहरी परत हटने के बाद चमकदार और लंबे दिखने लगते हैं, लेकिन पोषक तत्व कम हो जाते हैं।

क्या चावल खाने से फायदा होता है?
-चावल स्टार्च और खनिज से भरे होते हैं, लेकिन इसमें फैट की मात्रा बहुत कम होती है।
-हमारी भूख के लिए आदर्श भोजन हैं।
-शरीर के लिए इसे पचाना आसान है।
-किडनी के लिए बेहतर है। खून साफ करने की क्षमता भी बढ़ाता है।

चावल खाने के नुकसान भी हैं?
-अगर फिजिकल ऐक्टिविटी कम हो तो ज्यादा मात्रा में चावल का सेवन करने से इसमें मौजूद कार्बोहाइड्रेट हमारे शरीर में फैट के रूप में जमा होने लगता है। अगर ऐसा 2 से 3 महीने तक भी करें तो 2 से 3 किलो वजन बढ़ जाता है।
-चावल जल्दी पच जाते हैं इसलिए पेट भरने के कुछ देर बाद, फिर भूख लगने लगती है।

डायबीटीज के मरीजों के लिए चावल ठीक है?
शुगर पेशंट को चावल का सेवन कम मात्रा यानी हर दिन 20 से 30 ग्राम ही करना चाहिए। उन्हें दिन में चावल खाने चाहिए क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट ज्यादा मात्रा में होता है और शरीर आसानी से इसे पचा भी लेता है। हालांकि इससे ब्लड शुगर की मात्रा बढ़ने की आशंका होती है। बिना पॉलिश वाले रेड या ब्लैक राइस की कुछ ज्यादा मात्रा यानी हर दिन 50 ग्राम तक खा सकते हैं। चूंकि इनमें प्रोटीन और ऐंटीऑक्सिडेंट की मात्रा काफी कम होती है। फिर भी फिजिकल ऐक्टिविटीज पर ध्यान देना होगा।

चावल पकाने के तरीकों से भी पड़ता है फर्क?
हमें चावल खाने हैं, लेकिन यह भी चाहते हैं कि चावल में मौजूद कैलरी और कार्बोहाइड्रेटस की वजह से हमारा वजन ज्यादा न बढ़े तो चावल पकाने का तरीका बदल देना चाहिए। अक्सर चावल पकाने के लिए प्रेशर कुकर का इस्तेमाल होता है। हम चावल धोकर पानी डालते हैं और कुकर बंद कर देते हैं। इस तरीके से चावल उबलने पर पानी में मौजूद कार्बोहाइड्रेट (स्टार्च) या मांड उसी में रह जाता है। इन चावलों में कैलरी ज्यादा होती है। ऐसे में पतीले में चावल पकाना और छानकर मांड निकाल देना अच्छा ऑप्शन है। वैसे मांड अलग करने से स्टार्च के साथ-साथ कुछ मात्रा में दूसरे पोषक तत्व जैसे सोडियम, पोटैशियम, प्रोटीन आदि भी निकल जाते हैं। डॉक्टर और डाइटिशन सिर्फ उन लोगों को इस तरह के चावल खाने के लिए कहते हैं जिन्हें वजन कम करना हो और शुगर आदि की समस्या हो।

क्या ब्लैक और रेड राइस का इस्तेमाल लंबे समय तक कर सकते हैं‌?
अगर किसी शख्स के पास यह विकल्प मौजूद है कि वह ब्लैक या ब्राउन राइस का खाने में उपयोग लंबे समय तक कर सकता है तो जरूर करे। ब्लैक और रेड राइस में ऐंटीऑक्सिडेंट की मात्रा ज्यादा होती है। साथ ही इनमें प्रोटीन भी ज्यादा होता है। इन्हें खाना आंखों और दिल के लिए भी फायदेमंद है। यह कैंसर आदि में भी काफी फायदेमंद है। इन्हें खाने से वजन भी कंट्रोल में रहता है।

सफेद चावल की जगह कौन-से चावल खाने की सलाह दी जाती है और क्यों?
सफेद चावल भी अच्छा है। अगर बिना पॉलिश वाला है तो ज्यादा अच्छा है। ऐसे चावल खाएं जिनमें ज्यादा मात्रा में पोषक तत्व हो और पकने के बाद रंग-रूप में ज्यादा फर्क न पड़ता हो। कोशिश यह होनी चाहिए कि बिना पॉलिश वाले चावल ही खाएं। अगर सफेद चावल की जगह रेड, ब्राउन और ब्लैक राइस का ऑप्शन है तो इन्हें अपनाना चाहिए।

कुछ जगह बुजुर्ग चावल खाने से रोकते हैं?
सभी जगह बुजुर्ग चावल खाने से नहीं रोकते, कुछ जगह ऐसा हो सकता हैं। हां, सफेद चावल कम खाने के लिए कहते हैं। दरअसल, सफेद चावल तेजी से ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि यह जल्द ही पच जाता है। भोजन पचने के बाद अमूमन जल्द ही दोबारा भूख भी लग जाता है। इससे लोग ज्यादा खाने लगते हैं और वजन बढ़ सकता है। शरीर में फैट की मात्रा बढ़ने लगती है। वैसे भी आजकल वजन बढ़ना किसी बीमारी से कम नहीं है।

क्या चावल में न्यूट्रिशन बहुत कम होते हैं?

ऐसा बिलकुल भी नहीं है। मक्का, गेहूं की तुलना में सफेद लंबे चावल में ऊर्जा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, आयरन, थियामिन, पैंटोथेनिक एसिड, फोलेट और विटामिन-ई ज्यादा मात्रा में मिलते हैं। कोई ब्लैक, ब्राउन या रेड राइस खाए तो ज्यादा पोषक तत्व शरीर को मिलेंगे।

क्या दाल-चावल सबसे अच्छी डाइट है?
यह अच्छी डाइट है, लेकिन सबसे अच्छी कहना जल्दबाजी होगी। इसमें अगर हरी-सब्जियां, सलाद, सेहत के लिए जरूरी मसाले, कुछ मात्रा में तेल या घी आदि की मौजूदगी नहीं होगी तो इसे सबसे अच्छी कहना सही नहीं होगा। दूसरी बात यह कि हम किस तरह के चावल और दाल का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें कैसे पका रहे हैं, यह भी काफी मायने
रखता है।

क्या खांसी-जुकाम में भी चावल खा सकते हैं?
नेचरोपैथी और आयुर्वेद में खांसी-जुकाम के दौरान चावल खाने से मना किया जाता है। दरअसल, चावल से बलगम ज्यादा मात्रा में बनता है। चावल शरीर के तापमान को कुछ कम करता है। ऐसे में जब सर्दी और खांसी से पीड़ित हों तो गर्म खाने या गर्म पेय या भोजन पीने की सलाह दी जाती है। हालांकि, ऐलोपैथी में ऐसी मनाही नहीं होती। डॉक्टर कहते हैं कि सर्दी-खांसी में भी गर्म-गर्म चावल खाने से कुछ नहीं होता।

क्या रात में चावल नहीं खाने चाहिए? इससे क्या नुकसान है?

रात में हमारी फिजिकल ऐक्टिविटी कम होती है। अगर रात में ज्यादा मात्रा में चावल खा लेते हैं तो वह शरीर में फैट के रूप में स्टोर हो जाता है। इससे हमारा वजन बढ़ता है। वैसे भी रात में सबसे कम खाना खाना चाहिए। डायटिशन और डॉक्टर तो रात में लिक्विड डायट आदि से काम चलाने के लिए कहते हैं। अगर डिनर के बाद टहलने की आदत है तो रात में भी चावल खा सकते हैं।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

बाल विकास योजनाएं

$
0
0

उड़ें जब-जब जुल्फें तेरी... और हैरान हूं मैं आपकी जुल्फों को देखकर...। इन दोनों हिंदी गानों में बालों की तारीफ की गई है। एक में लड़की ने तारीफ की है तो दूसरे में लड़के ने। लेकिन जब ऐसे बाल होंगे तभी तो तारीफ भी मिलेगी। सच तो यह है कि हम बालों को लेकर बहुत ही कम सावधान रहते हैं। बालों को बचाने की जद्दोजहद तब शुरू होती है जब ये जुदा होने लगते हैं। बालों के रुखसत होने की वजहें कई हो सकती हैं, लेकिन इसमें सबसे बड़ा कारण है हमारी गलतफहमी। कई लोग यह सोचते हैं कि तेल लगाने से बाल मजबूत होते हैं और रोज-रोज धोने से बाल ज्यादा गिरते हैं। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? ऐसे ही बहुत-से भ्रम और सवाल हैं जिनके जवाब एक्सपर्ट्स से बात करके दे रहे हैं लोकेश के. भारती और नित्या आहूजा

सबसे जरूरी 5 बातें
1. बाल कभी भी कंघी करने या शैंपू करने से नहीं गिरते। असल में ये अपनी जड़ों से पहले ही टूट चुके होते हैं। शैंपू या कंघी उन्हें अलग करने की प्रक्रिया को आसान बना देते हैं। अगर शैंपू या कंघी नहीं करेंगे तो भी वे गिरेंगे ही।
2. हर दिन बाल धोने से बाल नहीं गिरते। बालों को साफ रखने से वे ज्यादा मजबूत होते हैं।
3. साबुन में सल्फेट और डिटर्जेंट होते हैं। ये बालों के लिए अच्छे नहीं हैं। शैंपू बेहतर विकल्प है। साबुन से बनी झाग को ही शरीर और चेहरे पर लगाना चाहिए, 5 मिनट छोड़कर फिर धो देना चाहिए। साबुन को सीधे स्किन पर भी लगाने से बचना चाहिए। सिर के बालों पर सीधे साबुन लगाने से ये ड्राई हो जाते हैं और टूटने का खतरा बढ़ जाता है।
4. ऐसे लोगों को ही सिर में तेल लगाना चाहिए जिन्हें तेल लगाने से डेंड्रफ, फंसी या एलर्जी न हो। अगर तेल की वजह से ऐसा होता है तो बाल कमजोर हो जाते हैं।
5. जब तक बालों को अच्छा पोषण मिलेगा तब तक वे सामान्य रहते हैं। नए बाल 3 से 7 बरस तक बने रहते हैं। अगर एक दिन में 100 बाल तक झड़ते हैं तो यह सामान्य है।

कौन, कितने दिनों पर धोए बाल
  • हर दिन या हर दूसरे दिन उन लोगों को बाल धोने चाहिए जो लोग सड़क पर, कंस्ट्रक्शन साइट पर यानी धूल के सीधे संपर्क में ज्यादा देर रहते हैं। लगातार हेल्मेट लगाने और ज्यादा पसीना आने वालों के लिए भी जरूरी है।
  • अगर वर्क फ्रॉम होम की वजह से घर पर रहते हैं, पलूशन, डस्ट आदि से कम संपर्क होता है, पसीना कम निकलता है तो हफ्ते में 2 बार बाल धोने से भी काम चल जाएगा।
बालों से जुड़े कुछ खास तथ्य
  • सिर पर मौजूद बाल एक दिन में अमूमन 0.3-0.4 मिलीमीटर बढ़ते हैं यानी एक साल में 6 इंच।
  • दूसरे जानवरों की तुलना में यह हमारे शरीर पर किसी खास मौसम में ज्यादा या कम नहीं बढ़ते। यह हमेशा बराबर ही बढ़ते हैं, जब तक बालों को सही तरीके से पोषण मिलता रहता है।
  • सिर के बालों की तुलना में आई ब्रो, आई लिड, बाजू, जांघ और सीने पर मौजूद बाल धीमी गति से बढ़ते हैं क्योंकि इनका ग्रोथ फेज कम समय के लिए सक्रिय रहता है। यह अमूमन 30 से 45 दिनों के लिए ही ऐक्टिव रहता है। इसलिए ये कुछ समय तक बढ़ने के बाद रुक जाते हैं और सिर के बालों की तरह ज्यादा लंबे नहीं होते।
बाल हमारे शरीर का ऐसा बाहरी हिस्सा है जो सबसे ज्यादा धूल, धूप और प्रदूषण झेलता है। इसलिए सबसे ज्यादा नुकसान भी इसे ही होता है। जब हम हर दिन बाल साफ नहीं करते तो ये अपनी जड़ों (हेयर फॉलिकल्स या रूट) से ही कमजोर हो जाते हैं और टूटने लगते हैं। वहीं जब कोई बीमारी लंबी चलती है या बुखार 4-5 दिन से ज्यादा रहता है तो बालों को पोषण मिलना कम हो जाता है। इससे भी बाल झड़ने की परेशानी हो सकती है।

आइए निकालते हैं बाल की खाल
बाल जब तक स्किन के अंदर हैं तो उन्हें पोषण मिलता रहता है। जैसे ही वे स्किन से बाहर निकलते हैं तो वे मरे हुए हैं। उनकी लंबाई इसलिए बढ़ती है क्योंकि सिर की स्किन के नीचे की कोशिकाएं विभाजित होती रहती हैं। सिर पर मौजूद हर बाल की उम्र तय होती है। यह अमूमन 3 से 7 साल तक जिंदा रहते हैं। इसके बाद स्किन के ऊपरी हिस्से वाले बाल खुद ही गिर जाते हैं। उस जगह पर जड़ से फिर से बाल निकलने लगते हैं, अगर सही पोषण मिलता रहे। यह सिलसिला लगातार चलता रहता है।

जल्दी बाल गिरने के 6 कारण
1. बालों को पोषक तत्व कम मिलना: अगर हमारी डाइट ठीक नहीं है, इसमें हरी सब्जियों, फलों, विटामिंस (डी, बी-12 और ई), मिनरल्स (आइरन और कैल्शियम) की कमी है, साथ ही बालों को सही मात्रा में प्रोटीन नहीं मिल रहा तो इसका सीधा-सा मतलब है कि बालों को सही पोषण नहीं मिल रहा। इससे बाल गिर सकते हैं। महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान भी बालों को पोषक तत्व कम मिलते हैं। इस वजह से बाल गिर सकते हैं।
2. लंबी बीमारी या बुखार: अगर किसी को कोई लंबी बीमारी या बुखार रहा है तो यह स्वाभाविक है कि उसके शरीर में सूजन हो जाती है। ऐसी बीमारियों में हार्ट, किडनी, लिवर, लंग्स, थायराइड की परेशानी अहम हैं। इनके अलावा पीरियड्स, अर्थराइटिस, हाई बीपी, डिप्रेशन आदि में भी बाल गिरने की परेशानी होती है। दरअसल, ऐसी सभी परेशानियों की वजह से बालों को कम पोषण मिलता है।
3. जीन: अगर किसी के खानदान में बाल झड़ने और गंजेपन की परेशानी है तो यह भी बाल झड़ने का कारण है।
4. साफ-सफाई न रखना: बालों को सफाई करने में लोग झिझकते हैं। उन्हें लगता है कि बाल को ज्यादा साफ करेंगे और शैंपू लगाएंगे तो बाल ज्यादा झड़ेंगे जबकि होता इसके उलट है। बाल जितने साफ रहेंगे, वे उतना कम गिरेंगे।
5. गर्म पानी, हॉट एयर या जेल लगाना: बाल झड़ने के ये भी कारण हैं। हम कई बार सर्दियों में ज्यादा गर्म पानी से बालों को धो लेते हैं। यह गलत है। इसी तरह बाल सेट करने के लिए हॉट एयर (हेयर ड्रायर) का इस्तेमाल करते हैं। कई लोग तो इसे रोज करते हैं। इसे महीने में एक बार कर सकते हैं।
6. सिर पर एलर्जी या एक्जिमा: कई लोगों को सिर पर एलर्जी या एक्जिमा की परेशानी होती है। यह परेशानी लगातार गंदगी या बहुत ज्यादा तेल लगाने या डैंड्रफ से भी हो सकती है। इसलिए इसका इलाज जरूर कराना चाहिए।

कोरोना या दूसरी बीमारियों की वजह से गए बाल वापस आ सकते है?
कोरोना की वजह से कई अंग प्रभावित होते हैं। इनमें सिर के बाल भी हैं। अच्छी बात यह है कि ज्यादातर मामलों में कोरोना की वजह से गए बाल वापस आ जाते हैं। इसे विस्तार से समझने के लिए हमें हेयर साइकल को अच्छी तरह समझना होगा।

हेयर साइकल के तीन स्टेज
सिर की त्वचा के नीचे से बालों के ऊपर आने, लंबा होने और फिर टूट जाने की एक पूरी साइकिल होती है जिसे हेयर साइकल कहते हैं।
1. एनाजन फेज: यह बालों का ऐक्टिव फेज होता है। इस फेज में बाल की जड़ें, जो सिर की त्वचा के नीचे मौजूद होती हैं, उनकी कोशिकाएं तेजी से विभाजन करती हैं और उसे ऊपर की ओर धकेलती हैं। इसका नतीजा होता है कि बाल ऊपर की ओर आने लगते हैं। स्किन से बाहर निकलने पर ये हमें दिखाई देने लगते हैं। जब कोई बाल बाहर की ओर निकलता है तो पुरुषों में यह 3 साल तक और महिलाओं में 3 से 5 साल तक कायम रहता है। इसके बाद ये टूट जाते हैं। टूटने की क्रिया लगातार चलती रहती है।
  • कुछ पुरुषों या महिलाओं के बाल ज्यादा लंबे नहीं होते क्योंकि उनमें एनाजन फेज कम वक्त के लिए ऐक्टिव रहता है। वहीं ऐसे लोग भी हैं जिनके बाल काफी लंबे होते हैं, उनमें यह फेज लंबे समय तक के लिए सक्रिय रहता है।
  • बालों को पोषण खून में मौजूद पोषक तत्वों से मिलता है। चूंकि खून के संपर्क में बालों का नीचे वाला हिस्सा ही रहता है यानी रूट को ही पोषण मिलता है। इसलिए बालों की मजबूती के लिए अच्छी डाइट लेना जरूरी है ताकि बालों को भी पोषक तत्व मिलते रहें।
2. केटाजन फेज: यह रेस्टिंग फेज होता है। इस समय रूट की कोशिकाएं विभाजन बंद कर देती हैं। इस फेज में अमूमन कुल बालों का 3 से 5 फीसदी हिस्सा हमेशा मौजूद होता है। यह फेज काफी छोटा होता है और यह 2 से 4 हफ्तों में खत्म भी हो जाता है। इस फेज के पूरा होते ही बाल गिरने के लिए तैयार होने लगते हैं।
3. टेलोजन फेज: इस फेज में बाल अपनी जड़ों से जुदा हो जाते हैं। बालों का सबसे नीचे वाला हिस्सा जो सिर की स्किन के ऊपर होता है, वहां हल्की सफेदी के साथ आ जाता है। इस फेज में हमेशा 7 से 10 फीसदी बाल मौजूद होते हैं।
इस फेज में हर दिन 25 से 100 बाल गिरते हैं। इसे सामान्य कहा जाएगा। अगर इससे ज्यादा गिर रहें हैं तो यह सामान्य नहीं है। इसके लिए इलाज कराना चाहिए।

कोरोना के बाद इन लोगों के बाल झड़ने की आशंका सबसे ज्यादा होती है, जब...
  • अगर बुखार 4-5 दिन से ज्यादा रहा हो।
  • सांसों की समस्या रही हो।
  • स्टेरॉइड की हेवी डोज 3 दिन से ज्यादा चली हो।
  • भूख कम लगने की परेशानी 4-5 दिन से ज्यादा रही हो। इस वजह से हरी सब्जियां, फल आदि की मात्रा कम ली गई हो।
  • जिन्हें पहले से ही बाल झड़ने की परेशानी हो या कोई दूसरी बड़ी बीमारी।
  • ऐसा देखा गया है कि कोरोना होने के फौरन बाद बाल नहीं झड़ते। इसकी शुरू होने में 2 महीने तक का वक्त लग सकता है।
  • अगर हर दिन 200 से ज्यादा बाल गिर रहे हैं तो मान लेना चाहिए कि परेशानी है। यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि अगर कोरोना होने से पहले बाल नहीं झड़ रहे थे तो बाल अमूमन दोबारा आ जाते हैं।
कोरोना या किसी बीमारी में यह होता है:
-जब कोई भी बीमारी होती है, मसलन: एनीमिया, डेंगू, कोरोना या अचानक वेट लॉस तो शरीर में सूजन होती है। शरीर के लिए यह तनाव की स्थिति होती है। ऐसे में शरीर अपने जरूरी व खास अंगों जैसे ब्रेन, हार्ट, लिवर, किडनी, लंग्स आदि के लिए ऊर्जा बचाता है और बाल जैसे कम जरूरी अंग (जिनके जाने से जान को खतरा नहीं है) को ऊर्जा व पोषक तत्वों की सप्लाई कम कर देता है। बाल जल्दी झड़ने की परेशानी भी यहीं से शुरू होती है। चूंकि ज्यादातर बाल जो एनाजन फेज में होते हैं, उन्हें लगातार बढ़ने के लिए कोशिका विभाजन करना पड़ता है। इसके लिए ऊर्जा चाहिए। चूंकि ऊर्जा की कमी हो जाती है तो एनाजन फेज बंद हो जाता है और फौरन ही टेलोजन फेज आ जाता है। नतीजा, बाल टूटने लगते हैं। अगर बीमारी से शरीर ठीक होने पर बालों को फिर से पोषक तत्व मिलने लगते हैं तो बाल फिर आ जाते हैं। इसमें 3 से 6 महीने का वक्त लग सकता है। अगर बाल पहले से ही किसी विटामिन की कमी या दूसरे कारण से झड़ते रहे हों तो यह संभव नहीं हो पाता।

बचाव:
बालों को झड़ने से बचाने के लिए डॉक्टर से मिल लेना चाहिए। डॉक्टर इसके लिए पहले दवा देते हैं। अगर दवा से काम नहीं चलता तो...
1. मीजो थेरपी (विटामिंस, एमिनो एसिड्स, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स आदि के माइक्रो इंजेक्शन) देते हैं।
खर्च: 4 से 5 हजार रुपये। अगर फिर भी काम नहीं बनता है तो...
2. प्लेटलेट्स रिच प्लाज्मा थेरपी (PRP) देते हैं।
खर्च: 12 से 16 हजार रुपये,

स्थायी और आखिरी उपाय है हेयर ट्रांसप्लांट
हेयर ट्रांसप्लांट में शख्स के सिर के पिछले हिस्से से बालों को रूट (जड़ समेत) निकालकर सिर के आगे के हिस्से में लगाया जाता है। साथ ही यह ध्यान भी रखा जाता है कि सिर के पिछले हिस्से पर इस तरह बाल निकाले जाएं कि यह पता न चले कि पीछे के बाल कम हो गए हैं यानी एक खास पैटर्न और दूरी को फॉलो किया जाता है। कुछ लोगों में इंफेक्शन की पjsशानी होती है। यह इसलिए क्योंकि ऐसे लोग ट्रांसप्लांट के बाद साफ-सफाई पर ध्यान कम देते हैं।
खर्च: डेढ़ से तीन लाख रुपये तक

हेयर फॉल और हेयर लॉस में क्या फर्क है?
हेयर फॉल में हम बाल गिरते हुए दिखते हैं जबकि हेयर लॉस का मतलब है बालों का पतला होना यानी उसकी मोटाई कम होना, वह भी उनकी चमक कम होने के साथ।

एक दिन में कितने बाल गिरें तो सामान्य है?
हर दिन 100 बालों का टूटना सामान्य है। अगर हर दिन 200 बाल तक गिर रहे हैं तो यह मामूली हेयर फॉल है। अमूमन ऐसे हेयर फॉल को अच्छी डाइट (हर दिन 4 से 5 बादाम, 1 अंडा, हरी सब्जियां आदि खाएं) से मैनेज किया जा सकता है। 3 महीने से 6 महीने में बालों के ज्यादा टूटने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। प्रोसेस रिवर्ट हो जाता है। अगर इससे ज्यादा हो रहा है तो चिंता की बात है। फिर डॉक्टर से मिलना चाहिए।

कितने बाल गिर रहे हैं, इसे कैसे पता करें?
हर गिरे हुए बालों की गिनती करना और उसका हिसाब रखना तो संभव नहीं है, लेकिन कुछ चीजों को ध्यान में रखकर अंदाजा लगा सकते हैं। जैसे सुबह जब सोकर उठते हैं तो तकिये पर गिरे हुए बालों को देखकर अंदाजा लगा लें। इसी तरह जब कंघी कर रहे हों तो भी उसके दांतों में फंसे बालों को देखकर एक अनुमान लगा सकते हैं कि कितने बाल गिर रहे हैं। इसी तरह शैंपू करते समय भी देख सकते हैं।

...तो बाल बांका नहीं होगा

क्या शैंपू करने और कंघी करने से बाल गिरते हैं?
अमूमन हम शैंपू करने के दौरान जो बाल टूटे हुए पाते हैं या फिर कंघी करते समय उसके दांतों में फंसा हुआ पाते हैं, वे बाल अपनी जड़ों से 2 से 3 महीने पहले ही अलग हो चुके होते हैं। अगर वे शैंपू या कंघी से नहीं गिरते तो अपने आप ही गिर जाते। जहां तक कंघी करने की बात है तो इससे बालों को फायदा ही होता है, नुकसान नहीं होता। बाल आपस में चिपकते नहीं। गंदगी भी निकल जाती है। इसके लिए दांतों में बहुत गैप वाली कंघी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। आजकल लकड़ी की कंघियों की मांग भी बढ़ी है।

क्या सिर में तेल लगाना चाहिए? यह फायदेमंद है या नुकसानदेह?
अगर किसी को तेल लगाने से फुंसी, एलर्जी आदि नहीं होती तो तेल लगा सकते हैं। अगर तेल की वजह से ये परेशानियां पैदा होती हैं तो तेल न लगाएं। यह तेल अगर बिना किसी परफ्यूम या केमिकल के हो तो बेहतर है। जैसे सरसों, नारियल या तिल का शुद्ध तेल आदि। तेल हल्के हाथों से लगाएं। सिर की जोर-जोर से मालिश करना गलत है। इससे फायदा नहीं होता। यह सिर्फ मनोवैज्ञानिक है।

लड़कियां चोटिया बांधें तो कोई परेशानी है?
ऐसा करने से कोई परेशानी नहीं है। यह लड़कियों का पुराना हेयर स्टाइल रहा है। शहर में कम और गांवों में अब भी इस हेयर स्टाइल को काफी फॉलो किया जाता है।

किस तरह का हेयर स्टाइल हेयर फॉल से बचाता है?
न हेयर स्टाइल से फर्क पड़ता है और न ही बालों के साइज से। अगर बाल मजबूत हैं तो वे गिरेंगे नहीं। हां, अगर जड़ों से अलग हो चुके हैं तो जरूर गिर जाएंगे। बालों के साइज से बालों के गिरने का रिश्ता सिर्फ मनोवैज्ञानिक है। इसका असलियत से वास्ता नहीं।

साबुन और शैंपू में बेहतर कौन?
शैंपू बेहतर हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। साबुन में सल्फेट्स और डिटर्जेंट्स होते हैं जो बालों को कमजोर करते हैं। साबुन के झाग को ही सिर्फ शरीर के बाकी हिस्सों पर लगाना चाहिए। साबुन को सीधे स्किन पर लगाने से बचना चाहिए। इससे स्किन को नुकसान होता है। वहीं जिनके बाल ज्यादा ड्राई हों, वे साबुन को सिर पर न लगाएं।

किस तरह के शैंपू से बचना चाहिए?
1. Ammonium Lauryl Sulfate or Sodium Laureth Sulfate (SLES): यह सल्फेट्स बहुत तेज डिटर्जेंट होता है जो एक केमिकल रिऐक्शन का काम करता है। सल्फेट सभी जरूरी तत्व अपने साथ ले जाता है। सफाई करते समय यह बालों को नुकसान भी पहुंचा सकता है। उन्हें कमजोर बना देता है।

2. Sodium Lauryl Sulfate (SLS): यह सल्फेट शैंपू को उसका झाग देता है। जिसे बहुत-से लोग पसंद करते है। लेकिन अगर इसको ज्यादा देर के लिए बालों में छोड़ा गया तो यह हेयर फॉलिकल को कमजोर बनाता है।

3. Parabens: इनका इस्तेमाल शैंपू में बैक्टीरिया को पनपने से रोकना है। यह शैंपू को लंबे समय तक खराब होने से बचाता है। यह हमारे बालों को कमजोर बनाता है, जिससे बाल टूट सकते है। कुछ लोगों को इससे एलर्जी भी हो सकती है, जिससे सिर की स्किन पर एलर्जिक रिएेक्शन भी हो सकते है। रिसर्च में यह भी कहा गया है कि यह कैंसर पैदा करने वाले सेल्स को बढ़ाता है। कुछ parabens को सुरक्षित भी बताया जाता है इनमें methyl and propylparaben शामिल हैं।

Formaldehyde: यह भी कई शैंपू में पाया जाता है। यह हवा में फैल सकता है जो सांस लेने पर हमारे शरीर में जा सकता है, स्किन एलर्जी और अस्थमा की दिक्कत हो सकती है।

Fragrance: इसकी वजह से शैंपू खुशबूदार होते हैं और यही खुशबू जब बालों तक पहुंचती है तो सभी को अच्छा लगता है। लेकिन यह खुशबू कई बार एलर्जी भी पैदा करती है।
नोट: बाजार में ऐसे शैंपू भी उपलब्ध हैं जिनमें ये हानिकारक चीजें मौजूद नहीं होती।

बालों के लिए यही है राइट डाइट
विटामिन ई या दूसरे सप्लिमेंट्स हेयर फॉल रोकने में मददगार होते हैं?
इसके लिए विटामिन-ई, आइरन और विटामिन-डी डेफिशिएंसी टेस्ट करवा लें। जिस भी विटामिन की कमी हो, उसके सप्लिमेंट्स डॉक्टर की सलाह से शुरू कर सकते हैं।

क्या बाजार में मौजूद हेयर लॉस से बचने वाले सप्लिमेंट्स ले सकते हैं?
हमें सिर्फ वही सप्लिमेंट्स लेने चाहिए जिनकी हमारे शरीर में कमी है। बाजार में मिलनेवाले सप्लिमेंट्स हमारे काम के नहीं हैं। अगर किसी विटामिन या मिनरल की मात्रा शरीर में ज्यादा हो जाए तो वह भी नुकसानदेह है। इसलिए कोई भी चीज शुरू करने से पहले यह जानना जरूरी है कि हमें उसकी जरूरत है या नहीं। जिन्हें हेयरफॉल नहीं है तो उन्हें सप्लिमेंट्स की जरूरत भी नहीं। ऐसे लोगों को जैसे हरी सब्जियों, बादाम, अंडा, आंवला आदि के सेवन से फायदा होता है।

ये हैं इलाज
क्या बालों के पतला होने और गंजापन होने पर उन्हें फिर से वापस लाया जा सकता है?
बाल पतले हों या फिर गंजापन आ जाए तो इन्हें काफी हद तक दूर किया जा सकता है। इसके लिए सही इलाज की जरूरत होती है। इसके लिए विशेष इलाज होता है PRP ट्रीटमेंट यानी प्लेटलेट्स रिच प्लाज्मा थेरपी और साथ में दवा दी जाती है। यहां इस बात को भी समझना होगा कि बालों का पतला होना गंजापन आने की निशानी है। ऐसे में सचेत हो जाना चाहिए। इस तरह के मामले पुरुषों में ही ज्यादा होते हैं, लेकिन कुछ महिलाओं में भी देखा गया है। इसका सबसे बड़ा कारण होता है पुरुषों में मौजूद एक हॉर्मोन टेस्टास्टरोन। यह हॉर्मोन कई बार एक खास तरह के जीन की वजह से टूटने लगता है और DHT (Dihydrotestosterone) बनाता है। DHT की वजह से बालों की जड़ें कमजोर होने लगती हैं और हेयर साइकल छोटा हो जाता है। शुरुआत में इसकी वजह से बाल पतले होते हैं। बाद में बाल झड़ने लगते हैं और गंजापन आ जाता है। ये जींस पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते हैं। इसलिए ऐसा देखा गया है कि जिस परिवार में गंजेपन की परंपरा रही है, उसकी आनेवाली पीढ़ी में भी गंजापन आ जाता है।

गंजेपन में अगर PRP ट्रीटमेंट पूरी तरह कारगर न हो तो?
अगर गंजेपन में पीआरपी ट्रीटमेंट कारगर नहीं होता तो उसके बाद हेयर ट्रांसप्लांट एक उपाय है। अमूमन हेयर ट्रांसप्लांट में उसी शख्स के सिर के पिछले हिस्से के बालों में से कुछ बालों को जड़ समेत निकालकर सिर के अगले हिस्से में लगा दिया जाता है। दरअसल, गंजेपन के लिए जो DHT की मौजूदगी सबसे अहम कारण है, उसे सिर के पिछले हिस्से वाले रूट हेयर नहीं पकड़ते। उनके पास वे रिसेप्टर्स नहीं होते। इसलिए गंजेपन में भी अमूमन पिछले हिस्से में बाल मौजूद होते हैं। सिर के पिछले हिस्से के बाल कम झड़ते हैं। हेयर ट्रांसप्लांट एक स्थायी इलाज है। इससे हेयर साइकल फिर से शुरू हो जाता है।

चावल का पानी, प्याज का रस आदि बालों पर काम करते हैं?
ये चीजें उन जगहों के लिए हैं जहां डॉक्टर नहीं है। इनसे कुछ फायदा हो सकता है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। इसे लगाने का तरीका है एक चम्मच चावल का पानी या एक चम्मच प्याज का रस 10 से 15 मिनट के लिए लगाएं। यह जरूर ध्यान रखें कि ये गर्म न हों। इन्हें लगाने के बाद बालों में अच्छी तरह शैंपू करें। अगर ये सिर पर लगे रहेंगे तो सिर पर गंदगी जमा हो जाएगी जो बालों को ही कमजोर करेंगे।

उम्र के अनुसार बाल कब सफेद और झड़ने शुरू होने चाहिए?
अगर किसी के बाल 35 साल की उम्र से पहले सफेद होने लगें तो प्रीमच्योर ग्रेइंग कहते हैं। अगर 35 साल के बाल सफेद होने लगे तो हेयर डाई या मेहंदी ही उपाय हैं, दूसरे उपाय नहीं हैं। हां, अगर बाल 35 साल से पहले ज्यादा झड़ने लगें तो इसके लिए इलाज करना चाहिए।

क्या है एलोपेशिया एरियाटा (Alopecia Areata)?
यह एक ऑटो इम्यून बीमारी है। सीधे कहें तो कई बार हमारे शरीर में मौजूद WBC (सफेद रक्त कोशिकाएं) हेयर फॉलिकल्स यानी हेयर रूट के खिलाफ काम करने लगती हैं। यह जेनेटिक भी हो सकता है। ऐसे में सिर पर किसी खास जगह से या फिर पूरे सिर से हेयर लॉस होना शुरू हो जाता है। इसका इलाज अमूमन हेयर ट्रांसप्लांट ही है।

विग लगाना कितना सही है?
विग लगाना एक अस्थायी विकल्प है। विग लगाने का एक नुकसान यह है कि सिर पर जब पसीना आता है तो बाहर नहीं निकल पाता। इससे स्किन सांस नहीं ले पाती। वैसे लोग जब बाहर से अपने घर पहुंचते हैं तो विग उतार देते हैं। एक यह फायदा जरूर है कि इससे शख्स स्मार्ट दिखता है।
कीमत: 1500 से शुरू

आयुर्वेद

बीमारियों के साथ तनाव एक बहुत बड़ा कारण है बाल झड़ने का। इसलिए कुदरत की दी चीजें खाएं।
क्या है उपाय
आंवला और भृंगराज आसव: बड़ों को हर दिन सुबह और शाम आधा-आधा चम्मच चूर्ण या लिक्विड लेना है। इसे 3 महीने तक जारी रखें। इसके बाद 3 महीने के लिए बंद कर देना है। फिर से शुरू करना है और 3 महीने चलाना है। अगर बच्चों को यह परेशानी है तो इन दोनों के एक चौथाई चम्मच चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम लेना है। इससे बाल झड़ने कम या पूरी तरह बंद हो जाते हैं।
पुनर्नवा: यह एक ऐसी औषधि है जो बालों को फिर से ले आती है। इसके डोज भी ऊपर बताए डोज के अनुसार ही लेना है।

होम्योपैथी
गंभीर बीमारियों की वजह से जो हेयर लॉस होता है, उसे वापस लाने के लिए
Arnica, Ferrum Phosphoricum, Nux Vomica, Acid Phosphoricum में से कोई एक ले सकते हैं।
कितना लेना है:
हर दिन 4 बूंद, दिन में 3 बार, 15 दिनों के लिए

यूट्यूब पर हेयरफॉल के लिए कोई अच्छी वीडियो देखना चाहते है तो इन चैनलों को देख सकते हैं: Sushmita's Diaries, Food Fun and Fitness आदि। अपने सर्च बार में इन चैनल का नाम लिख कर उनके आगे hairfall कीवर्ड जरूर लगाएं। वहां पर आपको हेयरफॉल से संबंधित सारे विडियो एकसाथ मिल जाएंगे।
इंस्टाग्राम: नीचे दिए यूजरनेम सर्च बार में लिखने हैं और आपको इनके पेज मिल जाएंगे: Haircarewithsomya,
Sassilicous4u, Afsennah आदि।

नोट: 1. बालों से जुड़ा आपका कोई सवाल अब भी बचा है तो हमारे फेसबुक पेज SundayNbt पर जाएं। वहां यह लेख ऊपर ही मिलेगा। उसके कमेंट बॉक्स में जाकर सवाल पूछ सकते हैं।
2. यहां दी गई जानकारी के आधार पर इलाज के बारे में कोई फैसला न करें। डॉक्टर से सलाह लें। कीमतों में फर्क हो सकता है।

एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. पंकज चतुर्वेदी, सीनियर डर्मेटॉलजिस्ट
  • जावेद हबीब, हेयर स्टाइल एक्सपर्ट
  • डॉ. अमित विज, सीनियर डर्मेटॉलजिस्ट, PSRI
  • डॉ. विवेक दीक्षित, सीनियर साइंटिस्ट, AIIMS
  • डॉ. सुशील वत्स, सीनियर होम्योपैथ
  • डॉ. राकेश अग्रवाल, वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

Viewing all 485 articles
Browse latest View live


<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>