जब हमें कफ से जुड़ी परेशानी होती है और गले में खराश होती है तो कई बार गले में दर्द भी होने लगता है। इतना ही नहीं, कुछ लोगों को कई बार सांस भी फंसती हुई महसूस होती है। इन सभी के निदान के लिए हम गरारे करते हैं। गुनगुना पानी पीना शुरू करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि गले की परेशानी में कब तक हम घरेलू उपायों से काम चला सकते हैं? साथ ही जानने वाली बात यह भी है कि गले के इलाज में एलोपैथी की तरह आयुर्वेद कितना कारगर है? सीधे कहें तो जब गले की परेशानी गले पड़ जाए तो हमें क्या करना चाहिए? एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं
लोकेश के. भारती...
आंख, कान, नाक और मुंह जिस जगह पर आपस में जुड़ते हैं, वह गला है। इतना ही नहीं, पेट तक पहुंचने वाला फूड पाइप भी गले से ही शुरू होता है। सीधे कहें तो गला एक जंक्शन है। ऐसे में गले में होने वाली समस्या से इन अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है या इन अंगों में होने वाली परेशानी का असर सीधे गले पर होता है। इन दिनों बरसात के मौसम की वजह से परेशानी ज्यादा बढ़ी हुई है। मौसम कभी धूप तो कभी छांव वाला है। बारिश होने पर तापमान कम रहता है तो धूप निकलते ही मौसम गर्म हो जाता है। शरीर के लिए इस फर्क को सहना थोड़ा मुश्किल रहता है। अमूमन गले की परेशानी भी यहीं से शुरू होती है।
गले की 3 तरह की परेशानियां
चूंकि गले से होकर हवा, पानी, खाना आदि गुजरते हैं। गला सिर्फ जंक्शन ही नहीं बल्कि एक ऐसी जगह भी है जो शरीर के अंदर जाने वाले इंफेक्शन को वहीं रोकने की कोशिश करता है। ऐसे में अगर हमने जरा भी कोताही की, गलती की तो गले में खराश, जलन, दर्द आदि होने लगता है। फिर हम इसे दुरुस्त करने की कोशिश में लग जाते हैं।
गले में परेशानी के लक्षण
जुकाम, बुखार की शिकायत होने पर सूखी खांसी मुमकिन है। यह ज्यादा पलूशन की वजह से भी हो सकती है। चूंकि आजकल बरसात का मौसम है इसलिए धूल कम है लेकिन परागकण (पॉलन ग्रेंस: फूलों से निकलने वाले छोटे कण), फंगस आदि मौजूद रहते हैं। ये सांस लेने पर नाक से होते हुए गले तक पहुंचते हैं और एलर्जी पैदा करते हैं। इनकी वजह से भी कई बार गले में खराश और सूखी खांसी होती है। कभी-कभी इसमें नाक से पानी आता या छींक आती है। यह समस्या ज्यादातर नाक और गले से ही जुड़ी होती है। इसे ठीक करने के लिए खांसी को दबाने वाली और एलर्जी कम करने वाली दवा या सिरप देते हैं।
2. बलगम आना
गले में इंफेक्शन होने का मतलब है कि गले में, गले से फेफड़ों तक जाने वाली विंड पाइप में या फिर फेफड़ों में बलगम जमा हुआ है। यह मौसम में बदलाव की वजह से, ठंडी चीजें खाने से, बारिश में भीगने से, इस मौसम में एसी में सोने से, एक दिन का बासी खाना खाने से, फ्रिज का पानी पीने से, वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन आदि की वजह से हो सकता है। डॉक्टर इसके लिए ऐसी दवा या सिरप देते हैं जो कफ निकाले। गीली खांसी होने पर सूखी खांसी वाली दवा दे दी तो बलगम अंदर ही दब जाता है जो बाद में नुकसान पहुंचाता है। बलगम वाली खांसी में एक्सपेक्टोरंट युक्त सिरप कारगर है। यह सांस की नली को फैलाती है और म्यूकस को ढीला करती है।
नोट: अगर परेशानी बड़ी नहीं है तो ऊपर की दोनों समस्याओं में गरारे से फायदा हो जाता है लेकिन अगर परेशानी इससे बड़ी है तो गले में दर्द फीवर में तब्दील हो जाती है।
3. दर्द और जलन महसूस होना व साथ में बुखार आना
इसे खराश और खांसी का अगला पड़ाव कह सकते हैं। इसमें गले में दर्द, जलन और बुखार तीनों हो सकते हैं या फिर पहले दो हो सकते हैं। यह अमूमन खराश और खांसी के दूसरे या तीसरे दिन हो सकता है। अगर समस्या सामान्य है यानी खराश और हल्की खांसी है तो गुनगुने पानी से गरारे करने पर काफी हद तक कम हो जाती है,। लेकिन जब दर्द और जलन महसूस हो तो समझना चाहिए कि डॉक्टर की जरूरत है।
तब जाएं डॉक्टर के पास
इन-इन वजहों से भी होता है गला खराब
साइनस: सिर दर्द और सूखी या कफ वाली खांसी। इसे साइनोसाइटिस भी कहते हैं। इसमें साइनस में इंफेक्शन और सूजन आ जाती है।
गला (फेरिंग्स) खराब: इसमें सूखी खांसी होती है, चूंकि इसकी शुरुआत गले यानी यहां मौजूद फेरिंग्स से होती है, इसलिए इसे फेरिंजाइटिस भी कहते हैं। इसमें गले में सूजन हो जाती है।
गले से नीचे लेरिंग्स में सूजन: इसे लेरिंजाइटिस भी कहते हैं। बलगम वाली खांसी की शुरुआत यहीं से होती है। आवाज सही तरीके से नहीं निकलती। गले में कुछ फंसा हुआ महसूस होता है।
ट्रेकिया में इंफेक्शन: इसमें खांसी होने पर 'कुत्ते के भौंकने' जैसी आवाज आती है। कई बार बलगम भी आता है। उंगली से छाती का ऊपरी हिस्सा और गर्दन के नीचे का हिस्सा दबाने पर दर्द होता है। अगर इंफेक्शन गंभीर है तो कई बार ट्रेकिया के करीब मौजूद लिंफनोड में सूजन आ जाती है, जिससे गांठ बनने लगती है। जब डॉक्टर मरीज के सीने को जांचने के लिए दबाते हैं तो वहां दर्द महसूस होता है और खांसी आने लगती है। इसकी जांच को पुख्ता करने के लिए एक्सरे और सीटी स्कैन की जरूरत पड़ती है।
फेफड़ों में इंफेक्शन: फेफड़ों में होने वाला ज्यादातर इंफेक्शन निमोनिया होता है। यह बैक्टीरिया और वायरल दोनों तरह का होता है। इसमें बलगम वाली खांसी होती है। यह कई दिनों या हफ्तों तक हो सकती है। इसमें इंफेक्शन पैदा करने वाले वायरस या बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए ऐंटिबायोटिक दवा लेनी पड़ती है। कोरोना वायरस की वजह से भी फेफड़ों में इंफेक्शन होता है। यह भी एक तरह का निमोनिया ही है। चूंकि कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए कोई दवा नहीं है, इसलिए यह खतरनाक है। यहां एक बात और भी समझनी जरूरी है कि कभी-कभी फेफड़ों में होने वाला वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन पेट में भी पहुंच जाता है। इससे डायरिया की परेशानी हो सकती है। इसमें मरीज को सांस फूलना, खांसी के साथ लूज मोशन भी हो सकते हैं। सीधे पेट में इंफेक्शन हो जाए तो सिर्फ लूज मोशंस होते हैं।
कोरोना: आमतौर पर हल्के बुखार के साथ, वैसे बिना बुखार के भी संभव है। अगर कोरोना के लक्षण गंभीर नहीं हैं और सांस की समस्या नहीं हुई है तो सूखी खांसी और खराश की वजह से आवाज में बदलाव हो सकता है। लेकिन इंफेक्शन गंभीर हो गया है, निमोनिया वाले लक्षण आ गए हैं तो बलगम भी आ सकता है। पोस्ट कोविड यानी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी खांसी की शिकायत देखने को मिलती है। यह कई हफ्तों तक रह सकती है। ज्यादातर बलगम वाली खांसी होती है, कुछ लोगों को सूखी खांसी भी होती है।
दमा: यह बिना मौसम के भी होता है, लेकिन पलूशन बढ़ने या मौसम बदलने पर ज्यादा होने लगता है। खांसी एक बार शुरू होती है तो लगातार होती रहती है। आमतौर पर बलगम वाली खांसी होती है। यह ट्रेकिया और उसके छोटे ट्यूब में सिकुड़न की वजह से होती है। इसमें छाती से सांय-सांय की आवाज आती है। सांस लेने में परेशानी होती है।
टीबी: इस बीमारी में सबसे ज्यादा फेफड़े प्रभावित होते हैं। इसका शुरुआती लक्षण खांसी ही है। इसमें पहले सूखी खांसी होती है। बाद में गंभीर होने पर खांसी के साथ बलगम और खून भी आने लगता है। अगर 14 दिनों या उससे ज्यादा समय तक खांसी लगातार रहे तो टीबी की जांच करा लेनी चाहिए। टीबी की वजह से फेफड़ों में पानी भी भर जाता है।
पेट से भी जुड़ा है गले का इंफेक्शन
सुनने में यह भले ही अजीब लगे, लेकिन कई बार हमारे ज्यादा तेल-मसाले, देर से खाने, खाने का एक समय तय नहीं करने आदि की वजह से भी गले में खराश, खांसी की परेशानी हो जाती है। दरअसल, इस वजह से हमारी पाचन क्रिया प्रभावित होती है और शरीर खाना पचाने के लिए ज्यादा मात्रा में एसिड निकालता है। यह एसिड कई बार पेट में वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से पेट से ऊपर गले तक पहुंच जाता है। इससे खांसी होने लगती है। सांस लेने में भी परेशानी आती है। आजकल इस तरह के मामले काफी आ रहे हैं, खासकर पेट में वायरल इंफेक्शन के। कुछ लोगों को सोते हुए सांस लेने में परेशानी हो सकती है। इससे गले में जलन, गले का छिलना या घाव और गैस की परेशानी हो जाती है। ऐसा किसी वायरस की मौजूदगी वाला खाना या पानी (एडिनो या रोटा वायरस) आदि लेने से हो जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कमजोर इम्यूनिटी की निशानी भी हो सकती है। डॉक्टर ऐसे में ऐंटिबायोटिक के साथ उन्हें एंटासिड (एसिड के खिलाफ काम करने वाली दवाई) भी देते हैं। इनके अलावा हार्ट की समस्या, हाई बीपी या सिगरेट ज्यादा पीने से भी खांसी हो सकती है।
आजकल पेट में इंफेक्शन के मामले बहुत आ रहे हैं। इसमें 3 तरह के मामले बनते हैं:
बच्चों की देखभाल
यह मौसम बच्चों के लिए परेशानी लेकर आता है। गला खराब होना, खराश होना, खांसी होना बहुत ही आम है। अगर ये सभी परेशानियां सामान्य हैं तो घरेलू उपायों, जैसे गुनगुना पानी लेने, काढ़ा पीने या शहद के साथ अदरक या तुलसी पत्तों का रस मिलाकर देने से फायदा होता है।लेकिन बच्चों की इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है:
जब हो खराश, खांसी, सूजन और जलन तो करें ये उपाय
एलोपैथी में इलाज
स्टीम की प्रक्रिया : सादे पानी को उबालकर उसकी भाप को नाक और मुंह से अंदर खींचा जाता है। स्टीम ज्यादा असरदार तरीके से काम करे इसके लिए जरूरी है कि हम खुद को स्टीमर समेत कंबल या तौलिये से ढक लें। लोग इसमें कोई दवा मिला देते हैं। इसकी जरूरत नहीं होती। सादे पानी को अच्छी तरह से उबालने (5 मिनट तक उबालें) के बाद स्टीम अंदर खींचने से फायदा होता है। नाक से लें, मुंह से छोड़े और मुंह से लें नाक से छोड़ें। किसी सामान्य बर्तन से भी भाप ले सकते हैं। लेकिन पानी बेहद गर्म होता है इसलिए स्टीमर लेने से बचाव भी हो जाता है। मार्केट में कई तरह के स्टीमर मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल कर सकते हैं। कुछ यहां दिए गए हैं:
OPTIYORK
कीमत: 360 रुपये
LIVEASY
कीमत: 299 रुपये
Risentshop
कीमत: 422 रुपये
नोट: ये सभी ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं। कीमतों में फर्क मुमकिन है। बाजार में और भी अच्छे स्टीमर हैं।
अच्छे-बुरे स्टीमर की पहचान
नेबुलाइजर की बात: इसका इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह से न करें। इस्तेमाल करने से पहले इसकी एक छोटी-सी ट्रेनिंग भी होती है, वह लें। नेबुलाइजर इस्तेमाल करने के लिए पहले मशीन में दवा डालनी पड़ती है जो मरीज की स्थिति और जरूरत को देखते हुए डॉक्टर लिखते हैं। नेबुलाइजेशन की प्रक्रिया अमूमन 10 मिनट की होती है। यह उनके लिए फायदेमंद है, जिन्हें सांस लेने में परेशानी हो, ट्रेकिया या ब्रॉन्की में सूजन, अस्थमा की परेशानी हो।
आयुर्वेद के नुस्खे
आयुर्वेद में भी कई तरह के उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाने से या तो ऐसी समस्याएं कम आएंगी और आती हैं तो जल्दी दूर भी हो जाती हैं।
आयुर्वेद में ये हैं उपाय
आयुर्वेद में मौसमी परेशानी का सही और सटीक इलाज है। खासकर वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से होने वाली खराश और खांसी के लिए तो कई उपाय बताए गए हैं। उनमें से कुछ तो रोजाना की ज़िंदगी में शामिल हैं। जैसे अदरक वाली चाय, तुलसी वाली चाय आदि।
ऐसे करें तैयार: 200 ml शहद में 70 से 100 ग्राम सितोपलादि चूर्ण (जिन्हें शुगर नहीं है, क्योंकि इसमें चीनी होती है) या तालिसादि चूर्ण को मिला दें। इसे 10 से 12 घंटों के लिए छोड़ दें। फिर हर दिन एक चम्मच सुबह और शाम में इसका सेवन करें। अगर परेशानी ज्यादा है तो इसे 3 वक्त भी कर सकते हैं।
रंग और गाढ़ापन: ज्यादातर शहद सरसों के फूलों से तैयार होता है इसलिए हल्का पीलापन लिए होता है। जब जामुन के फूलों से तैयार होता है तो यह हल्का भूरा होता है।
...तो उड़ जाएगी मक्खी: अगर किसी मधुमक्खी या मक्खी को शहद में गिरा दिया जाए तो शहद उनके पंखों में नहीं चिपकेगा। शहद से भीगने के बाद भी इनके पंख आपस में चिपकते नहीं हैं, ये आसानी से उड़ जाती हैं।
कपड़ों पर दाग नहीं लगता: यदि शहद असली होगा तो वह कपड़ों पर दाग नहीं लगाता। यदि मिलावटी है तो कपड़े पर दाग के रूप में जरूर दिखेगा।
डॉगी नहीं खाता शहद: जब शहद असली होता है तो डॉगी उसे नहीं खाते, लेकिन चीनी की मिलावट है तो उसे चाट लेते हैं।
कागज पर निशान आना: अगर कागज के नीचे निशान आ जाता है तो समझ लें कि शहद शुद्ध नहीं है क्योंकि शुद्ध शहद कागज पर डालने से उसके नीचे निशान नहीं आता है।
पानी बताएगा सच: एक गिलास सामान्य पानी लें और उसमें एक बूंद या आधा चम्मच शहद डालें। शहद असली होगा तो यह पानी में घुलेगा नहीं, बल्कि सीधे गिलास के तले में बैठ जाएगा।
अग्निपरीक्षा करें: अगर असली शहद को किसी रुई की बाती में लपेट दिया जाए और उसे जलाया जाए तो यह जल जाता है। अगर उस रुई की बाती को किसी दीये में रख दें तो वह तेल के दीये की तरह ही रोशनी देगा।
काढ़े की बात
एक व्यक्ति के लिए काढ़ा
पानी: 60 से 70 ml (1 कप)
दूध: 60 से 70 ml (1 कप)
तुलसी के पत्ते: 3, लौंग: 1, काली मिर्च: 1
दालचीनी: एक चुटकी पाउडर
चीनी या शक्कर: स्वाद के अनुसार, अगर डायबीटीज है तो न लें या वैद्य की सलाह से लें।
इससे फायदा
आंख, कान, नाक और मुंह जिस जगह पर आपस में जुड़ते हैं, वह गला है। इतना ही नहीं, पेट तक पहुंचने वाला फूड पाइप भी गले से ही शुरू होता है। सीधे कहें तो गला एक जंक्शन है। ऐसे में गले में होने वाली समस्या से इन अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है या इन अंगों में होने वाली परेशानी का असर सीधे गले पर होता है। इन दिनों बरसात के मौसम की वजह से परेशानी ज्यादा बढ़ी हुई है। मौसम कभी धूप तो कभी छांव वाला है। बारिश होने पर तापमान कम रहता है तो धूप निकलते ही मौसम गर्म हो जाता है। शरीर के लिए इस फर्क को सहना थोड़ा मुश्किल रहता है। अमूमन गले की परेशानी भी यहीं से शुरू होती है।
गले की 3 तरह की परेशानियां
चूंकि गले से होकर हवा, पानी, खाना आदि गुजरते हैं। गला सिर्फ जंक्शन ही नहीं बल्कि एक ऐसी जगह भी है जो शरीर के अंदर जाने वाले इंफेक्शन को वहीं रोकने की कोशिश करता है। ऐसे में अगर हमने जरा भी कोताही की, गलती की तो गले में खराश, जलन, दर्द आदि होने लगता है। फिर हम इसे दुरुस्त करने की कोशिश में लग जाते हैं।
गले में परेशानी के लक्षण
- खराश और सूखी खांसी होना
- बलगम आना
- गले में दर्द और जलन महसूस होना
जुकाम, बुखार की शिकायत होने पर सूखी खांसी मुमकिन है। यह ज्यादा पलूशन की वजह से भी हो सकती है। चूंकि आजकल बरसात का मौसम है इसलिए धूल कम है लेकिन परागकण (पॉलन ग्रेंस: फूलों से निकलने वाले छोटे कण), फंगस आदि मौजूद रहते हैं। ये सांस लेने पर नाक से होते हुए गले तक पहुंचते हैं और एलर्जी पैदा करते हैं। इनकी वजह से भी कई बार गले में खराश और सूखी खांसी होती है। कभी-कभी इसमें नाक से पानी आता या छींक आती है। यह समस्या ज्यादातर नाक और गले से ही जुड़ी होती है। इसे ठीक करने के लिए खांसी को दबाने वाली और एलर्जी कम करने वाली दवा या सिरप देते हैं।
2. बलगम आना
गले में इंफेक्शन होने का मतलब है कि गले में, गले से फेफड़ों तक जाने वाली विंड पाइप में या फिर फेफड़ों में बलगम जमा हुआ है। यह मौसम में बदलाव की वजह से, ठंडी चीजें खाने से, बारिश में भीगने से, इस मौसम में एसी में सोने से, एक दिन का बासी खाना खाने से, फ्रिज का पानी पीने से, वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन आदि की वजह से हो सकता है। डॉक्टर इसके लिए ऐसी दवा या सिरप देते हैं जो कफ निकाले। गीली खांसी होने पर सूखी खांसी वाली दवा दे दी तो बलगम अंदर ही दब जाता है जो बाद में नुकसान पहुंचाता है। बलगम वाली खांसी में एक्सपेक्टोरंट युक्त सिरप कारगर है। यह सांस की नली को फैलाती है और म्यूकस को ढीला करती है।
नोट: अगर परेशानी बड़ी नहीं है तो ऊपर की दोनों समस्याओं में गरारे से फायदा हो जाता है लेकिन अगर परेशानी इससे बड़ी है तो गले में दर्द फीवर में तब्दील हो जाती है।
3. दर्द और जलन महसूस होना व साथ में बुखार आना
इसे खराश और खांसी का अगला पड़ाव कह सकते हैं। इसमें गले में दर्द, जलन और बुखार तीनों हो सकते हैं या फिर पहले दो हो सकते हैं। यह अमूमन खराश और खांसी के दूसरे या तीसरे दिन हो सकता है। अगर समस्या सामान्य है यानी खराश और हल्की खांसी है तो गुनगुने पानी से गरारे करने पर काफी हद तक कम हो जाती है,। लेकिन जब दर्द और जलन महसूस हो तो समझना चाहिए कि डॉक्टर की जरूरत है।
तब जाएं डॉक्टर के पास
- खराश या हल्की खांसी 2 से 3 दिनों में गरारे, काढ़ा पीने और स्टीम लेने से भी ठीक न हो या कम न हो
- गले में दर्द और जलन महसूस हो, ऐसा लगे कि गला अंदर से छिल गया है।
- बुखार आना शुरू हो जाए
इन-इन वजहों से भी होता है गला खराब
साइनस: सिर दर्द और सूखी या कफ वाली खांसी। इसे साइनोसाइटिस भी कहते हैं। इसमें साइनस में इंफेक्शन और सूजन आ जाती है।
गला (फेरिंग्स) खराब: इसमें सूखी खांसी होती है, चूंकि इसकी शुरुआत गले यानी यहां मौजूद फेरिंग्स से होती है, इसलिए इसे फेरिंजाइटिस भी कहते हैं। इसमें गले में सूजन हो जाती है।
गले से नीचे लेरिंग्स में सूजन: इसे लेरिंजाइटिस भी कहते हैं। बलगम वाली खांसी की शुरुआत यहीं से होती है। आवाज सही तरीके से नहीं निकलती। गले में कुछ फंसा हुआ महसूस होता है।
ट्रेकिया में इंफेक्शन: इसमें खांसी होने पर 'कुत्ते के भौंकने' जैसी आवाज आती है। कई बार बलगम भी आता है। उंगली से छाती का ऊपरी हिस्सा और गर्दन के नीचे का हिस्सा दबाने पर दर्द होता है। अगर इंफेक्शन गंभीर है तो कई बार ट्रेकिया के करीब मौजूद लिंफनोड में सूजन आ जाती है, जिससे गांठ बनने लगती है। जब डॉक्टर मरीज के सीने को जांचने के लिए दबाते हैं तो वहां दर्द महसूस होता है और खांसी आने लगती है। इसकी जांच को पुख्ता करने के लिए एक्सरे और सीटी स्कैन की जरूरत पड़ती है।
फेफड़ों में इंफेक्शन: फेफड़ों में होने वाला ज्यादातर इंफेक्शन निमोनिया होता है। यह बैक्टीरिया और वायरल दोनों तरह का होता है। इसमें बलगम वाली खांसी होती है। यह कई दिनों या हफ्तों तक हो सकती है। इसमें इंफेक्शन पैदा करने वाले वायरस या बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए ऐंटिबायोटिक दवा लेनी पड़ती है। कोरोना वायरस की वजह से भी फेफड़ों में इंफेक्शन होता है। यह भी एक तरह का निमोनिया ही है। चूंकि कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए कोई दवा नहीं है, इसलिए यह खतरनाक है। यहां एक बात और भी समझनी जरूरी है कि कभी-कभी फेफड़ों में होने वाला वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन पेट में भी पहुंच जाता है। इससे डायरिया की परेशानी हो सकती है। इसमें मरीज को सांस फूलना, खांसी के साथ लूज मोशन भी हो सकते हैं। सीधे पेट में इंफेक्शन हो जाए तो सिर्फ लूज मोशंस होते हैं।
कोरोना: आमतौर पर हल्के बुखार के साथ, वैसे बिना बुखार के भी संभव है। अगर कोरोना के लक्षण गंभीर नहीं हैं और सांस की समस्या नहीं हुई है तो सूखी खांसी और खराश की वजह से आवाज में बदलाव हो सकता है। लेकिन इंफेक्शन गंभीर हो गया है, निमोनिया वाले लक्षण आ गए हैं तो बलगम भी आ सकता है। पोस्ट कोविड यानी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी खांसी की शिकायत देखने को मिलती है। यह कई हफ्तों तक रह सकती है। ज्यादातर बलगम वाली खांसी होती है, कुछ लोगों को सूखी खांसी भी होती है।
दमा: यह बिना मौसम के भी होता है, लेकिन पलूशन बढ़ने या मौसम बदलने पर ज्यादा होने लगता है। खांसी एक बार शुरू होती है तो लगातार होती रहती है। आमतौर पर बलगम वाली खांसी होती है। यह ट्रेकिया और उसके छोटे ट्यूब में सिकुड़न की वजह से होती है। इसमें छाती से सांय-सांय की आवाज आती है। सांस लेने में परेशानी होती है।
टीबी: इस बीमारी में सबसे ज्यादा फेफड़े प्रभावित होते हैं। इसका शुरुआती लक्षण खांसी ही है। इसमें पहले सूखी खांसी होती है। बाद में गंभीर होने पर खांसी के साथ बलगम और खून भी आने लगता है। अगर 14 दिनों या उससे ज्यादा समय तक खांसी लगातार रहे तो टीबी की जांच करा लेनी चाहिए। टीबी की वजह से फेफड़ों में पानी भी भर जाता है।
पेट से भी जुड़ा है गले का इंफेक्शन
सुनने में यह भले ही अजीब लगे, लेकिन कई बार हमारे ज्यादा तेल-मसाले, देर से खाने, खाने का एक समय तय नहीं करने आदि की वजह से भी गले में खराश, खांसी की परेशानी हो जाती है। दरअसल, इस वजह से हमारी पाचन क्रिया प्रभावित होती है और शरीर खाना पचाने के लिए ज्यादा मात्रा में एसिड निकालता है। यह एसिड कई बार पेट में वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से पेट से ऊपर गले तक पहुंच जाता है। इससे खांसी होने लगती है। सांस लेने में भी परेशानी आती है। आजकल इस तरह के मामले काफी आ रहे हैं, खासकर पेट में वायरल इंफेक्शन के। कुछ लोगों को सोते हुए सांस लेने में परेशानी हो सकती है। इससे गले में जलन, गले का छिलना या घाव और गैस की परेशानी हो जाती है। ऐसा किसी वायरस की मौजूदगी वाला खाना या पानी (एडिनो या रोटा वायरस) आदि लेने से हो जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कमजोर इम्यूनिटी की निशानी भी हो सकती है। डॉक्टर ऐसे में ऐंटिबायोटिक के साथ उन्हें एंटासिड (एसिड के खिलाफ काम करने वाली दवाई) भी देते हैं। इनके अलावा हार्ट की समस्या, हाई बीपी या सिगरेट ज्यादा पीने से भी खांसी हो सकती है।
आजकल पेट में इंफेक्शन के मामले बहुत आ रहे हैं। इसमें 3 तरह के मामले बनते हैं:
- फेफड़ों में मौजूद वायरस या बैक्टीरिया: जब यह वायरस पेट में इंफेक्शन फैला देता है तो भी दस्त हो सकते है। इसमें सांस फूलता है, बुखार के साथ लूज मोशन हो सकते हैं। कोरोना के दौरान होने वाला लूज मोशन इसी का उदाहरण है।
- खाने और पीने से वायरस पहुंचे: मॉनसून का मौसम इंफेक्शन फैलने के लिए सबसे मुफीद माना जाता है। कई बार जब हम बाहर की चीजें खाते हैं और उसे सही तरीके से साफ नहीं किया गया हो तो एडीनो या रोटा वायरस भी पहुंच जाता है। इससे बुखार, उल्टी, लूज मोशन आदि की परेशानी हो सकती है। आजकल बुखार के साथ लूज मोशन और उल्टी के मामले इसी वजह से ही ज्यादातर आ रहे हैं।
- हेपटाइटस वायरस के पहुंचने पर: आजकल कुछ मामले हेपटाइटस के भी मामले आ रहे हैं। अमूमन इसमें हेपटाइटस ए और ई वायरस शरीर में पहुंचता है। हेपटाइटस ए के ज्यादातर मामले बच्चों में और ई के मामले बड़ों में देखे जाते हैं। इसमें मरीज को पहले 2 दिन बुखार आता है, लेकिन उसके बाद बुखार चला जाता है। पर उल्टी, लूज मोशन आदि की परेशानी कायम रहती है। ये मामले उन लोगों में ज्यादा देखे जाते हैं जिन्हें शुगर की परेशानी है और शुगर काबू में नहीं रहती। यह ऐसे लोगों को भी हो रहा है जो कई बीमारियों के लिए कई तरह की दवाएं हर दिन लेते हैं।
बच्चों की देखभाल
यह मौसम बच्चों के लिए परेशानी लेकर आता है। गला खराब होना, खराश होना, खांसी होना बहुत ही आम है। अगर ये सभी परेशानियां सामान्य हैं तो घरेलू उपायों, जैसे गुनगुना पानी लेने, काढ़ा पीने या शहद के साथ अदरक या तुलसी पत्तों का रस मिलाकर देने से फायदा होता है।लेकिन बच्चों की इन बातों पर ध्यान देना जरूरी है:
- बच्चों की सामान्य दिनचर्या बदल गई हो
- हर दिन वह 10 घंटे सोता था, अब 13-14 घंटे सो रहा हो
- खेलने में दिलचस्पी कम हो गई हो
- शांत रहने लगा हो
- बुखार तेज या हल्का आ रहा हो
- बच्चे की सांस फूल रही हो
जब हो खराश, खांसी, सूजन और जलन तो करें ये उपाय
एलोपैथी में इलाज
- इस मौसम में ठंडी चीजों से दूर रहें। जैसे आइसक्रीम, फ्रिज की ठंडी चीजें।
- सब्जी, फल आदि लाने पर उसे पहले साफ पानी से धोएं। फिर फिटकरी या नमक वाले पानी से भी धो सकते हैं। इससे उसकी सतह पर मौजूद बैक्टीरिया या वायरस काफी हद तक दूर हो सकते हैं।
- सलाद भले ही कई तरह के विटामिन और मिनरल्स का स्रोत है, लेकिन अगर सही तरीके साफ नहीं है तो कई बार पेट तक इंफेक्शन फैलाने में इसकी अहम भूमिका होती है। फूंड पॉइजनिंग में सलाद का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए इस मौसम में सलाद तैयार करने से पहले उसे बहुत अच्छे से धो लें। सब्जियों आदि का छिलका जरूर हटाएं। फिर सलाद खाएं।
- बाहर का खाना कम खाएं या न खाएं। आजकल फूड पॉइजनिंग के मामले काफी देखे जा रहे हैं। ऐसी जगह का पानी तो बिलकुल न पिएं जिसके साफ न होने की आशंका हो। पेट में इंफेक्शन फैलाने में दूषित पानी की भूमिका काफी अहम है।
- एसी चला सकते हैं, लेकिन तापमान 24 से 27 डिग्री सेल्सियस के बीच ही रखें।
- मुंह अच्छी तरह साफ करें। 2 मिनट तक ब्रश करें। पेस्ट किस तरह का उपयोग करते हैं, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। फर्क इससे पड़ता है कि हमने दांतों और मसूढ़ों पर ब्रश कितनी देर, किस तरह घुमाया है। दरअसल, जब हम खाते हैं तो अन्न या सब्जी का कोई हिस्सा दांतों में फंस जाता है। रातभर में ही उसमें बैक्टीरिया पैदा हो जाता है। यह बैक्टीरिया भी हमारे गले को खराब करता है। वहां इंफेक्शन फैलाता है।
- गले में जरा भी खराश महसूस हो, खांसी हो तो घरेलू उपाय शुरू कर देना चाहिए। लेकिन बुखार, गले में दर्द और दूसरी परेशानियां भी साथ में हैं तो डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए। इसमें देर नहीं करनी चाहिए।
- गरारे करना भी एक अच्छा विकल्प है। इसके लिए पानी और बीटाडीन को बराबर मात्रा में मिलाकर यानी 20 एमएल गुनगुना पानी तो 20 एमएल बीटाडीन (दो-दो चम्मच) मिलाएं। फिर गरारे करें। इसे दिनभर में 2 से 3 बार कर सकते हैं।
- अगर किसी को एलर्जी की परेशानी रहती है, वह जब भी बाहर निकले उसे मास्क जरूर लगाना चाहिए। यह कोरोना के साथ दूसरी चीजों से भी बचाएगा। वैसे मास्क अभी सभी को लगाना है।
- इम्यूनिटी को मजबूत करने के लिए हेल्दी फूड का सेवन सिर्फ मॉनसून या कोरोना के डर से नहीं करना चाहिए। इसे हमेशा लागू रखना चाहिए। हमारे खाने में सभी तरह के विटामिन, मिनरल्स होने चाहिए। सीधे कहें तो हर दिन एक से दो कटोरी हरी सब्जी, एक से दो मौसमी फल, दाल जरूर लें।
स्टीम की प्रक्रिया : सादे पानी को उबालकर उसकी भाप को नाक और मुंह से अंदर खींचा जाता है। स्टीम ज्यादा असरदार तरीके से काम करे इसके लिए जरूरी है कि हम खुद को स्टीमर समेत कंबल या तौलिये से ढक लें। लोग इसमें कोई दवा मिला देते हैं। इसकी जरूरत नहीं होती। सादे पानी को अच्छी तरह से उबालने (5 मिनट तक उबालें) के बाद स्टीम अंदर खींचने से फायदा होता है। नाक से लें, मुंह से छोड़े और मुंह से लें नाक से छोड़ें। किसी सामान्य बर्तन से भी भाप ले सकते हैं। लेकिन पानी बेहद गर्म होता है इसलिए स्टीमर लेने से बचाव भी हो जाता है। मार्केट में कई तरह के स्टीमर मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल कर सकते हैं। कुछ यहां दिए गए हैं:
OPTIYORK
कीमत: 360 रुपये
LIVEASY
कीमत: 299 रुपये
Risentshop
कीमत: 422 रुपये
नोट: ये सभी ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं। कीमतों में फर्क मुमकिन है। बाजार में और भी अच्छे स्टीमर हैं।
अच्छे-बुरे स्टीमर की पहचान
- भाप लेते वक्त मुंह या नाक पर गर्म पानी के छीटें न पड़ें।
- 10-15 मिनट बाद खुद-ब-खुद बंद हो जाए।
- महीन बूंदों वाली भाप दे।
- स्टीम को कंट्रोल करने का बटन हो यानी तेज या हल्की कर सकें।
- ऑन-ऑफ होने का इंडिकेटर हो।
नेबुलाइजर की बात: इसका इस्तेमाल बिना डॉक्टर की सलाह से न करें। इस्तेमाल करने से पहले इसकी एक छोटी-सी ट्रेनिंग भी होती है, वह लें। नेबुलाइजर इस्तेमाल करने के लिए पहले मशीन में दवा डालनी पड़ती है जो मरीज की स्थिति और जरूरत को देखते हुए डॉक्टर लिखते हैं। नेबुलाइजेशन की प्रक्रिया अमूमन 10 मिनट की होती है। यह उनके लिए फायदेमंद है, जिन्हें सांस लेने में परेशानी हो, ट्रेकिया या ब्रॉन्की में सूजन, अस्थमा की परेशानी हो।
आयुर्वेद के नुस्खे
आयुर्वेद में भी कई तरह के उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाने से या तो ऐसी समस्याएं कम आएंगी और आती हैं तो जल्दी दूर भी हो जाती हैं।
आयुर्वेद में ये हैं उपाय
आयुर्वेद में मौसमी परेशानी का सही और सटीक इलाज है। खासकर वायरल और बैक्टीरियल इंफेक्शन की वजह से होने वाली खराश और खांसी के लिए तो कई उपाय बताए गए हैं। उनमें से कुछ तो रोजाना की ज़िंदगी में शामिल हैं। जैसे अदरक वाली चाय, तुलसी वाली चाय आदि।
- शरीर की इम्यूनिटी मजबूत होगी तो इस तरह की परेशानी कम से कम घेरेगी। इसलिए उपाय सिर्फ परेशानी आने पर नहीं करना चाहिए। इसके लिए हर दिन की कोशिश जरूरी है।
- गला खराब होने पर गरारे करें। गरारे करने के लिए एक गिलास पानी में आधा चम्मच सेंधा नमक मिला लें। एसिडिटी के मामले में सेंधा नमक से गरारे करने पर फायदा होता है।
- गुनगुने पानी में फिटकरी मिलाकर भी गरारे कर सकते हैं। एक गिलास गुनगुने पानी में 2 चुटकी फिटकरी पाउडर मिला सकते हैं। अगर फिटकरी पाउडर नहीं है तो साबुत फिटकरी को ही गुनगुने पानी में 2 से 3 मिनट के लिए छोड़ दें, फिर छानकर उससे गरारे करें। फिटकरी से मुंह के छालों आदि में फायदा होता है।
- आयुर्वेद में कई तरह की गोलियां हैं जिन्हें मुंह में रखकर चूसने से खराश और खांसी में फायदा होता है। इनमें मुलेठी, तुलसी आदि की मौजूदगी होती है। ये बाजार में आसानी से मिलते हैं।
- जब किसी डॉक्टर या वैद्य को दिखाने जाएं तो अपने गले की स्थिति देखने के लिए जरूर कहें। नजला यानी सामान्य जुकाम होने पर गरारे करना अच्छा रहता है। लेकिन बुखार होने पर इससे काम नहीं चलेगा।
- एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच हल्दी पाउडर या एक गिलास पानी में कच्ची हल्दी के एक टुकड़े को 5 मिनट उबालकर गरारे करने से भी काफी फायदा होता है।
- किसी भी तरह की खराश या खांसी चाहे कोरोना वाली हो या सामान्य, दिन में किसी भी समय 20 से 25 ml तिल या नारियल का तेल मुंह में भर लें और 5 से 7 मिनट तक रखे रहें। फिर कुल्ला करके फेंक दें। आयुर्वेद में इस क्रिया को गण्डूष कहते हैं।
- 50 ml सरसों के तेल में 2 चुटकी नमक मिलाकर 2 मिनट तक गर्म कर लें। फिर इस तेल से सीने की मालिश करें। इससे खांसी में राहत मिलती है।
- हर दिन सुबह फ्रेश होने के बाद नाक के दोनों सुराखों में उंगली से तिल, सरसों या बादाम का तेल लगाएं।
- अगर पेट की परेशानी है तो खाना आधा कर दें। तीखी चीजों से परहेज करें।
ऐसे करें तैयार: 200 ml शहद में 70 से 100 ग्राम सितोपलादि चूर्ण (जिन्हें शुगर नहीं है, क्योंकि इसमें चीनी होती है) या तालिसादि चूर्ण को मिला दें। इसे 10 से 12 घंटों के लिए छोड़ दें। फिर हर दिन एक चम्मच सुबह और शाम में इसका सेवन करें। अगर परेशानी ज्यादा है तो इसे 3 वक्त भी कर सकते हैं।
- इसे बच्चों को भी दे सकते हैं। 7 बरस तक के बच्चों को आधा चम्मच 2 बार दें। 8 से 12 साल तक के बच्चों को आधा चम्मच करके 3 बार दें और 12 साल से बड़ों को 2 से 3 बार एक-एक चम्मच करके दें।
- हां एक बात और समझें कि सूखी खांसी में सितोपलादि चूर्ण और बलगम यानी गीली खांसी हो तो तालिसादि चूर्ण ज्यादा फायदा करता है।
- गले में खराश होने पर एक चम्मच शहद में 5 से 7 बूंदें तुलसी या अदरक का रस मिलाकर दिन में तीन बार पीने से फायदा होता है।
- शहद का फायदा तभी है जब शहद असली हो। यहां असली शहद की कुछ पहचान बताई जा रही है:
रंग और गाढ़ापन: ज्यादातर शहद सरसों के फूलों से तैयार होता है इसलिए हल्का पीलापन लिए होता है। जब जामुन के फूलों से तैयार होता है तो यह हल्का भूरा होता है।
...तो उड़ जाएगी मक्खी: अगर किसी मधुमक्खी या मक्खी को शहद में गिरा दिया जाए तो शहद उनके पंखों में नहीं चिपकेगा। शहद से भीगने के बाद भी इनके पंख आपस में चिपकते नहीं हैं, ये आसानी से उड़ जाती हैं।
कपड़ों पर दाग नहीं लगता: यदि शहद असली होगा तो वह कपड़ों पर दाग नहीं लगाता। यदि मिलावटी है तो कपड़े पर दाग के रूप में जरूर दिखेगा।
डॉगी नहीं खाता शहद: जब शहद असली होता है तो डॉगी उसे नहीं खाते, लेकिन चीनी की मिलावट है तो उसे चाट लेते हैं।
कागज पर निशान आना: अगर कागज के नीचे निशान आ जाता है तो समझ लें कि शहद शुद्ध नहीं है क्योंकि शुद्ध शहद कागज पर डालने से उसके नीचे निशान नहीं आता है।
पानी बताएगा सच: एक गिलास सामान्य पानी लें और उसमें एक बूंद या आधा चम्मच शहद डालें। शहद असली होगा तो यह पानी में घुलेगा नहीं, बल्कि सीधे गिलास के तले में बैठ जाएगा।
अग्निपरीक्षा करें: अगर असली शहद को किसी रुई की बाती में लपेट दिया जाए और उसे जलाया जाए तो यह जल जाता है। अगर उस रुई की बाती को किसी दीये में रख दें तो वह तेल के दीये की तरह ही रोशनी देगा।
काढ़े की बात
एक व्यक्ति के लिए काढ़ा
पानी: 60 से 70 ml (1 कप)
दूध: 60 से 70 ml (1 कप)
तुलसी के पत्ते: 3, लौंग: 1, काली मिर्च: 1
दालचीनी: एक चुटकी पाउडर
चीनी या शक्कर: स्वाद के अनुसार, अगर डायबीटीज है तो न लें या वैद्य की सलाह से लें।
- अगर लौंग, दालचीनी और काली मिर्च ले रहे हैं तो मुलेठी न लें या बहुत कम कर दें। इन तीनों की जगह मुलेठी लेना चाहते हैं तो एक बार किसी वैद्य से जरूर बात कर लें।
- काढ़ा हर शख्स की परेशानी और उसकी जरूरतों के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए।
- सभी चीजों को मिलाकर उबालने पर जब यह एक चौथाई बचे यानी 20 से 30 ml हो तो एक बार में इतना पी सकते हैं। इस तरह से दिन में 2 बार पी सकते हैं।
इससे फायदा
- गले में खराश कम होना, खांसी में कमी आना
- सही तरीके से बने काढ़े से इम्यूनिटी बढ़ना
- शरीर के अंदर गर्माहट महसूस होना
- किसी का वजन ज्यादा है तो काढ़ा पीने से चर्बी कम हो जाती है। दरअसल, गर्म काढ़ा पीने से शरीर में मौजूद फैट पिघलने लगता है।
- पेट में अल्सर हो (काढ़ा पचाने के लिए शरीर ज्यादा पाचक रस निकालता है, इससे अल्सर की परेशानी बढ़ जाती है।)
- किडनी की समस्या हो
- ब्लड पाइल्स हो (ऐसे पेशंट को ज्यादा मसाले की वजह से ब्लड ज्यादा निकल सकता है)
- 5 बरस से कम उम्र के बच्चों को (अमूमन ये ऐसे मसाले काढ़े में नहीं पचा पाते हैं।)
- जब गला खराब हो, खराश हो या हल्की खांसी हो तो इलाज घरेलू तरीकों से हो सकता है। अगर साथ में बुखार और गले में दर्द भी है तो डॉक्टर के पास जरूर जाना चाहिए। डॉक्टर की सलाह से कोरोना टेस्ट भी कराना चाहिए।
- खराश होने की कई वजहें हो सकती हैं। चूंकि गला हमारे कान, आंख, नाक, मुंह और फूड पाइप का जंक्शन है। इसलिए इनमें कोई परेशानी हो तो गले पर असर पड़ता है।
- मुंह की सफाई न रखने पर भी गला खराब होता है। इसलिए रोज सुबह और रात को सोते वक्त हर दिन 2 मिनट ब्रश जरूर करें।
- मॉनसून में इंफेक्शन की आशंका इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि इस दौरान बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि के पनपने के लिए मौसम मुफीद होता है और हमारे शरीर की इम्यूनिटी कुछ कम होती है। इसलिए सब्जी और फलों आदि को अच्छी तरह धोकर ही खाएं।
- गले में घाव, जलन या रैशेज आदि की एक बड़ी वजह एसिड रिफ्लक्स है। इसलिए ज्यादा तेल-मसाले वाली चीजें खाने से बचें।
- अगर मॉनसून में हर बार इस तरह की परेशानियां होती है तो मॉनसून शुरू होने से 15 दिन पहले से ही आधा चम्मच सितोपलादि चूर्ण (जिन्हें शुगर नहीं है क्योंकि इसमें चीनी होती है) या तालिसादि चूर्ण (जिन्हें शुगर है) का सेवन एक चम्मच शहद या पानी के साथ करना चाहिए।
- डॉ. एस. के. सरीन, डायरेक्टर, ILBS
- डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
- डॉ. कैलाशनाथ सिंगला, सीनियर कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेरॉलजिस्ट
- डॉ. अनिल ठकराल, डायरेक्टर, ENT, QRG हॉस्पिटल
- डॉ. मीना अग्रवाल, सीनियर कंसल्टेंट, ENT, PSRI
- डॉ. अरुण गर्ग, सीनियर कंसल्टेंट, ENT
- डॉ. अव्यक्त अग्रवाल, सीनियर पीडिअट्रिशन
- डॉ. एस. एन. डोरनाला, वरिष्ठ वैद्य और साइंटिस्ट
- वरिष्ठ वैद्य, बालेंदु प्रकाश
- डॉ. जयकरण गोयल, आयुर्वेदाचार्य
- डॉ. विकास चावला, वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक
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