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जरूरी जानकारी: इंटरनेट पर जालसाजी से कैसे बचें?

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लाखों लोगों के सैकड़ों-करोड़ रुपये सोशल ट्रेड में डूब गए हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। धोखे के शिकार लोग पहले भी हुए हैं। आखिर क्या है ठगे जाने की वजह और कैसे बच सकते हैं हम, बता रहे हैं पुष्पेंद्र चौहान -

'भाई साहब, घर
बैठे पैसा कमाना चाहते हो तो इससे अच्छा रास्ता नहीं हो सकता'। इंश्योरेंस सेक्टर में काम करने वाले गाजियाबाद के रामप्रस्थ कॉलोनी के अमित किशोर जैन को जब उनके परिचित ने यह कहा था तो मामला उन्हें जंचा नहीं, लेकिन आगरा के रहने वाले एक दोस्त ने जब एक बार इस काम पर नजर मारने को कहा तो वह मना नहीं कर पाए।

दोस्त ने उन्हें बताया कि उन्होंने एब्लेज इंफो सल्यूशंस के साथ ही वेबवर्क में भी पैसे लगाए हुए हैं, लेकिन एब्लेज का काम शुरू हुए करीब डेढ़ साल हो चुका है, लिहाजा वहां ज्यादा पैसा नहीं है। वेबवर्क नई है इसलिए इस कंपनी से ज्यादा रिटर्न मिल रहा है। दोस्त के कहने पर अमित शाहदरा में रहने वाले एक शख्स से मिले और वह उन्हें सोशल ट्रेड का कारोबार करने वाली कंपनी वेबवर्क के नोएडा सेक्टर-2 के दफ्तर लेकर आए। यहां पर उनकी मुलाकात कंपनी के डायरेक्टर्स अनुराग गर्ग और संदेश वर्मा से हुई।

उन्होंने कंपनी के काम और कमाई के बारे में बताया। अमित अच्छे रिटर्न के लिए आश्वस्त हो गए। उन्होंने खुद, वाइफ और बेटी के नाम से 1,72,500 रुपये में तीन आईडी ली। दो हफ्ते तक अच्छे रिटर्न मिलने पर उन्होंने इतने ही रुपये देकर तीन और आईडी ले ली। करीब एक-डेढ़ महीने तक तो पेमेंट आती रही, लेकिन उसके बाद समस्या आने लगी और जनवरी के शुरुआत में तो बिल्कुल ही आनी बंद हो गई।

इसके बाद उन्होंने फोन और ईमेल करना शुरू किया तो कंपनी के खूब चक्कर भी काटे। उनके जैसे कई दूसरे इनवेस्टर्स की पेमेंट भी फंसने लगी थीं और डायरेक्टर कभी एक हफ्ते तो कभी दो दिन में पेमेंट आने का आश्वासन देने लगे। आखिर में पब्लिक नोटिस लगा दिया गया कि कंपनी दो महीने तक काम नहीं करेगी। इसी के साथ अमित जैसे लाखों लोगों के पैसे कंपनी में फंस गए और आगे क्या होगा, यह किसी को नहीं पता।

स्कैम का फंडा: इसकी टोपी, उसके सर

पिछले दिनों जब सोशल ट्रेड के कारोबार में लगी एब्लेज इंफो सल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के एमडी अनुभव मित्तल समेत कंपनी के तीन अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया तो कंपनी में पैसा लगाने वाले लाखों लोगों को यकीन नहीं हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है। कंपनी ने उन्हें बताया था कि सब कुछ फेयर है और उनसे अपने पेज के प्रमोशन के लिए लाइक्स क्लिक करवाने के पैसे लिए जा रहे हैं, जबकि दूसरों के पेज प्रमोट करने के लिए लाइक्स क्लिक करने के लिए 5 रुपये प्रति क्लिक दिए जा रहे हैं। ठीक इसी तरह की बात सोशल ट्रेड कारोबार कर रही वेबवर्क ट्रेड लिंक्स प्राइवेट लिमिटेड ने अपने इनवेस्टर्स को बताई हुई थी।

वेबवर्क के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने वाले ए के जैन का आरोप है कि जब उन्होंने कंपनी में इन्वेस्ट किया था तो उनके बिल पर पेमंट के लिए 'प्लान कॉस्ट' लिखा हुआ था। इसे बाद में बदलकर पब्लिशर कर दिया गया। कंपनी की तरफ से बताया गया कि उनसे पैसा अपने विज्ञापन को उनकी वेबसाइट www.addsbook.com पर पब्लिश करवाने के लिए लिया जा रहा है, जबकि दूसरे के विज्ञापन को लाइक करने के लिए उन्हें हर क्लिक के 6 रुपये दिए जा रहे हैं।

अपना पेज या विज्ञापन प्रमोट करवाने और दूसरों के प्रमोशन के बदले पैसा पाने तक का मामला तो ठीक था, लेकिन जांच एजेंसियों को पता चला है कि इस बिजनेस मॉडल में कंपनियां झांसा दे रही थीं और लोगों से लिए गए पैसे को ही उनमें बांट रही थीं। इन दोनों कंपनियों की तरह ही सोशल ट्रेड के नाम पर कारोबार कर रही दूसरी कंपनियों का भी कोई दूसरा इनकम सोर्स नहीं है।

शुरू में तो सबको पैसा भरपूर मिलता है। जैसे जैसे पिरामिड बड होता जाता है, ज्यादा लोगों को पैसा बांट पाना मुश्किल होता जाता है। ऐसे में अपना कमिशन और खर्चे काटने के बाद इन्वेस्ट करने वालों को चाहकर भी उनका पूरा पैसा कंपनी नहीं लौटा पाती और यही स्कैम को जन्म देता है। जांच एजेंसियों के अनुसार, सोशल ट्रेड में 10 लाख से ज्यादा लोगों ने इन्वेस्ट किया हुआ है।

क्या है सोशल ट्रेड

मार्केटिंग के दूसरे तरीकों के बिना इंटरनेट पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल प्रॉडक्ट या सर्विस को प्रमोट करने के लिए किया जाता है। इसे सोशल ट्रेड का नाम दिया गया है। ऐसी कंपनियां जो फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम ,यू-ट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किसी प्रॉडक्ट या सर्विस को प्रमोट करती हैं, उन्हें सोशल ट्रेड कंपनी कहते हैं। हालांकि सोशल मीडिया की कई वेबसाइट खुद भी एक तयशुदा चार्ज लेकर प्रमोशन का काम करती हैं। सभी सोशल ट्रेड कंपनियां फ्रॉड नहीं हैं। सोशल मीडिया पर प्रमोशन का काम करने वाली कई कंपनियां अपने क्लाइंट से चार्ज करती हैं।



कैसे काम करती हैं ये कंपनियां

सोशल ट्रेडिंग का काम मल्टिलेवल नेटवर्किंग का है। इसे पिरामिड स्ट्रक्चर भी कहते हैं। कंपनी से जुड़ने वाले मेंबर को अपने नीचे दो मेंबर और जोड़ने होते है, जिन्हें बूस्टर कहा जाता है। इनके जुड़ने से ऊपर वाले मेंबर को प्रमोशन का कमिशन मिलता है। जैसे-जैसे नीचे के मेंबर बढ़ते जाते हैं या पिरामिड बढ़ता जाता है, ऊपर के मेंबर का पैसा भी बढ़ता जाता है।

दावा किया जाता है कि इन कंपनियों में पिरामिड के सबसे ऊपर के लोगों की महीने की कमाई 20-20 लाख रुपये से भी अधिक है। हालांकि इसका कोई सबूत नहीं है। मेंबर्स के साथ-साथ कंपनी की कमाई कमिशन के रूप में बढ़ती जाती है। लेकिन मेंबर्स का पैसा उन्हीं में घूमते रहने से काफी बड़ा पिरामिड बन जाने के बाद एक समय ऐसा भी आ जाता है कि पिरामिड में सबसे नीचे के लोगों को देने के लिए पैसे नहीं बचते। ऐसे में कंपनी या तो खुद को दिवालिया घोषित कर लेती है या फिर कारोबार समेट लेती है।

सीनियर साइबर क्राइम अनालिस्ट किसलय चौधरी के अनुसार, अपने पेज को प्रमोट करने के लिए पैसे देकर दूसरों के पेज को लाइक करने पर हर क्लिक के पैसे मिलने के कॉन्सेप्ट में कोई दिक्कत नहीं है। पिरामिड बनाने में भी कोई दिक्कत नहीं है। अगर प्रमोशन के लिए सर्विस देकर पैसा लिया जा रहा है तो समस्या नहीं है। समस्या तब शुरू होती है जब लोगों से लिए पैसे को कंपनी उन्हीं के बीच घुमाने की कोशिश करने लगती है। अभी जो कंपनियां फंस रही हैं उन्होंने लोगों से पैसा तो ले लिया, लेकिन इनके पास क्लाइंट नहीं हैं। अगर इन कंपनियों के पास क्लाइंट होते, तो कभी लोगों की पेमेंट नहीं रुकती।

कई कंपनियां जुटी हैं इस कारोबार में

सोशल ट्रेड के कारोबार में इस समय कई कंपनियां काम कर रही हैं। इनमें से कुछ कंपनियां पुलिस जांच का सामना कर रही हैं तो कई अपना कारोबार समेट कर फुर्र हो चुकी हैं।

- एब्लेज इंफो सल्यूशंस: नोएडा स्थित डायरेक्टर अनुभव मित्तल समेत कंपनी के तीन अधिकारियों को एसटीएफ गिरफ्तार कर चुकी है। कंपनी के अकाउंट्स फ्रीज किए जा चुके हैं और कंपनी का काम बंद हो चुका है।

- वेबवर्क ट्रेड लिंक्स : नोएडा स्थित डायरेक्टर अनुराग गर्ग और संदेश वर्मा पर मुकदमा दर्ज किया गया है। कंपनी के अकाउंट्स फ्रीज कर लिए गए हैं। कंपनी ने दो महीने काम बंद रखने का नोटिस लगा दिया है।

- ऐड्सकैश : गाजियाबाद स्थित इस कंपनी की तरफ से काफी दिनों से इन्वेस्टर्स को पेमेंट नहीं की गई है। जिसकी वजह से इन्वेस्टर्स ने कंपनी ऑफिस में तोड़फोड़ की है। आगे कंपनी काम करेगी या नहीं, इसका कुछ पता नहीं है।

(इनके अलावा भी कई छोटी-छोटी कंपनियां वेबसाइट बनाकर यह कारोबार कर रही हैं। जिनमें निवेश करना जोखिम भरा काम हो सकता है)

गाइडलाइंस को धता बतातीं कंपनियां

सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर डिजिटल मार्केटिंग और डायरेक्ट सेलिंग के कॉकटेल से तैयार किए गए सोशल ट्रेड कारोबार वाली कंपनियों ने कानूनी खामियों का फायदा उठाया है। ऊपर से इसमें इन्वेस्टर्स का पिरामड बनाने में मल्टिलेवल मार्केटिंग का भी सहारा ले लिया गया। लिहाजा इन्वेस्टर्स को ऐसी कंपनियों की ठगी से बचाने के लिए कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री ने 9 सितंबर 2016 को सभी राज्यों को लंबी-चौड़ी गाइडलाइंस की एडवाइजरी जारी कर दी।

साथ ही डायरेक्ट सेलिंग में लगी कंपनियों को इन गाइडलाइंस को फॉलो करने की अंडरटेकिंग मिनिस्ट्री को देने को कहा। सोशल ट्रेड स्कैम की जांच में लगी इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसियों के अनुसार इन गाइडलाइंस के जारी होने के बाद ही इन कंपनियों में खलबली मची और इन कंपनियों ने अपने अपने बिजनेस मॉडल को बदलने की कोशिश की। इसी का नतीजा हुआ कि एब्लेज इंफो सल्यूशंस ने ई-कॉमर्स पोर्टल इंटमार्ट शुरू कर दिया, जबकि वेबवर्क ट्रेड लिंक्स ने www.addsbook.com लॉन्च कर दी। इनके माध्यम से यह कंपनियां अपने कारोबार को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश करने में जुटी हुईं थीं।

डायरेक्ट सेलिंग से अलग है पिरामिड स्कीम

कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री की तरफ से जारी की गई गाइडलाइंस में डायरेक्ट सेलिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों को पिरामिड स्ट्रक्चर मनी सर्क्यूलेशन स्कीम में लगी कंपनियों से अलग किया गया। पिरामिड स्ट्रक्चर या मनी सर्कुलेशन स्कीम में लगी कंपनियों को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है। इस तरह की कंपनियों पर नजर रखने और कार्रवाई करने के लिए राज्य सरकारों को व्यवस्था करने के लिए कहा गया है। इस तरह की कंपनियों से जुड़ने से पहले कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री की इन गाइडलाइंस को जरूर जान लें। इन्हें https://tinyurl.com/zl3v2gs पर क्लिक करके समझा जा सकता है।

पिरामिड स्कीम : मल्टीलेवल नेटवर्क से इन्वेस्टर्स या सब्सक्राइवर्स को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचाने के लिए जोड़ने वाली कंपनियां इस श्रेणी में आती हैं। इसमें कंपनियां अपनी नीचे और सब्सक्राइवर्स को जोड़ने और उनके नीचे अन्य लोगों के जुड़ने पर भी फायदा देती हैं। लोगों से लिए हुए पैसे को लोगों में ही बांटने वाली इस तरह की कपंनियां 'द प्राइस चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) एक्ट 1978' के तहत प्रतिबंधित हैं।

डायरेक्ट सेलिंग : मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन, सामान बेचने या फिर कोई भी सर्विस देने में वाली कंपनियां डायरेक्ट सेलिंग में आती हैं जो इसके लिए पिरामिड स्ट्रक्चर का इस्तेमाल नहीं करती हैं। हालांकि मल्टीलेवल नेटवर्क का इस्तेमाल करने वाले डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों को पिरामिड स्ट्रक्चर कंपनियों से अलग रखा गया है। गाइडलाइंस में साफ-साफ बताया गया है कि नए सब्सक्राइवर्स या इन्वेस्टर्स को जोड़ने पर डायरेक्ट सेलिंग कंपनी किसी भी तरह से पैसा नहीं लेंगी।

डायरेक्ट सेंलिंग और पिरामिड स्ट्रक्चर/पोंजी स्कीम में फर्क

डायरेक्ट सेलिंग

कंज्यूमर्स के लिए प्रॉडक्ट या सर्विस की वर्कप्लेस या घर से मार्केटिंग। जब तक कंज्यूमर प्रॉडक्ट या सर्विस लेता है तब तक फायदा होता है।

प्रॉडक्ट या सर्विस की सेल बढ़ाने पर जोर होता है।

यह प्रॉडक्ट की सेल पर आधारित होती है, इसलिए सब्सक्राइबर को वास्तविक कारोबार करने का अवसर मिलता है।

प्लान मुख्य रूप से प्रॉडक्ट की सेल पर आधारित होते हैं।

नए मेंबर्स बनाना जरूरी नहीं होता क्योंकि कारोबार मुख्य रूप से प्रॉडक्ट बेचने पर आधारित होता है।

प्रॉडक्ट के ब्रैंड को प्रमोट करने के लिए मार्केटिंग की जाती है।

प्रॉडक्ट को वापस लेने की गारंटी दी जाती है ताकि डायरेक्ट सेलर और कंज्यूमर का अधिकार सुरक्षित रहे।

प्रॉडक्ट को डिमांड के अनुसार सप्लाई किया जाता है और उसकी इनवेंटरी बनाई तैयार की जाती है।

प्रॉडक्ट के बारे में या बेचने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है।

डायरेक्ट सेलर्स कभी भी न बिकने वाले प्रॉडक्ट को लौटाकर कारोबार छोड़ सकते हैं।

इस तरह का कारोबार संबंधित विभागों के नियमों के अनुसार लाइसेंस लेकर किया जाता है।

सेल्सपर्सन इंडस्ट्री के मॉडल कोड को फॉलो करता है।

पिरामिड स्ट्रक्चर/पोंजी स्कीम

प्रॉडक्ट या सर्विस देने की जगह नए मेंबर्स बनाने से फायदा मिलता है।

नए मेंबर्स या सब्सक्राइबर्स बनाने पर जोर दिया जाता है।

वास्तविक कारोबार करने का अवसर नहीं होता क्योंकि इनमें या तो प्रॉडक्ट होता ही नहीं है या फिर प्रॉडक्ट की वैल्यू नहीं होती है।

प्लान मुख्य रूप से प्रॉडक्ट की सेल पर नहीं, बल्कि नए मेंबर्स जोड़ने पर आधारित होते हैं।

नए मेंबर्स बनाना जरूरी होता है क्योंकि इन्हीं से मिलने वाली फीस से कमीशन मिलता है।

प्रॉडक्ट को दिखावे के लिए इस्तेमाल किया जाता है और उन्हें हकीकत में किसी को बेचा नहीं जाता।

प्रॉडक्ट को वापस नहीं लिया जाता या फिर दिखावे के लिए वापस लेने का दावा किया जाता है।

प्रॉडक्ट को बेचने की जिम्मेवारी सेलर की होती है, चाहे वह उसे बेच पाए या नहीं। इसमें मार्केट डिमांड पर ध्यान नहीं दिया जाता।

प्रॉडक्ट सेल्स के लिए ट्रेनिंग नहीं जाती।

आमतौर पर रिफंड की या कारोबार छोड़ने की पॉलिसी नहीं होती।

इस तरह के कारोबार के लिए संबंधित विभागों से नियमों के अनुसार लाइसेंस लेकर नहीं चलाया जाता।

इसमें कोई मॉडल कोड होता ही नहीं है।

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