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पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने का सपना बहुत-से स्टूडेंट देखते हैं। कइयों का सपना परवान चढ़ जाता है और कइयों का अधूरा रह जाता है। सपना अधूरा रहने के पीछे सही जानकारी न होना, गलत कॉलेज चुनना या फिर पैसे की कमी जैसे कोई भी वजह हो सकती है। पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने की चाहत रखनेवाले स्टूडेंट्स को किन बातों का खास ख्याल रखना चाहिए, अपने अनुभव और एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं मधुरेन्द्र सिन्हा:

इस साल की शुरुआत में कई अजीब घटनाएं देखने में आईं। हैदराबाद से अमेरिका जा रहे प्लेन में कई स्टूडेंट्स को चढ़ने नहीं दिया गया, जबकि उनके पास वैलिड वीजा था और वहां के कॉलेज के एडमिशन लेटर भी। फिर एक खबर आई कि न्यू यॉर्क, लॉस ऐंजलिस, सिएटल और सैन फ्रैंसिस्को एयरपोर्ट पर दर्जनों इंडियन स्टूडेंट्स को रोक लिया गया। सभी को वापस भी भेज दिया गया। कुछ को तो हथकड़ी भी लगा दी गई और अमेरिका में उनकी एंट्री पर 5 साल की पाबंदी लगा दी गई। ये स्टूडेंट्स सिलिकॉन वैली यूनिवर्सिटी और नॉर्थवेस्टर्न पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने जा रहे थे। उनके पास न केवल एडमिशन लेटर था, बल्कि एजुकेशन वीजा भी था। दरअसल, ये स्टूडेंट्स जहां एडमिशन लेने जा रहे थे, वे वहां की गुमनाम यूनिवर्सिटीज में हैं। इनके बारे में राय बहुत अच्छी नहीं है। एक साथ इतने सारे स्टूडेंट्स के वहां दाखिला लेने से इमिग्रेशन अथॉरिटीज को लगा कि इसके पीछे कोई घोटाला है। वे असल में अमेरिका जाकर बसना चाहते थे। इस तरह की घटनाओं से हर किसी के मन में सवाल उठता है कि विदेश खासकर अमेरिका पढ़ने जाने वाले स्टूडेंट्स को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? कैसे पहचानें कि कौन-सी यूनिवर्सिटी और कॉलेज फर्जी है और कौन सही? एडमिशन के लिए किन बातों का खास ध्यान रखें, तैयारी कैसे और कब करें? लैंग्वेज टेस्ट आदि की तैयारियों भी अहम होती हैं, उनके बारे में भी आपको पता होना चाहिए।

कब शुरू करें तैयारी अमेरिका में ज्यादातर यूनिवर्सिटी 2 सेमिस्टर में एडमिशन देती हैं: 1. स्प्रिंग (जनवरी) और फॉल (अगस्त) सीजन में। ज्यादा एडमिशन अगस्त में होते हैं। अगस्त में एडमिशन कराना ज्यादा अच्छा रहता है क्योंकि इस समय यूनिवर्सिटीज़ में ज्यादा सीटें उपलब्ध होती हैं जबकि जनवरी तक सीटें भर जाती हैं। जनवरी में सीटें कम रह जाने के कारण सिलेक्शन क्राइटिरिया भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है। इससे एडमिशन मिलने में मुश्किल होती है। अगर आप अगस्त 2017 में एडमिशन चाहते हैं तो इसके लिए साल भर पहले यानी इसी साल अगस्त-सितंबर से तैयारी शुरू कर दें। सबसे पहले SAT या GMAT/GRE और TOEFL/IELTS दें। ये टेस्ट क्लियर करने के बाद ऐप्लिकेशन (SOP, Cover Letter, LOR समेत) भेजने का काम नवंबर तक पूरा हो जाना चाहिए। आमतौर पर दिसंबर तक यूनिवर्सिटी से ऑफर लेटर आ जाता है। ऑफर स्वीकार करने के लिए 3-4 हफ्ते का टाइम दिया जाता है।

कैसे करें तैयारी - अगर 12वीं के बाद पढ़ने के लिए विदेश जाना चाहते हैं तो बेहतर है कि 11वीं क्लास से ही तैयारी करें। जिस सब्जेक्ट में आगे बढ़ना चाहते हैं, उस पर खास फोकस करें। अपना रिजल्ट बेहतर करें। जितने अच्छे नंबर, उतने अच्छे कॉलेज में एडमिशन का मौका होगा। साथ ही, इंग्लिश भी सुधारें। फॉरेन एजुकेशन के लिए सबसे जरूरी है कि आपको इंग्लिश का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। - तैयारी के लिए बडी सिस्टम काफी अच्छा होता है यानी जो आप अपने किसी ऐसे दोस्त के साथ मिलकर तैयारी करें, जो खुद भी फॉरन यूनिवर्सिटी में जाना चाहता हो। आप एक-दूसरे का सपोर्ट बनें तो साथ ही एक-दूसरे को चैलेंज भी करें। इससे तैयारी बेहतर होती है। साथी न मिले तो अकेले ही चलें। - इंग्लिश की तैयारी के लिए ग्रामर और वोकैबलरी पर खासतौर पर फोकस करे। इसके लिए इंग्लिश मूवीज़, इंटरनैशनल इंग्लिश न्यूज चैनल, नैशनल जियोग्रफिक चैनल आदि देखें। इंग्लिश न्यूजपेपर और मैगजीन पढ़ें। अच्छी वेबसाइट्स पर जाकर पढ़ें।

ये टेस्ट देने जरूरी
- अब आप सब्जेक्ट और कोर्स के हिसाब से दूसरे टेस्ट देने को तैयार हो जाएं। 12वीं के बाद कॉलेज में एडमिशन के लिए अप्लाई करना चाहते हैं तो आपको सैट (SAT यानी स्कॉलेस्टिक एप्टिट्यूड टेस्ट) देना होगा, जबकि पोस्ट ग्रैजुएशन के लिए जीमैट (GMAT यानी ग्रैजुएट मैनेजमेंट टेस्ट) या जीआरई (GRE यानी ग्रैजुएट रेकॉर्ड एग्जामिनेशन) देना होगा। मैनेजमेंट में एडमिशन के लिए GMAT और इंजीनियरिंग, मेडिकल, रिसर्च आदि के लिए GRE देना होता है। कुछ खास यूनिवर्सिटी सब्जेक्ट स्पेसिफिक GRE भी लेती हैं। इन एग्जाम्स के नंबर के आधार पर ही आपको एडमिशन मिलेगा। कुछ कॉलेज इनके बिना भी एडमिशन देते हैं लेकिन उनकी तादाद कम है। - आप विदेश में पढ़ाई के लिए तभी जा सकेंगे, जब आप इंग्लिश के इलिजिबिटी टेस्ट टॉफल (TOEFL) या आइलिट्स (IELTS) में अच्छे मार्क्स लाएंगे। इन एग्जाम्स के दौरान आपकी इंग्लिश रीडिंग, राइटिंग, स्पीकिंग और सुनने की क्षमता की जांच होती है। इसके ही आधार पर आपको पॉइंट्स मिलते हैं। खास बात यह है कि एक बार अच्छे मार्क्स नहीं आने पर आप फिर टेस्ट दे सकते हैं और जिस टेस्ट का स्कोर बेहतर हो, उसे ही रेकॉर्ड में दे सकते हैं। इंग्लिश के लिए IELTS टेस्ट ज्यादातर देशों में मान्य है और इसका एग्जाम देश भर में 42 सेंटर्स पर होता है। ज्यादा जानकारी के लिए देखें: ielts.org - अमेरिका में एडमिशन के लिए TOEFL देना होता है। इंग्लैंड, न्यूजीलैंड आदि देशों के लिए IELTS दिया जाता है। हालांकि ज्यादातर देश अब TOEFL को मानने लगे हैं। ज्यादा जानकारी के लिए देखें: ets.org/toefl

ऐसे चुनें कॉलेज - आपने जो कॉलेज या इंस्टिट्यूट चुना है, वह फर्जी तो नहीं, यह चेक करने के लिए whed.net/home.php पर जाएं। यह वर्ल्ड हायर एजुकेशन डेटाबेस है। यहां दुनिया भर के तमाम प्रामाणिक कॉलेजों की लिस्ट है। - अमेरिकी सरकार की वेबसाइट usa.gov/study-in-us पर जाएं। वहां से अमेरिका जाकर पढ़ाई करने के बारे में बेसिक और प्रामाणिक जानकारी मिल जाएगी। - फिर आप जिस सब्जेक्ट की पढ़ाई करना चाहते हैं, वह कौन-कौन से कॉलेज और यूनिवर्सिटी में है, यह पता लगाएं। वह कॉलेज कैसा है, यह जानने की कोशिश करें। कॉलेज की वेबसाइट के अलावा उससे जुड़ी तमाम वेबसाइट्स पर जाएं। वहां के स्टूडेंट्स कहां-कहां काम कर रहे हैं, यह जानकारी हासिल करें। सभी कॉलेजों की एल्मनै (एल्युमिनाइज) असोसिएशन भी हैं, जो सोशल मीडिया (फेसबुक आदि) पर एक्टिव होती हैं। कॉलेज के बारे में उनके रिव्यू पढ़ें। कुछ निगेटिव कमेंट्स हैं तो उन पर खास ध्यान दें। - अमेरिका में हर कॉलेज की रैंकिंग होती है और वह ऑनलाइन उपलब्ध है। इसके लिए कई वेबसाइट्स आपकी मदद कर सकती हैं जैसे: usnews.com/best-colleges पर जाकर बेस्ट कॉलेज या यूनिवर्सिटी की रैंकिंग देख सकते हैं। इसके अलावा forbes.com पर जाकर Lists पर क्लिक करके Education में टॉप कॉलेज या इंस्टिट्यूट देख सकते हैं।

अप्लाई करने का तरीका
- आपने जो कॉलेज शॉर्टलिस्ट किए हैं, उनकी साइट पर जाकर Department of General Queries वाले ऑप्शन में जाएं। वहां दिए हुए ईमेल आईडी पर अपनी क्वैरीज को मेल कर दें। रिक्वेस्ट लेटर के साथ अपना एक शॉर्ट बॉयोडाटा भी भेजें। रिक्वेस्ट लेटर भेजने के बाद ज्यादातर यूनिवर्सिटीज आपको ऑनलाइन ऐप्लिकेशन फॉर्म भेजती हैं। अगर यूनिवर्सिटी की तरफ से कोई जवाब नहीं आता है तो कुछ समय बाद दोबारा रिक्वेस्ट भेजें। - विदेशी कॉलेजों में काउंसलर या रिप्रेजेंटेटिव होते हैं जो आपके संपर्क में रहेंगे। जब आप कॉलेज के लिए अप्लाई करेंगे तो मेल उन तक पहुंचेगी और वे आपसे कॉन्टैक्ट करेंगे। वे आपकी ऐप्लिकेशन में जो कमियां होंगी, उन्हें आपसे बातें करके पूरी करने की कोशिश करेंगे। वे ईमेल के जरिए आपसे जुड़े रहेंगे। आपको खुद भी सतर्क रहना होगा और अपने ऐप्लिकेशन को ट्रैक करते रहना होगा ताकि डेडलाइन न निकल जाए। - यूनिवर्सिटी को सभी जरूरी डॉक्युमेंट्स मिलते ही स्टूडेंट्स ऐप्लिकेशन फॉर्म को एडमिशन कमिटी के पास भेज दिया जाता है। ऐप्लिकेशन प्रोसेस पूरा होने के बाद जबाव आने में 1-2 महीने का समय लग जाता है। वे चाहें तो आपका इंटरव्यू भी ले सकते हैं। इसके लिए वे आपको कॉल करते हैं। अगर आपकी ऐप्लिकेशन स्वीकार कर ली जाती है तो उसके बाद वीजा के लिए अपने डॉक्युमेंट्स तैयार करने शुरू कर दें। - आपको इस दौरान स्कॉलरशिप का भी ध्यान रखना होगा और उसके लिए भी पता लगाते रहना होगा। इन स्कॉलरशिप की जानकारी वे कॉलेज ही देते हैं जहां आप अप्लाई करेंगे। आप ईमेल से मंगा सकते हैं। नेट से इस तरह के स्कॉलरशिप की जानकारी मिल सकती है। - अमेरिका में एडमिशन के लिए आपको यह बताना होगा कि आप वहां क्यों पढ़ना चाहते हैं। इसे एसओपी यानी स्टेटमेंट ऑफ परपस कहते हैं। बेहतर होगा कि इसके लिए किसी एक्सपर्ट की मदद लें। एसओपी के अलावा एलओआर यानी लेटर ऑफ रिकमेंडेशन भी बहुत अहम है। कई यूनिवर्सिटी इसे कागज पर मांगती हैं जबकि कुछ ईमेल पर। इसके जरिए वे स्टूडेंट के बारे में सारी जानकारी जुटा लेती हैं।

SOP ऐसे लिखें
- विदेशी कॉलेजों खासकर अमेरिका में पढ़ने के लिए सबसे जरूरी है, एसओपी यानी स्टेटमेंट ऑफ परपस। इसका मतलब यह हुआ कि आप यह बताएं कि आखिर आप वहां क्यों पढ़ने जाना चाहते हैं? एसओपी को ऐप्लिकेशन फॉर्म के साथ जमा करना होता है। इसके जरिए संस्थान यह फैसला करते हैं कि फलां स्टूडेंट को अपने यहां दाखिला दें या नहीं। - इसे काफी संभलकर लिखना होगा। लच्छेदार इंग्लिश के बजाय सिंपल इंग्लिश लिखें। वहां के लोग सिंपल इंग्लिश ज्यादा पसंद करते हैं। इसमें गलतियां नहीं होनी चाहिए। कम शब्दों में अपनी बात लिखें। आमतौर पर एक A-4 पेज लिखना काफी होता है। - सच लिखें और इमोशनल बनने से बचें। इसमें आप अपने बचपन के बारे में भी लिख सकते हैं, लेकिन अगर उसमें कुछ खास बात हो तो। अपने स्कूल और कॉलेज में अपनी परफॉर्मेंस के बारे में लिखिए। - आप यह जरूर लिखें कि आपमें अपने काम को लेकर कितनी लगन है? आप स्पेशलाइजेशन और एचीवमेंट के बारे में भी जिक्र करें। यहां बताएं कि आप अमेरिका में ही क्यों पढ़ना चाहते हैं, आपने यही यूनिवर्सिटी क्यों चुनी, आपने यही कोर्स क्यों चुना और इनका आपके करियर गोल से क्या ताल्लुक है? - अमेरिका रिसर्च का मक्का है। वहां हर तरह की रिसर्च होती रहती हैं। अगर आपने भी कोई रिसर्च की हो तो जरूर लिखें। इससे आपकी दावेदारी मजबूत होती है। अगर आप यह इच्छा जाहिर करें कि अमेरिका में पढ़ाई के बाद आप वहां रिसर्च करना चाहते हैं तो यह और भी बेहतर होगा।

Cover Letter यह भी ऐप्लिकेशन का बड़ा हिस्सा है। इसमें आप सीधे सब्जेक्ट पर आ जाएं और लिखें कि हमें आपके इंस्टिट्यूट या कॉलेज में एडमिशन चाहिए और इसके लिए आप जरूरी डॉक्युमेंट भेज रहे हैं। इनमें सभी कुछ होना चाहिए, मसलन अपने बायोडाटा से लेकर फीस तक की डिटेल्स। इसके साथ ही आपको टॉफल और जीआरई या जीमैट के स्कोर की फोटोकॉपी देनी होगी। सभी तरह के ऐकडेमिक रेकॉर्ड और ऐफिडेविट का भी इसमें जिक्र होना चाहिए। एलओआर यानी लेटर ऑफ रिकॉमेंडेशन का भी जिक्र होना चाहिए। इसमें आप फाइनैंशल मदद की भी बात संक्षेप में लिख सकते हैं।

LOR
लेटर ऑफ रेफ्रेंस एक जरूरी दस्तावेज है जिसके बिना आप एडमिशन की बात सपने में भी नहीं सोच सकते। यह अमूमन आपके प्रोफेसर या टीचर की ओर से लिखा जाता है। बेहतर होगा अपने स्कूल-कॉलेज के टीचर से ही इसे लिखवाएं। इसके लिए एक परफॉर्मा आता है जो हर कॉलेज खुद भेजता है। कई कॉलेज आपसे टीचर का नाम और उनका ईमेल मांगकर उन्हें सीधे मेल करेंगे ताकि टीचर सही फीडबैक दे सकें। एलओआर आमतौर पर 3 टीचर से लिखवाना होता है। यह सुनिश्चित कर लें कि टीचर आपके बारे में अच्छा लिखें। आप इन टीचर्स के नाम अमेरिकी कॉलेज या यूनिवर्सिटी को भेज सकते हैं। अगर आपने कहीं जॉब किया है तो वहां से भी एलओआर ले सकते हैं। यह बेहतर माना जाता है। अमेरिका में मैनेजमेंट वगैरह की पढ़ाई में ज्यादातर वहीं कैंडिडेट होते हैं जिन्होंने वहां किसी किस्म की नौकरी की है। उन्हें प्रिफरेंस मिलता है इसलिए अपने बॉस से एलओआर लेना कहीं बेहतर होगा।

वीजा की तैयारी
अगर आपको पसंदीदा कॉलेज मिल जाता है तो वीजा की तैयारी करनी होगी। स्टूडेंट्स के लिए I -20 वीजा की जरूरत होती है। इसके लिए आपके पास यूनिवर्सिटी से मिला F-1 फॉर्म जरूर होना चाहिए। वीजा के फॉर्म को ध्यान से भरना चाहिए और उसमें गलतियां नहीं होनी चाहिए। कोई भी सूचना छुपानी नहीं चाहिए। हर बात साफ-साफ बतानी चाहिए। पूरे विश्वास के साथ बताएं कि आप पढ़ाई करने जा रहे हैं, न कि उनके देश पर बोझ बनने। ध्यान रहे कि कॉलेज में एडमिशन हो जाने भर से आपको वीजा मिल ही जाएगा, यह जरूरी नहीं। वीजा वहां के इमिग्रेशन डिपार्टमेंट के नियमों के मुताबिक मिलता है। जरा-सी गलती पर यह रिजेक्ट हो सकता है। फिलहाल F-1 वीजा की ऐप्लिकेशन फीस 160 डॉलर यानी 10880 रुपये है, जोकि वापस नहीं होती। जीआरई, जीमैट और टॉफेल आदि टेस्ट की ऑरिजनल रिपोर्ट शीट के अलावा वीजा ऑफिसर आमतौर पर बैंक अकाउंट की डिटेल्स भी चेक करते हैं कि दूसरे देश जाकर पढ़ाई करने के लिए आपके पास पैसा है या नहीं?

रहने का इंतजाम
वीजा मिल जाने के बाद आपको दूसरी तैयारियां भी करनी होंगी जैसे वहां रहने का इंतजाम, मेडिकल इंश्योरेंस आदि। आमतौर पर वैसे वीजा ऐप्लिकेशन में आपसे यह पूछा जाएगा कि आप कहां रहेंगे? इसमें आमतौर पर स्टूडेंट्स जिस कॉलेज में एडमिशन लेने जा रहे हैं, वहां के इंटरनैशनल ऑफिस का एड्रेस या किसी फ्रेंड का एड्रेस दे सकते हैं। बाद में आप अपने रहने की जगह बदल भी सकते हैं। रहने की जगह तलाशने से पहले इंटरनेट पर ब्लैक लिस्टेड एरिया सर्च कर लें। यहां घर न लें। जहां तक खर्चे की बात है तो इलाके और कॉलेज की रैंकिग के हिसाब से फीस और रहने के खर्चे में काफी फर्क होता है। मसलन अगर आप न्यू यॉर्क जैसे शहर में रहते हैं तो आपको सिंगल बेडरूम के लिए 1000 डॉलर (करीब 66 हजार रु.) हर महीने तक चुकाने पड़ सकते हैं, जबकि अलबामा, जॉर्जिया राज्यों के गैर शहरी क्षेत्रों में चार कमरों के घर भी किराये पर 700 डॉलर महीना तक में मिल जाएगा। इसी तरह, रहन-सहन पर कम-से-कम 500-600 (करीब 35-40 हजार रु.) डॉलर महीना खर्च करने ही होंगे। हालांकि बड़े शहरों में 1300-1400 डॉलर (करीब 85-95 हजार रु.) महीना तक आसानी से खर्च हो सकते हैं। अमेरिका में विदेशी स्टूडेंट्स को हर महीने 20 घंटे काम करने की छूट है, लेकिन सिर्फ कैंपस में। कैंपस के बाहर काम गैर-कानूनी होगा। कैंपस के अंदर रेस्तरां में कुकिंग, क्लीनिंग, यूनिवर्सिटी पुलिस या लाइब्रेरी हेल्पर जैसे काम कर सकते हैं। इनसे मिलनेवाली रकम से खर्चा चलाने में मदद मिलती है।



क्या है आईवी लीग
अमेरिका में पढ़ाई की बात आती है तो आईवी लीग (Ivy League) का जिक्र जरूर आता है। इस लीग के तहत आनेवाले संस्थान पढ़ाई में भी अव्वल हैं और बहुत सारे स्टूडेंट्स की चाहत इनमें एडमिशन की होती है। वहां के 8 बड़े एजुकेशनल इंस्टिट्यूट्स ने अपनी एथलेटिक लीग बनाई, जिसे आईवी लीग कहते हैं। इसमें नॉर्थ-ईस्टर्न अमेरिका की 8 यूनिवर्सिटी हैं: 1. ब्राउन (Brown) यूनिवर्सिटी 2. कोलंबिया (Columbia) यूनिवर्सिटी 3. कॉर्नेल (Cornell) यूनिवर्सिटी 4. हार्वर्ड (Harvard) यूनिवर्सिटी 5. प्रिंसटन (Princeton) यूनिवर्सिटी 6. येल (Yale) यूनिवर्सिटी 7. यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया (Pennsylvania) 8. डार्टमाउथ (Dartmouth) कॉलेज हैं। अगर बजट कम है तो आईवी लीग से दूर उन कॉलेजों में एडमिशन की कोशिश करनी चाहिए जो वहां नैशनल रैंकिंग में 30-35 नंबर तक हों। इनमें कई बेहद अच्छे कॉलेज हैं जिनमें पढ़ाई का स्टैंडर्ड बहुत ऊंचा है और फीस भी जायज है। हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने भी अपनी बेटी को सलाह दी थी कि वे आईवी लीग से दूर रहकर दूसरे कॉलेजों में एडमिशन की कोशिश करें।

ये बातें भी जरूरी
- अमेरिका या किसी भी दूसरे देश में पढा़ई करने जाने से पहले मेंटली तैयार होना जरूरी है। हमारे और उनके कल्चर में काफी फर्क है। आप जहां पढ़ना चाहते हैं, उसके आसपास किसी जानकार को होना चाहिए जिसे आप लोकल गार्जियन बना सकते हैं। आगे जाकर किसी तरह की परेशानी होने पर वह आपका सपोर्ट सिस्टम साबित होगा। पढ़ाई के लिए वहां जाने के बाद याद रखें कि आप वहां क्यों आए हैं? इससे आपको अपना मकसद याद रहेगा और आप उसी पर फोकस करेंगे। वहां की चकाचौंध या खुलेपन में भटकेंगे नहीं। वहां जाकर दोस्त जरूर बनाएं ताकि आपको अकेलापन न लगे। हां, दोस्तों के बीच पढ़ाई को न भूलें। - वहां जाने पर अगर आपको लगे कि आप कोई डॉक्युमेंट भूल गए हैं या कोई डॉक्युमेंट खो गया है तो परेशान न हों। सबसे पहले अपनी यूनिवर्सिटी को कॉन्टैक्ट करें। वहां से जरूर हेल्प मिलेगी। इसके बाद पुलिस के पास जाएं। डरें नहीं। वहां के पुलिसवाले आमतौर पर हेल्पफुल होते हैं। किसी इमरजेंसी के लिए 911 पर कॉल करें। - देश में कई एजुकेशनल कंस्लटंट हैं, जो फीस लेकर आपको काफी जानकारी मुहैया करा सकते हैं। लेकिन इन पर पूरी तरह निर्भर रहना सही नहीं होगा क्योंकि ये भी कई बार बिचौलिये की तरह काम करते हैं और कॉलेजों से मिलनेवाले कमिशन के लालच में आपको सेकंड-ग्रेड कॉलेज में भेज सकते हैं।

2016 की दुनिया की टॉप 10 यूनिवर्सिटी

1. कैलिफॉर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (अमेरिका) 2. यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफर्ड (ब्रिटेन) 3. स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी (अमेरिका) 4. यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज (ब्रिटेन) 5. मैसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (अमेरिका) 6. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (अमेरिका) 7. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी (अमेरिका) 8. इंपीरियल कॉलेज लंदन (ब्रिटेन) 9 स्विस फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (स्विटजरलैंड) 10. यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो

सोर्स: timeshighereducation.com

एक्सपर्ट्स पैनल

- प्रमोद जोशी, करियर काउंसलर - निहार रंजन, रिसर्चर और स्कॉलर

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ऑड का ईवन फॉर्म्युला

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दिल्ली में एक बार फिर से ऑड-ईवन स्कीम चल रही है। चांस यह भी है कि हर महीने 15 दिन यह स्कीम चलाई जाए। बेशक इस स्कीम से सड़कों पर वीइकल कम होने के साथ ही पल्यूशन और जाम कम हो रहा है, लेकिन लोगों को दिक्कतें भी हो रही हैं। ये दिक्कतें दूर हो सकती हैं, अगर हम अपनी कार में सीएनजी किट फिट करा लें या फिर ऑल्टरनेट वीइकल यूज करें। ऑड-ईवन के दिनों में कौन-से वीइकल किस तरह आपको राहत दिला सकते हैं, बता रहे हैं खालिद अमीन और दिग्विजय सिंह:

CNG की ABC
ऑड-इवन के शुरू होते ही एक बार फिर सीएनजी (कम्प्रेस्ड नेचरल गैस) की वैल्यू लोगों के बीच बढ़ गई है। सीएनजी किट को लेकर तमाम तरीके के सवाल भी होते हैं, जिनके जवाब पाने के लिए लोगों को इधर-उधर भटकना पड़ता है। मलसन कौन-सी किट लगवानी है, किन-किन कागजात की जरूरत पड़ती है। परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। किट लगवाने से पहले एक बार इन बातों पर जरूर गौर फरमाएं:

मार्केट में 2 तरह की सीएनजी किट मौजूद है:
सिक्वेंशल और कन्वेंशनल
सिक्वेंशल किट : यह लेटेस्ट कंप्यूटराइज्ड किट है, जो यूरो 3 या उससे ऊपर की सभी पेट्रोल कारों के लिए बढ़िया है। ओरिजनल सिक्वेंशल किट अलग-अलग ब्रैंड्स की आ रही हैं। इसमें कुछ इम्पोर्टेड किट भी मौजूद हैं जो इटली, अर्जेंटिना जैसे कई देशों से इंपोर्ट की जाती हैं। ओरिजनल सिक्वेंशल किट से बढ़िया माइलेज और अच्छा पिकअप मिलता है। साथ ही, यह गाड़ी के इंजन को भी नुकसान नहीं पहुंचाती। कन्वेंशनल किट: यह किट साल 2010 से पहले की गाड़ियों में फिट की जाती है। इसका साइज बड़ा होता है और यह सिक्वेंशल के मुकाबले सस्ती होती है। इसका माइलेज और परफॉर्मेंस कम होती है।

कौन-कौन से पेपर
- जब आप सीएनजी किट लगवाने जाएं तो आपके पास ओरिजिनल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी), इश्योरेंस की कॉपी, सीएनजी लगने से पहले का पल्यूशन सर्टिफिकेट, एड्रेस प्रूफ जैसे कागजात होने चाहिए।
- सीएनजी लगने के बाद मिली स्लिप की ऑरिजनल कॉपी, सर्टिफिकेट और सिलिंडर सर्टिफिकेट की कॉपी को लेकर अपने एरिया के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में जाना होगा, जहां आपके कार में लगी सीएनजी की जांच होगी और आपको सीएनजी स्टिकर दिया जाएगा।
- सीएनजी किट हमेशा गवर्नमेंट से अप्रूव्ड सेंटरों से ही लगवाएं। अप्रूव्ड सेंटरों की जानकारी ट्रांसपोर्ट विभाग की वेबसाइट transport.delhi.gov.in पर उपलब्ध है।
- सीएनजी सेंटर से आपको फॉर्म-20 मिलेगा, जिसे भरकर जमा करना होगा। इस फॉर्म में आपको गाड़ी से जुड़ी तमाम डिटेल्स भरनी होंगी।

CNG के फायदे
- पेट्रोल और डीजल से कहीं ज्यादा सस्ती। सीएनजी से चलने वाली कारें इंजन कपैसिटी और किट की क्वॉलिटी के हिसाब से 1.1 से 1.5 रुपये/किमी की रनिंग कॉस्ट देती हैं।
- पेट्रोल और डीजल की तुलना में सीएनजी में आग लगने का खतरा कम होता है।
- जो लोग शहर के अंदर ही ज्यादा कम्यूट करते हैं और फ्यूल पर पैसे नहीं खर्च करना चाहते या फिर पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर सचेत रहते हैं उनके लिए सीएनजी बेहतर ऑप्शन है। सीएनजी कार की 1-1.5 रुपये/किमी की रनिंग कॉस्ट एक बाइक या स्कूटर की रनिंग कॉस्ट के बराबर ही पड़ती है।

CNG के नुकसान
-सीएनजी की गाड़ी परफॉर्मेंस के मामले में पिछड़ जाती है।
-कार की मेंटेनेंस कॉस्ट काफी बढ़ जाती है। कई बार लोग सस्ती सीएनजी किट लगवा लेते हैं जिससे इंजन को नुकसान होता है।

दिल्ली में नया नियम
सीएनजी किट को लेकर दिल्ली में नया नियम लागू हो गया है। अब दिल्ली में बीएस-1 और बीएस-2 एमिशन स्टैंडर्ड वाली गाड़ियों में सीएनजी किट नहीं लग सकेगी। इस पर दिल्ली सरकार ने रोक लगा दी है। इससे पहले किसी भी गाड़ी में सीएनजी किट लगवा सकते थे। अब सिर्फ बीएस-3 और बीएस-4 एमिशन स्टैंडर्ड वाली गाड़ियों में ही सीएनजी किट लग सकेगी। यानी 2005 से पहले की गाड़ियों में सीएनजी किट नहीं लग सकेगी।



इलेक्ट्रिक वीइकल
इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स को ई-बाइक्स के नाम से भी जाना जाता है। इंडिया में अभी ये बहुत कामयाब नहीं हो पाई हैं, लेकिन अगर थोड़ा समझदारी से इनका इस्तेमाल किया जाए तो ये काफी काम की हो सकती हैं।

क्या है खूबियां
- सबसे बड़ी खासियत तो यही है कि ये बिना पेट्रोल के चलती हैं। रनिंग कॉस्ट पेट्रोल या डीजल पर चलने वाले टू-वीलर के मुकाबले काफी कम होती है।
- कीमत भी पेट्रोल टू-वीलर से करीब 60-65 पर्सेंट तक कम होती है। मसलन, एक ऑटोमैटिक स्कूटर करीब 65 से 75 हजार रुपये में आता है, जबकि इलेक्ट्रिक स्कूटर की कीमत करीब 25 से 35 हजार रुपये होती है।
- इनमें इंजन की जगह इलेक्ट्रिक मोटर लगी होती है, जिसकी मेंटनेंस कम होती है। इंजन की तरह खराब होने वाले पार्ट्स इनमें नहीं होते। कुल मेंटनेंस (सर्विस आदि) का खर्च बेहद कम है।
-25 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से कम स्पीड वाली ई-बाइक्स (लो स्पीड बाइक्स) को चलाने के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं होती। रजिस्ट्रेशन और हेलमेट भी जरूरी नहीं है, क्योंकि इनकी रफ्तार काफी कम होती है। हालांकि खुद की सेफ्टी के लिए हेलमेट जरूर लगाना चाहिए।
-इनका डिजाइन काफी स्टाइलिश होता है और देखने में ये ट्रडिशनल ऑटोमेटिक स्कूटरों की तरह ही दिखती हैं। ऐसा नहीं लगता कि आप कोई अलग तरह का स्कूटर चला रहे हैं।


क्या है कमियां
- इनकी बैटरी पर अभी काफी काम हो रहा है। अभी इनमें जो तकनीक मौजूद है, उससे बैटरियों को चार्ज होने में काफी वक्त लगता है और वे ज्यादा दूर तक भी नहीं चल पातीं।
- लंबी दूरी की राइड के लिए इनका इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं, क्योंकि एक बार फुल चार्ज करने पर आमतौर पर ये 50 से 60 किमी तक ही चल पाती हैं।
- लो स्पीड बाइक तो काफी स्लो हैं ही, हाई स्पीड बाइक भी करीब 50 किमी प्रति घंटा की अधिकतम रफ्तार ही पकड़ सकती है। ऐसे में ये बैटरी भी ज्यादा इस्तेमाल करती हैं।
-इन्हें अब भी मेनस्ट्रीम का टू-वीलर नहीं माना जा रहा। यह एक ऐसा माइंड ब्लॉक है जिसे दूर करना जरूरी है तभी ये आम लोगों में पॉपुलर हो पाएंगी।

इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स में ऑप्शन
ई-बाइक: भले ही सभी तरह के इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स को लोग ई-बाइक के नाम से बुलाते हों, लेकिन ई-बाइक वे बाइक्स हैं, जो देखने में साइकल या मोपेड की तरह दिखती हैं और इनमें इलेक्ट्रिक मोटर लगी होती है। उसके अलावा, इलेक्ट्रिक स्कूटर भी होते हैं जो मोटे तौर पर स्कूटर जैसे ही दिखते हैं। इंडिया में ई-स्कूटर ज्यादा बिकते हैं।
किनके लिए बेस्ट: ये बाइक और स्कूटर उनके लिए अच्छे हैं, जो घर के आसपास मार्केट वगैरह जाने के लिए एक हल्का वीइकल चाहते हैं।

लो-स्पीड: जिन इलेक्ट्रिक बाइक/स्कूटरों की स्पीड 25 किमी प्रति घंटा से कम होती है, उन्हें लो-स्पीड स्कूटर कहते हैं। इनके लिए हेलमेट, रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस जरूरी नहीं है।
किनके लिए बेस्ट: अगर घर में कम उम्र के बच्चे हैं (14-15 साल ) और वे भी स्कूटर चलाना चाहते हैं तो उनके लिए ये अच्छा ऑप्शन हैं। कम स्पीड की वजह से ये बच्चों के लिए सेफ भी हैं।

हाई-स्पीड: इंडिया में जो इलेक्ट्रिक बाइक/स्कूटर 50-55 किमी प्रति घंटा तक की स्पीड पकड़ सकते हैं, उन्हें हाई-स्पीड स्कूटर कहा जाता है।
किनके लिए बेस्ट: अगर परफॉर्मेंस चाहिए तो हाई स्पीड बाइक चुनें। ये स्कूटर पेट्रोल से चलने वाले स्कूटरों को परफॉरमेंस में टक्कर दे सकते हैं। स्टाइल भी इनका बेहतर होता है।

ई-बाइक्स: आपकी जेब के लिए भी फायदेमंद
इलेक्ट्रिक वीकल्स का इस्तेमाल करके आप पर्यावरण को काफी फायदा पहुंचा सकते हैं। साथ ही, अपने पेट्रोल बिल में भी काफी कटौती कर सकते हैं। सोसायटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक वीकल्स (SMEV) के डायरेक्टर सोहिंदर गिल बताते हैं कि अगर एक लाख पेट्रोल टू-वीलर्स को एक लाख इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स से रिप्लेस कर दिया जाए तो 3 साल में 1.5 लाख टन कार्बन एमिशन को रोका जा सकता है। लेकिन ग्रीन वीइकल्स को बढ़ावा देने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर पॉलिसी तक में बड़े बदलाव करने होंगे। SMEV ने इसे लेकर एक स्टडी भी की है, जिसे देखकर आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि आपका इलेक्ट्रिक स्कूटर कितना किफायती और कितना ग्रीन है। मिसाल के तौर पर अगर आप पेट्रोल के टू-वीलर की जगह इलेक्ट्रिक टू-वीलर इस्तेमाल करते हैं तो 2 साल में करीब 40 हजार रुपये की बचत कर सकते हैं। समझते हैं, इस गणित को:

पेट्रोल की कीमत: 60 रुपये प्रति लीटर (लगभग)
माइलेज: 45 किमी प्रति लीटर
बिजली की कीमत: 8 रुपये प्रति यूनिट
इलेक्ट्रिक वीइकल को फुल चार्ज करने की लागत: 10 रुपये
फुल चार्ज करने पर चलती है: 60 किमी
अगर आपकी डेली एवरेज राइड 40 किमी है तो ऊपर दिए आंकड़ों के आधार पर 2 साल में 28800 किलोमीटर चलेंगे।

इसी के आधार पर इलेक्ट्रिक और पेट्रोल स्कूटर की तुलना करते हैं तो:
2 साल में इलेक्ट्रिक स्कूटर की ओनरशिप
कीमत: 35,000 रुपये
मेंटनेंस कॉस्ट: 8000 रुपये
बैटरी रिप्लेसमेंट कॉस्ट: 16,000 रुपये
2 साल में चार्जिंग की कॉस्ट: 4608 रुपये
रीसेल वैल्यू: 5000 रुपये
टोटल ओनरशिप कॉस्ट: 58,608 रुपये

2 साल में पेट्रोल स्कूटर की ओनरशिप
कीमत: 55,000 रुपये
मेंटनेंस कॉस्ट: 16,000 रुपये
बैटरी रिप्लेसमेंट कॉस्ट: 0 रुपये
2 साल में फ्यूल की कॉस्ट: 38,304 रुपये
रीसेल वैल्यू: 10,000 रुपये
टोटल ओनरशिप कॉस्ट : 99,304 रुपये
इलेक्ट्रिक टू-वीलर चलाने वाले की 2 साल में बचत: 40696 रुपये


इलेक्ट्रिक फोर-वीलर में पीछे हैं हम (बॉक्स के लिए)
इंडिया में इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स तो फिर भी सड़कों पर दिख जाते हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक फोर वीलर को यहां रोड पर आपने शायद ही देखा होगा। इसकी वजह यह है कि इंडिया में अभी इसका मार्केट बिल्कुल भी नहीं है। महिंद्रा एंड महिंद्रा की एकमात्र इलेक्ट्रिक कार रेवा ही मौजूद है। वैसे तो यह पूरी तरह से बैटरी से चलने वाली कार है, लेकिन जिस तरह की एडवांस इलेक्ट्रिक गाड़ियां अमेरिका, यूरोप और जापान में मौजूद हैं, उनसे यह तकनीकी रूप से काफी पीछे है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इंडिया में इलेक्ट्रिक कारों को पॉपुलर करने के लिए ऑटोमोबाइल कंपनियों और सरकार को काफी मेहनत करनी होगी। इस बीच अच्छी खबर यह है कि दुनिया की सबसे पॉपुलर इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला ने अपनी नई कार टेस्ला मॉडल-3 को इंडिया में लाने का ऐलान कर दिया है। यह बेहद एडवांस्ड कार है। अगर इस पर सारे टैक्स हटा लिए जाएं तो भी इसकी कीमत इंडिया में करीब 25 लाख रुपये पड़ेगी। ऐसे में अगर मास सेगमेंट की बात करें तो करीब 6 लाख रुपये कीमत वाली महिंद्रा रेवा इंडियन मार्केट के लिए फिलहाल अच्छा ऑप्शन है। ..........................................

सब पर भारी, साइकल हमारी
ट्रांसपोर्ट के लिए एक बढ़िया जरिया है साइकल। ऑफिस हो या कॉलेज या फिर थोड़ी दूर से सामान लेकर आना हो, साइकल से बेहतर और कुछ नहीं। एक्सरसाइज के साथ-साथ आप अपनी दूरी आराम से तय कर सकते हैं। मार्केट में आपको 2000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये तक की रेंज में साइकल मिल जाएंगी। इनमें स्पोर्ट्स, हाइब्रिड, माउंटेन, रोड, फोल्डिंग जैसे कई ऑप्शन हैं। साइकल की रेंज के अलावा इसे यूज करने के हिसाब से भी 3 कैटिगरी में बांटा गया है: बेसिक, मॉडरेट और प्रफेशनल्स। अगर आप शौकिया तौर पर साइकल लेना चाहते हैं 3000 से 4500 रुपये तक में काफी अच्छे ऑप्शंस मिल जाएंगे। इसके अलावा और भी बेहतर रेंज में साइकल बाजार में उपलब्ध हैं।
स्कूल-कॉलेज के लिए
मार्केट में सिंगल स्पीड की अच्छी साइकलें 3 से 5 हजार रुपये की रेंज में मौजूद हैं, जो आपकी राइड का मजा बढ़ा सकती हैं। इन तरह की साइकिलों में आपको पावरफुल ब्रेक के साथ स्टील मेटल की बॉडी मिलती है, जिसकी वजह से इसका वजन अपेक्षाकृत कम ही होता है। इनकी मेटिनेंस कॉस्ट भी काफी कम होती है और ये पूरी तरह से पैसा वसूल साबित होती हैं।
​​ऑफिस के लिए
ऑफिस अगर पास है तो हफ्ते में एक-दो बार तो साइकल से जा ही सकते हैं। वैसे भी मार्केट में ऑप्शंस की भरमार है। आपको 8 से 15 हजार रुपये की रेंज में शानदार साइकल मिल सकती है। दिल्ली से सटे इंदिरापरम में स्पोर्ट्स सेंटर डिकैथलॉन के स्पोर्ट्स एडवाइजर मोहित शर्मा का कहना है कि उनके यहां 3 हजार से लेकर 37000 रुपये तक की साइकल उपलब्ध हैं। साइकल को लेकर अब एक नया क्रेज देखने को मिल रहा है। दिल्ली-एनसीआर के लोगों का रुझान साइकल की ओर बढ़ा है। ऐसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है, जो साइकल से चलने में खुद को ज्यादा फ्रेश और फिट महसूस करते हैं।
प्रफेशनल्स के लिए खास
अगर आप प्रफेशनल लेवल पर साइक्लिंग का शौक रखते हैं तो 24 गियर वाली एल्युमीनियम फ्रेम की साइकल आपके लिए बेहतर है। लगभग 10 किलो की ट्राईबैन 300 आपको 8 अलग-अलग साइज में मिल सकेगी। एलॉय वील्स (हल्के और मजबूत) के साथ इसे लंबी राइड के लिए खास तौर से डिजाइन किया गया है। इसकी कीमत 37000 रुपये है।
ऑफ और ऑन रोड के लिए
30 हजार में आपको 27 गियर वाली मल्टिपर्पज साइकल मिल जाएगी, जिसे लेकर आप सिटी और पहाड़ों पर भी जा सकते हैं। इस तरह की साइकल में बाइक की तरह हाइड्रॉलिक सस्पेंशन और ब्रेक लगा होता है जो साइक्लिंग के दौरान आपकी काफी मदद करता है।
कमाल की फोल्डिंग साइकल
बाजार में ऐसी साइकिलें भी हैं, जिन्हें आप फोल्ड करके अपने साथ कहीं भी ले जा सकते हैं। लोग हॉलिडे पर इस तरह की साइकल ले जाना काफी पसंद करते हैं। ऐसी ही फोल्डिंग साइकिल बनाने वाली कंपनी फायरफॉक्स बाइक्स के सीईओ शिव इंदर सिंह का कहना है कि ऑड-ईवन का कॉन्सेप्ट काफी अच्छा है। इससे न सिर्फ पल्यूशन को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी,बल्कि जाम से भी निजात मिलेगी। और जहां तक रही बात ऑफिस जाने की तो साइकल से बढ़िया ऑप्शन और कुछ भी नहीं। फोल्डिंग बाइक से आप आसानी से अच्छी-खासी दूरी कवर कर सकते हैं। विदेशों में तो शॉर्ट डिस्टेंस कवर करने के लिए साइकल सबसे ज्यादा यूज की जाती है। अच्छी बात है कि यह ट्रेंड अब हमारे यहां भी आ रहा है। लोगों को साइकल चाहिए, लेकिन इसे रखने की समस्या से उन्हें दो-चार होना पड़ता है। ऐसे में फोल्डिंग साइकल इसका सॉल्यूशन है। इसे ऑफिस, घर, जिम कहीं भी फोल्ड कर आसानी से रखा जा सकता है।

एक्सेसरीज भी हैं जरूरी
- हेलमेट जरूर पहनें। शहर में साइक्लिंग और पहाड़ों पर साइक्लिंग के लिए अलग-अलग तरह के हेलमेट मार्केट में मौजूद हैं।
- रिफ्लेक्टिव जैकेट्स रोशनी पड़ने पर चमकती हैं। ये एक्सिडेंट होने से आपको बचाएंगी। इसको पहनने से आप दूर से ही सड़क पर दिखाई दे जाएंगे।
- सीट की कुशनिंग बढ़ाने के लिए जेल पैडेड कवर भी बाजार में हैं, जो आपकी राइड को और सुकून भरा बनाते हैं।
- आप साइकल में एक छोटा एयर पंप भी फिट कर सकते हैं जिसके जरिए आप कहीं भी अपनी साइकल में हवा भर सकते हैं।
- छोटा-सा पंक्चर किट जरूर रखें। पंक्चर होने की स्थिति में यह आपकी बड़ी मदद कर सकता है।
- वॉटर बॉटल कैरी करने के लिए होल्डर भी लगवा सकते हैं, यह गर्मी के मौसम में आपको राहत देगा।

साइक्लिंग के फायदे
- यह सबसे आसान और बढ़िया एक्सरसाइज है। बड़े, बुजुर्ग, बच्चे, कोई भी साइक्लिंग कर सकता है।
- वजन घटाने के लिए साइक्लिंग काफी फायदेमंद है।
- रोज साइकल चलाने से दिल की एक्सरसाइज भी होती है और खून का दौरा ठीक होता है। इससे दिल से जुड़े रोगों का रिस्क कम होता है। फेफड़े मजबूत होते हैं।
- साइकल चलाने से पैरों की बढ़िया कसरत होती है और मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
- शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। इससे स्टैमिना भी बढ़ता है।
- रेग्युलर साइक्लिंग आपको तनाव और डिप्रेशन से दूर रखने में मददगार साबित होती है।
- घुटनों के दर्द को कम करने के लिए साइक्लिंग सबसे बढ़िया एक्सरसाइज है। इससे पिंडलियां भी मजबूत होती हैं।

साइक्लिंग के नुकसान
- महानगरों की सड़कों पर पीक ऑवर में साइकल चलाना काफी मुश्किल भरा काम है।
- एक्सिडेंट होने का खतरा लगातार बना रहता है।
- पल्यूशन सीधे तौर पर झेलना पड़ता है।
- नॉर्थ इंडिया के तापमान में बहुत उतार-चढ़ाव होता है। तेज गर्मी, सर्दी के अलावा बारिश में भी साइकिल चलाना काफी मुश्किल है।
- अपनी हाइट के मुताबिक साइकल लेनी चाहिए, वरना पीठ दर्द हो सकता है।

यह भी रखें ध्यान -साइकल को बार-बार गिराने से उसके गियर में दिक्कत आ सकती है इसलिए उसे संभाल कर रखें।
-गियर वाली साइकल में ऑयलिंग काफी जरूरी है, वरना आपको परेशान कर सकती है।
- पहली बार साइकल लेकर निकल रहे हैं तो ज्यादा लंबी दूरी न तय करें। मांसपेशियों में खिंचाव आ सकता है।
- गर्मी का मौसम है, इसलिए साइकल पर निकलने से पहले पीने के पानी का इंतजाम कर लें।
- सिर ढकने के लिए हेलमेट के साथ स्कॉर्फ भी ले सकते हैं, जोकि गर्मी से आपको थोड़ी राहत देगा।​


ये कारपूलिंग ऐप भी काम के...

Odd-Even Ride
इसके जरिए आप अपने पास की कार पूल कर सकते हैं। रजिस्ट्रेशन के बाद आपको अपना नाम, मोबाइल नंबर, वीइकल नंबर, टाइम और कहां जाना है जैसी डिटेल्स डालनी होंगी। अगर आप महिला हैं और सिर्फ महिलाओं के साथ कार शेयर करना चाहते हैं तो वह भी ऑप्शन में भर सकते हैं। टू-वीलर के ओनर भी इसमें खुद को रजिस्टर कर सकते हैं।

PoochhO Carpool
इस ऐप को दिल्ली सरकार ने लॉन्च किया है। 'पूछो कारपूल' ऐप से लोगों को नजदीकी इलाके में कारपूलिंग का ऑप्शन मिलेगा। इसमें रजिस्टर कर लोग 1 से 5 किमी के दायरे में कारपूलिंग तलाश सकते हैं। महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यूजर्स को मोबाइल नंबर शेयर नहीं करना होता। वे ऐप के चैट फीचर से ही कार ड्राइवर से बात कर सकते हैं।

Orahi
इस ऐप ने हाल में odd-even.com को भी खरीदा है। Orahi में रजिस्टर करने के लिए आधार नंबर या ऑफिशल आईडी की जरूरत होती है। इससे सेफ्टी काफी बेहतर हो गई है।

Shuttl
आप एनसीआर में रहते हैं और ऑड-ईवन की वजह से अपनी कार से ट्रैवल नहीं कर पा रहे तो यह ऐप आपके काम का हो सकता है। यह भीड़भाड़ वाली बसों या शेयर्ड ऑटो से आपको बचाएगा। यह फिलहाल नोएडा और गुड़गांव के 15 रूट्स पर कार-पूलिंग मुहैया करा रहा है। उसमें हुडा सिटी सेंटर मेट्रो से मेदांता और फोर्टिस हॉस्पिटल से लेकर मेट्रो सिटी सेंटर तक जैसे रूट हैं।

BlaBla Car
इस ऐप के जरिए भी आप कार पूल कर सकते हैं। रेट इतने कम हैं कि नोएडा से ग्रीन पार्क जैसे एरिया में जाना हो तो 30 से 50 रुपये तक ही खर्च करने होंगे।

वेबसाइट: oddevenidea.delhi.gov.in मोबाइल: 0959-5561-561 नंबर पर कॉल कर जानकारी हासिल कर सकते हैं।



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दिल घूम-घूम करे तो याद रखें ये बातें...

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जब मन किया चल दिए, जहां मन किया रुक गए। कोई खूबसूरत लोकेशन दिखी तो रुककर सेल्फी ले ली। छोटा-सा ढाबा दिखा तो चाय की चुस्कियों के साथ लोकल लोगों के संग बतिया लिए। न बस पकड़ने की आपाधापी, न ट्रेन छूटने का डर। अलमस्त आवारा बादलों की तरह ऐसी घुमक्कड़ी किसी बंधन में मुमकिन नहीं। इसके लिए चाहिए अपनी बाइक या कार और आजाद ख्याल। बस चाबी घुमाइए और चल पड़िए। अगर आप भी अपनी कार या बाइक से देश-दुनिया के चक्कर लगाना चाहते हैं तो वरुण वागीश की ये जानकारियां आपके काम आएंगी:

हिमालय के सुदूर इलाकों में जहां बस नहीं पहुंच पाती, मेरी बाइक ने पहुंचा दिया। पूर्वोत्तर भारत के जिन इलाकों में ट्रेन अब भी सपना है, वहां अपनी कार ने हमें चलते-फिरते घर जैसा आराम दिया। नेपाल और भूटान जाने से पहले ट्रांसपोर्ट संबंधी कई बुनियादी जानकारी नहीं मिल पाई थी तो अपनी गाड़ी से चले गए। एडवेंचर के साथ-साथ एक सुरक्षा की भावना भी अपनी गाड़ी से घूमते हुए रहती है। मिसाल के तौर पर अरुणाचल प्रदेश के सुदूर उत्तर में मेंचुका जाते हुए रास्ता बेहद खराब था। अंधेरा हो गया था, लेकिन मन में डर नहीं था। तय कर रखा था होटल मिला तो ठीक, वरना कार में ही सो जाऊंगा। इसी उम्मीद ने हौसला पस्त नहीं होने दिया और एक गांव में पनाह मिल ही गई। जम्मू-कश्मीर के भद्रवाह इलाके से उस रास्ते लौटने का मन नहीं था, जिससे गए थे। एक और रास्ते का पता चला, जो जंगलों से होता हुआ सीधे हिमाचल प्रदेश के चंबा निकल जाता है, लेकिन उधर से दिन में इक्का-दुक्का कोई जीप ही गुजरती है। उस वक्त बाइक थी तो सोचा क्यों न नया रास्ता देखा जाए! जब सफर शुरू किया तो कुदरत के ऐसे नजारे देखने को मिल रहे थे, जो कल्पना से ज्यादा सुंदर थे। सारथल होते हुए सीधे चंबा निकले। वहां से डलहौजी और पठानकोट होते हुए दिल्ली। वाकई अपनी गाड़ी से घूमने में होने वाली सुविधा का कोई जवाब नहीं। हालांकि इससे पहले कि आप सफर पर निकलें, अपनी और गाड़ी की जरूरत को ध्यान में रखते हुए कुछ बुनियादी तैयारी कर लें। ऐसे किसी ट्रिप पर निकलने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है। रास्ते की जानकारी: मैप की मदद लें।


मोबाइल में गूगल मैप्स का सहारा लें। ऑफलाइन मैप्स भी डाउनलोड कर लें। इंटरनेट न होने पर गूगल मैप्स काम नहीं कर पाता। गूगल मैप्स ऑफलाइन इस्तेमाल के लिए डाउनलोड हो सकते हैं। ऐप स्टोर से आप ऐसे दूसरे मैप्स भी डाउनलोड कर उसे यूज करने का तरीका इंटरनेट से सीख सकते हैं। जेब इजाजत दे तो गार्मिन के जीपीएस बेस्ड नैविगेटर डिवाइस भी खरीदे जा सकते हैं, जोकि 6000 रुपये से शुरू होते हैं। मौसम की जानकारी: जहां जा रहे हैं इंटरनेट के जरिए उस इलाके के मौसम की जानकारी लें और कपड़े उसी हिसाब से रखें। जींस के अलावा सिंथेटिक कपड़े रखना ज्यादा बेहतर है क्योंकि इनकी देखभाल की कम जरूरत पड़ती है। रुकने की जगह: एडवांस में होटल बुक करवाना जरूरी नहीं। इससे यात्रा के दौरान फिजूल दबाव रहता है, जो आपको ड्राइव का मजा पूरी तरह नहीं लेने देता। फिर भी यह जानकारी जरूर रखें कि रास्ते में पड़ने वाले शहर कितनी दूरी पर हैं ताकि जरूरत पड़ने पर आप वहां पहुंचने के समय का सही अंदाजा लगा सकें। वैसे, गांव-देहात में आज भी लोग टूरिस्टों को आसानी से अपने घर में पनाह दे देते हैं। इससे आपको लोकल चीजों को पास से जानने का मौका मिलता है। गुरुद्वारे में भी मुफ्त में रात गुजार सकते हैं। वैसे , ऑनलाइन होटल बुकिंग साइट्स से आप लगातार अच्छी डील की जानकारी ले सकते हैं।


इमर्जेंसी नंबरों की जानकारी: किसी भी इमर्जेंसी में मदद हासिल कर सकें, इसके लिए इमर्जेंसी नंबरों की जानकारी पहले से लेकर चलें। सबसे काम का नंबर है 100। आप जहां से भी गुज़रेंगे, वहीं के लोकल पुलिस कंट्रोल रूम से यह नंबर कनेक्ट हो जाएगा। अगर मामला पुलिस से जुड़ा नहीं है तो भी मामले की गंभीरता को देखते हुए वे आपको स्थानीय नंबरों की जानकारी दे देंगे। इसके अलावा आमतौर पर हर हाइवे पर इमर्जेंसी नंबर लिखे रहते हैं, जिनसे दुर्घटना जैसे हालात में तुरंत मदद ली जा सकती है। अपने डॉक्टर और गाड़ी मैकेनिक या वर्कशॉप का नंबर भी साथ रखें। गाड़ी की सर्विस बुक में देशभर के सर्विस सेंटरों के एड्रेस और फोन नंबर की लिस्ट होती है, उसे भी संभालकर रखें।

􀀀अपनों के टच में रहें: स्मार्ट फोन की मदद से अपनी लोकेशन रियल टाइम में घर बैठे शुभचिंतकों के साथ शेयर की जा सकती है। उनके स्मार्ट फोन में family Locator ऐप डाल दें। आप सफर में जहां कहीं भी होंगे, उन्हें इसकी जानकारी रियल टाइम में मिलती रहेगी। अपने ऐप स्टोर में फैमिली लोकेटर सर्च करें। ऐसे दर्जनों ऐप मिल जाएंगे। अहम जानकारी नोट करें: अपना नाम, ब्लड ग्रुप और एक इमरजेंसी नंबर एक कार्ड पर लिखकर हमेशा अपनी जेब या पर्स में रखें। गाड़ी के विंडशील्ड या दरवाजे पर भी यह जानकारी लिख सकते हैं। इमर्जेंसी में कोई अनजान व्यक्ति भी ये नंबर देखकर आपके घर पर सूचना भेज सकेगा।

परेशानी का सबब न बन जाए अपनी गाड़ी

टायर पंक्चर, ब्रेकडाउन, लॉन्ग ड्राइव की थकान और ट्रैफिक जाम - ये ऐसी वजहें हैं, जो सफर का मजा किरकिरा कर सकती हैं। हालांकि पहले से तैयारी कर लें तो परेशानियों से बचा जा सकता है। पंक्चर: घिसे हुए और पुराने टायर न सिर्फ पंक्चर का, बल्कि टायर फटने जैसे हादसों का सबसे बड़ा कारण होते हैं इसलिए टायर अच्छी हालत में हों। टायरों में हवा का प्रेशर सही हो। गाड़ी की सर्विस बुक में सही प्रेशर की जानकारी होती है। ब्रेकडाउन: इलाज से बेहतर है बचाव इसलिए गाड़ी को हमेशा दुरुस्त रखें। लंबे सफर से पहले सर्विस करा लें, जिसमें सभी स्टैंडर्ड चेकअप हों। ब्रेक, हेडलाइट, टेललाइट, इंडिकेटर बल्ब, रियर व्यू मिरर, एयर बैग सेंसर आदि सही हों। सुरक्षा सेंसर, इंजन और ब्रेक ऑयल लेवल, एसी कूलेंट आदि सभी अच्छी तरह से चेक करवा लें। सफर के बीच में ब्रेकडाउन हो भी जाए तो कार कंपनी की हेल्पलाइन का सहारा लें, जिसका नंबर सर्विस बुक में होगा। थकान: ड्राइवर को नींद आ जाना अपने देश में सड़क हादसों के प्रमुख कारणों में से एक है। दिमाग थका हो तो फैसला लेने में वक्त लगता है जबकि हाइवे पर तेज रफ्तार के साथ जरूरी है फौरन फैसला लेने की क्षमता। यह तभी मुमकिन है, जब आपका तन और मन फ्रेश होगा। इसलिए सफर से पहले और बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें। यह आदत आपकी और गाड़ी की सेहत को बनाए रखेगी। ट्रैफिक जाम: सफर का सारा मजा किरकिरा कर देते हैं जाम। लेकिन आपका स्मार्ट फोन आपको इससे बचा सकता है। मोबाइल में इंटरनेट ऑन कीजिए और जहां जाना है, वहां का एड्रेस डाल दीजिए। फिर वॉइस नैविगेशन के भरोसे सफर तय करें। अगर रास्ते में कहीं जाम होगा, तो 'गूगल बाबा' आपको दूसरे रास्ते से जाने की सलाह दे देंगे। आपके जीपीएस बेस्ड स्मार्टफोन की बदौलत यह सब मुमकिन है। वैसे अनुभव यह भी बताता है कि सड़क की क्वॉलिटी और जाम की जानकारी के लिए रोजाना हाइवे पर चलने वाले ट्रक ड्राइवरों की सलाह पर भी विचार किया जा सकता है।


पहले से करें ये तैयारियां

पंक्चर रिपेयर किट: अचानक होने वाले पंक्चरों से निबटने के लिए पंक्चर रिपेयर किट साथ रखें। 100-150 रुपये में यह बाजार में आसानी से उपलब्ध है। पंक्चर सील करने का तरीका सीखने के लिए किसी पंक्चर रिपेयर करने वाले या यूट्यूब विडियोज़ की मदद ले सकते हैं। ट्यूबलेस टायर: वैसे तो आजकल बाइक और कार में ट्यूबलेस टायर ही लगकर आने लगे हैं। फिर भी अगर आपकी गाड़ी में ट्यूब वाले टायर हैं तो लंबे सफर पर जाने से पहले इन्हें बदलकर ट्यूबलेस टायर लगवा लें। ये बाइक के लिए 1200 और कार के लिए 2500 रुपये से शुरू होते हैं। इनमें होने वाले पंक्चर आसानी से और कम समय में रिपेयर हो जाते हैं। तरीका इतना आसान है कि कोई भी इन्हें रिपेयर कर सकता है। इस बात का ख्याल जरूर रखें कि रॉयल इनफील्ड जैसी कई बाइक कंपनी अभी भी स्पोक वाले पहिए देती हैं, जिनमें ट्यूबलेस टायर लगवाना खतरनाक हो सकता है। ऐसे मामलों में स्पेयर ट्यूब रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

एयर पंप: इमरजेंसी में टायरों में हवा भरने या प्रेशर सही बनाए रखने के लिए इलेक्ट्रिक एयर पंप काफी काम आते हैं। सिगरेट लाइटर या मोबाइल चार्जर वाले सॉकेट से इन्हें चलाया जाता है। वैसे कई लोग अपने साथ पांव से चलने वाले पंप भी रखते हैं। यहां तक कि साइकल की ट्यूब में हवा भरने वाले पारंपरिक पंप से भी लोग काम चला लेते हैं। 100 रुपये से 500 रुपये तक ऐसे पंप बाजार में मिल जाते हैं। पंक्चर सीलेंट: आज ऐसे लिक्विड सीलेंट (300 रुपये से शुरू) भी आसानी से उपलब्ध हैं, जो पंक्चर होते ही टायर के उस हिस्से को सील कर देते हैं, जहां से हवा लीक हो रही होती है। बाजार और ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल्स पर कई ब्रैंड के सीलेंट उपलब्ध हैं। इनको इस्तेमाल करने का तरीका ऑनलाइन विडियो से सीख सकते हैं। वैसे इन पर पूरी तरह निर्भरता भी ठीक नहीं है इसलिए समय-समय पर टायर चेक करते रहें। जहां भी पंक्चर की दुकान नजर आए पंक्चर रिपेयर कराते चलें।

पेट्रोल कैन: लद्दाख, लाहौल-स्पीती, उत्तराखंड, नेपाल, भूटान और अरुणाचल प्रदेश के कई सुदूर हिस्सों में यात्रा करते वक्त अलग-से पेट्रोल-डीजल रखना चाहिए। इन इलाकों में पेट्रोल पंप नहीं हैं। हालांकि पेट्रोल को कैरी करने में सावधानी बरतने की जरूरत होती है वरना यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। इन्हें अच्छी क्वॉलिटी की बोतल में अच्छी तरह टाइट बंद करके रखें। इसके लिए बाजार में कई तरह की प्लास्टिक या मेटल की बोतल और कैन उपलब्ध हैं। सैनिक छावनियों के आसपास के बाजारों में ये आसानी से मिल जाती हैं। वैसे कोल्ड ड्रिंक की डेढ़-दो लीटर की खाली बोतलों में भी पेट्रोल-डीजल रख सकते हैं।

बाकी स्पयेर पार्ट्स
कार के लिए जंप स्टार्ट केबल (कार स्टार्ट न होने पर), टो रोप (किसी और गाड़ी से अपनी कार खिंचवाने के लिए), क्लच वायर, हेडलाइट बल्ब, ब्रेक वायर, इंजन ऑयल, डिस्क ब्रेक ऑयल, प्लायर, स्क्रू ड्राइवर, रेंच

बाइक के लिए
सैडल बैग, बंजी रोप (सामान बांधने के लिए), हेड लाइट बल्ब, क्लच वायर, ब्रेक वायर, इंजन ऑयल, डिस्क ब्रेक ऑयल, प्लायर, स्क्रू ड्राइवर, रेंच



गैजेट्स
- स्मार्ट फोन, चार्जर और बैटरी बैंक। जीपीएस बेस्ड नेविगेटर जोकि बिना इंटरनेट के मैप यूज करने और डायरेक्शन आदि बताने में मददगार होता है। कार के मोबाइल चार्जिंग सॉकेट से चलने वाले एडॉप्टर जिनसे कैमरा बैटरी, टैबलेट या लैपटॉप भी चार्ज किए जा सकते हैं। इलेक्ट्रिक कैटल जो कॉफी, चाय, नूडल्स वगैरह बनाने के लिए पानी उबाल सकती है। मल्टिप्लग सॉकेट ताकि होटल के इकलौते पावर सॉकेट से एकसाथ कई डिवाइस चार्ज कर सकें।

कहां जा सकती है आपकी गाड़ी

भारतीय संविधान अपने हर नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में आने-जाने का अधिकार देता है। हां, इंटरनैशनल बॉर्डर के आसपास, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में जाने के लिए स्थानीय प्रशासन या सुरक्षा एजेंसियों से इजाजत लेनी पड़ती है। इसे ILP (इनल लाइन परमिट) कहते हैं। लद्दाख के लिए एसडीएम लेह यह परमिशन देते हैं तो लक्षद्वीप के लिए दिल्ली स्थित लक्षद्वीप भवन, अरुणाचल प्रदेश जाने के लिए अरुणाचल भवन से परमिशन लेनी होती है।

क्या कहते हैं नियम-कानून

अपनी गाड़ी से घूमते वक्त बस आपको उस देश के मोटर वीकल ऐक्ट के नियमों का ख्याल रखना होगा। अमूमन आपको अपने साथ ये ओरिजिनल डॉक्युमेंट्स रखने होंगे। आरसी यानी गाड़ी का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस सर्टिफिकेट, पल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट, ड्राइविंग लाइसेंस

घुमक्कड़ी का लाइसेंस: दूसरे देशों में अपनी गाड़ी से घूमने जाना अब भी हम भारतीयों के लिए उतना आसान नहीं, जितना कई यूरोपीय देशों के नागरिकों के लिए है। दरअसल यह सब हमारे देश के दूसरे देशों के साथ संबंधों और समझौतों पर निर्भर करता है। मिसाल के तौर पर यूरोप के नागरिक बेरोकटोक यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में आ-जा सकते हैं। विदेशी टूरिस्ट भी सिर्फ एक शेनगेन वीजा लेकर यूरोपीय संघ के देशों में घूम सकते हैं। भारतीय नागरिकों के लिए यह सुविधा सिर्फ नेपाल और भूटान में हैं। ऐसे में विदेश जाने के लिए कुछ ज्यादा औपचारिकताएं करनी पड़ती हैं। आइए डालते हैं उन पर एक नजर:

वीजा: किसी भी दूसरे देश में एंट्री के लिए इजाजत वीजा के रूप में मिलती है। आपके पासपोर्ट पर वीजा लगने का मतलब है कि अब आप उस देश में जा सकते हैं। हर देश की वीजा फीस अलग-अलग होती है। इसकी जानकारी उनकी ऐंबेसी या उनकी आधिकारिक वेबसाइट से ली जा सकती है।

कारने द पैसाज (CDP): यह एक फ्रेंच शब्द है। वीजा से सिर्फ आपको उस देश में जाने के इजाजत मिलती है, आपकी गाड़ी को नहीं। अपनी गाड़ी को उस देश में ले जाने के लिए 'कारने द पैसाज' की जरूरत पड़ती है। यह इंटरनैशन लेवल पर स्वीकृत ऐसा दस्तावेज है जिसके जरिए टूरिस्ट बिना कस्टम ड्यूटी चुकाए पर्सनल गाड़ी को विदेश में कुछ समय के लिए इस्तेमाल कर सकता है। इस दस्तावेज में गाड़ी के उस देश में अंदर और बाहर जाने की तारीख रिकॉर्ड की जाती है। भारत में कुछ अधिकृत ऑटोमोबाइल असोसिएशन से यह दस्तावेज लिया जा सकता है। ये असोसिएशन हैं The Automobile Association of Eastern India, The Automobile Association of Southern India, Automobile Association of Upper India, The Western India Automobile Association। कारने द पैसाज हासिल करने के लिए 75,000 रुपये फीस चुकानी होती है, फिर चाहे बाइक हो या कार। इसके साथ आपकी गाड़ी की मौजूदा कीमत का दोगुना असोसिएशन के पास बतौर सिक्योरिटी जमा करना होगा, जो लौटने के बाद वापस लिया जा सकता है।

इंटरनैशनल ड्राइविंग लाइसेंस: विदेश जाना चाहते हैं तो इंटरनैशनल लाइसेंस बनवाना बेहतर है। इससे किसी भी देश में परेशानी नहीं होगी। देश के हर राज्य के सरकारी ट्रांसपोर्ट ऑफिस से यह लाइसेंस जारी किया जाता है। दिल्ली में अपना वैध ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, वीजा, अड्रेस प्रूफ दिखाकर इसे 500 रुपये में बनवाया जा सकता है।

नेपाल

बिना गाड़ी के नेपाल ठीक वैसे ही जा सकते हैं जैसे दिल्ली से गाजियाबाद। लेकिन गाड़ी से जाने के लिए गाड़ी के तमाम वे कागजात चाहिए, जो भारत में जरूरी हैं। नेपाल में एंट्री के लिए भारत की तरफ से कई बॉर्डर पोस्ट हैं। वहां पहुंचते ही अपनी गाड़ी को नेपाल में ले जाने के लिए नेपाली प्रशासन से इजाजत लेनी पड़ती है। ये ऑफिस बॉर्डर पर ही होते हैं। लोगों से पूछताछ कर इनकी जानकारी मिल जाती है। दिनों के हिसाब से एक तय फीस देकर आसानी से इसकी इजाजत मिल जाती है। नेपाल में फीस दिनों के हिसाब से देनी होती है। डेढ़-दो साल पहले मैंने बाइक के लिए 50 रुपये दिए थे, जबकि कार के लिए करीब 300 रुपये रोजाना लिए जा रहे थे।

भूटान

भारत से सड़क से भूटान जाने का एक ही रास्ता है - फुंतशोलिंग होकर। फुंतशोलिंग में आपको अपनी पहचान साबित करनी पड़ती है। वोटर आईकार्ड, पासपोर्ट या आधार कार्ड इसके लिए मान्य हैं। फुंतशोलिंग बस अड्डे पर ट्रांसपोर्ट विभाग से आपको अपनी गाड़ी की अनुमति भी लेनी होगी। इसके लिए दिनों के हिसाब से निर्धारित फीस चुकानी होगी। करीब 3 साल पहले बाइक से भूटान गया था, तो 7 दिनों के लिए 62 रुपये लगे थे। ध्यान रहे कि फीस की रसीद हमेशा संभाल कर रखें। विदेशी नंबर होने की वजह से जगह-जगह पर आपको रोककर रसीद दिखाने को कहा जा सकता है।

बाइक और कार के ट्रैवल में फर्क

बाइक और कार की सामान ढोने की क्षमता अलग-अलग है, इसलिए उसी हिसाब से सामान रखें। मौसम खराब हो या सड़क, बाइक सवार को कार चालक से ज्यादा खतरा रहता है इसलिए एंकल लेंथ शूज, नी गार्ड, सेफ्टी जैकेट, हेल्मेट, ग्लव्स बेहद जरूरी हैं। आजकल सिक्योरिटी की ये तमाम चीजें आसानी से ऑनलाइन मिल जाती हैं, लेकिन याद रखें कि कीमत के चक्कर में क्वॉलिटी से कभी समझौता न करें। वैसे तो कार में एक स्टेपनी कार के साथ ही आती है, लेकिन एहतियात के तौर पर एक और रख लें। कच्ची सड़कों या उबड़-खाबड़ रास्तों से गुजरने की नौबत हो तो कम ग्राउंड क्लीयरेंस वाली कार न ले जाएं। बेशक ऐसे मामलों में बाइक बाजी मार ले जाती है।

बाइकर्स ग्रुप से जुड़ने के लिए bcmtouring.com, youngindians.in, xbhp.com और facebook पर कई बाइकर्स ग्रुप हैं। हालांकि ये सभी अनौपचारिक ग्रुप हैं, यानी कानूनी रूप से इनकी कोई मान्यता नहीं है। वैसे भी बाइकर्स ग्रुप के लिए कोई कानूनी गाइडलाइंस नहीं हैं इसलिए अपने विवेक का इस्तेमाल कर ही इनसे जुड़ें।

ट्रिप कितनी लंबी दिल्ली से लद्दाख: 15 दिन दिल्ली से सांग्ला घाटी (हिमाचल): 6 दिन दिल्ली से सरिस्का नैशनल पार्क: 2 दिन दिल्ली से दमदमा झील: 1 दिन दिल्ली से डोटी-सिलगढ़ी (नेपाल): 4 से 6 दिन तक दिल्ली से पोखरा और काठमांडू (नेपाल): 6 से 14 दिन तक सिलीगुड़ी से थिंपू (भूटान): 6 दिन जयगांव (पश्चिम बंगाल) से पारो (भूटान): 4 दिन इम्फाल (मांडले) से म्यांमार - बैंकॉक, थाइलैंड: 12 दिन

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जल का हल

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हमने कभी पानी के मोल को नहीं समझा और देखते ही देखते पानी अनमोल हो गया। हालात ऐसे आ गए हैं कि देश भर में कई जगह लोग बूंद-बूंद पानी को तरसने लगे हैं। ऐसे में पानी की बचत ही भविष्य को संजो कर रखने का एक साधन बचता है। हम और आप कैसे कर सकते हैं पानी की बचत, एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं अमित मिश्रा:



किसी ने सही कहा है कि हर बदलाव की शुरुआत खुद से होती है। ऐसे में पानी को बचाने की मुहिम में सबकी बराबर की भागीदारी ही संकट से उबरने का एक उपाय है।
घर पर ऐसे बचेगा पानी
जब करें ब्रश या शेव
अक्सर लोग टूथब्रश या शेव करते वक्त वॉश बेसिन में पानी के टैप को खुला छोड़ देते हैं। ऐसे न करें। इससे पानी की काफी बर्बादी होती है। मग में पानी भर कर शेविंग कर सकते हैं। इसी तरह हाथ धोते वक्त भी सोप लगाने के लिए हाथ को गीला करने के बाद टैप बंद कर दें। हाथों पर साबुन अच्छी तरह लगाने और मलने के बाद फिर से टैप चालू करें।
जब नहाने जाएं
नहाने में काफी पानी बर्बाद होता है। खासतौर पर शावर से नहाने में। बाल्टी में पानी लेकर नहाएं। बच्चे भी नहाते वक्त काफी पानी बर्बाद करते हैं। नहाने के लिए 5 मिनट का वक्त तय करें। बालों में शैंपू लगाते वक्त शावर को बंद कर दें। इस तरह से आप रोज तकरीबन 100 लीटर पानी बचा सकते हैं।
टपकने पर नजर
टपकता पानी देखने में कम नजर आता है लेकिन पूरे दिन में इस तरह से कई लीटर पानी बह जाता है। हो सके तो हर साल मेटैलिक टैप के वाशर बदलवा लें। लोग मेन टैप पर तो नजर रखते हैं लेकिन टॉयलेट और सिस्टर्न से टपकते पानी पर ध्यान नहीं देते। इस बात का भी पता करें कि कहीं सिस्टर्न से टॉयलेट सीट के भीतर पानी लीक तो नहीं हो रहा। यह भी देखें कि जहां पर सिस्टर्न टॉयलेट सीट से जुड़ा होता है, वह जोड़ सही है।
जब करें कार-बाइक की धुलाई
कार या बाइक की धुलाई रनिंग वॉटर से करने के बजाय बाल्टी से करें। ऐसा करने से तकरीबन 350 लीटर पानी हर महीने बचा सकते हैं।
कपड़ों की धुलाई
हो सके तो छोटे कपड़ों की रेग्युलर धुलाई हाथों से ही करें। रोज वॉशिंग मशीन लगाने से बेहतर है, हफ्ते में 2 दिन ही लगाएं। अब मार्केट में कम पानी की खपत में कपड़े धोने वाली फ्रंट लोड मशीनें आ गई हैं, इन्हें ही खरीदें। ये मशीनें कुछ महंगी जरूर हैं। रनिंग वॉटर पर चलने वाली ऑटोमैटिक वॉशिंग मशीनें अमूमन पानी की खपत ज्यादा करती हैं। कपड़ों की धुलाई के बाद निकले पानी को टब में जमा कर लें। फिर इसे पोंछा लगाने और फर्श की धुलाई करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
सिस्टर्न फिट तो वॉशरूम हिट
टॉयलेट में नए जमाने के सिस्टर्न (फ्लश) 2 पुश बटनों के साथ आते हैं। एक छोटा और एक बड़ा। छोटे बटन से ही फ्लैश करें। इससे कम पानी में सफाई हो जाएगी। हो सके तो सिस्टर्न में रेत से भरी हुई 1 लीटर की बोतल रख दें। इससे सिस्टर्न की कैपेसिटी घट जाएगी और पानी की बचत होगी। ऐसा करके घर का हर मेंबर रोज तकरीबन 50 लीटर पानी बचा सकता है।
जब सब्जी-बर्तन धोएं
किचन में सब्जियां या बर्तनों को रनिंग वॉटर में न धो कर, बर्तन में पानी भर कर धोएं। सब्जियां और बर्तनों को धोने में इस्तेमाल होने वाले पानी को नाली में बहने के बजाय पौधों में डालने के लिए यूज करें। पौधों को सुबह या शाम को धूप कम होने पर ही पानी दें।
जब पेट्स को नहलाएं
अपने पेट्स को लॉन में नहलाएं ताकि पानी घास और पौधों को मिल सके। बर्फ न करें बर्बाद
अगर ड्रिंक्स पीने के बाद गिलास में आइस क्यूब्स बच जाएं तो उन्हें सिंक में फेंकने के बजाय पौधों के गमले में डाल दें। ऐसे ही जमीन पर गिरी बर्फ के साथ भी कर सकते हैं।
वॉटर मीटर पर रखें नजर
घर पर लगा वॉटर मीटर आपको पानी की खपत पर नजर रखने में मदद करेगा। एक दिन रात में मीटर की रीडिंग लें और अगले दिन फिर उसी वक्त पर रीडिंग लें। इससे खपत पर नजर रख कर बचत की जा सकती है।
घर में मददगारों को सिखाएं
घर पर काम करने वाली मेड और माली आदि को देश में पानी को लेकर पैदा हुए बुरे हालात को लेकर एजुकेट करें। उन्हें टीवी और अखबारों में इस तरह की खबरों से वाकिफ करवाने से वे भी पानी की बचत को गंभीरता से लेना शुरू करेंगे।
जब पार्टी में जाएं
अक्सर देखने को मिलता है कि लोग पार्टियों में पानी की पूरी बोतल लेकर कुछ पानी पीने के बाद बोतल फेंक देते हैं। अगर पानी की पूरी बोतल एक बार में नहीं पी जा सकती तो उसे साथ ले जाकर बाद में इस्तेमाल करें। अगर पार्टी आप आयोजित करें तो पानी की बचत को ध्यान में रखते हुए गिलास में पानी सर्व करें।

करें वॉटर हार्वेस्टिंग
वैसे तो तकरीबन हर राज्य सरकार पानी को बचाने से लेकर जमा करने तक योजनाएं बना रही लेकिन इसमें लोगों की भागीदारी के बिना मुहिम का परवान चढ़ना मुमकिन नहीं है। दिल्ली में घरों की छत पर बारिश के पानी को जमा करने के लिए दिल्ली जल बोर्ड खास तौर पर वित्तीय मदद भी देता है। इस तरह की मदद के लिए लोकल बॉडीज (रजिस्टर्ड आरडब्ल्यूए आदि) छतों पर लगाए गए वाटर हार्वेटिंग प्लांट की कुल कीमत का 50 फीसदी और अधिकतम 50 हजार रुपये तक सहायता ले सकती हैं। इसके लिए हर जोनल ऑफिस में मौजूद इंजीनियर से मदद ली जा सकती है। वित्तीय सहायता के लिए इन डॉक्युमेंट्स की जरूरत होगी:
- आरडब्ल्यूए या जो भी रजिस्टर्ड संस्था लोन ले रही है, उसके रजिस्ट्रेशन की सेल्फ अटेस्टेड कॉपी।
- वॉटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर की डिटेल्ड जानकारी।
- पूरे प्लान के ले-आउट और सिस्टम कैसे काम करेगा, यह जानकारी।
- कॉन्ट्रैक्टर को पेमेंट किस तरह से किया जाना है, उसके बारे में जानकारी। मिसाल के तौर पर चेक से या डायरेक्ट अकाउंट में ट्रांसफर आदि।
- वॉटर हार्वेटिंग प्लांट के रखरखाव के लिए एक नॉन जुडिशल स्टांप पर अथॉरिटी के साथ एग्रीमेंट पर साइन।

RO को NO-NO
हर घर की जरूरत बन चुका आरओ 1 लीटर पानी को साफ करने के लिए तकरीबन 3 लीटर पानी को बहा देता है। आरओ वॉटर फिल्टर का इस्तेमाल पानी में पाए जाने वाले मिनरल (टीडीएस) को घटाने में किया जाता है। इन मिनरल की वजह से ही पानी का स्वाद कुछ कसैला लगता है। 1000 टीडीएस या उससे कम का पानी पीने लायक होता है और दिल्ली में अमूमन लेवल इससे कम ही होता है। लोग स्वाद को सुधारने के चक्कर में आरओ लगवा कर पानी की बर्बादी करते हैं। अगर आरओ लगवाना ही है तो उससे बूंद-बूंद टपकने वाले पानी को किसी बर्तन या बाल्टी में जमा कर लें।
क्या है टीडीएस की सही मात्रा
अधिकतम सीमा: 1000 एमजी/ लीटर तक (इससे ज्यादा टीडीएस पर आरओ ठीक)
कम से कम: 80 एमजी/ लीटर तक (इससे कम टीडीएस भी नुकसानदेह)
सही मात्रा: 400-500 एमजी/ लीटर (WHO के मुताबिक)

आरओ के ऑप्शन
- पानी को उबाल कर भी टीडीएस कम होता है।
- क्लोरीन की एक टैब्लेट 20 लीटर पानी को साफ करती है।
- सेरामिक फिल्टर बैक्टीरियल प्रदूषण दूर कर सकता है।
- यूवी (अल्ट्रावॉयलेट) फिल्टर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ....................................................................................................... लें तकनीकी पहरेदार की मदद
शहरों में पानी की काफी ज्यादा बर्बादी ओवर फ्लो हो रही टंकियों से होता है। ऐसे में इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि वॉटर टैंकों में ओवरफ्लो अलार्म सिस्टम को लगवाया जाए। मार्केट में मूल रूप से दो तरह के अलार्म सिस्टम आ रहे हैं:
सर्किट बेस्ड अलार्म
इस तरह के सिस्टम में काफी आसान तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके दो हिस्से होते हैं। एक अलार्म जो पावर लाइन से जुड़ा रहता है और घर के भीतर होता है और दूसरा टैंक में फिक्स मेटैलिक पिन।
कैसे करता है काम
टैंक के अंदर ऊपर वाले हिस्से में पॉजिटिव और निगेटिव पिन पड़े रहते हैं। जैसे ही पानी भर कर ऊपर के लेवल पर पहुंचता है, सर्किट जुड़ जाता है और अलार्म बजने लगता है। ऐसे में यूजर मोटर बंद कर देता है जिससे पानी और अलार्म से आ रही आवाज दोनों बंद हो जाती हैं।
खूबी - इसकी कीमत काफी कम होती है। 200 से 500 रुपये तक में मिल जाता है।
- इसे इंस्टॉल करना आसान है और कोई भी आम इलेक्ट्रिशन इसे फिक्स कर सकता है।
खामी
- टैंक में पड़े मेटैलिक पिन पर या तो जंग जम जाती है या फिर पानी के खारेपन से सॉल्ट जमा होने की वजह से यह काम करना बंद कर देता है।
- छत पर लगे तारों का सेटअप आंधी-तूफान या बंदर आदि खराब कर देते हैं।
कहां मिलेगा: इन्हें किसी भी ई-कॉमर्स साइट्स या मार्केट में हार्डवेयर शॉप से आसानी से खरीद कर प्लंबर से फिक्स करवाया जा सकता है।

चंद ऑप्शन
iota Water tank Overflow Alarm - 200 रुपये
Veettex Tank Overflow Alarm - 250 रुपये
Aqua Guru Water Tank Overflow Alarm - 390 रुपये
नोट: इनके अलावा भी मार्केट में अच्छे सर्किट बेस्ड अलार्म सिस्टम उपलब्ध हैं।

सेंसर वाले अलार्म सिस्टम
परंपरागत ओवरफ्लो अलार्म के बजाय इसमें हाई क्वॉलिटी सेंसर का उपयोग किया जाता है। इससे टैंक में कई लेवल पर पानी की मॉनिटरिंग, अलार्म, वॉटर फ्लो अलर्ट जैसे एडवांस काम भी किए जा सकते हैं।
कैसे करता है काम
इसमें हाई क्वॉलिटी सेंसर लगे होते हैं। इसे टैंक के बाहर कहीं फिट कर दिया जाता है। इसके सेंसर पानी की पोजिशन भांप कर एसएमएस या एक ऐप के जरिए पूरी जानकारी दे देते हैं। इसमें सिर्फ एक डिब्बा होता है और किसी भी तरह का वायर नहीं होता।
खूबी
- इससे न सिर्फ वॉटर लेवल बल्कि लाइन में पानी आने का अलर्ट भी पाया जा सकता है।
- पानी भरते ही अपने आप मोटर बंद होने से लेकर पानी आने पर फिर से चालू हो जाने जैसे ऑटोमैटिक ऑप्शन उपलब्ध।
- इसे एक ऐप के जरिए कंट्रोल भी किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर इंटरनेट मौजूद होने पर कहीं से भी बैठ कर मोटर को स्विच ऑन और ऑफ किया जा सकता है।
- ऐप में यह भी देखा जा सकता है कि कितना पानी भरा है। इससे एक ही छत पर रखे कई टैंकों का एक साथ अलर्ट लिया जा सकता है।
- इन्हें बैटरी या सोलर सेल के जरिए चलाया जा सकता है।
- पानी के कॉन्टैक्ट में न होने की वजह से खराब नहीं होते।
खामी
- इनकी कीमत परंपरागत अलार्म सिस्टम के मुकाबले काफी ज्यादा होती है।
- इंस्टॉल करने के लिए कंपनी के एक्सपर्ट की जरूरत होती है।
- ऐसे अलार्म सिस्टम मार्केट में कम मौजूद होने की वजह से सर्विस की दिक्कत आ सकती है।
- छोटे शहरों में उपलब्धता काफी कम है।
कीमत
इसमें एक ही कंपनी के 3 मॉडल मार्केट में आसानी से मिल सकते हैं।
Aquabrim SENSE, ACE और PRIME - कीमत 6500 से 10 हजार रुपये तक

कहां से खरीदें
फिलहाल मार्केट में Aquabrim नाम का सेंसर बेस्ड अलार्म सिस्टम उपलब्ध है। इसे स्नैपडील और अमेजॉन जैसी ऑनलाइन साइट्स से खरीदा जा सकता है। कंपनी की वेबसाइट aquabrim.com पर जाकर दिए गए नंबरों पर कॉल करके खरीदा जा सकता है। यहां पर फोन करने के बाद एक्सपर्ट बताई गई जगह पर इंस्टॉल कर देता है।

कब तक रहेगा पानी सही

अक्सर सुबह पानी भरते वक्त पिछले दिन का बचा पानी फेंक दिया जाता है। इसकी जरूरत नहीं है। यह पानी इस्तेमाल के लिए बिल्कुल ठीक है। एक तरफ पानी बचाने की मुहिम तो दूसरी तरफ पानी को सहेजने की चुनौती। हम यह तो जानते हैं कि पानी को कैसे बचाना है लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि पानी कितने दिनों तक पीने या इस्तेमाल करने लायक बना रहता है। आइए जानते हैं कि पानी कितने दिनों तक रहता है एक दम फिट:
पीने का पानी
- पानी वैसे तो अपने आप में तो कभी खराब नहीं होता लेकिन जिस बर्तन और जिस जगह उसे स्टोर किया जाता है, उसकी वजह से वह खराब हो सकता है।
- पैक किया गया पानी मैन्युफेक्चरिंग डेट से 2 साल तक पीने लायक होता है। भले ही उसमें मौजूद मिनरल्स की वजह से उसका स्वाद कुछ बदल जाए लेकिन सेहत पर इसका कोई बुरा असर नहीं पड़ता।
- एक बार पैकिंग खुलने के बाद पानी 2-3 दिनों तक पीने लायक बना रहता है। बस ध्यान इस बात का रखना है कि उसे धूप, गर्मी और केमिकल जैसे कि थिनर, पेंट या पेट्रोल-डीजल से दूर रखा जाए।
- अगर पैक्ड पानी को फ्रिज में रखा जाए तो 5-6 दिनों तक आराम से पिया जा सकता है।
- वॉटर प्यूरिफायर से निकले हुए पानी को 2-3 दिन तक फ्रिज में रख कर पिया जा सकता है।
- प्लास्टिक के बर्तन में रखा पानी कॉपर या तांबे के बर्तन में रखे पानी के मुकाबले जल्दी खराब हो जाता है। कांच की बोतल या गिलास में भी पानी ज्यादा दिन तक अच्छा बना रहता है।
नहाने का पानी
- नहाने के लिए बाल्टी में रखा पानी 7-10 दिनों तक आराम से इस्तेमाल किया जा सकता है। बस उसमें मिट्टी या किसी भी तरह का कूड़ा-करकट न पड़ा हो।
- यहां भी स्टील की बाल्टी में रखे पानी की उम्र प्लास्टिक की बाल्टी या टब में रखे पानी से ज्यादा होती है।

टेक्नो ट्रिक्स
वेबसाइट
saveourwater.com/what-you-can-do/tips पर पानी को बचाने के लिए बेहतरीन टिप्स मिल सकते हैं।
जल है तो जीवन है
अगर पानी को बचाने की जरूरत अब भी समझ में न आई हो तो इन विडियोज को देख लें
nbt.in/savewater
अवधि: 1 मिनट लगभग
nbt.in/water
अवधि: 1:45 मिनट

फेसबुक पेज
Neeranjali
इस पेज पर पानी को बचाने के टिप्स के साथ ही बढ़ती जा रही परेशानी के हालात के बारे में जानने को बहुत कुछ मिलता है।

वॉटर एक्सपर्ट्स
​ -राजेंद्र सिंह
-आबिद सूरती
-एस. ए. नकवी
-आलोक कुमार

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कम बजट में घूम सकते हैं विदेश, करें प्लानिंग

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दुनिया भर में ऐसी कई जगहें हैं, जहां आप कम बजट में विदेश यात्रा का अपना शौक पूरा सकते हैं। महज 1 लाख रुपये में कोई कपल 5 दिन और 4 रातों के लिए विदेश घूमकर आ सकता है। कौन-कौन से हैं ये देश और किस तरह से बनाया जाए बजट, आइए जानें:

प्लानिंग से पहले सीजन का ख्याल
पीक सीजन से अलग अगर ट्रिप प्लान कर रहे हैं तो आपका खर्च काफी कम हो सकता है। मसलन हवाई यात्रा का खर्च, खाना, साइट-सीइंग सभी कुछ इस वक्त सस्ते हैं। डिस्काउंट तो आपको मिलता ही है, भीड़ भी कम मिलती है। इस पीरियड में आप होटल बुकिंग और फ्लाइट बुकिंग पर 10 से 15 फीसदी तक बचा सकते हैं।

फ्लाइट
किसी एजेंट के जरिये या एयरलाइंस से टिकट बुक कराने के बजाय किसी एग्रिगेटर साइट (makemytrip, goibibo, yatra, ixigo आदि) से ऑनलाइन बुकिंग कराएं। इनके मोबाइल ऐप की मदद से भी बुकिंग कराई जा सकती है। इससे आपको फ्लाइट थोड़ी सस्ती पड़ेगी। बिल्कुल आखिरी समय में बुकिंग कराने से बचना चाहिए। बेहतर है, जब जाने का प्रोग्राम है, उससे दो से तीन महीने पहले ही बुकिंग करा दें।

होटल
इसके लिए फ्लाइट बुकिंग का जो नियम है, उसे उलटा कर दें। अच्छे डिस्काउंट के लिए होटलों से सीधा संपर्क करें। बजट होटल्स, होमस्टे या रेंट पर मिलने वाले अपार्टमेंट को भी ट्राई किया जा सकता है। ये अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं। आप अडवांस में भी बुकिंग करा सकते हैं और अपने रूम को अपग्रेड करने को कह सकते हैं। आप डिस्काउंट की मांग भी कर सकते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सीधे बात करके आप ज्यादा अच्छा डिस्काउंट पा सकते हैं।

साइट-सीइंग
जहां तक मुमकिन हो, अडवांस में ऑनलाइन बुकिंग करें। इससे आप लाइन में लगने से बच जाएंगे। इसके अलावा आपको कूपन और डिस्काउंट भी मिलेंगे। आप अपने होटल से भी बात कर सकते हैं कि क्या उनके यहां हफ्ते के किसी खास दिन फ्री साइट-सीइंग का इंतजाम है। अक्सर होटलों में ऐसा इंतजाम होता है।

खाना
ऐसे होटल का चुनाव करना बेहतर है, जो फ्री में ब्रेकफास्ट ऑफर करते हैं। गूगल की मदद से स्थानीय खानपान की दुकानों का पता करें। वहां अपेक्षाकृत कम दाम में आपके खाने का काम चल सकता है। लोकल बेकरी आदि से ऐसी चीजें खरीदें जिनका यूज होटल में खाने के लिए किया जा सके। इसके अलावा रेडी-टु-ईट खाना भी यहीं से खरीद कर ले जा सकते हैं, जैसे हल्दीराम, MTR का राजमा चावल आदि।

घूमना
टैक्सी के स्थान पर लोकल पब्लिक ट्रांसपोर्ट मसलन मेट्रो, बसें आदि यूज करें। टैक्सी महंगी होती है। होटल ऐसा होना चाहिए जो शहर के बीचोबीच हो और पॉपुलर साइटों के करीब हो। मेट्रो आदि से भी अगर होटल अच्छी तरह से कनेक्टेड है तो और अच्छा होगा। खर्च कम करने के लिए बाइक या कार किराये पर ली जा सकती है।

शॉपिंग
बहुत ज्यादा सॉवेनियर न खरीदें, खासकर किसी टूरिस्ट स्पॉट से। ऐसी चीजों को लोकल मार्केट से खरीदेंगे तो खर्चा कम होगा। ऐसी जगहों से शॉपिंग करें, जो टूरिस्ट सर्किट में नहीं हैं।

यहां जा सकते हैं आप

दुबई



यूएई का सबसे पॉपुलर शहर है दुबई। दुबई की यात्रा थोड़ी महंगी हो सकती है, लेकिन एक कपल के लिए एक लाख में निबटाना इसलिए मुमकिन है कि यहां के लिए फ्लाइट सस्ती हैं। दुबई घूमने जाने वालों को सबसे ज्यादा खर्च साइट-सीइंग पर करना होता है। अकेले साइट-सीइंग पर ही आपके कुल बजट का 30 से 40 फीसदी खर्च हो सकता है। अगर आपको साइट-सीइंग का ज्यादा शौक है तो खाने और रुकने के खर्च को उसी हिसाब से कुछ कम कर सकते हैं। वीसा आमतौर पर अप्लाई करने के 4-5 दिन में मिल जाता है। 30 दिन का वीसा 58 दिन के लिए वैलिड होता है और इसके लिए 6500 रुपये फीस है।

फ्लाइट
आजकल तमाम ट्रैवल ऑपरेटर और एग्रिगेटर साइटों की ओर से बहुत सारे डिस्काउंट दिए जा रहे हैं। इन पर निगाह बनाए रखें। मई की बुकिंग के लिए कुछ एजेंट दोनों तरफ का किराया प्रति व्यक्ति 14 हजार रुपये तक ऑफर कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर अगर किसी ने 14 अप्रैल को दुबई का टिकट बुक किया होता तो उसे इंडिगो-स्पाइस जेट कॉम्बिनेशन में रिटर्न फ्लाइट 13,870 रुपये में मिल जाती। हालांकि इस तरह के ज्यादातर ऑफर लिमिटेड टाइम के लिए होते हैं और नॉन रिफंडेबल होते हैं यानी टिकट कैंसल कराने पर आपको पैसा वापस नहीं मिलता। इन्हें तभी खरीदें, जब आप इस बात को लेकर निश्चिंत हों कि आपको जाना ही है। बुकिंग कराते वक्त यह भी ध्यान रखें कि बुकिंग इस तरह कराएं कि आपके दिन खराब न हों। मसलन ऐसा टिकट बुक कराया जाए कि सुबह आप दुबई पहुंचें और वापसी की फ्लाइट शाम के वक्त हो। इससे आपके समय की बचत होगी। दिल्ली से दुबई की फ्लाइट 3 घंटे 50 मिनट की है।

होटल
होमस्टे और हॉस्टल जैसे ऑप्शन अपनाए जा सकते हैं। दुबई में थ्री स्टार होटलों की भी कमी नहीं है। इन होटलों में प्रमोशन स्कीमें और छोटे-छोटे समय की सेल चलती रहती हैं जिनमें आप 60 से 75 फीसदी का डिस्काउंट हासिल कर सकते हैं। सबसे अच्छा तरीका यह है कि होटल से सीधे बात करें। इसके अलावा ऑप्शन यह भी है कि आप फ्लाइट और होटल का कॉम्बिनेशन भी किसी एग्रिगेटर की मदद से बुक करा सकते हैं।

खाना
दुबई में 500 से 700 रुपये में एक दिन का एक आदमी का खाना आराम से हो सकता है। यह रकम बढ़ भी सकती है अगर आप मॉल्स और रेस्त्रां में खाना खाते हैं। वहां इंडियन फूड आपको आराम से मिल जाता है। कुछ जगह ऐसी हैं जहां आपको सस्ता खाना मिल सकता है और वह भी खाने की तमाम वैरायटी के साथ। होटल ऐसा चुनें जहां फ्री ब्रेकफास्ट की व्यवस्था हो। कई बार साइट-सीइंग की गतिविधियों में भी खाना शामिल होता है मसलन अगर आप डेजर्ट सफारी के लिए जा रहे हैं या Dhow Cruise के लिए जा रहे हैं तो आपके डिनर की व्यवस्था हो जाती है। लंच के लिए आप फूड कोर्ट या दूसरे सस्ते साधनों का यूज कर सकते हैं। पानी की बॉटल खरीदने के लिए लोकल स्टोर को चुनें क्योंकि टूरिस्ट लोकेशनों पर यह महंगा हो सकता है।

घूमना
आने-जाने के लिए दुबई में मेट्रो सबसे सस्ता साधन है, लेकिन इसमें कुछ समस्याएं भी हैं। अच्छा तो यह है कि आपका होटल ऐसा हो, जो मेट्रो स्टेशन के करीब हो। मेट्रो यूज करने पर वहां बहुत सख्त नियम हैं। अगर आपको पता नहीं है तो आपको मोटा फाइन देना पड़ सकता है। वैसे नियमों को थोड़ा पहले से समझ लें तो मेट्रो बढ़िया ऑप्शन है ही। इसके अलावा कैब्स का प्रयोग भी किया जा सकता है जोकि बहुत महंगी नहीं हैं। ऊबर, ओला भी यहां हैं।

साइट-सीइंग/शॉपिंग
ऐसी जगहों पर पैसा बचाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप टूरिस्ट पास या डिस्काउंटेड ट्रांसपोर्ट कार्ड खरीद लें। दुबई में इंटिग्रेटेड टिकट सिस्टम है जिसमें मेट्रो, बसें आदि सब कुछ आ जाते हैं। इस कार्ड को किसी भी मेट्रो स्टेशन पर टॉप-अप या रीचार्ज कराया जा सकता है। आप पूरे दिन के लिए पास खरीद सकते हैं। साइट-सीइंग थोड़ा महंगा हो सकता है इसलिए इसे ध्यान से चुनें। मसलन डेजर्ट सफारी का पैकेज 2500 रुपये प्रति व्यक्ति हो सकता है। इसी तरह बुर्ज खलीफा घूमने का खर्च एक व्यक्ति का 1700 से 9000 रुपये तक आ सकता है।

पैकेज
अगर पैकेज ले रहे हैं तो इसमें आमतौर पर इकॉनमी क्लास का किराया, वीसा फीस, थ्री-स्टार होटल में ब्रेकफास्ट के साथ स्टे और साइट-सीइंग शामिल होगा।

Thomas Cook: दुबई पैकेज 45,000 रुपये प्रति व्यक्ति
EZEEGO1: 47,273 रुपये प्रति व्यक्ति से शुरुआत
करंसी एक्सचेंज: 1 दिरहम = 18.07 रुपये

ऐसे बनेगा 1 लाख के अंदर बजट
फ्लाइट (15 से 16 हजार प्रति व्यक्ति राउंड ट्रिप) 30 हजार रुपये
साइट-सीइंग 30 हजार रुपये
वीसा फीस (5 हजार एक शख्स के) 10 हजार रुपये
घूमने का खर्च (750 से 900 रुपये रोजाना) 4 हजार रुपये
खाना (800 से 1200 रुपये रोजाना, प्रति व्यक्ति) 8 हजार रुपये
होटल (3 से 5 हजार एक रात का) 16 हजार रुपये

मालदीव



अगर आप बीच पर जाने के शौकीन हैं तो मालदीव आपके लिए अच्छा ऑप्शन है। यहां 1190 कोरल आइलैंड हैं। दूसरी डेस्टिनेशन के मुकाबले में यह थोड़ा महंगा है और मुश्किल से ही एक लाख के बजट में फिट बैठता है। रुकना और फ्लाइट, दोनों ही महंगी हैं। हालांकि ऑन-अराइवल वीसा की सुविधा है।

फ्लाइट
अगर आप सीधे राजधानी माले जाना चाहते हैं तो आपके बजट का 45 फीसदी से ज्यादा तो इसी में निकल जाएगा इसलिए बेहतर यह है कि माले जाने के लिए आप अपनी जर्नी को ब्रेक करें। आप दिल्ली से बेंगलुरु या चेन्नै जाएं और वहां से माले के लिए फ्लाइट लें। दिल्ली-माले की सीधी फ्लाइट आपको 25 हजार प्रति व्यक्ति से कम नहीं मिलेगी। माले पहुंचने में आपको 6 घंटे 45 मिनट का समय लगता है।
होटल
गेस्ट हाउसों में आप 2500 से 3000 रुपये प्रति रात के हिसाब से रुक सकते हैं। अगर थ्री-स्टार होटलों में जाएंगे तो एक रात के 10 हजार रुपये लगेंगे। इन होटलों को ढूंढने के लिए आप visitmaldives.com/en पर जा सकते हैं। अगर आप बेंगलुरु और चेन्नै होकर माले जा रहे हैं तो आप कुछ पैसे बचा लेंगे। इन पैसों का यूज करके आप थ्री-स्टार होटल में रुक सकते हैं। अगर रुकना थोड़ा और बेहतर करना चाहते हैं तो मालदीव में वॉटर स्पोर्ट्स को छोड़ दीजिए, लेकिन वहां का साफ पानी आपको ऐसा मुश्किल से ही करने देगा।
खाना
एक आदमी पर एक दिन का 2000 रुपया खाने पर खर्च हो सकता है। माले से आप कुछ रेडी-टु-ईट खाना या सैंडविच भी खरीद सकते हैं।
घूमना
इंटरनैशनल एयरपोर्ट आइलैंड हुलहुले से राजधानी माले तक ही आपको आना-जाना होगा। इस दूरी को आप सी प्लेंस और फेरीज के जरिये भी पूरा कर सकते हैं और यह तरीका आपको सस्ता पड़ेगा। कैब भी ली जा सकती है। कैब का किराया प्रति राउंड के हिसाब से फिक्स है। अगर किसी एजेंट से बुक कराते हैं तो एयरपोर्ट से होटल पहुंचने का खर्च अलग से नहीं चुकाना पड़ता।
साइट-सीइंग/शॉपिंग
माले में सबसे पॉपुलर शॉपिंग स्ट्रीट Majeedhee Magu है, लेकिन अगर आपको अपने बजट को एक लाख के भीतर ही रखना है तो शॉपिंग से बचें।
पैकेज
मालदीव का पैकेज एक लाख में बन पाना जरा मुश्किल है, लेकिन अगर आप सवा लाख रुपये तक बढ़ जाएं तो ठीकठाक पैकेज मिल जाता है।
Yatra: 1.30 लाख प्रति कपल
EZEEGO1: 1.2 लाख प्रति कपल से शुरू
करंसी: 1 मालदीवियन रुफिया = 4.32 रुपये

ऐसे बनेगा 1 लाख के अंदर बजट
फ्लाइट (20 से 25 हजार प्रति व्यक्ति राउंड ट्रिप दिल्ली से, 15000 चेन्नै से) 46 हजार रुपये (दिल्ली से सीधे माले)
साइट-सीइंग 12 हजार रुपये
खाना 1500 रु. रोजाना प्रति व्यक्ति 12 हजार रुपये
वीसा फीस कोई नहीं
रुकना (3 से 8 हजार हर रात) 30 हजार रुपये
घूमना कुछ नहीं

भूटान



भूटान अपनी कुदरती खूबसूरती, खुशमिजाज लोग और आर्किटेक्चर के लिए जाना जाता है। यहां आप महसूस कर सकते हैं कि क्यों यहां के लोग हैपिनेट इंडेक्ट में काफी ऊपर रहते हैं। यहां की राजधानी थिंपू है। यहां बहुत सारी मॉनेस्ट्रीज और स्तूप हैं। भूटान सस्ता देश है इसलिए यहां की यात्रा 1 लाख के बजट में आप आराम से कर सकते हैं। यहां जाने के लिए आपको वीसा नहीं चाहिए।
फ्लाइट
सबसे अच्छा तरीका यह है कि दिल्ली से बागडोगरा तक की फ्लाइट ली जाए और वहां से रोड से जाया जाए। दिल्ली से मशहूर शहर पैरो तक की फ्लाइट मिलनी मुश्किल है और महंगी भी है। एक से दो महीने अडवांस में बुक कर दें तो दिल्ली से बगडोरा की फ्लाइट का रिटर्न टिकट 7 से 8 हजार रुपये में बुक करा सकते हैं। वहां से आप थिंपू तक के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं। टैक्सी या बस से आपको 3500 रुपये लगेंगे। सीधे दिल्ली से पैरो की फ्लाइट का रिटर्न टिकट 20 हजार का बैठेगा। दिल्ली से पैरो जाने में 2 घंटे 20 मिनट लगते हैं।
रुकना
भूटान में होम-स्टे से लेकर फाइव-स्टार होटलों तक के ऑप्शन हैं। थ्री-स्टार होटल आपको 1000 से 1500 रुपये में मिल जाएगा, लेकिन अगर बेहतर जगह रुकना है तो आपको और ज्यादा खर्च करना होगा।
खाना
1 हजार रुपये रोजाना प्रति व्यक्ति खर्च खाने पर आता है।
घूमना
भूटान में घूमने के लिए सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप प्राइवेट वीइकल ले लें। बसें भी ली जा सकती हैं। वैसे कैब भी सस्ती ही हैं। ऊबर, ओला कैब्स भी है। कैब का फिक्स्ड प्राइस है लेकिन कहीं-न-कहीं आप मोलभाव कर सकते हैं।
साइट-सीइंग और शॉपिंग
थिंपू में बुद्ध पॉइंट देखने की अच्छी जगह है। आप रिवर राफ्टिंग का मजा भी ले सकते हैं। अगर आप पैकज लेते हैं तो साइट-सीइंग का काफी हिस्सा इसमें कवर हो जाएगा, लेकिन हॉट स्टोन बाथ लेना चाहते हैं या फार्महाउस घूमना चाहते हैं तो आपको अलग से खर्च करना होगा।
पैकेज
Cox and Kings: 80 हजार रुपये प्रति कपल (5 रात 6 दिन)
SOTC: करीब 70 हजार रुपये प्रति कपल (7 दिन 8 नाइट)
Thomas Cook: करीब 72 हजार प्रति कपल (5 दिन 6 रातें)
1 BTN : 1 रुपये

ऐसे बनेगा 1 लाख के अंदर बजट
फ्लाइट 33 हजार रुपये
साइटसीइंग शॉपिंग आदि 29 हजार रुपये
अंदरूनी यात्रा (कैब और बस) 8 हजार रुपये
खाना (1 हजार रुपये प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन) 10 हजार रुपये
रुकना (4 से 6 हजार रुपये प्रति रात) 20 हजार रुपये

श्रीलंका
श्रीलंका में आपको केरल जैसा अहसास होगा। यहां हिल्स भी हैं और बीच भी। इसके अलावा यहां की नैचरल ब्यूटी देखने लायक है। फ्लाइट हो, रुकना खाना या अंदरूनी आना जाना यहां सब कुछ दूसरी जगहों के मुकाबले सस्ता है। इसमें भी आपके बजट का ज्यादा बड़ा हिस्सा एयर टिकट और रहने पर ही खर्च होता है। बाकी चीजों के लिए कम पैसा खर्च होता है। यहां पहुंचने पर यानी ऑन-अराइवल वीसा ले सकते हैं।
फ्लाइट
दिल्ली-कोलंबो फ्लाइट आपको करीब 20 हजार रुपये में मिल जाएगी। आप इस खर्च को कम भी कर सकते हैं। पहले दिल्ली से डॉमेस्टिक फ्लाइट से चेन्नै चले जाएं और उसके बाद वहां से श्रीलंका। टिकट बुक कराने के लिए मोबाइल ऐप की मदद लें। मोबाइल ऐप की मदद से आप टिकट की बुकिंग और होटल की बुकिंग को कंबाइंड कर सकते हैं। इससे खर्च और कम हो सकता है। दिल्ली से कोलंबो की सीधी फ्लाइट ली जाए तो 3 घंटे 35 मिनट में आपको पहुंचा देगी।
रुकना
रुकने के लिए श्रीलंका में काफी ऑप्शन हैं। होमस्टे, गेस्ट हाउस, हॉस्टल और होटलों का ऑप्शन है। किसी हॉस्टल में रुक रहे हैं तो 1 हजार रुपये प्रति रात में ही आपका काम चल सकता है, जबकि थ्री स्टार होटल का खर्च 3 हजार रुपये प्रति नाइट बैठता है। hotels.com या agoda.com पर भी होटल सर्च किए जा सकते हैं। अडवांस में होटल की बुकिंग कराना हमेशा बेहतर होता है।
खाना
लोकल जगहों पर 100 से 200 रुपये प्रति व्यक्ति खाने का लग सकता है। इसके अलावा किसी अच्छे रेस्त्रां में खाना खाना है तो थ्री कोर्स मील का 500 से 700 रुपये लगेगा प्रति व्यक्ति।
घूमना
बस और ट्रेन दोनों का ऑप्श्न है, लेकिन इसमें भी ट्रेन का ऑप्शन बेहतर है क्योंकि इसका किराया कम है। कैब भी ली जा सकती है, लेकिन इसका खर्च एक दिन का 4000 रुपये के आसपास पड़ता है।
साइट-सीइंग और शॉपिंग
बुद्धिस्ट टेंपल्स, बीचेज, वाइल्डलाइफ और नैशनल पार्क जैसी जगहें घूमी जा सकती हैं। हैंडिक्राफ्ट, कपड़े आदि यहां सस्ते हैं और इनकी शॉपिंग की जा सकती है।
पैकेज
Cox and Kings: 97,998 रुपये प्रति कपल
SOTC: 55 हजार रुपये प्रति कपल
करंसी: 1 श्रीलंकन रुपया = 0.46 रुपये

ऐसे बनेगा 1 लाख के अंदर बजट
साइट-सीइंग 14 हजार रुपये
वीसा फीस (1495 रुपये प्रति व्यक्ति) 3000 रुपये
आना-जाना (500-1000 रुपये ट्रेन से), 3 हजार रुपये कैब से 8000 रुपये
खाना (500 से 1000 रुपये रोजाना प्रति व्यक्ति) 9000 रुपये
रुकना (4 से 6 हजार रु. प्रति रात) 30 हजार रुपये
फ्लाइट (16 से 20 हजार प्रति व्यक्ति राउंड ट्रिप) 36 हजार रुपये

थाइलैंड भी है एक ऑप्शन
स्पेक्ट्रम टूरिजम प्रा़ लि. के मोहम्मद कासिफ बताते हैं कि एक लाख रुपये के बजट में थाइलैंड भी एक अच्छी डेस्टिनेशन हो सकती है। थाइलैंड की नाइटलाइफ और बीच आदि काफी पॉपुलर हैं। इसके अलावा बैंकॉक में आप सफारी वर्ल्ड, क्रोकोडाइल फार्म, स्नो पार्क देख सकते हैं और वॉटर स्पोर्ट्स का भी मजा ले सकते हैं। अगर पैकेज लेकर जा रहे हैं तो कपल के लिए पैकेज आपको 60 हजार रुपये में आसानी से मिल जाएगा। इस पैकेज में आपको पटाया और बैंकॉक, दो शहर घुमाए जाएंगे। चूंकि आपका बजट इससे ज्यादा है तो बाकी पैसा आप घूमने-फिरने और शॉपिंग आदि करने में खर्च कर सकते हैं। थाइलैंड जाने के लिए अगर दिल्ली से फ्लाइट ले रहे हैं तो महंगा होगी, लेकिन जर्नी को कोलकाता होकर तय किया जाए तो यह सस्ता पड़ता है। कोलकाता से बैंकॉक का रिटर्न टिकट एक शख्स का 10 से 12 हजार रुपये में हो जाता है।












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स्टार्टअप शुरू करना है, पहले इसे पढ़ लीजिए

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डोसे की करोड़ों की कंपनी

केरल के छोटे-से गांव में पैदा हुए मुस्तफा क्लास 6 में जब फेल हो गए तो उनके परिवार के साथ उन्हें भी झटका लगा। उनके पिता काफी गरीब और घर के अकेले कमाने वाले थे। मुस्तफा जानते थे कि सीमित संसाधनों में पढ़ाई करना एक बड़ी चुनौती है। सरकारी कॉलेज से इंजिनियरिंग करने के बाद उन्होंने कुछ वक्त नौकरी की और इसके लिए विदेश भी गए, लेकिन उनका मन कुछ अपना करने का था।

मुस्तफा अच्छी तरह से जानते थे कि भारत में एक दूसरे को बांधने का काम खाना करता है और इसलिए उन्होंने इस फील्ड में ही कुछ करने की सोची। उन्होंने आईडी नाम से डोसा बैटर (डोसा बनाने का पतला घोल) बना कर बेचना शुरू किया। 2005 में छोटे-से दिखने वाले आइडिया से शुरू हुआ बिजनेस 2014 तक 100 करोड़ का हो गया। अपनी सफलता पर पीसी मुस्तफा का कहना है, 'जो मन में करने का आए उसे फौरन कर लो, क्योंकि ऑन्ट्रप्रनर की राह में कभी कल नहीं आता।'



दिल की सुनो और आगे बढ़ो

इंजिनियरिंग और बिजनस मैनेजमेंट की डिग्री ले चुकीं रिचा के मन में शुरू से ही अपना कुछ करने का था, लेकिन वह किसी सॉलिड आइडिया पर पहुंच नहीं पा रही थीं। एक दिन अचानक उन्हें भारतीय महिलाओं को अंडरगारमेंट की खरीदारी को लेकर होने वाली समस्याओं का ख्याल आया। दुकानों पर महिला सेल्सपर्सन का न होना, सही साइज की जानकारी न होना आदि परेशानियों से राहत तकनीक ही दिला सकती थी।

रिचा ने ऑनलाइन लेडीज अंडरगारमेंट स्टोर जिवामे की शुरुआत करने की ठानी। सबसे पहले हायतौबा घर में ही मची जब रिचा की मां ने कहा 'मैं लोगों से क्या कहूंगी कि मेरी बेटी ऑनलाइन अंडरगारमेंट बेचती है।' रिचा ने जो ठान लिया था उस पर वह अड़ी रहीं और वह इस वक्त देश की जानी-मानी वेबसाइट की सीईओ के तौर पर जानी जाती हैं। जीवामे इस वक्त देश की बड़ी फंडिंग वाली कंपनियों में शुमार होती है।

किसी ने सच कहा है: कोई क्या कहता है इसे सुनने से बेहतर है कि हमारा दिल क्या कहता है उसे सुनें। स्टार्टअप के लिए छोड़ा आईएएस अक्सर लोग कुछ कमाने के लिए स्टार्टअप शुरू करते हैं, लेकिन कुछ का अंदाज जुदा होता है। ऐसे ही एक शख्स हैं रोमन सैनी। उम्र सिर्फ 24 साल। जयपुर में जन्मे रोमन सैनी ने इतनी कम उम्र में वो सब हासिल किया, जिसका सपना हर इंसान देखता है। एम्स का डॉक्टर बनना और फिर आईएएस बनना। लेकिन रोमन ने अपने लिए कुछ और ही सोच रखा है।

रोमन अपने दोस्त गौरव मुंजाल के साथ मिलकर यू ट्यूब पर बच्चों को पढ़ाते हैं। उनके लिए ज़रूरी लेक्चर देते हैं। खासकर उन बच्चों के लिए जो डॉक्टर बनना चाहते हैं या सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं या फिर कंप्यूटर प्रोग्रामर्स बनना चाहते हैं। रोमन और उनके दोस्त गौरव ने मिलकर Unacademy.in नाम का ई-ट्यूटर प्लेटफॉर्म तैयार किया। इस पर सारी पढ़ाई पूरी तरह मुफ्त है। दिलचस्प बात यह है कि रोमन की ये मेहनत रंग ला रही है। उन्हें फॉलो करने वाले 10 स्टूडेंट्स सिविल सर्विसेज एग्जाम पास कर चुके हैं।



समझें अपना रास्ता

कुछ भी अपना शुरू करने से पहले इस बात को समझना जरूरी है कि आप किस रास्ते पर जा रहे हैं और वहां की जरूरतें क्या-क्या हैं। मिसाल के तौर पर अक्सर अपना कुछ करने के लिए 'ऑन्ट्रप्रनरशिप' और 'स्टार्टअप' जैसे दो शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। वैसे तो इनमें कोई खास फर्क नहीं है लेकिन नए वक्त के हिसाब से बदलते बिजनेस के रंगढंग ने स्टार्टअप शब्द को जन्म दिया है। मूलरूप से स्टार्टअप अक्सर उन बिजनेसों को कहते हैं जो किसी ऐसे आइडिया पर होते हैं जिन पर पहले काम नहीं हुआ है।

एक उदाहरण से इसे समझ सकते हैं। एक बिजी मार्केट मे बहुत सारे रेस्तरां होते हैं। मान लीजिये एक नया रेस्तरां उसी बाजार मे खुलता है। तो वो स्टार्ट अप नहीं कहलाएगा। लेकिन कोई पहली बार एक मोबाइल ऐप बनाता है जिससे आप घर बैठे आसपास के रेस्तरां के मेनू देख सकते हैं, खाना ऑर्डर कर सकते हैं, कीमतों की तुलना कर सकते हैं, खाने की क्वॉलिटी की रेटिंग देख सकते हैं। ऐसे कारोबार को शुरू करने वाली कंपनी स्टार्ट अप कहलाएगी।

फेसबुक, गूगल कभी ऐसी ही स्टार्ट अप थीं। बहुत कम पूंजी से शुरू हुए यह स्टार्ट अप करोड़ो की कंपनी बनने का दम रखते हैं। परिभाषाओं को छोड़ कर अगर खालिस काम की बात की जाए तो यह जानना बहुत जरूरी है कि अपना कुछ भी शुरू करने के लिए बिजनेस से जुड़ी बेसिक बातों के बारे में जानना बहुत जरूरी है।



खास तौर पर प्लानिंग और फंडिंग जैसे दो लेवल पर सोचने की जरूरत होती है:

1- करें फूलप्रूफ प्लानिंग इस लेवल पर आइडिया को लेकर स्पष्टता का होना बहुत जरूरी होता है। आइडिया लेवल पर ही फोकस न होना स्टार्टअप के फेल होने का सबसे बड़ा कारण साबित होता है। प्लानिंग करते वक्त खुद से ये सवाल जरूर पूछें:

क्या मेरा आइडिया या प्रॉडक्ट वाकई किसी के काम का है? क्या किसी जरूरत को पूरा करने के लिए शुरू किए किसी खास बिजनेस से मुझे फायदा होगा? क्या मेरे आइडिया पर पहले से कंपनियां काम कर रही हैं? अगर हां तो मेरा प्लान उनसे कितना बेहतर या अलग है? क्या आइडिया को जमीन पर लाना प्रैक्टिकल तरीके से मुमकिन है? मेरा आइडिया अच्छा तो है, लेकिन क्या इसे लोगों तक पहुंचाना मुमकिन है? मेरा आइडिया कितना लीगल है? उसमें किसी कानूनी पचड़े तो नहीं हैं? क्या यह ऑपरेट करने के लिहाज से सेफ है? बिजनेस शुरू करने और इसकी मार्केटिंग में आने वाले खर्च को जुटाना क्या मुमकिन है? क्या बिजनेस से मुनाफा मिलने की दर इतनी होगी कि मैं सफलता से अपने आइडिया को जमीन पर जमाए रख सकूं? अगर बेसिक आइडिया सफल हो गया तो क्या वक्त के हिसाब से इसे आगे बढ़ाना और बदलना मुमकिन होगा? क्या मैं अपने आइडिया को कॉपीराइट या पेटेंट के जरिए सेफ करने की स्थिति में हूं? कहीं मेरा आइडिया किसी दूसरे के पेटेंट या कॉपीराइट का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है? क्या इसके लिए कच्चा माल और मैन पावर उपलब्ध है? जिस आइडिया पर हम काम कर रहे हैं उस फील्ड के बारे में कोई एक्सपीरियंस मुझे या मेरे पार्टनर को है कि नहीं?

अगले स्टेज में

बिजनेस डिटेल्स जैसे नाम, लोकेशन, मार्केट और इस फील्ड में पहले से मौजूद कंपनियों से कॉम्पिटिशन जैसी चीजें प्लान करें। बिजनस से आप क्या पाना चाहते हैं और कैसे पाना चाहते हैं इसके बारे में डॉक्युमेंट तैयार करें मिसाल के तौर पर आप 1 या 2 साल बाद खुद को और अपने बिजनेस को किस मुकाम पर देखते हैं। कितने फंड की जरूरत है फंड को इस्तेमाल कैसे करेंगे। अपने प्रॉडक्ट से सर्विस से जुड़ी मार्केट का ब्योरा तैयार करें। इससे जुड़ी इंडस्ट्री के ट्रेंड की जानकारी लें। किस मार्केट को टारगेट करना है इसके बारे में भी डॉक्युमेंट तैयार करें। इसमें एक्सपर्ट की मदद भी ली जा सकती है।

पेटेंट, कॉपीराइट और लीगल मामले कैसे और कौन हैंडल करेगा इसका प्लान बनाएं। प्रॉडक्ट या सर्विस की कीमत और बेचने का ब्लू प्रिंट तैयार करें। किस तरह का ऑर्गेनाइजेशनल स्ट्रक्चर अपनाएंगे। यह तय करें। बेहतर होगा कि बिजनेस की शुरुआत में ही महंगे ऑफिस में इन्वेस्टमेंट न करें। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर या ओनरशिप किसके पास होगी, इसके बारे में पहले प्लान कर लेने से बिजनेस के सफल होने के बाद के झगड़ों से बचा जा सकता है। अक्सर बढ़ते बिजनेस में जिम्मेदारी का साफ-साफ बंटवारा न होने से बिजनेस पर ब्रेक लग सकता है।

तय करें कि कौन-सा पार्टनर क्या करेगा। स्टाफ प्लान या कितने कर्मचारी होंगे इसके बारे में भी सोच लें। स्टार्ट-अप्स काफी उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर कर अपने मुकाम पर पहुंचते हैं। ऐसे में जल्दबाजी या बिना प्लानिंग की हायरिंग जहां कंपनी को नुकसान पहुंचा सकती है वहीं काम करने वाले के करियर पर भी इसका बुरा असर होता है। अगले एक या दो साल तक बिजनेस चलाने का ऑपरेशनल प्लान जरूर तैयार करें। इसके लिए फंड के अलावा इस बारे में भी सोचें कि अगर सफलता नहीं मिली तो आपका प्लान 'बी' क्या हो सकता है।




फंडिंग

स्टार्टअप शुरू करने की सबसे चैलेंजिंग स्टेज है फंड जुटाना। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि प्लानिंग के लेवल पर जहां आप काफी कुछ कंट्रोल करने की हालत में होते हैं, वहीं फंडिंग के लेवल पर कुछ भी आपके हाथ में नहीं होता। हो सकता है कि जो प्लानिंग बड़े बिजनेस के सपने दिखा रही हो वह फंड करने वालों को किसी काम का न लगे।

मुख्य रूप से किसी बिजनेस के लिए पैसों का जुगाड़ इन तरीकों से होता है: अपना पैसा बैंक से लोन लेकर किसी पार्टनर को फाइनैंसर बना कर या प्राइवेट इक्विटी (हिस्सेदारी) देकर VC (वेंचर कैपिटलिस्ट) के सहारे

ऐसे मिलेगा लोन

अपना बिजनेस शुरू करने के लिए अगर आपको बैंक लोन लेना है तो कंपनी लॉ के तहत आपकी कंपनी का रजिस्ट्रेशन होना जरूरी है।

इसके बाद कंपनी को मिनिस्ट्री ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज से अप्रूवल लेना होगा। यह तब ही मिलेगा जब इस मिनिस्ट्री की गाइडलाइन पर आप खरे उतरेंगे। इसकी पूरी जानकारी आप dcmsme.gov.in पर जाकर ले सकते हैं।

एक बार यहां से अप्रूव हो जाने के बाद बैंक 1 करोड़ तक का लोन बिना कुछ गिरवी रखे दे सकता है। - बैंक लोन देते वक्त खाता खुलवाते वक्त की गई तमाम औपचारिकताओं के अलावा बिजनेस की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी मांगता है।

अगर प्रॉडक्शन से जुड़ा बिजनेस शुरू करते हैं तो पॉल्यूशन और लेबर मिनिस्ट्री से मिलने वाली एनओसी भी देनी पड़ती है। - अगर कंपनी सोल प्रोपराइटरशिप (केवल एक इंसान द्वारा चलाई जा रही) वाली है और वह बिजनेस शुरू करने के लिए पैसा चाहती है तो उसे स्टेट लेवल पर चलने वाले डिपार्टमेंट ऑफ माइक्रो स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (MSME) से अप्रूवल की जरूरत होती है। हर स्टेट में इनके लिए अलग-अलग मापदंड तय किए गए हैं।

प्राइवेट इक्विटी और एंजल इन्वेस्टर : नए जमाने में जहां बिजनेस के नए आइडिया आए वहीं फंडिंग ने भी नए-नए रास्ते तलाशे हैं। एंजल इन्वेस्टर और वेंचर कैपिटलिस्ट भी फंडिंग के ऐसे ही रास्ते हैं। यह मुख्य रूप से किसी इंसान या फर्म की तरफ से किसी दूसरे के बिजनेस में किया गया स्ट्रैटजिक इन्वेस्टमेंट होता है।

एंजल इन्वेस्टर या वेंचर कैपिटलिस्ट अक्सर बिजनेस की दुनिया के बड़े लोग होते हैं। किसी भी स्टार्टअप को वह अपने अनुभव के हिसाब से आंकते हैं और फिर इन्वेस्टमेंट करते हैं। इस तरह के इन्वेस्टमेंट प्राइवेट इक्विटी के तौर पर भी होते हैं।

प्राइवेट इक्विटी - यह अक्सर पहले से कमाई करने वाली कंपनी पर पैसा लगाना चाहते हैं। यह हर तरह की कंपनियों पर पैसा लगाती हैं और मुनाफा को ही महत्व देते हैं। बिजनेस मॉडल और साइज के हिसाब से इन्वेस्मेंट की रकम तय करते हैं। कम से कम 6 से 10 साल तक में कई स्टेजों में पूरी फंडिंग करती हैं। अक्सर कंपनी पर पूरा कंट्रोल रखते हैं और बड़े शेयर की डिमांड करते हैं।

इन्वेस्टर कंपनी के रोजमर्रा के काम में ज्यादा एक्टिव नहीं रहते जब तक कि कंपनी पॉलिसी के लेवल पर कोई भारी बदलाव न करना चाहे। एंजल इन्वेस्टर या वेंचर कैपिटलिस्ट लोन के जरिए बिजनेस न शुरू करने का सबसे बड़ा कारण यह होता है कि अक्सर लोन लेकर बिजनेस करने में सारा दारोमदार आप पर आ जाता है, जबकि वेंचर कैपिटलिस्ट आइडिएशन से लेकर एक्सपर्ट एडवाइस तक देने के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं। वैसे देखा जाए तो वेंचर कैपिटलिस्ट और प्राइवेट इक्विटी बिजनेस के लिए पैसा जुटाने का मिलता-जुलता ही तरीका है।

इसमें आपके आइडिया के पीछे पैसा लगाने के बदले उसमें प्रॉफिट शेयर करना होता है।

किसी स्टार्ट अप को बड़ा होने के लिए फंड की जरूरत होती है। एक कंपनी जिसमें कुछ लाख लगे होते हैं, कुछ लोग काम कर रहे होते हैं, लेकिन उसके पास ऐसी तकनीक है जो दुनिया बदल सकती है। और उसे ज्यादा पैसों की जरूरत होती है। ये पैसा आता है, वेंचर कैपिटल फर्म से या एंजल इन्वेस्टर से। मिलियन और बिलियन डॉलर में। जैसे फ्लिप कार्ट को मिला, ओला जैसी कंपनियों को मिल रहा है।

किसी आइडिया को बिजनेस की शक्ल देने की शुरुआत में ही वेंचर कैपिटलिस्ट का बड़ा रोल होता है। कम पूंजी से शुरू किए गए बिजनेस को अक्सर इनसे फायदा होता है।

इस तरह की फंडिंग अक्सर हाई ग्रोथ सेक्टर वाले बिजनेस जैसे आईटी, बायोमेडिकल और अल्टरनेटिव एनर्जी आदि सेक्टर में ज्यादा होती है।

एंजल इन्वेस्टर शुरुआत में अक्सर छोटे इन्वेस्टमेंट के लिए ही तैयार होते हैं। अक्सर वेंचर कैपिटलिस्ट 10 लाख रुपये तक की रकम ही फंड करते हैं।

फंडिंग पीरियड 4 से लेकर 7 साल का होता है।

वेंचर कैपिटलिस्ट कंपनी में अक्सर छोटे शेयर ही लेती हैं लेकिन शर्तें आइडिया देने वाले और कंपनी के बीच तय होती हैं।

ये इन्वेस्टर हर मुकाम पर राय देते हैं और अपने कनेक्शन और डिस्ट्रिब्यूशन सर्कल का भी फायदा देते हैं।

इनक्यूबेटर और अक्सेलरेटर को भी समझें बिजनेस की शुरुआत करने वालों के लिए इन दो शब्दों के मायने जानना बहुत जरूरी हैं। इन्क्यूबेटर यह आइडिया के शुरुआती दौर में उसे प्रॉडक्ट के लेवल तक ले जाने में मदद करता है। इस दौरान यह एक्सपर्ट सलाह तो देता ही है, पूरे आइडिया को फाइन ट्यून करने का काम भी करता है। उनकी तरफ से इस लेवल पर ऑफिस खोलने की जगह और चंद महीने के टारगेट के हिसाब से फंडिंग दी जाती है। इसका मकसद होता है एक बिजनेस आइडिया को प्लान के लेवल से हकीकत की जमीन पर उतारना। किसी भी बिजनेस का असली टेस्ट इस लेवल के बाद ही शुरू होता है। अक्सर एंजल इन्वेस्टर भी इन्क्यूबेटर की कसौटी पर खरे उतर चुके बिजनेस आइडिया को ही भाव देते हैं। अक्सेलरेटर जैसा कि नाम से ही पता चलता है यह आपके आइडिया को स्पीड देने का काम करता है। इनका रोल तब अधिक होता है जब एक बिजनेस आइडिया इन्क्यूबेटर के लेवल से आगे निकल जाता है लेकिन उसके बड़ा बनने में कुछ कसर बाकी है। यह तय वक्त के लिए आपके बिजनस आइडिया को अपने सहारे ऊंची उड़ान दिलाने में मदद करते हैं।

इन्क्यूबेटर और अक्सेलरेटर अमूमन नए बिजनेस आइडिया को एक ऑफिस स्पेस के साथ ही एक्सपर्ट्स की मदद भी दिलाते हैं। ये दोनों ही बेहतरीन आइडिया को हर मुकाम पर पालने-पोसने की जिम्मेदारी उठाते हैं। मुख्य फंडिंग यह वह दौर है जब कंपनी न सिर्फ आइडिया के लेवल पर खुद को साबित कर देती है, बल्कि बिजनेस के धरातल पर यानी कस्टमर के लेवल पर पहुंच जाती है। यह बड़ा इन्वेस्टमेंट पाने का दौर होता है। अक्सर इस लेवल पर पहुंच चुकी कंपनी करोड़ों के टर्नओवर तक पहुंच चुकी होती है।

कंपनी रजिस्ट्रेशन को भी समझें भारत में किसी भी कंपनी को रजिस्टर्ड करने के लिए बाकायदा मिनीस्ट्री ऑफ कार्पोरेट अफेयर काम करती है। भारत में कंपनियां दो स्वरूपों: सोल प्रोपराइटरशिप और प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह रजिस्टर कराया जा सकता है।

कंपनी लॉ के अनुसार, किसी भी रजिस्टर्ड कंपनी के लिए कम से कम 2 पार्टनर और 2 शेयर होल्डर होना जरूरी है।

शेयर होल्डर्स किसी भी हाल में 50 से ज्यादा नहीं हो सकते।

किसी भी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में आम पब्लिक शेयर नहीं खरीद सकती है।



करें ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन

इसके लिए www.mca.gov.in/MCA21/RegisterNewComp.html पर जा सकते हैं। सोल प्रोपराइटरशिप बिजनेस के लिए कंपनी लॉ के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं कराना पड़ता। नई कंपनी खोलने का यह आसान और पुराना तरीका है। ऐसी कंपनी का बैंक अकाउंट तो कंपनी के नाम पर ही होता है लेकिन उसे ऑपरेट कंपनी का फाउंडर अपने सिग्नेचर से ही करता है। इसमें किसी भी तरह के कम से कम या अधिक से अधिक रकम की लिमिट नहीं होती। ऐसी कंपनी की पहचान उसके ओनर से ही होती है और इसके अलावा उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती।

मिले-जुलें और फंडिंग पाएं

जितनी जरूरत बिजनेस शुरू करने वालों के पैसों की है उतनी ही जरूरत पैसे वालों को अच्छे आइडिया की है। ऐसे में देश भर में साल भर में कई तरह की पेड और फ्री स्टार्ट-अप मीट्स साल भर होती रहती हैं। इन मीटिंगों से कई बिजनेस आइडिया परवान चढ़ चुके हैं। ऐसे में यहां से मिल सकती है मदद: Startup Saturday हर हफ्ते वीकेंड पर होने वाली यह इवेंट उन लोगों को लिए काफी फायदेमंद होती हैं जो नौकरी करते हुए अपने बिजनेस का सपना देख रहे हैं। ज्यादा जानकारी के लिए startupsaturday.headstart.in पर जाएं। TiE Events यह देश में इस तरह की मीटिंग के लिए काफी पॉपुलर अड्डा है।

इसके शेड्यूल की पूरी जानकारी www.tiecon.org पर मिल सकती है। Indian Angel Network Events यह दुनियाभर में फैले भारतीय ऑन्ट्रप्रनर्स को एक मंच पर लाने वाला नेटवर्क है। इसकी मीटिंगें टेक बिजनेस शुरू करने वालों के काफी काम आ सकती हैं। पूरी जानकारी indianangelnetwork.com पर मिल सकती है। Startup Jalsa यह जलसा सही मायने में स्टार्ट-अप का जलसा है। यहां पर कई बड़े मेंटर्स और बिजनेस जगत के लोग जुटते हैं। startupjalsa.com पर लॉगइन करके जानकारी मिल सकती है।

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क्या बिजनेस के लिए बने हैं आप?

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एक्सपर्ट पैनल

याधव मेहरा, कॉरपोरेट ट्रेनर टी. मुरलीधरन, करियर कंसल्टेंट राहुल जालान, मोटिवेटर

बिजनेस शुरू करने का आप मन बना चुके हैं, लेकिन इस ओर कदम बढ़ाने से पहले यह तो जान लीजिए कि आप बिजनेस के लिए बने भी हैं या नहीं? और अगर बने हैं तो किस तरह के बिजनेस के लिए? पर्सनैलिटी के हिसाब से कैसे हैं आप? एक्सपर्ट्स की मदद से आपकी राह आसान करने की कोशिश की है प्रभात गौड़ ने :

अक्सर ऐसा होता है कि एक शख्स मौका देखकर बिजनेस में चौका मार देता है जबकि उतनी ही नॉलिज रखने वाला दूसरा शख्स बस देखता रह जाता है! तो क्या ऑन्ट्रप्रन्यरशिप के लिए कुछ जन्मजात गुण जरूरी हैं? या फिर ऐसा है कि कामयाब ऑन्ट्रप्रन्यर्स एक अलग ही नजरिये से काम करते हैं? इन सवालों के निश्चित जवाब तो नहीं दिए जा सकते, लेकिन यह जरूर जाना जा सकता है कि एक कामयाब ऑन्ट्रप्रन्यर बनने के लिए आपके भीतर किन गुणों का होना जरूरी है। अगर ये गुण आप में हैं तो अच्छी बात है, नहीं हैं तो इन्हें डिवेलप कर लें।

Personal Skills आशावादिता: अगर आप बिजनेस में हैं तो मानकर चलिए कि आपको हर हाल में मुश्किल पलों का सामना करना ही पड़ेगा। इन पलों के दौरान भी अगर आप आशावादी बने रहे, तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। रिस्क लेने की क्षमता : ब्लाइंड रिस्क नुकसानदायक है तो कोई रिस्क न लेना उससे भी खतरनाक। बेहतर है कि कैलकुलेटेड रिस्क लें। मसलन मोटा लोन लेकर बड़ा होटल खोलने से बेहतर है अपनी सेविंग्स से छोटा-सा रेस्तरां खोलना, पर सेविंग का रिस्क तो लेना ही होगा। फैसले लेने की क्षमता: जिन लोगों को शर्ट के कलर पसंद करने में पसीने छूट जाते हैं, उनके लिए बिजनेस की राह वाकई बहुत मुश्किल है। देखें कि जिंदगी के छोटे-छोटे फैसले लेने में आप कंफ्यूज तो नहीं रहते। कहीं ऐसा तो नहीं कि हर छोटे-बड़े फैसले के लिए आपको दोस्त या भाई या किसी और की हां चाहिए होती है। Interpersonal Skills लीडरशिप: काम करने में अच्छा कोई शख्स काम करवाने में भी अच्छा हो, जरूरी नहीं। काम करवाने की कला आपको आनी ही चाहिए। कैसे अपने विजन को टीम के साथ शेयर कर उसे हकीकत में बदलना है, आपके पास यह स्किल्स होनी चाहिए। अपने काम के लिए आपको दूसरों पर निर्भर होना ही पड़ेगा इसलिए दूसरों को साथ लेकर चलने की कला जरूरी है। कम्यूनिकेशन: अपने आइडिया को बेचना है, प्रॉडक्ट को बेचना है या फंड का जुगाड़ करना है, आपकी कम्यूनिकेशन स्किल्स अच्छी नहीं है तो बनता काम भी बिगड़ जाएगा। सही समय पर सही तरीके से बोलना और यह भी जानना कि कब चुप होकर दूसरों को सुनना है, जरूरी है। पर्सनल रिलेशंस: बिजनेस में क्या, जिंदगी के हर क्षेत्र में पर्सनल रिलेशंस जरूरी हैं। जो काम कानून और नियमों से नहीं होते, वे पर्सनल रिलेशंस से चुटकियों में होते हैं। पर्सनल रिलेशंस को बेहतर बनाने के लिए लोगों से मिलिए, बिना काम के भी मिलिए, उनके काम आइए। Creative Skills क्रिएटिव थिंकिंग: किसी भी स्थिति को देखने का आपके पास एक अलग तरह का नजरिया होना चाहिए। कई बार लोग घिसे-पिटे तरीकों को अप्लाई करने बजाय आउट ऑफ द बॉक्स सोचते हैं और चुटकियों में समस्या हल कर ले जाते हैं। जरूरी नहीं कि क्रिएटिवटी लेकर आप पैदा हों, इसे डिवेलप भी किया जा सकता है। प्रॉब्लम सॉल्विंग: बिजनेस में समस्याएं तो आएंगी ही इसलिए समस्याओं को हल करने की स्किल्स आपके पास होनी चाहिए। कुछ लोग समस्याओं को देखकर घबरा जाते हैं तो कुछ उन्हें चुनौतियों के रूप में स्वीकार करते हैं और उनका हल पेश करने की कोशिश करते हैं। अवसर को पहचानना: जो बिजनेस आप कर रहे हैं या करने वाले हैं, उसके ट्रेंड के बारे में आपको पूरी जानकारी होनी ही चाहिए। बेहतर होगा कि मौके पर पैनी नजर रखकर एक बेहतरीन प्लान तैयार करके गरम लोहे पर चोट करने की स्किल्स अपने भीतर डिवेलप करें। Practical Skills गोल सेटिंग: गोल दो तरह के होते हैं शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म। दोनों ही गोल बनाने और उन्हें बाकायदा लिखकर रखने का हुनर होना चाहिए। गोल के साथ डेडलाइन भी होनी चाहिए। बिना डेडलाइन गोल का कोई मतलब नहीं। प्लानिंग: बड़ी से बड़ी कंपनी को अगर आप कागज पर खड़ी कर देने की कला में माहिर हैं तो समझिए आप प्लानिंग के लेवल पर तो मात नहीं ही खाएंगे। अच्छे प्लान करने वाले छोटी से छोटी चीज को पेपर पर प्लान कर लेते हैं और उसी के हिसाब से आगे बढ़ते जाते हैं। इससे उलझने और बेतरतीबी की समस्या नहीं रह जाती। नॉलेज: आपके पास बिजनेस के मेन फंक्शनल एरिया मसलन सेल्स, मार्केटिंग, फाइनैंस और ऑपरेशंस की सामान्य नॉलिज होनी चाहिए। आपको पता होना चाहिए कि कोई ऑन्ट्रप्रन्यर फंड कैसे उठाता है। आप जिस मार्केट में घुसने वाले हैं उसमें मौजूद कॉम्पिटिशन की आपको जानकारी होनी चाहिए। इसी तरह आपको पता होना चाहिए कि सर्विस या प्रॉडक्ट को आप मार्केट में कैसे लॉन्च करेंगे।

पर्सनैलिटी के 4 टाइप : पहचानिए खुद को 1. आइडियाबाज ये वे लोग हैं, जिनका दिमाग आइडिया की खान होता है और वे हमेशा बड़ा बिजनेस अंपायर खड़ा करने के सपने देखते हैं। ऐसे लोग किसी पुराने सफल आइडिया पर काम नहीं करते। उन्हें किसी ऐसी चीज पर काम करने में मजा आता है जो नई है और लोगों की जिंदगी बदल सकती है। ऐसे लोग टेक्नॉलजी, फाइनैंस, साइंस आदि से जुड़े बिजनेस में हाथ आजमाते हैं। इन लोगों को बिजनेस के लिए किसी बाहरी प्रोत्साहन की जरूरत नहीं होती। खुद ही मोटिवेटेड होते हैं, लेकिन अपने आइडियाज को जब अमली जामा पहनाने की बात आती है तो इन्हें दूसरों की मदद की जरूरत होती है। ऐसे लोगों के साथ पार्टनरशिप करने में इन्हें अच्छा लगता है जो इनके प्लान के व्यावहारिक पहलुओं को समझकर उसे लागू कर सकें। इनके पास आइडिया की कमी नहीं होती, पर इन्हें ऐसी स्किल्स डिवेलप करने की सख्त जरूरत होती है जिससे वे उस आइडिया को लॉन्च कर सकें। 2. आदर्शों के सरताज पैसा या पावर इन लोगों के लिए मोटिवेशन का कारण नहीं होता। किसी बिजनेस को शुरू करने की उनकी इच्छा कहीं न कहीं उनकी वैल्यूज से पैदा होती है। इन लोगों के मन में हमेशा समाज और देश की खातिर कुछ कर सकने की ललक होती है। इनके लिए कुछ अपना शुरू करने का मुख्य मकसद यही ललक होती है, इसीलिए ऐसे लोग ज्यादातर एनजीओ, चैरिटी, स्कूल आदि के फाउंडर के तौर पर सामने आते हैं। ये लोग क्रिएटिव भी होते हैं और अपनी क्रिएटिविटी को पंख देना भी इनका मकसद होता है। ऐसे ऑन्ट्रप्रन्यर का रुझान मार्केटिंग, फाइनैंस, अकाउंटिंग जैसी चीजों की ओर कम होता है। बिजनेस स्थापित कर लेने के बाद भी ये उन कामों में हमेशा लगे रहते हैं, जिनका लिंक क्रिएटिविटी से होता है। खुश्क किस्म के काम पसंद नहीं होते इन्हें। 3. सेफ खिलाड़ी ये वे लोग हैं, जो कुछ नया ट्राई करने के बजाय पहले से स्थापित और कामयाब हो चुके किसी बिजनेस को करना पसंद करते हैं और उसमें भी उसी मॉडल को फॉलो करते हैं, जो पहले से टेस्टेड ओके है। ऐसे लोगों के दोस्त अगर उन्हें कुछ हटकर आइडिया दे भी दें तो भी वे उसमें कमियां निकालकर उसे नजरंदाज कर देते हैं। हालांकि एक बार काम शुरू करने के बाद ये उसमें जुट जाते हैं और प्लानिंग से काम करते हैं। ये जो भी स्थापित करते हैं, उसमें रिसर्च, प्लानिंग और एक्जिक्यूशन साफ झलकता है। ऐसे लोग जब नौकरी में होते हैं तो उन्हें लगता है कि कंपनी उनकी मेहनत का पूरा फायदा उठा रही है। इन्हें लगता है कि उनके दूसरे कलीग उनसे कम काबिल हैं और काम भी कम करते हैं। ढीले लोग इन्हें पसंद नहीं। कई बार काम को अपनी तरह से कराने के चक्कर में ये दूसरों का काम भी अपने ऊपर ओढ़ लेते हैं। मेहनती, डिटेल ओरिएंटेड और डेडलाइन के पक्के होते हैं। 4. मनमौजी ये पूरी तरह से कैजुअल और मौज-मस्ती पसंद करने वाले लोग होते हैं और अपनी इन्हीं आदतों के चलते इन्हें एक तरह की आजादी की जरूरत होती है। इस आजादी की खातिर ही ये अपना बिजनेस शुरू करने की प्लानिंग करते हैं, लेकिन इनके साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये बिजनेस आसानी से शुरू नहीं कर पाते, क्योंकि इनका ध्यान दोस्त, परिवार, फन आदि में ही अटका रहता है। किसी पार्टनर के बार-बार कुरेदने के बाद ये जैसे-तैसे काम शुरू करते हैं। हाथ के हाथ समस्या हल करनी हो तो इनसे बेहतर कोई नहीं। लॉन्ग-टर्म प्लानिंग से इनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं होता और जब कोई काम इनके हाथ में आता है, तभी उसे करने में ये भरोसा करते हैं, पहले से प्लानिंग में नहीं। ऐसे लोगों के लिए जमीन पर एक बड़ा संस्थान खड़ा कर पाना मुश्किल काम होता है, लेकिन फन, एडवेंचर, टूर, ट्रैवल, रेस्ट्रॉन्ट, बार आदि से संबंधित कंपनियां बनाने में उस्ताद होते हैं ये।



कौन-सा बिजनेस आपके लिए फिट आपको बिजनेस में हाथ आजमाना है, लेकिन कंफ्यूजन इस बात को लेकर है कि आपके लिए सबसे अच्छा क्षेत्र कौन-सा रहेगा। इन तीन पॉइंट्स के आधार पर अपना आकलन करके आप यह तय कर सकते हैं : 1. सिग्नेचर स्ट्रेंथ का यूज हुआ या नहीं हर इंसान की एक सिग्नेचर स्ट्रेंथ होती है। सिग्नेचर स्ट्रेंथ का मतलब है वह चीज जिसमें आप बेस्ट हैं। यह हरेक के अंदर होती है, बस पहचानना है कि आपकी स्ट्रेंथ क्या है। यह स्ट्रेंथ आपकी पर्सनैलिटी का कोई गुण भी हो सकता है और किसी क्षेत्र की आपकी नॉलेज भी। किसी के लिए बोलना उसकी स्ट्रेंथ हो सकती है तो किसी के लिए कुछ क्रिएटिव करना। देखें कि आप किस काम में सबसे अच्छे हैं और ऐसे बिजनेस को ही चुनें जिसमें आप अपनी इस ताकत का यूज कर सकें। 2. पसंद है या नहीं दूसरी चीज यह देखें कि जो आप करने वाले हैं, क्या वह आपको व्यक्तिगत रूप से पसंद है? क्या उसे करने में मजा आएगा आपको? दरअसल जब भी आप कोई बिजनेस शुरू करते हैं, तो आपको लगातार एक जैसा काम करना पड़ता है, जिससे बोर होने के चांस बढ़ जाते हैं। अगर वह काम आपको पसंद ही नहीं है तो जाहिर है कुछ समय के बाद आप उसे बोझ मानकर करना शुरू कर देंगे। उदाहरण के तौर पर कोई इंट्रोवर्ट किस्म का शख्स अगर मार्केटिंग से संबंधित काम कर ले तो कुछ समय के बाद उसका फेल होना तय होता है। 3. मनी है या नहीं तीसरी चीज यह देखें कि जो काम आप शुरू करने वाले हैं, उसकी कमर्शल वैल्यू कितनी है। उसे खरीदने वाले लोग बाजार में होने चाहिए। इसके लिए सबसे पहला टेस्ट खुद पर करें। जो चीज आप शुरू करने वाले हैं, क्या उसके पहले कस्टमर आप खुद बनना चाहेंगे? देखें कि कहीं आप कोई ऐसा काम तो शुरू नहीं कर रहे हैं, जिससे पैसा कमाने में दिक्कत हो। पैसा किसी भी बिजनेस के लिए सबसे अहम है। अगर रेवेन्यू जेनरेशन के मॉडल को लेकर आप क्लियर नहीं हैं तो काम को शुरू करने का कोई मतलब नहीं है।

- अगर आप अपनी स्ट्रेंथ के यूज होने वाला काम चुन रहे हैं और वह आपकी पसंद का भी काम है, लेकिन उसमें रेवेन्यू जेनरेशन को लेकर आप डाउट में हैं तो ऐसे काम को बिजनेस नहीं बनाया जा सकता। बेहतर है आप इसे हॉबी के तौर पर अपनाएं। - अगर आपको कोई काम पसंद भी है और उसमें पैसा भी कमाया जा सकता है, लेकिन उससे संबंधित स्ट्रेंथ या नॉलेज आपके पास नहीं है, तो भी फेल होने के चांस ज्यादा होंगे] क्योंकि इससे आप एक ऐसे घटिया हलवाई बन जाएंगे, जिसे मीठा पसंद है। - अगर आपको लगता है कि आपके पास स्ट्रेंथ है और उस काम में पैसा भी है, लेकिन व्यक्तिगत रूप से आपको वह काम पसंद नहीं है तो भी उस काम में नाकामयाब होने का अंदेशा है, क्योंकि काम में मजा न आने के कारण कुछ ही समय बाद आप बोर हो जाएंगे। - आपने बिजनेस का एक ऑप्शन चुना और आप तीनों सर्कल के इंटरसेक्शन पर खुद को पाते हैं तो वह आइडिया आपके लिए बेस्ट है। फौरन काम शुरू करें। इसके चलने के चांस पूरे हैं।

इस क्विज से मदद लीजिए खुद से ये सवाल पूछें और उनके जवाब हां या न में दें। उसके बाद देखें कि कितने सवालों के जवाब आप हां में दे पाए। इसके बाद नीचे दिए गए अनालिसिस से आप पता कर सकते हैं कि बिजनेस आपके लिए और आप बिजनेस के लिए बने हैं या नहीं। तो दीजिए इन सवालों के जवाब:

1. क्या चीजों को आप अपने तरीके से करना पसंद करते हैं? किसी पर निर्भर हुए बिना अपने आइडिया को आगे बढ़ाने में सक्षम हैं? 2. क्या अपने फैसले लेने में आपके दोस्त आपकी मदद लेना पसंद करते हैं? 3. आप जो भी फैसला लेते हैं, उस पर काम शुरू कर देते हैं। आपके लिए यह जरूरी नहीं है कि कोई दूसरा आपके आइडिया को सेकंड करे तभी आप उस पर काम कर पाएं। 4. आपको कॉम्पिटिशन में मजा आता है। अगर आपका को-वर्कर आपसे अच्छा काम कर रहा है तो आप उससे बेहतर करने में जुट जाते हैं। 5. क्या आपके भीतर आत्म अनुशासन और जिद है? 6. क्या आप किसी भी काम की अच्छे तरीके से प्लानिंग करने में उस्ताद हैं? 7. क्या आपके भीतर कैलकुलेटेड रिस्क लेने की क्षमता है? 8. आपका कोई बॉस न हो, क्या यह बात आपको मोटिवेट करती है? 9. क्या आप अपनी गलतियों का आकलन करके उनसे सीखते हैं? 10. क्या आपको नए और अलग तरह के आइडिया को लेकर एक्सपेरिमेंट करने में मजा आता है? 11. अगर कभी समस्याओं से सामना हो, तो क्या आप उन्हें चुनौतियों की तरह देख पाते हैं? 15. क्या आपको पता है कि अपने बिजनेस के लिए आपको रोजाना 12 से 16 घंटे तक काम करना पड़ सकता है। हो सकता है कि आपको संडे भी खाली न मिले। 16. अगर बिजनेस को जमाने की खातिर आपको अपने रहन-सहन का स्तर थोड़ा सा कम करना पड़े तो क्या आप करेंगे? क्या आपका परिवार भी आपका साथ देगा? 17. अगर जरूरत पड़ी तो क्या आप अपनी सेविंग्स को बिजनेस में इस्तेमाल कर लेंगे? 18. जो बिजनेस आप करना चाहते हैं, क्या उसी तरह का कोई काम आपने पहले किया है? 19. अगर आपका बिजनेस ठप हो गया तो क्या आप फौरन दूसरे आइडिया पर काम करना शुरू कर देंगे? कहीं ऐसा तो नहीं कि रेज्युमे निकालकर जॉब ढूंढने लगेंगे? 20. क्या अपने लॉन्ग-टर्म और शॉर्ट-टर्म लक्ष्यों को लिखकर रखने की आदत है आपमें? 21. क्या आप लोगों के साथ आसानी से घुलमिल जाते हैं? कहीं कोई गैदरिंग हो तो क्या उसे मौके के तौर देखकर आप वहां जाना पसंद करते हैं? 22. आइडिया या दूसरे कामों को याद रखने के लिए क्या आप पेन-कॉपी या गैजट की मदद लेते हैं? 23. अपने कामों को फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट के आधार पर करने की आदत है आपमें? 24. दूसरों को अपना आइडिया या कोई दूसरी चीज बेचना क्या आपके लिए आसान काम है? 25. आप डेडलाइन के पक्के हैं और ज्यादातर वक्त डेडलाइन मिस नहीं करते।

चेक करें अपने जवाब 10 से कम सवालों के जवाब हां अगर ऊपर दिए गए सवालों में से 10 से कम सवालों के जवाब आप हां में दे पाए हैं, तो समझ लें कि बिजनेस करना आपके लिए आसान नहीं है। बावजूद इसके अगर आप करना ही चाहते हैं तो आपको अपने भीतर बड़े बदलाव करने होंगे। 10 से 20 सवालों के जवाब हां अगर आपने 10 से 20 सवालों के जवाब सही दिए हैं तो आपके लिए बिजनेस शुरू करने की लाइन क्लियर है। आपको फौरन एक अच्छे-से आइडिया पर काम शुरू कर देना चाहिए। कम-से-कम पर्सनल क्वॉलिटीज के लेवल पर तो आप मात नहीं खाएंगे। 20 से ज्यादा सवालों के जवाब हां अगर आप 20 से ज्यादा सवालों के जवाब हां में देते हैं तो समझ लें कि आप बिजनेस के लिए ही बने हैं। आपके भीतर वे सभी मूल गुण मौजूद हैं, जो किसी बिजनेसमैन की पर्सनैलिटी में होने चाहिए।

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जानें इनक्यूबेशन, अक्सेलरेटर और एंजल इनवेस्टर के बारे में

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अगर स्टार्टअप शुरू करने का मूड बना लिया है तो यह जानना भी बहुत जरूरी है कि इसके लिए मदद कहां से मिलेगा। सरकारी और प्राइवेट दोनों ही सेक्टरों ने किसी भी बड़े आइडिया को परवान चढ़ते देखने के लिए इंक्यूबेटर और अक्सेलरेटर जैसी व्यवस्थाएं बनाई हैं। इनके काम करने के तरीके और खूबियों के बारे में एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं प्रमोद राय और अमित मिश्रा:

बिना जानवरों की डेरी

कुछ साल पहले तक डेयरी फार्म के पारिवारिक पेशे में रमे रहे शाहदरा के राजेंद्र सेठी ने कभी सोचा भी नहीं था कि गाय-भैंसों के अलावा भी किसी चीज से दूध निकाला जा सकता है। तब उन्होंने एमएसएमई मिनिस्ट्री के किसी एग्जिबिशन में ऐसी मशीन देखी जो सोया जैसे एग्रो प्रॉडक्ट से दूध बनाती है, जो कई मायने में आम दूध से भी पौष्टिक होता है। फिर उन्होंने एनएसआईसी के इनक्यूबेशन सेंटर में उस प्रोसेस की ट्रेनिंग ली और करीब 5 लाख रुपये की लागत से अपनी मशीनरी लगाई। आज वह दिल्ली ही नहीं पूरे देश में सोया मिल्क और दूसरे सोया प्रॉडक्ट बनाने वाली एक बड़ी कंपनी के मालिक हैं।

सोया शक्ति पावर फूड प्राइवेट लिमिटेड के प्रमुख राजेंद्र एमएसएमई मिनिस्ट्री की उन सक्सेस स्टोरीज में शामिल हैं, जिन्होंने इनोवेटिव बिजनेस आइडियाज को सफल कारोबार में बदलकर दिखाया है। वह कहते हैं ' स्टार्टअप का मतलब सिर्फ यह नहीं है कि आपने एक काम शुरू किया और उसके चल निकलने का इंतजार कर रहे हैं। आपको लगातार नया करते रहना होगा। मैं पहले सोया ग्रेनुअल्स से मिल्क तैयार किया, पैकेजिंग और ब्रैंडिंग की। फिर उसके वेस्टेज को नए उत्पादों में बदला।' फिलहाल उनकी कंपनी सोया टोफू, स्वीट, सोया नमकीन, सोया कुकीज और सोया नट्स जैसे कई उत्पाद पूरे देश में सप्लाई करती है।



खिलौनों से शुरू हुई जिंदगी
पारंपरिक इनक्यूबेटर्स से निकले प्रमोद कुमार ने तुगलकाबाद एक्सटेंशन में 1.5 लाख रुपये की लागत से खिलौने बनाना शुरू किया था। तीन साल के भीतर वह सालाना करीब 50 लाख रुपये के सॉफ्ट टॉयज देश और दुनिया में एक्सपोर्ट कर रहे हैं। टची टॉयज के मालिक प्रमोद चाहते हैं कि स्टार्टअप इंडिया प्रोग्राम में उनके जैसी यूनिटों को भी शामिल किया जाए, जिन्हें शुरू हुए कुछ साल हो गए हैं। ऐसी यूनिटों को भी फंडिंग और रियायतों की सख्त जरूरत है। वह कहते हैं 'चाइनीज खिलौनों से देश के बाजार अटे रहते थे। ऐसे में मुझे देसी लेकिन क्वालिटेटिव टॉयज बनाने का ख्याल आया है। बेशक कॉस्ट ज्यादा होने से हम चाइनीज कीमत का मुकाबला नहीं कर पा रहे, लेकिन हमारी क्वालिटी कहीं बेहतर है।' फिलहाल टची टॉयज से करीब 50 महिलाएं जुड़ी हैं, जो घर बैठे काम कर रही हैं।

एक इंसानी जिंदगी की तरह कोई भी स्टार्टअप भी कुछ चरणों से गुजरता है। मूल रूप से ये तीन चरण होते हैं इंक्यूबेशन, अक्सेलरेटर, फंडिंग। हम शुरुआती चरणों इंक्यूबेशन और अक्सेलरेटर पर चर्चा करेंगे। क्या है इंक्यूबेटर यह आइडिया को जमीनी धरातल पर लाने का पहला कदम है। अगर कोई आइडिया सुनने में अच्छा लगे लेकिन अगर उसे पैसा कमाने वाले बिजनेस में न बदला जा सके तो वह किसी काम का नहीं।

इंक्यूबेशन इंक्यूबेशन एक आइडिया को किसी कंपनी के माहौल में चलाने का मौका है। इस स्टेज को पार करने पर फंडिंग का रास्ता कुछ आसान हो जाता है। जब किसी के दिमाग में बिजनेस के लिए कोई आइडिया आता है तो वह इसके लिए फंड की तलाश के जुगाड़ तलाशने लगता है। चूंकि फंडिंग किसी भी स्टार्टअप का बहुत जरूरी हिस्सा होता है और इसके लिए किसी भी आइडिया को कई पैमानों को पार करना होता है।



किसी भी बिजनेस आइडिया के लिए पैसा जुगाड़ने से पहले खुद से यह सवाल जरूर पूछें:
- अगर मैं किसी बिजनेस में पैसा लगाने की स्थिति में होता तो क्या इस आइडिया में पैसे लगाता?
- क्या इस आइडिया में इतना दम है कि मुझे किसी अन्य इन्वेस्टमेंट प्लान से बेहतर रिटर्न दिला सके?
- क्या यह आइडिया अपने में कुछ ऐसा समेटे हुए है जो दुनिया को बदलने का मद्दा रखता है?

इन सवालों का जवाब जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि कोई भी आपके आइडिया में पैसे तभी लगाएगा जब वह इन सवालों का जवाब 'हां' में पा चुका होगा। किसी बिजनेस में पैसे लगाने वाले लोग या तो अपने पैसे को कई गुना रिटर्न पाने के लिए इनवेस्ट करते हैं या किसी बड़े बिजनेस में अपनी हिस्सेदारी तय करने के लिए। दुनिया भर में भले ही आइडिया में पैसे इनवेस्ट करने का बहुत ही व्यवस्थित सिस्टम बन चुका है लेकिन अभी हमने उस राह पर चलाना शुरू किया है। मतलब यह है कि कई लोग किसी आइडिया में पैसे लगाने से पहले यह तसल्ली कर लेना चाहते हैं कि यह आइडिया काम करेगा या नहीं। इसके लिए किसी आइडिया को शुरुआती बढ़ावा देने के लिए इंक्यूबेशन नाम का एक सिस्टम बनाया गया है। इसमें फाइल पर मौजूद आइडिया को कुछ वक्त के लिए व्यावहारिक परिस्थितियों में जांचा जाता है। इन परिस्थितियों को बनाने और उपलब्ध कराने का नाम ही इंक्यूबेशन है।

- इंक्यूबेशन में किसी भी आइडिया को परखने के लिए 3-6 महीने का वक्त दिया जाता है।


- इंक्यूबेशन में शामिल है:

बिजनेस की मूल बातों में मदद करना मिसाल के तौर पर कई तरह की बिजनेस प्रैक्टिस और स्ट्रैटजी पर काम करना सिखाया जाता है। . बिजनेस नेटवर्किंग के बारे में बताया जाता है जिससे आगे जाकर दूसरे सेक्टरों या अपने ही सेक्टर से मदद मिल सके। . हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्शन . अकाउंट और फाइनैंशल मैनेजमेंट में मदद करना . बैंक लोन आदि के लिए गारंटी प्रोग्राम जिनमें बताया जाता है कि बैंक लोन लेने का तरीका क्या है और बड़े लोन पर गारंटी की व्यवस्था कैसे होगी। . प्रजेंटेशन स्किल में इजाफे के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाए जाते हैं। इसका कारण अपने आइडिया को आगे बेहतर तरीके से पेश कर पाने की क्षमता विकसित करना होता है। . स्टार्टअप के लिए बेहतर ट्रेनिंग के लिए अगर कोई ट्रेनिंग या डिग्री-डिप्लोमा की जरूरत है तो उसके लिए सुविधा उपलब्ध कराते हैं। . बिजनेस ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित करते हैं, जिनके जरिए बिजनस की छोटी-बड़ी बातों को समझा जा सके। . एडवाजरी बोर्ड और मेंटर जो अपनी फील्ड के एक्सपर्ट्स होते हैं और वक्त-वक्त पर राय देते रहते हैं। . बिजनस शिष्टाचार के बारे में बताया जाता है। इनमें रहन-सहन से लेकर खुद को संवारने तक के टिप्स और ट्रेनिंग दी जाती है। . इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी मैनेजमेंट के बारे में बताया जाता है जिससे कोई भी उस बिजनेस आइडिया को चोरी न कर सके और अगर हमारा आइडिया किसी पहले से मौजूद आइडिया से मिलता-जुलता है तो कैसे उनके साथ कानूनी पचड़ों से बचा जाए। - ऐसा नहीं है कि इंक्यूबेशन सेंटर में सिर्फ एमबीए या इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले ही इंक्यूबेशन में जा सकते हैं। - नैशनल स्मॉल इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन (एनएसआईसी) देश में करीब 100 इनक्यूबेशन सेंटर चलाता है। इनमें से 5 को एनएसआईसी (नैशनल स्मॉल इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन) खुद संचालित करती है, जबकि बाकी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल से देश भर के विभिन्न संस्थानों में चल रहे हैं। पूरी जानकारी के लिए- www.nsic.co.in/establishedtic.asp पर जा सकते हैं।

- इन्हें लाइवली हुड इनक्यूबेशन सेंटर कहा जाता है और जल्द ही एमएसएमई मिनिस्ट्री कुछ इनोवेशन सेंटर भी खोलने जा रही है, जिसका मकसद माइक्रो और स्मॉल यूनिटों में इनोवेशन को बढ़ावा देना होगा।

- फिलहाल जो सेंटर चल रहे हैं, वहां अलग-अलग सेक्टर में अपना उद्योग शुरू करने के लिए तीन महीने का कोर्स चलाया जाता है। एनएसआईसी के अपने इनक्यूबेशन में कुल क्षमता 30 की है और शैक्षिक योग्यता 10वीं पास है। फीस केवल 500 रुपये मासिक है, पीपीपी मॉडल से चल रहे है। लेकिन पीपीपी मॉडल से चल रहे संस्थानों में शैक्षिक योग्यता और फीस कोर्स के मुताबिक अलग अलग है जो 12,000 से 20,000 तक है। पाठ्यक्रम एनएसआईसी रेगुलेट करती है और फीस में भी उसका दखल होता है।

- सभी इनक्यूबेशन सेंटर प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी योजना से जुड़े हैं। एनएसआईसी ने 35 बैंकों से भी टाईअप किया है। कोर्स खत्म होते ही ट्रेनी को किफायती लोन भी मुहैया कराया जाता है ताकि वह अपना बिजनस शुरू कर सके। इसके अलावा एनएसआईसी ने कई कंपनियों से टाईअप किया है जो अपने यहां स्किल्ड वर्कर्स की डिमांड बताती हैं और कॉरपोरेशन जॉब में इच्छुक लोगों को सप्लाई करती है।

एनएसआईसी के इनक्यूबेशन ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत प्रोजेक्ट्स और कोर्सेस . बॉटल मेकिंग - दो से पांच लाख की लागत वाली मशीन से प्री-पोन पीवीसी के टुकड़ों को ब्लोइंग कर मनचाहे बोतलों का आकार देना। . सोया मिल्क प्रॉडक्शन- करीब 6 लाख कॉस्ट वाली मशीन से सोया मिल्क निकालना, जिसकी मार्केट में हेल्थ ड्रिंक के तौर पर काफी मांग है। एक लीटर सोया मिल्क में आम मिल्क से तीन गुना प्रोटीन होता है।

बिस्किट /ब्रेड- 4 से 10 लाख की मशीनरी में रॉ मैटीरियल को शेप देना, कट करना और बेकिंग करना पैकेजिंग - तरह-तरह के खाने की चीजों की पैकिंग और रिपैकेजिंग .
डिटर्जेंट - साबुन और वॉशिंग पाउडर बनाना। लेकिन यहां सिर्फ तैयार केमिकल को आकार देना और पैकिंग करने की तकनीक में ट्रेनिंग दी जाती है। सोलर लैंटर्न - सौर ऊर्जा से चलने वाली लालटेन या लाइटिंग सिस्टम बनाने की तकनीकी बताई जाती है, जिसमें आगे चलकर वैल्यू एडिशन किया जा सकता है सॉफ्ट टॉय- टैड्डी बेयर और दूसरे कॉटन बेस्ड खिलौनों के ग्लोबल मार्केट में भारतीय डिमांड हमेशा से रही है। इसे देखते हुए इन उत्पादों को बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है। बूटीक एंड पार्लर- इनक्यूबेशन सेंटर में बूटीक और ब्यूटी पार्लर खोलने के तौर तरीके और तकनीक बताई जाती है और सेटअप लगाने में मदद दी जाती है।

एनएसआईसी की मदद से पीपीपी मोड में चलने वाले इंक्यूबेटरों में कंप्यूटर ऐप्लिकेशंस, हार्डवेयर और नेटवर्किंग, फैशन डिजाइनिंगस, मोबाइल रिपेयरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स अप्लायंसेस की रिपेयरिंग जैसे कोर्सेस चलाए जाते हैं। हर सेंटर्स ने अपने हिसाब से कुछ नए कोर्सेस सैंक्शन करा रखे हैं। यहां कोर्स फीस अवधि और प्रॉजेक्ट के हिसाब से 3 से 15 हजार रुपये तक है। जहां सरकार की मदद से चलने वाले ऐसे इंक्यूबेशन कम प्रफेशनल नॉलेज के बावजूद ट्रेनिंग देने का काम फीस लेकर करती है वहीं प्राइवेट इंक्यूबेटर किसी भी तरह की फीस नहीं लेते। हालांकि सेलेक्शन का अधिकार उनका खुद का होता है और पैमाना काफी सख्त होता है।

कुछ बेहतरीन इंक्यूबेशन सेंटर NSRCEL, IIM Bangaluru (www.nsrcel.org)
CIIE, IIM Ahmedabad (www.ciie.co) SINE,
IIT Mumbai (www.sineiitb.org)
Technology Business Incubator (TBI),
IIT BHU, Varanasi(www.mciie.org)
TBI, BITS Pilani (www.discovery.bits-pilani.ac.in/tbi)
TBI, VIT (www.vittbi.com) SIDBI Innovation & Incubation Center,
IIT Kanpur (www.iitk.ac.in/siic/drupal)
Rural Technology Business Incubator (RTBI),
IIT Madras (www.rtbi.in) GINSERV (www.ginserv.com),
JSS Institutions (Mysore, Noida) MICA (Advertizing) Com-Cubator ,
MICA Ahmedabad (MICA Incubator | EDC)TREC STEP,
NIT Trichy (www.trecstep.com) TBI,
NIT Calicut (National Institute of Technology Calicut) MITCON,
Biotech Center (www.mitconindia.com) NDBI (Design Incbuator), Ahmedabad (www.ndbiindia.org)
AMITY Innovation Incubator,Noida (www.amity.edu/aii) IIIT-Bangaluru Innovation Centre (www.iiitb.org)
STEP, JSSATE Noida: (www.jssstepnoida.org)

कैसे मिलेगी इनमें एंट्री - हर इंक्यूबेटर सेंटर अपने हिसाब से ऑनलाइन ऐप्लिकेशन मंगाते हैं। - अमूमन हर साल दो बार ऐप्लिकेशन मंगाए जाते हैं। - कब ऐप्लिकेशन मंगाने हैं इसका वक्त इंक्यूबेशन सेंटर अपने हिसाब से तय करते हैं। - हर सेशन में 1000-2000 ऐप्लिकेशन आते हैं जिनमें से 70-10 ही स्वीकार किए जाते हैं।

क्या देखते हैं इंक्यूबेशन सेंटर में - आइडिया कितना प्रैक्टिकल है। - इसे जमीन पर उतारना सही मायने में कितना वक्त और संसाधनों की जरूरत होगी उसका सही आंकलन होना चाहिए। - काम करने के मामले में काफी फोक्सड होना चाहिए क्योंकि कम वक्त में काफी चीजें साबित करने की होड़ रहती है। - वक्त को देखते हुए रणनीति बदलने के लिहाज से कितना लचीले हैं इस बात को भी परखा जाता है। - स्किल के साथ एटिट्यूड के लेवल पर तैयारी को भी परखा जाता है। - हर इंक्यूबेटर एक खास तरह के बिजनेस आइडिया को इंक्यूबेट करते हैं। इसलिए अप्लाई करने से पहले वेबसाइट पर जाकर देख लें कि किस तरह के आइडिया को कौन सा इंक्यूबेटर सपोर्ट करता है।

अक्सेलरेटर देगा आइडिया को स्पीड यह बिजनेस आइडिया की वह स्टेज है जिसमें आइडिया इंक्यूबेशन के स्टेज से गुजर कर घुटने के बल चलने लगता है। कोई आइडिया जब इंक्यूबेशन स्टेज में ही कस्टमर तक पहुंचने लगता है तब आइडिया दमदार साबित हो जाता है। चंद कंस्टमर इस बात को साबित करने के लिए काफी होते हैं कि मार्केट में लोग हैं जो इसे खरीद सकते हैं। अब वक्त आता है जब किसी ऐसे इंसान या ऑर्गेनाइजेशन का जो इस वक्त आइडिया में इतना इनवेस्टमेंट करने के लिए राजी हो जाए। ऐसे में अक्सेलरेटर नाम की एक व्यवस्था बनाई गई है जिसमें अच्छा कर रही कंपनियों को मदद मिलती है।



इनक्यूबेटर और अक्सेलरेटर में कुछ फर्क हैं मिसाल के तौर पर: -

इंक्यूबेटर में 3-6 महीने का वक्त ही तय होता है लेकिन अक्सेलरेटर में ऐसा नहीं है। - अमूमन इंक्टूबेटर में किसी भी तरह से इक्विटी को खरीदने-बेचने की बात नहीं होती। - इंक्यूबेशन आइडिया को जमीन पर लाने का जरिया है तो अक्सेलरेटर जमीन पर आ चुके आइडिया को स्पीड देने का काम करता है।

कैसे काम करता है अक्सेलरेटर - अक्सेलरेटर किसी भी आइडिया को चुनने के लिए कई शहरों में डेमो-डे का आयोजन करते हैं। इनमें जाकर लोग अपने आइडिया और उससे होने वाले असर को दिखा सकते हैं।

ध्यान रहे कि दुनिया भर में इस चीज में काफी कंपिटिशन है और 1-2 फीसदी आइडिया ही इस दौर में पहुंच पाते हैं। - एक बार चुन लिए जाने पर अक्सेलरेशन की सुविधा उपलब्ध कराने वाली कंपनियां इक्विटी के लिए मोल-भाव करती हैं। तय हो जाने पर यह कंपनियां आगे इनवेस्टमेंट और बाकी शर्तें तय करती हैं।

- इंक्यूबेशन के दौरान जहां बाहर के कुछ एक्सपर्ट्स ही सब कुछ मैनेज करने और डायरेक्शन देने का काम करते हैं वहीं अक्सेलरेटर में ज्यादातर कंट्रोल फाउंडर या को-फाउंडरों के हाथ में होता है। - इंक्यूबेशन में कोई एक इंसान भी अपने आइडिया को लेकर शुरुआत कर सकता है जबकि अक्सेलरेशन स्टेज में उन आइडिया को ही गंभीरता से लिया जाता है जो एक टीम के साथ आते हैं।

अक्सेलरेटर यह मान कर चलते हैं कि कोई एक इंसान बिजनेस की हर फील्ड को बेहतर तरीके से मैनेज नहीं कर सकता। क्या सुविधाएं हैं अक्सेलरेटर में: - काम करने के लिए मूलभूत संसाधन जैसे ऑफिस स्पेस, इंटरनेट आदि - वक्त-वक्त पर सलाह देने के लिए इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स से पर्सनल मुलाकातें। जिससे हर तरह की समस्या पर खुल कर बात की जा सके। - इनवेटर्स और इंडस्ट्री से जुड़े लोगों से कॉन्टैक्ट करवाना जिससे अगले स्टेज में फंडिंग के लिए पिच किया जा सके। दो तरह के अक्सेलरेटर: अक्सेलरेटर मूल रूप से दो तरह के होते हैं। 1. इंस्टिट्यूशनल: ऐसे अक्सेलरेटर जो किसी इंस्टिट्यूट से जुड़े हों मिसाल के तौर पर देश भर के आईआईटी इस तरह के सेंटर चलाते हैं। मिसाल के तौर पर 2. नॉन इंस्टिट्यूशनल: यह किसी इंस्टिट्यूट से जुड़े न होकर किसी खास प्राइवेट कंपनी या ऑर्गेनाइजेशन से जुड़े हो सकते हैं। इनमें स्ट्रक्चर का फर्क जरूर है लेकिन काम करने का तरीका कमोबेश एक जैसा ही रहता है।

देश में चलने वाले कुछ बेहतरीन अक्सेलरेटर हैं:
TLabs (Noida, near New Delhi) www.tlabs.in Microsoft Ventures (Bangalore) www.microsoftventures.com GSF India (Bangalore/Gurgaon) www.gsfindia.com 5ideas (Gurgaon near New Delhi) www.5ideas.in Target Accelerator (Bangalore) www.corporate.target.com/india 500 Startups (Mountain View, San Francisco, and Mexico City) www.500.co/accelerator Freemont Partners (Mumbai) www.freemontpartners.com

कैसे मिलेगी एंट्री -
इंक्यूबेशन सेंटर की तरह अक्सेलरेट भी ऑनलाइन एप्लिकेशन मंगाते हैं। - ऐसा अमूमन साल में 2 बार किया जाता है। मिसाल के तौर पर टीलैब्स फरवरी और अगस्त में एप्लिकेशन मंगाते हैं। - यहां भी तकरीबन 700 से 800 में से 40-50 आइडिया ही सेलेक्ट किए जाते हैं।
क्या होना जरूरी - सबसे जरूरी है टीम। कम से कम 3 लोग होने चाहिए। एक विजन के लिए दूसरा उसे बनाने के लिए और तीसरा उसे सफलतापूर्वक बेचने के लिए। - सिर्फ एक इंसान के आइडिया पर अक्सेलरेटर में एंट्री मिलना लगभग नामुमकिन है। - अपने आइडिया को लेकर कितना व्यावहारिक अप्रोच है इसे भी ध्यान में रखा जाता है। - ऐसे आइडिया को तरजीह दी जाती है जो स्केलेबल हो मतलब जिसमें बड़े लेवल का बिजनेस बनने का माद्दा हो। कितना पैसा और कब मिलता है - अक्सेलरेटर अमूमन 30 से 50 लाख रुपये 8-10 फीसदी की इक्विटी की शर्त पर मुहैया करते हैं। - पैसे खर्च करने का दारोमदार तो स्टार्टअप के फाउंडर या को-फाउंडर पर ही होता है लेकिन इसे मॉनिटर करने के लिए अक्सेलरेटर्स एक्सपर्ट्स की सलाह मुहैया करते हैं। - आगे की फंडिंग के लिए भी अक्सेलरेटर मदद मुहैया करते हैं और खुद भी फंडिंग के लिए तैयार रहते हैं। - अक्सेलरेशन की अवधि (अमूमन 3 से 6 महीने) पूरी होने के बाद पहले राउंड की फंडिंग अक्सर अक्सेलरेटर की मदद से ही मिल जाती है।



एंजल इनवेस्टर देंगे इरादों को उड़ान

'एंजल इनवेस्टर' शब्द से ही उस फरिश्ते का आभास होता है जो कहीं से आकर किसी आइडिया को ऊंची उड़ान के लिए तैयार कर देता है। इसे कुछ इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है। कौन होता है एंजल इनवेस्टर अक्सर वो लोग एंजल इन्वेस्टर होते हैं, जो अपनी फील्ड में नाम कमा चुके होते हैं और अलग-अलग बिजनेस आइडिया में जान फूंकने के लिए तैयार रहते हैं। इसके बदले वह कंपनी में प्राइवेट इक्विटी के तौर पर कुछ हिस्सा खरीद लेते हैं। चूंकि भागीदार खरीदने से यह उनके लिए फायदे का सौदा हो जाता है और स्टार्टअप के फाउंडर को भी पैसों के अलावा इंडस्ट्री के किसी एक्सपर्ट से मदद मिलती रहती है। इसे दोनों के लिहाज से फायदे का सौदा माना जाता है।

एंजल इनवेस्टर: कितने पास-कितनी दूर - कई बार एंजल इनवेस्टर का इंतजाम अक्सेलरेटर के दौर में ही हो जाता है। - अक्सर एंजल इनवेस्टर किसी आइडिया से व्यक्तिगत रूप से प्रभावित होकर उसमें पैसा लगाते हैं। - कौन सा आइडिया चलेगा और कौन सा नहीं चलेगा यह एंजल इनवेस्टर अपनी सहूलियत और अनुभव से तय करते हैं। - अक्सर इंक्यूबेटर और अक्सेलरेटर के जरिए इन तक पहुंचने का रास्ता आसान हो जाता है। वैसे कई बार एक इंडिपेंडेंट आइडिया भी एंजल इनवेस्टर्स की नजर में आ जाता है। मिसाल के तौर पर 'हैलो इंग्लिश' नाम का इंग्लिश सिखाने वाले ऐप की मदद करने के लिए गूगल इंडिया के एमडी राजन आनंदन ने खुद संपर्क किया। अभी न सिर्फ वह फंड उपलब्ध कराते हैं बल्कि मेंटरशिप भी करते हैं।

कहीं एंजल न हो जाए विलेन अक्सर इस बात की चर्चा होती है कि एंजल इनवेस्टर कंपनी में गैर जरूरी दखल देते हैं और फाउंडर या कंपनी चलाने वाले को अपने हिसाब से फैसले नहीं करने देते। इससे निपटने के लिए यह उपाय कारगर साबित होते हैं: - कितनी इक्विटी किसके पास होगी यह पहले से अच्छी तरह से तय हो जाए तो काफी परेशानियों से बचाव हो जाता है।

- कौन किस बात का फैसला लेगा इस बात के तय हो जाने पर भी काफी आसानी हो जाती है। - अक्सर इनवेस्टर का इंटरेस्ट अपने लगाए पैसों की सुरक्षित वापसी से होता है। ऐसे में अगर कंपनी की बैलेंस शीट को देख कर ही किसी मसले का समाधान निकाला जाए तो बेहतर होता है। - अपनी कंपनी को लेकर फाउंडर का भावुक हो जाना अक्सर एंजल इनवेस्टर से रिश्तों में दरार का कारण बनता है। - कंपनी में गोल को लेकर टाइम और टारगेट अगर दोनों ही पार्टी व्यावहारिक होकर तय करते हैं तो मुश्किलें कम आती हैं।

देश के बड़े एंजल इन्वेस्टर्स राजन आनंदन (एमडी गूगल इंडिया) खासियत: मोबाइल और इंटरनेट इंडस्ट्री में इनवेस्टमेंट करते हैं। शरद शर्मा (पूर्व सीईओ याहू) खासियत: इंटरनेट और मोबाइल इंडस्ट्री में इनवेस्ट करते हैं। कृष्ण गणेश खासियत: हेल्थ केयर, एजुकेशन और टेक कंपनियों में इनवेस्ट करते हैं। अनुपम मित्तल (सीईओ शादी डॉट कॉम) खासियत: टेक्नॉलजी, मोबाइल, इंटरनेट इंड्रस्ट्री की कंपनियों में इनवेस्ट करते हैं। सुनील कालरा खासियत: वैसे तो टेक्नॉलजी स्टार्टअप में इनवेस्ट करते हैं लेकिन मेरिट के हिसाब से और सेक्टर भी चुनते हैं।

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वेबसाइट्स अगर आपको दुनियाभर में एंजल इनवेस्टरों को खोजना और उनसे कॉन्टैक्ट करना है तो www.angel.co पर आएं।



एक्सर्ट्स पैनल रवीद्र नाथ, चेयरमैन एनएसआईसी अभिषेक गुप्ता हेड, टीलैब्स निशांक पाटनी क्रिएटर हेलो इंग्लिश ऐप

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ऐसे मिलेगा स्टार्टअप शुरू करने के लिए लोन

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एक्सपर्ट्स पैनल के. के. जालान सेक्रेटरी , एमएसएमई रवींद्र नाथ चेयरमैन, एनएसआईसी पवित्र वालवेकर फाउंडर क्यूडॉस फाइनैंस एंड इन्वेस्टमेंट

बिजनेस के मामले में आइडिया की कमी नहीं है, लेकिन तमाम आइडिया इस वजह से परवान नहीं चढ़ पाते, क्योंकि बिजनेस बढ़ाने की प्लानिंग से ज्यादा माथापच्ची पैसों के जुगाड़ में होती है। दुनिया भर के सर्वे बताते हैं कि बैंकों या सरकारी योजनाओं से मिलने वाले लोन की पहुंच जरूरतमंदों तक बहुत कम है। एक्सपर्ट्स की मदद से अमित मिश्रा बता रहे हैं लोन पाने के आसान करने के तरीके:

ऐसे मिला मुझे लोन:
सैंनफ्रांसिस्को अमेरिका से अपनी नौकरी छोड़ कर इंडिया में कुछ करने का सपना देख कर जब मैं अपने बिजनेस आइडिया के लिए लोन लेने के बारे में सोचा, तो बैंक ही पहली पसंद की तौर पर नजर आया। मेरे एटिट्यूड से लेकर हौसले में कोई कमी नहीं थी। लेकिन सबसे बड़ी बाधा बैंकों से मिलने वाले एक टके से सवाल की थी, अपने टर्न ओवर और पहले लिए गए किसी लोन या फंडिंग के बारे में बताएं। चूंकि मैं एक नॉन बैंकिंग फाइनैंस कंपनी खोलने के इरादे से लोन ढूंढ रहा था और ऐसे में मेरी कमॉडिटी ही पैसा थी तो न टर्न ओवर का सवाल था और न ही फंडिंग का। हर बार मुझे यह कह कर टाल दिया जाता कि कुछ करके आओ। मैंने इस दौरान एक चीज अच्छी तरह से जान ली थी कि बैंक से लोन मिलने में सिर्फ कागजी कार्रवाई ही नहीं बल्कि आपका व्यवहार भी बहुत काम आता है। बैंक के अधिकारी एक कागज मांगते तो मैं 3 तरह के डॉक्युमेंट लेकर पहुंचता। वह अगर कागज के साथ 3 दिन बात आने को कहते तो मैं शाम को ही पहुंच जाता। तकरीबन 4 महीने तक की गई इस मशक्कत की वजह से ही मुझे 2 करोड़ रुपये लोन आखिर मिल ही गया। - पवित्र वालवेकर, फाउंडर, क्यूडॉस फाइनैंस एंड इनवेस्टमेंट अपना बिजनेस शुरू करने का इरादा रखने वालों को बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार सुविधाएं देने की कोशिश करती रही है। इसके लिए खास तौर पर 5 जगहों से मदद मिल सकती है। 1. मिनिस्ट्री ऑफ माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम ऑन्ट्रप्राइसेस (MSME), 2. राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (NSIC) 3. सिडबी (SIDBI) 4. मुद्रा (Micro Units Development & Refinance Agency Ltd.) 5. बैंक पहले तीन संस्थान छोटे या मझोले स्तर का कारोबार शुरू करना चाहने वालों की कई तरह से मदद करते हैं। बैंक वित्तीय मदद देता है।

कौन आता इनके दायरे में: 2006 में छोटे और मझोले उद्योंगो के मापदंड तय किए गए। सबसे पहले इन्हें मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज दो श्रेणियों में बांटा गया। उसके बाद मापदंड तय किए गए। पहले जिन्हें लघु उद्योग कहा जाता था उन्हें ही 2006 के बाद एमएसएमई यानी माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम ऑन्ट्रप्राइसेस कहा जाने लगा। ये मापदंड हैं: मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए: - माइक्रो ऑन्ट्रप्राइसेस - 25 लाख या 62,500 डॉलर तक टर्नओवर स्मॉल ऑन्ट्रप्राइसेस- 25 लाख से 5 करोड़ या 62,500 डॉलर से 1.25 मिलियन डॉलर तक टर्न ओवर मीडियम ऑन्ट्रप्राइसेस- 5 करोड़ से 10 करोड़ तक या 1.25 मिलियन से 2.5 मिलियन डॉलर तक सर्विस ऑन्ट्रप्राइसेस:- - माइक्रो ऑन्ट्रप्राइसेस- 10 लाख या 25,000 डॉलर तक टर्नओवर स्मॉल ऑन्ट्रप्राइसेस- 10 लाख से 2 करोड़ या 25,000 डॉलर से 0.5 मिलियन डॉलर तक टर्न ओवर मीडियम ऑन्ट्रप्राइसेस- 2 करोड़ से 5 करोड़ तक या 0.5 मिलियन से 1.5 मिलियन डॉलर तक झंझट हुआ कम, आधार में दम अब पहले की तरह कागजी कार्रवाई की जगह आधार के जरिए एमएसएमई से जुड़ने का अच्छा मौका है। अपने आधार कार्ड के जरिए आप 'उद्योग आधार' के लिए रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं। इसके लिए बस कुछ आसान स्टेप फॉलो करने की जरूरत है: - goo.gl/JjLS3y पर जाएं। - इस पर आपको एक फॉर्म भरना होगा। इस फॉर्म में आधार कार्ड और अपने बिजनेस के बारे में सामान्य जानकारियां देनी होंगी। - इस फॉर्म को भरने से पहले यह अच्छी तरह से जान लें कि मिनिस्ट्री उन लोगों की ही मदद करती है जिनका बिजनेस शुरू हो चुका है और वे उसे बढ़ाना चाहते हैं। - फॉर्म में अपने बिजनेस के बारे में मांगी सारी जानकारी ऑनलाइन भर कर देनी होगी। मिसाल के तौर पर टर्नओवर या कौन से सेक्टर (मैन्युफैक्चरिंग या सर्विस) में काम करना चाहते हैं। - एक आधार नंबर पर एक सेक्टर की इंडस्ट्री में एक ही रजिस्ट्रेशन मिल सकता है। - याद रखें, जो भी जानकारी भरी गई है, उसके एवज में कोई भी डॉक्युमेंट नहीं जमा करना है। किसी भी तरह की गलत जानकारी देने की जिम्मेदारी फॉर्म भरने वाले पर ही होगी। इनका रखें ख्याल - कंपनी के सभी रजिस्ट्रेशन करवा लें, मिसाल के तौर पर प्राइवेट या पार्टनरशिप आदि। इसके अलावा, अगर पॉल्युशन या किसी अन्य एजेंसी से क्लियरेंस की जरूरत है तो उन्हें भी ले लें। - रजिस्ट्रेशन के लिए nbt.in/registration पर जाएं। यहां पर रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग से जुड़ी सारी जानकारी उपलब्ध है।

रजिस्ट्रेशन के बाद क्या हैं सुविधाएं: एमएसएमई में रजिस्ट्रेशन के बाद आपको तमाम तरह की सुविधाएं मिलेंगी। - मार्केटिंग असिस्टेंट के तौर पर ट्रेनिंग कोर्सेज और एजेंसियों के साथ गठजोड़ करवाने की सुविधा जिससे बिजनेस को आगे बढ़ाया जा सके। - फाइनैंस के लिए सरकारी और प्राइवेट इन्वेस्टमेंट की राह आसान करना। - इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स से लगातार कॉन्टैक्ट में रह पाने की सुविधा जिससे वक्त-वक्त पर सही राय मिल सके। - खादी और कॉयर सेक्टर में बिजनेस करने वालों को सस्ती दरों पर लोन उपलब्ध करवाना। - संबंधित सेक्टर में आने वाली नई तकनीक और योजनाओं की जानकारी देना।

एनएसआईसी बढ़ाएगा हाथ भारत सरकार का राष्ट्रीय लघु ‌उद्योग निगम लिमिटेड (एनएसआईसी) भी उन उद्योगों को बढ़ावा देने में मदद करता है, जो पहले से एमएसएमई (माइक्रो, स्मॉल एंड मिडियम ऑन्ट्रप्रनरशिप) के तौर पर रजिस्टर्ड हैं मतलब जिनके उद्योग आधार बन गए हैं। इसके मदद के दायरे में आता है: - एनएसआईसी ने कई बैंकों के साथ एमओयू साइन करके इस तरह का समझौता किया है कि एमएसएमई को सस्ती दरों पर लोन दिलाया जा सके। बैंकों ने बाकायदा एमएसएमई की एक लोन कैटगिरी ही तैयार कर दी है। बैंकों की पूरी लिस्ट और जानकारी के लिए www.nsic.co.in/bankfaci.asp पर जाएं। - कच्चे माल की खरीद की भी एनएसआईसी पूरी तरह से जिम्मेदारी लेता है और कम क्रेडिट पर कच्चा माल उपलब्ध कराने में मदद करती है। इसकी प्रक्रिया पूरा करने का काम भी एनएसआईसी ही करता है। - एनएसआईसी हर साल काफी सामान की खरीद करता है। इसके लिए खासतौर पर एमएसएमई को सामान बेचने का मौका दिया जाता है। इसके लिए खास 'सिंगल पॉइंट रजिस्ट्रेशन स्कीम' की व्यवस्था की गई है। इस योजना में रजिस्ट्रेशन कुछ आसान शर्तों के साथ 2000 से 8000 रुपये की फीस देकर करवाया जा सकता है। ज्यादा जानकारी www.nsic.co.in/gp.asp पर मिल सकती है। - चूंकि किसी भी बिजनेस का आधार कस्टमर होते हैं इसलिए कस्टमर और बिजनेसमैन को साथ लाने के लिए खास मेंबरशिप योजना चलाई जाती है। इसके लिए 5000-10,000 रुपये की सालाना फीस भर कर रजिस्ट्रेशन करवाया जा सकता है। ये मूल रूप से बिजनेस लीड देने का काम करते हैं। - एनएसआईसी का मार्केटिंग इंटेलिजेंस सेल बिजनेस डाटाबेस को खंगाल कर इंडस्ट्री तक काम की बातों को लेकर जाती हैं। इससे न सिर्फ कस्टमर बेस बढ़ाने में मदद मिलती है बल्कि बिजनेस में और निवेश के रास्ते भी खुलते हैं।

सिडबी (SIDBI) - भारत सरकार के एक एक्ट के जरिए 1990 में बनी स्मॉल इंडस्ट्रीज डिवेलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (SIDBI) एसएमईएस को वित्तीय मदद पहुंचाने के इरादे से बनाई गई थी। - इसका मुख्य काम छोटे उद्योगों को उपकरण और काम करने की जगह के लिए सहायता देने के लिए 25 लाख रुपये तक के लोन 11.95 फीसदी की दर देती है। - एमएसएमई के दायरे में आने वाली हर कंपनी कारीगर, ग्रामीण और कुटीर उद्योग तथा बहुत छोटे उद्योग को लोन उपलब्ध करवाती है। - इसके लिए एमएसएमई में रजिस्ट्रेशन होना जरूरी होता है। - पूरी जानकारी के लिए www.sidbi.in पर लॉगइन कर सकते हैं।

4. मुद्रा (Micro Units Development & Refinance Agency Ltd.) - प्रधानमंत्री की मुद्रा योजना के जरिए छोटे उपक्रमों को 50 हजार से 10 लाख रुपये तक का लोन उपलब्ध करवाया जाता है। इसके लिए तीन कैटगिरी शिशु (50 हजार तक), किशोर (50 हजार से 5 लाख) और तरुण (5 लाख से 10 लाख) तय की गई हैं। - लोन के लिए सबसे पहले अपने आइडिया और प्रॉजेक्ट रिपोर्ट को पब्लिक कामर्शल बैंकों, रीजनल रूरल बैंकों, को-ऑपरेटिव बैंकों और माइक्रो फाइनैंशियल इंस्टिट्यूशंस में जाकर पेश करना होता है। इनकी पूरी जानकारी mudra.org.in पर मिल जाएगी। - क्या डॉक्युमेंट चाहिए लोन के वक्त: खुद से अटेस्ट किए हुए आईकार्ड (वोटर आईकार्ड/ ड्राइविंग लाइसेंस/आधार कार्ड/ पासपोर्ट आदि) निवास का प्रमाण (टेलिफोन बिल/ बिजली का बिल/ बैंक स्टेटमेंट आदि) लोन एप्लिकेशन दो फोटोग्राफ्स सप्लायर, मशीनरी की डिटेल्स कीमत के साथ अगर किसी खास कैटगिरी एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी से संबंध रखते हैं तो उसके प्रमाण - लोन की कागजी कार्रवाई पूरी हो जाने के बाद मुद्रा कार्ड मिल जाता है। इस कार्ड की लिमिट कुल लोन राशि की 10 फीसदी होती है।

5. बैंक से ऐसे मिलेगा लोन - किसी भी बिजनेस के शुरुआती दौर में बैंक भी लोन देकर सहारा बनते हैं। कुछ टिप्स आसानी से बैंक लोन पाने के: - सिर्फ आइडिया लेकर बैंक के पास न जाएं। दिखाने के लिए इतना कुछ होना जरूरी है कि बिजनेस हकीकत में धरातल पर उतर चुका है। - इस बात को अच्छी तरह से समझें कि बैंक पर भी दिए हुए लोन की रिकवरी का दबाव रहता है और मार्केट में तकरीबन 95 फीसदी बिजनेस आइडिया चल नहीं पाते। ऐसे में आराम से लोन मिलना मुश्किल है। - ऐसा कतई न सोचें कि पहली बार ही जिस बैंक में जाएंगे उसमें लोन मिल जाएगा। कई बार 4-5 बैकों के भी चक्कर लगाने पड़ सकते हैं। - लोन मिलना जितना इस बात पर निर्भर है कि आपकी अपने बिजनेस को लेकर कितनी समझ है उतना ही इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपका एटिट्यूड कैसा है। मिसाल के तौर आप अपने काम को लेकर कितना उत्साहित हैं यह बैंक ऑफिसर कुछ मुलाकातों में ही भांप लेते हैं। - जो डॉक्युमेंट्स मांगे गए हैं उन्हें देने में ही अगर हफ्तों का वक्त लग जाएगा तो सीधा मेसेज जाता है कि आप लोन को लेकर सीरियस नहीं हैं। - बेहतर होगा कि बताए गए सारे डॉक्युमेंट पहले से ही तैयार रखें और उनकी चेक लिस्ट बनाएं। बैंक ऑफिसर को बताएं कि अगर कोई और सपोर्टिंग डॉक्युमेंट चाहिए तो वह भी आप उपलब्ध करा सकते हैं। - बोलचाल और लुक भी कई बार बैंक अधिकारी को प्रभावित करते हैं और काम आसान बना देते हैं ऐसे में ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें। साफ-सुथरे और ट्रेंडी कपड़े पहनें और बोल-चाल का प्रफेशनल तरीका अपनाएं। - अपने आइडिया को लेकर क्रिस्टल क्लियर रहें। हर सवाल का जवाब तैयार रखें। - बिजनेस आंकड़ों का खेल है। बातचीत में अपने आइडिया को लेकर रियलिस्टिक रहें और आंकड़ों पर बात करें। - लोन के लिए बैंक जाने से पहले यह मान कर चलें कि इसमें 4-6 महीने का वक्त लग ही जाता है। - इस बात को अच्छी तरह से समझ लें कि पेपरवर्क सपोर्टिंग है और आप खुद अपने बिजनेस आइडिया के ब्रैंड ऐंबैसडर हैं। - सॉफ्ट स्किल्स का ध्यान रखें, एक सेल्समैन की तरह अपने आइडिया को बेचना सबसे जरूरी है। अपनी बिजनेस जर्नी में को शेयर करें। यह पूरे मसले को एक पर्सनल टच देता है। - कई ऐसे लोग भी होते हैं जो बैंकों में अपनी अच्छी पहचान और रुतबे की वजह से आपके आइडिया को बड़े बैंक अधिकारी तक पहुंचाने में मदद करते हैं। हालांकि उनका रोल सिर्फ आपको प्लैटफॉर्म तक पहुंचा कर इंटरव्यू का इंतजाम करना होता है, बाकी आपकी रिपोर्ट और परफॉर्मेंस पर निर्भर करता है। इसके एवज में वह शख्स कुल लोन राशि का 1 फीसदी चार्ज करते हैं। - ऐसे लोग अक्सर स्टार्टअप मीटिंग्स में मिलते हैं। अगर आप ऐसे किसी नेटवर्क का हिस्सा हैं जो बिजनेस से जुड़ा हुआ है तो उनसे भी मदद ली जा सकती है। ऐसे बनाएं परफेक्ट प्रॉजेक्ट रिपोर्ट - मार्केट में कई प्रफेशनल प्रॉजेक्ट बनाने वाले मौजूद हैं, लेकिन उनसे प्रॉजेक्ट रिपोर्ट बनवाना का मतलब होगा जैसे अपने आइडिया की लगाम किसी दूसरे के हाथ में छोड़ देना। जितनी स्पष्टता आपको अपने बिजनेस आइडिया के बारे में है किसी और को नहीं हो सकती। - जितना हो सके प्रॉजेक्ट रिपोर्ट में जार्गन, पाईचार्ट या टेबल्स बनाने से बचें। जितनी पढ़ने में आसान रिपोर्ट होगी उतना ही वह पढ़ी जाएगी और जितनी पढ़ी जाएगी उतना ही आसान लोन मिलना हो जाएगा। - बैंक अधिकारियों के पास रोज सैकड़ों प्रॉजेक्ट रिपोर्ट आती हैं। बैंक से लोन पा चुके अनुभवी ऑन्ट्रप्रनर्स की मानें तो 4 से 10 पेज की प्रॉजेक्ट रिपोर्ट ही बैंक को देनी चाहिए। इससे बड़ी रिपोर्ट को पढ़ने का वक्त बैंक अधिकारी के पास नहीं होता। - प्रॉजेक्ट रिपोर्ट में कम-से-कम 3 साल के प्रॉजेक्शन टारगेट और प्लान के बारे में लिखें। - ग्रोथ रेट और क्लांइट लिस्ट को हकीकत के करीब रखें। बढ़ा-चढ़ा कर न बताएं। इससे फायदे के बजाए नुकसान ही होता है। - जो भी प्लान प्रॉजेक्ट रिपोर्ट में लिखें, उसे कैसे और कितने लोगों की मदद से कितने वक्त में करेंगे इसे भी साफ-साफ लिखें। ..................................................... अगर फिर भी न हो फंड का जुगाड़... एक रिपोर्ट के मुताबिक, अब भी दुनिया भर में 20 फीसदी लोग ही बैंकिंग जैसे परंपरागत फंडिंग सोर्स से अपने बिजनेस की शुरुआत में मदद पा रहे हैं। अगर आपको भी बैंक से लोन न मिल सके तो निराश न हों। इन तरीकों को भी आजमा सकते हैं: बार्टरिंग पैसों के बजाय किसी खास चीज या सर्विस को ऑफर कर कई मुश्किलें आसान हो सकती हैं। इसे बार्टरिंग कहते हैं। मिसाल के तौर पर अगर आपको ऑफिस स्पेस चाहिए तो ऑफिस स्पेस के मालिक को आप पैसों की बजाय प्रॉपर्टी मैनेज करने की सर्विस दे सकते हैं। आपके साथ मालिक का काम भी आसान हो जाएगा। इसी तरह लीगल, इंजीनियरिंग और अकाउंटिंग सर्विस के बदले भी अच्छा सौदा किया जा सकता है। सर्विस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को लिए यह काफी कारगर रहता है।

पार्टनरशिप करें एक चलते हुए बिजनेस के साथ जुड़ने से भी काफी फायदा हो सकता है। बिजनेस के शुरुआती दौर में मार्केटिंग नेटवर्क में घुसने का मौका नाम न होने की वजह से नहीं मिलता। मिसाल के तौर पर अगर आप थैले बनाते हैं तो अपने ब्रैंड की पहचान बनाने में वक्त ज्यादा लगेगा और खर्चा भी ज्यादा होगा। ऐसे में बिग बाजार या ऐसे ही किसी ब्रैंड के साथ जुड़ कर सामान बेचने की कोशिश करें तो अच्छा रहेगा। इससे एक बड़े डिस्ट्रिब्यूशन चैनल में बिना खर्च के आपको एंट्री मिल जाएगी। क्रेडिट कार्ड पर लोन कई बार लोग कहीं नौकरी करते हुए भी स्टार्टअप शुरू करते हैं। ऐसे में जेब में पड़ा क्रेडिट कार्ड भी पैसों का इंतजाम करवा सकता है। हालांकि क्रेडिट कार्ड पर लोन काफी महंगा सौदा हो सकता है, लेकिन फौरी मदद के तौर पर इसे आजमाया जा सकता है। बड़े खिलाड़ी को पकड़ें अपनी सर्विस को ऐसे लोगों के पास लेकर जाएं जो इसके एवज में अडवांस देने को राजी हो जाएं। इसके लिए अग्रीमेंट भी किया जा सकता है। रियल इस्टेट जैसी फिल्ड में यह नुस्खा काम कर जाता है। कई बिल्डर काम को बेहतर मैनेज करने के स्किल और प्लान पर पैसा लगाने को तैयार हो जाते हैं। ऑनलाइन क्राउड फंडिंग का लें सहारा क्राउड फंडिंग का मतलब है उन लोगों से अडवांस में पैसे लेना जो आप के आइडिया में दम देखते हैं। इसमें आम लोग भी किसी प्रॉजेक्ट में पैसे लगाते हैं। इसे किक स्टार्ट भी कहते हैं। मिसाल के तौर एक अमेरिकी इंजीनियर ने ऐसा जैकेट बनाने का दावा किया जिसमें पोर्टेबल चार्जर के साथ 15 अलग-अलग फीचर वाले पॉकेट हैं। इसका नाम रखा गया बाऊबॉक्स जैकेट्स। इसके लिए उसने ऑनलाइन क्राउड फंडिंग से कई लाख रुपये जोड़े और शुरुआती इनवेस्टमेंट करने वाले मेंबर कस्टमर्स को दुनिया भर में सबसे पहले जैकेट्स उपलब्ध करवाए। याद रखें, इस तरीके से फंड जुटाने का एक ही तरीका है: धांसू प्रॉडक्ट और सस्ती कीमत।

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प्यार की मनी मीटर

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रिश्ते को खूबसूरत बनाए रखने के लिए यह भी जरूरी है कि दोनों पार्टनर तमाम दूसरी बातों के साथ-साथ फाइनैंस से जुड़े मामलों में भी एक-दूसरे के अनुरूप हों। यह कैसे पता लगाएं, बता रही हैं चंद्रलेखा मुखर्जी:

आजकल बहुत सारे मैच-मेकिंग ऐप हैं, लेकिन उनमें से कोई भी यह बता पाने में सक्षम नहीं है कि आप जिससे प्यार या शादी करने जा रहे हैं, वह पैसे बचाकर रखने वाला है या फिजूलखर्च। जिंदगी की गाड़ी बेहतर चले इसके लिए यह जानना हमेशा अच्छा रहता है कि जिस शख्स से आप शादी या प्यार करने वाले हैं, पैसे को लेकर उसकी सोच कैसी है। ईटी वेल्थ ने पिछले दिनों एक सर्वे किया जिसमें शामिल 89 फीसदी लोगों ने माना कि पैसे को लेकर दोनों पार्टनर की सोच का एक जैसा होना बेहद अहम है। फाइनैंशल प्लानर्स का भी मानना है कि फाइनैंस से जुड़े मुद्दों पर दोनों पार्टनर एक जैसी सोच रखते हों तो अच्छा है, क्योंकि पति-पत्नी के बीच पैसे पर होने वाली कहासुनी शादीशुदा जिंदगी को बर्बाद कर देती है। वेल्थ मैनेजमेंट फर्म पीक अल्फा इन्वेस्टमेंट्स की डायरेक्टर प्रिया सुंदर कहती हैं, 'मेरा एक क्लाइंट चैरिटी में काफी पैसे खर्च करता था। उसकी मंगेतर को जब यह बात चली तो उसने शादी कैंसल कर दी, क्योंकि उसका मानना था कि लड़का सारा पैसा चैरिटी में ही उड़ा देगा।' हैरानी की बात नहीं कि ईटी वेल्थ के सर्वे में शामिल 20 से 25 साल के हर पांच में से चार लोगों का मानना है कि पैसे की बात पर उनकी अपने पार्टनर से खूब बहस होती है। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए दोनों पार्टनर्स को एक-दूसरे की फाइनैंशल हैबिट्स के बारे में अच्छी तरह से जान लेना चाहिए। हम ऐसे समाज में रहते हैं, जहां पैसे के बारे में खुलकर बात करने के हम आदी नहीं हैं। सुंदर कहती हैं, 'कई पत्नियों को यह नहीं पता होता कि उनके पति कितना कमाते हैं। शादी या कोर्टशिप से पहले पैसे के बारे में बात करना आज भी एक टैबू है। कई मामलों में अब लोग अपनी कमाई और खर्च करने की आदतों को तो फिर भी मोटे तौर पर एक-दूसरे को बता देते हैं, लेकिन इससे ज्यादा डिटेल्स वे शेयर नहीं करते। मसलन उनके भविष्य के गोल्स क्या हैं, उनके ऊपर कर्ज कितना है, क्या उनके ऊपर माता-पिता और भाई-बहनों की जिम्मेदारी है, इन्वेस्टमेंट करना उन्हें किन जगहों पर पसंद है आदि। शादी से पहले ऐसे हरेक मसले पर खुलकर बातचीत करने की परंपरा आज भी नहीं है।' पहले अपने को जानें इससे पहले कि आप अपने पार्टनर की आदतों के बारे में जानें, पहले देखें कि पैसे को लेकर आपकी पर्सनैलिटी कैसी है। अपने आपको जान लेने के बाद ही आप यह तय कर पाएंगे कि सामने वाले शख्स के साथ आप कॉम्पैटिबल हैं या नहीं और अगर हैं तो कितने। यहां हम एक क्विज दे रहे हैं, जिसके जरिये आप अपने बारे में बता लगा सकते हैं कि आप किस कैटिगरी में आते हैं। बता दें कि कॉम्पैटिबिलिटी का मतलब यह नहीं है कि आप और आपका पार्टनर बिल्कुल एक-दूसरे की कार्बन कॉपी ही हों। कई फाइनैंशल प्लानर्स का मानना है कि दोनों पार्टनर की अलग-अलग सोच होने का फायदा यह होता है कि आप ज्यादा संतुलित फैसले ले पाते हैं। बस आपको यह देखना है कि आप दोनों के विचारों में जो फर्क है, आप उस फर्क के साथ जीवन में आगे बढ़ सकते हैं या नहीं। फिर मैच करें आदतें पार्टनर के फाइनैंशल हैबिट्स के बारे में पता लगाना मुश्किल नहीं है। उसके साथ थोड़ा टाइम गुजारा जाए तो उसकी आदतों के बारे में आसानी से जाना जा सकता है। इन बातों पर गौर करें : - देखें कि वे कैसे कपड़े पहनते हैं, कैसे गैजट यूज करते हैं, डिनर डेट पर कैसे व्यवहार करते हैं। इसी से काफी कुछ अंदाजा लग जाता है। - अपने पार्टनर के असेट्स के बारे में ही जानने की कोशिश न करें, उसकी लायबिलिटीज के बारे में भी जानें। आपने उनकी सैलरी के बारे में तो जान लिया और खुश भी हो गए कि बहुत मोटी सैलरी है, लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि उस सैलरी का ज्यादातर हिस्सा वह ईएमआई के रूप में ही चुका रहे हों? - खुद से पूछें कि क्या आप उस लोन के रीपेमेंट में उनके सहभागी बनेंगे? अगर प्रॉपर्टी आपके साथ जॉइंट है तो पार्टनर का लोन शेयर करने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन अगर प्रॉपर्टी उनके नाम ही है तो उसके लोन को एक सीमा से आगे जाकर शेयर करना शायद बहुतों को अच्छा नहीं लगेगा। सर्वे में शामिल 20 फीसदी लोगों ने साफ कहा कि अगर उनका नाम प्रॉपर्टी में नहीं है तो वे उस पर लिए गए लोन को चुकाने में पार्टनर की मदद नहीं करना चाहेंगे। - यह भी पता करें कि आपके पार्टनर पर कितने लोग निर्भर हैं और वह भविष्य में उनकी देखभाल कैसे करेंगे। हेक्सागॉन वेल्थ एडवाइजर्स के एमडी श्रीकांत भागवत कहते हैं कि आजकल बहुत सारी लड़कियां शादी के बाद भी अपने पैरंट्स की देखभाल करना चाहती हैं और आर्थिक रूप से भी उनकी मदद करना चाहती हैं। या ऐसा भी हो सकता है कि लड़के के ऊपर अपनी बहन या भाई की जिम्मेदारी हो। ऐसी बातों को दोनों पार्टनर्स को पहले ही साफ कर लेना चाहिए। - उस शख्स की मनी वैल्यू का पता लगाएं। इस वैल्यू से पता चलता है कि वह इंसान पैसे को कैसे देखता है, वह एक खास तरीके के फैसले क्यों लेता है या उसकी खर्च करने और सेविंग करने की आदतें कैसी हैं। पार्टनर की मनी वैल्यू को जानने के लिए उससे पूछें कि पैसे के उसके लिए क्या मायने हैं? उसकी जिंदगी में पैसा कितना महत्वपूर्ण है? अगर उसे मोटी सैलरी मिल रही हो तो वे कौन-सी चीजें हैं जिनके साथ वह समझौता कर लेगा और किन चीजों से वह समझौता नहीं कर पाएगा? अपने बारे में और अपने पार्टनर के बारे में जानने के बाद आप खुद तय कर सकते हैं कि आप दोनों कितने कॉम्पैटिबल हैं। कॉम्पैटिबिलिटी के इस लेवल से अगर संतुष्ट हैं तो आगे बढ़ें नहीं तो दुनिया बहुत बड़ी है।

5 बातें जो काम आएंगी अगर आपकी शादी हो चुकी है तो दोनों पार्टनर नीचे दिए गए पॉइंट्स पर जरूर गौर करें और आपसी सहमति से फैसला लें : 1. अकाउंट की बात शादी के बाद तय करें कि दोनों पार्टनर तमाम जिम्मेदारियों को कैसे शेयर करने वाले हैं। इसमें एक मसला बैंक अकाउंट का है। क्या आप अलग अकाउंट रखना चाहेंगे या अपने पार्टनर के साथ उसे जॉइंट करना चाहेंगे? आदर्श तो यह है कि कॉमन खर्च के लिए एक जॉइंट अकाउंट हो और पर्सनल खर्च के लिए अपने-अपने अकाउंट। महीने के खर्च के लिए जॉइंट अकाउंट में एक तय रकम डालें और सभी बिल पेमेंट्स, किचन का खर्च और बाकी रुटीन खर्चे इसी से करें। इसके अलावा हर पार्टनर को अपना एक अलग अकाउंट जरूर रखना चाहिए। ऊपरवाला न करे, लेकिन अगर कभी अलग होने का सीन बनता है तो ऐसी स्थिति में दोनों में से कोई भी पार्टनर अपने आपको आर्थिक रूप से ठगा हुआ महसूस नहीं करेगा। 2. छोटी-छोटी सेविंग कारपूलिंग, ग्रॉसरी का सामान इकट्ठा लाना, सस्ते वाले दिनों में शॉपिंग करना, बिल पेमेंट के लिए डिजिटल वॉलेट के कैशबैक का यूज करना, ऐसे न जाने कितने स्मार्ट स्टेप हो सकते हैं, जो आपके लिए छोटी-छोटी बचत करने में काफी काम आएंगे। आप देखेंगे कि इस छोटी-छोटी रकम की सेविंग महीने के अंत में आपको काफी बड़ी लगेगी। 3. सेविंग पहले, खर्चे बाद में अगर एक पार्टनर फिजूलखर्च है तो भी उसे सेविंग की अहमियत को समझना चाहिए। महीने के खर्च निकाल लेने के बाद बची रकम सेविंग नहीं होती। सेविंग के लिए बेहतर है कि महीने की शुरुआत में ही कुछ रकम की बचत कर लें और फिर बाकी बची रकम से महीने का खर्च चलाएं। म्यूचुअल फंड में सिस्टेमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान के जरिये आप हर महीने एक तय रकम जमा कर सकते हैं। बेहतर हो कि महीने के शुरू में ही इस रकम को बैंक को काटने की इजाजत दे दें। 4. बजटिंग ऐप्स घर का खर्च चलाने के लिए बजटिंग बहुत जरूरी है। आजकल ऐसे बहुत से ऐप हैं जो इस काम में आपकी मदद कर सकते हैं और आपके गैर जरूरी खर्चों पर भी लगाम लगा सकते हैं। Mvelopes, Money View, Good Budget ऐसे ही कुछ यूजफुल ऐप्स हैं। ये ऐप्स एंड्रॉयड और आईओएस पर फ्री उपलब्ध हैं। 5. तय करें गोल आपस में बात करके अपने लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म गोल तय करें। बच्चों की शादी, पढ़ाई, रिटायरमेंट, घर खरीदना लॉन्ग टर्म गोल हैं और कहीं घूमने जाना, घर का कोई सामान खरीदना आदि शॉर्ट टर्म गोल। दोनों के लिए अलग-अलग प्लानिंग करें।





जानें कैसे हैं आप

1. आपका नया फोन लेने का मन है, लेकिन आप नया फोन अफोर्ड नहीं कर सकते। आप क्या करेंगे? A. अपने बजट में थोड़ा-सा हेर-फेर करेंगे और नया फोन ले लेंगे। B. यह बजट क्या होता है? C. पैसा खर्च करने से पहले गहराई से सोचेंगे। D. फोन खरीद ही लेंगे, चाहे जो हो।

2. आपको 1 लाख रुपये का बोनस मिला है। आप क्या करेंगे? A. सोचेंगे कि किस तरह इस पैसे से बेहतर रिटर्न मिल सकता है। B. जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेंगे। C. फौरन इस रकम को किसी सेफ जगह पर लगा देंगे। D. पसंद की चीजों पर इस रकम को फौरन खर्च कर देंगे।

3. परिवार का कोई शख्स हॉस्पिटलाइज्ड हो जाता है और आपको कैश की जरूरत है। आप क्या करेंगे? A. आपने ऐसे कामों के लिए कुछ पैसे बचाकर रखे हैं, लेकिन ये काफी नहीं हैं। B. बस उम्मीद करेंगे कि ज्यादा पैसा खर्च न हो। C. चिंता नहीं, क्योंकि ऐसी इमरजेंसी के लिए आपने सेविंग की है और आपके पास हेल्थ कवर भी है। D. पैसा उधार ले लेंगे।

4. आपका दोस्त आपसे पैसे उधार मांगता है। आप क्या करेंगे? A. ब्याज पर पैसा उधार दे देंगे। B. आप डाउट में हैं कि आप उधार देने की स्थिति में हैं भी या नहीं। C. दे देंगे, लेकिन जब तक वापस नहीं मिलता, टेंशन में ही रहेंगे। D. एक्स्ट्रा पैसे हैं ही नहीं उधार देने को।

5. टैक्स प्लानिंग को आप कैसे हैंडल करते हैं? A. आपको पता है कि टैक्स की बचत कैसे की जाती है। B. टैक्स प्लानिंग आपको उलझन भरा काम लगता है। C. डेडलाइन से पहले ही आप इनवेस्टमेंट कर देते हैं और रिटर्न भर देते हैं। D. रिटर्न फाइल करने में आप हमेशा उलट-पुलट कर देते हैं।

6. जब आप भविष्य के बारे में सोचते हैं तो आपके दिमाग में क्या आता है? A. आप बहुत सारा पैसा कमाकर उसे बढ़ाने का तरीका जानते हैं। B. जो होगा, देखा जाएगा। C. आपको भरोसा है, क्योंकि आपने इन सालों में सिस्टमैटिक तरीके से पैसा बचाया है। D. आप चिंतित रहते हैं, क्योंकि पैसा बच ही नहीं पाता है।

7. आर्थिक मामलों में आपका मुख्य मकसद क्या है? A. पैसे को जितनी तेजी से हो सके, कमाना और उसे बढ़ाना B. साफ नहीं है। C. रिटायरमेंट और दूसरे फाइनैंशल लक्ष्यों को ध्यान में रखकर बचाना। D. ज्यादा से ज्यादा कमाना जिससे आप जो चाहें खरीद सकें।



अब जानें आप किस कैटिगरी में हैं : ज्यादातर जवाब ए आपको खर्च करने से ज्यादा, पैसा इकट्ठा करने में मजा आता है। आपके पास पैसा न हो तो आपको डिप्रेशन हो जाता है। आपको सबसे ज्यादा खुशी तब मिलती है जब आपके पास सेविंग और इन्वेस्ट करने के लिए पैसा होता है। बढ़िया रिटर्न देने वाली जगहों पर इन्वेस्टमेंट करना आपको पसंद है।

ज्यादातर जवाब बी समय पर टैक्स देना, बिल पे करना और अपने फाइनैंस को मैनेज करना आपको मुश्किल काम लगता है। आपको पता नहीं होता कि आपके पास कितना पैसा है, आपको क्या-क्या करना है, आपके लक्ष्य क्या हैं और आप कितना खर्च कर जाते हैं। पैसा हो तो भी उसे इन्वेस्ट करने से बचते हैं।

ज्यादातर जवाब सी आपको पैसा जमा करना पसंद है। आपको अपने लक्ष्यों की प्राथमिकताएं तय करना भी अच्छा लगता है। लग्जरी आइटम पर पैसा खर्च करने में आपको बड़ी परेशानी होती है। भविष्य की आपको काफी चिंता सताती रहती है और इसीलिए आपको पैसा सही जगह पर इन्वेस्ट करना पसंद है।

ज्यादातर जवाब डी आपको मौज-मस्ती पर पैसा खर्च करना अच्छा लगता है। पैसा जमा करना आपको मुश्किल काम लगता है। दूरगामी लक्ष्यों के लिए और भविष्य में आने वाले खर्चों के लिए कुछ पैसा अलग से रखने का फंडा आपको पसंद नहीं। आज में जियो वाली फिलॉसफी को आप शिद्दत से फॉलो करते हैं।

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जानें स्टार्टअप गेम के रूल्स

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आप जब भी कुछ अपना शुरू करना चाहेंगे तो लोग तमाम तरह की राय देने लगेंगे। हालांकि ऐसा कोई फ़ॉर्म्युला या डिजाइन नहीं है जो सभी ऑन्ट्रप्रनर्स पर लागू होता हो लेकिन फिर भी कुछ ऐसी बातें हैं, जिनका ध्यान स्टार्टअप शुरु करने वाले सभी लोग रख सकते हैं। एक्सपर्ट्स की मदद से ऐसी ही चंद बातें बता रही हैं प्रियंका सिंहः

एक्सपर्ट्स पैनल राजेश अग्रवाल, कोफाउंडर, माइक्रोमैक्स प्रवीण सिन्हा, कोफाउंडर, जबॉन्ग रोहन भार्गव, कोफाउंडर, कैशकरो

यह करें 1. पसंद और समझ का काम करें काम वही करे जिसे आप जानते हों और जिसकी आपको कुछ समझ भी हो। किसी दूसरे को देखकर कोई काम शुरू न करें। न ही यह सोचें कि फलां शख्स फलां बिजनेस में कामयाब है तो मैं भी यही करूं। कई ऑन्ट्रप्रनर ऐसे भी हैं जो किसी कारोबार के बारे में बिल्कुल नहीं जानते थे, फिर भी उसमें कूद पड़े। आप भले ही जल्दी सीखनेवाले हों या बहुत इंटेलिजेंट भी, लेकिन आप दूसरों से बेहतर उसी काम को कर सकते हैं, जो आपकी पसंद का हो। अगर पसंद के अलावा उस काम का आपको कुछ अनुभव हो तो और भी अच्छा है। कई बार उस तरह की कंपनी खोलने का बहुत फायदा होता है, जिसके बारे में पहले से ही परिचित हैं। इसमें आपको कस्टमर की असली जरूरत के बारे में दूसरों से बेहतर पता होता है। कॉम्पिटिशन के बारे में भी बेहतर पता होता है। तब आप अपने विजन के बारे में अपने एंप्ल़ॉई, इनवेस्टर, कस्टमर आदि को अच्छी तरीके से समझा सकते हैं।

2. खुद पर भरोसा रखें कई ऑन्ट्रप्रनर इसलिए फेल नहीं हो जाते कि उनके आइडिया में कोई कमी थी या फिर मार्केट के हिसाब से उनके स्किल्स की कमी थी, बल्कि वे नाकाम हो जाते हैं क्योंकि वे अपना हौसला तब गंवा बैठते हैं, जब लक्ष्य उनके बिल्कुल करीब होता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप अपनी सोच और अपने आइडिया से प्यार करें, उसमें भरोसा रखें। दूसरे आपका मनोबल तोड़ने की कोशिश जरूर करेंगे लेकिन आप हिम्मत न हारें। स्टार्टअप शुरू करना और ऑन्ट्रप्रनर बनना एक थकाऊ काम हो सकता है, जिसमें आपको बार-बार निराशा भी मिल सकती है। ऐसे में खुद से पूछें कि आप यह काम क्यों कर रहे हैं? आपको इस 'क्यों' का सही जवाब मिल जाएगा तो आप कामयाबी की राह पर आगे बढ़ जाएंगे।

3. इंतजार है बेकार अगर आपके पास आइडिया है तो आप सही वक्त आने या परिस्थितियों के आपने फेवर में होने का इंतजार न करें। आप जो करना चाहते हैं, उसे करने की प्रक्रिया आज से ही शुरु करें। ऐसा न हो कि आप इंतजार करते रह जाएं और कोई और आगे बढ़कर उसी आइडिया के दम पर अपनी जगह बना ले। तब आपके लिए काम मुश्किल होगा क्योंकि मार्केट में पहले से ही पुख्ता कॉम्पिटिटर आपका इंतजार कर रहा होगा। साथ ही, वक्त बीतने पर आपको अपनी पसंद का काम नहीं कर पाने का मलाल भी होगा। ऑन्ट्रप्रनरशिप के सफर को एंजॉय करना भी बहुत जरूरी है। ऐसा न हो कि आप काम में डूबकर जिंदगी को एंजॉय नहीं कर पाने की कीमत नहीं होनी चाहिए। आप 10 सफल ऑन्ट्रप्रनर से बात कीजिए औऱ पूछिए कंपनी में उनका सबसे मजेदार लम्हा कौन सा रहा तो वो बोलेंगे कि कंपनी के शुरुआती दिन सबसे अच्छे थे जब सब काम में डूबे जरुर रहते थे लेकिन साथ साथ मस्ती भी चल रही होती थी। इसलिए याद रखें कि काम डूब कर करें लेकिन उसे एंजाय करना नहीं भूलें ।

4. दूसरों से सलाह लें ऑन्ट्रप्रनर बनना एक ऐसी दुनिया में कदम रखना है, जहां आप बहुत कुछ नहीं जानते हैं। उसमें भी अगर आपने पहले बिजनेस नहीं किया है तो आपको लिए यह दुनिया और भी अनजानी होगी। ऐसे में दूसरे कामयाब लोगों से सलाह लेना जरूरी है। अगर आपके पास सही मेन्टोर होंगे तो आपकी राह आसान होगी। एक कामयाब ऑन्ट्रप्रनर वही होता है, जो खुद को बेहतर करने के लिए एक विनम्र सोच के साथ पूरे करियर के दौरान दूसरों से मदद लेता रहता है। हां, जब आप कामयाब हो जाएं और दूसरे आपके पास मदद के लिए आएं तो आप उनकी मदद करना या यही सलाह देना न भूलें।

5. अच्छी टीम बनाएं कोई भी शख्स अकेले अपने दम पर कामयाब नहीं हो सकता। आइडिया कितना भी दमदार हो क्यों न हो, अगर उसे पूरा करनेवाली सही टीम नहीं है तो आप कामयाब नहीं हो पाएंगे। कंपनियां अपने लिए सूटेबल इम्प्लायी को हायर करने से पहले महीनों लगाती हैं। वे सिर्फ उन्हीं लोगों को अपनी कंपनी में शामिल करती हैं, जो उनके पैमाने पर बिल्कुल फिट बैठते हैं। अच्छे इम्प्लायी को वे पैसा भी ज्यादा देती हैं और काम करने का बेहतर मौहाल भी। अच्छे एम्प्लॉयी को अपने साथ बनाए रखने की भी कोशिश करें, क्योंकि उनके लिए मार्केट भी काफी ऑफर होंगे। बार-बार टीम बदलना सही नहीं है। वक्त के साथ अपने कर्मचारियों को ट्रेनिंग, वर्कशॉप आदि के जरिए अपडेट रखें।

6. टारगेट सेट करें और समीक्षा करें आप अपने बिजनेस को अगले 5 साल में कहां देखते हैं, आप वहां कैसे पहुंचेंगे इसकी प्लानिंग बहुत जरूरी है। बेहद सफल बिजनेसमैन के पास कंक्रीट मीडियम टर्म प्लान होता है। मकसद सामने होने से उसे पाने के लिए आप मेहनत भी ज्यादा करेंगे। इससे बीच में आनेवाली सुस्ती भी आप पर हावी नहीं हो पाएगी। हालांकि ये गोल बहुत कम वक्त के नहीं होने चाहिए, वरना तब उस तय टाइम में गोल पूरा न होने पर निराश होंगे और मन छोटा होगा। बीच-बीच में अचीवमेंट की समीक्षा करना न भूलें। इससे आपको हकीकत की जानकारी रहेगी।

7. कंस्यूमर के साथ करें कनेक्ट जितना आपको आपने आइडिया और बिजनेस से प्यार होगा, उतना ही अपने कस्टमर से भी प्यार होना चाहिए। वह खुश तो आपकी कामयाबी पक्की। जितना हो सके, कंस्यूमर से फीडबैक जरूर लें, वह भी खुद या अपने बेहद भरोसेमंद साथियों के जरिए। कंस्यूमर के अलावा सप्लायर के साथ बेहतर रिश्ते बनाएं। कामयाब कंपनियां कहती हैं कि सफल बनने के लिए अलग-अलग तरह के रिश्ते बनाने पड़ते हैं। रिश्ते बनाने के लिए अच्छी कम्यूनिकेशन स्किल्स होना भी बहुत जरूरी है। आप अपनी बात को अच्छी तरह दूसरों को समझा पाएंगे, तो नतीजे आपके फेवर में आने के चांस भी ज्यादा होंगे।

8. लगातार कुछ नया जरूरी एक बार कामयाब होने के बाद उस कामयाबी को बनाए रखने के लिए भी मेहनत बहुत जरूरी है। बिजनेस में आप कभी भी निश्चिंत नहीं हो सकते। ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि कामयाब बिजनेस वही साबित हुए हैं, जिनमें लगातार कुछ नया किया गया और वक्त के साथ खुद को बदला। नई सर्विस और प्रॉडक्ट कस्टमर के सामने पेश किए गए। ये वे कंपनियां थीं, जिन्होंने नई टेक्नॉलजी को बहुत जल्दी अपना लिया। स्टार्टअप की दुनिया में कामयाब होना है तो नए आइडिया के साथ खुद को लगातार इनोवेट करना होगा, वरना दूसरे दौड़ में आपसे आगे निकल जाएंगे।

9. अपनी गलतियों को पहचानें आमतौर पर लोग कोई अपनी गलती को स्वीकारना पसंद नहीं करते, खासतौर पर ऑन्ट्रप्रनर तो मुश्किल वक्त में भी आने वाले कल को उम्मीद से देखते हैं। लेकिन अपनी गलतियों को नजरअंदाज करना और गलतियों को दोहराना आपके कारोबार के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। अपनी गलतियों का स्वीकार करने का साहस जुटाएं और उसके मुताबिक अपनी प्लानिंग में बदलाव करें। वक्त, मेहनत और पैसे को गलत डायरेक्शन में लगाने से आपका नुकसान बढ़ता ही जाएगा।

10. सही काम करें आप किसी ऐसी दुविधा में फंस जाएं, जब आपके लिए फैसला लेना मुश्किल हो रहा हो, जब आपके सपने, आपकी चाहत, आपका गोल आपको एक काम को करने के लिए कहता है जबकि आपका मन, आपकी वैल्यूज़ कुछ और करने को कहता है। ऐसे में हमेशा वह काम करें, जिसे करने के लिए आपकी वैल्यूज गवाही देती हों। उसी काम को करने से आप हमेशा मुस्कुराते रहेंगे। इसके अलावा, एक बार मुकाम हासिल करने के बाद सोसायटी के लिए कुछ करना न भूलें।

यह न करें

1. बिना रिसर्च काम शुरू करना हर ऑन्ट्रप्रनर खुद पर भरोसा करना चाहता है और उसे अपना आइडिया खास और कामयाब होने वाला लगता है लेकिन मार्केट में उतरने से पहले रिसर्च जरूर कर लें। रिसर्च से आप मार्केट की संभावनाओं का अनुमान लगा पाएंगे। इसी तरह मुमकिन है कि आप ही के आइडिया पर पहले किसी ने काम किया हो और फेल हो गया हो। उन कंपनियों या तजुर्बे को नकारने की जगह, उससे सीखें। उन्होंने कहां गलती की, उनके प्रोडक्ट की क्या खामियां थीं, इन सब बातों से सीखें। इन बातों से भी ज्यादा अहम बात- खुद से ये सवाल करें कि मैं उनसे अलग कैसे दिखूंगा? लेकिन अगर यह जवाब है कि मैं उनसे ज्यादा स्मार्ट हूं तो यह गलत है। अपनी आंखें खुली रखें और वास्तविकता का ध्यान रखें।

2. आइडिया से चिपके रहना हो सकता है कि आपको अपने आइडिया पर बहुत भरोसा हो और आप उसे छोड़ना न चाहते हों लेकिन अगर कोशिश के बाद भी आपकी मेहनत रंग नहीं ला पा रही तो आप नए आइडिया के बारे में सोचें। अपने आइडिया से प्यार करें, लेकिन उसे लेकर पजेसिव न हों, न ही उसे लेकर अड़ें। अपने रवैये में लचीलापन रखना जरूरी है। मार्केट में उतरने के बाद भी आपको जरूरत पड़ने पर प्लान बदलने पड़ सकते हैं। प्लान तब्दीली से हिचके नहीं। यह आपके बिजनेस की बेहतरी के लिए ही होगा।

3. काम को न बांटना कई लोगों को खुद पर इतना भरोसा होता है कि वे किसी दूसरे पर भरोसा ही नहीं कर पाते। वे ज्यादातर जिम्मेदारियां और काम खुद ही करना पसंद करते हैं, जबकि कोई भी शख्स हर काम में बढ़िया नहीं हो सकता। जरूरी है कि आप दूसरों पर भरोसा करें और अपनी जिम्मेदारियों को बांटें। सब कुछ करने की गलती न करें। दूसरों को जिम्मेदारी बांटने से आपको बोझ कम होगा और दूसरों को जब काम का हिस्सा बनाएंगे तो उन्हें भी अच्छा लगेगा।

4. नेटवर्क न बनाना अपनी कंपनी के कामकाज में दिन-रात डूबे रहना और इस कदर मशरुफ हो जाना कि बाहरी दुनिया की खबर ही नहीं रहे, यह बहुत बड़ी गलती है। अच्छा ऑन्ट्रप्रनर वही होता है जो अपनी कंपनी के बारे में अपने इंप्लायी, दोस्तो, दूसरे ऑन्ट्रप्रनर, इनवेस्टर, एडवाइजर, फैमिली और कस्टमर्स से लगातार फीडबैक लेते रहता है। जब आपके सपने बड़े होते हैं तो उन्हें पूरा करने के लिए बड़े नेटवर्क की भी जरूरत होती है। ऐसे में एक बड़ा मजबूत और सपोर्टिव नेटवर्क बनाना बहुत जरूरी है। इसके लिए अपने कारोबार से जुड़े ऑर्गनाइजेशंस के साथ जुड़ें। सोशल मीडिया के जरिए अपने कारोबार का प्रचार करें। आप अपनी इंडस्ट्री के लीडर्स से सोशल मीडिया के जरिए जुड़ सकते हैं और अपने ब्रैंड से उन्हें रूबरू करा सकते हैं। साथ ही, कंस्यूमर बेस भी तैयार कर सकते हैं खासकर अगर आप छोटे लेवल से शुरू करना चाहते हैं।

5. बदलाव न करना कई लोग बदलाव को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते। उन्हें लगता है कि वे जो हैं, जैसे हैं सही है। बिजनेस के लिए यह बात सही नहीं है। बिजनेस में हमेशा बदलाव होते रहते हैं। कभी प्रोडक्शन तकनीक में तो कभी कंस्यूमर की पसंद में। ग्लोबलाइजेशन के बाद बदलाव और भी तेज हो गए हैं। बदलाव को स्वीकर नहीं करने से नुकसान होता है। खुद को वक्त के साथ बदलने के लिए तैयार रखें। बदलाव के साथ-साथ अपने काम में विविधता लाना भी जरूरी है। मसलन, आप सिर्फ कुछ ही कस्टमर पर निर्भर न रहें। अगर आप एक कैटिगरी के कस्टमर खोते हैं तो दूसरे आपके पास होने चाहिए।

6. मार्केट में सबसे सस्ता होना कई लोग मार्केट में इस सोच के साथ आते हैं कि हम दूसरों के कम कीमत पर प्रोडक्ट मुहैया कराएंगे तो कस्टमर हमारी तरफ खिंचे आएंगे। सस्ता होना तो सही लेकिन सबसे सस्ता होना सही नहीं है। इससे बहुत से कस्टमर आपकी तरफ आएंगे ही नहीं। ऐसे में अपने प्रोडक्ट का एक लेवल दिखाना जरूरी है। साथ ही बेहद कम कीमत रखने से आपके लिए कॉस्ट निकालना भी मुश्किल होगा।

7. पैसे का सही इस्तेमाल न करना इसके अलावा कोई बिजनेस तभी सक्सेफुल होता है जब अपने खर्चों के मामले में स्मार्ट होते हैं। जरुरत से ज्यादा लोगों को हायर करने से बचना और शुरुआती मुनाफे को वापस बिजनेस में लगाना बिजनेस के लिए बहुत जरूरी है। पैसे को बिजनेस में ही इनवेस्ट करना सीखें। इसी तरह लोगों को लगता है कि बिजनेस मे पैसा सभी समस्याओं का हल है। किसी भी वेंचर के कामयाब हो पाने में कैपिटल का अहम रोल जरुर है लेकिन उसका सही डायरेक्शन में खर्च होना उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इनवेस्टमेंट फंड के इस्तेमाल का सबसे सही तरीका है कि कोई वैसा मॉडल चुने तो कारगर हो और कामयाब रहा हो। इसे ऐसे समझें कि आपने एक इंजन बनाया है जो अच्छा है लेकिन अब आप इसमें रॉकेट का इंधन डाल रहे हैं ताकि यह अगले लेवल तक जा सके। अगर आप रॉकेट फ्यूल एक गलत इंजन में डाल रहे हैं तो वह आपकी गाड़ी को रफ्तार देने के बजाय मुश्किलों को और बढ़ाएगा ही।

8. इन्वेस्टरों को हावी होने देना आपको अपने सपनों को पंख लगाने के लिए इनवेस्टर्स के पैसे की जरूरत है लेकिन इनवेस्टर के लिए जो अच्छा है, जरूरी नहीं कि वह आपकी कंपनी के लिए भी सेहतमंद हो। इनवेस्टर्स का सीधा मकसद जल्द-से-जल्द मुनाफा कमाना होता है। वे जल्द पैसे कमाकर आपके बिजनेस से निकलना चाहेंगे या फिर ज्यादा मुनाफा होने पर आपकी कंपनी को खरीदना चाहेंगे। ये दोनों ही बातें आपके बिजनेस के लिए सही नहीं हैं। हालांकि सही वक्त पर सही कीमत मिलने पर आप बिजनेस को बेच सकते हैं लेकिन उस पर अपनी पसंद न बेचें। इसी तरह इनवेस्टर्स को कंपनी के बड़े फैसले लेने का अधिकार न सौपें। अगर आप लंबी रेस के घोड़े हैं तो इनवेस्टर्स और उनके शॉर्ट-टर्म गेन को लेकर सावधान रहें।

9. इमरजेंसी की प्लैनिंग न करना इमरजेंसी पूछकर नहीं आती। कभी किसी अहम एंप्ल़ॉई के छोड़कर जाने पर तो कभी रॉ मटीरियल की कीमत आसमान छूने पर तो कभी कोई कुदरती आपदा इमरजेंसी बनकर आ सकती है। ऐसे किसी मौके लिए पहले से तैयारी करके रखें। अपने पास इमरजेंसी फंड जरूर रखें। साथ ही, ऐसा कोई मौका आने पर दूसरों की मदद लेने से न हिचके। जितनी जल्दी आप मदद लेंगे, उतना ही आपको नुकसान कम होगा।

10. ईमानदारी न होना काम चाहे, कोई भी हो, ईमानदार होना बेहद जरूरी है। आप खुद से, अपने इनवेस्टर्स से, अपने कस्टमर से ईमानदारी बरतें। अगर आप पारदर्शी होंगे, ईमानदार होंगे तो कामयाबी के साथ-साथ नाकामी की हालत में भी आपको सपोर्ट करनेवाले काफी होंगे। ईमानदारी से किया कोई भी काम कभी फेल नहीं होता। और अगर फेल हो भी जाए तो कम-से-कम ईमानदारी से की गई कोशिश की संतुष्टि तो आपके पास होगी ही।









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ऐसे ले जाएं बिजनेस को ऑफलाइन से ऑनलाइन

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एक्सपर्ट्स पैनल सुची मुखर्जी सीईओ, लाइमरोड

आशीष कश्यप फाउंडर, आईबीबो डॉटकॉम

प्रवीण सिन्हा फाउंडर, जबॉन्ग

अगर बिजनेस की बत्ती जलानी है तो आजकल के माहौल के हिसाब से ऑनलाइन आना ही पड़ेगा। अपने बिजनेस के लिए कस्टमर तलाशने के लिए ऑनलाइन कांटा डालना भी जरूरी है। एक्सपर्ट्स की मदद से अमित मिश्रा बता रहे हैं कैसे ले जाएं बिजनेस को ऑफलाइन से ऑनलाइन: ऑनलाइन ने बनाया बिजनेस की क्वीन रजौरी गार्डन में एक छोटी सी दुकान में सिले-सिलाए कपड़ों का ब्रैंड शुरू करने वाली साक्षी बजाज की पहचान लोकल लेवल पर तो अच्छे प्रॉडक्ट बनाने वाले के तौर पर थी लेकिन कारोबार एक सीमा से ज्यादा आगे नहीं बढ़ रहा था। कई बिजनेस में हाथ आजमाने के बाद साक्षी ने अपना ब्रैंड शुरू किया और उसका नाम रखा क्वीन। सब कुछ अच्छा होने के बावजूद स्टोर चलाना मुसीबत का काम साबित होता जा रहा था। 2015 में साक्षी ने अपने ब्रैंड को ऑनलाइन ले जाने की ठानी। उन्होंने लाइमरोड नाम की साइट पर रजिस्टर किया और साल भर के भीतर ही उनके पास रोज 200 पीस से ज्यादा के ऑर्डर देश भर के तकरीबन 6000 अलग-अलग लोकेशन के पिनकोड से आते हैं। सालाना कारोबार 1 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका है।

पापा के बिजनेस की ऑनलाइन जुगलबंदी रोहन साहनी के पिता ने साइबर कैफे से अपने बिजनेस की शुरुआत की लेकिन रोहन ने इसे इलेक्ट्रॉनिक शॉप की तरह आगे बढ़ाने की सोची। उनके पास टीवी, फ्रिज जैसे बड़े आइटम बेचने के संसाधन तो नहीं थे लेकिन एसेसरीज के तौर इस्तेमाल होने वाली हेडफोन और चार्जर जैसी चीजों में रोहन ने काम करना शुरू किया। जब उन्हें ऑनलाइन वेंडर की तरह फ्लिपकार्ट, ईबे और स्नैपडील पर सामान बेचने की खबर लगी तो उन्होंने सेलर अकाउंट्स बनाए। अकाउंट बनाने के कुछ दिनों के भीतर ही ऑफलाइन से ज्यादा ऑनलाइन सेल के ऑर्डर आने लगे। काम का लोड बढ़ा तो रोहन ने अपने पापा के मोबाइल में ऐप डाउनलोड करके उन्हें भी इसे मैनेज करना सिखा दिया। फिर क्या था फील्ड में रोहन काम करते हैं और ऑनलाइन का जिम्मा उनके पापा ने संभाल रखा है।

ऑनलाइन जाने की जरूरत क्या है? बिजनेस करने वाला हर इंसान यही सोचता है कि ऑनलाइन में बड़ा झंझट है और जरूरत ही क्या है ऑनलाइन के चक्कर में पड़ने की? इस सोच के भंवर में फंसने के दौरान वह यह भूल जाता है कि जिसे वह झंझट समझ रहा है वह असल में बिजनेस चमकाने की चाबी है। ऑनलाइन बोले तो: बिजनेस को ऑनलाइन ले जाने का मतलब हर बिजनेस के हिसाब से अलग-अलग है। मिसाल के तौर पर किसी सर्विस इंडस्ट्री के लिए ऑनलाइन का मतलब कस्टमर्स के बीच अपनी पहुंच बनाना है, तो प्रॉडक्ट बनाने वाली किसी कंपनी के लिए सामान बेचने के साधन का काम करता है। इस हिसाब से दो तरह से ऑनलाइन जा सकते हैं: 1- वेबसाइट बनवाकर 2- पहले से मौजूद किसी ई-कॉमर्स पोर्टल पर सामान बेचकर क्यों बनवाएं वेबसाइट? - आजकल सर्विस हो या प्रॉडक्ट सबसे पहले लोग उसे ऑनलाइन खोजना शुरू करते हैं। ऐसे में ऑनलाइन मौजूदगी बिजनेस के लिए फायदेमंद हो सकती है। - ऑनलाइन अपनी सर्विस या प्रॉडक्ट को डिटेल में डिस्प्ले करने का बेहतर मीडियम है। - पने बिजनेस के लोकशन को बताने के लिए भी यह बेहतर तरीका हो सकता है। - अगर आपको कुछ बेचना है तो वेबसाइट के जरिए आसानी से बेच सकते हैं। लेकिन एक बात जान लें कि ई-कॉमर्स साइट बनवाना और उसे चलाना एक महंगा और काफी तकनीकी कुशलता का काम है। ऐसे में सामान को किसी बड़ी ई-कॉमर्स साइट पर वेंडर बनकर भी बेचा जा सकता है। कब बेचें खुद की साइट पर सामान? - जब तक सामान को कई लेवल पर कस्टमाइज न करना पड़े तब तक अपनी साइट पर सामान बेचना महंगा हो सकता है। इसे ऐसे समझें कि अगर आपको कोई साधारण कपड़े बेचने हैं तो पहले से मौजूद वेबसाइट पर बेच सकते हैं लेकिन अगर आप ऐसी टीशर्ट बनाकर बेचना चाहते हैं जिसमें हर कस्टमर अपने हिसाब से डिजाइन और कलर ऑप्शन चुन सके तो अपनी साइट बनवाना जरूरी हो जाता है। समझें वेबसाइट की इनसाइट आपको अक्सर राह चलते 500 रुपये में वेबसाइट बनवाएं जैसे इश्तेहार नजर आते होंगे। हालांकि जब भी आप किसी अच्छी कंपनी से वेबसाइट बनवाने के लिए जाते हैं तो रेट काफी ज्यादा बताए जाते हैं। इस वजह से भी कई लोग अपने बिजनेस को ऑनलाइन ले जाने से बचते हैं। ऐसे में जानना जरूरी है कि असल में किस तरह की वेबसाइट बनवाने में कितना खर्च आता है और क्यों: - अगर अपने बिजनेस को प्रमोट करने और जानकारी देने के लिए वेबसाइट बनवानी है तो इसमें 20 से 30 पेजों की ही जरूरत होगी जिसमें दी जाने वाली सर्विस या प्रॉडक्ट की जानकारी के अलावा उसकी लोकेशन और कॉन्टैक्ट दिया जाता है। यह काफी बेसिक लेवल की वेबसाइट्स होती हैं। इन्हें बनाने और चलाने में किसी भी तरह की बड़ी तकनीकी कुशलता की जरूरत नहीं होती। वेबसाइट बनवाने का खर्च: 5000 रुपये से लेकर 15,000 रुपये तक। इसमें शामिल है वेबसाइट होस्टिंग का खर्च (1500-4500 रुपये), डोमेन नाम खरीदने का खर्च (500-1500 रुपये सालाना), डिजाइन और लेआउट बनाने का खर्च (क्वॉलिटी के हिसाब से) - अगर आपको किसी भी तरह का सामान बेचने के लिए वेबसाइट बनवाना है तो उसके लिए ज्यादा तकनीकी कुशलता और संसाधनों की जरूरत होगी। ऐसी वेबसाइट्स को बनवाने का खर्च क्वॉलिटी के हिसाब से काफी ज्यादा (1 लाख से 5 लाख रुपये तक)होता है। . ऐसी वेबसाइट में चूंकि प्रॉडक्ट्स को लिस्टेड करना होता है और दुनियाभर से लोग इन्हें खरीदने आते हैं इसलिए एक बड़ी वेब होस्टिंग सर्विस और ज्यादा स्पेस की जरूरत होती है। . चूंकि इस पर लोग लगातार खरीदारी और पेमेंट करते हैं इसलिए मेंटिनेंस की जरूरत होती है। ऐसे में 24 घंटे इसे चलाने के लिए लोगों की जरूरत होती है। इसके लिए अपना स्टाफ रखना पड़ता है या इस तरह की सर्विस देने वाली किसी कंपनी से टाईअप करना पड़ता है। . ई-कॉमर्स वेबसाइट पर ट्रैफिक के हिसाब से इसमें लगातार फेरबदल करने पड़ते हैं और इसे चलाने के लिए एक अच्छे इंजीनियर की दरकार होती है। बदला वक्त, बदलीं वेबसाइट्स बदलते वक्त के साथ ही वेबसाइट्स भी बदलीं। अब लोगों ने कंप्यूटर से ज्यादा अपने मोबाइल फोंस और टैबलेट्स पर इंटरनेट के जरिए सर्फिंग और खरीदारी करना शुरू कर दिया है। ऐसे में बदलते स्क्रीन साइज और स्पीड के हिसाब से ही वेबसाइट्स ने भी अपने रूप-रंग को बदल लिया है। वेबसाइट्स को इस हिसाब से भी दो तरह से बांटा जा सकता है। स्टैटिक वेबसाइट: वह वेबसाइट जो कंप्यूटर की स्क्रीन के हिसाब से स्टैंडर्ड तरीके से बनाई जाती है। इसका रेजॉल्यूशन और साइज फिक्स होता है। खूबी: कम कीमत, कम झंझट कमी: छोटे स्क्रीन साइज पर जानकारी लेने के लिए स्क्रीन पर खुली वेबसाइट के पेज को इधर-उधर ड्रैग करके देखना पड़ता है, मोबाइल पर सर्फिंग में दिक्कत होती है। डायनामिक वेबसाइट: यह डिवाइस की स्क्रीन साइज के हिसाब से खुद में बदलाव कर लेती है। अगर डिवाइस पर इंटरनेट धीमा है तो उसके हिसाब से भी वेबसाइट अपने कई फीचर्स को डिएक्टिवेट कर देती है जिससे वेबसाइट आसानी से खुल सके। खूबी: कहीं पर किसी भी डिवाइस में कैसे भी इंटरनेट कनेक्शन पर सर्फिंग की जा सकती है। कमी: बनवाने और मेंटेनेंस का खर्च ज्यादा बिना चिंता यहां बेचें अगर आपको लगता है कि वेबसाइट बनवा कर सामान बेचना महंगा और सिरदर्द वाला काम है तो देश भर के दूरदराज के लोगों तक प्रॉडक्ट पहुंचाने वाली पॉपुलर वेबसाइट्स पर भी अपना सामान बेचा जा सकता है। इनमें शामिल हैं स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, अमेजॉन, ईबे और लाइमरोड जैसी साइट्स।

ऐसे करें रजिस्टर: अगर अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिहाज से किसी ई-कॉमर्स साइट का सहारा लेना चाहते हैं तो वहां जाकर खुद को एक वेंडर की तरह रजिस्टर करना होता है। इसके लिए ऑनलाइन एक रजिस्ट्रेशन फॉर्म की जरूरत पड़ती है। यहां जाकर करें रजिस्ट्रेशन हर नामी ई-कॉमर्स साइट पर रजिस्टर करने का तरीका लगभग एक जैसा है। हम यहां मिसाल के तौर पर फ्लिपकार्ट पर सेलर अकाउंट क्रिएट करने का तरीका बता रहे हैं। इसके अलावा नामी ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर सेलर अकाउंट क्रिएट करने के लिए लिंक भी दिए जा रहे हैं। फ्लिपकार्ट पर ऐसे करें रजिस्टर: - सबसे पहले seller.flipkart.com जाएं। राइट साइड में बीच की तरफ दी गई जगह पर रजिस्टर करें। - रजिस्टर करने के लिए ईमेल अड्रेस और फोन नंबर की जरूरत होती है। - एक बार इसे भरने के बाद अगले पेज पर जाकर अपने नाम के साथ लोकेशन भरनी होगी। - एक बार इसे भरने के बाद ईमेल पर दिए हुए भेजे गए लिंक पर क्लिक करके अकाउंट को वेरिफाई करना पड़ता है। - एक बार अकाउंट वेरिफाई होते ही सेलर हब में एंट्री मिल जाती है। यहां पर जाकर कैसे सामान की लिस्टिंग करनी है, कैसे इनवेंटरी मेंटेन करनी है और कैसे बेहतर तरीके से खुद को प्रमोट करना है जैसे ट्यूटोरियल देखे जा सकते हैं। - ट्यूटोरियल विडियोज को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हर बात आसानी से समझी जा सके। - फ्लिपकार्ट के अलावा अब तकरीबन हर ई-कॉमर्स साइट सेलर्स के लिए खास फ्री ऐप लॉन्च कर चुकी है। इन्हें डाउनलोड करने के बाद प्रॉडक्ट की तस्वीर अपलोड करना काफी सहूलियत भरा हो जाता है। कैसे बिकेगा सामान, कितनी मिलेगी कीमत - एक बार प्रॉडक्ट की लिस्टिंग होने के बाद फोन पर भी किसी भी तरह की सलाह या हेल्प मांगी जा सकती है। - चूंकि फ्लिपकार्ट अपनी लॉजिस्टिक सर्विस के जरिए सामान पिक करवाती है। इसे पैक करके देने की जिम्मेदारी सेलर की होती है। - प्रॉडक्ट डिलिवर होने के बाद अमूमन 10-15 दिनों में पैसे क्रेडिट हो जाते हैं। - आपको एक बैंक अकाउंट डिटेल भी देना होगा जिसमें बिके हुए सामान की रकम ट्रांसफर होगी। बेहतर होगा अपनी कंपनी के नाम पर अकाउंट खुलवाएं। इंडिविजुअल अकाउंट में मनी ट्रांसफर पर कई तरह की पाबंदियां हैं जो आपको बिजनेस साइज बढ़ाने में अड़चन ला सकती हैं। - सामान की वसूली गई कुल कीमत में से फ्लिपकार्ट एक फिक्स अमाउंट अपने पास कमिशन के तौर पर रखता है। इसमें शामिल होता है अपने प्लैटफॉर्म पर बेचने का कमिशन फिक्स्ड चार्ज, सर्विस टैक्स और मुहैया कराई गई लॉजिस्टिक सर्विस और पैकिंग का खर्च।

कमाई का गणित मान लीजिए आपने अपने प्रॉडक्ट की कीमत 1000 रुपये रखी सेलिंग कमिशन तकरीबन 5 फीसदी मतलब 50 रुपये (यह प्रॉडक्ट दर प्रॉडक्ट बदल सकता है) शिपिंग फीस 20 रुपये फिक्स्ड क्लोसिंग फीस 10 रुपये कुल मार्केटप्लेस फीस 50+20+10= 80 रुपये सर्विस टैक्स (मार्केटप्लेस फीस का 14.5 फीसदी) 11.2 रुपये फ्लिपकार्ट को मिलने वाली कुल रकम = 91.2 रुपये आपके खाते में आने वाली रकम= 908.8 रुपये (प्रॉडक्ट वापसी की हालात में किसे कितना नुकसान सहना पड़ेगा यह रजिस्ट्रेशन के वक्त की गई शर्तों पर निर्भर करता है। इसे लेकर हर वेबसाइट के अपने-अपने मॉडल हैं)

यहां पर भी कर सकते हैं रजिस्टर sellercentral.amazon.in jabong.com/sellonjabong sellercentre.ebay.in/register-on-ebay sellers.snapdeal.com limeroad.com/seller-app

सेलर बनने से पहले करें तैयारी ऐन मौके पर दौड़भाग से बचने के लिए ये तैयारियां करें: - एक सेलर कई साइट्स पर रजिस्टर करा सकता है। - अपना पैन नंबर, फोटो आइडेंटिटी कार्ड (आधार या पासपोर्ट), परमानेंट अड्रेस और कंपनी के नाम का बैंक अकाउंट आदि तैयार रखें। - कुछ भी ऐसा बेचना चाहें जो टैक्स के दायरे में आता है तो बेहतर होगा कि अपना TIN और VAT के लिए रजिस्ट्रेशन करवा लें। - तकरीबन हर ई-कॉमर्स साइट इस काम में मदद करती हैं। एक बार साइट पर रजिस्ट्रेशन के बाद हेल्पलाइन नंबर पर जाकर हर तरह की मदद वेंडर को मिल जाती है। - वैसे तो हर कंपनी अब मोबाइल ऐप के जरिए सबकुछ आसान बनाने की कोशिश कर रही है लेकिन बेहतर होगा कि डेस्कटॉप या लैपटॉप भी रखें। इससे सेलर डैशबोर्ड पर काम करना काफी आरामदायक हो जाता है। - प्रॉडक्ट की फोटो अपलोड करने के लिए मोबाइल से खींची गई फोटो भी काम कर जाती है लेकिन अगर कैमरा मैनेज कर सकते हैं तो सोने-पे-सुहागा। बड़ी तस्वीर को क्रॉप करना और सेटिंग्स अप्लाई करना आसान होता है। - हो सके तो कंप्यूटर की बेसिक जानकारी तो ले ही लें। मिसाल के तौर पर फोटो अपलोड करना। किस तरह से उन्हें सेट किया जाए। ऐप को बेहतर तरीके से कैसे इस्तेमाल किया जाए। - इंटरनेट बैंकिंग के जरिए कैसे अकाउंट को अपडेट और ऑपरेट किया जा सकता है, इसकी जानकारी भी काफी मददगार साबित हो सकता है। - बेहतर होगा कि अपने सामान की इनवेंटरी (लेखा-जोखा) बनाएं। बेहतर होगा एक्सेल शीट पर कुल स्टॉक और सेल का हिसाब किताब रखें। अगर तकनीक को इस्तेमाल करने में कोई हिचक है तो हार्ड कॉपी भी बना सकते हैं। - हर सेलर को अपने भेजे समान की क्वॉलिटी और कीमत की जिम्मेदारी खुद लेनी होती है। माल के वापस आने पर इसकी जिम्मेदारी भी सेलर को लेनी होती है। ऐसे में हिसाब-किताब को बारीकी से मेंटेन करने की तैयारी रखना भी जरूरी है।

ऐसे बन सकते हैं हिट सेलर गलतबयानी से बचें चाहे सर्विस प्रोवाइडर के तौर पर वेबसाइट पर जानकारी देनी हो या सेलर के तौर पर किसी ई-कॉमर्स साइट पर रजिस्टर करना हो, गलत जानकारी और गलत बयानी आपको फौरी तौर पर तो चमका सकती है लेकिन लंबी रेस में बाहर जाने के लिए मजबूर कर सकती है। खूब बताएं ऑनलाइन सामान बेचते वक्त सेलर के पास दुकान में आए कस्टमर की तरह अपना प्रॉडक्ट समझा पाने की सुविधा नहीं होती। ऐसे में कस्टमर खरीदने से बचता है। अपने प्रॉडक्ट के बारे में ज्यादा जानकारी आपको न सिर्फ कस्टमर को रिझाने में मदद करेगी बल्कि आपके ब्रैंड में विश्वास भी जगाएगी। डिटेल में जाएं अपने प्रॉडक्ट्स के बारे में डिटेल में बताएं। 100-200 शब्दों का पूरा ब्योरा लिखने से बेहतर है पॉइंट्स में लिखें और क्वॉलिटी के अलग-अलग पैराग्राफ बनाएं। अगर कोई कमी भी है तो खुलकर बताएं। मिसाल के तौर पर अगर तस्वीर में बटन सफेद दिखाई दे रहा है लेकिन असल में यह कुछ मटमैला है तो लिखें कि बटन का रंग सफेद न होकर मटमैला है। इससे आप कस्टमर का भरोसा जीतते हैं। फौरन एक्शन लें अगर आपको ऑर्डर मिला है तो उसे डिस्पैच करने में देरी न करें। हर कस्टमर बड़ी शिद्दत से अपने ऑर्डर किए हुए प्रॉडक्ट का इंतजार करता है। जितनी जल्दी सामान डिलिवर होगा, उतना ही कस्टमर खुश होगा और उतना ही ई-कॉमर्स साइट भी आपको प्रमोट करेगी। सोच-समझ कर वादा करें अक्सर सेलर यह सोच कर उन सामानों को भी डिस्प्ले में दिखाते हैं जो फिलहाल उनके पास नहीं हैं। वह सोचते हैं कि जब ऑर्डर आएगा, तब मैनेज कर लेंगे। अगर इस बीच ऑर्डर आ जाए, तो भागम-भाग हो जाती है। इससे काफी किरकिरी होने की आशंका रहती है। इससे बचें। जो आपके पास है, उसे ही डिस्प्ले करें। सस्ता नहीं है हमेशा अच्छा लोग अक्सर महंगे प्राइस को काट कर भारी डिस्काउंट का वादा करके सामान बेचने की कोशिश करते हैं। यह चालबाजी अक्सर काम नहीं करती। इससे बचें। ऑनलाइन कस्टमर काफी समझदार हैं और वे एक प्रॉडक्ट्स को कई साइट्स पर कंपेयर करके देख लेते हैं। कंपनी की रिटर्न पॉलिसी को समझें सामान चाहे अपनी वेबसाइट से बेचें या किसी दूसरी ई-कॉमर्स साइट से, हर तरह की पॉलिसी को अच्छी तरह से समझें और कस्टमर को भी समझाएं। अक्सर प्रॉडक्ट रिटर्न के वक्त काफी बहस होती है। इससे न सिर्फ कस्टमर के साथ रिलेशन खराब होते हैं बल्कि वेंडर और ई-कॉमर्स पोर्टल के साथ भी रिश्ते खट्टे हो जाते हैं। बेहतर होगा इनके बारे में शुरुआत से ही क्लियर रहें।

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जो दिखता है, वो बिकता है

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एक्सर्ट्स पैनल पीयूष पांडे एड गुरू

विजय शेखर फाउंडर, पेटीएम

दिनेश अग्रवाल फाउंडर, सीईओ इंडिया मार्ट



आप कितने भी अच्छे बिजनेस मैन हों, आपकी सर्विसेज या प्रॉडक्ट्स सही कस्टमरों के पास तभी पहुंचेंगे जब उनका सही जगह प्रमोशन होगा। कम पैसों में कस्टमर के पास पहुंचने का सटीक ठिकाना है इंटरनेट। आज के जमाने में इंटरनेट पर मार्केटिंग ही सफल बिजनेस की कुंजी है। एक्सपर्ट्स की मदद से अमित मिश्रा बता रहे हैं इंटरनेट के जरिए बिजनेस को प्रमोट करने के तरीके:

रोहित दिल्ली में मेंस वेयर बनाने का काम करते थे। वह लोकल लेवल पर रिटेलर्स को माल सप्लाई किया करते थे। इंटरनेट पर मार्केटिंग के बारे में पता चलने पर उन्होंने वेबसाइट बनवाने के साथ ही सोशल मीडिया पर भी पेज बना कर भी प्रमोशन शुरू किया। कुछ ही दिनों में उनके ब्रैंड को लोग जानने-पहचानने लगे। अब वह बड़े रिटेल स्टोर्स में अपने ब्रैंड के कपड़ों के साथ मौजूद हैं और जल्दी ही अपनी नई प्रॉडक्ट रेंज लॉन्च करने का प्लान भी बना रहे हैं। इंटरनेट पर सबके लिए सबकुछ इंटरनेट पर प्रमोशन की सबसे खूबसूरत बात यह है कि इस पर लगभग सबकी पहुंच है। यहां पर जिस तरह कोई बड़ी कंपनी खुद को प्रमोट कर सकती है, ठीक उसी तरह से छोटी कंपनी भी लोगों तक पहुंच बना सकती है। अगर इसके लिए कुछ जरूरी है तो वो है मीडियम की ताकत की सही समझ और खुद को पेश करने का सही तरीका जानना। दरअसल यहां छोटी-छोटी बातें मायने रखती हैं। मिसाल के तौर पर अगर आपको अपनी सर्विस के बारे में बताना है तो अपने सोशल मीडिया पेज पर संतुष्ट कस्टमरों के अनुभव बांट सकते हैं। यह भले ही छोटी बात लगे, लेकिन इसका असर और इसकी विश्वसनीयता किसी महंगे विज्ञापन से कम नहीं है।

इंटरनेट पर रहें मौजूद अपनी कंपनी को प्रमोट करने के लिए जरूरी है कि इंटरनेट पर अपनी मौजूदगी जितनी जल्दी हो दर्ज कराएं। इसके लिए वेबसाइट बनवाएं जिसका खर्च तकरीबन 5000-10,000 रुपये आता है। इसकी पूरी जानकारी पिछले हफ्ते की जस्ट जिंदगी में पढ़ सकते हैं। वेबसाइट बनवाने के फायदे हैं: - जो आपकी सर्विस या प्रॉडक्ट्स को इंटरनेट पर ढूंढ रहे हैं वे आपको आसानी से खोज सकते हैं। - वेबसाइट में अपने बिजनेस के बारे में तफ्सील से बताएं उस पर अड्रेस और फोन नंबर भी दें। इससे कस्टमर का भरोसा बढ़ता है। - वेबसाइट पर जानकारी छोटी और सटीक रखते हुए सर्विस या प्रॉडक्ट के बारे में बता सकते हैं। - एक बात अच्छी तरह से समझ लें कि इंटरनेट पर सिर्फ वेबसाइट बनाने से ही काम नहीं होगा। हर वेबसाइट इंटनरेट के महासागर में एक बूंद जैसी है। इसे लोगों की नजरों में लाने के लिए कुछ और काम भी करने होंगे। - आपकी वेबसाइट और सर्विसेज को लोगों तक पहुंचाने में ऑनलाइन डायरेक्टरी काफी मददगार साबित हो सकती है।

ऑप्टिमाइज करें अपनी वेबसाइट - इंटरनेट पर कुछ भी ढूंढने के लिए लोग गूगल जैसे सर्च इंजन का इस्तेमाल करते हैं। सर्च इंजन वेबसाइट में डाली गई जानकारी के हिसाब से ही प्रॉडक्ट या सर्विस को खोजता है। इसके लिए जरूरी है कि आपकी वेबसाइट इस तरह से बनी हो कि सर्च इंजन में सर्च करने वालों को वह दिख जाए। यहां पर दो बातें होती हैं: - पहला यह कि कैसे वेबसाइट को ऐसा बनाएं कि वह सर्च की लिस्ट में आसानी से आ जाएं भले ही 20वें पेज पर। इसके लिए सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन की सर्विस देने वाली कंपनियां मदद कर सकती हैं। वे पेज की हेडलाइनें और क्वॉलिटी को बेहतर तरीके से डिजाइन करके ऐसा करती हैं। - दूसरा यह है कि वेबसाइट सर्च के साथ ही ऊपर भी आए। इसके लिए जरूरी है कि वेबसाइट पर लिखा गया कंटेंट रोचक हो और पेशकश बेहतरीन। गूगल, बिंग और याहू जैसे सर्च इंजनों को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वे लोगों के वेबसाइट पर रुकने, उसे पढ़ने और रिएक्ट करने के पैटर्न को अच्छी तरह से जान लेती हैं। इन सभी फैक्टर्स को जान कर ही सर्च इंजन पहले पेज पर और ऊपर की ओर किसी वेबसाइट को दिखाती है। बेशक इस मामले में आप सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन की सर्विस देने वाली कंपनियों की मदद ले सकते हैं।

इंटरनेट डायरेक्टरी को समझें इंटरनेट बिजनेस डायरेक्टरी को हम उस टेलीफोन डायरेक्टरी की तरह समझ सकते हैं जिसमें किसी भी बिजनेस कॉन्टैक्ट को खोजा जा सकता है। इंटरनेट पर होने की वजह से इसकी यूटिलिटी और बढ़ जाती है। यहां पर हर बिजनेसमैन अपने बिजनेस को मुफ्त में रजिस्टर करा सकते हैं। क्या होगा फायदा: - इंटरनेट पर मौजूदगी मजबूत होगी - प्रॉडक्ट और सर्विसेज के अच्छे रिव्यू आपके कस्टमर की संख्या तेजी से बढ़ा सकते हैं। - इस पर मिले बुरे रिव्यू इस बात की जानकारी देने में काफी सहायक होते हैं कि आपको कहां सुधार की जरूरत है। कैसे करें रजिस्टर: - इंटरनेट डायरेक्टरी सर्विस की वेबसाइट पर जाकर लॉगइन पासवर्ड बनाएं। - मांगी गई पूरी जानकारी सही-सही भरें। जितनी ज्यादा जानकारी देंगे उतना ज्यादा फायदा होगा। - यह डायरेक्टरी अक्सर फ्री सर्विस के रूप में वेरिफिकेशन के लिए आपसे फोन नंबर और ईमेल मांगती हैं। अगर आपको डिटेल्ड सर्विसेज चाहिए जिसमें पूरा कैटलॉग और फोटो अपलोड करवानी है तो हर साल 5000 रुपये से 25 हजार रुपये तक की सर्विसेज भी ली जा सकती है। - एक बार डायरेक्टरी सर्विस में रजिस्टर हो जाने का फायदा दो तरह के बिजनेस मैन को मिलता है: 1. जो पहली बार बिजनेस की शुरुआत कर रहे हैं। उनके लिए यह सर्विस फ्री में विजिबिलिटी मिलने के लिहाज से काफी अच्छी होती है। इस तरह की ढेरों सर्विसेज पर एक साथ खुद को रजिस्टर करने से इंटरनेट पर सर्च पर काफी अच्छी मौजूदगी सुनिश्चित की जा सकती है। 2. जो पहले से बिजनेस में हैं और इस सर्विस को एक कस्टमर केयर की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। कई लोग कस्टमर सर्विस लेने के बाद कॉन्टैक्ट खो जाने की वजह से दोबारा बिजनेसमैन के पास नहीं पहुंच पाते। ऐसे लोगों सर्च इंजन पर जाता है तब अगर आपका बिजनेस इंटरनेट डायरेक्टरी में मौजूद है तो इसे आराम से खोजा जा सकता है। इन बातों का रखें ध्यान - लिस्टिंग करते वक्त सर्विसेज की कैटगिरी सही भरें। इससे सर्च आसान हो जाता है। एक बार गलत कैटिगरी में लिस्टेड होने का मतलब है अपने कस्टमर से कोसों दूर हो जाना। - अगर कुछ समझ में न आए तो साइट पर दिए हेल्पलाइन नंबरों पर फोन करके पूछ लें। - सही फोन और मोबाइल नंबर डालें क्योंकि वेरिफिकेशन का फोन दिए हुए नंबरों पर ही आता है। - जो नंबर आप रजिस्टर करते वक्त देते हैं, वह सेल्स कॉल के लिए आगे प्रमोट किया जाता है। इसलिए नंबर सोच-समझ कर दें। ऐसा न हो कि जल्दबाजी में दिया पर्सनल नंबर दिन-रात के कॉल से मुश्किलें बढ़ा दे। - अपने बारे में सटीक लिखें। मिसाल के तौर अगर आपने सर्विसेज में सिर्फ सॉफ्टवेयर डिवेलपमेंट डाला और यह नहीं बताया कि किस तरह के सॉफ्टवेयर के लिए आप काम करते हैं तो आप सही कस्टमर तक नहीं पहुंच पाएंगे।

यहां करें रजिस्टर www.indiamart.com www.justdial.com www.yalwa.in www.startlocal.in www.indianyellowpages.com www.hotfrog.in www.infoline.in www.askme.com www.bizzduniya.com www.yellowpages.sulekha.com www.indiaontrade.com www.indiabusinessportal.com www.businesswithindia.in www.surfindia.com www.indiabizclub.com www.indiacatalog.com www.vanik.com www.thelinkindia.com www.yellowpages.webindia123.com www.goodlinksindia.in www.zoomyellowpages.com www.fayda.co.in www.mysheriff.co.in www.dir.samachar.com www.business-india.in

ईमेल को बनाएं हथियार ईमेल से अपने कस्टमर तक पहुंचना काफी सस्ता और सटीक तरीका है। ईमेल भेज कर अपने प्रॉडक्ट या सर्विसेज के बारे में बताया जा सकता है। इसके लिए ईमेलर सर्विसेज का सहारा लिया जा सकता है या अपने ऑफिस में ही किसी को यह काम सौंपा जा सकता है।

इन बातों का रखें ध्यान - ईमेल पर बिजनेस प्रमोशन से अक्सर ईमेल पाने वाले लोग परेशान हो जाते हैं। इससे बचने के लिए अच्छी तरह से कस्टमर रिसर्च करके ही मेल भेजें। गलत जगह मेल पहुंचने से फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंच सकत है। अगर 50 लोगों ने भी आपकी मेल को स्पैम मार्क कर दिया तो मेल सर्विस उसे स्पैम करार देगी और जरूरतमंद कस्टमर को भी आपका ईमेल स्पैम फोल्डर में ही मिलेगा। इससे बचने के लिए अपने मेलर में अनसब्स्क्राइब का ऑप्शन जरूर दें। - ईमेल को कम शब्दों में और बेहतर लेआउट के साथ डिजाइन करें। मेल पढ़ने में जितना आसान और दिखने में जितना खूबसूरत होगा काम उतना ही आसान होगा। - ईमेल भेजने की टाइमिंग का भी ध्यान रखें। कोई भी सुबह-सुबह प्रमोशनल ईमेल नहीं देखना चाहेगा। बेहतर होगा लंच टाइम या शाम को भेजें। - ईमेल में कॉन्टैक्ट के लिए दिया गया मेल आईडी ऑफिशल वेब अड्रेस (name@yourcompany.com) होना चाहिए। जीमेल या किसी और मेल सर्विस के इस्तेमाल करने से विश्वसनीयता में कमी आती है। - ईमेल पर दिए गए हर कॉन्टैक्ट पर पूरी तरह से अलर्ट रहना चाहिए जिससे बिजनेस के किसी भी मौके को भुनाया जा सके।

कितने में मिलेगा कंपनी का ईमेल - जब भी कोई वेबसाइट बनवाता है तो उसमें वेब होस्टिंग के साथ ही ईमेल सर्विस भी मिलती है, लेकिन यह बहुत बेसिक किस्म की होती है और इसके फीचर्स भी काफी कम होते हैं। - जीमेल से लेकर माइक्रोसॉफ्ट तक ईमेल होस्ट करने की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। इसमें बेहतरीन फीचर्स के साथ ही काफी स्टोरेज स्पेस रहता है। एक ईमेल आईडी के लिए 150 रुपये महीने से शुरू होकर बड़े बिजनेस प्लान के लिए हजारों रुपये महीने तक जाती है। - ऑन्ट्रप्रनर सलूशन उपलब्ध करने वाली कई कंपनियां वेबसाइट के हिसाब से कस्टमाइज्ड वेब होस्टिंग सर्विसेज भी उपलब्ध करवाती हैं। इनका सहारा भी लिया जा सकता है। हालांकि यह खर्चीला होता है। कितना खर्च होगा आउटसोर्स करने में: ईमेल करने का काम अगर किसी दूसरी कंपनी को देंगे तो इसका खर्च 2-5 पैसे प्रति ईमेल तक आता है। मेलर डिजाइन करवाने का खर्च क्वॉलिटी के हिसाब से हजारों में हो सकता है।

सोशल मीडिया का उठाएं फायदा बिजनेस को ज्यादा-से-ज्यादा कस्टमर तक पहुंचाने के लिए टूल के तौर पर सोशल मीडिया का नाम सबसे पहले आता है। हाल यह है कि अगर किसी कंपनी का ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम या लिंक्ड्इन पर प्रोफाइल नहीं होता तो उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो जाते हैं। अच्छी बात यह है कि हर सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म का अलग-अलग तरीके से बिजनेस प्रमोशन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। बस जरूरत है इसे इसे अच्छी तरह समझ कर इस्तेमाल करने की। सोशल मीडिया पर बिजनेस को प्रमोट करने के लिए अब कई कंपनियां भी आ गई हैं। ये हर महीने के हिसाब से पैसे लेती हैं और बिजनेस को सभी सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर प्रमोट करती हैं। इनके रेट 5000 रुपये से 15 हजार रुपये महीने तक होते हैं। सोशल मीडिया को इन कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है: - ब्रैंड बिल्डिंग: बिजनेस की शुरुआत से ही सोशल मीडिया पर अगर कंपनी का नाम और छवि साफ-सुथरी और अच्छी है तो उसका फायदा बिजनेस प्रमोशन में ज्यादा मिलता है। - फीड बैक और रिव्यू प्लैटफ़ॉर्म के तौर पर: अपनी सर्विसेज या प्रॉडक्ट्स के बारे में सचाई का सामना करने के लिहाज से सोशल मीडिया काफी अच्छा प्लैटफॉर्म साबित होता है। - सर्वे प्लैटफॉर्म के तौर पर: अगर आपके सोशल मीडिया पेज पर भारी संख्या में ऑडिएंस है तो किसी भी बड़े बदलाव या नई शुरुआत के लिए कस्टमर्स के मूड को भांपा जा सकता है। - कस्टमर से डायरेक्ट कनेक्शन के लिए: सोशल मीडिया कस्टमर के हिसाब से समाधान देने का ऑप्शन देता है। यहां काफी पर्सनलाइज्ड सलूशन दिए जा सकते हैं, जिससे बेहतरीन कस्टमर कनेक्ट का मौका मिलता है।

फेसबुक: फेसबुक पर जाकर अपने बिजनेस का पेज बना कर उसे आसानी से प्रमोट किया जा सकता है। फेसबुक पर बिजनेस प्रमोशन के फ्री और पेड दोनों तरीके हैं: ‌फ्री - फ्री तरीके के तौर पर पर्सनल अकाउंट की तरह बिजनेस अकाउंट बनाया जा सकता है। इसमें बिजनेस प्रमोशन के तौर पर सामान्य जानकारी के साथ ही नए ऑफर्स क्रिएट किए जा सकते हैं। - फेसबुक पर अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में बिजनेस पेज को प्रमोट करके आगे प्रमोट करने के लिए कहा जा सकता है। पेड सर्विस - अपने फ्री अकाउंट को ही आप पेड अकाउंट में तब्दील कर सकते हैं। - इसके लिए फेसबुक बाकायदा टारगेटेड ऑडियंस के हिसाब से प्रमोशन टूल उपलब्ध कराती है। - इसमें फेसबुक अपने पर्सनल अनालिसिस के जरिए उन लोगों तक आपके पोस्ट और बिजनेस को लेकर जाती है, जिन्हें इसकी जरूरत हो सकती है। - इसके लिए फेसबुक लोगों तक पहुंच के हिसाब से चार्ज करता है। मिसाल के तौर पर अगर आपके बिजनेस मेसेज को 100 लोगों तक पहुंचाना है, तो 500 रुपये पड़ते हैं। जैसे-जैसे लोगों तक पहुंच बढ़ती जाएगी रेट भी बढ़ते जाते हैं। महंगे प्रमोशन का इस्तेमाल बिजनेस के बड़े होने पर ही कारगर रहता है।

ऐसे होगा फेसबुक पर बिजनेस हिट - दिन में 7 से ज्यादा प्रमोशनल पोस्ट न करें। इनमें 1 ही डायरेक्ट आपके बिजनेस के बारे में बात करती हुई पोस्ट हो, बाकी पोस्ट ब्रैंड के हिसाब से हल्की-फुल्की या ज्ञानवर्धक बना कर डालें, लेकिन इनमें अपने बिजनेस का जिक्र न करें। इससे लोग आपसे जुड़े रहेंगे। मसलन, अगर सिर्फ बिजनेस प्रमोट करते रहेंगे तो आप लोगों से लोग झल्ला कर पीछा छुड़ा लेंगे। - ऐसी पोस्ट करें जिससे लोग आपसे बात करें। मसलन आप लोगों से अगर फिटनेस से जुड़ी इंडस्ट्री का बिजनेस है तो अपने फेवरिट फिट सिलेब्रिटी के बारे में पूछ सकते हैं। इससे लोग पेज पर ज्यादा एंगेज होते हैं। - मजेदार फैक्ट्स को सवाल-जवाब की तरह पेश करें। अपने ब्रैंड के एक्सपीरियंस भी शेयर कर सकते हैं। - लोग आपके पेज को तभी लाइक करेंगे जब उन्हें इसका रोजमर्रा में कोई फायदा नजर आएगा। इसलिए कुछ भी पोस्ट करने से पहले सोचें कि इसका कस्टमर को क्या फायदा होगा? - अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए बिजनेस लैंग्वेज का सही यूज करें। घिसे-पिटे टाइप के बिजनेस मेसेज लोगों को बहुत बोर करते हैं।

ट्विटर: सीमित शब्दों (140 शब्द) में लिखने की पाबंदी ही इस प्लैटफॉर्म की खासियत है और यही इसकी सीमा भी है। यहां पर बिजनेस को अपने ऑडियंस के हिसाब से काफी सटीक तरीके से प्रमोट किया जा सकता है। इसकी भी फ्री और पेड दोनों ही तरह की सर्विस उपलब्ध हैं। फ्री - फ्री सर्विस के तौर पर ट्विटर पर लॉगइन करने पर तकरीबन सभी सर्विसेज मिलने लगती हैं। मिसाल के तौर पर सर्वे क्रिएट करना, इनसाइट देख पाना आदि। - आमतौर पर इस तरह आप ट्वीट के जरिए उन लोगों तक ही पहुंच सकते हैं जो आपको फॉलो कर रहे हैं। इसलिए शुरुआत में फॉलोअर बढ़ाने पर फोकस करना पड़ेगा। पेड - अगर आप अपने ट्वीट्स को उन लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं जो आपको फॉलो नहीं कर रहे हैं तो पेड सर्विस के लिए रजिस्टर करना होगा। इसका ऑप्शन भी अकाउंट बनाने के साथ ही मिल जाता है। अपने फ्री अकाउंट को भी पेड अकाउंट में तब्दील कर सकते हैं। - इसमें आपकी कंपनी का ट्वीट जरूरतमंद कस्टमर के पेज पर Sponsored ट्वीट की तरह नजर आएगा। - ट्विटर पर पेड सर्विस लेने पर ज्यादा इनसाइट देखने को मिलते हैं मिसाल के तौर पर हर हफ्ते के हिसाब से पता चलता रहता है कि आपके ट्वीट पर कितने क्लिक हुए और कितने लोगों तक आपकी पहुंच हुई। - ट्विटर बिजनेस और बजट के हिसाब से कस्टमाइज्ड सलूशन देता है। खर्च 150 रुपये रोज से 1000 रुपये रोज तक हो सकता है। ऐसे बनेगा बिजनेस ट्विटर फ्रेंडली - अपने ट्विटर हैंडल का नाम आसान और टाइप करने में सहूलियत भरा रखें। हो सके तो अंडर स्कोर या अलग-अलग तरह के सिंबल डालने से बचें। - ट्वीट चाहें जिस भाषा में करें, लेकिन उसे आसान और सटीक रखें। - अगर लोकल लैंग्वेज में ट्वीट करें तो यह भी बेहतर होगा कि उसे अंग्रेजी में भी ट्वीट करें। इससे ज्यादा ऑडियंस तक पहुंचा जा सकता है। - अपने बिजनेस से जुड़े बड़े लोगों को फॉलो करें और हो सके तो उन्हें रीट्वीट भी करें। इससे आपके खुलेपन का अहसास होता है। - लोग ट्विटर हैंडल का इस्तेमाल शिकायत करने के लिए खूब करते हैं। ऐसे में अगर आप शिकायतें नहीं संभाल सकते तो बेहतर होगा कि ट्विटर पर न जाएं। जैसे ही कोई शिकायत आए फौरन रिएक्शन दें। इससे आपकी छवि एक जिम्मेदार कंपनी की बनती है।

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बिजनेस शुरू करने से पहले जानें कानून का फंडा

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स्टार्टअप शुरू करने के बाद सबसे बड़ी चुनौती उससे जुड़ी औपचारिकताओं को पूरा करने की है। रजिस्ट्रेशन की रस्सी जकड़ने लगती है तो परमिशन का पंगा निपटाने में पसीने छूट जाते हैं। एक्सपर्ट्स की मदद से अमित मिश्रा बता रहे हैं कैसे निपटें स्टार्टअप के आड़े आने वाली लीगल अड़चनों से: बूझें स्टार्टअप की लीगल पहेली अक्सर देखने में आता है जब कोई स्टार्टअप बड़ा होने लगता है तो रजिस्ट्रेशन और परमिशन के भंवर में फंस कर रह जाता है। इससे बचने का सही तरीका यह है कि शुरुआत से ही कुछ वक्त और पैसा अपनी कंपनी के हिसाब से इनवेस्ट करें। स्टार्टअप की शुरुआत में दो तरह की कानूनी अड़चनें आती हैं: - रजिस्ट्रेशन: यह मुख्यरूप से वह कानूनी दस्तावेज होता है जो कंपनी की वैधता, उसके अधिकार और कार्यक्षेत्र के बारे में बताता है। इन रजिस्ट्रेशन के जरिए सरकार भी सुनिश्चित करती है कि बनाई जा रही कंपनी सभी तरह के जरूरी टैक्स भरे और मानकों पर खरी उतरे। - परमिशन : कई ऐसे स्टार्टअप होते हैं जिनसे आम लोगों पर सीधा असर पड़ता है, मिसाल के तौर पर खाने का सामान बनाने वाली कंपनी को फूड सेफ्टी की परमिशन की जरूरत होती है। ठीक इसी तरह लेदर के सामान बनाने वाली कंपनी को इन्वॉयरनमेंट सर्टिफिकेट की जरूरत होती है।

रजिस्ट्रेशन की न लें टेंशन किसी भी कंपनी को तीन स्वरूपों में चलाया जा सकता है: 1. फर्म यह दो तरह की होती हैं: सोल प्रोप्राइटरशिप फर्म और पार्टनरशिप फर्म सोल प्रोपराइटरशिप फर्म कंपनी खोलने का यह सबसे आसान तरीका है। अगर आप अकेले कंपनी के ओनर हैं तो किसी भी बैंक में कंपनी का करंट अकाउंट खोल सकते हैं। चूंकि इस खाते को चलाने वाले के सिग्नेचर के साथ खोला जाता है इसलिए वही उसे ऑपरेट करता है। मूल रूप से यह खाता होता तो कंपनी के नाम का है लेकिन इसे ऑपरेट कंपनी का ओनर करता है। आरबीआई की गाइडलाइंस के हिसाब से इस तरह का अकाउंट खोलने के लिए इन चीजों की जरूरत होती है। वैट रजिस्ट्रेशन अगर कोई प्रॉडक्ट ऑनलाइन या दुकान में बेचना चाहते हैं तो वैट रजिस्ट्रेशन कराएं। यह राज्य सरकार का टैक्स वसूलने का प्रोसेस है जिसके जरिए तय टैक्स सामान बेचने वाला कस्टमर से लेता है और उसे सरकार को दे देता है। वक्त लगता है: 1 हफ्ता खर्च: 5-10 हजार रुपये सर्विस टैक्स रजिस्ट्रेशन वो फर्म या कंपनी जिसका सालाना टर्नओवर 9 लाख रुपये से ज्यादा हो तो उसे सर्विस टैक्स का रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी हो जाता है। बेहतर होगा कंपनी की शुरुआत में ही इसे करा लें। कई बार क्लाइंट बढ़ते ही लिमिट के दायरे से बाहर हो जाने पर नोटिस आने का खतरा बना रहता है। वक्त लगता है: 1 हफ्ता खर्च: 2-4 हजार रुपये सीए सर्टिफिकेट कई बैंक सर्टिफाइड सीए के द्वारा लिखे गए लेटर पर भी करंट अकाउंट खोल देते हैं। इस लेटर में सीए बिजनेस के नेचर के बारे में लिख कर देता है। यह करंट अकाउंट खुलवाने का सबसे आसान तरीका है लेकिन बैंक की इच्छा पर निर्भर करता है। ऊपर दी गई तीन चीजों में से कोई दो अकाउंट खुलवाने के लिए काफी हैं। अकाउंट खुलवाने से पहले बैंक से डॉक्युमेंट की सही जानकारी ले लें। अक्सर बैंकें अपनी सहूलियत के हिसाब से नियम कायदे बनाती हैं।

2. पार्टनरशिप फर्म इसके लिए दो तरीकों को आजमाया जा सकता है। 1. पार्टनर तय होने के बाद 500 रुपये के स्टांप पेपर पर तय फॉर्मेट में पार्टनरशिप डीड बनवाई जा सकती है। 2. इसके अलावा नजदीकी रजिस्ट्रार ऑफ फर्म्स के ऑफिस जाकर भी डीड को रजिस्टर कराया जा सकता है। वक्त लगता है: 5-7 दिन खर्च: वैसे तो सरकारी तौर पर इसमें कोई खर्च नहीं होता लेकिन अगर सुविधा के जरिए करवाएंगे तो 3-4 हजार रुपये का खर्च आ जाता है।

2. LLP या लिमिटेड लाइबल पार्टनरशिप देश में इस नए कॉन्सेप्ट की शुरुआत 2009 में उन कंपनियों को ध्यान में रख कर हुई जो पार्टनरशिप और कंपनी दोनों के स्वरूप की कंपनियों को ध्यान में रख कर किया गया। यह स्टार्टअप के लिए काफी अच्छा कॉन्सेप्ट है। इस रजिस्ट्रेशन के जरिए प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मुकाबले ज्यादा फायदे मिलते हैं। स्टार्टअप के हिसाब से इस तरह की कंपनी को लोन या सरकारी योजनाओं में फायदा मिलने के साथ ही साल के अंत में कम कागजी कार्यवाही करनी होती है। कंपनी की तरह रजिस्टर स्टार्टअप को जहां मिनिस्ट्री ऑफ कंपनी अफेयर्स को हर चीज के बारे में सूचित करना पड़ता है वहीं LLP की तरह रजिस्टर कंपनी को साल में सिर्फ 2 स्टेटमेंट रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी को भेजने होते हैं। वक्त लगता है: तकरीबन 15 दिन खर्च: 9-10 हजार

3. कंपनी किसी भी स्टार्टअप को कंपनी की तरह रजिस्टर करवाने के दो तरीके होते हैं। वन पर्सन कंपनी जैसा कि इसके नाम से पता चल रहा है कोई एक डायरेक्टर के तौर पर इस तरह से रजिस्ट्रेशन करवा सकता है। इसमें कम से कम 1 डायरेक्टर या ज्यादा 15 डायरेक्टर हो सकते हैं। यह सोल प्रोप्राइटर शिप और कंपनी का मिलजुला रूप है। कितना वक्त लगता है: प्राइवेट लिमिटेड कंपनी यह कंपनी रजिस्ट्रेशन का पारंपरिक तरीका है। इसमें कम से कम 2 डायरेक्टरों की जरूरत होती है। कितना वक्त लगता है: 20 दिन से 1 महीना खर्च: 12 हजार रुपये तकरीबन कंपनी रजिस्ट्रेशन फायदे: - तेजी से बढ़ते स्टार्टअप को प्राइवेट फंडिंग में आसानी - बाकी तरह के रजिस्ट्रेशन से प्राइवेट लिमिटेड की तरह कंपनी रजिस्ट्रेशन करवाने से लोगों में ज्यादा भरोसा कायम होता है। - कंपनी में इक्विटी बेचना आसान रहता है। - फैसले लेना काफी आसान हो जाता है। दिक्कतें: - काफी कागजी काम बढ़ जाता है। - रजिस्ट्रेशन में बाकी तरह के रजिस्ट्रेशन से ज्यादा खर्च होता है। - ज्यादा डायरेक्टर होने से फैसले लेने में देरी होती है। - पब्लिक से इन्वेस्टमेंट नही ले सकते। इनका रखें ख्याल - अगर बजट कम है तो सोल प्रोप्राइटरशिप या पार्टनरशिप की तरह फर्म रजिस्टर कराएं और बिजनेस बढ़ने के बाद इसे LLP या कंपनी में कनवर्ट करवा लें। यह काम 5 हजार रुपये के भीतर ही हो जाएगा। - अगर बजट 10 हजार रुपये तक है तो LLP में रजिस्ट्रेशन करवा कर बढ़ने पर प्राइवेट लिमिटेड में कनवर्ट करवा लें। - अगर कंपनी बड़ी है और बजट 20 हजार तक है तो किसी अच्छे सीए को हायर करें जो कंपनी का कागजी काम अच्छी तरह से कर सकें।

ये क्लियर तो सब क्लियर अपनी कंपनी शुरू करने से पहले कई बार खास मिनिस्ट्री या डिपार्टमेंट से क्लियरेंस लेना होता है। इनमें मुख्य हैं: इन्वॉयरनमेंट क्लियरेंस और फूड सेफ्टी क्लियरेंस इन्वॉयरनमेंट क्लियरेंस - किसी भी इंडस्ट्रियल सेटअप को लगाने से पहले इस तरह का क्लियरेंस लेना पड़ता है। इन इलाकों में इंडस्ट्री लगाने के लिए परमिशन लेने होता है: .धार्मिक या एतिहासिक जगह . पुरातत्व साइट . पहाड़ी जगह . बीच रेसॉर्ट . समुद्र तट का ऐसा एरिया जहां पर सामुद्रिक पेड़-पौधे और जनजीवन पनप रहा है . वह जगह जहां पर नदियां समंदर से मिलती हैं . बायोस्फियर रिजर्व . नैशनल पार्क और सेंचुरी . राष्ट्रीय झील या बाढ़ एरिया . भूकंप प्रभावित क्षेत्र . ऐसा एरिया जिसमें साइंटिफिक और जियॉलजी रिसर्च का काम चल रहा हो . डिफेंस या सिक्युरिटी के लिहाज से सेंसटिव एरिया . अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर . एयरपोर्ट

क्या है प्रोसेस इन्वॉयरनमेंट क्लियरेंस का काम कई स्टेज पर होता है। - स्क्रीनिंग: किसी भी साइट पर कुछ बनाने से पहले उसे स्क्रीनिंग के लिए डिपार्टमेंट के पास अर्जी देनी होती है। इसमें डिपार्टमेंट यह देखता है कि कहीं इंडस्ट्री के बनने से इलाके के पर्यावरण को नुकसान तो नहीं पहुंच रहा। अगर इस स्टेज पर डिपार्टमेंट कोई आपत्ति करता है तो दूसरी साइट चुननी होती है। - स्कोपिंग: इस स्टेज में इन्वॉयरनमेंट इंपैक्ट असेसमेंट रिपोर्ट दी जाती है। यह काम सेंट्रल गवर्मेंट करती है। इस रिपोर्ट में पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव के हिसाब से इंडस्ट्रीज को B1 और B2 कैटिगरी में बांटा जाता है। B2 कैटिगरी वाली कंपनियों के असेसमेंट की आगे जरूरत नहीं रहती। B1 कैटिगरी वाली कंपनियों को स्टेट पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (SPCB) के पास भेज दिया जाता है। इसके बाद डिटेल्स की पड़ताल फॉरेस्ट विभाग भी करता है। इनसे एनओसी मिलने के बाद रिक्वेस्ट अगले स्टेज में जाती है। - पब्लिक हियरिंग: इसके बाद जिस इलाके में इंडस्ट्री लगनी है वहां के चुनिंदा रहने वालों के सामने केस को ले जाया जाता है। इसके लिए एक मीटिंग बुलाई जाती है। अगर कोई ऑब्जेक्शन हो तो उन्हें सुन कर फाइनल क्लियरेंस दिया जाता है। कितना वक्त लगता है: इस पूरे प्रॉसेस में 4-5 महीने लगते हैं। कितने दिनों तक वैलिड: यह क्लियरेंस 5 साल के लिए होता है। इसके बाद इसे रिन्यू कराना पड़ता है।

फूड सेफ्टी क्लियरेंस अगर किसी भी तरह के खाने के सामान से जुड़ा स्टार्टअप शुरू कर रहे हैं मिसाल के तौर चिप्स या वेफर्स, तो इसके लिए सरकार के फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड ऑफ इंडिया में रजिस्ट्रेशन की जरूरत होती है। इसके लिए foodlicensing.fssai.gov.in पर पूरी जानकारी मिल सकती है साथ ही रजिस्ट्रेशन का प्रोसेस भी शुरू किया जा सकता है। - यह रजिस्ट्रेशन सेंट्रल और स्टेट में अलग-अलग कराना होता है। - जितनी स्टेट में बिजनेस है उतने स्टेट में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। कितना वक्त लगता है: तकरीबन 1 महीना खर्च: 8 हजार से 10 हजार रुपये तक - रजिस्ट्रेशन या क्लियरेंस 1 साल तक वैध रहता है।

पेटेंट का फंडा पेटेंट किसी इनवेंटर यानी आविष्कारक को ये अधिकार देता है कि कोई भी दूसरा इंसान उसकी सहमति के बिना उस आविष्कार को अगले 20 वर्षों तक न बना सकता है, न इस्तेमाल कर सकता है और न ही बेच सकता है। पेटेंट, इनवेंटर को ये अधिकार देता है कि वो अपने आइडिया के आधार पर प्रॉडक्ट को बाजार में ला सके या किसी दूसरे को ऐसा करने का लाइसेंस देकर पैसे कमा सके। पेटेंट 3 तरह के होते हैं :

यूटिलिटी पेटेंट: ये यूजफुल प्रॉसेस, मशीन, प्रॉडक्ट का कच्चा माल, किसी चीज का कंपोजिशन या इनमें से किसी में भी सुधार को सुरक्षित करता है। मिसाल के तौर पर : फाइबर ऑप्टिक्स, कंप्यूटर हार्डवेयर, दवाइयां आदि।

डिजाइन पेटेंट : ये प्रॉडक्ट के नए, ओरिजिनल और डिजाइन के गैर कानूनी इस्तेमाल को रोकता है। जैसे कि किसी एथलेटिक शूज का डिजाइन, बाइक का हेलमेट या कोई कार्टून कैरेक्टर, सभी डिजाइन पेटेंट से प्रोटेक्ट किए जाते हैं।

प्लांट पेटेंट : इसके जरिए नए तरीकों से तैयार की गई पेड़-पौधों की वैराइटी को प्रोटेक्ट किया जाता है। हाइब्रिड गुलाब, सिल्वर क्वीन भुट्टा और बेटर बॉय टमाटर आदि प्लांट पेटेंट के उदाहरण हैं। यहां गौर करने वाली बात ये है कि आप किसी आविष्कार के अलग-अलग पहलुओं के लिए यूटिलिटी और डिजाइन दोनों तरह के पेटेंट फाइल कर सकते हैं।

इनका नहीं होता पेटेंट - प्रकृति के नियम (हवा और गुरुत्वाकर्षण) नेचरल चीजें (मिट्टी, पानी) भाववाचक (एब्स्ट्रैक्ट) आइडिया (मैथमेटिक्स, कोई फिलॉसफी ) लिट्रेचर, नाटक, म्यूजिक जैसे क्रिएटिव काम को कॉपीराइट के जरिए प्रोटेक्ट किया जाता है।

इनका हो सकता है पेटेंट - ऐसे आविष्कार जोः 1.अनोखा या नया हो 2. सबसे अलग : इसका मतलब है कि आविष्कार पूरी तरह से अलग होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, किसी दवा के किसी तत्व या आकार में बदलाव करके पेटेंट नहीं कराया जा सकता। पेटेंट हासिल करने के लिए आपका आष्किार पूरी तरह से नया होना चाहिए, जो पहले कभी नहीं बना। 3. ऐसे आविष्कार, जो यूजफुल हों। आपका गैजट काम का होना चाहिए और कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा करता हो और जो दावे किए गए हों उन पर यह प्रैक्टिकली खरा उतरता हो।

ऐसे फाइल करें पेटेंट ऐप्लिकेशन : पेटेंट ऐप्लिकेशन में शामिल होते हैं : - एक लिखित डॉक्युमेंट, जिसमें आपके इनवेंशन की खासियतें लिखी होती हैं और घोषणापत्र होता है। अगर जरूरी हो तो ड्रॉइंग भी देना होता है। -10 क्लेम और 30 पेजों में अगर कोई शख्स पेटेंट फाइल करता है तो 1000 रुपये लगते हैं लेकिन अगर ऑर्गनाइजेशन फाइल करता है तो 4000 रुपये लगते हैं। अगर क्लेम 10 से ज्यादा हैं तो किसी शख्स को हर एक्स्ट्रा क्लेम पर 200 रुपये और ऑर्गनाइजेशन को 800 रुपये भरने होंगे। इसी तरह पेजों की संख्या बढ़ने पर हर शख्स से 100 रुपये प्रति एक्स्ट्रा पेज और ऑर्गनाइजेशन को 400 रुपये प्रति एक्सट्रा पेज देने होंगे। - ऐप्लीकेशन फाइल करने से पहले आविष्कार को लेकर पूरी तरह से निश्चिंत हो लें। हर डॉक्युमेंट को तैयार रखें, जरा-सी चूक आपके इंतजार को और बढ़ा सकती है। - पेटेंट जारी होने में 3 साल तक का वक्त लग सकता है। अगर आप पेटेंट एक्सपर्ट नहीं हैं तो पहली बार में पेटेंट ऐप्लिकेशन रिजेक्ट होने की आशंका ज्यादा रहती है, हालांकि इसमें जरूरी सुधार करके आप दोबारा कोशिश कर सकते हैं।

ऐसे मिलता है पेटेंट - आविष्कार करने वाला या उसकी तरफ से नियुक्त कोई भी पेटेंट के लिए ऐप्लिकेशन दे सकता है। अपने ऐप्लीकेशन में अपने इनवेंशन के बारे में पूरी और स्पष्ट जानकारी दें। यह बताएं कि यह किस प्रकार से नया, अनोखा और यूजफुल है। - अगर दो या इससे अधिक लोगों ने मिलकर कोई आविष्कार किया है तो पेटेंट ऐप्लिकेशन पर सभी इनवेंटर्स का नाम लिखा होना चाहिए। - पेटेंट के लिए फाइल किए गए इनवेंटर के ऐप्लिकेशन की पूरी जांच की जाती है। पेटेंट एग्जामिनर यह सुनिश्चित करता है कि ऐप्लिकेशन सभी योग्यताएं पूरी करता हो। - जांच के 18 महीने के भीतर इसे पेटेंट अथॉरिटी अपने वीकली जर्नल और वेबसाइट पर आम लोगों के लिए पब्लिश करके ऑब्जेक्शन का इंतजार करती है। - जिसने पेटेंट का ऐप्लीकेशन दिया है, उसे ऐप्लीकेशन के 48 महीने के भीतर पेटेंट एग्जामिनेशन के लिए रिक्वेस्ट करनी होती है। - संबंधित अधिकारी सभी ऑब्जेक्शन और सवालों को फिर एप्लिकेंट के पास भेज कर जवाब मांगता है। - इसके लिए डॉक्यूमेंट दाखिल करने के लिए 12 महीने का वक्त मिलता है। अगर आप अथॉरिटी को संतुष्ट नहीं कर सके तो ऐप्लीकेशन रिजेक्ट कर दी जाएगी। - यह बात भी याद रखें कि एग्जामिनर द्वारा कोई पहलू छूट जाने की हालत में बाद में भी आपका ऐप्लिकेशन वापस हो सकता है। - खास बात यह है कि पेटेंट रजिस्ट्रेशन के लिए आप एजेंट की मदद भी ले सकते हैं। ध्यान रहे कि ऐसे पेटेंट एजेंट को ही चुनें, जो कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स डिजाइन और ट्रेडमार्क से सर्टिफाइड हो। - आप ऑनलाइन ऐप्लीकेशन भी फाइल कर सकते हैं। इसके लिए www.ipindia.nic.in पर जाकर Patent सेक्शन में जाकर Comprehensive eFiling Services for Patents पर जाएं। - गौरतलब है कि भारत में कराया हुआ पेटेंट दुनिया भर में मान्य नहीं होता। दुनिया के दूसरे देशों में आपको अलग से पेटेंट फाइल करना पड़ेगा। - कुछ देशों के साथ भारत की पेटेंट ट्रीटी है। जिसके तहत आप यहां दी गई पेटेंट ऐप्लीकेशन के साथ ही कोलकाता, चेन्नै, मुंबई और दिल्ली के पेटेंट ऑफिसों में दे सकते हैं। इनकी डिटेल जानकारी www.ipindia.nic.in पर मिल सकती है। - अक्सर देखने को मिलता है कि पेटेंट मिलने की प्रक्रिया के दौरान लोग 'Patent Pending' या 'Patent Applied For' लिख कर काम करते रहते हैं। लेकिन इसकी कोई कानूनी वैधता नहीं होती है। इस पीरियड के दौरान पेटेंट वॉयलेशन को लेकर कोई कानूनी कदम नहीं उठाया जा सकता।

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टीबी से कैसे करें बचाव, क्या हैं लक्षण, जानें सब...

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सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने हाल में खुलासा किया कि एक वक्त वह टीबी से पीड़ित थे और इलाज से पूरी तरह ठीक हो गए। बेशक टीबी किसी को भी हो सकती है लेकिन सही इलाज से यह पूरी तरह ठीक हो जाती है। 24 मार्च यानी गुरुवार को वर्ल्ड टीबी डे है। इस मौके पर टीबी से बचाव और इलाज पर एक्सपर्ट्स से बात करके पूरी जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह:

एक्सपर्ट्स पैनल-

डॉ. के. के. अग्रवाल, सेक्रेटरी जनरल, इंडियन मेडिकल असोसिएशन डॉ. राजकुमार, हेड, एलर्जी एंड इम्युनोलॉजी डिपार्टमेंट, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट डॉ. संदीप नायर, एचओडी, रेस्पिरेटरी मेडिसिन, बी. एल. कपूर हॉस्पिटल डॉ. अतुल मिश्रा, अडिशनल डायरेक्टर, ऑर्थोपीडिक, फोर्टिस

टीबी बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारी है, जो हवा के जरिए एक इंसान से दूसरे में फैलती है। यह आमतौर पर फेफड़ों से शुरू होती है। सबसे कॉमन फेफड़ों की टीबी ही है लेकिन यह ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गला, हड्डी आदि शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। टीबी का बैक्टीरिया हवा के जरिए फैलता है। खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदों से यह इन्फेक्शन फैलता है। अगर टीबी मरीज के बहुत पास बैठकर बात की जाए और वह खांस नहीं रहा हो तब भी इसके इन्फेक्शन का खतरा हो सकता है। हालांकि फेफड़ों के अलावा बाकी टीबी एक से दूसरे में फैलनेवाली नहीं होती और आम विश्वास के उलट यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली बीमारी भी नहीं है।

नुकसान

टीबी का बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में होता है, उसके टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है और इससे उस अंग का काम प्रभावित होता है। मसलन फेफड़ों में टीबी है तो फेफड़ों को धीरे-धीरे बेकार कर देती है, यूटरस में है तो इनफर्टिलिटी (बांझपन) की वजह बनती है, हड्डी में है तो हड्डी को गला देती है, ब्रेन में है तो मरीज को दौरे पड़ सकते हैं, लिवर में है तो पेट में पानी भर सकता है आदि।

लक्षण

2 हफ्ते से ज्यादा लगातार खांसी, खांसी के साथ बलगम आ रहा हो, कभी-कभार खून भी, भूख कम लगना, लगातार वजन कम होना, शाम या रात के वक्त बुखार आना, सर्दी में भी पसीना आना, सांस उखड़ना या सांस लेते हुए सीने में दर्द होना, इनमें से कोई भी लक्षण हो सकता है और कई बार कोई लक्षण नहीं भी होता

कैंसर या ब्रॉन्काइटिस से अलग कैसे टीबी के कई लक्षण कैंसर और ब्रॉन्काइटिस के लक्षणों से भी मेल खाते हैं। ऐसे में यह तय करना डॉक्टर के लिए जरूरी होता है कि इन लक्षणों की असल वजह क्या है। वैसे, तीनों बीमारियों में फर्क बतानेवाले प्रमुख लक्षण हैं:

- ब्रॉन्काइटिस में सांस लेने में दिक्कत होती है और सांस लेते हुए सीटी जैसी आवाज आती है।

- कैंसर में मुंह से खून आना,

- वजन कम होना जैसी दिक्कतें हो सकती है लेकिन आमतौर पर बुखार नहीं आता।

- टीबी में सांस की दिक्कत नहीं होती और बुखार आता है।

किसको खतरा ज्यादा

अच्छा खान-पान न करने वालों को टीबी ज्यादा होती है क्योंकि कमजोर इम्यूनिटी से उनका शरीर बैक्टीरिया का वार नहीं झेल पाता। जब कम जगह में ज्यादा लोग रहते हैं तब इन्फेक्शन तेजी से फैलता है। अंधेरी और सीलन भरी जगहों पर भी टीबी ज्यादा होती है क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया अंधेरे में पनपता है। यह किसी को भी हो सकता है क्योंकि यह एक से दूसरे में संक्रमण से फैलता है। स्मोकिंग करने वाले को टीबी का खतरा ज्यादा होता है। डायबीटीज के मरीजों, स्टेरॉयड लेने वालों और एचआईवी मरीजों को भी खतरा ज्यादा। कुल मिला कर उन लोगों को खतरा सबसे ज्यादा होता है जिनकी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता ) कम होती है।

डायग्नोसिस कैसे

शरीर के जिस हिस्से की टीबी है, उसके मुताबिक टेस्ट होता है। - फेफड़ों की टीबी के लिए बलगम जांच होती है, जोकि 100-200 रुपये तक में हो जाती है। सरकारी अस्पतालों और डॉट्स सेंटर पर यह फ्री की जाती है। - बलगम की जांच 2 दिन लगातार की जाती है। ध्यान रखें कि थूक नहीं, बलगम की जांच की जाती है। अच्छी तरह खांस कर ही बलगम जांच को दें। थूक की जांच होगी तो टीबी पकड़ में नहीं आएगी। - अगर बलगम में टीबी पकड़ नहीं आती तो AFB कल्चर कराना होता है। यह 2000 रुपये तक में हो जाती है। लेकिन इनकी रिपोर्ट 6 हफ्ते में आती है। ऐसे में अब जीन एक्सपर्ट जांच की जाती है, जिसकी रिपोर्ट 4 घंटे में आ जाती है। इस जांच में यह भी पता चल जाता है कि किस लेवल की टीबी है और दवा असर करेगी या नहीं। सरकार ने इस टेस्ट के लिए 2000 रुपये की लिमिट तय की हुई है। कई बार छाती का एक्स-रे भी किया जाता है, जो 200-500 रुपये तक में हो जाता है। किडनी की टीबी के लिए यूरीन कल्चर टेस्ट होता है। यह भी 1500 रुपये तक में हो जाता है। यूटरस की टीबी के लिए सर्वाइकल स्वैब लेकर जांच करते हैं। अगर गांठ आदि है तो वहां से फ्लूइड लेकर टेस्ट किया जाता है। कई बार सीटी स्कैन कराया जाता है, जिस पर 4000 रुपये तक खर्च आता है। - कमर में लगातार दर्द है और दवा लेने के बाद भी फायदा नहीं हो रहा तो एक्सरे-एमआरआई आदि की सलाह दी जाती है। एक्सरे 300-400 रुपये में और एमआरआई 3500 रुपये तक में हो जाती है।

इलाज

टीबी का इलाज पूरी तरह मुमकिन है। सरकारी अस्पतालों और डॉट्स सेंटरों में इसका फ्री इलाज होता है। - सबसे जरूरी है कि इलाज पूरी तरह टीबी ठीक हो जाने तक चले। बीच में छोड़ देने से बैक्टीरिया में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और इलाज काफी मुश्किल हो जाता है क्योंकि आम दवाएं असर नहीं करतीं। - इस स्थिति को MDR/XDR यानी मल्टी ड्रग्स रेजिस्टेंट/एक्सटेंसिवली ड्रग्स रेजिस्टेंट कहते हैं। आमतौर पर हर 100 में 2 मामले MDR के होते हैं। MDR के मामलों में से 7 फीसदी XDR के होते हैं, जोकि और भी नुकसानदे है। - प्राइवेट अस्पतालों में भी इसका इलाज ज्यादा महंगा नहीं है। आमतौर पर दवाओं पर महीने में 300-400 रुपये खर्च होते हैं। लेकिन अगर XDR/MDR वाली स्थिति हो तो इलाज महंगा हो जाता है। - टीबी का इलाज लंबा चलता है। 6 महीने से लेकर 2 साल तक का समय इसे ठीक होने में लग सकता है। जनरल और यूटरस की टीबी का इलाज 6 महीने, हड्डी या किडनी की टीबी का 9 महीने और MDR/XDR का 2 साल इलाज चलता है। - इलाज शुरू करने के शुरुआती 2 हफ्ते से लेकर 2 महीने तक भी इन्फेक्शन फैल सकता है क्योंकि उस वक्त तक बैक्टीरिया एक्टिव रह सकता है। ऐसे में इलाज के शुरुआती दौर में भी जरूरी एहतियात बरतना चाहिए। - मरीज इलाज के दौरान खूब पौष्टिक खाना खाए, एक्सरसाइज करे, योग करे और सामान्य जिंदगी जिए।

बचाव कैसे करें?

अपनी इम्युनिटी को बढ़िया रखें। न्यूट्रिशन से भरपूर खासकर प्रोटीन डाइट (सोयाबीन, दालें, मछली, अंडा, पनीर आदि) लेनी चाहिए। कमजोर इम्युनिटी से टीबी के बैक्टीरिया के एक्टिव होने के चांस होते हैं। दरअसल, टीबी का बैक्टीरिया कई बार शरीर में होता है लेकिन अच्छी इम्युनिटी से यह एक्टिव नहीं हो पाता और टीबी नहीं होती। - ज्यादा भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। कम रोशनी वाली और गंदी जगहों पर न रहें और वहां जाने से परहेज करें। - टीबी के मरीज से थोड़ा दूर रहें। कम-से-कम एक मीटर की दूरी बनाकर रखें। - मरीज को हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहना चाहिए। कमरे में हवा आने दें। पंखा चलाकर खिड़कियां खोल दें ताकि बैक्टीरिया बाहर निकल सके। - मरीज स्प्लिट एसी से परहेज करे क्योंकि तब बैक्टीरिया अंदर ही घूमता रहेगा और दूसरों को बीमार करेगा। - मरीज को मास्क पहनकर रखना चाहिए। मास्क नहीं है तो हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को नैपकिन से कवर कर लेना चाहिए। इस नैपकिन को कवरवाले डस्टबिन में डालें। - ध्यान रखना चाहिए कि मरीज यहां-वहां थूके नहीं। मरीज किसी एक प्लास्टिक बैग में थूके और उसमें फिनाइल डालकर अच्छी तरह बंद कर डस्टबिन में डाल दें। - मरीज ऑफिस, स्कूल, मॉल जैसी भीड़ भरी जगहों पर जाने से परहेज करे। साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी यूज करने से बचे।

बच्चों में टीबी

अगर बच्चों को टीबी हो जाए तो काफी घातक होती है। - इसलिए पैदा होते ही बच्चे को BCG का टीका लगाया जाता है। - बच्चे को टीबी हो जाए तो उसके पूरे शरीर में टीबी फैल सकती है। इसे मिलिएरी (miliary) टीबी कहा जाता है। - बच्चे के दिमाग तक इसका असर हो जाए तो उस स्थिति को मैनेंजाइटिस (manengitis) कहा जाता है। यह स्थित घातक हो सकती है।

महिलाओं में टीबी

अगर किसी महिला को यूटरस की टीबी हो जाए तो उसके मां बनने में दिक्कत आती है। हालांकि सही इलाज होने के बाद वह मां बन सकती है। - प्रेग्नेंट महिला को अगर टीबी है तो आमतौर पर यह बीमारी मां से बच्चे को नहीं लगती। - बच्चे को जन्म के फौरन बाद टीबी से बचाव की दवा भी दी जाती है। - दूध पिलाने वाली मां को भी दवा जारी रखनी होती है। बच्चे को दूध आदि पिलाने के दौरान मां को मुंह ढककर रखना चाहिए ताकि बच्चे को इन्फेक्शन न हो।

मरीज क्या करें?

अगर 3 हफ्ते से ज्यादा खांसी है तो डॉक्टर को दिखाएं। - दवा का पूरा कोर्स करें, वह भी नियमित तौर पर। - खांसते हुए मुंह और नाक पर नैपकिन रखें। - न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खाएं। - बीड़ी सिगरेट, हुक्का, तंबाकू, शराब आदि से परहेज करें।

क्या न करें?

-खुले में न थूकें।

- सिर्फ एक्सरे पर भरोसा न करें।

-कल्चर टेस्ट कराएं।

- डॉक्टर से पूछे बिना दवा बंद न करें।


क्या है DOTS -

डॉट्स (DOTS) यानी 'डायरेक्टली ऑब्जर्व्ड ट्रीटमेंट शॉर्ट कोर्स' टीबी के इलाज का अभियान है। - इसमें टीबी की मुफ्त जांच से लेकर मुफ्त इलाज तक शामिल है। - इस अभियान में हेल्थ वर्कर मरीज को अपने सामने दवा देते हैं ताकि मरीज दवा लेना न भूले। - हेल्थ वर्कर मरीज और उसके परिवार की काउंसलिंग भी करते हैं। साथ ही, इलाज के बाद भी मरीज पर निगाह रखते हैं। - इसमें 95 फीसदी तक कामयाब इलाज होता है। - दिल्ली एनसीआर में 7 डॉट्स सेंटर और 18 डॉट्स कम माइक्रोस्कोपिक सेंटर हैं।

लापरवाही पर सजा टीबी फैलाने पर सजा का भी प्रावधान है। आईपीसी की धारा 269 और 270 के मुताबिक टीबी का सही से इलाज न कराने और इसे दूसरों तक फैलाने के लिए 6 महीने तक की सजा हो सकती है। XDR टीबी फैलाने पर 1 साल तक की सजा हो सकती है।

मिथ

1. टीबी ठीक नहीं होती या लौट आती है टीबी का इलाज पूरी तरह मुमकिन है। जो लोग ठीक नहीं होते, उसकी वजह बीच में इलाज छोड़ना होता है। ऐसे ही लोगों में यह बीमारी लौटकर आती है। लोग यह भी मानते हैं कि अगर घुटने की टीबी है तो घुटना बदलने पर भी दोबारा टीबी हो जाती है। यह भी गलत है। घुटना बदलने पर घुटने में दोबारा टीबी के चांस ज्यादातर नहीं होते।

2. गरीबों में ही होती है यह बीमारी अमिताभ बच्चन जैसे सुपरस्टार को टीबी होना यह साबित करता है कि यह बीमारी किसी को भी हो सकती है। यह एक से दूसरे को लगती है, इसलिए किसी को और कभी भी हो सकती है। गरीबों में होने की वजह है कि उनकी इम्युनिटी कमजोर होती है। ऐसे में वे जल्दी बैक्टीरिया की चपेट में आ जाते हैं।

3. प्रेग्नेंट महिलाओं को दवा नहीं खानी चाहिए टीबी के इलाज का पूरा कोर्स जरूरी है। प्रेग्नेंसी के दौरान भी मां की दवा जारी रखी जाती है। इन दवाओं का बच्चे पर कोई बुरा असर नहीं होता।

4. सरकारी दवाएं ज्यादा असरदार नहीं सरकारी दवाएं और डॉट्स प्रोग्राम भी प्राइवेट अस्पतालों के इलाज की तरह ही असरदार हैं। दवाओं में कोई फर्क नहीं है। उलटे फायदा यह है कि सरकारी अस्पतालों में ये फ्री मिलती हैं। हां, दवाएं पूरी खानी चाहिए। फर्स्ट लेवल की टीबी के ठीक होने के 95 फीसदी तक चांस होते हैं। लेकिन अगर दवा पूरी न खाएं और टीबी सेकंड लेवल पर चली जाए तो ठीक होने के चांस कम होकर 60 फीसदी ही रह जाते हैं।

5. टीबी सिर्फ फेफड़ों की होती है टीबी शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। हालांकि ज्यादा मामले लंग्स की टीबी के होते हैं।



केबीसी के वक्त मुझे थी टीबी कुछ साल पहले मैं टीबी पेशंट था। इस बारे में मैंने कभी खुलकर लोगों के सामने कुछ नहीं कहा लेकिन अब वक्त आ गया है कि मैं सबको इसके बारे में बताऊं। मैं कमजोर महसूस कर रहा था। ब्लड टेस्ट से पता लगा कि मुझे टीबी है। यह 2003 की बात है, जब मैं केबीसी के जरिए अपनी दूसरी पारी शुरू कर रहा था। शूटिंग के पहले दिन पता चला कि मुझे रीढ़ की टीबी है। वह बहुत ही दर्दनाक था। बैठना और लेटना, दोनों ही मुश्किल था। मैं दिन में 8-10 पेनकिलर तक लेता था ताकि शूटिंग पूरी कर सकूं। एक साल के इलाज के बाद मैं पूरी तरह ठीक हो गया। टीबी पूरी तरह ठीक हो सकती है, बशर्ते पूरा इलाज कराएं। मैं खुशनसीब था कि मुझे अच्छा माहौल और बढ़िया खाना मिल सका। - अमिताभ बच्चन, ऐक्टर और 'टीबी फ्री इंडिया' कैंपेन के ब्रैंड ऐंबैसडर

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भारत माता की जय Vs जय हिंद

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क्या भारत माता की जय बोलना देशभक्ति का असली पैमाना है? अगर कोई भारत माता की जय न बोले और जय हिंद या हिंदुस्तान जिंदाबाद कहे तो क्या यह गलत है? इसी मुद्दे पर सोश्ल मीडिया में काफी कुछ लिखा गया है। पेश हैं कुछ विचार:

कहां से आई भारत माता
कहा जाता है कि भारत देश का नाम भारत नामक जैन मुनि के नाम के नाम पर पड़ा। यह भी मान्यता है कि शकुन्तला के बेटे भरत जो बचपन में शेरो के संग खेलकर बड़े हुए, उनके नाम पर देश का नाम भारत पड़ा। यह भी हो सकता है कि राम के भाई भरत के नाम पर भारत नाम पड़ा हो या कृष्ण से 500 साल पहले नाट्यशास्त्र के मशहूर योगी भरत के नाम पर पड़ा हो। जब ये सारे नाम पुल्लिंग हैं तो ये बीच में भारत माता कहां से आ गई?

एक थे अजीमुल्ला खां जिन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर देश के लिए काम किया। आगे चलकर इन्हीं अजीमुल्ला खां ने मादरे वतन भारत की जय का नारा दिया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी मादरे वतन भारत की जय के नारे को मान लिया। बाद में स्वामी दयानन्द ने उन पांच व्यक्तियों को आपसी विमर्श कर संगठित किया, जो आगे चलकर 1857 की क्रान्ति के कर्णधार बने। ये थे: नाना साहेब, अजीमुल्ला खां, बाला साहब, तात्या टोपे, बाबू कुंवर सिंह।

तय किया गया कि फिरंगी सरकार के खिलाफ पूरे भारत देश में सशस्त्र क्रान्ति के लिए आधारभूमि तैयार की जाए। जनसाधारण और आर्यावर्तीय (भारतीय) सैनिकों में इस क्रान्ति की आवाज को पहुंचाने के लिए 'रोटी तथा कमल' की योजना यहीं तैयार की गई। मादरे वतन भारत का नारा भी इस योजना में शामिल किया गया। इस विमर्श में प्रमुख भूमिका स्वामी दयानन्द सरस्वती और अजीमुल्ला खां की ही थी। बाद में यह नारा बंट गया। कांग्रेस में भारत माता की जय, मुस्लिम लीग की सभाओं में मादरे वतन की जय या जय हिन्द। हिन्दू महासभा ने जय हिन्द का नारा पसंद किया जबकि मुस्लिम लीग में मादरे वतन की जय का नारा ही रह गया। इस तरह देखें तो मादरे वतन भारत की जय (भारत माता की जय) नारा हिन्दुओं ने नहीं, मुस्लिमों ने दिया जिसे स्वतंत्रता संघर्ष के समय बिना भेदभाव के हर किसी ने बोला। अब आकर इस नारे को भी विवादित बना दिया गया है।

-आलोक सिन्हा की फेसबुक वॉल से

भारत माता की जय ही क्यों? '
भारत माता की जय' कहने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन यह नारा एक ख़ास विचारधारा के साथ जुड़कर आज अपनी मासूमियत खो चुका है। ऐसा दूसरे नारों के साथ भी हुआ है। जैसे 'जय श्रीराम' भारत में अभिवादन का एक प्रचलित तरीक़ा है वैसा ही जैसा 'सलामु-अलैकुम' है। मगर राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान इसका जैसा इस्तेमाल हुआ और फिर उसका प्रचार हुआ, उससे 'जय श्रीराम' एक युद्धोन्मादी और सांप्रदायिक नारा बन गया।

बाबरी मस्जिद ढहने के बाद कई हिंदुत्ववादी कहते थे, 'जय श्रीराम, हो गया काम'। इसीलिए आज कोई 'जय श्रीराम' कहता है, तो वह एक हिंसक और नफ़रतभरी विचारधारा के समर्थन में दिया गया सल्यूट लगता है जबकि कृष्ण से जुड़े अभिवादन 'जय श्री कृष्ण' या 'राधे-राधे' अभी भी अपना निष्कलंक चरित्र बनाए हुए हैं। इसी तरह 'अल्लाहो अकबर' का नारा ग़ैर-मुस्लिमों में भय का संचार करता है क्योंकि यह भी दंगों के दौरान युद्धोन्मादी नारे के तौर पर इस्तेमाल होता है।

'भारत माता की जय' के साथ भी वैसा ही कुछ है। जन्मभूमि को मातृभूमि या पितृभूमि कहनेवाले कई देश हैं। लेकिन भारत के मामले में अंतर यह है कि हमने यहां उसे एक स्त्री का मूर्त रूप दे दिया है। यहां तक होता तो भी चलता, मगर गड़बड़ी यह हुई कि हमने तो उसे देवी बना दिया है जो कि हिंदू धर्म में आम बात है। भारत को भी एक देवी का रूप दे दिया जिसके हाथ में तिरंगा झंडा है।

यही नहीं, कई जगहों पर तो इस भारत माता के हाथ में केसरिया झंडा है। यही मुसलमानों को खलता है क्योंकि वे अल्लाह के अलावा किसी देवी-देवता की इबादत नहीं कर सकते। कोई इस बात पर अड़ जाए कि 'जय हिंद' के नारे मेरी देशभक्ति साबित करने के लिए काफ़ी नहीं हैं और 'भारत माता की जय' कहने पर ही मुझे मेरी देशभक्ति का सर्टिफ़िकेट मिलेगा तो मैं ढीठ होकर कहना चाहूंगा, मुझे देशभक्ति का ऐसा सर्टिफ़िकेट नहीं चाहिए। कोई सुप्रीम कोर्ट चला जाए तो वहां भी यही निर्णय आएगा कि देशभक्तों की लिस्ट में अपना नाम लिखाने के लिए 'भारत माता की जय' कहना अनिवार्य नहीं है।

-नीरेंद्र नागर की फेसबुक वॉल से

भारत और भारत माता का फर्क
भारत और भारत माता में क्या अंतर है? देश को लेकर थोपी हुई एक अवधारणा दरअसल हमें कुछ और बना रही है। हम अपने भारत को ठोस ढंग से समझने की जगह, उसकी समस्याओं और उसके संकटों से जूझने की जगह, भारत माता की एक काल्पनिक मूर्ति बनाकर अपनी विफलताएं छिपाने का काम कर रहे हैं।

भारत की हमारी कल्पना में एक भारत माता भी होनी चाहिए। देश कागज़ का नक्शा नहीं होता। उसके साथ हमारा एक भावुक रिश्ता होता है। पर यह समझना ज़रूरी है कि भारत माता का बार-बार नाम लेकर हम न भारत माता का सम्मान बढ़ाते हैं न भारत की शक्ति। यह ठीक वैसा ही है, जैसे हम वक़्त की पाबंदी या सच्चाई या अहिंसा को लेकर रोज़ महात्मा गांधी के सुझाए रास्ते की अनदेखी करते हैं, और रोज़ उन्हें बापू बताते हैं। इससे महात्मा गांधी की इज्जत बढ़ती नहीं, कुछ कम ही होती है।

भारत या भारत माता की इज्जत का मामला भी यही है। जब हम एक सहिष्णु लोकतंत्र होते हैं, तो देश बड़ा लगता है। जब हम एक कट्टर समाज दिखते हैं, तो देश छोटा हो जाता है। जब हम दंगों में ख़ून बहाते हैं, तो भारत माता शर्मिंदा होती है, जब हम बाढ़ और सुनामी में लोगों की जान बचाते हैं, तो भारत माता की इज़्ज़त बढ़ती है।

यह भारत यथार्थ है - भारत माता कल्पना है। यह एक आदर्श भारत की कल्पना है - वैसे देश की, जिसमें कोई रोग-शोक, दुख-मातम, झगड़े-विवाद न हों। ऐसी भारत माता के लिए हर किसी के मुंह से जय निकलेगी लेकिन यह ज़रूरी है कि इस भारत को हम भारत मां के आदर्शों के अनुरूप ढालें। भारत माता का नाम लेने वाला बड़ा तबका जैसे हर किसी की परीक्षा लेने पर तुला है। वह भारत माता को एक ऐसे नारे, एक ऐसी छड़ी में बदलता है, जिससे उन लोगों की पिटाई हो सके, जो भारतीय राष्ट्र राज्य के अलग-अलग तत्वों के ख़िलाफ़ असंतोष जताते हैं।

-प्रियदर्शन की फेसबुक वॉल से

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अब घर पर ही पाएं सेहत से जुड़ी सारी शंकाओं का समाधान

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सेहत का कोई भरोसा नहीं। कभी हाई बीपी दबे पांव आकर हमला करता है तो कभी शुगर लेवल परेशान करने लगता है। बेशक इन पर नजर रखने की जरूरत होती है और इसके लिए टेस्ट जरूरी है लेकिन हर वक्त डायग्नॉस्टिक सेंटर जाना मुमकिन नही। ऐसे में आप में ही कुछ गैजट्स की मदद से जान सकते हैं आनी सेहत का हाल। हेल्थ के साथी कुछ ऐसे ही गैजट्स के बारे में एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं अमित मिश्रा-

BP monitor से बीपी पर रखें नजर-

इस वक्त मार्केट में कई कंपनियों की बीपी मॉनिटरिंग डिवाइसेज उपलब्ध हैं। इनके जरिए बीपी को आसानी से नापा जा सकता है। यह डिवाइस उनके लिए काफी कारगर है जिनके बीपी लेवल में तेजी से बदलाव आता रहता है।

ऐसे चुनें- मार्केट में कई तरह के डिजिटल बीपी मॉनिटर आ रहे हैं जो इस्तेमाल में काफी आसान हैं। फिर पुरानी तकनीक पर चलने वाले मरकरी बीपी मॉनिटर आगे जाकर बंद होने वाले हैं इसलिए बेहतर है कि अच्छी क्वॉलिटी का डिजिटल मॉनिटर लें। मार्केट में कलाई पर बांध कर बीपी नापने के मॉनिटर भी उपलब्ध हैं, लेकिन आप वही बीपी मॉनिटर खरीदें जिनमें बांह में लगा कर मॉनिटर करने का ऑप्शन दिया गया हो। इससे सटीक रीडिंग मिलती है।

ध्यान रहे कि बीपी मॉनिटर वही खरीदें जिन्हें क्लिनिकली वैलिडेट किया गया हो। फिलहाल हमारे देश में डिवाइसेज वैलिडेट करने की कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए ब्रिटिश या कनेडियन हाइपरटेंशन सोसायटी की वैलिडेट की हुई डिवाइस खरीदें। वैलिडेट करने वाली कंपनी का नाम मॉनिटर पर नीचे की तरफ लगे स्टिकर पर दिया होता है। जब भी मॉनिटर खरीदें अपने हिसाब से सही कफ साइज लें। कफ साइज सही न होने से यह बांह पर सही तरीके से फिट नहीं होगा और सटीक बीपी नहीं नापा जा सकेगा। अमूमन 22-32 सेमी या 8.8-12.8 इंच कफ साइज के मॉनिटर आते हैं जो कि मीडियम साइज है। स्मॉल (18-22 सेमी या 7.1-8.7 इंच) या लार्ज (32-45 सेमी 12.8-18 इंच) वाले साइज मार्केट में कम मिलते हैं लेकिन स्पेशल ऑर्डर पर मंगाए जा सकते हैं।

अपने मॉनिटर को भी डॉक्टर के पास ले जायें और इसके रिजल्ट को डॉक्टर के मानिटर के रिजल्ट से मिलाएं। अगर आपको लगता है कि रिजल्ट आस-पास है तब ठीक अगर ऐसा नहीं है तो अपने मानिटर को बदलें। अच्छी क्वॉलिटी का मॉनिटर ही लें। सस्ते मॉनिटर सही रीडिंग नहीं देते और भ्रम पैदा कर सकते हैं।

ऐसे रहेगी रीडिंग फिट- एक बात याद रखें कि मॉनीटर के अच्छे होने से जरूरी है बीपी नापने के सही तरीके को जानना। मशीन के इस्तेमाल से पहले जांच लें कि सेल सही हैं या नहीं। सेल कमजोर होने पर रीडिंग गलत आ सकती है। मशीन को वक्त-वक्त पर इस्तेमाल करते रहें। अगर इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो सेल निकाल कर बाहर रख दें। वरना सेल लीक होकर मशीन को खराब कर सकते हैं। कफ को सही जगह पर रखें। बांह की शुरुआत में जहां पर कोहनी की आर्टरी होती है पर हाथ रखने पर नब्ज महसूस हो। वहां पर कफ का निचला हिस्सा रखें। कफ को न ज्यादा टाइट करें और न ज्यादा ढीला रखें। हर बार ली गई रीडिंग को बिना झिझक के एक डायरी में दर्ज करें। अक्सर लोग घर वालों या डॉक्टर के सख्त उपायों से बचने के लिए अपनी बुरी रीडिंग्स नोट नहीं करते। ऐसा न करें। आपकी ईमानदार मॉनिटरिंग ही आपको फिट रखेगी।

नॉर्मल बीपी- नॉर्मल ब्लड प्रेशर 120/80 (सिस्टोलिक में 120 से कम और डायस्टोलिक में 80 से कम) होता है। ज़्यादातर लोग जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर है, उनका ब्लड प्रेशर 130/80 या उससे कम होना चाहिए। अब जाएं डॉक्टर के पास अगर मॉनिटर सबकुछ ठीक बता रहा है लेकिन फिर भी ये परेशानियां हैं तो डॉक्टर के पास जाएं, जैसे- सिरदर्द होना, वॉमिटिंग, चक्कर आना, घबराहट महसूस होना।

ऐसा न करें- किसी भी तरह के घरेलू टोटके ट्राई न करें। खुद कोई ट्रीटमेंट न करें। डॉक्टर की सलाह पर ही डोज घटाएं-बढ़ाएं न कि मॉनिटर की रीडिंग के हिसाब से।

कौन-सा खरीदें- ये तीन बेहतर ऑप्शन हो सकते हैं: Omron HEM 7201 BP Monitor - 2900 रुपये तकरीबन
Equinox EQ-BP 54 - 2000 रुपये तकरीबन
Dr Morepen BP One BP09 - 2500 रुपये तकरीबन

Heart Rate monitor: हार्ट रेट नापने के लिए अलग डिवाइस लेने की जरूरत नहीं होती क्योंकि अब बीपी मॉनिटर में ही हार्ट रेट नापने का ऑप्शन होता है। इसके अलावा, आजकल स्मार्टवॉच और फिटनेस बैंड भी हार्टरेट मॉनिटर से लैस होने लगे हैं। इनके जरिए हेल्दी लोगों के साथ-साथ बीपी के पेशंट्स भी हार्ट रेट पर रेग्युलर नजर रख सकते हैं। हो जाएं अलर्ट - हेल्दी इंसान में किसी भी तरह की फिजिकल ऐक्टिविटी करते ही हार्ट रेट बढ़ जाता है और अपने आप नीचे आ जाता है लेकिन बीपी या हार्ट पेशंट्स के साथ ऐसा नहीं होता और परेशानी ज्यादा बढ़ सकती है।

अमूमन 70-90 का हार्ट रेट नॉर्मल होता है, लेकिन अगर हार्ट की परेशानी वाले किसी इंसान को कभी भी रीडिंग 100 के आसपास पहुंचती नजर आए तो उसे सतर्क हो जाना चाहिए। ऐसे में रेस्ट लेकर डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

ये हो सकते हैं ऑप्शन- वैसे तो हर बीपी मॉनिटर में हार्ट रेट मॉनिटर होता है लेकिन अब स्मार्टबैंड में काफी अच्छी क्वॉलिटी के हार्ट रेट मॉनिटर मौजूद होते हैं।
Apple watch - 30 हजार रुपये
Fitbit surge - 19,990 रुपये
TomTom Spark - 20 हजार तकरीबन

Glucometer: डायबीटीज के पेशंट्स अगर शुगर पर पैनी नजर बनाए रखें तो खतरे को काफी हद तक टाल सकते हैं। घर पर ही शुगर लेवल नापने के लिए मार्केट में कई अच्छे ग्लूकोमीटर मौजूद हैं।

ऐसे चुनें- ग्लूकोमीटर ऐसा लें जिसे इस्तेमाल करने का तरीका आसान और सुविधा जनक हो। ग्लूकोमीटर में एक खास तरह की स्ट्रिप पर खून की बूंद गिरा कर ब्लड शुगर को नापा जाता है। बाजार में दो तरह के ग्लूकोमीटर आते हैं। एक में स्ट्रिप ग्लूकोमीटर के भीतर ही होती है जिसे खत्म हो जाने पर बदलना पड़ता है। दूसरे तरह के ग्लूकोमीटर में टेस्ट स्ट्रिप अलग से होती है जिस पर ब्लड की बूंद गिराने के बाद स्ट्रिप को ग्लूकोमीटर के भीतर डाला जाता है। ग्लूकोमीटर लेने से पहले इसमें डेटा स्टोरेज का भी पता करें। जितनी ज्यादा स्टोरेज होगी उतना ज्यादा डाटा सेव रखने की सुविधा और उतनी ही सहूलियत भी होगी।

ऐसा ग्लूकोमीटर लें जिसे कंप्यूटर से कनेक्ट करने का फीचर भी हो। इससे अपने रेकॉर्ड कंप्यूटर में आसानी से ट्रांसफर कर सकते हैं। ऐसा ग्लूकोमीटर खरीदें जो काफी छोटे ब्लड सैंपल से भी टेस्ट ले सकें। जितना कम ब्लड निकालना होगा उतना ही दर्दरहित टेस्ट होगा।

ग्लूकोमीटर छोटे साइज का लें। जितना कॉम्पैक्ट इसका साइज होगा उतना इसे पॉकेट या पर्स में रखना उतना ही आसान होगा। कई ऐसे ग्लूकोमीटर भी आते हैं जिसमें रीडिंग को सुना भी जा सकता है। बढ़ती उम्र के लोगों के लिए यह काफी सहूलियत भरा रहता है।

ऐसे रहेगी रीडिंग फिट- सेल वक्त-वक्त पर बदलें। इस्तेमाल न होने पर सेल निकाल दें। टेस्टिंग स्ट्रिप को किसी एयर टाइट बॉटल में रखें। मॉइश्चर की वजह से रिजल्ट गलत आ सकते हैं। इस्तेमाल से पहले अपने डॉक्टर से मिल कर अपने शुगर लेवल की बेसलाइन सेट कर लें। इसके बाद ही शुगर चेक करें और रीडिंग के हिसाब से ऐक्शन लें। मशीन का मेंटनेंस सही रखें। अगर कोई परेशानी हो रही है तो इसे सर्विस सेंटर से दिखा कर ठीक करवाने के बाद ही इस्तेमाल करें। नॉर्मल रीडिंग फास्टिंग में 70-110 और खाने के बाद 100-140 खतरे की घंटी, ग्लूकोमीटर की रीडिंग अगर 70 से कम या 300 से ऊपर दिख रही है तो फौरन डॉक्टर के पास ले जाएं। शुगर लेवल अगर 45-50 के नीचे और 40-500 तक ऊपर निकले तो स्थिति काफी गंभीर होती है। पेशंट कोमा में जा सकता है। तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। शुगर लेवल काफी नीचे जाने पर सबसे पहले कुछ खिलाएं। हो सके तो मीठा और खिलाएं फिर डॉक्टर के पास ले जाएं।

अब जाएं डॉक्टर के पास- ग्लूकोमीटर भले ही रीडिंग नॉर्मल दे रहा हो लेकिन इन लक्षणों के दिखने पर फौरन डॉक्टर के पास ले जाएं, जैसे- बार-बार और ज्यादा पेशाब होना, ज्यादा भूख लगना, शरीर में दर्द होना।

ऐसा न करें- खुद कोई दवा न लें डॉक्टर से सलाह पर ही एक्शन लें। भले ही शुगर घर पर नापने में सही लेवल पर दिखाए, लेकिन डॉक्टर के पास रेग्युलर विजिट जारी रखें।

कौन सा खरीदें-
Accu-Chek Active Glucose Monito-
1900 रुपये तकरीबन
Omron HGM-112 Glucometer- 1000 रुपये तकरीबन
One Touch Select Simple Blood Glucose monitoring System- 1200 रुपये तकरीबन

Thermometer: ये शायद सबसे कॉमन डायग्नॉस्टिक डिवाइस है जो घरों में पाई जाती है। हमेशा अच्छी कंपनी का मजबूत डिजिटल थरमॉमिटर चुनें। अगर हाथ में लेते ही प्लास्टिक की क्वॉलिटी हल्की और रफ लगे तो उसे न लें। ऐसा थरमॉमिटर चुनें जो मुंह, आर्मपिट या फोरहेड से टेंपरेचर जांच सके। अच्छी बैटरी लाइफ वाला थरमॉमिटर खरीदें। डिस्प्ले ज्यादा चमकदार या बैकलाइट के साथ न लें वरना बैटरी बहुत जल्दी खर्च हो जाएगी। मार्केट में कई तरह के डिजिटल थरमॉमिटर मिलते हैं।

बाजार में मिलते हैं ये थरमॉमिटर- माउथ थरमॉमिटर (मुंह में लगा कर इस्तेमाल करने वाले), पेसिफायर थरमॉमिटर (बच्चों के मुंह में चूसने के लिए डाले जा सकने वाले), ईयर थरमॉमिटर (बच्चों के कान में लगा कर टेंप्रेचर जांचने वाले), इंफ्रारेड थरमॉमिटर (दूर से टेंप्रेचर नापने वाले) बच्चों के लिए आने वाले थरमॉमिटर अमूमन 3 महीने से 3 साल तक के बच्चों पर ही कारगर होते हैं। इससे बड़े बच्चों के लिए साधारण तौर पर इस्तेमाल होने वाले थरमॉमिटर इस्तेमाल किए जा सकते हैं।

ऐसे रहेगी रीडिंग सही- टेंपरेचर लेने से पहले डिस्प्ले पर बैटरी की पोजिशन देखें। अगर लो बैटरी का सिग्नल आ रहा है तो ट्रेंपरेचर के गलत होने की संभावना रहती है। आर्मपिट के मुकाबले मुंह में रख कर टेंपरेचर नापना ज्यादा सटीक होता है। अगर आर्मपिट से टेंपरेचर नापते हैं तो नापे गए टेंप्रेचर में 1 डिग्री और जोड़ लें। मुंह या आर्मपिट में थरमॉमिटर रख कर 1-2 मिनट तक बिना हिलाए रखें। उसके बाद ही हटाएं। कुछ भी खाने के तकरीबन आधा घंटा बाद ही थरमॉमिटर मुंह में लगाएं वरना टेंपरेचर सही नहीं आएगा।कान में लगा कर और दूर से टेंप्रेचर लेने वाले इंफ्रारेड थरमॉमिटर साधारण डिजिटल थरमॉमिटर से ज्यादा एक्युरेट नहीं होते। कब नॉर्मल वैसे तो नॉर्मल टेंपरेचर 98.6 फॉरेनहाइट होता है लेकिन अगर 100 तक रीडिंग आ रही है तो घबराने की जरूरत नहीं है। घर में मौजूद आम दवाओं से ही इसे कंट्रोल किया जा सकता है। अब जाएं डॉक्टर के पास - अगर थरमॉमिटर नॉर्मल बता रहा है लेकिन शरीर फिर भी तेज गरम है तो डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

ठंड के मौसम में गरम कपड़े पहनने के बाद भी ठंड न जाए और गरमी के मौसम में पंखा-एसी न चलने पर भी पसीना न आए तो डॉक्टर के पास जाएं। अगर टेंपरेचर 103 या 104 आ रहा है तो मामला गंभीर है और आम दवाओं से काबू में लाने की कोशिशें छोड़ कर डॉक्टर के पास ले जाएं। एहतियात के तौर पर टेंपरेचर कम करने के लिए ठंडी पट्टियां रखी जा सकती हैं। इससे टेंपरेचर तेजी से नीचे आ जाता है। सब नॉर्मल हो और पल्स फिर भी काफी तेज हो तो इसे डॉक्टर के पास जाने की निशानी समझें।

ऐसा न करें- बच्चों को तेज बुखार होने पर नॉर्मल होने का इंतजार न करें, फौरन डॉक्टर के पास ले जाएं।

कौन-सा खरीदें-
Omron Digital Thermometer Pencil (MC-246)- 199 रुपये तकरीबन
Dr Morepen Digital Thermometer (MT-101)- 190 रुपये तकरीबन
Braun Digital Thermometer IRT 3020- 4 हजार तकरीबन

Pregnancy Test Kit- अच्छे ब्रैंड की प्रेग्नेंसी टेस्ट किट खरीदें। हो सके तो किसी गाइनी डॉक्टर से इसके लिए राय ले सकते हैं। खरीदने से पहले ताकीद कर लें कि जो किट आपको दी गई हो उसे ठंडी जगह पर रखा गया हो और एक्सपाइरी डेट से पहले की हो। देख लें कि बॉक्स की सील कहीं से टूटी न हो। इस्तेमाल करने से पहले बॉक्स पर इस्तेमाल के लिए दिए गए इंस्ट्रक्शन को ध्यान से पढ़ें। अगर कुछ समझ में न आए तो बॉक्स पर दिए गए नंबर या वेबसाइट पर जाकर पता करें।

ऐसे मिलेगी सही रीडिंग- प्रेग्नेंसी को महिलाओं के शरीर में प्रेग्नेंसी के दौरान एक खास हॉर्मोन hCG के बढ़े लेवल से पता किया जाता है। इसका लेवल सुबह के वक्त यूरिन में सबसे ज्यादा होता है इसलिए टेस्ट स्ट्रिप के जरिए जांच करने का यह सबसे अच्छा वक्त होता है। यूरिन को बताई गई सही जगह पर ही डालें। मेंसेस के मिस होते ही जितनी जल्दी टेस्ट किया जाए उतने सटीक रिजल्ट आने के चांस रहते हैं। किट को मॉइश्चर से बचा कर रखें। किसी एयरटाइट डिब्बे में रखना बेहतर ऑप्शन हो सकता है।

अब जाएं डॉक्टर के पास- कन्फर्म होने के लिए दोबारा टेस्ट कर सकते हैं। मेंसेस रुकने के बाद भी अगर प्रेग्नेंसी टेस्ट नेगेटिव आता है तो डॉक्टर के पास जाएं। इसकी कोई और वजह भी हो सकती है। लंबे मेडिकेशन, काफी कम वजन, हॉर्मोनल चेंजेज के वक्त भी सिर्फ प्रेग्नेंसी टेस्ट पर भरोसा न करें, डॉक्टर से सलाह लें। 20-40 की उम्र में किए गए टेस्ट सटीक होते हैं। इससे ज्यादा या कम उम्र में किट की मदद से टेस्ट गलत होने के चांस रहते हैं।

ऐसा न करें- प्रेग्नेंसी का टेस्ट पॉजिटिव आने पर परेशान न हों और गाइनी डॉक्टर के पास आगे की सलाह के लिए जाएं। अबॉर्शन के लिए खुद कोई दवा न लें। अबॉर्शन के लिए डॉक्टर के पास जाएं। घरेलू टोटकों से बचें।

कौन सी खरीदें-
Prega News Pregnancy Kit-
150 रुपये तकरीबन
I-Can Pregnancy Test Kit- 80 रुपये तकरीबन
velocit pregnancy kit- 98 रुपये तकरीबन

Weighing Scale: हेल्दी लाइफ स्टाइल के लिए वजन कंट्रोल में रखना बहुत जरूरी है। हमेशा वजन पर नजर रखने के लिए घर पर वजन नापने की मशीन रखना एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है।

ऐसे चुनें- अपनी सहूलियत के मुताबिक मैन्युअल या डिजिटल मशीन खरीदने का ऑप्शन चुन सकते हैं। मैन्युअल मशीन काफी टफ होती है, लेकिन उसमें वजन आधा एक किलो ऊपर नीचे जा सकता है। हालांकि डिजिटल मशीनों में ऐसी दिक्कत नहीं होती, लेकिन वे कुछ नाजुक होती हैं और रफ हैंडलिंग सह नहीं पातीं। ज्यादा चमक-दमक से बेहतर है मशीन के ऑप्शन पर ध्यान दें। अगर पिछले वजन के मुकाबले वजन का अंतर बताने वाली मशीन उपलब्ध है तो वह लें। अब ऐसी मशीन भी आने लगी है जो आपके वजन को एक ऐप के जरिए मोबाइल में अनैलिसिस के लिए भेजी जा सकती है। यह काफी अच्छा ऑप्शन है।

ऐसे मिलेगी सही रीडिंग- मशीन को एक ही जगह पर रखें। इससे कैलिबरेशन बरकरार रहेगा और मशीन गलत रीडिंग नहीं देगी। मशीन को साफ सुथरा रखें और नमी से बचाएं। अगर यूज में न आ रही हो तो सेल निकाल दें। एक ही वक्त में एक जैसे पहनावे के साथ ही वजन करें। बेहतर होगा इसे इस्तेमाल के बाद डिब्बे में स्विच ऑफ करके पैक कर दें। इससे मशीन की हालत सही रहेगी और यह लंबे वक्त तक काम देगी।

अब जाएं डॉक्टर के पास- अगर वजन तेजी से गिरे (हफ्ते में 1-2 किलो) या बढ़े (हफ्ते में 2-3 किलो) तो डॉक्टर से कंसल्ट करें। कब और कितना वजन मेंटेन करना है, क्या खाना है क्या नहीं, इसके बारे में डॉक्टर या डायटिशन से मिल कर ही कोई फैसला करें। खुद फैसले लेना सेहत पर भारी पड़ सकता है।

ऐसा न करें- मशीन को झटके से इधर-उधर न सरकाएं और न ही इसे झटके से रखें। बच्चों की पहुंच से दूर रखें वरना जल्दी टूटने का चांस रहता है।

कौन सी खरीदें-

HealthSense PS 126 Ultra-Lite Personal Scale-
2000 रुपये तकरीबन
Omron HN-286 Digital Weight Scale- 2000 रुपये तकरीबन
Equinox BR-9201 Analog Weighing Scale- 1000 रुपये तकरीबन

एक्सपर्ट पैनल- डॉ. केके अग्रवाल, डॉ. अनिल बंसल, डॉ. विवेका कुमार

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जिंदगी को लगाएं गले, दूर भगाएं डिप्रेशन

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जिंदगी बहुत खूबसूरत है, लेकिन यह भी सच है कि इसमें लगातार उतार-चढ़ाव लगे रहते हैं। कई मौकों पर हम खुद को बेबस पाते हैं। ऐसे ही एक कमजोर पल में कई दफा लोग जिंदगी से मुंह मोड़ने जैसा फैसला कर बैठते हैं।

टीवी की मशहूर ऐक्ट्रेस प्रत्यूषा बनर्जी ने भी ऐसे ही किसी पल में जान देने का फैसला किया होगा। जिंदगी के कमजोर लम्हों को कैसे झेलें, इस बारे में पेश हैं तमाम टिप्स:
दुनिया भर में सूइसाइड के मामले बढ़ रहे हैं और इस मामले में हिंदुस्तान की तस्वीर भी बहुत अच्छी नहीं है। तमाम वजहों से अपने यहां आत्महत्या के मामले बढ़े हैं लेकिन इसे रोकने की जरूरत है।

क्या हैं सूइसाइड की वजहें -
सूइसाइड प्रिवेंशन के लिए काम कर रही संस्थाओं के मुताबिक, सूइसाइड की तमाम वजहें होती हैं। मोटे तौर पर इन्हें 3 तरीके से देखा जा सकता है। सामाजिक, आर्थिक व मेडिकल। - सामाजिक कारणों में सबसे अहम चीज है रिलेशनशिप जिसमें अफेयर, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर व शादीशुदा जिंदगी से संबंधित वजहें होती हैं। इसके अलावा, परिवार, मित्रों और जान पहचान वालों के साथ आने वाली दिक्कतों के चलते भी लोग यह कदम उठाते हैं। - आर्थिक कारणों में बिजनेस का डूबना, नौकरी छूटना, आय का साधन न होना, कर्जे जैसी चीजें आती हैं। - मेडिकल कारणों में लाइलाज शारीरिक व मानसिक बीमारी, गहरा डिप्रेशन व बुढ़ापा जैसी तमाम वजहें होती हैं।

सिग्नल पहचानने की जरूरत -
सूइसाइड करने वाला हर व्यक्ति ऐसा कदम उठाने से पहले अपने आपपास के लोगों को कई तरह के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सिग्नल या संकेत देता है। थोड़ा सचेत और संवेदनशील रहकर इन संकेतों को पकड़ा जा सकता है और उसकी मनोस्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस क्षेत्र में काम कर रही एक वॉलंटियर वर्षा का कहना है कि कोई भी इंसान मरना नहीं चाहता। इंसान बेहद मजबूरी में अपने जीवन को खत्म करने का फैसला लेता है। हर आत्महत्या करने वाला 'क्राइ फॉर लास्ट हेल्प' की तलाश में रहता है। वह चाहता है कि कोई उसकी आखिरी पुकार को सुने। अगर वक्त रहते किसी ने उसकी पुकार को सुनकर समझ लिया और मदद कर दी तो जिंदगी बचाई जा सकती है। हालांकि इन संकेतों को पकड़ने के साथ-साथ आपको उस व्यक्ति की मनोस्थिति और गतिविधियों पर भी गौर करना होगा।

ये हो सकते हैं सिग्नल -
जिंदगी के प्रति अनिच्छा जताना, मरने की बात करना, अचानक बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण कामों को निपटाने लगना। लोगों के बीच अचानक गुडबाय या अलविदा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना या इसके मेसेज भेजना, इन्हें अपना स्टेटस बनाना वगैरह। इसी के साथ ही अपनी चीजों के प्रति विरक्ति का भाव दिखाना। अचानक कोई व्यक्ति बिना वजह अपने सबसे प्यारी चीज किसी को भी यूं ही दे दे। मनपसंद कामों, रुचियों और पसंदीदा चीजों के प्रति भी अनिच्छा का भाव दिखाना, उनकी अनदेखी करना या उनसे लगाव कम होना।

अपनों का साथ अगर उस व्यक्ति के आसपास रह रहे लोग, मित्र, परिचित व रिश्तेदार इन संकेतों को समझ लेते हैं तो अनहोनी को टाला जा सकता है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि संवेदनशील बनकर, परेशान व्यक्ति की पूरी बात सुनकर, खुद को उसकी जगह रखकर देखने से आप उसकी बात समझ सकते हैं। अगर आपको किसी व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिखें तो उसे सलाह देने से या सूइसाइड का ख्याल अपने दिल से निकालने के लिए डांटने या किसी और तरीके से यह बात समझाने की कोशिश कभी न करें।

कई बार लोग परिवार या बच्चों का वास्ता देकर ऐसा करने से रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन सूइसाइड पर आमादा व्यक्ति ऐसी किसी भी चीज को सुनने के मूड में नहीं होता। कई बार वह ऐसे हालातों में और अपने भीतर सिमटने लगता है और भीतर ही भीतर उसके मन में सूइसाइड का खयाल और गहराने लगता है। ऐसे में महत्वपूर्ण है कि बिना जजमेंटल हुए पीड़ित व्यक्ति की बात सुनी जाए। अकसर कोई भी व्यक्ति मुसीबत में अपने लोगों या अपने आसपास के लोगों से कम्युनिकेट करता है या करने की कोशिश करता है, लेकिन जब उसे वहां से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिलता तो वह अपने में सिमटने लगता है। तब वह सूइसाइड जैसे विकल्प की ओर कदम बढ़ता है। अपनों के लिए वक्त निकालिए। खासकर अगर आपके पास कोई परेशान व्यक्ति या द्वंद्व से गुजरता व्यक्ति हो तो उससे बात कीजिए। बात करते समय ध्यान रखें कि उससे ऐसी कोई बात या सवाल न करें, जिससे वह उत्तेजित हो या बातचीत से पीछे हटे। उसका भरोसा जीतने की कोशिश कीजिए तो उसकी सच्ची मदद होगी।

मदद के हाथ -
सूइसाइड रोकने की दिशा में तमाम संस्थाएं काम कर रही हैं। 'बीफ्रेंडर्स इंडिया', मेंटल हेल्थ की दिशा में काम कर रही 'संजीवनी' जैसी तमाम संस्थाएं भी सूइसाइड से जुड़ी समस्याओं पर काम कर रही हैं। दिल्ली में 'सुमैत्री' नाम से चल रही संस्था के लोग फोन, ईमेल व पर्सनल विजिट के जरिए लोगों से मिलकर उनका दर्द सुनते हैं और उन्हें मौत की तरफ से जिंदगी की तरफ लौटने के लिए प्रेरित करते हैं। 'सुमैत्री' की प्रेजिडेंट अपर्णा बताती हैं कि यह काम काफी संवेदनशील, जिम्मेदारी भरा और विश्वास से जुड़ा है। इसमें मदद मांगने वाले को कॉलर या विजिटर्स कहा जाता है। अपर्णा का कहना था कि हम संपर्क करने वाले को न तो पेशंट मानते हैं, न कस्टमर, न क्लाइंट और न ही केस। हमारे लिए वह सिर्फ कॉलर या विजिटर्स होते हैं।

कॉलर्स हेल्पलाइन नंबर पर फोन करके, ईमेल के जरिए या इनके ऑफिस में आकर मदद मांगते हैं। सुमैत्री के लिए काम करने वली मृदुला कहना था कि हमारा असली काम परेशान व्यक्ति को ध्यान से सुनना है। उनका दुख और तकलीफें साझा करना है, जिससे उनके मन का गुबार निकल जाए और वह अपने भीतर हल्कापन महसूस कर सकें। इसी बातचीत में उन्हें अपनी समस्या के हल खुद सूझने लगते हैं। इस दौरान न हम उनसे ज्यादा सवाल पूछते हैं और न ही कोई सलाह देते हैं। किसी को सलाह देने का मतलब है कि हम उसकी बुद्धिमत्ता को कम करके आंक रहे हैं। अपर्णा के मुताबिक कोई भी कॉलर जब हमसे संपर्क करता है तो उसकी हालत हमारे लिए धुंध से भरे चौराहे जैसी होती है, जिसे यह पता तो होता है कि यहां से कई रास्ते निकलते हैं, लेकिन वह इन रास्तों को देख नहीं पाता।

इन संस्थाओं के एक्सपर्ट का काम उसे रास्ता बताना नहीं, बल्कि धुंध छंटने होने तक उसका हाथ थामना है। उधर संजीवनी में सूइसाइड मामलों में रोकथाम संबंधी काउंसिलिंग से जुड़ी रंजीत बासु बताती हैं कि उनके पास सूइसाइड से जुड़े मामलों में मदद मांगने वाले लोगों में सूइसाइड करने के इच्छुक लोगों के अलावा कई बार परिवारवाले और मित्र भी होते हैं। सुसाइड की ओर बढ़ रहा व्यक्ति अगर संपर्क करता है, हमें कॉल करता है तो इसका मतलब है कि वह जीना चाहता है। आत्महत्या करने वाला व्यक्ति एक अजनबी से अपने दिल की बात इसलिए खुलकर कर लेता है, क्योंकि उसे न तो सामने वाले के जजमेंटल होने का, न सिर्फ बेमतलब की सलाह या ज्ञान देने का और न ही सुसाइड जैसे विचारों के बारे में बताने या बात करने को लेकर किसी तरह की शर्मिंदगी का अहसास होता है। साथ ही उसे अपनी निजी बातों या विचारों के सार्वजनिक होने का खतरा भी नहीं होता। कॉलर्स को लगता है कि सुनने वाला चीजों को किसी पूर्वाग्रह से न देखकर कॉलर्स के नजरिए से देख और समझ रहा है।



डिप्रेशन को रखें दूर -
देखा गया है कि आत्महत्या की एक बड़ी वजह डिप्रेशन ही है। जिंदगी से निराश व्यक्ति जब खुद को असहाय पाने लगता है तो डिप्रेशन के दलदल में फंस जाता है। उलझे सवाल, निराश करने वाले जवाब और अनिश्चितता किसी इंसान को उस मोड़ पर ले जाती है, जहां उम्मीदें काफी बेहद कम नजर आती हैं। जब स्थिति नाजुक मोड़ पर पहुंच जाती है तो नतीजे खतरनाक हो जाते हैं। जरूरत है तो इस पर वक्त रहते ध्यान देने और सही इलाज की।

बढ़ रहे हैं मामले -
बदलते लाइफस्टाइल में डिप्रेशन की बीमारी आम हो रही है। महानगर से निकलकर यह छोटे शहरों और कस्बों तक पहुंच रही है। इसके शिकार न सिर्फ युवा और बुजुर्ग, बल्कि स्कूल जाने वाले स्टूडेंट भी हैं। डॉक्टरों के अनुसार, इसका इलाज सिर्फ दवाओं से नहीं हो सकता। इससे उबरने के लिए परिवार, दोस्त और अपनों के साथ की भी दरकार होती है। लंबे वक्त में लाइफस्टाइल, रिश्ते, इमोशंस के साथ बुने गए ताने-बाने में जब सुराख होता है तो उम्मीदें धरी रह जाती हैं। सपने गायब हो जाते हैं। ऐसे में मानसिक तौर पर टूटना लाजमी है।

कैसे पहचानें -
आपका कोई दोस्त, परिजन या जाननेवाला अगर... अक्सर उदास या परेशान रहता हो बातों-बातों में खुद को अक्सर कोसता हो खुद को बेबस महसूस करता हो खूब सोता हो या बिल्कुल नींद न आती हो बिल्कुल कम खाता हो या बहुत ज्यादा खाता हो उसका वजन अचानक बढ़ रहा हो या तेजी से कम हो रहा हो खुशी के मौकों को इग्नोर करता हो सिरदर्द और बदन दर्द की शिकायत लगातार करता हो चिढ़कर या झल्लाकर जवाब देता हो तो आप समझें कि उसे आपके साथ और डॉक्टर के इलाज की जरूरत है। ऐसे समय में उससे चिढ़े नहीं, बीमार समझकर उसका साथ दें। उससे जी भरकर बात करें। उसकी हरकतों पर नजर जरूर रखें।

उदास हो मन तो... -
रोजाना वर्कआउट करें, योग और ध्यान करें - शराब और सिगरेट से दूर रहें - अगर कैंडीज या टॉफी पसंद हो तो उसका स्वाद लें - अपनी हॉबीज को पूरा करने की कोशिश करें - लोगों से मिलें-जुलें। मुमकिन हो तो किसी से अपनी दिक्कत शेयर करें - सायकायट्रिक की राय लें। - दर्द होने पर पेनकिलर से बचें, डॉक्टर की सलाह लें - जॉगिंग करें या आउटडोर गेम्स में हिस्सा लें - अपनी पसंद के गीत सुनें। याद रखें, ये उदासी भरे न हों - एफएम रेडियो सुनें

डाइट पर दें ध्यान -
डिप्रेशन से निपटने में अच्छी डाइट भी काफी मददगार है : - पोषण से भरपूर खाना खाएं, जिसमें कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ प्रोटीन और मिनरल भी भरपूर हों, जैसे कि ओट्स, गेहूं आदि अनाज, अंडे, दूध-दही, पनीर, हरी सब्जियां (बीन्स, पालक, मटर, मेथी आदि) और मौसमी फल। - एंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिन-सी वाली चीजें खाएं, जैसे कि ब्रोकली, सीताफल, पालक, अखरोट, किशमिश, शकरकंद, जामुन, ब्लूबेरी, कीवी, संतरा आदि। - ओमेगा-थ्री को खाने में शामिल करें। इसके लिए फ्लैक्ससीड्स (अलसी के बीज), नट्स, कनोला, सोयाबीन आदि खाएं। - देखने में बदरंग खाने के बजाय रंगीन खाने पर फोकस करें जैसे कि गाजर, टमाटर, ब्लूबेरी, ऑरेंज आदि। - पानी खूब पिएं। नारियल पानी, छाछ आदि भी खूब पिएं।

योग भगाएगा टेंशन - जॉगिंग, स्विमिंग और आउटडोर गेम्स के जरिए तनाव को दूर किया जा सकता है। योग गुरु सुरक्षित गोस्वामी के अनुसार योग के जरिए भी काफी हद इस हालत से निपटा जा सकता है। इसे करने से पहले किसी योग एक्सपर्ट की सलाह लें। सूर्य प्राणायाम और कपालभाति आप कर सकते हैं। मगर ताड़ासन, कटिचक्रासन, उत्तानपादासन, भरकटासन, भुजंगासन, धनुआसन, मंडूकासन जैसे योग किसी योग्य एक्सपर्ट की देखरेख में करें। सूर्य नमस्कार भी डिप्रेशन से निपटने में काफी मददगार है। यह एक संपूर्ण एक्सरसाइज है। इसे करने से शरीर के सभी हिस्सों की एक्सरसाइज हो जाती है। सूर्य नमस्कार सुबह के समय खुले में उगते सूरज की ओर मुंह करके करना चाहिए। इससे शरीर को ऊर्जा और विटामिन डी मिलता है। मानसिक तनाव से भी मुक्ति मिलती है। इसमें कुल 12 स्टेप होते हैं, जिनका शरीर पर अलग-अलग तरह से प्रभाव पड़ता है। सूर्य नमस्कार करने का तरीका जानने के लिए देखें : nbt.in/suryanam

मैं हूं ना... उदास शख्स की सबसे बड़ी जरूरत है किसी का साथ मिलना, जो उसकी भावनाओं को समझे। इससे बड़ी जरूरत है बीमार को दोबारा जीने की इच्छाशक्ति देने की। ऐसी हालत में आप अपने अजीज के साथ रहें। उसकी बातें सुनें, पर जजमेंटल न बनें। ध्यान रहे, अक्सर अकेले रहने के दौरान बीमार को नेगेटिव ख्याल आते हैं, इसलिए दोस्त और परिवार के बीच में रहना तनाव कम कर सकता है। दवा और काउंसलिंग से बड़ा इलाज परिवार और दोस्त हैं। - कभी उसे या उसकी /उसके एक्स को बुरा-भला न कहें। ब्रेकअप के बाद भी एक्स की बुराई अच्छी नहीं लगती। आपकी बातों पर वह भरोसा नहीं करेगा।

डिप्रेशन के दौरान एक सवाल कॉमन है - मेरे साथ ही इतना बुरा क्यों? ऐसे में जब-जब दोस्त ज्यादा उदास हो तो उसका हाथ थाम लें या कंधे पर हाथ रखें ताकि उसे भरोसा हो कि वह अकेला नहीं है। - ब्रेकअप के बाद कपल के पास एक-दूसरे के लिए सैकड़ों सवाल होते हैं। वह बार-बार जवाब के लिए फोन, चैट या मेसेज से एक्स पार्टनर को परेशान कर सकता है। बतौर दोस्त, उसे रोकें क्योंकि साथ छोड़ने वाला कभी सही जवाब नहीं देगा।

बातों-बातों में उसे बताएं कि वह दुनिया का पहला शख्स नहीं है, जिसे कोई छोड़कर गया है। ऐसे ब्रेकअप के किस्सों से दुनिया भरी पड़ी हैं। अगर कोई उदाहरण आसपास मौजूद हो और वह सामान्य जिंदगी जी रहा हो तो उससे मिलवा भी दें। - परेशानी में कई बार लोग नशे का सहारा ढूंढते हैं। शराब पीने और स्मोकिंग से रोकें। साथ तो बिल्कुल न दें। कई नामी हस्तियों की अधूरी प्रेम कहानी शराब के गिलास में खत्म हो गई। - अक्सर डिप्रेशन में बदला लेने का ख्याल आता है इसलिए पीड़ित को अग्रेसिव न होने दें। उसे बताएं कि बदला किसी बात का हल नहीं है।

कब जाएं डॉक्टर के पास पहले-पहल मन न लगना, उदास रहना जैसे लक्षण देरी करने पर डिप्रेशन का रूप ले लेते हैं। अगर हफ्ते-10 दिन तक उदासी बनी रहे तो डॉक्टर से मिल लें। फिर उसकी सलाह पर साइकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट से मिलें। समस्या के शुरू में साइकॉलजिस्ट से मिलने की सलाह दी जाती है और काउंसलिंग काफी होती है। साइकॉलजिस्ट मरीज को दवा नहीं दे सकते। उनके पास मेडिकल की डिग्री नहीं होती और आमतौर पर उनका काम मरीज की काउंसलिंग का होता है। डिप्रेशन के शुरुआत में अक्सर साइकॉलजिस्ट से मिलने पर समस्या दूर हो जाती है लेकिन बीमारी बढ़ने पर सायकायट्रिस्ट की मदद लेनी पड़ती है। सायकायट्रिस्ट मरीज को जरूरत पड़ने पर दवाएं भी देता है। इनके पास एमबीबीएस डिग्री के अलावा सायकायट्री में स्पेशलाइजेशन भी होता है।

आयुर्वेद में इलाज -
आयुर्वेदाचार्य आर. पी. पाराशर के अनुसार आयुर्वेद में डिप्रेशन के इलाज के लिए रसायन औषधि खाने की सलाह दी जाती है। अक्सर ये रसायन आंवला, ब्राह्मीi घृत, शंखपुष्पी, बृहती, कंठकारी, हरड़, सोनाक, कंभारी, पृषपर्णी, बला सालपर्णी, जीवंती, मूदपड़नी, शतावरी, मेधा, महामेधा, मुक्ता, पिपली से बनाए जाते हैं। यह कई चीजों का मिक्सचर है, इसलिए इसे वैद्य की सलाह से ही खाएं। टच और साउंड थेरपी से भी इसका इलाज किया जाता है। कई बार दवा के साथ प्रार्थना, ध्यान, मंत्रों के उच्चारण से ध्वनि तरंग से नेगेटिव हॉर्मोंन्स को खत्म करने की कोशिश की जाती है।

महज एक कॉल की दूरी पर है -

फ्री हेल्प संजीवनी ए-6, सत्संग विहार, कुतुब इंस्टिट‌्यूशनल एरिया, नई दिल्ली-110067 काउंसलिंग टाइम: सुबह 10 बजे से शाम 7:30 बजे तक (सोमवार से शनिवार तक) 011-24318883, 011-26864488

स्नेही बी-347, वसंत कुंज एन्क्लेव, नई दिल्ली-110070 फोन नंबर: 011- 65978181 काउंसलिंग टाइम : दोपहर बाद 2 बजे से शाम 6 बजे तक (सातों दिन)

सुमैत्री पता: 1, भगवानदास लेन, आराधना हॉस्टल कॉप्लेक्स बेसमेंट, नई दिल्ली-110001 फोन नंबर: 011-23389090 काउंसलिंग टाइम: दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक (सोमवार से शुक्रवार तक), सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक (शनिवार से रविवार तक)

आसरा पता: 104, सनराइज आर्केड, प्लॉट 100, सेक्टर 16, कोपरखैराने, लाल बाग पुलिस चौकी के बगल में, डॉ. बी. आर. अाम्बेडकर रोड, परेल, नवी मुंबई-400701 फोन नंबर: 022-27546669, 27546667 काउंसलिंग टाइम : चौबीसों घंटे, सातों दिन

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पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने का सपना बहुत-से स्टूडेंट देखते हैं। कइयों का सपना परवान चढ़ जाता है और कइयों का अधूरा रह जाता है। सपना अधूरा रहने के पीछे सही जानकारी न होना, गलत कॉलेज चुनना या फिर पैसे की कमी जैसे कोई भी वजह हो सकती है। पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने की चाहत रखनेवाले स्टूडेंट्स को किन बातों का खास ख्याल रखना चाहिए, अपने अनुभव और एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं मधुरेन्द्र सिन्हा:

इस साल की शुरुआत में कई अजीब घटनाएं देखने में आईं। हैदराबाद से अमेरिका जा रहे प्लेन में कई स्टूडेंट्स को चढ़ने नहीं दिया गया, जबकि उनके पास वैलिड वीजा था और वहां के कॉलेज के एडमिशन लेटर भी। फिर एक खबर आई कि न्यू यॉर्क, लॉस ऐंजलिस, सिएटल और सैन फ्रैंसिस्को एयरपोर्ट पर दर्जनों इंडियन स्टूडेंट्स को रोक लिया गया। सभी को वापस भी भेज दिया गया। कुछ को तो हथकड़ी भी लगा दी गई और अमेरिका में उनकी एंट्री पर 5 साल की पाबंदी लगा दी गई। ये स्टूडेंट्स सिलिकॉन वैली यूनिवर्सिटी और नॉर्थवेस्टर्न पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने जा रहे थे। उनके पास न केवल एडमिशन लेटर था, बल्कि एजुकेशन वीजा भी था। दरअसल, ये स्टूडेंट्स जहां एडमिशन लेने जा रहे थे, वे वहां की गुमनाम यूनिवर्सिटीज में हैं। इनके बारे में राय बहुत अच्छी नहीं है। एक साथ इतने सारे स्टूडेंट्स के वहां दाखिला लेने से इमिग्रेशन अथॉरिटीज को लगा कि इसके पीछे कोई घोटाला है। वे असल में अमेरिका जाकर बसना चाहते थे। इस तरह की घटनाओं से हर किसी के मन में सवाल उठता है कि विदेश खासकर अमेरिका पढ़ने जाने वाले स्टूडेंट्स को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? कैसे पहचानें कि कौन-सी यूनिवर्सिटी और कॉलेज फर्जी है और कौन सही? एडमिशन के लिए किन बातों का खास ध्यान रखें, तैयारी कैसे और कब करें? लैंग्वेज टेस्ट आदि की तैयारियों भी अहम होती हैं, उनके बारे में भी आपको पता होना चाहिए।

कब शुरू करें तैयारी अमेरिका में ज्यादातर यूनिवर्सिटी 2 सेमिस्टर में एडमिशन देती हैं: 1. स्प्रिंग (जनवरी) और फॉल (अगस्त) सीजन में। ज्यादा एडमिशन अगस्त में होते हैं। अगस्त में एडमिशन कराना ज्यादा अच्छा रहता है क्योंकि इस समय यूनिवर्सिटीज़ में ज्यादा सीटें उपलब्ध होती हैं जबकि जनवरी तक सीटें भर जाती हैं। जनवरी में सीटें कम रह जाने के कारण सिलेक्शन क्राइटिरिया भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है। इससे एडमिशन मिलने में मुश्किल होती है। अगर आप अगस्त 2017 में एडमिशन चाहते हैं तो इसके लिए साल भर पहले यानी इसी साल अगस्त-सितंबर से तैयारी शुरू कर दें। सबसे पहले SAT या GMAT/GRE और TOEFL/IELTS दें। ये टेस्ट क्लियर करने के बाद ऐप्लिकेशन (SOP, Cover Letter, LOR समेत) भेजने का काम नवंबर तक पूरा हो जाना चाहिए। आमतौर पर दिसंबर तक यूनिवर्सिटी से ऑफर लेटर आ जाता है। ऑफर स्वीकार करने के लिए 3-4 हफ्ते का टाइम दिया जाता है।

कैसे करें तैयारी - अगर 12वीं के बाद पढ़ने के लिए विदेश जाना चाहते हैं तो बेहतर है कि 11वीं क्लास से ही तैयारी करें। जिस सब्जेक्ट में आगे बढ़ना चाहते हैं, उस पर खास फोकस करें। अपना रिजल्ट बेहतर करें। जितने अच्छे नंबर, उतने अच्छे कॉलेज में एडमिशन का मौका होगा। साथ ही, इंग्लिश भी सुधारें। फॉरेन एजुकेशन के लिए सबसे जरूरी है कि आपको इंग्लिश का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। - तैयारी के लिए बडी सिस्टम काफी अच्छा होता है यानी जो आप अपने किसी ऐसे दोस्त के साथ मिलकर तैयारी करें, जो खुद भी फॉरन यूनिवर्सिटी में जाना चाहता हो। आप एक-दूसरे का सपोर्ट बनें तो साथ ही एक-दूसरे को चैलेंज भी करें। इससे तैयारी बेहतर होती है। साथी न मिले तो अकेले ही चलें। - इंग्लिश की तैयारी के लिए ग्रामर और वोकैबलरी पर खासतौर पर फोकस करे। इसके लिए इंग्लिश मूवीज़, इंटरनैशनल इंग्लिश न्यूज चैनल, नैशनल जियोग्रफिक चैनल आदि देखें। इंग्लिश न्यूजपेपर और मैगजीन पढ़ें। अच्छी वेबसाइट्स पर जाकर पढ़ें।

ये टेस्ट देने जरूरी
- अब आप सब्जेक्ट और कोर्स के हिसाब से दूसरे टेस्ट देने को तैयार हो जाएं। 12वीं के बाद कॉलेज में एडमिशन के लिए अप्लाई करना चाहते हैं तो आपको सैट (SAT यानी स्कॉलेस्टिक एप्टिट्यूड टेस्ट) देना होगा, जबकि पोस्ट ग्रैजुएशन के लिए जीमैट (GMAT यानी ग्रैजुएट मैनेजमेंट टेस्ट) या जीआरई (GRE यानी ग्रैजुएट रेकॉर्ड एग्जामिनेशन) देना होगा। मैनेजमेंट में एडमिशन के लिए GMAT और इंजीनियरिंग, मेडिकल, रिसर्च आदि के लिए GRE देना होता है। कुछ खास यूनिवर्सिटी सब्जेक्ट स्पेसिफिक GRE भी लेती हैं। इन एग्जाम्स के नंबर के आधार पर ही आपको एडमिशन मिलेगा। कुछ कॉलेज इनके बिना भी एडमिशन देते हैं लेकिन उनकी तादाद कम है। - आप विदेश में पढ़ाई के लिए तभी जा सकेंगे, जब आप इंग्लिश के इलिजिबिटी टेस्ट टॉफल (TOEFL) या आइलिट्स (IELTS) में अच्छे मार्क्स लाएंगे। इन एग्जाम्स के दौरान आपकी इंग्लिश रीडिंग, राइटिंग, स्पीकिंग और सुनने की क्षमता की जांच होती है। इसके ही आधार पर आपको पॉइंट्स मिलते हैं। खास बात यह है कि एक बार अच्छे मार्क्स नहीं आने पर आप फिर टेस्ट दे सकते हैं और जिस टेस्ट का स्कोर बेहतर हो, उसे ही रेकॉर्ड में दे सकते हैं। इंग्लिश के लिए IELTS टेस्ट ज्यादातर देशों में मान्य है और इसका एग्जाम देश भर में 42 सेंटर्स पर होता है। ज्यादा जानकारी के लिए देखें: ielts.org - अमेरिका में एडमिशन के लिए TOEFL देना होता है। इंग्लैंड, न्यूजीलैंड आदि देशों के लिए IELTS दिया जाता है। हालांकि ज्यादातर देश अब TOEFL को मानने लगे हैं। ज्यादा जानकारी के लिए देखें: ets.org/toefl

ऐसे चुनें कॉलेज - आपने जो कॉलेज या इंस्टिट्यूट चुना है, वह फर्जी तो नहीं, यह चेक करने के लिए whed.net/home.php पर जाएं। यह वर्ल्ड हायर एजुकेशन डेटाबेस है। यहां दुनिया भर के तमाम प्रामाणिक कॉलेजों की लिस्ट है। - अमेरिकी सरकार की वेबसाइट usa.gov/study-in-us पर जाएं। वहां से अमेरिका जाकर पढ़ाई करने के बारे में बेसिक और प्रामाणिक जानकारी मिल जाएगी। - फिर आप जिस सब्जेक्ट की पढ़ाई करना चाहते हैं, वह कौन-कौन से कॉलेज और यूनिवर्सिटी में है, यह पता लगाएं। वह कॉलेज कैसा है, यह जानने की कोशिश करें। कॉलेज की वेबसाइट के अलावा उससे जुड़ी तमाम वेबसाइट्स पर जाएं। वहां के स्टूडेंट्स कहां-कहां काम कर रहे हैं, यह जानकारी हासिल करें। सभी कॉलेजों की एल्मनै (एल्युमिनाइज) असोसिएशन भी हैं, जो सोशल मीडिया (फेसबुक आदि) पर एक्टिव होती हैं। कॉलेज के बारे में उनके रिव्यू पढ़ें। कुछ निगेटिव कमेंट्स हैं तो उन पर खास ध्यान दें। - अमेरिका में हर कॉलेज की रैंकिंग होती है और वह ऑनलाइन उपलब्ध है। इसके लिए कई वेबसाइट्स आपकी मदद कर सकती हैं जैसे: usnews.com/best-colleges पर जाकर बेस्ट कॉलेज या यूनिवर्सिटी की रैंकिंग देख सकते हैं। इसके अलावा forbes.com पर जाकर Lists पर क्लिक करके Education में टॉप कॉलेज या इंस्टिट्यूट देख सकते हैं।

अप्लाई करने का तरीका
- आपने जो कॉलेज शॉर्टलिस्ट किए हैं, उनकी साइट पर जाकर Department of General Queries वाले ऑप्शन में जाएं। वहां दिए हुए ईमेल आईडी पर अपनी क्वैरीज को मेल कर दें। रिक्वेस्ट लेटर के साथ अपना एक शॉर्ट बॉयोडाटा भी भेजें। रिक्वेस्ट लेटर भेजने के बाद ज्यादातर यूनिवर्सिटीज आपको ऑनलाइन ऐप्लिकेशन फॉर्म भेजती हैं। अगर यूनिवर्सिटी की तरफ से कोई जवाब नहीं आता है तो कुछ समय बाद दोबारा रिक्वेस्ट भेजें। - विदेशी कॉलेजों में काउंसलर या रिप्रेजेंटेटिव होते हैं जो आपके संपर्क में रहेंगे। जब आप कॉलेज के लिए अप्लाई करेंगे तो मेल उन तक पहुंचेगी और वे आपसे कॉन्टैक्ट करेंगे। वे आपकी ऐप्लिकेशन में जो कमियां होंगी, उन्हें आपसे बातें करके पूरी करने की कोशिश करेंगे। वे ईमेल के जरिए आपसे जुड़े रहेंगे। आपको खुद भी सतर्क रहना होगा और अपने ऐप्लिकेशन को ट्रैक करते रहना होगा ताकि डेडलाइन न निकल जाए। - यूनिवर्सिटी को सभी जरूरी डॉक्युमेंट्स मिलते ही स्टूडेंट्स ऐप्लिकेशन फॉर्म को एडमिशन कमिटी के पास भेज दिया जाता है। ऐप्लिकेशन प्रोसेस पूरा होने के बाद जबाव आने में 1-2 महीने का समय लग जाता है। वे चाहें तो आपका इंटरव्यू भी ले सकते हैं। इसके लिए वे आपको कॉल करते हैं। अगर आपकी ऐप्लिकेशन स्वीकार कर ली जाती है तो उसके बाद वीजा के लिए अपने डॉक्युमेंट्स तैयार करने शुरू कर दें। - आपको इस दौरान स्कॉलरशिप का भी ध्यान रखना होगा और उसके लिए भी पता लगाते रहना होगा। इन स्कॉलरशिप की जानकारी वे कॉलेज ही देते हैं जहां आप अप्लाई करेंगे। आप ईमेल से मंगा सकते हैं। नेट से इस तरह के स्कॉलरशिप की जानकारी मिल सकती है। - अमेरिका में एडमिशन के लिए आपको यह बताना होगा कि आप वहां क्यों पढ़ना चाहते हैं। इसे एसओपी यानी स्टेटमेंट ऑफ परपस कहते हैं। बेहतर होगा कि इसके लिए किसी एक्सपर्ट की मदद लें। एसओपी के अलावा एलओआर यानी लेटर ऑफ रिकमेंडेशन भी बहुत अहम है। कई यूनिवर्सिटी इसे कागज पर मांगती हैं जबकि कुछ ईमेल पर। इसके जरिए वे स्टूडेंट के बारे में सारी जानकारी जुटा लेती हैं।

SOP ऐसे लिखें
- विदेशी कॉलेजों खासकर अमेरिका में पढ़ने के लिए सबसे जरूरी है, एसओपी यानी स्टेटमेंट ऑफ परपस। इसका मतलब यह हुआ कि आप यह बताएं कि आखिर आप वहां क्यों पढ़ने जाना चाहते हैं? एसओपी को ऐप्लिकेशन फॉर्म के साथ जमा करना होता है। इसके जरिए संस्थान यह फैसला करते हैं कि फलां स्टूडेंट को अपने यहां दाखिला दें या नहीं। - इसे काफी संभलकर लिखना होगा। लच्छेदार इंग्लिश के बजाय सिंपल इंग्लिश लिखें। वहां के लोग सिंपल इंग्लिश ज्यादा पसंद करते हैं। इसमें गलतियां नहीं होनी चाहिए। कम शब्दों में अपनी बात लिखें। आमतौर पर एक A-4 पेज लिखना काफी होता है। - सच लिखें और इमोशनल बनने से बचें। इसमें आप अपने बचपन के बारे में भी लिख सकते हैं, लेकिन अगर उसमें कुछ खास बात हो तो। अपने स्कूल और कॉलेज में अपनी परफॉर्मेंस के बारे में लिखिए। - आप यह जरूर लिखें कि आपमें अपने काम को लेकर कितनी लगन है? आप स्पेशलाइजेशन और एचीवमेंट के बारे में भी जिक्र करें। यहां बताएं कि आप अमेरिका में ही क्यों पढ़ना चाहते हैं, आपने यही यूनिवर्सिटी क्यों चुनी, आपने यही कोर्स क्यों चुना और इनका आपके करियर गोल से क्या ताल्लुक है? - अमेरिका रिसर्च का मक्का है। वहां हर तरह की रिसर्च होती रहती हैं। अगर आपने भी कोई रिसर्च की हो तो जरूर लिखें। इससे आपकी दावेदारी मजबूत होती है। अगर आप यह इच्छा जाहिर करें कि अमेरिका में पढ़ाई के बाद आप वहां रिसर्च करना चाहते हैं तो यह और भी बेहतर होगा।

Cover Letter यह भी ऐप्लिकेशन का बड़ा हिस्सा है। इसमें आप सीधे सब्जेक्ट पर आ जाएं और लिखें कि हमें आपके इंस्टिट्यूट या कॉलेज में एडमिशन चाहिए और इसके लिए आप जरूरी डॉक्युमेंट भेज रहे हैं। इनमें सभी कुछ होना चाहिए, मसलन अपने बायोडाटा से लेकर फीस तक की डिटेल्स। इसके साथ ही आपको टॉफल और जीआरई या जीमैट के स्कोर की फोटोकॉपी देनी होगी। सभी तरह के ऐकडेमिक रेकॉर्ड और ऐफिडेविट का भी इसमें जिक्र होना चाहिए। एलओआर यानी लेटर ऑफ रिकॉमेंडेशन का भी जिक्र होना चाहिए। इसमें आप फाइनैंशल मदद की भी बात संक्षेप में लिख सकते हैं।

LOR
लेटर ऑफ रेफ्रेंस एक जरूरी दस्तावेज है जिसके बिना आप एडमिशन की बात सपने में भी नहीं सोच सकते। यह अमूमन आपके प्रोफेसर या टीचर की ओर से लिखा जाता है। बेहतर होगा अपने स्कूल-कॉलेज के टीचर से ही इसे लिखवाएं। इसके लिए एक परफॉर्मा आता है जो हर कॉलेज खुद भेजता है। कई कॉलेज आपसे टीचर का नाम और उनका ईमेल मांगकर उन्हें सीधे मेल करेंगे ताकि टीचर सही फीडबैक दे सकें। एलओआर आमतौर पर 3 टीचर से लिखवाना होता है। यह सुनिश्चित कर लें कि टीचर आपके बारे में अच्छा लिखें। आप इन टीचर्स के नाम अमेरिकी कॉलेज या यूनिवर्सिटी को भेज सकते हैं। अगर आपने कहीं जॉब किया है तो वहां से भी एलओआर ले सकते हैं। यह बेहतर माना जाता है। अमेरिका में मैनेजमेंट वगैरह की पढ़ाई में ज्यादातर वहीं कैंडिडेट होते हैं जिन्होंने वहां किसी किस्म की नौकरी की है। उन्हें प्रिफरेंस मिलता है इसलिए अपने बॉस से एलओआर लेना कहीं बेहतर होगा।

वीजा की तैयारी
अगर आपको पसंदीदा कॉलेज मिल जाता है तो वीजा की तैयारी करनी होगी। स्टूडेंट्स के लिए I -20 वीजा की जरूरत होती है। इसके लिए आपके पास यूनिवर्सिटी से मिला F-1 फॉर्म जरूर होना चाहिए। वीजा के फॉर्म को ध्यान से भरना चाहिए और उसमें गलतियां नहीं होनी चाहिए। कोई भी सूचना छुपानी नहीं चाहिए। हर बात साफ-साफ बतानी चाहिए। पूरे विश्वास के साथ बताएं कि आप पढ़ाई करने जा रहे हैं, न कि उनके देश पर बोझ बनने। ध्यान रहे कि कॉलेज में एडमिशन हो जाने भर से आपको वीजा मिल ही जाएगा, यह जरूरी नहीं। वीजा वहां के इमिग्रेशन डिपार्टमेंट के नियमों के मुताबिक मिलता है। जरा-सी गलती पर यह रिजेक्ट हो सकता है। फिलहाल F-1 वीजा की ऐप्लिकेशन फीस 160 डॉलर यानी 10880 रुपये है, जोकि वापस नहीं होती। जीआरई, जीमैट और टॉफेल आदि टेस्ट की ऑरिजनल रिपोर्ट शीट के अलावा वीजा ऑफिसर आमतौर पर बैंक अकाउंट की डिटेल्स भी चेक करते हैं कि दूसरे देश जाकर पढ़ाई करने के लिए आपके पास पैसा है या नहीं?

रहने का इंतजाम
वीजा मिल जाने के बाद आपको दूसरी तैयारियां भी करनी होंगी जैसे वहां रहने का इंतजाम, मेडिकल इंश्योरेंस आदि। आमतौर पर वैसे वीजा ऐप्लिकेशन में आपसे यह पूछा जाएगा कि आप कहां रहेंगे? इसमें आमतौर पर स्टूडेंट्स जिस कॉलेज में एडमिशन लेने जा रहे हैं, वहां के इंटरनैशनल ऑफिस का एड्रेस या किसी फ्रेंड का एड्रेस दे सकते हैं। बाद में आप अपने रहने की जगह बदल भी सकते हैं। रहने की जगह तलाशने से पहले इंटरनेट पर ब्लैक लिस्टेड एरिया सर्च कर लें। यहां घर न लें। जहां तक खर्चे की बात है तो इलाके और कॉलेज की रैंकिग के हिसाब से फीस और रहने के खर्चे में काफी फर्क होता है। मसलन अगर आप न्यू यॉर्क जैसे शहर में रहते हैं तो आपको सिंगल बेडरूम के लिए 1000 डॉलर (करीब 66 हजार रु.) हर महीने तक चुकाने पड़ सकते हैं, जबकि अलबामा, जॉर्जिया राज्यों के गैर शहरी क्षेत्रों में चार कमरों के घर भी किराये पर 700 डॉलर महीना तक में मिल जाएगा। इसी तरह, रहन-सहन पर कम-से-कम 500-600 (करीब 35-40 हजार रु.) डॉलर महीना खर्च करने ही होंगे। हालांकि बड़े शहरों में 1300-1400 डॉलर (करीब 85-95 हजार रु.) महीना तक आसानी से खर्च हो सकते हैं। अमेरिका में विदेशी स्टूडेंट्स को हर महीने 20 घंटे काम करने की छूट है, लेकिन सिर्फ कैंपस में। कैंपस के बाहर काम गैर-कानूनी होगा। कैंपस के अंदर रेस्तरां में कुकिंग, क्लीनिंग, यूनिवर्सिटी पुलिस या लाइब्रेरी हेल्पर जैसे काम कर सकते हैं। इनसे मिलनेवाली रकम से खर्चा चलाने में मदद मिलती है।



क्या है आईवी लीग
अमेरिका में पढ़ाई की बात आती है तो आईवी लीग (Ivy League) का जिक्र जरूर आता है। इस लीग के तहत आनेवाले संस्थान पढ़ाई में भी अव्वल हैं और बहुत सारे स्टूडेंट्स की चाहत इनमें एडमिशन की होती है। वहां के 8 बड़े एजुकेशनल इंस्टिट्यूट्स ने अपनी एथलेटिक लीग बनाई, जिसे आईवी लीग कहते हैं। इसमें नॉर्थ-ईस्टर्न अमेरिका की 8 यूनिवर्सिटी हैं: 1. ब्राउन (Brown) यूनिवर्सिटी 2. कोलंबिया (Columbia) यूनिवर्सिटी 3. कॉर्नेल (Cornell) यूनिवर्सिटी 4. हार्वर्ड (Harvard) यूनिवर्सिटी 5. प्रिंसटन (Princeton) यूनिवर्सिटी 6. येल (Yale) यूनिवर्सिटी 7. यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया (Pennsylvania) 8. डार्टमाउथ (Dartmouth) कॉलेज हैं। अगर बजट कम है तो आईवी लीग से दूर उन कॉलेजों में एडमिशन की कोशिश करनी चाहिए जो वहां नैशनल रैंकिंग में 30-35 नंबर तक हों। इनमें कई बेहद अच्छे कॉलेज हैं जिनमें पढ़ाई का स्टैंडर्ड बहुत ऊंचा है और फीस भी जायज है। हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने भी अपनी बेटी को सलाह दी थी कि वे आईवी लीग से दूर रहकर दूसरे कॉलेजों में एडमिशन की कोशिश करें।

ये बातें भी जरूरी
- अमेरिका या किसी भी दूसरे देश में पढा़ई करने जाने से पहले मेंटली तैयार होना जरूरी है। हमारे और उनके कल्चर में काफी फर्क है। आप जहां पढ़ना चाहते हैं, उसके आसपास किसी जानकार को होना चाहिए जिसे आप लोकल गार्जियन बना सकते हैं। आगे जाकर किसी तरह की परेशानी होने पर वह आपका सपोर्ट सिस्टम साबित होगा। पढ़ाई के लिए वहां जाने के बाद याद रखें कि आप वहां क्यों आए हैं? इससे आपको अपना मकसद याद रहेगा और आप उसी पर फोकस करेंगे। वहां की चकाचौंध या खुलेपन में भटकेंगे नहीं। वहां जाकर दोस्त जरूर बनाएं ताकि आपको अकेलापन न लगे। हां, दोस्तों के बीच पढ़ाई को न भूलें। - वहां जाने पर अगर आपको लगे कि आप कोई डॉक्युमेंट भूल गए हैं या कोई डॉक्युमेंट खो गया है तो परेशान न हों। सबसे पहले अपनी यूनिवर्सिटी को कॉन्टैक्ट करें। वहां से जरूर हेल्प मिलेगी। इसके बाद पुलिस के पास जाएं। डरें नहीं। वहां के पुलिसवाले आमतौर पर हेल्पफुल होते हैं। किसी इमरजेंसी के लिए 911 पर कॉल करें। - देश में कई एजुकेशनल कंस्लटंट हैं, जो फीस लेकर आपको काफी जानकारी मुहैया करा सकते हैं। लेकिन इन पर पूरी तरह निर्भर रहना सही नहीं होगा क्योंकि ये भी कई बार बिचौलिये की तरह काम करते हैं और कॉलेजों से मिलनेवाले कमिशन के लालच में आपको सेकंड-ग्रेड कॉलेज में भेज सकते हैं।

2016 की दुनिया की टॉप 10 यूनिवर्सिटी

1. कैलिफॉर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (अमेरिका) 2. यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफर्ड (ब्रिटेन) 3. स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी (अमेरिका) 4. यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज (ब्रिटेन) 5. मैसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (अमेरिका) 6. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (अमेरिका) 7. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी (अमेरिका) 8. इंपीरियल कॉलेज लंदन (ब्रिटेन) 9 स्विस फेडरल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (स्विटजरलैंड) 10. यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो

सोर्स: timeshighereducation.com

एक्सपर्ट्स पैनल

- प्रमोद जोशी, करियर काउंसलर - निहार रंजन, रिसर्चर और स्कॉलर

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ऑड का ईवन फॉर्म्युला

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दिल्ली में एक बार फिर से ऑड-ईवन स्कीम चल रही है। चांस यह भी है कि हर महीने 15 दिन यह स्कीम चलाई जाए। बेशक इस स्कीम से सड़कों पर वीइकल कम होने के साथ ही पल्यूशन और जाम कम हो रहा है, लेकिन लोगों को दिक्कतें भी हो रही हैं। ये दिक्कतें दूर हो सकती हैं, अगर हम अपनी कार में सीएनजी किट फिट करा लें या फिर ऑल्टरनेट वीइकल यूज करें। ऑड-ईवन के दिनों में कौन-से वीइकल किस तरह आपको राहत दिला सकते हैं, बता रहे हैं खालिद अमीन और दिग्विजय सिंह:

CNG की ABC
ऑड-इवन के शुरू होते ही एक बार फिर सीएनजी (कम्प्रेस्ड नेचरल गैस) की वैल्यू लोगों के बीच बढ़ गई है। सीएनजी किट को लेकर तमाम तरीके के सवाल भी होते हैं, जिनके जवाब पाने के लिए लोगों को इधर-उधर भटकना पड़ता है। मलसन कौन-सी किट लगवानी है, किन-किन कागजात की जरूरत पड़ती है। परेशान होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। किट लगवाने से पहले एक बार इन बातों पर जरूर गौर फरमाएं:

मार्केट में 2 तरह की सीएनजी किट मौजूद है:
सिक्वेंशल और कन्वेंशनल
सिक्वेंशल किट : यह लेटेस्ट कंप्यूटराइज्ड किट है, जो यूरो 3 या उससे ऊपर की सभी पेट्रोल कारों के लिए बढ़िया है। ओरिजनल सिक्वेंशल किट अलग-अलग ब्रैंड्स की आ रही हैं। इसमें कुछ इम्पोर्टेड किट भी मौजूद हैं जो इटली, अर्जेंटिना जैसे कई देशों से इंपोर्ट की जाती हैं। ओरिजनल सिक्वेंशल किट से बढ़िया माइलेज और अच्छा पिकअप मिलता है। साथ ही, यह गाड़ी के इंजन को भी नुकसान नहीं पहुंचाती। कन्वेंशनल किट: यह किट साल 2010 से पहले की गाड़ियों में फिट की जाती है। इसका साइज बड़ा होता है और यह सिक्वेंशल के मुकाबले सस्ती होती है। इसका माइलेज और परफॉर्मेंस कम होती है।

कौन-कौन से पेपर
- जब आप सीएनजी किट लगवाने जाएं तो आपके पास ओरिजिनल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (आरसी), इश्योरेंस की कॉपी, सीएनजी लगने से पहले का पल्यूशन सर्टिफिकेट, एड्रेस प्रूफ जैसे कागजात होने चाहिए।
- सीएनजी लगने के बाद मिली स्लिप की ऑरिजनल कॉपी, सर्टिफिकेट और सिलिंडर सर्टिफिकेट की कॉपी को लेकर अपने एरिया के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट में जाना होगा, जहां आपके कार में लगी सीएनजी की जांच होगी और आपको सीएनजी स्टिकर दिया जाएगा।
- सीएनजी किट हमेशा गवर्नमेंट से अप्रूव्ड सेंटरों से ही लगवाएं। अप्रूव्ड सेंटरों की जानकारी ट्रांसपोर्ट विभाग की वेबसाइट transport.delhi.gov.in पर उपलब्ध है।
- सीएनजी सेंटर से आपको फॉर्म-20 मिलेगा, जिसे भरकर जमा करना होगा। इस फॉर्म में आपको गाड़ी से जुड़ी तमाम डिटेल्स भरनी होंगी।

CNG के फायदे
- पेट्रोल और डीजल से कहीं ज्यादा सस्ती। सीएनजी से चलने वाली कारें इंजन कपैसिटी और किट की क्वॉलिटी के हिसाब से 1.1 से 1.5 रुपये/किमी की रनिंग कॉस्ट देती हैं।
- पेट्रोल और डीजल की तुलना में सीएनजी में आग लगने का खतरा कम होता है।
- जो लोग शहर के अंदर ही ज्यादा कम्यूट करते हैं और फ्यूल पर पैसे नहीं खर्च करना चाहते या फिर पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर सचेत रहते हैं उनके लिए सीएनजी बेहतर ऑप्शन है। सीएनजी कार की 1-1.5 रुपये/किमी की रनिंग कॉस्ट एक बाइक या स्कूटर की रनिंग कॉस्ट के बराबर ही पड़ती है।

CNG के नुकसान
-सीएनजी की गाड़ी परफॉर्मेंस के मामले में पिछड़ जाती है।
-कार की मेंटेनेंस कॉस्ट काफी बढ़ जाती है। कई बार लोग सस्ती सीएनजी किट लगवा लेते हैं जिससे इंजन को नुकसान होता है।

दिल्ली में नया नियम
सीएनजी किट को लेकर दिल्ली में नया नियम लागू हो गया है। अब दिल्ली में बीएस-1 और बीएस-2 एमिशन स्टैंडर्ड वाली गाड़ियों में सीएनजी किट नहीं लग सकेगी। इस पर दिल्ली सरकार ने रोक लगा दी है। इससे पहले किसी भी गाड़ी में सीएनजी किट लगवा सकते थे। अब सिर्फ बीएस-3 और बीएस-4 एमिशन स्टैंडर्ड वाली गाड़ियों में ही सीएनजी किट लग सकेगी। यानी 2005 से पहले की गाड़ियों में सीएनजी किट नहीं लग सकेगी।



इलेक्ट्रिक वीइकल
इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स को ई-बाइक्स के नाम से भी जाना जाता है। इंडिया में अभी ये बहुत कामयाब नहीं हो पाई हैं, लेकिन अगर थोड़ा समझदारी से इनका इस्तेमाल किया जाए तो ये काफी काम की हो सकती हैं।

क्या है खूबियां
- सबसे बड़ी खासियत तो यही है कि ये बिना पेट्रोल के चलती हैं। रनिंग कॉस्ट पेट्रोल या डीजल पर चलने वाले टू-वीलर के मुकाबले काफी कम होती है।
- कीमत भी पेट्रोल टू-वीलर से करीब 60-65 पर्सेंट तक कम होती है। मसलन, एक ऑटोमैटिक स्कूटर करीब 65 से 75 हजार रुपये में आता है, जबकि इलेक्ट्रिक स्कूटर की कीमत करीब 25 से 35 हजार रुपये होती है।
- इनमें इंजन की जगह इलेक्ट्रिक मोटर लगी होती है, जिसकी मेंटनेंस कम होती है। इंजन की तरह खराब होने वाले पार्ट्स इनमें नहीं होते। कुल मेंटनेंस (सर्विस आदि) का खर्च बेहद कम है।
-25 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से कम स्पीड वाली ई-बाइक्स (लो स्पीड बाइक्स) को चलाने के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं होती। रजिस्ट्रेशन और हेलमेट भी जरूरी नहीं है, क्योंकि इनकी रफ्तार काफी कम होती है। हालांकि खुद की सेफ्टी के लिए हेलमेट जरूर लगाना चाहिए।
-इनका डिजाइन काफी स्टाइलिश होता है और देखने में ये ट्रडिशनल ऑटोमेटिक स्कूटरों की तरह ही दिखती हैं। ऐसा नहीं लगता कि आप कोई अलग तरह का स्कूटर चला रहे हैं।


क्या है कमियां
- इनकी बैटरी पर अभी काफी काम हो रहा है। अभी इनमें जो तकनीक मौजूद है, उससे बैटरियों को चार्ज होने में काफी वक्त लगता है और वे ज्यादा दूर तक भी नहीं चल पातीं।
- लंबी दूरी की राइड के लिए इनका इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं, क्योंकि एक बार फुल चार्ज करने पर आमतौर पर ये 50 से 60 किमी तक ही चल पाती हैं।
- लो स्पीड बाइक तो काफी स्लो हैं ही, हाई स्पीड बाइक भी करीब 50 किमी प्रति घंटा की अधिकतम रफ्तार ही पकड़ सकती है। ऐसे में ये बैटरी भी ज्यादा इस्तेमाल करती हैं।
-इन्हें अब भी मेनस्ट्रीम का टू-वीलर नहीं माना जा रहा। यह एक ऐसा माइंड ब्लॉक है जिसे दूर करना जरूरी है तभी ये आम लोगों में पॉपुलर हो पाएंगी।

इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स में ऑप्शन
ई-बाइक: भले ही सभी तरह के इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स को लोग ई-बाइक के नाम से बुलाते हों, लेकिन ई-बाइक वे बाइक्स हैं, जो देखने में साइकल या मोपेड की तरह दिखती हैं और इनमें इलेक्ट्रिक मोटर लगी होती है। उसके अलावा, इलेक्ट्रिक स्कूटर भी होते हैं जो मोटे तौर पर स्कूटर जैसे ही दिखते हैं। इंडिया में ई-स्कूटर ज्यादा बिकते हैं।
किनके लिए बेस्ट: ये बाइक और स्कूटर उनके लिए अच्छे हैं, जो घर के आसपास मार्केट वगैरह जाने के लिए एक हल्का वीइकल चाहते हैं।

लो-स्पीड: जिन इलेक्ट्रिक बाइक/स्कूटरों की स्पीड 25 किमी प्रति घंटा से कम होती है, उन्हें लो-स्पीड स्कूटर कहते हैं। इनके लिए हेलमेट, रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस जरूरी नहीं है।
किनके लिए बेस्ट: अगर घर में कम उम्र के बच्चे हैं (14-15 साल ) और वे भी स्कूटर चलाना चाहते हैं तो उनके लिए ये अच्छा ऑप्शन हैं। कम स्पीड की वजह से ये बच्चों के लिए सेफ भी हैं।

हाई-स्पीड: इंडिया में जो इलेक्ट्रिक बाइक/स्कूटर 50-55 किमी प्रति घंटा तक की स्पीड पकड़ सकते हैं, उन्हें हाई-स्पीड स्कूटर कहा जाता है।
किनके लिए बेस्ट: अगर परफॉर्मेंस चाहिए तो हाई स्पीड बाइक चुनें। ये स्कूटर पेट्रोल से चलने वाले स्कूटरों को परफॉरमेंस में टक्कर दे सकते हैं। स्टाइल भी इनका बेहतर होता है।

ई-बाइक्स: आपकी जेब के लिए भी फायदेमंद
इलेक्ट्रिक वीकल्स का इस्तेमाल करके आप पर्यावरण को काफी फायदा पहुंचा सकते हैं। साथ ही, अपने पेट्रोल बिल में भी काफी कटौती कर सकते हैं। सोसायटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक वीकल्स (SMEV) के डायरेक्टर सोहिंदर गिल बताते हैं कि अगर एक लाख पेट्रोल टू-वीलर्स को एक लाख इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स से रिप्लेस कर दिया जाए तो 3 साल में 1.5 लाख टन कार्बन एमिशन को रोका जा सकता है। लेकिन ग्रीन वीइकल्स को बढ़ावा देने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर पॉलिसी तक में बड़े बदलाव करने होंगे। SMEV ने इसे लेकर एक स्टडी भी की है, जिसे देखकर आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि आपका इलेक्ट्रिक स्कूटर कितना किफायती और कितना ग्रीन है। मिसाल के तौर पर अगर आप पेट्रोल के टू-वीलर की जगह इलेक्ट्रिक टू-वीलर इस्तेमाल करते हैं तो 2 साल में करीब 40 हजार रुपये की बचत कर सकते हैं। समझते हैं, इस गणित को:

पेट्रोल की कीमत: 60 रुपये प्रति लीटर (लगभग)
माइलेज: 45 किमी प्रति लीटर
बिजली की कीमत: 8 रुपये प्रति यूनिट
इलेक्ट्रिक वीइकल को फुल चार्ज करने की लागत: 10 रुपये
फुल चार्ज करने पर चलती है: 60 किमी
अगर आपकी डेली एवरेज राइड 40 किमी है तो ऊपर दिए आंकड़ों के आधार पर 2 साल में 28800 किलोमीटर चलेंगे।

इसी के आधार पर इलेक्ट्रिक और पेट्रोल स्कूटर की तुलना करते हैं तो:
2 साल में इलेक्ट्रिक स्कूटर की ओनरशिप
कीमत: 35,000 रुपये
मेंटनेंस कॉस्ट: 8000 रुपये
बैटरी रिप्लेसमेंट कॉस्ट: 16,000 रुपये
2 साल में चार्जिंग की कॉस्ट: 4608 रुपये
रीसेल वैल्यू: 5000 रुपये
टोटल ओनरशिप कॉस्ट: 58,608 रुपये

2 साल में पेट्रोल स्कूटर की ओनरशिप
कीमत: 55,000 रुपये
मेंटनेंस कॉस्ट: 16,000 रुपये
बैटरी रिप्लेसमेंट कॉस्ट: 0 रुपये
2 साल में फ्यूल की कॉस्ट: 38,304 रुपये
रीसेल वैल्यू: 10,000 रुपये
टोटल ओनरशिप कॉस्ट : 99,304 रुपये
इलेक्ट्रिक टू-वीलर चलाने वाले की 2 साल में बचत: 40696 रुपये


इलेक्ट्रिक फोर-वीलर में पीछे हैं हम (बॉक्स के लिए)
इंडिया में इलेक्ट्रिक टू-वीलर्स तो फिर भी सड़कों पर दिख जाते हैं, लेकिन इलेक्ट्रिक फोर वीलर को यहां रोड पर आपने शायद ही देखा होगा। इसकी वजह यह है कि इंडिया में अभी इसका मार्केट बिल्कुल भी नहीं है। महिंद्रा एंड महिंद्रा की एकमात्र इलेक्ट्रिक कार रेवा ही मौजूद है। वैसे तो यह पूरी तरह से बैटरी से चलने वाली कार है, लेकिन जिस तरह की एडवांस इलेक्ट्रिक गाड़ियां अमेरिका, यूरोप और जापान में मौजूद हैं, उनसे यह तकनीकी रूप से काफी पीछे है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इंडिया में इलेक्ट्रिक कारों को पॉपुलर करने के लिए ऑटोमोबाइल कंपनियों और सरकार को काफी मेहनत करनी होगी। इस बीच अच्छी खबर यह है कि दुनिया की सबसे पॉपुलर इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला ने अपनी नई कार टेस्ला मॉडल-3 को इंडिया में लाने का ऐलान कर दिया है। यह बेहद एडवांस्ड कार है। अगर इस पर सारे टैक्स हटा लिए जाएं तो भी इसकी कीमत इंडिया में करीब 25 लाख रुपये पड़ेगी। ऐसे में अगर मास सेगमेंट की बात करें तो करीब 6 लाख रुपये कीमत वाली महिंद्रा रेवा इंडियन मार्केट के लिए फिलहाल अच्छा ऑप्शन है। ..........................................

सब पर भारी, साइकल हमारी
ट्रांसपोर्ट के लिए एक बढ़िया जरिया है साइकल। ऑफिस हो या कॉलेज या फिर थोड़ी दूर से सामान लेकर आना हो, साइकल से बेहतर और कुछ नहीं। एक्सरसाइज के साथ-साथ आप अपनी दूरी आराम से तय कर सकते हैं। मार्केट में आपको 2000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये तक की रेंज में साइकल मिल जाएंगी। इनमें स्पोर्ट्स, हाइब्रिड, माउंटेन, रोड, फोल्डिंग जैसे कई ऑप्शन हैं। साइकल की रेंज के अलावा इसे यूज करने के हिसाब से भी 3 कैटिगरी में बांटा गया है: बेसिक, मॉडरेट और प्रफेशनल्स। अगर आप शौकिया तौर पर साइकल लेना चाहते हैं 3000 से 4500 रुपये तक में काफी अच्छे ऑप्शंस मिल जाएंगे। इसके अलावा और भी बेहतर रेंज में साइकल बाजार में उपलब्ध हैं।
स्कूल-कॉलेज के लिए
मार्केट में सिंगल स्पीड की अच्छी साइकलें 3 से 5 हजार रुपये की रेंज में मौजूद हैं, जो आपकी राइड का मजा बढ़ा सकती हैं। इन तरह की साइकिलों में आपको पावरफुल ब्रेक के साथ स्टील मेटल की बॉडी मिलती है, जिसकी वजह से इसका वजन अपेक्षाकृत कम ही होता है। इनकी मेटिनेंस कॉस्ट भी काफी कम होती है और ये पूरी तरह से पैसा वसूल साबित होती हैं।
​​ऑफिस के लिए
ऑफिस अगर पास है तो हफ्ते में एक-दो बार तो साइकल से जा ही सकते हैं। वैसे भी मार्केट में ऑप्शंस की भरमार है। आपको 8 से 15 हजार रुपये की रेंज में शानदार साइकल मिल सकती है। दिल्ली से सटे इंदिरापरम में स्पोर्ट्स सेंटर डिकैथलॉन के स्पोर्ट्स एडवाइजर मोहित शर्मा का कहना है कि उनके यहां 3 हजार से लेकर 37000 रुपये तक की साइकल उपलब्ध हैं। साइकल को लेकर अब एक नया क्रेज देखने को मिल रहा है। दिल्ली-एनसीआर के लोगों का रुझान साइकल की ओर बढ़ा है। ऐसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है, जो साइकल से चलने में खुद को ज्यादा फ्रेश और फिट महसूस करते हैं।
प्रफेशनल्स के लिए खास
अगर आप प्रफेशनल लेवल पर साइक्लिंग का शौक रखते हैं तो 24 गियर वाली एल्युमीनियम फ्रेम की साइकल आपके लिए बेहतर है। लगभग 10 किलो की ट्राईबैन 300 आपको 8 अलग-अलग साइज में मिल सकेगी। एलॉय वील्स (हल्के और मजबूत) के साथ इसे लंबी राइड के लिए खास तौर से डिजाइन किया गया है। इसकी कीमत 37000 रुपये है।
ऑफ और ऑन रोड के लिए
30 हजार में आपको 27 गियर वाली मल्टिपर्पज साइकल मिल जाएगी, जिसे लेकर आप सिटी और पहाड़ों पर भी जा सकते हैं। इस तरह की साइकल में बाइक की तरह हाइड्रॉलिक सस्पेंशन और ब्रेक लगा होता है जो साइक्लिंग के दौरान आपकी काफी मदद करता है।
कमाल की फोल्डिंग साइकल
बाजार में ऐसी साइकिलें भी हैं, जिन्हें आप फोल्ड करके अपने साथ कहीं भी ले जा सकते हैं। लोग हॉलिडे पर इस तरह की साइकल ले जाना काफी पसंद करते हैं। ऐसी ही फोल्डिंग साइकिल बनाने वाली कंपनी फायरफॉक्स बाइक्स के सीईओ शिव इंदर सिंह का कहना है कि ऑड-ईवन का कॉन्सेप्ट काफी अच्छा है। इससे न सिर्फ पल्यूशन को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी,बल्कि जाम से भी निजात मिलेगी। और जहां तक रही बात ऑफिस जाने की तो साइकल से बढ़िया ऑप्शन और कुछ भी नहीं। फोल्डिंग बाइक से आप आसानी से अच्छी-खासी दूरी कवर कर सकते हैं। विदेशों में तो शॉर्ट डिस्टेंस कवर करने के लिए साइकल सबसे ज्यादा यूज की जाती है। अच्छी बात है कि यह ट्रेंड अब हमारे यहां भी आ रहा है। लोगों को साइकल चाहिए, लेकिन इसे रखने की समस्या से उन्हें दो-चार होना पड़ता है। ऐसे में फोल्डिंग साइकल इसका सॉल्यूशन है। इसे ऑफिस, घर, जिम कहीं भी फोल्ड कर आसानी से रखा जा सकता है।

एक्सेसरीज भी हैं जरूरी
- हेलमेट जरूर पहनें। शहर में साइक्लिंग और पहाड़ों पर साइक्लिंग के लिए अलग-अलग तरह के हेलमेट मार्केट में मौजूद हैं।
- रिफ्लेक्टिव जैकेट्स रोशनी पड़ने पर चमकती हैं। ये एक्सिडेंट होने से आपको बचाएंगी। इसको पहनने से आप दूर से ही सड़क पर दिखाई दे जाएंगे।
- सीट की कुशनिंग बढ़ाने के लिए जेल पैडेड कवर भी बाजार में हैं, जो आपकी राइड को और सुकून भरा बनाते हैं।
- आप साइकल में एक छोटा एयर पंप भी फिट कर सकते हैं जिसके जरिए आप कहीं भी अपनी साइकल में हवा भर सकते हैं।
- छोटा-सा पंक्चर किट जरूर रखें। पंक्चर होने की स्थिति में यह आपकी बड़ी मदद कर सकता है।
- वॉटर बॉटल कैरी करने के लिए होल्डर भी लगवा सकते हैं, यह गर्मी के मौसम में आपको राहत देगा।

साइक्लिंग के फायदे
- यह सबसे आसान और बढ़िया एक्सरसाइज है। बड़े, बुजुर्ग, बच्चे, कोई भी साइक्लिंग कर सकता है।
- वजन घटाने के लिए साइक्लिंग काफी फायदेमंद है।
- रोज साइकल चलाने से दिल की एक्सरसाइज भी होती है और खून का दौरा ठीक होता है। इससे दिल से जुड़े रोगों का रिस्क कम होता है। फेफड़े मजबूत होते हैं।
- साइकल चलाने से पैरों की बढ़िया कसरत होती है और मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
- शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। इससे स्टैमिना भी बढ़ता है।
- रेग्युलर साइक्लिंग आपको तनाव और डिप्रेशन से दूर रखने में मददगार साबित होती है।
- घुटनों के दर्द को कम करने के लिए साइक्लिंग सबसे बढ़िया एक्सरसाइज है। इससे पिंडलियां भी मजबूत होती हैं।

साइक्लिंग के नुकसान
- महानगरों की सड़कों पर पीक ऑवर में साइकल चलाना काफी मुश्किल भरा काम है।
- एक्सिडेंट होने का खतरा लगातार बना रहता है।
- पल्यूशन सीधे तौर पर झेलना पड़ता है।
- नॉर्थ इंडिया के तापमान में बहुत उतार-चढ़ाव होता है। तेज गर्मी, सर्दी के अलावा बारिश में भी साइकिल चलाना काफी मुश्किल है।
- अपनी हाइट के मुताबिक साइकल लेनी चाहिए, वरना पीठ दर्द हो सकता है।

यह भी रखें ध्यान -साइकल को बार-बार गिराने से उसके गियर में दिक्कत आ सकती है इसलिए उसे संभाल कर रखें।
-गियर वाली साइकल में ऑयलिंग काफी जरूरी है, वरना आपको परेशान कर सकती है।
- पहली बार साइकल लेकर निकल रहे हैं तो ज्यादा लंबी दूरी न तय करें। मांसपेशियों में खिंचाव आ सकता है।
- गर्मी का मौसम है, इसलिए साइकल पर निकलने से पहले पीने के पानी का इंतजाम कर लें।
- सिर ढकने के लिए हेलमेट के साथ स्कॉर्फ भी ले सकते हैं, जोकि गर्मी से आपको थोड़ी राहत देगा।​


ये कारपूलिंग ऐप भी काम के...

Odd-Even Ride
इसके जरिए आप अपने पास की कार पूल कर सकते हैं। रजिस्ट्रेशन के बाद आपको अपना नाम, मोबाइल नंबर, वीइकल नंबर, टाइम और कहां जाना है जैसी डिटेल्स डालनी होंगी। अगर आप महिला हैं और सिर्फ महिलाओं के साथ कार शेयर करना चाहते हैं तो वह भी ऑप्शन में भर सकते हैं। टू-वीलर के ओनर भी इसमें खुद को रजिस्टर कर सकते हैं।

PoochhO Carpool
इस ऐप को दिल्ली सरकार ने लॉन्च किया है। 'पूछो कारपूल' ऐप से लोगों को नजदीकी इलाके में कारपूलिंग का ऑप्शन मिलेगा। इसमें रजिस्टर कर लोग 1 से 5 किमी के दायरे में कारपूलिंग तलाश सकते हैं। महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यूजर्स को मोबाइल नंबर शेयर नहीं करना होता। वे ऐप के चैट फीचर से ही कार ड्राइवर से बात कर सकते हैं।

Orahi
इस ऐप ने हाल में odd-even.com को भी खरीदा है। Orahi में रजिस्टर करने के लिए आधार नंबर या ऑफिशल आईडी की जरूरत होती है। इससे सेफ्टी काफी बेहतर हो गई है।

Shuttl
आप एनसीआर में रहते हैं और ऑड-ईवन की वजह से अपनी कार से ट्रैवल नहीं कर पा रहे तो यह ऐप आपके काम का हो सकता है। यह भीड़भाड़ वाली बसों या शेयर्ड ऑटो से आपको बचाएगा। यह फिलहाल नोएडा और गुड़गांव के 15 रूट्स पर कार-पूलिंग मुहैया करा रहा है। उसमें हुडा सिटी सेंटर मेट्रो से मेदांता और फोर्टिस हॉस्पिटल से लेकर मेट्रो सिटी सेंटर तक जैसे रूट हैं।

BlaBla Car
इस ऐप के जरिए भी आप कार पूल कर सकते हैं। रेट इतने कम हैं कि नोएडा से ग्रीन पार्क जैसे एरिया में जाना हो तो 30 से 50 रुपये तक ही खर्च करने होंगे।

वेबसाइट: oddevenidea.delhi.gov.in मोबाइल: 0959-5561-561 नंबर पर कॉल कर जानकारी हासिल कर सकते हैं।



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