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विश्व साक्षरता दिवसः ना बनें पढ़े-लिखे अनपढ़

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साक्षरता का मतलब सिर्फ पढ़ना-लिखना आना ही नहीं होता, अपने अधिकारों को जानना भी पढ़े-लिखे होने की निशानी है। हर शख्स को अपने हकों के बारे में पता होना ही चाहिए। यह आपको बेवजह परेशान होने से बचाता है तो ठगे जाने से भी। आप चाहे ट्रेन से सफर कर रहे हों, किसी वजह से थाने के चक्कर लग रहे हों, किसी संस्थान से फीस रिफंड का मामला हो या फिर अस्पताल में इलाज कराने का, हर जगह यह ज्ञान काम आता है। तो आज अधिकारों के ज्ञान की बात:

स्कूल- कॉलेज में...
सुप्रीम कोर्ट ने फीस रिफंड और रैगिंग के मामले में जो आदेश दिए हैं, वे आपके लिए बड़े काम के हैं। यह फैसला असल में हर छात्र को खास अधिकार देता है:
- कोई भी शिक्षा संस्थान पूरे कोर्स की फीस एक साथ नहीं ले सकता। वह एक सेशन या एक साल की फीस ही एक साथ ले सकता है।
- किसी छात्र के संस्थान छोड़ने की वाजिब वजह पर उसे सही अनुपात में फीस काट कर बाकी रकम लौटाई जानी चाहिए।
- संस्थान छोड़ने पर कोई भी संस्थान मूल प्रमाणपत्र नहीं रोक सकता।

इसी मामले में यूजीसी की गाइडलाइंस भी हैं। कोई छात्र किसी संस्थान में एडमिशन लेकर अगर संस्थान छोड़ना चाहता है तो:
- छात्र के कुछ कक्षाएं लेने पर ज्यादा से ज्यादा 1 हजार रुपये तक की रकम काटकर बाकी रकम लौटाई जाए।
- छात्र द्वारा मूल प्रमाणपत्र मांगने पर संस्थान को हर हाल में उसे लौटाना होगा।

रैगिंग को रोकने की जिम्मेदारी हर शिक्षा संस्थान की है। हर शिक्षा संस्थान में एंटी-रैगिंग कमेटी और एंटी-रैगिंग स्क्वैड होता है। अगर कोई स्टूडेंट रैगिंग करता है तो इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है।

सड़क पर ये हैं हमारे हक
ट्रैफिक नियम को नहीं मानने वालों के खिलाफ अब भारी जुर्माना लगाया जा रहा है। ऐसे में ट्रैफिक नियमों को पूरी तरह समझ लेना जरूरी है। इसका फायदा यह होगा कि बिना वजह फाइन देने से आप बच जाएंगे।

पुलिस इन स्थितियों में कर सकती है गाड़ी जब्त
- जब वह लावारिस हालत में खड़ी हो।
- जहां पार्किंग की इजाजत नहीं है वहां पार्क किया गया हो।
- जब पूरे डॉक्युमेंट्स या चालान के पैसे न हों।
- अगर कोई बच्चा गाड़ी चला रहा हो।
- अगर वीइकल को बिना रजिस्ट्रेशन के चलाया जा रहा हो।

रोड पर ये 4 डॉक्युमेंट्स आपके अधिकार को करेंगे मजबूत
1. ड्राइविंग लाइसेंस(DL)
2. रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC)
3. इंश्योरेंस सर्टिफिकेट
4. वैलिड पल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट (PUC)
नोट: इनमें डीएल और पीयूसी की ऑरिजिनल कॉपी ही मान्य है। अगर आपके पास आरसी और इंश्योरेंस सर्टिफिकेट की ऑरिजिनल नहीं बल्कि फोटो कॉपी उपलब्ध है तो भी आपसे फाइन नहीं वसूला जा सकता। आप डीएल और आरसी को डिजिलॉकर या एम-परिवहन मोबाइल ऐप में डिजिटल रूप में भी दिखा सकते हैं। हां, अगर कानून तोड़ा है तो डीएल या आरसी में से किसी एक का मूल रूप में होना जरूरी है। उसे जब्त करके ही कोर्ट का चालान काटा जाता है।

कौन नहीं वसूल सकता फाइन
ट्रैफिक कॉन्स्टेबल (वर्दी पर फीता सफेद रंग का होता है, कंधे पर बैज होता है।) को फाइन करने का अधिकार नहीं है। वे सिर्फ गाड़ी का नंबर नोट करके जेडओ (एएसआई) को दे सकते हैं। जेडओ के कहने पर चालान काटकर दे सकते हैं।
नोट: कोई ट्रैफिक वाला आपका चालान तभी काट सकता है जब उसने वर्दी पहनी हुई हो और उस पर नेमप्लेट लगाई हुई हो। अगर उसने वर्दी नहीं पहनी है या नेमप्लेट नहीं लगाई हुई है तो आपका अधिकार है कि आप उसकी बात न मानें।

गलत चालान कट जाए तो...
अगर किसी को लगता है कि पुलिस ने उसका गलत चालान काटा है तो जिस कोर्ट में चालान जमा करना है, उस कोर्ट को वह इस बारे में बता सकता है। उसके पास अगर कोई सबूत है तो उसे भी वह कोर्ट को दिखा सकता है।

पुलिस के सामने ये हैं आपके अधिकार
पुलिस की कार्रवाई को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल होते हैं। पुलिस को कानून में कितने अधिकार हैं? सच तो यह है कि पुलिस को कानून ने तमाम अधिकार दिए हैं तो आम आदमी को भी कानून और संविधान में तमाम अधिकार मिले हुए हैं।

पुलिस कब और किसे कर सकती है गिरफ्तार
पुलिस को गिरफ्तारी को लेकर जो अधिकार हैं, उसके बारे में सीआरपीसी की धारा-41 में बताया गया है। पुलिस बिना वॉरंट के गंभीर अपराध के मामले में ही गिरफ्तारी कर सकती है। अगर संज्ञेय अपराध हुआ हो यानी आमतौर पर 3 साल से ज्यादा सजा वाले गैरजमानती (मर्डर, रेप आदि) अपराध में पुलिस बिना वॉरंट के गिरफ्तार कर सकती है। अगर कोई भगोड़ा है तो उसे पुलिस गिरफ्तार कर सकती है या फिर इस बात का अंदेशा हो कि कोई गंभीर अपराध करेगा तो भी गिरफ्तारी हो सकती है। अगर मामला संज्ञेय अपराध का नहीं है तो फिर गिरफ्तारी के लिए पुलिस को वॉरंट दिखाना होगा। मैजिस्ट्रेट की कोर्ट से पुलिस को असंज्ञेय मामले में वॉरंट जारी कराना होता है तभी वह गैर-संज्ञेय या कम गंभीर मामले में गिरफ्तारी कर सकती है।

7 साल के कम सजा के मामले में
किसी की गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए नहीं हो सकती कि मामला संज्ञेय और गैर-जमानती है। 7 साल से कम सजा वाले मामले में रूटीन और मकैनिकल तरीके से गिरफ्तारी नहीं करनी चाहिए। यानी 7 साल से कम सजा के मामले में जब क्राइम की गंभीरता को लेकर पुलिस संतुष्ट होगी, तभी वह किसी को गिरफ्तार कर सकती है।

गिरफ्तारी के बाद आरोपी के अधिकार
गिरफ्तारी के वक्त अरेस्ट मेमो बनाया जाना जरूरी है। डीके बासु से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गिरफ्तारी के बाद पुलिस की ड्यूटी है कि वह आरोपी को उसके वकील से मिलने दे। अरेस्ट मेमो पर आरोपी के रिश्तेदार या दोस्त या मौके पर मौजूद शख्स के दस्तखत लेना जरूरी है। साथ ही, ये बताना भी जरूरी है कि आरोपी के पास से क्या-क्या बरामद हुआ। गिरफ्तारी के बाद आरोपी के रिश्तेदार को इस बारे में जानकारी देना भी जरूरी है कि किस मामले में गिरफ्तारी हुई है। आरोपी का मेडिकल कराया जाना अनिवार्य है। कस्टडी में भी हर 48 घंटे पर मेडिकल कराना जरूरी है। इसी तरह महिलाओं को कुछ गंभीर मामलों को छोड़कर सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय पहले गिरफ्तार नहीं कर सकती। अगर गिरफ्तार करना है तो महिला पुलिस भी होगी और फौरन ही मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा।

महिलाओं के लिए कुछ खास नियम
- महिलाओं को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यही बात थाने बुलाकर पूछताछ करने पर भी लागू होती है। लेकिन अत्यंत गंभीर मामलों (मर्डर, आतंकवादी संलिप्तता आदि) में महिला पुलिस गिरफ्तार करेगी और उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा।
- लॉकअप में पूछताछ के समय, गिरफ्तारी के समय कोई न कोई महिला पुलिस साथ होगी।

अस्पताल में भी हैं अधिकारः

इमरजेंसी में इलाज का अधिकार
कोई भी अस्पताल चाहे प्राइवेट हो या सरकारी, मरीज को फौरन इलाज देने से मना नहीं कर सकता। इमरजेंसी में पेशंट से शुरुआती इलाज के लिए अस्पताल फौरन ही पैसे की मांग भी नहीं कर सकता। यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि किसी भी अस्पताल में मरीज जब इलाज के लिए पैसे देता है तो उसी वक्त वह कंस्यूमर हो जाता है। ऐसे में कुछ गलत होने पर अस्पताल की किसी भी तरह की शिकायत मरीज या उसके परिजन कंस्यूमर कोर्ट में कर सकते हैं। अगर दवाई या इलाज को लेकर कोई शिकायत है तो सबसे पहले अस्पताल प्रशासन से इसकी शिकायत करें और सुनवाई न हो तो कानूनी कार्रवाई करें।

टेस्ट रिपोर्ट्स लेने का अधिकार
मरीज और उसके परिवारवालों को यह हक है कि वे संबंधित अस्पताल से मरीज की बीमारी से जुड़े तमाम दस्तावेज की मांग कर सकते हैं। इन दस्तावेजों में डायग्नोस्टिक टेस्ट, डॉक्टर या विशेषज्ञ की राय, अस्पताल में भर्ती होने का कारण आदि शामिल है।

खर्च की पूरी जानकारी
मरीज का यह हक है कि इलाज से जुड़ी सभी जानकारी उसे मिले। उसे यह भी जानने का अधिकार है कि उसे क्या बीमारी है और कब तक उसके ठीक हो जाने की उम्मीद है। साथ ही, यह भी कि इलाज करवाने में करीब कितना खर्च आएगा।

सर्जरी से पहले मंजूरी
मरीज की किसी भी तरह की सर्जरी करने से पहले डॉक्टर को उससे या उसकी देखरेख कर रहे व्यक्ति से मंजूरी लेनी जरूरी है। साथ ही, डॉक्टर की यह भी जिम्मेदारी है कि वह मरीज को किए जाने वाले सर्जरी के सभी पहलुओं के बारे में जानकारी दे।

दवा दुकान के लिए दबाव नहीं
अक्सर शिकायत रहती है कि अस्पताल अपने ओपीडी मरीजों को दवा की पर्ची देते वक्त दबाव बनाते हैं कि दवा अस्पताल की दुकान से ही लें। आप इससे मना कर सकते हैं। यह मरीज का हक है कि वह दवा अपनी मर्जी की दुकान से खरीदे और साथ ही टेस्ट भी अपनी मर्जी की जगह से कराए।

...तो नहीं रोक सकता अस्पताल
कई बार बिल न चुकाए जाने की वजह से अस्पताल मरीज को डिस्चार्ज नहीं करता। बिल पूरा न दिए जाने की सूरत में कई बार लाश तक नहीं ले जाने दी जाती। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे गैरकानूनी करार दिया है। अस्पताल को मरीज को जबरन रोकने का कोई हक नहीं है।

ये भी हैं अधिकार
- अगर कोई मरीज, किसी डॉक्टर के इलाज से संतुष्ट नहीं हैं तो वह उस डॉक्टर से इलाज करवाने से इनकार कर सकता है। अस्पताल की यह जिम्मेदारी है कि इसके लिए दूसरी व्यवस्था करे। - यदि अस्पताल मरीज को दूसरे अस्पताल में रेफर कर रहा है तो जब तक दूसरा अस्पताल उस मरीज को स्वीकार नहीं करता, तब तक उसे रेफर नहीं माना जाएगा।
- मरीज को अपने डॉक्टर के बारे में जानने का अधिकार है। हर मरीज को अपने डॉक्टर के साथ चर्चा करने और इलाज कौन-से डॉक्टर कर रहे हैं, इसे जानने का भी पूरा अधिकार है।
- मेडिकल रेकॉर्ड का रिव्यू कराने का भी हक है।

अस्पताल के खिलाफ शिकायत
डॉक्टर या अस्पताल अगर लापरवाही करता है तो मरीज या उसके परिजनों को कंस्यूमर कोर्ट में केस दायर करने का अधिकार है। ऐसे मामले में इन बातों का ध्यान रखें:
- कंस्यूमर कोर्ट में शिकायतकर्ता एक सादे कागज पर पूरी शिकायत लिख कर दे सकता है। वह मुआवजे की मांग भी कर सकता है। डिस्ट्रिक्ट कंस्यूमर कोर्ट 20 लाख, स्टेट कंस्यूमर कोर्ट 1 करोड़ और नैशनल कंस्यूमर कोर्ट 1 करोड़ से ज्यादा के मुआवजे का आदेश दे सकता है।
- चूंकि कंस्यूमर कोर्ट में किसी भी केस की सुनवाई के लिए दोनों पक्षों में से किसी एक को कंस्यूमर होना जरूरी है, इसलिए अस्पताल या डॉक्टर का इलाज कराने के बाद कुछ बिल जरूर चुकाएं। ऐसा करने से ही आप कंस्यूमर माने जाएंगे।
- अस्पताल से डिस्चार्ज समरी के साथ ही ट्रीटमेंट रेकॉर्ड भी मांगें। अगर वह न मिले तो दवाइयों के बिल अपने साथ रखें।
- जिस डॉक्टर से इलाज हो रहा है उसका नाम और पूरे डेजिग्नेशन के साथ उसे नोट करके रख लें।
- इलाज के सही न होने का संदेह है तो किसी दूसरे डॉक्टर से राय लें। इसके साथ ही डॉक्टर या अस्पताल बदल दें और प्राथमिकता रोगी के इलाज को दें।

कहां करें शिकायत
- अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को लिखित में शिकायत करें और जांच का अनुरोध करें।
- राज्य मेडिकल काउंसिल और इंडियन मेडिकल काउंसिल को शिकायत करें। दोनों गवर्निंग बॉडी हैं।
- कंस्यूमर कोर्ट में लापरवाही का मामला दर्ज करा सकते हैं और इलाज की राशि, हर्जाने और मुआवजे के साथ ही मुकदमे के खर्च की मांग कर सकते हैं।

जब न हों पूरे दस्तावेज
सभी बातों को पूरे विवरण के साथ लिखें और लोकल कोर्ट में केस दायर कर इलाज के कागजात मांगने और डॉक्टर का नाम-पता बताने के लिए अस्पताल को निर्देश देने के लिए कहें।

एक्सपर्ट्स पैनल
1. प्रेमलता, पूर्व जज, कंस्यूमर कोर्ट
2. प्रो. श्रीराम खन्ना, कंस्यूमर राइट ऐक्टिविस्ट
3. हर्षवर्धन, पूर्व एमडी, वायुदूत,
4. विराग गुप्ता, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
4. अंकित गुप्ता, एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट

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लत को छोड़ना मुश्किल तो है, नामुकिन नहीं

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लत किसी भी चीज की हो, बुरी है। खासकर नशे की लत की बात की जाए तो यह घर-बार से नाता तोड़कर सिर्फ बीयर-बार से जोड़ देता है। हकीकत यह है कि इस लत से आजाद होना मुश्किल तो है, लेकिन नामुमकिन नहीं। अगर सही तरीके से कोशिश की जाए, मरीज के साथ उसके परिवारवालों का साथ भी मिले तो यह मुश्किल भी आसान हो जाती है। नशे की लत छोड़ने के तरीकों और उपायों के बारे में एक्सपर्ट्स से बात कर पूरी जानकारी दे रहे हैं चंदन चौधरी-

केस 1- राकेश को हुआ फायदा
पारिवारिक समस्या और उससे पैदा हुए तनाव की वजह से राकेश (बदला हुआ नाम) को शराब की लत लग गई। शराब की वजह से उनकी जॉब छूट गई। धीरे-धीरे 5 साल बीत गए। परिवार वाले समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें। बाद में उन्हें समझ में आया कि यह सिर्फ अडिक्शन नहीं, एक बीमारी है। इसके बाद राकेश के परिवार वाले राकेश को लेकर एम्स के साइकायट्री विभाग में गए। डॉक्टरों ने परिवार वालों से राकेश के बारे में हर तरह की जानकारी ली। पूरी केस हिस्ट्री देखने के बाद उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति का आकलन किया, जिससे पता चला कि शराब के कारण शरीर पर बहुत बुरा असर हुआ है। इसके अलावा डॉक्टरों ने पता लगाया कि इस वक्त वह नशा छोड़ने के लिए तैयार हैं या नहीं और यह भी कि उनका निश्चय कितना मजबूत है। शराब की वजह से डिप्रेशन या अन्य तरह की समस्या तो नहीं है। इसके बाद राकेश को बताया गया कि उनका जबर्दस्ती इलाज नहीं किया जाएगा। डॉक्टरों के इस कदम के बाद वह डॉक्टरों पर यकीन करने लगे। फिर उनका इलाज शुरू हुआ। पहले उनकी काउंसलिंग शुरू की गई और फिर अडिक्शन कंट्रोल करने की तकनीक सिखाई गई। फैमिली की भी काउंसलिंग हुई। डेढ़-दो साल के इलाज के बाद वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए और अब सामान्य जीवन जी रहे हैं।

केस 2- हर्षिता की परेशानी दूर
हर्षिता (बदला हुआ नाम) को स्मैक का अडिक्शन था। ऐसे में डॉक्टरों ने उनके लिए भी कमोबेश वही तरीका अपनाया जो राकेश के लिए अपनाया था। दरअसल, हर्षिता को अनजाने में ही स्मैक की लत लग गई थी। उन्हें इस खतरनाक अडिक्शन लगने से पहले माइग्रेन की समस्या थी और उससे निजात पाने के लिए एक झोलाछाप डॉक्टर के कहने पर उन्होंने पेनकिलर इंजेक्शन लेना शुरू कर दिया। यह स्मैक था। धीरे-धीरे उन्हें इसकी लत लग गई। घर में वह खुद से या पति से यह इंजेक्शन लगवाने लगीं। हर्षिता जैसे ही उस इंजेक्शन को बंद करने की कोशिश करतीं, उन्हें कई तरह की परेशानियां होने लगतीं। जब वह डॉक्टरों के पास पहुंचीं तो उनका इलाज शुरू हुआ। हर्षिता की असल परेशानी को डॉक्टरों ने जल्दी समझ लिया। अडिक्शन को दूर करने के लिए फौरन ही इलाज शुरू कर दिया। चूंकि हर्षिता खुद ही नशा नहीं करना चाहती थीं, इसलिए डॉक्टरों को ज्यादा समस्या नहीं हुई और वह नशे की गिरफ्त से छूट गईं। आज हर्षिता इस परेशानी से पूरी तरह आजाद हो चुकी हैं और सामान्य जीवन जी रही हैं।

अडिक्शन क्या है?
जब कोई शख्स नशे के सेवन को कंट्रोल नहीं कर पाता है तो नशीले पदार्थ का सेवन बीमारी का रूप धारण कर लेती है।
-अडिक्शन मानसिक बीमारी है।
-ज्यादा समय तक नशा करने पर दिमाग में बदलाव होने लगता है, जिसे बिना इलाज के ठीक करना मुमकिन नहीं है।
-इसमें लंबे समय तक इलाज की जरूरत पड़ती है। इलाज के दौरान दवाई, काउंसलिंग और सामाजिक मेल-मिलाप जरूरी होता है।
-इलाज के बाद भी बहुत सावधान रहने की जरूरत है। क्योंकि इसकी आशंका बनी रहती है कि अडिक्शन खत्म होने के बाद, यह फिर से शुरू हो जाए।

...तो समझो मामला गड़बड़ है
जब नशे की लत लग जाती है तो इससे दूर रहना बहुत मुश्किल हो जाता है। कोई नशे की लत का शिकार हो चुका है, इसके कुछ संकेत हैं:
-नशीली चीज का एक साल से ज्यादा समय से इस्तेमाल करना
-नशा बंद करने या सीमित इस्तेमाल के लिए की जाने वाली कोशिश का हमेशा नाकाम रहना या इच्छा का लगातार बने रहना
-नशे की वजह से ऑफिस, स्कूल या घर में जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहना
-रिश्तों में समस्या पैदा होना और लोग दूरी बनाने लगें
-खेल, टीवी यहां तक कि सिनेमा जैसे मनोरंजन के साधनों को छोड़ देना या बहुत कम कर देना
-नशे की वजह से शरीर में हो रही शारीरिक या मानसिक समस्या के बारे में जानकारी होने के बावजूद भी नशीली पदार्थों का बार-बार इस्तेमाल करना
-नशे का असर ज्यादा हो, इसके लिए लगातार इसकी मात्रा बढ़ाते जाना

परिवारवाले कर सकते हैं ऐसे मदद
मरीज को नशे की लत से बाहर लाने में परिवारअहम भूमिका निभा सकता है। इतना ही नहीं मरीज को पीड़ा, तनाव, शर्म और अपराधबोध से मुक्त कराने में मदद कर सकता है:
-फैमिली मेंबर्स, फ्रेंड्स, टीचर्स, हेल्थ सेंटर्स द्वारा, प्रेरणा देकर, बार-बार नशा करने से रोककर मदद कर सकते हैं।
-अडिक्शन की राह पर बढ़ रहे शख्स को नशे से बीमारी होने का कारण बताकर मदद कर सकते हैं।
-गलत धारणाओं को दूर करके मदद करें।
-मरीज को नशा छोड़ने और काउंसिलिंग और जरूरत पड़ने पर दवा लेने के लिए मोटिवेट करके भी हेल्प करें।
-नशे की तलब लगने वाली परस्थितियों के बारे में जागरुक करके उसकी मदद करें।
-किसी को मरीज के साथ बदसलूकी की इजाजत न दें।
-यदि आपके स्वयं के जीवन का कोई जरूरी पहलू खतरे में है तो काउंसलर की मदद लें।
-फैमिली को भी अडिक्शन संबंधित जानकारी होनी चाहिए। इससे उनका मरीज के प्रति गुस्सा कम होता है। इससे घर में इस मुद्दे पर बेवजह कलह भी कम होता है।
-पेशंट को समझना और दोष न देना सबसे ज्यादा जरूरी है।
-परिवार का तनावग्रस्त होना भी कॉमन है। इसके लिए उन्हें भी प्रफेशनल हेल्प की जरूरत होती है।
-मरीज के छोटे-छोटे प्रयासों की सराहना करें और नेगेटिव कॉमेंट्स पास करने से बचें।

ये हैं इलाज के तरीके
अडिक्शन छुड़वाना बहुत मुश्किल भी नहीं है। अगर कोई अडिक्ट हो गया है तो उसे विशेष डॉक्टर से मिलने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। ऐसा कोई शख्स फैमिली, फ्रेंड्स या दफ्तर में हो तो उसे साइकायट्रिस्ट के पास ले जा सकते हैं। फैमिली को समझना पड़ेगा कि यह एक बीमारी है, न कि उसकी गलती। कोई जानबूझकर नशा कर रहा है और छोड़ना नहीं चाहता, जैसी बात नहीं सोचनी चाहिए। बीमारी है तो इसका इलाज भी है। मरीज को इलाज तक पहुंचने में और इलाज में मदद करे। मरीज को फिर से सुधरने के लिए कुछ मौका दें, थोड़ा वक्त दें।
जिस भी सरकारी अस्पताल में साइकायट्री डिपार्टमेंट है, वहां पर नशे की बीमारी का इलाज भी उपलब्ध होता है। हां, यह हो सकता है कि वहां सभी तरह के अडिक्शन का इलाज उपलब्ध न हो। ऐसे में आप किसी दूसरे नजदीकी अस्पताल में जा सकते हैं। नशा डिप्रेशन की ओर भी ले जाता है। नशा में मौजूद केमिकल ब्रेन के एक खास हिस्से को प्रभावित करता है। इससे डिप्रेशन हो सकता है। दरअसल, नशा करने की वजह से जीवन में दूसरी कई समस्याएं भी आ जाती हैं। मसलन: घर-बार छूटना, नौकरी छूटना, पैसे की परेशानी, पर्सनल लाइफ में किसी और तरह की समस्या होना, नशे के कारण अपराधबोध होना या हीन भावना से ग्रस्त होना। इन समस्याओं से भी डिप्रेशन की समस्या हो सकती है। इलाज के दौरान अगर मरीज सिर्फ नशे की लत का शिकार है तो सिर्फ उसी का इलाज किया जाता है। अगर वह नशे और डिप्रेशन, दोनों का शिकार होता है तो दोनों का साथ-साथ इलाज किया जाता है।

दवा के साथ काउंसलिग भी
दवा का दमः
तलब कम करने और नशे से हुए नुकसान ठीक करने के लिए दवा दी जाती है। लेकिन ऐसा अडिक्शन के हर मामले में नहीं होता। डॉक्टर अडिक्ट की अलग-अलग तरह से जांच करते हैं और फिर तय करते हैं कि दवा की जरूरत है भी या नहीं।

काउंसलिंग
-प्रेरित करना: मनोवैज्ञानिक यह काम बखूबी करते हैं। समझाने, रास्ता दिखाने और उत्साह बढ़ाकर असंभव से दिखने वाले काम को वे संभव बना सकते हैं। इससे मरीज को सीधे फायदा होता है।
-नशा करने से रोकना: परिवार के लोग नशे के बुरे प्रभावों के बारे में बताकर नशे से दूर रहने के लिए किसी को मना सकते हैं।
-जानकारी देकर: नशे के बुरे प्रभावों और इससे निकलने के रास्ते की जानकारी देकर अडिक्शन से बचाया जा सकता है।

क्या बताते हैं काउंसलिंग में
1. नशे के बुरे नतीजों के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है।
2.इससे निकलने के आसान रास्ते की जानकारी दी जाती है।
3. अपने विचारों को कैसे बदलें, यह भी बताते हैं।
4. सोसाइटी-घर में जो कॉमेंट्स होते हैं, उन्हें कैसे हैंडल करें।
5. जब एक बार नशा छूट जाए तो फिर आगे इसे कैसे छोड़े रखें या तलब से दूर रहें।
6. नशा करने वाले यार-दोस्तों से कैसे दूर रहें।
7. नशा करने वाली जगह से कैसे दूर रहें।
8. स्ट्रेस को कैसे हैंडल करें।
9. कामकाज पर कैसे लौटें।
10. वर्कप्लेस पर किस तरह की समस्या आ सकती है जो उन्हें नशे की ओर जाने के लिए मजबूर कर सकती है।
11. परिवार-दोस्तों की भी काउंसलिंग होती है। उन्हें बताया जाता है कि मरीज से कैसा बर्ताव किया जाना है, उसे किस तरह से सपोर्ट करना है।

सबसे ज्यादा है शराब की लत
केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने AIIMS के साथ मिलकर इसी साल देश के सभी राज्यों में एक सर्वे कराया था। इसके मुताबिक, देशभर में 10 से 75 साल आयु वर्ग के 14.6 फीसदी यानी करीब 16 करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं। यह बहुत बड़ी संख्या है। वैसे असल समस्या इतनी बड़ी संख्या में शराब पीने वालों का होना नहीं है बल्कि सबसे अहम बात यह है कि इनमें से ज्यादातर को इलाज की जरूरत है।

कैसे लगती है बुरी लत
-संगति से
-घरेलू माहौल
-मस्ती या शौक के लिए
-जिनेटिक कारण

सर्वे के मुताबिक
16 करोड़ में से करीब 6 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें इलाज की जरूरत
नशा करने वाली 2 फीसदी महिलाओं में से 6.5 फीसदी को इलाज की जरूरत
3 करोड़ लोग करते हैं भांग, गांजा, चरस या किसी दूसरे नशे का सेवन
1.14 फीसदी लोग करते हैं हेरोइन का इस्तेमाल
लगभग 1 फीसदी लोग नशीली दवाएं लेते हैं।

सही इलाज के लिए कहां जाएं
National Drug Dependence Treatment Centre, AIIIMS
-अडिक्शन के इलाज के लिए यह देश की सबसे बेहतरीन संस्था है। नशे के इलाज के लिए वेटिंग जैसी कोई स्थिति नहीं है। साढ़े 11 बजे तक ओपीडी में जो मरीज आते हैं, उन सभी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है। यह सेंटर गाजियाबाद में है। यहां के बारे में डिटेल्ड जानकारी यहां ले सकते हैं: bit.ly/2MZuMZV
दिल्ली: एम्स, जीबी पंत, सफदरजंग जैसे लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में इसका इलाज है।
लखनऊ: किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज
-अडिक्शन और इससे जुड़ी तमाम जानकारी के लिए देखें:
www.alcoholwebindia.in

योग से मिलेगी मदद
-विशेषज्ञों का दावा है कि अगर कोई योग करता है तो उसे नशा करने में परेशानी होगी।
-शीतली और शीतकारी प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, कपालभाती आदि प्राणायाम नशे को दूर रहने में आपकी मदद करते हैं।
-हर दिन कम से कम 50 बार शीतली और 50 बार शीतकारी करें। इसमें 5-5 मिनट का समय लगेगा।
-जो व्यक्ति नियमित शीतली और शीतकारी प्राणायाम करता है उस व्यक्ति के शरीर का सिस्टम इस तरह का हो जाता है कि वह नशीली चीज का सेवन नहीं कर पाता और उससे दूर हो जाता है। उसके सेवन की इच्छा भी मर जाएगी। यह कोई भी कर सकता है। इससे खून साफ होता है। एक महीने के अंदर इसका असर दिखने लगेगा।

लत छोड़ने में होती हैं क्या-क्या परेशानियां
-जब भी कोई शराब का आदी शख्स इसे छोड़ने की कोशिश करता है तो उसके शरीर में कंपकंपी, पसीना आना, मितली या उलटी होना, सिर दर्द, नींद की कमी, कमजोरी, गुस्सा आना, मतिभ्रम की स्थिति रहना आदि आम बात है।
-स्मैक या हेरोइन जैसी नशीली चीजों का मादक पदार्थ सेवन बंद करने से उलटी, शरीर में दर्द, बहती नाक, आंखों में पानी, बहुत ज्यादा पसीना, बदहजमी, दस्त, लगातार उबासी लेना, बुखार, अनिंद्रा, उदास मन जैसी समस्याएं आती हैं।
-तंबाकू का एडिक्शन छोड़ने वाले व्यक्ति में: चिड़चिड़ापन, चिंता, मुश्किल से किसी काम या बात पर ध्यान दे, भूख लगने में वृद्धि, बेचैनी, मन उदास रहना, अनिंद्रा
-भांग या गांजा छोड़ने का प्रयास करने वाले व्यक्ति में: चिड़चिड़ापन, गुस्सा, घबराहट, चिंता, अनिंद्रा, भूख में कमी, वजन में कमी, बेचैनी, उदास मन, कंपकंपी, सिरदर्द जैसी समस्याएं होती हैं।
-धीरे-धीरे शरीर खुद अजस्ट कर लेता है तो ये दिक्कतें दूर होने लगती हैं।

गंभीरता के आधार पर अडिक्शन
हल्का: 2-3 पैग रोजाना
मध्यम: 4-5 रोजाना
गंभीर: 6 या उससे ज्यादा रोजाना

...लेकिन यह नहीं है अडिक्शन
अगर आप चाय, कोल्ड ड्रिंक ज्यादा मात्रा में पीते हैं तो भी यह अडिक्शन नहीं है। मेडिकल साइंस इसे नशे के तौर पर नहीं देखता। यहां एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि आदत यानी हैबिट और व्यसन यानी लत दो अलग-अलग चीजें हैं। अमूमन हम इन दोनों तरह को एकसाथ ही रख देते हैं। अगर किसी को हर दिन सुबह चाय पीने की आदत है और उसे अगर चाय न मिले कुछ लोगों में सिरदर्द जैसी परेशानी हाे सकती है, लेकिन शरीर में कंपकपी जैसी परेशानी तो नहीं ही होती। इसी तरह अगर कोई शख्स कोल्ड ड्रिंक दो-चार दिन न पिए तो उसे कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन नशे की लत है और उसे हर दिन नशा करने के लिए न मिले तो उसका एक-एक दिन काटना मुश्किल हो जाता है।

ज्यादा मात्रा में शराब पीने के खतरे
-पुरुष के लिए 2 घंटे में 5 या उससे ज्यादा पैग और महिलाओं के लिए 4 या उससे ज्यादा पैग खतरनाक हैं।
-पुरुष के लिए एक हफ्ते में 14 पैग और महिलाओं के लिए एक हफ्ते में 7 पैग खतरनाक।
शराब के नशे से बीमारीः लंबे समय तक सेवन करने से लिवर खराब हो जाएगा। कैंसर हो सकता है। ब्लड प्रेशर की समस्या, डायबीटीज बिगड़ सकता है और हार्ट की समस्या हो सकती है। बाद में मरीज की मौत भी हो सकती है।

फिर से फंसने से बचाने की तरकीब
नशे की लत छूटने के बाद फिर से फिर से नशे में पड़ जाना सामान्य है। इससे बचना जरूरी है। इसके लिए सीखना होगा कि:
1. किसी दोस्त द्वारा ऑफर किए जाने पर कैसे मना करें।
2. तलब को कैसे हैंडल करें, यह बताना। मसलन:
-ध्यान किसी और काम में लगाना
-लम्बी सांस लेकर मन को शांत करना
-टालना
-पानी पीना
-ध्यान किसी दूसरे जरूरी काम में लगाना
-लम्बी सांस लेकर मन को शांत करना

लत लगने के चरण
1- नशे की लत लग जाना
2- ज्यादा लेना शुरू करना यानी हानिकारक उपयोग
3- शुरुआत में कभी-कभार लेना

जितनी पुरानी लत, उतना लंबा इलाज
-व्यक्ति अडिक्शन की बीमारी के अलग-अलग चरण में होता है। ऐसे में एक जैसा इलाज सभी के लिए फायदेमंद नहीं होता है। जो जिस स्टेज में होता है, उसका इलाज उसी के अनुसार किया जाता है।
-नशे के अडिक्शन से निकल कर मरीज फिर उसमें फंस जाता है। ऐसे में इलाज के दौरान ध्यान रखना जरूरी है कि मरीज फिर से उसमें नहीं जाए। इसके लिए परिवार वालों को भी निर्देश दिए जाते हैं।
-नशे का ट्रीटमेंट महीनों और सालों तक चल सकता है। इसलिए सब्र बनाकर रखना बहुत जरूरी होता है।
-इलाज में भागीदारी होना ज्यादा फायदेमंद है। इसलिए इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि इलाज किस तरह हो और कहां किया जाए।

रीहैबिलिटेशन सेंटर कितने कारगर?
नशे के इलाज के लिए अक्सर मरीज को रीहैब सेंटर में भर्ती करा दिया जाता है। ऐसा कर परिजन निश्चिंत हो जाते हैं कि वह ठीक हो जाएगा, लेकिन इस मामले में थोड़ी सावधानी की जरूरत है:
- देश के करीब 80 फीसदी रीहैबिलिटेशन सेंटर प्राइवेट हैं और वे कितने प्रभावी हैं, इसके बारे में कहना मुश्किल है।
-प्राइवेट सेंटर ज्यादातर वे लोग चलाते हैं जो पहले खुद नशे से पीड़ित थे। वे इसी बात को हाईलाइट कर अडिक्ट के परिजनों को अपनी सेंटर की ओर खींचते हैं। लेकिन यह बात रीहैबिलिटेशन सेंटर के उपयोगी होने का सबूत कतई नहीं है।
-सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि इस तरह के ज्यादातर सेंटरों में जरूरी दवाइयों की काफी कमी होती है जबकि इलाज के नाम पर काफी पैसे लिए जाते हैं।
-आमतौर पर इन सेंटरों पर शुरुआत में थोड़ी दवाई दी जाती है और बाद में उनकी काउंसलिंग की जाती है। साथ ही मरीजों को नशे से दूर रखने का प्रयास किया जाता है।
-इन सेंटरों के बारे में शिकायत रहती है कि मरीजों से काम करवाया जाता है और उनके साथ डांट-डपट और मारपीट तक की जाती है।
-रीहैब के अनुभव के बाद कई मरीज डॉक्टर के पास जाने से कतराने लगते हैं।

रीहैबिलिटेशन सेंटर को लेकर रहें सतर्क
-मरीजों को सीधे रीहैबिलिटेशन सेंटरों में भर्ती नहीं कराया जाना चाहिए बल्कि पहले उसे डॉक्टरों या ओपीडी में दिखाना चाहिए। कई बार स्थिति डॉक्टरों से ही संभल जाती है। रिहैब जाने से परेशानी बढ़ भी सकती है।
-एम्स के नशा मुक्ति विभाग का दावा है कि उसके यहां आने वाले मरीजों में से करीब 90 फीसदी मरीजों को ओपीडी से ही लाभ मिल जाता है।
-रीहैब सेंटर जाने से पहले एक ऑप्शन अस्पताल में भर्ती कराने का भी है। एम्स में इसके लिए पूरी व्यवस्था है। यह विकल्प भी सही है।
-हां, रीहैबिलिटेशन सेंटर का विकल्प अंतिम हो सकता है और वह भी थोड़े समय के लिए ही। इस ऑप्शन पर तब ही जाना चाहिए जब बाकी सभी ऑप्शन फेल हो गए हों या ज्यादा फायदा नहीं दिख रहा हो।
-कई रीहैबिलिटेशन सेंटर पैसा कमाने के लिए अडिक्शन के मरीजों को लंबे समय के लिए भर्ती के लिए कहते हैं। यह सही नहीं है। वह ऐसा पैसों के लिए करते हैं। इससे मरीज की स्थिति ठीक होने की बजाय खराब भी हो जाती है।
-किसी भी रीहैबिलिटेशन सेंटर में भर्ती करने से पहले वहां पहले से भर्ती मरीज का फीडबैक जानने की कोशिश करें। इससे उसके सक्सेस रेट के बारे में भी जानकारी मिल जाएगी।
-मेंटल हेल्थकेयर ऐक्ट 2017 के तहत रीहैबिलिटेशन सेंटर खोलने के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है। भर्ती करने से पहले लाइसेंस जरूर मांगें।

मिथ मंथन
1. किसी शख्स के चरित्र या व्यक्तित्व में कमी के कारण वह नशीली चीजों का सेवन करने लगता है।
- इसका चरित्र या व्यक्तित्व से कोई लेना-देना नहीं है। नशे की लत किसी भी व्यक्ति को लग सकती है।

2. नशे का सेवन करने वाला शख्स कोई अप्रत्याशित काम कर सकता है या हमला कर सकता है।
-अमूमन नशे की वजह ऐसा कोई नहीं करता। दरअसल जब लोग किसी नशे में पहुंच चुके शख्स के साथ जबर्दस्ती करते हैं और उन्हें नशा करने से रोकने या समझाने की कोशिश करते हैं तो उसकी भावनाएं काबू से बाहर हो जाती हैं। उसे शारीरिक और मानसिक परेशानी होती है। ऐसे में वह अपना आपा खो देता है। किसी अडिक्ट को जब समझाना हो तो यह जरूरी है कि वह पूरे होशो-हवास में रहे।

3. नशे का आदी व्यक्ति कभी भी खुद से नशा नहीं छोड़ना चाहता।
-जिस शख्स को नशे की लत होती है, उसे यह पता होता है कि नशे की लत लग चुकी है। सच यह है कि ऐसे लोगों में से ज्यादातर नशा छोड़ना चाहते हैं, लेकिन जैसे ही वे छोड़ना चाहते हैं, उन्हें परेशानी शुरू हो जाती है। इस परेशानी से निकलने के लिए उन्हें मदद की जरूरत होती है।

4. जिस शख्स की इच्छाशक्ति बहुत मजबूत होगी, वही नशे का सेवन छोड़ सकता है।
-नशे की लत पर कोई भी शख्स लात मार सकता है। नशे की काउंसलिंग के लिए जब कोई शख्स शुरू में आता है तो वह नशा छोड़ने के बारे में नहीं सोच रहा होता, लेकिन जब काउंसलिंग शुरू होती है और काउंसलर दो-तीन बार उससे मिलते हैं तो वह तैयार हो जाता है। कई बार शख्स को खुद भी विश्वास नहीं होता कि वह नशा छोड़ सकता है।

5.नशा छुड़ाने का एक ही तरीका है कि उसे उसकी मर्जी से या जबर्दस्ती कुछ महीने के लिए रीहैबिलिटेशन सेंटर में भर्ती करा दिया जाए।
-यह पूरी तरह गलत है। आमतौर पर एक धारणा है कि नशा छुड़ाना है तो रीहैबिलिटेशन सेंटर में भर्ती करा दो। हमें समझना होगा कि अडिक्शन एक बीमारी है और इसका इलाज है।

6.काउंसलिंग और लाइफस्टाइल में बदलाव से नशे का इलाज संभव है?
-सिर्फ काउंसलिंग और जीवनशैली में बदलाव से इलाज संभव नहीं है। अडिक्शन के मामले में दवा की जरूरत पड़ेगी ही। मरीज के नशे की लत का इलाज करना होगा।

एक्सपर्ट्स पैनल
1- डॉ. आलोक अग्रवाल, असिस्टेंट प्रफेसर, एम्स
2- डॉ. आर. के. चड्ढा चीफ NDDTC, एम्स
3- डॉ. गौरीशंकर केलोया, एसोसिएट प्रफेसर, एम्स
4- डॉ. रवींद्र राव एसोसिएट प्रफेसर, एम्स
5- डॉ. अंजू धवन NDDTC, एम्स
6- आशीष चटर्जी योग गुरु, सत्या फाउंडेशन

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घूमने का कोई महीना नहीं, देखें रोचक लिस्ट

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वेस्ट का बेस्ट मैनेजमेंट

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देशभर में इन दिनों प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने और बेहतर वेस्ट मैनेजमेंट के जरिए प्रदूषण पर कंट्रोल करने की पहल की जा रही है। अगर हम थोड़ी-सी कोशिश करें तो बेकार चीजों का बेहतर तरीके से निस्तारण कर सकते हैं और पर्यावरण में अहम योगदान दे सकते हैं। इस बारे में एक्सपर्ट्स से बातचीत कर जानकारी दे रहे हैं राजेश भारती

सिंगल यूज प्लास्टिक ज्यादा खतरनाक
यों तो प्लास्टिक खतरनाक होता ही है, लेकिन सिंगल यूज प्लास्टिक सबसे ज्यादा खतरनाक है। यह सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल के लिए बनाई गई होती है। इनमें कैरी बैग, कप, पानी या कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, स्ट्रॉ, फूड पैकेजिंग आदि आते हैं।

4R का करें प्रयोग
R (Reuse): किसी भी चीज को बेकार समझकर यों ही न फेंकें। हर चीज का दोबारा प्रयोग हो सकता है। बस थोड़ा दिमाग लगाने की जरूरत होती है।
R (Reduce): बेहतर होगा कि सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल धीरे-धीरे बंद कर दें और इसके विकल्पों जैसे जूट या कपड़े का थैला, कागज के लिफाफे आदि का इस्तेमाल करें।
R (Recycle): ऐसी चीजें जिन्हें रीसाइकल किया जा सकता है, उन्हें एक जगह इकट्ठा कर कबाड़ी वाले को बेच दें। इन चीजों में लोहा, एल्युमिनियम, प्लास्टिक, कांच आदि शामिल हैं।
R (Refuse): जिसे रीसाइकल नहीं किया जा सकता, उस प्लास्टिक के इस्तेमाल से बचें। साथ ही ऐसी रीसाइकल होने लायक प्लास्टिक को भी न कहें जिसकी बहुत ज्यादा जरूरत न हो।

क्यों हो रहा है इस्तेमाल
दरअसल, सिंगल यूज प्लास्टिक को बनाने में ज्यादा खर्चा नहीं आता। ऐसे में न केवल इनका उत्पादन बहुत अधिक हो रहा है बल्कि इस्तेमाल भी खूब हो रही हैं, जबकि यह मजबूत और पैकेजिंग के लिए परफेक्ट होती है। सब्जी, किराना आदि दुकानों पर मिलने वाले 50 माइक्रोन से कम के कैरी बैग सबसे ज्यादा इस्तेमाल होते हैं और ये ही सबसे ज्यादा खतरनाक भी हैं, क्योंकि इन्हें रीसाइकल नहीं किया जा सकता। डस्टबिन में इस्तेमाल होने वाली काले रंग की थैलियां भी 50 माइक्रोन से कम प्लास्टिक की होती हैं।

नुकसानदेह है यह
प्लास्टिक जल, पृथ्वी और वायु को प्रदूषित करती है, जिसका असर इंसान और जीव-जंतुओं पर पड़ता है। प्लास्टिक को पूरी तरह गलने में कई सौ साल लग जाते हैं। इसलिए यह ज्यादा खतरनाक है। प्लास्टिक का असर इस प्रकार पड़ता है:

पानी पर असर: प्लास्टिक इस्तेमाल होने के बाद इधर-उधर फेंक दी जाती है। बारिश के पानी या अन्य कारणों से ये प्लास्टिक नदियों, नालों और समुद्र में चली जाती है। इससे पानी का बहाव प्रभावित होता है। चूंकि प्लास्टिक जल्दी गलती नहीं है इस कारण सैकड़ों सालों तक पानी में पड़ी रहती है। इस प्लास्टिक में केमिकल मिले होते हैं जो पानी के साथ इंसान के शरीर में भी आ जाते हैं। समुद्री जीव भी प्लास्टिक को खाना समझकर खा लेते हैं। प्लास्टिक उनके फेफड़ों या सांस की नली में फंस जाती है और उनकी मौत का कारण बन जाती है।

जमीन पर असर: प्लास्टिक से जहरीली गैस निकलती हैं। धूप के संपर्क में आने पर इससे जहरीली गैसें और ज्यादा निकलती हैं। प्लास्टिक के कारण जमीन बंजर हो जाती है और खेती करना मुश्किल हो जाता है।

हवा पर असर: प्लास्टिक के कूड़े को जलाने से कार्बन डाईऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड गैसों की मात्रा वायुमंडल में बहुत बढ़ जाती है।


इन विकल्पों का कर सकते हैं उपयोग
1. प्रॉडक्ट्स:
प्लास्टिक प्रॉडक्ट की जगह हम दूसरी चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
प्लास्टिक प्रॉडक्ट के ऑप्शन
स्ट्रॉ- पेपर के बने स्ट्रॉ
बोतल- कांच, मेटल, बांस, मिट्टी और सिरेमिक
कप- सिरेमिक या मिट्टी
पॉलीबैग- जूट या कागज की थैली
गिफ्ट रैपर्स- पेपर रोल

2. कटलरी:
मार्केट में मिलने वाले थर्मोकॉल के कप, प्लेट, कटोरी, चम्मच आदि भी सिंगल यूज प्लास्टिक में आते हैं। इनकी जगह बायोडिग्रेडेबल पदार्थों जैसे पेड़ों की पत्तियां, गन्ने की भूसी आदि से बने बर्तन इस्तेमाल किए जा सकते हैं। ये बर्तन खरीदारी के लिए ऑनलाइन उपलब्ध हैं। अलग-अलग बर्तन लेने की जगह आप ट्रे ले सकते हैं।

इतनी है कीमत
प्रॉडक्ट साइज संख्या कीमत
ट्रे 4 कंपार्टमेंट 20 204 रुपये
गोल प्लेट 6.75 इंच 50 472 रुपये
कटोरी 250 ml 100 340 रुपये
स्नैक्स प्लेट 7 इंच 50 260 रुपये
चम्मच 16 सेमी 100 200 रुपये
कंटेनर 750 ml 50 800 रुपये
कप 220 ml 100 450 रुपये
(नोट: यहां बताई गईं कीमतें ई-कॉमर्स वेबसाइट्स से हैं। कीमतों में परिवर्तन संभव।)

एडिबल बर्तन भी हैं मार्केट में
मार्केट में इन दिनों ऐसे भी एडिबल बर्तन (ऐसे बर्तन जिन्हें खाया जा सकता है) भी मौजूद हैं। ऑनलाइन मार्केट में ऐसी ही 90 चम्मचों का सेट 1150 रुपये में उपलब्ध है। खाना खाने के बाद इन चम्मचों को भी खा सकते हैं। एडिबल बर्तन चॉको पाउडर, पुदीने की पत्तियों आदि से बने होते हैं और पूरी तरह ऑर्गेनिक होते हैं। हालांकि इन्हें खरीदते समय इन पर लिखी एक्सपायरी डेट और अन्य जरूरी बातें जरूर पढ़ लें।

शोरूम में बैग को लेकर यह है नियम
प्लास्टिक के कैरी बैग पर बैन की स्थिति में खरीदारों को दिक्कत होना स्वाभाविक है। अगर आप किसी शो रूम में खरीदारी के लिए जाते हैं तो आपको कैरी बैग की जरूरत पड़ सकती है। अगर शोरूम से आप कैरी बैग मांगते हैं और उस बैग पर किसी कंपनी या उसी शो रूम का विज्ञापन है तो आपको हक है कि आप उस बैग की कीमत न दें। वहीं, अगर बैग पर कोई विज्ञापन नहीं है तो आपको बैग की कीमत देनी पड़ सकती है। बेहतर होगा कि शॉपिंग के लिए आप अपना बैग साथ ले जाएं। अभी कुछ समय पहले एक कंपनी का ऐसा ही मामला कंजूमर कोर्ट पहुंचा था, जहां बैग की कीमत लेने को लेकर सुनवाई हुई थी।

प्लास्टिक के इस्तेमाल को लेकर राज्यों में कानून
दिल्ली
50 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक इस्तेमाल करने, बेचने या स्टोर करने पर 5 हजार रुपये तक का जुर्माना।
100 किलो तक प्रतिबंधित प्लास्टिक मिलने पर दो लाख रुपये तक का चालान।
100 किलो से ज्यादा प्रतिबंधित प्लास्टिक मिलने पर 5 लाख रुपये तक का चालान।

ये लगा सकते हैं जुर्माना
प्लास्टिक के संदर्भ में जुर्माना लगाने की जिम्मेदारी 11 विभागों के अधिकारियों को दी गई हैं। इनमें डीपीसीसी के मेंबर सेक्रेट्री, एनवायरमेंटल डायरेक्टर और इनका स्टाफ, क्षेत्रीय एडीएम, क्षेत्रीय एसडीएम, डीपीसीसी के एनवायरमेंटल इंजिनियर्स, एमसीडी के असिस्टेंट कमिश्नर, फूड एंड सप्लाई ऑफिसर, एनडीएमसी के मेडिकल ऑफिसर हेल्थ, दिल्ली सरकार के हेल्थ सर्विसेज डायरेक्टर, एमसीडी के हेल्थ ऑफिसर आदि शामिल हैं। 50 माइक्रोन से कम पॉली बैग्स मिलने की शिकायत डीपीसीसी और एमसीडी के अधिकारियों से की जा सकती है।

उत्तर प्रदेश
योगी सरकार पिछले साल 15 जुलाई से तीन चरणों में प्लास्टिक पर बैन लगाने के लिए अध्यादेश लाई थी। बाद में यह ऐक्ट बन गया।

-15 जुलाई 2018 से 50 माइक्रॉन से पतली प्लास्टिक कैरीबैग्स और अन्य प्रॉडक्ट्स के इस्तेमाल, खरीद, बिक्री और स्टोरेज पर बैन लगा दिया गया।
-15 अगस्त 2018 से प्रतिबंध को कड़ा करते हुए सिंगल यूज प्लास्टिक और थर्मोकॉल से बने सभी प्रॉडक्ट्स के इस्तेमाल, निर्माण और स्टोरेज को प्रतिबंधित कर दिया गया।
-2 अक्टूबर 2018 से सभी तरह के नॉन बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक या थर्मोकॉल के प्रॉडक्ट्स का पूरी तरह बैन है। इसका इस्तेमाल करते हुए पाए जाने लोगों से जुर्माना लगाने के अलावा जेल तक भेजा जा सकता है। जुर्माना इस रेट से वसूला जा सकता है:
वजन जुर्माना (रुपये में)
100 ग्राम तक 1000
101-500 ग्राम तक 2000
501 ग्राम से 1 किलोग्राम तक 5000
1 किग्रा से 5 किग्रा तक 10000
5 किलोग्राम से अधिक 25000

जुर्माने के साथ जेल भी: जुर्माना ऐक्ट के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति प्रतिबंधित प्लास्टिक वेस्ट पब्लिक या किसी की प्राइवेट प्रॉपर्टी में, नदी, नालियों, सड़कों, झीलों, तालाबों में फेंकता पाया जाता है तो उसपर 1000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। जबकि अगर यह वेस्ट किसी व्यक्ति का न होकर कमर्शल या नॉन कमर्शल संस्था का होगा तो जुर्माना की राशि 25000 रुपये होगी। साथ ही प्रतिबंधित पॉलीथीन या थर्मोकॉल के प्रॉडक्ट्स के इस्तेमाल, बनाने, बेचने, स्टोरेज और आयात-निर्यात का दोषी पाए जाने पर छह महीने की जेल या दस से 25 हजार का जुर्माना लिया जा सकता है। दूसरी या इससे आगे ऐसी ही गलती करते हुए पकड़े जाने पर एक साल की जेल हो सकती है या 20 हजार से एक लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है।

एक खामी यह भी: यूपी में प्लास्टिक और थर्मोकॉल प्रॉडक्ट्स पर प्रतिबंध लगाने के लिए जो ऐक्ट है, वह नगर विकास विभाग ने बनाया है। इसे केवल शहरी इलाकों में ही लागू किया जा सकता है। ग्रामीण हिस्सों में प्लास्टिक के इस्तेमाल का कोई प्रतिबंध नहीं है।
इनपुट: रोहित मिश्रा

हरियाणा
-हरियाणा में भी 50 माइक्रोन से कम की प्लास्टिक बैन है।
-इस प्लास्टिक के कैरी बैग बेचने वालों पर 5000 रुपये तक जुर्माना है।
-प्लास्टिक बैग इस्तेमाल करने पर 250 से 500 रुपये तक जुर्माना है।

कचरा अलग-अलग करना जरूरी
हर कचरे को मिलाने से कूड़ा पूरी तरह डिकंपोज नहीं हो पाता। इससे कूड़े का ढेर लगता जाता है, जो प्रदूषण बढ़ता है। कचरा अलग-अलग करने से इसकी प्रॉसेसिंग आसान हो जाती है। गीले कचरे से खाद और सूखे कचरे की रीसाइक्लिंग हो सकती है।

कचरे के अनुसार डस्टबिन का रंग
सार्वजनिक जगहों पर सरकार अलग-अलग तरह के कचरे को छांटने के लिए अलग-अलग रंग का डस्टबिन लगवा रही है, लेकिन इनका उपयोग नहीं हो पा रहा क्योंकि लोग रंग को लेकर अवेयर नहीं हैं। इन डस्टबिन के बारे में जानें:

गीला कचरा (हरा डस्टबिन)
किचन का कचरा जैसे फल-सब्जियों के छिलके, चाय पत्ती, सड़े फल-सब्जियां, सब्जी, बचा भोजन, फूल आदि।

सूखा कचरा (नीला डस्टबिन)
प्लास्टिक, बोतलें, चिप्स या नमकीन के पैकेट, दूध की खाली थैली, कागज कप, प्लेट, अखबार, डिब्बे, बॉक्स, पुराने कपड़े, पेपर बैग आदि।

अन्य कचरा (काला या लाल डस्टबिन)
बायोमेडिकल वेस्ट, डायपर, सैनिटरी नैपकिन, पटि्टयां, टिशू पेपर, रेजर, प्रयोग में लाई हुई सीरिंज, ब्लेड, स्लाइन की बोतलें, एक्सपायर दवाई आदि। इन्हें कागज में लपेटकर ही डस्टबिन में डालें। इस डस्टबिन का अधिकतर इस्तेमाल हॉस्पिटल में होता है।

घर से करें शुरुआत
कचरे को अलग-अलग करने और उसके निस्तारण की शुरुआत घर से ही करनी चाहिए। इसके लिए ये तरीके अपनाएं:

1. डस्टबिन का प्रयोग

दो रंग के डस्टबिन रखें
घर में नीले और हरे रंग के दो डस्टबिन रखें। गीला कचरा हरे रंग के डस्टबिन में और सूखा कचरा नीले रंग के डस्टबिन में डालें। अगर आपके घर से कुछ ऐसा भी कचरा निकलता है, जो अन्य कचरे की कैटिगरी में आता है, उसे कागज में लपेटें और उस पर लाल रंग से क्रॉस का निशान लगा दें। इस कचरे को सूखे कचरे वाली डस्टबिन में डाल सकते हैं। यहां ध्यान रखें कि इस तरह के कचरे को इकट्ठा न होने दें और इसे रोजाना ढलाव घर में फेंक दें या कूड़े वाले को दे दें।

कितना बड़ा हो डस्टबिन
अगर आपके परिवार में दो लोग और दो बच्चे हैं तो गीले कचरे के लिए 30 से 35 लीटर का डस्टबिन काफी रहेगा। यहां ध्यान रहे कि आपको गीले कचरे के लिए तीन डस्टबिन लेने होंगे, क्योंकि एक में जब कचरे का निस्तारण होगा, तब दूसरे का इस्तेमाल कूड़ा जमा करने के लिए किया जा सकेगा। वहीं सूखे कचरे के लिए करीब 50 लीटर का एक ही डस्टबिन काफी है।
कहां से खरीदें
ऑनलाइन और ऑफलाइन, दोनों मार्केट में कूड़ा निस्तारण के लिए प्लास्टिक और मिट्टी के डस्टबिन मौजूद हैं। प्लास्टिक के डस्टबिन को कंपोस्टर डस्टबिन और मिट्टी के डस्टबिन को डेली डंप खंबा कहते हैं। इनकी कीमत इस प्रकार है:
प्रॉडक्ट क्षमता सेट कीमत
प्लास्टिक डस्टबिन 35 लीटर 2 `2 से `3 हजार मिट्टी डस्टबिन 500 ग्राम 1 करीब `3 हजार

कौन-सा है बेहतर
कचरा अलग-अलग करने के लिए घर में इस्तेमाल होने वाला सामान्य डस्टबिन ही ठीक हैं, लेकिन इनमें गीले कचरे का निस्तारण सही तरीके से नहीं हो पाता है। कचरे के निस्तारण के लिए मार्केट में स्पेशल डस्टबिन हैं। बेहतर होगा कि इन्हीं डस्टबिन का इस्तेमाल करें। इनमें प्लास्टिक डस्टबिन 4 से 5 साल तक ही काम कर पाता है, वहीं मिट्टी से बने डस्टबिन को लंबे समय तक इस्तेमाल कर सकते हैं।

2. ऐसे करें निस्तारण
अगर आपके घर की गली, कॉलोनी या सोसायटी में कूड़ा उठाने वाली निगम की गाड़ी आती है और उसमें गला और सूखा कचरा अलग-अलग डालने की सुविधा है तो बेहतर होगा कि आप कूड़ा उसी में डालें। वहीं आपको लगता है कि कूड़े का निस्तारण खुद कर सकते हैं तो इसे घर पर कर सकते हैं।

गीला कचरा
गीले कचरे के निस्तारण के लिए आपको सूखे पत्ते या कोकोपीट (नारियल का बाहरी रेशे वाला भाग) की भी जरूरत पड़ेगी। सूखे पत्ते आपको पार्क में आसानी से मिल सकते हैं। ध्यान रहे दो मुट्ठी सूखे पत्ते रोजाना के लिए काफी रहेंगे। वहीं, कोकोपीट मार्केट में आसानी से मिल जाता है। आप चाहें तो नारियल बेचने वाले से भी कोकोपीट ले सकते हैं। दो मुठ्ठी कोकोपीट भी रोजाना के लिए काफी है। कोकोपीट ऑनलाइन भी मिल जाता है। साथ ही, कूड़ा निस्तारण के लिए कोकोपीट या सूखे पत्तों के अलावा कंपोस्ट मेकर पाउडर भी ऑनलाइन मिलता है। तीन किलो पाउडर की कीमत करीब 500 रुपये है।

गीले कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया:
हरे रंग के डस्टबिन में सबसे पहले दो मुठ्ठी कोकोपीट या सूखे पत्तों को हाथों से मसलकर छोटा-छोटा करके फैला दें। फिर गीले कचरे को उसमें डाल दें। एक दिन में जितना भी गीला कचरा निकले, उसे डालते जाएं। ध्यान रहे, कचरा डालने के बाद डस्टबिन का ढक्कन जरूर बंद कर दें।

रात को गीले कचरे के ऊपर फिर से दो मुठ्ठी कोकोपीट या सूखे पत्ते डाल दें आैर पूरे कचरे को किसी छड़ी से मिला दें ताकि उसके अंदर हवा पहुंच जाए। इसके बाद उसे ढक दें।

कोकोपीट या सूखे पत्तों का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है ताकि ये गीले कचरे से पानी को सोख लें।

यह एक महीने तक करें। यानी जब भी गीला कचरा हो, उसे डस्टबिन में डालें, फिर एक मुट्ठी कोकोपीट या सूखे पत्ते डाल दें और रोजाना रात को कचरे को किसी छड़ी की सहायता से मिला दें।

एक महीने बाद बाद उसमें गीला कचरा डालना बंद कर दें और दो महीने ऐसे ही रहने दें। इस दौरान कचरे को छड़ की सहायता से रोजाना मिलाते रहें। दो महीने बाद आप देखेंगे कि कचरे का रंग भूरा हो चुका होगा। वह गीला भी नहीं होगा और थोड़ा बिखरा-बिखरा होगा। ऐसे में आप समझ जाइए कि आपका गीला कचरा
खाद में बदल चुका है। इस ऑर्गेनिक खाद को बगीचे या किसी भी गार्डन में इस्तेमाल कर सकते हैं।

सूखा कचरा
सूखे कचरे को आप पूरे महीने इकट्ठा कर कबाड़ी को दे सकते हैं। सूखे कचरे के बदले आपको कुछ रकम भी मिल जाएगी। वहीं, आप चाहें तो सूखे कचरे में से चीजों को छांटकर उनका फिर से उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए आप यू-ट्यूब की मदद ले सकते हैं।

3. इन बातों का रखें ध्यान
मार्केट में गीले कचरे के निस्तारण के लिए ऐसे भी डस्टबिन हैं जिनमें कचरे को मिलाने के लिए किसी छड़ी की जरूरत नहीं पड़ती। इनमें एक हैंडल लगा होता है जिसे घुमाकर कचरे को मिलाया जा सकता है। इन्हें कंपोस्टिंग टंबलर कहा जाता है। यह साधारण डस्टबिन के मुकाबले महंगे होते हैं।

जब एक डस्टबिन में गीला कचरा डालना बंद कर दें तो उस समय कचरा डालने के लिए दूसरे डस्टबिन का इस्तेमाल करें। खाद निकालने के बाद डस्टबिन को साफ कर लें और उसे रख लें, क्योंकि अब आपका दूसरा डस्टबिन उपयोग में आ चुका है। जब वह भर जाए तो तीसरा डस्टबिन इस्तेमाल करें। जब तक तीसरा डस्टबिन भरेगा, आप पहले डस्टबिन से खाद निकालकर उसे खाली कर चुके होंगे।

शुरू में गीले कचरे से कुछ बदबू आ सकती है, लेकिन धीरे-धीरे यह बदबू कम हो जाएगी और बाद में बिल्कुल बंद हो जाएगी। हालांकि कचरे में से बदबू दूर करने के लिए बायो सेनेटाइजर आते हैं। ये ऑनलाइन आसानी से मिल जाते हैं। इनके इस्तेमाल का तरीका इन पर लिखा होता है। गीले कचरे के डस्टबिन को ऐसी जगह रखें, जहां आपका आना-जाना कम होता हो या कमरे से कुछ दूर हो। ऐसी जगह गैलरी या बालकनी भी हो सकती है। वहीं सूखे कचरे के डस्टबिन को आप कहीं भी रख सकते हैं।

-गीला कचरा निस्तारण के लिए मार्केट में मिलने वाले डस्टबिन के साथ यूजर बुक आती है, इसलिए इसके उपयोग से पहले यूजर बुक को ध्यान से पढ़ लें।

कॉलोनी/सोसायटी लेवल पर ऐसे हो सकता है निस्तारण
किसी कॉलोनी या सोसायटी में रहने के दौरान भी आप चाहें तो व्यक्तिगत रूप से भी गीले और सूखे कचरे का घर पर निस्तारण कर सकते हैं, लेकिन सभी लोग मिलकर ये काम करें तो कचरे को घर पर निस्तारण करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सभी घरों के कचरे का निस्तारण एक ही जगह बड़े लेवल पर हो सकता है। इसके लिए सभी लोगों को साथ आना होगा। कॉलोनी या सोसायटी लेवल पर गीले कचरे के निस्तारण के लिए इन बातों पर ध्यान दें:

-कॉलोनी या सोसायटी के लोगों को स्वच्छता और कचरा निस्तारण को लेकर जागरुक करें। साथ ही लोगों को गीले कचरे और सूखे कचरे के बारे में जानकारी दें और इन्हें अलग-अलग इकट्ठा करने को कहें।
-आप वॉट्सऐप ग्रुप बनाकर कॉलोनी या सोसायटी के लोगों को जोड़ सकते हैं। साथ ही इसमें RWA या उन लोगों काे भी जोड़ें जो आपकी कॉलोनी या सोसायटी कमिटी से जुड़े हैं।
nसभी लोग मिलकर इलाके के नगर निगम अधिकारी से मिलें और गीले कचरे के निस्तारण को लेकर उनसे चर्चा करें। साथ ही इनमें उनकी मदद लें।
-गीले और सूखे कचरे के निस्तारण को लेकर बहुत सारी संस्थाएं और एनजीओ काम करते हैं। बेहतर होगा कि उनकी भी मदद लें। इनके बारे में आप अपने इलाके के नगर निगम अधिकारी से जानकारी ले सकते हैं क्योंकि ये सभी नगर निगम के साथ मिलकर ही काम करते हैं। कुछ संस्थाएं और एनजीओ के नाम हम बता रहे हैं:
1. वन स्टेप ग्रीनर
Website: onestepgreener.org
Contact: 8744901010
2. स्वयं स्वच्छता इनशिएटिव लिमिटेड
Contact: 011-40988800
3. के. के. प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट
Website: kkplasticroads.in
Contact: 9886505811

गीले कचरे का निस्तारण
कॉलोनी या सोसायटी के सभी मकानों और उनसे रोजाना निकलने वाले गीले कचरे की मात्रा का अनुमान लगाएं। इसके बाद इसी अनुसान से कंपोस्टिंग टंबलर लगाएं। चूंकि कॉलोनी में बड़े लेवल पर गीला कचरा इकट्ठा होगा और उसे ज्यादा दिनों तक कंपोस्ट होने के लिए रख भी नहीं सकते। ऐसे में कंपोस्टिंग की प्रक्रिया तेजी से करने के िलए उसमें बायो डाइजेस्टर मिलाया जाता है। बायो डाइजेस्टर ऑनलाइन खरीदा जा सकता है। इसके प्रयोग का तरीका उस पर लिखा होता है। बायो डाइजेस्टर से कचरा करीब 40 दिनों में कंपोस्ट बन जाता है, यानी गीले कचरे को सिर्फ एक महीने तक टंबलर में डालते जाएं और फिर दूसरा टंबलर इस्तेमाल में ले आएं। पहले टंबलर को 10 दिनों के लिए यों ही छोड़ दें। 10 दिनों में खाद बनकर तैयार हो जाएगी। इस खाद को कॉलोनी या सोसायटी के लोगों को ही दे सकते हैं ताकि वे अपने-अपने गमलों में इसका इस्तेमाल कर सकें।

सूखे कचरे का निस्तारण
सूखे कचरे को सभी लोग एक जगह इकट्ठा करते जाएं। इसे कई संस्थाएं ले जाती हैं और सूखे कचरे में मिली सभी चीजों को अलग-अलग कर लेती हैं। इसे वे रीसाइकल करके उपयोग में ले लेती हैं। इससे बहुत कम कचरा ही डंपिंग साइट पर जा पाता है और वहां कूड़े का ढेर नहीं लगता। इस तरह न केवल हम पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं, बल्कि खाद बनाकर प्रकृति को भी कुछ-न-कुछ वापस करते हैं।

एक्सपर्ट्स पैनल

-विश्वेंद्र सिंह, डिप्टी कमिश्नर, एसडीएमसी
-डॉ. सविता नागपाल, वाइस प्रेजिडेंट, ऐसोसिएशन ऑफ प्रैक्टिसिंग पैथॉलजिस्ट
-विनोद शुक्ला, अध्यक्ष, पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति मंच एनजीओ
- विहान अग्रवाल, फाउंडर, वन स्टेप ग्रीनर

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घर की हवा होगी सफा

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पलूशन से खुद को बचाना बेहद जरूरी है, चाहे आप चारदीवारी के बाहर हों या फिर भीतर। घर के बाहर के पलूशन को लेकर तो हम सचेत रहते हैं, लेकिन घर के अंदर के पलूशन के लिए नहीं, जबकि यह भी उतना ही खतरनाक है। इन्डोर पलूशन की पहचान और इससे होने वाली परेशानियों और बचाव के बारे में एक्सपर्ट्स से बात कर पूरी जानकारी दे रही हैं अनु जैन रोहतगी...

पति से एलर्जी
32 साल की राधिका को सांस फूलने, सांस लेने में दिक्कत, अचानक छीकें शुरू हो जाने की समस्या काफी समय से चली आ रही थी। कई डॉक्टरों से इलाज करवाने के बाद भी उन्हें आराम नहीं मिला। राधिका को यह समस्या अमूमन शाम में शुरू होती थी। काउंसलिंग के दौरान राधिका ने बातों-बातों में डॉक्टरों को बताया कि उनके पति का फार्महाउस है। जब भी शाम को उनके पति घर लौटते हैं तो उनकी छींक और सांस की समस्या शुरू हो जाती है। डॉक्टरों ने इस बात तो गंभीरता से लिया। एक टेस्ट से पता चला कि राधिका को 'चिकन एलर्जी' थी। दरअसल, जब उनके पति फार्महाउस से लौटते थे तो पंख, रोएं, बीट आदि उनके कपड़ों से चिपककर घर के अंदर आ जाते थे। यहीं से राधिका की एलर्जी शुरू होती थी। बेशक यह अजीबो-गरीब मामला था, लेकिन जब उनके पति डॉक्टर की सलाह पर हर दिन फार्महाउस से लौटने के फौरन बाद नहाकर कपड़े बदलने लगे तो राधिका की लंबे समय से चली आ रही समस्या गायब हो गई और वह सामान्य जिंदगी जीने लगीं।

परफ्यूम से खांसी
20 साल की मोना को लगातार सूखी खांसी होती थी। डॉक्टरों ने तमाम टेस्ट के साथ टीबी को ध्यान में रखते हुए उनके बलगम की भी जांच करवाई, लेकिन कुछ ठोस पता नहीं चला। एक दिन बातचीत के दौरान मोना ने डॉक्टरों को बताता कि इस तरह की समस्या उसे अमूमन तब होती है जब वह तैयार होकर पार्टी में जाती है। पार्टी में खांसी की वजह से उन्हें शर्मिंदगी होने लगती है। मोना ने यह भी बताया कि उन्हें परफ्यूम लगाना बहुत पसंद है। परफ्यूम का नाम सुनते ही डॉक्टर अलर्ट हो गए, पता चला कि मोना जिस ब्रांड का परफ्यूम लगाती हैं, उससे उन्हें एलर्जी होती है। इस वजह से उन्हें खांसी होती है। ऐसे में डॉक्टरों ने परफ्यूम को बिलकुल ही बंद करने की सलाह दी। परिणाम सकारात्मक रहा। उनकी खांसी ठीक हो गई।

ये दोनों मामले बताते हैं कि इन्डोर पलूशन हमारी सेहत के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। बहुत-सी चीजें ऐसी हैं जो घर के अंदर की हवा को लगतार खराब कर रही हैं। बड़ी बात यह है कि इसका हमें भान तक नहीं होता। हमलोग अभी भी आउटडोर पलूशन यानी वाहनों का धुआं, निर्माणाधीन इमारतों की धूल-मिट्टी जैसी चीजों को ही खतरनाक मान कर चल रहे हैं, लेकिन बहुत बार इन्डोर पलूशन आउटडोर पलूशन से ज्यादा खतरनाक साबित होता है। यह कई तरह की बीमारियों और एलर्जी का कारण बन जाता है। इन्डोर पलूशन से डरने और बचने की सबसे ज्यादा जरूरत है क्योंकि जिंदगी का 70-90 फीसदी समय इंसान घर या चारदीवारी के भीतर ही गुजारता है, फिर चाहे वह घर हो, ऑफिस, रेस्तरां, मॉल या कोई दूसरी जगह।


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क्या है इन्डोर पलूशन
इसका मतलब है घर, दफ्तर, स्कूल या किसी भी चारदीवारी के अंदर मौजूद हवा का दूषित होना। घर में हवा दो तरह से प्रदूषित होती है।
1. वोलैटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOCs): इसमें सभी तरह की खुशबू होती है। यह बहुत जल्दी और आसानी से गैस या वाष्प बनकर हवा में मिल जती है और हवा को प्रदूषित करती है। जैसे कि एयर फ्रेशनर, परफ्यूम, मच्छर मारने के काम आने वाला स्प्रे, तमाम क्लीनिंग एजेंट, कॉस्मेटिक्स, रंग और तमाम ऐसी गैसीय पदार्थ जो खुशबूदार हैं।
2. सेमी वोलैटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (SVOCs): फर्नीचर, कीटनाशक, मच्छर भगाने वाली क्रीम, बिल्डिंग मटीरियल आदि। इनसे निकलने वाले केमिकल भी धीरे-धीरे ही सही, लेकिन काफी लंबे समय तक घर के अंदर की हवा को प्रदूषित करते रहते हैं।

कौन फैलाता है इसे?

जानवरों के रोएं, पक्षियों की बीट, पालतू पक्षी के पंख आदि। इसके अलावा, बायोलॉजिकल एजेंट भी हैं इसके लिए जिम्मेदार, जैसे: वायरस, बैक्टीरिया, फूलों के परागकण, तमाम तरह की गैस, धूल, धूल में पनपने वाले कीड़े, केमिकल, धुआं आदि।

हम भी कम जिम्मेदार नहीं
बाथरूम से लेकर फर्श और बर्तनों तक को साफ करने वाले तमाम क्लींनिंग एजेंट से निकलने वाली जहरीली गैस इन्डोर पलूशन के लिए जिम्मेदार है। हर दिन इस्तेमाल होनेवाले परफ्यूम, कॉस्मेटिक्स, मच्छर मारने के तमाम साधन, एयर फ्रेशनर, पूजा में कपूर आदि को जलाने से भी इन्डोर पलूशन बढ़ता है। दीवारों और फर्नीचर पर होने वाला चमकदार पेंट, पॉलिश जैसी चीजों से कार्बन मोनॉक्साइड गैस निकलती है। यह एक गंधहीन गैस है जिसका पता नहीं चलता, लेकिन यह इन्डोर पलूशन को बढ़ाता है। पर्दे, कालीन, बिस्तर और रजाइयों में छिपे धूल-कीटाणु भी इन्डोर पलूशन की बड़ी वजहे हैं। इनके अलावा पानी गर्म करने के हीटर, घरों-ऑफिसों में इस्तेमाल होने वाली स्टेशनरी, प्रिंटर, ग्लू से निकलने वाली गंधहीन गैसें... ऐसे एजेंटों की लंबी लिस्ट है जो इन्डोर पलूशन के लिए जिम्मेदार हैं।

समस्याओं की है लंबी लिस्ट
पलूशन शरीर में तमाम तरह की समस्याएं खड़ी करता है। हवा में मौजूद गैस और खुशबू से सरदर्द, छींक, गले में खिच-खिच जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। यह एलर्जी खुजली के रूप में हो सकती है या फिर आंखों से लगातार पानी बह सकता है। कई बार सूखी खांसी हो जाती है तो स्किन पर लाल दाने निकल आते हैं।
हवा में मौजूद केमिकल, धूल-मिट्टी, जहरीली गैसें, वायरस और बैक्टीरिया हमारे शरीर के तमाम सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं। सबसे पहले ये हमारे श्वसन तंत्र (खासकर फेफड़े) पर अटैक करते हैं और कई तरह के संक्रमण का कारण बनते हैं। इतना ही नहीं ये हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर करते हैं और अस्थमा की परेशानी को बढ़ाते हैं।

घर में यूज होने वाले तमाम तरह के केमिकल कैंसर के कारण बनते हैं। ड्राईक्लीनिंग के लिए प्रयोग में आने वाला केमिकल इसका उदाहरण है। हम घर को सुंदर बनाने के लिए जो कलर प्रयोग करते हैं उसमें लेड की मात्रा खतरनाक स्तर तक पाई गई है। यह हमारे नर्वस सिस्टम को कमजोर करता है। खून में ज्यादा मात्रा में लेड पहुंच जाए तो किडनी फेल होने की आशंका भी रहती है।

इन्डोर पलूशन प्रजनन क्षमता को कम करता है। सिगरेट, कुकिंग ऑयल, गैस, स्टोव से निकलने वाला धुआं निमोनिया, ब्रोंकाइटिस और हार्ट की समस्या पैदा करता है। साथ ही इससे लंग्स कैंसर होने का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है। ऑफिस में स्टेशनरी, लेजर प्रिंटर आदि से निकलने वाले छोटे-छोटे कण और गैस भी लंग्स के लिए नुकसानदेह होते हैं।


बचने के उपाय
- घर के अंदर किसी भी प्रकार के धुएं को ना फैलने दें।
- सिगरेट-बीड़ी हमेशा घर से बाहर खुले में पिएं।
- किचन और बाथरूम में बढ़िया एग्ज़ॉस्ट फैन का इस्तेमाल करें। खिड़कियां खुली रखें ताकि वाष्प और धुआं आदि आसानी से निकल सके।
- घर को हवादार बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा अपनी खिड़कियां-दरवाजे खोलकर रखें।
- घर में बेकार की चीजों पर धूल-मिट्टी जम जाती है, इसलिए कोशिश करें कि सिर्फ जरूरत की चीजें ही आपके घर में हों। सजाने के लिए ऐसी चीजों से बचें जिन पर बहुत जल्द धूल जमती है और साफ करने के लिए आपके पास समय की कमी रहती है।
- पालतू जानवरों और पक्षियों की सफाई पर विशेष ध्यान दें। इनके बालों को समय-समय पर कटवाएं। समय पर नहलाएं और इनके मल को हटाने की सही व्यवस्था करें। जानवरों को अपने पलंग-सोफे पर न ही बैठाएं तो बेहतर है। उनके लिए अलग से जगह बनाएं और उन्हें आदत डलवाएं कि वे वहीं जाकर बैठें, जिससे घर में उनके बाल या डेड स्किन न बिखरे।
- जूते-चप्पलों का स्टैंड घर से बाहर रखें और घर के सदस्यों के अलावा बाहर से आने वाले मेहमानों को भी जूते-चप्पल बाहर ही उतारने की सलाह दें।
- एसी का फिल्टर समय-समय पर साफ करें।
- केमिकल की जगह हर्बल मोमबत्तियों और मच्छर मारने के हर्बल तरीकों का इस्तेमाल करें।
- फर्श, फर्नीचर, बाथरूम को साफ करने के लिए हर्बल वस्तुओं का इस्तेमाल करें।
- यदि स्प्रे का इस्तमाल जरूरी है तो कोशिश करें कि कमरा बंद न हो, खिड़की और जाली वाले दरवाजे खोलकर रखें ताकि प्रदूषित हवा बाहर जा सके।
- परफ्यूम लगाने का शौक है तो लगाएं, लेकिन जरूरत से ज्यादा नहीं। कोशिश करें कि पूरी तरह तैयार होने के बाद सबसे आखिर में परफ्यूम लगाएं और फौरन ही घर से निकल जाएं जिससे घर के अंदर की हवा प्रदूषित न हो।
- अपने जूते-चप्पलों को सप्ताह में एक बार धूप लगाएं। धूप जूतों में मौजूद इंफेक्शन पैदा करने वाले कारकों को खत्म कर देती है।
- अगर भीड़-भाड़ वाले इलाके में रह रहे हैं तो सुबह और रात में ही खिड़कियां-दरवाजे खोलने की आदत डालें ताकि ज्यादा प्रदूषित हवा अंदर न आ सके।
- घर में वेंटिलेशन की अच्छी व्यवस्था करें।
- इन्डोर पलूशन का एक बड़ा कारण है किचन में नमी का होना। इसके लिए जरूरी है कि बर्तन को पानी से धोने के बाद सीधा स्टैंड में न लगाएं। उन्हें पहले टोकरी में रखकर सूखने दें। यदि समय है तो साफ कपड़े से पोछकर ही स्टैंड में लगाएं।
- इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों का आर्ट एंड क्राफ्ट का सामान भी पलूशन फैलाता है। इनमें तमाम तरह के रंग, गोंद, क्ले, मार्कर शामिल हैं। इन सामान में मौजूद केमिकल हवा में मिलकर सांस की समस्याओं को बढ़ा देता है।

डस्ट माइट्स से बचकर

इन्डोर पलूशन का बड़ा कारण धूल में पनपने वाले कीड़े भी हैं जिन्हें हम डस्ट माइट्स भी कहते हैं। ये कई तरह की परेशानियां पैदा करते हैं, मसलन खांसी, खुजली, आंखों और नाक से पानी आना, अस्थमा के अटैक आदि। अमूमन ये कीड़े न तो दिखाई देते हैं और न ही इंसान को काटते हैं। जहां धूल, अंधेरा, खाने का सामान या नमी होती है, वहीं ये पनपते हैं।

- इनसे बचने के लिए जरूरी है कि घर में कारपेट न बिछाएं क्योंकि इस पर जमने वाली धूल में ये कीड़े ज्यादा पनपते हैं। अगर कारपेट बिछाना जरूरी समझते हैं तो सप्ताह में एक बार उसे खुले में ले जाकर, ब्रश से अच्छी तरह साफ करें। इनके अलावा अपने पर्दों, सोफों में जमी धूल की लगातार सफाई करें। ध्यान रखे सफाई करते समय अपने घर की खिड़कियां और दरवाजे खोलकर रखें ताकि धूल बाहर निकल जाए। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो धूल और ये कीड़े वापस दूसरी चीजों पर चिपक जाएंगे।

- कपड़े से बनी चीजें इनकी मनपसंद जगह है। इसलिए सबसे ज्यादा ये आपके बेडरूम में मौजूद चादरों, तकियों और कंबलों में अपनी जगह बनाते हैं। इसलिए जरूरी है कि इन चीजों को आप रोजाना झाड़कर बिछाएं। सप्ताह में एक बार इन्हें जरूर बदलें और समय-समय पर धूप दिखाएं।

एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल
आजकल कई तरह के एयर प्यूरीफायर बाजार में मौजूद हैं। दावा किया जाता है कि इन्डोर पलूशन को कम करने में ये अहम भूमिका निभाते हैं। हालांकि ये कितने प्रभावी हैं अभी इसके बारे में कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता। फिर भी अगर आप इन्हें खरीदने जा रहे हैं तो इन बातों को जरूर जान लें...

-सस्ते एयर प्यूरीफायर घर की हवा में सिर्फ इलेक्ट्रिक चार्ज छोड़ते हैं, जिससे हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण दीवारों, पर्दों आदि पर चिपक जाते हैं। हवा थोड़ी देर के लिए साफ हो जाती है, लेकिन फिर यहां-वहां चिपके वे कण वापस हवा में मिल जाते हैं। दूसरा, यह न तो हवा में मौजूद जहरीली गैस को सोखते हैं और न ही बायॉलजिकल एजेंट को। इसलिए सस्ता खरीदने के चक्कर में बेअसर एयर प्यूरीफायर खरीदने से बचें। एयर प्यूरीफायर की कीमत कुछ हजार रुपये से शुरू होकर 1 लाख रुपये तक पहुंचती है, लेकिन एक ठीक-ठाक प्यूरीफायर की कीमत 15 हजार से शुरू हो जाती है।

- खरीदने से पहले ये जरूर पूछें कि एयर प्यूरीफायर सभी तरह के पलूशन, मसलन गैस, बायॉलजिकल एजेंट और धूल-मिट्टी के कण को खत्म करने में सक्षम है या नहीं।

- कुछ एयर प्यूरीफायर बायॉलजिकल एजेंट जैसे कि बैक्टीरिया, वायरस आदि को पकड़ने की क्षमता तो रखते हैं, लेकिन उनको खत्म करने की नहीं। इससे सेकंडरी पलूशन का खतरा बना रहता है। यानी जब आप फिल्टर साफ करने जाएंगे तो ये दोबारा हवा में फैल जाएंगे। ऐसा प्यूरीफायर खरीदने से बचें।

- यह सुनिश्चित करें कि फिल्टर को एक समय बाद बदलने की जरूरत न हो बल्कि इसे धोकर काम चल जाए। इससे आपकी काफी बचत होगी।

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उपाय और भी हैं
बी-वैक्स कैंडल्स: इनडोर पलूशन दूर करने का नेचुरल तरीका है यह। कम ही लोग इस बात से वाकिफ हैं कि बी-वैक्स से बनी मोमबत्तियां घर की हवा में मौजूद पॉलेन, धूल, तमाम तरह के कण को सोखने का काम करती हैं। यह पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है। हवा को साफ करने के साथ इसकी खूशबू भी घर को ताजा रखने का काम करती है।
नमक लैंप: नमक से बने लैंप आजकल खूब बिक रहे हैं। इन्हें जलाने से भी हवा में मौजूद प्रदूषण कम होता है। खासकर जिन लोगों को अस्थमा की शिकायत है उनके लिए ज्यादा उपयोगी है।

घर में बनाएं क्लीनिंग एजेंट

- आधा कप विनेगर और एक चौथाई बड़ा चम्मच बेकिंग सोडा को दो लीटर पानी में अच्छे से मिला लें। इस घोल से कमरे की खिड़कियों, बाथरूम के शीशों आदि को साफ करने से इन्डोर पलूशन कुछ कम होता है।
- लकड़ी के फर्नीचर और शीशे को साफ करने के लिए साफ सूती कपड़ों का इस्तेमाल करें क्योंकि इसमें धूल को पकड़ने की क्षमता होती है।
- कटिंग बोर्ड और चाकू से मछली या प्याज-लहसून की गंध हटानी है तो उन्हें पहले विनेगर से पोछ दें। इसके बाद पानी में धोएं।
- बाथरूम की टाइल्स में लगी फंगस को साफ करने के लिए हाइड्रोजन पैरॉक्साइड में उससे दुगुना पानी मिलाकर घोल तैयार करें और जहां भी फंगस दिखे वहां स्प्रे करके एक घंटे में साफ कर दें। फंगस खत्म हो जाएगा।
- एक कप बेकिंग सोडा में 10 से 12 बूंद मनपसंद तेल मिला कर उसे कारपेट पर लगा दें। इसके 2 घंटे बाद वैक्यूम क्लीनर से उसे साफ करें।
-नीबू के टुकड़े को चॉपिंग ब्लॉक पर रगड़ें। इससे वहां मौजूद बैक्टीरिया का खात्मा होगा।

पेशंट को पूलशन से ऐसे बचाएं
घर में कोई बीमार है, खासकर टीबी, वायरल बुखार, खांसी-जुकाम से पीड़ित है तो बायॉलजिकल एजेंट से फैलने वाले इन्डोर पलूशन से उसे बचाना जरूरी है।
- अगर मुमकिन हो तो पेशंट को अलग कमरे में रखें।
- उस कमरे में शुद्ध हवा और धूप आनी चाहिए।
- कमरे में कम से कम सामान होना चाहिए।
- मरीज यदि थूके, खांसे तो साफ कपड़े का इस्तेमाल करें, जिसे बाद में साबुन या डिटर्जेंट आदि से धोने की पूरी व्यवस्था करें।
- घर में कोई अस्थमा से पीड़ित है तो सोफों, पर्दों पर हल्के कपड़ों का इस्तेमाल करें, जिससे उनकी सफाई आसानी से हो, कालीन न बिछाएं तो बेहतर होगा।
- मरीज को पालतू जानवरों से बचाकर रखें।

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पंचकर्म से दुरुस्‍त रखें अपना तन-मन

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आयुर्वेद में तन-मन को दुरुस्त रखने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इनमें से पंचकर्म काफी अहम है। पंचकर्म के उपयोग से कैसे तन-मन की परेशानियों को काफी हद तक कम कर सकते हैं, एक्सपर्ट्स से बातकर पूरी जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती...

आयुर्वेद कहता है कि मनुष्य का शरीर जिन 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु) से बना है, उन्हीं तत्वों से ब्रह्मांड भी बना है। जब शरीर में इन 5 तत्वों के अनुपात में गड़बड़ी होती है तो दोष यानी समस्याएं पैदा होती हैं। आयुर्वेद इन तत्वों को फिर से सामान्य स्थिति में लाता है और इस तरह से रोगों का निदान होता है। गठिया, लकवा, पेट से जुड़े रोग, साइनस, माइग्रेन, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, साइटिका, बीपी, डायबीटीज, लिवर संबंधी विकार, जोड़ों का दर्द, आंख और आंत की बीमारियों आदि के लिए पंचकर्म किया जाता है।

पंचकर्म की बात
पंचकर्म को आयुर्वेद की खास चिकित्‍सा विधि माना जाता है। यह शरीर की शुद्धि (डिटॉक्सिफिकेशन) और पुनर्जीवन (रिजूविनेशन) के लिए उपयोग किया जाता है। इस चिकित्सा विधि से तीनों शारीरिक दोषों: वात, पित्त और कफ को सामान्य अवस्था में लाया जाता है और शरीर से इन्हें बाहर किया जाता है। शरीर के विभिन्न अंगों और रक्त को दूषित करने वाले अलग-अलग रसायनिक और विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकालने के लिए विभिन्‍न प्रकार की प्रक्रियाएं प्रयोग में लाई जाती हैं। इन प्रक्रियायों में पांच कर्म प्रधान हैं। इसीलिए इस खास विधि को 'पंचकर्म' कहते हैं।
इस विधि में शरीर में मौजूद विषों (हानिकारक पदार्थों) को बाहर निकालकर शरीर का शुद्धिकरण किया जाता है। इसी से रोग निवारण भी हो जाता है। यह शरीर के शोधन की क्रिया है जो स्वस्थ मनुष्य के लिए भी फायदेमंद है। आयुर्वेद का सिद्धांत है: रोगी के रोग का इलाज करना और स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाए रखना। पंचकर्म चिकित्सा आयुर्वेद के इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सर्वोत्तम है। इसीलिए सिर्फ शारीरिक रोग ही नहीं बल्कि मानसिक रोगों की चिकित्सा के लिए भी पंचकर्म को सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा माना जाता है।

इसमें पांच प्रधान कर्म होते हैं लेकिन इन्हें शुरू करने से पहले दो पूर्व कर्म भी जरूरी हैं। ये हैं स्नेहन और स्वेदन। इन दो विभिन्न प्रक्रियाओं के जरिए शरीर में व्याप्त दोषों को बाहर निकलने लायक बनाया जाता है।

प्रधान कर्म (काय चिकित्सानुसार) के अनुसार निम्न हैं:

1. वमन 2. विरेचन 3. आस्थापन वस्ति 4. अनुवासन वस्ति 5. नस्य
यहां ध्यान देने की बात यह है कि शल्य चिकित्सा संबंधी शास्त्रों के अनुसार आस्थापन और अनुवासन वस्ति को वस्ति शीर्षक के अंतर्गत लेकर तीसरा प्रधान कर्म माना गया है और पांचवां प्रधान कर्म 'रक्त मोक्षण' को माना गया है।

पंचकर्म विधि:


पूर्व कर्म
1. स्नेहन: स्नेह शब्द का तात्पर्य शरीर को स्निग्ध करने से है। स्नेहन शरीर पर तेल आदि स्निग्ध पदार्थों का अभ्यंग (मालिश) करके की जाती है या फिर पिलाकर। कुछ रोगों की चिकित्सा में स्नेहन को प्रधान कर्म के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। पंचकर्म चिकित्सा पद्धति की मुख्य थेरपी शिरोधारा को भी स्नेहन कर्म के तहत माना जाता है।

स्नेहन थेरपी के अंतर्गत इन चार प्रमुख स्नेहों (चिकनाई) का प्रयोग किया जाता है:
1. घृत
2. मज्जा
3. वसा
4. तेल

इनमें घृत (गाय की घी) को उत्तम स्नेह माना गया है। ये चारों स्नेह मुख्य रूप से पित्त को खत्म करने वाले होते हैं। औषधि से सिद्ध विभिन्न तेलों का प्रयोग पंचकर्म के लिए किया जाता है जिनका आधार खासतौर पर तिल का तेल होता है जबकि दूसरे तेलों का भी प्रयोग भी आधार के रूप में किया जाता है।

2. स्वेदन: यह वह प्रक्रिया है जिससे स्वेद अर्थात पसीना पैदा हो। वाष्प स्वेदन में स्टीम बॉक्स में रोगी को लिटाकर या बिठाकर स्वेदन किया जाता है। रुक्ष स्वेदन के लिए इंफ्रारेड लैंप लगे हुए बॉक्स का प्रयोग किया जाता है।

स्वेदन के तरीके
1. एकांग स्वेद: अंग विशेष का स्वेदन
2. सर्वांग स्वेद: पूरे शरीर का स्वेदन
अ. अग्नि स्वेद: आग के सीधे संपर्क से स्वेदन
ब. निरग्नि स्वेद: आग के सीधे संपर्क के बिना स्वेदन


सुश्रुत संहिता के अनुसार पंचकर्म के तहत आने वाले 5 मुख्य प्रधान कर्म:


1. वमन
आयुर्वेद कहता है कि मौसम, रोगी और रोग के अनुसार मरीज का इलाज करना चाहिए। जब शरीर के दूषित पदार्थ स्नेहन और स्वेदन के द्वारा अमाशय में इकट्ठा हो जाते हैं तो उन्हें बाहर निकालने के लिए वमन का सहारा लिया जाता है। वमन यानी उल्टी कराकर मुंह से दोषों को निकालना वमन कहलाता है। वमन को कफ से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए मुफीद बताया गया है। स्नेहन व स्वेदन क्रिया द्वारा कफ‌-प्रधान रोगों में जो कफ अपने स्थान से हटा दिया जाता है, उसे ठीक तरह से शरीर के बाहर निकाल देना भी जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो आशंका रहती है कि विरेचन औषधि देने से कफ आंतों में चिपक कर पेट के रोग पैदा कर सकता है। अमूमन वसंत ऋतु में वमन विधि से इलाज किया जाता है।
वमन विधि से उपचार: खांसी, दमा, सीओपीडी, प्रमेह, डायबीटीज, एनीमिया, पीलिया, मुंह से जुड़े रोग, ट्यूमर आदि।
वमन विधि से कौन न कराए इलाज: गर्भवती स्त्री, कोमल प्रकृति वाले लोग, शारीरिक रूप से बेहद कमजोर इंसान आदि।

2. विरेचन
गुदामार्ग से दोषों को निकालना विरेचन कहलाता है। विरेचन से अमाशय, हार्ट और लंग्स से दूषित पदार्थ बाहर निकल जाता है और शरीर में शुद्ध रक्त का संचार होने लगता है। विरेचन को पित्त दोष की प्रधान चिकित्सा कहा जाता है।
किस तरह के रोगों का इलाज: सिरदर्द, बवासीर, भगंदर, गुल्म, रक्त पित्त आदि।
इस विधि से कौन न कराए इलाज: टीबी और एड्स जैसे रोगों से पीड़ित व्यक्ति को विरेचन नहीं कराना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को भी विरेचन नहीं कराना चाहिए जो बुखार से पीड़ित हो या रातभर जागा हो।

3. वस्ति

इस प्रक्रिया में गुदामार्ग या मूत्रमार्ग के द्वारा औषधि शरीर में प्रवेश कराया जाता है ताकि रोग का इलाज हो सके। वस्ति को वात रोगों की प्रधान चिकित्सा कहा गया है।
यह दो तरह का होता है: आस्थापन और अनुवासन। चरक संहिता में इन दोनों को दो अलग-अलग कर्म माने गए हैं।
आस्थापन या निरुह वस्ति: इसमें विभिन्न औषधि द्रव्यों के क्वाथ (काढ़े) का प्रयोग किया जाता है। यह वस्ति क्रिया शरीर के दोषों को चलायमान करती है, शोधन करती है और फिर इन्हें शरीर से बाहर निकालती है।

अनुवासन वस्ति:
इसमें विभिन्न औषधि द्रव्यों से सिद्ध स्नेह का प्रयोग किया जाता है। इसमें प्रयुक्त द्रव्य यदि शरीर के भीतर भी रह जाए तो कोई हानि नहीं होती। पहली वस्ति से मूत्राशय और प्रजनन अंगों को बेहतर किया जाता है। दूसरी बार दी जाने वाली वस्ति से मस्तिष्क विकारों और चर्म रोगों में शांति मिलती है। इसके बाद दी जाने वाली हर वस्ति से शरीर में बल की वृद्धि होती है और रस व रक्त आदि धातुएं शुद्ध हो जाती हैं।

किस तरह के रोगों का इलाज: न्यूरो और जोड़ों के रोग, वीर्य की कमी या वीर्य का दूषित होना, योनि मार्ग और प्रजनन संबंधी रोग आदि।
कौन न कराए इलाज: भोजन किए बिना अनुवासन वस्ति और भोजन के बाद आस्थापन वस्ति नहीं किया जाता है। अत्यधिक दुबले-पतले और कमजोर लोगों को वस्ति नहीं दी जाती। खांसी और दमा के रोगी या जिन्हें उल्टियां हो रही हों, उन्हें भी वस्ति नहीं दी जाती।

4. नस्य
नाक से औषधि को शरीर में प्रवेश कराने की क्रिया को नस्य कहा जाता है। नस्य को गले और सिर के सभी रोगों के लिए उत्तम चिकित्सा कहा गया है।

मात्रा के अनुसार नस्य के दो प्रकार हैं
1. मर्श नस्य: 6, 8 या 10 बूंद नस्य द्रव्य को नाक में डाला जाता है।
2. प्रतिमर्श नस्य: 1 या 2 बूंद औषधि को नाक में डाला जाता है। इसमें नस्य की मात्रा कम होती है इसलिए इसे जरूरत पड़ने पर रोज भी लिया जा सकता है।

किस तरह के रोगों का इलाज: जुकाम, साइनोसाइटिस, गले के रोग, सिर का भारीपन, दांतों और कानों के रोग आदि।
कौन न कराए इलाज: अत्यंत कमजोर व्यक्ति, सुकुमार रोगी, मनोविकार वाले रोगी, अति निद्रा से ग्रस्त लोग आदि।

5. रक्त मोक्षण
शल्य चिकित्सा संबंधी शास्त्रों के अनुसार पांचवां कर्म 'रक्त मोक्षण' माना गया है। रक्त मोक्षण का मतलब है शरीर से दूषित रक्त को बाहर निकालना। आयुर्वेद में खून की सफाई के लिए जलौकावचरण (लीच थेरपी) का विस्तार से वर्णन किया गया है। किस तरह के घाव में जलौका यानी जोंक (लीच) का उपयोग करना चाहिए, यह कितने तरह की होती है, जलौका किस तरह से लगानी चाहिए और उन्हें किस तरह रखा जाता है, जैसी बातों को सुश्रुत संहिता में विस्तार से बताया गया है।
आर्टरीज और वेन्स में खून का जमना और पित्त की समस्या से होने वाले बीमारियों मसलन, फोड़े-फुंसियों और त्वचा से जुड़ी परेशानियों में लीच थेरपी से जल्दी फायदा होता है।

जलौका दो तरह के होती हैं:
सविष (विषैली) और निर्विष (विष विहीन)

आयुर्वेद में इलाज के लिए निर्विष जलौका का उपयोग किया जाता है। आप भी इन्हें आसानी से पहचान सकते हैं। निर्विष जलौका जहां हरे रंग की चिकनी त्वचा वाला और बिना बालों वाला होती है, वहीं सविष जलौका गहरे काले रंग का और खुरदरी त्वचा वाली जिस पर बाल भी होती हैं। ऐसा माना जाता है कि जलौका दूषित रक्त को ही चूसती है, शुद्ध रक्त को छोड़ देता है। जलौका (लीच) लगाने की क्रिया सप्ताह में एक बार की जाती है। इस प्रक्रिया में मामूली-सा घाव बनता है, जिस पर पट्टी करके उसी दिन रोगी को घर भेज दिया जाता है।

नोट: सुश्रुत संहिता के अनुसार, दोनों तरह की वस्ति को एक ही माना गया है और इसमें 5वें को रक्त मोक्षण।

पंचकर्म के साथ आयुर्वेद बीमारियों से बचने के लिए बेहतर खानपान पर भी जोर देता है:
- हरी सब्जियों, सालादों और प्रोटीनयुक्त डाइट की मात्रा बढ़ाएं।
- ऑयली, जंक फूड, कोल्ड ड्रिंक आदि से दूर रहें।
- फ्रिज का ठंडा पानी न पिएं।
- गुनगुना या सामान्य पानी सेहत के लिए अच्छा है।
- खाने के फौरन बाद पानी न पिएं। कम से कम आधे घंटा का गैप जरूर हो।
- जितनी भूख हो, उससे कम खाना खाएं। हां, ध्यान रखें कि खाना अचानक कम न करें। धीरे-धीरे कम करेंगे तो शरीर और मन दोनों को तालमेल बिठाना आसान होगा।
- सूर्यास्त के बाद खाना न खाएं। अगर यह मुमकिन नहीं है तो रात में 8 बजे से पहले जरूर खा लें।
- खाना खाने के बाद फौरन ही बेड पर जाकर नींद में न पहुंच जाएं। खाने और सोने में कम से कम 2 से 3 घंटे का गैप जरूर होना चाहिए।
- हर रोज सुबह खाली पेट 4-5 तुलसी के पत्तों का प्रयोग करें। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।
- एक कच्चा आंवला हर दिन खाएं, लेकिन खाली पेट इसे न खाएं।

पलूशन के दुष्प्रभाव से बचने के लिए पंचकर्म

वैसे तो शरीर से हानिकारक पदार्थ निकालने के कई तरीके हैं, लेकिन हर दिन जो हम पलूशन झेलते हैं उसका असर कम करने के लिए तेल या शुद्ध घी का उपयोग करने से फायदा होता है।

नाक के दोनों छिद्रों के अंदर सरसों का तेल या देसी घी लगाएं। इससे हवा में मौजूद खतरनाक कण कम मात्रा में फेफड़े में पहुंचते हैं। घर से बाहर निकलते समय तो हमेशा लगाएं, चूंकि घर में भी धूल कण होता है, इसलिए घर के अंदर रहने पर भी इन्हें लगाएं।

स्वेदन और स्नेहन से भी फायदा
सलाह दी जाती है कि शरीर के अंदर कुछ गर्म पेय पहुंचते रहना चाहिए। इसके लिए शाम में ऑफिस से घर पहुंचते ही 2 गिलास गर्म पानी या एक गिलास गर्म दूध या एक कप गर्म चाय (दूध वाली) लें। इसके फौरन बाद ही 15 से 20 मिनट तक मुंह समेत पूरे शरीर को किसी मोटी चादर या कंबल से ढंक लें। इससे शरीर से पसीना निकलेगा। इस पसीने के माध्यम से शरीर में मौजूद पल्यूटेंट्स भी बाहर आ जाएंगे। अगर मुमकिन हो तो दूध, चाय या पानी को उबालते समय इसमें आधा चम्मच सौंठ, 3-4 काली मिर्च, आधा चम्मच पीपल और 4-5 तुलसी के पत्ते को भी उबाल कर लेने से काफी फायदा होता। इससे शरीर की इम्यूनिटी बढ़ जाती है। इसे हर दिन ले सकते हैं।

विरेचन
सुबह उठते ही दो गिलास गुनगुना पानी पिएं। इससे पेट में मौजूद प्रदूषण के कण मल के साथ आसानी से बाहर निकल जाएंगे।

स्नेहन
रात को सोने से पहले एक चम्मच कैस्टर या बादाम का तेल गर्म दूध के साथ पीने से पेट साफ होगा।

आज के समय में बेहद उपयोगी

आजकल संक्रामक रोगों और लाइफस्टाइल से जुड़ी हुई समस्याएं काफी बढ़ रही हैं। साथ ही, इम्यून सिस्टम से जुड़ी हुई परेशानियां भी कम नहीं हैं। वजह है, शरीर में विषैले तत्वों का पहुंचना और शरीर की इम्यूनिटी का कम होना। ये विषैले तत्व हवा के अलावा सब्जियों, फलों, अन्न आदि में मौजूद विभिन्न रसायनों और कीटनाशकों की वजह से पहुंचते हैं। इनके लगातार उपयोग से बीमारियां पैदा होती हैं। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर हम साल में एक बार पंचकर्म करवा लें तो इन तमाम समस्याओं से बच सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पंचकर्म शरीर और मन के विकारों को दूर कर आपको स्वस्थ करता है और शरीर की कोशिकाओं को नया बल और जीवन देता है।

लाइफस्टाइल में बदलाव
- अगर बैठकर काम करने की मजबूरी है और इस वजह से शरीर का वजन बढ़ रहा है तो सचेत हो जाने की जरूरत है।
- फिजिकल ऐक्टिविटीज जरूर करें। इससे रक्त संचार तेज होगा और ज्यादा से ज्यादा मात्रा में शरीर से हानिकारक पदार्थ फिल्टर होकर पसीना और मूत्र मार्ग से बाहर निकलेगा।
- सुबह की सैर, वॉकिंग फायदेमंद है।
- सुबह कम से कम 20 से 30 मिनट योग और प्राणायाम जरूर करें।

आयुर्वेद में भी होती है सर्जरी
आयुर्वेद भारत का बहुत ही पुराना इलाज का तरीका है। जड़ी-बूटियों के अलावा मिनरल्स, लोहा (आयरन), मर्करी (पारा), सोना, चांदी जैसी धातुओं के जरिए इसमें इलाज किया जाता है। हालांकि, कुछ लोग ही इस बात को जानते हैं कि आयुर्वेद में सर्जरी (शल्य चिकित्सा) का भी अहम स्थान है।
शल्य तंत्र (सर्जरी): वे बीमारियां जिनमें सर्जरी की जरूरत होती है जैसे फिस्टुला, पाइल्स आदि।

सर्जरी शुरुआत से ही आयुर्वेद का एक खास हिस्सा रहा है। महर्षि चरक ने जहां चरक-संहिता को काय-चिकित्सा (मेडिसिन) के एक अहम ग्रंथ के रूप में बताया है, वहीं महर्षि सुश्रुत ने शल्य-चिकित्सा (सर्जरी) के लिए सुश्रुत संहिता लिखी। इसमें सर्जरी से संबंधित सभी तरह की जानकारी उपलब्ध है।

आयुर्वेदिक सर्जरी की खासियत
खून में होने वाली गड़बड़ी को आयुर्वेद में बीमारियों का सबसे अहम कारण माना गया है। इन्हें दूर करने के दो उपाय बताए गए हैं- पहला है, सिर्फ दवाई लेना और दूसरा दवाई के साथ खून की सफाई (रक्त-मोक्षण)। दूषित रक्त को हटाना सर्जरी की एक प्रक्रिया है। इसके लिए आयुर्वेद में खास विधि अपनाई जाती है।

कुछ अहम सवाल
क्या पंचकर्म की सभी क्रियाएं एक साथ होती हैं?
- ऐसा नहीं है। पूर्व कर्म जिनमें स्नेहन और स्वेदन हैं। ये दोनों एकसाथ भी हो सकते हैं और अलग-अलग भी। वहीं प्रधान कर्म वमन और विरेचन अलग-अलग समय या दिन में होते हैं। इन प्रक्रियाओं को करने में कितना वक्त लगेगा, यह व्यक्ति की उम्र और उसकी जरूरत पर निर्भर करता है। अमूमन वमन और विरेचन 1 से 7 दिन तक चल सकते हैं। पहले वमन होगा, इसके बाद विरेचन की क्रिया पूर्ण की जाती है। इसके बाद ही वस्ति संपन्न होगी। यहां एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि पंचकर्म में लगने वाला समय वैद्य से मिलने के बाद ही पता चलता है। अगर समस्या बड़ी है तो ज्यादा वक्त लग सकता है, नहीं तो एक दो बार में भी परेशानी खत्म हो सकती है।

क्या इसके लिए अस्पताल में भर्ती किया जाता है?
- जिन पंचकर्म अस्पतालों में ये सुविधाएं उपलब्ध हैं, वहां पर जरूरतमंद ठहर सकते हैं। अहम बात यह है कि इन प्रक्रियाओं को ओपीडी में भी सरलतापूर्वक संपन्न किया जा सकता है। सभी पंचकर्म केंद्रों की ओपीडी में इस तरह की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।

क्या इससे रोग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं?
- जिन बीमारियों को ठीक करने के लिए पंचकर्म की पद्धतियों का उपयोग किया जाता है, उनमें ये पूरी तरह कारगर हैं। मसलन स्पॉन्डिलाइटिस, बैकपेन, स्लिप डिस्क, साइनोसाइटिस, माइग्रेन आदि। इनके अलावा डिप्रेशन, तनाव और चिंता जैसी परेशानियों में भी पंचकर्म बहुत उपयोगी है।

किस तरह की समस्याओं में पंचकर्म सफल नहीं है।
- जन्म के समय पैदा हुई समस्याओं को ठीक करने में यह सक्षम नहीं है।

मिथ मंथन
मसाज कराना पंचकर्म में शामिल है?
- नहीं। मसाज कराना पंचकर्म की पूर्व क्रिया है। इसे पंचकर्म मान लेना गलत है।

आयुर्वेद में इलाज काफी लंबा चलता है?
- आयुर्वेद कभी भी बीमारी में तात्कालिक लाभ के उपाय नहीं करता। यह समस्या को जड़ से खत्म करता है, इसलिए कुछ ज्यादा वक्त लग सकता है।

कोई भी पंचकर्म करा सकता है?
- अमूमन 16 साल से कम और 70 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को पंचकर्म से ज्यादा फायदा नहीं होता क्योंकि इनमें धातुओं की कमी रहती है। इनके अलावा किस शख्स को पंचकर्म कराना चाहिए और किसे नहीं, ये बातें जानकार वैद्य ही बता सकते हैं। इसलिए पंचकर्म शुरू करवाने से पहले वहां के वैद्य से जरूर सलाह लें। इसके अलावा अगर किसी बच्चे को ऐसी शारीरिक या मानसिक दुर्बलता है जिसके कारण उसे चलने-फिरने, उठने-बैठने में कठिनाई हो रही हो या मानिसक विकास ठीक से न हुआ हो तो इसमें उम्र की कोई सीमा नहीं होती।

क्या आयुर्वेद की दवाएं गर्म होती हैं?
- ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह रोगों और मौसमों के आधार पर इलाज करता है।

क्या आयुर्वेद की दवाओं में स्टेरॉइड्स होते हैं?
- आयुर्वेदिक दवाओं में केमिकल का उपयोग नहीं होता। काफी पौधों में फाइटोस्टेरॉइड्स (नैचरल रूप में मिलने वाले स्टेरॉइड्स) होते हैं और उनका किसी भी व्यक्ति पर प्रयोग हानिकारक नहीं होता। यह हर तरीके से फायदेमंद होता है। इनका उपयोग भी काफी कम मात्रा में किया जाता है।

एक्‍सपर्ट्स पैनल
- डॉ. राज मान, अडिशनल डायरेक्टर, नॉर्थ एमसीडी
- डॉ. आर. पी. पाराशर, मेडिकल सुपरिटेंडेंट, पंचकर्म हॉस्पिटल, प्रशांत विहार, नॉर्थ एमसीडी
- डॉ. पूजा सभरवाल, असिस्टेंट प्रफेसर, चौधरी ब्रह्मप्रकाश आयुर्वेदिक संस्थान
- डॉ. चंद्रशेखर कौशिक, सीनियर मेडिकल ऑफिसर, साउथ एमसीडी

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दिवाली पर खरीद रहे हैं ड्राई फ्रूट्स? बरतें ये सावधानियां

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दिवाली के मौके पर लोग मिठाई के अलावा ड्राई फ्रूट्स भी खूब गिफ्ट करते हैं। लेकिन इससे पहले आपको जानना जरूरी है कि आप सही क्वॉलिटी खरीद रहे हैं या नहीं? इसकी सही खरीदारी और खाने के सही तरीके के बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं राजेश भारती:दिवाली के मौके पर लोग मिठाई के अलावा ड्राई फ्रूट्स भी खूब गिफ्ट करते हैं। लेकिन इससे पहले आपको जानना जरूरी है कि आप सही क्वॉलिटी खरीद रहे हैं या नहीं? इसकी सही खरीदारी और खाने के सही तरीके के बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं राजेश भारती:

सेहत की हवा न होगी खराब

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दिल्ली-एनसीआर में हवा की क्वॉलिटी में सुधार के बाद शनिवार से AQI चाहे 350 के आसपास आ गया है, लेकिन सेहत के लिहाज से अब भी यह खतरनाक लेवल पर है। बेशक जहरीली हवाओं ने महानगरों में लोगों का जीना हराम कर रखा है। बच्चों और बुजुर्गों की हालत ज्यादा खराब है। ऐसे में सतर्कता जरूरी है। आइए जानते हैं कि कुछ ऐसे छोटे जतन, जिनसे हम इस बड़ी समस्या का समाधान खोज सकते हैं। एक्सपर्ट्स से बात कर पूरी जानकारी दे रहे हैं ... लोकेश के. भारती।

एक्सपर्ट पैनल
ईशी खोसला (सीन‍ियर डायटिशन )

डॉ. सत्या एन. डोरनाला (वैद्य-साइंटिस्ट फेलो)

सुरक्षित गोस्वामी (जाने-माने योग गुरु)

अन्नू गुप्ता (योग विशेषज्ञ)

शाम्भवी शुक्ला (पर्यावरण विशेषज्ञ)

डॉ. भगवान सहाय शर्मा ( प्रफेसर, ए यू तिब्बिया कॉलेज)

डॉ. मीना टांडले (आयुर्वेद एक्सपर्ट)

डॉ. किया बर्मन (नेत्र रोग विशेषज्ञ, सेंटर फॉर साइट)

आचार्य मोहन गुप्ता (नेचरोपैथी एक्सपर्ट)

डॉ. शिखा शर्मा (न्यूट्री-डाइट एक्सपर्ट)

डॉ. एस. वरदराजुलु ( आयुर्वेद एक्सपर्ट)

डॉ आर. पी. पाराशर (मेडिकल सुपरिंटेंडेंट पंचकर्मा हॉस्पिटल)

डॉ. के. के. अग्रवाल ( प्रेजिडेंट, हार्ट केअर फाउंडेशन)


अस्थमा वालों के लिए जरूरी बातें
•जरूरी है कि इनहेलर हमेशा अपने साथ रखें। यहां तक कि परेशानी ज्यादा हो तो बाथरूम तक में इसे ले जाना न भूलें यानी इसे दिल से लगाकर रखें। इसके अंदर दवा की मात्रा को जरूर जांचते रहें। नहीं तो कभी ऐसा मुमकिन है कि इनहेलर की जरूरत हो और वह अंदर से खाली निकले।
•अस्थमा से ग्रस्त बच्चों को जितना मुमकिन हो, प्रदूषण से दूर रखें। बाहर से आने पर हाथ-मुंह, आंख आदि को पानी से जरूर धोएं।
•त्रिकटु चूर्ण 2 ग्राम हर दिन खा सकते हैं। इससे अस्थमा की समस्या कम होती है। फेफड़े साफ होते हैं।
•अस्थमा के मरीज AQI के 50 तक रहने पर मास्क छोड़ सकते हैं। अगर इससे ज्यादा है तो हमेशा ही कम-से-कम N95 स्तर का मास्क पहनकर रहना चाहिए।

फ्लू के मामले में
प्रदूषण की वजह से शरीर का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, इसलिए वाइरल इन्फेक्शन का शिकार हो जाता है। ऐसे में गरारे करना और घर पर बना हुआ सूप पीना बेहतर उपाय हो सकता है।

गरारे: एक गिलास गुनगुने पानी से या फिर इसमें 1 चम्मच सरसों या नारियल तेल मिलाकर गरारे करने से फायदा होगा। दिन में कम से कम 3-से-4 बार जरूर करें।

सूप पिएं: पालक, गाजर, टमाटर, लहसुन, अदरक आदि को मिलाकर वेजिटेबल सूप बना लें। इसे गर्मागम पीने से काफी फायदा होगा।

नोट: गरारे और सूप पीना एक सामान्य शख्स के लिए भी फायदेमंद है। इससे पलूशन का असर शरीर पर कम होता है।

स्नेहन और स्वेदन से भी फायदा


स्नेहन:
स्नेह शब्द का तात्पर्य शरीर को स्निग्ध करने से है। स्नेहन शरीर पर तेल आदि स्निग्ध पदार्थों का अभ्यंग (मालिश) करके किया जाता है। कुछ बीमारियों की चिकित्सा में स्नेहन को प्रधान कर्म के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। पंचकर्म चिकित्सा पद्धति की मुख्य थेरपी शिरोधारा भी स्नेहन कर्म के तहत मानी जाती है।

स्वेदन: यह वह प्रक्रिया है जिससे स्वेद यानी पसीना पैदा हो। वाष्प स्वेदन में स्टीम बॉक्स में मरीज को लिटाकर या बिठाकर स्वेदन किया जाता है। रुक्ष स्वेदन के लिए इंफ्रारेड लैंप लगे हुए बॉक्स का प्रयोग किया जाता है। स्वेदन को घर में खुद से भी कर सकते हैं। इसके लिए गर्म चाय या गर्म पानी पीने के बाद मोटे कंबल को ओढ़ लेते हैं या फिर गर्म पानी को किसी बर्तन में रखकर कंबल से पानी समेत खुद को ढक लेने से पूरे शरीर से पसीना निकलता है। इससे शरीर से टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं।

प्रदूषण से बचाव में रामबाण है जलनेति

वायु प्रदूषण से बचाव करने में जलनेति सबसे कारगर है। यह एलर्जी, नाक बंद होना, बदलते मौसम में नज़ला-जुकाम, दमा और ब्रॉन्काइटिस आदि बीमारियों में लाभकारी है।

कैसे करें: सुबह खाली पेट आधा लीटर पानी उबालकर ठंडा कर लें। जब पानी गुनगुना रह जाए तब उसमें आधा चम्मच सफेद या सेंधा नमक मिला लें। अब टोंटीदार लोटा लेकर पानी को लोटे में भर लें और कागासन में बैठ जाएं। जो नासिका चल रही हो, उसी हथेली पर लोटा रख लें और टोंटी को चलती नासिका पर लगाएं और गर्दन को दूसरी तरफ झुका लें! मुंह खोलकर मुंह से सांस लेते रहें। लोटे को थोड़ा ऊपर उठाते ही दूसरी नाक से पानी आना शुरू हो जाएगा। लोटा खाली होने पर इसी तरह दूसरी नासिका से भी कर लें। फिर हाथों को कमर के पीछे बांधकर खड़े हो जाएं और थोड़ा आगे झुककर कपालभाति क्रिया गर्दन को सामने, नीचे, दाएं व बाएं घुमाकर बार-बार कर लें, जिससे नाक के अंदर रुका पानी निकल जाएगा।

सावधानी: शुरू में इसका अभ्यास योग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करें। जलनेति के बाद लेटकर नाक के दोनों छिद्रों में दो-दो बूंद गाय का शुद्ध घी डाल लें या सरसों का तेल अंगुली से दोनों छिद्रों में लगा दें। ऐसा करने से दिनभर सांस द्वारा अंदर जाने वाले प्रदूषित कण नाक में ही चिपक जाएंगे। फिर रात में सोने से पहले नाक को अच्छी तरह साफ करके सो जाएं।

जलनेति के लिए देखें विडियो:
tinyurl.com/y3jp7h77•tinyurl.com/y2usrvgf

नेचरोपैथ की सलाह

नेचरोपैथी कहती है कि शरीर के अंदर गंदगी जमा होने से ही हेल्थ संबंधी सभी समस्याएं होती हैं। प्रदूषण के मामलों में भी दिक्कत शरीर के अंदर गंदगी जमा होने से ही होती है। प्रदूषण का असर कम से कम हो, इसके लिए ये करें:
•सुबह में सूर्योदय से पहले घर से न निकलें। चाहे योग करना हो या एक्सरसाइज, इस बात का जरूर ध्यान रखें।
•सुबह से लेकर दोपहर 12 बजे तक खाने में सलाद, फल, नारियल पानी का उपयोग ज्यादा-से-ज्यादा करें। दोपहर 12 बजे के बाद ही सामान्य भोजन करें।
•सुबह और शाम में पानी से आंखों को धोएं।
•खाने में मौसमी फल और सब्जियों का ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल हो।

घरेलू नुस्खे जो काम के हैं....
•सूखे अदरक का एक टुकड़ा गुड़ की दोगुनी मात्रा के साथ चबाएं। इसे दोपहर में भोजन से पहले या बाद में लें।
•रात में एक कप गर्म पानी के साथ हरितकी (हरड़) का चू्र्ण 45 दिनों के लिए लें। इसका सेवन शरीर को प्रदूषण से लड़ने में सक्षम करेगा ।
•रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच च्यवनप्राश लें। यह बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है।
•सुबह के समय तुलसी के 3-4 पत्तियों का सेवन करें।
•एक लीटर पानी में थोड़ा-सा अदरक, 2-3 लौंग, 3-4 काली मिर्च, तुलसी के 4-5 पत्ते और एक चम्मच सौंफ मिलाकर काढ़ा बना लें। सुबह से शाम तक थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इसका सेवन करें।
•नीम की पत्तियों से बीमारियों से लड़ने की क्षमता मिलती है। ऐसे में इन दिनों में रोजाना सुबह के समय 4-5 नीम की पत्ती खा सकते हैं। इसके अलावा लहसुन की एक कली रोज सुबह खाली पेट ले सकते हैं। इससे बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
•सौंठ तीन चुटकी, तीन तुलसी पत्ते, तीन काली मिर्च, दालचीनी का पाउडर दो चुटकी लें और इन सभी को मिलाकर काढ़ा या चाय के रूप में दिन में एक बार एक कप जरूर पिएं।
•आप चाहें तो हल्दी, गुड़, काली मिर्च और देसी घी की चटनी बनाकर सात दिनों के लिए रख लें। इनमें 3 चम्मच हल्दी, 30 ग्राम गुड़, एक बड़ा चम्मच देसी घी और चौथाई चम्मच काली मिर्च को मिला लें। इसका आधा चम्मच सुबह-शाम गरम पानी के साथ लें। इससे अस्थमा, जुकाम, खांसी, खराश सभी चीजें कंट्रोल में रहेंगी।
•2 चम्मच एलोवेरा, जूस 2 चम्मच गर्म पानी के साथ लें। फायदा होगा।
•आंवले का दो चम्मच रस, एक चौथाई चम्मच शहद और चौथाई चम्मच हल्दी पाउडर को मिलाकर सुबह खाली पेट पिएं तो फायदा होगा।

नोट: इनमें कोई एक-दो उपाय कर लें जो भी आपके लिए आसानी से मुमकिन हो। इससे प्रदूषण से पैदा हुई दिक्कतों में आराम मिलेगा।

आंखों की करें हिफाजत
•बाहर निकलें तो सन ग्लासेस पहनें। अगर पावर वाला चश्मा लगा हुआ है तो फिर ऐसे ग्लासेस की जरूरत नहीं होगी।
•आंखों में लूब्रिकेटिंग ड्रॉप्स डालें। मसलन, Carboxymethyl Cellulose (कार्बोक्सिमिथाइल सेलुलोज) या Hydroperoxy Methyl Eye Lubricant (हाइड्रोपरऑक्सी मिथाइल आई लूब्रिकेंट)।
•पलूशन की वजह से अगर आंखों में खुजली हो तो खुजाएं बिलकुल नहीं। ठंडे पानी से आंखों को धो लें।
•गुलाब जल पर पीएच वैल्यू (अगर पीएच वैल्यू 7 से कम है तो वह एसिडिक होता है और 7 से ज्यादा तो अल्कलाइन) लिखी हो तो आंखों में ले सकते हैं, लेकिन अमूमन ऐसा होता नहीं। आंखों की पीएच वैल्यू 6.5 से 7.6 होती है। बाजार में मिलनेवाले लूब्रिकेटिंग ड्रॉप्स जांचे और परखे होते हैं। अमूमन इन पर पीएच वैल्यू लिखी होती है।

प्रदूषण का हमला यों करें बेकार
•सुबह उठते ही पहले हाथ धो लें। अब बिना पानी पिएं, सीधे हाथ के अंगूठे से तालू को रगड़कर साफ करें। साथ ही दो उंगलियों से जीभ को जिह्वा मूल (जहां से जीभ शुरू होती है) तक रगड़कर साफ करें। ऐसा तीन-चार बार करने से अंदर चिपका हुआ कफ निकल जाएगा।
•घर से निकलने से पहले तिल या सरसों का तेल या देसी घी को गर्म करके और फिर उसे ठंडा करके 2-3 बूंदें नाक में जहां तक आराम से उंगली पहुंचे, अंदर की तरफ लगाएं। इसे आयुर्वेद में नस्य या नास्य लेना बोलते हैं। इसकी वजह से एलर्जी पैदा करने वाली चीजें, मसलन धूल या वाहनों से निकले छोटे खतरनाक कण सांस के जरिए शरीर के अंदर नहीं पहुंचते।
•प्रदूषण के कारण नाक और सांस नली में हुई सूजन को खत्म करने व इन्फेक्शन से बचाव के लिए पुदीना या यूकेलिप्टस के तेल की दो-दो बूंदें नाक के दोनों छिद्रों में सुबह और रात में डालें।
•रात को सोने से पहले नाक को अच्छी तरह साफ कर लें। आप पाएंगे कि नाक के अंदर की गंदगी बाहर निकल जाने से आपको नींद बेहतर आएगी।
•हफ्ते में एक या दो बार जलनेति करें। अगर कमर दर्द, हाई बीपी, दिल की बीमारी, माइग्रेन है तो ये क्रियाएं बिलकुल न करें। कुंजल या जलनेति का अभ्यास योग विशेषज्ञ की निगरानी में ही करें।
•शरीर को जितना ढक सकते हैं, उतना ढक कर निकलें ताकि स्किन पर बाहर की हवा और धूल कम से कम पड़े।
•बाहर से घर आने पर फौरन कुछ भी खाने से बचें। घर आकर सबसे पहले गर्म पानी से गरारे करें और आंखों पर गुनगुने या सामान्य पानी से पानी के छीटे मारें।
•हाई ब्लड प्रेशर है तो सुबह में घूमने जाने से बचें, खासकर बुजुर्ग लोग।


बच्चों की बात
•अगर AQI का स्तर 150 से ज्यादा हो तो बच्चों को बाहर खेलने से रोकें।
•बच्चों को सुबह में स्कूटर या बाइक से स्कूल छोड़ने न जाएं।
•अगर ज्यादा प्रदूषण की वजह से बच्चों की आंखें लाल हो जाती हैं तो फौरन डॉक्टर से मिलें।
•बच्चे घर में हों या बाहर गए हों, उनकी आंखों को पानी से धोएं और फिर नाक के अंदर सरसों तेल या नारियल तेल या देसी घी की 2-3 बूंदें लगा दें।
•बिलकुल छोटे बच्चों के कमरे को गर्म रखने के लिए लकड़ी जलाई जाती है। इससे जरूर बचें।

घर के अंदर की हवा ऐसे रखें साफ
•कमरे की खिड़कियां बंद रखें। घर के अंदर कोई भी चीज जलाने से बचें, मसलन लकड़ी, मोमबत्ती और यहां तक कि धूप-अगरबत्ती भी। समय-समय पर गीला पोछा लगाते रहें। प्रदूषण ज्यादा होने पर दिन में 3 से 4 बार गीला पोछा जरूर लगाएं। इससे खतरनाक डस्ट पार्टिकल से घर मुक्त रहेगा।
•अगर सुबह-शाम घर के अंदर दरवाजे के पास 2 लीटर पानी खुले में उबाला जाए तो धूल व प्रदूषण के ज्यादातर कण वाष्प के साथ नीचे बैठ जाएंगे, जिससे घर के अंदर की हवा का प्रदूषण कम हो जाएगा।
•अगर बाहर पलूशन बहुत ज्यादा है तो घर के रोशनदान, दरवाजे आदि को जितना मुमकिन हो, बंद करके रखें।

घर में लगाएं इन पौधों को

तुलसी
यह कॉर्बन मोनोऑक्साइड, कॉर्बन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड को अवशोषित कर वातावरण को शुद्ध बनाने में सहायक होती है। घर के अंदर जहां धूप आती हो, इसे गमले में रख सकते हैं।
कीमत: 20 से 50 रुपये

मनी प्लांट
यह अधिकतर घरों में मिल जाता है, जोकि हवा को शुद्ध करने में काफी मदद करता है। घर से कार्बन मोनोआक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी जहरीली हवाओं को निकालने में मदद करता है।
कीमत: 100 से 300 रुपये

ऐरेका पाम
अगर आप अपने पूरे घर में ऑक्सिजन की कमी नहीं होना देना चाहते हैं तो कम से कम के 4 पौधे लिविंग रूम में लगाएं।
कीमत: 200 से 300 रुपये

पीस लिली
यह पौधा हवा में मौजूद हानिकारक कणों और बीमारी पैदा करने वाले कणों को दूर भगाकर हवा को साफ करने में मदद करता है।
कीमत: 150-200 रुपये

रबड़ प्लांट
आप घर के साथ-साथ ऑफिस में भी इस प्लांट को रख सकते हैं। इनमें ऑफिस के वुडन फर्नीचर से निकलने वाले हानिकारक ऑर्गेनिक कंपाउंड फॉरमल्डिहाइड से वातावरण को मुक्त करने की क्षमता होती है।
कीमत: 150-200 रुपये

ऑनलाइन करें ऑर्डर
अगर आपके घर के आसपास नर्सरी से इनडोर प्लांट न मिलें तो आप इन्हें ऑनलाइन ऑर्डर के जरिए भी मंगवा सकते हैं। ऐसी कई बेवसाइट्स हैं, जो दिल्ली और एनसीआर में ऑनलाइन पौधे बेचती हैं।

नोट: 1. पौधों की कीमतों में अंतर मुमकिन है।
2. अगर घर के अंदर आपने 10-20 पौधे लगा लिए हों तो इसका मतलब यह न समझें कि घर की हवा पूरी तरह साफ हो गई है। हां, इससे घर में ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ जाएगी।

AQI खोलता है हवा का राज
एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) के जरिए आप अपने आसपास की एयर क्वॉलिटी की परख कर सकते हैंः

लेवल 1. 0–50
इसमें कोई परेशानी नहीं। हर कोई आराम से सांस ले सकता है। लोग बाहर भी घूमने या दौड़ने के लिए जा सकते हैं।

लेवल 2 . 51–100
इसमें ज्यादातर लोगों को परेशानी नहीं, कुछ ज्यादा सेंसिटिव लोगों को थोड़ी परेशानी मुमकिन। ऐसे लोग जिन्हें परेशानी हों, वे बाहर कम निकलें।

लेवल 3. 101–150
सेहतमंद इंसानों को थोड़ी परेशानी हो सकती है, लेकिन सेंसिटिव लोगों को ज्यादा। बच्चे, बुजुर्ग और ऐसे लोग जिन्हें सांस की समस्या है, उन्हें बाहर निकलने से बचना चाहिए।

लेवल 4.151–200
सेंसिटिव लोगों को काफी ज्यादा परेशानी होती है। सेहतमंद लोगों को दिल और सांस से जुड़ी तकलीफें हो सकती हैं। बच्चे, बुजुर्ग और ऐसे लोग जिन्हें सांस की समस्या है, वे बाहर न निकलें।

लेवल 5 .201–300
भारी प्रदूषण। इसमें हेल्दी लोगों को भी सांस आदि से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चे, बुजुर्ग और ऐसे लोग जिन्हें सांस की समस्या है, वे घर में ही सारे काम करें।

301-350
खतरनाक प्रदूषण, हेल्दी लोगों को भी दिक्कत होती है। सरदर्द, उलटी और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। हेल्दी लोगों के लिए भी बाहर निकलना खतरनाक। बच्चे, बुजुर्ग और ऐसे लोग जिन्हें सांस की समस्या है, वे फिजिकल एक्टिविटीज बिलकुल न करें।

351 से ज्यादा
इमरजेंसी जैसे हालात। बाहर निकलना खतरनाक। घर में भी खिड़की-दरवाजे बंदकर रहें।

जानें हवा का रुख
आप अपने आसपास की एयर क्वॉलिटी की जानकारी इन मोबाइल ऐप्स की मदद से खुद भी हासिल कर सकते हैं: SAFAR, Sameer ये दोनों ऐप्स Android और iOS Mobile दोनों प्लैटफॉर्म पर उपलब्ध हैं।


एयर प्यूरिफायर कितने कारगर :

एंट्री लेवल के प्यूरिफायर
.ये 14X12 फुट के कमरे को कवर कर सकते हैं जबकि महंगे मॉडल बड़े एरिया को। इनकी कीमत 11 हजार से 95 हजार रुपये तक है।
•सांस संबंधी समस्याओं से निजात दिलाने के लिए जरूरी है कि प्यूरिफायर पीएम 2.5 पार्टिकल को फिल्टर करे।
•अगर एयर प्यूरिफायर खरीदना पड़े तो ऊंचे HEPA (हाई एफिशिएंसी पार्टिकुलेट एयर) मतलब ज्यादा-से-ज्यादा महीन कणों को रोकने लायक फिल्टर और हाई क्लीन एयर डिलिवरी रेट हो यानी तेजी से गंदी हवा को साफ करने की दर ऊंची हो।
•पल्यूशन के हिसाब से प्यूरिफायर की 3-6 महीने में सर्विसिंग करवानी होती है और फिल्टर आदि बदलवाने होते हैं। ऐसा न करने पर इसका फायदा नहीं मिलता।
•फिलहाल मार्केट में फिलिप्स, ब्लूएयर, यूरेका फॉर्ब्स, हनीवेल और केंट जैसी कंपनियों के एयर प्यूरिफायर 11 हजार रुपये से 95 हजार रुपये में मौजूद हैं।
•हालांकि इसके इस्तेमाल करनेवालों का कहना है कि इससे हालात बदतर होने से तो बच जाते हैं, लेकिन प्रदूषण के घातक हालात में यह कारगर नहीं रहता।
•इससे दमे या एलर्जी के मरीजों को राहत मिलती है, लेकिन आम लोगों की सेहत में यह भारी सुधार करता हो, ऐसा देखने में नहीं आया है।
•कई स्टडीज यह भी दावा करती हैं कि एयर प्यूरिफायर भले ही हवा साफ करता है, लेकिन यह डिवाइस खुद ही ओजोन और निगेटिव आयन वातावरण में छोड़ती है। इससे हालात सुधरने के बजाय बिगड़ने लगते हैं।
•एयर प्यूरिफायर के बेहतर तरीके से काम करने के लिए जरूरी है कि घर पूरी तरह से सील हों। हमारे देश में ऐसे घर कम ही होते हैं जो पूरी तरह से एयर टाइट हों। अगर ऐसा नहीं होगा तो जिस तेजी से एयर प्यूरिफायर उसे साफ करने की कोशिश करेगा, उसी तेजी से प्रदूषित हवा घर में आ जाएगी। ऐसे में यह असरदार तरीके से काम नहीं कर पाएगा।

पोर्टेबल एयर प्यूरिफायर
लगभग 5,500 रुपये के आसपास मिलने वाले पोर्टेबल एयर प्यूरिफायर एक फुल साइज़ वाले प्यूरिफायर की तुलना में एक छोटे एरिया (करीब 50 स्क्वायर फीट) में हवा को अच्छे-से साफ कर सकते हैं। आकार छोटा होने से इसे लाना, ले जाना आसान है। आप किसी ट्रिप या ड्राइविंग के दौरान इसे आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं।

कार के लिए एयर प्यूरिफायर

गाड़ियों में ज्यादा घूमना होता है तो एक इन-कार एयर प्यूरिफायर खरीद लें। इस बाजार में यह एक दूसरा सेग्मेंट है जो तेजी से बढ़ रहा है। इन-कार एयर प्यूरिफायर की कीमत करीब 2,000 रुपये से शुरू होती है।

खुद से भी बनाएं एयर प्यूरिफायर
अमूमन घरों में इग्जॉस्ट फैन होते हैं जो घर के अंदर की हवा बाहर फेंकते हैं। इग्जॉस्ट फैन पर बाजार में मिलने वाले फिल्टर खरीदकर सेट कर दें तो एक छोटा प्यूरिफायर तैयार हो जाएगा। इससे घर की हवा काफी हद तक साफ हो जाती है। बाजार में मिलने वाले फिल्टर की कीमत 500 से 1000 रुपये तक होती है। ऐसे इग्जॉस्ट फिल्टर बनाने का तरीका जानने के लिए देखें tinyurl.com/y43qcf2n

कैसे-कैसे मास्क
पलूशन के स्तर के हिसाब से मास्क उपलब्ध हैं। जरूरत के हिसाब से इनका उपयोग कर सकते हैं।

1. नीला सर्जिकल मास्क
हर दिन बदलना पड़ता है। हेवी पल्यूशन के मामले में कारगर नहीं। कीमत: 10 से 20 रुपये।

2. काला मास्क
धूल से बच सकते हैं, लेकिन स्मॉग के कणों से बचना मुश्किल। कीमत: 10 से 20 रुपये।

3. N95 मास्क
यह ऊपर के दोनों मास्क से बेहतर है। 2 से 3 दिन ही चलता है, जिन्हें सांस की समस्या है, उनके लिए मुफीद नहीं। कीमत: 70 से 80 रुपये।

4. टोटोबोबो (Totobobo)
अच्छा है। प्रदूषण और उसके बुरे असर से बचाता है। कीमत: 2000 से 2500 रुपये।

नोट: बुजुर्ग हों या शुगर के मरीज या फिर कोई और, मास्क पर पूरा भरोसा न करें। इससे कुछ हद तक ही बचाव मुमकिन है, सौ फीसदी नहीं। इसलिए यह न सोचें कि मास्क पहन लिया तो हेवी पल्यूशन में बहुत देर तक भी रह सकते हैं।

नेजो फिल्टर भी हैं उपलब्ध

अगर मास्क नहीं पहनना है तो नेजो फिल्टर का आप्शन भी उपलब्ध है। कई कंपनियां हैं जो ऐसे नेजो फिल्टर बनाती हैं। हालांकि इन्हें लगाने के बाद आप 100 फीसदी पल्यूशन से बच जाएं, ऐसा मुमकिन नहीं होता। फिर भी पल्यूशन का असर कुछ कम तो जरूर हो जाता है। इनकी कीमत 100 से 800 रुपये तक हो सकती हैं। वैसे, कुछ कंपनियां 100 रुपये से कम कीमत पर भी उपलब्ध कराती हैं। यहां इस बात को ध्यान रखना भी जरूरी है कि नेजोफिल्टर लगाने के बाद कई लोगों को अजीब लगता है। घुटन-सी महसूस होती है। ऐसे में खरीदने से पहले इस बात को भी जरूर देख लें।

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हेल्‍दी तन-मन के मंत्र

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अगर सही से जिंदगी मैनेज करें तो हेल्दी रहना बहुत मुश्किल नहीं है। खानपान में संतुलन रखें और सोच व बर्ताव को बेहतर बनाएं। अच्छी हेल्थ के लिए खुद को किन चीजों से जोड़ें और किन्हें माइनस करें, पूरी जानकारी दे रहे हैं जाने-माने मोटिवेशनल स्पीकर और वेलनेस कंसल्टेंट मिलन सिन्हा:

हर आदमी की जिंदगी में सेहत और खुशी की अहमियत होती है। सेहत और खुशी एक-दूसरे से जुड़े हैं। इन्हें साधने के लिए खानपान से जुड़ी छोटी-छोटी बातों के साथ-साथ संगीत और नींद की अहमियत को जानना और उसके प्रति लगातार जागरूक बने रहना भी जरूरी है। ऐसा करने के लिए हमें अपनी दिनचर्या में बहुत बड़े उलटफेर की जरूरत नहीं है। बस इन पर थोड़ा फोकस करने की जरूरत है और फोकस करना बहुत मुश्किल काम नहीं है। एक बार जब इसमें हम कामयाब हो जाते हैं तो हम लाइफस्टाइल को भी अच्छी तरह से मैनेज कर लेते हैं और बिना दवाई या बहुत कम दवाई के भी कई छोटी-बड़ी बीमारियों से बचे रह सकते हैं।

TBF का फॉर्म्युला
T: Thought
B: Behaviour
F: Food


इन तीनों के प्रति हमारा लगातार जागरूक रहना जरूरी है। इनमें बेहतर सामंजस्य और संतुलन से न सिर्फ हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं बल्कि हमारे रिश्ते भी बेहतर बने रहते हैं। इससे हम ज्यादा खुश रहते हैं और घर-बाहर हर जगह बेहतर परफॉर्म कर सकते हैं। ज्यादातर लोग इनमें से सिर्फ एक या दो को साध पाते हैं जिससे उन्हें वह फायदा नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए।

T: Thought
सकारात्मक सोच के साथ सुबह की शुरुआत हो तो दिन अच्छा गुजरता है। हकीकत यह है कि हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बनने लगते हैं। हर समय इस सोच से काम करें कि अच्छे तरीके से कोई भी काम करेंगे तो उसका नतीजा भी अच्छा ही होगा। सुबह का पहला घंटा पूरे दिन की दिशा तय करता है।

दिन की शुरुआत करें ऐसे

सबसे पहले उठते ही बेड पर आराम से बैठें और आंख बंदकर एक मिनट तक गहरी सांस लें। इस दौरान अपने माता-पिता, टीचर, ईश्वर आदि को याद कर उनके प्रति आभार व्यक्त करें। उन्हें मन-ही-मन धन्यवाद दें। अगर हम तीन लिविंग गॉड अर्थात माता-पिता, शिक्षक और सूर्यदेव के प्रति आस्था, विश्वास, समर्पण और सम्मान रखें तो कामयाबी और खुशी, दोनों हासिल होंगी।

कंप्यूटर की तरह लाइफ
कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग का बेसिक फंडा है: गार्बेज इन, गार्बेज आउट यानी कचरा अंदर डालेंगे तो कचरा ही बाहर आएगा। कहने का मतलब: जैसा अंदर डालेंगे, वैसा ही बाहर आएगा। कमोबेश यही सिद्धांत इंसान के दिमागी कंप्यूटर पर भी लागू होता है। बुद्धिमान और संयमित लोग ऐसे कचरे को अंदर आने से रोकने के लिए दिमाग के दरवाजे पर एक सशक्त स्कैनर लगा कर रखते हैं। इससे कचरा बाहर ही रुक जाता है।

रहें पॉजिटिव जोन में
इस पर गौर करना जरूरी है कि कौन-से विचार हैं जो हमारे दिमाग को बिना मतलब के उलझाते और परेशान करते रहते हैं। उनकी पहचान कर लेने के बाद उनसे मुक्ति के लिए जरूरी है कि दिनभर अच्छे कामों में व्यस्त रहें। बीच में अगर कोई नेगेटिव विचार या व्यक्ति आ जाए तो उससे जल्द छुटकारा पाकर पॉजिटिव जोन में लौटें। ऐसा मत सोचें कि यह नहीं हो पाएगा। नियमित अभ्यास से यह सब करना आसान होता जाएगा। रात में भी सोने से पहले सकारात्मक सोच-विचार में थोड़ा वक्त गुजारें, उसका चिंतन-मनन करें। कोई मोटिवेशनल किताब पढ़ना भी अच्छा रहेगा। चाहे किताबी ज्ञान की बात हो या प्रैक्टिकल की, अच्छे स्रोतों की संख्या जिंदगी में बढ़ते रहने से हर जगह प्रदर्शन बेहतर होता जाएगा।

B: Behaviour
हमें बचपन से यह बताया और सिखाया जाता है कि न सिर्फ अपने से बड़ों से बल्कि संसार में हर शख्स के साथ पूरी मानवीय संवेदना से पेश आना चाहिए। अपनी बात और बर्ताव से किसी को भी आहत करने की कोशिश न करें।

• खासकर बॉस प्रवृत्ति वाले लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि सत्ता या पद आज है, क्या पता कल रहे या न रहे। लोगों के साथ आपके द्वारा की जाने वाली बदसलूकी की बदबू हमेशा आपके आसपास बनी रहेगी। यह उन्हें जिंदगीभर कमजोर करने के साथ-साथ परेशान भी करती रहेगी।

• किसी के साथ भी गलत या अमर्यादित व्यवहार करने से हम खुद सबसे पहले नेगेटिव एनर्जी से भर जाते हैं।

• किसी को नीचा दिखाना बड़े होने की पहचान नहीं है। यह आपके व्यक्तित्व में बड़ी कमी को दिखाता है। अमूमन खुद को सामने वाले की जगह पर रखकर देखेंगे तो आप इससे परहेज करेंगे।

• हर आदमी को स्वाभिमान प्यारा होता है। इंसान अपनी गरिमा और मर्यादा को कायम रखना चाहता है। हमें इसका सम्मान करना चाहिए।

• जैसा व्यवहार दूसरों से चाहते हैं, हमें वैसा ही व्यवहार उनसे करना चाहिए।

• नियमित रूप से खुद को तलाशें और तराशें।

F: Food
फूड बेहद अहम होता है। आखिर जो कुछ भी हमारे मुंह से पेट तक जाएगा, उसका फायदा या नुकसान हमें ही उठाना पड़ेगा। उसका अवशेष भी हमारे शरीर से ही निकलेगा। अगर हम पौष्टिक आहार लेते हैं तो हमारे शरीर को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फैट, विटामिन, मिनरल आदि पर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं जो हमें शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए जरूरी हैं।

• कहा जाता है कि इंसान को जीने के लिए खाना चाहिए, न कि खाने के लिए जीना चाहिए।

• एक सामान्य इंसान को सुबह का नाश्ता सबसे पौष्टिक और ज्यादा मात्रा में लेना चाहिए। दोपहर का खाना नाश्ते की तुलना में हल्का और रात का खाना तो बिलकुल ही सादा और हल्का होना चाहिए।


पानी: कब, कितना
हमारे शरीर में करीब 60 फीसदी पानी है। शरीर में पानी की कमी हो जाए तो कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने लगती हैं। लिहाजा हमें हमेशा पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए। वैसे पर्याप्त पानी पीना ही नहीं, सही तरीके से पानी पीना भी जरूरी है।

• ज्यादातर लोग पानी पीते नहीं, गटकते हैं जैसे कि उन्हें पानी पीने तक की फुर्सत नहीं है।

• सही तरीका है: धीरे-धीरे पानी पीना और वह भी बैठकर आराम से। खड़े-खड़े बोतल से मुंह में पानी उड़ेलना और उसे फटाफट गटकना सही नहीं है।

• हमें रोजाना 2-3 लीटर पानी पीना चाहिए। इतना ही नहीं, हम कब-कब और कितना पानी पीते हैं, इसका भी हमारी सेहत से गहरा ताल्लुक है।

• रोज सुबह नींद खुलने के बाद कम से कम 1 गिलास गुनगुना पानी पीना चाहिए। ज्यादा फायदे के लिए गुनगुने पानी में आधा नीबू निचोड़ लें।

• खाने के फौरन पहले, खाने के बीच में और खाने के फौरन बाद पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि इससे पाचन क्रिया प्रभावित होती है। बेहतर पाचन के लिए खाना खाने के कम-से-कम 30 मिनट पहले और खाना खाने के 45 मिनट बाद पानी पीने की सलाह दी जाती है।

• सेहत के लिहाज से गिलास में मुंह लगाकर आराम से चाय या कॉफी की तरह सिप करते हुए पानी पीना और यह महसूस करना कि इससे हमारा शरीर हाइड्रेटेड हो रहा है, सबसे अच्छा माना गया है।

• शरीर जितना हाइड्रेटेड रहेगा, हम उतना ही स्वस्थ रहेंगे। खासकर रात में सोने से पहले थोड़ा पानी जरूर पीना चाहिए, इससे हार्ट प्रॉब्लम और ब्रेन स्ट्रोक की आशंका कम हो जाती है। सच तो यह है कि पानी के माध्यम से ही हमारे शरीर से हानिकारक पदार्थ बाहर निकलता है। ऐसे में कम पानी शरीर के लिए परेशानी ही बढ़ाता है।

• आप खुद भी महसूस कर सकते हैं कि मानसिक तनाव हो तो पानी के दो-चार घूंट भी सुकून का अहसास करवाते हैं। • दूसरों को 'पानी पिलाने' के मुहावरे को सही साबित करने के बजाय खुद पानी पीने की कला में पारंगत होना हर दृष्टि से बेहतर हेल्थ की गारंटी है। जब तक खुद पानी पीने का सही तरीका नहीं अपनाएंगे, समस्याएं बनी रहेंगी।

म्यूजिक बहलाए मन
आज हर आम आदमी की जिंदगी में शोर, अनिश्चितता और कंफ्यूजन बढ़ रहा है। कारण एक नहीं, कई हैं: जाने, पहचाने और अनजाने भी। मनुष्य आम बुनियादी समस्याओं के बीच शांति और सुकून को तलाशता रहता है।

• जीवन में शांति, सुकून और संगीत का बेहद करीबी रिश्ता रहा है। मानसिक तनाव की वजह से परेशान रहने वाले लोगों के लिए तो म्यूजिक किसी दवा से कम नहीं।

• म्यूजिक हमारी पर्सनैलिटी को निखारता है और हमें शारीरिक और मानसिक रूप में फिट रखने में अहम भूमिका अदा करता है।

हर मर्ज की दवा है नींद!
दिनभर की सक्रियता, व्यस्तता और भागदौड़ के बाद हम रात में सोना चाहें, लेकिन नींद न आए तो इससे बड़ी परेशानी क्या हो सकती है! तमाम रिसर्च और सर्वे बताते हैं कि नींद संबंधी समस्याओं से ग्रस्त तमाम लोग शराब या नींद की गोली का सेवन करते हैं। लेकिन यह सेहत के लिए सही नहीं है।

• नींद स्वस्थ रहने के लिए सबसे जरूरी चीज है।

• नींद के दौरान हमारे शरीर रूपी जटिल, लेकिन अद्भुत मशीन की सफाई और रिपेयरिंग होती रहती है। तभी तो दिनभर की थकान के बाद रात की अच्छी नींद से थकान दूर हो जाती है।

• अच्छी नींद न मिलने के कारण स्ट्रेस हॉर्मोन्स काफी बढ़ जाते हैं, जिस कारण शरीर कई बीमारियों की चपेट में आ जाता है। इसलिए रात में 7-8 घंटे जरूर सोएं। रात की अच्छी नींद सुबह आपके लिए ताजगी, उमंग व उत्साह का उपहार लेकर आती है।

• मोबाइल नींद के मामले में विलन है। इसलिए सोने से घंटे भर पहले अपना मोबाइल बंद कर लें या फिर साइलेंट मोड पर डाल दें।

• बेहतर तो यह है कि मोबाइल को सोने के स्थान से कुछ दूर रखें।

• आवाज और रोशनी अच्छी नींद में खलल डालती है। सोने से पहले इसका ध्यान रखें तो बेहतर रहेगा।

खुशी के खास सूत्र
• योग करते हैं तो लाइफ में प्लस ही प्लस है, वरना वियोग यानी माइनस ही माइनस।

• जीवन में संतुलन जरूरी है। बुद्ध के बताए मध्य मार्ग पर चलना सबसे बढ़िया।

• यह मानकर जीवन पथ पर आगे बढ़ने की लगातार कोशिश करें कि अगर कहीं या कभी इस यात्रा में समस्या या परेशानी आई तो उसके साथ समाधान भी होगा।

• वर्तमान में जीना सीखें। सच्चे दिल और खुले दिमाग से अपने अतीत के अनुभवों से सीख लेकर वर्तमान का सम्मान करने वाला काम तो मजे में करता ही है, भविष्य भी शानदार बनाता है। इस तरह की सोच और आदत डालें।

• दुनिया में शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा, जिसके जीवन में सिर्फ मजा ही मजा हो, कोई सजा, गम या समस्या न हो। • जिसे हम कंट्रोल कर सकते हैं उस पर फोकस करें। जिसे कंट्रोल करना असंभव हो या जिसे कंट्रोल करना जरूरी न हो, उस पर फोकस न करें।

• छोटी-मोटी शारीरिक दिक्कतों को घरेलू उपायों से ठीक करने का प्रयास करें। अगर ठीक न हो तो बिना समय नष्ट किए डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर जो सलाह दें, उसमें अपनी ओर से कोई बदलाव न करें।

• कोशिश करें कि जहां तक पैदल जा सकते हैं, वहां तक पैदल ही जाएं।

• दूसरे की बातों से ज्यादा परेशान और खुश होने की

बजाय अपनी समीक्षा खुद ही करें। आज के लिए जितनी

प्राथमिकताएं तय की थी, उन्हें पूरा किया है या नहीं। अगर

कमी रही है तो सुधार की जरूरत कहां है, यह भी देखें।

• अच्छी बातें सबसे सीखें, उन्हें जीवन में भी उतारें। लेकिन

किसी का पिछलग्गू न बनें। जिंदगी अपने तरीके से जिएं। इससे तानव कम होगा, सफलता और खुशी ज्यादा मिलेगी।

शुगर से दूरी जरूरी
सुबह से रात तक हम सभी किसी-न-किसी रूप में चीनी का प्रयोग करते हैं। चाय, कॉफी, कोल्ड्रिंक्स, पैकेज्ड फ्रूट जूस, मीठे बिस्किट, केक, मिठाई आदि के बहाने हम दिन भर शुगर लेते रहते हैं। चीनी मिठास का आनंद लेने और शरीर में कार्बोहाइड्रेट की जरूरत को पूरा करने के लिए खाते हैं और यह कैलरी का बड़ा और आसान स्रोत है। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि चीनी को मीठा जहर कहा जाता है।

• प्राकृतिक रूप से अन्न, फल, सब्जी आदि से भी हमारे शरीर को कार्बोहाइड्रेट मिल जाता है, इसलिए चीनी बहुत जरूरी नहीं है।

• एक अडल्ट को दिनभर में चीनी या मीठी चीजों से करीब 200 कैलरी मिले, यही काफी है।

• आपको ध्यान रखना चाहिए कि एक चम्मच चीनी में करीब 50 कैलरी होती है यानी दिनभर में औसतन चार चम्मच चीनी पर्याप्त है। हम एक कप चाय में एक चम्मच चीनी ले लेते हैं। अब आप देखिए कि दिन भर में कितने कप चाय पीते हैं। फिर हम अलग से भी मीठी चीजें खाते हैं।

• चीनी के अवगुण कई हैं। मसलन, चीनी एसिडिक गुण वाली होती है। इसलिए यह कई शारीरिक परेशानियों और बीमारियों मसलन, मोटापा, डायबीटीज, दांत और आंत की तकलीफ आदि का कारण बनती है।

• चीनी के बदले गुड़ का सेवन करें। गुड़ में बेशक चीनी की सफेदी और चमक नहीं होती, लेकिन कार्बोहाइड्रेट और मिठास के अलावा कई अच्छे तत्व प्राकृतिक रूप से मौजूद रहते हैं।

• गुड़ खाने के बाद हमारे शरीर में पाचन क्रिया के लिए जरूरी क्षार पैदा होता है जबकि चीनी एसिड पैदा करती है जो शरीर के लिए नुकसानदेह है।

• गुड़ में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम रहता है जो हड्डियों को मजबूत करने में सहायक होता है।

• गुड़ में फॉस्फोरस भी होता है जो शरीर में कफ को संतुलित करने में भी मदद करता है।

नमक पर करें कंट्रोल
खाने में नमक न हो तो भोजन बेस्वाद लगता है। यह हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है। इसमें 40 प्रतिशत सोडियम और 60 प्रतिशत क्लोरीन होता है। सोडियम हमारे शरीर के लिए बेहद जरूरी है। नमक के अलावा सोडियम प्राकृतिक रूप से अनाज, सब्जियों, दूध, फल आदि चीजों में अलग-अलग मात्रा में मौजूद होता है। जो लोग संतुलित आहार लेते हैं उन्हें कई स्रोतों से सोडियम मिल जाता है।

• खाने में सेंधा नमक का इस्तेमाल करना बेहतर है। इसमें कई मिनरल प्राकृतिक रूप से मौजूद होते हैं।

• नमक का इस्तेमाल खाने की चीजों में प्रिजर्वेटिव के रूप में भी किया जाता रहा है। मक्खन, अचार और पैकेट में मिलनेवाली नमकीन चीजों में सोडियम की मात्रा ज्यादा होने का एक कारण यह भी है।

• इन दिनों नमक कई बीमारियों को बढ़ानेवाला साबित हो रहा है क्योंकि लोग नमक और नमकवाली चीजें कुछ ज्यादा ही खा रहे हैं। इससे हृदय रोग, हाइपरटेंशन, दमा, किडनी स्टोन जैसी कई घातक बीमारियों हो रही हैं।

• कई बार डॉक्टर के कहने पर हम नमक तो खाना कम कर देते हैं, लेकिन मीठे बिस्किट, केक या डिब्बाबंद पेय का ज्यादा सेवन करने लगते हैं। इन सबमें भी बेकिंग सोडा या प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल होता है, जिसमें सोडियम मौजूद रहता है।

• एक औसत भारतीय अडल्ट के रोज के खाने में अमूमन 8 ग्राम नमक होता है यानी करीब 3 ग्राम सोडियम और 5 ग्राम क्लोरीन, जबकि बेहतर सेहत के लिए 4-5 ग्राम नमक ही काफी है।

• जागरूकता से नमक का फालतू इस्तेमाल रोका जा सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में जागरूकता अभियानों की वजह से 2003 से 2011 के बीच नमक के इस्तेमाल में 15 फीसदी की कमी आई। इसका फायदा यह हुआ कि स्ट्रोक और हृदय रोगों के मामले 40% तक घट गए।

सांस लेना सीखें
ऑक्सिजन को प्राण वायु कहा जाता है। इसके कारण शरीर में मौजूद करोड़ों सेल एक्टिव रहते हैं। इन्हीं पर हमारा मेटाबॉलिजम निर्भर करता है।

• गहरी या लंबी सांस लेने से ऑक्सिजन का समुचित उपयोग कर हमारा शरीर लंबी उम्र तक स्वस्थ रह सकता है। • प्राणायाम की विभिन्न विधियों से आप सही तरीके से सांस लेना सीख सकते हैं।

• बेहतर सेहत के लिए जरूरी है कि सारा दिन घर के अंदर ही घुसे न रहें। सुबह कम से कम आधा घंटा पार्क में अपना वक्त जरूर गुजारें।

सांस लेने का सही तरीका
सही तरीके से सांस ले रहे हैं या नहीं, इसे पहचाने का आसान तरीका है। अभी आप सांस भरें और देखें कि आपका पेट अंदर जा रहा है या बाहर। कमर सीधी करके बैठें। फिर पेट पर हाथ रखें। सांस लेने और निकालने के साथ पेट भी बाहर और अंदर जाएगा। लेटकर चेक करना चाहते हैं तो पेट पर कोई किताब रख लें। किताब के ऊपर-नीचे जाने से सांस का अंदाजा लगा सकते हैं।

अगर सांस भरते वक्त पेट बाहर जाए तो आप ठीक तरीके से सांस ले रहे हैं। अगर पेट अंदर जाए तो गलत। इसी तरह सांस निकालते हुए पेट अंदर की तरफ जाना चाहिए। दरअसल, जब सांस लेते हैं तो लंग्स फैलते हैं, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि हवा भरे जाने पर बैलून फैलता है। सांस बाहर निकालते हैं तो लंग्स सिकुड़ते हैं, वैसे ही जैसे हवा निकलने पर बैलून सिकुड़ जाता है। वैसे, जब तक सांस लेने का सही तरीका मालूम न हो या फिर इसपर गौर न करें तो ज्यादातर लोगों का पेट सांस लेते हुए अंदर आता है और छोड़ते हुए बाहर। ऐसा तनाव की वजह से होता है। ऐसे में चेस्ट टाइट होती है और डायफ्राम कड़क होकर ऊपर हो जाता है। इससे पेट बाहर को जाता है। यह गलत तरीका है। इससे लंग्स और हार्ट पर दबाव पड़ता है।



ये हैं डाइट के चंद खास टिप्‍स

• सुबह के नाश्ते में सबसे पहले एक चम्मच शहद लें। उसके बाद एक छोटी कटोरी भर अंकुरित चना, मूंग आदि के साथ थोड़ा-सा गुड़ और ड्राई फूट्स लें और खूब चबाकर खाएं। नाश्ते में चना या जौ का सत्तू, चूड़ा-दही, रोटी-दाल/हरी सब्जी-सलाद, टोस्ट-ऑमलेट आदि भी ले सकते हैं।

• सबसे बड़ी बात, जब भी खाने बैठें, चिंतामुक्त रहें। जो भी खाएं, आराम से खूब चबाकर और स्वाद लेकर खाएं। खाते वक्त टीवी न देखें, मोबाइल पर बात न करें और न ही कुछ पढ़ें।

• दोपहर के खाने में चावल या रोटी के साथ दाल, मौसमी हरी सब्जी, दही, सलाद का सेवन करें।

• रात के खाने को सादा और हल्का रखें और खाना जल्दी यानी रात के 8 बजे तक खा लें। सोने से पहले एक कप या एक गिलास गुनगुने दूध का सेवन करें।

• खाने में फल और सब्जियां बेहद जरूरी हैं। पर्याप्त सब्जी और फल न खाने से हार्ट, किडनी, लिवर से जुड़ी बीमारियों के शिकार होने का अंदेशा रहता है।

• जिस इलाके में रहते हैं, वहीं पर उगने वाले फल और सब्जियां खाएं। आपको ताजा मिलेंगे और सस्ते भी। मौसमी फल-सब्जियां ही खाएं। कोल्ड स्टोरेज में रखे चीजें खाने पर कम पौष्टिकता मिलती है।

• सुबह नींद से जगने के अधिकतम 2 घंटे के अंदर नाश्ता कर लेना अच्छा रहता है।

• नीबू, आंवला, लहसुन, अदरक, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग, जीरा, अजवाइन, खीरा, टमाटर, मूली, गाजर, हरी पत्तेदार मौसमी सब्जियां, केला, पपीता, नारियल, मौसमी फल। इन चीजों को किसी न किसी रूप में हर दिन खाने की कोशिश करें, भले ही मात्रा कम ही क्यों न हो।

1. गेहूं

• नए गेहूं से बेहतर होता है पुराने गेहूं का आटा।

• आटे से चोकर को हम निकाल देते हैं। लेकिन चोकर यानी फाइबर को बाहर निकालना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। चोकर के साथ-साथ कई जरूरी पोषक तत्व आटे से निकल जाते हैं। मैदे का सेवन इसलिए अच्छा नहीं माना जाता।

• खाली गेहूं की रोटी खाने से बेहतर है कि मिक्स्ड ग्रेन की रोटी खाना। 5 किलो अनाज (गेहूं, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, जौ) में 1 किलो दाल (चना, मटर) मिलाएं।

2. चावल

• सेहत के लिहाज से सफेद चावल सही नहीं है क्योंकि पॉलिश के दौरान आम चावल से विटामिन-बी सहित कई पोषक तत्व निकल जाते हैं। फाइबर भी घट जाता है।

• सेहत के लिए ब्राउन चावल या उसना या सेला चावल या बिना पॉलिश किया हुआ चावल लाभदायक होता है। इसमें प्राकृतिक रूप से फाइबर के साथ-साथ विटामिन-बी और मिनरल्स

• इसमें मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयरन आदि मौजूद होते हैं।

3. दाल

• दाल प्रोटीन का बहुत अच्छा और सस्ता स्रोत है।

• पॉलिश की हुई दालें देखने में अच्छी लगती हैं, लेकिन इससे बचना चाहिए।

• साबुत दाल यानी छिलकायुक्त दाल सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद है। हर दिन के खाने में शामिल करें।

• दालों में मौजूद पोषक तत्वों को हमारा शरीर अच्छे से एब्जॉर्ब कर लेता है। इसलिए इसका सेवन रोजाना करना चाहिए।

•अंकुरित दाल अपेक्षाकृत अधिक पौष्टिक होती है।

4. तेल

• पेड़-पौधों से हासिल तेल हेल्थ के लिए अच्छे होते हैं। यही कारण है कि भारत में सरसों, नारियल और मूंगफली के तेल का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। तिल, जैतून और सूरजमुखी का तेल भी अच्छा है।

• रिफाइंड तेल के सेवन से बचें।

• तेल के उपयोग के मामले में इस बात का ध्यान जरूर रखें कि दो बार से ज्यादा तलने में इस्तेमाल किए गए तेल का प्रयोग न करें। इससे यूज्ड तेल की बर्बादी तो होगी, लेकिन आप ह्रदय रोग, एसिडिटी जैसी बीमारियों से बच जाएंगे।


5. फल और सब्जी

• मौसमी फल, हरी मौसमी सब्जी और साग (पालक, मेथी, चना, सरसों आदि) यानी वे फल, सब्जी या साग जो मौसम विशेष में बाजार में बहुतायत में उपलब्ध होती हैं, का सेवन हमारे शरीर के लिए सबसे लाभकारी होता है। बेमौसम की सब्जियां हों या फल, उनसे हमारे शरीर को अपेक्षित पोषण नहीं मिलता। फिर ये जेब पर भी भारी पड़ते हैं।

• एक्सपर्ट्स मानते हैं कि लोग जहां रहते हैं, वहां के स्थानीय फल और सब्जियों को ही ट्राई करें।

6. ड्राई फ्रूट्स


• ड्राई फ्रूट्स बेहतर पोषण देते हैं। बादाम, अखरोट, किशमिश, अंजीर, मूंगफली, पिस्ता, खजूर आदि को भी नियमित रूप से खाएं।

• मिक्स्ड ड्राई फ्रूट्स खाएं तो मात्रा 30 ग्राम से ज्यादा न हो। इसमें आप 7-8 बादाम, 7-8 काजू, 1-2 अखरोट, 10 किशमिश या 5 मुनक्के और कुछ दूसरे ड्राई फ्रूट्स जैसे खजूर, अंजीर आदि भी 1-2 मात्रा में मिला सकते हैं।

• मिक्स्ड ड्राई फ्रूट्स नाश्ते के रूप में लें और इन्हें खाने के करीब 1 घंटे बाद तक कुछ न खाएं।

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पैकेज्ड फूड हो सकते हैं बेहद खतरनाक, सीखें लेबल पढ़ना

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पैकेज्ड चीजें अब लोग खूब इस्तेमाल करने लगे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आंख मूंदकर इनका इस्तेमाल आपकी सेहत पर भारी पड़ सकता है? जी हां, समझदारी इसी में है कि समान खरीदने से पहले उस पैकेट के लेबल पर छपी जानकारी को पढ़ लें और जान लें कि उसमें इन्ग्रीडियेंट्स क्या-क्या हैं और उनका हमारी सेहत पर क्या असर पड़ेगा। लेबल पर छपे किन खास बातों पर आपको ध्यान देना चाहिए, बता रही हैं जानी-मानी डाइटिशन सिमरन खोसला:

राकेश हर दिन बीपी की दवाई लेते हैं। उन्होंने खाने में अलग से नमक लेना बंद कर दिया है, लेकिन बीपी कंट्रोल में नहीं रहता। उन्होंने डॉक्टर और डाइटिशन से दोबारा बात की तो जो बात सामने आई वह चौंकाने वाली थी। दरअसल, राकेश ऑफिस में एक बड़ी ब्रैंडेड कंपनी का रोस्टेड चना या मूंगफली अमूमन हर दिन एक पैकेट जरूर खाते थे। जब डाइटिशन ने उन्हें उस पैकेट की बैक साइड पर इन्ग्रीडिएंट्स की लिस्ट दिखाई तो उनके होश उड़ गए। चना सिर्फ कहने को रोस्टेड था, लेबल के अनुसार उसमें ऑयल भी मौजूद था। यही नहीं, उसमें नमक का सीधे कहीं जिक्र नहीं था, लेकिन लेबल पढ़कर समझा जा सकता था कि नमक उसमें मौजूद है। उस 10 रुपये के एक पैकेट में इतना नमक मौजूद था, जितना राकेश को 3 दिनों में खाना चाहिए था। राकेश उस रोस्टेड चना में मौजूद नमक के अलावा घर पर खाने में भी नमक खाते थे, दाल और सब्जी में। यानी वह गलती से ही सही, हर दिन काफी नमक खा लेते थे। इसलिए बीपी पर दवाओं का ज्यादा असर नहीं होता था। बेशक अगर उन्होंने पैकेट के लेबल पर छपी पूरी जानकारी सही ढंग से पढ़ी होती तो उन्हें पता होता कि वह कितना ज्यादा नमक खा रहे हैं। जाहिर है, इसके बाद राकेश ने वह रोस्टेड चना खाना बंद कर दिए। कुछ ही दिनों में उनका बीपी भी कम हो गया।

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लेबल पढ़ना जरूरी
किसी भी पैक्ड फूड आइटम का सिर्फ फ्रंट यानी जिस पर नाम बड़े अक्षरों में ब्रैंड नेम छपा होता है, उसे देखकर ही सामान न खरीदें। खरीदने से पहले पैकेट की बैक साइड को जरूर चेक करें। वहां लेबल पर छोटे अक्षरों में लिखी हुई जानकारी को पूरी गंभीरता और तल्लीनता से पढ़ें। कानून के अनुसार, पैकेज्ड आइटम बेचने वाली सभी कंपनियों को पैकेट के लेबल पर उन तमाम इन्ग्रीडियेंट्स के नाम और उनकी मात्रा का जिक्र करना जरूरी है, जो उस आइटम में हैं।

लेबल पढ़ने का तरीका
जिस भी पैक्ड आइटम को आप चटखारे लेकर खा या पी रहे हैं, उसके पैकेट की बैक साइड पर उसके इन्ग्रीडियेंट्स की पूरी लिस्ट रहती है। इस लिस्ट की एक खासियत यह होती है कि वह अमूमन घटते क्रम में होती है, यानी जो तत्व उसमें सबसे ज्यादा मौजूद है वह सबसे पहले और उससे कम वाला उसके बाद, इस तरह सबसे कम मात्रा में मौजूद तत्व का नाम और उसके मात्रा की जानकारी सबसे आखिर में लिखी होती है।

आजकल पटैटो चिप्स की खपत बहुत ज्यादा है। बच्चे हो या फिर बड़े सभी खाते हैं। चाहे घर में हो या फिर ट्रैवलिंग के दौरान, हर समय इसकी डिमांड रहती है। आइए जानते हैं कि इनमें क्या सब चीजें मौजूद होती हैं:

100 ग्राम पैक्ड आलू चिप्स में

लेबल पर इन्ग्रीडियेंट्स इसका मतलब

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कैलरी: 500 से 600 कैलरी यह किसी हेवी ब्रेकफास्ट से भी ज्यादा है।

प्रोटीन: 7 से 9 ग्राम प्रोटीन सेहत के लिए फायदेमंद है।

कार्बोहाइड्रेट्स: 50 से 60 ग्राम चूंकि इसमें डाइटरी फाइबर नहीं होते, इसलिए इसे हेल्दी कार्बोहाइड्रेट नहीं कहा जा सकता। इसमें 2 से 4 ग्राम शुगर होती
है।

सेचुरेटिड फैट: 13 से 20 ग्राम यह सेहत के लिए अच्छा नहीं है।

ट्रांस फैट: 0.1 से 0.3 ग्राम तक देखने में यह भले ही कम लगे, लेकिन इसकी इतनी मौजूदगी भी अनहेल्दी है।

सोडियम: 742 मिली ग्राम अडल्ट को दिन भर में 1500 मिली ग्राम सोडियम ही लेना चाहिए। ऐसे में एक पैकेट चिप्स खाने के बाद दिन में और नमकीन चीजें खाते वक्त ध्यान रखें।

न्यूट्रिशनल फैक्ट्स ऐंड इंफॉर्मेशन

सर्विंग साइज: इस शब्द से जरूर परिचित हो जाएं। यह आपके कई तरह के भ्रमों को दूर कर देगा। अमूमन 30, 50 या 100 ग्राम के पैकेट पर सर्विंग साइज लिखी होती है। फिर उसमें मौजूद कैलरी और दूसरी न्यूट्रिशनल इंफॉर्मेशन व इन्ग्रीडियेंट्स के बारे में पूरी जानकारी दी जाती है। अमूमन चिप्स के मामले में एक सर्विं में 150 कैलरी हो सकती है। समझने वाली बात यहीं पर है। सर्विंग साइज का जिक्र अलग-अलग पैक पर अलग-अलग हो सकता है, मसलन 100 चिप्स या 30 ग्राम नमकीन या फिर 100 एमएल जूस। चिप्स का एक पैकेट है। जिसका वजन 50 ग्राम है और उसमें 5 सर्विंग साइज के बराबर चिप्स हैं। अगर इस पूरे पैकेट को खा लिया जाए तो कुल कैलरी 50 ग्राम के हिसाब से शरीर में पहुंचेगी न कि सर्विंग साइज के हिसाब से। एक पैकेट चिप्स खाने के बाद आपने 750 कैलरी (150X5) खा लिया। सीधे कहें तो एक वक्त का भर पेट खाना खा लिया।

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ध्यान देने वाली बात

प्रोटीन: यह शरीर के लिए बेहद जरूरी है। किसी प्रॉडक्ट के लेबल पर अगर इसकी मात्रा ज्यादा होगी तो इसका सीधा-सा मतलब है कि पैक्ड फूड की क्वॉलिटी बेहतर है।

कार्बोहाइड्रेट्स: शरीर के लिए यह भी जरूरी है, लेकिन नियत मात्रा में। पैकेट पर इसका इन रूपों में जिक्र होता है:

1. डाइटरी फाइबर: यह सेहत के लिए अच्छा है। प्रॉडक्ट में इसकी मात्रा ज्यादा होने से फायदा होगा।

2. शुगर: इसकी मात्रा ज्यादा होने का मतलब है कि यह अनहेल्दी है। यह जितनी कम हो, उतनी ही बेहतर।

फैट: वैसे तो शरीर में इसकी मौजूदगी की अपनी उपयोगिता है, लेकिन पैक्ड फूड में अमूमन यह अनहेल्दी ही होती है। पैक्ड आइटम के लेबल पर इन नामों से फैट को आप ढूंढ सकते हैं:

1. सेचुरेटिड: इसका जिक्र पॉली सेचुरेटिड और मोनो सेचुरेटिड के रूप में हो सकता है।

2. ट्रांस फैट: इसे सेहत के बेहतर नहीं माना जाता।

यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि किसी प्रॉडक्ट में सेचुरेटिड या ट्रांस फैट की 0.1 ग्राम की मौजूदगी भी अनहेल्दी है।

सोडियम: वैसे तो सोडियम शरीर के लिए जरूरी है, लेकिन इसकी बेहद कम मात्रा ही शरीर को चाहिए। इसे निश्चित मात्रा से ज्यादा लेने पर बीपी, एंग्जाइटी आदि होने की आशंका रहती है। अगर किसी को बीपी की शिकायत है तो ऐसे लोगों के लिए पैक्ड नमकीन फूड आइटम अनहेल्दी है। इनमें नमक सोडियम के रूप में काफी मात्रा में मौजूद रहती है। एक दिन में 2300 मिली ग्राम से ज्यादा सोडियम लेना हानिकारक है। ज्यादा सोडियम बीपी को बढ़ाता है और शरीर में पानी को रोकता है।

ग्लूटन: आजकल पैक्ड चीजों पर 'ग्लूटन फ्री' का जिक्र होने लगा है। अगर किसी को ग्लूटन से समस्या है, सीलिएक डिजीज है तो ऐसे प्रॉडक्ट से परहेज करें जिन पर ग्लूटन की साफ जानकारी नहीं है।

नोट: ग्लूटन, सीलिएक, वीट इंटॉलरेंस आदि के बारे में पूरी जानकारी पढ़ने के लिए हमारा फेसबुक पेज tinyurl.com/r2fdn6x देखें।

एडेड फ्लेवर: लेबल पर अगर एडेड फ्लेवर लिखा है तो वह अनहेल्दी हो सकता है।

ऑयल: फ्राइड आइटम में तो ऑयल की मौजूदगी होती ही है, रोस्टेड फूड आइटम्स की भी लाइफ बढ़ाने के लिए भी कई कंपनियां ऑयल का उपयोग करती हैं। हां, ऑयल की मौजूदगी के बारे में कंपनियां फ्रंट पर न लिखकर प्रॉडक्ट के पीछे इन्ग्रीडियेंट्स की लिस्ट में बताती हैं। फ्रंट पर सिर्फ रोस्टेड की ही बात होती है। लेबल पर पाम ऑयल, राइसब्रैन ऑयल, कॉटन सीड ऑयल आदि का जिक्र हो सकता है। आमतौर पर राइसब्रैन ऑयल हेल्दी माना जाता है, लेकिन यह शरीर में सूजन का कारण बनता है।

शुगर फ्री: डायबीटीज के मरीजों को जहां भी ये दो शब्द दिख जाते हैं, उन्हें सेफ फूड आइटम का अहसास होता है। लेकिन यहां भी सचेत होने की जरूरत है। यह मुमकिन है कि पैक्ड आइटम के फ्रंट पर शुगर फ्री लिखा हो, लेकिन पलटते ही लेबल पर इन्ग्रीडियेंट्स की सूची में स्वीटनर की मौजूदगी की बात हो। अगर लेबल पर सूक्रोज, ग्लूकोज, माल्टोज, मैपल सिरप, जाइलेटॉल, इरीथ्रॉल आदि जिक्र है तो समझ लें उस प्रॉडक्ट में शूगर मौजूद है। सीधे कहें तो एक नहीं तो दूसरे तरीके से आपके शरीर में शुगर जा ही रहा है।

ध्यान दें: अगर किसी को शुगर के इतने तकनीकी शब्द समझ में नहीं आ रहे या याद नहीं हो रहे तो याद रखें कि सामग्रियों की सूची में जिस भी इन्ग्रीडियेंट के अंत में OL/OSE है तो यह मुमकिन है कि वह शुगर हो।

बात पैक्ड जूस की

चिप्स, भुजिया, मूंगफली और चने आदि की तरह ही पैक्ड जूस भी लोग खूब इस्तेमाल करते हैं। अगर जूस के लेबल को भी बारीकी से पढ़ें तो जूस में मौजूद अच्छे और हानिकारक इन्ग्रीडियेंट्स और न्यूट्रिएंट्स के बारे में जानकारी मिल सकती है। आइए जानते हैं कि जूस के लेबल पर किन बातों का जिक्र होता है और उन्हें पढ़ने के बाद आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

कैलरी
वैसे तो शरीर को चलाने के लिए कैलरी जरूरी है, लेकिन शरीर को मोटा करने में भी इन्हीं की भूमिका होती है। ऐसे में कोई भी पैक्ड जूस खरीदने से पहले यह देख लें कि उसके लेबल पर कैलरी का जिक्र है या नहीं। अक्सर यहां समझ का फेर हो जाता है। दरअसल, सीधे पूरे पैकेट से मिलने वाली पूरी कैलरी के बजाय अक्सर लेबल पर सर्विंग साइज या अमाउंट का जिक्र होता है। अगर 100 एमएल जूस में 300 से ज्यादा कैलरी है तो सावधान होने की जरूरत है। वैसे, बेहतर तो यह होगा कि जूस पीने के बाद आपको दिनभर के कैलरी इनटेक ध्यान रखना चाहिए। किसी भी स्थिति में कैलरी इनटेक दिनभर में 2000 से 2500 कैलरी के बीच ही होना चाहिए।

ऐंटी-ऑक्सिडेंट: यह हमारे शरीर से हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है, साथ ही ब्लड सेल्स की संख्या में भी इजाफा करता है। इससे हमारे शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है। इतना ही नहीं, एंटी-ऑक्सिडेंट हमारी स्किन को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाए रखने में भी मदद करता है। इसके लिए सबसे बेहतरीन सोर्स हैं हरी सब्जियां, ताजे फल आदि।

पल्प: जूस के लेबल पर पल्प का जिक्र होने का मतलब है उस जूस को बनाने में फल के गूदे का प्रयोग हुआ है। जिस पैक्ड जूस में जितना पल्प होगा, वह उतना ही बेहतर पोषण वाला होगा।

विटमिन: काफी कम मात्रा में ही सही, लेकिन यह शरीर के लिए बेहद जरूरी है। लेबल पर इनकी मात्रा साफ लिखी होती है। मसलन मैंगो जूस में विटमिन ए, ऑरेंज जूस में विटमिन सी होना ही चाहिए।

कैल्शियम: मिलीग्राम में इसकी मात्रा लेबल पर लिखी होती है। शरीर और हड्डी के लिए यह भी जरूरी पोषक तत्व है। अगर जूस में कैल्शियम है तो यह शरीर के लिए अच्छा है।

नेचरल फ्रूट शुगर: यह उतना नुकसानदेह नहीं होती, लेकिन शुगर के पेशंट को इससे भी बचना चाहिए।

ऐडेड शुगर: जूस को मीठा बनाने के लिए उसमें अलग से शुगर मिलाई जाती है। यह सेहत के लिए हानिकारक होती है। शुगर के मरीज के लिए ऐसा जूस खतरनाक है।

प्रिजरवेटिव: अमूमन जूस को पीने के लिए सुरक्षित बनाने के लिए प्रिजरवेटिव का उपयोग किया जाता है। इससे जूस की लाइफ बढ़ जाती है, लेकिन कुछ स्टडीज में यह भी दावा किया गया है कि इस प्रिजरवेटिव से सूजन आदि की समस्या हो सकती है। अगर जूस पीना है तो खुद से फलों का ताजा जूस निकालकर पिएं या फिर बेहतर होगा कि ताजा फल खाएं।

नोट:
जीरो कैलरी लिक्विड: सेहत के लिए देखें तो सबसे बेहतरीन जीरो कैलरी लिक्विड ही अच्छा है। इसमें सबसे पहले पानी का नाम ले सकते हैं, दूसरी है ग्रीन टी।

मिथ मंथन
जिसकी एक्सपाइरी जितनी लंबी, वह उतना बुरा:

यह सोचना पूरी तरह गलत है। जिस प्रॉडक्ट की सेल्फ लाइफ ज्यादा होगी, इसका सीधा-सा मतलब है कि उसमें प्रिजरवेटिव का उपयोग भी ज्यादा किया गया होगा। जिसकी सेल्फ लाइफ जितनी कम होगी, उसमें उतना ही कम प्रिजरवेटिव का उपयोग किया गया होगा। मसलन, अगर किसी पैक्ड आइटम पर लिखा है कि 'Consume with 2-3 Days after opening' तो इसका मतलब है कि उसमें कम प्रिजरवेटिव का उपयोग किया गया है।

Store in Cool and Dry Places: कई लोग इसका मतलब फ्रिज में रखना समझते हैं। यह गलत है। इसका मतलब है कि आप इसे रूम टेंपरेचर पर रखें। इसके लिए बंद अलमारी सही जगह है। हां, गर्मियों में यह चीज बाहर खराब हो सकती है।

Keep Away from Sunlight: यहां इस बात का ध्यान रखें कि ऐसे प्रोडक्ट्स जिन पर 'कीप अवे फ्रॉम सनलाइट' लिखा हो उन्हें सिर्फ धूप ही नहीं, आग की गर्मी से भी बचाकर रखना है। दरअसल, गर्म होने पर ऐसी चीजों की रासायनिक संरचना बिगड़ जाती है और सेहत पर उसका गलत असर पड़ सकता है।

Best Before और Expiry Date अलग-अलग: दोनों चीजें देने का मकसद एक ही होता है प्रॉडक्ट की टोटल लाइफ। जब प्रॉडक्ट के पैकेट पर 'बेस्ट बिफोर 12 मंथ्स' या कुछ और समय सीमा दी गई हो तो अमूमन उस पर एक्सपायरी डेट नहीं लिखी होती। वहीं जब एक्सपायरी डेट लिखी हो तो बेस्ट बिफोर नहीं लिखी होगी। इस इंफॉर्मेशन का सीधा-सा मतलब है कि प्रॉडक्ट की लाइफ को बताना। अगर उस पर दी गई तारीख या वह महीना बीत गया हो तो उसे प्रयोग करना खतरनाक हो सकता है।

इन्ग्रीडिएंट्स की सूची जितनी लंबी, उतना बढ़िया: अगर इन्ग्रीडियेंट्स की संख्या 2-3 से ज्यादा है तो प्रॉडक्ट के अनहेल्दी होने की आशंका 60 से 70 फीसदी तक बढ़ जाती है। दरअसल, पैकेज्ड मटीरियल में जो भी मिलाया जाता है, वह अमूमन नेचरल नहीं होता। वह प्रोसेस्ड होता है और साथ ही, उन सबकी लाइफ बढ़ाने के लिए प्रिजरवेटिव का उपयोग भी किया जाता है। ऐसे में इस बात से ज्यादा प्रभावित न हों कि प्रॉडक्ट की पैकिंग पर लंबी सूची दी गई है, इसलिए यह अच्छी ही होगी।

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दूध की बात
फैट की मात्रा लेबल पर देखें। अमूमन कम फैट का मतलब है हेल्दी दूध क्योंकि आजकल ज्यादातर लोग मोटापे के शिकार हैं। अगर ओवरवेट की समस्या है तो टोंड या डबल टोंड दूध अच्छा रहेगा, न कि फुल क्रीम दूध। फुल क्रीम में फैट की मात्रा ज्यादा होती है। पाश्च्युराइज्ड मिल्क में से अमूमन जरूरी पोषक तत्व निकल जाते हैं। फिर इस दूध में जो कैल्शियम होता है, वह शरीर में पूरी तरह से जज्ब भी नहीं होता।

ब्रेड
ब्रेड के जो विकल्प मार्केट में उपलब्ध हैं, उनमें शुगर और मैदा होता है। यहां तक कि होल वीट से ब्रेड बनाने का दावा करने वाले ब्रैंड में भी पूरा का पूरा गेहूं ही नहीं होता। इसलिए ब्रेड खाने से बचें या फिर राइस खाएं।


TDDE (Total Daily Energy Expenditure)
हर दिन कितनी कैलरी लेनी है और कितना बर्न करना है, यह व्यक्ति विशेष की उम्र, वजन, लंबाई और शारीरिक गतिविधि पर चीजों पर निर्भर करती है। आपको हर दिन कितनी कैलरी की जरूरत है इसे आप tdeecalculator.net पर देख सकते हैं।

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विटमिन डी की जरूरत सभी को

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विटमिन डी शरीर के लिए बेहद अहम है। धूप के साथ मुफ्त मिलने के बावजूद आज बड़ी संख्या में लोग इसकी कमी की वजह से कई तरह के रोगों का शिकार हो रहे हैं। विटमिन डी से जुड़ी परेशानी, जाड़े की प्यारी धूप के फायदे और कैल्शियम से इनके कनेक्शन के बारे में एक्सपर्ट से बात कर बता रहे हैं लोकेश के. भारती:

जोड़ों का दर्द इन दिनों कॉमन प्रॉब्लम बन गया है। हर उम्र के लोग इस दर्द का शिकार बन रहे हैं। अक्सर दर्द की वजह विटमिन डी की कमी होती है। हैरानी की बात है कि शहरों में रहनेवाले करीब 80-90 फीसदी लोग विटमिन डी की कमी से होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं। वजह, अब लोग धूप में ज्यादा नहीं निकलते और न ही पौष्टिक खाना खाते हैं। दिक्कत यह है कि ज्यादातर लोगों को इसकी जानकारी ही नहीं होती या फिर वे जानकर भी इस बात को मानने को तैयार नहीं होते कि धूप न सेंकने की वजह से भी वे बीमार पड़ सकते हैं। बेशक शरीर को मजबूती देने वाली हड्डियों की मजबूती के लिए तो विटमिन डी बड़े काम की चीज है ही, कई दूसरी बीमारियों से भी यह बचाता है।

विटमिन डी की सबसे बड़ी खासियत है कि यह शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्व भी है और हॉर्मोन भी। इतना ही नहीं यह सूर्य से मिलने वाला इकलौता विटमिन भी है। सूर्य के अलावा यह विटमिन बादाम, अंडा, मछली, आदि में मिलता है। शरीर के लिए जरूरी विटमिन डी का 80 प्रतिशत हिस्सा धूप से मिलता है, जबकि डायट से 20 प्रतिशत।

दो तरह के विटमिन डी

1.
विटमिन डी-2: शरीर इसे जज्ब नहीं कर पाता।
2. विटमिन डी-3: यह हमारे शरीर में तब बनता है जब हम धूप में होते हैं। इसके अलावा यह एनिमल फैट मसलन, फिश ऑयल, लिवर, एग यॉक, दूध से बने प्रॉडक्ट्स आदि से भी मिलता है, लेकिन सबसे ज्यादा हमें यह विटमिन धूप से ही मिलती है।

बड़े काम का विटमिन डी
-यह शरीर की इम्युनिटी बढ़ाता है।
-नर्व्स और मसल्स के कोऑर्डिनेशन को कंट्रोल करता है।
-यह हड्डियों, मसल्स और लिगामेंट्स को मजबूत बनाता है।
-यह कैंसर को रोकने में मदद करता है।
-कमजोर हड्डी को मजबूत होने में अमूमन 150 दिन लगते हैं, खराब होने में मात्र 20 दिन

पढ़ें: डिप्रेशन की वजह बन सकती है Vitamin D की कमी


जवानी में कमाएं, बुढ़ापे में खाएं

हड्डियां एक खास उम्र तक ही मजबूत होती हैं। जिन लोगों ने बचपन से लेकर 30 साल की उम्र तक अपनी हड्डियों को बेहतर खान-पान दिया और विटमिन डी को सही रूप से शरीर में जज्ब कराया, अमूमन उम्र बढ़ने के साथ उनकी हड्डियां उतनी कमजोर नहीं होतीं। आप इसे जॉब और पेंशन से भी समझ सकते हैं। जॉब के दौरान सैलरी ज्यादा होगी तो रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी उतना ही अच्छा मिलता है। इसलिए बेहतर होगा कि बचपन से लेकर युवा होने तक विटमिन डी ज्यादा से ज्यादा पाने की कोशिश की जाए।

नोट: एक कमजोर हड्डी को मजबूत बनने में अमूमन 150 दिन लगते हैं जबकि उसे खराब होने में मात्र 20 दिन। इसलिए हड्डी खराब होने की आशंका हमेशा ही रहती है। तो बेहतर यह होगा कि शरीर में विटमिन डी की कमी न होने दें।

बच्चों में विटमिन डी का मामला
-बच्चे के बेहतर विकास के लिए विटमिन डी की खूब जरूरत होती है। पर्याप्त विटमिन डी लेने पर ही उनकी हड्डियां
मजबूत होंगी।
-बच्चे अब आउटडोर गेम्स बहुत ज्यादा नहीं खेलते। स्कूल से आते ही वे मोबाइल या टीवी में लग जाते हैं। इसलिए बच्चों में विटमिन डी की कमी की समस्या बहुत बढ़ गई है।
-चूंकि पसीना निकालने वाले गेम्स बच्चे खेल नहीं पाते, इसलिए मोटापा भी आ जाता है। एक बार मोटापे ने दस्तक दी तो शरीर की शिथिलता और बढ़ जाती है। फिर विटमिन डी की कमी की परेशानी भी शुरू हो जाती है।
-जहां तक दिल्ली, लखनऊ जैसे महानगरों की बात है तो यहां बच्चों की स्थिति इस मामले में और भी खराब है। महानगरों में बिल्डिंग्स इतनी नजदीक बनी होती हैं कि गलियों और घरों तक धूप का पहुंचना नामुमकिन-सा होता है। इसीलिए शहरों में रहने वाले बच्चों में विटमिन डी की कमी के मामले ज्यादा देखे गए हैं, जबकि छोटे शहरों और गांवों में कम।
-वैसे, बात नवजात बच्चे की हो या फिर किशोर की, अगर विटमिन डी का स्तर सही रखना है तो उन्हें कम से कम 1 घंटा रोज धूप में रहना होगा या खेलना चाहिए। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस दौरान उनके शरीर का 20 प्रतिशत हिस्सा खुला होना चाहिए।

ये जानना भी जरूरी है...
-पुरुषों की तुलना में महिलाओं में विटमिन डी की कमी के मामले ज्यादा होते हैं। इसकी बड़ी वजह माहवारी और प्रेग्नेंसी है।
-एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक दुनिया में जितने कूल्हे फ्रैक्चर होंगे, उनमें से आधे एशिया में होंगे।


कमी के लक्षण
-शरीर में लगातार दर्द रहना
-ज्यादा थकान रहना
-दिनभर सुस्ती रहना
-जोड़ों में दर्द होना
-खासकर कुल्हों और घुटनों में दर्द का लगातार होना
नोट: यहां इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि ऐसे लक्षण दूसरी बीमारियों के भी हो सकते हैं। टेस्ट के बाद ही पता चलता है कि विटमिन डी के बारे में।

कमी से होने वालीं दिक्कतें
अमूमन लोग यह सोचते हैं कि विटमिन डी की कमी है तो हड्डियां ही कमजोर होंगी और दर्द की समस्या रहेगी जबकि हकीकत यह है कि टीबी, डायबीटीज, हाइपरटेंशन, मंदबुद्धि, कैंसर, कमजोर इम्यूनिटी और कई संक्रामक बीमारियों की वजह भी विटमिन डी की कमी बनती है। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि अगर विटमिन डी की कमी दूर कर दी जाए तो उन्हें काफी आराम मिलता है।

-हड्डियों का कमजोर और खोखला होना
-जोड़ों, मसल्स का कमजोर होना और दर्द रहना
-इम्युनिटी कम होना
-बाल झड़ना
-बेचैनी और मूड स्विंग्स
-इनफर्टिलिटी का बढ़ना
-पीरियड्स का अनियमित होना
-हड्डियों का खोखला होना और हड्डियों का कमजोर होना
-बार-बार फ्रेक्चर होना

हड्डियों से जुड़ीं 2 बड़ी समस्याएं

ऑस्टियोपोरोसिस: इसमें हड्डियों का घनत्व कम हो जाता है और ये आसानी से टूटने लगती हैं। हड्डियों में चाय की छलनी की तरह छिद्र बन जाते हैं क्योंकि हड्डियों में जमा हुआ कैल्शियम, मिनरल्स आदि धीमे-धीमे हड्डियों से निकलता चला जाता है। कलाई, स्पाइन और कूल्हे की हड्डियां ज्यादा प्राभावित होती हैं।

ऑस्टियोपेनिया:
अमूमन इसमें हड्डियों में प्रोटीन की कमी हो जाती है। इसमें हड्डियों का घनत्व ऑस्टियोपोरोसिस जितना कम नहीं होता इसलिए हड्डियां आसानी से फ्रैक्चर नहीं होतीं, लेकिन कमजोर जरूर हो जाती हैं।

बुजुर्गों को ज्यादा परेशानी
बुजुर्गों में विटमिन डी की कमी होती है। दरअसल, बढ़ती उम्र के साथ उनमें त्वचा के नीचे कॉलेस्ट्रॉल की कमी हो जाती है। इससे पर्याप्त मात्रा में विटमिन डी का निर्माण नहीं हो पाता। इसका परिमणाम होता है हड्डियों और मांसपेशियों में कमजोरी। ऐसे में उनके लिए इसका सप्लिमेंट्स लेना जरूरी हो जाता है।

पढ़ें: Vitamin d और Calcium की कमी पड़ सकता है भारी


विटमिन डी की कमी की समस्या का समाधान
-विटमिन डी की कमी पूरी करने के लिए बच्चों को एक बार में 6 लाख IU (इंटरनैशनल यूनिट) दी जाती हैं।
-यह कई बार इंजेक्शन के जरिए भी दिया जाता है। फिर नॉर्मल रेंज आने तक एक महीने हर हफ्ते 60,000 यूनिट और फिर हर महीने 60,000 यूनिट दी जाती है, जोकि ओरली दी जाती है।
-बड़ों में पहले दो महीने हर हफ्ते 60,000 यूनिट और फिर हर महीने 60,000 यूनिट का सैशे दिया जाता है।
- धूप में नहीं निकलते हैं तो 25-30 साल की उम्र के बाद हर महीने एक सैशे लेना चाहिए।
-इंजेक्शन की बजाए ओरली सप्लीमेंट देने से ज्यादा फायदा होता है। शरीर में ज्यादा विटमिन डी पहुंचता है।

दूध के साथ धूप भी जरूरी
ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि वे दूध का सेवन हर दिन करते हैं तो शरीर में विटमिन डी की कमी नहीं होगी जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। उनके शरीर में भी विटमिन डी की कमी हो सकती है। दरअसल, दूध से उन्हें कैल्शियम मिलता है। अमूमन यह कैल्शियम आंत में जमा होता चला जाता है। दूसरे स्रोतों से मिलने वाले कैल्शियम भी यहीं जमा होते रहते हैं। ऐसे कैल्शियम को डॉर्मेंट कैल्शियम (पुराना जमा हुआ कैल्शियम जो ऐक्टिव नहीं है) कहते हैं। यह कैल्शियम तब तक किसी काम का नहीं होता है जब तक इन्हें विटमिन डी का डोज नहीं मिलता। विटमिन डी की मौजूदगी में ही यह ऐक्टिव होता है और शरीर के लिए उपयोगी बनता है। यानी कैल्शियम तभी शरीर में जज्ब होगा जब विटमिन डी उसे मिलेगा।

आयुर्वेद में इलाज
-आयुर्वेद में दवा, मालिश और लेप को मिलाकर विटमिन डी की कमी से होनेवाले दर्द का इलाज किया जाता है। इलाज का नतीजा सामने आने में 3 महीने लग जाते हैं।
-पूरे शरीर पर तेल की धारा डालते हैं। इसके लिए क्षीरबला तेल, धनवंतरम तेल आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसे 40 मिनट रोजाना और 5 दिन लगातार करते हैं।
-महिलाएं शतावरी सुबह और शाम एक-एक टैब्लेट ले सकती हैं। वैसे तो यह किसी भी उम्र में ले सकती हैं, लेकिन मिनोपॉज के बाद जरूर लें।
-रोजाना एक चम्मच मेथी दाना भिगोकर खाएं। यह हड्डियों के लिए अच्छी है।
-गुनगुने दूध में एक चम्मच हल्दी डालकर पिएं।
-रोजाना एक चम्मच बादाम का तेल (बादाम रोगन) दूध में डालकर पिएं।
-विटमिन डी के सप्लिमेंट ले सकते हैं। इससे फायदा होगा।

एक्सरसाइज है जरूरी
रोजाना कम-से-कम 30 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें। एक्सरसाइज शरीर को फिट रखने और उसके सही तरीके से काम करने के लिए बेहद जरूरी है। यहां तक एक्सरसाइज ब्लड में मौजूद विटमिन डी और कैल्शियम को जज्ब करने में भी मदद करती है। डॉ. सी. एस. यादव कहते हैं कि अगर आप रोजाना 1 घंटा एक्सरसाइज करते हैं तो बाकी 23 घंटे फिट और खुशहाल रह सकते हैं। अगर यह एक घंटा अपने लिए नहीं निकाल सकते तो फिर 24 घंटे हेल्थ को लेकर परेशान रहेंगे। एक्सरसाइज में कार्डियोवस्कुलर, स्ट्रेंथनिंग और स्ट्रेचिंग को मिलाकर करें। कार्डियो के लिए साइकलिंग, अरोबिक्स, स्ट्रेंथनिंग के लिए वेट लिफ्टिंग और स्ट्रेचिंग के लिए योग करें। अगर वॉक करना चाहते हैं तो कम-से-कम 45 मिनट ब्रिस्क वॉक यानी तेज-तेज चलें।

धूप और विटमिन डी की यारी
धूप विटमिन डी का नेचरल सोर्स है। बेशक यह मुफ्त है, लेकिन महानगरों में आज की तारीख में अधिकतर लोगों को धूप सही से नसीब नहीं होती। वजह, समय की कमी तो है ही, खुली जगहों का अभाव भी इसका एक बड़ा कारण है। अगर आप चाहते हैं कि आपके शरीर में विटमिन डी की कमी न हो तो इस ठंड को जाया न होने दें। जाड़े में धूप बड़ी प्यारी होती है तो बेहतर होगा कि इस मौसम का फायदा उठाएं। धूप से शरीर में उचित मात्रा में विटमिन डी बनेगा तो ही शरीर कैल्शियम जज्ब कर पाएगा।


धूप सेंकने का सही समय और तरीका
-इस बात पर बहुत विवाद है कि विटमिन डी के लिए धूप सेंकने का सही समय क्या है। इसके लिए अलग-अलग एक्सपर्ट्स अलग-अलग टाइम बताते हैं। लेकिन इसका सीधा फॉर्म्युला यह है कि जब धूप में आपकी परछाई, आपके कद से छोटी बने, तब धूप सेंकना बेहतर है।
-सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक 45 मिनट के लिए धूप में रहने से फायदा होता है। यहां इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि 45 मिनट बैठने से सिर्फ एक दिन की जरूरत पूरी होती है, इससे ज्यादा देर बैठने पर ही एक दिन की जरूरत से ज्यादा विटमिन डी का निर्माण होता है। इससे कम बैठने पर कुछ मात्रा में विटमिन डी का निर्माण जरूर होता है, लेकिन शरीर उसे जज्ब नहीं कर पाता और वह बेकार चला जाता है। इसलिए कम से कम 45 मिनट तो जरूर ही बैठना चाहिए और वह भी लगातार।
-जब भी धूप सेकनें जाएं तो खासकर चेहरा, गर्दन, कंधा, छाती और पीठ खुली रखें।
-धूप से त्वचा का सीधा संपर्क जरूरी है। शीशे से छनकर आनेवाली धूप से न के बराबर ही विटमिन डी का निर्माण हो पाता है।

धूप के फायदे हजार
-अग्नि (ऊष्मा) का मुख्य सोर्स होने के कारण सूर्य की रोशनी ठंड से सिकुड़े शरीर को गर्माहट देती है, जिससे शरीर के भीतर की ठंडक और पित्त की कमी दूर होती है। आयुर्वेद में सनबाथ को 'आतप सेवन' नाम से जाना जाता है।
-सूरज की रोशनी में ऐसे चमत्कारी गुण होते हैं, जिनके कारण शरीर पर विभिन्न प्रकार के इन्फेक्शंस के असर की आशंका कम हो जाती है। इससे शरीर की इम्यूनिटी मजबूत होती है। धूप के सेवन से शरीर में सफेद कणिकाएं ज्यादा बनती हैं जो बीमारी पैदा करने वाले कारकों से लड़ती हैं।
-सूरज की किरणों से शरीर को कैंसर से लड़ने वाले तत्व मिलते हैं। इससे कैंसर का खतरा टलता है, जिन्हें कैंसर है, उन्हें भी लाभ होता है।
-आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में पाचन का कार्य जठराग्नि द्वारा किया जाता है, जिसका मुख्य स्रोत सूर्य है। दोपहर (12 बजे के आसपास) में सूर्य अपने चरम पर होता है और उस समय तुलनात्मक रूप से जठराग्नि भी ज्यादा सक्रिय होती है। कहा जाता है कि इस समय का भोजन अच्छी तरह से पचता है।
-आपको अच्छा महसूस कराने वाले हॉर्मोन सेरेटॉनिन और एंडोर्फिन का धूप के असर से शरीर में पर्याप्त स्राव होता है, जोकि डिप्रेशन, सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर, साइकॉलजिकल-इमोशनल हेल्थ और बॉडी क्लॉक रिद्म के संतुलन में फायदेमंद है।
-धूप सेंकने से नींद न आने की समस्या दूर होती है क्योंकि धूप का सीधा असर हमारे पीनियल ग्लैंड पर होता है। यह ग्लैंड शरीर में मेलाटोनिन है जो नामक हॉर्मोन बनाता है। एक ऐसा पावरफुल एंटी-ऑक्सिडेंट मेलाटोनिन हमारी नींद की क्वॉलिटी तय करता है और डिप्रेशन को भी दूर रखता है।
-सुबह की धूप सेंकने से त्वचा संबंधी कई लाभ भी होते हैं। धूप सेंकने से खून साफ होता है और फंगल प्रॉब्लम, एग्जिमा, सोरायसिस और स्किन संबंधी दूसरी कई बीमारियां दूर होती हैं। यह बीपी को कम करने में भी मदद करती है।

ज्यादा से परेशानी भी
-ओजोन परत आज काफी क्षतिग्रस्त होने की वजह से हानिकारक अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचना मुश्किल हो गया है। लंबे समय (1 घंटा या इससे ज्यादा समय) तक सीधी धूप में बैठने से स्किन एलर्जी, स्किन कैंसर, डिहाइड्रेशन आदि समस्या हो
सकती है।
-ज्यादा धूप में लगातार रहने से कुछ लोगों में अल्ट्रावॉयलेट किरणों के प्रभाव से शरीर में त्वचा का रंग तय करने वाले मैलेनिन, हीमोग्लोबिन का उत्पादन गड़बड़ाने लगता है। इससे कुछ समय बाद स्किन के टैन होने का खतरा बढ़ जाता है।

कैल्शियम और विटमिन डी
कैल्शियम हड्डियों का एक मुख्य तत्व है। इसकी कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा, यह न्यूरो सिस्टम को दुरुस्त रखता है। शरीर के कई अंगों के काम करने में मदद करता है। खास बात यह है कि कैल्शियम तभी शरीर में जज्ब हो पाता है जब विटमिन डी का लेवल ठीक हो। यानी अगर विटमिन डी कम है तो कैल्शियम शरीर में नहीं जा पाता और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। ऐसे में कैल्शियम अगर पूरा ले भी रहे हैं तो भी उसका फायदा नहीं मिलता। शरीर को कैल्शियम अगर पूरा नहीं मिलता तो वह हड्डियों में मौजूद कैल्शियम को इस्तेमाल करना शुरू करता है क्योंकि कैल्शियम ब्लड के जरिए शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर काम करता है।

कितना हो कैल्शियम
शरीर में कैल्शियम का लेवल 8.8 से 10.6 mg/dl होना चाहिए। इसके लिए रोजाना 1000 mg यानी 1 ग्राम कैल्शियम लेने की जरूरत होती है। कैल्शियम से भरपूर डाइट (दूध और दूध से बनी चीजें, हरी पत्तेदार सब्जियां और ड्राई-फ्रूट्स) लेने से यह जरूरत काफी हद तक पूरी हो जाती है। प्रेग्नेंट महिलाओं, दूध पिलाने वाली मांओं और बढ़ते बच्चों को भी ज्यादा मात्रा में कैल्शियम की जरूरत होती है। ऐसी मांओं को दोगुनी यानी करीब 2 ग्राम कैल्शियम रोजाना की जरूरत होती है। इसी तरह 1-4 साल के बच्चों को रोजाना 700 mg, 4-8 साल के बच्चों को 1000 mg और 9-18 साल के बच्चों को 1300 mg कैल्शियम चाहिए।


ज्यादा हो तो भी खतरनाक
शरीर में अगर विटमिन डी बहुत ज्यादा हो तो भी वह खतरनाक हो सकता है। इसकी अधिकता तब मानी जाती है जब शरीर में इसका लेवल 800-900 नैनोग्राम/मिली तक पहुंच जाए। ऐसा होने पर किडनी फंक्शन से लेकर मेटाबॉलिजम तक पर असर पड़ता है। हालांकि विटमिन डी बहुत ही कम मामलों में इस लेवल तक जा पाता है। कई बार लोगों को लगता है कि दवा के रूप में विटमिन डी ज्यादा लेने से नुकसान हो सकता है। मुंह से लिए जानेवाले विटमिन डी का कोई नुकसान नहीं है। यह एक्स्ट्रा विटमिन डी शरीर से पॉटी या यूरीन के रास्ते निकल जाता है। लेकिन इंजेक्शन से लिया जानेवाला सारा विटमिन डी शरीर में ही रह जाता है इसीलिए विटमिन डी के सैशे, टैब्लेट या कैप्लूस ही लेने की सलाह दी जाती है।

कौन-सी दवा लें
हमें रोजाना 1 ग्राम (1000 mg) कैल्शियम की जरूरत पड़ती है। 50 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं और 70 साल के ज्यादा उम्र के पुरुषों को रोजानना 1200 mg कैल्शियम लेना चाहिए। डॉक्टर की सलाह से हर दिन 500 mg की 1 टैब्लेट ले सकते हैं। 30 साल की उम्र के बाद महिलाओं को और 40 साल के बाद पुरुषों को कैल्शियम टैब्लेट लेनी चाहिए। लेने पर कई बार गैस आदि की शिकायत हो सकती है। खाने के बाद खूब सारा पानी पिएं।

कैल्शियम के लिए टेस्ट
अक्सर गली-मोहल्ले में फ्री में बोन डेंसिटी टेस्ट के कैंप लगते हैं। इनमें एड़ी के जरिए हड्डियों में कैल्शियम की मात्रा की जांच की जाती है। लेकिन यह तरीका सही नहीं है। इस टेस्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता।


ये 2 टेस्ट कराएं
ब्लड कैल्शियम: यह ब्लड में मौजूद कैल्शियम की जानकारी देता है। हालांकि यह बहुत फायदेमंद नहीं है क्योंकि हमें हड्डियों में मौजूद कैल्शियम की जानकारी चाहिए होती है, न कि ब्लड में मौजूद कैल्शियम की।
कीमत: औसतन 200 रुपये
डेक्सास्कैन: इसे बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट भी कहते हैं। इससे हड्डियों में मौजूद कैल्शियम के लेवल की जानकारी मिलती है। हड्डियों के दर्द या किसी और दिक्कत को जानने के लिए यही टेस्ट कराना बेहतर है।
कीमत: 1200 से 1500 रुपये

नोट: टेस्ट की कीमतों में अंतर हो सकता है और दवा डॉक्टर से पूछ कर ही लें।

एक्सपर्ट पैनल
डॉ. राजेश मल्होत्रा प्रफेसर ऐंड हेड, ऑर्थोपीडिक डिपार्टमेंट, एम्स
डॉ. भावुक गर्ग एडिशनल प्रफेसर, ऑर्थोपीडिक डिपार्टमेंट, एम्स
डॉ. प्रसन्ना भट्ट, सीनियर पीडीऐट्रिक्स
डॉ. विवेक दीक्षित सीनियर साइंटिस्ट, ऑर्थोपीडिक डिपार्टमेंट, एम्स

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10 साल यूं बनाएं बेमिसाल

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बच्चों के लिए यह उम्र घर का नींव डालने जैसा होता है। अगर पैरंट्स द्वारा इसकी प्लानिंग सही ढंग से हुई तो बच्चों को आगे की जिंदगी में चुनौतियां झेलना काफी आसान हो जाता है। इस प्लानिंग में 3 बातें काफी खास हैं: हेल्थ, एजुकेशन और फाइनैंस।

हेल्थ की बात
उम्र के इस दौर में बच्चे बढ़ रहे होते हैं। ऐसे में उनके लिए बैलेंस्ड डायट जरूरी हो जाता है। इसके अलावा, कुछ वैक्सीन भी इस दौरान उन्हें लगते हैं। इस दौरान पैरंट्स को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी हेल्दी रहे। अगर बच्चा आउटडोर गेम्स में दिलचस्पी नहीं ले रहा है तो इसकी आदत लगवाने का कम पैरंट्स का है। हर दिन 1 घंटे की फिजिकल ऐक्टिविटी जरूर हो और वह भी आउटडोर गेम्स के रूप में।

मेंटल हेल्थ: हॉर्मोन के उतार-चढ़ाव की वजह से बच्चे मानसिक उलझनों में ज्यादा फंसते हैं, उन्हें इन उलझनों से निकालना पैरंट्स की जिम्मेदारी है। अगर आप अपने को इसमें अक्षम पाते हैं तो किसी मनोवैज्ञानिक की मदद ले सकते हैं।

दांतों की देखभाल: बच्चों में दूध के दांत टूटने के बाद जब नए दांत आते हैं तो कई बार उनकी सेटिंग्स सही नहीं होतीं या फिर कैविटी की समस्या होती है। इन दोनों परेशानियों के लिए पैरंट्स का सचेत होना जरूरी है। जरूरत पड़े तो जरूर डेंटिस्ट से दिखाएं।

आंखों की जांच: आजकल आंखों की समस्या बच्चों में बहुत ज्यादा देखने में आ रही है। इसकी एक बड़ी वजह है मोबाइल की आदत। दिक्कत यह है कि ज्यादातर बच्चों को पता ही नहीं चलता कि उन्हें यह दिक्कत है भी। उन्हें लगता है कि जितना दिख रहा है, वही सामान्य है। हकीकत का जब तक पता चलता है, तब तक मोटा चश्मा आंखों पर लगाने की नौबत आ जाती है। इसलिए 5 से 6 साल के बच्चों की आई टेस्टिंग एक बार जरूर करवानी चाहिए। कई बार स्कूलों में भी बच्चों की आई टेस्टिंग होती है, वहां पर अक्सर बच्चे की सही आई साइट आती है। इसमें परेशानी की एक छोटी-सी बात यह है कि जिन लेटर्स को बच्चों को आई टेस्टिंग के लिए पढ़ने के लिए दिया जाता है, उन्हें वे नजदीक से देखकर याद कर लेते हैं और फिर टेस्टिंग के दौरान कम दिखाई देने पर भी सही बोल देते हैं। ऐसे में उनकी परेशानी का पता ही नहीं चलता। मोबाइल की आदत से अगर बच्चों को निकालना है तो इसके लिए कुछ जरूरी उपाय हैं।

वैक्सिनेशन: बच्चों को जन्म के बाद से ही वैक्सीन लगना शुरू हो जाता है। ऐसे में कई पैरंट्स को लगता है कि स्कूल जाने वाले बच्चों को वैक्सीन लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। यह सच नहीं है। पांच साल के ऊपर के बच्चों को भी डॉक्टर की सलाह के अनुसार वैक्सीन जरूर लगवाएं ताकि वे हमेशा हेल्दी रहें।

रोजाना कितनी देर मोबाइल?
बच्चे और किशोर मोबाइल पर काफी समय बिताने लगे हैं। इस समय को कम करने की कोशिश करें। शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य के लिए यह जरूरी है।
4 साल तक के बच्चे: मोबाइल से दूर ही रखें। ऐसा करना मुमकिन न हो पा रहा हो तो भी इस उम्र के बच्चों को 30-60 मिनट से ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल न करने दें।
5 साल से 12 साल: तक के बच्चे 90 मिनट से ज्यादा स्क्रीन नहीं देखना चाहिए। यह अवधि टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब मिलाकर है।
12 से 17 साल: 90 मिनट। जरूरी होने पर वक्त थोड़ा बढ़ा सकते हैं, लेकिन किसी भी कीमत पर 2 घंटे से ज्यादा न हो।

एजुकेशन की 10 वर्षीय योजना
बच्चा जब नर्सरी में जाता है तो चुनौती बड़ी नहीं होती, लेकिन जब क्लास की गिनती 1 से शुरू होती है तो चुनौती बढ़ जाती है। एजुकेशन को लेकर इस तरह की प्लानिंग की जानी चाहिए।
- कभी भी खुद की प्लानिंग बच्चों पर नहीं थोपें। मसलन आपने सोच लिया कि उसे इंजिनियर या डॉक्टर बनाना है, जबकि बच्चे को आर्ट्स पसंद है तो उसे आर्ट्स ही पढ़ने दें।
- अगर बच्चे का झुकाव खेल की तरफ है तो उस पर भी फोकस किया जा सकता है।
- 10वीं तक तो सभी स्टूडेंट्स की पढ़ाई अमूमन एक जैसी ही होती है, इसके बाद ही स्ट्रीम का चयन किया जाता है।
हालांकि 7वीं क्लास से ही बच्चे के रुझान के बारे में पता चल जाता है, आप तभी से उसके करियर के बारे में सोच सकते हैं।
- ध्यान यह रखना है कि भेड़चाल में शामिल नहीं होना है।
बच्चों के नाम निवेश
- जितना पैसा आपके पास सेविंग्स के लिए हो, उसे बेहतर सेविंग्स इंस्ट्रूमेंट्स में इन्वेस्ट करें।
- यदि आपकी एक बेटी है तो आप सुकन्या समृद्धि योजना में निवेश करने का फैसला कर सकते हैं।
- बच्चों के नाम पर PPF और म्यूचुअल फंड्स के माध्यम से भी निवेश कर सकते हैं जो लंबे समय में एक बड़ी रकम तैयार करने में आपकी मदद कर सकता है। म्यूचुअल फंड्स में सिस्टमेटिक तरीके से निवेश करना सबसे बेहतर माना जाता है। इससे आपको अनुशासित तरीके से निवेश करने और कठिन लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है।

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अगर आप इस साल 18 के हुए हैं तो अगले 10 साल की प्लानिंग
एजुकेशन
यह वक्त होता है जब हम जिंदगी को एक दिशा देकर आगे बढ़ते हैं। ऐसे में कॉलेज और यूनिवर्सिटीज का चयन काफी सोच समझकर करना चाहिए। आप यूनिवर्सिटी में क्या देखें:
- जिसके पास रिसर्च और आधुनिक सूचना-संसाधनों वाला इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद हो।
- रिसर्च प्रोग्राम के साथ अंडर ग्रैजुएट और कम से कम 5 पोस्ट ग्रैजुएट डिपार्टमेंट का अस्तित्व हो।
- जिसके पास यूजीसी के मानकों के अनुसार पढ़ाई और रिसर्च के लिए क्वॉलिफाइड फैकल्टी हो।
- यूनिवर्सिटी का कोई डिस्टेंस एजुकेशन प्रोग्राम न हो।
- यूनिवर्सिटी मानी गई संस्था के रूप में कम से कम 5 सालों से अस्तित्व में रही हो।
कोर्स, इंस्टिट्यूट और यूनिवर्सिटी चुनते वक्त जरा सावधान रहें। संस्थान या उसके चलाए जाने वाले कोर्स के बारे में क्रॉस चेक करना चाहते हैं तो इन पर निगरानी और कंट्रोल रखने वाले कुछ संस्थानों के नाम और वेबसाइट हम यहां दे रहे हैं।
1. www.ugc.ac.in
बारहवीं के बाद की पढ़ाई के मामले में यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन) ही वह संस्था है और इसकी वेबसाइट वह जगह है, जहां आप पूरी जानकारी ले सकते हैं। कोई भी संस्थान अगर डिग्री कोर्स करा रहा है और अगर वह असली है तो उसकी जानकारी इस वेबसाइट पर सर्च में नाम करने पर मिल जाएगी।
2. www.aicte-india.org
यह टेक्निकल एजुकेशन की मान्यता के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की परिषद है जो मानव संसाधन मंत्रालय के तहत काम करती है। कोई भी संस्थान जो इंजिनियरिंग, मैनेजमेंट आदि जैसे तकनीकी क्षेत्रों में डिग्री या डिप्लोमा देता हो, उसे एआईसीटीई से मान्यता लेना जरूरी होता है। यह अपने पैरामीटर्स के अनुसार पीजी और ग्रैजुएशन स्तर के कार्यक्रमों को मान्यता देती है। ऊपर वाले कोर्सों में से अगर कोई संस्थान डिग्री या डिप्लोमा करा रहा है तो इस वेबसाइट पर जाकर सर्च में उसका नाम टाइप करने पर अगर उसके बारे में और उस कोर्स के बारे में जानकारी आती है तो वह असली है।
आप अगर कोई स्पेशलाइज्ड कोर्स करने जा रहे हैं। वह मान्यता प्राप्त है या नहीं, यहां चेक करें:
टीचर्स एजुकेशन: www.ncte-india.org
लॉ: www.barcouncilofindia.org
डेंटल कोर्स: www.dciindia.gov.in
फार्मेसी: www.pci.nic.in
यूनानी: www.ccimindia.org
एग्रिकल्चर: www.icar.org.in

हेल्थ की बात
-18 से 25 की उम्र में ऊर्जा की कोई कमी नहीं होती। अमूमन हम फिजिकली पूरी तरह फिट होते हैं। लंबी दौड़ लगा सकते हैं। जमकर जिम कर सकते हैं। लेकिन गलत खानपान और लाइफस्टाइल की वजह से शरीर का वजन बढ़ता है और हम मोटापे का शिकार हो जाते हैं। 35-40 की उम्र में अगर परेशानी से बचना है तो इस उम्र में भी थोड़ा सतर्क रहें। फिजिकल ऐक्टिविटी बेहद जरूरी है। चाहें खेलें या जॉगिंग करें या जिमिंग। जब घर लौटें तो पसीने से तरबतर हो।
- खानपान का ध्यान रखना भी जरूरी है। अमूमन हम इस उम्र में जितनी कैलरी लेते हैं उसे पचा तो लेते हैं, लेकिन उन कैलरीज को पूरी तरह बर्न नहीं कर पाते। कैलरी पूरी तरह बर्न नहीं होगी तो मोटापा आएगा।


अगर आप इस साल 25 के हुए हैं तो अगले 10 साल की प्लानिंग
सेहत को भूलें नहीं
इस उम्र में अमूमन लोगों का करियर बन जाता है या बनने वाला होता है। ऐसे में सेहत को बेहतर करने का वक्त कम हो जाता है, लेकिन चुनौतियां बढ़ जाती हैं। ऑफिस में काम का दबाव, शादी हो गई तो फैमिली को संभालने की चुनौती के बीच लोग अपनी सेहत को बिलकुल ही भूल जाते हैं। कई बार ऐसा देखा जाता है कि जो लोग 18 की उम्र में फिट होते हैं, वे जॉब होने के कुछ महीनों या कुछ बरस बाद ही मोटापे का शिकार होने लगते हैं। ऐसे में कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है:

ईगो को करें गो
यह सच है कि हर शख्स की अपनी इगो होती है। कई बार दूसरे लोग इस ईगो को जाने-अनजाने हर्ट कर देते हैं, लेकिन हमेशा खुश रहने वाले लोग छोटी-मोटी बातों को दिल से नहीं लगाते। वे दूसरों को माफ करना भी जानते हैं। खुश और सेहतमंद रहना है तो माफ और माफी शब्दों से न टूटने वाली दोस्ती कर लें। यह जॉब के लिहाज से भी अच्छा है।

कायम रहे पॉजिटिविटी
इंसानों की फितरत होती है कि वे निगेटिविटी को जल्दी पकड़ते हैं। सीधे कहें तो ज्यादातर लोग दूसरों की कमी को जल्दी देख लेते हैं, लेकिन अच्छाई की तरफ उनका ज्यादा ध्यान नहीं जाता। लेकिन खुश रहने वाले हर स्थिति में अच्छाई खोजते हैं। वे यह मानते हैं कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। इसलिए अगर खुश रहना है तो आज
नहीं, अभी से लोगों में बुराई कम और अच्छाई ज्यादा देखना शुरू करें।

फैमिली-फ्रेंड वाले ऑलवेज खुश
खुश रहने वाले लोगों की फैमिली बड़ी और दोस्तों की सूची लंबी होती है। जब करीबी लोगों की संख्या ज्यादा होगी तो दुख बांटने वालों की संख्या कभी कम नहीं होगी। आप भी अपनी इस लिस्ट लंबी करें। ऐसे लोगों की जिंदगी में कुछ भी होता है तो वे अपनी बातों को सभी से शेयर करते हैं। इससे उनका मन हल्का रहता है। इस आदत को जिंदगी में ढालें।

अगर आप इस साल 45 के हुए हैं तो अगले 10 साल की प्लानिंग सेहत
- अगर पहले से फिजिकल ऐक्टिविटी की आदत नहीं डाली है तो अब डाल लें। रोज 25 से 30 मिनट वॉक और 10 से 15 मिनट की एक्सरसाइज जरूर करें। इनके अलावा 15 से 20 मिनट योग भी करें।
- खानपान में परहेज की शुरुआत कर देनी चाहिए। रिफाइंड, मेदा, चीनी और नमक से जितनी दूरी हो, बना लें।
- बाहर का खाना और जंक फूड कम करें। अगर बहुत मन करे तो सप्ताह में एक लंच बाहर कर सकते हैं।
- कम से कम 7 से 8 घंटे की नींद जरूरी है।

महिलाओं के लिए रेग्युलर चेकअप
महिलाओं को हर साल ब्लड शुगर, यूरिन, बीपी, कॉलेस्ट्रॉल की जांच करानी चाहिए। इसके अलावा इन समस्याओं पर भी ध्यान देना चाहिए:
1. सिस्ट या फाइब्रॉइड
ओवरी में सिस्ट और यूटरस में फाइब्रॉइड आजकल कॉमन समस्या हो गई है। सिस्ट आमतौर पर फ्लूइड वाले ट्यूमर होते हैं, फाइब्रॉइड ठोस ट्यूमर होते हैं। ज्यादातर सिस्ट दवा से ठीक हो जाते हैं।
लक्षण: पीरियड्स के दौरान ब्लीडिंग बहुत ज्यादा हो और पीरियड्स 15-20 दिन में हो जाते हों तो फाइब्रॉइड हो सकता है।

2. मीनोपॉज की आहट
करीब 40 साल की उम्र के बाद महिलाओं में कई तरह के बदलाव होने लगते हैं। ऐसा अचानक नहीं होता, बल्कि इस बदलाव में कुछ साल लगते हैं। इस स्टेज को पेरीमीनोपॉज कहा जाता है। पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं और मन चिड़चिड़ा रहने लगता है।
लक्षण: प्राइवेट पार्ट में सूखापन, बालों का झड़ना, ब्रेस्ट का ढीला होना, सेक्स की इच्छा कम होना, मोटापा बढ़ना जैसे बदलाव। धीरे-धीरे पीरियड्स पूरी तरह बंद हो जाते हैं। अगर एक साल तक पीरियड्स न आएं तो मीनोपॉज माना जाता है।

3. ओस्टियो-ऑर्थराइटिस
मीनोपॉज के बाद महिलाओं में जोड़ों में दर्द या जकड़न की समस्या देखी जाती है क्योंकि इस दौरान कैल्शियम की कमी या एक्सरसाइज न करने से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। इससे फ्रैक्चर की आशंका बढ़ जाती है।
लक्षण: जोड़ों और आसपास के मसल्स में दर्द, दर्द की वजह से नींद में कमी, जोड़ों में जकड़न आदि।

4. पॉलिसिस्टिक ओवरी डिसीज़
इस समस्या से 12 से 45 साल की उम्र तक दो-चार होना पड़ता है। इसके पीछे हॉर्मोंस में बदलाव, लाइफस्टाइल और कई बार जिनेटिक वजहें होती हैं। इसमें ओवरी के आसपास छोटे-छोटे सिस्ट (ट्यूमर) बन जाते हैं।
लक्षण: इससे पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं और ब्लीडिंग बहुत कम हो जाती है या फिर बहुत बढ़ जाती है।

पुरुषों के लिए
डायबीटीज, बीपी और थायरॉइड का टेस्ट रेग्युलर कराएं। अगर शुगर नहीं है तो हर 3 महीने पर शुगर (फास्टिंग और खाने के दौ घंटे बाद) और 6 महीने पर किडनी के लिए केएफटी (किडनी फंक्शन टेस्ट) जरूर करवाएं। अगर शुगर है तो घर में ग्लूकोमीटर से इसे मॉनिटर करें। साथ ही 15 दिनों पर लैब में भी शुगर टेस्ट करवाएं। तीन महीने पर HbA1c करवाएं। किसी फिजिशन के संपर्क में रहें। प्रोस्टेट की समस्या पर ध्यान रखें।

अगर आप इस साल रिटायर हो रहे हैं तो अगले 10 साल की प्लानिंग
रिटायरमेंट की उम्र में पहुंचने के बाद खुद के ज्यादा केयर की जरूर होती है। सेहत में लगभग उन्हीं चीजों का ध्यान रखना होता है जो 45 साल के बाद रखना होता है।
घर में बैठें नहीं: रिटायर होने का मतलब यह नहीं है कि अब घर में बैठना है। कोई न कोई बहाना ढूंढें जो आपको व्यस्त रखे।
वॉक पर जाएं: सुबह या शाम वॉक पर जाएं। इससे फिटनेस में इजाफा होगा।
डायट की फिक्र करें: डायट पर नजर रखें। हेल्दी फूड लें।
बोरियत से बचें: इस उम्र में बोरियत फील होती है। इससे बचने के लिए एंटरटेनमेंट के बहाने ढूंढें। हमउम्र लोग की सोहबत में रहें। ऐसे में उन एरियाज में सीनियर्स के ग्रुप की मौजूदगी पता लगाएं और उसमें जॉइन कर लें। अगर न हो तो ग्रुप बना सकते हैं। ग्रुप में बैठने से मन बहलेगा।
हॉबी का भी रखें ख्याल: कोई ऐसी हॉबी है जो वह बिजी रुटीन के चलते अगर आप पहले फॉलो नहीं कर पा रहे थे तो उसे जॉइन करें। मनपसंद का काम करने से आप हमेशा ही तरोताजा महसूस करेंगे। बेहतर सेहत के लिए यह जरूरी है।

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अगले 10 साल की मनी प्लानिंग
2020 में उम्र के तीन मुख्य पड़ावों पर अगले 10 साल के लिए आपकी फाइनैंशल प्लानिंग कैसी हो, इसे लेकर सुधा श्रीमाली ने तीन प्रमुख फाइनैंशल और वेल्थ अडवाइजर्स से बात की:

-कार्तिक झवेरी, फाइनैंशल ए‌क्सपर्ट, डायरेक्टर, ट्रान्सेंड कंसल्टिंग

अभी नौकरी जॉइन की हो तो
- आप अपनी कमाई का 30% पैसा SIP में डाल दें। यह आदत अगर आपने डाल दी तो तय मानिए आपको पैसे की तंगी कभी झेलनी नहीं पड़ेगी।
- मात्र 3000 रुपया महीना अपनी पूरी कामकाजी जिंदगी में बचाने व उसे एसआईपी में डालने से आप 25 से 60 साल में 4.5 करोड़ रुपये जमा कर लेंगे।
- हेल्थ इंश्योरेंस अपने लिए तकरीबन 10,00,00 रुपये का और टर्म प्लान सालाना इनकम का 20 गुना ले लें। इस उम्र में उसका प्रीमियम बहुत ही कम होगा।

उम्र 45 के आसपास हो तो
- अब आपके पास सिर्फ 15 साल तक और काम करने का समय है और निवेश का भी।
- लेकिन इसमें अच्छी खबर यह है कि आप अपने करियर के पीक पर हैं और आप अच्छे-खासे पैसा की बचत कर सकते हैं।
- बेहतर है कि अग्रेसव वेल्थ क्रिएशन को चुनें और सीधे स्टॉक्स व इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करें।
- इस समय आपके पास बड़ा कैश फ्लो होगा और न ही लोन का पे-ऑफ करने का ज्यादा झंझट होगा। ऐसे में आपका फोकस असेट क्रिएशन होना चाहिए।
- कुछ पैसा रिटायरमेंट पॉइंट ऑफ व्यू से इन्वेस्ट करें।

रिटायरमेंट के आसपास हों तो
- यह न सोचें कि रिटायरमेंट फंड से रियल एस्टेट खरीदेंगे और उसकी रेंटल इनकम से गुजारा कर लेंगे।
- अगर आपके पास बहुत-सी रियल एस्टेट प्रॉपर्टी है तो भी आप उनमें से कुछ को बेच दें, ताकि आपके हाथ में कुछ नगदी आ जाए। दरअसल, आपका ये कैश फ्लो 7 से 12 % रिटर्न देने का माद्दा रखता है जबकि प्रॉपर्टी एप्रिसिएशन बहुत मार्जिनल होगा।
- अपनी एक तिहाई असेट को इक्विटी में निवेश करें। बाकी का पैसा हायर यील्ड वाले बॉन्ड AAA रेटेड डिपॉजिट और बॉन्ड म्यूचुअल में निवेशित करें।

-विजय मंत्री, प्रमोटर, बकफास्ट फाइनैंशल अडवाइजरी सर्विसेस

-बलवंत जैन, टैक्स एक्सपर्ट और फाइनैंशल प्लैनर

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कुछ हफ्ते पहले की बात है। समीर दिल्ली स्थित अपने ऑफिस से गाड़ी से घर लौट रहे थे। गाड़ियों की चेकिंग चल रही थी। समीर की कार को भी ट्रैफिक पुलिस वालों ने रोक कर डीएल, आरसी, इंश्योरेंस सर्टिफिकेट आदि को दिखाने कहा। उसके वॉलेट में डीएल तो था, लेकिन आरसी और पलूशन सर्टिफिकेट वाली फाइल घर पर छूट गई थी। डीएल देखने के बाद पुलिसवालों ने बाकी पेपर की डिमांड की। इस पर समीर ने घर पर छूटने की बात बताई। पुलिसवालों ने चालान काटने की बात कही और इसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी। अचानक समीर को ध्यान आया कि 2 महीने पहले उसने अपने मोबाइल में DigiLocker ऐप डाउनलोड किया था। उसने फौरन ही ट्रैफिक वालों को यह बात बताई। उस ऐप में तमाम पेपर मौजूद थे। ट्रैफिक वालों ने फिर समीर का चालान नहीं काटा। चूंकि हम सभी को ऐसी समस्याओं से कभी-न-कभी सामना करना ही पड़ता है। इसलिए मोबाइल में ऐसे ऐप की मौजूदगी जरूरी है।

यहां हम आपको मोबाइल में कौन-कौन से जरूरी ऐप्स होने चाहिए यह बता रहे हैं ताकि हर दिन की जिंदगी और जिंदगी का सफर, दोनों ही आसान हो जाएं। ऐसे ऐप्स और उनकी उपयोगिता के बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

आना-जाना
DigiLocker: जरूरी डॉक्यूमेंट्स पूरी तरह सेफ रखने के लिए डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत 'DigiLocker' ऐप की शुरुआत हुई। इस ऐप का इस्तेमाल करने से डॉक्यूमेंट्स की हार्ड कॉपी साथ रखने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन ध्यान रहे अगर ट्रैफिक रूल्स तोड़ा है तो डीएल या आरसी में से किसी एक की हार्ड कॉपी का साथ में होना जरूरी है, नहीं तो समस्या हो सकती है। इस ऐप पर साइन अप करने के लिए मोबाइल नंबर से लिंक्ड आधार नंबर होना जरूरी है। इसके बिना काम नहीं चलेगा। इस डिजिटल लॉकर में आप पैन कार्ड, 10वीं, 12वीं (अगर संबंधित राज्य बोर्ड ने डिजिटल कॉपी बनाई हो तो) सर्टिफिकेट्स, आधार कार्ड, डीएल, आरसी, इंश्योरेंस आदि की डिजिटल कॉपी रख सकते हैं।
Android 7.2 MB iOS 67.7 MB

mPARIWAHAN: इससे यूजर्स ड्राइविंग लाइसेंस और गाड़ी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की डिजिटल कॉपी बना सकते हैं। इस पर मौजूद डिजिटल कॉपी को कानूनी मान्यता है, लेकिन ध्यान रहे अगर ट्रैफिक रूल्स तोड़ा है तो डीएल या आरसी में से किसी एक की हार्ड कॉपी का साथ में होना जरूरी है। वहीं इस ऐप से सेकंड हेंड गाड़ी की डिटेल्स भी जांची जा सकती है। ऐसे लोग, जिन्हें सेकंड हेंड गाड़ी खरीदने में दिलचस्पी हो, इस ऐप से फायदा उठा सकते हैं।
Android 20 MB iOS 35.7 MB

Delhi Route Planner: अगर आप दिल्ली में रहते हैं या दिल्ली में आना-जाना लगा रहता है तो यह ऐप आपके काफी काम आ सकता है। यह मेट्रो और डीटीसी दोनों का कंबाइंड ऐप है। इसमें दिल्ली की लाइफलाइन बन चुकी मेट्रो और डीटीसी दोनों के रूप के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध है। यह ऐप हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में जानकारी देता है। चूंकि अब दिल्ली मेट्रो का काफी विस्तार हो चुका है। ऐसे में मोबाइल में इस ऐप के होने से काफी फायदा होता है।
Android 8.2 MB

Delhi Metro Rail: दिल्ली मेट्रो रेल द्वारा विकसित यह ऐप काफी काम का है। एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक पहुंचने का रूट, भाड़ा, दूरी, कितन वक्त लगेगा। ऐसी तमाम जानकारियां इस ऐप पर उपलब्ध है।
Android 20 MB iOS 54.8 MB

mPassport Seva: जैसा कि नाम से पता चलता है, यह ऐप स्मार्टफोन के यूजर्स को पासपोर्ट ऐप्लिकेशन स्टेटस ट्रैकिंग, पासपोर्ट सेवा केंद्र का पता और पासपोर्ट बनवाने के तरीकों के स्टेप्स के बारे में बताता है। इस ऐप का एक फायदा यह भी है कि बार-बार पासपोर्ट केंद्र जाने की जरूरत नहीं है। एक बार इस ऐप को डाउनलोड कर लिया तो काफी चीजें आसान हो जाती हैं।
Android 2 MB iOS 5.5 MB

IRCTC Rail Connect: यह सबसे ज्यादा पॉप्युलर सरकारी ऐप्स में से एक है। IRCTC ने यात्रियों के सफर को आसान और सुविधाजनक बनाने के लिए इस ऐप को बनाया है। इसके अलावा भी आईआरसीटीसी के कई मोबाइल ऐप्स हैं। इन ऐप्स की मदद से आप घर बैठे टिकट बुक करने से लेकर सफर के दौरान मनपसंद भोजन तक की सेवा ले सकते हैं।
Android 15 MB iOS 13.4 MB

IRCTC AIR: वैसे तो हवाई यात्रा के लिए टिकट बुक कराने या जानकारी के लिए तमाम तरह के ऐप मौजूद हैं। लेकिन आईआरसीटीसी का यह ऐप कुछ खास है। इस पर भी कई तरह के ऑफर्स आदि आते रहते हैं। इस ऐप से आप देश के भीतर या विदेश यात्रा के लिए एयर टिकट बुक कर सकते हैं। इसमें आपको सर्च हिस्ट्री सेव करने समेत कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं।
Android 6.7 MB iOS 13.4 MB

UTS: अनरिजर्व्ड टिकटिंग सिस्टम यानी यूटीएस। इस ऐप के जरिए अनारक्षित और प्लैटफॉर्म टिकट कटाया जा सकता है। इसके लिए फोन में जीपीएस जरूरी है। इससे मोबाइल पर ही टिकट दिखाया जा सकता है। Android 5MB iOS 5MB

Rigo Taxi: जल्दी टैक्सी चाहिए तो रिगो ऐप की मदद ली जा सकती है। टैक्सी बुक करने के लिए यह एक बेहतरीन ऐप है। इस सर्विस का उपयोग करने पर किराया कैश या कैशलेस दोनों तरह से दे सकते हैं।
Android 59MB iOS 78.2 MB

फाइनैंस
BHIM: भारत इंटरफेस फॉर मनी (भीम) ऐप यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस पर आधारित है। इसके जरिए डिजिटल ट्रांजैक्शन किया जा सकता है। सभी बड़े भारतीय बैंक यूपीआई से जुड़े हुए हैं।
Android पर डिवाइस के अनुसार iOS 77.1 MB

LIC Customer: देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी से जुड़ी तमाम जानकारियां इस ऐप पर उपलब्ध हैं। मसलन, एलआईसी के प्रॉडक्ट्स, प्लैन ब्राउशर्स, प्रीमियम कैलकुलेटर, एलआईसी ऑफिस आदि।
Android 10 MB iOS 30.9 MB

GST Rate Finder: अगर आपको अलग-अलग सामानों पर जीएसटी रेट्स में कन्फ्यूजन है तो इस ऐप की मदद से आप आसानी से वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी रेट्स की डीटेल्स जान सकते हैं।
Android 2.1 MB iOS 12.4 MB

Aaykar Setu: आयकर सेतु ऐप के साथ इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की विभिन्न सेवाओं, मसलन: ऑनलाइन टैक्स पेमेंट, टैक्स कैलकुलेटर, ऑनलाइन PAN कार्ड अप्लाई जैसी सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं।
Android 11 MB iOS 40.2 MB

UMANG (Unified Mobile Application for New-age Governance): सरकारी कामों के लिए बना यूनिफाइइड मोबाइल ऐप्लिकेशन के जरिए यूजर कई सारी कस्टमर सर्विस जैसे एंप्लॉयीज प्रविडेंट फंड (EPF), पैन, आधार, डिजिलॉकर, गैस बुकिंग, मोबाइल बिल पेमेंट, बिजली बिल पेमेंट आदि को इस एक ऐप के जरिए ही ऐक्सेस कर सकते हैं। इस ऐप को मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी और नैशनल ई-गवर्नेंस डिविजन ने मिलकर विकसित किया है। इस ऐप के जरिए एक बड़ा काम जो आसानी से हो सकता है वह है ईपीएफ से जुड़ी सर्विसेज का इस्तेमाल। इस ऐप के साथ आप अपनी नौकरी के दौरान अलग-अलग कंपनियों द्वारा डिपॉजिट किए गए पैसे की जानकारी पा सकते हैं।
Android 20 MB iOS 91.6 MB

दूसरी जरूरी सुविधाएं
mAdhaar: यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) का एम-आधार ऐप भी काफी काम का है। इसके जरिए यूजर्स अपनी आधार पहचान स्मार्टफोन में रख सकते हैं। इस ऐप का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यूजर्स अपनी eKYC इन्फर्मेशन कहीं भी, कभी भी, किसी भी सर्विस प्रोवाइडर के साथ शेयर कर सकते हैं। इस ऐप के जरिए यूजर्स कभी भी अपना बायॉमेट्रिक डेटा ब्लॉक कर सकते हैं।

Swachh Bharat Abhiya: यह ऐप आपके शहर और आसपास के इलाकों को साफ रखने के लिए है। इस ऐप के जरिए यूजर्स गंदगी की फोटो खींचकर संबंधित विभाग या नगरपालिका को भेज सकते हैं। सभी शहरी लोकल बॉडीज इस ऐप से जुड़े हुए हैं। अगर शिकायत का निवारण नहीं किया जाता है तो आप कॉमेंट भी कर सकते हैं।
Android 8.5 MB iOS 42.9 MB

Postinfo: यह डाक विभाग का ऐप है, जिसे सेंटर फॉर एक्सेलेंस इन पोस्टल टेक्नॉलजी ने विकसित किया है। इस ऐप के जरिए आप पार्सल की ट्रैकिंग, पोस्ट ऑफिस सर्च, पोस्टेज कैलकुलेटर, इन्श्योरेंस प्रीमियम कैलकुलेटर जैसी सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। आजकल पोस्ट ऑफिस के कुछ इन्वेस्टमेंट प्लान पर काफी अच्छा रिटर्न मिलता है। इस ऐप पर उस तरह की सभी जानकारी उपलब्ध है।
Android 11 MB iOS 6.9 MB

Voter Helpline: यह ऐप चुनाव से जुड़ी हर तरह की जानकारी का सिंगल पॉइंट है। यहां आप शिकायत दर्ज करने से लेकर, नामांकन, कैंडिडेट्स तक की जानकारी मिल जाती है। आप इस ऐप की मदद से वोटर लिस्ट में अपना नाम भी चेक कर सकते हैं। इसे डाउनलोड करने के बाद यूजर्स अपनी पर्सनल जानकारी वेरिफाई करने के साथ-साथ, ऑनलाइन फॉर्म्स भर सकता है और उसका स्टेटस चेक कर सकता है।
Android 16 MB iOS 15.6 MB

MyGov: यह ऐप एक ऐसा प्लैटफॉर्म है, जहां लोग गवर्नेंस में अपनी सहभागिता निभा सकते हैं। यहां यूजर्स संबंधित सरकारी विभागों और मंत्रालयों को सलाह और आइडिया दे सकते हैं। साथ ही यूजर पॉलिसी बनाने में भी सहभागिता निभा सकते हैं। सरकार को सुझाव देने के लिए यह एक अच्छा ऐप है।
Android 6.2 MB iOS 54.4 MB

MySpeed: TRAI (टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के MySpeed ऐप के जरिए आप डेटा स्पीड के साथ कवरेज, नेटवर्क इंफॉर्मेशन और डिवाइस लोकेशन भी चेक कर सकते हैं। इस ऐप के जरिए आप अपने टेलिकॉम ऑपरेटर का शिकायत भी दर्ज करा सकते हैं।
Android 3.6 MB iOS 88.5 MB

Narendra Modi: सोशल मीडिया पर 'सुपरऐक्टिव' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब मोबाइल के जरिए लोगों से जुड़ने के लिए इस ऐप को लाया था। इस ऐप से जहां मोबाइल यूजर्स को सीधे मेसेज और ई-मेल भेजेंगे, वहीं लोगों से सुझाव भी मांगें जाते हैं। इस ऐप से यूजर्स पीएम मोदी के कार्यक्रमों, केंद्र सरकार के काम की लेटेस्ट जानकारी मिल जाती है। मोदी इस ऐप के जरिए यूजर्स से सीधा संवाद करते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चर्चित रेडियो प्रोग्राम 'मन की बात' इस ऐप पर भी उपलब्ध है। इस मोबाइल ऐप में मोदी के ब्लॉग का सेक्शन भी दिया गया है।
Android 52 MB iOS ़144.8 MB

M-Kavach Mobile Security: मोबाइल को वाइरस और दूसरे तरह की सिक्यॉरिटी थ्रेट आदि से बचाने के लिए और मोबाइल की सिक्यॉरिटी के लिए सरकार ने इस ऐप को लॉन्च किया ताकि लोगों के पर्सनल डेटा की चोरी नहीं हो। इनके अलावा वाईफाई और ब्लूटूथ आदि का गलत उपयोग नहीं हो सके, साथ ही अनचाहे एसएमएस और अनचाहे कॉल को भी रोका जा सके। मोबाइल यूजर्स के लिए यह ऐप काफी उपयोगी है।
Android 1.8 MB

सिक्यॉरिटी
INDIAN POLICE AT UR CALL APP: जीआईएस आधारित इस ऐप के कई फायदे हैं। जरूरत पड़ने पर इससे न सिर्फ नजदीकी पुलिस स्टेशन की जानकारी की जानकारी मिलती है बल्कि वहां तक पहुंचने के लिए रास्तों के बारे में भी जानकारी मिलती है। यह ऐप अगर हर किसी के मोबाइल में हो तो परेशानी के समय में काफी काम आ सकता है।
Android 6.8 MB iOS 1.4 MB

Smart 24x7: विभिन्न राज्यों की पुलिस ने महिलाओं और बुजुर्गों की सेफ्टी को ध्यान में रखते हुए इसे लॉन्च किया था। इसमें यूजर को सिर्फ पैनिक बटन दबाकर सहायता लेनी होती है। खतरे में यह ऐप पैनिक अलर्ट पहले से फीड कॉन्टेक्ट नंबरों को देता है। यह न सिर्फ खतरे का संदेश भेजता है बल्कि सिचुएशन की रिकॉर्डिंग और फोटो भी साझा करता है।
Android पर: डिवाइस के अनुसार iOS 28.9 MB

Raksha: यह ऐप खासा पॉपुलर है। इसमें एक खास तरह का बटन होता है, जिसे दबाते ही अपनों तक खतरे का मेसेज फौरन पहुंच जाता है। वे मेसेज भेजने वाले का लोकेशन भी देख सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसके लिए जरूरी नहीं है कि आपका मोबाइल नेटवर्क काम कर रहा हो। जहां नेटवर्क उपलब्ध नहीं होता यह वहां भी काम करता है। इसके लिए सिर्फ इतना करना है कि 3 सेकंड के लिए वॉल्यूम-की को दबाकर रखना है।
Android 14 MB

My Safetypin: महिलाओं की सुरक्षा के मामले में सेफ्टीपिन एक बेहतर विकल्प है। इसे महिला सुरक्षा को ध्यान में रखकर खासतौर से डिजाइन किया गया है। यह बेसिक फीचर्स जैसे: जीपीएस ट्रैकिंग, जरूरी फोन नंबर, डायरेक्शन-टु-सेफ लोकेशन आदि से लैस है। यह ऐप यूजर्स को अनसेफ एरिया की जानकारी फौरन देता है। किसी भी खतरे की स्थिति में यह यूजर्स को सेफ लोकेशन के बारे में समय रहते पिन करता है। इसीलिए इसका नाम सेफ्टीपिन है ।
Android 8.5 MB iOS 68.9 MB

एजुकेशन
CBSE Shiksha Vani: इस ऐप के जरिए पैरंट्स और स्टूडेंट्स को परीक्षा और इवैल्युएशन से जुड़ी जरूरी जानकारियां दी जाती हैं। बोर्ड ने पॉडकास्ट की सुविधा लोगों को सही और जरूरी जानकारियां देने के लिए इसे लॉन्च किया है। इन पॉडकास्ट्स के जरिए लोगों को अकैडमिक्स, ट्रेनिंग और एग्जाम से जुड़ी जरूरी जानकारियां दी जाती हैं। यह ऐप प्ले स्टोर पर ऐंड्रॉयड यूजर्स लिए उपलब्ध है। यहां रजिस्टर्ड यूजर्स को नई जानकारी के साथ ऑडियो और विडियो फाइल मिल जाएंगी। इन्हें सीबीएसई द्वारा अपलोड किया जाएगा।
Android 5.7 MB

Bharatavani: इस ऐप को एचआरडी मिनिस्ट्री के लिए सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वेजेज ने विकसित किया है। इसमें हिंदी और अंग्रेजी समेत कई भाषाओं में जानकारी दी गई है। इस ऐप में अलग-अलग डिक्शनरियों से डेटा लिया गया है, जो भारतवाणी की वेबसाइट पर मौजूद हैं। इतना ही नहीं अगर किसी शब्द का अर्थ देश की दूसरी भाषाओं में जानना है तो भारतवाणी ऐप एक बेहतरीन प्लैटफॉर्म है।
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ePathshala: एनसीईआरटी की किताबें 'ई-पाठशाला' ऐप पर मुफ्त में ऑनलाइन उपलब्ध हैं। इस ऐप में पढ़ाई से जुड़े ऑडियो, विडियो और कई दूसरी चीजें उपलब्ध हैं। इसमें मौजूद किताबों को पढ़ते समय उसे बड़ा, छोटा, जूम करके भी देख सकते हैं। सीधे कहें तो इसमें एनसीईआरटी की किताबों की जगह इस ऑप्शन का उपयोग स्टूडेंट और टीचर दोनों कर सकते हैं। हां, स्कूलों में यह शायद अभी मुमकिन नहीं है।
Android 12.2 MB iOS 9.7 MB

दिल्ली से जुड़े जरूरी ऐप्स
Himmat Plus: महिलाओं की सुरक्षा के लिए है। इसके लिए यूजर को दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर खुद को रजिस्टर करना होता है। इसकी खास बात यह है कि खतरे की स्थिति में यदि यूजर ऐप से अलर्ट भेजता है तो दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम में उसका लोकेशन, खतरे की जानकारी, उस समय का ऑडियो जैसी सूचनाएं पहुंच जाती हैं। ऐसे में पुलिस मदद मांगने वाले के पास तुरंत पहुंचती है। इस ऐप को काफी पसंद किया गया है।

Delhi Police Lost Report: सामान के खो जाने की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए इस ऐप को लॉन्च किया गया। इसमें शिकायतकर्ता का नाम, पिता का नाम, पता, मोबाइल नंबर आदि भरना पड़ता है। खास बात यह है कि इस ऐप से रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद आपको थाने जाने की जरूरत नहीं यानी घर बैठे ही खो जाने की रिपोर्ट दर्ज हो जाती है।
Android 15 MB iOS 16.6 MB

Delhi Police One Touch Away: दिल्ली पुलिस वन टच अवे एप्लिकेशन को खास तौर से दिल्ली के लोगों के लिए बनाया गया। इस ऐप में दिल्ली पुलिस के सभी अधिकारियों के नंबर उपलब्ध हैं, उन नंबर्स के द्वारा आप अपनी बात अधिकारियों तक पहुंचा सकते हैं। इस ऐप पर आप अपनी फोटो और विडियो को इस वेबसाइट पर शेयर कर सकते हैं। अपनी समस्या भी बता सकते हैं।
Android 12 MB iOS 12 MB

Delhi Police Senior Citizen: बुजुर्गों की सेफ्टी के लिए दिल्ली पुलिस सीनियर सिटिजन ऐप को पसंद किया जा रहा है। इमर्जेंसी की स्थिति में एक यूनीक SOS बटन के जरिए सीनियर सिटिजन्स का कॉल हेल्पलाइन नंबर -1291 पर ट्रांसफर हो जाता है। बीट कॉन्स्टेबल और SHO तुरंत अलर्ट हो जाते हैं। इससे जरूरतमंद को फौरन ही मदद मिल जाती है।
Android 3.2 MB iOS 20.4 MB

Swachh Delhi : PWD Delhi: पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट दिल्ली सरकार का एक अहम विभाग है। यह सरकार के लिए प्लैनिंग, डिजाइनिंग, कंस्ट्रक्शन का काम देखती है। कहीं सड़क बंद हो, टूटी हो कहीं कोई और समस्या हो, ऐसी तमाम समस्याओं आदि को सरकार की जानकारी में लाने के लिए यह ऐप है। सड़क, स्ट्रीट लाइट्स, स्कूल और हॉस्पिटल्स के रखरखाव संबंधी जानकारी के लिए भी है यह ऐप। इस ऐप के माध्यम से जानकारी के अलावा शिकायत भी दर्ज करा सकते हैं। इसमें इमेज डाउनलोड की सुविधा भी है। इसकी खास बात यह है कि एक निश्चित समय सीमा के बाद अगर समस्या का समाधान नहीं होता है तो यह शिकायत खुद-ब-खुद सीनियर ऑफिसर्स के पास ट्रांसफर हो जाता है।
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हरियाणा के ऐप्स
भारत को डिजिटल इंडिया बनाने के लिए कई सालों से कवायद की जा रही है। इस कवायद में हरियाणा भी शामिल है। ऐप सर्विस इसी की एक कड़ी है। हरियाणा सरकार के जरूरी ऐप्स के बारे में बता रहे हैं अखिल सक्सेना

Harpath Haryana: सड़कों को गड्ढामुक्त बनाने के लिए हरियाणा सरकार ने 'हरपथ हरियाणा' मोबाइल ऐप बनाया हुआ है। इस ऐप की मदद से जनता को कार्यालयों मे जाकर टूटी सड़कों के बारे में शिकायत करने की जरूरत नहीं रहती। टूटी सड़क की फोटो ऐप पर डालने से ही शिकायत संबंधित विभाग को चली जाती है। Android 5.2 MB

Shiksha Setu: हरियाणा के उच्च शिक्षा विभाग ने डिजिटल इंडिया अभियान के साथ कदम बढ़ाते हुए शिक्षा सेतु नामक मोबाइल ऐप शुरू किया है। इस ऐप पर हरियाणा के सरकारी कॉलेजों में छात्रों की हाजिरी, फीस, ऑनलाइन एडमिशन, स्कॉलरशिप के अलावा लेक्चर और निदेशालय के अधिकारियों के बारे में भी जानकारी है। Android 22 MB

Durga Shakti: महिलाओं की सुरक्षा के लिए हरियाणा पुलिस का दुर्गा शक्ति ऐप है। महिलाएं इस ऐप को मोबाइल में डाउनलोड कर किसी भी परिस्थिति में इस्तेमाल कर पुलिस की मदद मांग सकती हैं। उन्हें आपातकालीन स्थिति में लाल बटन को टच करना होता है।
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HPKD Har Pashu Ka Dhyan: पशुपालन विभाग की ओर से तैयार कराए गए ऐप 'Har Pashu Ka Dhyan' ऐप के माध्यम से पशु पालक अहम सेवाओं का लाभ ले सकते हैं। इस ऐप में पशु पंजीकरण, इलाज और जानवरों का इतिहास रखा जाता है। टीकाकरण आदि की जानकारी भी मिल जाती है। Android 12.1 MB

यूपी के ऐप्स
अलग-अलग सेवाओं के लिए, अलग-अलग ऐप्स की सुविधा देश को डिजिटल इंडिया बनाने के लिए एक बड़ी कोशिश है। यूपी सरकार के भी कई जरूरी ऐप्स हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं आनंद त्रिपाठी

UPCOP: इस ऐप के जरिए उन अपराधों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सकती है, जिसमें अपराधी अज्ञात रहता है। इसमें कुल 28 सेवाएं हैं, जिसमें किसी भी जगह से अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा सकती हैं। इसके अलावा थानों में दर्ज की गई एफआईआर देखकर उनकी कॉपी भी हासिल की जा सकती है। खोए हुए सामान की सूचना दर्ज करा सकते हैं। चरित्र सत्यापन, किराएदार सत्यापन, धरना प्रदर्शन करने की अनुमति के लिए आवेदन भी कर सकते हैं।
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Bhulekh Online: भूलेख ऐप के जरिए कोई व्यक्ति कहीं भी बैठकर अपनी जमीन से जुड़ी खसरा, खतौनी की जानकारी हासिल कर सकता है। इस ऐप में पहले अपना जिला चुनना होगा। इसके बाद जिले की तहसील का चुनाव करना होगा। बाद में गांव का ऑप्शन आ जाएगा। जिसके बाद गाटा संख्या के द्वारा, खाता संख्या के द्वारा या खातेदार के नाम के द्वारा अपनी जमीन की जानकारी हासिल कर सकते हैं। Android 3.5 MB

jansunwai: सरकारी विभागों से जुड़ी हर एक समस्या के लिए यूपी सरकार ने जनसुनवाई ऐप लॉन्च किया है। इस ऐप के जरिए शिकायतकर्ता किसी भी विभाग से जुड़ी कोई भी शिकायत दर्ज करवा सकता है। इसमें शिकायत दर्ज कराने पर शिकायतकर्ता अपनी शिकायतों को ट्रैक कर सकता है। इसके अलावा शिकायत की सुनवाई न होने पर रिमाइंडर भी भेज सकता है। इतना ही नहीं, शिकायत रद्द होने पर शिकायतकर्ता अपना फीडबैक भी दर्ज करा सकता है। जब तक शिकायतकर्ता जांच से संतुष्ट नहीं होता, तब तक उसकी समस्या का समाधान संबंधित विभाग के द्वारा किया जाता है। साथ ही शिकायत को अपडेट भी करा सकते हैं। इस ऐप पर आई शिकायतों की देखरेख सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय करता है।
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Sewayojan: यह ऐप रोजगार के अवसरों का पता लगाने के लिए यूपी सरकार के सेवायोजन विभाग का है। इस ऐप से यूजर को राज्य सरकार के विभागों में नौकरी के साथ-साथ निजी सेक्टर में भी नौकरियों की जानकारी मिलती है। साथ ही रोजगार मेले के आयोजन के बारे में भी युवक जानकारी हासिल कर सकते हैं। इसमें अस्थायी, स्थायी से लेकर, शॉर्ट टर्म वाली नौकरियों की जानकारी भी मिल जाती है। उन्हें नौकरी से संबंधित अपडेट मिलता रहता है। Android 5.2 MB

E-Ganna: उत्तर प्रदेश सरकार का गन्ना किसानों की सहूलियत के लिए ई-गन्ना ऐप है। इस ऐप के जरिए गन्ना बकाया भुगतान समेत गन्ना किसानों की कई समस्याओं का समाधान ऑनलाइन किया जाता है। किसान गन्ना बेचने, सर्वे डेटा, गन्ने से जुड़ी सरकारी सूचनाएं (कैलेंडर), बेसिक कोटा और गन्ने की पर्ची से जुड़ी कई प्रकार की जानकारियां ले सकते हैं। Android 4.8 MB

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एक्सपर्ट से जानें, नींद से लेकर खाने से जुड़ी बातें जो बनाए रखेंगी सेहतमंद

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हम यूं तो अपनी हेल्थ का काफी ध्यान रखते हैं लेकिन दिनचर्या से जुड़ी ही रोजाना कई ऐसी गलतियां कर देते हैं जो सेहत के बिगड़ने का कारण बन जाती हैं। इस स्थिति को रोकने और सेहतमंद बने रहने के लिए डॉ. अबरार मुल्तानी दे रहे हैं अहम सलाह:हम यूं तो अपनी हेल्थ का काफी ध्यान रखते हैं लेकिन दिनचर्या से जुड़ी ही रोजाना कई ऐसी गलतियां कर देते हैं जो सेहत के बिगड़ने का कारण बन जाती हैं। इस स्थिति को रोकने और सेहतमंद बने रहने के लिए डॉ. अबरार मुल्तानी दे रहे हैं अहम सलाह:

लॉकडाउन में हैपीनेस को करें अप, डिप्रेशन को डाउन

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विनती (29 साल) पिछले हफ्ते भर से हर बात पर झुंझला जाती हैं, गुस्सा हो जाती हैं। सारा दिन बिस्तर पर लेटकर टीवी देखती रहती हैं। न किसी से ढंग से बात करती हैं, न ही रूटीन काम ही करती हैं। मां ने परेशान होकर अपने एक सायकॉलजिस्ट फ्रेंड को लक्षण बताए तो उन्होंने बताया कि विनती एंग्जाइटी का शिकार हो गई हैं। सायकॉजिस्ट से बात करने पर विनती ने बताया कि उनकी बहुत ही बढ़िया सोशल और ऑफिस लाइफ थी। हर वीकएंड वह दोस्तों के साथ आउटिंग पर जाती थीं। अचानक घर में बैठना पड़ गया। साथ ही, स्लोडाउन की वजह से नौकरी जाने का भी खतरा है। इन सब बातों से परेशान हैं।

रोाशन लाल (60 साल) भी पिछले 15-20 दिन से बहुत परेशान हैं। वह घर में अकेले रहते हैं। फोन पर जब बच्चों ने हाल-चाल पूछा तो पता लगा कि वह घर में बंद हो जाने से बेचैनी और घबराहट महसूस कर रहे हैं। ऊपर से कोरोना के उम्रदराज लोगों पर ज्यादा असर करने की खबरों ने उन्हें और परेशान कर दिया है। उन्हें डर है कि अगर वह बीमार हो गए तो कोई देखने या मिलने भी नहीं आएगा।

दरअसल, ये दोनों ही मामले लॉकडाउन में घर में बंद रहने से पैदा हुई एंग्जाइटी के हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर यह एंग्जाइटी लंबे समय चली तो डिप्रेशन में बदल सकती है।

जानें उदासी, एंग्जाइटी और डिप्रेशन का फर्क
- उदास हम सभी होते हैं, बल्कि लगभग रोज होते हैं लेकिन थोड़ी देर बाद नॉर्मल हो जाते हैं।
- उदासी थोड़ी लंबे वक्त चले तो एंग्जाइटी में बदल सकती है। एंग्जाइटी के लक्षण बेचैनी, झुंझलाहट, गुस्सा, किसी काम में मन न लगना, नींद न आना, बहुत ज्यादा पसीना आना आदि हैं।
- उदासी लंबे समय (दो हफ्ते या ज्यादा) तक चलती रहे और इसका असर रोजाना की जिंदगी पर पड़ने लगे तो यह डिप्रेशन बन जाती है। डिप्रेशन में गुमसुम रहना, किसी से बात न करना, बहुत ज्यादा खाना खाना या बिलकुल न खाना, बहुत सोना या बिलकुल न सोना, खुद को कोसते रहना, रोजाना के काम न करना सिरदर्द या बदन दर्द होना, वजन बहुत बढ़ जाना जैसे लक्षण दिखते हैं। डिप्रेशन के मरीजों में अक्सर एंग्जाइटी के लक्षण भी नज़र आते हैं।

कैस बचाएं खुद को डिप्रेशन से
इन दिनों हो रही एंग्जाइटी या डिप्रेशन की कुछ खास वजह हैं। जानते हैं वजहें और उनका हालः

अपनी या अपनों की बीमारी या मौत का डर
सबसे बड़ा खतरा इन दिनों लोगों को अपने या अपने किसी करीबी के करोना का शिकार होने का डर है। ऐसे में खुद को समझाएं कि यह संकट एक साथ पूरी दुनिया में आया है। इसके खतरे में जितने हम हैं, उतने ही दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोग भी हैं। यह बीमारी अचानक नहीं होगी और सिर्फ आपको नहीं होगी। हां, अगर बहुत ज्यादा डरे तो आपका शरीर और मन कमजोर हो जाएगा और तब बीमारी आसानी से आपको घेर सकती है।

सचाई को स्वीकार करें। फिलहाल जो स्थिति है, उस पर गौर करें। देखें कि बीमारी से मरनेवालों की तादाद बेहद कम है, जबकि ठीक होने वालों की बहुत ज्यादा। साथ ही, ऐसे भी बहुत हैं, जो बिना इलाज ही ठीक हो गए। अभी तक कुल 873 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 19 की मौत हुई है। डॉक्टरों का मानना है कि कोरोना के करीब 60-70 फीसदी मामले तो बिना इलाज के ही ठीक हो जाते हैं। करीब 20 फीसदी मामलों में ही इलाज की जरूरत होती है। इनमें भी गंभीर कम ही होते हैं। हां, आपको लोगों से दूरी बनानी है और घर के अंदर रहना है।

अगर घर में कोई बुजुर्ग हैं तो उन्हें टीवी से दूर रखें। उन्हें ऐसी खबरें दिखाइए जिससे उनके अंदर उत्साह और हौसला बढ़े, जैसे इटली में 101 बरस के एक बुजुर्ग ने कोरोना को हरा दिया। वह पूरी तरह स्वस्थ हैं जबकि जवान हौसला हार रहे हैं।

एक कॉपी और पेन लेकर लिखें कि आपमें कोरोना के लक्षण हैं या नहीं? ट्रैवल हिस्ट्री है या नहीं? किसी कोरोना पीड़ित से मिलें या नहीं? अगर ऐसी कोई बात नहीं है तो फिजूल न डरें। अगर वाकई कोई लक्षण हैं या डर है तो भी डॉक्टर से मिलें।

खतरा कितना है, खुद जांचें
1. अगर खुद आपने हाल में किसी ऐसे देश की यात्रा की है, जो कोरोना से बुरी तरह प्रभावित है?

2. अगर आप ऐसे किसी परिचित के संपर्क में आए हैं जिसने बुरी तरह प्रभावित देशों में से किसी एक देश की यात्रा की है।

3. अगर कोरोना के लक्षण दिखें।

पैनिक न करें
- अगर खांसी है, जुकाम है और सांस फूल रही है, लेकिन बुखार नहीं है तो निश्चिंत रहिए कोरोना वाइरस का इंफेक्शन नहीं है।

- अगर बुखार है, लेकिन खांसी और जुकाम नहीं है तो कोरोना वाइरस का इंफेक्शन होने की आशंका बहुत कम है।

- अगर बुखार के साथ खांसी और जुकाम है, लेकिन सांस नहीं फूल रही है तो जरूरी नहीं कि कोरोना वाइरस का इंफेक्शन ही है।

- अगर कोरोना वाइरस का इंफेक्शन हुआ है तो जरूरी नहीं कि COVID-19 ही है।

- अगर COVID-19 का इंफेक्शन ही हुआ है और सांस नहीं फूल रही है तो ज्यादा परेशान होने वाली बात नहीं है।

- अगर कोरोना इंफेक्शन है और तेज बुखार के साथ सांस फूल रही है तब फौरन अस्पताल में भर्ती हो जाइए, घबराएं नहीं ज्यादातर लोग इलाज के बाद ठीक हो जाते हैं।

अकेलेपन का डर
- घर में रहने से अकेलेपन और बोरियत का डर मन में घर कर रहा है। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप दोस्तों और रिश्तेदारों से संपर्क बनाएं रखें। फोन और विडियो पर कॉल करें।

- ऐसी कोई स्किल सीखें, जो आप सीखना चाहते थे लेकिन टाइम नहीं मिलने से कर नहीं पा रहे थे। पेंटिंग करें, कुकिंग करें, गिटार बजाना सीखें, किताबें पढ़ें।

- बच्चों के साथ खेलें। लूडो, सांप-सीढ़ी, चेस से लेकर अंत्याक्षरी जैसे खेल खेलें। उनके साथ अपने अनुभव शेयर करें।

- आमने-सामने या ऊपर नीचे रहने वाले लोगों के साथ बालकनी में बैठकर कोई अंत्याक्षरी, तंबोला जैसे खेल सकते हैं या फिर कोई वाद्य-यंत्र बजा सकते हैं। इससे वक्त भी अच्छा करेगा और मजा भी आएगा।

- पुरानी फोटो, अल्बम और यादों में लौटने का भी यह अच्छा समय है। शारीरिक विज्ञान के अनुसार उन यादों से ऊर्जा मिलती है, जिनको याद करके हम खुश होते हैं।

परिवार में तनातनी
- पार्टनर के साथ अक्सर काम का बंटवारा, बच्चों की जिम्मेदारी या टीवी प्रोग्राम को लेकर झगड़ा होता है। महिलाओं पर काम का बोझ बढ़ गया है। स्वीकार करें कि यह इमोशनल और फिजिकल लोड शेयर करने का वक्त है। ऐसे में आपकी खटपट से बचने के लिए आपस में बैठकर चीजें तय कर लें।

- चूंकि ज्यादातर घरों में इन दिनों मेड नहीं आ रहीं, इसलिए काम का बंटवारा कर लें। मिलकर अपने कामों का बटंवारा कर लें तो इससे घर का माहौल खुशनुमा रखने के साथ बच्चों को अच्छी ट्रेनिंग भी मिलेगी।

- बच्चों की जिम्मेदारी का भी बंटवारा कर लें, मसलन एक कोई एक सब्जेक्ट पढ़ाएगा, तो दूसरा सेकंड सब्जेक्ट। उन्हें एंजेग करने का जिम्मा भी दोनों का है। हां, कुछ वक्त ऐसा जरूर हो, जब आप सभी एक साथ हों, जैसे कि लंच और डिनर का वक्त, टीवी देखने का वक्त। साथ मिलकर शादी का विडियो और पुराने फोटो अल्बम देखें।

- खुद को समझाएं कि आजकल की भागदौड़ में पार्टनर के साथ इतना वक्त बिताने या बातें करने का मौका कम ही मिलता है। ऐसे में जिन मसलों पर बात करना चाहते थे, लेकिन कर नहीं पाए, उन पर बात कर सुलझा सकते हैं, पर ध्यान रखें कि एक-दूसरे पर एक-दूसरे के परिवारों पर निगेटिव कमेंट न करें।

सोशल मीडिया की निगेटिविटी
- सोशल मीडिया पर मार्केट का दबाव है। ऐसे में वह वही प्रोडक्ट बनाएगा, जिस पर ज्यादा क्लिक आएं। ऐसे में फिजूल की जानकारी न लें, खासकर अगर आपका स्वभाव एंग्जाइटी वाला है तो आपको हमेशा कोरोना-कोरोना नहीं करना है। थोड़ी देर के लिए ही सोशल मीडिया पर जाएं। न्यूज भी पूरा दिन न देखें।

- सोशल डिस्टेंसिंग के साथ-साथ सोशल मीडिया डिस्टेंसिंग भी करें। जिन ग्रुप में रहने से एंग्जाइटी बढ़ रही है, वहां से निकल जाएं। वॉट्सएप सलाह से जितना दूर रहेंगे, दिमाग उतना ज्यादा ताजा रहेगा।

- इन दिनों सोशल मीडिया पर मिल रही जानकारी का बहुत ज्यादा सेवन न करें। कोरोना से संबंधित कोई भी जानकारी अगर अच्छे सोर्स (डब्ल्यूएचओ, हेल्थ मिनिस्ट्री, सीनियर डॉक्टर आदि के पेज या विडियो) से मिल रही है, उसी पर यकीन करें।

- स्क्रीन टाइम ज्यादा न रखें। हर वक्त मोबाइल, लैपटॉप या टीवी से न चिपके रहें। इसकी बजाय हर घंटे बाद उठें और घर में या टैरेस पर 5-10 मिनट के लिए टहलें। हेल्दी खाएं और 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें। सोने से 2 घंटे पहले स्क्रीन को बाय कर दें।

- रात में सोने से कम-से-कम दो घंटे पहले टीवी और मोबाइल को बाय-बाय कर दें। मोबाइल इतनी दूर रखें कि लेटे-लेटे उठा न सकें।

पैसों की किल्लत
- इकॉनमी को लेकर परेशान न हों। स्लोडाउन है तो सभी के लिए होगा।

- घर के किराये की टेंशन न लें। सरकार ने मकान मालिकों से किराया बाद में लेने को कहा है।

- बैंक कर्ज और ईएमआई को लेकर परेशान अभी परेशान न हों। बैंकों ने इसमें छूट दी है। हाल में जारी नियमों के अनुसार इनको 3 महीने तक टाला जा सकता है। इसलिए सारा ध्यान सेहत पर रखें।

- परिवार के मुखिया का यह जिम्मा बनता है कि वह सबसे साथ मिल कर खर्चों में थोड़ी कटौती करे ताकि आगे जरूरत पड़ी तो दिक्कत न हो।

जो पहले से हैं डिप्रेशन के शिकार
जो मरीज पहले से दवाओं पर हैं, ऐसे अनिश्चितता के माहौल में उनकी बीमारी बढ़ने की आशंका होती है। वे लोग डॉक्टर की पहले से बताई दवाएं टाइम पर लेते रहें। खबरें कम सुनें। करीबियों से संपर्क रखें।। किसी से मन की बात जरूर करें। ज्यादा दिक्कत होने पर डॉक्टर से कॉन्टैक्ट करें।

नोटः खुद से कोई दवा न खाएं। कई लोग कोरोना से बचने के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन नामक दवा खा रहे हैं। ऐसा बिलकुल न करें।

होम्योपैथी भी कारगर
अभी लॉकडाउन की शुरुआत है इसलिए डिप्रेशन से ज्यादा एंग्जिटी के मामले सामने आ रहे हैं। वैसे तो होम्योपैथी में बीमारी के लक्षण देखकर और पूरी हिस्ट्री जानकर मरीज को दवा दी जाती है। लेकिन अभी डॉक्टर के पास जाना मुमकिन नहीं है और एंग्जाइटी के लक्षण (गुस्सा, घबराहट, बेचैनी आदि) नजर आए तो Kali Phos 6x दवा ले सकते हैं। यह नर्व्स को शांत करती है। 4 गोलियां रोजाना 2 बार। एक बार रात में सोने से पहले और दूसरी बार सुबह।

आजकल Alpha TS दवा को लेकर भी काफी मेसेज वायरल हो रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह कॉम्बिनेशन मेडिसिन है। होम्योपैथी एक वक्त पर एक दवा की सलाह ही देती है। ऐसे में इसे न लेना ही बेहतर है।

जो है परेशान, बनें उसके मददगार

कैसे बचाएं खुद को डिप्रेशन से
1. उसकी बात सुनें
अगर आपके परिवार या जान-पहचान में कोई एंग्जाइटी या डिप्रेशन से पीड़ित है तो आप खुद मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाएं। जजमेंटल न बनें और उसकी बात सुनें। उसे अकेला न छोड़ें क्योंकि अकेलेपन में अक्सर इंसान गलत कदम उठा लेता है। अगर वह शख्स साथ नहीं रहता तो फोन या विडियो कॉल करके बात करें। हो सकता है वह शुरू में अपने मन की बात आपसे शेयर न करें। ऐसे में आप जबरन उसे कुरेदें नहीं। इधर-उधर की बातें करें। धीरे-धीरे वह अपने मन की बात कहने लगेगा।

2. प्यार से बात करें, तारीफ करें
एंग्जाइटी या डिप्रेशन के मरीज को गुस्सा ज्यादा आता है। लेकिन उसके गुस्से पर आप भी गुस्सा होकर रिऐक्ट न करें। प्यार से समझाएं कि इस तरह मारपीट या गाली-गलौज अच्छी बात नहीं है। पीड़ित की खुलकर तारीफ करें। कहें कि तुम फाइटर हो, तुमने बहुत अच्छा किया। अपने बारे में अच्छी बातें सुनकर उसका खुद पर विश्वास बढ़ेगा। साथ ही, वह जो भी काम करे, उसकी भी तारीफ करो।

3. हॉबी में लगाएं, गाना सुनाएं
मरीज को उस काम के लिए प्रोत्साहित करें, जो उसे पसंद है जैसे कि कुकिंग, गार्डनिंग, पेंटिंग आदि। अगर घर में डॉग आदि है तो उसके साथ खेलने के लिए कहें। साथ ही गाना सुनने के लिए कहें। एफएम सुनना अच्छा ऑप्शन हो सकता है क्योंकि आरजे हमेशा पॉजिटिव और मस्ती की बातें करते हैं। दुखभरे गानों से दूर रखें।

4. डाइट हो बेहतर
मरीज को पोषण से भरपूर खाना, हरी सब्जियां, फलो के साथ-साथ एंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिन-सी वाली चीजें जैसे कि ब्रोकली, सीताफल, पालक, संतरा आदि खिलाएं। साथ ही, ओमेगा-थ्री से भरपूर चीजें फ्लैक्स सीड्स, अखरोट, नट्स, बादाम आदि खिलाएं।

5. कसरत जरूरी, योग असरदार
रिसर्च बताती हैं कि रेग्युलर वर्कआउट करने से वे हॉर्मोन (एंडॉर्फिन आदि) निकलते हैं तो जो मन को खुश करते हैं और डिप्रेशन दूर करते हैं। रोजाना 45-60 मिनट कसरत जरूर कराएं। फिलहाल बाहर नहीं जा सकते तो घर में ही वॉक करें। साथ में योग जरूर करें। सूर्य नमस्कार कनरा बहुत फायदेमंद है। यह संपूर्ण एक्सरसाइज है। ताड़ासन, कटिचक्रासन, भुजंगासन, धनुआसन, मंडूकासन आदि आसन करें। शवासन जरूर करें। इससे मन काफी रिलैक्स होता है। डीप ब्रीदिंग, कपालभाति और अनुलोम-विलोम से भी मदद मिलती है। 10 मिनट मेडिटेशन करें। श्वास ध्यान (सांस पर फोकस) या त्राटक ध्यान (दिये की लौ पर फोकस) कर सकते हैं। नियमित तेल मालिश करने से भी डिप्रेशन में फायदा होता है।

6. एक्सपर्ट की मदद लें
अगर तमाम कोशिशों के बाद भी उसकी उदासी कम नहीं हो रही और यह सिलसिला 10 दिन से ज्यादा चलता है तो फोन पर ही सही, किसी एक्सपर्ट की मदद लें। काउंसलर, सायकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट से फोन पर बात कर सकते हैं।

बच्चों का रखें खास ख्याल
नान्या (11 साल) इन दिनों बहुत उखड़ी-उखड़ी रहती है। हर बात पर उलटा जवाब देती है। ममा कुछ कहती हैं तो रोने लगती है। दरअसल, नान्या घर में रहते-रहते बोर हो गई है। उसका कोई भाई-बहन भी नहीं है। ममा और पापा घर और ऑफिस के काम में बिज़ी रहते हैं। ऐसे में वह काफी अकेला महसूस कर रही है।

बच्चे अगर पूछें कि हम स्कूल क्यों नहीं जा सकते या बाहर क्यों नहीं निकल सकते तो यह न करें कि कोरोना वायरस की वजह से सरकार ने मना किया है। इससे बच्चा डर जाएगा। उससे कहें कि यह वायरस सिर्फ हम इंसानों के शरीर में रहता है। जब हम घर में रहते हैं तो यह हमें ढूंढ नहीं सकता। अगर हम सभी छुपे रहेंगे तो वायरस को जिंदा रहने के लिए कोई शरीर नहीं मिलेगा और वह मर जाएगा। हम सब वायरस को मारना चाहते हैं ताकि किसी की जान न जाए। ऐसा कहने पर बच्चे को लगेगा कि मैं भी एक फाइटर हूं, जो वायरस के खिलाफ लड़ाई में शामिल है।

बच्चों को इस वक्त प्यार और कम्फर्ट की जरूरत है क्योंकि टीवी न्यूज देखकर या आपकी बात सुनकर वे भी परेशान हैं। उन्हें यह अहसास कराएं कि जल्द सब ठीक हो जाएगा।

उनके साथ पेंटिंग करें, गेम्स खेलें, किताबें पढ़ें। उनके साथ डांस करें। उन्हें ज़ू, नासा, साइंस सेंटर, म्यूज़ियम आदि के वर्चुअल टूर पर ले जाएं।

बच्चों को घर के कामों की जिम्मेदारी भी दें। जैसे कि डस्टिंग, अलमारी लगाना, टेबल लगाना आदि। इससे उनमें जिम्मेदारी का अहसास होता है।

उनसे रिश्तेदारों से बात करने के लिए कहें। इससे वे परिवार के बाकी लोगों के साथ जुड़ेंगे।

पढ़ाई को लेकर उन पर दबाव न डालें। अभी सभी बच्चे एक ही स्थिति में हैं। स्कूल खुलेंगे तो सबकी पढ़ाई शुरू हो जाएगी। शेड्यूल फॉलो न करने के लिए उन पर चिल्लाएं नहीं।

सबसे आखिर में सबसे जरूरी बात
अपने दुख को हमने चट्टान पर लिख रखा है, सुख को रेत पर। इससे दुख मन में गहरे उतरता रहता है। सुख को समय की लहर मिटाती रहती है। मन कड़वा और भारी होता जाता है। मन को भारी होने से बचाना है। उसे लगातार ऊर्जा और स्नेह देते रहना है। उम्मीद जगाते रहना है। मन वैसे ही परिणाम देता है, जैसे हम उसको इनपुट देते हैं इसलिए मन को अच्छे और सुखद इनपुट दीजिए, आशा दीजिए ताकि बदले में वह आपको सकारात्मकता दे सके।

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लॉकडाउनः खास लोगों लोगों के लिए खास सलाह, ऐसे करें सेहत की देखभाल

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एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. के. के. अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष, IMA
  • डॉ. अरुण गर्ग, सीनियर कंसल्टंट सर्जन, ईएनटी
  • डॉ. प्रशांत जैन, सीनियर यूरॉलजिस्ट
  • डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, जनरल फिजिशन
  • डॉ. आर. पी. पाराशर, पंचकर्मा हॉस्पिटल
  • डॉ. सुशील वत्स, सीनियर होम्योपैथ

जिन्हें शुगर है...

शुगर के मरीजों को फिजिकल ऐक्टिविटी बिलकुल नहीं छोड़नी चाहिए। अभी बाहर नहीं जाना है लेकिन वे घर पर ही ऐक्टिव रह सकते हैं।

डायबीटीज 2 तरह की होती है:
1. टाइप 1 डायबीटीज
यह शरीर के अचानक इंसुलिन हॉर्मोन बनाना बंद करने पर होती है और बचपन में ही हो जाती है। इसके मरीज बहुत कम होते हैं। इसमें शरीर के ग्लूकोज को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन देना पड़ता है।

2. टाइप 2 डायबीटीज
गलत लाइफस्टाइल, मोटापा और बढ़ती उम्र की वजह से टाइप 2 डायबीटीज होती है। इसमें शरीर में कम मात्रा में इंसुलिन बनता है। ज्यादातर मरीज इसी कैटिगरी में आते हैं। अमूमन ये टैब्लेट्स लेते हैं।

घर पर कैसे करें मैनेज
- रोजाना कम-से-कम 10,000 कदम चलने की कोशिश करें। अगर लगातार टाइम नहीं मिल रहा तो 15-15 मिनट 3 बार वॉक कर लें। आपने 1000 कदम चले या नहीं, इस पर निगाह रखने के लिए अपने मोबाइल में स्टेप ट्रैकर ऐप डाउनलोड कर लें। एंड्रॉयड और iOS के लिए ऐसे कुछ ऐप्स हैं: Google Fit, Step Counter, Pedometer, Runtastic Steps, Fitbit, Runkeeper आदि।
- आप घर की बालकनी या छत पर वॉक कर सकते हैं। इन दिनों आप दोस्तों और रिश्तेदारों से खूब बात कर रहे होंगे तो बेहतर है कि बैठकर बात करने के बजाय घूम-घूम कर बात करें।
- एरोबिक्स के लिए डांस या ज़ूंबा कर सकते हैं। डांस करने से मन भी खुश होता है और वजन भी कम होता है।
- योग करें। अगर वॉक कर पा रहे हैं तो आसन न भी करें तो चलेगा। लेकिन प्राणायाम और ध्यान जरूर करें। इनसे तनाव कम होता है।
- अपनी शुगर को रेग्युलर चेक करें। रेग्युलर का मतलब है जैसा डॉक्टर ने बताया है, मसलन रोजाना या हफ्ते में। इस नियम को जरूर फॉलो करें।
- खाने को हल्का रखें। तले-भुने और हेवी खाने के बजाय फल और सब्जियों पर फोकस करें।
- अगर अचानक शुगर लो हो जाए तो फौरन टॉफी या चीनी खा लें। आराम से लेट जाएं और अपने डॉक्टर से फोन पर बात करें।

ब्लड ग्लूकोज टेस्ट
- यह दो बार किया जाता है: खाली पेट (फास्टिंग) और नाश्ता या ग्लूकोज लेने के बाद (पीपी)।
- फास्टिंग ब्लड शुगर (नॉर्मल): 70-100 mg/dl
- पोस्ट प्रैंडियल (पीपी) शुगर: 70-140 तक mg/dl
- खाने का पहला कौर खाने के 2 घंटे बाद कराएं)

ये भूल कर भी न करें
- इंसुलिन का इंजेक्शन लगाते हुए ध्यान रखें कि मरीज ने खाना जरूर खाया हो क्योंकि इंसुलिन ब्लड शुगर लेवल को कम करता है। अगर कोई बिना खाना खाए, यह इंजेक्शन लगा ले तो ब्लड शुगर लेवल लो यानि हापोग्लाइसीमिया हो सकता है।
- किसी वजह से मरीज सुबह या शाम को इंजेक्शन लगाना भूल जाता है तो मरीज को दो इंजेक्शन एक साथ कभी नहीं लगाने चाहिए। कभी मरीज को लगता है कि आज खाने पर कंट्रोल नहीं हो पाएगा तो वह इंसुलिन की मात्रा बढ़ा सकता है।
- इंसुलिन हमेशा नाश्ता करने और डिनर करने के 15-20 मिनट बाद लेना चाहिए। दो इंजेक्शनों के बीच 10-12 घंटों का फासला होना जरूरी है। खाने के एकदम साथ न लगाएं क्योंकि ऐसा करने से ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है।
- इंसुलिन की क्वॉलिटी बरकरार रखने के लिए इसे 8 से 10 डिग्री तापमान पर रखना चाहिए। फ्रिज में ही इंसुलिन को रखें।
- टाइप 2 डायबीटीज के मरीज अगर किसी समय की दवाई खाना भूल गए तो एक साथ 2 वक्त का टैब्लेट्स न खाएं।

ये खा सकते हैं
कार्बोहाइड्रेट: चोकर वाला आटा, जौ, जई, रागी, दलिया, मल्टिग्रेन ब्रेड, काला चना, सोया, राजमा
फल: सेब, चेरी, जामुन, मौसमी, संतरा, स्ट्रॉबेरी, शहतूत, आलूबुखारा, नाशपाती, अंजीर
सब्जियां: ककड़ी, तोरी, टिंडा, सेम, शलजम, खीरा, चने का साग, सोया का साग, लहसुन, पालक, मेथी, आंवला, घीया
दूसरी चीजें: टोंड दूध और उससे बनी चीजें, छिलके वाली दालें, मछली (बिना ज्यादा तेल और मसाले वाली), फ्लैक्ससीड्स, छाछ आदि

ये कम खाएं
कार्बोहाइड्रेट: बिना चोकर का आटा, सूजी, सूजी के रस, ब्राउन ब्रेड, सफेद चना
फल: अमरूद, पपीता, तरबूज, खरबूजा
सब्जियां: अरबी, आलू, जिमीकंद, गोभी
मीठा: आर्टिफिशल स्वीटनर, खांड (बिना रिफाइन वाली शुगर)
दूसरी चीजें: फुल क्रीम दूध और उससे बनी चीजें, बिना छिलके वाली दालें, अंडा, चिकन, बादाम, अखरोट, देसी घी, अच्छे तेल (सरसों, ऑलिव, कनोला, राइसब्रैन आदि)

ये ना खाएं
कार्बोहाइड्रेट: सफेद चावल, मैदा, पूरी, समोसा, वाइट ब्रेड
फल: आम, चीकू, अंगूर, केला
सब्जियां: शकरकंद, आलू,
मीठा: मिठाई, चीनी, गुड़, शहद, गन्ना, आइसक्रीम, जैम, केक, पेस्ट्री, कुकीज़
दूसरी चीजें: फुल क्रीम दूध और उससे बनी चीजें, रेड मीट, कोल ड्रिंक्स, रिफाइंड ऑयल।
नोट: अगर शुगर के साथ-साथ कोई दूसरी बीमारी भी हो जैसे किडनी तो यह डाइट लागू नहीं होगी। बेहतर यही है कि डॉक्टर की राय से ही अपना डाइट चार्ट बनाएं। डॉक्टर से मिल नहीं सकते तो फोन पर बात लें।

होम्योपैथी के अनुसार दवाएं:
Nux Vomica, Argentum Nitricum, Lycopodium
नोट: दवा होम्योपैथ की सलाह से ही लें।

आयुर्वेद के अनुसार
-10 बिलपत्र सुबह शाम पानी के साथ पीसकर लें।
-सूखा आंवला और सौंफ बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। एक-एक चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ लें।
-लहसुन की एक कली सुबह खाली पेट लें।

बीपी और कोलेस्ट्रॉल

अगर किसी को हाई बीपी या लो बीपी की समस्या है तो नई एक्सर्साइज शुरू करने से पहले किसी डॉक्टर से फोन पर जरूर पूछ लें। वैसे अगर पहले से एक्सरसाइज करते आ रहे हैं तो उसे जारी रख सकते हैं।

जरूरी एक्सर्साइज
- दिल की बीमारी से बचने के लिए रोजाना कम-से-कम आधा घंटा कार्डियो एक्सरसाइज करना जरूरी है। इससे वजन कम होता है, बीपी कम हो जाता है और दिल की बीमारी की आशंका 25 फीसदी कम हो जाती है।
- कार्डियो एक्सरसाइज में तेज वॉक, जॉगिंग, साइकलिंग, स्विमिंग, एरोबिक्स, डांस आदि शामिल होते हैं। लेकिन अभी ये सभी एक्सरसाइज करना मुश्किल है इसलिए घर में ही वॉक करें 45 मिनट से 1 घंटा टहलें। अगर डांस करने की इच्छा हो तो यह कई एक्सरसाइज से भी बेहतर है। 15 से 20 मिनट डांस में दे सकते हैं।

इनके अलावा ये भी करें
- 5 मिनट डीप ब्रिदिंग, 10 मिनट अनुलोम-विलोम और 5 मिनट शीतली प्राणायाम करें। शीतली प्राणायाम खासतौर पर मन को शांत रखता है और बीपी को मेंटेन करता है।
- 15 मिनट के लिए मेडिटेशन करें।
- हेवी एक्सरसाइज जैसे कि वेट लिफ्टिंग आदि डॉक्टर की सलाह से ही करें।
- ऐसे आसन डॉक्टर की सलाह के बिना न करें, जिनमें सारा वजन सिर पर या हाथों पर आता है, जैसे कि मयूरासन, शीर्षासन आदि।
- शवासन करें। आंखें बंद करके पूरे शरीर के अंगों को बारी-बारी से महसूस करें। इससे मांसपेशियों का तनाव कम होता है। इससे बीपी दूर होता है।

ध्यान रखें 10 बातें
-स्मोकिंग न करें। इससे दिल की बीमारी की आशंका 50 फीसदी बढ़ जाती है।
-अपना लोअर बीपी 80 से कम रखें। ब्लड प्रेशर ज्यादा हो तो दिल के लिए काफी खतरा है।
-फास्टिंग शुगर 80 से कम रखें। डायबीटीज और दिल की बीमारी आपस में जुड़ी हुई हैं।
- तनाव न लें। दिल की बीमारियों की बड़ी वजह तनाव है।
-चूंकि आजकल लॉकडाउन है इसलिए जरूर न हों तो बाहर से किसी को चेकअप के लिए नहीं बुलाएं। वैसे आजकल ज्यादातर लोगों के पास शुगर और बीपी को मॉनिटर करने के लिए मशीन होती हैं। उनकी सहायता से मॉनिटर करें।
-डायबीटीज है तो शुगर के अलावा बीपी और कॉलेस्ट्रॉल को भी कंट्रोल में रखें।
- फल और सब्जियां खूब खाएं। दिन भर में अलग-अलग रंग के 5 तरह के फल और सब्जियां खाएं।

क्या खाएं
- हाई फाइबर और लो फैट वाली डाइट जैसे कि गेहूं, ज्वार, ओट्स, बाजरा आदि का आटे या दलिया
- फ्लैक्स सीड्स (अलसी के बीज), आधा चम्मच रोजाना
- एक-दो लहसुन एक कली रोजाना
- 5-6 बादाम और 1-2 अखरोट रोजाना
- जामुन, पपीता, सेब, आड़ू जैसे लो-ग्लाइसिमिक इंडेक्स वाले फल
- हरी सब्जियां, साग, शलजम, बीन्स, मटर, ओट्स, सनफ्लावर सीड्स आदि
- ऑलिव ऑयल, कनोला, तिल का तेल और सरसों का तेल, थोड़ी मात्रा में देसी घी भी अच्छा

न खाएं
- मक्खन, मलाई, वनस्पति घी आदि सैचुरेडिट फैट
- मैदा, सूजी, सफेद चावल, चीनी, आलू यानी सफेद चीजें
- पैक्ड चीजें मसलन पैक्ड जूस, बेकरी आइटम्स, सॉस आदि
- रोजाना आधे चम्मच से ज्यादा नमक न लें
- बहुत मीठी चीजें (मिठाई, चॉकलेट) आदिसही रीडिंग

होम्योपैथ के अनुसार दवाएं:
जिन्हें सिर्फ हाई बीपी की परेशानी है:
Kali Phos, Aconite, Rauwolfia
दिल की बीमारियों के साथ हाई बीपी की शिकायत भी है:
Crataegus, Digitalis, Strophanthus
नोट: दवा की मात्रा होम्योपैथी के डॉक्टर की सलाह से ही लें। अगर पहले से कोई दवा ले रहे हैं तो नियम से लेते रहें।

आयुर्वेद के अनुसार
कोलेस्ट्रॉल और हाई बीपी में
-सुबह खाली पेट लहसुन की एक-दो कलियां पानी के साथ लेने से कोलेस्ट्रॉल के स्तर में कमी आती है।
-आंवले का चूर्ण एक चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ लें। कच्चा आंवला उपलब्ध हो तो 2-3 आंवले सुबह-शाम चबाकर खाएं।
-पीपल की कपोलों का रस 2 चम्मच और शहद एक चम्मच मिलाकर सुबह-शाम लें।

लो बीपी में
-मौसमी, संतरे, अनार या गाजर का रस सुबह-शाम लेना चाहिए।
-शारीरिक मेहनत वाला काम नहीं करना चाहिए।
-भोजन में हींक वाली छाछ का उपयोग करें।
-आंवलों का रस और शहद दो-दो चम्मच मिलाकर सुबह-शाम चाटें।



किडनी की समस्या में

बिना डायलिसिस के

- किडनी खराब होने पर डाइट पर बहुत तरह की पाबंदी लग जाती हैं, तब डॉक्टर और डायटिशन की सलाह से ही डाइट लें।
-लिक्विड की मात्रा भी डॉक्टर ही तय करते हैं। उसी के अनुसार लिक्विड लें। लिक्विड का मतलब सिर्फ पानी से नहीं है। इसमें पानी के साथ दाल, जूस सबकुछ शामिल होता है।

खाने में इनसे करें परहेज
-फलों का रस, कोल्ड ड्रिंक्स, चाय-कॉफी, नीबू पानी, नारियल पानी, शर्बत आदि।
- सोडा, केक और पेस्ट्री जैसे बेकरी प्रॉडक्ट्स और खट्ट‌ी चीजें।
- केला, आम, नीबू, मौसमी, संतरा, आडू, खुमानी आदि।
- मूंगफली, बादाम, खजूर, किशमिश और काजू जैसे सूखे मेवे।
- चौड़ी सेम, कमलककड़ी, मशरूम, अंकुरित मूंग आदि।
- अचार, पापड़, चटनी, केचप, सत्तू, अंकुरित मूंग और चना।
- मार्केट के पनीर के सेवन से बचें। बाजार में मिलने वाले पनीर में नींबू, सिरका या टाटरी का इस्तेमाल होता है। इसमें मिलावट की भी गुंजाइश रहती है।

कैसे तैयार करें खाना
- वेजिटेबल ऑयल और घी आदि बदल-बदल कर इस्तेमाल करें।
- घर पर ही नीबू के बजाय दही से डबल टोंड दूध फाड़कर पनीर बनाएं।
- खाना पकाने से पहले दाल को कम-से-कम दो घंटे और सब्जियों को एक घंटे तक गुनगुने पानी में रखें। इससे उनमें पेस्टिसाइड्स का असर कम किया जा सकता है।
-महीने में एकाध बार लीचिंग प्रक्रिया अपनाकर घर में छोले और राजमा भी खा सकते हैं, पर इसकी तरी के सेवन से बचें।
-नॉनवेज खानेवाले रेड मीट का सेवन नहीं करें। चिकन और मछली भी एक सीमित मात्रा में ही खाएं।
-रोजाना कम-से-कम दो अंडों का सफेद हिस्सा खाने से जरूरी मात्रा में प्रोटीन मिलता है।

डायलिसिस वाले बरतें ये सावधानियां
- डायलिसिस कराने वालों को लिक्विड चीजें कम लेनी चाहिए। अमूमन डायलिसिस के मरीजों को 24 घंटे में 1 लीटर लिक्विड लेने के लिए कहा जाता है। इसमें सभी तरह के पेय शामिल होते हैं। इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए।
-वैसे तो डॉक्टर हफ्ते में 3 बार डायलिसिस कराने को कहा जाता है, लेकिन लॉकडाउन की स्थिति में अगर एक या दो बार मिस भी हो जाए तो एक डायलिसिस जरूर करानी चाहिए। यह ध्यान रहे कि ऐसा बार-बार न हो।
-अगर डायलिसिस मिस हुआ है तो लिक्विड लेते समय मात्रा का ध्यान जरूर रखें।
- लिक्विड चीजों में पानी के अलावा दूध, दही, चाय, कॉफी, आइसक्रीम, बर्फ और दाल-सब्जियों की तरी भी शामिल हैं। यही नहीं, रोटी, चावल और ब्रेड आदि में भी पानी होता है।
- लिक्विड पर कंट्रोल रखने से दो डायलिसिस के बीच में मरीज का वजन (जिसे वेट गेन या वॉटर रिटेंशन भी कहते हैं) अधिक नहीं बढ़ता। दो डायलिसिस के बीच में ज्यादा वजन बढ़ने से डायलिसिस का प्रॉसेस पूरा होने पर कई बार कमजोरी या चक्कर आने की शिकायत भी होने लगती है।
- किडनी के जो मरीज डायलसिस पर नहीं हैं, उन्हें कम प्रोटीन और डायलसिस कराने वाले मरीजों को ज्यादा प्रोटीन की जरूरत होती है। आपने खानपान की पूरी जानकारी डायट एक्सपर्ट से ले रखी होगी। उसे ही फॉलो करें।
- डायलिसिस कराने वाले शख्स को कोई भी दवा लेने से पहले अपने किडनी एक्सपर्ट (नेफ्रॉलजिस्ट) से सलाह जरूरी है।

लिक्विड का सेवन ऐसे कम करें
डायलिसिस कराने वाला शख्स नीचे लिखे तरीकों से लिक्विड का सेवन कम कर सकता है:
- गर्मियों में 500 एमएल की कोल्ड ड्रिंक की बोतल में पानी भरके उसे फ्रीजर में रख लें। यह बर्फ बन जाएगा और फिर इसका धीरे-धीरे सेवन करें।
- फ्रिज में बर्फ जमा लें और प्यास लगने पर एक टुकडा मुंह में रखकर घुमाएं और फिर उसे फेंक दें।
- गर्मियों में रुमाल भिगोकर गर्दन पर रखने से भी प्यास पर काबू पाया जा सकता है।
- घर में छोटा कप रखें और उसी में पानी लेकर पीएं।
- खाना खाते समय दाल और सब्जियों की तरी का सेवन कम-से-कम करने की कोशिश करें।

होम्योपैथिक दवाएं: AAL SERIUM, Apis, Apocynum
नोट: होम्यॉपथी डायैलसिस बंद कराने में सक्षम नहीं है लेकिन यह ऐसे मरीजों की सहायक जरूर है। ऐलोपैथी दवाओं के साथ ही होम्योपैथी दवाओं के सेवन से मरीज ज्यादा सेहतमंद रह सकता है।

आयुर्वेद
बीमारी की वजह के आधार पर ही जरूरी दवा खाने की सलाह दी जाती है:
-आक के पत्तों को सुखाकर और जलाकर राख कर लें। आधा चम्मच यह राख थोड़ा-सा नमक मिलाकर एक गिलास छाछ में मिलाकर सुबह-शाम लें।
- वरुण, पुनर्नवा, अर्जुन, वसा, कातुकी, शतावरी, निशोध, कांचनार, बाला, नागरमोथा, भबमिआमलकी, सारिवा, अश्वगंधा और पंचरत्नमूल आदि दवाओं का इस्तेमाल किडनी के इलाज में किया जाता है।
- किडनी की बीमारी का लगातार इलाज जरूरी है और यह ताउम्र चलता है। किडनी की बीमारी का इलाज से ज्यादा मैनेजमेंट होता है।

अस्थमा है तो...
इन दिनों यों तो पलूशन का लेवल काफी कम है जोकि अस्थमा के मरीजों के लिए बहुत अच्छा है। लेकिन सांस से जुड़ी बीमारी के मरीजों को कोरोना से बचाव के लिए और ज्यादा ध्यान रखना है क्योंकि उनका रेस्पिरेटरी सिस्टम पहले से ही संवेदनशील है। इस बात का जरूर याद रखें कि अगर कोई अस्थमा का मरीज है तो उसे वर्तमान लॉकडाउन की स्थिति में जरूर सेल्फ आइसोलेशन में चले जाना चाहिए। परिवार के बाकी सदस्यों के साथ कम-से-कम बैठने की कोशिश करनी चाहिए। वह जितना अलग रहेंगे, उतना ही उनके लिए और बाकी लोगों के लिए सही रहेगा।

अमूमन कब बढ़ता है अस्थमा
-रात में या सुबह तड़के
-ठंडी हवा या कोहरे से
-ज्यादा कसरत करने के बाद
-बारिश या ठंड के मौसम में

दवाएं नियमित रूप से लें
-आजकल चूंकि घर पर हैं और अस्थमा के मरीज हैं तो सूखी सफाई यानी झाड़ू से घर की साफ-सफाई से बचें। अगर ऐसा करते हैं तो ठीक से मुंह-नाक ढक कर करें। वैसे, वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करना बेहतर है। गीला पोंछा और पानी से फर्श धोना भी अच्छा विकल्प हो सकता है।
- दिन में एक बार एकाध घंटे के लिए घर की खिड़की-दरवाजे खोल दें ताकि बाहर की ताज़ा हवा अंदर आ सके।
-बेडशीट, सोफा, गद्दे आदि की भी नियमित सफाई करें, खासकर तकिया की क्योंकि इसमें काफी सारे एलर्जीवाले तत्व मौजूद होते हैं। हफ्ते में एक बार चादर और तकिए के कवर बदल लें और दो महीने में पर्दे धो लें।
-कम-से-कम फिलहाल कारपेट हटा दें। बाद में भी अगर इस्तेमाल करना ही चाहते हैं कम-से-कम 6 महीने में ड्राइक्लीन करवाते रहें।
-कॉकरोच, चूहे, फफूंद आदि को घर में जमा न होने दें।
-बहुत ठंडे से बहुत गर्म में अचानक न जाएं और न ही बहुत ठंडा या गर्म खाना खाएं।
-रुटीन ठीक रखें। वक्त पर सोएं, भरपूर नींद लें और तनाव न लें।
-गुनगुने पानी से कुल्ला करना फायदेमंद है।
-जो मरीज लगातार नेबुलाइजर से भाप लेते हैं। अगर वह पहले दिन में 2 बार भाप लेते थे तो अब 4 बार तक ले सकते हैं।

खानपान का रखें ख्याल
अगर पिछले दिनों में खानपान में परहेज नहीं कर पाए हैं तो यह मौका परहेज के लिहाज से बेहतरीन है। इस समय मजबूरी नहीं है कि ऑफिस जाने की जल्दी है तो जो मिल जाए, वही खा लें।
जिस चीज को खाने से सांस की तकलीफ बढ़ जाती हो, वह न खाएं। डॉक्टर सिर्फ ठंडी चीजें खाने से मना करते हैं। साथ ही, जंक फूड से अस्थमा अटैक की आशंका ज्यादा होती है।
-एक बार में ज्यादा खाना नहीं खाना चाहिए। इससे छाती पर दबाव पड़ता है।
-विटामिन ए (पालक, पपीता, आम, अंडे, दूध, चीज़, बेरी आदि), सी (टमाटर, संतरा, नीबू, ब्रोकली, लाल-पीला शिमला मिर्च) और विटामिन ई (पालक, शकरकंद, बादाम, सूरजमुखी के बीज आदि ) और एंटी-ऑक्सिडेंट वाले फल और सब्जियां जैसे कि बादाम, अखरोट, राजमा, मूंगफली, शकरकंद आदि खाने से लाभ होता है।
-अदरक, लहसुन, हल्दी और काली मिर्च जैसे मसालों से फायदा होता है।
-रेशेदार चीजें जैसे कि ज्वार, बाजरा, ब्राउन राइस, दालें, राजमा, ब्रोकली, रसभरी, आडू आदि ज्यादा खाएं।
-फल और हरी सब्जियां खूब खाएं।
-रात का भोजन हल्का और सोने से दो घंटे पहले होना चाहिए।

क्या न खाएं
-प्रोट्रीन से भरपूर चीजें बहुत ज्यादा न खाएं।
-रिफाइन कार्बोहाइड्रेट (चावल, मैदा, चीनी आदि) और फैट वाली चीजें कम-से-कम खाएं।
-अचार और मसालेदार खाने से भी परहेज करें।
-ठंडी और खट्टी चीजों से परहेज करें।

ये जरूर खाएं
ओमेगा-3 फैटी एसिड: ओमेगा-3 फैटी एसिड साल्मन, टूना मछलियों में और मेवों व अलसी में पाया जाता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड फेफड़ों के लिए लाभदायक है। यह सांस की तकलीफ एवं घरघराहट के लक्षणों से निजात दिलाता है।
फोलिक एसिड: पालक, ब्रोकली, चुकंदर, शतावरी, मसूर की दाल में फोलेट होता है। हमारा शरीर फोलेट को फोलिक एसिड में तब्दील करता है। फोलेट फेफड़ों से कैंसर पैदा करने वाले तत्वों को हटाता है।
विटमिन सी: संतरे, नींबू, टमाटर, कीवी, स्ट्रॉबरी, अंगूर और अनानास में भरपूर विटमिन सी होता है, सांस लेते वक्त शरीर को ऑक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए मदद करते हैं।
लहसुन: इसमें मौजूद एलिसिन तत्व फेफड़ों से फ्री रेडिकल्स को दूर करने में मदद करते हैं। लहसुन संक्रमण से लड़ता है, फेफड़ों की सूजन कम करता है।
बेरी: बेरीज में ऐंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये कैंसर से बचाने के लिए फेफड़ों से कार्सिनोजन को हटाते हैं।

होम्योपैथी में दवाएं
Bryonia, Natrium sulphur, Sulphur, Arsenic Album
नोट: दवा की मात्रा होम्योपैथी डॉक्टर की सलाह से ही लें।

आयुर्वेद के अनुसार
-आधा चम्मच रीठे के छिले का चूर्ण सुबह खाली पेट एक सप्ताह तक मरीज को पानी के साथ लेना चाहिए। इस दौरान खाने में सिर्फ खिचड़ी और उसमें एक चम्मच घी दें।
-तुलसी की पत्ती और कली 3-3 ग्राम लेकर 250 एमएल पानी में उबालें। जब पानी एक चौथाई रह जाए तो स्वादानुसार गुड़ मिलाकर दिन में तीन से चार बार लें।
-अदरक के एक चम्मच रस में उतना ही शहद मिलाकर सुबह-शाम लेने से भी फायदा होता है।

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आयुष्मान भारत योजनाः प्राइवेट अस्पताल भी सबके लिए

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आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना इन दिनों चर्चा में है। एक तरफ दिल्ली सरकार ने इसे लागू करने की घोषणा कर दी है तो दूसरी ओर केंद्र सरकार ने कोरोना के इलाज और जांच को भी इस योजना में शामिल कर लिया है। जाहिर है, इसका दायरा बड़ा हो गया है। हम बता रहे हैं, कैसे इस योजना का फायदा उठाया जा सकता है। बता रहे हैं राजेश भारती

दिल्ली में अभी आयुष्मान योजना की स्थिति
दिल्ली की सरकार ने इस योजना को यहां लागू करना तय किया है। इसके लिए अभी नैशनल हेल्थ अथॉरिटी और दिल्ली सरकार के बीच एमओयू साइन होना बाकी है। एमओयू साइन होने के बाद यह यहां लागू हो जाएगी।

फायदा कौन उठा सकता है?
गरीब, वंचित ग्रामीण, शहरी श्रमिक और आर्थिक रूप से बेहद कमजोर शहरी परिवार इस योजना के पात्र हैं। इस योजना में आप खुद कोशिश कर शामिल नहीं हो सकते। दरअसल, 2011 में की गई सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (SECC-2011) के डेटाबेस में जिन व्यक्तियों के नाम मौजूद हैं, वे खुद-ब-खुद आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के पात्र हैं। उन्हें ही इसका फायदा मिलेगा।

क्या हर राज्य में यह योजना उपलब्ध है?
यह योजना 32 राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में लागू हो चुकी है! फिलहाल यह ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में लागू नहीं है। ऐसे में इन राज्यों के लोग इसका फायदा उठा नहीं सकते। इस योजना की खास बात यह है कि जो राज्य इस योजना को लागू कर रहे हैं, उन राज्यों के लाभार्थी शेष 32 राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के किसी भी सरकारी या पैनल में शामिल प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा सकते हैं।

ग्रामीण क्षेत्र में कोई तभी इसमें कवर होगा, जब...
•उसका मकान कच्चा हो या
•परिवार में कोई वयस्क (16-59 साल) न हो या
•परिवार की मुखिया महिला हो या
•व्यक्ति दिव्यांग हो या
•वह अनुसूचित जाति/जनजाति से हो या
•वह भूमिहीन व्यक्ति/दिहाड़ी मजदूर हो या
•वह बेघर व्यक्ति, निराश्रित, दान या भीख मांगने वाले, आदिवासी या कानूनी रूप से मुक्त बंधुआ मजदूर हो।

शहरी क्षेत्र में कोई तभी इसमें कवर होगा, अगर वह...
•भिखारी, कूड़ा बीनने वाला, घरेलू कामकाज करने वाला हो या
•रेहड़ी-पटरी वाला, फेरी वाला हों या
•प्लंबर, राजमिस्त्री, मजदूर, पेंटर, वेल्डर हो या
•सिक्योरिटी गार्ड, कुली, सफाईकर्मी, टेलर हो या
•ड्राइवर, रिक्शाचालक, दुकान पर काम करने वाला हो

क्या फायदे हैं?
इस योजना के दायरे में आने वाले परिवार देश के किसी भी सरकारी अस्पताल या पैनल में शामिल प्राइवेट अस्पताल में हर साल 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज पा सकते हैं। इलाज पूरी तरह से कैशलेस है और कई गंभीर बीमारियों को भी इसमें कवर किया गया है। यह एक तरह से फैमिली फ्लोटिंग इंश्योरेंस कवर है जिसमें इस 5 लाख रुपये में परिवार के सभी सदस्य कवर होते हैं। यह 5 लाख रुपये चाहे तो एक आदमी के इलाज पर खर्च हो सकते हैं या फिर परिवार में अगर 10 लोग हैं तो उन पर भी। और हां, इसकी कवरेज में उम्र की या परिवार के सदस्यों की संख्या की कोई सीमा नहीं है ।

कैसे मिलती है इसकी कैशलेस सुविधा?
जो भी नागरिक इस योजना का पात्र है, उसे आयुष्मान कार्ड दिया जाता है। इस कार्ड को बोलचाल की भाषा में ई-कार्ड या गोल्डन कार्ड भी कहा जाता है। अगर किसी पात्र व्यक्ति का यह कार्ड नहीं बना है तो वह अस्पताल में भर्ती होने के समय अस्पताल में मौजूद प्रधानमंत्री आरोग्य मित्र से मिलकर अपना कार्ड बनवा सकता है। गौरतलब है कि लोगों की मदद के लिए सरकारी और पैनल में शामिल प्राइवेट अस्पतालों में प्रधानमंत्री आरोग्य मित्र में मौजूद रहते हैं और हर अस्पताल में बाकायदा इस योजना में पात्र लोगों के लिए एक अलग डेस्क भी बनाया गया है।

इन बीमारियों का होता है फ्री इलाज
जिनके पास आयुष्मान कार्ड है उनकी मेडिकल जांच/ऑपरेशन/इलाज/दवा आदि का खर्चा इसके तहत कवर होता है। अगर कोई शख्स अपना कार्ड बनने से पहले से बीमार है तो भी उसका इलाज भी इस योजना के तहत होगा। इन बीमारियों में मैटरनल हेल्थ और डिलिवरी की सुविधा, नवजात और बच्चों का इलाज, कैंसर, टीवी, कीमोथेरपी, रेडिएशन थेरपी, हार्ट बाईपास सर्जरी, न्यूरो सर्जरी, दांतों की सर्जरी, आंखों की सर्जरी, एमआरआई, सीटी स्कैन, दिल की बीमारी, किडनी, लिवर, डायबीटीज, कोरोनरी बायपास, घुटना बदलना, स्टेंट डालना, आंख, नाक, कान और गले से संबंधित बीमारी आदि शामिल हैं। साथ ही अस्पताल में एडमिट होने से पहले और बाद के खर्च भी इसमें कवर किए जा रहे हैं। इसमें ट्रांसपोर्ट पर होने वाला खर्च भी शामिल है।

ये बीमारियां नहीं हैं कवर
ऐसी बीमारियां जो प्राथमिक उपचार से ही ठीक हो जाती हैं या फिर जिन्हें ओपीडी केयर की जरूरत है। मसलन, साधारण बुखार, जुकाम, खांसी आदि।

अगर नहीं है ई-कार्ड तो...
अगर किसी व्यक्ति के पास ई-कार्ड नहीं है, लेकिन उसका नाम इस योजना की पात्रता सूची में है तो उसे कार्ड न होने की फिक्र करने की जरूरत नहीं। उस शख्स को सिर्फ यह देखना है कि जिस अस्पताल में वह इलाज करवाना चाहता है, वह इसके पैनल में शामिल है या नहीं। अस्पताल तय कर उस शख्स को जरूरी डॉक्यूमेंट्स (आधार कार्ड, राशन कार्ड, स्टेट आई कार्ड आदि) साथ लेकर उस अस्पताल में जाना होगा। वहां आयुष्मान हेल्प डेस्क पर आरोग्य मित्र से बात कर उसे अपने डॉक्यूमेंट्स दिखाने होंगे। इसके बाद वहां दिखाने की सारी व्यवस्था आरोग्य मित्र करेगा। कुछ भी समस्या आने पर टोल-फ्री नंबर 14555 पर कॉल की जा सकती है।

क्या अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है?
इस सुविधा का लाभ लेने के लिए मरीज को अस्पताल में भर्ती होना जरूरी होता है और वह भी कम से कम एक दिन के लिए।

कहां होगा इलाज?
•वेबसाइट pmjay.gov.in पर जाएं।
•सामने जो पेज खुलेगा उस पर लेफ्ट की तरफ Hospital पर क्लिक करें। नीचे Find Hospital दिखेगा। इस पर क्लिक करने से Search Hospital का नया पेज खुलेगा।
यहां आपसे आप जिस अस्पताल में इलाज कराना चाहते हैं, उसकी जानकारी पूछी जाएगी, जैसे राज्य, जिला, किस किस्म का अस्पताल यानी पब्लिक (सरकारी), प्राइवेट (नॉन-प्रॉफिट) या प्राइवेट (प्रॉफिट वाले) और स्पेशलिटी (यानी आप किस बीमारी का इलाज कराना चाहते हैं)।
इन सूचनाओं को भरने के बाद जब आप Hospital Name पर क्लिक करेंगे तो ड्रॉप डाउन में उस जिले के अस्पतालों के नाम आ जाएंगे। अस्पताल सिलेक्ट करें और Enter Captcha में कैप्चा कोड भरकर Search पर क्लिक करें। इसके बाद उस अस्पताल में जिन बीमारियों का इलाज उपलब्ध है, उनकी लिस्ट, फोन नंबर, ई मेल आईडी और अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी आपके सामने आ जाएगी।

कैसे होगा इलाज?
इलाज कराने के लिए सबसे पहले वह अस्पताल चुनना होगा, जहां लाभार्थी इलाज कराना चाहता है। इसकी लिस्ट pmjay.gov.in पर है। लिस्ट में मौजूद हर अस्पताल में आयुष्मान हेल्पडेस्क होती है जहां प्रधानमंत्री आरोग्य मित्र मौजूद रहते हैं। अस्पताल पहुंचकर आरोग्य मित्र को बीमारी के बारे में जानकारी दें और अपना ई-कार्ड और कोई पहचानपत्र (आधार कार्ड या वोटर आईडी कार्ड या राशन कार्ड) दिखाएं। आरोग्य मित्र मरीज का इलाज करवाने और उसे अस्पताल की सुविधाएं दिलाने में मदद करेगा। इलाज पाने के लिए आपको एक भी पैसा नहीं देना होगा।
आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थी किसी भी सरकारी और सूचीबद्ध प्राइवेट अस्पताल में जाकर मुफ्त में अपना कोविड-19 टेस्ट करा सकते हैं। अगर उनमें कोराना वायरस के लक्षण की आशंका जताई जाती है और उन्हें प्राइवेट अस्पताल में आइसोलेशन में रहना पड़ता है या उनके इलाज की जरूरत होती है तो इसका खर्च आयुष्मान भारत योजना के तहत कवर होगा।

कैसे उठा सकते हैं फायदा
पहला कदमः अपनी पात्रता जांचें
अगर आप इस स्कीम के दायरे में आते हैं तो आपको अपनी पात्रता जांचनी होगी। अपनी पात्रता ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों तरह से जांच सकते हैं। अगर आप पात्र होंगे तो आपको एक 'ई-कार्ड' मिलेगा | इसी कार्ड की मदद से आप कभी भी किसी भी सरकारी या सूचीबद्ध प्राइवेट अस्पताल में 5 लाख रुपये तक का इलाज करा सकते है | पात्रता का पता ऐसे लगा सकते हैं:

ऑनलाइन तरीका
•ऑफिशल वेबसाइट pmjay.gov.in पर जाएं।
•यहां राइट साइड में ऊपर Am I Eligible लिखा दिखाई देगा। इस पर क्लिक करें।
•जो पेज खुलेगा उसके लेफ्ट साइड में LOGIN लिखा होगा। इसके ठीक नीचे अपना मोबाइल नंबर डालें और इसके नीचे कैप्चा कोड भरकर Generate OTP पर क्लिक करें।
•आपके मोबाइल पर एक कोड आएगा। इसे एंटर करें और इसके ठीक नीचे लिखे By clicking submit, you agree to our Terms, Eligibility Criteria & Data Policy के सामने बने एक बॉक्स पर क्लिक कर Submit पर क्लिक करें।
•अब पेज पर लेफ्ट साइड में ऊपर Search लिखा दिखेगा। इसके ठीक नीचे Select State पर अपना राज्य चुनें।
•इसके ठीक नीचे Select Category पर क्लिक करें। यहां नाम सर्च करने के लिए पांच ऑप्शन (नाम, HHD नंबर, राशन कार्ड नंबर, मोबाइल नंबर और MMJAA ID नंबर) मिलेंगे। किसी भी एक ऑप्शन पर क्लिक करने के बाद पिता, मां का नाम, जेंडर, शहरी या ग्रामीण आदि जानकारी भरकर Search पर क्लिक करें।
•अगर आपका नाम इस योजना में है तो वह ठीक बराबर में Search Result में दिख जाएगा। इसी लाइन में HHD नंबर दिखाई देगा। इसे नोट कर लें। HHD का मतलब House Hold है। इसे परिवार का मुखिया माना जाता है व परिवार के सभी सदस्य PM-JAY के योग्य हो जाते हैं।

फोन पर
•सबसे पहले अपने पास आधार नंबर और राशन कार्ड नंबर लिखकर रखें।
•अब अपने मोबाइल से 14555 या 1800111565 नंबर डायल करें। ये नंबर आयुष्मान हेल्पलाइन से जुड़े हैं और इन पर हफ्ते के सातों दिन दिन-रात कभी भी बात कर सकते हैं।
•इन नंबरों पर आप लाभार्थी हैं या नहीं, यह पूछ सकते हैं। इसके लिए आपसे आपका मोबाइल नंबर या आधार नंबर या राशन कार्ड नंबर आदि पूछा जा सकता है। इसके बाद आपको जानकारी दे दी जाएगी।

हॉस्पिटल से
जो भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल आयुष्मान योजना से जुड़ा हुआ है, वहां मौजूद प्रधानमंत्री आरोग्य मित्र से भी आप अपनी पात्रता का पता लगा सकते हैं। आरोग्य मित्र आपसे आपके बारे में कुछ जानकारी मांगेंगे और साथ ही आपके पहचानपत्र जैसे राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड या वोटर कार्ड आदि का नंबर पूछ सकते हैं। आप अगर इस योजना में शामिल होने के पात्र होंगे तो आपको पता चल जाएगा।

दूसरा कदमः बनवाएं ई-कार्ड
आयुष्मान योजना के लिए जरूरी कार्ड को ई-कार्ड कहा जाता है। अगर आप इस योजना के पात्र हैं तो आपके परिवार के सभी सदस्य को इसका फायदा मिलेगा, यह तय है। ऐसे में अपने परिवार के सभी सदस्यों का 'ई-कार्ड' जरूर बनवा लें। इस कार्ड के होने पर ही पात्र शख्स और उसके परिवार के सदस्य इस योजना का लाभ लेकर इलाज करा सकते हैं:

कहां बनेगा कार्ड
यह कार्ड आप अपने नजदीकी किसी भी रजिस्टर्ड सरकारी या प्राइवेट अस्पताल या कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) जाकर बनवा सकते हैं। रजिस्टर्ड सरकारी या प्राइवेट अस्पताल की लिस्ट वेबसाइट pmjay.gov.in पर देख सकते हैं।
अपने नजदीकी CSC का पता ऐसे लगाएं:
•वेबसाइट locator.csccloud.in पर जाएं।
•यहां आप अपने राज्य का नाम, जिला, और कैप्चा कोड भरकर Search पर क्लिक करें। यहां आपको VLE Address का भी ऑप्शन मिलेगा। इसे खाली छोड़ दें।
•अब आपके एरिया के सारे CSC की लिस्ट आ जाएगी। उनमें से आप अपने नजदीक का CSC चुन सकते हैं।

कैसे बनेगा कार्ड
•अपना HHD नंबर, मोबाइल और कोई भी अड्रेस प्रूफ जैसे- आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड आदि में से एक की एक फोटो कॉपी और ऑरिजनल कॉपी, एससी/एसटी जाति प्रमाणपत्र, इनकम सर्टिफिकेट आदि लेकर नजदीकी सरकारी या लिस्टेड प्राइवेट अस्पताल या CSC में जाएं।
•हर रजिस्टर्ड अस्पताल में आयुष्मान भारत की एक हेल्प डेस्क होती है। अस्पताल के रिस्पेशन पर इस डेस्क के बारे में पूछ सकते हैं। यहां जन आरोग्य मित्र आपकी सहायता के लिए हर समय मौजूद रहते हैं। अगर कोई परेशानी आए तो तुरंत 14555 पर कॉल करें।
•अस्पताल में बनी आयुष्मान डेस्क या CSC पर ई-कार्ड बनवाने के बारे में बताएं। रजिस्टर्ड अस्पताल में ई-कार्ड बनवाने पर कोई चार्ज नहीं लिया जाता, वहीं CSC जाकर ई-कार्ड बनवाने की फीस 30 रुपये है।
•डॉक्यूमेंट्स देने व प्रोसेस पूरा होने पर 30 मिनट में ई-कार्ड आपको दे दिया जाता है।
•ई-कार्ड बनवाते समय फिंगर प्रिंट लिए जाते हैं। जिसका ई-कार्ड बनना है, उसे वहां मौजूद रहना होगा।

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कोरोना: जांच का फंडा

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लोकेश के. भारती
यहां इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि अगर किसी शख्स में फ्लू के लक्षण (खांसी, बुखार, नाक बहना और सांस लेने की परेशानी) हैं तो भी जरूरी नहीं कि उसका कोरोना टेस्ट हो। कोरोना टेस्ट के लिए डॉक्टर उस शख्स की हिस्ट्री (कहीं वह विदेश से तो नहीं आया, क्या वह कभी ऐसे शख्स के संपर्क में आया है जो कोरोना पॉजिटिव निकला हो, क्या वह उन जगहों को भी घूमा है या उसके साथ काम करने वाला शख्स कोरोना पॉजिटिव निकला हो आदि चीजें) देखता है। इन सभी बातों को जानने के बाद ही उसे कोरोना टेस्ट के लिए कहा जाता है।

1. एंटीबॉडी या रैपिड टेस्ट
जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि इसकी रिपोर्ट जल्दी आती है। साइंटिफिक कमिटी, दिल्ली मेडिकल काउंसिल के चेयरमैन डॉ. नरेंद्र सैनी कहते हैं कि इस टेस्ट के लिए ब्लड लिया जाता है। टेस्ट की पूरी प्रक्रिया में बमुश्किल 15 से 20 मिनट लगते हैं, जबकि रिपोर्ट आने में 4 से 5 घंटे। इसे हम शुरुआती टेस्ट कह सकते हैं। इससे यह पता चलता है कि शरीर में जो इन्फेक्शन हुआ है, वह नया है या पुराना। अगर इस टेस्ट का रिजल्ट पॉजिटिव आता है तो इसका मतलब है कि उस शख्स में इंफेक्शन नया है। यह इंफेक्शन कोरोना का ही है या फिर किसी दूसरी बीमारी का, इसके लिए RT-PCR टेस्ट किया जाता है। कोरोना टेस्ट के लिए यही टेस्ट सबसे खास माना जाता है।

2. RT-PCR या मॉलिक्युलर टेस्ट
इस टेस्ट को करने में 4 से 5 घंटे का वक्त लगता है और रिपोर्ट आने में कम-से-कम 24 घंटे लग सकते हैं। इसे सीधे इस तरह समझ सकते हैं कि इसमें वायरस के जीन की स्टडी की जाती है कि जो जीन है, वह कोरोना का ही है या किसी और वायरस का। इस टेस्ट में नीचे लिखे तरीकों में से कोई भी अपनाया जा सकता है:

स्वाब टेस्ट
इसमें गले या नाक के अंदर से स्वाब (रुई या फाहा) पर श्वास नली से लिक्विड या लार का सैंपल लिया जाता है।

नेजल एस्पिरेट
नाक में एक सलूशन डालने के बाद सैंपल लेकर जांच की जाती है।

ट्रेशल एस्पिरेट

एक पतली ट्यूब ब्रोंकोस्कोप को फेफड़ों में डालकर वहां से सैंपल लेकर जांच की जाती है। यह टेस्ट अमूमन उन लोगों पर किया जाता है जो आईसीयू में भर्ती होते हैं।

सप्टम टेस्ट
इसमें फेफड़े में जमा मटीरियल लेकर टेस्ट किया जाता है। कोरोना टेस्ट का यह तरीका भी अच्छा है।

जब टेस्ट आ जाए पॉजिटिव
अगर किसी शख्स का टेस्ट कोरोना पॉजिटिव आता है, खासकर RT-PCR तो फिर उसे अस्पताल में भर्ती कर उसका इलाज किया जाता है। इलाज 14 दिन से 1 महीना तक चल सकता है। इलाज के दौरान मरीज में लक्षणों (सुखी खांसी, बुखार और सांस लेने में परेशानी) के आधार पर फिर-से टेस्ट किया जाता है। जब तक जांच पॉजिटिव आती है, इलाज और टेस्ट जारी रहता है। साउथ दिल्ली, आईएमए के प्रेज़िडंट डॉ. संदीप शर्मा कहते हैं कि अगर पहला टेस्ट पॉजिटिव आ जाए तो दूसरा टेस्ट करने में वैसे तो 24 घंटे का गैप ही काफी है, लेकिन यह टेस्ट महंगा है और भीड़ भी अभी ज्यादा है इसलिए इसे 48 या 72 घंटे यानी 2-3 दिन बाद ही किया जाता है। अगर यह भी पॉजिटिव आया तो फिर से 2-3 दिन बाद तीसरा टेस्ट किया जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मरीज को अस्पताल से घर भेजने से पहले कम-से-कम 2 टेस्ट नेगेटिव जरूर होने चाहिए।

जब टेस्ट आ जाए नेगेटिव
अगर पहला टेस्ट नेगेटिव आए तो फिर दूसरा टेस्ट कम-से-कम 24 घंटे बाद किया जाता है। दूसरा भी नेगेटिव आ जाए तो मरीज को घर भेज दिया जाता है और यह भी हिदायत दी जाती है कि कम-से-कम 14 दिन सेल्फ क्वारंटीन में रहना होगा।
- यानी घर में मास्क लगाकर रहना होगा।
- अलग बाथरूम इस्तेमाल करना होगा।
- घर में मौजूद सदस्यों का कोई सामान शेयर नहीं करना होगा।
- अगर इन 14 दिनों तक सब ठीक रहा, मरीज में कोई भी लक्षण नहीं दिखा तो सबकुछ सामान्य माना जाता है।

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शुगर डिस्टेंसिंग करो ना

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शुगर अडिक्शन के शिकार लोगों के लिए लॉकडाउन के ये दिन अच्छे नहीं चल रहे। मिठाई की दुकानें बंद हैं तो दिन बेचैनी में कट रहे हैं। हालांकि एक्सपर्ट का मानना है कि इस आदत से छुटकारा पाने का यह बेहतरीन मौका है और अगले 15 दिनों में आप इससे मुक्ति के लिए पूरी कोशिश कर सकते हैं और संभव है कि आप इसमें सफल भी रहें। इस आदत को छोड़ने के बारे में एक्सपर्ट से बात कर पूरी जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

मीठा पसंद करने वालों की भी अपनी मजबूरी होती है। मिठाई न मिले तो ऐसे लोग परेशान हो जाते हैं। 'शुगर अडिक्शन' के शिकार ऐसे लोगों को अगर मीठा न मिले तो उन्हें लगता है कि कुछ खाया ही नहीं। कई लोग तो मिठाई देखते ही उस पर टूट पड़ते हैं और कितना भी खा लें, उनका मन नहीं भरता। बेशक ऐसे लोगों के लिए आजकल मिठाई के ऑप्शन काफी कम हैं। सारे होटल और रेस्तरां बंद हैं और घरों में इतनी मिठाइयां तो बन नहीं सकतीं। ऐसे में वे परेशान तो हैं, लेकिन अगर इस समय वे खुद को मिठाई से दूर कर लें और उसकी जगह फ्रूट्स जैसे ऑप्शन को आदत में शामिल कर लें तो इस लॉकडाउन में यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

क्या है शुगर अडिक्शन
खाना खाने के बाद मीठा खाने का मन लगभग सभी का करता है। अगर आपको लगता है कि मीठा नहीं खाया तो खाना पूरा नहीं हुआ और हर बार खाने के बाद कुछ मीठा होना ही चाहिए तो आप शुगर अडिक्ट हैं। लेकिन जिन लोगों को मीठा न मिलने पर इसकी जरूरत महसूस नहीं होती या जिन्हें मीठा खाना याद भी नहीं रहता, उन्हें शुगर अडिक्ट नहीं माना जा सकता।

क्यों होती है लोगों में यह समस्या
अगर किसी को शुगर अडिक्शन की परेशानी है तो इसका सीधा-सा मतलब है कि उसकी आंत में गुड और बैड बैक्टीरिया का अनुपात सही नहीं है। हमारे गलत खानपान (ज्यादा तेल मसाला, जंक फूड आदि) की वजह से अमूमन ऐसा होता है। इससे आंत सही तरीके से काम नहीं करती। पाचन ठीक तरीके से नहीं होता। इस समस्या से निपटना भी इस लॉकडाउन में मुमकिन है। हम अगर हर दिन सुबह में खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू निचोड़ कर पिएं तो फर्क 10 दिनों में ही दिखने लगेगा। हमारी आंत में गुड बैक्टीरिया की संख्या बढ़ने लगेगी और पाचन क्रिया सही होने लगेगी। ऐसे में शुगर की आदत को छोड़ने के लिए शरीर को नीबू पानी से डिटॉक्सिफाई करना भी जरूरी है।

अडिक्शन को क्यों करें नमस्ते
आजकल हर शख्स को मिठाई और नमक से दूरी बनाने की सलाह डॉक्टर और डायटिशन देते हैं क्योंकि इनसे शुगर, मोटापा और बीपी जैसी परेशानी पैदा
होती हैं।
-अगर कोई नियमित रूप से मिठाई खाए तो यह मोटापा और डायबीटीज का कारण बन सकता है।
- कई लोगों को दिन में खाने के बाद अगर मिठाई न मिले तो काम में मन नहीं लगता है।
- रात में खाना के बाद मीठा खाने को न मिले तो अच्छी नींद नहीं आती।

लॉकडाउन में छोड़ना आसान
आजकल हम लोगों के पास वक्त की कोई कमी नहीं है। ऐसे में किसी भी आदत को छोड़ना दूसरे दिनों की तुलना में अभी आसान है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि चीजों की उपलब्धता ही नहीं है। फिर घर से बाहर निकलना ही मुश्किल है। अगर कोई बाहर निकल भी गया तो शराब और सिगरेट की दुकानें बंद हैं। इसलिए ऑप्शन बहुत कम हैं। सिर्फ शुगर ही क्यों, शराब, सिगरेट जैसी बुरी आदतों को भी इस लॉकडाउन के दौरान छोड़ा जा सकता है।
यहां एक सवाल उठना लाजमी है कि अगर कोई घर में ही मीठा बनवाकर खाए तो फिर उसका क्या? हां, यह मुमकिन है लेकिन किसी रेस्टोरेंट से या होटल से खरीदकर खाने की तुलना में इतने तरह के व्यंजन घर बनाना बहुत मुश्किल है।

कैसे छोड़ सकते हैं
खाने के बाद ब्रश करें
यह सच है कि जब हम कुछ नमकीन खाते हैं तो हमें मीठा खाने की तलब ज्यादा होती है। ऐसे में इससे बचने का सबसे बेहतरीन तरीका है कि खाने के बाद फौरन ही ब्रश कर लें। इससे एकतरफ जहां दांतों की सफाई हो जाएगी, वहीं मुंह का स्वाद भी बदल जाएगा। एक बार जब स्वाद बदल जाता है तो मीठा खाने की तलब भी काफी कम हो जाती है।
खाने के फौरन बाद ब्रश करना वैसे अच्छा नहीं होता क्योंकि हमारी लार पाचन में मदद करती है। इसलिए ऐसा शुरू के 5-10 दिन ही करें। यानी जब तक आदत छूट न जाए तब ब्रश के ऑप्शन को आजमा सकते हैं।

नींद कुछ खराब होने दें
डिनर के बाद मीठा अगर नहीं खाएंगे तो मुमकिन है कि नींद कुछ देर में आए। पर, आजकल यह चल सकता है। जब ऑफिस जाना होता था तो एक रात नींद न आने से अगले दिन ऑफिस जाना मुश्किल हो जाता था। चूंकि आजकल ऑफिस नहीं जाना है तो सुबह में सफर के एक-दो घंटे बचते ही हैं। ऐसे में अगर रात में नींद नहीं आएगी तो सुबह में नींद पूरी कर सकते हैं और थोड़ा लेट भी उठ सकते हैं।

खा सकते हैं ड्राई फ्रूट्स भी
किशमिश हो या फिर खजूर, मिठाई की जगह हम इन्हें ले सकते हैं। 10 से 12 किशमिश या फिर 2 से 3 खजूर दिनभर में लेना सही रहता है। एक बार खाने के बाद 5 से 6 किशमिश और एक खजूर पर्याप्त है। ऐसे में इन ड्राई फ्रूट्स को घर पर जरूर रखना चाहिए। अच्छी बात यह है कि इनकी लाइफ भी काफी लंबी होती है और इन्हें खाने से सेहत पर भी कोई समस्या नहीं आती।

फ्रूट्स की आदत डालें
किसी को बार-बार मीठा खाने की आदत है तो उसे छोड़ने के लिए वह फल का सहारा ले सकता है। मौसमी फल (अंगूर, पपीता, सेब, शहतूत, संतरा आदि) के एक-दो पीस ही मीठा खाने की आपकी इच्छा को खत्म कर सकते हैं। ऐसे में घर में फल रखें। इन्हें अच्छी तरह धोकर और ढककर रखें। जब भी मीठा खाने का मन करे, फल खा लें। ध्यान दें कि अगर आपको जुकाम या बुखार है तो रात में फल कम खाएं, केले तो न ही खाएं। कारण, केला बलगम पैदा कर सकता है। और हां, कोशिश हो कि खाने के फौरन बाद ही फ्रूट्स नहीं खाएं। कम से 2 घंटे का गैप दें। अगर 2 घंटा नहीं बर्दाश्त कर सकते तो 1 घंटा जरूर रूकें।

सौंफ भी है अच्छा विकल्प
खाना खाने के बाद मीठा खाने का मन करे तो सौंफ खाना एक अच्छा ऑप्शन है। यह हल्की मीठी होती है और इससे सांस की बदबू भी दूर होती है। हकीकत यह है कि होटल और रेस्टोरेंट्स में भी खाना खत्म होने के बाद सौंफ और मिश्री दी जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह सौंफ की खासियत ही है। दरअसल, सौंफ सांस की बदबू को पूरी तरह खत्म कर देती है। लेकिन यहां इस बात का ध्यान रखें कि सौंफ के साथ मिश्री न हो।

ऐसा सोचना नहीं है सही
मिथ: मिठाई या चीनी की जगह गुड़ खाना ठीक रहता है।
सचाई: यह सही नहीं है। अगर हमने मिठाई की जगह गुड़ का सेवन किया तो भले ही कैलरी कम हो जाए, लेकिन मीठे की आदत नहीं जाएगी। हां, चीनी की तुलना में बेहतर ऑप्शन जरूर है, लेकिन शुगर अडिक्शन छोड़ने के लिए सही नहीं है।

मिथ: मिठाइयों का शौक अडिक्शन नहीं है।
सचाई: खुद की आदतों पर अगर गौर करेंगे तो संदेह कहीं रह नहीं जाता कि आप अडिक्ट हैं। एक सिंपल फंडा है: अगर कोई शख्स बिना मिठाई के 10 दिन रह ले और इस दौरान उसे मीठा खाने की जरूरत महसूस न हो तो वह शुगर अडिक्ट नहीं है। इस फंडे पर आदतों को देखें और तय करें कि अडिक्शन है या नहीं।

मिथ: रोटी-चावल का ज्यादा सेवन शुगर अडिक्शन में नहीं आता।
सचाई: हां, यह सच है कि कार्बो यानी रोटी या चावल का स्वाद मीठा नहीं होता, लेकिन पचने के बाद ये भी ग्लूकोज ही बनाते हैं और फैट के रूप में बदलकर शरीर में जमा हो जाते हैं। यही कारण है कि शुगर पेशंट या फिर जिन्हें अपना वजन कम करना होता है, उन्हें रोटी-चावल से दूरी बनाकर रखने के लिए कहा जाता है। सच तो यह है कि हम इन्हें सीधे तौर पर तो मिठाई नहीं कह सकते, लेकिन जब हम शुगर अडिक्शन को छोड़ने की बात करते हैं तो इन पर निर्भरता कम जरूर करनी चाहिए। दिन में अगर 3 चपाती या 2 कटोरी चावल खाते हैं तो रात में 1 चपाती और आधी कटोरी चावल से ज्यादा नहीं खाना चाहिए।

मिथ: चाय या कॉफी में चीनी से दिक्कत नहीं है।
सचाई: कई लोगों को खाने के बाद मीठे के रूप में चाय या कॉफी पीना अच्छा लगता है। उन्हें यह सेहत के लिहाज से सही लगता है क्योंकि इसमें कैलरी की मात्रा मिठाई की तुलना में काफी कम होती है। 1 कप चाय या कॉफी में 50 से 70 कैलरी तक होती है, जबकि 1 गुलाब जामुन में 300 से 350 कैलरी होती है। यह सच है कि चाय या कॉफी में कैलरी कम है, लेकिन खाने के बाद इन्हें पीने पर दूसरे नुकसान बहुत ज्यादा हैं:
- खाने के फौरन बाद इन्हें पीने पर खाना पचने में परेशानी होती है, इसलिए पेट में गैस की समस्या हो सकती है।
- ये डाययूरेटिक (ज्यादा यूरिन बनाने वाले) होती हैं यानी शरीर से ज्यादा मात्रा में पानी को यूरिन बनाकर निकालते हैं। ऐसे में शरीर की कोशिकाओं में पानी की कमी होती रहती है।
- भले ही इसमें कैलरी कम हो, लेकिन चाय या कॉफी में भी चीनी ही ली जा रही है। यह भी उसी तरह है, जैसे एक मिठाई। मिठाई में भी चीनी तो सीधे तौर पर कोई खाता नहीं है।

मिथ: आर्टिफिशल स्वीटनर से नुकसान नहीं।
सचाई: इस तरह की सोच ज्यादातर लोग रखते हैं कि आर्टिफिशल स्वीटनर में कैलरी नहीं होती, इसलिए चाय या कॉफी में मिलाकर पीने से समस्या नहीं है। लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि यह कोई नेचरल चीज नहीं है। शुगर-फ्री चीजों (चॉकलेट, डाइट कोक, बेकरी आइटम आदि) में शुगर अल्कोहल, फ्रक्टोस, सैक्रीन, मैल्टोडेक्सट्रिन आदि होते हैं जोकि शुगर नहीं हैं, लेकिन इनमें कार्बोहाइड्रेट काफी ज्यादा होते हैं, जिससे ब्लड ग्लूकोज़ लेवल पर असर पड़ता है। प्रेग्नेंट महिलाएं, बच्चे को दूध पिलाने वाली मांएं और बच्चे आर्टिफिशल स्वीटनर का इस्तेमाल न करें। यह बात कोरी अफवाह है कि आर्टिफिशल स्वीटनर्स से कैंसर, सदमा, दौरा, मेमरी लॉस जैसे समस्याएं हो सकती हैं। किसी भी रिसर्च में यह साबित नहीं हुआ है। हालांकि एक स्टडी में कहा गया है कि जिन लोगों को डायबीटीज नहीं है और उन्हें वजन कम करने में मदद नहीं मिलती, उलटे डायबीटीज जैसी मेटाबॉलिक बीमारियां होने का खतरा होता है। बेहतर है कि इन स्वीटनर्स को कम मात्रा में ही इस्तेमाल किया जाए।

एक्सपर्ट पैनल
डॉ. समीर पारिख, सीनियर साइकाइट्रिस्ट
रेखा शर्मा, पूर्व चीफ डाइटिशन,एम्स
परमीत कौर, चीफ, डाइटिशन, एम्स
डॉ. शिखा शर्मा, न्यूट्री-डायट एक्सपर्ट
ईशी खोसला, सीनियर डायट एक्सपर्ट
प्रेरणा कोहली, सीनियर क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट
राम रोशन शर्मा, प्रिंसिपल साइंटिस्ट, पूसा इंस्टिट्यूट

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ओ टमी, बाहर निकलना मना है

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कोरोना ने हम सबको अपने-अपने घरों में कैद कर दिया है। टहलने के लिए भी बाहर निकलना मुमकिन नहीं रहा। ऐसे में अगर वजन बढ़ गया हो और आपकी टमी आपका चेहरा देखने के लिए उतावली हो रही हो तो आज से ही कुछ स्टेप्स उठा लें। लॉकडाउन के इस अनचाहे तोहफे से कैसे पाएं छुटकारा, एक्सपर्ट से जानकारी लेकर बता रहे हैं लोकेश के. भारती

क्या है मोटापे का पैरामीटर
टमी अगर बाहर की तरफ झांक रही है तो यह मोटापे की निशानी है। वैसे कोई शख्स अंडरवेट है, नॉर्मल है या फिर मोटापे का शिकार, इस बात का पता करने के लिए BMI (बॉडी मास इंडेक्स) पता करना होता है। बीएमआई जानने के लिए वजन और लंबाई का अनुपात निकालते हैं। BMI = kg/m2

अगर BMI है
18.5 से कम तो अंडरवेट
18.5 से 24.9 के बीच तो सामान्य
25 से 29.9 के बीच तो ओवरवेट
30 से 34.9 के बीच तो ओबेसिटी (क्लास 1)
35 से 39.9 के बीच तो ओबेसिटी (क्लास 2)

यहां से पता करें BMI
ntinyurl.com/qyqhmdx
ntinyurl.com/qsyexeb
ntinyurl.com/y2wwu8sl
nwww.smartbmicalculator.com

अभी बाहर निकलकर जॉगिंग या वॉक करना मुमकिन नहीं, लेकिन एक्सरसाइज, योग जैसे काम तो हम घर में रहकर भी कर सकते हैं। अगर ये ऐक्टिविटीज हमारी आदतों में शुमार हो जाएं तो ये हमारे लिए लॉकडाउन के बाद भी फायदेमंद होंगी। इससे वजन तो कम रहेगा ही, पेट भी काबू में रहेगा।

रूटीन ठीक करना
रुटीन ठीक करने से सिर्फ यह मतलब नहीं कि सुबह उठने और सोने का टाइम ठीक कर लें या जो 'वर्क फ्रॉम होम' कर रहे हैं, वे ऑफिस के सभी काम समय पर कर लें। इससे मतलब है कि एक्सरसाइज, योग, क्या खाना है, कितना खाना और कब खाना है, यह आपकी ज़िंदगी का हिस्सा बन जाए। इसे आप चार भागों में बांट सकते हैं:

1. सुबह उठना और शरीर को डिटॉक्सिफाई करना
2. फिजिकल ऐक्टिविटी पर ध्यान देना
3. क्या खाना है, इसका ध्यान रखना
4. क्या नहीं खाना है, इसे नहीं भूलना

5 से 6 am के बीच उठना
पेट बढ़ने या मोटापे का सही समय पर सोने-जगने से गहरा रिश्ता है। सुबह 5-6 बजे उठने के लिए जरूरी है कि हम रात 10 बजे तक जरूर सो जाएं ताकि 7-8 घंटे की नींद पूरी कर लें। अगर नींद को आप ठीक कर लेंगे तो मोटापे से राहत मिलेगी।

डिटॉक्सिफाई करना जरूरी
शरीर को डिटॉक्सिफाई करने के लिए उठने के फौरन बाद या फिर फ्रेश होने के बाद एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू निचोड़कर ले सकते हैं या फिर पानी में एक छोटा टुकड़ा दालचीनी या एक चम्मच अजवाइन या एक चम्मच हल्दी या फिर इन सभी को मिलाकर उबाल लें और गुनगुना होने पर पी लें। यह शरीर से गंदगी बाहर करता है और पेट कम करने में भी मदद मिलेगी।

7 से 8:30 am के बीच योग क्रियाएं

कपालभाति 3 बार
अग्निसार क्रिया 3 बार
कटिचक्रासन 5 बार
त्रिकोणासन 3 बार
सूर्य नमस्कार 12 बार
नौकासन 3 बार
भुजंगासन 3 बार
चक्कीचालन 3 बार
शवासन 3 मिनट
25 मिनट योग पर्याप्त है। इसके बाद भी अगर कोई शख्स एक्सरसाइज करना चाहे तो यह उसकी क्षमता पर निर्भर करता है। अगर युवा हैं तो योग और एक्सरसाइज दोनों ही आगे-पीछे कर सकते हैं।

एक्सरसाइज कौन-कौन सी
जब घर में एक्सरसाइज करने की बात आती है तो योग के बाद इस पर 35 से 45 मिनट का वक्त देना बेहतर रहता है। अगर योग नहीं कर पा रहे हैं तो 1 घंटा एक्सरसाइज में लगा सकते हैं। बेशक जब टमी को अंदर करने की बात हो तो इतना वक्त तो लगेगा ही।

वॉर्मअप
कोई भी एक्सरसाइज शुरू करने से पहले वॉर्मअप करना जरूरी है। इससे शरीर के सभी अंग पूरी तरह ऐक्टिव मोड में आ जाते हैं। इसका दूसरा फायदा यह है कि इससे एक्सरसाइज के दौरान शरीर पर फालतू दबाव नहीं पड़ता।

कैसे करें और कितनी देर
अगर घर में ट्रेडमिल है तो उस पर 15 मिनट की ब्रिस्क वॉक 6 किमी/घंटा की स्पीड से कर सकते हैं। अगर ट्रेडमिल नहीं है, तो भी वॉर्मअप अच्छी तरह से हो सकता है। एक ही जगह पर खड़े होकर हाथों को ऊपर उठाएं और जंप करें फिर सामान्य स्थिति में आ जाएं। इस एक्सरसाइज को 5 से 10 मिनट तक करें।


तोंद अंदर और चर्बी बाहर
ऐसी कई तरह की एक्सरसाइज हैं, जिनकी मदद से बाहर निकले पेट को अंदर किया जा सकता है और शरीर पर मौजूद फालतू चर्बी को बाहर:


1. Plank With Knee Tap
इसमें घुटनों को पैरों के बल पर उठाएं। शरीर के अगले हिस्से को बाजू की मदद से ऊपर उठाएं। कोहनी जमीन पर लगी रहेगी और हाथ कंधों के बराबर रखें। सिर, गर्दन व रीढ़ की हड्डी को एक ही दिशा में सीधा रखें। अब धीरे-धीरे पहले बाएं घुटने को और फिर दाएं घुटने को नीचे फर्श पर लगाएं।
नोट: एक बार में 60 सेंकड के लिए करें और फिर 10 सेकंड का ब्रेक लें। 2 सेट करें।

2. Side Elbow Plank
अपनी दाईं बाजू को कमर के साथ सटाकर रख लें। फिर जमीन पर करवट लेकर एक साइड में लेट जएं। अब अपनी दूसरी बाजू के सहारे शरीर को हवा में उठाएं और फिर नीचे करें। इसी तरह की क्रिया अपने दूसरे हाथ से भी करें।
नोट: एक बार में 30 सेंकड के लिए करें और फिर 10 सेकंड का ब्रेक लें। 2 सेट करें।

3. Dead Bug
इसके लिए पीठ के बल लेट जाएं। इसके बाद घुटनों का समकोण (90 डिग्री) बनाएं और दोनों हाथ घुटनों को छुएंगे। इसके बाद दाएं हाथ और पैर को सीधा रखें। ये तब तक सीधे रहेंगे, जब तक कि दूसरा पैर नीचे जमीन पर नहीं लग जाता। फिर पुरानी स्थिति में आकर दूसरे हाथ व पैर से यह दोहराएं।
नोट: एक बार में 30 सेंकड करें और फिर 10 सेकंड का ब्रेक लें। 2 सेट करें।

4. Mountain Climber
यह वर्कआउट करने के लिए घुटने टेक कर बैठ जाएं। फिर अपने दोनों हाथों को सामने की ओर फर्श पर रख लें। अब अपने दोनों पैरों को पीछे की ओर पूरी तरह से सीधा कर लें। इसके बाद दाएं पैर के घुटने को मोड़ें और छाती की ओर लाएं। फिर अपने दाएं घुटने को नीचे करके पैर को सीधा कर लें। जब आप दाएं पैर को सीधा करें तो साथ में बाएं पैर के घुटने को छाती की ओर लाएं। जब तक कर सकते हैं, अपने हिप्स को सीधा रखते हुए अपने घुटनों को अंदर और बाहर चलाएं।
नोट: एक बार में 120 सेकंड के लिए करें और फिर 10 सेकंड का ब्रेक लें। 2 सेट करें।

5. Toe Touches
इस एक्सरसाइज को कई तरीके से किया जा सकता है। मसलन: सीधे खड़े होकर नीचे की तरफ झुकें, इस दौरान घुटना मुड़े नहीं और नाक को घुटनों से सटाएं और अपने हाथों को पैर के अंगूठे से टच करें। इसी तरह बैठकर भी इस एक्सरसाइज को की जा सकती है। सामान्य तरीके से बैठकर अपने दोनों पैरों को सामने की तरफ सीधे रेल की पटरियों की तरह फैला लें। फिर नाक से घुटनों को टच करें और हाथों से पैर के अंगूठे को।
नोट: एक शिफ्ट में 15 बार करेंे और फिर 10 सेकंड का गैप दें। दोनों पैरों से 2 शिफ्ट करें।

6. Dance-Dance

वैसे तो डांस के कई स्टाइल होते हैं। कथक, भरतनाट्यम जैसे क्लासिकल डासिंग स्टाइल हैं तो दूसरी तरफ ब्रेक डांस, टैप डांस, बेली डांस और सालसा भी काफी मशहूर हैं। स्टेप को कॉपी करें और 10 से 15 मिनट करें।

7. Nagin Dance
अगर कोई भी स्पेशल डांस नहीं आता तो शादियों का मशहूर डांस नागिन डांस करना शुरू कर दें। बस अपनी पसंद का कोई गाना लगाएं और झूमना शुरू कर दें। शर्माएं बिलकुल नहीं। मुमकिन हो तो परिवार के दूसरे सदस्यों को भी जोड़ लें। पहले दिन 15 मिनट भी इसे कर लिया तो पसीने को देखकर खासियत समझ में आ जाएगी।

अगर आपके पास घर में बहुत ज्यादा जगह नहीं है तो भी कोई बात नहीं। आप कम जगह या फिर अपने बेड पर कुछ खास एक्सरसाइज कर सकते हैं। सुबह उठने और फ्रेश होने के बाद बेड पर भी कम जगह में इन्हें आजमाएं:

पुशअप्स
इससे कंधे और बाजू की मांसपेशियों पर अच्छा असर पड़ता है। इसके लिए पेट के बल बिस्तर पर लेट जाएं। हाथ कंधे की सीध में हों और जांघ बिलकुल सीधी। फिर हाथ और पैर की मदद से शरीर को ऊपर-नीचे करें। एक सेट में 15 पुशअप्स करें। रोज कुल 3 सेट करें।

एयर साइक्लिंग
यह पूरी तरह से टमी को कम करने के लिए काम करती है। पीठ के बल लेट जाएं। पैरों को ऊपर उठाएं। हाथों को सिर के पीछे रखें। पैरों को एक-एक करके आगे घुमाएं, जैसे कि हवा में साइकिल चला रहे हों।
इसे 3 सेट में करें। हर सेट में दोनों पैरों से 20 बार साइक्लिंग करें।

उठक-बैठक
इसके लिए सबसे पहले खड़े हो जाएं, फिर दोनों हाथ सामने की ओर रखें। अब धीरे-धीरे घुटनों को मोड़ते हुए इस तरह बैठें जैसे कि आप किसी कुर्सी पर बैठ रहे हों। धीरे-धीरे तब तक झुकें, जब तक कि जांघ जमीन के समानांतर न आ जाएं। अब उठक-बैठक करना शुरू करें। ऐसा 10 मिनट तक आप करें। एक बार में 10 उठक-बैठक करें।

पेश है डायट चार्ट

9 से 10 am के बीच
सबसे पहले ब्रेकफास्ट (400-500 कैलरी)
-2 रोटी या 3 पीस होल वीट या ब्राउन ब्रेड:
200 से 250 कैलरी
-2 या 3 उबले अंडे ( पीला हिस्सा हटाकर): 50 कैलरी
-1 कटोरी दाल या हरी सब्जी: 100 कैलरी
-1 प्लेट सलाद (गाजर, मूली, चुकंदर,
खीरा आदि): 50 कैलरी
-एक कप दूध टोंड या फिर मलाई हटाकर: 50 कैलरी
(इनके अलावा भी पसंदीदा ब्रेकफास्ट ले सकते हैं, पर ध्यान रखना है कि परांठा, मिठाई जैसी हाई कैलरी चीजों को या तो काफी कम कर दें या
ना लें)

11am से 12pm के बीच
मंचिंग (50-100 कैलरी)
ऐसी मंचिंग से लंच में कम कैलरी लेने का टारगेट पेट कुछ भरा होने की वजह से आसानी से पूरा कर सकेंगे।
-भुना चना या भुनी मूंगफली या बिस्किट, जिसमें फाइबर अधिक हों।

1 से 2 pm के बीच
लंच (300-350 कैलरी)
-1 या 2 रोटी या
1 से 2 कप चावल: 150 कैलरी
-अधिक पानी वाली एक कटोरी दाल (चना, अरहर, मूंग आदि): 50 कैलरी
-हरी सब्जी (1 कटोरी): 50 कैलरी
सलाद (1 प्लेट: 150 से 200 ग्राम):
50 कैलरी
-पनीर या कम तेल वाला चिकन
(1 कटोरी, ग्रेवी कम लें): 100 कैलरी

4 से 5 pm के बीच
मंचिंग (50-100 कैलरी)
-चाय-कॉफी (कम चीनी में), भुना चना, भुनी मूंगफली या मखाना।

7:30 से 8:30 pm के बीच
डिनर (200-250 कैलरी)
जब शाम में आप कुछ खा चुके होंगे तो रात के खाने की मात्रा अपने आप कम हो जाएगी। साथ ही, अगर डिनर से आधा घंटा पहले पानी पी लें तो भी रात के खाने की मात्रा घट जाएगी।
-1 रोटी, दाल, टोंड या मलाई निकाला हुआ दूध, नॉनवेज खाने वाले ध्यान रखें कि ग्रेवी कम खाएं।
-अगर मीठा खाना है तो 2-5 ग्राम गुड़ खाएं। वैसे इसमें भी 10 से 20 कैलरी होती है।

खाने में इन चीजों को
बहुत कम करना है

-सफेद चीजें यानी मैदा, सफेद चावल, चीनी और नमक आदि।
-आर्टिफिशल स्वीटनर (इसकी जगह पर स्टीविया एक नेचरल ऑप्शन है।)
-तेल, घी, बटर, मिठाई, परांठा
-चॉकलेट, चिप्स
-जंक फूड

इन्हें कम करना है
रोटी, आलू सर्वसुलभ हैं, लेकिन इनकी मात्रा कम करें। इन्हें बिलकुल बंद नहीं करना है।
इन बातों का रखें ध्यान
-फ्रिज का पानी न पिएं। ठंडा पानी पीना है तो मिट्टी के घड़े या सुराही का पिएं। वैसे, गुनगुना पानी पीने से वजन भी जल्दी कम होता है और पाचन भी सही होता है।
-रोजाना 8-10 गिलास पानी नियमित तौर पर पीने की आदत जरूर डालें। पानी शरीर से गंदगी निकालता है और पाचन को भी सही बनाए रखता है।
-चीनी से बेहतर ऑप्शन गुड़ है। इसके अलावा बाजार में आजकल सुलभता से नारियल और खजूर की चीनी भी उपलब्ध है। ये मीठे के रूप में बेहतरीन विकल्प हैं।
-खाने में प्रचुर मात्रा में प्रोटीनयुक्त भोजन को जरूर शामिल करें क्योंकि प्रोटीन हमारे शरीर की कोशिकाओं के निर्माण में मददगार होता है। अगर कोई शाकाहारी है तो खाने में अलग-अलग तरह की दालें, चना, राजमा, पनीर शामिल करें। अगर मांसाहारी हैं तो खाने में मछली और चिकन को शामिल करें।
-अगर प्रोटीन अधिक ले रहे हैं तो पानी की मात्रा भी कुछ
जरूर बढ़ाएं।
-चना, ऑरेंज, ऐपल, तरबूज, सलाद, टोंड दूध या बिना क्रीम वाली दही जैसी चीजों को ज्यादा लें।
-अंडा जब भी खाना हो तो पीला हिस्सा निकाल कर खाएं।
-उबला अंडा लेना ऑमलेट से बेहतर है।
-हर दिन 100 से 200 ग्राम हरी सब्जी, 300 से 400 ग्राम सलाद, 150 से 200 ग्राम मौसमी फल और 20 से 25 ग्राम सूखे मेवे ले सकते हैं।
यह न भूलें....
-अगर वजन कम करना चाहते हैं तो डाइटिंग के बजाय बैलेंस्ड और हेल्दी डायट लेना ज्यादा जरूरी है।

एक उपाय यह भी
-बिस्वरूप रॉय चौधरी
वेटलॉस कुछ नहीं होता, इंच लॉस होता है। दरअसल, जब हम वेटलॉस की बात करते हैं तो इसका सीधा-सा मतलब है हमारे शरीर से हड्डियों, मांसपेशियों और खून के वजन में भी कमी होना। इसलिए फोकस होना चाहिए कि हम फैट कम करें। टमी जो बाहर निकली हुई है, उसे इंच-दर-इंच कम करें।

तीन बातों को अपनाएं...

12 बजे तक सिर्फ फलाहार
सुबह में उठने के बाद कम से कम अपने शरीर के 1% वजन के बराबर फल खाना है। यानी अगर किसी का वजन 70 किलोग्राम (70,000 ग्राम) है तो उसे 12 बजे तक 700 ग्राम फल (कोई भी और कितने भी तरह का मौसमी फल) जरूर खाना है। इससे ज्यादा, और कई बार खा सकते हैं, लेकिन कम नहीं खाना। नमक नहीं मिलाना है। भूखे नहीं रहना, क्योंकि भूखे रहने से शरीर का मेटाबॉलिक रेट कम हो जाता है, जिससे पेट या वजन कम करना मुश्किल हो जाता है। फल खाने के 30 मिनट बाद तक पानी नहीं पिएं। ध्यान इस बात का रखना है कि 12 बजे तक फल के सिवा कुछ भी नहीं खाना।

लंच और डिनर से पहले सलाद
वेटलॉस के लिए सलाद की अहमियत काफी है। सलाद का उपयोग पेट भरने और मिनरल व विटामिन के लिए होना चाहिए। लंच और डिनर शुरू करने से पहले अपने बॉडी वेट का 0.5 % सलाद (खीरा, टमाटर, गाजर) बिना नमक के खाएं। नीबू ले सकते हैं। सीधे कहें तो 70 किलोग्राम (70,000 ग्राम) वजन वाले इंसान को 350 ग्राम सलाद जरूर खाना चाहिए। इसके फौरन बाद ही खाना खाएं। खाना में घर की बनी हुई रोटी, सब्जी, चावल और दाल खाएं।

जानवरों से मिलने वाली चीजें और फैक्ट्री प्रॉडक्ट्स से तौबा
ऐसी चीजें जो जानवरों से मिलती हैं, न खाएं, मसलन: दूध, दही, लस्सी, छाछ, घी, पनीर, मछली, अंडा, मांस आदि।
इनके अलावा फैक्ट्री में तैयार चीजों को भी छोड़ दें, मसलन: जूस, नमकीन, चिप्स आदि।

ध्यान देने वाली बातें
-मांसपेशी और हड्डियां भी मजबूत होंगी। साथ ही, शरीर की इम्यूनिटी भी बढ़ेगी। इन उपायों से 3 से 4 हफ्तों में 5 से 10 किलो वजन कम हो जाना चाहिए।
-इसे फॉलो करते हैं तो शुगर के मरीज को 2 से 3 दिनों में इंसुलिन या दवा की डोज कम करनी होगी और बीपी के मरीज को भी। इसलिए लगातार शुगर और बीपी को जांचते रहें और डॉक्टर के संपर्क में रहें।
-वैसे तो चाय मना है, लेकिन दिनभर में 1 से 2 कप चाय
पी सकते हैं।
-इस डायट को कुछ दिनों के लिए फॉलो नहीं करना है बल्कि इसे हमेशा फॉलो करना है। हां, शुरुआत में परेशानी हो सकती है, लेकिन 21 दिनों तक किसी डायट को फॉलो करने से हमारा दिमाग उसे स्वीकार कर लेता है।
-हफ्ते में 1 या 2 मील को चीट कर सकते हैं।

इस पर डाइटिशन का क्या है कहना
ऊपर बताई हुई डायट पर ज्यादातर डाइटिशन का कहना है कि जिस तरह का खाना हम बचपन से खाते आ रहे हैं, उसे छोड़कर नई चीजों को हमारा शरीर इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करता। इससे पाचन की समस्या पैदा हो सकती है। कुछ खास मिनरल्स और विटामिन्स की भी कमी हो सकती है। हमें स्थानीय खाना और मौसमी फल-सब्जी को ही खाना सही रहेगा। ब्रेकफस्ट, लंच और डिनर भी उसी तरह से करना होगा, जैसा हम करते आ रहे हैं। हां, उस डायट में कार्ब्स और फैट की मात्रा कम करनी है या नहीं, इन सभी बातों को देखना होगा।

जरूरी ऐप
MyFitnessPal
उपलब्ध: iOS और एंड्रॉयड
खासियत: किस खाने में कितनी कैलरी होती है उसकी जानकारी, पैक्ड फूड के बारकोड को स्केन करने की क्षमता और कदमों को गिनने की क्षमता भी है। इस तरह यह पेट और वेट कम करने की इच्छा रखने वाले शख्स की मदद करता है।

Lose it!
उपलब्ध: iOS और एंड्रॉयड
खासियत: अगर किसी के दिमाग में वजन कम करने का लक्ष्य है तो यह उसमें बहुत मदद करता है। ऐप इसमें शख्स का हर दिन की कैलरी खपत को बताता है। यह हर दिन की एक्सरसाइज और फिजिकल ऐक्टिविटीज के बारे में भी बताता है।

WW (Weight Watchers)
उपलब्ध: iOS और एंड्रॉयड
खासियत: इस ऐप की खासियत है कि इसमें सैकड़ों हेल्दी व्यंजनों को तैयार करने के बारे में बताया गया है। यह ऐसी कम्यूनिटी से भी लोगों को जोड़ता है जो पेट कम करना चाहते हैं। यह बताता है कि क्या खाना है और फिजिकल ऐक्टिविटी का भी ध्यान रखता है।

एक्सपर्ट्स पैनल

डॉ. श्रुति अग्रवाल, गाइनकॉलजिस्ट
बिस्वरूप रॉय चौधरी, न्यूट्रिशनिस्ट
रेखा शर्मा, पूर्व, चीफ डाइटिशन, एम्स
नीलांजना सिंह, सीनियर डायट एक्सपर्ट
सुरक्षित गोस्वामी, योग गुरु
अनु गुप्ता, कथक डांसर
रंजन घोष, एसआरएम, गोल्ड्स जिम

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