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कोरोना फिर क्‍यों आया, चीन में इतनी तबाही क्‍यों? क्‍या हमें डरने की जरूरत है? एक्‍सपर्ट्स ने दूर की हर कन्‍फ्यूजन

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कोरोना जाएगा नहीं, यह हमारे आसपास है और आगे भी रहेगा, लेकिन घबराना नहीं है। वैसे भी जब हमने कोरोना के डेल्टा वेरियंट की भयानक लहर झेली है तो ओमीक्रोन वेरियंट की चौथी जेनरेशन के इस वंशज BF.7 की क्या बिसात। हां, अलर्ट रहने की जरूरत है। एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

कोरोना वायरस क्या है? यह फिर से क्यों आ गया? यह कब तक आता रहेगा?

कोई भी वायरस दो चीजों न्यूक्लिक एसिड (DNA/RNA) और प्रोटीन से बनता है। कोरोना के लगभग सभी वेरियंट्स में प्रोटीन में स्पाइक जैसी संरचना मौजूद होती है। इसी की सहायता से यह गले या फिर फेफड़ों से चिपकता है। अभी कोरोना के जिस वेरियंट की चर्चा हो रही है, वह ओमिक्रॉन से ही म्यूटेशन यानी बदलाव करता हुआ निकला है। ओमिक्रॉन से कई वेरियंट्स निकले हैं: BA.1, BA.2, BA.5 आदि। इसी का अगला वेरियंट आया है BA.5.2.1.7, इसी को लोग शॉर्ट में BF.7 कह रहे हैं।

वायरस को लिविंग (जीवित) और नॉनलिविंग (मृत) को जोड़ने वाली कड़ी कहते हैं। जब यह किसी जीवित कोशिका में पहुंचता है तो अपनी जनसंख्या बढ़ाना शुरू कर देता है और अपना रूप बदलने का काम यानी म्यूटेशन कर लेता है। वहीं जब यह हवा में होता है तो यह ऐसा कुछ भी नहीं कर पाता जो इसका नॉनलिविंग यानी मृत गुण को दर्शाता है। चूंकि यह बार-बार अपना रूप बदल लेता है, इसलिए इसे पूरी तरह खत्म करना मुश्किल है। लेकिन जैसे-जैसे शरीर में इसके प्रति इम्यूनिटी विकसित होती जाती है, इसकी मारक क्षमता भी क्षीण होती जाती है। वायरस के रूप बदलने का गुण सिर्फ कोरोना में नहीं है। अमूमन यह सभी वायरसों का गुण होता है। पहले फ्लू भी ऐसा ही था, लेकिन अब इतना परेशान नहीं करता। फिर भी वह हर साल अपना रूप बदलकर आ जाता है और डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ आदि को हर साल फ्लू के लिए वैक्सीन लेनी पड़ती है।

क्या हमें चीन, जापान, कोरिया और अमेरिका में आई कोरोना की लहर से डरने की जरूरत है?

डरकर परेशानियों का सामना नहीं किया जाता। अल्फा, डेल्टा, ओमिक्रॉन के बाद सीरो सर्वे में यह बात सामने आई है कि 95 फीसदी से ज्यादा भारतीयों में नेचरल इम्यूनिटी आ चुकी है यानी 95 फीसदी लोगों को पहले कोरोना हो चुका है। वहीं 97 फीसदी से ज्यादा लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक डोज और 90 फीसदी से ज्यादा लोगों को दो डोज लग चुकी हैं। चूंकि यह भी ओमिक्रॉन ग्रुप का ही वायरस है, इसलिए इसके खिलाफ हमारे शरीर में ऐंटिबॉडी पहले से मौजूद हैं। दरअसल, जब भी किसी को नेचरल इम्यूनिटी मिलती है तो वह 2 तरीके से काम करती है। एक तरह की ऐंटिबॉडी जो खून की जांच में आती है। दूसरी वह जिसे शरीर का इम्यून सिस्टम याद कर लेता है।

ऐसे में अगर खून में ऐंटिबॉडी कम भी हो जाए तो शरीर की याद रखने वाली इम्यूनिटी वायरस के शरीर में दोबारा प्रवेश पर सक्रिय हो जाती है और उस वायरस को मार देती है। कहने का मतलब यह कि हमारी नेचरल इम्यूनिटी और वैक्सीन की इम्यूनिटी किसी वायरस को शरीर में पहुंचने से तो नहीं रोक सकती, लेकिन अगर कोई पहुंच जाए तो उसके खिलाफ शरीर में मौजूद ऐंटिबॉडी उसे हरा जरूर देंगी। परेशानी तब तक ही होती है कि ऐंटिबॉडी उस वायरस को हराने में कितना वक्त लगाती है। शरीर जितनी जल्दी वायरस को हराएगा, उसे उतनी ही कम परेशानी होगी। मसलन: बुखार, गले में खराश आदि। चूंकि BF.7 का पहला केस भारत में सितंबर में ही आ गया था, पर ज्यादा परेशान कर नहीं पाया। वैसे भी भारत में कोरोना के हर दिन 150 से 200 मामले ही सामने आ रहे हैं।

  • डेल्टा से इंफेक्शन फैलाने के मामले में यह 3 गुना तेज है, लेकिन मारक क्षमता इसकी बहुत-ही कम है।
  • डेल्टा की तुलना में BF.7 गले में ही अपना कुनबा 70 फीसदी तक बढ़ा लेता है यानी फेफड़ों तक पहुंचते हुए यह कमजोर हो जाता है। इसलिए ज्यादातर मामलों में सांस से जुड़ी परेशानी 10 फीसदी तक ही रहने की संभावना है।
यह चीन में इतनी बर्बादी कैसे कर रहा है?
चीन में क्या चल रहा है, यह ज्यादातर सोशल मीडिया पर शेयर की हुई चीजों से ही पता चलता हैं। अगर वहां मौत हो रही है तो इसकी वजह चीन की सरकार की जीरो कोविड पॉलिसी है। इसमें कोरोना को फैलने से रोकने के लिए सख्त कदम उठाए गए। इस वजह से चीन के लोगों में नेचरल इम्यूनिटी बहुत कम बनी। वहीं चीन की वैक्सीन भी उतनी कारगर नहीं मानी जा रही। एक्सपर्ट्स यह भी मानते हैं कि अगर नेचरल इम्यूनिटी पहले मिल जाए और उसके बाद वैक्सीनेशन हो तो यह शरीर में बेहतर हाइब्रीड इम्यूनिटी बनाती है। जैसा कि भारत के मामले में हुआ है। वहीं चीन में इसके उल्टा हुआ है। जीरो कोविड पॉलिसी की वजह से वहां नेचरल इम्यूनिटी बनी नहीं। ज्यादातर लोगों को पहले वैक्सीन दी गई है, इसके बाद लोगों को कोरोना हो रहा है। इसलिए यह ज्यादा घातक लग रहा है। इनके अलावा एक तथ्य और भी मायने रखता है:

  • वायरस इंफेक्शन के मामले में R वैल्यू की बात सामने आती है। R वैल्यू वायरस के इंफेक्शन फैलाने की क्षमता को कहते हैं। डेल्टा वेरियंट की R वैल्यू 5 के करीब थी यानी एक डेल्टा वायरस से संक्रमित शख्स अपने संपर्क में आने वाले 6 लोग को संक्रमित कर सकता था। BF.7 की R वैल्यू इस मामले में काफी ज्यादा है। यह 10 से 18 (औसत 15) लोगों को संक्रमित कर सकता है। इसीलिए चीन में एक दिन में लाखों-लाख लोग संक्रमित हो रहे हैं।

क्या बूस्टर डोज़ की जरूरत है?
जब तीसरी डोज की शुरुआत हुई थी तो इसे प्रिकॉशनरी डोज कहा गया था यानी जिसे इसकी जरूरत हो, उसे ही लेनी चाहिए। अब तीसरी डोज के लिए नेजल वैक्सीन का ऑप्शन भी आ गया है। इसमें सूई लगाने की जरूरत नहीं होती। इसे नाक के माध्यम से दिया जा रहा है। बूस्टर डोज़ ऐसे लोगों को लेना ज्यादा फायदेमंद रहेगा:
  1. 60 साल से ज्यादा उम्र वाले।
  2. अगर 60 साल से कम उम्र के हैं, लेकिन शुगर, किडनी, लिवर, लंग्स, हार्ट, कैंसर आदि की बीमारी हो। अगर ऐसे लोगों ने तीसरी डोज नहीं ली है तो वे तीसरी डोज़ लगवा सकते हैं।
  3. पुलिस, प्रेस यानी पब्लिक कॉन्टेक्ट वाले लोग भी चाहें तो तीसरी डोज़ लगवा लें। इनके अलावा अन्य लोग भी चाहें तो तीसरी डोज़ लगवा सकते हैं।
जिन लोगों को तीसरी डोज़ लग चुकी है, क्या वे चौथी डोज़ लगवा सकते हैं?
अभी इसकी जरूरत नहीं है। वैसे भी नेचरल इम्यूनिटी और तीन डोज़ के बाद हाइब्रिड (नेचरल और वैक्सीन, दोनों से मिलकर बनी हुई इम्यूनिटी) इम्यूनिटी विकसित हो जाती है जो बहुत-ही असरदार है। इसलिए चौथी डोज़ की जरूरत नहीं है। वैसे भी पहले सभी लोगों को तीसरी यानी प्रिकॉशनरी डोज़ लग जाए तो बेहतर है।


अगर बुखार हो तो यह कैसे मालूम करें कि वह कोरोना का है या किसी और वजह से?
बुखार है तो एक-दो दिन इंतजार करें। यह भी देख लें कि दूसरे लक्षण उभर नहीं रहे। जैसे: लूज मोशन आदि। अगर हो तो दो दिनों के बाद टेस्ट करा लें। साथ ही घर में भी मास्क लगाकर रह सकते हैं। अगर बुखार एक-दो दिन में ही उतर जाता है तो ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं। वैसे भी BF.7 के लक्षण दूसरे दिन से उभर जाते हैं और 4 से 5 दिनों में चले भी जाते हैं।

अगर कोई बिलकुल ही नया वायरस आ जाए तब?
अगर वायरस कोविड फैमिली का नहीं है, बिलकुल ही नया है तो वह नई बीमारी पैदा करेगा। ऐसे में उसके लिए नए इलाज या वैक्सीन की जरूरत होगी। इसलिए इस बारे में अभी से सोचना कि जब कोई बिलकुल ही नया वायरस आ जाएगा तो क्या होगा, यह गलत होगा। हां, कोरोना के नए वेरियंट्स अभी आते रहेंगे जब तक कि दुनियाभर में ज्यादातर लोगों को इसके खिलाफ इम्यूनिटी नहीं मिल जाती। दरअसल, शरीर में अगर उस वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी होगी तो वायरस को अपना रूप बदलने का मौका मिल जाता है जिसे हम म्यूटेशन कहते हैं। शरीर में इम्यूनिटी यानी ऐंटिबॉडी हो तो वायरस को वहीं मार दिया जाता है।

मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और सेनिटाइजेशन फिर से शुरू करना चाहिए?
ये तीनों चीज़ें जारी रखने के लिए कोरोना के नए वेरियंट्स का इंतजार नहीं करना चाहिए। मास्क को कोरोना से बचने का ही टूल नहीं समझना चाहिए। यह धूल से भी बचाता है। ऐसे लोग जिन्हें धूल से एलर्जी हो, अस्थमा की परेशानी हो, वे मास्क जरूर लगाएं। जहां तक बात है सेनिटाइजेशन की तो सेनिटाइजर के बजाय साबुन से हाथ धोने का तवज्जो देनी चाहिए। दरअसल, साबुन से हाथ धोने से हाथों के माध्यम से आने वाला सामान्य इंफेक्शन भी कम हो जाता है। सेनिटाइजर के ज्यादा इस्तेमाल से हाथों की स्किन पर बुरा असर पड़ता है। सोशल डिस्टेंसिंग रखने से दूसरी बीमारियां भी दूर रहती हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अपने सामान्य काम करना बंद कर दें।


क्या बच्चों के लिए भी यह खतरे की घंटी है?
बच्चों के मामले में स्थिति काफी अलग है। ओमिक्रॉन के वक्त भी ज्यादातर बच्चों में बिना लक्षण वाला इंफेक्शन हुआ था। अब तो उनके अंदर वैसे भी नेचरल यानी हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो चुकी है। इसलिए बच्चों के लिए खतरा न के बराबर है। इसकी वजह है कि बच्चों में ऐस रिसेप्टर (सांस लेने के दौरान वायरस अमूमन यहीं चिपकता है) विकसित नहीं होता। दूसरा यह कि बच्चों में इम्यूनिटी विकसित होना बहुत आसान होता है। बच्चों में थाइसम ग्लैंड होता है। यह ग्लैंड सीने में मौजूद रहता है और जन्म से 10 साल की उम्र के बाद इसकी ऐक्टिविटी ज्यादा रहती है और 15 साल होते-होते निष्क्रिय हो जाती है। इसकी वजह से बच्चों में ऐंटिबॉडी का उत्पादन जल्दी और सही तरीके से होता है। फिर भी जंक फूड (पिज्जा, बर्गर, नूडल्स, पैक्ड फूड आइटम्स) आदि का सेवन कम ही करना चाहिए।

ऐसा क्या करें कि कोरोना के नए वेरियंट्स आने पर भी खतरा हमें कम से कम हो?
कोरोना में हजारों म्यूटेशन हो चुके हैं यानी इसके हजारों वेरियंट्स भी आ चुके हैं। ज्यादातर तो म्यूटेशन के साथ ही खत्म हो जाते हैं। कुछ ही अल्फा, डेल्टा, ओमिक्रॉन और अब BF.7 जैसे होते हैं जो लंबे समय तक टिक पाते हैं और बीमारी फैलाते हैं। आगे सुरक्षित रहें इसके लिए जरूरी है कि शरीर को चुस्त और दुरुस्त रखें।
  1. रात को कम से कम 6 से 8 घंटे की गहरी नींद लें।
  2. सही खानपान यानी सलाद, फल जैसी चीजों की मात्रा ज्यादा और तेल-मसाला, पैक्ड फूड आइटम्स, जंक फूड की मात्रा बहुत कम हो। विटामिन-डी समेत तमाम विटामिन की मात्रा शरीर में सही हो।
  3. बीमारी को काबू में रखें, समय पर दवा लें।
एक्सपर्ट पैनल
डॉ. यतीश अग्रवाल, डीन मेडिकल, IP यूनिवर्सिटी
डॉ. संजय राय, प्रेसिडेंट, इंडियन पब्लिक हेल्थ एसो., प्रफेसर AIIMS
डॉ. चंद्रकांत लहारिया वरिष्ठ चिकित्सक और महामारी रोग विशेषज्ञ
डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, धर्मशिला हॉस्पिटल
डॉ. अंशुल वार्ष्णेय सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन




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