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दवा लेते समय नहीं होगी गलती, आपके बड़े काम आएगी यह मेडिसिन गाइड

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दवा लेते समय हम लोग आमतौर पर कई गलतियां कर बैठते हैं। इन गलतियों से किस तरह बचें, इस बारे में देश के बेहतरीन डॉक्टरों से जानकारी लेकर बता रहे हैं लोकेश के. भारती

100 बात की 7 बात
  1. कुछ दवाओं को सुबह में खाली पेट लेना जरूरी होता है। इन्हें सुबह ही लेना चाहिए। किसी दिन अगर भूल जाएं तो उसे दिन में जब भी याद आए ले लें। इससे दवा भले ही 100 फीसदी काम न करे, लेकिन 70 से 80 तक काम कर जाती है।
  2. थाइरॉइड की दवाओं के साथ गैस की दवाएं भी लेनी हो तो पहले थाइरॉइड की दवाएं लें, फिर 30 मिनट के बाद ही गैस की दवा लें।
  3. आंख, कान में दी जाने वाली लिक्विड दवाओं का उनके खुलने के बाद ज्यादा से ज्यादा 30 दिनों तक ही उपयोग करें। इसके बाद हटा दें।
  4. अगर किसी को न्यूरो की दवा चल रही हो, चाहे वह मिर्गी की हो या कुछ और। दवा को सही समय पर ही लेना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा 20 से 30 मिनट की देरी कर सकते हैं। इन दवाओं को समय पर न लेने से शरीर में दवा की कमी होने लगती है, दोबारा दौरे की आशंका बनने लगती है।
  5. विटामिन-डी के सप्लिमेंट्स अमूमन दूध के साथ लेने के लिए कहा जाता है क्योंकि यह विटामिन वसा में घुलनशील होते हैं। इससे शरीर इन्हें आसानी से जज्ब कर पाता है। जो दूध नहीं पीते, वे पानी के साथ ले सकते हैं।
  6. ज्यादातर दवाएं लिवर में पहुंचने के बाद ही सक्रिय होती हैं। इसलिए अगर किसी का लिवर खराब है या फैटी लिवर की गंभीर परेशानी है तो डॉक्टर कई प्रकार की दवाएं उन्हें नहीं लिखते।
  7. जब परेशानी क्रोनिक हो यानी लंबे समय से दवा चल रही हो तो लोग कई बार भूल जाते हैं। जैसे: शुगर, बीपी, किडनी की परेशानी आदि में। ऐसे में Pill Case या Medicine Organiser आदि नाम से ऐसे बॉक्स मिलते हैं जिनमें एक हफ्ते या महीनेभर की दवा डोज के हिसाब से रख दी जाती है। इन बॉक्स की कीमत 60 रुपये से शुरू हो जाती है। ये ऑनलाइन और ऑफलाइन इन्हीं नामों से खोजने पर मिल जाएंगे।
डॉक्टर के पर्चे को ऐसे समझें
ज्यादातर डॉक्टर दवाओं की डोज लिखते समय शॉर्टकट का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि मरीज को यह चिंता कम रहती है कि प्रेस्क्रिप्शन की लिखावट समझ में आएगी या नहीं, लेकिन इस बात की परवाह जरूर होती है कि केमिस्ट इसे सही समझ पाएगा या नहीं। अगर आपको भी डॉक्टर का पर्चा ठीक से समझ नहीं आता तो कुछ शॉर्टकट जानना आपके लिए अच्छा होगा।


  • Tab टैबलेट
  • Cap कैप्सूल
  • Gtt ड्रॉप्स
  • PO मुंह से
  • Amp इंजेक्शन रूप में
  • Ml मिली लीटर
  • Mg मिली ग्राम
  • Gm ग्राम
  • AC खाने से पहले
  • PC खाने के बाद
  • OD दिन में एक बार
  • BD/BDS दिन में दो बार
  • TD/TDS दिन में तीन बार
  • QD/QDS दिन में चार बार
  • SOS जब जरूरत लगे
केमिस्ट की भूमिका
कुछ दिन पहले मैं एक केमिस्ट की दुकान पर गया था। केमिस्ट से बात कर ही रहा था कि वहां पर एक सज्जन आए। उन्होंने केमिस्ट को बताया कि उनका बेटा जो 4 साल का है उसे सर्दी, बुखार और उल्टी हो रही है। कोई दवा दे दो। केमिस्ट भी उस शख्स की पुकार सुनकर 1 मिनट में ही एमबीबीएस डिग्रीधारी डॉक्टर बन गया और फटाफट अपने एक साथी को 4-5 दवाएं निकालने के लिए कह दिया। यह सब सुनकर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उस शख्स से कहा कि अगर आपको बुरा न लगे तो एक बात पूछूं। उन्होंने कहा, पूछिए। मैंने कहा कि आप इस केमिस्ट को डॉक्टर क्यों समझ रहे हैं? यह तो सिर्फ दुकानदार है। आपके बच्चे की उम्र कितनी है, उसका वजन कितना है, क्या उसे किसी दवा से एलर्जी है, क्या आपने पहले कोई दवा दी है, क्या आप कोरोना को भूल गए, क्या उसे सारी वैक्सीन लग चुकी हैं? ऐसी बातों को जाने बिना केमिस्ट आपके बच्चे के लिए दवा दे रहा है। दवा कितनी मात्रा में दी जाएगी, यह बात केमिस्ट नहीं बता सकता। आपको जो दवा बताई गई है, इसमें एंटिबायोटिक भी शामिल है, जिसके साथ डॉक्टर कई बार प्रोबायोटिक भी लिखते हैं। क्या यह खतरे वाली बात नहीं है? आपको पहले डॉक्टर से बच्चे को दिखाना चाहिए। डॉक्टर की सलाह के बाद ही दवा लेनी चाहिए। मेरी राय उन्हें पसंद आई और वह वहां से निकल गए और बता कर गए कि आप ठीक कह रहे हैं। मैं भी अपनी दवा लेकर निकल गया।

क्या फार्मासिस्ट लिख सकते हैं दवा...
  • फार्मासिस्ट बनने के लिए कम से कम D.Pharm. (डिप्लोमा इन फार्मा) का सर्टिफिकेट चाहिए। B.Pharm. और M.Pharm. भी हो सकते हैं।
  • इसके अलावा Pharm.D (D.Pharm. नहीं) के सर्टिफिकेट के लिए 12वीं के बाद 6 साल की पढ़ाई करनी होती है।
  • ध्यान देने वाली बात यह है कि केमिस्ट की दुकान खोलने के लिए भी फार्मा का सर्टिफिकेट होना चाहिए, लेकिन किसी भी तरह की फार्मा का सर्टिफिकेट वाला शख्स दवा नहीं लिख सकता।
  • अहम बात यह है कि ज्यादातर केमिस्ट की दुकानों पर डिप्लोमा सर्टिफिकेट वाले भी मौजूद नहीं होते। सेल्समैन ही दवा बता देते हैं। सीधे कहें तो दवा लिखने का अधिकार सिर्फ डॉक्टर को है।

इन दवाओं को डॉक्टर के पर्चे के बिना न लें
स्केड्यूल X की दवाएं: इनमें नींद की दवाएं आती हैं। इन दवाओं को कोई भी केमिस्ट बिना डॉक्टर के पर्चे के नहीं दे सकता। इतना ही नहीं, उसे डॉक्टर की उस पर्ची की एक कॉपी भी रखनी होती है और साथ में दवाओं का पूरा हिसाब भी।
स्केड्यूल H की दवाएं: इनमें कुछ रिस्क वाली दवाएं शामिल होती हैं, मसलन एलर्जी की दवाएं। ये दवाएं भी बिना डॉक्टर के पर्चे के नहीं देनी चाहिए, लेकिन ज्यादातर केमिस्ट की शॉप पर बिना पर्चे के दे दी जाती हैं।

आपके खाने और दवा का संबंध
जब कोई डॉक्टर कोई दवा लिखता है तो अमूमन उसके साथ हिदायत भी दी जाती है कि किस दवा को कब और किस तरह खाना है। इसमें कहा जाता है कि खाने से पहले, खाने के बीच में या फिर खाने के बाद लेना है। दरअसल, इसकी वजह यह है कि हमारे पेट की पीएच वैल्यू (कितना एसिडिक होगा) खाली पेट अलग और खाने के बाद अलग होती है। खाने में क्या खा रहे हैं, इस पर भी निर्भर करता है। साथ ही, हर दवा एक खास पीएच वैल्यू पर बेहतर काम करती है। इसलिए डॉक्टर इस तरह की हिदायत देते हैं। जानें, कौन-सी दवाएं कब खानी चाहिए:

खाने से पहले (खाली पेट)
थाइरॉइड की दवाएं: इस दवा को ब्रेकफस्ट, चाय यानी किसी भी चीज को लेने से 30-45 मिनट पहले लेना चाहिए। अगर कोई शख्स थाइरॉइड की दवाएं खाली पेट लेना भूल जाता है तो भी उसे जब याद आए, दवा ले लेनी चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि खाली पेट लेना भूल गए तो उस दिन लेनी ही नहीं है।
गैस की दवाएं: अगर कोई शख्स थाइरॉइड की दवाएं लेता है तो उसे गैस की दवाएं इसके 30 मिनट बाद ही लेनी चाहिए और ब्रेकफस्ट से 15 से 30 मिनट पहले।
शुगर की दवाएं: इसे अमूमन ब्रेकफस्ट और डिनर से 15 से 20 मिनट पहले या फिर इतने ही समय बाद लेने के लिए कहा जाता है। अगर कोई शख्स इंसुलिन ले रहा है तो यह अंतराल 5 से 10 मिनट का हो सकता है। शुगर की दवा लेने के बाद खाने को भूलना नहीं चाहिए। साथ ही, खाने के बाद शुगर की दवाएं उन लोगों को लेने के लिए कहा जाता है जिनकी शुगर लेवल फास्टिंग में तो काबू में रहती है, ब्रेकफस्ट या डिनर के बाद बहुत बढ़ जाती है।



खाने के बीच लेनी हो दवा
इसमें अमूमन दो तरह की परेशानियों पैनक्रिआस और किडनी में दवाएं लेनी पड़ती हैं। डॉक्टर यही हिदायत देते हैं कि एक से दो बाइट के बाद इन दवाओं को लेना है। इनमें कुछ दवाओं को चबाकर लेना होता है, न कि निगलकर। इस तरह की बात अक्सर डॉक्टर बता देते हैं। अगर डॉक्टरों की ऐसी हिदायत हो तो उन्हें जरूर मानें।

खाने के बाद लेनी हो दवा
यहां खाने से मतलब ब्रेकफस्ट, लंच या डिनर कुछ भी हो सकता है या फिर तीनों। इसमें शुगर समेत तमाम दवाएं शामिल होती हैं।
एंटिबायोटिक और पेनिकलर: इन्हें हमेशा खाने के 15 से 20 मिनट बाद ही लेना चाहिए। इन दवाओं को कभी भी भूखे पेट यानी ब्रेकफस्ट से पहले लेने के लिए नहीं कहा जाता है। जब भी इन दवाओं को लें तो एक गिलास पानी पी लें। दरअसल, इन दवाओं को लेने पर पेट में एसिड ज्यादा मात्रा में निकलता है। इन दवाओं के लेने के फौरन बाद यानी 20 मिनट तक चाय या कॉफी न पिएं तो बेहतर है क्योंकि चाय या कॉफी की वजह से पेट में एसिड की मात्रा बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। अगर जरूरी न हो तो पेनकिलर और ऐंटिबायोटिक का सेवन किसी भी हाल में नहीं करना चाहिए।

एक साथ लेनी हो दवा
एक साथ एक से ज्यादा गोलियों को निगलने में परेशानी हो सकती है। गले में फंस सकती हैं। इसलिए अगर एक साथ 1 से ज्यादा दवाएं लेनी हो और डॉक्टर ने फर्क रखने के लिए नहीं कहा है तो हर 2 मिनट पर एक दवा ले सकते हैं। अगर किडनी पेशंट हैं और डॉक्टर ने पानी की मात्रा हर दिन 1 से डेढ़ लीटर तय की हुई है तो इसमें दवाओं के साथ लिया जाने वाला पानी भी शामिल होता है, इस बात का भी ख्याल रखें।

दो दवाओं में अंतराल
जब कोई डॉक्टर दिनभर में किसी दवा को दो बार लेने को कहते हैं तो इसका मतलब है कि 10 से 12 घंटे का फर्क होना चाहिए। यानी अगर कोई दवा सुबह 9 से 10 बजे ली है तो उसकी दूसरी डोज शाम में 8 से 10 के बीच लेनी चाहिए। वहीं अगर दिन में 3 बार लेने के लिए कहा गया है तो यह 8 घंटे का फर्क होना चाहिए, लेकिन सुबह 9 बजे लेने के बाद दूसरी डोज शाम को 5 बजे और तीसरी डोज रात को 1 बजे लेनी होगी जो परेशान करने वाली होगी क्योंकि रात में बीच में उठकर नींद खराब करनी होगी। इसलिए यह फर्क 6 घंटे का रखें और दवा भी सुबह 8 बजे तक पहली डोज ले लें। दूसरी डोज दोपहर 2 से 3 बजे तक और तीसरी डोज रात 8 से 9 बजे के बीच ले सकते हैं।

प्रोबायोटिक कितना जरूरी
ऐंटिबायोटिक लेने के बाद हमारी आंतों में मौजूद गुड बैक्टीरिया कम होने लगते हैं। हमारी पाचन क्षमता कमजोर होती है। लूज मोशंस लग सकते हैं। अमूमन 4 से 5 दिनों तक एंटिबायोटिक की सामान्य डोज यानी दिन में एक बार लेने से ज्यादा बुरा असर नहीं पड़ता। जब दिन में 2 से 3 बार ऐंटिबायोटिक लेनी हो तो इस तरह की परेशानी हो सकती है। इसलिए कुछ डॉक्टर प्रोबायोटिक भी लिखते हैं, लेकिन आजकल ज्यादातर नहीं लिखते। इसकी एक बड़ी वजह दवाओं की अधिकता बताते हैं। खासकर बुजुर्गों के मामले में दवाओं को याद रखने में ज्यादा परेशानी होती है। जब ऐंटिबायोटिक ले रहें हों तो डॉक्टर से पूछकर दही, छाछ, योगर्ट ले सकते हैं। खांसी या सर्दी है तो खट्टा और फ्रिज आदि का ठंडा दही, योगर्ट न लें।

दवाओं के साथ लिक्विड का जोड़
पानी की मात्रा अपनी जरूरत के हिसाब से ले सकते हैं। हां कुछ दवाओं को पानी में मिलाकर लेना चाहिए, ऐसी हिदायत दवाओं की पैकिंग पर लिखी होती है। इस बात को डॉक्टर भी बता देते हैं।

पानी कितना गरम: सामान्य दवाओं को सामान्य पानी या गर्मियों में हल्का ठंडा पानी दवा के साथ ले सकते हैं। कुछ दवाओं को गरम पानी या गुनगुने पानी में मिलाना होता है। इसकी हिदायत भी दी जाती है।

दवा लेने के बाद कितना पानी
अगर खाने के बीच में या खाने के फौरन बाद दवा लेनी पड़े तो उतना पानी ही काफी होगा, जितना गले से नीचे उतरने के लिए जरूरी हो यानी 2 से 3 घूंट। वजह यह होती है कि जब हम खाने के बीच में या फौरन बाद आधा या एक गिलास या इससे ज्यादा पानी पी लेते हैं तो खाने को पचाने के लिए जो पाचक रस निकलता है, पानी उसके असर को कम कर देता है। भोजन का पचना कुछ मुश्किल हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि खाने और पानी में 30 से 45 मिनट का फर्क जरूर रखें। साथ ही, अगर कोई खाने के 30 मिनट बाद या खाने से 30 मिनट पहले दवा के साथ पानी ले रहा है तो आराम से एक या दो गिलास पानी सकता है। ऐंटिबायोटिक आदि के साथ एक गिलास पानी पी लें।


इनहेलर उपयोग करते हैं तो जरूर पढ़ें
  1. अस्थमा यानी दमा के मरीजों को कुछ दवाएं भूखे पेट लेनी होती हैं। वहीं जब इनहेलर का उपयोग करना हो तो इन स्टेप्स को अपनाएं...
  2. कई इनहेलर में हर उपयोग के बाद दवा की मात्रा कितनी बची है, यह दिखाती है। जब यह शून्य पर आ जाए तो दवा अमूमन खत्म हो जाती है। इसके बाद रिफिल करना जरूरी होता है। फिर हर उपयोग के बाद पहले इनहेलर को 4 से 5 बार शेक करें।
  3. अगर इनहेलर का उपयोग एक हफ्ते तक नहीं किया है कि इनहेलर का माउथ साफ हो। अगर नहीं हो तो उसे किसी साफ सूखे कपड़े से साफ कर दें और एक बार हवा में स्प्रे कर दें।
  4. इसके बाद सीधे खड़े रहें या बैठे भी हैं तो सीधे होकर बैठें।
  5. फिर इनहेलर को सीधा रखते हुए अपने हाथ का अंगूठा इनहेलर के निचले हिस्से में और इनहेलर के ऊपरी हिस्से यानी कनस्तर या बटन पर तर्जनी या मध्यमा या फिर दोनों उंगलियों को रख दें।
  6. इसके बाद इनहेलर के बटन को दबाने से पहले सांस को बाहर छोड़ दें।
  7. मुंह में इनहेलर रखने के बाद दांतों से दबा लें, काटें नहीं और अपने होठों से इनहेलर को जकड़ लें। इसके बटन दबाएं तो बटन दबाने के साथ ही सांस को अंदर की ओर खींचे और 8 से 10 सेकंड या जितनी देर होल्ड कर सकते हैं, करें ताकि इनहेलर में मौजूद दवा सांस की नली से होते हुए फेफड़ों तक आसानी से और ज्यादा मात्रा में पहुंचे। इससे दवा की पूरी उपयोगिता सुनिश्चित होगी। फिर सांस छोड़ दें।
  • ज्यादा जानकारी के लिए यू-ट्यूब पर जाएं और How to correctly use an asthma inhaler टाइप करें। आपको अस्थमा इस्तेमाल करने के सही तरीकों से जुड़े कई विडियो मिल जाएंगे।

आंख-कान में दवा लेते समय क्या करें?
कभी भी बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी दवा आंख और कान में न डालें। कई लोग घर में रखी पुरानी दवा आंखों में खुजली या लाली आने पर, कान में खुजली या दर्द होने पर डाल लेते हैं। यह गलत है। इनमें स्टेरॉइड हो सकता है। इन चंद बूंदों की वजह से कॉर्निया में सफेदी आ जाती है। इससे कॉर्निया की पारदर्शिता कम हो जाती है यानी दिखने में परेशानी भी हो सकती है। इसी तरह कान और नाक में भी परेशानी हो सकती है।



आंख में दवा डालने का तरीका
  1. अगर घर में कोई दूसरा शख्स है तो उसे दवा डलवाने के लिए बुला लें। अगर घर में अकेले हों तो खुद से ही डाल सकते हैं। वैसे बेहतर होगा कि दवाई कोई दूसरा शख्स डाल दे।
  2. बैठकर या खड़े होकर भी ले सकते हैं, लेकिन बेहतर है पीठ के बल लेटकर आई ड्रॉप लेना।
  3. कई लोग आंखों के बीच में दवा डलवाते हैं। इससे दवा कॉर्निया तक पूरा असर नहीं डाल पाती। बेहतर है कि ड्रॉप नाक के बगल वाले आंखों के कॉर्नर में डालें।
  4. आई ड्रॉप की एक बूंद ही काफी होती है। इसलिए जब भी आंखों में ड्रॉप डालें, एक बूंद ही डालें। इससे ज्यादा डालने पर दवा की बर्बादी ही होती है।
  5. जब इस तरह की दवा ले लेते हैं तो आंखों को 3-4 बार पलक झपकाएं (ब्लिंक करें), न कि आंखों को बंद कर लें।
नोट: आंखों को बंद करने की जरूरत रेटिना वाली समस्या जिसमें आंखों में पुतली को फैलाकर जांच की जाती है, दवा उसमें ही पड़ती है।

कान में दवा डालते समय
1. इसे भी लेटकर लेना बेहतर है। अगर लेटने की सुविधा न हो तो बैठकर या फिर खड़े होकर ले लें।
2. दवा लेने से पहले जिस कान में दवा लेनी है, उसे ऊपर की तरफ उठा लें। जिस कान में दवा ले चुके हैं 30 से 45 सेकंड उसे ऊपर की ओर रखें। इसके बाद दूसरे कान में दवा डलवाएं।

दवाएं स्टोर करते समय सावधानियां
दवाएं हमें टैब्लेट, सिरप, इंजेक्शन, ड्रॉप आदि रूपों में मिलती हैं। बीमारी के प्रकार और मरीज की स्थिति के आधार पर दवा का रूप दिया जाता है। जब हम टैबलेट लेते हैं तो वह पूरे पत्ते (स्ट्रिप) में 10, 15 या इससे ज्यादा गोली के सेट में होती है। हम एक बार में एक गोली निकालते हैं और ले लेते हैं। इससे दूसरी टैब्लेट के रैपर को खोलने की जरूरत नहीं होती। लेकिन जब हम सिरप या आई ड्रॉप आदि लेते हैं तो पूरी बोतल को खोलना पड़ता है यानी दवाओं का संपर्क हवा से हो जाता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जब दवाओं की पैकिंग होती है तो बहुत ज्यादा सावधानी बरती जाती है। इसमें तापमान से लेकर बाहरी हवा से संपर्क का भी अच्छी तरह से ध्यान रखा जाता है।
  • आंख-कान में दी जाने वाली लिक्विड दवाओं को खुलने के बाद उसका उपयोग 30 दिनों तक ही करनी चाहिए। जिस दिन से उपयोग करना शुरू करें, उसकी तारीख उस पर लिख दें ताकि 30 दिनों के बाद उसे हटा दें।

सही तापमान पर करें स्टोर
दवाओं को किस तरह स्टोर करना है, यह आमतौर पर पैकिंग पर लिखा होता है। ज्यादातर दवाओं को 30 डिग्री सिल्सियस से कम तापमान पर स्टोर करना सही रहता है। अमूमन इतना तापमान सर्दियों और गर्मियों दोनों मौसम में हमारे कमरे का होता है। अगर, गर्मियों में कमरे का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाए तो इसे फ्रीज में स्टोर कर सकते हैं। कुछ दवाओं जैसे: इंसुलिन या कुछ इंजेक्शन को फ्रिज में 5 से 10 डिग्री सिल्सियस पर रखना होता है।


गोली को पीसकर कर सकते हैं स्टोर?
किसी को दवा निगलने में परेशानी हो तो जिस समय दवा लेनी हो, उसी समय उसे तोड़कर या पीसकर ले सकते हैं। लेकिन पीसकर स्टोर करने से वह दवा हवा के संपर्क में आ जाती है। इससे उसकी क्षमता कम हो सकती है। उसी दिन कुछ देर में ही खा लेना चाहिए।

यह भी ध्यान रहे...
पैरासिटामॉल भी ज्यादा नहीं: चूंकि पैरासिटामॉल ओटीसी की दवा है, इसलिए लोग इसे अपनी सुविधानुसार उपयोग कर लेते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि बहुत ज्यादा जरूरी होने पर ही इसे लें। ज्यादा लेने से पेट में अल्सर और एसिडिटी की परेशानी भी हो सकती है।

ऐंटिबायोटिक का ज्यादा उपयोग: वैसे तो यह शरीर में इम्यूनिटी की मजबूती में मदद के लिए दी जाती है ताकि शरीर बीमारी से लड़ सके, लेकिन ज्यादा उपयोग से शरीर की इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है। फिर ऐंटिबायोटिक दवाओं का असर ही कम हो जाता है।

पेनकिलर्स: वैसे तो यह दर्द को दबाने में मदद करता है, लेकिन बहुतायत में उपयोग किडनी समेत तमाम अंगों पर बुरा असर डालता है।

डिप्रेशन में ली जाने वाली दवा: मोनामाइन ऑक्सिडेज इनहिबिटर ग्रुप की दवा लेने के साथ पनीर, मीट, सोया सॉस, बीयर और वाइन आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

खांसी को दबाने वाले सिरप: ये दवाएं खांसी आने की उत्तेजना को कम करते हैं। इसे सप्रेसेंट कहते हैं। खांसी की वजह पर असर करने वाली दवा बलगम बाहर निकालती है। इसे एक्सपेक्टरेंट कहते हैं। अगर किसी को सूखी खांसी है तो सप्रेसेंट का इस्तेमाल करें और अगर बलगम वाली खांसी है तो एक्सपेक्टरेंट का। गलत दवा का इस्तेमाल आपकी तकलीफें बढ़ा सकता है। आमतौर पर खांसी की दवाएं उतनी असरदार नहीं होतीं जितना विज्ञापनों में दावा किया जाता है। आपके लिए सही कफ सिरप का फैसला डॉक्टर ही कर सकता है।


आम गलतियां : बिना पूछे दवा बंद करना
जब कोई डॉक्टर दवा लिखते हैं तो उसे तय दिन तक लेने के लिए बताते हैं। साथ में यह भी बोलते हैं कि इतने दिनों के बाद फिर दिखाने के लिए जाना है। हम अमूमन ऐसा नहीं करते। जैसे ही फायदा दिखने लगता है ज्यादातर लोग अपनी सुविधानुसार दवा को बंद कर देते हैं या फिर उसकी मात्रा को कम कर देते हैं। अगर फायदा नहीं दिखता है तो कुछ लोग मात्रा को बढ़ा देते हैं। यह पूरी तरह गलत है। न हमें मात्रा कम या बंद करनी चाहिए और न बढ़ानी चाहिए। हर दवा की डोज तय होती है। मान लें किसी को कोई ऐंटिबायोटिक चल रही हो। यह कोर्स 5 दिनों के लिए है। उस शख्स को फायदा 3 दिन में ही हो जाता है और वह दवाई लेना बंद कर देता है। ऐसा करना उस शख्स के लिए नुकसानदायक होगा। अगर किसी बैक्टीरिया को पूरी तरह खत्म होने में 5 दिन तक ऐंटिबायोटिक दवा लेना जरूरी है तो वह सिर्फ 3 दिन तक दवाई देने से खत्म नहीं होगा। यह भी मुमकिन है कि वह शरीर में ही छुपकर बैठ जाए और कुछ दिनों के बाद वह फिर से सक्रिय होकर बीमार कर दे। वहीं, कई बार दवाओं में मौजूद कोई एक साल्ट फायदा नहीं पहुंचा रहा होता है तो डॉक्टर कोई ऐसी दवा लिखते हैं जिसमें दो-तीन तरह के साल्ट मौजूद होते हैं जो ज्यादा फायदा पहुंचाते हैं। इसलिए दवाओं की मात्रा को खुद से घटानी या बढ़ानी नहीं चाहिए। इससे बहुत नुकसान है।

डॉक्टर को न बताना
जब भी हम दो या तीन चिकित्सा पद्धतियों से एक साथ इलाज करा रहे हों तो हम इसकी जानकारी अपने डॉक्टरों यानी हर विधा के डॉक्टर्स को जरूर दें ताकि अगर कोई जरूरी बात हो, खानपान में कोई ध्यान रखने की जरूरत हो तो मरीज को इससे परेशानी न हो। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि अंग्रेजी दवाओं के साथ अगर होम्योपैथी और आयुर्वेद में से कोई एक या दोनों चल रहे हों तो सभी की दवाओं के बीच में 30 मिनट से ज्यादा का फर्क जरूर रखें ताकि सभी को शरीर सही तरीके से जज्ब कर सके।


एक्सपर्ट पैनल
  • डॉ. एस. के. सरीन, VC, इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलिएरी साइंसेज
  • डॉ. एस. सी. मनचंदा, एक्स हेड, कार्डियॉलजी डिपार्टमेंट, AIIMS
  • डॉ. रमेश गोयल, VC, दिल्ली फार्मा. साइसेंज एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी
  • डॉ. अरविंद लाल, एग्जिक्युटिव चेयरमैन, डॉ. लाल पैथ लैब्स
  • डॉ. राजकुमार, डायरेक्टर, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट
  • डॉ. दलजीत सिंह, HOD, न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट, जी.बी. पंत
  • डॉ. संजय राय, कम्यूनिटी मेडिसिन, AIIMS
  • डॉ. बीर सिंह सहरावत, सीनियर गेस्ट्रो एक्सपर्ट
  • डॉ. अंशुल वार्ष्णेय, सीनियर कंसल्टेंट, फिजिशन
  • डॉ. संजय तेवतिया, सीनियर, आई सर्जन
  • डॉ. सुमित मृग, ENT कंसल्टेंट, फोर्टिस हॉस्पिटल
  • डॉ. अमित गुप्ता, सीनियर नेफ्रॉलजिस्ट

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