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वे 4-5 दिन, कुदरत ने क्यों बनाया ये चक्र, जानें पीरियड की एबीसीडी

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हाल ही में चीन की एक टेनिस खिलाड़ी 19 साल की झेंग किंवेन पहली बार फ्रेंच ओपन खेलने पहुंचीं। वह चौथे राउंड में हार गईं। हारने के बाद उन्होंने कहा कि अगर वह लड़का होतीं तो शायद नहीं हारती। उनकी इस बात ने काफी सुर्खियां बटोरीं। दरअसल, उनका इशारा महिलाओं में होने वाले पीरियड्स के दर्द की ओर था। एक तरफ उनका गेम चल रहा था तो दूसरी तरफ उनका पीरियड भी। ऐसे में कई सवाल उठते हैं। क्या पीरियड इस कदर कमजोर कर देता है कि कोई अपना काम सही तरीके से न कर पाए? क्या पीरियड को आगे बढ़ाया जा सकता है? पीरियड के दौरान खानपान और रहन-सहन कैसा रखना चाहिए कि ब्लीडिंग परेशान न करे? ऐसे तमाम सवालों के जवाब देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से जानने की कोशिश की लोकेश के. भारती ने:

महिलाओं को सहयोग और मेंटल सपोर्ट की जरूरत
अपने देश में एक ट्रेंड रहा है कि महिलाएं हर चीज में परिवार को आगे और खुद को सबसे आखिर में रखती हैं। चाहे वह खानपान की बात हो या अपनी जरूरतों की। इसी का नतीजा है कि महिलाओं की सेहत से सबसे ज्यादा समझौता किया जाता है। पीरियड्स में जिस तरह की सुविधाओं की जरूरत होती है, वे मिलती नहीं हैं। कई तरह की परेशानियां उन्हें मुफ्त में मिल जाती हैं। वैसे तो मेंस्ट्रूल साइकल एक सामान्य कुदरती प्रक्रिया है, लेकिन यह भी सच है कि इस वजह से ही कई महिलाओं में हीमोग्लोबिन की कमी देखी जाती है। हर महीने जैसे ही ये 4 से 5 दिनों का फेज शुरू होने वाला होता है, यह उस लड़की या महिला के साथ-साथ घर की बाकी महिलाओं के लिए टेंशन का वक्त होता है। इसलिए यह जरूरी है कि परिवार के पुरुष सदस्य भी अपनी भूमिका समझें। यह भी समझें कि ये दिन लड़कियों या महिलाओं के लिए काफी दर्द से भरे हो सकते हैं। ऐसे में उन्हें आपके सहयोग और मेंटल सपोर्ट की जरूरत होती है।


कुदरत ने क्यों बनाया यह चक्र?
कुदरत ने यह सिस्टम बनाया है कि जब-जब ओवरी (महिलाओं के शरीर में जहां एग बनता है) से एग निकलेगा, उससे पहले शरीर को भ्रूण के पोषण के लिए तैयार करना होगा। शरीर यह मानकर चलता है कि एग तैयार हुआ है तो स्पर्म भी उपलब्ध होगा और निषेचन (फर्टिलाइजेशन) भी जरूर होगा। इसके लिए गर्भाशय में एक लाइनिंग बन जाती है जिसे एंडोमेट्रियम कहते हैं। इसमें खून के साथ-साथ पोषक तत्वों की बहुतायत होती है। जब स्पर्म नहीं मिलता तो गर्भाशय के ऊपर बनी यह लाइनिंग गिर जाती है, जिससे ब्लीडिंग होती है। चूंकि यह एक चक्र की तरह हर 28 दिनों पर ( 20 से 40 दिनों पर भी हो सकता है) होता है, इसलिए इसे मेंस्ट्रूल साइकल कहा जाता है। हिंदी में माहवारी या मासिक चक्र भी कहते हैं। यह अमूमन 9 से 12 या 13 साल में शुरू होता है और 45 से 50-52 साल तक चलता है। अगर लड़की या महिला के शरीर में यह कुदरती चक्र न हो तो धरती पर इंसानों की मौजूदगी ही खत्म हो सकती है।

पहली बार कब बताएं बेटी को इस बारे में?
किशोरावस्था में लड़कियों में मेंस्ट्रूअल साइकल की शुरुआत होती है। तब इसे मिनार्की कहा जाता है। अमूमन यह 9 से लेकर 13 साल की उम्र में होता है। इसलिए बच्ची की 8 साल की उम्र पूरी होने के बाद मां, महिला गार्जियन या फिर पिता की जिम्मेदारी है कि वह लड़की को बताए कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। यह भी बताए कि ऐसा सभी लड़कियों के साथ होता है। इससे वे खुद को पहले से मानसिक रूप से तैयार कर सकती हैं, ज्यादा अलर्ट हो सकती हैं और उन्हें अचानक झटका नहीं लगता।


क्या पीरियड के दिनों को शिफ्ट कर सकते हैं?
जैसा कि चीन की टेनिस प्लेयर ने कहा कि वह लड़का होती तो शायद यह मैच नहीं हारतीं। ऐसा इसलिए क्योंकि लड़कों को पीरियड नहीं होते और उन्हें उस दर्द से नहीं गुजरना पड़ता जो महिला खिलाड़ी को झेलना पड़ा। हालांकि उस दौरान चीनी खिलाड़ी के पास यह विकल्प था कि वह पीरियड के दिनों को कुछ दिन आगे के लिए शिफ्ट कर सकती थी। ऐसी दवाएं आती हैं जिन्हें डॉक्टर की सलाह से लेने पर पीरियड की तारीख को 10 दिनों तक आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन ऐसा तभी करना चाहिए जब बेहद जरूरी हो क्योंकि इसके अपने नुकसान हैं।
  • इस दवा को पीरियड शुरू होने की संभावित तारीख से 3 से 4 दिन पहले से लेना पड़ता है और जब तक टालना है, तब तक हर दिन लेना होता है।
  • कभी भी पीरियड को 10 दिनों से ज्यादा आगे नहीं बढ़ाना चाहिए, वह भी बहुत जरूरी होने पर ही।
  • इस तरह की दवा बहुत जरूरी होने पर ज्यादा से ज्यादा साल में एक बार ही लेनी चाहिए।
  • इसमें हॉर्मोन की हेवी डोज होती है जिससे हॉर्मोनल डिस्टर्बेंस की आशंका रहती है।
  • अगला पीरियड भी शिफ्ट हो सकता है। फिर पीरियड के सामान्य होने में 2-3 महीने लग सकते हैं।
  • कभी भी इस तरह की दवा गाइनी डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं लेनी चाहिए। दरअसल, अगर किसी महिला को बीपी, शुगर, थाइरॉइड या ऐसी कोई दूसरी परेशानी हो तो उसे देखते हुए दवा की दी जाती है।

पीरियड के ये हैं साथी
1. पैड्स या सैनिटरी नैपकिन

  • पीरियड के दौरान ब्लीडिंग को फैलने से रोकने के लिए सबसे ज्यादा इसका इस्तेमाल होता है।
  • एक अनुमान के मुताबिक देश में 2019 तक 60 फीसदी शहरी महिलाएं और 34 फीसदी ग्रामीण महिलाएं पैड्स इस्तेमाल करती थीं, लेकिन कोरोना ने यह आंकड़ा नीचे कर दिया।
  • अब 54 फीसदी शहरी महिलाएं और 20 फीसदी ग्रामीण महिलाएं ही पीरियड के दौरान पैड का इस्तेमाल कर रही हैं।
  • इनका इस्तेमाल कम होने की वजह कई रही हैं, जैसे- जॉब या आमदनी में गिरावट। सच तो यह है कि जब घर में सबसे पहले किसी चीज में कटौती की जाती है तो वह अमूमन पैड ही होता है। वैसे भी महिलाएं ही ज्यादा समझौता करती हैं। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में सैनिटरी पैड्स की उपलब्धता कम होना भी अहम रहा है। फिर भी मेंस्ट्रूल हाइजीन को दुरुस्त करने में सैनिटरी पैड अब भी नंबर 1 है।
  • एक दिन में 2 से 3 पैड का इस्तेमाल सामान्य है।

फायदे:
हर जगह मिल जाता है। कीमत भी कम है। साफ-सफाई का कम ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि यह शरीर के बाहर रहता है।

समस्याएं:
  • एक दिन में 2 से 3 या फिर इससे भी ज्यादा बार बदलना पड़ता है।
  • किसी को स्विमिंग करनी हो या फिर पैड के गीला होने का खतरा हो तो चैलेंज बढ़ जाता है।

खास हैं ग्रीन पैड
  • आजकल सरकार और कई प्राइवेट एजेंसियां ग्रीन मेंस्ट्रुएशन को बढ़ावा देने में लगी हैं।
  • ग्रीन पैड 9 से 10 महीनों में ही अपने-आप ही गल जाते हैं।
  • दरअसल, सामान्य पैड जिसे ज्यादातर महिलाएं उपयोग करती हैं, उसे पूरी तरह खत्म होने 400 से 800 साल तक लग जाता है क्योंकि इनमें प्लास्टिक की लेयर का इस्तेमाल होता है।
  • चूंकि इन्हें रीसाइकल करने या सही तरीके से निपटाने की कोई सही व्यवस्था नहीं है, इसलिए कई बार इससे इंफेक्शन फैलने का भी खतरा रहता है।
  • फिलहाल ग्रीन पैड केमिस्ट की दुकानों में कम ही मिलते हैं, लेकिन इन्हें ऑनलाइन खरीदा जा सकता है।
  • कीमत: 12 रुपये प्रति पैड से शुरू

2. मेंस्ट्रूल कप: यह सिलिकॉन (जिस मटीरियल से बच्चों को दूध की बोतल का निपल बना होता है) से बना होता है। यह काफी लचीला होता है और पीरियड्स के दिनों मे प्राइवेट पार्ट के अंदर फिट किया जाता है। इसे बार-बार इस्तेमाल कर सकते हैं। जितनी बार यह पीरियड के खून से भर जाता है, उतनी बार इसे निकालकर सामान्य या हल्के गुनगुना पानी से अच्छी तरह धोकर लगाया जाता है। साबुन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। हां, ज्यादा गंदा होने पर लिक्विड सोप लगा सकते हैं। यह उन महिलाओं के लिए बेहतर विकल्प है जो स्विमिंग करती हैं। साथ ही, यह उनके लिए भी फायदेमंद है जिनको ज्यादा ब्लीडिंग होती है और बार-बार पैड बदलना पड़ता है।
फायदे:
  • ज्यादातर ऐसे कप में मार्किंग की हुई होती है। इससे पता चल जाता है कि पीरियड के दौरान कितना ब्लड लॉस हो रहा है। अगर किसी को ज्यादा ब्लीडिंग हो रही हो तो इसका भी आसानी से पता चल जाता है।
  • यह रीयूजेबल है, इसलिए खर्च भी कम आता है। उन जगहों के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है, जहां पैड मिलना मुश्किल होता है।

समस्याएं:
  • चूंकि इसे वजाइना के भीतर लगाया जाता है, इसलिए साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखना होता है। साफ हाथों से मेंस्ट्रल कप को भी सही तरीके से साफ करके लगाना होता है।
  • चूंकि इसे वजाइना के अंदर लगाना पड़ता है, इसलिए इसे वे लड़कियां इस्तेमाल नहींं कर पातीं जिनकी हाइमन (कौमार्य) झिल्ली बरकरार रहती है। यही कारण है कि यह अविवाहित महिलाओं ज्यादा उपयोग नहीं कर पातीं।
  • साफ न होने से इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
  • इसे साफ करने के लिए पानी भी तुरंत मिलना चाहिए।
  • कभी-कभी कुछ लीकेज मुमकिन है। इसके लिए पैंटी लाइनर का इस्तेमाल करना पड़ता है जो पैड की तरह होते हैं, लेकिन काफी पतले। ये पैड की तरह ज्यादा ब्लड नहीं सोख सकते।

3. टैम्पॉन : इसे भी खिलाड़ी या फिजिकल ऐक्टिविटी करने वाली महिलाएं इस्तेमाल करती हैं। प्राइवेट पार्ट में लगता है। यह सिंगल यूज का या फिर रीयूजेबल हो सकता है।
फायदे:
  • यह पैड की तरह बाहर से नहीं लगा होता, इसलिए इसे लगाने से चलने-फिरने या उठने-बैठने में दिक्कत नहीं होती।
  • स्पोर्ट्स प्लेयर के लिए यह काफी बेहतर ऑप्शन होता है।

समस्याएं:
  • चूंकि इसे भी प्राइवेट पार्ट के अंदर लगाना होता है, इसलिए साफ-सफाई का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है।
  • इसमें भी कभी-कभी लीकेज मुमकिन है। पैंटी लाइनर का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
  • क्या इसके शरीर में भीतर की ओर खिसकने का भी खतरा होता है।
  • इसे भी वजाइना के अंदर लगाना होता है, इसलिए ज्यादातर अविवाहित लड़कियां इस्तेमाल नहीं कर पातीं।

कैसे पता चले कि पीरियड नॉर्मल है?
यह है सामान्य पीरियड
  • हर महीने में अमूमन 3 से 7 दिनों का यह दौर होता है जब हर महिला को इससे गुजरना पड़ता है।
  • शुरुआत के पहले दो दिनों तक ज्यादा ब्लड लॉस होता है।
  • एक पैड में 30 से 50 एमएल खून सोखने की क्षमता होती है। यह पैड के साइज पर भी निर्भर करता है।
  • एक पीरियड में एक महिला का 80 एमएल तक खून शरीर से बाहर जाता है।
  • 80 से 170 एमएल हेवी मेंस्ट्रल ब्लीडिंग (HMB) में गिना जाता है, लेकिन यह काफी हद तक उम्र और शरीर पर निर्भर करता है। 30 साल के बाद एक पीरियड में 7 दिनों तक 170 एमएल ब्लड लॉस को भी सामान्य ही माना जाता है। इससे ज्यादा होने पर गाइनी डॉक्टर से मिलना चाहिए।
  • अगर मेंस्ट्रूल कप का इस्तेमाल करते हैं तो एक दिन में उसे 1 से 2 बार धोकर यूज कर रहे हैं तो सामान्य है।
  • वहीं 1 दिन में 2 टैम्पॉन का इस्तेमाल सामान्य है।
  • एक दिन में 2 से 3 पैड का इस्तेमाल सामान्य है।
  • अगर शुरुआत में ही ब्लड में थक्के नजर आएं तो भी इसे सामान्य ही समझना चाहिए। दरअसल, यह हेवी फ्लो को बताता है। यह कभी-कभी होता है। फिर भी ऐसे में डॉक्टर से चेकअप करा लेना चाहिए।
क्या करें
  • खूब पानी पिएं। गर्मियों में हर दिन 3 से 4 लीटर पानी और सर्दियों में ढाई से 3 लीटर पानी।
  • हेल्दी फूड खाएं। हर दिन एक या दो मौसमी फल खाएं। इसे आम दिनों के साथ पीरियड्स के दौरान भी जारी रखें।
  • हरी मौसमी सब्जियां भी 1-2 कटोरी जरूर खाएं।
  • सोया प्रोडक्ट भी जरूर लें। दरअसल, सोया में एस्ट्रोजन ज्यादा मात्रा में मौजूद होता है जो खून के बहाव में थोड़ी कमी ला सकता है। इसमें प्रोटीन भी काफी मात्रा में मौजूद होता है।
  • पनीर, चीज आदि भी हर दिन 50 ग्राम तक ले सकते हैं। इससे प्रोटीन की कमी भी दूर होगी।
  • अगर किसी का हीमोग्लोबिन कम है तो आयरन सप्लिमेंट जरूर लेना चाहिए। साथ ही, पालक, चुकंदर आदि का भी सेवन करना चाहिए।
  • अगर किसी को हेवी ब्लड लॉस की समस्या है तो कैल्शियम सप्लिमेंट भी लेना चाहिए।
  • अगर पीरियड में कुछ भी असामान्य दिखे तो डॉक्टर से जरूर मिलें। पहले अपनी मम्मी या जिनसे आपको मदद मिल सकती है, उन्हें बताएं।
  • अगर दर्द और थकान कुछ ज्यादा परेशान करे तो पैरासिटामॉल या आइब्रुफेन की एक गोली ले सकती हैं।
  • इसके अलावा हल्के दर्द में गर्म पानी की सिकाई भी काम आती है।
  • मूड अच्छा करने के लिए चॉकलेट खा सकती हैं। अच्छा म्यूजिक सुन सकती हैं।
क्या न करें
  • भारी चीजें न उठाएं यानी 5 किलो से कम वजन की चीजों को उठा सकते हैं।
  • शरीर में पानी की कमी न होने दें।
  • शरीर में प्रोटीन, मिनरल्स और दूसरी चीजों की कमी न हो, इसके लिए डाइट को नजरअंदाज न करें।
  • ज्यादा तेल-मसाले वाली चीजें न खाएं।

इसे कहेंगे असामान्य पीरियड
  • जब पीरियड 3 दिनों से कम और 7 दिनों से ज्यादा चले।
  • एक पीरियड से दूसरे पीरियड का गैप 20 दिनों से कम और 45 दिनों से ज्यादा हो।
  • अगर किसी को दो पीरियड्स के बीच में ब्लीडिंग हो जाए।
  • अगर लगातार 3 से ज्यादा पीरियड मिस हो जाए।
  • हर दिन 3 से ज्यादा बार पैड बदलना पड़े।
  • एक पैड 2 घंटे में ही भर जाए और ब्लीडिंग ओवरफ्लो होने लगे।
  • पेट में असहनीय दर्द हो।
  • हर पीरियड में डायरिया की शिकायत भी हो। दरअसल, कुछ महिलाओं में प्रोस्टाग्लेंडिंस (यह एक तरह का लिपिड है) नाम का केमिकल भी निकलता है, जिसकी वजह से डायरिया होता है। इस डायरिया को काबू में करना जरूरी होता है।
  • लगातार उलटी की शिकायत हो।
  • लगातार खून बाहर निकलने पर अगर थक्के जमे हुए दिखाई दें। कभी-कभी थक्का जमा दिखना सामान्य है, लेकिन लगातार होने पर सचेत होने की जरूरत है। क्लॉट कई वजहों से हो सकता है, जैसे रसौली या फाइब्रॉयड्स, एंडोमेट्रिओसिस, हॉर्मोंस का असंतुलन, मिसकैरेज आदि।
असामान्य पीरियड्स की कई वजहें हैं
फाइब्रोसिस: यह अमूमन हॉर्मोन में गड़बड़ी की वजह से होता है। यह ओवरी के काम करने के तरीके को डिस्टर्ब कर देता है। इससे पीरियड पर भी बुरा असर पड़ता है। अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो कंसीव करने में भी परेशानी हो सकती है। आजकल शहरों में रहनेवाली महिलाओं में यह काफी देखा जाता है।
क्या करें: हेल्दी फूड लेना, नशे आदि से दूरी, हर दिन 20 से 25 मिनट वॉकिंग और एक्सरसाइज। 10 से 15 मिनट योग से फायदा होगा।

PCOD: इसे पॉलिसिस्टिक ओवरी डिजीज भी कहते हैं। इस परेशानी से 12 से 45 साल यानी मिनार्की से मेनोपॉज की उम्र तक हो सकती है। इसके पीछे हॉर्मोंस में बदलाव, लाइफस्टाइल और कई बार जेनेटिक वजहें होती हैं। इसमें ओवरी के आसपास छोटे-छोटे सिस्ट (ट्यूमर) बन जाते हैं।
लक्षण: इससे पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं और ब्लीडिंग बहुत कम हो जाती है या फिर बहुत बढ़ जाती है। शरीर पर बालों की ग्रोथ बढ़ जाती है, सिर के बाल झड़ने लगते हैं, वजन बढ़ जाता है।

हॉर्मोनल गड़बड़ियां
  • कई महिलाओं को थाइरॉइड जैसी परेशानी भी होती है। इस वजह से भी पीरियड नॉर्मल नहीं रहते।
  • कुछ महिलाओं में प्रोजेस्टिरॉन की कमी होने से भी यह हो सकता है।
  • कुछ महिलाएं ऐसी दवाओं का इस्तेमाल करती हैं जिनसे प्रेग्नेंसी टाली जाती है। इनके इस्तेमाल से भी हॉर्मोन की समस्या हो सकती है और पीरियड डिस्टर्ब हो सकते हैं।
  • ऐसे में डॉक्टर सही जांच के बाद दवा देते हैं, जिन्हें लेने से अमूमन चीजें दुरुस्त हो जाती हैं।

जांच कौन-सी
1. मैमोग्रफी : अगर फैमिली में किसी को ब्रेस्ट कैंसर हुआ है तो 30 साल के बाद हर 2 साल पर जरूर मैमोग्रफी कराएं।
  • सिंगल ब्रेस्ट करीब 1400 रुपये, दोनों 2500 रुपये (लगभग)

2. पेप स्मियर टेस्ट

  • हर 5 साल पर सर्विकल कैंसर की जांच के लिए पेप स्मियर टेस्ट करवाएं। मेनोपॉज के बाद यह जरूर करवाएं। टेस्ट सस्ता है।
  • पेप स्मियर टेस्ट की कीमत: लगभग 500 से 700 रुपये
  • सर्वाकल कैंसर से बचाव के लिए टीका मौजूद है। तीन वैक्सीन के इस कोर्स पर 9-10 हजार रुपये का खर्च आता है। टीके लगने के बाद कम-से-कम 4-5 महीने तक प्रेग्नेंसी प्लान न करें। अगर बीच में प्रेग्नेंट हो जाएं तो डिलिवरी के बाद कोर्स पूरा किया जाता है, लेकिन तीनों टीके लगवाना जरूरी है।
  • टीके लगाने के बावजूद सर्विकल कैंसर की आशंका 100 फीसदी खत्म नहीं होती क्योंकि यह कुछ ही वजहों से बचाव करता है। दूसरे, अगर टीके लगने से पहले कैंसर शुरू हो चुका हो तो भी टीकों का कोई फायदा नहीं है। इसलिए भी पेप स्मियर टेस्ट जरूर कराएं।
3. अल्ट्रासाउंड
  • यूटरस और ओवरी की स्थिति को देखने के लिए अल्ट्रासाउंड भी करवाना चाहिए। हालांकि यह डॉक्टर की सलाह से हो तो बेहतर है।
  • खर्च: 1000 से 2000 रुपये

4.कुछ और टेस्ट : -बीपी, शुगर, CBC और थाइरॉइड का टेस्ट भी जरूर करवाएं। इनमें से कोई भी परेशानी होने पर पीरियड भी डिस्टर्ब हो सकता है और कंसीव करने में परेशानी हो सकती है। सीबीसी टेस्ट से शरीर में हीमोग्लोबिन का पता चल जाता है। अगर किसी के शरीर में यह कम होगा तो वह एनीमिया की मरीज भी हो सकती हैं। इसलिए प्रेग्नेंसी से पहले हर महिला को आइरन सप्लिमेंट लेने की सलाह जरूर दी जाती है।
इन पर कुल खर्च: लगभग 500 रुपये

जब आए आखिरी पीरियड : मेनोपॉज 40 साल की उम्र से महिलाओं में कई बदलाव होने लगते हैं। ऐसा अचानक नहीं होता, बल्कि इस बदलाव में कुछ साल लगते हैं।

मेनोपॉज से पहले प्री मेनोपॉज

  • इस दौरान एग बनने कम हो जाते हैं। पीरियड्स बहुत कम या ज्यादा हो जाते हैं।
  • पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं और मन चिड़चिड़ा हो जाता है।
  • प्राइवेट पार्ट में सूखापन, बालों का झड़ना, ब्रेस्ट का ढीला होना, सेक्स की इच्छा कम होना, मोटापा बढ़ना जैसे बदलाव भी नजर आते हैं।

मेनोपॉज
  • धीरे-धीरे पीरियड्स पूरी तरह बंद हो जाते हैं।
  • अगर लगातार 6 महीने से एक साल तक पीरियड्स न आएं तो मेनोपॉज हो जाता है।

तब जरूर हों सचेत
  • मेनोपॉज के बाद खून के धब्बे नजर आएं तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं।
  • सर्विकल कैंसर स्क्रीनिंग या पेप स्मीयर टेस्ट जरूर करवा लें।

खानपान में हों बदलाव
  • इस वक्त महिला के खाने में हरी सब्जियां, दूध और सोयाबीन ज्यादा होने चाहिए।
  • हर दिन 2 मौसमी फल और 1 कटोरी हरी सब्जी जरूर हों।
  • इनके अलावा प्रोटीनयुक्त भोजन भी जरूर लें।
  • जैसे: आधा से एक गिलास दूध और 20 से 30 ग्राम सोयाबीन।
  • इनके अलावा एक कटोरी दाल भी जरूर शामिल करें।

परिवार हो साथ : मेनोपॉज के समय हॉर्मोनल तब्दीली आती है। ऐसे में महिलाएं जल्दी गुस्सा हो जाती हैं। उनमें कुछ खालीपन का अहसास होने लगता है। ऐसे में परिवार के दूसरे सदस्यों की यह जिम्मेदारी है कि उनका ख्याल रखें। महिलाएं अपने शौक पूरे करने में लग जाएं।

हॉट फ्लैशेज : यह अमूमन मेनोपॉज के बाद होती है। इसमें अचानक गर्मी लगना और पसीना निकलने लगता है। यह एड्रिनेलिन के असंतुलित होने और एस्ट्रोजन के बढ़ने से होती है।
लक्षण
  • अचानक से तेज गर्मी महसूस होना
  • शरीर के ऊपरी भाग में ज्यादा पसीना आना
  • खासकर, चेहरे, गर्दन, कान, छाती और दूसरी भागों में ज्यादा गर्मी लगना
  • हाथ और पैर की उंगलियों में झनझनाहट महसूस होना
  • पल्पटेशन (हार्ट बीट सामान्य 60-80 प्रति मिनट से बढ़कर 100 प्रति मिनट तक हो जाना) होना
क्या करें?
  • अगर दिनभर में 2 से 3 बार हो तो सामान्य है।
  • इससे ज्यादा होने पर डॉक्टर से मिलें। डॉक्टर लाइफस्टाइल बदलने के लिए कह सकते हैं या जरूरत पड़ने पर दवा दे सकते हैं।
  • योग, एक्सरसाइज आदि करने से इस पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
  • सही और हेल्दी डाइट जिसमें फल और सब्जी जरूर शामिल हों, लेने से भी नतीजा बेहतर होता है।

एक्सपर्ट पैनल
डॉ. मधु गुप्ता, सीनियर Ob-Gyne कंसल्टेंट
डॉ. स्मिता जैन, कंसल्टेंट गाइनेकॉलजिस्ट एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ
डॉ. प्रो. निशा सिंह, Ob-Gyne डिपार्टमेंट, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी
अरुणाचलम मुरुगनाथम, पैडमैन ऑफ इंडिया
डॉ. नीलांचली सिंह, असिस्टेंट प्रफेसर, Ob-Gyne डिपार्टमेंट, AIIMS
डॉ. बिंदिया गुप्ता, Ob-Gyne, जीटीबी हॉस्पिटल
डॉ. श्रुति एस. अग्रवाल, गाइनेकॉलजिस्ट एंड एस्थेटिक सर्जन

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