नई दिल्ली: दिल्ली-एनसीआर में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। शनिवार को दिल्ली में 461 नए कोरोना केस मिले। संक्रमण दर 5 फीसदी से ज्यादा दर्ज की गई। नोएडा में शनिवार को 70 और गाजियाबाद में 17 केस मिले। राहत की बात यह है कि एनसीआर के शहरों में भी संक्रमितों को हॉस्पिटल जाने की जरूरत नहीं पड़ रही। शनिवार शाम तक दिल्ली के सबसे बड़े कोविड हॉस्पिटल- एलएनजेपी में सिर्फ 6 मरीज एडमिट थे।फरीदाबाद में इस समय 115 एक्टिव केस हैं, इनमें से अस्पताल में कोई नहीं है। नोएडा में सभी 218 संक्रमित घर पर रहकर इलाज करा रहे हैं। गुड़गांव में 671 पॉजिटिव लोगों में से सिर्फ 3 एडमिट हैं। गाजियाबाद में सभी 90 मरीज होम आइसोलेशन में हैं। यूपी के सीएम योगी ने गाजियाबाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा को अलर्ट मोड पर रखने के निर्देश दिए हैं। नए मरीजों के सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जाएंगे। केसेज बढ़ना कितनी चिंता की बात है और क्या कोरोना कभी नहीं जाएगा? ऐसे ही सवालों के जवाब जानिए हमारे एक्सपर्ट पैनल से।
यह नया वेरियंट क्या है?
वेरियंट का मतलब वैरायटी यानी बदलाव से है। वायरस में जितनी बार म्यूटेशन होगा, वह नया वेरियंट कहलाएगा। नया वेरियंट पहले आ चुके वैरियंट से ज्यादा खतरनाक होगा या कम, यह उसके इंफेक्शन रेट और शरीर को गंभीर अवस्था तक पहुंचाने की क्षमता पर निर्भर करता है।
क्यों होता है कोरोना वायरस में बार-बार म्यूटेशन?
ऐसा नहीं है कि यह म्यूटेशन यानी बदलाव सिर्फ वायरस में ही होता है। कैंसर होना भी अपने आप में एक तरह का म्यूटेशन है। फर्क सिर्फ इतना है कि कैंसर की वजह से हम बीमार होते हैं और वायरस म्यूटेशन अपने बचाव के लिए करता है। कोरोना वायरस में भी यही हुआ है। इंसान के शरीर में जब इम्यूनिटी डिवेलप होने लगती है, चाहे वह नेचरल से हो या वैक्सीन से बनने वाली तो इससे पार पाना वायरस के लिए मुश्किल हो जाता है। ऐसे में खुद को बचाए रखने के लिए वायरस अपना रंग-रूप बदलने लगता है। अब तक कोरोना में कई हजार म्यूटेशन हो चुके हैं, लेकिन ज्यादातर ऐसे म्यूटेशन थे जो जल्द ही अपने आप खत्म हो गए। हां, डेल्टा, डेल्टा प्लस और ओमिक्रॉन जैसे कुछ मजबूत वेरियंट्स लंबे समय के लिए रह जाते हैं और हमारे लिए समस्या पैदा कर देते हैं। अभी ओमिक्रॉन के BA.1, BA.2, BA.3 सब-वेरियंट्स मौजूद हैं। आने वाले समय में यह भी मुमकिन है कि BA.4, BA.5 भी आ जाएं।
यह XE वेरियंट क्या है? क्या यह खतरनाक है?
ओमिक्रॉन का तीन तरह का सब-वेरियंट्स बना था: BA.1, BA.2 और BA.3। भारत में BA.1 और BA.2 सब-वेरियंटस का इंफेक्शन ज्यादा फैला था। इसमें भी BA.2 ही सबसे ज्यादा फैला था। BA.2 को स्टील्थ ओमिक्रॉन भी कहा गया यानी यह इम्यून सिस्टम से बचकर निकल जाता था। इस सब-वेरियंट को बहरुपिया ओमिक्रॉन भी कहा गया। XE वेरियंट BA.1 और BA.2 के मिलने से बना है। यह ओमिक्रॉन से इंफेक्शन के मामले में ज्यादा तेज है, लेकिन इंफेक्शन होने के बाद गंभीर लक्षण उभरने के मामले में यह ओमिक्रॉन के जैसा ही है यानी गंभीरता के मामले बहुत ही कम बनते हैं। लक्षणों में ज्यादातर पेट से संबंधित मामले बनते हैं जैसे- लूज मोशन, पेट दर्द आदि। साथ में नाक से पानी आना, छींक आदि भी मुमकिन है। कम गंभीरता की वजह से ही इसे WHO (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) ने Variants of Concern (VOCs) की लिस्ट से बाहर रखा है यानी इस पर गंभीर होने की ज्यादा जरूरत नहीं है।
जिन्हें जरूरी, वही लगवाएं सावधानी की नई डोज
कब मिलेगा इस कोरोना से छुटकारा?
सीरो सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई है कि 80 फीसदी से ज्यादा बच्चों को नेचरल इम्यूनिटी मिल चुकी है। इनमें से अधिकतर बच्चों में बिना लक्षण वाला इंफेक्शन हुआ था। इसकी वजह है कि बच्चों में ऐस रिसेप्टर (सांस लेने के दौरान वायरस अमूमन यहीं चिपकता है) विकसित नहीं होता। दूसरी बात यह कि ऐंटिबॉडी तैयारी करने वाला थाइमस ग्लैंड (यह सीने में मौजूद होता है) अमूमन 15 बरस की उम्र तक बेहतर काम करता है और आराम से इंफेक्शन से लड़ लेता है। इसलिए बच्चों के लिए कोरोना से खतरा पहले की तुलना में अभी कम है, जैसा कि दूसरे देशों में भी देखा गया है। फिर भी स्कूल जाते समय मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखने से फायदा जरूर होगा।
यह नया वेरियंट क्या है?
वेरियंट का मतलब वैरायटी यानी बदलाव से है। वायरस में जितनी बार म्यूटेशन होगा, वह नया वेरियंट कहलाएगा। नया वेरियंट पहले आ चुके वैरियंट से ज्यादा खतरनाक होगा या कम, यह उसके इंफेक्शन रेट और शरीर को गंभीर अवस्था तक पहुंचाने की क्षमता पर निर्भर करता है।
क्यों होता है कोरोना वायरस में बार-बार म्यूटेशन?
ऐसा नहीं है कि यह म्यूटेशन यानी बदलाव सिर्फ वायरस में ही होता है। कैंसर होना भी अपने आप में एक तरह का म्यूटेशन है। फर्क सिर्फ इतना है कि कैंसर की वजह से हम बीमार होते हैं और वायरस म्यूटेशन अपने बचाव के लिए करता है। कोरोना वायरस में भी यही हुआ है। इंसान के शरीर में जब इम्यूनिटी डिवेलप होने लगती है, चाहे वह नेचरल से हो या वैक्सीन से बनने वाली तो इससे पार पाना वायरस के लिए मुश्किल हो जाता है। ऐसे में खुद को बचाए रखने के लिए वायरस अपना रंग-रूप बदलने लगता है। अब तक कोरोना में कई हजार म्यूटेशन हो चुके हैं, लेकिन ज्यादातर ऐसे म्यूटेशन थे जो जल्द ही अपने आप खत्म हो गए। हां, डेल्टा, डेल्टा प्लस और ओमिक्रॉन जैसे कुछ मजबूत वेरियंट्स लंबे समय के लिए रह जाते हैं और हमारे लिए समस्या पैदा कर देते हैं। अभी ओमिक्रॉन के BA.1, BA.2, BA.3 सब-वेरियंट्स मौजूद हैं। आने वाले समय में यह भी मुमकिन है कि BA.4, BA.5 भी आ जाएं।
यह XE वेरियंट क्या है? क्या यह खतरनाक है?
ओमिक्रॉन का तीन तरह का सब-वेरियंट्स बना था: BA.1, BA.2 और BA.3। भारत में BA.1 और BA.2 सब-वेरियंटस का इंफेक्शन ज्यादा फैला था। इसमें भी BA.2 ही सबसे ज्यादा फैला था। BA.2 को स्टील्थ ओमिक्रॉन भी कहा गया यानी यह इम्यून सिस्टम से बचकर निकल जाता था। इस सब-वेरियंट को बहरुपिया ओमिक्रॉन भी कहा गया। XE वेरियंट BA.1 और BA.2 के मिलने से बना है। यह ओमिक्रॉन से इंफेक्शन के मामले में ज्यादा तेज है, लेकिन इंफेक्शन होने के बाद गंभीर लक्षण उभरने के मामले में यह ओमिक्रॉन के जैसा ही है यानी गंभीरता के मामले बहुत ही कम बनते हैं। लक्षणों में ज्यादातर पेट से संबंधित मामले बनते हैं जैसे- लूज मोशन, पेट दर्द आदि। साथ में नाक से पानी आना, छींक आदि भी मुमकिन है। कम गंभीरता की वजह से ही इसे WHO (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन) ने Variants of Concern (VOCs) की लिस्ट से बाहर रखा है यानी इस पर गंभीर होने की ज्यादा जरूरत नहीं है।
जिन्हें जरूरी, वही लगवाएं सावधानी की नई डोज
कब मिलेगा इस कोरोना से छुटकारा?
- तकनीकी तौर पर देखेंगे तो यह शायद कभी भी पूरी तरह से खत्म न हो, लेकिन जिस हिसाब से वैक्सीनेशन हो रहा है और इंफेक्शन की वजह से लोगों में नेचरल इम्यूनिटी बनी है, इन दोनों के मिलने से हाइब्रिड इम्यूनिटी विकसित हुई है। ऐसे में यह मुमकिन है कि कुछ समय बाद यह धीरे-धीरे काफी हल्का पड़ जाए। बशर्ते कि हम सभी को वैक्सीन दे दें। दोनों या तीनों डोज 80 फीसदी लोगों को लगवा दें।
- इसके पूरी तरह न खत्म होने की वजह यह भी है कि कोरोना वायरस जानवर से इंसानी शरीर में आया है। पिछले बरस की स्टडी में हमने यह भी देखा कि यह इंसानों से जानवरों में भी चला गया। सीधे कहें तो जानवर इनके लिए संग्रह केंद्र के रूप में विकसित हो सकते हैं। ऐसे में इसके पूरी तरह खत्म होने की गुंजाइश लगभग न के बराबर है। इसके बाद वायरस सामान्य सर्दी जैसा वायरस बनकर रह जाएगा।
- अमूमन अभी तक सार्स फैमिली के वायरस का इंफेक्शन होने पर यह देखा जाता था कि हर संक्रमित शख्स में कुछ लक्षण जरूर उभरते थे। लेकिन इसी फैमिली का होने के बावजूद कोरोना इंफेक्शन के बाद भी आधे से ज्यादा लोग बिना लक्षण वाले होते हैं। ऐसे में कौन शख्स अपने अंदर कोरोना वायरस लेकर घूम रहा है, यह पता करना मुश्किल है।
सीरो सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई है कि 80 फीसदी से ज्यादा बच्चों को नेचरल इम्यूनिटी मिल चुकी है। इनमें से अधिकतर बच्चों में बिना लक्षण वाला इंफेक्शन हुआ था। इसकी वजह है कि बच्चों में ऐस रिसेप्टर (सांस लेने के दौरान वायरस अमूमन यहीं चिपकता है) विकसित नहीं होता। दूसरी बात यह कि ऐंटिबॉडी तैयारी करने वाला थाइमस ग्लैंड (यह सीने में मौजूद होता है) अमूमन 15 बरस की उम्र तक बेहतर काम करता है और आराम से इंफेक्शन से लड़ लेता है। इसलिए बच्चों के लिए कोरोना से खतरा पहले की तुलना में अभी कम है, जैसा कि दूसरे देशों में भी देखा गया है। फिर भी स्कूल जाते समय मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखने से फायदा जरूर होगा।
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