कौन कहता है कि इंसान अमर नहीं हो सकता। जरूर हो सकता है। इसके लिए अमृत पीने की जरूरत नहीं है। बस अंगदान जैसा पूण्य कार्य करना पड़ेगा। दरअसल, डीएनए के रूप में उसका अस्तित्व उसके गुजर जाने के बाद भी मौजूद होगा। उस अंग में मौजूद डीएनए एक जेनरेशन से दूसरे जेनरेशन में चलता जाएगा। अगर किसी के अंग चार-पांच लोगों को ट्रांसप्लांट हो गए तो अमरता की संभावना और भी प्रबल हो जाएगी। अपने देश में अंगदान के इंतजार में कई बेटे, कई पिता, कई मांएं, कई बहनें, कई भाई और कई दोस्त जिंदगी की जंग हार जाते हैं। अगर हॉस्पिटल में ब्रेन डेड हो चुके लोगों के अंग ही दान कर दिया जाएं तो देश की जरूरत लगभग पूरी हो सकती है। ऑर्गन डोनेशन पर एक्सपर्ट्स से बात कर जानकारी दे रहे हैं
लोकेश के. भारती
कहते हैं जब कोई शख्स इस धरती पर नहीं रहता तो वह यादों और अच्छी बातों के जरिए लोगों के बीच जिंदा रहता है, लेकिन ऑर्गन डोनेशन यानी अंगदान की बदौलत तो वह लोगों के अंगों के अंदर जिंदा रहता है। और यह बात अंगदान को बहुत बड़ा बना देती है। दिल, आंखें, लंग्स, किडनी, पेनक्रियाज, लिवर और स्किन जैसे अंग किसी की मौत के बाद किसी और के काम आ जाते हैं और उसे नई जिंदगी दे जाते हैं।
इंसानियत की दो मिसालेंः-
1- बहन ने किया लिवर डोनेट
हेपटाइटिस की वजह से उसके छोटे भाई की लिवर खराब हो गई थी। डॉक्टरों का कहना था कि उसका 90 फीसदी लिवर खराब हो चुका है। घर में सभी लोगों ने रोना शुरू कर दिया, लेकिन उसकी बहन ने बचे हुए 10 फीसदी लिवर पर फोकस किया और एयर ऐंबुलेंस से मध्य प्रदेश के एक शहर से दिल्ली के बड़े अस्पताल लेकर आई। उसने भाई को अपना लिवर डोनेट किया और भाई की जान बचाई। इस ऑपरेशन में डॉक्टरों को 14 घंटे लगे। ऑपरेशन सफल रहा और दोनों स्वस्थ हैं। इस पूरी कवायद में बहन के ससुराल वालों ने उसका पूरा साथ दिया। यह तभी मुमकिन हुआ क्योंकि डोनर पहले से ही उपलब्ध था। टिशू डोनेशन से किसी की जान बचाने का यह एक अच्छा उदाहरण है।
2- पैरंट्स का साहसी फैसला
अमन 15 साल का है। उसे कुछ दिनों से पेशाब में परेशानी हो रही थी। स्किन पर इचिंग की समस्या रहती थी। वह जल्दी थक भी जाता था। उसके पैरंट्स ने डॉक्टर से संपर्क किया। डॉक्टर ने अमन का चेकअप किया और कुछ जांच लिखे। उन जांच में KFT (किडनी फंक्शन टेस्ट) भी था। रिपोर्ट में उसके शरीर में क्रिएटिनिन, यूरिया, सभी का स्तर नॉर्मल लेवल से काफी ऊपर पहुंच चुका था। डॉक्टर ने सीधा कह दिया कि किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत है और वह भी जल्द से जल्द। अमन का 2 से 3 फीसदी ही किडनी काम कर रहा है। अब इतनी जल्दी किडनी की व्यवस्था कहां से हो? उसके मम्मी और पापा दोनों को शुगर की समस्या थी, इसलिए डॉक्टर्स ने उनकी किडनी लेने से मना कर दिया। संयोग की बात थी कि उसी हॉस्पिटल में एक 14 साल के बच्चा भी भर्ती हुआ जिसका ब्रेन डेड था। उसके पैरंट्स अपने बच्चे के सभी अंगों का दान करना चाह रह थे। अमन को उसकी किडनी मिल गई। उस किशोर का हार्ट भी उसी शहर के दूसरे हॉस्पिटल में एक पेशंट में ट्रांसप्लांट हो गया। दोनों जगह ऑपरेशन सफल रहा। भले ही वह किशोर इस दुनिया में नहीं है, लेकिन सच तो यह है कि उसने कई इंसानों को नई जिंदगी दे दी। यह मुमकिन हुआ ऑर्गन डोनेशन से।
डोनेशन की जरूरत क्यों?
इंसान के शरीर में जो अंग काम करते हैं, वैसे अंग बनाना अभी संभव नहीं हुआ है। इस फील्ड में रिसर्च जोरों पर है। फिर भी वैज्ञानिकों का मानना है कि शरीर से काफी हद तक मिलते-जुलते कुछ अंग बनाने में 5 से 10 बरस तक लग सकते हैं। ऐसे में अगर कोई अंग काम नहीं कर रहा हो तो ट्रांसप्लांट का ही ऑप्शन बचता है और इसीलिए अंगदान की जरूरत है। लेकिन दिक्कत यह है कि भारत में अब भी लोग अंगदान से झिझकते हैं और इसीलिए ट्रांसप्लांट के लिए अंग मिल नहीं पाते।
क्या है ऑर्गन डोनेशन
मानव शरीर के कई ऐसे अंग हैं जिन्हें काम न करने पर बदला जा सकता है। इसके लिए किसी दूसरे हेल्दी इंसान से अंग लेकर उसे बीमार व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जाता है। प्रत्यारोपण के लिए अंगों का मिलना तभी संभव है जब कोई अंग देने के लिए तैयार हो। किसी दूसरे को अंग देना ही आर्गन डोनेशन है। आंखों को छोड़कर बाकी अंगों के मामले में यह तभी मुमकिन है जब शख्स के दिल की धड़कनें चलती रहें, भले ही उसके ब्रेन ने काम करना बंद कर दिया हो।
ब्रेन डेड और सामान्य मौत में अंतरः-
क्या है ब्रेन डेड
जब शरीर के बाकी अंग काम कर रहे हों, लेकिन किसी वजह से ब्रेन ने काम करना बंद कर दिया हो और फिर से उसके काम करने की संभावना न हो तो इंसान को ब्रेन डेड माना जाता है। ब्रेन के इस स्थिति में पहुंचने की खास वजहें होती हैं:
-सिर में गंभीर चोट लगने से
-ट्यूमर की वजह से
-लकवे की वजह से
कोमा और ब्रेन डेथ में अंतर
इन दोनों में एक बड़ा अंतर यह है कि कोमा से इंसान नॉर्मल स्थिति में वापस आ सकता है, लेकिन ब्रेन डेथ होने के बाद ऐसा नहीं होता। कोमा की स्थिति में शख्स का ब्रेन डेड नहीं होता, उसके दिमाग का कुछ हिस्सा काम कर रहा होता है जबकि ब्रेन डेड के मामले में ऐसा नहीं होता। कोमा की स्थिति में यह जरूरी नहीं है कि इंसान वेंटिलेटर पर ही हो जबकि ब्रेन डेथ की स्थिति में वह इसी पर रहता है। तो डोनेशन ब्रेन डेड के मामले में ही हो सकता है, कोमा वाले पेशंट का नहीं।
इन अंगों का होता है ज्यादा दानः
-किडनी, आंखें, लंग्स, हार्ट, लिवर
इनका होता है कम दानः
-पैनक्रियाज़, छोटी आंत और त्वचा
नोट: आंख, हड्डी और स्किन के टिशू का ही दान होता है। पूरे अंग का नहीं। वहीं बोनमैरो ट्रांसप्लांट के लिए अब सिर्फ ब्लड डोनेट करने से भी काम हो जाता है।
अंगदान से जुड़े कुछ दूसरे तथ्य
-अमूमन अंगदान किसी शख्स की मौत के बाद ही होता है। ब्रेन डेड को भी मौत के बराबर ही माना जाता है।
-जिंदा रहते हुए इंसान दो में से अपने एक किडनी का दान कर सकता है। लिवर में से एक छोटा-सा हिस्सा भी दान किया जा सकता है। दरअसल, एक किडनी के साथ इंसान सामान्य जिंदगी जी सकता है। ऐसे में हेल्दी इंसान अपना एक किडनी दान कर सकता है। आजकल किडनी ट्रांसप्लांट के मामले में सफलता की दर काफी है। ट्रांसप्लांट के बाद पहले साल में अंग 95 फीसदी क्षमता से भी ज्यादा से काम करता है, लेकिन हर साल इसमें 2 से 3 फीसदी की कमी होती जाती है। 10 साल के बाद यह प्रतिशत 50 फीसदी तक पहुंच जाती है।
-मरने के बाद होने वाले अंगदान में सबसे ज्यादा होता है आंखों का दान। दरअसल, सामान्य मौत के मामले में भी आंखें जल्दी खराब नहीं होतीं।
-दूसरे अंग का दान तभी कामयाब है जब शख्स का ब्रेन डेड हुआ हो।
बोन मैरो डोनेशन
-बोन मैरो की जरूरत अमूमन ब्लड कैंसर के केस में होती है।
-पहले जब तकनीक ज्यादा विकसित नहीं थी तब हेल्दी इंसान के बोन मैरो को शरीर की बड़ी हड्डियों (हाथ, पैर, थाई आदि) से निकालकर मरीज के शरीर में पहुंचाया जाता था। लेकिन अब यह बेहद आसान हो गया है।
-अब हेल्दी इंसान के सिर्फ 300 एमएल ब्लड डोनेट करने से ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट में मदद हो जाती है।
-इसके लिए अगर कोई चाहे तो नॉर्मल रक्तदान करते समय भी बोन मैरो डोनेशन के लिए सहमति दे सकता है।
-सहमति मिलने के बाद डॉक्टर इसके लिए उसके ब्लड का नमूना लेते हैं। ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HAL) के मिलान के लिए उस शख्स का डीएनए रख लिया जाता है ताकि भविष्य में जब किसी का डीएनए उस शख्स के डीएनए से मैच हो जाए तब 300 एमएल ब्लड लेकर किसी बीमार इंसान में बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है।
ये कर सकते हैं ऑर्गन डोनेट
-दान के मामले में उम्र की कोई सीमा नहीं होती। एक दिन के बच्चे से लेकर 90 बरस के बुजुर्ग भी अंगदान कर सकते हैं।
-18 साल से 65 साल तक की उम्र में अंगदान करना सबसे बेहतर माना जाता है।
-अंगदान करने से पहले कई चीजों की मैचिंग कराई जाती है। मसलन, किडनी के मामले में एचएलए, लिवर और हार्ट के मामले में ब्ल्ड ग्रुप की मैचिंग कराई जाती है।
-किडनी या लिवर का दान अमूमन करीबी रिश्तेदार जिनमें पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी शामिल हैं, में ही मुमकिन होता है। अगर इनसे किडनी लेने में परेशानी है तो दादा-दादी, नाना-नानी, मामा, मौसी, चाचा, ताऊ, पोता-पोती, चचेरे-ममेरे भाई-बहन आदि किडनी दान कर सकते हैं।
कौन नहीं कर सकता
-हेपटाइटिस बी और सी, एचआईवी पॉजिटिव, सिफलिस और रैबीज जैसी बीमारियों से पीड़ित लोग ऑर्गन डोनेट नहीं कर सकते।
ऑर्गन की लाइफ
-अगर कोई इंसान ब्रेन डेड है तो जितनी जल्दी हो उसके शरीर से अंगों को निकालने की कोशिश की जाती है।
-अगर किडनी या लिवर ट्रांसप्लांट होना है तो मरीज और डोनर की इच्छा पर यह निर्भर है।
- अंग निकलने के 6 से 12 घंटों के अंदर ही ट्रांसप्लांट हो जाना चाहिए नहीं तो अंग ट्रांसप्लांट करने योग्य नहीं बचता।
किडनी: 12 घंटे के अंदर
हार्ट: 3 से 4 घंटे में
लंग्स: 4 घंटे में
लिवर: 6 घंटे में
आंख: 3 दिनों के अंदर
आई डोनेशन
-इसके लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती।
-कोई भी जीवित शख्स आंखें दान नहीं कर सकता।
-अपने देश में ट्रांसप्लांट के लिए हर साल दो से ढाई लाख आंखों की जरूरत होती है, जिनसे लोगों को फिर से रोशनी मिल सकती है।
-एक आंकड़ा के मुताबिक, देश में हर साल अमूमन 60 हजार आंखें ही दान में मिल पाती हैं।
-अगर कोई कमजोर नजर की वजह से चश्मा लगाता है, मोतियाबिंद है, शुगर का मरीज है तो भी वह अपनी आंखें दान कर सकता है।
- सीधे कहें तो अगर किसी के शरीर में कॉर्निया ठीक है तो उसकी आंखें दान की जा सकती हैं।
- इसके लिए इंसान की मौत के 5 से 6 घंटे के अंदर आई बैंक वालों से संपर्क करना होता है।
- इसमें सिर्फ आंखों की कॉर्निया को निकाला जाता है।
- आंख दान करने के मामले में डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि मृतक की आंखें सही-सलामत रहे। इसके लिए पलकों को बंद करना जरूरी है।
जब लगती हैं दूसरों को आंखें
-आजकल डॉक्टर कॉर्निया को 2 से 3 हफ्तों तक सुरक्षित रख लेते हैं। इसके लिए वे कॉर्निया को खास तरह के सलूशन में डाल कर रखते हैं।
- कॉर्निया किसे लगाया जा रहा है, इस बारे में डोनेशन करने वाले के परिवार वाले को नहीं बताया जाता।
क्यों होते हैं कम अंगदान
-यूरोप के कई देशों में इस तरह का नियम है कि अगर किसी ने लिखकर नहीं है दिया है कि उसके शरीर से अंग नहीं निकाले जा सकते, तब ही उनके अंग दान के लिए उपलब्ध नहीं होते। नहीं तो ब्रेन डेथ की स्थिति में शख्स का अंग दूसरों के शरीर में लगा दिया जाता है।
-जहां तक अपने देश की बात है तो यहां पर अंगदान के लिए मृतक के घरवालों की रजामंदी की जरूरत होती है। इसके बाद ही शरीर से अंग निकाले जाते हैं।
-ब्रेन डेथ अगर हॉस्पिटल में हुई है तब ही दूसरे अंगों के दान हो सकते हैं, नहीं तो सिर्फ कॉर्निया ही दान किया जा सकता है क्योंकि हॉस्पिटल में ही शरीर को वेंटिलेटर पर रखने की सुविधा होती है।
- मेडिकल सुविधा के अभाव में भी अंगों का दान संभव नहीं हो पाता क्योंकि
-स्कूलों और कॉलेजों की पढ़ाई में भी इन बातों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि लोगों के मन में इससे जुड़ी हुई हर तरह की भ्रांति दूर हो।
सोच का भी फर्क
-ज्यादातर लोग सोचते हैं कि दिल की धड़कन बंद होने के बाद ही मौत होती है जबकि ब्रेन डेड की स्थिति में ऐसा नहीं होता। इसलिए लोग ब्रेन डेड होने के बाद भी अंगदान के लिए तैयार नहीं होते।
-अभी भी देश में अंगदान से जुड़े हुए कई मिथ मौजूद हैं। उन्हें लगता है कि आंखदान करने से अगले जनम में उस अंग के बिना पैदा होंगे।
-लोग सोचते हैं कि शरीर से अंग निकालने पर शरीर की बुरी गत हो जाती है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है।
- हॉस्पिटल में जब डॉक्टर इस बात को पूरी तरह से जांच-परख लेते हैं कि मरीज ब्रेन डेथ की स्थिति में है तब वह इस बात की जानकारी उसके घरवालों को देते हैं। अब यह घरवालों पर निर्भर करता है वह अंगदान करने की सहमति देते हैं कि नहीं। दरअसल, घरवालों के लिए बड़ी ही अजीब स्थिति होती है कि शख्स का दिल धड़क रहा है, सांसें चल रही हैं तो फिर उसे मृत कैसे मान लिया जाए। डॉक्टरों का कहना है कि ऐेसे में घरवालों को समझना चाहिए कि जिस इंसान का ब्रेन डेड हो चुका है वह सिर्फ लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर है। अगर वह सिस्टम हटा लिया जाए तो शख्स की धड़कनें रुक जाएंगी।
क्या है लीगल एंगल?
-अगर किसी शख्स ने ऑर्गन डोनेशन के लिए लिखित सहमति दे रखी है, लेकिन उसकी मौत के बाद उसके नजदीकी संबंधी (पत्नी, पिता, माता, भाई) में सभी या कोई एक भी डोनेशन से मना करता है तो अमूमन हॉस्पिटल अंगदान नहीं कराते। दरअसल, विवाद की स्थिति से हॉस्पिटल बचना चाहते है।
-अगर किसी ने ऑर्गन डोनेशन के बारे में फॉर्म नहीं भरा है तो भी अगर उसके परिवारवाले चाहें तो ऑर्गन डोनेशन हो सकता है।
-अंगदान में एक बात साफ है कि इसमें अंगों की खरीद-बिक्री बिलकुल भी नहीं होती।
-अंगदान के बदले किसी भी तरह का प्रलोभन नहीं दिया जा सकता (मसलन, हॉस्पिटल फीस में कमी आदि)।
-प्रलोभन आदि बातों को देखने के लिए अमूमन बड़े अस्पतालों में 'ट्रांसप्लांट ऑथराइजेशन कमिटी' होती है जो यह देखती है कि कोई शख्स या रिश्तेदार अंगदान कर सकता है या नहीं। इस कमिटी में डॉक्टर, वकील और सोशल ऐक्टिविस्ट शामिल होते हैं। अस्पताल में यह कमिटी नहीं है तो जिला या राज्य स्तर की ऑथराइजेशन कमिटी को संपर्क करना होता है।
एक्सपर्ट्स पैनल
-डॉ. एस. के. सरीन डायरेक्टर, द इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलयरी साइंस
-डॉ. प्रवीण वशिष्ट, एचओडी, सामुदायिक नेत्र विभाग, एम्स
-डॉ. राहुल भार्गव, डीएम, हेमेटॉलजी
-डॉ. वरूण वर्मा, सीनियर कंसल्टेंट, नेफ्रॉलजी
-डॉ. विवेक विज, एमएस, लिवर ट्रांसप्लांट
-डॉ. सौरव शर्मा, प्रोजेक्ट मैनेजर, ऑर्गन इंडिया
यहां अंगदान के लिए करें संपर्कः
www.organindia.org
www.notto.nic.in
www.dehdan.org
www.donatelifeindia.org
www.aiims.edu/aiims/orbo/form
www.mohanfoundation.org
कहते हैं जब कोई शख्स इस धरती पर नहीं रहता तो वह यादों और अच्छी बातों के जरिए लोगों के बीच जिंदा रहता है, लेकिन ऑर्गन डोनेशन यानी अंगदान की बदौलत तो वह लोगों के अंगों के अंदर जिंदा रहता है। और यह बात अंगदान को बहुत बड़ा बना देती है। दिल, आंखें, लंग्स, किडनी, पेनक्रियाज, लिवर और स्किन जैसे अंग किसी की मौत के बाद किसी और के काम आ जाते हैं और उसे नई जिंदगी दे जाते हैं।
इंसानियत की दो मिसालेंः-
1- बहन ने किया लिवर डोनेट
हेपटाइटिस की वजह से उसके छोटे भाई की लिवर खराब हो गई थी। डॉक्टरों का कहना था कि उसका 90 फीसदी लिवर खराब हो चुका है। घर में सभी लोगों ने रोना शुरू कर दिया, लेकिन उसकी बहन ने बचे हुए 10 फीसदी लिवर पर फोकस किया और एयर ऐंबुलेंस से मध्य प्रदेश के एक शहर से दिल्ली के बड़े अस्पताल लेकर आई। उसने भाई को अपना लिवर डोनेट किया और भाई की जान बचाई। इस ऑपरेशन में डॉक्टरों को 14 घंटे लगे। ऑपरेशन सफल रहा और दोनों स्वस्थ हैं। इस पूरी कवायद में बहन के ससुराल वालों ने उसका पूरा साथ दिया। यह तभी मुमकिन हुआ क्योंकि डोनर पहले से ही उपलब्ध था। टिशू डोनेशन से किसी की जान बचाने का यह एक अच्छा उदाहरण है।
2- पैरंट्स का साहसी फैसला
अमन 15 साल का है। उसे कुछ दिनों से पेशाब में परेशानी हो रही थी। स्किन पर इचिंग की समस्या रहती थी। वह जल्दी थक भी जाता था। उसके पैरंट्स ने डॉक्टर से संपर्क किया। डॉक्टर ने अमन का चेकअप किया और कुछ जांच लिखे। उन जांच में KFT (किडनी फंक्शन टेस्ट) भी था। रिपोर्ट में उसके शरीर में क्रिएटिनिन, यूरिया, सभी का स्तर नॉर्मल लेवल से काफी ऊपर पहुंच चुका था। डॉक्टर ने सीधा कह दिया कि किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत है और वह भी जल्द से जल्द। अमन का 2 से 3 फीसदी ही किडनी काम कर रहा है। अब इतनी जल्दी किडनी की व्यवस्था कहां से हो? उसके मम्मी और पापा दोनों को शुगर की समस्या थी, इसलिए डॉक्टर्स ने उनकी किडनी लेने से मना कर दिया। संयोग की बात थी कि उसी हॉस्पिटल में एक 14 साल के बच्चा भी भर्ती हुआ जिसका ब्रेन डेड था। उसके पैरंट्स अपने बच्चे के सभी अंगों का दान करना चाह रह थे। अमन को उसकी किडनी मिल गई। उस किशोर का हार्ट भी उसी शहर के दूसरे हॉस्पिटल में एक पेशंट में ट्रांसप्लांट हो गया। दोनों जगह ऑपरेशन सफल रहा। भले ही वह किशोर इस दुनिया में नहीं है, लेकिन सच तो यह है कि उसने कई इंसानों को नई जिंदगी दे दी। यह मुमकिन हुआ ऑर्गन डोनेशन से।
डोनेशन की जरूरत क्यों?
इंसान के शरीर में जो अंग काम करते हैं, वैसे अंग बनाना अभी संभव नहीं हुआ है। इस फील्ड में रिसर्च जोरों पर है। फिर भी वैज्ञानिकों का मानना है कि शरीर से काफी हद तक मिलते-जुलते कुछ अंग बनाने में 5 से 10 बरस तक लग सकते हैं। ऐसे में अगर कोई अंग काम नहीं कर रहा हो तो ट्रांसप्लांट का ही ऑप्शन बचता है और इसीलिए अंगदान की जरूरत है। लेकिन दिक्कत यह है कि भारत में अब भी लोग अंगदान से झिझकते हैं और इसीलिए ट्रांसप्लांट के लिए अंग मिल नहीं पाते।
क्या है ऑर्गन डोनेशन
मानव शरीर के कई ऐसे अंग हैं जिन्हें काम न करने पर बदला जा सकता है। इसके लिए किसी दूसरे हेल्दी इंसान से अंग लेकर उसे बीमार व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जाता है। प्रत्यारोपण के लिए अंगों का मिलना तभी संभव है जब कोई अंग देने के लिए तैयार हो। किसी दूसरे को अंग देना ही आर्गन डोनेशन है। आंखों को छोड़कर बाकी अंगों के मामले में यह तभी मुमकिन है जब शख्स के दिल की धड़कनें चलती रहें, भले ही उसके ब्रेन ने काम करना बंद कर दिया हो।
ब्रेन डेड और सामान्य मौत में अंतरः-
क्या है ब्रेन डेड
जब शरीर के बाकी अंग काम कर रहे हों, लेकिन किसी वजह से ब्रेन ने काम करना बंद कर दिया हो और फिर से उसके काम करने की संभावना न हो तो इंसान को ब्रेन डेड माना जाता है। ब्रेन के इस स्थिति में पहुंचने की खास वजहें होती हैं:
-सिर में गंभीर चोट लगने से
-ट्यूमर की वजह से
-लकवे की वजह से
कोमा और ब्रेन डेथ में अंतर
इन दोनों में एक बड़ा अंतर यह है कि कोमा से इंसान नॉर्मल स्थिति में वापस आ सकता है, लेकिन ब्रेन डेथ होने के बाद ऐसा नहीं होता। कोमा की स्थिति में शख्स का ब्रेन डेड नहीं होता, उसके दिमाग का कुछ हिस्सा काम कर रहा होता है जबकि ब्रेन डेड के मामले में ऐसा नहीं होता। कोमा की स्थिति में यह जरूरी नहीं है कि इंसान वेंटिलेटर पर ही हो जबकि ब्रेन डेथ की स्थिति में वह इसी पर रहता है। तो डोनेशन ब्रेन डेड के मामले में ही हो सकता है, कोमा वाले पेशंट का नहीं।
इन अंगों का होता है ज्यादा दानः
-किडनी, आंखें, लंग्स, हार्ट, लिवर
इनका होता है कम दानः
-पैनक्रियाज़, छोटी आंत और त्वचा
नोट: आंख, हड्डी और स्किन के टिशू का ही दान होता है। पूरे अंग का नहीं। वहीं बोनमैरो ट्रांसप्लांट के लिए अब सिर्फ ब्लड डोनेट करने से भी काम हो जाता है।
अंगदान से जुड़े कुछ दूसरे तथ्य
-अमूमन अंगदान किसी शख्स की मौत के बाद ही होता है। ब्रेन डेड को भी मौत के बराबर ही माना जाता है।
-जिंदा रहते हुए इंसान दो में से अपने एक किडनी का दान कर सकता है। लिवर में से एक छोटा-सा हिस्सा भी दान किया जा सकता है। दरअसल, एक किडनी के साथ इंसान सामान्य जिंदगी जी सकता है। ऐसे में हेल्दी इंसान अपना एक किडनी दान कर सकता है। आजकल किडनी ट्रांसप्लांट के मामले में सफलता की दर काफी है। ट्रांसप्लांट के बाद पहले साल में अंग 95 फीसदी क्षमता से भी ज्यादा से काम करता है, लेकिन हर साल इसमें 2 से 3 फीसदी की कमी होती जाती है। 10 साल के बाद यह प्रतिशत 50 फीसदी तक पहुंच जाती है।
-मरने के बाद होने वाले अंगदान में सबसे ज्यादा होता है आंखों का दान। दरअसल, सामान्य मौत के मामले में भी आंखें जल्दी खराब नहीं होतीं।
-दूसरे अंग का दान तभी कामयाब है जब शख्स का ब्रेन डेड हुआ हो।
बोन मैरो डोनेशन
-बोन मैरो की जरूरत अमूमन ब्लड कैंसर के केस में होती है।
-पहले जब तकनीक ज्यादा विकसित नहीं थी तब हेल्दी इंसान के बोन मैरो को शरीर की बड़ी हड्डियों (हाथ, पैर, थाई आदि) से निकालकर मरीज के शरीर में पहुंचाया जाता था। लेकिन अब यह बेहद आसान हो गया है।
-अब हेल्दी इंसान के सिर्फ 300 एमएल ब्लड डोनेट करने से ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट में मदद हो जाती है।
-इसके लिए अगर कोई चाहे तो नॉर्मल रक्तदान करते समय भी बोन मैरो डोनेशन के लिए सहमति दे सकता है।
-सहमति मिलने के बाद डॉक्टर इसके लिए उसके ब्लड का नमूना लेते हैं। ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HAL) के मिलान के लिए उस शख्स का डीएनए रख लिया जाता है ताकि भविष्य में जब किसी का डीएनए उस शख्स के डीएनए से मैच हो जाए तब 300 एमएल ब्लड लेकर किसी बीमार इंसान में बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है।
ये कर सकते हैं ऑर्गन डोनेट
-दान के मामले में उम्र की कोई सीमा नहीं होती। एक दिन के बच्चे से लेकर 90 बरस के बुजुर्ग भी अंगदान कर सकते हैं।
-18 साल से 65 साल तक की उम्र में अंगदान करना सबसे बेहतर माना जाता है।
-अंगदान करने से पहले कई चीजों की मैचिंग कराई जाती है। मसलन, किडनी के मामले में एचएलए, लिवर और हार्ट के मामले में ब्ल्ड ग्रुप की मैचिंग कराई जाती है।
-किडनी या लिवर का दान अमूमन करीबी रिश्तेदार जिनमें पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन, बेटा-बेटी शामिल हैं, में ही मुमकिन होता है। अगर इनसे किडनी लेने में परेशानी है तो दादा-दादी, नाना-नानी, मामा, मौसी, चाचा, ताऊ, पोता-पोती, चचेरे-ममेरे भाई-बहन आदि किडनी दान कर सकते हैं।
कौन नहीं कर सकता
-हेपटाइटिस बी और सी, एचआईवी पॉजिटिव, सिफलिस और रैबीज जैसी बीमारियों से पीड़ित लोग ऑर्गन डोनेट नहीं कर सकते।
ऑर्गन की लाइफ
-अगर कोई इंसान ब्रेन डेड है तो जितनी जल्दी हो उसके शरीर से अंगों को निकालने की कोशिश की जाती है।
-अगर किडनी या लिवर ट्रांसप्लांट होना है तो मरीज और डोनर की इच्छा पर यह निर्भर है।
- अंग निकलने के 6 से 12 घंटों के अंदर ही ट्रांसप्लांट हो जाना चाहिए नहीं तो अंग ट्रांसप्लांट करने योग्य नहीं बचता।
किडनी: 12 घंटे के अंदर
हार्ट: 3 से 4 घंटे में
लंग्स: 4 घंटे में
लिवर: 6 घंटे में
आंख: 3 दिनों के अंदर
आई डोनेशन
-इसके लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती।
-कोई भी जीवित शख्स आंखें दान नहीं कर सकता।
-अपने देश में ट्रांसप्लांट के लिए हर साल दो से ढाई लाख आंखों की जरूरत होती है, जिनसे लोगों को फिर से रोशनी मिल सकती है।
-एक आंकड़ा के मुताबिक, देश में हर साल अमूमन 60 हजार आंखें ही दान में मिल पाती हैं।
-अगर कोई कमजोर नजर की वजह से चश्मा लगाता है, मोतियाबिंद है, शुगर का मरीज है तो भी वह अपनी आंखें दान कर सकता है।
- सीधे कहें तो अगर किसी के शरीर में कॉर्निया ठीक है तो उसकी आंखें दान की जा सकती हैं।
- इसके लिए इंसान की मौत के 5 से 6 घंटे के अंदर आई बैंक वालों से संपर्क करना होता है।
- इसमें सिर्फ आंखों की कॉर्निया को निकाला जाता है।
- आंख दान करने के मामले में डॉक्टर यह सलाह देते हैं कि मृतक की आंखें सही-सलामत रहे। इसके लिए पलकों को बंद करना जरूरी है।
जब लगती हैं दूसरों को आंखें
-आजकल डॉक्टर कॉर्निया को 2 से 3 हफ्तों तक सुरक्षित रख लेते हैं। इसके लिए वे कॉर्निया को खास तरह के सलूशन में डाल कर रखते हैं।
- कॉर्निया किसे लगाया जा रहा है, इस बारे में डोनेशन करने वाले के परिवार वाले को नहीं बताया जाता।
क्यों होते हैं कम अंगदान
-यूरोप के कई देशों में इस तरह का नियम है कि अगर किसी ने लिखकर नहीं है दिया है कि उसके शरीर से अंग नहीं निकाले जा सकते, तब ही उनके अंग दान के लिए उपलब्ध नहीं होते। नहीं तो ब्रेन डेथ की स्थिति में शख्स का अंग दूसरों के शरीर में लगा दिया जाता है।
-जहां तक अपने देश की बात है तो यहां पर अंगदान के लिए मृतक के घरवालों की रजामंदी की जरूरत होती है। इसके बाद ही शरीर से अंग निकाले जाते हैं।
-ब्रेन डेथ अगर हॉस्पिटल में हुई है तब ही दूसरे अंगों के दान हो सकते हैं, नहीं तो सिर्फ कॉर्निया ही दान किया जा सकता है क्योंकि हॉस्पिटल में ही शरीर को वेंटिलेटर पर रखने की सुविधा होती है।
- मेडिकल सुविधा के अभाव में भी अंगों का दान संभव नहीं हो पाता क्योंकि
-स्कूलों और कॉलेजों की पढ़ाई में भी इन बातों को शामिल किया जाना चाहिए ताकि लोगों के मन में इससे जुड़ी हुई हर तरह की भ्रांति दूर हो।
सोच का भी फर्क
-ज्यादातर लोग सोचते हैं कि दिल की धड़कन बंद होने के बाद ही मौत होती है जबकि ब्रेन डेड की स्थिति में ऐसा नहीं होता। इसलिए लोग ब्रेन डेड होने के बाद भी अंगदान के लिए तैयार नहीं होते।
-अभी भी देश में अंगदान से जुड़े हुए कई मिथ मौजूद हैं। उन्हें लगता है कि आंखदान करने से अगले जनम में उस अंग के बिना पैदा होंगे।
-लोग सोचते हैं कि शरीर से अंग निकालने पर शरीर की बुरी गत हो जाती है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है।
- हॉस्पिटल में जब डॉक्टर इस बात को पूरी तरह से जांच-परख लेते हैं कि मरीज ब्रेन डेथ की स्थिति में है तब वह इस बात की जानकारी उसके घरवालों को देते हैं। अब यह घरवालों पर निर्भर करता है वह अंगदान करने की सहमति देते हैं कि नहीं। दरअसल, घरवालों के लिए बड़ी ही अजीब स्थिति होती है कि शख्स का दिल धड़क रहा है, सांसें चल रही हैं तो फिर उसे मृत कैसे मान लिया जाए। डॉक्टरों का कहना है कि ऐेसे में घरवालों को समझना चाहिए कि जिस इंसान का ब्रेन डेड हो चुका है वह सिर्फ लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर है। अगर वह सिस्टम हटा लिया जाए तो शख्स की धड़कनें रुक जाएंगी।
क्या है लीगल एंगल?
-अगर किसी शख्स ने ऑर्गन डोनेशन के लिए लिखित सहमति दे रखी है, लेकिन उसकी मौत के बाद उसके नजदीकी संबंधी (पत्नी, पिता, माता, भाई) में सभी या कोई एक भी डोनेशन से मना करता है तो अमूमन हॉस्पिटल अंगदान नहीं कराते। दरअसल, विवाद की स्थिति से हॉस्पिटल बचना चाहते है।
-अगर किसी ने ऑर्गन डोनेशन के बारे में फॉर्म नहीं भरा है तो भी अगर उसके परिवारवाले चाहें तो ऑर्गन डोनेशन हो सकता है।
-अंगदान में एक बात साफ है कि इसमें अंगों की खरीद-बिक्री बिलकुल भी नहीं होती।
-अंगदान के बदले किसी भी तरह का प्रलोभन नहीं दिया जा सकता (मसलन, हॉस्पिटल फीस में कमी आदि)।
-प्रलोभन आदि बातों को देखने के लिए अमूमन बड़े अस्पतालों में 'ट्रांसप्लांट ऑथराइजेशन कमिटी' होती है जो यह देखती है कि कोई शख्स या रिश्तेदार अंगदान कर सकता है या नहीं। इस कमिटी में डॉक्टर, वकील और सोशल ऐक्टिविस्ट शामिल होते हैं। अस्पताल में यह कमिटी नहीं है तो जिला या राज्य स्तर की ऑथराइजेशन कमिटी को संपर्क करना होता है।
एक्सपर्ट्स पैनल
-डॉ. एस. के. सरीन डायरेक्टर, द इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलयरी साइंस
-डॉ. प्रवीण वशिष्ट, एचओडी, सामुदायिक नेत्र विभाग, एम्स
-डॉ. राहुल भार्गव, डीएम, हेमेटॉलजी
-डॉ. वरूण वर्मा, सीनियर कंसल्टेंट, नेफ्रॉलजी
-डॉ. विवेक विज, एमएस, लिवर ट्रांसप्लांट
-डॉ. सौरव शर्मा, प्रोजेक्ट मैनेजर, ऑर्गन इंडिया
यहां अंगदान के लिए करें संपर्कः
www.organindia.org
www.notto.nic.in
www.dehdan.org
www.donatelifeindia.org
www.aiims.edu/aiims/orbo/form
www.mohanfoundation.org
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