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यों थाम लें अस्थमा

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अस्थमा (दमा) एक बार किसी को हो जाए तो जिंदगी भर रहता है। हां, वक्त पर इलाज और आगे जाकर ऐहतियात बरतने पर इसे काबू में किया जा सकता है। एक्सपर्ट्स से बात करके अस्थमा की वजह, इलाज और मैनेजमेंट पर जानकारी दे रहे हैं चंदन चौधरी

क्या है अस्थमा
अस्थमा (दमा) सांस से जुड़ी बीमारी है, जिसमें मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है। इस बीमारी में सांस की नली में सूजन या पतलापन आ जाता है। इससे फेफड़ों पर अतिरिक्त दबाव महसूस होता है। ऐसे में सांस लेने पर दम फूलने लगता है, खांसी होने लगती है और सीने में जकड़न के साथ-साथ घर्र-घर्र की आवाज आती है। अस्थमा किसी भी उम्र में हो सकता है ।
लक्षणों के आधार पर अस्थमा दो तरह का होता हैः बाहरी और आंतरिक अस्थमा। बाहरी अस्थमा परागकणों, पशुओं, धूल, गंदगी, कॉकरोच आदि के कारण हो सकता है, जबकि आंतरिक अस्थमा कुछ केमिकल्स के शरीर के अंदर जाने से होता है। इसकी वजह प्रदूषण, सिगरेट का धुआं आदि होता है। आमतौर पर इस बीमारी का मुख्य असर मौसम के बदलाव के साथ दिखता है।

लक्षण
•सांस फूलना
•लगातार खांसी आना
•छाती घड़घड़ाना यानी छाती से आवाज आना
•छाती में कफ जमा होना
•सांस लेने में अचानक दिक्कत होना

कब बढ़ता है अस्थमा
•रात में या सुबह तड़के
•ठंडी हवा या कोहरे से
•ज्यादा कसरत करने के बाद
•बारिश या ठंड के मौसम में

बीमारी की वजहें
जनेटिकः यह जनेटिक वजहों से भी हो सकती है। अगर माता-पिता में से किसी को भी अस्थमा है तो बच्चों को यह बीमारी होने की आशंका होती है। अगर माता-पिता दोनों को अस्थमा है तो बच्चों में इसके होने की आशंका 50 से 70 फीसदी और एक में है तो करीब 30-40 फीसदी तक होती है।

एयर पलूशन: अस्थमा अटैक के अहम कारणों में वायु प्रदूषण भी है। स्मोकिंग, धूल, कारखानों से निकलने वाला धुआं, धूप-अगरबत्ती और कॉस्मेटिक जैसी सुगंधित चीजों से दिक्कत बढ़ जाती है।

खाने-पीने की चीजें: कोई खास चीज खाने-पीने से अगर शारीरिक समस्या होती है तो उसे नहीं खाना चाहिए। आमतौर पर अंडा, मछली, सोयाबीन, गेहूं से एलर्जी है तो अस्थमा का अटैक पड़ने की आशंका बढ़ जाती है।

स्मोकिंग: सिगरेट पीने से भी अस्थमा अटैक संभव है। एक सिगरेट भी मरीज को नुकसान पहुंचा सकती है।

दवाएं: ब्लड प्रेशर में दी जाने वालीं बीटा ब्लॉकर्स, कुछ पेनकिलर्स और कुछ एंटी-बायोटिक दवाओं से अस्थमा अटैक हो सकता है।

तनाव: चिंता, डर, खतरे जैसे भावनात्मक उतार-चढ़ावों से तनाव बढ़ता है। इससे सांस की नली में रुकावट पैदा होती है और अस्थामा का दौरा पड़ता है।


फर्क है अस्थमा और एलर्जी में
अस्थमा और एलर्जी में कई बार लोग कन्फ्यूज कर जाते हैं। हालांकि दोनों में कई चीजें कॉमन हैं, लेकिन फिर भी दोनों अलग-अलग हैं। लगातार कई दिनों तक जुकाम, खांसी या सांस लेने में दिक्कत हो तो इन्फेक्शन इसकी वजह हो सकता है, जबकि अस्थमा में सांस लेने में परेशानी के अलावा रात में सोते वक्त खांसी आना, छाती में जकड़न महसूस होना, एक्सरसाइज करते हुए या सीढ़ियां चढ़ते वक्त सांस फूलना या खांसी आना, ज्यादा ठंड या गर्मी होने पर सांस लेने में दिक्कत होना जैसे लक्षण होते हैं।

हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि अस्थमा भी एक तरह की एलर्जी ही है। जैसे ही शरीर एलर्जी वाली चीजों के संपर्क में आता है, अस्थमा का अटैक होता है। इसे एलर्जिक अस्थमा कहते हैं। हां, अस्थमा और एलर्जी में एक और कनेक्शन है। अगर किसी को एलर्जिक अस्थमा नहीं है, सिर्फ एलर्जी है तो अस्थमा होने का खतरा 40 फीसदी तक बढ़ जाता है।


जरूरी टेस्ट
अस्थमा या दमा रोग विशेषज्ञ (Allergist) या छाती रोग विशेषज्ञ (Pulmonologist) को ही दिखाएं। मरीज के कुछ टेस्ट किए जाते हैं, जिनमें स्पायरोमेट्री (Spirometry), पीक फ्लो (Peak Flow), लंग्स फंक्शन टेस्ट और एलर्जी टेस्ट शामिल हैं।

1. स्पायरोमेट्री: इसमें जांच की जाती है कि मरीज कितनी तेजी से सांस ले सकता है और छोड़ सकता है।
कीमत: 500 से 2000
2. पीक फ्लो: फेफड़े कितना काम कर रहे हैं, यह देखने के अलावा यह भी चेक करते हैं कि मरीज सांस कितनी तेजी से बाहर निकाल पा रहा है।
कीमत: 500 तक
3. लंग्स या पल्मनरी फंक्शन टेस्ट: इस टेस्ट के जरिए फेफड़े और पूरे श्वसन तंत्र की जांच की जाती है।
कीमत: करीब 700

अगर अस्थमा की वजह एलर्जी है तो उसके लिए 2 टेस्ट होते हैं: स्किन पैच टेस्ट और ब्लड टेस्ट
1. स्किन पैच टेस्ट: जिस भी चीज से एलर्जी का शक होता है, उसका कंसंट्रेशन स्किन पर पैच के जरिए लगाया जाता है। इसके रिजल्ट सटीक होते हैं।
कीमत: 10,000 तक
2. ब्लड टेस्ट: ब्लड टेस्ट से भी एलर्जी की जांच होती है। हालांकि एक्सपर्ट इसे बहुत सटीक नहीं मानते।
कीमत: 800 तक


हो जाए तो बरतें ये एहतियात

•दवाएं नियमित रूप से लें।
•सूखी सफाई यानी झाड़ू से घर की साफ-सफाई से बचें। अगर ऐसा करते हैं तो ठीक से मुंह-नाक ढक कर करें। वैसे, वैक्यूम क्लीनर का इस्तेमाल करना बेहतर है। गीला पोंछा और पानी से फर्श धोना भी अच्छा विकल्प हो सकता है।
•बेडशीट, सोफा, गद्दे आदि की भी नियमित सफाई करें, खासकर तकिया की क्योंकि इसमें काफी सारे एलर्जीवाले तत्व मौजूद होते हैं। हफ्ते में एक बार चादर और तकिए के कवर बदल लें और दो महीने में पर्दे धो लें।
•कारपेट इस्तेमाल न करें या फिर उसे कम-से-कम 6 महीने में ड्राइक्लीन करवाते रहें।
•कॉकरोच, चूहे, फफूंद आदि को घर में जमा न होने दें।
•मौसम के बदलाव के समय एहतियात बरतें। बहुत ठंडे से बहुत गर्म में अचानक नहीं जाएं और न ही बहुत ठंडा या गर्म खाना खाएं।
•रुटीन ठीक रखें। वक्त पर सोएं, भरपूर नींद लें और तनाव न लें।

खानपान का रखें ख्याल

•जिस चीज को खाने से सांस की तकलीफ बढ़ जाती हो, वह न खाएं। डॉक्टर सिर्फ ठंडी चीजें खाने से मना करते हैं। आमतौर पर मरीज सोचता है कि मुझे फूड एलर्जी है, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है। डॉक्टर जिस चीज से मना करें, वही न खाएं, बाकी सब खाएं। हां, जंक फूड से अस्थमा अटैक की आशंका ज्यादा होती है।
•एक बार में ज्यादा खाना नहीं खाना चाहिए। इससे छाती पर दबाव पड़ता है।
•विटामिन ए (पालक, पपीता, आम, अंडे, दूध, चीज़, बेरी आदि), सी (टमाटर, संतरा, नीबू, ब्रोकली, लाल-पीला शिमला मिर्च) और विटामिन ई (पालक, शकरकंद, बादाम, सूरजमुखी के बीज आदि ) और एंटी-ऑक्सिडेंट वाले फल और सब्जियां जैसे कि बादाम, अखरोट, राजमा, मूंगफली, शकरकंद आदि खाने से लाभ होता है।
•अदरक, लहसुन, हल्दी और काली मिर्च जैसे मसालों से फायदा होता है।
•रेशेदार चीजें जैसे कि ज्वार, बाजरा, ब्राउन राइस, दालें, राजमा, ब्रोकली, रसभरी, आडू आदि ज्यादा खाएं।
•फल और हरी सब्जियां खूब खाएं।
•रात का भोजन हल्का और सोने से दो घंटे पहले होना चाहिए।


क्या न खाएं

प्रोट्रीन से भरपूर चीजें बहुत ज्यादा न खाएं।
•रिफाइन कार्बोहाइड्रेट (चावल, मैदा, चीनी आदि) और फैट वाली चीजें कम-से-कम खाएं।
•अचार और मसालेदार खाने से भी परहेज करें।
•ठंडी और खट्टी चीजों से परहेज करें।

ये जरूर खाएं


ओमेगा-3 फैटी एसिड
ओमेगा-3 फैटी एसिड साल्मन, टूना मछलियों में और मेवों व अलसी में पाया जाता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड फेफड़ों के लिए लाभदायक है। यह सांस की तकलीफ एवं घरघराहट के लक्षणों से निजात दिलाता है।

फोलिक एसिड
पालक, ब्रोकली, चुकंदर, शतावरी, मसूर की दाल में फोलेट होता है। हमारा शरीर फोलेट को फोलिक एसिड में तब्दील करता है। फोलेट फेफड़ों से कैंसर पैदा करने वाले तत्वों को हटाता है।

विटमिन सी
संतरे, नींबू, टमाटर, कीवी, स्ट्रॉबरी, अंगूर और अनानास में भरपूर विटमिन सी होता है, सांस लेते वक्त शरीर को ऑक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए मदद करते हैं।

लहसुन
लहसुन में मौजूद एलिसिन तत्व फेफड़ों से फ्री रेडिकल्स को दूर करने में मदद करते हैं। लहसुन संक्रमण से लड़ता है, फेफड़ों की सूजन कम करता है।

बेरी
बेरीज में ऐंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये कैंसर से बचाने के लिए फेफड़ों से कार्सिनोजन को हटाते हैं।

कैरोटीनॉयड ऐंटीऑक्सीडेंट अस्थमा के दौरों से राहत दिलाता है। फेफड़ों की कैरोटीनॉयड की जरूरत को पूरा करने के लिए गाजर, शकरकंद, टमाटर, पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना बेहतर रहता है।

इस निशाचर से होती है परेशानी
कॉकरोच के कारण अस्थमा और एलर्जी की समस्या बढ़ सकती है। एक स्टडी में पाया गया है कि एलर्जी के 60 फीसदी से अधिक मामलों का कारण कॉकरोच है। दरअसल कॉकरोच के मुंह से एक विशेष प्रकार का लार निकलता है, जो अस्थमा के लिए खतरनाक माना जाता है।
कॉकरोच नमी वाली जगहों, सीवेज और उन जगहों पर रहते हैं, जहां गंदगी होती है। वे एलर्जी पैदा करने वाले तत्व अपने साथ लाते हैं। इससे उन पर बुरा असर पड़ता है जो अस्थमा से पीड़ित होते हैं क्योंकि यह ट्रिगर का काम करता है।

कॉकरोच से बचने के लिए क्या करें

•घर को साफ रखें।
•रात को सोने से पहले रसोई और सिंक साफ करें।
•डस्टबिन साफ रखें और ढंक कर रखें।
•खाना खुला कभी नहीं छोड़ें।
•फ्रिज को नियमित रूप से साफ करें।
•नमी वाली जगहों को साफ रखें।
•ऐसे सभी छेदों को बंद कर दें जहां से कॉकरोच घर में घुस सकता है।
•बाजार में कई तरह की दवाइयां मिलती हैं जिससे कॉकरोच मारा जा सकता है।
•कम से कम छह महीने पर घर में पेस्ट कंट्रोल करवाना ना भूलें।
•खास बात यह कि कॉकरोच भगाने के लिए जब भी केमिकल का इस्तेमाल करें तो बच्चों और खाने-पीने की चीजों को दूर रखें।


बरतें सावधानी, कराएं इलाज
अस्थमा से स्थायी रूप से छुटकारा पाना मुमकिन नहीं है। हां, इसे कंट्रोल किया जा सकता है और आप सामान्य जिंदगी जी सकते हैं। इसका इलाज दो तरीके से किया जाता है:
1. अस्थमा से फौरी राहत देकर 2. बीमारी का मैनेजमेंट यानी उसे काबू में रख कर

इलाज में दो तरह की दवाएं दी जाती हैं:
एंटी-इन्फ्लेमेटरी: यह सूजन और जलन को कम करने वाली दवा है। यह विशेष रूप से नाक के जरिए ली जाने वाली दवा है। इस दवा से सांस की नली में सूजन और कफ बनना कम होता है।
ब्रोंकोडाइलेटर्स: ये दवाएं सांस की नली को फौरन चौड़ा करती हैं। इसे फौरी राहत के लिए दिया जाता है। लंबी अवधि के लिए इनफ्लेमेटरी या हाइपर एक्टिविटी को कम करने की दवा देते हैं।
इनहेलर: अस्थमा में इनहेलर थेरपी इस्तेमाल करनी चाहिए। लोगों के मन में धारणा है कि इनहेलर थेरपी का इस्तेमाल आखिर में करना चाहिए या फिर डॉक्टर बीमारी बढ़ने पर ही इस थेरपी को देते हैं, लेकिन यह सोच गलत है। जो दवाएं या पाउडर इनहेलर के जरिए दिया जाता है, वह ज्यादा असर करता है।


योग और घरेलू नुस्खे

अस्थमा में गर्म पानी का सेवन लाभदायक होता है और इससे आराम मिलता है। विशेषज्ञों का कहना है कि योग और प्राकृतिक चिकित्सा में दमा का कोई स्थायी समाधान नहीं है। हां, इसे नियंत्रित किया जा सकता है। योग की मदद से आप तनाव-रहित िजंदगी जी सकते हैं। यह इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने का भी काम करता है।
नोट: योगाभ्यास िकसी प्रशिक्षित योग गुरु की देखरेख में ही करें।

•त्रिकोणासन, कोणासन, ताड़ासन, भुजंगासन, धनुरासन, उष्ट्रासन, वक्रासन, अर्द्ध मत्स्येंद्रासन, पर्वतासन, गोमुखासन और शवासन लाभकारी होते हैं।
•षटकर्मः लाभदायक है। जल नेति, सूत्र नेति, वमन, धौति, दण्ड धौति, वस्त्र धौति। इन क्रियाओं के जरिए कफ बाहर निकलता है। एक्सपर्ट से सीखे बिना ये न करें।
•कपालभाति, भ्रास्त्रिका, उज्जायी प्राणायाम, ओमकार का उच्चारण भी लाभदायक है। इनसे तनाव कम होता है।
•मुख्य बात यह है कि आसन और प्राणायाम करते हुए सीने का विस्तार और संकुचन सांस के तालमेल के साथ करना चाहिए यानी विस्तार सांस भरते हुए और संकुचन सांस छोड़ते हुए करना चाहिए। ऐसा करने पर कफ ऊपर की तरफ आता है और सीने पर दबाव कम होता है।

बरतें ये एहतियात जब पड़ जाए अटैक
•मरीज की जेब या बैग टटोलें और अगर इनहेलर है तो उसे फौरन इसे इस्तेमाल करने को कहें। इससे राहत मिलने के आसार रहते हैं।
•मरीज के कपड़े ढीले कर दें ताकि वह रिलैक्स हो सके। मरीज के आसपास भीड़ न लगाएं और शांत रहें।
•मरीज को सीधा बिठाएं, अस्थमा अटैक के दौरान मरीज को लिटाना कतई नहीं चाहिए।
•अटैक के समय कुछ खिलाने-पिलाने की कोशिश न करें। इस स्थिति में खाना या पानी सांस की नली में फंस सकता है और हालत ज्यादा बिगड़ सकती है।
•अगर मरीज बोल सकने की स्थिति में नहीं है तो जितनी जल्दी हो सके, उसे पास के अस्पताल ले जाने की कोशिश करें।

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