बढ़ती उम्र अक्सर कई बीमारियों और समस्याओं की वजह बन जाती है। कई बार ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं कि घरवालों को लगता है कि बुजुर्ग पागल हो गए हैं या फिर उन्हें जानबूझ कर परेशान कर रहे हैं, जबकि असल में वे बीमार होते हैं और उन्हें सही देखभाल और प्यार की दरकार होती है। अगर घर में कोई ऐसी किसी बीमारी से पीड़ित है तो उससे कैसे निपटें, एक्सपर्ट्स से बात करके जानकारी दे रही हैं
प्रियंका सिंह
एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. विनय गोयल, प्रफेसर, न्यूरॉलजी, एम्स
डॉ. प्रवीण गुप्ता, एचओडी, न्यूरॉलजी, फोर्टिस हॉस्पिटल
जी. पी. भगत, फाउंडर, गुरु विश्राम वृद्ध आश्रम
डॉ. राजीव अग्रवाल, इन्चार्ज, न्यूरो फिजियो यूनिट, एम्स
64 साल की माला वर्मा (बदला नाम) की बहू नीता ने अपनी कुछ फ्रेंड्स को घर बुलाया। माला भी उनसे मिलने ड्रॉइंग-रूम में आ गईं। नीता की एक फ्रेंड ने बातों ही बातों में पूछ लिया, 'अम्मा, आपके चाय पी?' इस पर माला गुस्से से बोलीं, 'बेटी, मुझे तो कई दिन से किसी ने चाय नहीं दी। मैं तो अब इन पर बोझ बन गई हूं ' यह सुनकर नीता बहुत नाराज हो गईं। वह अपनी सास पर चिल्लाने लगीं कि इनका कितनी भी ख्याल रखो, हमेशा बुराई ही करती रहती हैं। अभी थोड़ी देर पहले ही तो इन्हें चाय बनाकर दी थी। घर का माहौल बिगड़ता देख सहेलियों ने वहां से निकलने में ही भलाई समझी। शाम को पति ऑफिस से लौटा तो नीता ने उससे मां की शिकायत की। उसने भी मां पर काफी गुस्सा किया कि आप जान-बूझकर दूसरों के सामने हमें नीचा दिखाती हैं। घर में बहुत अशांति हो गई लेकिन किसी ने भी असल समस्या पर गौर नहीं किया। दरअसल, माया पिछले कुछ महीनों से अजीब-सा बर्ताव कर रही हैं। वह अक्सर लोगों के नाम भूल जाती हैं, सामान रखकर भूल जाती हैं, कभी-कभी जोर से बोलने या रोने भी लगती हैं। दिन में कई बार नहाती हैं और कभी-कभी कपड़े पहने बगैर बाथरूम से निकल आती हैं। घरवालों को लगता है कि वह जान-बूझ कर ऐसा कर रही हैं क्योंकि नीता से उनकी बनती नहीं है लेकिन माया बुढ़ापे की सबसे बड़ी बीमारियों में से एक डिमेंशिया से पीड़ित हैं। जानते हैं डिमेंशिया और बुढ़ापे की दूसरी बीमारियों के लक्षण और इलाज के बारे में ताकि बुढ़ापा पैरंट्स के साथ-साथ बच्चों के लिए बड़ी समस्या न बने।
डिमेंशिया
अगर किसी की याददाश्त इतनी कमजोर हो गई हो कि उसका असर रोजाना के काम पर पड़ रहा हो, मसलन वह भूल जाता हो कि कौन-सा महीना चल रहा है, किस शहर में रह रहा है, खाना खाया है या नहीं तो वह डिमेंशिया से पीड़ित हो सकता है। यह शब्द डीई (बिना) और मेंशिया (दिमाग) को जोड़कर बनाया गया है यानी दिमाग के काम करने की क्षमता का कम होना। इस बीमारी में दिमाग के कुछ खास सेल्स खत्म होने लगते हैं, जिससे उस शख्स की सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती है और बर्ताव में भी बदलाव आ जाता है। डिमेंशिया को दो कैटिगरी में बांटा जा सकता हैः एक, जिसका बचाव या इलाज मुमकिन है और दूसरा उम्र के साथ बढ़ने वाला। पहली कैटिगरी में ब्लड प्रेशर, डायबीटीज, स्मोकिंग, ट्यूमर, टीबी, स्लीप एप्निया, विटामिन की कमी आदि से होनेवाला डिमेंशिया आता है तो दूसरी कैटिगरी में अल्टशाइमर्स (Alzheimer's ), फ्रंटोटेंपोरल डिमेंशिया (FTD) और वस्कुलर डिमेंशिया आता है।
1. अल्टशाइमर्स सबसे कॉमन डिमेंशिया है। इसमें मेमरी लॉस के साथ-साथ मरीज का ओरिएंटेशन गड़बड़ा जाता है जैसे कि वह भूल जाता है कि घर में बाथरूम किधर है या फिर मार्केट में कौन-सी शॉप कहां है या कई बार तो वह अपने घर का रास्ता ही भूल जाता है।
2. FTD में भूलने के साथ-साथ मरीज के बर्ताव में बहुत बदलाव आ जाता है, मसलन वह बहुत जिद्दी हो जाता है, गुस्सा करने लगता है, चिड़चिड़ा हो जाता है।
3. वस्कुलर डिमेंशिया के लक्षण तो करीब-करीब अल्टशाइमर्स जैसे ही होते हैं लेकिन यह धीरे-धीरे नहीं, बल्कि स्ट्रोक के बाद अचानक होता है।
लक्षण
- किसी का नाम, चीज रखकर या शब्दों को भूल जाना
- अपने करीबियों को भी न पहचान पाना
- नई चीजें सीखने और फैसले लेने में दिक्कत होना
- एक ही बात को बार-बार दोहराना
- बेवजह गुस्सा आना, आक्रामक होना या परेशान रहना
- छोटे-मोटे काम जैसे कि ड्राइविंग, खाना पकाना, कपड़े पहनना, खाना खाना आदि में दिक्कत होना
- मतिभ्रम होना यानी किसी इंसान या जानवर आदि के होने का भ्रम होना
- उलटे-सीधे फैसले लेना जैसे कि गर्मियों में मोटा जैकेट पहन लेना या सर्दियों में भी जमीन पर सोना या कपड़े उतार देना
क्या हैं वजहें
- बढ़ती उम्र, आमतौर पर 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग बनते हैं शिकार
- बहुत ज्यादा स्मोकिंग करना
- बिल्कुल एक्सरसाइज न करना
- ब्लड प्रेशर ज्यादा होना
- फैमिली हिस्ट्री होना
- जिनेटिक वजहों से पुरुष ज्यादा होते हैं शिकार
नोट: इस बीमारी की कोई एक वजह नहीं होती। हां, ऊपर दी गई वजहें बीमारी की आशंका को बढ़ा सकती हैं।
5 स्टेज होती हैं डिमेंशिया की
स्टेज 1: डिमेंशिया की शुरुआत में ऐसे कोई बदलाव नहीं आते, जिन्हें आसानी से पहचाना जा सके। मरीज अपनी जरूरतों और बातों का खयाल रख सकता है। हां, बातों को अक्सर भूलने लगता है।
स्टेज 2: दूसरी स्टेज है ज्यादा भूलना। ऐसे लोग अक्सर चीजों को रखकर भूल जाते हैं, लोगों का नाम भूल जाते हैं, समय-तारीख आदि भूल जाते हैं और क्या कर रहे हैं, यह भी भूल जाते हैं। इस स्टेज पर भी मरीज अपना खयाल बिना किसी की मदद के रख सकता है।
स्टेज 3: मरीज रोजाना के रास्तों में ही खो जाता है, बोलने में दिक्कत आने लगती है। उसका बर्ताव बदलने लगता है।
स्टेज 4: मरीज रुटीन के काम नहीं कर पाता। खाना खाने का तरीका उसे याद नहीं रहता, खुद से कपड़े नहीं पहन पाता, नहा नहीं पाता आदि। वह अपने परिवारवालों को नहीं पहचान पाता। उसे किसी की मदद की जरूरत पड़ती है।
स्टेज 5: डिमेंशिया की पांचवीं स्टेज बहुत खतरनाक होती है। मरीज की मेमरी बिल्कुल ही कम हो जाती है और उसे चीजें समझ नहीं आतीं। मरीज कोई भी काम बिना किसी की मदद के नहीं कर पाता।
डिमेंशिया के मरीजों की समस्या और समाधान
1. किसी चीज को रखकर भूल जाते हैं, लोगों के नाम से लेकर खाना खाना तक भूल जाते हैं और बाद की स्टेज में तो कपड़े पहनना भी याद नहीं रहता।
समाधान: सबसे पहले जान लें कि वे जान-बूझकर ऐसा नहीं कर रहे। जिस तरह किसी बीमार शख्स की देखभाल की जाती है, वैसे ही उनकी देखभाल की भी जरूरत है। कोशिश करें कि उनकी चीजों मसलन चाबी, वॉलेट, मोबाइल फोन आदि को हमेशा एक ही जगह पर रखें। उन्हें मोबाइल दें और रोजाना मोबाइल पर उनके बात करें ताकि उन्हें कॉल उठाने और फोन पर बात करने की आदत हो। उनके मोबाइल में ट्रैक मी ऐप डाउनलोड कर, उसे अपने फोन से सिंक कर लें। उनके हाथ में जीपीएस वाली घड़ी भी पहना सकते हैं। इससे उनकी लोकेशन की जानकारी आपको रहेगी। उनके गले में एक लॉकेट डालकर उस पर उनका नाम, घर का पता और परिवार के दो लोगों के मोबाइल नंबर लिख दें ताकि अगर वे कहीं भटक जाएं तो कोई आपको खबर कर दे।
2. गुस्सा बहुत आता है। मारपीट और गाली-गलौच पर उतारू हो जाते हैं। एक ही बात को बार-बार दोहराते हैं।
समाधान: उनसे बहस न करें, न ही चीखे-चिल्लाएं। याद रखें कि उन्हें आपकी बात समझ ही नहीं आ रही। आप गुस्सा ज्यादा करेंगे तो वे और भी गुस्सा करेंगे। यहां तक कि खुद को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। हो सके तो उस वक्त वहां से हट जाएं। उनकी हर बात को उस वक्त 'हां' करें। अगर गलत लगती है तो भी 'हां' कर दें। बाद में बेशक वह काम न करें क्योंकि वे भी अक्सर थोड़ी देर बाद भूल जाएंगे कि उन्होंने क्या कहा था। जो डिमांड पूरी करना मुमकिन है, वह पूरी भी कर दें। इससे वे खुश हो जाएंगे।
3. पेट भरा होगा लेकिन दूसरों को खाते देख दोबारा मांग लेते हैं। खाना ज्यादा खाते हैं या खाना बेकार कर देते हैं। खाने की चीजें और दूसरे सामान उठाकर अपने पास रख लेते हैं।
समाधान: उन्हें एक बार में कम खाना दें ताकि दोबारा मांगने पर आप फिर से दे सकें। अगर थोड़ा-बहुत खाना बेकार हो जाता है तो भी इसे सामान्य मानते हुए परेशान न हों। उनकी पसंद की चीजें बनाएं। गौर करें कि वे कौन-सी चीज कब और कितना खाना पसंद करते हैं। इससे आपको उनकी खुराक का अनुमान हो जाएगा। अगर ज्यादा सामान अपने पास उठाकर रखा है तो उसमें से कुछ सामान चुपचाप उठा लें लेकिन सारा सामान न उठाएं, न ही उनके सामने उठाएं।
4. घर में तोड़-फोड़ या खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
घर में उन्हें कभी भी अकेला न छोड़े। फर्नीचर भी कम कर दें ताकि टकराकर उन्हें चोट न लगे। सीढ़ियों और बाथरूम में मजबूत हैंडरेल लगवाएं। घर में शीशे कम लगवाएं क्योंकि इससे अल्टशाइमर्स के मरीज को कन्फ्यूजन होता है और कई बार डर भी जाते हैं। कई मरीज रात भर रोते-चिल्लाते हैं या हाथापाई पर उतार आते हैं। इस हाइपर बर्ताव का इलाज है। न्यूरॉलजिस्ट को दिखाएं। दो-तीन महीने दवा खाने से यह समस्या हल हो जाती है।
5. कपड़ों में शू-शू पॉटी करने लगते हैं।
यह बहुत बात की स्टेज है। ऐसे में उन्हें डायपर लगाकर रखें और दिन में 3-4 बार डायपर बदलें। अगर पॉटी कर दी है तो उसे फौरन साफ कर दें। इससे वे उसे फैलाएंगे नहीं।
जांच
- डॉक्टर कई तरह की जांच कराते हैं। इनमें विटामिन बी12, अमोनिया, थायरॉइड जांच आदि शामिल हैं। हर टेस्ट: 600 से 1000 रुपये
- सिर का CT स्कैन, कीमत: 2000 रुपये लगभग, सिर का MRI: 5000 रुपये लगभग
- मिनी-मेंटल स्टेट एग्जामिनेशनः दिमाग की स्थिति जांचने के लिए यह टेस्ट किया जाता है। कुल 30 सवाल होते हैं, जिनमें से 24 से कम का सही जवाब देने पर मरीज को डिमेंशिया से पीड़ित माना जाता है। इस टेस्ट को सायकॉलिस्ट करते हैं और 1-2 घंटे लगते हैं।
इलाज
- डिमेंशिया के इलाज के लिए न्यूरॉलजिस्ट से मिलें। अगर डिमेंशिया की वजह विटामिन की कमी या दवाओं का साइड इफेक्ट है तो वह इलाज के साथ बेहतर हो सकता है। लेकिन प्रोग्रेसिव यानी वक्त के साथ बढ़नेवाले डिमेंशिया में सुधार की गुंजाइश काफी कम होती है।
- मोटेतौर पर ब्रेन में एसिटाइल कोलिन (मेमरी का बेसिक ट्रांसमीटर) को बढ़ानेवाली दवाएं दी जाती हैं लेकिन इनका असर थोड़ा-बहुत ही होता है।
डिमेंशिया पर मूवी
Still Alice (2014): इस फिल्म में एक महिला प्रफेसर की डिमेंशिया के खिलाफ लड़ाई को बहुत मार्मिक तरीके से पेश किया गया है। इस बीमारी की चुनौतियों को समझने में यह मूवी काफी मददगार साबित हो सकती है। प्रफेसर का किरदार निभाने वाली जूलियन मूर ने इस रोल के लिए एक्टिंग की दुनिया के दो सबसे बड़े अवॉर्ड अकेडमी और गोल्डन ग्लोब जीते।
कहां देखें: डीवीडी उपलब्ध
पार्किंसंस
यह सेंट्रल नर्वस सिस्टम की बीमारी है, जिसमें मरीज के शरीर के अंगों में बेकाबू कंपन होता है। यह हाथों से शुरू होकर पूरे शरीर में फैल जाता है। इसकी वजह दिमाग का शरीर की गतिविधियों का सही कंट्रोल न होना है। यह समस्या अक्सर हाथ में एक हल्के झटके से शुरू होती है और शरीर के एक हिस्से पर इसका असर ज्यादा होता है। धीरे-धीरे बढ़ते हुए यह पूरे शरीर में फैल जाती है। फिर मरीज अपने अंगों पर से कंट्रोल खोने लगता है। इसमें मोटेतौर पर तीन चीजें सामने आती हैं: 1. हर काम में धीमापन, 2. हाथों में कंपन, 3. शरीर के हिस्सों का सख्त हो जाना।
लक्षण
- हाथ या पैर में कंपन या झटका
- वॉक करते हुए हाथों का नहीं हिल पाना
- मूवमेंट धीरे होना मसलन धीरे चलना या कुर्सी से उठने में वक्त लगना
- हाथ-पैर और बाकी हिस्से काफी कड़क हो जाते हैं
- ऑटोमैटिक मूवमेंट जैसे कि पलक झपकना, स्माइल करना, हाथ हिलाना आदि में दिक्कत होना
- धीरे-धीरे, अटककर और धीमे-धीमे बोलना
- लिखने में दिक्कत होना
- निगलने में दिक्कत होना
- ब्लड प्रेशर में अच्छा उतार-चढ़ाव होना
- किसी चीज की महक नहीं आना
वजह
- बढ़ती उम्र, 60 साल या ज्यादा के लोगों में आशंका बढ़ जाती है
- खतरनाक केमिकल्स और पेस्टिसाइड्स के संपर्क में रहना
- ड्रग्स लेना
- सिर में चोट लगना
- बॉक्सरों को खतरा ज्यादा
नोटः इस बीमारी की असली वजह क्या है, इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन ये कुछ फैक्टर हैं, जो इसे बढ़ाते हैं।
जांच
- इसके लिए क्लीनिकल जांच होती है यानी डॉक्टर लक्षण देखकर बताते हैं कि पार्किंसंस है या नहीं।
- इसके अलावा TRODAT SPECT या F-Dopa PET टेस्ट से भी चेक कर सकते हैं। एम्स में एक टेस्ट की कीमत करीब 2000 रुपये है।
इलाज
- इस बीमारी का इलाज पूरी तरह मुमकिन नहीं है। हां, दवाओं से बीमारी की रफ्तार काफी धीमी की जा सकती है। दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन को बढ़ाने के लिए लिवोडोपा (Levodopa) दवा दी जाती हैं। यह जेनरिक नाम है, जो मार्केट में अलग-अलग ब्रैंड नेम से मिलती है। इस दवा को लेने वाले मरीजों को प्रोटीन (दूध, दही, पनीर, अंडा, दाल आदि) दवा खाने से डेढ़-दो घंटे पहले या बाद में खाना चाहिए। साथ में बिल्कुल न खाएं, वरना दवा का असर कम हो जाएगा।
- साथ में अगर डिप्रेशन है या दूसरे इमोशनल मसले हैं, तो उनका इलाज किया जाता है। इसी तरह अगर यूरीन कंट्रोल नहीं होता, महक नहीं आती, कब्ज होती है या नींद की समस्या है तो उनके लिए अलग से दवा दी जाती है।
- डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS) सर्जरी काफी फायदेमंद है। यह एक न्यूरो सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें डॉक्टर दिमाग के अंदर न्यूरोस्टिमुलेटर (ब्रेन पेसमेकर) लगाते हैं, जो ट्रांसप्लांट की गई बैटरी के जरिए दिमाग के खास हिस्सों में इलेक्ट्रिक तरंगे पहुंचाते हैं। एक नॉन-चार्जेबल बैटरी 4-5 साल चलती है और इसकी कीमत 5-6 लाख रुपये होती है, जबकि चार्जेबल बैटरी 10-12 साल चल जाती है लेकिन उसकी कीमत 9.5-11 लाख रुपये होती है। प्राइवेट अस्पतालों में सर्जरी का खर्च अलग आता है।
ध्यान रखें
- इस बीमारी के मरीजों के लिए दवा गाड़ी में पेट्रोल की तरह है यानी पेट्रोल डालेंगे तो गाड़ी चलेगी। इसी तरह, दवा खाएंगे तो चल पाएंगे, वरना चलना-फिरना भी मुमकिन नहीं होगा।
- फल और सब्जियों को गुनगुने पानी में अच्छी तरह धोकर खाएं। हमारे देश में पार्किंसंस की औसत उम्र 49.2 साल है, जोकि विदेशों में करीब 60 साल है। आशंका है कि इसकी वजह हमारे खाने में ज्यादा पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल भी सकती है।
- इस बीमारी में फिजियोथेरपी और एक्सरसाइज का बहुत बड़ा रोल है। मरीज इस बीमारी में अक्सर गिर जाता है और उसे चलने में दिक्कत होती है, इसलिए उसे बैलेंस बनाने, चलने का तरीका सिखाने के साथ-साथ लचक और मजबूती बढ़ाने वाली एक्सरसाइज करनी होती है।
नोट: यहां दी गई दवाएं सिर्फ जानकारी बढ़ाने के लिए दी गई हैं। कोई भी दवा डॉक्टर से पूछे बिना इस्तेमाल न करें।
पार्किंसंस पर मूवी
AWAKENINGS (1990)
फिल्म में पार्किंसंस के शुरुआती इलाज के दौरान मरीज को कैसा लगता है, यह दिखाया गया है। यह सच्ची कहानी एक ऐसे डॉक्टर की है, जो पार्किंसंस के पैशंट्स के साथ काम करना शुरू करता है। पार्किंसंस के मरीजों के हालात और उनकी देखभाल पर काफी रोशनी डालती है यह मूवी।
कहां देखें: यू-ट्यूब पर उपलब्ध
डिप्रेशन और अकेलापन
अक्सर बच्चे अपनी लाइफ में बिजी हो जाते हैं तो पैरंट्स को अकेलापन कचोटने लगता है। यह अकेलापन धीरे-धीरे डिप्रेशन का रूप ले लेता है और बुजुर्गों को लगने लगता है कि वे बेकार हैं और उनकी किसी को जरूरत नहीं है। डिप्रेशन से निपटने के लिए कुछ तरीके कारगर हो सकते हैं:
पैरंट्स के लिए इतना तो बनता है...
- रोजाना पैरंट्स के साथ कुछ देर बैठें। उनका हाल-चाल पूछें। इसके लिए कोई टाइम तय कर लें और रुटीन बना लें तो अच्छा है।
- वीकएंड पर उन्हें अकेला छोड़कर घूमने न जाएं। अगर वे साथ जाना चाहें तो उन्हें भी अपने साथ जरूर ले जाएं। नहीं जाना चाहें तो कभी-कभार अपना प्रोग्राम कैंसल करके उनके साथ छुट्टी बिताएं।
- उनकी पसंद की जगहों पर घुमाएं। उनके दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलवाने ले जाएं और उन्हें भी अपने घर बुलाएं।
- घर के छोटे-मोटे फैसलों में उनकी सलाह लें। अगर उनकी कोई बात पसंद नहीं आए तो भी फौरन काटे नहीं। उनकी बात को आराम से सुने और अपनी बात भी प्यार से उनके सामने रखें।
- बच्चों से दादा-दादी के साथ खेलने के लिए कहें। अपने बचपन की बातें वे बहुत खुश होकर शेयर करते हैं। बच्चों को भी ऐसी बातें सुनने में मजा आता है।
- बच्चे दादा-दादी के साथ सुडोकू, लूडो, बिजनेस बडी जैसे गेम भी खेल सकते हैं।
- अगर दूसरे शहर में रहते हैं तो भी रोजाना कम-से-कम एक बार फोन पर उनसे बात जरूर करें।
डिप्रेशन और अकेलेपन पर मूवी
Nebraska (2013)
कैसे बुढ़ापे का अकेलापन इंसान को जीने का एक जरिए खोजने पर मजबूर करता है, चाहे फिर वह लॉटरी खरीद कर इनाम जीतने की ललक ही क्यों न हो? इस मूवी की खासियत है बुढ़ापे के अकेलेपन को मजाकिया अंदाज में पेश करना। फिल्म बुजुर्गों के लिए दया भाव जताने पर नहीं, बल्कि उन्हें समझने पर जोर देती नजर आती है।
कहां देखें: यू-ट्यूब पर उपलब्ध
...ताकि न हो ऐसी बीमारियां
अगर पैरंट्स को कोई दिमागी दिक्कत नहीं है तो वे खुद को बिजी रखकर अकेलेपन को दूर कर सकते हैं। साथ ही, याददाश्त बढ़ाने के लिए कुछ एक्सरसाइज करें। वैसे भी मेमरी के बारे में कहा जाता है, Use it or loose it यानी अगर दिमाग का इस्तेमाल नहीं करेंगे तो उसे खो देंगे। इसके लिए आप अपने पैरंट्स को ये कुछ तरीके आजमाने की सलाह दे सकते हैं। आप खुद भी कम उम्र से ही इनमें से ज्यादातर चीजें कर सकें तो आगे जाकर भी सेहतमंद ही रहेंगे:
1. रोजाना 30-40 मिनट ब्रिस्क वॉक करें। साथ में योग और ध्यान भी करें। रेगुलर एक्सरसाइज और योग करने से किसी भी बीमारी की आशंका काफी कम हो जाती है। सूर्य प्राणायाम, कपालभाति और मेडिटेशन करें। मगर ताड़ासन, कटिचक्रासन, उत्तानपादासन, भुजंगासन, धनुआसन, मंडूकासन जैसे योग किसी योग्य एक्सपर्ट की देखरेख में करें। सूर्य नमस्कार डिप्रेशन से निपटने में काफी मददगार है। सूर्य नमस्कार करने का तरीका जानने के लिए देखें : nbt.in/suryanam
2. रिटायरमेंट के बाद भी अपना रुटीन सेट करें। रोजाना एक ही वक्त पर उठें। अपने लिए काम तलाशें। खुद को बिजी रखें। किसी सोशल कॉज यानी कामकाज से खुद को जोड़ लें, मसलन मेड के बच्चे को पढ़ाएं। अगर कुकिंग अच्छी है तो वह भी किसी को सिखा सकती हैं।
3. लोगों के साथ मेल-जोल बढ़ाएं। परिवारजनों और दोस्तों से मिलें। अगर रिश्तेदार या दोस्त पास में नहीं हैं तो कोई क्लब, कम्युनिटी या ऑर्गनाइजेशन जॉइन कर लें। वहां अपनी पसंद के लोगों के साथ टाइम बिताएं। पार्क जाएं और वहां अपने हमउम्र लोगों के साथ दोस्ती करें। उनके साथ ताश या शतरंज खेलें।
4. ऑनलाइन सोशल नेटवर्किंग भी टाइम पास करने का एक तरीका है। हालांकि यह किसी से सामने से मिलने-जुलने के बराबर अच्छा नहीं है। यहां आपको किसी पर भी भरोसा करने से पहले थोड़ा सोचना होगा। साथ ही, इसे हमेशा चेक करने के बजाय इसके लिए एक वक्त तय करें।
5. अगर कोई शौक था, जिसे जवानी के दिनों में पूरा नहीं कर पाए तो अब कर सकते हैं। मसलन गिटार या सितार बजाना, स्वीमिंग सीखना आदि। हमेशा कुछ-न-कुछ नया करें। कुछ ऐसा, जो आपने पहले न किया हो। हफ्ते में एक नया काम या चीज जरूर करें या सीखें।
6. अखबार और मैगजीन पढ़ें। अखबार के उन हिस्सों को पढ़ें, जिन्हें आमतौर पर छोड़ देते हैं। अपने आसपास के लोगों से खबरों के बारे में चर्चा करें।
7. अपनी पसंद का म्यूजिक सुनें। याद रखें, यह उदासी वाला न हो। बेहतर है कि एफएम सुनें। घर में टीवी पर कभी-कभार बाहर जाकर भी अपनी पसंद की फिल्में देखें।
8. ऑर्गनाइज्ड बनें। आमतौर पर चीजें फैली हों तो हम उन्हें जल्दी भूल जाते हैं। चीजों जैसे कि मोबाइल, चाबी, डायरी, पर्स आदि के लिए एक जगह तय करें और उन्हें वहीं पर रखें। अपने काम, अपॉइंटमेंट, इवेंट्स आदि को डायरी, प्लैनर या कैलेंडर में लिखकर रखें।
9. मल्टि-टास्किंग न करें। एक बार में एक ही काम करें। आप जो जानकारी हासिल करना चाहते हैं, अगर उसी पर फोकस करेंगे तो वह आपको जरूर याद रहेगी।
10. विजुअलाइजेशन भी दिमाग की कसरत का अच्छा तरीका है। आप जब भी जाम में फंसे हों, अपॉइंटमेंट के लिए इंतजार कर रहे हों या सोने की तैयारी कर रहे हों तो अपने बचपन से कोई घटना या जगह को सोचें। अपना कमरा, क्लास, कार... कुछ भी। इससे दिमाग ऐक्टिव होता है और तनाव से मुक्ति मिलती है।
11. रोजाना 7-8 घंटे सोने से मेमरी अच्छी रहती है।
12. डिप्रेशन, किडनी, थाइरॉयड, विटामिन बी-12 की कमी जैसी बीमारियों को हल्के में न लें। ये मेमरी पर खराब असर डालती हैं। इनका ढंग से इलाज कराएं।
13. घर की दीवारों को मजेदार और हटकर कलर करें या वॉलपेपर लगाएं। घर का डेकोर भी कलरफुल और दिलचस्प रखें। घर में खुशबूदार फूल सजाएं।
14. घर में कोई पेट रखें। डॉग अच्छा साथी हो सकता है।
15. पजल सॉल्व करें, जैसे कि सुडोकू, मैथ्स पजल या रीजनिंग पजल आदि। इनसे मेमरी अच्छी होती है।
डाइट पर दें ध्यान
- पोषण से भरपूर खाना खाएं, जिसमें कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ प्रोटीन और मिनरल भी भरपूर हों, जैसे कि ओट्स, गेहूं आदि अनाज, अंडे, दूध-दही, पनीर, हरी सब्जियां (बीन्स, पालक, मटर, मेथी आदि) और मौसमी फल।
- एंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिन-सी वाली चीजें खाएं, जैसे कि ब्रोकली, सीताफल, पालक, अखरोट, किशमिश, शकरकंद, जामुन, ब्लूबेरी, कीवी, संतरा आदि।
- ओमेगा-थ्री को खाने में शामिल करें। इसके लिए फ्लैक्ससीड्स (अलसी के बीज), नट्स, सोयाबीन आदि खाएं।
- देखने में बदरंग खाने के बजाय रंगीन खाने पर फोकस करें जैसे कि गाजर, टमाटर, ब्लूबेरी, ऑरेंज आदि।
- दूध और दूध से बनी चीजें या अंडा खाएं। इनमें विटामिन बी12 अच्छी मात्रा में होता है। मछली भी बहुत फायदेमंद है।
- पानी खूब पिएं। नारियल पानी, छाछ आदि भी खूब पिएं।
एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. विनय गोयल, प्रफेसर, न्यूरॉलजी, एम्स
डॉ. प्रवीण गुप्ता, एचओडी, न्यूरॉलजी, फोर्टिस हॉस्पिटल
जी. पी. भगत, फाउंडर, गुरु विश्राम वृद्ध आश्रम
डॉ. राजीव अग्रवाल, इन्चार्ज, न्यूरो फिजियो यूनिट, एम्स
64 साल की माला वर्मा (बदला नाम) की बहू नीता ने अपनी कुछ फ्रेंड्स को घर बुलाया। माला भी उनसे मिलने ड्रॉइंग-रूम में आ गईं। नीता की एक फ्रेंड ने बातों ही बातों में पूछ लिया, 'अम्मा, आपके चाय पी?' इस पर माला गुस्से से बोलीं, 'बेटी, मुझे तो कई दिन से किसी ने चाय नहीं दी। मैं तो अब इन पर बोझ बन गई हूं ' यह सुनकर नीता बहुत नाराज हो गईं। वह अपनी सास पर चिल्लाने लगीं कि इनका कितनी भी ख्याल रखो, हमेशा बुराई ही करती रहती हैं। अभी थोड़ी देर पहले ही तो इन्हें चाय बनाकर दी थी। घर का माहौल बिगड़ता देख सहेलियों ने वहां से निकलने में ही भलाई समझी। शाम को पति ऑफिस से लौटा तो नीता ने उससे मां की शिकायत की। उसने भी मां पर काफी गुस्सा किया कि आप जान-बूझकर दूसरों के सामने हमें नीचा दिखाती हैं। घर में बहुत अशांति हो गई लेकिन किसी ने भी असल समस्या पर गौर नहीं किया। दरअसल, माया पिछले कुछ महीनों से अजीब-सा बर्ताव कर रही हैं। वह अक्सर लोगों के नाम भूल जाती हैं, सामान रखकर भूल जाती हैं, कभी-कभी जोर से बोलने या रोने भी लगती हैं। दिन में कई बार नहाती हैं और कभी-कभी कपड़े पहने बगैर बाथरूम से निकल आती हैं। घरवालों को लगता है कि वह जान-बूझ कर ऐसा कर रही हैं क्योंकि नीता से उनकी बनती नहीं है लेकिन माया बुढ़ापे की सबसे बड़ी बीमारियों में से एक डिमेंशिया से पीड़ित हैं। जानते हैं डिमेंशिया और बुढ़ापे की दूसरी बीमारियों के लक्षण और इलाज के बारे में ताकि बुढ़ापा पैरंट्स के साथ-साथ बच्चों के लिए बड़ी समस्या न बने।
डिमेंशिया
अगर किसी की याददाश्त इतनी कमजोर हो गई हो कि उसका असर रोजाना के काम पर पड़ रहा हो, मसलन वह भूल जाता हो कि कौन-सा महीना चल रहा है, किस शहर में रह रहा है, खाना खाया है या नहीं तो वह डिमेंशिया से पीड़ित हो सकता है। यह शब्द डीई (बिना) और मेंशिया (दिमाग) को जोड़कर बनाया गया है यानी दिमाग के काम करने की क्षमता का कम होना। इस बीमारी में दिमाग के कुछ खास सेल्स खत्म होने लगते हैं, जिससे उस शख्स की सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती है और बर्ताव में भी बदलाव आ जाता है। डिमेंशिया को दो कैटिगरी में बांटा जा सकता हैः एक, जिसका बचाव या इलाज मुमकिन है और दूसरा उम्र के साथ बढ़ने वाला। पहली कैटिगरी में ब्लड प्रेशर, डायबीटीज, स्मोकिंग, ट्यूमर, टीबी, स्लीप एप्निया, विटामिन की कमी आदि से होनेवाला डिमेंशिया आता है तो दूसरी कैटिगरी में अल्टशाइमर्स (Alzheimer's ), फ्रंटोटेंपोरल डिमेंशिया (FTD) और वस्कुलर डिमेंशिया आता है।
1. अल्टशाइमर्स सबसे कॉमन डिमेंशिया है। इसमें मेमरी लॉस के साथ-साथ मरीज का ओरिएंटेशन गड़बड़ा जाता है जैसे कि वह भूल जाता है कि घर में बाथरूम किधर है या फिर मार्केट में कौन-सी शॉप कहां है या कई बार तो वह अपने घर का रास्ता ही भूल जाता है।
2. FTD में भूलने के साथ-साथ मरीज के बर्ताव में बहुत बदलाव आ जाता है, मसलन वह बहुत जिद्दी हो जाता है, गुस्सा करने लगता है, चिड़चिड़ा हो जाता है।
3. वस्कुलर डिमेंशिया के लक्षण तो करीब-करीब अल्टशाइमर्स जैसे ही होते हैं लेकिन यह धीरे-धीरे नहीं, बल्कि स्ट्रोक के बाद अचानक होता है।
लक्षण
- किसी का नाम, चीज रखकर या शब्दों को भूल जाना
- अपने करीबियों को भी न पहचान पाना
- नई चीजें सीखने और फैसले लेने में दिक्कत होना
- एक ही बात को बार-बार दोहराना
- बेवजह गुस्सा आना, आक्रामक होना या परेशान रहना
- छोटे-मोटे काम जैसे कि ड्राइविंग, खाना पकाना, कपड़े पहनना, खाना खाना आदि में दिक्कत होना
- मतिभ्रम होना यानी किसी इंसान या जानवर आदि के होने का भ्रम होना
- उलटे-सीधे फैसले लेना जैसे कि गर्मियों में मोटा जैकेट पहन लेना या सर्दियों में भी जमीन पर सोना या कपड़े उतार देना
क्या हैं वजहें
- बढ़ती उम्र, आमतौर पर 60 साल से ज्यादा उम्र के लोग बनते हैं शिकार
- बहुत ज्यादा स्मोकिंग करना
- बिल्कुल एक्सरसाइज न करना
- ब्लड प्रेशर ज्यादा होना
- फैमिली हिस्ट्री होना
- जिनेटिक वजहों से पुरुष ज्यादा होते हैं शिकार
नोट: इस बीमारी की कोई एक वजह नहीं होती। हां, ऊपर दी गई वजहें बीमारी की आशंका को बढ़ा सकती हैं।
5 स्टेज होती हैं डिमेंशिया की
स्टेज 1: डिमेंशिया की शुरुआत में ऐसे कोई बदलाव नहीं आते, जिन्हें आसानी से पहचाना जा सके। मरीज अपनी जरूरतों और बातों का खयाल रख सकता है। हां, बातों को अक्सर भूलने लगता है।
स्टेज 2: दूसरी स्टेज है ज्यादा भूलना। ऐसे लोग अक्सर चीजों को रखकर भूल जाते हैं, लोगों का नाम भूल जाते हैं, समय-तारीख आदि भूल जाते हैं और क्या कर रहे हैं, यह भी भूल जाते हैं। इस स्टेज पर भी मरीज अपना खयाल बिना किसी की मदद के रख सकता है।
स्टेज 3: मरीज रोजाना के रास्तों में ही खो जाता है, बोलने में दिक्कत आने लगती है। उसका बर्ताव बदलने लगता है।
स्टेज 4: मरीज रुटीन के काम नहीं कर पाता। खाना खाने का तरीका उसे याद नहीं रहता, खुद से कपड़े नहीं पहन पाता, नहा नहीं पाता आदि। वह अपने परिवारवालों को नहीं पहचान पाता। उसे किसी की मदद की जरूरत पड़ती है।
स्टेज 5: डिमेंशिया की पांचवीं स्टेज बहुत खतरनाक होती है। मरीज की मेमरी बिल्कुल ही कम हो जाती है और उसे चीजें समझ नहीं आतीं। मरीज कोई भी काम बिना किसी की मदद के नहीं कर पाता।
डिमेंशिया के मरीजों की समस्या और समाधान
1. किसी चीज को रखकर भूल जाते हैं, लोगों के नाम से लेकर खाना खाना तक भूल जाते हैं और बाद की स्टेज में तो कपड़े पहनना भी याद नहीं रहता।
समाधान: सबसे पहले जान लें कि वे जान-बूझकर ऐसा नहीं कर रहे। जिस तरह किसी बीमार शख्स की देखभाल की जाती है, वैसे ही उनकी देखभाल की भी जरूरत है। कोशिश करें कि उनकी चीजों मसलन चाबी, वॉलेट, मोबाइल फोन आदि को हमेशा एक ही जगह पर रखें। उन्हें मोबाइल दें और रोजाना मोबाइल पर उनके बात करें ताकि उन्हें कॉल उठाने और फोन पर बात करने की आदत हो। उनके मोबाइल में ट्रैक मी ऐप डाउनलोड कर, उसे अपने फोन से सिंक कर लें। उनके हाथ में जीपीएस वाली घड़ी भी पहना सकते हैं। इससे उनकी लोकेशन की जानकारी आपको रहेगी। उनके गले में एक लॉकेट डालकर उस पर उनका नाम, घर का पता और परिवार के दो लोगों के मोबाइल नंबर लिख दें ताकि अगर वे कहीं भटक जाएं तो कोई आपको खबर कर दे।
2. गुस्सा बहुत आता है। मारपीट और गाली-गलौच पर उतारू हो जाते हैं। एक ही बात को बार-बार दोहराते हैं।
समाधान: उनसे बहस न करें, न ही चीखे-चिल्लाएं। याद रखें कि उन्हें आपकी बात समझ ही नहीं आ रही। आप गुस्सा ज्यादा करेंगे तो वे और भी गुस्सा करेंगे। यहां तक कि खुद को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। हो सके तो उस वक्त वहां से हट जाएं। उनकी हर बात को उस वक्त 'हां' करें। अगर गलत लगती है तो भी 'हां' कर दें। बाद में बेशक वह काम न करें क्योंकि वे भी अक्सर थोड़ी देर बाद भूल जाएंगे कि उन्होंने क्या कहा था। जो डिमांड पूरी करना मुमकिन है, वह पूरी भी कर दें। इससे वे खुश हो जाएंगे।
3. पेट भरा होगा लेकिन दूसरों को खाते देख दोबारा मांग लेते हैं। खाना ज्यादा खाते हैं या खाना बेकार कर देते हैं। खाने की चीजें और दूसरे सामान उठाकर अपने पास रख लेते हैं।
समाधान: उन्हें एक बार में कम खाना दें ताकि दोबारा मांगने पर आप फिर से दे सकें। अगर थोड़ा-बहुत खाना बेकार हो जाता है तो भी इसे सामान्य मानते हुए परेशान न हों। उनकी पसंद की चीजें बनाएं। गौर करें कि वे कौन-सी चीज कब और कितना खाना पसंद करते हैं। इससे आपको उनकी खुराक का अनुमान हो जाएगा। अगर ज्यादा सामान अपने पास उठाकर रखा है तो उसमें से कुछ सामान चुपचाप उठा लें लेकिन सारा सामान न उठाएं, न ही उनके सामने उठाएं।
4. घर में तोड़-फोड़ या खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
घर में उन्हें कभी भी अकेला न छोड़े। फर्नीचर भी कम कर दें ताकि टकराकर उन्हें चोट न लगे। सीढ़ियों और बाथरूम में मजबूत हैंडरेल लगवाएं। घर में शीशे कम लगवाएं क्योंकि इससे अल्टशाइमर्स के मरीज को कन्फ्यूजन होता है और कई बार डर भी जाते हैं। कई मरीज रात भर रोते-चिल्लाते हैं या हाथापाई पर उतार आते हैं। इस हाइपर बर्ताव का इलाज है। न्यूरॉलजिस्ट को दिखाएं। दो-तीन महीने दवा खाने से यह समस्या हल हो जाती है।
5. कपड़ों में शू-शू पॉटी करने लगते हैं।
यह बहुत बात की स्टेज है। ऐसे में उन्हें डायपर लगाकर रखें और दिन में 3-4 बार डायपर बदलें। अगर पॉटी कर दी है तो उसे फौरन साफ कर दें। इससे वे उसे फैलाएंगे नहीं।
जांच
- डॉक्टर कई तरह की जांच कराते हैं। इनमें विटामिन बी12, अमोनिया, थायरॉइड जांच आदि शामिल हैं। हर टेस्ट: 600 से 1000 रुपये
- सिर का CT स्कैन, कीमत: 2000 रुपये लगभग, सिर का MRI: 5000 रुपये लगभग
- मिनी-मेंटल स्टेट एग्जामिनेशनः दिमाग की स्थिति जांचने के लिए यह टेस्ट किया जाता है। कुल 30 सवाल होते हैं, जिनमें से 24 से कम का सही जवाब देने पर मरीज को डिमेंशिया से पीड़ित माना जाता है। इस टेस्ट को सायकॉलिस्ट करते हैं और 1-2 घंटे लगते हैं।
इलाज
- डिमेंशिया के इलाज के लिए न्यूरॉलजिस्ट से मिलें। अगर डिमेंशिया की वजह विटामिन की कमी या दवाओं का साइड इफेक्ट है तो वह इलाज के साथ बेहतर हो सकता है। लेकिन प्रोग्रेसिव यानी वक्त के साथ बढ़नेवाले डिमेंशिया में सुधार की गुंजाइश काफी कम होती है।
- मोटेतौर पर ब्रेन में एसिटाइल कोलिन (मेमरी का बेसिक ट्रांसमीटर) को बढ़ानेवाली दवाएं दी जाती हैं लेकिन इनका असर थोड़ा-बहुत ही होता है।
डिमेंशिया पर मूवी
Still Alice (2014): इस फिल्म में एक महिला प्रफेसर की डिमेंशिया के खिलाफ लड़ाई को बहुत मार्मिक तरीके से पेश किया गया है। इस बीमारी की चुनौतियों को समझने में यह मूवी काफी मददगार साबित हो सकती है। प्रफेसर का किरदार निभाने वाली जूलियन मूर ने इस रोल के लिए एक्टिंग की दुनिया के दो सबसे बड़े अवॉर्ड अकेडमी और गोल्डन ग्लोब जीते।
कहां देखें: डीवीडी उपलब्ध
पार्किंसंस
यह सेंट्रल नर्वस सिस्टम की बीमारी है, जिसमें मरीज के शरीर के अंगों में बेकाबू कंपन होता है। यह हाथों से शुरू होकर पूरे शरीर में फैल जाता है। इसकी वजह दिमाग का शरीर की गतिविधियों का सही कंट्रोल न होना है। यह समस्या अक्सर हाथ में एक हल्के झटके से शुरू होती है और शरीर के एक हिस्से पर इसका असर ज्यादा होता है। धीरे-धीरे बढ़ते हुए यह पूरे शरीर में फैल जाती है। फिर मरीज अपने अंगों पर से कंट्रोल खोने लगता है। इसमें मोटेतौर पर तीन चीजें सामने आती हैं: 1. हर काम में धीमापन, 2. हाथों में कंपन, 3. शरीर के हिस्सों का सख्त हो जाना।
लक्षण
- हाथ या पैर में कंपन या झटका
- वॉक करते हुए हाथों का नहीं हिल पाना
- मूवमेंट धीरे होना मसलन धीरे चलना या कुर्सी से उठने में वक्त लगना
- हाथ-पैर और बाकी हिस्से काफी कड़क हो जाते हैं
- ऑटोमैटिक मूवमेंट जैसे कि पलक झपकना, स्माइल करना, हाथ हिलाना आदि में दिक्कत होना
- धीरे-धीरे, अटककर और धीमे-धीमे बोलना
- लिखने में दिक्कत होना
- निगलने में दिक्कत होना
- ब्लड प्रेशर में अच्छा उतार-चढ़ाव होना
- किसी चीज की महक नहीं आना
वजह
- बढ़ती उम्र, 60 साल या ज्यादा के लोगों में आशंका बढ़ जाती है
- खतरनाक केमिकल्स और पेस्टिसाइड्स के संपर्क में रहना
- ड्रग्स लेना
- सिर में चोट लगना
- बॉक्सरों को खतरा ज्यादा
नोटः इस बीमारी की असली वजह क्या है, इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन ये कुछ फैक्टर हैं, जो इसे बढ़ाते हैं।
जांच
- इसके लिए क्लीनिकल जांच होती है यानी डॉक्टर लक्षण देखकर बताते हैं कि पार्किंसंस है या नहीं।
- इसके अलावा TRODAT SPECT या F-Dopa PET टेस्ट से भी चेक कर सकते हैं। एम्स में एक टेस्ट की कीमत करीब 2000 रुपये है।
इलाज
- इस बीमारी का इलाज पूरी तरह मुमकिन नहीं है। हां, दवाओं से बीमारी की रफ्तार काफी धीमी की जा सकती है। दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन को बढ़ाने के लिए लिवोडोपा (Levodopa) दवा दी जाती हैं। यह जेनरिक नाम है, जो मार्केट में अलग-अलग ब्रैंड नेम से मिलती है। इस दवा को लेने वाले मरीजों को प्रोटीन (दूध, दही, पनीर, अंडा, दाल आदि) दवा खाने से डेढ़-दो घंटे पहले या बाद में खाना चाहिए। साथ में बिल्कुल न खाएं, वरना दवा का असर कम हो जाएगा।
- साथ में अगर डिप्रेशन है या दूसरे इमोशनल मसले हैं, तो उनका इलाज किया जाता है। इसी तरह अगर यूरीन कंट्रोल नहीं होता, महक नहीं आती, कब्ज होती है या नींद की समस्या है तो उनके लिए अलग से दवा दी जाती है।
- डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS) सर्जरी काफी फायदेमंद है। यह एक न्यूरो सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें डॉक्टर दिमाग के अंदर न्यूरोस्टिमुलेटर (ब्रेन पेसमेकर) लगाते हैं, जो ट्रांसप्लांट की गई बैटरी के जरिए दिमाग के खास हिस्सों में इलेक्ट्रिक तरंगे पहुंचाते हैं। एक नॉन-चार्जेबल बैटरी 4-5 साल चलती है और इसकी कीमत 5-6 लाख रुपये होती है, जबकि चार्जेबल बैटरी 10-12 साल चल जाती है लेकिन उसकी कीमत 9.5-11 लाख रुपये होती है। प्राइवेट अस्पतालों में सर्जरी का खर्च अलग आता है।
ध्यान रखें
- इस बीमारी के मरीजों के लिए दवा गाड़ी में पेट्रोल की तरह है यानी पेट्रोल डालेंगे तो गाड़ी चलेगी। इसी तरह, दवा खाएंगे तो चल पाएंगे, वरना चलना-फिरना भी मुमकिन नहीं होगा।
- फल और सब्जियों को गुनगुने पानी में अच्छी तरह धोकर खाएं। हमारे देश में पार्किंसंस की औसत उम्र 49.2 साल है, जोकि विदेशों में करीब 60 साल है। आशंका है कि इसकी वजह हमारे खाने में ज्यादा पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल भी सकती है।
- इस बीमारी में फिजियोथेरपी और एक्सरसाइज का बहुत बड़ा रोल है। मरीज इस बीमारी में अक्सर गिर जाता है और उसे चलने में दिक्कत होती है, इसलिए उसे बैलेंस बनाने, चलने का तरीका सिखाने के साथ-साथ लचक और मजबूती बढ़ाने वाली एक्सरसाइज करनी होती है।
नोट: यहां दी गई दवाएं सिर्फ जानकारी बढ़ाने के लिए दी गई हैं। कोई भी दवा डॉक्टर से पूछे बिना इस्तेमाल न करें।
पार्किंसंस पर मूवी
AWAKENINGS (1990)
फिल्म में पार्किंसंस के शुरुआती इलाज के दौरान मरीज को कैसा लगता है, यह दिखाया गया है। यह सच्ची कहानी एक ऐसे डॉक्टर की है, जो पार्किंसंस के पैशंट्स के साथ काम करना शुरू करता है। पार्किंसंस के मरीजों के हालात और उनकी देखभाल पर काफी रोशनी डालती है यह मूवी।
कहां देखें: यू-ट्यूब पर उपलब्ध
डिप्रेशन और अकेलापन
अक्सर बच्चे अपनी लाइफ में बिजी हो जाते हैं तो पैरंट्स को अकेलापन कचोटने लगता है। यह अकेलापन धीरे-धीरे डिप्रेशन का रूप ले लेता है और बुजुर्गों को लगने लगता है कि वे बेकार हैं और उनकी किसी को जरूरत नहीं है। डिप्रेशन से निपटने के लिए कुछ तरीके कारगर हो सकते हैं:
पैरंट्स के लिए इतना तो बनता है...
- रोजाना पैरंट्स के साथ कुछ देर बैठें। उनका हाल-चाल पूछें। इसके लिए कोई टाइम तय कर लें और रुटीन बना लें तो अच्छा है।
- वीकएंड पर उन्हें अकेला छोड़कर घूमने न जाएं। अगर वे साथ जाना चाहें तो उन्हें भी अपने साथ जरूर ले जाएं। नहीं जाना चाहें तो कभी-कभार अपना प्रोग्राम कैंसल करके उनके साथ छुट्टी बिताएं।
- उनकी पसंद की जगहों पर घुमाएं। उनके दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलवाने ले जाएं और उन्हें भी अपने घर बुलाएं।
- घर के छोटे-मोटे फैसलों में उनकी सलाह लें। अगर उनकी कोई बात पसंद नहीं आए तो भी फौरन काटे नहीं। उनकी बात को आराम से सुने और अपनी बात भी प्यार से उनके सामने रखें।
- बच्चों से दादा-दादी के साथ खेलने के लिए कहें। अपने बचपन की बातें वे बहुत खुश होकर शेयर करते हैं। बच्चों को भी ऐसी बातें सुनने में मजा आता है।
- बच्चे दादा-दादी के साथ सुडोकू, लूडो, बिजनेस बडी जैसे गेम भी खेल सकते हैं।
- अगर दूसरे शहर में रहते हैं तो भी रोजाना कम-से-कम एक बार फोन पर उनसे बात जरूर करें।
डिप्रेशन और अकेलेपन पर मूवी
Nebraska (2013)
कैसे बुढ़ापे का अकेलापन इंसान को जीने का एक जरिए खोजने पर मजबूर करता है, चाहे फिर वह लॉटरी खरीद कर इनाम जीतने की ललक ही क्यों न हो? इस मूवी की खासियत है बुढ़ापे के अकेलेपन को मजाकिया अंदाज में पेश करना। फिल्म बुजुर्गों के लिए दया भाव जताने पर नहीं, बल्कि उन्हें समझने पर जोर देती नजर आती है।
कहां देखें: यू-ट्यूब पर उपलब्ध
...ताकि न हो ऐसी बीमारियां
अगर पैरंट्स को कोई दिमागी दिक्कत नहीं है तो वे खुद को बिजी रखकर अकेलेपन को दूर कर सकते हैं। साथ ही, याददाश्त बढ़ाने के लिए कुछ एक्सरसाइज करें। वैसे भी मेमरी के बारे में कहा जाता है, Use it or loose it यानी अगर दिमाग का इस्तेमाल नहीं करेंगे तो उसे खो देंगे। इसके लिए आप अपने पैरंट्स को ये कुछ तरीके आजमाने की सलाह दे सकते हैं। आप खुद भी कम उम्र से ही इनमें से ज्यादातर चीजें कर सकें तो आगे जाकर भी सेहतमंद ही रहेंगे:
1. रोजाना 30-40 मिनट ब्रिस्क वॉक करें। साथ में योग और ध्यान भी करें। रेगुलर एक्सरसाइज और योग करने से किसी भी बीमारी की आशंका काफी कम हो जाती है। सूर्य प्राणायाम, कपालभाति और मेडिटेशन करें। मगर ताड़ासन, कटिचक्रासन, उत्तानपादासन, भुजंगासन, धनुआसन, मंडूकासन जैसे योग किसी योग्य एक्सपर्ट की देखरेख में करें। सूर्य नमस्कार डिप्रेशन से निपटने में काफी मददगार है। सूर्य नमस्कार करने का तरीका जानने के लिए देखें : nbt.in/suryanam
2. रिटायरमेंट के बाद भी अपना रुटीन सेट करें। रोजाना एक ही वक्त पर उठें। अपने लिए काम तलाशें। खुद को बिजी रखें। किसी सोशल कॉज यानी कामकाज से खुद को जोड़ लें, मसलन मेड के बच्चे को पढ़ाएं। अगर कुकिंग अच्छी है तो वह भी किसी को सिखा सकती हैं।
3. लोगों के साथ मेल-जोल बढ़ाएं। परिवारजनों और दोस्तों से मिलें। अगर रिश्तेदार या दोस्त पास में नहीं हैं तो कोई क्लब, कम्युनिटी या ऑर्गनाइजेशन जॉइन कर लें। वहां अपनी पसंद के लोगों के साथ टाइम बिताएं। पार्क जाएं और वहां अपने हमउम्र लोगों के साथ दोस्ती करें। उनके साथ ताश या शतरंज खेलें।
4. ऑनलाइन सोशल नेटवर्किंग भी टाइम पास करने का एक तरीका है। हालांकि यह किसी से सामने से मिलने-जुलने के बराबर अच्छा नहीं है। यहां आपको किसी पर भी भरोसा करने से पहले थोड़ा सोचना होगा। साथ ही, इसे हमेशा चेक करने के बजाय इसके लिए एक वक्त तय करें।
5. अगर कोई शौक था, जिसे जवानी के दिनों में पूरा नहीं कर पाए तो अब कर सकते हैं। मसलन गिटार या सितार बजाना, स्वीमिंग सीखना आदि। हमेशा कुछ-न-कुछ नया करें। कुछ ऐसा, जो आपने पहले न किया हो। हफ्ते में एक नया काम या चीज जरूर करें या सीखें।
6. अखबार और मैगजीन पढ़ें। अखबार के उन हिस्सों को पढ़ें, जिन्हें आमतौर पर छोड़ देते हैं। अपने आसपास के लोगों से खबरों के बारे में चर्चा करें।
7. अपनी पसंद का म्यूजिक सुनें। याद रखें, यह उदासी वाला न हो। बेहतर है कि एफएम सुनें। घर में टीवी पर कभी-कभार बाहर जाकर भी अपनी पसंद की फिल्में देखें।
8. ऑर्गनाइज्ड बनें। आमतौर पर चीजें फैली हों तो हम उन्हें जल्दी भूल जाते हैं। चीजों जैसे कि मोबाइल, चाबी, डायरी, पर्स आदि के लिए एक जगह तय करें और उन्हें वहीं पर रखें। अपने काम, अपॉइंटमेंट, इवेंट्स आदि को डायरी, प्लैनर या कैलेंडर में लिखकर रखें।
9. मल्टि-टास्किंग न करें। एक बार में एक ही काम करें। आप जो जानकारी हासिल करना चाहते हैं, अगर उसी पर फोकस करेंगे तो वह आपको जरूर याद रहेगी।
10. विजुअलाइजेशन भी दिमाग की कसरत का अच्छा तरीका है। आप जब भी जाम में फंसे हों, अपॉइंटमेंट के लिए इंतजार कर रहे हों या सोने की तैयारी कर रहे हों तो अपने बचपन से कोई घटना या जगह को सोचें। अपना कमरा, क्लास, कार... कुछ भी। इससे दिमाग ऐक्टिव होता है और तनाव से मुक्ति मिलती है।
11. रोजाना 7-8 घंटे सोने से मेमरी अच्छी रहती है।
12. डिप्रेशन, किडनी, थाइरॉयड, विटामिन बी-12 की कमी जैसी बीमारियों को हल्के में न लें। ये मेमरी पर खराब असर डालती हैं। इनका ढंग से इलाज कराएं।
13. घर की दीवारों को मजेदार और हटकर कलर करें या वॉलपेपर लगाएं। घर का डेकोर भी कलरफुल और दिलचस्प रखें। घर में खुशबूदार फूल सजाएं।
14. घर में कोई पेट रखें। डॉग अच्छा साथी हो सकता है।
15. पजल सॉल्व करें, जैसे कि सुडोकू, मैथ्स पजल या रीजनिंग पजल आदि। इनसे मेमरी अच्छी होती है।
डाइट पर दें ध्यान
- पोषण से भरपूर खाना खाएं, जिसमें कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ प्रोटीन और मिनरल भी भरपूर हों, जैसे कि ओट्स, गेहूं आदि अनाज, अंडे, दूध-दही, पनीर, हरी सब्जियां (बीन्स, पालक, मटर, मेथी आदि) और मौसमी फल।
- एंटी-ऑक्सिडेंट और विटामिन-सी वाली चीजें खाएं, जैसे कि ब्रोकली, सीताफल, पालक, अखरोट, किशमिश, शकरकंद, जामुन, ब्लूबेरी, कीवी, संतरा आदि।
- ओमेगा-थ्री को खाने में शामिल करें। इसके लिए फ्लैक्ससीड्स (अलसी के बीज), नट्स, सोयाबीन आदि खाएं।
- देखने में बदरंग खाने के बजाय रंगीन खाने पर फोकस करें जैसे कि गाजर, टमाटर, ब्लूबेरी, ऑरेंज आदि।
- दूध और दूध से बनी चीजें या अंडा खाएं। इनमें विटामिन बी12 अच्छी मात्रा में होता है। मछली भी बहुत फायदेमंद है।
- पानी खूब पिएं। नारियल पानी, छाछ आदि भी खूब पिएं।
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