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तीरंदाजी और शूटिंग के बारे में जानें सब कुछ

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लगे तो तीर, वरना तुक्का... यह कहावत बिल्कुल सही है लेकिन अगर सही तरीके से कोशिश की जाए तो आर्चरी यानी तीरंदाजी में काफी गुंजाइश है। इससे कुछ कम शूटिंग भी नहीं। यूं भी हमने ओलिंपिक का इकलौता व्यक्तिगत गोल्ड मेडल जीतकर इस गेम में नाम कमाया है। आर्चरी और शूटिंग में संभावनाओं पर पूरी जानकारी दे रहे हैं रौशन झा...

2008 ओलिंपिक्स में अभिनव बिंद्रा ने शूटिंग में गोल्ड जीतकर देश को पहला व्यक्तिगत ओलिंपिक मेडल दिलाया। इसके बाद से शूटिंग को लेकर क्रेज बढ़ गया। लगन से प्रैक्टिस की जाए तो शूटिंग में आप साल-दो साल में काफी अच्छा परफॉर्म कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि यह काफी महंगा खेल है। अगर आपके पास पैसे नहीं है और फिर भी आप इसमें जाना चाहें तो NCC या आर्मी जॉइन कर सकते हैं। NCC में हाई स्कूल से ही ट्रेनिंग शुरू करा देते हैं और आर्मी भी अपने अच्छे शूटर को अच्छी ट्रेनिंग दिलाती है। केंद्रीय मंत्री और ओलिंपिक में शूटिंग में सिल्वर मेडल जीतने वाले राज्यवर्धन सिंह राठौर ने भी आर्मी में रहते हुए ही ट्रेनिंग हासिल की। शूटिंग में देश में गगन नारंग, अंजलि भागवत, विजय कुमार आदि भी चर्चित नाम रहे हैं।

शूटिंग कितनी तरह की

इस्तेमाल की जानेवाली गन के आधार पर शूटिंग की तीन कैटिगरी होती हैं: राइफल, पिस्टल, शॉटगन। राइफल में 3, पिस्टल में 6 और शॉटगन में 3 इवेंट होते हैं:

राइफल इवेंट

•50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन में घुटना टेककर, लेटकर और खड़ा होकर पुरुषों को 40-40 राउंड फायरिंग करनी होती है, जबकि महिलाओं को 20-20 राउंड।

•50 मीटर राइफल प्रोन में लेटकर 60 शॉट लगाने होते हैं।

•10 मीटर एयर राइफल में खड़े होकर शूटिंग करनी होती है। पुरुषों को 60 राउंड व महिलाओं को 40 गोलियां चलानी होती हैं।



पिस्टल में छह इवेंट

•50 मीटर पुरुषों के लिए है और इसमें 60+20 राउंड गोली चलानी होती हैं।

•25 मीटर लड़कियों के लिए है और इसमें रैपिड फायर में 30-30 गोलियां चलानी होती हैं।

•25 मीटर रैपिड फायर में एक शूटर पांच टारगेट पर डिफरेंट टाइम के बीच फायर करता है। यह पुरुषों के लिए इवेंट है।

•25 मीटर सेंटर फायर भी पुरुषों का इवेंट है जिसमें दो राउंड में 60 गोलियां चलानी होती हैं।

•25 मीटर स्टैंडर्ड पिस्टल भी पुरुषों के लिए ही है। इसमें 3 राउंड में अलग-अलग समय में 20 राउंड फायर करनी होती हैं।

•10 मीटर एयर पिस्टल में पुरुषों को 60 और महिलाओं को 40 राउंड गोली चलानी होती हैं।

शॉटगन

•ट्रैप: शूटर को टारगेट पर बंदूक सीधी रखकर गोली चलानी होती है।
•डबल ट्रैप में दो बर्ड (नकली) पर निशाना लगाना होता है।
•स्कीट में दो अलग-अलग दिशाओं से बर्ड उड़ता है, जिसे शूट करना होता है।



कब करें शुरुआत

शूटिंग की शुरुआत कम-से-कम 13 साल की उम्र में की जाती है। इसमें वजन उठाना पड़ता है इसलिए हड्डियों का मजबूत होना जरूरी होता है। कम उम्र में शुरुआत करने पर बच्चे के विकास पर बुरा असर पड़ सकता है। दूसरे, इस गेम में हथियारों का इस्तेमाल होता है। 13-14 साल की उम्र में बच्चों की समझ थोड़ी विकसित हो जाती है। लिहाजा उन्हें हथियार सौंपा जा सकता है। हालांकि अधिकतम उम्र की कोई सीमा नहीं है। एक शूटर के लिए फिजिकली स्ट्रॉन्ग होना ज्यादा जरूरी होता है।

क्या है खतरा

यह सबसे सेफ गेम है। सभी खिलाड़ी एक लाइन में खड़े होकर निशाना साधते हैं और किसी को भी रेंज में शूटिंग पॉइंट से आगे जाने की इजाजत नहीं होती। प्लेयर्स बिना इजाजत अपनी गन को पैक तक नहीं कर सकते। इवेंट के बाद कोच चेक करते हैं कि गन में कोई गोली फंसी न हो। उनसे इजाजत मिलने के बाद ही शूटर्स अपनी गन को किट में पैक करते हैं। हालांकि इसकी गोलियों से जान जा सकती है इसलिए एक्स्ट्रा सावधानी बरतनी जरूरी है।

कैसे होता है सिलेक्शन

इस खेल में खिलाड़ी का सिलेक्शन पूरी तरह मेरिट पर होता है। यह पूरी तरह टेक्नॉलजी पर आधारित गेम है। आपने क्या निशाना साधा, वह फौरन कंप्यूटर पर रेकॉर्ड हो जाता है। भाई-भतीजावाद की गुंजाइश नहीं होती।

किट और उसकी कीमत

इस खेल में इस्तेमाल होने वाली किट दूसरे खेलों से महंगी होती है जैसे कि अगर कोई राइफल इवेंट की शुरुआत करे तो उसे ट्राउजर, जैकेट, इनर्स, गलव्स, शूज लेने पड़ते हैं, जोकि कुल 60 से 70 हजार रुपये में आते हैं। राइफल की कीमत 2.5 से लेकर 10 लाख रुपये तक है। पिस्टल में पिस्टल और शूज लेने पड़ते हैं। बाकी किट की जरूरत नहीं होती। पिस्टल 4 से 5 लाख तक और शूज 15 हजार रुपये तक में आ जाते हैं। शॉटगन डायरेक्ट शूटर को नहीं मिलती यह स्टेट असोसिएशन के जरिये प्लेयर्स को मिलती है। यह मैच के बाद वापस ले ली जाती है। इसकी कीमत 8 से 12 लाख रुपये तक है। इसमें सिर्फ एक जैकेट होती है, जो 9000 रुपये की आती है। इसके अलावा इसमें गोली के साथ ही बर्ड का इस्तेमाल होता है, जो लगभग 60 रुपये का आता है।

कैसे मिलता है लाइसेंस

एयर गन को छोड़कर सभी इवेंट्स में लाइसेंस लेना जरूरी होता है। इसकी प्रक्रिया आसान है। संबंधित स्टेट असोसिएशन लिखकर देती है, जिसके बाद लाइसेंस के लिए आपको खुद अप्लाई करना पड़ता है, जोकि तीन साल के लिए बनता है। (कहां) इसके लिए 500 रुपये खर्च आता है। हालांकि लाइसेंस के लिए आपको पहले एक छोटा-सा टेस्ट पास करना पड़ता है। संबंधित स्टेट एक मीनिमम क्वॉलिफाइंग स्कोर (MQS) तय करता है। यह स्कोर हासिल करने के बाद आपको रिनाउंड शॉट का सर्टिफिकेट मिलता है। इसके बाद ही आपको लाइसेंस दिया जाता है। यह मिलने के बाद आप गन ड्यूटी-फ्री इंपोर्ट कर सकते हैं। एक साल में आप 15,000 तक गोलियां इंपोर्ट कर सकते हैं। शॉटगन में 12 बोर की गोलियां यूज होती हैं, जिसकी एक गोली की कीमत करीब 50 रुपये होती है। एयर के लिए पायलट इस्तेमाल होते हैं, जिसमें छर्रा होता है। 500 पायलट के पैक की कीमत करीब 500 रुपये होती है। पिस्टल में .22 से लेकर .32 की गोलियां इस्तेमाल होती हैं। एक गोली की कीमत 11 से 45 रुपये तक होती है। लाइसेंस के नियम हाल में बदले हैं। खिलाड़ियों को मिलने वाली गोलियों की संख्या बढ़ी है।

ट्रेनिंग कितनी महंगी

यह काफी महंगा खेल है। शूटिंग में खिलाड़ी की एक दिन की ट्रेनिंग पर कम-से-कम एक हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। आप NCC या आर्मी जॉइन कर शूटिंग की राह आसान कर सकते हैं। NCC में हाई स्कूल से ही ट्रेनिंग शुरू करा देते हैं और आर्मी भी अपने अच्छे शूटर को अच्छी ट्रेनिंग दिलाती है। अच्छे शूटरों को कंपनियां भी स्पॉन्सर करती हैं। नैशनल लेवल पर सरकारी मदद भी मिलती है।

जर्मनी पर निर्भरता

शूटिंग में इस्तेमाल होने वाली कोई भी चीज भारत में नहीं बनती। गन से लेकर गोलियां और किट तक के लिए जर्मनी पर मुख्य रूप से निर्भर रहना पड़ता है। देश में जो गोलियां बनती भी हैं, उनकी क्वॉलिटी अच्छी नहीं होती। उनसे टारगेट पर निशाना साधना बेहद मुश्किल होता है। हां, आजकल देश में बढ़िया शूटिंग शूज जरूर बनने लगे हैं और दूसरे देश के शूटर भी अब भारत से शूज मंगवाने लगे हैं। राइफल शूटर्स के शूज एंकल तक लंबे होते हैं। पिस्टल शूटर के शूज की लंबाई एंकल को टच करने वाली नहीं होनी चाहिए। यह शूज काफी हार्ड होता है, जो मुड़ता नहीं है। इसमें हील नहीं होती।

क्या हो कोच की योग्यता

नैशनल और इंटरनैशनल लेवल पर परफॉर्म कर चुके शूटर को ही आमतौर पर सरकार की ओर से कोच नियुक्त किया जाता है। इसमें अनुभव काफी मायने रखता है। देश में बाकी खेल के कोचों के लिए NIS पटियाला से कोचिंग की डिग्री हासिल करना जरूरी है, लेकिन शूटिंग में ऐसा नहीं है। इसके कोच का NIS से कोई लेना-देना नहीं होता क्योंकि यहां कोच के लिए कोई कोर्स है ही नहीं। इंटरनैशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन (ISSF), जर्मनी में ही केवल शूटिंग का कोचिंग कोर्स होता है। यहां से कोर्स करने के बाद एशियन शूटिंग का कोर्स करना पड़ता है। यह कोर्स इंडिया में भी हो सकता है। ये सभी कोर्स 15 से 60 दिन के होते हैं। इसे करने के बाद अनुभव को देखकर टीम के साथ लगाया जाता है।


कुछ खास शूटिंग ट्रेनिंग सेंटर

•कर्णी सिंह शूटिंग रेंज, दिल्ली
•स्पोर्ट्स क्राफ्ट डॉट इन, दिल्ली और मुंबई
•टॉपगन शूटिंग अकैडमी, दिल्ली, नोएडा और फरीदाबाद
•रॉयल स्पोर्ट्स शूटिंग अकैडमी, बेंगलुरु
•महाराष्ट्र रायफल असोसिएशन, मुंबई
•गन फॉर ग्लोरी: पुणे, अहमदाबाद, मुंबई, हैदराबाद और जबलपुर। इसे ओलिंपिक ब्रॉन्ज मेडलिस्ट गगन नारंग चलाते हैं।
नोट: इनके अलावा भी शूटिंग के अच्छे ट्रेनिंग सेंटर हैं।

देश के अहम टूर्नामेंट
•नैशनल शूटिंग चैंपियनशिप
•ऑल इंडिया जी.वी. मावलंकर शूटिंग चैंपियनशिप
•कुंवर सुरेंद्र सिंह मेमोरियल एयर वेपन शूटिंग चैंपियनशिप
•सरदार सज्जन सिंह सेठी मेमोरियल शूटिंग चैंपियनशिप
•साल में एक बार जोनल चैंपियनशिप

आर्चरी

आर्चरी सीखने के लिए शुरुआती दौर में लकड़ी के धनुष और फिर कार्बन और फाइबर से बने धनुष-बाण (बो एंड ऐरो) बच्चे इस्तेमाल करते हैं। बाद में एल्युमिनियम के तीर इस्तेमाल किए जाते हैं। सेंटर (बुल्स आई) पर तीर लगने पर 10 पॉइंट मिलते हैं, जबकि उसके बाद के रेड सर्कल पर 9 और ब्लू पर 8 पॉइंट मिलते हैं। आर्चरी में देश में जाने-पहचाने नामों में दीपिका कुमारी, अतनु दास, लैशराम बोंबायला देवी, लक्ष्मी रानी मांझी, जयंत ताल्लुकदार आदि हैं। दीपिका वर्ल्ड में नंबर वन पोजिशन पर रह चुकी हैं।

कितनी तरह के टूर्नामेंट

इंडियन आर्चरी असोसिएशन (AAI) तीन कैटिगरी में टूर्नामेंट कराता है:

1. इंडियन राउंड, 2. रिकर्व, 3. कंपाउंड

किसी भी नए निशानेबाज को सलाह दी जाती है कि इंडियन राउंड से शुरू करे। अगर अच्छे रिजल्ट्स आते हैं तो क्षमता के अनुसार कंपाउंड या रिकर्व की सलाह दी जाती है क्योंकि इंडियन राउंड के कॉम्पिटिशन इंडिया लेवल पर ही खेले जाते हैं, जबकि रिकर्व लेकर आप ओलिंपिक्स तक जा सकते हो। कंपाउंड अभी तक ओलिंपिक्स में शामिल नहीं हुआ है।

नैशनल लेवल टूर्नामेंट

मिनी सब-जूनियर अंडर 14, सब-जूनियर अंडर 19, जूनियर अंडर 19 और ओपन। ज्यादातर टूर्नामेंट सितंबर से फरवरी के बीच आयोजित होते हैं। इनमें परफॉर्मेंस के आधार पर ही निशानेबाज नैशनल कैंप और नैशनल टीम के लिए चुने जाते हैं। अलग-अलग इंस्टिट्यूट भी अपने लेवल पर कॉम्पिटिशन कराते हैं जैसे कि ऑल इंडिया पुलिस मीट, स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया नैशनल्स, सेंट्रल स्कूल नैशनल गेम्स, CBSC नैशनल्स, नवोदय विद्यालय नैशनल्स, इंटर रेलवे कॉम्पिटिशन आदि।

किस उम्र में करें शुरुआत
9-11 साल की उम्र आर्चरी शुरू करने के लिए अच्छी उम्र मानी जाती हैं। हालांकि इसके बाद भी शुरू कर सकते हैं। शुरुआती 3-4 महीने काफी अहम होते हैं क्योंकि इस दौरान ही बच्चा खेल की शुरुआती तकनीक सीखता है। सीखना शुरू करने के बाद नैशनल लेवल पर परफॉर्म करने के लिए बच्चे को कम-से-कम 2-3 साल लग जाते हैं।



किस गुण की दरकार
आर्चरी के लिए यूं तो किसी खास काबिलियत की जरूरत नहीं होती लेकिन कंसंट्रेशन यानी एकाग्रता अच्छी होनी चाहिए। एकाग्रता बढ़ाने के लिए कई बार साइकॉलजिस्ट की मदद भी ली जाती है। इसके अलावा धीरज रखने की खास ट्रेनिंग दी जाती है।

कैसे बिठाएं पढ़ाई से तालमेल
आर्चरी से बच्चों का मानसिक विकास होता है क्योंकि यह एकाग्रता बढ़ाने वाले खेल है। इसका फायदा बच्चे को पढ़ाई में भी मिलता है और वह खेल के साथ ही पढ़ाई पर भी फोकस कर सकता है। कहा जाता है कि अगर कोई बच्चा आर्चरी कर रहा है तो वह एक तरह से मेडिटेशन भी कर रहा है। बहुत मुमकिन है अगर आप ध्यान लगाकर पढ़ते हैं यानी पढ़ाई में अच्छे हैं तो आर्चरी में भी अच्छा कर जाएं। इसके साथ ही, अगर आप आर्चरी में अच्छे हैं तो पढ़ाई में भी बेहतर परफॉर्म करने के चांस बढ़ जाते हैं। बच्चा सुबह या शाम, जब चाहे आर्चरी की ट्रेनिंग कर सकता है। शुरुआत में 1-2 घंटे की प्रैक्टिस होती है, जोकि बाद में बढ़कर 2-3 घंटे तक पहुंच जाती है। किसी भी दूसरे गेम की तरह आर्चरी में भी रेग्युलर प्रैक्टिस जरूरी है।

कैसे पहचानें सही अकैडमी
आमतौर पर अकैडमी में उपलब्ध सुविधाओं से पता चलता है कि अकैडमी किस लेवल की है जैसे कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में इक्विमेंट्स (टारगेट्स, स्टैंड, फेसेस आदि) है कि नहीं। वे टूल्स भी होने चाहिए, जो धनुष और तीरों को सही करने के काम आते हैं। अच्छी अकैडमी के लिए जरूरी है कि उसके पास आउटडोर प्रैक्टिस के लिए कम-से-कम 100 मीटर लंबा और 30 मीटर चौड़ा ग्राउंड हो। साथ ही, वह वर्ल्ड आर्चरी के मानकों को पूरा करता हो। इंडोर प्रैक्टिस की सुविधा अकैडमी में चार चांद लगा देती है। जैसे कि मल्टी-परपस हॉल। एरिया कम से 50 बाई 40 मीटर होना चाहिए।


सेफ्टी के लिए क्या जरूरी

ग्राउंड सेफ्टी: ग्राउंड के चारों ओर फेंसिंग हो। एंट्री और एग्जिट का गेट एक ही हो ताकि लोग पीछे के गेट से निकलने के चक्कर में चोटिल न हो जाएं। टारगेट्स के पीछे कम-से-कम 20-30 मीटर का खाली एरिया हो और उसके बाद 10-15 फुट ऊंची दीवार हो। सभी के लिए शूटिंग लाइन एक ही होनी चाहिए यानी सभी लोग एक ही लाइन में खड़े होकर निशाना लगाएं।

पर्सनल सेफ्टी: बच्चे पूरे सेफ्टी गियर जैसे कि आर्म गार्ड, फिंगर टैप, चेस्ट गार्ड आदि पहनकर प्रैक्टिस करें।

कोच की योग्यता

भारतीय खेल प्राधिकरण अपने ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट्स में फुलटाइम और पार्टटाइम कोचिंग कोर्स चलाता है। अगर किसी के पास खेलने का अनुभव है तो ग्रैजुएशन के बाद वह कोचिंग कोर्स के लिए अप्लाई कर सकता है। ग्रैजुएशन और नैशनल लेवल पर आर्चरी में हिस्सा लेने का सर्टिफिकेट दाखिले की मुख्य शर्ते हैं। साथ ही इंडियन आर्चरी असोसिएशन (IAA), वर्ल्ड आर्चरी असोसिएशन के साथ कोचिंग कोर्स आयोजित करता है। कोर्स में सफल कोच को लेवल 1 और 2 के सर्टिफिकेट दिए जाते हैं। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) में इन कोर्सों की अवधि 6 हफ्ते से लेकर 1 साल तक होती है, जबकि IAA के कोचिंग कोर्स 5 से 21 दिन के होते हैं।

टॉप अकैडमी

नैशनल लेवल
•टाटा आर्चरी अकैडमी, जमशेदपुर (झारखंड)
•आर्मी बॉयज कंपनी, अहमद नगर (गुजरात), पुणे (महाराष्ट्र) और शिलॉन्ग (मेघालय)

(इन दोनों अकैडमी में ऐडमिशन टैलंट के आधार पर दिया जाता है और चुने गए खिलाड़ियों का सारा खर्च अकैडमी खुद उठाती है।)

दिल्ली-एनसीआर
•दिल्ली आर्चरी अकैडमी, DDA यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, सूरजमल विहार, नई दिल्ली
फोन 99714-79079

•स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI), जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, लोधी रोड, नई दिल्ली
फोन 98689-09555

•देवांश आर्चरी अकैडमी, रिचमंड ग्लोबल स्कूल, मियावाली नगर, पीरागढ़ी चौक के पास, नई दिल्ली
फोन 97119-32855

•नोएडा आर्चरी सेंटर, नोएडा स्पोर्ट्स स्टेडियम, सेक्टर 21, नोएडा, फोन 99537-20577

नोट: स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (SAI) अपने ट्रेनिंग सेंटर में हॉस्टल की सुविधा देती है। दिल्ली में फिलहाल किसी दूसरे ट्रेनिंग सेंटर में हॉस्टल नहीं है।

स्कूलों में भी कोचिंग

दिल्ली-एनसीआर के सभी एमिटी इंटरनैशनल स्कूल, आर्मी पब्लिक स्कूल, धौला कुआं और रिचमंड ग्लोबल स्कूल, पश्चिम विहार में आर्चरी सिखाने का अच्छा इंतजाम है।

नोट: देश में इनके अलावा भी आर्चरी के अच्छे कोचिंग सेंटर हैं।

फीस
आमतौर पर इन अकैडमी की फीस 500 से 1500 रुपये महीने तक है। इक्विपमेंट की कीमत इंडियन राउंड के लिए कम-से-कम 5000 रुपये है। शुरुआती स्तर पर रिकर्व 30 हजार से, जबकि कंपाउंड 50 से 60 हजार तक आता है। यह खिलाड़ी को खरीदने होता है। दिल्ली-एनसीआर में मौजूद सभी अकैडमी में इंटरनैशनल लेवल की सुविधाएं उपलब्ध हैं। ज्यादातर में सोमवार को छुट्टी रहती है, जबकि कुछ अकैडमी सातों दिन खुली रहती हैं।

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