दुनिया भर में लोग बॉक्सिंग के दीवाने हैं। इंटरनैशनल लेवल पर इस ग्लैमरस खेल में पैसे की कमी नहीं है। विजेंदर सिंह, मैरी कॉम, अखिल कुमार जैसे कई अच्छे बॉक्सर भारत ने दिए हैं। बॉक्सिंग को बतौर करियर अपनाने के लिए क्या करें, विस्तार से बता रहे हैं
सूरज पांडेय:
बॉक्सिंग बहुत पुराना गेम है। 16वीं से 18वीं सदी तक बॉक्सिंग ग्रेट ब्रिटेन में पैसों के लिए खेले जाने वाले खेल के रूप में लोकप्रिय था। हालांकि 19वीं सदी से इंग्लैंड और अमेरिका में इसे फिर से व्यवस्थित तरीके से शुरू किया गया। हमारे देश में विजेंदर सिंह, मैरी कॉम, एल. सरिता देवी, डिंको सिंह जैसे कई खिलाड़ियों ने बॉक्सिंग में धाक जमाई है। विजेंदर ने देश के लिए बॉक्सिंग में पहला ओलंपिक मेडल जीता तो फिलहाल वह WBA एशिया पसिफिक सुपर मिडलवेट चैंपियन हैं। मैरी कॉम पांच बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी हैं और ओलिंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल भी हासिल कर चुकी हैं।
क्या है बॉक्सिंग
बॉक्सिंग में दो लोग बॉक्सिंग रिंग के अंदर प्रोटेक्टिव ग्लव्स पहनकर एक-दूसरे पर नियमों के अनुसार पंच करते हैं। इसके लिए 1-3 मिनट के कुछ राउंड तय किए जाते हैं। बॉक्सिंग मैच के दौरान रिंग में बॉक्सरों के अलावा एक रेफरी भी होता है। इसमें रिजल्ट मुकाबले के अंत में जजों के दिए स्कोर के आधार पर होता है। इसके अलावा, नियम तोड़ने के कारण दूसरे बॉक्सर के डिस्क्वॉलिफाई होने या लड़ने की हालत में ना होने या उसके द्वारा टॉवल फेंककर मुकाबले से हटने पर भी बॉक्सिंग में जीत-हार का फैसला हो जाता है। ओलिंपिक्स में मुकाबले के अंत तक दोनों बॉक्सरों के पॉइंट बराबर रहने पर जज तकनीक के आधार पर विनर घोषित करते हैं। प्रफेशनल बॉक्सिंग में अगर मुकाबले के अंत तक दोनों बॉक्सर्स के पॉइंट बराबर हों तो मुकाबला ड्रॉ माना जाता है।
बॉक्सिंग मुख्यतः दो तरह की होती है: ऐमेचर और प्रफेशनल
1. ऐमेचर बॉक्सिंग: ओलिंपिक्स और कॉमनवेल्थ समेत दुनिया की तमाम इंटरनैशनल प्रतियोगिताओं में होती है।
2. प्रफेशनल बॉक्सिंग: बड़ी-बड़ी कंपनियां प्रमोटर होती हैं और दुनिया भर के अलग-अलग देशों में प्रफेशनल बॉक्सरों के बीच कॉम्पिटिशन कराती हैं। इसमें पैसा बहुत ज्यादा मिलता है। प्रफेशनल खेलनेवाले आमतौर पर एमेचर में लौट नहीं पाते, क्योंकि दोनों को खेलने का तरीका अलग होता है।
किस उम्र में करें शुरुआत
बॉक्सिंग खतरनाक खेल है इसलिए इसे शुरू करने की सही उम्र 8-10 साल मानी जाती है। इस उम्र का बच्चा खुद को ज्यादा बेहतर तरीके से बचा सकता है। बॉक्सिंग के लिए समर्पण बहुत जरूरी है। बॉक्सिंग में बहुत ज्यादा ताकत लगती है इसलिए बहुत छोटी उम्र में शुरू करना सही नहीं है। बॉक्सिंग शुरू करने से पहले जूडो-कराटे या किसी और गेम को सीखने की जरूरत नहीं है। हां, रनिंग, स्वीमिंग आदि करना बेहतर है ताकि स्टैमिना बन सके।
कौन बन सकता है बॉक्सर
बॉक्सिंग कोच की मानें तो एक बॉक्सर अपनी टेक्नीक, आक्रामकता, फुर्ती, मजबूती और एटिट्यूड से सफल होता है इसलिए किसी बच्चे को बॉक्सर बनाने की सोचने से पहले यह जरूर देखना चाहिए कि उसमें ये सब गुण हैं या नहीं? आक्रामकता का मतलब यह नहीं है कि बच्चा अगर रोज लड़ाई-झगड़ा करता है तो वह बहुत अच्छा बॉक्सर बनेगा। बच्चे में फुर्ती, जोश और जीत का एटिट्यूड होना जरूरी है।
कैसे पहचानें सही अकैडमी
बेहतर कोच बच्चों को सही टेक्निक बता सकता है और बेहतर तरीके से तैयारी करना सिखा सकता है। ट्रेनर या बॉक्सिंग अकैडमी वही बेहतर है जो हमेशा आपकी जरूरतों पर ध्यान दे। अगर आप थक गए हैं तो वह आपको और ट्रेनिंग के लिए मजबूर नहीं करेंगे। आपका वर्कआउट आपकी जरूरतों और क्षमताओं के हिसाब से होगा, न कि वैसा जैसा कि कोई और बॉक्सर कर रहा होगा। एक अच्छी बॉक्सिंग अकैडमी में लेटेस्ट ट्रेनिंग इक्विपमेंट्स या वर्ल्ड चैंपियन ट्रेनर का होना जरूरी नहीं है। अकैडमी की सबसे जरूरी चीज है वहां का माहौल, जिसमें आपको सॉलिड बॉक्सिंग टेक्नीक सीखने और आगे बढ़ने का मौका मिले।
अकैडमी चुनते वक्त इन बातों का भी ध्यान रखना जरूरी
दीवारों पर लगी तस्वीरें: अकैडमी की पहचान करने का सबसे आसान तरीका है उसकी दीवारें देखना। आमतौर पर बॉक्सिंग अकैडमी की दीवारों पर न्यूजपेपर की कटिंग्स, अकैडमी से लोकल और नैशनल चैंपियन बन चुके पूर्व या मौजूदा फाइटर्स की फोटो, अपकमिंग टूर्नामेंट्स और लोकल बॉक्सिंग टूर्नामेंट्स के पोस्टर लगे होते हैं। सिर्फ मोहम्मद अली, माइक टायसन, विजेंदर सिंह और मैरी कॉम के पोस्टर लगी अकैडमी से बचें क्योंकि एक अच्छी अकैडमी खुद के चैंपियंस पर ज्यादा गर्व करती है।
मालिक या हेड ट्रेनर से मुलाकात: वह अकैडमी ज्यादा बेहतर मानी जाती है जहां आप उसके मालिक या हेड ट्रेनर से सीधे मुलाकात कर सकें। इससे आपको अकैडमी चलाने वाले शख्स की पर्सनैलिटी का अंदाजा हो जाएगा। इस खेल में पर्सनैलिटी काफी अहमियत रखती है।
ट्रेनिंग सेशन देखना: आप वहां के कुछ ट्रेनिंग सेशन भी देख सकते हैं। इससे आपको आइडिया हो जाएगा कि कोच कैसे बच्चों को सिखा रहा है। अगर वहां सिर्फ अटैक सिखाया जा रहा है तो यह अकैडमी अच्छी नहीं हो सकती। बॉक्सिंग अकैडमी का काम होता है टेक्नीक को बेहतर करना।
पिता ट्रेनर, बच्चा बॉक्सर: अगर किसी अकैडमी में आपको कोई पिता अपने बच्चे को ट्रेनिंग देता मिल जाए तो समझ लीजिए कि वह अकैडमी बेस्ट है। कोई भी पिता अपने बच्चे के लिए खराब अकैडमी नहीं चुनता।
बिजी रिंग: रिंग किसी भी बॉक्सिंग अकैडमी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर आपको तमाम लोग प्रैक्टिस करते तो दिख रहे हैं, लेकिन रिंग में कोई नहीं है तो यह अकैडमी सही नहीं हो सकती। एक अच्छी अकैडमी की रिंग कभी भी खाली नहीं रहती। हमेशा वहां कोई-ना-कोई प्रैक्टिस करता ही रहता है।
ट्रेनर्स: एक अच्छी अकैडमी में ढेर सारे ट्रेनर्स रहते हैं। बेहतरीन अकैडमी में अमूमन एक बॉक्सर पर एक ट्रेनर होता ही है। ऐसा न भी हो तब भी एक ट्रेनर पर 2-3 बॉक्सर्स से ज्यादा नहीं होने चाहिए। अकैडमी में एक या दो ट्रेनर्स का कंट्रोल नहीं होना चाहिए। अच्छी अकैडमी में सारे ट्रेनर्स अपने सुझाव देते रहते हैं। ऐसे में अगर आप अच्छा नहीं कर पा रहे तो कोई-ना-कोई हमेशा आपको टोकने के लिए वहां मौजूद रहता ही है।
कॉम्पिटिशन: अगर कोई अकैडमी अपने यहां लोगों को कॉम्पिटिशन के लिए तैयार नहीं करा रही तो वह बेकार है क्योंकि आप अपने बच्चे को वजन घटाने के लिए अकैडमी नहीं भेज रहे।
क्या हों सुविधाएं
बॉक्सिंग अकैडमी में सबसे जरूरी चीज होती है रिंग। किसी भी अकैडमी में रिंग की संख्या और उसकी क्वॉलिटी काफी मायने रखती है। अकैडमी चुनते वक्त यह जरूर देखें कि वहां कितनी रिंग हैं और हर रिंग में कितने बच्चे प्रैक्टिस करते हैं। इससे काफी हद तक आपको पता चल जाएगा कि आपके बच्चे को वहां कितना टाइम मिल पाएगा। बॉक्सिंग में प्लेयर्स को चोट भी लगती रहती है इसलिए यह जरूर देखें कि वहां डॉक्टर या फर्स्ट ऐड की अच्छी सुविधा है कि नहीं। अकैडमी में जिम, शॉवर वगैरह का होना भी जरूरी है।
क्या हो कोच की योग्यता
बॉक्सिंग सीखने में सही कोच बहुत महत्व रखता है। अकैडमी के कोच के बारे में जरूर पता करें कि वह पहले खेल चुका है या नहीं। कोचिंग में डिग्री या डिप्लोमा होना भी बेहद जरूरी है। हमारे यहां बॉक्सिंग कोच नैशनल इंस्टिस्टूट ऑफ स्पोर्ट्स (NIS) सर्टिफाइड होते हैं। साइंटिफिक तरीके से सीखा व्यक्ति अच्छी तरह से चीजों को समझता है और वह चीजों को अच्छे से समझा भी सकता है। अगर ट्रेनर पहले खेल चुका है तो यह सबसे अच्छी बात है। अगर उसने बॉक्सिंग नहीं खेला है तो उसके पास कोचिंग का सर्टिफिकेट और ठीक-ठाक एक्सपीरियंस होना बहुत जरूरी है। इसके लिए आप कोच का लाइसेंस भी देख सकते हैं। कई बार ऐसा होता है कि कोई प्लेयर कामयाब होता है तो तमाम लोग उसे अपना स्टूडेंट बताने लगते हैं। ऐसे मामलों में ज्यादा सावधान रहें। अगर दो-तीन जगह एक ही प्लेयर को अपने-अपने सेंटर का बताया जा रहा हो तो इसका मतलब है कि कुछ गड़बड़ है। कोच से अच्छे से पूछकर आश्वस्त हो लें कि सही क्या है, उस प्लेयर ने किस उम्र में यहां कोचिंग ली थी, वगैरह-वगैरह।
क्या है फीस
बॉक्सिंग की फीस अलग-अलग एज ग्रुप और ट्रेनिंग टाइम पर डिपेंड करती है। वैसे शुरुआती लेवल पर 2500 रुपये महीना फीस ली जाती है। कुछ अकैडमी ऐसी भी हैं जहां पारिवारिक स्थिति बहुत अच्छी न होने पर फीस में छूट भी मिलती है। इस फीस में आपको नॉर्मल ग्रुप ट्रेनिंग मिलेगी, हफ्ते में दो-तीन दिन, 1-2 घंटे के लिए। अगर आपको अपने बच्चे को इससे ज्यादा ट्रेनिंग करानी है तो उसकी फीस ज्यादा होगी। जब बच्चा स्टेट लेवल तक पहुंच जाता है तो ज्यादातर अकैडमी उसकी ट्रेनिंग फ्री कर देती हैं। बॉक्सिंग बहुत महंगा खेल नहीं है। ठीक-ठाक बॉक्सिंग ग्लव्स 500-700 रुपये तक आ जाते हैं। इसी तरह माउथगार्ड 200-400 में आ जाता है। ग्लव्स और माउथगार्ड से शुरुआत कर बाद में बच्चे की जरूरत के हिसाब से धीरे-धीरे उसे एसेसरीज दिलाई जा सकती हैं।
कितनी देर तक ट्रेनिंग
खेल कोई भी हो, जरूरत से ज्यादा ट्रेनिंग चोटों को न्यौता देती है, जबकि कम ट्रेनिंग से बच्चे को चीजें देर से समझ आती हैं। हालांकि बच्चे को किसी भी खेल में डालने से पहले उसकी रुचि जरूर जाननी चाहिए। कोई भी ऐसी चीज जो उसे बोझ लगे या जो वह झेल न पाए, उससे जबरदस्ती कराने से उसका मन खेल से हटने लगेगा। 16 साल से कम उम्र के बच्चे के लिए हफ्ते में 15 घंटे से ज्यादा की ट्रेनिंग नहीं होनी चाहिए। 8 से 12 साल तक के बच्चे के लिए हफ्ते में 6-8 घंटे की ट्रेनिंग और दो घंटे की स्पेशल फिटनेस ट्रेनिंग काफी है। फिटनेस ट्रेनिंग में मसल्स बिल्डिंग एक्सरसाइज, जंपिंग, स्प्रिंट ट्रेनिंग बेहद जरूरी हैं। बेहतर रहता है कि बच्चे को धीरे-धीरे चीजों को सीखने दें।
पढ़ाई से तालमेल
बॉक्सिंग अकैडमी में ट्रेनिंग सुबह-शाम, दोनों वक्त होती है। स्कूल से पहले या स्कूल से आने के बाद बच्चा आराम से ट्रेनिंग के लिए जा सकता है। शुरुआत में तो हफ्ते में 3-4 दिन की ट्रेनिंग ही होती है। धीरे-धीरे जब ट्रेनिंग का टाइम बढ़ता है, तब थोड़ी दिक्कत होती है। हालांकि ट्रेनिंग शाम में होने के चलते आराम से शेड्यूल मेंटेन किया जा सकता है। छोटे बच्चों के शेड्यूल को देखते हुए ज्यादातर अकैडमी में ट्रेनिंग का टाइम स्कूल के बाद का ही रखा जाता है।
खास अकैडमी
दिल्ली
अमजद खान बॉक्सिंग ट्रेनिंग सेंटर, S-21, अंसारी बिल्डिंग, नफीस रोड, बाटला हाउस, जामिया नगर, 095996-10232
दिल्ली बॉक्सिंग क्लासेज इंडिया, ब्लॉक A (13), लाजपत नगर-2, 099990-53185
फाइटर्स बॉक्सिंग अकैडमी, F2/161 महावीर एन्क्लेव, स्ट्रीट नंबर 5, नासिर पुर रोड के पास, पालम कॉलोनी, 098188-88682
मुआथई बॉक्सिंग अकैडमी, 507/389 साउथ एक्स टावर, मस्जिद मोठ, साउथ एक्सटेंशन पार्ट-2, 082859-69325
साई बॉक्सिंग क्लब, राम तालाब, शिव गोरखनाथ मंदिर, कुतुब इंस्टिट्यूशनल एरिया, कटवरिया सराय, 098915-47777
NCR
द्रोणाचार्य बॉक्सिंग अकैडमी, करमवीर पब्लिक स्कूल, सेक्टर 11, फरीदाबाद 099999-21269
लखनऊ
आयरन बुल, मुआथई बॉक्सिंग जिम, कमला मार्केट, रेलवे स्टेशन रोड, खड़गपुर, गोमती नगर, 098387-01300
मुंबई
साउथ पॉ बॉक्सिंग क्लब, वीर सावरकर मार्ग, शिवाजी पार्क महाकाली मंदिर के सामने 097699-27393
KD बॉक्सिंग अकैडमी, एडवोकेट टी वी परमेश्वरन मार्ग 098923-77889
इंद्रजीत कीर बॉक्सिंग क्लब, थर्ड फ्लोर, यंग स्टार स्पोर्ट्स क्लब, वर्तक हॉल के ऊपर, जनता बाजार स्टोर के सामने, स्टेशन रोड, विरार वेस्ट, 098908-28896
नोट: इनके अलावा भी देश में बॉक्सिंग के कई अच्छे ट्रेनिंग सेंटर्स हैं।
ये हैं स्टार
विजेंदर सिंहः 1985 में हरियाणा के भिवानी में पैदा हुए विजेंदर सिंह ने 1997 में सब-जूनियर नैशनल्स में सिल्वर और 2000 में नैशनल्स में पहला गोल्ड मेडल जीता। साल 2003 में वह ऑल इंडिया यूथ बॉक्सिंग चैंपियन बन गए। 2003 के एफ्रो-एशियन गेम्स में विजेंदर ने सिल्वर मेडल और 2006 में दोहा में हुए एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता। पेइजिंग 2008 ओलिंपिक्स में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर उन्होंने बॉक्सिंग में देश को पहला ओलिंपिक मेडल दिलाया। जून 2015 में विजेंदर ने प्रफेशनल बॉक्सर बनने का फैसला किया। प्रफेशनल बनने के बाद विजेंदर ने कुल 7 मुकाबले लड़े हैं और सबमें जीत हासिल की है। वह अभी WBO एशिया पसिफिक सुपर मिडलवेट चैंपियन हैं।
मैरी कॉमः मणिपुर की रहने वालीं मैरी कॉम इंडियन विमिंस बॉक्सिंग की पहचान हैं। मैरी ने 2001 में अमेरिका में हुई विमिंस वर्ल्ड ऐमेचर बॉक्सिंग चैंपियनशिप्स में सिल्वर मेडल और 2002 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। मैरी कोम पांच बार वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत चुकी हैं। मैरी ने विमिंस एशियन चैंपियनशिप में भी चार गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीता है। मैरी ने 2012 ओलिंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। उन्हें बॉक्सिंग में उपलब्धियों के लिए पद्मश्री, पद्मभूषण, अर्जुन अवॉर्ड और राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। मैरी इन दिनों वह मणिपुर में बॉक्सिंग अकैडमी भी चला रही हैं।
एक्सपर्ट्स पैनल
अमजद खान, पूर्व बॉक्सर और ट्रेनर
विजय खत्री, नैशनल बॉक्सिंग कोच
जे. के. सिंह, सीनियर बॉक्सिंग कोच
बॉक्सिंग बहुत पुराना गेम है। 16वीं से 18वीं सदी तक बॉक्सिंग ग्रेट ब्रिटेन में पैसों के लिए खेले जाने वाले खेल के रूप में लोकप्रिय था। हालांकि 19वीं सदी से इंग्लैंड और अमेरिका में इसे फिर से व्यवस्थित तरीके से शुरू किया गया। हमारे देश में विजेंदर सिंह, मैरी कॉम, एल. सरिता देवी, डिंको सिंह जैसे कई खिलाड़ियों ने बॉक्सिंग में धाक जमाई है। विजेंदर ने देश के लिए बॉक्सिंग में पहला ओलंपिक मेडल जीता तो फिलहाल वह WBA एशिया पसिफिक सुपर मिडलवेट चैंपियन हैं। मैरी कॉम पांच बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुकी हैं और ओलिंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल भी हासिल कर चुकी हैं।
क्या है बॉक्सिंग
बॉक्सिंग में दो लोग बॉक्सिंग रिंग के अंदर प्रोटेक्टिव ग्लव्स पहनकर एक-दूसरे पर नियमों के अनुसार पंच करते हैं। इसके लिए 1-3 मिनट के कुछ राउंड तय किए जाते हैं। बॉक्सिंग मैच के दौरान रिंग में बॉक्सरों के अलावा एक रेफरी भी होता है। इसमें रिजल्ट मुकाबले के अंत में जजों के दिए स्कोर के आधार पर होता है। इसके अलावा, नियम तोड़ने के कारण दूसरे बॉक्सर के डिस्क्वॉलिफाई होने या लड़ने की हालत में ना होने या उसके द्वारा टॉवल फेंककर मुकाबले से हटने पर भी बॉक्सिंग में जीत-हार का फैसला हो जाता है। ओलिंपिक्स में मुकाबले के अंत तक दोनों बॉक्सरों के पॉइंट बराबर रहने पर जज तकनीक के आधार पर विनर घोषित करते हैं। प्रफेशनल बॉक्सिंग में अगर मुकाबले के अंत तक दोनों बॉक्सर्स के पॉइंट बराबर हों तो मुकाबला ड्रॉ माना जाता है।
बॉक्सिंग मुख्यतः दो तरह की होती है: ऐमेचर और प्रफेशनल
1. ऐमेचर बॉक्सिंग: ओलिंपिक्स और कॉमनवेल्थ समेत दुनिया की तमाम इंटरनैशनल प्रतियोगिताओं में होती है।
2. प्रफेशनल बॉक्सिंग: बड़ी-बड़ी कंपनियां प्रमोटर होती हैं और दुनिया भर के अलग-अलग देशों में प्रफेशनल बॉक्सरों के बीच कॉम्पिटिशन कराती हैं। इसमें पैसा बहुत ज्यादा मिलता है। प्रफेशनल खेलनेवाले आमतौर पर एमेचर में लौट नहीं पाते, क्योंकि दोनों को खेलने का तरीका अलग होता है।
किस उम्र में करें शुरुआत
बॉक्सिंग खतरनाक खेल है इसलिए इसे शुरू करने की सही उम्र 8-10 साल मानी जाती है। इस उम्र का बच्चा खुद को ज्यादा बेहतर तरीके से बचा सकता है। बॉक्सिंग के लिए समर्पण बहुत जरूरी है। बॉक्सिंग में बहुत ज्यादा ताकत लगती है इसलिए बहुत छोटी उम्र में शुरू करना सही नहीं है। बॉक्सिंग शुरू करने से पहले जूडो-कराटे या किसी और गेम को सीखने की जरूरत नहीं है। हां, रनिंग, स्वीमिंग आदि करना बेहतर है ताकि स्टैमिना बन सके।
कौन बन सकता है बॉक्सर
बॉक्सिंग कोच की मानें तो एक बॉक्सर अपनी टेक्नीक, आक्रामकता, फुर्ती, मजबूती और एटिट्यूड से सफल होता है इसलिए किसी बच्चे को बॉक्सर बनाने की सोचने से पहले यह जरूर देखना चाहिए कि उसमें ये सब गुण हैं या नहीं? आक्रामकता का मतलब यह नहीं है कि बच्चा अगर रोज लड़ाई-झगड़ा करता है तो वह बहुत अच्छा बॉक्सर बनेगा। बच्चे में फुर्ती, जोश और जीत का एटिट्यूड होना जरूरी है।
कैसे पहचानें सही अकैडमी
बेहतर कोच बच्चों को सही टेक्निक बता सकता है और बेहतर तरीके से तैयारी करना सिखा सकता है। ट्रेनर या बॉक्सिंग अकैडमी वही बेहतर है जो हमेशा आपकी जरूरतों पर ध्यान दे। अगर आप थक गए हैं तो वह आपको और ट्रेनिंग के लिए मजबूर नहीं करेंगे। आपका वर्कआउट आपकी जरूरतों और क्षमताओं के हिसाब से होगा, न कि वैसा जैसा कि कोई और बॉक्सर कर रहा होगा। एक अच्छी बॉक्सिंग अकैडमी में लेटेस्ट ट्रेनिंग इक्विपमेंट्स या वर्ल्ड चैंपियन ट्रेनर का होना जरूरी नहीं है। अकैडमी की सबसे जरूरी चीज है वहां का माहौल, जिसमें आपको सॉलिड बॉक्सिंग टेक्नीक सीखने और आगे बढ़ने का मौका मिले।
अकैडमी चुनते वक्त इन बातों का भी ध्यान रखना जरूरी
दीवारों पर लगी तस्वीरें: अकैडमी की पहचान करने का सबसे आसान तरीका है उसकी दीवारें देखना। आमतौर पर बॉक्सिंग अकैडमी की दीवारों पर न्यूजपेपर की कटिंग्स, अकैडमी से लोकल और नैशनल चैंपियन बन चुके पूर्व या मौजूदा फाइटर्स की फोटो, अपकमिंग टूर्नामेंट्स और लोकल बॉक्सिंग टूर्नामेंट्स के पोस्टर लगे होते हैं। सिर्फ मोहम्मद अली, माइक टायसन, विजेंदर सिंह और मैरी कॉम के पोस्टर लगी अकैडमी से बचें क्योंकि एक अच्छी अकैडमी खुद के चैंपियंस पर ज्यादा गर्व करती है।
मालिक या हेड ट्रेनर से मुलाकात: वह अकैडमी ज्यादा बेहतर मानी जाती है जहां आप उसके मालिक या हेड ट्रेनर से सीधे मुलाकात कर सकें। इससे आपको अकैडमी चलाने वाले शख्स की पर्सनैलिटी का अंदाजा हो जाएगा। इस खेल में पर्सनैलिटी काफी अहमियत रखती है।
ट्रेनिंग सेशन देखना: आप वहां के कुछ ट्रेनिंग सेशन भी देख सकते हैं। इससे आपको आइडिया हो जाएगा कि कोच कैसे बच्चों को सिखा रहा है। अगर वहां सिर्फ अटैक सिखाया जा रहा है तो यह अकैडमी अच्छी नहीं हो सकती। बॉक्सिंग अकैडमी का काम होता है टेक्नीक को बेहतर करना।
पिता ट्रेनर, बच्चा बॉक्सर: अगर किसी अकैडमी में आपको कोई पिता अपने बच्चे को ट्रेनिंग देता मिल जाए तो समझ लीजिए कि वह अकैडमी बेस्ट है। कोई भी पिता अपने बच्चे के लिए खराब अकैडमी नहीं चुनता।
बिजी रिंग: रिंग किसी भी बॉक्सिंग अकैडमी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर आपको तमाम लोग प्रैक्टिस करते तो दिख रहे हैं, लेकिन रिंग में कोई नहीं है तो यह अकैडमी सही नहीं हो सकती। एक अच्छी अकैडमी की रिंग कभी भी खाली नहीं रहती। हमेशा वहां कोई-ना-कोई प्रैक्टिस करता ही रहता है।
ट्रेनर्स: एक अच्छी अकैडमी में ढेर सारे ट्रेनर्स रहते हैं। बेहतरीन अकैडमी में अमूमन एक बॉक्सर पर एक ट्रेनर होता ही है। ऐसा न भी हो तब भी एक ट्रेनर पर 2-3 बॉक्सर्स से ज्यादा नहीं होने चाहिए। अकैडमी में एक या दो ट्रेनर्स का कंट्रोल नहीं होना चाहिए। अच्छी अकैडमी में सारे ट्रेनर्स अपने सुझाव देते रहते हैं। ऐसे में अगर आप अच्छा नहीं कर पा रहे तो कोई-ना-कोई हमेशा आपको टोकने के लिए वहां मौजूद रहता ही है।
कॉम्पिटिशन: अगर कोई अकैडमी अपने यहां लोगों को कॉम्पिटिशन के लिए तैयार नहीं करा रही तो वह बेकार है क्योंकि आप अपने बच्चे को वजन घटाने के लिए अकैडमी नहीं भेज रहे।
क्या हों सुविधाएं
बॉक्सिंग अकैडमी में सबसे जरूरी चीज होती है रिंग। किसी भी अकैडमी में रिंग की संख्या और उसकी क्वॉलिटी काफी मायने रखती है। अकैडमी चुनते वक्त यह जरूर देखें कि वहां कितनी रिंग हैं और हर रिंग में कितने बच्चे प्रैक्टिस करते हैं। इससे काफी हद तक आपको पता चल जाएगा कि आपके बच्चे को वहां कितना टाइम मिल पाएगा। बॉक्सिंग में प्लेयर्स को चोट भी लगती रहती है इसलिए यह जरूर देखें कि वहां डॉक्टर या फर्स्ट ऐड की अच्छी सुविधा है कि नहीं। अकैडमी में जिम, शॉवर वगैरह का होना भी जरूरी है।
क्या हो कोच की योग्यता
बॉक्सिंग सीखने में सही कोच बहुत महत्व रखता है। अकैडमी के कोच के बारे में जरूर पता करें कि वह पहले खेल चुका है या नहीं। कोचिंग में डिग्री या डिप्लोमा होना भी बेहद जरूरी है। हमारे यहां बॉक्सिंग कोच नैशनल इंस्टिस्टूट ऑफ स्पोर्ट्स (NIS) सर्टिफाइड होते हैं। साइंटिफिक तरीके से सीखा व्यक्ति अच्छी तरह से चीजों को समझता है और वह चीजों को अच्छे से समझा भी सकता है। अगर ट्रेनर पहले खेल चुका है तो यह सबसे अच्छी बात है। अगर उसने बॉक्सिंग नहीं खेला है तो उसके पास कोचिंग का सर्टिफिकेट और ठीक-ठाक एक्सपीरियंस होना बहुत जरूरी है। इसके लिए आप कोच का लाइसेंस भी देख सकते हैं। कई बार ऐसा होता है कि कोई प्लेयर कामयाब होता है तो तमाम लोग उसे अपना स्टूडेंट बताने लगते हैं। ऐसे मामलों में ज्यादा सावधान रहें। अगर दो-तीन जगह एक ही प्लेयर को अपने-अपने सेंटर का बताया जा रहा हो तो इसका मतलब है कि कुछ गड़बड़ है। कोच से अच्छे से पूछकर आश्वस्त हो लें कि सही क्या है, उस प्लेयर ने किस उम्र में यहां कोचिंग ली थी, वगैरह-वगैरह।
क्या है फीस
बॉक्सिंग की फीस अलग-अलग एज ग्रुप और ट्रेनिंग टाइम पर डिपेंड करती है। वैसे शुरुआती लेवल पर 2500 रुपये महीना फीस ली जाती है। कुछ अकैडमी ऐसी भी हैं जहां पारिवारिक स्थिति बहुत अच्छी न होने पर फीस में छूट भी मिलती है। इस फीस में आपको नॉर्मल ग्रुप ट्रेनिंग मिलेगी, हफ्ते में दो-तीन दिन, 1-2 घंटे के लिए। अगर आपको अपने बच्चे को इससे ज्यादा ट्रेनिंग करानी है तो उसकी फीस ज्यादा होगी। जब बच्चा स्टेट लेवल तक पहुंच जाता है तो ज्यादातर अकैडमी उसकी ट्रेनिंग फ्री कर देती हैं। बॉक्सिंग बहुत महंगा खेल नहीं है। ठीक-ठाक बॉक्सिंग ग्लव्स 500-700 रुपये तक आ जाते हैं। इसी तरह माउथगार्ड 200-400 में आ जाता है। ग्लव्स और माउथगार्ड से शुरुआत कर बाद में बच्चे की जरूरत के हिसाब से धीरे-धीरे उसे एसेसरीज दिलाई जा सकती हैं।
कितनी देर तक ट्रेनिंग
खेल कोई भी हो, जरूरत से ज्यादा ट्रेनिंग चोटों को न्यौता देती है, जबकि कम ट्रेनिंग से बच्चे को चीजें देर से समझ आती हैं। हालांकि बच्चे को किसी भी खेल में डालने से पहले उसकी रुचि जरूर जाननी चाहिए। कोई भी ऐसी चीज जो उसे बोझ लगे या जो वह झेल न पाए, उससे जबरदस्ती कराने से उसका मन खेल से हटने लगेगा। 16 साल से कम उम्र के बच्चे के लिए हफ्ते में 15 घंटे से ज्यादा की ट्रेनिंग नहीं होनी चाहिए। 8 से 12 साल तक के बच्चे के लिए हफ्ते में 6-8 घंटे की ट्रेनिंग और दो घंटे की स्पेशल फिटनेस ट्रेनिंग काफी है। फिटनेस ट्रेनिंग में मसल्स बिल्डिंग एक्सरसाइज, जंपिंग, स्प्रिंट ट्रेनिंग बेहद जरूरी हैं। बेहतर रहता है कि बच्चे को धीरे-धीरे चीजों को सीखने दें।
पढ़ाई से तालमेल
बॉक्सिंग अकैडमी में ट्रेनिंग सुबह-शाम, दोनों वक्त होती है। स्कूल से पहले या स्कूल से आने के बाद बच्चा आराम से ट्रेनिंग के लिए जा सकता है। शुरुआत में तो हफ्ते में 3-4 दिन की ट्रेनिंग ही होती है। धीरे-धीरे जब ट्रेनिंग का टाइम बढ़ता है, तब थोड़ी दिक्कत होती है। हालांकि ट्रेनिंग शाम में होने के चलते आराम से शेड्यूल मेंटेन किया जा सकता है। छोटे बच्चों के शेड्यूल को देखते हुए ज्यादातर अकैडमी में ट्रेनिंग का टाइम स्कूल के बाद का ही रखा जाता है।
खास अकैडमी
दिल्ली
अमजद खान बॉक्सिंग ट्रेनिंग सेंटर, S-21, अंसारी बिल्डिंग, नफीस रोड, बाटला हाउस, जामिया नगर, 095996-10232
दिल्ली बॉक्सिंग क्लासेज इंडिया, ब्लॉक A (13), लाजपत नगर-2, 099990-53185
फाइटर्स बॉक्सिंग अकैडमी, F2/161 महावीर एन्क्लेव, स्ट्रीट नंबर 5, नासिर पुर रोड के पास, पालम कॉलोनी, 098188-88682
मुआथई बॉक्सिंग अकैडमी, 507/389 साउथ एक्स टावर, मस्जिद मोठ, साउथ एक्सटेंशन पार्ट-2, 082859-69325
साई बॉक्सिंग क्लब, राम तालाब, शिव गोरखनाथ मंदिर, कुतुब इंस्टिट्यूशनल एरिया, कटवरिया सराय, 098915-47777
NCR
द्रोणाचार्य बॉक्सिंग अकैडमी, करमवीर पब्लिक स्कूल, सेक्टर 11, फरीदाबाद 099999-21269
लखनऊ
आयरन बुल, मुआथई बॉक्सिंग जिम, कमला मार्केट, रेलवे स्टेशन रोड, खड़गपुर, गोमती नगर, 098387-01300
मुंबई
साउथ पॉ बॉक्सिंग क्लब, वीर सावरकर मार्ग, शिवाजी पार्क महाकाली मंदिर के सामने 097699-27393
KD बॉक्सिंग अकैडमी, एडवोकेट टी वी परमेश्वरन मार्ग 098923-77889
इंद्रजीत कीर बॉक्सिंग क्लब, थर्ड फ्लोर, यंग स्टार स्पोर्ट्स क्लब, वर्तक हॉल के ऊपर, जनता बाजार स्टोर के सामने, स्टेशन रोड, विरार वेस्ट, 098908-28896
नोट: इनके अलावा भी देश में बॉक्सिंग के कई अच्छे ट्रेनिंग सेंटर्स हैं।
ये हैं स्टार
विजेंदर सिंहः 1985 में हरियाणा के भिवानी में पैदा हुए विजेंदर सिंह ने 1997 में सब-जूनियर नैशनल्स में सिल्वर और 2000 में नैशनल्स में पहला गोल्ड मेडल जीता। साल 2003 में वह ऑल इंडिया यूथ बॉक्सिंग चैंपियन बन गए। 2003 के एफ्रो-एशियन गेम्स में विजेंदर ने सिल्वर मेडल और 2006 में दोहा में हुए एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता। पेइजिंग 2008 ओलिंपिक्स में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर उन्होंने बॉक्सिंग में देश को पहला ओलिंपिक मेडल दिलाया। जून 2015 में विजेंदर ने प्रफेशनल बॉक्सर बनने का फैसला किया। प्रफेशनल बनने के बाद विजेंदर ने कुल 7 मुकाबले लड़े हैं और सबमें जीत हासिल की है। वह अभी WBO एशिया पसिफिक सुपर मिडलवेट चैंपियन हैं।
मैरी कॉमः मणिपुर की रहने वालीं मैरी कॉम इंडियन विमिंस बॉक्सिंग की पहचान हैं। मैरी ने 2001 में अमेरिका में हुई विमिंस वर्ल्ड ऐमेचर बॉक्सिंग चैंपियनशिप्स में सिल्वर मेडल और 2002 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। मैरी कोम पांच बार वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत चुकी हैं। मैरी ने विमिंस एशियन चैंपियनशिप में भी चार गोल्ड और एक सिल्वर मेडल जीता है। मैरी ने 2012 ओलिंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। उन्हें बॉक्सिंग में उपलब्धियों के लिए पद्मश्री, पद्मभूषण, अर्जुन अवॉर्ड और राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। मैरी इन दिनों वह मणिपुर में बॉक्सिंग अकैडमी भी चला रही हैं।
एक्सपर्ट्स पैनल
अमजद खान, पूर्व बॉक्सर और ट्रेनर
विजय खत्री, नैशनल बॉक्सिंग कोच
जे. के. सिंह, सीनियर बॉक्सिंग कोच
मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।