Quantcast
Channel: जस्ट जिंदगी : संडे एनबीटी, Sunday NBT | NavBharat Times विचार मंच
Viewing all articles
Browse latest Browse all 485

बरकरार रहेगी जान-ए-जिगर

$
0
0

वैसे तो ज्यादा फैट शरीर के हर हिस्से के लिए मुश्किलें खड़ी करता है, लेकिन अगर इसकी पैठ लिवर तक हो गई तो मुश्किलें काफी बढ़ जाती हैं। हालांकि थोड़ा-सा ख्याल रख कर लिवर को सेफ रखा जा सकता है। फैटी लिवर, इससे जुड़ी दिक्कतों और उसके समाधान के बारे में एक्सपर्ट्स की मदद से बता रही हैं पूजा मेहरोत्रा:

लिवर हमारे शरीर का जादुई पिटारा है। यह शरीर के 500 से ज्यादा गतिविधियों में शामिल रहता है। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फैट को पचाने का काम भी लिवर ही करता है। बड़ी बात यह है कि लिवर तभी हार मानता है जब इसकी 75 फीसदी कोशिकाएं डैमेज हो जाती हैं।

लिवर के काम
- नुकसानदायक चीजों को शरीर में पहुंच कर नुकसान पहुंचाने से रोकता है और उसे शरीर से बाहर निकालने में मदद करता है। - लिवर आपके शरीर में ग्लूकोज को भी कंट्रोल करता है। ऐसे में यह इंसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण ऑर्गन है।

मोटापा और फैटी लिवर
-हर मोटा इंसान फैटी लिवर की परेशानी की चपेट में आ सकता है। डायबीटीज के 70 से 80 फीसदी मरीजों को फैटी लिवर का खतरा बना रहता है। मोटापा खतरनाक है या नहीं इसे बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) से नापा जा सकता है। पहले यह 50 से 60 साल के आयु वर्ग के लोगों में ज्यादा पाई जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे इस बीमारी ने युवाओं को भी अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है।
-लगभग 32 फीसदी भारतीयों को फैटी लिवर की शिकायत है।
-मोटापे और डायबीटीज के शिकार 70-80 फीसदी लोग फैटी लिवर के मरीज हैं।
-फैटी लिवर से पीड़ित 20 फीसदी लोग आगे चलकर लिवर की गंभीर बीमारी की चपेट में आ जाते हैं।
-भारत में लिवर की गंभीर बीमारी में फैटी लिवर तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
- लिवर ट्रांसप्लांट के लिए अपने सगे संबंधियों को लिवर दान करने के लिए आगे आने वालों में से 80 फीसदी लोग खुद फैटी लिवर के मरीज होते हैं। इसकी वजह से ट्रांसप्लांट में काफी परेशानी होती है।

जब फैटी लिवर दे दस्तक
फैटी लिवर होने पर शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं:
-पेट अपने आकार से काफी बड़ा हो जाता है।
-शरीर लगातार ओवरवेट रहता है।
-लंबे वक्त तक फैट जमा रहने की वजह से लिवर का आकार बढ़ जाता है और इसमें सूजन आ जाती है।
-मितली आना
-चिड़चिड़ाहट होना
-भूख न लगना
-आलस आना
-शरीर का रंग बदलने लगना (पैरों में ब्राउन पैच, आंखों में पीलापन बना रहना)
-पैरों में लगातार सूजन का रहना, पैरों की स्किन के कलर में बदलने के साथ कमजोरी
-हमेशा थकान महसूस करना
-वजन का अचानक कम हो जाना
-चक्कर आना
-पेट में राइट साइड ऊपर की ओर लगातार दर्द रहने जैसे लक्षण लिवर में हो रही गड़बड़ियों के संकेत हैं।

फैटी लिवर और ऐल्कॉहॉल
ऐल्कॉहॉल फैटी लिवर के लिए जिम्मेदार हो सकता है। फैटी लिवर दो तरह के हो सकते हैं: ऐल्कॉहॉलिक और नॉन-ऐल्कॉहॉलिक इसका सबसे बड़ा कारण एल्कॉहॉल है, लेकिन दूसरे कारण भी हो सकते हैं।

कितना ऐल्कॉहॉल सेफ?
सबसे पहले इस बात को समझना जरूरी है कि ऐल्कॉहॉल न लेना लिमिटेड ऐल्कॉहॉल लेने से बेहतर ऑप्शन है। फिर भी अगर कोई ऐल्कॉहॉल लेता है तो मात्रा का ख्याल रखना चाहिए। इंटरनैशनल रिसर्च के अनुसार यदि कोई रोज लगभग 30 एमएल ऐल्कॉहॉल (3 स्टैंडर्ड पैग) लेता है तो यह सेफ है। यानी एक हफ्ते में यदि कोई पुरुष लगभग 200 एमएल और महिला करीब 130 एमएल ऐल्कॉहॉल ले तो इसे लिवर झेल लेता है। इससे ज्यादा ऐल्कॉहॉल लेने से फैटी लिवर होने की आशंका बनी रहती है। लिमिट से ज्यादा शराब पीने की आदत से लिवर के सेल्स में बैड फैट जमा होता जाता है उन्हें डैमेज करता जाता है। फैटी लिवर के पेशंट्स ज्यादातर वही लोग होते हैं जो रेग्युलर शराब पीते हैं। शराब पीने वाले 80-90 फीसदी लोगों को फैटी लिवर की शिकायत देखने को मिलती है।
नॉन ऐल्कॉहॉलिक फैटी लिवर: यह टर्म उन लोगों में इस्तेमाल किया जाता है जो बहुत कम या बिल्कुल ऐल्कॉहॉल नहीं लेते। कई बार कमर की ज्यादा चौड़ाई (40 इंच से ज्यादा), जॉन्डिस का ठीक से इलाज न कराना और हाई कॉलेस्ट्रॉल की डायट की वजह से यह फैटी लिवर डिवेलप होता है।

क्या है जांच
-ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड
-निडल बायप्सी
खर्च: अलग-अलग पैथॉलजी अपने हिसाब से रेट तय करते हैं लेकिन अमूमन 7-8 हजार रुपये में सारे टेस्ट हो जाते हैं।

बचाव और इलाज
फैटी लिवर का तब तक कोई खास इलाज नहीं है, जब तक कि हालात बढ़ कर फाइब्रोसिस या सिरोसिस तक न पहुंच जाएं और लिवर ट्रांसप्लांट की नौबत न आ जाए।

फैटी लिवर का हार्ट कनेक्शन
लिवर में फैट जमा होने के कारण हार्ट तक जाने वाली खून की धमनियों में फैट जमा हो जाता है और इसकी वजह से हार्ट अटैक हो सकता है। जब यही ब्लॉकेज ब्रेन में जाने वाली नसों में होने लगे तो ब्रेन हैमरेज का खतरा रहता है।

बचाव
-मोटापे को कंट्रोल करें।
-ब्लड शुगर कंट्रोल में रखें।
-यदि मोटे हैं तो एकदम से वजन कम न करें। हर साल अपने कुल वजन के 10 फीसदी के बराबर वजन कम करने का टारगेट रखें। मिसाल के तौर पर अगर वजन 100 किलो है तो पहले साल 10 किलो वजन कम करने और उसके अगले साल 9 किलो कम करने का टारगेट रखें।
-शराब और सिगरेट पीना फौरन बंद कर दें।
-कॉलेस्ट्रॉल और बीपी को कंट्रोल में रखें।
-हेल्दी और संतुलित खाना खाएं।
-रेग्युलर एक्सरसाइज करें।
-फाइबर युक्त चीजें जैसे फल, सब्जियां, बींस और साबुत अनाज आदि को अपनी डायट में ज्यादा मात्रा में शामिल करें।
-तला-भुना और जंक फूड खाने से बचें।
-किसी डायटिशन की मदद से फूड चार्ट बनवाएं और उसके हिसाब से खाना खाएं।
-डॉक्टर से पूछे बिना पेन किलर्स या और कोई दवा न लें।

योग रखेगा लिवर फिट
लिवर की परेशानियों से बचने के लिए अतिरिक्त पवनमुक्तासन, वज्रासन, मर्करासन आदि का अभ्यास करना चाहिए। ये बेहद फायदेमंद होते हैं।

ऐसे करें पवनमुक्तासन
पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। दाएं पैर को घुटने से मोड़कर इसके घुटने को हाथों से पकड़कर घुटने को सीने के पास लाएं। इसके बाद सिर को जमीन से ऊपर उठाएं। उस स्थिति में आरामदायक समय तक रुककर वापस पहले की स्थिति में आएं। इसके बाद यही क्रिया बाएं पैर और फिर दोनों पैरों से एक साथ करें। यह पवनमुक्तासन का एक चक्र है। एक या दो चक्रों से शुरू करके धीरे-धीरे इसकी संख्या बढ़ाकर 10-15 बार कर सकते हैं।

ऐसे करें शीतली प्राणायाम
लिवर बढ़ने की समस्या से ग्रस्त लोगों को शीतकारी या शीतली प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीढ़, गला और सिर को सीधा कर बैठें। दोनों हाथों को घुटनों पर आराम से रखें। आंखों को ढीली बंद कर चेहरे को शांत रखें। अब जीभ को बाहर निकालकर दोनों किनारों से मोड़ लें। इसके बाद मुंह से गहरी और धीमी सांस बाहर निकालें। शुरुआत में इसे 12 बार करें। धीरे-धीरे बढ़ाकर 24 से 30 तक ले जाएं।

फायदेमंद है शशांकासन
खरगोश की तरह बैठ कर दोनों पैर घुटने से मोड़ कर बैठें या वज्रआसन में भी बैठते हुए लंबी गहरी सांस छोड़ते हुए अपने हाथों और माथे को जमीन पर टच कराएं। कुछ देर इसी अवस्था में रुकें। ऐसे में सांस की स्थिति सामान्य रखें। इस आसन को पांच बार करना चाहिए।

होम्योपैथी का भी लें सहारा
होम्योपैथी में भी कुछ दवाएं हैं जो लिवर के खासकर फैटी लिवर के मरीजों को दी जाती हैं। ये दवाएं असरदार करने में वक्त लगाती हैं लेकिन इनका कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं। दवाएं लेने के साथ ही एक्सरसाइज भी करनी होगी।
- फॉस्फोरस-5-5 गोलियां दिन में तीन बार दो हफ्ते तक।
- लाइकोपोडियम 30- 5-5 गोलियां दिन में तीन बार दो हफ्ते तक।
- चेलिडोनियम मेगस मदर टिंचर- 10 बूंदे आधा कप पानी के साथ लेने से लिवर पर जमी की चर्बी में कमी आती है।

आजमाएं आयुर्वेदिक नुस्खे
फैटी लिवर का इलाज आयुर्वेद में भी मुमकिन है:
-आयुर्वेद में गर्म छाछ बहुत उपयोगी मानी गई है। छाछ को हल्का गुनगुना कर उसमें हल्दी और जीरे का छौंक लगा कर पीने से काफी मदद मिलती है।
-हल्दी में पाए जाने वाले एंटी-ऑक्सीडेंट लिवर सेल्स को मजबूत बनाता है। इसलिए खाने में हल्दी का उपयोग करें।
- संतरे का रस, जौ का पानी और नारियल पानी रेग्युलर पीने से लिवर की सेहत बनी रहती है।
- गाजर और टमाटर खाने से भी फैटी लिवर के मरीजों को फायदा होता है।
- फैटी लीवर से छुटकारा पाने में ग्रीन टी बड़े पैमाने पर असर करती है। बेहतर परिणाम के लिए ग्रीन टी को रोजमर्रा के आहार में शामिल करें और इसके एंटी-ऑक्सिडेंट गुणों की वजह से यह फैटी लिवर की समस्या से छुटकारा दिलाता है।

मिथ मंथन
शराब की बजाय बियर पीना सेफ
रोजाना 300 एमएल यानी एक केन से ज्यादा बियर पीना भी फैटी लिवर का कारण हो सकता है। लंबे वक्त तक यह आदत घातक साबित हो सकती है। तकरीबन 3 स्टैंडर्ड पैग से ज्यादा शराब भी घातक सिद्ध हो सकती है।

शराब पीने वालों को होता है फैटी लिवर
यह मान्यता गलत है कि फैटी लिवर की शिकायत सिर्फ शराब पीने वालों को ही होता है। शराब फैटी लिवर की बड़ी वजह जरूर है, लेकिन अकेली वजह नहीं। शराब पीने और न पीने वाले फैटी लिवर के पेशंट्स की संख्या लगभग बराबर है।

मोटे लोगों को होता है फैटी लिवर
अक्सर मान लिया जाता है कि फैटी लिवर सिर्फ मोटे लोगों को ही होता है। सचाई यह है कि दुबले लोग भी अपनी खान-पान की आदतों जैसी दूसरी वजहों से बड़ी संख्या में फैटी लिवर की समस्या के शिकार पाए जाते हैं।

जब आए नौबत ट्रांसप्लांट की
लिवर ट्रांसप्लांट लिवर की बीमारी की वह आखिरी स्टेज है, जहां मरीज के शरीर में नया लिवर लगाकर जीवन दिया जाता है। इस ऑपरेशन की सफलता का दर तकरीबन 94 फीसदी है। लिवर ट्रांसप्लांट से लेकर डोनर तक को ढूंढने तक में आने वाला खर्च मरीज-मरीज पर निर्भर करता है। यह 15 से 40 लाख तक हो सकता है।

ट्रांसप्लांट की जरुरत कब
- जब मरीज का लिवर बहुत ज्यादा डैमेज हो चुका होता है और ठीक से काम नहीं कर रहा होता।
- यदि लिवर हेपैटिक कोमा हो या फिर गैसट्रोइटोंटेसटाइनल ब्लीडिंग हो रही हो। लिवर कैंसर में या फिर सिरोटिक लिवर में बदल चुका हो, तब ट्रांसप्लांट ही आखिरी रास्ता बचता है।
-अर्जेंट लिवर ट्रांसप्लांट उन मरीजों का होता है जिनका लिवर काम करना पूरी तरह से बंद कर चुका होता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। मुख्य कारण हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस ई आदि।

डोनर क्या और कब
-ट्रांसप्लांट में मरीज और डोनर का ब्लड ग्रुप एक होना चाहिए।
-डोनर को फैटी लिवर के साथ कोई और बीमारी नहीं होनी चाहिए।
-लिवर जादूई अंग है। यह खुद अपना इलाज कर लेता है। डोनर का लिवर 6-9 सप्ताह में फिर से आ जाता है।
-डोनर की उम्र 50 साल से कम होनी चाहिए।
-बॉडी मास इंडेक्स 25 से कम होना चाहिए।

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. अनूप मिश्रा, सी-डॉक, फोर्टिस, दिल्ली
डॉ. अनूप सराया, एम्स, दिल्ली
डॉ. नवल विक्रम, एम्स, दिल्ली
डॉ. गीता रमेश, कैराली आयुर्वेदिक हीलिंग सेंटर
सुनील सिंह, योग गुरु
डॉ. सुचीन्द्र सचदेव, होम्योपैथी एक्सपर्ट
डॉ. नीलम मोहन, मेदांता, गुड़गांव







मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 485

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>