गर्मियां जोरों पर हैं। ऐसे में स्पा के जरिए तन और मन को तरोताजा कर सकते हैं। स्पा न सिर्फ आपको फ्रेश महसूस कराएगा, बल्कि कई लाइफस्टाइल बीमारियों में भी यह आपको राहत दिला सकता है। एक्सपर्ट्स की मदद से स्पा के बारे में तमाम जानकारियां दे रही हैं प्रियंका सिंह:
गर्मियों में स्पा की डिमांड काफी ज्यादा होती है। आयुर्वेदिक सेंटरों से लेकर बड़े होटलों, रिजॉर्ट्स, जिम तक में स्पा का इंतजाम होता है।
क्या है स्पा
स्पा शब्द लैटिन लैंग्वेज से आया है, जिसका मतलब है मिनरल्स से भरपूर पानी में स्नान। स्पा थेरपी यूरोपीय देशों से शुरू हुई और धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गई। बॉडी मसाज, बॉडी रैप, सोना बाथ, स्टीम बाथ आदि को मिलाकर स्पा कहते हैं। मोटे तौर पर 3 R यानी Relax, Rejuvinate और Regain Health स्पा से जुड़े हैं। अगर रिलैक्स कराने के लिए स्पा लेना चाहते हैं तो खुद चुन सकते हैं। इसमें आपकी सेहत और खूबसूरती को बेहतर करने और रिलैक्सेशन के लिए दी जानेवाली थेरपी शामिल होती है। लेकिन अगर किसी बीमारी के इलाज के तौर पर कराना चाहते हैं तो आयुर्वेदिक डॉक्टर (वैद्य) से पूछ कर कराएं। लाइफस्टाइल प्रॉब्लम जैसे कि नींद न आना, मोटापा, जोड़ों में दर्द, बाल झड़ना, डिप्रेशन, मुंहासे आदि का इलाज स्पा थेरपी से किया जाता है।
फायदे हैं तमाम
- तनाव कम कर मन को रिलैक्स करता है। - तन और मन को तरोताजा करता है। - ब्लड सर्कुलेशन ठीक करता है। - शरीर के जहरीले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। - शरीर में कसावट लाकर बुढ़ापे की रफ्तार धीमी करता है। - जोड़ों में लचीलापन लाता है।
किस उम्र में कराएं
आमतौर पर 12 साल से पहले स्पा कराने की सलाह नहीं दी जाती। दरअसल, इस उम्र में बच्चे का शरीर काफी नाजुक होता है। तेज मालिश आदि से उसे नुकसान हो सकता है। 12 से 18 साल के बीच भी कुछ ही तरह की थेरपी दी जाती हैं जैसे कि मसाज, शिरोधारा, सॉना बाथ आदि। हालांकि अगर सिर्फ मसाज करानी है तो 5 साल की उम्र के बच्चों की भी करा सकते हैं। 18 साल या इससे ज्यादा कोई भी स्पा थेरपी करा सकते हैं।
कितनी तरह का
स्पा 2 तरह का होता हैः वेट और ड्राई
वेट में स्टीम, सॉना और जूकॉजी आते हैं, जबकि ड्राई में मसाज, फेशियल, पेडिक्योर, मेनिक्योर, सैलून सुविधाएं आदि आती हैं।
स्पेशल थेरपी
स्पा में मसाज सबसे खास है। इसके अलावा शिरोधारा, सॉना, स्टीम, जकूजी आदि भी होते हैं।
मसाज
मसाज या मालिश करीब 45 मिनट से घंटा भर की जाती है। यह कई तरह की होती है:
आयुर्वेदिक मसाज: इसके जरिए आमतौर पर लाइफस्टाइल बीमारियों का इलाज किया जाता है। इस ट्रीटमेंट के दौरान आयुर्वेदिक डॉक्टर का वहां मौजूद होना बहुत जरूरी है। इस इलाज के दौरान आमतौर पर मेडिकेटिड ऑयल (जड़ी-बूटियों आदि मिलाकर तैयार किया गया) से मसाज की जाती है, जिसे अभ्यंगम कहा जाता है। इसमें 1 या 2 लोग मिलकर फुल बॉडी मसाज करते हैं।
स्वीडिश मसाजः शरीर पर गोल-गोल मूवमेंट के साथ आराम से मसाज की जाती है। यह काफी सॉफ्ट होती है इसलिए आमतौर पर महिलाएं इसे कराना पसंद करती हैं।
बेलिनिस मसाजः इसमें काफी प्रेशर लगाकर मसाज की जाती है। ज्यादा जोर एक्यूप्रेशर पॉइंट्स पर होता है।
इंडोनेशियन मसाजः इसमें इंडोनेशियन ऑयल यूज होते हैं। प्रेशर मीडियम होता है।
थाई मसाजः यह मसाज के सबसे पुराने तरीकों में से है। इसे ड्राई मसाज भी कहा जाता है क्योंकि तेल के बजाय पाउडर का यूज होता है।
डीप टिश्यू मसाजः इसमें प्रेशर काफी ज्यादा होता है। आमतौर पर स्पोट्र्सपर्सन और जिम जानेवाले लोग इसे कराना पसंद करते हैं। इसमें जोड़ों का लचीलापन बढ़ता है।
फेशियल मर्मा: इसके लिए ट्रेनिंग जरूरी है। ट्रेंड एक्सपर्ट शरीर के अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग प्रेशर के साथ दबाकर मसाज करते हैं।
ध्यान रखें
खाली पेट कराएं। बेकफास्ट के कम-से-कम डेढ़ घंटे बाद और लंच के ढाई घंटे बाद कराएं।
शिरोधारा
कई तेलों को मिलाकर तेल तैयार किया जाता है, जिसे सिर पर एक धारा के रूप में करीब 45 से 60 मिनट तक गिराया जाता है। इसमें महानारायण तेल, नीलभृंगादि, तिल का तेल आदि यूज करते हैं, जिन्हें अलग-अलग तेल मिलाकर तैयार किया जाता है। इससे मन रिलैक्स होता है और कंसंट्रेशन बढ़ता है। वैसे, स्पा में मसाज के लिए गुलाब, चमेली, लैवेंडर, लोटस, नीम आदि के तेल का भी खूब यूज होता है।
ध्यान रखें
इस दौरान आंखें न खोलें।
स्टीम बाथ
इसमें एक चैंबर या कमरा होता है, जिसमें पानी को उबालकर स्टीम पैदा की जाती है। कस्टमर को इसमें बिठा दिया जाता है। इसमें बैठने के बाद मूवमेंट मुमकिन नहीं है। आमतौर पर 25-30 मिनट स्टीम दी जाती है। स्टीम चैंबर ऑनलाइन भी मिलते हैं। ये करीब 2000 रुपये से शुरू होते हैं। इनसे घर में ही स्टीम ले सकते हैं।
ध्यान रखें
स्टीम लेने से पहले 1 गिलास नॉर्मल पानी पिएं। अंदर भी पानी की बॉटल ले जाएं और बीच-बीच में भी पानी पीते रहें। स्टीम लेने के दौरान सिर के ऊपर या गर्दन के पीछे एक गीला टॉवल रखना चाहिए। इसे कोल्ड कंप्रेसर कहते हैं। यह बेचैनी, चक्कर आदि से राहत दिलाएगा।
इसमें ड्राई हीट होती है। इसमें एक बंद कमरा होता है। कोयले से पत्थरों को गर्म किया जाता है। इसमें बड़ा कमरा होता है इसलिए घूमने-फिरने या बैठने-लेटने आदि का ऑप्शन होता है। सॉना भी आमतौर पर 25-30 मिनट किया जाता है।
ध्यान रखें
यहां भी स्टीम वाली ही सावधानियां बरतें। इसमें ज्यादा गर्मी के कारण बेचैनी और घबराहट महसूस हो सकती है। शुरुआत में कम देर से करें।
जकूजी
इसमें एक बड़े बाथ टब में बिठाया जाता है, जिसमें चारों तरफ से जगह-जगह लगे जेट में से गुनगुने पानी की तेज धाराएं आकर शरीर पर पड़ती हैं। यह करीब 20-30 मिनट कराया जाता है।
पंचकर्मा
आयुर्वेद में इलाज के लिए पंचकर्म विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें अलग-अलग क्रियाओं से शरीर को शुद्ध और दुरुस्त किया जाता है। पंचकर्म के 2 हिस्से होते हैं:
पूर्वकर्म: इसमें स्नेहन और स्वेदन आते हैं।
प्रधानकर्मः इसके 5 हिस्से होते हैं: वमन, विरेचन, आस्थापन बस्ति, अनुवासन-बस्ति और शिरो-विरेचन या शिरोधारा।
स्नेहनः इसमें घी या तेल पिलाकर और मालिश करके शरीर के दोषों को दूर किया जाता है।
स्वेदनः इसमें अलग-अलग तरीकों से शरीर से पसीना निकाल कर बीमारियों से निपटा जाता है।
आगे की क्रिया करने से पहले ये पूर्वकर्म के ये दोनों कर्म करने जरूरी हैं। इसके बाद प्रधानकर्म किया जाता है। इसके तहत ये क्रियाएं होती हैं:
वमनः इस कर्म के जरिए कफ से पैदा होनेवाली बीमारियों (खांस, बुखार, सांस की बीमारी आदि) का इलाज किया जाता है। इसमें दवा या काढ़ा पिलाकर उलटी (वमन) कराई जाती है। इससे कफ और पित्त बाहर आ जाते हैं।
विरेचनः पित्त वाली बीमारियों के लिए विरेचन किया जाता है। इससे पेट की बीमारियों में राहत मिलती है। इसके लिए अलग-अलग दवाएं और काढ़े पिलाए जाते हैं।
आस्थापन बस्तिः इसका दूसरा नाम मेडिसिनल एनिमा भी है। इसमें खुश्क चीजों का क्वाथ बनाकर एनिमा दिया जाता है। इससे पेट एवं बड़ी आंत के वायु संबधी सभी रोगों में लाभ मिलता है।
अनुवासन बस्तिः इस प्रक्रिया में स्निग्ध (चिकने) पदार्थ जैसे कि दूध, घी, तेल आदि के मिश्रण का एनिमा लगाया जाता है। इससे भी पेट एवं बड़ी आंत की बीमारियों में राहत मिलती है।
शिरोविरेचन या शिरोधारा: इसमें नाक से अलग-अलग तेलों को सुंघाया जाता है और सिर पर तेल की धारा डाली जाती है। इससे सिर के अंदर की खुश्की दूर होती है। यह आंखों की बामारियों, ईएनटी प्रॉब्लम, नींद न आना और तनाव जैसी बीमारियों में राहत मिलती है।
कुछ और थेरपी
हॉट स्टोन थेरपीः इसमें करीब 30 मिनट की मसाज के बाद तेल में डूबे गर्म पत्थर बॉडी पर करीब 15-20 मिनट के लिए रखे जाते हैं। इससे प्रेशर पॉइंट बेहतर काम करने लगते हैं।
बैंबू थेरपीः यह करीब-करीब हॉट स्टोन थेरपी जैसा ही है। स्टोन रखने के बजाय बैंबू से मालिश की जाती है।
हॉट टब थेरपी: इसमें एक टब में गर्म पत्थर रखे जाते हैं और मिनरल वॉटर से इसे भर कर कस्टमर को इसमें लिटा दिया जाता है। जब यह वॉटर गर्म पत्थरों के ऊपर से गुजरता है तो हीट बनती है जो कस्टमर को काफी रिलैक्स करती है।
इससे आनंद भी खूब आता है।
अरोमा थेरपी: इसमें तिल के तेल में अरोमा यानी खुशबू (यूकेलिप्टस, गुलाब, लैवेंडर, चमेली आदि) डालकर मालिश करते हैं। साथ ही, कमरे में भी टी-लाइट या दूसरे तरीकों से उसी खुशबू का संचार किया जाता है। खुशबू काफी रिलैक्स करती है। लेवेंडर का इस्तेमाल शांति के लिए, लेमन ग्रास का रिलैक्स के लिए, पिपरमेंट का रिफ्रेंशमेंट के लिए।
बॉडी रैप/पैक: इसमें बॉडी पर अलग-अलग तरह के पैक लगाए जाते हैं जैसे कि मड पैक। इसमें शरीर पर मिट्टी का लेप किया जाता है। इसके अलावा दूध में फलों का गूदा और जड़ी-बूटियां मिलाकर गाढ़ा पैक बनाना या उबले चावलों में अदरक, इलायची आदि मिलाकर पैक बनाना आदि। इन्हें बॉडी पर लगाकर बॉडी को सूती कपड़े की पट्टियों से लपेट दिया जाता है।
मड पैक थेरपी: मिट्टी में नीम की पत्तियां या जड़ी-बूटियां पीसकर मिलाते हैं। इससे शरीर को कूलिंग इफेक्ट मिलता है और दर्द भी कम हो जाता है।
पोटली थेरपी: नीम, चंदन आदि बूटियां को सूती कपड़े की पोटली में बांधकर हल्का गर्म करके सिकाई की जाती है।
ब्यूटी ट्रीटमेंट: इसमें फेस के लिए फेशियल, पैरों के लिए पेडिक्योर, हाथों के लिए मैनिक्योर और बालों के लिए हेयर स्पा आदि आते हैं। इन सभी में क्लीनिंग, स्क्रबिंग, मसाज, पैक आदि यूज करते हैं। आमतौर पर पहले क्लिंजिंग, फिर स्क्रबिंग, फिर मसाज और आखिर में पैक लगाया जाता है।
स्पा और आयुर्वेदिक इलाज में फर्क
स्पा बॉडी और मन को रिलैक्स करने के लिए होता है, जबकि आयुर्वेदिक उपचार में किसी बीमारी का इलाज किया जाता है। मसलन जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए कटि बस्ती करते हैं। इसमें घुटने पर आटे की टोकरी-सी बनाकर लगाते हैं और उसमें गर्म तेल डालते हैं। करीब 20-25 मिनट घुटना इसमें रखकर फिर उस तेल से घुटने की मालिश करते हैं। शुगर के मरीजों को पोटली ट्रीटमेंट देते हैं। स्पा कोई भी करा सकता है, जबकि आयुर्वेदिक इलाज बीमारों का किया जाता है।
स्पा और मसाज में फर्क
मसाज स्पा का एक हिस्सा है। किसी भी तरह की मसाज स्पा में ही आती है। लेकिन स्पा में मसाज के अलावा स्टीम, सॉना, पैक और रैप आदि भी आते हैं।
कहां-कहां होते हैं स्पा
स्पा कई जगहों पर होते हैं। उसके आधार पर भी स्पा की कैटिगरी बांटी गई है:
अर्बन स्पा: यह शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, मॉल, हेल्थ क्लब, एयरपोर्ट आदि पर होता है। यहां आप मसाज, हेयरकेयर, फेशियल आदि करा सकते हैं।
मेडिकल स्पा: मेडिकल स्पा में स्किन में दाग-धब्बे और कालापन, झुर्रियां आदि के अलावा मोटापे के लिए भी लेजर या बॉटोक्स आदि यूज किया जाता है। यह आपकी स्किन को ध्यान में रखकर किया जाता है।
डेस्टिनेशन स्पा: इसमें आमतौर पर वहीं रहना (2-5 दिन) होता है और वॉटर थेरपी ज्यादा यूज होती है। साथ ही, फिजिकल एक्टिविटी भी कराई जाती है।
होटल/रिजॉर्ट स्पा: बड़े-बड़े होटल और रिजॉर्ट में स्पा का इंतजाम होता है। यह आमतौर पर रिलैक्सेशन के लिए होता है। इसमें भी मसाज, सोनाबाथ आदि का इंतजाम होता है।
क्रूज/शिप स्पा: शिप या क्रूज में भी स्पा का इंतजाम होता है। दूसरे स्पा की तरह की यहां भी लोगों को रिलैक्सेशन कराया जाता है।
कौन न कराए
- बुखार, इन्फेक्शन और चोट में न कराएं।
- सर्जरी के बाद भी 6 महीने तक परहेज करें।
- हाई बीपी के मरीज स्टीम या सॉना न कराएं।
- पैरालिसिस या कैंसर जैसी बीमारियों में भी ट्रीटमेंट के तौर पर स्पा नहीं कराना चाहिए। हां, रिलैक्शेन के लिए कुछ थेरपी करा सकते हैं।
- प्रेग्नेंसी में स्पा थेरपी नहीं करानी चाहिए। 3 से 6 महीने की प्रेग्नेंसी में फुट थेरपी आदि करा सकते हैं, लेकिन इसके पहले या बाद में वह भी नहीं। नॉर्मल डिलिवरी के बाद 3 महीने तक और सिजेरियन के बाद 6 महीने तक न कराएं।
कितना कराएं
ज्यादा-से-ज्यादा 15 दिन में एक बार या फिर 6-9 महीने में हफ्ते भर लगातार कराएं। बाकी आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से लेकर भी करा सकते हैं। ध्यान रखें कि यह आदत बेशक बन जाए, लेकिन लत नहीं।
क्या हैं रेट
यूं तो ब्रैंड नेम, सुविधा और बीमारी आदि के अनुसार रेट तय होते हैं लेकिन फिर भी मोटे तौर पर एक थेरपी के लिए 1000 से 3000 रुपये तक खर्च होते हैं।
और कुछ सावधानियां
- अच्छे स्पा में ही कराएं, वरना इन्फेक्शन के अलावा आपके गलत इस्तेमाल के चांस भी बन जाते हैं।
- मसाज और स्टीम के दौरान बॉडी का टेंपरेचर बढ़ जाता है। ब्लड सर्कुलेशन भी सिर की तरफ जाता है। इससे चक्कर या उलटी आदि महसूस हो सकती है। परेशान न हों। यह जल्द ही ठीक हो जाता है।
- अगर ज्यादा दिक्कत लगे तो केबिन से बाहर निकल आएं और आराम से लेट जाएं। थोड़ी देर में नॉर्मल महसूस करने लगेंगे।
- कोई हेल्थ इश्यू है तो स्पा करने वाले को पहले से बताएं।
- स्किन सेंसेटिव है तो भी जानकारी दें।
कैसे पहचानें कि कौन बेहतर
स्पा कैसा है, यह आप अपनी 5 सेंस से पहचान सकते हैः
- आंखों से देखकर कि माहौल कैसा है। साफ-सुथरा और अच्छा है या नहीं।
- नाक से सूंघकर देखें कि खुशबू अच्छी है या नहीं।
- स्किन से पता लगता है कि टेंपरेचर सही है या नहीं। कम टेंपरेचर में बॉडी रिलैक्स रहती है।
- अच्छे स्पा में जूस आदि पीने को देते हैं। इसके टेस्ट (जीभ से) से लेवल का अनुमान लगा सकते हैं।
- कान को पसंद आनेवाला सॉफ्ट म्यूजिक भी अहम है।
स्पा का सही तरीका
- सबसे पहले 1 गिलास पानी पीने को दें।
- फिर 5 मिनट सोना कराएं।
- इसके बाद 45 से 60 मिनट मसाज करें।
- फिर एक गिलास पानी पीने को दें।
- 5-10 मिनट स्टीम दिलाएं।
- फिर नहाने को बोलें।
- आखिर में एक गिलास जूस पीने को दें।
क्या लेकर जाएं
- एक जोड़ी अंडरगारमेंट्स
- एक टॉवल
एक्सपर्ट्स पैनल डॉ. वी. आर. दिलीप, आयुर्वेदिक एक्सपर्ट, बापू नेचर केयर हॉस्पिटल डॉ. विकास विनीत, आयुर्वेदिक एक्सपर्ट, आर्ट ऑफ लिविंग डॉ. राहुल डोगरा, एक्सपर्ट, कैराली आयुर्वेदिक ग्रुप डॉ. अमित बांगिया, डर्मटॉलजिस्ट, एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज
गर्मियों में स्पा की डिमांड काफी ज्यादा होती है। आयुर्वेदिक सेंटरों से लेकर बड़े होटलों, रिजॉर्ट्स, जिम तक में स्पा का इंतजाम होता है।
क्या है स्पा
स्पा शब्द लैटिन लैंग्वेज से आया है, जिसका मतलब है मिनरल्स से भरपूर पानी में स्नान। स्पा थेरपी यूरोपीय देशों से शुरू हुई और धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गई। बॉडी मसाज, बॉडी रैप, सोना बाथ, स्टीम बाथ आदि को मिलाकर स्पा कहते हैं। मोटे तौर पर 3 R यानी Relax, Rejuvinate और Regain Health स्पा से जुड़े हैं। अगर रिलैक्स कराने के लिए स्पा लेना चाहते हैं तो खुद चुन सकते हैं। इसमें आपकी सेहत और खूबसूरती को बेहतर करने और रिलैक्सेशन के लिए दी जानेवाली थेरपी शामिल होती है। लेकिन अगर किसी बीमारी के इलाज के तौर पर कराना चाहते हैं तो आयुर्वेदिक डॉक्टर (वैद्य) से पूछ कर कराएं। लाइफस्टाइल प्रॉब्लम जैसे कि नींद न आना, मोटापा, जोड़ों में दर्द, बाल झड़ना, डिप्रेशन, मुंहासे आदि का इलाज स्पा थेरपी से किया जाता है।
फायदे हैं तमाम
- तनाव कम कर मन को रिलैक्स करता है। - तन और मन को तरोताजा करता है। - ब्लड सर्कुलेशन ठीक करता है। - शरीर के जहरीले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है। - शरीर में कसावट लाकर बुढ़ापे की रफ्तार धीमी करता है। - जोड़ों में लचीलापन लाता है।
किस उम्र में कराएं
आमतौर पर 12 साल से पहले स्पा कराने की सलाह नहीं दी जाती। दरअसल, इस उम्र में बच्चे का शरीर काफी नाजुक होता है। तेज मालिश आदि से उसे नुकसान हो सकता है। 12 से 18 साल के बीच भी कुछ ही तरह की थेरपी दी जाती हैं जैसे कि मसाज, शिरोधारा, सॉना बाथ आदि। हालांकि अगर सिर्फ मसाज करानी है तो 5 साल की उम्र के बच्चों की भी करा सकते हैं। 18 साल या इससे ज्यादा कोई भी स्पा थेरपी करा सकते हैं।
कितनी तरह का
स्पा 2 तरह का होता हैः वेट और ड्राई
वेट में स्टीम, सॉना और जूकॉजी आते हैं, जबकि ड्राई में मसाज, फेशियल, पेडिक्योर, मेनिक्योर, सैलून सुविधाएं आदि आती हैं।
स्पेशल थेरपी
स्पा में मसाज सबसे खास है। इसके अलावा शिरोधारा, सॉना, स्टीम, जकूजी आदि भी होते हैं।
मसाज
मसाज या मालिश करीब 45 मिनट से घंटा भर की जाती है। यह कई तरह की होती है:
आयुर्वेदिक मसाज: इसके जरिए आमतौर पर लाइफस्टाइल बीमारियों का इलाज किया जाता है। इस ट्रीटमेंट के दौरान आयुर्वेदिक डॉक्टर का वहां मौजूद होना बहुत जरूरी है। इस इलाज के दौरान आमतौर पर मेडिकेटिड ऑयल (जड़ी-बूटियों आदि मिलाकर तैयार किया गया) से मसाज की जाती है, जिसे अभ्यंगम कहा जाता है। इसमें 1 या 2 लोग मिलकर फुल बॉडी मसाज करते हैं।
स्वीडिश मसाजः शरीर पर गोल-गोल मूवमेंट के साथ आराम से मसाज की जाती है। यह काफी सॉफ्ट होती है इसलिए आमतौर पर महिलाएं इसे कराना पसंद करती हैं।
बेलिनिस मसाजः इसमें काफी प्रेशर लगाकर मसाज की जाती है। ज्यादा जोर एक्यूप्रेशर पॉइंट्स पर होता है।
इंडोनेशियन मसाजः इसमें इंडोनेशियन ऑयल यूज होते हैं। प्रेशर मीडियम होता है।
थाई मसाजः यह मसाज के सबसे पुराने तरीकों में से है। इसे ड्राई मसाज भी कहा जाता है क्योंकि तेल के बजाय पाउडर का यूज होता है।
डीप टिश्यू मसाजः इसमें प्रेशर काफी ज्यादा होता है। आमतौर पर स्पोट्र्सपर्सन और जिम जानेवाले लोग इसे कराना पसंद करते हैं। इसमें जोड़ों का लचीलापन बढ़ता है।
फेशियल मर्मा: इसके लिए ट्रेनिंग जरूरी है। ट्रेंड एक्सपर्ट शरीर के अलग-अलग हिस्सों को अलग-अलग प्रेशर के साथ दबाकर मसाज करते हैं।
ध्यान रखें
खाली पेट कराएं। बेकफास्ट के कम-से-कम डेढ़ घंटे बाद और लंच के ढाई घंटे बाद कराएं।
शिरोधारा
कई तेलों को मिलाकर तेल तैयार किया जाता है, जिसे सिर पर एक धारा के रूप में करीब 45 से 60 मिनट तक गिराया जाता है। इसमें महानारायण तेल, नीलभृंगादि, तिल का तेल आदि यूज करते हैं, जिन्हें अलग-अलग तेल मिलाकर तैयार किया जाता है। इससे मन रिलैक्स होता है और कंसंट्रेशन बढ़ता है। वैसे, स्पा में मसाज के लिए गुलाब, चमेली, लैवेंडर, लोटस, नीम आदि के तेल का भी खूब यूज होता है।
ध्यान रखें
इस दौरान आंखें न खोलें।
स्टीम बाथ
इसमें एक चैंबर या कमरा होता है, जिसमें पानी को उबालकर स्टीम पैदा की जाती है। कस्टमर को इसमें बिठा दिया जाता है। इसमें बैठने के बाद मूवमेंट मुमकिन नहीं है। आमतौर पर 25-30 मिनट स्टीम दी जाती है। स्टीम चैंबर ऑनलाइन भी मिलते हैं। ये करीब 2000 रुपये से शुरू होते हैं। इनसे घर में ही स्टीम ले सकते हैं।
ध्यान रखें
स्टीम लेने से पहले 1 गिलास नॉर्मल पानी पिएं। अंदर भी पानी की बॉटल ले जाएं और बीच-बीच में भी पानी पीते रहें। स्टीम लेने के दौरान सिर के ऊपर या गर्दन के पीछे एक गीला टॉवल रखना चाहिए। इसे कोल्ड कंप्रेसर कहते हैं। यह बेचैनी, चक्कर आदि से राहत दिलाएगा।
इसमें ड्राई हीट होती है। इसमें एक बंद कमरा होता है। कोयले से पत्थरों को गर्म किया जाता है। इसमें बड़ा कमरा होता है इसलिए घूमने-फिरने या बैठने-लेटने आदि का ऑप्शन होता है। सॉना भी आमतौर पर 25-30 मिनट किया जाता है।
ध्यान रखें
यहां भी स्टीम वाली ही सावधानियां बरतें। इसमें ज्यादा गर्मी के कारण बेचैनी और घबराहट महसूस हो सकती है। शुरुआत में कम देर से करें।
जकूजी
इसमें एक बड़े बाथ टब में बिठाया जाता है, जिसमें चारों तरफ से जगह-जगह लगे जेट में से गुनगुने पानी की तेज धाराएं आकर शरीर पर पड़ती हैं। यह करीब 20-30 मिनट कराया जाता है।
पंचकर्मा
आयुर्वेद में इलाज के लिए पंचकर्म विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें अलग-अलग क्रियाओं से शरीर को शुद्ध और दुरुस्त किया जाता है। पंचकर्म के 2 हिस्से होते हैं:
पूर्वकर्म: इसमें स्नेहन और स्वेदन आते हैं।
प्रधानकर्मः इसके 5 हिस्से होते हैं: वमन, विरेचन, आस्थापन बस्ति, अनुवासन-बस्ति और शिरो-विरेचन या शिरोधारा।
स्नेहनः इसमें घी या तेल पिलाकर और मालिश करके शरीर के दोषों को दूर किया जाता है।
स्वेदनः इसमें अलग-अलग तरीकों से शरीर से पसीना निकाल कर बीमारियों से निपटा जाता है।
आगे की क्रिया करने से पहले ये पूर्वकर्म के ये दोनों कर्म करने जरूरी हैं। इसके बाद प्रधानकर्म किया जाता है। इसके तहत ये क्रियाएं होती हैं:
वमनः इस कर्म के जरिए कफ से पैदा होनेवाली बीमारियों (खांस, बुखार, सांस की बीमारी आदि) का इलाज किया जाता है। इसमें दवा या काढ़ा पिलाकर उलटी (वमन) कराई जाती है। इससे कफ और पित्त बाहर आ जाते हैं।
विरेचनः पित्त वाली बीमारियों के लिए विरेचन किया जाता है। इससे पेट की बीमारियों में राहत मिलती है। इसके लिए अलग-अलग दवाएं और काढ़े पिलाए जाते हैं।
आस्थापन बस्तिः इसका दूसरा नाम मेडिसिनल एनिमा भी है। इसमें खुश्क चीजों का क्वाथ बनाकर एनिमा दिया जाता है। इससे पेट एवं बड़ी आंत के वायु संबधी सभी रोगों में लाभ मिलता है।
अनुवासन बस्तिः इस प्रक्रिया में स्निग्ध (चिकने) पदार्थ जैसे कि दूध, घी, तेल आदि के मिश्रण का एनिमा लगाया जाता है। इससे भी पेट एवं बड़ी आंत की बीमारियों में राहत मिलती है।
शिरोविरेचन या शिरोधारा: इसमें नाक से अलग-अलग तेलों को सुंघाया जाता है और सिर पर तेल की धारा डाली जाती है। इससे सिर के अंदर की खुश्की दूर होती है। यह आंखों की बामारियों, ईएनटी प्रॉब्लम, नींद न आना और तनाव जैसी बीमारियों में राहत मिलती है।
कुछ और थेरपी
हॉट स्टोन थेरपीः इसमें करीब 30 मिनट की मसाज के बाद तेल में डूबे गर्म पत्थर बॉडी पर करीब 15-20 मिनट के लिए रखे जाते हैं। इससे प्रेशर पॉइंट बेहतर काम करने लगते हैं।
बैंबू थेरपीः यह करीब-करीब हॉट स्टोन थेरपी जैसा ही है। स्टोन रखने के बजाय बैंबू से मालिश की जाती है।
हॉट टब थेरपी: इसमें एक टब में गर्म पत्थर रखे जाते हैं और मिनरल वॉटर से इसे भर कर कस्टमर को इसमें लिटा दिया जाता है। जब यह वॉटर गर्म पत्थरों के ऊपर से गुजरता है तो हीट बनती है जो कस्टमर को काफी रिलैक्स करती है।
इससे आनंद भी खूब आता है।
अरोमा थेरपी: इसमें तिल के तेल में अरोमा यानी खुशबू (यूकेलिप्टस, गुलाब, लैवेंडर, चमेली आदि) डालकर मालिश करते हैं। साथ ही, कमरे में भी टी-लाइट या दूसरे तरीकों से उसी खुशबू का संचार किया जाता है। खुशबू काफी रिलैक्स करती है। लेवेंडर का इस्तेमाल शांति के लिए, लेमन ग्रास का रिलैक्स के लिए, पिपरमेंट का रिफ्रेंशमेंट के लिए।
बॉडी रैप/पैक: इसमें बॉडी पर अलग-अलग तरह के पैक लगाए जाते हैं जैसे कि मड पैक। इसमें शरीर पर मिट्टी का लेप किया जाता है। इसके अलावा दूध में फलों का गूदा और जड़ी-बूटियां मिलाकर गाढ़ा पैक बनाना या उबले चावलों में अदरक, इलायची आदि मिलाकर पैक बनाना आदि। इन्हें बॉडी पर लगाकर बॉडी को सूती कपड़े की पट्टियों से लपेट दिया जाता है।
मड पैक थेरपी: मिट्टी में नीम की पत्तियां या जड़ी-बूटियां पीसकर मिलाते हैं। इससे शरीर को कूलिंग इफेक्ट मिलता है और दर्द भी कम हो जाता है।
पोटली थेरपी: नीम, चंदन आदि बूटियां को सूती कपड़े की पोटली में बांधकर हल्का गर्म करके सिकाई की जाती है।
ब्यूटी ट्रीटमेंट: इसमें फेस के लिए फेशियल, पैरों के लिए पेडिक्योर, हाथों के लिए मैनिक्योर और बालों के लिए हेयर स्पा आदि आते हैं। इन सभी में क्लीनिंग, स्क्रबिंग, मसाज, पैक आदि यूज करते हैं। आमतौर पर पहले क्लिंजिंग, फिर स्क्रबिंग, फिर मसाज और आखिर में पैक लगाया जाता है।
स्पा और आयुर्वेदिक इलाज में फर्क
स्पा बॉडी और मन को रिलैक्स करने के लिए होता है, जबकि आयुर्वेदिक उपचार में किसी बीमारी का इलाज किया जाता है। मसलन जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए कटि बस्ती करते हैं। इसमें घुटने पर आटे की टोकरी-सी बनाकर लगाते हैं और उसमें गर्म तेल डालते हैं। करीब 20-25 मिनट घुटना इसमें रखकर फिर उस तेल से घुटने की मालिश करते हैं। शुगर के मरीजों को पोटली ट्रीटमेंट देते हैं। स्पा कोई भी करा सकता है, जबकि आयुर्वेदिक इलाज बीमारों का किया जाता है।
स्पा और मसाज में फर्क
मसाज स्पा का एक हिस्सा है। किसी भी तरह की मसाज स्पा में ही आती है। लेकिन स्पा में मसाज के अलावा स्टीम, सॉना, पैक और रैप आदि भी आते हैं।
कहां-कहां होते हैं स्पा
स्पा कई जगहों पर होते हैं। उसके आधार पर भी स्पा की कैटिगरी बांटी गई है:
अर्बन स्पा: यह शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, मॉल, हेल्थ क्लब, एयरपोर्ट आदि पर होता है। यहां आप मसाज, हेयरकेयर, फेशियल आदि करा सकते हैं।
मेडिकल स्पा: मेडिकल स्पा में स्किन में दाग-धब्बे और कालापन, झुर्रियां आदि के अलावा मोटापे के लिए भी लेजर या बॉटोक्स आदि यूज किया जाता है। यह आपकी स्किन को ध्यान में रखकर किया जाता है।
डेस्टिनेशन स्पा: इसमें आमतौर पर वहीं रहना (2-5 दिन) होता है और वॉटर थेरपी ज्यादा यूज होती है। साथ ही, फिजिकल एक्टिविटी भी कराई जाती है।
होटल/रिजॉर्ट स्पा: बड़े-बड़े होटल और रिजॉर्ट में स्पा का इंतजाम होता है। यह आमतौर पर रिलैक्सेशन के लिए होता है। इसमें भी मसाज, सोनाबाथ आदि का इंतजाम होता है।
क्रूज/शिप स्पा: शिप या क्रूज में भी स्पा का इंतजाम होता है। दूसरे स्पा की तरह की यहां भी लोगों को रिलैक्सेशन कराया जाता है।
कौन न कराए
- बुखार, इन्फेक्शन और चोट में न कराएं।
- सर्जरी के बाद भी 6 महीने तक परहेज करें।
- हाई बीपी के मरीज स्टीम या सॉना न कराएं।
- पैरालिसिस या कैंसर जैसी बीमारियों में भी ट्रीटमेंट के तौर पर स्पा नहीं कराना चाहिए। हां, रिलैक्शेन के लिए कुछ थेरपी करा सकते हैं।
- प्रेग्नेंसी में स्पा थेरपी नहीं करानी चाहिए। 3 से 6 महीने की प्रेग्नेंसी में फुट थेरपी आदि करा सकते हैं, लेकिन इसके पहले या बाद में वह भी नहीं। नॉर्मल डिलिवरी के बाद 3 महीने तक और सिजेरियन के बाद 6 महीने तक न कराएं।
कितना कराएं
ज्यादा-से-ज्यादा 15 दिन में एक बार या फिर 6-9 महीने में हफ्ते भर लगातार कराएं। बाकी आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से लेकर भी करा सकते हैं। ध्यान रखें कि यह आदत बेशक बन जाए, लेकिन लत नहीं।
क्या हैं रेट
यूं तो ब्रैंड नेम, सुविधा और बीमारी आदि के अनुसार रेट तय होते हैं लेकिन फिर भी मोटे तौर पर एक थेरपी के लिए 1000 से 3000 रुपये तक खर्च होते हैं।
और कुछ सावधानियां
- अच्छे स्पा में ही कराएं, वरना इन्फेक्शन के अलावा आपके गलत इस्तेमाल के चांस भी बन जाते हैं।
- मसाज और स्टीम के दौरान बॉडी का टेंपरेचर बढ़ जाता है। ब्लड सर्कुलेशन भी सिर की तरफ जाता है। इससे चक्कर या उलटी आदि महसूस हो सकती है। परेशान न हों। यह जल्द ही ठीक हो जाता है।
- अगर ज्यादा दिक्कत लगे तो केबिन से बाहर निकल आएं और आराम से लेट जाएं। थोड़ी देर में नॉर्मल महसूस करने लगेंगे।
- कोई हेल्थ इश्यू है तो स्पा करने वाले को पहले से बताएं।
- स्किन सेंसेटिव है तो भी जानकारी दें।
कैसे पहचानें कि कौन बेहतर
स्पा कैसा है, यह आप अपनी 5 सेंस से पहचान सकते हैः
- आंखों से देखकर कि माहौल कैसा है। साफ-सुथरा और अच्छा है या नहीं।
- नाक से सूंघकर देखें कि खुशबू अच्छी है या नहीं।
- स्किन से पता लगता है कि टेंपरेचर सही है या नहीं। कम टेंपरेचर में बॉडी रिलैक्स रहती है।
- अच्छे स्पा में जूस आदि पीने को देते हैं। इसके टेस्ट (जीभ से) से लेवल का अनुमान लगा सकते हैं।
- कान को पसंद आनेवाला सॉफ्ट म्यूजिक भी अहम है।
स्पा का सही तरीका
- सबसे पहले 1 गिलास पानी पीने को दें।
- फिर 5 मिनट सोना कराएं।
- इसके बाद 45 से 60 मिनट मसाज करें।
- फिर एक गिलास पानी पीने को दें।
- 5-10 मिनट स्टीम दिलाएं।
- फिर नहाने को बोलें।
- आखिर में एक गिलास जूस पीने को दें।
क्या लेकर जाएं
- एक जोड़ी अंडरगारमेंट्स
- एक टॉवल
एक्सपर्ट्स पैनल डॉ. वी. आर. दिलीप, आयुर्वेदिक एक्सपर्ट, बापू नेचर केयर हॉस्पिटल डॉ. विकास विनीत, आयुर्वेदिक एक्सपर्ट, आर्ट ऑफ लिविंग डॉ. राहुल डोगरा, एक्सपर्ट, कैराली आयुर्वेदिक ग्रुप डॉ. अमित बांगिया, डर्मटॉलजिस्ट, एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज
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