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2016 का हेल्थ कार्ड

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2016 का यह आखिरी संडे है। हर साल की तरह यह साल भी हेल्थ सेक्टर के लिए काफी कुछ लेकर आया। हाल के समय में कुछ प्रमुख बीमारियों के इलाज में हमें क्या मिला खास, एक्सपर्ट्स से बात करके पूरी जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह:

एक्सपर्ट्स पैनल

डॉ. एस. के. सरीन, डायरेक्टर, इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज

डॉ. अशोक सेठ, चेयरमैन, फोर्टिस-एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट

डॉ. पी. के. जुल्का, एक्स डीन, ऑन्कॉलजी डिपार्टमेंट, एम्स

डॉ. अनूप मिश्रा, चेयरमैन, फोर्टिस सी-डॉक

डॉ. महेश वर्मा, डायरेक्टर, मौलाना आजाद डेंटल कॉलेज

डॉ. के. के. अग्रवाल, प्रेजिडेंट, इंडियन मेडिकल असोसिएशन

डॉ. संजीव गुलाटी, डायरेक्टर, फोर्टिस इंस्टिट्यूट ऑफ रेनल ट्रांसप्लांट

डॉ. प्रवीण कुमार, हेड, डेंटिस्ट्री, मैक्स हॉस्पिटल

डॉ. जे. बी. शर्मा, सीनियर कंसल्टंट, ऑन्कॉलजी, ऐक्शन कैंसर हॉस्पिटल

डॉ. बी. एस. राजपूत, स्टेम सेल एक्सपर्ट

डॉ. नरेश बंसल, कंसल्टंट गैस्ट्रोएंट्रॉलजिस्ट, सर गंगाराम हॉस्पिटल

डॉ. संजय तेवतिया, आई स्पेशलिस्ट

लिवर

स्टूल ट्रांसप्लांट

स्टूल ट्रांसप्लांट थेरपी विदेशों में कई बीमारियों के लिए की जाती है। हमारे यहां साल 2016 में पता लगा कि शराब की वजह से बेकार हुए लिवर में भी स्टूल थेरपी कारगर है। दरअसल, हमारे स्टूल (पॉटी) में लाखों गुड और बैड बैक्टीरिया होते हैं। हेल्दी डोनर (मरीज का परिजन, जो बिल्कुल फिट हो) से स्टूल लेकर मरीज के अंदर ट्रांसप्लांट करने पर उसके गुड बैक्टीरिया को लिवर की क्षमता बढ़ाने वाला पाया गया। यह थेरपी उन मरीजों के लिए ज्यादा कारगर है जो लिवर ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे होते हैं। इस थेरपी का क्लीनिकल ट्रायल कामयाब रहा है।

नई दवाएं

1. अमेरिका के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने नॉन-ऐल्कॉहलिक स्टिएटोहेपटाइटिस (नैश) के मरीजों के लिए ओबेटिकॉहलिक एसिट (OCA) नामक दवा को मंजूरी दी है। नैश होने पर लिवर पर ज्यादा फैट और सूजन हो जाती है। इस दवा के नए साल में इंडिया में आने की उम्मीद है।

2. हेपटाइटिस सी के मरीजों के लिए एफडीए ने एपक्लूसा (Epclusa) नामक दवा को मंजूरी दी है। यह सोफोस्बुविर (Sofosbuvir 400 एमजी) और वेलपेटास्विर (Velpatasvir 100 एमजी) को मिलाकर तैयार की गई है और हेपटाइटिस के सभी 6 तरह के जिनोटाइप के लिए खिलाफ काम करेगी। पहले अलग-अलग जिनोटाइप के लिए दवा अलग होती थी। इसके भी अगले साल तक इंडिया आने की उम्मीद है।

3. एफडीए ने एलबास्विर (Elbasvir) और ग्रैज़ोप्रविर (Grazoprevir) को मिलाकर तैयार दवा को भी अप्रूव किया है। यह हेपटाइटिस-सी के जिनोटाइप 1 और 4 वायरस का इलाज करने में पहले की दवाओं से ज्यादा असरदार है। इससे पहले सोफोब्रुविन (Sofobruvin) और रिबाविरिन (Ribavirin) को मिलाकर हेपटाइटिस सी का असरदार इलाज सामने आया, जिसकी तीन महीने की डोज की कीमत कुल 30 से 60 हजार रुपये पड़ती है। हेपटाइटिस के इलाज की पहले कीमत 3 लाख रुपये से भी ज्यादा होती थी।

4. हेपटाइटिस बी के लिए मरीजों के लिए उपयोगी दवा टैफ (Taf) अगले साल इंडिया आ जाएगी। यह किडनी और हड्डियों के लिए काफी सेफ है।

5. लिवर ट्रांसप्लांट के मरीजों के लिए भी अच्छी खबर है। ऐसे मरीजों के लिए बोन मैरो (स्टेम सेल थेरपी) के जरिए लिवर के सेल्स को रीजेनरेट यानी फिर से तैयार किया जा रहा है। अकेले इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ बिलियरी साइंसेस, दिल्ली में करीब 400 मरीजों का इलाज इस तकनीक से किया जा चुका है।

किडनी

नया टेस्ट eGFR:

किडनी के कुल मरीजों में 15-20 फीसदी क्रॉनिक किडनी डिजीज़ यानी लंबे समय से चल रही बीमारी से पीड़ित होते हैं। अगर इसका डाइग्नोसिस पहले हो सके तो बेहद फायदा होगा। इसी दिशा में ईजीएफआर (eGFR) टेस्ट को बड़ी कामयाबी माना जा सकता है। यह ब्लड टेस्ट होता है और इससे किडनी फंक्शन का पता लगता है। पहले यूरिया और क्रेटनिन की जांच से किडनी की बीमारी का पता लगता था, तब तक किडनी करीब 50 फीसदी खराब हो चुकी होती थी। eGFR टेस्ट में शुरुआती दौर में भी किडनी की बीमारी का पता लगाया जा सकता है। यह 100-150 रुपये का होता है। ऐसे में इसका सालाना चेकअप तो होना ही चाहिए।

नई दवा

- किडनी की बीमारियों के इलाज में भी बड़ी पहल हुई है। साबित हुआ कि सोडियम-बाइ-कार्बोनेट (खाने वाला सोडा) रोजाना करीब चुटकी भर लिया जाए तो वह किडनी के एसिडिक नेचर को अल्कलाइन करने में मदद करता है। इसके टैब्लेट-कैप्सूल भी मार्केट में मिलते हैं। लेकिन पाउडर, टैब्लेट या कैप्सूल, किसी का ही इस्तेमाल डॉक्टर से बिना पूछे न करें। वैसे, यह भी साबित हुआ है कि यूरिक एसिड को कंट्रोल में रखने से भी किडनी की उम्र बढ़ती है।

- टैक्रोलाइमस (Tacrolimus) और रिटुक्सिमैब (Rituximab) जैसे इंजेक्शन के जरिए किडनी के अंदर की सूजन को पूरी तरह खत्म करना मुमकिन हुआ है। टैक्रोलाइमस इंजेक्शन किडनी ट्रांसप्लांट होने पर किडनी को शरीर द्वारा स्वीकार करने में भी मदद करता है। जब शरीर में कोई ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया जाता है तो हमारा इम्यून सिस्टम उसे बाहरी मानकर रिजेक्ट कर देता है। ऐसे में इम्यून सिस्टम को कमजोर करने के लिए इस इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है ताकि ट्रांसप्लांट सफल रहे। इसके रिजल्ट पहले इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शनों के मुकाबले बेहतर हैं।

नया डिवाइस

2016 में पहने जा सकने वाले यानी वियरेबल किडनी डिवाइस (WKD) को भी अप्रूवल मिला। इनके जल्द ही मार्केट में आने की उम्मीद है। डायलिसिस के लिए इस्तेमाल किए जानेवाले इस डिवाइस को आराम से पॉकेट में रखा जा सकेगा। घर पर की जाने वाली डायलिसिस के लिए अब बेहतर वॉटर सलूशन भी आ गए हैं। इनका रिजल्ट बेहतर है।

ट्रांसप्लांट में सहूलियत

पहले मरीज के ब्लड ग्रुप वाले डोनर से ही किडनी लेकर ट्रांसप्लांट मुमकिन था। लेकिन अब कुछ खास दवाओं की बदौलत दूसरे ब्लड ग्रुप के डोनर की किडनी भी लगाना मुमकिन है। इसे ABO इनकॉम्पेटेबल ट्रांसप्लांट कहा जाता है। इसके अलावा स्टेरॉयड फ्री ट्रांसप्लांट भी अब होने लगे हैं। यही नहीं, एचआईवी पीड़ित जिन मरीजों की किडनी फेल हो जाती है, अब उनकी किडनी ट्रांसप्लांट भी स्पेशल दवाएं देकर की जा सकती है।

डायबीटीज

- 2016 में डायबीटीज के इलाज में बड़ी कामयाबी रही आर्टिफिशल पैन्क्रियाज़ को अमेरिका के फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) की मंजूरी मिलना। यह सुपर इंटेलिजेंट पंप होगा। इस पर पिछले 40 साल से काम चल रहा था। टाइप-1 डायबीटीज के जिन मरीजों के पैंक्रियाज़ इंसुलिन नहीं बना पाते, उनके लिए यह बहुत कारगर साबित होगा। यह डिवाइस शरीर में ग्लूकोज़ लेवल को सेंस कर इंसुलिन को उसके मुताबिक एडजस्ट कर लेगी। इसके 2017 के आखिर तक इंडिया में आने की उम्मीद है।

- 2016 की बड़ी कामयाबी रहे छोटे इंसुलिन पोर्ट। इस पोर्ट को स्किन पर लगाया जाता है। जो मरीज इंसुलिन लेते हैं, उनके लिए यह काफी फायदेमंद है। इंसुलिन लेनेवाले मरीज इसकी वजह से बार-बार इंजेक्शन लेने से बच जाते हैं। यह पोर्ट 3-4 दिन काम करता है। एक बार पोर्ट लगाने पर इसी के जरिए दवा मरीज के शरीर में पहुंचती रहती है। एक पोर्ट की कीमत करीब 700 रुपये है।

- स्मार्ट इंसुलिन पंप भी हाल ही में आए हैं। दरअसल, पहले पंप को प्रोग्राम करना पड़ता था। अब स्मार्ट या इंटेलिजेंट पंप शरीर में ग्लूकोज़ को सेंस कर इंसुलिन को उसके अनुसार अडजस्ट कर लेते हैं। इसके अलावा अलार्म वाले पंप भी आने लगे हैं। शुगर बहुत ज्यादा या बहुत कम होने पर ये अलार्म बज उठते हैं। प्रेग्नेंट लेडीज और बच्चों के लिए ये पंप काफी अच्छे होते हैं। लेटेस्ट तकनीक वाले ये इंसुलिन पंप 2.5 से 5 लाख रुपये में उपलब्ध हैं।

- दवाएं भी हाल के बरसों में बेहतर हुई हैं। नई दवाओं को SGLT 2 ड्रग्स कहा जाता है। इनमें Canagliflozin, Dapagliflozin और Empagliflozin दवाएं शामिल हैं। ये दवाएं शुगर के मरीजों में हार्ट अटैक के खतरे को 30 फीसदी तक कम करती हैं। वजन भी कम करती हैं और शुगर को कंट्रोल में रखती हैं।

- अब GLP-1 Analog इंजेक्शन आ गए हैं। पहले Liraglutide इंजेक्शन आता था, जिसे रोजाना लगाना पड़ता था। Dulaglutide को हफ्ते में एक दिन लगाना होता है। यह वजन कम करने में मदद करता है और हार्ट अटैक की आशंका भी काफी कम करता है।

- CGMS पैच यानी Continuous Glucose Monitoring System में एक सेंसर लगा होता है, जो दिन-रात शुगर मॉनिटर करता है। इससे डॉक्टर बेहतर डाइट और एक्सरसाइज आदि की सलाह दे पाते हैं। इस पैच को 7 या 15 दिन में बदलना पड़ता है।

कैंसर

इलाज

1. इम्युनोथेरपी: कैंसर के इलाज में हालिया वक्त की बड़ी कामयाबियों में से एक है इम्युनोथेरपी। जब शरीर को अपने अंदर किसी नुकसानदेह चीज का अहसास होता है तो वह एंटी-बॉडीज़ बनाता है। ये इन्फेक्शन से लड़ती हैं। इस थेरपी में इंजेक्शन लगाकर एंटी-बॉडीज़ को बढ़ाया जाता है। ये बढ़ते कैंसर सेल्स को मारती हैं। शुरुआती स्टेज के कैंसर में यह थेरपी खासतौर पर फायदेमंद है क्योंकि यह कैंसर को बढ़ने से रोकती है। इम्युनोथरपी में जब कीमोथेरपी को जोड़कर इलाज करते हैं तो रिजल्ट बेहतर आता है। हालांकि यह बहुत ही महंगी थेरपी है। इसके एक साइकल की कीमत करीब 3 लाख रुपये होती है और मरीज को 25-26 साइकल इलाज कराना होता है।

2. पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट: कैंसर के इलाज में एक और बड़ी कामयाबी मिली है पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट के रूप में। पहले एक तरह के कैंसर के सभी मरीजों के लिए अमूमन एक ही इलाज होता था, लेकिन अब मरीज के जीन्स की मैपिंग की जाती है और उसके अनुसार पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट तैयार किया जाता है। इसकी कीमत 30-60 हजार रुपये महीने पड़ती है।

3. जीन्स प्रोफाइलिंग: आजकल कैंसर की कैटिगरी और नुकसान आदि का अनुमान लगाने के लिए जीन्स एक्सप्रेशन प्रोफाइल करते हैं। इसके जरिए खराब जींस को पहचान की जाती है और देखा जाता है कि किस जीन्स पर कौन-सी दवा काम करती है। उसी के मुताबिक दवा दी जाती है। इसे एक बार कराना होता है और करीब 50-60 हजार रुपये खर्च करने होते हैं।

4. कंजुकेटिड थेरपी: कैंसर में आजकल कंजुकेटिड थेरपी का सहारा लिया जा रहा है। इसमें टारगेटिड ट्रीटमेंट और कीमोथेरपी, दोनों एक साथ किए जाते हैं। इस वजह से कीमो का मॉलिक्यूल ट्यूमर सेल के पास जाकर उस पर अटैक करता है और नॉर्मल कीमो की तरह सभी सेल्स को नुकसान नहीं करता। यह ज्यादा ब्रेस्ट कैंसर में यूज होती है और एक साइकल की कीमत करीब दो-ढाई लाख रुपये पड़ती है। मोटेतौर पर 6 साइकल इलाज की जरूरत तो पड़ती ही है।

जांच

1. टोमोसिंथेसिस: कैंसर के डायग्नोसिस के लिए पहले नैनोग्राफी की जाती थी, लेकिन अब टोमोसिंथेसिस (Tomosynthesis) की जाती है। इसमें थ्री-डी पिक्चर आती है और कैंसर के बारे में बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है। इसकी कीमत करीब 10-12 हजार रुपये होती है।

2. लिक्विड बायोप्सी: अब ब्लड टेस्ट से भी कैंसर और उसके असर आदि का पता लगाया जा सकता है। इसकी कीमत करीब 30 से 40 हजार रुपये होती है।

हार्ट

रिसर्च

2016 में दिल को लेकर सबसे बड़ी बात यह साबित हुई कि दिल के लिए अच्छा तेल उतना खतरनाक नहीं है, जितनी कि सफेद चीजें जैसे कि चीनी, चावल और मैदा। नई रिसर्च में पता लगा कि बार-बार एक ही तेल को तलने के लिए इस्तेमाल करने पर पैदा होनेवाले ट्रांस फैट्स और सैचुरेटिड फैट्स जैसे कि डालडा, नारियल तेल आदि को छोड़कर बाकी तेल दिल के लिए खतरनाक नहीं हैं। लेकिन रिफाइन कॉर्बोहाइड्रेट (मैदा, चावल आदि) और चीनी दिल के दुश्मन हैं। हालांकि हार्ट के पेशंट्स को तेल लिमिट में ही खाने चाहिए क्योंकि इससे वजन बढ़ने के चांस बढ़ जाते हैं। इसके अलावा, दिल के मरीजों को यह भी ध्यान रखना होगा कि उनके लिए बेशक फूड कॉलेस्ट्रॉल ज्यादा अहम नहीं हैं लेकिन ब्लड कॉलेस्ट्रॉल को कम रखना उतना ही जरूरी है। ब्लड टेस्ट के जरिए इस पर निगाह रखनी चाहिए।

सर्जरी और डिवाइस

- लीडलेस पेसमेकर: यह दिल की बीमारियों के इलाज में हाल की सबसे बड़ी खोजों में से है। इसमें वायर की जरूरत नहीं होती और यह सीधे हार्ट के अंदर चला जाता है। इसमें किसी बड़े कट की जरूरत नहीं होती। यह पेसमेकर हालांकि जेनरेटर की तरह नहीं इनवर्टर की तरह काम करता है यानी जिनका हार्ट ठीक काम कर रहा है लेकिन कभी-कभार दिक्कत करता है, उनके लिए यह ज्यादा असरदार है। इसकी कीमत करीब 5-10 लाख रुपये के बीच पड़ती है।

- एऑरटिक वॉल्व (Aortic Valve): इसे अब बिना ऑपरेशन बदला जा सकता है। पहले इसके लिए सर्जरी करनी होती थी। 2016 में सरकार ने इसे लगाने की परमिशन भी दे दी, जबकि पहले इसके लिए ड्रग कंट्रोलर से परमिशन लेकर इसे इम्पोर्ट करना पड़ता था। इसकी कीमत करीब 17-19 लाख रुपये पड़ती थी। अब इसे इंडिया में ही तैयार करने पर काम हो रहा है। ऐसे में आनेवाले वक्त में कीमत काफी कम हो सकती है।

- मिट्राक्लिप वॉल्व थेरपी (Mitraclip Valve Therapy): इस थेरपी से लीक कर रहे वॉल्व और एनलाज्ड हार्ट के मरीजों का इलाज किया जा सकता है। इसमें बिना सर्जरी के एन्जियोप्लास्टी से एक क्लिप लगाकर लीक कर रहे वॉल्व को ठीक किया जा सकेगा। इसके अगले साल तक इंडिया में आने की संभावना है।

- स्किन सेंसर्स (Skin Sensors): ऐसे सेंसर्स तैयार किए जा रहे हैं, जो स्किन के अंदर फिट करने होंगे और फिर ये आपके स्मार्ट फोन पर हार्ट रेट, शुगर, ब्लड प्रेशर आदि की लगातार रीडिंग देते रहेंगे। इनके 1-2 साल में मार्केट में आने की उम्मीद है।

दवा

- वलसार्टन (Valsartan) और सैक्युबिट्रिल (Sacubitril) को मिलाकर देने पर हार्ट फेल्योर में बेहद असरदार असर आता है। ये दोनों जेनरिक नाम हैं। इन दोनों दवाओं को देने से मरीज के बचने के चांस कुछ बढ़ जाते हैं।

- हार्ट के लिए नैनो ड्रग्स पर भी काम हो रहा है। ये पेट में जाकर ब्लड में घुलकर असर करने के बजाय सीधे हार्ट में जाकर काम करेंगी। इसी तरह जीनोम मैपिंग के जरिए कैंसर की तरह हार्ट के लिए भी पर्सनाइज्ड दवाओं पर काम हो रहा है यानी हर मरीज के लिए अलग दवा। यहां तक कि जीनोम के आधार पर आनेवाले वक्त में किसी को क्या बीमारी हो सकती है, उसके अनुसार भी इलाज तैयार किया जा सकेगा। इन्हें आने में अभी वक्त है।

स्टेम सेल

- स्टेम सेल थेरपी के मामले में 2016 में कुछ बड़ी उपलब्धियां रहीं। इनमें खास है टी सेल रेग्युलेटरी थेरपी। ऑटो इम्युनिटी डिजीज़ जैसे कि ऑर्थराइटिस, मल्टिपल इसक्लोरोसिस (MS) में इसके असरदार नतीजे सामने आए हैं। एमएस दिमाग और रीढ़ की हड्डी पर असर करती है। इसमें कमजोरी, सुन्नपन, धुंधला दिखना, मसल्स में अकड़न, सोचने में कमी जैसी समस्याएं सामने आती हैं। स्टेम सेल थेरपी इसमें कारगर साबित हुई है।

- ऐक्टिवेटिड टी सेल थेरपी में ब्लड सैंपल लेकर उससे कैंसर एंटीजन तैयार किए जाते हैं। ये कैंसर सेल्स को पहचानकर उन पर अटैक करते हैं। जब कैंसर सेल्स पूरे शरीर में फैल गए हों या फिर कीमोथेरपी असर न कर रही हो तो यह थेरपी काम कर सकती है। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है। यह प्रोस्टेट और ब्रेस्ट कैंसर में खासतौर पर इस्तेमाल होती है।

- बच्चों को होने वाली जानलेवा बीमारी मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (DMD) का अब तक कोई इलाज नहीं है। इसमें उम्र बढ़ने के साथ-साथ बच्चे की मसल्स वीक होने लगती हैं और 20 साल से पहले ही उनकी जान चली जाती है। स्टेम सेल थेरपी के जरिए इस बीमारी के इलाज में पॉजिटिव नतीजे सामने आए हैं।

दांत

CAD/CAM तकनीक: दांतों के इलाज के लिए अब CAD/CAM यानी कंप्यूटर ऐडिड डिजाइन, कंप्यूटर ऐडिड ज मिलिंग की जाती है। पहले क्राउन , ब्रिज आदि का काम हाथों से किया जाता है, जो अब पूरी तरह से कंप्यूटर के जरिए स्कैन द्वारा किया जाता है।

डिजिटलाइजेशन: अब ऐसे स्कैनर आ गए हैं, जिनकी मदद से मुंह के अंदर स्कैन करके डॉक्टर आसानी से क्राउन आदि बना देते हैं। इसी तरह लेटेस्ट सीटी स्कैन के जरिए दांतों और जबड़ों की बीमारियों का पता जल्दी लग जाता है। यही नहीं, डिजिटल डेंटल इम्प्रेशन मशीन की मदद से सेंसर के जरिए ही दांत का इम्प्रेशन ले लिया जाता है। पहले मटीरियल मुंह में डालकर दांत का नाप लिया जाता था। नई तकनीक को इंट्रा ओरल स्कैनर कहा जाता है।

थ्री-डी प्रिंटिंग: रैपिड प्रोटोटाइपिंग यानी थ्री-डी प्रिंटिंग ने भी हाल के बरसों में दांतों के इलाज में बड़ी भूमिका निभाना शुरू दिया है। आजकल थ्री-डी एक्स-रे से क्राउन के मॉडल तक बना लिए जाते हैं।

मर्करी को ना: न सिर्फ देश, दुनिया भर की डेंटिस्ट्री इंडस्ट्री ने 2019 तक मर्करी के इस्तेमाल को पूरी तरह खत्म करने का प्रण किया है। मर्करी जहरीला होता है। इसकी जगह आजकल जर्कोनिया का इस्तेमाल किया जाता है। यह दांत के रंग का होता है और बेहद मजबूत होता है।

कुछ और तकनीक: सर्जरी में भी लेजर के साथ-साथ कई तरह की नई तकनीक आ गई हैं। अगर मसूढ़े की हड्डी बहुत पतली होती है या लंबाई कम होती है तो साइनस लिफ्ट या स्प्लिट रिज तकनीक से सर्जरी करके हड्डी की मोटाई बढ़ाकर इम्प्लांट लगाया जाता है। इन सर्जरी की कीमत करीब 25-30 हजार रुपये पड़ती है। इसी तरह अब एक ही दिन बल्कि जिस दिन दांत निकलता है, उसी दिन नया दांत लगाया जा सकता है। पहले इसके लिए कई महीने इंतजार करना पड़ता था।

आंख

- मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) के लिए फेम्टोसेकंड लेजर ऐसेस्टिड कैटरेक्ट सर्जरी शुरू हो गई है। इसमें पूरा ऑपरेशन लेजर से कंप्यूटर की देखरेख में होता है और ब्लेड की जरूरत नहीं होती। इससे कॉर्निया की सतह और सिलेंड्रिकल पावर के दोष को ठीक किया जा सकता है। ऑपरेशन 5 मिनट में पूरा हो जाता है और अगले दिन काम पर जाया जा सकता है।

- चश्मा हटाने के लिए कस्टमाइज्ड लेसिक और एपिलेसिक से लेसिक लेजर सर्जरी की जा रही है। लेसिक लेजर सर्जरी से माइनस 10 से माइनस 12 डायऑप्टर तक का मायोपिया और 5 डायऑप्टर तक के एस्टिग्मेटिजम का भी इलाज किया जाता है।

- जिन लोगों में कॉर्निया की मोटाई 450 मिमी से कम होती है, उनका चश्मा लेसिक लेजर की मदद से नहीं उतर पाता। उनके लिए आजकल अत्याधुनिक तकनीक इन्ट्राऑक्युलर कॉन्टैक्स लेंस (आईसीएल) से नजर का चश्मा हटाया जाता है। आईसीएल तकनीक में आंख में पाए जाने वाले प्राकृतिक लेंस के ऊपर एक पतला-सा आर्टिफिशल लेंस लगा दिया जाता है। इस लेंस से आंख के लेंस की पावर कम या ज्यादा दृष्टिदोष के हिसाब से कर दी जाती है। चश्मे का नंबर एक से आठ डायऑप्टर है तो लेसिक लेजर, 10 से ज्यादा है तो आईसीएल और 20 से 30 डायऑप्टर के बीच है तो लेसिक लेजर और आईसीएल, दोनों की जरूरत होती है। आठ से 10 के बीच डायऑप्टर के लिए कौन-सी तकनीक इस्तेमाल होगी, यह जांच से पता लगाया जाता है।

- नई तकनीक के अनुसार माइनस 16 से माइनस 18 डायऑप्टर के मायोपिया में आंख के कुदरती लेंस को निकाल दिया जाता है। इससे मायोपिया ठीक हो जाता है। कई बार प्राकृतिक लेंस को निकालकर आंख के नंबर की जांच कर आर्टिफिशल लेंस (इन्ट्राऑक्युलर लेंस) डाल दिया जाता है।

- प्रेस्बायोपिया (नजदीक का देखने में दिक्कत) के लिए आजकल मोनोविजन लेसिक लेजर करते हैं जिसमें एक आंख को दूर का देखने के लिए और दूसरी आंख को थोड़ा पास का देखने के लिए लेसिक लेजर करते हैं।

नोट: यहां सभी दवाओं के नाम जेनरिक हैं। बाजार में ये दवाएं अलग-अलग ब्रैंड नेम से मिलती हैं। डॉक्टर की सलाह के बगैर कोई दवा न लें।

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जस्ट जिंदगी: कैसे पूरे करें न्यू ईयर रिज़ॉल्यूशंस

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साल नया और रेज़ॉलूशन भी नए! ना... ना... हममें से ज्यादातर लोग हर साल एक ही तरह के रेज़ॉलूशन लेते हैं और कुछ दिन बीतते-बीतते उन्हें भुला देते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है कि हम अपने रेज़ॉलूशन को पूरा नहीं कर पाते? क्या करें कि आप अपने रेज़ॉलूशन को पूरा कर पाएं, एक्सपर्ट्स की मदद से बता रही हैं प्रियंका सिंह:

एक्सपर्ट्स पैनल

अरुणा ब्रूटा, सीनियर सायकॉलजिस्ट

याधव मेहरा, लाइफ स्किल्स कोच

गीतांजलि शर्मा, सीनियर काउंसलर

नए साल पर हममें से ज्यादातर लोग कोई-न-कोई रेज़ॉलूशन यानी प्रण लेते हैं लेकिन कुछ ही दिनों में इन्हें भुला देते हैं। वजह, हम लक्ष्य और इच्छा के बीच फर्क नहीं कर पाते। इच्छा जहां दिल में होती है, वहीं लक्ष्य दिमाग में। दिल वाली बात यानी इच्छा को अगर दिमाग में नहीं डाला जाता यानी लक्ष्य नहीं बनाया जाता तो पुराना ढर्रा लौट आता है। इसके अलावा लक्ष्य के आप कितने करीब पहुंचे, यह जानना मुमकिन है और प्रोग्रेस देखकर आगे बढ़ने का हौसला बढ़ता है लेकिन इच्छा को नापने का कोई तरीका नहीं होता। ज्यादातर रेज़ॉलूशन पूरे नहीं हो पाते क्योंकि वे महज इच्छा ही बने रहते हैं और लक्ष्य नहीं बन पाते। जोश में अक्सर हम शुरुआत कर भी देते हैं लेकिन कुछ दिन बीतते-बीतते रेज़ॉलूशन पीछे छूट जाता है और हम पहले की रुटीन लाइफ पर वापस आ जाते हैं। वजह यह है कि हम मुश्किल काम करने के बजाय आसान और मजेदार काम करना पसंद करते हैं इसलिए थोड़े भी मुश्किल कामों को पूरा नहीं कर पाते।

ऐसे होंगे रेज़ॉलूशन पूरे

1. ज्यादा रेज़ॉलूशन नहीं बनाएं। ज्यादा होंगे तो हम किसी भी रेज़ॉलूशन को सीरियसली नहीं ले पाएंगे। एक-दो रेज़ॉलूशन होंगे तो उन्हें पूरा करना आसान होगा। पहले कोई एक काम शुरू करें। नियमित रूप से करें। जब वह आदत में शुमार हो जाए तो दूसरे रेज़ॉलूशन पर काम शुरू करें।

2. जो भी रेज़ॉलूशन बनाएं, वे असलियत के करीब हों। मसलन एक साल में 10 करोड़ रुपये कमाने या एक महीने में 5 किलो वजन कम करने जैसे रेज़ॉलूशन न बनाएं। 50 हजार की सैलरी को बढ़ाकर 60-65 हजार करने और महीने में 2 किलो वजन कम करने जैसे लक्ष्य बनाएं। थोड़ा-थोड़ा कर आगे बढ़ने का गोल सेट करें। बड़े लक्ष्य सेट करने पर वे पूरे नहीं हो पाते और लोग निराश होकर कोशिश करना ही छोड़ देते हैं।

3. सोचें नहीं, बल्कि करें। जो सोचें, उसे करना शुरू कर दें। कल पर न टालें। अक्सर कल से एक्सरसाइज शुरू करेंगे, आज खा लेते हैं, कल से डाइट कंट्रोल करेंगे, एक दिन खाने से क्या होता है जैसी बातें हमारे मन पर हावी हो जाती हैं और रेज़ॉलूशन पीछे छूट जाता है। यह भी देखें कि अगर आपने पहले भी वह काम करना चाहा और पूरा नहीं हो पाया तो क्यों नहीं हो पाया। उन कमियों को दूर करने के लिए कदम उठाएं।

4. रेज़ॉलूशन को पूरा करने के लिए सिर्फ तारीख तय न करें बल्कि साइड में कुछ और भी प्लान तैयार करें जैसे कि अगर वजन कम करना है तो पहली तारीख से योग टीचर को बुलाना है या फलां जगह खेलने जाना है या नौकरी बदलने के लिए अप्लाई करना है आदि।

5. किसी भी पुरानी आदत को खत्म करने या नई शुरू करने के लिए काफी एनर्जी और सपोर्ट की जरूरत होती है। आप किसी को साथ ले लें तो आसानी होगी। मसलन किसी दोस्त के साथ खेलने का रुटीन बना लें या फिर अपनी दिलचस्पी के काम से जुड़े किसी क्लब आदि को जॉइन कर लें।

6. आप जो भी करना चाहते हैं, उसे अपनी आदत में शुमार करें। जैसे कि इंग्लिश सुधारनी है तो प्रण करें कि सुबह उठकर रोजाना 3 मिनट शीशे के सामने खड़े होकर तेज-तेज इंग्लिश बोलूंगा या खाने के दौरान टेबल पर सौंफ पहले से रखूंगा और पेट भरा महसूस होते ही फौरन सौंफ मुंह में डाल लूंगा ताकि ज्यादा खाना न खा पाऊं या फिर अपने ऑफिस से एक बस स्टॉप या मेट्रो स्टेशन पहले उतरूंगा ताकि पैदल चल सकूं आदि। जो भी तय करें, तय वक्त पर रोजाना करें।

7. ऐसे लोगों के साथ रहें, जो आपको आपकी दिशा में जाने में मदद करें। मसलन वजन कम करना है तो हेल्दी खाने और एक्सरसाइज करनेवाले दोस्तों के साथ ज्यादा रहें, करियर में आगे बढ़ना है तो करियर को अहमियत देनेवाले लोगों के साथ रहें। जो लोग रुकावट बनते हैं, उनसे थोड़ी दूरी बना लें।

8. टाइम मैनेजमेंट जरूर करें। टाइम टेबल बनाकर किसी भी काम के लिए टाइम तय करें। मसलन सुबह 6-7 बजे या शाम को 7-8 बजे एक्सरसाइज करनी है या फिर रोजाना रात में सोने से पहले 30 मिनट बुक पढ़नी है आदि।

9. ऐसी जगहों पर मोटिवेशनल कोट्स लगाएं, जहां आपकी निगाह बार-बार जाती हो, मसलन वजन कम करने के लिए फ्रिज पर डाइट कंट्रोल या शीशे पर फिटनेस से जुड़े कोट लगाएं। ऑफिस में कंप्यूटर पर कामयाबी से जुड़ी प्रेरक बातें लिखकर लगाएं ताकि आप बेहतर काम कर सकें।

10. कोई बुरी आदत है और छोड़ नहीं पा रहे हैं तो उसके हेल्दी ऑप्शन तलाशें। मसलन अगर बिंज ईटिंग (बार-बार खाने) की आदत है तो जंक फूड या तला-भुना खाने की बजाय फल-सलाद और हेल्दी स्नैक्स आदि का ऑप्शन रखें। स्मोकिंग की जगह चुइंग-गम या माउथ फ्रेशनर अपना सकते हैं आदि।

कॉमन रेज़ॉलूशंस

सेहत को बेहतर बनाना

नए साल पर सबसे ज्यादा लोग सेहत को सुधारने का प्रण लेते हैं। दुनिया भर में करीब एक-तिहाई लोग सेहत से जुड़ा कोई-न-कोई रेज़ॉलूशन लेते हैं। इनमें खास हैं:

- वजन कम करना

- ज्यादा ऐक्टिव रहना

- हेल्दी खाना खाना

- रोजाना एक्सरसाइज करना

- मॉर्निंग वॉक शुरू करना

- योग व मेडिटेशन करना

क्या करें

वजन कम करना/ ज्यादा ऐक्टिव रहना/ हेल्दी खाना खाना

- महीने में ज्यादा-से-ज्यादा 2 किलो वजन कम करना तय करें। इसके लिए दिन में 500 कैलरी कम करनी होंगी। 250 कैलरी रोजाना 30-45 मिनट ब्रिस्क वॉक या एक्सरसाइज करके और 250 कैलरी डाइट कंट्रोल कर घटाने का लक्ष्य रखें। इस तरह हफ्ते में आधा किलो और महीने में 2 किलो वजन कम हो जाएगा।

- सख्त डाइटिंग न करें। सब कुछ एकदम छोड़ने से एक खालीपन आएगा, जिसे भरने के लिए आप कुछ भी खाने लगेंगे। खाना छोड़ने के बजाय उसकी मात्रा कम कर दें। अपनी प्लेट का साइज छोटा कर दें। मार्केट से भी छोटे पैकेट खरीदें ताकि पूरा खत्म करने पर जोर न हो। भूख लगने पर तला-भुना खाने के बजाय फल, सलाद और हेल्दी स्नैक्स (मुरमुरे, चना, स्प्राउट्स आदि) खाएं।

- जो लोग हेल्दी खाते हैं, उनकी संगत में रहें और बिंज ईटिंग (बार-बार खाना) या जंक फूड खाने वालों के साथ कैंटीन या रेस्तरां आदि जाने से बचें।

- रोजाना वजन मापने के बजाय हफ्ते में एक बार नापें और उसी वक्त पर उन्हीं कपड़ों में मापें। इससे वजन पर सही तरीके से निगाह रखना मुमकिन होगा।

- गौर करें कि लगातार बैठे रहने से वजन तो बढ़ता ही है, पॉश्चर और सेहत भी खराब होती है। लगातार बैठे रहने से शरीर में आलस आता है। घर के छोटे-मोटे काम करने से एनर्जी मिलती है। इस सोच से आप घर के छोटे-मोटे काम खुद करने को प्रेरित होंगे।

- जब कुछ अचीव करें तो खुद को इनाम दें। मसलन कोई नई ड्रेस खरीदें या फिर डाइटिंग से एक मील का ब्रेक लें। इससे एक नया बूस्ट मिलेगा।

- वजन कम करने से क्या मिल रहा है, यह देखें जैसे कि आप ज्यादा स्मार्ट, फिट और ऐक्टिव हो गए हैं आदि। इन फायदों को लिखें और बार-बार पढ़ें।

रोजाना एक्सरसाइज करना/ मॉर्निंग वॉक शुरू करना/ योग व मेडिटेशन करना

- हल्की एक्सरसाइज चुनें और उन्हें रेग्युलर करें। अगर खुद से बहुत सख्ती करेंगे तो मन जल्दी ऊब जाएगा और लंबे समय तक नहीं कर पाएंगे। साथ ही, अगर वजन कम हो भी गया तो जल्द ही वापस लौट आएगा।

- अपने टीवी/लैपटॉप पर बेस्ट एक्सरसाइज विडियो डाउनलोड कर या पेनड्राइव लगाकर देखें और करें। इसके लिए टाइम तय कर लें और उस वक्त पर जरूर करें।

- वजन कम करने या एक्सरसाइज आदि करने के लिए एक 'बडी' की तलाश करें। दूसरे की संगत में आप ज्यादा मोटिवेट होंगे और मिलकर लक्ष्य को पूरा कर पाएंगे।

ज्यादा पैसे कमाना

सेहत के बाद ज्यादातर लोगों के लिए पैसा प्रायॉरिटी में टॉप पर रहता है। अक्सर लोग पैसे से जुड़े रेज़ॉलूशन लेते हैं। इनमें खास हैं:

- पैसे का बेहतर मैनेजमेंट

- बेहतर नौकरी पाना

- कुछ अपना शुरू करना

क्या करें

पैसे का बेहतर मैनेजमेंट

- कमाई का एक्स्ट्रा सोर्स बनाएं। फ्रीलांसिंग, साइड जॉब के साथ-साथ इंटरनेट के जरिए भी कई तरह के जॉब ऑफर मिल सकते हैं। ज्यादा कमाई होगी तो पैसे को लेकर तनाव कम हो जाएगा और आप बेहतर जिंदगी जी पाएंगे। संभ‌वत: दूसरों के लिए भी कुछ कर पाएंगे।

- हमारी दो तरह की इनकम होती है: ऐक्टिव और पैसिव। ऐक्टिव इनकम वह होती है, जिसमें आप पैसा कमाते हैं और पैसिव इनकम वह होती है, जिसमें आपका पैसा यानी इनवेस्टमेंट आपके लिए पैसा कमाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ पैसिव इनकम पर फोकस करना जरूरी है। इसके लिए कुछ सेफ इनवेस्टमेंट प्लान में इनवेस्ट करें। यह काम पहली जनवरी से ही शुरू कर दें।

- ज्यादा पैसा कमाने का मतलब यह नहीं है कि आप पैसा लुटाने लगें। पैसा बचाने की आदत भी डालें। इसके लिए कुछ इनवेस्टमेंट प्लान जरूर लें और उनमें रेग्युलर तौर पर पैसा जमा करें।

बेहतर नौकरी पाना/अपना काम शुरू करना

- बेहतर नौकरी के लिए रेज्युमे बनाकर अच्छी जॉब साइट्स पर डालें। नेटवर्किंग बढ़ाएं। अपने प्रफेशन के अलावा दूसरे फील्ड के लोगों से भी मिलें। इससे आपकी सोच का दायरा बढ़ेगा। दोस्तों और जानकारों से भी मदद मांगें। अपने स्किल्स को भी सुधारें।

- कुछ अपना शुरू करना चाहते हैं तो इसके लिए होमवर्क पहली जनवरी से ही शुरू कर दें। पूरी तैयारी के बाद अपनी रिस्क लेने की क्षमता का आकलन करें और खुद को कम-से-कम एक साल का वक्त जरूर दें। बेहतर है कि इस साल की पहली जनवरी से अगले साल की पहली जनवरी तक का गोल सेट करें और फिर उसे पाने में जुट जाएं।

ऑफिस में बेहतर परफॉर्म करना

अक्सर लोग अपनी मौजूदा नौकरी से नाखुश होते हैं या फिर कम -से-कम कुछ और बेहतर चाहते हैं। ऑफिस से जुड़े रेज़ॉलूशंस में खास हैं:

- ऑफिस में बड़ी जिम्मेदारी पाना

- सैलरी में बढ़ोतरी कराना

- सीनियर्स और कलीग्स के साथ अच्छे रिश्ते बनाना

क्या करें

सैलरी में बढ़ोतरी/बड़ी जिम्मेदारी पाना

- अगर वक्त पर प्रमोशन या मनचाही कामयाबी न मिले तो हताश न हों। इंग्लिश में कहावत है Success is not final, Failure is not fatal. It is the courage to continue that counts. यानी कामयाबी फाइनल नहीं है और नाकामी भी आपको खत्म करने वाली नहीं है। कोशिश करने की हिम्मत ही असलियत में मायने रखती है। कोशिश बंद न करें, लेकिन कोशिश सही दिशा में करें।

- अपने वर्क-स्टेशन और कंप्यूटर के आसपास मोटिवेशनल वन-लाइनर लगाकर रखें और उन्हें बार-बार पढ़ते रहें।

- अपने इमोशंस पर थोड़ा कंट्रोल करें। बहुत ज्यादा गुस्सा, नाराजगी या चुगली करने से ऑफिस में आपकी इमेज खराब हो जाती है। इनसे बचें।

- ऑफिस में जो करते हैं, उसे जताना भी उतना ही जरूरी है। यह न सोचें कि बॉस को तो पता ही होगा। आजकल मेहनत के साथ-साथ मार्केटिंग भी बहुत जरूरी है।

- अगर ऑफिस में स्थिति बेहतर नहीं हो रही हो तो नौकरी बदलने के लिए कदम उठाएं।

सीनियर्स और कलीग्स के साथ अच्छे रिश्ते बनाना

- अगर बॉस की किसी बात पर ऐतराज है तो आराम से उनसे बात करें। हो सकता है कि कोई गलतफहमी हो, जिसे दूर करने से आपकी स्थिति बेहतर हो सकती है।

- ऑफिस के बाहर भी कलीग्स से मेल-जोल बढ़ाएं। फैमिली के साथ मिलें। इससे रिश्ते बेहतर होंगे और आपस में तालमेल बढ़ेगा।

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आपसी रिश्ते सुधारना

सेहत के अलावा लोग बेहतर रिश्ते बनाने का रेज़ॉलूशन भी खूब लेते हैं क्योंकि इंसानी फितरत अकेले नहीं, बल्कि दूसरों के साथ मिल-जुलकर रहने की होती है। करियर और पैसे की दौड़ में अक्सर लोग आपसी रिश्तों को भुला बैठते हैं। रिश्तों से जुड़े कुछ रेज़ॉलूशन हैं:

- परिजन और रिश्तेदारों से मिलना

- दोस्तों के लिए वक्त निकालना

क्या करें

- लोगों से मिलने-जुलने से आपका मन तो खुश होता ही है, आपसी रिश्ते भी मजबूत होते हैं। हां, जो लोग आपको बिल्कुल नापसंद हों या जो आपको पसंद न करते हों, उनसे दूरी बनाए रखना ही बेहतर है। अगर कोई दोस्त या रिश्तेदार निगेटिव बातें ज्यादा करता है तो उससे भी दूरी बनाए रखना ही सही है।

- आजकल सभी के पास वक्त कम है। ऐसे में वट्सऐप, फेसबुक आदि से आप लोगों से कनेक्ट तो रह सकते हैं लेकिन जो मजा आमने-सामने मिलने में है, वह तकनीक के इन माध्यमों के जरिए नहीं। साल में एक-दो बार ही सही, अपने करीबी रिश्तेदारों आदि से जरूर मिलें। कनेक्ट रहने पर वक्त पड़ने पर आप लोग एक-दूसरे की मदद भी कर पाएंगे।

- अपने करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों के बर्थडे, मैरिज एनिवर्सिरी आदि को नोट करके अपने पास रखें। बीच-बीच में इस पर निगाह डालते रहें। जरूरी लगे तो मोबाइल के कैलंडर में सब दर्ज कर लें और रिमांइडर भी लगा सकते हैं। बर्थ-डे, एनिवर्सरी आदि पर दोस्तों-रिश्तेदारों को शुभकामनाएं जरूर दें।

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लत को छोड़ना

ज्यादातर लोगों में कोई-न-कोई ऐसी आदत जरूर होती है, उससे वे निजात पाना चाहते हैं। आदतों से जुड़े नए साल के खास रेज़ॉलूशन हैं:

- स्मोकिंग छोड़ना

- कम टीवी देखना

- गुस्सा छोड़ना

- सोशल मीडिया पर कम वक्त बिताना

क्या करें

स्मोकिंग छोड़ना

- स्मोकिंग छोड़ना चाहते हैं तो 'नो स्मोकिंग' जोन में ज्यादा वक्त बिताएं। साथ ही, स्मोकिंग करनेवाले लोगों से भी दूरी बना लें। जहां ज्यादा पीना जरूरी लगता है, वहां के लिए दूसरे ऑप्शन तलाशें मसलन अगर टॉयलेट में पीने की आदत है और लगता है इसके बिना नित्यक्रिया मुमकिन नहीं है तो गर्म पानी, त्रिफला, आंवला जूस, ईसबगोल की भूसी आदि अपनाएं। मोबाइल पर विडियो गेम्स भी खेल सकते हैं। इससे सिगरेट से मन हटा रहेगा।

- स्मोकिंग से कैंसर का खतरा बढ़ता है। इसका डरावना पहलू जानने-समझने के लिए कैंसर की लड़ाई से जुड़ी बायॉग्रफ़ी पढ़ें या विडियो देखें। चुइंग-गम, माउथ फ्रेशनर आदि खाने से भी स्मोकिंग की लत से कुछ देर के लिए राहत मिल सकती है।

कम टीवी देखना/ सोशल मीडिया पर कम वक्त बिताना

- आप रोजाना कितनी देर टीवी देखते हैं या सोशल मीडिया पर कितना वक्त बिताते हैं, यह किसी पेपर पर नोट करें। हफ्ते भर का रिकॉर्ड आप देखेंगे तो महसूस होगा कि आपने बहुत सारे घंटे बेकार कर दिए। आप खुद ही टीवी या सोशल मीडिया का टाइम कम कर देंगे।

- कुछ वक्त तय करें, जब आप न टीवी देखेंगे, न मोबाइल चेक करेंगे। रोजाना एक घंटे से ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर न बिताएं। यहां से टाइम चुराकर आप नेचर के साथ वक्त बिताएं। बाहर जाना मुमकिन नहीं है तो घर में ही गार्डनिंग आदि करें।

- लाइफ को एंजॉय करना भी बेहद जरूरी है। एंजॉय करने के दो तरीके होते हैं: एक, जिनमें आपका पुरुषार्थ लगता है, दूसरे जिनमें दूसरों का पुरुषार्थ लगता है। टीवी देखने में दूसरों का पुरुषार्थ लगता है तो बैडमिंटन खेलने, फुटबॉल खेलने, किताब आदि पढ़ने में आपका पुरुषार्थ लगता है। रिसर्च कहती हैं कि जिन कामों में आपका पुरुषार्थ लगता है, उन्हें ज्यादा टाइम दें।

गुस्सा छोड़ना

- ज्यादा विनम्र बनें और लोगों को नाराज करना बंद करें। गुस्से से रिश्ते तो खराब होते ही हैं, सेहत भी बिगड़ती है। लोगों को माफ करना भी सीखें। इससे दोस्त-परिवार के अलावा साथियों के बीच भी आपकी इमेज बेहतर होगी। अकड़ू लोगों के साथ भी बेहतर डील करना सीखें। आजकल तो ऐसे तमाम टिप्स इंटरनेट पर मौजूद हैं, जिनकी मदद से आप यह सब सीख सकते हैं। गुस्सा आए तो फौरन जाहिर न करें। मन में 100 तक गिने या फिर कुछ देर लंबी-लंबी सांसें लें। मन शांत हो जाएगा।

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कुछ और भी रेज़ॉलूशंस

कुछ और भी कॉमन रेज़ॉलूशन हैं:

ज्यादा किताबें पढ़ना: अगर पढ़ने के लिए टाइम नहीं मिलता तो ऑडियो बुक्स सुनें। एमपी 3 फॉर्मेट में कई साइट्स पर तमाम बुक्स मौजूद हैं। यहां तक कि आप बाथरूम में नहाते हुए या कार ड्राइव करते हुए भी सुन सकते हैं। रात में बेड की साइड में किताब रखें औैर उस पर चिट लगाकर रखें कि कितने दिन में पूरी पढ़ डालनी है। इसके अलावा लाइब्रेरी जाएं या कोई फोरम जॉइन करें। ऑफिस में भी किताबों से जुड़ा कोई ग्रुप जॉइन कर सकते हैं।

ज्यादा ट्रैवल करना: दुनिया घूमने के लिए पैसे से ज्यादा चाहत की जरूरत है। हर साल के शुरू में ही तय कर लें कि इस साल कहां जाना है। फिर उसके लिए हर महीने पैसे बचाकर अलग रखें। अकेले जाने की बजाय दोस्तों या फैमिली के साथ जाने पर घूमने का मजा दोगुना हो जाता है। उनके साथ प्रोग्राम बनाएं।

मेडिटेशन करना: रोजाना सुबह और शाम या फिर कम-से-कम सुबह का एक वक्त तय करें। उस दौरान कुछ और न करें, सिर्फ मेडिटेशन करें। 10 मिनट रोजाना से शुरू करें, फिर धीरे-धीरे वक्त बढ़ाएं। अगर सुबह वक्त नहीं मिलता तो रात में सोने से पहले 10 मिनट मेडिटेशन और 2 मिनट प्रार्थना के लिए जरूर दें।

कुछ नया सीखना: कुछ नया सीखें और ऐसा सीखें, जिसमें मजा भी आता हो जैसे कि तैराकी, सुडोकू, कैलिग्राफी, पॉटरी, पेंटिंग, डांस, कुकिंग आदि। क्रिएटिव बनें और अपने विचारों को आर्ट, क्राफ्ट आदि के जरिए व्यक्त करें। कुकिंग ऐसी कला है, जिससे दूसरे लोग भी आपके मुरीद हो जाएंगे। नई भाषा सीखना भी अच्छा है। इससे कम्यूनिकेशन स्किल्स तो बेहतर होंगी ही, नई संभावनाओं के लिए भी रास्ता खुलेगा। आजकल ऑनलाइन भी आप यह काम आसानी से कर सकते हैं।

कॉन्फिडेंस बढ़ाना: अपना कॉन्फिडेंट, मेंटल स्किल्स और कंसंट्रेशन बढ़ाएं। अगर आप किसी बात को पूरे विश्वास के साथ रखेंगे तो लोग आपको ज्यादा गंभीरता के साथ सुनेंगे। मेडिटेशन करें। इससे अपने मूड पर बेहतर कंट्रोल करने के अलावा समस्याओं को सुलझाना भी मुमकिन होगा। साथ ही, अपने डर से लड़ना सीखें। रोज एक ऐसा काम करें, जिसे करने से आप डरते हों।

दूसरों के लिए कुछ करना: सोसायटी ने हमें काफी कुछ दिया है। अगर हम उसे कुछ लौटाते हैं तो बेहद खुशी मिलती है। चैरिटी के लिए वक्त निकालें। इससे अच्छा महसूस तो होगा ही, नए लोगों के साथ मिलने और उनके लिए कुछ करने का मौका भी मिलेगा।


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बेहतर सेहत के लिए जाने पल्यूशन के ये सल्युशन

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दिल्ली की हवा दिन-ब-दिन जहरीली होती जा रही है और ऐसे में बच्चों, बूढ़ों के साथ-साथ युवा भी सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं। बढ़ते पल्यूशन में कैसा है हमारे शहर का हाल और क्या कोई उपाय है जो हम इस बुरी हवा के हरा सकें। एक्सपर्ट्स की मदद से बता रहे हैं अमित मिश्रा...

सुयश और उनकी पत्नी आकांक्षा मल्टिनैशनल कंपनी में काम करते हैं। दिल्ली में आने के बाद पति-पत्नी दोनों के करियर को परवाज मिली। बेटी सुगंधा के पैदा होने के बाद सबकुछ किसी परीकथा की तरह लग रहा था। एक दिन अचानक हल्की खांसी और बुखार के बाद 2 साल की सुगंधा को दमा डायगनोस हुआ। डॉक्टर ने बताया कि वह जिस इलाके में रह रहे हैं उसकी वजह से ही बच्चे को ऐसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और अगर वह यहीं रहते रहे तो परेशानी बिगड़ सकती है। सुयश और आकांक्षा ने दिल्ली छोड़ कर बैंगलुरु ऑफिस में ट्रांसफ़र का मन बना लिया है। उनका कहना है कि इस शहर ने हमें बहुत कुछ दिया है लेकिन अपनी बेटी की कीमत पर अपना करियर हमें मंजूर नहीं है।

समझें बुरी हवा को प्रदूषित हवा की वजह से होने वाली परेशानी से निपटने के लिए सबसे पहले जरूरी है समस्या को समझना और उसके हिसाब से एक्शन लेना। सबसे पहले तो यह समझना पड़ेगा कि क्या है जो हमारे आस-पास की हवा को खराब कर रहा है। - गाड़ियों से निकलता धुंआ। - रिहाइशी इलाकों में इंडस्ट्रियल सेटअप। - कूड़ा-करकट और फसलों को जलाना। - बढ़ते शहरों में होने वाला लगातार कंस्ट्रक्शन कौन हैं हमारी हवा के विलेन

हवा में मौजूद ये आठ विलेन परेशानी का सबब बन रहे हैं: PM10 (पीएम का मतलब होता है पार्टिकल मैटर। इनमें शामिल है हवा में मौजूद धूल, धुंआ, नमी, गंदगी आदि जैसे 10 माइक्रोमीटर तक के पार्टिकल। इनसे होने का वाला नुकसान ज्यादा परेशान करने वाला नहीं होता ) PM2.5 (2.5 माइक्रोमीटर तक के ये पार्टिकल साइज में बड़े होने की वजह से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं) NO2 (नाइट्रोजन ऑक्साइड, यह वाहनों के धुंए में पाई जाती है) SO2 (सल्फरडाई ऑक्साइड गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाले धुंए से निकल कर यह फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचाता है) CO (कार्बनमोनो ऑक्साइड, गाड़ियों से निकल कर फेफड़ों को घातक नुकसान पहुंचाता है) O3 (ओजोन, दमे के मरीज और बच्चों के लिए बहुत नुकसानदेह ) NH3 (अमोनिया, फेफड़ों और पूरे रेस्पिरेटरी सिस्टम के लिए खतरनाक) Pb (लेड, गाडियों से निकलने वाले धुंए के आलावा मेटल इंडस्ट्री से भी निकल कर यह लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला सबसे खतरनाक मेटल)


इन सबको औसत 24 घंटे तक नापने के बाद एक इंडेक्स तैयार किया जाता है। हमारे आसपास की हवा को नापने के लिए देश की सरकार ने एयर क्वॉलिटी इंडेक्स नाम का एक मानक तय किया है। इसके तहत हवा को 6 कैटगिरी में बांटा गया है।
अच्छा (0-50) संतोषजनक (50-100) हल्की प्रदूषित (101-200, फेफडों, दमा और हार्ट पेशंट्स के लिए खतरनाक) बुरी तरह प्रदूषित (201-300, बीमार लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है) बहुत बुरी तरह प्रदूषित (301-400, आम लोगों को सांस की बीमारी की शिकायत हो सकती है) घातक रूप से प्रदूषित (401-500, हेल्दी और बीमार दोनों ही तरह के लोगों के लिए खतरनाक)
क्या है हमारे शहरों का हाल आनंद विहार दिल्ली - 498 मुंबई - 168 लखनऊ - 390 फरीदाबाद - 361 गाजियाबाद - 238 गुड़गांव - 255 (दिसंबर के पहले हफ्ते में एयर पल्यूशन इंडेक्स का रेकॉर्ड )

ऐसा नहीं है कि हवा से होने वाली परेशानी घर के बाहर ही परेशानी का सबब बन रही है। एयर पॉल्युशन इनडोर और आउटडोर दोनों जगह अपना शिकार तलाश रहा है।

इनडोर एयर पल्यूशन घर के भीतर होने वाले एयर पल्यूशन की मुख्य वजहें हैं: आसपास होने वाला बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन, आसपास के कारखाने और खाना बनाने वाला ईंधन (गैस, लकड़ी जलाने वाला चूल्हा आदि)

पहचानें घर का पल्यूशन - किचन में लगे वेंटिलेशन फैन को देखें। अगर उस पर ज्यादा कालिख जम रही है तो जान जाएं कि किचन में हवा नुकसानदायक स्तर तक बढ़ चुकी है। - एसी का फिल्टर और पीछे की तरफ की वेंट में अगर ज्यादा धूल या कालिख जमा हो रही है तो यह इस बात की ओर इशारा है कि घर बुरी हवा के निशाने पर है। - बिजी हाईवे या सड़कों के किनारे बने मकान, कारखानों के करीब बने मकानों में स्वाभाविक तरीके से धूल और मिट्टी के साथ कार्बन पार्टिकल पहुंच जाते हैं। क्या करें - किचन में इलेक्ट्रॉनिक चिमनी लगवाएं - किचन में बेहतर वेंटिलेशन रखें - अगर घर के आसपास बिजी रोज या कारखाने हों तो खिड़की दरवाजों को हैवी ट्रैफिक के वक्त बंद रखें। इससे भले ही पूरा बचाव न हो लेकिन धूल-मिट्टी कम से कम घर में घुस पाएगी।

क्या एयर प्यूरिफायर करेगा मदद - बराक ओबामा के आने पर एयर प्यूरिफायर खबरों में था। कंपनियों का दावा है कि घर के भीतर की हवा को साफ रखने के लिए इनका सहारा लिया जा सकता है। - फिलहाल इस बात की कोई इंडिपेडेंट साइंटिफिक स्टडी सामने नहीं आई है कि इसके इस्तेमाल से इनडोर एयर पल्यूशन से कितनी राहत मिलती है। - इसके इस्तेमाल करने वालों का कहना है कि इससे हालात बदतर होने से तो बच जाते हैं लेकिन घातक हालात में यह कारगर नहीं रहता। - इससे जरूर दमे या एलर्जी के पेशंट को राहत मिलती है लेकिन आम लोगों की सेहत में यह भारी सुधार करता है ऐसा देखने में नहीं आया है। - कई स्टडीज यह भी दावा करती हैं कि एयर प्यूरिफायर भले ही हवा की सफाई करता है लेकिन यह डिवाइसेज खुद ही ओजोन और निगेटिव आयन वातावरण में छोड़ती है। इससे हालात सुधरने के अलावा बिगड़ने लगते हैं। - एयर प्यूरिफायर के बेहतर तरीके से काम करने के लिए जरूरी है कि घर पूरी तरह से सील हों। हमारे देश में ऐसे घर कम ही होते हैं जो पूरी तरह से एयर टाइट हों। अगर ऐसा नहीं होगा तो जिस तेजी से एयर प्यूरिफायर उसे साफ करने की कोशिश करेगा उसी तेजी से प्रदूषित हवा घर में आ जाएगी। - अगर एयर प्यूरिफायर खरीदना पड़े तो ऊंचे HEPA (हाई इफीशिएंसी पार्टिकुलेट एयर) मतलब ज्यादा से ज्यादा महीन कणों को रोकने लायक फिल्टर और हाई क्लीन एयर डिलीवरी रेट हो मतलब तेजी से गंदी हवा को साफ करने की दर हो। - एयर प्यूरिफायर की पल्यूशन के हिसाब से 3-6 महीने में सर्विसिंग करवानी होती है और फिल्टर आदि बदलवाने होते हैं। ऐसा न करने पर इसका फायदा नहीं मिलता। - फिलहाल मार्केट में फिलिप्स, ब्लूएयर, यूरेका फॉर्ब्स, हनीवेल और केंट जैसी कंपनियों के एयर प्यूरिफायर 10 हजार रुपये से 90 हजार रुपये में मौजूद हैं।

आउटडोर एयर पल्यूशन घर से बाहर निकलते ही सबसे पहले सामना होता है ऐसी हवा से जो हालत खराब कर सकती है। अक्सर ये चीजें बाहर निकलते ही हम पर हमला बोलती हैं।

स्मोक: - गाड़ियों और कारखानों से निकलता धुंआ सुबह होते ही आसपास छाने लगता है और सांस के साथ फेंफड़ों में पहुंच कर नुकसान पहुंचाता है। - इसके शिकार अक्सर वे लोग होते हैं जो ट्रैफिक में दुपहिया वाहनों या नॉन एसी पब्लिक ट्रांस्पोर्ट में सफर करते हैं। - बिजी ट्रैफिक में टू वीलर में सफर करने वाले अक्सर स्मोक का शिकार बनते हैं। हेल्मेट में स्मोक जाकर रुक जाता है और टेंप्रेचर भी बढ़ जाता है जिससे हालात बद से बदतर हो जाते हैं। - दिल्ली के आनंद विहार में दिसंबर के पहले हफ्ते में एयर पल्यूशन इंडेक्स 498 तक पहुंच गया। इसमें काफी बड़ा हिस्सा एरिया से गुजरने वाली गाड़ियों के स्मोक का भी है। ऐसे में इस एरिया में टू वीलर से रेग्युलर गुजरने वाले कुछ महीनों के भीतर ही हॉस्पिटल ले जाने की स्थिति में पहुंच सकते हैं।

कैसे बचें शहर में स्मोक कम से कम हो इसके लिए वाहनों से निकलने वाले धुंए को कंट्रोल करना पड़ेगा। जब तक ऐसा नहीं होता अपनी तरफ से किए जाने वाले कुछ उपाय ही बचाव कर सकते हैं। - कोशिश करें कि उन इलाकों से न गुजरें जहां हैवी ट्रैफिक रहता है। लंबे लेकिन कम ट्रैफिक वाले रास्ते से जाने में भले ही वक्त ज्यादा लगे लेकिन सेहत पर बुरा असर कम होगा। - शहर में किस रूट पर ट्रैफिक ज्यादा है इसके लिए गूगल मैप का सहारा ले सकते हैं। लाल रंग में दिख रहे रास्तों से निकलने से बचें। - अच्छी क्वॉलिटी का मास्क (पढ़े मास्क की ABCD) पहन कर ही ऐसे इलाकों से गुजरें।

फॉग - घटते टेंप्रेचर और बढ़ते स्मोक की वजह से सर्दियों का फॉग परेशानी खड़ी कर देता है। - इससे सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है और बीमार के साथ नॉर्मल लोगों को भी परेशानी हो सकती है। कैसे बचें - फॉग अक्सर सुबह या रात के वक्त ही होता है। बेहतर होगा इस वक्त बाहर निकलने से बचें और अगर निकलना पड़े तो मास्क लगा लें। - जिन दिनों में धूप नहीं निकलती उस दिन फॉग का कहर ज्यादा तगड़ा होता है इसलिए खास सावधानी बरतें और बाहर जाने से बचें। - दमे के पेशंट्स फॉग वाले दिनों में इन्हेलर साथ लेकर निकलें। जिससे जरूरत पड़ने पर हालात बिगड़ने से पहले एक्शन लिया जा सके।

स्मॉग - स्मॉग शब्द स्मोक और फॉग से मिल कर बना है। मतलब यह कि जब वातावरण में मौजूद धुंआ फॉग के साथ मिल जाता है तब स्मॉग कहलाता है। - जहां गर्मियों में वातावरण में पहुंचने वाला स्मोक ऊपर की ओर उठ जाता है वहीं ठंड में ऐसा नहीं हो पाता और धुंए और धुंध का एक जहरीला मिक्चर तैयार होकर सांसों में पहुंचने लगता है। - स्मॉग कई मायनों में स्मोक और फॉग दोनों से ज्यादा खतरनाक होता है।

कैसे बचें - बीमार हों या हेल्दी, हो सके तो स्मॉग में बाहर न निकलें। अगर निकलना ही पड़े तो मास्क लगा कर निकलें। - सुबह के वक्त काफी स्मॉग रहता है। इसकी वजह अक्सर रात के वक्त वातावरण में जमा धुंए का न छंट पाना होता है जो सुबह की धुंध में मिल कर स्मॉग बना देता है। - सर्दियों में ऐसा अक्सर होता है इसलिए बेहतर होगा भोर (5-6 बजे) की बजाय धूप निकलने के बाद (तकरीबन 8 बजे) वॉक पर जाएं।
इन्हें भी आजमाएं - सर्दियों में जहां एयर पल्यूशन ज्यादा रहता है वहीं लोग पानी भी कम पीते हैं। यह खतरनाक साबित होता है। दिन में तकरीबन 4 लीटर तक पानी पिएं। प्यास लगने का इंतजार न करें कुछ वक्त के बाद 1-2 घूंट पानी पीते रहें। - घर से बाहर निकलते वक्त भी पानी पिएं। इससे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई सही बनी रहेगी और वातावरण में मौजूद जहरीली गैसे अगर ब्लड तक पहुंच भी जाएंगी तो कम नुकसान पहुंचा पाएंगी। - नाक के भीतर के बाल हवा में मौजूद बड़े डस्ट पार्टिकल्स को शरीर के भीतर जाने से रोक लेते हैं। हाईजीन के नाम पर बालों को पूरी तरह से ट्रिम न करें। अगर नाक के बाहर कोई बाल आ गया है तो उसे काट सकते हैं। - बाहर से आने के बाद गुनगुने पानी से मुंह, आंखें और नाक साफ करें। हो सके तो भाप लें। - अस्थमा और दिल के मरीज अपनी दवाएं वक्त पर और रेग्युलर लें। कहीं बाहर जाने पर दवा या इन्हेलर साथ ले जाएं और डोज मिस न होने दें। ऐसा होने पर अटैक पड़ने का खतरा रहता है। - साइकल से चलने वाले लोग भी मास्क लगाएं। चूंकि वे हेल्मेट नहीं लगाते इसलिए उनके फेफड़ों तक बुरी हवा आसानी से पहुंच जाती है। - ज्यादा एयर पल्युशन

अब डॉक्टर के पास जाएं किसी भी परेशानी की शुरुआत होने पर ही अगर उसकी जांच करा ली जाए तो समस्या बनने से पहले इलाज मुमकिन है। इन लक्षणों के होते ही ध्यान दें: - सांस लेने में तकलीफ होने पर या सीढ़ियां चढ़ते या मेहनत करने पर हांफने लगने पर - सीने में दर्द या घुटन महसूस होने पर - 2 हफ्ते से ज्यादा दिनों तक खांसी आने पर - 1 हफ्ते तक नाक से पानी या छींके आने पर - गले में लगातार दर्द बने रहने पर इनको जरा बचा कर रखें बच्चे - 5 साल से कम बच्चों की इम्युनिटी काफी कमजोर होती है इसलिए उन्हें एयर पल्युशन से रिस्क ज्यादा होता है। इसलिए सर्दियों में उन्हें सुबह वॉक के लिए न ले जाएं। - अगर बच्चे स्कूल जाते हैं अटेंडेंट्स से रिक्वेस्ट कर सकते हैं कि बच्चों को मैदान में खिलाने की बजाए इनडोर ही खिलाएं। - धूल भरी और भारी ट्रैफिक वाली मार्केट्स में बच्चों को ले जाने से बचें। - टू वीलर में बच्चों को लेकर न निकलें। - बच्चों के कार में बाहर ले जाते वक्त शीशे बंद रखें और एसी चलाएं। - बच्चों को भी थोड़ी-थोड़ी देर पर पानी पिलाते रहें जिससे शरीर हाइड्रेट रहे और इनडोर पल्युशन से होने वाला नुकसान भी कम हो। - बच्चे जब बाहर से खेल कर आएं तो उनका भी मुंह अच्छी तरह से साफ करें। बूढ़े - उम्रदराज लोगों को बिगड़ती हवा काफी परेशान कर सकती है। - पल्युशन लेवल बढ़ने पर बाहर जाने से बचें। - धूप निकलने के बाद ही घर से बाहर निकलें। धूप निकलने पर हवा में पल्यूशन लेवल नीचे आने लगता है। - अगर किसी बीमारी की दवाएं ले रहे हैं तो रेग्युलर लेते रहें। ऐसा न करने पर हालत खराब हो सकती है। - सर्दी के मौसम में ज्यादा एक्सरसाइज (ब्रिस्क वॉक या जॉगिंग आदि) न करें। प्राणायाम और योग करना ही काफी होगा। - सर्दियों में अगर बाहर निकलना ही पड़े तो अच्छी क्वॉलिटी का मास्क लगा कर निकलें। - टू व्हीलर या ऑटो में सफर की बजाय टैक्सी या कंट्रोल माहौल वाले मेट्रो या एसी बसों में ही यात्रा करें।

मास्क की ABCD एयर पल्यूशन से बचने के लिए मास्क खरीदने से पहले इन पैमानों पर परखें: - ऐसा मास्क लें जिसकी रेटिंग N95 हो। - मास्क लेने से पहले इस बात की ताकीद कर लें कि यह आपको सही से फिट होगा। ऐसा न होने पर गैप्स से प्रदूषित हवा भीतर जाती रहेगी और मास्क का कोई फायदा नहीं होगा। बच्चों के लिए छोटे साइज के मास्क भी मिल सकते हैं। - मास्क का मैटीरियल ऐसा होना चाहिए कि छोटे-से-छोटे कणों (PM2.5) को रोक सके। - सांस को बाहर निकलाने के लिए लिहाज से अच्छा वेंटिलेशन भी होना चाहिए।

कौन सा मास्क खरीदें - साधारण हरे या नीले क्लीनिकल मास्क ज्यादा काम के नहीं होते और लगभग हर तरह के एयर पल्युशन के सामने बेअसर रहते हैं। - अगर सांस लेने में ज्यादा परेशानी हो तो मास्क लेने के लिए डॉक्टर से भी राय ली जा सकती है। - वैसे मार्केट में Vogmask, Neomask, Totobobo, Respro, Venus और 3M जैसी कंपनियों के मास्क अच्छे माने जाते हैं। - क्वॉलिटी के हिसाब से इनकी कीमत 150 रुपये से 5000 रुपये तक हो सकती है।

ऐप बताएगा हवा का हाल SAFAR - Air इस ऐप को सरकार की मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मिटिओरोलॉजी के साथ मिल कर बनाया है। खासियत - इस पर रियल टाइम एयर पॉल्युशन अपडेट देखे जा सकते हैं। - साइन अप करने के बाद वक्त-वक्त पर अलर्ट भी मंगाए जा सकते हैं। - टोल फ्री नंबर 18001801717 पर अंग्रेजी के अलावा हिंदी सहित कई रीजनल भाषाओं में जानकारी ली जा सकती है। - ऐप के अलावा जानकारी safar.tropmet.res.in पर भी मिल सकती है। कमियां - यहां पर सिर्फ दिल्ली, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, कोलकाता और चेन्नै के अपडेट ही मिल पाते हैं। - टोल फ्री नंबर पर फोन मिलना काफी मुश्किल भरा है। कई बार ट्राई करने के बाद भी फोन बिजी बताता रहा।

प्लैटफॉर्म एंड्रॉयड, आईओएस कीमत फ्री

Asia Air Quality यह ऐप चीन में काफी पॉपुलर है। इसके जरिए पेइचिंग में काफी लोग पल्यूशन अलर्ट लेते हैं।

खासियत - काफी कस्टमाइज्ड है। शहरों की भीतर भी एरिया के हिसाब से एयर पल्यूशन की जानकारी दे सकता है। - इसे विजिट की तरह मोबाइल स्क्रीन पर लगा सकते हैं और लगातार मॉनिटर कर सकते हैं। - ये एशिया के तकरीबन 2000 शहरों को एक साथ मॉनिटर कर सकता है।

कमियां - यहां पर भी छोटे शहरों के बारे में जानकारी नहीं मिल सकती है। मिसाल के तौर पर दिल्ली के 5 इलाकों का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स तो यहां पर मिल सकता है लेकिन गाजियाबाद या फरीदाबाद का इंडेक्स यहां नहीं देखा जा सकता। - ऐप में कुछ बग हैं जिसकी वजह से इस्तेमाल करने में दिक्कत पेश आती है।

प्लैटफॉर्म एंड्रॉयड कीमत फ्री

योग करेगा मुश्किलें आसान शहरों की खराब होती हवा में शरीर का दमखम बनाए रखने और फेफड़ों को मजबूत बनाए रखने के लिए इन आसनों को रेग्युलर करें। - त्रिकोणासन - भुजंगआसन - उर्ध्व मुख श्वानासन - भस्त्रिका प्राणा याम - सुखासन इन आसनों को करने में 30 मिनट बिता कर काफी परेशानियों से बचा जा सकता है।

एक्सपर्टस पैनल डॉ. राजकुमार हेड , डिपार्टमेंट ऑफ रेस्पिरेटरी अलर्जी एंड अप्लाइड इम्यूनोलॉजी वल्लभभाई पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली डॉ. के.के. सिंह हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. अनिल बंसल सीनियर फिजिशन बाबा रामदेव योग गुरु

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चुनाव लड़ोगे?

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नोटबंदी के जरिए इकॉनमी की सफाई की कोशिशों के बाद राजनीति में भी कुछ सफाई होने की उम्मीद जगी है। ऐसे में ईमानदार युवाओं के लिए भी राजनीति में आने की अच्छी संभावनाएं हो सकती हैं। यूं भी अभी यूपी में विधानसभा और दिल्ली व मुंबई में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव जल्द होने वाले हैं। जाहिर है, चुनाव लड़ने से जुड़ी अहम जानकारी नेता और जनता, दोनों की दिलचस्पी की हो सकती है। चुनाव लड़ने के अहम टिप्स बता रहे हैं चन्द्र भूषण:

अगर आज कोई आपसे कहे कि मैं राजनीति में करियर बना रहा हूं तो आप उसे पागल या सनकी ही कहेंगे। सवाल है कि मेडिकल, इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, टीचिंग, मार्केटिंग आदि क्षेत्रों में करियर बनाया जा सकता है तो राजनीति में क्यों नहीं? यह सच है कि राजनीति में कुछ भी निश्चिंत नहीं होता, लेकिन यह भी पूरी तरह पूरी तरह सही है कि अगर इरादे सच्चे हों तो बाकी ज्यादातर क्षेत्रों में सिर्फ आप अपने लिए काम करते हैं जबकि राजनीति में करियर बनाकर आप देश की बेहतरी में योगदान दे सकते हैं और देशवासियों की सेवा कर सकते हैं। राजनीति में आने के बाद बेहद जरूरी कामों में है चुनाव लड़ना। इससे पहले यह जानना भी जरूरी है कि हमारे देश में राजनीति में काफी संभावनाएं हैं।

वेकन्सी ही वेकन्सी

गौर फरमाएं कि लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, ग्राम सभा या स्थानीय निकायों में जनप्रतिनिधियों के कितने पद होते हैं: लोकसभा (545) और राज्यसभा (245) मिलाकर 790 (इनमें से 14 मनोनीत), विभिन्न राज्यों के लिए विधायक (MLA), विधान परिषद (MLC) के 4574 से भी ज्यादा और ग्राम सभा या स्थानीय निकायों में प्रधानी (मुखिया), वार्ड पार्षद, जिला परिषद, नगर निगम/परिषद के देशभर में लाखों पद हैं। अगर इन पदों पर शिक्षित, प्रशिक्षित, नैतिकवान और सेवाभाव रखने वाले युवा जाएं तो निश्चित ही देश, राज्य और पंचायत की स्थिति बदलेगी।

चुनाव लड़ने के नियम

लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों (लोकल बॉडी) जैसे म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन या प्रधानी (मुखिया) के चुनाव लड़ने के तौर-तरीके बिल्कुल अलग होते हैं।

लोकसभा

- कम-से-कम 25 साल उम्र हो।

- भारत का नागरिक हो।

- भारत के किसी भी राज्य का वोटर हो।

- आरक्षित सीट के लिए किसी भी राज्य की मान्य जाति का हो।

- पागल, विक्षिप्त या कोर्ट से चुनाव लड़ने पर बैन न हो।

विधानसभा

- कम-से-कम 25 साल उम्र हो।

- भारत का नागरिक हो

- जिस राज्य से चुनाव लड़ना है, उसकी वोटर लिस्ट में नाम हो।

- आरक्षित सीट के मामले में कैंडिडेट उसी राज्य की मान्य जाति का हो।

- पागल, विक्षिप्त या कोर्ट से बैन न हों।

म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन

- कम-से-कम 21 साल उम्र हो।

- हर राज्य/संघ शासित राज्य की अपनी नियमावली होती है जिसके तहत कई राज्यों में जिनके तीन बच्चे हैं, उन्हें चुनाव लड़ने पर रोक होती है।

- कैंडिडेट जिस म्यूनिसिपल क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहता है, वहां की वोटर लिस्ट में उसका नाम हो।

नामांकन (नॉमिनेशन) कैसे भरें

- चुनाव आयोग चुनाव की तारीखें घोषित करता और तय वक्त में नामांकन भरना होता है। अमूमन इसके लिए सात दिन की समयसीमा होती है। इसके बाद दो दिन के अंदर नाम वापस लिए जा सकते हैं।

- लोकसभा/विधानसभा चुनाव में पार्टी कैंडिडेट के लिए एक प्रस्तावक और निर्दलीय उम्मीदवार के लिए 10 प्रस्तावक जरूरी हैं।

- चुनाव आयोग के विवेकानुसार चुनाव प्रक्रिया न्यूनतम 14 दिनों में खत्म की जा सकती है। वोटिंग से 48 घंटे पहले सारे प्रचार-प्रसार बंद होना जरूरी है।

कौन-कौन से कागजात जरूरी

नॉमिनेशन फॉर्म के साथ किसी भी कागजात की जरूरत नहीं होती। सिर्फ कैंडिडेट का नाम वोटर लिस्ट में होना चाहिए। हां, नामांकन प्रपत्र में चल और अचल संपत्ति का डिक्लरेशन देना जरूरी होता है। कैंडिडेट दो-तीन सेटों में नामांकन भर सकते हैं क्योंकि स्क्रूटनी में एक सेट गलत हो गया और दूसरा सेट सही है तो नामांकन रद्द नहीं होता।

जमानत राशि का फंडा

- लोकसभा: 25,000 रुपये

- विधानसभा: 10,000 रुपये

- म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन: ₹500 से ₹1000 रुपये

नोट: आरक्षित वर्ग के लिए यह रकम आधी हो जाती है।

चुनाव में खर्च की सीमा

लोकसभाः अधिकतम ₹ 70 लाख

विधानसभाः अधिकतम ₹40 लाख

म्यूनिसिपल कॉरपोरेशनः 10,000 से 4 लाख तक, ज्यों की नियमावली अनुसार

क्या नेता जन्मजात होते हैं?

आमतौर पर धारणा है कि नेता जन्मजात होते हैं। गांधी-नेहरू परिवार, मुलायम, लालू या दूसरे वंशवादी परिवारों के राजनीति में मजबूत पकड़ के कारण यह धारणा बनी। लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। दिल्ली का उदाहरण हमारे सामने है कि एक नई पार्टी ( आम आदमी पार्टी) और गैर राजनीतिक चेहरा (अरविंद केजरीवाल) किस तरह राजनीतिक में छा गया। इसके पहले कांशीराम, मायावती, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी तमाम नेताओं ने खुद से राजनीति में अपनी जगह बनाई।

अच्छे नेता के गुण

निडरता और धीरज

मशहूर कवि हरिवंश राय 'बच्चन' की कविता की एक पंक्ति है: 'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती...' एक अच्छे नेता के लिए जरूरी है कि वह न केवल चरित्रवान हो बल्कि वह संघर्षशील, निडर, विपरीत परिस्थिति में लोगों को अपनी तरफ मोड़ने की शक्ति रखने वाला हो। महात्मा गांधी, थॉमस अल्वा एडिसन, विंस्टन चर्चिल, मैरी कॉम, हेनरी फोर्ड, इंदिरा नूई, नेल्सन मंडेला, जे.के. रॉलिंग (हैरी पोर्टर सीरीज़ की लेखिका), मेजर ध्यान चंद, अल्बर्ट आइंस्टाइन आदि की आत्मकथा/संघर्षकथा पढ़ें। आपको प्रेरणा मिलगी।

विनम्र और मृदुभाषी

मैथिलीशरण गुप्त ने 'पंचवटी' में लीडर के गुण बताए हैं और वे हैं: धीर, वीर, गंभीर। एक अच्छे नेता का गुण है कि वह सबकी बात को अच्छी तरह सुने और संवाद बनाएं रखे। उत्तेजित करने या अपमान करने वाली बातों से विचलित न हों बल्कि सहनशक्ति विकसित करें।

अच्छी पढ़ाई-लिखाई और भाषण कला

- अच्छा नेता आप तभी कहलाएंगे, जब आपकी भाषा आम जनता के दिलों में उतर जाए और उसे ऐसा लगे कि भाषणों में उसके अपने दर्द का समावेश है। अपनी भाषा में मुहावरों और वाक्यों का सही इस्तेमाल करें। कुछ चुनिंदा शेर या कविता की पंक्ति बोलना आना चाहिए। कब और किस समय भाषा का उतार-चढ़ाव होना चाहिए, कैसा हाव-भाव (बॉडी लैंग्वेज) होना चाहिए, यह सीखना जरूरी है।

चुनाव से पहले की तैयारियां

जैसे किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी पहले से करनी पड़ती है, उसी तरह चुनाव की भी तैयारी करीब साल भर पहले या कम-से-कम छह महीने से जरूर की जानी चाहिए। इन तैयारियों में नीचे लिखे सवालों का जवाब जरूर शामिल हो:

- चुनाव क्षेत्र कहां बनाएंगे?

- चुनाव के लिए फंड कैसे जुटाएंगे?

- भरोसेमंद लोगों की टीम कैसे बनाएंगे?

- स्थानीय समस्याओं पर जनमत कैसे बनाएंगे?

जीत के लिए ये जरूरी

आत्मविश्वास

- अगर आपने इरादा कर लिया है कि देश की सेवा के लिए राजनीति में जाना है और इसी में करियर बनाना है तो विचार या इरादे को मत बदलिए, तरीके बदल डालिए।

- नाकामी का डर है या फिर चुनाव में हार का डर सता रहा है तो एक बात गांठ बांध लें कि इंसान कभी फेल नहीं होता, उसकी रणनीतियां फेल होती हैं।

- सही वक्त पर सही फैसला करने की शक्ति बटोरिए।

टाइम मैनेजमेंट

- किसी भी दूसरे फील्ड की तरह राजनीति में भी वक्त की बड़ी अहमियत है। सही वक्त पर सही फैसले लेना बेहद जरूरी है। एक गलत फैसला बहुत भारी पड़ सकता है।

- एक कहावत है आज अगर आप समय बर्बाद कर रहे हैं तो मुमकिन है, कल समय आपको बर्बाद कर दे।

- मुश्किल समय हमेशा नहीं रहता लेकिन मुश्किल इंसान हमेशा रहते हैं इसलिए उनसे भागे नहीं, हटकर सामना करें।

- आप सिर्फ मिनटों का ख्याल रखें, घंटे अपना ख्याल खुद रख लेंगे।

विश्वसनीयता

- जनता के साथ विश्वास का मजबूत गठबंधन बनाएं। झूठे और बड़े-बड़े वायदे कर चुनाव तो जीत लेंगे, पर वह जीत स्थायी नहीं होगी।

- जनता को विश्वास दिलाएं कि जीतने के बाद हर फैसला आपस में मिल-बैठकर लेंगे और उनकी मांगों को नजरदांज नहीं करेंगे।

- लोगों को विश्वास होना चाहिए कि आप ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, मिलनसार, सेवादार शख्स हैं, जिसमें कहीं भी अहंकार या दिखावा नहीं है।

अच्छी टीम

मार्टिन लूथर किंग के शब्दों में, 'अच्छा लीडर लोगों के विचारों के पीछे नहीं चलता बल्कि वह लोगों के विचारों को बदल देता है।' पहले आप विश्वास रखें कि आपमें नेता बनने के गुण हैं। आप नेता बन सकते हैं क्योंकि आप अपने समाज और देश के लिए बने हैं और आपमें इसके लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा है।

- घर से बाहर निकलें और रोजाना 10 से 20 नए लोगों से मिलें, उनके विचारों को पहले गौर से सुनें और फिर अपनी बात कहें।

- सभी लोगों का डेटा यानी नाम, मोबाइल नंबर, एड्रेस आदि कंप्यूटर या अपने मोबाइल में सेव करना शुरू करें।

- भरोसेमंद लोगों का एक कोर ग्रुप बनाएं। सारी योजनाएं या रणनीति इन्हीं कोर ग्रुप के साथ शेयर करें और बाकी लोगों से गुप्त रखें।

- ग्राउंड लेवल पर इस कोर ग्रुप के सदस्यों से अलग-अलग कमिटियां या संघ जैसे मीडिया प्रकोष्ठ, छात्र प्रकोष्ठ, व्यापार प्रकोष्ठ, मजदूर प्रकोष्ठ, कानूनी प्रकोष्ठ, सोशल मीडिया प्रकोष्ठ आदि कम-से-कम 15-20 टीमें जरूर बनाएं और उन्हें आपके पक्ष में प्रचार का काम सौंप दें। यहां यह जानना जरूरी है कि जितने भी प्रकोष्ठ और उनके पदाधिकारी हैं, वे स्वेच्छा से अपना समय देते हैं। इसके लिए उन्हें कोई भुगतान या पेमेंट नहीं मिलता। हां, मीटिंग या वाहनों का खर्चा वे आपसी चंदे से उठाते हैं या फिर पार्टी देती है।

बेहतर रणनीति

जब आपने कमिटियां बना लीं तो उनके साथ रेग्युलर तौर पर बैठक कर रणनीतियां बनाएं कि कैसे चुनाव में जीत हासिल की जाए। बिना रणनीति के भावुकता भरे फैसले न लें। इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल और नितीश कुमार ने रणनीति बनाकर ही चुनाव जीतकर सरकार बनाई। मोटे तौर पर रणनीति बनाते समय इन बातों का खासतौर पर ध्यान रखें:

चुनाव लड़ने और जीतने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि लोगों के मूड को भांप लें। जानें कि लोग क्या चाहते हैं? रणनीति में अहम हैं:

ब्रैंड और उपभोक्ता

चुनावी रणनीति में वही कामयाब होता है जो उपभोक्ता (जनता) के सामने अपने ब्रैंड की ब्रैंडिंग अच्छी तरह कर ले। मसलन नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल जनता को क्रमश: यह समझाने में कामयाब रहे कि केंद्र में उसका ब्रैंड भरोसेमंद है तो दिल्ली जैसे राज्य में केजरीवाल की 'आप' ब्रैंड विकास के लायक है।

जोखिम और स्पष्ट लक्ष्य

कहते हैं जीतने का सबसे ज्यादा मजा तब आता है, जब बाकी सब तुम्हारी हार का इंतजार कर रहे हों। 99 फीसदी लोग आसान रास्ता चुनते हैं क्योंकि उसमें जोखिम नहीं है, रिस्क फैक्टर नहीं है। लेकिन अगर महापुरुषों की जीवनियां पढ़ें तो आप पाएंगे कि उन्होंने 'मुश्किल' को चुना और सफल रहे।

जनता से जुड़ाव और आंदोलन

- किसी क्षेत्र में चुनाव जीतने के लिए आपको समझना होगा कि वोट देने वाली आम जनता ही है इसलिए उनके साथ गठबंधन बनाएं और उनके हितों के लिए आंदोलन करें।

- अपने क्षेत्र की समस्याओं की लिस्ट तैयार करें। आमतौर पर सड़कें, बिजली, पानी, पुल-पुलिया, नाला, सफाई आदि की समस्या आम जनता को परेशान करती है। इन्हें लेकर लोगों को तैयार करते हुए आंदोलन करें।

- आंदोलन से पहले तैयारी जरूर करें, मसलन कौन मीडिया को प्रेस रिलीज देगा, कौन प्रशासन को सूचित करेगा, आंदोलन की रूपरेखा क्या होगी आदि।

- शुरुआत में आपसे 15-20 लोग ही जुड़ेंगे, चिंता न करें। गांधी जी यह नहीं देखते थे कि भीड़ कितनी है, सत्य के लिए उनका आंदोलन लगातार जारी रहा।

- भीड़ से पत्थर फिंकवाने, तोड़-फोड़ या आगजनी करने जैसी सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश न करें, वरना आप मुसीबत में फंस जाएंगे।

किसी पार्टी से टिकट लेने के तरीके

- अगर चुनाव पार्टी आधारित लड़े जा रहे हों तो बेहतर है कि निर्दलीय या आजाद उम्मीदवार के रूप में किस्मत न आजमाएं। किसी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ें।

- आप अपने क्षेत्र का जाना-पहचाना नाम बनें तो टिकट लेने में आसानी होगी। बड़ी पार्टियों से टिकट लेने में बहुत मारा-मारी रहती है इसलिए छोटी पार्टियों का सहारा लेकर अपने व्यक्तित्व के जरिए चुनाव में बाजी मार सकते हैं लेकिन उसके लिए एक साल पहले से तैयारी कर लें।

- टिकट लेने के लिए लॉबिंग, बड़े नेताओं को अपने क्षेत्र में बुलाने से लेकर विभिन्न अवसरों पर गिफ्ट देने जैसी बातों का ख्याल रखना पड़ता है।

- मीडिया पर अपनी पकड़ बनाएं। लोकल रिपोर्टरों के साथ मुलाकात करते रहें और उन्हें बीच-बीच में लंच आदि पर बुलाते रहें।

चुनाव चिन्ह और पार्टी का नाम

चुनाव जीतने का फॉर्मुला पार्टी के चुनाव चिन्ह और पार्टी के नाम पर भी निर्भर करता है। सरल, सहज और आम-से नाम और चिन्ह लोगों को आकर्षित करते हैं। कहते हैं असली मार्केटिंग वही है जो गंजे को कंघी बेच दे या फिर मिट्टी को सोने के भाव बेच दे। अगर आपमें वह खूबी है तो समझिए आपकी रणनीति लाजवाब बनेगी।

प्रचार और प्रसार

चुनावी रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा प्रचार-प्रसार भी है। बैनर , पोस्टर, हैंडबिल,वाल पेंटिंग,टोपी,कट-आउट, विज्ञापन(दृश्य-श्रव्य) आदि के माध्यम से आप कामयाब हो सकते हैं। सोशल मीडिया का प्रयोग बदलते दौर में इसी रणनीति का हिस्सा है।

चुनाव में नारों का रोल

चुनाव के दौरान चुनावी नारों का भी अहम भूमिका है। छोटे, लेकिन चुटीले और दिल में उतर जाने वाले नारे जीत की राह आसान करते हैं जैसे बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के दौरान नारा गढ़ा 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' तो दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप का नारा था '5 साल केजरीवाल' और बिहार में महागठबंधन का नारा था 'बढ़ चला बिहार, फिर एक बार नीतीश कुमार', 'झांसे में न आएंगे, नीतीश को जिताएंग' आदि।

फंड जमा करने के तरीके

- चुनाव लड़ना कोई हंसी-खेल नहीं है। इसके लिए काफी पैसे की भी जरूरत होती है इसलिए चुनाव के लिए पैसा कैसे जुटाएं और इसमें कौन आपकी मदद कर सकता है, अपनी टीम के साथ मिलकर इसका आकलन करें।

- आपने जिन टीमों का गठन किया है, आपस में चंदा करें और हिसाब रखें।

- मोहल्ले या गांव स्तर पर कार्यक्रम आयोजित कर उनसे फंड जमा करें।

- पार्टी का हेल्पलाइन नंबर देकर और सदस्यता अभियान चलाकर फंड जमा करें और डोनेशन लें।

- राष्ट्रीय पार्टियां और क्षेत्रीय पार्टियां कैंडिडेट्स को चुनाव लड़ने के लिए पैसा देती हैं।

- अगर पार्टी रजिस्टर्ड हो तो चंदा ज्यादा मिलता है। नई पार्टी गठित करने और उसे रजिस्टर्ड कराने के लिए निर्वाचन आयोग की वेबसाइट eci.nic.in से जानकारी ले सकते हैं।

प्रचार-प्रसार के नए तरीका अपनाएं

- अखबारों, वॉल पेंटिंग, लाउडस्पीकर, पोस्टर आदि पारंपरिक प्रचार-प्रसार के अलावा नए तरीके भी अपनाएं।

- अपने लोगों के 'मूड' जानने के लिए वॉलेंटियरों के जरिए पर्चा (हैंडबिल) घर-घर बंटवाएं और फीडबैक लें।

- क्षेत्र की समस्याओं पर नुक्कड़ नाटक, वार्ड वॉच, गांव, चौपाल आदि कार्यक्रमों के जरिए लोगों को जोड़ें।

- विभिन्न प्रचार माध्यमों जैसे ट्विटर, वट्स-ऐप ग्रुप, फेसबुक, एसएमएस, ब्लॉग, हैशटैग आदि से लोगों को जोड़ें।

- वक्त और पैसे की बचत के लिए 'बल्क मैसेज' भेजने की सेवा कई सर्विस प्रवाइडर से ले सकते हैं। कई सर्विस प्रवाइडर एक बार के पचास से एक लाख तक मेसेज या वॉयस मेसेज के लिए 10 हजार से 25 हजार रुपए तक लेते हैं। कुछ सर्विस प्रवाइडर एक फोन नंबर से 100 फ्री मेसेज की सुविधा देते हैं।

- रेलवे स्टेशन, बस स्टॉप, भीड़-भाड़ वाले मार्केट में पोस्टर-बैनर के जरिए हेल्पलाइन नंबर दें।

- छोटी-छोटी जनसभाएं करें। इनमें नाटकों और गीतों का आयोजन कराएं। इससे लोगों का ध्यान आपकी ओर खिंचता है।

- अपने पक्ष में स्लोगन वाली टी-शर्ट या टोपी भीड़-भाड़ इलाके में अपने वॉलेंटियरों को पहनने को कहें।

अपने पक्ष में 'लहर' बनाने के तरीके

एक अंतिम और महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि चुनाव में जीत के लिए अपने पक्ष में 'लहर' कैसे बनाएं? मोदी, केजरीवाल या नीतीश-लालू और कांग्रेस गठबंधन ने 'लहर' बनाने की तकनीक से ही अपने प्रतिद्वंद्वियों की हवा निकाल दी। जाति-धर्म के बंधन या वंशवाद या क्षेत्रवाद की 'लहर' को कैसे अपनी ओर मोड़ा जाए, यह जानने की जरूरत है।

- चुनाव की तैयारी तीन-चार स्तरों पर करें। एक साल, छह महीने और तीन महीने पहले।

- विभिन्न प्रचार माध्यमों के जरिए अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराते रहें।

- स्थानीय मुद्दों को लगातार धरना-प्रदशन के जरिए उठाते रहें।

- जाति या धर्म आधारित बंधन को तोड़ने की रणनीति बनाएं।

- विभिन्न चौक-चौराहों, पान-चाय दुकानों पर कार्यकर्ताओं से अपने या पार्टी पक्ष की 'माउथ पब्लिसिटी' कराते रहें।

- कार्यकर्ताओं से 'हर घर दस्तक' और प्रचार सामग्री बंटवाएं और उनके विचारों को जानें।

- किसी खास जाति या धर्म के लोगों की बस्ती में तथ्य और आंकड़ों के जरिए समझाएं कि इसके नाम पर उनका या क्षेत्र का कितना अहित हुआ है।

- चुनाव के ऐन दो-तीन दिनों पहले अपने कार्यकर्ताओं से 'माउथ पब्लिसिटी' कराएं कि आप भारी अंतर से जीत रहे हैं। यह उपाय आपके पक्ष में लहर बना देगा।

बूथ मैनेजमेंट

चुनाव जीतने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर है यानी बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की फौज कैसे खड़ा करें? यह जानना जरूरी है कि 400 से 1500 वोटरों के ग्रुप को मिलाकर एक बूथ बनाया जाता है, जहां जाकर वोट डाले जाते हैं। अपने क्षेत्र की बूथ लिस्ट ले लें और हर बूथ के लिए स्लोगन दें - 'एक बूथ, 10 यूथ'। अगर आपने हर बूथ के लिए 10 से 15 समर्पित कार्यकर्ता भी तैयार कर लिए तो समझिए चुनावी नैया पार कर ली।

चुनाव में ये भी मददगार

संस्थान जहां पॉलिटिकल लीडरशिप की ट्रेनिंग दी जाती है:

- गोखले इंस्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकनॉमिक्स, पुणे (महाराष्ट्र)

वेबसाइट: gipe.ac.in

- इंस्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिकल लीडरशिप (आईपीएल), नई दिल्ली

वेबसाइट: iplindia.in

- हार्वर्ड इंस्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स, कैंम्ब्रिज (अमेरिका)

वेबसाइट: iop.harvard.edu

- इंस्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स, शिकागो

वेबसाइट: politics.uchicago.edu

- इंस्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स, पिट्सबर्ग

वेबसाइट: iop.pitt.edu

चुनाव लड़ने का मेरा अनुभव

इंडिया अंगेस्ट करप्शन के दौरान अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया से मेरा परिचय हुआ। अररिया से जब लोकसभा के लिए 'आप' का टिकट मिला तो भावनाएं ऐसी कुलांचे मार रही थीं, मानो अब मुझे सांसद बनने से कोई नहीं रोक सकता। अररिया के भौगोलिक, आर्थिक और सामाजिक संरचना की जानकारी एक डॉक्युमेंट्री 'अररिया: एक आपबीती' बनाने के दौरान मिल चुकी थी। यूं भी मुझे लगता था पार्टी चुनावी नैया पार करा देगी। लेकिन धरातल पर उतरते ही सैद्धांतिक बातें हवा हो गईं। सूदूर गांवों में मुझे तो दूर, पार्टी को भी जानने वाले कम थे। यहां निरक्षता का आलम यह है कि आधी से ज्यादा आबादी अंगूठाटेक और गरीब है। बदलाव की बयार दिल्ली से यहां नहीं पहुंची थी। चुनाव लड़ने के लिए न पार्टी के पास पैसे थे और न ही मेरे पास। नॉमिनेशन भरने से लेकर प्रचार आदि पर लाखों खर्च होने वाले थे। लोगों ने कहा, चुनाव तो पैसे से ही लड़ा जाता है। पैसे नहीं थे तो किसने कहा था कि चुनाव लड़ना चाहिए। कुकुरमुत्ते की तरह चुनावों के समय उग आए स्वार्थी तत्वों ने किनारा करना शुरू कर दिया। आपस में चंदा कर कुल साढ़े तीन लाख रुपये जमा हुए। उसी से चुनाव लड़ा। चुनाव के यूं तो कई खट्टे-मीठे अनुभव हैं लेकिन उसके सबक बड़े दिलचस्प हैं:

- अशिक्षा की कमी में लोग वोट की अहमियत को समझ नहीं पाते।

- लोगों को लगता है राजनीति में नामवाला या पैसेवाला ही जीत सकता है।

- उनके क्षेत्र को, उनके घर की गरीबी को दूर करने के लिए कोई फरिश्ता या नामवाला आएगा।

- नेताओं के अलग ड्रेस कोड होते हैं।

- एक पार्टी समर्थित कुछ गुंडों के मुझ पर जानलेवा हमला करने के बाद सबक मिला कि संख्या बल भी आपके पास होना चाहिए।

- अपने क्षेत्र में सेवाभाव से मुद्दा आधारित आंदोलन कर उनके हितों के लिए लड़ें और हमेशा उन्हें जोड़े रखें।

- बूथ पर जबतक आपके कर्मठ और सशक्त कार्यकर्ता नहीं होंगे, आप चुनाव नहीं जीत सकते।

- राजनीति अवसर का खेल है, चूक गए तो फेल है।

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कैसे पूरे करें न्यू ईयर रेजॉलूशन्स

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साल नया और रेज़ॉलूशन भी नए! ना... ना... हममें से ज्यादातर लोग हर साल एक ही तरह के रेज़ॉलूशन लेते हैं और कुछ दिन बीतते-बीतते उन्हें भुला देते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है कि हम अपने रेज़ॉलूशन को पूरा नहीं कर पाते? क्या करें कि आप अपने रेज़ॉलूशन को पूरा कर पाएं, एक्सपर्ट्स की मदद से बता रही हैं प्रियंका सिंह:

नए साल पर हममें से ज्यादातर लोग कोई-न-कोई रेज़ॉलूशन यानी प्रण लेते हैं लेकिन कुछ ही दिनों में इन्हें भुला देते हैं। वजह, हम लक्ष्य और इच्छा के बीच फर्क नहीं कर पाते। इच्छा जहां दिल में होती है, वहीं लक्ष्य दिमाग में। दिल वाली बात यानी इच्छा को अगर दिमाग में नहीं डाला जाता यानी लक्ष्य नहीं बनाया जाता तो पुराना ढर्रा लौट आता है। इसके अलावा लक्ष्य के आप कितने करीब पहुंचे, यह जानना मुमकिन है और प्रोग्रेस देखकर आगे बढ़ने का हौसला बढ़ता है लेकिन इच्छा को नापने का कोई तरीका नहीं होता। ज्यादातर रेज़ॉलूशन पूरे नहीं हो पाते क्योंकि वे महज इच्छा ही बने रहते हैं और लक्ष्य नहीं बन पाते। जोश में अक्सर हम शुरुआत कर भी देते हैं लेकिन कुछ दिन बीतते-बीतते रेज़ॉलूशन पीछे छूट जाता है और हम पहले की रुटीन लाइफ पर वापस आ जाते हैं। वजह यह है कि हम मुश्किल काम करने के बजाय आसान और मजेदार काम करना पसंद करते हैं इसलिए थोड़े भी मुश्किल कामों को पूरा नहीं कर पाते।

ऐसे होंगे रेज़ॉलूशन पूरे

1. ज्यादा रेज़ॉलूशन नहीं बनाएं। ज्यादा होंगे तो हम किसी भी रेज़ॉलूशन को सीरियसली नहीं ले पाएंगे। एक-दो रेज़ॉलूशन होंगे तो उन्हें पूरा करना आसान होगा। पहले कोई एक काम शुरू करें। नियमित रूप से करें। जब वह आदत में शुमार हो जाए तो दूसरे रेज़ॉलूशन पर काम शुरू करें।

2. जो भी रेज़ॉलूशन बनाएं, वे असलियत के करीब हों। मसलन एक साल में 10 करोड़ रुपये कमाने या एक महीने में 5 किलो वजन कम करने जैसे रेज़ॉलूशन न बनाएं। 50 हजार की सैलरी को बढ़ाकर 60-65 हजार करने और महीने में 2 किलो वजन कम करने जैसे लक्ष्य बनाएं। थोड़ा-थोड़ा कर आगे बढ़ने का गोल सेट करें। बड़े लक्ष्य सेट करने पर वे पूरे नहीं हो पाते और लोग निराश होकर कोशिश करना ही छोड़ देते हैं।

3. सोचें नहीं, बल्कि करें। जो सोचें, उसे करना शुरू कर दें। कल पर न टालें। अक्सर कल से एक्सरसाइज शुरू करेंगे, आज खा लेते हैं, कल से डाइट कंट्रोल करेंगे, एक दिन खाने से क्या होता है जैसी बातें हमारे मन पर हावी हो जाती हैं और रेज़ॉलूशन पीछे छूट जाता है। यह भी देखें कि अगर आपने पहले भी वह काम करना चाहा और पूरा नहीं हो पाया तो क्यों नहीं हो पाया। उन कमियों को दूर करने के लिए कदम उठाएं।

4. रेज़ॉलूशन को पूरा करने के लिए सिर्फ तारीख तय न करें बल्कि साइड में कुछ और भी प्लान तैयार करें जैसे कि अगर वजन कम करना है तो पहली तारीख से योग टीचर को बुलाना है या फलां जगह खेलने जाना है या नौकरी बदलने के लिए अप्लाई करना है आदि।

5. किसी भी पुरानी आदत को खत्म करने या नई शुरू करने के लिए काफी एनर्जी और सपोर्ट की जरूरत होती है। आप किसी को साथ ले लें तो आसानी होगी। मसलन किसी दोस्त के साथ खेलने का रुटीन बना लें या फिर अपनी दिलचस्पी के काम से जुड़े किसी क्लब आदि को जॉइन कर लें।

6. आप जो भी करना चाहते हैं, उसे अपनी आदत में शुमार करें। जैसे कि इंग्लिश सुधारनी है तो प्रण करें कि सुबह उठकर रोजाना 3 मिनट शीशे के सामने खड़े होकर तेज-तेज इंग्लिश बोलूंगा या खाने के दौरान टेबल पर सौंफ पहले से रखूंगा और पेट भरा महसूस होते ही फौरन सौंफ मुंह में डाल लूंगा ताकि ज्यादा खाना न खा पाऊं या फिर अपने ऑफिस से एक बस स्टॉप या मेट्रो स्टेशन पहले उतरूंगा ताकि पैदल चल सकूं आदि। जो भी तय करें, तय वक्त पर रोजाना करें।

7. ऐसे लोगों के साथ रहें, जो आपको आपकी दिशा में जाने में मदद करें। मसलन वजन कम करना है तो हेल्दी खाने और एक्सरसाइज करनेवाले दोस्तों के साथ ज्यादा रहें, करियर में आगे बढ़ना है तो करियर को अहमियत देनेवाले लोगों के साथ रहें। जो लोग रुकावट बनते हैं, उनसे थोड़ी दूरी बना लें।

8. टाइम मैनेजमेंट जरूर करें। टाइम टेबल बनाकर किसी भी काम के लिए टाइम तय करें। मसलन सुबह 6-7 बजे या शाम को 7-8 बजे एक्सरसाइज करनी है या फिर रोजाना रात में सोने से पहले 30 मिनट बुक पढ़नी है आदि।

9. ऐसी जगहों पर मोटिवेशनल कोट्स लगाएं, जहां आपकी निगाह बार-बार जाती हो, मसलन वजन कम करने के लिए फ्रिज पर डाइट कंट्रोल या शीशे पर फिटनेस से जुड़े कोट लगाएं। ऑफिस में कंप्यूटर पर कामयाबी से जुड़ी प्रेरक बातें लिखकर लगाएं ताकि आप बेहतर काम कर सकें।

10. कोई बुरी आदत है और छोड़ नहीं पा रहे हैं तो उसके हेल्दी ऑप्शन तलाशें। मसलन अगर बिंज ईटिंग (बार-बार खाने) की आदत है तो जंक फूड या तला-भुना खाने की बजाय फल-सलाद और हेल्दी स्नैक्स आदि का ऑप्शन रखें। स्मोकिंग की जगह चुइंग-गम या माउथ फ्रेशनर अपना सकते हैं आदि।

कॉमन रेज़ॉलूशंस

सेहत को बेहतर बनाना

नए साल पर सबसे ज्यादा लोग सेहत को सुधारने का प्रण लेते हैं। दुनिया भर में करीब एक-तिहाई लोग सेहत से जुड़ा कोई-न-कोई रेज़ॉलूशन लेते हैं। इनमें खास हैं:

- वजन कम करना

- ज्यादा ऐक्टिव रहना

- हेल्दी खाना खाना

- रोजाना एक्सरसाइज करना

- मॉर्निंग वॉक शुरू करना

- योग व मेडिटेशन करना

क्या करें

वजन कम करना/ ज्यादा ऐक्टिव रहना/ हेल्दी खाना खाना

- महीने में ज्यादा-से-ज्यादा 2 किलो वजन कम करना तय करें। इसके लिए दिन में 500 कैलरी कम करनी होंगी। 250 कैलरी रोजाना 30-45 मिनट ब्रिस्क वॉक या एक्सरसाइज करके और 250 कैलरी डाइट कंट्रोल कर घटाने का लक्ष्य रखें। इस तरह हफ्ते में आधा किलो और महीने में 2 किलो वजन कम हो जाएगा।

- सख्त डाइटिंग न करें। सब कुछ एकदम छोड़ने से एक खालीपन आएगा, जिसे भरने के लिए आप कुछ भी खाने लगेंगे। खाना छोड़ने के बजाय उसकी मात्रा कम कर दें। अपनी प्लेट का साइज छोटा कर दें। मार्केट से भी छोटे पैकेट खरीदें ताकि पूरा खत्म करने पर जोर न हो। भूख लगने पर तला-भुना खाने के बजाय फल, सलाद और हेल्दी स्नैक्स (मुरमुरे, चना, स्प्राउट्स आदि) खाएं।

- जो लोग हेल्दी खाते हैं, उनकी संगत में रहें और बिंज ईटिंग (बार-बार खाना) या जंक फूड खाने वालों के साथ कैंटीन या रेस्तरां आदि जाने से बचें।

- रोजाना वजन मापने के बजाय हफ्ते में एक बार नापें और उसी वक्त पर उन्हीं कपड़ों में मापें। इससे वजन पर सही तरीके से निगाह रखना मुमकिन होगा।

- गौर करें कि लगातार बैठे रहने से वजन तो बढ़ता ही है, पॉश्चर और सेहत भी खराब होती है। लगातार बैठे रहने से शरीर में आलस आता है। घर के छोटे-मोटे काम करने से एनर्जी मिलती है। इस सोच से आप घर के छोटे-मोटे काम खुद करने को प्रेरित होंगे।

- जब कुछ अचीव करें तो खुद को इनाम दें। मसलन कोई नई ड्रेस खरीदें या फिर डाइटिंग से एक मील का ब्रेक लें। इससे एक नया बूस्ट मिलेगा।

- वजन कम करने से क्या मिल रहा है, यह देखें जैसे कि आप ज्यादा स्मार्ट, फिट और ऐक्टिव हो गए हैं आदि। इन फायदों को लिखें और बार-बार पढ़ें।

रोजाना एक्सरसाइज करना/ मॉर्निंग वॉक शुरू करना/ योग व मेडिटेशन करना

- हल्की एक्सरसाइज चुनें और उन्हें रेग्युलर करें। अगर खुद से बहुत सख्ती करेंगे तो मन जल्दी ऊब जाएगा और लंबे समय तक नहीं कर पाएंगे। साथ ही, अगर वजन कम हो भी गया तो जल्द ही वापस लौट आएगा।

- अपने टीवी/लैपटॉप पर बेस्ट एक्सरसाइज विडियो डाउनलोड कर या पेनड्राइव लगाकर देखें और करें। इसके लिए टाइम तय कर लें और उस वक्त पर जरूर करें।

- वजन कम करने या एक्सरसाइज आदि करने के लिए एक 'बडी' की तलाश करें। दूसरे की संगत में आप ज्यादा मोटिवेट होंगे और मिलकर लक्ष्य को पूरा कर पाएंगे।

ज्यादा पैसे कमाना

सेहत के बाद ज्यादातर लोगों के लिए पैसा प्रायॉरिटी में टॉप पर रहता है। अक्सर लोग पैसे से जुड़े रेज़ॉलूशन लेते हैं। इनमें खास हैं:

- पैसे का बेहतर मैनेजमेंट

- बेहतर नौकरी पाना

- कुछ अपना शुरू करना

क्या करें

पैसे का बेहतर मैनेजमेंट

- कमाई का एक्स्ट्रा सोर्स बनाएं। फ्रीलांसिंग, साइड जॉब के साथ-साथ इंटरनेट के जरिए भी कई तरह के जॉब ऑफर मिल सकते हैं। ज्यादा कमाई होगी तो पैसे को लेकर तनाव कम हो जाएगा और आप बेहतर जिंदगी जी पाएंगे। संभ‌वत: दूसरों के लिए भी कुछ कर पाएंगे।

- हमारी दो तरह की इनकम होती है: ऐक्टिव और पैसिव। ऐक्टिव इनकम वह होती है, जिसमें आप पैसा कमाते हैं और पैसिव इनकम वह होती है, जिसमें आपका पैसा यानी इनवेस्टमेंट आपके लिए पैसा कमाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ पैसिव इनकम पर फोकस करना जरूरी है। इसके लिए कुछ सेफ इनवेस्टमेंट प्लान में इनवेस्ट करें। यह काम पहली जनवरी से ही शुरू कर दें।

- ज्यादा पैसा कमाने का मतलब यह नहीं है कि आप पैसा लुटाने लगें। पैसा बचाने की आदत भी डालें। इसके लिए कुछ इनवेस्टमेंट प्लान जरूर लें और उनमें रेग्युलर तौर पर पैसा जमा करें।

बेहतर नौकरी पाना/अपना काम शुरू करना

- बेहतर नौकरी के लिए रेज्युमे बनाकर अच्छी जॉब साइट्स पर डालें। नेटवर्किंग बढ़ाएं। अपने प्रफेशन के अलावा दूसरे फील्ड के लोगों से भी मिलें। इससे आपकी सोच का दायरा बढ़ेगा। दोस्तों और जानकारों से भी मदद मांगें। अपने स्किल्स को भी सुधारें।

- कुछ अपना शुरू करना चाहते हैं तो इसके लिए होमवर्क पहली जनवरी से ही शुरू कर दें। पूरी तैयारी के बाद अपनी रिस्क लेने की क्षमता का आकलन करें और खुद को कम-से-कम एक साल का वक्त जरूर दें। बेहतर है कि इस साल की पहली जनवरी से अगले साल की पहली जनवरी तक का गोल सेट करें और फिर उसे पाने में जुट जाएं।

ऑफिस में बेहतर परफॉर्म करना

अक्सर लोग अपनी मौजूदा नौकरी से नाखुश होते हैं या फिर कम -से-कम कुछ और बेहतर चाहते हैं। ऑफिस से जुड़े रेज़ॉलूशंस में खास हैं:

- ऑफिस में बड़ी जिम्मेदारी पाना

- सैलरी में बढ़ोतरी कराना

- सीनियर्स और कलीग्स के साथ अच्छे रिश्ते बनाना

क्या करें

सैलरी में बढ़ोतरी/बड़ी जिम्मेदारी पाना

- अगर वक्त पर प्रमोशन या मनचाही कामयाबी न मिले तो हताश न हों। इंग्लिश में कहावत है Success is not final, Failure is not fatal. It is the courage to continue that counts. यानी कामयाबी फाइनल नहीं है और नाकामी भी आपको खत्म करने वाली नहीं है। कोशिश करने की हिम्मत ही असलियत में मायने रखती है। कोशिश बंद न करें, लेकिन कोशिश सही दिशा में करें।

- अपने वर्क-स्टेशन और कंप्यूटर के आसपास मोटिवेशनल वन-लाइनर लगाकर रखें और उन्हें बार-बार पढ़ते रहें।

- अपने इमोशंस पर थोड़ा कंट्रोल करें। बहुत ज्यादा गुस्सा, नाराजगी या चुगली करने से ऑफिस में आपकी इमेज खराब हो जाती है। इनसे बचें।

- ऑफिस में जो करते हैं, उसे जताना भी उतना ही जरूरी है। यह न सोचें कि बॉस को तो पता ही होगा। आजकल मेहनत के साथ-साथ मार्केटिंग भी बहुत जरूरी है।

- अगर ऑफिस में स्थिति बेहतर नहीं हो रही हो तो नौकरी बदलने के लिए कदम उठाएं।

सीनियर्स और कलीग्स के साथ अच्छे रिश्ते बनाना

- अगर बॉस की किसी बात पर ऐतराज है तो आराम से उनसे बात करें। हो सकता है कि कोई गलतफहमी हो, जिसे दूर करने से आपकी स्थिति बेहतर हो सकती है।

- ऑफिस के बाहर भी कलीग्स से मेल-जोल बढ़ाएं। फैमिली के साथ मिलें। इससे रिश्ते बेहतर होंगे और आपस में तालमेल बढ़ेगा।

आपसी रिश्ते सुधारना

सेहत के अलावा लोग बेहतर रिश्ते बनाने का रेज़ॉलूशन भी खूब लेते हैं क्योंकि इंसानी फितरत अकेले नहीं, बल्कि दूसरों के साथ मिल-जुलकर रहने की होती है। करियर और पैसे की दौड़ में अक्सर लोग आपसी रिश्तों को भुला बैठते हैं। रिश्तों से जुड़े कुछ रेज़ॉलूशन हैं:

- परिजन और रिश्तेदारों से मिलना

- दोस्तों के लिए वक्त निकालना

क्या करें

- लोगों से मिलने-जुलने से आपका मन तो खुश होता ही है, आपसी रिश्ते भी मजबूत होते हैं। हां, जो लोग आपको बिल्कुल नापसंद हों या जो आपको पसंद न करते हों, उनसे दूरी बनाए रखना ही बेहतर है। अगर कोई दोस्त या रिश्तेदार निगेटिव बातें ज्यादा करता है तो उससे भी दूरी बनाए रखना ही सही है।

- आजकल सभी के पास वक्त कम है। ऐसे में वट्सऐप, फेसबुक आदि से आप लोगों से कनेक्ट तो रह सकते हैं लेकिन जो मजा आमने-सामने मिलने में है, वह तकनीक के इन माध्यमों के जरिए नहीं। साल में एक-दो बार ही सही, अपने करीबी रिश्तेदारों आदि से जरूर मिलें। कनेक्ट रहने पर वक्त पड़ने पर आप लोग एक-दूसरे की मदद भी कर पाएंगे।

- अपने करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों के बर्थडे, मैरिज एनिवर्सिरी आदि को नोट करके अपने पास रखें। बीच-बीच में इस पर निगाह डालते रहें। जरूरी लगे तो मोबाइल के कैलंडर में सब दर्ज कर लें और रिमांइडर भी लगा सकते हैं। बर्थ-डे, एनिवर्सरी आदि पर दोस्तों-रिश्तेदारों को शुभकामनाएं जरूर दें।

लत को छोड़ना

ज्यादातर लोगों में कोई-न-कोई ऐसी आदत जरूर होती है, उससे वे निजात पाना चाहते हैं। आदतों से जुड़े नए साल के खास रेज़ॉलूशन हैं:

- स्मोकिंग छोड़ना

- कम टीवी देखना

- गुस्सा छोड़ना

- सोशल मीडिया पर कम वक्त बिताना

क्या करें

स्मोकिंग छोड़ना

- स्मोकिंग छोड़ना चाहते हैं तो 'नो स्मोकिंग' जोन में ज्यादा वक्त बिताएं। साथ ही, स्मोकिंग करनेवाले लोगों से भी दूरी बना लें। जहां ज्यादा पीना जरूरी लगता है, वहां के लिए दूसरे ऑप्शन तलाशें मसलन अगर टॉयलेट में पीने की आदत है और लगता है इसके बिना नित्यक्रिया मुमकिन नहीं है तो गर्म पानी, त्रिफला, आंवला जूस, ईसबगोल की भूसी आदि अपनाएं। मोबाइल पर विडियो गेम्स भी खेल सकते हैं। इससे सिगरेट से मन हटा रहेगा।

- स्मोकिंग से कैंसर का खतरा बढ़ता है। इसका डरावना पहलू जानने-समझने के लिए कैंसर की लड़ाई से जुड़ी बायॉग्रफ़ी पढ़ें या विडियो देखें। चुइंग-गम, माउथ फ्रेशनर आदि खाने से भी स्मोकिंग की लत से कुछ देर के लिए राहत मिल सकती है।

कम टीवी देखना/ सोशल मीडिया पर कम वक्त बिताना

- आप रोजाना कितनी देर टीवी देखते हैं या सोशल मीडिया पर कितना वक्त बिताते हैं, यह किसी पेपर पर नोट करें। हफ्ते भर का रिकॉर्ड आप देखेंगे तो महसूस होगा कि आपने बहुत सारे घंटे बेकार कर दिए। आप खुद ही टीवी या सोशल मीडिया का टाइम कम कर देंगे।

- कुछ वक्त तय करें, जब आप न टीवी देखेंगे, न मोबाइल चेक करेंगे। रोजाना एक घंटे से ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर न बिताएं। यहां से टाइम चुराकर आप नेचर के साथ वक्त बिताएं। बाहर जाना मुमकिन नहीं है तो घर में ही गार्डनिंग आदि करें।

- लाइफ को एंजॉय करना भी बेहद जरूरी है। एंजॉय करने के दो तरीके होते हैं: एक, जिनमें आपका पुरुषार्थ लगता है, दूसरे जिनमें दूसरों का पुरुषार्थ लगता है। टीवी देखने में दूसरों का पुरुषार्थ लगता है तो बैडमिंटन खेलने, फुटबॉल खेलने, किताब आदि पढ़ने में आपका पुरुषार्थ लगता है। रिसर्च कहती हैं कि जिन कामों में आपका पुरुषार्थ लगता है, उन्हें ज्यादा टाइम दें।

गुस्सा छोड़ना

- ज्यादा विनम्र बनें और लोगों को नाराज करना बंद करें। गुस्से से रिश्ते तो खराब होते ही हैं, सेहत भी बिगड़ती है। लोगों को माफ करना भी सीखें। इससे दोस्त-परिवार के अलावा साथियों के बीच भी आपकी इमेज बेहतर होगी। अकड़ू लोगों के साथ भी बेहतर डील करना सीखें। आजकल तो ऐसे तमाम टिप्स इंटरनेट पर मौजूद हैं, जिनकी मदद से आप यह सब सीख सकते हैं। गुस्सा आए तो फौरन जाहिर न करें। मन में 100 तक गिने या फिर कुछ देर लंबी-लंबी सांसें लें। मन शांत हो जाएगा।

कुछ और भी रेज़ॉलूशंस

कुछ और भी कॉमन रेज़ॉलूशन हैं:

ज्यादा किताबें पढ़ना: अगर पढ़ने के लिए टाइम नहीं मिलता तो ऑडियो बुक्स सुनें। एमपी 3 फॉर्मेट में कई साइट्स पर तमाम बुक्स मौजूद हैं। यहां तक कि आप बाथरूम में नहाते हुए या कार ड्राइव करते हुए भी सुन सकते हैं। रात में बेड की साइड में किताब रखें औैर उस पर चिट लगाकर रखें कि कितने दिन में पूरी पढ़ डालनी है। इसके अलावा लाइब्रेरी जाएं या कोई फोरम जॉइन करें। ऑफिस में भी किताबों से जुड़ा कोई ग्रुप जॉइन कर सकते हैं।

ज्यादा ट्रैवल करना: दुनिया घूमने के लिए पैसे से ज्यादा चाहत की जरूरत है। हर साल के शुरू में ही तय कर लें कि इस साल कहां जाना है। फिर उसके लिए हर महीने पैसे बचाकर अलग रखें। अकेले जाने की बजाय दोस्तों या फैमिली के साथ जाने पर घूमने का मजा दोगुना हो जाता है। उनके साथ प्रोग्राम बनाएं।

मेडिटेशन करना: रोजाना सुबह और शाम या फिर कम-से-कम सुबह का एक वक्त तय करें। उस दौरान कुछ और न करें, सिर्फ मेडिटेशन करें। 10 मिनट रोजाना से शुरू करें, फिर धीरे-धीरे वक्त बढ़ाएं। अगर सुबह वक्त नहीं मिलता तो रात में सोने से पहले 10 मिनट मेडिटेशन और 2 मिनट प्रार्थना के लिए जरूर दें।

कुछ नया सीखना: कुछ नया सीखें और ऐसा सीखें, जिसमें मजा भी आता हो जैसे कि तैराकी, सुडोकू, कैलिग्राफी, पॉटरी, पेंटिंग, डांस, कुकिंग आदि। क्रिएटिव बनें और अपने विचारों को आर्ट, क्राफ्ट आदि के जरिए व्यक्त करें। कुकिंग ऐसी कला है, जिससे दूसरे लोग भी आपके मुरीद हो जाएंगे। नई भाषा सीखना भी अच्छा है। इससे कम्यूनिकेशन स्किल्स तो बेहतर होंगी ही, नई संभावनाओं के लिए भी रास्ता खुलेगा। आजकल ऑनलाइन भी आप यह काम आसानी से कर सकते हैं।

कॉन्फिडेंस बढ़ाना: अपना कॉन्फिडेंट, मेंटल स्किल्स और कंसंट्रेशन बढ़ाएं। अगर आप किसी बात को पूरे विश्वास के साथ रखेंगे तो लोग आपको ज्यादा गंभीरता के साथ सुनेंगे। मेडिटेशन करें। इससे अपने मूड पर बेहतर कंट्रोल करने के अलावा समस्याओं को सुलझाना भी मुमकिन होगा। साथ ही, अपने डर से लड़ना सीखें। रोज एक ऐसा काम करें, जिसे करने से आप डरते हों।

दूसरों के लिए कुछ करना: सोसायटी ने हमें काफी कुछ दिया है। अगर हम उसे कुछ लौटाते हैं तो बेहद खुशी मिलती है। चैरिटी के लिए वक्त निकालें। इससे अच्छा महसूस तो होगा ही, नए लोगों के साथ मिलने और उनके लिए कुछ करने का मौका भी मिलेगा।

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चैन से सोना है तो जान जाइए...

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मेट्रो की भागमभाग भरी जिंदगी में एक चीज हमसे तेजी से दूर भाग रही है और वह है नींद। कभी काम का प्रेशर, तो कभी दूसरों से आगे निकलने की टेंशन तो कभी सोशल मीडिया की लत... वजह कुछ भी हो लेकिन नींद ने हमसे मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। नींद को कैसे बनाएं अपना, एक्सपर्ट्स से बात करके पूरी जानकारी दे रही हैं पूजा मेहरोत्रा

मोहित रैना अक्सर अपनी गर्लफ्रेंड से देर रात तक वट्सऐप पर चैट करते रहते हैं। सोते-सोते रात में करीब 1 बज जाते हैं। इसके बाद नींद मोहित की आंखों से दूर भागने लगती है और वह घंटों बिस्तर पर करवटें बदलते रहते हैं। मोहिनी व्यास मीडिया में काम करती हैं। देर रात को घर लौटती हैं। अक्सर तब तक हज्बैंड और बेटी सो चुके होते हैं। मोहिनी दिन भर की बात किसी से शेयर नहीं कर पातीं और ऐसे में मन पर एक बोझ-सा रहता है। विचारों के भंवर में फंसी मोहिनी को नींद के लिए अक्सर दवा का सहारा लेना पड़ता है।

ये दो उदाहरण भर हैं। ऐसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। खास बात यह है कि यह समस्या शहरों के युवाओं को ज्यादा जकड़ रही है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में हर पांचवें शख्स की नींद पूरी नहीं हो रही।

बढ़ रही है बीमारी

तनाव, काम का प्रेशर और मस्ती में डूबे युवा अपनी नींद वीकएंड पर पूरी करने की बात करते हैं। लेकिन वीकएंड पर पार्टी और मिलने-जुलने में नींद एक हफ्ते के लिए टल जाती है। धीरे-धीरे नींद पूरी होने में हफ्ता और कभी-कभी महीना भी लग जाता है। रात में ठीक से नींद न आने की शिकायत अक्सर घर के बड़े-बुजुर्ग किया करते हैं लेकिन अब महानगरों में यह शिकायत युवाओं से होती हुई बच्चों तक पहुंच गई है। आज लगभग 90 फीसदी बच्चों के हाथ में मोबाइल है। फोन में इंटरनेट है। सोने के कमरे में ही टीवी है। बच्चे देर रात तक सोशल मीडिया पर जूझते हैं और देर से सोते हैं। सुबह 6 बजे स्कूल के लिए अधूरी नींद में ही तैयार होते हैं और स्कूल चले जाते हैं। यह प्रक्रिया लगातार चलती रही है। आंकड़े बताते हैं कि महानगरों और शहरों में रहने वाले करीब 65-70 फीसदी लोग अपनी पूरी नींद नहीं ले पा रहे।

महानगरों और शहरों में लोग औसतन 1-2 घंटे कम सो रहे हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि बदलते लाइफस्टाइल का सीधा असर बच्चों, युवाओं और खासकर महिलाओं पर पड़ रहा है। शहरी युवा, बच्चों और कामकाजी महिलाओं की नींद पूरी नहीं हो पा रही। फरवरी 2016 में यूएस सेंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक-तिहाई अमेरिकी अडल्ट नियमित रूप से नींद की समस्या से पीड़ित हैं।

क्यों जरूरी है नींद

नींद हमारे शरीर और दिमाग को सेहतमंद और चुस्त रखने का जरिया है। जिस तरह मशीन लंबे समय तक चलते-चलते अपना संतुलन खो देती है, ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी एक समय के बाद आराम चाहता है। दिनभर में हुई थकान को दूर कर तन-मन को तरोताजा करती है नींद। इससे मन और दिमाग शांत रहता है। अगर शरीर को सही से आराम न मिले तो शारीरिक और मानसिक सिस्टम पर असर पड़ने लगता है। इम्यून और नर्वस सिस्टम को नॉर्मल रखने, बीमारियों से लड़ने और सोचने-समझने की क्षमता को बनाए रखने के लिए नींद जरूरी है। आंकड़े बताते हैं कि देश में होने वाले कुल सड़क हादसों से 33 फीसदी सिर्फ नींद की कमी के कारण होते हैं।

नींद न आने से होने वाली समस्याएं

- सिर और शरीर में दर्द होना

- मन चिड़चिड़ा रहना

- कंसंट्रेशन कम होना

- बात-बात पर गुस्सा आना

- काम में मन नहीं लगना

- काम की क्षमता कम होना

- थकान और उनिंदा रहना

- बच्चों का आईक्यू लेवल कम होना

- मोटापा बढ़ना

- कब्ज रहना

- ब्लड प्रेशर, डायबीटीज, हार्ट प्रॉब्लम, ब्रेन हैमरेज जैसी बीमारियां की भी आशंका बढ़ जाती है।

जाने नींद का साइकल

बिस्तर पर लेटने के 15 से 30 मिनट के अंदर नींद आ जानी चाहिए। नींद आने में इससे ज्यादा वक्त लगता है तो परेशानी की बात है। नींद का एक साइकल होता है। एक साइकल में रैम (आरईएम यानी रैपिड आई मूवमेंट) और नॉन-रैम (एनआरईएम यानी नॉन-रैपिड आई मूवमेंट) दोनों होते हैं। रैम हल्की नींद होती है, जिसमें हमारी आंख की पुतलियां चलती रहती हैं और नॉन-रैम गहरी नींद होती है, जिसमें पुतलियों का मूवमेंट बंद हो जाता है और शरीर पूरी तरह ढीला पड़ जाता है। नींद का करीब 20 फीसदी हिस्सा रैम और बाकी 80 फीसदी हिस्सा नॉन-रैम होता है। बच्चों में करीब 50 फीसदी तक रैम स्लीप होती है। दरअसल रैम और नॉन-रैम, दोनों अहम हैं। रैम नींद सीखने और अनुभव करने के लिए अच्छी होती है। दिन में जो भी बीतता है, उसे रैम के दौरान दिमाग रात में कोऑर्डिनेट करता है। नॉन-रैम नींद शरीर को रिपेयर और रिलैक्स करने का काम करती है। जो बच्चे ठीक से सोते नहीं है, उनकी मेमरी कमजोर हो जाती है और वे सीख भी कम पाते हैं। जिन लोगों की नींद कच्ची (हल्की) होती है, उनकी आंख जरा-सी आहट से खुल जाती है। ऐसे लोगों की नींद घंटे-दो घंटे में टूटती रहती है। तीन-चार घंटे से पहले आंख नहीं खुले, तभी डीप स्लीप होगी।

कितनी नींद जरूरी?

हर किसी की नींद की जरूरत अलग होती है। कोई कम सोकर भी फ्रेश रहता है तो किसी को ज्यादा सोने की जरूरत पड़ती है। कितनी देर सोएं, इससे ज्यादा जरूरी है कि जितना भी सोएं, अच्छी और गहरी नींद सोएं। सोते हुए दो बार से ज्यादा नींद खुले तो उससे नींद डिस्टर्ब होती है। 10 घंटे की खराब नींद से 5-6 घंटे की अच्छी और गहरी नींद बेहतर है।

नवजातः 14-17 घंटे

6 महीने से 2 साल तक: 13-15 घंटे

2 से 4 साल तक: 12-14 घंटे

4 से 7 साल तक: 11-14 घंटे

7 से 15 साल तक: 11-13 घंटे

15 से 18 साल तक : 9-10 घंटे

18 से 35 साल तक : 8-10 घंटे

35 से 50 साल तक: 8-9 घंटे

50 साल से ज्यादा: 7-8 घंटे

नोट: किसी अडल्ट के लिए बहुत ज्यादा सोना (10 घंटे से ज्यादा) भी सेहत के लिए सही नहीं है। हालांकि कभी-कभार ऐसा हो तो चलता है।

कौन-सा वक्त बेहतर

सोने के लिए सबसे अच्छा वक्त है, रात 10 बजे से सुबह 6 बजे का। इसमें एकाध घंटा आगे-पीछे भी ठीक है। लेकिन और देर से सोते हैं तो शरीर को फ्रेश होने के लिए और लंबी नींद की जरूरत होती है। कई लोग रात भर काम करते हैं और दिन में सोते हैं, जोकि सेहत के लिहाज से ठीक नहीं है। दिन में जागना और रात में सोना ही सही है। दरअसल, हमारा शरीर सूरज के मुताबिक काम करता है, इसलिए अगर कोई रात में जागता है और दिन में सोता है तो उसकी बॉडी क्लॉक बदल जाती है। इसे ही रुटीन बना लिया जाए तो ज्यादा दिक्कत नहीं होगी लेकिन कभी दिन में सोते हैं और कभी रात में तो बॉडी एडजस्ट नहीं कर पाती। वैसे, दिन में 30 मिनट से 1 घंटे की झपकी (पावर नैप) ले सकते हैं लेकिन इसे आदत न बनाएं। दिन में इससे ज्यादा सोएंगे तो रात में अच्छी नींद नहीं आएगी।

आखिर क्यों नहीं आती नींद

नींद न आने की समस्या किसी भी उम्र में हो सकता है। हालांकि इससे महिलाएं और बुजुर्ग ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसकी कई वजहें हो सकती हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है तनाव। इसके अलावा डिप्रेशन, एंजाइटी, ज्यादा शराब पीना या दूसरे नशे करने के अलावा कुछ पार्किंसंस, हाइपरटेंशन और डिप्रेशन की दवाएं भी नींद को डिस्टर्ब करती हैं। भारतीयों को नींद संबंधी दिक्कतें इसलिए भी होती हैं, क्योंकि हमारा रेस्पिरेटरी ट्रैक दूसरे देशों के लोगों के मुकाबले संकरा होता है। इसके अलावा रेस्टलेस लेग सिंड्रोम भी नींद न आने की वजह है। इसमें मरीज की टांगें लगातार हिलती रहती है जिससे नींद पर असर पड़ता है। स्नोरिंग यानी खर्राटे लेना और स्लीप एप्निया भी नींद में गड़बड़ी की वजह बनते हैं।

स्नोरिंग और स्लीप एप्निया का फर्क

खर्राटे मारना बेहद आम समस्या है। इसमें काग (युविला) पीछे गिर जाता है और सांस की नली को ब्लॉक कर लेता है। इससे सांस लेने में दिक्कत आती है और मुंह से सांस लेने पर आवाज आती है। लेकिन अगर स्नोरिंग के साथ मरीज को स्लीप एप्निया भी है तो खतरा ज्यादा होता है। एप्निया में सोते वक्त सांस कुछ सेकंड के लिए रुक जाती है। ऐसे में रुकावट के बाद तीखी आवाज के साथ सांस आती है, जो उसके पास सो रहे व्यक्ति को डरा देती है। इससे कई बार सोते हुए मरीज की मौत भी हो जाती है। दरअसल, शरीर में ऑक्सिजन कम होते ही दिल को ऑक्सिजन के लिए ज्यादा प्रेशर लगाना पड़ता है। रात में सोते वक्त जब समस्या बढ़ जाती है, तो हार्ट अटैक हो जाता है। स्नोरिंग और एप्निया की बड़ी वजह मोटापा है। डॉक्टरों का मानना है कि पुरुषों की गर्दन की माप 17 इंच और महिलाओं की 16 इंच से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इससे ज्यादा होने पर एप्निया का खतरा बढ़ जाता है। एप्निया की आशंका उन लोगों में दोगुनी हो जाती है, जिन्हें रात में अक्सर नाक बंद होने की समस्या रहती है। उम्र बढ़ने के साथ इसका खतरा बढ़ जाता है। पुरुषों में एप्निया का खतरा महिलाओं के मुकाबले तीन गुना ज्यादा होता है।

क्या है इलाज: स्नोरिंग रोकने के लिए एंटि-स्नोरिंग डिवाइस (CPAP या MAD) का इस्तेमाल किया जाता है। इनका खर्च 30 से 45 हजार तक आता है। हालांकि बिना डॉक्टर की सलाह के किसी डिवाइस का इस्तेमाल न करें। इन डिवाइस से एप्निया और खर्राटों को खत्म नहीं किया जा सकता, सिर्फ रोका जा सकता है ताकि इनसे होने वाली बीमारियों से बचा जा सके। स्नोरिंग या एप्निया को रोकने के लिए सर्जरी ही परमानेंट हल है।

क्या है नींद न आने का इलाज

नींद न आने की सही वजह जानने के लिए डॉक्टर से मिलें। इसके लिए जनरल फिजिशन के अलावा बड़े अस्पतालों में स्लीप एक्सपर्ट भी होते हैं। डॉक्टर मरीज को अस्पताल की स्लीप लैब में सुलाते हैं। इसमें सोते वक्त शख्स को मशीनों की देखरेख में रखा जाता है। आजकल यह टेस्ट घर पर भी होता है। सोने के दौरान मरीज कितनी बार उठता है, दिमाग और आंख की गतिविधियां, ब्लड में ऑक्सिजन और कार्बन-डाई-ऑक्साइड का लेवल, हार्ट रेट आदि पर गौर किया जाता है। इस स्टडी के बाद ही इलाज शुरु किया जाता है। इस टेस्ट का खर्च 6-7 हजार रुपये तक होता है। वैसे, फिटनेस बैंड से भी नींद का आइडिया मिल जाता है।

आयुर्वेद में नींद का इलाज

आयुर्वेद में रेग्युलर रुटीन, रोजाना सुबह एक्सरसाइज, पौष्टिक खाने की सलाह दी जाती है। इसके साथ आयर्वेद में यह भी कहा जाता है कि लेफ्ट करवट सोने से पाचन शक्ति मजबूत होती है। सोने से पहले गरम दूध पीने से शरीर का तापमान ठीक रहता है और नींद अच्छी आती है। सूरज छिपने से पहले या सोने से कम-से-कम 2-3 घंटे पहले खाना खा लेना चाहिए ताकि खाना आसानी से पच जाए और नींद अच्छी आए। अगर किसी को नींद न आने की समस्या है तो तनाव कम करने के लिए मसाज थेरेपी दी जाती है। मसाज के तेल में कई तरह की जड़ी बूटियां मिलाई जाती हैं और गरम तेल से मसाज की जाती है जिससे शरीर का तापमान और तनाव कम हो। आप खुद भी किसी तेल को हल्का गुनगुना कर मसाज कर सकते हैं। इससे सोने में मदद मिलती है। इन सब इलाज से राहत न मिले तो बीमारी के अनुसार दवाएं भी दी जाती हैं जो तनाव को कम करने में मदद करती हैं, जैसे कि स्वप्न सुधा और अश्वगंधा का चूर्ण आदि। डॉक्टर की सलाह के बिना कोई दवा न लें।

योग भी है मददगार

नियमित योग करने से अच्छी नींद में मदद मिलती है खासकर वज्रासन और शवासन के अलावा अनुलोम-विलोम प्राणायाम और ओम का उच्चारण करना भी नींद में मददगार है।

वज्रासन: दोनों घुटने को मोड़ कर पीठ को सीधा रख कर लंबी-लंबी सांस लें। खाना खाने के बाद इसे करने से पाचन अच्छा होता है। ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल में रहता है। 5-10 मिनट करें। घुटने में दर्द वाले इस आसन को न करें।

ओम का उच्चारण: पद्मासन या सुखासन में ध्यान मुद्रा में बैठ जाएं। माथे के बीचोंबीच जहां महिलाएं बिंदी लगाती हैं, वहां ध्यान केंद्रित करें और फिर ओम का लंबा उच्चारण करें। 5-10 मिनट करें। इससे तनाव कम होता है।

अनुलोम-विलोम: सुखासन में बैठकर, पीठ सीधी रखकर गहरी लंबी सांस लेते हुए राई हैंड के अंगूठे से नाक की राइट साइड को दबाते हुए सांस लें और लेफ्ट साइड से छोड़ें। फिर लेफ्ट ओर से करें। 5 मिनट कर लें।

शवासन: इसे बिस्तर पर ही कर सकते हैं। लेट कर पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। आंख बंद कर उन अंगों पर ध्यान लगाएं जहां तनाव या दर्द है और सोचें कि दर्द ठीक हो रहा है। तनाव जा रहा है। 5-10 मिनट करें। इससे नींद अच्छी आती है।

अच्छी नींद के लिए क्या करें

- फिक्स्ड रुटीन के अनुसार सोएं। इससे तय वक्त पर नींद आएगी और टूटेगी।

- बेडरूम साफ-सुथरा हो और उसमें घुप अंधेरा हो। जरूरत लगे तो नाइट लैंप की हल्की रोशनी रख सकते हैं।

- किसी भी शख्स के लिए सूरज की रोशनी और अंधेरा, दोनों देखना जरूरी है। स्लीप हॉर्मोन मेलाटॉनिन तभी निकलता है, जब सूरज की रोशनी में भी जाएं। यह स्लीप साइकल को मेंटेन करता है।

- रोजाना सुबह एक्सरसाइज करें। इससे शरीर थकता है और रात में अच्छी नींद आती है।

- रात में कुछ दिलचस्प पढ़ने से बचना चाहिए। बोरिंग-सी किताब पढ़ें। इससे नींद जल्दी आएगी।

- सोने से पहले गुनगुना दूध पिएं। इससे भी अच्छी नींद आती है।

क्या न करें

- बेडरूम में बाहर की आवाजें और तेज रोशनी न आएं।

- तेज म्यूजिक सुनने और फास्ट डांस करने से बचें।

- देर रात तक कंप्यूटर गेम्स न खेलें, न ही टीवी देखें।

- सोने से पहले तेज एक्सरसाइज न करें। वर्कआउट के फौरन बाद खून में स्ट्रेस हॉर्मोन बढ़ जाता है।

- सोने से करीब दो घंटा पहले खाना खा लें।

- सोने से पहले चाय, कॉफी और मसालेदार खाना न खाएं। इनसे नींद की क्वॉलिटी गिर सकती है।

- सोने से पहले खाने से बचें क्योंकि इससे शुगर लेवल बढ़ जाता है। भूख लगे तो फल खाएं या गुनगुना दूध पिएं।

- अगर रात में बार-बार टॉयलेट जाना पड़ता है तो सोने से डेढ़ घंटे पहले कुछ न पिएं।

- ज्यादा शराब पीनेवालों को भी बाद में नींद आने में परेशानी हो सकती है। निकोटिन का सेवन न करें।

- जरूरत नहीं है तो दिन में न सोएं। कम-से-कम लंबी नींद न लें।

जब नींद न आए...

- जबरन बिस्तर पर लेटकर जबरन सोने की कोशिश न करें। उठकर कुछ काम करें। पढ़ें, टीवी देखें या हल्की एक्सरसाइज भी कर सकते हैं। मेडिटेशन करें। इससे मन रिलैक्स होता है।

कुछ अहम सवाल और जवाब

1. कैसा हो गद्दा और तकिया?

सोने के लिए सख्त बेड होना चाहिए। जमीन पर सोने से बचना चाहिए। मेट्रेस का खास ध्यान रखें। कॉयर (नारियल का भूसा) का मेट्रेस बेहतर होता है। स्पॉन्ज से बचना चाहिए। तकिए की मोटाई 1-2 इंच से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसे ऐसे लगाएं कि गर्दन को सपोर्ट मिले।

2. खाने के बाद नींद क्यों आती है?

खाना खाने के बाद ब्लड सर्कुलेशन पेट की तरफ ज्यादा हो जाता है और दिमाग की तरफ कम। इससे भी सुस्ती महसूस होती है। ब्रेन का वजन शरीर का सिर्फ 2 फीसदी होता है, लेकिन उसे 20 फीसदी ब्लड सप्लाई की जरूरत महसूस होती है। दिमाग को ब्लड सप्लाई कम होने पर नींद आने लगती है।

3. पढ़ते वक्त नींद क्यों आती है?

कोई भी ऐसा काम जिसमें दिमाग बहुत रिलैक्स या बोरिंग महसूस करे, इसमें नींद आती है। शरीर में सिरोटोनिन (खुशी और जोश महसूस कराने वाला हॉर्मोन) का लेवल ज्यादा हो तो अच्छा महसूस होता है और आलस महसूस नहीं होता। खेलते हुए शरीर में सिरोटोनिन हॉर्मोन निकलता है, जिससे तरोताजा महसूस होता है।

4. क्लासिकल म्यूजिक सुनना क्या नींद लाने में मदद करता है?

क्लासिकल म्यूजिक से मन रिलैक्स होता है और दिमाग से ऐसी वेव्स निकलती हैं जो सोने में मददगार होती हैं।

5. क्या पॉश्चर से भी नींद पर फर्क पड़ता है?

डॉक्टरों का मानना है किसी भी आरामदायक पॉश्चर में सोना बेहतर है। हालांकि स्टडी कहती हैं कि अगर आप लेफ्ट करवट सोते हैं तो नींद बेहतर आती है।

ऐप

Sleep Better

इस ऐप को मोबाइल में डाउनलोड करें और रात में सोते वक्त अपने तकिया के नीचे रख दें। अगर आप इसमें अलार्म सेट कर देंगे तो ऐप आपको उठा भी देगा लेकिन तभी, जब आपका शरीर उसके लिए बेस्ट महसूस करे और नींद करीब-करीब खत्म हो चुकी हो। यह ऐप यह जानकारी भी देता है कि किस तरह एक्सरसाइज, कैफीन, अल्कोहल या तनाव आपकी नींद पर असर डालता है। यहां तक कि यह आपके सपनों की व्याख्या भी करता है।

प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड, ios

कीमत: फ्री

Relax Melodies

ज्यादातर लोगों को एक बार नींद आ जाए तो सोने में दिक्कत नहीं होती लेकिन नींद आना ही असली समस्या होती है। यह साइट कई तरह के साउंड मुहैया कराती है, जिन्हें सुनकर आप गहरी नींद में जा सकते हैं। आप अपनी पसंद का कोई एक साउंड चुन सकते हैं या साउंड का कॉम्बो भी तैयार कर सकते हैं। फिर भी सही से नींद न आए तो आप मेडिटेशन ट्रैक भी लगा सकते हैं।

प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड, ios

कीमत: फ्री

वेबसाइट

sleepio.com: इस साइट के जरिए आप जान सकते हैं कि अपनी नींद सही है या नहीं। आप यहां नींद से जुड़ी तई लेख भी पढ़ सकते हैं। यही नहीं, यहां से आपको अपनी नींद की समस्या का हल पाने के लिए प्रफेशनल की मदद भी मिल सकती है।

sleepeducation.org: नींद से जुड़ी कोई भी जानकारी चाहिए तो यह वेबसाइट आपकी मदद करेगी। यहां से आप एक्सपर्टस की राय भी ले सकते हैं, वह भी पूरी तरह फ्री।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

सोशल मीडिया पर उल्लू बनने से ऐसे बचें

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सोशल मीडिया का क्रेज ऐसा है कि बच्चे-बड़े कोई इससे बचा नहीं है। यह कई मायनों में मददगार भी है लेकिन सावधानी न बरती जाए तो सोशल मीडिया कई खतरों का सबब भी बन सकता है। जानते हैं सोशल मीडिया पर शेयर होनेवाला नकली मेसेज और दूसरे खतरों से बचाव के बारे में

सोशल मीडिया किसी मसले पर क्रांति ला सकता है तो मनोरंजन भी कर सकता है। हर जानकारी मुहैया कराता है तो भूले-बिसरे दोस्तों से भी मिलाता है, लेकिन गुस्सा, घृणा, नाराजगी को भी बढ़ाता है। यहां लोग ठगे भी जाते हैं और रत्ती भर गलती से जान भी जा सकती है। वैसे तो तकरीबन हर सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर अफवाह फैलाकर या बेवकूफ बनाकर पैसे कमाता हुआ कोई-न-कोई मिल जाता है, लेकिन फेसबुक, वट्सऐप और ट्विटर पर यह खतरा ज्यादा होता है। जानते हैं, सोशल मीडिया पर कैसे-कैसे जाल में फंसते हैं लोग और कैसे आप बच सकते हैं:-

इमोशनल ट्रैप

बात 2014 की है। राधा (काल्पनिक नाम) ने सिर्फ एक 'लाइक' की वजह से आत्महत्या कर ली। स्कूल स्टूडेंट राधा ने एक पोस्ट लाइक किया। पोस्ट में शनि भगवान की फोटो थी और लिखा था 'आज शनिवार है तो शनि भगवान की फोटो को लाइक करना तो बनता है'। राधा ने लाइक कर दिया। दो ही दिन बाद क्लास के लड़कों ने उसका रेट पूछना चालू कर दिया। फिर उसकी एक दोस्त ने बताया कि लड़कों ने किसी अश्लील साइट पर उसकी फोटो देखी है। बस तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली। दरअसल, जैसे ही राधा ने पोस्ट लाइक किया, पोस्ट करने वाले को फेसबुक नोटिफिकेशन मिला। राधा के नाम पर क्लिक करते ही उसका प्रोफाइल खुल गया। फोटो सेक्शन में जाकर उसने राधा के कुछ अच्छी फोटो सेव कर अश्लील साइट पर अपलोड कर दी इस टाइटल के साथ: आपको अगर मुझसे गरमा गरम बातें करनी हैं तो इस नंबर पर फोन करें। जाहिर है, उसकी क्लास के लड़कों ने जब उसकी फोटो अश्लील साइट पर देखी तो उसे छेड़ना शुरू कर दिया। परेशान होकर राधा ने खुदकुशी कर ली।

यहां तो फिर भी असली फोटो इस्तेमाल हुई, फ्रॉड लोग तो किसी अश्लील फोटो पर किसी भी लड़की का चेहरा मॉर्फ कर लगा देते हैं। ऐसे में याद रखिए अपनी प्राइवेसी बदल कर 'पब्लिक' के बजाय 'फ्रेंड्स' कर लीजिए।

दरअसल, हम भारतीय काफी इमोशनल होते हैं। अक्सर चीजों को दिल पर ले लेते हैं, फिर चाहे धर्म से जुड़ी बात हो, सैनिकों की बात हो या फिर कोई और मसला। जब आप फेसबुक पर एक फोटो देखते हैं जिसमें एक प्यारा-सा बच्चा हो और लिखा हो कि उसे ब्रेन ट्यूमर है, आपके पोस्ट को लाइक या शेयर करने से उस बच्चे के इलाज के लिए फेसबुक या वॉट्सऐप पैसे देगा या फोटो को आपके 'लाइक' करने से या 'आमीन' लिखने से बच्चा बच सकता है तो अक्सर आप लाइक पर क्लिक कर देते हैं या आमीन लिख देते हैं। क्यों? क्योंकि आपको बच्चे पर दया आती है और लगता है कि शायद आपके लाइक पर क्लिक करने का फायदा उस बच्चे को मिल जाएगा। आपको क्या लगता है कि भगवान भी इस पोस्ट पर आंखें गड़ाए बैठे हैं और 'लाइक' गिन रहे हैं? अगर लाख हुए तो बच्चे को जीने देंगे, लेकिन 99999 हुए तो मार देंगे! भगवान तो नहीं, पर इन लाइक्स पर कोई और जरूर नजरें गड़ाए बैठा है। ऐसी फोटो आपकी भावनाओं का फायदा उठाने के लिए पोस्ट किए जाते हैं।

आप तो एक लाइक करके भूल जाएंगे, लेकिन पोस्ट करने वाला अपने मकसद में लगा होता है कि लाखों लाइक उसकी बात का वजन बढ़ाएंगे। वैसे तो दुनिया के किसी दूसरे कोने में बैठा इंसान आपके बारे में, आपका नाम आदि नहीं जानता, पर जब आप ऐसे पोस्ट को लाइक करते हैं तो उसे आपका प्रोफाइल मिल जाता है जिससे वे आपकी फोटो उठा लेते हैं। मतलब यह तो 'आ बैल मुझे मार' वाली बात हो गई! महिलाओं के लिए यह खतरा ज्यादा होता है।

क्या हो सकता है आपकी फोटो का

1. लड़की/महिलाओं की फोटो किसी अश्लील वेबसाइट पर पोस्ट कर दी जाती है और ऐसे मेसेज लिखे होते हैं: अगर मुझसे गरमागरम बातें करनी हों तो इस नंबर पर कॉल करें। उसके साथ नंबर विदेश का होगा जिस पर बात करने के लिए प्रति मिनट 100 रुपये तक लगते हैं।

2. आपकी फोटो किसी वेबसाइट की मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल की जा सकती है। ऐसी वेबसाइट्स पर कॉन्टेंट तो कुछ खास नहीं होता, लेकिन विज्ञापनों की भरमार होती है जिससे वे कमाई करते हैं।

3. यह भी संभव है कि उस पोस्ट पर जो लिखा है उसे बदल कर कुछ और लिख दें, मसलन आपकी पसंद के उलट कोई धार्मिक या राजनीतिक बात।

कैसे बचें

- अनजान फोटो (भगवान, सैनिक, बीमार आदि) पर लाइक/शेयर/कमेंट बिल्कुल न करें।

- ऐसे पोस्ट को इग्नोर करें और अपने जानकारों को सही जानकारी दें।

- हमेशा अपनी फोटो/जानकारी वगैरह को पोस्ट करते वक्त 'फ्रेंड्स' सिलेक्ट करें, 'पब्लिक' कतई नहीं।

- पहले की भी पोस्ट्स पर जाकर उनकी शेयरिंग में 'फ्रेंड्स' कर दें।

- प्राइवेट सेटिंग्स रखें। खासकर लड़कियां/महिलाएं अपने पोस्ट्स/फोटो आदि सिर्फ दोस्तों तक ही सीमित रखें।

- फैमिली और पर्सनल फोटोज़ को सिर्फ कस्टमाइज्ड ग्रुप में ही शेयर करें। इसके लिए Settings में जाकर Who can see my stuff में जाएं। यहां More Options में जाकर आप फैमिली, क्लोज्ड फ्रेंड्स या किसी और ग्रुप को चुन सकते हैं, जैसे कि कॉलेज के फोटो सिर्फ कॉलेज के दोस्तों के साथ, घर के, किसी शादी-त्योहार के सिर्फ रिश्तेदारों के साथ शेयर करें। अब सवाल उठता है कि भई, हमें तो फेसबुक पर बरसों हो गए, हजारों पोस्ट हो गए, अब सबकी प्राइवेसी कैसे बदली जाए? इसके लिए फेसबुक ने एक रामबाण इलाज दिया है। आप उसे आजमा लीजिए, खास कर वे लड़कियां जो दिन में 4 सेल्फी डालती हैं।

ऐसे करें सेटिंग्स चेंज: Account Settings - Privacy - Limit the audience for posts (तीसरे नंबर पर) - Limit Old Posts - Confirm

इसके बाद आपकी पुरानी सभी पोस्ट भी प्राइवेट हो जाएंगी।

मनी ट्रैप

आपको वक्त-बेवक्त मेसेज आता है 'सस्ती दर पर लोन चाहिए'... 'क्या आप घर खरीदना चाहते हैं?'... 'क्या आपको इन्वेस्ट करना है?' आदि आदि। 'ट्राई करने में क्या जाता है, कौन-सा अपना पैसा जा रहा है' यह सोचकर लोग ऐसे मेसेज आगे बढ़ा देते हैं। आजकल हर किसी को वट्सऐप पर एक जैसे मेसेज कोई-न-कोई रिश्तेदार या दोस्त भेजता रहता है। सस्ता पाने के लालच में हम ऐसे मेसेज को बढ़ावा देते हैं। ऐसे ही कुछ मेसेज हैं:

- Amazon पर सिर्फ 1 रुपये में पेन ड्राइव

- Flipkart पर सिर्फ 1 रुपये में मोबाइल

- LED बल्ब फ्री में

- या कुछ भी जिसकी ज्यादा बातें हो रही हैं या टीवी/पेपर पर विज्ञापन आ रहे हैं।

दरअसल, ठग सिर्फ 150-200 रुपये में पॉप्युलर साइट के नाम से एक वेबसाइट का नाम (कुछ बदलाव के साथ) बुक करा लेते हैं। यह पेज बिलकुल Flipkart, Amazon या दूसरी पॉप्युलर वेबसाइट जैसा दिखता है। इस पर आपको जो बताया गया होता है, उसका फोटो होता है। फिर आपकी डिटेल्स मांगी जाती हैं। आप डिटेल्स शेयर करते हैं तो वह सारी जानकारी उनके डेटाबेस में जाती है। बस हो गया उनका काम! अब मुफ्त या बेहद सस्ता लेने के चक्कर में लग गया न आपको चूना और हो गई ठगों की चांदी। दरअसल, हर वॉट्सऐप ग्रुप में कम-से-कम 25 लोग होते हैं। आपने अगर 8 ग्रुप में मेसेज शेयर किया तो 200 लोगों के मन में लालच पैदा हुआ। 25 लोगों में से कम-से-कम 5 तो करेंगे, फिर वे और उनके 8 ग्रुप में तो सोचिए सिर्फ एक दिन में यह मेसेज लाखों लोगों तक पहुंच जाएगा। किसी बड़ी कंपनी को टेली-मार्केटिंग करनी होती है तो वह किसी बड़ी मोबाइल कंपनी से लाखों रुपये देकर हमारे नंबरों का डेटाबेस खरीदते हैं, पर यहां तो सिर्फ 150 रु लगाकर ये लोग बहुत कम में (करीब 2-4 लाख) में छोटी कंपनियों को बेच देते हैं। तो यह तो लॉटरी हो गई! 150-200 रुपये का टिकट और लाखों की कमाई, वह भी सिर्फ चंद दिनों में और बिना कोई मेहनत। फंस जाते हैं आप। इसके बाद कुछ-न-कुछ बेचने के लिए भर-भर के SMS और फोन कॉल आने लगते हैं। इसका असली फायदा किसी और को होता है और आप ठगे जाते हैं।

कैसे बचें

- वेबसाइट का नाम और उसकी स्पेलिंग ध्यान से देखें।

- यह भी गौर करें कि क्या उस मेसेज को 5-10 वट्सऐप ग्रुप्स में शेयर करने को कहा गया है?

दरअसल, हम सोचते हैं कि ऐमजॉन या फ्लिपकार्ट जैसी बड़ी कंपनी की तरफ से आया है तो घपला नहीं होगा। वेबसाइट के नाम और पेज पर कंपनी का नाम भी दिख रहा होता है। लेकिन नकली वेबसाइट का नाम लंबा और चिन्हों से बना होता है, कोई भी सिंपल और ऑरिजिनल (www.Amazon.com, www.flipkart.com आदि) नहीं होता। ऐसे मेसेज में आपका नाम, मोबाइल नंबर और अड्रेस की मांग की जाती है।

- ऐसे किसी भी मेसेज को आगे शेयर न करें, जहां जरूरत से ज्यादा सस्ता सामान मिलने का दावा किया जा रहा है।

- अगर किसी अनजान नंबर से ऐसा मेसेज आया हो तो उस नंबर को ब्लॉक कर दें।

- अगर आपका कोई जानकार ऐसे मेसेज शेयर करे तो उसे भी इससे परहेज करने को कहें।

- ऐसे किसी भी मेसेज में दिए यूआरएल पर क्लिक करने से बचें और मेसेज को दूसरों के साथ शेयर भी न करें।

- दूसरों को भी ऐसा करने से रोकें और बताएं कि यह फेक मेसेज है।

पॉलिटिकल ट्रैप

राजनीतिक मकसद के लिए सबसे ज्यादा झूठ बोला जाता है और सोशल मीडिया का भी इसमें जमकर इस्तेमाल हो रहा है। सोशल मीडिया के जरिए राजनीतिक झूठ फैलाने के कई फायदे और मकसद हैं जैसे कि पार्टी या नेता के लिए लोगों के दिल में इज्जत बढ़ाना, किसी दूसरे के खिलाफ नफरत बढ़ाना, किसी पार्टी के अजेंडे को आगे बढ़ाना आदि।

- कोई पॉलिसी या जनता के लिए कोई काम कभी किसी पूर्व मंत्री ने किया हो, उसे भी नया बता कर फैलाया जाता है। या तो उस पॉलिसी के बारे में लोगों को पता ही नहीं होता या फिर लोग उसके बारे में भूल जाते हैं और उस खबर को सही समझने लगते हैं।

- फोन नंबर 104 से आप जरूरत होने पर अपने घर या कहीं भी ब्लड बैंक से खून मंगा सकते हैं। यह नंबर चालू तो बरसों पहले हुआ था, लेकिन अब इसे प्रधानमंत्री मोदी की सौगात के रूप में फैलाया जा रहा है।

- फोन नंबर 1098 को यह कहकर पेश किया जा रहा है कि इस पर फोन करने पर लोग आपका बचा हुआ खाना उठाने आएंगे ताकि जरूरतमंदों के बीच बांटा जा सके। हकीकत यह है कि यह नंबर बरसों पहले एक एनजीओ ने चालू किया था। यह एनजीओ बच्चों की देखरेख करता है। यह नंबर इसलिए शेयर किया गया था कि कहीं कोई गुम हुआ बच्चा मिले तो एनजीओ को फोन करें। लेकिन अब बचे खाने के नाम पर इस नंबर पर इतने फोन आने लगे हैं कि एनजीओ को अपना असली काम करने में दिक्कतें आने लगी हैं।

- फोटो में कंप्यूटर से एडिटिंग करके चेहरा या कुछ और बदल देते हैं, जिससे उसका मतलब बदल जाता है। एक फोटो में प्रधानमंत्री मोदी को सोनिया गांधी और एक शेख के पैर छूते दिखाया गया था जबकि असल फोटो में वह अडवाणी जी के पैर छू रहे थे।

- एक और फोटो में महात्मा गांधी को बाबा साहेब आंबेडकर के पैर छूते दिखाया था जबकि वे दो अलग-अलग फोटो थे। एक आंबेडकर का फैमिली फोटो था, दूसरे में गांधी जी दांडी मार्च में जमीन पर से नमक उठा रहे थे। दोनों को मिक्स करके नया फोटो तैयार किया गया था।

- ट्विटर पर बहुत-से सिलेब्रिटी/नेता हैं जो अपनी मर्जी से कुछ भी लिखते हैं। लोग चाव से उन्हें पढ़ते हैं और जवाब देते हैं। अब यहां दो बातें होती हैं:

1. किसी सिलेब्रिटी या नेता का ट्वीट लेकर कंप्यूटर से उसे बदल कर झूठ फैलाने वाले लोग अपनी मर्जी से कुछ भी लिख देते हैं। यह देखने में असली लगता है, पर होता नहीं है।

2. लोग किसी एक शख्सियत के नाम से छोटे-मोटे बदलाव (कोई निशान या स्पेलिंग बदलकर) के साथ दूसरे हैंडल बना लेते हैं। फिर इनके स्क्रीनशॉट लेकर वट्सऐप या फेसबुक पर हजारों की संख्या में कुछ भी शेयर करते हैं जिससे लोगों पर प्रभाव पड़ता है।

- झूठ के बल पर दंगे भड़काने की कोशिश भी की जाती है। कुछ महीने पहले कश्मीर में काफी तनाव था। लोग परेशान थे पर सोशल मीडिया पर लोग दंगे भड़काने के लिए बरसों पुराने या दूसरे देशों के फोटो नई कह कर शेयर कर रहे थे। इन फोटो के जरिए आपकी देशभक्ति की भावनाओं का फायदा उठाने की कोशिश की जा रही थी। सब फोटो पर एक लाइन होती थी : 'बिका हुआ मीडिया आपको यह सचाई नहीं दिखाएगा। अगर आप सच्चे भारतीय हो तो हर ग्रुप में जरूर फॉरवर्ड करो।' ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है।

कैसे बचें

- किसी भी फोटो या मेसेज पर आंख मूंदकर भरोसे करने से बचें। अगर आप गौर से देखेंगे और सोचेंगे तो कई तरह के झूठ खुद ही पकड़ लेंगे।

- किसी भी नंबर को आगे फॉरवर्ड करने से पहले एक बार खुद मिलाकर जांच लें।

- किसी के नाम से फैल रहे मेसेज की सचाई खुद भी इंटरनेट पर जाकर जरूर चेक कर लें।

- ट्विट को चेक करने के लिए सामने वाले का अकाउंट वेरिफाइड या है नहीं, यह जरूर चेक करें। वेरिफाइड अकाउंट के सामने एक नीले गोले में सफेद टिकमार्क होता है जिससे पता चलता है कि वह असली है। जिनके हैंडल पर ऐसा नहीं होता तो देखें कि उनके कितने फॉलोअर्स हैं और वह कैसा ट्वीट करते हैं? जैसे कि किसी हीरो के नाम (थोड़ी स्पेलिंग बदल कर) का हैंडल होगा, पर उसके सिर्फ 1000-2000 ही फॉलोअर्स होंगे और करीबन सारे ट्वीट राजनीति से भरे होंगे। साथ ही, फिल्म/अवॉर्ड फंक्शन आदि के बारे में कुछ खास नहीं होगा। ऐसे में मान लें कि वह फेक हैंडल है।

अफवाह फैलाने पर कानूनी सजा

झूठी अफवाह फैलाने पर आईपीसी 153 और 505 के तहत कानूनन सजा हो सकती है। हाल में स्व. जयललिता के अस्पताल में भर्ती होने के बाद वट्सऐप पर अफवाह फैलाने के लिए तमिलनाडु पुलिस ने 8 लोगों को सेक्शन 505 के तहत गिरफ्तार किया था। इसलिए कभी भी राजनीतिक/धार्मिक आदि मेसेज जब तक कन्फर्म ने कर लें, आगे न भेजें।

ब्रैंड राइवलरी का गेम

कॉर्पोरेट वर्ल्ड में लोग अपने ब्रैंड को बेहतर साबित करने या दूसरे को खराब जताने के लिए सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल करते हैं। जैसे कि मोबाइल फटने की अफवाह। एक ही फोन, अलग-अलग वक्त पर, अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग लोगों के जख्मों के साथ दिखता है। आप ही बताइए कि 3-4 लोगों के पास बिल्कुल एक ही तरह से टूटा हुआ फोन कैसे हो सकता है? यहां तक कि जख्मी भी लोग मोबाइल फटने से नहीं हुए होते हैं। वे फोटो किसी दंगे की होती हैं या फिर किसी और वजह से जले इंसानों की होती हैं।

कैसे बचें

- ऐसी फोटो को तवज्जो न दें। जहां तक फटने की बात है तो कोई भी फोन फट सकता है तो क्या मोबाइल इस्तेमाल करना बंद कर देंगे?

खबरों का खेल समझें

अक्सर लोग चैनलों और अखबारों के नाम पर झूठी खबरें खूब फैलाते रहते हैं। लोग टीवी पर चलती हुई न्यूज का मोबाइल से फोटो लेकर उस पर फोटोशॉप में जाकर कुछ भी लिख देते हैं। फिर वट्सऐप पर लोगों को भेजने लगते हैं या फिर फेसबुक पर पोस्ट कर देते हैं। इस तरह लाखों लोगों तक यह झूठ पहुंच जाता है।

कैसे बचें

गौर से देखेंगे तो इस तरह की फोटो में जो न्यूज़ दिख रही है, उसकी सफेदी, लोगो, नीचे छोटी ब्रेकिंग न्यूज़ वाली पट्टी और बैकग्राउंड के लाल रंग में भी हल्का-सा फर्क होता है। फॉन्ट भी अलग होता है। और सबसे बड़ी बात, अगर यह न्यूज़ इतनी बड़ी है तो किसी और मीडिया या गूगल पर क्यों नहीं?

डेटिंग ट्रैप

जैसा कि आपको पहले बताया, लोग फेसबुक आदि से लड़कियों की फोटो चुराकर डेटिंग प्रोफाइल बनाते हैं और फिर किसी लड़के के प्रोफाइल पर कुछ दिन नजर रखते हैं। फिर किसी लड़की का फोटो, कोई काल्पनिक नाम इस्तेमाल कर दोस्ती करते हैं। अंत में कोई सर्विस/वेबसाइट आदि जॉइन करने को कहते हैं या फिर किसी की मदद के नाम पर पैसा ठग लेते हैं।

कैसे बचें

डेटिंग साइट्स से दूर रहें या जब तक सामने वाले से असल में मिल न लें, दूर रहें।

लाइक्स का गेम

'लाइक' का मतलब है कि किसी फेसबुक पेज के 'लाइक' पर क्लिक करना। इससे उस पेज पर कुछ भी आएगा वह आपको दिखेगा। अब फिर यहां आपकी भावनाओं का फायदा उठाया जाता है। ऐसे पेज कुछ ऐसा नाम रखते हैं जो आपको पसंद हो जैसे 'मैं भारतीय सेना को सपोर्ट करता हूं'। अब जहां सेना का नाम आ जाता है, लोगों की सोचने की शक्ति कम पड़ जाती है और देशभक्ति की भावना बढ़ जाती है। ऐसे पेज 4-5 सैनिकों की फोटो पोस्ट करते हैं जिनमें ज्यादातर झूठे होते हैं। ये किसी फिल्म से या किसी दूसरे देश की सेना से लिए जाते हैं। फिर भगवान की फोटो आपकी दिलचस्पी बनाए रखने डाल दिए जाते हैं। इन सबके बीच में या तो कोई वेबसाइट का लिंक (जो नाम से न्यूज वाली लगती है) या किसी राजनैतिक नेता की तारीफ वाली पोस्ट होती हैं। ऐसी न्यूज जैसी वेबसाइट भी होती है, जिनके पेज पर चारों ओर विज्ञापन भरे मिलते हैं। ध्यान रखें कि भावनाओं में बहकर किसी भी अनजान फोटो या पेज को लाइक न करें।

सचाई कैसे देखें

- आपको अगर किसी मेसेज की सचाई जांचनी है, तो उसमें से चुनिंदा शब्द या फिर पूरा वाक्य गूगल में टाइप करें। न्यूज सही होती है तो अक्सर वहां मिल ही जाती है।

- फोटो में कुछ लिखा हो तो वही शब्द या जिस जगह/चीज के बारे में हो उसका नाम गूगल पर इमेजेज सेक्शन में जाकर ढूंढें।

- जरूरी नहीं कि न्यूज या इमेज गूगल के पहले पेज पर ही मिले। कभी-कभी थोड़ा आगे जाना पड़ता है।

- ज्यादातर सर्च में गूगल पर न्यूज/इमेज के सामने तारीख भी लिखी आती है, जिससे पता चलता है कि यह बिलकुल नई बात है या बरसों पुरानी।

- यहां खास बात यह है कि यह तारीख नहीं बदली जा सकती।

हर लिंक पर न करें क्लिक

कई लिंक आपको ऐसी वेबसाइट पर ले जाते हैं, जहां कोई स्क्रिप्ट आपके ब्राउज़र पर खतरे का मेसेज दिखाएगी। मोबाइल वाइब्रेट होने लगेगा और अगर आप डर कर दिए हुए बटन को दबाएंगे तो कोई ऐप डाउनलोड हो जाएगा जो सिर्फ विज्ञापन ही दिखाएगा। ब्राउज़र फोन को धीमा भी कर देगा इसीलिए किसी अनजान लिंक पर न क्लिक करें।

कहां कर सकते हैं शिकायत

अगर किसी ने आपकी फोटो का गलत इस्तेमाल किया है या आपके नाम से कोई गलत मेसेज लोगों को भेजा है तो आप सीबीआई की साइबर सेल में शिकायत कर सकते हैं।

अड्रेस: सीबीआई साइबर क्राइम सेल, सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस, साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेशन सेल, सीबीआई, 5th फ्लोर, ब्लॉक 3, सीजीओ कॉम्प्लेक्स, लोधी रोड-3, लोधी रोड

फोन: 011- 436-2203, 439-2424

वेबसाइट: cbi.nic.in, ईमेल cbiccic@bol.net.in

इसके अलावा इकनॉमिक ऑफेंसेस विंग (EOW) के अंदर साइबर सेल में भी शिकायत कर सकते हैं।

अड्रेस: असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, साइबर क्राइम, पुलिस ट्रेनिंग स्कूल कॉम्प्लेक्स, मालवीय नगर

फोन: 011-26515229

ईमेल: acp-cybercell-dl@nic.in

-पंकज जैन


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लाइलाज नहीं हैं शरीर के ये दर्द, यूं करें उपाय

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सर्दियों का मौसम यूं तो काफी सुहाना होता है लेकिन अक्सर इस दौरान जोड़ों में दर्द बढ़ जाता है। वैसे सही लाइफस्टाइल अपना कर न सिर्फ दर्द से बचा जा सकता है, बल्कि अगर दर्द हो जाए तो भी सही इलाज और एक्सरसाइज के जरिए इससे काफी हद तक राहत पा सकते हैं। जानते हैं जोड़ों के दर्द से बचाव और इलाज के बारे में:-

कैसे-कैसे दर्द

बढ़ती उम्र, चोट या वजन की वजह से ऑर्थराइिटस की समस्या हो सकती है। इसमें शरीर के जोड़ों (घुटने, हाथ, कलाई, हिप्स, कमर, गर्दन आदि) में अकड़न और दर्द हो जाता है। सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस भी इसी का हिस्सा है, जिसमें मुख्य रूप से गर्दन में दर्द होता है। कई बार हाथ और पैर में भी दर्द आ जाता है।

स्पाइन में सूजन आ जाए तो उसे एनक्लोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस कहा जाता है। यह सूजन चोट से भी हो सकती है और हड्डी में किसी दिक्कत से भी। हमारी रीढ़ की हड्डी में सॉफ्ट मटीरियल होता है, जिसे डिस्क कहते हैं। जब बॉडी को गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं तो डिस्क बाहर आ जाती है। इस स्थिति को डिस्क बल्ज कहा जाता है। इस स्थिति में गर्दन में भारी दर्द होता है।

ट्रिगर पॉइंट्स यानी मसल्स के भीतर जो गांठें बन जाती हैं, वे भी दर्द की वजह हो सकती हैं। कई बार यह दर्द आंखों के आसपास तक भी पहुंच जाता है।

ऑस्टियोपोरोसिस दर्द की वजह बनता है। इसमें हड्डी बेहद कमजोर और खोखली हो जाती हैं। न्यूट्रिशन की कमी और मिनोपॉज के बाद अक्सर महिलाएं इससे पीड़ित हो जाती हैं।

दर्द की वजहें

तनाव: स्ट्रेस की वजह से मसल्स स्पाज्म (अकड़न) में चली जाती हैं और दर्द की वजह बनती हैं।

गलत पॉश्चर: घंटों सिर झुकाकर कंप्यूटर पर काम करने, लिखने-पढ़ने और बेड पर आधा लेटकर टीवी देखने से दर्द हो सकता है।

मोटा तकिया: कई लोग बहुत मोटा तकिया (2 इंच से ज्यादा) और कुशन लगाकर सोते हैं, जोकि गलत है।

प्रेग्नेंसी: प्रेग्नेंसी में स्पाइन पीछे को जाने लगती है। इस पोजिशन को लॉडोर्स कहते हैं और इससे कमर व गर्दन में दर्द हो सकता है।

बढ़ती उम्र: उम्र बढ़ने के साथ शरीर की भरपाई करने की क्षमता कम हो जाती है और छोटी-मोटी दिक्कतें दर्द की वजह बनती हैं।

सिडेंटरी लाइफस्टाइल: ऐसा प्रफेशन, जिसमें चलना-फिरना बहुत कम हो। युवाओं में दर्द की यह बड़ी वजह है।

फोन पर लंबी बातें: कंधे और कान के बीच फोन लगाकर एक ओर सिर झुकाकर लंबे वक्त तक बातें न करें। अक्सर लोग ऐसा किचन में काम करते हुए, कंप्यूटर पर टाइप करते हुए और ड्राइविंग के वक्त करते हैं। ऐसा करने के बजाय हेड फोन या ईयरफोन लगा लें।

नीची स्लैब: किचन में स्लैब नीची है तो स्टूल रखकर काम करें। ज्यादा झुकने से गर्दन में दिक्कत हो सकती है।

उलटी-सीधी एक्सरसाइज: योगासनों की शुरुआत किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही करें।

कम तापमान: घर या ऑफिस में एसी-कूलर के जरिए तापमान 18-20 तक न ले जाएं। 26-27 डिग्री तापमान ठीक है। ज्यादा ठंड से दर्द हो सकता है।

हड़बड़ी और बेचैनी: हमेशा काम के बोझ में दबे रहना सही नहीं है। अच्छी तरह से सांस लें। डीप ब्रीदिंग से तन और मन, दोनों रिलैक्स रहते हैं।

घुटने में दर्द से बचाव मुमकिन

अपने घुटनों को लगातार चलाते रहें। इससे वे सेहतमंद रहेंगे। हफ्ते में 3 दिन अरोबिक्स एक्सरसाइज (रनिंग, जॉगिंग, साइक्लिंग, स्विमिंग, डांस आदि) करें। बाकी 3 दिन मजबूती के लिए स्ट्रेंथनिंग एक्सरसाइज (वेट लिफ्टिंग आदि) जरूर करें। डेस्क जॉब करनेवालों को ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सरसाइज और स्ट्रेचिंग करते रहना चाहिए। हमेशा अच्छी क्वॉलिटी के जूते या सैंडल पहनें। हील्स कम पहनें।

...गर हो जाए दर्द

दर्द हो जाए और फौरन डॉक्टर को दिखाना मुमकिन नहीं हो तो पैरासिटामॉल (क्रॉसिन आदि) या कोई दूसरी पेन किलर ले सकते हैं। इसके अलावा RICE का फॉर्म्युला अपनाएं। RICE यानी रेस्ट, आइस, कंप्रेशन और एलिवेशन।

Rest: आराम करें। ज्यादा घूमे-फिरे नहीं, न ही देर तक खड़े रहें।

Ice: एक कपड़े या बैग में बर्फ रखें और दिन में 4-5 बार 10-10 मिनट के लिए दर्द की जगह पर लगाएं।

Compession: घुटने पर क्रेप बैंडेज या नी कैप लगाएं। बैंडेज ज्यादा टाइट या लूज न हो।

Elevation: लेटते वक्त पैर के नीचे तकिया रख लें ताकि घुटना थोड़ा ऊंचा रहे।

इस दौरान एक्सरसाइज और योगासन बंद कर आराम करें। वॉलिनी, मूव, वॉवेरन जेल, डीएफओ जेल आदि किसी दर्दनिवारक बाम या जेल से हल्के हाथ से एक-दो मिनट मालिश कर सकते हैं। सिकाई भी कर सकते हैं। दो-चार दिन में दर्द ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएं। हो सकता है कि घुटने में दर्द कुछ दिनों में चला जाए लेकिन कई बार मसल्स में हमेशा के लिए कमजोरी बनी रह जाती है। फिजियोथेरपिस्ट इसमें मददगार हो सकते हैं। अगर दर्द अचानक या धीरे-धीरे आता है लेकिन चोट इसकी वजह नहीं है और घुटने के आसपास सूजन और लालिमा है और दर्द रात को बढ़ जाता है तो इसकी वजह इन्फेक्शन या गठिया बाय हो सकता है। फौरन हड्डी के डॉक्टर (ऑथोर्पेडिशियन) को दिखाएं।

नोट: डॉक्टर की सलाह पर कैल्शियम और विटमिन डी की टैबलट और सैशे भी ले सकते हैं। अगर दर्द ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की वजह से है तो एक ग्लूकोज अमीन टैबलट रोजाना एक-दो महीने तक ले सकते हैं। यह जॉइंट्स के लिए फायदेमंद हो सकती है।

दर्द में बरतें सावधानी

स्क्वैटिंग (उठक-बैठक) न करें। घुटनों को मोड़कर और चौकड़ी मारकर न बैठें।

जमीन पर न बैठें। जमीन पर उठने-बैठने से घुटनों पर कई गुना प्रेशर पड़ता है।

लगातार एक ही पोजिशन में बैठे या खड़े न रहें। एक पैर पर वजन न डालें।

वज्रासन जैसे घुटने मोड़ने वाले आसन न करें।

ट्रेडमिल से बेहतर खुले में एक्सरसाइज करना है, क्योंकि ट्रेडमिल के वाइब्रेशन घुटने और एड़ी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

हाई हील न पहनें। इससे घुटनों पर प्रेशर पड़ता है।

सीढ़ियों के बजाय लिफ्ट का इस्तेमाल करें।

एक्सरसाइज

जिन मरीजों को बैठने के बाद दर्द होता घुटने में दर्द होता है, वे ज्यादा से ज्यादा चलें। इससे दर्द कम होगा। दर्द ज्यादा है और चल नहीं सकते, तो लेटकर और खड़े होकर करनेवाली एक्सरसाइज करें, जैसे कि साइकलिंग, योग आदि।

जिनके घुटनों में चलने पर दर्द होता है, वे धीरे-धीरे ही सही लेकिन चलें। लंबा नहीं चल सकते, तो जब भी वक्त मिले, 10-10 मिनट के लिए चलें।

फिक्स साइकलिंग और स्वीमिंग करें। सारी एक्सरसाइज मिलाकर रोजाना 50 मिनट जरूर करें।

बैठे-बैठे 15-20 मिनट में पैरों को गोल-गोल घुमाते रहें। सीधा तानें।

ताड़ासन, एकपादउत्तानासन, कटिचक्रासन, सेतुबंध, पवनमुक्तासन (बिना सिर उठाए), भुजंगासन, अर्धनौकासन और हाथों व पैरों की सूक्ष्म क्रियाएं करें।

अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, कपालभाति प्राणायाम करें।

बच सकते हैं गर्दन दर्द से

सिर झुकाकर लंबे समय तक बैठने से बचना और गर्दन की एक्सरसाइज करके गर्दन में दर्द से बचे रह सकते हैं। वैसे, बहुत ऊंचा तकिया लेने या तकिया बिल्कुल न लेने से कमजोर मसल्स वाले लोगों की गर्दन में दर्द हो सकता है। अगर आप सीधा सोते हैं तो बिल्कुल पतला तकिया ले सकते हैं। करवट से सोते हैं तो 2-3 इंच मोटाई का नॉर्मल तकिया लें। तकिया बहुत सॉफ्ट या हार्ड नहीं होना चाहिए। फाइबर या कॉटन, कोई भी तकिया ले सकते हैं। ध्यान रहे कि कॉटन अच्छी तरह से धुना गया हो और उसमें नरमी बाकी हो। तकिया इस तरह लगाएं कि कंधे और कान के बीच के एरिया को सपोर्ट मिले। जिनकी गर्दन में दर्द है, उन्हें भी पतला तकिया लगाना चाहिए। माकेर्ट में मिलनेवाले सर्वाइकल पिलो भी कुछ लोगों को सूट करते हैं।

...गर हो जाए दर्द

ज्यादा दर्द को तो दो-चार दिन के लिए कॉलर लगा सकते हैं। इससे गर्दन की कमजोर मांसपेशियों को सपोर्ट मिल जाता है लेकिन इसे आदत न बनाएं।

लगातार सिर झुकाकर न बैठें। हर आधे घंटे बाद कुर्सी से उठें। बीच-बीच में गर्दन को इधर-उधर घुमाते रहें।

भुजंगासन, ताड़ासन, अर्ध्यमत्स्येंदासन, मकरासन, अर्धनौकासन, मकरासन, गोमुखासन और कटिचक्रासन स्पाइन के लिए फायदेमंद हैं।

गर्दन को मजबूत बनानेवाली सूक्ष्म क्रियाएं करें। सिर को पूरा गोल घुमाएं। एक बार दाईं से बाईं ओर फिर बाईं से दाईं ओर से पूरा चक्कर लगाएं।

हाथों को कंधों पर रखकर कोहनियां गोल-गोल घुमाएं।

पेट के बल लेटकर मुट्ठियों को ठोड़ी के नीचे रखें और सिर को दाएं-बाएं घुमाएं।

स्पाइन से जुड़े दर्द में शीर्षासन, विपरीतकर्णी और जानुशिरासन न करें।

बच सकते हैं कमर दर्द से

सही पॉश्चर अपनाकर, वजन कम रखकर, हर आधे घंटे में कुर्सी से ब्रेक लेकर आप कमर दर्द से काफी हद तक बच सकते हैं। इसके अलावा, अचानक ज्यादा उठाने से भी बचें। कमर दर्द होने पर भी घुटने के दर्द की तरह की आराम करें। जब भी बैठें तो कोशिश करें कि आपके घुटने कूल्हों से ऊपर रहें। सीधे गद्दे पर सोएं। ऐसा करने से रीड़ की हड्डी सीधी रहती है और दर्द से भी राहत मिलती है। गाड़ी चलाते समय सीट जितनी हो सके स्टीयरिंग के करीब होनी चाहिए ताकि घुटनों पर ज्यादा प्रेशर न पड़े। सोते वक्त पैरों के बीच एक तकिया लगाने से पैरों को सपोर्ट मिलता है।

...गर हो जाए दर्द

इस दौरान बहुत भारी चीजों को सिर से ऊपर न उठाएं। भारी फर्नीचर आदि को खींचने से बचें।

सामने की ओर भी भारी वजन न उठाएं जैसे कि बच्चों को उठाकर खिलाना आदि। नीचे से कुछ उठाना हो तो घुटनों के बल झुककर उठाएं। सीधा मुड़ने से बचें

कमर पर खिंचाव देने वाली भारी एक्सरसाइज न करें। रस्सी खींच जैसे खेलों से दूर रहें।

कमर दर्द हो तो आगे की ओर न झुकें, पीछे झुक सकते हैं। ऐसे आसन भी न करें, जिनमें आगे को झुकना होता है।

भुजंगासन, मकरासन, चक्रासन, हलासन कमर दर्द में काफी फायदेमंद हैं। इसके अलावा जमीन पर सीधे लेकर बारी-बारी से दोनों पैरों को 90 डिग्री पर ऊपर उठाएं, पंजा ऊपर की ओर खींचें। 30 सेकंड वहीं रोकें। कुल 3-4 मिनट कर लें। इससे भी दर्द में राहत मिलती है।

फिजियोथेरपी है कारगर

मसल्स से जुड़े दर्द में फिजियोथेरपी कारगर हो सकती है। अगर पॉश्चर की प्रॉब्लम है यानी मसल वीकनेस है तो इलेक्ट्रोथेरपी की जाती है। कॉलर या टेपिंग से मसल्स को आराम दिया जाता है ताकि वे और न खिंचें। इसके बाद मसल्स स्ट्रेचिंग और स्ट्रेंथनिंग के लिए थेरपी दी जाती है।

पेनकिलर को आदत न बनाएं

पेनकिलर की आदत न डालें। दर्द हुआ और एक टैबलट खा ली, ऐसा नहीं करना चाहिए। लंबे समय तक पेनकिलर लेने से लिवर, किडनी आदि पर बुरा असर पड़ता है और गैस्ट्रिक अल्सर तक हो सकता है। मार्केट में इस तरह के पैच आ गए हैं जिन्हें दर्द वाली जगहों पर चिपकाया जा सकता है। उनके जरिए धीरे-धीरे दवाई दर्द वाली जगह तक पहुंचती रहती है जिससे दर्द में राहत मिलती है।

मालिश का रोल

किसी भी तरह के दर्द में मालिश फायदेमंद हो सकती है। हालांकि एक्सपर्ट इसके असर के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहते। लेकिन यह तय है कि मालिश से मांसपेशियां रिलैक्स होती हैं। इससे दर्द में राहत महसूस होती है। मालिश सरसों, नारियल, बादाम या फिर किसी भी तेल से कर सकते हैं। मालिश के वक्त ध्यान रखें कि हड्डी पर दबाव न पड़े और आसपास के एरिया की मालिश हो जाए। मालिश के बाद उस एरिया को हवा से बचाने के लिए उस पर कोई कपड़ा भी लपेट सकते हैं।

डाइट का रखें ख्याल

पैरों और घुटने के दर्द में एक साइकल बन जाती है दर्द और मोटापे की। दर्द है इसलिए चल नहीं पाते और चल नहीं पाते, इसलिए वजन बढ़ता जाता है। ऐसे में डाइट वजन घटाने का सबसे बड़ा जरिया है डाइट। भरपूर फाइबर, कम तेल-मसाला और चिकनाई वाली चीजें खाएं। मीठा भी कम करें। इससे वजन कंट्रोल करने में मदद मिलेगी।

हड्डियों और मांसपेंशियों को मजबूत बनाने के लिए प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर डाइट लें। प्रोटीन के लिए फिश, सोयाबीन, स्प्राउट्स, दालें, मक्का और बीन्स आदि को खाने में शामिल करें, जबकि कैल्शियम के लिए दूध और दूध से बनी चीजें जैसे कि पनीर, दही आदि खाएं।

फल और सब्जियों (खासकर हरी पत्तेदार) को खाने में शामिल करें।

रोजाना 5 बादाम खाएं। इससे शरीर के लिए जरूरी असेंशल फैटी ऐसिड्स मिलते हैं।

घरेलू नुस्खे

तांबे के बर्तन में रात भर पानी भरकर रखें और सुबह उठकर पी लें। इसमें एक चम्मच मेथी भी भिगोकर रख सकते हैं। सुबह पानी पीने के बाद मेथी दानों को चबा लें।

गाजर खाएं या गाजर का जूस पिएं। गाजर नैचरल पेनकिलर है।

कच्चे लहसुन की दो-दो कलियां रोजाना सुबह-शाम साबुत पानी के साथ निगलें।

पालक के नीचे के डंठलों का सूप या साग बनाकर खाएं।

एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी डालकर पिएं।

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प्लास्टिक तू तो सेहत के लिए हानिकारक है...

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फ्रांस में प्लास्टिक के डिस्पोजेबल कप-प्लेट के यूज पर बैन लगा दिया गया है। कुछ दूसरे यूरोपीय देश भी ऐसी ही प्लानिंग कर रहे हैं। खाने-पीने की चीजें हो या फिर कोई और आइटम, आजकल ज्यादातर चीजें प्लास्टिक पैक में आती हैं। लंच बॉक्स से लेकर घरेलू इस्तेमाल के तमाम बर्तन तक प्लास्टिक के होते हैं। सवाल है कि क्या प्लास्टिक इन सबके जरिए हमारी सेहत पर हमला कर रही है? प्लास्टिक से जुड़े तमाम सवालों के जवाब तलाश रहे हैं पवन तिवारी और प्रियंका सिंह:

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. पी. के. जुल्का, सीनियर कैंसर स्पेशलिस्ट

प्रीति महेश, चीफ प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर, टॉक्सिक्स लिंक

नीलांजना सिंह, न्यूट्री-डाइट एक्सपर्ट

चंद्रभूषण, डिप्टी डायरेक्टर जनरल, सेंटर फॉर साइंस एंड इनवाइरनमेंट

डॉ. राकेश द्विवेदी, होम्योपैथिक मेडिकल ऑफिसर

अंकिता ने एक ब्रैंडेड रिटेल शॉप से स्प्राउट्स खरीदे जो ट्रांसपैरंट प्लास्टिक थैली में बेहद खूबसूरती से पैक्ड थे। प्रखर ने एक नामी आयुर्वेदिक कंपनी का एलोवेरा का जूस लिया। वह भी प्लास्टिक की बोतल में था। स्वाति मसालेदार छाछ का पैकेट लाईं। वह भी प्लास्टिक पैक में था। इन सभी लोगों का मकसद एक था... सेहत बनाने वाली चीजों का सेवन, लेकिन सबके मन में सवाल भी एक ही था कि सेहत का खजाना मानी जाने वालीं ये चीजें कहीं प्लास्टिक में पैक होने की वजह से नुकसानदेह तो नहीं हो जातीं? रोहन अक्सर गाड़ी में अपनी पानी की बोतल छोड़कर निकल जाते हैं और घंटों धूप में खड़ी कार में मौजूद बोतल से पानी पी लेते हैं। अब यह पानी कहीं हमारे लिए खतरनाक तो साबित नहीं हो रहा, यह काफी अहम सवाल है। इसी तरह माइक्रोवेव में खाना गर्म करने के लिए लोग प्लास्टिक के बर्तन काफी इस्तेमाल करते हैं, लेकिन सोशल मीडिया में इसे सेहत के लिए सबसे खराब बतानी वाली पोस्टों की भरमार है। दरअसल, हमारी लाइफ में हर जगह प्लास्टिक की घुसपैठ है। सिर्फ किचन की बात करें तो नमक, घी, तेल, आटा, चीनी, ब्रेड, बटर, जैम, सॉस... सब कुछ प्लास्टिक में पैक होता है। तमाम चीजों को लोग किचन में रखते भी प्लास्टिक के कंटेनरों में ही हैं। सस्ती, हल्की, लाने-ले जाने में आसान होने की वजह से लोग प्लास्टिक कंटेनर्स को पसंद करते हैं। ऐसे में खाने-पीने से जुड़ी चीजों में यूज होनेवाले प्लास्टिक से होनेवाले नुकसान के बारे में जानना बहुत जरूरी है।

प्लास्टिक कितना जहरीला
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉक्सिकॉलजी रिसर्च, लखनऊ के एक साइंटिस्ट के अनुसार पानी में न घुल पाने और बायोकेमिकली ऐक्टिव न होने की वजह से प्योर प्लास्टिक बेहद कम जहरीला होता है। लेकिन जब इसमें दूसरी तरह के प्लास्टिक और कलर आदि मिला दिए जाते हैं तो यह नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। ये केमिकल खिलौने या दूसरे प्रॉड्क्ट्स में से गर्मी के कारण पिघलकर बाहर आ सकते हैं। इस खतरे को ध्यान में रखते हुए अमेरिका ने बच्चों के खिलौनों और चाइल्ड केयर प्रॉडक्ट्स में इस तरह की प्लास्टिक के इस्तेमाल को सीमित कर दिया है। यूरोप ने साल 2005 में ही इस पर बैन लगा दिया था तो जापान समेत 9 दूसरे देशों ने भी बाद में इस पर पाबंदी लगा दी।

नंबर से कैसे पहचानें प्लास्टिक
यूं तो हम सभी लोग पानी के लिए बॉटल या खाना रखने के लिए प्लास्टिक लंचबॉक्स यूज करते हैं लेकिन कभी हमने उन्हें पलटकर देखा है कि उनके पीछे ISI लिखा है या फिर एक सिंबल बना है। दरअसल, अच्छी क्वॉलिटी के प्रॉडक्ट पर इन दोनों या फिर सिंबल का होना जरूरी है। यह मार्क ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (BIS) जारी करता है और इससे पता लगता है कि प्रॉडक्ट की क्वॉलिटी अच्छी है। इन सिंबल्स (क्लॉकवाइज ऐरो के ट्राएंगल्स) को रेजिन आइडेंटिफिकेशन कोड सिस्टम (RIC) कहते हैं। इन ट्राएंगल्स के बीच में नंबर भी होते हैं। इन नंबरों से ही पता चलता है कि आपके हाथ में जो प्रॉडक्ट है, वह किस तरह के प्लास्टिक से बना है। जानते हैं, किस नंबर का क्या है मतलब:

1 यानी पॉलिथिलीन-टेरेफथालेट (PET) से बना है यह प्रॉडक्ट। सॉफ्ट ड्रिंक, वॉटर, केचप, अचार, जेली, पीनट बटर आदि इस तरह के प्लास्टिक की बोतलों में रखे जाते हैं।

खूबी: यह गुड प्लास्टिक है। PET अपनी पैकेजिंग में रखे सामान को सुरक्षित रखता है। अमेरिका के फूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने इसे खाने-पीने की चीजों की पैकेजिंग के लिए सेफ बताया है।

2 यानी यह प्रॉडक्ट हाई-डेंसिटी पॉलिथिलीन (HDPE) से बना है। दूध, पानी, जूस आदि बॉटल्स, योगर्ट की पैकेजिंग, रिटेल बैग्स आदि बनाने में इसे इस्तेमाल किया जाता है।

खूबी: HDPE प्लास्टिक्स के खाने-पीने की चीजों में मिक्स होने से कैंसर या हॉर्मोंस को नुकसान होने की आशंका न के बराबर रहती है। हल्के वजन और टिकाऊ होने की वजह से यह बेहद पॉपुलर है।

3 यानी पॉलीविनाइलीडीन क्लोराइड (PVDC) से बना है प्रॉडक्ट। PVDC का इस्तेमाल कन्फेक्शनरी प्रॉडक्टस्, डेयरी प्रॉडक्ट्स, सॉस, मीट, हर्बल प्रॉडक्ट्स, मसाले, चाय और कॉफी आदि की पैकेजिंग में होता है।

खूबीः शानदार बैरियर प्रॉपर्टीज की वजह से इसमें फूड पैकेजिंग की जाती है।

4 यानी लो-डेंसिटी-पॉलिथिलीन (LDPE) से बना है प्रॉडक्ट। इससे आउटडोर फर्नीचर, साइडिंग, फ्लोर टाइल्स, शॉवर कर्टेन आदि बनते हैं। इसी से LLDPE बनती है, जिसे फूड पैकेजिंग के लिए अच्छा मान जाता है।

खूबी: नॉन-टॉक्सिक मटीरियल है यह। इससे सेहत को कोई नुकसान सामने नहीं आया है।

5 यानी पॉलीप्रोपायलीन (PP) से बना है प्रॉडक्ट। PP से बोतल कैप, ड्रिंकिंग स्ट्रॉ, योगर्ट कंटेनर, प्लास्टिक प्रेशर पाइप सिस्टम आदि बनते हैं।

खूबी: केमिकल रेजिस्टेंस इसकी खूबी है। एसिड इसके साथ रिएक्ट नहीं करते, इसलिए इसको क्लीनिंग एजेंट्स, फर्स्ट ऐड प्रॉडक्ट्स आदि की पैकेजिंग के लिए भी यूज किया जाता है।

6 यानी पॉलिस्टरीन (PS) से बना है प्रॉडक्ट। इससे बने प्रॉडक्ट्स पर 6 नंबर दर्ज रहता है। फोम पैकेजिंग, फूड कंटेनर्स, प्लास्टिक टेबलवेयर, डिस्पोजेबल कप-प्लेट्स, कटलरी, सीडी, कैसेट बॉक्सेज आदि में इसे इस्तेमाल किया जाता है।

खूबी: यह फूड पैकेजिंग के लिए सेफ है। लेकिन इसको री-साइकल करना मुश्किल है और गर्म करने के दौरान इसमें से कुछ गैसें निकलती हैं। ऐसे में इसके ज्यादा इस्तेमाल से बचें।

7 यानी Others (O) से बना है यह प्रॉडक्ट। यह कई तरह के प्लास्टिक का मिक्सचर होता है। इसमें खासतौर पर पॉलीकार्बोनेट (PC) होता है। इससे सीडी, सिपर, सनग्लास, केचप कंटेनर्स आदि बनते हैं।

खूबी: यह काफी मजबूत होता है। हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इसमें कई बार हॉर्मोंस पर असर डालने वाले BPA (बायस्फेनॉल) की मौजूदगी होती है इसलिए इसका इस्तेमाल नहीं करें।

निष्कर्ष: खाने की चीजें रखने के लिए 1, 2, 4 और 5 कैटिगरी का प्लास्टिक सही है। ये बेहतर फूड ग्रेड कैटिगरी में आते हैं। 3 और 7 कैटिगरी के कंटेनर खाने में केमिकल छोड़ते हैं, खासकर गर्म करने के बाद। 6 नंबर का भी इस्तेमाल कम करें। इनमें खाने की चीजें न रखें।

नोटः अपने देश में प्लास्टिक के इस्तेमाल को लेकर बहुत सटीक गाइडलाइंस नहीं हैं। इन सभी सातों कैटिगरी के प्लास्टिक को इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन हर कैटिगरी में बेहतर प्रॉडक्ट भी बनाया जा सकता है और खराब भी। ऐसे में बेहतर है कि हम वे प्रॉडक्ट खरीदें, जिन पर ISI और RIC मार्क तो हो ही, साथ ही BFA फ्री या BFR फ्री या लेड फ्री भी लिखा हो। दरअसल, ये खतरनाक केमिकल हैं और इन्हें मिक्स करने पर प्लास्टिक जहरीला हो जाता है। इनका असर तुरंत नहीं दिखता लेकिन बरसों इस्तेमाल से ये आगे जाकर कैंसर, डायबीटीज, हॉर्मोन आदि की समस्या पैदा कर सकते हैं। हालांकि यह लिखना अनिवार्य नहीं है लेकिन फिर भी अच्छी कंपनियां इस तरह लिखती हैं और जिन प्रॉडक्ट पर ऐसा लिखा होता है, उन्हें यूज करने में किसी तरह का खतरा नहीं है। ये प्रॉडक्ट महंगे होते हैं लेकिन बेहतर होते हैं।

प्लास्टिक फूड कंटेनर्स के नुकसान
- प्लास्टिक की थालियां और स्टोरेज कंटेनर्स खाने-पीने की चीजों में केमिकल छोड़ते हैं। इसका खतरा टाइप 3 और 7 या किसी हार्ड प्लास्टिक से बने कंटेनर्स में और भी ज्यादा होता है। इन प्लास्टिक्स में बायस्फेनॉल ए (BPA) नामक केमिकल होता है। प्लास्टिक आइटम्स में BPA के बाद सबसे ज्यादा यूज होने वाला केमिकल है प्थालेट्स। यह प्लास्टिक को लोचदार बनाता है। ये केमिकल हमारे शरीर के हॉर्मोंस को प्रभावित करते हैं।

- देश और दुनिया के प्रमुख रिसर्च इंस्टिट्यूट्स में हुई स्टडी के मुताबिक, इस तरह के केमिकल्स से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा रहता है। यही नहीं, पुरुषों में स्पर्म काउंट घटने का भी रिस्क होता है। प्रेग्नेंट महिलाओं और बच्चों के लिए ये ज्यादा नुकसानदेह होते हैं।

- अमेरिका के फूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन ने इस बात को माना है कि सभी तरह की प्लास्टिक एक वक्त के बाद केमिकल छोड़ने लगते हैं, खासकर जिन्हें गर्म किया जाता है। आप ऐसे समझ सकते हैं कि बार-बार गर्म करने से इन कंटेनर्स के प्लास्टिक के केमिकल्स टूटने शुरू हो जाते हैं और फिर ये खाने-पीने की चीजों में मिक्स हो जाते हैं। नतीजन गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

पानी की बोतल को गर्म होने से बचाएं
पैकेज्ड वॉटर में पानी की क्वॉलिटी के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडडर्स (BIS) ने IS 14543 (पैकेज्ड वॉटर) या IS 13428 (मिनरल वॉटर) और बॉटल की क्वॉलिटी के लिए IS 15410 स्टैंडर्ड जारी किए हैं। ये पानी की क्वॉलिटी और पैकेजिंग सही है, इस बात की गारंटी करते हैं। BIS के नियमों के अनुसार पैकिंग के ऊपर कंटेनर के मटीरियल, (PET/PP/PS आदि), कंटेनर का टाइप (बॉटल, कप आदि), कंटेनर की कपैसिटी आदि की जानकारी होना जरूरी है। पानी की बोतलों और कपों को एक बार इस्तेमाल करके तोड़ देना चाहिए, जबकि जार को फिर से यूज किया जा सकता है और कांच की बॉटल को भी स्टरलाइज करके फिर से यूज कर सकते हैं।

लेकिन पानी की बोतल पर एक और चीज का ध्यान रखना जरूरी है। आमतौर पर हम प्लास्टिक बोतल को तेज धूप में खड़ी कार में रखकर छोड़ देते हैं। गर्म होकर इन प्लास्टिक बोतलों से केमिकल निकलकर पानी के लिए रिएक्ट कर सकता है। ऐसे पानी या सॉफ्ट ड्रिंक्स आदि को न पिएं। यहां तक कि घरों की छतों पर मौजूद पानी की टंकियों में तेज धूप में होने वाली रिएक्शन को लेकर भी खतरा जताया जा रहा है। इसे लेकर स्टडी की जा रही हैं लेकिन अभी पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। सावधानी के तौर पर टंकी के ऊपर शेड बनवा सकते हैं।

पॉलिथिन में चाय को कहें बाय
अक्सर देखा गया है कि छोटी पॉलिथिन थैलियों में लोग गर्म चाय ले जाते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक यह तरीका बेहद नुकसानदेह है। तुरंत तो कुछ पता नहीं चलता, लेकिन लंबे समय तक इस्तेमाल करने से यह कैंसर का कारण बन सकता है। दरअसल, बेहद गर्म चीजों के साथ प्लास्टिक का रिएक्शन होता है तो कैंसर कारक तत्व पैदा होते हैं। इसी तरह खाने की दूसरी चीजों को भी गर्म-गर्म प्लास्टिक कंटेनर में न रखें।

प्लास्टिक शीशी में दवाएं कितनी सेफ?
प्लास्टिक शीशी में होम्योपैथिक दवाएं सेफ होती हैं, बशर्ते शीशी लूज प्लास्टिक की न बनी हों। वैसे, कांच की शीशी में होम्योपैथिक मेडिसिंस रखी हों तो बेहतर रहेगा, क्योंकि इसमें किसी भी तरह का शक-सुबहा नहीं रह जाता। यह नियम एलोपैथिक दवाओं खासकर सिरप आदि पर भी लागू होता है। प्लास्टिक से बने इंजेक्शन, आईवी आदि के नुकसान के बारे में अभी कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है।

शराब कांच की बोतल में क्यों
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ऑक्सिजन और कार्बन-डाईऑक्साइड कांच के अंदर नहीं जा सकती इसीलिए स्प्रिट को सालोंसाल कांच की बोतलों में स्टोर किया जा सकता है। ऐल्कॉहॉल को अगर प्लास्टिक बॉटल में लंबे वक्त तक स्टोर करेंगे तो प्लास्टिक के केमिकल्स इसमें घुल सकते हैं। वैसे, कमरे के तापमान पर इसके स्टोरेज से कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन टेंपरेचर बढ़ने से ड्रिंक में प्लास्टिक केमिकल्स छूट सकते हैं।

बच्चों को बचाएं प्लास्टिक से
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बच्चे को फीड करने के लिए प्लास्टिक बॉटल का इस्तेमाल न करें। इसकी जगह स्टील या कांच की बॉटल यूज करें। अगर प्लास्टिक की बॉटल यूज करना ही है तो अच्छी क्वॉलिटी की लें। बॉटल के ऊपर BFA फ्री या BFR फ्री या लेड फ्री आदि लिखा हो तो बेहतर है।

- प्लास्टिक बॉटल को माइक्रोवेव या गैस पर पानी में बिल्कुल न उबालें। बॉटल को गर्म पानी से साफ करना काफी है। इसके अलावा क्लोरीन सलूशन से साफ कर सकते हैं। इससे सारे किटाणु निकल जाते हैं।

- सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (CSE) की एक स्टडी में कहा गया है कि बच्चों के दांत निकलते वक्त उसे जो खिलौने दिए जाते हैं उनमें बेहद खतरनाक केमिकल्स पाए गए हैं। बच्चों को प्लास्टिक के टीथर देने के बजाय खीरे या गाजर के चिल्ड बड़े टुकड़े या मुलहठी की बड़ी डंडी (छोटी डंडी गले में फंस सकती है) दे सकते हैं। साथ ही, लौंग के तेल से मसूढ़ों की मालिश करना भी फायदेमंद है।

माइक्रोवेव सेफ.... मतलब!
माइक्रोवेव में कुकिंग करने या खाना गर्म करने से किसी तरह के नुकसान के अब तक कोई सबूत नहीं मिले हैं। हां, इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले कंटेनर पर जरूर ध्यान दें। अक्सर हम दुकानदार से माइक्रोवेव सेफ टिफिन बॉक्स या फूड कंटेनर मांगते हैं। वह आपको बर्तन पर लिखा दिखा देगा: माइक्रोवेव सेफ। इसका मतलब यह नहीं है कि इसमें खाना गर्म करने से सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा। इसका मतलब बस इतना है कि इसको आप माइक्रोवेव में रखकर गर्म करेंगे तो यह पिघलकर टेढ़ा-मेढ़ा नहीं होगा। दरअसल, प्लास्टिक कंटेनर को माइक्रोवेव में गर्म नहीं करना चाहिए यहां तक कि थोड़ी देर के लिए भी नहीं। कभी मजबूरी में करना ही हो तो वही कंटेनर यूज करें, जिन पर माइक्रोवेव सेफ का सिंबल (देखें पिक्चर) हो। साथ ही, इनमें ऐसी चीजें बेहद थोड़ी मात्रा में न गर्म करें, जिनमें फैट या शुगर की मात्रा बहुत ज्यादा हो।

माइक्रोवेव में कांच, पाइरेक्स या चीनी मिट्टी के कंटेनर यूज करें। ये दिखने में भी अच्छे लगते हैं। माइक्रोवेव में पॉपकॉर्न आदि भी कम पकाएं क्योंकि उनकी पैकेजिंग के लिए जिस मटीरियल का यूज किया जाता है, उसकी क्वॉलिटी को लेकर भी पक्के तौर पर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता।

नॉन-प्लास्टिक पर लगाएं लिमिट
- नॉन-स्टिक बर्तनों की कोटिंग में इस्तेमाल होने वाला टेफलॉन सेहत के लिए कितना नुकसानदेह है, इस बारे में पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता लेकिन अभी तक की गई स्टडीज़ में नॉन-स्टिक के ज्यादा इस्तेमाल से डायबीटीज के साथ कनेक्शन नजर आ रहा है। आशंका है कि यह दूसरी बीमारियों का भी कारक बन सकता है। कोशिश करें कि दिन भर में एकाध चीज ही इसमें पकाएं, मसलन चीला, ऑमलेट आदि। बाकी के लिए स्टील, लोहे, हैंडोलियम आदि के बर्तन यूज करें।

- फ्राइंग-पैन या कुकवेयर को बिना खाने की चीज डाले तेज आंच पर गर्म न करें। इसे इसे ज्यादा गर्म करने से बचें। इसमें कुकिंग मीडियम आंच पर ही करें। ज्यादा गर्म करने से कोटिंग खराब हो जाती है, जो निकलकर खाने में मिल जाती है। अगर बर्तन की कोटिंग निकल रही है या कहीं से टूट-फूट नजर आती है तो उसे बिल्कुल इस्तेमाल न करें।

- एल्युमीनियम में टमाटर, इमली, नीबू या अचार जैसी खट्टी चीज रखने या पकाने से बचें। एल्युमीनियम खट्टी चीजों के साथ रिएक्ट करता है और इससे अल्टशाइमर्ज जैसी बीमारियों का रिस्क बढ़ सकता है।

- टेट्रापैक, थर्मोकोल आदि का भी इस्तेमाल कम-से-कम करना चाहिए। थर्मोकोल में गर्म खाना रखना न सिर्फ सेहत के लिए हानिकारक है, बल्कि इसे रिसाइकल करना भी बहुत मुश्किल है। जो थोड़ा-बहुत रिसाइकल किया भी जाता है, वह भी खुले में जोकि सेहत के साथ-साथ इनवाइरनमेंट के लिए भी नुकसानदेह है।

क्या करें
1. बॉटल, लंच बॉक्स या फिर स्टोरेज कंटेनर के तौर पर प्लास्टिक का इस्तेमाल कम-से-कम करें। प्लास्टिक कंटेनर यूज करने ही हैं तो बेहतर क्वॉलिटी का यूज करें। इन पर नंबरिंग के अलावा BFA फ्री या BFR फ्री या लेड फ्री आदि लिखा हो तो बेहतर है।

2. दो-तीन साल में प्लास्टिक कंटेनर और बॉटल आदि बदल दें। हालांकि इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन यह सच है कि लंबे वक्त इस्तेमाल करने से प्लास्टिक खाने में खतरनाक केमिकल छोड़ने लगता है।

3.कांच या स्टील की बोतल ज्यादा यूज करें। बाहर प्लास्टिक की बोतल ले जाते हैं तो घर में कांच की बोतल यूज करें। इसी तरह टिन या कांच के लंच बॉक्स यूज करें। अगर प्लास्टिक लंचबॉक्स यूज करना ही चाहते हैं तो उसमें गर्म खाना न रखें। तरल चीजों और खट्टी चीजों (सॉस, अचार, चटनी आदि) को तो बिल्कुल न रखें। किसी भी चीज को नॉर्मल तापमान होने पर ही प्लास्टिक कंटेनर में रखें।

4. तेल आदि के प्लास्टिक कंटेनर को गैस के पास न रखें। गर्मी से उसमें केमिकल रिएक्शन हो सकती है।

5. सिल्वर फॉइल में बहुत गर्म खाना न रखें, न ही उसमें रखकर खाना माइक्रोवेव में गर्म करें।

6. थर्मोकोल के ग्लास या बाउल आदि में गर्म खाना न रखें। इनमें सॉफ्ट ड्रिंक आदि रखने से भी बचें क्योंकि इनका एसिडिक नेचर रिएक्ट कर खतरनाक साबित हो सकता है।

7. यूज करने के बाद प्लास्टिक प्रॉडक्ट को जलाएं नहीं, रिसाइकल के लिए दें।

किस चीज को किसमें रखना बेहतर

चीज किसमें रखें

दालें, छोले-राजमा (कच्चा): प्लास्टिक या कांच के बर्तन में

चावल (बिना पका) : स्टील या कांच के बर्तन में

गेहूं: मिट्टी के कंटेनर (बखार), कांच या पीतल के कंटेनर में

आटा: स्टील और ऐल्युमिनियम के कंटेनर में

मैदा/बेसन: स्टील और प्लास्टिक के एयरटाइट डिब्बे में

मसाले: स्टील या कांच के डिब्बे में

ड्राई फ्रूटस: फूड ग्रेड प्लास्टिक और कांच के डिब्बे में या प्लास्टिक के जिप लॉक पाउच में

बेसन से बनी मिठाइयां: कांच और स्टील के कंटेनर में

दूध और खोये की मिठाइयां: कांच और स्टील के डिब्बे में

अचार: चीनी मिट्टी के मर्तबान और कांच या सिरेमिक में

दूध: स्टेनलेस स्टील के कंटेनर में

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पति-पत्नी और लव

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वैलंटाइंस वीक में प्यार का खुमार सिर चढ़कर बोल रहा है। हैरानी की बात है कि अक्सर शादी तक पहुंचने के कुछ ही वक्त बाद प्यार काफूर होने लगता है। आखिर क्या वजह है कि साथ जीने-मरने की कसमें खाने वाले कपल शादी के बाद एक-दूसरे से जल्दी ही उकता जाते हैं? कैसे हम अपनी शादी को कामयाब और खुशहाल बनाए रख सकते हैं, एक्सपर्ट्स से बात करके बता रही हैं प्रियंका सिंहः

वक्त दें तो बन जाए बात...
रजनी वर्मा को हर बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की आदत है। घंटों पूजा में बिजी रहती हैं। कोई मिलता है तो खूब बातें करती हैं। रजनी की इन अजीब-सी आदतों से परेशान होकर पति मोहित उन्हें सायकायट्रिस्ट के पास ले गए। पता चला कि रजनी को मेनिया है जो डिप्रेशन के हद से ज्यादा बढ़ जाने पर होता है। उन दोनों की शादी को 16 साल हुए हैं। मोहित और रजनी दोनों सॉफ्टवेयर इंजिनियर थे। शादी के बाद मोहित के कहने पर रजनी ने बच्चों की परवरिश की खातिर जॉब छोड़ दी। रजनी बच्चों में मशगूल हो गईं और मोहित करियर में। मोहित अक्सर रात में घर आकर ड्रिंक करने और फोन पर दोस्तों से बात करने में बिजी रहने लगे। बच्चे भी बड़े होकर अपने कामों में लग गए तो रजनी को खालीपन घेरने लगा। धीरे-धीरे वह डिप्रेशन में चली गईं। ज्यादा खाने लगीं और खूब मोटी हो गईं। डिप्रेशन बढ़कर मेनिया तक पहुंच गया। डॉक्टर की सलाह पर मोहित ने रजनी को टाइम देना शुरू किया। दोनों ने साथ वॉक करना, एक्सर्साइज करना, एक साथ खाना खाने जैसे काम शुरू किए। मोहित ने रजनी पर आरोप लगाने (मसलन, तुम यह सही नहीं कर रही, वैसा करना चाहिए था... आदि) भी बंद कर दिए। धीरे-धीरे रजनी नॉर्मल हो गईं। अब मोहित और रजनी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।

गुस्से तो यूं किया कंट्रोल
निशा और मोहनीश दोनों डॉक्टर हैं। दोनों ने लव मैरिज की, लेकिन कुछ ही महीनों में झगड़े शुरू हो गए। झगड़े ज्यादा बढ़े तो दोनों मैरिज काउंसलर के पास पहुंचे। मोहनीश की शिकायत थी कि निशा अक्सर गुस्सा दिलाती हैं और इसी की वजह से मैं अपसेट रहता हूं आदि। काउंसलर ने मोहनीश से कहा कि दिन में जितनी बार भी आप अपसेट हों या आपको गुस्सा आए, आप एक डायरी में लिख लें। फिर अगले दिन उसके बारे में सोचें कि क्या यह रवैया सही था? अगले दिन तक उतना गुस्सा नहीं रहता। ऐसे में आप देखेंगे कि 80-90 फीसदी मामले में गुस्सा हुए बिना भी आपका काम चल सकता था। अगर हफ्ते भर आप अपने गुस्से का रेकॉर्ड रख लेंगे तो आप सोचने लगेंगे कि खुद को शांत कैसे रखा जा सकता है। इस तरह धीरे-धीरे आप गुस्से पर काबू पाने लगेंगे और आपसी रिश्ता बेहतर हो जाएगा।

क्या करें
1. छोटी-छोटी बातों की तारीफ
अक्सर हम रिश्ते में सामनेवाले को ग्रांटेड लेने लगते हैं। यह सही नहीं है। छोटी-छोटी चीजों पर रोजाना कम-से-कम दो बार पार्टनर की तारीफ जरूर करें। पति की भी तारीफ करें। यह तारीफ दूसरों के सामने भी करें। कुछ दिन ऐसा करने से पार्टनर में अच्छाइयां ढूंढने की आदत पड़ जाती है। इसी तरह, अपने पार्टनर से प्यार का बार-बार इजहार भी जरूरी है। यह इजहार सोशल मीडिया के बजाय अकेले में करें। परिवार और दोस्तों के सामने भी करें, लेकिन लिमिट में। अगर कोई शिकायत है भी, तो सीधे पार्टनर पर दोष न लगाएं। अगर हम कहते हैं कि तुमने कमरे की लाइट क्यों नहीं बंद की तो इसका मतलब है कि आप उस पर दोष मढ़ रहे हैं। इसके बजाय पूछें कि क्या तुमने लाइट बंद नहीं की? जब भी कोई बात करनी हो तो सीधा दोष लगाने के बजाय 'क्या' से बात शुरू करें।

2. दूसरे को ध्यान से सुनें
पार्टनर अगर कुछ कह रहा हो तो ध्यान से सुनें। उस वक्त मोबाइल या टीवी पर नजरें न रखें। सामनेवाला शेयर करने के लिहाज से कुछ बता रहा है तो उसे सिर्फ सुनें। कोई राय तभी दें जब वह राय मांगे। कई बार पार्टनर खुद एक-दूसरे के काउंसलर बन जाते हैं। मसलन मैं अगर तुम्हारी जगह होता/होती तो ऐसा करता/करती। उस वक्त वह उसे सुनने के मूड में नहीं होता। उस वक्त दी गई सलाह खटास पैदा कर देगी क्योंकि पार्टनर को नाकाम होने का अहसास होगा। सच बोलें, लेकिन मीठा बोलें और दूसरे के हित वाला बोलें।

3. फ्रेंडशिप पर फोकस करें
पति-पत्नी का रिश्ता बेहद अहम होता है और यह दोस्ती, बराबरी और सहयोग से बेहतर बनता है। दोस्ती लगाव बढ़ाती है। कोशिश करें कि दोनों के कुछ कॉमन फ्रेंड जरूर हों। अपने हज्बैंड/वाइफ के फ्रेंड्स से फ्रेंडशिप करें। इससे आपका ग्रुप बन जाएगा और किसी फंक्शन में मिलने पर आप ज्यादा क्वॉलिटी टाइम बिता पाएंगे। शादी से पहले के फोटो, कार्ड्स, मेसेज आदि संग बैठकर देखें। इससे आप कुछ लम्हों के लिए एक-दूसरे के साथ बिताए वक्त को फिर से महसूस कर पाएंगे। कभी-कभी एक-दूसरे के रोल स्विच करके देखें। इससे सामनेवाले के काम के लिए इज्जत पैदा होगी।

4. सरप्राइज दें, कुछ नया करें
अगर किसी पौधे में एक बार खाद डाल दिया तो क्या वह पूरी जिंदगी चल पाएगा? नहीं ना! इसी तरह किसी भी रिश्ते की ताजगी बनाए रखने और उसे फलने-फूलने के लिए उसमें सरप्राइज का खाद डालना जरूरी है। दिन में एक-दो बार कॉल या मेसेज से टच में रहें। बीच-बीच में दोनों एक-दूसरे के 'आई लव यू' 'आई मिस यू' टाइप मेसेज करें। कभी सामनेवाली की पसंद की कोई छोटी-सी चीज गिफ्ट कर दें। इससे रिश्ते में नयापन बना रहेगा।

5. रोजाना साथ में वक्त बिताएं
अक्सर लोग करियर या बच्चों में इतने बिजी होते हैं कि पार्टनर को टाइम ही नहीं दे पाते। रोजाना कुछ वक्त एक-दूसरे के साथ जरूर बिताएं। यह वक्त ऐसा हो जिसमें कोई आपको डिस्टर्ब न करे। अगर बच्चे बड़े हो गए हैं तो उन्हें घर में छोड़कर साथ वॉक के लिए निकलें। दिन भर की बातें शेयर करें, लेकिन ध्यान रखें कि सामनेवाले की बातें सुनकर जजमेंटल न हों। हर तीन-चार महीने में आउटिंग पर जाएं। जब साथ हों, तो सामनेवाले पर फालतू रोक-टोक न लगाएं। सामनेवाले को स्पेस देना बहुत जरूरी है। ध्यान रखें कि रिश्ता हमने सिर्फ दूसरे का साथ पाने के लिए नहीं, निभाने के लिए भी बनाया है।

6. जैसा है, वैसा स्वीकार करें
अक्सर हम अपने पार्टनर को उस रूप में कबूल नहीं करते, जैसा वह है। उसे बदलने में लगे रहते हैं। हम सबने मन में अपने पार्टनर की एक इमेज बनाई होती है और सामनेवाले को उस खांचे में फिट करने में लगे रहते हैं। सामनेवाला जब उस इमेज में फिट नहीं हो पाता तो हम इमेज चेंज नहीं करते, सामनेवाले को ही बदलने की कोशिशों में लगे रहते हैं। यही असली प्रॉब्लम है। जिस दिन इमेज बदल जाएगी, सारी दिक्कत दूर हो जाएगी। अक्सर हम लोग सामनेवाले की कमियों के बारे में बात करते हैं, जबकि हमें उसकी अच्छाइयों पर फोकस करना चाहिए। पार्टनर में जब भी खामियां नजर आएं तो बेहतर है कि हम अच्छी बातों और साथ बिताए अच्छे लम्हों को याद करें।

7. नजरअंदाज करना सीखें
परफेक्शन की आस रखना रिश्ते का दुश्मन है। अगर हर छोटी-छोटी बात पर शिकायत करेंगे तो जब बड़ी शिकायत होगी तो सामनेवाला उसकी भी कद्र नहीं करेगा कि यह तो ऐसे ही कहती/कहता रहती/रहता है। इसी तरह आपको अगर सामनेवाले से कोई काम कहना है या कोई सलाह देनी है तो सीधे ऑर्डर या अडवाइस देने से बचें। मसलन अगर पत्नी नई साड़ी दिलाने को कह रही है तो यह न कहें कि नई साड़ी की क्या जरूरत है? इसके बजाय घुमा-फिराकर बात टाल दें, मसलन मैं तुम्हें अच्छी महंगी साड़ी दिलाऊंगा। अभी पैसे की थोड़ी दिक्कत है। थोड़े दिन बाद ले लोगी क्या? यही नहीं, हमेशा खुद को सही साबित करने और अपनी बात मनवाने की कोशिश न करें।

8. सेक्स पर बनाएं तालमेल
अक्सर देखा जाता है कि शादी के कुछ साल बाद महिलाएं सेक्स को टालने लगती हैं, जबकि पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता। महिलाएं करियर के अलावा घर-परिवार, बच्चों की जिम्मेदारी पूरी करते-करते इतना बिजी हो जाती हैं कि अपने लिए उनके पास वक्त होता ही नहीं। ऐसे में सेक्स भी पीछे छूट जाता है। बेहतर है कि पति-पत्नी बैठकर इस बारे में बात करें और एक-दूसरे की पसंद के मुताबिक तालमेल बिठा लें। ध्यान रखें कि सेक्स के लिए सामनेवाले को मजबूर न करें बल्कि कुछ ऐसा करें कि वह इसे एंजॉय करे और अपनी ड्यूटी समझकर न निभाए।

9. दूसरों की मदद लें
अगर कोई गलती होती है तो बहाने बनाने के बजाय माफी मांगना बेहतर है। अगर आपको पता चलता है कि पार्टनर ने कोई झूठ बोला है तो सोचें कि उसने ऐसा क्यों किया। हो सकता है कि आपने वह माहौल ही नहीं दिया कि सामनेवाला खुलकर बात कर सके। कपल को आपस में कुछ नियम तय करने चाहिए, मसलन हमारे बीच जब भी बहस होगी तो हम एक-दूसरे की बेइज्जती नहीं करेंगे, पैरंट्स पर लांछन नहीं लगाएंगे, आवाज ऊंची नहीं करेंगे। इसी तरह, दिक्कत आने पर रिश्ते खत्म मानने के बजाय उसके खराब होने की वजह जानने की कोशिश करें। आप किसी ऐसे करीबी दोस्त की सलाह भी ले सकते हैं जो आप दोनों को अच्छी तरह से जानता हो। फिर भी बात नहीं बनती तो काउंसलर से मदद जरूर लें।

10. ज्यादा डिमांडिंग न बनें
पति-पत्नी अक्सर एक-दूसरे से बड़ी उम्मीदें रखते हैं, जबकि हर शख्स की अपनी काबिलियत और सीमाएं होती हैं। जिंदगी को खुशहाल बनाने का सबसे अच्छा तरीका है कि खुद की उम्मीदें कम करें और दूसरे को भी उम्मीदें कम पालने दें। किसी को स्विट्जरलैंड घुमाने का वादा कर मनाली घुमाने ले जाएंगे तो उसे बुरा लगेगा ही। शुरू में भी उतना ही करें, जितना हमेशा कर सकते हैं और उसे बनाए रख सकते हैं। इसी तरह, अक्सर हम अपने हकों को लेकर झगड़ते रहते हैं। अगर पति-पत्नी एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करते हैं और अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी पूरा करते हैं तो दोनों के बीच बेहतर तालमेल होगा।

विवाद के मसले
1. गोलू-मोलू की परवरिश

पति-पत्नी के बीच झगड़े की बड़ी वजह बच्चों की परविश को लेकर अलग-अलग सोच होती है। बच्चे की किसी कमी या गलत आदत का दोषी दोनों एक-दूसरे को ठहराने लगते हैं, मसलन पापा से गुस्सा सीख रहा है, या मम्मी से फिजूलखर्ची सीख रहा है आदि। एक बच्चे को पढ़ाई में आगे रखना चाहता है तो दूसरा गेम्स में। इस तरह के मसलों को आपस में बात करके सुलझाएं। परवरिश के नियम तय करें और हां, उसके सामने झगड़ें नहीं।

पति: तुम टीवी देखती रहती हो, इसलिए यह भी दिन भर कार्टून देखना चाहता है।
पत्नी: तुम दिन भर मोबाइल पर बात करते हो, इसलिए यह मोबाइल गेम पर लगा रहता है।

सही तरीका:
पति: मैं घर में आते ही मोबाइल साइड में रख दूंगा। यह वक्त फैमिली का है। डिनर के दौरान हम टीवी नहीं देखेंगे।
पत्नी: मैं दिन में एक-दो घंटे ही टीवी देखूंगी, वह भी जब गोलू स्कूल गया हो।

2. लॉज फॉर इन-लॉज
अक्सर पति-पत्नी एक-दूसरे के पैरंट्स को लेकर ताना मारते रहते हैं। पति को यह शिकायत होती है कि पत्नी की मां घर में जरूरत से ज्यादा दखल देती है तो पत्नी को लगता है कि सास हमेशा पति को सिखाती रहती है। इससे निपटने के लिए पहला नियम बनाएं कि दोनों के ही पैरंट्स का दखल कम होगा और दोनों ही एक-दूसरे के पैरंट्स का ख्याल रखेंगे।

पत्नी : जब देखो, मेरी मां के पीछे पड़ी रहते हो। तुम्हें उनमें सारी कमियां ही नजर आती हैं!
पति : तुम मेरे पैरंट्स का बिल्कुल ख्याल नहीं रखती। ऐसे में मैं क्यों तुम्हारे पैरंट्स की केयर करूं।

सही तरीका:
पत्नी: दोनों के पैरंट्स की जिम्मेदारी हमारी है। मैं अपनी ममा से बोलूंगी कि वह हमारे मामले में ज्यादा दखल न दें।
पति: हम दोनों मिलकर उनका पूरा ख्याल रखेंगे। मैं मां को भी समझाऊंगा कि वह तुम्हें किसी बात के लिए मजबूर न करें।

3. दिल-दोस्ती ईटीसी
पति-पत्नी के बीच कई बार झगड़े की वजह दोनों के दोस्त होते हैं। पति शिकायत करते रहता है कि पत्नी अपनी सहेलियों के साथ घंटों बार करके मोबाइल का बिल बढ़ाती है, हर छोटी-छोटी बात उनसे शेयर करती है। दूसरी ओर, पत्नी को लगता है कि दोस्तों के साथ अकेले वक्त बिताने के चक्कर में पति उसकी और परिवार की अनदेखी करता है। बेहतर है कि आप एक-दूसरे को स्पेस देते हुए सामनेवाले के फ्रेंड्स को इज्जत दें। बैचलर फ्रेंड्स के बजाय कपल फ्रेंड्स बनाएं।
पति: जब देखो, अपनी फ्रेंड्स के साथ फोन पर या शॉपिंग में बिजी रहती हो। पता नहीं, किस-किस से दोस्ती कर रखी है?
पत्नी: आप अपने फ्रेंड्स के साथ मस्ती करें और मैं दिन भर घर में पड़ी रहूं?

सही तरीका:
पति: फ्रेंड्स से बात करने से मैं मना नहीं करूंगा, लेकिन तुम्हें घंटों फोन पर लगे रहना क्या सही है?
पत्नी: दोस्तों के साथ टाइम बिताना अच्छी बात है, लेकिन इसके कारण हमारे रिश्ते खराब हों, तुम ऐसा कभी नहीं चाहोगे।

4. करियर का बैरियर
कई बार महिलाओं को शादी के बाद करियर छोड़ना पड़ता है या नौकरी करते हुए तमाम तरह के समझौते करने पड़ते हैं। उधर, पति अपने करियर के चक्कर में उस पर ध्यान देना कम कर देता है और यह भी उम्मीद करता है कि पत्नी नौकरी करते हुए भी घर-गृहस्थी को अपना सौ फीसदी दे। अगर बीवी नौकरी कर रही है तो पति को चाहिए कि अपनी अपेक्षाएं थोड़ी कम रखे और उसकी हर तरह से हेल्प करे। पति-पत्नी दोनों को चाहिए कि वे मिलकर कुछ ऐसी प्लानिंग करें कि न तो करियर प्रभावित हो और न ही परिवार। दूसरी ओर, अगर पत्नी ने अपना करियर घर-परिवार के चक्कर में छोड़ा है तो जिंदगी भर यह बात उसे सालती रहती है। यह झगड़े की बड़ी वजह बनती है। ऐसे में बेहतर है कि बच्चों के थोड़ा बड़ा होने पर पत्नी फिर से करियर शुरू कर दे।

पत्नी: मैं आज लेट आऊंगी। क्लाइंट के साथ मेरी मीटिंग है। रोज-रोज जल्दी आना संभव नहीं है। या तो घर का काम करवा लो या फिर नौकरी कर लेने दो।
पति: तुम्हारा क्या है, तुम तो रोज ही लेट आती हो। कभी बच्चों के बारे में भी सोच लिया करो।

सही तरीका:
पत्नी: नौकरी की कुछ मजबूरियां होती हैं। टारगेट पूरा करने के लिए कभी-कभी ऑफिस में ज्यादा समय रुकना पड़ जाता है। मैं कोशिश करूंगी कि काम जल्दी निबटाकर आ जाऊं।
पति: कोई बार नहीं। आज मैं ऑफिस से जल्दी आकर घर का काम और बच्चे संभाल लूंगा। तुम फिक्र मत करो। वैसे, मैं देख रहा हूं कि तुम पर काम का बोझ बहुत ज्यादा है। चाहो तो तुम चाहो तो करियर से एक ब्रेक ले लो। जब बच्चे थोड़े बड़े हो जाएंगे तो तुम अपना करियर फिर से शुरू कर देना।

5. मोबाइल की मुसीबत
इन दिनों मोबाइल बहुत-सारे कपल्स के बीच तनाव की वजह बन रहा है। अक्सर पति या पत्नी को दूसरे से शिकायत होती है कि उनका जीवनसाथी ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर बिताता है। कभी-कभी एक पार्टनर दूसरे पार्टनर पर शक करने लगता है कि कहीं वह किसी 'वो' से पींगे तो नहीं बढ़ा रहा। फोन पर बात करते वक्त बाहर चले जाना और मोबाइल पर लॉक लगाकर रखना शक बढ़ाता है। अगर ईमानदार हैं तो यह सब बंद कर दें। रिश्तों में ईमानदारी और ट्रांसपैरंसी रखें। शक की गुंजाइश खत्म हो जाएगी। हां, अगर कोई पार्टनर कुछ स्पेस चाहता है, कुछ प्राइवेसी चाहता है, मोबाइल में लॉक लगाए रखना चाहता है तो उसकी इस इच्छा का भी आदर करें। साथ ही, घर में मोबाइल पर वक्त बिताने की लिमिट भी खुद ही तय करें।

पति: तुम सो जाओ! कॉलेज के पुराने दोस्त महीनों बाद ऑनलाइन मिले हैं, मैं जरा उनके साथ चैट कर रहा हूं।
पत्नी: जब देखो, चैटिंग में बिजी रहते हो। तुम्हें तो मेरी कोई परवाह ही नहीं है।

सही तरीका:
पति: मुझे पता है कि हमें एक-दूसरे के लिए कम समय मिलता है और इसे ऑनलाइन चैटिंग पर बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए। मैं हर रात बस 15 मिनट चैटिंग किया करूंगा।
पत्नी: दोस्तों के टच में रहना अच्छी बात है, लेकिन तुमने यह अच्छा किया कि 15 मिनट की लिमिट बांध ली।

6. पैसे की चिकचिक
पैसा भी पति-पत्नी के रिश्ते को खराब करने में बड़ा रोल निभाता है। पत्नी अगर कमाती है तो पतियों को शिकायत रहती है कि वह घर खर्च में पैसा ज्यादा नहीं देती, शॉपिंग में उड़ा देती है। अगर कमाती नहीं है तो पत्नी को शिकायत होती है कि पति पैसा नहीं देता। नहीं कमाती तो पति पॉकेट मनी या पूरा घर खर्च नहीं देता। प्रॉपर्टी किसके नाम पर होगी, यह भी विवाद की वजह बनता है।
पति: मैं इससे ज्यादा नहीं दे सकता। इसी में घर खर्च चलाना होगा। तुम फिजूल में खर्च करती हो!
पत्नी: शादी से पहले मैं खुद कमाती थी तो अपनी मर्जी से खर्च करती थी। अब हर बात पर चिक-चिक होती है।

सही तरीका:
पति: हमारे खर्चे आमदनी से ज्यादा हो रहे हैं। क्यों ना, हम मिलकर घर का बजट बनाएं जैसे जेटली जी देश का बनाते हैं।
पत्नी: सही बात है। मैं भी कभी-कभार ज्यादा खर्च कर जाती हूं। पर्सनल खर्चों की भी लिमिट बांध देते हैं।

7. साथी हाथ बंटाना
आजकल ज्यादातर महिलाएं नौकरी करती हैं बावजूद इसके उम्मीद की जाती है कि घर का सारा का सारा काम करें। पति घर आता है और दिन भर की थकान बताकर आराम करने लगता है, जबकि पत्नी को घर लौटकर बच्चों की देखभाल के अलावा घर के काम भी करने होते हैं। काम के प्रेशर में पति-पत्नी के बीच किच-किच बढ़ती चली जाती है। बेहतर रिलेशन के लिए दोनों ही पार्टनर को मिलकर घर के काम करने चाहिए।
पत्नी : मैं बहुत थक गई हूं। एक कप चाय बना लाओ न प्लीज।
पति: मैं कौन-सा मस्ती करके आ रहा हूं? तुम्हीं क्यों नहीं चाय बना लाती?

सही तरीका:
पत्नी: मैं बहुत थक गई हूं। थके तो तुम भी लग रहे हो। चाय तुम बनाओगे या मैं बना दूं?
पति: नहीं-नहीं, आज मैं चाय बना कर लाता हूं। सुबह ब्रेकफास्ट भी मैं ही बनाऊंगा। तुम डिनर बनाओगी तो मैं बच्चों को होमवर्क करा दूंगा। तुम बच्चों को पढ़ाओगी तो मैं घर के दूसरे छोटे-मोटे काम कर दूंगा। जब तुम थक जाओ तो बता देना।

ज्यादा जानकारी के लिए
किताबें-
The Five Love Languages: The Secret to Love that Lasts By Gary D Chapma
The Seven Principles for Making Marriage Work ‌By John Gottman Ph.D
Love and Respect: The Love She Most Desires; The Respect He Desperately Needs By Emerson Eggerichs
Men Are from Mars, Women Are from Venus By John Gray
His Needs, Her Needs: Building an Affair-Proof Marriage By Willard F. Harley Jr.

फेसबुक पेज
Marriage Advice & Relationship Help
Marriage Tips
Great Marriage Tips and Advice

मोबाइल ऐप
Couple: यह ऐप एक सोशल नेटवर्क है, जो सिर्फ आप दोनों (पति-पत्नी) के लिए है। यह क्यूट और फनी ऐप आपको अपनी जगह से लोकेशन, स्टेटस, फोटो आदि शेयर करने का मौका देता है। मैसेज के अलावा लाइव विडियो चैट भी कर सकते हैं।
Mint: शादी के बाद मनी मैनेजमेंट के लिए यह बेहतरीन ऐप है। यहां आप बजट और बैंक अकाउंट्स का लेखा-जोखा रख सकते हैं। बैंक अकाउंट, क्रेडिट कार्ड से लेकर इन्वेस्टमेंट तक की सारी जानकारी एक ही जगह पर मिलने से आप दोनों की टेंशन काफी कम हो सकती है।

एक्सपर्ट्स पैनल
अरुणा ब्रूटा, सीनियर सायकॉलजिस्ट
गीतांजलि शर्मा, सीनियर मैरिज काउंसलर
डॉ. राजीव मेहता, कंसल्टंट सायकायट्रिस्ट, सर गंगाराम हॉस्पिटल

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जरूरी जानकारी: इंटरनेट पर जालसाजी से कैसे बचें?

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लाखों लोगों के सैकड़ों-करोड़ रुपये सोशल ट्रेड में डूब गए हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। धोखे के शिकार लोग पहले भी हुए हैं। आखिर क्या है ठगे जाने की वजह और कैसे बच सकते हैं हम, बता रहे हैं पुष्पेंद्र चौहान -

'भाई साहब, घर
बैठे पैसा कमाना चाहते हो तो इससे अच्छा रास्ता नहीं हो सकता'। इंश्योरेंस सेक्टर में काम करने वाले गाजियाबाद के रामप्रस्थ कॉलोनी के अमित किशोर जैन को जब उनके परिचित ने यह कहा था तो मामला उन्हें जंचा नहीं, लेकिन आगरा के रहने वाले एक दोस्त ने जब एक बार इस काम पर नजर मारने को कहा तो वह मना नहीं कर पाए।

दोस्त ने उन्हें बताया कि उन्होंने एब्लेज इंफो सल्यूशंस के साथ ही वेबवर्क में भी पैसे लगाए हुए हैं, लेकिन एब्लेज का काम शुरू हुए करीब डेढ़ साल हो चुका है, लिहाजा वहां ज्यादा पैसा नहीं है। वेबवर्क नई है इसलिए इस कंपनी से ज्यादा रिटर्न मिल रहा है। दोस्त के कहने पर अमित शाहदरा में रहने वाले एक शख्स से मिले और वह उन्हें सोशल ट्रेड का कारोबार करने वाली कंपनी वेबवर्क के नोएडा सेक्टर-2 के दफ्तर लेकर आए। यहां पर उनकी मुलाकात कंपनी के डायरेक्टर्स अनुराग गर्ग और संदेश वर्मा से हुई।

उन्होंने कंपनी के काम और कमाई के बारे में बताया। अमित अच्छे रिटर्न के लिए आश्वस्त हो गए। उन्होंने खुद, वाइफ और बेटी के नाम से 1,72,500 रुपये में तीन आईडी ली। दो हफ्ते तक अच्छे रिटर्न मिलने पर उन्होंने इतने ही रुपये देकर तीन और आईडी ले ली। करीब एक-डेढ़ महीने तक तो पेमेंट आती रही, लेकिन उसके बाद समस्या आने लगी और जनवरी के शुरुआत में तो बिल्कुल ही आनी बंद हो गई।

इसके बाद उन्होंने फोन और ईमेल करना शुरू किया तो कंपनी के खूब चक्कर भी काटे। उनके जैसे कई दूसरे इनवेस्टर्स की पेमेंट भी फंसने लगी थीं और डायरेक्टर कभी एक हफ्ते तो कभी दो दिन में पेमेंट आने का आश्वासन देने लगे। आखिर में पब्लिक नोटिस लगा दिया गया कि कंपनी दो महीने तक काम नहीं करेगी। इसी के साथ अमित जैसे लाखों लोगों के पैसे कंपनी में फंस गए और आगे क्या होगा, यह किसी को नहीं पता।

स्कैम का फंडा: इसकी टोपी, उसके सर

पिछले दिनों जब सोशल ट्रेड के कारोबार में लगी एब्लेज इंफो सल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड के एमडी अनुभव मित्तल समेत कंपनी के तीन अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया तो कंपनी में पैसा लगाने वाले लाखों लोगों को यकीन नहीं हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है। कंपनी ने उन्हें बताया था कि सब कुछ फेयर है और उनसे अपने पेज के प्रमोशन के लिए लाइक्स क्लिक करवाने के पैसे लिए जा रहे हैं, जबकि दूसरों के पेज प्रमोट करने के लिए लाइक्स क्लिक करने के लिए 5 रुपये प्रति क्लिक दिए जा रहे हैं। ठीक इसी तरह की बात सोशल ट्रेड कारोबार कर रही वेबवर्क ट्रेड लिंक्स प्राइवेट लिमिटेड ने अपने इनवेस्टर्स को बताई हुई थी।

वेबवर्क के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने वाले ए के जैन का आरोप है कि जब उन्होंने कंपनी में इन्वेस्ट किया था तो उनके बिल पर पेमंट के लिए 'प्लान कॉस्ट' लिखा हुआ था। इसे बाद में बदलकर पब्लिशर कर दिया गया। कंपनी की तरफ से बताया गया कि उनसे पैसा अपने विज्ञापन को उनकी वेबसाइट www.addsbook.com पर पब्लिश करवाने के लिए लिया जा रहा है, जबकि दूसरे के विज्ञापन को लाइक करने के लिए उन्हें हर क्लिक के 6 रुपये दिए जा रहे हैं।

अपना पेज या विज्ञापन प्रमोट करवाने और दूसरों के प्रमोशन के बदले पैसा पाने तक का मामला तो ठीक था, लेकिन जांच एजेंसियों को पता चला है कि इस बिजनेस मॉडल में कंपनियां झांसा दे रही थीं और लोगों से लिए गए पैसे को ही उनमें बांट रही थीं। इन दोनों कंपनियों की तरह ही सोशल ट्रेड के नाम पर कारोबार कर रही दूसरी कंपनियों का भी कोई दूसरा इनकम सोर्स नहीं है।

शुरू में तो सबको पैसा भरपूर मिलता है। जैसे जैसे पिरामिड बड होता जाता है, ज्यादा लोगों को पैसा बांट पाना मुश्किल होता जाता है। ऐसे में अपना कमिशन और खर्चे काटने के बाद इन्वेस्ट करने वालों को चाहकर भी उनका पूरा पैसा कंपनी नहीं लौटा पाती और यही स्कैम को जन्म देता है। जांच एजेंसियों के अनुसार, सोशल ट्रेड में 10 लाख से ज्यादा लोगों ने इन्वेस्ट किया हुआ है।

क्या है सोशल ट्रेड

मार्केटिंग के दूसरे तरीकों के बिना इंटरनेट पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल प्रॉडक्ट या सर्विस को प्रमोट करने के लिए किया जाता है। इसे सोशल ट्रेड का नाम दिया गया है। ऐसी कंपनियां जो फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम ,यू-ट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किसी प्रॉडक्ट या सर्विस को प्रमोट करती हैं, उन्हें सोशल ट्रेड कंपनी कहते हैं। हालांकि सोशल मीडिया की कई वेबसाइट खुद भी एक तयशुदा चार्ज लेकर प्रमोशन का काम करती हैं। सभी सोशल ट्रेड कंपनियां फ्रॉड नहीं हैं। सोशल मीडिया पर प्रमोशन का काम करने वाली कई कंपनियां अपने क्लाइंट से चार्ज करती हैं।



कैसे काम करती हैं ये कंपनियां

सोशल ट्रेडिंग का काम मल्टिलेवल नेटवर्किंग का है। इसे पिरामिड स्ट्रक्चर भी कहते हैं। कंपनी से जुड़ने वाले मेंबर को अपने नीचे दो मेंबर और जोड़ने होते है, जिन्हें बूस्टर कहा जाता है। इनके जुड़ने से ऊपर वाले मेंबर को प्रमोशन का कमिशन मिलता है। जैसे-जैसे नीचे के मेंबर बढ़ते जाते हैं या पिरामिड बढ़ता जाता है, ऊपर के मेंबर का पैसा भी बढ़ता जाता है।

दावा किया जाता है कि इन कंपनियों में पिरामिड के सबसे ऊपर के लोगों की महीने की कमाई 20-20 लाख रुपये से भी अधिक है। हालांकि इसका कोई सबूत नहीं है। मेंबर्स के साथ-साथ कंपनी की कमाई कमिशन के रूप में बढ़ती जाती है। लेकिन मेंबर्स का पैसा उन्हीं में घूमते रहने से काफी बड़ा पिरामिड बन जाने के बाद एक समय ऐसा भी आ जाता है कि पिरामिड में सबसे नीचे के लोगों को देने के लिए पैसे नहीं बचते। ऐसे में कंपनी या तो खुद को दिवालिया घोषित कर लेती है या फिर कारोबार समेट लेती है।

सीनियर साइबर क्राइम अनालिस्ट किसलय चौधरी के अनुसार, अपने पेज को प्रमोट करने के लिए पैसे देकर दूसरों के पेज को लाइक करने पर हर क्लिक के पैसे मिलने के कॉन्सेप्ट में कोई दिक्कत नहीं है। पिरामिड बनाने में भी कोई दिक्कत नहीं है। अगर प्रमोशन के लिए सर्विस देकर पैसा लिया जा रहा है तो समस्या नहीं है। समस्या तब शुरू होती है जब लोगों से लिए पैसे को कंपनी उन्हीं के बीच घुमाने की कोशिश करने लगती है। अभी जो कंपनियां फंस रही हैं उन्होंने लोगों से पैसा तो ले लिया, लेकिन इनके पास क्लाइंट नहीं हैं। अगर इन कंपनियों के पास क्लाइंट होते, तो कभी लोगों की पेमेंट नहीं रुकती।

कई कंपनियां जुटी हैं इस कारोबार में

सोशल ट्रेड के कारोबार में इस समय कई कंपनियां काम कर रही हैं। इनमें से कुछ कंपनियां पुलिस जांच का सामना कर रही हैं तो कई अपना कारोबार समेट कर फुर्र हो चुकी हैं।

- एब्लेज इंफो सल्यूशंस: नोएडा स्थित डायरेक्टर अनुभव मित्तल समेत कंपनी के तीन अधिकारियों को एसटीएफ गिरफ्तार कर चुकी है। कंपनी के अकाउंट्स फ्रीज किए जा चुके हैं और कंपनी का काम बंद हो चुका है।

- वेबवर्क ट्रेड लिंक्स : नोएडा स्थित डायरेक्टर अनुराग गर्ग और संदेश वर्मा पर मुकदमा दर्ज किया गया है। कंपनी के अकाउंट्स फ्रीज कर लिए गए हैं। कंपनी ने दो महीने काम बंद रखने का नोटिस लगा दिया है।

- ऐड्सकैश : गाजियाबाद स्थित इस कंपनी की तरफ से काफी दिनों से इन्वेस्टर्स को पेमेंट नहीं की गई है। जिसकी वजह से इन्वेस्टर्स ने कंपनी ऑफिस में तोड़फोड़ की है। आगे कंपनी काम करेगी या नहीं, इसका कुछ पता नहीं है।

(इनके अलावा भी कई छोटी-छोटी कंपनियां वेबसाइट बनाकर यह कारोबार कर रही हैं। जिनमें निवेश करना जोखिम भरा काम हो सकता है)

गाइडलाइंस को धता बतातीं कंपनियां

सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर डिजिटल मार्केटिंग और डायरेक्ट सेलिंग के कॉकटेल से तैयार किए गए सोशल ट्रेड कारोबार वाली कंपनियों ने कानूनी खामियों का फायदा उठाया है। ऊपर से इसमें इन्वेस्टर्स का पिरामड बनाने में मल्टिलेवल मार्केटिंग का भी सहारा ले लिया गया। लिहाजा इन्वेस्टर्स को ऐसी कंपनियों की ठगी से बचाने के लिए कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री ने 9 सितंबर 2016 को सभी राज्यों को लंबी-चौड़ी गाइडलाइंस की एडवाइजरी जारी कर दी।

साथ ही डायरेक्ट सेलिंग में लगी कंपनियों को इन गाइडलाइंस को फॉलो करने की अंडरटेकिंग मिनिस्ट्री को देने को कहा। सोशल ट्रेड स्कैम की जांच में लगी इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसियों के अनुसार इन गाइडलाइंस के जारी होने के बाद ही इन कंपनियों में खलबली मची और इन कंपनियों ने अपने अपने बिजनेस मॉडल को बदलने की कोशिश की। इसी का नतीजा हुआ कि एब्लेज इंफो सल्यूशंस ने ई-कॉमर्स पोर्टल इंटमार्ट शुरू कर दिया, जबकि वेबवर्क ट्रेड लिंक्स ने www.addsbook.com लॉन्च कर दी। इनके माध्यम से यह कंपनियां अपने कारोबार को कानूनी जामा पहनाने की कोशिश करने में जुटी हुईं थीं।

डायरेक्ट सेलिंग से अलग है पिरामिड स्कीम

कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री की तरफ से जारी की गई गाइडलाइंस में डायरेक्ट सेलिंग, मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों को पिरामिड स्ट्रक्चर मनी सर्क्यूलेशन स्कीम में लगी कंपनियों से अलग किया गया। पिरामिड स्ट्रक्चर या मनी सर्कुलेशन स्कीम में लगी कंपनियों को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है। इस तरह की कंपनियों पर नजर रखने और कार्रवाई करने के लिए राज्य सरकारों को व्यवस्था करने के लिए कहा गया है। इस तरह की कंपनियों से जुड़ने से पहले कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री की इन गाइडलाइंस को जरूर जान लें। इन्हें https://tinyurl.com/zl3v2gs पर क्लिक करके समझा जा सकता है।

पिरामिड स्कीम : मल्टीलेवल नेटवर्क से इन्वेस्टर्स या सब्सक्राइवर्स को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से फायदा पहुंचाने के लिए जोड़ने वाली कंपनियां इस श्रेणी में आती हैं। इसमें कंपनियां अपनी नीचे और सब्सक्राइवर्स को जोड़ने और उनके नीचे अन्य लोगों के जुड़ने पर भी फायदा देती हैं। लोगों से लिए हुए पैसे को लोगों में ही बांटने वाली इस तरह की कपंनियां 'द प्राइस चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) एक्ट 1978' के तहत प्रतिबंधित हैं।

डायरेक्ट सेलिंग : मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन, सामान बेचने या फिर कोई भी सर्विस देने में वाली कंपनियां डायरेक्ट सेलिंग में आती हैं जो इसके लिए पिरामिड स्ट्रक्चर का इस्तेमाल नहीं करती हैं। हालांकि मल्टीलेवल नेटवर्क का इस्तेमाल करने वाले डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों को पिरामिड स्ट्रक्चर कंपनियों से अलग रखा गया है। गाइडलाइंस में साफ-साफ बताया गया है कि नए सब्सक्राइवर्स या इन्वेस्टर्स को जोड़ने पर डायरेक्ट सेलिंग कंपनी किसी भी तरह से पैसा नहीं लेंगी।

डायरेक्ट सेंलिंग और पिरामिड स्ट्रक्चर/पोंजी स्कीम में फर्क

डायरेक्ट सेलिंग

कंज्यूमर्स के लिए प्रॉडक्ट या सर्विस की वर्कप्लेस या घर से मार्केटिंग। जब तक कंज्यूमर प्रॉडक्ट या सर्विस लेता है तब तक फायदा होता है।

प्रॉडक्ट या सर्विस की सेल बढ़ाने पर जोर होता है।

यह प्रॉडक्ट की सेल पर आधारित होती है, इसलिए सब्सक्राइबर को वास्तविक कारोबार करने का अवसर मिलता है।

प्लान मुख्य रूप से प्रॉडक्ट की सेल पर आधारित होते हैं।

नए मेंबर्स बनाना जरूरी नहीं होता क्योंकि कारोबार मुख्य रूप से प्रॉडक्ट बेचने पर आधारित होता है।

प्रॉडक्ट के ब्रैंड को प्रमोट करने के लिए मार्केटिंग की जाती है।

प्रॉडक्ट को वापस लेने की गारंटी दी जाती है ताकि डायरेक्ट सेलर और कंज्यूमर का अधिकार सुरक्षित रहे।

प्रॉडक्ट को डिमांड के अनुसार सप्लाई किया जाता है और उसकी इनवेंटरी बनाई तैयार की जाती है।

प्रॉडक्ट के बारे में या बेचने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है।

डायरेक्ट सेलर्स कभी भी न बिकने वाले प्रॉडक्ट को लौटाकर कारोबार छोड़ सकते हैं।

इस तरह का कारोबार संबंधित विभागों के नियमों के अनुसार लाइसेंस लेकर किया जाता है।

सेल्सपर्सन इंडस्ट्री के मॉडल कोड को फॉलो करता है।

पिरामिड स्ट्रक्चर/पोंजी स्कीम

प्रॉडक्ट या सर्विस देने की जगह नए मेंबर्स बनाने से फायदा मिलता है।

नए मेंबर्स या सब्सक्राइबर्स बनाने पर जोर दिया जाता है।

वास्तविक कारोबार करने का अवसर नहीं होता क्योंकि इनमें या तो प्रॉडक्ट होता ही नहीं है या फिर प्रॉडक्ट की वैल्यू नहीं होती है।

प्लान मुख्य रूप से प्रॉडक्ट की सेल पर नहीं, बल्कि नए मेंबर्स जोड़ने पर आधारित होते हैं।

नए मेंबर्स बनाना जरूरी होता है क्योंकि इन्हीं से मिलने वाली फीस से कमीशन मिलता है।

प्रॉडक्ट को दिखावे के लिए इस्तेमाल किया जाता है और उन्हें हकीकत में किसी को बेचा नहीं जाता।

प्रॉडक्ट को वापस नहीं लिया जाता या फिर दिखावे के लिए वापस लेने का दावा किया जाता है।

प्रॉडक्ट को बेचने की जिम्मेवारी सेलर की होती है, चाहे वह उसे बेच पाए या नहीं। इसमें मार्केट डिमांड पर ध्यान नहीं दिया जाता।

प्रॉडक्ट सेल्स के लिए ट्रेनिंग नहीं जाती।

आमतौर पर रिफंड की या कारोबार छोड़ने की पॉलिसी नहीं होती।

इस तरह के कारोबार के लिए संबंधित विभागों से नियमों के अनुसार लाइसेंस लेकर नहीं चलाया जाता।

इसमें कोई मॉडल कोड होता ही नहीं है।

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जश्न-ए-एग्जाम

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स्कूल एग्जाम्स चल रहे होंगे या आने वाले होंगे। साल भर अच्छी तरह पढ़नेवाले टैलंटेड स्टूडेंट्स आखिरी दिनों की मेहनत की बदौलत और बेहतर रिजल्ट लाना चाह रहे होंगे तो हमेशा मौज-मस्ती में रहनेवाले स्टूडेंट्स भी कम-से-कम आखिरी दिनों में अच्छी पढ़ाई करने की कोशिशों में हैं। ऐसे में एग्जाम्स से पहले के चंद दिनों में क्या करें कि अच्छे नंबर पा सकें, एक्सपर्ट्स से बात करके बता रही हैं प्रियंका सिंह :

एक्सपर्ट्स पैनल

श्यामा चोना, एक्स प्रिंसिपल, डीपीएस

एस. सी. तिवारी, सीनियर एजुकेशनिस्ट

अरुणा ब्रूटा, सीनियर सायकॉलजिस्ट

परवीन मल्होत्रा, करियर काउंसलर

सुकृति, सीबीएसई साइंस टॉपर 2016

1. एग्जाम से पहले रात-रात भर पढ़ना कितना सही?

एग्जाम से पहले रात-रात भर पढ़ना सही नहीं है। वैसे तो कहा जाता है कि सुबह-सुबह पढ़ना ही बेहतर है, रात में नहीं, लेकिन हर बच्चे की अपनी बॉडी क्लॉक होती है। कुछ बच्चे रात में अच्छा पढ़ पाते हैं तो कुछ सुबह उठकर। ऐसे में बच्चा जब पढ़ना चाहे, उसे पढ़ने दें। लेकिन एग्जाम से पहले दिन यह नियम लागू नहीं होता क्योंकि एग्जाम हॉल में फ्रेश माइंड से ही जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि आप थके हुए न हों और आपने अच्छी नींद ली हो। थकान के बाद दिमाग सोना चाहता है जबकि बच्चा जागना चाहता है। ऐसे में स्टूडेंट्स नींद भगाने के लिए कॉफी-चाय से लेकर दवा तक ले लेते हैं। यह सेहत के लिए अच्छा नहीं है। एग्जाम से पहली रात 11 बजे तक सो जाएं। कम-से-कम 8 घंटे की नींद जरूर लें। मुमकिन हो तो दिन में भी आधा घंटे का पावर नैप ले लें। सुबह उठकर ताजा हवा में गहरी सांसें लें। फिर नहा-धोकर एग्जाम्स देने जाएं। बहुत जरूरी न लगे तो सुबह रिविजन करने से बचें। हां, अगर किसी टॉपिक को लेकर ज्यादा चिंता है तो रिविजन कर सकते हैं।

2. अगर न आ रही हो नींद?

एग्जाम से पहले नींद इसलिए उड़ जाती है क्योंकि स्टूडेंट्स एग्जाम को हौवा बना लेते हैं। एग्जाम की पॉजिटिव साइड देखें। आपने अभी तक जो पढ़ाई की, एग्जाम के जरिए आप आकलन कर सकते हैं कि आपने क्या सीखा और समझा। ऐसे में एग्जाम्स को एंजॉय करने, सेलिब्रेट करने की आदत डालें। सोचें कि आप अपना बेस्ट देंगे, बाकी जो होगा, देखा जाएगा। फिर भी अगर एग्जाम से पहले टेंशन के कारण नींद नहीं आ रही हो तो एक कप गुनगुना दूध पिएं। 15-20 मिनट के लिए पैर गुनगुने पानी में डालकर रखने से भी शरीर और मन रिलैक्स होता है। अगर मन बहुत उदास या परेशान है तो पापा-ममा से जरूर शेयर करें। बात करने से मन हल्का होता है।

3. पढ़ाई के दौरान कब लें ब्रेक?

इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि कुछ बच्चे लगातार दो घंटे भी अच्छी तरह पढ़ सकते हैं जबकि कुछ का कंसंट्रेशन घंटे भर भी नहीं टिकता। बेहतर है कि हर घंटे के बाद 5-10 मिनट और हर दो घंटे बाद 15-20 मिनट का ब्रेक लें। ब्रेक के दौरान अपनी पसंद का कुछ भी कर सकते हैं, मसलन टीवी देखना, आउटडोर गेम खेलना, म्यूजिक सुनना, डीप ब्रीदिंग करना या फिर कंसंट्रेशन सुधारने की एक्सरसाइज करना। इसके लिए एक अखबार लें और उसमें एक पैरा लेकर उसके अंदर कोई एक अल्फाबेट (मानो a) लेकर उसे सर्कल कर लें। बाकी को छोड़ते जाएं। स्पोर्ट्स एक्टिविटी से भी कंसंट्रेशन बढ़ता है। इस दौरान चेस या वर्ड पजल्स जैसे गेम न खेलें, क्योंकि इनमें आपको दिमाग ज्यादा लगाना होगा। इनडोर गेम्स में कैरम जैसे गेम खेल सकते हैं। आउटडोर के सभी गेम अच्छे हैं। स्ट्रेचिंग, डीप ब्रिदिंग करना भी अच्छा है।

4. बाहर जाकर खेलें और एक्सरसाइज करें या नहीं?

एग्जाम के दिनों में भी रुटीन बाकी दिनों की तरह ही रहे तो बेहतर है। बस, पढ़ाई का वक्त बढ़ा देना चाहिए। इसका मतलब हुआ कि खेल-कूद को पूरी तरह बंद नहीं करना चाहिए। हां, खयाल जरूर रखें कि चोट न लगे। बेहतर है कि घर के अंदर खेलने के बजाय बाहर जाकर करीब घंटा भर फुटबॉल, क्रिकेट या बैडमिंटन खेलें। याद रखें, खेलने से थकान नहीं होती। वैसे भी बच्चों का एनर्जी लेवल काफी हाई होता है। अगर खेलने का मन नहीं है तो ब्रिस्क वॉक करें। इससे एड्रेनेलिन हॉर्मोन निकलता है जो मन को तरोताजा रखता है और खुशनुमा (फीलगुड) अहसास देता है। इसी तरह, एक्सरसाइज करना बंद न करें। लगातार बैठे रहने से बॉडी का एनर्जी लेवल गिर जाता है, इसलिए थोड़ा मूवमेंट जरूरी है। हर घंटे, दो घंटे में उठकर स्ट्रेचिंग करें। इसके अलावा सुबह उठकर पढ़ने बैठने से पहले वॉक करें।

5. मोबाइल कितनी देर इस्तेमाल करें?

एग्जाम्स के दिनों में ज्यादा पढ़ना बहुत जरूरी होता है, लेकिन वह पढ़ाई स्टूडेंट्स के दिमाग में तभी जाती है जब उनका मूड फ्रेश रहता है। लगातार पढ़ाई के बीच में 5-10 मिनट के लिए दोस्तों से फोन पर बात कर सकते हैं, चैट कर सकते हैं या फिर सोशल मीडिया पर भी जा सकते हैं। लेकिन यह वक्त आधे घंटे से ज्यादा न हो क्योंकि ज्यादा देर करने से वक्त तो बेकार होगा ही, मन भी पढ़ाई से भटकेगा। फोन पर दोस्तों से पढ़ाई डिस्कस करने से भी बचें, वरना बेकार में तनाव हो सकता है।

6. टीवी को करें बाय या हाय?

एग्जाम का मतलब यह नहीं है कि आप हमेशा स्टडी टेबल पर बैठे रहें या हमेशा किताबों में आंखें गड़ाए रहें। ऐसा करने से टेंशन ज्यादा बढ़ती है, इसलिए एग्जाम के समय मनोरंजन भी जरूरी है। मूड फ्रेश करने के लिए दिलचस्प विडियो देखें और म्यूजिक सुनें। आप अपनी पसंद का टीवी प्रोग्राम भी देख सकते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि इन दिनों टीवी, सोशल मीडिया या मोबाइल गेम पर बहुत वक्त न बिताएं। रोजाना इनके लिए एक घंटे का वक्त काफी है। इससे ज्यादा वक्त बिताने पर आपकी पढ़ाई का नुकसान तो होगा ही, मन भी भटकेगा।

7. दोस्तों से मिलना-जुलना कितना सही?

कई पैरंट्स एग्जाम्स के दिनों में बच्चों को दोस्तों से मिलने पर पाबंदी लगा देते हैं। यह सही नहीं है। बच्चे जब दोस्तों के बीच होते हैं तो टेंशन भूल जाते हैं और उनका मूड फ्रेश हो जाता है, इसलिए एग्जाम्स के दौरान दोस्तों से मिलना पूरी तरह बंद न करें। हां, ध्यान रखें कि ज्यादा टाइम न लगाएं और इस दौरान पढ़ाई के बजाय दूसरे टॉपिक्स पर बात करें। बच्चे जब मिलें तो यह डिस्कस न करें कि किसने क्या पढ़ा? इससे फालतू टेंशन हो सकती है।

8. ग्रुप स्टडी सही है या नहीं?

ग्रुप स्टडी पढ़ाई का बहुत ही अच्छा तरीका है। इसके जरिए आप लर्नर यानी सीखनेवाले से टीचर यानी लिखानेवाले की भूमिका में आ जाते हैं। इससे एक्सप्रेशन और अनैलेटिकल पावर बढ़ती है। लेकिन ग्रुप स्टडी तभी करें, जब आप और आपके दोस्त पढ़ाई को लेकर सीरियस हों। ग्रुप स्टडी के नाम पर गपशप में वक्त बेकार न करें। ग्रुप स्टडी में टाइम मैनेजमेंट बहुत जरूरी है। साथ ही, यह टीचर या पैरंट्स की देखरेख में हो तो अच्छा है। बेहतर है कि कोई एक पैरंट इस ग्रुप का हिस्सा बन जाए। सारे मेंबर मिलकर टॉपिक बांट लें और अपने टॉपिक के बारे में अच्छी तरह पढ़कर बाकी को बताएं। पैरंट्स अगर टीम का हिस्सा नहीं बनते हैं तो यह जरूरी है कि बीच-बीच में ग्रुप का हाल जानते रहें, लेकिन ऐसा कुछ न करें कि वे डिस्टर्ब हो जाएं या उन्हें लगे कि आप उनकी जासूसी कर रहे हैं। अगर पैरंट्स को लगे कि बच्चे पढ़ नहीं रहे हैं तो प्यार से उन्हें समझाएं कि एग्जाम्स के बाद आप खुद उनके लिए पार्टी आयोजित करेंगे, लेकिन फिलहाल पढ़ाई करें क्योंकि यह वक्त लौटकर नहीं आएगा।

9. एग्जाम से पहले दिन क्या करें?

एग्जाम से एक दिन पहले जो कुछ आपने पहले से अच्छी तरह पढ़ा है, उसी की रिविजन करें। नए टॉपिक को छूने का कोई फायदा नहीं। आखिरी दिन किताब से पढ़ना भी बेकार है। आपने जो नोट्स तैयार किए हैं, उन पर निगाह डाल लें, खासकर हेडर्स पर। पूरा दिन लगातार पढ़ने से बचें। यह दिन भी बाकी दिनों की तरह ही सामान्य तरीके से बिताएं।

10. घर में कितनी सख्ती रखें, कितनी छूट?

कई पैरंट्स एग्जाम्स के दौरान घर में कर्फ्यू जैसा माहौल बना देते हैं। यह गलत है। मां को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के पीछे न पड़े कि नहा लो, खा लो या पढ़ लो आदि। हर बच्चे की अपनी आदतें और तौर-तरीके होते हैं। उन पर जबरन कुछ थोपने की कोशिश न करें। मां अगर वर्किंग हैं तो एग्जाम्स के दिनों में छुट्टी लेकर बच्चे के साथ घर पर रहें। यह न सोचें कि पढ़ना बच्चे का काम है, वह कर लेगा। बच्चों को पैरंट्स के सपोर्ट की बहुत जरूरत होती है। इन दिनों में अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से न करें। एग्जाम के दिनों में नॉर्मल और खुशनुमा माहौल बनाकर रखें। पूरा परिवार एक टीम की तरह काम करे।

डाइट का रखें ख्याल

-भूखे-प्यासे रहकर लगातार पढ़ाई करने से बचें। दिमाग को काम करने के लिए ग्लूकोज और ऑक्सिजन भी चाहिए। एग्जाम के दौरान 3 प्रॉपर मील और 2 बार स्नैक्स जरूर लें। छोटे मील्स लें क्योंकि हम जो भी खाना खाते हैं, वह पेट में जाता है। जब खाना खाने के बाद हम बैठते हैं तो पेट दब जाता है और खाना पचाने में दिक्कत होती है।

- ब्रेकफास्ट बिल्कुल न छोड़ें। एग्जाम से पहले हल्का और हेल्दी नाश्ता जैसे कि दलिया, ओट्स, कॉर्न लेना अच्छा रहता है। सब्जियां और फल ज्यादा लें। हर घंटे पानी पीते रहें और हर दो घंटे में कुछ हल्का-फुल्का खाते रहें खासकर लिक्विड भरपूर लें। इससे एनर्जी बनी रहती है।

- विटामिन-सी (नीबू, मौसमी, संतरा आदि) खाएं। इनसे चुस्ती बनी रहती है। हरी सब्जियां ज्यादा खाएं, खासकर साग, पालक मेथी, ब्रॉकली। इनमें जिंक और विटामिन बी व ई ज्यादा होता है। इससे कंसंट्रेशन बढ़ता है। साथ ही, आंखें भी बेहतर रहती हैं।

- एग्जाम के दिनों में 10-12 पीस ड्राई-फ्रूट्स (बादाम, अखरोट, चिलगोजा आदि) खाएं। इन्हें ब्रेन फूड भी कहा जाता है। दिमाग के लिए ओमेगा3 जरूरी होता है और यह ड्राई-फ्रूट्स में मिलता है।

- इन दिनों जंक फूड (पिज्जा, बर्गर, पास्ता आदि) और सफेद चीजें (मैदा, चावल, चीनी आदि) डाइट में शामिल न करें। इनसे सुस्ती आती है और दोबारा भूख भी जल्दी लगती है।

- एग्जाम से पहले न तो बहुत ज्यादा खाना खाएं और न ही खाली पेट एग्जाम सेंटर पर जाएं। परांठा, पूरी, लस्सी जैसी हेवी चीजों से बचें।

तनाव से ऐसे निपटें

- एग्जाम से डरे नहीं। आखिरी समय में ज्यादा पढ़ने की कोशिश भी न करें। खुद को समझाएं कि अगर एक में नंबर कम आ भी गए तो दूसरे सब्जेक्ट्स में अच्छा कर लेंगे। यूं भी इस जिंदगी में एग्जाम ही सब कुछ नहीं है। इसके अलावा भी दूसरे ऑप्शन हैं।

- कई बार लड़कियां एग्जाम के दौरान पीरियड्स टालने के लिए दवा खा लेती हैं। ऐसा न करें। अगर दर्द हो तो पेनकिलर खा सकती हैं, लेकिन हॉर्मोन चेंज वाली दवा न खाएं।

- पैरंट्स बच्चों से फालतू उम्मीद न रखें, न ही उन पर ज्यादा नंबर लाने का प्रेशर डालें। उसकी तुलना दूसरे बच्चों से न करें। न ही ताने मारें कि पहले तो पढ़ा नहीं, अब पढ़कर क्या होगा! अगर बच्चा परेशान है तो उसे अकेला न छोड़ें। अगर वह आपसे पढ़ाई या कोई और बात शेयर करना चाहता है तो ध्यान से उसकी बात सुनें।

- बच्चे से गलती हो तो भी फौरन जजमेंट न सुनाएं और न ही उसे दोषी ठहराएं। इस बारे में बाद में बात करें। ऐसे वक्त में बच्चे का इमोशनल सपोर्ट जरूरी है। उससे उसकी पुरानी नाकामियों की बात न करें। बेहतर है कि बच्चा अगर देर तक पढ़ना चाहता है तो कोई एक पैरंट उसके साथ जागे। इससे उसका हौसला बढ़ता है। लेकिन अगर बच्चा आपके साथ में जगे रहने से परेशान लगे तो इस बात की भी जिद न करें। उसे अकेले पढ़ने दें।

ऐसे करें पढ़ाई

- बेड पर लेटकर नहीं, टेबल-चेयर पर बैठकर पढ़ें।

- बोलकर और लिखकर तैयारी करें। सिर्फ याद करने भर से काम नहीं चलेगा। इसे आप भूल सकते हैं जबकि लिखकर प्रैक्टिस किए गए जवाबों को आप कभी नहीं भूलते। इसके अलावा, इससे टाइम मैनेजमेंट भी सही रहता है। मसलन कौन-से सवाल को कितना टाइम देना है, पेपर कितनी देर में हल हो सकता है आदि।

- सैंपल पेपर, मॉडल पेपर और पिछले 5 साल के पेपरों को सॉल्व जरूर करें। सीबीएसई की वेबसाइट पर भी क्लास 9 से 12 तक के कई सब्जेक्ट के सैंपल पेपर दिए गए हैं। इनसे तैयारी में मदद मिलेगी। इसके लिए बेवबसाइट www.cbse.nic.in के होमपेज पर लेफ्ट साइड में Helpline पर क्लिक कर Examinations सेक्शन पर जाएं। खुद का मॉक टेस्ट लें और 3 घंटे के अंदर सॉल्व कर ट्यूशन या स्कूल टीचर से चेक कराएं। प्रैक्टिस से डर कम होता है और एग्जाम में आप बेहतर परफॉर्म कर पाते हैं।

- आखिरी वक्त में बहुत सारा पढ़ने के बजाय इम्पोर्टेंट और जरूरी हिस्सों की तैयारी करें। सैंपल पेपर, मॉडल पेपर और पुराने एग्जाम पेपर से इम्पोर्टेंट का अंदाजा लगा सकते हैं। अगर आपने पहले नोट्स बनाए हैं तो उनसे पढ़ें। इनमें भी अहम बातों को अंडरलाइन कर लें।

- रटने के बजाय समझकर पढ़ें। टफ टॉपिक्स को फॉर्म्युले बनाकर पढ़ें और याद करें। साथ ही डायग्राम और ग्राफ आदि बनाकर तैयारी करें।

- एक बार तैयारी हो जाए तो खुद को पैंपर करें जैसे कि लंबा हॉट बाथ लेकर या अपनी पसंद का म्यूजिक सुनकर अच्छा और तरोताजा महसूस कर सकते हैं।

परीक्षा के दिन क्या करें

- आजकल जाम की समस्या आम है, इसलिए एग्जाम वाले दिन थोड़ा पहले घर से निकलें और एग्जाम सेंटर पर थोड़ा पहले पहुंचे। एग्जाम सेंटर पर देर से पहुंचना भी तनाव बढ़ाता है।

- एग्जाम सेंटर जाते वक्त रास्ते में किसी तरह का रिविजन न करें और अपने दिमाग को एकदम शांत रखें। एग्जाम शुरू होने से पहले 5 मिनट के लिए गहरी सांसें जरूर लें। इससे शरीर को ऑक्सिजन मिलती है और तन-मन रिलैक्स हो जाता है।

- पेपर मिलने के बाद आराम से पूरा पेपर पढ़ें। सवालों को गौर से पढ़ें। हो सकता है कि आपको लगे कि आपको कुछ नहीं आता या आप सब भूल गए हैं। घबराएं नहीं, ऐसा सबसे साथ होता है, लेकिन सच यह है कि अगर आपने पढ़ा है तो वह जरूर याद आ जाएगा। बस अपना मन शांत रखकर लिखना शुरू करें।

- ध्यान रखें कि सबसे पहले पेपर अच्छी तरह पढ़ें। कई बार जल्दबाजी में हम सवाल को पूरा पढ़े बगैर ही जवाब लिखने बैठ जाते हैं। सवालों को कई बार हल्का घुमाकर पूछा जाता है। ऐसे में हम गलत जवाब लिख बैठते हैं। जो सवाल अच्छी तरह आता है, उसका जवाब पहले लिखें, फिर उसका जवाब लिखें, जो थोड़ा मुश्किल हो और आखिर में उन सवालों को सॉल्व करने की कोशिश करें, जिनके जवाब के लिए आपको बहुत ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत है।

- अक्सर स्टूडेंट्स पहले सवाल में काफी वक्त लगा देते हैं जबकि हकीकत यह है कि अगर 10 नंबर का सवाल है और आप उसका आंसर बहुत बड़ा भी लिख लेंगे तो भी नंबर उतने ही मिलेंगे। बेहतर है कि मन में हर जवाब के लिए वक्त तय कर लें। उसी के अनुसार टाइम देकर लिखें। आखिर में रिविजन के लिए भी 15 मिनट बचा लें।

- लंबा-लंबा लिखने से बचें। कई बार स्टूडेंट्स को लगता है कि ज्यादा लिखने से ज्यादा मार्क्स मिलेंगे। यह सही नहीं है। छोटे, सटीक और सही जवाबों को टीचर ज्यादा पसंद करते हैं। इसके अलावा, आजकल ज्यादातर सवालों के दो या तीन हिस्से होते हैं। उन हिस्सों के जवाब बारी-बारी से लिखें। उन्हें आपस में मिलाएं नहीं।

- हैंडराइटिंग साफ हो और शब्दों के बीच थोड़ा फर्क रखें तो बेहतर रहेगा। साथ में जरूरी लगे तो डायग्राम या फ्लो चार्ट भी बनाना चाहिए। जो अहम बातें हैं, उन्हें पेंसिल से अंडरलाइन कर सकते हैं। कॉपी जितनी सुंदर होगी, टीचर को उतनी ज्यादा पसंद आएगी और आपको मार्क्स भी ज्यादा अच्छे मिलेंगे।

हेल्पलाइन: अगर आप एग्जाम को लेकर तनाव में हैं तो सीबीएसई के टोल फ्री नंबर 1800-11- 8004 पर 29 अप्रैल तक कॉल कर काउंसलर से बात कर सकते हैं। सातों दिन सुबह 8 से रात 10 बजे तक इस पर कॉल कर सकते हैं।

ईमेल: directoracad.cbse@nic.in या mcsharma2007@rediffmail.com पर भी अपने सवाल भेज सकते हैं।

ज्यादा जानकारी के लिए

nbt.in/examtips : ऐसे करें बोर्ड एग्जाम में बेहतर

वेबसाइट और ऐप

cbse.nic.in: यह सीबीएसई की वेबसाइट है। इस पर प्रैक्टिस के लिए ज्यादातर सब्जेक्ट्स के सैंपल पेपर दिए गए हैं। एग्जाम स्ट्रेस से निपटने की भी पूरी जानकारी इस साइट पर दी गई है।

vedantu.com: यहां कई तरह के पेड और फ्री कोर्स और मटीरियल दिए गए हैं स्टूडेंट्स के लिए।

shalaa.com: एक ही वेबसाइट पर आपको क्वेस्चन पेपर, ट्यूटोरियल, सिलेबस आदि की ढेर सारी जानकारी मिल जाएगी।

toppr: क्लास 8 से 12वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए यह काफी काम का ऐप है।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

कुछ घुमक्कड़ी हो जाए

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समर वकेशंस मई-जून में होती हैं। उस दौरान फैमिली या दोस्तों के साथ ट्रिप पर जाना है तो प्लानिंग और बुकिंग के लिए यही सबसे सही समय है। अडवांस प्लानिंग और बुकिंग से आप न सिर्फ बेहतर डील पा सकते हैं, बल्कि लास्ट मिनट की भागदौड़ से भी बच सकते हैं। एक्सपर्ट्स से पूछकर बेहतर समर वकेशंस प्लानिंग से जुड़ी तमाम जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंहः

एक्सपर्ट्स पैनल

नीरज शर्मा, चीफ पीआरओ, नॉर्दन रेलवे

अतुल बोकरिया जैन, ट्रैवल एक्सर्पट

राहुल कुमार, ट्रैवल एक्सपर्ट

कहां है जाना

सबसे पहले यह तय करें कि आप घूमने कहां जाना चाहते हैं, मसलन आपकी प्रायॉरिटी में सुकून से कुछ लम्हे बिताना है या आप कुछ एडवेंचर और फन करना चाहते हैं या फिर गर्मियों में फैमिली के साथ हिल स्टेशन की ठंडी हवाओं का लुत्फ लेना चाहते हैं। साथ ही, यह भी देखें कि आप कितने दिन का ट्रिप बनाना चाहते हैं। इन दोनों बातों के अलावा आप अपना बजट भी फिक्स कर लें।

कैसे जाना है

अब बारी आती है कि जाना कैसे है? अभी तय कर लें कि आप फ्लाइट से जाएंगे, ट्रेन से, बस से या फिर अपनी कार से। समय से रिजर्वेशन कराएंगे, तभी रेल में सीटें मिल पाएंगी तो एयर फेयर भी कम लगेगा। वैसे, ट्रैवलिंग के तीनों मोड के अपने फायदे और नुकसान हैं।

प्लेन से ट्रैवल

लंबी दूरी के लिए हमेशा फ्लाइट लेना बेहतर रहता है। बहुत सारी फ्लाइट्स स्पेशल पैकेज देती हैं। पहले बुक कराने से आपको अच्छा डिस्काउंट भी मिलता है। आप अग्रीगेटर साइट्स जैसे कि makemytrip, goibibo, yatra आदि से तमाम फ्लाइट्स को कंपेयर करके भी बेहतर डील पा सकते हैं। एयर इंडिया की वेबसाइट airindia.com पर Special Offers के तहत Air India Holidays सेक्शन में जाकर भी आप हॉलिडे बुक करा सकते हैं। ये तमाम साइट्स और दूसरी भी बहुत सारी वेबसाइट्स फ्लाइट के साथ-साथ होटल से लेकर कैब तक घर बैठे बुक कराने की सुविधा देती हैं। इसके अलावा, सस्ते ऑफर पर भी निगाह रखें। मसलन आजकल एयरएशिया का डिस्काउंट ऑफर चल रहा है। इसके तहत कंपनी 26 मार्च तक बुक कराने पर दिल्ली, कोच्ची, पुणे, बेंगलुरू, गोवा, हैदराबाद आदि का एक साइड का टिकट कुल 1399 रुपये में ऑफर कर रही है। ये टिकट 31 अगस्त तक वैलिड होंगे। इसी तरह कंपनी बैंकॉक और क्वालालंपुर जैसे विदेशी टूरिस्ट स्पॉटों के लिए 50 फीसदी तक डिस्काउंट दे रही है। ट्रैवल डेट सितंबर 2017 तक है।

ट्रेन से सफर

सुविधा के लिहाज से ट्रेन का जवाब नहीं। बच्चों को खासकर ट्रेन में ट्रैवल करना बहुत पसंद आता है। रेलवे में बुकिंग के लिए सबसे बेहतर है ऑनलाइन बुकिंग कराना। irctc.co.in या erail.in पर जाकर ऑनलाइन बुकिंग करा सकते हैं। यहां आपको ट्रेनों के बारे में पूरी जानकारी के साथ-साथ सीटों की उपलब्धता के बारे में भी पता चलता है। याद रखें कि स्लीपर वाली ज्यादातर ट्रेनों के लिए 120 दिन यानी 4 महीने पहले बुकिंग खुल जाती है। हालांकि कई ट्रेनों में बुकिंग 30 दिन पहले भी शुरू होती है। ये ट्रेन हैं, जिनमें सुविधा जुड़ा होता है या जो छोटी दूरी के एक शहर को दूसरे से जोड़ती हैं। कई दर्शनीय स्थलों के लिए चलने वाली रेलगाड़ियों की बुकिंग 30 दिन पहले ही शुरू होती है। रेलवे टूरिस्टों के लिए कई तरह के पैकेज निकालता है, जैसे कि कई धार्मिक जगहों को जोड़ने वाली आस्था सर्किट टूरिस्ट ट्रेन। यह तिरुपति, कन्याकुमारी, त्रिरुअनंतपुरम, रामेश्वरम, मदुरै जैसी अहम धार्मिक जगहों को कवर करती है। यह पैकेज करीब 10 हजार रुपये का होता है। रेलवे की साइट से ही फ्लाइट से लेकर कार तक और होटल तक बुक करा सकते हैं।

आप वेबसाइट Ticketdate की मदद ले सकते हैं, जो किसी भी ट्रेन में एडवांस बुकिंग शुरू होने की तारीख के बारे में बताती है।

इन ट्रेनों में होता है 30 दिन पहले रिजर्वेशन

- ताज एक्सप्रेस

- हिमालयन क्वीन एक्सप्रेस

- वाराणसी-लखनऊ इंटरसिटी

- शान-ए-पंजाब एक्सप्रेस

- नई दिल्ली-श्रीगंगानगर इंटरसिटी

- नई दिल्ली-बठिंडा एक्सप्रेस

- आगरा इंटरसिटी

- अमृतसर इंटरसिटी

- नई दिल्ली-जालंधर एक्सप्रेस

- दिल्ली-कोटद्वार गढ़वाल एक्सप्रेस

- लखनऊ-इलाहाबाद इंटरसिटी

- गंगा गोमती लखनऊ-इलाहाबाद एक्सप्रेस

- बरेली-नई दिल्ली इंटरसिटी

- दिल्ली-बठिंडा किसान एक्सप्रेस

- अंबाला-श्रीगंगानगर इंटरसिटी

- हरिद्वार-श्रीगंगानगर एक्सप्रेस

-गोमती एक्सप्रेस

समर स्पेशल ट्रेनें

रेलवे समर वेकेशंस को ध्यान में रखते हुए सभी बड़े शहरों से स्पेशल ट्रेन भी चलाता है। इनकी पूरी जानकारी irctc.co.in से मिल सकती है।

रेलवे का ऐप

रेलवे की बुकिंग आप ऐप से भी कर सकते हैं। IRCTC Rail Connect ऐप को आप अपने मोबाइल में डाउनलोड कर लें। यह ऐप एंड्रॉयड के लिए है और फ्री है।

हेल्पलाइन

रेलवे से सफर के दौरान बिजली, पानी, लाइट, डॉक्टर जैसी मदद के लिए 138 और सिक्योरिटी संबंधी शिकायत के लिए 182 पर कॉल करें।

ऐसे पाएं ट्रेन टिकट

कई बार आपकी पसंद की ट्रेन में फटाफट टिकट फुल हो जाती हैं। ऐसे में आप पहले से तैयारी करके रखें तो आसानी से टिकट बुक करा सकते हैं:

- ऑनलाइन टिकट बुक करने के लिए अपने कंप्यूटर या लैपटॉप में टिकट बुक करने से पहले नोटपैड की फाइल खोल कर रखें। उसमें बुकिंग से जुड़ी सारी जानकारी भर लें ताकि फॉर्म भरते वक्त आपको ज्यादा टाइम न लगे। आप कॉपी-पेस्ट का सहारा लेकर फटाफट फॉर्म भर सकते हैं।

- irctc की साइट पर पैसेंजर लिस्ट सेव करके रखने का ऑप्शन भी है। यह मास्टर लिस्ट, ट्रैवल लिस्ट के जरिए मुमकिन है और आप इसे जरूरत के हिसाब से बदल भी सकते हैं।

- ऑनलाइन बुकिंग शुरू होने से करीब 15 मिनट पहले आप लॉग-इन कर लें। फिर जरूरी जानकारी भर कर तैयार हो जाएं। जैसे आईआरसीटीसी के फॉर्म में सोर्स, डेस्टिनेशन, यात्रा की तारीख, क्लास आदि भर लें। अब आप बुक करने वाले ऑप्शन पर कई बार क्लिक करें ताकि जैसे ही ऑप्शन खुले आपका टिकट बुक हो जाए।

- पैसेंजर डिटेल्स पेज पर आप ज्यादा समय न बिताएं। जानकारों के अनुसार, साइट पर कम समय बिताने वाले लोगों को आसान कैप्चा कोड मिलता जबकि ज्यादा समय बिता चुके लोगों को कठिन कोड मिलता है। कैप्चा की बात इसलिए अहम है क्योंकि करीब 60 फीसदी लोग कैप्चा कोड पहली बार में सही नहीं भर पाते। ऐसे में इसे गौर से भरें।

- बुकिंग कराते हुए आपकी इंटरनेट स्पीड अच्छी होनी चाहिए। आप कम-से-कम 2 Mbps स्पीड का इंटरनेट कनेक्शन रखें। साथ ही, जब टिकट बुक कर रहे हैं तब सुनिश्चित करें कि एक ही साइट पर काम हो रहा हो। कई टैब न खुले हों।

बस से सफर

आजकल तमाम लग्जरी और वॉल्वो बसें छोटी और लंबी दूरी के लिए उपलब्ध हैं। ये काफी सुविधाजनक होती हैं। redbus.com, shatabditravels.co.in, volvoluxurybuses.com, theluxurybuses.com आदि से आप इन बसों की बुकिंग करा सकते हैं।

कार ट्रिप

अगर आप छुट्टी बिताने के लिए 6-8 घंटों की दूरी पर जाना चाहते हैं तो कार से भी जा सकते हैं। इससे आप एयर या ट्रेन या बस का टिकट बुक कराने के झंझट से बच जाते हैं और आपको एडवांस में बुकिंग की जरूरत नहीं होती। कार से जाते हुए आप कुछ बातों का ध्यान रखें मसलन छोटी कार है तो 4 से ज्यादा लोग न हों और दो लोग ड्राइव करनेवाले हों तो बेहतर है। कार सर्विस करा लें। इसमें एसी से लेकर कूलेंट तक की सही जांच करा लें। एक सही स्टप्नी जरूर रखें। निकलने से पहले टायर में हवा चेक करा लें और टंकी फुल करा लें। साथ ही, पानी का बंदोबस्त भी कर लें। अगर ड्राइविंग से बचना चाहते हैं तो किराये पर कार ले सकते हैं। यह आमतौर पर 12-15 रुपये प्रति किमी चार्ज करते हैं।

बुक कराएं रूम

oyorooms और goibibo जैसी साइट्स आपको कम रेट में अच्छी रिहायश मुहैया कराती हैं। इनकी खासियत यह है कि कई छोटे गेस्ट हाउस और होटल आदि भी इनके पास लिस्टेड होते हैं। ऐसे में इनके पास कम रेट में भी अच्छे कमरे मिल जाते हैं। makemytrip, yatra, trivago जैसी तमाम एग्रिगेटर साइट्स अक्सर काफी अच्छी डील ऑफर करती हैं। वहां से होटल रूम बुक कराने पर कई बार 50 फीसदी तक डिस्काउंट मिल जाता है। इसके अलावा आप होम स्टे (airbnb) का ऑप्शन भी अपना सकते हैं। इनकी जानकारी भी आपको इंटरनेट से मिल जाएगी। होम स्टे यूं तो पूरी तरह सेफ है लेकिन फिर भी आमतौर पर फैमिली के साथ लोग इस ऑप्शन को ज्यादा नहीं अपनाते। होम स्टे अक्सर ग्रुप में ट्रैवल करने वाले युवा अपनाते हैं।

बच्चों हों जब साथ

- छुट्टियों की प्लानिंग करते वक्त बच्चों को भी उसमें शामिल करें। उनकी पसंद की जगह पूछें और बजट के बारे में डिस्कस करें।

- बच्चों को साथ लेकर जा रहे हैं तो रास्ते में उनके खेलने के लिए गेम्स आदि रखें, ताकि उनका मन लगा रहे और वे आपको तंग न करें।

- ऐसी जगह बुक कराए, जहां बच्चों के लिए वक्त बिताने का अच्छा जरिया हो, मसलन स्वीमिंग पूल और गेम्स जोन हो। बच्चों को इन जगहों पर बड़ा मजा आता है।

- छुट्टियों में बच्चों के साथ वक्त बिताएं। उनके साथ गेम्स खेलें।

- पानी और खाने का सामान जरूर साथ लेकर चलें। बच्चे अक्सर लंबे ट्रैवल में बोर हो जाते हैं। तब वे कुछ-न-कुछ खाने को मांगते हैं।

ऐसे बनेगा बेस्ट ट्रिप

- किसी टूरिस्ट स्पॉट पर ऑफ सीजन में जाना ज्यादा फायदेमंद रहता है। यह सस्ता तो पड़ता ही है, साथ ही आप भीड़ से भी बच जाते हैं। इसी तरह वीकएंड के बजाय वीकडेज पर छुट्टियां प्लान करें। इस दौरान फ्लाइट से लेकर होटल तक के रेट कम होते हैं।

- बहुत पॉपुलर टूरिस्ट स्पॉट के बजाय उसके आसपास के कम चर्चित टूरिस्ट स्पॉट पर जाना बेहतर है, जैसे कि शिमला के बजाय करीब 45 किमी दूर स्थित चायल जा सकते हैं। इससे पैसा भी कम खर्च होगा और भीड़ से भी बच जाएंगे।

- महंगे रेजॉर्ट के बजाय किसी सिंपल और अच्छे से रेजॉर्ट में ठहर सकते हैं। इससे फालतू पैसा नहीं लगेगा। वैसे भी, छुट्टियों का मकसद फैमिली के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताना होना चाहिए, न कि फिजूलखर्ची।

- बुकिंग कराते हुए दूसरे एजेंट्स या वेबसाइट्स से भी रेट जरूर लें। इनमें जो सबसे कम रेट पर ट्रिप दे, उसे ही चुनें।

- ग्रुप में घूमने का प्लान बनाना बेहतर है। एक फैमिली को और साथ ले लें। शेयरिंग की वजह से यह करीब 40 फीसदी तक सस्ता पड़ता है, साथ ही सिक्योरिटी भी ज्यादा होती है।

- जब भी घूमने जाएं, पैकिंग हल्की रखें। अगर दो-तीन बैग हैं तो सभी के कपड़े और बाकी सामान सभी बैग्स में बांटकर रखें। इससे एकाध बैग के चोरी होने या खोने पर दूसरे बैग में सबका कुछ सामान बच रह सकेगा। पैकिंग की प्लानिंग के लिए travelschecklist.com और eaglecreek.com जैसी वेबसाइट्स की भी हेल्प ले सकते हैं।

- ट्रैवल में अपने पैसों को हमेशा अलग-अलग करके रखें ताकि चोरी आदि होने पर कुछ पैसे आपके पास जरूर हों। पासपोर्ट, लाइसेंस, आईडी कार्ड जैसे जरूरी कागजात संभाल कर रखें।

- डेस्टिनेशन पर पहुंचने के बाद एयरपोर्ट से रिजॉर्ट आदि के लिए कैब पहले ही बुक कर लें तो बेहतर है। makemycab.co, mytaxi.com जैसी साइट्स के अलावा बाकी बड़ी ट्रैवल एजेंसियां भी इसमें मददगार साबित हो सकती हैं। हालांकि ये महंगी पड़ती हैं। पैसा बचाने चाहते हैं तो एयरपोर्ट या स्टेशन से निकलकर ओला, उबर की सर्विस लेना ज्यादा फायदेमंद है।

- जहां आप घूमने जाएं, जरूरी नहीं कि वहां से परिवार और दोस्तों के लिए कोई गिफ्ट लेकर ही आएं। अक्सर टूरिस्ट प्लेस पर चीजें महंगी मिलती हैं। इससे पैकिंग में जगह भी कम पड़ जाती है।

- अगर किसी वजह से बजट नहीं बन पा रहा तो परेशान न हों। आप फैमिली के साथ लॉन्ग ड्राइव या पास में रहनेवाले रिश्तेदारों के यहां भी जा सकते हैं।

अच्छी डील्स यहां पाएं

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बेस्ट टूरिस्ट स्पॉट

शांति और सुकून के लिए

तवांग

कहां: अरुणाचल प्रदेश में, गुवाहाटी (असम) से 413 किमी दूर

माथेरान

कहां: महाराष्ट्र में, मुंबई से 100 किमी दूर

हॉर्सले हिल्स

कहां: आंध्र प्रदेश में, तिरुपति से 144 किमी दूर

बिनसर

कहां: उत्तराखंड में, अल्मोड़ा से 26 किमी दूर

लैंसडाउन

कहां: उत्तराखंड में, कोटद्वार से 41 किमी दूर

धनौल्टी

कहां: उत्तराखंड में, मसूरी से 24 किमी दूर

हिल स्टेशन

पहलगाम

कहां: जम्मू-कश्मीर में, अनंतनाग हेडक्वॉर्टर से 45 किमी दूर

गुलमर्ग

कहां: जम्मू-कश्मीर में, श्रीनगर से 57 किमी दूर

लद्दाख

कहां: जम्मू-कश्मीर में

पटनी टॉप

कहां: जम्मू से 112 किमी दूर जम्मू-श्रीनगर हाइवे पर

शिमला

कहां: हिमाचल प्रदेश में, चंडीगढ़ से 100 किमी दूर

चैल

कहां: हिमाचल प्रदेश में, शिमला से 49 किमी दूर

कसौली

कहां: हिमाचल प्रदेश में, कालका से 35 किमी दूर

धर्मशाला

कहां: हिमाचल प्रदेश में, पठानकोट से 80 किमी दूर

मनाली

कहां: हिमाचल प्रदेश में, शिमला से 250 किमी दूर

नैनीताल और रानीखेत

कहां: उत्तराखंड में

मुन्नार

कहां: केरल के इदुक्की जिले में

कलिम्पोंग

कहां: प. बंगाल में, दार्जिलिंग से 51 किमी दूर

दार्जिलिंग

कहां: प. बंगाल में, सिलिगुड़ी से 100 किमी दूर

शिलॉन्ग

कहां: मेघालय में, गुवाहाटी (असम) से 110 किमी दूर

सापूतारा

कहां: गुजरात में, नासिक से 80 किमी दूर

पंचगनी

कहां: महाराष्ट्र में, पुणे से 100 किमी दूर

पचमढ़ी

कहां: मध्य प्रदेश में पिपरिया से 47 किमी दूर

ऊटी

कहां: तमिलनाडु में, कोयंबटूर से 105 किमी दूर

कूर्ग

कहां: कर्नाटक में, मैसूर से 120 किमी दूर

एडवेंचर के लिए

गंगोत्री

कहां: उत्तराखंड में, उत्तरकाशी से 105 किमी दूर

ऋषिकेश

कहां: उत्तराखंड में, हरिद्वार से 25 किमी दूर

हर की दून

कहां: उत्तराखंड के यमुनोत्री जिले में

सरपास

कहां: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती वैली में

डंडेली बीच

कहां: गोवा से 125 किमी दूर, कर्नाटक में

कोडाईकनाल

कहां: तमिलनाडु में मदुरै से 120 किमी दूर

गांव के सोंधे अहसास के लिए

कॉर्बेट विलेज

कहां: उत्तराखंड में नैनीताल से पहले

रंगभंग विलेज

कहां: प. बंगाल में दार्जिलिंग पुलबाजार से 11 किमी दूर

बारामती अग्रीटूरिज़म सेंटर

कहां: महाराष्ट्र में, पुणे से 75 किमी दूर

गुरेज और तुलैल घाटी

कहां: जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर से 130 किमी दूर

हेल्थ और स्पा के लिए

मालाबार हाउस

कहां: केरल में, फोर्ट कोचीन के हेरिटेज जोन में

स्पाइस विलेज

कहां: केरल में, पेरियार वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी के पास

ताज गार्डन रिट्रीट

कहां: केरल के कुमाराकोम में

आनंदा स्पा

कहां: उत्तराखंड में, ऋषिकेश से 45 किमी दूर

बीच यानी समुद्र तटों के लिए

गोवा, अंडमान, केरल और लक्षदीप के बीच काफी पॉपुलर हैं। लेकिन गर्मियों में बीच पर उमस ज्यादा होती है, इसलिए इन्हें इस सीजन के लिए अच्छा टूरिस्ट स्पॉट नहीं माना जाता।

विदेश यात्रा की पूरी जानकारी के लिए पढ़ें: nbt.in/foreigntrip

देश भर में घूमने की बेहतरीन जगहों के लिए पढ़ें: nbt.in/nbttravel


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जब बिगड़ जाए ब्रेन!

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पीएम नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 'मन की बात' प्रोग्राम में मानसिक रोगों पर चर्चा की। इसके अगले ही दिन संसद ने मेंटल हेल्थ केयर बिल 2016 को मंजूरी दे दी। बेशक मानसिक रोग लाइलाज नहीं हैं। सही इलाज और काउंसलिंग के जरिए इन समस्याओं से बाहर निकला जा सकता है। एक्सपर्ट्स से बात करके पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रसन्न प्रांजल:

एक्सपर्ट्स पैनल

डॉ. निमेष जी. देसाई, डायरेक्टर, IHBAS

डॉ. समीर पारिख, डायरेक्टर ऑफ मेंटल हेल्थ, फोर्टिस हेल्थकेयर

अरुणा ब्रूटा, सीनियर सायकॉलजिस्ट

योगी अमृत राज, योग गुरु

हाजीपुर (बिहार) के 25 साल के राकेश शाह गंभीर मानसिक रोगी थे। रांची के मेंटल हॉस्पिटल में लगातार तीन साल के इलाज के बाद आज वह पूरी तरह सेहतमंद हैं। तीन साल के इलाज में उन्हें सिर्फ दो महीने हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ा, बाकी समय वह रेग्युलर चेकअप और काउंसलिंग कराते थे। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और परिवार के धीरज ने उन्हें फिर से एक नई जिंदगी दी। आज वह पूरी तरह से हेल्दी लाइफ जी रहे हैं और पुराने दिनों को याद भी नहीं करना चाहते।

उत्तराखंड के घनश्याम रावत को 27 साल की उम्र में सिजोफ्रीनिया हुआ था। शुरुआत में वह इलाज के लिए तैयार नहीं हो रहे थे, इसलिए परिवारवाले काफी परेशान थे। काफी समझाने के बाद वह डॉक्टर से दिखाने के लिए तैयार हुए तो इस बात पर अड़ गए कि हॉस्पिटल नहीं जाएंगे। आखिरकार परिवारवालों ने एक सायकायट्रिस्ट को उन्हें घर आकर देखने के लिए राजी कर लिया। डॉक्टर ने उनकी काउंसिलिंग की और वह इलाज में सहयोग करने के लिए राजी हो गए। उनका इलाज बेंगलुरु स्थित निमहंस में शुरू हुआ। कुछ महीनों के इलाज के बाद वह सामान्य जिंदगी जीने लगे। अब 32 साल के घनश्याम पूरी तरह से सेहतमंद हैं और नॉर्मल जिंदगी जी रहे हैं। ऐसे ढेरों उदाहरण हैं। आमतौर पर 90 फीसदी मामलों में बीमारी का इलाज हो जाता है। इहबास, निमहंस समेत देश के तमाम मेंटल हॉस्पिटलों से मरीज बिल्कुल ठीक होकर सामान्य जिंदगी जी रहे हैं।

दरअसल, मानसिक रोगों में सिजोफ्रीनिया बहुत कॉमन है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसका इलाज मुमकिन है। इसका मरीज असमान्य व्यवहार करता है, भ्रम की स्थिति में जीता है और उसे ऐसी बातें सुनाई देती हैं जो दूसरों को नहीं सुनाई देतीं। वह उन चीजों को वास्तविक मान लेता है जो असल में होती ही नहीं हैं। ऐसा शख्स असलियत और काल्पनिक घटनाओं में फर्क नहीं कर पाता। खुद को और अपनी हरकतों को सही मानता है जबकि वे गलत होते हैं। उसे लगता है कि दूसरे लोग उस पर कंट्रोल रखना चाहते हैं, उनकी पर्सनल लाइफ में दखल देना चाहते हैं या उसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। ऐसा शख्स आसपास की दुनिया से पूरी तरह से अलग-थलग हो जाता है और मेडिकल हेल्प लेने से भी इनकार कर देता है। कई बार वह खुद या दूसरों के प्रति हिंसक भी हो जाता है। इससे पीड़ित अक्सर डिप्रेशन या दूसरी मानसिक बीमारियों से भी पीड़ित हो जाता है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, इससे ग्रस्त व्यक्ति को पागल या इनसेन नहीं कह सक सकते। इसकी बजाय गंभीर रूप से मानसिक बीमार या गंभीर मानसिक रोगी कहना सही है।

लक्षण

- अजीबोगरीब बर्ताव, उलटी-सीधी बातें करना

- जो वास्तव में है ही नहीं, उसे सच मानना

- काफी कम या बहुत ज्यादा बोलना

- आंखों का मूवमेंट बिल्कुल अलग होना

- अपने घर के सभी दरवाजे और खिड़कियों को बंद कर लेना

- मन में डर कि कोई उसे या उसके परिवार के सदस्यों को मारने की कोशिश कर रहा है

- दबे-सहमे रहना या काफी आक्रामक हो जाना

- बात-बात पर गुस्सा होना

- गुस्से में तोड़-फोड़ और मारपीट करना

- बेवजह जोर-जोर से हंसना या रोना

- आत्महत्या की कोशिश करना

- सामान्य स्थिति के उलट प्रतिक्रिया, मसलन जब सभी लोग दुखी हैं तो जोर-जोर से हंसना

कारण

- दिमाग में केमिकल्स का असंतुलन

- जेनेटिक वजहें, यानी परिवार में किसी और को यह बीमारी हो

- प्रेग्नेंसी में मां को पूरा पोषण न मिलना या बहुत ज्यादा तनाव में रहना

- ड्रग्स और शराब का बहुत ज्यादा सेवन करना

- हर वक्त निगेटिव सोच रखना

- लगातार काम में लगे रहना, बेचैन रहना

- पूरी नींद न लेना

इलाज

यह लाइलाज बीमारी नहीं है। अगर समय रहते बीमारी की पहचान हो जाती है तो इसका इलाज पूरी तरह से मुमकिन है। बीमारी गंभीर होने पर ठीक होने में थोड़ा वक्त लग सकता है। वैसे तो लक्षणों और अवस्था के आधार पर दवा और थेरपी दी जाती है, लेकिन आमतौर पर ऐसे मरीजों को एंटी-सायकोटिक या मनोरोग निरोधी दवाएं दी जाती हैं। कुछ मामलों में इलेक्ट्रो कन्वल्सिव थेरपी (ईसीटी) यानी इलेक्ट्रिक शॉक के जरिए भी इलाज किया जाता है। दवाओं का असर होनेक और मरीज के कुछ ठीक होने के साथ ही सायकायट्रिस्ट का काम शुरू होता है। रेग्युलर काउंसलिंग और बेहतरीन पारिवारिक माहौल देने पर काफी जल्दी मरीज में सुधार दिखने लगता है। दरअसल, बाकी बीमारियों की तरह इसे भी एक बीमारी समझकर वक्त पर इलाज की जरूरत है।

इलाज का तरीका- पहले और अब

निमहंस और इहबास जैसे कुछेक अस्पतालों में मनोरोगियों को बेहतरीन चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा रही है। हालांकि छोटे अस्पतालों और कुछ दूसरी जगहों पर अभी तक गंभीर मनोरोगियों का इलाज गलत तरीके से किया जा रहा था, जैसे कि उन्हें जंजीरों में जकड़ कर रखना, इलेक्ट्रिक शॉक देना आदि। लेकिन अब मेंटल हेल्थ केयर बिल 2016 ने इन सब तरीकों पर पाबंदी लगा दी है। अब समाज की मुख्यधारा के साथ जोड़कर इनके इलाज और रिहैबिलिटेशन पर फोकस किया जाएगा। इस बिल की गाइडलाइंस के अनुसार ही अब इलाज होगा। बिल में इलेक्ट्रिक शॉक को अमानवीय माना गया है। नाबालिगों को यह थेरपी नहीं दी जाएगी। जरूरत पड़ने पर अडल्ट्स को अनीस्थिसिया देकर यह थेरपी दी जा सकती है। अब मनोरोगियों का इलाज पूरी तरह से मेडिसिन और काउंसलिंग पर आधारित होगा।

योग भी है असरदार

योग से सिजोफ्रीनिया और तमाम तरह के मनोरोगों का इलाज संभव है। शरीर, मन और आत्मा को चुस्त-दुरुस्त रखने और इसके कारणों को दूर करने में योग काफी कारगर है। आसन, प्राणायाम और ध्यान के जरिए इन समस्याओं से निपटने में मदद मिलती है। रोजाना 30 मिनट योगासन, 15 मिनट प्राणायाम और 15 मिनट ध्यान लगाएं। भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम, कपालभाति प्राणायाम और सर्वांगासन, हलासन, शीर्षासन, सूर्य नमस्कार, शवासन, वज्रासन आसन खासतौर पर फायदेमंद हैं। इसके अलावा, पंचकर्म क्रिया की भी मदद ली जाती है। इससे शरीर की सफाई होती है और सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है।

नोट: ये सभी आसन और प्राणायाम किसी एक्सपर्ट योग गुरु की सलाह पर ही करें।

परिवार व समाज की भूमिका अहम

एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस बीमारी से निपटने में परिवार और दोस्तों की काफी अहम भूमिका है। परिवार और दोस्तों को मिल कर मरीजों के साथ इमोशनल रिश्ते मजबूत करने चाहिए। कभी भी मरीज को अकेलेपन का अहसास नहीं होने देना चाहिए क्योंकि बीमारी होने के पीछे अकेलापन एक अहम कारण होता है। साथ ही, मरीज को यह अहसास न होने दें कि वह असामान्य है। उससे दिल को पसंद आने वालीं बातें करें और नेगेटिव बातें तो बिल्कुल न करें। चाहे मरीज का अपने दिमाग पर पूरी तरह कंट्रोल न हो, तब भी उसके अनुभवों के बारे में उससे बातचीत करते रहना चाहिए। अगर वह किसी ऐसी बात के लिए कह रहा है जो आपको वास्तविक नहीं लगता तो भी आप उसे डांटें नहीं या उसके साथ मारपीट न करें। उसके साथ प्रेम से पेश आएं और उसे समझने की कोशिश करें। अपने इलाके में अगर कोई सपोर्ट ग्रुप हो तो उसकी मदद लेने की कोशिश करें। शुरुआती लक्षणों को देखकर रोगी को सायकायट्रिस्ट या साइकॉलजिस्ट के पास ले जाएं।

सायकायट्रिक यानी मनोचिकित्सक एक डॉक्टर होता है और वह मेडिकल साइंस का जानकर होता है। मेडिसिन और साइकोथेरपी की सलाह सायकायट्रिक ही देते हैं। सायकॉलजिस्ट मनोवैज्ञानिक होते हैं और मनुष्यों के व्यवहार के विशेषज्ञ होते हैं। सायकॉलजी में डिग्री हासिल करने वाले सायकॉलजिस्ट बनते हैं। ये मनुष्यों के हाव-भाव देखकर और उनसे बातचीत कर उनकी परेशानियों को समझने का काम करते हैं। आमतौर पर सायकॉलॉजिस्ट काउंसलिंग का काम करते हैं।

परिवार के अलावा समाज भी ऐसे रोगियों को ठीक करने में अहम भूमिका निभा सकता है। अक्सर मनोरोगियों के साथ सामाजिक भेदभाव किए जाते हैं। समाज को मानना होगा कि दूसरी बीमारियों की तरह यह भी एक बीमारी है और इसे बीमारी के रूप में ही देखना चाहिए। जैसे दूसरी बीमारियां दवाओं से ठीक हो सकती हैं, वैसे ही मनोरोगी भी मेडिसिन और बेहतरीन माहौल मिलने पर जल्दी ही ठीक हो सकते हैं। समाज का सबसे बड़ा कर्तव्य तो यह है कि कभी भी किसी भी मनोरोगी को उसके मुंह पर मनोरोगी न बोलें। यह उस व्यक्ति को काफी दुख पहुंचाता है जो गंभीर मानसिक विकार से ग्रस्त है। ऐसे व्यक्तियों को सहानुभूति और प्यार की जरूरत होती है न कि नफरत और दुत्कार की। ऐसे में समाज को ऐसे लोगों के प्रति नजरिया बदलने की जरूरत होती है।

चंद अहम सवाल और जवाब

मानसिक रोगी को किस डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए? अगर मरीज हॉस्पिटल न जाना चाहे तो क्या उपाय है?

सबसे पहले मरीज को सायकायट्रिस्ट के पास ले जाना चाहिए। इसके बाद सायकॉलजिस्ट के पास। मरीज को प्यार से समझाते हुए डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। उससे कभी भी यह न कहें कि वह मानसिक रूप से बीमार है और उसे इलाज की जरूरत है। नए बिल के अनुसार, किसी मरीज के साथ जबरदस्ती नहीं की जा सकती। साउथ इंडिया और दिल्ली में पायलट प्रोजेक्ट के तहत 'मोबाइल मेंटल हेल्थ यूनिट' पर भी काम चल रहा है। यह मरीजों के घर तक पहुंचकर उन्हें मेडिकल हेल्प देने का काम करेगी। ऐसे में जो मरीज काबू में नहीं है, उन्हें घर पर ही फर्स्ट ऐड मिल जाएगा। उम्मीद है कि बहुत जल्द यह सेवा देश के सभी शहरों में शुरू हो जाएगी।

क्या बीमारी की जांच के लिए एमआरआई या सीटी स्कैन भी किया जाता है?

इसके लिए एमआरआई या सीटी स्कैन नहीं होता बल्कि मानसिक जांच और ऑब्जर्वेशन के जरिए सायकॉलजिस्ट मरीज की बीमारी का पता लगाते हैं।

क्या हर मामले में हॉस्पिटल में एडमिट होना पड़ता है?

बहुत गंभीर मामलों में ही हॉस्पिटल में एडमिट किया जाता है। ज्यादातर मामलों में एडमिट होने की जरूरत नहीं होती। घर में रहकर भी इसका इलाज हो सकता है।

क्या मरीज को शॉक ट्रीटमेंट देना जरूरी है?

ऐसा नहीं है। सभी अच्छे हॉस्पिटल में दवाओं और काउंसलिंग के जरिए ही इलाज किया जाता है। मेंटल हेल्थ केयर बिल 2016 के अनुसार अब बहुत जरूरी होने पर ही शॉक दिया जाएगा और वह भी अनीस्थिसिया का उपयोग करके।

क्या यह लाइलाज भी होता है?

बीमारी के जल्दी पकड़ में आने और जल्दी इलाज शुरू होने पर काफी हद तक सुधार की गुंजाइश रहती है। अगर बीमारी काफी गंभीर हो और मरीज सही इलाज नहीं करा रहा या घर में अच्छा माहौल नहीं मिल रहा तो कुछ मामलों में मरीज का दुरुस्त होना मुश्किल हो जाता है।

यहां से मिल सकती है मदद

इहबास सहित दिल्ली, मुंबई और साउथ इंडिया के कई शहरों में रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाए जा रहे हैं। यहां उन मरीजों को रखा जाता है, जिन्हें उनके घरवाले अपनाने को तैयार नहीं होते। इनके अलावा बेघरों और गरीब मानसिक रोगियों को भी इलाज के बाद ऐसे केंद्रों में रखे जाने की सुविधा है। उन्हें अस्पताल से बाहर इन केंद्रों में घर जैसी सुविधा और माहौल दिया जाता है ताकि वे जल्द से जल्द ठीक हो सकें। इसके अलावा देश में कई एनजीओ हैं, जो मानसिक रोगियों के पुनर्वास में जुटे हैं:

केयरिंग फाउंडेशन

35, डिफेंस ऐन्क्लेव, विकास मार्ग, नई दिल्ली

फोन: 011-2251-4726-27, 2245-9714/16

संजीवनी सोसायटी ऑफ मेंटल हेल्थ

एच ब्लॉक नॉर्थ, डिफेंस कॉलोनी फ्लाईओवर के नीचे, नई दिल्ली

फोनः 011-4311-918/ 6862-222

अंजलि मेंटल हेल्थ राइट्स ऑर्गनाइजेशन

93/2, कंकुलिया रोड, बेनुबोन

कोलकाता, वेस्ट बंगाल

वेबसाइटः anjalimentalhealth.org

मानव फाउंडेशन

168, टायर हाउस, लैमिंगटन क्रॉस रोड, अलीभाई प्रेमजी मार्ग, ग्रांट रोड (ईस्ट), मुंबई

फोन: 022-80970-83518, 022-2300-8984

वेबसाइटः manavfoundation.org.in

श्रद्धा रिहैबिलिटेशन फाउंडेशन

बोरीवली, मुंबई

फोनः 022-2895-5020, 98205-68215/98670-56433

वेबसाइटः shraddharehabilitationfoundation.org

कहां करा सकते हैं इलाज

बेंगलुरु स्थित नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निमहंस) और दिल्ली के इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज (इहबास) में बेहतरीन इलाज मुमकिन है। इसके अलावा आगरा, तेजपुर, अमृतसर और रांची स्थित मेंटल हेल्थ सेंटर में भी इलाज उपलब्ध है। यहां पुराने मॉडल में सुधार कर इलाज के तौर-तरीकों को मरीजों के अनुकूल बनाया जा रहा है। देश भर में 45 शहरों में सरकारी मेंटल हेल्थ हॉस्पिटल हैं, जहां पर मुफ्त में या नाममात्र की फीस पर बेहतरीन मेडिकल सुविधा उपलब्ध है।

प्रमुख हॉस्पिटल

नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज, बेंगलुरु

वेबसाइटः nimhans.ac.in

इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज, दिल्ली

वेबसाइटः ihbas.delhi.gov.in

इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड हॉस्पिटल, आगरा, यूपी

वेबसाइटः imhh.org.in

एलजीबी रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, तेजपुर, असम

वेबसाइटः lgbrimh.gov.in

सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ सायकायट्री, रांची, झारखंड

वेबसाइटः cipranchi.nic.in

इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, अमृतसर, पंजाब

वेबसाइटः imhamritsar.org

इंस्टिट्यूट ऑफ सायकायट्री एंड ह्यूमन बिहेवियर, पणजी, गोवा

वेबसाइटः iphb.goa.gov.in

स्टेट मेंटल हेल्थ इंस्टिट्यूट, पंडित बीडी शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज, रोहतक, हरियाणा

वेबसाइटः uhsr.ac.in

मेंटल हॉस्पिटल, इंदौर, मध्य प्रदेश

वेबसाइटः mentalhospitalindore.com

नोटः देश के अन्य 45 शहरों में भी सरकारी मेंटल हॉस्पिटल हैं।

काम के ऐप

Mental Health Recovery Guide

Improving your mental Health

Mental Disorders

काम की वेबसाइट्स

schizophrenia.com

medindia.net

world-schizophrenia.org

FB पेज

Mental health and family therapy

Mental health support group

Mental Health Fighters

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ऑटिजम: हौले-हौले हो जाता है सुधार

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ऑटिज़म... अगर नाम से नहीं समझ आ रहा तो 'माई नेम इज खान' के शाहरुख खान या डेली सोप 'आपकी अंतरा' की अंतरा को याद करें। ये दोनों ही किरदार ऑटिज़म से पीड़ित दिखाए गए हैं। हमारे देश में करीब 1.8 करोड़ मरीज हैं ऑटिज़म के। दिक्कत यह है कि इसे दवाओं से भी पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन सही माहौल और देखभाल से राह काफी आसान हो जाती है। एक्सपर्ट्स से बात करते ऑटिज़म पर जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंहः

ऑटिज़म एक मानसिक बीमारी है, जिसे स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी कहते हैं। इसके लक्षण जन्म से या बचपन से ही दिखाई देने लगते हैं। जिन बच्चो में यह बीमारी होती है, उनका मानसिक विकास दूसरे बच्चों से बहुत धीमा होता है। उनका बर्ताव भी बाकी बच्चों से काफी अलग होता है। अक्सर पैरंट्स के लिए बहुत कम छोटे बच्चों में इस बीमारी के लक्षणों को पहचान पाना मुश्किल होता है। अक्सर 3 साल की उम्र या इसके बाद पैरंट्स का ध्यान इस ओर जाता है। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है और उसके बर्ताव में कुछ असमान्यताएं दिखाई देती हैं, तो इस बीमारी के बारे में पता लगता है।

इससे पीड़ित बच्चे में आमतौर पर बातचीत और कल्पना की कमी पाई जाती है। उसे अपने आसपास की चीजों को समझने और रिएक्ट करने में दिक्कत होती है। बच्चे को अपनी बात कहने के लिए सही शब्द नहीं मिलते। कई बार सही शब्द की तलाश में एक ही वाक्य को दोहराता रहता है। बच्चे के मन के भाव बहुत जल्दी बदलते रहते हैं। जो बच्चा अभी बहुत खुश दिख रहा था, वही थोड़ी देर में बहुत दुखी दिखाई देगा। वह मारपीट भी कर सकता है या खुद को नुकसान पहुंचा सकता है। शुरुआत में कई पैंरंट्स को लगता है कि बच्चा सुन नहीं सकता या फिर उसे एडीडी (अटेंशन डिफिसिएट डिसऑर्डर) है। बाद में पता लगता है कि वह ऑटिज़म से पीड़ित है।

क्या है वजह

डॉ. शांभवी सेठ, डिवेलपमेंटल पीडियाट्रिशन, बी. एल. कपूर हॉस्पिटल के अनुसार ऑटिज़म की वजह के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। जिनेटिक, हेवी मेटल्स का ज्यादा इस्तेमाल, मां की ज्यादा उम्र, उसका ज्यादा तनाव में रहना, डिलिवरी के वक्त बच्चे के दिमाग में ऑक्सिजन का न जाना जैसी वजहों को इसके पीछे माना जाता है। हालांकि इन पर भी अभी रिसर्च जारी है। अगर एक बच्चे में ऑटिज़म है तो दूसरे में भी बीमारी होने के चांस 10 फीसदी तक होते हैं।

क्या हैं लक्षण

- बच्चे का मानसिक विकास धीमा हो जाना, कभी-कभी शारीरिक भी

- बोलना देर से सीखना, आंख मिलाकर बात न करना

- दूसरों की बातचीत समझने में दिक्कत होना

- साइन लैंग्वेज को भी नहीं समझ पाना

- एक ही शब्द या वाक्य को बार-बार दोहराना

- अपनी दुनिया में खोए रहना

- आसपास के लोगों के प्रति उदासीन हो जाना

- किसी से ज्यादा बातचीत करना या घुलना-मिलना पसंद न करना

- अक्सर खुद को किसी-ना-किसी तरह नुकसान पहुंचाना

- बार-बार सिर या हाथ हिलाना, आवाजें निकालना या एक ही तरह का बर्ताव करना

- देर तक एक ही तरफ देखते रहना

- एक ही गाना, एक ही कलर, एक ही तरह का खाना आदि पसंद आना

- जरा-सा भी बदलाव होने पर बेचैन हो जाना

- कब्ज, पाचन संबंधी समस्या और नींद न आने जैसे लक्षण भी दिखना

ऐसे पहचानें बीमारी को

- बच्चे की गतिविधियों पर गौर करें। 6 महीने की उम्र के बाद बच्चे में मुस्कराना या दूसरे खुशी के हाव-भाव नहीं होना। 9 महीने की उम्र में या उसके बाद तक आवाज नहीं सुनना, मुस्कराना या चेहरे के दूसरे हाव-भाव पर प्रतिक्रिया नहीं करना। 12 महीने की उम्र तक इशारा करने, हाथ हिलाने पर कोई प्रतिक्रिया न करना। 16 महीने की उम्र में कोई भी शब्द नहीं बोलना। 24 महीने की उम्र में दो शब्दों वाले वाक्यांश ढंग से नहीं बोल पाना। इन सबसे ऑटिज़म का अंदाजा लगाया जा सकता है।

ऑटिज़म के मरीज को कैसे संभाले

अक्सर पैरंट्स के लिए ऑटिज़म ग्रस्त बच्चे को संभालना मुश्किल होता है। उन्हें समझ नहीं आता कि बच्चे के साथ कैसा बर्ताव करें। पैरंट्स को कुछ चीजों का ध्यान रखना चाहिएः

- सबसे पहले पैरंट्स स्वीकार कर लें कि हमारे बच्चे में कोई कमी है। हालांकि पैरंट्स के लिए अपने बच्चे की कमी या कमजोरी स्वीकार करना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन ऐसा करने से समस्याएं काफी कम हो जाती हैं।

- डॉ. संजीव बगई, सीनियर पीडियाट्रिशन के अनुसार बच्चे को हर समय डांटने की बजाय उसके दोस्त बनें। ऐसे बच्चों का सोशल सर्कल बहुत कम होता है और इनके दोस्तों की लिस्ट भी ज्यादा नहीं होती इसलिए इन्हें दोस्त की कमी कभी न खलने दें।

- ये बच्चे बहुत ज्यादा जिद करते हैं क्योंकि इन्हें अपने नफा-नुकसान की समझ नहीं होती। बच्चे की जिद से परेशान होकर आप चिड़चिड़े न बनें।

- बच्चों से पैरंटस को काफी ज्यादा उम्मीदें होती हैं, जबकि इन बच्चों को अपना रोजाना का छोटा-मोटा काम करने में भी दिक्कत होती है। इन बच्चों से उम्मीदें कम रखें तो बेहतर है।

- इन बच्चों में बर्ताव से जुड़ी काफी समस्याएं पाई जाती हैं। इन समस्याओं को दूर करने के लिए इन्हें प्यार से समझाएं। उसे खुद करके दिखाएं कि दूसरों के साथ बर्ताव कैसे करना चाहिए। दूसरे बच्चे कैसा बर्ताव करते हैं, यह उसे दिखाएं।

- एक समय में एक ही चीज पर फोकस करें। ये बच्चे धीरे-धीरे चीजों को समझते हैं, इसलिए इनके लिए एक चीज तय कर उस पर रेग्युलर काम कराएं। मसलन किसी तय जगह पर कैसा बर्ताव करना है आदि। एक चीज सिखाने के बाद उसमें बदलाव करने की कोशिश न करें। इससे बच्चे को समझने में दिक्कत होती है।

- छोटे-छोटे लक्ष्य तैयार करें। डॉक्टर की सलाह से बच्चे के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य तय करें। इन लक्ष्यों में रोजाना के छोटे-छोटे कामों को शामिल किया जाना चाहिए, जैसे ब्रश करना सिखाना, खाना खाना सिखाना आदि।

कैसे होता है इलाज

- डॉ. राजीव मेहता, कंसल्टंट सायकायट्रिस्ट, सर गंगाराम हॉस्पिटल का कहना है कि आमतौर पर कई तरह की थेरपी को मिलाकर बच्चे का इलाज किया जाता है इसलिए एक्सपटर्स की एक टीम मिलकर इलाज करती है। अगर बच्चा हाइपर ऐक्टिव है या सोने में दिक्कत है तो उसके लिए मेडिसिन दी जाती है। बोलना सिखाने के लिए स्पीच और लैंग्वेज थेरपी दी जाती है। इसके अलावा बिहेवियरल और ऑक्युपेशनल थेरपी यानी अपने आसपास के माहौल और चीजों से तालमेल बिठाने की थेरपी दी जाती है। इसके तरह बच्चे को रुटीन काम करना सिखाना, सही तरीके से बैठना-उठना, लोगों से मिलना आदि सिखाया जाता है। बच्चे का आईक्यू लेवल और दूसरी गतिविधियां देखकर एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि बच्चे को नॉर्मल स्कूल में पढ़ाएं या स्पेशल स्कूल में। वैसे, इनमें से करीब 30 फीसदी बच्चों को ही आईक्यू प्रॉब्लम होती है। बाकी बच्चों का आईक्यू ठीक होता है। बेहतर है कि स्कूल भी दूसरे बच्चों को स्पेशल बच्चों के प्रति सेंसटिव होने की ट्रेनिंग दें।

पैरंट्स की काउंसलिंग भी जरूरी

ऑटिज़म से पीड़ित बच्चे के साथ -साथ पैरंट्स की काउंसलिंग होना जरूरी है। अक्सर पैरंट्स स्वीकार नहीं कर पाते कि उनके बच्चे में कोई कमी है। साथ ही, ऐसे बच्चों के साथ किस तरह बर्ताव किया जाना चाहिए, यह जानकारी भी नहीं होती इसलिए पैरंट्स की काउंसलिंग जरूरी है। काउंसलर पैरंट्स को यह भी बताते हैं कि बच्चे में कितना सुधार मुमकिन है ताकि वे ज्यादा उम्मीदें न पालें। पैरंट्स को पेशंस बढ़ाने की भी सलाह दी जाती है।

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हॉट मौसम के कूल टिप्स

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तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है। जल्द ही गर्मियां पूरे जोरों पर होंगी। ऐसे में शुरू से ही थोड़ा ख्याल रखें तो गर्मियों के मौसम में होनेवाली दिक्कतों से बचाव मुमकिन है। जानते हैं गर्मियों की समस्याओं और उनके समाधान के बारे में

लू लगना

- तेज गर्मियों के दौरान लू लगना सबसे कॉमन समस्या है। लू लगने पर शरीर का तापमान अचानक से बहुत बढ़ जाता है। जब शरीर का तापमान कंट्रोल करने वाला सिस्टम (थर्मोस्टेट सिस्टम) शरीर को ठंडा रखने में नाकाम हो जाता है तो पानी किसी-न-किसी रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है। इससे शरीर की ठंडक कम हो जाती है और लू लग जाती है। लू लगने पर तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, उलटी और चक्कर आना, दस्त, सिरदर्द, शरीर टूटना, बार-बार मुंह सूखना, बार-बार प्यास लगना और कमजोरी जैसे लक्षण दिखते हैं। कभी-कभी बुखार, लो बीपी से लेकर ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक तक भी हो सकता है।

लू लगने से बचाव के लिए

- तेज गर्म हवाओं में बाहर जाने से बचें। नंगे बदन और नंगे पैर धूप में न निकलें।

- घर से बाहर जाते हुए शरीर को पूरी तरह ढकनेवाले हल्के रंग के ढीले कपड़े पहनें ताकि हवा लगती रहे।

- सूती कपड़े पहनें। सिंथेटिक, नायलॉन और पॉलिएस्टर के कपड़े न पहनें।

- खाली पेट बाहर न जाएं और ज्यादा देर भूखे रहने से बचें। घर से निकलने से पहले एक गिलास पानी, नींबू पानी, छाछ, आम पना, खस का शर्बत या नारियल पानी पिएं।

- धूप से बचने के लिए छाते का इस्तेमाल करें। इसके अलावा, धूप में सिर पर गीला या सादा कपड़ा रखकर चलें।

- चश्मा पहनकर बाहर जाएं। चेहरे को कपड़े से ढक लें।

- घर को ठंडा रखने की कोशिश करें। खस के पर्दे, कूलर, एसी आदि का इस्तेमाल करें।

... गर लग जाए लू

सबसे पहले मरीज को ठंडी और छायादार जगह में बिठाएं, कपड़े ढीले कर दें, पानी पिलाएं और ठंडा कपड़ा उसके शरीर पर रखें। शरीर के तापमान को कम करने की कोशिश करें। लू लगने पर ऐसा करना सबसे जरूरी है। लगातार लिक्विड चीजें पिलाएं, जैसे कि शिकंजी, छाछ, पतली लस्सी, जूस, इलेक्ट्रॉल आदि। साथ ही, हाथ-पैरों की हल्के हाथों से मालिश करें। तेल न लगाएं। गुलाब जल में रुई भिगोकर आंखों पर रखें। इन सबके बावजूद आराम न आए तो डॉक्टर के पास ले जाएं। लू लगने पर मरीज को बेल या दूसरी तरह के शर्बत और जौ का पानी दें। खिचड़ी, दलिया, सूप आदि दे सकते हैं। तले-भुने खाने से परहेज करें।

ये घरेलू नुस्खे आजमाएं

- छह छोटे चम्मच सौंफ का रस, दो बूंद पुदीने का रस और दो चम्मच ग्लूकोज पाउडर करीब एक-एक घंटे बाद देते रहें।

- ताजे प्याज के रस को छाती पर मलने से भी लू का असर कम होता है।

- गर्मियों में प्याज को जेब में रखने से लू नहीं लगती क्योंकि उसमें पानी की मात्रा बहुत होती है। पानी न मिलने पर उसे ही चूस लें।

- कच्चे आम को भूनकर, पानी में मसलकर, छानकर उसमें स्वादानुसार चीनी और जीरा मिलाकर रोज लेने से लू लगने का खतरा कम हो जाता है।

- आंवले का चूर्ण एक ग्राम, मीठा सोडा आधा ग्राम और तीन ग्राम मिश्री सौंफ के रस के साथ मरीज को दें।

- पुदीने के करीब 30-40 पत्ते लेकर, दो ग्राम जीरा और दो लौंग को पीसकर आधे गिलास पानी में मिलाकर मरीज को हर चार घंटे बाद पिलाएं।

गर हो जाए बुखार

- तेज गर्मियों कभी-कभार बुखार की वजह भी बन सकती हैं। अगर बुखार 102 डिग्री तक है और कोई और खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं। मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। अगर इससे ज्यादा तापमान है तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। मरीज को एसी में रख सकते हैं, तो बहुत अच्छा है, नहीं तो पंखे में रखें। कई लोग बुखार होने पर चादर ओढ़कर लेट जाते हैं और सोचते हैं कि पसीना आने से बुखार कम हो जाएगा, लेकिन इस तरह चादर ओढ़कर लेटना सही नहीं है।

- मरीज को हर 6 घंटे में पैरासेटामॉल (Paracetamol) की एक गोली दे सकते हैं। यह मार्केट में क्रोसिन (crocin), कालपोल (calpol) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। दूसरी कोई गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें। दो दिन तक बुखार ठीक न हो तो मरीज को डॉक्टर के पास जरूर ले जाएं। मरीज को पूरा आराम करने दें, खासकर तेज बुखार में। आराम भी बुखार में इलाज का काम करता है।

पेट की गड़बड़ी

गर्मियों में खाने में किटाणु जल्दी पनपते हैं। ऐसे में खाना जल्दी खराब हो जाता है। खराब खाना या उलटा-सीधा खाने से गर्मियों में कई बार डायरिया यानी उलटी-दस्त की शिकायत भी होती है। लू लगने पर भी यह समस्या हो सकती है। डायरिया में अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं, लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां न हों, पर दस्त खूब हो रहे हों। डायरिया आमतौर पर 3 तरह का होता है :

वायरल

यह वायरस के जरिए ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है। पेट में मरोड़ के साथ लूज मोशंस और उलटी आती है। काफी कमजोरी भी महसूस होती है लेकिन यह ज्यादा खतरनाक नहीं होता।

इलाज: वायरल डायरिया में मरीज को ओआरएस का घोल या नमक और चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। उलटी रोकने के लिए डॉमपेरिडॉन (Domperidone) और लूज मोशंस रोकने के लिए रेसेसाडोट्रिल (Racecadotrill) ले सकते हैं। पेट में मरोड़ हैं तो मैफटल स्पास (Maflal spas) ले सकते हैं। 4 घंटे से पहले दोबारा टैब्लट न लें। एक दिन में उलटी या दस्त न रुकें तो डॉक्टर के पास ले जाएं।

बैक्टीरियल

इसमें तेज बुखार के अलावा पॉटी में पस या खून आता है।

इलाज: एंटी-बायॉटिक दवाएं दी जाती हैं। साथ में प्रोबायॉटिक्स भी देते हैं। दही प्रोबायॉटिक्स का बेहतरीन नेचरल सोर्स है। एंटी-बायोटिक डॉक्टर की सलाह के बिना न लें।

प्रोटोजोअल

इसमें भी बुखार के साथ पॉटी में पस या खून आता है।

इलाज: प्रोटोजोअल इन्फेक्शन में एंटी-अमेबिक दवा दी जाती है।

नोट: यह गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना-पानी नहीं देना चाहिए। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें, जैसे कि नारियल पानी, नींबू पानी (हल्का नमक और चीनी मिला), छाछ, लस्सी, दाल का पानी, ओआरएस का घोल, पतली खिचड़ी, दलिया आदि। सिर्फ तली-भुनी चीजों से मरीज को परहेज करना चाहिए।

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स्किन से जुड़ी समस्याएं

गर्मियों में स्किन की समस्याएं जैसे कि सनबर्न, टैनिंग, रैशेज, घमौरियां आदि बहुत परेशान करती हैं। जो लोग लगातार बैठे रहते हैं या घंटों बैठकर गाड़ी चलाते रहते हैं, उन्हें दिक्कतें ज्यादा आती हैं। गर्मियों की कॉमन स्किन प्रॉब्लम हैं:

सनबर्न और टैनिंग

गर्मियों में अक्सर सनबर्न (स्किन का झुलना) और टैनिंग (स्किन का रंग गहरा होना) का सामना करना पड़ता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, टैनिंग खराब चीज नहीं है इसलिए उसके लिए किसी तरह का उपाय करने की जरूरत नहीं है। सनबर्न और पिग्मेंटेशन (जगह-जगह धब्बे पड़ना) होने पर स्किन में जलन और खुजली होती है। यह समस्या गोरे लोगों को ज्यादा होती है। जो लोग सनबर्न होने के बाद भी धूप में घूमते रहते हैं, अगर वे पानी न पिएं तो उन्हें हीट स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है।

क्या करें: एसपीएफ 30 या उससे ज्यादा का सनस्क्रीन लोशन लगाएं। ढीले, पूरी बाजू के, हल्के रंग के कॉटन के कपड़े पहनें। बाहर जाते हुए छाते का इस्तेमाल जरूर करें। सुबह 10 बजे से शाम 3 बजे तक धूप में निकलने से बचें। खूब पानी पिएं। कैलेमाइन लोशन या ऐंटि-इन्फ्लेमेट्री यानी सूजन और जलन से राहत दिलानेवाले लोशन हाइड्रोकॉर्टिसोन (Hydrocortisone) लगा सकते हैं। यह जेनरिक नेम है और मार्केट में अलग-अलग ब्रैंड नेम से लोशन व क्रीम मिलते हैं। ज्यादा खुजली हो तो डॉक्टर एंटी-एलर्जिक गोली सिट्रिजिन (Cetirizine) खाने की सलाह देते हैं। यह भी जेनरिक नाम है। जब तक सनबर्न ठीक न हो, धूप से बचें। घरेलू उपाय भी आजमा सकते हैं। आधा कप दही में आधा नीबू निचोड़ कर अच्छी तरह मिला लें। फ्रिज में रख लें और रात को सोने से पहले क्रीम की तरह लगा लें। पांच मिनट बाद इसके ऊपर से हल्का मॉइस्चराइजर भी लगा सकते हैं। इससे काफी राहत मिलेगी।

रैशेज और घमौरियां

गर्मियों में पसीना निकलने से स्किन में ज्यादा मॉइस्चर रहता है, जिसमें कीटाणु (माइक्रोब्स) आसानी से पनपते हैं। इस दौरान ज्यादा काम करने से स्वैट ग्लैंड्स (पसीने की ग्रंथियां) ब्लॉक हो जाते हैं। ऐसा होने पर पसीना स्किन की अंदरुनी परत के अंदर जमा रह जाता है। रैशेज और घमौरियां ज्यादातर ऐसी जगहों पर होती हैं, जहां स्किन फोल्ड होती है, जैसे जांघ या बगल आदि। इसके अलावा पेट और कमर पर भी होती हैं। घमौरियां और रैशेज होने पर स्किन लाल पड़ जाती है और खुजली व जलन होती है। रैशेज से स्किन में दरारें-सी नजर आती हैं और स्किन सख्त हो जाती है, वहीं घमौरियों में लाल-लाल दाने निकल आते हैं। बाहर की स्किन की परत ब्लॉक होने पर दानेवाली घमौरियां निकलती हैं और इनमें खुजली होती है।

क्या करें: खुले, हल्के और हवादार कपड़े पहनें। टाइट और ऐसे कपड़े न पहनें जिनसे रंग निकलता हो। ध्यान रहे कि कपड़े धोते हुए उनमें साबुन न रहने पाए। ठंडे तापमान में रहें यानी एसी और कूलर में रहें। घमौरियों वाले हिस्से पर दिन में एकाध बार बर्फ लगा सकते हैं। साथ ही, घमौरियों पर कैलेमाइन (Calamine) लोशन लगाएं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं।

मुंहासे और दाने

गर्मियों में आमतौर पर नुकीले दाने निकलते हैं। वाइटहेड, ब्लैकहेड के अलावा पस वाले दाने भी हो सकते हैं। हालांकि यह समस्या बरसात में ज्यादा होती है। इसी तरह फोड़े-फुंसी और बाल तोड़ भी हो सकते हैं। असल में, जब कीटाणु स्किन के नीचे पहुंच जाते हैं और पस बनाना शुरू कर देते हैं तो यह समस्या हो जाती है। यह स्थिति काफी तकलीफदेह होती है। कई बार बुखार भी आ जाता है। आम धारणा है कि ऐसा आम खाने से होता है, लेकिन यह सही नहीं है। यह मॉइस्चर में पनपनेवाले बैक्टीरिया की वजह से होता है।

क्या करें: एंटी-बैक्टीरियल साबुन से दिन में दो बार नहाएं। शरीर को जितना मुमकिन हो, सूखा और फ्रेश रखें। नॉन-ऑयली और कूलिंग क्लींजर, फेसवॉश, लोशन और डियो यूज करें। एंटी-बायोटिक क्रीम लगाएं, जिनके जेनरिक नाम फ्यूसिडिक एसिड (Fusidic Acid) और म्यूपिरोसिन (Mupirocin) हैं। हरी सब्जियां, खासकर खीरा आदि खूब खाएं। चाय, कॉफी और तला-भुना कम खाएं। गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक, लहसुन, अजवाइन, मेथी आदि कम खाएं। इनसे ग्लैंड्स ऐक्टिव हो जाते हैं, जिससे कीटाणु जल्दी आ जाते हैं। ग्लैंड्स ज्यादा काम कर रहे हैं तो क्लाइंडेमाइसिन (Clindamycin) लोशन लगा सकते हैं। यह मार्केट में कई ब्रैंड नेम से मिलता है। इसके अलावा एंटी-एक्ने साबुन एक्नेएड (Acne-Aid), एक्नेक्स (Acnex), मेडसोप (Medsop) आदि भी यूज कर सकते हैं। ये ब्रैंड नेम हैं।

इन्फेक्शन

फंगल इन्फेक्शन: रिंग वर्म, यानी दाद-खाज की समस्या गर्मियों में बढ़ जाती है। इसमें गोल-गोल टेढ़े-मेढ़े रैशेज जैसे नजर आते हैं, रिंग की तरह। इनमें खुजली होती है और ये एक इंसान से दूसरे में भी फैल सकते हैं।

क्या करें: एंटी-फंगल क्रीम क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) लगाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से ग्राइसोफुलविन (Griseofulvin) टैब्लेट ले सकते हैं। ये दोनों जेनरिक नेम हैं।

कॉन्टैक्ट एलर्जी: आर्टिफिशल जूलरी, बेल्ट, जूते आदि के अलावा जिन कपड़ों से रंग निकलता है, उनसे कई बार एलर्जी हो जाती है जिसे कॉन्टैक्ट एलर्जी कहा जाता है। जहां ये चीजें टच होती हैं, वहां एक लाल लाइन बन जाती है और दाने बन जाते हैं। इनमें काफी जलन होती है। अगर जूलरी आदि को लगातार पहनते रहेंगे तो बीमारी बढ़ जाएगी और उस जगह से पानी निकलना (एक्जिमा) शुरू हो जाएगा।

क्या करें: सबसे पहले उस चीज को हटा दें, जिससे एलर्जी है। उस पर हाइड्रोकोर्टिसोन लगाएं।

एथलीट्स फुट: जो लोग लगातार जूते पहने रहते हैं, उनके पैरों की उंगलियों के बीच की स्किन गल जाती है। समस्या बढ़ जाए तो इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है।

क्या करें: जूते उतार कर रखें और पैरों को हवा लगाएं। जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों पर पाउडर डाल लें। क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazole) क्रीम या पाउडर लगाएं।

शरीर की बदबू

पसीने में मॉइस्चर की वजह से गर्मियों में हमारे शरीर में बदबू आने लगती है। शरीर में मौजूद बैक्टीरिया हाइड्रोजन सल्फाइड बनाने लगते हैं, जिससे बदबू पैदा होती है। कई लोगों के पसीने में पीलापन भी आता है।

क्या करें: दिन में दो-तीन बार नहाएं। कूलिंग टेलकम पाउडर या एंटी-फंगल पाउडर यूज करें या कैलेमाइन लोशन लगाएं। एंटी-फंगल पाउडर मार्केट में माइकोडर्म (Mycoderm), अब्जॉर्ब (Abzorb), जिएजॉर्ब (Zeasorb) आदि ब्रैंड नेम से मिलता है। रोजाना साफ अंडरगारमेंट और जुराबें पहनें। डियो इस्तेमाल करें। इसके अलावा दिन में दो बार फिटकरी को हल्का गीला कर बॉडी फोल्ड्स पर लगा लें। इससे पसीना आना कम हो जाता है। एंटी-प्रॉस्पेरेंट लोशन या पाउडर लगा सकते हैं। इसका जेनरिक नाम एल्युमिनियम हाइड्रोक्साइड (Aluminium Hydroxide) है। इससे पसीना कम आएगा और बैक्टीरिया भी कम पनपेंगे।

सनस्क्रीन कितना फायदेमंद

गर्मियों में सनस्क्रीन लोशन या क्रीम की डिमांड बहुत बढ़ जाती है। सनस्क्रीन सूरज में निकलने से कम-से-कम 10-15 मिनट पहले लगाना चाहिए और अगर धूप में रहना है तो हर दो घंटे बाद फिर से लगाना चाहिए। बाहर नहीं जा रहे हैं और घर में ही रहना है तो सनस्क्रीन लगाना जरूरी नहीं है। बाहर जाते हुए सनस्क्रीन अच्छी मात्रा में लगाना चाहिए। सनस्क्रीन से पहले मॉइस्चराइजर लगा लें। सनस्क्रीन लगाकर धीरे-धीरे मुलायम हाथ से अच्छी तरह मालिश करें ताकि स्किन उसे सोख ले। स्वीमिंग करने जाएं तो पानी को रोकनेवाला (वॉटर रेजिटेंस) सनस्क्रीन लगाकर जाएं। जो लोग सन बाथ करते हैं, उन्हें भी सनस्क्रीन लगा लेना चाहिए, वरना सूरज की किरणें स्किन को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

कितना एसपीएफ जरूरी

एसपीएफ यानी सन प्रोटेक्शन फैक्टर को लेकर अक्सर लोगों को गलतफहमी होती है, मसलन ज्यादा-से-ज्यादा एसपीएफ का सनस्क्रीन लगना बेहतर है। असल में, हम भारतीयों की स्किन टाइप 3 और टाइप 4 कैटिगरी में आती है। बहुत गोरे लोगों की स्किन टाइप 1 व टाइप 2 होती है और बेहद काले (नीग्रो आदि) की टाइप 5 और 6 कैटिगरी में आती है। ऐसे में हम लोगों के लिए 30 एसपीएफ काफी है। सांवली स्किन वाले लोगों को भी 15-30 एसपीएफ का सनस्क्रीन यूज करना चाहिए। यह धारणा गलत है कि सांवले लोगों को सनस्क्रीन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बच्चों को पांच साल की उम्र से पहले सनस्क्रीन न लगाएं।

नोट: कुछ एक्सपर्ट सनस्क्रीन सिर्फ उन्हीं लोगों को लगाने की सलाह देते हैं, जिन्हें सूरज या धूप से एलर्जी होती है। वे कहते हैं कि आम लोगों को सनस्क्रीन लगाने की कोई जरूरत नहीं होती। सनस्क्रीन लगाने से विटामिन डी नहीं मिल पाता और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।

डियो कपड़ों पर लगाएं या स्किन पर

डियो या परफ्यूम लगाने से कोई नुकसान नहीं है। ये शरीर को ताजगी और खुशबू देते हैं। डियो और परफ्यूम को कपड़ों की बजाय सीधे स्किन पर लगाना बेहतर है क्योंकि तब इनका रिजल्ट बेहतर आता है, लेकिन करीब 5-7 इंच की दूरी से लगाएं। इसके अलावा, कपड़ों पर लगाने से उन पर दाग भी पड़ सकता है। ऐसे में जरूरी है कि हमेशा अच्छी क्वॉलिटी का डियो या परफ्यूम लगाएं ताकि स्किन को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे। आमतौर पर डियो और परफ्यूम एलर्जी नहीं करते, लेकिन जिन्हें एलर्जी है, उन्हें इनसे बचना चाहिए।

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गर्मियों का खान-पान

गर्मियों में शरीर के तापमान को कम रखने के लिए ठंडी चीजें खाना बेहतर है, मसलन जई, चावल, मूंग दाल, स्प्राउट्स आदि। ध्यान रखें कि खाना हल्का हो और उसमें फैट ज्यादा न हो। गर्मियों में भारी फूड आइटम आसानी से नहीं पचते। गर्मियों में हफ्ते में दो बार से ज्यादा नॉनवेज या अंडा न खाएं। इन्हें भी उबालकर या भाप में पकाकर खाएं। नॉनवेज में मछली या चिकन ले सकते हैं। मटन काफी हेवी होता है इसलिए उससे बचें। देसी घी, वनस्पति घी के अलावा सरसों का तेल और ऑलिव ऑयल भी कम खाएं। ये गर्म होते हैं। राइस ब्रैन, नारियल, सोयाबिन, कनोला आदि का तेल यूज कर सकते हैं। वैसे गर्मियां आइसक्रीम के बिना अधूरी हैं। लेकिन हाई कैलरी, हाई शुगर और प्रिजर्वेटिव होने की वजह से इन्हें भी कम मात्रा में ही खाना चाहिए। हफ्ते में दो बार से ज्यादा बिल्कुल न खाएं। थोड़ी आइसक्रीम लेकर उसके साथ फ्रूट डालकर भी खा सकते हैं। इससे आइसक्रीम की मात्रा कम हो जाती है।

जमकर पिएं लिक्विड

पानी: गर्मियों में पसीने से सबसे ज्यादा नुकसान शरीर को पानी और नमक का होता है। ऐसे में डिहाइड्रेशन से बचने के लिए रोजाना 10-15 गिलास पानी पीना चाहिए। कम पानी पीने से यूरीन ट्रैक इन्फेक्शन भी हो सकता है। गुनगुना, नॉर्मल या हल्का ठंडा पानी पिएं। मटके का पानी पीना बेहतर है। चिल्ड (बहुत ठंडा) पानी नहीं पीना चाहिए। बहुत ठंडे पानी से पाचन खराब होता है। पानी में बर्फ डालकर भी नहीं पीना चाहिए। बर्फ शरीर में गर्मी पैदा करती है। एक्सरसाइज या मेहनत के काम के बाद तो बिल्कुल भी ठंडा पानी न पिएं। ऐसा करने से पिघला फैट फिर से जम जाता है। खाने से पहले जितना चाहें पानी पी सकते हैं, लेकिन खाने के बाद आधे घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए। खाने के साथ पानी पीने से पाचन खराब होता है। जिन्हें किडनी प्रॉब्लम है, उन्हें पानी कम पीना चाहिए। वे डॉक्टर से पूछकर पानी पिएं।

नीबू पानी: गर्मियों में जितना मुमकिन हो नीबू पानी पीना चाहिए। नीबू पानी में थोड़ा नमक या थोड़ी चीनी और थोड़ा नमक मिलाना बेहतर है। इससे शरीर से निकले सॉल्ट्स की भरपाई होती है। थोड़ी चीनी अच्छी होती है गर्मियों में। वजन कम करना चाहते हैं तो चीनी न मिलाएं। नमक भी कम डालें।

नारियल पानी: नारियल पानी को मां के दूध के बाद सबसे बेहतर और साफ पेय माना जाता है। नारियल पानी प्रोटीन और पोटैशियम (अच्छा सॉल्ट) का अच्छा सोर्स है। इसका कूलिंग इफेक्ट भी काफी अच्छा है, इसलिए एसिडिटी और अल्सर में भी कारगर है यह। शुगर के मरीज भी नारियल पानी पी सकते हैं।

छाछ: छाछ में प्रोटीन खूब होते हें। ये शरीर के टिश्यूज को हुए नुकसान की भरपाई करते हैं। मीठी लस्सी कम पिएं। छाछ जितनी चाहें पी सकते हैं। खाने के साथ छाछ लेना भी फायदेमंद है। छाछ में काला नमक, काली मिर्च, भुना जीरा डालकर पीना चाहिए।

ठंडाई: अगर शुगर लेवल ठीक है तो यह एक अच्छा पेय है, लेकिन इसमें ड्राइफ्रूट्स और शुगर काफी ज्यादा होने से यह मोटापा बढ़ाती है। हार्ट, हाइपर टेंशन और शुगर के मरीज ठंडाई से परहेज करें।

वेजिटेबल जूस: जूस पीने से बेहतर है सब्जियां खाना। फिर भी जो लोग सब्जियों का जूस पीना चाहते हैं वे घिया, खीरा, आंवला, टमाटर आदि का जूस मिलाकर पी सकते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक, दो कड़वी चीजों के जूस मिलाकर कभी न पिएं क्योंकि कड़वे फल या सब्जियों में कुकुरबिट होते हैं। कुकरबिट एसिडिक होते हैं और कई बार जहरीले हो जाते हैं।

फ्रूट जूस: जूस में सिर्फ फ्रक्टोज होते हैं जबकि साबुत फल में फाइबर होता है, इसलिए जूस के मुकाबले साबुत फल खाना हमेशा बेहतर है। जूस जब भी पिएं ताजा ही पिएं। गर्मियों में मौसमी, संतरा, माल्टा या तरबूज का जूस काफी फायदेमंद है। तरबूज जूस के फौरन बाद पानी न पिएं।

पैक्ड जूस: जब तक जरूरी न हो, पैक्ड जूस न पिएं। इनमें शुगर काफी ज्यादा होती है और प्रिजर्वेटिव भी खूब होते हैं। पैक्ड जूस पीना ही चाहते हैं तो अच्छी कंपनी का खरीदें।

रेडीमेड शरबत: मार्केट में बने बनाए तमाम शरबत आते हैं जैसे कि रसना, रूह-अफजा, खस और गुलाब आदि। चीनी ज्यादा होने की वजह से ये मोटापा बढ़ाते हैं। हालांकि ये सॉफ्ट ड्रिंक से बेहतर होते हैं, खासकर हर्बल शरबत।

आम पना: आम पना गर्मियों का खास ड्रिंक है। कच्चे आम की तासीर ठंडी होती है। टेस्ट से भरपूर आम पना विटामिन-सी का अच्छा सोर्स है। यह स्किन और पाचन, दोनों के लिए अच्छा है। इसे लंबे समय तक रखा जा सकता है।

बेल का शरबत : बेल का शरबत एसिडिटी और कब्ज, दोनों में असरदार है। कच्चे बेल का शरबत लूज मोशंस को रोकता है तो पके बेल का शरबत कब्ज को ठीक करता है। इसका कूलिंग इफेक्ट भी काफी अच्छा होता है।

चंदन/खस का शरबत : अगर घर में नहीं बना सकते तो मार्केट में चंदनआसन, उशीरासव (खस) मिलते हैं। हीट स्ट्रोक्स (लू लगना) में काफी मददगार हैं ये।

कौन-से फल फायदेमंद

मौसमी फल खाना सेहत के लिहाज से हमेशा बढ़िया होता है। खाने और फलों के बीच 2-3 घंटे का गैप रखें। खाने से एक घंटा पहले भी फल खा सकते हैं, लेकिन भरे पेट न खाएं और न ही खाने के साथ खाएं क्योंकि फल खाने के मुकाबले जल्दी पचते हैं। फलों को ज्यादा देर पहले काटकर न रखें। इससे उनकी न्यूट्रिशन वैल्यू कम होती है।

आम: आम ज्यादा नहीं खाना चाहिए। घर में पकाकर आम खाना बेहतर है। घर पर पकाने के लिए आम को अखबार में लपेटकर तीन-चार दिन के लिए छोड़ दें। बाजार से आम खरीदते हैं तो ज्यादा मुमकिन है कि वह हाइड्रोजन सल्फाइड से पकाया गया हो। ऐसे आम की तासीर काफी गरम हो जाती है। ऐसे में आम का छिलका अच्छी तरह धोएं। डंठल निकालकर आम को पानी में तीन-चार घंटे के लिए छोड़ दें। आम में विटामिन और मिनरल्स के अलावा कैलरी और शुगर काफी होती हैं। जिन्हें वजन या शुगर की प्रॉब्लम है उन्हें आम बहुत कम खाना चाहिए। आम खाने के बाद ठंडा दूध या छाछ पीना अच्छा है। इससे आम शरीर में जाकर गर्मी नहीं करता। मैंगो शेक से आम की तासीर ठंडी हो जाती है।

तरबूज: गर्मियों के लिए तरबूज बहुत अच्छा है, लेकिन तरबूज के साथ पानी न पिएं। दोपहर के वक्त तरबूज खाना और भी अच्छा है क्योंकि यह उस वक्त तक शरीर को पानी की जरूरत बढ़ जाती है। तरबूज को दूसरे फलों के साथ नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें काफी पोटैशियम, प्रोटीन, पानी और फाइबर होता है। इससे या तो पेट फूला लगेगा या लूज मोशंस हो सकते हैं। खरबूज में कार्ब और शुगर ज्यादा होती है। इसे कम खाना चाहिए।

बेर और चेरी: गर्मियों में बेर और चेरी भी खूब आते हैं। बेर में बॉरोन और सल्फर जैसे माइक्रो न्यूट्रिएंट काफी होते हैं। एसिडिक लोगों को इन्हें कम ही खाना चाहिए। लीची में शुगर आम से भी ज्यादा होती है। बड़ों की बजाय यह बच्चों के लिए अच्छी है।

अंगूर: डिहाइड्रेशन होने पर अंगूर से काफी मदद मिलती है। अंगूर फेफड़ों की सेहत के लिए भी बहुत अच्छे होते हैं। लो बीपी या लो शुगर वालों को इन्हें खाना चाहिए। इसमें शुगर काफी होती है, इसलिए लिमिट में खाएं।

मौसमी: मौसमी का कूलिंग इफेक्ट काफी अच्छा है। यह डाइजेशन में मदद करती है। खाना खाने से घंटा भर पहले मौसमी खाने से खाना अच्छी तरह पचता है।

फ्रूट चाट: फ्रूट चाट से बचना चाहिए क्योंकि सारे फलों का डायजेशन अलग-अलग वक्त पर होता है। इनका मिजाज भी अलग-अलग होता है। मसलन, केला अल्कलाइन है तो संतरा एसिडिक। दोनों को एक साथ खाने से डाइजेशन सही नहीं होता। बॉडी कन्फ्यूज हो जाती है कि एसिड वाले फलों का डाइजेशन करूं या एल्कलाइन का। अगर फ्रूट सलाद खाना ही चाहते हैं तो इसमें ऐसे फल रखें, जिनमें कार्ब और फैट ज्यादा न हों। मसलन केला, आम या चीकू कम रखें।

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चल अकेला...

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'मंजिल मिले न मिले, अपना तो सफर जन्नत है यारो...' इसी तर्ज पर चलते हुए लाखों सोलो ट्रैवलर दुनिया के कोने-कोने में घूम रहे हैं, हर पल कुछ नया अनुभव करते हुए। ऐसे घुमक्कड़ों के लिए न मंजिल मायने रखती है, न साथी। सफर में जो मिला, उसके साथ हो लिए। जहां अच्छा लगा, ठहर गए। घुमक्कड़ी के इस अंदाज के बारे में बता रहे हैं वरुण वागीश :

दार्शनिकों का मानना है कि हर इंसान अगर घुमक्कड़ बन जाए तो पूरी दुनिया से नफरत, हिंसा और आतंकवाद अपने आप खत्म हो जाएगा। घूमने से नए लोगों के साथ संवाद कायम होता है, हमारे पूर्वाग्रह खत्म होते हैं। घुमक्कड़ी नए लोगों, संस्कृतियों को जोड़ने का काम करती है और सोलो ट्रैवलिंग यानी अकेले घुमक्कड़ी इसका सबसे अच्छा जरिया है। सदियों से हमारा देश ऐसे यायावरों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। अब तो आम भारतीय भी बाहर निकल रहे हैं और दुनिया देखने-समझने के लिए अकेले घूम रहे हैं। हालांकि कोई भी काम शुरू करने से पहले जरूरी है, उससे जुड़ी तमाम जानकारी हासिल कर लें। सोलो ट्रैवलिंग करने से पहले भी बुनियादी तैयारी जरूरी है क्योंकि सोलो ट्रैवलिंग के जहां कई फायदे हैं, वहीं पहले से तैयारी न होने से यह मुसीबत भी बन सकता है।

इन बातों का रखें ध्यान

1. रिसर्च, रिसर्च और रिसर्च: इंटरनेट या गाइड बुक्स की मदद से खूब जानकारी इकट्ठी करें। अपने डेस्टिनेशन तक पहुंचने के लिए फ्लाइट लें या ट्रेन? एयरपोर्ट या रेलवे स्टेशन से टैक्सी, ऑटो करें या बस और मेट्रो जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट सही रहेंगे? बड़ी जगहों के आसपास के रास्ते कौन-से होंगे? ठहरने के लिए क्या हॉस्टल मिल जाएंगे? ऐसी कौन-सी जगह हैं, जो वहां जाकर देखना चाहिए। मौसम कैसा रहेगा? मोबाइल नेटवर्क कवरेज कैसा होगा? इमरजेंसी में कहां से मदद मिलेगी? इन सभी बातों के बारे में अच्छी तरह से जानकारी लेने के बाद ही यात्रा शुरू करें। Couchsurfing.com, Hitchwiki.org, tourbar.com, wetravelsolo.com जैसी वेबसाइट्स और Solo Travel Society, NOMADS - a life of free/cheap travel जैसे फेसबुक पेजों से आपको अच्छी जानकारी मिल सकती है।

2. जितना हल्का, उतना अच्छा: सामान जितना कम होगा, ट्रैवलिंग का मजा उतना ज्यादा आएगा, वरना घूमने से पहले सामान रखने के लिए क्लॉकरूम और होटल ढूंढने में ही वक्त, ताकत और पैसा खर्च होता रहेगा। इसी तरह से कई बार वीइकल न मिले तो भी आराम से पैदल चलकर थोड़ी-बहुत दूरी तय की जा सकती है।

3. कॉमन सेंस का कमाल: अक्सर परिजन बाहर निकलने से पहले तरह-तरह की हिदायतें देने लगते हैं। यह करना, यह मत करना, किसी का दिया मत खाना, अजनबियों से बात मत करना, बसों के बजाय टैक्सी कर लेना, हॉस्टल के बजाय प्राइवेट रूम ले लेना! अब अगर इतनी बंदिशें होंगी तो घूमने का फायदा क्या? बाहर निकले हैं तो आज़ाद होकर घूमें। लोगों से खूब बतियाएं। जहां मन चाहे, जाएं। जो मन चाहे, खाएं। बस ध्यान रखें कुछ सावधानियों का, जो ट्रिप से पहले रिसर्च के दौरान पता चल जाती हैं या कुछ घूमते हुए धीरे-धीरे समझ आने लगती हैं। इसलिए कॉमन सेंस का दरवाजा हमेशा खुला रखें। अलर्ट रहना भी बहुत जरूरी है, वरना आप मुसीबत में भी फंस सकते हैं।

4. धोखा खाने से बचें: अकेले घूमते हुए गलतियों की आशंका ज्यादा रहती है, लेकिन गलतियों से ही हम सीखते हैं। यात्रा पर निकलने से पहले की गई रिसर्च आपको परेशानियों से बचा सकती है। आमतौर पर मशहूर टूरिस्ट स्पॉट्स पर धोखाधड़ी की आशंका बनी रहती है। इसलिए सफर से पहले टूरिस्ट स्कैम्स के बारे में पता कर लें। इंटरनेट पर आपको ऐसे ढेरों विडियो मिल जाएंगे जिनमें घुमक्कड़ों ने अपने अनुभव शेयर किए होंगे। मिसाल के तौर पर दिल्ली में टूरिस्टों से होने वाली धोखाधड़ी पर कई विडियो बने हुए हैं। 'टूरिस्ट स्कैम्स' या 'टूरिस्ट ट्रैप इन दिल्ली' सर्च करके देखें। ऐसे ही बाकी जगहों के बारे में भी बहुत सारे विडियो बनाए गए हैं।

5. फेसबुक ग्रुप्स: इंटरनेट पर फेसबुक, quora जैसे कितने ही डिस्कशन फोरम हैं, जहां दुनियाभर के घुमक्कड़ अपने अनुभव के आधार पर लोगों की मदद करते रहते हैं। इन फेसबुक ग्रुप्स जैसे कि Backpacking, Travelettes, Travel Blogger Tales, The WOW Club - Women on Wanderlust, Girls LOVE travel आदि पर लोग सवाल पूछते हैं और अनुभवी लोग उनका जवाब देते हैं। टूरिस्ट स्कैम्स और दूसरी परेशानियों के बारे में अक्सर इन ग्रुपों में जानकारी भरी रहती है।

6.ऑफलाइन मैप्स: जिस जगह जा रहे हों, वहां का नक्शा अपने मोबाइल में डाउनलोड कर लें। कई बार नक्शे आपको मंजिल तक पहुंचाने में लोगों से ज्यादा मददगार होते हैं। खासतौर पर जब किसी ऐसी जगह जा रहे हों जहां लोग आपकी भाषा नहीं समझते हों वहां तो यह बेहद मददगार साबित होता है। गूगल मैप्स की मदद लें। अपनी डेस्टिनेशन के गूगल मैप्स को घर में ही वाई-फाई के जरिए मोबाइल में डाउनलोड कर लें ताकि इंटरनेट न होने की स्थिति में भी उसका इस्तेमाल किया जा सके। maps.me एक और भरोसेमंद ऑफलाइन मैप एप्लिकेशन है। कई देश, कई इलाकों के लिए अलग-से ऑफलाइन मैप ऐप्स हैं। मिसाल के तौर पर मध्य यूरोप के लिए maps.cz सबसे बढ़िया ऐप है। इंटरनेट से बाकी इलाकों के भी मैप्स की जानकारी मिल जाएगी।

7. मोबाइल ऐप्स: सोलो ट्रैवलिंग में सबसे मददगार साथी होता है आपका मोबाइल। अपनी जगह से संबंधित ढेरों जानकारी इसमें डालकर बेफिक्र होकर घूम सकते हैं। जब जरूरत पड़ी, जेब से मोबाइल निकाला, जानकारी ली और आगे बढ़ गए। जिस जगह या देश घूमने जाना हो, वहां की टूरिजम अथॉरिटी के मोबाइल ऐप्स को डाउनलोड कर लें। ऑफलाइन मैप्स वाला ऐप भी डाल लें। गूगल ट्रांसलेट ऐप की मदद से स्थानीय भाषा में अपनी बात कह सकते हैं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ऐप डाउनलोड कर लें। एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए कौन-सी बस या ट्राम मिलेगी, कितना किराया होगा, कितना वक्त लगेगा, यह सब ऐसे ऐप्स में मिल जाते हैं। Google translate, Tripadvisor, Accuweather, LiveTrekker, Opera Mini, Triposo जैसे ऐप काफी मददगार हो सकते हैं।

8. कैश के बजाय कार्ड: ज्यादा कैश रखने के बजाय डेबिट या क्रेडिट कार्ड रखना बेहतर है। कैश के चोरी हो जाने या खो जाने की आशंका रहती है इसलिए एक साथ बहुत सारा कैश निकालने की बजाय थोड़ा-थोड़ा निकालें। हालांकि विदेशों में एटीएम से कैश निकालने पर लगने वाले सर्विस चार्ज का भी ख्याल रखें। अक्सर ऐसा होता है कि बैंक कार्ड का पैसा नहीं लेता लेकिन जिस एटीएम से पैसा निकाला, वह बैक पैसा वसूल लेता है। कुछ बैंक खास तरह के ट्रैवल कार्ड देते हैं, जिनसे पैसा निकालने पर विदेशी बैंक सर्विस जार्च नहीं लगाते। यात्रा से पहले अपने बैंक से ऐसे कार्ड्स का पता करें। वैसे आमतौर पर कार्ड्स बराबर ही पड़ते हैं मसलन, ट्रैवल कार्ड के लिए आपको पहले पेमेंट करना होता है तो क्रेडिट कार्ड में ट्रांजेक्शन के लिए। कोई भी कार्ड लेने से पहले अच्छी तरह डिटेल्स जान लें।

सोलो ट्रैवलिंग के फायदे

1. मनमर्जी का मौका: न किसी की खुशामद का झंझट, न किसी का इमोशनल प्रेशर। जब मन किया घूमने निकल जाओ, जब तक मन करे होटल में सुस्ताते रहो। चलने का मन नहीं तो कार रेंट पर ले ली। एक शहर पसंद नहीं आया तो किसी और शहर की ओर निकल पड़े। वरना ग्रुप में घूमते हुए भी कितनी बार ऐसा होता है कि जब आपका मन म्यूजियम या आर्ट गैलरी देखने के बजाय सामने वाले पहाड़ पर चढ़ने को मचल रहा होता है, अपने दोस्तों की खातिर मन मारकर रह जाना पड़ता है।

2. माहौल का बेहतर अनुभव: साथ में कोई 'अपना' न हो तो हम खुद-ब-खुद आसपास के माहौल का हिस्सा बनने की कोशिश करते हैं। अनजान लोगों से अपने आप बातचीत करने लगते हैं। माहौल को किसी और के नजरिए से समझने के बजाय खुद उसका सामने से अनुभव कर पाते हैं। किसी नई जगह, संस्कृति को देखने-समझने का इससे बढ़िया तरीका और क्या हो सकता है!

3. लोगों के लिए ज्यादा अप्रोचेबल : अक्सर अपनों के साथ यात्रा करते हुए हम आपस में इतने मशगूल हो जाते हैं कि अजनबियों से घुलने-मिलने का मौका ही नहीं मिल पाता।

4. ज्यादा कॉन्फिडेंस: सोलो ट्रैवलिंग में आपको मिलने वाले हर सुख-दुख के लिए आप खुद जिम्मेदार होते हैं। कोई गलती हुई तो उसका ठीकरा किसी और पर आप नहीं फोड़ सकते। लेकिन गलतियों से हम सीखते हैं और अकेले घूमते हुए हम ज्यादा जल्दी सीखते हैं। इस तरह घूमते हुए सीखे गए सबक ताउम्र याद रहते हैं और बेहतर जिंदगी जीने में मदद करते हैं। खराब हालात में भी मजबूती से डटे रहने का आत्मविश्वास अकेले घूमने से बहुत जल्दी आता है।

5.सस्ते में घूमने का सबसे बेहतर तरीका: बजट ट्रैवलर्स यानी कम पैसों में घूमने वालों के लिए सोलो ट्रैवलिंग सबसे बेहतर तरीका है। अपनी यात्राओं में हुए अनुभव इस बात की तस्दीक करते हैं। कई साल पहले दिल्ली से हिमाचल के खड़ापत्थर गांव गया था। लिफ्ट मांगकर पूरी यात्रा की थी और ढाबों पर सोया। पूरी यात्रा में खर्च हुए थे सिर्फ 200 रुपये। इसी तरह कुछ महीने पहले यूरोप के कुछ देशों में 15 दिनों तक घूमा। वहां खाने, रहने और ट्रैवलिंग में खर्च हुए 10,000 रुपये, फ्लाइट का खर्च हटाकर। जनवरी 2017 में थाइलैंड गया था। बैंकॉक तक फ्लाइट का खर्च निकाल दें तो वहां करीब 1 हफ्ते में कुल मिलाकर खर्च आया 4000 रुपये।

सस्ते में सोलो ट्रैवलिंग का राज

1. काउचसर्फिंगः कैसा हो अगर आप जिस जगह घूमने जा रहे हों, वहां किसी लोकल के घर में ठहरने को मिल जाए, उस परिवार के साथ आप एक ही टेबल पर बैठकर खाना खाएं, घंटों उनसे बतियाते रहें, वह अपनी गाड़ी में आपको अपना शहर दिखाए और यह सब एकदम फ्री हो...! जी जनाब, यह संभव है काउचसर्फिंग से। couchsurfing.com एक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट है, जिसके सदस्य एक-दूसरे के घर में बतौर मेहमान ठहर सकते हैं या किसी यात्री को अपने घर ठहरा सकते हैं। लाखों भारतीय इस वेबसाइट के सदस्य हैं। अपनी विदेश यात्राओं में मैं काउचसर्फिंग करते हुए कई लोगों के घर ठहरा और उनके साथ बिताए वक्त ने सफर की यादों को और खुशनुमा बना दिया।

2. हिचहाइकिंगः हिचहाइकिंग का मतलब है लिफ्ट मांगकर यात्रा करना। दुनिया के कई देशों, खासतौर पर पश्चिमी देशों में हिचहाइकिंग प्रचलित है इसलिए एक हिचहाइकर को लिफ्ट के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। दूसरे देशों में पश्चिम की तरह लिफ्ट उतनी आसानी से नहीं मिल पाती, लेकिन मदद मांगने का तरीका सही हो तो आप दुनियाभर में बिना एक पैसा खर्च किए, सिर्फ हिचहाइकिंग करते हुए भी घूम सकते हैं। वैसे, सोलो घुमक्कड़ों को लिफ्ट मिलने में आसानी होती है।

3. हॉस्टल: घुमक्कड़ों के लिए दुनिया के कई देशों में ठहरने के लिए सस्ते विकल्प मौजूद हैं, जिन्हें हॉस्टल कहा जाता है। बैकपैकर्स हॉस्टल के नाम से मशहूर इन हॉस्टलों में होटलों की तरह ठाठ-बाट नहीं होते, लेकिन साफ-सुथरे कमरे, बिस्तर, वॉशरूम्स जैसी बुनियादी सुविधाएं मिल जाती हैं। फ्री वाईफाई, किचन और फ्री ब्रेकफास्ट की सुविधा भी अच्छे होस्टलों में मिल जाती है। सोने के लिए यहां आमतौर पर बंक बेड होते हैं। किसी डॉरमेटरी की तरह एक कमरे में कई बेड हो सकते हैं। एक कमरे में कई अनजान घुमक्कड़ मिलते हैं, तो माहौल दुनियाभर के किस्से-कहानियों से जीवंत हो जाता है। अपनी कई यात्राओं में मैं हॉस्टलों में रुका और कई दिलचस्प लोगों से मिला। इस तरह के हॉस्टलों में एक रात का किराया 200 से 300 रुपये होता है। ओनली लेजीज़ रूम भी होते हैं।

शुरुआत कैसे करें

1. रिमोट की बजाय मशहूर लोकेशन: शुरुआत में मशहूर टूरिस्ट डेस्टिनेशंस पर घूमने जाएं। ऐसी जगहों पर आमतौर पर रहने, खाने और घूमने के लिए तमाम तरह की सुविधाएं मौजूद रहती हैं। एक चीज के लिए कई विकल्प मिल जाते हैं, जो हमें अपनी जरूरत के हिसाब से चुनाव करना सिखाते हैं। कोई परेशानी होने पर पुलिस, अस्पताल या कोई और मदद फौरन मिल सकती है। ऐसी जगहों पर सोलो ट्रैवलिंग के प्रति बुनियादी समझ विकसित होगी और धीरे-धीरे आत्मविश्वास आएगा।

2. छोटी यात्राओं से शुरू करें: एक दिन की छुट्टी लेकर या वीकेंड पर आसपास की किसी नई जगह को देखने निकल जाएं। फिर धीरे-धीरे यात्रा का टाइम बढ़ाएं। इससे आपको लंबी यात्राओं के लिए कॉन्फिडेंस आएगा।

3. प्राइवेट के बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट: अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हालत बहुत खराब न हो तो प्राइवेट कार या ऑटो रेंट पर लेने के बजाय बस, मेट्रो या लोकल ट्रेन से यात्रा करें। इससे आपको माहौल समझने में आसानी होगी और परिस्थितियों के हिसाब से चीजें हैंडल करना सीख पाएंगे। पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुरक्षा के नजरिए से ज्यादा भरोसेमंद और सस्ता पड़ता है।

4. विदेश से पहले अपना देश: हमारे देश की सबसे बड़ी खूबी है इसका विशाल और विविधता भरा होना। दिल्ली में रहते हैं तो पूर्वोत्तर भारत या दक्षिण में कहीं निकल जाएं। अलग भाषा, संस्कृति और रहन-सहन देखने और उसके हिसाब से ढलने की आदत अपने देश से ही पड़ जाएगी। उसके बाद विदेश यात्राएं शुरू करना ज्यादा मुनासिब होगा। शुरुआत में ही अकेले विदेश यात्रा पर निकले पड़ेंगे तो कल्चरल शॉक लगेगा और उससे घूमने का उत्साह ठंडा पड़ सकता है।

5. वीज़ा ऑन अराइवल वाले देशों में पहले जाएं: किसी भी देश में जाने के लिए वीज़ा जरूरी है। वीज़ा लेने के लिए उस देश की एंबेसी से संपर्क करना पड़ता है। हालांकि थाइलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया, केन्या और श्रीलंका जैसे कुछ ऐसे भी देश है जहां हम भारतीयों को वीज़ा-ऑन-अराइवल की सुविधा मिलती है। यानी पहले से वीज़ा लेने के बजाय, उस देश में पहुंचकर वीजा लेने की सुविधा। पहले इन देशों में घूमने की योजना बनाएं। हमारे लिए करीब 35 देशों में जैसे कि थाइलैंड, कंबोडिया, लाओस, मॉरिशस, केन्या, इथियोपिया आदि में इस कैटिगरी में आते हैं। बाकी शर्तों का भी ख्याल रखें, जैसे कि म्यांमार में वीज़ा मिलने के बावजूद मुझे वापस लौटा दिया गया क्योंकि मेरे पास स्पेशल परमिट लेटर नहीं था, जबकि इस लेटर के बारे में ना एंबेसी ने जानकारी दी, न ही किसी ट्रैवल एजेंसी ने। इसी तरह रूस का वीज़ा पाने के लिए आपको वहां की ट्रैवल एजेंसी का लेटर चाहिए होता है।

6. यूथ हॉस्टल कैंप्स: यूथ हॉस्टल्स इंटरनैशनल लेवल का संगठन है, जो एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देता है। भारत में साल भर, कहीं-न-कहीं यूथ हॉस्टल के कैंप लगते रहते हैं, जहां ट्रैकिंग, बाइकिंग, डेजर्ट कैंपिंग आदि कराई जाती है। देशभर से लोग इन कैंपों में आते हैं। यहां अनुशासन का ख्याल सबसे ज्यादा रखा जाता है। इसलिए इसमें हिस्सा लेने वालों में अकेली लड़कियों की संख्या भी अच्छी-खासी होती है। इन कैंपों में सिखाई गई बातें सोलो ट्रैवलिंग में काफी मददगार साबित होती हैं। यूथ हॉस्टल्स ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट है: yhaindia.org

कहां जाएं

वैसे तो घुमक्कड़ी के लिए जहां चाहें निकल जाएं, लेकिन शुरुआती सोलो ट्रैवलर्स को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा, ठहरने और आने-जाने के साधनों की उपलब्धता के आधार पर कुछ जगहें ज्यादा मुफीद हो सकती हैं:

अपने देश में :

धर्मशाला: हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखलाओं में बसा धर्मशाला हिमाचल प्रदेश का एक जाना-माना टूरिस्ट स्पॉट है। सालभर देसी और विदेशी टूरिस्टों का जमावड़ा यहां लगा रहता है। पास में बीड़ और बीलिंग गांव हैं, जहां पैरा-ग्लाइडिंग करने निकल जाएं। ट्रेकिंग का मन हो तो त्रियुंड चले जाएं। टेंट में रहने का मन हो तो त्रियुंड में कैंपिंग भी की जा सकती है। नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है और एयरपोर्ट है गग्गल, कांगड़ा।

ऋषिकेश: किसी आश्रम में जाकर योग और ध्यान करना चाहते हों या गंगा की तेज धाराओं में राफ्टिंग, तो ऋषिकेश में आपका स्वागत है। यहां आएंगे तो आपको अपनी तरह के कितने ही सोलो ट्रैवलर्स अपना बैकपैक टांगे नजर आ जाएंगे। भारत आने वाले ज्यादातर विदेशी बैकपैकर्स ऋषिकेश जरूर आते हैं। मन करे तो यहां से लोकल बस पकड़कर उत्तराखंड के पहाड़ों में कहीं भी निकल जाएं। नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है और एयरपोर्ट है जॉली ग्रांट, देहरादूऩ।

सिक्किम: पूर्वोत्तर में भारत का छोटा-सा राज्य सिक्किम सोलो ट्रैवलर्स के लिए काफी सुरक्षित है। चारों तरफ हिमालय है, जहां चाहे निकल जाएं। आने-जाने के लिए टैक्सी रिजर्व कर सकते हैं। कम पैसों में घूमना हो तो शेयर्ड टैक्सी ले सकते हैं। राजधानी गंगटोक में होटलों और गेस्टहाउसों की कमी नहीं है। पेलिंग, लाचेन, लाचुंग, गुरूडोंगमार झील और नाथू ला जैसी जगहें जरूर जाएं। यहां जैसे नजारे शायद ही कहीं और मिलें। यहां के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी है और एयरपोर्ट है बागडोगरा।

मणिपुर: सुदूर पूर्वोत्तर भारत में मणिपुर भी कम खूबसूरत नहीं है। हालांकि यह जगह अनुभवी सोलो ट्रैवलर्स के लिए सही है। उखरूल की पहाड़ियों में शिरोय चोटी से म्यांमार के पहाड़ साफ देखे जा सकते हैं। भारत के अंतिम गांव मोरे से भारतीय एक दिन के लिए म्यांमार में बिना वीजा आ-जा सकते हैं। मणिपुर के साथ म्यांमार की झलक भी देखने को मिल जाए, तो सोने पे सुहागा। तामेंगलॉन्ग की पहाड़ियों पर होने वाले संतरों की मिठास नागपुर के संतरों से कम नहीं है। नागा और दूसरी जनजातियों के किसी भी गांव में जाना न भूलें। नजदीकी रेलवे स्टेशन दीमापुर है और एयरपोर्ट इम्फाल।

केरल: शुरुआती सोलो ट्रैवलर्स के लिए केरल मुफीद जगह है। इस छोटे-से राज्य में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की अच्छी सुविधा है। एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए सड़क, रेल और यहां तक कि स्टीमर से भी यात्रा कर सकते हैं। एक तरफ मुन्नार की पहाड़ियों पर फैले चाय के बागान हैं तो दूसरी तरफ एलेप्पी के बैकवाटर्स। कोवलम और वरकला के बीच विदेशी टूरिस्टों को बहुत लुभाते हैं। एर्णाकुलम/कोचीन और तिरुवनंतपुरम में बड़े रेलवे स्टेशन और इंटरनैशनल एयरपोर्ट हैं।

जैसलमेर: सोने जैसी रेत वाला रेगिस्तान, किले, हवेलियां और राजसी ठाठबाट की झलक देखनी हो तो चलिए भारत के पश्चिमी कोने में। दिन में जैसलमेर किला देखने के बाद सम के रेगिस्तान की ओर निकल जाएं। शाम को वहां मीलों फैले रेगिस्तान में ऊंट की सवारी करते हुए रेत के टीलों के पीछे ढलते सूरज को देखने का अहसास अलौकिक होता है। रात में रेगिस्तान में तारों भरे आसमान के नीचे कैंपिंग कर सकते हैं। दूर-दूर तक शहरी चकाचौंध का नामोंनिशान नहीं मिलेगा। केर-सांगरी की सब्जी, दाल बाटी और चूरमा खाने को मिल जाए तो समझिए आपकी यात्रा सफल हो गई। नजदीकी रेलवे स्टेशन जैसलमेर है और एयरपोर्ट है जोधपुर।

विदेश में

चेक रिपब्लिक: यूरोप के मध्य में बसा यह छोटा-सा देश सोलो ट्रैवलर्स के लिए बहुत खास है। फ्रांस, जर्मनी और यूके की तरह यह देश उतना महंगा नहीं है। रहने को सस्ते हॉस्टल्स जगह-जगह मिल जाते हैं। राजधानी प्राग और दूसरे बड़े शहर ब्रनो में बेहतरीन पब्लिक ट्रांसपोर्ट है। एक टिकट से किसी भी बस, ट्राम या मेट्रो में सफर कर सकते हैं। एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए कौन-सा पब्लिक ट्रांसपोर्ट कितने बजे मिलेगा इसकी सटीक जानकारी pubtran मोबाइल ऐप देता है। शाकाहारियों के लिए बिला, अल्बर्ट और टेस्को जैसी सुपरमार्केट्स जगह-जगह खुली हुई हैं। प्राग को किसी ऊंची जगह से देखें तो लाल रंग की ढलवां छतों वाले घरों के बीच से गुजरती वोल्तावा नदी और उस पर बना चार्ल्स ब्रिज का विहंगम दृश्य गजब का लगता है। दक्षिण में मोराविया के अंतहीन विस्तार लिए हरे-भरे खेत और पश्चिम में बोहेमिया के पहाड़ यूरोप की यात्रा शुरू करने के लिए सबसे बढ़िया जगह हैं। चूंकि चेक रिपब्लिक के लिए शेनगन वीजा दिया जाता है, इसलिए ऑस्ट्रिया, स्लोवाकिया, हंगरी, पोलैंड, जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, बेल्जियम जैसे शेनगन देशों में बेरोकटोक आ-जा सकते हैं। यूरोप के दूसरे शहरों के मुकाबले प्राग के लिए भारत से सस्ती फ्लाइट मिल जाती हैं। शर्त यह है कि आपको बीच में दुबई या इस्तांबुल में कुछ घंटों का लेओवर टाइम बिताना पड़ेगा। अपनी यात्रा में मैंने दिल्ली से दुबई के लिए एयर इंडिया एक्सप्रेस और दुबई से प्राग के लिए स्मार्टविंग्स का इस्तेमाल किया था। दोनों एयरलाइंस बजट श्रेणी में आती हैं, जो सोलो बैकपैकर्स के लिए अच्छा विकल्प हो सकती हैं। टिकट के 33 हजार रुपयों के अलावा मैंने सिर्फ हॉस्टलों और हिचहाइकिंग की बदौलत सिर्फ 10 हजार रुपये में यूरोप के कई देशों की यात्रा की।

थाइलैंड: थाइलैंड हम भारतीयों के लिए एक जाना-माना नाम बन चुका है। वीज़ा ऑन अराइवल, सस्ते हवाई किराए और भारत से कम दूरी की वजह से काफी इंडियन टूरिस्ट थाइलैंड जाने लगे हैं। राजधानी बैंकॉक, फुकेट और पटाया तो भारतीयों की पसंदीदा टूरिस्ट डेस्टिनेशंस हैं। लेकिन सोलो ट्रैवलर्स के लिए इन शहरों के अलावा भी थाइलैंड में बहुत कुछ है। चियांग माई, पाई, सुखो थाई, अयुध्या और फी फी आइलैंड ऐसी जगह हैं, जो देखने लायक हैं, लेकिन भारतीय टूरिस्ट कम ही पहुंच पाते हैं। इसके अलावा थाईलैड के पड़ोसी देश कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और इंडोनेशिया भी भारतीयों को वीज़ा-ऑन-अराइवल की सुविधा देते हैं। कंबोडिया, लाओस और वियतनाम के लिए बैंकॉक से ही बसें मिल जाती हैं। इंडोनेशिया के लिए ढेरों सस्ती फ्लाइट्स हैं। बजट ट्रैवलर्स के लिए बेहतर है कि इन देशों में सीधे फ्लाइट से जाने के बजाय पहले थाइलैंड जाएं। पिछले साल कंबोडिया जाने के लिए मैंने बैंकॉक से एक पैसेंजर ट्रेन ली थी जो सिर्फ 48 बात यानी 96 रुपये में कंबोडिया बॉर्डर पर छोड़ देती है। बैंकॉक से कंबोडिया जाने वाले ज्यादातर विदेशी बैकपैकर्स इसी ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं।

भूटान: पड़ोसी देश भूटान हम भारतीयों को बिना वीज़ा के आने की इजाजत देता है। राजधानी थिंफू और पारो दो बड़े शहर हैं। हालांकि इनकी बनावट इन्हें दुनिया के तमाम शहरों से अलग रखती है। जिस व्यवस्थित तरीके से यहां के शहर बसे हैं, वह वाकई देखने लायक है। पारो में भूटान का एकमात्र एयरपोर्ट है। वैसे तो भारत से पारो के लिए सीधी फ्लाइट मिल जाती है, लेकिन महंगी होने की वजह से बेहतर है कि भारत के बागडोगरा एयरपोर्ट तक फ्लाइट से जाएं और उसके बाद सड़क से। सड़क से जाते हुए फुंतशोलिंग भूटान का पहला शहर पड़ता है, जहां एंट्री परमिट बनता है। इसके लिए भारतीयों को अपना वोटर आई-कार्ड या आधार कार्ड दिखाना होता है। अपनी बाइक या कार से सोलो ट्रिप कर रहे हों तो आपकी गाड़ियों का परमिट भी इसी शहर में मिलेगा।

पैकिंग में अपने साथ क्या-क्या रखें

मौसम की जानकारी ले लें, उसी के मुताबिक पैकिंग और टूर प्लान करें। सामान जितना कम रखेंगे, यात्रा उतनी सुखद रहेगी। सामान हमेशा कम रखें। कैप्सूल पैकिंग करें यानी कपड़ों को फोल्ड करके नहीं, रोल करके पैक करें। इससे ज्यादा कपड़े कम जगह में फिट हो सकेंगे। कपड़े ऐसे हों, जिन्हें प्रेस करने की जरूरत न हो तो बेहतर है। टी-शर्ट और लोअर रखना बेहतर है। ट्राउजर्स ज्यादा न रखें। उनके साथ टॉप बदलकर पहनें। साथ ही कई स्कार्फ रखें। ये आपकी ड्रेस को नया लुक देंगे। कपड़ों के अलावा पीने का पानी भरने के लिए बोतल रखें। खाने के लिए ड्राई-फ्रूट्स, चॉकलेट्स, बिस्कुट, थेपला, भाकरबड़ी आदि रख सकते हैं। कैमरा और चार्जर, मोबाइल फोन और चार्जर और यात्रा के लिए जरूरी कागजात जैसे कि पासपोर्ट, वीज़ा आदि साथ जरूर रखें। इसके अलावा, सोप, फेसवॉश, फेसवाइप, क्रीम, लोशन, नेलकटर आदि भी रखें।

लड़कियों के लिए सेफ्टी टिप्स

क्या करें

1. जिस जगह जा रही हैं, वहां की अच्छी जानकारी हासिल करें।

2. अपनी लोकेशन अपने किसी करीबी से लगातार शेयर करती रहें।

3. मोबाइल में हिम्मत, सेफ्टी पिन जैसे सिक्योरिटी ऐप डाउनलोड करके रखें?

4. इमर्जेंसी नंबरों को हमेशा याद रखें, जरूरत पड़ने पर पुलिस की मदद लें।

5. सारा कैश एक ही जगह की बजाय अलग-अलग जगहों पर रखें। बड़े नोट्स इनरवेयर में रखे जा सकते हैं।

6. पासपोर्ट, वीज़ा, टिकट और जरूरी कागजात को स्कैन करके खुद को ईमेल कर लें या गूगल ड्राइव में सेव कर लें।

7. बस या ट्रेन में सीट बुक कराते समय बुकिंग क्लर्क से किसी महिला यात्री के साथ वाली सीट देने की रिक्वेस्ट कर सकती हैं।

8. अपने होटल या हॉस्टल का विजिटिंग कार्ड हमेशा अपने साथ रखें। कई बार विदेशी नाम याद नहीं रह पाते ऐसे में लोकल लोगों से कार्ड दिखाकर रास्ता पूछ सकती हैं।

9. नया रास्ता, पता, बस या ट्रेन की जानकारी पुलिसवाले, दुकानदार आदि से पूछें। कम-से-कम 2-3 लोगों से कन्फर्म करें। कितना किराया होगा, इसकी भी जानकारी ले लें।

10. किसी भी देश में वहां के चलन के मुताबिक ही कपड़े पहनें।

क्या न करें

1. भड़काऊ पहनावे से बचें, ट्रैवल के दौरान जूलरी न पहनें, न साथ रखें।

2. देर रात तक अकेले घूमने या सोलो ड्राइविंग से बचें, खासकर सुनसान रास्तों पर। अपने ठिकाने पर भी शाम होते-होते लौट जाएं।

3. किसी भी अनजान शख्स से दोस्ती से बचें और उसके साथ अपनी जानकारी शेयर न करें।

4. टैक्सी में सामान अपने साथ पिछली सीट पर ही रखें। अपने साथ सामान न रहने से इमर्जेंसी के दौरान आपका कंट्रोल अपने ही सामान पर नहीं रह पाता।

5. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में यात्रा करते समय अपनी पिछली जेबों में कुछ न रखें। हमेशा जेबकतरों से सावधान रहें।

6. चलते हुए ईयरफोन लगाकर गाने न सुनें। यह चोर-उच्चकों का ध्यान खींचता है। सतर्कता भी कम हो जाती है।

7. घूमने जाने से पहले की गई रिसर्च से भटके नहीं। सावधान रहकर घूमें, डर कर नहीं।

8. शराब से बचें और ड्रग्स तो बिल्कुल न लें।

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हेल्थी रहना है तो अपनाएं फिटनेस के ये फंडे

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स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रहता है... कहावत पुरानी है, लेकिन है पूरी तरह सच। वैसे हम अपने रूटीन में अगर कुछ चीजों को शामिल करें और कुछ नियमों का पालन करें तो खुद को ज्यादा आसानी से फिट रख सकते हैं। जानते हैं इसके लिए चंद अहम बातें:

कसरत का कमाल
वॉक में हम 1 मिनट में आमतौर पर 40-50 कदम चलते हैं, ब्रिस्क वॉक में करीब 80 कदम और जॉगिंग में करीब 160 कदम। हफ्ते में 5 दिन 30-45 मिनट कार्डियो एक्सर्साइज (ब्रिस्क वॉक, एरोबिक्स, स्वीमिंग, साइकलिंग, जॉगिंग आदि) जरूर करें। एक्सर्साइज शुरू करने से पहले 5 मिनट वॉर्म-अप और खत्म करने के बाद 5 मिनट कूल डाउन जरूर करें।

सांस लेना सीखें
- रोजाना आधा घंटा योगासन करें। इसमें आसन, ध्यान, गहरी सांस लेना और अनुलोम-विलोम को शामिल करें। सुबह उठकर 10-15 मिनट गहरी सांस लेने से लंग्स की क्षमता 70% तक बढ़ जाती है।

- सुबह-शाम 10-10 मिनट मेडिटेशन करें। इससे शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ती है और साथ ही बीपी भी कंट्रोल होता है।

80 का फॉर्म्युला रखेगा फिट
पेट की चौड़ाई, दिल की धड़कन, बैड कॉलेस्ट्रॉल, खाली पेट शुगर, नीचे का बीपी 80 से कम रखें। रोजाना 80 तालियां बजाएं और कम-से-कम 80 बार हंसें।
- दिन में 80 एमएल से ज्यादा सॉफ्ट ड्रिंक्स न पिएं। इस 80 एमएल में भी सोडा मिलाकर उसे डायल्यूट कर लें और 200 मिली बना लें।
- दो हफ्ते में 80 ग्राम से ज्यादा नमक न खाएं। यह ब्लड प्रेशर बढ़ा सकता है। बीपी के मरीजों को नमक और कम खाना चाहिए।
- हफ्ते में 80 मिनट ब्रिस्क वॉक, 80 मिनट एरोबिक्स और 80 मिनट स्ट्रेचिंग एक्सर्साइज जरूर करें। तीनों को मिलाकर करना ही बेहतर है।
- ट्रेडमिल में हार्ट की कंडिशंस को 80 फीसदी तक जरूर पूरा करें। एक्सर्साइज में दिल जोर से नहीं धड़कता तो दिल के लिए फायदा नहीं।

वजन कम, लाइफ में दम
- 2 किलो से ज्यादा वजन महीने भर में घटाने का टारगेट नहीं रखें। बहुत तेजी से वजन घटाएंगे तो फिर से वजन बढ़ने के चांस ज्यादा होंगे क्योंकि ज्यादा डाइटिंग से मेटाबॉलिजम कम हो जाता है।
- 500 कैलरी रोजाना कम लेने का टारगेट रखें, लेकिन कम खाकर ऐसा न करें। इसके लिए 250 कैलरी खाने में से घटाएं और 250 कैलरी एक्सर्साइज करके घटाएं।
- 60% कार्डियो और 40% स्ट्रेंथनिंग एक्सर्साइज का कॉम्बो रखें वजन कम करते वक्त। कार्डियो के लिए ब्रिस्क वॉक, एरोबिक्स, स्वीमिंग, साइकलिंग आदि और स्ट्रेंथनिंग के लिए डंबल, पुशअप्स, उठक-बैठक, सूर्य नमस्कार आदि करें।

BP रखें कंट्रोल में
अपने लोअर ब्लड प्रेशर को 80 mmHg से कम रखें। यदि आपका लोअर ब्लड प्रेशर 80 mmHg से ज्यादा रहता है तो हर साल डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जाएं।

हेल्दी खाना, सेहत का खजाना
- दिन में 5-6 बार थोड़ा-थोड़ा खाएं। दिल और लिवर को फिट रखने के लिए ऐसी चीजें खाएं जिनमें फाइबर खूब हो, जैसे कि गेहूं, ज्वार, बाजरा, जई आदि। दलिया, स्प्राउट्स, ओट्स और दालों के फाइबर से कॉलेस्ट्रॉल कम होता है।
- हरी सब्जियां, सनफ्लावर सीड्स, फ्लैक्स सीड्स आदि खाएं। इनमें फॉलिक एसिड होता है, जो कॉलेस्ट्रॉल लेवल को मेंटेन करने में मदद करता है।
- अलसी, बादाम, बीन्स, फिश और सरसों तेल में काफी ओमेगा-थ्री होता है, जो दिल के लिए अच्छा है।
- रोजाना 1-2 अखरोट और 8-10 बादाम भी खाएं।

मैदा और चीनी खतरनाक
- ट्रांस-फैट्स सेहत के लिए बेहद नुकसानदेह हैं। ट्रांस फैट्स तेल को बार-बार गर्म करने या तेल को बहुत तेज गर्म करने पर पैदा होते हैं। ये वनस्पति घी में ज्यादा पाए जाते हैं।
- वैसे तो सैचुरेटिड फैट्स (घी, बटर, चीज, रेड मीट आदि) से दिल की बीमारी का सीधा कनेक्शन नहीं है फिर भी फैट लिमिट में ही खाना चाहिए।
- रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट (सफेद चीनी, सफेद चावल और सफेद मैदा) फैट से कहीं ज्यादा नुकसानदेह हैं। कोशिश करें कि इन्हें अपने खाने से निकाल दें।
- चीनी के बजाय गुड़, सफेद चावल के बजाय ब्राउन राइस यूज करें।
- स्वस्थ हैं तो भी रोजाना 3-4 चम्मच से ज्यादा फैट न लें। इसमें देसी घी, मक्खन और रिफाइंड ऑयल सभी कुछ शामिल है।

ऊह...आह...आउच...
कमर, पैर या पीठ दर्द से परेशान हों तो RICE का फॉर्म्युला अपनाएं, यानी रेस्ट, आइस, कंप्रेशन एलिवेशन।
Rest: आराम करें। ज्यादा घूमे-फिरे नहीं, न ही देर तक खड़े रहें।
Ice: एक कपड़े या बैग में बर्फ रखें और दिन में 4-5 बार 10-10 मिनट के लिए दर्द की जगह पर लगाएं।
Compession: घुटने या कमर पर क्रेप बैंडेज, नी कैप या नी ब्रेस लगाएं।
Elevation: लेटते वक्त पैर के नीचे तकिया रख लें ताकि घुटना थोड़ा ऊंचा रहे। इस दौरान एक्सर्साइज और योगासन बंद कर आराम करें। वॉलिनी, मूव, वॉवेरन जेल, डीएफओ जेल आदि किसी दर्दनिवारक बाम या जेल से हल्के हाथ से एक-दो मिनट मालिश कर सकते हैं।


हार्ट अटैक में ऐसे बचें और बचाएं: सीने में उठनेवाले दर्द को हल्के में न लें। यह दिल की बीमारी से जुड़ा भी हो सकता है।
- एसिडिटी और हार्ट का दर्द मिलता-जुलता होता है। फिर भी दोनों में फर्क कर सकते हैं।
- सीने के बीचोंबीच बड़े एरिया में तेज दर्द हो, दर्द लेफ्ट बाजू की ओर बढ़ता महसूस हो, सीने पर पत्थर जैसा दबाव - महसूस हो, काफी घबराहट, बेचैनी हो, पसीना आए, दर्द कम होने के बजाय बढ़ता जाए तो हार्ट अटैक की आशंका रहती है, जबकि एसिडिटी का दर्द एक खास बिंदु पर चुभता हुआ सा महसूस होता है।
- हार्ट अटैक की आशंका हो तो मरीज को फौरन 300 एमजी की एस्प्रिन (Asprin) चबाने को दें या पानी में घोलकर पिलाएं।
- इससे मरीज के बचने के चांस 30 फीसदी तक बढ़ जाते हैं।
- हार्ट के मरीज एस्प्रिन के बजाय सॉरबिट्रेट (Sorbitrate) भी ले सकते हैं।

TB की टेंशन को टाटा
- टीबी का वाइरस कम रोशनी वाली और गंदी जगहों पर तेजी से पनपता है। ऐसे में बेहतर रहता है कि मरीज हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहे। पंखा चलाकर खिड़कियां खोल दें ताकि बैक्टीरिया बाहर निकल सके। मरीज को भीड़ भरी जगहों और पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूज करने से बचना चाहिए।

- टीबी के मरीज को मास्क पहनकर रहना चाहिए। मास्क नहीं हो तो हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को नैपकिन से कवर कर लेना चाहिए। इस नैपकिन को कवरवाले डस्टबिन में डालें। मरीज को चाहिए कि वह यहां-वहां थूकने के बजाय किसी एक प्लास्टिक बैग में थूके और उसमें फिनाइल डालकर अच्छी तरह बंद कर डस्टबिन में डाल दें।

फीवर में रहें अलर्ट
- किसी भी बुखार में सबसे सेफ दवा पैरासिटामोल (Paracetamol) है। यह क्रोसिन (Crocin), कालपोल (Calpol) आदि ब्रैंडनेम से मिलती है। इसे किसी भी बुखार में सेफ माना जाता है। डेंगू में एस्प्रिन बिल्कुल न लें। डेंगू में इसे लेने से ब्लीडिंग का खतरा होता है।

- बुखार मापने के लिए रैक्टल टेंप्रेचर लेना बेहतर है, खासकर बच्चों में। मुंह से तापमान लेते हैं तो उसमें 1 डिग्री सेंटिग्रेड जोड़कर सही तापमान मानें। 98.3 डि. तक नॉर्मल टेंप्रेचर है। 100 डिग्री तक बुखार में आमतौर पर किसी दवा की जरूरत नहीं होती। 102 डिग्री तक बुखार है और कोई खतरनाक लक्षण नहीं हैं तो मरीज की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं।

ऐलर्जी: बचाव जरूरी
- बचाव ही ऐलर्जी का इलाज है। ऐलर्जी के शिकार लोगों को घर से बाहर निकलने से पहले नाक पर रुमाल रखना चाहिए। समय-समय पर चादर, तकिए के कवर और पर्दे भी बदलते रहना चाहिए। कार्पेट यूज न करें या फिर उसे कम-से-कम 6 महीने में ड्राइक्लीन करवाते रहें।

- घर में पालतू जानवर न रखें। बारिश के मौसम में फूल वाले प्लांट्स को घर के अंदर न रखें। हो सके तो घर में एयर प्यूरिफायर लगवाएं। वैसे, बच्चों के इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए उन्हें धूल-मिट्टी, धूप और बारिश में खेलने दें। ये बच्चों को बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं।

डेस्क जॉब में हैं तो रखें ध्यान
- डेस्क जॉब करनेवालों को ऑफिस में बैठे-बैठे गर्दन और घुटनों की एक्सर्साइज और स्ट्रेचिंग करते रहना चाहिए। अपने घुटनों को लगातार चलाते रहें। बैठे-बैठे 15-20 मिनट में पैरों को गोल-गोल घुमाते रहें और सीधा तानें। इसी तरह गर्दन की एक्सर्साइज भी करते रहें।
- हर 30 मिनट पर आंखों की एक्सर्साइज करें। आंखों को स्क्रीन से हटाएं और दूर टिकाएं। फिर पास में देखें।
आंखों को हथेलियों से अच्छी तरह ढक लें और 30 सेकंड के बाद खोलें।
- कंप्यूटर पर काम करते हुए इस तरह बैठे कि कमर सीधी रहे। हाथों को कुर्सी के हैंडल का सपॉर्ट मिले।
- थाई का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा कुर्सी की सीट पर होना चाहिए, लेकिन घुटने उसके किनारे से सटे हुए न हों। इसके लिए कमर पीछे लगाकर बैठना होगा। घुटने हल्के-से उठे हों।
- डेस्क पर कंप्यूटर स्क्रीन का ऊपरी हिस्सा आंखों के लेवल पर होना चाहिए। ऊपर या नीचा होने से गर्दन में दर्द हो सकता है।

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रहें फायरप्रूफ

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गर्मियों में आए दिन कहीं-न-कहीं आग लगने की घटना होती रहती है। ऐसे में हमें सोचना चाहिए कि हम घर, ऑफिस, कार आदि में लगने वाली आग से निपटने के लिए कितने तैयार हैं? फायरप्रूफ रहने के तरीके एक्सपर्ट्स की मदद से बताने की कोशिश कर रहे हैं अनुज जोशी

गर्मियों में नमी कम होती है और तापमान बढ़ जाता है इसलिए कोई भी चीज आसानी से आग पकड़ लेती है। इस मौसम में इलेक्ट्रिक वायर भी जल्दी गर्म हो जाती हैं और जरा-सा ज्यादा लोड पड़ने पर स्पार्क होने से आग लग जाती है। घर में ऐसी कई चीजें होती हैं, जो आग लगने की वजह बन सकती हैं। इनका ध्यान रखना जरूरी है।

एसी: अब जो नए एसी आ रहे हैं, वो लेटस्ट टेक्नॉलजी वाले हैं। ये अपने आप ऑटो कट होते रहते हैं, इसलिए अगर इन्हें 24 घंटे भी चलाएं तो ये खराब नहीं होते। फिर भी एसी की ठीक से देखभाल न की जाए तो यह खतरनाक साबित हो सकता है। एसी आमतौर पर 15 एंपियर तक करंट झेल सकता है। अच्छी तरह से मेंटेन किया हुआ एसी 12 एंपियर का करंट लेता है, जबकि अगर एसी को बिना सालाना सर्विसिंग किए चलाया जाए तो वह 18 एंपियर तक का करंट लेता है। इससे न सिर्फ वायर पर लोड बढ़ता है, बल्कि एसी जल भी सकता है। इसके अलावा, शॉर्ट सर्किट से घर में आग भी लग सकती है। जब न्यूट्रल, फेज और अर्थ, तीनों वायर या कोई दो वायर आपस में टच हो जाती हैं तो शॉर्ट सर्किट होता है।

क्या करें: एसी के लिए हमेशा MCB यानी मिनिएचर सर्किट ब्रेकर स्विच लगवाएं। नॉर्मल या पावर स्विच में एसी का प्लग न लगाएं। एमसीबी के बेस्ट ब्रैंड एंकर, हैवल्स, बैनटेक्स-लिंगर हैं। सीजन शुरू होने से पहले एसी की सर्विसिंग जरूर कराएं। हो सके तो सीजन के बीच में भी एक बार सर्विसिंग कराएं। जब भी सर्विसिंग कराएं, ट्रांसफॉर्मर आदि का प्लग खुलवा कर चेक कराएं कि कहीं कोई वायर ढीली तो नहीं। एसी से आग की एक बड़ी वजह तारों के ढीला होने से उनमें स्पार्क होना है। एसी या इलेक्ट्रॉनिक सॉकेट के पास पर्दा न लगाएं क्योंकि स्पार्क होने पर पर्दा आग पकड़ सकता है। एसी को रिमोट से बंद करने के बाद उसकी MCB को भी बंद करना चाहिए। एसी को लगातार 12 घंटे से ज्यादा न चलाएं। खिड़की-दरवाजे खोलकर एसी न चलाएं।

वायर और सर्किट: घर में वायरिंग कराते समय हम पैसे बचाने के चक्कर में अक्सर सस्ती वायर डलवा देते हैं। इसके अलावा, एक बार वायरिंग कराकर हम निश्चिंत हो जाते हैं और उसे अपग्रेड नहीं कराते, जबकि वक्त के साथ घर में इलेक्ट्रिक गैजेट्स बढ़ाते जाते हैं। बड़ा टीवी, बड़ा फ्रिज, ज्यादा टन का एसी, माइक्रोवेव आदि। घर में लगी पुरानी वायर इतना लोड सहन नहीं कर पाती और शॉर्ट सर्किट हो जाता है। घरों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण यही होता है।

क्या करें: घर में हमेशा ब्रैंडेड वायर इस्तेमाल करें। सस्ती वायर खरीदने से बचें। वायर हमेशा ISI मार्क वाली खरीदें और जितने एमएम की वायर की इलेक्ट्रिशन ने सलाह दी है, उतने की ही खरीदें। घर के लिए वायर 1, 1.5, 2.5, 4, 6 और 10 एमएम की होती हैं। मीटर और सर्किट के बीच 10 एमएम की वायर, घर में पावर प्लग के लिए 4 एमएम और बाकी के लिए 2.5 एमएम की वायर लगती है। घर में पीवीसी वायर लगानी चाहिए जो 1 लेयर की होती है। यह आसानी से गरम नहीं होती। घरों में कॉपर की तार यूज करनी चाहिए, जिनमें शॉर्ट सर्किट होने की आशंका सबसे कम होती है। फिलहाल हैवल्स और पॉलिकेब की वायर सबसे बेहतर है। इनका सबसे अच्छा रोल 90 मीटर का होता है, जिनका दाम 1100 से 1200 रुपये के बीच होता है। वायर में टॉप ब्रैंड हैं: फिनॉलेक्स, प्लाजा, आरआर आदि। वैसे, घर में बिजली का लोड कम है या ज्यादा, इसका पता प्राइवेट इलेक्ट्रिशन ही लगा सकता है। वह घर की सभी लाइट, पंखे, फ्रीज, एसी, टीवी, गीजर आदि चलाकर एम्पियर मीटर से चेक करता है कि बिजली का लोड ज्यादा है कम। हर 5 साल में इलेक्ट्रिशन बुलाकर वायर चेक जरूर करानी चाहिए। साथ ही मेन सर्किट बोर्ड पर पूरा लोड डालने से अच्छा है कि दो बोर्ड बनाकर लोड को बांट दें। मीटर बॉक्स भी लकड़ी के बजाय मेटल का लगवाएं। इससे आग लगने का खतरा कम हो जाता है।

कम जगह, ज्यादा सामान: आजकल घर के साइज छोटे हो रहे हैं और सामान ज्यादा। फर्नीचर, पर्दे और घर के दूसरे साजो-सामान भी ऐसे चलन में हैं जो जल्दी आग पकड़ते हैं। मसलन पॉलिस्टर के पर्दे, सिंथेटिक कपड़े, फोम के सोफे और गद्दे आदि।

क्या करें: घर में जरूरत का सामान ही रखें और फालतू चीजों को निकालते रहें। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स अच्छी कंपनी और बढ़िया क्वॉलिटी के होने चाहिए।

लापरवाही से बचें, रखें ध्यान

- ओवरलोडिंग से बचें। अक्सर हम एक ही इलेक्ट्रॉनिक सॉकेट में टू-पिन या थ्री-पिन वाला मल्टिप्लग लगा देते हैं। इससे लोड बढ़ जाता है और स्पार्किंग होने लगती है।

- हर इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक आइटम को एक दिन में लगातार चलाने की तय सीमा होती है। फिर चाहे वह एसी हो, पंखा हो, टीवी या फिर मिक्सी ही क्यों न हो। हर प्रॉडक्ट की पैकिंग पर यह जानकारी होती है। जरूरत से ज्यादा चलाने पर इलेक्ट्रॉनिक आइटम गर्म हो जाते हैं और आग लगने का कारण बन जाते हैं।

- इनवर्टर में पानी सही रखें। कम पानी होने, इनवर्टर के तार को अच्छी तरह कवर नहीं करने या फिर तार को ढीला छोड़ देने से स्पार्किंग हो सकती है।

- जब भी घर से बाहर जाएं तो सभी स्विच और इनवर्टर जरूर बंद करें।

- हर रात गैस सिलिंडर की नॉब को बंद करके ही सोना चाहिए। साथ ही गैस पाइप को हर 6 महीने में बदलते रहना चाहिए।

- रसोई में चूल्हे पर दूध का पतीला या तेल की कड़ाही चढ़ाकर न छोड़ें। ऐसा कर हम अक्सर दूसरे कामों में बिजी हो जाते हैं और तेल बेहद गर्म होकर आग पकड़ लेता है या फिर दूध उबल कर चूल्हे पर गिर जाता है। इससे चूल्हे की आग बुझ जाती है और गैस लीक होती रहती है, जो आग पकड़ लेती है।

- खराब रबड़ या खराब सीटी वाला प्रेशर कुकर यूज करना भी खतरनाक है। ऐसा होने पर कुकर ब्लास्ट कर सकता है।

- किचन में खाना बनाते समय ढीले-ढाले और सिंथेटिक कपड़े न पहनें। ये आग जल्दी पकड़ते हैं।

- फ्रिज के दरवाजे पर लगी रबड़ को अच्छी तरह साफ करें, वरना दरवाजा सही से बंद नहीं होगा। इससे कम्प्रेशर गर्म होकर आग लगने की वजह बन सकता है।

- गर्म आयरन को किसी कपड़े, पर्दे या इलेक्ट्रॉनिक प्लग के पास न रखें। ये चीजें आग पकड़ सकती हैं।

- बाथरूम के अंदर स्विच न लगवाएं, वरना नहाते समय या कपड़े धोते समय पानी उस पर गिर सकता है, जिससे स्पार्क हो सकता है। अंदर लगाना ही है तो ऊंचाई ज्यादा रखवाएं, जहां तक पानी की छीटें न जा सकें या फिर स्विच बोर्ड पर प्लास्टिक शीट चिपका दें।

- बच्चे के हाथ में माचिस न दें। यह आग लगने की वजह बन सकता है।

- दीया, अगरबत्ती, मोमबत्ती जलती छोड़कर सब लोग घर से बाहर न जाएं।

करके रखें तैयारी

आग शुरू में हमेशा हल्की होती है। उसे उसी समय रोक देना बेहतर है, लेकिन अक्सर उस वक्त हम घबरा जाते हैं और कोई कदम नहीं उठा पाते। यह भी कह सकते हैं कि हम इसलिए कदम उठा नहीं पाते क्योंकि हमने पहले से तैयारी नहीं की होती। मसलन घर में फायर एक्स्टिंगग्विशर रखा है, लेकिन हमें उसे चलाना नहीं आता। ऐसे में जरूरी है कि हम आग से निपटने के लिए पहले से तैयार रहें। एक्सपर्ट मानते हैं कि आग कैसे बुझानी है, एक-दूसरे को कैसे बचाना है, इन सबके लिए सभी को हर दो-तीन महीने में प्रैक्टिस जरूर करनी चाहिए। मेन गेट के अलावा, आग लगने पर और कहां से सुरक्षित निकल सकते हैं, यह भी पहले से सोच कर रखें और इसकी प्रैक्टिस भी करते रहें।

कार को ऐसे बचाएं आग से

- गर्मियों में कार को छांव में खड़ा करें और अगर मजबूरन धूप में खड़ा कर रहे हैं तो कार को ऐसे खड़ा करें कि धूप सीधा कार के अगले हिस्से पर न पड़े। कार के शीशे को हल्का से खोल दें। इससे कार में गर्म हवा नहीं भरती। अगर धूल-मिट्टी की वजह से शीशा हल्का-सा नहीं खोल सकते तो शीशों को किसी कपड़े से ढक देना चाहिए ताकि धूप सीधा कार के अंदर न आ सके।

- कार में आग से बचाव के लिए ड्राइवर की बगल वाली सीट के नीचे फायर एक्स्टिंगग्विशर जरूर रखना चाहिए, ताकि आग लगने पर इसका इस्तेमाल किया जा सके।

- कार में छोटा-सा हैमर भी जरूर रखें, ताकि आग लगने पर दरवाजे लॉक हो जाने पर उससे शीशा तोड़कर बाहर निकला जा सके। अगर हैमर नहीं है तो सीट के हेड रेस्ट या फिर गियर लॉक के लिवर का इस्तेमाल किया जा सकता है।

आग लग जाए तो...

- घबराएं नहीं और जिस चीज में आग लगी है, उसके आसपास रखी सभी चीजों को हटाने की कोशिश करें, ताकि आग को फैलने का मौका न मिले।

- अगर शॉर्ट सर्किट से आग लगती है तो मेन सर्किट को बंद कर दें और फायर एक्सटिंगविशर का प्रयोग करें। अगर यह नहीं है तो आग पर मिट्टी या रेत डालें। पानी न डालें। इलेक्ट्रिकल फायर में पानी का इस्तेमाल इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे करंट लग सकता है।

- आग ज्यादा है तो घर के सभी सदस्यों को इकट्ठे कर सुरक्षित जगह पर जाने की कोशिश करें। अगर बिल्डिंग में रहते हैं तो लिफ्ट की जगह सीढ़ियों के जरिए नीचे उतरें।

- आग लग जाने पर धुआं फैलता है इसलिए मुंह को ढककर निकलें।

- खाना बनाते समय अगर कढ़ाही में आग लग जाए तो उसे किसी बड़े बर्तन से ढक देना चाहिए। इससे आग बुझ जाएगी।

- अगर सिलिंडर में आग लग जाती है तो सबसे पहले उसकी नॉब को बंद करने की कोशिश करें। फिर गीला कपड़ा या बोरी डालकर उसे ठंडा करने की कोशिश करें। साथ ही सिलिंडर को खींचकर खुली जगह पर ले जाएं।

- कपड़ों में आग लग जाए तो भागने या खड़े रहने की जगह लेट जाएं, इससे आग फैलेगी नहीं। साथ ही कंबल से या फिर फायर एक्स्टिंगग्विशर से उसे बुझाने की कोशिश करें।

ये उपकरण हैं कारगर

आग कैसे और कहां लगी है, इसके आधार पर फायर एक्स्टिंगग्विशर को 5 कैटिगरी में बांटा गया है। हर फायर एक्स्टिंगग्विशर पर कैटिगरी लिखी होती है। आग लगने की वजह के मुताबिक उन्हें यूज करें:

Class A: सॉलिड यानी कागज, लकड़ी, कपड़ा, प्लास्टिक आदि से लगने वाली आग

Class B: लिक्विड यानी पेट्रोल, पेंट, स्प्रिट या तेल से लगने वाली आग

Class C: एलपीजी यानी रसोई गैस, वेल्डिंग गैस और बिजली के उपकरण से लगने वाली आग

Class D: मेटल यानी मैग्नीशियम, सोडियम या पोटैशियम से लगने वाली आग

Class K: कुकिंग ऑयल से लगने वाली आग

आग के क्लासिफिकेशन के अनुसार ही फायर एक्स्टिंगग्विशर का भी क्लासिफिकेशन किया गया है:

वॉटर एंड फोम: क्लास A की आग के लिए

कार्बन डाईऑक्साइड: क्लास B और C की आग के लिए

ड्राई केमिकल: क्लास A, B और C की आग के लिए

वेट केमिकल: क्लास K की आग के लिए

क्लीन एजेंट: क्लास B और C की आग के लिए

ड्राई पाउडर: क्लास B की आग के लिए

वॉटर मिस्ट: क्लास A और C की आग के लिए

आमतौर पर घर में ड्राई केमिकल वाला फायर एक्स्टिंगग्विशर ही रखा जाता है। इस तरह के एक्स्टिंगग्विशर के सिलिंडर पर ABC लिखा होता है। मार्केट में इसके रेट वजन के हिसाब से हैं:

1 किलो: 740 रुपये

2 किलो: 900 रुपये

4 किलो: 1400 रुपये

6 किलो: 1740 रुपये

फायर एक्स्टिंगग्विशर चलाना सीखें: nbt.in/eyOxEZ

ये उपकरण भी बहुत काम के

स्मोक/फायर कर्टन: इसे एक तय एरिया में लगाया जाता है और लोकल फायर अलार्म पैनल या फिर स्मोक डिटेक्टर से कनेक्ट कर देते हैं। आग लगते ही या धुआं फैलते ही ये कर्टन ऐक्टिव हो जाते हैं। ये आग और धुएं को फैलने से रोकते हैं। जिस जगह ये लगे होते हैं, वहां से आग या धुएं को फैलने के लिए कुछ देर के लिए रोक देते हैं। इससे इमारत में फंसे लोगों को बचाने में आसानी होती है और पर्याप्त समय भी मिल जाता है। अमूमन इस तरह के कर्टन आग या धुएं को ज्यादा-से-ज्यादा दो घंटे तक रोके रखने में सक्षम होते हैं और इतना समय रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने के लिए काफी होता है। इसे एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस टर्मिनल, फैक्ट्री, कमर्शल बिल्डिंग, ऑफिस या फिर रेजिडेंशल सोसायटी में लगाया जा सकता है।

स्मोक डिटेक्टर: इसमें एक तरह का सेंसर लगा होता है, जिसे आग से फैलने वाले धुएं की मौजूदगी का पता लगाने के लिए लगाया जाता है। यह इस तरह डिजाइन किया जाता है कि जहां इसे लगाया गया है, उसके आसपास धुआं फैलते ही यह ऐक्टिव हो जाता है और फायर अलार्म सिस्टम को सिग्नल भेजता है। इसके बाद फायर अलार्म सिस्टम के जरिए पूरी बिल्डिंग में लगे हॉर्न या हूटर बजने लगते हैं। यह धुआं होने पर बिल्कुल सटीक तरीके से काम करता है। यह सिर्फ लोगों को अलर्ट करने के काम आता है, न कि आग बुझाने के। सुरक्षा के नजरिये से इसे फैक्ट्री, कमर्शल बिल्डिंग, ऑफिस या फिर घर में लगाना बेहद जरूरी है। स्मोक डिटेक्टर को फायर अलार्म सिस्टम से वायर के जरिए कनेक्ट किया जाता है, लेकिन अब मार्केट में वायरलेस डिटेक्टर भी आ रहे हैं। स्मोक डिटेक्टर दो तरह के होते हैं। एक कंवेंशनल जो 1200 रुपये का आता है और दूसरा अड्रेसेबल जो 3500 रुपये का आता है।

फायर अलार्म सिस्टम: यह भी आग या धुएं की मौजूदगी का पता लगाने में मदद करता है। यह बिल्डिंग के फायर कंट्रोल रूम में लगा होता है। यह सिस्टम ऑटोमेटिक तरीके से काम करता है। आग लगते ही या धुआं फैलते ही यह अपने आप चालू हो जाता है। इससे पता चल जाता है कि बिल्डिंग में आग कहां लगी है। साथ ही यह एक स्पीकर से जुड़ा होता है जो हॉर्न बजाकर पूरी बिल्डिंग में मौजूद लोगों को सूचित करता है। आधुनिक फायर अलार्म सिस्टम में तो रेकॉर्डड मेसेज होता है, जो आग लगने या धुआं फैलने पर लोगों को जगह खाली करने की सूचना देता है। इससे बिल्डिंग को खाली कराने और आग को बुझाने की तैयारी करने में मदद मिलती है। फायर अलार्म सिस्टम दो तरह के होते हैं।

कंवेंशनल सिस्टम: यह सिस्टम अब पुराना है। इसके जरिए सिर्फ इतना पता चल सकता है कि आग बिल्डिंग में कहां लगी है। उदाहरण के लिए बिल्डिंग के हर फ्लोर को चार-चार हिस्से में बांटा गया है तो इससे यह पता चल जाएगा कि आग किस हिस्से में लगी है। यह पता चलने के बाद फायर फाइटर वहां जाकर देखेगा कि आग कहां लगी हुई है।

अड्रेसेबल सिस्टम: यह आज के जमाने का सिस्टम है। इसका पैनल बिल्कुल सटीक तरीके से बताता है कि आग बिल्डिंग के किस हिस्से के कौन-से कमरे में किस जगह लगी है। इससे फायर फाइटर के लिए आग को जल्द-से-जल्द बुझाना आसान हो जाता है। यह सिस्टम 5 से 7 लाख रुपये के बीच है।

फायर होज रील: यह उपकरण हर कमर्शल और रेजिडेंशल सोसायटी में होना जरूरी है। आग बुझाने में यह बेहद कारगर है। किसी भी ट्रेंड व्यक्ति द्वारा इसे इंस्टॉल कर चालू करने में 20 से 30 सेकंड लगते हैं। तय स्टैंडर्ड के अनुसार एक फायर होज रील की लंबाई 30 मीटर की होती है और कम-से-कम प्रेशर ढाई किलो तो होना ही चाहिए ताकि इतने प्रेशर से निकला पानी कम-से-कम 20 मीटर दूर तक आग बुझा सके। बिल्डिंग की ऊंचाई के अनुसार इसके प्रेशर को बढ़ाया जाता है। इनमें तीन तरह की कप्लिंग (स्टेनलेस स्टील, गन मेटल और एल्युमिनियम) लगती हैं, जो न तो जाम होती हैं और न ही इनमें जंग लगता है। इसके जरिए निकलने वाले पानी की धार इतनी तेज होती है कि अगर इसे किसी शख्स पर छोड़ा जाए तो उसे गंभीर चोट लग सकती है। इसकी एक खास बात यह है कि इसके पाइप को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह बाहर से गीला रहता है ताकि बिल्डिंग के अंदर जाकर आग बुझाने की स्थिति में पाइप आग न पकड़ ले। फायर होज रील को बिल्डिंग के ऊपर लगे वॉटर टैंक या फिर अंडरग्राउंड वॉटर टैंक से कनेक्ट किया जाता है। इसकी कीमत 7 से 8 हजार के करीब है।

पॉर्टबल फायर होज रील: यह उपकरण हाल में मार्केट में लॉन्च हुआ है। जहां फायर होज रील को कमर्शल और रेजिडेंशल सोसायटी में बने वॉटर टैंक से कनेक्ट किया जाता है वहीं इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे किसी भी आम नल के साथ कनेक्ट किया जा सकता है। इसे उठाना और कहीं भी ले जाना आसान होता है। इसकी पाइप के आगे जेट गन लीवर लगा होता है जो सामान्य नल से आने वाले पानी को भी तेज धार के साथ आग पर फेंकता है।

फायर स्प्रिंकलर सिस्टम: सिर्फ ये स्प्रिंकलर ही होते हैं जो आग लगने पर सबसे पहले आग को बुझाने का काम करते हैं। कमरे का तापमान 67 डिग्री से ज्यादा होते ही इनमें लगे रबड़ पिघल जाते हैं और पानी की बौछार करने लगते हैं। आमतौर पर स्प्रिंकलर के पाइप जिस वॉटर टैंक से जुड़े होते हैं उनमें 10 से 25 गैलन पानी होना जरूरी है। इनमें पाइप मेटल के होते हैं जो आग नहीं पकड़ते। यह आग से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम कर देते हैं और लोगों की जिंदगी भी बचाते हैं। अब तो इनका इस्तेमाल कमर्शल व रेजिडेंशल सोसायटी के साथ-साथ घरों में भी होने लगा है।

मॉड्युलर ऑटोमैटिक एक्स्टिंगग्विशर: यह स्प्रिंकलर बल्ब की शेप में फायर एक्स्टिंगग्विशर होते हैं जो कमरे की सीलिंग पर लगते हैं। इनमें भी आम फायर एक्स्टिंगग्विशर की तरह पाउडर भरा होता है। इन्हें सर्वर और यूपीएस रूम में लगाया जाता है। आग लगने के बाद कमरे का टेंपरेचर 68 डिग्री के पास पहुंचते ही ये स्प्रिंकल बल्ब फट जाते हैं और केमिकल वाला पाउडर चारों ओर फैल जाता है, जो आग बुझाने में मदद करता है।

गैस फ्लडिंग सिस्टम: इनका इस्तेमाल सिर्फ सर्वर रूम में ही किया जा सकता है। ये फायर एक्स्टिंगग्विशर की तरह सिलेंडर होते हैं जो सर्वर रूम में जरूरत के हिसाब से रखे जाते हैं। ये आग लगते ही ऐक्टिव हो जाते हैं और पाउडर रिलीज़ करते हैं। जहां मॉड्युलर ऑटोमैटिक एक्स्टिंगग्विशर सिर्फ थोड़ी-सी जगह में काम करते हैं वहीं ये सिलिंडर पूरे कमरे को पाउडर से भर देते हैं। आम एक्स्टिंगग्विशर के मुकाबले इसमें भरा जाने वाला पाउडर महंगा होता है। एक सिलिंडर को भरने में करीब एक लाख रुपये तक का खर्चा आता है। इनमें दो सेंसर लगे होते हैं। दूसरे सेंसर के ऐक्टिव होने के बाद ही सिलेंडर से पाउडर निकलता है।

फायर बॉल: अगर आग ज्यादा फैल जाए और वहां तक जाना मुश्किल हो तो वहां फायर बॉल को फेंका जाता है, जिससे आग कुछ कम हो जाती है। इसके बाद फायर फाइटर वहां तक जाकर आग बुझाने का काम कर सकता है।

फायर रेजिस्टेंट पेंट: यह एक तरह की कोटिंग होती है, जिसे फर्नीचर, दरवाजों और खिड़कियों पर किया जाता है। हालांकि यह पेंट किसी भी चीज को फायरप्रूफ तो नहीं बनाता, लेकिन उसमें आग लगने के टाइम को जरूर कम देता है। इससे आग को फैलने में समय लगता है और लोगों को आसानी से बचाया जा सकता है। फायर रेजिस्टेंट पेंट की कीमत करीब 480 रुपये किलो है।

फायर रेजिस्टेंट डोर: इस तरह के दरवाजों में जल्दी आग नहीं लगती। यह कुछ देर के लिए आग को कंट्रोल करके रखते हैं, जिससे बिल्डिंग में फंस लोगों को बाहर निकलने का समय मिल जाता है। फायर रेजिस्टेंट डोर की कीमत 15 से 20 हजार रुपये से शुरू होती है।

नोट: आग लगने के बाद कंपनी, ऑफिस, कमर्शल बिल्डिंग और फैक्ट्री में लगे एएचयू (एयर हाउस यूनिट) और एक्सेस कंट्रोल सिस्टम बंद कर देने चाहिए। एएचयू सभी एसी को बंद कर देते हैं ताकि हवा से आग न फैले और एक्सेस कंट्रोल सिस्टम बंद होते ही सभी बायोमीट्रिक दरवाजे अनलॉक हो जाते हैं।

आग से बचने की कितनी तैयारी है, जानें

1. क्या घर या दफ्तर में सब लोगों को पता है कि मेन स्विच कहां है और कैसे बंद करना है?

2. यूपीएस का स्विच कहां है और कैसे बंद करना है?

3. क्या ABC क्लास का फायर एक्स्टिंगग्विशर लगा है?

4. क्या सबको पता है कि यह कहां होता है और इसे कैसे इस्तेमाल किया जाता है?

5. क्या सबको फायर ब्रिगेड बुलाने का नंबर सबको पता है?

6. क्या स्मोक अलार्म लगा है? हर महीने इसकी टेस्टिंग होती है?

7. क्या आपके तमाम अहम दस्तावेज क्लाउड पर डिजिटल रूप में स्टोर हैं?

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पिओ और पिलाओ

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गर्मियों का मौसम अपने साथ लाता है ढेर सारे ठंडे-ठंडे कूल-कूल ड्रिंक्स की बहार। अगर इन ड्रिंक्स को घर पर ही तैयार किया जाए तो न सिर्फ ये जेब को किफायती पड़ते हैं, बल्कि सेहत के लिए ज्यादा मुफीद होते हैं। एक्सपर्ट्स से बात करके घर पर ही समर के कूल-कूल ड्रिंक्स तैयार करने के लिए बेहतरीन रेसिपी बता रही हैं प्रियंका सिंह

एक्सपर्ट्स पैनल

कुणाल कपूर, सिलेब्रिटी शेफ

निशा मधुलिका, यू-ट्यूब शेफ

वैभव भार्गव, शेफ, ITC शेरटन

भरत अलघ, इग्जेक्यूटिव शेफ, सिटरस होटल

नीलांजना सिंह, सीनियर न्यूट्रिशनिस्ट

एक बार बनाओ, हफ्तों तक चलाओ

आम पना

आम पना गर्मियों का खास ड्रिंक है। कच्चे आम की तासीर ठंडी होती है। टेस्ट से भरपूर आम पना विटामिन-सी का अच्छा सोर्स है। यह स्किन और पाचन, दोनों के लिए अच्छा है। इसे लंबे समय तक रखा जा सकता है।

कितना बनेगा: 15-20 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 40 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर 2-3 महीनों तक लेकिन 15 दिन से अंदर कंस्यूम करना बेहतर क्योंकि खाने की चीजें ताजा बनाना ही अच्छा है।

सामग्री: कच्चे आम: 500 ग्राम, चीनी: 300 ग्राम, पुदीने के पत्ते: 1 कप, नमक: 2 छोटे चम्मच, काला नमक: 2 छोटे चम्मच, भूना जीरा: 4 छोटे चम्मच, काली मिर्च: 1- 2 छोटे चम्मच, छोटी इलायची: 7-8, अदरक: 1 इंच टुकड़ा

तरीका: आम को धोकर छील लें। फिर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। एक बड़ा बर्तन लें। इसमें आम के टुकड़े, कटा हुआ अदरक, इलायची, काली मिर्च और आधा कप पानी डालकर ढककर गैस पर पकने रखें दें। आम के पल्प में उबाल आने के बाद 4-5 मिनट मीडियम आंच पर पकने दें। आम का पल्प जब नरम हो जाए तो गैस बंद कर दें। पल्प को ठंडा होने दें। दूसरे बर्तन में चीनी और 1 कप पानी मिलाकर, चाशनी बनाने के लिए रख दें। धीमी आंच पर चीनी को पानी में घुलने तक पकाएं। इसके बाद मिक्सर जार में आम का पल्प, पुदीने के पत्ते, जीरा, सादा नमक, काला नमक डालकर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को चाशनी में डालकर पका लें। चाशनी को चेक करें। अगर चाशनी चिपकने लग गई है तो पना बनकर तैयार है। गैस बंद कर दें। आम पना को ठंडा होने दें। ठंडा होने पर छान लें। छानने पर बचा हुआ मोटा मसाला एक बार फिर मिक्सर में डाल कर पिस लें और छान कर इसे पना में डाल दें। आम पना बनकर तैयार है। इसे बोतल में भरकर रख दें। जब भी आपका मन आम पना पीने का करे तो गिलास में एक-तिहाई आम पना डालकर बाकी पानी और बर्फ मिलाकर पिएं। अगर आप आम पना को फ्रिज से बाहर रखना चाहते हैं तो इसमें सोडियम बेंजोएट (पाउडर या लिक्विड) की 1 छोटी चम्मच पना में डालकर मिला दें। इसके बाद बाहर रखकर ही इसे 2-3 महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं। हालांकि खाने में जितना मुमकिन हो, हमें किसी भी केमिकल के इस्तेमाल से बचना चाहिए।

नोट: आम पना कभी भी हरे रंग का नहीं बनता इसलिए मार्केट में जो आम पना मिलते हैं, उनमें कलर मिलाया होता है। इसके अलावा आम पना को हो सके तो छाने नहीं। इसमें हल्का पल्प अच्छा लगता है।

आम का शरबत

कितना बनेगा: 4-5 गिलास

कितना समय लगेगा: 10 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर 15-20 दिन तक

सामग्री: पके आमः 3-4, नीबूः 1, चीनीः 1/2 कप चीनी (100 ग्राम)

बनाने का तरीका: आम पना खट्टा-मीठा होता है लेकिन यह शरबत सिर्फ मीठा होता है। इसके लिए आम का पल्प निकाल लें। चीनी को किसी बर्तन में डालें। 1/2 कप से थोड़ा-सा ज्यादा पानी मिलाएं और उबलने रख दें। पहला उबाल आने के बाद 3-4 मिनट तेज गैस पर उबलने दें। इस तरह 1 तार की चाशनी तैयार कर लें। चाशनी को ठंडा होने दें। फिर आम का पल्प और नीबू का रस इस चाशनी में मिलाएं और छान लें। किसी बोतल में भरकर फ्रिज में रखें। जब भी आपका मन करे, 1 हिस्सा कंसंट्रेटिड आम का शरबत और 6 गुना पानी मिलाएं और थोड़े-से आइस क्यूब्स मिलाएं और पिएं। आम का शर्बत तैयार है।

नोट: यह बाजार में मिलनेवाले पैक्ड मैंगो जूस का अच्छा विकल्प है। यह जूस बच्चों को बहुत पसंद आता है।

ठंडाई

ठंडाई: ठंडाई में बादाम, सौंफ, गुलाब की पत्तियां, मगज और खस के बीज आदि होते हैं। यह ताजगी और एनर्जी देता है। अगर शुगर लेवल ठीक है तो यह एक अच्छा पेय है। बच्चों के लिए यह खासतौर पर अच्छी होती है। यह लू और नकसीर (नाक से खून आने) जैसी तकलीफों से भी बचाव करती है।

कितना बनेगी: 20-22 गिलास

कितना समय लगेगा: 40 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर 1 महीने तक

सामग्री: चीनी: 5 कप (करीब सवा किलो), पानी: 2 1/2 कप (600 ग्राम), बादाम: 1/2 कप से थोड़े ज्यादा (100 ग्राम), सौंफ: 1/2 कप ( 50 ग्राम), काली मिर्च: 2 छोटी चम्मच, खसखस: 1/2 कप (50 ग्राम), खरबूजे के बीज: 1/2 कप (50 ग्राम), छोटी इलाइची: 30-35 (छील कर दाने निकाल लें), गुलाब जलः 2 टेबल स्पून

बनाने का तरीका: किसी बर्तन में चीनी और पानी मिलाएं और गैस पर उबालने के लिए रख दें। पहला उबाल आने के बाद 5-6 मिनट तक और उबालें। गैस बंद कर ठंडा कर लें। सौंफ, काली मिर्च, बादाम, खरबूजे के बीज, इलाइची के दाने और खसखस को साफ करें और धोकर पानी में अलग-अलग 2 घंटे के लिए भिगो दें। रात भर भी भिगो सकते हैं। बादाम को छील कर छिलका अलग कर दें। एक्स्ट्रा पानी निकालकर सभी चीजों को बारीक पीस लें। पीसने के लिए पानी की जगह चीनी के घोल का इस्तेमाल करें। बारीक पिसे मिक्चर को चीनी के घोल में मिलाएं और छान लें। बचे हुए मोटे मिक्चर में घोल मिला कर फिर से बारीक होने तक पीस कर छान लें। ठंडाई बन चुकी है। इसे एयरटाइट बोतल में भरें और फ्रिज में रख दें। जब भी ठंडाई पीनी हो एक-चौथाई हिस्सा लेकर उसमें दूध और बर्फ मिलाएं। ठंडी-ठंडी ठंडाई पिएं।

नोट: ड्राइफ्रूट्स और शुगर काफी ज्यादा होने से ठंडाई मोटापा बढ़ाती है। हार्ट, हाइपर टेंशन और शुगर के मरीज इससे परहेज करें।

नीबू-पुदीना शरबत

नीबू-पुदीना का शरबत आपके दिल और दिमाग, दोनों को ठंडक पहुंचाएगा। इसे वैसे तो आप ताजा बनाकर भी पी सकते हैं लेकिन अगर कंसंट्रेट बनाकर रख लेंगे तो जब मर्जी तब इस्तेमाल कर सकते हैं।

कितना बनेगा: 15-17 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 20-25 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर महीना भर

सामग्री: नीबू: 1/2 किलो, चीनी: 1 किलो, पुदीना: 1 गुच्छी या 1 कप पत्तियां, अदरक: 1 इंच लंबा टुकड़ा, काला नमक: 1 छोटी चम्मच

बनाने का तरीका: चीनी को किसी बर्तन में डालकर एक-तिहाई पानी डालें। मसलन 1 किलो चीनी में 300 मिली (1 1/2 कप) पानी मिला लें। इस घोल को आग पर पकने के लिए रखें। घोल में चीनी घुलने और उबाल आने के बाद 5-6 मिनट और पका लें। घोल को हाथ की उंगली और अंगूठे के बीच लेकर देखें। अगर थोड़ा चिपकता है तो गैस बंद कर दें। फिर घोल को ठंडा होने के लिए रख दें। सारे नीबुओं का रस निचोड़ लें। पुदीने की पत्तियों को साफ पानी से 2 बार धो लें। अदरक को भी छील कर धो लें। पुदीना और अदरक को मिक्सर में बारीक पीस लें। पुदीना पीसते समय पानी का इस्तेमाल न करें बल्कि थोड़ा चीनी का घोल ही डालकर पीस लें। चीनी के ठंडे घोल में पुदीना और अदरक का पिसा हुआ पेस्ट मिलाएं। नीबू का रस, काला नमक भी मिलाएं। शरबत को छानें। बस, नीबू पुदीना कंसंट्रेट शरबत तैयार है। इस शरबत को कांच की सूखी साफ बोतल में भर कर फ्रिज में रख लें। जब शरबत पीने का मन हो तो गिलास में एक हिस्सा शरबत डालें और 6 गुना पानी मिलाएं। 2-3 आइस क्यूब डालें। ठंडा-ठंडा नीबू पुदीना शरबत तैयार है।

नोट: अगर पसंद हो तो आप चीनी की जगह शहद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

स्ट्रॉबेरी क्रश

कितना बनेगा: 10-12 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 30 मिनट

कितने दिन चलेगाः फ्रिज में रखने पर 15-20 दिन

सामग्री: स्ट्रॉबेरी: 240 ग्राम, चीनी: 200 ग्राम, नीबू का रस: 2 टेबलस्पून

बनाने का तरीका: स्ट्रॉबेरी को गुनगुने पानी में धोकर सुखा लें। फिर उन्हें मिक्सर में पीस लें। इसके बाद एक बर्तन में 1/2 कप पानी डालकर चीनी और पिसी स्ट्रॉबेरी उसमें मिला लें। उबलने के लिए रख दें। एक तार की चाशनी बन जाए तो गैस बंद कर दें। ठंडा होने पर नीबू का रस मिला दें। फिर कांच की बोतल में भरकर फ्रिज में रख दें। जब भी पीने का मन हो एक-तिहाई हिस्सा क्रश का लेकर बाकी ठंडा पानी मिला लें।

नोट: पैक्ड जूस का यह अच्छा विकल्प है। स्वाद तो अच्छा है ही, हेल्दी भी है।

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फटाफट बनाएं

छाछ

छाछ में प्रोटीन खूब होते हें। प्रोटीन शरीर के टिश्यूज को हुए नुकसान की भरपाई करते हैं। गर्मियों में खूब छाछ पिएं।

कितनी बनेगी: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 2 मिनट

सामग्री: एक कटोरी दही, काला नमक, भुना जीरा

बनाने का तरीका: किसी गहरे बर्तन में दही डालकर उसे रई से मथ लें। मिक्सर में डालकर भी चला सकते हैं। ज्यादा न चलाएं, वरना मक्खन बनने लगेगा। फिर इसमें भूना जीरा, काला नमक डाल दें। चाहें तो धनिया या पुदीना भी डाल सकते हैं। अगर अलग स्वाद चाहते हैं तो इसमें सरसों का तड़का भी लगा सकते हैं। इसके अलावा, एक दिए तो गैस पर गर्म करके उसमें थोड़ा सरसों का तेल या देसी घी डाल लें। फिर इस दिए तो छाछ में डुबो दें। छाछ में सोंधी खुशबू आएगी। छाछ को अलग स्वाद देने के लिए उसमें तुलसी या लेमनग्रास भी डाल सकते हैं।

नोट: आजकल मार्केट में पैक्ड छाछ/लस्सी भी मिलती है। इसे खरीदते वक्त एक्सपायरी डेट जरूर चेक करें और देखें कि पैकेट अच्छी तरह बंद हो।

ताजा आम पना

कितना बनेगा: 8-10 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 20-25 मिनट

सामग्री: कच्चे आम: 300 ग्राम (2-3 मीडियम आकार के), भुना जीरा पाउडर: 2 छोटे चम्मच, काला नमक: स्वादानुसार (2 छोटे चम्मच), काली मिर्च: एक-चौथाई छोटी चम्मच, चीनी: 100- 150 ग्राम (1/2 - 3/4 कप), पुदीना: 20-30 पत्तियां

बनाने का तरीका: कच्चे आमों को धोकर गूदा निकाल लें। इस गूदे को एक कप पानी डालकर उबालें। अब इस उबले पल्प को मिक्सर में चीनी, काला नमक और पुदीना के पत्ते मिलाकर पीस लें। फिर एक लीटर ठंडा पानी मिलाएं और छान लें। काली मिर्च और भुना जीरा पाउडर डालें। आम पना तैयार है। इसमें आइस क्यूब डालकर परोसें। सजाने के लिए पुदीने की पत्तियों भी डाल सकते हैं।

नोट: इसे बनाकर ताजा भी पी सकते हैं और फ्रिज में रख कर 3-4 दिन तक यूज कर सकते हैं।

आम की स्मूदी

कितनी बनेगी: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 5 मिनट

सामग्री: आम: 1 मीडियम साइज, ताजा गाढ़ा दही: 1 कप, पिस्ता: 2 (पतले कटे हुए), चीनी: 4 छोटी चम्मच

बनाने का तरीका: आम को छीलकर उसका पल्प निकाल लें और गुठली हटा दें। इसके बाद आम के पल्प को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें। मिक्सर जार में आम के टुकड़े, चीनी और दही डाल दें और अच्छे से ब्लेंड कर लें। इसके बाद इसमें कुछ बर्फ के टुकड़े डाल दें और एक बार फिर से अच्छी तरह से ब्लेंड कर लें। आम की ठंडी-ठंडी स्मूदी तैयार हैं। गिलासों में डाल कर कटे पिस्तों से सजाकर सर्व करें।

नोट: सफेदा आम या कोई भी ऐसा आम लें, जिसमें रेशे न हों। चीनी की जगह शहद, ब्राउन शुगर या खांड़ भी डाल सकते हैं। आम की तरह की स्ट्रॉबेरी, एपल, चीकू आदि की भी स्मूदी बना सकते हैं।

नमकीन सत्तू

कितना बनेगा: 2 छोटे गिलास

कितना वक्त लगेगा: 8 मिनट

सामग्री: चने का सत्तू: आधा कप, पुदीने के पत्ते: 10, नीबू का रस: 2 छोटे चम्मच, हरी मिर्च: आधी, भुना जीरा: आधा छोटा चम्मच, काला नमक: आधा छोटा चम्मच, सादा नमक: एक-चौथाई छोटा चम्मच

बनाने का तरीका: पुदीना के पत्ते धोएं। 2 पत्ते साबुत छोड़ कर, सारे पत्ते बारीक काट लें। हरी मिर्च को बारीक काट लें। सत्तू में थोड़ा-सा ठंडा पानी डालकर गुठलियां खत्म होने तक घोल लें। फिर 1 कप पानी मिला दें। घोल में काला नमक, सादा नमक, हरी मिर्च, पुदीना की पत्तियां, नीबू का रस और भुना जीरा पाउडर डाल कर मिला दें। सत्तू का नमकीन शर्बत तैयार है। सत्तू के नमकीन शर्बत को गिलास में डालें और पुदीने की साबुत पत्तियां डालकर सजा दें। आइस क्यूब भी डाल सकते हैं।

नोट: गर्मी के मौसम में रोजाना 1 -2 गिलास सत्तू का नमकीन शर्बत बनाकर पिएं। यह आपको गर्मी से राहत देगा और लू से भी बचाएगा। चाहें तो मीठा भी बना सकते हैं।

जलजीरा

गर्मी के मौसम में ताजा और ठंडा जल जीरा बनाकर पिएं। जल जीरा बहुत ही स्वादिष्ट होता है, ठंडक और ताजगी देने के साथ पाचन में भी मदद करता है।

कितना बनेगा: 3-4 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 10 मिनट

सामग्री: पुदीना के पत्ते: आधा कप, धनिये के पत्ते: आधा कप, नीबू: 2, मीडियम आकार के, रायते वाली बूंदी: आधा कप, अदरक: 1/2 -1 इंच टुकड़ा, हींग: 1 चुटकी, काली मिर्च: 3/4 छोटी चम्मच, भुना जीरा: 2 छोटी चम्मच, चीनी: 2 छोटी चम्मच, काला नमक: 1 छोटी चम्मच, सादा नमक: आधा छोटी चम्मच या स्वादानुसार

बनाने का तरीका: पुदीना और धनिया को अच्छी तरह साफ करके धो लें। अदरक छील कर धो लें। मसालों को बारीक पीस कर तैयार कर लें। हरा धनिया और पुदीना जार में डाल दें। अदरक को छोटा-छोटा काट कर डाल दें। काली मिर्च, भुना जीरा, चीनी, हींग, काला नमक और सादा नमक डाल दें। थोड़ा-सा पानी डाल कर मसालों को एकदम बारीक पीस लें। पिसे मसाले जार में डाल दें और 4 कप ठंडा पानी डाल दें। अच्छी तरह मिक्स कर लें। नीबू का रस निकाल कर मिला दें। ताजा जलजीरा बनकर तैयार है। गिलास में जलजीरा डालें और 1-2 छोटी चम्मच बूंदी डाल दें। ठंडा जलजीरा पिएं और मन को तरोताजा करें।

नोट: जो लोग ज्यादा खट्टा और तीखा पसंद करते हैं, वे चीनी न डालें। ज्यादा तीखा पसंद करनेवाले 2 हरी मिर्च भी मसाले के साथ डालकर पीस सकते हैं। ब्लड प्रेशर के मरीजों को इसे ज्यादा नहीं पीना चाहिए क्योंकि इसमें नमक थोड़ा ज्यादा होता है।

आइस टी

गर्मियों में चाय पीने का मन नहीं करता लेकिन अगर चाय के फायदे और स्वाद, दोनों लेना चाहते हैं तो आइस टी बनाकर पीना चाहिए।

कितनी बनेगी: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 10 मिनट

सामग्री: चाय: 1 छोटी चम्मच, चीनीः 2-3 छोटी चम्मच, छोटी इलाइचीः 2 (छील कर बीज निकाल लें), नीबूः 1/2 नीबू का रस, नीबू के पतले छल्ले 4

बनाने का तरीका: किसी बर्तन में 2 कप पानी डालकर उबलने रख दें। पानी में उबाल आने पर चीनी, चाय की पत्ती और इलायची पाउडर डालें। गैस बंद कर दें। ढककर 2-3 मिनट चाय को बर्तन में ही छोड़ दें। फिर चाय को किसी बर्तन में छान लें और फ्रिज में रखकर ठंडी कर लें। ठंडी हो जाने पर चाय में आधा नीबू का रस मिला लें। 2 लंबे गिलास लें। हर गिलास में 7-8 टुकड़े बर्फ के डालें। बर्फ का चूरा करके भी डाल सकते हैं। ठंडी की हुई चाय को दोनों गिलास में आधा-आधा डाल दें। नीबू का रस मिलाएं। नीबू के 2-2 छल्ले हर गिलास में डाल दें। बस आपकी आइस-टी तैयार है।

नोट: चाय को ज्यादा देर तक न उबालें, वरना स्वाद अच्छा नहीं रहता। अगर चाय को फ्लेवर देना चाहते हैं तो उसमें उसी फ्लेवर का जूस मिला दें जैसे कि संतरे के स्वाद के लिए आधा कप संतरे का जूस डालें। इसी तरह फ्लेवर के लिए मैंगो जूस, पाइनएपल जूस से लेकर छोटी इलाइची, दालचीनी, जायफल, पुदीना और तुलसी जो भी पसंद हो, वह डाल सकते है।

फालसे का शरबत

फासले का शरबत गर्मियों में बहुत फायदेमंद है। लेकिन चूंकि यह बहुत ही नाजुक फल होता है, इसलिए इसे बनाकर न रखें, बल्कि ताजा ही पिएं।

कितना बनेगा: 5 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 15 मिनट

सामग्री: फालसे: 250 ग्राम (1 1/2 कप), चीनी: आधा कप से थोड़ा कम, काला नमक: आधा छोटी चम्मच

बनाने का तरीका: फालसे को हल्के गर्म पानी में धो लें। फिर सुखाकर मिक्सर में चीनी और आधा कप पानी डालकर चलाएं। चीनी घुल जाए तो फालसे डालकर थोड़ा और चलाएं। इस तरह फालसे का गूदा बीजों के ऊपर से निकल कर पानी में मिक्स हो जाता है। बीज साबुत ही रह जाते हैं। अब मिक्सर में 3 कप ठंडा पानी मिलाकर आधा मिनट और चलाएं। फालसे के रेशे और रस इस पानी में मिल जाएंगे। शरबत को मिक्सर से निकाल कर छान लें। चाहें तो इसमें एक नींबू निचोड़ सकते हैं। लीजिए, फालसे का शरबत तैयार है।

नोट: फालसा शरबत को ताजा बनाकर पीना ही सही रहता है। सर्व करते हुए आइस क्यूब्स डालें। ठंडा-ठंडा फालसा शरबत बहुत अच्छा लगता है।

बेल का शरबत

बेल का शरबत एसिडिटी और कब्ज, दोनों में असरदार है। कच्चे बेल का शरबत लूज मोशंस को रोकता है तो पके बेल का शरबत कब्ज को ठीक करता है। इसका कूलिंग इफेक्ट भी काफी अच्छा होता है। यह अल्सर को भी ठीक करता है।

कितना बनेगा: 4-5 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 20-25 मिनट

सामग्री: बेल फल: एक किलो, चीनी: 10-12 टेबल स्पून, भुना जीरा: 1 छोटा चम्मच, काला नमक: 1 छोटा चम्मच

बनाने का तरीका: बेल को धोएं, काटें और गूदा निकाल लें। एक बर्तन में गूदे से दो गुना पानी डालकर अच्छी तरह मसल लें। इतना मसलें कि सारा गूदा और पानी आपस में अच्छी तरह घुल जाए। इस मसले गूदे को मोटे छेद वाली चलनी में छान लें। चमचे से दबा-दबा कर सारा रस निकाल लें। निकाले हुए रस में चीनी मिला लें। जब चीनी अच्छी तरह घुल जाए तो इसमें ठंडा पानी या आइस के क्यूब मिलाएं। नमक और भुना जीरा भी मिलाएं। ठंडा मीठा बेल का शरबत तैयार है।

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बनाएं कुछ हटकर

एपल-कुकुंबर मोइतो

कितना बनेगा: 2-3 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 15 मिनट

सामग्रीः खीराः 1, सेबः 1, पुदीनाः 1 गुच्छी, अदरकः एक इंच का टुकड़ा, शहदः 3 चम्मच, नीबू का रसः 2 चम्मच, स्प्राइटः 100 मिली (1 कप), सोडा वॉटरः 100 मिली (1 कप)

बनाने का तरीकाः सेब, खीरा और अदरक को छीलकर टुकड़ों में काट लें। सेब, खीरा, अदरक, धनिया, शहद और नीबू के रस को एक साथ मिलाकर मिक्सर में 1-2 मिनट के लिए चला लें। फिर इसे छान लें। छानने के बाद मिले मिक्चर में स्प्राइट मिला लें। 4 घंटे के लिए फ्रिज में रख दें। सर्व करते वक्त गिलास में खूब सारा बर्फ का चूरा डाल लें। फिर आधा गिलास खीरे का मिक्चर डालें और ऊपर से सोडा वॉटर डाल दें। खीरे और नीबू की पतली स्लाइस से सजाकर सर्व करें।

ब्लूबेरी पालक स्मूदी

कितना बनेगा: 4-5 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 10 मिनट

सामग्रीः योगर्ट या गाढ़ा दहीः 2/3 कप, केलाः 1, फ्रोजन ब्लूबेरीः 2/3 कप, स्ट्रॉबेरी (फ्रोजन या फ्रेश): 2, पालकः 1 कप, सोया मिल्कः 1 कप, शहदः एक चम्मच

बनाने का तरीकाः सारी चीजों को मिक्सर में डाल कर प्यूरी बना लें। जरूरत लगे तो थोड़ा दूध भी डाल सकते हैं। एकदम ठंडा सर्व करें।

टोमैटो मॉकटेल

कितना बनेगा: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 10 मिनट

सामग्रीः देसी टमाटरः 250 ग्राम, धनियाः एक गुच्छी, इमली का पल्पः 2 चम्मच, नमक, चीनी और हरी मिर्च जरा-सी

बनाने का तरीकाः टमाटरों को अच्छी तरह धो लें। फिर टमाटर और इमली के पल्प को मिक्सर में डालकर चला लें। स्वादानुसार नमक डालें। जरा-सी चीनी और हरी मिर्च भी डालें। फ्रिज में रखकर ठंडा-ठंडा सर्व करें।

वॉटरमेलन बेसिल मॉकटेल

कितना बनेगा: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 15 मिनट

सामग्रीः तरबूजः करीब आधा किलो, सोडा वॉटरः 100 मिली, नीबू का रसः एक चम्मच, तुलसी की पत्तियांः 5-6

बनाने का तरीकाः तरबूज के बीज निकालकर मिक्सर में डालें। साथ में नीबू का रस, सोडा, तुलसी डालकर चला दें। बर्फ का चूरा डालकर ठंडा-ठंडा सर्व करें।

पाइनएपल ग्रैनिटा

कितना बनेगा: 2 गिलास

कितना वक्त लगेगा: 2 घंटे

सामग्रीः पाइनएपलः एक बड़ा कप टुकड़े, पुदीनाः एक गुच्छी, शहदः एक चम्मच, नीबू का रसः एक चम्मच

बनाने का तरीकाः ऊपर दी गई सभी चीजों को मिक्सर में डालकर चला लें। फिर इस मिक्चर को एक ट्रे में डालकर फ्रिजर में जमा लें। जब यह जम जाए तो फोर्क की मदद से इसे धीरे-धीरे खुरचें और गिलास में जमा कर सर्व करें। धीरे-धीरे पियें, मजा आ जाएगा।

काम की वेबसाइट और ऐप

Juice Recipes

इस ऐप के जरिए आप दुनिया भर की चुनिंदा जूस रेसिपी जान सकते हैं। रेसिपी इतने सिंपल तरीके से दी गई हैं कि कोई भी देखकर इन्हें आसानी से बना सकता है।

कीमत: फ्री, प्लेटफॉर्म: विंडोज़, एंड्रॉयड, ios

Juice Pro

यह ऐप आपको कई तरह के जूस की रेसिपी से रूबरू कराता है। खासियत है कि ये जूस आपकी हेल्थ के लिए काफी मुफीद हैं।

कीमत: फ्री, प्लेटफॉर्म: विंडोज़, एंड्रॉयड, ios

वेबसाइट्स

foodfood.com: मशहूर सिलेब्रिटी शेफ संजीव कपूर की यह वेबसाइट आपको तमाम तरह के लजीज खानों का स्वाद चखाती है। मौसम के हिसाब से डिशों को अलग-अलग कैटिगरी में बांटा गया है।

nishamadhulika.com: बिना लहसुन-प्याज की सिंपल लेकिन स्वादिष्ट रेसिपी पहचान है इस वेबसाइट की। रेसिपी इतनी सिंपल हैं कि कोई भी आसानी से बना सकता है।

natashaskitchen.com: इस वेबसाइट की खासियत है कि इसमें डेजर्ट, ड्रिंक्स, मेनकोर्स से लेकर बच्चों तक के लिए अलग कैटिगरी हैं। रेसिपी बेहद स्वादिष्ट हैं।

फेसबुक पेज

Juicing-Recipes और HealthyFoodHouse पेजों पर कई तरह के टेस्टी जूस और डिशों के बारे में अच्छी जानकारी मिल सकती है।

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