चढ़दे सूरज ढलदे देखे बुझदे दीवे बलदे देखे हीरे दा कोइ मुल ना जाणे खोटे सिक्के चलदे देखे जिना दा न जग ते कोई, ओ वी पुतर पलदे देखे। उसदी रहमत दे नाल बंदे पाणी उत्ते चलदे देखे। लोकी कैंदे दाल नइ गलदी, मैं ते पथर गलदे देखे। जिन्हा ने कदर ना कीती रब दी, हथ खाली ओ मलदे देखे ... कई पैरां तो नंगे फिरदे, सिर ते लभदे छावा, मैनु दाता सब कुछ दित्ता, क्यों ना शुकर मनावा मैने चढ़ते सूरज को ढ़लते देखा है और बुझते हुए दिए को जलते हुए देखा है। यह ऐसी दुनिया है जो हीरे का मोल नहीं जानती लेकिन यहां खोटे सिक्के भी चल जाते हैं। जिनका इस संसार में कोई नहीं है उन्हें भी मैने जीते देखा है। ऊपर वाले की रहमत पर मैंने लोगों को पानी पर चलते हुए देखा है। लोग कहते हैं कि दाल नहीं गलती लेकिन मैने तो पत्थर तक गलते देखे हैं। जिसने भगवान की कद्र नहीं की उन्हें मैने हाथ मलते देखा है। कोई तो नंगे पैर घूम रहा है तो कोई सिर ढकने की छांव ढूंढ रहा है। मुझे तो उस परवरदिगार ने सबकुछ दिया है तो फिर क्यों उसका शुक्रिया न अदा करूं।
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