अनिल शर्मा एक आईटी कंपनी में काम करते हैं। कंपनी के किसी काम से उन्हें एक बार अपनी वाइफ और 5 साल के बच्चे को छोड़कर शहर से बाहर जाना पड़ा। काम में मसरूफ अनिल को रात में अचानक पता चला कि उनके बेटे का ऐक्सिडेंट हो गया है। फौरन उनका आना मुमकिन नहीं था और ऐसे में उन्होंने अपनी कंपनी को इस बारे में सूचना दी।
दो घंटे बाद उनकी पत्नी का फोन आया कि बेटे का ऑपरेशन हुआ है और अब वह ठीक है। दरअसल, अनिल की कंपनी का मैनेजमेंट सूचना मिलते ही फौरन ऐक्टिव हो गया और न सिर्फ उनके बेटे को अस्पताल पहुंचाया गया बल्कि आर्थिक मदद भी की गई।
एक दूसरा किस्सा। एक कंपनी में एक आम कामकाजी दिन, लेकिन चारों ओर कुछ कोलाहल-सा है। कहीं-से बच्चों के शोर की आवाज आ रही है तो कहीं से हंसी-ठहाकों की। गुब्बारों और रिबनों से ऑफिस सजा है। लोग आपस में मिलजुल रहे हैं। लगता है, जैसे एक-दूसरे से पहली बार मिल रहे हों। दरअसल, यह कंपनी के फैमिली डे का सीन है। इस दिन सभी कर्मचारी अपनी फैमिली को ऑफिस लाते हैं। इस बहाने फैमिली के लोग उनके वर्कप्लेस को भी देख लेते हैं और दूसरे कर्मचारियों के परिवारों से भी मिलजुल लेते हैं।
एक और वाकया। सीन एक कंपनी के कैफेटेरिया का है। कुछ दिन पहले ट्रेनी के तौर पर कंपनी जॉइन करने वाले 2-3 एंप्लॉयी बर्थडे सेलिब्रेट कर रहे हैं। अचानक मिडिल एज का एक शख्स उनके पास आता है और पार्टी में शामिल हो जाता है। जमकर मस्ती करता है और बर्थडे विश करने के बाद चला जाता है। बाद में वे ट्रेनी यह जानकर हैरान रह जाते हैं कि वह कंपनी का एमडी था।
बदलता ट्रेंडः खड़ूस बॉस की बक-बक, खून सुखाऊ डेडलाइंस, भीतर तक मार करता स्ट्रेस, कॉन्फिडेंस तोड़ने वाली गंदी राजनीति... अगर ऐसे जुमले पढ़कर आपके मन में प्राइवेट कंपनियों के वर्कप्लेस की तस्वीर उभरती है, तो ऊपर दी गई तीनों घटनाओं को फिर से पढ़ें, तीनों सच्ची हैं, पर अपने जैसी अकेली कतई नहीं हैं। इन दिनों तमाम बड़ी कंपनियों का जोर इस बात पर है कि उनके यहां काम करने वाले कर्मचारी कैसे खुश और संतुष्ट रहें।
ऐसा क्या किया जाए कि हर सुबह लोगों का ऑफिस आने का मन करे और ऑफिस का माहौल कैसे इतना पॉजिटिव बनाया जाए कि लोग फ्राइडे शाम का बेसब्री से इंतजार न करें, बल्कि रोज सुबह उत्साह से ऑफिस के लिए तैयार हों। ये वे कंपनियां हैं, जिनके लिए क्लाइंट बिना शक सबसे ऊपर है, लेकिन एंप्लॉयी भी नीचे नहीं हैं। ये वे कंपनियां हैं जो क्लाइंट और एंप्लॉयी के बीच एक खास तरह का सर्कल देखती हैं और समझती हैं कि एंप्लॉयी को खुश और संतुष्ट रखकर ही क्लाइंट को थामा जा सकता है।
हम आखिर किन कंपनियों की बात कर रहे हैं? पिछले दिनों 'इकनॉमिक्स टाइम्स' और ग्रेट प्लेसेज टु वर्क इंस्टिट्यूट ने 'बेस्ट कंपनीज टु वर्क फॉर 2015' नाम की एक स्टडी की। इस स्टडी में पिछले 5 साल से टॉप पर बनी हुई गूगल इंडिया को पछाड़कर इस बार आईटी कंपनी आरएमएसआई (RMSI) ने पहला पायदान हासिल किया है।
गूगल इंडिया, मैरियट होटल्स, अमेरिकन एक्सप्रेस और सैप लैब्स इंडिया इस सर्वे में क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर रहीं। 700 कंपनियां और 20 सेक्टरों के करीब 1.8 लाख एंप्लॉयी इस सर्वे में शामिल हुए। पहले स्थान पर आई RMSI के चेयरमैन और एमडी राजीव कपूर बताते हैं, 'हमारे 90 फीसदी क्लाइंट विदेशी हैं और वे इथिकल वैल्यूज को बहुत तवज्जो देते हैं। हमने उनसे सीखा कि हमें कौन-सी वैल्यूज को अपनाना चाहिए और उन्हें लागू कैसे किया जाए, यह हमने खुद तय कर लिया।'
बोझिल नियमों को अलविदाः घंटों-घंटों की कॉन्फ्रेंस कॉल, मीटिंग्स, ईमेल कॉरपोरेट कल्चर का अहम हिस्सा हैं। आमतौर पर एनर्जी बस्टर माने जाने वाले ऐसे कामों को दरकिनार कर कई कंपनियां कम्यूनिकेशन के ऐसे आसान तरीके अपनाने की हिम्मत दिखा रही हैं, जो एंप्लॉयी के लिए एनर्जी बूस्टर साबित होते हैं। सेकंड रैंक पर रही गूगल इंडिया में 'ब्यूरोक्रेसी बस्टर डे' मनाना इसी दिशा में उठाया गया कदम है।
गूगल इंडिया की हेड ऑफ पीपल ऑपरेशंस जयश्री राममूर्ति कहती हैं, 'हम तेजी से इस पॉइंट पर काम कर रहे हैं कि ईमेल, ब्यूरोक्रेसी और नियम-कानून के चक्कर में अहम फैसले लेने में देरी न हो। एंप्लॉयीज से भी कहा गया है कि जरूरत से ज्यादा नियम, गाइडलाइंस और पॉलिसी की वजह से होने वाली दिक्कतों को सामने लाएं और उन्हें दूर करने के लिए सुझाव दें। इसके अलावा, एक ऐसा एचआर सिस्टम लागू किया जा रहा है, जिसमें एंप्लॉयी अपने कलीग्स की परफॉर्मेंस का आकलन भी कर सकें। किसी भी तरह के व्यक्तिगत पक्षपात को दूर करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं।' ऐसे ही कुछ कदम RMSI में भी उठाए जा रहे हैं। कंपनी के सीईओ अनूप जिंदल ने कहा कि हमारा जोर सभी कर्मचारियों के साथ डायरेक्ट कम्यूनिकेशन पर है और मुझे यह कहने में गर्व है कि कंपनी का सीईओ होने के बावजूद मैं सभी कर्मचारियों के साथ ओपन क्यूबिकल में बैठता हूं। मेरी कोई सेक्रेटरी नहीं है और कोई भी एंप्लॉयी सीधे आकर मुझसे बात कर सकता है।
Her को Hi महिला कर्मचारियों के प्रति किसी कंपनी के रवैये से उस कंपनी के वर्क कल्चर के बारे में काफी कुछ पता चलता है। सैप इंडिया लैब्स के वीपी (एचआर) भुवनेश्वर नाइक कहते हैं, 'हमारी प्लैनिंग है कि 2017 तक हमारे यहां मैनेजमेंट पोजिशंस पर 25 फीसदी महिलाएं हों। इसके लिए EmpowHer नाम से कोशिशें की जा रही हैं। आमतौर पर महिलाओं को 12 हफ्ते की मैटरनिटी लीव दी जाती हैं, लेकिन हमने इन्हें बढ़ाकर 20 हफ्ते किया है। इसके अलावा प्रेग्नेंसी जैसे मामलों में मदद मुहैया कराने के लिए हमारे यहां एक खास ऐप है, जिसे महिला एंप्लॉयी यूज कर सकती हैं। डे-केयर और छोटे बच्चों के लिए स्कूल की सुविधा देकर हमने महिला कर्मचारियों के नौकरी छोड़ देने की दर को काफी नीचे लाने में कामयाबी हासिल की है।
हाथ को हाथः एंप्लॉयी के साथ खड़ी रहने वाली ऐसी कंपनियां इस बात से भी खुश हैं कि उनके कर्मचारी भी हमेशा उनके साथ खड़े हैं। RMSI की वीपी (एचआर) गगनज्योत याद करती हैं, '2011 के बाद हमारी कंपनी में काफी बदलाव हो रहे थे। मैनेजमेंट ट्रांसफर हो रहा था और कंपनी की हालत अच्छी नहीं थी। एक शाम कुछ एंप्लॉयी मेरे पास आए और बोले, हमें नहीं पता कि अगले महीने की सैलरी हमें मिलेगी या नहीं, लेकिन हमें यह पता है कि हम इस कंपनी को छोड़कर नहीं जा रहे हैं। कंपनी को इस संकट से निकालने में हम जी-जान लगा देंगे। हमारे लिए वह गर्व का पल था। हमारे 90 फीसदी कर्मचारी उस मुश्किल दौर में हमारे साथ थे और आज भी हैं। यह अपने कर्मचारियों के साथ कंपनी की बॉन्डिंग ही थी कि ऐसे टफ टाइम में भी वे कंपनी के साथ खड़े रहे और उसे आगे बढ़ाया।'
पैकेज और पद किसी कंपनी को जॉइन करने के लिए दो अहम पैमाने होते हैं। इन दोनों चीजों के मिल जाने पर ज्यादातर कर्मचारी मन का काम, उससे मिलनेवाली संतुष्टि, वर्क लाइफ बैलेंस जैसी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण चीजों को नजरंदाज कर जाते हैं। अपने किसी कर्मचारी को दो लोगों के बराबर सैलरी देने वाली कंपनी, जाहिर है उनसे तीन लोगों का काम लेना चाहेगी। शुरू में सब कुछ अच्छा लगता है, लेकिन कुछ ही दिनों में जिंदगी बोझिल लगने लगती है और ऐसे में कई बार लोग शांत जिंदगी की खातिर कम महत्वपूर्ण पदों पर रहने या पैसे से समझौता करने जैसे कदम भी उठा लेते हैं। गूगल इंडिया में काम करने वाले सौरभ भारद्वाज (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि इस कंपनी को जॉइन किए मुझे महज कुछ महीने हुए हैं। अच्छी बात यह है कि यहां मुझे वह सब मिल रहा है, जो पिछली कंपनी में मिसिंग था। काम करने का अच्छा माहौल और मन का काम हो तो बाकी चीजों से थोड़ा-बहुत समझौता भी चलता है।
कुछ कायदे, जो ऐसी कंपनियों में लागू हैं: - किसी एंप्लॉयी को चुनते वक्त 5 से 6 राउंड इंटरव्यू होता है। जिस टीम के लिए उसका चयन हो रहा है, उस टीम के मेंबर भी उसका इंटरव्यू लेते हैं और तय करते हैं कि वह साथ काम करने लायक है या नहीं।
- परफॉर्मेंस असेसमेंट का बेहद ट्रांसपैरंट सिस्टम। एक ऐसा सिस्टम जिसके जरिए साल के आखिर में एचआर का लेटर आने से पहले ही कोई एंप्लॉयी अपने आप यह अंदाजा लगा सकता है कि उसे कितना इन्क्रीमेंट या बोनस मिलने वाला है। - विमिन एंप्लॉयी के लिए स्पेशल सुविधाएं मसलन उनकी सेफ्टी का ध्यान, घर से काम, पार्टटाइम काम, फ्लेक्सिबल टाइमिंग आदि।
- एंप्लॉयी को मिलने वाला फायदा कंपनी के फायदे से सीधा-सीधा कनेक्ट होता है। कंपनी की ज्यादा कमाई का फायदा निचले लेवल के कर्मचारी तक जाता है।
- महीने की आखिरी तारीख को हर हाल में हर एम्लायी के अकाउंट में सैलरी।
- एक ऑनलाइन रिक्वेस्ट फोरम, जिसमें कोई भी एंप्लॉयी अपनी कोई ऐसी रिक्वेस्ट रख सकता है, जो पॉलिसी से बाहर हो या कंपनी के नियमानुसार जिसके वह योग्य न हो, मसलन मेडिकल इमरजेंसी के लिए फंड की व्यवस्था।
- एंप्लॉयी के लिए डिवेलपमेंट प्रोग्राम, जिसमें उन्हें टेक्निकल और बिहेवियरल ट्रेनिंग दी जाती है।
- कंपनी के स्टार परफॉर्मर का एक डेटाबेस तैयार करना और फिर उस पैमाने से यह तय करना कि बाकी के एंप्लॉयी कहां खड़े हैं।
- ऐसे एम्प्लायी की पहचान करना, जो स्टार परफॉर्मर नहीं हैं लेकिन उनके अंदर दम है। ऐसे लोगों को आगे के रोल के लिए ट्रेंड करना।
- जॉब सिक्यॉरिटी।
- ऑफिस के सीनियर पदों पर बैठे लोगों का जूनियर कर्मचारियों के साथ नजदीकी रिश्ता, मसलन हर कर्मचारी को नाम से जानना, सीनियरों को भी पहले नाम से बुलाना, एमडी और सीईओ का भी बाकी कर्मचारियों के साथ ओपन क्यूबिकल्स में बैठना।
- ऑफिस बॉय से लेकर सीईओ तक, सबके लिए कंपनी की एक जैसी पॉलिसी होना।
- कंपनी के बिजनस से जुड़े फैसलों में हर स्तर के कर्मचारी को शामिल करना और उनके आइडिया पर गौर करना।
- स्पेशल ऑनलाइन फोरम, जिसमें कोई भी कर्मचारी बिना अपना नाम जाहिर किए अपनी समस्या बता सकता है।
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