वैक्सीन यानी टीका बहुत-सी बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। हालांकि कुछ वैक्सीन को लेकर सवाल भी उठते रहते हैं कि इन्हें लगवाना चाहिए या नहीं या फिर कोई वैक्सीन नुकसान भी पहुंचा सकती है आदि। एक्सपर्ट्स से बात करते जरूरी टीकों के बारे में पूरी जानकारी दे रही हैं
प्रियंका सिंह-
सरकार ने देश भर में यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (UIP) चलाया हुआ है, जिसके तहत जन्म से लेकर 15 साल तक के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को अलग-अलग बीमारियों से बचाने के लिए वैक्सीन यानी टीके लगाए जाते हैं। सरकारी अस्पतालों में ये टीके मुफ्त लगाए जाते हैं। वैक्सीन प्राइवेट अस्पतालों में भी लगवा सकते हैं। वैसे, इस प्रोग्राम के अलावा भी डॉक्टर कुछ ऐसे टीके लगवाने की सलाह देते हैं, जो डब्ल्यूएचओ की लिस्ट में शामिल हैं। कुछ टीके कुछ खास इलाकों में होने वाली बीमारियों के अनुसार उन्हीं इलाकों में भी लगाए जाते हैं।
बेहद जरूरी टीके- (इसमें वे टीके आते हैं जो सरकारी प्रोग्राम या WHO की लिस्ट में शामिल हैं)
जन्म के फौरन बाद
BCG, OPV (पोलियो ड्रॉप्स), हेपटाइटिस बी
(टीबी, हेपटाइटिस बी और पोलियो से बचाव)
कीमत: `300-500, तीनों वैक्सीन मिलाकर
छठे हफ्ते (डेढ़ महीना) पर
DPT (डिप्थीरिया, टेटनस और काली खांसी से बचाव)
हेपटाइटिस बी (दूसरी डोज़) (हेपटाइटिस बी से बचाव)
एच इनफ्लुएंजा बी (मैनेंग्जाइटिस यानी दिमागी बुखार से बचाव)
कीमत: 5 बीमारियों (डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, हेपटाइटिस बी और मैनेंग्जाइटिस) के टीके को पैंटावेलेंट कहते हैं और पेनलेस वैक्सीन की कीमत 2400-2600 रुपये होती है, अगर पोलियो का इंजेक्शन भी साथ लेते हैं तो कीमत 2600-3900 रुपये तक हो सकती है। इन दिनों ज्यादातर पेंटावेलेंट ही लगाया जा रहा है।
रोटा वायरस (डायरिया से बचाव) कीमत: `650-1600, यह पिलाने वाली दवा है।
नीमोकॉकल (निमोनिया से बचाव) कीमत: `1500-3800
ढाई महीने पर
पेंटावेलेंट, पोलियो, रोटा वायरस, नीमोकॉकल
(डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, हेपटाइटिस, मैनेंग्जाइटिस, पोलियो और निमोनिया से बचाव)
कीमत: `4500-6500 तक, सभी वैक्सीन की
साढे़ तीन महीने पर
पेंटावेलेंट, पोलियो, रोटा वायरस, नीमोकॉकल
(डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनस, हेपटाइटिस, मैनेंग्जाइटिस, पोलियो और निमोनिया से बचाव)
कीमत: `4500-6500 तक, सभी वैक्सीन की
9वें महीने पर
MMR, विटामिन ए की ड्रॉप्स
(खसरा, कनफेड़ा, रुबैला से बचाव)
कीमत: `150-180
सवा से 2 साल
MMR, DPT बूस्टर, पोलियो बूस्टर, विटामिन ए ड्रॉप्स (खसरा, कनफेड़ा, रुबैला से बचाव)
कीमत: `300-500
नोट: बच्चे के 5 साल का होने तक हर छह महीने पर विटामिन ए की ड्रॉप्स पिलानी चाहिए।
24वें महीने (2 साल) पर
टाइफॉइड (टायफायड से बचाव)
कीमत: `1800 रुपये
नोट: यह वैक्सीन आमतौर पर तभी देना फायदेमंद है, जब बच्चा बाहर का खाना खाने लगता है। हालांकि टाइफॉइड मां से भी जा सकता है। कई बार डॉक्टर 9-10 महीने की उम्र में भी लगाते हैं।
5 साल पर
DPT लास्ट बूस्टर, पोलियो (लास्ट बूस्टर)
(डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनेस और पोलियो से बचाव)
कीमत: `20-30 `1100-1200 (पेनलेस)
9-15 साल के बीच
HPV (सर्वाइकल कैंसर से बचाव)
कीमत: `3000 प्रति डोज़, तीनों डोज़ जरूरी
नोट: इसे सेक्स शुरू करने की उम्र से पहले, करीब 11-12 साल की लड़कियों में लगवाना बेहतर है।
टिटनस (टेटनस से बचाव) कीमत: `100-200
नोट: DPT का कोर्स पूरा होने के बाद 10 और 15 साल की उम्र में इसे फिर से लगवाना चाहिए।
ध्यान दें-
- मां का दूध बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाता है और कुदरती टीके का काम करता है। मम्स, मीजल्स जैसी कई बीमारियों से यह खासतौर पर बचाता है।
- 5 साल की उम्र तक अगर DPT का टीका मिस हो गया है तो फिर इसे लगवाना आमतौर पर जरूरी नहीं होता क्योंकि इसके बाद शरीर खुद ही इन बीमारियों के खिलाफ इम्युनिटी पैदा कर लेती है।
नोट- कुछ डॉक्टर चिकनपॉक्स से बचाव के लिए भी बच्चों में टीका लगवाते हैं, वहीं डॉ. संजय राय, मानते हैं कि इसकी जरूरत नहीं है। यह जानलेवा बीमारी नहीं है और एक बार होने के बाद दोबारा नहीं होती। वैसे भी यह महंगा टीका है और इसकी कीमत 1700-1800 रु होती है।
ये छह वैक्सीन हैं बड़ों के लिएः
ये टीके जरूरी-
HPV (सर्वाइकल कैंसर से बचाव)
कीमत: `3000 प्रति डोज़, तीनों डोज़ जरूरी
- यह टीका फीमेल के लिए होता है। इसे 11-12 साल की लड़कियों में लगवाना चाहिए लेकिन 26 साल की उम्र तक महिलाएं इसे लगवा सकती हैं। हां, अगर महिला सेक्सुअली ऐक्टिव है और वायरस पहले ही लपेटे में ले चुका हो तो वैक्सीन असर नहीं करेगी। यह गार्डासिल (Gardasil) और सर्वरिक्स (Cervarix) नाम से मिलती है। गार्डासिल कैंसर करने वाले कुल 36 वायरस में से 4 और सर्वरिक्स 2 तरह के वायरस से बचाता है, जो सबसे कॉमन और खतरनाक हैं। जिन मरीजों की इम्युनिटी कमजोर हो या मल्टिपल पार्टनर हों, उन्हें भी यह टीका लगवाना चाहिए।
हेपटाइटिस बी (हेपटाइटिस से बचाव)
कीमत: `200 तीनों डोज़ (सरकारी अस्पताल में) और `1000 (प्राइवेट अस्पताल में)
-बचपन में नहीं लगा तो इसे कभी भी लगवा सकते हैं लेकिन जितना जल्दी हो सके, लगवा लेना चाहिए। पहला इंजेक्शन लगने के बाद दूसरा अगले महीने और तीसरा छठे महीने लगना होता है।
नीमोकोकल (निमोनिया से बचाव)
-इसे किसी भी उम्र में लगवा सकते हैं लेकिन आमतौर पर हर 5 साल में लगवा लेना चाहिए। 65 से ज्यादा उम्र होने वाले, शुगर, कैंसर, दिल के मरीजों आदि को जरूर लगवाना चाहिए।
TT-1 और TT-2 (टेटनस से बचाव)
-ये दोनों टीके प्रेग्नेंसी में महिलाओं को लगाए जाते हैं। दोनों टीके शुरुआती दौर में लगाए जाते हैं। कीमत: `100-200 लगभग
ये टीके जरूरी नहीं
इन्फ्लुएंजा (स्वाइन फ्लू और कुछ दूसरे बुखारों से बचाव)
कीमत: `1000-1200
-यह टीका 17 से लेकर 60 फीसदी तक असर करता है लेकिन आमतौर पर सबको इसे लगवाना जरूरी नहीं होता। हां, जिनकी इम्युनिटी कमजोर है जैसे कि डायबीटीज़, एचआईवी, दिल के मरीज आदि, उन्हें इसे लगवा लेना चाहिए। इसे हर साल अगस्त-सितंबर में लगवाएं क्योंकि हर साल इसके वायरस का स्ट्रेन बदल जाता है इसलिए जून-जुलाई में नई वैक्सीन आती है और उसे ही लगवाना फायदेमंद है।
हेपटाइटिस ए (पीलिया से बचाव)
कीमत: `1100 लगभग
-यह पीलिया से बचाता है लेकिन यह डब्ल्यूएचओ की वैक्सीनेशन की लिस्ट में नहीं है। आमतौर पर हम भारतीय पानी से पैदा होने वाली बीमारियों के प्रति 10 साल की उम्र तक इम्युनिटी पैदा कर लेते हैं। साथ ही, पीलिया अगर एक बार हो जाए तो दोबारा नहीं होता। ऐसे में यह टीका लगवाना जरूरी नहीं है।
नोट: यहां दी गईं कीमतें अनुमानित हैं, उनमें बदलाव मुमकिन है। ज्यादातर टीके सरकारी अस्पतालों में मुफ्त लगाए जाते हैं। कुछ टीकों को लेकर एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय है कि उन्हें लगाया जाना चाहिए या नहीं।
चंद अहम सवाल- जवाबः
टीका लगवाना खतरनाक तो नहीं?
टीका लगवाना खतरनाक नहीं है बल्कि टीका लगवाने से किसी भी बीमारी के होने के आसार 80-90 फीसदी तक कम हो जाते हैं। हां, अगर गैर-जरूरी टीके या फिर जरूरत से ज्यादा टीके लगवाने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा होने पर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। ऐसा भी मुमकिन है कि शरीर कन्फ्यूज हो जाए कि कौन-सी बाहरी चीज नुकसानदेह है और कौन-सी नहीं/ ऐसे में शरीर में ऑटो-इम्यून बीमारियां होने की आशंका बढ़ सकती है यानी शरीर के किसी अंग के सेल्स अपने ही खिलाफ जंग छेड़ दें। वैसे भी, अभी तक ज्यादातर टीकों के फायदों पर रिसर्च हुई है लेकिन इनसे हो सकने वाले नुकसान पर अभी रिसर्च जारी हैं। ऐसे में फालतू टीकों से बचना चाहिए।
जिंदा वायरस शरीर में डालना कितना सही?
कुछ टीकों में शरीर में डेड माइक्रोब्स (बैक्टीरिया या वायरस) डाला जाता है तो कुछ में जिंदा। BCG, पोलियो ड्रॉप्स, मीजल्स, रुबैला आदि की वैक्सीन में जिंदा माइक्रोब्स इस्तेमाल होते हैं तो DPT, हेपटाइटिस, पोलियो इंजेक्शन, टिटनस आदि में डेड माइक्रोब्स। ये माइक्रोब्स शरीर में जाकर कुदरती तौर पर एंटीबॉडी बनते हैं यानी शरीर पहचान कर लेता है कि यह बैक्टीरिया या वायरस खतरनाक है और उससे लड़ने के लिए खुद को पहले ही तैयार कर लेता है। जिन टीकों में जिंदा बैक्टीरिया या वायरस डाला जाता है, उसे भी पहले जेनिटिकली मॉडिफाइड करके इतना कमजोर कर दिया जाता है कि वह शरीर को बीमार नहीं कर सकता। यह शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और शरीर किसी बाहरी चीज के खिलाफ लड़ाई के लिए खुद को उसके अटैक करने से पहले ही तैयार कर लेता है। डेड माइब्रोब्स की मात्रा कम डाली जाती है इसलिए इनके टीके बार-बार लगवाने पड़ते हैं।
कोई टीका मिस हो जाए तो?
अगर कोई टीका मिस हो जाए तो अपने डॉक्टर से सलाह लें। हालांकि WHO की गाइडलाइंस कहती हैं कि एक डोज़ छूटने पर उसकी डोज़ साल भर के अंदर भी ले सकते हैं। पहली डोज़ से शरीर खुद को उस माइक्रोब के प्रति संवेदनशील करता है और शरीर की मेमरी में यह दर्ज हो जाता है कि यह पहले भी शरीर में आ चुका है। पूरा कोर्स दोबारा करने की जरूरत नहीं होती। फिर भी इस बारे में डॉक्टर से सलाह कर लेना बेहतर है।
पल्स पोलियो के तहत हर बार पोलियो ड्रॉप्स पीना जरूरी या नहीं?
अगर बच्चे के जन्म के समय, 6ठे, 10वें और 14वें हफ्ते के अलावा 16 से 24 महीने में बूस्टर डोज़ दिया जाता है तो पोलियो से सुरक्षा मिल जाती है लेकिन सरकार ने पूरे देश को पोलियो मुक्त करने के लिए 'पल्स पोलियो मिशन' चलाया हुआ है। उसकी कामयाबी के लिए जरूरी है कि हम बच्चों को पल्स पोलियो मिशन के दौरान हर बार पोलियो ड्रॉप्स पिलाएं ताकि हमारे देश के पूरे इन्वाइरनमेंट से पोलियों का वायरस पूरी तरह निकल सके।
एक्सपर्ट्स पैनल
-डॉ. विवेक गोस्वामी पीडियाट्रिशन, फोर्टिस हॉस्पिटल
- डॉ. हर्शल आर. साल्वे असिस्टेंट प्रफेसर, एम्स
- डॉ. उर्वशी प्रसाद झा सीनियर गाइनिकॉलजिस्ट और सर्जन
- डॉ. संजय राय प्रफेसर, कम्युनिटी मेडिसिन, एम्स
सरकार ने देश भर में यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (UIP) चलाया हुआ है, जिसके तहत जन्म से लेकर 15 साल तक के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को अलग-अलग बीमारियों से बचाने के लिए वैक्सीन यानी टीके लगाए जाते हैं। सरकारी अस्पतालों में ये टीके मुफ्त लगाए जाते हैं। वैक्सीन प्राइवेट अस्पतालों में भी लगवा सकते हैं। वैसे, इस प्रोग्राम के अलावा भी डॉक्टर कुछ ऐसे टीके लगवाने की सलाह देते हैं, जो डब्ल्यूएचओ की लिस्ट में शामिल हैं। कुछ टीके कुछ खास इलाकों में होने वाली बीमारियों के अनुसार उन्हीं इलाकों में भी लगाए जाते हैं।
बेहद जरूरी टीके- (इसमें वे टीके आते हैं जो सरकारी प्रोग्राम या WHO की लिस्ट में शामिल हैं)
जन्म के फौरन बाद
BCG, OPV (पोलियो ड्रॉप्स), हेपटाइटिस बी
(टीबी, हेपटाइटिस बी और पोलियो से बचाव)
कीमत: `300-500, तीनों वैक्सीन मिलाकर
छठे हफ्ते (डेढ़ महीना) पर
DPT (डिप्थीरिया, टेटनस और काली खांसी से बचाव)
हेपटाइटिस बी (दूसरी डोज़) (हेपटाइटिस बी से बचाव)
एच इनफ्लुएंजा बी (मैनेंग्जाइटिस यानी दिमागी बुखार से बचाव)
कीमत: 5 बीमारियों (डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, हेपटाइटिस बी और मैनेंग्जाइटिस) के टीके को पैंटावेलेंट कहते हैं और पेनलेस वैक्सीन की कीमत 2400-2600 रुपये होती है, अगर पोलियो का इंजेक्शन भी साथ लेते हैं तो कीमत 2600-3900 रुपये तक हो सकती है। इन दिनों ज्यादातर पेंटावेलेंट ही लगाया जा रहा है।
रोटा वायरस (डायरिया से बचाव) कीमत: `650-1600, यह पिलाने वाली दवा है।
नीमोकॉकल (निमोनिया से बचाव) कीमत: `1500-3800
ढाई महीने पर
पेंटावेलेंट, पोलियो, रोटा वायरस, नीमोकॉकल
(डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, हेपटाइटिस, मैनेंग्जाइटिस, पोलियो और निमोनिया से बचाव)
कीमत: `4500-6500 तक, सभी वैक्सीन की
साढे़ तीन महीने पर
पेंटावेलेंट, पोलियो, रोटा वायरस, नीमोकॉकल
(डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनस, हेपटाइटिस, मैनेंग्जाइटिस, पोलियो और निमोनिया से बचाव)
कीमत: `4500-6500 तक, सभी वैक्सीन की
9वें महीने पर
MMR, विटामिन ए की ड्रॉप्स
(खसरा, कनफेड़ा, रुबैला से बचाव)
कीमत: `150-180
सवा से 2 साल
MMR, DPT बूस्टर, पोलियो बूस्टर, विटामिन ए ड्रॉप्स (खसरा, कनफेड़ा, रुबैला से बचाव)
कीमत: `300-500
नोट: बच्चे के 5 साल का होने तक हर छह महीने पर विटामिन ए की ड्रॉप्स पिलानी चाहिए।
24वें महीने (2 साल) पर
टाइफॉइड (टायफायड से बचाव)
कीमत: `1800 रुपये
नोट: यह वैक्सीन आमतौर पर तभी देना फायदेमंद है, जब बच्चा बाहर का खाना खाने लगता है। हालांकि टाइफॉइड मां से भी जा सकता है। कई बार डॉक्टर 9-10 महीने की उम्र में भी लगाते हैं।
5 साल पर
DPT लास्ट बूस्टर, पोलियो (लास्ट बूस्टर)
(डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनेस और पोलियो से बचाव)
कीमत: `20-30 `1100-1200 (पेनलेस)
9-15 साल के बीच
HPV (सर्वाइकल कैंसर से बचाव)
कीमत: `3000 प्रति डोज़, तीनों डोज़ जरूरी
नोट: इसे सेक्स शुरू करने की उम्र से पहले, करीब 11-12 साल की लड़कियों में लगवाना बेहतर है।
टिटनस (टेटनस से बचाव) कीमत: `100-200
नोट: DPT का कोर्स पूरा होने के बाद 10 और 15 साल की उम्र में इसे फिर से लगवाना चाहिए।
ध्यान दें-
- मां का दूध बच्चे की इम्युनिटी बढ़ाता है और कुदरती टीके का काम करता है। मम्स, मीजल्स जैसी कई बीमारियों से यह खासतौर पर बचाता है।
- 5 साल की उम्र तक अगर DPT का टीका मिस हो गया है तो फिर इसे लगवाना आमतौर पर जरूरी नहीं होता क्योंकि इसके बाद शरीर खुद ही इन बीमारियों के खिलाफ इम्युनिटी पैदा कर लेती है।
नोट- कुछ डॉक्टर चिकनपॉक्स से बचाव के लिए भी बच्चों में टीका लगवाते हैं, वहीं डॉ. संजय राय, मानते हैं कि इसकी जरूरत नहीं है। यह जानलेवा बीमारी नहीं है और एक बार होने के बाद दोबारा नहीं होती। वैसे भी यह महंगा टीका है और इसकी कीमत 1700-1800 रु होती है।
ये छह वैक्सीन हैं बड़ों के लिएः
ये टीके जरूरी-
HPV (सर्वाइकल कैंसर से बचाव)
कीमत: `3000 प्रति डोज़, तीनों डोज़ जरूरी
- यह टीका फीमेल के लिए होता है। इसे 11-12 साल की लड़कियों में लगवाना चाहिए लेकिन 26 साल की उम्र तक महिलाएं इसे लगवा सकती हैं। हां, अगर महिला सेक्सुअली ऐक्टिव है और वायरस पहले ही लपेटे में ले चुका हो तो वैक्सीन असर नहीं करेगी। यह गार्डासिल (Gardasil) और सर्वरिक्स (Cervarix) नाम से मिलती है। गार्डासिल कैंसर करने वाले कुल 36 वायरस में से 4 और सर्वरिक्स 2 तरह के वायरस से बचाता है, जो सबसे कॉमन और खतरनाक हैं। जिन मरीजों की इम्युनिटी कमजोर हो या मल्टिपल पार्टनर हों, उन्हें भी यह टीका लगवाना चाहिए।
हेपटाइटिस बी (हेपटाइटिस से बचाव)
कीमत: `200 तीनों डोज़ (सरकारी अस्पताल में) और `1000 (प्राइवेट अस्पताल में)
-बचपन में नहीं लगा तो इसे कभी भी लगवा सकते हैं लेकिन जितना जल्दी हो सके, लगवा लेना चाहिए। पहला इंजेक्शन लगने के बाद दूसरा अगले महीने और तीसरा छठे महीने लगना होता है।
नीमोकोकल (निमोनिया से बचाव)
-इसे किसी भी उम्र में लगवा सकते हैं लेकिन आमतौर पर हर 5 साल में लगवा लेना चाहिए। 65 से ज्यादा उम्र होने वाले, शुगर, कैंसर, दिल के मरीजों आदि को जरूर लगवाना चाहिए।
TT-1 और TT-2 (टेटनस से बचाव)
-ये दोनों टीके प्रेग्नेंसी में महिलाओं को लगाए जाते हैं। दोनों टीके शुरुआती दौर में लगाए जाते हैं। कीमत: `100-200 लगभग
ये टीके जरूरी नहीं
इन्फ्लुएंजा (स्वाइन फ्लू और कुछ दूसरे बुखारों से बचाव)
कीमत: `1000-1200
-यह टीका 17 से लेकर 60 फीसदी तक असर करता है लेकिन आमतौर पर सबको इसे लगवाना जरूरी नहीं होता। हां, जिनकी इम्युनिटी कमजोर है जैसे कि डायबीटीज़, एचआईवी, दिल के मरीज आदि, उन्हें इसे लगवा लेना चाहिए। इसे हर साल अगस्त-सितंबर में लगवाएं क्योंकि हर साल इसके वायरस का स्ट्रेन बदल जाता है इसलिए जून-जुलाई में नई वैक्सीन आती है और उसे ही लगवाना फायदेमंद है।
हेपटाइटिस ए (पीलिया से बचाव)
कीमत: `1100 लगभग
-यह पीलिया से बचाता है लेकिन यह डब्ल्यूएचओ की वैक्सीनेशन की लिस्ट में नहीं है। आमतौर पर हम भारतीय पानी से पैदा होने वाली बीमारियों के प्रति 10 साल की उम्र तक इम्युनिटी पैदा कर लेते हैं। साथ ही, पीलिया अगर एक बार हो जाए तो दोबारा नहीं होता। ऐसे में यह टीका लगवाना जरूरी नहीं है।
नोट: यहां दी गईं कीमतें अनुमानित हैं, उनमें बदलाव मुमकिन है। ज्यादातर टीके सरकारी अस्पतालों में मुफ्त लगाए जाते हैं। कुछ टीकों को लेकर एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय है कि उन्हें लगाया जाना चाहिए या नहीं।
चंद अहम सवाल- जवाबः
टीका लगवाना खतरनाक तो नहीं?
टीका लगवाना खतरनाक नहीं है बल्कि टीका लगवाने से किसी भी बीमारी के होने के आसार 80-90 फीसदी तक कम हो जाते हैं। हां, अगर गैर-जरूरी टीके या फिर जरूरत से ज्यादा टीके लगवाने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा होने पर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं। ऐसा भी मुमकिन है कि शरीर कन्फ्यूज हो जाए कि कौन-सी बाहरी चीज नुकसानदेह है और कौन-सी नहीं/ ऐसे में शरीर में ऑटो-इम्यून बीमारियां होने की आशंका बढ़ सकती है यानी शरीर के किसी अंग के सेल्स अपने ही खिलाफ जंग छेड़ दें। वैसे भी, अभी तक ज्यादातर टीकों के फायदों पर रिसर्च हुई है लेकिन इनसे हो सकने वाले नुकसान पर अभी रिसर्च जारी हैं। ऐसे में फालतू टीकों से बचना चाहिए।
जिंदा वायरस शरीर में डालना कितना सही?
कुछ टीकों में शरीर में डेड माइक्रोब्स (बैक्टीरिया या वायरस) डाला जाता है तो कुछ में जिंदा। BCG, पोलियो ड्रॉप्स, मीजल्स, रुबैला आदि की वैक्सीन में जिंदा माइक्रोब्स इस्तेमाल होते हैं तो DPT, हेपटाइटिस, पोलियो इंजेक्शन, टिटनस आदि में डेड माइक्रोब्स। ये माइक्रोब्स शरीर में जाकर कुदरती तौर पर एंटीबॉडी बनते हैं यानी शरीर पहचान कर लेता है कि यह बैक्टीरिया या वायरस खतरनाक है और उससे लड़ने के लिए खुद को पहले ही तैयार कर लेता है। जिन टीकों में जिंदा बैक्टीरिया या वायरस डाला जाता है, उसे भी पहले जेनिटिकली मॉडिफाइड करके इतना कमजोर कर दिया जाता है कि वह शरीर को बीमार नहीं कर सकता। यह शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और शरीर किसी बाहरी चीज के खिलाफ लड़ाई के लिए खुद को उसके अटैक करने से पहले ही तैयार कर लेता है। डेड माइब्रोब्स की मात्रा कम डाली जाती है इसलिए इनके टीके बार-बार लगवाने पड़ते हैं।
कोई टीका मिस हो जाए तो?
अगर कोई टीका मिस हो जाए तो अपने डॉक्टर से सलाह लें। हालांकि WHO की गाइडलाइंस कहती हैं कि एक डोज़ छूटने पर उसकी डोज़ साल भर के अंदर भी ले सकते हैं। पहली डोज़ से शरीर खुद को उस माइक्रोब के प्रति संवेदनशील करता है और शरीर की मेमरी में यह दर्ज हो जाता है कि यह पहले भी शरीर में आ चुका है। पूरा कोर्स दोबारा करने की जरूरत नहीं होती। फिर भी इस बारे में डॉक्टर से सलाह कर लेना बेहतर है।
पल्स पोलियो के तहत हर बार पोलियो ड्रॉप्स पीना जरूरी या नहीं?
अगर बच्चे के जन्म के समय, 6ठे, 10वें और 14वें हफ्ते के अलावा 16 से 24 महीने में बूस्टर डोज़ दिया जाता है तो पोलियो से सुरक्षा मिल जाती है लेकिन सरकार ने पूरे देश को पोलियो मुक्त करने के लिए 'पल्स पोलियो मिशन' चलाया हुआ है। उसकी कामयाबी के लिए जरूरी है कि हम बच्चों को पल्स पोलियो मिशन के दौरान हर बार पोलियो ड्रॉप्स पिलाएं ताकि हमारे देश के पूरे इन्वाइरनमेंट से पोलियों का वायरस पूरी तरह निकल सके।
एक्सपर्ट्स पैनल
-डॉ. विवेक गोस्वामी पीडियाट्रिशन, फोर्टिस हॉस्पिटल
- डॉ. हर्शल आर. साल्वे असिस्टेंट प्रफेसर, एम्स
- डॉ. उर्वशी प्रसाद झा सीनियर गाइनिकॉलजिस्ट और सर्जन
- डॉ. संजय राय प्रफेसर, कम्युनिटी मेडिसिन, एम्स
मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।