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वर्ल्ड कैंसर डे: कैंसर को करें किल, बचाव और इलाज की पूरी जानकारी

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कैंसर को करें किल
कैंसर का नाम पहले कभी-कभी सुनने को मिलता था, लेकिन अब बहुतों को यह अपने शिकंजे में ले रहा है। हालांकि अच्छी बात यह है कि अब इलाज पहले से ज्यादा सटीक, आसान और सस्ता हो गया है। एक्सपर्ट्स से बात करके कैंसर से बचाव और सही इलाज के बारे में जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह...

वर्ल्ड कैंसर डे 4 फरवरी
एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. ललित कुमार, प्रफेसर और हेड, मेडिकल ऑन्कोलजी, एम्स
डॉ. अंशुमान कुमार, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलजी, धर्मशिला कैंसर हॉस्पिटल
डॉ. जी. बी. शर्मा, सीनियर कंसल्टंट, मेडिकल ऑन्कोलजी, ऐक्शन कैंसर हॉस्पिटल
डॉ. सुरेंद्र के. डबास, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलजी, बी. एल. कपूर हॉस्पिटल
डॉ. अभिषेक बंसल, कंसल्टंट, इंटरवेंशनल रेडियॉलजी, राजीव गांधी कैंसर हॉस्पिटल

क्या है कैंसर?
हमारे शरीर के सभी अंग सेल से बने होते हैं। ये सेल्स लगातार डिवाइड होते रहते हैं लेकिन कई बार ये बेकाबू होकर बंटने लगते हैं तो शरीर में गांठ (ट्यूमर) बन जाती है। यह गांठ 2 तरह की हो सकती हैं: बिनाइन और मैलिग्नेंट। बिनाइन गाठ खतरनाक नहीं होती, जबकि मैलिग्नेंट गांठ कैंसर में बदल जाती है।

कब जाएं डॉक्टर के पास
शरीर में कोई भी असामान्य लक्षण दिखने पर फौरन डॉक्टर को दिखाएं। ये लक्षण हो सकते हैं:
- अगर सोने और जागने का वक्त बदल गया हो
- मुंह खोलने, चबाने या निगलने में दिक्कत हो रही हो
- लगातार कब्ज रहती हो या 3 हफ्ते या ज्यादा से एसिडिटी लगातार बनी हुई हो (हर एसिडिटी कैंसर नहीं होती, पर यह एक लक्षण हो सकता है)
- 3 हफ्ते से ज्यादा लंबे समय से खांसी हो
- मुंह में या फिर शरीर में कहीं भी जख्म हो और 3 हफ्ते से ज्यादा वक्त से भरा नहीं हो
- बार-बार बुखार हो रहा हो या सभी इलाज के बाद भी बुखार 3 हफ्ते तक ठीक न हो रहा हो
- हीमोग्लोबिन यानी एचबी बेहद कम हो जाना
- शरीर में कहीं भी गांठ हो और वह बढ़ रही हो (दर्द न हो तो भी दिखाएं क्योंकि कैंसर में दर्द बहुत बाद की स्टेज में होता है)
- बलगम, पेशाब, शौच, इंटरकोर्स या पीरियड्स के बीच में बार-बार खून आना
- आवाज़ में बदलाव आ रहा हो, आवाज़ भारी हो रही हो
नोट: ये लक्षण दिखने के बाद भी 90 फीसदी चांस हैं कि कैंसर न हो लेकिन अगर कैंसर होगा तो शुरुआती स्टेज में बीमारी की जानकारी मिल जाए तो बेहतर इलाज मुमकिन है।
किस डॉक्टर को दिखाएं ?
शुरुआती जांच के लिए फैमिली डॉक्टर के पास भी जा सकते हैं लेकिन कैंसर का इलाज उसी डॉक्टर से कराएं, जिसके पास डीएम ऑन्कोलजी (जो एमडी के आगे की डिग्री है) या एम. सीएच. सर्जिकल ऑन्कोलजी (जोकि एमएस से आगे की डिग्री है) की डिग्री हो।

कितनी स्टेज होती हैं कैंसर की ?
कैंसर की 4 स्टेज होती हैं
स्टेज 1: यह शुरुआती स्टेज है और कैंसर जिस अंग का है, उसी में रहता है। साइज करीब 2 इंच तक होता है।
स्टेज 2: यह भी शुरुआती स्टेज है। कैंसर अगर उसी अंग में हो लेकिन साइज बढ़कर 5 इंच तक हो गया हो तो इस स्टेज का कैंसर कहलाएगा। स्टेज 1 और 2 में इलाज के बहुत अच्छे आसार होते हैं।
स्टेज 3: इसे इंटरमीडिएट स्टेज कहते हैं। इसमें कैंसर अंग विशेष से निकलकर आसपास के अंगों तक फैल जाता है। इलाज मुश्किल होता है लेकिन संभावनाएं रहती हैं।
स्टेज 4: शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल चुका है। ऐसे में आमतौर पर इलाज मुमकिन नहीं होता।

कैंसर का इलाज
कैंसर के इलाज में आमतौर पर 3 तरीके इस्तेमाल होते हैं: सर्जरी, कीमोथेरपी और रेडियोथेरपी लेकिन अब इंटरवेंशनल ऑन्कॉलजी का भी असर काफी अच्छा देखा जा रहा है।
1. सर्जरी: यह कैंसर का बेस्ट इलाज है। यह गलतफहमी है कि चाकू लगने से कैंसर फैलता है। सर्जरी में कामयाबी के आसार बहुत ज्यादा और रिस्क लगभग जीरो होता है।
2. कीमोथेरपी:इसमें मरीज को दवाएं दी जाती हैं, जो कैंसर सेल को मारती हैं। दिक्कत यह है कि ये कैंसर के साथ-साथ नॉर्मल सेल को भी मार देती हैं। इसके साइड इफेक्ट्स जैसे कि बाल झड़ना, उलटी होना, कमजोरी होना आदि भी काफी होते हैं। कीमोथेरपी 3-3 हफ्ते के अंतराल पर दी जाती है। कितनी कीमो दी जाएंगी, यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है।
3. रेडियोथेरपी:कैंसर के सेल मारने के लिए मशीन की मदद से ट्यूमर पर कंट्रोल्ड रेडिएशन डाला जाता है। एक दिन में करीब 15-20 मिनट लगते हैं और हफ्ते में 5 दिन तक रेडियोथेरपी की जाती है। इस थेरपी में कई बार मुंह का सूखना, डायरिया, स्किन का काला होना जैसे साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।
4. इंटरवेंशनल ऑन्कॉलजी: इसमें बिना चीरा लगाए सूई की मदद से सीधे कैंसर में दवा डाली जाती है या उसे जला दिया जाता है। लिवर से जुड़े कैंसर में यह ज्यादा असरदार है।

कब कौन-सी थेरपी?
आमतौर पर स्टेज 1 और स्टेज 2 में सर्जरी की जाती है, जबकि स्टेज 3 और स्टेज 4 में सर्जरी, कीमो और रेडिएशन में से किन्हीं दो का कॉम्बिनेशन इस्तेमाल किया जाता है। कौन-से दो तरीके इस्तेमाल होंगे, यह मरीज की हालत देखकर डॉक्टर तय करते हैं।

मुमकिन है बचाव
1. तंबाकू-शराब से तौबा
पुरुषों में सबसे ज्यादा कैंसर मुंह, गले और फेफड़ों का कैंसर होता है। इन तीनों ही कैंसर की सबसे बड़ी वजह तंबाकू है, फिर चाहे बीड़ी-सिगरेट हो या गुटखा। स्मोकिंग से प्रोस्टेट, किडनी, ब्रेस्ट और सर्विक्स कैंसर के भी चांस बढ़ जाते हैं। पुरुषों में करीब 50 फीसदी और महिलाओं में 20 फीसदी कैंसर की वजह तंबाकू होता है। अगर कोई शख्स 10 साल तक रोजाना 10-12 सिगरेट पीता है तो वह कैंसर का शिकार हो सकता है। अगर आपके आसपास कोई बीड़ी-सिगरेट पीता है तो उसका नुकसान आपको भी हो सकता है। ज्यादा शराब भी खतरनाक है। कोशिश करें कि इससे दूर रहें। कुछ स्टडी रोजाना एक पेग से ज्यादा तो खतरनाक मानती हैं तो कुछ जरा-सी मात्रा में शराब लेने को नुकसानदेह कहती हैं। ऐसे में तंबाकू और शराब से दूरी ही बेहतर है।

2. तनाव को टाटा

अगर आप तनाव में रहते हैं या फिर नाखुश रहते हैं तो शरीर से ऐसे केमिकल निकलते हैं, जो कैंसर की वजह बन सकते हैं। जिंदगी में पॉजिटिव सोच बनाए रखना बहुत जरूरी। एक-दो दिन के लिए दुखी रहने से फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर कुछ महीने या बरसों तक दुखी रहें या तनाव में रहें तो कैंसर की आशंका बढ़ती है। खुश रहने के अलावा रोजाना 6-7 घंटे की अच्छी नींद भी बहुत जरूरी है। ऐसा करने से शरीर कैंसर से लड़ने की क्षमता हासिल करता है।
3. पलूशन का ढूंढें सलूशन
2018 में दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में एक स्टडी की गई जिसमें पाया गया कि मार्च 2012 से जून 2018 के बीच अस्पताल में आनेवाले लंग कैंसर के कुल 150 मरीजों में से 76 स्मोकर और 74 नॉन-स्मोकर थे यानी 50 फीसदी मरीज वे थे, जो बीड़ी-सिगरेट नहीं पीते थे। इसकी एक बड़ी वजह दिल्ली-एनसीआर में बढ़ रहे एयर पलूशन को भी माना जा रहा है। ऐसे में कोशिश करें कि उन इलाकों से न गुजरें, जहां हेवी ट्रैफिक रहता है। सर्दियों में ज्यादा स्मॉग के समय बाहर निकलना हो तो N95 मास्क लगाएं। घर में हवा को साफ करने वाले पौधे जैसे कि मनी प्लांट, मदर-इन-लॉ टंग आदि लगाएं। घर के अंदर वर्टिकल गार्डन बनवाएं। इसके अलावा, प्लास्टिक के बर्तनों में खाने-पीने की चीजें गर्म करने से बचें। बार-बार गर्म करने से प्लास्टिक कंटेनर्स के केमिकल्स टूटकर खाने-पीने की चीजों में मिलने लगते हैं जो आगे जाकर कैंसर का कारण भी बन सकते हैं।

4. ऐक्टिव रहें, फिट रहें

रोजाना कम-से-कम 30-45 मिनट एक्सरसाइज जरूर करें। कुछ और नहीं कर सकते तो तेज रफ्तार से सैर ही करें लेकिन ऐक्टिव रहें। हो सके तो घर से बाहर जाकर रोजाना 1 घंटा खेलें। दरअसल, अगर शरीर में फैट ज्यादा होता है तो फैट में मौजूद एंजाइम मेल हॉर्मोन को फीमेल हॉर्मोन एस्ट्रोजिन में बदल देते हैं। फीमेल हॉर्मोन ज्यादा बढ़ने पर ब्लड कैंसर, प्रोस्टेट, ब्रेस्ट कैंसर और सर्विक्स (यूटरस) कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है। हाई कैलरी, प्रीजर्व्ड या जंक फूड, नॉन-वेज ज्यादा लेने से समस्या और बढ़ जाती है। पित्जा, बर्गर, चिप्स जैसे जंक और फैटी फूड ज्यादा खाने और फाइबर (सब्जियां, फल आदि) कम खाने से शरीर में टॉक्सिंस यानी जहरीले पदार्थ जमा हो जाते हैं। इसके अलावा, फसलों को उगाने में ज्यादा केमिकल खाद और पेस्टिसाइड का इस्तेमाल, फल-सब्जियों ताजा दिखाने के लिए उन्हें रंग (फॉर्मेलिन) में रंगना, अदरक को एसिड में धोना, चिकन के जरिए हेवी मेटल्स का शरीर में पहुंचना आदि वजहों से शरीर में कैंसर की आशंका बढ़ रही है। बेहतर है कि ज्यादा-से-ज्यादा हरी सब्जियां और फल लें। इनमें फाइबर और एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं। एंटी-ऑक्सिडेंट बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा कर कैंसर सेल्स को मारने में मदद करते हैं।

5. इन्फेक्शन से बचें
हेपटाइटिस बी, हेपटाइटिस सी, एचपीवी जैसे इन्फेक्शन कैंसर की वजह सकते हैं। हेपटाइटिस सी के इन्फेक्शन से लिवर का कैंसर और एचपीवी से महिलाओं में सर्वाइकल और पुरुषों में मुंह का कैंसर हो सकता है। इनकी रोकथाम के लिए वैक्सीन भी लगवा सकते हैं। हेपटाइटिस बी की रोकथाम के लिए हेप्ट बी वैक्सीन और सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए एचपीवी वैक्सीन लगाई जाती है। हेपटाइटिस बी का टीका किसी भी उम्र में लगवा सकते हैं जबकि सर्वाइकल कैंसर का टीका सेक्स शुरू करने से पहले यानी करीब 8-18 साल की लड़कियों में लगवाना बेहतर है। हालांकि बाद में भी लगवा सकती हैं लेकिन अगर महिला सेक्सुअली ऐक्टिव है और वायरस पहले ही लपेटे में ले चुका हो तो वैक्सीन असर नहीं करेगी।

जल्दी पता लगाने के लिए कौन-से टेस्ट कराएं
हमारे देश में कैंसर के करीब 75-80 फीसदी मामले अडवांस स्टेज के होते हैं। इसकी दो बड़ी वजहें हैः पहली, लोगों को जानकारी कम होना और यह मानना कि उन्हें कैंसर नहीं हो सकता। दूसरी, डॉक्टरों का पूरी जांच किए बिना, दूसरी बीमारी समझ इलाज करते रहना। शुरुआती स्टेज में पता लग जाए तो कैंसर का इलाज मुमकिन है। इसके लिए कुछ बातों का ख्याल रखें।
ब्रेस्ट कैंसर के लिए
- सभी महिलाएं 30 साल की उम्र के बाद हर महीने खुद ब्रेस्ट की अच्छी तरह जांच करें। बेहतर है कि इसके लिए पीरियड्स शुरू होने से 7वां दिन तय करें। 40 साल की उम्र में डॉक्टर से जांच कराएं या मेमोग्राफी कराएं। गड़बड़ी नहीं है तो 2 साल में फिर कराएं। फैमिली हिस्ट्री है तो 20 साल की उम्र से ही खुद जांच करनी शुरू करें और 35 साल की उम्र में एमआरआई करा लें। दरअसल, कम उम्र में ब्रेस्ट ठोस होता है और ऐसे में मेमोग्राफी की बजाय एमआरआई कराना बेहतर है।
- अगर नानी, मां या बहन को ब्रेस्ट कैंसर हुआ है तो ब्रेस्ट कैंसर जीन टेस्ट (BRCA) करा लेना चाहिए। इसे किसी भी उम्र में करा सकते हैं। ब्रेका-1 में गड़बड़ी होने पर कैंसर की आशंका 80 फीसदी तक और ब्रेका-2 में गड़बड़ी होने पर आशंका 50 फीसदी तक बढ़ जाती है। ये दोनों टेस्ट करीब 26 हजार रुपये में हो जाते हैं और जिंदगी में एक ही बार कराने होते हैं। टेस्ट पॉजिटिव आता है तो डॉक्टर की सलाह से लाइफस्टाइल सुधार कर कैंसर की आशंका को कम किया जा सकता है। इसी टेस्ट से हॉलिवुड एक्ट्रेस एंजलिना जोली को कैंसर की आशंका का पता चला और उन्होंने अपने ब्रेस्ट को सर्जरी कर हटवा दिया। कुछ एक्सपर्ट उनके इस कदम को गलत भी मानते हैं।

सर्वाइकल कैंसर के लिए
शादी के तीन साल के बाद पेप स्मियर टेस्ट कराएं। 3 साल लगातार कराने के बाद हर 3 साल में एक बार कराएं।

मुंह-गले के कैंसर के लिए
पान-गुटखा खाते हैं या शराब-सिगरेट पीते हैं तो 30 साल के बाद हर साल एक बार ईएनटी स्पेशलिस्ट या फिर हेड/नेक सर्जन से अपने मुंह और गले की जांच करा लें।

लंग्स के कैंसर के लिए
अगर कोई 15-20 साल से स्मोक कर रहा है और खांसी भी है तो उसे फेफड़ों का सीटी स्कैन करा लेना चाहिए। अगर रिस्क नहीं है तो भी 40 साल की उम्र में एक बार फेफड़ों का एक्स-रे या सीटी स्कैन करा लेना चाहिए।

प्रोस्टेट कैंसर के लिए
50 साल की उम्र में पुरुषों को पीएसए टेस्ट करा लेना चाहिए। हर 2 साल या डॉक्टर के बताए अनुसार रिपीट कराएं। अगर प्रोस्टेट कैंसर की फैमिली हिस्ट्री है या पेशाब संबंधी परेशानी है तो 40 साल की उम्र में ही यह टेस्ट करा लें।

कोलोन (आंत) कैंसर के लिए
अगर पॉटी में खून आ रहा है तो स्टूल ऑकल्ट ब्लड टेस्ट कराएं। कोई गड़बड़ी निकलने पर कोलोनोस्कोपी करा सकते हैं, जिससे कैंसर की जानकारी मिल जाती है।

इलाज में नया क्या
हाल के बरसों में कैंसर के इलाज में कई तकनीक आई हैं। इनमें खास हैं...
सर्जरी: अब बड़े अस्पतालों में रोबॉटिक सर्जरी की जाती है। यह थ्री-डायमेंशन सर्जरी है यानी इसमें लंबाई-चौड़ाई के साथ कट की गहराई भी नजर आती है। इसमें खून कम निकलता है और गलती की गुंजाइश भी कम होती है। रोबॉट में लगे कैमरों की मदद से सर्जरी ज्यादा सटीक हो पाती है। मरीज जल्दी घर जा सकता है। आम सर्जरी के मुकाबले इसमें एक-डेढ़ लाख रुपये ज्यादा खर्च आता है।

HIPEC: हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनिअल कीमोथेरपी को पेट, ओवरी और कोलोन के कैंसर में इस्तेमाल किया जाता ह। इसमें 42 डिग्री गर्म पानी के साथ कीमो दी जाती है जिससे कैंसर सेल ज्यादा तेजी से मरते हैं। इसके जरिए दवा सीधे सीधे ट्यूमर में डाली जाती है। इसका असर ज्यादा है और साइड इफेक्ट्स काफी कम हैं। आम कीमोथेरपी के मुकाबले इसमें एक-डेढ़ रुपये तक खर्च ज्यादा आता है।

टारगेटिड थेरपी: आम कीमो सारे सेल्स को मारती है जबकि टारगेटिड थेरपी में दवा सिर्फ कैंसर सेल्स को ही टारगेट करती है। लंग्स, किडनी और कोलोन कैंसर में यह खासकर असरदार है। यह टैब्लेट और इंजेक्शन, दोनों तरीकों से दी जाती है। कैंसर के प्रकार और स्टेज के अनुसार इसकी कीमत 5000 रुपये से लेकर 1.5 लाख रुपये प्रति महीना तक हो सकती है।

इम्यूनोथेरपी: इसमें दवा की मदद से कैंसर एंटीजन के खिलाफ एंटी-बॉडीज़ तैयार की जाती हैं। यह टारगेटिड थेरपी का ही एक हिस्सा है और स्टेज 4 के कैंसर में मरीज की उम्र बढ़ाने में मददगार है। एक बार कैंसर होने के बाद दोबारा होने से रोकने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। कैंसर के प्रकार और स्टेज के अनुसार इसका एक महीने का खर्च 20 हजार से लेकर 5 लाख रुपये तक हो सकता है।

पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट: पहले एक तरह के कैंसर के सभी मरीजों का एक जैसा इलाज किया जाता था, जबकि अब मरीज की स्थिति, दूसरी बीमारियों और किसी दवा के उस पर असर के अनुसार पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट भी तैयार किया जाता है। इसकी कीमत 30-60 हजार रुपये महीने पड़ती है।

जीन प्रोफाइलिंग: इसे जीन मैपिंग भी कहा जाता है। इसमें जीन्स की स्टडी की जाती है और देखा जाता है कि उस जीन की खराबी की आशंका कितनी है। ब्रेस्ट कैंसर होने की आंशका का पता लगाने के लिए किया जाने वाला ब्रेका टेस्ट जीन मैपिंग ही है। दूसरे कैंसरों के लिए जीन मैपिंग के अभी खास नतीजे नहीं आए हैं।

TACE और TARE थेरपी: ट्रांसआर्टिरियल कीमोएंबोलाइजेशन और ट्रांसआर्टिरियल रेडियोएंबोलाइजेशन, इंटरवेंशनल ऑन्कॉलजी ट्रीटमेंट की कैटिगरी में आते हैं। इन्हें खासतौर पर लिवर के कैंसर के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 3 सेंटीमीटर से बड़े ट्यूमर के लिए TACE और TARE तकनीक इस्तेमाल की जाती है। इसमें एंजियोग्राफी करके सीधे ट्यूमर के अंदर दवा डाली जाती है। इस तरह बिना सर्जरी के ट्यूमर खत्म हो जाता है। इसके साइड इफेक्ट्स भी काफी कम हैं। एक सीटिंग का खर्च करीब 1 लाख रुपये पड़ता है। आमतौर पर 1 या 2 सिटिंग की जरूरत होती है।
ट्यूमर एब्लेशन थेरपी: इसमें सूई डालकर रेडियोफ्रिक्वेंस या माइक्रोवेव किरणों की मदद से सीधे कैंसर को जला दिया जाता है। लंग्स, लिवर और किडनी के कैंसर में यह तकनीक ज्यादा असरदार है। एक सिटिंग की कीमत करीब 1 लाख रुपये होती है और आमतौर पर एक सिटिंग इलाज के लिए पर्याप्त होती है।

प्रोटॉन थेरपी: कैंसर सेल्स को खत्म करने के लिए किए जाने वाले रेडिएशन में अब प्रोटॉन का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है, जिसे प्रोटॉन थेरपी का नाम दिया गया है। यह तरीका ज्यादा सटीक तरीके से कैंसर सेल्स को खत्म करता है और साइड इफेक्ट भी कम हैं लेकिन इसकी कीमतें काफी ज्यादा हैं। इस पर करीब 20 लाख रुपये का खर्च आता है। अपने देश में यह तकनीक फिलहाल सिर्फ चेन्नै में अपोलो प्रोटोन कैंसर सेंटर में इस्तेमाल हो रही है।

टेस्ट
टोमोसिंथेसिस: कैंसर की पहचान के लिए टोमोसिंथेसिस (Tomosynthesis) तकनीक का सहारा लिया जाता है। टोमोसिंथेसिस में थ्री-डी पिक्चर आती है और कैंसर के बारे में बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है। इसकी कीमत करीब 10-12 हजार रुपये होती है।
लिक्विड बायोप्सी: अब ब्लड टेस्ट से भी कैंसर और उसके असर आदि का पता लगाया जा सकता है। अगर कैंसर सेल ब्लड में आ रहे हैं तो इससे पता लग सकता है। लंग कैंसर में ज्यादा फायदेमंद है। इसकी कीमत करीब 30 से 40 हजार रुपये होती है।

यह हक भी जरूरी
डॉ. ललित कुमार और डॉ. अंशुमान का कहना है कि अगर किसी मरीज का कैंसर चौथी स्टेज में पहुंच जाए और उसके ठीक होने की उम्मीद लगभग न हो तो जबरन कीमोथेरपी या दूसरे इलाज कराने के बजाय मरीज को आखिरी दिन शांति और सुकून से बिताने दें। यह अहम है कि उसके जितने दिन बचे हैं, वे अच्छे गुजरें। जबरन दवा देने के बजाय डॉक्टर मरीज के दर्द को कम करने की कोशिश करें। इस दौरान घरवाले भी मरीज की पसंद और खुशी का ख्याल रखें। इससे मरीज के आखिरी दिन सुकून से बीतेंगे और घरवालों पर भी पैसे का फिजूल बोझ नहीं पड़ेगा।

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