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ऐसे रहेगा दूर निमोनिया

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आम-सी बीमारी है निमोनिया लेकिन अगर सही इलाज न हो तो यह बड़ी परेशानी का सबब भी बन सकती है, खासकर बच्चों और बुजुर्गों में। एक्सपर्ट्स से बात करके निमोनिया के बारे में पूरी जानकारी दे रही हैं प्रियंका सिंह...

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. राजकुमार
प्रफेसर और हेड, रेस्परेटरी डिपार्टमेंट, पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट

डॉ. इंदिरा विज
सीनियर पीडियाट्रिशन, मैक्स हेल्थकेयर

डॉ. आनंद जायसवाल,
डायरेक्टर, रेस्परेटरी और स्लीप मेडिसिन, मेदांता

डॉ. नरेश बंसल
सीनियर फिजिशन, सर गंगाराम हॉस्पिटल

क्या है निमोनिया
निमोनिया सांस से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है, जिसमें फेफड़ों (लंग्स) में इन्फेक्शन हो जाता है। आमतौर पर बुखार या जुकाम होने के बाद निमोनिया होता है और यह 10-12 दिन में ठीक हो जाता है। लेकिन कई बार यह खतरनाक भी हो जाता है, खासकर 5 साल से छोटे बच्चों और 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में क्योंकि उनकी इम्युनिटी कम होती है। दुनिया भर में होने वाली बच्चों की मौतों में 18 फीसदी सिर्फ निमोनिया की वजह से होती हैं। निमोनिया होने पर फेफड़ों में सूजन आ जाती है और कई बार पानी भी भर जाता है। बच्चों में आमतौर पर वायरल से निमोनिया होता है, जबकि स्मोकिंग करनेवालों में बैक्टीरिया से। निमोनिया को 2 कैटिगरी में बांट सकते हैं। एक कम्यूनिटी से होने वाला और दूसरा हॉस्पिटल से होनेवाला। पहली कैटिगरी में वायरस, बैक्टीरिया और फंगस आदि से होनेवाला निमोनिया आता है। दूसरी कैटिगरी का निमोनिया अमूमन तब होता है, जब कोई शख्स अस्पताल में किसी बीमारी का इलाज कराने के लिए भर्ती होता है लेकिन उसे इन्फेक्शन से निमोनिया हो जाता है या फिर किसी बीमार की तीमारदारी के लिए अस्पताल में रहनेवाले या उससे मिलने आनेवाले शख्स को भी निमोनिया हो सकता है।

क्यों होता है
निमोनिया ज्यादातर बैक्टीरिया, वायरस या फंगल के हमले से होता है। मौसम बदलने, सर्दी लगने, फेफड़ों पर चोट लगने के अलावा खसरा और चिकनपॉक्स जैसी बीमारियों के बाद भी इसकी आशंका बढ़ जाती है। इधर, प्रदूषण की वजह से भी निमोनिया के मामले बढ़ रहे हैं। टीबी, एचआईवी पॉजिटिव, एड्स, अस्थमा, डायबीटीज, कैंसर और दिल के मरीजों को निमोनिया होने की आशंका ज्यादा होती है।

लक्षण
- तेज बुखार
- खांसी के साथ हरे या भूरे रंग का गाढ़ा बलगम आना, कभी-कभी हल्का-सा खून भी
- सांस लेने में दिक्कत
- दांत किटकिटाना
- दिल की धड़कन का बढ़ना
- सांस लेने की रफ्तार बढ़ना
- उलटी
- दस्त
- भूख न लगना
- होंठों का नीला पड़ना
- बहुत ज्यादा कमजोरी लगना, बेहोशी छाना
नोट: इनमें से कुछ लक्षण दूसरी बीमारियों के भी हो सकते हैं। निमोनिया के लिए सबसे अहम लक्षण है बुखार के साथ बलगम वाली खांसी और सीने में हल्का दर्द होना। बुजुर्गों और डायबीटीज के मरीजों में कई बार बिना बुखार या बलगम के भी निमोनिया होता है। ऐसे में उन में चक्कर आना, खाना-पीना छोड़ देना, बहकी बातें करना जैसे लक्षण नजर आते हैं। वैसे, अगर बुखार धीरे-धीरे बढ़ता है तो बैक्टीरियल इन्फेक्शन हो सकता है और अगर तेजी से बुखार हो तो वायरल इन्फेक्शन हो सकता है। हालांकि बीमारी की वजह टेस्ट में ही पता लगती है।

टेस्ट
आमतौर पर डॉक्टर लक्षण देखकर बीमारी का अनुमान लगा लेते हैं। फिर भी जरूरत पड़ने पर कुछ टेस्ट कराए जाते हैं। ये टेस्ट हैंः
1. टोटल ब्लड काउंट (CBC)
कीमत: 100 से 200 रुपये, अगर आरबीसी (RBC) नॉर्मल रेंज 12000 तक से ज्यादा निकलता है तो इन्फेक्शन हो सकता है।
2. छाती का एक्सरे
कीमत: 500 से 800 रुपये, एक्सरे में फेफड़ों में सफेद धब्बे नजर आते हैं तो निमोनिया हो सकता है।
3. बलगम की जांच
कीमत: 100 से 200 रुपये, ग्राम स्टेन (gram stain) टेस्ट में पस सेल्स और बैक्टीरिया के नमूने नजर आते हैं। इसके बाद कल्चर टेस्ट कराकर बैक्टीरिया के प्रकार का पता लगाया जाता है।

इलाज
- लक्षणों और बीमारी की वजह के मुताबिक इलाज किया जाता है। बैक्टीरिया से होने वाले निमोनिया के लिए एंटी-बायोटिक दवा दी जाती है लेकिन तबीयत ठीक लगने पर एंटी-बायोटिक दवा बीच में बंद नहीं करनी चाहिए। एंटी-बायोटिक का पूरा कोर्स करना जरूरी है, वरना बीमारी लौट सकती है और दोबारा होने पर बीमारी ज्यादा गंभीर होती है और तब इलाज भी मुश्किल होता है।
- बैक्टीरिया वाला निमोनिया दो से चार हफ्ते में ठीक हो सकता है लेकिन वायरल से होनेवाला निमोनिया ठीक होने में ज्यादा समय लेता है। इसमें सिस्टम के आधार पर मैनेजमेंट होता है यानी बुखार, खांसी आदि के लिए दवा दी जाती है और कुछ दिनों में यह खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है। हां, अगर स्वाइन फ्लू की वजह से निमोनिया हुआ है तो ओसेलटामिविर (Oseltamivir) दवा की जाती है, जोकि टेमीफ्लू (Temiflu), एंटी-फ्लू (Anti-flu) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है।
- छोटे बच्चों और बुजुर्गों को कई बार अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत भी पड़ती है। वहां आईवी के जरिए फ्लूइड और जरूरत पड़ने पर ऑक्सिजन भी दी जाती है। अगर किसी अडल्ट का रेस्पिरेटरी रेट एक मिनट में 30 से ज्यादा हो जाए, बीपी 120/80 से नीचे चला जाए, पल्स रेट 120 से ऊपर चला जाए तो अस्पताल में एडमिट करने की जरूरत पड़ जाती है।
- मरीज को साथ में बुखार, खांसी की दवा दी जाती है। जरूरत पड़ने पर नेबुलाइज करके कफ को निकाला जाता है।
- बीमारी की गंभीरता के अनुसार आमतौर पर 10-14 दिन दवा देने की जरूरत पड़ती है।
- इस दौरान भरपूर आराम करें और पूरी नींद लें। आराम करने से रिकवरी जल्दी होती है।
- खूब सारा लिक्विड लें। साथ में जूस, नारियल पानी, नीबू पानी आदि भी लें।
- स्टीम लेना भी राहत दिलाता है। इससे गले को नमी मिलती है। दिन में 3-4 बार स्टीम लें।

जानलेवा कब होता है
आमतौर पर निमोनिया जानलेवा नहीं होता लेकिन अगर निमोनिया के दौरान सेप्टिमीनिया यानी सेप्टिक हो जाए तो मरीज की जान जा सकती है। हालात गंभीर होने पर मरीज को आईसीयू में भी भर्ती करना पड़ता है। वक्त पर सही इलाज न मिलने पर लंग्स के एयर पॉकेट में पानी भर जाता है। जो लोग वेंटिलेटर पर हैं, जो स्टेरॉयड लेते हैं, जिन्हें कैंसर है, खुली चोटें हैं, जिनको पहले से कमजोरी हो, उनके लिए निमोनिया घातक साबित हो सकता है।

लगवाएं टीका
निमोनिया का टीका डब्ल्यूएचओ के जरूरी टीकों की लिस्ट में नहीं है। लेकिन फिर भी इसे लगवा लेना चाहिए खासकर 2 साल से कम उम्र के बच्चों और 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को। इसके अलावा जिन्हें खतरा ज्यादा है, उन्हें भी टीका लगवा लेना चाहिए। 2 साल से कम उम्र के बच्चों में निमोनिया की रोकथाम के लिए PCV13 टीका लगाया जाता है। यह करीब 13 तरह के निमोनिया से बचाता है और तीन साल तक असरदार होता है। वहीं अगर 2 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों में टीका लगाया जाता है तो PPSV23 लगता है। यह 23 तरह के निमोनिया से रक्षा करता है। 2 साल से बड़े बच्चों में सिर्फ खास परिस्थितियों में ही यह टीका लगाया जाता है मसलन अगर बच्चे को सिकल सेल डिसीज़ हो, कोहलियर इम्प्लांट हो, एड्स हो, कैंसर हो, लिवर या दिल की बीमारी आदि हो। बच्चों को सालाना इन्फ्लुएंजा वायरल वैक्सीन भी लगवानी चाहिए। वह कई तरह के वायरस अटैक और कुछ तरह के निमोनिया से भी बचाव करता है।

बचाव कैसे करें
- 2 साल से छोटे बच्चों और 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को टीका लगवाएं। जिनकी इम्युनिटी कमजोर है, उन्हें भी टीका लगवाना चाहिए।
- बहुत जरूरी न हो तो अस्पताल जाने से बचें। जाएं भी तो फालतू किसी डिपार्टमेंट में जाने या मरीजों से मिलने की कोशिश न करें।
- खांसते हुए मुंह पर नैपकिन रखें ताकि मुंह से कीटाणु निकालकर दूसरों पर हमला न करें। अगर किसी को खांसी है तो उससे थोड़ा दूर रहें।
- अगर बच्चे को खांसी है तो पूरी तरह ठीक होने तक स्कूल न भेजें ताकि दूसरे बच्चों को इन्फेक्शन न हो।
- खांसी अगर एक हफ्ते से ज्यादा वक्त से है तो डॉक्टर को दिखाएं। इसी तरह, अगर खसरा या चेचक (चिकन पॉक्स) निकलने के बाद खांसी होती है तो भी हल्के में न लें।
- छोटे बच्चों का खास ख्याल रखें। उन्हें सर्दी से बचाएं और धूप में जरूर रखें।
- ज्यादा पलूशन वाली जगहों पर जितना मुमकिन हो, न जाएं। जाना ही हो तो बेहतर क्वॉलिटी का मास्क पहनकर जाएं।
- स्मोकिंग न करें, न ही अपने आसपास किसी को स्मोकिंग करने दें।
- खुद की और अपने आसपास की साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखें।
- मौसम बदल रहा है तो खुद का ध्यान रखें। खुद को ढक कर रखें, बहुत ठंडी चीजें न खाएं।

छोटे बच्चों का रखें खास ख्याल
छोटे बच्चों खासकर नवजातों की इम्युनिटी काफी कम होती है इसलिए वे निमोनिया का शिकार आसानी से बन जाते हैं। नवजात शिशुओं में कुछ लक्षण देखकर निमोनिया का अनुमान लगा सकते हैं, मसलन अगर 2 महीने के नवजात की सांसें एक मिनट में 60 से ज्यादा बार चल रही हैं, तो सचेत हो जाएं। इसी तरह, महीने से 1 साल तक के बच्चे की सांसें एक मिनट में 50 से ज्यादा और 1 से 5 साल के बीच के बच्चे की सांसें हर मिनट में 40 से ज्यादा बार चल रही हैं तो फौरन डॉक्टर को दिखाएं। इसके अलावा, बच्चे के होंठ या हाथ-पैर की उंगलियों का नीला पड़ना, दूध पीना छोड़ देना, अचानक सुस्त हो जाना, शौच या पेशाब से खून आना, तेज बुखार होना, शरीर का ठंडा पड़ जाना, झटके लगना, पेट फूल जाना, उलटियां होना, तलवों और हथेलियों का पीला पड़ जाना आदि लक्षण निमोनिया के हो सकते हैं।
ध्यान रखें
- बच्चे का कमरा साफ-सुथरा रखें।
- 2 साल की उम्र तक जितना मुमकिन हो बच्चे को मां का दूध पिलाएं।
- सही समय पर टीका जरूर लगवाएं।
- बच्चों को बार-बार न छूएं और बाहर से आते ही बिना हाथ धोए बच्चे को न उठाएं।
- बीमार या संक्रमित शख्स से नवजात को दूर रखें ।
- लक्षण नजर आने पर बच्चे का इलाज घर पर न करें, बल्कि फौरन डॉक्टर को दिखाएं।

आम गलतियां
1. सर्दी-जुकाम समझ कर हल्के में लेना
कई बार पैरंट्स निमोनिया को गंभीरता से नहीं लेते। वे इसे साधारण सर्दी-जुकाम मानकर घरेलू इलाज करते रहते हैं। इस बीच बीमारी बढ़ती जाती है। अगर बच्चे को वायरल है तो वह 4-5 दिन में खुद ठीक हो जाता है लेकिन अगर तेज बुखार के साथ बच्चे की सांस बहुत तेजी से चल रही है, जीभ नीली पड़ रही है, हाथों में नीलापन आ रहा है, बच्चा सुस्त हो जाता है, कुछ खा-पी नहीं रहा तो मामला गंभीर हो सकता है। तब घरेलू इलाज के बजाय डॉक्टर के पास जाएं।

2. बच्चों को खूब सारे कपड़े पहना देना
बच्चे को सर्दी से बचाना बहुत जरूरी है लेकिन निमोनिया के लिए आमतौर पर एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल आदि दवाएं भी देनी पड़ती हैं। ऐसे में बच्चे को उतने ही कपड़े पहनाएं, जितने उसके शरीर को गर्म रखने के लिए जरूरी हों।

3. एंटी-बायोटिक दवाएं बीच में बंद कर देना
किसी भी बीमारी में अगर एंटी-बायोटिक दी जाती हैं तो उनका पूरा कोर्स करें, वरना बीमारी वापस आ सकती है। यह बात निमोनिया पर भी लागू होती है। पूरा इलाज न कराने से निमोनिया दोबारा हो सकता है।

मिथ और फैक्ट

सिर्फ सर्दी-जुकाम है निमोनिया
ऐसा नहीं है। यह सांस की नली और फेफड़ों का इन्फेक्शन है। सर्दी-जुकाम से आमतौर पर इसकी शुरुआत होती है।

सिर्फ सर्दियों और ठंडी जगहों पर होता है यह
निमोनिया किसी भी मौसम में और किसी भी जगह हो सकता है। हां, सर्दी के मौसम में इसकी आशंका ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि धुंध, धुएं और नमी की वजह से इस मौसम में निमोनिया के बैक्टीरिया और वायरस को पनपने का मौका ज्यादा मिलता है।

निमोनिया की रोकथाम मुमकिन नहीं है
इनडोर पलूशन को कम करके, साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखकर और वैक्सीन लगवा कर निमोनिया को काफी हद तक रोका जा सकता है।

सीने पर विक्स लगाने से राहत मिलती है
विक्स से निमोनिया में किसी तरह की राहत नहीं मिलती। हां, अगर नाक बंद है तो उसे खोलने में यह जरूर मदद करता है।

घरेलू नुस्खों से इलाज मुमकिन है
यह पूरी तरह गलत है। सर्दी-जुकाम और खांसी आदि में घरेलू नुस्खे अक्सर काम कर जाते हैं लेकिन निमोनिया में दवाएं बहुत जरूरी हैं। उनका सही मात्रा में तय समय तक लेना भी बेहद जरूरी है। ध्यान रखें, कई बार एक्सरे में फेफड़े पूरी तरह साफ नहीं दिखते। इलाज पूरा होने के बाद भी कई बार फेफड़े पूरी तरह साफ होने में थोड़ा वक्त लग जाता है।

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