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ड्रोनाचार्य की नई उड़ान

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मोबाइल पर अलर्ट आया है कि कुछ ही देर में आपके गेट पर ड्रोनजी पिज्जा डिलिवर करने वाले हैं। बाहर आकर रिसीव कर लें। शहर के नामी क्रिमिनल का चेहरा आकाश में उड़ते ड्रोन ने स्कैन कर लिया है और उसकी लोकेशन से लगातार ड्रोन कंट्रोल रूम को आगाह कर रहा है। जी नहीं, हम किसी हॉलिवुड की फिल्म की कहानी नहीं बता रहे बल्कि आने वाले वक्त की तस्वीर खींच रहे हैं। सरकार ने ड्रोन्स को रेग्युलेट करने के लिए पॉलिसी का पहला ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। ड्रोन की दुनिया और उससे जुड़ी चुनौतियों बारे में विस्तार से बता रहे हैं अमित मिश्रा...


विदेश में ड्रोन के नियम कानूनों को लेकर एक पैरा चाहिए
ड्रोन को जब बनाया गया था तो यह महज एक खिलौना था। वक्त के साथ इसकी जरूरतें बदलने लगीं। जो कभी खिलौना था, अब उसका इस्तेमाल निगरानी रखने से लेकर युद्ध के मैदान में भी शुरू हो गया है। जैसे-जैसे कंप्यूटर स्मार्ट होते जा रहे हैं, ड्रोन भी स्मार्टनेस की तरफ बढ़ रहे हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि वह दिन दूर नहीं जब इंसानी कंट्रोल की दरकार धीरे-धीरे कम हो जाएगी और एक खास कमांड देकर सारा काम ड्रोन पर ही छोड़ा जा सकेगा। मिसाल के तौर पर फ्रांस की कंपनी हार्दिस ग्रुप ने सामान की गिनती करने वाला ड्रोन बनाया है। इसका नाम है-आईसी। एंड्रॉयड से चलने वाले इस ड्रोन में आप को उड़ने का डेटा भर फीड करना होता है, इसके बाद सारा काम यह खुद करता है।

दुनिया भर में ड्रोन का बोलबाला
ड्रोन की डिमांड की बात करें तो आज यह बिलियन डॉलर इंडस्ट्री में तब्दील हो चुकी है। सर्वे से लेकर वेयर हाउस मैनेजमेंट से लेकर सीमा की निगरानी और बम गिराने तक में इसका उपयोग हो रहा है। ई-कॉमर्स, ऑनलाइन शॉपिंग और रिटेल सेक्टर की ज्यादातर कंपनियां रख-रखाव यानी लॉजिस्टिक्स के लिए ड्रोन और रोबॉट का इस्तेमाल कर रही हैं। वे पैकिंग करते हैं, सामान को सलीके से रखते हैं और हर सामान का हिसाब भी रखते हैं। अमेरिकी रिटेल कंपनी वॉलमार्ट के देश भर में ढाई लाख से ज्यादा गोदाम हैं। इनमें छोटे-से-छोटा गोदाम भी 17 फुटबॉल के मैदान के बराबर होता है। ऐसे विशाल वेयरहाउस में आजकल रोबॉट और ड्रोन ही बड़ी जिम्मेदारियां निपटाते हैं। दुनिया भर में इन कामों को अंजाम दे रहे हैं ड्रोन:
- पुलिस और आर्मी के लिए सर्विलांस
- वेयर हाउस में सामान की गिनती और टैगिंग
- जमीन का सर्वे और अतिक्रमण के बारे में जानकारी जुटाना
- सामान की डिलिवरी का काम
- ऊंचे टावर और गहरी सुरंग के भीतर जाकर हालात का पता लगाना
- खदानों के भीतर जाकर जहरीली गैस आदि के बारे में बता लगाना
- फोटोग्राफी और मूवीज की शूटिंग के लिए
- खिलौने के तौर पर
- युद्ध में बम बरसाने वाले हथियार के तौर पर


क्या है ड्रोन
इसे आप एक ऐसा रोबॉट कह सकते हैं, जो उड़ सकता है। अमूमन चार पंखों से लैस ड्रोन बैटरी के चार्ज होने पर लंबी उड़ान भर सकते हैं। इन्हें एक रिमोट या खासतौर पर बनाए गए कंट्रोल रूम से उड़ाया जा सकता है। ड्रोन का मतलब है नर मधुमक्खी। असल में यह नाम उड़ने के कारण ही इसे मिला है। यह बिल्कुल मधुमक्खी की तरह उड़ता है और एक जगह पर स्थिर रहकर मंडरा भी सकता है। ड्रोन का इस्तेमाल पहली बार पहले विश्व युद्ध में ऑस्ट्रिया ने वेनिस पर बम बरसाने के लिए किया था। तब इन्हें 'फ्लाइंग बम' कहा गया था।

हमारे लिए नया है ड्रोन
भारत के लिए ड्रोन और ड्रोन का उपयोग दोनों ही शुरुआती अवस्था में है। यहां ड्रोन बनाने वाली ज्यादातर कंपनियां मुश्किल से 5 साल पुरानी हैं और सभी में एक बात कॉमन है कि उनके पास ज्यादातर काम सरकारी एजेंसियों का है। यह प्रोफाइल भी इन्हें दुनिया की बाकी मार्केट से अलग बनाता है। जहां यूरोप और अमेरिका में ड्रोन का इस्तेमाल प्राइवेट इंडस्ट्री धड़ल्ले से कर रही है, वहीं भारत में बिजनेस का बड़ा हिस्सा सरकारी एजेंसियों से आता है। ज्यादातर काम सर्वे का है। मिसाल के तौर पर रेलवे इससे अपने ट्रैक के आसपास की जमीन का सर्वे करवाती है। राज्य सरकारों की एजेंसियां जंगलों और हरियाली का सर्वे करवाती हैं। किसी आपदा के वक्त ड्रोन से नजर रखने का काम लिया जाता है।
मुंबई की एयरपिक्स नाम की ड्रोन बनाने वाली कंपनी के को-फाउंडर शिनिल शेखर का कहते हैं, 'ज्यादातर काम सर्वे का ही है। इसलिए ड्रोन निर्माता इस सेक्टर में ही ड्रोन को लेकर आते हैं क्योंकि पैसा इसी में है। हालांकि काम के लिहाज से अब भी इस सेग्मेंट में काफी जगह है।' बेंगलुरु स्थित ड्रोन बनाने वाली कंपनी स्काईलार्क के फाउंडर मुगिलान रामास्वामी ने का कहना है कि ड्रोन के उपयोग को लेकर देश में ज्ञान का अभाव है। ढेर सारा काम ऐसा है जो ड्रोन के सहारे बहुत आसानी से और कम कीमत पर इंसानी जान को खतरे में डाले बिना किया जा सकता है, लेकिन जानकारी की कमी की वजह से ऐसा नहीं हो पाता। अब भी हमें किसी नए कस्टमर को समझाने में काफी वक्त देने पड़ता है।

लॉ ने किया लिमिट
ड्रोन बड़े काम की चीज है तो इसके खतरे भी कम नहीं है। सुरक्षा के लिए इसे हमेशा से बड़ा खतरा माना जाता रहा है। ऐसे में इसके निर्माण और उपयोग को कानूनी दायरे में लाना जरूरी था। इसके लिए रूल्स और रेग्लुशंस की पहल करके सरकार ने जता दिया है कि वह सही रास्ते पर है। सरकार ने ड्रोन को रेग्युलेट करने के लिए उसे 5 सेग्मेंट में बांटा है और हरेक के उड़ान के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव रखा है। पांच सेग्मेंट ये हैं - नैनो, माइक्रो, मिनी, स्मॉल और लार्ज
- नैनो में 250 ग्राम वजन से लेकर 150 किलो तक के ड्रोन शामिल हैं।
- माइक्रो (250 ग्राम से ज्यादा, लेकिन 2 किलोग्राम से कम) से उड़ान की सुविधा मुहैया कराने वालों को एक बार के लिए रजिस्ट्रेशन करना होगा होगा और विशिष्ट पहचान भी लेनी होगी। स्थानीय पुलिस को उड़ान की सूचना भी देनी होगी। ये ड्रोन 200 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकते हैं। ज्यादातर ड्रोन कंपनियां फिलहाल इस सेग्मेंट में काम कर रही हैं।
- मिनी या उससे ऊपर (2 किलोग्राम से लेकर 150 किलोग्राम या उससे ज्यादा वजन) के ड्रोन के लिए रजिस्ट्रेशन और विशिष्ट पहचान तो जरूरी है ही, साथ ही उन्हें हर उड़ान के लिए एयर ट्रैफिक कंट्रोलर से अनुमति भी लेनी होगी। ये 200 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकते है।
- 2 किलोग्राम से कम वजन वाले मॉडल एयरक्राफ्ट शैक्षणिक उद्देश्यों से 200 फीट की ऊंचाई भर सकते हैं।

यहां रहेगी ड्रोन पर रोक
- चालू हवाई अड्डे के पांच किलोमीटर के दायरे में ड्रोन नहीं उड़ाए जा सकेंगे।
- अंतरराष्ट्रीय सीमा या नियंत्रण रेखा से 50 किलोमीटर के दायरे में ड्रोन उड़ाने की इजाजत नहीं होगी।
- सेंट्रल दिल्ली के विजय चौक (जिसके आसपास राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय, संसद भवन, रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय वगैरह स्थित हैं) के 5 किलोमीटर के दायरे और गृह मंत्रालय की ओर से अधिसूचित क्षेत्र के आधे किलोमीटर के दायरे में ड्रोन उड़ाने की इजाजत नहीं होगी।
- चलती गाड़ी या जहाज से ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकता है। साथ ही सैंक्चुरी वगैरह इलाकों में विशेष अनुमति लेने के बाद ही ड्रोन का इस्तेमाल किया जा सकेगा। ऐसा भी प्रावधान है कि अगर कोई ड्रोन रास्ता भटककर नो-ड्रोन जोन में जाता है तो उसे नष्ट किया जा सकेगा।
- ड्रोन के कमर्शल इस्तेमाल जैसे सामान की डिलिवरी आदि की भी अनुमति दी जा सकती है। ऐसा होने पर भारी भीड़ वाले इलाकों में सामान की डिलिवरी या जरूरत पड़ने पर मेडिकल से जुड़ी मदद, मसलन एक जगह से दूसरे जगह पर ब्लड पहुंचाना जैसे कामों में आसानी होगी और वक्त भी कम लगेगा।

कब पिज्जा और मोबाइल की ड्रोन से डिलिवरी
ड्रोन इंडस्ट्री में काम करने वाले तकरीबन हर एक्सपर्ट का मानना है कि भारत जैसे देश में यह दूर की कौड़ी है। अमेरिका में भी इसका इस्तेमाल बहुत सीमित स्तर पर ही हो रहा है। स्काई लार्क के मुगिलान रामास्वामी कहते हैं कि हमारे देश में रास्तों की मैपिंग से लेकर सिटी प्लानिंग तक, कुछ भी व्यवस्थित नहीं है। ऐसे में ड्रोन से डिलिवरी फिलहाल मुमकिन नहीं है। हो सकता है कि किसी खास कैंपस के भीतर इसे किया जा सके, लेकिन पूरे शहर या इलाके में ड्रोन से डिलिवरी करना बहुत मुश्किल होगा। इसके अलावा खुले आकाश में डिलिवरी का सामान लेकर निकले ड्रोन अपने यहां कई तरह की दिक्कतों का सबब भी बन सकते हैं। इसके लिए रूल्स क्या होंगे, इन पर भी काम करने की अभी जरूरत है।

दिक्कतें अभी तमाम हैं
- ड्रोन को इंपोर्ट करने और बनाने को लेकर अभी स्पष्ट गाइडलाइंस नहीं हैं।
- माइक्रो सेग्मेंट के ड्रोन का रजिस्ट्रेशन न होने पर दिक्कत हो सकती है। अगर कभी वह नो फ्लाई जोन में जाते हैं तो इसे उड़ाने वाले की पहचान कैसे होगी? पुलिस से जुड़े अधिकारियों का भी मानना है कि इसका फायदा शरारती तत्व उठा सकते हैं।
- ई-कॉमर्स साइट्स के इस्तेमाल किए जाने पर ड्रोन का ट्रैफिक कौन कंट्रोल करेगा। हवा में दो ड्रोन के टकराने, किसी पर गिर जाने जैसी स्थितियों पर भी ड्राफ्ट खामोश है।
- पूरे ड्राफ्ट में किसी भी तरह के दंड का कोई प्रावधान नहीं है।
- अगर कोई ड्रोन से विडियो बनाता है तो प्राइवेसी में दखल का मामला बनता है। इससे डील करने के बारे में ड्राफ्ट खामोश है।
- होम मिनिस्ट्री और डिफेंस मिनिस्ट्री पहले ही ड्रोन को लेकर काफी सख्त हैं। ऐसे में पॉलिसी बनाने में उनका दखल कितना होगा, इस बारे में स्थिति साफ नहीं है।
- राज्य सरकारों से फिलहाल ड्रोन पॉलिसी के बारे में कोई बात नहीं हुई है, जबकि कानून-व्यवस्था और नियमों को लागू करवाने की जिम्मेदारी उन पर ही होगी।

अमेरिका में क्या है रेग्युलेशन का हाल
ड्रोन के रेग्युलेशन को लेकर अमेरिका हमसे कुछ ज्यादा आगे नहीं गया है। प्रेजिडंट ट्रंप ने दो दिन पहले ही अनमैन्ड एयरक्राफ्ट यानी बिना पायलट वाले हवाई जहाजों को हवाई ट्रैफिक रेग्युलेट करने वाली संस्था एफएए यानी फैडरल एविएशन एडिमिस्ट्रेशन के दायरे में लाने की बात कही है। एफएए ने जो नियम कायदे ड्रोन्स के लिए बनाए हैं वे 21 दिसंबर से देश भर में लागू हो जाएंगे। फिलहाल अमेरिका में कुछ मोटे-मोटे नियम हैं जिनको ड्रोन उड़ाने वालों को मानना होता है।
- कोई भी इंसान या एजेंसी बिना परमिशन के ऐसे ड्रोन नहीं उड़ा सकती, जो इतनी दूर तक उड़ें कि कंट्रोल करने वाले को दिखाई ही न दें।
- रात में ड्रोन बिना अथॉरिटी की परमिशन के नहीं उड़ाए जा सकते।
- चूंकि एमजॉन जैसी कंपनियां लंबी दूरी तक ड्रोन से डिलिवरी करना चाहती हैं, ऐसे में वहेसरकार से एक खास पायलट प्रोजेक्ट के तहत परमिशन ले रही हैं।
- एमजॉन अमेरिका ड्रोन के जरिए आधे घंटे के भीतर सामान डिलिवर करने के वादे के साथ इस तरह की परमिशन मांग रहा है।
- एफएए वेब आधारित ड्रोन रजिस्ट्रेशन प्रोसेस शुरू करने के बारे में सोच रहा है, जिसमें कोई भी ड्रोन को इस्तेमाल करने से पहले 5 डॉलर या तकरीबन 400 रुपये फीस भर कर रजिस्ट्रेशन करा सकता है।
- अपने ड्राफ्ट में एफएए ने कहा है कि वह रजिस्ट्रेशन के पूरे प्रोसेस को 5 मिनट का रखना चाहता है।
- अमेरिकी सरकार एयर ट्रैफिक कंट्रोल को प्राइवेट हाथों में देने पर काफी तेजी से काम कर रही है। ऐसा होने के बाद ड्रोन को रास्ता दिखाने का काम भी इसके जिम्मे आ सकता है।
- नए ड्राफ्ट में ड्रोन के आपस में एक्सिडेंट या किसी पर गिर जाने को लेकर भी नियम हैं।
- बिना रजिस्ट्रेशन के ड्रोन उड़ाने पर 17 लाख रुपये से डेढ करोड़ रुपये तक की पेनल्टी और 1 साल तक की सजा का प्रावधान किए जाने का प्रस्ताव है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
हमने होम मिनिस्ट्री से डिस्कस करने के बाद ही ड्रोन को लेकर ऐसा ड्राफ्ट तैयार किया है जिससे ड्रोन इंडस्ट्री में बिजनस करने की सहूलियत तो बढ़े और इसके गलत इस्तेमाल की कोई आशंका भी न रहे। -आर.एन. चौबे, सिविल ऐविएशन सेक्रेटरी

ड्रोन को लेकर सरकार की जल्दबाजी समझ से बाहर है। ड्राफ्ट इतना ढीला-ढाला है कि इसमें सेफ्टी, सिक्यॉरिटी और प्राइवेसी के मूल मामलों पर चर्चा तक नहीं की गई है। -विराग गुप्ता, ऐडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट

साइबर सिक्यॉरिटी पहले ही काफी पेचींदा मामला है ऐसे में ड्रोन को खुली छूट देना परेशानी का सबब बन सकता है। इस पर एक व्यापक पॉलिसी बनाने की जरूरत है न कि तुरत-फुरत में कोई फैसला लेने की। -पवन दुग्गल, साइबर कानून एक्सपर्ट

स्ट्रैटजिक लोकेशन हर शहर में होती है और इस तरह से बिना रजिस्ट्रेशन के किसी भी तरह के ड्रोन को ऑपरेट करने की छूट देना नैशनल सिक्यॉरिटी के लिए खतरा साबित हो सकता है। - एक पुलिस अधिकारी

शुरुआती तौर पर देखने से ड्राफ्ट काफी अच्छा है। इससे इंडस्ट्री को काफी फायदा होगा। हालांकि देश में बनने वाले ड्रोन और बाहर से आयात होने वाले ड्रोन पर पॉलिसी में सुधार की जरूरत है। हम फिलहाल इतने सक्षम नहीं कि खुद ही हर तरह के ड्रोन बना सकें। -मुघिलान थिरु रामास्वामी फाउंडर, सीईओ, स्काईलार्क ड्रोन

छोटे ड्रोन का इस्तेमाल संख्या के लिहाज से ज्यादा होता है, लेकिन ज्यादा कमाई वाले काम बड़े ड्रोन ही करते हैं। ऐसे में तगड़े रेग्युलेशन से इस सेग्मेंट के ड्रोन पर पड़ने वाले असर को वक्त के हिसाब से देख कर बदलाव करना चाहिए। रेग्युलेशन का वक्त-वक्त पर रिव्यू भी जरूरी है। -शिनिल शेखर, को-फाउंडर, एयर पिक्स

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